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Sampoorna Panchatantra (Hindi Edition)
Sampoorna Panchatantra (Hindi Edition)
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प चत को भारतीय स यता, सं कृ त, आचार- वचार तथा
पर परा का व श थ होने के कारण मह वपूण थान
दान कया जाता है। यही वह थ है, जसम छोट -छोट
कहा नय के मा यम से अनेक धा मक, सामा जक तथा
राजनै तक त य क इतनी सु दर और रोचक ा या तुत
क गयी है, जैसी कसी अ य थ म मलना लभ है।
प चत मानव-जीवन म आने वाले सुख- ःख, हष- वषाद
तथा उ थान-पतन म व श मागदशक स आ है। इस
पु तक का एक-एक पृ आपक कसी-न- कसी सम या के
समाधान म अव य ही सहायक स होगा।
सं कृत सा ह य का यह थ-र न कई हज़ार वष से अपनी
उपयो गता और लोक यता के कारण पूरे व म स हो
चुका है। सं कृत के इस गौरव- थ को ह द के पाठक तक
प ंचाने के लए इसे अ य त सरल भाषा म तुत कया जा
रहा है। आशा है क ह द के पाठक इसे पढ़कर लाभ
उठायगे।
म भेद
(म के बीच म फूट डालने के उपाय)
कथा म : दो
कथा म : तीन
स ीवक के पूछने पर उसे द तल क कथा सुनाते ए दमनक कहने लगा—
वधमान नामक नगर म द तल नामक एक सेठ पूरे नगर के जाजन व राजपु ष म
समान प से लोक य था। लोग क यह धारणा बन चुक थी क उसके समान कुशल और
े न अ य कोई आ है और न होगा।
कथा म : चार
कथा म : पांच
कसी गांव म एक जुलाहा और एक बढ़ई रहते थे। उन दोन म इतनी म ता हो गयी क
दोन अपना-अपना समय साथ-साथ ही बताने लगे। एक बार कसी म दर म एक समारोह
का आयोजन आ, जसम अनेक नट और नतक आ द ने अपनी-अपनी कला के अपूव
कथा म : सात
कसी जंगल के एक तालाब म अनेक जलचर जीव भरे पड़े थे। वृ हो जाने के कारण भूख
कथा म : आठ
जंगल म रहने वाला भासुरक नामक सह त दन अनेक पशु को मार डालता था। एक
दन सब पशु ने मलकर वचार कया और वे सह के पास आकर उससे बोले—आपको
अपनी भूख मटाने के लए त दन केवल एक ही पशु क आव यकता होती है, ले कन
आप अनेक पशु को मार डालते ह। हम आपके पास त दन एक पशु भेज दया करगे,
जससे आपक भूख मट जाया करेगी और आप कसी अ य पशु का वध नह करगे।
राजधम भी यही कहता है और आपको राजधम का पालन करना ही चा हए। शा का
कथन है
शनैः शनै यो रा यमुपभुङ् े यथाबलम् ।
रसायन मव ा ः स पु परमां जेत् ।।
क अपनी श के अनुसार रा य का धीरे-धीरे उपभोग करने वाला राजा ही बु मान्
कहलाता है और रसायन का सेवन करने से पु होने वाले के समान वह पु भी होता
है।
व धना म यु े न ा प म थता प च ।
य छ त फलं भू मररणीव ताशनम् ।।
जस कार ठ क ढं ग से रगड़ने पर य क स मधा से अ न कट होती है, ठ क ढं ग
से जोती गयी धरती ही पया त उपज दे ती है, उसी कार उ चत ढं ग से खाने वाला राजा भी
अ धक क त ा त करता है।
गोपालेन जाधेनो व धं शनैः शनैः ।
पालना पोषणाद् ा ं या यां वृ समाचरेत् ।।
राजा पी वाले को चा हए क वह जा पी गाय का दोहन धीरे-धीरे ही करे, जससे
जापालन के साथ-साथ राजा के याय क भी शंसा हो।
लोकानु हक ारः व ते नरे राः ।
लोकानां सं या चैव यं या त न संशयः ।।
अपनी जा का अ न नवारण करने वाला राजा जहां नर तर समृ होता जाता है,
वहां जा का शोषण करने वाला राजा न हो जाता है, इसम कोई स दे ह नह है।
सह ने भी पशु के ताव को मान लया और वह त दन अपने पास आये पशु
को मारकर अपना पेट भरने लगा। एक दन एक ख़रगोश क बारी आयी, तो उसने सोचा क
कथा म : नौ
कसी राजा के शयनक म सफ़ेद कपड़ म लपट म द वस पणी नामक एक जूं रहती थी,
जो राजा के सो जाने पर उसका र पीकर व थ होती जा रही थी। एक दन अचानक ही
अ नमुख नामक एक खटमल घूमता-घामता वहां आ गया। जूं ने खटमल को सावधान करते
ए कहा—तुम ग़लत थान पर आ गये हो। कसी ने दे ख लया, तो मारे जाओगे। तु हारा
भला इसी म है क यहां से तुर त चलते बनो।
खटमल बोला—घर म आये जन से भी कोई ऐसा वहार नह करता।
ए ाग छ समा सासन मदं
क मा चराद् यसे
का वा ान व त बलोऽ सकुशलं
ीतोऽ म ते दशनात् ।
एवं नीचजनेऽ प यु य त
गृहं ा ते सतां सवदा
धम ऽयं गृहमे धनां नग दतः
मातलघुः वगदः ।।
अ त थ से तो कहा जाता है—आइये, पधा रये, बड़े सौभा य से आपके दशन ए ह।
आप कुशल से तो ह, हम तो आपके दशन से कृतकृ य अनुभव कर रहे ह।
नी तकार ने नीच अ त थ के त भी श ता दखाने वाले गृह थ को पु या मा और
वग-लाभ करने वाला बताया है।
यूं तो मने अनेक पु ष के र पये ह और उनके खान-पान के कारण उनके र से
कड़वा, ख ा, तीखा और कसैला आ द वाद भी चखे ह, पर तु मुझे कसी के भी र पान से
मीठे वाद का अनुभव नह आ। उ म अ तथा रस आ द का सेवन करने वाले राजा के
र का वाद अव य ही मीठा होगा। केवल एक बार मुझे इसका वाद भी लेने दो।
रङ् क य नृपतेवा प ज ासौ यं समं मृतम् ।
त मा च मृतं सारं यदथ यतते जनः ।।
राजा और रंक दोन म जीभ क लोलुपता एक-जैसी ही पायी जाती है। वा तव म,
ाणी के जीवन का सार भी यही है। म तुमसे ाथना करता ं क मुझे केवल एक बार यह
सुख ा त कर लेने दो।
य ेवं न भवे लोके कम ज ा तु दम् ।
कथा म : दस
जंगल म रहने वाला च डरव नामक गीदड़ अपनी भूख मटाने के लए कसी गांव म घुसा,
तो कु ने उसे घेर लया और काट खाया। अपने बचाव के लए गीदड़ पास म बने धोबी के
घर म घुस गया और खुले पड़े नील के कड़ाह म जा गरा। अपने शरीर पर चढ़े नीले रंग को
दे खकर गीदड़ ने उससे लाभ उठाने क सोची; य क नीला रंग कभी नह छू टता।
व लेप य मूख य नारीणां ककट य च ।
एको ह तु मीनानां नीलीम पयोयथा ।।
व -लेप (एक कार का ला टर), मूख , नारी, केकड़ा, मछली, शराबी और
नील क अव था एक-जैसी ही होती है। व -लेप से चाहे कभी मु मल जाये, क तु
केकड़े, मछली के दांत और नीले रंग से कभी मु नह मलती।
च डरव गीदड़ के जंगल म आने पर उसके व च रंग और आकृ त से डरे सह आ द
ाणी भी इधर-उधर भागने लगे। गीदड़ ने भागते ए णय को अभयदान दे ते ए कहा—
ाजी ने मुझे तुम सब पर शासन करने के लए यहां भेजा है। तु ह मुझसे डरना नह
चा हए। म ऐसी याय- व था क ं गा क कसी को कोई क नह होगा।
च डरव गीदड़ ने सह को म ीपद, ा को श यापाल, गडे को ता बूल नायक
तथा भे ड़ये को सुर ा धकारी नयु कर दया। इस कार उस मूख ने सारे बड़े-बड़े पद
अ य अनेक ा णय को दे दये, क तु अपने जा त-ब धु को अनदे खा व अपमा नत कर
उनसे र- र रहने लगा।
गीदड़ इस बात से तो स थे क उनका जा त-ब धु जंगल का शासक था, पर तु
उसका वहार उ ह एकदम अ य लगता था। समझाने-बुझाने का कोई अनुकूल प रणाम
न नकलते दे ख गीदड़ ने योजनाब होकर सामू हक प से ‘ आ- आ’ क व न करनी
आर भ कर द , जसे सुनकर च डरव य न करने पर भी वयं को रोक न सका। वह भी
उनके साथ मलकर आ- आ क व न करने लगा।
च डरव के इस आचरण से सह आ द पशु पर उसक अस लयत उजागर हो गयी
और सभी पशु ने उस के वध का नणय ले लया। भनक पड़ते ही च डरव ने भागकर
अपने ाण बचाने का यास कया, क तु वह सह के हाथ मारा गया।
यह कथा सुनाकर दमनक बोला—इसी लए म कहता ं क कसी भी अप र चत से
मै ी का प रणाम ःखदायी ही होता है।
कथा म : यारह
कसी जंगल म मदो कट नामक सह ने अपने अनुचर के साथ अपने झु ड से बछड़कर
उस जंगल म आ गये एक ऊंट को दे खा, तो उसने अपने सा थय से यह पता लगाने के लए
कहा क यह ऊंट पालतू है या जंगली? कौआ बोला—महाराज! म जानता ं क यह पशु
पालतू है। आप इसको अपना भोजन बना सकते ह।
कौए क इस बात से सहम त कट न करते ए सह ने कहा—अ त थ प म आये
इस जानवर का वध करना मुझे उ चत नह लगता। शा म कहा गया है
गृहे श ुम प ा तं व तमकुतोभयम् ।
यो ह या य पापं या छत ा णघातजम् ।।
क व ास करके न शंक होकर घर म आये श ु क ह या करने वाले को सौ ा ण क
ह या करने का पाप लगता है।
सह ने अपने सेवक को आदे श दया क तुम अ त थ प म आये ऊंट को अभयदान
दे कर मेरे पास ले आओ, ता क म उससे उसके यहां आने का कारण पूछ सकूं। वामी का
कथा म : बारह
समु के प म ट टहरी का एक जोड़ा रहता था। ट टहरी गभवती थी। उसने अपना
सवकाल नकट जानकर अपने प त को कोई सुर त थान ढूं ढ़ने के लए कहा, तो
ट टहरे ने समु को छोड़कर कसी सरे थान पर जाना वीकार नह कया। ट टहरी बोली
—पू णमा क रात म समु का वार जब हा थय तक को अपने साथ ख चकर ले जाता है,
तो हमारे अ डे कैसे सुर त रह सकगे? म तो कहती ं क अभी से कोई सुर त थान को
ढूं ढ़ रखना ही ठ क रहेगा। ट टहरा बोला—तुम ठ क कह रही हो, पर तु समु मेरे ब च को
बहाकर ले जाने क ह मत नह करेगा। दे खो
बद् वा बरचरमाग पगतधूमं सदा मह यदम् ।
म दम तः कः वश त ताशनं वे छया मनुजः ।।
आकाश म वचरण करने वाल के माग को रोकने म समथ धूमर हत, ले कन भयंकर आग म
कोई बु हीन भी अपने हाथ को डालकर जलाना नह चाहता।
को ग वा यमसदनं वयत तकमा दश यजातभयः ।
ाणानपहर म ो य द श ः का चद त तव ।।
यमलोक म प ंचकर यमराज को यु क चुनौती दे ने क तथा अपने ाण को हर
लेने क चुनौती दे ने क मूखता कौन करना चाहता है?
मेरे वचार से तो तु ह यहां रहकर ही अपना सव करना चा हए;
यः पराभवस तः व थानं स यजे रः ।
तेन चे पु णी माता त या केन क यते ।।
य क पराजय के डर से थान छोड़ दे ने वाला तो कायर कहलाता है। ऐसे पु को ज म दे ने
वाली मां भी अपनी श गंवा दे ने के लए पछताती है।
ट टहरे के अहंकार से भरे वचन को सुनकर समु सोचने लगा—यह कतना छोटा-
सा जीव है और कतनी ऊंची उड़ान भर रहा है, सुनकर आ य होता है। शा म ठ क ही
कहा है
उ य ट भः पादावा ते भंगभया वः ।
व च क पतो गवः क य ना ा प व ते ।।
कथा मः तेरह
कसी तालाब म रहने वाले क बु ीव नामक एक कछु ए क संकट और वकट नाम वाले दो
हंस से बड़ी म ता थी। हंस और कछु आ सारा-सारा दन एक साथ घूमते और सायंकाल
होने पर अपने-अपने नवास पर वापस लौट जाते थे। एक बार वषा न होने के कारण तालाब
का जल सूखने लगा, तो हंस ने कसी अ य तालाब पर जाने का मन बना लया और अपने
म कछु ए से बोले—अब तु हारा या होगा? कछु आ बोला—जल से र हत तालाब म रहना
तो सचमुच क द है, क तु फर भी आपको इतना अ धक च तत नह होना चा हए।
शा का कथन है
या यं न धै य वधुरेऽ प काले
धै या कदा च तमा ुया सः ।
यथा समु े ऽ प च पोतभ े
सांया को वा छ त ततुमेव ।।
क भा य के तकूल होने पर भी को धैय नह छोड़ना चा हए। धैय बनाये रखकर ही
संकट से पार पाने का माग ढूं ढ़ा जा सकता है। समु पोत के टू ट जाने पर भी या ी डू बना
पस द नह करते। वे भी कनारे पर आने के लए अपने हाथ-पैर चलाते ह।
म ाथ बा धवाथ च बु मा यतते सदा ।
जाता वाप सु य नेन जगादे दं वचो मनुः ।।
मनु के अनुसार बड़ी-से-बड़ी वप आ पड़ने पर भी बु मान् को अपने
म और बा धव के बचाव क चे ा करनी चा हए। ले कन य द आपने यहां न रहने का
कथा म : चौदह
कसी तालाब म अनागत वधाता, यु प म त और यद्भ व य नामक तीन मछ लयां रहती
थ । एक दन सायंकाल घर लौटते समय मछु आर ने उस तालाब को जीव से भरा दे खा, तो
अगले दन सवेरे ही वहां अपना जाल डालने का वचार बना लया।
मछु आर के इस वचार को सुनकर अनागत वधाता नामक मछली ने अपनी साथी
मछ लय को बुलाकर रात म ही कसी सरे तालाब म चले जाने क सलाह द ;
अश ै ब लनः श ोः क ं पलायनम् ।
सं त ोऽथवा ग ना या तेषां ग तभवेत् ।।
य क असमथ के लए बलवान् श ु से बचाव के दो ही उपाय होते ह—भाग जाना या
कसी ग-जैसे सुर त थान म प ंचकर वहां छप जाना।
ातःकाल होते ही मछु आरे यहां आकर धावा बोल दगे, इसी लए म कहती ं क हम
कथा म:प ह
एक वन म गौरैया का एक जोड़ा तमाल के वृ म घ सला बनाकर अपने ब च के साथ रहा
करता था। एक दन धूप के कारण परेशान एक हाथी उस वृ के नीचे आराम करने आ
गया, तो च चलता के कारण उसने गौरैया के घ सले वाली टहनी को तोड़ दया और उसे
नीचे गरा दया। घ सला गरने के साथ ही गौरैया के सारे अ डे फूट गये, ले कन सौभा यवश
गौरैया द पती बच गये। मादा गौरैया अपने अ ड के वनाश पर रो रही थी क उसका म
कठफोड़वा वहां आ प ंचा। गौरैया से उसके रोने का करण जानकर कठफोड़वा उसे
समझाते ए बोला—
न ं मृतम त ा तं नानुशोच त प डताः ।
प डताना च मूखाणां वशेषोऽयं यतः मृतः ।।
व ान् न हो चुके, मृत और भागे के लए शोक नह कया करते। शोक
तो मूख कया करते ह। मूख और व ान म यही अ तर है।
गौरैया बोली—तुम सच कह रहे हो, पर तु मेरे मन को शा त तभी मलेगी, जब मुझ
नरपराध क स तान का वध करने वाले इस हाथी को द ड मलेगा। य द तुम मेरी
कथा म : सोलह
कसी जंगल म रहने वाले व दं नामक सह के दो सेवक थे— मुख नामक भे ड़या
और चतुरक नामक शृगाल—जो सदा उसके आगे-पीछे लगे रहते थे। एक दन जंगल म
घूमते ए इन तीन ने अपने झु ड से बछु ड़ी एक गभवती ऊंटनी को दे ख लया, तो सह ने
उसका पेट फाड़ दया और उसे मार डाला। ले कन उसके पेट से नकले शशु पर सह को
दया आ गयी। उसने उस शशु को शंकुकण नाम दे कर और नभय होकर वन म वचरण
करने के लए छोड़ दया। अब वे चार ाणी एक साथ घूमते- फरते ए आन दपूवक अपने
दन बता रहे थे।
भा यवश, एक बार उस सह को एक हाथी के साथ यु करना पड़ा और उस यु
म सह इतना घायल हो गया क शकार करना भी उसके वश म नह रहा। भूख सहते-सहते
कुछ दन बीत गये, तो सह ने अपने सेवक से कसी ाणी को ढूं ढ़ लाने के लए कहा, ता क
उसको मारकर वह अपनी तथा उन सबक भूख मटा सके। गीदड़ और भे ड़या सारा दन
कथा म:स ह
एक पवतीय दे श म अचानक ई भारी वषा के कारण वहां रहने वाले वानर खी हो उठे
और सद से कांपते ए कुछ वानर ने आग तापने क इ छा से घुंघ चय को इकट् ठा कया
और उ ह फूंक मारते ए वे उनके चार ओर बैठ गये। वानर के इस मूखतापूण काम को
दे खकर सूचीमुख एक प ी उनसे कहने लगा—मूख ! या तु ह यह भी मालूम नह क यह
आग नह है। तुम सद से ठठु र रहे हो, इस लए अपनी र ा के लए पवत क कसी गुफा
अथवा कसी वन- दे श को ढूं ढ़ो।
सूचीमुख के कथन को सुनकर एक वानर बोला—अरे मूख! तू अपनी च ता कर,
तुझे हमारी च ता य हो रही है? नी तकार ने कहा है
मु व नतकमाणं ूतकारं परा जतम् ।
नालापये वेक ो यद छे स मा मनः ।।
क अपने काय म बार-बार व न पड़ने से परेशान तथा जुए म हारते ए जुआरी को समझाने
क चे ा नह करनी चा हए, अ यथा ऐसा करने वाले को ःख ही उठना पड़ता है।
आखेटकं वृथा लेशं मूख सनसं थतम् ।
कथा म : अठारह
एक जंगल म कसी शा मली वृ पर घ सला बनाकर गौरैया-द पती सुखपूवक रहा करते
थे। एक दन वे दोन अपने घ सले म बैठे ए थे क अचानक आकाश म बादल उमड़ आये
और ठ डी वायु चलने लगी। इसके साथ ही गजन-तजन करती मूसलाधार बरसात भी होने
लगी। उसी समय सद से कांपता एक मोटा-ताज़ा वानर उस वृ के नीचे आकर बैठ गया।
उस वानर क हालत को दे खकर गौरैया कहने लगी—
ह तपादसमोपेतो यसे पु षाकृ तः ।
शीतेन भ से मूढ! कथं न कु षे गृहम् ।।
तु हारे पु ष के समान हाथ-पैर ह और तुम बलवान् भी हो। सद और बरसात से
अपने बचाव के लए एक घर य नह बना लेत? े
गौरैया के कथन से ु होकर वानर कहने लगा—अरी मूखा! य थ बकबक कर
कथा म : उ ीस
कसी नगर म धमबु और पापबु नामक दो म रहा करते थे। पापबु ने सोचा क म
तो द र ,ं म धन नह कमा सकता। अतः य द म धमबु को अपने साथ मला लू,ं तो
उसक बु से कुछ कमाई करके अपना जीवन सुखी बना सकता ं।
यह सोचकर वह धमबु के पास गया और उससे बोला— म ! तु हारी इतनी आयु
हो गयी, ले कन तुम कभी कसी काम के लए अपने घर से बाहर नह गये। जब बड़े होकर
तु हारे ब चे तुमसे इस बारे म पूछगे, तब तुम उ ह या उ र दोगे?
दे शा तरेषु ब वधभाषावेशा द येन न ातम् ।
मता धरणीपीठे त य फलं ज मनो थम् ।।
दे श-दे शा तर म जाकर अनेक लोग क वेशभूषा और बोलचाल से अनजान
का इस पृ वी पर ज म लेना ही थ है।
व ा व ं श पं ताव ा ो त मानवः स यक् ।
यावद् ज त न भूमौ दे शा े शा तरं ः ।।
स मन से दे श-दे शा तर म न जाने वाला नाना कार क कला , श प,
कथा म : बीस
कसी जंगल म थत एक वटवृ पर कुछ बगुले रहते थे। उसी वृ क कोटर म एक काला
सांप भी रहता था, जो बगुल के ब च को उनके पंख नकलने से पहले ही खा जाता था।
अपनी स तान को इस कार न होते दे ख बगुल ने आपस म सलाह क , तो एक बगुले ने
केकड़े से इसका उपाय पूछने को कहा। यह सुनकर बगुले तालाब के कनारे रहने वाले
केकड़े के पास जा प ंचे। बगुल क था सुनकर केकड़ा स हो उठा और अपने मन-ही-
मन सोचने लगा क अब म अपने इन श ु को ऐसी सलाह ं गा क इनका वंश नमूल हो
जायेगा। कहा भी गया है
कथा म : बाईस
एक राजा ने स होकर एक वानर को अपना अंगर क बना लया। इस लए वह वानर
अ तःपुर म बना बाधा के आता-जाता रहता था। एक बार जब राजा सो रहा था, तो वह
वानर राजा को पंखा झल रहा था। उसने दे खा क एक म खी बार-बार राजा क छाती पर
आ बैठती थी। वानर उस म खी को उड़ाने का य न करता था, ले कन उसे सफलता नह
मलती थी। राजा क न द उचट जाने क आशंका से वानर उस म खी को उड़ाने का य न
करने लगा, क तु सफलता न मलने पर उस वानर ने म खी पर तलवार से हार कर दया।
म खी तो उड़ गयी, ले कन राजा के ाण भी उड़ गये।
इसी लए कहा गया है क राजा को अपने यहां मूख को आ य नह दे ना चा हए।
एक व ान् ा ण पूवज म के दोष के कारण चोर बन गया। उसने कसी र दे श से
आये चार ा ण को अपनी व तु को बेचकर अ ट म धन रखते दे खा, तो उस धन को
लूटने क इ छा से उस चोर बने ा ण ने उ ह ान से भरी बात सुनाकर उनका व ास
जीत लया और फर उनका सेवक बनकर उनके साथ हो लया। कहा भी गया है
असती भव त सल जा
ारं नीर च शीतलं भव त ।
द भी भव त ववेक
यव ा भव त धू जनः ।।
क कुलटा ी ल जाशील होने का नाटक करती है, खारा पानी ठ डा होता है, ानी
अहंकार से त होता है तथा वाथ एवं धूत य व ा होता है।
ा ण ने उस चोर ा ण पर व ास करके उसके सामने ही उन ब मू य र न को
अपनी गुदा म छपा लया। ा ण को जाता दे खकर चोर ा ण उ ह न लूट पाने के
कारण च ता म डू ब गया। उसने सोचा क इ ह वष दे कर इनका धन छ ना जा सकता है।
इस लए वह ा ण से अपने को साथ चलने क अनुम त दे ने क ाथना करने लगा, जस
।। थम त समा त ।।
म स ा तः
(नया म बनाने के साधन)
कथा म : एक
भारत क द ण दशा म थत म हलारो य नामक नगर के बाहर भगवान् शंकर का एक
मठ था, जहां ता चूड़ नामक सं यासी नगर से भ ा मांगकर अपना जीवनयापन कया
करता था। वह आधी भ ा से अपना पेट भरता था और आधी को एक पोटली म बांधकर
खूंट पर लटका दया करता था। उस आधी भ ा को वह उस मठ क सफ़ाई करने वाले
कमचा रय को उनके पा र मक के प म बांट दे ता था। इस कार उस मठ का रख-रखाव
भली कार हो जाता था।
एक दन मेरे जा त-ब धु कुछ चूहे मुझसे आकर कहने लगे—हम अपनी भूख मटाने
के लए इधर-उधर भटकते रहते ह, जब क खूंट पर टं गी पोटली म वा द भोजन बंधा
रहता है। हम य न करके भी उस खूंट तक नह प ंच सकते। आप हमारी कुछ सहायता
य नह करते?
म अपने सा थय के साथ उधर चल दया और हम वहां जा प ंचे। मने एक ऊंची
छलांग लगायी, पोटली म रखे भोजन को वयं भी खाया और अपने सा थय को भी
खलाया। जब यह सल सला त दन चलने लगा, तो सफ़ाई कमचा रय ने पा र मक न
पाकर मठ म काम करना ब द कर दया। इससे वह सं यासी च तत हो उठा। सं यासी ने
हम रोकने का पूरा यास कया, क तु उसके न द म सोते ही म अपने काम म लग जाता
था। अचानक वह फटा आ एक बांस ले आया और मुझे भ ापा से र रखने के लए
सोते समय उस बांस को धरती पर पटकने लगा। बांस के हार के डर से म वह अ खाये
बना ही भाग उठता था। इस कार उस सं यासी क और मेरी पूरी-पूरी रात एक- सरे को
छकाने म ही बीतने लगी।
एक दन उस सं यासी का एक म उसके यहां आया, तो सं यासी ने बड़े ेम तथा
स मानपूवक अपने उस म का वागत कया और उसे भोजन कराया।
रात को सोते समय दोन म बातचीत करने लगे। ले कन ता चूड़ नामक सं यासी
रह-रहकर धरती पर बांस पटकता रहा। अतः वह अपने म क बात पर कोई यान नह दे
पा रहा था। अ त थ म ने ता चूड़ सं यासी के इस वहार को अपना अपमान समझा
और वह कहने लगा—म जान गया ं क अब तुम पहले वाले ता चूड़ नह रहे, तु ह मेरे
कथा म : दो
एक बार चातुमास त के लए मने कसी ा ण से थान मांगा, जो उसने मुझे सहष दे
दया और म उसके यहां रहकर दे वपूजन करने लगा।
एक दन ातःकाल मने ा ण को अपनी प नी से यह कहते ए सुना क आज
द णायन सं ा त है, आज कये दान का ब त उ म फल मलता है। म इसी आशा से जा
रहा ।ं तुम कसी एक ा ण को भोजन करा दे ना। प त के वचन सुनकर ा णी बोली—
या तु ह यह सब कहते ल जा नह आती? इस द र घर म रखा ही या है, जो कसी को
भोजन कराया जाये? आज तक तुमने मुझे तो कभी वा द भोजन नह कराया, न कोई
उ म व ही पहनाया है और न ही मुझे कोई आभूषण ख़रीदकर दया है।
प नी के कठोर वचन सुनकर ा ण ने कहा—तु ह भी यह सब कहना उ चत नह
लगता। शा कहते ह
कथा म : चार
सागरद नामक ब नये के पु ने एक सौ पये म एक पु तक ख़रीद ली, जसका थम प
इस कार था—
ा त मथ लभते मनु यो
दै वोऽ प तं लंघ यतुं न श ः ।
त मा शोचा म न व मयो मे
यद मद यं न ह त परेषाम् ।।
येक को अपने भा य म लखा ही मलता है और इस नयम को वधाता भी नह
बदल सकता। अतः जो नह मला, उसके लए शोक नह करना चा हए और जो ा त हो
गया, उस पर आ य नह करना चा हए, यानी जो हो रहा है, वह ठ क ही हो रहा है। इसके
साथ ही यह भी मानकर चलना चा हए क जो हमारा है, उसे कोई सरा ले नह सकता और
जो हमारा नह है, वह हम मल नह सकता।
सागरद ने जब अपने पु से उ पु तक का मू य पूछा, तो उसने सही मू य बता
दया। एक छोट -सी पु तक के लए सौ पये ख़च करने पर पता ने अपने पु को अनाड़ी,
मूख और बु हीन आ द कहकर उसे अपने घर से नकाल दया।
लड़का अपनी ज मभू म को छोड़कर कसी सरे नगर म चला गया। उस सरे नगर
म जब भी कोई उसका प रचय पूछता, तो वह अपने को— ा त मथ लभते मनु यः
बताता। इस लए वह उस नये थान पर इसी नाम से स हो गया।
कुछ दन बाद, उस नगर म एक समारोह आयो जत आ और वहां क राजकुमारी ने
एक सु दर युवक को दे खा, तो वह उस पर इतनी आस हो गयी क उस युवक के साथ
र त-भोग कये बना राजकुमारी को अपना जीना भी अस भव लगने लगा।
राजकुमारी ने अपनी ल जा का प र याग कर अपनी सखी को अपनी काम-पीड़ा
बताकर उस युवक को कसी भी कार अपने महल म लाने का यास करने का अनुरोध
कया।
सखी ने युवक के पास प ंचकर राजकुमारी के उस पर मु ध होने और काम-पी ड़त
होने क बात कहकर उसे रात म राजकुमारी के पास आने और उसे काम-सुख से तृ त करने
कथा म : पांच
नगर म रहने वाला सो मलक नामक जुलाहा एक उ चको ट का कलाकार था। वह राजा
के लए उ म व बुनता था, ले कन इस पर भी वह साधारण जुलाह जतना भी धन नह
कमा पाता था। अपनी आ थक थ त पर च तत होकर एक दन सो मलक अपनी प नी से
बोला— ये! परमा मा क यह कैसी लीला है क साधारण जुलाहे भी मुझसे अ धक कमा
लेते ह। म सोचता ं क शायद यह थान मेरे अनुकूल नह है। इस लए म कसी अ य थान
पर जाकर अपना भा य आज़माना चाहता ं। सो मलक क प नी बोली—आपका ऐसा
सोचना उ चत नह है। भले ही मे पवत पर चले जाओ, चाहे म थल म रहने लगो, मलेगा
वही, जो भा य म लखा होगा।
उ पत त यदाकाशे नपत त महीतले ।
प णां तद प ा या नाद मुप त त ।।
आकाश म उड़ने वाले प य को दे खो, उ ह भी अपने भा य म लखा पाने के लए पृ वी
पर उतरना पड़ता है। जो अपने भा य म नह है, वह को कह भी नह मल सकता।
न ह भव त य भा ं
भव त च भा ं वना प य नेन ।
करतलगतम प न य त
य य तु भ वत ता ना त ।।
होनी को अनहोनी और अनहोनी को होनी बनाने का साम य कसी भी जीव म नह
है। भा य म न होने पर तो हाथ म आया आ धन भी न हो जाता है।
यथा धेनुसह ेषु व सो व द त मातरम् ।
तथा पुरा कृतं कम क ारमनुग छ त ।।
जस कार बछड़ा हज़ार गाय के होने पर भी अपनी मां को ढूं ढ़ नकालता है, उसी
कार कसी के ारा पूवज म म कया गया अ छा या बुरा कम भी अपना फल दे ने
के लए उस को ढूं ढ़ ही लेता है।
शेते सह शयानेन ग छ तमनुग छ त ।
नराणां ा नं कम त े वथ सहा मना ।।
का कमभोग सोते के साथ सो जाता है और जागते के साथ जाग उठता है। वह
कथा म : छह
कसी जंगल म रहने वाला ती णशृंग नामक एक बैल अपनी श के नशे म चूर होकर
अपने झु ड से अलग हो गया। वह अकेला ही वचरता, हरी-हरी घास खाता, ठ डा जल
पीता और नद तट को अपने तीखे स ग से उखाड़ता रहता था।
उसी जंगल म अपनी प नी के साथ रहने वाले एक लोभी सयार ने नद के तट पर
जल पीने आये उस बैल के लटकते अ डकोश को दे खा, तो उसक प नी कहने लगी—यह
मांस प ड कतने दन तक लटका रह सकता है? जाओ, तुम इस बैल का पीछा करो।
सयार बोला—अरे, मुझे यह बैठा रहने दो, जल पीने के लए आने वाले चूह को
खाकर ही हम दोन अपनी भूख मटा लगे। अ न त के पीछे भागना मूखता होती है।
यो ुवा ण प र य य अ व
ु ा ण नषेवते ।
ुवा ण त य न य त अ वु ं न मेव च ।।
अपने सामने उप थत को छोड़कर परो एवं अनुप थत के पीछे भागने वाले को
अ न त तो मलता नह , न त भी उसके हाथ से नकल जाता है।
सया रन बोली—तुम तो मुझे अपने भा य से मले थोड़े-ब त पर ही स तु होने वाले
आलसी लगते हो।
सुपूरा या कुन दका सुपूरो मू षका लः ।
सुस तु ः कापु षः व पकेना प तु य त ।।
जस कार छोट नद थोड़े-से पानी से भर जाती है या चु हया क अंज ल थोड़े-से
अनाज से भर जाती है, उसी कार कायर भी थोड़ा-सा पाकर ही स तु हो जाता है।
।। तीय त समा त ।।
काकोलूक यम्
कथा म : एक
कसी जंगल म चतुद त नामक हाथी अपने यूथ के साथ रहता था। एक बार बरसात न होने
के कारण अनेक न दय , नाल , तालाब और झील के सूख जाने पर हा थय ने अपनी और
अपने ब च क यास न बुझ पाने क बात कही, तो कसी नये जलाशय क खोज के बारे म
सोच- वचार होने लगा। ब त सोच- वचार के प ात् म यदे श म पाताल-गंगा के जल से सदा
भरे रहने वाले एक ताल के आस-पास नवास बनाने का न य आ। इस न य के अनुसार
हा थय का दल वहां चल दया। पांच दन के बाद वहां प ंचकर हा थय ने जी-भरकर
नान-पान का आन द लया और ख़ूब जल- ड़ा क । अब वे सब त दन उसी ताल पर
आने लगे।
ले कन हा थय के आने-जाने से उस ताल के कनार पर रहने वाले कुछ ख़रगोश
कुचले गये, ले कन कुछ मौत के मुंह म जाने से बच गये। इस पर हा थय के उ पात मचाने से
खी ए सभी ख़रगोश च तत और एकमत थे क य द ये हाथी इसी कार ताल पर आते-
जाते रहे, तो हमारा वंश ही न हो जायेगा। कहा भी गया है
पृश प गजो ह त ज प भुज मः ।
हस प नृपो ह त मानय प जनः ।।
क सांप सूंघकर अपने शकार क ह या करता है, राजा हंसते-हंसते अपराधी को मृ युद ड
दे दे ता है, जन म ता का दखावा करते ए जीवन को हर लेता है तथा हाथी केवल अपने
पश से ही सर को मार डालता है।
इस लए हम इस स ब ध म तुर त ही कुछ करना चा हए। एक सुझाव यह भी आया
क इस थान को छोड़कर कसी अ य थान पर नवास बनाना चा हए। महाराज मनु और
कथा मः दो
म जस वृ क शाखा पर नवास कया करता था, उसी के नीचे कोटर म एक गौरैया प ी
भी रहा करता था। हम दोन इकट् ठे बैठकर धम-चचा तथा वातालाप भी कया करते थे।
इससे हमारा समय उ म ढं ग से बीत जाता था। एक दन वह गौरैया प ी कुछ अ य प य
के साथ कसी दे श म गया, तो सायंकाल तक लौटा ही नह । मने दो-चार दन तक उसक
ती ा क , उसके वयोग म तड़पा, फर उसे कसी ाध के चंगुल म फंसा मानकर ख़ूब
रोया। अ ततः भावी को बल मानकर शा त हो गया।
कुछ दन बाद उस गौरैया क ख़ाली पड़ी कोटर म एक ख़रगोश ने डेरा डाल दया।
मने इस पर कोई आप नह क , क तु कुछ दन बाद हट् टा-कट् टा बना गौरैया अपने
पुराने थान क याद म लौट आया। कहा भी गया है
न ता जायते सौ यम प वग शरी रणाम् ।
दा र येऽ प ह या क् या वदे शे वपुरे गृहे ।।
कथा म : तीन
कसी दे श का नवासी म शमा नामक एक अ नहो ी ा ण अपने य के लए कसी
यजमान से मांगकर एक -पु बछड़ा अपने क धे पर लादकर वापस अपने घर लौट रहा
था क माग म तीन चालाक ठग ने उसके उस पशु को ह थयाने क योजना बनायी।
पहला ठग एक तलकधारी ा ण बनकर उधर से गुज़रा और थू-थू करते ए उस
ा ण से कहने लगा— ा ण होकर भी इस कु े के प ले को क धे पर बठाते ए तु ह
लाज नह आती?
ानकु कुटचा डालाः सम पशाः क तताः ।
रासभो ौ वशेषेण त मा ा ैव सं पृशत
े ् ।।
कु ,े मुग, चा डाल, गधे और ऊंट को शा अ पृ य मानते ह।
ा ण ने कहा—जी वत बछड़े को कु े का प ला बताते हो। लगता है, तु ह आंख
से ठ क दखाई नह दे ता।
चालाक ठग बोला—महाराज! आप थ ोध कर रहे ह। आपको मुझ पर व ास
नह आता, तो जाइये। गांव म जब आपक थू-थू होगी, तब आपको समझ म आ जायेगा।
ा ण के थोड़ी र जाने पर सपेरे के वेश म सरा ठग र से ही ‘पायलागन’ कहकर
च लाया—अरे! जब कमका डी ा ण कु से यार करने लगे ह, तो समझ लेना चा हए
क घोर क लयुग आ गया है।
त य चं मानुषं वा प यो मृतं सं पृशे कुधीः ।
प चग ेन शु ः या य चा ायणेन वा ।।
मृतक ाणी और प ी के समान जी वत कु -े जैसे पशु के पश के पाप क नवृ
के लए तो चा ायण त करके प चग पीना पड़ता है। महाराज! आप ऐसा पाप य
कर रहे ह? इस कु े को लेकर गांव म घुसने क भूल मत करना।
ा ण ने उस ठग को लताड़ते ए कहा— या तुम अ धे हो, जो गाय के बछड़े को
प ला बता रहे हो?
ठग बोला—म अ धा ही सही, ले कन आप ोध न कर। जो मने दे खा, वह कह
दया। अब आपको जो जी चाहे, वह क जये।
थोड़ा आगे बढ़ने पर तीसरे ठग ने भी उस ा ण को कु े को क धे पर लादने के
लए खरी-खोट सुनाते ए कहा—
यः पृशे ासभं म य ानाद ानतोऽ प वा ।
कथा म : चार
अ तदप नामक एक वशालकाय सप एक बार अपने बल का माग भूलकर जब एक अ य
संकरे माग से बल म घुसने लगा, तो उसके शरीर के भारी होने और माग के ब त तंग होने
के कारण उसका शरीर छल गया और र बह नकला, जसे सूंघती ई ब त सारी च टयां
कथा म : पांच
कसी नगर म रहने वाला ह रद नामक एक ा ण खेती का काम करता था। एक दन वृ
क छाया म व ाम करते ए उसने अपने खेत म एक भयंकर सांप को अपना फन फैलाये
बैठे दे खा, तो उसने सोचा क शायद यह सांप इस खेत का वामी है और इसक पूजा न
करने के कारण ही मुझे इस खेत से जतनी उपज मलनी चा हए, उतनी नह मल पा रही।
वह तुर त एक ध-भरा कटोरा उसके सामने रखकर और दोन हाथ जोड़कर बोला—आज
तक आपको न दे ख पाने के कारण ही मने आपक पूजा नह क । अब ऐसी ग़लती दोबारा
कभी नह होगी। यह कहते ए ा ण ध के कटोरे को वह रखकर अपने घर क ओर चल
दया। अगले दन जब वह अपने कटोरे को लेने आया, तो उसम पड़ी एक वणमु ा को
दे खकर वह स हो उठा। अब तो त दन यही म चलने लगा। ा ण ध से भरा
कटोरा लाकर वहां रख दे ता और अगले दन उसे एक वणमु ा वहां पर रखी मल जाती।
एक दन कसी काय से घर से र जा रहे ा ण ने अपने पु को ध का कटोरा
सांप क बांबी के पास नय मत प से रखने का आदे श दया। पु ने पता के आदे श का
पालन कया और अगले दन ख़ाली कटोरे म वणमु ा पाकर उसने सोचा—अव य ही इस
सांप ने अपनी बांबी म वणमु ाएं एक कर रखी ह, अतः य न इसे मारकर सारा धन
ह थया लया जाये? यह सोचकर य ही उसने सांप पर अपनी लाठ से हार कया, य ही
कथा म : छह
राजा च रथ के प सर पर सोने के अनेक हंस रहा करते थे, इस लए राजा के सै नक पूरी
सावधानी के साथ उस सरोवर क र ा करते थे। एक दन उस तालाब पर सोने का एक बड़ा
प ी आया, तो हंस ने उससे कहा—इस सरोवर पर हमारा एका धकार है; य क छह
महीन के भाड़े के प म उ ह ने अपने एक-एक व णम पंख का भुगतान कया आ है।
इस पर उस नये प ी और पुराने हंस म ववाद हो गया, तो नये प ी ने राजा के पास
प ंचकर रहने के लए थान दे ने क ाथना क । राजा ने अपने सेवक को आदे श दया क
वे जाकर हंस से कह क इस प ी को भी वे अपने साथ रहने द, अ यथा उ ह द डत कया
जायेगा। राजा क आ ा पाकर हाथ म लाठ लये सै नक य ही सरोवर पर प ंचे, य ही
एक वृ हंस के सुझाव पर सारे हंस उड़ गये।
इसी लए म कहता ं
भूतान् यो नानुगृ ा त ा मनः शरणागतान् ।
भूताथा त य न य त हंसाः प वने यथा ।।
क जस कार बना सही सोच- वचार कये राजा को अपने अनु चत आदे श के कारण सोने
के हंस से हाथ धोना पड़ा, उसी कार मेरे पु को भी लोभ के कारण ही अपने ाण से
हाथ धोना पड़ा।
इस कार ब धु-बा धव को समझाकर और पु के शोक को भूलकर ा ण पहले
क भां त जब ध से भरे कटोरे को लेकर सांप क बांबी के समीप प ंचा, तो बांबी के भीतर
बैठे सांप ने कहा—तुम लोभवश पु शोक को भुलाकर भी यहां आये हो, ले कन अब हमारा
स ब ध नभ नह सकता। तु हारे पु ने मुझे मारना चाहा और मुझ पर लाठ से वार कया
और मने पलटकर उसे काट खाया। तुम अपने पु शोक को और म लाठ के उस हार को
कथा म : सात
कसी जंगल म प य के लए सा ात् यमराज बना एक बहे लया रहा करता था, जसे
उसके हसक कम के कारण उसके ब धु-बा धव ने भी याग दया था।
एक दन उस बहे लये के हाथ म एक कबूतरी आयी, तो उसे पजरे म ब द करके वह
अपने घर ले गया। इसी बीच अचानक उस जंगल म बादल घर आये और घोर अंधेरा छा
गया। उस समय आंधी के कारण कुछ भी दखाई दे ना क ठन हो गया, तो वह बहे लया एक
वृ के नीचे खड़ा हो गया। कुछ दे र म बादल छं ट गये और आकाश म तारे चमकते दखाई
दे ने लगे। सद और भूख- यास से ाकुल आ बहे लया उ च वर म कह उठा—जो कोई
भी मेरी आवाज़ सुन रहा हो, मुझे अपना शरणागत जानकर वह मेरे लए कुछ खाने-पीने का
ब ध करे।
उसी वृ पर बैठा कबूतर अपनी प नी के न लौटने के कारण च तत हो रहा था।
प नी के बना घर मशान के समान होता है। अपने वामी को स न रखने वाली ी का
जीवन थ माना जाता है, पर तु प त को स रखने वाली ी पर दे वता भी अपनी
कथा म : आठ
कसी नगर के नवासी एक कामातुर वृ वै य ने अपनी प नी के वग सधार जाने पर
अपनी कामवासना क पू त के लए धन ख़च करके एक युवती से ववाह कर लया, जो उस
बूढ़े को दे खना भी पस द नह करती थी।
ेतं पदं शर स य ु शरो हाणां
थानं परं प रभव य तदे व पुंसाम् ।
आरो पता थशकलं प र य या त
चा डालकूप मव रतरं त यः ।।
य द पु ष के सर के बाल सफ़ेद हो जाय, तो युव तयां उनका तर कार और उपे ा
करने लगती ह। युवती ी वृ पु ष को चा डाल के कुएं क भां त तथा सर पर ह ड् डय
का बोझ लादने वाले शू क भां त मानकर छोड़ जाती है।
गा ं संकु चतं ग त वग लता द ता नाशं गताः
ा य त पम युपहतं व च लालायते ।
वा यं नैव शृणो त बा धवजनः प नी न शु ूषते
धक् क ं जरया भभूतपु षं पु ोऽ यव ायते ।।
के शरीर पर झु रयां पड़ जाने पर, उसक चाल म सु ती आ जाने पर, उसके
दांत के न हो जाने पर, के म द पड़ जाने पर, प के न हो जाने पर और उसके मुंह
से लार गरने पर, उसके ब धु-बा धव भी उससे बात करना और उसक प नी उसक सेवा
करना छोड़ दे ती है। यहां तक क बूढ़े को अपने बेटे ारा भी अपमा नत होना पड़ता
है। इसी लए बुढ़ापे को अ भशाप और बुढ़ापे के कारण तर कृत जीवन जीने को ववश ए
कथा म : नौ
कसी गांव म ोण नामक एक अ य त द र ा ण रहा करता था। उसे इतना कम
भ ाटन मलता था क वह सदा भूखा ही रहता था। उसने न कभी अ छा खाया और न
कभी अ छा पहना। दाढ़ -मूंछ बढ़ाये और मैले व पहने वह ा ण नरक का जीवन बता
रहा था। एक बार कसी यजमान ने उस ा ण पर दया करके उसे गाय के दो बछड़े दान म
कथा म : दस
दे वश के पु के पेट म एक सांप के वेश कर जाने के कारण वह दन- त दन बल
होता जा रहा था। च क सा, ओष ध और इलाज आ द का कुछ भी अनुकूल प रणाम नह
नकल रहा था। अपने जीवन से नराश होकर वह युवक कसी सरे नगर म चला गया और
वहां कसी म दर म रहने लगा। अपनी आजी वका के लए उसने कुछ छोटे -मोटे काम करने
आर भ कर दये और कसी यो य वै क खोज भी आर भ कर द ।
वहां के नगरसेठ क दो लड़ कयां थ । उनम से एक लड़क अपने पता को अपना
पालक-पोषक मानकर उसक ख़ुशामद कया करती थी, जब क सरी भगवान् को कमफल
दाता तथा पता को केवल न म मानती थी। सेठ अपनी इस पु ी के वहार से इतना
था क उसने बदले क भावना से उसका ववाह कसी द र से करने का न य कर
लया। संयोगवश दे वश का वह रोगी पु उसक म आ गया। क या ने भी अपने पता
के इस नणय क सहष वीकार कर लया।
ववाह के प ात् सेठ क क या अपने प त को साथ लेकर कसी अ य नगर म जा
प ंची। माग म एक तालाब के कनारे अपने प त को व ाम करने के लए छोड़कर वह पास
के गांव से कुछ खाने-पीने का सामान लेने के लए चली गयी। अभी वह कुछ पग ही चली थी
क उसने काना-फूसी सुनी, तो वह वृ क आड़ म छपकर खड़ी हो गयी। उसने दे खा क
उसके प त के पेट से एक सांप बाहर नकला और एक सांप पास क बांबी से भी बाहर आ
गया। बांबी से बाहर आये सांप ने सरे सांप से कहा—तू इस भले आदमी के पेट म य
छपा बैठा है, इस बेचारे ने तेरा या बगाड़ा है? इस पर चढ़कर पेट से बाहर आये सांप ने
सरे सांप पर आरोप लगाते ए कहा—तूने भी तो सर के वणकलश पर अ धकार कर
रखा है। या मुझे छोड़ने क श ा दे ने से पहले तू इस धन को छोड़ सकता है?
कथा म : यारह
वीरधर बढ़ई क प नी कामदमनी भचा रणी के प म सारे नगर म बदनाम थी। बढ़ई
अपनी प नी के स ब ध म ब त कुछ सुनता था, पर तु प नी क झूठ क़सम के कारण
कथा म : बारह
गंगातट पर थत एक आ म के कुलप त मु न या व य ारा एक बार आचमन करते
समय आकाश म उड़ते बाज प ी के प े से छू ट एक चु हया उनक अ ल म आ गरी,
तो वह महा मा उसे अपने घर ले आये और त दन ध पलाने लगे। चु हया को ब ली से
डरता दे खकर मु न ने अपने तपोबल से उसे ब ली, कु तया और अ त म मानुषी बना दया।
मु नप नी भी उसे अपनी पु ी मानकर बड़े यार से उसका पालन-पोषण करने लगी।
क या के युवती होने पर मु नप नी ने अपने प त से उसके ववाह के स ब ध म चचा
क , तो मह ष सहम त दे ते ए कहने लगे—
े े यः स शे य ाजघ ये यो रज वला ।
प ा दे या व न य यतो दोषो न व ते ।।
क या के रज वला होने से पूव ही पता को यो य, सदाचारी, े एवं कुलीन युवक से क या
कथा म : चौदह
जंगल म रहने वाले ती णनख नामक सह को एक बार शकार नह मला और वह सारा
दन शकार क खोज म भटकते-भटकते बुरी तरह थक गया। सायंकाल उसने कसी पशु
क एक गुफा दे खी, तो वह उसम जा बैठा। वहां छपकर बैठा सह सोचे रहा था क यहां
रहने वाला पशु जैसे ही भीतर आयेगा, म उसे दबोच लूंगा और इस कार मेरे भोजन क
व था हो जायेगी।
कुछ ही दे र म उस गुफा म रहने वाला द धपु छ नामक गीदड़ वहां आया, तो उसने
दे खा क कसी ाणी के गुफा के भीतर जाने के पैर के च तो दखाई दे रहे ह, पर तु
उसके गुफा से बाहर नकलने के नशान दखाई नह दे रहे। तभी उसे एक उपाय सूझा—वह
गुफा के ार पर जाकर च लाने लगा—अरी गुफा! या म भीतर आ जाऊं? ऐसा उसने
तीन बार कहा। जब कोई भी उ र न मला, तो वह बोला—तेरी-मेरी तो यह शत है क जब
म बाहर से अपने आने क सूचना ं गा, तो तू मुझे बुलायेगी। अब य द तू मुझे नह बुलाती,
तो म कसी सरी गुफा म चला जाता ।ं
गुफा के भीतर छपकर बैठे सह ने सोचा क गुफा सचमुच ही गीदड़ को उ र दे ती
होगी, क तु आज मेरे डर के कारण चुप है;
भयस तमनसां ह तपादा दकाः याः ।
व ते न वाणी च वेपथु ा धको भवेत् ।।
य क डर के मारे ायः सभी ा णय का शरीर कांपने लगता है और तब उनके लए मुंह
खोलकर कुछ कह पाना स भव नह होता। यह सोचकर सह ने गीदड़ को भीतर आने के
लए आवाज़ द । सह क ंकार सुनते ही आ मर ा के लए भागता आ गीदड़ अपने
आपसे कहने लगा—
अनागतं यः कु ते स शोभते स
शो यते यो न करो यनागतम् ।
वनेऽ सं थ य समागता जरा
बल य वाणी न कदा प मे ुता ।।
वप आने से पहले ही उससे बचने के लए उपाय करने वाला सुखी रहता है।
वप क उपे ा करने वाले का तो वनाश हो जाता है। म इस जंगल म रहते ए बूढ़ा हो
गया ं, ले कन मने आज तक कसी गुफा को बोलते ए नह सुना।
अतः तुम लोग मेरी बात मानकर मेरे साथ चलो। र ा के साथी उसक इस बात से
कथा म : सोलह
य द नामक एक ा ण क भचा रणी प नी अपने यार के लए त दन उ मो म
पकवान बनाकर ले जाती थी। प त दे खता रह जाता था। एक दन उसने प नी से पूछ लया
क तुम त दन ये वा द म ा बनाकर कहां ले जाती हो? ी बोली—म गांव के बाहर
बने दे वी-म दर म एक अनु ान कर रही ,ं जहां दे वी को भोग लगाने के लए ये न ले
जाती ।ं
एक दन, पता नह , या सोचकर वह कुलटा सचमुच ही दे वी-म दर म जा प ंची
और म दर म म ा रखकर वह नद म नान करने के लए चल द । सरे माग से ा ण
भी वहां जा प ंचा और अपनी प नी के आचरण को दे खने के लए वह छपकर बैठ गया।
नद - नान से लौटने के प ात् उस ी ने दे वी को धूप-द प आ द सम पत कर उसक
पूजा क और फर उसे णाम करके बोली—मां! तू मेरे प त को अ धा बनाने क कृपा कर
दे । यह सुनकर म दर म छपे ा ण ने आकाशवाणी के समान उ च वर म कहा—य द तू
कुछ दन तक अपने प त को त दन वा द पकवान बनाकर खलायेगी, तो वह अव य
अ धा हो जायेगा।
अब तो वह कुलटा यार के लए बनाये पकवान प त को भी खलाने लगी। कुछ दन
बाद एक दन ा ण रोते-रोते कहने लगा—अरे, आज यह अचानक मुझे दखना य ब द
।। तृतीय त समा त ।।
ल ध णाशम्
कथा म : एक
कहते ह क समु तट पर उगे एक सदाबहार जामुन के वृ पर र मुख नामक एक वानर
रहता था। उसके पास ही समु म करालमुख नामक एक मगरम छ भी रहता था, जो ायः
रेतीले तट पर आकर बैठ जाता था। एक दन वानर ने उस मगरम छ को अपना अ त थ
मानते ए उसे कुछ मीठे जामुन खाने के लए दये। शा के अनुसार
यो वा य द वा े यो मूख वा य द प डतः ।
वै दे वा तमाप ः सोऽ त थः वगसं मः ।।
य म अथवा श ु, प डत अथवा मूख, अथात् ब ल वै दे व के समय घर पर आने वाला
कोई भी अ त थ कहलाता है।
न पृ छे छरणं गो ं न च व ां कुलं न च ।
अ त थ वै दे वा ते ा े च मनुर वीत् ।।
मह ष मनु के अनुसार—ब ल के अ त म अथवा ा के समय पधारे को
स मा नत अ त थ मानकर ही उसक सेवा करनी चा हए। उस समय उसके नवास, गो ,
कथा म : दो
कसी कुएं म रहने वाले मेढक के राजा गंगद ने अपने प रजन के वहार से खी होकर
उ ह कुछ पाठ पढ़ाने क सोची।
आप द येनापकृतं येन च
ह सतं दशासु वषमासु ।
अपकृ य तयो भयोः पुनर प
जातं नरं म ये ।।
कहा भी है क वप के समय अ हत करने वाले तथा संकट म पड़े का
मज़ाक़ उड़ाने वाले से बदला लेने वाला ही जी वत माना जाता है। क उपे ा
करने वाले को तो मृत ही समझना चा हए।
यह सोचते ए गंगद को एक सांप अपने बल म घुसता आ दखाई दया, तो
उसने सोचा क य न म इस सांप को अपने साथ इस कुएं म ले जाऊं, ता क मेरे वरो धय
का सवनाश हो जाये;
श ु भय जये छ ुं ब लना बलव रम् ।
वका याय यतो न या का च पीडाऽ त ये ।।
य क श ु को श ु के साथ और बलवान को बलवान के साथ भड़ा दे ने से उन
दोन क हा न हो जाती है, जब क अपना कुछ भी नह बगड़ता।
श म
ु ु मूलये ा ती णं ती णेन श ुणा ।
थाकरं सुखाथाय क टकेनैव क क टम् ।।
जस कार शरीर म घुसे कांटे को नकालने के लए कांटे का ही योग कया जाता
है, इसी कार अपने कसी श ु को न करने के लए उसके कसी बलवान् श ु को नयु
कर दे ना चा हए।
यह सोचकर गंगद ने सांप के बल के पास जाकर उसे पुकारा—अरे यदशन!
जरा बाहर आकर मेरी बात तो सुनो। सांप ने सोचा—मुझे पुकारने वाला कोई सांप तो नह
लगता, फर मुझे कौन बुला रहा है? बल से बाहर नकले बना तो पता लगाना स भव नह ,
ले कन बना जाने बल से बाहर आना भी ठ क नह ।
कथा म : तीन
कथा म : चार
गांव म रहने वाला यु ध र नामक कु हार एक बार कसी काम से दौड़ता आ अपने घर के
भीतर जा रहा था क अचानक अपना पैर फसलने के कारण वह आंगन म पड़े टू टे-फूटे
बरतन पर जा गरा और कसी नुक ले बरतन से टकरा जाने से उसका सर फट गया। सही
इलाज न हो पाने के कारण सर का घाव ठ क न हो सका।
अब कु हार का काम न कर सकने के कारण यु ध र काम क तलाश म कसी नगर
म प ंचा, तो वहां सै नक क भरती चल रही थी। भरती करने वाले ने कु हार के माथे पर
लगे घाव को दे खकर समझा क यह कोई यो ा है, जो सामने से वार झेलता है, अपनी पीठ
नह दखाता। उसे त काल सै नक भरती कर लया गया। इतना ही नह , उसे अ य सु वधाएं
भी द जाने लग , जससे अ य सै नक उससे ई या करने लगे, पर तु उसे अपने अ धकारी
का कृपापा जानकर वे कुछ भी कह नह सके। कुछ दन बाद, कसी पड़ोसी राजा ारा
मचाये जा रहे उ पात का समाचार सुनकर वहां यो ा क एक टु कड़ी भेजने का न य
कया गया। जब कु हार को एका त म बुलाकर उससे उसके सर के घाव के बारे म पूछा
गया, तो उसने अपनी जा त और अपने घाव के वषय म सच-सच बता दया। सेना य एक
साधारण कु हार को वीर यो ा समझने क अपनी मूखता पर ल जत हो उठा और उसे
तुर त ही वहां से चले जाने को कहा।
कु हार बोला—म मानता ं क म छोट जा त का ं और मने कभी यु नह कया,
क तु मेरी ाथना है क मुझे अपनी वीरता दखाने का अवसर द जये।
सेना य ने कहा—तुम कसी ग़लतफ़हमी का शकार होकर ड ग हांक रहे हो, क तु
तु हारा हत यहां से तुर त चले जाने म ही है। गीदड़ के अहंकार पर सहनी ने भी उसे यही
सीख दे ते ए कहा था—
शूर कृत व दशनीयोऽ स पु क ।
य म कुले वमु प ो गज त न ह यते ।।
हे पु ! माना क तुम व ान् होने के साथ-साथ साहसी और शूरवीर भी हो, क तु यह मत
भूलो क जस कुल म तुम उ प ए हो, वहां हाथी का वध नह कया जाता।
कु हार क उ सुकता पर सेना य उसे यह कथा सुनाने लगा।
कथा म : पांच
कथा म : छह
एक ा ण अपनी प नी से इतना यार करता था क वह उसके दोष को भी गुण समझता
था। अकारण उसक कलह यता से ऊबकर ा ण ने अपने माता- पता को भी छोड़ दया
और अपना अलग घर बसा लया।
कथा म : सात
महा तापी राजा न द अपनी प नी से इतना ेम करता था क उसक भौह टे ढ़ होते ही वह
च तत हो उठता था। अपनी प नी क स ता के लए राजा न द कुछ भी कर सकने क
ड ग हांका करता था। एक बार उसक प नी ने अपने त अपने प त क अनुर क
परी ा लेनी चाही और कसी बात पर ठकर अनशन पर जा बैठ ।
प नी को दे खकर राजा ने अनेक यु य और ख़ुशामद से अपनी प नी को
रझाने का यास कया, पर तु सफलता न मली। अ त म, जब राजा ने प नी से उसके
स होने का उपाय पूछा, तो वह बोली—तु हारे सर मुंड़ाकर मेरे चरण म गरने पर म
स हो जाऊंगी। राजा ने तुर त ही नाई को बुलाकर अपना सर मुंड़वाया और प नी के
चरण म गरकर उसे स कया।
राजा क प नी को इस कार अपने प त पर शासन करता दे खकर राजा के धान
अमा य वर च क प नी म भी ई याभाव जाग उठा। वह भी अपने प त क अपने म
आस को जानना चाहती थी। उसने भी अकारण कसी बात पर होकर अपने प त को
आ मह या से अवगत कराया।
प त अपनी प नी को मनाने के य न करने म लग गया, क तु प नी राज़ी नह ई।
हारकर वर च ने प नी से पूछा—तु हारी स ता का कोई उपाय नह ? वह बोली—य द
तुम घोड़ा बनकर और मुझे अपनी पीठ पर बठाकर कुछ र चलो और घोड़े क तरह
हन हनाओ, तो म अपना ोध छोड़ सकती ।ं प नी के ेम म अ धे वर च को यह सब
करना पड़ा।
कथा म : आठ
शु पट नामक एक धोबी का गधा पूरा भोजन न मलने के कारण ब त बला हो गया था।
एक दन अचानक धोबी ने एक मरे ए बाघ को दे खा, तो उसने गधे को सद से बचाने के
लए उस बाघ का चमड़ा उढ़ाने क सोची, जससे गधे को दो लाभ ए। एक, तो वह सद से
बच गया और सरे, वह खेत म ठाठ से हरी-हरी घास चरने लगा। खेत के मा लक गधे को
बाघ समझकर उसके पास आने क ह मत नह कर पाते थे। इस लए वह गधा कुछ ही दन
म इतना ह ा-क ा हो गया क धोबी के घर का दरवाज़ा भी उसके लए छोटा पड़ने लगा,
पर तु एक दन उस गधे ने एक गधी को रकते ए सुना, तो कामातुर हो जाने के कारण यह
कथा म : नौ
कसी वृ , क तु धनवान् हलवाहे ने एक युवती से ववाह कर लया। ले कन उसक युवती
प नी अपने प त से स तु न होने के कारण न य- त कसी युवक क खोज म लगी रहती
थी और र त-भोग म स तु करने वाले युवक पर अपना धन लुटाया करती थी।
कथा म : यारह
महाचतुरक नामक एक गीदड़ को कसी जंगल म मरा पड़ा एक हाथी मल गया, जसे
पाकर वह स तो आ, ले कन उसके लए उस हाथी क खाल को फाड़ना अस भव था।
तभी उसने एक सह को अपनी ओर आते दे खा, तो वह उससे बोला— ीमन्! यह आपका
आहार है, म तो इसक रखवाली करने वाला आपका दास ं।
सह ने कहा—तुम तो अ छ तरह जानते हो क म सर के ारा मारा गया शकार
कभी नह खाता।
वनेऽ प सहा मृगमांसभ या
बुभु ता नैव तृणं चर त ।
एवं कुलीना सना भभूता
न नी तमाग प रलंघय त ।।
सह अपने ारा मारे गये पशु को ही खाता है। शकार न मलने पर वह भूखा रह
कथा म : बारह
।। चतुथ त समा त ।।
अपरी तकारकम्
( बना जांच-परख कये काम म जुटने का प रणाम)
कथा म : एक
पाट लपु के नवासी म णभ नामक सेठ के धमानुसार काम करने पर भी भा य के
कारण उसका सव व न हो गया। अतः अभाव और द र ता को कोसते ए उसने अपने
आपसे कहा—नी तकार ने स य ही कहा है
शीलं शौचं ा तदा यं मधुरता कुले ज म ।
नो राज ते ह सव व वहीन य पु ष य ।।
क धनहीन के शील, प व आचरण, सहनशीलता, समझदारी, म भाषण तथा ऊंचे
कुल म ज म आ द गुण का कोई मह व नह होता।
मानो वा दप वा व ानं व मः सुबु वा ।
सव ण य त समं व वहीनो यदा पु षः ।।
धनहीन के मान-स मान, दप-अहंकार, ान- व ान, कला-कौशल तथा
च तन-श आ द का भी कोई अथ नह होता। उसके इन गुण पर कोई यान ही नह
कथा म : तीन
कसी नगर म चार ा ण-कुमार आपस म अ छे म थे। वे द र ता को अ भशाप समझते
थे और इस वषय म सदा एक- सरे से चचा कया करते थे। वे इस त य से भली-भां त
प र चत थे
वरं वनं ा गजा दसे वतं
जनेन हीनं ब क टकावृतम् ।
तृणा न श या प रधानव कलं
न ब धुम ये धनहीनजी वतम् ।।
क सह, हाथी, बाघ आ द हसक जीव से भरे वन म रहना अ छा है, कसी सुनसान एवं
झाड़-झंखाड़ से भरे क द इलाक़े म जीवन बताना अ छा है, तनक पर सोना और
व कल धारण करना भी अ छा है, क तु धनहीन होकर अपने ब धु-बा धव के बीच रहना
अ छा नह ।
तानीया य वकला न तदे व नाम
सा बु र तहता वचनं तदे व ।
अथ मणा वर हतः पु षः स एव
बा ः णेन भवती त व च मेतत् ।।
इ य और बु के व थ व स म रहते तथा बातचीत म पहले-जैसा ही रस घोलते
के धनहीन हो जाने पर उसका मान-स मान पहले-जैसा नह रहता। संसार क यह
व च री त है क जस के धनी होने पर उसे ‘गुण क खान’ कहकर सराहा जाता
था, धनहीन हो जाने पर उसके उन गुण का कोई मह व नह रह जाता।
चार ा ण-कुमार ने धन कमाने के लए कसी अ य थान पर जाने का नणय
कया और वे अपने घर-प रवार व ब धु-बा धव को छोड़कर वन को चल दये।
स यं प र यज त मु च त ब धुवग
शी ं वहाय जननीम प ज मभू मम् ।
स य य ग छ त वदे शमभी लोकं
कथा म : चार
कसी थान पर चार म एक साथ रहते थे। उन चार म केवल एक ावहा रक बु स प
तो था, ले कन व ा वहीन था। शेष तीन सु श त थे, क तु बु हीन थे।
एक बार उन चार ने सोचा क अपनी व ा के बल पर राजा को भा वत करके
धन कमाया जाये, अ यथा इस व ा क उपयो गता ही या है? यह सोचकर उन चार ने
वदे श जाने का वचार बनाया, तो एक बोला—हम तीन तो व ान् ह, क तु हमारा यह चौथा
साथी व ा वहीन है, इसे अपने साथ लेना थ होगा। इस बात का एक साथी ने समथन
कया, क तु सरे ने कहा—हमारा ऐसा वहार अनु चत कहलायेगा। फर या मालूम,
इसक वहारबु से ही हम लाभ हो जाये? म तो इसे भी अपने साथ ले चलने के प म
ं।
क तया यते ल या या वधू रव केवला ।
या न वे येव सामा या प थकै पभु यते ।।
प त ता ी क भां त केवल अपने ारा भोगी जाने वाली ल मी का कोई लाभ नह
होता। ल मी वही उ म होती है, जसका वे या क भां त अ धका धक लोग उपभोग कर।
य द इस से हमारा कोई साथी हमारे ारा कमाई गयी ल मी का उपभोग कर
लेगा, तो हमारा या बगड़ जायेगा?
अयं नजः परो वे त गणना लघुचेतसाम् ।
उदारच रताना तु वसुधैव कुटु बकम् ।।
अपने और पराये का भेद करना तो ओछ बु का प रचायक होता है। उदार दय
तो संसार के सभी जीव को अपने प रवार का सद य मानते ह।
इस कार समझाने-बुझाने पर तीन ने अपने व ा वहीन म को भी साथ ले लया।
थोड़ी र चलने पर उन चार ने जंगल म एक मृत सह को पड़े दे खा, तो तीन ने अपनी
व ा क परख करने के लए सह को जी वत करने का न य कया। बु स प म ने
उन तीन को ऐसा साहस न करने के लए ब त समझाया और कहा क सह जी वत
कथा म : पांच
चार ा ण म क ौज के एक सु स गु कुल म बारह वष तक मन लगाकर प र म
करने के प ात् अनेक व ा म पारंगत हो गये। श ा-समा त के प ात् उन चार ने
अपने आचाय से अनुम त ली और अपने-अपने घर क राह पकड़ी। चार म अनेक
व ा म नपुण थे, ले कन उ ह ने कभी अपने गु कुल से बाहर नकलकर समाज को नह
दे खा था, इस लए वे लोक वहार म एकदम कोरे थे।
गु कुल से नकलकर चार ा ण म कुछ ही र चले ह गे क माग म एक दोराहा
आ गया। उ ह कसी से अपने घर जाने का माग- दशा पूछने क कोई समझ नह थी। अतः
वे वह बैठ गये। इसी बीच एक शव को लेकर कुछ लोग मशान जा रहे थे। एक ा ण ने
अपनी पु तक खोलकर दे खा, तो वहां उसे लखा आ मला—उसी माग पर चलना चा हए,
कथा म : छह
कसी सरोवर म रहने वाले शतबु और सह बु नामक दो म छ क एकबु नाम वाले
मेढक से म ता हो गयी, तो दोन म छ कनारे पर आकर कुछ दे र तक मेढक के साथ
गपशप करते और फर पानी म चले जाते।
एक दन गपशप करते म छ ने सायंकाल सर पर अनेक म छ लादे तथा जाल लेकर
आये मछु आर को यह कहते सुना—यह तालाब तो मछ लय से भरा पड़ा है। कल
ातःकाल हम यह पर अपना जाल डालगे।
यह कहते ए मछु आर के चले जाने पर सभी म छ च तत होकर अपने बचाव के
लए आगे क रणनी त पर वचार करने लगे। मेढक ने अपने म —शतबु और
सह बु —से मछु आर के वचन के बारे म उनसे उनके वचार पूछे, तो सह बु
मुसकराकर बोला— म ! कसी के इस कार कहे वचन को ग भीरता से नह लेना चा हए।
कहा भी गया है
सपाणा च खलाना च सवषां चेतसाम् ।
अ भ ाया न स य त तेनेदं व ते जगत् ।।
क संसार इसी लए टका आ है; य क सांप , और सर के अ न करने को तैयार
रहने वाले लोग के मनोरथ कभी पूरे नह होते।
पहले तो यह आव यक नह क मछु आरे कल ातःकाल यहां आ ही जायगे और य द
वे आ भी गये, तो भी च ता क कोई बात नह है। म पानी म छपने क अनेक यु यां
जानता ं, अतः अपने साथ तु ह भी बचा लूंगा। शतबु म छ भी अपने साथी सह बु
क गव से हांक ड ग का समथन करते ए कहने लगा—
बु े बु मतां लोके ना यग यं ह क चन ।
बु या यतो हता न दा ाण येना सपाणयः ।।
बु मान् अपनी बु के योग से कसी भी संकट से अपना उ ार करने म सदा समथ होते
ह। नह थे चाण य ने अपने बु -बल से ही श धारी सेना रखने वाले राजा न द को
परा जत करके बु क मह ा को स कर दया है।
न य ा त ग तवायो र मीना च वव वतः ।
त ा प वश याशु बु बु मतां सदा ।।
बु मान् तो अनेक ल काय को भी अपने बु -बल से सहज ही पूण कर लेते
कथा म : आठ
म थर नामक जुलाहे के कपड़ा बुनने के सारे औज़ार टू ट-फूट गये, तो वह नये औज़ार के
लए लकड़ी काटने पास के जंगल म जा प ंचा।
सु दर और मज़बूत लकड़ी क खोज म वह समु के कनारे ब त र तक चला गया।
अ त म उसे शीशम का एक वृ दखाई दया, तो वह स होकर उसे काटने के लए
कु हाड़ी चलाने लगा। उस वृ पर कसी दे वता ने अपना आवास बना रखा था। समु के
कनारे होने के कारण वह थान अ य त सुखद था और उस दे वता को य भी था। दे वता ने
कथा म : नौ
एक कंजूस ा ण ने भ ा म ा त और अपने खाने से बचाये स ु को एक मटके म
भरकर रख दया था। वह उस मटके को सदा अपनी आंख के सामने रखता था और उसी के
बारे म सोचता रहता था।
कथा म : दस
कसी नगर के राजा च के बड़े बेटे वानर के साथ खेलते थे और अपने साथी वानर को
अपने-जैसा ही पौ क भोजन खलाया करते थे, जसे खाकर वे वानर ख़ूब -पु हो गये
थे। राजमहल म छोटे ब चे मेढ़ के साथ खेलते थे। इस कार वानर के झु ड के साथ ही
मेढ़ का भी एक झु ड उस राजमहल म पलता था। मेढ़े ज ा क लोलुपता के कारण ायः
रसोईघर म घुस जाते और पक ई भोजन-साम ी खा जाते। रसोइये उ ह भगाने के लए
हाथ म आये बरतन, झाड तथा ड डा आ द कुछ भी उन पर फक दया करते थे।
कथा म : यारह
कसी नगर के राजा भ सेन क क या ब त सु दर थी। वकाल नामक एक रा स उस पर
मु ध होकर उसके हरण क चे ा म रात को आता था, क तु सुर ा क ढ़ता के कारण
सफल नह हो पाता था। फर भी, वह बलपूवक उस क या से स भोग करता था। क या उस
रा स को सहन न कर पाने के कारण भयभीत होकर सहमी-सहमी रहती थी।
एक रात उस रा स ने राजकुमारी को अपनी सखी से यह कहते सुना— या आधी
रात म मेरा हरण करने के लए आने वाले इस रा स को न करने का कोई उपाय नह है?
रा स ने सोचा क मेरी तरह कोई अ य रा स भी राजकुमारी को पाने के लए य न
कर रहा लगता है। इस स य को जानने के लए उसने एक घोड़े का प धारण कया और
घोड़ के बीच शा मल हो गया। संयोग क बात क उसी रात घोड़ का एक ापारी वहां
आया और उसने उसी (रा स) घोड़े को ख़रीद लया।
ापारी ने घोड़े को लगाम के नय ण म न रहते दे खा, तो वह च तत हो उठा।
बेतहाशा भागते घोड़े पर सवार ापारी ने माग म एक वृ दे खा, तो वह घोड़े को छोड़कर
वृ क शाखा से लटक गया।
ापारी जस वृ क शाखा से लटककर अपना बचाव करने म सफल आ था,
उसी वृ पर उस रा स का म एक वानर रहा करता था। उसने रा स को स बो धत करते
ए कहा क यह मनु य तो तेरा भोजन है, तू इसे छोड़कर कहां भागा जा रहा है। वानर ारा
कथा म : बारह
मधुपुर नामक नगर का राजा मधुसेन अ य त भोग य था। उसके घर तीन तन वाली एक
लड़क ने ज म लया, तो उसे अपने लए अशुभ मानकर राजा ने अपने व त सेवक से
कहा क वे उसे कह र जंगल म छोड़ आय।
सेवक बोला—महाराज! न स दे ह यह क या याग दे ने के यो य है, फर भी, हमारा
नवेदन है क इस बारे म ा ण से पूछ लेना उ चत रहेगा;
कथा म : तेरह
जंगल म रहने वाला च डकमा रा स उधर से गुज़र रहे ा ण के क धे पर सवार होकर
बोला—चल, मुझे सरोवर पर ले चल।
ा ण बड़ी क ठनाई से उस रा स को उठाकर चलने लगा। इसी बीच रा स के
चरण क कोमलता को दे खकर ा ण ने पूछ लया—भ ! तु हारे चरण इतने कोमल कैसे
ह?
इस पर रा स ने बताया—म कभी गीले पैर से धरती पर नह चलता।
सरोवर पर प ंचकर रा स ने अपने नान करने तक ा ण को कनारे पर बैठकर
अपने लौटने क ती ा करने को कहा। ा ण चुपचाप बैठ गया, ले कन जब वह रा स
सरोवर म व हो गया, तो ा ण ने सोचा क यह मुझे अपना आहार बनाकर ही
मानेगा, पर तु यह गीले पांव को तो धरती पर रखेगा नह , अतः मुझे अभी भाग नकलना
चा हए। यह सोचकर वह भाग नकला। इस कार उसे रा स से मु मल गयी। इस लए
म कहता ं
पृ छकेन सदा भा ं पु षेण वजानता ।
रा से गृहीतोऽ प ा मु ो जः पुरा ।।
क कसी से कुछ पूछ लेने म कोई बुराई नह होती, अतः बु मान् को कसी से कुछ
पूछने म संकोच नह करना चा हए। पूछने से ही तो वह ा ण उस रा स के चंगुल से मु
हो सका था।
सेवक के कहने पर राजा ने ा ण को बुलाकर उ ह अपनी तीन तन वाली क या
से मु का उपाय बताने को कहा, तो ा ण ने कहा—महाराज! सु नये।
हीना वाऽ धका वा या भवे क यका नृणाम् ।
कथा म : चौदह
कसी सरोवर पर रहने वाले भार ड प ी का पेट तो एक था, क तु उसके सर दो थे। एक
बार उसे कसी वृ से गरा अमृत के समान एक वा द फल मला, तो पहला मुख उसे
खाते ए बोला—मने आज तक कतने ही मधुर फल खाये ह, क तु इस-जैसा वा द फल
मुझे पहली बार खाने को मला है। सरे मुख ने यह सुना, तो कहा क मुझे भी तो चखाओ,
ता क म भी इसका वाद ले सकूं। पहले मुख ने यह कहकर दे ने से इनकार कर दया क हम
दोन का पेट तो एक ही है और तृ त भी एक-जैसी है, अतः मेरे ारा खाया आ, तु हारे
ारा खाया आ भी तो हो गया।
इस इनकार से सरा मुख ख हो उठा और पहले मुख को द ड दे ने का अवसर
ढूं ढ़ने लगा। एक दन उसे एक वषफल मल गया, जसे खाने को उ त सरे मुख से पहला
मुख बोला—मूख! इससे तो हम दोन का एक साथ अ त हो जायेगा, तशोध लेने का यह
उपाय ठ क नह है, ले कन बदले क आग म जलते सरे मुख ने कुछ नह सुना। फल खाने
का प रणाम तो न त था।
एकोदराः पृथ ीवा अ यो यफलभ णः ।
असंहता वन य त भार डा इव प णः ।।
य द एक पेट और दो सर वाले अपने खान-पान म एक- सरे से सहयोग नह
करते अथवा आपस म मल-जुलकर नह रहते, तो भार ड प ी के समान अपने वनाश को
नम त करने वाले ही स होते ह।
च धर बोला—अब तुम घर जा सकते हो, पर तु मेरा कहा मानो, तो अकेले मत
जाओ; य क शा का वचन है
एकः वा न भु ीत नैकः सु तेषु जागृयात् ।
एको न ग छे द वानं नैक ाथान् च तयेत् ।।
क कसी वा द फल को अकेले नह खाना चा हए, सोते म से कसी एक को नह
कथा म:प ह
एक बार द को कह बाहर जाना पड़ा, तो उसक मां ने उसे अकेला जानकर कसी को
अपने साथ ले लेने को कहा। द मां से बोला—मां! च ता क कोई बात नह है। एक,
तो रा ता सीधा है, सरे, अब म साथी कहां से ढूं ढूं?
यह सुनकर ा णी पास क बावड़ी से एक केकड़े को पकड़कर ले आयी और बेटे
से बोली—बेटा! इस केकड़े को ही अपने साथ ले जा। मां के वचन को स मान दे ते ए
द ने केकड़े को कपूर क एक पु ड़या म बांधा और चल पड़ा।
माग म धूप से बचने के लए द एक वृ क छाया म सो गया। उसी वृ के
कोटर म एक काला सांप रहता था। वह बाहर नकला, तो कपूर क सुग ध से आक षत
होकर वह द को छोड़कर केकड़े क ओर चल दया। य ही वह सांप कपूर को खाने
लगा, य ही केकड़े ने सांप के फन को अपने दांत म दबाकर उसे मार डाला। न द से जागने
पर द ने सांप को मरा दे खा, तो मां के परामश के लए उसके त आभार जतलाने
लगा।
ीणः व त शशी र ववृ ौ
व य त पयसां नाथम् ।
अ ये वप द सहाया
ध ननां यमनुभव य ये ।।
जस कार सूय क सहायता से बढ़ने वाला च मा ीण होने पर भी अमृत क वषा
करता है और समु क लहर को ऊपर उठाता रहता है, उसी कार माग म साथ चल रहा
कोई स ब ध न रखने पर भी उप थत संकट से उभारने म सहायक स होता है।
म े तीथ जे दे वे दै व े भेषजे गुरौ ।
या शी भावना य य स भव त ता शी ।।
।। प चम त समा त ।।