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ीम गव गीता या है ? इसे पढ़ना य आव यक है ?

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admin January 24,


2019

Bhagavad-Geeta

ीम गव गीता या है ? – What is Bhagavad Geeta?


ीम गव गीता भगवान ी कृ ण के मुख से िनकली हुई परम रह यमय वाणी है । इसम भगवान ी कृ ण ने अजुन को
िनिमत (मा यम) बना कर स पूण सृि के क याण के लए उपदेश िदया है । महाभारत के यु म जब अजुन ने श ु सेना म
अपने ही स ब धी िपतामह, भाई, भतीज , मामा और गु जनो को देखा तो वह मोह त हो भगवान से यु ना करने का
आ ह करने लगा । तब भगवान ी कृ ण ने अजुन को जो उपदेश िदया है वही ी मदभगवदगीता के नाम से िव यात है ।

इस ीम गव गीता म 18 अ याय और 700 ोक ह ।

सव थम हम यहाँ जानगे िक भगव गीता य आव यक है ? और साथ ही हम यह भी जानगे क ीम भगव गीता को


कैसे समझा जाए ?

य िक यहाँ पर (भगवान ी कृ ण) जो िक इस स पूण सृि के उ प￸त का मूल कारण है। वो परम तेज वी अजुन को
यह परम ान दे रह ह । यहाँ ान देने और ान हण करने वाले दोन क प रक पना हम जैसे साधारण यि य के
लए असंभव है । इसका ता पय कदािप यह नह है क गीता हम जैसे साधारण यि य के लए नह है। य िक भगवान
ी कृ ण हम जैसे अ प बु￸ य के क याण के लए ही यह परम ान िदया है ।

ीम गव गीता के ही एक ोक के मा यम से जानगे िक भगव ीता य आव यक है –

यदा यदा िह धमंसय गलािनभवित भारत।


अ यु थानमधम य तदा मानं सृजा यहम्।।

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अथ: हे अजुन ! जब- जब धम क हािन होती है और अधम म वृ￸ , तब – तब ही म अपने प को रचता हूँ। तथा
साकार प से लोग के स मुख कट होता हूँ ।

ीम गव गीता य आव यक है ? – Why Bhagavad Geeta is


necessary?
भगवान ीह र येक युग म कट लेते ह। और अपने जीवन लीला म आने वाले युग के क याण के लए संदेश देते है।
भगवान ने ापर युग म ी कृ णा अवतार लेकर कलयुग म उ प सम याओं का समाधान िदया है । भगवान सृि के
उ प कता है । उ ह ात था िक कलयुग म चारो तरप लोभ, मोह, हतासा िनराशा रहेगा । लोग अ पायु, अ पबु￸ ,
धैयहीन, शि हीन ह गे। कलयुग म यि यान, ान, योग तथा कम से िवमुख ह गे ।

यि चंचल ह गे तथा उ ह चंचल करने वाले साधन अनंत ह गे । यि ू रे पर आरोप- यारोप लगाएँ गे ।
एक दस

गु – ￱श य से, प￸त – प नी से, ेमी – ेिमका से, िपता – पु से असंतु ट रहगे। यि यथ – ￸च तनं तथा दस
ू रे क
नदा म ल रहगे। ऐसे अनेको कारण है जो कलयुग को भयावह बनाएगा। उन सभी सम याओं का समाधान भगवान
ीकृ ण ने भगव ीता के मा यम से िदया । भगवद गीता के अ यन से यि कलयुग म उ प सम याओं से मु हो जाता
है । और अपने जीवन काल म आनंद से लेकर परमानंद तक का सफर तय करता है ।

भगवद गीता को कैसे समझा जाए ? – ( How to understand Bhagavad


Geeta )
भगव ीता को समझने के लए सबसे पहले अजुन के च र ￵चतन क आव यकता है। िबना अजुन के महा मय को समझे
गीता का रह य समझ पाना असंभव है ।

अजुन के च र –
अजुन सदैव अ￱भमान से रिहत तथा सा वक गुण से संप यि थे। क णा से यु अजुन मन, कम और वचन से िकसी
को भी िकसी कार का क नह देते। तेज धैय, मा तथा सहनशीलता उनका वभािवक गुण था।

उनम सभी ा￱णय के लए दया तथा िकसी के लए भी श ु भाव का सवथा अभाव था। अपने अिहत करने वालो पर भी
ोध का ना होना उनके वभाव म ही था । उ ह िन ा तथा इ य पर िवजय ा था। भगवान, देवता था गु जनो का
पूजन करना उ ह अ यंत ि य था । वह त व ान के लए यान योग म िनरंतर ढ संक पत रहते थे । वे िनरंतर भगवान
ी कृ ण के ￵चतन म लीन रहते थे । उपरो गुण म से कोई भी गुण यिद कसी यि म हो तो वह कृ ण भि क ओर
वतः आकृ होता है। साथ ही वह भगवान ीकृ ण क कृपा से वह उनके परम ान भगव गीता को समझने म स म
होता है।

िकस कार क़े यि भजते है भगवन ी कृ ण को ? – What kind of


person worship Lord Krishna?
भगवत गीता म भगवन ी कृ ण वयं अपने भ के बारे म बताते हुए उ ह ने कहा है –

चतु िवधा भज ते मां जनाः सु कृितनोऽजु न ।


आतो िज ासु रथाथी ानी च भरतषभ।।

अथ – हे भरतवं￱शय म सव े अजुन! उ म कम को करने वाले आत, ■ज ासु, अथाथ और ानी ऐसे चार कार के
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यि मुझको भजते ह ।

यहाँ आत का अथ है – संकट मुि के लए भेजने वाले, ■ज ासु – मुझ को वा तिवक प से जानने क इ छा वाले,
अथाथ – सांसा रक पदाथ को ा करने वाले एवं ानी – ानी यि तो सा ात् मेरे व प ही ह; य िक वह िन य
एक भाव से मुझ म ही थत रहता है ।

अब हम जानगे क भगव ीता म 18 अ याय म कौन – कौन से है था उन अ याय म िकन – िकन बात क चचा क गई है
। ये 18 अधयाय है –

ीम गव गीता के सभी अ याय :-


अ याय थम – “अजुन िवषाद योग”

थम अ याय को अजुन िवषाद योग (visada Yoga) नाम से जाना जाता है । इसम धैयवान अजुन दोन प म
उप थत सेनाओं का िन र ण करते है। िन र ण के उपरांत अपने ही वजन, सागा – स ब धय , गु जनो को देख कर
अजुन मोह से त हो जाते है । और भगवान ीकृ ण से कहते है – हे गोिव द म यह यु नह करना चाहता हूँ ।

ि तीय अ याय – “सां ययोग”

ि तीय अ याय को सं यायोग (Sankhya-Yoga)नाम से जाना जाता है । इसम मोह त अजुन और भगवान् ीकृ ण
के बीच वातालाप होता है । साथ ही सं यायोग क चचा, कमयोग क चचा तथा ि य धम के अनुसार यु करने क
आव यकता भगवान् अजुन को बताते ह । थरबु￸ पु ष के कौन – कौन से ल ण है और उनक मिहमा का वणन िकया
है ।

तृतीय अ याय – ” कमयोग”

इस अ याय को कमयोग (Karma-Yoga) नाम से जाना जाता है । इस अ याय म भगवन ी कृ ण ने ानयोग एवं
कमयोग के अनु प आसि रिहत भाव से िनयत कम करने का वणन िकया है । य ािद कम क आव यकता का वणन
िकया गया है । साथ ही इस अ याय म काम िनरोध का वणन भी िकया गया है । अ ानी और ानी के ल ण का वणन
तथा राग – ेष से रिहत होकर यथात कम करने क सलाह दी गई है ।

चतुथ अ याय – “ ान कम स यास योग”

इस अ याय को ान कम स यास योग (Gyana Karma Sanyasa Yoga) नाम से जाना जाता है । इस अ याय म
भगवान् के भाव और कमयोग का वणन है । योगी और महा मा पु ष के ल ण तथा उनक मिहमा का वणन । कम और
अकम का वणन, साथ ही ान क मिहमा का भी वणन िकया गया है ।

पंचम अ याय – “कमस यास योग”

इस अ याय को कमस यास योग ( Karma Sanyasa Yoga ) नाम से जाना जाता है । इसम सां ययोगी और कमयोगी
पु ष के ल ण का वणन है । इस अ याय म ान, भि , यान एवं योग जैसे मह वपूण िवषयो क तुलना क गई है और
हर िवषय से अलग – अलग मुि माग बताये गए ह।

छठा अ याय – “आ मसंयम योग”

इस अ याय को आ मसंयम योग (Aatmsanyam Yoga) नाम से जाना जाता है । यह अ याय आ म क याण के लए
े रत करता है एवं साथ ही िव तर से धायनयोग और मन के िन ह जैसे िवषय के बारे म बताया गया है । भगवत ा
पु ष के िवशेषता बताये गए है और कैसे योग यि वयं को यानयोग क मिहमा से पूण सकता है ?
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सातवाँ अ याय – ानिव ान योग

इस अ याय को ान िव ानं योग (Gyana Vigyana Yoga) नाम से जाना जाता है । इसम स पूण पदाथ के मूल
कारण एवं उनके वभाव का यापक वणन िकया गया है । देवताओं क उपासना, भाव और भ के व प आिद का
वणन िकया गया है।

अठवा अ याय – “अ र योग”

इस अ याय को अ र योग (Akshar Brahma Yoga) नाम से जाना जाता है । ■जसमे अजुन के 7 ■जनका
संबध
ं , अ या म, कम और भि जैसे िवषय से है । साथ ही इस अ याय शु और कृ ण माग का िव तार से वणन
िकया गया है ।

नवम अ याय – “राज िव ा राज गु ः योग”

इस अ याय को राज िव ा राज गु ः ( Rajavidyarajaguhya Yoga )योग नाम से जाना जाता है । इसम संसार क
उ प￸त, मनु य क वृ जैसे िवषय का वणन िकया गया है। कमफल और उसके भाव को बताया गया है ।

दशवा अ याय – “िवभू￸त योग”

इस अ याय को िवभू￸त योग ( Vibhutooti Yoga )नाम से जाना जाता है । अजन के ाथना करने पर इसम भगवान्
कृ ण अपने िवभू￸तय और योग शि का ान अजुन को िदया है ।

यारहवा अ याय – “िव प दशन योग”

इस अ याय को िव प दशन योग (Vishwaroop Darshana Yoga) नाम से जाना जाता है । इस अ याय म अजुन
क िवनती करने पर भगवान् ी कृ ण ने अपने िवराट व प का दशन िदए है। साथ ही भयभीत अजुन को यु के लए
ो सािहत िकये है। ीकृ ण भगवान् ने अपने िव प, चतुभुज प और सौ य प का दशन िदए है। और उनसे होने वाले
लाभ एवं उस माग को ा करने का वणन िकया ।

बारवाह अ याय – “भि योग”

इस अ याय को भि योग (Bhakti Yoga) नाम से जाना जाता है। इस अ याय म साकार और िनराकार म के बारे म
िव तार से बताया गया है एवं भगवान् को ा करने के उपाय बताए गए ह ।

तैरवाह अ याय – “ े े िवभाग योग”

इस अ याय को े े िवभाग योग नाम से जाना जाता है । इस अ याय म े (शरीर) और े ज् (शरीर के बारे म
जानने वाले) ानी के बारे म बताया गया है । पाँच महाभूत, सुख – दःु ख, चेतना एवं भाव के बारे म बताया गया है । इस
अ याय म जीवन और मृ यु के रह य को समझाया गया है ।

चौदहवाँ अ याय – ” गुण य िवभाग योग “

इस अ याय को गुण य िवभाग योग के नाम से जाना जाता है । इस अ याय म गुण से यु भ क वृ￸त को बताया गया
है । स वगुण, रजोगुण एवं तमोगुण के बारे म िव तार से बताया गया है, साथ ही यह भी बताया गया है क मनु य इन तीन
गुण से कैसे मु हो सकता है ।

प हवाँ अ याय – “पु सो म योग”

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इस अ याय को पु षो म योग नाम से जाना जाता है । इसम संसार वृ का या या िकया गया है । साथ ही इस म
जीवा मा, परमे र के व प एवं पु षो म जैसे गहन िवषय को समझाया गया है ।

सोलहवाँ अ याय – “देव-असुर स पदा योग”

इस अ याय को देवसूरसंपि भाग योग नाम से जाना जाता है । इसम दैवी गुण एवं आसुरी गुण से यु यि य का वणन
िकया गया है । आसुरी स पदा से होने वाले अधोग￸त का वणन िकया गया है । साथ ही शा िवपरीत आचरण को याग ने
के लए एवं शा अनुकूल आचरण के लए ेऱणा दी गई है ।

स हवाँ अ याय – “ ा य िवभाग योग”

इस अ याय को ा य िवभाग योग के नाम से जाना जाता है । इसम ा ( वभाव) से उ प एवं शा के िवपरीत
आचरण करने वाले यि य के कार का वणन िकया गया है । साथ ही आहार, य , तप और दान के अलग – अलग भेद
का वणन िकया गया है ।

“ॐ तत सत” की मह ा को बताया गया है ।

अठाहरवाँ अ याय – “मो -स यास योग”

इस अ याय को मो – स यास योग नाम से जाना जाता है। इस अ याय म मो एवं स यास से जुड़े हर िवषय का वणन
िकया गया है ।

जैसे – फलसिहत वणधम, गुण अनुसार ान, कम, बु￸ और सुख को पृथक पृथक समझाया गया है । साथ ही ानिन ा,
भि सिहत कम योग और याग जैसे गहन िवषय का चचा िकया गया है और मो के माग को बताया गया है ।

“ ीमद भगवद गीता” के मह ा को बताया गया है ।

!!जय ी कृ ण!!

आप का िदन

मंगलमय हो!

Bhagavad Geeta Chapter 1

5/6
Bhagavad Geeta Chapter 2

Bhagavad Geeta Chapter 3

Bhagavadgita Chapter 4 )

6/6

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