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03-02-2024 प्रात: मुरली ओम्

शान्ति “बापदादा” मधुबन


“मीठे बच्चे - ‘स्वदर्शन चक्रधारी
भव' - तुम्हें लाइट हाउस बनना
है , अपने को आत्मा समझो,
इसमें ग़फलत नही ीं करो”
प्रश्न:- तुम सबसे वण्डरफुल
स्टू डे ण्ट हो - कैसे ?
उत्तर:- तुम रहते गृ हस्थ व्यवहार में
हो, शरीर ननवाा ह के नलए 8 घण्टा
कमा भी करते हो, साथ-साथ
भनवष्य 21 जन्ोों के नलए भी 8
घण्टा बाप समान बनाने की सेवा
करते हो, सब-कुछ करते बाप और
घर को याद करते हो - यही तुम्हारी
वन्डरफुल स्टू डे ण्ट लाइफ है ।
नॉलेज बहुत सहज है , नसफा पावन
बनने की मेहनत करते हो।
ओम् शान्ति। बाप बच्चों से पूछते
हैं नम्बरवार पु रूषार्थ अनुसार।
मूलवतन भी नम्बरवार जरूर याद
आता हचगा। बच्चों कच यह भी
जरूर याद आता हचगा कक हम
पहले शान्तिधाम के रहने वाले हैं
किर आते हैं सु खधाम में , यह तच
जरूर अन्दर में समझते हचोंगे।
मूलवतन से लेकर यह जच सृकि का
चक्र है वह कैसे किरता है - यह भी
बुन्ति में है । इस समय हम ब्राह्मण हैं
किर दे वता, क्षकिय, वैश्य, शूद्र
बनेंगे। यह तच बुन्ति में चक्र चलना
चाकहए ना। बच्चों की बुन्ति में यह
सारी नॉलेज है । बाप ने समझाया है ,
आगे नहीों जानते र्े । अभी तुम ही
जानते हच। कदन-प्रकतकदन तु म्हारी
वृन्ति हचती रहे गी। बहुतचों कच
कसखलाते रहते हच। जरूर पहले
तुम ही स्वदशथन चक्रधारी बनेंगे।
यहााँ तुम बै ठे हच, बुन्ति से जानते हच
वह हमारा बाप है । वच ही सु प्रीम
टीचर है कसखलाने वाला। उसने ही
समझाया है हम 84 का चक्र कैसे
लगाते हैं । बुन्ति में जरूर याद हचगा
ना। यह बुन्ति में हर वक्त याद
करना है , लेसन कचई बडा नहीों है ।
सेकण्ड का लेसन है । बुन्ति में
रहता है कक हम कहााँ के रहवासी
हैं , किर यहााँ कैसे पाटथ बजाने आते
हैं । 84 का चक्र है । सतयुग में इतने
जन्म, िेता में इतने जन्म - यह चक्र
तच याद करें गे ना। अपना जच
पचजीशन कमला है , पाटथ बजाया है ,
वह भी जरूर बुन्ति में याद रहे गा।
कहें गे हम यह डबल कसरताज र्े
किर कसोंगल ताज वाले बनें। किर
सारी राजाई ही चली गई,
तमचप्रधान बन गये । यह चक्र तच
किरना चाकहए ना इसकलए नाम ही
रखा है स्वदशथन चक्रधारी। आत्मा
कच ज्ञान कमला हुआ है । आत्मा कच
दशथन हुआ है । आत्मा जानती है
हम ऐसे -ऐसे चक्र लगाते हैं । अब
किर जाना है घर। बाप ने कहा है
मुझे याद करच तच घर पहुाँ च जायेंगे।
ऐसे भी नहीों है कक इस समय तुम
उस अवस्र्ा में बैठ जायेंगे। नहीों,
बाहर की बहुत बातें बुन्ति में आ
जाती हैं । ककसकच क्या याद आता
हचगा, ककसकच क्या याद आता
हचगा। यहााँ तच बाप कहते हैं और
सब बातचों कच समेट एक कच ही
याद करच। श्रीमत कमलती है उस
पर चलना है । स्वदशथन चक्रधारी
बनकर तुमकच अि तक पुरूषार्थ
करना है । पहले तच कुछ पता नहीों
र्ा, अब तच बाप बतलाते हैं । उनकच
याद करने से सब-कुछ आ जाता
है । रचकयता और रचना के आकद-
मध्य-अि का सारा राज़ बुन्ति में
आ जाता है । यह तच सबक (पाठ)
कमलता है , उसकच तच घर में भी याद
कर सकते हच। यह है बुन्ति से
समझने की बात। तुम वन्डरिुल
स्टू डे ण्ट हच। बाप ने समझाया है - 8
घण्टा आराम भी भल करच, 8 घण्टा
शरीर कनवाथ ह के कलए काम भी भल
करच। वह धन्धा आकद भी करना है ।
सार् में यह जच बाप ने धन्धा कदया
है , आप समान बनाने का, यह भी
शरीर कनवाथ ह हुआ ना। वह है
अल्पकाल के कलए और यह है 21
जन्म शरीर कनवाथ ह के कलए। तुम जच
पाटथ बजाते हच, उसमें इसका भी
बहुत भारी महत्व है । जच कजतनी
मेहनत करते हैं उतनी ही किर बाद
में भन्तक्त में उनकी पूजा हचती है ।
यह सब धारणा तुम बच्चों कच ही
करनी है ।
तुम बच्े पाटथ धारी हच। बाबा तच
कसिथ ज्ञान दे ने का पाटथ बजाते हैं ।
बाकी शरीर कनवाथ ह के कलए
पुरूषार्थ तुम करें गे। बाबा तच नहीों
करें गे ना। बाप तच आते ही हैं बच्चों
कच समझाने के कलए कक यह वर्ल्थ
की कहस्टर ी-जॉग्रािी कैसे -कैसे
ररपीट हचती है , चक्र कैसे किरता
है । यह समझाने के कलए ही आते
हैं । युन्तक्त से समझाते रहते हैं । बाप
समझाते हैं - बच्े , ग़िलत मत
करच। स्वदशथन चक्रधारी अर्वा
लाइट हाउस बनना है । अपने कच
आत्मा समझना है । यह तच जानते
हच शरीर कबना आत्मा पाटथ बजा
नहीों सकती। मनुष्चों कच कुछ भी
पता नहीों है । भल तुम्हारे पास आते
हैं , अच्छा-अच्छा करते हैं परिु
स्वदशथन चक्रधारी नहीों बन सकते
हैं , इसमें बहुत प्रैन्तिस करनी
पडती है । तच किर कहााँ भी जायेंगे
तच जैसे ज्ञान का सागर बन जायेंगे।
जैसे स्टू डे ण्ट पढ़कर टीचर बन
जाते हैं किर कॉले ज में पढ़ाते हैं
और धन्धे में लग जाते हैं । तुम्हारा
धन्धा ही है टीचर बनना। सबकच
स्वदशथन चक्रधारी बनाओ। बच्चों ने
कचि बनाया - डबल कसरताज
राजायें किर कसोंगल ताज वाले
राजायें कैसे बनते हैं , यह तच ठीक
है , परिु कब से कब तक डबल
ताज वाले र्े ? कब से कब तक
कसोंगल ताज वाले बनें ? किर कैसे
और कब राज्य छीना गया? वह
डे ट्स कलखनी चाकहए। यह बेहद
का बडा डरामा है । यह सटे न है हम
किर से दे वता बनते हैं । अभी
ब्राह्मण हैं । ब्राह्मण ही सोंगमयुग के
हैं । यह ककसकच मालूम नहीों जब
तक तुम न बताओ। यह तुम्हारा
अलौककक जन्म है । लौककक और
पारलौककक से वसाथ कमलता है ।
अलौककक से वसाथ नहीों कमल
सकता। इन द्वारा बाप तुमकच वसाथ
दे ते हैं । गाते भी हैं - हे प्रभू। ऐसे
कभी नहीों कहें गे - हे प्रजाकपता
ब्रह्मा। लौककक और पारलौककक
बाप कच याद करते हैं । यह बातें
कचई नहीों जानते , तुम जानते हच।
पारलौककक बाप का है अकवनाशी
वसाथ , लौककक का है कवनाशी वसाथ ।
समझच कचई राजा का बच्ा है , 5
करचड वसाथ कमलता है और बेहद के
बाप का वसाथ सामने दे खेंगे तच
कहें गे उनकी भेंट में तच यह
अकवनाशी वसाथ है और वह तच सब
ख़त्म हचने वाला है । आज के जच
करचडपकत हैं उन्चों कच माया चटकी
हुई है , वह आयेंगे नहीों। बाप है
गरीब कनवाज़। भारत बहुत गरीब
है , भारत में बहुत मनुष् भी गरीब
हैं । अब तुम बहुतचों का कल्याण
करने का पुरूषार्थ कर रहे हच।
अक्सर करके बीमारचों कच वैराग्य
आता है । समझते हैं जीना क्या
काम का। ऐसा रास्ता कमले जच
मुन्तक्तधाम चले जायें। दु :ख से छूटने
कलए मुन्तक्त माों गते हैं । सतयुग में
माों गते नहीों क्यचोंकक वहााँ दु :ख नहीों
है । यह बातें अभी तुम समझते हच।
बाबा के बच्े वृन्ति कच पाते रहें गे।
जच सूयथवोंशी-चन्द्रवों शी दे वता बनने
वाले हैं वच ही आकर ज्ञान लेंगे,
नम्बरवार पुरूषार्थ अनुसार। यह
ज्ञान बाप कबगर कचई दे नहीों
सकते। अब तुम बे हद के बाप कच
छचड कहााँ भी नहीों जायेंगे, कजनका
बाप के सार् लव है वह समझ
सकते हैं नॉलेज तच बहुत सहज है ,
बाकी पावन बनने में माया कवघ्न
डालती है । कचई भी बात में ग़िलत
की तच ग़िलत से ही हारते हैं ।
इनका कमसाल बॉन्तक्सोंग से अच्छा
लगता है । बॉन्तक्सोंग में एक-दच से
जीत पहनते हैं । बच्े जानते हैं
माया हमकच हरा दे ती है ।
बाप कहते हैं - मीठे बच्े , अपने
कच आत्मा समझच। बाप खुद
समझते हैं इसमें मे हनत है । बाप
युन्तक्त बहुत सहज बताते हैं । हम
आत्मा हैं , एक शरीर छचड दू सरा
लेते हैं , पाटथ बजाते हैं , बेहद बाप के
बच्े हैं - यह अच्छी रीकत पक्का
करना है । बाबा िील करते हैं -
माया इनका बुन्तियचग तचड दे ती है ।
नम्बरवार तच हैं ही, इस ही कहसाब
से राजधानी बनती है । सब एकरस
हच जाएों तच राजाई न बनें । राजा,
रानी, प्रजा, साहूकार सब बनने हैं ।
यह बातें तुम्हारे कसवाए कचई नहीों
जानते हैं । हम अपनी राजधानी
स्र्ापन कर रहे हैं । यह सब बातें
तुम्हारे में भी अनन्य जच हैं उनकच
याद रहती हैं । यह बातें कभी
भूलनी नहीों चाकहए। बच्े जानते हैं
हम भूल जाते हैं । नहीों तच बहुत
खुशी रहनी चाकहए - हम कवश्व के
माकलक बनते हैं । पुरूषार्थ से ही
बना जाता है , कसिथ कहने से नहीों।
बाबा तच आने से ही पूछते हैं - बच्े
सावधान, स्वदशथन चक्रधारी हचकर
बैठे हच? बाप भी स्वदशथन चक्रधारी
है ना जच इसमें प्रवेश करते हैं ।
मनुष् तच समझते हैं कवष्णु है
स्वदशथ न चक्रधारी। उनकच यह पता
ही नहीों है कक यह लक्ष्मी-नारायण
हैं ! इन्चों कच ज्ञान ककसने कदया?
कजस ज्ञान द्वारा इन्चोंने यह लक्ष्मी-
नारायण का पद पाया। कदखाते हैं
स्वदशथन चक्र से मारा। तुमकच यह
कचि बनाने वालचों पर हों सी आती है ।
कवष्णु है कनशानी कम्बाइन्ड गृहस्र्
आश्रम की। कचि शचभता है बाकी
यह कचई राइट कचि नहीों है । पहले
तुम नहीों जानते र्े। 4 भुजा वाला
यहााँ कहााँ से आया। इन सब बातचों
कच तुम्हारे में भी नम्बरवार जानते
हैं । बाप कहते हैं सारा मदार तुम्हारे
पुरूषार्थ पर है । बाप की याद से ही
पाप कटते हैं । सबसे जास्ती
नम्बरवन यह पुरूषार्थ चलना है ।
टाइम तच बाप ने कदया है । गृहस्र्
व्यवहार में भी रहना है । नहीों तच
बच्चों आकद कच कौन सम्भालेगा!
वह सब-कुछ करते भी प्रैन्तिस
करनी है । बाकी और कचई बात
नहीों है । श्रीकृष्ण के कलए कदखाया है
अकासुर, बकासुर आकद कच
स्वदशथन चक्र से मारा है । अब यह
तुम समझते हच, चक्र आकद की तच
बात ही नहीों। ककतना फ़कथ है । यह
बाप ही समझाते हैं । मनुष्, मनुष्
कच समझा नहीों सकते। मनुष्,
मनुष् की सद्गकत कर नहीों सकते।
रचता और रचना के आकद-मध्य-
अि का राज़ कचई समझा नहीों
सकेंगे। स्वदशथन चक्र का अर्थ क्या
है , सच भी अब बाप ने ही समझाया
है । शास्त्चों में तच कहाकनयााँ ऐसी
बनाई हैं जच बात मत पू छच,
दे वताओों कच भी कहों सक बना कदया
है । अब इन सब बातचों पर एकाि
में बैठ कवचार सागर मोंर्न करना
हचता है । राकि कच जच बच्े पहरा
दे ते हैं उन्ें टाइम बहुत अच्छा
कमलता है , वह बहुत याद कर
सकते हैं । बाप कच याद करते
स्वदशथन चक्र भी किराते रहच। याद
करें गे तच खुशी में नीोंद भी किट
जायेगी। कजसकच धन कमलता है वह
बहुत खुशी में रहता है । कभी
झुटके नहीों खाये गा। तुम जानते हच
हम एवर हे ल्दी, वे ल्दी बनते हैं । तच
इसमें अच्छी रीकत लग जाना
चाकहए। यह भी अब बाप जानते हैं
डरामा अनुसार जच कुछ चलता है
वह ठीक है । किर भी पुरूषार्थ
कराते रहते हैं । अब बाप कशक्षा दे ते
हैं , ऐसे बहुत हैं कजनमें न ज्ञान है , न
यचग है । कचई बुन्तिवान, कवद्वान
आकद आ जाए तच बात कर न सकें।
सकवथसएबुल बच्े जानते हैं हमारे
पास कौन-कौन समझाने वाले
अच्छे हैं ? किर बाप भी दे खते हैं यह
बुन्तिवान पढ़ा-कलखा आदमी अच्छा
है और समझाने वाला बुद्धू है तच
खुद प्रवेश कर उनकच उठा सकते
हैं । तच जच सच्े बच्े हैं , वह कहते
हैं हमारे में तच इतना ज्ञान नहीों र्ा
कजतना बाप ने बैठ इनकच
समझाया। कचई कच तच अपना
अहों कार आ जाता है । यह भी
उनका आना, मदद करना डरामा में
पाटथ नूाँधा हुआ है । डरामा बडा
कवकचि है । यह समझने में बडी
कवशाल बुन्ति चाकहए।
अब तुम बच्े जानते हच हम वह
राजधानी स्र्ापन कर रहे हैं कजसमें
सब गचरे ही गचरे र्े । काले वहााँ हचते
नहीों। यह भी तुम गचरा और काला
कचि बनाकर कलखच। 63 जन्म काम
कचता पर बैठ ऐसे काले बन पडे हैं ।
आत्मा ही बनी है । लक्ष्मी-नारायण
का भी काला कचि बनाया है । यह
नहीों समझते कक आत्मा काली
बनती है । यह तच सतयुग के
माकलक, गचरे र्े , किर काम कचता
पर बै ठने से काले बनते हैं । आत्मा
पुनजथन्म ले ते-ले ते तमचप्रधान बनती
है । तच आत्मा भी काली और शरीर
भी काला हच जाता है । तच हों सी-हों सी
में पूछ सकते हच लक्ष्मी-नारायण
कच कहााँ काला, कहााँ गचरा क्यचों
कदखाया है , कारण? ज्ञान तच है
नहीों। श्रीकृष्ण ही गचरा किर
श्रीकृष्ण ही साों वरा क्यचों बनाते हैं ?
यह तच तुम अभी जानते हच। तु मकच
अभी ज्ञान का तीसरा नेि कमला है ।
अच्छा!
मीठे -मीठे कसकीलधे बच्चों प्रकत
मात-कपता बापदादा का याद-प्यार
और गु डमॉकनिंग। रूहानी बाप की
रूहानी बच्चों कच नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) खुशी से भरपू र रहने के कलए
एकाि में बैठ कमले हुए ज्ञान
धन का कसमरण करना है ।
पावन वा सदा कनरचगी बनने के
कलए याद में रहने की मेहनत
करनी है ।
2) बाप समान मास्टर ज्ञान सागर
बन सबकच स्वदशथन चक्रधारी
बनाना है । लाइट हाउस बनना
है । भकवष् 21जन्म के शरीर
कनवाथ ह के कलए रूहानी टीचर
जरूर बनना है ।
वरदान:- त्रिकालदर्ी स्थित्रत
द्वारा तीनोीं कालोीं का स्पष्ट
अनुभव करने वाले मा.
नॉलेजफुल भव
जो निकालदशी न्तस्थनत में न्तस्थत
रहते हैं वह एक से कण्ड में तीनोों
कालोों को स्पष्ट दे ख सकते हैं । कल
क्या थे , आज क्या हैं और कल क्या
होोंगे - उनके आगे सब स्पष्ट हो
जाता है । जैसे कोई भी दे श में जब
टॉप प्वाइों ट पर खडे होकर सारे
शहर को दे खते हैं तो मजा आता है ,
ऐसे ही सोंगमयुग टॉप प्वाइों ट है , इस
पर खडे होकर तीनोों कालोों को
दे खो और फ़लक से कहो नक हम
ही दे वता थे और नफर से हम ही
बनेंगे, इसी को कहते हैं मास्टर
नॉलेजफुल।
स्लोगन:- हर समय अन्तिम घडी
है , इस स्मृनत से एवररे डी बनो।
ओम् शान्ति।

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