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मरु ली शब्दकोष

हहन्दी मरु ली में आये हहन्दी] अंग्रेजी] अरबी-फारसी भाषा व मह


ु ावरों-कहावतों का सरलीकृत अर्थ हहन्दी भाषा में
सम्पादक की कलम से………………………………
शब्दकोष के ववभभन्ि भागों में मुरभलयों में आिे वाले कहठि शब्दों का अर्थ सरल शब्दों में समझािे का प्रयास ककया गया है ।
कहठि शब्द को कोई पररभाषा िहीं दी जा सकती। दे शकाल] भाषा की समझ] ज्ञाि -स्तर में भभन्िता होिे के कारण हर ककसी के भलए
कहठि और सरल शब्द का मापदण्ड अलग अलग हो सकता है ।अतएव शब्दों के चि ु ाव में सामान्यीकरण पर ववशेष ध्याि हदया गया
है । अन्यर्ा हम अज्ञािता व भ्रमवश शब्दों के अर्थ का अिर्थ कर दे ते हैं। आज हहन्दी भाषा की प्रकृनत और स्वरूप
में निश्चय ही समय के सार् भूमंडलीकरण के दौर में बदलाव आया है । इसभलये वतथमाि पररप्रेक्ष्य में मुरभलयों के अर्थ व भाव को अच्छे
से समझिे के भलए मुरली में आये कहठि शब्दों के भावार्थ जाििा आवश्यक हो जाता है । हहन्दी मुरली की हदशा में यह प्रयास आपके
भलए उपयोगी साबबत हो ऐसा सम्पादक मंडल आशा करता है ।

क्रम सं. शब्‍


द अर्थ

मल
ू शब्द ससक से बना जिसका अर्थ अत्यन्त प्रिय, लाडले, जिस तरह लौककक

माता-प्रिता को बहुत ितीक्षा के उिरान्त िुत्ररत्न िाजतत िर बच्चे से बहुत ससक-

1 सिकीलधे ससक (Love) होना (अततस्नेह) होती है ।उसी तरह िरमात्मा को भी िब 5000

वर्षोंिरान्त बच्चों से संगम िर समलन होता है ] तो बच्चों से बहुत ससक- ससक होती

है । (ससन्धी शब्द िर मूलतः फारसी भार्षा का शब्द)

2 16 कला िम्पन्न मानव स्वभाव/व्यवहार की सवथश्रेष्ठ कला (100% सवथगुण सम्िन्न)

3 अंगद के िमान अचल अडडग/कैसी भी िररजस्र्तत में जस्र्र रहना

4 अकर्ाा कमथ के खाते से दरू /तनसलथतत/तनबंधन


जिस कमथ का खाता ही न बने अर्ाथत ् सत्कमथ के खाते का क्षीण होना (दे वताओं का
5 अकमा
कमथ इसी कोटि में आता है ।)

6 अकालमूर्ा जिसका काल भी न कुछ बबगाड़ सके/अमर/मत्ृ युंिय स्वरूि

7 अकालमूर्ा जिसको काल ना खा सके/तनत्य/अप्रवनाशी

8 अखट
ु कभी न समातत होने वाला लगातार अनवरत

9 अचल-अडोल िो न डडगनेवाला हो और न टहले अर्ाथत ् हमेशा जस्र्र रहे ।

10 अजपाजप लगातार िाि करना वह िि जिसके मूल मंत्र हं सः का उच्चारण श्वास- िश्वास के
िुराण के अनुसार एक िािी ब्राह्मण का नाम िो मरते समय अिने िुत्र 'नारायण'
11 अजासमल
का नाम लेकर तर गया
12 अनन्‍
य एकनिष्‍
ठ/ एक ही में लीि हो

13 अनादद जिसका न कोई आटद/आरम्भ हो, न अन्त हो

14 अन्र्मख
ुा र्ा आजत्मक जस्र्तत में रहना/भीतर की ओर उन्मुख/आंतररक ध्यानयुक्त।
15 अन्र्मख
ुा ी शान्त/िो सशव बाबा की याद में अन्तमख
ुथ ी स्वभाव वाला हो िाये

16 अन्र्याामी मन के ज्ञाता/सबकुछ िानने वाला

17 अभल
ू भूल न करने वाला

18 अमल आचरण, व्‍यवहार, कायथवाही

19 अमानर् एक तनजश्चत समय के सलए कोई चीज़ ककसी के िास रखना

20 अलबेलापन आलस्य (िांच प्रवकारों िर भी भारी िड़ने वाला प्रवकार)

21 अलबेलापन गैर जिम्मेदाराना व्यवहार/कमथआलस्य

22 अलाएँ खाद, प्रवकार

23 अलाव स्वीकार करना/ज्ञान दे ना

24 अलौककक िो इस लोक से िरे का व्यवहार करे

25 अल्लफ एक िरमात्मा

26 अववद्याभव अज्ञानता के कारण भूल िाना

27 अववनाशी बह
ृ स्पतर् अप्रवनाशी राज्यभाग (ब्रह्मा के सार्)

28 अव्यक्र् िम्पूर्ा सूक्ष्म वतनवासी ब्रह्मा

29 अशरीरी
शरीर में रहते हुए शरीर से अलग डडिै च/सभन्न/बबना

30 अष्टरत्न सबसे आगे का नम्बर/िास प्रवद् आनर केवल आठ आत्माएं/आठ की माला इन्हीं से

31 अिल सही मायने में /सच/वास्तव में

32 अहम ्‍ब्रह्मस्स्म मैं ही ब्रह्म हूं

33 आत्मसभमानी दे ह में रहते अिने को आत्मा रूि में जस्र्र रहना या अनभ
ु व करना
आत्माएं अंडसे मिल िरमधाम में ऊिर िरमात्मा के नीचे नम्बरवार आत्माएं अण्डे की तरह/सरीखे
34
रहर्ी रहती है ।

35 आथर् धैयथ, धीरज

36 आदम-ईव सजृ ष्ि के शुरू में आने वाले िर्म नर-नारी (टहन्द ू धमथ में मनु-श्रद्धा)

37 आदमशम
ु ारी बहुतायत/अतत/िनगणना भी एक अर्थ में
आप ही पूज्य आपे स्वयं की (अिने दे व स्वरूि की) स्वयं ही िूिा करने वाली दे व वंशावली की आत्माएं
38
पज
ु ारी िो द्वािर से अिनी ही िूिा शुरू कर दे ती हैं।

39 आपघार्‍ आत्‍महत्‍या

40 आपे ही र्रि परोई दे वताओं की बड़ाई और अिनी बुराई की भजक्त का गायन

41 आसशक िेम करनेवाला मनुष्य या भक्त, चचत्त से चाहने वाला मनुष्य-आत्मा

42 आदहस्र्े आदहस्र्े धीरे धीरे

43 इत्तला दे ना िानकारी दे ना

44 उजाई माला बुझी हुई माला

45 उर्रर्ी कला उत्तरोत्तर या सतयुग से धीर धीरे 16 कलाओं में ह्रास/कमी आना

राम के समीि/न्यारािन तनरन्तर योगयुक्त रहकर चचत्त को सवथ-सम्बन्ध, सवथ

46 उपराम िकृतत के आकर्षथण से न्यारा हो िाना ही उिराम होना है । इस सजृ ष्ि में अिने को

मेहमान समझने से उिराम अवस्र्ा आएगी।

लाहना, सशकायत, ककसी की भूल या अिराध को उससे दःु खिूवक


थ िताना, ककसी से
47 उल्हना
उसकी ऐसी भूल चक
ू के प्रवर्षय में कहना सुनाना जिससे कुछ दःु ख िहुुँचा हो।

48 ऊँ शास्न्र् मैं आत्मा शान्त स्वरूि हूुँ


गणेश की िूिा यटद प्रवचधवत की िाए, तो इनकी िततव्रता िजत्नयां ऋद्चध-

ससद्चध भी िसन्न हो कर घर-िररवार में सुख-शाजन्त और संतान को तनमथल


49 ऋद्धध-सिद्धध‍
प्रवद्या बद्चध दे ती है ा ऋद्चध-ससद्चध यशस्वी, वैभवशाली व िततजष्ठत बनाने

वाली होती है ।
50 एक ओंकार िरम शजक्त एक ही है
एक सशव िरमात्मा के अलावा ककसी की याद ना रहे , मन-बद्
ु चध में एक
51 एकानामी
सशव ही याद रहे

52 एशलम िह ं द:ु खी व अशान्त आत्माओं को शरण समलती है ।

53 ओम ् मैं आत्मा

54 कखपन बुराई/अवगुण

55 कच्छ-मच्छ िरमात्मा के अवतारों के िौराणणक नाम यर्ार्थ- मत्स्यावतार, कच्छ,वराह

56 कट प्रवकार

57 कब्रदाखखल अकाले अवसान/मत्ृ यु/समाजतत


कुराि के अिस ु ार कयामत के हदि भगवाि मद ु ों में भी जाि फंू क दें गे। कयामत के हदि िा
बाप-बेटा, भाई-बहि का इस दनु िया की कीमती से कीमती चीज और िा ही ककसी की
58 कयामर् सफाररश तब ककसी इन्‍ साि के काम आएगी। केवल अच्‍ छे आमालों और इस्‍ लाम के स्‍
तंभों
और सुन्‍ित तरीकों से जजंदगी गुजारिे वाले इंसािों को ही जन्‍ ित में भंजा जाएगा। पाप बढ़
जाएंगे, अधधकाधधक भूकंप आएंगे, औरतों की तादाद में मदथ ज्‍ यादा होंगे

59 करनकरावनहार सब कुछ करने कराने वाला िरमात्मा

60 करनीघोर जिन्हें मुदे की बची चीिें दी िाती हैं।

61 कमा शारीररक अंगों द्वारा ककया गया कोई भी कायथ

62 कमाभोग प्रवकमों का खाता जिसे भोगना िड़ता है या योगबल से समिाया िा सकता है ।

कमथ के बन्धन से दरू /िीवन-मक्


ु त आत्मा/कसलयग
ु अन्त तक 9 लाख आत्माएं
63 कमाार्ीर्
अिने श्रेष्ठ िुरुर्षार्थ से कमाथतीत अवस्र्ा को िातत करें गी।

64 कलंगीधर कलंक को धारण करिा

65 कलश गगरा, घागर, घड़ा।

66 कल्प 5000 वर्षथ का एक चक्र का नािक/ड्रामा

67 कल्प-कल्पान्र्र हर कल्ि में (सतयग


ु से संगमयग
ु तक)

68 कवच बख्तर/युद्ध में छाती की रक्षा के सलये उियोगी आवरण

69 कसशश आकर्षथण, णखंचाव, झुकाव, रुझान।

70 कागववष्ठा बहुत र्ोड़ा/कौए की लीद िैसा गन्दा

71 काम कटारी काम प्रवकार में िाना

एक गाय जो पुराणािुसार समुद्र के मंर्ि सक निकली र्ी। पर चौदह रत्‍िों में से


72 कामधेनु
एक है , इससे जो मांगो वही भमलता है ।

73 कुख वंशावली गभथ से िन्म (लौककक)

74 कुम्भीपाक नका िुराणों में वणणथत एक घोर नकथ

75 कृष्र्पुरी सतयुग में श्रीकृष्ण का राज्य

76 कौडी समिल कौडड़यों के मोल/मूल्यहीन


दःु ख दे ने वाले मनष्ु य, 'िो ईश्वरीय तनयम मयाथदाओं को न मानते है और न उनकी

77 कौरव श्रीमत िर चलते है , कौरव कहलाते है !' भारत में कौरव वंसशयों का महाप्रवनाश के

समय आिस में गह


ृ युद्ध होगा।

78 खग्गे/कन्धे उछालना खश
ु ी में रहना

79 खलाि खत्‍
म/समाप्‍

80 खाद प्रवकारों का लेि हो/युक्त हो

81 खखदमर्गार सेवाधारी

नाव को खेने वाला िरमात्मा हमारी जज़न्दगी रूिी नैया की ितवार को चला
82 खखव्वैया
कसलयग
ु ी दतु नया से िार ले िाने वाला

83 खखव्वैया तारणहार/नैया िार लगाने वाला

84 खद
ु ाई खखदमर्गार ईश्वर की णखदमत या सेवा करनेवाला।

85 खैराफर्‍ कुशल क्षेम/ राजीखश


ु ी/ भलाई

86 खोट दोर्ष, अशुद्चध, ककसी कायथ या व्यजक्त के ितत मन में होने वाली बुरी भावना।

अमानत या धरोहर के रूि में रखी वस्तु को हड़ि लेना या चरु ा लेना,
87 ख्यानर्
बुरी नीयत से ककसी दस
ू रे की संिप्रत्त का गबन कर लेना बेईमानी या भ्रष्िाचार,
88 ख्‍
यालार् ववचार या भाव आहद

89 गफलर् असावधानी

90 गरीब-तनवाज़ गरीबों का रहनुमा/मददगार सशव िरमात्मा

91 गभा जेल गभथ िेल में रहते कमथ बन्धन के टहसाब ककताब चक
ू तू करना

92 गांवडे गाुँव का

93 गुरूमर् िससद्ध गुरूओं के मत िर आधाररत

94 गुलशन बगीचा

95 गह
ृ चारी‍ गह
ृ ों की जस्‍र्नत के अिुसार ककसी मिुष्‍य की भली बुरी अवस्‍र्ा/ दभ
ु ाथग्‍य

महाभारत में वणणथत गोि-गोप्रियों के अत्यन्त प्रिय श्रीकृष्ण जिनकी मुरली की धन


सन
ु ने के सलये अिनी सचु ध बचु ध खोकर काम काि छोड़कर चले आते र्े। वास्तव में
96 गोपीवल्लभ
हम बच्चे ही वही गोि-गोप्रियां हैं, िो तनत उस िरमप्रिय सशवबाबा अर्ाथत ्

गोिीबल्लभ को याद ककये और मुरली सुने बबना नहीं रह सकती हैं।

97 गोया मानो/अर्ाथत ्

98 गोरखधंधा गड़बड़, गड़बड़ी करनेवाला, घिलेबािी, गोलमाल करना, अतनयसमतता।


99 गोिाईं श्रेष्ठ, मासलक, सशव िरमात्मा, स्वामी।

100 ग्रहचारी कंु डली में बरु े ग्रह बैठ िाना

101 ग्रहर् स्वीकार करना,धारण,िहनना।

102 चन्र वंशी त्रेतायुगी दे वी दे वता

जिज्ञासु बने रहना, हमेशा तैयार जिस िकार चात्रक व ििीहा िक्षी स्वातत

नक्षत्र की बूंद की चाहना करता हुआ उसके इंतिार में आसमान में अिनी
103 चात्रक‍
आंखे टिकाऐ रखता है , उसी िकार बच्चे बाबा की मुरली को जिज्ञासु बन

कर इंतिार करते रहते है कक बाबा मुरली में क्या कहने वाला है ।

िैसे स्र्ल
ू लाइि हाउस सभी िहािों को रास्ता बताता है , वैसे ही ब्राह्मण बच्चे
104 चैर्न्य लाइट हाउि
चैतन्य रूि में अिने ज्ञान योग की आजत्मक लाइि से सभी को सही रास्ता बताते हैं।

105 चों चों का मुरब्बा ककस चीि से बना ये िहचानना मजु श्कल/सब कुछ समक्स

106 तछ-तछ-पलीर्ी गन्दा (नये िन्में सशशु के किड़ों िैसा)

107 जडजडीभूर् होना खोखला होना

108 जानीजाननहार सवथज्ञ/सबकुछ िानने वाला

109 स्जन्न जैिी बद्


ु धध अर्क िररश्रमी (जिन्न का अर्थ भूत)

110 स्जस्मानी यात्रा शारीररक यात्रा

111 जुत्ती शरीर

112 जूं समिल धीरे धीरे लगातार

113 ज्ञान की कंठी ज्ञान की माला/िाजतत

भज‍‍तमागथ में कहते है आत्‍मा ज्‍योनत मत्ृ ‍यु के बाद परमात्‍मा ज्‍योनत में ववलीि हो
114 ज्‍
योर्‍ज्‍
योर्‍िमाना
जाती है

115 झांझ एक वाद्ययंत्र/संगीत तनकालने वाला स्र्ान

मिुष्‍य सजृ ष्‍ट रूपी कल्‍प वक्ष


ृ , जजसमें बताया गया है पुरी सजृ ष्‍ट पर आत्‍माओं का
116 झाड‍ फैलाओ कैसे हुआ, सारे धमथ कैसे फैले, उिकी समय समय पर गनत कैसी रही। उसके
बारे में स्‍पष्‍ट हदया हुआ है । मिष्ु ‍य सजृ ष्‍ट रूपी झाड़ के रूप में ।

117 टाल-टासलयाँ सभी धमों की प्रवसभन्न शाखायें

118 दटंडन बबच्छू-टिंडन िैसे िहरीले िीव


घड़ी िैसे तनरं तर टिक टिक कर चलती रहती वैसे यह ड्रामा भी सेकंड बाय सेकंड
119 दटक दटक
लगातार चलता रहता है ।
120 टीवाटा ततराहा/तीन रास्ते

121 टे व आदत

स्वगथ में डबल ससरताि होते दे वी दे वता, एक लाइि अर्ाथत िप्रवत्रता का ताि और
122 डबल सिरर्ाज
दस
ू रा रतन िडड़त ताि

123 डोडा िवारी, ज्वारे/बािरी कक रोिी

124 र्कदीर भाग्य/िारब्ध/ककस्मत

र्कदीर को लकीर
125 भाग्य बनाने का सअ
ु वसर खो दे ना
लगाना
126 र्र्त्वम ् तम
ु भी वही हो अर्ाथत आत्‍मा परमात्‍मा का रूप है ।

127 र्त्‍
र्े‍र्वे गमथ तवे

128 र्त्त्वज्ञानी िीवन/संसार के सार या मूल को िाननेवाला

129 र्दबीर अभीष्ि ससद्चध करने का साधन/उजक्त/तरकीब/यत्न।

गुणों में सबसे तनम्न स्तर (चार कला सम्िन्न कसलयुग से/भारत मे अरबों के
130 र्मोगुर्
आक्रमण से शरू
ु )

131 र्ाउिी र्ख्र् राज्य-भाग

भजक्त मागथ की सत्य नारायण की काल्ितनक कर्ा के मध्य में सुनाई िाने वाली
132 तर्जरी की कथा
कर्ा

133 त्रत्रलोकीनाथ तीनों लोकों का मासलक सशव िरमात्मा

134 दग्ध करो खत्म करो

135 ददलरूबा वह जजसमें प्रेम ककया जाए/प्‍यारा

136 ददव्‍य‍चक्षु ज्ञान का तीसरा नेत्र

137 दम
ु िूंछ, आत्मा के तनकलते ही शरीर रुिी दम
ु छूि िायेगा

138 दस्
ु ‍
र्र जजसे पार करिा कहठि हो/ ववकट/कहठि

जजसके पास ऋण चक
ु ािे के भलये कुछ ि बच गया हो/ जो सवथर्ा अभाव की जस्र्नत
139 दे वाला
में हो

140 दे ही दे ह को चलाने वाली/मासलक/आत्मा


संगमयग
ु ी ब्राह्मण का और सतयग
ु ी दे वता दोनों के आभामंडल की लाइि का ताि
141 दो‍र्ाजधारी
धारण करना

142 दोज़ख नरक

143 धर्ी मासलक

144 धररया धरु ण्डी (होली के अगले टदन का एक त्यौहार)

बैल की िततकृतत िो सशवमजन्दर में होती है कसलयुग अन्त में सशव बाबा जिन दो
145 नंदीगर्
रर्ों/तन (ब्रह्मा बाबा व गल
ु िार दादी) का सहारा लेते हैं, यही नन्दीगण के ितीक

146 नट शैल सार रूि (सारांश)

147 नब्ज दे खना िांच करना, सूक्ष्म चेककं ग करनी

148 नम्बरवार कोई होसशयार कोई बुद्ध/ू क्रमोत्तर चगरती हुई जस्र्तत में होना।

149 नष्टोमोहा िुरानी दतु नया से मोह ममत्व का त्याग, तनमोही जस्र्तत

150 नामाचार िससद्ध/लोक प्रवश्रत


151 नामी-ग्रामी िससद्ध करने वाला

152 तनधनके जिसके माुँ-बाि न हो

153 तनराकार िो िाकार साकार मे कमथ करते हुए अिने तनराकार स्वरूि (stage) की स्मतृ त/याद में रहना

154 तनमाार् धचत्त जिसका मन तनमथल/साफ हो/तनमाथण करने का जिसमें हृदय हो

155 तनलेप जिस िर प्रवकारों का लेि ना लगा हो/तनप्रवथकारी जस्र्तत स्िे ि

156 तनलेप कमथ बन्धन से मुक्त

157 तनवाार्धाम आत्मा-िरमात्मा का तनवास स्र्ान/ब्रह्मलोक, मूलवतन भी कहते हैं

158 तनववाकारी प्रवकार (बरु ाइयों) रटहत (रिो, तमो से सम्बजन्धत)

सांसाररक प्रवर्षयों का ककया िानेवाला त्याग, िप्रवप्रत्त का अभाव होना, सांसाररक


159 तनववृ त्त मागा
कायों के लगाव से िरे

160 नँथ
ू होना माला में प्रिरोया हुआ

161 नँध
ू िहले से सलखा हुआ
एक िगह शाजन्त में बैठकर योग का अभ्यास कराना। वैसे नेष्ठा एक िकार

162 नेष्टा की योग की अत्यन्त कटठन कक्रया है । नेष्ठ नेत्र और दे हातीत बनाने वाली

शजक्तशाली दृजष्ि है ।
163 नैन चैन आंख की हलचल व व्यवहार द्वारा

भजक्तमागथ में भक्त ईश्वर का साक्षात्कार के सलये नौ िकार की भजक्त


164 नौंधा‍(नवधा‍भस्क्‍
र्)
श्रवण, कीतथन, स्मरण, िाद सेवन, अचथन, वंदन, संख्य, दास्य और

165 न्यारा और प्यारा सबसे न्यारा/अलग होते हुए भी सबका तयारा होना

166 पक्का महावीर प्रवियी, सफल, दृढ़, सफलतामूतथ

167 पत्थरनाथ माया/प्रवकारों के वशीभत


168 पत्थरपुरी कसलयुगी/टदलोटदमाग ित्र्र सदृश (ित्र्र िूिे हरर समले, तो.....)

169 पथ प्रदशाक िैगम्बर/रास्ता टदखाने वाला/गाइड


a गणणत में सोलहवें स्र्ान की संख्या (१०० नील) िो इस िकार सलखी िाती

हैं—१००,००,००,००,००,००,००० (१‍नील‍- िौ‍अरब।) संगम िर ककया हुआ


170 पदमापदम, पदमगुर्ा
िुरार्षार्थ िदमािदम/िदमगुणा फलदाई होता है ।

171 पद्मपतर् जज अखि


ु सम्िप्रत्त (ज्ञान/योग/धन) का स्वामी

172 परमधाम आत्मा-िरमात्मा का तनवास स्र्ान

173 पररस्र्ान फररश्तों की दतु नया/सतयुगी दतु नया

मन-वचन-कमथ से िावन, तनश्छलता, स्वछता, चतुराई रटहत, सरल, साफ, शुभ


174 पववत्रर्ा
वप्रृ त्त, शुभ प्रवचार कामना या इच्छा रटहत, तनस्वार्थ

175 पिारा ववस्‍तार से

जिनको ईश्वरीय तनयम वा मयाथदाओं िर सम्िुणथ तनश्चय है और ईश्वरीय िािथ को

176 पाण्डव िहचान कर ईश्वररय ज्ञान को िीवन मे धारण करते है वही सच्चे िांडव कहलाते है ,

िरमात्मा भी इनके सार्ी बनते हैं।

इस साकारी लोक या दतु नया से िार/बहुत दरू /सूक्ष्मलोक से भी ऊिर/दतु नयावी


177 पारलौककक
ररश्तों से िरे

178 पारिनाथ िरमात्मा/िारस सदृश बनाने वाला

179 पारिपरु ी स्वगथ/सतयुग टदलोटदमाग िहाुँ िारस ित्र्र िैसा हो


िरम्िरा से चली आ रही भारतीय रस्म जिसमें लोग मत
ृ व्यजक्त की आत्मा को

180 वपत्र खखलाना ब्राह्मणों के शरीर में आह्वान कर प्रितरों की इच्छाओं को िूरा करने का ियास

ककया िाता है ।
कमथ, वह मुख्य उद्दे श्य या ियोिन जिसकी िाजतत या ससद्चध के सलए ियत्न
181 पुरूषाथा
करना आवश्यक और कत्तथव्य हो।

182 पैगाम सन्दे श

183 पोर्ामेल टहसाब-ककताब, रोितनशी

184 पोर्ामेल आत्मा िो मन वाणी कमथ द्वारा कायथ करे उसके रोि का टहसाब-ककताब

185 प्रकृतर् स्वभाव, तासीर, कुदरत।

186 प्रजावपर्ा सभी आत्माओं के प्रिता

झक
ु ाव, संसार के कायों से लगाव, भौततक िीवन के कक्रयाकलािों (activity) में

187 प्रववृ त्त आसजक्त, मुरली के सन्दभथ में गह


ृ स्र् व्यवहार में रहकर श्रीमत की युजक्त

(तरकीब) से तनप्रवथकारी बनकर िरमात्मा से योगयुक्त होना।

संसार के कामों में लगाव, दतु नया के धंधे में लीन होना, भौततक िीवन के

188 प्रववृ त्त मागा कायथव्यािारों में आसजक्त, िीवन-यािन का वह िकार जिसमें मनुष्य सांसाररक

कायों और बंधनों में िड़ा रहकर टदन बबताता है ।

तीन िकार के कमो में से वह जिसका फलभोग आरं भ हो चक


ु ा हो। भाग्य, ककस्मत,
189 प्रारब्ध/प्रालब्ध
िैसे-िो िारब्ध में होगा वही समलेगा।

190 प्लातनंग बुद्धध लक्ष्य िर सोचती बद्


ु चध

191 प्लेन बुद्धध साफ बुद्चध

192 फखरु /फक्र नशा/गवथ

193 फज़ीलर् मैनसथ, सभ्यता, श्रेष्ठता

194 फथकार्ी तड़पाती, परे शाि करती है

195 फरमान बरदार आज्ञाकारी होना

196 फराक ददल रहमटदल/साफ-शुद्ध चचत्त वाला

197 फराखददल बड़ा टदल

198 फानन अचानक/तुरन्त

199 फारगतर् दे ना छोड़ के िाना/भाग िाना/तलाक दे ना

200 कफकरार् चचंता, सोच, खिका, ध्यान दे ने योग्य

201 फुरना तनकलना, िकि होना, चमक उठना


202 फुरी फुरी अलाव भरर्ा बूंद-बूंद से तालाब भरता है ।

203 फौरन तुरन्त, फिाफि

204 बख्र्ावर भाग्यवान, खश


ु नसीब।

205 बचडेवाल िालन करनेवाला, सम्भाल या दे खभाल करने वाला।

िाचीन विवक्ष
ृ जिसकी िड़ का िता नहीं (कोलकाता के बोिे तनक गाडथन में है ),

206 बतनयन ट्री/बनेन‍ट्री आटद सनातन दे वी दे वता धमथ के संस्र्ािक िरमप्रिता िरमात्मा सशव दोनों

लोि हो िाते है ।

207 बसलहार जाना न्यौछावर/समप्रिथत/कुबाथन कर दे ना

208 बल्लभ िथ्


ृ वी के रािा के अर्थ में /इसका एक अर्थ प्रिय भी/ दतु नयावी ररश्तों से िार

209 बदहश्र् स्वगथ/सतयग


ु त्रेतायग

बन्धन युक्त आत्मायें,वो आतमाएं िो िररवार के बन्धन में रहते बाबा


210 बांधेसलयां
समलन नहीं कर सकती िरन्तु बाबा को बहुत िेम से याद करती हैं

211 बादशाही सतयुग की आठ गटदथ श, अष्िरत्न

212 बाह्याामी बाहरी/दतु नयादारी का अनुभवी

213 बाला िससद्ध करना

जैसे एक वक्ष
ृ का मल
ू उसका बीज होता है अर्ाथत बीज में ही वक्ष ृ का जीवि होता है
उसका ववस्‍तार होता है , ठीक इसी प्रकार परमात्‍मा भी इस सजृ ष्‍ट रूपी वक्ष
ृ के चैतन्‍य
214 बीज
बीज हैं जो अपिी शज‍‍तयों के बल से पनतत सजृ ष्‍ट को पावि बिा कर उसमें िव
जीवि का संचार करते है ।

श्रीमत का िालन करते हुए ज्ञान योग की िढ़ाई िर िूरा ध्यान दे ते रहनेवाले।
215 बह
ृ स्पतर् की दशा
जिसकी विह से माया वार नहीं कर िाती तो वे सदा सुखी रहते।

216 बेअन्र् अनाटद/अन्तहीन/जिसका अन्त न हो

217 बेगर अककं चन/सभक्षुक/दररद्र

218 बेगर भभक्षुक/ दररद्र

प्रवकारों के कारण सभखारी बनी हुई आत्माओं को ज्ञान व योग द्वारा सशव बाबा
219 बेगर टू वप्रन्ि
रािकुमार अर्ाथत ् धनवान, राज्य-अचधकारी बनाते हैं।

220 बेहद इस मायावी/ सांसाररक दतु नया के हद/सीमा से िार/असीम

221 बेहद का बाप ििाप्रिता/ बािदादा/ सीमा से िरे हो

222 बेहद का बाप िारलौककक प्रिता, सशव िरमात्मा


223 बैकुण्ठनाथ स्वगथ (सतयुग-त्रेतायुग) के मासलक/रािा

ब्रह्मचयथ का िालन करने वालों को ब्रह्मचारी कहते हैं। ब्रह्मचयथ दो शब्दो ब्रह्म

और चया से बना है । ब्रह्म का अर्थ िरमधाम, चयथ का अर्थ प्रवचरना, अर्ाथत


224 ब्रह्मचारी
िरमधाम मे प्रवचरना, सदा उसी का ध्यान करना ही ब्रह्मचयथ कहलाता है । वास्तव

में ब्रह्मचयथ काम प्रवकार से सम्िूणथ मुजक्त। िप्रवत्रता का आधार स्तंभ है ब्रह्मचयथ।

225 ब्रह्मज्ञानी ब्रह्म-तत्त्व को िाननेवाला

226 भंडारा खाने-िीने की वस्तुओं का संग्रह स्र्ल

227 भंभोर गोल दतु नया

228 भगवानुवाच सशव िरमात्मा के महावाक्य/प्रवशेर्षतः मुरली िूरी तरह भगवानुवाच ही है

जिसमें तिकर सोने में तनखार आये/आबू िैसी िावन तिस्याभूसम में िाकर
229 भट्ठी
वररष्ठों की क्लास आटद का श्रवण-चचन्तन-मनन से ब्राह्मणत्व में सध
ु ार लाना

230 भस्मािरु एक असरु िो ककसी को या स्वयं को भी भस्म कर सकता है

231 भागंर्ी सब कुछ सुनकर कफर छोड़ने वाला

232 भागीरथी भाग्यशाली रर् ब्रह्मा का/भगीरर् की तिस्या के समान भारी/बहुत बड़ा।

233 भािना आना अनुभव होना

234 भ्रमरी समिल भ्रमरी की तरह दीिक में भंू भंू करना

235 मंथन मर्ना, खब


ू डूब-डूबकर तत्वों का िता लगाना।

236 मंथन खब
ू डूब डूब कर ववचारकर तथ्‍यों का पता लगािा।
मच्छरों िदृश वापि
237 अन्त समय एक सार् अनेक आत्माएं मच्छरों के समान िरमधाम िायेंगी।
जाना
238 मर्-पंथ गुरूओं के बताये मत व उनके द्वारा टदखाये गये रास्ते िर चलना

239 मदार आधार, धरु ी, दायरा

240 मदार धरु ी, आधार

241 मध्याजी भव स्वगथ के सम्िूणथ रूि, प्रवष्णु का स्वरूि को याद करो।

242 मनमनाभव स्वयं को आत्मा समझ एक बाि िरमप्रिता सशव को याद करना

243 मनिा मन की शजक्त से/मनसा सेवा

244 मनोनुकूल इच्छानुसार


245 मन्मर् ्/मनमर् ् स्वयं के तकथ/प्रववेक बुद्चध िर आधाररत प्रवचार

246 ममत्त्व रखना मोहमाया/अिनेिन के भाव में रहना

247 मर्ाबा िद/िोिीशन

248 मलेच्छ िािी/भ्रष्िाचारी

249 महर्त्‍
व‍ वह स्‍र्ाि जहां आत्‍मा व परमात्‍मा का निवास है /ब्रह्मलोक

250 माटे ले िो माुँ को िसन्द हो/सगा, िो सौतेला न हो

251 मामेकम ् ससफथ मुझ एक बाि िरमप्रिता िरमात्मा सशव को याद करो

5 प्रवकार (काम, क्रोध, मोह, लोभ और अहं कार) बाबा के ज्ञान से िरे इसका अर्थ
252 माया
धन सम्िप्रत्त के अर्थ में रूढ़ र्ा।

253 माया काम, क्रोध, मोह, लोभ, अहं कार रूिी िांच प्रवकार/भजक्त मागथ में धन-संिप्रत्त

254 मायाजीर् जगर्जीर् माया िर प्रविय िाने वाले को िगत की बादशाही समलेगी

255 माशूक िरमात्मा प्रियतम

256 माशूक वह जिसके सार् िेम ककया िाय, प्रियतम, िरमात्मा

257 मािी का घर िहां आसानी से आया िाया िा सके

258 मास्टर ज्ञान िूया ज्ञान-सूयथ (सशव बाबा) का सशष्य/ बेिा/स्वरूि

259 समडगेट‍ छोिा बच्चा, ज्ञान में कम समय से हो, उसे समडगेि कहते है ।

260 समि न करना कभी न छोड़ना

261 समिाल‍ िमि


ू ा, उदाहरण, तल
ु िा

262 समिाल-राज्य राज्य का नमूना/उदाहरण

263 मुंझना समझ में न आना

264 मुआकफक ठीक ठीक, न ज्यादा न कम, मनोनक


ु ू ल, इच्छानस
ु ार

265 मुस्क्र्दार्ा सवथदःु खों से मुजक्त/आिादी टदलानेवाले, सशव बाबा

266 मख
ु वंशावली ब्रह्मा मुख से िन्म (अलौककक)

267 मुजीब स्वीकार करने वाला, िवाब दे ने वाला।

268 मुरब्बी बच्चा आज्ञाकारी/िसंदीदा/समान

269 मुरादी मत्ृ यु, िोतामेल, असभलार्षी

270 मुरीद जो ककसी का अिुकरण करता या उसके आज्ञािुसार चलता हो/ अिुगामी/अिुयायी/भशष्‍

271 मुलम्मे कमतर/तनम्न बतथन की गन्दगी करने से संबंचधत


272 मूलवर्न िरमधाम/सवथ आत्माओं का मूल घर/आत्मा-िरमात्मा का तनवास स्र्ान

273 मूिल समसाइल्स/अणब


ु म/िक्षेिकास्त्र िैसे अन्य प्रवध्वंशकारी अस्त्र-शस्त्र

274 मूिलाधार लगातार/बबना रूके (संकर शब्द)

िो टदखाई तो दे ता हो िर वास्तव में होता ही नहीं (कभी कभी मैदानों में भी कड़ी

275 मग
ृ र्ष्ृ र्ा/मरीधचका धि
ू िड़ने के समय िल या िल की लहरों की समथ्या ितीतत होती है जिसे मग
ृ िल

समझकर तष्ृ णा बझ
ु ाने के सलये भिकता है )

276 मेहर करना मेहरबानी, कृिा, अनग्र


ु ह, दया

277 मैं पन दे ह असभमान

278 मोचरखाना मार/सिाये खाना

279 मोचरा सजायें

280 मोहर्ाज मोह के तािधारी/माया के वशीभत


281 मौलाना मस्र्ी भगवान की याद में मस्त

282 म्लेच्छ बद्


ु धध प्रवकारी बुद्चध

जिन्होंने खद
ु के कुल का प्रवनाश स्वयं (ब म्ब, समसाईल) बनाकर करगें । युरोि

आटद िजश्चम दे श प्रवज्ञान की शजक्त द्वारा िरमाणु अस्त्र शस्त्रों द्वारा अिने ही

मानव कुल का प्रवनाश करे गें। प्रवशेर्ष मुरली से - शास्त्रों में टदखाते हैं– लड़ाई
283 यादव
में यादव कौरव मारे गये। िाण्डव 5 र्े। कफर टहमालय िर िाकर गल मरे ।

अर्ाथत 5% आत्माएुँ तिस्या द्वारा शरीर के भान को समातत कर स्वगथ

अर्ाथत सतयुग में िाने की अचधकारी बनती हैं।

284 युग सजृ ष्िचक्र का एक चतुर्ांश/1250 वर्षथ

285 युगल िोड़ा/दम्िप्रत्त/ितत-ित्नी में से कोई एक भी

रािससक/उिरोक्त दो युगों से कम गुण प्रवशेर्षकर द्वािर से िहां ईष्याथ-द्वेर्ष रूिी


286 रजोगुर्
रि/धल
ू िारम्भ होती हैं।

287 रडडया मारना चीखना-चचल्लाना

एक िगह िमकर न रहनेवाला। घूमता कफरता। िैसे-रमता िोगी, बहता िानी,


288 रमर्ा जोगी
इनका कहीं टठकाना नहीं।

289 रि िाजतत का सार/मिा/आनन्द

290 रिम, रस्म िरम्िरा, ररवाि


291 रिार्ल बुराई की अतत

िरमात्मा को याद करने की सवोच्च सहि प्रवचध, जिसमें आंखें खोलकर अिने को
292 राजयोग
आत्मा समझकर िरमात्मा के ज्योतत स्वरूि का ध्यान ककया िाता है ।

293 राजाई बादशाही, (प्रवशेर्षकर सतयग


ु व त्रेतायग
ु में राज्य िातत करने के सन्दभथ में )

294 रायल घराना रािाई घराना/सतयुगी दे वी दे वता िररवार

श्रीमत का उल्लंघन कर ज्ञान योग की िढ़ाई में फेल होने वाले िसकी विह से
295 राहु की दशा
माया का वार होता रहता है जिसकी विह से हमेशा दख
ु ी रहते।

296 ररंचक मात्र बहुत र्ोड़ा

297 रूर-ज्ञान यज्ञ सशवबाबा ने स्वयं ज्ञान दे कर जिस यज्ञ की स्र्ािना की हो

298 रूरमाला सशव की माला जिसमें 08,108,16108 की माला सजम्मसलत है


रूप‍बिंर्‍कहानी‍ जब तुम बच्‍चे सतयुग में राजा बि जाओगे, तब तुम पुरािी याददाश्‍त जो अभी
299 ईश्‍वरीय ज्ञाि के रूप में है वह भूल जाओगे लेककि तुम्‍हारे दै वी गुण संस्‍कारो में
का‍ममा इमजथ रहें गे।

300 रूस्‍
र्म शूरवीर, माया से प्रविय िा रहे बच्चों को बाबा यह उिाचध/िाइटिल दे ता है ।

301 रूहररहान आत्मा की आत्मा से/आत्मा की िरमात्मा के सार् बातचीत

302 रूहातनयर् आजत्मक जस्र्तत/स्वभाव में जस्र्र रहना

303 रूहानी लीला आत्माओं की लीला


े़
304 रे जगारी छोिे ससक्के

नरक की अतत/िुराणों में एक भीर्षण नरक का नाम िो २१ नरकों में से िाुँचवाुँ


305 रौरव नरक
कहा गया है ।

306 लकब उपाधध/ खखताब/ पदवी

307 लडाई वालों का कोई सैतनक का उदाहरण

308 लवलीन तयार में मस्त

309 लेप-छे प कमों का खाता

310 लोन लेकर ककराये िर

311 लौककक दतु नयावी/सांसाररक ररश्ते/सम्बन्ध

312 वरिी ककसी के मरिे के बाद हर वषथ पड़िे वाली नतधर्/ मत


ृ का वावषथक श्राद्ध
सशवबाबा से समलने वाले ज्ञानयोग के बल से सतयुग में िातत होने वाली रािाई

313 विाा अर्ाथत ् राज्याचधकार/िरमात्मा/बड़ो से सम्िप्रत्त का स्वतः बच्चों/ छोिों को

समलना

शास्त्रों में गह
ृ स्र् अवस्र्ा के बाद की अवस्र्ा जिसमें ितत ित्नी घर की

सम्िूणथ जिम्मेदारी िुत्रों को दे कर वन में सार् सार् चले िाते हैं। वहां िप्रवत्र

314 वानप्रस्‍
थ‍अवस्‍
था रह कर तिस्या करते हैं। सशव बाबा ब्रह्मा तन का आधार वानिस्र् अवस्र्ा

में लेते हैं- बाबा के ज्ञान में आने वाला व िप्रवत्रता की धारणा करने से चाहे

ककसी भी उम्र का हो उसकी वानिस्र् अवस्र्ा शरू


ु हो िाती है ।

315 वाममागा िब से दे वताओं ने प्रवकमथ करना शरू


ु ककया तब से वाममागथ शरू
ु हुआ

वह िरु
ु र्ष िो ककसी के मरने के िीछे उसकी संिप्रत्त आटद का स्वामी और उसके ऋण

316 वाररि आटद का दे नदार हो, उत्तराचधकारी िैसे बेिा अिने प्रिता की संिप्रत्त का वाररस होता

है ।

317 ववकमा जिस कमथ से भप्रवष्य में दःु ख का खाता बढें

318 ववकमााजीर् काम, क्रोध आटद प्रवकमों से दरू /शून्य

319 ववचार िागर मंथन अच्छी रीतत सोचना समझना

320 ववचार िागर मंथन ज्ञान का गहराई से मनन -चचन्तन करना, ज्ञान के सारतत्त्व का मर्कर िता लगाना

321 ववदे ही बबिा दे ह के शरीर से बबल्कुल अलग, शरीर से न्‍यारा

322 ववदे ही बाप अशरीरी बाि/सशव िरमात्मा

323 विनाश काले प्रीतबुद्धि पांडव

ववनाश काले ववपरीर्


324 अन्त समय दब
ु द्
ुथ चध का आना/ अन्त समय भगवान को भूलना/कौरव
बुद्धध
325 ववष्र्ुपुरी प्रवष्णु का तनवास स्र्ान (सूक्ष्मलोक)

भशवबाबा, सजृ ष्‍


ट रूपी कल्‍पवक्ष
ृ का बीज (मल
ू ) परमात्‍मा होिे के कारण उसे वक्ष
ृ पनत
326 वक्ष
ृ पतर्‍ कहा जाता है

327 वैजयन्र्ी िताका, झण्डा, प्रवियमाला, ज्ञान में अष्िरत्न आत्माओं की माला।
एक िससद्ध िौराणणक नदी िो यम के द्वार िर मानी िाती है । यह नदी

बहुत तेि बहती है , इसका िल बहूत ही गरम और बदबूदार है और उसमें

ह्डडय ,ं लहु और बाल आटद भरे हुए है । यह भी माना िाना है कक िाणी


328 वैर्रर्ी‍नदी
को मरने िर िहले यह नदी िार करनी िड़ती, जिसमें उसे बहुत कष्ि होता

है । िरं तु यटद उसने अिनी िीप्रवतावस्र्ा में गोदान ककया हो, तो वह

आसानी से इस नदी के िार उतर िाता है ।

जब मि संसार के आकषथणों से हट जाता है । संसार की ववषयवासिा तुच्‍छ प्रतीत


329 वैराग्‍य होती है और लोग संसार की झंझटे छोड़कर एकान्‍त में रहते और ईश्‍वर का भजि
करते हैं।

330 व्यक्र् ब्राह्मर् शरीरधारी ब्रह्मा और ब्राह्मण

331 व्यथा िो फायदे मंद नहीं हो/अनावश्यक

332 शंख ध्वतन ज्ञान सुनाना

333 शस्क्र् फस्टा माताओं को आगे रखना

334 शफा पाना फायदा/भला होना

335 शमा अजग्न/सशव बाबा को शमा कहा है और हम आत्माएं 'शमा' िर कफदा 'िरवाने'

336 शांतर्धाम आत्मा-िरमात्मा का तनवास स्र्ान

337 शास्न्र् का घमंड शाजन्त/साइलेन्स की शजक्त

338 शास्त्रमर् वेद, िरु ाण, उितनर्षद आटद शास्त्रों िर आधाररत मत

339 सशरोमखर् सवथश्रेष्ठ/मुख्य/चोिी

सवथश्रेष्ठ, भक्तों में नारद और मीरा को भक्तसशरोमणण व ज्ञान में सरस्वती को


340 सशरोमखर्
सशरोमणण कहा गया है ।

341 सशवपरु ी सशव िरमात्मा का तनवास स्र्ान (िरमधाम में सबसे ऊिर)

342 सशवोहम ् मै ही सशव हूं

343 शरू
ु ड तीक्ष्ण बद्
ु चध/िखर

344 शूबीरि स्वगथ का एक िेय/अमत


345 शैल‍ मािा सारांश.... यािी शाटथ /सार रूप

346 शो करना िदशथन करना/ नाम बढ़ाना


टदखावा/नाम मान शान के िीछे चलना/िससद्चध के सलए ियासरत (संकर/समचश्रत
347 शो करना/बाजी शब्द)

348 श्रीमर् सशव िरमात्मा के द्वारा उच्चाररत मत/प्रवचार

349 िंकल्प प्रवचार, ककसी प्रवर्षय में प्रवचारिूवक


थ ककया हुआ दृढ़ तनश्चय (ररज़ोल्यूशन), कायथ

350 िचखण्ड सतयुग

351 िचखण्ड स्वगथ/सतयग



अच्छे गुणधारी, प्रवशेर्ष रूि से सतयुग कफर 14 कला सम्िन्न त्रेतायुग तक की यह
352 िर्ोगुर्
जस्र्तत।

353 ित्कमा वह िरु


ु र्षार्ी कमथ िो भप्रवष्य/आगे के सलये सरु क्षक्षत हो

िो अप्रवनाशी, चचरं तन और शाश्वत है वही सत्य है । सुंदरता का तात्ियथ ककसी

दै टहक या िाकृततक सौंदयथ से नहीं है । वह तो क्षणभंगरु है । संद


ु रता वास्तव में िप्रवत्र

मन, कल्याणकारी आचार और सुखमय व्यवहार है । इस सुंदरता का चचरं तन स्रोत


354 ित्यं सशवम ् िुन्दरम ्
सशव ही है । सशव शब्द का अर्थ है कल्याणकारी। िो कल्याणकारी है , वही सुंदर है

और िो सुंदर है वही सत्य है । इस िकार सत्यम ्, सशवम ्, सुंदरम ्, िैसे मंत्र का बीि

सशव ही है अर्ाथत इस सजृ ष्ि की कल्याणकारी शजक्त।

355 िदृश समान

356 िब स्टे शन शाजन्त िातत कर आगे भेिने वाला

357 िब्‍
ज ताजे हरे भरे फल फूल

358 िमजानी समझाना, राय दे ना, समझदारी/समझ

359 िमथा फायदे मंद/सम्िन्न

360 िमथी सम्िन्नता

361 िम्पूर्ा ब्रम्हा सूक्ष्म शरीरधारी वतनवासी ब्रह्मा/साकार में कमाथतीत ब्रह्मा

362 िम्पूर्ा िरस्वर्ी सूक्ष्म शरीरधारी/वतनवासी सरस्वती

363 िवोदय लीडर सब िर दया करने वाला

364 िाकारपुरी मनुष्यलोक (जिसमें सभी ग्रह-नक्षत्र और िीवधारी, िड़-चेतन आते हैं)

365 िाकारी िो अलंकारी दे वता (शरीर में रहते सवथगुण धारी)


गवाह, दृष्िा, दे खनेवाला, आत्मा की बुद्चध रूिी आुँख से मन के प्रवचार या ककसी

घिना को दे खनेवाला, मन के प्रवचारों के दृष्िा को साक्षी कहते है । िब हम

तनप्रवथचारक बन अिने प्रवचार को दे खते हैं तब हम साक्षी होते हैं, िब हम ससफथ

प्रवचार करते है तब हम मन या प्रवचारक होते है । शब्द रटहत आत्म बोध, मैं हूुँ, के

बोध को साक्षी कहते हैं। (a) उदाहरण के सलए िब आि एक फूल अर्वा

366 िाक्षी होना ककसी दृश्य को तनप्रवथचार होकर दे खते है तब आि साक्षी है । (b) अर्वा िब

आि ककसी फूल या दृश्य को दे खते है तब आिके अंदर उस फूल के बारे में

मन में िततकक्रया उठती है की यह गुलाब

(c) का फूल है , तब आि उस िततकक्रया, प्रवचार को भी दे खे तो यह हुआ

साक्षी।

आत्माएं/िल के बहाव से नदी-समद्र


ु में सबसे चचकना सन्
ु दर ित्र्र िो टहन्द ू धमथ
367 िासलग्राम
में िूज्य

368 िासलग्राम सशव सलंग के सार् िो छोिे छोिे सशवसलंग आकर के ित्र्र होते हैं। िो हम ब्राह्मण

369 सिजरा फूलों का गुलदस्ता

370 सिर्म अिर्थ/ आफत/जल्‍म/अत्‍याचार

371 सिरर्ाज बाबा के ससर के ताि/आज्ञाकारी

372 िीरर् स्‍वभाव, आदत

373 िुखधाम स्वगथ/सतयुग

374 िुबह का िाई िो सुबह समलता हो अर्ाथत ् ईश्वर/सशव बाबा

बहुत छोिा, ितला या बारीक,िो अिनी बारीकी के कारण सबके ध्यान या समझ में
375 िूक्ष्म
िल्दी न आ सके।

स्र्ल
ू या साकारी लोक और मल
ू वतन या िरमधाम के बीच का वह स्र्ान िहाुँ
376 िूक्ष्म-वर्न/लोक
ब्रह्मा, प्रवष्णु, महे श के सार् फररश्तों की दतु नया है ।

377 िूयव
ा ंशी सतयुगी दे वी दे वता

378 िोमरि दे वताओं का अमत


379 िौगार् वह वस्तु िो इष्ि िनों को दे ने के सलये लाई िाय, भें ि, उिहार, तोहफा।

बड़े आकार का, िो सूक्ष्म न हो अर्ाथत ् िो ज्ञानेजन्द्रयों द्वारा स्िष्ि टदखाई या


380 स्थल

समझ में आने योग्य

381 स्वधचन्र्न स्वयं का आध्याजत्मक मनन- चचन्तन/आत्मा की समझ


अिने सारे चक्र के 84 िन्म के िािथ को िानने/दे खने वाले कैसे एक दे ह छोड़ दस
ू रा

दे ह लेते हैं। कभी स्त्री का तो कभी िुरुर्ष का.... कभी उत्तर में तो कभी दक्षक्षण में ....
382 स्वदशान चक्र
अिने 84 िन्मों की माला को दे खें.... हम सब इस चक्र के अंदर हीरो िािथ

बिाने वाली प्रवशेर्ष आत्मायें हैं। स्वदशथन चक्रधारी अर्ाथत मास्िर नोलेिफूल।

383 स्वदशान चक्रधारी स्वयं को आत्मा समझते हुए सजृ ष्ि चक्र और 84 िन्मों को स्मतृ त/याद में रहना

384 स्‍
वमान‍ स्वयं ही स्वयं को सम्मान दे ना

हठ करके योग लगा जिसमें शरीर को साधने के सलये बड़ी कटठन कटठन मुद्राओं

और आसनों आटद का प्रवधान है । प्रवशेर्ष—नेती, धौती आटद कक्रयाएुँ इसी योग के


385 हठयोग
अंतगथत हैं।शरीर के भीतर कंु डसलनी, अनेक िकार के चक्र तर्ा मणणिूर आटद स्र्ान

माने गए हैं। मत्स्येंद्रनार् और गोरखनार् इस योग के मुख्य आचायथ हो गए है ।

386 हथेली पर बदहश्र् हर्ेली िर/हार् में स्वगथ की बादशाही

387 हद का पेपर स्वयं या ब्राह्मण िररवार द्वारा िेिर

388 हद का बाप लौककक प्रिता

389 हप कोई वस्तु मुँह


ु में चि से लेकर होंठ बंद करना िैसे—हि से खा गया। मुहावरा—हि

भजक्त मागथ में आत्मा सो िरमात्मा, िरमात्मा सो आत्मा। िर ज्ञान मागथ में सशव

390 हम िो, िो हम बाबा ने समझाया यह अर्थ बबल्कुल गलत है । हम सो का सही अर्थ है हम दे वता,

क्षबत्रय, वैश्य सो शूद्र। अभी हम सो ब्राह्मण बने हैं सो कफर से दे वता बनने के सलये।

391 हमस्जन्ि बन्ध,ु समत्र

392 हास्ज़र संमुख, उिजस्र्त, सामने आया हुआ, मौिूद, प्रवद्यमान।


बहुत बड़े लोगों के ितत संबोधन का शब्द, मुरली में सशव िरमात्मा के सलये
393 हुजूर, हजूर
सम्बोधन

394 हुज्जर् व्यर्थ का तकथ, फिूल की दलील, तकरार, कहासुनी।

395 हुण्‍
डी‍ इसके द्वार लेिदे ि का व्‍यवहार

396 होवनहार सम्भाप्रवत/भप्रवष्य में होने वाला

397
398
मुरली में आने वाले मुहावरों और कहावर्ों का अथा व्याख्या िदहर्*
क्रम‍िं. मह
ु ावरे /कहावर् अथा‍
1 अक्षर दे ना ज्ञान दे ना/वचन दे ना

2 अतर् खन
ू े नाहक क्रूरता करना

जिसकी दस
ू री िंजक्त है अन्त काल िो सशवबाबा को सम
ु रे

नारायण िंू वल वल अवतरे । तात्ियथ है कक ससवाय भगवान


अन्‍र्‍काल‍जो‍स्‍त्री‍िुसमरे , वल‍
3 के याद ककया तो हमेशा मनष्ु य िन्म में ही अवतररत होना
वल‍मनष्ु ‍य‍जन्‍म‍में ‍अवर्रे ।
िड़ेगा। यटद संगमयग
ु के अन्त में सशवबाबा की याद आती

रही तो दै वी घराने में िायेंगे।

अन्त समय के संकल्िों (अवचेतन मन चल रहा होगा) के


4 अन्र्मतर् िो गतर्
अनुसार अगला िन्म

5 अपनी घोट र्ो नशा चढे अिनी बुद्चध से मनन-चचन्तन जितना करें गे, उतना नशा चढ़े गा।

6 आंटे में लून ज़रा सा/बहुत आिें में र्ोड़ा सा नमक

7 आप मुएं मर गई दतु नया दतु नया से ककनारा करने से ककसी की याद नहीं आयेगी
इच्छा के बारे मे संम्िुणथ - अज्ञान इच्छाए मग
ृ तष्ृ णा के समान है

जिसके प्रिछे भागने से और ही दरू चलती चली िाती है और हमें

असंतुष्ि करते रहती है । इस संबध में बाबा हमें बहुत अच्छी

8 इच्छा मात्रम अववद्या युजक्त बताते है कक िब हमें इच्छाओं के बारे में कुछ ज्ञान ही नहीं

रहता तब मन कक ऊंची जस्र्तत द्वारा हमारी हर मनोकामना

स्वतःिूणथ हो िाती है । यह युजक्त है सदा संतुष्ि और ततृ त रहने

कक।
लौककक व्यवहार में रहते हुए बद्
ु चध में िरमात्मा के ससवा कोई
9 एक बाप दि
ू रा न कोई
दस
ू रा न याद आये।
चोरी चोरी है , चाहे राई (िैस)े की हो चाहे िवथत समान लाखों की
10 कख का चोर िो लख का चोर
हो।

11 कट तनकालना कमी-कमिोरी तनकालना

खस्ग्गयां मारना/कन्धे
12 आनंद और खश
ु ी में मानो भांगड़ा नत्ृ य करना
उछालना

13 गले का हार बनना अत्यंत प्रिय होना/शोभा बढ़ाना

भजक्त मागथ में समट्टि के िुतले बना कर मूततथयों की िूिा


14 गडु डयों की पज
ू ा
करना।

15 गल
ु गल
ु बनना फूल िैसा सुन्दर बनना

घट में ही ब्रह्मा, घट में ही एक सेकण्ड में सशव बाबा ब्रह्मा बाबा के तन में आकर ज्ञान दे ते
16
ववष्र्ु, घट में ही नौ लख र्ारे और ब्रह्मा से प्रवष्णु और नौ लाख ििा तैयार हो िाती।

17 घमािान होना लड़ाई/अफरातफरी का माहौल

आिकी सद्गगतत के सार्-सार् सवथ आत्माओं को गतत अर्ाथत ्


चढर्ी कला र्ेरे भाने िबका
18 मुजक्त समल िाती है । आिकी चढती कला मे सवथ का भला होता
भला
है ।

19 चढे र्ो चाखे बैकंु ठ रि िरू


ु र्षार्थ से स्वगथ की बादशाही समलना
ज्ञान मागथ मे कदम कदम िर संभाल कर चलना िड़ता है । हर

कदम िर राय लेनी िड़ती है । िो ज्ञान मागथ की सीढ़ी िर तनरं तर


चढे र्ो चाखे वैकंु ठ रि, धगरे
20 आगे चढ़ते रहते है वे वैकंु ठ रस चखने के अचधकारी बनते है
र्ो चकना चरू
लेककन अगर माया के वश होकर नीचे चगर िाते है तो अधोगती

को िातत करते है ।
धचंर्ा र्ाकी कीस्जए जो ककसी भी बात की चचंता नहीं करनी चाटहए, क्योंकक िो होना है
21
अनहोनी होय वही हो रहा।

22 चल
ु पे िो ददल पे िो सार् रहे हैं, वही टदल िर रहते हैं।
23 छी-छी दतु नया नकथ/िुरानी कसलयुगी दतु नया

24 स्जन िोया तर्न खोया िो अमत


ृ वेले सो िाते हैं, वे सवथ िाजततयों को खो दे ते हैं।

िो अिने आि आकर सेवा की जिम्मेदारी उठाता है , वही अिन


ुथ
25 जो ओटे िो अजन
ुा
(नम्बरवार) में आता है ।

झूठी माया झूठी काया झूठा


26 सत्य एक िरमात्मा और बाकी सब कुछ झूठ
िब िंिार
समझदार केवल इशारे से समझ िाता है िबकक मख
ू थ चाबक
ु /दण्ड
27 टट्टू को टारा काजी को इशारा
से ही समझता है ।

28 ठौर न पाना टठकाना/सहारा न समलना

29 डडब्बी में ठीकरी डडब्बा खोला तो समट्िी समली

माया वाला अलबेलािन में आकर भाग्य (ज्ञानयोग) कम


30 र्कदीर को लकीर लगाना
बिोरना/समलना
यह लोक कर्ा िर आधाररत है , वामन की कर्ा है कक

रािा बसल से तीन िैर के बदले प्रवष्णु ने िूरी िथ्


ृ वी ले ली

31 र्ीन‍पैर‍पथ्
ृ ‍वी र्ी। िर बाबा कहते है कक तुम श्रीमत िर चलकर के तीन

िैर अर्ाथत र्ोड़ा सा नहीं बजल्क सतयुग में चलकर सम्िूणथ

राज्यभाग िाओगे।

32 र्ीन‍पैर पथ्
ृ वी के र्ोड़ी सी िगह

दान दे ने का संकल्ि आते ही दान कर दे ना, क्योंकक इसमें


33 र्रु न्र् दान महाकल्यान
महािुण्य का फल समाया हुआ है ।

34 ददवा जलाना याद करना

धन्ने सब में धरू , बबगर धन्धे सब धन्धे में वही धन्धा सवथश्रेष्ठ है िो नर से नारायण बना दे ।
35
नर से नारायण बनने के बाकी ककसी धन्धे से अप्रवनाशी धन की िाजतत हो नहीं सकती।

36 नशा चढना खश
ु होना

37 पान का बीडा उठाना जिम्मेदारी उठाना, टहम्मत करना


38 पायी-पैिे की र्कदीर भाग्य में ससफथ र्ोड़ा सलखा हो

इन्द्रलोक में एक बार एक िरी मत्ृ यल


ु ोक से िततत मनष्ु य

को ले गयी, तो उसे सिा के तौर िर नीचे मत्ृ यल


ु ोक कुछ

समय रहने के सलये भेि टदया गया। उसी िकार िब तक


पख
ु राज‍परी‍कहानी‍का‍
39 कोई मनष्ु य ज्ञान सन
ु कर िप्रवत्रता को धारण न कर लें तब
ममा
तक उसे इन्द्रिस्र् रूिी मधब
ु न भूसम में बाबा से समलने के

सलये नहीं आमंबत्रत करना चाटहए अन्यर्ा तनसमत्त आत्मा

को नीचे उतरना अर्ाथत टहसाब-ककताब बनता है ।

40 बच्चू बादशाह पीरू‍वजीर काम प्रवकार अगर प्रवकारों का रािा है , तो क्रोध उसका विीर है ।

41 बम-बम भोले भर दे झोली हे ! िरमात्मा हमारी बुद्चध रूिी झोली ज्ञान रत्नों से भर दो।

42 बद्
ु धध का र्ाला खोलना याद टदलाना/ज्ञान का तीसरा नेत्र खल
ु ना।

43 बुद्धध योग र्ोडना िरमात्म याद से प्रवमख


ु होना

44 बेडा‍डूबना प्रवर्षय-प्रवकार रूिी सागर में डूबना।


दास दासी नौकर-चाकर बन कर सेवा करना...... इस समय

जिन्हें शास्त्रों का ज्ञान है िो अिने आिको शास्त्रों का

45 भरी‍ढोना ज्ञाता मानकर बहुत बुद्चधवान समझते हैं बाद में ज्ञान में

आयेंगे तो तनश्चय बुद्चध ऊंच िद िाने वाली आत्माओं की

सेवा करें गे।

मनुष्य िे दे वर्ा ककये, करर्


46 भगवान को मनुष्य से दे वता बनाने में ततनक भी दे र नहीं लगती।
न लागी बार।(कबीर)

47 माया-मच्छन्दर का खेल लक
ु ा-तछिी िैसा एक खेल िो माया भी खेलती/करती है ।

48 समट्टी खाना व्यर्थ की बात करना

49 समठरा घरु र् घरु ाय मीठा बनो तो सब आिसे मीठा व्यवहार करें गे।
हातमताई की कहानी में मह
ु लरा का ियोग ककया गया है । उसमें

मह
ु लरा मख
ु में डालते र्े तो माया गम
ु हो िाती र्ी। मह
ु लरा

तनकालने से माया आ िाती र्ी। तो सशव बाबा का ज्ञान और


50 मुख में मुहलरा डाल दे ना
योग मह
ु लेरा के समान है । िब कोई िररजस्र्तत या संकि

आता है तो बाबा कक याद और ज्ञान ही हमें माया से बचा

सकता है ।

51 मुख-पानी होना मुंह में िानी आना/िसंद आना

प्रवकारों से मसलन मन रुिी किड़ों को िरमात्मा के याद रुिी


52 मूर्-पलीर्ी कप्पड धोये
साबुन से ही धोया िा सकता है ।

53 लंगर उठाना मोह त्यागना

िौराणणक मान्यता के अनुसार इसका िल बहुत ही गरम और

बदबूदार है और उसमें हड्डयाुँ, लहू तर्ा बाल आटद भरे हुए हैं।

यह भी माना िाता है कक िाणी को मरने के बाद िहले यह नदी

िार करनी िड़ती है , जिसमें उसे बहुत कष्ि होता है । िरं तु यटद

54 ववषय वैर्रर्ी नदी पार करना उसने अिनी िीप्रवतावस्र्ा में गोदान ककया हो, तो वह उसी गौ

की सहायता से सहि में इस नदी के िार उतर िाता है । िाप्रियों

को यह नदी िार करने में बहुत कष्ि होता है । मरु ली‍में ‍‍इिका‍

रहस्य‍यही‍है ‍कक‍बच्चों‍िंगम‍यग
ु ‍में ‍परु
ु षाथा‍करके‍ही‍

र्ुम‍अन्र्‍िमय‍की‍िजाओं‍िे‍बच‍िकर्े‍हो।

शेरनी का दध
ू िोने के बर्ान बाबा का श्रेष्ठ ज्ञान स्वच्छ मन वचन बुद्चध में ही धारण हो
55
में ही ठहरर्ा है । सकता है ।

56 िच र्ो त्रबठो नच िहां सच्चाई है , वहां मन खसु शयों से नाचता रहता है ।

सोने िैसे आकप्रर्षथत होने का सबसे कीमती होने का गुण धारण


57 िच्चा िोना बनना
करना

58 िच्चे ददल पर िाहब राजी भगवान सच्चे हृदय वालों िर न्यौछावर होते हैं।

59 िब्‍
ज‍बाग‍ददखलाना अपिा काम निकालिे या फंसािे के भलये बड़ी बड़ी आशाएं हदलािा
60 िर का मोर होना सवथश्रेष्ठ होना/हृदय में बसना

61 िरिों के माकफक सरसों के दाने िैसा/अनेकानेक

िांप भी न मरे और लाठी भी अिने कायथ में सफलता भी हाससल हो िाती और ककसी को दःु ख
62
न टूटे भी न समले, ऐसी यजु क्त से हर कमथ करना चाटहए।

िुनंतर्-पशंतर्-औरों को अच्छी अच्छी आत्मायें बाबा का ज्ञाि सि


ु ती हैं ओरों को सि
ु ाती है
63
िुनावंर्ी-भागंर्ी और अंत में माया से हार कर ज्ञाि से चली जाती हैं।

हार्ों से काम करते रहो, टदल से सशव बाबा को याद करते रहो
64 हथ कार डे ददल यार डे
अर्ाथत ् कमथयोगी बन िाओ।

65 हाथ कर दे ददल यार दे हार् से कमथ करते हुए मनमें एक बाि की याद रहना

िो बच्चे टहम्मत रख आगे बढ़ते हैं, उन्हें बाि की मदद िरूर


66 दहम्मर्े बच्चे मददे बाप
समलती है ।

िो कुछ भी होता है , भगवान की आज्ञा समझकर उसे मानकर


67 हुक्मी हुक्म चला रहा
चलना है ।
टहंदी मुरली में आये अंग्रेिी शब्दों के अर्थ

क्रम सं. अंग्रेजी शब्‍


द अर्थ

1 अंडरलाइन िक्का करना

2 अटें शन सावधानी

3 अट्रै क्शन आकर्षथण

4 अडॉप्टे ड गोद लेना

5 अथॉररटी शजक्त/िभाव शाली

6 अथॉररटी के बोल शजक्तशाली बोल

7 अबाउट प्रवर्षय में /बारे में , सार में , मोिे तौर िर

8 अथा क्वेक Earth Quake भूकम्ि

9 अथाक्वेक भूकंि

10 अल्लफ़ एक िरमात्मा

11 आयरन एज्ड कसलयुगी

12 आयरन ऐज कसलयुग

13 इन्कॉरपोरल तनराकार

14 इन्वटा र‍बद्
ु धध‍ अन्तमथन में झांकती बद्
ु चध

15 इन्वेंशन आप्रवष्कार

16 इन्वेंशन आप्रवष्कार

17 इन्शुरन्ि कंपनी बीमा कंिनी

18 इमजा िकि होना

19 इम्मोटा ल अप्रवनाशी

20 उलाव‍(Allow) मानना, स्वीकार करना, आज्ञा दे ना

21 एस्क्टववटी कमथ शैली

22 एस्क्टववटी कक्रया-कला

23 एक्यूरेट सिीक, सही


24 एक्यूरेट अचक
ू , यर्ार्थ, शुद्ध

25 एक्िचें ज अदला-बदली

26 एजुकेशन डडपाटा मेंट सशक्षा प्रवभाग

27 एड्वेरटाइज़ प्रवज्ञािन, सुचना, घोर्षणा

28 एम-ऑब्जेक्ट लक्ष्य अर्ाथत श्री लक्ष्मी नारायण का िद िाना

29 एवर प्योर हमेशा तैयार

30 एवर रे डी हमेशा तैयार

31 एवर हे ल्थी एवर वेल्थी तन और धन से सदा सख


ु ी, सदा समद्
ृ ध

32 ऑक्यूपेशन व्यवसाय

33 ऑक्यूपेशन व्यवसाय, कारोबार, धन्धाधोरी

34 ऑटोमेदटकली स्वतः, आिेही, अिने आि

35 ऑनेस्ट सच्चा सत्यिरक

36 ऑलमाइटी अथॉररटी सवथशजक्तमान

37 ओपन स्टे ज सारी दतु नया के सामने

38 ओरफन तनधनके,जिसके माुँ-बाि नहीं

39 ओगंि अंग, उिांग

40 कंप्लेंट, Complaint सशकायत

41 कंबाइंड सार् में , िुड़े

42 कनेक्शन िोड़ना

43 कनेक्शन िड़
ु ाव, योग

44 कन्वटा होना धमथ िररवतथन करना

45 कम्पलीट सम्िूणथ

46 करं ट प्रवद्युत, बबिली का िवाह, वतथमान

47 कल्ट, Cult a िंर्

48 कॉमन आम, एक िैसा


49 कोिा शरुआती ज्ञान

50 क्यू िंजक्त

51 कक्रएटर रचतयता

52 कक्रएशन तनमाथण, सि
ृ न

aईसाई धमथ के िचार करनेवाला अनुयायी िहला नर-


53 कक्रस्स्चयन समशनरी
नारी

54 गाडान ऑफ़ अल्लाह सतयुग, स्वगथ

55 धगफ्ट भें ि

56 गॉड कक्रएटर इि वन रचतयता भगवान ् एक है

57 गॉडइज ओमनी प्रेजेंट भगवान ् सवथव्यािी है

58 गॉडफादर इज‍नॉलेजफूल सवथज्ञ, सवथज्ञानी, सवथज्ञाता भगवान

59 गॉडफादरली समशन भगवान का दत


ू -कमथ

60 गॉडफादरली स्टूडेंट लाइफ ईश्वरीय प्रवद्यार्ी िीवन

61 गॉडली बल
ु बल
ु भगवान का ज्ञान सुनानेवाले

62 गॉडली स्टूडेंट भगवान सशक्षक से िढनेवाले

63 ग्रेड कक्षा, िद

64 चांि अवसर

65 चाटा , Chart दै नजन्दनी, िोतामेल

66 जंक कूड़ा-कचरा, कि, लोहे को बबगाड़ने वाली चीज़

67 जेल बड्ाि कारावास

68 टना लाना िररवतथन करना

69 टाइटल उिाचध, नाम

70 टू लेट सबसे लास्ि के भी िीछे


इच्छा जिससे र्ोड़े समय का सुख समल सकता है , िरन्तु
71 टे म्पटे शन
दीघथकाल में दःु ख दायक,/िलोभन, लोभ
72 टे म्‍पटे शन लालच
73 टे म्पररी र्ोड़े समय के सलए, क्षणणक

74 टॉकी आवाज़ वाली/की (दतु नया

75 टॉकी आवाि वाला चलचचत्र

76 ट्रस्टी साक्षी

न्यायाचधकरण न्यातयक कायथ के सलये गटठत एक


77 दट्रब्यूनल, Tribunal
िकार
वे बच्चेकी
िो ससमतत
एक ओर ज्ञान अमत
ृ िीत हैं तो दस
ू री ओर
78 ट्रे टर
प्रवकारों में िड़कर आसुरी चलन चलकर डडससप्रवथस करते
79 डबल लाइट हल्केिन के सार् रौशनी का ताि

80 डलहे ड बुद्धू

81 डायरे क्टर टदग्दशथक

82 डडग्री डीग्रेड श्रेणी कम होना


रािवंश या वंश-िरम्िरा/ ब्राह्मणों की डडनायस्िी नहीं
83 डडनायस्टी
है । ब्राह्मणों का कुल है , डडनायस्िी तब कहा िाता है ,
84 डडपें ड करना सहारे रहना, भरोसा करना

85 डडििववाि गलत सन्दे श िाना, नकारात्मक िभाव िड़ना

86 डीटी वल्डा िोवररतनटी दे वताई, प्रवश्व की बादशाही

87 डीनायस्टी वंश

88 डेववल शैतान

89 डेववल वल्डा नकथ, कसलयुग

90 थॉट रीडर संकल्ि को िढनेवाला

91 थ्र,ू Through द्वारा

92 नेचरु ल िाकृततक

93 नेचरु ल कमा सामान्य/िाकृततक कमथ

94 नेचरु ल कैलसमटी िाकृततक आिदा

95 नेचरु ल ब्यट
ू ी िाकृततक सौन्दयथ
96 परसमट िरवाना, आज्ञा-ित्र

97 परसमशन अनुमतत

98 पाम्प, (Pomp) बहुत ज़ोर (धम


ू धाम), अततज़ोर, आडंबर।

99 पार्ट भाग, खण्ड, टहस्सानािक के िात्र का खेल का टहस्सा

100 पाटीशन अलग होना

101 पावरफुल शजक्तशाली


100℅ िततशत, जिनको कोई सज़ा के बबना िरमधाम
102 पाि ववद ऑनर
िाना हैं
103 पास्ट-प्रेजेंट-फ्यूचर भूतकाल-वतथमानकाल-भप्रवष्यकाल

104 पॉवरहाउि शजक्त-स्त्रोत

105 पोज़ Pose मुद्रा, प्रवसशष्ि आकृतत धारण करना

106 प्रैस्क्टकल लाइफ व्यवहाररक िीवन

107 प्रॉपटी समजल्कयत

108 प्रॉपटी िायदाद

109 प्रोस्पेररटी सम्िन्नता

110 प्लातनंग कल्िना/उिाय करना

111 फसमसलअररटी, Familiarity सम्बन्ध बढ़ाना, ज्ञान से अलग चचाथ

112 फस्टा क्लाि नेचर क्योर सबसे बटढ़या िाकृततक चचककत्सा

113 फाइन शुद्ध, साफ़

114 फाउं डर स्र्ािक

115 फाउं डेशन िड़

116 फायरफ्लाई िुगनू

117 कफलोिोफी दशथन, तत्वज्ञान

118 फुल्ली, Fully अच्छी तरह

119 फॉमा आकृतत, संस्कार, रीतत, सादृश्य


120 फॉलो‍फ़ादर बाि के नक़्शे कदम िर चलना

121 फोरे नर प्रवदे शी, िरदे सी

122 फोलोवर मतावलंबी, अनुयायी

123 फ्रैक्शन भाग, िुकड़ा

124 फ्लड बाढ़

125 फ्लाइंग स्क्वाड उड़न दस्ता

126 फ्लोलेि टीचर तनदोर्ष, त्रटु िरटहत सशक्षक

127 बथा प्लेि िन्म स्र्ान

128 बथा राईट िन्मससद्ध अचधकार

129 बांधेसलयाँ, Bandheliyan बंधनयुक्त आत्माए

130 बायोग्राफी आत्मकर्ा

131 बायोस्कोप, Bioscope िी.वी./कफल्म

132 बैररस्टर Barristor वकील

133 बॉडी कांसशअिनेि दे ह असभमान

134 ब्रदरहुड प्रवश्व भ्रातभ


ृ ाव, सावथभौम सटहष्णुता

135 ब्राइडग्रूम, Bride Groom दल्


ू हा

136 ब्राइड्ि दल्


ु हन

137 स्ब्लिफुल िरम सुख/मोक्ष दाता

138 भागंर्ी सबकुछ सुन के कफर ज्ञान छोड़नेवाले

139 मूवी बबना आवाि वाला चलचचत्र

140 मेमोरें डम स्मरणलेख

141 मेयर महािासलकाध्यक्ष

142 मैनिा चाल-चलन

143 मैनिा सभ्यता, अच्छी आदतें

144 मैिेंजर दत
ू , सन्दे श ले िानेवाला/लानेवाला

145 मोटा ल प्रवनाशी

146 मोस्ट त्रबलवेड गॉड फ़ादर सबसे/सबका तयारा सशवबाबा


147 मोस्ट त्रबलेवेड बाप सबसे तयारा बाि

148 यूतनविा प्रवश्व/ब्रह्मांड/सम्िूणथ िगत

149 राईट डायरे क्शन सही टदशा

150 राईट है ण्ड आज्ञाकारी, िसंदीदा

151 राईट-रॉगं सही-गलत

152 ररटना वािसी सेवा

153 ररफ्यूजी प्रवस्र्ाप्रित

154 ररयलाईज बात को िहचानना/समझना

समझ कर धारण करना, स्व यानी मैं आत्मा हूं सशव

155 ररयलाईजेशन कोिा प्रिता िरमात्मा की संतान हूं इसको िानना अर्ाथत

अनुभव करना अर्ाथत अिनी असली िहचान समलना।

156 ररयलाईज़ेशन कोिा ज्ञान की धारणा/अनुभूतत की िढ़ाई

157 ररसलजन धमथ, मज़हब

158 ररसलजन धमथ

159 ररलीस्जयि माइंडड


े आजस्तक, आस्र्ावान, धरमाऊ
अव्यक्त मुरली की कफर से िढ़ाई (हर इतवार को िो िढ़ी
160
ररवाइज्ड कोिा िाती)

161 ररहिाल िूवथ ियोग

162 रीफाइन शुद्ध करना, साफ़ करना

163 रूहानी यूतनवसिाटी आत्मा की क लेि

164 रूहानी िोशल वकार समाि सेवक आत्माओं का (भगवान)

165 रे ि Race दौड़, स्िधाथ

166 रे स्पोंसिबल जिम्मेवार

167 रॉयल घराना रािाई घराना

र यल (रािाई) दे वताई िररवार, सतयुग में प्रवश्व


168 रॉयल फॅसमली
महारािन (महारािा) या रािा के िररवार में होना।

169 लंगर उठाना मोह त्यागना


170 लकी स्टार भाग्यशाली ससतारा

171 लवली सुन्दर, मनभावन फीचर व्यजक्तत्व

172 लाइट का क्राउन िप्रवत्रता का ताि


समंदर में नावों को रास्ता टदखाने के सलए रौशनी का
173
लाइट हाउि िावर

174 सलफ्ट गतत से ऊिर ले िाने वाला साधन

आज़ादी टदलानेवाला या िीवनमुजक्त और मुजक्त दे ने


175 सलबरे टर
वाला

176 सलबेरेटरगाइड छुड़ाकर रास्ता टदखानेवाला

177 लीप िेंचरु ी अचधक-शतक (िैसे अचधक मास/टदन)

178 लॉडा कृष्र्ा रािा कृष्ण, सतयुग में िन्म लेने वाली िहली आत्मा

179 वंडरफुल सिन िीनरी प्रवस्मयकारी दृश्य

180 वथा नाट पेनी कौड़ी तुल्य िीवन

181 वथा पाउं ड हीरे तुल्य

182 वल्डा माइटी प्रवश्वशजक्तशाली

183 वाइब्रेशन कम्िन, संकल्िों की तरं गे

184 वाईिलेि अवगण


ु रटहत, प्रवकार रटहत, दोर्ष रटहत, गण
ु वान, टदव्य

185 वायलेंि टहंसा

186 ववन िीत, प्रविय

187 वी आर एट वॉर हम लोग लड़ाई के मैदान में हैं

188 वेस्ट नकारा, व्यर्थ,बबना काम के

189 वेस्ट ऑफ़ एनजी शजक्त व्यर्थ गवांना

190 वेस्ट ऑफ़ टाइम समय व्यर्थ गुँवाना

191 वेस्ट ऑफ़ मनी धन व्यर्थ गुँवाना

192 वैरायटी प्रवसभन्न, िकार

193 वैरायटी Variety सभन्न-सभन्न, अलग-अलग, तरह तरह के


194 वैल्यए
ु बल कीमती, महुँगा, ज़रूरी, महत्विूणथ

195 िर्युगी डीटी वल्डा सतयुगी दै वी दतु नया का साम्राज्य

196 िब-स्टे शन शजक्त िातत कर आगे भेिनेवाले

197 िरें डर समप्रिथत

198 िरें डर समिथण

199 िजान Surgeon शल्य-चचककत्सक

200 िववािेबुल सेवाधारी

िैसे ट्रै न में िाते तो णखड़की में दे खते तो साइड सीन्स

आते और िास होते रहते। साइड सीने अर्ाथत हम अिने


201 िाइड सिन
आिको िीवन में आने वाली िररजस्र्ततयों (सीन्स) में

साइड होकर चलें वे आएंगे और िास होते िाएंगे।

202 िाइलेंि शांतत

203 िालवेज बचाना, छुड़ाना, मुक्त कराना

204 िाल्वेशन Salvation दख


ु ों से छुड़ाने वाला, मक्
ु त करने वाला, रक्षा करने वाला

205 सिल्वर ऐज त्रेतायुग

206 िुप्रीम पावर िरम शजक्त

207 िप्र
ु ीम िोल िरमात्मा

208 िेस्क्क्रन सबसे मीठा

209 िेण्टर सेवाकेंद्र, मध्य बबंद ु

210 सेनोर्ोररयम अस्‍


पताल
211 िेफ्टी सुरक्षा के उिाय

212 िेववािेबुल सेवा करनेवाला

मनिीत, अिनी आज्ञा में , स्व िर तनयंत्रण, संयम


213 िेल्फ कण्ट्रोल
रखना

214 िोिा ऑफ़ इनकम आय का साधन

215 स्कालरसशप प्रवद्या, िाजण्डत्य, छात्रवतृ त, प्रवद्वता सरलीकृत अर्थ


216 स्टाम्प, Stamp ससक्का, चचन्ह

217 स्स्टमर/स्स्टम्बर भांि से चलता िानी का िहाि

218 स्टूडेंट लाइफ इि बेस्ट लाइफ प्रवद्यार्ी िीवन श्रेष्ठ िीवन

219 स्टे टि िद

220 स्ट्राइक हड़ताल

221 स्स्पररचअ
ु ल अध्याजत्मक

222 स्वीट होम (स्वीट िाइलेंि होम) मुजक्त धाम, िरमधाम

223 हमस्जंि बन्ध,ु दोस्त, समत्र

224 हाईएस्ट श्रेष्ठतम, सवोच्च, सबसे ऊंचा, िरम

ज्ञान समलते भी िरू ा धारण नहीं करते और अिप्रवत्र भी


225 हाफ कास्ट
बनते
िािान का शहर िहाुँ िरमाणु बम फोड़ा गया र्ा
226
दहरोसशमा (द्प्रवतीय प्रवश्व यद्
ु ध में )

ड्रामा के इततहास-भूगोल की कल्ि िहले की तरह हूबहू


227 दहस्ट्री स्जयोग्राफी ररपीट होना
िुनरावप्रृ त्त

228 हे ल नकथ

229 हे वेनली गॉड फ़ादर सतयुगी दतु नया का तनमाथण करने वाले भगवान

230 होसलएस्ट िरम िप्रवत्र

231 होली हँि हुँ स िैसे िप्रवत्र

232 ह्यूमन गुलशन मानवों का बगीचा (दतु नया)

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