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दे वीभागवत पुराण

चंडी पुराण

यह पुराण परम प व वेद क स ु तय के अथ


से अनुमो दत, अ खल शा के रह यका ोत तथा
आगम म अपना स थान रखता है। यह सग,
तसग, वंश, वंशानुक त, म व तर आ द पाँच
ल ण से पूण ह। परा बा भगवती के प व आ यान
से यु है। इस पुराण म लगभग १८,००० ोक है।
दे वीभागवत पुराण  

दे वीभागवत पुराण, गीता ेस गोरखपुर का आवरण पृ

लेखक वेद ास

दे श भारत

भाषा सं कृत

ृंखला पुराण

वषय दे वी महा यम्

कार ह धा मक थ

मी डया कार Prashant chaturvedi

पृ १८,००० ोक
एक बार भगवत्-अनुरागी तथा पु या मा मह षय ने
ी वेद ास के परम श य सूतजी से ाथना क -हे
ानसागर ! आपके ीमुख से व णु भगवान और
शंकर के दै वी च र तथा अ त लीलाएं सुनकर हम
ब त सुखी ए। ई र म आ था बढ़ और ान ा त
कया। अब कृपा कर मानव जा त को सम त सुख
को उपल ध कराने वाले, आ मक श दे ने वाले तथा
भोग और मो दान कराने वाले प व तम पुराण
आ यान सुनाकर अनुगह
ृ ीत क जए। ाने छु और
वन महा मा क न कपट अ भलाषा जानकर
महामु न सूतजी ने अनु ह वीकार कया। उ ह ने
कहा-जन क याण क लालसा से आपने बड़ी सुंदर
इ छा कट क । म आप लोग को उसे सुनाता ँ। यह
सच है क ी मद् दे वी भागवत् पुराण सभी शा
तथा धा मक ंथ म महान है। इसके सामने बड़े-बड़े
तीथ और त नग य ह। इस पुराण के सुनने से पाप
सूखे वन क भां त जलकर न हो जाते ह, जससे
मनु य को शोक, लेश, :ख आ द नह भोगने पड़ते।
जस कार सूय के काश के सामने अंधकार छं ट
जाता है, उसी कार भागवत् पुराण के वण से
मनु य के सभी क , ा धयां और संकोच समा त हो
जाते ह। महा मा ने सूतजी से भागवत् पुराण के
संबंध म ये ज ासाएं रख :

पव ीमद् दे वी भागवत् पुराण का आ वभाव


कब आ ?
इसके पठन-पाठन का समय या है ?
इसके वण-पठन से कन- कन कामना क पू त
होती है ?
सव थम इसका वण कसने कया ?
इसके पारायण क व ध या है ?

आ वभाव
मह ष पराशर और दे वी स यवती के संयोग से
ीनारायण के अंशावतार दे व ासजी का ज म आ।
ासजी ने अपने समय और समाज क थत
पहचानते ए वेद को चार भाग म वभ कया और
अपने चार पटु श य को उनका बोध कराया। इसके
प ात् वेदा ययन के अ धकार से वं चत नर-ना रय का
मंदबु य के क याण के लए अ ारह पुराण क
रचना क , ता क वे भी धम-पालन म समथ हो सक।
सूतजी ने कहा-महा मन्! गु जी के आदे शानुसार स ह
पुराण के सार एवं चार का दा य व मुझ पर आया,
कतु भोग और मो दाता भागवत पुराण वयं गु जी
ने ज मेजय को सुनाया। आप जानते ह-ज मेजय के
पता राजा परी त को त क सप ने डस लया था
और राजा ने अपनी ह या के क याण के लए ीमद्
भागवत् पुराण का वण कया था। राजा ने नौ दन
नरंतर लोकमाता भगवती गा क पूजा-आराधना क
तथा मु न वेद ास के मुख से लोकमाता क म हमा से
पूण भागवत पुराण का वण कया।

दे वी पुराण क म हमा
दे वी पुराण के पढ़ने एवं सुनने से भयंकर रोग,
अ तवृ , अनावृ भूत- ेत बाधा, क योग और
सरे आ धभौ तक, आ धदै वक तथा आ धदै हक
क का नवारण हो जाता है। सूतजी ने इसके लए
एक कथा का उ लेख करते ए कहा-वसुदेव जी
ारा दे वी भागवत पुराण को पारायण का फल ही
था क सेन जत को ढूं ढ़ने गए ीकृ ण संकट से
मु होकर सकुशल घर लौट आए थे। इस पुराण के
वण से द र धनी, रोगी-नीरोगी तथा पु हीन ी
पु वती हो जाती है। ा ण, य, वै य तथा शू
चतुवण के य ारा समान प से पठनीय
एवं वण यो य यह पुराण आयु, व ा, बल, धन,
यश तथा त ा दे ने वाला अनुपम ंथ है।
पारायण का उपयु समय
सूतजी बोले-दे वी भागवत क कथा- वण से भ
और ालु ोता को ऋ -स क ा त
होती है। मा णभरक कथा- वण से भी दे वी के
भ को कभी क नह होता। सभी तीथ और
त का फल दे वी भागवत के एक बार के वण
मा से ा त हो जाता है। सतयुग, ेता तथा ापर
म तो मनु य के लए अनेक धम-कम ह, कतु
क लयुग म तो पुराण सुनने के अ त र कोई अ य
धा मक आचरण नह है। क लयुग के धम-कमहीन
तथा आचारहीन मनु य के क याण के लए ही ी
ासजी ने पुराण-अमृत क सृ क थी। दे वी
पुराण के वण के लए य तो सभी समय
फलदायी है, कतु फर भी आ न, चै , मागशीष
तथा आषाढ़ मास एवं दोन नवरा म पुराण के
वण से वशेष पु य होता है। वा तव म यह पुराण
नवा य है, जो सभी पु य कम से सव प र एवं
न त फलदायक है। इस नवा य से छली, मूख,
अ म , वेद- वमुख नदक, चोर, भचारी,
उठाईगीर, म याचारी, गो-दे वता- ा ण नदक तथा
गु े षी जैसे भयानक पापी शु और पापर हत हो
जाते ह। बड़े-बड़े त , तीथ-या ा , बृहद् य या
तप से भी वह पु य फल ा त नह होता जो
ीमद् दे वी भागवत् पुराण के नवा पारायण से
ा त होता है।
तथा न गंगा न गया न काशी न नै मषं न मथुरा
न पु करम्।
पुना त स : बदरीवनं नो यथा ह दे वीमख एष
व ा:।
गंगा, गया, काशी, नै मषार य, मथुरा, पु कर और
बदरीवन आ द तीथ क या ा से भी वह फल ा त
नह होता, जो नवा पारायण प दे वी भागवत
वण य से ा त होता है। सूतजी के अनुसार-
आ न् मास के शु ल प क अ मी को वण
सहासन पर ीमद् भागवत क त ा कराकर
ा ण को दे ने वाला दे वी के परम पद को ा त कर
लेता है। इस पुराण क म हमा इतनी महान है क
नयमपूवक एक-आध ोक का पारायण करने
वाला भ भी मां भगवती क कृपा ा त कर लेता
है।

पौरा णक मह व

काली, तारा, षोडशी, भुवने री, छ म ता, धूमावती, बगलामुखी,


मातँगी, कमला आ द दे वयाँ
ी कृ ण सेन जत को ढूं ढ़ने के यास म खो गए थे
जो ी दे वी भगवती के आशीवाद से सकुशल लौट
आए। यह वृ ांत मह षय क इ छा से व तार से
सुनाते ए ी सूतजी कहने लगे-स जन  ! ब त पहले
ारका पुरी म भोजवंशी राजा स ा जत रहता था। सूय
क भ -आराधना के बल पर उसने वमंतक नाम क
अ यंत चमकदार म ण ा त क । म ण क ां त से
राजा वयं सूय जैसा भा-मं डत हो जाता था। इस
म म जब यादव ने ीकृ ण से भगवान सूय के
आगमन क बात कही, तब अंतयामी कृ ण ने यादव
क शंका का नवारण करते ए कहा क आने वाले
महानुभाव वमंतक म णधारी राजा स ा जत ह, सूय
नह । वमंतक म ण का गुण था क उसको धारण
करने वाला त दन आठ कलो वण ा त करेगा।
उस दे श म कसी भी कार क मानवीय या दै वीय
वप का कोई च तक नह था। वमंतक म ण
ा त करने क इ छा वयं कृ ण ने भी क ले कन
स ा जत ने अ वीकार कर दया।

एक बार स ा जत का भाई सेन जत उस म ण को


धारण करके घोड़े पर चढ़कर शकार को गया तो एक
सह ने उसे मार डाला। संयोग से जामवंत नामक रीछ
ने सह को ही मार डाला और वह म ण को लेकर
अपनी गुफा म आ गया। जामवंत क बेट म ण को
खलौना समझकर खेलने लगी। सेन जत के न लौटने
पर ारका म यह अफवाह फैल गई क कृ ण को
स ा जत ारा म ण दे ने से इनकार करने पर
भावनावश कृ ण ने सेन जत क ह या करा द और
म ण पर अपना अ धकार कर लया। कृ ण इस
अफवाह से :खी होकर सेन जत को खोजने के लए
नकल पड़े। वन म कृ ण और उनके सा थय ने
सेन जत के साथ एक सह को भी मरा पाया। उ ह
वहां रीछ के पैर के नशान के संकेत भी मले, जो
भीतर गुफा म वेश के सूचक थे। इससे कृ ण ने सह
को मारने तथा म ण के रीछ के पास होने का अनुमान
लगाया।

अपने सा थय को बाहर रहकर ती ा करने के लए


कहकर वयं कृ ण गुफा के भीतर वेश कर गए।
काफ समय बाद भी कृ ण के वापस न आने पर
नराश होकर लौटे साथी ने कृ ण के भी मारे जाने का
म या चार कर दया। कृ ण के न लौटने पर उनके
पता वसुदेव पु -शोक म थत हो उठे । उसी समय
मह ष नारद आ गए। समाचार जानकर नारदजी ने
वसुदेव से ीमद् दे वी भागवत पुराण के वण का
उपदे श दया। वसुदेव मां भगवती क कृपा से पूव
प र चत थे। उ ह ने नारदजी से कहा-दे व ष, दे वक के
साथ कारागारवास करते ए जब छ: पु कंस के हाथ
मारे जा चुके थे तो हम दोन प त-प नी काफ थत
और अंसतु लत हो गए थे। तब अपने कुल पुरो हत
मह ष गग से परामश कया और क से छु टकारा पाने
का उपाय पूछा। गु दे व ने जगद बा मां क गाथा का
पारायण करने को कहा। कारागार म होने के कारण
मेरे लए यह संभव नह था। अत: गु दे व से ही यह
काय संप कराने क ाथना क ।

वसुदेव ने कहा-मेरी ाथना वीकार करके गु दे व ने


व याचल पवत पर जाकर ा ण के साथ दे वी क
आराधना-अचना क । व ध- वधानपूवक दे वी भागवत
का नवा य कया। अनु ान पूण होने पर गु दे व ने
मुझे इसक सूचना दे ते ए कहा-दे वी ने स होकर
यह आकाशवाणी क है-मेरी ेरणा से वयं व णु
पृ वी के क नवारण हेतु वसुदेव दे वक के घर
अवतार लगे। वसुदेव को चा हए क उस बालक को
गोकुल ाम के नंद-यशोदा के घर प ंचा द और उसी
समय उ प यशोदा क बा लका को लाकर आठव
संतान के प म कंस को स प द। कंस यथावत्
बा लका को धरती पर पटक दे गा। वह बा लका कंस
के हाथ से त काल छू टकर द शरीर धारण कर, मेरे
ही अंश प से लोक क याण के लए व यांचल पवत
पर वास करेगी। गग मु न के ारा इस अनु ान फल
को सुन कर मने स ता करते ए आगे घट
घटनाएं मु न के कथनानुसार पूरी क और कृ ण क
र ा क । यह ववरण सुनाकर वसुदेव नारदजी से
कहने लगे-मु नवर ! सौभा य से आपका आगमन मेरे
लए शुभ है। अत: आप ही मुझे दे वी भागवत पुराण
क कथा सुनाकर उपकृत कर।

वसुदेव के कहने पर नारद ने अनु ह करते ए नवा


परायण कया। वसुदेव ने नव दन कथा समा त पर
नारदजी क पूजा-अचना क भगवती मां क माया से
ीकृ ण जब गुफा म व ए तो उ ह ने एक
बा लका को म ण से खेलते दे खा। जैसे ही कृ ण ने
बा लका से म ण ली, तो बा लका रो उठ । बा लका के
रोने क आवाज को सुनकर जामवंत वहां आ प ंचा
तथा कृ ण से यु करने लगा। दोन म स ाईस दन
तक यु चलता रहा। दे वी क कृपा से जामवंत
लगातार कमोजर पड़ता गया तथा ीकृ ण श -
संप होते गए। अंत म उ ह ने जामवंत को परा जत
कर दया। भगवती क कृपा से जामवंत को पूव मृ त
हो आई। ेता म रावण का वध करने वाले राम को ही
ापर म कृ ण के प म अवत रत जानकर उनक
वंदना क । अ ान म कए अपराध के लए मा
मांगी। म ण के साथ अपनी पु ी जांबवती को भी
स तापूवक कृ ण को सम पत कर दया।

मथुरा म कथा के समा त होने के बाद वसुदेव ा ण


भोज के बाद आशीवाद ले रहे थे, उसी समय कृ ण
म ण और जांबवती के साथ वहां प च गए। कृ ण को
वहां दे खकर सभी क स ता क कोई सीमा न रही।
भगवती का आभार कट करते ए वसुदेव-दे वक ने
ीकृ ण का अ ुपू रत ने से वागत कया। वसुदेव
का सफल काम बनाकर नारद दे वलोक वापस लौट
गए।

वण व ध
दे वी भागवत पुराण के अनुसार आगत मु नय को यह
कथा सुनाते ए सूतजी बोले- ालु ऋ षय  ! कथा
वण के लए ालु जन को शुभ मु त नकलवाने
के लए कसी यो त वद् से सलाह लेनी चा हए या
फर नवरा म ही यह कथा- वण उपयु है। इस
अनु ान क सूचना ववाह के समान ही अपने सभी
बंधु-बांधव , सगे-संबं धय , प र चत , ा ण, य,
वै य , शू एवं य को भी आमं त करना चा हए।
जो जतना अ धक समय वण म दे सके, उतना
अव य दे । सभी आगंतुक का वागत स कार
आयोजन का धम है। कथा- थल को गोबर से लीपकर
एक मंडप और उसके ऊपर एक गुंबद के आकार का
चंदोवा लटकाकर इसके ऊपर दे वी च यु वजा
फहरा दे नी चा हए। कथा सुनाने के लए सदाचारी,
कमकांडी, नल भी कुशल उपदे शक को ही नयु
करना चा हए। ात:काल नान आ द से नवृ होकर
व छव धारण कर कलश क थापना करनी
चा हए। गणेश, नव ह, यो गनी, मातृका, े पाल,
बटु क, तुलसी व णु तथा शंकर आ द क पूजा करके
भगवती गा क आराधना करनी चा हए। दे वी क
षोडशोपचार पूजा-अचना करके दे वी भागवत ंथ क
पूजा करनी चा हए तथा दे वी य न व न समा त होने
क अ यथना करनी चा हए। द णा और नम कार
करते ए दे वी क तु त ारंभ करनी चा हए।
त प ात् यानाव थत होकर दे वी कथा वण करनी
चा हए। कथा के वणकाल म ोता अथवा व ा को
ौर कम नह करवाना चा हए। भू म पर शयन
चय का पालन सादा भोजन संयम शु आचरण
स य भाषण, तथा अ हसा का त लेना चा हए। तामस
पदाथ यथा- याज, लहसुन, मांस, म दरा आ द का
भ ण भी व जत है। ी- संग का बलपूवक याग
करना चा हए। नवा य क समा त पर नव दन
अनु ान का उ ापन करना चा हए। उस दन व ा
तथा भागवत पुराण दोन क पूजा करनी चा हए।
ा ण तथा कुमा रका को भोजन एवं द णा
दे कर तृ त करना चा हए। गाय ी मं से होम करके
वण मंजूषा पर अ ध त भागवत पुराण व ा ा ण
को दान म दे ते ए द णा द से संतु करते ए उसे
वदा करना चा हए। पूव व ध- वधान से न काम
भाव से पारायण करने वाला ोता ालु मो पद को
और सकाम भाव से पारायण करने वाला अपने
अभी को ा त करता है। कथा- वण के समय
कसी भी कार का वातालाप, यानभ नता, आसन
बदलने, ऊंघने या अ ा से बड़ी भारी हा न हो
सकती है अत: ऐसा नह करना चा हए। सूतजी
महाराज ने कहा-अठारह पुराण म दे वी भागवत् पुराण
उसी कार सव म है, जस कार न दय म गंगा,
दे व म शंकर, का म रामायण, काश ोत म सूय,
शीतलता और आ ाद म चं मा, माशील म पृ वी,
गंभीरता म सागर और मं म गाय ी आ द े ह।
यह पुराण वण सब कार के क का नवारण
करके आ मक याण करता है। अत: इसका पारायण
सभी के लए े एवं वरे य है।

इ ह भी दे ख
भागवत पुराण

बाहरी क डयाँ
दे वीभागवतपुराणम् (सं कृत व क ोत)
दे वीभागवत (मराठ अनुवाद स हत)
मह ष बंधन व व ालय -यहाँ स पूण वै दक
सा ह य सं कृत म उपल ध है।
वेद एवं वेदांग - आय समाज, जामनगर के जालघर
पर सभी वेद एवं उनके भा य दये ए ह।

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