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Class 10- साखी

3) जब मैं था तब हरि------------------------------- दीपक दे ख्या मााँहह ।।

शब्दाथथ- मैं- अहंकाि, हरि- ईश्वि, नााँहह- नहीं, अाँधियािा- अाँिेिा, ममहि-ममिना, दीपक- प्रकाश, दे ख्या- दे खना, मााँहह-
मुझमें।

प्रसंग- प्रस्तुत पंक्ततयााँ हमािे पाठ्यपुस्तक हहंदी स्पशथ भाग-2 के ‘साखीʼ पाठ से ली गई है। इनके कवव ‘कबीि
दासʼ जी हैं।

भावाथथ इन पंक्ततयों में कबीि दास जी ज्ञान के महत्व को दशाथ िहे हैं।

कवव कहते हैं, जब मेिे अंदि अहंकाि रूपी अज्ञानता थी, तब मेिे पास ईश्वि
रुपी ज्ञान का प्रकाश नहीं था। अब मेिे पास ईश्वि रुपी ज्ञान का प्रकाश है तथा अहंकाि रूपी अज्ञानता अब मेिे
पास नहीं है। कवव कहते हैं, मेिे भीति ज्ञानरूपी ज्योतत फैलते ही सािा अाँिेिा रुपी अज्ञान खत्म हो गया।

काव्य सौंदयथ ● इन पंक्ततयों में सिल भाषा का प्रयोग ककया गया है।

● इन पंक्ततयों में सिुतकडी भाषा का प्रयोग ककया गया है ।

● ‘मैंʼ शब्द ‘अहंʼ भाव के मलए प्रयुतत हुआ है ।

● ‘अाँधियािाʼ ‘अज्ञानʼ का तथा ‘दीपकʼ ‘ज्ञानʼ का प्रतीक है।

● ‘हरि हैʼ तथा ‘दीपक दे ख्याʼ में अनुप्रास अलंकाि है।

4) सुखखया सब संसाि--------------------------------- जागै अरू िोवै ।।

शब्दाथथ सुखखया- सुखी, खायै- खाए, अरू- औि, सोवै- सोना, दखु खया- दख
ु ी, दास- पिमात्मा का सेवक, जागै- जागना,
िोवै- िोता है।

प्रसंग प्रस्तुत पंक्ततयााँ हमािे पाठ्यपुस्तक हहंदी स्पशथ भाग-2 के ‘साखीʼ पाठ से ली गई है। इनके कवव ‘कबीि दासʼ
जी हैं।

भावाथथ इन पंक्ततयों में ‘कबीि दासʼ जी इस नश्वि संसाि में िहने वाले स्वाथी मनुष्यों के ववषय में बताना चाह िहे
हैं।

कवव कहते हैं, यह संसाि नश्वि है । मनष्ु य को यह ज्ञान ही नहीं है तथा अज्ञानतावश वे
ईश्वि भक्तत से ववमुख हैं। वे स्वाथी बनकि मसफथ अपने जीवन में खाते हैं, सोते हैं तथा अपने आप को इस संसाि
का सबसे सुखी व्यक्तत मानते हैं।

पुन: कवव कहते हैं, मैं इस नश्वि संसाि के लोगों की अज्ञानता को दे खकि अत्यंत ही
दख
ु ी हाँ तथा उनकी इस अवस्था को दे खकि मैं जाग िहा हाँ औि िो िहा हाँ। कवव चाहते हैं कक इस संसाि के लोगों
को भी ज्ञान का प्रकाश ममल जाए तथा ईश्वि भक्तत की ओि अग्रसि हो जाए।
काव्य सौंदयथ ● इन पंक्ततयों में सिल भाषा का प्रयोग ककया गया है।

● इस दोहे में सिुतकडी भाषा का प्रयोग ककया गया है।

● ‘सुखखया सब संसािʼ तथा ‘दखु खया दासʼ में अनुप्रास अलंकाि है।

● यहााँ ‘संसािʼ को ‘नश्विʼ बताया गया है तथा मनुष्य जन्म की साथथकता ‘भगवत ् प्राक्ततʼ को बताया गया है।

5) बबिह भुवगंम---------------------------------- तो बौिा होइ ।।

शब्दाथथ बबिह- ववयोग, भव


ु गंम- सााँप, तन- शिीि बसै- बसता है, मंत्र- उपाय, न- नहीं, लागै- लगना, कोइ- कोई,
िाम- ईश्वि, बबयोगी- प्रेम में व्याकुल िहने वाला, ना- नहीं, क्जवै- जीता है, बौिा- पागल के समान, होइ- होना।

प्रसंग प्रस्तत
ु पंक्ततयााँ हमािे पाठ्यपस्
ु तक हहंदी स्पशथ भाग-2 के ‘साखीʼ पाठ से ली गई है। इनके कवव ‘कबीि दासʼ
जी हैं।

भावाथथ इन पंक्ततयों में ‘कबीिदासʼ जी ईश्वि भक्तत के महत्व को दशाथना चाह िहे हैं।

‘कबीिदासʼ जी कहते हैं, क्जन व्यक्ततयों के शिीि में पिमात्मा का वविह रूपी सााँप
बस जाता है, उनके बचने की कोई आशा नहीं होती। कोई भी उपाय कािगि मसद्ि नहीं होता।

यहद ककसी कािण से वह जीववत िह भी जाता है , तो पिमात्मा को पाने के मलए


वह पागलों की भााँतत ही जीवन व्यतीत किता है , अथाथत ् वैिाग्य के कािण लोगों को वह पागल जैसा हदखाई दे ता है।
पिमात्मा से ममलन ही इसका एकमात्र उपाय है।

काव्य सौंदयथ ● इन पंक्ततयों में सिल भाषा का प्रयोग ककया गया है।

● इन पंक्ततयों में सिुतकडी भाषा का प्रयोग ककया गया है।

● ‘बबिह भुवंगमʼ में रूपक अलंकाि है।

नोि- रूपक अलंकाि ( इसमें एक वस्तु को दसिी वस्तु पि इस प्रकाि िखी जाती है कक अंति ही पता न चले ) ।

नोि- तयािे बच्चों, मेिे द्वािा हदए गए उपयुथतत सािे नोिस ् अपनी स्पशथ की कॉपी में शुद्ि-शुद्ि तथा सुंदि
मलखावि में मलखकि याद कि लेना।

Mrs Mamta Rani

17 April 2021

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