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me/EduNewsGroup
संजीव मालवीय
हहंदी
मझ
ु े पता नहीं है ये पीडीएफ कैसी बनी होगी जल्दी में बनाई है क्योंकक परीक्षा में समय नहीं
है| भाइयों-बहनों अगर पीडीएफ में गलती हो तो ककसी अन्य पस्
ु तक से इसका लमलान करलें
और गलती के ललए मझ
ु े क्षमा करें
धन्यवाद
संधध
दो पदों में संयोजन होने पर जब दोवर्ण पास -पास आते हैं , तब उनमें जो ववकार सहहत मेल होता है , उसे संधध
कहते हैं|
1. स्वर संधध - दो स्वरों के पास -पास आने पर उनमें जो रूपान्तरर् होता है , उसे स्वर कहते है ! स्वर संधध
के पांच भेद हैं
1. दीर्ण स्वर संधध - जब दो सवर्ी स्वर पास -पास आते हैं , तो लमलकर दीर्ण हो जाते हैं|
2. गर्
ु संधध :- अ तर्ा आ के बाद इ , ई , उ , ऊ तर्ा ऋ आने पर क्रमश: ए , ओ तर्ा अनतस्र् र होता है
इस ववकार को गर्
ु संधध कहते है|
3 यर् स्वर संधध :- यहद इ , ई , उ , ऊ ,और ऋ के बाद कोई लभन्न स्वर आए तो इनका पररवतणन क्रमश: य
, व ् और र में हो जाता है|
1. इ का य = इतत+आहद = इत्याहद
2. ई का य = दे वी+आवाहन = दे व्यावाहन
3. उ का व = सु+आगत = स्वागत
4. ऊ का व = वधू+आगमन = वध्वागमन
5. ऋ का र = वपत+
ृ आदे श = वपत्रादे श
3. वद्
ृ धध स्वर संधध :- यहद अ अर्वा आ के बाद ए अर्वा ऐ हो तो दोनों को लमलाकर ऐ और यहद ओ
अर्वा औ हो तो दोनों को लमलाकर औ हो जाता है |
5. अयाहद स्वर संधध :- यहद ए , ऐ और ओ , औ के पशचात इन्हें छोड़कर कोई अन्य स्वर हो तो इनका
पररवतणन क्रमश: अय , आय , अव , आव में हो जाता है|
1. ए का अय ने+अन = नयन
2. ऐ का आय नै+अक = नायक
3. ओ का अव पो+अन = पवन
4. औ का आव पौ+अन = पावन
5. न का पररवतणन र् में श्रो+अन = श्रवर्
2. व्यंजन संधध :- व्यंजन के सार् स्वर अर्वा व्यंजन के मेल से उस व्यंजन में जो रुपान्तरर् होता है , उसे
व्यंजन संधध कहते हैं|
1. प्रतत+छवव = प्रततच्छवव
2. हदक् +अन्त = हदगन्त
3. हदक् +गज = हदग्गज
4. अन+
ु छे द =अनच्
ु छे द
5. अच+अन्त = अजन्त
3. ववसगण संधध : - ववसगण के सार् स्वर या व्यंजन का मेल होने पर जो ववकार होता है , उसे ववसगण संधध कहते
हैं|
1. मन:+रर् = मनोरर्
2. यश:+अलभलाषा = यशोलभलाषा
3. अध:+गतत = अधोगतत
4. तन:+छल = तनश्छल
5. द:ु +गम = दग
ु म
ण
रस
रस — रस का शाब्ददक अर्ण होता है – आनंद
रस के अवयव या अंग –
1. स्र्ायी भाव
2. ववभाव
3. अनभ
ु ाव
4. संचारी भाव
स्र्ायी भाव – स्र्ायी भाव का अर्ण प्रधान भाव होता है – यह रस की अवस्र्ा तक पंहुचाता है|
ककसी नाटक या काव्य में केवल एक ही स्र्ायी भाव आरम्भ से अंत तक होता है|
स्र्ायी भावो की संख्या 9 मानी गयी है|
स्र्ायी भाव ही रस का आधार माना जाता है|
एक रस के मल
ू में केवल एक ही स्र्ायी भाव होता है|
अतः रसो की संख्या 9 मानी जाती है|
ककन्तु बाद के आचायो ने 2 और भावो को स्र्ायी भाव की संज्ञा दी है|
अतः स्र्ायी भावो की संख्या 11 मानी गयी|
ववभाव – ब्जन कारर्ों से स्र्ायी भाव उत्पन्न होता है, उसे ववभाव कहते है, अर्ाणत स्र्ायी भाव के कारर्ों को
ववभाव कहते है, ये दो प्रकार के होते है|
जैसे – नायक और नातयका ये आलंबन ववभव के दो पक्ष होते है, नायक या नातयका ब्जसके मन में दस
ु रे के
प्रतत कोई भाव जागत
ृ हो तो उसे आश्रयलंबन कहलाता है,
2. उद्दीपन ववभाव – ब्जन वस्तुओ या पररब्स्र्तत को दे खकर स्र्ायी भाव उद्दीप्त होने लगता है, उद्दीपन
ववभाव कहलाता हैl
जैसे – चांदनी, कोककल क्रुजन, एकांत स्र्ल, रमर्ीक उद्यान आहद को दे खकर जो भाव मन में उद्दीप्त होता है,
उसे उद्दीपन कहते है|
अनभ
ु ाव – मन के भाव को व्यक्त करने वाले शरीर ववकार ही अनभ
ु ाव कहलाते है, अर्ाणत वह भाव ब्जसके द्वारा
ककसी व्यब्क्त के मन के भावो को उसके शरीर के ववकारो से जाना जा सकता है,
अनभ
ु ाव की संख्या 8 होती है, –
स्तम्भ
स्वेद
रोमांच
स्वर भंग
कम्प
वववर्णता (रं गहीनता)
अश्रु
प्रलय (तनश्चेष्टता)
संचारी भाव – मन में संचरर् अर्ाणत आने – जाने वाले भावो को संचारी भाव कहते है,
1. हषण
2. ववषाद
त्रास
1. लज्जा
2. ग्लानी
3. धचंता
शंका
असय
ू ा (दस
ु रे के उत्कषण के प्रतत असहहष्र्त
ु ा)
उत्सुकता
उग्रता
चपलता
1. दीनता
जड़ता
आवेग
तनवेद
धतृ त ( इच्छाओं की पतू तण, धचत की चंचलता का अभाव )
1. मतत
1. स्र्ायी भाव सहृदय के ह्रदय में स्र्ायी रूप से 1.संचारी भाव सहृदय के धचत्त में पानी के बल
ु बल
ु े के
ववद्यमान होते हैं | समान प्रकट होते हैं और तरु ं त लुप्त हो जाते हैं |
2. प्रत्येक रस का अपना एक स्र्ायी भाव होता है, ये 2. एक संचारी भाव का अनेक रस में संचार हो सकता
अपने रस के जनक कहलाते हैं | है, इसीललए इसे व्यलभचारी भाव की संज्ञा दी गई है |
रस के प्रकार
मूलतः रस के 9 प्रकार माने जाते है, ककन्तु बाद के आचायो ने 2 और स्र्ायी भावो मान्यता दे कर रस की
संख्या भी 11 बताई है, जो की इस प्रकार है
श्रंग
ृ ार रतत 1. बतरस लालच लाल की, मुरली धरर लक
ु ाय।
सौंह करे , भौंहतन हँस,ै दै न कहै, नहट जाय।
2. तनलसहदन बरसत नयन हमारे ,
सदा रहतत पावस ऋतु हम पै जब ते स्याम
लसधारे ॥
करुर् शोक 1. सोक बबकल सब रोवहहं रानी| रूपु सीलु बलु तेजु
बखानी||
करहहं ववलाप अनेक प्रकारा| पररहहं भूलम तल बारहहं
बारा||
सी॥
वीभत्स र्र्
ृ ा 1. लसर पर बैठ्यो काग आँख दोउ खात तनकारत।
खींचत जीभहहं स्यार अततहह आनंद उर धारत॥
गीध जांतर् को खोहद-खोहद कै माँस उपारत।
स्वान आंगरु रन काहट-काहट कै खात ववदारत॥
भब्क्त भगवद ववषयक 1. राम जप,ु राम जप,ु राम जपु बावरे ।
रतत र्ोर भव नीर- तनधध, नाम तनज नाव रे ॥
छं द
छं द शदद 'चद्' धातु से बना है ब्जसका अर्ण है 'आह्लाहदत करना', 'खुश करना'। यह आह्लाद वर्ण या मात्रा की
तनयलमत संख्या के ववन्यास से उत्पन्न होता है। इस प्रकार, छं द की पररभाषा होगी 'वर्ों या मात्राओं के
तनयलमत संख्या के ववन्यास से यहद आह्लाद पैदा हो, तो उसे छं द कहते हैं'। छं द का सवणप्रर्म उल्लेख 'ऋग्वेद'
में लमलता है। ब्जस प्रकार गद्य का तनयामक व्याकरर् है, उसी प्रकार पद्य का छं द शास्त्र है।
1.चरर्/पद/पाद
छं द के प्रायः 4 भाग होते हैं। इनमें से प्रत्येक को 'चरर्' कहते हैं। दस
ू रे शददों में छं द के चतर्
ु ाांश
(चतुर्ण भाग) को चरर् कहते हैं।
कुछ छं दों में चरर् तो चार होते हैं लेककन वे ललखे दो ही पंब्क्तयों में जाते हैं, जैसे- दोहा, सोरठ आहद। ऐसे छं द
की प्रत्येक पंब्क्त को 'दल' कहते हैं। हहन्दी में कुछ छं द छः-छः पंब्क्तयों (दलों) में ललखे जाते हैं, ऐसे छं द दो
छं द के योग से बनते हैं, जैसे- कुण्डललया (दोहा + रोला), छप्पय (रोला+उल्लाला) आहद। चरर् 2 प्रकार के होते
हैं सम चरर् और ववषम चरर्। प्रर्म व तत
ृ ीय चरर् को ववषम चरर् तर्ा द्ववतीय व चतुर्ण चरर् को सम
चरर् कहते हैं।
2.वर्ण और मात्रा
एक स्वर वाली ध्वतन को वर्ण कहते हैं, चाहे वह स्वर ह्रस्व हो या दीर्ण। ब्जस ध्वतन में स्वर नहीं हो
(जैसे हलन्त शदद राजन ् का 'न ्', संयक्
ु ताक्षर का पहला अक्षर - कृष्र् का 'ष ्') उसे वर्ण नहीं माना जाता। वर्ण
को ही अक्षर कहते हैं।
वर्ण 2 प्रकार के होते हैं-
ह्रस्व स्वर वाले वर्ण (ह्रस्व वर्ण): अ, इ, उ, ऋ, क, कक, कु, कृ
दीर्ण स्वर वाले वर्ण (दीर्ण वर्ण): आ, ई, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ, का, की, कू, के, कै, को, कौ
मात्रा
ककसी वर्ण या ध्वतन के उच्चारर्-काल को मात्रा कहते हैं। ह्रस्व वर्ण के उच्चारर् में जो समय लगता है उसे
एक मात्रा तर्ा दीर्ण वर्ण के उच्चारर् में जो समय लगता है उसे दो मात्रा माना जाता है।
इस प्रकार मात्रा दो प्रकार के होते हैं - वर्ों में मात्राओं की धगनती में स्र्ूल भेद यही है कक वर्ण 'स्वर अक्षर'
को और मात्रा 'लसर्फण स्वर' को कहते हैं।
लर्ु व गरु
ु वर्ण
छं दशास्त्री ह्रस्व स्वर तर्ा ह्रस्व स्वर वाले व्यंजन वर्ण को लर्ु कहते हैं। लर्ु के ललए प्रयक्
ु त धचह्न - एक पाई
रे खा ।
इसी प्रकार, दीर्ण स्वर तर्ा दीर्ण स्वर वाले व्यंजन वर्ण को गरु
ु कहते हैं। गरु
ु के ललए प्रयक्
ु त धचह्न - एक
वतणल
ु रे खा - ऽ
लर्ु वर्ण के अंतगणत शालमल ककये जाते हैं
अ, इ, उ, ऋ, क, कक, कु, कृ
अँ, हँ (चन्र बबन्द ु वाले वर्ण)
गरु
ु वर्ण के अंतगणत शालमल ककये जाते हैं-
आ, ई, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ, का, की, कू, के, कै, को, कौ
इं, ववं, तः, धः (अनस्
ु वार व ववसगण वाले वर्ण)
(इंद)ु (बबंद)ु (अतः) (अधः)
3.संख्या और क्रम
वर्ों और मात्राओं की गर्ना को संख्या कहते हैं। लर्-ु गरु
ु के स्र्ान तनधाणरर् को क्रम कहते हैं।
वणर्णक छं दों के सभी चरर्ों में संख्या (वर्ों की) और क्रम (लर्-ु गरु
ु का) दोनों समान होते हैं। जबकक माबत्रक
छं दों के सभी चरर्ों में संख्या (मात्राओं की) तो समान होती है लेककन क्रम (लर्-ु गरु
ु का) समान नहीं होते हैं।
5.गतत
छं द के पढ़ने के प्रवाह या लय को गतत कहते हैं। गतत का महत्त्व वणर्णक छं दों की अपेक्षा माबत्रक छं दों
में अधधक है। बात यह है कक वणर्णक छं दों में तो लर्-ु गरु
ु का स्र्ान तनब्श्चत रहता है ककन्तु माबत्रक छं दों में
लर्-ु गरु
ु का स्र्ान तनब्श्चत नहीं रहता, परू े चरर् की मात्राओं का तनदे श नहीं रहता है।
मात्राओं की संख्या ठीक रहने पर भी चरर् की गतत (प्रवाह) में बाधा पड़ सकती है।
6.यतत/ववरोम
छं द में तनयलमत वर्ण या मात्रा पर साँस लेने के ललए रुकना पड़ता है, इसी रूकने के स्र्ान को यतत या
ववरोम कहते हैं। छोटे छं दों में साधारर्तः यतत चरर् के अन्त में होती है; पर बड़े छं दों में एक ही चरर् में एक
से अधधक यतत या ववराम होते हैं।
7.तुक
छं द के चरर्ान्त की अक्षर-मैत्री (समान स्वर-व्यंजन की स्र्ापना) को तुक कहते हैं।
ब्जस छं द के अंत में तक
ु हो उसे तक
ु ान्त छं द और ब्जसके अन्त में तक
ु न हो उसे अतक
ु ान्त छं द कहते हैं।
अतुकान्त छं द को अंग्रेजी में दलैंक वसण कहते हैं।
वणर्णक छं द (या वत
ृ ) - ब्जस छं द के सभी चरर्ों में वर्ों की संख्या समान हो।
माबत्रक छं द (या जातत) - ब्जस छं द के सभी चरर्ों में मात्राओं की संख्या समान हो।
मुक्त छं द - ब्जस छं द में वणर्णक या माबत्रक प्रततबंध न हो।
वणर्णक छं द
वणर्णक छं द के सभी चरर्ों में वर्ों की संख्या समान रहती है और लर्-ु गरु
ु का क्रम समान रहता है।
प्रमुख वणर्णक छं द : प्रमाणर्का (8 वर्ण); स्वागता, भुजंगी, शाललनी, इन्रवज्रा, दोधक (सभी 11 वर्ण); वंशस्र्,
भुजंगप्रयाग, रत
ु ववलब्म्बत, तोटक (सभी 12 वर्ण); वसंतततलका (14 वर्ण); माललनी (15 वर्ण); पंचचामर, चंचला
(सभी 16 वर्ण); मन्दाक्रान्ता, लशखररर्ी (सभी 17 वर्ण), शादणल
ू ववक्रीडडत (19 वर्ण), स्त्रग्धरा (21 वर्ण), सवैया
(22 से 26 वर्ण), र्नाक्षरी (31 वर्ण) रूपर्नाक्षरी (32 वर्ण), दे वर्नाक्षरी (33 वर्ण), कववत्त / मनहरर् (31-33
वर्ण)।
माबत्रक छं द
माबत्रक छं द के सभी चरर्ों में मात्राओं की संख्या तो समान रहती है लेककन लर्-ु गरु
ु के क्रम पर
ध्यान नहीं हदया जाता है।
प्रमुख माबत्रक छं द
सम माबत्रक छं द :- अहीर (11 मात्रा), तोमर (12 मात्रा), मानव (14 मात्रा); अररल्ल, पद्धरर/ पद्धहटका, चौपाई
(सभी 16 मात्रा); पीयष
ू वषण, सम
ु ेरु (दोनों 19 मात्रा), राधधका (22 मात्रा), रोला, हदक्पाल, रूपमाला (सभी 24 मात्रा),
गीततका (26 मात्रा), सरसी (27 मात्रा), सार (28 मात्रा), हररगीततका (28 मात्रा), तांटक (30 मात्रा), वीर या आल्हा
(31 मात्रा)।
अद्णधसम माबत्रक छं द :- बरवै (ववषम चरर् में - 12 मात्रा, सम चरर् में - 7 मात्रा), दोहा (ववषम - 13, सम -
11), सोरठा (दोहा का उल्टा), उल्लाला (ववषम - 15, सम - 13)।
ववषम माबत्रक छं द : कुण्डललया (दोहा + रोला), छप्पय (रोला + उल्लाला)।
मक्
ु त छं द
ब्जस ववषय छं द में वणर्णत या माबत्रक प्रततबंध न हो, न प्रत्येक चरर् में वर्ों की संख्या और क्रम समान हो
और मात्राओं की कोई तनब्श्चत व्यवस्र्ा हो तर्ा ब्जसमें नाद और ताल के आधार पर पंब्क्तयों में लय लाकर
उन्हें गततशील करने का आग्रह हो, वह मुक्त छं द है।
उदाहरर् : तनराला की कववता 'जूही की कली' इत्याहद।
अलंकार
अलंकार
जो ककसी वस्तु को अलंकृत करे वह अलंकार कहलाता है। दस
ू रे अर्ण में काव्य अर्वा भाषा की शोभा
बढ़ाने वाले मनोरं जक ढं ग को अलंकार कहते है।
अलंकार का शाब्ददक अर्ण है 'आभष
ू र्'। मानव समाज सौन्दयोपासक है, उसकी इसी प्रववृ त्त ने अलंकारों को
जन्म हदया है।
ब्जस प्रकार सुवर्ण आहद के आभूषर्ों से शरीर की शोभा बढ़ती है उसी प्रकार काव्य-अलंकारों से काव्य की।
संस्कृत के अलंकार संप्रदाय के प्रततष्ठापक आचायण दण्डी के शददों में - 'काव्य शोभाकरान ् धमाणन अलंकारान ्
प्रचक्षते'- काव्य के शोभाकारक धमण (गर्
ु ) अलंकार कहलाते हैं।
रस की तरह अलंकार का भी ठीक-ठीक लक्षर् बतलाना कहठन है। कफर भी, व्यापक और संकीर्ण अर्ों में इसकी
पररभाषा तनब्चचत करने की चेष्टा की गयी है।
अलंकार का महत्त्व
काव्य में अलंकार की महत्ता लसद्ध करने वालों में आचायण भामह, उद्भट, दं डी और रुरट के नाम ववशेष
प्रख्यात हैं। इन आचायों ने काव्य में रस को प्रधानता न दे कर अलंकार की मान्यता दी है। अलंकार की
पररपाटी बहुत परु ानी है। काव्य-शास्त्र के प्रारब्म्भक काल में अलंकारों पर ही ववशेष बल हदया गया र्ा। हहन्दी
के आचायों ने भी काव्य में अलंकारों को ववशेष स्र्ान हदया है।
अलंकार के भेद
1. शददालंकार
2. अर्ाणलंकार
3. उभयालंकार
4. श्लेष अलंकार
5. रूपक अलंकार
6. यमक अलंकार
7. उत्प्रेक्षा अलंकार
8. अततशयोब्क्त अलंकार
9. संदेह अलंकार
10. अनप्र
ु ास अलंकार
11. उपमा अलंकार-
12. दृष्टांत अलंकार
1. शददालंकार - जहां काव्य में चमत्कार का आधार केवल शदद हो वहों शददालंकार होता है।
जैसे - ‘चारू चन्र की चंचल ककरर्ें’’
‘‘काली र्टा का र्मण्ड र्टा।’’
2. अर्ाणलंकार - जहां पर काव्य में अर्ों के माध्यम से काव्य में सन्ु दरता का होना पाया जाए। वहां अर्ाणलंकार
होता है।
जैसे - ‘पीपर पात सररस मन डोला’’
3. उभयालंकार - जहां शदद और अर्ण दोनो में चमत्कार तनहहत होता है, वहां उभयालंकार होता है। इसका
अलग से कोइण प्रकार नहीं होता ।
5. रूपक अलंकार - जहां काव्य में समानता के कारर् उपमेय और उपमान में समानता या एक रूपता हदखाइण
जाती है वहां ‘रूपक’ अलंकार होता है।
जैसे - ‘‘चरर्-सरोज परवारन लागा।’’
इस पंब्क्त में केवट राम के चरर् रूपी कमल को धोने लगा। यहां उपमेय ‘चरर्’ को ही उपमान ‘सरोज’ बताकर
एकरूपता हदखाइण गइण है अत: यहां रूपक अलंकार है।
6. यमक अलंकार - जब कोइण शदद अनेक बार आए और उसके अर्ण प्रत्येक बार लभन्न-लभन्न हो उसे यमक
अलंकार कहते हैं।
जैसे - (क) सारं ग ले सारं ग चली, सारं ग पज
ू ो आय।
सारं ग ले सारं ग धरयौ, सारं ग सारं ग मांय ।
यहां सारं ग शदद, सात बार आया है ब्जसका क्रमश: अर्ण 1. र्ड़ा 2. सुंदरी 3. मेर् 4. वस्त्र 5. र्ड़ा 6. सुंदरी
7. सरोवर
उपरोक्त पंब्क्त में कृष्र् के ववयोग में व्याकुल गायों को पानी से तनकाली गइण मछललयां के रूप में कब्ल्पत
ककया गया है।
(ख) मानहु जगत छीर-सागर मगन है।
उपरोक्त उदाहरर् में ऐसा प्रतीत होता है कक मानों सारा संसार दध
ू के सागर में डूबा हुआ है।
(ग) सोहत ओढ़े पीत पट, श्याम सलोने गात।
मनहुं नीलमणर् सैल पर आतप परयौ प्रभात ।
इस उदाहरर् में भगवान श्रीकृष्र् को नीलमणर् पवणत और पीतपट को प्रभात की ककरर्ें माना गया है ।
8. अततशयोब्क्त अलंकार - जहां ककसी वस्तु या बात का वर्णन इतना अधधक बढ़ा-चढ़ाकर ककया जाय कक लोक
मयाणदा का उल्लंर्न सा प्रतीत होता हो उसे अततशयोब्क्त अलंकार कहते हैं।
जैसे - (क) ‘चले धनष
ु से बार्,
सार् ही शुत्र सैन्य के प्रार् चलें।’
इस उदाहर् में धनष
ु से वार्ों के चलने के सार् ही शत्रु सेना के प्रार् तनकल चले सार्-सार् बताया है जो
अधधक बढ़ा-चढ़ाकर वणर्णत है।
(ख) हनम
ु ान की पछ
ंू में लगन न पाइण आग। लंका सारी जल गइण गए तनशाचर भाग।।
इस उदाहरर् में हनम
ु ान की पछ
ूं में आग लगे बबना ही लंका जल गइण, बताया गया है जो अधधक बढ़ा-चढ़ाकर
वणर्णत है।
(ग) लखन-सकोप वचन जब गोले। डगमगातन महह हदग्गज डोले ।।
इस उदाहरर् में लक्ष्मर् के क्रोधधत होकर बोलने से पथ्ृ वी डगमगा उठी और हदशाओं के हार्ी कांप गये। यहां
अततशयोब्क्त पर्
ू ण वणर्णत है।
9. संदेह अलंकार - जहां समानता के कारर् एक वस्तु में अनेक अन्य वस्तु होने की संभावना हदखाइण पड़े और
यह तनश्चय न हो पाये कक यह वही वस्तु है। उसे संदेह अलंकार कहते है।
10. अनप्र
ु ास अलंकार - जहां एक ही वर्ण बार-बार दोहराया जाए, अर्ाणत ् वर्ों की आववृ त्त हो वहां अनप्र
ु ास-
अलंकार होता है।
जैसे - चारू-चंर की चंचल ककरर्ें
खेल रही र्ीं जल-र्ल में ।
1. उपमेय-ब्जसकी तल
ु ना की जाती है।
2. उपमान-ब्जसके सार् तल
ु ना की जाती है।
3. साधारर् धमण-जो गर्
ु उपमेय व उपमान दोनों में पाया जाता है।
4. वाचक शदद-जो शदद उपमेय व उपमान को जोड़ता हो ।
उदाहरर्
पीपर पात सररस मन डोला।’
इसमें मन उपमेय, पीपरपात उपमान, डोला साधारर् धमण और सररस वाचक शदद है।
उपमा के भेद - उपमा के 2 भेद हैं-
(1) पर्
ू ोपमा,
(2) लप्ु तोपमा।
(1) पर्
ू ोपमा-जहां उपमा के चारों अंग उपब्स्र्त होते हैं वहां पर्
ू ोंपमा होता है।
उदाहरर् -
(1) चरर् कमल सम कामे ल
(2) मख
ु चंर सम सन्ु दर । इसमें पर्
ू ोपमा है
(3) लप्ु तोपमा अलंकार-जहां उपमा के चारों अंगों में से एक या अधधक अंग लुप्त होते हैं, वहां लप्ु तोपमा
अलंकार होता है।
उदाहरर् -
(1) ‘तुम सम परू
ु ष न मो-सम नारी।’
(2) ‘राधा का मख
ु चन्रमा जैसा है।’
इस उदाहरर् में मुख उपमेय, चन्रमा उपमान, जैसा वाचक शदद है। साधारर् धमण लप्ु त हैं, इसललए यहां
लुप्तोपमा अलंकार हैं।
13. दृष्टांत अलंकार - जहां पर उपमेय तर्ा उपमान में बबंब-प्रततबबंब का भाव झलकता हो, वहां पर दृष्टांत
अलंकार होता है। ‘‘कान्हा कृपा कटाक्ष की करै कामना दास। चातक धचत में चेत ज्यों स्वातत बद
ूं की आस।’’
इसमें कृष्र् की आंखों की तुलना स्वातत नक्षत्र के पानी से तर्ा सेवक अर्वा भक्त की तुलना चातक पक्षी से
की जाती है। ककन्तु यहां उपमा अलंकार न होकर दृष्टांत अलंकार होगा, क्योंकक तल
ु ना उदाहरर् दे ते हुए की
गइण है अर्ाणत दृष्टांत के सार् की गइण है।
समास
अनेक शददों को संक्षक्षप्त करके नए शदद बनाने की प्रकक्रया समास कहलाती है। दस
ू रे अर्ण में कहा जा सकता है
कक कम-से-कम शददों में अधधक-से-अधधक अर्ण प्रकट करना 'समास' का काम है।
अगर साहहब्त्यक भाषा में कहा जाये तो - दो या अधधक शददों (पदों) का परस्पर संबद्ध बताने वाले शददों
अर्वा प्रत्ययों का लोप होने पर उन दो या अधधक शददों से जो एक स्वतन्त्र शदद बनता है, उस शदद को
सामालसक शदद कहते है और उन दो या अधधक शददों का जो संयोग होता है, वह समास कहलाता है।
समास की प्रकक्रया से बनने वाले शदद को समस्तपद कहते हैं; जैसे- दे शभब्क्त, मरु लीधर, राम-लक्ष्मर्, चौराहा,
महात्मा तर्ा रसोईर्र आहद। समस्तपद का ववग्रह करके उसे पन
ु ः पहले वाली ब्स्र्तत में लाने की प्रकक्रया को
समास-ववग्रह कहते हैं; जैसे- दे श के ललए भब्क्त; मुरली को धारर् ककया है ब्जसने; राम और लक्ष्मर्; चार राहों
का समूह; महान है जो आत्मा; रसोई के ललए र्र आहद।
समास के भेद
समास के मुख्य 6 भेद है
(1) तत्परु
ु ष समास
(2) कमणधारय समास
(3) द्ववगु समास
(4) बहुव्रीहह समास
(5) द्वन्द समास
(6) अव्ययीभाव समास
(1) तत्परु
ु ष समास :- ब्जस समास में बाद का अर्वा उत्तरपद प्रधान होता है तर्ा दोनों पदों के बीच का
कारक-धचह्न लप्ु त हो जाता है, उसे तत्परु
ु ष समास कहते है।
उदहारर्
तल
ु सीकृत = तल
ु सी से कृत
शराहत = शर से आहत
राहखचण = राह के ललए खचण
राजकुमार = राजा का कुमार
तत्परु
ु ष समास में अब्न्तम पद प्रधान होता है। इस समास में साधारर्तः प्रर्म पद ववशेषर् और द्ववतीय पद
ववशेष्य होता है। द्ववतीय पद, अर्ाणत बादवाले पद के ववशेष्य होने के कारर् इस समास में उसकी प्रधानता
रहती है।
तत्परु
ु ष समास के छह भेद होते है
(i) कमण तत्परु
ु ष
(ii) करर् तत्परु
ु ष
(iii) सम्प्रदान तत्परु
ु ष
(iv) अपादान तत्परु
ु ष
(v) सम्बन्ध तत्परु
ु ष
(vi) अधधकरर् तत्परु
ु ष
(2) कमणधारय समास :- ब्जस समस्त-पद का उत्तरपद प्रधान हो तर्ा पव
ू प
ण द व उत्तरपद में उपमान-उपमेय
अर्वा ववशेषर्-ववशेष्य संबध
ं हो, कमणधारय समास कहलाता है।
दस
ू रे शददों में कताण-तत्परु
ु ष को ही कमणधारय कहते हैं।
पहचान: ववग्रह करने पर दोनों पद के मध्य में 'है जो', 'के समान' आहद आते है।
ब्जस तत्परु
ु ष समास के समस्त होनेवाले पद समानाधधकरर् हों, अर्ाणत ववशेष्य-ववशेषर्-भाव को प्राप्त हों,
कताणकारक के हों और ललंग-वचन में समान हों, वहाँ कमणधारयतत्परु
ु ष समास होता है।
उदहारर्
नवयव
ु क = नव है जो यव
ु क
पीतांबर = पीत है जो अंबर
परमेचवर = परम है जो ईचवर
नीलकमल = नील है जो कमल
महात्मा = महान है जो आत्मा
कनकलता = कनक की-सी लता
प्रार्वप्रय = प्रार्ों के समान वप्रय
कमणधारय तत्परु
ु ष के चार भेद है
(i) ववशेषर्पव
ू प
ण द
(ii) ववशेष्यपव
ू प
ण द
(iii) ववशेषर्ोभयपद
(iv) ववशेष्योभयपद
(3) द्ववगु समास :- ब्जस समस्त-पद का पव
ू प
ण द संख्यावाचक ववशेषर् हो, वह द्ववगु कमणधारय समास कहलाता
है।
दशानन = दस मह
ु वाला (रावर्)
प्रधानमंत्री = मंबत्रयो में प्रधान है जो (प्रधानमंत्री)
पंकज = पंक में पैदा हो जो (कमल)
तनशाचर = तनशा में ववचरर् करने वाला (राक्षस)
चौलड़ी = चार है लडड़याँ ब्जसमे (माला)
ववषधर = ववष को धारर् करने वाला (सपण)
मग
ृ नयनी = मग
ृ के समान नयन हैं ब्जसके अर्ाणत (संद
ु र स्त्री)
पयाणयवाची
छानबीन – जाँच, पछ
ू ताछ, खोज, अन्वेषर्, शोध
छै ला – सजीला, बाँका, शौकीन
छोर – नोक, कोर, ककनारा, लसरा
जल – सललल, वारर, नीर, तोय, अम्ब,ु पानी, पय, पेय
जगत – संसार, ववश्व, जग, भव, दतु नया, लोक
जीभ – रसज्ञा, ब्जह्वा, वार्ी, वाचा, जबान
जंगल – कानन, वन, अरण्य, गहन, कांतार, बीहड़, ववटप
जेवर – गहना, अलंकार, भूषर्
ज्योतत – आभा, छवव, द्यतु त, दीब्प्त, प्रभा
झूठ – असत्य, लमथ्या
झण्डा - ध्वजा ,पताका ,केतु ,केतन ,ध्वज
तरुवर – वक्ष
ृ , पेड़, रम
ु , तरु, पादप
तलवार – अलस, कृपार्, करवाल, चन्रहास
तालाब – सरोवर, जलाशय, पष्ु कर, पोखरा
तीर – शर, बार्, अनी, सायक
दास – सेवक, नौकर, चाकर, अनच
ु र, भत्ृ य
दधध – दही, गोरस, मट्ठा
दररर – तनधणन, ग़रीब, रं क, कंगाल, दीन
हदन – हदवस, याम, हदवा, वार
दीन – ग़रीब, दररर, रं क, अककं चन, तनधणन, कंगाल
दीपक – दीप, दीया, प्रदीप
दःु ख – पीड़ा,कष्ट, व्यर्ा, वेदना, संताप, शोक, खेद, पीर
दध
ू – दग्ु ध, क्षीर, पय, गौरस, स्तन्य
दष्ु ट – पापी, नीच, दज
ु णन, अधम, खल, पामर
दाँत – दन्त
रौपदी - कृष्र्ा ,रप
ु दसुता ,पांचाली ,याज्ञसेनी ,सैरन्री
रव्य - धन, दौलत ,ववत्त ,संपवत्त ,सम्पदा ,ववभूतत
दपणर् – शीशा, आरसी, आईना
दग
ु ाण – चंडडका, भवानी, कल्यार्ी, महागौरी, काललका, लशवा, चण्डी, चामुण्डा
दे वता – सुर, दे व
दे ह – काया, तन, शरीर
धन – दौलत, संपवत्त, सम्पदा, ववत्त
धरती – धरा, धरती, वसुधा, जमीन, पथ्
ृ वी, भ,ू भूलम, धरर्ी, वसध
ुं रा, अचला, मही, रत्नगभाण
धनष
ु – चाप, शरासन, कमान, कोदं ड, धनु
नदी – सररता, तहटनी, सरर, सारं ग, तरं धगर्ी, दररया, तनझणररर्ी
नया – नत
ू न, नव, नवीन, नव्य
मुहावरे और लोकोब्क्तयाँ
1. अपने मुँह लमयाँ लमट्ठू बनना - (स्वयं अपनी प्रशंसा करना) - अच्छे आदलमयों को अपने मुहँ लमयाँ
लमट्ठू बनना शोभा नहीं दे ता।
2. अक्ल का चरने जाना - (समझ का अभाव होना) - इतना भी समझ नहीं सके,क्या अक्ल चरने गई है?
3. अपने पैरों पर खड़ा होना - (स्वालंबी होना) - यव
ु कों को अपने पैरों पर खड़े होने पर ही वववाह करना
चाहहए।
4. अपनी करनी पार उतरनी - जैसा करना वैसा भरना
5. आधा तीतर आधा बटे र - बेतक
ु ा मेल
6. अधजल गगरी छलकत जाए - र्ोड़ी ववद्या या र्ोड़े धन को पाकर वाचाल हो जाना
7. अंधों में काना राजा - अज्ञातनयों में अल्पज्ञ की मान्यता होना
8. अपनी अपनी ढफली अपना अपना राग - अलग अलग ववचार होना
9. अक्ल बड़ी या भैंस - शारीररक शब्क्त की तल
ु ना में बौद्धधक शब्क्त की श्रेष्ठता होना
10. आम के आम गठ
ु ललयों के दाम - दोहरा लाभ होना
11. अपने मह
ु ं लमयाँ लमट्ठू बनना - स्वयं की प्रशंसा करना
12. आँख का अँधा गाँठ का परू ा - धनी मख
ू ण
13. अंधेर नगरी चौपट राजा - मूखण के राजा के राज्य में अन्याय होना
14. आ बैल मुझे मार – जान बझ
ू कर लड़ाई मोल लेना
15. आगे नार् न पीछे पगहा - पर्
ू ण रूप से आजाद होना
16. अपना हार् जगन्नार् - अपना ककया हुआ काम लाभदायक होता है
17. अब पछताए होत क्या जब धचडड़या चग
ु गयी खेत - पहले सावधानी न बरतना और बाद में पछताना
18. आगे कुआँ पीछे खाई - सभी और से ववपवत्त आना
19. ऊंची दक
ू ान फीका पकवान - मात्र हदखावा
20. उल्टा चोर कोतवाल को डांटे - अपना दोष दस
ू रे के सर लगान
21. उं गली पकड़कर पहुंचा पकड़ना - धीरे धीरे साहस बढ़ जाना
22. उलटे बांस बरे ली को - ववपरीत कायण करना
23. उतर गयी लोई क्या करे गा कोई - इज्जत जाने पर डर कैसा
24. ऊधौ का लेना न माधो का दे ना - ककसी से कोई सम्बन्ध न रखना
25. एक पंर् दो काज - एक काम से दस
ू रा काम
97. पच
ु कारा कुत्त लसर चढ़े - ओछे लोग मह
ु ं लगाने पर अनधु चत लाभ उठाते हैं
98. मुहं में राम बगल में छुरी - कपटपर्
ू ण व्यवहार
99. जंगल में मोर नाचा ककसने दे खा - गर्
ु की कदर गर्
ु वानों के बीच ही होती है
100.चट मंगनी पट दयाह - शभ
ु कायण तरु ं त संपन्न कर दे ना चाहहए
101.ऊंट बबलाई लै गई तौ हाँजी-हाँजी कहना - शब्क्तशाली की अनधु चत बात का समर्णन करना
102.तीन लोक से मर्ुरा न्यारी - सबसे अलग रहना
103.अक्ल का दश्ु मन - (मख
ू ण) - आजकल तम
ु अक्ल के दश्ु मन हो गए हो।
104.अपना उल्लू सीधा करना -(मतलब तनकालना) -आजकल के नेता अपना अपना उल्लू सीधा करने के
ललए ही लोगों को भड़काते हैं।
105.आँखे खल
ु ना - (सचेत होना) - ठोकर खाने के बाद ही बहुत से लोगों की आँखें खल
ु ती हैं।
106.आँख का तारा - (बहुत प्यारा) - आज्ञाकारी बच्चा माँ-बाप की आँखों का तारा होता है।
107.आँखे हदखाना - (बहुत क्रोध करना) - राम से मैंने सच बातें कह दी , तो वह मुझे आँख हदखाने लगा।
108.आसमान से बातें करना - (बहुत ऊँचा होना) - आजकल ऐसी ऐसी इमारते बनने लगी है ,जो आसमान
से बातें करती है।
109.ईंट से ईंट बजाना - (परू ी तरह से नष्ट करना) - राम चाहता र्ा कक वह अपने शत्रु के र्र की ईंट से
ईंट बजा दे ।
110.ईंट का जबाब पत्र्र से दे ना - (जबरदस्त बदला लेना) - भारत अपने दश्ु मनों को ईंट का जबाब पत्र्र
से दे गा।
111.ईद का चाँद होना - (बहुत हदनों बाद हदखाई दे ना) - तम
ु तो हदखाई ही नहीं दे त,े लगता है कक ईद के
चाँद हो गए हो।
112.उड़ती धचडड़या पहचानना - (रहस्य की बात दरू से जान लेना) - वह इतना अनभ
ु वी है कक उसे उड़ती
धचडड़या पहचानने में दे र नहीं लगती।
113.उन्नीस बीस का अंतर होना - (बहुत कम अंतर होना) - राम और श्याम की पहचान कर पाना बहुत
कहठन है ,क्योंकक दोनों में उन्नीस- बीस का ही अंतर है।
ववलोम शदद
अग्रज – अनज
ु प्रफुल्ल – म्लान
प्रचरु – अल्प पररलमत – अपररलमत
ज्ञानी – अज्ञानी पर्
ृ क – संयक्
ु त
परमार्ण – स्वार्ण धीरता – अधीरता
पाच्य – अपाच्य धरा – गगन
शब्क्त – क्षीर्ता अधीर – धीर
सत्कार – ततरस्कार दाणखल – ख़ाररज
ववहहत – अववहहत धवल – श्याम
धर्
ृ ा – प्रेम धचरस्र्ायी –
अल्पस्र्ायी
प्रश्न-उत्तर
32. ह्रदय के ववकार को भाव कहा जाता है, जो भाव ् आहद अन्त तक बना रहे वह भाव क्या कहलाता
है? – स्र्ायी भाव
33. स्र्ायी बहव को पष्ु ट करने के ललए जो भाव उत्पन्न होकर पन
ु ः लुप्त हो जाते हैं वे क्या कहलाते
हैं? – संचारी भाव
34. “जो मापा न जा सके” उसके ललए एक शदद क्या होगा? – अपररमेय
35. हररगीततका चाँद में ककतनी मात्राएँ होती है? – 28 (16 और 12)
36. ‘नैततक’ में प्रत्यय कौनसा है? – इक
37. ‘पैतक
ृ ’ में क्या प्रत्यय है? – इक
38. ‘लोर्’ का पयाणयवाची शदद क्या है? – टुकड़ा/अंश/भाग
39. ‘चीवर’ के रचनकार कौन है? – रांगेय रार्व
40. ‘बहे ललया’ ककसका पयाणयवाची शदद है? – अहेरी
41. ‘अक्षरा’ पबत्रका का प्रकाशन कौन करता है? – मध्य प्रदे श राष्रभाषा प्रचार सलमतत
42. ककसी कारक की ववभब्क्त पव
ू ण में लगती है? – संबोधन
43. ‘चकवा’ का तत्सम शदद क्या होगा? – चक्रवात
44. ‘कल्पान्त’ में कौनसी संधध है? – स्वर संधध
45. ‘सुख’ ककस प्रकार का शदद है? – तत्सम शदद
46. भोपाल में आयोब्जत ववश्व हहंदी सम्मेलन भारत में आयोब्जत होने वाला कौनसा सम्मेलन र्ा? –
तीसरा
47. पव
ू ज
ण ों की संपवत्त जो भावी पीढ़ी को लमलती है क्या कहलाती है? – पैतक
ृ सम्पवत्त
48. अ, इ, उ, ऋ ककस प्रकार के स्वर है? – हास्व स्वर
49. ‘ढ’ ककस प्रकार का वर्ण है? – मूधणन्य
50. ‘तूर्ीर’ में क्या रखा जाता है? – बार्
51. अक्षत नामक पबत्रका का प्रकाशन ककस ब्जले से होता है? – खण्डवा
52. वक्ष
ृ वली में कौनसी संधध है? – स्वर संधध
53. ‘तनस्संदेह’ में कौनसी संधध है? – ववसगण संधध
54. आच्छादन में कौनसी संधध है? – व्यंजन संधध
55. ‘अपादान’ क्या बोध करवाता है? – कारक अलग होने का बोध
56. त ्, र् ्, और द् क्या है? – स्पशण व्यंजन
57. हहंदी वर्णमाला में अयोगवाहों की संख्या ककतनी है? – दो
58. ‘एक टोकरी भर लमट्टी’ कहानी के लेखक कौन है? – माधवराव सप्रे
59. डॉ. शंकर दयाल शमाण सज
ृ न सम्मान 2005 से प्रदान ककया जा रहा है ब्जसमे 51000 रुपये प्रदान
ककये जाते है, यहा परु स्कार कौन प्रदान करता है? – हहंदी ग्रन्र् अकादमी
60. “सरस्वती+आराधना” संधध बनायें – सरस्वत्याराधना
61. ‘कामायनी’ की भाषा क्या है? – खड़ी बोली
62. समावतणन पबत्रका कहाँ से प्रकालशत होती है? – इंदौर
63. “जीवन से मुक्त” का सामालसक पद बनाये – जीवनमुक्त
134.जो अक्षर बबना ककसी अन्य वर्ण की सहायता से बोला जाये वहा क्या कहलाता है? – स्वर
135.ब्रह्मवषण में कौनसी संधध है? – गर्
ु संधध
136.हे म ककसका पयाणयवाची है? – स्वर्ण
137.‘रूपमंजरी’ ककसकी राज्चना है? – नंददास
138.‘अलबत्ता’ में उपसगण क्या है? – अल
139.‘सदाचार’ का ववलोम क्या होता? – कदाचार
140.‘ववज्ञान गीत’ के रचनाकार कौन है? – केशव
141.पष्ु पेन्र का संधध ववच्छे द करे ? – पष्ु प+इंर
142.‘जलचर’ कौन होता है? – ब्जसका जन्म जल में हुआ हो
143.गागी संहहता की रचना ककसने की र्ी? - कात्यायन द्वारा
144.लर्ु उपन्यास “काठ का सपना” ककसने ललखा र्ा? - गजानन माधव ‘मुब्क्तबोध’
145.संववधान का संधध ववच्छे द कीब्जये? – सम ्+ववधान
146.बर्ेली ककस हहंदी के अंतगणत आती है? – पव
ू ी हहंदी
147.क् , ग ् और च ् ककस प्रकार के व्यंजन कहलाते हैं? – महाप्रार् व्यंजन
148.चार आश्रमों से सम्बंधधत उपतनषद कौनसा है? – जाबालोपतनषद के चतुर्ण खण्ड में
149.‘न’ वर्ण का उच्चारर् स्र्ान क्या है? – दन्त और नालसका
150.हहंदी शदद ककस भाषा का शदद है? – फारसी
151.अक्षरा पबत्रका का प्रकाशन कहाँ से ककया जाता है? – भोपाल
152.अमत
ृ स्य नमणदा नामक पस्
ु तक के लेखक कौन है? – अमत
ृ लाल बेगड़
153.पंजाब केसरी नामक समाचार पत्र की भाषा क्या है? – हहंदी
154.‘धध
ुं के आर-पर’ ककसकी रचना है? – कैलाशचंर पंत
155.धचल्लाहट में प्रत्यय क्या है? – हट
156.दे व्यागमन में कौनसी संधध है? – यर् संधध
157.यर्ेष्ट में कौनसी संधध है? – गर्
ु संधध
158.संर् की राजभाषा हहंदी और ललवप दे वनागरी होगी यहा ककस अनच्
ु छे द में कहा गया है? - अनच्
ु छे द
343
159."रचना" नामक पबत्रका का प्रकाशन कौन करता है? - हहंदी ग्रन्र् अकादमी
160.“मरर् ज्वार और यग
ु चरर्” ककसकी रचनाएँ हैं? - माखनलाल चतुवेदी
161.‘जो ककये हुए उपकार को मानता है’ क्या कहलाता है? – कृतज्ञ
162.‘पावक’ ककसका पयाणयवाची है? – अब्ग्न
163.“राखी की चन
ु ौती” ककसकी रचना है? - सभ
ु राकुमारी चौहान
164.‘रहहमन जो गतत दीप की कुल कपत
ू गतत सोय, बारे उब्जतयारे लगे बढे अंधेरो होय’ में कौनसा
अलंकार है? - श्लेष अलंकार
165.“कामायनी एक पन
ु ववणचार” ककसकी रचना है? - गजानन माधव मुब्क्तबोध
166.कुमकुम और उलमणला ककसकी रचनाएँ हैं? - बालकृष्र् शमाण “नवीन”
167.“चककत है दख
ु ” ककसकी रचना है? - भवानी प्रसाद लमश्र
168.ववकलांग श्रद्धा का दौर और रानी नागफनी की कहानी ककसकी रचनाएँ हैं? - हररशंकर परसाई
169.“रहा ककनारे बैठ और एक गधा र्ा” ककसकी रचनाएँ हैं? - शरद जोशी
170.“आल्हाखंड” ककसकी रचना है? - जगतनक
171.भूषर् का संधध ववच्छे द कीब्जये? – भूष+अन
172.कालीलमचण में कौनसा समास है? – कमणधारय समास
173.‘जो दे खा न जा सके’ के ललए एक शदद? – अदृश्य (अगोचर)
174.मतू छणत शदद का ववलोम क्या है? – चैतन्य
175.सवणज्ञ को ववस्तत
ृ रूप में ककस प्रकार ललखा जा सकता है? – जो सब जनता हो या जो सबका
ज्ञाता हो
176.‘आनंद रर्न
ु न्दन’ नाटक ककसने ललखा है? – ववश्वनार् लसंह
177.‘गंगा लहरी’ की रचना ककसके द्वारा की गई र्ी? - पंडडत जगन्नार् लमश्र
178.14 लसतम्बर 1949 क्यों महत्वपर्
ू ण है? – इस हदन को राजभाषा का दजाण लमला र्ा
179.‘तनस्तार’ में कौनसी संधध है? – ववसगण संधध
180.तनम्न पंब्क्त ककसका उदहारर् है?
न्यारे -न्यारे कुसम
ु ककतने भाव के र्े अनेको, उत्साह के ववपल
ु ववटपी मुग्धकारी महा र्े – सांग
रूपक
181.‘कलम का लसपाही’ ककसकी रचना है? – अमत
ृ राय
182.‘नाखून क्यों बढ़ते हैं’ ककसकी रचना है? – हजारीप्रसाद द्वववेदी
183.‘मैला आंचल’ ककसकी रचना है? – फर्ीश्वरनार् ‘रे र्’ु
184.प्रततहदन में कौनसा उपसगण लगा है? – प्रतत
185.कीततण का ववलोम क्या होगा ? – अपकीततण
186.‘दाल-रोटी’ में कौनसा समास है? – द्वंद समास
187.तनकेतन ककसका पयाणयवाची शदद है? – गह
ृ या र्र
188.‘मनीष मेरा सच्चा दोस्त है |’ इस वाक्य में ववशेषर् शदद क्या है? – सच्चा
189.‘मग
ृ ावती’ ककसकी रचना है? – कुतब
ु न
190.‘करकमल’ में कौनसा समास है? – कमणधारय समास
191.शास्त्रीय नत्ृ य के ललए कौनसी फैलोलशप प्रदान की जाती है? - चक्रधर फैलोलशप
192.‘मग
ृ नयनी’ ककसकी रचना है? - वन्ृ दावनलाल वमाण
193.ववरब्क्त का ववलोम शदद क्या होगा? – अनरु ब्क्त
194.‘त्रार्’ ककसका पयाणयवाची है? – रक्षा का
195.‘चारों ने र्रों को भीतर झाँका’ वाक्य शद्
ु ध कीब्जये? – चोरों ने र्रों के भीतर झाँका
196.‘भरपेट’ में कौनसा समास है? – अव्ययीभाव समास
197.‘पढ़ते समय उसकी आँखों .......... पानी तनकलता है’ खाली स्र्ान में क्या आयेगा? - से
198."मक्खी पर मक्खी मरना" मुहावरे का क्या अर्ण है? - ज्यों का त्यों नकल करना
199.‘लीलावती’ का फारसी में अनव
ु ाद ककसने ककया र्ा? – फैजी ने
200.ब्जन अक्षरो को बोलने के ललए स्वर की आवश्यकता हो उन्हें क्या कहा जाता है? - व्यंजन
327.“कलेजा ठं डा होना” मह
ु ावरे का अर्ण? – सक
ु ू न/संतोष लमलना
328.“धगन-धगन कर पैर रखना” मुहावरे का अर्ण क्या है? – अत्याधधक सावधानी बरतना
329.ब्जस वाक्य में एक कक्रया होती है और एक कताण होता है, वहा कौनसा वाक्य होता है? – सरल
वाक्य
330.“हँसुए के दयाह में खुरपे का गीत” लोकोब्क्त का अर्ण क्या होगा? – असंगत बाते या ववषय से हट
कर
331.‘यर्ा+इच्छा’ का पर्
ू ण शदद क्या बनेगा? – यर्ेच्छा
332.‘मुख मयंक सम मज
ुं मनोहर’ में कौनसा अलंकार है? – उपमा अलंकार
333.ब्जसके चार चरर् होते है तर्ा प्रत्येक चरर् में 26 मात्राएँ होती है, 14 और 12 मात्राओं पर यतत
होती है और प्रत्येक चरर् के अन्त में लर्-ु गरु
ु होना आवश्यक होता हैl कौनसा छं द है? – गीततका
334.हदग्गज का संधध-ववच्छे द कीब्जए – हदक् +गज
335.अनन
ु ालसक व्यंजन कौनसे होते है? - वगण के पंचमाक्षर
336.“अपने पर ववश्वास” का सामालसक पद क्या होगा? – आत्मववश्वास
337.“कलम तोडना” मुहावरे का अर्ण क्या है? – बहुत अच्छा ललखना
338.नैसधगणक' ककसका पयाणयवाची है? – प्राकृततक
339.साहहत्य पररक्रम पबत्रका कहाँ से प्रकलशत होती है? – ग्वाललयर
340.मगही ककस भाषा की उपबोली है? – बबहारी
341.गौ+अन का संधध शदद क्या होगा? – गायन
342.मध्यावधध’ में कौनसी संधध है? – दीर्ण स्वर संधध
343.‘बरु ाई’ शदद मे प्रत्यय है ? - आई
344.‘अधोगतत’ में उपसगण क्या है? – अध:
345.आशंका का पयाणयवाची ललणखए? – अप्रत्यय/खटका/खतरा
346.‘रोष’ ककसका पयाणयवाची है? – क्रोध का
347.‘अनंत अववराम’ नामक पबत्रका का प्रकाशन कहाँ से होता है? – ववहदशा से
348.‘गांठ का पक्का” मह
ु ावरे का क्या अर्ण है? – धन संभाल कर रखना
349.हहन्दी खडी बोली ककस अपभ्रंश से ववकलसत हुई है? - पब्श्चमी हहन्दी
350.हहन्दी भाषा की बोललयों के वगीकरर् के आधार पर छत्तीसगढी ककस प्रकार की बोली है? – पव
ू ी
हहन्दी
351.
352.‘समरर् को नहीं दोष गोसाई’ का अर्ण क्या होगा? – साबल को कोई दोष नहीं हदखता
353.‘स्वयं तनमाणर्म ्’ का प्रकाशन कहाँ से ककया जाता है? – ग्वाललयर
354.‘ऊमी’ का पयाणयवाची ललणखए? – उल्लोल/वीधच/तलछट
355.अधधकतर भारतीय भाषाओ का ववकास ककस ललवप से हुआ? - दे वनागरी
356.अकधर्त का ववस्तत
ृ रूप क्या होगा? – जो कहा न गया हो
357.सीलमत क्षेत्र में बोली जाने वाली भाषा को क्या जाता है? – बोली
358.‘अस्सी की आमद चौरासी का खचण’ लोकोब्क्त का अर्ण क्या है? – आमदनी से अधधक खचण
359.‘मम
ु क्ष
ु ु’ का प्रयोग ब्क्कस अर्ण के ललए ककया जाता है? – मोक्ष का इक्षुक
360.‘इत्याहद’ शदद का ववलोम क्या होगा है? – यर् संधध
361.पंजाबी भाषा की ललवप कौनसी है ? - गरु
ु मुखी
362.‘धचतरं जन’ का ववलोम शदद क्या होगा? – नश्वर
363.भारतीय संववधा के ककन अनच्
ु छे दों में राजभाषा के ललया प्रावधान ककया गया है? – अनच्
ु छे द 343
से 351 तक
364.आचायण मम्मट और ववश्वनार् के अनस
ु ार रसों की संख्या ककतनी है? – नौ (9)
365.छं द की हर पंब्क्त को चरर् के अलावा क्या कहा जाता है? – पद
366.अन्याय का संधध ववच्छे द कीब्जये? – अन्य+अन्य
367.‘राग भोपाली’ पबत्रका कहा से प्रकालशत होती है? – भोपाल
368.‘गातयका’ में कौनसी संधध है? – अयाहद स्वर संधध
369.“दीर्ाणय”ु का ववलोम क्या होगा? – अल्पायु
370.‘अनरु ब्क्त’ का ववलोम शदद ललणखए? – ववरब्क्त
371.अग्रललणखत पंब्क्त में कौनसा छं द है?
‘सुतन केवट के बैन, प्रेम लपेटे अटपटे |
ववहँसे करुना नैन, धचतइ जानकी लखन तन|| - सोरठा
372.‘सदोष’ शदद का ववलोम क्या होगा? – अदोष
373.‘इलेक्रॉतनक आपके ललए’ का प्रकाशन कहाँ से ककया जाता है? – भोपाल
374.‘तछछले’ का ववलोम शदद क्या होगा? – गहरा
375.अं और अ: क्या हैं? – अयोगवाह
376.‘धचड़ीमार’ में कौनसा समास है? – कमण तत्परु
ु ष समास
377.‘ब्जसका कोई अन्त नहीं होता’ के ललए एक शदद क्या होगा? – अनंत
378.‘सन्मतत’ का संधध ववच्छे द कीब्जए? – सत ्+मतत
379.‘मेरा पररवार’ ककसकी रचना है? – महादे वी वमाण
380.‘वह अपराधी र्ा, इसललए उसे सजा लमली’ कैसा वाक्य है? – संयक्
ु त वाक्य
381.‘एक लाठी से हाँकना’ मह
ु ावरे का क्या अर्ण है? – अच्छे -बरु े का अंतर न करना
382.लर्त
ु ा शदद में प्रत्यय क्या है? – ता
383.अगणर्त का तद्भव क्या होगा? – अनधगनत
384.‘आशत
ु ोष’ में कौनसा समास है? – बहुब्रीहह समास
385.तनम्न पंब्क्त में छं द पहचातनए?
“श्री गरु
ु चरर् सरोज राज, तनज मन मक
ु ु र सध
ु ारर|
बरनौं रर्व
ु र ववमल जस, जो दायक फल चारर|| - दोहा
386.‘एक और एक ग्यारा होते है ’ लोकोब्क्त का अर्ण क्या है? – एकता/संगठन में शब्क्त होती है
387.रतत नामक स्र्ाई भाव ककस रस में पाया जाता है? – श्रंग
ृ ार रस
388.‘इत्याहद’ ककस संधध का उदाहरर् है? – यर् स्वर संधध
389.‘अंब’ु ककसका पयाणयवाची है? – जल