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साखी

ऐसी बााँणी बोलिए मन का आपा खोई।


अपना तन सीति करै औरन कैं सख
ु होई।।
कबीर की साखी भावार्थ : प्रस्तुत पाठ कबीर की साखी की इन पंक्ततयों में कबीर ने वाणी को
अत्यधिक महत्त्वपूणण बताया है। महाकवव संत कबीर जी ने अपने दोहे में कहा है कक हमें ऐसी
मिुर वाणी बोिनी चाहहए, क्जससे हमें शीतिता का अनुभव हो और साथ ही सन
ु ने वािों का
मन भी प्रसन्न हो उठे । मिरु वाणी से समाज में प्रेम की भावना का संचार होता है। जबकक कटु
वचनों से हम एक-दस
ू रे के ववरोिी बन जाते हैं। इसलिए हमेशा मीठा और उधचत ही बोिना
चाहहए, जो दस
ू रों को तो प्रसन्न करता ही है और आपको भी सुख की अनुभूतत कराता है।

ऐसी बााँणी बोलिए मन का आपा खोई।


अपना तन सीति करै औरन कैं सुख होई।।
कबीर की साखी भावार्थ : प्रस्तुत पाठ कबीर की साखी की इन पंक्ततयों में कबीर ने वाणी को
अत्यधिक महत्त्वपूणण बताया है। महाकवव संत कबीर जी ने अपने दोहे में कहा है कक हमें ऐसी
मिुर वाणी बोिनी चाहहए, क्जससे हमें शीतिता का अनुभव हो और साथ ही सन
ु ने वािों का
मन भी प्रसन्न हो उठे । मिरु वाणी से समाज में प्रेम की भावना का संचार होता है। जबकक कटु
वचनों से हम एक-दस
ू रे के ववरोिी बन जाते हैं। इसलिए हमेशा मीठा और उधचत ही बोिना
चाहहए, जो दस
ू रों को तो प्रसन्न करता ही है और आपको भी सुख की अनुभूतत कराता है।

जब मैं था तब हरर नहीं अब हरर हैं मैं नााँहह।


सब अाँधियारा लमटी गया दीपक देख्या मााँहह॥
कबीर की साखी भावार्थ : प्रस्तत
ु पाठ कबीर की साखी की इन पंक्ततयों में कबीर जी कह रहे हैं
कक जब तक मनष्ु य में अहंकार (मैं) रहता है, तब तक वह ईश्वर की भक्तत में िीन नहीं हो
सकता और एक बार जो मनष्ु य ईश्वर-भक्तत में पण
ू ण रुप से िीन हो जाता है, उस मनष्ु य के
अंदर कोई अहंकार शेष नहीं रहता। वह खद
ु को नगण्य समझता है। क्जस प्रकार दीपक के जिते
ही पूरा अंिकार लमट जाता है और चारों तरफ प्रकाश फ़ैि जाता है, ठीक उसी प्रकार, भक्तत के
मागण पर चिने से ही मनुष्य के अंदर व्याप्त अहंकार लमट जाता है।
सुखखया सब संसार है खाए अरु सोवै।
दखु खया दास कबीर है जागे अरु रोवै।।
कबीर की साखी भावार्थ : प्रस्तत
ु पाठ कबीर की साखी की इन पंक्ततयों में कबीर ने समाज के
ऊपर व्यंग्य ककया है। वह कहते हैं कक सारा संसार ककसी झांसे में जी रहा है। िोग खाते हैं और
सोते हैं, उन्हें ककसी बात की धचंता नहीं है। वह लसफ़ण खाने एवं सोने से ही ख़श
ु हो जाते हैं।
जबकक सच्ची ख़श
ु ी तो तब प्राप्त होती है, जब आप प्रभु की आरािना में िीन हो जाते हो।
परन्तु भक्तत का मागण इतना आसान नहीं है, इसी वजह से संत कबीर को जागना एवं रोना
पड़ता है।
बबरह भव
ु ंगम तन बसै मन्र न िागै कोई।
राम बबयोगी ना क्जवै क्जवै तो बौरा होई।।
कबीर की साखी भावार्थ : क्जस प्रकार अपने प्रेमी से बबछड़े हुए व्यक्तत की पीड़ा ककसी मंर या
दवा से ठीक नहीं हो सकती, ठीक उसी प्रकार, अपने प्रभु से बबछडा हुआ कोई भतत जी नहीं
सकता। उसमें प्रभु-भक्तत के अिावा कुछ शेष बचता ही नहीं। अपने प्रभु से बबछड़ अगर वो
जीववत रह भी जाते हैं, तो अपने प्रभु की याद में वो पागि हो जाते हैं।
तनंदक नेड़ा राखखये, आाँगखण कुटी बाँिाइ।
बबन साबण पााँणीं बबना, तनरमि करै सुभाइ॥
कबीर की साखी भावार्थ : प्रस्तुत पाठ कबीर की साखी की इन पंक्ततयों में संत कबीर दास जी के
अनुसार जो व्यक्तत हमारी तनंदा करते हैं, उनसे कभी दरू नहीं भागना चाहहए, बक्कक हमें हमेशा
उनके समीप रहना चाहहए। जैसे हम ककसी गाय को अपने आाँगन में खूाँटे से बांिकर रखते हैं,
ठीक उसी प्रकार ही हमें तनंदा करने वािे व्यक्तत को अपने पास रखने का कोई प्रबंि कर िेना
चाहहए। क्जससे हम रोज उनसे अपनी बुराईयों के बारे में जान सकें और अपनी गिततयााँ दोबारा
दोहराने से बच सकें। इस प्रकार हम बबना साबुन और पानी के ही खुद को तनमणि बना सकते
हैं।
पोथी पहि पहि जग मुवा, पंडडत भया न कोइ।
एकै अवषर पीव का, पिै सु पंडडत होइ॥
कबीर की साखी भावार्थ : प्रस्तत
ु पाठ कबीर की साखी की इन पंक्ततयों में कबीर के अनस
ु ार
लसफ़ण मोटी-मोटी ककताबों को पिकर ककताबी ज्ञान प्राप्त कर िेने से भी कोई पंडडत नहीं बन
सकता। जबकक ईश्वर-भक्तत का एक अक्षर पि कर भी िोग पंडडत बन जाते हैं। अथाणत ककताबी
ज्ञान के साथ-साथ व्यवहाररक ज्ञान भी होना आवश्यक है, नहीं तो कोई व्यक्तत ज्ञानी नहीं बन
सकता।
हम घर जाकया आपणााँ, लिया मुराड़ा हाधथ।
अब घर जािौं तास का, जे चिै हमारे साधथ॥
कबीर की साखी भावार्थ : सच्चा ज्ञान प्राप्त करने के लिए, हमें अपनी मोह-माया का त्याग करना
होगा। तभी हम सच्चे ज्ञान की प्राक्प्त कर सकते हैं। कबीर के अनुसार, उन्होंने खद
ु ही अपने
मोह-माया रूपी घर को ज्ञान रूपी मशाि से जिाया है। अगर कोई उनके साथ भक्तत की राह
पर चिना चाहता है, तो कबीर अपनी इस मशाि से उसका घर भी रौशन करें गे अथाणत अपने
ज्ञान से उसे मोह-माया के बंिन से मत
ु त करें गे।

Question 1:
निम्िलिखखत प्रश्ि का उत्तर दीजिए −

मीठी वाणी बोिने से औरों को सुख और अपने तन को शीतिता कै से प्राप्त होती है ?


Answer:

जब भी हम मीठी वाणी बोिते हैं , तो उसका प्रभाव चमत्काररक होता है । इससे सुन ने वािे
की आत्मा त ृप्त होती है और मन प्रसन्न होता है । उसके मन से क्रोि और घ ृणा के भाव
नष्ट हो जाते हैं। इसके साथ ही हमारा अं त:करण भी प्रसन्न हो जाता है । प्रभाव स्वरुप
औरों को सु ख और शीतिता प्राप्त होती है ।
Question 2:
निम्िलिखखत प्रश्ि का उत्तर दीजिए −
दीपक हदखाई दे ने पर अाँ धियारा कै से लमट जाता है ? साखी के संद भण में स्पष्ट कीक्जए।
Answer:
गहरे अंि कार में जब दीपक जिाया जाता है तो अाँ िेरा लमट जाता है और उजािा फै ि जाता
है । कबीरदास जी कहते हैं उसी प्रकार ज्ञान रुपी दीपक जब हृदय में जिता है तो अज्ञान
रुपी अंि कार लमट जाता है मन के ववकार अथाणत सं शय, भ्रम आहद नष्ट हो जाते हैं। तभी
उसे सवण व्यापी ईश्वर की प्राक्प्त भी होती है ।
Question 3:
निम्िलिखखत प्रश्ि का उत्तर दीजिए −
ईश्वर कण–कण में व्याप्त है , पर हम उसे तयों नहीं दे ख पाते ?
Answer:
ईश्वर सब ओर व्याप्त है । वह तनराकार है । हमारा मन अज्ञानता, अहं कार, वविालसताओं में
डू बा है । इसलिए हम उसे नहीं दे ख पाते हैं। हम उसे मं हदर, मक्स्जद, गु रु द्वारा सब जगह
ढूाँ ढने की कोलशश करते हैं िे ककन जब हमारी अज्ञानता समाप्त होती है हम अंत रात्मा का
दीपक जिाते हैं तो अपने ही अंदर समाया ईश्वर हम दे ख पाते हैं ।
Question 4:
निम्िलिखखत प्रश्ि का उत्तर दीजिए −
सं सार में सुखी व्यक्तत कौन है और द ख
ु ी कौन? यहााँ ‘सोना‘ और ‘जागना‘ ककसके प्रतीक
हैं ? इसका प्रयोग यहााँ तयों ककया गया है ? स्पष्ट कीक्जए।
Answer:

कवव के अनु सार सं सार में वो िोग सु खी हैं , जो संसार में व्याप्त सु ख-सु वविाओं का भोग
करते हैं और द ुखी वे हैं , क्जन्हें ज्ञान की प्राक्प्त हो गई है । ‘सोना’ अज्ञानता का प्रतीक है और
‘जागना’ ज्ञान का प्रतीक है । जो िोग सां साररक सुखों में खोए रहते हैं , जीवन के भौततक
सु खों में लिप्त रहते हैं वे सोए हुए हैं और जो सांसाररक सु खों को व्यथण समझते हैं , अपने को
ईश्वर के प्रतत समवपणत करते हैं वे ही जागते हैं। वे सं सार की द दु ण शा को दरू करने के लिए
धचंततत रहते हैं , सोते नहीं है अथाणत जाग्रत अवस्था में रहते हैं ।
Question 5:
निम्िलिखखत प्रश्ि का उत्तर दीजिए −

अपने स्वभाव को तनमण ि रखने के लिए कबीर ने तया उपाय सु झाया है ?


Answer:

कबीर का कहना है कक हम अपने स्वभाव को तनमण ि , तनष्कपट और सरि बनाए रखना


चाहते हैं तो हमें अपने आसपास तनंद क रखने चाहहए ताकक वे हमारी रु हटयों को बता सके ।
तनंद क हमारे सबसे अच्छे हहतै षी होते हैं। उनके द्वारा बताए गए रु हटयों को द रू करके हम
अपने स्वभाव को तनमण ि बना सकते हैं ।
Question 6:
निम्िलिखखत प्रश्ि का उत्तर दीजिए −
‘ऐकै अवषर पीव का, पिै सु पं डडत होई‘ −इस पं क्तत द्वारा कवव तया कहना चाहता है ?
Answer:

इन पं क्ततयों द्वारा कवव ने प्रेम की महत्ता को बताया है । ईश्वर को पाने के लिए एक अक्षर
प्रे म का अथाणत ईश्वर को पि िेना ही पयाण प्त है । बड़े - बड़े पोथे या ग्रन्थ पि कर भी हर
कोई पं डडत नहीं बन जाता। केवि परमात्मा का नाम स्मरण करने से ही सच्चा ज्ञानी बना
जा सकता है । अथाणत ईश्वर को पाने के लिए सां साररक िोभ माया को छोड़ना पड़ता है ।
Question 7:
निम्िलिखखत प्रश्ि का उत्तर दीजिए −

कबीर की उद्िृत साखखयों की भाषा की ववशे ष ता स्पष्ट कीक्जए।


Answer:
कबीर ने अपनी साखखयााँ सिुतकड़ी भाषा में लिखी है । इनकी भाषा लमिीजु िी है । इनकी
साखखयााँ संदे श दे ने वािी होती हैं। वे जै सा बोिते थे वै सा ही लिखा है । िोकभाषा का भी
प्रयोग हु आ है ; जै से– खायै , ने ग , मु वा, जाकया, आाँ ग खण आहद भाषा में
ियबद्िता, उपदे शात्मकता, प्रवाह, सहजता, सरिता शै िी है ।
Question 1:
भाव स्पष्ट कीजिए−

बबरह भुवं ग म तन बसै , मंर न िागै कोइ।


Answer:

इस कववता का भाव है कक क्जस व्यक्तत के हृदय में ईश्वर के प्रतत प्रे म रुपी ववरह का सपण
बस जाता है , उस पर कोई मंर असर नहीं करता है । अथाण त भगवान के ववरह में कोई भी
जीव सामान्य नहीं रहता है । उस पर ककसी बात का कोई असर नहीं होता है ।
Question 2:
भाव स्पष्ट कीजिए−

कस्तूरी कंु डलि बसै , मृग ढूाँ ढै बन मााँ हह।


Answer:

इस पं क्तत में कवव कहता है कक क्जस प्रकार हहरण अपनी नालभ से आती सु गंि पर मोहहत
रहता है परन्तु वह यह नहीं जानता कक यह सु गंि उसकी नालभ में से आ रही है । वह उसे
इिर-उिर ढूाँ ढता रहता है । उसी प्रकार मनु ष्य भी अज्ञानतावश वास्तववकता को नहीं जानता
कक ईश्वर उसी में तनवास करता है और उसे प्राप्त करने के लिए िालमणक स्थिों, अनु ष्ठानों
में ढूाँ ढता रहता है ।
Question 3:
भाव स्पष्ट कीजिए−
जब मैं था तब हरर नहीं , अब हरर हैं मैं नााँ हह।
Answer:
इस पं क्तत द्वारा कवव का कहना है कक जब तक मनु ष्य में अज्ञान रुपी अं िकार छाया है
वह ईश्वर को नहीं पा सकता। अथाण त अहं कार और ईश्वर का साथ–साथ रहना नामु म ककन
है । यह भावना द रू होते ही वह ईश्वर को पा िे ता है ।
Question 4:
भाव स्पष्ट कीजिए−
पोथी पहि पहि जग मुवा, पं डडत भया न कोइ।
Answer:
कवव के अनु सार बड़े ग्रंथ , शास्र पिने भर से कोई ज्ञानी नहीं होता। अथाण त ईश्वर की प्राक्प्त
नहीं कर पाता। प्रेम से इश्वर का स्मरण करने से ही उसे प्राप्त ककया जा सकता है । प्रे म में
बहु त शक्तत होती है ।

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