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संजीव मालवीय

हहंदी

मझ
ु े पता नहीं है ये पीडीएफ कैसी बनी होगी जल्दी में बनाई है क्योंकक परीक्षा में समय नहीं
है| भाइयों-बहनों अगर पीडीएफ में गलती हो तो ककसी अन्य पस्
ु तक से इसका लमलान करलें
और गलती के ललए मझ
ु े क्षमा करें

धन्यवाद

संधध

दो पदों में संयोजन होने पर जब दोवर्ण पास -पास आते हैं , तब उनमें जो ववकार सहहत मेल होता है , उसे संधध
कहते हैं|

संधध तीन प्रकार की होती हैं :-

1. स्वर संधध - दो स्वरों के पास -पास आने पर उनमें जो रूपान्तरर् होता है , उसे स्वर कहते है ! स्वर संधध
के पांच भेद हैं

1. दीर्ण स्वर संधध


2. गर्
ु स्वर संधध
3. यर् स्वर संधध
4. वद्
ृ धध स्वर संधध

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संजीव मालवीय

5. अयाहद स्वर संधध

1. दीर्ण स्वर संधध - जब दो सवर्ी स्वर पास -पास आते हैं , तो लमलकर दीर्ण हो जाते हैं|

1. अ+अ = आ भाव +अर्ण = भावार्ण


2. इ+ई = ई धगरर +ईश = धगरीश
3. उ+उ = ऊ अनु +उहदत = अनहू दत
4. ऊ+उ = ऊ वधू +उत्सव =वधूत्सव
5. आ+आ = आ ववद्या +आलय = ववधालय

2. गर्
ु संधध :- अ तर्ा आ के बाद इ , ई , उ , ऊ तर्ा ऋ आने पर क्रमश: ए , ओ तर्ा अनतस्र् र होता है
इस ववकार को गर्
ु संधध कहते है|

1. अ+इ = ए दे व+इन्र = दे वेन्र


2. अ+ऊ = ओ जल+ऊलमण = जलोलमण
3. अ+ई = ए नर+ईश = नरे श
4. आ+इ = ए महा+इन्र = महे न्र
5. आ+उ = ओ नयन+उत्सव = नयनोत्सव

3 यर् स्वर संधध :- यहद इ , ई , उ , ऊ ,और ऋ के बाद कोई लभन्न स्वर आए तो इनका पररवतणन क्रमश: य
, व ् और र में हो जाता है|

1. इ का य = इतत+आहद = इत्याहद
2. ई का य = दे वी+आवाहन = दे व्यावाहन
3. उ का व = सु+आगत = स्वागत
4. ऊ का व = वधू+आगमन = वध्वागमन
5. ऋ का र = वपत+
ृ आदे श = वपत्रादे श

3. वद्
ृ धध स्वर संधध :- यहद अ अर्वा आ के बाद ए अर्वा ऐ हो तो दोनों को लमलाकर ऐ और यहद ओ
अर्वा औ हो तो दोनों को लमलाकर औ हो जाता है |

1. अ+ए = ऐ एक+एक = एकैक


2. अ+ऐ = ऐ मत+ऐक्य = मतैक्य
3. अ+औ = औ परम+औषध = परमौषध
4. आ+औ = औ महा+औषध = महौषध
5. आ+ओ = औ महा+ओर् = महौर्

5. अयाहद स्वर संधध :- यहद ए , ऐ और ओ , औ के पशचात इन्हें छोड़कर कोई अन्य स्वर हो तो इनका
पररवतणन क्रमश: अय , आय , अव , आव में हो जाता है|

1. ए का अय ने+अन = नयन

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2. ऐ का आय नै+अक = नायक
3. ओ का अव पो+अन = पवन
4. औ का आव पौ+अन = पावन
5. न का पररवतणन र् में श्रो+अन = श्रवर्

2. व्यंजन संधध :- व्यंजन के सार् स्वर अर्वा व्यंजन के मेल से उस व्यंजन में जो रुपान्तरर् होता है , उसे
व्यंजन संधध कहते हैं|

1. प्रतत+छवव = प्रततच्छवव
2. हदक् +अन्त = हदगन्त
3. हदक् +गज = हदग्गज
4. अन+
ु छे द =अनच्
ु छे द
5. अच+अन्त = अजन्त

3. ववसगण संधध : - ववसगण के सार् स्वर या व्यंजन का मेल होने पर जो ववकार होता है , उसे ववसगण संधध कहते
हैं|

1. मन:+रर् = मनोरर्
2. यश:+अलभलाषा = यशोलभलाषा
3. अध:+गतत = अधोगतत
4. तन:+छल = तनश्छल
5. द:ु +गम = दग
ु म

रस
रस — रस का शाब्ददक अर्ण होता है – आनंद

पररभाषा – काव्य को पढ़ने या सुनने से ब्जस आनंद की अनभ


ु ूतत होती है, उसे रस कहते है|

पाठक या श्रोता के ह्रदय में ब्स्र्त स्र्ायी भाव ही ववभावादी से संयक्


ु त होकर रस रूप में पररणर्त हो जाता है|

रस को काव्य की आत्मा/प्रार् कहते है,

रस के अवयव या अंग –

रस के चार अंग या अवयव होते है,

1. स्र्ायी भाव
2. ववभाव
3. अनभ
ु ाव
4. संचारी भाव

स्र्ायी भाव – स्र्ायी भाव का अर्ण प्रधान भाव होता है – यह रस की अवस्र्ा तक पंहुचाता है|

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 ककसी नाटक या काव्य में केवल एक ही स्र्ायी भाव आरम्भ से अंत तक होता है|
 स्र्ायी भावो की संख्या 9 मानी गयी है|
 स्र्ायी भाव ही रस का आधार माना जाता है|
 एक रस के मल
ू में केवल एक ही स्र्ायी भाव होता है|
 अतः रसो की संख्या 9 मानी जाती है|
 ककन्तु बाद के आचायो ने 2 और भावो को स्र्ायी भाव की संज्ञा दी है|
 अतः स्र्ायी भावो की संख्या 11 मानी गयी|

ववभाव – ब्जन कारर्ों से स्र्ायी भाव उत्पन्न होता है, उसे ववभाव कहते है, अर्ाणत स्र्ायी भाव के कारर्ों को
ववभाव कहते है, ये दो प्रकार के होते है|

आलंबन ववभाव – ब्जसका सहारा या आलंबन पाकर स्र्ायी भाव जागत


ृ होता है,उसे आलंबन ववभाव कहते है|

जैसे – नायक और नातयका ये आलंबन ववभव के दो पक्ष होते है, नायक या नातयका ब्जसके मन में दस
ु रे के
प्रतत कोई भाव जागत
ृ हो तो उसे आश्रयलंबन कहलाता है,

और ब्जसके प्रतत भाव जागत


ृ होता है, उसे – ववषयालंबन कहते है

उदा. – यहद राम के मन में सीता को दे खकर कोई भाव जागत


ृ होता है, तो राम आश्रय है, और सीता ववषय|

2. उद्दीपन ववभाव – ब्जन वस्तुओ या पररब्स्र्तत को दे खकर स्र्ायी भाव उद्दीप्त होने लगता है, उद्दीपन
ववभाव कहलाता हैl

जैसे – चांदनी, कोककल क्रुजन, एकांत स्र्ल, रमर्ीक उद्यान आहद को दे खकर जो भाव मन में उद्दीप्त होता है,
उसे उद्दीपन कहते है|

अनभ
ु ाव – मन के भाव को व्यक्त करने वाले शरीर ववकार ही अनभ
ु ाव कहलाते है, अर्ाणत वह भाव ब्जसके द्वारा
ककसी व्यब्क्त के मन के भावो को उसके शरीर के ववकारो से जाना जा सकता है,

अनभ
ु ाव की संख्या 8 होती है, –

 स्तम्भ
 स्वेद
 रोमांच
 स्वर भंग
 कम्प
 वववर्णता (रं गहीनता)
 अश्रु
 प्रलय (तनश्चेष्टता)

संचारी भाव – मन में संचरर् अर्ाणत आने – जाने वाले भावो को संचारी भाव कहते है,

संचारी भावो की संख्या 33 मानी जाती है,

1. हषण
2. ववषाद

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 त्रास

1. लज्जा
2. ग्लानी
3. धचंता

 शंका
 असय
ू ा (दस
ु रे के उत्कषण के प्रतत असहहष्र्त
ु ा)

1. अमषण ( ववरोधी का उपकार करने की अक्षमता से उत्पन्न दःु ख )


2. मोह
3. गवण

 उत्सुकता
 उग्रता
 चपलता

1. दीनता

 जड़ता
 आवेग
 तनवेद
 धतृ त ( इच्छाओं की पतू तण, धचत की चंचलता का अभाव )

1. मतत

 बबबोध ( चैतन्य लाभ )


 ववतकण
 श्रम
 आलस्य
 तनरा
 स्वप्न
 स्मतृ त
 मद
 उन्माद
 अवहहत्र्ा ( हषण आहद भावो को तछपाना )
 अपस्मार
 व्याधध
 मरर्

स्र्ायी भाव और संचारी भाव में अंतर

स्र्ायी भाव संचारी भाव

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संजीव मालवीय

1. स्र्ायी भाव सहृदय के ह्रदय में स्र्ायी रूप से 1.संचारी भाव सहृदय के धचत्त में पानी के बल
ु बल
ु े के
ववद्यमान होते हैं | समान प्रकट होते हैं और तरु ं त लुप्त हो जाते हैं |
2. प्रत्येक रस का अपना एक स्र्ायी भाव होता है, ये 2. एक संचारी भाव का अनेक रस में संचार हो सकता
अपने रस के जनक कहलाते हैं | है, इसीललए इसे व्यलभचारी भाव की संज्ञा दी गई है |

3. स्र्ायी भावों की संख्या 10 है | 3.सचारी भावों की संख्या 33 है |


4.स्र्ायी भाव सहृदय के ह्रदय में दीर्ण समय तक बने 4.सचारी भाव सहृदय के धचत्त में कुछ क्षर्ों के ललए
रहते है| उत्पन्न होते है, ये अस्र्ायी होते हैं|

रस के प्रकार

मूलतः रस के 9 प्रकार माने जाते है, ककन्तु बाद के आचायो ने 2 और स्र्ायी भावो मान्यता दे कर रस की
संख्या भी 11 बताई है, जो की इस प्रकार है

रस स्र्ायी भाव उदहारर्

श्रंग
ृ ार रतत 1. बतरस लालच लाल की, मुरली धरर लक
ु ाय।
सौंह करे , भौंहतन हँस,ै दै न कहै, नहट जाय।
2. तनलसहदन बरसत नयन हमारे ,
सदा रहतत पावस ऋतु हम पै जब ते स्याम
लसधारे ॥

वीर उत्साह 1. वीर तम


ु बढ़े चलो, धीर तम
ु बढ़े चलो।
सामने पहाड़ हो कक लसंह की दहाड़ हो।
तुम कभी रुको नहीं, तुम कभी झुको नहीं॥

शांत वैराग्य 1. मन रे तन कागद का पत


ु ला।
लागै बँद
ू बबनलस जाय तछन में, गरब करै क्या
इतना॥

करुर् शोक 1. सोक बबकल सब रोवहहं रानी| रूपु सीलु बलु तेजु
बखानी||
करहहं ववलाप अनेक प्रकारा| पररहहं भूलम तल बारहहं
बारा||

रौर क्रोध 2. श्रीकृष्र् के सुन वचन अजुणन क्षोभ से जलने लगे।


सब शील अपना भल
ू कर करतल यग
ु ल मलने
लगे॥
संसार दे खे अब हमारे शत्रु रर् में मत
ृ पड़े।
करते हुए यह र्ोषर्ा वे हो गए उठ कर खड़े॥

भयानक भय 1. उधर गरजती लसंधु लहररयाँ कुहटल काल के जालों


सी।
चली आ रहीं फेन उगलती फन फैलाये व्यालों -

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सी॥

वीभत्स र्र्
ृ ा 1. लसर पर बैठ्यो काग आँख दोउ खात तनकारत।
खींचत जीभहहं स्यार अततहह आनंद उर धारत॥
गीध जांतर् को खोहद-खोहद कै माँस उपारत।
स्वान आंगरु रन काहट-काहट कै खात ववदारत॥

अदभुत ववस्मय 1. अणखल भुवन चर- अचर सब, हरर मख


ु में लणख
मात।ु
चककत भई गद्गद् वचन, ववकलसत दृग पल
ु कातु॥

हास्य हास 1. तंबरू ा ले मंच पर बैठे प्रेमप्रताप, साज लमले पंरह


लमनट र्ंटा अलाप।
र्ंटा भर अलाप, राग में मारा गोटा, धीरे -धीरे
णखसक चुके र्े सारे श्रोता॥

वात्सल्य वत्सलता 1. ककलकत कान्ह र्ट


ु रुवन आवत।
मतनमय कनक नंद के आंगन बबम्ब पकररवे
र्ावत॥

भब्क्त भगवद ववषयक 1. राम जप,ु राम जप,ु राम जपु बावरे ।
रतत र्ोर भव नीर- तनधध, नाम तनज नाव रे ॥

छं द
छं द शदद 'चद्' धातु से बना है ब्जसका अर्ण है 'आह्लाहदत करना', 'खुश करना'। यह आह्लाद वर्ण या मात्रा की
तनयलमत संख्या के ववन्यास से उत्पन्न होता है। इस प्रकार, छं द की पररभाषा होगी 'वर्ों या मात्राओं के
तनयलमत संख्या के ववन्यास से यहद आह्लाद पैदा हो, तो उसे छं द कहते हैं'। छं द का सवणप्रर्म उल्लेख 'ऋग्वेद'
में लमलता है। ब्जस प्रकार गद्य का तनयामक व्याकरर् है, उसी प्रकार पद्य का छं द शास्त्र है।

छं द के अंग तनम्नललणखत हैं?

1. चरर्/ पद/ पाद


2. वर्ण और मात्रा
3. संख्या और क्रम
4. गर्
5. गतत
6. यतत/ ववराम
7. तुक

1.चरर्/पद/पाद
छं द के प्रायः 4 भाग होते हैं। इनमें से प्रत्येक को 'चरर्' कहते हैं। दस
ू रे शददों में छं द के चतर्
ु ाांश
(चतुर्ण भाग) को चरर् कहते हैं।

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कुछ छं दों में चरर् तो चार होते हैं लेककन वे ललखे दो ही पंब्क्तयों में जाते हैं, जैसे- दोहा, सोरठ आहद। ऐसे छं द
की प्रत्येक पंब्क्त को 'दल' कहते हैं। हहन्दी में कुछ छं द छः-छः पंब्क्तयों (दलों) में ललखे जाते हैं, ऐसे छं द दो
छं द के योग से बनते हैं, जैसे- कुण्डललया (दोहा + रोला), छप्पय (रोला+उल्लाला) आहद। चरर् 2 प्रकार के होते
हैं सम चरर् और ववषम चरर्। प्रर्म व तत
ृ ीय चरर् को ववषम चरर् तर्ा द्ववतीय व चतुर्ण चरर् को सम
चरर् कहते हैं।

2.वर्ण और मात्रा
एक स्वर वाली ध्वतन को वर्ण कहते हैं, चाहे वह स्वर ह्रस्व हो या दीर्ण। ब्जस ध्वतन में स्वर नहीं हो
(जैसे हलन्त शदद राजन ् का 'न ्', संयक्
ु ताक्षर का पहला अक्षर - कृष्र् का 'ष ्') उसे वर्ण नहीं माना जाता। वर्ण
को ही अक्षर कहते हैं।
वर्ण 2 प्रकार के होते हैं-
ह्रस्व स्वर वाले वर्ण (ह्रस्व वर्ण): अ, इ, उ, ऋ, क, कक, कु, कृ
दीर्ण स्वर वाले वर्ण (दीर्ण वर्ण): आ, ई, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ, का, की, कू, के, कै, को, कौ
मात्रा
ककसी वर्ण या ध्वतन के उच्चारर्-काल को मात्रा कहते हैं। ह्रस्व वर्ण के उच्चारर् में जो समय लगता है उसे
एक मात्रा तर्ा दीर्ण वर्ण के उच्चारर् में जो समय लगता है उसे दो मात्रा माना जाता है।
इस प्रकार मात्रा दो प्रकार के होते हैं - वर्ों में मात्राओं की धगनती में स्र्ूल भेद यही है कक वर्ण 'स्वर अक्षर'
को और मात्रा 'लसर्फण स्वर' को कहते हैं।
लर्ु व गरु
ु वर्ण
छं दशास्त्री ह्रस्व स्वर तर्ा ह्रस्व स्वर वाले व्यंजन वर्ण को लर्ु कहते हैं। लर्ु के ललए प्रयक्
ु त धचह्न - एक पाई
रे खा ।
इसी प्रकार, दीर्ण स्वर तर्ा दीर्ण स्वर वाले व्यंजन वर्ण को गरु
ु कहते हैं। गरु
ु के ललए प्रयक्
ु त धचह्न - एक
वतणल
ु रे खा - ऽ
लर्ु वर्ण के अंतगणत शालमल ककये जाते हैं
अ, इ, उ, ऋ, क, कक, कु, कृ
अँ, हँ (चन्र बबन्द ु वाले वर्ण)

गरु
ु वर्ण के अंतगणत शालमल ककये जाते हैं-
आ, ई, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ, का, की, कू, के, कै, को, कौ
इं, ववं, तः, धः (अनस्
ु वार व ववसगण वाले वर्ण)
(इंद)ु (बबंद)ु (अतः) (अधः)

3.संख्या और क्रम
वर्ों और मात्राओं की गर्ना को संख्या कहते हैं। लर्-ु गरु
ु के स्र्ान तनधाणरर् को क्रम कहते हैं।
वणर्णक छं दों के सभी चरर्ों में संख्या (वर्ों की) और क्रम (लर्-ु गरु
ु का) दोनों समान होते हैं। जबकक माबत्रक
छं दों के सभी चरर्ों में संख्या (मात्राओं की) तो समान होती है लेककन क्रम (लर्-ु गरु
ु का) समान नहीं होते हैं।

4.गर् (केवल वणर्णक छं दों के मामले में लाग)ू


गर् का अर्ण है 'समूह'। यह समूह तीन वर्ों का होता है। गर् में 3 ही वर्ण होते हैं, न अधधक न
कम।
अतः गर् की पररभाषा होगी 'लर्-ु गरु
ु के तनयत क्रम से 3 वर्ों के समूह को गर् कहा जाता है'।
गर्ों की संख्या 8 है - यगर्, मगर्, तगर्, रगर्, जगर्, भगर्, नगर्, सगर्

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5.गतत
छं द के पढ़ने के प्रवाह या लय को गतत कहते हैं। गतत का महत्त्व वणर्णक छं दों की अपेक्षा माबत्रक छं दों
में अधधक है। बात यह है कक वणर्णक छं दों में तो लर्-ु गरु
ु का स्र्ान तनब्श्चत रहता है ककन्तु माबत्रक छं दों में
लर्-ु गरु
ु का स्र्ान तनब्श्चत नहीं रहता, परू े चरर् की मात्राओं का तनदे श नहीं रहता है।
मात्राओं की संख्या ठीक रहने पर भी चरर् की गतत (प्रवाह) में बाधा पड़ सकती है।

6.यतत/ववरोम
छं द में तनयलमत वर्ण या मात्रा पर साँस लेने के ललए रुकना पड़ता है, इसी रूकने के स्र्ान को यतत या
ववरोम कहते हैं। छोटे छं दों में साधारर्तः यतत चरर् के अन्त में होती है; पर बड़े छं दों में एक ही चरर् में एक
से अधधक यतत या ववराम होते हैं।

7.तुक
छं द के चरर्ान्त की अक्षर-मैत्री (समान स्वर-व्यंजन की स्र्ापना) को तुक कहते हैं।
ब्जस छं द के अंत में तक
ु हो उसे तक
ु ान्त छं द और ब्जसके अन्त में तक
ु न हो उसे अतक
ु ान्त छं द कहते हैं।
अतुकान्त छं द को अंग्रेजी में दलैंक वसण कहते हैं।
वणर्णक छं द (या वत
ृ ) - ब्जस छं द के सभी चरर्ों में वर्ों की संख्या समान हो।
माबत्रक छं द (या जातत) - ब्जस छं द के सभी चरर्ों में मात्राओं की संख्या समान हो।
मुक्त छं द - ब्जस छं द में वणर्णक या माबत्रक प्रततबंध न हो।

वणर्णक छं द
वणर्णक छं द के सभी चरर्ों में वर्ों की संख्या समान रहती है और लर्-ु गरु
ु का क्रम समान रहता है।
प्रमुख वणर्णक छं द : प्रमाणर्का (8 वर्ण); स्वागता, भुजंगी, शाललनी, इन्रवज्रा, दोधक (सभी 11 वर्ण); वंशस्र्,
भुजंगप्रयाग, रत
ु ववलब्म्बत, तोटक (सभी 12 वर्ण); वसंतततलका (14 वर्ण); माललनी (15 वर्ण); पंचचामर, चंचला
(सभी 16 वर्ण); मन्दाक्रान्ता, लशखररर्ी (सभी 17 वर्ण), शादणल
ू ववक्रीडडत (19 वर्ण), स्त्रग्धरा (21 वर्ण), सवैया
(22 से 26 वर्ण), र्नाक्षरी (31 वर्ण) रूपर्नाक्षरी (32 वर्ण), दे वर्नाक्षरी (33 वर्ण), कववत्त / मनहरर् (31-33
वर्ण)।

माबत्रक छं द
माबत्रक छं द के सभी चरर्ों में मात्राओं की संख्या तो समान रहती है लेककन लर्-ु गरु
ु के क्रम पर
ध्यान नहीं हदया जाता है।

प्रमुख माबत्रक छं द
सम माबत्रक छं द :- अहीर (11 मात्रा), तोमर (12 मात्रा), मानव (14 मात्रा); अररल्ल, पद्धरर/ पद्धहटका, चौपाई
(सभी 16 मात्रा); पीयष
ू वषण, सम
ु ेरु (दोनों 19 मात्रा), राधधका (22 मात्रा), रोला, हदक्पाल, रूपमाला (सभी 24 मात्रा),
गीततका (26 मात्रा), सरसी (27 मात्रा), सार (28 मात्रा), हररगीततका (28 मात्रा), तांटक (30 मात्रा), वीर या आल्हा
(31 मात्रा)।
अद्णधसम माबत्रक छं द :- बरवै (ववषम चरर् में - 12 मात्रा, सम चरर् में - 7 मात्रा), दोहा (ववषम - 13, सम -
11), सोरठा (दोहा का उल्टा), उल्लाला (ववषम - 15, सम - 13)।
ववषम माबत्रक छं द : कुण्डललया (दोहा + रोला), छप्पय (रोला + उल्लाला)।

मक्
ु त छं द

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संजीव मालवीय

ब्जस ववषय छं द में वणर्णत या माबत्रक प्रततबंध न हो, न प्रत्येक चरर् में वर्ों की संख्या और क्रम समान हो
और मात्राओं की कोई तनब्श्चत व्यवस्र्ा हो तर्ा ब्जसमें नाद और ताल के आधार पर पंब्क्तयों में लय लाकर
उन्हें गततशील करने का आग्रह हो, वह मुक्त छं द है।
उदाहरर् : तनराला की कववता 'जूही की कली' इत्याहद।

अलंकार

अलंकार
जो ककसी वस्तु को अलंकृत करे वह अलंकार कहलाता है। दस
ू रे अर्ण में काव्य अर्वा भाषा की शोभा
बढ़ाने वाले मनोरं जक ढं ग को अलंकार कहते है।
अलंकार का शाब्ददक अर्ण है 'आभष
ू र्'। मानव समाज सौन्दयोपासक है, उसकी इसी प्रववृ त्त ने अलंकारों को
जन्म हदया है।
ब्जस प्रकार सुवर्ण आहद के आभूषर्ों से शरीर की शोभा बढ़ती है उसी प्रकार काव्य-अलंकारों से काव्य की।
संस्कृत के अलंकार संप्रदाय के प्रततष्ठापक आचायण दण्डी के शददों में - 'काव्य शोभाकरान ् धमाणन अलंकारान ्
प्रचक्षते'- काव्य के शोभाकारक धमण (गर्
ु ) अलंकार कहलाते हैं।

रस की तरह अलंकार का भी ठीक-ठीक लक्षर् बतलाना कहठन है। कफर भी, व्यापक और संकीर्ण अर्ों में इसकी
पररभाषा तनब्चचत करने की चेष्टा की गयी है।

अलंकार का महत्त्व
काव्य में अलंकार की महत्ता लसद्ध करने वालों में आचायण भामह, उद्भट, दं डी और रुरट के नाम ववशेष
प्रख्यात हैं। इन आचायों ने काव्य में रस को प्रधानता न दे कर अलंकार की मान्यता दी है। अलंकार की
पररपाटी बहुत परु ानी है। काव्य-शास्त्र के प्रारब्म्भक काल में अलंकारों पर ही ववशेष बल हदया गया र्ा। हहन्दी
के आचायों ने भी काव्य में अलंकारों को ववशेष स्र्ान हदया है।

अलंकार के भेद

1. शददालंकार
2. अर्ाणलंकार
3. उभयालंकार
4. श्लेष अलंकार
5. रूपक अलंकार
6. यमक अलंकार
7. उत्प्रेक्षा अलंकार
8. अततशयोब्क्त अलंकार
9. संदेह अलंकार
10. अनप्र
ु ास अलंकार
11. उपमा अलंकार-
12. दृष्टांत अलंकार

1. शददालंकार - जहां काव्य में चमत्कार का आधार केवल शदद हो वहों शददालंकार होता है।
जैसे - ‘चारू चन्र की चंचल ककरर्ें’’
‘‘काली र्टा का र्मण्ड र्टा।’’

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2. अर्ाणलंकार - जहां पर काव्य में अर्ों के माध्यम से काव्य में सन्ु दरता का होना पाया जाए। वहां अर्ाणलंकार
होता है।
जैसे - ‘पीपर पात सररस मन डोला’’

3. उभयालंकार - जहां शदद और अर्ण दोनो में चमत्कार तनहहत होता है, वहां उभयालंकार होता है। इसका
अलग से कोइण प्रकार नहीं होता ।

4. श्लेष अलंकार - जहां काव्य में प्रयक्


ु त ककसी एक शदद के कइण अर्ण तनकले और चमत्कार उत्पन्न करते हों
वहां ‘श्लेष’ अलंकार होता है।जैसे-जो ‘रहीम’ गतत दीप की, कुल कपत
ू की सोय। बारे उब्जयारो करे , बढ़े अंधेरो
होय।
स्पष्टीकरर् - रहीम जी कहते हैं कक जो हालत दीपक की होती है वही हालत एक कुलीन कपत
ू की होती हैं।
क्योंकक दीपक (बारे ) जलाने पर प्रकाश करता है और बालक (बारे ) बचपन में प्रकाश दे ता है। अच्छा लगता है
ककन्तु दीपक के (बढ़े ) बझ
ु ने पर अंधेरा हो जाता है ऐसे ही कपत
ू के बड़े होने पर खानदान में अंधेरा हो जाता
है।

5. रूपक अलंकार - जहां काव्य में समानता के कारर् उपमेय और उपमान में समानता या एक रूपता हदखाइण
जाती है वहां ‘रूपक’ अलंकार होता है।
जैसे - ‘‘चरर्-सरोज परवारन लागा।’’

इस पंब्क्त में केवट राम के चरर् रूपी कमल को धोने लगा। यहां उपमेय ‘चरर्’ को ही उपमान ‘सरोज’ बताकर
एकरूपता हदखाइण गइण है अत: यहां रूपक अलंकार है।

6. यमक अलंकार - जब कोइण शदद अनेक बार आए और उसके अर्ण प्रत्येक बार लभन्न-लभन्न हो उसे यमक
अलंकार कहते हैं।
जैसे - (क) सारं ग ले सारं ग चली, सारं ग पज
ू ो आय।
सारं ग ले सारं ग धरयौ, सारं ग सारं ग मांय ।

यहां सारं ग शदद, सात बार आया है ब्जसका क्रमश: अर्ण 1. र्ड़ा 2. सुंदरी 3. मेर् 4. वस्त्र 5. र्ड़ा 6. सुंदरी
7. सरोवर

(ख) बसन दे हु, ब्रज में हमें


बसन दे हु ब्रजराज ।
यहाँ बसन शदद दो बार आया है ब्जसका अर्ण 1. वस्त्र 2. रहने
(ग) मूरत मधरु मनोहर दे खी,
मयहु ववदे ह ववदे ह ववसेखी ।
यहाँ ववदे ह शदद दो बार आया है ब्जसका अर्ण 1. राजा जनक 2. शरीर की सध
ु -बध
ु भूल जाना।

7. उत्प्रेक्षा अलंकार - उत्प्रेक्षा का अर्ण है संभावना या कल्पना अर्ाणत ् एक वस्तु को दस


ू री वस्तु मान ललया
जाय। जहां उपमेय में उपमान की संभावना या कल्पना की जाय वहां उत्प्रेक्षा अलंकार होता है। उत्प्रेक्षा अलंकार
के कुछ वाचक शदद हैं-मानों, मन,ु मनहुं, जानो, जन,ु ज्यों, इलम आहद।
जैसे - (क) ‘‘मानहुं सरू काहढ़ डारर हैं वारर मध्य में मीन’’

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उपरोक्त पंब्क्त में कृष्र् के ववयोग में व्याकुल गायों को पानी से तनकाली गइण मछललयां के रूप में कब्ल्पत
ककया गया है।
(ख) मानहु जगत छीर-सागर मगन है।
उपरोक्त उदाहरर् में ऐसा प्रतीत होता है कक मानों सारा संसार दध
ू के सागर में डूबा हुआ है।
(ग) सोहत ओढ़े पीत पट, श्याम सलोने गात।
मनहुं नीलमणर् सैल पर आतप परयौ प्रभात ।
इस उदाहरर् में भगवान श्रीकृष्र् को नीलमणर् पवणत और पीतपट को प्रभात की ककरर्ें माना गया है ।

8. अततशयोब्क्त अलंकार - जहां ककसी वस्तु या बात का वर्णन इतना अधधक बढ़ा-चढ़ाकर ककया जाय कक लोक
मयाणदा का उल्लंर्न सा प्रतीत होता हो उसे अततशयोब्क्त अलंकार कहते हैं।
जैसे - (क) ‘चले धनष
ु से बार्,
सार् ही शुत्र सैन्य के प्रार् चलें।’
इस उदाहर् में धनष
ु से वार्ों के चलने के सार् ही शत्रु सेना के प्रार् तनकल चले सार्-सार् बताया है जो
अधधक बढ़ा-चढ़ाकर वणर्णत है।
(ख) हनम
ु ान की पछ
ंू में लगन न पाइण आग। लंका सारी जल गइण गए तनशाचर भाग।।
इस उदाहरर् में हनम
ु ान की पछ
ूं में आग लगे बबना ही लंका जल गइण, बताया गया है जो अधधक बढ़ा-चढ़ाकर
वणर्णत है।
(ग) लखन-सकोप वचन जब गोले। डगमगातन महह हदग्गज डोले ।।

इस उदाहरर् में लक्ष्मर् के क्रोधधत होकर बोलने से पथ्ृ वी डगमगा उठी और हदशाओं के हार्ी कांप गये। यहां
अततशयोब्क्त पर्
ू ण वणर्णत है।

9. संदेह अलंकार - जहां समानता के कारर् एक वस्तु में अनेक अन्य वस्तु होने की संभावना हदखाइण पड़े और
यह तनश्चय न हो पाये कक यह वही वस्तु है। उसे संदेह अलंकार कहते है।

जैसे - (क) सारी बीच नारी है कक नारी बीच सारी है।


कक सारी ही की नारी है कक नारी ही की सारी है।
(ख) हरर-मुख यह आती! ककधौं कैधौं उगो मयंक?
इस उदाहरर् में हरर के मख
ु में हररमुख और चन्रमा दोनों के होने का संदेह हदखाइण पड़ता है। यहां पर हरर के
मख
ु को दे खकर सखी यह तनश्चय नहीं कर पा रही है कक यह हरर का मख
ु है या चन्रमा उगा है ।
(ग) तारे आसमान के है आये मेहमान बतन,
केशो में तनशाने मुकतावली सजायी है?
बबखर गयो है चूर-चूर है कै चन्द कैन्धौं, कैधों,
र्र-र्र दीप-मललका सह
ु ायी है?
इस उदाहरर् में दीप-मललका में तारावली, मक्
ु तामाला और चन्रमा के चण्र
ू ्ाााीभत
ू कर्ों का संदेह होता है ।

10. अनप्र
ु ास अलंकार - जहां एक ही वर्ण बार-बार दोहराया जाए, अर्ाणत ् वर्ों की आववृ त्त हो वहां अनप्र
ु ास-
अलंकार होता है।
जैसे - चारू-चंर की चंचल ककरर्ें
खेल रही र्ीं जल-र्ल में ।

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11. उपमा अलंकार - जहां एक वस्तु की तल


ु ना दस
ू री वस्तु से की जाती है, वहां उपमा अलंकार होता है।
उपमा के अंग-इसके चार अंग होते है -

1. उपमेय-ब्जसकी तल
ु ना की जाती है।
2. उपमान-ब्जसके सार् तल
ु ना की जाती है।
3. साधारर् धमण-जो गर्
ु उपमेय व उपमान दोनों में पाया जाता है।
4. वाचक शदद-जो शदद उपमेय व उपमान को जोड़ता हो ।

उदाहरर्
पीपर पात सररस मन डोला।’
इसमें मन उपमेय, पीपरपात उपमान, डोला साधारर् धमण और सररस वाचक शदद है।
उपमा के भेद - उपमा के 2 भेद हैं-
(1) पर्
ू ोपमा,
(2) लप्ु तोपमा।
(1) पर्
ू ोपमा-जहां उपमा के चारों अंग उपब्स्र्त होते हैं वहां पर्
ू ोंपमा होता है।
उदाहरर् -
(1) चरर् कमल सम कामे ल
(2) मख
ु चंर सम सन्ु दर । इसमें पर्
ू ोपमा है
(3) लप्ु तोपमा अलंकार-जहां उपमा के चारों अंगों में से एक या अधधक अंग लुप्त होते हैं, वहां लप्ु तोपमा
अलंकार होता है।
उदाहरर् -
(1) ‘तुम सम परू
ु ष न मो-सम नारी।’
(2) ‘राधा का मख
ु चन्रमा जैसा है।’
इस उदाहरर् में मुख उपमेय, चन्रमा उपमान, जैसा वाचक शदद है। साधारर् धमण लप्ु त हैं, इसललए यहां
लुप्तोपमा अलंकार हैं।

13. दृष्टांत अलंकार - जहां पर उपमेय तर्ा उपमान में बबंब-प्रततबबंब का भाव झलकता हो, वहां पर दृष्टांत
अलंकार होता है। ‘‘कान्हा कृपा कटाक्ष की करै कामना दास। चातक धचत में चेत ज्यों स्वातत बद
ूं की आस।’’
इसमें कृष्र् की आंखों की तुलना स्वातत नक्षत्र के पानी से तर्ा सेवक अर्वा भक्त की तुलना चातक पक्षी से
की जाती है। ककन्तु यहां उपमा अलंकार न होकर दृष्टांत अलंकार होगा, क्योंकक तल
ु ना उदाहरर् दे ते हुए की
गइण है अर्ाणत दृष्टांत के सार् की गइण है।

समास

अनेक शददों को संक्षक्षप्त करके नए शदद बनाने की प्रकक्रया समास कहलाती है। दस
ू रे अर्ण में कहा जा सकता है
कक कम-से-कम शददों में अधधक-से-अधधक अर्ण प्रकट करना 'समास' का काम है।

अगर साहहब्त्यक भाषा में कहा जाये तो - दो या अधधक शददों (पदों) का परस्पर संबद्ध बताने वाले शददों
अर्वा प्रत्ययों का लोप होने पर उन दो या अधधक शददों से जो एक स्वतन्त्र शदद बनता है, उस शदद को
सामालसक शदद कहते है और उन दो या अधधक शददों का जो संयोग होता है, वह समास कहलाता है।

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समास की प्रकक्रया से बनने वाले शदद को समस्तपद कहते हैं; जैसे- दे शभब्क्त, मरु लीधर, राम-लक्ष्मर्, चौराहा,
महात्मा तर्ा रसोईर्र आहद। समस्तपद का ववग्रह करके उसे पन
ु ः पहले वाली ब्स्र्तत में लाने की प्रकक्रया को
समास-ववग्रह कहते हैं; जैसे- दे श के ललए भब्क्त; मुरली को धारर् ककया है ब्जसने; राम और लक्ष्मर्; चार राहों
का समूह; महान है जो आत्मा; रसोई के ललए र्र आहद।

समास के भेद
समास के मुख्य 6 भेद है
(1) तत्परु
ु ष समास
(2) कमणधारय समास
(3) द्ववगु समास
(4) बहुव्रीहह समास
(5) द्वन्द समास
(6) अव्ययीभाव समास
(1) तत्परु
ु ष समास :- ब्जस समास में बाद का अर्वा उत्तरपद प्रधान होता है तर्ा दोनों पदों के बीच का
कारक-धचह्न लप्ु त हो जाता है, उसे तत्परु
ु ष समास कहते है।
उदहारर्
तल
ु सीकृत = तल
ु सी से कृत
शराहत = शर से आहत
राहखचण = राह के ललए खचण
राजकुमार = राजा का कुमार
तत्परु
ु ष समास में अब्न्तम पद प्रधान होता है। इस समास में साधारर्तः प्रर्म पद ववशेषर् और द्ववतीय पद
ववशेष्य होता है। द्ववतीय पद, अर्ाणत बादवाले पद के ववशेष्य होने के कारर् इस समास में उसकी प्रधानता
रहती है।
तत्परु
ु ष समास के छह भेद होते है
(i) कमण तत्परु
ु ष
(ii) करर् तत्परु
ु ष
(iii) सम्प्रदान तत्परु
ु ष
(iv) अपादान तत्परु
ु ष
(v) सम्बन्ध तत्परु
ु ष
(vi) अधधकरर् तत्परु
ु ष
(2) कमणधारय समास :- ब्जस समस्त-पद का उत्तरपद प्रधान हो तर्ा पव
ू प
ण द व उत्तरपद में उपमान-उपमेय
अर्वा ववशेषर्-ववशेष्य संबध
ं हो, कमणधारय समास कहलाता है।
दस
ू रे शददों में कताण-तत्परु
ु ष को ही कमणधारय कहते हैं।
पहचान: ववग्रह करने पर दोनों पद के मध्य में 'है जो', 'के समान' आहद आते है।
ब्जस तत्परु
ु ष समास के समस्त होनेवाले पद समानाधधकरर् हों, अर्ाणत ववशेष्य-ववशेषर्-भाव को प्राप्त हों,
कताणकारक के हों और ललंग-वचन में समान हों, वहाँ कमणधारयतत्परु
ु ष समास होता है।

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उदहारर्
नवयव
ु क = नव है जो यव
ु क
पीतांबर = पीत है जो अंबर
परमेचवर = परम है जो ईचवर
नीलकमल = नील है जो कमल
महात्मा = महान है जो आत्मा
कनकलता = कनक की-सी लता
प्रार्वप्रय = प्रार्ों के समान वप्रय

कमणधारय तत्परु
ु ष के चार भेद है

(i) ववशेषर्पव
ू प
ण द
(ii) ववशेष्यपव
ू प
ण द
(iii) ववशेषर्ोभयपद
(iv) ववशेष्योभयपद
(3) द्ववगु समास :- ब्जस समस्त-पद का पव
ू प
ण द संख्यावाचक ववशेषर् हो, वह द्ववगु कमणधारय समास कहलाता
है।

इसके दो भेद होते है


(i)समाहारद्ववगु
(ii)उत्तरपदप्रधानद्ववगु
उदहारर्
सप्तलसंधु = सात लसंधुओं का समूह
दोपहर = दो पहरों का समह

बत्रलोक = तीनों लोको का समाहार
ततरं गा = तीन रं गों का समूह
दअ
ु त्री = दो आनों का समाहार
पंचतंत्र = पाँच तंत्रों का समूह
पंजाब = पाँच आबों (नहदयों) का समह

पंचरत्न = पाँच रत्नों का समूह
नवराबत्र = नौ राबत्रयों का समह

बत्रवेर्ी = तीन वेणर्यों (नहदयों) का समूह
(4) बहुव्रीहह समास :- समास में आये पदों को छोड़कर जब ककसी अन्य पदार्ण की प्रधानता हो, तब उसे
बहुव्रीहह समास कहते है।
दस
ू रे शददों में ब्जस समास में पव
ू प
ण द तर्ा उत्तरपद दोनों में से कोई भी पद प्रधान न होकर कोई अन्य पद ही
प्रधान हो, वह बहुव्रीहह समास कहलाता है।
उदहारर्

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दशानन = दस मह
ु वाला (रावर्)
प्रधानमंत्री = मंबत्रयो में प्रधान है जो (प्रधानमंत्री)
पंकज = पंक में पैदा हो जो (कमल)
तनशाचर = तनशा में ववचरर् करने वाला (राक्षस)
चौलड़ी = चार है लडड़याँ ब्जसमे (माला)
ववषधर = ववष को धारर् करने वाला (सपण)
मग
ृ नयनी = मग
ृ के समान नयन हैं ब्जसके अर्ाणत (संद
ु र स्त्री)

बहुव्रीहह समास के चार भेद है


(i) समानाधधकरर्बहुव्रीहह
(ii) व्यधधकरर्बहुव्रीहह
(iii) तुल्ययोगबहुव्रीहह
(iv) व्यततहारबहुव्रीहह
(5) द्वन्द्व समास :- ब्जस समस्त-पद के दोनों पद प्रधान हो तर्ा ववग्रह करने पर 'और', 'अर्वा', 'या', 'एवं'
लगता हो वह द्वन्द्व समास कहलाता है।
द्वन्द्व समास के तीन भेद है
(i) इतरे तर द्वन्द्व
(ii) समाहार द्वन्द्व
(iii) वैकब्ल्पक द्वन्द्व
उदहारर्
रात-हदन = रात और हदन
सुख-दख
ु = सुख और दख

दाल-चावल = दाल और चावल
भाई-बहन = भाई और बहन
माता-वपता = माता और वपता
ऊपर-नीचे = ऊपर और नीचे
गंगा-यमुना = गंगा और यमुना
दध
ू -दही = दध
ू और दही
आयात-तनयाणत = आयात और तनयाणत
दे श-ववदे श = दे श और ववदे श
आना-जाना = आना और जाना
राजा-रं क = राजा और रं क
(6) अव्ययीभाव समास :- अव्ययीभाव का लक्षर् है ब्जसमे पव
ू प
ण द की प्रधानता हो और सामालसक या समास
पद अव्यय हो जाय, उसे अव्ययीभाव समास कहते है।
सरल शददो में- ब्जस समास का पहला पद (पव
ू प
ण द) अव्यय तर्ा प्रधान हो, उसे अव्ययीभाव समास कहते है।

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इस समास में समच


ू ा पद कक्रयाववशेषर् अव्यय हो जाता है। इसमें पहला पद उपसगण आहद जातत का अव्यय
होता है और वही प्रधान होता है। जैसे- प्रततहदन, यर्ासम्भव, यर्ाशब्क्त, बेकाम, भरसक इत्याहद।
पहचान : पहला पद अन,ु आ, प्रतत, भर, यर्ा, यावत, हर आहद होता है।
अव्ययीभाववाले पदों का ववग्रह- ऐसे समस्तपदों को तोड़ने में, अर्ाणत उनका ववग्रह करने में हहन्दी में बड़ी
कहठनाई होती है, ववशेषतः संस्कृत के समस्त पदों का ववग्रह करने में हहन्दी में ब्जन समस्त पदों में
द्ववरुब्क्तमात्र होती है, वहाँ ववग्रह करने में केवल दोनों पदों को अलग कर हदया जाता है।
उदहारर्
प्रततहदन = हदन-हदन
यर्ाववधध = ववधध के अनस
ु ार
यर्ाक्रम = क्रम के अनस
ु ार
यर्ाशब्क्त = शब्क्त के अनस
ु ार
बेखटके = बबना खटके के
बेखबर = बबना खबर के
रातोंरात = रात ही रात में
कानोंकान = कान ही कान में
भुखमरा = भूख से मरा हुआ
आजन्म = जन्म से लेकर

पयाणयवाची

अब्ग्न – आग, अनल, पावक


अपमान – अनादर, अवज्ञा, अवहे लना, ततरस्कार
अलंकार – आभूषर्, गहना, जेवर
अहंकार – दं भ, अलभमान, दपण, मद, र्मंड
अमत
ृ – सध
ु ा, अलमय, पीयष
ू , सोम, सरु भोग ,मधु
असुर – दै त्य, दानव, राक्षस, तनशाचर, रजनीचर, दनज
ु , राबत्रचर, तमचर
अततधर् – मेहमान, अभ्यागत, आगन्तुक
अजुणन - धनंजय , पार्ण , भारत ,गांडीवधारी ,कौन्तेय ,गड
ु ाकेश
अनप
ु म – अपव
ू ,ण अतुल्य, अनोखा, अद्भुत, अनन्य
अर्ण – धन, रव्य, मुरा, दौलत, ववत्त, पैसा
अश्व – हय, तुरंग, र्ोड़ा, र्ोटक, बाब्ज, सैन्धव
अंधकार – तम, ततलमर, अँधेरा, तमस, अंधधयारा.
आम – रसाल, आम्र, सौरभ, अमत
ृ फल
आग – अब्ग्न, अनल, हुतासन, पावक, कृशान,ु वहतन, लशखी, वब्ह्न
आँख – लोचन, नयन, नेत्र, चक्षु, दृब्ष्ट
अंग - अंश ,भाग ,हहस्सा ,अवयव

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आकाश – नभ, गगन, अम्बर, व्योम, आसमान, अशण


आनंद – हषण, सुख, आमोद, मोद, प्रमोद, उल्लास
आश्रम – कुटी, ववहार, मठ, संर्, अखाड़ा
आंसू – नेत्रजल, नयनजल, चक्षुजल, अश्रु
आत्मा – जीव, चैतन्य, चेतनतत्तव, अंतःकरर्
अरण्य - जंगल ,वन ,कान्तार ,कानन ,वववपन
अनी - सेना ,फौज ,चमू ,दल ,कटक
इच्छा – अलभलाषा, चाह, कामना, लालसा, मनोरर्, आकांक्षा, अभीष्ट
इन्र – सुरेश, सुरेन्र, दे वेन्र, सुरपतत, शक्र, परु ं दर, दे वराज, महे न्र, शचीपतत
इन्राणर् – इन्रवध,ू मधवानी, शची, शतावरी, पोलोमी
ईश्वर – परमात्मा, प्रभु, ईश, जगदीश, भगवान, परमेश्वर, जगदीश्वर, ववधाता.
उपवन – बाग़, बगीचा, उद्यान, वाहटका, गल
ु शन
उब्क्त – कर्न, वचन, सब्ू क्त
उग्र – प्रचण्ड, उत्कट, तेज, तीव्र, ववकट
उधचत – ठीक, मुनालसब, वाब्जब, समुधचत, यब्ु क्तसंगत, न्यायसंगत, तकणसंगत
उज्जड़ – अलशष्ट, असभ्य, गँवार, जंगली, दे हाती, उद्दं ड, तनरकंु श
उजला – उज्ज्वल, श्वेत, सर्फेद, धवल
उजाड़ – जंगल, बबयावान, वन
उजाला – प्रकाश, रोशनी, चाँदनी
उत्कषण – समद्
ृ धध, उन्नतत, प्रगतत, उठान
उत्कृष्ट – उत्तम, उन्नत, श्रेष्ठ, अच्छा, बहढ़या, उम्दा
उत्कोच – र्स
ू , ररश्वत
उत्पवत्त – उद्गम, पैदाइश, जन्म, उद्भव, सब्ृ ष्ट, आववभाणव, उदय
उद्धार – मुब्क्त, छुटकारा, तनस्तार
उपाय – यब्ु क्त, साधन, तरकीब, तदबीर, यत्न, प्रयत्न
ऊधम – उपरव, उत्पात, धूम, हुल्लड़, हुड़दं ग, धमाचौकड़ी
एऐक्य – एकत्व, एका, एकता, मेल
ऐश्वयण – समद्
ृ धध, ववभूतत
ओज – तेज, शब्क्त, बल, वीयण
ओंठ- ओष्ठ, अधर, होंठ
औचक – अचानक, यकायक, सहसा
औरत – स्त्री, जोरू, र्रनी, र्रवाली
ऋवष – मुतन, साध,ु यतत, संन्यासी, तत्वज्ञ, तपस्वी
कच – बाल, केश, कुन्तल, धचकुर, अलक, रोम, लशरोरूह
कमल - नललन, अरववंद, उत्पल, राजीव, पद्म, पंकज, नीरज, सरोज, जलज, जलजात, शतदल, पण्ु डरीक, इन्दीवर
कबत
ू र – कपोत, रक्तलोचन, पारावत

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कामदे व – मदन, मनोज, अनंग, काम, रततपतत, पष्ु पधन्वा, मन्मर्


कण्ठ – ग्रीवा, गदण न, गला.कृपा – प्रसाद, करुर्ा, दया, अनग्र
ु ह.ककताब – पोर्ी, ग्रन्र्, पस्
ु तक
ककनारा – तीर, कूल, कगार, तट
कपड़ा – चीर, वसन, पट, वस्त्र, पररधान
ककरर् – ज्योतत, प्रभा, रब्श्म, दीब्प्त
ककसान – कृषक, भूलमपत्र
ु , हलधर, खेततहर, अन्नदाता
कृष्र् – राधापतत, र्नश्याम, वासद
ु े व, माधव, मोहन, केशव, गोववन्द, धगरधारी
कान – कर्ण, श्रुतत, श्रुततपटल, श्रवर् श्रोत, श्रुततपट

कोयल – कोककला, वपक, काकपाली, बसंतदत
ू , साररका, कुहुककनी, वनवप्रया
क्रोध – रोष, कोप, अमषण, कोह, प्रततर्ात
कीततण – यश, प्रलसद्धध.
कुबेर - धनद ,धनेश ,धनाधधप ,राजराज ,यक्षपतत
खग – पक्षी, ववहग, नभचर, अण्डज, पखेरू
खंभा – स्तूप, स्तम्भ, खंभ.खल – दज
ु णन, दष्ु ट, र्त
ू ण, कुहटल
खून – रक्त, लहू, शोणर्त, रुधधर
गज – हार्ी, हस्ती, मतंग, कूम्भा, मदकल
गाय – गौ, धेन,ु भरा.गंगा – दे वनदी, मंदाककनी, भगीरर्ी, ववश्नप
ु गा, दे वपगा, दे वनदी, जाह्नवी, बत्रपर्गा
गर्ेश – ववनायक, गजानन, गौरीनंदन, गर्पतत, गर्नायक, शंकरसुवन, लम्बोदर, एकदन्त.गह
ृ – र्र, सदन, भवन,
धाम, तनकेतन, तनवास, आलय, आवास
गमी – ताप, ग्रीष्म, ऊष्मा, गरमी
गंगा - भागीरर्ी ,जाह्नवी ,मन्दाककनी ,ववष्र्ुपदी ,दे वापगा ,दे वनदी ,सुरसररता ,सुरसरर
गरु
ु – लशक्षक, आचायण, उपाध्याय
गवण - अहं ,अहंकार ,दपण ,दम्भ ,अलभमान ,र्मण्ड
गधा - गदहा ,गदण भ ,वैशाखनन्दन,रासभ ,खर ,धूसर
र्ट – र्ड़ा, कलश, कुम्भ, तनप
र्र – आलय, आवास, गह
ृ , तनकेतन, तनवास, भवन, वास, वास-स्र्ान, शाला, सदन
र्त
ृ – र्ी, अमत
ृ , नवनीत
र्ास – तर्
ृ , दव
ू ाण, दब
ू , कुश
चरर् – पद, पग, पाँव, पैर, पाद
चतुर – ववज्ञ, तनपर्
ु , नागर, पटु, कुशल, दक्ष, प्रवीर्, योग्य
चंरमा – चाँद, चन्र, शलश, रजनीश, तनशानार्, सोम, कलातनधध
चाँदनी – चब्न्रका, कौमुदी, ज्योत्सना, चन्रमरीधच, उब्जयारी, चन्रप्रभा, जुन्हाई
चाँदी – रजत, सौध, रूपा, रूपक, रौप्य, चन्रहास.चोटी – मूधाण, सान,ु शंग

छतरी – छत्र, छाता
छली – छललया, कपटी, धोखेबाज
छवव – शोभा, सौंदयण, काब्न्त, प्रभा

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संजीव मालवीय

छानबीन – जाँच, पछ
ू ताछ, खोज, अन्वेषर्, शोध
छै ला – सजीला, बाँका, शौकीन
छोर – नोक, कोर, ककनारा, लसरा
जल – सललल, वारर, नीर, तोय, अम्ब,ु पानी, पय, पेय
जगत – संसार, ववश्व, जग, भव, दतु नया, लोक
जीभ – रसज्ञा, ब्जह्वा, वार्ी, वाचा, जबान
जंगल – कानन, वन, अरण्य, गहन, कांतार, बीहड़, ववटप
जेवर – गहना, अलंकार, भूषर्
ज्योतत – आभा, छवव, द्यतु त, दीब्प्त, प्रभा
झूठ – असत्य, लमथ्या
झण्डा - ध्वजा ,पताका ,केतु ,केतन ,ध्वज
तरुवर – वक्ष
ृ , पेड़, रम
ु , तरु, पादप
तलवार – अलस, कृपार्, करवाल, चन्रहास
तालाब – सरोवर, जलाशय, पष्ु कर, पोखरा
तीर – शर, बार्, अनी, सायक
दास – सेवक, नौकर, चाकर, अनच
ु र, भत्ृ य
दधध – दही, गोरस, मट्ठा
दररर – तनधणन, ग़रीब, रं क, कंगाल, दीन
हदन – हदवस, याम, हदवा, वार
दीन – ग़रीब, दररर, रं क, अककं चन, तनधणन, कंगाल
दीपक – दीप, दीया, प्रदीप
दःु ख – पीड़ा,कष्ट, व्यर्ा, वेदना, संताप, शोक, खेद, पीर
दध
ू – दग्ु ध, क्षीर, पय, गौरस, स्तन्य
दष्ु ट – पापी, नीच, दज
ु णन, अधम, खल, पामर
दाँत – दन्त
रौपदी - कृष्र्ा ,रप
ु दसुता ,पांचाली ,याज्ञसेनी ,सैरन्री
रव्य - धन, दौलत ,ववत्त ,संपवत्त ,सम्पदा ,ववभूतत
दपणर् – शीशा, आरसी, आईना
दग
ु ाण – चंडडका, भवानी, कल्यार्ी, महागौरी, काललका, लशवा, चण्डी, चामुण्डा
दे वता – सुर, दे व
दे ह – काया, तन, शरीर
धन – दौलत, संपवत्त, सम्पदा, ववत्त
धरती – धरा, धरती, वसुधा, जमीन, पथ्
ृ वी, भ,ू भूलम, धरर्ी, वसध
ुं रा, अचला, मही, रत्नगभाण
धनष
ु – चाप, शरासन, कमान, कोदं ड, धनु
नदी – सररता, तहटनी, सरर, सारं ग, तरं धगर्ी, दररया, तनझणररर्ी
नया – नत
ू न, नव, नवीन, नव्य

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संजीव मालवीय

नाव – नौका, तरर्ी, तरी


पवन – वाय,ु हवा, समीर, वात, मारुत, अतनल
पहाड़ – पवणत, धगरर, अचल, शैल, भध
ू र, महीधर
पक्षी – खेचर, दववज, पतंग, पंछी, खग, धचडड़या, गगनचर, पखेरू, ववहंग, नभचर
पतत – स्वामी, प्रार्ाधार, प्रार्वप्रय, प्रार्ेश
पत्नी – भायाण, वध,ू वामा, अधाांधगनी, सहधलमणर्ी, गह
ृ र्ी, बहु, वतनता, दारा, जोरू, वामांधगनी
पत्र
ु – बेटा, आत्मज, सत
ु , वत्स, तनज
ु , तनय, नंदन
पत्र
ु ी – बेटी, आत्मजा, तनज
ू ा, सुता, तनया
पष्ु प – फूल, सम
ु न, कुसम
ु , मंजरी, प्रसून
बादल – मेर्, र्न, जलधर, जलद, वाररद, पयोधर
बालू – रे त, बालुका, सैकत
बन्दर – वानर, कवप, हरर
पब्ण्डत - प्राज्ञ ,कोववद ,मनीषी ,ववद्वान ,सध
ु ी ,ववचक्षर्
बबजली – र्नवप्रया, इन््वज्र, चंचला, सौदामनी, चपला, दालमनी, तडड़त, ववद्यत

बगीचा – बाग़, वाहटका, उपवन, उद्यान, फुलवारी, बधगया
बार् – सर, तीर, सायक, ववलशख
बाल – कच, केश, धचकुर, चूल
ब्रह्मा – ववधाता, स्वयंभू, प्रजापतत, वपतामह, चतुरानन, ववरं धच, अज
बलदे व – बलराम, बलभर, हलायध
ु , रोहहर्ेय
बहुत – अनेक, अतीव, अतत, बहुल, प्रचुर, अपररलमत, प्रभूत, अपार, अलमत, अत्यन्त, असंख्य
ब्राह्मर् – द्ववज, भूदेव, ववप्र, महीदे व, भूलमसुर, भूलमदे व
भय – भीतत, डर, ववभीवषका
भाई – तात, अनज
ु , अग्रज, भ्राता, भ्रात ृ
भूषर् – जेवर, गहना, आभूषर्, अलंकार
भौंरा – मधप
ु , मधक
ु र, द्ववरे प, अलल, षट्पद, भंग
ृ , भ्रमर.
मनष्ु य – आदमी, नर, मानव, मानष
ु , मनज

महदरा – शराब, हाला, आसव, मद
मोर – कलापी, नीलकंठ, नतणकवप्रय
मधु – शहद, रसा, शहद
मग
ृ – हहरर्, सारं ग, कृष्र्सार
मछली – मीन, मत्स्य, जलजीवन, शफरी, मकर
माता – जननी, माँ, अंबा, जनयत्री, अम्मा
लमत्र – सखा, सहचर, सार्ी, दोस्त.
यम – सूयप
ण त्र
ु , जीववतेश, कृतांत, अन्तक, दण्डधर, कीनाश, यमराज
यमुना – काललन्दी, सूयस
ण ुता, रववतनया, तरणर्-तनज
ू ा, तरणर्जा, अकणजा, भानज
ु ा
यव
ु तत – यव
ु ती, सुन्दरी, श्यामा, ककशोरी, तरुर्ी, नवयौवना

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संजीव मालवीय

रमा – इब्न्दरा, हररवप्रया, श्री, लक्ष्मी, कमला, पद्मा, पद्मासना, समर


ु जा, श्रीभागणवी, क्षीरोदतनया
रात – राबत्र, रै न, रजनी, तनशा, यालमनी, तनलश, यामा, ववभावरी
राजा – नप
ृ , नप
ृ तत, भूपतत, नरपतत, भूपाल, नरे श, महीपतत, अवनीपतत
राबत्र – तनशा, रै न, रात, यालमनी, शवणरी, तमब्स्वनी, ववभावरी
रामचन्र – सीतापतत, रार्व, रर्प
ु तत, रर्व
ु र, रर्न
ु ार्, रर्रु ाज, रर्व
ु ीर, जानकीवल्लभ, कौशल्यानन्दन
रावर् – दशानन, लंकेश, लंकापतत, दशशीश, दशकंध
राधधका – राधा, ब्रजरानी, हररवप्रया, वष
ृ भानज
ु ा.
लड़का – बालक, लशश,ु सुत, ककशोर, कुमार
लड़की – बाललका, कुमारी, सुता, ककशोरी, बाला, कन्या
लक्ष्मी – कमला, पद्मा, रमा, हररवप्रया, श्री, इंहदरा, पद्मजा, लसन्धुसत
ु ा, कमलासना
लक्ष्मर् – लखन, शेषावतार, सौलमत्र, रामानज
ु , शेष.लौह – अयस, लोहा, सार
लता – बल्लरी, बल्ली, बेली.
वायु – हवा, पवन, समीर, अतनल, वात, मारुत
वसन – अम्बर, वस्त्र, पररधान, पट, चीर
ववधवा – अनार्ा, पततहीना.ववष – जहर, हलाहल, गरल, कालकूट
वक्ष
ृ – पेड़, पादप, ववटप, तरू, गाछ, दरख्त, शाखी, ववटप, रम

ववष्र्ु – नारायर्, चक्रपार्ी
ववश्व – जगत, जग, भव, संसार, लोक, दतु नया
ववद्यत
ु – चपला, चंचला, दालमनी, सौदालमनी, तडड़त, बीजरु ी, र्नवल्ली, क्षर्प्रभा, करका
बाररश – वषणर्, वब्ृ ष्ट, वषाण, पावस, बरसात
वीयण – जीवन, सार, तेज, शुक्र, बीज
वज्र – कुललस, पवव, अशतन, दभोलल
ववशाल – ववराट, दीर्ण, वह
ृ त, बड़ा, महान
वक्ष
ृ – गाछ, तरु, पेड़, रम
ु , पादप, ववटप, शाखी
लशव – भोलेनार्, शम्भ,ू बत्रलोचन, महादे व, नीलकंठ, शंकर
शरीर – दे ह, तन,ु काया, कलेवर, अंग, गात
शत्रु – ररप,ु दश्ु मन, अलमत्र, वैरी, अरर, ववपक्षी
लशक्षक – गरु
ु , अध्यापक, आचायण, उपाध्याय
शेर – केहरर, केशरी, वनराज, लसंह
शेषनाग – अहह, नाग, भुजंग, व्याल, उरग, पन्नग, फर्ीश, सारं ग
शभ्र
ु – गौर, श्वेत, अमल, वलक्ष, शक्
ु ल, अवदात
शहद – पष्ु परस, मध,ु आसव, रस, मकरन्द
षडानन – षटमुख, काततणकेय, षाण्मातुर.
सीता – वैदेही, जानकी, भूलमजा, जनकतनया, जनकनब्न्दनी, रामवप्रया
साँप – अहह, भुजंग, दयाल, सपण, नाग, ववषधर, उरग, पवनासन
सूयण – रवव, सूरज, हदनकर, प्रभाकर, आहदत्य, हदनेश, भास्कर, हदनकर, हदवाकर, भान,ु आहदत्य

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संजीव मालवीय

संसार – जग, ववश्व, जगत, लोक, दतु नया


सोना – स्वर्ण, कंचन, कनक, हे म, कंु दन
लसंह – केसरी, शेर, मग
ृ पतत, वनराज, शादणल
ू , नाहर, सारं ग, मग
ृ राज
समुर – सागर, पयोधध, उदधध, पारावार, नदीश, जलधध, लसंध,ु रत्नाकर, वाररधध
सम – सवण, समस्त, सम्पर्
ू ,ण पर्
ू ,ण समग्र, अणखल, तनणखल
समीप – सब्न्नकट, आसन्न, तनकट, पास
समह
ू – दल, झंड
ु , समद
ु ाय, टोली, जत्र्ा, मण्डली, वद
ंृ , गर्, पज
ंु , संर्, समच्
ु चय
सभा – अधधवेशन, संगीतत, पररषद, बैठक, महासभा
सुन्दर – कललत, ललाम, मंजल
ु , रुधचर, चारु, रम्य, मनोहर, सुहावना, धचत्ताकषणक, रमर्ीक, कमनीय, उत्कृष्ट, उत्तम,
सुरम्य
सन्ध्या – सायंकाल, शाम, साँझ, प्रदोषकाल, गोधूलल
स्त्री – सुन्दरी, कान्ता, कलत्र, वतनता, नारी, महहला, अबला, ललना, औरत, कालमनी, रमर्ी
सग
ु धं ध – सौरभ, सरु लभ, महक, खश
ु बू
स्वगण – सुरलोक, दे वलोक, हदव्यधाम, ब्रह्मधाम, द्यौ, परमधाम, बत्रहदव, दयल
ु ोक
स्वर्ण – सुवर्ण, कंचन, हे न, हारक, जातरूप, सोना, तामरस, हहरण्य
सरस्वती – धगरा, शारदा, भारती, वीर्ापाणर्, ववमला, वागीश, वागेश्वरी
सहे ली – आली, सखी, सहचरी, सजनी, सैरन्री
संसार – लोक, जग, जहान, जगत, ववश्व
हस्त – हार्, कर, पाणर्, बाहु, भज
ु ा
हहमालय – हहमधगरी, हहमाचल, धगररराज, पवणतराज, नगेश
हहरर् – सुरभी, कुरग, मग
ृ , सारं ग, हहरन
होंठ – अक्षर, ओष्ठ, ओंठ
हनम
ु ान – पवनसुत, पवनकुमार, महावीर, रामदत
ू , मारुततनय, अंजनीपत्र
ु , आंजनेय, कपीश्वर, केशरीनंदन, बजरं गबली,
मारुतत
हहमांशु – हहमकर, तनशाकर, क्षपानार्, चन्रमा, चन्र, तनलशपतत
हंस – कलकंठ, मराल, लसपपक्ष, मानसौक
हृदय – छाती, वक्ष, वक्षस्र्ल, हहय, उर
हार् – हस्त, कर, पाणर्
हार्ी – हस्ती, कंु जर, कूम्भा, मतंग, वारर्, गज, द्ववप, करी, मदकल

अनेक के ललए एक शदद

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संजीव मालवीय

ब्जसका जन्म नहीं हुआ/होता हो – अजन्मा


पस्
ु तकों की समीक्षा करने वाला – समीक्षक
जो ककसी की आलोचना करता हो - आलोचक
ब्जसे धगना न जा सके - अगणर्त
जो कुछ भी नहीं जानता हो - अज्ञ
जो बहुत र्ोड़ा जानता हो - अल्पज्ञ
ब्जसकी आशा न की गई हो - अप्रत्यालशत
जो इब्न्रयों से परे हो – अगोचर
जो ववधान के ववपरीत हो - अवैधातनक
जो संववधान के अनक
ु ू ल हो - संवध
ै ातनक
जो संववधान के प्रततकूल हो - असंवध
ै ातनक
ब्जसे भले -बरु े का ज्ञान न हो - अवववेकी
ब्जसके समान कोई दस
ू रा न हो – अद्ववतीय
जैसा पहले कभी न हुआ हो - अभत
ू पव
ू ण
जो व्यर्ण का व्यय करता हो - अपव्ययी
बहुत कम खचण करने वाला - लमतव्ययी
सरकारी गजट में छपी सच
ू ना - अधधसच
ू ना
ब्जसके पास कुछ भी न हो - अककं चन
दोपहर के बाद का समय - अपराह्न
ब्जसका पररहार करना सम्भव न हो – अपररहायण
जो ग्रहर् करने योग्य न हो – अग्राह्य
ब्जसे प्राप्त न ककया जा सके – अप्राप्य
ब्जसका उपचार सम्भव न हो – असाध्य
भगवान में ववश्वास रखने वाला - आब्स्तक
भगवान में ववश्वास न रखने वाला - नाब्स्तक
आशा से अधधक - आशातीत
पैर से मस्तक तक – आपादमस्तक
अत्यंत लगन एवं पररश्रम वाला - अध्यवसायी
आतंक फैलाने वाला - आंतकवादी
दे श के बाहर से कोई वस्तु मंगाना - आयात
जो तरु ंत कववता बना सके - आशक
ु वव
नीले रं ग का फूल - इन्दीवर
उत्तर-पव
ू ण का कोर् - ईशान
ब्जसके हार् में चक्र हो - चक्रपाणर्
ब्जसके मस्तक पर चन्रमा हो – चन्रमौलल
जो दस
ू रों के दोष खोजे - तछरान्वेषी

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संजीव मालवीय

जानने की इच्छा - ब्जज्ञासा


जानने को इच्छुक - ब्जज्ञासु
इब्न्रयों को जीतने वाला - ब्जतेब्न्रय
जीतने की इच्छा वाला - ब्जगीषु
जहाँ लसक्के ढाले जाते हैं - टकसाल
जो त्यागने योग्य हो - त्याज्य
ब्जसे पार करना कहठन हो - दस्
ु तर
जंगल की आग – दावाब्ग्न
गोद ललया हुआ पत्र
ु - दत्तक
बबना पलक झपकाए हुए - तनतनणमेष
ब्जसमें कोई वववाद ही न हो - तनववणवाद
जो तनन्दा के योग्य हो - तनन्दनीय
मांस रहहत भोजन - तनरालमष
राबत्र में ववचरर् करने वाला - तनशाचर
राबत्र का प्रर्म प्रहर - प्रदोष
ब्जसे तरु ं त उधचत उत्तर सूझ जाए - प्रत्यत्ु पन्नमतत
मोक्ष का इच्छुक - मुमुक्षु
मत्ृ यु का इच्छुक - मम
ु ूषुण
यद्
ु ध की इच्छा रखने वाला - यय
ु त्ु सु
जो ववधध के अनक
ु ू ल है - वैध
जो बहुत बोलता हो - वाचाल
शरर् पाने का इच्छुक - शरर्ार्ी
सौ वषण का समय – शताददी
लशव का उपासक – शैव
समान रूप से ठं डा और गमण – समशीतोष्र्
जो सदा से चला आ रहा हो - सनातन
समान दृब्ष्ट से दे खने वाला - समदशी
जो क्षर् भर में नष्ट हो जाए – क्षर्भंगरु
फूलों का गच्
ु छा – स्तवक
संगीत जानने वाला – संगीतज्ञ
ब्जसने मक
ु दमा दायर ककया है – वादी
ब्जसके ववरुद्ध मुकदमा दायर ककया है – प्रततवादी
मधरु बोलने वाला – मधरु भाषी
धरती और आकाश के बीच का स्र्ान - अन्तररक्ष
सीमा का अनधु चत उल्लंर्न – अततक्रमर्
ब्जसका मन दस
ू री ओर हो – अन्यमनस्क

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संजीव मालवीय

संध्या और राबत्र के बीचकी वेला – गोधलु ल


माया करने वाला – मायावी
ककसी टूटी-फूटी इमारत का अंश – भग्नावशेष
दोपहर से पहले का समय – पव
ू ाणह्न
हृदय को ववदीर्ण कर दे ने वाला - हृदय ववदारक
जो कायण कहठनता से हो सके – दष्ु कर
बाएँ हार् से तीर चला सकने वाला – सव्यसाची

मुहावरे और लोकोब्क्तयाँ
1. अपने मुँह लमयाँ लमट्ठू बनना - (स्वयं अपनी प्रशंसा करना) - अच्छे आदलमयों को अपने मुहँ लमयाँ
लमट्ठू बनना शोभा नहीं दे ता।
2. अक्ल का चरने जाना - (समझ का अभाव होना) - इतना भी समझ नहीं सके,क्या अक्ल चरने गई है?
3. अपने पैरों पर खड़ा होना - (स्वालंबी होना) - यव
ु कों को अपने पैरों पर खड़े होने पर ही वववाह करना
चाहहए।
4. अपनी करनी पार उतरनी - जैसा करना वैसा भरना
5. आधा तीतर आधा बटे र - बेतक
ु ा मेल
6. अधजल गगरी छलकत जाए - र्ोड़ी ववद्या या र्ोड़े धन को पाकर वाचाल हो जाना
7. अंधों में काना राजा - अज्ञातनयों में अल्पज्ञ की मान्यता होना
8. अपनी अपनी ढफली अपना अपना राग - अलग अलग ववचार होना
9. अक्ल बड़ी या भैंस - शारीररक शब्क्त की तल
ु ना में बौद्धधक शब्क्त की श्रेष्ठता होना
10. आम के आम गठ
ु ललयों के दाम - दोहरा लाभ होना
11. अपने मह
ु ं लमयाँ लमट्ठू बनना - स्वयं की प्रशंसा करना
12. आँख का अँधा गाँठ का परू ा - धनी मख
ू ण
13. अंधेर नगरी चौपट राजा - मूखण के राजा के राज्य में अन्याय होना
14. आ बैल मुझे मार – जान बझ
ू कर लड़ाई मोल लेना
15. आगे नार् न पीछे पगहा - पर्
ू ण रूप से आजाद होना
16. अपना हार् जगन्नार् - अपना ककया हुआ काम लाभदायक होता है
17. अब पछताए होत क्या जब धचडड़या चग
ु गयी खेत - पहले सावधानी न बरतना और बाद में पछताना
18. आगे कुआँ पीछे खाई - सभी और से ववपवत्त आना
19. ऊंची दक
ू ान फीका पकवान - मात्र हदखावा
20. उल्टा चोर कोतवाल को डांटे - अपना दोष दस
ू रे के सर लगान
21. उं गली पकड़कर पहुंचा पकड़ना - धीरे धीरे साहस बढ़ जाना
22. उलटे बांस बरे ली को - ववपरीत कायण करना
23. उतर गयी लोई क्या करे गा कोई - इज्जत जाने पर डर कैसा
24. ऊधौ का लेना न माधो का दे ना - ककसी से कोई सम्बन्ध न रखना
25. एक पंर् दो काज - एक काम से दस
ू रा काम

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संजीव मालवीय

26. एक र्ैली के चट्टे बट्टे - समान प्रकृतत वाले


27. एक म्यान में दो तलवार - एक स्र्ान पर दो समान गर्
ु ों या शब्क्त वाले व्यब्क्त सार् नहीं रह सकते
28. एक मछली सारे तालाब को गंदा करती है - एक खराब व्यब्क्त सारे समाज को बदनाम कर दे ता है
29. एक हार् से ताली नहीं बजती - झगड़ा दोनों और से होता है
30. एक तो करे ला दज
ू े नीम चढ़ा - दष्ु ट व्यब्क्त में और भी दष्ु टता का समावेश होना
31. एक अनार सौ बीमार - कम वस्तु , चाहने वाले अधधक
32. एक बढ़
ू े बैल को कौन बाँध भस
ु दे य - अकमणण्य को कोई भी नहीं रखना चाहता
33. ओखली में सर हदया तो मूसलों से क्या डरना - जान बझ
ू कर प्रार्ों की संकट में डालने वाले प्रार्ों
की धचंता नहीं करते
34. अंगरू खट्टे हैं - वस्तु न लमलने पर उसमें दोष तनकालना
35. कहाँ राजा भोज कहाँ गंगू तेली - बेमेल एकीकरर्
36. काला अक्षर भैंस बराबर - अनपढ़ व्यब्क्त
37. कोयले की दलाली में मह
ु ं काला - बरु े काम से बरु ाई लमलना
38. काम का न काज का दश्ु मन अनाज का - बबना काम ककये बैठे बैठे खाना
39. काठ की हंडडया बार बार नहीं चढ़ती - कपटी व्यवहार हमेशा नहीं ककया जा सकता
40. कभी नाव गाड़ी पर कभी गाड़ी नाव पर - समय पड़ने पर एक दस
ु रे की मदद करना
41. खोदा पहाड़ तनकली चुहहया - कहठन पररश्रम का तुच्छ पररर्ाम
42. णखलसयानी बबल्ली खम्भा नोचे - अपनी शमण तछपाने के ललए व्यर्ण का काम करना
43. खग जाने खग की ही भाषा - समान प्रवतृ त वाले लोग एक दस
ु रे को समझ पाते हैं
44. गंजेड़ी यार ककसके, दम लगाई णखसके - स्वार्ण साधने के बाद सार् छोड़ दे ते हैं
45. गड़
ु खाए गल
ु गल
ु ों से परहे ज - ढोंग रचना
46. र्र की मुगी दाल बराबर - अपनी वस्तु का कोई महत्व नहीं
47. र्र का भेदी लंका ढावे - र्र का शत्रु अधधक खतरनाक होता है
48. र्र खीर तो बाहर भी खीर - अपना र्र संपन्न हो तो बाहर भी सम्मान लमलता है
49. धचराग तले अँधेरा - अपना दोष स्वयं हदखाई नहीं दे ता
50. चोर की दाढ़ी में ततनका - अपराधी व्यब्क्त सदा सशंककत रहता है
51. चमड़ी जाए पर दमड़ी न जाए - कंजूस होना
52. चोर चोर मौसेरे भाई - एक से स्वभाव वाले व्यब्क्त
53. जल में रहकर मगर से बैर - स्वामी से शत्रत
ु ा नहीं करनी चाहहए
54. जाके पाँव न फटी बबवाई सो क्या जाने पीर पराई - भुक्तभोगी ही दस
ू रों का दःु ख जान पाता है
55. र्ोर्ा चना बाजे र्ना - ओछा आदमी अपने महत्व का अधधक प्रदशणन करता है
56. छाती पर मूंग दलना - कोई ऐसा काम होना ब्जससे आपको और दस
ू रों को कष्ट पहुंचे
57. दाल भात में मस
ू लचंद - व्यर्ण में दखल दे ना
58. धोबी का कुत्ता र्र का न र्ाट का - कहीं का न रहना
59. नेकी और पछ
ू पछ
ू - बबना कहे ही भलाई करना
60. गोदी में बैठकर दाढ़ी नोचे – भले व्यब्क्त के सार् दष्ु टता

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संजीव मालवीय

61. नीम हकीम खतरा ए जान - र्ोडा ज्ञान खतरनाक होता है


62. दध
ू का दध
ू पानी का पानी - ठीक ठीक न्याय करना
63. बन्दर क्या जाने अदरक का स्वाद - गर्
ु हीन गर्
ु को नहीं पहचानता
64. पर उपदे श कुशल बहुतेरे - दस
ू रों को उपदे श दे ना सरल है
65. नाम बड़े और दशणन छोटे - प्रलसद्धध के अनरू
ु प गर्
ु न होना
66. भागते भूत की लंगोटी सही - जो लमल जाए वही काफी है
67. मान न मान मैं तेरा मेहमान - जबरदस्ती गले पड़ना
68. सर मुंडाते ही ओले पड़ना - कायण प्रारंभ होते ही ववघ्न आना
69. हार् कंगन को आरसी क्या - प्रत्यक्ष को प्रमार् की क्या जरूरत है
70. होनहार बबरवान के होत धचकने पात - होनहार व्यब्क्त का बचपन में ही पता चल जाता है
71. बद अच्छा बदनाम बरु ा - बदनामी बरु ी चीज है
72. मन चंगा तो कठौती में गंगा - शुद्ध मन से भगवान प्राप्त होते हैं
73. आँख का अँधा, नाम नैनसख
ु - नाम के ववपरीत गर्
ु होना
74. ईश्वर की माया, कहीं धूप कहीं छाया - संसार में कहीं सुख है तो कहीं दःु ख है
75. उतावला सो बावला - मूखण व्यब्क्त जल्दबाजी में काम करते हैं
76. ऊसर बरसे तन
ृ नहहं जाए - मूखण पर उपदे श का प्रभाव नहीं पड़ता
77. ओछे की प्रीतत बालू की भीतत - ओछे व्यब्क्त से लमत्रता हटकती नहीं है
78. कहीं की ईंट कहीं का रोड़ा भानम
ु ती ने कुनबा जोड़ा - लसद्धांतहीन गठबंधन
79. कानी के दयाह में सौ जोणखमब - कमी होने पर अनेक बाधाएं आती हैं
80. को उन्तप होब ध्यहहंका हानी - पररवतणन का प्रभाव न पड़ना
81. खाल उठाए लसंह की स्यार लसंह नहहं होय - बाहरी रूप बदलने से गर्
ु नहीं बदलते
82. गागर में सागर भरना - कम शददों में अधधक बात करना
83. र्र में नहीं दाने , अम्मा चली भुनाने - सामथ्यण से बाहर कायण करना
84. चौबे गए छदबे बनने दब
ु े बनकर आ गए - लाभ के बदले हातन
85. चन्दन ववष व्याप्त नहीं ललपटे रहत भज
ु ंग - सज्जन पर कुसंग का प्रभाव नहीं पड़ता
86. जैसे नागनार् वैसे सांपनार् - दष्ु टों की प्रवतृ त एक जैसी होना
87. डेढ़ पाव आटा पल
ु पै रसोई - र्ोड़ी सम्पवत्त पर भारी हदखावा
88. तन पर नहीं लत्ता पान खाए अलबत्ता - झूठी रईसी हदखाना
89. पराधीन सपनेहुं सुख नाहीं - पराधीनता में सुख नहीं है
90. प्रभुता पाहह काहह मद नहीं - अधधकार पाकर व्यब्क्त र्मंडी हो जाता है
91. में ढकी को जक
ु ाम - अपनी औकात से ज्यादा नखरे
92. शौकीन बहु ढया चटाई का लहंगा - ववधचत्र शौक
93. सूरदास खलकारी का या धचदै न दज
ू ो रं ग - दष्ु ट अपनी दष्ु टता नहीं छोड़ता
94. ततररया तेल हमीर हठ चढ़े न दज
ू ी बार - दृढ प्रततज्ञ लोग अपनी बात पे डटे रहते हैं
95. सौ सुनार की, एक लुहार की - तनबणल की सौ चोटों की तल
ु ना में बलवान की एक चोट काफी है
96. भई गतत सांप छछूंदर केरी - असमंजस की ब्स्र्तत में पड़ना

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97. पच
ु कारा कुत्त लसर चढ़े - ओछे लोग मह
ु ं लगाने पर अनधु चत लाभ उठाते हैं
98. मुहं में राम बगल में छुरी - कपटपर्
ू ण व्यवहार
99. जंगल में मोर नाचा ककसने दे खा - गर्
ु की कदर गर्
ु वानों के बीच ही होती है
100.चट मंगनी पट दयाह - शभ
ु कायण तरु ं त संपन्न कर दे ना चाहहए
101.ऊंट बबलाई लै गई तौ हाँजी-हाँजी कहना - शब्क्तशाली की अनधु चत बात का समर्णन करना
102.तीन लोक से मर्ुरा न्यारी - सबसे अलग रहना
103.अक्ल का दश्ु मन - (मख
ू ण) - आजकल तम
ु अक्ल के दश्ु मन हो गए हो।
104.अपना उल्लू सीधा करना -(मतलब तनकालना) -आजकल के नेता अपना अपना उल्लू सीधा करने के
ललए ही लोगों को भड़काते हैं।
105.आँखे खल
ु ना - (सचेत होना) - ठोकर खाने के बाद ही बहुत से लोगों की आँखें खल
ु ती हैं।
106.आँख का तारा - (बहुत प्यारा) - आज्ञाकारी बच्चा माँ-बाप की आँखों का तारा होता है।
107.आँखे हदखाना - (बहुत क्रोध करना) - राम से मैंने सच बातें कह दी , तो वह मुझे आँख हदखाने लगा।
108.आसमान से बातें करना - (बहुत ऊँचा होना) - आजकल ऐसी ऐसी इमारते बनने लगी है ,जो आसमान
से बातें करती है।
109.ईंट से ईंट बजाना - (परू ी तरह से नष्ट करना) - राम चाहता र्ा कक वह अपने शत्रु के र्र की ईंट से
ईंट बजा दे ।
110.ईंट का जबाब पत्र्र से दे ना - (जबरदस्त बदला लेना) - भारत अपने दश्ु मनों को ईंट का जबाब पत्र्र
से दे गा।
111.ईद का चाँद होना - (बहुत हदनों बाद हदखाई दे ना) - तम
ु तो हदखाई ही नहीं दे त,े लगता है कक ईद के
चाँद हो गए हो।
112.उड़ती धचडड़या पहचानना - (रहस्य की बात दरू से जान लेना) - वह इतना अनभ
ु वी है कक उसे उड़ती
धचडड़या पहचानने में दे र नहीं लगती।
113.उन्नीस बीस का अंतर होना - (बहुत कम अंतर होना) - राम और श्याम की पहचान कर पाना बहुत
कहठन है ,क्योंकक दोनों में उन्नीस- बीस का ही अंतर है।

ववलोम शदद

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संजीव मालवीय

अग्र - पश्च अर्ण - अनर्ण अग्रज - अनज



अज्ञ - ववज्ञ अँधेरा - उजाला अकाल - सक
ु ाल
अमत
ृ -ववष अपेक्षक्षत - अनपेक्षक्षत आदान - प्रदान
अर् - इतत आहद - अन्त आगामी - ववगत
अर्ोष - सर्ोष आब्स्तक – नाब्स्तक आदर -अनादर
अधम - उत्तम आरम्भ - समापन आकषणर् - ववकषणर्
अपकार - उपकार आहूत - अनाहूत आयण - अनायण
अपेक्षा - उपेक्षा आयात - तनयाणत आधश्रत - अनाधश्रत
अस्त - उदय आभ्यन्तर - बाह्य इष्ट - अतनष्ट
अनरु क्त - ववरक्त आवत
ृ - अनावत
ृ इहलोक - परलोक
अनरु ाग - ववराग आशा - तनराशा उग्र – सौम्य
अन्तरं ग - बहहरंग आरोहर् - अवरोहर् अन्तद्णवन्द्व - बहहद्णवन्द्व
अवतल - उत्तल आस्र्ा - अनास्र्ा उदात्त - अनद
ु ात्त
अवर - प्रवर आरण - शष्ु क उत्कृष्ट - तनकृष्ट
अमर - मत्यण आकाश - पाताल उपसगण - परसगण
अपणर् - ग्रहर् आवाहन - ववसजणन उन्मख
ु - ववमख

अवतन - अम्बर आववभाणव -ततरोभाव उन्नत - अवनत
अपमान - सम्मान आरोह - अवरोह उद्दत - ववनीत
अततवब्ृ ष्ट - अनावब्ृ ष्ट उन्मूलन - रोपर् उपमान - उपमेय
अनक
ु ू ल - प्रततकूल उष्र् - शीत उपत्यका - अधधत्यका
ऐहहक - पारलौककक उदयाचल - अस्ताचल उत्तरायर् – दक्षक्षर्ायन
औधचत्य - अनौधचत्य उपयुक्त - अनप
ु यक्
ु त उच्च - तनम्न
एक - अनेक एड़ी – चोटी प्रसाद - अवसाद
एकत्र - ववकीर्ण एकता - अनेकता पूवव
ण ती - परवती
पाश्चात्य - पौवात्यण
बजर - उवणर
एकता - अनेकता
गम्भीर - वाचाल
भला - बुरा
एकाग्र - चंचल
गरु
ु - लर्ु भूत - भववष्य
ऐततहालसक - अनैततहालसक
गौरव - लार्व मुख्य - गौर्
औपचाररक - अनौपचाररक
गोचर - अगोचर मनज
ु - दनुज
ऋजु - वक्र
ऋत - अनत

गर्
ु - दोष मूक - वाचाल

ग्राम्य - नागर मन्द - तीव्र


कटु - सरल
मौणखक - ललणखत
कतनष्ट - जयेष्ट र्र्
ृ ा – प्रेम
योगी -भोगी
कृष्र् - शुक्ल धचरं तन - नश्वर
युद्ध - शाब्न्त
कुहटल - सरल चल - अचल
यश - अपयश
कृबत्रम - अकृबत्रम चंचल - अचंचल
योग्य - अयोग्य
करुर् - तनष्ठुर धचर - अधचर राजा – रंक
कायर - वीर जीवन - मरर् रुग्र् - स्वस्र्

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संजीव मालवीय

कुलीन - अकुलीन जाग्रत - सुप्त रुदन - हास्य

क्रय - ववक्रय जंगम – स्र्ावर ररक्त - पूर्ण


लौककक - अलौककक
कब्ल्पत - यर्ार्ण जागरर् - सुषब्ु प्त
लम्बा - चौड़ा
कृतज्ञ - कृतघ्न ज्योतत - तम
व्यास - समास
कोप -कृपा तरुर् - वद्
ृ ध
ववख्यात – कुख्यात
क्रोध - क्षमा तप्ृ त - अतप्ृ त
ववधध - तनषेध
कृश - स्र्ूल तष्ृ र्ा - तब्ृ प्त ववपन्न - सम्पन्न
कक्रया - प्रततकक्रया तीक्ष्र् - कंु हठत ववपदा - सम्पदा
खण्डन - मण्डन दण्ड – परु स्कार वब्ृ ष्ट - अनावब्ृ ष्ट

खरा - खोटा दानी - कृपर् शासक - शालसत

खाद्य - अखाद्य दरु ात्मा - महात्मा लशष्ट - अलशष्ट


लशख- नख
गप्ु त - प्रकट दे व - दानव
सालमष - तनरालमष
गरल – सुधा हदन – रात
स्मरर् - ववस्मरर्
धष्ृ ट - ववनीत तनष्काम - सकाम
संसदीय - असंसदीय
तनरर्णक - सार्णक परतन्त्र - स्वतन्त्र
सज
ृ न - संहार
तनदण य - सदय प्राचीन – नवीन
क्षय - अक्षय
तनवषद्ध - ववहहत प्राची – प्रतीची
नैसधगणक - कृबत्रम रक्षक –भक्षक
श्याम - श्वेत सूक्ष्म - स्र्ूल
शोक - हषण संगठन - ववर्टन
शोषक - पोषक संयोग - ववयोग
सत्कार - ततरस्कार सुमतत - कुमतत
संक्षेप – ववस्तार सत्कमण - दष्ु कमण
क्षुर - ववराट जीवन – मरर्
ज्ञेय - अज्ञेय हषण – शोक
स्वीकृतत - अस्वीकृतत वरदान – अलभशाप
भौततक – आध्याब्त्मक सजीव – तनजीव
खंडन – मंडन सगर्
ु – तनगर्
ुण
णखलना – मुरझाना हहंसा – अहहंसा
गहरा – उर्ला भय – तनभणय
गप्ु त – प्रकट सुकृतत – कुकृतत
कापरु
ु ष – परु
ु षार्ी सुलक्षर् – कुलक्षर्
कृततम – प्राकृत डाह – सद्भावना
अल्पमत – बहुमत तष्ृ र्ा – ववतष्ृ र्ा
अपकार – उपकार छरहरा – र्ल
ु र्ल
ु ा
अलभशाप – वरदान जागत
ृ सुषप्ु त

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संजीव मालवीय

अग्रज – अनज
ु प्रफुल्ल – म्लान
प्रचरु – अल्प पररलमत – अपररलमत
ज्ञानी – अज्ञानी पर्
ृ क – संयक्
ु त
परमार्ण – स्वार्ण धीरता – अधीरता
पाच्य – अपाच्य धरा – गगन
शब्क्त – क्षीर्ता अधीर – धीर
सत्कार – ततरस्कार दाणखल – ख़ाररज
ववहहत – अववहहत धवल – श्याम
धर्
ृ ा – प्रेम धचरस्र्ायी –
अल्पस्र्ायी

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संजीव मालवीय

प्रश्न-उत्तर

1. अततशय में कौनसा उपसगण है? – अतत


2. ‘साध्य’ को ववस्तत
ृ रूप में ककस तरह ललखा जा सकता है? – जो साधा जा सके
3. ‘ब्जसे एक स्र्ान से अन्य स्र्ान पर भेज हदया गया हो’ के ललए एक शदद क्या होगा? –
स्र्ानांतररत
4. ‘उवणशी’ पबत्रका का प्रकाशन ककस ब्जले से होता है? – भोपाल से
5. उस समुरी जहाज को क्या कहा जाता है ब्जस पर से सैतनक यद्
ु ध करते हैं? – यद्
ु धपोत
6. ‘स्वदे शी’ शदद में उपसगण क्या है? - स्व
7. ‘चामीकर’ ककसका पयाणयवाची है? – स्वर्ण (सोना)
8. ‘इश्कलता’ काव्यग्रंर् ककस भाष में ललखा है? – खड़ी बोली
9. ककणश का ववलोम क्या होगा? – मधरु
10. ‘दवु वधा’ शदद में उपसगण क्या है? – द ु
11. ‘स्वयं तनमाणर्म ्’ का प्रकाशन कहाँ से ककया जाता है? – ग्वाललयर
12. ‘बाइज्जत’ में उपसगण क्या है? – बा
13. पहला ववश्व हहंदी सम्मेलन कहाँ आयोब्जत ककया गया र्ा? – नागपरु
14. ‘भारतीय’ शदद में प्रत्यय क्या है? – ईय
15. ‘तख्तनशीन’ शदद में प्रत्यय क्या है? – नशीन
16. तनराशा का संधध ववच्छे द कीब्जये? – तन:+आशा
17. ‘नौ+इक’ से कोनसा नया शदद तनलमणत होगा? – नाववक
18. राष्रभाषा प्रचार सलमतत वधाण की स्र्ापना ककस वषण हुई र्ी? – 1936
19. “पदकमल धोई चढाई नाव न नार् उतराई चहों।“ ककस छं द से सम्बब्न्धत है ? - सवैया
20. ‘स्र्ावर’ का पयाणयवाची क्या है? – ब्स्र्र/अचल/अचर
21. ‘प्रबोध’ शदद में उपसगण क्या है? – प्र
22. ककसी भी भाषा का मल
ू ाधार ककसे कहा जाता है? – ध्वतन को
23. ‘र्म
ु क्कड़’ में क्या प्रत्यय है? – अक्कड़
24. हहन्दी में स्पशण व्यंजनों की संख्या ककतनी है? – 25
25. माबत्रक छं दों में चरर् की मात्राओं की सही गर्ना का ध्यान रखने के ललए क्या आवश्यक है? -
गतत
26. हहन्दी में ककतने प्रकार के उपसगण हैं? – 3 प्रकार के
27. अनल ककसका पयाणयवाची है? – अब्ग्न
28. करुर् रस का स्र्ायी भाव क्या है? – शोक
29. सौभाग्य शदद का ववलोम शदद क्या होगा? – दभ
ु ाणग्य
30. ‘लमलाप’ में कोनसा प्रत्यय है? – आप
31. अडड़यल में क्या प्रत्यय है? – इयल

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संजीव मालवीय

32. ह्रदय के ववकार को भाव कहा जाता है, जो भाव ् आहद अन्त तक बना रहे वह भाव क्या कहलाता
है? – स्र्ायी भाव
33. स्र्ायी बहव को पष्ु ट करने के ललए जो भाव उत्पन्न होकर पन
ु ः लुप्त हो जाते हैं वे क्या कहलाते
हैं? – संचारी भाव
34. “जो मापा न जा सके” उसके ललए एक शदद क्या होगा? – अपररमेय
35. हररगीततका चाँद में ककतनी मात्राएँ होती है? – 28 (16 और 12)
36. ‘नैततक’ में प्रत्यय कौनसा है? – इक
37. ‘पैतक
ृ ’ में क्या प्रत्यय है? – इक
38. ‘लोर्’ का पयाणयवाची शदद क्या है? – टुकड़ा/अंश/भाग
39. ‘चीवर’ के रचनकार कौन है? – रांगेय रार्व
40. ‘बहे ललया’ ककसका पयाणयवाची शदद है? – अहेरी
41. ‘अक्षरा’ पबत्रका का प्रकाशन कौन करता है? – मध्य प्रदे श राष्रभाषा प्रचार सलमतत
42. ककसी कारक की ववभब्क्त पव
ू ण में लगती है? – संबोधन
43. ‘चकवा’ का तत्सम शदद क्या होगा? – चक्रवात
44. ‘कल्पान्त’ में कौनसी संधध है? – स्वर संधध
45. ‘सुख’ ककस प्रकार का शदद है? – तत्सम शदद
46. भोपाल में आयोब्जत ववश्व हहंदी सम्मेलन भारत में आयोब्जत होने वाला कौनसा सम्मेलन र्ा? –
तीसरा
47. पव
ू ज
ण ों की संपवत्त जो भावी पीढ़ी को लमलती है क्या कहलाती है? – पैतक
ृ सम्पवत्त
48. अ, इ, उ, ऋ ककस प्रकार के स्वर है? – हास्व स्वर
49. ‘ढ’ ककस प्रकार का वर्ण है? – मूधणन्य
50. ‘तूर्ीर’ में क्या रखा जाता है? – बार्
51. अक्षत नामक पबत्रका का प्रकाशन ककस ब्जले से होता है? – खण्डवा
52. वक्ष
ृ वली में कौनसी संधध है? – स्वर संधध
53. ‘तनस्संदेह’ में कौनसी संधध है? – ववसगण संधध
54. आच्छादन में कौनसी संधध है? – व्यंजन संधध
55. ‘अपादान’ क्या बोध करवाता है? – कारक अलग होने का बोध
56. त ्, र् ्, और द् क्या है? – स्पशण व्यंजन
57. हहंदी वर्णमाला में अयोगवाहों की संख्या ककतनी है? – दो
58. ‘एक टोकरी भर लमट्टी’ कहानी के लेखक कौन है? – माधवराव सप्रे
59. डॉ. शंकर दयाल शमाण सज
ृ न सम्मान 2005 से प्रदान ककया जा रहा है ब्जसमे 51000 रुपये प्रदान
ककये जाते है, यहा परु स्कार कौन प्रदान करता है? – हहंदी ग्रन्र् अकादमी
60. “सरस्वती+आराधना” संधध बनायें – सरस्वत्याराधना
61. ‘कामायनी’ की भाषा क्या है? – खड़ी बोली
62. समावतणन पबत्रका कहाँ से प्रकालशत होती है? – इंदौर
63. “जीवन से मुक्त” का सामालसक पद बनाये – जीवनमुक्त

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64. “वटमार” का पयाणवाची ललणखए – डाकू


65. उच्चारर् के अधर पर व्यंजनों के ककतने प्रकार हैं? - तीन
66. “मतैक्य” का संधध शदद बनायें? – मत+ऐक्य
67. ‘राम की शब्क्त पज
ू ा’ ककसकी रचना है? – सूयक
ण ान्त बत्रपाठी ‘तनराला’
68. तनस्तेज में कौनसी संधध है? – ववसगण संधध
69. “कटै या” शदद में कौनसा प्रत्यय लगा है? – ऐय
70. ‘तम:+गर्
ु ’ से कौनसा नया शदद तनलमणत होगा? – तमोगर्

71. ववद्यापतत ककस भाषा के कवव र्े? – मैधर्ली
72. मालगोदाम में कौनसा समास है? – तत्परु
ु ष समा
73. मीडडया ववमशण का प्रकाशन कहाँ से होता है? – भोपाल
74. पंचायतो की मालसक पबत्रका पंचातयका का प्रकाशन कौन करता है? – मध्य प्रदे श माध्यम
75. पावणतीमंगल ककसकी रचना है? – तल
ु सीदास
76. दरु
ु पयोग में कौनसी संधध है? – ववसगण संधध
77. असत्य में कौनसा उपसगण है? – अ
78. ‘राजपत्र
ु ’ का सामालसक ववग्रह क्या होगा? – राजा का पत्र

79. शतक और दशक में ककतना अंतर है? – नदबे (90)
80. अधम का ववलोम क्या होगा? – श्रेष्ठ
81. ‘ऐसे शदद या वाक्यांश जो सामान्य से अलग ककसी ववशेष अर्ण का बोध कराएँ’ क्या कहलाते हैं?
– मह
ु ावरे
82. ‘काव्य तनर्णय’ का रचनाकार कौन है? – लभखारीदास
83. ‘ततरस्कार’ में उपसगण क्या है? – ततरस ्
84. ‘आह्वान’ का ववलोम शदद क्या होगा? – ववसजणन
85. अपहरर् में कौनसा उपसगण है? – अप
86. ‘ऋर्’ शदद में कौनसी संधध है? – व्यंजन संधध
87. जन्म के बाद मानव की प्रर्म भाषा को क्या कहा जाता है? – मातभ
ृ ाषा
88. आमरर् में कौनसा उपसर है? – आ
89. र्र्
ृ ा ककस रस का स्र्ायी भाव है? – वीभत्स रस
90. कामना में प्रत्यय क्या है? – अना
91. पंचवटी में कौनसा समास है? – द्ववगु समास
92. ‘आपबीती’ में कौनसा समास है? – तत्परु
ु ष समास
93. वस्त्र में क्या प्रत्यय है? – त्र
94. “सुबरन को खोजत कफरै कवव व्यलभचारी चोर” उक्त पंब्क्त में कौनसा अलंकर है? – श्लेष अलंकार
95. प्रोत्साहन में कौनसी संधध है? – गर्
ु संधध
96. संववधान के ककस भाग का शीषणक राजभाषा है? – भाग 17
97. ‘नानापरु र्’ में उपसगण क्या है? – नाना
98. बन्ु दे ली ककस हहंदी क्षेत्र में बोली जाती है? – पब्श्चमी हहंदी क्षेत्र में

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99. ‘सौम्य’ का ववलोम क्या होगा? – उग्र


100.‘बसेरा’ शदद में कौनसा प्रत्यय है? – एरा
101.कंु डललया छं द का तनमाणर् ककन से लमलकर होता है? – दोहा और रोला से
102.प्रत्यय को कहाँ जोड़ा जाता है? – शदद के अंत में
103.‘नाक में दम करना’ मह
ु ावरे का अर्ण क्या है? – बहुत अधधक परे शां करना
104.पष्ु कर ककसका पयाणयवाची है? – तालाब या सरोवर
105.‘परु ाकाल’ में उपसगण क्या होगा? – परु ा
106.‘रामशलाका’ ककसकी रचना है? – तुलसीदास
107.ककस समास में प्रर्म पद ववशेषर् और दस
ू रा पद ववशेष्य होता है? - कमणधारय
108.मनमाना में कौनसा समास है? – अव्ययीभाव समास
109.‘सुरेश लमठाई खता है’ में कौनसी कक्रया है? – सकमण कक्रया
110.बन्ु दे ली का जन्म ककस अपभ्रंश से माना जाता है? – शौरसेनी
111.‘तनंदनीय’ शदद में प्रत्यय क्या है? – अनीय
112.‘ऑ ंखें तनकाल उड़ जाते, क्षर् भर उड़ कर आ जाते है ’ उक्त पंब्क्त में कौनसा समास है? –
ववभत्स रस
113.समागम पबत्रका का प्रकाशन कहाँ से होता है? – भोपाल
114.मध्यभारती पबत्रका का प्रकशन ककस ब्जले से होता है? – सागर
115.‘जो सदा से चला आ रहा है ’ के ललए एक शदद क्या होगा? – धचरकालीन/शाश्वत
116.‘राजनीतत की रपटीली राहें ’ ककसकी रचना है? - अटल बबहारी वाजपेयी
117.सवणनाम के ककतने भेद हैं? – 6
118.दोहा छं द के ववषम चरर्ों की मात्राएं ककतनी होती है? – 13-13
119.राजभाषा संकल्प कब पाररत ककया गया र्ा? – 1967
120.‘मुरेला’ में कौनसा प्रत्यय है? – एला
121.‘राकापतत’ ककसका पयाणयवाची है? – चन्रमा का
122.शदद ‘रुक्मा’ ककसका पयाणयवाची है? – चांदी का
123.‘च’ ककस प्रकार का व्यंजन है? – तालव्य
124.‘वह स्र्ान क्या कहलाता है जहाँ गमन संभव न हो’? – दग
ु म

125.संसद द्वारा राजभाषा संकल्प को राजपत्र में अधधसूधचत कब ककया गया र्ा? – 18 जनवरी 1968
126.‘उज्ज्वल’ शदद का संधध ववच्छे द क्या होगा? – उत ्+ज्वल
127.‘औहत’ का ववलोम शाद क्या होगा? – सद्गतत
128.‘ररमाई’ ककस बोली का अन्य नाम है? – बर्ेली
129.कमणधारय समास ककस प्रकार बनता है? – ववशेषर् और ववशेष्य के योग से
130.‘परवती’ ककसका ववलोम शदद है? – पव
ू व
ण ती
131.ब्रज भाषा ककस हहंदी क्षेत्र में बोली जाती है? – पब्श्चमी हहंदी क्षेत्र
132.“पीपर पात सररस मन डोला” ककस अलंकार का उदहारर् है? – उपमा अलंकार
133.‘कंकाल’कहानी ककसने ललखी है? – जयशंकर प्रसाद

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134.जो अक्षर बबना ककसी अन्य वर्ण की सहायता से बोला जाये वहा क्या कहलाता है? – स्वर
135.ब्रह्मवषण में कौनसी संधध है? – गर्
ु संधध
136.हे म ककसका पयाणयवाची है? – स्वर्ण
137.‘रूपमंजरी’ ककसकी राज्चना है? – नंददास
138.‘अलबत्ता’ में उपसगण क्या है? – अल
139.‘सदाचार’ का ववलोम क्या होता? – कदाचार
140.‘ववज्ञान गीत’ के रचनाकार कौन है? – केशव
141.पष्ु पेन्र का संधध ववच्छे द करे ? – पष्ु प+इंर
142.‘जलचर’ कौन होता है? – ब्जसका जन्म जल में हुआ हो
143.गागी संहहता की रचना ककसने की र्ी? - कात्यायन द्वारा
144.लर्ु उपन्यास “काठ का सपना” ककसने ललखा र्ा? - गजानन माधव ‘मुब्क्तबोध’
145.संववधान का संधध ववच्छे द कीब्जये? – सम ्+ववधान
146.बर्ेली ककस हहंदी के अंतगणत आती है? – पव
ू ी हहंदी
147.क् , ग ् और च ् ककस प्रकार के व्यंजन कहलाते हैं? – महाप्रार् व्यंजन
148.चार आश्रमों से सम्बंधधत उपतनषद कौनसा है? – जाबालोपतनषद के चतुर्ण खण्ड में
149.‘न’ वर्ण का उच्चारर् स्र्ान क्या है? – दन्त और नालसका
150.हहंदी शदद ककस भाषा का शदद है? – फारसी
151.अक्षरा पबत्रका का प्रकाशन कहाँ से ककया जाता है? – भोपाल
152.अमत
ृ स्य नमणदा नामक पस्
ु तक के लेखक कौन है? – अमत
ृ लाल बेगड़
153.पंजाब केसरी नामक समाचार पत्र की भाषा क्या है? – हहंदी
154.‘धध
ुं के आर-पर’ ककसकी रचना है? – कैलाशचंर पंत
155.धचल्लाहट में प्रत्यय क्या है? – हट
156.दे व्यागमन में कौनसी संधध है? – यर् संधध
157.यर्ेष्ट में कौनसी संधध है? – गर्
ु संधध
158.संर् की राजभाषा हहंदी और ललवप दे वनागरी होगी यहा ककस अनच्
ु छे द में कहा गया है? - अनच्
ु छे द
343
159."रचना" नामक पबत्रका का प्रकाशन कौन करता है? - हहंदी ग्रन्र् अकादमी
160.“मरर् ज्वार और यग
ु चरर्” ककसकी रचनाएँ हैं? - माखनलाल चतुवेदी
161.‘जो ककये हुए उपकार को मानता है’ क्या कहलाता है? – कृतज्ञ
162.‘पावक’ ककसका पयाणयवाची है? – अब्ग्न
163.“राखी की चन
ु ौती” ककसकी रचना है? - सभ
ु राकुमारी चौहान
164.‘रहहमन जो गतत दीप की कुल कपत
ू गतत सोय, बारे उब्जतयारे लगे बढे अंधेरो होय’ में कौनसा
अलंकार है? - श्लेष अलंकार
165.“कामायनी एक पन
ु ववणचार” ककसकी रचना है? - गजानन माधव मुब्क्तबोध
166.कुमकुम और उलमणला ककसकी रचनाएँ हैं? - बालकृष्र् शमाण “नवीन”
167.“चककत है दख
ु ” ककसकी रचना है? - भवानी प्रसाद लमश्र

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168.ववकलांग श्रद्धा का दौर और रानी नागफनी की कहानी ककसकी रचनाएँ हैं? - हररशंकर परसाई
169.“रहा ककनारे बैठ और एक गधा र्ा” ककसकी रचनाएँ हैं? - शरद जोशी
170.“आल्हाखंड” ककसकी रचना है? - जगतनक
171.भूषर् का संधध ववच्छे द कीब्जये? – भूष+अन
172.कालीलमचण में कौनसा समास है? – कमणधारय समास
173.‘जो दे खा न जा सके’ के ललए एक शदद? – अदृश्य (अगोचर)
174.मतू छणत शदद का ववलोम क्या है? – चैतन्य
175.सवणज्ञ को ववस्तत
ृ रूप में ककस प्रकार ललखा जा सकता है? – जो सब जनता हो या जो सबका
ज्ञाता हो
176.‘आनंद रर्न
ु न्दन’ नाटक ककसने ललखा है? – ववश्वनार् लसंह
177.‘गंगा लहरी’ की रचना ककसके द्वारा की गई र्ी? - पंडडत जगन्नार् लमश्र
178.14 लसतम्बर 1949 क्यों महत्वपर्
ू ण है? – इस हदन को राजभाषा का दजाण लमला र्ा
179.‘तनस्तार’ में कौनसी संधध है? – ववसगण संधध
180.तनम्न पंब्क्त ककसका उदहारर् है?
न्यारे -न्यारे कुसम
ु ककतने भाव के र्े अनेको, उत्साह के ववपल
ु ववटपी मुग्धकारी महा र्े – सांग
रूपक
181.‘कलम का लसपाही’ ककसकी रचना है? – अमत
ृ राय
182.‘नाखून क्यों बढ़ते हैं’ ककसकी रचना है? – हजारीप्रसाद द्वववेदी
183.‘मैला आंचल’ ककसकी रचना है? – फर्ीश्वरनार् ‘रे र्’ु
184.प्रततहदन में कौनसा उपसगण लगा है? – प्रतत
185.कीततण का ववलोम क्या होगा ? – अपकीततण
186.‘दाल-रोटी’ में कौनसा समास है? – द्वंद समास
187.तनकेतन ककसका पयाणयवाची शदद है? – गह
ृ या र्र
188.‘मनीष मेरा सच्चा दोस्त है |’ इस वाक्य में ववशेषर् शदद क्या है? – सच्चा
189.‘मग
ृ ावती’ ककसकी रचना है? – कुतब
ु न
190.‘करकमल’ में कौनसा समास है? – कमणधारय समास
191.शास्त्रीय नत्ृ य के ललए कौनसी फैलोलशप प्रदान की जाती है? - चक्रधर फैलोलशप
192.‘मग
ृ नयनी’ ककसकी रचना है? - वन्ृ दावनलाल वमाण
193.ववरब्क्त का ववलोम शदद क्या होगा? – अनरु ब्क्त
194.‘त्रार्’ ककसका पयाणयवाची है? – रक्षा का
195.‘चारों ने र्रों को भीतर झाँका’ वाक्य शद्
ु ध कीब्जये? – चोरों ने र्रों के भीतर झाँका
196.‘भरपेट’ में कौनसा समास है? – अव्ययीभाव समास
197.‘पढ़ते समय उसकी आँखों .......... पानी तनकलता है’ खाली स्र्ान में क्या आयेगा? - से
198."मक्खी पर मक्खी मरना" मुहावरे का क्या अर्ण है? - ज्यों का त्यों नकल करना
199.‘लीलावती’ का फारसी में अनव
ु ाद ककसने ककया र्ा? – फैजी ने
200.ब्जन अक्षरो को बोलने के ललए स्वर की आवश्यकता हो उन्हें क्या कहा जाता है? - व्यंजन

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201.वह इष्टदे व के मंहदर की पज


ू ा सी, वह दीपलशख सी शांत भाव में लीन में अलंकार है ? – उपमा
अलंकर
202.जहां काव्य में चमत्कार अर्ण पर आधश्रत होता है, वहां कौनसा अलंकार होगा? – अर्ाणलक
ं ार
203.तनम्नललणखत पंब्क्त में कौनसा अलंकार है?
“पानी केरा बद
ु बद
ु ा अस मानस
ु की जात में अलंकार है ” – उपमा
204.तनम्न में कौनसा अलंकर है?
बबनु पग चलइ सन
ु हह बबनु काना।
कर बबनु कमण करहहं ववधध नाना।। - ववभावना
205.अग्रललणखत पंब्क्त में कौनसा अलंकर है?
"पीपरपात सररस मन डोला" में कोन सा अलंकार है? – उपमा अलंकर
206.तनम्नललणखत में कौनसा अलंकार है?
तनंदक तनयरे राणखए, ऑ ंगन कुटी छवाय।
बबन पानी, साबन
ु बबना, तनमणल करे सभ
ु ाय।। - ववभावना
207. ‘राजू बाजार से आ गया होगा’ कौनसा वाक्य है? – संदेह सच
ू क वाक्य
208.तनम्न पंब्क्त में कौनसा अलंकार है?
सारी बबच नारी है कक नारी बबच सारी है।
सारी ही की नारी है कक नारी कक ही सारी है ।। - संदेह अलंकार
209.सामाब्जक शदद में प्रत्यय क्या है? - इक
210.तनराधार का ववलोम शदद क्या होगा? – आधार
211.अधधष्ठता में उपसगण क्या है? – अधध
212.उपमा के वाचक शदद है ? – समान, सम, सा, से सी आहद
213.उत्प्रेक्षा के वाचक शदद है ? – मन,ु मानो, जन,ु जनहू, जानो, मनहु आहद
214.“अठन्नी” में कौनसा समास है? – हदगु समास
215.मालवी ककस अंचल की बोली है? – मालवा
216.रौर रस का सम्बन्ध ककस काव्य गर्
ु से है? – ओज
217.‘बत्रलोचन’ में कौनसा समास है? – बहुब्रीहह समास
218.एक ऐसा पहचान पत्र ब्जसका नाम नींव की तरह है, वतणमान में ? – आधार काडण
219.रूपक के वाचक शदद है ? - कोई भी नहीं इसमें उपमेय और उपमान होते है
220.गर्ों की संख्या ककतनी होती है? - आठ (य मा ता रा ज भा न स ल ग म)
221.‘दानधान’ में कौनसा समास है? – तत्परु
ु ष समास
222.‘दीर्ाणय’ु में कौनसा समास है? – कमणधारय समास
223.राबत्र के प्रर्म पहर को क्या कहा जाता है? – प्रदोष
224.‘अकजाण’ ब्क्सका पयाणयवाची है? – यमुना
225.वर्ण, मात्रा, गतत, यतत के तनयमों से तनयंबत्रत रचना क्या कहलाती है? – छं द
226.तीन वर्ो का समूह क्या कहलाता है? - गर्
227.ककस गर् में तीनों वर्ण गरु
ु होते है? – मगर्

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228.‘हदशाएं ही ब्जसका वस्त्र हो’ के ललए एक शदद क्या होगा? – हदगम्बर


229.‘आकाश के तारे तोडना’ मह
ु ावरे का क्या अर्ण होगा? – असंभव को संभव करना
230.ह्रदय ववदारक कौन कहलाता है? – ह्रदय को ववदीर्ण करने वाला
231.‘अनारदाना’ में कौनसा समास है? – सम्बन्ध तत्परु
ु ष
232.‘बंगारू’ ककस हहंदी क्षेत्र में बोली जाती है? – पब्श्चमी हहन्द क्षेत्र
233.‘कतान्त’ ककसका पयाणयवाची है? – यमराज का
234.‘दे हलता’ में कौनसा समास है? – कमणधारय समास
235.‘आनन्दमय’ में कौनसा समास है?- तत्परु
ु ष समास
236.‘शदद संवाद’ नामक पबत्रका ककस ब्जले से प्रकालशत होती है? – उज्जैन
237.‘रोकड़बही’ में कौनसा समास है? – सम्प्रदान तत्परु
ु ष
238.काव्य गर्
ु ों की संख्या ककतनी होती है? – 3
239.धनंजय में कौनसा समास है? - बहुब्रीहह समास
240.माबत्रक सम छं द कौनसे है? - चौपाई, शंग
ृ ार, रोला, रूपमाला, गीततका, हररगीततका, सोरठा, उल्लाला
241.माबत्रक ववषम छं द कौनसे है? - कुण्डललया, दोहा, रोला, छप्पय
242.वणर्णक सम छं द कौनसे है? - इंरवज्रा, उपेन्र वज्रा, उपजातत, वंशस्र्, भुजंग प्रयात, तोटक,
दरतववलब्म्बत,
ु् वसंतततलका, लशखरर्ी, मंदाक्रांता, मतगयंद, मालती
243.रस में संचारी भावो की संख्या ककतनी है? – 33
244.तनम्न में कौनसा अलंकार है?
“फूलों के आसपास रहते हैंl
कफर भी कांटे उदास रहते हैंll” – अन्योब्क्त अलंकार
245.एक राज्य की अधधकाररक भाषा को अन्य ककस नाम से जाना जाता है? – राजकीय भाषा
246.मध्य प्रदे श की राजकीय भाषा क्या है? – हहन्दी
247.भौततक का ववलोम शदद ललणखए? – आध्याब्त्मक
248.“अनश
ु ासन” शदद कौनसा उपसगण लगा है? – अनु
249.जहाँ उपमेय और उपमान को एक रूप में व्यक्त ककया जाता है वहां होता है – रूपक अलंकार
250.“कीततणपताका” ककसकी रचना है? – ववद्यापतत
251.ब्जसका पान न ककया जा सके – अपेय
252.‘मुहावरा’ शदद ककस भाषा का है? – फारसी
253.जो दरू की बात सोचता है वह कहलाता है – दरू दशी
254.व्याकरर् की दृब्ष्ट से प्रेम शदद क्या है? – भाववाचक संज्ञा
255.‘वह कार मेरी है ’ इस वाक्य में कौनसा कारक है? – सम्बन्ध
256.‘शुद्ध आत्मा’ का मनष्ु य क्या कहलाता है? – शुद्धोधन
257.संज्ञाहीन का पयाणयवाची क्या है? – बेसुध
258.“दांतों तले ऊँगली दबाना” मह
ु ावरे का क्या अर्ण है? – आश्चयण प्रकट करना
259.“बद
ुं े लो हरबोलों के मख
ु हमने सुनी कहानी र्ी, खूब लड़ीमदाणनी वह तो झाँसी वाली रानी र्ी” यह
पंब्क्तया ककस रस का उदाहरर् हैं? – वीर रस

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260.वीभत्स रस का स्र्ाई भाव क्या है? - र्र्


ृ ा
261. “ब्जसने इंर पर ववजय प्राप्त की हो” क्या कहलायेगा? – इन्रजीत
262.“अकाल से पीडड़त” का सामालसक पद क्या होगा? – अकालपीडड़त
263.‘दे वसेवा’ शदद में कोनसा समास है? – तत्परु
ु ष
264.शददों के प्रत्यय का लोप कहा होता है? – समास
265.‘गभणनाल’ पबत्रका का प्रकासन कहाँ से ककया जाता है? – भोपाल
266.“आधे-अधरू े ” ककसकी रचना है? – मोहन राकेश
267.ककसी सभा का प्रधान क्या कहलाता है? – सभापतत
268.‘चतरु ानन’ का पयाणयवाची क्या होगा? – ब्रह्मा
269.“अक्ल का चरने जाना “ मुहावरे का अर्ण क्या है? – समझ का आभाव होना
270.“अधजल गगरी छलकत जाय” का अर्ण ललणखए? – मुखण व्यब्क्त अधधक धचल्लाता है
271.“ना नों मन तेल होगा ना राधा नाचेगी” का अर्ण क्या है? – कारर् समाप्त हो जाने पर पररर्ाम
स्वतः ही समाप्त हो जायेंगे
272.“अन्धों में काना राजा” का अर्ण क्या है? - मूखों में कम ववद्वान भी श्रेष्ठ माना जाता है
273.धराधर ककसका पयाणयवाची है? – मेर्
274.‘गें हू और गल
ु ाब’ ककसकी रचना है? – रामवक्ष
ृ वैतनपरु
275.‘जोरावर’ शदद ककसका पयाणयवाची है? – बलवान
276.हहंदी भाषा को ककस ललवप में ललखी जाती है? – दे वनागरी
277.बल्लभाचायण ककसके गरु
ु र्े? – सरू दास
278.“अपना उल्लू सीधा करना” मुहावरे का अर्ण क्या है? - मतलब तनकालना
279.सुस्त, ढीला और धीमा ककस शदद के पयाणयवाची हैं? – लशधर्ल
280.ब्जन शददों को बोलने पर हवा नाक और मह
ुँ से तनकलती है वे क्या कहलाते है? – अनन
ु ालसक
281.ब्जसन शददों के बोलने में हवा नाक से तनकलती है वे क्या कहलाते हैं? – अनस्
ु वार
282.“ब्जसे दे श से तनकाल हदया गया हो” के ललए एक शदद ललणखए? – तनवाणलसत
283.भारतीय शदद में प्रयोग क्या गया प्रत्यय कौनसा है? – ईय
284.भोजपरु ी ककस अपभ्रंश से ववकलसत हुई है? – शौरसेनी
285.‘व्यंग्योब्क्त’ का संधध ववच्छे द कीब्जये? – व्यंग्य+उब्क्त
286.“बाल की खाल तनकलना” मह
ु ावरे का अर्ण क्या है? – व्यर्ण तकण करना
287.“आमदनी” शदद में प्रत्यय क्या है? – ई
288.यौधगक कक्रया क्या है? – दो या दो से अधधक धातुओं के संयोग से बनाने वाली कक्रया
289.“उठं ती” शदद में कौनसा प्रत्यय है? – न्ती
290.“उन्नीस बीस का अंतर होना” मुहावरे का अर्ण क्या है? – बहुत कम अंतर होना
291.दे वनागरी ललवप का ववकास ककस ललवप से हुआ है? – ब्राह्मी से
292.हहन्दी हदवस कब माने जाता है? – 14 लसतम्बर
293.‘तनस्तार’ में कौनसी संधध है? – ववसगण संधध
294.क्रोध ककस रस का स्र्ाई भाव है? – रौर रस

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295.हहन्दी ग्रन्र् अकादमी भोपाल कब स्र्ावपत की गई? – 1969


296.“अन्वेषर्” का संधध ववच्छे द क्या होगा? – अन+
ु एषर्
297.“कमणभूलम” ककसकी रचना है? – प्रेमचंद
298.‘सारांश’ शदद के दो पयाणयवाची बताएं? – सार/तनचौड़
299.सूत का तत्सम क्या है? – सूत्र
300.‘मै ककताब पढूंगा’ में कौनसा वाच्य है? – कतुणवाच्य
301.‘शोणर्त’ ककसका पयाणयवाची है? – रक्त का
302.प्रत्यागत कौन होता है? – जो लौट कर आता है
303.अधधष्ठता में उपसगण क्या है? – अधध
304.मालवी ककस अंचल की बोली है? – मालवा
305.‘बत्रलोचन’ में कौनसा समास है? – बहुब्रीहह समास
306.‘न तलने वाली र्टना’ को क्या कहा जाता है? – होनहार
307.तनम्न में कौनसा अलंकार है?
“आगे नहदया पड़ी अपार, र्ोडा कैसे उतरे पारl
रार्ा ने सोचा इस पार, तब तक चेतक र्ा उस पारll” – अततश्योब्क्त अलंकार
308.“आवतण” शदद का सही अर्ण क्या है? – भँवर
309.“चमड़ी जाय पर दमड़ी न जाय” मुहावरे का अर्ण क्या है? – बहुत अधधक कंजस
ू ी करना
310.तत्सम शददों का मल
ू स्त्रोत क्या है? – संस्कृत
311.“भारत दद
ु णशा’ ककसकी रचना है? – भारतेन्द ु हररश्चंर
312.‘शैक्षणर्क सन्दभण’ नामक पबत्रका का प्रकाशन ककस ब्जले से ककया जाता है? – भोपाल
313.‘मैं यहा कायण पर्
ू ण कर लँ ग
ू ा’ बहुवचन बनाये? – हम यहा कायण पर्
ू ण कर लेंगे
314.“वाहᴉ क्या शानदार चौका मारा है ” अर्ण के अधर पर वाक्य का क्या भेद है? – ववस्मयाहद बोधक
315.“रसमंजरी” ककसकी रचना है? – नंददास
316.“जहाँ उपमेय और उपमान की समानता के कारर् उपमेय में उपमान की संभावना या कल्पना की
जाये” वहां कौनसा अलंकार होता है? – उत्प्रेक्ष अलंकार
317.जहाँ पहला पद और दस
ू रा पद लमलकर ककसी तीसरे पद की ओर संकेत करते हैं, वहां कौनसा
समस होता है? – बहुव्रीहह समास
318.“मैं खाना खाकर के ही सोऊंगा” वाक्य को शुद्ध कीब्जए – मैं खाना खाकर ही सोऊंगा
319.“उर्ला” शदद का ववलोम शदद कौनसा है? - गहरा
320.“नीलकंठ” में कौनसा समास है? – बहुव्रीहह समास
321.‘हदल मसोस कर रह जाना’ मह
ु ावरे का अर्ण क्या है? – खीजकर रह जाना
322. 6 चरर्ों वाला छं द कौनसा है? – छप्पय छं द
323.‘पयाणवरर् डाइजेस्ट’ का प्रकाशन कहाँ से ककया जाता है? – रतलाम
324.‘उत्तमौषध’ का संधध ववच्छे द कीब्जये? – उत्तम+औषध
325.दोहा और चौपाई ककस प्रकार के छं द है? – अद्णधसम माबत्रक
326.“अढाई हदन की हुकूमत” मुहावरे का अर्ण क्या है? – कुछ हदनों की शानोशौकत

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संजीव मालवीय

327.“कलेजा ठं डा होना” मह
ु ावरे का अर्ण? – सक
ु ू न/संतोष लमलना
328.“धगन-धगन कर पैर रखना” मुहावरे का अर्ण क्या है? – अत्याधधक सावधानी बरतना
329.ब्जस वाक्य में एक कक्रया होती है और एक कताण होता है, वहा कौनसा वाक्य होता है? – सरल
वाक्य
330.“हँसुए के दयाह में खुरपे का गीत” लोकोब्क्त का अर्ण क्या होगा? – असंगत बाते या ववषय से हट
कर
331.‘यर्ा+इच्छा’ का पर्
ू ण शदद क्या बनेगा? – यर्ेच्छा
332.‘मुख मयंक सम मज
ुं मनोहर’ में कौनसा अलंकार है? – उपमा अलंकार
333.ब्जसके चार चरर् होते है तर्ा प्रत्येक चरर् में 26 मात्राएँ होती है, 14 और 12 मात्राओं पर यतत
होती है और प्रत्येक चरर् के अन्त में लर्-ु गरु
ु होना आवश्यक होता हैl कौनसा छं द है? – गीततका
334.हदग्गज का संधध-ववच्छे द कीब्जए – हदक् +गज
335.अनन
ु ालसक व्यंजन कौनसे होते है? - वगण के पंचमाक्षर
336.“अपने पर ववश्वास” का सामालसक पद क्या होगा? – आत्मववश्वास
337.“कलम तोडना” मुहावरे का अर्ण क्या है? – बहुत अच्छा ललखना
338.नैसधगणक' ककसका पयाणयवाची है? – प्राकृततक
339.साहहत्य पररक्रम पबत्रका कहाँ से प्रकलशत होती है? – ग्वाललयर
340.मगही ककस भाषा की उपबोली है? – बबहारी
341.गौ+अन का संधध शदद क्या होगा? – गायन
342.मध्यावधध’ में कौनसी संधध है? – दीर्ण स्वर संधध
343.‘बरु ाई’ शदद मे प्रत्यय है ? - आई
344.‘अधोगतत’ में उपसगण क्या है? – अध:
345.आशंका का पयाणयवाची ललणखए? – अप्रत्यय/खटका/खतरा
346.‘रोष’ ककसका पयाणयवाची है? – क्रोध का
347.‘अनंत अववराम’ नामक पबत्रका का प्रकाशन कहाँ से होता है? – ववहदशा से
348.‘गांठ का पक्का” मह
ु ावरे का क्या अर्ण है? – धन संभाल कर रखना
349.हहन्दी खडी बोली ककस अपभ्रंश से ववकलसत हुई है? - पब्श्चमी हहन्दी
350.हहन्दी भाषा की बोललयों के वगीकरर् के आधार पर छत्तीसगढी ककस प्रकार की बोली है? – पव
ू ी
हहन्दी
351.
352.‘समरर् को नहीं दोष गोसाई’ का अर्ण क्या होगा? – साबल को कोई दोष नहीं हदखता
353.‘स्वयं तनमाणर्म ्’ का प्रकाशन कहाँ से ककया जाता है? – ग्वाललयर
354.‘ऊमी’ का पयाणयवाची ललणखए? – उल्लोल/वीधच/तलछट
355.अधधकतर भारतीय भाषाओ का ववकास ककस ललवप से हुआ? - दे वनागरी
356.अकधर्त का ववस्तत
ृ रूप क्या होगा? – जो कहा न गया हो
357.सीलमत क्षेत्र में बोली जाने वाली भाषा को क्या जाता है? – बोली
358.‘अस्सी की आमद चौरासी का खचण’ लोकोब्क्त का अर्ण क्या है? – आमदनी से अधधक खचण

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संजीव मालवीय

359.‘मम
ु क्ष
ु ु’ का प्रयोग ब्क्कस अर्ण के ललए ककया जाता है? – मोक्ष का इक्षुक
360.‘इत्याहद’ शदद का ववलोम क्या होगा है? – यर् संधध
361.पंजाबी भाषा की ललवप कौनसी है ? - गरु
ु मुखी
362.‘धचतरं जन’ का ववलोम शदद क्या होगा? – नश्वर
363.भारतीय संववधा के ककन अनच्
ु छे दों में राजभाषा के ललया प्रावधान ककया गया है? – अनच्
ु छे द 343
से 351 तक
364.आचायण मम्मट और ववश्वनार् के अनस
ु ार रसों की संख्या ककतनी है? – नौ (9)
365.छं द की हर पंब्क्त को चरर् के अलावा क्या कहा जाता है? – पद
366.अन्याय का संधध ववच्छे द कीब्जये? – अन्य+अन्य
367.‘राग भोपाली’ पबत्रका कहा से प्रकालशत होती है? – भोपाल
368.‘गातयका’ में कौनसी संधध है? – अयाहद स्वर संधध
369.“दीर्ाणय”ु का ववलोम क्या होगा? – अल्पायु
370.‘अनरु ब्क्त’ का ववलोम शदद ललणखए? – ववरब्क्त
371.अग्रललणखत पंब्क्त में कौनसा छं द है?
‘सुतन केवट के बैन, प्रेम लपेटे अटपटे |
ववहँसे करुना नैन, धचतइ जानकी लखन तन|| - सोरठा
372.‘सदोष’ शदद का ववलोम क्या होगा? – अदोष
373.‘इलेक्रॉतनक आपके ललए’ का प्रकाशन कहाँ से ककया जाता है? – भोपाल
374.‘तछछले’ का ववलोम शदद क्या होगा? – गहरा
375.अं और अ: क्या हैं? – अयोगवाह
376.‘धचड़ीमार’ में कौनसा समास है? – कमण तत्परु
ु ष समास
377.‘ब्जसका कोई अन्त नहीं होता’ के ललए एक शदद क्या होगा? – अनंत
378.‘सन्मतत’ का संधध ववच्छे द कीब्जए? – सत ्+मतत
379.‘मेरा पररवार’ ककसकी रचना है? – महादे वी वमाण
380.‘वह अपराधी र्ा, इसललए उसे सजा लमली’ कैसा वाक्य है? – संयक्
ु त वाक्य
381.‘एक लाठी से हाँकना’ मह
ु ावरे का क्या अर्ण है? – अच्छे -बरु े का अंतर न करना
382.लर्त
ु ा शदद में प्रत्यय क्या है? – ता
383.अगणर्त का तद्भव क्या होगा? – अनधगनत
384.‘आशत
ु ोष’ में कौनसा समास है? – बहुब्रीहह समास
385.तनम्न पंब्क्त में छं द पहचातनए?
“श्री गरु
ु चरर् सरोज राज, तनज मन मक
ु ु र सध
ु ारर|
बरनौं रर्व
ु र ववमल जस, जो दायक फल चारर|| - दोहा
386.‘एक और एक ग्यारा होते है ’ लोकोब्क्त का अर्ण क्या है? – एकता/संगठन में शब्क्त होती है
387.रतत नामक स्र्ाई भाव ककस रस में पाया जाता है? – श्रंग
ृ ार रस
388.‘इत्याहद’ ककस संधध का उदाहरर् है? – यर् स्वर संधध
389.‘अंब’ु ककसका पयाणयवाची है? – जल

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संजीव मालवीय

390.कववत्त छं द के प्रत्येक चरर् में वर्ो की संख्या ककतनी होती है? – 31


391.हररगीततका छं द के प्रत्येक चरर् में ककतनी-ककतनी मात्राएं होती है? - 28 तर्ा अंत में एक लर्ु
एक गरु

392.‘तुम नहीं जाओगे’ उक्त वाक्य का प्रकार क्या है? – तनषेध सूचक वाक्य
393.समूह का ववलोम शदद क्या होगा? – अकेला
394.तनम्न पहे ली का क्या उत्तर है?
र्फारसी बोली आईना, तक
ु ी सोच न पाईना|
हहन्दी बोलते आरसी, आए मुँह दे खे जो उसे बताए|| - दपणर्
395.‘उरग’ ककसे कहा जाता है? – जो पेट के बल चलता है
396.‘गीतावली’ का संधध ववच्छे द कीब्जये? – गीता+वली
397.‘यमुना+उत्तरी’ से नया शदद कौनसा तनलमणत होगा? – यमुनोत्तरी
398.सैतनको के समूह को क्या कहा जाता है? – फौज
399.‘पन
ु लेखन’ में उपसगण क्या है? – पन
ु र्
400.लोकमंगल का प्रकाशन कहाँ से ककया जाता है? – ग्वाललयर
401.‘महाववद्यालय’ में कौनसा समास है? – कमणधारय समास
402.अग्रललणखत पंब्क्त में कौनसा रस है?
एक ओर अजगरहह लणख एक ओर मग
ृ राय|
बबकल बटोही बीच ही परयो मरु छा खाय|| - भयानक रस
403.“तलवार की धार पर चलना” मह
ु ावरे का अर्ण क्या है? – कहठन कायण करना

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