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मुरली शब्दकोश (हिन्दी अंग्रेजी व कहावतों) के अर्थ
मुरली शब्दकोश (हिन्दी अंग्रेजी व कहावतों) के अर्थ
मल
ू शब्द ससक से बना जिसका अर्थ अत्यन्त प्रिय, लाडले, जिस तरह लौककक
1 सिकीलधे ससक (Love) होना (अततस्नेह) होती है ।उसी तरह िरमात्मा को भी िब 5000
वर्षोंिरान्त बच्चों से संगम िर समलन होता है ] तो बच्चों से बहुत ससक- ससक होती
8 अखट
ु कभी न समातत होने वाला लगातार अनवरत
10 अजपाजप लगातार िाि करना वह िि जिसके मूल मंत्र हं सः का उच्चारण श्वास- िश्वास के
िुराण के अनुसार एक िािी ब्राह्मण का नाम िो मरते समय अिने िुत्र 'नारायण'
11 अजासमल
का नाम लेकर तर गया
12 अनन्
य एकनिष्
ठ/ एक ही में लीि हो
14 अन्र्मख
ुा र्ा आजत्मक जस्र्तत में रहना/भीतर की ओर उन्मुख/आंतररक ध्यानयुक्त।
15 अन्र्मख
ुा ी शान्त/िो सशव बाबा की याद में अन्तमख
ुथ ी स्वभाव वाला हो िाये
17 अभल
ू भूल न करने वाला
25 अल्लफ एक िरमात्मा
27 अववनाशी बह
ृ स्पतर् अप्रवनाशी राज्यभाग (ब्रह्मा के सार्)
29 अशरीरी
शरीर में रहते हुए शरीर से अलग डडिै च/सभन्न/बबना
30 अष्टरत्न सबसे आगे का नम्बर/िास प्रवद् आनर केवल आठ आत्माएं/आठ की माला इन्हीं से
33 आत्मसभमानी दे ह में रहते अिने को आत्मा रूि में जस्र्र रहना या अनभ
ु व करना
आत्माएं अंडसे मिल िरमधाम में ऊिर िरमात्मा के नीचे नम्बरवार आत्माएं अण्डे की तरह/सरीखे
34
रहर्ी रहती है ।
36 आदम-ईव सजृ ष्ि के शुरू में आने वाले िर्म नर-नारी (टहन्द ू धमथ में मनु-श्रद्धा)
37 आदमशम
ु ारी बहुतायत/अतत/िनगणना भी एक अर्थ में
आप ही पूज्य आपे स्वयं की (अिने दे व स्वरूि की) स्वयं ही िूिा करने वाली दे व वंशावली की आत्माएं
38
पज
ु ारी िो द्वािर से अिनी ही िूिा शुरू कर दे ती हैं।
39 आपघार् आत्महत्या
43 इत्तला दे ना िानकारी दे ना
45 उर्रर्ी कला उत्तरोत्तर या सतयुग से धीर धीरे 16 कलाओं में ह्रास/कमी आना
46 उपराम िकृतत के आकर्षथण से न्यारा हो िाना ही उिराम होना है । इस सजृ ष्ि में अिने को
वाली होती है ।
50 एक ओंकार िरम शजक्त एक ही है
एक सशव िरमात्मा के अलावा ककसी की याद ना रहे , मन-बद्
ु चध में एक
51 एकानामी
सशव ही याद रहे
53 ओम ् मैं आत्मा
54 कखपन बुराई/अवगुण
56 कट प्रवकार
77 कौरव श्रीमत िर चलते है , कौरव कहलाते है !' भारत में कौरव वंसशयों का महाप्रवनाश के
78 खग्गे/कन्धे उछालना खश
ु ी में रहना
79 खलाि खत्
म/समाप्
त
81 खखदमर्गार सेवाधारी
नाव को खेने वाला िरमात्मा हमारी जज़न्दगी रूिी नैया की ितवार को चला
82 खखव्वैया
कसलयग
ु ी दतु नया से िार ले िाने वाला
84 खद
ु ाई खखदमर्गार ईश्वर की णखदमत या सेवा करनेवाला।
86 खोट दोर्ष, अशुद्चध, ककसी कायथ या व्यजक्त के ितत मन में होने वाली बुरी भावना।
अमानत या धरोहर के रूि में रखी वस्तु को हड़ि लेना या चरु ा लेना,
87 ख्यानर्
बुरी नीयत से ककसी दस
ू रे की संिप्रत्त का गबन कर लेना बेईमानी या भ्रष्िाचार,
88 ख्
यालार् ववचार या भाव आहद
89 गफलर् असावधानी
91 गभा जेल गभथ िेल में रहते कमथ बन्धन के टहसाब ककताब चक
ू तू करना
92 गांवडे गाुँव का
94 गुलशन बगीचा
95 गह
ृ चारी गह
ृ ों की जस्र्नत के अिुसार ककसी मिुष्य की भली बुरी अवस्र्ा/ दभ
ु ाथग्य
सन
ु ने के सलये अिनी सचु ध बचु ध खोकर काम काि छोड़कर चले आते र्े। वास्तव में
96 गोपीवल्लभ
हम बच्चे ही वही गोि-गोप्रियां हैं, िो तनत उस िरमप्रिय सशवबाबा अर्ाथत ्
97 गोया मानो/अर्ाथत ्
जिज्ञासु बने रहना, हमेशा तैयार जिस िकार चात्रक व ििीहा िक्षी स्वातत
नक्षत्र की बूंद की चाहना करता हुआ उसके इंतिार में आसमान में अिनी
103 चात्रक
आंखे टिकाऐ रखता है , उसी िकार बच्चे बाबा की मुरली को जिज्ञासु बन
िैसे स्र्ल
ू लाइि हाउस सभी िहािों को रास्ता बताता है , वैसे ही ब्राह्मण बच्चे
104 चैर्न्य लाइट हाउि
चैतन्य रूि में अिने ज्ञान योग की आजत्मक लाइि से सभी को सही रास्ता बताते हैं।
105 चों चों का मुरब्बा ककस चीि से बना ये िहचानना मजु श्कल/सब कुछ समक्स
भजतमागथ में कहते है आत्मा ज्योनत मत्ृ यु के बाद परमात्मा ज्योनत में ववलीि हो
114 ज्
योर्ज्
योर्िमाना
जाती है
121 टे व आदत
स्वगथ में डबल ससरताि होते दे वी दे वता, एक लाइि अर्ाथत िप्रवत्रता का ताि और
122 डबल सिरर्ाज
दस
ू रा रतन िडड़त ताि
र्कदीर को लकीर
125 भाग्य बनाने का सअ
ु वसर खो दे ना
लगाना
126 र्र्त्वम ् तम
ु भी वही हो अर्ाथत आत्मा परमात्मा का रूप है ।
127 र्त्
र्ेर्वे गमथ तवे
गुणों में सबसे तनम्न स्तर (चार कला सम्िन्न कसलयुग से/भारत मे अरबों के
130 र्मोगुर्
आक्रमण से शरू
ु )
भजक्त मागथ की सत्य नारायण की काल्ितनक कर्ा के मध्य में सुनाई िाने वाली
132 तर्जरी की कथा
कर्ा
137 दम
ु िूंछ, आत्मा के तनकलते ही शरीर रुिी दम
ु छूि िायेगा
138 दस्
ु
र्र जजसे पार करिा कहठि हो/ ववकट/कहठि
जजसके पास ऋण चक
ु ािे के भलये कुछ ि बच गया हो/ जो सवथर्ा अभाव की जस्र्नत
139 दे वाला
में हो
बैल की िततकृतत िो सशवमजन्दर में होती है कसलयुग अन्त में सशव बाबा जिन दो
145 नंदीगर्
रर्ों/तन (ब्रह्मा बाबा व गल
ु िार दादी) का सहारा लेते हैं, यही नन्दीगण के ितीक
148 नम्बरवार कोई होसशयार कोई बुद्ध/ू क्रमोत्तर चगरती हुई जस्र्तत में होना।
149 नष्टोमोहा िुरानी दतु नया से मोह ममत्व का त्याग, तनमोही जस्र्तत
153 तनराकार िो िाकार साकार मे कमथ करते हुए अिने तनराकार स्वरूि (stage) की स्मतृ त/याद में रहना
160 नँथ
ू होना माला में प्रिरोया हुआ
161 नँध
ू िहले से सलखा हुआ
एक िगह शाजन्त में बैठकर योग का अभ्यास कराना। वैसे नेष्ठा एक िकार
162 नेष्टा की योग की अत्यन्त कटठन कक्रया है । नेष्ठ नेत्र और दे हातीत बनाने वाली
शजक्तशाली दृजष्ि है ।
163 नैन चैन आंख की हलचल व व्यवहार द्वारा
165 न्यारा और प्यारा सबसे न्यारा/अलग होते हुए भी सबका तयारा होना
168 पत्थरपुरी कसलयुगी/टदलोटदमाग ित्र्र सदृश (ित्र्र िूिे हरर समले, तो.....)
176 पाण्डव िहचान कर ईश्वररय ज्ञान को िीवन मे धारण करते है वही सच्चे िांडव कहलाते है ,
180 वपत्र खखलाना ब्राह्मणों के शरीर में आह्वान कर प्रितरों की इच्छाओं को िूरा करने का ियास
ककया िाता है ।
कमथ, वह मुख्य उद्दे श्य या ियोिन जिसकी िाजतत या ससद्चध के सलए ियत्न
181 पुरूषाथा
करना आवश्यक और कत्तथव्य हो।
184 पोर्ामेल आत्मा िो मन वाणी कमथ द्वारा कायथ करे उसके रोि का टहसाब-ककताब
झक
ु ाव, संसार के कायों से लगाव, भौततक िीवन के कक्रयाकलािों (activity) में
संसार के कामों में लगाव, दतु नया के धंधे में लीन होना, भौततक िीवन के
188 प्रववृ त्त मागा कायथव्यािारों में आसजक्त, िीवन-यािन का वह िकार जिसमें मनुष्य सांसाररक
िाचीन विवक्ष
ृ जिसकी िड़ का िता नहीं (कोलकाता के बोिे तनक गाडथन में है ),
206 बतनयन ट्री/बनेनट्री आटद सनातन दे वी दे वता धमथ के संस्र्ािक िरमप्रिता िरमात्मा सशव दोनों
लोि हो िाते है ।
जैसे एक वक्ष
ृ का मल
ू उसका बीज होता है अर्ाथत बीज में ही वक्ष ृ का जीवि होता है
उसका ववस्तार होता है , ठीक इसी प्रकार परमात्मा भी इस सजृ ष्ट रूपी वक्ष
ृ के चैतन्य
214 बीज
बीज हैं जो अपिी शजतयों के बल से पनतत सजृ ष्ट को पावि बिा कर उसमें िव
जीवि का संचार करते है ।
श्रीमत का िालन करते हुए ज्ञान योग की िढ़ाई िर िूरा ध्यान दे ते रहनेवाले।
215 बह
ृ स्पतर् की दशा
जिसकी विह से माया वार नहीं कर िाती तो वे सदा सुखी रहते।
प्रवकारों के कारण सभखारी बनी हुई आत्माओं को ज्ञान व योग द्वारा सशव बाबा
219 बेगर टू वप्रन्ि
रािकुमार अर्ाथत ् धनवान, राज्य-अचधकारी बनाते हैं।
ब्रह्मचयथ का िालन करने वालों को ब्रह्मचारी कहते हैं। ब्रह्मचयथ दो शब्दो ब्रह्म
में ब्रह्मचयथ काम प्रवकार से सम्िूणथ मुजक्त। िप्रवत्रता का आधार स्तंभ है ब्रह्मचयथ।
जिसमें तिकर सोने में तनखार आये/आबू िैसी िावन तिस्याभूसम में िाकर
229 भट्ठी
वररष्ठों की क्लास आटद का श्रवण-चचन्तन-मनन से ब्राह्मणत्व में सध
ु ार लाना
232 भागीरथी भाग्यशाली रर् ब्रह्मा का/भगीरर् की तिस्या के समान भारी/बहुत बड़ा।
234 भ्रमरी समिल भ्रमरी की तरह दीिक में भंू भंू करना
236 मंथन खब
ू डूब डूब कर ववचारकर तथ्यों का पता लगािा।
मच्छरों िदृश वापि
237 अन्त समय एक सार् अनेक आत्माएं मच्छरों के समान िरमधाम िायेंगी।
जाना
238 मर्-पंथ गुरूओं के बताये मत व उनके द्वारा टदखाये गये रास्ते िर चलना
242 मनमनाभव स्वयं को आत्मा समझ एक बाि िरमप्रिता सशव को याद करना
249 महर्त्
व वह स्र्ाि जहां आत्मा व परमात्मा का निवास है /ब्रह्मलोक
251 मामेकम ् ससफथ मुझ एक बाि िरमप्रिता िरमात्मा सशव को याद करो
5 प्रवकार (काम, क्रोध, मोह, लोभ और अहं कार) बाबा के ज्ञान से िरे इसका अर्थ
252 माया
धन सम्िप्रत्त के अर्थ में रूढ़ र्ा।
253 माया काम, क्रोध, मोह, लोभ, अहं कार रूिी िांच प्रवकार/भजक्त मागथ में धन-संिप्रत्त
254 मायाजीर् जगर्जीर् माया िर प्रविय िाने वाले को िगत की बादशाही समलेगी
259 समडगेट छोिा बच्चा, ज्ञान में कम समय से हो, उसे समडगेि कहते है ।
266 मख
ु वंशावली ब्रह्मा मुख से िन्म (अलौककक)
270 मुरीद जो ककसी का अिुकरण करता या उसके आज्ञािुसार चलता हो/ अिुगामी/अिुयायी/भशष्
य
िो टदखाई तो दे ता हो िर वास्तव में होता ही नहीं (कभी कभी मैदानों में भी कड़ी
275 मग
ृ र्ष्ृ र्ा/मरीधचका धि
ू िड़ने के समय िल या िल की लहरों की समथ्या ितीतत होती है जिसे मग
ृ िल
समझकर तष्ृ णा बझ
ु ाने के सलये भिकता है )
जिन्होंने खद
ु के कुल का प्रवनाश स्वयं (ब म्ब, समसाईल) बनाकर करगें । युरोि
आटद िजश्चम दे श प्रवज्ञान की शजक्त द्वारा िरमाणु अस्त्र शस्त्रों द्वारा अिने ही
मानव कुल का प्रवनाश करे गें। प्रवशेर्ष मुरली से - शास्त्रों में टदखाते हैं– लड़ाई
283 यादव
में यादव कौरव मारे गये। िाण्डव 5 र्े। कफर टहमालय िर िाकर गल मरे ।
िरमात्मा को याद करने की सवोच्च सहि प्रवचध, जिसमें आंखें खोलकर अिने को
292 राजयोग
आत्मा समझकर िरमात्मा के ज्योतत स्वरूि का ध्यान ककया िाता है ।
श्रीमत का उल्लंघन कर ज्ञान योग की िढ़ाई में फेल होने वाले िसकी विह से
295 राहु की दशा
माया का वार होता रहता है जिसकी विह से हमेशा दख
ु ी रहते।
300 रूस्
र्म शूरवीर, माया से प्रविय िा रहे बच्चों को बाबा यह उिाचध/िाइटिल दे ता है ।
समलना
शास्त्रों में गह
ृ स्र् अवस्र्ा के बाद की अवस्र्ा जिसमें ितत ित्नी घर की
सम्िूणथ जिम्मेदारी िुत्रों को दे कर वन में सार् सार् चले िाते हैं। वहां िप्रवत्र
314 वानप्रस्
थअवस्
था रह कर तिस्या करते हैं। सशव बाबा ब्रह्मा तन का आधार वानिस्र् अवस्र्ा
में लेते हैं- बाबा के ज्ञान में आने वाला व िप्रवत्रता की धारणा करने से चाहे
वह िरु
ु र्ष िो ककसी के मरने के िीछे उसकी संिप्रत्त आटद का स्वामी और उसके ऋण
316 वाररि आटद का दे नदार हो, उत्तराचधकारी िैसे बेिा अिने प्रिता की संिप्रत्त का वाररस होता
है ।
320 ववचार िागर मंथन ज्ञान का गहराई से मनन -चचन्तन करना, ज्ञान के सारतत्त्व का मर्कर िता लगाना
327 वैजयन्र्ी िताका, झण्डा, प्रवियमाला, ज्ञान में अष्िरत्न आत्माओं की माला।
एक िससद्ध िौराणणक नदी िो यम के द्वार िर मानी िाती है । यह नदी
335 शमा अजग्न/सशव बाबा को शमा कहा है और हम आत्माएं 'शमा' िर कफदा 'िरवाने'
341 सशवपरु ी सशव िरमात्मा का तनवास स्र्ान (िरमधाम में सबसे ऊिर)
343 शरू
ु ड तीक्ष्ण बद्
ु चध/िखर
और िो सुंदर है वही सत्य है । इस िकार सत्यम ्, सशवम ्, सुंदरम ्, िैसे मंत्र का बीि
357 िब्
ज ताजे हरे भरे फल फूल
361 िम्पूर्ा ब्रम्हा सूक्ष्म शरीरधारी वतनवासी ब्रह्मा/साकार में कमाथतीत ब्रह्मा
364 िाकारपुरी मनुष्यलोक (जिसमें सभी ग्रह-नक्षत्र और िीवधारी, िड़-चेतन आते हैं)
प्रवचार करते है तब हम मन या प्रवचारक होते है । शब्द रटहत आत्म बोध, मैं हूुँ, के
366 िाक्षी होना ककसी दृश्य को तनप्रवथचार होकर दे खते है तब आि साक्षी है । (b) अर्वा िब
साक्षी।
368 िासलग्राम सशव सलंग के सार् िो छोिे छोिे सशवसलंग आकर के ित्र्र होते हैं। िो हम ब्राह्मण
बहुत छोिा, ितला या बारीक,िो अिनी बारीकी के कारण सबके ध्यान या समझ में
375 िूक्ष्म
िल्दी न आ सके।
स्र्ल
ू या साकारी लोक और मल
ू वतन या िरमधाम के बीच का वह स्र्ान िहाुँ
376 िूक्ष्म-वर्न/लोक
ब्रह्मा, प्रवष्णु, महे श के सार् फररश्तों की दतु नया है ।
377 िूयव
ा ंशी सतयुगी दे वी दे वता
379 िौगार् वह वस्तु िो इष्ि िनों को दे ने के सलये लाई िाय, भें ि, उिहार, तोहफा।
दे ह लेते हैं। कभी स्त्री का तो कभी िुरुर्ष का.... कभी उत्तर में तो कभी दक्षक्षण में ....
382 स्वदशान चक्र
अिने 84 िन्मों की माला को दे खें.... हम सब इस चक्र के अंदर हीरो िािथ
बिाने वाली प्रवशेर्ष आत्मायें हैं। स्वदशथन चक्रधारी अर्ाथत मास्िर नोलेिफूल।
383 स्वदशान चक्रधारी स्वयं को आत्मा समझते हुए सजृ ष्ि चक्र और 84 िन्मों को स्मतृ त/याद में रहना
384 स्
वमान स्वयं ही स्वयं को सम्मान दे ना
हठ करके योग लगा जिसमें शरीर को साधने के सलये बड़ी कटठन कटठन मुद्राओं
भजक्त मागथ में आत्मा सो िरमात्मा, िरमात्मा सो आत्मा। िर ज्ञान मागथ में सशव
390 हम िो, िो हम बाबा ने समझाया यह अर्थ बबल्कुल गलत है । हम सो का सही अर्थ है हम दे वता,
क्षबत्रय, वैश्य सो शूद्र। अभी हम सो ब्राह्मण बने हैं सो कफर से दे वता बनने के सलये।
395 हुण्
डी इसके द्वार लेिदे ि का व्यवहार
397
398
मुरली में आने वाले मुहावरों और कहावर्ों का अथा व्याख्या िदहर्*
क्रमिं. मह
ु ावरे /कहावर् अथा
1 अक्षर दे ना ज्ञान दे ना/वचन दे ना
2 अतर् खन
ू े नाहक क्रूरता करना
जिसकी दस
ू री िंजक्त है अन्त काल िो सशवबाबा को सम
ु रे
5 अपनी घोट र्ो नशा चढे अिनी बुद्चध से मनन-चचन्तन जितना करें गे, उतना नशा चढ़े गा।
7 आप मुएं मर गई दतु नया दतु नया से ककनारा करने से ककसी की याद नहीं आयेगी
इच्छा के बारे मे संम्िुणथ - अज्ञान इच्छाए मग
ृ तष्ृ णा के समान है
8 इच्छा मात्रम अववद्या युजक्त बताते है कक िब हमें इच्छाओं के बारे में कुछ ज्ञान ही नहीं
कक।
लौककक व्यवहार में रहते हुए बद्
ु चध में िरमात्मा के ससवा कोई
9 एक बाप दि
ू रा न कोई
दस
ू रा न याद आये।
चोरी चोरी है , चाहे राई (िैस)े की हो चाहे िवथत समान लाखों की
10 कख का चोर िो लख का चोर
हो।
खस्ग्गयां मारना/कन्धे
12 आनंद और खश
ु ी में मानो भांगड़ा नत्ृ य करना
उछालना
15 गल
ु गल
ु बनना फूल िैसा सुन्दर बनना
घट में ही ब्रह्मा, घट में ही एक सेकण्ड में सशव बाबा ब्रह्मा बाबा के तन में आकर ज्ञान दे ते
16
ववष्र्ु, घट में ही नौ लख र्ारे और ब्रह्मा से प्रवष्णु और नौ लाख ििा तैयार हो िाती।
को िातत करते है ।
धचंर्ा र्ाकी कीस्जए जो ककसी भी बात की चचंता नहीं करनी चाटहए, क्योंकक िो होना है
21
अनहोनी होय वही हो रहा।
22 चल
ु पे िो ददल पे िो सार् रहे हैं, वही टदल िर रहते हैं।
23 छी-छी दतु नया नकथ/िुरानी कसलयुगी दतु नया
31 र्ीनपैरपथ्
ृ वी र्ी। िर बाबा कहते है कक तुम श्रीमत िर चलकर के तीन
राज्यभाग िाओगे।
32 र्ीनपैर पथ्
ृ वी के र्ोड़ी सी िगह
धन्ने सब में धरू , बबगर धन्धे सब धन्धे में वही धन्धा सवथश्रेष्ठ है िो नर से नारायण बना दे ।
35
नर से नारायण बनने के बाकी ककसी धन्धे से अप्रवनाशी धन की िाजतत हो नहीं सकती।
36 नशा चढना खश
ु होना
40 बच्चू बादशाह पीरूवजीर काम प्रवकार अगर प्रवकारों का रािा है , तो क्रोध उसका विीर है ।
41 बम-बम भोले भर दे झोली हे ! िरमात्मा हमारी बुद्चध रूिी झोली ज्ञान रत्नों से भर दो।
42 बद्
ु धध का र्ाला खोलना याद टदलाना/ज्ञान का तीसरा नेत्र खल
ु ना।
45 भरीढोना ज्ञाता मानकर बहुत बुद्चधवान समझते हैं बाद में ज्ञान में
47 माया-मच्छन्दर का खेल लक
ु ा-तछिी िैसा एक खेल िो माया भी खेलती/करती है ।
49 समठरा घरु र् घरु ाय मीठा बनो तो सब आिसे मीठा व्यवहार करें गे।
हातमताई की कहानी में मह
ु लरा का ियोग ककया गया है । उसमें
मह
ु लरा मख
ु में डालते र्े तो माया गम
ु हो िाती र्ी। मह
ु लरा
सकता है ।
बदबूदार है और उसमें हड्डयाुँ, लहू तर्ा बाल आटद भरे हुए हैं।
िार करनी िड़ती है , जिसमें उसे बहुत कष्ि होता है । िरं तु यटद
54 ववषय वैर्रर्ी नदी पार करना उसने अिनी िीप्रवतावस्र्ा में गोदान ककया हो, तो वह उसी गौ
को यह नदी िार करने में बहुत कष्ि होता है । मरु लीमें इिका
रहस्ययहीहै ककबच्चोंिंगमयग
ु में परु
ु षाथाकरकेही
र्ुमअन्र्िमयकीिजाओंिेबचिकर्ेहो।
शेरनी का दध
ू िोने के बर्ान बाबा का श्रेष्ठ ज्ञान स्वच्छ मन वचन बुद्चध में ही धारण हो
55
में ही ठहरर्ा है । सकता है ।
58 िच्चे ददल पर िाहब राजी भगवान सच्चे हृदय वालों िर न्यौछावर होते हैं।
59 िब्
जबागददखलाना अपिा काम निकालिे या फंसािे के भलये बड़ी बड़ी आशाएं हदलािा
60 िर का मोर होना सवथश्रेष्ठ होना/हृदय में बसना
िांप भी न मरे और लाठी भी अिने कायथ में सफलता भी हाससल हो िाती और ककसी को दःु ख
62
न टूटे भी न समले, ऐसी यजु क्त से हर कमथ करना चाटहए।
हार्ों से काम करते रहो, टदल से सशव बाबा को याद करते रहो
64 हथ कार डे ददल यार डे
अर्ाथत ् कमथयोगी बन िाओ।
65 हाथ कर दे ददल यार दे हार् से कमथ करते हुए मनमें एक बाि की याद रहना
2 अटें शन सावधानी
9 अथाक्वेक भूकंि
10 अल्लफ़ एक िरमात्मा
12 आयरन ऐज कसलयुग
13 इन्कॉरपोरल तनराकार
14 इन्वटा रबद्
ु धध अन्तमथन में झांकती बद्
ु चध
15 इन्वेंशन आप्रवष्कार
16 इन्वेंशन आप्रवष्कार
19 इम्मोटा ल अप्रवनाशी
22 एस्क्टववटी कक्रया-कला
25 एक्िचें ज अदला-बदली
32 ऑक्यूपेशन व्यवसाय
42 कनेक्शन िोड़ना
43 कनेक्शन िड़
ु ाव, योग
45 कम्पलीट सम्िूणथ
50 क्यू िंजक्त
51 कक्रएटर रचतयता
52 कक्रएशन तनमाथण, सि
ृ न
55 धगफ्ट भें ि
61 गॉडली बल
ु बल
ु भगवान का ज्ञान सुनानेवाले
63 ग्रेड कक्षा, िद
64 चांि अवसर
76 ट्रस्टी साक्षी
80 डलहे ड बुद्धू
87 डीनायस्टी वंश
88 डेववल शैतान
92 नेचरु ल िाकृततक
95 नेचरु ल ब्यट
ू ी िाकृततक सौन्दयथ
96 परसमट िरवाना, आज्ञा-ित्र
97 परसमशन अनुमतत
144 मैिेंजर दत
ू , सन्दे श ले िानेवाला/लानेवाला
155 ररयलाईजेशन कोिा प्रिता िरमात्मा की संतान हूं इसको िानना अर्ाथत
178 लॉडा कृष्र्ा रािा कृष्ण, सतयुग में िन्म लेने वाली िहली आत्मा
207 िप्र
ु ीम िोल िरमात्मा
219 स्टे टि िद
221 स्स्पररचअ
ु ल अध्याजत्मक
228 हे ल नकथ
229 हे वेनली गॉड फ़ादर सतयुगी दतु नया का तनमाथण करने वाले भगवान