You are on page 1of 3

Class 10- साखी

6) न दिं क ेडा राखखए------------------------------- न रमल करै सुभाइ।।

शब्दार्थ- न द
िं क- आलोच ा कर े वाला, ेडा- समीप, राखखए- रखखए, आँगखि- आँग , कुटी- कुटटया, बँधाइ-
ब वाकर, साबि- साबु , बब - बब ा, पाँिीिं- पा ी, न रमल- पववत्र, करै - कर ा, सुभाइ- स्वभाव।

प्रसिंग प्रस्तुत पिंक्ततयाँ पाठ्यपुस्तक ट द


िं ी ‘स्पशथʼ भाग-2 के ‘साखीʼ पाठ से ली गई ै। इ के कवव ‘कबीरदासʼ जी
ैं।

भावार्थ- इ पिंक्ततयों में कवव ‘कबीरदासʼ जी न द


िं क के म त्व को दशाथ र े ैं।

कवव क ते ैं, जो मारी न द


िं ा करता ै, में उ के प्रनत अप े क्रोध को त्याग कर
अप े समीप ी रख ा चाट ए। यटद सिंभव ो तो उन् ें अप े आँग में कुटटया ब ाकर आदर के सार् र े के ललए
स्र्ा दे ा चाट ए।

कवव क ते ैं, जब न द
िं क मारी आलोच ा करते ैं, तब में सतकथ ोकर अप ी बुराईयों
को दरू कर े की कोलशश कर ी चाट ए। इस प्रकार बब ा साबु -पा ी खचथ ककए न द
िं क मारे स्वभाव को न मथल कर
दे ते ैं।

काव्य सौंदयथ- ● इस दो े में सरल भाषा का प्रयोग ककया गया ै।

● दो े में सधुतकडी भाषा का प्रयोग ुआ ै।

● ‘न द
िं क ेडाʼ में अ ुप्रास अलिंकार ै।

7) पोर्ी पट़ि पट़ि---------------------------- सु पिंडित ोइ ।।

शब्दार्थ- पोर्ी- ग्रिंर्, पस्


ु तक, पट़ि-पट़ि- प़ि-प़िकर, जग- सिंसार, मव
ु ा- मर गया, पिंडित- ज्ञा ी व्यक्तत, भया- ो ा,
- ीिं, कोइ- कोई, ऐकै- एक ी, अवषर- अक्षर, पीव का- प्रेम का, प़िै - प़ि ा, सु-व , ोइ- ो ा।

प्रसिंग- प्रस्तत
ु पिंक्ततयाँ पाठ्यपस्
ु तक ट द
िं ी ‘स्पशथʼ भाग-2 के पाठ ‘साखीʼ से ली गई ै। इ के कवव ‘कबीरदासʼ जी
ैं।

भावार्थ- इ पिंक्ततयों में कवव ‘कबीरदासʼ जी प्रेम के म त्व को दशाथ र े ैं।

कवव क ते ैं, इस सिंसार में कई लोग मोटे -मोटे ग्रिंर्ों को प़िते ु ए मत्ृ यु को प्राप्त
ो गए, ककिं तु उ के हृदय में वास्तववक प्रेम अर्ाथत ् ईश्वर प्रेम प प े के कारि वे ववद्वा ीिं ब पाए।

कवव के अ ुसार, जो व्यक्तत एक ी अक्षर प्रेम का प़ि लेता ै , अर्ाथत ् परमात्मा


को जा लेता ै, वास्तव में व ी सच्चा ज्ञा ी ै।

काव्य सौंदयथ- ● इ पिंक्ततयों में सरल भाषा का प्रयोग ककया गया ै।


● इ पिंक्ततयों में सधुतकडी भाषा का प्रयोग ककया गया ै।

● ‘पोर्ी पट़ि पट़िʼ में अ ुप्रास अलिंकार ै।

● ‘पट़ि-पट़िʼ में पु रुक्तत प्रकाश अलिंकार ै।

8) म घर जाल्या-------------------------------- चलै मारे साथर् ।।

शब्दार्थ- जाल्या- जलाया, आपिाँ- अप ा, मरु ाडा- जलती ु ई लकडी, मशाल, ाथर्- ार्, जालौं- जलाऊँ, तास- उस,
जे- जो, चलै- चल ा, साथर्- सार्।

प्रसिंग- प्रस्तत
ु पिंक्ततयाँ पाठ्यपस्
ु तक ट द
िं ी ‘स्पशथʼ भाग-2 के पाठ ‘साखीʼ से ली गई ै। इ के कवव ‘कबीरदासʼ जी
ैं।

भावार्थ- इ पिंक्ततयों में कवव ‘कबीरदासʼ जी ईश्वर रूपी ज्ञा के प्रकाश के म त्व को दशाथ र े ैं।

कवव क ते ैं, मैं े ववर और भक्तत से जलती ु ई मशाल को ार् में लेकर अप े घर को
चला टदया ै, अर्ाथत ् सािंसाररक वास ाओिं को ष्ट कर िाला ै । अब मेरे अिंदर ज्ञा का प्रकाश प्रकालशत ो र ा ै।

कवव क ते ैं, अब जो भी भतत मेरे सार् भक्तत के मागथ पर चल े के ललए तैयार ों, मैं
उ का भी घर जला दँ ग
ू ा, अर्ाथत ् उ के म में भी सािंसाररक वास ाओिं के प्रनत ववरक्तत जगा दँ ग
ू ा तर्ा ईश्वर
भक्तत रूपी ज्ञा के प्रकाश की ओर अग्रलसत कर दँ ग
ू ा।

काव्य सौंदयथ- ● इस दो े में सरल भाषा का प्रयोग ककया गया ै।

● इस दो े में सधुतकडी भाषा का प्रयोग ककया गया ै।

● इस दो े में प्रतीकात्मक शैली का प्रयोग ककया गया ै।

● ‘घरʼ सािंसाररकता का तर्ा ‘मशालʼ ज्ञा का प्रतीक ै।

ोट- प्यारे बच्चों, मेरे द्वारा टदए गए उपयथत


ु त सारे ोट्स को अप ी ट द
िं ी स्पशथ की कॉपी में शद्
ु ध-शद्
ु ध तर्ा सिंद
ु र
ललखावट में ललखकर याद कर ले ा। गृ कायथ- प्रश् अभ्यास का (क) न म् ललखखत प्रश् ों के उत्तर दीक्जए- से प्रश्
सिंख्या (1) से लेकर प्रश् सिंख्या (7) तक बच्चों ! तुम् ें अप ी स्पशथ की कॉपी में इ के उत्तरों को ललखकर याद कर
ले ा ै। इ सारे प्रश् ों के उत्तर तुम् ें मेरे द्वारा टदए गए भावार्थ से लमल जाएँगे। प्रश् सिंख्या (ख) भाव स्पष्ट ै,
अतः इन् ें पु : कॉपी में ललख े की आवश्यकता ीिं ै।

Mrs. Mamta Rani

20 April 2021

You might also like