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16-4-2022 16-4-2022

मीठे -मीठे कसकीििे बच्ोों प्रकत मात-कपता बापदादा का याद-प्यार और गुडमाकनिंग। 16-04-2022 प्रात: मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन
रूहानी बाप की रूहानी बच्ोों को नमस्ते। “मीठे बच्चे - 21 जन्मों की राजाई लेनी है तम ज्ञान धन का दान करम, धारणा
धारणा के लिए मुख्य सार:- कर फिर दू सरमों कम भी कराओ''
1) श्रीमत पर चिकर अपने ऊपर आपेही दया करनी है । सवोदया बन पकतत दु कनया को प्रश्न:- चलते-चलते ग्रहचारी बैठने का मुख्य कारण क्या है?
पावन बनाना है ।
उत्तर:- श्रीमत पर पूरा नहीीं चलते इसललए ग्रहचारी बैठ जाती है । अगर लनश्चयबुन्ति हो एक
2) अमृतवेिे रूहानी िन्धा कर कमाई जमा करनी है । कवचार सागर मोंर्न करना है । दे ही-
की मत पर सदा चलते रहे तो ग्रहचारी बैठ नहीीं सकती, सदा कल्याण होता रहे । दे री से
अकभमानी बनने की मेहनत जरूर करनी है ।
आने वाले भी बहुत आगे जा सकते हैं । सेकेण्ड की बाजी है। बाबा का बने तो हकदार बनें,
वरदान:- सवव शक्तियमों कम आर्व र प्रमाण चलाने वाले शक्ति स्वरूप मास्टर सुख घनेरे का वसाा लमल जायेगा, परिु श्रीमत पर सदा चलते रहें ।
रचफयता भव गीत:- तू प्यार का सागर है .....
जो बच्चे मास्टर सवाशन्तिमान् की अथॉररटी से शन्तियोीं को आर्ा र प्रमाण चलाते हैं , तो
ओम् शान्ति। ओम् शान्ति का अर्थ तो बच्ोों को बार-बार समझाया गया है । ओम् माना
हर शन्ति रचना के रूप में मास्टर रचलयता के सामने आती है । ऑर्ा र लकया और हालजर
अहम् आत्मा मम शरीर। बाप कहें गे ओम् (अहम्-आत्मा) सो परमात्मा। उनका शरीर नहीों
हो जाती है । तो जो हजूर अथाा त् बाप के हर कदम की श्रीमत पर हर समय “जी-हालजर''
है क्ोोंकक वह तो सबका बाप है । तुम ऐसे नहीों कहें गे हम आत्मा सो परमात्मा। ये तो ठीक
वा हर आज्ञा में “जी-हालजर'' करते हैं । तो जी-हालजर करने वालोीं के आगे हर शन्ति भी
है - अहम् आत्मा परमात्मा की सिान हैं । बाकी अहम् आत्मा सो परमात्मा कहना एकदम
जी-हालजर वा जी मास्टर हजूर करती है । ऐसे आर्ा र प्रमाण शन्तियोीं को काया में लगाने
राों ग हो जाता है । तुम बच्े बाप को जानते हो। यह समझते हो कक यह पुरानी दु कनया है ।
वालोीं को ही मास्टर रचलयता कहें गे।
नई दु कनया सतयुग को कहा जाता है। परिु सतयुग कब होता है , यह वह कबचारे नहीों
स्लमगन:- लसम्पल बन अनेक आत्माओीं के ललए सैम्पल बनना - यह भी बहुत बडी सेवा जानते। समझते हैं ककियुग तो अभी बाकी 40 हजार वर्थ है । तुम बच्े जानते हो हम श्रीमत
है । पर अभी नई दु कनया स्र्ापन कर रहे हैं । बाप कहते हैं मैं तुम्हारे द्वारा नई दु कनया स्र्ापन
मातेश्वरी जी के अनमोि महावाक्य - “डायरे क्ट ईश्वरीय ज्ञान से सफिता” करा रहा हूँ । तुम्हारे द्वारा कवनाश नहीों करवाता। वही तुम कशव शन्तियाूँ प्रजाकपता ब्रह्मा की
मुख वोंशाविी, अकहोंसक शन्ति सेना हो। तुम ही हो जो बाप से वसाथ पाने के अकिकारी हो।
हमें यह जो अकवनाशी ज्ञान कमि रहा है , यह डायरे क्ट ज्ञान सागर परमात्मा द्वारा कमि रहा
तुम ब्राह्मणोों को ही श्रीमत कमिती है । तुम काम कवकार को जीतते हो, तभी यहाूँ जो आते हैं
है । इस ज्ञान को हम ईश्वरीय ज्ञान कहते हैं क्ोोंकक इस ज्ञान से मनुष्य जन्म-जन्मािर
उनसे पूछा जाता है कक अगर काम कवकार पर जीत पाई हो तो बाप से कमिना। मातेिे और
दु :ख के बोंिन से छूट जाते हैं । कमथबन्धन में नहीों आते इसीकिए ही इस ज्ञान को अकवनाशी
सौतेिे होते हैं । मातेिे कब कवकार में नहीों जा सकते। अभी हमको बाप कमिा है , जो ज्ञान
ज्ञान कहा जाता है । अब यह ज्ञान कसिथ एक ही अकवनाशी परमकपता परमात्मा द्वारा हमें
का सागर है । कृष्ण को ज्ञान का सागर नहीों कहें गे। कशवबाबा की मकहमा और दे वताओों की
प्राप्त होता है क्ोोंकक वो खुद अकवनाशी है । बाकी तो सब मनुष्य आत्मायें जन्म मरण के
मकहमा एकदम अिग है । दे वताओों की मकहमा है सम्पूणथ कनकवथकारी। कशवबाबा को कहा
चि में आने वािी हैं इसकिए उनसे कमिा हुआ ज्ञान हमें कमथबन्धन से छु टकारा दे ने वािा
जाता है मनुष्य सृकि का बीजरूप, सत् कचत् आनन्द स्वरूप, ज्ञान का सागर। यह शरीर
नहीों है । इस कारण उन्ोों के ज्ञान को कमथ्या ज्ञान अर्वा कवनाशी ज्ञान कहें गे। िेककन यह
पहिे जड़ होता है किर उनमें जब आत्मा प्रवेश करती है तब चैतन्य बनता है। यह मनुष्य
दे व-तायें सदा अमर हैं क्ोोंकक इन्ोोंने अकवनाशी परमात्मा द्वारा यह अकवनाशी ज्ञान प्राप्त
सृकि रूपी झाड़ की उत्पकि कैसे होती है , यह कसिथ बाप बीजरूप ही जानते हैं। वह तुमको
ककया है , तो इससे कसि है कक परमात्मा भी एक है तो उसका ज्ञान भी एक है , इस ज्ञान में
ज्ञान दे रहे हैं । बाबा कहते हैं तुमको र्ोड़ा भी ज्ञान दे ता हूँ तो तुम पुरानी दु कनया से नई
दो मुख्य बातें बुन्ति में रखनी हैं , एक तो इसमें कवकारी ककियुगी सोंगदोर् से दू र होना है
दु कनया में चिे जाते हो। उनको ही कशवािय कहा जाता है । कशवबाबा द्वारा स्र्ापन ककया
और दू सरी बात कक मिेच्छ खान-पान आकद की परहे ज़ रखनी है । इस परहे ज रखने से
हुआ स्वगथ, कजसमें चैतन्य दे वतायें कनवास करते हैं । भन्ति मागथ में उन्ोों को मन्तन्दर में कबठा
ही जीवन सिि होती है । अच्छा - ओम् शान्ति।
कदया है । तुम हो सच्े -सच्े रूहानी ब्राह्मण। तुमको कशवबाबा ने ब्रह्मा द्वारा अपना बनाया
है । वह कजस्मानी ब्राह्मण भि कहते हैं कक हम मुख वोंशाविी हैं । परिु किर भी कह दे ते हैं
ब्राह्मण दे वी दे वता नम: क्ोोंकक समझते हैं कक हम पुजारी ब्राह्मण हैं , आप पूज्य हो। कवकारी
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ब्राह्मण नम: करते हैं पकवत्र को। तुम अभी ब्राह्मण हो वह समय आयेगा किर तुम ही कहें गे कशवबाबा बैठ तुमको श्री बनाते हैं । श्री श्री वास्तव में एक को ही कह सकते हैं । पकतत-पावन
ब्राह्मण दे वतायें नम: क्ोोंकक अभी तुम पूज्य ही जाकर पुजारी बनते हो। यह बड़ी गुह्य सवथ का सद्गकत दाता एक ही है । बाकी यह है असत्य, झूठी दु कनया। इसमें जो कुछ बताते हैं
रमणीक बातें हैं । जो श्रीमत पर चिने वािे हैं , वह इस रीकत िारण कर और करा सकते हैं । वह झूठ ही झूठ है । रचता और रचना के बारे में ही झूठ बताते हैं , बाबा सच बताते हैं ।
जैसे बैररस्टर, सजथन कजतना पढ़ते हैं उतनी दवाईयाूँ वा प्वाइों ट्स बुन्ति में रहती हैं । नाम तो इसको सत्य नारायण की कर्ा कहा जाता है । तुम ज्ञान से दे खो क्ा से क्ा बन रहे हो।
वकीि होगा परिु कोई िखपकत और कोई की कुछ भी आमदनी नहीों होगी। यहाूँ भी श्रीमत पर कजतना चिेंगे उतना ऊोंच पद पायेंगे। बेहद के बाप से बेहद का वसाथ किया जाता
नम्बरवार दान करते हैं तो उनको एवजा कमिता है , तब कहा जाता है िन कदये िन ना है , इसकिए श्रीमत भगवत गीता कहा जाता है । बाकी शास्त्र हैं उनकी रचना। गीता माई
खुटे... वहाूँ दान करते तो अल्पकाि के किए दू सरे जन्म में कमिता है । साहकार के घर में बाप है । गीता खण्डन करने से वसाथ ककसको भी नहीों कमिता। यह बातें तुम बच्े ही जानते
जाते हैं , यहाूँ तो 21 जन्म के किए राजाई के अकिकारी बन जाते हैं । तुमको सब प्वाइों ट्स हो। ऐसे भी नहीों कक जो पुराने हैं वही होकशयार होोंगे। कई नये पुरानोों से भी तीखे जाते हैं ।
भी नोट करनी हैं । तुमको कागज पर दे ख भार्ण नहीों करना है , परिु बुन्ति में रख भार्ण दे री से आने वािे भी ऊोंच पद पा िेंगे। सेकेण्ड की तो बाजी है । बाबा का बना और हकदार
करना है । जैसे कशवबाबा ज्ञान का सागर, पकतत-पावन है , ऐसे तुम बच्ोों को भी बनना है । बना। अगर कोई ठहर नहीों सकते तो बाबा क्ा करे । कनियबुन्ति हो श्रीमत पर चिे तो
एक बच्ी ने किखा कक हमारा बाप टीचर र्ा, आप भी हमारे बाप, टीचर हो। वह है बस। जैसे उस कमाई में दशा बैठती है , वैसे यहाूँ भी दशायें बैठती हैं । ग्रहचारी भी बैठ
हद का, यह है बेहद का। बेहद का बाप बेहद की बातें सुनाता है । हद का बाप हद की बातें जाती है क्ोोंकक श्रीमत पर नहीों चिते , बाकी है कबल्कुि सहज बात। बाबा मम्मा का बच्ा
सुनाते हैं । वह है हद का सुख दे ने वािा। हद की सेवा करने वािे सवोदया नाम रखते हैं , बना तो सुख घनेरे का वसाथ कमिता है । एक की मत पर चिने से ही कल्याण है । कजसको
यह भी झूठ। सवथ माना सारी दु कनया पर तो दया नहीों करते। बाप ही है जो सवथ पर दया कर तुमने आिाकल्प याद ककया, अभी वह तुमको कमिा है तो उनको पकड़ िेना चाकहए, इसमें
पावन बनाते हैं । तत्ोों को भी पावन बनाते हैं । एक ही दु कनया होती है । वही किर नई सो मूूँझते क्ोों हो। बाबा कहते हैं किर से डरामा अनुसार राज्य-भाग्य दे ने आया हूँ । मेरी मत
पुरानी बनती है । भारत ही स्वगथ र्ा, भारत ही नकथ है । ऐसे नहीों बौिी खण्ड, किकियन खण्ड पर चिना होगा। बुन्ति से मुझे याद करो और कोई तुमको तकिीि नहीों दे ता हूँ । स्वगथ का
कोई स्वगथ र्ा। एक बाप ही सबको दु :ख से छु ड़ाने वािा हे कवनिी गॉड िादर है । किबरे टर वसाथ भी तुम पाते हो। कि स्वगथ र्ा, आज नकथ है । अभी किर स्वगथ बनना है । कि यहाूँ
भी है , गाइड भी है , उनको सब याद करते हैं । बाप कहते हैं बच्े टाइम बहुत र्ोड़ा है , अभी माकिक र्े, आज बेगर बने हो। कप्रन्स और बेगर बनने का यह खेि है । ककतनी सहज बात
दे ह सकहत सबसे बुन्तियोग हटाओ। अब हम अपने बाप के पास ही जाते हैं किर आकर है । दे ही-अकभमानी नहीों बनते , इसमें ही मेहनत है । सोंन्यासी िोग कहते हैं तुम्हें िोि आता
राज्य करें गे। मुख्य हीरो एण्ड हीरोइन का पाटथ तुम्हारा है । यर्ा माूँ बाप तर्ा बच्े सब है तो तुम मुख में मुहिरा (ताबीज़) डाि दो। यह दृिाि सब इस समय के हैं । भ्रमरी का
पुरुर्ार्ी हैं । पुरुर्ार्थ कराने वािा एक ही परमकपता परमात्मा अकत प्यारा है । भन्ति मागथ में कमसाि भी यहाूँ के किए है । कविा के कीड़े को आप समान बनाती है , कमाि है । बरोबर
भी उनको याद करते हैं परिु उनको जानते नहीों। ऋकर् मुकन आकद भी कहते र्े - रचता इस समय सब कविा के कीड़े हैं । उनको तुम ब्राह्मकणयाूँ भूूँ -भूूँ करती हो। कोई तो ब्राह्मणी
और रचना बेअि, बेअि है । तो आजकि के गुरू कैसे कहते हम ही परमात्मा हैं ! दे िवाड़ा या ब्राह्मण उड़ने िायक बन जाते हैं । कोई शूद्र का शूद्र रह जाते हैं । सपथ का कमसाि भी
मन्तन्दर में आकद दे व का कचत्र है , नीचे कािा कदखाते हैं किर अचिघर में सोने का रखा है , यहाूँ का ही है । तुम अपने को आत्मा समझो। यह पुरानी खाि उतार सतयुग में नई खाि
नीचे तपस्या कर रहे हैं ऊपर स्वगथ है । यह है हमारा यादगार। पकततोों को पावन बनाते तो िेनी है । बाप है ज्ञान का सागर, गीता ककतनी छोटी बनाई है । श्लोकोों को कण्ठ कर िेते
सोंगम हुआ ना। भन्ति मागथ वािे भी होोंगे। बाबा इस शरीर द्वारा अपना जड़ मन्तन्दर यादगार हैं । सब िोग उन पर किदा हो जाते हैं। गीता पढ़ते -पढ़ते ककियुग का अि आ गया है ।
भी दे खते हैं । समझाते हैं मैं दे खता हूँ - यह हमारे यादगार बने हुए हैं । तुम भी अपना सद्गकत ककसको भी नहीों कमिती। तुमको र्ोड़ा ही ज्ञान दे ता हूँ - तुम स्वगथ में चिे जाते हो।
यादगार दे खो। पहिे तुम नहीों जानते र्े कक यह हमारा यादगार है । अभी जानते हो तुम जो ककतना मीठा बनना है । िारणा करनी है । कवचार सागर मोंर्न करना है । कदन में िन्धा करो,
पूज्य दे वता र्े सो अब पुजारी बने हो। हम सो दे वता, हम सो क्षकत्रय... हम सो का अर्थ भी बहुत कमाई होगी। सवेरे-सवेरे आत्मा ररफ्रेश होती है । बार-बार अभ्यास करने से आदत
तुम ही जानते हो। नई दु कनया सो पुरानी कैसे बनती है । नई बनें तब पुरानी का कवनाश हो। पड़ जायेगी। अभी जो करे गा वह ऊोंच पद पायेगा, कनियबुन्ति कवजयिी, सोंशयबुन्ति
ब्रह्मा द्वारा स्र्ापना तो जरूर यहाूँ होनी चाकहए। प्रजा यहाूँ रचते हैं । सूक्ष्मवतन में तो ब्रह्मा कवनशिी। बेहद का बाप कमिा है , इसमें सोंशय क्ोों िाऊों। कशवबाबा कवश्व का माकिक
अकेिा बैठा है । रचना रचकर पूरी की तो िररश्ता बन गये। बनाते हैं , उसको क्ोों भूिना चाकहए। इन ज्ञान रत्ोों से बड़ा प्यार होना चाकहए। महादानी
बाप तुमको कवश्व का माकिक बनाते हैं । यह ज्ञान का एक-एक रत् िाखोों रूपयोों का है ।
तुम हो प्रजाकपता ब्रह्मा मुख वोंशाविी ब्राह्मण कुि भूर्ण। सवोदया िीडर वास्तव में
अच्छा!
तुम ही हो। श्रीमत से तुम अपने पर भी दया करते हो तो सवथ पर भी दया करते हो। श्री श्री
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