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NCERT Solution

पाठ – 01
कबीर
न-अ यास:
(क) न न ल खत न के उ तर द"िजए -

उ तर1: मीठ वाणी का भाव चम का रक होता है । मीठ वाणी जीवन म आि मक सुख व शां त
दान करती है । मीठ वाणी मन से "ोध और घण
ृ ा के भाव न'ट कर दे ती है । इसके साथ
ह+ हमारा अंत:करण भी स.न हो जाता है । भाव /व0प और2 को सख
ु और शीतलता
ा4त होती है । मीठ वाणी के भाव से मन म ि/थत श5त
ु ा, कटुता व आपसी ई'या9-;वेष
के भाव समा4त हो जाते ह=।
उ तर2: क>व के अनस
ु ार िजस कार द+पक के जलने पर अंधकार अपने आप दरू हो जाता है और
उजाला फैल जाता है । उसी कार Bान 0पी द+पक जब Dदय म जलता है तो अBान 0पी
अंधकार Eमट जाता है । यहाँ द+पक Bान के काश का तीक है और अँGधयारा Bान का
तीक है । मन के >वकार अथा9त ् संशय, "ोध, मोह, लोभ आIद न'ट हो जाते ह=। तभी
उसे सव9Jयापी ईKवर कL ाि4त भी होती है ।
उ तर3: हमारा मन अBानता, अहं कार, >वलाEसताओं म डूबा है । ईKवर सब ओर Jया4त है । वह
नराकार है । हम मन के अBान के कारण ईKवर को पहचान नह+ं पाते। कबीर के
मतानुसार कण-कण म छपे परमा मा को पाने के Eलए Bान का होना अ यंत आवKयक
है । अBानता के कारण िजस कार मग
ृ अपने नाEभ म ि/थत क/तूर+ पूरे जंगल
म ढूँढता ह=, उसी कार हम अपने मन म छपे ईKवर को मंIदर, मि/जद, गु0;वारा सब
जगह ढूँढने कL कोEशश करते ह=।
उ तर4: कबीर के अनुसार जो JयिSत केवल सांसा रक सुख2 म डूबा रहता है और िजसके जीवन
का उTेKय केवल खाना, पीना और सोना है । वह+ JयिSत सुखी है ।
क>व के अनुसार 'सोना' अBानता का तीक है और 'जागना' Bान का तीक है । जो लोग
सांसा रक सुख2 म खोए रहते ह=, जीवन के भौ तक सुख2 म Eल4त रहते ह= वे सोए हुए ह=
और जो सांसा रक सुख2 को Jयथ9 समझते ह=, अपने को ईKवर के त सम>प9त करते ह= वे
ह+ जागते ह=।
Bानी JयिSत जानता है Xक संसार नKवर है Xफर भी मनु'य इसम डूबा हुआ है । यह
दे खकर वह दख
ु ी हो जाता है । वे संसार कL दद
ु 9 शा को दरू करने के Eलए Gचं तत रहते
ह=, सोते नह+ं है अथा9त जाYत अव/था म रहते ह=।
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उ तर5: कबीर का कहना है Xक /वभाव को नम9ल रखने के Eलए मन का नम9ल होना आवKयक
है । हम अपने /वभाव को नम9ल, न'कपट और सरल बनाए रखना चाहते ह= तो हम
अपने आँगन म कुट+ बनाकर सZमान के साथ नंदक को रखना चाIहए। नंदक हमारे
सबसे अ[छे Iहतैषी होते ह=। उनके ;वारा बताए गए 5Iु टय2 को दरू करके हम अपने
/वभाव को नम9ल बना सकते ह=।
उ तर6: क>व इस पंिSत ;वारा शा/5ीय Bान कL अपे\ा भिSत व ेम कL ]े'ठता को तपाIदत
करना चाहते ह=। ईKवर को पाने के Eलए एक अ\र ेम का अथा9त ् ईKवर को पढ़ लेना ह+
पया94त है । बड़े-बड़े पोथे या Y.थ पढ़ कर भी हर कोई पं`डत नह+ं बन जाता। केवल
परमा मा का नाम /मरण करने से ह+ स[चा Bानी बना जा सकता है । इसके Eलए मन
को सांसा रक मोह-माया से हटा कर ईKवर भिSत म लगाना पड़ता है ।
उ तर7: कबीर का अनुभव \े5 >व/तत
ृ था। कबीर जगह-जगह aमण कर य\ Bान ा4त करते
थे। अत: उनके ;वारा रGचत साbखय2 म अवधी, राज/थानी, भोजपुर+ और पंजाबी भाषाओं
के शcद2 का भाव /प'ट Iदखाई पडता है । इसी कारण उनकL भाषा को 'पचमेल
bखचडी' कहा जाता है । कबीर कL भाषा को सधS
ु कडी भी कहा जाता है । वे जैसा बोलते थे
वैसा ह+ Eलखा गया है । भाषा म लयबdता, उपदे शा मकता, वाह, सहजता, सरलता शैल+
है । लोकभाषा का भी योग हुआ है ; जैसे - खायै, नेग, मव
ु ा, जाfया, आँगbण आIद।

(ख) न न ल खत का भाव /प0ट क2िजए -


उ तर1: क>व कहते है >वरह-Jयथा >वष से भी अGधक मारक है । >वरह का सप9 शर+र के अंदर
नवास कर रहा है , िजस पर Xकसी तरह का मं5 लाभ द नह+ं हो पा रहा है । सामा.यत:
साँप बाgय अंग2 को डसता है िजस पर मं5ाIद कामयाब हो जाते ह= Xक.तु राम का >वरह
सप9 तो शर+र के अंदर >व'ट हो गया है , वहाँ वह लगातार डसता रहता है । कबीरदास
कgते है Xक िजस JयिSत के Dदय म ईKवर के त ेम 0पी >वरह का सप9 बस जाता
है , उस पर कोई मं5 असर नह+ं करता है । अथा9त ् भगवान के >वरह म कोई भी जीव
सामा.य नह+ं रहता है । उस पर Xकसी बात का कोई असर नह+ं होता है ।
उ तर2: इस पंिSत म क>व कहता है Xक िजस कार मग
ृ कL नाEभ म क/तूर+ रहती है Xक.तु वह
उसे जंगल म ढूँढता है । उसी कार मनु'य भी अBानतावश वा/त>वकता को नह+ं जानता
Xक ईKवर हर दे ह घट म नवास करता है और उसे ा4त करने के Eलए धाEम9क
/थल2, अनु'ठान2 म ढूँढता रहता है ।
उ तर3: इस पंिSत ;वारा क>व का कहना है Xक जब तक यह मानता था Xक 'म= हूँ', तबतक मेरे
सामने ह र नह+ं थे। और अब ह र आ गटे , तो म= नह+ं रहा।
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अँधेरा और उजाला एक साथ, एक ह+ समय, कैसे रह सकते ह=? जब तक मनु'य म
अBान 0पी अंधकार छाया है वह ईKवर को नह+ं पा सकता। अथा9त ् अहं कार और ईKवर का
साथ-साथ रहना नामुमXकन है । यह भावना दरू होते ह+ वह ईKवर को पा लेता है ।
उ तर4: क>व के अनुसार बड़े Yंथ, शा/5 पढ़ने भर से कोई Bानी नह+ं होता। अथा9त ् ईKवर कL
ाि4त नह+ं कर पाता। ेम से ईKवर का /मरण करने से ह+ उसे ा4त Xकया जा सकता
है ।ेम म बहुत शिSत होती है । जो अपने > य परमा मा के नाम का एक ह+ अ\र
जपता है (या ेम का एक अ\र पढ़ता है ) वह+ स[चा Bानी (पं`डत) होता है । वह+
परमा मा का स[चा भSत होता है ।

भाषा अ4ययन:
उ तर1: िजवै - जीना
औरन - और2 को
माँIह - के अंदर (म)
दे kया - दे खा
भुवंगम - साँप
नेड़ा - नकट
आँगbण - आँगन
साबण - साबुन
मुवा - मुआ
पीव - ेम
जालl - जलना
तास – उसका

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