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10 - Assignment - Notes 2 - Sakhi
10 - Assignment - Notes 2 - Sakhi
शब्दाथथ- मैं- अहंकाि, हरि- ईश्वि, नााँहह- नहीं, अाँधियािा- अाँिेिा, ममहि-ममिना, दीपक- प्रकाश, दे ख्या- दे खना, मााँहह-
मुझमें।
प्रसंग- प्रस्तुत पंक्ततयााँ हमािे पाठ्यपुस्तक हहंदी स्पशथ भाग-2 के ‘साखीʼ पाठ से ली गई है। इनके कवव ‘कबीि
दासʼ जी हैं।
भावाथथ इन पंक्ततयों में कबीि दास जी ज्ञान के महत्व को दशाथ िहे हैं।
कवव कहते हैं, जब मेिे अंदि अहंकाि रूपी अज्ञानता थी, तब मेिे पास ईश्वि
रुपी ज्ञान का प्रकाश नहीं था। अब मेिे पास ईश्वि रुपी ज्ञान का प्रकाश है तथा अहंकाि रूपी अज्ञानता अब मेिे
पास नहीं है। कवव कहते हैं, मेिे भीति ज्ञानरूपी ज्योतत फैलते ही सािा अाँिेिा रुपी अज्ञान खत्म हो गया।
काव्य सौंदयथ ● इन पंक्ततयों में सिल भाषा का प्रयोग ककया गया है।
शब्दाथथ सुखखया- सुखी, खायै- खाए, अरू- औि, सोवै- सोना, दखु खया- दख
ु ी, दास- पिमात्मा का सेवक, जागै- जागना,
िोवै- िोता है।
प्रसंग प्रस्तुत पंक्ततयााँ हमािे पाठ्यपुस्तक हहंदी स्पशथ भाग-2 के ‘साखीʼ पाठ से ली गई है। इनके कवव ‘कबीि दासʼ
जी हैं।
भावाथथ इन पंक्ततयों में ‘कबीि दासʼ जी इस नश्वि संसाि में िहने वाले स्वाथी मनुष्यों के ववषय में बताना चाह िहे
हैं।
कवव कहते हैं, यह संसाि नश्वि है । मनष्ु य को यह ज्ञान ही नहीं है तथा अज्ञानतावश वे
ईश्वि भक्तत से ववमुख हैं। वे स्वाथी बनकि मसफथ अपने जीवन में खाते हैं, सोते हैं तथा अपने आप को इस संसाि
का सबसे सुखी व्यक्तत मानते हैं।
पुन: कवव कहते हैं, मैं इस नश्वि संसाि के लोगों की अज्ञानता को दे खकि अत्यंत ही
दख
ु ी हाँ तथा उनकी इस अवस्था को दे खकि मैं जाग िहा हाँ औि िो िहा हाँ। कवव चाहते हैं कक इस संसाि के लोगों
को भी ज्ञान का प्रकाश ममल जाए तथा ईश्वि भक्तत की ओि अग्रसि हो जाए।
काव्य सौंदयथ ● इन पंक्ततयों में सिल भाषा का प्रयोग ककया गया है।
● ‘सुखखया सब संसािʼ तथा ‘दखु खया दासʼ में अनुप्रास अलंकाि है।
● यहााँ ‘संसािʼ को ‘नश्विʼ बताया गया है तथा मनुष्य जन्म की साथथकता ‘भगवत ् प्राक्ततʼ को बताया गया है।
प्रसंग प्रस्तत
ु पंक्ततयााँ हमािे पाठ्यपस्
ु तक हहंदी स्पशथ भाग-2 के ‘साखीʼ पाठ से ली गई है। इनके कवव ‘कबीि दासʼ
जी हैं।
भावाथथ इन पंक्ततयों में ‘कबीिदासʼ जी ईश्वि भक्तत के महत्व को दशाथना चाह िहे हैं।
‘कबीिदासʼ जी कहते हैं, क्जन व्यक्ततयों के शिीि में पिमात्मा का वविह रूपी सााँप
बस जाता है, उनके बचने की कोई आशा नहीं होती। कोई भी उपाय कािगि मसद्ि नहीं होता।
काव्य सौंदयथ ● इन पंक्ततयों में सिल भाषा का प्रयोग ककया गया है।
नोि- रूपक अलंकाि ( इसमें एक वस्तु को दसिी वस्तु पि इस प्रकाि िखी जाती है कक अंति ही पता न चले ) ।
नोि- तयािे बच्चों, मेिे द्वािा हदए गए उपयुथतत सािे नोिस ् अपनी स्पशथ की कॉपी में शुद्ि-शुद्ि तथा सुंदि
मलखावि में मलखकि याद कि लेना।
17 April 2021