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चंडी पुराण
लेखक वेद ास
दे श भारत
भाषा सं कृत
ृंखला पुराण
कार ह धा मक थ
पृ १८,००० ोक
एक बार भगवत्-अनुरागी तथा पु या मा मह षय ने
ी वेद ास के परम श य सूतजी से ाथना क -हे
ानसागर ! आपके ीमुख से व णु भगवान और
शंकर के दै वी च र तथा अ त लीलाएं सुनकर हम
ब त सुखी ए। ई र म आ था बढ़ और ान ा त
कया। अब कृपा कर मानव जा त को सम त सुख
को उपल ध कराने वाले, आ मक श दे ने वाले तथा
भोग और मो दान कराने वाले प व तम पुराण
आ यान सुनाकर अनुगह
ृ ीत क जए। ाने छु और
वन महा मा क न कपट अ भलाषा जानकर
महामु न सूतजी ने अनु ह वीकार कया। उ ह ने
कहा-जन क याण क लालसा से आपने बड़ी सुंदर
इ छा कट क । म आप लोग को उसे सुनाता ँ। यह
सच है क ी मद् दे वी भागवत् पुराण सभी शा
तथा धा मक ंथ म महान है। इसके सामने बड़े-बड़े
तीथ और त नग य ह। इस पुराण के सुनने से पाप
सूखे वन क भां त जलकर न हो जाते ह, जससे
मनु य को शोक, लेश, :ख आ द नह भोगने पड़ते।
जस कार सूय के काश के सामने अंधकार छं ट
जाता है, उसी कार भागवत् पुराण के वण से
मनु य के सभी क , ा धयां और संकोच समा त हो
जाते ह। महा मा ने सूतजी से भागवत् पुराण के
संबंध म ये ज ासाएं रख :
आ वभाव
मह ष पराशर और दे वी स यवती के संयोग से
ीनारायण के अंशावतार दे व ासजी का ज म आ।
ासजी ने अपने समय और समाज क थत
पहचानते ए वेद को चार भाग म वभ कया और
अपने चार पटु श य को उनका बोध कराया। इसके
प ात् वेदा ययन के अ धकार से वं चत नर-ना रय का
मंदबु य के क याण के लए अ ारह पुराण क
रचना क , ता क वे भी धम-पालन म समथ हो सक।
सूतजी ने कहा-महा मन्! गु जी के आदे शानुसार स ह
पुराण के सार एवं चार का दा य व मुझ पर आया,
कतु भोग और मो दाता भागवत पुराण वयं गु जी
ने ज मेजय को सुनाया। आप जानते ह-ज मेजय के
पता राजा परी त को त क सप ने डस लया था
और राजा ने अपनी ह या के क याण के लए ीमद्
भागवत् पुराण का वण कया था। राजा ने नौ दन
नरंतर लोकमाता भगवती गा क पूजा-आराधना क
तथा मु न वेद ास के मुख से लोकमाता क म हमा से
पूण भागवत पुराण का वण कया।
दे वी पुराण क म हमा
दे वी पुराण के पढ़ने एवं सुनने से भयंकर रोग,
अ तवृ , अनावृ भूत- ेत बाधा, क योग और
सरे आ धभौ तक, आ धदै वक तथा आ धदै हक
क का नवारण हो जाता है। सूतजी ने इसके लए
एक कथा का उ लेख करते ए कहा-वसुदेव जी
ारा दे वी भागवत पुराण को पारायण का फल ही
था क सेन जत को ढूं ढ़ने गए ीकृ ण संकट से
मु होकर सकुशल घर लौट आए थे। इस पुराण के
वण से द र धनी, रोगी-नीरोगी तथा पु हीन ी
पु वती हो जाती है। ा ण, य, वै य तथा शू
चतुवण के य ारा समान प से पठनीय
एवं वण यो य यह पुराण आयु, व ा, बल, धन,
यश तथा त ा दे ने वाला अनुपम ंथ है।
पारायण का उपयु समय
सूतजी बोले-दे वी भागवत क कथा- वण से भ
और ालु ोता को ऋ -स क ा त
होती है। मा णभरक कथा- वण से भी दे वी के
भ को कभी क नह होता। सभी तीथ और
त का फल दे वी भागवत के एक बार के वण
मा से ा त हो जाता है। सतयुग, ेता तथा ापर
म तो मनु य के लए अनेक धम-कम ह, कतु
क लयुग म तो पुराण सुनने के अ त र कोई अ य
धा मक आचरण नह है। क लयुग के धम-कमहीन
तथा आचारहीन मनु य के क याण के लए ही ी
ासजी ने पुराण-अमृत क सृ क थी। दे वी
पुराण के वण के लए य तो सभी समय
फलदायी है, कतु फर भी आ न, चै , मागशीष
तथा आषाढ़ मास एवं दोन नवरा म पुराण के
वण से वशेष पु य होता है। वा तव म यह पुराण
नवा य है, जो सभी पु य कम से सव प र एवं
न त फलदायक है। इस नवा य से छली, मूख,
अ म , वेद- वमुख नदक, चोर, भचारी,
उठाईगीर, म याचारी, गो-दे वता- ा ण नदक तथा
गु े षी जैसे भयानक पापी शु और पापर हत हो
जाते ह। बड़े-बड़े त , तीथ-या ा , बृहद् य या
तप से भी वह पु य फल ा त नह होता जो
ीमद् दे वी भागवत् पुराण के नवा पारायण से
ा त होता है।
तथा न गंगा न गया न काशी न नै मषं न मथुरा
न पु करम्।
पुना त स : बदरीवनं नो यथा ह दे वीमख एष
व ा:।
गंगा, गया, काशी, नै मषार य, मथुरा, पु कर और
बदरीवन आ द तीथ क या ा से भी वह फल ा त
नह होता, जो नवा पारायण प दे वी भागवत
वण य से ा त होता है। सूतजी के अनुसार-
आ न् मास के शु ल प क अ मी को वण
सहासन पर ीमद् भागवत क त ा कराकर
ा ण को दे ने वाला दे वी के परम पद को ा त कर
लेता है। इस पुराण क म हमा इतनी महान है क
नयमपूवक एक-आध ोक का पारायण करने
वाला भ भी मां भगवती क कृपा ा त कर लेता
है।
पौरा णक मह व
वण व ध
दे वी भागवत पुराण के अनुसार आगत मु नय को यह
कथा सुनाते ए सूतजी बोले- ालु ऋ षय ! कथा
वण के लए ालु जन को शुभ मु त नकलवाने
के लए कसी यो त वद् से सलाह लेनी चा हए या
फर नवरा म ही यह कथा- वण उपयु है। इस
अनु ान क सूचना ववाह के समान ही अपने सभी
बंधु-बांधव , सगे-संबं धय , प र चत , ा ण, य,
वै य , शू एवं य को भी आमं त करना चा हए।
जो जतना अ धक समय वण म दे सके, उतना
अव य दे । सभी आगंतुक का वागत स कार
आयोजन का धम है। कथा- थल को गोबर से लीपकर
एक मंडप और उसके ऊपर एक गुंबद के आकार का
चंदोवा लटकाकर इसके ऊपर दे वी च यु वजा
फहरा दे नी चा हए। कथा सुनाने के लए सदाचारी,
कमकांडी, नल भी कुशल उपदे शक को ही नयु
करना चा हए। ात:काल नान आ द से नवृ होकर
व छव धारण कर कलश क थापना करनी
चा हए। गणेश, नव ह, यो गनी, मातृका, े पाल,
बटु क, तुलसी व णु तथा शंकर आ द क पूजा करके
भगवती गा क आराधना करनी चा हए। दे वी क
षोडशोपचार पूजा-अचना करके दे वी भागवत ंथ क
पूजा करनी चा हए तथा दे वी य न व न समा त होने
क अ यथना करनी चा हए। द णा और नम कार
करते ए दे वी क तु त ारंभ करनी चा हए।
त प ात् यानाव थत होकर दे वी कथा वण करनी
चा हए। कथा के वणकाल म ोता अथवा व ा को
ौर कम नह करवाना चा हए। भू म पर शयन
चय का पालन सादा भोजन संयम शु आचरण
स य भाषण, तथा अ हसा का त लेना चा हए। तामस
पदाथ यथा- याज, लहसुन, मांस, म दरा आ द का
भ ण भी व जत है। ी- संग का बलपूवक याग
करना चा हए। नवा य क समा त पर नव दन
अनु ान का उ ापन करना चा हए। उस दन व ा
तथा भागवत पुराण दोन क पूजा करनी चा हए।
ा ण तथा कुमा रका को भोजन एवं द णा
दे कर तृ त करना चा हए। गाय ी मं से होम करके
वण मंजूषा पर अ ध त भागवत पुराण व ा ा ण
को दान म दे ते ए द णा द से संतु करते ए उसे
वदा करना चा हए। पूव व ध- वधान से न काम
भाव से पारायण करने वाला ोता ालु मो पद को
और सकाम भाव से पारायण करने वाला अपने
अभी को ा त करता है। कथा- वण के समय
कसी भी कार का वातालाप, यानभ नता, आसन
बदलने, ऊंघने या अ ा से बड़ी भारी हा न हो
सकती है अत: ऐसा नह करना चा हए। सूतजी
महाराज ने कहा-अठारह पुराण म दे वी भागवत् पुराण
उसी कार सव म है, जस कार न दय म गंगा,
दे व म शंकर, का म रामायण, काश ोत म सूय,
शीतलता और आ ाद म चं मा, माशील म पृ वी,
गंभीरता म सागर और मं म गाय ी आ द े ह।
यह पुराण वण सब कार के क का नवारण
करके आ मक याण करता है। अत: इसका पारायण
सभी के लए े एवं वरे य है।
इ ह भी दे ख
भागवत पुराण
बाहरी क डयाँ
दे वीभागवतपुराणम् (सं कृत व क ोत)
दे वीभागवत (मराठ अनुवाद स हत)
मह ष बंधन व व ालय -यहाँ स पूण वै दक
सा ह य सं कृत म उपल ध है।
वेद एवं वेदांग - आय समाज, जामनगर के जालघर
पर सभी वेद एवं उनके भा य दये ए ह।
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