You are on page 1of 271

Downloaded from www.PDFshala.

com
प चत को भारतीय स यता, सं कृ त, आचार- वचार तथा
पर परा का व श थ होने के कारण मह वपूण थान
दान कया जाता है। यही वह थ है, जसम छोट -छोट
कहा नय के मा यम से अनेक धा मक, सामा जक तथा
राजनै तक त य क इतनी सु दर और रोचक ा या तुत
क गयी है, जैसी कसी अ य थ म मलना लभ है।
प चत मानव-जीवन म आने वाले सुख- ःख, हष- वषाद
तथा उ थान-पतन म व श मागदशक स आ है। इस
पु तक का एक-एक पृ आपक कसी-न- कसी सम या के
समाधान म अव य ही सहायक स होगा।
सं कृत सा ह य का यह थ-र न कई हज़ार वष से अपनी
उपयो गता और लोक यता के कारण पूरे व म स हो
चुका है। सं कृत के इस गौरव- थ को ह द के पाठक तक
प ंचाने के लए इसे अ य त सरल भाषा म तुत कया जा
रहा है। आशा है क ह द के पाठक इसे पढ़कर लाभ
उठायगे।

Downloaded from www.PDFshala.com


Downloaded from www.PDFshala.com
स पूण
प चत

ा याकार एवं स पादक


आचाय वादरायण

Downloaded from www.PDFshala.com


4695, 21-ए, द रयागंज, नयी द ली 110 002
शाखा
अशोक राजपथ, पटना 800 004
फ़ोन: +91 11 23273167 फ़ै स: +91 11 23275710
www.vaniprakashan.in
vaniprakashan@gmail.com
sales@vaniprakashan.in
SAMPOORNA PANCHTANTRA
edited by Aacharya Vadrayan
ISBN : 978-93-5000-800-3
Moral/Stories/Epic
© काशकाधीन
सं करण 2011, 2014
आवृ 2017
इस पु तक के कसी भी अंश को कसी भी मा यम म योग
करने के लए काशक से ल खत अनुम त लेना अ नवाय है।
वाणी काशन का लोगो मक़बूल फ़दा सेन क कूची से

Downloaded from www.PDFshala.com


अनुवादक क ओर से

प चत सं कृत भाषा का वह थ-र न है, जसे पछले लगभग दो हज़ार वष से


समूचे व के असं य लोग ने अपनी-अपनी भाषा म पढ़ा है और इससे लाभ उठाया है।
केवल यही एक त य इस थ क ामा णकता, लोक यता एवं व सनीयता के मह व को
स करने के लए पया त है।
इस थ क रचना पांच त (अ याय ) के प म ई है, इसी लए इसका नाम
प चत रखा गया है। इस थ के रचनाकार ने अपनी इस रचना का उ े य न न ल खत
शद म कया है—
“कथाछलेन बालानां नी त त दह क यते ।”
अथात् वह रोचक कथा के मा यम से अबोध बालक को राजनी त और लोक-
वहार क श ा दे कर उ ह इस वषय का प डत बनाना चाहते ह। वह भली कार जानते
ह क मनु य को क़ से-कहा नय से अ धक रोचक और कुछ भी नह लगता। वशेषकर
छोटे बालक को तो कहा नयां सुनने म इतना आन द आता है क वे रात को अपनी दाद -
नानी अथवा माता- पता से बना कोई कहानी सुने सो ही नह सकते। इसका कारण यह है
क बा याव था म ज ासा अपनी चरमाव था पर होती है और जस कथा अथवा कहानी म
ज ासा अ धक होती है, उसम रोचकता भी उतनी ही अ धक होती है। बालक सब कुछ
यथाशी जान लेना चाहते ह और इन कहा नय क लोक यता उ ह वह सब सखा दे ती है,
जसका भाव उनके स पूण जीवन पर अपनी अ मट छाप छोड़ जाता है।
प चत क कहा नयां इतनी रोचक और भावशाली ह क ब चे तो या, इ ह
सुनने और पढ़ने के लए बड़े-बूढ़े भी लाला यत रहते ह। यह थ पूरे व म अपना
उदाहरण आप ही है; य क केवल इसी थ म कहानी म से कहानी और फर उस कहानी
म से अ य कहानी और फर अ य कहानी नकलती जाती है। आ य क बात तो यह है क
पूरे व म बड़े-से-बड़े लेखक भी इसक कहा नय का मुक़ाबला नह कर सके ह।
ान का जो भा डार महाभारत, रामायण, मनु मृ त अथवा चाण य के अथशा -
जैसे भारी-भरकम थ म मलता है, उससे भी कह अ धक ान अ य त सरल, सहज एवं
बोधग य भाषा म प चत म मल जाता है। उन महा थ को पढ़ने-सुनने-समझने के लए

Downloaded from www.PDFshala.com


द घकाल क अपे ा होती है, जब क प चत क कहा नयां सब कुछ चुटक बजाते ही
प कर दे ती ह। सम या कोई भी और कैसी भी य न हो, प चत म उसका समाधान
अव य ही मल जाता है।
आज तो भारत सरकार ने भी प चत का अ ययन करने क सलाह अपने बड़े-बड़े
अ धका रय को द है, ता क वे भी कसी क ठन सम या को हल करने के लए प चत से
सहायता ले सक।
त नक वचार क जये क या कोई आधु नक श क यह त ा कर सकता है क
म मा छह महीन क अव ध म ही मूख बालक को राजनी त-जैसे वषय का कुशल वे ा
और ावहा रक ान म नपुण बना ं गा और य द न बना सका, तो अपना कलं कत मुख
दखाने के लए जी वत नह र ंगा?
जी हां, यह उद्घोष इस थ के रच यता अ सी वष के बूढ़े आचाय व णु शमा ने
द ण भारत म थत म हलारो य नामक नगर के राजा अमर सह क रा यसभा म कया
था और इसे स य स कर दखाया था।
प चत राजनी तशा के पूववत अनेक ल ध त व ान क ात-अ ात
रचना के सार-त व का अनमोल सं ह है, जसका आधार अ य धक सु ढ़ एवं पूणतः
प रपु है तथा जसक वषय-साम ी पूणतः ामा णक एवं ावहा रक है। इससे थ क
मह ा एवं उपयो गता वतः स हो जाती है।
सं कृत भाषा के इस गौरव- थ प चत को ह द भाषी पाठक तक प ंचाने के
लए हम इसे अ य त सरल एवं सुबोध भाषा म तुत कर रहे ह। हम आशा है क हमारे
पाठक इसे पढ़कर लाभ उठायगे।
—आचाय वादरायण

Downloaded from www.PDFshala.com


आमुख

लेखक ारा अपने थ क न व न समा त के लए रचना के ार भ म अपने इ दे व के


मंगलाचरण करने क पर परा का पालन करते ए और सभी दे वी-दे वता से ाथना करते
ए आचाय व णु शमा ने कहा है क ा, व णु, शव, व ण, यम, इ , कुबेर, सूय, च ,
सर वती, स ययुग, ेता, ापर तथा क लयुग आ द चार युग के साथ ही वायु, पवत तथा
ल मी, चार वेद, सभी तीथ, अ मेध आ द य , सभी गण तथा मु न एवं नव ह सदा हम
पर कृपा बनाये रख।
मंगलाचरण के प ात् आचाय व णु शमा अपने से पूववत राजनी त के व ान —
मनु, दे वगु बृह प त, दै यगु शु ाचाय, मह ष पराशर, वेद ास तथा राजनी त के आचाय
चाण य को सादर नमन करते ए नवेदन करते ह—
मनवे वाच पतये शु ाय पराशराय ससुताय ।
चाण याय च व षे नमोऽ तु नयशा कतृ यः ।।
इस कार राजनी तशा के ाचीन व ान के थ से साम ी लेकर आचाय व णु
शमा अपने थ प चत क रचना कर रहे ह।
प चत राजनी तशा के अनेक ल ध त व ान क रचना का सार-सं ह
है, जसका आधार एवं साम ी अ य त ामा णक एवं ावहा रक है, जसके कारण थ
क उपयो गता यतः स हो जाती है।
कहा जाता है क भारत के द ण म थत म हलारो य नामक एक स नगर
कसी रा य क राजधानी था, जहां का राजा अ य त च ड तापी अमर सह था, जो सभी
कला का मम , वन और उदार भी था।
राजा अमर सह के ब श , उ श और अन तश नामक तीन पु थे, जो
भा यवश इतने मूख थे क रा य का उ रा धकारी बनने के यो य नह थे। इस कारण राजा
अमर सह सदा च तत रहा करता था। वशाल रा य का अ धप त होने पर भी राजा का मन
अशा त रहता था। एक दन राजा अमर सह ने अपने म य को बुलाकर उ ह अपनी च ता
से अवगत कराते ए उनसे कहा—आप सब मेरे और मेरे रा य के शुभ च तक ह और
आपको पता है क मेरे तीन पु अ ववेक एवं बु हीन ह। इसी लए मेरी रात क न द और

Downloaded from www.PDFshala.com


दन का चैन उड़ गया है। आपने नी तकार को यह वचन तो सुना ही होगा—
अजातमृतमूख यो मृताजातौ सुतौ वरम् ।
यत तौ व प ःखाय याव जीवं जडो दहेत् ।।
पु का पैदा न होना, होकर मर जाना और अ य त मूख होना—इन तीन थ तय म
पु का अ य त मूख होना सवा धक ःखद होता है। मूख पु जीवन-भर तड़पाता रहता है।
यही ःख मुझे भी तड़पा रहा है और मेरे ःख क मा ा दन - दन बढ़ती जा रही है।
इसी स ब ध म आचाय व णु शमा का कथन है—
वरं गभ ावो वरमृतुषु नैवा भगमनं
वरं जात ेतो वरम प च क यैव ज नता ।
वरं व या भा या वरम प च गभषु वस त-
न चा व ान् प वणगुणयु ोऽ प तनयः ।।
न न ल खत छह ःखद थ तय क अपे ा मूख पु का उ प होना सवा धक
ःखदायक होता है—
थम—गभ का न ठहरना अथवा समय से पूव न हो जाना, तीय—प नी के
गभधारण यो य होने पर भी पु ष ारा उसम गभ- थापन न करना, तृतीय—बालक का
गभ म ही मर जाना अथवा मृत बालक का ज म लेना, चतुथ—पु क अपे ा पु ी का
ज म लेना, प चम—प नी का बांझ होना तथा ष —उपयु समय पर भी बालक का गभ
से बाहर न आ पाना अथवा उसके थान पर मांस के लोथड़े का बाहर आना। उपयु सभी
थ तयां गहन ःखदायक ह, पर तु -पु बालक के उ प होने पर भी उसका मूख
नकलना सवा धक ःखदायक होता है; य क ऐसा सदा उपे ा का पा बना रहता
है।
जस कार ध न दे ने वाली गाय सवथा नरथक और उपे त हो जाती है, उसी
कार अ श त स तान के ज म लेने का भी कोई लाभ नह होता, अ पतु ऐसे पु का होना,
उसके न होने से कह अ धक क दायक होता है। इसी लए मूख पु के जीवन क अपे ा
उसक मृ यु क कामना क जाती है।
अपने ःख को अपने मन म दबाते ए महाराज अमर सह बोले—
गु णगणगणनार भे न पत त क ठनी सस माद् य य ।
तेना बा य द सु तनी वद ब या क शी भव त ।।
आचाय व णु शमा के अनुसार मूख पु को ज म दे ने वाली ी क थ त तो ब या
से भी नकृ होती है।
कुछ दे र के उपरा त राजा अमर सह ने अपने म य से पूछा— या मेरे तीन
अयो य पु गुणवान नह बन सकते? या मेरे रा य म कोई भी ऐसा समथ ा ण नह , जो

Downloaded from www.PDFshala.com


मेरे बेट को श त बना सके?
यह सुनकर एक म ी बोला—महाराज! ान तो अन त और असीम है, पर तु उसे
सीखने के लए समय क अपे ा होती है। दे खये न, ाकरण के श ण के लए बारह वष
क अव ध अपे त कही जाती है। इसके अ त र मनु मृ त-जैसे धमशा के थ,
चाण य नी त-जैसे अथशा के थ तथा वा यायन आ द ारा णीत कामशा
स ब धी थ क जानकारी के लए समय तो चा हए ही।
राजा को उदास, हताश एवं थत दे खकर सुम त नामक म ी बोला—महाराज! म
अपने साथी के म त का ख डन तो नह करता; य क यह स य है क शा अन त एवं
असीम ह और इनक जानकारी के लए ब त अ धक समय चा हए, क तु आपके बालक
को यो य बनाने के लए कोई सरल उपाय ढूं ढ़ना पड़ेगा। महाराज! हमारे रा य म व णु शमा
नामक एक व ान् ा ण ह, जो स पूण व ा और शा के ाता ह। य द आप
आचाय व णु शमा को सहमत कर सक और अपने पु उ ह स प द, तो वह न त ही
आपके पु को व ान् बनाकर आपको च तामु कर सकते ह।
राजा अमर सह को अपने म ी सुम त क बात डू बते को तनके के सहारे के समान
लगी और उ ह ने तुर त ही आचाय व णु शमा को सस मान बुला लाने का स दे श दया।
आचाय व णु शमा के आने पर राजा ने उनका वागत-स कार कया और फर वन
एवं मधुर वर म उनसे नवेदन कया—आदरणीय महोदय! य द आप मेरे इन तीन मूख पु
को श त बनाने क कृपा कर, तो म पुर कार के प म आपको सौ ाम का अ धकार
स प ं गा।
यु र म आचाय व णु शमा ने कहा—राजन्! आप मुझे कसी कार का लोभन
दे ने क चे ा न कर। मेरे जीवन म भोग- वलास के लए कोई थान नह रह गया है और म
अपनी व ा को बेचने के लए यहां नह आया ं। हां, आपके ःख से ःखी होकर आपक
ाथना को वीकार करता ं। म आपक सभा म आपके तीन बेट को छह महीन म ही
कुशल राजनी त और ावाह रक ान म स ह त बनाने क घोषणा करता ं और यह
त ा करता ं क य द म छह महीन म अपने उ े य म सफल न आ, तो अपना मुंह
दखाने के लए जी वत नह र ंगा।
इस उद्घोष के उपरा त आचाय व णु शमा ने राजा से कहा—महाराज! अब आप
आज के दन से गनती आर भ कर द जये और इस वृ ा ण को छह मास क अव ध
द जये। यथासमय प रणाम आपके सामने आ जायेगा।
आचाय व णु शमा क इस त ा को अस भव जानकर भी राजा को बड़ी स ता
ई। सभी उप थत लोग ने अ य धक व मत होने पर भी वृ ा ण के वचन का वागत
कया और राजा को इसके लए बधाई द ।
राजा ने भी आचाय व णु शमा के त आभार कट करते ए उनका यथो चत

Downloaded from www.PDFshala.com


अ भन दन कया और अपने तीन पु उ ह स प दये। इससे राजा को च ता से मु ात
ई।
आचाय व णु शमा राजकुमार को अपने साथ अपने आवास पर ले आये और उनके
सु वधाजनक नवास और भोजन आ द क व था क । उसके उपरा त उ ह ने राजकुमार
को सु श त बनाने के लए न न ल खत पांच त वाले थ—प चत —क रचना क

1. म भेद—इस अ याय म श ु के म म फूट डालने, उ ह आपस म लड़ाने तथा श ु को
ीण बनाने के व भ उपाय का वणन है।
2. म स ा त—इस अ याय म अपनी श एवं साम य को बढ़ाने के लए उपयोगी
य को म बनाने और उनके साथ म ता नभाने के व भ उपाय दये
गये ह।
3. काकोलूक य—इस अ याय म श ु के साथ प र थ तवश मै ी स ब ध था पत हो जाने
पर भी उस पर अ ध व ास न करके, उससे सावधान रहने और गु तचर क
भू मका के मह व का तपादन कया गया है।
4. ल ध णाश—इस अ याय म श ु क वजय को मट् ट म मलाने के उपाय का वणन
है।
5. अपरी त कारक—इस अ याय म ऊंच-नीच व हा न-लाभ आ द क भली कार
समी ा कये बना कसी भी काम म हाथ डालने से पहले उस पर यानपूवक
मनन करने यो य साधन का वणन कया गया है।
प चत क रचना करके आचाय व णु शमा ने राजकुमार को पढ़ाना ार भ कर
दया। आचायजी के अ यापन क शैली के कारण राजकुमार भी मन लगाकर अ ययन करने
लगे, जसके प रणाम व प आचाय व णु शमा क त ा सय स ई और तीन
राजकुमार छह महीन म ही नी त- नपुण और बु मान् बन गये।
इसी लए ‘प चत ’ को बालक के लए लोक- वहार म श त करने का आदश
थ मान लया गया और थ क शंसा म कहा गया यह वचन स य स आ।
अधीते यः इदं न यं नी तशा ं शृणो त च ।
न पराभवमा ो त श ाद प कदाचन ।।
इस ‘प चत ’ नामक थ का अ ययन करने वाला अथवा सुनने वाला
वहारकुशल हो जाता है क वह इ -जैसे बल श ु से भी परा जत नह हो सकता तथा
धूत लोग को भी परा जत कर दे ने म समथ हो जाता है।

Downloaded from www.PDFshala.com


थम त

म भेद
(म के बीच म फूट डालने के उपाय)

प चत के थम अ याय म भेद का पहला ोक इस कार है—


व मानो महा नेहः सहगोवृषयोवने ।
पशुनेना तलु धेन ज बुकेन वना शतः ।।
कसी वन म एक सह और एक बैल साथ-साथ रहा करते थे और उनम बड़ी गहरी
दो ती थी। ले कन एक धूत और चुगुलख़ोर गीदड़ ने उन दोन क दो ती को मनी म बदल
डाला। इससे यह स होता है क को धूत लोग क बात म आकर अपने म पर
अ व ास नह करना चा हए। इसका प रणाम नःस दे ह बड़ा भयंकर होता है।
इस बात के समथन म आचाय व णु शमा ने राजकुमार को न न ल खत कथा
सुनायी—
भारत के द ण म म हलारो य नामक नगर म वधमान नामक एक ब नया रहा करता
था, जो धन कमाने म बड़ा नपुण था। एक रात सोते समय उसे एक वचार आया क म
अपनी आव यकता से अ धक धन भले ही कमा लूं, ले कन ापारी को कभी स तु नह
होना चा हए। उसे तो सदै व मह वाकां ी और अस तु ही रहना चा हए।
न हत ते क च दथन न स त ।
य नेन म तमां त मादथमेकं साधयेत् ।।
इस संसार म ऐसी कोई व तु नह , जसे धन के ारा ा त न कया जा सके।
आजकल धन ही संसार म सव म साधन माना जाता है। इसका अथ यह आ क
बु मान् को अ धका धक धन ा त करना चा हए।
अपने वचार पर सोचता आ वधमान ब नया अपने आपसे कहने लगा—
य याथा त य म ा ण म याथा त य बा धवाः ।

Downloaded from www.PDFshala.com


य याथाः स पुमाँ लोके य याथाः स च प डतः ।।
सभी लोग धनवान् के साथ म ता बनाना चाहते ह, ले कन धनहीन से
इस कार र भागते ह, मानो उसे कोई छू त क बीमारी हो। धनी को ही बु मान्
समझा जाता है, जब क धनहीन व ान् होने पर भी हर जगह उपे त कया जाता
है। इससे स होता है क संसार म धन क मह ा अपर पार है। धन क मह ा पर मु ध
होकर वधमान अपने मन म कहने लगा—
न सा व ा न त ानं न त छ पं न सा कला ।
न त थै य ह ध ननां याचकैय गीयते ।।
धन के बना न कोई व ा ा त क जा सकती है, न कोई कला सीखी जा सकती है
और न ही कसी कार क साधना क जा सकती है। भले ही सेवा आ द करके य द कुछ
सीख भी ले, तो भी अधूरा ही कहलाता है। इसी लए धनी लोग का गुणगान करने
वाले उ ह धम और सं कृ त का र क बताकर उनक शंसा करते अघाते नह ।
इह लोके ह ध ननां परोऽ प वजनायते ।
वजनोऽ प द र ाणां सवदा जनायते ।।
ायः यह भी दे खने को मलता है क ध नक से पराये लोग भी स ब ध जोड़ने के
लए य न करते रहते ह, ले कन ग़रीब के सगे-स ब धी भी उ ह अपनाने म संकोच करते
ह।
अथ योऽ प ह वृ े यः संवृ े य तत ततः ।
व ते याः सवाः पवते य इवापगाः ।।
जस कार पवत से नकलने वाली नद लोग का क याण करने के साथ-साथ उनके
धन म भी वृ करती है, उसी कार धन से ही संसार म सभी काय स प होते ह।
पू यते यदपू योऽ प यदग योऽ प ग यते ।
व ते यदव ोऽ प स भावो धन य च ।।
धन क म हमा का वणन नह कया जा सकता। धन आ जाने पर धनहीन भी
कुलीन बन जाता है। इस कार धन के मह व को नकारने क मूखता कोई नह कर सकता।
अशना द याणीव युः काया य खला य प ।
एत मा कारणा ं सवसाधनमु यते ।।
सच तो यह है क जस कार भोजन ारा शरीर के सभी अंग को काय करने क
मता ा त होती है, उसी कार धन के ारा संसार के सभी काय को स प करना भी
स भव हो जाता है।
अथाथ जीवलोकोऽयं मशानम प सेवते ।
य वा जन यतारं वं नः वं ग छ त रतः ।।

Downloaded from www.PDFshala.com


धन ा त करने के लए वह काय भी करने को तैयार हो जाता है, जनम ाण
क आशंका होती है। यहां तक क पु भी अपने धनहीन पता को छोड़ने म दे र नह
लगाता।
गतवयसाम प पुंसां येषामथा भव त ते त णाः ।
अथन तु ये हीना वृ ा ते यौवनेऽ प युः ।।
धनहीन अनेक कार के रोग, अभाव एवं च ता के कारण भरी जवानी म
बूढ़ा हो जाता है, ले कन धनी कभी वृ नह होता। बुढ़ापा भी उससे र भागता है।
वधमान ब नया सोचते-सोचते इस न कष पर प ंचा क धन- ा त के छह साधन ह—1.
भ ा, 2. नौकरी, 3. खेती-बाड़ी, 4. कोई श प अथवा अ यापन या यो तष आ द, 5.
सा कारी, 6. ापार। ले कन इन साधन म धन- ा त के लए ापार ही सव म साधन
है।
कृता भ ाऽनेकै वतर त नृपो नो चतमहो
कृ षः ल ा व ा गु वनयवृ य त वषमा ।
कुसीदा ा र यं परकरगत थशमना-
म ये वा ण या कम प परमं व न मह ।।
छह साधन क तुलना करते ए वधमान अपने आपसे कहने लगा—
भ ावृ को अपनाने वाले इस न कष पर प ंचे ह क इससे पेट भरना भी स भव
नह होता।
सेवा, अथात् सर का आदे श पालन करना और उनके अधीन रहना है। भले ही
इसम एक न त समय पर बंधा आ वेतन मल जाये, ले कन अ धक कमाने के लए कोई
अवसर सुलभ नह होता।
खेती-बाड़ी म एक ओर अ य धक प र म करना होता है, वह वषा के प म कृ त
पर नभर होना पड़ता है।
श प, अ यापन अथवा यो तष आ द कसी काय म सफलता ा त करके धन
ा त करने के लए गु को स करना होता है।
सा कारी म कई बार याज तो याज, मूलधन भी गंवाना पड़ जाता है।
इन पांच साधन पर वचार करने के प ात् म तो ापार को ही सव म साधन
मानता ं।
उपायानां च सवषामुपायः प यसं हः ।
धनाथ श यते ेक तद यः संशया मकः ।।
ापार म असीम लाभ क आशा रहती है। आव यक व तु का सं ह करके और
उ ह ऊंचे दाम पर बेचकर लाभ ा त कया जा सकता है। इसम न कसी क नौकरी होती

Downloaded from www.PDFshala.com


है और न अ धक प र म क आव यकता होती है। य द अ धक म और धन का नवेश
कया जाये, तो लाभ भी अ धक होता है। इस कार मेरे वचार से ापार ही धन- ा त का
सव म साधन है।
ापार पर वचार करते ए वधमान ने न य कया क सात कार के पदाथ का
ापार कया जा सकता है—
1. कॉ मे ट स— म, टे लकम पाउडर, पर यूम आ द का य- व य करना।
2. आभूषण आ द गरवी रखकर याज पर ऋण दे ना।
यह एक कार क सा कारी ही है, पर तु इसम धन डू बने क कोई आशंका नह
रहती।
3. पालतू पशु का य- व य करना।
4. ाहक का व ास जीतकर उ ह घ टया माल दे ना।
5. कम दाम म ख़रीदकर व तु को ऊंचे दाम पर बेचना।
6. नाप-तोल म हेराफेरी करना।
7. सीधे उ पादक से स ते दाम पर ख़रीदे पदाथ को अ धक दाम म बेचना।
प यानां गा धकं प यं कम यैः का चना द भः ।
य ैकेन च य तं त छतेन द यते ।।
इन सभी कार के ापार पर वचार करते ए वधमान ने सोचा क कॉ मे टक का
ापार सोने-चांद के ापार से अ छा तो है, ले कन इन पदाथ के पुराना होकर न होने
का ख़तरा होता है।
न प
े े प तते ह य े ी तौ त वदे वताम् ।
न पे ी यते तु यं दा या युपया चतम् ।।
सा कारी के ध धे म कोई मू यवान् व तु हाथ म आ जाने पर भगवान् से
ऋणी के मर जाने अथवा उसके अ व थ हो जाने क कामना करने लगता है, ता क वह ऋण
न चुका सके और उस व तु पर उसका अ धकार हो जाये।
गो ककम नयु ः े ी
च तय त चेतसा ः ।
वसुधा वसुस पूणा मया
ल धा कम येन ।।
पशु आ द का ापारी अपने आपको सारे संसार का वामी समझकर झूठे
अहंकार म फंस जाता है।
प र चतमाग छ तं ाहकमु क ठया वलो यासौ ।
य त त नलु धो य पु ेण जातेन ।।

Downloaded from www.PDFshala.com


प र चत ाहक को अपनी ओर आता दे खकर ापारी इतना स हो उठता है, मानो
उसे पु ा त हो गया हो, ले कन यह स ता ण-भर क होती है।
पूणापूण माने प र चतजनव चनं तथा न यम् ।
म या य य कथनं कृ त रयं या करातानाम् ।।
नाप-तौल म हेरा-फेरी करके ाहक को मूख बनाना एक बार तो अ छा लगता है,
ले कन ऐसी बेईमानी हमेशा नह चल सकती।
गुणं गुणं व ं भा ड य वच णाः ।
ा ुव यु मा लोकाः रदे शा तरं गताः ।।
सीधे उ पादक से ख़रीदकर लाये पदाथ को मांग के समय अ धक दाम पर बेचने से
अव य ही अ धक लाभ मलता है।
इस कार वधमान को इन सब कार के वसाय म से कम दाम पर पदाथ
ख़रीदकर महंगे दाम पर बेचने का वसाय ही अ छा लगा। उसने तुर त शुभ मु त
नकलवाकर बैलगाड़ी पर अपना सामान लादा और-उ र भारत के मुख ापा रक के
मथुरा क ओर चल पड़ा। उसने अपनी गाड़ी म स ीवक और न दक नामक दो बैल को
जोता आ था। दोन ही बैल व थ एवं भली कार बोझ ढो सकने वाले थे। ले कन यमुना
के कछार पर प ंचकर दोन बैल दलदल म धंस गये और स ीवक तो लंगड़ा होकर वह
बैठ गया। उसम खड़ा होने क साम य ही नह रह गयी थी।
बैल के त अपने लगाव के कारण वधमान तीन दन तक वहां का रहा, क तु बैल
व थ न हो सका। इस पर ब नये के सा थय ने उसे समझाते ए कहा—सेठजी! एक बैल
के लए आपको इतना मोह नह करना चा हए। इस जंगल म शेर, चीता, बाघ एवं भालू आ द
अनेक जंगली जानवर रहते ह। इसके साथ ही यह भी कौन जाने क कल या होगा? या
पता कह चोर-डाकू ही हम लूट ल या मारकर परलोक ही प ंचा द। शा म भी कहा गया
है—
न व प य कृते भू र नाशये म तमा रः ।
एतदे वा पा ड यं य व पाद् भू रर णम् ।।
क थोड़े लाभ के लए बड़े लाभ को छोड़कर ख़तरा मोल लेना समझदारी क बात नह है।
आप सोच-समझ से काम ली जये और यहां से आगे च लये।
वधमान को यह बात उ चत लगी और उसने पास के गांव से एक नया बैल ख़रीदकर
गाड़ी म जोता और अपनी राह पर चल दया। हां, अपने बैल क दे ख-रेख के लए उसने
अपने दो नौकर को स ीवक के पास छोड़ दया।
नौकर ने दो-एक दन स ीवक क दे खभाल क , क तु उसके न उठने पर, वे भी
उसे छोड़कर वहां से चल दये।
यमुनातट क व छ वायु से स ीवक के ाण जाग उठे । वह बल लगाकर उठा तथा

Downloaded from www.PDFshala.com


हरी व कोमल घास खाकर और व छ जल पीकर कुछ ही दन म व थ हो गया। अब वह
अपने को इस े का राजा समझने लगा। शवजी के वाहन न द के समान स ीवक
अपने स ग से रेत के ट ल को उखाड़ने लगा तथा गजन-तजन करने लगा।
शा कार ने उ चत ही कहा है—
अर तं त त दै वर तं
सुर तं दै वहतं वन य त ।
जीव यनाथोऽ प वने वस जतः
कृत य नोऽ प गृहे वन य त ।।
जसका कोई र क नह होता, उसक र ा भगवान् करते ह और जसक र ा लोग कया
करते ह, भा य को वीकार न होने पर भी वह बच नह पाता। भा य अ छा हो, तो जंगल म
छोड़ा ाणी भी जी वत बच रहता है। ले कन भा य के अनुकूल न होने पर भरपूर सेवा-
शु ूषा कये जाने पर भी का जी वत रहना न त नह होता।
स ीवक का भा य अ छा था, इस लए वह मौत के मुंह म जाकर भी वापस लौट
आया।
एक दन अपने प रवार के साथ वन म घूमता- फरता पगलक नामक एक सह वह
आ प ंचा, जहां स ीवक बैल गजन करता- फरता था। सह यासा था और यमुना सामने
थी, क तु सह ने आज तक जंगल म स ीवक बैल के समान वशालकाय पशु नह दे खा
था। स ीवक क चे ा को दे खकर पगलक क यास जाती रही और वह सोचने लगा
क यह मुझसे भी अ धक बलवान् पशु कौन है?
पगलक ने अपने म ी शृगाल के दो पु —करटक और दमनक—को उनके पता
के न रहने पर म ी पद नह दया था। इस लए वे दोन उससे थे, क तु फर भी वे
पगलक के आगे-पीछे चलते रहते थे। दोन ने बना यास बुझाये सह को वापस लौटते
दे खा, तो दमनक ने करटक से कहा—अरे! हमारा वामी जल पीने के लए यमुनातट पर
आया था, क तु जल पये बना ही उदास य बैठा है?
दमनक क बात सुनकर करटक बोला— म ! हम इन थ क बात से या लेना-
दे ना? नी तकार का कथन है—
अ ापारेषु ापारं यो नरः कतु म छ त ।
स एव नधनं या त क लो पाट व वानरः ।।
क सर के काम म थ ह त ेप करने वाला दो लक ड़य के बीच म फंसायी गयी
क ल को उखाड़ने के च कर म अपने ाण गंवाने वाले ब दर के समान अपने ही वनाश को
बुलावा दे ता है।
दमनक ारा पूरा ववरण सुनाने क बात कहने पर करटक कहने लगा—

Downloaded from www.PDFshala.com


कथा म : एक
कसी सेठ ने नगर के समीप एक म दर के नमाण का न य कया। काम म लगे कारीगर
भोजन के लए नगर म चले जाते थे। लकड़ी चीरने वाले कारीगर ने आधे चरे वृ के दो
ह स को आपस म मल जाने से रोकने के लए उन दोन के बीच म एक खूंट लगा रखी
थी।
कारीगर के चले जाने पर वहां प ंचा ब दर का एक झु ड उछल-कूद करने लगा।
इसी बीच एक ब दर अध चरे वृ के बीच लगायी गयी खूंट को नकालने लगा। य ही
ब दर ने ख चकर खूंट नकाली, य ही उसका अ डकोश वृ के ह स के बीच म फंस
गया और ब दर क मृ यु हो गयी।
इस कहानी को सुनाकर करटक बोला— म ! जस काम से हम कुछ लेना-दे ना नह ,
हम उस काम म अपनी टांग य अड़ाय? हम अपने वामी से भोजन मल जाता है और
उससे हमारी भूख मट जाती है। हम य बेकार म ‘आ बैल मुझे मार’ को च रताथ कर?
दमनक बोला— म ! या तुम अपने जीवन का उ े य केवल ‘पेट भरना’ ही मानते
हो? म तु हारे इस वचार से सहमत नह । शा म भी म कहा गया है—
सु दामुपकारकारणाद्
षताम यपकारकारणात् ।
नृपसं य इ यते बुधैजठरं
को न बभ त केवलम् ।।
अपना पेट तो कसी-न- कसी कार सभी भर लेते ह, यह कोई ब त बड़ी बात नह है।
जीवन का उ े य तो म का उपकार करना और श ु का अपकार करना है। म को
लाभ और श ु को हा न प ंचाने के लए श और साम य क आव यकता होती है,
जसके लए बु मान् राजा का आ य लेते ह।
य मन् जीव त जीव त बहवः सोऽ जीवतु ।
वयां स क न कुव त च वा वोदरपूरणम् ।।
म ! त नक सोचो, तु ह पता चलेगा क सर के लए उपयोगी का जीवन
कतना मह वपूण होता है, अ यथा प ी भी दाना चुगकर अपना पेट भर लेते ह।
य जी ते णम प थतं मनु यै-
व ानशौय वभवा यगुणैः समेतम् ।
त ाम जी वत मह वद त त ाः
काकोऽ प जीव त चराय ब ल च भुं े ।।
म ! कौवे के समान फका आ अ खाकर, कसी कार जीने को जीना नह कहा

Downloaded from www.PDFshala.com


जाता, अ पतु अपनी शूरता व द ता आ द गुण से सर का हत साधन करते ए जीना
कह अ धक मह वपूण होता है। व ान का न त मत है—
यो ना मना न च परेण न च ब धुवग
द ने दयां न कु ते न च म यवग ।
क त य जी वतफलं ह मनु यलोके
काकोऽ प जीव त चर च ब ल च भुं े ।।
क अपनी, सर क और द न- खय के हत क च ता न करने वाले का जीवन
कौवे के जीवन से भ नह होता। ऐसा तो पृ वी पर भार प होता है।
सुपूरा या कुन दका सुपूरो मू षका लः ।
सुस तु ः कापु षः व पकेना प तु य त ।।
जस कार छछली नद थोड़े पानी से और चूहे क हथेली अ के थोड़े-से दान से
भर जाती है, उसी कार ओछे भी थोड़े-से लाभ से स तु हो जाते ह।
क तेन जातु जातेन मातुय वनहा रणा ।
आरोह त न यः व य वंश या े वजो यथा ।।
माता- पता के नाम को रौशन न करने वाले पु को ज म दे ने वाली मां भी ऐसे पु
को ज म दे कर अपने यौवन को ध कारती ही है।
प रव त न संसारे मृतः को वा न जायते ।
जात तु ग यते सोऽ यः फुरे च या धकः ।।
शा के अनुसार उ प ए क मृ यु और मृत के ज म का च
नर तर चलता ही रहता है। अतः ज म लेना मह वपूण नह है। मह वपूण तो अ धका धक
धन अ जत करना है।
जात य नद तीरे त या प तृण य ज मसाफ यम् ।
त स ललम जनाकुलजनह ताल बनं भव त ।।
जो कसी के काम न आ सके, उसक अपे ा नद के कनारे पर उगे घास के
तनके का कह अ धक मह व होता है, जो नद म डू ब रहे को बचाने का साधन बन
जाता है।
त मतो तस चारा जनस तापहा रणः ।
जाय ते वरला लोके जलदा इव स जनाः ।।
वायुम डल म ऊपर-नीचे व दाय-बाय घूम-घूमकर लोग के क को र करने वाले
मेघ के समान स जन तो इस संसार म वरले ही मलते ह।
नर तशयं ग रमाणं तेन
जन याः मर त व ांसः ।

Downloaded from www.PDFshala.com


य कम प वह त गभ
महताम प यो गु भव त ।।
त वदश व ान् लोक-क याण म अपने जीवन का ब लदान करने वाले बालक क
मां को ही वा तव म ‘र न सू’ मानकर उसे गौरव दान करते ह।
अ कट कृतश ः श ोऽ प
जन तर यां लभते ।
नवस तदा ण लं यो
व न तु व लतः ।।
श होने पर भी उसका उपयोग या दशन न करने वाले को कभी आदर
नह मल पाता। लकड़ी म आग के अ कट रहने पर लक ड़य को फक दया जाता है। या
कोई जलती ई लकड़ी को हाथ लगाने का साहस कर सकता है?
दमनक के इस भाषण को सुनकर करटक बोला— म ! तु हारा कहना उ चत है,
पर तु हम कस थ त म ह, या तुमने इस त य पर भी वचार कया है? हम राजा के नौकर
नह ह, केवल अपने वाथ के कारण उसके आगे-पीछे चल रहे ह। या उसने कभी हमारी
आव यकता समझी है? या वह हमारी सलाह को कभी मानेगा? हम इस झ झट म पड़ने
क आव यकता नह है? नी तकार ने कहा है—
अपृ ोऽ ा धानो यो ूते रा ः पुरः कुधीः ।
न केवलमस मानं लभते च वड बनम् ।।
जो बना पूछे सलाह दे ने का यास करता है, उसे न त ही उपहास का पा बनना
पड़ता है।
वच त यो ं य ो ं लभते फलम् ।
थायी भव त चा य तं रागः शु लपटे यथा ।।
जस कार सफ़ेद कपड़े पर ही रंग अपना उ चत भाव दखा सकता है, उसी कार
उ चत को ही सलाह दे ने का लाभ हो सकता है।
अ धानः धानः या सेवते य द पा थवम् ।
धानोऽ य धानः या द सेवा वव जतः ।।
दमनक बोला— म ! म तु हारे वचार को उ चत नह मानता। राजा क सेवा करने
वाला साधारण भी मु खया बन सकता है। जब क सेवा न करने वाला मु खया भी
साधारण बन जाता है।
आस मेव नृप तभजते मनु यं
व ा वहीनमकुलीनमसं कृतं वा ।
ायेण भू मपतयः मदा लता

Downloaded from www.PDFshala.com


य पा ती भव त त प रवे य त ।।
शा का वचन और जीवन का अनुभव यह है क राजा, यां और बेल अपने पास
रहने वाले को ही अपना लेती ह, भले ही वह अ श त और असं कृत ही य न हो। इसी
कार सदा पास रहने वाला भी राजा और य का य बन जाता है।
कोप सादव तू न ये व च व त सेवकाः ।
आरोह त शनैः प ाद् धु व तम प पा थवम् ।।
एक वचारणीय बात यह भी है क वामी का कृपापा बनने के लए सेवक को यह
जान लेना चा हए क वामी को कस बात से ोध आता है और कस बात से वह स
होता है; य क वामी के दय को जीतने का यही उपयु अवसर होता है।
व ावतां महे छानां श प व मशा लनाम् ।
सेवावृ वदा चैव ना यः पा थवं वना ।।
मह वाकां ी व ान , श पकार , कलाकार तथा सेवावृ के इ छु क को
अपनी आकां ा क पू त के लए राजा य ही उपयु साधन होता है।
ये जा या दमहो साहा रे ा ोपया त च ।
तेषामामरणं भ ा ाय ं व न मतम् ।।
अपनी जा त, व ा अथवा कसी गुण के कारण राजा य क उपे ा करने वाले
अपने ही पैर पर अपने आप कु हाड़ी मार लेते ह। ऐसे जीवन-भर अभाव म
रहते ह और ाय क आग म जलते रहते ह।
ये च ा रा मानो रारा या महीभुजः ।
मादाल यजा ा न या पता न नजा न तैः ।।
राजा को रारा य कहने वाले मूख, आलसी और कामचोर होते ह। जब य न
करने पर प थर को भी पघलाया जा सकता है, तो राजा को स य नह कया जा
सकता?
सपान् ा ान् गजान् सहान् ोपायैवशीकृतान् ।
राजे त कयती मा ा धीमताम मा दनाम् ।।
य द सांप, बाघ, हाथी और सह आ द हसक पशु को वश म कया जा सकता है,
तो राजा को य नह स कया जा सकता?
राजानमेव सं य व ान् या त परां ग तम् ।
वना मलयम य च दनं न रोह त ।।
जस कार च दन का वृ मलय पवत पर ही होता है, उसी कार राजा य मलने
पर ही व ान् क व ा के गुण का स मान होता है।
धवला यातप ा ण वा जन मनोरमाः ।

Downloaded from www.PDFshala.com


सदा म ा मात ाः स े स त भूपतौ ।।
राजा के स होने पर उसके आ त को अनेक ब मू य एवं लभ पदाथ,
जैसे ेत छ , मनोरम अ , सदा म त रहने वाले हाथी तथा अनेक कार के व ाभूषण
और खा -पदाथ आ द सुलभ हो जाते ह।
राजा के त दमनक के बल आ ह को दे खकर करटक ने पूछा— म ! तुम या
करना चाहते हो?
इस पर दमनक बोला— म ! इस समय हमारा वामी पगलक कसी अ ात
आशंका से त तीत होता है। हम उसके पास चलकर कारण का पता लगाना चा हए और
फर नी त का आ य लेकर उसक सेवा करनी चा हए। इस कार हम उसका दय जीतने
म सफल हो जायगे।
करटक ने कहा— म ! तुम यह कैसे कह सकते हो क हमारा वामी कसी आशंका
से त है?
दमनक ने उ र दया—यह भी कोई पूछने क बात है?
उद रतोऽथः पशुना प गृ ते हया
नागा वह त चो दताः ।
अनु म यूह त प डतो जनः
परे त ानफला ह बु यः ।।
म ! यह तो प है क कहने पर तो मूढ़ को भी पता चल जाता है,
समझदारी तो बना कुछ कहे ही सरे के चेहरे से उसके मनोभाव को जान लेने म है। हाथी-
घोड़े आ द पशु भी अपने वामी के संकेत को समझते ह और भार उठाने को तैयार हो जाते
ह। ले कन प डत तो वही है, जो बना कहे ही सर के मन के रह य को जान ले। य द
पढ़ा- लखा भी इतना यो य न हो, तो उसका पढ़ना- लखना थ ही कहलायेगा।
मनु ने भी कहा है—
आकारै र तैग या चे या भाषणेन च ।
ने व वकारै ल यतेऽ तगतं मनः ।।
कसी के मन के भाव का पता उसके चेहरे के हाव-भाव तथा उसक व भ चे ा ,
ग त व धय , चाल-ढाल, बातचीत करने के ढं ग, उसके ने क थ त व उसके चेहरे के
भाव से हो जाता है। लाख चे ा करने पर भी वा त वकता छप नह सकती।
य द म भय त वामी के भय का कारण जानकर उसे भयमु कर सका, तो मुझे
पूरा व ास है क वह मुझे स चव पद स पने म दे र नह लगायगे। मुझे तो लगता है क
उनको वश म करने का यह सबसे उ म अवसर है।
करटक बोला—लगता है क तु ह इन वामी के वभाव क कोई जानकारी नह है।

Downloaded from www.PDFshala.com


दमनक ने कहा—तुम ऐसा कैसे कह सकते हो? यह तो मने पताजी से ान ा त
करते समय ही सीख लया था। तुम कहो, तो तु ह बता ं ।
सुवणपु पतां पृ व व च व त नरा यः ।
शूर कृत व य जाना त से वतुम् ।।
सबसे पहले तो यह मानकर चलना होगा क इस संसार म तीन कार के लोग सफल
होते ह : 1. परा मी, 2. व ान् तथा 3. सेवाकाय म नपुण।
सा सेवा या भु हता ा ा वा य वशेषतः ।
आ ये पा थवं व ां तद् ारेणैव ना यथा ।।
वा तव म, सेवा वही कहलाती है, जससे परमा मा का हत हो और वामी को
स ता ा त हो। सेवक क समझदारी इसी म है क वह इस बात को समझे और उसी के
अनु प आचरण भी करे।
यो न वे गुणान् य य न तं सेवेत प डतः ।
न ह त मा फलं क च सुकृ ा षरा दव ।।
जस कार ऊसर धरती म ब ढ़या बीज डालने और कठोर प र म करने पर भी
अपे त फल नह मलता, उसी कार सेवक के गुण का उ चत स मान न करने वाले वामी
क सेवा करने से भी कोई लाभ नह होता। ऐसे वामी को छोड़ दे ने म ही भलाई होती है।
कृ तहीनोऽ प से ः से गुणा वतः ।
भव याजीवनं त मा फलं काला तराद प ।।
य द धनहीन वामी गुण को परखने वाला और कृत हो, तो उसक सेवा अव य
करनी चा हए; य क साधन-स प होने पर ऐसा वामी अपने सेवक का उपकार कर दे ता
है।
अ प थाणुवदासीनः शु य प रगतः ुधा ।
न वेवाना मस प ाद्वृ मीहेत प डतः ।।
कृत न वामी क सेवा करके सुखमय जीवन जीने क अपे ा भूखा मरना तथा मूख
के समान जीवन तीत करना ही अ छा है।
सेवकः वा मनं े कृपणं प षा रम् ।
आ मानं क स न े से ासे ं न वे यः ।।
अपने वामी क कंजूसी के लए उसक न दा करने वाला सेवक मूख होता है। उसे
तो अपनी न दा करनी चा हए क उसने यो य वामी को य नह चुना? वामी क सही
परख न कर पाने के लए सेवक को वयं ही अपनी न दा करनी चा हए।
यमा य न व ामं ुधा ा या त सेवकाः ।
सोऽकव ृप त या यः सदा पु पफलोऽ प सन् ।।

Downloaded from www.PDFshala.com


सेवक के लए व , भोजन व आवास आ द क पू त न करने वाला वामी सम त
पृ वी का वामी होने पर भी आक के वृ के समान या य होता है। उसे छोड़ने म एक पल
क भी दे री करना उ चत नह होता।
राजमात र दे ां च कुमारे मु यम ण।
पुरो हते तहारे च सदा व त राजवत् ।।
जीवन म सफलता ा त करने के लए सेवक को वामी के साथ-साथ राजमाता,
पटरानी, राजकुमार, धानम ी, पुरो हत और ारपाल के साथ भी वामी के समान ही
वहार करना चा हए—
जीवे त ुवन् ो ः कृ याकृ य वच णः ।
करो त न वक पं यः स भवे ाजव लभः ।।
उ चत और अनु चत तथा करणीय एवं अकरणीय क जानकारी होने पर भी बना
वचार कये वामी क आ ा का आंख म चकर पालन करने वाला सेवक अपने वामी का
कृपापा बन जाता है।
भु सादजं व ं सु ा तं यो नवेदयेत् ।
व ा ं च दधा य े स भवे ाजव लभः ।।
वामी ारा पुर कार के प म दये पदाथ पर स होने वाला तथा वामी ारा
दये गये व ाभूषण आ द को मु य अवसर पर धारण करने वाला सेवक वामी के दय
को जीत लेता है।
अ तःपुरचरैः सा यो न म ं समाचरेत् ।
न कल ैनरे य स भवे ाजव लभः ।।
अ तःपुर के कमचा रय तथा राजम ह षय से र रहने वाला तथा उनके त
आस न रखने वाला सेवक वामी का य बन जाता है।
ूतं यो यम ताभं हालां हालाहलोपमाम् ।
प ये ारा वृथाकारा स भवे ाजव लभः ।।
जुए को यम त के समान, शराब को वष के समान और सु दर य को मशान क
मट कय के समान मानते ए उनसे र रहने वाला सेवक ही राजा को य होता है।
यु कालेऽ तो यः या सदा पृ ानुगः पुरे ।
भो ारा तो ह य स भवे ाजव लभः ।।
शा त के समय सदा राजा के पीछे -पीछे चलने वाला, महल के ार पर सदा उप थत
रहने वाला तथा संकट के समय सदा आगे रहने वाला सेवक ही वामी को य होता है।
स मतोऽहं वभो न य म त म वा त मेत् ।
कृ े व प न मयादां स भवे ाजव लभः ।।

Downloaded from www.PDFshala.com


राजा का कृपापा बनकर क ठन प र थ तय म भी अपने कत का नवाह करने
वाला और अपनी मयादा का याग न करने वाला सेवक ही वामी को य होता है।
े ष े षपरो न य म ाना म कमकृत् ।
यो नरो नरनाथ य स भवे ाजव लभः ।।
वामी के श ु से र रहने वाला तथा उसके इ जन क सेवा करने वाला सेवक ही
वामी को य लगता है।
ो ः यु रं नाहं व ं भुणा च यः ।
न समीपे इस यु चैः स भवे ाजव लभः ।।
वामी के व कभी अपना मुंह न खोलने वाला तथा उसके सामने न हंसने वाला
सेवक ही वामी को य लगता है।
यो रणं शरणं त म यते भयव जतः ।
वासं वपुरावासं स भवे ाजव लभः ।।
यु भू म को अपना घर तथा परदे स को अपना दे श समझने वाला और वामी के हत
को ाथ मकता दे ने वाला सेवक भी वामी को य लगता है।
न कु या रनाथ य यो ष ः सह स तम् ।
न न दां न ववादं च स भवे ाजव लभः ।।
कसी भी के सामने राजा क न दा न करने वाला, राजा से कभी ववाद न
करने वाला तथा राजा क े मका से लगाव न रखने वाला सेवक ही वामी का य हो
सकता है।
दमनक के यह कहने पर करटक को व ास हो गया क दमनक राजनी त म नपुण
है। फर उसने पूछा—तुम राजा से कस कार स पक बनाओगे? मुझे बताओ।
उ रा रं वा यं वदतां स जायते ।
सुवृ गुणस प ाद्बीजाद्बीज मवापरम् ।।
दमनक ने कहा—इस बारे म सोच- वचार करने क या आव यकता है? जस कार
धरती म पड़ा बीज वषा हो जाने पर फलने लगता है, उसी कार मलने पर बातचीत भी होने
लगती है।
म तु ह बता चुका ं क म बचपन म ही राजनी त क श ा ा त कर चुका ं, अतः
म अवसर दे खकर ही बात छे डंगा। म जानता ं
अ ा तकालं वचनं बृह प तर प ुवन् ।
लभते ब ानमपमानं च पु कलम् ।।
क बना उपयु अवसर के तो बृह प त ारा कही गयी बात को भी कोई गौरव नह दे ता।
तभी तो उनको भी अपमान सहना पड़ता है।

Downloaded from www.PDFshala.com


करटक बोला—ब धु! म मानता ं
रारा या ह राजानः पवता इव सवदा ।
ालाक णाः सु वषमाः क ठना से वताः ।।
क जस कार ऊबड़-खाबड़ तथा सप एवं ा आ द भयंकर जीव से भरे पवत कठोर
होते ह, उसी कार राजा लोग भी कठोर- दय होते ह और सदै व लोग से घरे रहते ह।
उ ह स करना कोई सरल काम नह होता।
ज ाः ू रकमाणोऽ न ा छ ानुसा रणः ।
रतोऽ प ह प य त राजानो भुजगा इव ।।
जस कार सांप क दो जीभ होती ह, वे सर को डसने का ही काम करते ह, सदा
बल क खोज करते रहते ह और र रखे जाते ह, उसी कार राजा भी दो जीभ वाले होते
ह। उनके कथन पर व ास नह कया जा सकता। वे सर को द डत करने के आद होते
ह, अतः उनसे भी सांप क तरह र रहना ही उ चत होता है।
रारोहं पदं रा ां सवलोकनम कृतम् ।
व पेना यपकारेण ा य मव य त ।।
राजा का कृपापा बनना सरल काम नह होता। जस कार साधारण-सा पापकम
करने से भी ा ण का ा ण व न हो जाता है, उसी कार राजा के त कये गये
साधारण-से अपराध का भी बड़ा भारी द ड भुगतना पड़ता है।
भतु ानुव वं सुवृ ं चानुजी वनाम् ।
रा सा ा प गृ ते न यं छ दानुव त भः ।।
राजनी त के अनुसार राजा क च वृ का अनुसरण करना ही सदाचार कहलाता है
और इसका पालन करने वाला रा स वभाव वाले राजा को भी अपने वश म कर
सकने म सफल हो जाता है।
स ष नृपे तु तवचनं
तद भमते ेम त द् ष े षः ।
त ान य च शंसा
अम त ं वशीकरणम् ।।
राजा को वश म करने के लए कुछ आव यक नयम इस कार ह—
1. राजा का कोपभाजन बने से कोई भी स ब ध न रखना तथा उसे अपने पास
भी न फटकने दे ना।
2. राजा के स मुख अथवा उसक पीठ पीछे भी सदै व उसक शंसा करना तथा
उसके ु होने पर भी उसका तु तगान ही करना।
3. सदा ही राजा को य लगने वाले वषय क शंसा करना और उसे अ य लगने

Downloaded from www.PDFshala.com


वाले वषय क न दा करना।
4. राजा क उदारता एवं उसक दानशीलता का इस कार गुणगान करना क राजा
को हर ओर से वही सुनाई दे ।
करटक बोला—ब धु! य द तुम वामी के पास जाना ही चाहते हो, तो जाओ। म
तु हारी सफलता के लए ई र से ाथना क ं गा। इस पर दमनक अपने म करटक का
अ भवादन करके पगलक क ओर चल दया।
दमनक को अपनी ओर आता दे खा, तो पगलक ने अपने ारपाल से कठोर वर म
कहा—वे पाल! दमनक हमारे पूव म ी का बेटा है, इसे हमारे पास आने का अ धकार है।
ारपाल ने ‘जो आ ा महाराज’ कहते ए सह क आ ा का पालन कया। दमनक
ने भी पगलक को दे खते ही उसे णाम कया और फर उसके ारा न द आसन पर
चुपचाप जा बैठा। पगलक ने दमनक को आशीवाद दया और उससे पूछा—अरे दमनक!
तुम तो ब त दन बाद दखाई दये हो, सब कुशल तो है?
दमनक ने अ य त वनीत वर म कहा— वामी! आपक दया से म कुशल से ं।
ले कन अब मुझे आपसे कुछ भी कहने का अ धकार नह है, फर भी, आपसे कुछ कहना
आव यक समझकर ही म आपक सेवा म उप थत आ ।ं आप तो जानते ही ह क
राजा को सभी कार के लोग से समय-समय पर काम पड़ता रहता है। यह कोई अनोखी
बात नह है।
हम तो वंश-पर परा से आपके शुभ च तक और सुख- ःख म साथ दे ने वाले रहे ह।
आज हमारे पास कोई अ धकार नह है, हम अपने सभी अ धकार से व चत कर दये गये
ह।
थाने वेव नयो ा भृ या ाभरणा न च ।
न ह चूडाम णः पादे भवामी त ब यते ।।
य द सेवक और आभूषण नयत थान पर ही रह, तब ही उनक शोभा होती है। य द
मुकुट को पैर म बांध दया जाये, तो इससे मुकुट का अपमान तो होता ही है, उसे धारण
करने वाले क अ ानता का भी पता चल जाता है।
अन भ ो गुणानां यो न भृ यैरनुग यते ।
धना ोऽ प कुलीनोऽ प मायातोऽ प भूप तः ।।
यह तो आप भी जानते ह गे क धनी, कुलीन और वंश-पर परा से राजा के गुणी
सेवक भी अपने गुण को मह व न दे ने वाले वामी को छोड़कर चले जाते ह।
महाराज! आप मुझे ब त दन के बाद दखाई दे ने का उलाहना दे रहे ह, तो इसका
कारण भी जान ली जये।
स द णयोय वशेषो ना त ह तयोः ।

Downloaded from www.PDFshala.com


क त णम याय व मानग तवसेत् ।।
जहां दाय व बाय हाथ म अ तर नह कया जाता, गुणी सेवक तथा गुणर हत सेवक म
अ तर नह कया जाता, दोन के साथ एक-जैसा ही वहार कया जाता है, वहां
वा भमानी सेवक कब तक टक सकता है?
काचे म णमणौ काचो येषां बु वक यते ।
न तेषां स धौ भृ यो नाममा ोऽ प त त ।।
कांच को म ण और म ण को कांच समझने वाले बु हीन वामी के पास गुणी सेवक
कब तक टक सकता है, इसे तो आप भली कार जानते ह।
परी का य न स त दे शे
नाघ त र ना न समु जा न ।
आभीरदे शे कल च का तं
भवराटै वपण त गोपाः ।।
जांच-परख न कर सकने वाले लोग के हाथ म आये समु से नकले स चे मो तय
का कुछ भी मू य नह होता। तभी तो आभीर दे श म वाले लभ म ण को दो-दो, तीन-तीन
कौ ड़य म बेच दे ते ह।
न वशेषं यदा वामी समं भृ येषु व ते ।
त ो मसमथानामु साहः प रहीयते ।।
छोटे -बड़े सभी कार के सेवक के साथ एक-जैसा वहार करने वाले राजा के
कमचा रय क आकां ाएं न हो जाती ह और उनक मौ लक वृ समा त हो जाती है,
जो राजा के लए उ चत नह होता।
न वना पा थवो भृ यैन भृ याः पा थवं वना ।
तेषां च वहारोऽयं पर पर नब धनः ।।
यह एक न ववाद स य है क राजा के बना सेवक का और सेवक के बना राजा
का काम नह चल सकता। एक के बना सरे का कोई अ त व ही नह होता।
भृ यै वना वयं राजा लोकानु हका र भः ।
मयूखै रव द तांशु तेज व प न शोभते ।।
जस कार करण के बना सूय क कोई शोभा नह होती, उसी कार सेवक के
बना वामी क भी शोभा नह होती।
शरसा वधृता न यं नेहेन प रपा लताः ।
केशा अ प वर य ते नः नेहाः क न सेवकाः ।।
जस कार सर के केश, न य साफ़ न कये जाने पर खे और कठोर हो जाते ह,
या उसी कार पुर कार आ द न मलने के कारण सेवक खी नह ह गे?

Downloaded from www.PDFshala.com


राजा तु ो ह भृ यानामथमा ं य छ त ।
ते तु स मानमा ेण ाणैर युपकुवते ।।
सेवक के कसी काय पर स होकर राजा उ ह धन-मान आ द दे कर पुर कृत
करता है, ले कन स चा सेवक तो अपने वामी के लए अपने ाण क आ त दे ने के लए
भी सदा तैयार रहता है।
एवं ा वा नरे े ण भृ याः काया वच णाः ।
कुलीनाः शौ यसंयु ाः श ा भ ाः मागतः ।।
इन सब बात को दे खते ए बु मान् राजा को कुलीन, शूरवीर, चतुर, न ावान् एवं
सम पत य को ही मह वपूण पद पर नयु करना चा हए।
यः कृ वा सुकृतं रा ो करं हतमु मम् ।
ल जया व नो क च ेन राजा सहायवान् ।।
राजा के लए अपने ाण को जो खम म डालकर भी अपना व ापन न करने वाले
सेवक का स मान करने वाला राजा ही उ त करता है।
य मन् कृ यं समावे य न वशङ् केन चेतसा ।
आ यते सेवकः स या कल मव चापरम् ।।
वा तव म, स चा एवं व त सेवक वही है, जसे कोई भी काय स पकर वामी
न त हो जाये। ऐसे सेवक के अ त र सेवक तो य के समान भार प होते ह।
अना द ोऽ प भूप य ् वा हा नकरं च यः ।
यतते त य नाशाय स भृ योऽह महीभुजाम् ।।
अपने राजा के व चल रही कसी वरोधी ग त व ध को न करने के लए अपनी
स पूण श लगा दे ने वाला सेवक ही वा तव म सेवक कहलाने यो य होता है।
न ुधा पी ते य तु न या न कदाचन ।
न च शीतातपा ै स भृ योऽह महीभुजाम् ।।
वामी के काम के लए अपनी भूख- यास, न ा तथा सुख-सु वधा को भूलकर अपने
कत का पालन करने वाला ही स चा सेवक होता है।
सीमावृ समाया त शु लप इवोडु राट् ।
नयोगसं थते य मन् स भृ योऽह महीभुजाम् ।।
सीमा पर सतक रहकर अपने वामी क सुर ा करने वाला और शु लप के च मा
क भां त सीमा को बढ़ाने वाला सै नक ही स चा सेवक कहलाता है।
कौशेयं कृ मजं सुवण-
मुपलाद् वा प गोरोमतः
पङ् का ामरसं शशाङ् क

Downloaded from www.PDFshala.com


उदधे र द वरं गोमयात् ।
का ाद नरहेः फणाद प
म णग प तो रोचना
ाका यं वगुणोदयेन
गु णनो ग छ त क ज मना ।।
यह कहने के उपरा त दमनक बोला— वामी! मुझे साधारण गीदड़ समझकर आपको
मेरी उपे ा नह करनी चा हए थी। ज म अथवा जा त से गुण का कोई स ब ध नह होता।
रेशम का ज म क ड़े से होता है, सोना प थर से नकाला जाता है, वा क उ प गाय के
रोम से होती है, कमल का ज म क चड़ से होता है और च मा क उ प सागर से होती
है। इ द वर कमल गोबर से, अ न लकड़ी से, म ण सांप के फन से और गोरोचन गाय के
प से उ प होता है। इन सबक उ प के थान के तु छ होने पर भी, अपने गुण के
कारण ही इनक त ा है।
क भ े नासमथन क श े नापका रणा ।
भ ं श ं च मां राजन् नाव ातुं वमह स ।।
जस कार कुछ भी करने म असमथ सेवक के सम पत होने पर भी उसक कोई
उपयो गता नह होती, उसी कार समथ सेवक के सम पत न होने पर उसक भी कोई
उपयो गता नह होती। उपयो गता तो केवल समथ और सम पत सेवक क ही होती है।
अ प व पतरं का य य वे पृ थवीपतेः ।
त वा यं सभाम ये ोवाचेदं बृह प तः ।।
आचाय बृह प त का कथन है क राजा को अपने कसी छोटे -से काय क चचा भी
कसी सभा म नह करनी चा हए।
षट् कण भ ते म तु कणः थरो भवेत् ।
त मा सव य नेन षट् कण वजये सुधीः ।।
दमनक चाहता है क वह पगलक से एका त म कुछ बात करे। उसके सबके सामने
कुछ न कहने का कारण यह है क कोई भी बात दो य के बीच होने पर ही गु त रहती
है, तीसरे के कान म पड़ते ही उसक गोपनीयता न हो जाती है। अतः बु मान्
को अपना रह य दो य तक ही सी मत रखना चा हए। इस लए म कहता ं क
म आपसे एका त म बात करना आव यक समझता ।ं
पगलक का कथन सुनकर पास बैठे ा , गडा, बगुला आ द सब उठकर चल दये।
एका त होने पर दमनक ने उससे पूछा—आप तो अपनी यास बुझाने के लए गये थे,
फर बना जल पये य लौट आये?
पगलक ने हंसते ए उ र दया—कोई वशेष बात नह थी, मन नह कया, तो

Downloaded from www.PDFshala.com


वापस लौट आया।
दमनक ने कहा— वामी! आप नह बताना चाहते, तो म आपसे कुछ भी नह पूछूंगा;
नी तकार ने कहा है—
दारेषु क च वजनेषु क ो यं
वय येषु सुतेषु क चत् ।
यु ं न वा यु मदं व च य
वदे प महतोऽनुरोधात् ।।
क बु मान् को कुछ बात य से, कुछ बात अपने स ब धय से और कुछ बात
म तक से भी छपाकर रखनी चा हए।
इसके साथ ही उ ह ने यह भी कहा है क कहने यो य और न कहने यो य का वचार
करके व त को गु त बात भी बता दे नी चा हए; य क कसी सम या के समाधान
के लए ऐसा करना आव यक होता है।
दमनक के वचन पर वचार करने के प ात् पगलक को लगा क वह समझदार है,
अतः मुझे इसके सामने सब कुछ प कर दे ना चा हए।
सु द नर तर च े गुणव त
भृ येऽनुव त न कल े ।।
वा म न सौ दयु े नवे
ःखं सुखी भव त ।।
य क व त म से, न ावान् सेवक से, आ ाका रणी प नी से तथा शुभ च तक वामी
से अपना ःख-सुख कहने म संकोच नह करना चा हए; य क यही लोग— म , सेवक,
प नी और वामी—कुछ उपाय कर सकते ह।
यही सोचकर पगलक ने दमनक से कहा—दमनक! र से आती यह गजन व न
तु ह भी सुनाई दे रही होगी।
दमनक बोला—हां वामी! सुन रहा ं, पर तु इसम च ता करने क या बात है?
पगलक ने कहा—म इस जंगल को छोड़कर कसी सरे जंगल म जाने क सोच रहा
।ं
दमनक च ककर बोला—इस जंगल म कौन-सा आकाश गरने वाला है?
पगलक ने कहा—मुझे लगता है क यहां कोई नया जीव आ गया है, यह
दय वदारक गजन उसी का लगता है। मुझे तो लगता है क वह अ य त बलशाली भी होगा।
दमनक बोला— मा कर दे व! केवल गजन सुनकर ऐसी क पना कर लेना तो उ चत
नह ।
अ भसा भ ते सेतु तथा म ोऽ यर तः ।

Downloaded from www.PDFshala.com


पैशु या ते नेहो भ ते वा भरातुरः ।।
जस कार जल के बल वाह से पुल टू ट जाता है, गु त न रखे जाने पर रह य क
जानकारी सर को हो जाती है, चुगुली सुनकर य के त नेह घट जाता है, उसी
कार ाकुल होकर ाणी कसी क आवाज़ से भी घबरा जाता है।
मेरे वचार से तो आपका गजन के भय से इस जंगल को छोड़ दे ना उ चत नह । यह
आव यक तो नह क यह गजन कसी जी वत ाणी का ही हो। बांस, वीणा, ढोल, नगाड़ा
तथा दो वृ क टकराहट से भी आवाज़ नकल सकती है। केवल आवाज़ को सुनकर डर
जाना तो बु म ा क बात नह ।
अ यु कटे च रौ े च श ौ ा ते न हीयते ।
धै य य य महीनाथ न स या त पराभवम् ।।
कसी भयंकर अथवा शूरवीर श ु के आ जाने पर भी धैय बनाये रखने वाला राजा
कभी परा जत नह हो सकता।
य य न वप द वषादः
स प द हष रणे न भी वम् ।
तं भुवन य तलकं जनय त
जननी सुतं वरलम् ।।
वप के समय वषाद त न होने वाले, धन-स प पाकर हष म न होने वाले
तथा यु म भयभीत न होने वाले जीव वरले ही होते ह तथा ऐसे ही जीव अपनी माता के
नाम को उ वल कर तीन लोक क शोभा बढ़ाते ह।
श वैक यन य नःसार वा लघीयसः ।
ज मनो मानहीन य तृण य च समा ग तः ।।
श से घबराकर झुक जाने वाले और अपने को छोटा समझने वाले कायर को कह
भी स मान नह मलता। उनक थ त तो कसी तनके के समान होती है।
अतः आपको ये सब बात सोचकर अधीर नह होना चा हए। मा एक गजन सुनकर
घबरा जाना तो समझदारी नह ।
पूवमेव मया ातं पूणमेत मेदसा ।
अनु व य व ातं ताव चम च दा च ।।
कसी नायक ने आवाज़ सुनकर यह समझा क आवाज़ करने वाला कोई जी वत
ाणी है, पर तु पास प ंचकर उसने दे खा क वह तो केवल चमड़ा और लकड़ी था।
पगलक के मन को शा त करने के लए दमनक ने उसे यह कथा सुनायी।

कथा म : दो

Downloaded from www.PDFshala.com


भूख से बेचैन गोभायु नामक एक गीदड़ घूमते-घूमते अचानक उस जंगल म जा प ंचा, जहां
दो सेना म भीषण यु हो चुका था। वहां उसने हवा के वेग से कांप रही वृ क शाखा
क आवाज़ सुनी। गीदड़ ने सोचा क यह आवाज़ मेरे पास प ंचे, इससे पहले ही यहां से
नकल भागना चा हए। तभी अचानक उसे यह वचार आया क या बाप-दादा के ज़माने से
चले आ रहे अपने इस नवास थान को इस कार अचानक छोड़ जाना उ चत होगा?
शा कार का कथन है—
भये वा य द वा हष स ा ते यो वमशयेत् ।
कृ यं न कु ते वेगा स स तापमा ुयात् ।।
हष अथवा भय का अवसर आ जाने पर सदा सोच- वचार कर काम करने वाले को
कभी पछताना नह पड़ता।
अतः उसने न य कया क पहले मुझे यह पता लगाना चा हए क यह आवाज़ कैसी
है? भयभीत होते ए भी उसने अपना साहस बटोरा और धीरे-धीरे उस ओर बढ़ना आर भ
कया, जधर से वह आवाज़ आ रही थी। पास प ंचने पर उसे एक नगाड़ा दखाई दया, तो
वह उसे बजाने लगा। फर उसने सोचा क ब त दन के बाद आज मुझे इतना सु वा
भोजन मला है। इस नगाड़े म तो गो त, चब आ द ब त कुछ भरा होगा। यह सोचकर स
एवं उ म ए गीदड़ ने नगाड़े म छे द कया और उसके भीतर घुसकर बैठ गया, ले कन वहां
उसे केवल काठ के सवा कुछ भी नह मला। सूखे चमड़े को फाड़ते ए उसक दाढ़ भी टू ट
चुक थ । फर वह यह कहते ए बाहर नकला—मने तो सोचा था क इसम मांस, चब
आ द ब त कुछ होगा, पर तु यहां तो सूखे चमड़े और लकड़ी के सवा कुछ भी नह है।
पगलक ने कहा—मेरा पूरा प रवार इसी आवाज़ से भयभीत होकर यहां से भागने
का न य कर चुका है। फर म अकेला यहां कैसे रह सकता ं?
इस पर दमनक ने कहा— वामी! आप अपने प रजन को दोष मत द जये। वे सब
तो आपको भयभीत दे खकर घबरा गये ह।
अ ः श ं शा ं वीणा वाणी नर नारी च ।
पु ष वशेषं ा ता भव ययो या यो या ।।
स य तो यह है क न नो सात क मान सकता अपने वामी के वहार पर ही
नभर करती है। वामी इ ह जस प म ढालना चाहता है, ये वैसा ही आचरण करने लगते
ह—
घोड़ा, श , शा , वीणा, वाणी, नर और नारी—ये सब जस कार के पु ष के
साथ रहते ह, उसी के अनुसार अपने आप को ढाल लेते ह।
कहने का अ भ ाय यह है क आपके प रजन का डर उनका अपना नह है, वे तो
आपको भयभीत दे खकर ही डर रहे ह।
वा यादे शा सुभृ य य न भीः स ायते व चत् ।

Downloaded from www.PDFshala.com


वशे मुखमाहेयं तरं वा महाणवम् ।।
आप मुझे थोड़ा-सा समय द जये। म इस भयंकर श द क जानकारी लेकर आता ं,
तब तक आप मेरी ती ा कर। उसके बाद ही आप जो उ चत समझ, वह कर।
पगलक ने पूछा— या तुम हमारे लए वयं को ख़तरे म डालोगे?
दमनक ने उ र दया—महाराज! वामी के लए कुछ भी करना सेवक का धम है।
यही कहा गया है क वामी का काय करते समय सेवक को सुर ा-असुर ा का वचार नह
करना चा हए। वामी के लाभ के लए तो उसे अजगर व सांप के मुंह म हाथ डालने और
अथाह सागर म डू बने के लए भी सदा तैयार रहना चा हए।
वा या द तु यो भृ यः समं वषममेव च ।
म यते न स स धाय भूभुजा भू त म छता ।।
अपनी समृ म वृ के इ छु क राजा को अपनी आ ा क च ता करने वाले सेवक
को तुर त अपनी सेवा से नकाल दे ना चा हए।
इस पर पगलक बोला—तब ठ क है, तुम जाओ, ई र तु हारी सहायता करे।
इस पर पगलक को णाम नवेदन कर दमनक आवाज का पीछा करता आ
स ीवक क ओर चल दया।
अब पगलक यह सोचने लगा क कह दमनक को अपने मन का रह य बताकर मने
कोई ग़लती तो नह क , कह यह मुझसे अपने को पद से हटाये जाने का बदला तो नह
लेगा?
ये भव त महीप य स मा नत वमा नताः ।
यत ते त य नाशाय कुलीना अ प सवदा ।।
पद से हटाये गये कुलीन होने पर भी राजा के वनाश का अवसर पाकर बदला लेने से
नह चूकते।
पगलक सोच म पड़ गया क य द दमनक मुझे मारने के लए उस भयंकर ाणी को
अपने साथ लेकर यहां आ गया, तो मुझे तुर त ही कसी सुर त थान पर चले जाना
चा हए? नी तकार ने भी कहा है
न व य ते व ता ब ल भ बला अ प ।
व ता वेव व य ते बलव तोऽ प बलैः ।।
क सर पर व ास न करने वाले बल भी बलवान् श ु का शकार होने से बच
जाते ह, जब क सर पर व ास करने वाले बलवान् भी सहज ही अपने श ु के
शकार बन जाते ह।
बृह पतेर प ा ो न व ासे जे रः ।
य इ छे दा मनो वृ मायु यं च सुखा न च ।।

Downloaded from www.PDFshala.com


अपने को सुर त एवं सुखी बनाने के लए को बृह प त के समान कसी
पर कभी व ास नह करना चा हए।
शपथैः स धत या प न व ासे जे पोः ।
रा यलोभो तो वृ ः श े ण शपथैहतः ।।
इसी कार शपथ लेकर स ध करने वाले श ु पर भी व ास नह करना चा हए। इ
ने भी शपथ लेकर और वृ का व ास जीतकर उसे मार डाला था।
यह सोचकर पगलक कसी सुर त थान म छप गया और दमनक क राह दे खने
लगा।
दमनक ने स ीवक को ढूं ढ़ लया और वह उसे दे खकर बोला—अरे, हमारे वामी
के डर का कारण तो यह बैल है। इसके साथ वामी क म ता अथवा यु करा दे ने से
पगलक को अपनी मुट्ठ म करना मेरे लए कतना आसान हो जायेगा?
सदै वाप तो राजा भो यो भव त म णाम् ।
अत एव ह वा छ त म णः सापदं नृपम् ।।
संकट के समय राजा को अपने अनुकूल बनाना म ी के लए बड़ा आसान होता है।
इसी लए समझदार म ी राजा के सर पर सदा ही कसी-न- कसी संकट क तलवार
लटकाये रखते ह।
यथा ने छ त नीरोगः कदा च सु च क सकम् ।
तथाप हतो राजा स चवं ना भवा छ त ।।
जस कार व थ को च क सक क कोई आव यकता नह होती, उसी
कार कसी संकट म न पड़े ए राजा भी अपने म य क च ता नह करते।
यह सोचकर दमनक पगलक क ओर चल पड़ा। पगलक ने दमनक को पास आते
दे खा, तो वह तनकर बैठ गया और दमनक के पास आने पर उससे पूछा—कहो, या कुछ
पता चला क वह ाणी कौन है?
उ र म दमनक के ‘हां’ कहने पर पगलक बोला—कह तुम झूठ तो नह बोल रहे
हो?
दमनक बोला—महाराज! या म आपके सामने झूठ बोल सकता ? ं
अ प व पमस यं यः पुरो वद त भूभुजाम् ।
दे वानां च वन येत स तं सुमहान प ।।
राजा और दे वता के सामने झूठ बोलने वाले को अपने पद से हाथ धोना पड़ता है।
सवदे वमयो राजा मनुना स क तः ।
त मा ं दे वव प ये लीके न क ह चत् ।।
मनु के अनुसार राजा म सभी दे वता नवास करते ह और वह सभी दे वता का

Downloaded from www.PDFshala.com


त न ध होता है। उसे इससे भ कसी अ य प म दे खना भी पाप है।
सवदे वमय या प वशेषो नृपतेरयम् ।
शुभाशुभफलं स ो नृपा े वा वा तरे ।।
जहां अ य दे वी-दे वता क सेवा का फल कुछ समय बाद मलता है, वहां दे वता
के त न ध राजा क सेवा का फल तुर त ही मल जाता है।
पगलक बोला—जब तुम उससे मलकर ही आ रहे हो, तो तुम सच ही कहते होगे,
क तु शायद तुम द न पर दया करने को धम समझते हो, इसी लए तुमने उसे छोड़ दया
होगा। नी तकार ने भी कहा है
तृणा न नो मूलय त भ नो
मृ न नीचैः णता न सवतः ।
वभाव एवो तचेतसामयं
महा मह वेव करो त व मम् ।।
क बड़े-बड़े और सर तानकर खड़े वृ को वायु भले ही गरा दे , क तु सर झुकाकर खड़े
तनक और छोट -छोट बेल को वह कभी नह उखाड़ सकता। बलवान् अपने पौ ष का
दशन बलवान के स मुख ही करना चाहते ह।
दमनक बोला— मा कर महाराज! उसके सामने हम बल भी तो स हो सकते ह।
अब य द आपक आ ा हो, तो म उसे आपका सेवक बना सकता ं।
इस पर पगलक ने अ व ास के वर म पूछा— या ऐसा स भव है?
दमनक ने व ासपूवक कहा—बु म ापूवक काम करने पर सब कुछ स भव हो
सकता है।
न त छ ैन नागे ै न हयैन पदा त भः ।
का य सं स म ये त यथा बु ा सा धतम् ।।
अ -सेना, गज-सेना, रथ-सेना तथा श ा से सुस जत कुशल सेना के होते
बु म ापूवक कये गये सभी काय पूरे कये जा सकते ह।
पगलक ने कहा—य द तुम ऐसा कर सको, तो म तु ह पुनः म ीपद स प ं गा। आज
के बाद तु ह अपनी जा और अपने कमचा रय पर कृपा करने और उ ह द ड दे ने का
अ धकार भी तु ह ही होगा।
पगलक से यह आ ासन पाकर ही दमनक तुर त स ीवक के पास प ंचा और उसे
धमकाकर बोला—अरे बैल! तू कस लए इस कार गजन-तजन करके जंगल क शा त
को भंग कर रहा है? या तुझे पता नह क महाराज पगलक इस जंगल के वामी ह? या
तूने उनसे इस वन म घूमने- फरने क अनुम त ली है? चल, वह तुझे बुला रहे ह।
दमनक क ध स सुनकर स ीवक घबरा गया और बोला—यह पगलक कौन है?

Downloaded from www.PDFshala.com


दमनक ने उ र दया— या तू हमारे वामी को नह जानता? या तू उनका शकार
बनना चाहता है, जो इस कार बोल रहा है? वहां वटवृ के नीचे हमारे वामी अपने स चव
और अ धका रय के साथ बैठे ए ह।
दमनक के इस कठोर वहार से मौत को अपने सर पर मंडराता जानकर स ीवक
नराश होकर बोला—भाई, तुम मुझे दयालु होने के साथ ही वहार-कुशल भी लगते हो।
या तुम अपने वामी से मेरी र ा करने क कृपा नह करोगे?
दमनक ने उ र दया—भाई! म तु हारी थ त को समझ रहा ं और वामी से
तु हारी सफ़ा रश भी क ं गा, क तु पूण प से तु ह व ास नह दला सकता;
प य ता ल यते भूमेः समु य गरेर प ।
न कथ च महीप य च ा तः केन चत् व चत् ।।
य क समु क गहराई और पवत क ऊंचाई नापी जा सकती है, क तु राजा के मन क
गहराई को कोई नह जान सकता।
तुम यहां ठहरकर ती ा करो, म वामी के मन क थ त दे खकर आता ,ं फर
तु ह उनके पास ले चलूंगा।
इस कार स ीवक को दलासा दे कर दमनक ने पगलक के पास जाकर कहा—
महाराज! वह कोई साधारण जानवर नह है, वह तो शंकर भगवान् का वाहन न द है। मेरे
पूछने पर वह कहने लगा क वह कसी पगलक को नह जानता। उसे तो वयं महादे वजी ने
यहां यमुना- कनारे घास चरने क आ ा दे कर भेजा है।
यह सुनकर पगलक घबरा उठा और बोला—हां, म भी तो क ं क बना कसी दे वता
क कृपा के इस घने जंगल म इस कार गजन करने का साहस कोई कैसे कर सकता है?
अ छा, तो तुमने या कहा?
दमनक बोला—महाराज! मने उससे कहा क इस जंगल पर हमारे वामी भगवती के
वाहन महाराज पगलक का अ धकार है। य द आप अ त थ बनकर यहां रहना चाहते ह, तो
उनके पास चलकर उनसे म ता कर ली जये और फर आन दपूवक मौज-म ती क जये।
इस पर उस बैल ने कहा—ठ क है, तुम अपने वामी से मेरा प रचय कराओ।
दमनक क शंसा करते ए पगलक बोला—तु हारी बु क शंसा करनी ही
होगी। म उससे म ता करने के लए तैयार ।ं तुम उसे शी ही यहां ले आओ और हमारी
म ता करा दो।
अ तःसारैरकु टलैर छ ै ः सुपरी तैः ।
म भधा यते रा यं सु त भै रव म दरम् ।।
जस कार म दर ढ़ त भ पर ही टका रहता है, उसी कार न ावान्, न छल
और नद ष म य पर ही कसी राजा का रा य भी टका रहता है।
म णां भ स धाने भषजां सा पा तके ।

Downloaded from www.PDFshala.com


कम ण यते ा व थे को वा न प डतः ।।
यूं तो सभी अपने को बृह प त मानते ह, पर तु जस कार स पात रोग म वै क
और असा य थ त म राजनेता क बु क परी ा होती है, उसी कार दो य म फूट
डलवाने तथा उनम मै ी कराने म म ी क बु क परी ा होती है।
पगलक को णाम करके स ीवक को बुलाने के लए जाते ए दमनक सोचने
लगा—इस समय पगलक क जैसी मनः थ त है, उससे तो लगता है क मुझे मेरा खोया
आ म ीपद पुनः ा त हो जायेगा। मने यहां आकर ठ क ही कया है। नी तकार ने ठ क
ही कहा है—
अमृतं श शरे ब रमृतं यदशनम् ।
अमृतं राजस मानममृतं ीरभोजनम् ।।
जस कार स दय म अ न जीवनदा यनी होती है, ध से बने पदाथ का सेवन अ छा
लगता है, उसी कार राजा ारा मान-स मान का मलना भी कसी सौभा य का सूचक है।
इसके प ात् वह स ीवक के पास प ंचकर उससे बोला— वामी ने तु ह यहां पर
रहने के लए अपनी वीकृ त दे द है। तुम चाहो, तो उनसे भट करने के लए चल सकते हो।
पर यह मत भूलना क मेरे कारण ही राजा से तु हारी म ता हो रही है। मेरे इस उपकार को
भुला मत दे ना। वामी से तु हारी म ता कराने के बदले मुझे म ीपद मलेगा और तब रा य
का सारा भार मेरे ही क ध पर होगा। हम दोन क म ता बनी रहेगी, तो दोन मौज करगे।
आखेटक य धमण वभवाः युवशे नृणाम् ।
नृ जाः ेरय येको ह य योऽ मृगा नव ।।
शकारी के धम का पालन करने से ही शकार हाथ लगता है। एक शकार को
हांक लगाता है, तो सरा उसे अपना ल य बनाता है।
यो न पूजयते गवा माधमम यमान् ।
भूपस मानमा योऽ प यते द तलो यथा ।।
गव म होकर उ म, म यम तथा अधम रा या धका रय क उपे ा करने वाला
राजा का कृपापा होने पर भी द तल क भां त अपने पद को खो दे ता है।

कथा म : तीन
स ीवक के पूछने पर उसे द तल क कथा सुनाते ए दमनक कहने लगा—
वधमान नामक नगर म द तल नामक एक सेठ पूरे नगर के जाजन व राजपु ष म
समान प से लोक य था। लोग क यह धारणा बन चुक थी क उसके समान कुशल और
े न अ य कोई आ है और न होगा।

Downloaded from www.PDFshala.com


नरप त हतकता े यतां या त लोके
जनपद हतक ा य यते पा थवे ै ः ।
इ त मह त वरोधे व माने समाने
नृप तजनपदानां लभः का यक ा ।।
ायः राजा का शुभ च तक जाजन को फूट आंख नह सुहाता। वह तो
उनक आंख का कांटा बन जाता है। इसी लए जाजन का हत चाहने वाला राजा के लए
भी अवा छनीय बन जाता है। इस कार कसी भी के लए राजा और जा दोन से
समान प से स मान ा त करना बड़ा क ठन होता है।
द तल ने अपने ववाह के अवसर पर सभी रा या धका रय को न केवल सादर
आम त कया, अ पतु उ ह अनेक कार के ब मू य उपहार दे कर स मा नत भी कया,
क तु राजा के सफ़ाई कमचारी क उसने उपे ा क और राजपु ष के थान पर बैठ जाने
के लए उसका अपमान भी कया। इस पर उस गोर भ नामक सफ़ाई कमचारी को इतना
ःख आ क वह रात-भर सो भी नह सका और तशोध ले पाने म असमथ होने के लए
अपने आपको कोसता रहा। यहां तक क वह इस अपमान को न सह पाने के लए
आ मह या क भी सोचने लगा।
यो पकतुमश ः कु य त
कमसौ नरोऽ नल जः ।
उ प ततोऽ प ह चणकः श ः
क ा कं भङ् ु म् ।।
जस कार अकेला चना भाड़ को नह फोड़ सकता, उसी कार असमथ ,
जब कसी का कुछ नह बगाड़ सकता, तो उसे कसी पर ोध करने का अ धकार भी
समा त हो जाता है?
एक दन ातःकाल जाग गये, पर तु यूं ही लेटे पड़े राजा के कमरे क सफ़ाई करते-
करते गोर भ बड़बड़ाते ए कहने लगा—द तल नगरसेठ है, तो या उसक इतनी ह मत
क वह रानी मां को हाथ भी लगा सके!
भले ही राजा ने यूं ही सुना होगा, तो भी वह एकदम उठ खड़ा आ और गोर भ से
पूछने लगा—अरे गोर भ! या तूने द तल सेठ को रानी को छू ते दे खा है?
गोर भ बोला—महाराज! मने तो ऐसा कुछ नह कहा। रात-भर जुआ खेलते रहने के
कारण म कुछ उन दा हो रहा ं। हो सकता है मेरे मुंह से कुछ अ ट-श ट नकल गया हो!
मुझे मा कर महाराज! यह कहता आ गोर भ तुर त ही कमरे से बाहर चला गया।
इधर राजा का स दे ह व ास म बदलने लगा। उसने सोचा क अव य ही दाल म कुछ
काला है। गोर भ ने अव य ही कुछ दे खा है, क तु डर के कारण बता नह रहा है। द तल

Downloaded from www.PDFshala.com


सेठ को र नवास म आने-जाने क खुली छू ट है। अब कसी के मन का या व ास? आग
के पास रखा घी पघल सकता है। यह तो वाभा वक है। नी तकार ने भी तो यही कहा है—
य ा छ त दवा म य वी ते वा करो त वा ।
त व ेऽ प तद यासाद् ूतेवाऽथ करो त वा ।।
क जो दन म अपने मन का गुबार नकाल नह पाता, वह व म या अचेतन अव था
म उसके मुंह से नकल आता है।
शुभं वा य द वा पापं य ृणां द सं थतम् ।
सुगूढम प त ेयं व वा या था मदात् ।।
जागते रहने पर अपने मन क कसी भी अ छ या बुरी बात को गु त रखने म
भले सफल हो जाये, ले कन व म अथवा नशे क हालत म वह गु त रह य कट हो ही
जाता है। इसके अ त र य के च र पर व ास भी तो नह कया जा सकता।
ज प त सा म येन प य य यं स व मम् ।
तं च तय य यं यः को नाम यो षताम् ।।
य के लए पु ष को मूख बनाना तो उनके बाय हाथ का खेल होता है। वे बात
कसी और से कर रही होती ह, क तु दे ख कसी अ य क ओर रही होती ह तथा च तन
अपने म का कर रही होती ह। ऐसे म यह कौन जान सकता है क उनका ेमपा कौन है?
एकेन मतपाटलाधर चो ज प यन पा रं
वी तेऽ य मतः फुट कुमु दनीफु लो लस लोचनाः ।
रोदारच र च वभवं याय त चा यं धया
केने थं परमाथतोऽथव दव ेमा त वाम ुवाम् ।।
यां अपने लाल-लाल अधर से मुसकराती ई कसी से भो बात करके उसके मन
म अपनी चाहत का स दे ह उ प कर दे ती ह। कुमु दनी क भां त वे अपनी खली ई आंख
से कसी क ओर दे खकर ही उसे अपनी ओर आक षत कर लेती ह तथा कसी भी पु ष के
यान म अपनी सुध-बुध खो बैठती ह। कौन कह सकता है क वे वा तव म कससे ेम
करती ह?
रहो ना त णो ना त ना त ाथ यता नरः ।
तेन नारद नारीणां सती वमुपजायते ।।
ाजी ने भी नारदजी से कहा था क यां तब तक ही सती बनी रहती ह, जब
तक उ ह एका त, अवसर तथा आम ण दे ने वाला पु ष नह मल जाता। इ ह पाते ही
यां अपने वा त वक प को कट कर दे ती ह।
यो मोहा म यते मूढो र े यं मम का मनी ।
स त या वशगो न यं भवे डाशकु तवत् ।।

Downloaded from www.PDFshala.com


मोह के कारण कसी ी को अपने ऊपर मर- मट समझने वाले को यह
समझ लेना चा हए क वह उस ी के हाथ का खलौना बन गया है।
अन थ वा मनु याणां भया प रजन य च ।
म यादायामम यादाः य त त सवदा ।।
अपने कसी चाहने वाले के न मलने तक या प रजन के डर से ही यां अपनी
मयादा म रहती ह, अ यथा उनक उ छृ ं खलता को तो सारा व जानता है।
नासां क दग योऽ त नासा च वय स थ तः ।
व पं पव तं वा पुमा न येव भु यते ।।
य को बूढ़े-अवान, कु प-सु प और कुलीन-अकुलीन का कोई वचार नह
रहता। उ ह तो केवल स भोग-सुख दे ने वाला चा हए।
इस कार के वचार म पड़ा राजा उदास हो उठा और उसने उसी दन से द तल सेठ
के अपने महल म आने-जाने पर तब ध लगा दया। राजा के वहार म आये इस प रवतन
से द तल सेठ ाकुल हो उठा और राजा के इस वहार का कारण जानने का य न करने
लगा। वह सोचने लगा—
कोऽथान् ा य न ग वतो
वष यणः क यापदोऽ तंगताः
ी भः क य न ख डतं भु व मनः
को नाम रा ां यः ।
कः काल य न गोचरा तरगतः
कोऽथ गतो गौरवं
को वा जनवागुरासु प ततः
ेमेण यातः पुमान् ।।
ये सात बात अव य ही स य ह—
1. धन पाकर कसी का भी अहंकार त होना।
2. वषय से त का संकट म पड़ना।
3. य के स मोहन से अपने को न बचा पाना।
4. राजा का सदा ही य न बना रहना।
5. काल का ास न बनना।
6. भखारी होकर भी स मा नत न बना रहना।
7. जन का संग करने के कारण ग त का शकार न होना।
काके शौचं त
ू कारे च स यं
सप ा तः ीषु कामोपशा तः ।

Downloaded from www.PDFshala.com


लीबे धै य म पे त व च ता
राजा म ं केन ं ुतं वा ।।
आगे दये गये छह कार के ा णय म न नो गुण क अपे ा नह क जा
सकती। उसी कार राजा का कृपापा बने रहने क आशा भी कसी को नह करनी चा हए।
कौए से प व ता क , जुआरी से स चे वहार क , सांप से मा क , य से
कामवासना-पू त क , नपुंसक से धीरज क और शराबी से त व च ता क आशा
करना थ होता है। इनम ये गुण होते ही नह । इसी कार, राजपु ष भी सदै व कसी पर
भी अपनी कृपा नह बनाये रखते।
अब द तल सेठ ने सोचा क बना कारण तो कुछ भी घ टत नह होता, अतः राजा के
मुझसे वमुख होने का कोई-न-कोई कारण अव य होना चा हए।
एक दन द तल सेठ राजा से मलने गया, तो ारपाल ने द तल को वेश क
अनुम त नह द । अ य सेवक को चुप दे खकर गोर भ कहने लगा—अरे, सेठजी को इस
कार ार पर रोके रखोगे, तो तु हारी नौकरी जाती रहेगी। तुम जानते नह यह सेठजी तो
यहां के भी मा लक ह।
गोर भ के इस कार उलाहना दे ने से द तल समझ गया क राजा के ोध का कारण
यह नीच ही है। स य तो यह है क
अकुलीनोऽ प मूख ऽ प भूपालं योऽ सेवते ।
अ प स मानहीनोऽ प स सव पू यते ।।
राजा क सेवा करने वाला अकुलीन और मूख होने पर भी सब कह स मान पाता है।
द तल सेठ को अपने ववाह के समय कया गोर भ का अपमान याद आ गया। वह
चुपचाप अपने घर लौट आया और उसी रात उसने गोर भ को अपने घर बुलाया और उसे
भोजन, व एवं आभूषण आ द दे कर स मान स हत वदा कया। सेठ ने गोर भ से कहा—
तु हारा उस दन ा ण के थान पर बैठ जाना अनु चत था, ले कन मेरा तुम पर ोध
करना भी उ चत नह था।
द तल ने अपने वहार और उपहार से गोर भ को अपनी ओर मला लया। इस पर
गोर भ ने भी द तल सेठ को व ास दलाया क वह शी ही राजा के साथ उसके स ब ध
पुनः था पत करा दे गा।
तोकेनो तमाया त तोकेनाया यधोग तम् ।
अहो सुस शी चे ा तुलाय ेः खल य च ।।
जस कार तराज़ू के कसी पलड़े म थोड़ा बोझ डाल दे ने से उसक ड डी नीचे को झुक
जाती है और थोड़ा बोझ नकाल दे ने पर ऊपर को उठ जाती है, उसी कार ओछा भी
कुछ मल जाने से अनुकूल हो जाता है और न मलने से तकूल हो जाता है।

Downloaded from www.PDFshala.com


अगले ही दन राजा के कमरे म झाड लगाते समय गोर भ कुछ इस कार बड़बड़ाने
लगा—हमारे महाराज क शौच जाते समय ककड़ी चबाने क आदत कब छू टे गी?
राजा ने सुना, तो वह ु होकर बोला—गोर भ! या कह रहा है? या तूने कभी
मुझे शौच जाते समय ककड़ी चबाते दे खा है? तू या कह रहा है? ऐसी बकवास करने के
लए तुझे कठोर द ड दया जायेगा।
गोर भ राजा के चरण म गर पड़ा और कहने लगा—महाराज! रात को जागते रहने
के कारण य द मेरे मुंह से यूं ही कुछ नकल गया हो, तो मुझे मा कर।
राजा ने सोचा क इस कार थ बकवास करने क इसक आदत ही है। जब यह
मुझ पर इस कार का झूठा आरोप लगा सकता है, तो द तल सेठ और रानी के स ब ध म
भी बकवास कर सकता है। इस मूख क बकवास को सुनकर मने उस भले आदमी का
ब ह कार करके अपनी कतनी हा न कर ली? मेरे कतने काम अधूरे रह गये? यह सोचकर
उसने तुर त द तल को बुलवाया और अपने कुशल वहार से उसे पुनः स कर दया।
यह कथा सुनाकर दमनक स ीवक से बोला—अहंकारवश कसी छोटे क
उपे ा करने से कई बार बड़े लोग को भी अपने कये पर पछताना पड़ता है।
स ीवक बोला—दमनक! म तु हारे इस उपकार को कभी नह भूलूंगा।
स ीवक के यह कहने पर दमनक उसे अपने साथ पगलक के पास ले गया, तो
दमनक ने पगलक को सादर णाम कया और बोला—महाराज! म स ीवक को आपके
पास ले आया ,ं अब आप जो भी उ चत समझ, वह कर।
स ीवक भी पगलक को णाम करके एक ओर बैठ गया। पगलक ने आशीवाद
दे ने के लए स ीवक के क धे पर अपना हाथ रखा और पूछा—इस सूने जंगल म आप
कहां से और कैसे आये ह?
स ीवक ने सारी आपबीती सुना द , तो पगलक ने स ीवक को आ ासन दे ते
ए उसे उस जंगल म रहने क अनुम त दे द । पगलक ने कहा—यूं तो इस जंगल म अनेक
ऐसे भयंकर जीव ह क कोई नया पशु एक ण भी यहां नह टक सकता, जो आपके
समान कसी शाकाहारी पशु के लए ब त क ठन है, क तु आप हमारे म बन गये ह, अतः
आप कोई च ता न कर।
स ीवक को इस कार दलासा दे कर पगलक ने यमुनातट पर जाकर अपनी यास
बुझायी और अपने नवास क ओर चल दया।
उसी दन से दमनक को रा य-भार स पकर पगलक अपने म स ीवक के साथ
ही अपना समय तीत करने लगा। महापु ष ने ठ क ही कहा है—
य छया युपनतं सकृ स जनसंगतम् ।
भव यजरम य तं ना यास ममी ते ।।
क य द अचानक ही कसी स जन का संग हो जाये, तो वह अ य फल दे ने वाला होता है।

Downloaded from www.PDFshala.com


ले कन ऐसा अवसर सभी को सुलभ नह होता और न अ यास के ारा ही ा त कया जा
सकता है।
स ीवक अनेक शा का ाता और ववेकशील था। उसने अपने ान से पगलक
को भी बु बना दया। अब पगलक भी सदाचारी बन गया था और दोन साथ-साथ
बैठकर शा -चचा भी कया करते थे। अब तो वे दोन दमनक और करटक से भी नह
मलते थे।
अतः पगलक ारा पशु का वध न करने से उसके शकार का बचा-खुचा न मलने
के कारण दोन —करटक और दमनक—भी धीरे-धीरे उनसे र हो गये।
फलहीनं नृपं भृ याः कुलीनम प चो तम् ।
स य या य ग छ त शु कं वृ मवा डजाः ।।
जस कार एक वृ के सूख जाने पर प ी उसे छोड़कर सरे फल से लदे वृ पर
चले जाते ह, उसी कार पेट न भरने पर नौकर-चाकर भी वामी को छोड़कर चले जाते ह।
अ प स मानसंयु ाः कुलीना भ त पराः ।
वृ भंगा महीपालं यज येव ह सेवकाः ।।
य द आजी वका ही न मले, तो सेवक कुलीन और मयादा का नवाह करने वाले राजा
को भी छोड़ने म दे र नह लगाते।
काला त मणं वृ ये न कुव त भूप तः ।
कदा च ं न मु च त भ सता अ प सेवकाः ।।
जब क सेवक को समय पर वेतन और पुर कार आ द दे ने वाले राजा के कठोर होने
पर भी सेवक उसे छोड़कर कह अ य जाने क सोच भी नह सकते।
यह नयम केवल सेवक पर ही नह , अ पतु सभी लोग पर लागू होता है। जहां लोग
का पेट भी नह भरता, वहां कोई य टक सकता है? सभी के लए पेट क भूख ही सबसे
बड़ी सम या है।
अ ुं वा छ त शा भवो
गणपतेराखुं ुधा ः फणी
तं च ौ च रपोः शखी
ग रसुता सहोऽ प नागाशनम् ।
इ थं य प र ह य घटना
श भोर प याद् गृहे
त ा य य कथं न भा व
जगतो य मा व पं ह तत् ।।
पेट क भूख के कारण ही शवजी के गले म पड़ा सांप और का तकेय के वाहन मोर

Downloaded from www.PDFshala.com


गणेशजी के वाहन चूहे को अपना आहार बनाना चाहते ह। मोर को पावती का वाहन शेर
खाना चाहता है।
जब शवजी के प रवार क यह थ त है, तो अ य साधारण लोग के वषय म भी
क पना क जा सकती है। कहने का अ भ ाय यह है क पेट क आग को शा त करने के
लए ही सब कुछ कया जा रहा है।
अपने पेट क आग को बुझाने क च ता से थत तथा पगलक ारा पद युत
करटक और दमनक आपस म सलाह करने लगे। तब दमनक ने कहा—करटक! पगलक तो
स ीवक क संग त म पड़कर अपने काम क भी उपे ा करने लगा है और हमारे अ य
ब धु भी यहां से चल गये ह। अब हम या कर?
करटक बोला— म ! तु हारा वामी तु हारी बात को सुनता नह है। फर भी, मेरे
वचार म उसे सही माग पर लाने के लए तु ह य न करना चा हए। नी तकार ने कहा है—
अशृ व प बो ोम भः पृ थवीप तः ।
यथा वदोषनाशाय व रेणा बकासुतः ।।
राजा ारा सुने को न सुनने पर म य को चा हए क वे राजा को सचेत कर। धृतरा ारा
उपे त कये जाने पर भी व र ने उ ह समझाने का यास करना छोड़ नह दया था।
मदो म य भूप य कु र य च ग छतः ।
उ माग वा यतां या त महामा ाः समीपगाः ।।
जस कार हाथी के मदो म हो जाने पर महावत को कोसा जाता है, उसी कार
राजा के कत वमुख हो जाने पर म य को दोष दया जाता है।
तुमने इस घास खाने वाले स ीवक क पगलक से म ता कराकर वयं ही अपने
पाव म कु हाड़ी मारी है।
दमनक ने भी मान लया क उससे सचमुच ग़लती हो गयी है। कहा भी है—
ज बूको डु े न वयं चाषाढभू तना ।
तका परका यण यो दोषाः वयंकृताः ।।
क जस कार य तीन —भेड़ के झु ड म आ जाने से गीदड़, आषाढ़भू त के झांसे म आ
जाने से दे वद और अ य ी के थान पर बंध जाने से ती—अपने ही दोष के कारण
संकट म पड़ गये थे, उसी कार म भी अपने वनाश के लए वयं ही उ रदायी ।ं
करटक ने पूछा—इन तीन क या कथा है?
दमनक बोला—सुनो, सब सुनाता ।ं

कथा म : चार

Downloaded from www.PDFshala.com


कसी नजन थान पर बने एक मठ के वामी दे व शमा ने मठ म आने वाले लोग को रेशमी
कपड़े बेचकर पया त धन एक कर लया था और उसे उस धन से बड़ा मोह था। वह कसी
भी पर व ास नह करता था और अपने धन क अ य त सावधानीपूवक दे खभाल
कया करता था; य क वह जानता था
अथानामजने ःखम जताना च र णे ।
आये ःखं ये ःखं धगथाः क सं याः ।।
क धन का सं ह बड़ा क ठन काम है और सं ह कये गये धन क र ा करना उससे भी
ःखद काम है। धन न हो जाये, तो बड़ी पीड़ा होती है। जहां धन का आना अपने साथ
ःख भी लाता है, वह उसका टकना भी ःखदायक है और उसका जाना भी ःखदायक
है। ऐसे धन को लानत भेजना ही उ चत है।
कुछ समय प ात् सर के धन का अपहरण करने वाले आषाढ़भू त नामक
को यह पता चल गया क दे व शमा के पास पया त जमा-पूंजी है। आषाढ़भू त सोचने लगा
क म इस धन पर कस कार अपना अ धकार क ं ? इस मठ म न सध लगायी जा सकती
है और न इसक द वार ही फांद जा सकती है। पया त सोच- वचार के बाद आषाढ़भू त ने
दे व शमा का श य बनकर उसे ठगने क योजना बना डाली। उसने सोचा
नः पृहो ना धकारी या ाकामी म डन यः ।
ना वद धः यं ूया फुटव ा न व चकः ।।
क कामनार हत को धन रखने क इ छा नह होती, वासनार हत सजने-धजने
म व ास नह करता, ावहा रक ान से र हत कभी म भाषी नह होता और प
कहने वाला कभी धूत नह हो सकता।
आषाढ़भू त ने दे व शमा के पास प ंचकर उसे णाम कया और संसार को असार
बताते ए बोला—महा मन्! मेरा अनुभव तो यह कहता है क यौवन कसी पहाड़ी नद के
वेग के समान च चल होता है, जीवन फूस क आग के समान णक होता है, भोग शरद्
ऋतु के मेघ के समान नाशवान् है और ी, पु और म आ द का संग व के समान
ण-भंगुर है। यह सब म भली कार जान चुका ं।
आषाढ़भू त से भा वत होकर दे व शमा ने कहा—तू इस छोट -सी अव था म संसार
से वर हो गया है, तू ध य है।
पूव वय स यः शा तः स शा त इ त मे म तः ।
धातुषु ीयमाणेषु शमः क य न जायते ।।
मेरी समझ म पहली अव था म ही वैरा य को अपना लेने वाला ही स चा
महा मा होता है। हाथ म न आये अंगूर को ख ा बताने वाली लोमड़ी के समान श के
ीण हो जाने पर वैरागी हो जाना तो केवल ववशता है।

Downloaded from www.PDFshala.com


आदौ च े ततः काये सतां स प ते जरा ।
असतां तु पुनः काये नैव च े कदाचन ।।
बुढ़ापा स त के च म पहले आता है, उनके शरीर म बाद म आता है, ले कन
के तो शरीर के ब कुल अश हो जाने पर भी उनके मन म च चलता बनी रहती है।
शू ो वा य द वा योऽ प चा डालोऽ प जटाधरः ।
द तः शवम ेण स भ मा शवो भवेत् ।।
शवम ारा द त होकर और सम त शरीर पर भ म का लेप करने वाला, अथात्
व ाभूषण आ द का प र याग कर दे ने वाला शू , चा डाल, जटाधारी अथवा अ य
कसी भी जा त का य न हो, वह शव प ही हो जाता है।
षड रेण म ेण पु पमेकम प वयम् ।
लग य मू न यो द ा स भूयोऽ भजायते ।।
‘ नमः शवाय’ इस छह अ र वाले म का उ चारण करते ए शवजी पर पु प
चढ़ाने वाला ज म-मरण के ब धन से छू ट जाता है।
आषाढ़भू त ने दे व शमा के इन वचन को सुनकर उसके चरण पकड़ लये और उनसे
द ा दे ने क ाथना करने लगा। आषाढ़भू त क वन ता को दे खकर दे व शमा बोला—म
तु ह द ा तो दे ं गा, पर तु रा म मठ म रहने क अनुम त नह ं गा; य क सं या सय
को एका तवास ही करना चा हए। शा म लखा है—
म ा ृप त वन य त य तः
संगा सुतो लालनाद्
व ोऽन ययना कुलं कुतन-
या छ लं खलोपासनात् ।
मै ी चा णया समृ र-
नया नेहः वासा यात्
ी गवादनवे णाद प
कु ष यागा मादा नम् ।।
क ग़लत म णा से राजा, संग-दोष से सं यासी, व ा ययन न करने से ा ण, अ धक
लाड़- यार से पु , क संग त से च र , कठोर वहार से म ता, अ याय से समृ ,
परदे स म रहने से नेह, प पर गव करने से ी, समु चत दे खभाल न करने से खेती और
बना सोच- वचार के ख़च करने से धन न हो जाता है।
अतः द ा लेने के बाद भी तु ह मठ के बाहर ही नवास करना होगा।
आषाढ़भू त बोला—म तो अपना परलोक सुधारने आया ,ं मुझे आपक आ ा
शरोधाय है।

Downloaded from www.PDFshala.com


दे व शमा ने आषाढ़भू त को द ा दे कर अपना श य बना लया। आषाढ़भू त उसके
हाथ-पैर दबाने तथा अ य अनेक कार से सेवा करके गु को वश म करने और उनका
व ास जीतने म लग गया, क तु दे व शमा अपने धन को अपने से र नह करता था।
आषाढ़भू त सोचने लगा क इतनी सेवा करने पर भी जब गु मेरा व ास नह
करता, तो य न इसे वष दे कर या श हार से मार दया जाये? एक बार दे व शमा को
अपने कसी श य के घर भोजन करने का नम ण मला, तो दे व शमा आषाढ़भू त को
अपने साथ लेकर चल दया। रा ते म एक गहरी नद थी, जसे पार करते ए दे व शमा ने
अपने धन क गठरी को भीगने ने बचाने के लए उसे एक थैले म डालकर अपने सर पर रख
लया। नद को पार करने के प ात् दे व शमा शौच के लए जाने लगा, तो थैले को
आषाढ़भू त को स प दया और बोला—इसे संभालकर रखना, म शी ही लौटता ।ं
आषाढ़भू त को तो इसी क ती ा थी। दे व शमा के जाते ही वह थैला उठाकर भाग
खड़ा आ। दे व शमा शौच के प ात् दो मेढ़ का यु दे खने लगा। जब भेढ़ के आपस म
टकराने से उनके सर से ख़ून बह नकलता, तो एक गीदड़ उस टपकते ख़ून को चाटने के
लए बार-बार उन मेढ़ के बीच म आ जाता था। दे व शमा को लगा क मेढ़ के सर से बहते
ख़ून को पीने के लए गीदड़ बार-बार उनके बीच म आ जाता है, अतः यह बच नह पायेगा।
दे व शमा यह सोच ही रहा था क उसने दोन मेढ़ के बीच म पड़कर पसते जा रहे गीदड़ को
दे खा।
यह सब दे खने म दे व शमा इतना त लीन हो गया क उसे समय का यान ही न रहा।
जब वह नद तट पर लौटा, तो अपनी गठरी समेत आषाढ़भू त को न पाकर पछाड़ खाकर
गर पड़ा।
सचेत होने पर दे व शमा आषाढ़भू त क खोज म चल पड़ा। स या के समय वह एक
गांव म प ंचा, तो वहां अपनी ी के साथ म दरापान करने के लए नगर क ओर जा रहे
एक जुलाहे को दे खकर बोला—ब धु! म एक सं यासी ं और इस गांव म कसी को नह
जानता। सूया त के प ात् कसी गृह थ के यहां जाने का मेरे लए नषेध है। या आप मुझे
एक रात के लए अपने यहां ठहराने क कृपा करगे? शा का वचन है—
स ा तो योऽ त थः सायं सूय ढो गृहमे धनाम् ।
पूजया त य दे व वं या त गृहमे धनः ।।
क स या-समय अपने घर आये कसी अ त थ का वागत करने वाले गृह थ को दे व व क
ा त होती है।
तृणा न भू म दकं वाक् चतुथ च सूनृता ।
सतामेता न ह यषु नो छ ते कदाचन ।।
गृह थ के घर म अ त थ के लए भले ही कुछ भी न हो, क तु बैठने के लए
कुशासन, धरती, पीने के लए जल और मीठ वाणी का अभाव नह होता।

Downloaded from www.PDFshala.com


यह सुनकर जुलाहा अपनी प नी से बोला—दे व! तुम इस अ त थ को लेकर घर
जाओ और इसके लए खाने-पीने का ब ध करो। म म दरा लेकर अभी लौटता ।ं जुलाहे
क ी को तो मानो अपने मन क मुराद मल गयी। अपने ेमी से मलने का अवसर पाकर
वह स मुख दे व शमा के साथ चल द ।
दवसे घन त मरे ःस चारासु घनवीथीषु ।
प यु वदे शगमने परमसुखं जघनचपलायाः ।।
ायः कुलटा यां मेघ से घरे दन से, घने अ धकार से, व जत थान से, सूनी
ग लय से और अपने प त के वास से बड़ी स होती ह; य क इस कार उ ह अपने
े ी से मलने म आसानी हो जाती है।

प यङ् के वा तरणं प तमनुकूलं मनोहरं शयनम् ।
तृण मव लघुम य ते का म य ौ यरतलु धाः ।।
चोरी-चोरी ेमी से मलने वाली य के लए सु दर पलंग, उस पर गुदगुदा बछौना
और प त का होना तनके के समान तु छ होता है।
कुलपतनं जनगहा ब धनम प जी वत स दे हम् ।
अ करो त कुलटा सततं परपु षसंस ा ।।
पर-पु ष म अनुर कुलटाएं कुल के कलं कत होने, लोक म न दत होने, द ड
मलने अथवा ब धन म पड़ने के क क भी कोई परवा नह करत । उ ह तो अपने यौन-
सुख के सामने सब कुछ तु छ जान पड़ता है।
इसी लए जुलाहे क ी घर प ंचने पर दे व शमा से बोली—आप इस चारपाई पर
व ाम क जये। म सरे गांव से आयी अपनी सखी से उसका कुशल समाचार पूछकर
लौटती ं और आपके लए भोजन क तैयारी करती ।ं
यह कहकर वह कुलटा सज-धजकर अपने ेमी के पास जा प ंची। इस बीच अ धक
म दरा पी जाने के कारण लड़खड़ाता आ जुलाहा भी अपने घर आ गया। जुलाहे क ी ने
अपने प त को दे ख लया और वह चुपचाप घर लौट आयी।
जुलाहे ने उसे जाते दे ख लया था। उसने लोग से अपनी प नी क र ता के
वषय म सुन रखा था। फर, आज तो उसने अपनी आंख से दे ख लया था। उसने ो धत
होते ए अपनी प नी से पूछा—कमीनी! अब तू सच-सच बता, कसके पास जा रही थी?
कुलटा बोली—म तो तु हारी ती ा म घर म ही बैठ ं। लगता है क तुम अ धक
शराब पी जाने के कारण बहक गये हो, इसी लए इस कार क बात कर रहे हो। शा म
भी कहा गया है
कर प दोऽ बर याग तेजोहा नः सरागता ।
वा णीस जाव था भानुना यनुभूयते ।।

Downloaded from www.PDFshala.com


क अ धक म दरापान करने से हाथ म क पन, व का याग, तेज क हा न तथा ोध
आ द ल ण डू बते सूय म भी दे खे जा सकते ह, फर तुम मनु य का तो कहना ही या!
जुलाहा अपनी प नी क उलट -सीधे बात और उसक वेशभूषा को दे खकर ो धत
होते ए बोला—कुलटा! म तेरे वषय म कतने दन से न जाने या- या सुनता आ रहा ं,
आज मने तुझको अपनी आंख से दे ख लया है। तेरे इस च र को दे खकर म समझता ं क
तुझे द ड दे ना आव यक है। यह कहकर जुलाहा अपनी प नी को ड डे से पीटने लगा और
उसे तब तक पीटता रहा, जब तक क वह धरती पर गर नह गयी। इसके बाद उसने अपनी
प नी को एक र सी से जकड़कर ख भे के साथ बांध दया और फर जाकर सो गया।
इस बीच अपनी े मका क ती ा करते जुलाहे क ी के ेमी दे वद ने नाइन को
ती बनाकर अपनी े मका को बुलाने के लए भेजा। नाइन ने जाकर उसे उसके ेमी का
स दे श दया, तो वह बोली—मेरा यह हाल तो तुम दे ख ही रही हो। आज क रात तुम ही
उसके साथ काट लो। इस पर नाइन बोली—य द दे वद को मेरे साथ ही रात बतानी होती,
तो वह मुझे तु हारे पास य भेजता?
वषम थ वा फल हण-
वसाय न यो येषाम् ।
उ ाणा मव तेषां
म येऽहं शं सतं ज म ।।
वह तो केवल तु ह चाहता है, इसी लए म कहती ं क तुम बड़भागी हो। म तो ऊंट
क तरह क ठनाई क परवा न करते ए वा द फल खाने को उ सुक े मय क दय से
शंसा करती ं।
स द धे परलोके जनापवादे चजग त ब च े ।
वाधीने पररमणे ध या ता यफलभाजः ।।
सरे पु ष के साथ रमण करने का सुख तो सामने उप थत है। मरने के प ात्
नरक-यातना तो क पना क बात है। लोग ारा न दा क परवा कौन करता है? लोग क
आदत ही होती है, वह तो कुछ-न-कुछ कहते ही रहते ह। या उनक बात से जवानी के
आन द को म म मला दे ना सही है?
जुलाहे क प नी बोली—पर म तो यहां ब धन म पड़ी ं, म कैसे जा सकती ?ं
यह सुनकर नाइन ने तुर त ही जुलाहे क प नी के ब धन खोल दये। इस पर जुलाहे
क प नी नाइन से कहने लगी—य द जुलाहे ने जागकर मुझे यहां न दे खा, तो मुझे मार
डालेगा। यह सुनकर नाइन बोली—तुम अपनी जगह पर मुझे बांधकर चली जाओ। अंधेरे म
वह शराबी मुझे पहचान कैसे सकेगा?
जुलाहे क प नी को यह उपाय उ चत लगा और वह अपनी जगह नाइन को बांधकर
अपने यार के पास जा प ंची।

Downloaded from www.PDFshala.com


कुछ ही दे र बाद जुलाहे क आंख खुल गयी और वह अपनी प नी क पटाई करने के
लए पछताते ए बोला—अरी! य द तू भ व य म ग़लत माग पर न चलने का मुझे व ास
दलाये, तो म तुझे आज़ाद कर सकता ।ं
नाइन ने जब यह सुना, तो उसने सोचा क अगर म अपना मुंह खोलती ,ं तो मेरी
आवाज़ से जुलाहे को पता चल जायेगा, इस लए वह चुप ही रही। प नी क चु पी को उसका
ोध समझकर जुलाहा अपनी बात को दोहराता रहा, पर उ र न मलने पर उसने हाथ म
छु री लेकर प नी क नाक पर वार कर दया और फर बोला—अब म तुझे कभी नह
मनाऊंगा। यह कहकर वह चारपाई पर जा पड़ा और पड़ते ही सो गया।
धन के न हो जाने से च तत तथा भूख से ाकुल दे व शमा सो नह सका। वह इन
दोन य के च र को दे खता रहा। उसने दे खा क अपने ेमी के साथ र त-भोग करके
जुलाहे क प नी लौट आयी और उसने नाइन से पूछा—कहो, सब कुछ ठ क तो है? जुलहा
जागा तो नह ?
नाइन ने रोते ए अपनी नाक दखाकर उसे सारी बात बतायी और बोली—अब तू
मुझे फ़ौरन इस ब धन से मु कर दे , ता क कसी को मेरी अस लयत का पता न चल सके।
जुलाहे क प नी ने नाइन के ब धन खोलकर उसे रहा कर दया और नाइन अपने घर चली
गयी।
इसी बीच जुलाहा भी जाग उठा और ो धत वर म बोला—नीच! अब या कहती है
या इस बार अपने कान भी कटवाने ह?
इस पर जुलाहे क प नी ने अपने प त को धमकाते ए कहा—मुझ सती पर झूठा
आरोप लगाते ए या तुझे शरम नह आती? अरे मुझ-जैसी प त ता का अंग-भंग कर
सके, इतना दम कसम है? या तू नह जानता क सती य क र ा वयं लोकपाल
कया करते ह।
आ द यच ाव नलोऽनल
ौभू मरापो दयं यम ।
अह रा उभे व स ये
धम जाना त नर य वृ म् ।।
मनु य ारा कये जाने वाले सभी अ छे -बुरे काम के सा ी न नो होते ह—
सूय, च , वायु, अ न, जल, पृ वी, वग, दय, यम, धम, दन-रात और ातः-सायं
के स धकाल।
य द म अपने मन, वचन और कम से सती ं और मने व म भी पर-पु ष का
च तन नह कया हो, तो मेरी नाक पर तु हारे वार का च तक भी नह मलेगा।
प नी के यह कहते ही जुलाहे ने मशाल क रोशनी म प नी क नाक को साबुत और
र वहीन दे खा, तो उस पर म या स दे ह करने के लए अपने आपको कोसने लगा और उसे

Downloaded from www.PDFshala.com


ब धनमु करके उसक ल लो-च पो करने लगा।
इस सारे खेल को दे खकर व मत आ दे व शमा अपने आप बोला—
श बर य च या माया या माया नमुचेर प ।
बलेः कु भीनसे ैव सवा ता यो षतो व ः ।।
यां तो सचमुच व च होती ह। वे श बर, नमु च, ब ल और कु भीनस जैसे
मायावी दै य क माया से प र चत ही नह , अ पतु उनक गु ह। इस लए य को माया
को आर भ करने वाली ही समझना चा हए।
हस तं हस येता द तं द यप।
अ यं यवा यै गृ त कालयोगतः ।।
यां हंसते पु ष के साथ हंसती ह और रोते के साथ रोती ह और इस कार ये पु ष
को अपने ेमजाल म फांस लेती ह।
ना त संगः मदासु का य
ने छे दबलं
् ीषु वव मानम् ।
अ त स ै ः पु षैयुता ताः
ड त काकै रव लूनप ैः ।।
शा कार ने ठ क ही कहा है— य से न अ धक लगाव रखना चा हए और न
इनक श को अ धक बढ़ने दे ना चा हए; य क श ा त कर ये अपने ऊपर आस
पु ष को उड़ने म असमथ प ी-जैसा बनाकर रख लेती ह।
सुमुखेन वद त व गुना
हर येव शतेन चेतसा ।
मधु त त वा च यो षतां
दये हालाहलं मह षम् ।।
मधुर वचन बोलती ई ये यां च से तीखा हार करती ह, ले कन इनके वचन म
मधु और दय म हालाहल वष भरा रहता है।
अतएव नपीयतेऽधरो
दयं मु भरेव ता ते ।
पु षैः सुखलेशव चतैमधुलु धैः
कमलं यथा ल भः ।।
इसी लए य के अधर को चूसा जाता है और इनक छाती पर मु का हार
कया जाता है। जस कार शहद के लोभी भंवरे कमल के चार ओर मंडराते रहते ह, उसी
कार वषय-भोग के इ छु क र सक सु द रय के चार ओर च कर काटते रहते ह।
काक यं तनयो शो तर-

Downloaded from www.PDFshala.com


लताऽलीकं मुखे यते
कौ ट यं कचस ये वचने
मा के थूलता ।
भी वं दये सदै व क थतं
माया योगः ये
यासां दोषगणो गुणा मृग शां
ताः क नराणां याः ।।
समझ म नह आता क य के दोष को पु ष गुण कैसे मान लेता है? इनके तन
म कठोरता है, ने च चल ह, मुख म अस य वचन ह, केश म घुंघरालापन है, वचन म
मधुरता है, नत ब म थूलता है, दय म भय है और अपने वामी के साथ वहार म कपट
भरा आ है।
या कसी भी को ऐसी य को अपनी े मका बनाना चा हए?
एता हस त च द त च क यहेतो-
व ासय त च परं न च व स त ।
त मा रेण कुलशीतवता सदै व
ना यः मशानवटका इव वजनीयाः ।।
पु ष से अपना काम नकालने के लए यां कभी हंसती ह, तो कभी रोती ह,
ले कन पु ष को अपने त व ास दलाकर भी वे वयं उन पर व ास नह करत । अतः
कुलीनता को मह व दे ने वाले को मशान म खड़े वटवृ क भां त कभी य का
संग नह करना चा हए, अ पतु उनसे तो र ही रहना चा हए।
कुव त ताव थमं या ण
याव जान त नरं स म् ।
ा वा च तं म मथपाशब ं
ता मषं मीन मवो र त ।।
यां पु ष के साथ तभी तक य वहार करती ह, जब तक उ ह अपने त
आस नह बना लेत । पु ष के आस होते ही यां उ ह बंसी म फंसी मछली के समान
जल से बाहर नकालकर धरती पर तड़पने के लए छोड़ दे ती ह।
अनृतं साहसं माया मूख वम तलोभता ।
अशौचं नदय व च ीणां दोषाः वभावजाः ।।
य म सात दोष होते ह। ये दोष सामा य प से सभी य म पाये जाते ह—
अस यभाषण, साहस, माया, मूखता, अ तलोभ, अप व ता और ू रता।
स मोहय त मदय त वड बय त

Downloaded from www.PDFshala.com


नभ सय त रमय त वषादय त ।
एताः व य सरलं दयं नराणां
क वा न वामनयना न समाचर त ।।
यां अपनी स ता के लए पु ष को स मो हत, म त, स , व चत, और
ता ड़त कर उनसे रमण भी करती ह और उ ह वषाद त भी करती रहती ह। पु ष के
दय म वेश कर कु टल नयन वाली यां पु ष को मनमाने ढं ग से नचाती रहती ह।
इस कार सोचते-सोचते दे व शमा ने जागकर ही सारी रात काट द ।
इधर नाक पर लगे घाव के साथ घर गयी नाइन घाव को छपाने का उपाय सोचने
लगी। उसका प त रात-भर राजप रवार म रहने के बाद ातःकाल जब घर लौटा, तो उससे
बोला—मेरी हजामत के सामान क स क़ची यहां ले आ, ता क म ाहक क हजामत
बनाने जा सकूं। नाइन ने स क़च क अपे ा केवल उ तरा उसक ओर फक दया। इस पर
नाई बोला—मने स क़ची मांगी है, उ तरा नह । इस पर नाइन ने कोई उ र नह दया। तब
ोध म आकर नाई ने उ तरा भीतर फक दया। बस, नाइन नाक कट जाने का शोर मचाती
ई घर से बाहर नकल आयी। उसका च लाना सुनकर कसी पड़ोसी ने पु लस को सू चत
कर दया। नाइन ने पु लस के आगे अपने को अपने प त से बचाने क गुहार लगायी और
बना अपराध के प त पर अपनी नाक काटने का आरोप लगा दया।
पु लस ने नाई से इसका कारण पूछा। या इसका कसी अ य पु ष से स ब ध है?
या इसने तु हारे साथ व ासघात कया था? या इसने कोई धोखा कया था? फर इसके
कस अपराध के लए तुमने इसक नाक काट है?
नाई बेचारा कुछ भी उ र न दे सका और उसक चु पी को ही उसका अपराध
मानकर पु लस ने उसे ब द बना लया। कहा भी है
भ वरमुखवणः शङ् कत ः समु प तततेजाः ।
भव त ह पापं कृ वा वकमस ा सतः पु षः ।।
क कसी पाप अथवा कोई ग़लत काम हो जाने पर खी क इन ल ण से पहचान
हो जाती है—उसक आवाज़ और उसका चेहरा बदल जाता है, उसके ने म डर समा जाता
है और उसका तेज न हो जाता है।
आया त ख लतैः पादै मुखवैव यसंयुतः ।
ललाट वेदभाग् भू र ग दं भाषते वचः ।।
अपराधी के पैर लड़खड़ाने लगते ह, उसका चेहरा उतर जाता है, उसके माथे
पर पसीना आ जाता है और उसके मुंह से अ ट-श ट कुछ भी नकलने लगता है।
अधो भवे कृ वा पापं ा तः सभां नरः ।
त मा ना प र ेय ै रेतै वच णैः ।।

Downloaded from www.PDFshala.com


अपराधी कसी से आंख भी नह मला पाता। इ ह ल ण से अपराधी क
पहचान हो जाती है।
पु लस ने उसक चु पी और उसके चेहरे के भाव दे खकर उसे अपराधी मान लया
और उसे द ड दे ने का न य कर लया। इसी बीच दे व शमा भी वहां प ंच गया। नद ष नाई
को संकट म पड़ा दे ख दे व शमा ने वहां खड़े सभी लोग और पु लस वाल को बीती रात
आंख दे खी सारी घटना कह सुनायी, तो लोग कहने लगे—
अव यो ा णो बालः ी तप वी च रोगभाक् ।
व हता ं गता तेषामपराधे मह य प ।।
शा म कहा गया है क ा ण, बालक, ी, तप वी तथा रोगी ारा भारी
अपराध कये जाने पर भी इनका वध नह करना चा हए, क तु कुकम के द ड व प इनके
कसी अंग को भंग कर दे ना चा हए।
भगवान् ने इसके नकटा हो जाने के प म इसे द ड दे दया है, क तु इसके अपराध
क ग भीरता को दे खते ए इसके कान भी काट दे ने चा हए।
परमे र क इस लीला को दे खकर दे व शमा अपने ःख को भूल गया और अपने मठ
को लौट गया।
यह कथा सुनाकर दमनक बोला—ब धु! इसी लए कहता ं क मेढ़ के यु म पड़ने
से गीदड़ क मौत हो गयी, आषाढ़भू त पर व ास करने से दे व शमा लुट गया तथा ती का
काय करने पर नाइन को अपने नाक-कान कटवाने पड़े।
करटक ने पूछा—अब तुम या करना चाहते हो?
दमनक ने उ र दया—अब म स ीवक और पगलक के म य फूट डालकर दोन
को एक- सरे से अलग कर ं गा। म यही सोच रहा ं। शा कार का कथन है
एकं ह या वा ह या दषुमु ो धनु मता ।
बु बु मतः सृ ा ह त रा ं सनायकम् ।।
क धनुधारी के धनुष से छू टा बाण भले ही ख़ाली चला जाये, क तु बु मान्
ारा वचारकर कया गया काय कभी वफल नह होता। बु म ापूवक बनायी गयी योजना
तो राजा के साथ-साथ उसके समूचे रा य को न कर दे ती है।
अब म भी ऐसी ही एक योजना बनाता ,ं जससे इन दोन म फूट पड़ जाये।
करटक ने दमनक से कहा—य द इन दोन को तु हारी योजना क जानकारी हो गयी,
तो तु हारे ाण पर संकट आ जायेगा।
दमनक बोला—ब धो! तुम च ता मत करो। बु मान् को अपने को भा य के
भरोसे न छोड़कर अपनी थ त म सुधार करने के लए य न करते रहना चा हए। उ म
करते रहने पर को कभी-न-कभी सा ा य तक भी ा त हो जाता है। इसी लए कहा
है

Downloaded from www.PDFshala.com


या यं न धै य वधुरेऽ प दै वे
धै या कदा च थ तमा ुया सः ।
याते समु े ऽ प ह पोतभंगे
सांया को वा छ त कम एव ।।
क भा य के वपरीत होने पर भी को अपना धैय कभी नह छे ड़ना चा हए; य क
धैय बनाये रखने पर ही थ त म प रवतन हो जाता है। समु म जहाज़ को डू बता दे खकर
ना वक हाथ-पर-हाथ रखकर नह बैठ जाते, ब क जहाज़ को बचाने के उपाय करने लगते
ह और डू बते जहाज़ को बचाने म सफल भी हो जाते ह।
उ ो गनं सततम समे त ल मी-
दवं ह दै व म त कापु षा वद त ।
दै वं नह य कु पौ षमा मश या
य ने कृते य द न स य त कोऽ दोषः ।।
जहां कामचोर ‘भा य म लखा होगा, तो मल ही जायेगा’ क रट लगाते रहने
पर द र बने रहते ह, वहां उ मी ल मी को ा त कर सफल हो जाते ह। इस लए
नी तकार का नदश है क भा य के भरोसे न बैठकर अपने साम यानुसार य न करते रहना
चा हए। नी तकार तो यह भी कहते ह क य द उ म करने पर भी आपको सफलता नह
मलती, तो भी घुटने नह टे क दे ने चा हए, अ पतु अपने उ म का नरी ण करके अपनी
भूल को सुधार लेना चा हए। सफलता अव य ही मलेगी। म भी अपनी योजना को इस
कार काम म लाऊंगा क दोन को इसक भनक तक नह पड़ेगी। शा म तो कहा गया है

सुगु त या प म य ाऽ य तं न ग छ त ।
कौ लको व णु पेण राजक यां वषेवते ।।
क भली कार से गु त रखे गये म क जानकारी तो ा को भी नह मल सकती। व णु
बने एक जुलाहे के ारा राजपु ी से कये गये कामोपभोग का पता कसी को भी नह चला।
करटक ने पूछा—यह या कथा है?
दमनक ने कहा—सुनना चाहते हो, तो सुनो।

कथा म : पांच
कसी गांव म एक जुलाहा और एक बढ़ई रहते थे। उन दोन म इतनी म ता हो गयी क
दोन अपना-अपना समय साथ-साथ ही बताने लगे। एक बार कसी म दर म एक समारोह
का आयोजन आ, जसम अनेक नट और नतक आ द ने अपनी-अपनी कला के अपूव

Downloaded from www.PDFshala.com


चम कार दखाये। उस समारोह को दे खने के लए वे दोन म भी प ंचे। कुछ ही दे र बाद
वहां व ाभूषण से सजी, वृ ा ण और स खय से घरी तथा ह थनी पर सवार होकर
पवती राजकुमारी भी वहां पधारी, जसे दे खते ही जुलाहा उस पर इतना आस हो गया
क उसे राजकुमारी के बना अपना जीवन थ लगने लगा। राजकुमारी के वयोग म जुलाहा
कसी पागल क भां त आचरण करने लगा।
अपने म क इस दशा से च तत होकर बढ़ई ने उसे बड़ी क ठनाई से संभाला और
उससे पूछा—तु ह यह या हो गया है? कुछ तो बताओ, तभी तो पता चलेगा और कोई
उपाय सोचा जा सकेगा।
जुलाहा बोला—ब धो! तुम ही मेरे सुख- ःख के साथी हो। म तु ह भी अपना ःख
नह बताऊंगा, तो कसे बताऊंगा? शायद मेरी बात सुनकर तुम मेरा उपहास करो, धरती पर
रगने वाले क ड़े क आकाश छू ने क इ छा-जैसी मेरी चाहत पर हंसो और उसे अस भव
बताकर मुझे उपदे श दे ने लगो। इस लए म चाहता ं क तुम मेरे लए एक चता तैयार कर
दो, ता क म अपने ाण का याग कर सकूं।
जुलाहे के ःख से खी बढ़ई ने अपनी आंख म आंसू भरकर कहा—ब धो! मुझे
अपना ःख बताओ तो सही। शा म कहा गया है
औषधाथसुम ाणां बु े ैव महा मनाम् ।
असा यं ना त लोकेऽ यद् ा ड य म यगम् ।।
क इस संसार म तो या, पूरे ा ड म ऐसा कुछ भी नह , जसे ओष ध, धन, म तथा
महा मा क बु के बल पर स न कया जा सके।
य द ओष ध, धन, म और बु म से कसी एक के ारा भी तु हारा काय स
कया जा सकेगा, तो उसे स कया जायेगा।
जुलाहा बोला— म ! मेरा ःख कसी भी कार से र नह कया जा सकता। अतः
मुझे मरने दो।
बढ़ई बोला—तु हारा वयोग म नह सह सकूंगा, अतः तु हारे साथ म भी आ मह या
कर लूंगा।
जुलाहा बोला—मेरे ःख का कारण वह राजकुमारी है। मने जब से उसे दे खा है, मेरा
मन वश म नह रहा। म उसके वयोग म जल के बना मछली क भां त तड़प रहा ।ं
म ेभकु भप रणा ह न कुंकुमा
त याः पयोधरयुगे रतखेद ख ः ।
व ो नधाय भुजप रम यवत
व ये कदा णमवा य तद यस म् ।।
म जब तक म त हाथी के म तक के समान उ ुंग, व तृत तथा केसर-चुपड़े उसके
तन का मदन नह कर लेता, उसे अपनी भुजा म बांधकर उसका आ लगन नह कर

Downloaded from www.PDFshala.com


लेता, तब तक मुझे एक पल के लए भी चैन नह मल सकता।
रागी ब बाधरोऽसौ
तनकलशयुगं यौवना ढगव
नीचा ना भः कृ या कु टल-
कमलकं व पक चा प म यम् ।
कुव वेता न नाम सभ मह
मन तता याशु खेदं
य मां त याः कपोलौ दहत
इ त मु ः व छकौ त यु म् ।।
राजकुमारी के मोहक प और सु दर ब ब फल के समान लाल-लाल अधर , वण
कलश के समान उ त तन , खले पु प के समान उसके यौवन, ग भीर ना भ, कु टल
केश तथा उसक पतली कमर को दे खकर काम मुझे ण-भर के लए भी चैन नह लेने
दे ता। उसके चकने कपोल का चु बन कये बना म अपने जीवन को थ मानता ं और
इसी लए अपने ाण को यागना चाहता ं।
बढ़ई काम-पी ड़त अपने म जुलाहे को इस कार तड़पता दे खकर उसके त
वत हो उठा और उसे आ त करते ए बोला— म ! इसम च ता क कोई बात नह है?
य द तुम सचमुच राजकुमारी को चाहते हो, तो अब अपना मनोरथ पूरा आ जानो।
जुलाहा बोला— म ! कह तुमने भांग का सेवन तो नह कर लया? राजकुमारी के
अ तःपुर क र ा हरी दन-रात करते रहते ह, जहां बना अनुम त के वायु भी वेश नह
कर सकता। म ऐसे महल म कस कार वेश पा सकूंगा और कस कार मेरा उसके साथ
समागम हो सकेगा?
बढ़ई बोला—म झूठ नह कहता। म अपने बु -बल के ारा इस अस भव को
स भव करके ही र ंगा। यह कहकर उसने आकाश म उड़ने वाला लकड़ी का एक ग ड़
बनाया और उस ग ड़ म पंख के प वाली दो सूखी लक ड़यां लगा द । फर उसने लकड़ी
के ही शंख, च , गदा, प , मुकुट और कौ तुभम ण भी बना ल । फर उसने अपने म
जुलाहे को व णु बनाकर और ग ड़ को उड़ाने-उतारने क व ा सखाकर कहा—ब धु!
इस व णु प म आज तुम आधी रात म अपनी े मका के शयनक म प ंचकर उससे
मलो और राजकुमारी को मु ध करके उसके साथ र तभोग करो।
बढ़ई क इस योजना से स होकर जुलाहे ने वही कया। अपने क म
व णुनारायण को दे खकर राजकुमारी आंख फाड़े जुलाहे को दे खने लगी। जुलाहे ने भी
राजकुमारी को अभयदान दे ते ए कहा—सु दरी! तु हारे लए म अपनी प नी ल मी को
छोड़कर आया ।ं मेरे साथ र तभोग करके तुम अपने जीवन को सफल बनाओ।

Downloaded from www.PDFshala.com


शंख, च , प और गदा से यु तथा ग ड़ पर आ ढ़ जुलाहे को राजकुमारी
सचमुच व णु समझकर उसे णाम करती ई बोली— या आप मुझ-जैसी मनु य-जा त क
ी से र तभोग करगे?
जुलाहे ने कहा—दे व! तुम नह जानत क तुम ही पूवज म क मेरी प नी राधा हो।
उस ज म म तुम गोकुल म कट ई थ और इस ज म म राजकुमारी बनी हो। तु ह इस
रह य क कोई जानकारी नह , क तु म सब जानता ं और तभी तुमसे मलने आया ं।
राजकुमारी बोली— भो! य द आप स य कह रहे ह, तो आपको मुझे मेरे पता से
मांग लेना चा हए। उ र म जुलाहे ने कहा—म सभी मनु य को दशन के लए सुलभ नह
होता। तु हारे पता ऐसे पु या मा नह ह क म उ ह दशन दे सकूं। तु ह मुझसे ग धव- ववाह
करना होगा। य द तुमने वयं को मुझे सम पत नह कया, तो मेरा शाप तु हारे प रजन का
सवनाश कर दे गा।
यह कहकर जुलाहे ने भय और ल जा के कारण समटती जा रही राजकुमारी का
हाथ पकड़ लया और उसे अपनी छाती से सटा लया। राजकुमारी का आ लगन-चु बन
करते ए जुलाहे ने उसे श या पर लटाकर उसके साथ स भोग कया। स भोग के प ात्
कुछ समय तक जुलाहा राजकुमारी से बात करता रहा और फर अगली रात को पुनः आने
क कहकर वापस लौट गया। अब वह त अधरा के समय राजकुमारी के पास प ंच
जाता और र तभोग का सुख लेकर भात होने से पहले ही वापस लौट आता।
कुछ समय बीतने पर राजकुमारी के अधर और चेहरे को दे खकर उसक स खय को
उस पर स दे ह आ। पहरेदार को भी लगा क राजा को समय पर सू चत न कया गया, तो
हम पर षड् य रचने का आरोप लगेगा और हम ाणद ड भी मल सकता है। तहारी ने
राजा के पास प ंचकर उससे कहा—महाराज! अपराध मा कर। हम तो च ड़या तक को
भी राजकुमारी के महल म नह घुसने दे ते, क तु हम आशंका है क राजकुमारी का कसी
पु ष से स ब ध है। अब आप जो भी उ चत समझ, वह कर।
यह सब सुनकर राजा सोचने लगा—
पु ी त जाता महतीह च ता
क मै दे ये त महा वतकः ।
द वा सुखं ा य त वा न वे त
क या पतृ वं खलु नाम क म् ।।
पु ी का ज म लेना ही च ता का वषय होता है। क या के युवती होने पर उसके लए यो य
वर ढूं ढ़ना सरी च ता होती है, ववाह के प ात् वह ससुराल म सुखी रहेगी या नह , यह
च ता लगी रहती है। इसी लए कहा जाता है क क या का पता होना बड़े क क बात होती
है।
न ना य स भावा-

Downloaded from www.PDFshala.com


तु या न कूला न कुला न तासाम् ।
तोयै दोषै नपातय त
न ो ह कूला न कुला न ना यः ।।
पु यां नद के समान होती ह। जैसे नद के दो कनारे होते ह, वैसे ही लड़ कय के
भी दो प रवार होते ह। जस कार न दयां अपने वाह से अपने कनार को बहा ले जाती
ह, उसी कार लड़ कयां भी अपने राचरण से दोन प रवार को कलं कत कर दे ती ह।
जननीमनो हर त जातवती
प रव ते सहशुचा सु दाम् ।
परसा कृता प कु ते म लनं
र त मा हतरो वपदः ।।
ज म लेते ही क या अपनी माता क छाती पर च ान जतना भार रख दे ती है और
उसके बड़ा होने पर तो उसके प रजन भी च तत रहने लगते ह। यहां तक क उसका ववाह
हो जाने पर भी माता- पता चैन क सांस नह ले पाते। इस कार क या का ज म ऐसी
वप होता है, जससे कभी छु टकारा नह पाया जा सकता।
इस कार दे र तक वलाप करने के प ात् राजा ने रानी से स य का पता लगाने का
अनुरोध कया। प त क बात सुनकर च तत ई रानी उसी समय पु ी के क म जा प ंची।
पु ी के अधर और नख से च त छाती को दे खकर रानी ने लड़क से पूछा—अरी कुलटा!
तुम कस राचारी के साथ यह नकृ कम करती हो? ल जत होते ए राजकुमारी ने
बताया—मां! अधरा के समय वयं भगवान् व णुनारायण मेरे साथ र तभोग करने आते
ह। य द तु ह व ास न हो, तो आज ही अधरा के समय यहां आकर वयं दे ख लेना।
क या क बात सुनकर रानी अपने प त को यह शुभ समाचार सुनाने चल पड़ी। वहां
प ंचकर वह राजा से बोली—महाराज! हम बड़े भा यशाली ह। वयं भगवान् व णु अधरा
के समय हमारी पु ी के पास आते ह। उ ह ने हमारी क या से ग धव- ववाह भी कर लया है।
आज अधरा के समय हम दोन खड़क से भगवान् के दशन करगे।
बड़ी क ठनाई से राजा और रानी ने वह दन तीत कया। रा के समय राजा रानी
के साथ खड़क के पास जाकर बैठ गया। आधी रात के बाद उन दोन ने सचमुच शंख,
च , गदा, प धारी व णुनारायण को आकाश माग से महल क छत पर अपने वाहन ग ड़
से उतरते ए दे खा। स होकर राजा रानी से बोला— ये! हम तो व णुजी को दामाद के
प म पाकर सचमुच ध य हो गये ह। अब तो म अपने दामाद के बल पर सारी पृ वी को
अपने वश म कर लूंगा। अहंकार त होकर राजा ने अपने पड़ोसी राजा से भी अकारण
छे ड़छाड़ करना आर भ कर दया।
राजा क इस छे ड़छाड़ से ु होकर पड़ोसी राजा ने उसे सब ओर से घेर लया।

Downloaded from www.PDFshala.com


तब राजा ने रानी के ारा अपनी पु ी को यह स दे श भेजा क वह व णुनारायण से रा य
क र ा तथा श ु के वनाश के लए कहे। राजकुमारी ने व णुनारायण बने जुलाहे से
सहायता क याचना क , तो वह बोला—सुमुखे! तुम च तत न हो। तु हारे पता के श ु
के तो म पल-भर म ही अपने सुदशन च से टु कड़े-टु कड़े कर डालूंगा।
जुलाहे ने कह तो दया, पर तु यु करना उसके वश म नह था। इधर राजा व णुजी
क सहायता के भरोसे बैठा था क श ु आगे बढ़ आये और थ त यहां तक आ प ंची क
राजा का रा य उसके महल तक ही रह गया। राजकुमारी ने रा म व णु बने जुलाहे से
कहा क य द आपने कोई सहायता न क , तो हम सब ब द बना लये जायगे और फर मेरा
आपसे मलना स भव नह हो सकेगा।
जुलाहा सोच म पड़ गया क राजकुमारी ने मेरे आगे समपण कर दया है और उसके
पता ने भी मुझे सा ात् व णुनारायण समझकर अपने पड़ो सय से संघष मोल ले लया है।
अब इनक सहायता करना मेरा धम ही नह , कत भी है। य न म ग ड़ पर सवार होकर
इसी प म श ु पर अपना ोध द शत क ं ? शायद भयभीत होकर श ु यहां से भाग ही
जाये। शा म भी कहा गया है
न वषेणा प सपण क ा महती फणा ।
वषं भवतु मा भूया फणाटोपो भयङ् करः ।।
क वषर हत सप को भी अपने बचाव के लए अपने फन को दखाना चा हए। वष के होने
अथवा न होने क बात कौन जानता है, फन क भयंकरता से ही काम बन जाता है।
जुलाहे ने यह भी सोचा क य द श ु को डराने म मेरी मृ यु भी हो जाये, तो यह भी
मेरे लए अ छा ही होगा। शा का कथन है
गवामथ ा णाथ वा यथ ीकृतेऽथवा ।
थानाथ य यजे ाणां त य लोकाः सनातनाः ।।
क गाय, ा ण, वामी, ी और थान क र ा के लए यु म ाण गंवाने वाल को
द लोक क ा त होती है।
च े म डलसं थे वगृ ते रा णा दनाधीशः ।
शरणागतेन सा वपद प तेज वनां ा या ।।
च म डल म प ंचने पर सूय को रा के ारा स लया जाता है, ले कन फर भी,
सूय वहां जाना छोड़ नह दे ता। जब मने अपने को उनके सामने व णु प म कट कया है,
तो उ ह इस कार संकट म छोड़कर भाग जाना मुझे शोभा नह दे ता।
यह सोचकर जुलाहे ने राजकुमारी से कहा— ये! आज म तु हारे पता के श ु
का वध करने के प ात् ही अ -जल हण क ं गा। तुम अपने पता से शेष बची सेना के
साथ ूह-रचना के लए कह दो। म आकाश से ही सारे श ु को न तेज कर ं गा।
राजकुमारी ने पता को यह सब बताया, तो राजा ने सब कुछ वैसा ही कर दया। इधर

Downloaded from www.PDFshala.com


व णु पधारी जुलाहा भी यु े क ओर चल दया।
इसी बीच भगवान् व णुनारायण ने ग ड़ का मरण कया और ग ड़ के उप थत
होने पर ीनारायण बोले—ग ड़! तु ह मेरा प धारण कर और काठ के ग ड़ पर सवार
होकर जुलाहे के राजकुमारी के साथ र त-भोग करने क जानकारी तो अव य होगी।
ग ड़ बोला— भो! म उसक धृ ता से भली कार प र चत ं। आप आ ा क जये,
म तुत ं।
नारायण बोले—व स! आज अपनी मृ यु को न त समझकर भी वह जुलाहा
राजकुमारी के त मोह के कारण ही मेरा वेश धारण करके यु े म जाने वाला है। लोग
को इस वषय म कुछ मालूम नह है। उसके पतन पर लोग व णु और ग ड़ को ही मारा गया
समझगे। इस कार हमारा वच व ही समा त हो जायेगा और हमारी पूजा का वधान भी मट
जायेगा। अतः तुम उस काठ के ग ड़ म वेश करो और म जुलाहे के शरीर म वेश कर
लूंगा। श ु का मान-मदन करके ही हमारी त ा बढ़े गी।
ग ड़ और व णुजी के ऐसा करने पर श ु के तेज और बल को तो ीण होना ही
था, राजा ारा अपने श ु पर वजय पाना भी स भव हो गया। इस पर व मत आ
जुलाहा जब धरती पर उतरा, तो लोग ने चार ओर से उसे घेर लया। तब जुलाहे ने लोग को
सारी कहानी सुना द , ले कन राजा ने श ु पर वजय का ेय उसे ही दे ते ए अपनी
क या का ववाह उससे कर दया। इसके प ात् जुलाहा अपनी प नी के साथ सुखपूवक
अपना जीवन तीत करने लगा।
यह कथा सुनाकर दमनक ने कहा—अनेक बार उ चत कार से योग कये गये द भ
के ारा भी अभी स क जा सकती है।
इस पर दमनक को सावधान करते ए करटक कहने लगा—ब धु! तु हारी सोच और
तु हारा कहना ठ क हो सकता है, पर तु मुझे तो भय ही लगता है; य क जहां स ीवक
बु मान् है, वह पगलक उ और भयंकर ोधी है। इस लए म तु हारी बु मानी से
भा वत होकर भी स ीवक और पगलक के म य फूट डालने म तु ह समथ नह मानता।
दमनक बोला—म सी मत साधन के होते ए भी अपना उ े य स करने म अव य
सफल होऊंगा। म जानता ं
उपायेन ह य कुया श यं परा मैः ।
का या कनकसू ेण कृ णसप नपा ततः ।।
क परा म ारा भी जो काम न कया जा सके, समु चत उपाय करके उसे भी कया जा
सकता है। एक साधारण कौवी ने अपने उपाय से ही उस काले अजगर का वनाश कर डाला
था।
करटक के आ ह पर दमनक उसे कौवी क कथा सुनाने लगा।

Downloaded from www.PDFshala.com


कथा म : छह
कसी वन म थत एक वटवृ पर कौआ-कौवी का जोड़ा रहता था। कौवी जब भी अ डे
दे ती, वटवृ के नीचे रहने वाला काला अजगर उन अ ड को खा लेता। स तान के ःख से
खी कौआ-कौवी खी और च तत रहते थे।
एक दन कौए ने पास म ही सरे वृ पर रहने वाले गीदड़ के आगे अपना खड़ा
रोया और कहने लगा— या इस संकट से उ ार का कोई उपाय नह है? या इस अजगर के
कारण हम स तान का सुख कभी ा त नह होगा? कृपया आप हम कोई उपाय बताने क
कृपा कर। म जानता ं
य य े ं नद तीरे भा या च परस ता ।
ससप च गृहे वासः कथं या य नवृ तः ।।
क नद के कनारे पर थत खेत का वामी, पर-पु षगा मनी ी का प त तथा जस घर म
सांप का नवास हो, वह प रवार कभी सुखी और न त नह रह सकता।
सांप के ही कारण हमारे ाण पर भी सदा संकट बना रहता है।
गीदड़ ने कहा— म ! अब तुम न त हो जाओ। इस अजगर को कसी उपाय से
ही मारना होगा।
उपायेन जयो-या ग् रपो ता ग् न हे त भः ।
उपाय ोऽ पकायोऽ प न शूरैः प रभूयते ।।
श ा के ारा जस श ु का वनाश नह कया जा सके, उसे उपाय से न करना
स भव हो जाता है। उपाय जानने वाला बल होकर भी बड़े-बड़े सूरमा को
परा जत कर दे ता है।
भ य वा ब म यानु माधमम यमान् ।
अ तलौ याद्बकः क मृतः ककटक हात् ।।
अपने कथन के समथन म माण दे ते ए गीदड़ बोला—उ म, म यम और अधम
तर क छोट -बड़ी सभी कार क मछ लय को नगलने वाला एक बगुला अ य धक
च चलता दखाने के कारण केकड़े के ारा मारा गया था।
कौआ-कौवी दोन ने एक साथ पूछ—यह कैसी कथा है?
गीदड़ ने उ र दया—सु नये।

कथा म : सात
कसी जंगल के एक तालाब म अनेक जलचर जीव भरे पड़े थे। वृ हो जाने के कारण भूख

Downloaded from www.PDFshala.com


से ाकुल एक बगुला उस तालाब के कनारे पर बैठा आंसू बहा-बहाकर बलख रहा था।
उसक द न-दशा पर सहानुभू त दखाते ए एक केकड़े ने उससे उसके ःख का कारण
पूछा, तो वह और भी अ धक ज़ोर से रोते ए कहने लगा—मुझे जीव क हसा से वैरा य हो
गया है। इस लए अब म भूखा रहकर ही अपने ाण यागना चाहता ।ं इसी लए म कनारे
पर आयी मछ लय को दे खता भी नह ।ं
केकड़े ने पूछा— या तुम मुझे अपने इस वैरा य का कारण बता सकते हो? बगुला ने
उ र दया—म इसी सरोवर म पैदा आ और यह रहकर बड़ा भी आ ।ं इस लए मुझे इस
सरोवर से कुछ मोह हो गया है। आज एक यो तषी कह रहा था क रो हणी न को भेदता
आशनन मंगल व शु ह के नकट आयेगा, जसके कारण अगले बारह वष तक
वषा नह होगी। यह यो तषाचाय वराह म हर का कथन है, कसी ऐरे-ग़ैरे का नह ।
य द भ ते सू यपु ो रो ह याः शकट मह लोके ।
ादश वषा ण तदा न ह वष त वासवो भूमौ ।।
श न के ारा रो हणी न का भेदन करने से पृ वी पर बारह वष तक वषा नह होती।
रो हणीशकटम यसं थते
च म यशरणीकृता जनाः ।
वा प या त शशुपा चताशनाः
सू यत त भ रा बुपा यनः ।।
रो हणी न म च मा के आ जाने का अथ होता है—जीव का पानी क एक-एक बूंद के
लए तरस जाना और आपस म ही लड़ मरना।
बगुला बोला—तब तो इस योग म इस तालाब का पानी भी सूख जायेगा। जन थान
पर पलकर म पला-बढ़ा ं, वे सभी थल जल न होने के कारण सूख जायगे और तपने
लगगे। मुझसे तो अपनी ज मभू म क ऐसी दशा नह दे खी जायेगी, अतः मने मौत को गले
लगा लेने का न य कया है। मुझे यह भी पता लगा है क थोड़े जल वाले तालाब म रहने
वाले सभी जलचर ा णय को उनके ब धु-बा धव उ ह गहरे और बड़े तालाब म ले जा रहे
ह। साथ ही कुछ बड़े जीव—मकर, घ ड़याल आ द—भी बड़े तालाब क ओर जा रहे ह।
शायद इस तालाब म रहने वाले जीव को इस त य क जानकारी नह है, इसी लए वे
न त ए बैठे ह, जब क शी ही उनका सवनाश होने वाला है। इसी लए म अपने को रोक
नह पा रहा ं और रो रहा ।ं
केकड़े ने सभी जलचर ा णय को इकट् ठा करके उ ह बगुले ारा बतायी गयी
वप से प र चत कराया। छोटे -बड़े सभी जलचर जीव च तत हो उठे । वे बगुले के पास
प ंचकर उससे पूछने लगे—हे महा मा! या हमारे बचने का कोई उपाय नह है?
बगुला बोला—घबराने क कोई आव यकता नह है। पास म ही गहरे जल वाला एक
वशाल तालाब है, जो चौबीस वष तक भी वषा न होने से सूखेगा नह । य द तुम लोग मेरी

Downloaded from www.PDFshala.com


पीठ पर बैठना वीकार करो, तो म तु ह उस तालाब तक ले जा सकता ं। वहां तुम सब
न त होकर रह सकोगे।
बगुले क बात पर व ास करके सभी जलचर उसक पीठ पर बैठने को आतुर हो
उठे । अब तो बगुला त दन मछ लय को अपनी पीठ पर लाद कर ले जाता और थोड़ी र
पर उ ह एक शला पर पटककर अपनी ुधा-पू त कर लेता।
बगुले का यह खेल ब त दन तक चलता रहा। एक दन केकड़े ने भी सोचा क वह
भी बगुले क पीठ पर बैठकर नये तालाब तक जायेगा और वहां प ंचकर मछ लय का
समाचार ा त करेगा।
बगुले ने सोचा क आज मछ लय के बदले इसे खाकर इसका वाद लूंगा। यह
सोचकर बगुला केकड़े को अपनी पीठ पर बटकर चल दया। केकड़े ने य ही शला के
पास पड़ी ह ड् डय को दे खा, वह सावधान हो गया और पूछने लगा—यह नया तालाब
कतनी र है? बगुला स होकर बोला—अरे मूख! सरा तालाब यही है। मने तो अपनी
भूख मटाने के लए यह उपाय सोचा था, आज म तु ह अपना आहार बनाऊंगा। बगुले का
अ भ ाय जानकर केकड़े ने अपने दांत से बगुले क गरदन को इस कार जकड़कर पकड़
लया क बगुला तुर त ही मर गया। केकड़े ने वापस लौटकर सभी जलचर ा णय को बगुले
क चालाक और उसक मौत क जानकारी दे ते ए कहा—वषा न होने क बात तो बगुले
क चालाक थी, इसी लए वह सबको मूख बनाता रहा।
यह कथा सुनाकर गीदड़ ने कहा—य द बगुला केकड़े को कुछ भी न बताता, तो वह
भी उसका आहार बन जाता। ले कन बगुला अपनी ही ग़लती से अपने ाण गंवा बैठा।
कौआ बोला—यह तो आपने उ चत ही कहा है। अब इस अजगर से भी तो उ ार का
कोई उपाय बताओ।
गीदड़ बोला—तुम हर ओर घूमते रहते हो, अपनी आंख को खुला रखो। कह कसी
महल के पास कसी धनी के मू यवान् हार को उठा लाओ और इस अजगर के बल
के पास डाल दो। हार क खोज करते ए लोग जब यहां आकर इस अजगर को दे खगे, तो वे
इसे मार डालगे।
गीदड़ क सलाह पर कौए ने यही कया और अजगर मारा गया।
यह कथा सुनाकर दमनक कहने लगा—म शारी रक बल से न हो सकने वाले काय
को भी बु -बल ारा हो सकने वाला मानता ं। शा का वचन है
य य बु बलं त य नबु े तु कुतो बलम् ।
वने सहो मदो म ः शशकेन नपा ततः ।।
क बु मान् ाणी ही शारी रक बल का सही उपयोग कर सकता है। बु हीन के
लए तो शारी रक बल का होना-न होना एक समान होता है। एक छोटे -से ख़रगोश ने अपने
बु -बल से सह-जैसे भयंकर ाणी को मारकर यह स कर दखाया था क बु के

Downloaded from www.PDFshala.com


सामने श का मह व कुछ भी नह होता।
करटक क ज ासा पर दमनक ने उसे यह कथा सुनायी।

कथा म : आठ
जंगल म रहने वाला भासुरक नामक सह त दन अनेक पशु को मार डालता था। एक
दन सब पशु ने मलकर वचार कया और वे सह के पास आकर उससे बोले—आपको
अपनी भूख मटाने के लए त दन केवल एक ही पशु क आव यकता होती है, ले कन
आप अनेक पशु को मार डालते ह। हम आपके पास त दन एक पशु भेज दया करगे,
जससे आपक भूख मट जाया करेगी और आप कसी अ य पशु का वध नह करगे।
राजधम भी यही कहता है और आपको राजधम का पालन करना ही चा हए। शा का
कथन है
शनैः शनै यो रा यमुपभुङ् े यथाबलम् ।
रसायन मव ा ः स पु परमां जेत् ।।
क अपनी श के अनुसार रा य का धीरे-धीरे उपभोग करने वाला राजा ही बु मान्
कहलाता है और रसायन का सेवन करने से पु होने वाले के समान वह पु भी होता
है।
व धना म यु े न ा प म थता प च ।
य छ त फलं भू मररणीव ताशनम् ।।
जस कार ठ क ढं ग से रगड़ने पर य क स मधा से अ न कट होती है, ठ क ढं ग
से जोती गयी धरती ही पया त उपज दे ती है, उसी कार उ चत ढं ग से खाने वाला राजा भी
अ धक क त ा त करता है।
गोपालेन जाधेनो व धं शनैः शनैः ।
पालना पोषणाद् ा ं या यां वृ समाचरेत् ।।
राजा पी वाले को चा हए क वह जा पी गाय का दोहन धीरे-धीरे ही करे, जससे
जापालन के साथ-साथ राजा के याय क भी शंसा हो।
लोकानु हक ारः व ते नरे राः ।
लोकानां सं या चैव यं या त न संशयः ।।
अपनी जा का अ न नवारण करने वाला राजा जहां नर तर समृ होता जाता है,
वहां जा का शोषण करने वाला राजा न हो जाता है, इसम कोई स दे ह नह है।
सह ने भी पशु के ताव को मान लया और वह त दन अपने पास आये पशु
को मारकर अपना पेट भरने लगा। एक दन एक ख़रगोश क बारी आयी, तो उसने सोचा क

Downloaded from www.PDFshala.com


जब मरना ही है, तो फर सह के पास जाने म ज द य क जाये? वह धीरे-धीरे चलने
लगा। ले कन समय पर आहार न मलने के कारण सह परेशान हो उठा।
दे र से और वह भी एक म रयल ख़रगोश को आया दे खकर सह ोध से भर उठा
और ख़रगोश से बोला— या तेरे आने का समय यह है?
ख़रगोश ने वनीत वर म उ र दया—महाराज! म तो अपने घर से समय पर ही
नकला था, ले कन रा ते म एक अ य सह ने मुझको पकड़ लया। म आपको सू चत करके
उसे फर से उसके पास लौटने का वचन दे कर यहां आया ।ं
भासुरक बोला—कहां है वह ? मेरे साथ चलकर मुझे दखा, ता क म उसका काम
तमाम करके न त हो जाऊं। कहा भी तो गया है—
भू म म ं हर य च व ह य फल यम् ।
ना येकम प य ेषां न तं कुया कथ चन ।।
क भू म, म और सुवण क ा त के लए यु करना यायसंगत होता है। हां, य द इन
तीन म से एक क भी ा त का अवसर न हो, तो यु नह करना चा हए।
जातमा ं न यः श ुं रोग च शमं नयेत् ।
महाबलोऽ प तेनैव वृ ा य स ह यते ।।
श ु और रोग क उपे ा करने तथा उ ह तुर त ही न न करने का प रणाम यह होता
है क श ु अपने बल क वृ करके अपने से बलवान् को भी न कर डालता है।
उ मान तु परो नोपे यः प य म छता ।
समौ ह श रै ा नातौ व य तावामयः स च ।।
अतः अपना हत चाहने वाले राजा को चा हए क श ु को उभरने का अवसर ही न
दे । नी तकार ने भी श ु और रोग को समान प से ःखदायी माना है।
आ मनः श मु य मानो साह च यो जेत् ।
ब न् ह त स एकोऽ प या भागवो यथा ।।
अपनी श पर व ास करके मन म उ साह धारण करने वाला राजा
अ पश शाली होने पर भी अनेक को मारने म समथ हो जाता है। परशुराम ने अकेले ही
अनेक य का वध करके इस त य को मा णत कर दखाया है।
जंगल म सरा सह है, ख़रगोश के मुख से यह सुनकर भासुरक बोला—अरे, वह
सरा सह जंगल म है या जंगल के बाहर, तुझे इससे या लेना-दे ना है? तू तो एक बार मुझे
उससे मला दो, बस।
ख़रगोश ने कहा—आप मेरे साथ च लये।
यह कहकर ख़रगोश सह को कुएं के पास ले गया और बोला—अभी तो वह यह
था। लगता है क़ले के भीतर चला गया है।

Downloaded from www.PDFshala.com


भासुरक ने क़ले को दे खने क इ छा कट क , तो ख़रगोश ने उसे कुआं दखा
दया। भासुरक ने कुएं म झांका, तो उसे कुएं के जल म अपना त ब ब दखाई दया, जसे
सरा सह समझकर वह ज़ोर-से दहाड़ा, तो उसे अपनी ही त व न सुनाई द , जसे उसने
श ु सह क आवाज़ समझा और ोध म आकर उसका वध करने के लए उस पर झपट
पड़ा और कुएं म डू बकर मर गया।
ख़रगोश ने अपने सभी साथी पशु को भासुरक के मारे जाने क सूचना दे कर
आन दत कर दया।
यह कथा सुनाकर दमनक बोला—म बु को ही असली श मानता ।ं य द तुम
मुझसे सहमत हो, तो म पगलक सह और स ीवक बैल म फूट डाल ं ।
करटक ने कहा— म ! य द तु ह अपने ऊपर व ास है, तो मेरी शुभ कामनाएं
तुत ह। म ई र से तु हारी सफलता के लए ाथना क ं गा।
यह सुनकर दमनक चल पड़ा। उसने पगलक को अकेला दे खा, तो उसे णाम
नवेदन करके चुपचाप जा बैठा।
जब पगलक ने पूछा—तुम तो ब त दन के बाद इधर आये, तो दमनक ने उ र
दया—महाराज! आपने मुझे कोई काम तो स प नह रखा, जसके लए मलना आव यक
हो। आज भी म जस योजन से आया ं, वह मेरे अ धकार क बात नह है, क तु आपके
अ हत को दे खकर मुझसे रहा नह गया, इस लए आया ं। शा म भी कहा है
यं वा य द वा े यं शुभं वा य द वाऽशुभम् ।
अपृ ोऽ प हतं व ये य ने छे पराभवम् ।।
क अपने यजन के अशुभ को न चाहने वाले को उससे बना पूछे भी उसके लए
य अथवा अ य तथा शुभ अथवा अशुभ बात कह दे नी चा हए।
दमनक के कथन को समझते ए पगलक ने कहा—तु ह जो कुछ कहना हो, नभय
होकर कहो।
दमनक बोला—महाराज! आप व ास नह करगे, ले कन यह सच है क स ीवक
आपके साथ ोह करता है। उसने वयं मुझे बताया है क वह आपक श को दे ख चुका है
और अब आपको मार डालने के लए उ चत अवसर क बाट जोह रहा है। उसने मुझे भी
म ी पद दे ने का लालच दया है।
दमनक के मुख से यह सुनकर पगलक क बोलती ब द हो गयी। सह के चेहरे पर
उदासी दे खकर दमनक समझ गया क पगलक अव य ही मेरे वषय म सोच रहा होगा क
म स ीवक का भरोसेम द ,ं अतः स ीवक ने अव य ही मेरे वध के लए इससे बात क
होगी;
एकं भू मप तः करो त स चवं रा ये माणं यदा
तं मोहा यते मदः स च मदा ा येन न व ते ।

Downloaded from www.PDFshala.com


न व ण य पदं करो त दये त य वत पृहा
वात य पृहया ततः स नृपतेः ाणे व प ते ।।
य क जब राजा कसी एक ही को सारे अ धकार स प दे ता है, तो वह अ धकारी
मदो म हो जाता है, दासता से मु क कामना करने लगता है और अपनी इस कामना क
पू त के लए राजा के व ोह करने अथवा उसके ाण लेने म भी दे र नह लगाता।
अभी दमनक इस वषय पर सोच ही रहा था क मुझे कस कार बात को आगे
बढ़ाना चा हए क पगलक कहने लगा—स ीवक तो मेरा य सेवक है। वह मेरे साथ
व ासघात नह कर सकता।
दमनक बोला—महाराज! कसी का मन बदलते कतनी दे र लगती है?
न सोऽ त पु षो रा ां यो न कामयते यम् ।
अश ा एव सव नरे ं प युपासते ।।
राजा के समीप रहने वाला ऐसा कौन है, जो रा यल मी को भोगने क इ छा
नह रखता? सच तो यह है क श के अभाव के कारण ही लोग राजा क सेवा कया
करते ह।
पगलक बोला—मुझे तो उसके मनोभाव म ऐसा कोई वकार दखाई नह दया।
दमनक बोला—महाराज! आप बुरा न मान, म पूछना चाहता ं क आपने स ीवक
म ऐसा या दे ख लया क इसे अपने मुंह लगा रखा है? य द आप इसक भारी-भरकम
काया को दे खकर इसे श शाली समझते ह और यह सोचते ह क यह आपके श ु का
वनाश कर सकता है, तो यह केवल आपका वचार है। इससे आपका कोई मतलब स
होने वाला नह है। यह घास खाने वाला जीव मांसाहा रय का सामना कैसे कर सकता है? म
तो कहता ं क आप इसका वध कर डा लये।
उ ो भव त यः पूव गुणवा न त संस द ।
त य दोषो न व ः त ाभंगभी णा ।।
जसे एक बार लोग के सामने गुणी कह दया, उसका वध करने से आप पर वचन-
भंग करने का दोष नह लग सकता; य क ाणी वध के ही यो य होता है।
इसके साथ ही आप इस बात क भी च ता न कर क आपने मेरे कहने पर जसे
जीवनदान दया है, उसका वध कैसे कर अथवा म बने स ीवक पर ोध कैसे कया
जाये? आपके लए यह कोई नयी बात नह है।
इतः स दै यः ा त ीनत वाह त यम् ।
वषवृ ो प संव य वयं छे ुमसा तम् ।।
तारकासुर के उ पात से खी होकर जब दे व ने ाजी से उसक शकायत क थी,
तो ाजी ने भी यही कहा था—मने इसे वर दया है, अब म इसका वध कैसे क ं ? अपने

Downloaded from www.PDFshala.com


हाथ से लगाये वषैले पौधे को भी उखाड़ फकने म को ःख होता ही है।
आदौ न वा ण यना णयो वधेयो
द ोऽथवा त दनं प रपोषणीयः ।
उ य य प त त करो त ल जां
भूमौ थत य पतना यमेव ना त ।।
कहा भी गया है क को कसी अ य से पहले तो ेम ही नह करना चा हए,
ले कन य द ेम कर ले, तो उसे नभाना चा हए। ऐसा न करना ल जाजनक होता है। दे खा
जाये, तो ऊपर खड़े का ही नीचे गरने क आशंका होती है। नीचे खड़े ाणी को गरने
का या डर हो सकता है?
य द आप यह सोचते ह क इसके ारा ोह कये जाने पर भी आपका इसे द ड दे ना
उ चत नह , तो यह आपक भूल है। राजधम ोही को मा करने क अनुम त नह
दे ता। राजनी त का कहना है क जब से आपने इस बैल से म ता क है, आप राजधम को
भी भूल गये ह। इस लए आपके सभी साथी आपसे बछु ड़ गये ह। यह घास-फूस खाने वाला
है, जब क आप मांसाहारी ह। आपके सभी आ त भी मांसाहारी ह। जब आप हमारे लए
ही उ म नह करगे, तो हम कहां से खायगे और कैसे जी वत रहगे? सबका आपको छोड़कर
चले जाने का कारण भी यही है। स ीवक के साथ रहने से आपक शकार करने क
वृ ही नह होगी और इस कार राजधम का पालन नह हो सकेगा।
या शं से ते भृ यैया शां ोपसेवते ।
कदा च ा स दे ह ता भव त पू षः ।।
राजा जस कार के सेवक के साथ रहता है, धीरे-धीरे उसका वभाव भी वैसा ही हो
जाता है।
असतां स दोषेण साधवो या त व याम् ।
य धन स े न भी मो गोहरणे गतः ।।
के संग रहकर स जन भी जन बन जाते ह। य धन के संग रहने से ही
भी म पतामह गोहरण करने के लए चले गये थे।
न व ातशील य दात ः त यः ।
म कुण य च दोषेण हता म द वस पणी ।।
इसी लए स जन नीच पु ष के संग से सदा बचने क चे ा करते ह।
जसके वभाव और च र क भली कार जानकारी न हो, उस कभी आ य नह
दे ना चा हए। खटमल को आ य दे ने वाली धीमी ग त से चलने वाली जूं को भी अपने ाण
गंवाने पड़ गये थे।
पगलक ारा इस कथा को सुनने क ज ासा कट करने पर दमनक बोला—सुन

Downloaded from www.PDFshala.com


महाराज।

कथा म : नौ
कसी राजा के शयनक म सफ़ेद कपड़ म लपट म द वस पणी नामक एक जूं रहती थी,
जो राजा के सो जाने पर उसका र पीकर व थ होती जा रही थी। एक दन अचानक ही
अ नमुख नामक एक खटमल घूमता-घामता वहां आ गया। जूं ने खटमल को सावधान करते
ए कहा—तुम ग़लत थान पर आ गये हो। कसी ने दे ख लया, तो मारे जाओगे। तु हारा
भला इसी म है क यहां से तुर त चलते बनो।
खटमल बोला—घर म आये जन से भी कोई ऐसा वहार नह करता।
ए ाग छ समा सासन मदं
क मा चराद् यसे
का वा ान व त बलोऽ सकुशलं
ीतोऽ म ते दशनात् ।
एवं नीचजनेऽ प यु य त
गृहं ा ते सतां सवदा
धम ऽयं गृहमे धनां नग दतः
मातलघुः वगदः ।।
अ त थ से तो कहा जाता है—आइये, पधा रये, बड़े सौभा य से आपके दशन ए ह।
आप कुशल से तो ह, हम तो आपके दशन से कृतकृ य अनुभव कर रहे ह।
नी तकार ने नीच अ त थ के त भी श ता दखाने वाले गृह थ को पु या मा और
वग-लाभ करने वाला बताया है।
यूं तो मने अनेक पु ष के र पये ह और उनके खान-पान के कारण उनके र से
कड़वा, ख ा, तीखा और कसैला आ द वाद भी चखे ह, पर तु मुझे कसी के भी र पान से
मीठे वाद का अनुभव नह आ। उ म अ तथा रस आ द का सेवन करने वाले राजा के
र का वाद अव य ही मीठा होगा। केवल एक बार मुझे इसका वाद भी लेने दो।
रङ् क य नृपतेवा प ज ासौ यं समं मृतम् ।
त मा च मृतं सारं यदथ यतते जनः ।।
राजा और रंक दोन म जीभ क लोलुपता एक-जैसी ही पायी जाती है। वा तव म,
ाणी के जीवन का सार भी यही है। म तुमसे ाथना करता ं क मुझे केवल एक बार यह
सुख ा त कर लेने दो।
य ेवं न भवे लोके कम ज ा तु दम् ।

Downloaded from www.PDFshala.com


त भृ यो भवे क क य च शगोऽथवा ।।
इस जीभ क लोलुपता के कारण ही एक- सरे का पराधीन बना आ है,
अ यथा कोई कसी क दासता य वीकार करता?
इन बात पर वचार करते ए आपको घर आये भूखे अ त थ को नराश नह करना
चा हए। अकेला खाने वाले को तो शा भी पापी मानते ह। य द म राजा का थोड़ा-सा र
पी लूंगा, तो आपका कुछ भी नह बगड़ेगा? म द वस पणी ने कहा—ठ क है, ले कन तुम
यह भी समझ लो क म राजा के सो जाने पर ही उसका र पया करती ।ं य द तुम राजा
के न ा नम न हो जाने तक ती ा करने को तैयार हो, तो तुम यहां क सकते हो। जब म
र पान क ं गी, तब तुम भी उसका वाद ले लेना।
खटमल बोला—दे वी! म शपथपूवक कहता ं क आपके ारा र पान करने के
प ात् ही म आगे आऊंगा।
इस कार खटमल वहां ठहर गया। कुछ दे र बाद, अभी राजा अपने शयनक म
आकर लेटा ही था क अधीर बने खटमल ने राजा को काट खाया। शा कार ने ठ क ही
कहा है—
वभावो नोपदे शेन श यते क ुम यथा ।
सुत तम प पानीयं पुनग छ त शीतताम् ।।
क ख़ूब गरम कया जाने पर भी जस कार पानी ठ डा हो जाता है, उसी कार यह भी
स होता है क समझाने-बुझाने पर भी कसी के वभाव को बदला नह जा सकता।
य द या छ तलो व ः शीतांशुदहना मकः ।
न वभावोऽ म यानां श यते कतुम यथा ।।
अ न का शीतल होना और च मा का दाहक होना स भव हो सकता है, ले कन
कसी के वभाव का बदल जाना कभी स भव नह हो सकता।
खटमल के काटने से राजा को कांटा चुभने-जैसी पीड़ा ई, जससे वह श या
छोड़कर उठ खड़ा आ। उसने सेवक को बुलाकर कहा क ब तर म छपे खटमल अथवा
जूं को नकाला जाये। नौकर ने जांच-पड़ताल क , तो खटमल पलंग के कसी छे द म छप
गया और चादर म छपी जूं पकड़कर मार डाली गयी।
यह कथा सुनाकर दमनक पगलक से बोला—महाराज! इसी लए नी तकार ने
अप र चत के साथ मै ी करने क मनाही क है। म तो आपको उसे मार डालने का ही
सुझाव ं गा। य द आपने ऐसा न कया, तो अवसर मलते ही वह आपको मार डालेगा;
य ा ा य तरा येन बा ा ा य तरीकृताः ।
स एव मृ युमा ो त यथा राजा ककुद् मः ।।
य क अपने व त य को छोड़कर अप र चत लोग को गौरव दे ने वाला

Downloaded from www.PDFshala.com


ककुद् म राजा क भां त न हो जाता है।
पगलक क ज ासा पर उसे ककुद् म राजा क कथा सुनाता आ दमनक बोला—

कथा म : दस
जंगल म रहने वाला च डरव नामक गीदड़ अपनी भूख मटाने के लए कसी गांव म घुसा,
तो कु ने उसे घेर लया और काट खाया। अपने बचाव के लए गीदड़ पास म बने धोबी के
घर म घुस गया और खुले पड़े नील के कड़ाह म जा गरा। अपने शरीर पर चढ़े नीले रंग को
दे खकर गीदड़ ने उससे लाभ उठाने क सोची; य क नीला रंग कभी नह छू टता।
व लेप य मूख य नारीणां ककट य च ।
एको ह तु मीनानां नीलीम पयोयथा ।।
व -लेप (एक कार का ला टर), मूख , नारी, केकड़ा, मछली, शराबी और
नील क अव था एक-जैसी ही होती है। व -लेप से चाहे कभी मु मल जाये, क तु
केकड़े, मछली के दांत और नीले रंग से कभी मु नह मलती।
च डरव गीदड़ के जंगल म आने पर उसके व च रंग और आकृ त से डरे सह आ द
ाणी भी इधर-उधर भागने लगे। गीदड़ ने भागते ए णय को अभयदान दे ते ए कहा—
ाजी ने मुझे तुम सब पर शासन करने के लए यहां भेजा है। तु ह मुझसे डरना नह
चा हए। म ऐसी याय- व था क ं गा क कसी को कोई क नह होगा।
च डरव गीदड़ ने सह को म ीपद, ा को श यापाल, गडे को ता बूल नायक
तथा भे ड़ये को सुर ा धकारी नयु कर दया। इस कार उस मूख ने सारे बड़े-बड़े पद
अ य अनेक ा णय को दे दये, क तु अपने जा त-ब धु को अनदे खा व अपमा नत कर
उनसे र- र रहने लगा।
गीदड़ इस बात से तो स थे क उनका जा त-ब धु जंगल का शासक था, पर तु
उसका वहार उ ह एकदम अ य लगता था। समझाने-बुझाने का कोई अनुकूल प रणाम
न नकलते दे ख गीदड़ ने योजनाब होकर सामू हक प से ‘ आ- आ’ क व न करनी
आर भ कर द , जसे सुनकर च डरव य न करने पर भी वयं को रोक न सका। वह भी
उनके साथ मलकर आ- आ क व न करने लगा।
च डरव के इस आचरण से सह आ द पशु पर उसक अस लयत उजागर हो गयी
और सभी पशु ने उस के वध का नणय ले लया। भनक पड़ते ही च डरव ने भागकर
अपने ाण बचाने का यास कया, क तु वह सह के हाथ मारा गया।
यह कथा सुनाकर दमनक बोला—इसी लए म कहता ं क कसी भी अप र चत से
मै ी का प रणाम ःखदायी ही होता है।

Downloaded from www.PDFshala.com


पगलक ने पूछा—स ीवक के ारा मेरे त भाव रखने का तु हारे पास या
माण है?
दमनक बोला—उसने आज ातःकाल ही आपका वध करने के अपने नणय क
जानकारी मुझे द है। इससे बड़ा माण और या हो सकता है?
आज जब वह आपके पास आयेगा, तो उसका चेहरा ोध से तमतमा रहा होगा,
आंख लाल ह गी, होठ कांप रहे ह गे और वह आपको घूर रहा होगा। या ये संकेत मेरे
कथन के समथन के लए पया त नह ह गे?
इस कार पगलक को स ीवक के व भड़काकर दमनक चुपके से स ीवक
के पास जा प ंचा। स ीवक ने भी दमनक के आने पर अपने मन क बेचैनी को छपा
लया और दमनक के बैठ जाने पर उससे पूछ—सब कुशल तो है? इस बार ब त दन बाद
दखाई दये हो।
ते ध या ते ववेक ा ते स या इह भूतले ।
आग छ त गृहे येषां का याथ सु दो जनाः ।।
नी तकार ने उन लोग को ध य, स य और ववेक माना है, जनके पास अपनी
काय स के लए म आते-जाते रहते ह।
दमनक धीमे वर म बोला—महाराज! सेवक को कहां चैन?
स प यः पराय ाः सदा च म नवृतम् ।
वजी वतेऽ य व ास तेषां ये राजसेवकाः ।।
सेवक क नौकरी तो अपने वामी क स ता पर ही नभर रहती है। उ ह तो अपने
जीवन के भी सुर त रहने का व ास नह रहता। इस लए सेवक कैसे कुशल हो सकते ह?
जीव तोऽ प मृताः प च ूय ते कल भारते ।
द र ो ा धतो मूखः वासी न यसेवकः ।।
द र , रोगी, मूख, वासी और सेवा-कम से अपना नवाह करने वाला—इन पांच के
जी वत रहने पर भी सेवक मृत ही समझे जाते ह।
ना ा त वे छयौ सु या न ो न बु यते ।
न नःशंकं वचो ूते सेवकोऽ य जीव त ।।
जब सेवक न तो अपनी इ छा से खा-पी सके, न अपनी इ छा से सो अथवा जाग सके
और न ही कुछ बोल सके, तो ऐसी हालत म जीने वाले सेवक को जी वत कैसे कहा जा
सकता है?
सेवा वृ रा याता यै तै म या ज पतम् ।
व छ दं चर त ाऽ सेवकः परशासनात् ।।
सेवा-कम को कु े के आचरण के समान नकृ बताने वाले यह भूल जाते ह क

Downloaded from www.PDFshala.com


कु ा अपनी इ छा से घूम- फर सकता है, क तु सेवक तो अपनी इ छा से घूम- फर भी नह
सकते। उ ह तो येक काय के लए वामी क आ ा लेनी पड़ती है।
स ीवक ने पूछा—इतनी भू मका बांधकर तुम कहना या चाहते हो?
दमनक ने कहा—स चव को वामी क कसी भी गु त योजना को का शत नह
करना चा हए;
यो म ं वा मनो भ ा सा च े स यो जतः ।
स ह वा नृपकाय त वय च नरकं जेत् ।।
य क ऐसा वामी के गु त रह य को कट करके उसके काय को तो बगाड़ता ही
है, वयं भी नरकगामी होता है।
ले कन आपके त अपने नेह के कारण म आपको वामी क गु त योजना से
प र चत करा दे ना उ चत ही समझता ।ं इसका कारण यह है क मेरे भरोसे ही आपने
महाराज से स ब ध जोड़ा है।
व भा य यो मृ युमवा ो त कथ चन ।
त य ह या त थां सा ाहेदं वचनं मनुः ।।
मनु के अनुसार कसी के व ास म आकर मरने वाले क मृ यु का दोषी उसे
व ास दलाने वाला ही होता है।
बात यह है क पगलक ने मुझे गु त प से बताया है क वह आपको ठकाने लगाना
चाहता है और आपका वध करके अपने प रवार को वा द भोज दे ना चाहता है। मने उ ह
समझाने क चे ा क है; य क म से व ासघात करना अनु चत है। नी तशा भी कहते

अप वधं कृ वा ाय ेन शु य त ।
तदहण वचीणन न कथ च सु द् हः ।।
क ा ण के वध का ाय तो है, उसक नवृ का उपाय भी है, ले कन म के साथ
कये व ासघात से नवृ का तो कोई उपाय ही नह है।
मेरे इस सुझाव पर ही ु होकर पगलक ने कहा—अरे मूख! हम मांसाहारी ाणी
ह और स ीवक शाकाहारी है। हम दोन म म ता कैसी? वह तो हमारा आहार है और
ा त आहार क उपे ा करना मूखता है। हम जानते ह क उसके वध से हम कोई दोष नह
लगेगा। शा का तो यहां तक कहना है
द वा प क यकां वैरी नह त ो वप ता ।
अ योपायैरश यो यो हते दोषो न व ते ।।
क य द श ु क कसी अ य उपाय से ह या करना स भव न हो, तो उसे अपनी लड़क दे कर
भी मार डालना चा हए।

Downloaded from www.PDFshala.com


कृ याकृ यं न म येत यो यु ध स मतः ।
सु तो ोणपु ेण धृ ु नः पुरा हतः ।।
यु के लए तैयार य को श ु का वध करने म उ चत-अनु चत का वचार नह
करना चा हए। अ थामा ने भी सोते ए धृ ु न का वध करके इस त य क पु ही क
है।
म पगलक के इस वचार को जानकर ही आपके पास आया ं। मने आपको बता
दया है। अब य द आपका अ हत होता है, तो मुझ पर म से व ासघात का दोष नह
लगेगा। अब आप जो उ चत समझ, वह कर।
यह सुनकर स ीवक मू छत हो गया और कुछ दे र के प ात् सचेत होकर बोला—
व ान ने ठ क ही कहा है
जनग या ना यः ायेणा नेहवा भव त राजा ।
कृपणानुसा र च धनं मेघो ग र गवष च ।।
क यां ायः जन के चंगुल म फंस जाती ह, वामी ायः कठोर ही होते ह, धन ायः
कंजूस के पास ही होता है और बादल ायः पवत पर ही बरसते ह।
अहं ह स मतो रा ो य एवं म यते कुधीः ।
बलीवदः स व ेयो वषाणप रव जतः ।।
अपने को वामी का य समझने वाले सेवक को स गर हत बैल ही समझना चा हए।
मुझे पगलक से मै ी करनी ही नह चा हए थी। यह मुझसे बड़ी भारी ग़लती हो गयी है।
ययोरेव समं व ं ययोरेव समं कुलम् ।
तयोम ी ववाह न तु पु वपु योः ।।
म ता और ववाह-स ब ध समान धन तथा समान प रवार वाले लोग के साथ ही
शोभा दे ता है। ऊंच-नीच का भेद होने पर म ता और ववाह-स ब ध सफल नह रहते।
मृगा मृगैः स मनु ज त
गाव गो भ तुरगा तुर ै ः ।
मूखा मूखः सु धयः सुधी भः
समानशील सनेन स यम् ।।
मृग मृग का, गाय गाय का, अ अ का, मूख मूख का और बु मान् बु मान
का साथ पाकर ही शोभायमान होते ह; य क समान गुण, वभाव और थ त वाले
ा णय म ही म ता नभ सकती है।
अब य द म उसक ख़ुशामद भी क ं , तो भी लगता है क हम दोन क म ता नभ
नह सकेगी; य क अव य ही कुछ ई यालु ने मेरे व पगलक के कान भर दये ह,
इसी लए वह मुझ पर ु हो रहा है।

Downloaded from www.PDFshala.com


भोः सादम य य न सह तीह सेवकाः ।
सप य इव सं ु ाः वप याः सुकृतैर प ।।
जस कार कोई सौ तन अपने प त के कसी एक प नी के त यार को सहन नह
कर पाती, उसी कार सेवक भी अपने सवा कसी सरे से वामी क म ता को पस द
नह करते। इसका एक कारण यह भी हो सकता है क गु णय को अपने समीप पाकर
वामी गुणहीन को कोई स मान नह दे ते।
दमनक बोला—य द आप ऐसा समझते ह, तो आपको कसी च ता क आव यकता
नह । आप महाराज से मलकर और उ ह अपने वचन से अपने अनुकूल बना सकते ह।
स ीवक बोला—म तु हारे इस वचार से सहमत नह ; य क जन अपने एक
उपाय के वफल हो जाने पर अ य उपाय का सहारा लेकर अपने मनोरथ को पूरा कर लेते
ह।
बहवः प डताः ु ाः सव मायोपजी वनः ।
कु युः कृ यमकृ यं वा उ े काकादयो यथा ।।
ऐसे पढ़- लखकर छल-कपट म व ास करने लगते ह और ायः एक- सरे के
साथ मलकर अपने काय क स के लए सही-ग़लत करने लगते ह। कौए और गीदड़ के
ारा ऊंट के साथ कया गया उनका वहार इसी त य का सा ी है।
दमनक क उ सुकता पर स ीवक ने उसे यह कथा सुनायी—

कथा म : यारह
कसी जंगल म मदो कट नामक सह ने अपने अनुचर के साथ अपने झु ड से बछड़कर
उस जंगल म आ गये एक ऊंट को दे खा, तो उसने अपने सा थय से यह पता लगाने के लए
कहा क यह ऊंट पालतू है या जंगली? कौआ बोला—महाराज! म जानता ं क यह पशु
पालतू है। आप इसको अपना भोजन बना सकते ह।
कौए क इस बात से सहम त कट न करते ए सह ने कहा—अ त थ प म आये
इस जानवर का वध करना मुझे उ चत नह लगता। शा म कहा गया है
गृहे श ुम प ा तं व तमकुतोभयम् ।
यो ह या य पापं या छत ा णघातजम् ।।
क व ास करके न शंक होकर घर म आये श ु क ह या करने वाले को सौ ा ण क
ह या करने का पाप लगता है।
सह ने अपने सेवक को आदे श दया क तुम अ त थ प म आये ऊंट को अभयदान
दे कर मेरे पास ले आओ, ता क म उससे उसके यहां आने का कारण पूछ सकूं। वामी का

Downloaded from www.PDFshala.com


आदे श पाकर जब सेवक ऊंट को सह के पास ले आये, तो पूछे जाने पर उसने अपने
सा थय से बछड़ने क बात कही।
इस पर ऊंट को आ ासन दे ते ए सह ने कहा—अब तु ह वापस अपने गांव जाने
और भारी बोझ ढोने क कोई आव यकता नह । तुम इस जंगल म न शंक होकर रह सकते
हो और यहां क हरी एवं कोमल घास खा सकते हो। आज से तुम हमारे साथी बनकर कभी
हमारे साथ, तो कभी अकेले कह भी घूम- फर सकते हो। ऊंट ने सह के त अपना आभार
कट कया और वह उस जंगल म रहने लगा।
एक बार वह सह कसी बलवान् हाथी के साथ यु करते समय घायल हो गया और
उसे अपने ाण बचाने के लए मैदान छोड़कर भागना पड़ा। हाथी ने सह को इतना घायल
कर दया था क उसके लए शकार करना भी अस भव हो गया और वह भूख के कारण
खी रहने लगा। इसी लए वह दन- त दन बल भी होता गया।
सह ने अपने सेवक को कसी ाणी का वध करके अपने पास लाने को कहा, ता क
वह अपनी भूख मटा सके। सेवक जंगल म इधर-उधर भटकते रहे, पर तु उ ह ऐसा कोई
जीव नह मला, जसे मारकर वे अपने वामी क भूख मटाकर उसक र ा कर सकते।
नराश होकर गीदड़ और कौआ आपस म सलाह करने लगे। कौआ बोला— य न
हम अपने वामी को ऊंट के वध के लए सहमत कर ल? इससे वामी का पेट भी भर
जायेगा और हम भी वा द मांस खाने के लए मल जायेगा, ले कन मुझे भय है क वामी
इसके वध को उ त न होगा।
गीदड़ बोला—तुम इसक च ता मत करो। म कोई उपाय सोचता ।ं तब कौआ और
गीदड़, दोन सह के पास जाकर बोले—महाराज! वन म भटकते-भटकते हमारे पैर म छाले
पड़ गये ह, क तु अभी तक हम कोई ाणी नह मला। भूख के कारण हमारा भी बुरा हाल
है, अब तो सांस लेना भी भर हो रहा है। आपने भी इतने दन से कुछ नह खाया। य द
यही थ त रही, तो आपके ाण पर भी बन सकती है। आप हम इस ऊंट का वध करने क
अनुम त दे कर इस सम या का समाधान य नह कर लेत? े
गीदड़ के इस सुझाव पर सह कहने लगा—बस, अब अगर मुंह खोला, तो तेरी ख़ैर
नह । या तुझे नह मालूम
न गो दानं न मही दानं
न चा दानं ह तथा धानम् ।
यथा वद तीहबुधाः धानं
सव दाने वभय दानम् ।।
क गोदान, भू मदान और अ दान से भी कह अ धक मह वपूण अभयदान होता है।
इसी लए इसे सव म दान कहते ह।
गीदड़ बोला— वामी! यह तो उ चत बात है क कसी को अभयदान दे कर उसका

Downloaded from www.PDFshala.com


वध करना उ चत नह है, पर तु य द कोई वयं ही अपना जीवन समपण कर दे , तो उसक
ह या करने म कोई दोष नह होता। य द वह ऊंट वयं अपने आपको तुत कर दे और फर
भी आप उसका वध न कर, तो फर आप हमम से कसी एक का वध करके अपने ाण क
र ा क जये। आपके ाण हमारे सबके ाण से अ धक मू यवान् ह। य द आपको कुछ हो
गया, तो हमारे जी वत रहने पर ध कार है;
य म कुले यः पु षः धानः
स सवय नैः प रर णीयः ।
त म वन े कुलसारभूते
न ना भभंगे रयो वह त ।।
य क कुल के मु खया क सभी कार से र ा करना सभी प रजन का धम है। मु खया के
न रहने पर प रवार बखर जाता है और श ु उस पर हावी हो जाते ह।
सह बोला—य द तुम इसे उ चत समझते हो, तो मुझे इसम कोई आप नह है।
सह क सहम त मलने क दे र थी क सभी मांसाहारी जानवर एक हो गये और
ऊंट के पास जाकर उससे कहने लगे— वामी क जान ख़तरे म है। य द उ ह कुछ हो गया,
तो हम सबक र ा कौन करेगा? य न हम सब वामी के ाण क र ा के लए उ ह
अपना जीवन दे कर उ ह बचा ल? शा भी तो यही कहते ह
आपदं ा ुया वामी य य भृ य य प यतः ।
ाणेषु व मानेषु स भृ यो नरकं जेत् ।।
क वामी को वप म फंसा दे खकर अपने ाण के बारे म सोचने वाले सेवक नरकगामी
होते ह।
इस कार सह के सभी सेवक ने ऊंट को फुसलाकर उसे अपने साथ ले लया और
सह के पास आकर सब चुपचाप बैठ गये। सह ने पूछा— या भूख मटाने के लए कोई
शकार मला अथवा नह ? कौआ बोला—महाराज! मने तो उड़कर इधर-उधर टोह ली,
ले कन मुझे तो कह कोई पशु नह मला। अतः आज आप मुझे खाकर अपने ाण क र ा
कर ली जये। आपके लए अपने ाण यागने पर मुझे वग क ा त होगी। शा का
कथन है
वा यथ य यजे ाणा भृ यो भ सम वतः ।
परं स पदमा ो त जरामरणव जतम् ।।
क वामी के लए भ पूवक अपने ाण यागने वाला सेवक जरा-मृ युर हत परमपद को
ा त करता है।
कौए के वचन सुनकर गीदड़ भी कहने लगा— वा मन्! इस छोटे -से कौए को खाकर
आपक भूख कहां मटे गी, आप तो मुझे खाकर अपनी भूख मटाइये। म वयं आपके लए

Downloaded from www.PDFshala.com


अपना जीवन अ पत कर रहा ं, इस लए आपको पाप नह लगेगा।
सह ने कहा—तुम सबने अपनी वा मभ का प रचय दया है, अतः तुम सब
वामीभ के ऋण से उऋण हो गये। अब दोन लोक म तु हारी जय-जयकार होगी।
तभी एक अ य पशु आगे बढ़कर कहने लगा— वामी! आप मुझे अपना लोक-
परलोक सुधारने का अवसर द जये। आप मुझे अपना आहार बनाइये;
वा याय ाः सदा ाणा भृ यानाम जता धनैः ।
यत ततो न दोषोऽ त तेषां हणस भवः ।।
य क सेवक के शरीर का पालन-पोषण वामी के धन से ही होता है, अतः आव यकता के
समय सेवक के ाण को लेने से वामी को कोई दोष नह लगता।
गडा बोला—महाराज! ये सारे पशु छोटे और अपने जा त-ब धु ह और नाखून वाले
भी ह। अतः इन सबको छोड़कर आप मुझे अपना आहार बनाइये;
नाभ यं भ ये ा ः ाणैः क ठगतैर प ।
वशेषा द प तोकं लोक य वनाशकम् ।।
य क ाण पर संकट उप थत होने पर अभ य-भ ण का वचार करना उ चत नह । फर
इन छोटे शरीर वाले जीव को खाने से न तो भूख मटती है और न ही परलोक संवरता है।
सह बोला—हां, तुमने भी अपनी कुलीनता का प रचय दे दया।
एतदथ कुलीनानां नृपाः कुव त सं हम् ।
आ दम यावसानेषु न ये ग छ त व याम् ।।
इसी लए राजा कुलीन य को ही अपनी सेवा म थान दे ते ह; य क कुछ भी
हो जाये, वे अपना कत पालन करने से नह चूकते।
अब चीता आगे बढ़ते ए बोला—य द तु हारी बात पूरी हो गयी हो, तो म भी अपना
मुंह खोलूं। इसके प ात् चीता बोला—महाराज! आप मुझे अपना आहार बना ल और मेरी
सद्ग त हो जाने द। अब आप इसम अ धक सोच- वचार न कर। म जानता ं
मृतानां वा मनः का य भृ यानामनुव तनाम् ।
भवे वगऽ यो वासः क धरणीतले ।।
क वामी के लए ाण का याग करने वाले सेवक को वगलोक म थान मलता है और
इस लोक म भी क त मलती है।
ऊंट ने दे खा क सभी पशु अपनी-अपनी वा मभ का प रचय दे रहे ह और सह
भी सबके त स जनता दखा रहा है। य द म ऐसा नह करता, तो म अधम और अकुलीन
कहलाऊंगा। जब वामी ने अ य कसी के भी ताव को वीकार नह कया, तो वह मेरा
ताव ही य वीकार करगे?
यह सोचकर वह बोला—महाराज! ये सारे पशु अभ य ह; य क ये सब आपक

Downloaded from www.PDFshala.com


जा त के ही ह। आपका इ ह खाना उ चत नह ;
मनसा प वजा यानां योऽ न ा न च तयेत् ।
भव त त य ता येव इह लोके पर च ।।
य क मन से भी अपनी जा त का अ न सोचने वाले इस लोक म न दत होते ह और
परलोक म उनक ग त होती है।
अतः आप इन सबको छोड़कर मुझे अपना आहार बना ली जये;
न य वानोऽ प ग छ त तां ग त नैव यो गनः ।
यां या त ो झत ाणाः वा यथ सेवको माः ।।
य क वामी के लए अपने जीवन क आ त दे ने वाला सेवक यजमान और यो गय को
मलने वाले परम पद को पाता है।
ऊंट के कहने क दे र थी क गीदड़ और चीते ने बना एक पल क भी ती ा कये
उसका पेट फाड़ डाला और फर सबने अपनी भूख मटायी।
यह कथा सुनाकर स ीवक बोला—दमनक! म समझ गया ं क तु हारा वामी
ु सेवक से घर गया है। ऐसे वामी के साथ रहना ख़तरे से ख़ाली नह ;
अशु कृतौ रा जनता नानुर यते ।
यथा गृ समास ः कलहंसः समाचरेत् ।।
य क जस कार गीध से घरा कलहंस कोई उ म आचरण नह कर सकता, उसी कार
नीच सेवक से घरा आ राजा भी जा का कोई हत नह कर सकता।
मुझे पूरा व ास है क कसी सेवक ने ही वामी के कान भरकर उसे मेरे त
इस कार ो धत कर दया है।
मृ ना स ललेन ख यमाना यव-
घृ य त गरेर प थला न ।
उपजाप वदां च कणजापैः कमु
चेतां स मृ न मानवानाम् ।।
जब कोमल जल के हार से कठोर प थर भी घस जाते ह, तो कसी के व सुनते
रहने से य द वामी का च बगड़ जाये, तो इसम आशंका नह करनी चा हए।
कण वषेण च भ नः क क
न करो त बा लशो लोकः ।
पणकताम प ध े
पब त सुरां नरकपालेन ।।
कान भरे जाने पर मनु य क वृ अथवा पतन भी स भव है। वह संसार से वर
भी हो सकता है और मनु य क खोपड़ी म म दरा पीने वाला अघोरी भी बन सकता है।

Downloaded from www.PDFshala.com


स ीवक ने पूछ—अब तु हारे वचार म मुझे या करना चा हए?
दमनक बोला—मेरे वचार म तो आपको यहां से भाग जाना चा हए; य क ऐसे
वामी क सेवा करना ब कुल उ चत नह है। कहा भी गया है
गुरोर यव ल त य का याका यमजानतः ।
उ पथ तप य प र यागो वधीयते ।।
क उजड् ड, करणीय-अकरणीय का ान न रखने वाले एवं कुमाग पर चलने वाले अपने से
बड़े को भी बना सोच- वचार कये छोड़ दे ना चा हए।
स ीवक बोला— ोध से भरे वामी को छोड़कर भाग जाने वाले सेवक का
क याण नह होता;
महतां योऽपरा येत र थोऽ मी त ना सेत् ।
द घ बु मतो बा ता यां हस त हसकम् ।।
य क बड़ का अपराध करके भाग जाने वाला और अपने को सुर त समझने वाला सेवक
यह नह जानता क बड़ क प ंच भी बड़ी होती है। वे कसी को, कह से भी पकड़कर मंगा
सकते ह।
अब तो मुझे यु ही एकमा उपाय उ चत लगता है। कहा भी गया है
मृतैः स ा यते वग जीव ः क त मा ।
त भाव प शूराणां गुणावेतौ सु लभौ ।।
क यु म ाण याग करने के लए उ त रहने वाले को जी वत रहते इस लोक म
क त ा त होती है और मरने पर वग ा त होता है। इसी लए यो ा इन दोन को पाने के
लए सदा उ सुक रहते ह।
स ीवक क बात को सुनकर दमनक सोचने लगा क यह तो पगलक से यु
करने पर अड़ा आ है। य द इसके नुक ले और तीखे स ग के हार से पगलक क छाती
फट गयी, तब तो अनथ हो जायेगा। इसे तो कसी-न- कसी कार से रोकना ही होगा।
यह सोचकर दमनक ने स ीवक से कहा—आपक सोच म कोई ग़लती नह है,
ले कन आप यह भी सो चये क सेवक का वामी के साथ यु करना भी तो उ चत नह है।
कहा भी गया है
बलव तं रपुं ् वा कला मानं गोपयेत् ।
बलव क ा शर च काशता ।।
क श ु को अपने से बलवान् जानकर बु मान् को अपनी र ा करने क च ता
करनी चा हए और बलवान् पु ष को अपने बलवान् श ु के त शरद्काल के च मा के
शीतल काश के समान शीतल वहार करना चा हए।
श ो व मम ा वा वैरमारभते ह यः ।

Downloaded from www.PDFshala.com


स पराभवमा ो त समु भा था ।।
श ु के परा म को उ चत प से जांचे बना संघष मोल लेने वाला ट टहरी
को छोटा जानकर उससे श ुता बढ़ाने वाले समु क भां त परा जत हो जाता है।
स ीवक को ट टहरी और समु क कथा सुनाते ए दमनक कहने लगा—

कथा म : बारह
समु के प म ट टहरी का एक जोड़ा रहता था। ट टहरी गभवती थी। उसने अपना
सवकाल नकट जानकर अपने प त को कोई सुर त थान ढूं ढ़ने के लए कहा, तो
ट टहरे ने समु को छोड़कर कसी सरे थान पर जाना वीकार नह कया। ट टहरी बोली
—पू णमा क रात म समु का वार जब हा थय तक को अपने साथ ख चकर ले जाता है,
तो हमारे अ डे कैसे सुर त रह सकगे? म तो कहती ं क अभी से कोई सुर त थान को
ढूं ढ़ रखना ही ठ क रहेगा। ट टहरा बोला—तुम ठ क कह रही हो, पर तु समु मेरे ब च को
बहाकर ले जाने क ह मत नह करेगा। दे खो
बद् वा बरचरमाग पगतधूमं सदा मह यदम् ।
म दम तः कः वश त ताशनं वे छया मनुजः ।।
आकाश म वचरण करने वाल के माग को रोकने म समथ धूमर हत, ले कन भयंकर आग म
कोई बु हीन भी अपने हाथ को डालकर जलाना नह चाहता।
को ग वा यमसदनं वयत तकमा दश यजातभयः ।
ाणानपहर म ो य द श ः का चद त तव ।।
यमलोक म प ंचकर यमराज को यु क चुनौती दे ने क तथा अपने ाण को हर
लेने क चुनौती दे ने क मूखता कौन करना चाहता है?
मेरे वचार से तो तु ह यहां रहकर ही अपना सव करना चा हए;
यः पराभवस तः व थानं स यजे रः ।
तेन चे पु णी माता त या केन क यते ।।
य क पराजय के डर से थान छोड़ दे ने वाला तो कायर कहलाता है। ऐसे पु को ज म दे ने
वाली मां भी अपनी श गंवा दे ने के लए पछताती है।
ट टहरे के अहंकार से भरे वचन को सुनकर समु सोचने लगा—यह कतना छोटा-
सा जीव है और कतनी ऊंची उड़ान भर रहा है, सुनकर आ य होता है। शा म ठ क ही
कहा है
उ य ट भः पादावा ते भंगभया वः ।
व च क पतो गवः क य ना ा प व ते ।।

Downloaded from www.PDFshala.com


क आकाश के गरने क शंका के कारण ट टहरी उसे थामने के लए अपने पैर को ऊपर
उठाकर सो जाती है, जो उसके गव को दशाता है।
इस ट टहरे क श को भी दे खना चा हए। म इसके सारे अ डे बहाकर ले जाऊंगा
और फर दे खूंगा क यह या करता है।
समय आने पर ट टहरी ने अ डे दये और समु उ ह बहाकर ले गया। यह दे खकर
ट टहरी वलाप करने लगी और वह टके रहने के लए अपने प त को कोसती ई बोली—
सु दां हतकामानां न करोतीह यो वचः ।
स कूम इव बु ः का ा ो वन य त ।।
हत च तक म क बात को न मानकर उसक उपे ा करने वाला मूख लकड़ी से
गरे कछु ए क भां त ही न हो जाता है।
ट टहरे क ज ासा पर उसे कछु ए क कथा सुनाती ई ट टहरी कहने लगी—

कथा मः तेरह
कसी तालाब म रहने वाले क बु ीव नामक एक कछु ए क संकट और वकट नाम वाले दो
हंस से बड़ी म ता थी। हंस और कछु आ सारा-सारा दन एक साथ घूमते और सायंकाल
होने पर अपने-अपने नवास पर वापस लौट जाते थे। एक बार वषा न होने के कारण तालाब
का जल सूखने लगा, तो हंस ने कसी अ य तालाब पर जाने का मन बना लया और अपने
म कछु ए से बोले—अब तु हारा या होगा? कछु आ बोला—जल से र हत तालाब म रहना
तो सचमुच क द है, क तु फर भी आपको इतना अ धक च तत नह होना चा हए।
शा का कथन है
या यं न धै य वधुरेऽ प काले
धै या कदा च तमा ुया सः ।
यथा समु े ऽ प च पोतभ े
सांया को वा छ त ततुमेव ।।
क भा य के तकूल होने पर भी को धैय नह छोड़ना चा हए। धैय बनाये रखकर ही
संकट से पार पाने का माग ढूं ढ़ा जा सकता है। समु पोत के टू ट जाने पर भी या ी डू बना
पस द नह करते। वे भी कनारे पर आने के लए अपने हाथ-पैर चलाते ह।
म ाथ बा धवाथ च बु मा यतते सदा ।
जाता वाप सु य नेन जगादे दं वचो मनुः ।।
मनु के अनुसार बड़ी-से-बड़ी वप आ पड़ने पर भी बु मान् को अपने
म और बा धव के बचाव क चे ा करनी चा हए। ले कन य द आपने यहां न रहने का

Downloaded from www.PDFshala.com


वचार कर ही लया है, तो या कोई अ य तालाब दे ख लया है? य द आप इस तालाब को
छोड़कर जा रहे ह, तो मुझे एक लकड़ी के सहारे र सी से बांध द जये, म उस लकड़ी को
अपने मुंह म पकड़े र ंगा और आप दोन उस लकड़ी के दोन सर को पकड़े रहगे। इस
कार आपके साथ म भी उस नये तालाब पर प ंच जाऊंगा।
हंस ने कहा—हम तो ऐसा कर लगे, क तु य द तुमने अपना मुंह खोल दया, तो तुम
नीचे धरती पर गरकर मर जाओगे। कछु ए ने ऐसी मूखता न करने का उ ह व ास दला
दया, तो दोन हंस लकड़ी के दो सर को पकड़कर उड़ चले। हंस ारा कछु ए को आकाश
के रा ते से ले जाता दे खकर लोग भां त-भां त क बात करने लगे, जसे सह पाना कछु ए के
वश म न रहा। उसने लोग क बात का उ र दे ने के लए य ही उसने अपना मुंह खोला,
वह धरती पर गरकर मर गया।
यह कथा सुनाकर ट टहरी बोली— हत च तक म क बात को अनसुना करने का
यही फल मलता है। और भी एक कथा सुन ली जये—
अनागत वधाता च यु प म त तथा ।
ावेतौ सुखमेधेते य व यो वन य त ।।
ये दोन —अनागत वधाता (संकट आने से पहले ही अपने उ ार का उपाय सोचने वाले) तथा
यु प म त (संकट आने पर अपने उ ार का त काल उपाय करने म समथ)—तो अपने
जीवन को बचाने म सफल हो भी जाते ह, क तु यद्भ व य (संकट आने पर सोच लगे, ऐसा
सोचने वाले)—तो न हो जाते ह।
ट टहरे ने पूछा—यह कैसी कथा है? ट टहरी ने कहा—यह भी सुन ली जये।

कथा म : चौदह
कसी तालाब म अनागत वधाता, यु प म त और यद्भ व य नामक तीन मछ लयां रहती
थ । एक दन सायंकाल घर लौटते समय मछु आर ने उस तालाब को जीव से भरा दे खा, तो
अगले दन सवेरे ही वहां अपना जाल डालने का वचार बना लया।
मछु आर के इस वचार को सुनकर अनागत वधाता नामक मछली ने अपनी साथी
मछ लय को बुलाकर रात म ही कसी सरे तालाब म चले जाने क सलाह द ;
अश ै ब लनः श ोः क ं पलायनम् ।
सं त ोऽथवा ग ना या तेषां ग तभवेत् ।।
य क असमथ के लए बलवान् श ु से बचाव के दो ही उपाय होते ह—भाग जाना या
कसी ग-जैसे सुर त थान म प ंचकर वहां छप जाना।
ातःकाल होते ही मछु आरे यहां आकर धावा बोल दगे, इसी लए म कहती ं क हम

Downloaded from www.PDFshala.com


शीघ ही यहां से भाग नकलना चा हए। कहा गया है—
व माना ग तयषाम य ा प सुखावहा ।
ते न प य त व ांसो दे हभंगं कुल यम् ।।
क सुर त थान मलने पर समझदार पुराने थान का मोह नह करते और न ही वहां
से भाग नकलने के क क च ता करते ह।
यह सुनकर यु प म त बोली—म आपसे पूरी तरह सहमत ।ं हम इस थान को
तुर त छोड़ दे ना चा हए;
परदे शभया ता ब माया नपुंसकाः ।
वदे शे नधनं या त काकाः कापु षा मृगाः ।।
य क नये थान पर जाने के वचार से घबराकर पुराने थान से ही चपके रहने वाले
नपुंसक, कौआ, कायर और ह रण वयं ही अपने वनाश का कारण बन जाते ह।
य या त सव ग तः स क मात्
वदे शरागेण हया त नाशम् ।
तात य कूपोऽय म त ुवाणाः
ारं जलं कापु षाः पब त ।।
नये थान पर प ंचकर अपनी र ा करने म समथ को पुराने थान से या
लेना-दे ना? कायर ही बाप-दादा क हाई दे कर कुएं के खारे पानी को पीना पस द
करते ह।
उन सबक बात पर हंसता आ यद्भ व य बोला—म आप लोग से सहमत नह ं।
या कसी के एक बार कह दे ने से ही यह न त हो जाता है क वह ग भीर है अथवा नह ?
म तो बाप-दादा के ज़माने के इस तालाब को छोड़ना उ चत नह समझता। य द मृ यु को
आना है, तो पाताल म जाकर छप जाने पर भी हम बच नह सकते। कहा भी गया है—
अर तं त त दै वर तं
सुर तं दै वहतं वन य त ।
जीव यनाथोऽ प वने वस जतः
कृत य नोऽ प गृहे वन य त ।।
क जसक र ा करने वाला कोई नह होता, उसक र ा भगवान् करते ह और जसक र ा
य नपूवक क जाती है, ले कन भा य अनुकूल नह होता, तो वह बच नह सकता। जंगल
म फके गये अनाथ को जी वत दे खकर और घर के ाणी को मृत दे खकर इस त य क ही
पु होती है।
म आपका साथ नह दे ने वाला। आप जाना चाहते ह, तो जा सकते ह।
अनागत वधाता और यु प म त अपने-अपने प रजन के साथ चल दये। ातःकाल ही

Downloaded from www.PDFshala.com


मछु आर ने अ य मछ लय के साथ यद्भ व य को भी अपने जाल म फंसा लया।
यह कथा सुनाकर ट टहरी बोली—इसी लए म आपसे पहले से ही उपाय करने के
लए कह रही थी।
ट टहरा बोला—म यद्भ व य-जैसा नह ं। मने पहले से ही सोच रखा है। अब तुम
मेरी योजना का प रणाम दे खना।
ट टहरी हंसते ए बोली—तुम समु के साथ लड़ोगे? अपनी है सयत दे खकर बात
करनी चा हए। कहा भी गया है
पुंसामसमथानामुप वाया मनो भवे कोपः ।
पठरं वलद तमा ं नजपा ानेव दह ततराम् ।।
क जस कार जलती ई भट् ठ अपने पास रखे सभी पदाथ को झुलसा दे ती है, उसी
कार अपने से बड़ पर ोध करने वाला अपने ही वनाश को बुलावा दे दे ता है।
अ व द वा मनः श पर य च समु सुकः ।
ग छ भमुखो नाशं या त व ौ पतंगवत् ।।
अपनी और अपने श ु क मता को परखे बना उतावली म संघष करने वाला
आग म जा पड़े पतंगे के समान ही न हो जाता है।
ट टहरा बोला— ये! तु हारा यह वचार उ चत नह है। उ साही बल होने
पर भी अपने से कह अ धक बड़ को भी परा जत कर दे ता है।
वशेषा प रपूण य या त श ोरमषणः ।
आ भमु यं शशाङ् क य यथाऽ ा प वधु तुदः ।।
चोट खाया बल होने पर भी बलवान् पर झप ा मारकर उसे नीचा दखाने म
समथ हो जाता है। च मा ारा रा को अब तक पी ड़त करते रहने का उदाहरण संसार के
स मुख है। तुम दे खती जाओ, म अपनी च च से समु का पानी नकालकर उसे सुखा ं गा।
ट टहरी बोली—तुम ब च -जैसी बात कर रहे हो? जस समु म गंगा-जैसी सैकड़
न दयां समा जाती ह, तुम उस समु को सुखाओगे? ऐसी ड ग हांकने का या लाभ होगा?
अ नवदः यो मूलं च चुम लौहस भा ।
अहोरा ा ण द घा ण समु ः क न शु य त ।।
ट टहरा बोला— ये! सफल होने के लए नराश नह होना चा हए। लोहे के समान
मज़बूत मेरी च च है और दन-रात का ल बा समय है, म अपने काम म लगा र ंगा, तो समु
कैसे नह सूखेगा?
र धगमः परभागो याव पु षेण
पौ षं न कृतम् ।
जय त तुलाम ध ढो

Downloaded from www.PDFshala.com


भा वान प जलदपटला न ।।
सर क स प को ह थयाने के लए कठोर प र म क आव यकता होती है। इसी
प र म के कारण तुला रा श म थत सूय बादल को बरसने पर ववश कर दे ता है।
ट टहरी बोली—य द तुमने समु के साथ संघष करने क ठान ही ली है, तो अपने
सभी ब धुजन को अपने साथ ले लो;
ब नाम यसाराणां समवायो ह जयः ।
तृणैरावे यते र जुयया नागोऽ प ब यते ।।
य क ब त से बल भी जब मलकर कसी काम म जुट जाते ह, तो कुछ भी
असा य नह रह जाता। तनक को इकट् ठा करके बनाये र से से हाथी को भी बांधा जा
सकता है।
चटकाका कूटे न म काद रै तथा ।
महाजन वरोधेन कु रः लयं गतः ।।
कठफोड़वा—लकड़ी म सुराख़ करने वाला क ड़ा—चटका, मेढक और म खी ने
मलकर एक हाथी को भी न कर दया था।
ट टहरे ने पूछा—यह कैसी कथा है?
ट टहरी बोली—सु नये।

कथा म:प ह
एक वन म गौरैया का एक जोड़ा तमाल के वृ म घ सला बनाकर अपने ब च के साथ रहा
करता था। एक दन धूप के कारण परेशान एक हाथी उस वृ के नीचे आराम करने आ
गया, तो च चलता के कारण उसने गौरैया के घ सले वाली टहनी को तोड़ दया और उसे
नीचे गरा दया। घ सला गरने के साथ ही गौरैया के सारे अ डे फूट गये, ले कन सौभा यवश
गौरैया द पती बच गये। मादा गौरैया अपने अ ड के वनाश पर रो रही थी क उसका म
कठफोड़वा वहां आ प ंचा। गौरैया से उसके रोने का करण जानकर कठफोड़वा उसे
समझाते ए बोला—
न ं मृतम त ा तं नानुशोच त प डताः ।
प डताना च मूखाणां वशेषोऽयं यतः मृतः ।।
व ान् न हो चुके, मृत और भागे के लए शोक नह कया करते। शोक
तो मूख कया करते ह। मूख और व ान म यही अ तर है।
गौरैया बोली—तुम सच कह रहे हो, पर तु मेरे मन को शा त तभी मलेगी, जब मुझ
नरपराध क स तान का वध करने वाले इस हाथी को द ड मलेगा। य द तुम मेरी

Downloaded from www.PDFshala.com


सहायता कर सकते हो, तो कोई उपाय बताओ।
आप द येनापकृतं येन च ह सतं दशसु वषमासु ।
अपकृ य तयो भयोः पुनर प जातं नरं म ये ।।
शा म वप म पड़े को हा न प ंचाने वाले तथा खी का मज़ाक
उड़ाने वाले को द ड दे ना धमकाय कहा जाता है।
कठफोड़वा बोला—शा म तो यह भी कहा गया है
स सु यसने यः या स पु ो य तु भ मान् ।
स भृ यो यो वधेय ः सा भा या य नवृ तः ।।
क सेवा करने वाला पु ही स चे अथ म पु कहलाता है, काम को नबटाने म चतुर
ही सेवक कहलाता है, प त को सुख दे ने वाली ी ही प नी कहलाती है और संकट के समय
म सहायता करने वाला ही स चा म कहलाता है।
अब तुम मेरी बु का चम कार दे खना। म अपनी म वीणारव म खी को बुलाकर
लाता ं और इस हाथी को न कर दे ता ं।
कठफोड़वे ने म खी के पास जाकर उसे हाथी ारा गौरैया के अ ड को अकारण ही
न करने क कथा कह सुनायी और उससे सहायता करने का अनुरोध कया। इस पर
वीणारव म खी बोली—
पुनः युपकाराय म ाणां यते यम् ।
य पुन म म य काय म ैन क कृतम् ।।
य द म समथ होकर भी संकट के समय अपने म क सहायता नह करता, तो उसे म ं
कहलाने का अ धकार ही नह होता।
म तु हारी सहायता के लए तैयार ं। य न हम अपने म मेढक को भी साथ ले
ल?
हतैः साधुसमाचारैः शा ैम तशा ल भः ।
कथ च वक प ते व तता नयाः ।।
हत च तक, सदाचारी, शा म नपुण तथा बु मान ारा वचार कर कये गये
काम म सफलता अव य ही ा त होती है।
इसके प ात् गौरैया, कठफोड़वा और म खी ने मेघनाद नामक मेढक को अपना
ःख कह सुनाया, तो वह बोला—यह घम डी हाथी तो हमारे सामने एक तु छ ाणी है।
फर उन सबने मलकर हाथी के वनाश क योजना बना डाली।
म खी को हाथी के कान के पास जाकर वीणा-जैसी व न नकालनी थी, जसे सुनकर हाथी
संगीत क म ती म आंख मूंद लेगा और उसी समय कठफोड़वा हाथी क आंख फोड़ दे गा।
जब हाथी खी होकर पानी क खोज म भागेगा, तो वह मेढक क आवाज़ को सुनकर और

Downloaded from www.PDFshala.com


खाई को तालाब समझकर उसम कूद पड़ेगा और वह पड़ा-पड़ा भूख- यास से तड़पकर मर
जायेगा।
तब उन तीन ने अपनी योजना के अनुसार काय कया और उस हाथी को अपनी
करनी का फल भुगतना पड़ा।
यह कथा सुनाकर ट टहरी बोली—म इसी लए तु ह कुछ सा थय को अपने साथ
लेने क सलाह दे रही ं।
ट टहरा बोला—ठ क है, म तु हारे इस सुझाव का पालन क ं गा।
इसी के साथ उसने अपने साथी प य को बुलाकर उ ह समु के अ याचार से
अवगत कराया और उसे सुखा डालने का अपना न य बताया, तो सभी प ी कहने लगे—
समु को सुखाना हमारे बूते का काम नह है।
अबलः ो तं श ुं यो या त मदमो हतः ।
यु ाथ स नव त शीणद तो गजो यथा ।।
घम ड म आकर अपने से अ धक बलवान् श ु से लड़ने वाला मूख अपने दांत
तुड़वाकर पीठ दखाने वाले हाथी के समान अपने ाण बचाने क च ता करने लगता है।
य द हम सब मलकर अपने वामी ग ड़ को अपने क से प र चत कराय और उनसे
सहायता मांग, तो वह जो उ चत समझगे, करगे।
सु द नर तर च े गुणव त
भृ येऽनुव त न कल े ।
वा म न श समेते नवे
ःखं सुखी भव त ।।
खी ाणी को अपने म से, राजा को अपने गुणी सेवक से, प त को अपनी
प त ता प नी से तथा सेवक को अपने वामी से अपना ःख बताने म कोई संकोच नह
करना चा हए। चलो, हम सब अपने वामी ग ड़जी के पास चल।
इसके बाद सब प ी उदास चेहरा बनाकर ग ड़जी के पास जा प ंचे। वहां प ंचकर
वे सब हाहाकार करने और रोने लगे। ग ड़जी के पूछने पर वे कहने लगे—य द समु अथवा
कोई अ य प य को इसी कार न करता रहा, तो एक दन इस संसार से हम प य का
अ त व ही समा त हो जायेगा;
एक य कम संवी य करो य योऽ प ग हतम् ।
गतानुग तको लोको न लोकः पारमा थकः ।।
य क एक को नीच काम करते दे खकर सरे भी वैसा करने लगते ह। अ छे काम केरने म
लोग भले ही च न ल, क तु काम करने म तो लोग भेड़चाल को ही अपना लेते ह।
चाटु त कर वृ ै तथा साह सका द भः ।

Downloaded from www.PDFshala.com


पी मानाः जा र याः कूट छ ा द भ तथा ।।
चाटु कार, त कर, बदमाश और छल-कपट करने वाल से अपने बल जा त-ब धु
क र ा करना वामी का परम धम है।
जापीडनस तापा समु तो ताशनः ।
रा ः यं कुलं ाणा ाद वा व नव ते ।।
जा क र ा न करने वाले राजा के व जा के मन म व ोह क वाला धधकने
लगती है और वह वाला राजा क ल मी, उसके वंश और उसके ाण को न करके ही
शा त होती है।
साथी स य क बात को सुनकर ग ड़जी च तत हो उठे और उनके च तत होते
ही व णु भगवान् के एक त ने आकर उ ह बताया क ी व णुनारायण अमरावती जाने के
लए आपको मरण कर रहे ह।
ग ड़जी ने उस त से व णुजी को अपने इनकार से अवगत कराने को कहा और वह
बोले—
यो न वे गुणान् य य न तं सेवेत प डतः ।
न ह त मा फलं क च सुकृ ा षरा दव ।।
जस कार ऊसर भू म को जोते जाने पर भी उससे कुछ ा त नह होता, उसी कार सेवक
के गुण को न समझने वाले वामी क सेवा करने से भी कुछ लाभ नह होता, अतः ऐसे
वामी क सेवा नह करनी चा हए।
ग ड़जी के इस वहार पर आ यच कत होकर त बोला—ब धु! आज तु ह या
हो गया है? आज से पहले तो तुमने कभी ऐसा वहार नह कया था। फर आज भगवान्
के आदे श क अव ा करने का या कारण है?
ग ड़जी बोले— जस समु म भगवान् व णु शयन करते ह, उसी समु ने मेरे जा त-
ब धु ट टहरे क प नी के अ डे चुरा लये ह। य द भगवान् व णु समु को ट टहरी के
अ डे लौटाने का आदे श नह दे ते, तो मुझे भी उनक सेवा नह करनी।
त ने आकर ग ड़जी के ोध क सूचना व णुजी को द , तो व णुजी तुर त
ग ड़जी के पास जा प ंच;े
भ ं श ं कुलीन च न भृ यमवमानयेत् ।
पु व लालये यं य इ छे यमा मनः ।।
य क वामी को भूलकर भी अपने न ावान्, कुलीन और समथ सेवक को अपमा नत नह
करना चा हए। अपने क याण के इ छु क वामी को चा हए क वह ऐसे सेवक को अपने पु
के समान ही नेह दे ।
राजा तु ोऽ प भृ यानामथमा ं य छ त ।

Downloaded from www.PDFshala.com


ते तु स मा नता त य ाणैर युपकुवते ।।
सेवक पर स होकर राजा उ ह केवल धन दे ता है, जब क स तु होने पर सेवक
वामी के लए अपने ाण तक भी योछावर कर दे ते ह।
यही सोचकर व णुजी तुर त ही ग ड़जी के पास जा प ंचे। भगवान् को आया
दे खकर ग ड़जी का सर लाज से झुक गया। उ ह ने व णुजी को णाम करके अपनी
धृ ता के लए मा मांगी और कहा क आपका नवास- थान होने के कारण मने समु के
व कोई क़दम नह उठाया;
येन या लघुता वाथ पीडा च े भोः व चत् ।
ाण यागेऽ प त कम न कु या कुलसेवकः ।।
य क कुलीन सेवक के लए अपने ाण पर संकट आ जाने पर भी अपने वामी के लए
कसी ऐसे काम को नह करना चा हए, जसके कारण वामी पर कोई क आ पड़े।
इस पर व णुजी बोले— ग ड़! तुमने ठ क ही कहा है;
भृ यापराधजो द डः वा मनो जायते यतः ।
तेन ल जा प त यो था न भृ य य तथा पुनः ।।
य क सेवक ारा कये गये कसी अनु चत कम के लए भी उसक अपे ा वामी को ही
ल जत होना पड़ता है। अब चलो, समु से ट टहरी को उसके अ डे वापस दलवाने ह।
व णु भगवान् ने समु को बुलाकर उसे तुर त ट टहरी के अ डे लौटाने का आदे श
दया और साथ ही प रणाम भुगतने क चेतावनी भी द , तो समु ने उनक आ ा का पालन
कया। तब ट टहरा अपने अ डे लेकर प नी के पास लौट आया।
यह कथा सुनाकर दमनक स ीवक से कहने लगा—म इसी लए कहता ं क श ु
क श को तौले बना उसके साथ यु करने का प रणाम अ छा नह होता।
स ीवक बोला—अब तुम बताओ, मुझे उसके मनोभाव क जानकारी कैसे होगी?
मने तो अब तक उसके नेही प को ही दे खा है, उसके कसी सरे प को तो म जानता
तक नह , फर उसके कसी अ य प क क पना कैसे कर सकता ं?
दमनक बोला—इसम न जानने वाली कोई बात है ही नह । य द वह अपनी आंख
लाल और भ ह टे ढ़ करके अपनी जीभ चाटता आ आपक ओर दे खता आ दखाई दे , तो
समझ ली जये क मामला टे ढ़ा है। मुझे अब जाने द जये। मने आपको गु त जानकारी दे द
है। इस वषय म कसी को बताना मत। म तो आपको यही सलाह ं गा क आप आज रात म
ही यहां से कह अ य चले जाइये। शा कार ने कहा भी है—
यजेदेकं कुल याथ ाम याथ कुलं यजेत् ।
ामं जनपद याथ आ माथ पृ थव यजेत् ।।
क समूचे प रवार क र ा के लए कसी एक सद य को, समूचे गांव क र ा के लए

Downloaded from www.PDFshala.com


प रवार को, समूचे दे श क र ा के लए गांव को और अपनी र ा के लए संसार-भर को भी
छोड़ने म सोच- वचार नह करना चा हए।
आपदथ धनं र े ारा े नैर प ।
आ मानं सततं र े ारैर प धनैर प ।।
कसी वप से बचने के लए ही धन का सं ह कया जाता है और य क र ा
के लए उस धन को ख़च करने म संकोच नह कया जाना चा हए, ले कन अपनी र ा के
लए धन तो या, य क ब ल चढ़ानी पड़े, तो भी सोच- वचार नह करना चा हए;
य क बचा रहेगा, तो वह धन व ी आ द को जुटा लेगा। ले कन य द वही न रहा,
तो धन और ी आ द कस काम के रह जायगे?
दमनक ने कहा—बलवान् श ु से हारने के बाद के सामने दो ही वक प रह
जाते ह—या तो वह उस थान को छोड़कर कह अ य चला जाये अथवा उस श ु के
सामने समपण कर दे ।
स ीवक को समझाकर और उसक अनुम त लेकर दमनक वहां से चलकर करटक
के पास आया, तो करटक ने पूछा—कहो ब धो! या कर आये?
दमनक बोला—मने तो फूट का बीज बो दया है, अब उसका प रणाम दे ना ई र के
हाथ म है।
नी तकार का कहना है
पराङ् मुखेऽ प दै वेऽ कृ यं का य वप ता ।
आ मदोष वनाशाय व च त भनाय च ।।
क दै व के वपरीत होने पर बु मान् को अपने दोष क नवृ करते ए अपने
असफल होने पर भी धैयपूवक यास करते रहना चा हए।
उ ो गनं पु ष सहमुपै त ल मीदवं
ह दै व म त कापु षा वद त ।
दै वं नह य कु पौ षमा मश या
य ने कृते य द न स य त कोऽ दोषः ।।
उ ोगी पु ष तो सह के समान होता है, जो उ म करके ल मी को भी अपने अधीन
कर लेता है। भा य पर नभर रहने वाले तो कायर कहलाते ह। बु मानी तो इसी म है क
भा य पर नभर न रहकर अपने पौ ष के अनुसार उ म करते रहना चा हए। य द उ म
करने पर भी काय म सफलता न मले, तो आ म नरी ण करना चा हए क कहां और कौन-
सी ु ट रह गयी, जसके कारण सफलता नह मल सक ।
करटक ने पूछा—तुमने फूट का कौन-सा बीज बोया है, म भी तो सुनू।ं
दमनक बोला—मने उन दोन को एक- सरे के ाण के यासा होने का ऐसा व ास

Downloaded from www.PDFshala.com


दला दया है क अब वे दोन एक- सरे को दे ख भी नह सकगे।
करटक बोला—दो म के दय म एक- सरे के त श ुता का बीज बोकर तुमने
उ चत नह कया। शा म लखा है—
अ व ं सुख थं यो ःख माग नयोजयेत् ।
ज मज मा तरे ःखी स नरः यादसंशयम् ।।
क एक- सरे के स पक म रहकर स ता अनुभव करते दो ा णय को ःख म धकेलने
वाला पापी ज म-ज मा तर म ःख भोगता है।
उन दोन म श ुता उ प करने पर तु हारा स होना उ चत नह ; य क संसार म
काम बगाड़ने म कसी कौशल का हाथ नह होता, कुशलता तो कसी के बगड़ते काम को
संवारने म होती है।
घात यतुमेव नीचः परका य
वे न साद यतुम् ।
पात यतुम त श वायो-
वृ ं न चो मतुम् ।।
जस कार वायु वृ को उखाड़ फक तो सकता है, उनका आरोपण नह कर
सकता, उसी कार नीच सर का काम बगाड़ तो सकते ह, संवार नह सकते।
दमनक बोला—राजनी त को न समझ पाने के कारण ही तुम ऐसी बात कर रहे हो।
नी तकार ने कहा है
जातमा ं न यः श ुं ा ध च शमं नयेत् ।
महाबलोऽ प तेनैव वृ ा य स ह यते ।।
क श ु और रोग को पनपने से पहले ही उ ह उखाड़ फकने वाला सुखी रहता है; य क
एक बार पनप जाने के प ात् ये इतने श शाली हो जाते ह क इनका सामना करना एक
सम या बन जाती है। हमारे म ी-पद को ह थयांकर स ीवक हमारा श ु बन बैठा है और
हम उसका वनाश करना ही होगा।
पतृपैतामहं थानं यो य या जगीषते ।
स त य सहजः श ु छे ोऽ प ये थतः ।।
कसी के बाप-दादा के पर परा से चले आ रहे थान को ह थयाने के इ छु क को
अपना श ु समझना चा हए और उसे न करने म भी दे र नह करनी चा हए। स ीवक को
अभयदान दे कर मने ही उसे महाराज से मलवाया था, ले कन उसने हमारे ही पद पर
अ धकार कर लया और हम नकालकर बाहर फक दया।
इसी लए मने उसे मार डालने क योजना बनायी है। य द वह मरने से बच गया, तो भी
यहां टकने क नह सोच सकेगा। यह रह य तु हारे सवा और कोई नह जानता।

Downloaded from www.PDFshala.com


इसी लए कहा गया है क वाथ-साधन के लए कये जाने वाले यास को गु त
रखना ही उ चत होता है।
न ंशं दयं कृ वा बाण रु समोपमाम् ।
वक पोऽ न क ो ह या ापका रणम् ।।
कसी सोच- वचार म पड़े बना, अपने दय को खड् ग के समान कठोर और वाणी
को छु रे के समान ती बनाकर अपने को हा न प ंचाने वाले को तुर त मार डालना
चा हए।
वह मरेगा, तब ही हमारा भोजन बनेगा। इस कार उसे हमसे वैर करने का प रणाम
भी मल जायेगा और हम हमारा खोया आ म ी-पद भी पुनः ा त हो जायेगा। इस कार
एक ही उपाय से तीन लाभ—भोजन ारा तृ त, वैरी का नाश और म ी-पद क ा त—
दे ने वाले मेरे काय क शंसा न करके तुम उलटे मुझे ही दोषी ठहरा रहे हो? यह तु हारी
कैसी सोच है?
पर य पीडनं कुव वाथ स च प डतः ।
मूढबु न भ ेत वने चतुरको यथा ।।
सर को क प ंचाकर अपना उ लू सीधा करना ही बु म ा है, ऐसा न करने वाले
मूख तो सह और भे ड़ये के समान अपना पेट भी नह भर सकते।
इस पर करटक को चालाक चतुरक नामक शृगाल क कथा सुनाते ए दमनक कहने
लगा—

कथा म : सोलह
कसी जंगल म रहने वाले व दं नामक सह के दो सेवक थे— मुख नामक भे ड़या
और चतुरक नामक शृगाल—जो सदा उसके आगे-पीछे लगे रहते थे। एक दन जंगल म
घूमते ए इन तीन ने अपने झु ड से बछु ड़ी एक गभवती ऊंटनी को दे ख लया, तो सह ने
उसका पेट फाड़ दया और उसे मार डाला। ले कन उसके पेट से नकले शशु पर सह को
दया आ गयी। उसने उस शशु को शंकुकण नाम दे कर और नभय होकर वन म वचरण
करने के लए छोड़ दया। अब वे चार ाणी एक साथ घूमते- फरते ए आन दपूवक अपने
दन बता रहे थे।
भा यवश, एक बार उस सह को एक हाथी के साथ यु करना पड़ा और उस यु
म सह इतना घायल हो गया क शकार करना भी उसके वश म नह रहा। भूख सहते-सहते
कुछ दन बीत गये, तो सह ने अपने सेवक से कसी ाणी को ढूं ढ़ लाने के लए कहा, ता क
उसको मारकर वह अपनी तथा उन सबक भूख मटा सके। गीदड़ और भे ड़या सारा दन

Downloaded from www.PDFshala.com


जंगल म भटकते रहे, ले कन उ ह कोई भी ाणी न मला।
तब चतुरक शृगाल ने सोचा क य द इस ऊंट के ब चे को मार डाला जाये, तो हम
तीन क सम या सुलझ जायेगी, ले कन उस पर सह क वशेष कृपा थी और सह ने
उसे जीवनदान दया आ था। इस लए चतुरक कोई यु सोचने लगा। वह अपने आपसे
बोला—
अव यं चाथवाऽग यमकृ यं ना त क चन ।
लोके बु मतां बु े त मा ां व नयोजयेत् ।।
वचारपूवक काय करने वाल के लए इस संसार म कोई भी ाणी अव य नह है, कोई भी
थान अग य नह है और कोई भी काय असा य नह है। यह सोचकर वह शंकुकण नामक
ऊंट से बोला—भोजन न मलने के कारण महाराज के ाण संकट म ह। उनके मर जाने पर
हम भी कह के नह रहगे। वामी का भला करना बड़े पु य का काम है। य द तुम अपनी
इ छा से अपना शरीर वामी को सम पत कर दो, तो तु ह वग-सुख क ा त हो जायेगी।
ऊंट से सहम त मलते ही चतुरक ने सह के पास जाकर कहा— वा मन्! शकार के
लए जंगल म भटकते ए हम पूरा दन बीत गया है, पर सफलता नह मली। अब आपका
कृपापा बना शंकुकण अपनी इ छा से अपने शरीर का दान दे ने को तैयार है। इसम आपका
और उसका, दोन का हत है। य द आप आ ा कर, तो म ऊंट को ले आऊं।
भूख से ाकुल ए सह के पास अ य कोई वक प नह था। चतुरक ऊंट को
बुलाकर लाया, तो भे ड़ये ने उसका पेट फाड़कर उसे मार डाला। सह ने चतुरक को मांस क
सुर ा के लए नयु कया और वयं नद तट पर नान- यान करने के लए चला गया।
सह के र चले जाने पर चतुरक ने भे ड़ये को थोड़ा-सा मांस खाने के लए
उकसाया, तो उसने ऊंट का कलेजा खा लया। नद तट से वापस लौटकर सह ने जब ऊंट
का कलेजा न दे खकर पूछा—मेरे शकार को कसने जूठा कया है, तो गीदड़ ने भे ड़ये क
ओर इशारा कर दया। अब तो भे ड़या अपनी ाण-र ा के लए वहां से भाग खड़ा आ।
इसी बीच ऊंट का एक का फ़ला उधर आ नकला। आगे वाले ऊंट के गले म पड़ी
घ ट क आवाज़ सुनकर सह ने गीदड़ को पता लगाने के लए भेजा, तो गीदड़ ने लौटकर
बताया— वा मन्! आपको अपनी जान यारी है, तो यहां से भाग जाइये। आपके ारा मारे
गये ऊंट से ु होकर यमराज ही आपको पकड़ने के लए इधर आ रहे ह।
चतुरक क बात सुनते ही सह भयभीत होकर भाग खड़ा आ और फर चतुरक ने
कई दन तक ऊंट के मांस का आन द लया।
यह कथा सुनाकर दमनक बोला—इसी लए कहता ं क चतुर एवं बु मान् अपनी
बु के बल पर आन द-भोग करते ह, जब क मूख दाने-दाने को तरसते रहते ह।
दमनक के चले जाने पर स ीवक सोचने लगा क मने मांस खाने वाले सह से
म ता करने क मूखता कैसे कर ली? कहा भी गया है

Downloaded from www.PDFshala.com


अग यान् यः पुमान् या त असे ां नषेवते ।
स मृ युमुपगृ ा त गभम तरी यथा ।।
क अग य के साथ गमन करने वाला और सेवा के अयो य क सेवा करने वाला गभधारण
करने वाली ख चरी के समान न हो जाता है।
म कुछ समझ नह पा रहा क अब मुझे या करना चा हए और कहां जाना चा हए।
य न पगलक के पास ही प ंच जाऊं? शायद वह मुझे अभयदान दे दे अथवा कसी अ य
थान पर चला जाऊं, ले कन इसका या भरोसा क वहां म कसी मांसभ ी के ह थे नह
चढ़ जाऊंगा। य द मरना ही है, तो या सह के हाथ और या कसी अ य के हाथ ?
मह ः प मान य वपदे व गरीयसी ।
द तभ ोऽ प नागानां ा यो ग र वदारणे ।।
जस कार पवत को गराने के कारण हा थय के दांत के टू टने क भी शंसा होती
है, उसी कार बड़े लोग से पधा करने के प रणाम व प आने वाला संकट भी त ा का
कारण बन जाता है।
महतोऽ प यं ल वा ा यं नीचोऽ प ग छ त ।
दानाथ मधुपो य जकणसमाहतः ।।
जस कार मद का लोभी भंवरा हाथी के कान क चोट खाकर भी स मा नत होता
है, उसी कार बड़े लोग के ारा प ंचायी गयी हा न से भी संसार म यश ा त होता है।
यही सब सोचकर स ीवक सह क ओर चल दया।
अ तल नभुज मं गृह मव ालाकुलं वा वनं
ाहाक ण मवा भरामकमल छायासनाथं सरः ।
नाना जनैरस यवचनास ै रना यवृतं
ःखेन तग यते च कतैः रा ां गृहं वा धवत् ।।
जस कार साप से घरे मकान म, हसक पशु से घरे जंगल म तथा छाया और
कमल से शोभायमान, क तु मगरम छ से भरे तालाब म जाने म डर लगता है, उसी कार
से घरे राजा के पास जाने म भी लोग भयभीत हो जाते ह।
स ीवक ने पगलक के घर म वेश कया, तो उसने पगलक को वैसी ही मु ा म
बैठा दे खा, जैसी दमनक ने बतलायी थी। इस लए वह बना णाम कये ही चुपचाप बैठ
गया। पगलक ने भी दमनक ारा बतलायी स ीवक क मुखमु ा दे खी, तो उसने भी
झप ा मारकर अपने तीखे नाख़ून से स ीवक को घायल कर दया। स ीवक ने भी सह
क छाती पर अपने स ग का हार कया। दोन एक- सरे के ख़ून के यासे हो गये थे।
उनक इस दशा को दे खकर करटक ने दमनक से कहा—लगता है क तुम राजनी त का क-
ख भी नह जानते। तुम नपट मूख हो। जानकार ने ठ क ही कहा है

Downloaded from www.PDFshala.com


का या यु मद डसाहसफला-
यायाससा या न ये
ी या संशमय त नी तकुशलाः
सा नैव ते म णः ।
नःसारा पफला न ये व व धना
वा छ त द डो मै-
तेषां नयचे तैनरपते-
रारो यते ी तुलाम् ।।
क नी त-कुशल म ी जहां उ म और क सा य काय को साम-दान आ द उपाय के ारा
नपटा दे ते ह, वहां मामूली वाथ स के लए भी अ याय और यु को अपनाने म संकोच
न करने वाले छोटे -छोटे राजा अपनी स प ता को स दे ह के घेरे म खड़ा कर दे ते ह।
य द तु हारी म दबु के कारण वामी क मृ यु हो गयी या स ीवक जी वत बच
गया, तो या यह थ त क द नह होगी? मेरी समझ म नह आता क तुमने या सोचकर
म ी बनने के लए यह सब कया? साम-दान आ द उपाय को छ ड़कर तुमने द ड और
भेद-जैसे क ठन उपाय का सहारा य लया?
सामा दद डप य तो नयः ो ः वय भुवा ।
तेषां द ड तु पापीयां तं प ा नयोजयेत् ।।
या तुम नह जानते क ाजी ने नी त के चार भेद का न पण करते ए द ड
को पापमय तथा केवल अ तम उपाय के प म ही अपनाने का नदश दया है।
सा नैव य स न त
द डो बुधेन व नयो यः ।
प ं य द शकरया
शा य त कोऽथः पटोलेन ।।
जस कार सीधी अंगु ल से घी के नकल आने पर अंगु ल टे ढ़ करना उ चत नह
होता, उसी कार साम अथवा दान से स हो जाने वाले काय के लए द ड अथवा भेद का
योग भी उ चत नह होता।
आदौ साम यो ं
पु षेणा वजानता
सामसा या न काया ण
व यां या त न व चत् ।।
बु मान् को अपनी काय स के लए सबसे पहले साम का ही योग करना
चा हए। साम-जैसे उपाय से कये गये काय थायी प से लाभकारी स होते ह।

Downloaded from www.PDFshala.com


तुम म के योग को नह जानते, अतः म तु ह म ी-पद के यो य नह मानता।
म पांच कार का होता है—1. कम को आर भ करने क व ध के वषय म सोचना, 2.
कमचा रय के लए आव यक दे य स प का सं ह करना, 3. दे श-काल क समु चत
जानकारी रखना, 4. स भा वत हा न से बचाव का उपाय करना तथा 5. काय को स कर
दखाना।
अब उन दोन क अथवा दोन म से एक क मृ यु तो अव य ही होनी है। ले कन अब
भी समय है। इस थ त को टालने का यास करो। म ी क यो यता क वा त वक परी ा
तो दोन प म समझौता कराने म ही होती है, क तु तुम यह सब कैसे कर सकते हो?
म णां भ स धाने भषजां सा पा तके ।
कमण यते ा व थे को वा न प डतः ।।
जस कार स पात सरीखे असा य रोग को न करने म ही वै क परी ा होती है,
उसी कार दो बछड़े ए म को मलाने म ही म य क परी ा होती है। सामा य थ त
म तो सभी बु मान् कहलाते ह।
घात यतुमेव नीचः परका य
वे न साध यतुम् ।
पात यतुमेव श नाखो-
ुम पटकम् ।।
जस कार चूहा अ से भरे ए पा को केवल गराना जानता है, गरे ए को
उठाकर रखना नह जानता, उसी कार नीच भी केवल तोड़ना ही जानता है, जोड़ना
नह जानता। म तो यही समझता ं क वामी ने तुझ पर व ास करने क बड़ी भारी भूल
क है।
नरा धपा नीचजनानुव तनो
बुधोप द ेन पथा न या त ये ।
वश यतो गममाग नगमं
सम तस बाधमनथप रम् ।।
नीच य के चंगुल म फंसे राजा व ान ारा बताये माग पर चलते ही नह ,
इसी लए वे इस कार के अ याय करने के अ य त हो जाते ह और ग़लत को सही मानने
लगते ह।
मुझे लगता है क य द तुम म ी बन गये, तो वामी के पास कोई भला
फटकेगा भी नह ;
गुणालयोऽ यस म ी नृप तना धग यते ।
स वा स ललो ाहो यथा दः ।।

Downloaded from www.PDFshala.com


य क जस कार वा द जल वाला सरोवर मगरम छ-जैसे हसक जीव का नवास बन
जाने पर लोग के लए सेवन के अयो य हो जाता है, उसी कार भले राजा के म य
से घर जाने पर भले लोग उससे कनारा करने म ही अपना भला समझते ह और स जन
य ारा प र य राजा शी ही न हो जाता है।
च ा वादकथैभृ यैरनाया सतकामुकैः ।
ये रम ते नृपा तेषां रम ते रपवः या ।।
धनु व ा के अ यास क और रा य-काय क उपे ा करके सेवक के साथ अद्भुत
घटना म आन द लेने वाले राजा के वैभव पर श ु का अ धकार हो जाता है।
नराश होकर करटक बोला—अ धे के आगे रोना, अपनी ही हा न करना है। तु हारे-
जैसे मूख को या कोई समझाये;
नान यं नमते दा ना म न या ुर या ।
सूचीमुखं वजानी ह ना श यायोप द यते ।।
य क जस कार मोट लकड़ी को मोड़ा नह जा सकता, कठोर प थर को कोमल नह
बनाया जा सकता, उसी कार मोट बु वाले को भी सुधारा नह जा सकता।
सूचीमुख क कथा इसका उदाहरण है।
दमनक के नवेदन पर करटक उसे सूचीमुख क कथा सुनाने लगा।

कथा म:स ह
एक पवतीय दे श म अचानक ई भारी वषा के कारण वहां रहने वाले वानर खी हो उठे
और सद से कांपते ए कुछ वानर ने आग तापने क इ छा से घुंघ चय को इकट् ठा कया
और उ ह फूंक मारते ए वे उनके चार ओर बैठ गये। वानर के इस मूखतापूण काम को
दे खकर सूचीमुख एक प ी उनसे कहने लगा—मूख ! या तु ह यह भी मालूम नह क यह
आग नह है। तुम सद से ठठु र रहे हो, इस लए अपनी र ा के लए पवत क कसी गुफा
अथवा कसी वन- दे श को ढूं ढ़ो।
सूचीमुख के कथन को सुनकर एक वानर बोला—अरे मूख! तू अपनी च ता कर,
तुझे हमारी च ता य हो रही है? नी तकार ने कहा है
मु व नतकमाणं ूतकारं परा जतम् ।
नालापये वेक ो यद छे स मा मनः ।।
क अपने काय म बार-बार व न पड़ने से परेशान तथा जुए म हारते ए जुआरी को समझाने
क चे ा नह करनी चा हए, अ यथा ऐसा करने वाले को ःख ही उठना पड़ता है।
आखेटकं वृथा लेशं मूख सनसं थतम् ।

Downloaded from www.PDFshala.com


आलापय त यो मूढः स ग छ त पराभवम् ।।
शकारी, सर को थ ही पी ड़त करने वाले, मूख तथा सन से त को
समझाने का प रणाम भी अ छा नह होता।
सूचीमुख ने वानर के वचन को अनसुना कर दया और उ ह समझाता रहा। वह कहने
लगा—अरे! तुम इतने ह े -क े हो, या आंधी-पानी से अपने बचाव के लए कोई उ चत
व था नह कर सकते?
सूचीमुख के लाप से ु ए एक वानर ने उसे प थर पर पटक-पटककर मार
डाला।
यह कथा सुनाकर करटक बोला—मूख को समझाना, अपने लए संकट मील लेने के
बराबर है। कहा भी गया है
उपदे शो ह मूखाणां कोपाय न शा तये ।
पयःपानं भुजंगानां केवलं वषव नम् ।।
क जस कार सांप को ध पलाने का प रणाम उसके वष को बढ़ाना होता है, उसी कार
मूख को समझाना भी उसके ोध को भड़काता ही है।
उपदे शो न दात ो या शे ता शे जने ।
प य वानरमूखण सुगृही नगृहीकृतः ।।
अतः हर कसी को उपदे श नह दे ना चा हए। वानर ने अपने को समझाने वाले गृह थ
का घर उजाड़ दया। यह कथा इसी त य क पु कर रही है।
दमनक ने यह कथा सुनने क इ छा कट क , तो करटक सुनाने लगा।

कथा म : अठारह
एक जंगल म कसी शा मली वृ पर घ सला बनाकर गौरैया-द पती सुखपूवक रहा करते
थे। एक दन वे दोन अपने घ सले म बैठे ए थे क अचानक आकाश म बादल उमड़ आये
और ठ डी वायु चलने लगी। इसके साथ ही गजन-तजन करती मूसलाधार बरसात भी होने
लगी। उसी समय सद से कांपता एक मोटा-ताज़ा वानर उस वृ के नीचे आकर बैठ गया।
उस वानर क हालत को दे खकर गौरैया कहने लगी—
ह तपादसमोपेतो यसे पु षाकृ तः ।
शीतेन भ से मूढ! कथं न कु षे गृहम् ।।
तु हारे पु ष के समान हाथ-पैर ह और तुम बलवान् भी हो। सद और बरसात से
अपने बचाव के लए एक घर य नह बना लेत? े
गौरैया के कथन से ु होकर वानर कहने लगा—अरी मूखा! य थ बकबक कर

Downloaded from www.PDFshala.com


रही है? या तू चुप होकर बैठ नह सकती? तेरी इतनी ह मत क तू मेरा मज़ाक़ उड़ाये?
वह सोचने लगा
सूचीमुखी राचारा र डा प डतवा दनी ।
नाशङ् कते ज प ती त कमेनां न ह यहम् ।।
क इस सुई-जैसे मुख वाली और अपने को व ान् कहने वाली इस रांड़ एवं राचा रणी
गौरैया को अपना मज़ाक़ उड़ाने के लए द डत करना चा हए।
यह सोचकर वानर उस गौरैया से बोला—अरी ा! तुझे मेरी च ता य हो रही है?
म तुझसे बात नह करना चाहता; य क शा का वचन है
वा यं ासमेत य पृ छत वशेषतः ।
ो ं ा वहीन य अर य दतोपमम् ।।
क बातचीत म श ता और शालीनता बरतने वाले को और वशेष प से कुछ पूछने वाले
को ही समझाना चा हए। अ श से बातचीत करना तो जंगल म रोने-जैसा होता है।
गौरैया बोली—अरे! म तु हारे लाभ क ही बात कह रही थी।
गौरैया का इतना कहना था क वानर छलांग लगाकर वृ पर चढ़ गया और गौरैया के
घ सले को धरती पर गराते ए कहने लगा—अब कर मेरे लाभ क च ता?
इस कथा को सुनाकर करटक बोला—इसी लए कहा गया है क मूख को उपदे श दे ने
का अथ उ ह अपने व भड़का दे ना होता है।
अपना कथन जारी रखते ए करटक कहने लगा—मने तुझे कतना समझाया, क तु
तुझ पर कोई असर ही नह आ। इसम तेरा कोई दोष नह है, दोष मेरा ही है। मने यह सोचा
ही नह क बु मान् को सखाने से ही लाभ होता है, मूख को सखाना तो अपना सर
फोड़ने-जैसा होता है।
क करो येव पा ड यम थाने व नयो जतम् ।
अ धकार त छ े घटे द प इवा हतः ।।
जस कार घड़े के सर पर रखा द पक घड़े के भीतर के अंधेरे को र नह कर
सकता, उसी कार मूख को समझाने से उसम कोई प रवतन हो सकेगा, इसक आशा करना
थ ही है।
तूने अपने अहंकार के कारण न तो मेरी बात सुनी और न अपनी शा त क च ता
क । मुझे तो लगता है क तू नीच है।
जातः पु ोऽनुजात अ तजात तथैव च ।
अपजात लोकेऽ म म त ाः शा वे द भः ।।
शा के अनुसार इस संसार म जात, अनुजात, अ तजात और अपजात—चार
कार के पु होते ह।

Downloaded from www.PDFshala.com


मातृतु यगुणी जात वनुजातः पतुः समः ।
अ तजातोऽ धक त मादपजातोऽधमाधमः ।।
अपनी माता के समान गुण वाला पु —जात, पता के समान गुण वाला पु —
अनुजात, माता- पता से अ धक गुणी पु —अ तजात और अधम-से-अधम, अथात् सवथा
गुणहीन पु —अपजात कहलाता है।
अ या मनो वनाशं गणय त न खलः पर सन ः।
ायो म तकनाशे समरमुखे नृ य त कब धः ।।
यु म सर के कट जाने पर भी धड़ को नाचते दे खकर यह मानना पड़ता है क
सर को खी करके स होने वाला अपने ःख को भी अनदे खा कर दे ता है।
स य ही कहा गया है
ध मबु ः कुबु ावेतौ व दतौ मम ।
पु ेण थपा ड या पता धूमेन घा ततः ।।
क मुझे तो—धमबु और कुबु —दोन का प रचय मल गया और यह भी पता चल गया
क पु को व ान् समझने क अपनी भूल का शकार होकर पता धुएं के कारण दम घुटने
से मर गया।
दमनक ने पूछा—यह कैसी कथा है? तब करटक उसे सुनाने लगा—

कथा म : उ ीस
कसी नगर म धमबु और पापबु नामक दो म रहा करते थे। पापबु ने सोचा क म
तो द र ,ं म धन नह कमा सकता। अतः य द म धमबु को अपने साथ मला लू,ं तो
उसक बु से कुछ कमाई करके अपना जीवन सुखी बना सकता ं।
यह सोचकर वह धमबु के पास गया और उससे बोला— म ! तु हारी इतनी आयु
हो गयी, ले कन तुम कभी कसी काम के लए अपने घर से बाहर नह गये। जब बड़े होकर
तु हारे ब चे तुमसे इस बारे म पूछगे, तब तुम उ ह या उ र दोगे?
दे शा तरेषु ब वधभाषावेशा द येन न ातम् ।
मता धरणीपीठे त य फलं ज मनो थम् ।।
दे श-दे शा तर म जाकर अनेक लोग क वेशभूषा और बोलचाल से अनजान
का इस पृ वी पर ज म लेना ही थ है।
व ा व ं श पं ताव ा ो त मानवः स यक् ।
यावद् ज त न भूमौ दे शा े शा तरं ः ।।
स मन से दे श-दे शा तर म न जाने वाला नाना कार क कला , श प,

Downloaded from www.PDFshala.com


भाषा , व ा तथा पर परा से प र चत ही नह होता।
यह सुनकर धमबु , पापबु के साथ वदे श जाने के लए तैयार हो गया और जब
दोन ने मलकर अपने प र म और भा य से ब त सारा धन जमा कर लया, तब उ ह ने घर
लौटने का मन बनाया।
ा त व ाथ श पानां दे शा तर नवा सनाम् ।
ोशमा ोऽ प भूभागः शतयोजनव वेत् ।।
व ा, धन और श प- ा त के लए वदे श म रहने वाल को अपने घर क कोस-भर
क री भी सौ योजन ल बी लगती है।
जब वे दोन अपने नगर के पास प ंच गये, तो पापबु अपने म धमबु से कहने
लगा— म ! सारा धन एक साथ घर म ले जाना ठ क नह रहेगा। इसे दे खकर हमारे ब धु-
बा धव क लार टपक सकती है। ऐसा करो, हम थोड़ा-सा धन अपने साथ ले चलगे और
बाक़ बचे धन को एक ब से म ब द करके इस शमी वृ के नीचे धरती म गाड़ दगे और
आव यकता पड़ने पर इसे यहां से नकालकर ले जायगे।
पापबु के मन म खोट आ गया था। वह धमबु के धन को भी ह थयाना चाहता
था और इसी लए ऐसा कह रहा था। सीधे-सादे धमबु के सहमत होने पर दोन ने मलकर
एक गड् ढा खोदा और बाक़ बचे धन से भरा ब सा उसम गाड़ दया। तब पापबु बोला—
शा म कहा है
न व ं दशये ा ः क य च व पम यहो ।
मुनेर प यत त य दशना चलते मनः ।।
क बु मान् को अपना धन सर को कभी नह दखाना चा हए; य क उसे
दे खकर मु नय तक का मन भी डावांडोल हो जाता है।
यथाऽऽ मषं जले म यैभ यते ापदै भु व ।
आकाशे प भ ैव तथा सव व वान् ।।
जस कार जल म मछ लयां, धरती पर सह और आकाश म गीध आ द मांस को
खा जाते ह, उसी कार धनी के धन को लूटने के लए लोग सदा तैयार रहते ह।
इस पर थोड़ा-थोड़ा धन लेकर दोन अपने घर आ गये और अपने-अपने काम म लग
गये।
कुछ समय बीतने पर बेईमान पापबु गाड़े ए धन को गड् ढे म से नकालकर अपने
घर ले आया और धमबु से छु टकारा पाने के लए उसके पास जाकर कहने लगा— म !
मुझे कसी काम के लए धन क आव यकता आ पड़ी है। चलो, चलकर मेरे लए वह गड़ा
आ धन नकाल दो।
धमबु अपने भागीदार के साथ उस थान पर जा प ंचा, जहां उन दोन ने अपना
धन से भरा ब सा गाड़ा था। खोदने पर, जब उस ब से को खोला गया, तो वह ख़ाली था।

Downloaded from www.PDFshala.com


इस पर धमबु पर चोरी का इ ज़ाम लगाकर पापबु उसे यायालय म ले जाने क धमक
दे ने लगा। धमबु ने अपने को नद ष बताते ए कहा—
मातृव परदारा ण पर ा ण लो वत् ।
आ मव सवभूता न वी ते धमबु यः ।।
तुम यह भली कार जानते हो क म धमबु ं और धमबु का ल ण यही है क वह
परायी य को अपनी मां के समान, पराये धन को मट् ट के ढे ले के समान और अ य
सभी ा णय को अपने समान ही मानता है। अब तुम ही बताओ, तुम मुझसे चोरी क
अपे ा कैसे कर सकते हो?
पापबु वभाव का था, वह कैसे मान जाता? वह मामले को यायालय
म ले गया। जब यायाधीश ारा नयु यूरी के सद य ने उन दोन को सच बात कहने क
शपथ लेने को कहा, तो पापबु कहने लगा—इस मामले म शपथ लेने क या
आव यकता है?
ववादे ऽ व यते प ं तदभावेऽ प सा णः ।
सा यभावा तो द ं वद त मनी षणः ।।
व ान का प नदश है क कसी भी मामले म य द कोई ववाद उठ खड़ा हो, तो
सबसे पहले य द कोई लखा-पढ़ उपल ध है, तो उसे दे खा जाये, उसके उपल ध न होने पर
सा य के सा य को सुना जाये। इसके अभाव म वाद व तवाद से सचाई का पता लगाने
के लए ही उ ह शपथ लेने को कहा जा सकता है। यहां वृ -दे वता वयं सा ी के प म
उपल ध ह, तो उनसे पूछ लेना चा हए क अपराधी कौन है?
शा का कथन है
अ यजोऽ प यदा सा ी ववादे स जायते ।
न त व ते द ं क पुनय दे वता ।।
क जस मामले म अ यज— न नजा त का शू —भी सा ी प म उपल ध हो, उस
मामले म वाद अथवा तवाद क अपे ा उसे ही गौरव दया जाना चा हए। यहां तो वृ
दे वता-जैसा सा ी उपल ध है। अतः हम शपथ लेने क आव यकता नह है?
यायक ा ने अगले दन ातःकाल वृ का सा य लेने के नणय से दोन प को
सू चत कर दया। इस पर स होकर पापबु ने अपने पता से कहा क वह उस वृ क
कोटर म छपकर बैठ जाये और ातःकाल जब यायमू त आय, तो उनके सामने धमबु
को चोर घो षत कर दे , ता क सारे धन पर उसका एका धकार हो जाये। पापबु का पता
भी पापा मा ही था, वह इस कार का झूठ बोलने के लए तैयार हो गया और वृ क कोटर
म छपकर बैठ गया।
नधा रत समय पर यायाधीश, धमबु और पापबु आ द सब लोग न त थान
पर प ंच गये। तब पापबु आगे बढ़कर उ च वर से कहने लगा—

Downloaded from www.PDFshala.com


आ द यच ाव नलोऽनल
ौभू मरापो दयं यम ।
अह रा उभे च स ये
धम ह जाना त नर य वृ म् ।।
सूय, च मा, वायु, अ न, आकाश, पृ वी, जल, मनु य का दय, यमराज, दन-रात, दोन
स याएं एवं धम मनु य के अ छे -बुरे कम को दे खते रहते ह।
य द शा का वचन यह स य है, तो हे वनदे वता! आप यह बताने क कृपा कर क
हम दोन म से चोर कौन है? पापबु क योजना के अनुसार उसके पता ने धमबु को
चोर बताया, तो इस बात पर वचार कया जाने लगा क उसे कस कार द डत कया
जाये।
इधर धमबु ने जब मनु य क वाणी सुनी, तो उसे स दे ह आ और उसने उस वृ
को आग लगा द । आग लगने पर पापबु का अधजला पता वृ क कोटर से बाहर
नकल आया और यायाधीश के सामने पापबु क वा त वकता कट हो गयी। इस पर
पापबु ारा चुराया गया धन धमबु को वापस दलाया गया और पापबु को जेल म
भेज दया गया।
धमबु क बु क शंसा करते ए यायाधीश बोले—
उपायं च तये ा तथाऽपायं च च तयेत् ।
प यतो बकमूख य नकुलेन हताः बकाः ।।
कसी भी उपाय पर वचार करते समय बु मान् को उससे जुड़ी हा न पर भी
वचार कर लेना चा हए, अ यथा सांप से छु टकारा पाने के लए नेवले को अपने साथ लाकर
अपने ब च से हाथ धोने वाले बगुले के समान ही प रणाम भुगतना पड़ता है।
धमबु क ज ासा पर उसे बगुले क कथा सुनाते ए यायाधीश बोला—

कथा म : बीस
कसी जंगल म थत एक वटवृ पर कुछ बगुले रहते थे। उसी वृ क कोटर म एक काला
सांप भी रहता था, जो बगुल के ब च को उनके पंख नकलने से पहले ही खा जाता था।
अपनी स तान को इस कार न होते दे ख बगुल ने आपस म सलाह क , तो एक बगुले ने
केकड़े से इसका उपाय पूछने को कहा। यह सुनकर बगुले तालाब के कनारे रहने वाले
केकड़े के पास जा प ंचे। बगुल क था सुनकर केकड़ा स हो उठा और अपने मन-ही-
मन सोचने लगा क अब म अपने इन श ु को ऐसी सलाह ं गा क इनका वंश नमूल हो
जायेगा। कहा भी गया है

Downloaded from www.PDFshala.com


नवनीतसमां वाण कृ वा च ं तु नदयम् ।
तथा बो यते श ुः सा वयो यते यथा ।।
क श ु को अपना च कठोर बनाकर और म खन-जैसी वाणी बोलकर इस कार व ास
दलाना चा हए क वह ग़लत माग पर चलकर अपने वंशस हत न हो आये।
इसी कार केकड़े ने भी सहानुभू त दखाते ए मधुर वर म कहा—मेरी मानो, तो
मछ लय के मांस के कुछ टु कड़े नेवले के बल से सांप के बल तक फैला दो। यह दे खकर
नेवला सांप के बल तक जा प ंचेगा और फर उसे मार डालेगा।
बगुल को यह उपाय उ चत लगा, ले कन नेवले ने सांप को तो मार डाला, क तु साथ
ही वह पेड़ पर रहने वाले बगुल को भी खा गया।
यह कथा सुनाकर यायाधीश बोला—इसी लए कहा गया है क उपाय से जुड़ी हा न
क भी उपे ा नह करनी चा हए। पापबु ने उपाय तो सोचा, क तु हा न क बात नह
सोची।
धमबु ः कुबु ावेतौ व दतौ मम ।
पु ेण थपा ड या पता धूमेन घा ततः ।।
मने दोन —धमबु और पापबु —क बात भली-भां त सुनी और म इस प रणाम
पर प ंचा क पापबु ने धमबु के भाग को ह थयाने के लालच म आकर अपने पता का
ब लदान कर दया। धुएं से दम घुटने के कारण वह बेचारा मारा गया।
इस कथा को सुनाकर करटक बोला— म ! तुम भी पापबु हो; य क तुमने भी
उपाय सोचते समय उसके कारण होने वाली हा न पर कोई यान नह दया इसी लए वामी
के ाण को संकट म डालने म तु ह संकोच नह आ। इससे तु हारे च र क वा त वकता
— ता—उजागर हो गयी है। कहा भी गया है
य नाद प कः प ये छ खनामाहार नःसरणमागम् ।
य द जलद व नमु दता त एव मूढा न नृ येयुः ।।
क मेघ क व न से उ म होकर य द मोर नाचने न लग जाय, तो उनक गुदा म छपे
कसी पदाथ को कोई कैसे ढूं ढ़ सकता है?
जब तुम अपने महाराज के साथ ऐसा वहार कर सकते हो, तु हारे-जैस का संग
ख़तरे से ख़ाली कभी नह हो सकता। कहा भी गया है
तुलां लोहसह य य खाद त मूषकाः ।
राजँ त हरे ेनो बालकं ना संशयः ।।
क जहां चूहे हज़ार कलो लोहे क तराज़ू को खा सकते ह, वहां य द बाज़ कसी बालक को
उठाकर ले जाये, तो उस पर व ास करना ही पड़ेगा।
दमनक के यह कथा सुनने क ज ासा कट करने पर करटक कहने लगा—

Downloaded from www.PDFshala.com


कथा म:इ कस
कसी जनपद म रहने वाले जीणधन नामक एक ब नये ने अपना काम चलता न दे खकर
रोज़ी-रोट क तलाश म कसी अ य थान पर जाने का मन बनाया;
य दे शेऽथवा थाने भोगा भु वा ववी यतः ।
त म वभवहीनो यो वसे स पु षाधमः ।।
य क कसी सरे थान म जाने से जीवन के सुखी होने क स भावना दखाई दे ती हो, तो
अपने ही दे श म पड़े रहने म कहां क बु मानी है?
येनाहङ् कारयु े न चरं वल सतं पुरा ।
द नं वद त त ैव यः परेषां स न दतः ।।
वा भमानी बने रहकर एव सुखपूवक जीवन तीत करने वाले के लए द न-
हीन होकर जीना बड़ा ःखदायी होता है।
उस ब नये के पास लोहे क एक भारी तराज़ू थी, जसे उसने अपने पड़ोसी सेठ के
पास धरोहर रख दया और अपना भा य आज़माने के लए परदे स चल दया।
कुछ समय बाद लौटकर जब जीणधन ने उस सेठ से अपनी तराज़ू मांगी, तो नक़ली
ःख कट करते ए वह सेठ बोला—तु हारी उस तराज़ू को तो चूहे खा गये।
जीणधन सेठ क धूतता को समझकर भी अनजान बनकर बोला—इसम आपका
कोई दोष नह है? अ छा, मुझे नद पर नान करना है। य द आप तौ लया, आ द के साथ
अपने बेटे को मेरे साथ भेज द, तो आपक बड़ी कृपा होगी। नान करने के बाद म अपने
रा ते चला जाऊंगा और आपका बालक अपना सामान लेकर वापस लौट आयेगा।
मुसीबत को इतनी आसानी से टलता दे खकर बेईमान सेठ तुर त इसके लए तैयार हो
गया।
न भ या क य च कोऽ प यं कु ते नरः ।
मु वा भयं लोभं वा का यकारणमेव च ।।
वा तव म, इस संसार म येक कसी का कोई काय कसी योजन से ही
करता है। बना योजन के कोई कसी क भलाई करे, ऐसा ब त कम ही दे खने को मलता
है।
अ यादरो भवे का यकारणव जतः ।
त शंका क ा प रणामेऽसुखावहा ।।
बना कारण के कभी कोई काय नह होता—य द इस नयम के आधार पर कह ब त
अ धक आदर-स मान होता है, तो को सावधान हो जाना चा हए; य क इसके पीछे
कोई-न-कोई कारण अव य होता है। इस त य क उपे ा करना कभी-कभी ब त महंगा पड़

Downloaded from www.PDFshala.com


जाता है।
नान के लए सामान लेकर सेठ का लड़का जीणधन के साथ नद तट पर प ंचा, तो
वहां जीणधन ने ब चे को एक खाई म गराकर उस पर एक भारी शला रख द और नान
करके उदास मन से सेठ के पास प ंचकर रोते ए बोला—तु हारे बेटे को एक बाज़ उठाकर
ले गया।
यह सुनते ही सेठ च लाकर बोला— या बकते हो? या बाज़ भी बालक को
उठाकर ले जा सकता है? लगता है क तुमने उसे मार डाला है। इस पर मामला यायालय म
प ंचा, तो यायाधीश के सामने जीणधन बोला—
तुलां लोहसह य य खाद त मूषकाः ।
राजं त हरे ेनो बालकं ना संशयः ।।
ीमन्! य द हज़ार कलो वज़नी लोहे क तराज़ू को चूहे खा सकते ह, तो लड़के को बाज़
य नह उठाकर ले जा सकता?
इसके बाद जीणधन ने सारी बात यथावत् सुना द , तो धूत सेठ को अपने बेटे क
वापसी के लए तराज़ू भी वापस लौटानी पड़ी और अपमा नत भी होना पड़ा।
इस कथा को सुनाकर करटक बोला—तुमसे स ीवक का सुख दे खा नह गया, तभी
तुमने यह कृ य कया है।
ायेणा कुला वतं कुकुलजाः
ीव लभं भगाः
दातारं कृपणा ऋजूननृजवो
व े थतं नधनाः ।
वै योपहता का तवपुषं
धमा यं पा पनो
नानाशा वच ण च पु षं
न द त मूखाः सदा ।।
इस संसार का यह सामा य चलन है क नीच कुल के कुलीन से, अभागे
भा यवान से, कृपण दा नय से, कु टल सरल- कृ त स जन से, नधन
धनवान से, कु प पवान से, पापी धमा मा से तथा मूख शा - नपुण व ान
से ई या कया ही करते ह।
मूखाणां प डता े या नधनानां महाधनाः ।
तनः पापशीलानामसतीनां कुल यः ।।
व ान से मूख का, धनवान से नधन का, तप वय से पा पय का और सती
य से कुलटा का े ष सदा से चला आ रहा है।

Downloaded from www.PDFshala.com


तुमने भी बने-बनाये काय को बगाड़ दया है। इसी लए कहा गया है—
प डतोऽ प वरं श ुन मूख हतकारकः ।
वानरेण हतो राजा व ा ौरेण र ताः ।।
क शुभ च तक मूख क अपे ा अ हतकारी व ान् कह अ छा होता है। मूख वानर को
सेवक बनाने के कारण ही राजा को मृ यु का ास बनना पड़ा और चोर के ारा ा ण के
ाण बच गये।
दमनक क ज ासा पर करटक उसे यह कथा सुनाने लगा—

कथा म : बाईस
एक राजा ने स होकर एक वानर को अपना अंगर क बना लया। इस लए वह वानर
अ तःपुर म बना बाधा के आता-जाता रहता था। एक बार जब राजा सो रहा था, तो वह
वानर राजा को पंखा झल रहा था। उसने दे खा क एक म खी बार-बार राजा क छाती पर
आ बैठती थी। वानर उस म खी को उड़ाने का य न करता था, ले कन उसे सफलता नह
मलती थी। राजा क न द उचट जाने क आशंका से वानर उस म खी को उड़ाने का य न
करने लगा, क तु सफलता न मलने पर उस वानर ने म खी पर तलवार से हार कर दया।
म खी तो उड़ गयी, ले कन राजा के ाण भी उड़ गये।
इसी लए कहा गया है क राजा को अपने यहां मूख को आ य नह दे ना चा हए।
एक व ान् ा ण पूवज म के दोष के कारण चोर बन गया। उसने कसी र दे श से
आये चार ा ण को अपनी व तु को बेचकर अ ट म धन रखते दे खा, तो उस धन को
लूटने क इ छा से उस चोर बने ा ण ने उ ह ान से भरी बात सुनाकर उनका व ास
जीत लया और फर उनका सेवक बनकर उनके साथ हो लया। कहा भी गया है
असती भव त सल जा
ारं नीर च शीतलं भव त ।
द भी भव त ववेक
यव ा भव त धू जनः ।।
क कुलटा ी ल जाशील होने का नाटक करती है, खारा पानी ठ डा होता है, ानी
अहंकार से त होता है तथा वाथ एवं धूत य व ा होता है।
ा ण ने उस चोर ा ण पर व ास करके उसके सामने ही उन ब मू य र न को
अपनी गुदा म छपा लया। ा ण को जाता दे खकर चोर ा ण उ ह न लूट पाने के
कारण च ता म डू ब गया। उसने सोचा क इ ह वष दे कर इनका धन छ ना जा सकता है।
इस लए वह ा ण से अपने को साथ चलने क अनुम त दे ने क ाथना करने लगा, जस

Downloaded from www.PDFshala.com


पर ा ण का दय वत हो गया और उ ह ने उसे अपने साथ ले लया।
जब वे सब ा ण प लीपुर गांव से गुज़रे, तो कौ ने च लाकर अमू य र न को
छपाकर ले जाते ा ण क जानकारी जंगली लोग को दे द । इस पर जंगली लोग ने उन
पांच प थक को बांधकर उनक तलाशी ली, ले कन कुछ भी न पाकर नराश ए। वे जंगली
उन प थक से बोले—हमारे ये कौए कभी झूठ नह बोलते। य द तुम लोग को अपने ाण
यारे ह, तो सच-सच बताओ क तुमने हीरे कहां छपा रखे ह?
चोर ा ण ने सोचा क य द इन जंग लय ने इन ा ण को मार डाला और इनक
गुदा से र न खोज नकाले, तो मेरे हाथ म कुछ भी नह आयेगा और ये मुझे भी जी वत नह
छोड़गे। मेरे पास तो हीरे भी नह ह। य न अपने ाण दे कर इनके ाण बचा लू? ं कहा भी
गया है
मृ यो बभे ष क बाल न स भीतं वमु च त ।
अ वा दशता ते वा मृ युव ा णनां ुवः ।।
क मृ यु से या डरना? सदा तो कभी कोई जी वत नह रहता, सभी को आज नह , तो सौ
वष के बाद, मरना तो है ही। फर य न म अपने जीवन का स पयोग ही कर लूं?
गवाथ ा णाथ च ाण यागं करो त यः ।
सू य य म डलं भ वा स या त परमां ग तम् ।।
शा के अनुसार गाय और ा ण के ाण क र ा के लए अपने ाण योछावर
करने वाला सूयम डल को भेदकर उ म पद को ा त करता है।
यह सोचकर वह चोर ा ण उन लुटेर से बोला—य द व ास नह है, तो मेरी ह या
करके अपनी तस ली कर लो। लुटेर ने उसका पेट, गला आ द फाड़कर ख़ूब दे खा-भाला,
क तु जब कुछ भी न मला, तो उ ह ने भी सोचा क जब हम इनसे कुछ मलना ही नह है,
तो इनक ह या करने से या लाभ? यह सोचकर उन जंग लय ने चार ा ण को मु कर
दया।
करटक अभी यह कथा सुना ही रहा था क पता चला पगलक के साथ यु करते
ए स ीवक मृत होकर पृ वी पर गर पड़ा है और स ीवक के गुण को याद करता आ
पगलक अपने म क ह या पर आंसू बहाता आ अपने को कोस रहा है। म के त
व ासघात के लए अपने को ध कारते ए पगलक कह रहा था
म ोही कृत न य व ासघातकः ।
ते नरा नरकं या त याव च दवाकरौ ।।
क म ोही, कृत न और व ासघाती को लयकाल तक नरक क यातना भोगनी पड़ती
है।
भू म ये राज वनाश एव

Downloaded from www.PDFshala.com


भृ य य वा बु मतो वनाशे ।
नो यु मु ं नयोः सम वं
न ा प भू मः सुलभा न भृ याः ।।
वा तव म, पृ वी के न हो जाने पर उसे पुनः ा त कया जा सकता है, रा य के न
हो जाने पर उसक ा त भी हो सकती है, क तु य द नेही और बु मान् सेवक न हो
जाये, तो उसे लौटाना स भव नह हो पाता।
म आज तक जसके गुण का वणन करते नह थका, आज उसके वध के लए या
प ीकरण ं गा?
उ ो भव त यः पूव गुणवा न त संस द ।
न त य दोषो व ः त ाभंगभी णा ।।
शा के अनुसार—बु मान् को कभी अपने ारा स मा नत कसी
क न दा करना शोभा नह दे ता। ऐसा करने वाले क व सनीयता स दे हा पद हो
जाती है।
इस कार आंसू बहाते पगलक के पास प ंचकर दमनक शा त वर म कहने लगा—
महाराज! मुझे मा कर, आप थ खी हो रहे ह। अपने व ोही एवं घास खाने वाले श ु
क ह या पर प ा ाप करना राजा को शोभा नह दे ता।
पता वा य द वा ाता पु ो भा याऽथवा सु त् ।
ाण ोहं यदा ग छे त ो ना त पातकम् ।।
अपने ाण के लए ख़तरा बने पता, भाई, पु , प नी अथवा म आ द कसी भी
आ मीय का वध करने म कोई दोष नह होता।
राजा घृणी ा णः सवभ ी
ी चा पा म तः सहायः ।
े यः तीपोऽ धकृतः माद
या या अमी य कृतं न वे ।।
दयालु, अथात् अ ववेक राजा, अभ य-भ ण करने वाला ा ण, नल ज ी,
बु सहायक, तकूल आचरण करने वाला सेवक, असावधान रहने वाला अ धकारी
और कृत न, ये सभी याग दे ने यो य होते ह।
स यानृता च प षा यवा दनी च
ह ादयालुर प चाथपरा वदा या ।
भू र या चुर व समागमा च
वे या नेव नृपनी तरनेक पा ।।
राजनी त तो वे या के समान त ण अपना प बदलती रहती है। कभी स य का

Downloaded from www.PDFshala.com


स मान कया जाता है, तो कभी अस य का; कभी कसी के साथ कठोर वहार कया
जाता है, तो कभी य; समान अपराध होने पर भी कसी को द डत कया जाता है, तो
कसी के त दयालुता दखायी जाती है; कसी पर धन लुटाया जाता है, तो कसी का धन
लूटा जाता है; कसी को स मा नत, तो कसी को अपमा नत भी कया जाता है। अवसर
दे खकर वाथ स के लए ही यह सब कया जाता है।
राजा लोग अपने कसी काय को न तो अनु चत ठहराते ह और न उसके लए शोक
या प ा ाप ही करते ह।
अकृतोप वः क महान प न पू यते ।
पूजय त नरा नागा ता य नागघा तनम् ।।
वा तव म, संसार म पू जत होने के लए को उप वी बनना ही पड़ता है;
य क उप व न करने वाले के महान् होने पर भी उसक उपे ा क जाती है।
उदाहरणाथ, सांप के उप वी होने के कारण ही उनक पूजा क जाती है, जब क सांप को
मारने वाले ग ड़ को उप वी न होने के कारण कोई भी नह पूछता।
अशो यान वशोच वं ावादां भाषसे ।
गतासूनगतासूं नानुशोच त प डताः ।।
व ान् मृ यु आ द शोक न करने यो य वषय पर शोक नह करते; य क
ऐसे वषय पर शोक करने वाले बु मान् नह कहलाते। जीवन और मृ यु को अ नवाय च
मानकर जी वत और मृतक म अ तर न करना ही बु म ा है।
दमनक के इस कार समझाने-बुझाने पर पगलक का शोक न हो गया और वह
दमनक को पुनः अपना म ी बनाकर जंगल म शासन करने लगा।

।। थम त समा त ।।

Downloaded from www.PDFshala.com


तीय त

म स ा तः
(नया म बनाने के साधन)

म स ा त नामक सरे त का थम प इस कार है—


असाधना अ प ा ा बु म तो ब ुताः ।
साधय याशु का या ण काकाखुमृगकूमवत् ।।
साधन-र हत होने पर भी वहारकुशल, बु मान् एवं ब ुत अपने म के
सहयोग से अपने काय को स करने म एवं अपने ल य को ा त करने म सफल हो जाते
ह। कौआ, चूहा, ह रण तथा कछु ए क सफलता इस त य का माण है।
द ण दशा के म हलारो य नामक नगर के पास एक जंगल म एक वशाल वटवृ
है, जसक छाया घनी है और जसके कोटर ब त बड़े ह। इसी लए अनेक पशु-प य ने
इस पर अपना बसेरा बना रखा है और आते-जाते राहगीर भी इसक छाया म व ाम करते
ह। कहा गया है
छायासु तमृगः शकु त नवहै-
व वग् वलु त छदः
क टै रावृतकोटरः क पकुलैः
क धे कृत यः ।
व धं मधुपै नपीतकुसुमः
ा यः स एव मः
सवा ै ब स वस सुखदो
भूभारभूतोऽपरः ।।
क उसी वृ को शंसनीय कहा जाता है, जसक छाया म ह रण आ द पशु व ाम करते
ह , जसक शाखा पर बैठे प य क छाया से प े ढक जाते ह , जसके कोटर म क ड़े

Downloaded from www.PDFshala.com


आ य पाते ह तथा जस पर वानर उछल-कूद करते रहते ह और जस पर भंवरे न शंक
होकर गुंजार करते ए मंडराते रहते ह । इस कार अनेक पशु-प य के लए सुखदायक
व ाम- थल बने वृ ही साथक कहलाते ह। ले कन इसके वपरीत कसी के लए भी
अनुपयोगी वृ तो इस धरती पर भार प ही होते ह।
उसी वृ पर रहने वाला लघुपतनक नामक एक कौआ एक दन भोजन क खोज म
नकला क उसने हाथ म जाल लये और यम त के समान भयंकर एवं काले-कलूटे एक
शकारी को उस वटवृ क ओर आते दे खा। वह सोचने लगा क यह तो मेरे साथी
प य को अपना शकार बनाने यहां आया है। म उ ह सावधान कर ं ।
यह सोचकर वह वापस लौट आया और अपने सभी सा थय को इकट् ठा करके उ ह
बताने लगा—बहे लया अपना जाल फैलाकर यहां पर चावल बखेरेगा और जो भी उन
चावल का लोभ करेगा, वह जाल म अव य ही फंस जायेगा। अतः चावल को वष
समझकर आपको उनक ओर नह जाना चा हए।
कुछ ही दे र बाद, बहे लये ने अपना जाल बछाकर चावल फैला दये और वह
छपकर एक ओर बैठ गया। ठ क इसी समय अपने प रवार के सद य के साथ आहार क
खोज म नकले च ीव नामक एक कबूतर ने भी उन चावल को दे खा, तो उसे लालच हो
आया। कौए ने उसे बहे लये क चालाक से प र चत कराते ए रोकना चाहा, ले कन वह
अपने लालच पर संयम न रख सका और पूरे प रवार के साथ जाल म फंस गया। कहा गया
है
ज ालौ य स ानां जलम य नवा सनाम् ।
अ च ततो वधोऽ ानां मीनाना मव जायते ।।
क अपनी जीभ पर नय ण न रखने वाले जलचर मूख मछ लय क भां त समय से पूव ही
मृ यु के ास बन जाते ह।
ले कन इसे भा य क वड बना मानकर इस पर स तोष कया जा सकता है।
पौल यः कथम यदारहरणे दोषं न व ातवान्
रामेणा प कथं न हेमह रण यास भवो ल तः ।
अ ा प यु ध रेण सहसा ा तो नथः कथं
यास वप मूढमनसां ायो म तः ीयते ।।
रावण के ारा पर ी-हरण के दोष पर वचार न करना, ीराम के ारा सुवण मृग
पर यान न दे ना तथा यु ध र के ारा जुआ खेलते समय न हत अनथ को न समझना
आ द त य यही सू चत करते ह क वप के समय बु मान का ान भी न हो जाता है
और वे उ चत- अनु चत म भेद को नह समझ पाते।
कृता तपाशब ानां दै वोपहतचेतसाम् ।

Downloaded from www.PDFshala.com


बु यः कु जगा म यो भव त महताम प ।।
यमराज जनको यमपाश म बांधना चाहता है, उन बु मान् य क बु भी
उस समय उलटे रा ते पर चलने लगती है।
बहे लया कबूतर को अपने जाल म फंसा दे खकर स होकर उ ह पकड़ने के लए
उनक ओर चला। ले कन बहे लये को अपनी ओर आता दे खकर कबूतर के मु खया ने
अपने प रजन को च तत न होने और धीरज धरने के लए समझाते ए कहा—
सने वेव सवषु य य बु न हीयते ।
स तेषां पारम ये त त भावादसंशयम् ।।
संकट उप थत होने पर अपनी बु और अपने स तुलन को बनाये रखने वाला ाणी
अव य ही संकट से पार हो जाता है।
स प ौ च वप ौ च महतामेक पता ।
उदये स वता र ो र ा तमये तथा ।।
जस कार उदय होते समय और अ त होते समय सूय लाल बना रहता है, उसी
कार स जन भी सुख- ःख म एक समान, अथात् अ वच लत बने रहते ह, अथात् वे
सप ा त करके हष म और वप ा त कर वषाद त नह होते।
अतः तुम सब इस जाल को लेकर थोड़ी र तक उड़ चलो। तब तक म इस ब धन से
छू टने का उपाय सोचता ं। य द तुम ऐसा नह करोगे, तो बहे लये के हाथ म पड़कर अव य
मारे जाओगे।
त तवोऽ यायता न यं त तवो ब लाः समाः ।
ब ब वादायासा सह ती युपमा सताम् ।।
जस कार अपना व तार करने वाले त तु एक होकर झोले के प म भार उठाने
म समथ हो जाते ह, उसी कार महा मा लोग भी संकट के समय अपनी बु से अपना
उ ार कर लेते ह।
कबूतर ने भी अपने मु खया के आदे श का पालन कया। जब बहे लये ने जालस हत
कबूतर को उड़ते दे खा, तो वह उनके पीछे भागता आ कहने लगा—
जालमादाय ग छ त संहताः प णोऽ यमी ।
याव च वव द य ते प त य त न संशयः ।।
ये कबूतर आपस म समझौता करके उड़ तो रहे ह, ले कन कुछ ही दे र म ये आपस म लड़ने
लगगे और फर इ ह धरती पर गरने म दे र नह लगेगी।
इधर लघुपतनक कौआ भी अपने भोजन क च ता छोड़कर कबूतर क नय त को
जानने के लए उनके पीछे चल दया। जब कबूतर बहे लये क आंख से ओझल हो गये, तो
वह नराश होकर लौटते ए अपने आपसे कहने लगा—

Downloaded from www.PDFshala.com


न ह भव त य भा ं
भव त च भा ं य नेन ।
करतलगतम प न य त
य य ह भ वत ता ना त ।।
अनहोनी कभी नह होती और होनी कभी टल नह सकती, वह होकर ही रहती है। इसी लए
कहा है क जब भा य म नह होता, तो हाथ म आया आ पदाथ भी न हो जाता है।
पराङ् मुखे वधौ चे या कथ चद् वणोदयः ।
त सोऽ यद प संगृ या त शङ् ख न धयथा ।।
भा य के अनुकूल न होने पर कसी कार धन ा त कर लेने वाला शंख न ध
के समान ा त धन के साथ ही अपने पहले से ा त धन को भी न कर बैठता है। मुझे
प य का मलना तो र रहा, मेरी आजी वका का साधन मेरा जाल भी मुझसे छन गया।
य द यह सब भा य का खेल नह है, तो और या है?
इधर च ीव ने जब बहे लये को लौट गया दे खा, तो उसने अपने प रजन को
पूव र दशा क ओर चलने को कहा और बताया क वहां मेरा म हर यक नामक एक
चूहा रहता है। अब हम उसके पास चलते ह, वह हम सबके ब धन काट दे गा।
सवषामेव म यानां सने समुप थते ।
वाङ् मा ेणा प साहा यं म ाद यो न स दधे ।।
संकट के समय मौ खक आ ासन भी केवल म से ही मल सकता है। अ य कोई
इतना भी नह करता।
च ीव के कहने पर सभी कबूतर हर यक नामक चूहे के नवास क ओर उड़ चले।
हर यक हज़ार ार वाले अपने बल म नभय होकर रहता था।
अनागतं भयं ् वा नी तशा वशारदः ।
अवस मूषक त कृ वा शतमुखं बलम् ।।
नी त नपुण हर यक ने कसी भी स भा वत भय से अपनी सुर ा के लए पहले ही
सैकड़ ार वाला बल, अथात् क़ला बनाकर उ चत व था कर रखी थी। इस लए वह
आन दपूवक अपना समय बताया करता था।
दं ा वर हतः सप मदहीनो यथा गजः ।
सवषां जायते व यो गहीन तथा नृपः ।।
स य तो यह है क दं शहीन सांप और मद वहीन हाथी के समान ग वहीन राजा भी
असहाय होता है और इसी लए वह शी ही श ु के हाथ म पड़ जाता है।
न गजानां सह ेण न च ल ेण वा जनाम् ।
त कम स यते रा ां गणैकेन य णे ।।

Downloaded from www.PDFshala.com


यु के समय हज़ार हा थय और लाख घोड़ से भी कह अ धक उपयोगी एक ग
होता है। ग म रहकर राजा ब कुल सुर त रहता है।
शतमेकोऽ प स ध े ाकार थो धनुधरः ।
त माद् ग शंस त नी तशा वदो जनाः ।।
ग म थत राजा अकेला होने पर भी सैकड़ श ु को धूल चटा सकता है,
इसी लए शा कार ग को इतना अ धक मह व दे ते ह और उसक शंसा करते ह।
ग के ार पर प ंचकर च ीव ने अपने म को पुकारा— म हरय क! म
तु हारा म च ीव तुमसे मलने आया ं। म इस समय भारी क म ं, अतः तुम शी ही
बाहर आ जाओ।
यह आवाज़ सुनकर हर यक ने अपनी सुर ा को न त करने के लए पूछा—कौन
च ीव है और कैसी वप आ पड़ी है?
च ीव ने अपना पूरा प रचय दे कर पूरी घटना क जानकारी दे ने के लए हर यक
से बाहर आने का अनुरोध कया, तो म के आने से पुल कत हर यक तुर त बाहर आया
और कहने लगा—
सु दः नेहस प लोचनान ददा यनः ।
गृहे गृहवतां न यं नाग छ त महा मनाम् ।।
ने को आन द दे ने वाले तथा नेह करने वाले म क ह पु या मा के सौभा य के
कारण ही उनके घर पधारते ह।
आ द य योदयं तात ता बूलं भारती कथा ।
इ ा भाया सु म ं च अपूवा ण दने- दने ।।
म ! उदयकालीन सूय का दशन, ता बूल का सेवन, महाभारत का वण, मनचाही
ी क ा त तथा स चे म का मलन अ य त सौभा य से ही होता है।
सु दो भवने य य समाग छ त न यशः ।
च े च त य सौ य य न क च तमं सुखम् ।।
जसके घर न य- त म का आगमन होता रहे, इस संसार म उससे सौभा यशाली
अ य कोई ाणी हो ही नह सकता।
प रजन स हत च ीव को जाल म बंधा दे खकर हर यक ने पूछा— म ! यह सब
कैसे हो गया?
च ीव बोला—तुम दे ख तो रहे हो, हम सब बंधे पड़े ह और यह हमारी ही कसी
मूखता का प रणाम है;
य मा च येन च यदा च यथा च य च
याव च य च शुभाशुभमा मकम ।

Downloaded from www.PDFshala.com


त मा च तेन च तदा च तथा च त च
ताव च त च कृता तवशा पै त ।।
य क जसके ारा जहां, जब, जैसा, जतना और जो भी शुभ अथवा अशुभ कम कया
जाता है, उसे वहां, यथासमय, वैसा, उतना और वही फल ा त होता है। इस फल दे ने के
पीछे काल क ेरणा ही काय कर रही होती है।
हम सब अपनी ही भूल के कारण ब धन त ए ह। अब तुम तुर त ही हमारे ब धन
को काटकर हम मु करो। यह सुनकर हर यक बोला—
अ य ा ोजनशतादा मषं वी ते खगः ।
सोऽ प पा थतं दै वाद्ब धनं न च प य त ।।
मुझे आ य है क डेढ़-दो सौ मील क री से भी मांस के टु कड़े को दे ख लेने वाले तुमको
अपनी आंख के सामने पड़ा जाल कैसे दखाई नह दया?
र व नशाकरयो हपीडनं
गजभुज वह मब धनम् ।
म तमतां च नरी य द र तां
व धरहो बलवा न त मे म तः ।।
तु हारी इस दशा को दे खकर वधाता क बलता को मानना पड़ता है। वधाता क
इस बलता के कारण ही सूय और च को रा -केतु सते रहते ह, हाथी, सांप और प ी
भी पकड़कर बांधे जाते ह। बड़े-बड़े व ान् द र दे खे जाते ह और इन सबको दे खकर हम
इसी प रणाम पर प ंचते ह क वधाता के आगे कसी का वश नह चल सकता।
ोमैका त वहा रणोऽ प वहगाः स ा ुव यापदं
ब य ते नपुणैरगाधस लला मीनाः समु ाद प ।
ण तं क महा त क च सुकृतं कः थानलाभे गुणः
कालः सवजना सा रतकरो गृ ा त राद प ।।
आकाश के एका त म वचरण करने वाले प य का ब धन त होना तथा चतुर
य का गहरे समु म रहने वाले जलचर को बांधने म सफल होना इस स य क पु
करता है क इस संसार म लभ, सुकृत एवं थान- वशेष के गुण के स ब ध म न त प
से कुछ भी कहना स भव नह है; य क काल के हाथ ब त ल बे ह और वह कसी को भी
अपनी ओर र से भी ख च लेता है।
यह कहकर हर यक च ीव के ब धन काटने के लए य ही उसक ओर बढ़ा, तो
च ीव बोला— म ! पहले मेरे ब धन नह , मेरे इन प रजन के ब धन को काटो, मेरी
बारी तो इनके बाद ही आयेगी।
यह सुनकर हर यक बोला—तु हारी बात मुझे उ चत नह लगती। मेरी राय म तो

Downloaded from www.PDFshala.com


सेवक क बारी वामी के बाद ही आती है।
च ीव बोला—ये मेरे सेवक नह ह, ले कन मेरे त नेह और व ास के कारण ही
ये सब अपने प रवार को छोड़कर मेरे साथ आये ह। इनका यथायो य स मान करना मेरा
कत है। कहा भी गया है
यः स मानं सदा ध े
भृ यानां तपोऽ धकम् ।
व ाभावेऽ प तं ् वा
ते यज त न क ह चत् ।।
क अपने सा थय का स मान करने वाले वामी के साथी उसके पद अथवा वैभव से हीन हो
जाने पर भी उसके साथ जुड़े रहते ह, उसे छोड़कर नह जाते।
व ासः स पदां मूलं तेन यूथप तगजः ।
सहो मृगा धप येऽ प न मृगैः प रवा यते ।।
सब ऐ य का मूल व ास ही है। व ास के कारण ही हाथी अपने यूथ को बनाये
रखता है और यूथप त कहलाता है। इसके वपरीत सह मृगराज कहलाता तो है, क तु वह
कभी मृग से घरा नह रहता।
इसके अ त र एक अ य वचारणीय बात यह भी है क मेरे ब धन काटते ए कह
तु हारे दांत टू ट गये अथवा भा यवश कोई बहे लया आ प ंचा, तो इन सबक ग त के लए
उ रदायी होने के कारण मुझे नरक म जाना पड़ेगा।
सदाचारेषु भृ येषु संसीद सु च यः भुः ।
सुखी या रकं या त पर ेह च सीद त ।।
सदाचारी सेवक को संकट म डालकर अपने क याण क च ता करने वाला वामी
इस जीवन म न दत होता है और मरने पर नरक म जाता है।
च ीव के इस कथन से स होकर हर यक बोला—म यही करने वाला था,
क तु म तु ह परख रहा था। अब म एक-एक करके तुम सबके ब धन काटता ं, ता क
तु हारा व तृत प रवार सदा बना रहे।
का यं सं वभाग य य भृ येषु सवदा ।
स भवे स महीपाल ैलो य या प र णे ।।
जो राजा अपने सेवक को स मान, नेह और उदारता से दान दे ने वाला होता है, वह
लोक पर वजय ा त करने म सफल और समथ हो जाता है।
सबको ब धनमु करने के बाद हर यक ने च ीव से कहा—अब तुम सब अपने
नवास को लौट सकते हो। य द फर भी मेरी आव यकता पड़े, तो यहां आने म संकोच मत
करना।

Downloaded from www.PDFshala.com


यह कहते ए हर यक ने प रजन स हत च ीव को वदा कया और वयं अपने
बल म चला गया।
म वा साधय यथा ःसा यान प वै यतः ।
त मा म ा ण कुव त समाना येव चा मनः ।।
स य तो यह है क म से स ब ध बनाये रखने वाले य के लए अपने क ठन-
से-क ठन काम को कर लेना भी क ठन नह होता। इस लए लोग को अपने समान लोग से
मै ी-स ब ध बनाने चा हए।
कबूतर का पीछा करते ए लघुपतनक कौए ने यह सारा खेल दे खा, तो वह च कत
होकर सोचने लगा— हर यक क बु , श और ग का कोई जवाब नह । कबूतर के
साथ इस चूहे क म ता और इसक सहायता भी आ य करने वाली है। म वभाव से
च चल ं और कसी पर व ास भी नह करता, ले कन इस चूहे को अपना म बनाने का
यास अव य क ं गा;
अ प स पूणतायु ै ः क ाः सु दो बुधैः ।
नद शः प रपूण ऽ प च ोदयमपे ते ।।
य क जस कार हर कार से स पूण होने पर भी समु च मा से अपनी मै ी बनाये
रखता है, उसी कार समथ होने पर भी व ान को अपने अनेक म बनाने चा हए।
यह सोचकर लघुपतनक कौआ वृ से उतरा और चूहे के बल के पास जाकर
च ीव क भां त ही हर यक को आवाज़ लगाने लगा। हर यक ने सोचा क शायद कोई
कबूतर बंधा रह गया है, जसके लए मुझे बुलाया जा रहा है। फर भी, उसने प क
जानकारी न त करने के लए पूछा—तुम कौन हो?
उ र म कौए ने कहा—म लघुपतनक नामक कौआ ं।
हर यक बोला—तुम तुर त ही यहां से चले जाओ।
कौआ बोला—मुझे आपसे एक आव यक काम है, जसके लए मुझे आपसे मलना
है।
हर यक बोला—मुझे आपसे नह मलना। आप यहां से चले जाइये।
लघुपतनक बोला—मने आपको उन कबूतर को ब धन से मु करते दे खा है,
इस लए म सोचता ं क य द कह मेरे ऊपर भी ऐसी कोई वप आ पड़ी, तो आप मेरे
लए भी सहायक स हो सकते ह। इस लए म आपके साथ म ता करना चाहता ं।
हर यक बोला—भ क और भ य म म ता कभी नह हो सकती और न नभ ही
सकती है। शा म कहा है
ययोरेव समं व ं ययोरेव समं कुलम् ।
तयोम ी ववाह न तु पु वपु योः ।।
क समान धन वाले और समान कुल वाले लोग म ही म ता तथा ववाह स ब ध सफल

Downloaded from www.PDFshala.com


होते ह। एक धनी और कुलीन हो तथा सरा नधन और अकुलीन हो, तो मै ी और ववाह
स ब ध कभी नह नभ सकते।
यो म ं कु ते मूढ आ मनोऽस शं कुधीः ।
हीनं वा य धकं वा प हा यतां या यसौ जनः ।।
अपने से उ त अथवा अवनत ाणी के साथ मै ी स ब ध था पत करने वाला मूख
और बु हीन ाणी न केवल असफल रहता है, अ पतु जगहंसाई का पा भी बनता है।
इसी लए म तु ह यहां से चले जाने को कह रहा ं।
कौआ बोला—म आपके दरवाज़े पर बैठा ं, जब तक आप मुझसे म ता के लए
राज़ी नह ह गे, म यह बैठा र ंगा। भले ही मेरे ाण छू ट जाय, क तु म अ -जल आ द
कुछ भी हण नह क ं गा।
हर यक बोला—तुम तो मेरे श ु हो, हम दोन म म ता कैसे हो सकती है?
वै रणा न ह स द या सु ेना प स धना ।
सुत तम प पानीयं शमय येव पावकम् ।।
जस कार आग पर गरम कया आ पानी भी आग को बुझा दे ता है, उसी कार
म ता हो जाने पर भी अपना श ु श ु ही रहता है। इस लए ेमपूवक स ध करने क इ छा
रखने वाले श ु को भी र रखने म ही भलाई होती है।
कौआ बोला—आपने मुझे अभी दे खा तक नह , फर भी आप मुझे अपना श ु मान
रहे ह। यह तो उ चत नह है।
हर यक बोला—श ुता दो कार क होती है—सहज और बनावट । तुम मेरे सहज
श ु हो!
कृ मं नाशम ये त वैरं ा कृ मैगुणैः ।
ाणदानं वना वैरं सहजं या त न यम् ।।
कृ म श ुता को तो श ुता के कारण को र करके समा त कया जा सकता है,
क तु सहज श ुता ाण लये बना कभी समा त नह होती।
कौआ बोला—ठ क है, अब आप मुझे इन दो कार क श ुता क प रभाषा
बतलाइये।
हर यक बोला—कारण- वशेष से उ प और यु उपाय से शा त हो जाने वाली
श ुता कृ म कहलाती है। कभी न मटने वाली श ुता सहज कहलाती है। सांप और नेवले
क , तनके और आग क , शाकाहारी और मांसाहारी क , जल और अ न क , धनी और
नधन क , मृग और बहे लए क , आचार न और आचार क , मूख और प डत क
तथा प त ता और कुलटा क तथा स जन- जन क श ुता सहज कहलाती है। इन सहज
श ु म कसी क ह या न करने पर भी दोन एक- सरे के लए ःखदायी बने रहते ह।

Downloaded from www.PDFshala.com


कारणा म तां या त कारणादे त श ुताम् ।
त मा म वमेवा यो यं वैरं न धीमता ।।
कौआ बोला—म तो यह मानता ं क सहज अथवा अकारण म ता और श ुता
होती ही नह है। कारण- वशेष से ही म ता और श ुता होती है। मेरी आपके त ा है,
इसी लए म आपसे म ता करना चाहता ं, अतः आप-जैसे बु मान् को भय छोड़कर
मुझसे म ता कर लेनी चा हए।
अब आप मुझसे म ता करने के लए मुझे अपने दशन द जये।
हर यक बोला—नी तकार ने कहा है
सकृ मपी ं यः पुनः स धातु म छ त ।
स मृ युमुपगृ ा त गभम तरी यथा ।।
क जस कार ख चरी का गभ धारण करना उसका अपनी मृ यु को आम त करना है,
उसी कार अपने सहज श ु से मै ी क सोचना भी आ मह या करने के समान है।
कसी को गुणी मानकर उसे अपने ऊपर अनुर मान लेना अपने को धोखा दे ना
होता है। कहा भी गया है
सहो ाकरण य कतुरह ाणा या पा णनेः
मीमांसाकृतमु ममाथ सहसा ह ती मु न जै म नम् ।
छ दो ान न ध जघान मकरो वेलातटे पगलं
अ ानावृतवेतसाम त षां कोऽथ तर ां गुणैः ।।
क सह ने पा ण न-जैसे वैयाकरण के ाण ले लये, मदम त हाथी ने मीमांसा दशन के
णेता जै म न को मार डाला तथा मगरम छ ने समु तट पर नान करते छ द शा के
मनीषी मह ष पगल को नगल लया। इन घटना से यह स होता है क अ ाना धकार
से बु हीन बने अपने सहज वैरी को कसी के गुण से या लेना-दे ना होता है, उ ह तो
अपनी भूख मटानी होती है।
कौआ बोला—म आपक बात से सहमत ,ं ले कन म आपको अपनी बात सुनाना
चाहता ं;
उपकारा च लोकानां न म ा मृगप णाम् ।
भया लोभा च मूखाणां मै ी या शना सताम् ।।
य क संसार म जहां कसी उपकार के कारण लोग म म ता हो जाती है, वहां पशु-प य
म कसी अ य कारण से म ता का स ब ध जुड़ जाता है, जहां मूख लोग भय अथवा लोभ
के कारण कसी से म ता कर लेते ह, वहां स पु ष एक- सरे का दशन करके ही एक- सरे
के म बन जाते ह।
मृदघट
् इव सुखभे ो ःस धान जनो भव त ।

Downloaded from www.PDFshala.com


सुजन तु कनकघट इव भ ः सुकरस ध ।।
जन क म ता एक बार टू टने के बाद पुनः न जुड़ पाने वाले मट् ट के घड़े के
समान होती है। ले कन स जन क म ता सोने के घड़े के समान होती है, जो पहले तो
टू टता नह और य द टू ट भी जाये, तो शी ही पुनः जुड़ जाता है।
इ ोर ा मशः पव ण पव ण यथा रस वशेषः ।
त स जनमै ी वपरीतानां तु वपरीता ।।
जस कार ईख के नीचे के पोर म रस अ धका धक बढ़ता जाता है, उसी कार
स जन क म ता म भी समय के साथ नेह क मा ा बढ़ती जाती है, ले कन इसके
वपरीत, जन क म ता समय के साथ घटती जाती है।
आर भगुव यणी मेण
ल वी पुरा वृ मती च प ात् ।
दन य पूवा परा भ ा
छायेव मै ी खलस जनानाम् ।।
स जन क म ता ढलते सूय क छाया के समान होती है, जो आर भ म छोट होती
है, ले कन धीरे-धीरे बढ़ती जाती है, जब क जन क म ता उदय होते सूय क छाया के
समान—पहले घनी, पर धीरे-धीरे ीण होती जाती है।
अरे म ! मुझ पर व ास करो, शपथ लेकर म आपको अपनी स जनता का व ास
दला ं गा।
हर यक बोला—म शपथ पर व ास नह करता; य क नी तकार का कहना है
शपथैः स धत या प न व ासं जे पोः ।
ूयते शपथं कृ वा वृ ः श े ण सू दतः ।।
क शपथ लेकर स ध करने वाले श ु पर कभी व ास नह करना चा हए। इ ने शपथ
लेकर वृ ासुर से स ध क और उसका वध कर डाला। इस कथा से भी यही स दे श मलता
है।
न व ासं वना श ुदवानाम प स य त ।
व ासा दशे े ण दतेगभ वदा रतः ।।
व ास तो दलाना पड़ता है; य क इसके बना तो दे वता के लए भी अपना
वाथ स करना स भव नह हो सकता। इ ने द त को व ास म लेकर ही उसके गभ
को न कर डाला था।
बृह पतेर प ा त मा ैवा व सेत् ।
य इ छे दा मनो वृ मायु यं च सुखा न च ।।
इस लए अपनी वृ , आयु तथा अपने सुख को सुर त रखने वाले को न ा

Downloaded from www.PDFshala.com


के तीक दे वगु बृह प त पर भी व ास नह करना चा हए।
सुकृ यं व णुगु त य म ा तभागव य च ।
बृह पतेर व ासो नी तस ध धा थतः ।।
तीन स नी तकार के तीन सुझाव इस कार ह—
(क) चाण य के अनुसार— कसी भी काम को सोच- वचार करने के बाद ही करना
चा हए।
(ख) शु ाचाय के अनुसार—अ धका धक लोग को म बनाना चा हए।
(ग) बृह प त का कथन है— कसी पर भी व ास नह करना चा हए।
महताऽ यथसारेण यो व स त श ुषु ।
भा यासु सु वर ासु तद तं त य जी वतम् ।।
जो कसी ववशता अथवा वशेष योजन के कारण अपने श ु अथवा अपने
से वर हो गयी ी पर व ास करता है, वह एक कार से अपने जीवन को उसके हाथ
म गरवी रख दे ता है।
यह सुनकर लघुपतनक कुछ भी कहने म असमथ हो गया। वह सोचने लगा—
हर यक तो नी त और ान म अ य त नपुण है। स भवतः इसी लए इसके त मेरा मोह
और भी बढ़ गया है। वह कहने लगा—
सतां सा तपदं मै म या वबुधा जनाः ।
त मा वं म तां ा तो वचनं मम त छृ णु ।।
व ान ने कहा है क सात क़दम भी साथ-साथ चलने वाले दो स जन को आपस म म
ही समझना चा हए। इस लए अब आप भी मेरे म बन गये ह। अतः अब आप मेरी बात
सु नये।
य द आपको मुझ पर व ास नह हो रहा, तो कोई बात नह । ले कन आपको अपने
ग म बैठकर मुझसे बातचीत करने अथवा कसी वषय पर चचा करने म तो कोई आप
नह होनी चा हए।
कौए के इस सुझाव पर चूहा सोचने लगा क यह ाणी तो मुझे स य न , ईमानदार
और मेरा म बनने को तैयार तीत होता है। इसके साथ मै ी करने म कोई दोष तो नह
दखता, क तु फर भी इससे सतक तो रहना ही होगा। यह सोचकर वह कहने लगा—
भीतभीतः पुरा श ुम दं म दं वसप त ।
भूमौ हेलया प ा जारह तोऽ ना वव ।।
दे खो! आर भ म कसी ी को हाथ लगाने से भी डरने वाला उसका चालाक यार बाद म
खुलकर उसका भोग करता है। इसी कार फूंक-फूंककर पैर रखने वाला श ु भी छ
ढूं ढ़कर वनाश करने वाला बन जाता है। इस लए तुम कभी मेरे पास आने का यास मत

Downloaded from www.PDFshala.com


करना।
यह सुनकर कौआ बोला—मुझे वीकार है।
उस दन के बाद दोन आपस म अनेक वषय पर चचा करने लगे। यहां तक क दोन
एक- सरे से अपने खा पदाथ का भी आदान- दान करने लगे, जो सवथा उ चत ही था।
कहा भी गया है
ददा त तगृ ा त गु मा या त पृ छ त ।
भुं े भोजयते चैव षड् वधं ी तल णम् ।।
क म के छह ल ण होते ह—1. म को दे ना और 2. उसके ारा दये ए को वीकार
करना, 3. अपने गु त रह य क म को जानकारी दे ना तथा 4. उसके गु त रह य से
प र चत होना, 5. म को खलाना- पलाना तथा 6. उसके साथ खाना-पीना।
नोपकारं वना ी तः कथ च क य च वेत् ।
उपया चतदानेन यतो दे वा अभी दाः ।।
बना उपकार के, कसी को कसी के साथ यार नह होता। दे वता भी म त मानने
पर ही अभी दान करते ह।
ताव ी तभवे लोके याव ानं द यते ।
व सः ीर यं ् वा प र यज त मातरम् ।।
इस संसार म लेन-दे न के चलते रहने पर ही ेम- यार का नवाह होता है ध न पला
सकने वाली गाय को तो उसका बछड़ा भी छोड़ जाता है।
प य दान य माहा यं स ः ययकारकम् ।
य भावाद प े षी म तां या त त णात् ।।
दान का य मह व यह दे खने को मलता है क प र चत तो या, श ु भी त काल
म बन जाते ह।
पु ाद प यतरं खलु तेन दानं
म ये पशोर प ववेक वव जत य ।
द े खले तु न खलं खलु येन धं
न यं ददा त म हषी ससुता प प य ।।
पशु भी दान के मह व को भलीभां त समझते ह, इसी लए तो अपने बछड़ को ध न
पलाने वाली भस भी अपने को ब ढ़या दाना तथा भूसा आ द खलाने वाले को त दन ध
दे ने लगती है।
ी त नर तरां कृ वा भ ां नखमांसवत् ।
मूषको वायस ैव गतौ कृ म म ताम् ।।
दान के आधार पर ही नख और मांस—नाख़ून मांस को ढकते ह, इसी लए मांस

Downloaded from www.PDFshala.com


नाख़ून को बढ़ाते ह—क भां त कौआ और चूहा भी आपस म ेम बढ़ाकर कृ म ही सही,
पर तु प के म बन गये।
धीरे-धीरे कौए के वहार पर मु ध होकर चूहा उस पर इतना व ास करने लगा क
बना कसी डर के उसके पंख पर बैठकर उसके साथ बातचीत करने लगा। एक दन आंख
म आंसू भरकर कौआ चूहे से बोला— म ! मेरा मन इस थान से उचट गया है, अतः म यहां
से कसी अ य थान पर जाना चाहता ।ं
हर यक ने पूछा—इसका कोई कारण तो होगा।
इस पर कौआ बोला—अनेक वष से वषा न होने के कारण यहां अकाल क थ त
पैदा हो गयी है। इसी लए अपने लए अ जुटा पाने म असमथ लोग ने हमारे लए अ का
दान दे ना छोड़ दया है और घर-घर म प य को फंसाने के लए जाल फैला रखे ह। एक
बार तो म भी फंस गया था, ले कन भा य अनुकूल था, इसी लए कसी कार बच गया ।ं
शायद इसी लए अब मेरा मन इस थान से उचट गया है और म कसी अ य थान म जाना
चाहता ं।
हर यक ने पूछा—तो कहां जाने का इरादा है?
लघुपतनक बोला—यहां से द ण क ओर घने वन म व छ और मधुर जल से भरा
एक सरोवर है, जहां मेरा एक म म थरक नामक कछु आ रहता है, वह मुझे मछ लय का
मांस खलायेगा। म यहां से चला जाऊंगा, तो मुझे अपने जा त-ब धु को पाश म बंधकर
न होते तो नह दे खना पड़ेगा। तु ह छोड़ने म मुझे क हो रहा है और इसी लए म रो रहा
ं। नी तशा म कहा है
अनावृ हते दे शे श ये च लयं गते ।
ध या तात न प य त दे शभंगं कुल यम् ।।
क अनावृ , उपज के वनाश तथा अ य कसी दै वी उ पात से अपने कुल के वनाश को न
दे खने वाले ाणी वा तव म ध य होते ह।
कोऽ तभारः समथानां क रं वसा यनाम् ।
को वदे शः स व ानां कः परः यवा दनाम् ।।
समथ य के लए कसी व तु का भारी होना, ापा रय के लए कसी थान
का र होना, व ान के लए कसी दे श का पराया होना तथा म भाषी व ा के लए
कसी का अप र चत होना कोई मह वपूण बात नह होती।
व व च नृप व च नैव तु यं कदाचन ।
वदे शे पू यते राजा व ा सव पू यते ।।
धन और अ धकार को एक-समान कभी नह समझना चा हए; य क राजा को
केवल अपने दे श म ही स मान ा त होता है, ले कन व ान् तो जहां कह भी जाता
है, वह सब कह स मान ा त कर लेता है।

Downloaded from www.PDFshala.com


हर यक बोला—य द तुमने जाने का मन बना ही लया है, तो मुझे भी अपने साथ ले
चलो।
इस पर कौए ने पूछा—ले कन तु ह यहां या क है?
चूहे ने उ र दया—इस वषय म ब त कुछ कहा जा सकता है। वह सब म तु ह नये
थान पर प ंचकर ही बताऊंगा।
कौए ने कहा—म तो आकाश-माग से उड़कर चला जाऊंगा, तुम मेरे साथ कैसे चल
सकोगे?
चूहा बोला—य द तुम मेरे ाण बचाना चाहते हो, तो मुझे अपनी पीठ पर बठाकर
अपने साथ ले चलो। य द तुम ऐसा नह करोगे, तो मेरा मुंह नह दे ख सकोगे।
इस पर कौए ने कहा—तु ह अपने साथ ले जाने से बढ़कर मेरे लए स ता का कोई
अ य वषय तो हो ही नह सकता। तु हारे साथ रहकर मेरा समय और भी अ धक
आन दपूवक बीतेगा। म उड़ान क आठ ग तय को जानता ं। इस लए म आव यकता के
अनुसार उड़ान भरता आ तु ह न त थान पर प ंचा ं गा। तुम मेरी पीठ पर सवार हो
जाओ, ता क म अपनी उड़ान भर सकूं।
हर यक क ज ासा पर उसे उड़ान क आठ ग तय के नाम बताता आ
लघुपतनक बोला
स पातं व पात च महापातं नपातनम् ।
व ं त यक् तथा चो वम मं लघुसं कम् ।।
क उड़ने क आठ ग तयां होती ह—स पात, व पात, महापात, नपात, व ग त, तरछ
ग त, ऊ वग त तथा लघु नामक ग त।
हर यक कौए क पीठ पर सवार हो गया और कौआ व भ उड़ान भरता आ
न त थान पर जा प ंचा। कौए क पीठ पर चूहे को सवार आ दे खकर म थरक यह
सोचकर क कोई बड़ा कौआ मेरी ओर आ रहा है, अपनी ाणर ा के लए जल म जा घुसा।
लघुपतनक ने हर यक को पास के एक वृ के बल म छोड़ा और वयं कसी ऊंचे वृ
शाख पर जा बैठा। वहां से उसने अपना प रचय दे कर अपने म म थरक नामक कछु ए को
पुकारा और उससे मलने का अनुरोध करते ए बोला—
क च दनैः सकपूरै तु हनैः क च शीतलैः ।
सव ते म गा य कलां नाह त षोडशीम् ।।
अपने म के शरीर के आ लगन से सरे म के शरीर को जैसी ठ डक मलती है,
वैसी कपूर मले च दन तथा हम आ द पदाथ के योग से भी नह मलती। वे म - मलन
के सुख क शीतलता के सोलहव भाग जतनी ठ डक भी नह दे सकते।
इसी लए कहा गया है
केनामृत मदं सृ ं म म य र यम् ।

Downloaded from www.PDFshala.com


आपदा च प र ाणं शोकस तापभेषजम् ।।
क अमृत के समान म -जैसे दो श द — म+ —क सृ तो कसी पु या मा ने ही क
लगती है; य क म न केवल आप य से र ा करता है, अ पतु शोक और स ताप को
न करने क ओष ध भी होता है।
लघुपतनक क आवाज़ को पहचानकर म थरक जल से बाहर आया और आन द के
आंसू बहाता आ म से लपटकर कहने लगा—तुम ब त समय के बाद आये हो, इस लए
पहचानने म ई दे र के लए मुझे मा करना। म इस लए जल म जा घुसा था क तु ह
पहचान न सका था। आचाय बृह प त ने कहा है
य य न ायते वी य न कुलं न वचे तम् ।
न तेन स त कु या द युवाच बृह प तः ।।
क जसके परा म, कुल और वहार क पूरी जानकारी न हो, उस ाणी का संग कभी
नह करना चा हए।
अमृत य वाहैः क काय ालनस भवैः ।
चरा म प र व ो योऽसौ मू य वव जतः ।।
अपने म म थरक को आ लगनब करता आ कौआ बोला—य द शरीर क शु
के लए अमृत भी उपल ध हो, तो उससे नहाना और उसे बहाना भी थ होता है। ब त
समय के बाद मले म के समान सुख तो अमृत से भी नह मल सकता।
इस कार दोन म स होकर वृ के नीचे जा बैठे और एक- सरे क आप-बीती
सुनने-सुनाने लगे। इसी बीच हर यक भी म थरक को णाम करके वहां आकर बैठ गया।
लघुपतनक से उस चूहे का प रचय जानकर आ य कट करते ए म थरक ने कहा—तुम
अपने भ य को इस कार अभयदान दे कर अपने साथ लये फरते हो, इसम अव य ही कोई
असाधारण बात होगी।
इस पर लघुपतनक बोला— म ! यह हर यक भी तु हारी तरह मेरा म है और
अपने ाण के समान ही मुझे य है। मेरी इस थोड़े म कही बात को ही ब त समझना।
प ज य य यथा धारा यथा च द व तारकाः ।
सकता रेणवो य सं यया प रव जताः ।।
गुणसं या प र य ा त द य महा मनः ।
परं नवदमाप ः स ा तोऽयं तवा तकम् ।।
जस कार बादल से हो रही वषा क धाराएं, आसमान के तारे और पृ वी के रज-
कण नह गने जा सकते, उसी कार मेरे इस म के गुण को भी गना नह जा सकता। यह
अपने थान को छोड़कर और बड़ी आशा लेकर आपके पास आया है।
इस पर जब म थरक ने कौए से चूहे के क के वषय म पूछा, तो कौआ बोला—मने

Downloaded from www.PDFshala.com


इससे इस वषय म पूछा था, क तु इसने यह त य यहां प ंचकर ही बताने को कहा था।
अतः अब म हम दोन क उ सुकता को शा त करने के लए इससे अपनी कथा सुनाने का
अनुरोध करता ।ं
इस पर हर यक बोला—सु नये।

कथा म : एक
भारत क द ण दशा म थत म हलारो य नामक नगर के बाहर भगवान् शंकर का एक
मठ था, जहां ता चूड़ नामक सं यासी नगर से भ ा मांगकर अपना जीवनयापन कया
करता था। वह आधी भ ा से अपना पेट भरता था और आधी को एक पोटली म बांधकर
खूंट पर लटका दया करता था। उस आधी भ ा को वह उस मठ क सफ़ाई करने वाले
कमचा रय को उनके पा र मक के प म बांट दे ता था। इस कार उस मठ का रख-रखाव
भली कार हो जाता था।
एक दन मेरे जा त-ब धु कुछ चूहे मुझसे आकर कहने लगे—हम अपनी भूख मटाने
के लए इधर-उधर भटकते रहते ह, जब क खूंट पर टं गी पोटली म वा द भोजन बंधा
रहता है। हम य न करके भी उस खूंट तक नह प ंच सकते। आप हमारी कुछ सहायता
य नह करते?
म अपने सा थय के साथ उधर चल दया और हम वहां जा प ंचे। मने एक ऊंची
छलांग लगायी, पोटली म रखे भोजन को वयं भी खाया और अपने सा थय को भी
खलाया। जब यह सल सला त दन चलने लगा, तो सफ़ाई कमचा रय ने पा र मक न
पाकर मठ म काम करना ब द कर दया। इससे वह सं यासी च तत हो उठा। सं यासी ने
हम रोकने का पूरा यास कया, क तु उसके न द म सोते ही म अपने काम म लग जाता
था। अचानक वह फटा आ एक बांस ले आया और मुझे भ ापा से र रखने के लए
सोते समय उस बांस को धरती पर पटकने लगा। बांस के हार के डर से म वह अ खाये
बना ही भाग उठता था। इस कार उस सं यासी क और मेरी पूरी-पूरी रात एक- सरे को
छकाने म ही बीतने लगी।
एक दन उस सं यासी का एक म उसके यहां आया, तो सं यासी ने बड़े ेम तथा
स मानपूवक अपने उस म का वागत कया और उसे भोजन कराया।
रात को सोते समय दोन म बातचीत करने लगे। ले कन ता चूड़ नामक सं यासी
रह-रहकर धरती पर बांस पटकता रहा। अतः वह अपने म क बात पर कोई यान नह दे
पा रहा था। अ त थ म ने ता चूड़ सं यासी के इस वहार को अपना अपमान समझा
और वह कहने लगा—म जान गया ं क अब तुम पहले वाले ता चूड़ नह रहे, तु ह मेरे

Downloaded from www.PDFshala.com


आने से स ता भी नह ई, तभी तो तुम इस कार मेरी उपे ा कर रहे हो। म ातःकाल
ही तु हारे इस मठ को छोड़कर कह और चला जाऊंगा।
कहा गया है
ए ाग छ समा यासन मदं
क मा चराद् यसे
का वा ा अ त बलोऽ स कुशलं
ीतोऽ म ते दशनात् ।
एवं ये समुपागता ण यनः
ादय यादरा-
ेषां यु मशङ् कतेन मनसा
ह या ण ग तुं सदा ।।
क अ त थ को केवल उ ह घर म जाना चा हए, जहां उनके प ंचने पर गृह वामी
स तापूवक आदर-स कार करते ह और कहते ह—आइये, पधा रये, इस बार तो आपने
ब त दन बाद दशन दये ह, या आपने हम भुला दया है या हमसे कोई भूल हो गयी है,
आप सकुशल तो ह? आपके दशन से हम ब त स ता ई है।
गृही य ागतं ् वा दशो वी ेत वा यधः ।
त ये सदने या त ते शृ र हता वृषाः ।।
य द अ त थ को घर म आया दे खकर गृह वामी इधर-उधर दे खने लगे या अ त थ क
उपे ा करने लगे, तो ऐसे के घर म आने वाले अ त थ को बना स ग का बैल समझना
चा हए।
ना यु थान या य नालापा मधुरा राः ।
गुणदोषकथा नैव त ह य न ग यते ।।
ऐसा घर भले ही राजा का महल य न हो, अ त थ को वहां नह जाना चा हए।
लगता है क इस मठ को पाकर तु ह अहंकार हो गया है। तभी तो तुम म के साथ
श वहार करना भी भूल गये हो। तु ह यह नह पता क मठाधीश बनने के
प रणाम व प नरक क ा त होती है।
नरकाय म त ते चे पौरो ह यं समाचर ।
वष याव कम येन मठ च तां दन यम् ।।
शा के अनुसार तो नरकवास के लए एक वष क पुरो हताई ही पया त है, जब क
मठाधीश बनने पर तो यह इ छा मा तीन दन म ही पूरी हो जाती है। मेरी समझ म नह
आता क तुम कस बात पर इतने अहंकारी हो गये हो? ातःकाल होते ही म इस मठ को
छोड़ ं गा।

Downloaded from www.PDFshala.com


अपने म को इस कार ु दे खकर सं यासी ता चूड़ बोला— म ! म तु ह कैसे
व ास दलाऊं क तुम मेरे लए कतने आदरणीय हो? जसे तुम अपनी उपे ा समझ रहे
हो, वह मेरी ववशता है। एक चूहा रात म ऊंची छलांग लगाकर खूंट पर टं गी पोटली म रखी
भ ा को खा जाता है, जससे म कमचा रय को पा र मक नह दे पाता और मठ क
सफ़ाई नह हो पाती। इस चूहे ने मेरी रात क न द हराम कर रखी है। इसको भगाने के लए
ही म रात-भर इस बांस को धरती पर पटकता रहता ।ं बस, यही बात है क म तु हारी बात
पर भी यान नह दे रहा।
सं यासी के म ने पूछा— या तुमने उसके बल को दे खा है? मुझे लगता है क इस
चूहे ने पया त धन पर अपना क ज़ा कया आ है। धन क गरमी के कारण ही इस चूहे म
इतनी फू त है क यह इतनी ऊंची उछाल भर सकता है।
ऊ मा प व जो वृ तेजो नय त दे हनाम् ।
क पुन त य स भोग यागकमसम वतः ।।
धन क गरमी के कारण ही ा णय के तेज म वृ हो जाती है। य द कोई ाणी ान
और यागपूवक धन का उपभोग करे, तो वह कभी तेजर हत नह हो सकता।
नाक मा छा डली मात व णा त तलै तलान् ।
लु चता नतरैयन हेतुर भ व य त ।।
य द शा डली अपने धुले ए तल दे कर बदले म काले तल लेना चाहती है, तो उसके
पीछे अव य ही कोई कारण होना चा हए।
ता चूड़ ने पूछा—यह या कथा है? अ त थ बोला—सुनो।

कथा म : दो
एक बार चातुमास त के लए मने कसी ा ण से थान मांगा, जो उसने मुझे सहष दे
दया और म उसके यहां रहकर दे वपूजन करने लगा।
एक दन ातःकाल मने ा ण को अपनी प नी से यह कहते ए सुना क आज
द णायन सं ा त है, आज कये दान का ब त उ म फल मलता है। म इसी आशा से जा
रहा ।ं तुम कसी एक ा ण को भोजन करा दे ना। प त के वचन सुनकर ा णी बोली—
या तु ह यह सब कहते ल जा नह आती? इस द र घर म रखा ही या है, जो कसी को
भोजन कराया जाये? आज तक तुमने मुझे तो कभी वा द भोजन नह कराया, न कोई
उ म व ही पहनाया है और न ही मुझे कोई आभूषण ख़रीदकर दया है।
प नी के कठोर वचन सुनकर ा ण ने कहा—तु ह भी यह सब कहना उ चत नह
लगता। शा कहते ह

Downloaded from www.PDFshala.com


ासाद प तद च क मा ो द यतेऽ थषु ।
इ छानु पो वभवः कदा क य भ व य त ।।
क इ छानु पी धन तो आज तक कसी को भी नह मला। इस लए जो भी अपने पास है,
उसी म से कसी भ ुक को एक-आध ास दे ना ही स चा दान है।
ई रा भू रदानेन य लभ ते फलं कल ।
द र त च का क या ा ुया द त नः ु तः ।।
मने सुना है क बड़े लोग को धन का दान दे ने से जो फल ा त होता है, वही फल
नधन को एक कौड़ी दान करने से ा त हो जाता है।
दाता लघुर प से ो भव त
न कृपणो महान प समृ ा।
कूपोऽ तः वा जलः ी यै
लोक य न समु ः ।।
धनी कंजूस क अपे ा द र व उदार को ही महान् एवं आदरणीय समझना
चा हए। सागर से कभी कसी क यास नह बुझी, यास बुझाने के लए तो लोग को कुएं
का ही सहारा लेना पड़ता है। जहां वा द जल ा त होता है, वही आ य लेने यो य होता
है।
अकृत यागम ह ना म या क राजराजश दे न ।
गो तारं न नधीनां कथय त महे रं वबुधाः ।।
य द धनी दान नह दे ता, तो भ ुक उसे राजा नह कहते और न ही उसे कोई
मह व दे ते ह। दे व का कोषा य होते ए भी कुबेर को कसी ने आज तक महे र नह
कहा।
स पा ं महती ा दे शे काले यथो चते ।
य यते ववेक ै तदाऽन याय क पते ।।
दे श, काल और पा क यथास भव जांच करके उ चत पा को दया गया दान ही
फलदायक स होता है।
अ ततृ णा न क ा तृ णां नैव प र यजेत् ।
अ ततृ णा भभूत य शखा भव त म तके ।।
लोभ का सवथा याग स भव नह , ले कन अ तलोभ भी उ चत नह होता। अ धक
लोभी के माथे पर शखा नकल आती है।
ा णी क ज ासा को दे खकर ा ण उसे यह कथा सुनाने लगा।

Downloaded from www.PDFshala.com


कथा म : तीन
कसी पशु का वध करने के लए एक घने जंगल म एक ाध ने अ न पवत के समान
काले रंग का एक मोटा शूकर दे खा, तो उसने अपने बाण से उस पर हार कर दया। घायल
शूकर ने पलटकर अपने स ग उस ाध क छाती म घुसेड़ दये। इस कार शूकर के साथ
ही ाध का भी ाणा त हो गया।
इसी बीच भूख से ाकुल एक गीदड़ उधर आ नकला और दोन को मरा दे खकर
अपने भा य को सराहता आ कहने लगा—लगता है क आज भगवान् मुझ पर स ह,
तभी तो बना चाहे और बना भटके अनायास ही इतना भोजन ा त हो गया है।
अकृतेऽ यु मे पुंसाम यज मकृतं फलम् ।
शुभाशुभं सम ये त व धना स यो जतम् ।।
शा का यह वचन न स दे ह स य है क कभी-कभी मनु य को बना कुछ कये भी
ब त कुछ ा त हो जाता है। इसे उसके ारा कये गये पूवज म के ही कसी शुभकम का
फल समझना चा हए।
य म दे शे च काले च वयसा या शेन च ।
कृतं शुभाशुभं कम त था तेन भु यते ।।
जसने जस अव था म, जस दे श व काल म और जैसा भी शुभ-अशुभ कम कया
है, उसे उस अव था म और उस थान व समय पर वैसा ही शुभ-अशुभ फल मलता है।
गीदड़ ने सोचा क मुझे इस भोजन का योग इस कार करना चा हए, जससे मेरी
गाड़ी ब त दन तक चल सके। इस लए आज केवल बहे लए के धनुष म लगी तांत को
खाकर ही अपना गुज़ारा कर लेना चा हए।
शनैः शनै भो ं वयं व मुपा जतम् ।
रसायन मव ा ैहलया न कदाचन ।।
बु मान् को अपने ारा उपा जत धन के साथ भी खलवाड़ नह करना
चा हए, ब क उसे अपनी आव यकता के अनुसार रसायन के समान थोड़ा-थोड़ा ही ख़च
करना चा हए।
यह न य करके गीदड़ धनुष क डोर को अपने मुख म डालकर चबाने लगा। ले कन
तांत के टू टते ही धनुष का सर इतने वेग से गीदड़ क छाती म आ लगा क वह चीख़ मारकर
गर पड़ा और उसके ाण-पखे उड़ गये।
यह कथा सुनाकर ा ण अपनी प नी से बोला—दे वी! म इसी लए कहता ं
अ ततृ णा न क ा तृ णां नैव प र यजेत् ।
अ ततृ णा भभूत य शखा भव त म तके ।।

Downloaded from www.PDFshala.com


क लोभ को कभी छोड़ा नह जा सकता, ले कन इसका अथ यह नह क उसे बढ़ावा दया
जाये। अ त का लोभ कभी अ छा नह होता। लोभी के माथे पर शखा अथात् चोट
उग आती है यानी उसका भा य उसका पीछा करने लगता है।
ा ण बोला—तुमने यह तो सुना ही होगा
आयुः कम च व च व ा नधनमेव च ।
प चैता न ह सृ य ते गभ थ यैव दे हनः ।।
क जीव के मां के शरीर म वेश के समय से ही ये पांच—उसक आयु, उसके कम-फल,
धन, व ा और मृ यु— नधा रत हो जाते ह।
प त के इस कार समझाने-बुझाने पर ा णी बोली—ठ क है, घर म थोड़े-से तल
रखे ह, म उनके छलके उतार लेती ,ं उनसे ही कसी ा ण को भोजन करा ं गी।
प नी से आ ासन मलते ही ा ण सरे गांव को चला गया। इधर ा णी ने तल
को कूटा, धोया और सूखने के लए उ ह धूप म रख दया। तभी एक कु े ने धूप म सूख रहे
तल पर पेशाब कर दया। ा णी सोचने लगी—यह तो कंगाली म आटा गीला वाली बात
हो गयी। भा य के तकूल होते ही सब कुछ उलटा-पुलटा हो जाता है। अब कसी को अपने
धुले तल दे कर उससे बना धुले तल लाने का य न करती ।ं संयोग क बात क उस
समय म जस घर म भ ा मांगने के लए गया आ था, उसी घर म वह ा णी भी आ
प ंची और उस गृ हणी से अपने धुले ए तल के बदले बना धुले तल दे ने का अनुरोध
करने लगी। गृ हणी तो इसके लए तैयार हो गयी, पर तु उसका बेटा बोला—मां! दाल म
कुछ काला लगता है, वरना यह ा णी हम अपने धुले ए तल दे कर हमसे बना धुले तल
य लेना चाहती है?
नाक मा छा डली मातः व णा त तलै तलान् ।
लुं चता नतरैयन हेतुर भ व य त ।।
मां! ा णी क इस चे ा के पीछे अव य ही कोई-न-कोई कारण होना चा हए।
अकारण ही कोई कसी के घर आकर ऐसा ताव य करेगा?
यह कथा सुनाकर अ त थ सं यासी अपने सं यासी म से बोला—तुम मुझे एक बार
इस चूहे का बल दखा दो।
इस पर ता चूड़ ने बताया—कोई भी चूहा अकेला नह आता, इनका तो पूरा दल एक
साथ आता है।
अ त थ ने कहा— या तु हारे पास धरती खोदने क कुदाल है?
ता चूड़ ने तुर त ही एक कुदाल लाकर उसे दे द । अब अ त थ साधु ने कहा—कल
ातःकाल तुम मेरे साथ चलना। हम इन चूह के पद च का पीछा करते ए इनके बल
को खोज नकालगे।
हर यक अपने म —लघुपतनक और म थरक—से कहने लगा—दोन सं या सय

Downloaded from www.PDFshala.com


क बातचीत को सुनकर मुझे अपनी मौत सामने खड़ी दखाई दे ने लगी। म सोचने लगा क
जब इ ह ने मेरी श के रह य को जान लया, तो अब इनके लए मेरे बल को खोज लेना
भी क ठन नह होगा।
सकृद प ् वा पु षं वबुधा
जान त सारतां त य ।
ह ततुलया प नपुणाः
पल माणं वजान त ।।
चतुर सरे के चेहरे को दे खकर ही उसक यो यता का अनुमान लगा लेते ह।
नाप-तौल म कुशल हाथ म लेते ही कसी व तु के वज़न को जान लेते ह। उ ह उसके
तौलने क आव यकता नह होती।
वा छै व सूचय त पूवतरं भ व यं
पुंसां यद यतनुजं वशुभं शुभं वा ।
व ायते शशुरजातकलाप च ः
यु तैरपसरं सरसः कलापी ।।
ाणी क अ छ -बुरी च को दे खकर उसके पूवज म क थ त का कुछ-न-कुछ
अनुमान हो ही जाता है। तभी तो कलगी के कट ए बना भी पारखी को मोर के
ब चे क चाल को दे खकर ही उसके मोर अथवा मोरनी होने का पता चल जाता है।
मने अपने प रजन के साथ अपने नवास को छोड़कर कसी अ य थान पर जाने का
न य कया। अभी हम केवल दो क़दम ही आगे बढ़े थे क सामने से एक बलाव आ गया
और वह हम पर झपटा। उसका शकार होने से बचे चूहे मुझे कोसते ए शी ही अपने पुराने
बल म घुस गये।
छ वा पाशमपा य कूटरचनां
भङ् वा बला ागुरां ।
प य ता न शखाकलापज टला-
ग य रं वनात् ।
ाधानां शरगोचराद प जवे
नो प य धाव मृगः
कूपा तः प ततः करोतु वधुरे
क वा वधौ पौ षम् ।।
भा य के आगे कसका वश चलता है? मने दे खा क शकारी के जाल म फंसा एक
ह रण जाल को काटकर, बहे लये क चालाक को अंगूठा दखाकर सभी ब धन से अपने
को मु कर, आग से झुलसते जंगल से र जाकर और बहे लये के हार से बचकर

Downloaded from www.PDFshala.com


सुर त थान पर प ंचा ही था क अचानक वह एक कुएं म गर पड़ा।
भा य के आगे कोई भी ाणी कुछ भी नह कर सकता। भा य के वपरीत होने पर
ाणी का पु षाथ भी न फल हो जाता है। यही हमारे साथ भी आ।
म अकेला भाग नकला। दोन सं यासी हमारे बल तक प ंच गये और कुदाल से
धरती खोदने लगे। जस धन के बल पर म इतराता था, उसे ह थयाने के बाद अ त थ अपने
म से बोला—अब तुम सब कुछ भूलकर गहरी न द का आन द लो। यह चूहा जस धन क
गरमी से इतना ऊंचा कूदता था, अब वह गरमी नकल गयी। अब यह नह उछल सकेगा। यह
कहकर वे दोन मेरे धन को लेकर अपने मठ को चल दये।
म अपने बल म प ंचा, तो उजड़े और धनहीन ए अपने नवास को दे खकर रो पड़ा।
मुझे समझ नह आ रहा था क कहां जाऊं और या क ं ? बड़े क से मने वह दन
बताया। बेचैन होकर म रा म अपने कुछ सा थय को लेकर मठ म पुनः जा प ंचा। हमारी
च -च को सुनकर ता चूड़ पहले क ही भां त फटे ए बांस को धरती पर पटकने लगा। इस
पर उसका अ त थ म उसे समझाते ए बोला— य थ क च ता कर रहे हो, न शंक
होकर सो जाओ।
ता चूड़ बोला—आवाज़ से लगता है क वही चूहा फर आ धमका है।
अ त थ बोला—तो या आ, अब इतनी ऊंचाई तक उछल-कूद करना उसके वश
का नह रहा। यही इस संसार का नयम है।
य साही सदा म यः परोभव त य जनान् ।
य तं वदे ा यं त सव व जं बलम् ।।
मनु य का उ सा हत होना, सर को परा जत करने म समथ होना और उ त होकर
दशन करना धन- ा त पर ही स भव है। धन क गरमी ही म उ साह, श और
साहस का स चार कर सकती है।
मने यह सुना, तो अपनी पूरी श लगाकर भ ापा पर कूदा, ले कन बीच म ही
धरती पर गर पड़ा और चोट लगने के कारण छटपटाने लगा। इस पर हंसते ए ता चूड़ का
अ त थ म उससे बोला— य म ! म स य ही कहता था न
अथन बलवा सवऽ यथयु ः स प डतः ।
प यैनं मूषकं थ वजातेः समतां गतम् ।।
क धन ही कसी ाणी को बलवान् और बु मान् बना दे ता है। अब दे खो, धनहीन होते ही
यह चूहा भी सरे चूह -जैसा ही द न-हीन हो गया है। अब तुम न शंक होकर सो जाओ।
इसके कूदने के रह य को जानकर हमने इसे अश बना दया है। कहा भी गया है
दं ा वर हतः सप मदहीनो यथा गजः ।
तथाथन वहीनोऽ पु षो नामधारकः ।।
क दांत से र हत सांप और मद से र हत गज के समान ही धन से र हत ाणी भी न तेज

Downloaded from www.PDFshala.com


होकर केवल ास लेने वाला ाणी बनकर रह जाता है।
यह सुनकर मने भी सोचा—अब मेरा तेज और फू त भी समा त हो गयी है। अब मेरा
जीवन भी कसी नधन के समान हो गया है।
अथन च वहीन य पु ष या पमेधसः ।
उ छ ते याः सवा ी मे कुस रतो यथा ।।
जस कार गरमी क ऋतु म छोटे -मोटे नद -नाले सूख जाते ह, उसी कार धनहीन
के कसी भी काय को कोई गौरव नह मलता।
इस कार अपने धन को सं यासी के अ धकार म गया दे खकर म कुछ दे र तक
वलाप करता रहा। फर सवेरा होने पर अपने बल म जा घुसा। मेरे साथी भी यह कहते ए
मुझे छोड़कर चल दये क अब यह हमारा पेट नह भर सकेगा। अब तो इसके पीछे चलने से
तो बलाव आ द के शकार हो जाने क आशंका बनी रहेगी। अब इसके आ य म रहने का
कोई लाभ नह ।
य सकाशा लाभः या केवलाः यु वप यः ।
स वामी रत या यो वशेषादनुजी व भः ।।
पास म बैठे अपने म तथा अपने अधीन रहने वाले सेवक को कोई भी लाभ न
प ंचाने वाले एवं उनके लए संकट का कारण बनने वाले वामी को तो र से ही याग दे ना
चा हए।
अपने सा थय के इन कठोर वचन को सुनकर खी आ म अपने बल म अकेला
बैठा रहा। मने दे खा क सभी चूहे चलते बने, मेरा साथ दे ने के लए कोई भी नह का। तब
म अपने आपसे बोला
मृतो द र ः पु ष मृतं मैथुनम जम् ।
मृतम ो यं ा ं मृतो य वद णः ।।
क जस कार स तान उ प न कर सकने वाला स भोग मृतक होता है, भोजन के लए
वेदपाठ ा ण के उपल ध न होने पर ा मृतक होता है और द णा दये बना कया
गया य मृतक होता है, उसी कार धनहीन भी जीते-जी मृतक ही होता है।
म अभी वलाप कर रहा था क मने दे खा मेरे प रजन मेरे श ु से जा मले, और मेरा
अपमान करने लगे। तब मने वचार कया क य द म उस सं यासी के चार ओर ही मंडराता
र ं और उसके सो जाने पर उसके त कये के नीचे से अपनी स प को ख चकर अपने घर
ले आऊं, तो म पहले के समान ही समथ बन जाऊंगा।
थय त परं चेतो मनोरथशतैजनाः ।
नानु ानैधनैह नाः कुलजा वधवा इव ।।
ायः दे खने म आता है क मनु य अपने मनोरथ के पूरा न हो पाने के ःख से खी

Downloaded from www.PDFshala.com


रहते ह। वे नह जानते क जस कार उ च कुल म उ प होने पर भी वधवा युवती भोग-
वलास का सुख नह ले सकती, उसी कार धन के अभाव म कसी भी धम-काय को
नह कर सकता।
दौग यं दे हनां ःखमपमानकरं परम् ।
येन वैर प म य ते जीव तोऽ प मृता इव ।।
द र ता सभी ा णय को सदा ःख एवं अपमान दे ने वाली होती है। अपने कसी
द र भाई-ब धु को उसके ब धु-बा धव भी जी वत नह मानते।
अधनो दातुकामोऽ प स ा तो ध ननां गृहम् ।
म यते याचकोऽयं ध दा र यं खलु दे हनाम् ।।
य द कोई द र कसी के घर कुछ दे ने के लए भी जाये, तो लोग उसे भी
भखारी मानकर उसका अपमान करते ह। इस कार अपमा नत कराने वाली द र ता को
ध कार है।
मने सोचा क य द म अपने धन को लौटाने का य न करते ए मर भी गया, तो भी
मुझे कोई च ता नह करनी चा हए;
व व हरणं ् वा यो ह र यसू रः ।
पतरोऽ प न गृ त त ं स लला लम् ।।
य क ाण पर संकट आने के डर से अपने हरण कये जा रहे धन क र ा न कर पाने
वाले को कायर ही समझना चा हए। ऐसे ारा कये गये तपण को उसके पतर
भी वीकार नह करते।
गवाथ ा णाथ च ी व हरणे तथा ।
ाणां यज त यो यु े त य लोकाः सनातनाः ।।
हरण कये जा रहे गाय, ा ण, ी तथा अपने धन क र ा म अपने ाण को भी
झ क दे ने वाला द लोक म थान ा त करता है।
यह सोचकर म अपने धन को वापस पाने के लए मठ म जा प ंचा और रात म
सं यासी के ब तर तक जा प ंचने म भी सफल हो गया, ले कन मेरा भा य! सं यासी जाग
गया और उसने अपने पास रखे टू टे-फूटे बांस से मुझ पर हार कर दया। मुझे जी वत रहना
था, इस लए म उसका नशाना बनने से बच गया। अब म सोचता ं
ा त मथ लभते मनु यो
दै वोऽ प तं लंघ यतुं न श ः ।
त मा शोचा म न व मयो मे
यद मद यं न ह त परेषाम् ।।
क वधाता के चाहने पर और घनघोर प र म करने पर भी कोई अपने भा य से अ धक

Downloaded from www.PDFshala.com


कभी नह पा सकता। इस लए मने खी होना और च ता करना छोड़ दया है और इस त य
को भली कार से समझ लया है क जो अपना है, उसे कोई ले नह सकता और जो अपना
नह है, उसे कोई पा नह सकता।
इसके प ात् कौए और कछु ए क ज ासा पर हर यक उ ह यह कथा सुनाने लगा।

कथा म : चार
सागरद नामक ब नये के पु ने एक सौ पये म एक पु तक ख़रीद ली, जसका थम प
इस कार था—
ा त मथ लभते मनु यो
दै वोऽ प तं लंघ यतुं न श ः ।
त मा शोचा म न व मयो मे
यद मद यं न ह त परेषाम् ।।
येक को अपने भा य म लखा ही मलता है और इस नयम को वधाता भी नह
बदल सकता। अतः जो नह मला, उसके लए शोक नह करना चा हए और जो ा त हो
गया, उस पर आ य नह करना चा हए, यानी जो हो रहा है, वह ठ क ही हो रहा है। इसके
साथ ही यह भी मानकर चलना चा हए क जो हमारा है, उसे कोई सरा ले नह सकता और
जो हमारा नह है, वह हम मल नह सकता।
सागरद ने जब अपने पु से उ पु तक का मू य पूछा, तो उसने सही मू य बता
दया। एक छोट -सी पु तक के लए सौ पये ख़च करने पर पता ने अपने पु को अनाड़ी,
मूख और बु हीन आ द कहकर उसे अपने घर से नकाल दया।
लड़का अपनी ज मभू म को छोड़कर कसी सरे नगर म चला गया। उस सरे नगर
म जब भी कोई उसका प रचय पूछता, तो वह अपने को— ा त मथ लभते मनु यः
बताता। इस लए वह उस नये थान पर इसी नाम से स हो गया।
कुछ दन बाद, उस नगर म एक समारोह आयो जत आ और वहां क राजकुमारी ने
एक सु दर युवक को दे खा, तो वह उस पर इतनी आस हो गयी क उस युवक के साथ
र त-भोग कये बना राजकुमारी को अपना जीना भी अस भव लगने लगा।
राजकुमारी ने अपनी ल जा का प र याग कर अपनी सखी को अपनी काम-पीड़ा
बताकर उस युवक को कसी भी कार अपने महल म लाने का यास करने का अनुरोध
कया।
सखी ने युवक के पास प ंचकर राजकुमारी के उस पर मु ध होने और काम-पी ड़त
होने क बात कहकर उसे रात म राजकुमारी के पास आने और उसे काम-सुख से तृ त करने

Downloaded from www.PDFshala.com


क ाथना क , तो युवक ने पूछा—य द राजकुमारी के जीवन-मरण क थ त है, तो मुझे
कहां और कैसे आना होगा?
राजकुमारी क सखी ने कहा—महल के पछवाड़े एक मज़बूत र सा लटका दया
जायेगा। तुम आज आधी रात म उस र से को पकड़कर महल क छत पर आ जाना। वहां
राजकुमारी तु हारी ती ा कर रही होगी। युवक के हां कहने पर सखी ने लौटकर
राजकुमारी को इसक सूचना द और दोन महल म वापस लौट आय ।
इधर वह युवक रात म चोरी से राजमहल म व होने और राजकुमारी को भोगने के
औ च य-अनौ च य पर वचार करने लगा—
गुरोः सुतां म भाया वा मसेवकगे हनीम् ।
यो ग छ त पुमाँ लोके तमा घा तनम् ।।
गु क क या, म क प नी, वामी क ी तथा सेवक क प नी के साथ स भोग करना
केवल राचरण ही नह , अ पतु ह या के समान घोर पाप भी है।
अयशः ा यते येन येन चापग तभवेत् ।
वगा च यते येन त कम न समाचरेत् ।।
को इस लोक म अपयश तथा परलोक म ग त दे ने वाले तथा वग से गरने
का कारण बनने वाले कम को करने म कभी वृ नह होना चा हए।
यह सोचकर युवक को राजकुमारी के पास जाना उ चत नह लगा। इधर रा म
घूमते-घामते व णक-पु ने महल के पछवाड़े लटकता एक र सा दे खा, तो उ सुकतावश वह
उसे पकड़कर महल म राजकुमारी के पास जा प ंचा। राजकुमारी ने उसे ही अपने मन का
मीत समझकर उ साहपूवक उसका भली-भां त वागत-स कार कया और फर उसे अपने
साथ शैया पर सुलाया। उसके पश से पुल कत राजकुमारी ने युवक से कुछ मधुर वातालाप
करने को कहा, तो उसने केवल यही कहा—‘सबको अपने भा य का लखा ही मलता है।’
इस पर राजकुमारी को यह स दे ह हो गया क यह वही युवक न होकर कोई सरा है।
अतः उसने व णक-पु को अपने महल से बाहर नकाल दया।
वहां से नकलकर वह युवक सुनसान पड़े एक म दर म जाकर सो गया। वहां कसी
कुलटा ने अपने ेमी नगर-र क को बुलाया आ था। अपने भेद को छपाने और उस
अजनबी युवक को वहां से भगाने के लए नगर-र क ने व णक-पु से उसका प रचय पूछा,
तो उसने वही वा य दोहरा दया— येक मनु य को अपने भा य का लखा मलता है।
नगर-र क ने उसे उस थान को छोड़ने और अपने घर पर रात बताने के लए कह दया।
नगर-र क के कहने पर व णक-पु उसके घर चला गया, तो वहां उस नगर-र क
क युवती पु ी ने घर म अपने ेमी युवक को बुला रखा था। उसने व णक-पु को ही अपना
ेमी समझकर उसे अपने बा पाश म बांध लया और उससे काम- ड़ा करने लगी। जब
सु दरी ने उसे कुछ बोलने के लए कहा, तो वह बोला—सबको अपने भा य का लखा

Downloaded from www.PDFshala.com


मलता है। उसके ये श द सुनकर उस क या ने अप र चत के साथ र त-भोग करने वाले उस
युवक को तुर त अपने महल से बाहर नकाल दया।
महले से बाहर नकले व णक-पु ने एक बरात को जाते दे खा, तो वह भी घोड़े पर
बैठे हे के साथ-साथ चल दया। बरात जब क याप के यहां प ंची और क या वर के गले
म माला डालने के लए आगे बढ़ , तो एक पागल हाथी भागता आ आया। इसी बीच वर
बना लड़का अपनी भावी वधू को वह छोड़कर अपने ाण को बचाने के लए भाग खड़ा
आ। सारे बराती और लड़क के सभी स ब धी भी वहां से भाग लये। हाथी वधू के सामने
आकर चघाड़ने लगा, तो वह बेचारी डर के मारे कांपने लगी। वर के साथ आया व णक-पु
वहां खड़ा आ था। उसने लड़क को आ त कया और उसक ओट करके हाथी को डराने
लगा। हाथी डरकर भाग गया, तो उस क या ने व णक-पु के साहस और उसक वीरता पर
मु ध होकर उसके साथ ही ववाह करने का न य कर लया। वधू के कहने पर प डतजी
नये वर के साथ ववाह के म पढ़ने लगे। हाथी के चले जाने पर वापस लौटे बरा तय ने यह
सब दे खा, तो वे लड़क के पता को उलटा-सीधा कहने लगे। पता ने पु ी से इस सब के बारे
म पूछा, तो वह बोली—जो पु ष संकट म पड़ी अपनी प नी को असहाय छोड़कर अपने
ाण क च ता करके भाग जाता है, वह भ व य म मेरी र ा या करेगा? इस लए मने
अपने ाण क परवा न करने वाले इस युवक को अपने लए उपयु वर मान लया है, म
इसी के साथ ववाह कर रही ।ं
लड़के वाल क लड़क वाल से रात-भर कहा-सुनी चलती रही। ातःकाल यह ख़बर
नगर म फैल गयी, तो राजकुमारी और नगर-र क क क या भी वहां आ प ंच । इधर गु त
वेश म मण करता आ राजा भी वहां आ प ंचा और उसने ‘मनु य भा य के लखे को ही
ा त कर पाता है’ कहने वाले युवक को सारी कहानी सुनाने को कहा।
युवक बोला—महाराज! म तो एक बात ही जानता ं— येक मनु य को अपने
भा य का लखा ही मलता है। राजक या ने भी कहा— वधाता भी इसे उलट नह सकता।
अब नगर-र क क क या भी बोल उठ —इस लए मेरे साथ जो कुछ आ है, उस पर मुझे
कोई खेद नह है और न कोई आ य ही है। वधू बनी ी कहने लगी—जो हमारा है, वह
कसी अ य का नह हो सकता।
राजा ने सबको अपने-अपने साथ बीती सारी घटना सही-सही सुनाने का आदे श
दया। इस पर तीन लड़ कय ने राजा को सब कुछ सच-सच बता दया। इस पर तीन —
राजा, नगर-र क और व णक—ने अपनी-अपनी लड़ कय का ववाह उस व णक-पु से
कर दया तथा दहेज और दान-द णा के प म उ ह पया त धन, आभूषण और व ा द
भी दये।
व णक-पु ने अपने माता- पता के पास समाचार भेजा, तो उनके आ जाने पर सभी
उसी नगर म रहने लगे।

Downloaded from www.PDFshala.com


यह कथा सुनाकर हर यक बोला— म ो! इसी लए म कहता ं
ा त मथ लभते मनु यो
दै वोऽ प तं लंघ यतुं न श ः ।
त मा शोचा म न व मयो मे
यद मद यं न ह त परेषाम् ।।
क मनु य को भा य का लखा ही मलता है और वधाता भी इसम कोई उलट-फेर नह कर
सकता। इस लए जो भी होता है, उसे यह मानकर चलना चा हए क जो हमारा है, वह सरे
का नह हो सकता।
म इसी च म पड़ा परेशान हो रहा था क मेरे इस म ने मुझे यहां लाकर आपसे
मलवा दया है। मेरे उस थान को छोड़कर यहां आने का यही एकमा कारण है।
यह सुनकर म थरक बोला—यह तो ठ क है क लघुपतनक तु हारा म है और
इसी लए उसने अपने भ य को अपनी पीठ पर बठाकर सुर त यहां प ंचाया है। वह
चाहता, तो माग म ही तु ह मारकर अपनी भूख मटा सकता था। स य ही कहा गया है
वकारं या त नो च ं व े य य कदाचन ।
म ं या सवकाले च कारये म मु मम् ।।
क धन ा त करके मदो म न होने वाला तथा अपने म क सहायता को सदा तैयार
रहने वाला ही म बनाने के यो य होता है।
व ः सु दाम च ै रेतैरसंशयम् ।
परी ाकरणं ो ं होमा ने रव प डतैः ।।
व ान ने अ न म आ त दे ने से पूव ही होम क साम ी क परी ा कर लेने के
समान ही म बनाये जाने वाले क भी परी ा करना आव यक बतलाया है।
आप काले तु स ा ते य म ं म मेव तत् ।
वृ काले तु स ा ते जनोऽ प सुह वेत् ।।
वा तव म, संकट के समय साथ दे ने वाले को ही अपना म समझना चा हए।
सुख के समय तो जन भी म होने का दम भरते ह।
अब मुझे व ास हो गया है क नी त व मानी जाने वाली मै ी भी नभ सकती है।
वा तव म
म ं कोऽ प न क या प नता तं न च वैरकृत् ।
यते म व व ता का या ै री परी तः ।।
न कोई कसी का म है और न ही श ु है। अनुकूल और तकूल आचरण के कारण ही
म अथवा श ु बन जाता है।
यहां आपका वागत है। आप न त होकर इस तालाब के कसी भी कनारे पर

Downloaded from www.PDFshala.com


अपना नवास बना ल। आपको अपना घर छोड़कर यहां आना पड़ा है और आपक स प
भी छन गयी है। अब इस स ब ध म भी आपको शोक नह करना चा हए;
अ छाया खल ी तः स म च यो षतः ।
क च कालोपभो या न यौवना न धना न च ।।
य क नी तकार के अनुसार—बादल क छाया, क ी त, ताज़ा पका भोजन, यां,
यौवन और धन सदा-सदा के लए तथा थायी प से भोगे जाने वाले नह होते। ये सब तो
थोड़े समय के लए ही भोगे जाते ह।
यह सोचकर जते य को धन क लालसा नह करनी चा हए।
सुस चतैज वनव सुर तै-
नजेऽ प दे हे न वयो जतैः व चत् ।
पुंसो यमा तं जतोऽ प न ु रै-
रेतैधनैः प चपद न द यते ।।
जस धन को इतने क से अ जत और स चत कर य नपूवक जसक र ा
करता है और जसे कभी अपने से जुदा नह करता, वही धन उसके मर जाने पर पांच पग
भी उसके साथ नह चलता।
यथा मषं जले म यैभ यते ापदै भु व ।
आकाशे प भ ैव तथा सव व वान् ।।
जस कार मांस जल म रहने वाली मछली आ द जलचर का, भू म पर सह आ द
ह पशु का और आकाश म उड़ने वाले प य का आहार है, उसी कार धनी मनु य
भी सभी लोग क ई या का पा बन जाता है।
नद षम प व ा ं दोषैय जयते नृपः ।
नधनः ा तदोषोऽ प सव न प वः ।।
धनी के नद ष होने पर भी उस पर सहज व ास नह कया जाता। उसे ायः
दोषी ही माना जाता है। ले कन इसके वपरीत धनहीन को अपराध करने पर नद ष
मान लया जाता है।
अथानामजने ःखम जतानां च र णे ।
नाशे ःखं ये ःखं धगथा क सं यान् ।।
अजन, संर ण, य एवं वनाश-जैसी थ तय म ःख दे ने वाला धन तर कार के
यो य ही है।
चूहे को समझाते ए म थरक बोला— म ! परदे स आने के बारे म भी तु ह कोई
च ता नह करनी चा हए;
को धीर य मन वनः व वषयः

Downloaded from www.PDFshala.com


को वा वदे शः मृतो
यं दे शं यते तमेव कु ते
बा तापा जतम् ।
य ं ानखलांगल हरणैः
सहो बनं गाहते
त म ेव हत पे धरै-
तृ णां छन या मनः ।।
य क जस कार सह अपने दांत , नाखून और पूंछ पी श का योग करते ए
कसी भी वन म जाकर और वहां हाथी का वध करके उसके र से अपनी यास बुझा लेता
है, उसी कार यश वी के लए कोई भी थान अपना अथवा दे श पराया नह होता।
वह जहां भी जाता है, वहां के लोग को अपने वहार से अपना बना लेता है। परदे स म गये
बु मान् के धनी न होने पर भी वप उसे नह घेर पाती;
कोऽ तभारः समथानां क रं वसा यनाम् ।
को वदे शः सु व ानां कः परः यवा दनाम् ।।
य क समथ य के लए भार उठाना कोई सम या नह होती, ापा रय के लए कोई
भी री बाधा नह होती, व ान के लए कोई भी थान पराया नह होता और मधुरभाषी
के लए कोई भी अप र चत नह होता।
तुम बु मान् हो और भली-भां त जानते हो
उ साहस प मद घसू ं
या व ध ं सने वस म् ।
शूरं कृत ं ढसौ द च
ल मीः वयं माग त वासहेतोः ।।
क उ साही, आल यर हत, काम करने के ढं ग को जानने वाले, ूत, सुरापान आ द से मु ,
वीर, सर के उपकार को मानने वाले तथा म ता को नभाने वाले य के पास आने
के लए तो ल मी वयं ही उ सुक रहती है। ल मी ऐसे ही य क खोज म भटकती
रहती है।
तुम यह भी जानते हो क भा य के तकूल होने पर हाथ म आया आ धन भी न
हो जाता है। अतः तु ह यह सोचकर स तोष कर लेना चा हए क यह धन इतने दन के लए
ही तु हारा था। पराये धन को तो कोई एक पल के लए भी नह भोग सकता। हाथ म आ
जाने पर भी, भा य म न होने के कारण ऐसा धन न हो जाता है।
अथ योपा जनं कृ वा नैव भोगं सम ुते ।
अर यं महदासा मूढः सो मलको यथा ।।

Downloaded from www.PDFshala.com


कुछ धन कमा तो लेते ह, पर तु उसका उपभोग नह कर पाते। सो मलक भी
महावन म प ंच तो गया, ले कन वह उसका कोई लाभ नह उठा सका।
हर यक क उ सुकता पर म थरक उसे सो मलक क कथा सुनाने लगा।

कथा म : पांच
नगर म रहने वाला सो मलक नामक जुलाहा एक उ चको ट का कलाकार था। वह राजा
के लए उ म व बुनता था, ले कन इस पर भी वह साधारण जुलाह जतना भी धन नह
कमा पाता था। अपनी आ थक थ त पर च तत होकर एक दन सो मलक अपनी प नी से
बोला— ये! परमा मा क यह कैसी लीला है क साधारण जुलाहे भी मुझसे अ धक कमा
लेते ह। म सोचता ं क शायद यह थान मेरे अनुकूल नह है। इस लए म कसी अ य थान
पर जाकर अपना भा य आज़माना चाहता ं। सो मलक क प नी बोली—आपका ऐसा
सोचना उ चत नह है। भले ही मे पवत पर चले जाओ, चाहे म थल म रहने लगो, मलेगा
वही, जो भा य म लखा होगा।
उ पत त यदाकाशे नपत त महीतले ।
प णां तद प ा या नाद मुप त त ।।
आकाश म उड़ने वाले प य को दे खो, उ ह भी अपने भा य म लखा पाने के लए पृ वी
पर उतरना पड़ता है। जो अपने भा य म नह है, वह को कह भी नह मल सकता।
न ह भव त य भा ं
भव त च भा ं वना प य नेन ।
करतलगतम प न य त
य य तु भ वत ता ना त ।।
होनी को अनहोनी और अनहोनी को होनी बनाने का साम य कसी भी जीव म नह
है। भा य म न होने पर तो हाथ म आया आ धन भी न हो जाता है।
यथा धेनुसह ेषु व सो व द त मातरम् ।
तथा पुरा कृतं कम क ारमनुग छ त ।।
जस कार बछड़ा हज़ार गाय के होने पर भी अपनी मां को ढूं ढ़ नकालता है, उसी
कार कसी के ारा पूवज म म कया गया अ छा या बुरा कम भी अपना फल दे ने
के लए उस को ढूं ढ़ ही लेता है।
शेते सह शयानेन ग छ तमनुग छ त ।
नराणां ा नं कम त े वथ सहा मना ।।
का कमभोग सोते के साथ सो जाता है और जागते के साथ जाग उठता है। वह

Downloaded from www.PDFshala.com


उसका साथ कभी नह छोड़ता।
यथा छायातपौ न यं सुस ब ौ पर परम् ।
एवं कम च क ा च सं ा वतरेतरम् ।।
जस कार धूप और छाया का एक- सरे के साथ न य का अटू ट स ब ध है, उसी
कार कम और कमफल का भी आपस म अटू ट स ब ध है।
इस लए म कहती ं क आप अपना काम-ध धा यह रहकर करते रहो।
जुलाहा बोला— ये! म तु हारे इस वचार से सहमत नह हो सकता। उ म करने से
कोई भी अपने भा य को बदल सकता है।
यथैकेन न ह तेन ता लका स प ते ।
तथो मप र य ं न फलं कमणः मृतम् ।।
जस कार एक हाथ से कभी ताली नह बज सकती, उसी कार केवल भा य से कुछ नह
हो सकता। अपना अभी पाने के लए यास तो करना ही पड़ता है।
प य कमवशा ा तं भो यकालेऽ प भोजनम् ।
ह तो मं वना व े वशे कथ चन ।।
कमफल के प म ा त भोजन को मुंह म डालने के लए भी हाथ को हलाना पड़ता
है। अपने आप तो भोजन भी कसी के मुंह म नह प ंच जाता।
उ ो गनं पु ष सहमुपै त ल मी-
दवं ह दै व म त कापु षा वद त ।
दै वं नह य कु पौ षमा मश या
य ने कृते य द न स य त कोऽ दोषः ।।
उ ोग करने वाले नर सह के पास ही ल मी आती है। भा य के भरोसे बैठे रहने वाले
लोग कायर होते ह। मनु य को दै व के सहारे नह बैठे रहना चा हए, ब क अपनी साम य के
अनुसार काम करना चा हए। हो सकता है क ईमानदारी से काम करने पर भी सफलता नह
मले, फर भी काम करना नह छोड़ दे ना चा हए। अपने काम करने के ढं ग क जांच करनी
चा हए और ग़लती का सुधार करना चा हए। ग़लती सुधर जाने पर सफलता अव य ही
मलती है।
उ मेन ह स य त का या ण न मनोरथैः ।
न ह सह य सु त य वश त मुखे मृगाः ।।
कोई भी काम हो, य न तो करना ही पड़ता है, तभी काम म सफलता मलती है,
केवल सोचने से नह । या कभी सोते ए सह के मुंह म उसका शकार बनने के लए कोई
पशु अपने आप प ंच जाता है?
वश या कुवतः कम न चे स य छत।

Downloaded from www.PDFshala.com


नोपाल यः पुमां त दै वा त रतपौ षः ।।
य द अपनी श -भर य न करने पर भी को काय म स नह मलती, तो
उसे ःख नह होता। अ पतु वह यह मानकर स तोष कर लेता है क उसे तो कम करना था
और वह उसने कया। अब फल दे ना-न दे ना तो दै व के अधीन है। इस लए म सरे दे श म
अव य जाऊंगा।
यह सोचकर सो मलक सरे नगर म जाकर कुशलतापूवक म करने लगा और कुछ
ही समय म उसने तीन सौ वण-मु ाएं एक कर ल । फर वह उन वणमु ा को लेकर
अपने घर क ओर चल दया। माग म सूया त हो गया, तो हसक पशु से बचने के लए
वह एक वृ क शाखा पर चढ़कर सो गया। आधी रात म उसने भा य और पु षाथ नामक
दो य को कहते सुना। एक (भा य) सरे (पु षाथ) से कह रहा था—जब तु ह पता है
क इस जुलाहे के भा य म अ धक धन नह लखा, तब तुमने इसे तीन सौ वण-मु ाएं य
द ? पु षाथ ने उ र दया—मुझे तो उसके प र म का फल उसे दे ना ही था, आगे क तुम
जानो।
यह सुनते ही जुलाहे क न द खुल गयी और उसने अपनी थैली संभाली, तो वह ख़ाली
थी। यह दे खकर वह वलाप करने लगा। ख़ाली हाथ घर जाना उ चत न समझकर, वह पुनः
अपने काम पर वापस लौट आया और फर से प र म करने लगा। एक वष म पांच सौ
वण-मु ाएं जुटाकर वह पुनः एक दन अपने घर को चल दया। इस बार सूया त हो जाने
पर भी उसने कना अथवा सोना उ चत नह समझा और चलता ही रहा। ले कन इस बार
उसने अंधेरे माग म दो य को एक- सरे से यह कहते ए सुना—तुमने फर उसे इतना
धन दे दया, जब क तुम जानते हो क उसके भा य म खाने-पीने-भर से अ धक नह है।
सरे ने उ र दया—मुझे तो उसे उसके प र म का फल दे ना ही है, आगे क तुम जानो। इस
बातचीत को सुनते ही जुलाहे ने अपनी थैली दे खी, तो उसको ख़ाली पाया। वह अपना सर
पीटकर रोने लगा।
सो मलक ने भा य को यह कहते ए सुना था—
क तया यते ल या या वधू रव केवला ।
या च वे येव सामा या प थकै पभु यते ।।
धन का उपयोग वे या के समान उसके सभी लोग के ारा भोगे जाने पर ही है, वधू के
समान कसी एक के लए पया त तथा कसी अ य के लए अभो य होने पर ऐसे धन का
होना, भला कस काम का? जब इसके भा य म धन का उपभोग ही नह लखा, तो इसे धन
दे ने से या लाभ?
यह सब सुनकर सो मलक रोते ए बोला—अरे बाबा! भोगना नह था, तो भी मेरे
पास रहने तो दया होता; य क इसके होने पर लोक म मेरा स मान तो होता।

Downloaded from www.PDFshala.com


कृपणोऽ यकुलीनोऽ प स जनैव जतः सदा ।
से ते स नरो लोके य य या स चयः ।।
धनी के कृपण, अकुलीन तथा स जन ारा तर कृत होने पर भी धन के
कारण लोक म उसका सव स मान होता है।
श थलौ च सुब ौ च पततः पततो न वा ।
नरी तौ मया भ े दश वषा ण प च च ।।
मने श थल, पर तु ठ क कार से बंधे ए और न गरने वाले अ डकोश के गरने
क आशा म सयार को प ह वष तक भटकते ए दे खा है। ऐसी होती है धन क म हमा!
धनी से कुछ मलने क आशा न होने पर भी लोग उसक ख़ुशामद करते रहते
ह।
भा य क उ सुकता पर जुलाहा उसे लोभी सयार क कहानी सुनाने लगा।

कथा म : छह
कसी जंगल म रहने वाला ती णशृंग नामक एक बैल अपनी श के नशे म चूर होकर
अपने झु ड से अलग हो गया। वह अकेला ही वचरता, हरी-हरी घास खाता, ठ डा जल
पीता और नद तट को अपने तीखे स ग से उखाड़ता रहता था।
उसी जंगल म अपनी प नी के साथ रहने वाले एक लोभी सयार ने नद के तट पर
जल पीने आये उस बैल के लटकते अ डकोश को दे खा, तो उसक प नी कहने लगी—यह
मांस प ड कतने दन तक लटका रह सकता है? जाओ, तुम इस बैल का पीछा करो।
सयार बोला—अरे, मुझे यह बैठा रहने दो, जल पीने के लए आने वाले चूह को
खाकर ही हम दोन अपनी भूख मटा लगे। अ न त के पीछे भागना मूखता होती है।
यो ुवा ण प र य य अ व
ु ा ण नषेवते ।
ुवा ण त य न य त अ वु ं न मेव च ।।
अपने सामने उप थत को छोड़कर परो एवं अनुप थत के पीछे भागने वाले को
अ न त तो मलता नह , न त भी उसके हाथ से नकल जाता है।
सया रन बोली—तुम तो मुझे अपने भा य से मले थोड़े-ब त पर ही स तु होने वाले
आलसी लगते हो।
सुपूरा या कुन दका सुपूरो मू षका लः ।
सुस तु ः कापु षः व पकेना प तु य त ।।
जस कार छोट नद थोड़े-से पानी से भर जाती है या चु हया क अंज ल थोड़े-से
अनाज से भर जाती है, उसी कार कायर भी थोड़ा-सा पाकर ही स तु हो जाता है।

Downloaded from www.PDFshala.com


शूरवीर को तो सदै व उ साही होना चा हए।
य ो साहसमार भौ य ाल य वहीनता ।
नय व मसंयोग त ीरचला ुवम् ।।
आल यर हत तो उ साह के साथ काय आर भ करके तथा अपनी बु और
बल का उ चत उपयोग कर, अचल स प को ा त कर लेता है।
त ै व म त स च य यजे ो ोगमा मनः ।
उ ोगेन वना तैलं तलानां नोपजायते ।।
भा य पर नभर रहकर यास अथवा य न न करना भा य से ा त होने वाले को भी
नकारना है। तल से ही तेल नकलता है, ले कन या बना यास कये भी तेल ा त कया
जा सकता है?
यः तोकेना प स तोषं कु ते म दधीजनः ।
त य भा य वहीन य द ा ीर प मा यते ।।
थोड़े मले पर ही स तु होने वाले म दबु के भा य म आती ई ल मी भी लौट
जाती है। प तदे व! तु हारा इन अ डकोश के गरने के बारे म स दे ह करना थ है। शायद
तुम नह जानते
कृत न यनो व ा तु मा न श यते ।
चातकः को बराकोऽयं य ये ो वा रवाहकः ।।
क सफलता ढ़संक प करने वाले य के ही चरण चूमती है, शरीर के ऊंचा एवं भारी-
भरकम होने से कुछ नह होता। चातक के ढ़ न य के कारण ही इ को उसे वषाजल
सुलभ कराना पड़ता है।
चूह का मांस खाते-खाते मेरे मुंह का वाद बगड़ चुका है। तुम इन अ डकोश को
अब गरा आ ही समझो, अब टाल-मटोल मत करो। तुर त ही इस बैल के पीछे लग जाओ।
प नी ारा े रत करने पर वह लोभी सयार ती णशृंग नामक उस बैल के पीछे चल
दया।
ताव या सवकृ येषु पु षोऽ वयं भुः ।
ीवा याङ् कुश व ु णो याव ोद् यते बलात् ।।
स य तो यह है क जब तक प नी के ं य पी अंकुश क चोट नह खाता,
तब तक वह कोई भी काय करने-न करने के लए नणय लेने के लए वत होता है,
ले कन एक बार प नी के बहकावे म आने के प ात् के लए कुछ भी करना स भव
नह रह जाता।
अकृ यं म यते कृ यमग यं म यते सुगम् ।
अभ यं म यते भ यं ीवा य े रतो नरः ।।

Downloaded from www.PDFshala.com


प नी ारा े रत करने पर प त को अकाय को काय, असा य को सा य और अभ य
को भ य मानकर चलना ही पड़ता है।
इस कार प नी ारा े रत होकर वह सयार भी सया रन के साथ ब त दन तक
बैल का पीछा करता रहा, क तु अ डकोश न गरे। प ह वष तक यास करने के बाद
सयार अपनी प नी से बोला—
श थलौ च सुब ौ च पततः पततो न वा ।
नरी तौ मया भ े दश वषा ण प च च ।।
ये! म तु हारे कहने पर प ह वष से इस बैल के अ डकोश के गरने क आशा म इसके
पीछे -पीछे घूम रहा ं, ले कन ये इतने ढ़ ह क इनके गरने क कोई स भावना नह दखाई
दे ती।
अतः तुम मेरा कहना मानो, ये अ डकोश गरने वाले नह ह, इस लए इस बैल का
पीछा करना छोड़कर अपने थान पर लौट चलो।
जुलाहे को यह कथा सुनाकर भा य ने जुलाहे से कहा—य द यह सब जानने के बाद
भी तुम पु षाथ को मह वपूण समझते हो, तो तुम वधमानपुर वापस लौट जाओ और वहां
जाकर दो ब नय —गु तधन और उपयु धन—से मलना। उन दोन क थ त का अ ययन
करने के बाद मुझे बताना क तुम या बनना चाहते हो? म तु हारी इ छा तुर त पूरी कर
ं गा। यह कहकर भा य वह अ तधान हो गया।
आ यच कत आ सो मलक स या के समय वधमानपुर प ंचा और थका-हारा होने
पर भी वह गु तधन के घर प ंचने म सफल हो गया। गु तधन, उसक प नी और पु ारा
डांटने पर भी सो मलक उसके घर म घुस गया, तो उ ह ने उसक उपे ा करते ए भी उसे
अ त थ मानकर कुछ भोजन दे दया।
भोजन खाकर सोये ए सो मलक ने दो पु ष को आपस म बातचीत करते ए सुना।
एक ने कहा—सो मलक को भोजन खलाकर तुमने ब नये के धन को न य कया?
सरा बोला—मुझे सो मलक को उसके म का फल दे ना ही था, अब तुम अपनी
करने के लए वत हो।
सवेरे उठने पर सो मलक ने दे खा क गृह वामी हैज़े का शकार हो गया था। अतः उस
दन घर म चू हा नह जला और सो मलक को भूखा रहना पड़ा। अगले दन वह उपयु धन
के घर जा प ंचा, तो वहां भी उसे भोजन आ द दे कर उसका वागत कया गया। रात को
खा-पीकर सो जाने पर सो मलक ने वहां भी दो पु ष क बातचीत सुनी। एक बोला—
अ त थ के त इतना नेह दखाने वाले तथा उधार लेकर उस धन को अ त थ के भोजन पर
ख़च करने वाले इस को कस कार पुर कृत कया जाये? इस पर सरे ने उ र दया
—इसक च ता करना मेरा काम है, तुम अपना काम दे खो।
सवेरे सोकर उठने पर सो मलक ने दे खा क उपयु धन के अ छे काय से स

Downloaded from www.PDFshala.com


होकर राजा ने पुर कार के प म उसके पास ब त-सा धन भेज दया। इस पर सो मलक ने
सोचा—धन को जोड़कर रखने वाले गु तधन ब नये क अपे ा तो यह उपयु धन ब नया
कह अ धक अ छा है।
अ नहो फला वेदाः शीलं व फलं ुतम् ।
र तपु फला दारा द भु फलं धनम् ।।
जस कार य का फल वेद का ान है, शील का फल धन का लाभ है, ी-भोग
का फल पु - ा त है, उसी कार धन का उपयु लाभ दान और उसका भोग है।
म तो भगवान् से येक को उपयु धन-जैसा ही बनाने क ाथना क ं गा। कसी
को भी गु तधन बनाने क सलाह नह ं गा;
अथ योपाजनं कृ वा नैव भोगं सम ुते ।
नगरं महदासा मूढः सो मलको यथा ।।
य क जस कार बड़े नगर म प ंचकर भी सो मलक धन-सं ह नह कर सका, उसी
कार कुछ लोग के भा य म धनसं ह लखा होता है और वे धन कमा भी लेते ह, पर तु
उसका सही उपभोग नह कर पाते।
इस पर म थरक बोला— म ! धन जब तक रहना होता है, तब तक ही रहता है। यह
सोचकर खी मत हो। न भोगे जाने वाले स चत धन क कोई उपयो गता नह होती।
गृहम य नखातेन धनेन ध ननो य द ।
भवामः क न तेनैव धनेन ध ननो वयम् ।।
य द घर म गाड़कर रखे ए धन से कोई अपने को धनी मानने लगे, तो उसके समान
कोई भी अपने को धनी कह सकता है।
उपा जतानामथानां याग एव ह र णम् ।
तडागोदरसं थानां परीवाह इवा भसाम् ।।
जस कार सरोवर म स चत ए जल का नकास ही उस जल को शु बनाये
रखता है, उसी कार अ जत धन का याग, दान व भोग ही उसका उ चत होना माना जाता
है।
दात ं भो ं धन वषये स चयो न क ः।
प येह मधुकरीणां स चतमथ हर य ये ।।
जस कार मधुम खय ारा इक े कये गये शहद को सरे ह थया लेते ह, उसी
कार दान और उपभोग न करने वाले के धन पर भी अ य लोग अपना अ धकार कर
लेते ह। इस लए तु ह भी स चत धन क च ता न करके उसका उपभोग और दान करना
चा हए।
दानं भोगो नाश त ो गतयो भव त व य।

Downloaded from www.PDFshala.com


यो न ददा त न भुं े त य तृतीया ग तभव त ।।
धन क तीन ग त होती ह—दान, भोग और नाश। दान और भोग न करने वाले
के धन क तीसरी ग त—नाश—होती है।
यह समझकर बु मान् को धनस चय म नह लग जाना चा हए।
स तोषामृततृ तानां य सुखं शा तचेतसाम् ।
कुत त नलु धाना मत ेत धावताम् ।।
धन के लोभ म दन-रात काम म लगे रहने वाले अभागे स तोष पी अमृत से
तृ त होकर शा त च य को मलने वाले सुख के मह व को कैसे समझ सकते ह?
सुलभाः पु षा राज सततं यवा दनः ।
अ य यचप य यव ा ोता च लभः ।।
स य तो यह है क मधुर वचन कहने वाले लोग सब थान पर मल जाते ह, ले कन
क याणकारी, पर तु अ य वचन कहने और सुनने वाले बड़ी क ठनाई से मलते ह।
अ या य प प या न ये वद त नृणा मह ।
त एव सु दः ो ा अ ये युनामधारकाः ।।
वा तव म, स ची और क याणकारी बात कहने वाले को ही सही अथ म म
समझना चा हए। मनभाती कहने वाले तो केवल नाम के म होते ह।
अभी तीन म इस कार बात कर ही रहे थे क उ ह ने ाध से डरकर ाणर ा के
लए दौड़कर आते च ांग नामक मृग को सरोवर म घुसते ए दे खा, तो संकट को उप थत
जानकर कौआ वृ पर जा बैठा, चूहा पास क झाड़ी म जा छपा और कछु आ सरोवर म
कूद गया।
च ांग नामक मृग को पहचानकर कौआ म थरक से बोला—मुझे लगता है क हमारा
म मृग यास लगने के कारण ही यहां दौड़कर आया है। मुझे तो यहां कसी ाध के आने
क कोई स भावना दखाई नह दे ती। ले कन कौए क बात से असहम त जतलाते ए
कछु आ कहने लगा—ल बी-ल बी सांस लेते और बार-बार पीछे क ओर दे खते मृग से
उसका यास से ाकुल होना नह , अ पतु उसका कसी ाध के आगमन से भयभीत होना
लगता है। हम तुर त ही इस बात का पता लगाना चा हए क मृग का पीछा करता आ कोई
ाध तो इधर नह आ रहा?
भय तो नरः ासं भूतं कु ते मु ः ।
दशाऽवलोकय येव न वा यं ज त व चत् ।।
कोई भयभीत ाणी ही इस कार ल बे-ल बे सांस लेता है और बार-बार पीछे मुड़कर
दे खता है, ले कन फर भी वह न त नह होता।
कौए और कछु ए क बात सुनकर च ांग मृग कहने लगा— म म थरक! तुम ठ क

Downloaded from www.PDFshala.com


ही सोच रहे हो। म ाध के बाण से बचकर ही बड़ी क ठनाई से यहां आया ।ं मुझे लगता है
क मेरे कुछ साथी अव य ही ाध के शकार बन गये ह गे। म तुम लोग का शरणागत ं।
तुम लोग उस ाध से बचने के लए मुझे कोई सुर त थान बताओ। यह सुनकर म थरक
बोला—
ावुपाया वह ो ौ वमु ौ श ुदशने ।
ह तयो ालनादे को तीयः पादवेगजः ।।
म ! श ु के दखाई दे ने पर बचाव के दो ही उपाय होते ह—एक, उस पर वार करना और
सरा, तेज़ी से दौड़कर भाग जाना।
तु हारे लए सरा उपाय ही ठ क रहेगा। तुम उस ाध के आने से पहले ही र भाग
जाओ। तभी उड़कर आये लघुपतनक कौए ने बताया क ाध मारे गये पशु को लेकर
वापस लौट गये ह। अतः अब च ता करने का कोई कारण नह । तुम नभय व न त
होकर यहां वचरण कर सकते हो।
यह सुनकर चार म उसी सरोवर के तट पर उगे वृ क छाया म बैठकर बातचीत
करने लगे।
एक दन गो ी म च ांग मृग के न आने पर तीन म उसके साथ कसी अ न —
सह आ द के ारा उसके मारे जाने, कसी गड् ढे म गर जाने, अ न म जलकर मर जाने
अथवा कसी अ य कार के संकट का शकार हो जाने—क आशंका से च तत हो उठे ।
वगृहो ानगतोऽ प न धैः
पापं वशङ् यते मोहात् ।
कमु ब पाय त-
भयका तारम य थे ।।
सच तो यह है क ेमीजन अपने कसी म के घर के उपवन म जाने पर भी जब
तक उसे दे ख नह लेत,े तब तक न त नह होते। फर आप य से घरे जंगल म मृग के
चले जाने पर उसके म का च तत होना तो वाभा वक था।
तब म थरक ने कौए से कहा— म ! हम दोन शी न चल पाने के कारण उसे ढूं ढ़
नह सकते, इस लए तुम उड़कर उसका पता लगाओ क वह जी वत भी है या नह ? यह
सुनकर कौए ने उड़ान भरी और थोड़ी र पर एक सरोवर पर च ांग को एक ाध के
ब धन म बंधा आ दे खा। कौए के पूछने पर मृग ने बताया—
अ प म द वमाप ो न ो वापी दशनात् ।
ायेण ा णनां भूयो ःखवेगोऽ धको भवेत् ।।
संकट आने पर तथा अपनी दशा के द न-हीन हो जाने पर म से मलने क इ छा भी
ःखद ही लगती है।

Downloaded from www.PDFshala.com


मुझे मौत के मुंह म पड़े अपने म के दशन सुलभ हो गये, इसे म अपना सौभा य ही
मानता ।ं
ाणा यये समु प े य द या म दशनम् ।
तद् ा यां सुखदं प ा जीवतोऽ पमृत य च ।।
मृ यु के समय म का दशन मृ यु को सुखद बना दे ता है। य द म कसी कार उसे
बचा सकता है, तो ठ क, अ यथा नह भी बचा पाता, तो भी उसके ारा अ तम सं कार
कये जाने का और सद्ग त होने का स तोष बना रहता है।
य द कभी मुझसे कोई अपराध हो गया हो, तो आप सब मुझे मा कर दे ना। मेरे दोन
म —म थरक और हर यक—से भी मेरी ओर से मा मांग लेना। उ ह मेरी ओर से
कहना
अ ाना ानतो वा प ं य दा तम् ।
त त ं युवा यां मे कृ वा ी तपरं मनः ।।
क य द जाने-अनजाने मने कसी कार से भी तुम लोग के त उपे ा का भाव दखाया
हो, तो कृपया मुझे मा कर दे ना।
यह सुनकर कौआ बोला— म ! हम म के रहते तु ह इस कार नराश नह होना
चा हए। म तु हारे ब धन को काटने के लए हर यक को अभी बुलाकर लाता ।ं बु मान्
ाणी संकट अथवा ःख आने पर कभी अधीर नह होते।
स प द य य न हष वप द वषादो रणे न भी वम् ।
तं भुवन य तलकं जनय त जननी सुतं वरलम् ।।
स प पाकर हष से पागल न होने वाला, वप आने पर नराश न होने वाला तथा
यु म भयभीत न होने वाला ही तीन लोक म सव म माना जाता है। ऐसे वरल
पु को ज म दे ने वाली मां को ध य कहा जाता है।
इस कार च ांग को धैय बनाये रखने का आ ासन दे कर कौआ अपने म —
हर यक और म थरक—के पास आकर बोला क हमारा म च ांग ाध के ब धन म
बंध गया है। यह सुनते ही हर यक को उसके ब धन काटने को उ त दे खकर लघुपतनक ने
उसे अपनी पीठ पर बठाया और अपनी पूरी श लगाकर उड़ चला। चूहे को आते दे खकर
अपने जीवन के त आ त होकर मृग बोला—
आप ाशाय वबुधैः क ाः सु दोऽमलाः ।
न तर यापदं क ोऽ म वव जतः ।।
वप से उ ार के लए ही व ान ने भले लोग से म ता करने को मह वपूण
माना है। यह इस जीवन का स य है क म हीन संकट से कभी मु नह हो सकता।
हर यक ने च ांग से कहा— म ! तुम तो पया त चतुर और नी त- नपुण हो, तुम

Downloaded from www.PDFshala.com


इस ब धन म कैसे फंस गये?
मृग ने उ र दया— म ! इस समय ववाद करने क आव यकता नह है। अभी तो
तुम उस ाध के आने से पहले मेरे ब धन काटकर मुझे मु करने का यास करो।
यह सुनकर हर यक बोला— या मेरे आ जाने पर भी तुम ाध के डर से कांप रहे
हो? तुम-जैसे व ान् क यह थ त दे खकर तो मुझे तु हारा नी तशा का ान थ लग
रहा है। इसी लए म इसका कारण जानने को इ छु क हो रहा ।ं
च ांग बोला— म ! कभी-कभी कम का फल भोगने के लए बु भी षत हो
जाती है।
कृता तपाशब ानां दै वोपहतचेतसाम् ।
बु यः कु जगा म यो भव त महताम प ।।
भा य के वपरीत होने पर काल के ब धन म बड़े-बड़े बु एवं ानी य क
बु भी म लन हो जाती है और इसी लए वे भी हंसी के पा बन जाते ह।
वधा ा र चता या सा ललाटे ऽ रमा लका ।
न तां माज यतुं श ाः वबु या य तप डताः ।।
वधाता के ारा म तक पर लखी भा य ल प को बड़े-बड़े तप वी व ान् भी अपने
बु से बदल नह सकते।
दोन म इस कार बातचीत कर ही रहे थे क धीमी ग त से चलता आ म थरक
नामक कछु आ भी वहां आ प ंचा। लघुपतनक उसे दे खकर च तत वर म कहने लगा—यह
ठ क नह आ।
इस पर च ांग ने कहा— य , या ाध आ गया है?
लघुपतनक ने उ र दया—आया तो नह , ले कन य द आ गया, तो तुम भाग जाना,
म उड़ जाऊंगा और हर यक बल म घुसकर अपनी र ा कर लेगा। ले कन इस म थरक का
या होगा? मुझे यही च ता सता रही है।
इस पर लघुपतनक ने म थरक को शी ही वहां से चले जाने को कहा, ता क ाध
के आने पर वह कसी क ठनाई म न पड़ जाये।
म थरक बोला—मुझे यह सब पता है, ले कन अपने म को संकट म पड़ा दे खकर
मुझसे रहा नह गया।
द यतजन व योगो व वयोग
केन स ाः युः ।
य द सुमहौषधक पो
वयरयजनसंगमो न यात् ।।
वा तव म, म का मलना पीड़ा के समय कसी महौष ध के समान काम करता है,

Downloaded from www.PDFshala.com


पुनः मलने क आशा से ही न धन के समान ःखदायी म - वयोग को भी सह लया जाता
है।
वरं ाणप र यागो न वयोगो भव शैः ।
ाणा ज मा तरे भूयो न भव त भव धाः ।।
तुम-जैसे म से वयोग क अपे ा म अपने ाण यागना अ छा समझूंगा; य क
शरीर तो ज मा तर के प म फर भी मल जाता है, ले कन स चा म क ठनाई से ही
मलता है।
यहां ये सब इस कार बातचीत कर ही रहे थे क अपने दलबल के साथ ाध आ
प ंचा। उसे दे खते ही हर यक ने तुर त ाध के जाल को काट दया और मु होते ही
ह रण तेज़ी से भाग खड़ा आ, कौआ उड़कर वृ पर जा बैठा और चूहा बल म जा घुसा।
ह रण के भाग जाने से नराश होकर बहे लया धीरे-धीरे जाते कछु ए को दे खकर सोचने लगा
—आज तो मुझे इस छोटे -से जीव के मांस पर ही स तोष करना पड़ेगा। यह सोचकर उसने
दौड़कर कछु ए को पकड़ लया और उसे अपने क धे पर लटकाये धनुष पर बांधकर चल
दया। हर यक ने यह दे खा, तो वह रोते ए कहने लगा—
एक य ःख य न यावद तं
ग छा यहं पार मवाणव य ।
तावद् तीयं समुप थतं मे
छ े वनथा ब ली भव त ।।
वप अपने साथ अनेक झ झट लेकर आती है, तभी तो कसी एक संकट से अभी मु
मलती नह क सरा संकट सामने आ खड़ा होता है।
न मात र न दारेषु न सोद य न चा मजे ।
व भ ता शः पुंसां या ङ् म े नर तरे ।।
अपने अ भ म पर जैसा व ास कया जाता है, वैसा व ास तो कोई ाणी
अपनी मां, प नी, सगे भाई अथवा अपने पु पर भी नह करता।
इस कार वलाप करते ए हर यक कहने लगा—एक तो वधाता ने मुझसे मेरा धन
छ न लया और सरे अब उसने मेरे व त म को भी छ न लया। अब मुझे म थरक-
जैसा म कहां से मलेगा?
अस प ौ परो लाभो गु य कथनं तथा ।
आप मो णं चैव म यैत फल यम् ।।
म ता के तीन फल होते ह—1. अभाव के कारण असहाय न होना, 2. कसी भी
गु त रह य को कह सकना तथा 3. कसी भी आपदा से मु हो पाना। म थरक के समान
अब कोई मेरा सरा म नह है। वधाता य मुझ पर इस कार अ याचार कर रहा है?

Downloaded from www.PDFshala.com


वधाता क ू रता के कारण ही पहले मेरा धन न आ, फर प रवार से वयोग आ, उसके
बाद अपने दे श से र जाना पड़ा और आज मेरे म पर भी संकट आ गया। न जाने वधाता
हम जीव के त इतना कठोर य हो रहा है?
कायः स हतापायः स पदः णभंगुराः ।
समागमाः सापगमाः सवषामेव दे हनाम् ।।
यह ठ क है क सभी जीव का शरीर नाशवान् है, स प भी कह थर होकर
टकती नह है और मलन का अ त वयोग म ही होता है।
ते हारा नपत यभी णं
धन ये द य त जाठरा नः ।
आप सु वैरा ण समु लस त
छ े वनथा ब लीभव त ।।
चोट पर चोट लगे, धन के न हो जाने पर भूख वकट प धारण कर ले तथा वप
के समय श ु बल हो उठ, यह सब इसी त य के माण ह क क के समय अनथ भी बढ़ते
ही जाते ह।
ा ते भये प र ाणं ी त व भभाजनम् ।
केन र न मदं सृ ं म म य र यम् ।।
डर लगने पर र ा करने वाला, सदा ेम करने वाला तथा सदै व व ासपा बना रहने
वाला केवल अपना म ही होता है। न जाने, म -जैसे श द क रचना कसने क है?
जसने भी क हो, वह ध य है।
ठ क उसी समय वलाप करते ए च ांग और लघुपतनक भी वहां आ प ंचे।
हर यक ने उ ह ढाढ़स बंधाया और उनसे बोला— म ो! रोते रहने से या होगा? अब तो
हम ाध के र चले जाने से पहले ही म थरक को छु ड़ाने का कोई उपाय करना होगा।
सनं ा य यो मोहा केवलं प रवेदयेत् ।
दनं वधय येव त या तं ना धग छ त ।।
संकट म मोह के कारण रोते रहने वाला तो रोता ही रहता है, वह संकट से अपने
उ ार का माग नह ढूं ढ़ सकता।
कौआ बोला—अब सब मेरी योजना को यानपूवक सुनो। सबसे पहले च ांग ाध
के माग म पड़ने वाले सरोवर के तट पर प ंचकर मू छत होकर लेट जाये और म अपनी
च च से उसके मांस को खाने का नाटक क ं । इससे ाध समझेगा क ह रण मर चुका है
और वह म थरक को धरती पर रखकर मरे ए ह रण को पकड़ने के लए भागेगा। बस, उसी
समय हर यक म थरक के ब धन काट डालेगा और म थरक दौड़कर सरोवर म छलांग लगा
दे गा। च ांग ने भी लघुपतनक क योजना को उ चत बतलाया और वह कहने लगा—

Downloaded from www.PDFshala.com


स ं वा य द वा स ं च ो साहो नवेदयेत् ।
थमं सवज तूनां त ा ो वे नेतरः ।।
काय स होगा या नह , मन के उ साह से इसका पता चल जाता है और बु मान्
उस संकेत को तुर त समझ जाते ह। मुझे तो इस योजना क सफलता पर प का व ास है।
अतः आप सब ऐसा ही क जये। सबके सहमत हो जाने पर योजना के अनुसार सारा काम
कया गया। ाध ने सरोवर के कनारे पड़े ह रण केशव पर कौए को बैठा दे खा, तो उसने
सोचा क लगता है ह रण मेरे जाल से तो बच गया, पर तु दम घुट जाने के कारण बच नह
सका। इधर यह कछु आ तो मेरे पास है ही, अब म इस ह रण को भी अपने अ धकार म कर
लेता ं। यह सोचकर य ही उसने म थरक को ज़मीन पर रखा, य ही हर यक ने भागकर
उसके ब धन काट डाले और म थरक शी ता से उछलकर सरोवर म जा घुसा।
इधर ाध को पास आते दे खकर कांव-कांव करता आ लघुपतनक उड़ गया, तब
इस संकेत को समझकर च ांग ने भी छलांग लगा द और वह भी भाग खड़ा आ। ाध ने
लौटकर कछु ए को भी भाग गया दे खा, तो वह हाथ मलते और पछताते ए कहने लगा—
ा तो ब धनम ययं गु मृग ताव वया मे तः
स ा तः कमठः स चा प नयतं न तवादे शतः ।
ु ामोऽ वने मा म शशुकै य ः समं भा यया
य चा य कृतं कृता त कु ते त चा प स ं मया ।।
हे वधाता! तेरे खेल नराले ह। पहले तूने मेरे शकार बने ह रण को मुझसे छ न लया। अब
मेरे हाथ म आया कछु आ भी मेरे ब धन से मु हो गया। प नी व अपने पु आ द के ारा
यागे गये और भूख से ाकुल मेरा कोई और अ न करना रह गया हो, तो वह भी पूरा कर
ले।
इस कार रोता-पीटता और वलाप करता आ ाध अपने घर लौट गया। ाध के
आंख से ओझल होते ही चार म एक- सरे के गले मले और अपना नया ज म आ
मानकर बड़े स ए। इसके बाद तो फर से त दन गो ी और वातालाप चलने लगा।
इस कार कथाएं सुनाकर व णु शमा राजकुमार से बोले—इस सारे कथानक का
नचोड़ यही है क को अ धका धक लोग से मै ी-स ब ध बनाने चा हए। न जाने
कब, कससे और कैसा काम पड़ जाये? म ता तब ही नभती है, जब अपने वहार
म कसी कार का छल-कपट नह करता।
यो म ा ण करो य न कौ ट येन वतते ।
तैः समं न पराभू त स ा ो त कथ चन ।।
संसार म अ धका धक लोग से मै ी स ब ध बनाने वाले तथा म के साथ न कपट
वहार करने वाले को इस संसार म कभी कोई परा जत नह कर सकता।

Downloaded from www.PDFshala.com


करा वव शरीर य ने यो रव प मणी ।
अ वचाय यं कुया म ं म मु यते ।।
जस कार संकट आने पर शरीर क र ा के लए बना कहे ही हाथ और ने क
र ा के लए पलक आगे बढ़ आती ह, उसी कार कसी क भलाई के लए सदै व त पर
रहने वाला मनु य ही वा तव म म कहलाने का स चा अ धकारी होता है।
वाभा वकं तु य म ं भा येनैवा भजायते ।
तदकृ मसौहादमाप व प न मु च त ।।
स चा म बड़े भा य से ही कसी को मल पाता है। संकट म साथ न छोड़ने वाला ही
स चा और न कपट म कहलाता है।
ाणैर प हता वृ र ोहो ाजवजनम् ।
आ मनीव याधानमेत मै ीमहा तम् ।।
मै ी क अटलता के चार महा त ह—1. अपने ाण दे कर भी म का हत करना,
2. म के साथ कभी ोह अथवा व ासघात न करना, 3. सदा छल-कपटर हत वहार
करना तथा 4. म को अपनी आ मा मानकर उसका हत करने के लए सदा-सवदा त पर
रहना।

।। तीय त समा त ।।

Downloaded from www.PDFshala.com


तृतीय त

काकोलूक यम्

इस काकोलूक य नामक तृतीय त का थम प इस कार है—


न व से पूव वरो धत य
श ो म वमुपागत य ।
द धां गुहां प य उलूकपूणा
काक णीतेन ताशनेन ।।
पहले कभी श ु रहे से पुनः म ता था पत हो जाने पर भी उस (पूव
श ु) पर कभी पूण व ास नह करना चा हए, उससे सदै व सतक ही रहना चा हए। कौ
पर व ास करने के कारण ही उ लु को अपनी ही गुफा म कौ ारा लगायी आग से
जलकर मरना पड़ा था।
द ण दशा म थत म हलारो य नामक एक नगर के बाहर घने प और अनेक
शाखा वाला बरगद क जा त का एक वृ था। उस वृ पर अपने जा त-ब धु के साथ
मेघवण नामक कौ का राजा रहा करता था। उस वृ के पास ही एक पवत क गुफा म
उ लु का राजा अ रमदन भी अपने वशाल प रवार के साथ रहता था। रा म उलूकराज
उस वृ के चार ओर घूमता और अपने सहज वरोध के कारण दखाई पड़ जाने वाले
कौ को मार डालता था, जसके फल व प कौ क सं या नर तर घटने लगी।
य उपे ेत श ुं वं सर तं य छया ।
रोगं चाल यसंयु ः स शनै तेन ह यते ।।
वा तव म, आल य के कारण अपने श ु एवं रोग क उपे ा करके उ ह बढ़ने का अवसर दे ने
वाला मूख अ त म उनका शकार बन जाता है।
जातमा ं न यः श ुं ा ध च शमं नयेत् ।
अ तपु ा यु ोऽ प स प ा ने ह यते ।।

Downloaded from www.PDFshala.com


श ु और रोग का पता चलते ही उनको न कर डालने म ही बु म ा होती है,
अ यथा अवसर पाकर वे सश हो जाते ह और फर अपनी उपे ा करने वाले को ही अपना
शकार बना लेते ह।
एक दन कौ के राजा काकराज ने अपनी जा त के बचे-खुचे सद य को बुलाया
और उनके साथ सलाह-मशवरा करते ए उनसे कहा—ब धुओ! आप तो जानते ह क
हमारा श ु श शाली भी है और आ मणकारी भी है। वह हर रात यहां आकर हमारे
प रवार के कसी-न- कसी सद य को दे खते ही उसे मार डालता है। हम न तो रात म कुछ
दखाई दे ता है और न हम उसके ग क ही कोई जानकारी है, जससे हम दन म उस पर
वार करके उससे बदला ले सक। अब आप सब सोच- वचारकर बताय क हम नी त के छह
भेद —स ध, व ह, यान, आसन, सं य और ै धीभाव—म से कसका सहारा लेना
चा हए। म य ने इस सम या पर वचार करने के लए काकराज को ध यवाद दया और
कहा—
अपृ ेना प व ं स चवेना क चन ।
पृ ेन तु ऋतं प यं वा य च यम यम् ।।
उ म म ी को अपने जा त-ब धु के वषय पर वचार करते समय बना पूछे भी अपने
सुझाव अव य दे ने चा हए और पूछने पर तो उसे अपना य अथवा अ य मत भी अव य
ही कट करना चा हए।
यो न पृ ो हतं त
ू े प रणामे सुखावहम् ।
सुम ी यव ा च केवलं स रपुः मृतः ।।
पूछने पर भी अ छे प रणाम वाले तथा हतकर सुझाव न दे ने वाले म ी अथवा
यव ा म को भी श ु ही समझना चा हए।
त मादे का तमासा का य म ो महीपते ।
येन त य वयं कुम नणयं कारणं तथा ।।
अपनी सलाह को भावशाली और गु त बनाये रखने के लए हम सदा एका त म ही
सलाह-मशवरा करना चा हए और उसके बाद ही कोई योजना बनानी चा हए।
इस पर काकराज मेघवण ने अपने पांच म य —उ जीवी, स ीवी, अनुजीवी,
जीवी और चर ीवी—से अपने-अपने वचार कट करने को कहा, तो सबसे पहले
उ जीवी बोला—राजन्! हमारा श ु श शाली है और उसे हम पर हार के समय क भी
जानकारी है, अतः म उससे यु करने को उ चत नह मानता;
बलीयसे णमतां काले हरताम प ।
स पदो नापग छ त तीप मव न नगाः ।।
य क जस कार धरती के नीचे बहने वाली न दयां कभी उलट नह बह सकत , उसी

Downloaded from www.PDFshala.com


कार बु मान् और समय क ग त को पहचानने वाले ाणी को भी अपने से अ धक
बलवान् एवं आ मणकारी श ु के त न वहार करके ही अपनी और अपनी स प
क र ा करनी चा हए।
स धः का य ऽ यना यण व ाय ाणसंशयम् ।
ाणैः संर तैः सव यतो भव त र तम् ।।
ाण क र ा के लए तो कसी अनाय श ु से भी स ध कर लेना ही उ चत रहता है;
य क य द अपने ाण बचे रहगे, तो तशोध लेना भी स भव हो सकेगा।
म तो आपको अनेक यु के वजेता उलूकराज से स ध करने क ही सलाह ं गा;
अनेकयु वजयी स धानं य य ग छ त ।
त भावेण त याशु वशं ग छ यरातयः ।।
य क ऐसे अनेक यु के वजेता से स ध करने का एक लाभ यह भी होता है क उसके
कारण सरे छोटे -बड़े श ु भी वरोध छोड़कर अपने म बन जाते ह।
स ध म छे समेना प स द धो वजयो यु ध ।
न ह सांश यकं कु या द युवाच बृह प तः ।।
आचाय बृह प त का कथन है क य द अपनी वजय म स दे ह हो, तो समान बल वाले
श ु से स ध कर लेना ही उ चत होता है; जस काम म स दे ह हो, उसे कभी नह करना
चा हए।
स द धो वजयो यु े जनाना मह यु यताम् ।
उपाय तया व त मा ु ं समाचरेत् ।।
यु म अपनी वजय के त स दे ह होने पर राजा को साम, दान और भेद आ द का
योग करना चा हए। इन तीन उपाय के असफल हो जाने पर ही अ तम उपाय के प म
यु के वषय म वचार करना चा हए।
ब लना सहयो म त ना त नदशनम् ।
तवातं न ह घनः कदा च पसप त ।।
जस कार मेघ पवन पर कभी भारी नह पड़ सकता, उसी कार बल भी बलवान्
को कभी जीत नह सकता। इसी लए इ तहास म बल ारा बलवान् से यु करने का कोई
उदाहरण नह मलता।
इस कार उ जीवी के नी तपरक सुझाव को सुनने के प ात् मेघवण ने स ीवी क
ओर दे खा, तो वह बोला—महाराज! मुझे मा कर, ले कन म श ु के साथ स ध करना
उ चत नह समझता;
श ुणा न हस द या सु ेना प स धना ।
सुत तम प पानीयं शमय येव पावकम् ।।

Downloaded from www.PDFshala.com


य क जस कार गरम कया आ जल भी अ न को बुझा दे ता है, उसी कार अपनी
शत पर स ध म बंधा आ श ु भी हा न द स होता है। फर यहां तो बात ही और है।
हमारा श ु तो ू र, लोभी, पापा मा और अ व सनीय होने के कारण स ध के यो य भी नह
है।
स यधम वहीनेन न स द या कथ चन ।
सुस धतोऽ यसाधु वाद चरा ा त व याम् ।।
जो स य और धम को भी गौरव न दे , ऐसे श ु से स ध करना कदा प उ चत
नह हो सकता; य क ऐसे श ु को स ध क शत से मुकरते कतनी दे र लगेगी? इसके
साथ ही यह भी वचारणीय है क उसने हम परा जत कया है। हमारे ारा स ध का ताव
रखने पर तो वह और भी अ धक अकड़ जायेगा।
सामंवादाः सकोप य श ोः युत द पकाः ।
त त येव सहसा स पष तोय ब दवः ।।
ु श ु से स ध क ाथना करना गरम घी म अचानक जल- ब डालने के समान
उसके ोध को भड़काकर और भी अ धक संकट मोल लेना होता है।
मायया श वो व या अव याः युबलेन ये ।
यथा ी पमा थाय हतो भीमेन क चकः ।।
श ारा न मारे जा सकने वाले श ु का तो छल से ही वध करना चा हए। भीमसेन
ने भी तो ीवेश धारण करके क चक का वध कया था।
इस कार स ीवी के यु परक वचार सुनने के प ात् मेघवण ने अनुजीवी से
उसके वचार जानना चाहे, तो वह बोला—महाराज! हमारा श ु अ य त , मयादार हत
और हमसे कह अ धक बलवान् है, अतः मेरे वचार म तो उसके साथ न तो स ध करना
उ चत है और न ही यु करना। म तो उस पर चढ़ाई करने के प म ं।
बलो कटे न ेन म यादार हतेन च ।
न स ध व हौ नैव वना यानं श यते ।।
रा ही, , मयादाहीन तथा बलवान् श ु पर चढ़ाई कये बना स ध- व ह का
कोई मह व नह होता।
धाकारं भवे ानं भय त र णम् ।
एकम य जगीषो या ाल णमु यते ।।
श ु पर चढ़ाई दो उ े य से क जाती है। थम, भय त ा णय क र ा के लए
तथा तीय, श ु पर वजय ा त करने के लए।
अ ात व वधासारतोयश यो जे ु यः ।
पररा ं स नो भूयः वरा म धग छ त ।।

Downloaded from www.PDFshala.com


पर तु अपने म क श , साधन, कृ ष तथा उनके सै य-बल आ द का परी ण
कये बना श ु पर आ मण करने वाला राजा सकुशल वापस नह लौट पाता, इस लए मेरे
वचार म हमारा यहां से पीछे हटना ही उ चत होगा;
न व हं न स धानं ब लना तेन पा पना ।
का यलाभमपे यापसरणं यते बुधैः ।।
य क पापी तथा बलवान् श ु के साथ न तो स ध करना उ चत होता है और न ही यु
करना उपयु होता है। बु मान् राजा को तो अपने काय क स के लए अपने थान
को ही छोड़ दे ना चा हए।
यदपसर त मेषः कारणं त हतु
मृगप तर प कोपा सङ् कुच यु प त णुः ।
दय न हतवैरा गूढम ोपचारा
कम प वगणय तो बु म तःसह ते ।।
मेढ़ा पीछे हटकर ही ने वेग से हार करता है, सह भी ु होकर हाथी पर झपटने
से पहले थोड़ा पीछे हटता है। इसी कार दय म वैर और तशोध का भाव रखने वाल को
भी उ चत समय क ती ा करते ए श ु के उप व को चुपचाप सहन कर लेना चा हए।
बलव तं रपुं ् वा दे श यागं करो त यः ।
यु ध र इवा ो त पुनज व स मे दनीम् ।।
श ु को श शाली जानकर दे श का याग करने वाला बु मान् राजा ही यु ध र के
समान जी वत रहकर पुनः वजयी होता है और रा य का सुख भोगता है।
यु यतेऽहंकृ त कृ वा बलो यो बलीयसा ।
स त य वा छतं कु यादा मन कुल यम् ।।
श ु को अपने से अ धक श शाली जानकर भी उससे यु करने वाला मूख राजा
तो श ु के मनोरथ को स करने वाला और अपने सवनाश को आम ण दे ने वाला होता
है। अतः हमारे लए पीछे हटना ही उ चत है, न क उससे स ध करना।
अनुजीवी के मौन हो जाने पर मेघवण ने जीवी से अपना मत कट करने को कहा,
तो जीवी बोला—महाराज! मुझे तो स ध, व ह और यान क अपे ा चुपचाप बैठकर
उपयु समय क ती ा करना ही उ चत तीत होता है।
न ः व थानमासा गजे म प कष त ।
स एव युतः थाना छु ना प प रभूयते ।।
अपने थान पर, अथात् जल म बैठा मगरम छ जहां हाथी-जैसे वशाल जीव को भी
ख चने म सफल हो जाता है, वहां उसी मगरम छ के अपने थान से बाहर होते ही साधारण
कु ा भी उसे पीट दे ता है।

Downloaded from www.PDFshala.com


अ भयु ो बलवता ग त े य नवान् ।
त थः सु दा ानं कुव ता ममु ये ।।
बलवान् श ु ारा आ मण करने पर अपने ग म बैठा राजा अपनी सहायता के लए
अपने म को भी बुला सकता है और उनके सहयोग से अपने श शाली श ु को भी
पछाड़ दे ता है।
दं ा वर हतः सप मदहीनो यथा गजः ।
थानहीन तथा राजा ग यः या सवज तुषु ।।
द तहीन सप और मदहीन हाथी के समान ही थानर हत राजा के भी असहाय होते
ही सभी उसका तर कार करने लगते ह।
नज थान थतोऽ येकः शतं यो ं वहे रः ।
शतानाम प श ूणां त मा थानं न स यजेत् ।।
अपने थान पर बैठा राजा अकेले ही सैकड़ श ु पर भारी पड़ता है, अतः
बु मान् मनु य को अपने थान को छोड़ने क चे ा नह करनी चा हए।
त माद् ग ढं कृ वा सुभटासारसंयुतम् ।
ाकारप रखायु ं श ा द भरलंकृतम् ।।
अतः मेरा तो सुझाव यही है क आप अपने ग को सु ढ़ बनाय। ग के चार ओर
परकोटे और खाइयां बनवाय और उसम परी त यो ा को ही बसाय तथा श ा का
उ चत मा ा म सं ह कर।
इस कार जीवी ने ‘आसन’ अपनाने का सुझाव दया, तो काकराज मेघवण ने
चर ीवी से उसका वचार पूछा।
वह बोला—महाराज! स ध आ द छह उपाय म मुझे तो अपने से तथा अपने श ु से
अ धक बलवान् एवं उसे परा जत करने म समथ राजा से मलकर उसक सहायता लेना ही
उ चत लगता है।
असहायः समथ ऽ प तेज वी क क र य त ।
नवाते व लतो व ः वयमेव शा य त ।।
नी तकार ने भी कहा है— जस कार वायुर हत थान पर च ड अ न भी बुझ
जाती है, उसी कार असहाय एवं अकेला पड़ा तेज वी भी न सा हत हो जाता है।
संह तः ेयसी पुंसां वप े च वशेषतः ।
तुषैर प प र ा न रोह त त डु लाः ।।
जस कार भूसीर हत चावल उगने म समथ नह होता, उसी कार सा थय से र
रहते ए और अकेला पड़ा भी कुछ नह कर सकता, अ पतु इसके वपरीत तु छ
समझे जाने वाले सा थय का साथ उपयोगी स होता है।

Downloaded from www.PDFshala.com


मेरे वचार म तो आप यह रहते ए कसी बलशाली राजा का आ य लेकर अपने
ऊपर आये संकट से मु हो जाय। य द आप अपने थान को छोड़कर अ य चले जाते ह,
तो कोई आपसे बात भी नह करेगा।
वना न दहतो व े ः सखा भव त मा तः ।
स एव द पनाशाय कृशे क या त सौ दम् ।।
वन को जलाने म समथ अ न का सहायक बनने वाला वायु भी द पक को बुझाकर
इस त य क पु करता है क बल का साथ दे ने के लए कोई भी तैयार नह होता। य द
सहारा दे ने के लए कोई बलवान् राजा उपल ध नह है, तो अपने समान बल वाले का भी
आ य लेने म कोई संकोच नह करना चा हए।
संघातवा यथा वेणु न बडो वेणु भवृतः ।
न श यः स समु छे ुं बलोऽ प तथा नृपः ।।
जस कार वायु अनेक बांस से बने झुरमुट का कुछ भी नह बगाड़ सकता, उसी
कार श शाली श ु अनेक अ पबली सहायक से घरे राजा का कुछ भी नह बगाड़
सकता।
महाजन य स पकः क य नो तकारकः ।
प प थतं तोयं ध े मु ाफल यम् ।।
ले कन उ म य का आ य मलने पर तो गौरव म वृ का होना न त ही
होता है। कमलप पर गरी पानी क बूंद भी मोती का आकार धारण करके इसी स य को
स करती ह।
मुझे मलाप से बढ़कर अ य कोई उपाय दखाई नह दे ता। अतः म तो इसे ही
सव म म मानता ं।
अपने पांच म य के सुझाव को सुनने के प ात् मेघवण ने अपने पता के समय
से चले आ रहे वृ म ी थरजीवी से कहा—महा मन्! आपने मेरे पांच म य के वचार
सुन लये ह। अब आप मुझे अपनी राय बताने क कृपा कर।
यह सुनकर थरजीवी बोला—व स! तु हारे म य के सुझाव अपने-अपने थान
पर सही ह, पर तु वतमान् थ त म इन पांच —स ध, व ह, यान, आसन और सं य—
उपाय क अपे ा छठा उपाय, अथात् ै धीभाव—यानी ऊपर से म ता का दशन, क तु
भीतर-ही-भीतर जड़ काटना—ही सवा धक उपयु तीत होता है।
अ व ासं सदा त स धना व हेण च ।
ै धीभावं समा य नैव श ौ बलीय स ।।
स ध और व ह म अ न तता क थ त बनी रहती है, जब क ै धीभाव को
अपनाने पर दशा न त हो जाती है।

Downloaded from www.PDFshala.com


श ु को व ास दलाकर और लोभन दे कर न त कर दे ने पर उसे जड़ स हत
उखाड़ फकना अ य त सरल एवं सुगम हो जाता है।
उ छे म प व ांसो ब य य रमेकदा ।
गुडेन व तः े मा सुखं बु या नपा यते ।।
जस कार गुड़ पहले कफ को बढ़ाता है, फर उसे समूल न कर दे ता है, उसी
कार बु मान् भी पहले श ु क चाटु का रता करके उसे गव म कर दे ते ह और
फर अनायास ही उसे गरा दे ते ह।
मुझे तो आपके यहां रहते ए आपका ै धीभाव को अपनाना ही उ चत तीत होता
है। आप अपने श ु को लोभन दे कर उसे अपने त अनुर क जये और फर उसके दोष
नकालकर चुपके से उसे न कर डा लये।
मेघवण बोला—पर तु ीमन्! मुझे तो अपने श ु के नवास का पता ही नह , फर
उसके पास प ंचना और उसके दोष नकालना कैसे स भव होगा?
थरजीवी बोला—आप इसक च ता न कर। हमारे गु तचर सब कुछ कर दगे। कहा
भी है
गावो ग धेन प य त वेदैः प य त वै जाः ।
चारैः प य त राजान ु या मतरे जनाः ।।
क सामा य लोग संसार को अपने ही ने से दे खते ह, क तु जस कार गाय के दे खने का
मा यम ग ध है और ा ण के दे खने का मा यम वेद ह, उसी कार राजा के दे खने का
मा यम, अथात् उसके ने उसके गु तचर होते ह।
य तीथा न नजे प े परप े वशेषतः ।
गु तै ारैनृपो वे न स ग तमा ुयात् ।।
रा या धका रय को, अपने प को और श ु प को गु तचर के मा यम से दे खने
वाला राजा कभी धोखा नह खाता। राजनी त म उ च वग के अ धकारी ही तीथ कहलाते ह।
मेघवण ने पूछा—अ धका रय को तीथ य कहा जाता है और इनक सं या कतनी
होती है? इसके अ त र यह भी बतलाने क कृपा कर क गु तचर कस कार के होने
चा हए?
थरजीवी ने कहा—दे व ष नारद के अनुसार यु ध र को बतलाये श ुप के अठारह
और अपने प के प ह व श अ धका रय को तीथ कहते ह। तीन तर के गु तचर ारा
अपने और पराये प क असली जानकारी मलती है, अतः इन तीन को भी तीथ ही
समझना चा हए।
मेघवण ने थरजीवी से पूछा—कौ और उ लु म कस कारण से े ष चला आ
रहा है?
इस पर वृ म ी बोला—एक समय क बात है, हंस, तोते, कोयल, बगुले, चातक,

Downloaded from www.PDFshala.com


उ लू, मोर तथा कबूतर आ द प ी परेशान हो गये और एक- सरे से कहने लगे क व णु
भगवान् के परमभ ग ड़जी हमारे राजा होकर भी हमारी कोई च ता नह करते। हमारे
जा त-ब धु त दन बहे लय के जाल म फंसकर अपनी जान गंवाते रहते ह, पर तु ग ड़जी
उनक र ा का कोई उपाय नह करते।
यो न र त व ता पी माना परैः सदा ।
ज तू पा थव पेण स कृता तो न संशयः ।।
श ु ारा सताये गये अपने सेवक और डर के मारे जाजन क र ा न करने वाले
राजा को तो यमराज ही समझना चा हए।
य द न या रप तः स यङ् नेता ततः जा ।
अकणधारा जलधौ व लवेतेह नौ रव ।।
महाराज मनु ने जा क र ा के लए ही राजा का वधान कया है; य क रांजा के
अभाव म जा क थ त म लाह के बना भंवर म फंसी नौका के समान हो जाती है।
ष डमा पु षो ज ा ां नाव मवाणवे ।
अ व ारमाचा यमनधीयानमृ वजम् ।।
अर तारं राजानं भा या चा यवा दनीम् ।
ामकामं च गोपालं वनकामं च ना पतम् ।।
नीचे बताये जा रहे ये छह भी समु म टू ट ई नाव के समान याग दे ने यो य ह—1.
सही उपदे श न दे ने वाला आचाय, 2. य -यागा द न करा सकने वाला पुरो हत, 3. जा का
पालन न कर सकने वाला राजा, 4. अ य वचन बोलने वाली प नी, 5. गांव का सरप च
बनने का इ छु क अहीर तथा 6. जंगल म तप करने का इ छु क नाई। अतः अब हम ख़ूब
सोच- वचार कर ही कसी अ य को अपना राजा बनाना चा हए।
यह सुनकर वहां उप थत प य म से कुछ ने सु दर अंग, वशाल आकार तथा ती
वाले उ लू को राजा बनाने का ताव रखा, तो सबने अपनी सहम त जतलायी। फर
उ लू के रा या भषेक का आयोजन होने लगा। ब द गण तु तगान करने लगे और ा ण
वेदपाठ करने लगे। चार ओर शंख क व न गूंजने लगी। नृ य, गीत, वा आ द से
वातावरण मंगलमय हो गया। उ लू के सहासन पर बैठते ही कह से उड़कर आये कौए को
दे खकर सब प ी सोचने लगे क चालाक म तो कौए का कोई जोड़ ही नह है।
नराणां ना पतो धूतः प ीणां चैव वायसः ।
दं णा च शृगाल तु ेत भ ु तप वनाम् ।।
मनु य म नाई, दांत वाले ा णय म सयार और तप वय म ेतव धारी भ ु के
समान प य म कौआ ही सवा धक चालाक होता है।
ब धा ब भः साध च तताः सु न पताः ।

Downloaded from www.PDFshala.com


कथ च वलीय ते व तता नयाः ।।
अतः अ तम नणय लेने से पूव इससे भी सलाह ले लेनी चा हए; य क ब त के
साथ वचार- वमश के बाद नधा रत और व ान ारा समथन ा त नी त कभी दोष त
नह होती।
कौए ने वहां लगी भीड़ का कारण पूछा, तो प य ने उसे ग ड़ के थान पर उ लू
को राजा चुनने क बात द । इस पर कौए ने चुनाव करने वाल का मज़ाक उड़ाते ए कहा—
या तुम लोग क बु मारी गयी है, जो मोर, हंस, कोयल और सारस-जैसे त त प य
क उपे ा करके दन म न दे ख पाने वाले और भयंकर आकृ त वाले इस उ लू को राजा
चुनने जा रहे हो? मुझे तो तु हारी सोच पर आ य हो रहा है और म तुम सबसे असहमत ं।
ज़रा सोचो तो—
व नासं सु ज ा ं ू रम यदशनम् ।
अ ु ये शं व ं भवे ु य क शम् ।।
जसक नाक टे ढ़ है, जसक आंख सदा चढ़ रहती ह, जो वभाव से ू र है, जसका दशन
भी अमंगलमय माना जाता है और ोध न करने पर भी जसका चेहरा इतना भयंकर है क
उसे दे खते ही डर लगता है, ऐसे मूख प ी उ लू को तुम या सोचकर अपना राजा चुन रहे
हो?
वभावरौ म यु ं ू रम यवा दनम् ।
उलूकं नृप त कृ वा का नः स भ व य त ।।
और यह भी तो सोचो क वभाव से ोधी, उ , ू र और अ य बोलने वाले उ लू
को राजा बनाकर हम प य का कौन-सा योजन स होने वाला है?
इसके अ त र एक वचारणीय त य यह भी है क ग ड़ के राजा रहते कसी सरे
को यह पद दया भी कैसे जा सकता है? एक तो उ लू इस पद के यो य ही नह है, सरे
अभी तो राजा का थान भी ख़ाली नह आ है। ऐसे म उसको राजा बनाने के स ब ध म
कैसे वचार कया जा सकता है? आपका यह नणय वधान-स मत नह है।
एक एव हताथाय तेज वी पा थवो भूवः ।
युगा त इव भा व तो बहवोऽ वप ये ।।
एक ही पद पर एक से अ धक य के आसीन हो जाने पर पर पर ई या उ प
हो जाती है। तब दोन ही अपने दा य व को न नभाकर छोट -छोट ु टय के लए एक-
सरे पर आरोप- यारोप लगाते रहते ह। इस लए शा भी एक ही राजा क अनुम त दे ता
है; य क उसी के ारा जा का हत हो सकता है।
गु णां नाममा ऽ े प गृहीते वा मस भवे ।
ानां पुरतः ेमं त णादे व जायते ।।

Downloaded from www.PDFshala.com


ग ड़जी के नाम से ही हम सब प ी अपने श ु पर भारी पड़ते ह। ऐसे त त
ाणी को अपना वामी बताने और केवल उसका नाम लेने-भर से अपनी हेकड़ी भूल
जाते ह और जा सदा सुख से रहती है।
पदे शेन महतां स ः स ायते परा ।
श शनो पदे शेन वस त शशकाः सुखम् ।।
बड़े य का केवल नाम लेने से ही सारे काय अपने आप स प हो जाते ह।
ख़रगोश ारा च मा का नाम लेते से ही उ ह हा थय का उ पात रोकने म सफलता मल
गयी थी।
यह सुनकर सब प ी कह उठे —यह कैसी कथा है?
इस पर कौआ बोला—सु नये।

कथा म : एक
कसी जंगल म चतुद त नामक हाथी अपने यूथ के साथ रहता था। एक बार बरसात न होने
के कारण अनेक न दय , नाल , तालाब और झील के सूख जाने पर हा थय ने अपनी और
अपने ब च क यास न बुझ पाने क बात कही, तो कसी नये जलाशय क खोज के बारे म
सोच- वचार होने लगा। ब त सोच- वचार के प ात् म यदे श म पाताल-गंगा के जल से सदा
भरे रहने वाले एक ताल के आस-पास नवास बनाने का न य आ। इस न य के अनुसार
हा थय का दल वहां चल दया। पांच दन के बाद वहां प ंचकर हा थय ने जी-भरकर
नान-पान का आन द लया और ख़ूब जल- ड़ा क । अब वे सब त दन उसी ताल पर
आने लगे।
ले कन हा थय के आने-जाने से उस ताल के कनार पर रहने वाले कुछ ख़रगोश
कुचले गये, ले कन कुछ मौत के मुंह म जाने से बच गये। इस पर हा थय के उ पात मचाने से
खी ए सभी ख़रगोश च तत और एकमत थे क य द ये हाथी इसी कार ताल पर आते-
जाते रहे, तो हमारा वंश ही न हो जायेगा। कहा भी गया है
पृश प गजो ह त ज प भुज मः ।
हस प नृपो ह त मानय प जनः ।।
क सांप सूंघकर अपने शकार क ह या करता है, राजा हंसते-हंसते अपराधी को मृ युद ड
दे दे ता है, जन म ता का दखावा करते ए जीवन को हर लेता है तथा हाथी केवल अपने
पश से ही सर को मार डालता है।
इस लए हम इस स ब ध म तुर त ही कुछ करना चा हए। एक सुझाव यह भी आया
क इस थान को छोड़कर कसी अ य थान पर नवास बनाना चा हए। महाराज मनु और

Downloaded from www.PDFshala.com


आदरणीय ासजी का भी यही मत है
यजेदेकं कुल याथ ाम याथ कुलं यजेत् ।
ामं जनपद याथ आ माथ पृ थव यजेत् ।।
क प रवार क र ा के लए कसी एक सद य को, गांव क र ा के लए कसी एक प रवार
को, जनपद अथवा नगर क र ा के लए कसी एक गांव को और अपने ाण क र ा के
लए य द कसी दे श क धरती को छोड़ना भी पड़े, तो उसे तुर त छोड़ दे ना चा हए।
े यां श य दां न यं पशुवृ करीम प ।
प र यजे ृपो भू ममा माथम वचारयन् ।।
अपने क याण के न म राजा को क याणका रणी, अ छ उपज दे ने वाली तथा
पशुधन क वृ करने वाली धरती को भी छोड़ने म सोच- वचार नह करना चा हए।
आपदथ धनं र े ारा े नैर प ।
आ मानं सततं र े ारैर प धनैर प ।।
धन को कसी आप से बचने के लए जोड़ा जाता है, पर तु प नी क र ा के लए
उस धन को ख़च करने म कोई सोच- वचार नह कया जाता और अपने ाण क र ा के
लए तो इन दोन —धन और प नी—का ब लदान करने म भी कुछ अनु चत नह होता।
इस पर कुछ अ य ख़रगोश कहने लगे—हम अपने पैतृक थान को इस कार
एकाएक छोड़ दे ना उ चत नह लगता। य द इन हा थय को यहां आने से रोकने के लए उ ह
कुछ डराया-धमकाया जाये, तो शायद कुछ काम बन जाये। कहा भी गया है
न वषेणा प सपण कत ा महती फणा ।
वषं भवतु मा वाऽ तु फणाटोपो भयङ् करः ।।
क वष वहीन सप को भी आ मर ा और सर को डराने के लए अपने फन को ख़ूब
फैलाना चा हए। वष न रहने पर भी सांप केवल अपने फन को फैलाकर ही अपना बचाव
कर लेता है।
इस पर कुछ ख़रगोश बोले क य द हा थय को डराकर ही उनसे मु मल जाये, तो
इसके लए कसी चतुर त को तुर त इस काम पर लगा दे ना चा हए। हमारा राजा वजयद
च म डल म रहता है। उसक ओर से वह त इन हा थय को यह सूचना दे क च दे व का
आदे श है क हाथी हमारे आ त ख़रगोश के इस े म न आय; य क इनके आने से
ख़रगोश कुचले जाते ह। इसके साथ ही उ ह यह भी डर दखा दया जाये क इस आदे श को
न मानने का प रणाम अ छा नह नकलेगा।
पया त सोच- वचार के बाद सभी ख़रगोश ने ल बकण नामक एक चतुर ख़रगोश को
यह काम स प दया;
साकारो नः पृहो वा मी नानाशा वच णः ।

Downloaded from www.PDFshala.com


पर च ावग ता च रा ो तः स इ यते ।।
य क सु दर शरीर, नल भी, स दे श प ंचाने म नपुण, शा का जानकार तथा सर के
मनोभाव को समझने म द ाणी ही राजा का त बनने के यो य होता है।
यो मूख लौ यस प ं राज ा रकमाचरेत् ।
म यावादं वशेषण
े त य का य न स य त ।।
कसी मूख, लोभी अथवा वशेषतः झूठ बोलने वाले ाणी को त बनाकर राजा
अपने बनते काम को भी बगाड़ बैठता है।
ल बकण ख़रगोश ने हा थय के मु खया के पास प ंचकर और एक सुर त थान
पर खड़े होकर उसे धमकाते ए कहा—अरे ! इस सरोवर पर नहाने, जल ड़ा करने
अथवा जल पीने का अ धकार तु ह कसने दया है?
यह सुनकर च कत ए हा थय के मु खया ने पूछा—अरे, तू हम रोकने वाला कौन
है?
ल बकण ने भी कठोर वर म कहा—म महाराज च दे व ारा भेजा गया उनका त
ं और त का वचन राजा का वचन होता है। यह त य तो तुम सब जानते ही होगे।
उ ते व प श ष
े ु ब धुवगवधे व प ।
प षा य प ज प तो व या ता न भूभुजा ।।
हाथ म श लये रहने पर अथवा अपने ब धु-बा धव क ह या का दोषी होने पर
तथा कठोर वचन बोलने पर भी त का वध करना अनु चत माना गया है।
यह सुनकर हा थय का मु खया बोला—अ छा, तो बता, च दे व ने या आदे श दया
है?
यह सुनकर ल बकण ख़रगोश बोला—कल इस ताल पर आते-जाते तुमने ब त सारे
ख़रगोश को कुचल डाला है। शायद तु ह मालूम नह क ये सब मेरे प रवार के सद य ह।
य द तु ह अपना जीवन यारा है, तो इस तालाब को छोड़कर कसी अ य थान पर चले
जाओ, ता क मेरे प रवार के बचे-खुचे ख़रगोश न त होकर जी सक।
इस पर हा थय के मु खया ने कहा—मुझे व ास नह होता क च दे व ने तु ह त
बनाकर भेजा है। य द उ ह ने ही तु ह भेजा है, तो मुझे उनके दशन करा दो, म उ ह णाम
करके तुर त ही अपने सा थय के साथ यहां से चला जाऊंगा।
ख़रगोश बोला—ठ क है, ले कन आपको मेरे साथ अकेले चलना होगा।
गजराज के सहमत होने पर ल बकण उसे रात म अकेला ही सरोवर के तट पर ले
गया और जल म च मा का त ब ब दखाकर बोला—इस समय हमारे वामी समा ध म
थत ह, तुम उनके दशन करके और उ ह णाम करके चुपचाप यहां से कह अ य चले
जाओ। य द तु हारी आवाज़ सुनने से उनक समा ध भंग हो गयी, तो वह ो धत हो जायगे।

Downloaded from www.PDFshala.com


च मा के त ब ब को ही च मा समझकर गजराज ने उ ह णाम कया और
अपने यूथ के साथ वहां से सरे थान पर चला गया। इसके प ात् सारे ख़रगोश पहले क
भां त सुखपूवक अपना जीवन बताने लगे।
पदे शेन महतां स ः स जायते परा ।
श शनो पदे शेन वस त शशकाः सुखम् ।।
यह कहानी सुनाकर कौआ बोला—कभी-कभी बड़े लोग का नाम लेने-भर से भी
कई काम आसानी से हो जाते ह, ठ क वैसे ही जैसे च मा का नाम लेने से ख़रगोश को
हा थय के उ पात से छु टकारा मल गया था।
अकृत ं कापु षं स ननमलसं तथा सदा ु म् ।
पृ लपनशीलं वा म वे ना भयोजये जातु ।।
शा का तो यह भी नदश है क सरे के उपकार को न मानने वाले, कायर, सनी,
आलसी, ु आचरण करने वाले तथा चुग़लख़ोर को कभी अपना वामी नह बनाना
चा हए।
ु मथप त ा य याया वेषणत परौ ।
उभाव प यं ा तौ पुरा शशक प जलौ ।।
ब त दन पहले कसी ु पूंजीप त को अपना वामी बनाने के कारण एक ख़रगोश
और गौरैया प ी को अपना वनाश दे खना पड़ा था।
प य क ज ासा पर कौआ उ ह यह कथा सुनाते ए बोला—

कथा मः दो
म जस वृ क शाखा पर नवास कया करता था, उसी के नीचे कोटर म एक गौरैया प ी
भी रहा करता था। हम दोन इकट् ठे बैठकर धम-चचा तथा वातालाप भी कया करते थे।
इससे हमारा समय उ म ढं ग से बीत जाता था। एक दन वह गौरैया प ी कुछ अ य प य
के साथ कसी दे श म गया, तो सायंकाल तक लौटा ही नह । मने दो-चार दन तक उसक
ती ा क , उसके वयोग म तड़पा, फर उसे कसी ाध के चंगुल म फंसा मानकर ख़ूब
रोया। अ ततः भावी को बल मानकर शा त हो गया।
कुछ दन बाद उस गौरैया क ख़ाली पड़ी कोटर म एक ख़रगोश ने डेरा डाल दया।
मने इस पर कोई आप नह क , क तु कुछ दन बाद हट् टा-कट् टा बना गौरैया अपने
पुराने थान क याद म लौट आया। कहा भी गया है
न ता जायते सौ यम प वग शरी रणाम् ।
दा र येऽ प ह या क् या वदे शे वपुरे गृहे ।।

Downloaded from www.PDFshala.com


क द र ता क दशा म अपने दे श, नगर अथवा घर म मलने वाला सुख कसी शरीरधारी को
वग म भी नह मलता।
गौरैया ने अपने कोटर पर अ धकार जमाये ख़रगोश को वहां से नकल जाने को कहा,
तो ख़रगोश कहने लगा—
वापीकूपतडागानां दे वालयकुज मनाम् ।
उ सगा परतः वा यम प कतु न श यते ।।
बावड़ी, कुआं, तालाब, दे व थान तथा वृ को एक बार छोड़कर चला जाने वाले का इन पर
कोई अ धकार नह रहता, कसी अ य ाणी ारा अ धकार कर लया जाना उ चत कहलाता
है।
य ंय यय ं े ा ं दश व सरान् ।
त भु ः माणं या सा ी ना रा ण वा ।।
गौरैया बोला—दस वष तक कसी थान पर अ धकार बनाये रखकर रहने वाला सदा
के लए उस थान का वामी हो जाता है। इसम क़ ज़ा ही स च माण माना जाता है और
अ धकार स करने के लए कसी लेख अथवा गवाह क आव यकता नह होती।
मानुषाणामयं यायो मु न भः प रक तः ।
तर च वहंगानां यावदे व समा यः ।।
ख़रगोश बोला—दस वष के अ धकार का नयम मनु य पर लागू होता है, पशु और
प ी जब तक जहां रहते ह, तब तक ही वे उस थान के वामी कहलाते ह। एक बार उस
थान को छोड़ दे ने के बाद उनका वा म व समा त हो जाता है। अब यह मेरा नवास है,
ले कन इसे छोड़ते ही यह मेरा नह रहेगा।
गौरैया बोला—य द तुम शा को ही माण मानते हो, तो मेरे साथ चलो, कसी
शा वे ा से ही याय करा लेते ह।
मने भी उ सुकतावश सोचा—चलो, म भी दे खता ं क इनके इस झगड़े का नणय
कैसे होता है?
पास ही रहने वाले ती णदं नामक एक बलाव को उन दोन के ववाद का पता
चला, तो दोन को अपना शकार बनाने क इ छा से वह ढ गी बलाव धमाचाय होने का
नाटक करने लगा और एक टांग पर खड़ा होकर व अपनी आंख मूंदकर उ च वर म कहने
लगा—इस संसार म ाणी केवल दो दन के लए आता है। यह य मलन व के समान है
और यह प रवार तो एक इ जाल है। केवल धम ही एकमा स य है, उसे छोड़कर अ य
कोई ग त नह है।
अ न या न शरीरा ण वभवो नैव शा तः ।
न यं स हतो मृ युः क ो धमसं हः ।।

Downloaded from www.PDFshala.com


शरीर अ न य है, वैभव नाशवान् है और मृ यु सभी ा णय के सर पर नाचती रहती
है। अतः सभी ा णय का हत धमाचरण और पु य अ जत करने म ही है।
य य धम वहीना न दना याया त या त च ।
स लोहकारभ ेव स प न जीव त ।।
धम के बना जीवन तीत करना, तो लोहार क ध कनी के समान अपने सांस को
थ गंवाना है।
ू तां धमसव वं ु वा चैवावधा यताम् ।

आ मनः तकूला न परेषां न समाचरेत् ।।
सभी धमशा क एकमा एवं सवस मत राय यही है क सर के साथ वैसा ही
वहार करना चा हए, जैसा हम उनके ारा अपने त कये जाने क अपे ा रखते ह।
बलाव के ऐसे धम स ब धी वचन से भा वत होकर गौरैया ने ख़रगोश से कहा—
आओ! नद के कनारे बैठे इसी महा मा से अपने ववाद का हल करा लेते ह।
खरगोश बोला—अरे भाई! यह तो हमारा वैरी है।
गौरैया ने कहा—अ छा, तो चलो, कछ र रहकर ही इससे पूछ लेते ह।
ख़रगोश के सहमत हो जाने पर गौरैया ने र खड़े होकर और अपने ववाद क
कहानी सुनाकर बलाव से याय करने को कहा। इसके साथ ही उसने यह भी कह दया क
झूठा ाणी तु हारा भ य भी बनेगा।
यह सुनकर वह ढ गी बलाव बोला—राम, राम, ऐसा मत कहो। मने तो अब जीव-
हसा भी छोड़ द है और अ हसा का त अपना लया है।
अ हसापूवको धम य मा स दा तः ।
यूकम कुणदं शाद त मा ान प र येत् ।।
म जानता ं क शा और महा मा अ हसा को ही स चा धम मानते ह। इसी लए तो
म जु , खटमल तथा म छर-जैसे छोटे जीव क भी र ा के त सदा त पर रहता ं।
हसका य प भूता न यो हस त स नघृणः ।
स या त नरकं घोरं क पुनयः शुभा न च ।।
हसक जीव का वध करने वाला भी हसक कहलाता है और नरकगामी होता है।
फर नरपराध जीव का वध करने वाले क ग त के वषय म तो कहना ही या?
म य म पशुब ल दे ने वाल को मूख और ु त का अथ न जानने वाले ही मानता ं।
ु त म अजा से य करने का वधान है, ले कन अजा का अथ पशु (बकरी) नह , ब क
सात वष पुराना धा य, अथात चावल है। सोचने क बात है
वृ ां छ वा पशू ह वा कृ वा धरकदमम् ।
य ेवं ग यते वग नरकः केन ग यते ।।

Downloaded from www.PDFshala.com


क य द वृ को काटने और पशु का वध करने से वग- ा त होती है, तो नरक क
ा त कन कम को करने से होती है?
इसी लए मने कसी भी जीव को अपना आहार बनाना छोड़ दया है। हां, तुम दोन के
ववाद का नणय म अव य कर सकता ।ं वृ होने के कारण र से कहे जा रहे तु हारे
वचन को म ठ क से नह सुन पा रहा ं, इस लए तुम दोन मेरे समीप आकर अपनी बात
कहो, ता क नणय करने म मुझसे कोई भूल न हो जाये और मुझे परलोक म इसके लए
कोई द ड न भुगतना पड़े।
माना ा य द वा लोभा ोधा ा य द वा भयात् ।
यो यायम यथा ूते स या त नरकं नरः ।।
शा के अनुसार—अ भमान, लोभ, ोध तथा भय आ द कसी भी कारण से
ववाद का सही नणय न दे ने वाले को नरक क यातना भुगतनी पड़ती है।
तुम दोन न त होकर और मेरे समीप आकर अपना ववाद मुझे बताओ, और
दे खो क म कैसे तु हारा ववाद नबटाता ं।
उस ने अपनी चकनी-चुपड़ी बात से ख़रगोश और गौरैया दोन को मोह लया
और वे दोन उसके पास चले गये। तभी उस ढ गी बलाव ने झप ा मारकर एक को अपने
पैर के नीचे दबोच लया और सरे को अपनी तीखी दाढ़ से चबाने लगा।
यह कथा सुनाकर कौआ बोला— म ो! इसी लए तो कहा गया है
ु मथप त ा य याया वेषणत परौ ।
उभाव प यं ा तौ पुरा शशक प लौ ।।
क ओछे का सहारा कभी नह लेना चा हए। उस ु बलाव को यायाधीश बनाकर अपने
ववाद के नणय के लए गये दोन —गौरैया और ख़रगोश—को अपने ाण से हाथ धोना
पड़ा।
य द तुमने दन के अ धे और कु प उस उ लू को अपना राजा बना लया, तो तु हारी
भी ऐसी ही ग त होगी। अब नणय करना तुम लोग के हाथ म है।
कौए के वचार से सहमत होकर सभी प ी दोबारा कभी राजा के नाम पर वचार
करने क बात कहते ए वहां से चल दये। अकेला बैठा उ लू जब ती ा करते-करते ऊब
गया, तो कहने लगा—मेरा रा या भषेक करने वाले कहां चले गये? अकेली क कृका लका
बोली—कौए ने तु हारा सारा बना-बनाया खेल बगाड़ दया। अब राजा बनने क आशा
छोड़ो और तुर त अपने घ सले म चले जाओ, नह तो तु ह अपनी जान से भी हाथ धोना पड़
सकता है।
यह सुनकर कौए को कोसते ए उ लू कहने लगा—अरे ! मने तेरा या बगाड़ा
था, जो तूने मेरे उ वल होते भ व य को न कर डाला।
रोह त सायकै व ं छ ं रोह त चा सना ।

Downloaded from www.PDFshala.com


वचो ं बीभ सं न रोह त वा तम् ।।
या तू नह जानता क तीर अथवा तलवार ारा कया गया घाव तो कभी-न-कभी
भर जाता है, क तु वाणी ारा प ंचायी गयी चोट को ाणी कभी नह भूल पाता।
यह कहते ए उ लू अपने घ सले म चला गया।
अब कौआ सोच म पड़ गया क अकारण इस उ लू से वैर मोल लेकर मने ठ क नह
कया;
अदे शकाल मनाय त मं
यद यं लाघवका र चा मनः ।
योऽ ा वी कारणव जतं वचो
न त चः या षमेव त चः ।।
य क समय और थान के वपरीत, आगा-पीछा सोचे बना तथा प रणाम म ःखद, अ य
और अपने ओछे पन क सूचना दे ने वाले श द बोलने वाले ाणी को वष-वमन करने वाला
माना जाता है।
बलोपप ोऽ प ह बु मा रः
परं नये वयमेव वै रताम् ।
भषङ् ममा ती त व च य भ ये-
दकारणा को ह वच णो वषम् ।।
बलवान् होने पर भी ाणी को नरथक ही सर को अपना श ु नह बना लेना
चा हए। च क सा म नपुणता ा त कर लेने का अथ वषपान करना नह होता।
इस कार अपने कये पर पछताता आ कौआ भी वहां से चल दया।
यह सारा वृ ा त सुनाकर वृ म ी थरजीवी बोला—व स! उसी दन से कौ
और उ लु म वंश-पर परागत वैर चलता आ रहा है।
मेघवण ने पूछा—हे तात! तब इस वतमान थ त म हम या करना चा हए?
थरजीवी ने उ र दया—स ध आ द छह उपाय के अ त र एक अ य उपाय
कौशल भी है। म वयं श ु के बीच जाकर कुछ ऐसा क ं गा क हमारे लए उनक ह या
करना आसान हो जाये।
ब बु समायु ाः सु व ाना बलो कटान् ।
श ा व च यतुं धू ा ा णं छागला दव ।।
अपनी बु व बल का सोच-समझकर उ चत प से योग करने वाले बड़े-बड़े
बु मान को भी ठगने म सफल हो जाते ह। कुछ चालाक ठग ने इसी कार एक ा ण
को ठग लया था।
मेघवण ने पूछा—कैसे?

Downloaded from www.PDFshala.com


तब थरजीवी ने उसे यह वृ ा त सुनाया—

कथा म : तीन
कसी दे श का नवासी म शमा नामक एक अ नहो ी ा ण अपने य के लए कसी
यजमान से मांगकर एक -पु बछड़ा अपने क धे पर लादकर वापस अपने घर लौट रहा
था क माग म तीन चालाक ठग ने उसके उस पशु को ह थयाने क योजना बनायी।
पहला ठग एक तलकधारी ा ण बनकर उधर से गुज़रा और थू-थू करते ए उस
ा ण से कहने लगा— ा ण होकर भी इस कु े के प ले को क धे पर बठाते ए तु ह
लाज नह आती?
ानकु कुटचा डालाः सम पशाः क तताः ।
रासभो ौ वशेषेण त मा ा ैव सं पृशत
े ् ।।
कु ,े मुग, चा डाल, गधे और ऊंट को शा अ पृ य मानते ह।
ा ण ने कहा—जी वत बछड़े को कु े का प ला बताते हो। लगता है, तु ह आंख
से ठ क दखाई नह दे ता।
चालाक ठग बोला—महाराज! आप थ ोध कर रहे ह। आपको मुझ पर व ास
नह आता, तो जाइये। गांव म जब आपक थू-थू होगी, तब आपको समझ म आ जायेगा।
ा ण के थोड़ी र जाने पर सपेरे के वेश म सरा ठग र से ही ‘पायलागन’ कहकर
च लाया—अरे! जब कमका डी ा ण कु से यार करने लगे ह, तो समझ लेना चा हए
क घोर क लयुग आ गया है।
त य चं मानुषं वा प यो मृतं सं पृशे कुधीः ।
प चग ेन शु ः या य चा ायणेन वा ।।
मृतक ाणी और प ी के समान जी वत कु -े जैसे पशु के पश के पाप क नवृ
के लए तो चा ायण त करके प चग पीना पड़ता है। महाराज! आप ऐसा पाप य
कर रहे ह? इस कु े को लेकर गांव म घुसने क भूल मत करना।
ा ण ने उस ठग को लताड़ते ए कहा— या तुम अ धे हो, जो गाय के बछड़े को
प ला बता रहे हो?
ठग बोला—म अ धा ही सही, ले कन आप ोध न कर। जो मने दे खा, वह कह
दया। अब आपको जो जी चाहे, वह क जये।
थोड़ा आगे बढ़ने पर तीसरे ठग ने भी उस ा ण को कु े को क धे पर लादने के
लए खरी-खोट सुनाते ए कहा—
यः पृशे ासभं म य ानाद ानतोऽ प वा ।

Downloaded from www.PDFshala.com


सचैलं नानमु ं त य पाप शा तये ।।
कु ,े गधे आ द का अनजाने पश हो जाने पर भी शु के लए शा को
व स हत नान करने का नदश दे ते ह। फर आपने तो उसे अपने क धे पर उठा रखा है।
यह सब सुनकर ा ण संशय म पड़ गया और उसने अपने यजमान ारा बछड़े के
थान पर कु े का प ला जानकर उस बछड़े को जंगल म छोड़ दया। बस, फर तो उन ठग
के मन क मुराद पूरी हो गयी।
यह कथा सुनाकर थरजीवी बोला—इस लए म कहता ं
ब बु समायु ाः सु व ाना बलो कटान् ।
श ा व च यतुं धूता ा णं छागला दव ।।
क अपनी बु और श का उ चत योग करने वाले अपने से कह अ धक
बलवान् श ु पर भी वजय ा त करने म सफल हो जाते ह। उन चालाक ठग ारा ा ण
से गाय के बछड़े को छ न लेना इसी स य को मा णत करता है।
अ भनवसेवक वनयैः
ाघु णको ै वला सनी दतैः ।
धू जनवचन नकरै रह
क दव चतो ना त ।।
संसार म सेवक क चाटु का रता से, अ त थ के य भाषण से, य के रोने-धोने
तथा धूत के छल- प च से धोखा न खाने वाला कोई वरला ही होता है, अ यथा ायः सभी
उनके धोखे म आ जाते ह।
बल के अ धक सं या म होने पर उनसे वैर मोल लेना ठ क नह होता;
बहवो न वरो ा जया ह महाजनाः ।
फुर तम प नागे ं भ य त पपी लकाः ।।
य क सं या भी मह वपूण होती है। सं या म अ धक होने के कारण ही च टय ने
फुंकारते ए एक सांप को अपना आहार बना लया और सं या को मह वपूण स कर
दखाया।
मेघवण को च टय क कथा सुनाते ए थरजीवी बोला—

कथा म : चार
अ तदप नामक एक वशालकाय सप एक बार अपने बल का माग भूलकर जब एक अ य
संकरे माग से बल म घुसने लगा, तो उसके शरीर के भारी होने और माग के ब त तंग होने
के कारण उसका शरीर छल गया और र बह नकला, जसे सूंघती ई ब त सारी च टयां

Downloaded from www.PDFshala.com


आकर उसका र चूसती ई उसे काटने लग । सांप ने हल-डु लकर और फुंकार मारकर
कुछ च टय को मार डाला और कुछ को भगा भी दया, क तु उनक सं या ब त अ धक
होने के कारण वह सांप उनसे अपने को मु नह करा सका और अ ततः मारा गया।
इसी लए कहा गया है
बहवो न वरो ा जया ह महाजनाः ।
फुर तम प नागे ं भ य त पपी लकाः ।।
क अ धक सं या वाल के साथ कभी वैर नह करना चा हए; य क अनेक का सामना
करना सरल नह होता। फुंकारते ए सांप को अपनी सं या के बल पर ही काटकर और
अपना आहार बनाकर च टय ने इसी त य क पु क है।
अपनी कथा सुनाते ए थरजीवी बोला—महाराज! मेरी बात सुनने के बाद ही आप
कुछ नणय ल। साम-दान आ द को छोड़कर मने जस पांचव उपाय को अपनाने का न य
कया है, उसके अनुसार आप सब मुझे अपना श ु समझकर ख़ूब ता ड़त कर और ख़ून से
मेरे शरीर को रंगकर मुझे अधमरे क भां त इस पेड़ के नीचे फक द, ता क हमारे आस-पास
घूमते श ु के गु तचर को यह व ास हो जाये क हमम फूट पड़ गयी है। इस बीच आप सब
ऋ यमूक पवत पर जाकर रहने का ब ध कर। म श -ु श वर म जाकर उसका व ास
जीतने और उससे शरण पाने क को शश क ं गा। उसके समीप रहकर उसके छ क
जानकारी लेने का यास क ं गा और फर उन सारे उ लु का सवनाश कर ं गा। इस
उपाय के बना हम अपने इस श शाली श ु पर वजय ा त नह कर सकते। म दे ख चुका
ं क उ लु के ग म वेश करने और उससे बाहर आने का एक ही माग है और यह माग
ही उनके सवनाश का कारण बनेगा;
अपसारसमायु ं नय ै गमु यते ।
अपसारप र य ं ग ाजेन ब धनम् ।।
य क नी तशा के प डत के अनुसार ग म वेश करने और वहां से बाहर आने के
भ ार वाला ग ही सव म होता है। अलग से बाहर आने का ार न रखने वाला ग तो
एक कार से ब द गृह होता है। हां, मेरे लए आपको च ता करने क कोई आव यकता नह
होनी चा हए;
अ प ाणसमा न ा पा लताँ ला लतान प ।
भृ या यु े समु प े प ये छु क मवे धनम् ।।
य क संकट के समय राजा को अपने ाण के समान य एवं कृपापा सेवक के
जीवन को सूखे ए धन के समान तु छ समझना चा हए।
ाणव येद ् भृ या वकाय मव पोषयेत् ।
सदै क दवस याथ य या पुस मः ।।

Downloaded from www.PDFshala.com


स य तो यह है क सेवक का पालन-पोषण तथा उ ह पुर कार आ द इसी लए दये जाते ह,
ता क वे संकट के समय अपने ाण दे कर भी वामी क सुर ा कर और समय पर काम
आय। अतः अब आप मेरे ाण क च ता म न पड़ और मुझे न रोक।
यह कहते ए थरजीवी ने आपस म बनावट लड़ाई-झगड़ा आर भ कर दया।
मेघवण के सरे म ी थरजीवी से ध का-मु क करने लगे। कुछ कौए उसे नोचने व
काटने भी लगे। मेघवण भी उस पर आ मण करने लगा और कुछ ही पल म थरजीवी को
ल लुहान करके मेघवण अपने प रवारस हत ऋ यमूक पवत पर चला गया।
उ लु क गु तचर कृका लका ने उलूकराज को कौ के आपसी झगड़े और वृ
म ी थरजीवी क दशा क सूचना द , तो सूया त होते ही कौ को मारने क योजना
बनाते ए वह बोला—
श ोः चलने छ मेकम य च सं यम् ।
कुवाणो जायते व यो वे राजसे वनाम् ।।
श ु का इस कार डरकर भागना स ता का वषय है; य क ऐसे श ु का एक भी
छ उसके अपने सेवक के अधीन हो जाने का कारण बन जाता है।
उलूकराज अपनी योजना को काय प दे ने के लए वटवृ के नीचे बैठ गया, क तु
उसे एक भी कौआ नह दखा। इस पर उसने अपने प रजन से कौ के नये ठकाने का
पता लगाने को कहा, ता क उनका वनाश कया जा सके।
वृ म या तः श ुरव यः या जगीषुणा ।
क पुनः सं तो गसाम य परया युतम् ।।
ग म छपे श ु का वध करना ब त क ठन होता है और य द श ु संभल चुका हो
और सामना करने को तैयार हो, तो वजय ा त करने क इ छा से यु करने वाला राजा
उसक ह या नह करता।
इधर थरजीवी सोच रहा था क य द उ लु ने कौ का पता लगा लया, तो मेरी
योजना धरी-क -धरी रह जायेगी;
अनार भो ह का याणां थमं बु ल णम् ।
ार ध या तगमनं तीयं बु ल णम् ।।
य क कसी काय को आर भ न करना बु म ा हो सकती है, पर तु आर भ कये ए
काय को प रणाम तक प ंचाना उससे भी बड़ी बु म ा होती है, अथात् सफलता म
आशंका होने पर काय को ार भ न करने म समझदारी हो सकती है, ले कन य द काय
ार भ कर दया हो, तो उसम सफलता ा त कर दखाना ही समझदारी है। इस लए म शोर
मचाकर इनका यान अपनी ओर ख चता ं।
सचमुच उसके ऐसा करते ही अपने वध को आये उ लु से थरजीवी बोला—
दे खो, म कौ के राजा मेघवण का सबसे पुराना और वृ म ी थरजीवी ।ं उसने मुझे

Downloaded from www.PDFshala.com


ता ड़त करके मेरी ऐसी दशा कर द है। मुझे उसके ब त सारे राज़ पता ह और म वे सब
तु हारे राजा को बताना चाहता ।ं तुम अपने वामी से मुझे तुर त मलवाओ। त ने
उलूकराज को यह सब बताया, तो वह आ यच कत हो उठा और त काल थरजीवी के
पास प ंचकर उसके त सहानुभू त दखाते ए उससे उसक दशा का कारण पूछने लगा।
थरजीवी बोला—महाराज! पछले दन आप लोग के ारा अपने प रजन के
वनाश से नाराज़ होकर मेरा वह वामी आप पर आ मण करने को तैयार होने लगा, तो मने
इसका वरोध करते ए उसे अपने से बलवान् के साथ संघष न करने के लए समझाया;
य क नी तकार ने कहा है
बलीयसा हीनबलो वरोधं
न भू तकामो मनसा प वा छे त् ।
न व यतेऽ य तबलो ह य माद्
ं णाशोऽ त पत वृ ेः ।।
क बलहीन को अपने से अ धक बलशाली के साथ वैर- वरोध नह करना चा हए; य क
ऐसा करने का प रणाम कभी अ छा नह होता। ायः इस कार के संघष म बलवान् का
कुछ भी नह बगड़ता, ले कन बलहीन आग म गरने वाले पतंगे क भां त तुर त न हो
जाता है। इस कार समझाते ए मने अपने उस वामी को आपसे स ध कर लेने क राय
द;
बलव तं रपुं ् वा सव वम प बु मान् ।
द वा ह र ये ाणान् र तै तैधनं पुनः ।।
य क बलवान् श ु को अपना सव व दे कर भी उससे स ध कर लेना बल के हत म ही
रहता है। इस कार उसके ाण बच जाते ह और ाण के बच जाने पर कभी-न-कभी खोया
आ रा य अथवा धन भी पुनः ा त कया जा सकता है।
ले कन मेरे इस सुझाव को सुनकर मेरे वामी ने मुझे आपसे मला होने का आरोप
लगाकर और मुझ पर हार करके मुझे इस कार घायल कर दया। म आपके चरण
पकड़कर आपसे शरण दे ने क भीख मांगता ।ं चलने- फरने के यो य होते ही म आपको
उसके ठकाने पर ले चलूंगा। अब तो मुझे उसका कटा आ सर ही दे खना है। उसे दे खकर
ही मुझे चैन मल सकेगा। अपने इस अपमान का बदला लये बना मुझे चैन नह मलेगा।
उ लु के राजा अ रमदन ने अपने पता- पतामह के समय से चले आ रहे पांच
म य —र ा , ू रा , द ता , व नास तथा ाकारकण—से वचार- वमश कया, तो
र ा का मत था क हाथ म आये श ु का त काल वध कर दे ना ही उ चत होता है।
हीनः श ु नह त ो याव बलवान् भवेत् ।
ा त वपौ षबलः प ा व त जयः ।।

Downloaded from www.PDFshala.com


बलहीन श ु को बलवान् होने का अवसर दे कर उसे पहले ही समा त कर दे ना
चा हए; य क बल और पु षाथ ा त करके वह अजेय हो जाता है।
लोग का ऐसा कहना है क हाथ म आयी ल मी का याग करने वाले को ल मी भी
शाप दे दे ती है।
कालो ह सकृद ये त य रं कालकां णम् ।
लभः स पुन तेन कालकमा चक षता ।।
अनुकूल समय का स पयोग न करने वाले को दोबारा वैसा समय मलना
क ठन ही नह , लभ भी होता है। इस स ब ध म पु वधू से खी होने पर भी धन के लोभ
से सांप को ध पलाने आये ा ण से सांप ने ठ क ही कहा था—
च तकां द पतां प य फटां भ नां ममैव च ।
भ ा तु या ी तन सा नेहेन व ते ।।
अरे ा ण! अपने पु क जलती चता और अपने पु के आघात से फटे मेरे फन को दे ख
और सोच क या कभी एक बार टू टा आ स ब ध भी पुनः जुड़ पाता है?
अ रमदन क ज ासा पर र ा उसे सांप और ा ण क कथा सुनाने लगा।

कथा म : पांच
कसी नगर म रहने वाला ह रद नामक एक ा ण खेती का काम करता था। एक दन वृ
क छाया म व ाम करते ए उसने अपने खेत म एक भयंकर सांप को अपना फन फैलाये
बैठे दे खा, तो उसने सोचा क शायद यह सांप इस खेत का वामी है और इसक पूजा न
करने के कारण ही मुझे इस खेत से जतनी उपज मलनी चा हए, उतनी नह मल पा रही।
वह तुर त एक ध-भरा कटोरा उसके सामने रखकर और दोन हाथ जोड़कर बोला—आज
तक आपको न दे ख पाने के कारण ही मने आपक पूजा नह क । अब ऐसी ग़लती दोबारा
कभी नह होगी। यह कहते ए ा ण ध के कटोरे को वह रखकर अपने घर क ओर चल
दया। अगले दन जब वह अपने कटोरे को लेने आया, तो उसम पड़ी एक वणमु ा को
दे खकर वह स हो उठा। अब तो त दन यही म चलने लगा। ा ण ध से भरा
कटोरा लाकर वहां रख दे ता और अगले दन उसे एक वणमु ा वहां पर रखी मल जाती।
एक दन कसी काय से घर से र जा रहे ा ण ने अपने पु को ध का कटोरा
सांप क बांबी के पास नय मत प से रखने का आदे श दया। पु ने पता के आदे श का
पालन कया और अगले दन ख़ाली कटोरे म वणमु ा पाकर उसने सोचा—अव य ही इस
सांप ने अपनी बांबी म वणमु ाएं एक कर रखी ह, अतः य न इसे मारकर सारा धन
ह थया लया जाये? यह सोचकर य ही उसने सांप पर अपनी लाठ से हार कया, य ही

Downloaded from www.PDFshala.com


ो धत ए सांप ने भी पलटकर लड़के पर वार कया। सांप घायल आ, क तु लड़के का
तो ाणा त हो गया। पता क अनुप थ त म गांव म रह रहे ब धु-बा धव ने उस लड़के का
दाह-सं कार कर दया। घर लौटने पर ा ण ने जब सारी कहानी सुनी, तो उसने अपने पु
को दोषी बताते ए सांप के काय को उ चत माना।
भूतान् यो नानुगृ ा त ा मनः शरणागतान् ।
भूताथा त य न य त हंसाः प वने यथा ।।
अपने शरणागत के साथ व ासघात करने वाल के मनोरथ कमल के वन म हंस के
उड़ने के समान न हो जाते ह।
अपने ब धुजन को यह कथा सुनाता आ ा ण कहने लगा—

कथा म : छह
राजा च रथ के प सर पर सोने के अनेक हंस रहा करते थे, इस लए राजा के सै नक पूरी
सावधानी के साथ उस सरोवर क र ा करते थे। एक दन उस तालाब पर सोने का एक बड़ा
प ी आया, तो हंस ने उससे कहा—इस सरोवर पर हमारा एका धकार है; य क छह
महीन के भाड़े के प म उ ह ने अपने एक-एक व णम पंख का भुगतान कया आ है।
इस पर उस नये प ी और पुराने हंस म ववाद हो गया, तो नये प ी ने राजा के पास
प ंचकर रहने के लए थान दे ने क ाथना क । राजा ने अपने सेवक को आदे श दया क
वे जाकर हंस से कह क इस प ी को भी वे अपने साथ रहने द, अ यथा उ ह द डत कया
जायेगा। राजा क आ ा पाकर हाथ म लाठ लये सै नक य ही सरोवर पर प ंचे, य ही
एक वृ हंस के सुझाव पर सारे हंस उड़ गये।
इसी लए म कहता ं
भूतान् यो नानुगृ ा त ा मनः शरणागतान् ।
भूताथा त य न य त हंसाः प वने यथा ।।
क जस कार बना सही सोच- वचार कये राजा को अपने अनु चत आदे श के कारण सोने
के हंस से हाथ धोना पड़ा, उसी कार मेरे पु को भी लोभ के कारण ही अपने ाण से
हाथ धोना पड़ा।
इस कार ब धु-बा धव को समझाकर और पु के शोक को भूलकर ा ण पहले
क भां त जब ध से भरे कटोरे को लेकर सांप क बांबी के समीप प ंचा, तो बांबी के भीतर
बैठे सांप ने कहा—तुम लोभवश पु शोक को भुलाकर भी यहां आये हो, ले कन अब हमारा
स ब ध नभ नह सकता। तु हारे पु ने मुझे मारना चाहा और मुझ पर लाठ से वार कया
और मने पलटकर उसे काट खाया। तुम अपने पु शोक को और म लाठ के उस हार को

Downloaded from www.PDFshala.com


भुला नह सकता। इस लए अब तु ह मेरे पास नह आना चा हए, अब हमारा स ब ध समा त
हो चुका है।
च तकां द पतां प य फटां भ नां ममैव च ।
भ ा तु या ी तन सा नेहेन व ते ।।
इस कथा को सुनाकर र ा बोला—महाराज! इसी लए म कहता ं क सांप ने
ा ण से ठ क ही कहा था क तु हारा पु शोक तु ह और मेरा फटा आ सर मुझे लाठ के
उस हार को भूलने नह दगे, अतः अब हम दोन म ेम-स ब ध स भव नह ।
अतः अपने सा ा य को कांट से र हत बनाने के लए आपको इसका वध कर दे ना
चा हए।
र ा के मौन हो जाने पर जब उलूकराज ने ू रा से अपना मत बताने को कहा,
तो वह बोला—महाराज! इसका वध तो ू रकम कहा जायेगा।
ूयते ह कपोतेन श ुः शरणमागतः ।
पू जत यथा यायं वै मांसै नम तः ।।
कहा जाता है क अपनी प नी को ब द बनाने वाले एक बहे लए को भी शरणागत
अ त थ मानकर एक कबूतर ने उसक भूख मटाने के लए अपने ाण क भी आ त दे द
थी।
अब ू रा यह कथा उलूकराज को सुनाने लगा—

कथा म : सात
कसी जंगल म प य के लए सा ात् यमराज बना एक बहे लया रहा करता था, जसे
उसके हसक कम के कारण उसके ब धु-बा धव ने भी याग दया था।
एक दन उस बहे लये के हाथ म एक कबूतरी आयी, तो उसे पजरे म ब द करके वह
अपने घर ले गया। इसी बीच अचानक उस जंगल म बादल घर आये और घोर अंधेरा छा
गया। उस समय आंधी के कारण कुछ भी दखाई दे ना क ठन हो गया, तो वह बहे लया एक
वृ के नीचे खड़ा हो गया। कुछ दे र म बादल छं ट गये और आकाश म तारे चमकते दखाई
दे ने लगे। सद और भूख- यास से ाकुल आ बहे लया उ च वर म कह उठा—जो कोई
भी मेरी आवाज़ सुन रहा हो, मुझे अपना शरणागत जानकर वह मेरे लए कुछ खाने-पीने का
ब ध करे।
उसी वृ पर बैठा कबूतर अपनी प नी के न लौटने के कारण च तत हो रहा था।
प नी के बना घर मशान के समान होता है। अपने वामी को स न रखने वाली ी का
जीवन थ माना जाता है, पर तु प त को स रखने वाली ी पर दे वता भी अपनी

Downloaded from www.PDFshala.com


कृपा बनाये रखते ह। इस संसार म पता, माता, पु तथा ब धु-बा धव सब केवल गनती
का दे ते ह, अन गनत तो केवल प त ही दे ता है। इस लए प त क सेवा न करने वाली ी को
तो अभा गन ही समझना चा हए।
पजरे म ब द पड़ी कबूतरी अपने प त के वचन सुनकर उससे बोली—प तदे व!
प य को पकड़ने वाला यह बहे लया अव य ही पापी और ू र है, ले कन इस समय यह
हमारा शरणागत है और इसके ाण क र ा करना आपका कत है।
स या के समय अपने घर म आया अ त थ स मान न मलने पर गृह वामी को अपने
पाप दे कर और उसके पु य लेकर चला जाता है। म अपने पूवज म के कम के कारण ही
ब धन म बंधी ई ं। इसके लए बहे लये को दोषी मानकर आप इस पर ो धत न ह ।
कबूतरी के अनुरोध पर कबूतर ने ाध के पास जाकर उससे उसक आव यकता
पूछ , तो उसने सद से बचने के लए कुछ उपाय करने को कहा। कबूतर ने तुर त ही कुछ
सूखी लक ड़यां और सूखे प े लाकर उन पर अ न शखा लाकर डाल द , जसक गरमी से
उस बहे लये को बड़ा सुख मला। ले कन अब कबूतर अ त थ क भूख मटाने म अपनी
असमथता पर थत होने लगा। थोड़ी दे र सोचने के बाद उस कबूतर ने बहे लये को खाना
दे ने के लए वयं को उस आग म झ क दया।
कबूतर के ऐसे याग को दे खकर बहे लये को अपने हसक कम पर ल जा आने
लगी और उसने कबूतरी को ब धनमु कर दया। कबूतरी अपने प त को मरा जानकर रोने
लगी और वह भी उसी आग म कूद पड़ी।
इतने म द व व अलंकार से सुस जत और वमान म सवार कबूतर ने अपनी
प नी के पास प ंचकर उसके आ मदाह क भू र-भू र शंसा क और उसे अपने साथ
वमान म बठा लया।
इस सारे य को दे खकर बहे लये को भी वैरा य उ प हो गया और वह भी उस
आग म कूद गया, उसक भी सद्ग त हो गयी और वह भी वग-सुख-भोग का अ धकारी बन
गया।
ूयते ह कपोतेन श ुः शरणमागतः ।
पू जत यथा यायं वै मांसै नम तः ।।
इस लए म कहता ं क उस कबूतर ने अपना वध करने वाले बहे लये के शरणागत
होने पर उसके लए अपने ाण का ब लदान कर दया था।
अब उलूकराज अ रमदन ने अपने तीसरे म ी द ता से अपने वचार बताने को
कहा, तो वह कहने लगा—दे व! इसका वध करना तो कदा प उ चत नह । एक गृह थ ने
अपने घर म चोर के आने को ही अपने लए वरदान मानते ए उसका वागत करते ए कहा
था—
या ममो जते न यं सा माम ावगूहते ।

Downloaded from www.PDFshala.com


यकारक भ ं ते य ममा त हर व तत् ।।
जो आज तक मुझसे घबराती थी, मेरी छाया से भी र भागती थी, आज तु हारे कारण वही
मुझसे लपट ई है। अतः तुम मेरे हतकारक हो, तुम मेरा सब कुछ ले जा सकते हो। म
तु ह सब कुछ ले जाने क छू ट दे ता ।ं
ह ं ते न प या म ह ं चे व य त ।
पुनर याग म या म यद यं नावगूहते ।।
उ र म वह चोर बोला था—मुझे लगता है क तु हारे घर म मेरे काम क चुराने यो य
कोई व तु है ही नह । अतः म कभी ऐसे समय इस घर म आऊंगा, जब यह ी तु हारे
आ लगन म नह होगी।
अ रमदन क उ सुकता पर द ता उसे चोर और ी क कथा सुनाने लगा।

कथा म : आठ
कसी नगर के नवासी एक कामातुर वृ वै य ने अपनी प नी के वग सधार जाने पर
अपनी कामवासना क पू त के लए धन ख़च करके एक युवती से ववाह कर लया, जो उस
बूढ़े को दे खना भी पस द नह करती थी।
ेतं पदं शर स य ु शरो हाणां
थानं परं प रभव य तदे व पुंसाम् ।
आरो पता थशकलं प र य या त
चा डालकूप मव रतरं त यः ।।
य द पु ष के सर के बाल सफ़ेद हो जाय, तो युव तयां उनका तर कार और उपे ा
करने लगती ह। युवती ी वृ पु ष को चा डाल के कुएं क भां त तथा सर पर ह ड् डय
का बोझ लादने वाले शू क भां त मानकर छोड़ जाती है।
गा ं संकु चतं ग त वग लता द ता नाशं गताः
ा य त पम युपहतं व च लालायते ।
वा यं नैव शृणो त बा धवजनः प नी न शु ूषते
धक् क ं जरया भभूतपु षं पु ोऽ यव ायते ।।
के शरीर पर झु रयां पड़ जाने पर, उसक चाल म सु ती आ जाने पर, उसके
दांत के न हो जाने पर, के म द पड़ जाने पर, प के न हो जाने पर और उसके मुंह
से लार गरने पर, उसके ब धु-बा धव भी उससे बात करना और उसक प नी उसक सेवा
करना छोड़ दे ती है। यहां तक क बूढ़े को अपने बेटे ारा भी अपमा नत होना पड़ता
है। इसी लए बुढ़ापे को अ भशाप और बुढ़ापे के कारण तर कृत जीवन जीने को ववश ए

Downloaded from www.PDFshala.com


को दया का पा कहा जाता है।
एक रात, जब वह नव ववा हता मुंह फेरकर अपने बूढ़े प त के साथ सोयी ई थी क
घर म एक चोर घुस आया। चोर क कु प आकृ त को दे खकर डर के मारे सहमी वह युवती
अचानक ही अपने बूढ़े प त से लपट गयी। प नी के इस तकूल आचरण पर बूढ़ा हैरान हो
उठा। इस बीच उसक घर म घुसे चोर पर पड़ी, तो उसे कारण भी समझ म आ गया।
वह कह उठा—
या ममो जते न यं सा माम ावगूहते ।
यकारक भ ं ते य ममा त हर व तत् ।।
हे चोर! मुझसे सदा र- र रहने वाली मेरी युवा प नी आज अचानक जो मुझसे इस कार
लपट रही है, इसका कारण तू ही है। मेरा इतना हत करने के बदले म तुझे अपने घर से कुछ
भी ले जाने क छू ट दे ता ं।
ह ं ते न प या म ह ं चे व य त ।
पुनर याग म या म यद यं नावगूहते ।।
चोर बोला—तु हारे घर म मेरे मतलब का कुछ भी नह है, अतः म या चुराऊं? जब
तेरी प नी तेरी बांह म नह होगी, म उस समय आऊंगा।
इस कार उस चोर के हतकारी स होने पर उसे शुभ च तक मानकर शरणागत
क र ा करना हमारा धम भी है। इसके अ त र यह अपने वामी के दोष बताकर हमारी
उ त का एक कारण भी बन सकता है।
इतना कहने के बाद द ता मौन हो गया। अब अ रमदन ने व नास क राय जाननी
चाही, तो वह बोला—महाराज! इसका वध करना तो उ चत नह है;
श वोऽ प हतायैव ववद तः पर परम् ।
चौरेण जी वतं द ं रा सेन तु गोयुगम् ।।
य क आपस म लड़ने वाले श ु भी लाभकारी ही स होते ह। आपस म लड़ने के कारण
ही चोर को अपने जीवन से और रा स को दो गाय से हाथ धोना पड़ा था।
अ रमदन क उ सुकता पर व नास उसे यह कथा सुनाने लगा—

कथा म : नौ
कसी गांव म ोण नामक एक अ य त द र ा ण रहा करता था। उसे इतना कम
भ ाटन मलता था क वह सदा भूखा ही रहता था। उसने न कभी अ छा खाया और न
कभी अ छा पहना। दाढ़ -मूंछ बढ़ाये और मैले व पहने वह ा ण नरक का जीवन बता
रहा था। एक बार कसी यजमान ने उस ा ण पर दया करके उसे गाय के दो बछड़े दान म

Downloaded from www.PDFshala.com


दे दये, ज ह ा ण ने भूखे पेट रहकर भी खलाया- पलाया, जससे वे ख़ूब -पु हो
गये।
सहसा एक चोर क उन बछड़ पर पड़ी, तो उसके मुंह म पानी भर आया,
उसक जीभ लपलपाने लगी। ा ण से बछड़ को छ नने क सोचकर भी चोर उन बछड़
को उस ा ण से छ न नह सका; य क उसके मन म ा ण के शाप का भय उ प हो
गया था। अतः उसने रात म ा ण के सो जाने पर बछड़ को चुराने का इरादा कर लया।
एक रात, जब वह चोर ा ण के घर जा रहा था, तो माग म पड़े एक भयंकर
अ थ पजर को दे खकर वह चोर डर गया और उसे दे खते ही उसने उस भयानक ाणी से
उसका प रचय पूछा, तो उसने कहा—म स यवचन नामक रा स ,ं तुम कौन हो और
इस रात के अंधेरे म कहां जा रहे हो?
चोर ने कहा—म ू रकमा नामक चोर ं और ोण नामक ा ण के जवान बछड़
को चुराने जा रहा ं।
रा स बोला—म स ताह म एक दन भोजन करता ं, आज मेरे भोजन का दन
है और मने इसी ा ण को खाने का न य कया है। चलो, हम दोन साथ-साथ चलते ह।
ा ण के घर प ंचकर दोन उस ा ण के सो जाने क ती ा करने लगे। ा ण
के सो जाने पर चोर बोला—पहले म बछड़े लेकर चला जाता ,ं फर आप ा ण को खा
लेना।
रा स बोला—नह , य द कह बछड़ ने शोर मचा दया और ा ण जाग गया,
तो मेरा यहां आना थ हो जायेगा। पहले मुझे इस ा ण को खा लेने दो, फर तुम बछड़े
ले जाना। इस पर चोर असहम त जतलाते ए बोला—तु हारे ारा ा ण को खाते समय
य द कोई व न आ पड़ा, तो मुझे ख़ाली हाथ लौटना पड़ेगा। इस कार पहले म-पहले म,
कहते ए वे दोन आपस म झगड़ने लगे। इस कोलाहल से ा ण क न द खुल गयी, तो
चोर बोला— ा ण दे वता! यह रा स तु ह खाने के लए तु हारे घर आया है। यह
सुनकर रा स भी बोल उठा—यह चोर तु हारे दोन बछड़े चुराने के लए यहां आया है।
ा ण ने तुर त अपने हाथ म जल लेकर उसे अ भम त कया और य ही
रा स पर छड़का, य ही रा स गायब हो गया। अब ा ण ड डा लेकर चोर पर
झपटा, तो चोर भी सर पर पांव रखकर भाग खड़ा आ।
यह कहानी सुनाकर व नास बोला—इसी लए म कहता ं
श वोऽ प हतायैव ववद तः पर परम् ।
चौरेण जी वतं द ं रा सेन तु गोयुगम् ।।
क कभी-कभी श ु का आपस म लड़ना भी लाभ का सौदा स हो जाता है। रा स
और चोर क लड़ाई से ा ण के जीवन क और उसके बछड़ क र ा हो गयी।
व नास के प ात् अ रमदन ने ाकारकण क राय जाननी चाही, तो वह बोला—मेरे

Downloaded from www.PDFshala.com


वचार म तो इसक र ा करना ही उ चत रहेगा। हो सकता है क युग -युग से चला आ रहा
हमारा वैर आपसी यार म बदल जाये;
पर पर य ममा ण ये न र त ज तवः ।
त एव नधनं या त व मीकोदरसपवत् ।।
य क एक- सरे के रह य को जानने वाले दो ाणी जब आपस म मल-जुलकर
शा तपूवक नह रह पाते, तो दोन ही बांबी के भीतर रहने वाले सांप क भां त न हो जाते
ह।
अ रमदन क ज ासा पर ाकारकण उसे आपसी झगड़े के कारण सांप के वनाश
क कथा सुनाने लगा।

कथा म : दस
दे वश के पु के पेट म एक सांप के वेश कर जाने के कारण वह दन- त दन बल
होता जा रहा था। च क सा, ओष ध और इलाज आ द का कुछ भी अनुकूल प रणाम नह
नकल रहा था। अपने जीवन से नराश होकर वह युवक कसी सरे नगर म चला गया और
वहां कसी म दर म रहने लगा। अपनी आजी वका के लए उसने कुछ छोटे -मोटे काम करने
आर भ कर दये और कसी यो य वै क खोज भी आर भ कर द ।
वहां के नगरसेठ क दो लड़ कयां थ । उनम से एक लड़क अपने पता को अपना
पालक-पोषक मानकर उसक ख़ुशामद कया करती थी, जब क सरी भगवान् को कमफल
दाता तथा पता को केवल न म मानती थी। सेठ अपनी इस पु ी के वहार से इतना
था क उसने बदले क भावना से उसका ववाह कसी द र से करने का न य कर
लया। संयोगवश दे वश का वह रोगी पु उसक म आ गया। क या ने भी अपने पता
के इस नणय क सहष वीकार कर लया।
ववाह के प ात् सेठ क क या अपने प त को साथ लेकर कसी अ य नगर म जा
प ंची। माग म एक तालाब के कनारे अपने प त को व ाम करने के लए छोड़कर वह पास
के गांव से कुछ खाने-पीने का सामान लेने के लए चली गयी। अभी वह कुछ पग ही चली थी
क उसने काना-फूसी सुनी, तो वह वृ क आड़ म छपकर खड़ी हो गयी। उसने दे खा क
उसके प त के पेट से एक सांप बाहर नकला और एक सांप पास क बांबी से भी बाहर आ
गया। बांबी से बाहर आये सांप ने सरे सांप से कहा—तू इस भले आदमी के पेट म य
छपा बैठा है, इस बेचारे ने तेरा या बगाड़ा है? इस पर चढ़कर पेट से बाहर आये सांप ने
सरे सांप पर आरोप लगाते ए कहा—तूने भी तो सर के वणकलश पर अ धकार कर
रखा है। या मुझे छोड़ने क श ा दे ने से पहले तू इस धन को छोड़ सकता है?

Downloaded from www.PDFshala.com


कुछ ही दे र म दोन सांप का आपसी आरोप- यारोप इतना बढ़ गया क बांबी वाला
सांप कहने लगा—य द यह युवक कांजी वाला जल पी ले, तो तू बच नह सकेगा। यह
सुनकर पेट वाला सांप बोला—य द कोई तेरी बांबी म गरम-गरम तेल डाले दे , तो तू भी न
हो जायेगा।
युवक क नव ववा हता वधू ने सांप का यह ववाद सुना, तो उसने सांप के बताये
ढं ग से अपने प त को रोगमु कर दया और सोने से भरे मटके लेकर अपने पता के पास
लौट आयी। उसने स कर दखाया क सबको अपने भा य म लखा ही मलता है।
यह कथा सुनाकर ाकारकण बोला—इसी लए मेरी मा यता है
पर पर य ममा ण ये न र त ज तवः ।
त एव नधनं या त व मीकोदरसपवत् ।।
क य द दोन सांप एक- सरे क मृ यु के उपाय कट न करते, तो युवक के पेट म रहने वाले
सांप और बांबी म रहने वाले सांप क मृ यु न होती।
अ रमदन को भी शरण म आये श ु का वध करना उ चत नह लगा। इस पर अपने
वामी के नणय से असहमत आ र ा अपने सा थय से बोला— कतने ःख क बात है
क आपने वामी को ग़लत राय दे कर उनके वनाश को नम ण दे दया है। नी तकार ने
उ चत ही कहा है
अपू या य पू य ते पू याना तु वमानना ।
ी ण त व ते भ ं मरणं भयम् ।।
क जहां अपू य को पूजा जाता है और पू यजन क उपे ा क जाती है, वहां भ , मृ यु
और भय आ द उप व का आना न त हो जाता है।
य ेऽ प कृते पापे मूखः सा ना शा य त ।
रथकारः वकां भा या सजारां शरसाऽवहत् ।।
रंगे हाथ पकड़ा गया पापी भी अपने वन , ले कन धूततापूण वहार से अपने
अ धका रय को धोखा दे ने म सफल हो जाता है। इसी लए तो अपने सामने अपने यार के
साथ ेम- यार करती प नी के म या वचन को सुनकर भी उ ह स य मानकर रथकार उस
प नी को दे वी मानने लगा था।
म य क उ सुकता पर र ा उ ह रथकार क कथा सुनाते ए बोला—

कथा म : यारह
वीरधर बढ़ई क प नी कामदमनी भचा रणी के प म सारे नगर म बदनाम थी। बढ़ई
अपनी प नी के स ब ध म ब त कुछ सुनता था, पर तु प नी क झूठ क़सम के कारण

Downloaded from www.PDFshala.com


उससे कुछ नह कह पाता था। वह जानता था
य द या पावकः शीतः ो णो वा शशला छनः ।
ीणां तदा सती वं या द याद् जनो हतः ।।
क आग शीतल हो सकती है, च मा गरम हो सकता है और जन अपने वाथ वभाव को
छोड़कर सर का हत भी कर सकता है, पर तु यां कभी सती नह रह सकत ।
मुझे लोग के मुंह से भी अपनी कुलटा प नी के स ब ध म ब त कुछ सुनने को
मलता है और म यह भी जानता ं
य च वेदेषु शा ेषु न ं न च सं त
ु म् ।
त सव वे लोकोऽयं य याद् ा डम यगम् ।।
क वेद और शा म जो नह लखा गया और जसके इस संसार म होने क क पना भी
नह क गयी, संसार के चतुर उन सब बात को भी जान लेते ह।
उसने अपनी प नी को रंगे हाथ पकड़ने के लए एक योजना बनायी। वह प नी से
बोला—मुझे कसी काम से बाहर गांव जाना है। वहां मुझे दो-चार दन लग सकते ह, अतः
मेरे लए कुछ भोजन तैयार कर दो। प नी तो यह सुनकर स हो उठ , उसे तो अपने यार
से मलने का अवसर मने वाला था।
दवसे घन त मरे वष त जलदे महाटवी भृतौ ।
प यु वदे शगमने परमसुखं जघनचपलायाः ।।
यार से स भोग-सुख ा त करने वाली ी दन, अथात् बादल से घरे और घोर
वषा वाले दन को, घने अंधेरे से घरी रात को, मूसलधार वषा को, गहन वन-जैसे नजन
थान को और प त के वदे श जाने को अपने लए सौभा य मानती है।
प नी ने त काल अपने प त के लए वा द भोजन तैयार कर दया और य ही
बढ़ई ातःकाल अपने घर से बाहर नकला क उस कुलटा ने प त को गया मानकर अपने
यार के पास स दे श भेज दया और एक-एक पल उसक ती ा म बताने लगी। सायंकाल
वह अपने यार के आने पर उससे लपट गयी। अवसर पाकर बढ़ई घर म आकर अपनी
चारपाई के नीचे छपकर बैठ गया। उसने अपनी प नी को उसके यार क बांह म दे खा, तो
उसने उन दोन क ह या करने क ठान ली, क तु इसी बीच घर का ार ब द करने उठ उस
कुलटा को चारपाई के नीचे छपे अपने प त पर स दे ह हो गया। वह समझ गयी क उसका
प त उसक परी ा लेना चाहता है। अब उसने धूतता का सहारा लया और य ही उसका
यार चारपाई से उठकर उस कुलटा को अपनी बांह म समेटने लगा, य ही वह अपने को
छु ड़ाकर एक ओर खड़ी हो गयी और हाथ जोड़कर कहने लगी—दे खो, य द तुमने मुझ
प त ता के शरीर को छू ने क ह मत क , तो म तु हारे ाण ले लूंगी।
यह सुनकर उस कुलटा का यार बोला—य द तु ह स भोग नह करना था, तो मुझे
बुलाया ही य था?

Downloaded from www.PDFshala.com


कुलटा ने उ र दया—अपने प त के जीवन क र ा के लए मुझे इस कलंक को
सहना ही था। आज ातःकाल म दर म दे वी ने मुझे अपनी भ और सती जानकर
आकाशवाणी के ारा बताया था— क तेरे प त क आयु केवल छह मास ही शेष है, इसके
बाद तू वधवा हो जायेगी। तू मेरी भ है, इस लए मने तुझे यह बता दया है।
यह सुनकर मने दे वी मां के चरण पकड़ लये और धरती पर अपना सर पटककर
उससे बोली—मां! मुझे मेरे प त के जीवन क र ा का उपाय बताओ, नह तो म अभी तेरे
चरण म अपनी ह या कर लूंगी।
दे वी ने कहा—पु ी! य द तू कसी पर-पु ष को अपने घर म बुलाकर और उसे अपनी
चारपाई पर बठाकर उसका आ लगन कर लेगी, तो उस पु ष का जीवन तेरे प त को मल
जायेगा और तुझे आ लगन करने वाला छह महीने म ही परलोक सधार जायेगा।
मने दे वी के वचन को स य मानकर तु ह बुलाने का यह षत आचरण कया है।
आज तक मेरे शरीर को मेरे प त के सवा कोई छू नह सका, आज तुमने उसे छू कर
कलं कत कर दया है। अब मेरे पास नद म डू ब मरने के सवा अ य कोई उपाय नह ।
प नी के वचन को सुनकर बढ़ई तुर त चारपाई के नीचे से नकल आया और प नी
का आ लगन करता आ उसे आदश प त ता कहता आ उसक शंसा करने लगा। उस
मूख बढ़ई ने अपनी प नी को चारपाई पर बठाया और उस चारपाई को अपने सर पर
उठाकर नाचने लगा। इतना ही नह , वह मूख अपनी प नी के यार के त भी आभार कट
करने लगा।
यह कथा सुनाकर र ा बोला—इसी लए म कहता ं
य ेऽ प कृते पापे मूखः सा ना शा य त ।
रथकारः वकां भा या सजारां शरसाऽवहत् ।।
क चालाक य पाप करके भी अपनी चालाक से अपने को नद ष स करने म
सफल हो जाते ह। बढ़ई अपनी आंख से अपनी प नी को उसके यार क बांह म दे खकर भी
उसक चालाक के कारण धोखा खा गया और अपनी कुलटा प नी को आदश प त ता
मानने लगा।
इस लए मेरे वचार म इस थरजीवी नामक कौए को आ य दे ने का अथ अपने
वनाश को नम ण दे ना होगा। कहा भी गया है
म पा ह रपवः स भा ते वच णैः ।
ये हतं वा यमु सृ य वपरीतोपसे वनः ।।
क हतकर बात पर यान न दे कर तकूल आचरण करने वाले म को भी भटके ए तथा
अनजाने ही अ हत करने वाले श ु समझने चा हए।
स तोऽ यथा वन य त दे शकाल वरो धनः ।

Downloaded from www.PDFshala.com


अ ा ाम णः ा य तमः सू य दये यथा ।।
दे श-काल के व आचरण करने वाले म य के परामश को गौरव दे ने वाले राजा
का वैभव भी सूय दय होते ही अ धकार के समान न - हो जाता है।
इस कार म य ने र ा के कथन पर यान न दे कर थरजीवी को आ य दे ने
का नणय लया। तब अपने घर जाता थरजीवी उ लु से बोला—मुझे तो आप जलती
आग म डाल दे त,े ले कन आप तो मेरे ाण को बचा रहे हो, मुझे समझ नह आता क म
आपके इस उपकार का बदला कस कार उतार सकूंगा?
र ा ने पूछा—तुम मरने के लए इतने उतावले य हो?
थरजीवी बोला—तुम लोग का प लेने के कारण ही मेघवण ने मेरी यह दशा क
है। य द म उससे बदला लये बना मर गया, तो मेरी आ मा भटकती रहेगी। अतः अब म
उ लू बनकर ही उस पर झप ा मा ं गा।
राजनी त म न णात र ा बोला—तुम प के धूत हो। तुम उ लू यो न म आकर भी
काक यो न को मह व दे ना नह भूल सकोगे। इस बारे म यह कथा सुनो।
सू य भ ारमु सृ य पज यं मा तं ग रम् ।
वजा त मू षका ा ता वजा त र त मा ।।
एक चु हया के मनु य यो न म प ंच जाने पर भी सूय, मेघ, वायु तथा पवत-जैसे
तेज वय को छोड़कर उसे चूहे से ही ववाह करना पड़ा था। सच बात तो यह है क अपनी
जा त का मोह छोड़ पाना आसान नह होता।
थरजीवी क ज ासा पर र ा उसे चु हया क कहानी सुनाने लगा।

कथा म : बारह
गंगातट पर थत एक आ म के कुलप त मु न या व य ारा एक बार आचमन करते
समय आकाश म उड़ते बाज प ी के प े से छू ट एक चु हया उनक अ ल म आ गरी,
तो वह महा मा उसे अपने घर ले आये और त दन ध पलाने लगे। चु हया को ब ली से
डरता दे खकर मु न ने अपने तपोबल से उसे ब ली, कु तया और अ त म मानुषी बना दया।
मु नप नी भी उसे अपनी पु ी मानकर बड़े यार से उसका पालन-पोषण करने लगी।
क या के युवती होने पर मु नप नी ने अपने प त से उसके ववाह के स ब ध म चचा
क , तो मह ष सहम त दे ते ए कहने लगे—
े े यः स शे य ाजघ ये यो रज वला ।
प ा दे या व न य यतो दोषो न व ते ।।
क या के रज वला होने से पूव ही पता को यो य, सदाचारी, े एवं कुलीन युवक से क या

Downloaded from www.PDFshala.com


का ववाह कर दे ना चा हए।
अतः म अपनी इस पु ी के लए यो य वर के वषय म वचार करता ं।
ययोरेव समं व ं ययोरेव समं कुलम् ।
तयो ववाहः स यं च न तु पु वपु योः ।।
वा तव म, समान कुल और समान आ थक थ त वाले प रवार क लड़क -लड़के
का ववाह ही उ चत रहता है। य द एक प बलशाली हो और सरा प बलहीन हो, तो ऐसे
प रवार म आ ववाह सफल नह रहता।
कुल च शील च सनाथता च
व ा च व च वपुवय ।
एता गुणा स त व च य दे या
क या बुधैः शेषम च तनीयम् ।।
लड़के म न न ल खत सात गुण के होने पर ही उसे अपनी लड़क वधू प म दे नी
चा हए, अ यथा नह । ये सात गुण ह—कुल, शील (च र ), प रवार (ब धु-बा धव) व ा,
धन, व थ शरीर और आयु। इन सात गुण के अ त र स ब ध थर करने म अ य कुछ
भी वचारणीय नह होता।
मु न ने क या से पूछा क य द सूयनारायण से उसका ववाह कर दया जाये, तो उसे
कोई आप तो नह ? क या ारा सहम त दे ने पर मु न ने सूयदे व का आवाहन कया और
सूयदे व के उप थत होने पर उ ह ने क या से ववाह का ताव रखा, तो इससे पहले क
सूयदे व कोई उ र दे त,े क या बोल उठ —इनक उ णता और तेज वता को सहना मेरे वश
का नह है।
मु न के पूछने पर सूय ने अपने को न तेज बना दे ने वाले मेघ का सुझाव दया, तो
मु न ने मेघ को बुला लया। मेघ के आने पर मु न ने उसक पस द जानने के लए क या क
ओर दे खा, तो वह बोली—यह तो जड़ और काला-कलूटा है। इस पर मु न ने मेघ से अपने से
अ धक े के स ब ध म पूछा, तो मेघ ने पवनदे व का नाम लया। मु न ने पवनदे व को
बुलाकर क या क राय जाननी चाही, तो क या ने उसे भी नकार दया। मु न ने वायु से इस
स ब ध म पूछा, तो उसने अपनी ग त को अव कर दे ने वाले पवत का नाम लया। मु न
ारा बुलाये जाने पर क या ने पवत को कठोर और न ल बताकर ठु करा दया। मु न ारा
पवत से इस वषय म पूछे जाने पर उसने अपने को खोखला कर दे ने वाले चूहे का नाम
लया। चूहे का नाम सुनते ही क या पुल कत हो उठ और उसने मु न से अपने को पुनः
चु हया बनाकर चूहे के साथ ववाह करने क ाथना क । मु न ने उसके अनुरोध को वीकार
करके अपने कत से छु पा ली।
यह कथा सुनाकर र ा ने म य से कहा—

Downloaded from www.PDFshala.com


सू य भतारमु सृ य पज यं मा तं ग रम् ।
वजा त मू षका ा ता वजा त र त मा ।।
तुमने दे खा, मानुषी बनी चु हया ने सूय, मेघ, पवन और पवत-जैसी वभू तय को छोड़कर
एक चूहे के लए चु हया बनना वीकार कर लया। यह कथा इस त य क ोतक है क
अपनी जा त के त प पात छोड़ना कसी के लए भी आसान नह होता।
र ा के तकसंगत मत क उपे ा और अनादर करके म य ने थरजीवी को
आ य दे ने का नणय या कया, मानो अपने वंश को न करने के लए बीज बो दया।
उ लु के ग के भीतर जाते समय थरजीवी अपनी योजना क सफलता पर अपने
आपसे कह उठा—
ह यता म त येनो ं वा मनो हतवा दना ।
स एवैकोऽ सवषां नी तशा ाथत व वत् ।।
यह तो मने दे ख ही लया है क उलूकराज के सभी म य म एक र ा ही सफल
राजनी त है, इसी लए उसने मेरे वध का सुझाव दया था। य द इन मूख ने र ा का
सुझाव मान लया होता, तो इ ह अपना अ न न दे खना पड़ता। अब ये मुझे अपने ग म
कह भी रख, म भीतर तो आ ही गया ं। ले कन मुझे आशंका है क कह इ ह मुझ पर
स दे ह न हो जाये, इस लए मुझे कुछ ऐसा करना चा हए, जससे मुझे ग के ार पर ही रहने
का थान मल जाये। यह सोचकर थरजीवी उ लु से बोला—आपने मुझे शरण दे कर
मुझ पर बड़ा उपकार कया है, ले कन म आपसे फर भी यही क ंगा क आप मुझे अपने
ग के भीतर न ले जाय, मुझे तो ग- ार पर ही थोड़ा-सा थान दे कर अपनी सेवा का
अवसर द जये। थरजीवी के आ ह को उसका न कपट वहार समझकर वीकार कर
लया गया। उलूकराज के आदे श से उसे त दन ब ढ़या भोजन भी मलने लगा और वह
कुछ ही समय म -पु हो गया।
यह दे खकर र ा ने अपना सर पीट लया। उसने उलूकराज और अपने सा थय
को दोबारा चेतावनी द और वह अपने साथी म य से बोला—
पूव तावदहं मूख तीयः पाशब धकः ।
ततो राजा च म ी च सव वै मूखम डलम् ।।
ब धनमु ए एक प ी ने कहा था—ब धन म फंसने वाला पहला मूख म ही था, उसके
बाद मुझे राजा को स पने वाला ाध सरा मूख था फर मुझे अपने पास न रखकर म य
को स पने वाला राजा तीसरा मूख था और उसके बाद मुझे वणदाता न मानकर मु कर
दे ने वाला म ी चौथा मूख था। इस कार मुझे तो यह सारा संसार ही मूख से भरा लगता
है।
म य क ज ासा पर र ा उ ह यह कथा सुनाने लगा।

Downloaded from www.PDFshala.com


कथा म : तेरह
कसी पवत दे श म थत वट के एक वृ पर स धुक नामक एक प ी रहता था, जसक
व ा सोने म बदल जाती थी। एक बहे लये ने उसे दे खा, तो उसने अ व ास करते ए भी
वहां अपना जाल बछा दया। प ी ने भी बहे लये को बाल बछाते दे ख लया था, ले कन
वह फर भी न त होकर वृ क एक शाखा से सरी शाखा पर उछल-कूद करता रहा
और अ ततः बहे लये के जाल म बंध गया।
ाध सोचने लगा क म पछले चालीस-पचास वष से यही कम करता आ रहा ं,
ले कन मने आज तक सोने क व ा करने वाला प ी नह दे खा। कह प ी के वेश म यह
कोई रा स या भूत- ेत न हो, जो वण का लोभ दखाकर मेरे ाण ही ले ले। यह सोचकर
बहे लये ने उस प ी को राजा को स पना ही ठ क समझा।
राजा ने उस अनमोल प ी को संभालकर रखने के आदे श के साथ ही वह प ी म ी
को स प दया और म ी ने परी ा करने तक धैय न रखकर तथा बहे लये क बात को कोरी
बकवास मानकर उस प ी को ब धनमु कर दया।
म ी क मूखता से ब धनमु आ वह प ी वृ क शाखा पर बैठा अपने आपसे
कहने लगा—
पूव तावदहं मूख तीयः पाशब धकः ।
ततो राजा च म ी च सव वै मूखम डलम् ।।
ाध के पाश म फंसने वाला पहला मूख म था, डर क आशंका से मुझे राजा के हवाले
करने वाला सरा मूख बहे लया था, फर राजा और म ी भी मूख नकले। या सारे संसार
म मूख-ही-मूख भरे पड़े ह?
र ा क चेतावनी क अनदे खी करके उ लू उस कौए के त उदार वहार ही
करते रहे। यह दे खकर र ा ने अपने प के उ लु को बुलाकर कहा— म ो! य द तुम
अपना जीवन सुर त रखना चाहते हो, तो मेरा कहा मानो और इस थान को छोड़कर
कसी अ य ग म आ य ले लो। नी तकार का कथन है
अनागतं यः कु ते स शोभते स
शो यते यो न करो यनागतम् ।
वनेऽ सं थ य समागता जरा
बल य वाणी न कदा प मे ुता ।।
क वप के आने से पहले ही अपना बचाव करने वाला सदा सुखी रहता है। इसके वपरीत
न त रहने वाले को क भोगना पड़ता है। एक गीदड़ पहले से ही संभल जाने के कारण
सह का आहार बनने से बचने म सफल हो गया था।

Downloaded from www.PDFshala.com


साथी उ लु को गीदड़ और सह क कथा सुनाता आ र ा बोला—

कथा म : चौदह
जंगल म रहने वाले ती णनख नामक सह को एक बार शकार नह मला और वह सारा
दन शकार क खोज म भटकते-भटकते बुरी तरह थक गया। सायंकाल उसने कसी पशु
क एक गुफा दे खी, तो वह उसम जा बैठा। वहां छपकर बैठा सह सोचे रहा था क यहां
रहने वाला पशु जैसे ही भीतर आयेगा, म उसे दबोच लूंगा और इस कार मेरे भोजन क
व था हो जायेगी।
कुछ ही दे र म उस गुफा म रहने वाला द धपु छ नामक गीदड़ वहां आया, तो उसने
दे खा क कसी ाणी के गुफा के भीतर जाने के पैर के च तो दखाई दे रहे ह, पर तु
उसके गुफा से बाहर नकलने के नशान दखाई नह दे रहे। तभी उसे एक उपाय सूझा—वह
गुफा के ार पर जाकर च लाने लगा—अरी गुफा! या म भीतर आ जाऊं? ऐसा उसने
तीन बार कहा। जब कोई भी उ र न मला, तो वह बोला—तेरी-मेरी तो यह शत है क जब
म बाहर से अपने आने क सूचना ं गा, तो तू मुझे बुलायेगी। अब य द तू मुझे नह बुलाती,
तो म कसी सरी गुफा म चला जाता ।ं
गुफा के भीतर छपकर बैठे सह ने सोचा क गुफा सचमुच ही गीदड़ को उ र दे ती
होगी, क तु आज मेरे डर के कारण चुप है;
भयस तमनसां ह तपादा दकाः याः ।
व ते न वाणी च वेपथु ा धको भवेत् ।।
य क डर के मारे ायः सभी ा णय का शरीर कांपने लगता है और तब उनके लए मुंह
खोलकर कुछ कह पाना स भव नह होता। यह सोचकर सह ने गीदड़ को भीतर आने के
लए आवाज़ द । सह क ंकार सुनते ही आ मर ा के लए भागता आ गीदड़ अपने
आपसे कहने लगा—
अनागतं यः कु ते स शोभते स
शो यते यो न करो यनागतम् ।
वनेऽ सं थ य समागता जरा
बल य वाणी न कदा प मे ुता ।।
वप आने से पहले ही उससे बचने के लए उपाय करने वाला सुखी रहता है।
वप क उपे ा करने वाले का तो वनाश हो जाता है। म इस जंगल म रहते ए बूढ़ा हो
गया ं, ले कन मने आज तक कसी गुफा को बोलते ए नह सुना।
अतः तुम लोग मेरी बात मानकर मेरे साथ चलो। र ा के साथी उसक इस बात से

Downloaded from www.PDFshala.com


सहमत हो गये और उस थान को छोड़कर नये थान को चल दये।
अपने म के साथ र ा के चले जाने पर थरजीवी ने अपने माग के कांटे को
नकल जाना समझा और अपनी योजना क सफलता के त आ त हो उठा;
न द घद शनो य य म णः युमहीपतेः ।
मायाता ुवं त य न चरा या प र यः ।।
य क रदश एवं नी त नपुण म य ारा छोड़कर चले जाने से अकेले पड़े राजा का
वनाश करने म दे र नह लगती।
म पा ह रपवः स भा ने वच णैः ।
ये स तं नयमु सृ य सेव ते तलोमतः ।।
व ान ने ठ क ही कहा है क उ म नी त को छोड़कर अपने वामी को ग़लत राय
दे ने वाले म य को श ु ही समझना चा हए।
अब वह उ लु के ग को आग से जलाने के लए गु त प से लक ड़यां एक
करने लगा, क तु उ लु ने इस ओर कोई यान ही नह दया।
अ म ं कु ते म ं म ं े हन त च ।
शुभं वे यशुभं पापं भ ं दै वहतो नरः ।।
वा तव म, श ु को म समझने वाले तथा म से े ष करने वाले और उसक
अनदे खी करने वाले को अ ववेक और अभागा ही समझना चा हए, य क वह पाप को
पु य और कुकम को स कम समझने क मूखता करता है।
लक ड़यां इकट् ठा हो जाने पर और सूय दय के समय उ लु के अ धे होने पर
थरजीवी उड़कर मेघवण के पास गया और उससे बोला—मने लक ड़यां एक कर द ह,
अब तुम सब एक-एक लकड़ी जलाकर मेरे घ सले म डाल दो। आग लगते ही उसके धुएं से
सारे उ लू दम घुटने के कारण मर जायगे।
मेघवण ब त दन बाद मले अपने पुराने म ी थरजीवी से कुशल-मंगल पूछने
लगा, तो थरजीवी बोला—महाराज! यह समय बात म मत गंवाइये, इसका स पयोग
क जये। य द श ु के कसी गु तचर को थोड़ी-सी भी भनक पड़ गयी, तो मेरी योजना पर
पानी फर जायेगा;
शी कृ येषु का यषु वल बय त यो नरः ।
त कृ यं दे वता त य कोपा न यसंशयम् ।।
य क शी नबटाये जाने वाले काम क अनदे खी करने वाले पर दे वता भी अ स होकर
उस काय क सफलता का माग अव कर दे ते है।
य य य य ह काय य फ लत य वशेषतः ।
म यमाण वे कालः पब त त फलम् ।।

Downloaded from www.PDFshala.com


सही समय पर और शी स प कये जाने वाले काय को दे र म करने से उस काम के
होने से मलने वाला आन द और लाभ न हो जाते ह।
अतः आप पहले अपना काम नबटाने का य न कर, उसके बाद कुशल-मंगल और
मेरी सफलता क गाथा का सुनना-सुनाना होता रहेगा। थरजीवी के कथन को मा यता दे ते
ए मेघवण के साथ उसके सभी प रजन ने अपनी च च म एक-एक जलती ई लकड़ी को
थामा और उसे थरजीवी के घ सले पर फक दया। घ सला धू-धूकर जलने लगा। दन का
समय होने के कारण उ लु के लए कुछ भी दे ख पाना स भव नह था और धुएं के फैलने
से उनका दम भी घुटने लगा। नकलने के ार पर धधकती ई आग ने उ ह जीवन से नराश
कर दया। अब वे र ा के सुझाव को न मानने के लए अपने को कोसने लगे, पर तु अब
कुछ भी नह हो सकता था। उन सबको अपनी मूखता का प रणाम भुगतना पड़ा। पल-भर
म आग सारी गुफा म फैल गयी और सारे उ लू उस आग म जलकर भ म हो गये।
कौए अपना काम नबटाकर अपने नवास पर लौटे , तो मेघवण ने थरजीवी क
शंसा करते ए उससे श ु को न करने के वषय म सब कुछ व तारपूवक बताने को
कहा। मेघवण बोला—
वरम नौ द ते तु तापः पु यकमणाम् ।
न चा रजनसंसग मु म प से वतः ।।
श ु के बीच एक पल बताना भी अ य त क ठन होता है, इसी लए व ान् लोग श ु के
साथ रहने क अपे ा अ न म जल मरने को अ छा समझते ह।
थरजीवी बोला—महाराज! वामी का हत करने के लए सेवक को ख़तर से तो
खेलना ही पड़ता है।
मेघवण ने थरजीवी के साहस और नी त नपुणता क ब त शंसा क ।
थरजीवी ने बताया—महाराज! केवल र ा के सवा वहां सभी म ी सवथा
ववेकहीन थे। र ा मेरी धूतता और मेरे उ े य को समझ गया था। उसने अपने सा थय
को सचेत भी कया, क तु उन सबक म त मारी गयी थी,
अ रतोऽ यागतो भृ यो त स त परः ।
अपस यः स धम वा यो े गी च षतः ।।
वरना वे इस त य क उपे ा नह करते क श ुप से आया कोई भी ाणी व ास के यो य
नह होता। ऐसा श ु से भी कह अ धक भयंकर होता है, अतः उसे तो अपने से कोस
र रखना चा हए।
य द उलूकराज के म ी समझदार होते, तो उ ह यह पता होना चा हए था क श ुप
से आये अपने श ु को असावधान दे खकर उससे उसका सव व छ नने म एक पल भी
नह लगाते।
इसी लए नी तकुशल अपनी, अपने वामी क तथा उसके रा य क र ा के

Downloaded from www.PDFshala.com


लए श ु से हरदम सावधान रहते ह और अपनी कसी भी स भा वत हा न से बच जाते ह।
नी तकार ने ठ क ही कहा है—
स तापय त कमप यभुजं न रोगाः
म णं कमुपया त न नी तदोषाः ।
कं ीन दपय त कं न नह त मृ युः
कं ीकृता न वषयाः प रपीडय त ।।
जस कार अप यसेवी कसी एक-न-एक रोग से अव य ही त होता है, जस कार धन-
स प पाकर कोई भी अहंकारी हो जाता है, जस कार कामुक पु ष सु दर रमणी
के आकषण म फंस जाता है तथा जस कार सभी ा णय को एक-न-एक दन मृ यु का
ास बनना होता है, उसी कार नी त- ान से र हत म ी के राजा का सवनाश भी न त
होता है।
लु ध य न य त यशः पशुन य मै ी
न य य कुलमथपर य धमः ।
व ाफलं स ननः कृपण य सौ यं
रा यं म स चव य नरा धप य ।।
जस कार लोभी का यश, चुग़लख़ोर क म ता, कामचोर क
कुलीनता, कामुक क व ा तथा कृपण का सुख णक होता है, उसी कार
असावधान एवं अकुशल म ी रखने वाले राजा का रा य भी थोड़े समय के लए ही होता
है।
राजन्! श ु के घर म रहते ए मने एक-एक पल बड़ी क ठनाई से बताया है। मृ यु
मुझे सदै व अपने सामने मुंह खोले खड़ी दखाई दे ती थी, क तु इसके सवा कोई अ य उपाय
भी नह था।
अपमानं पुर कृ य मानं कृ वा तु पृ तः ।
वाथम यु रे ा ः वाथ ंशो ह मूखता ।।
बु मान् वही होता है, जो अपना काय स करने के लए मान-अपमान,
सु वधा-असु वधा तथा अनुकूलता- तकूलता के वचार को छोड़ सकता है।
क धेना प वहे छ ुं कालमासा बु मान् ।
महता कृ णसपण म डू का बहवो हताः ।।
अपना काम नकालने के लए तो को श ु को अपने क धे पर बठाने म भी
सोच- वचार नह करना चा हए। अपने को मेढक का वाहन बनाकर एक अजगर अपने
भोजन से न त हो गया था।
मेघवण क ज ासा पर थरजीवी उसे यह कथा सुनाने लगा।

Downloaded from www.PDFshala.com


कथा म:प ह
व ण पवत क गुफा म रहने वाला म द वष नामक एक काला सांप अपने बुढ़ापे म भोजन
क ा त के स ब ध म सोचते-सोचते अपनी योजना के अनुसार मेढक से भरे एक तालाब
के कनारे उदास होकर बैठ गया। सांप को काफ़ दे र तक उदास बैठा दे खकर एक मेढक
उससे पूछ बैठा— य मामा, या आज भूखा रहने क ठानी है, जो इस कार चुपचाप बैठे
हो?
इस पर सांप ने उ र दया— भैया! मेरी तो क़ मत ही फूट गयी है। अब भूखे रहकर
ही अपने ाण छोड़ने ह।
मेढक ने उ सुकतावश पूछा— य , ऐसा या हो गया, जो तुम इतने नराश और
उदास हो रहे हो?
सांप बोला—कल मने एक मेढक का पीछा कया, क तु मेढक भागकर कसी
ा ण के घर म जाकर छप गया। मेढक का पीछा करते ए मने उसके म म
ा णकुमार के अंगूठे म काट लया, जससे उसका ाणा त हो गया। म ा ण के आगे
गड़ गड़ाया और अनजाने म ई भूल के लए उससे मा-याचना भी क , ले कन ा ण ने
मेढक के म म अपने पु को काटने का द ड दे ने के लए मुझे मेढक का वाहन बनने का
शाप दे दया। अब मुझे मेढक को अपनी पीठ पर बठाना है और उनके ारा दये भोजन
पर नवाह करना है। म इसी शाप से उ ार के लए मेढक क ती ा कर रहा ।ं
मेढक ने इस बात को अपने सभी सा थय म चा रत कर दया। अब तो सभी मेढक
सांप क सवारी के लए उतावले हो उठे । सांप क पीठ पर सवारी का आन द लेते ए
मेढक का राजा जलपाद अपने साथ बैठे मेढक से बोला—
न तथा क रणा यानं तुरगेण रथेन वा ।
नरयानेन वा यानं यथा म द वषेण मे ।।
म ो! आज तक हमने हाथी, घोड़े तथा रथ आ द-जैसे वाहन पर सवारी क है, पर तु आज
इस सांप क सवारी से जैसा आन द आ रहा है, वैसा कभी कसी सरी सवारी से नह
मला।
ले कन थोड़ी र जाते ही उस सांप क चाल धीमी हो गयी, तो जलपाद ने सांप से
उसक श थलता का कारण पूछा, तो सांप बोला—म दो दन से भूखा ं, मुझसे चला नह
जा रहा है।
यह सुनकर जलपाद बोला—तुम दो-एक मेढक को खाकर अपनी भूख मटा लो।
सांप बोला—आप कहते ह, तो खा लेता ं और फर एक-एक करके वह सभी मेढक
को खा गया।
कुछ दन म -पु होने पर म द वष सांप अपने आपसे बोला—

Downloaded from www.PDFshala.com


म डू का व वधा ेते छलपूव पसा धताः ।
कय तं कालम ीणा भवेयुः खा दता मम ।।
अब तो सारे मेढक मेरे छल-बल के कारण मेरे वश म ह, अतः अब मुझे अपने आहार क
कोई च ता नह । अब मुझे जीवन-भर अभाव का मुंह नह दे खना पड़ेगा।
मेढक का राजा न य- त अपने वंश के वनाश को दे खकर भी सांप क चालाक
को नह समझ सका। इस बीच अचानक वहां आये एक अ य सांप ने म द वष को मेढक क
सवारी बने दे खा, तो वह च कत होकर बोला—अपने आहार का सेवक बनना तो बड़ा
अपमानजनक है।
सवमेत जाना म यथा वा ोऽ म द रैः ।
क च कालं ती योऽहं घृता धो ा णो यथा ।।
इस पर म द वष ने उ र दया—मेढक क सवारी बनने-जैसे काम के पीछे छपे
योजन को म ही जानता ं। म तो घी-श कर से बने पदाथ को खाने के लए अ धा बन
जाने वाले ा ण क भां त नाटक कर रहा ं।
सप के पूछने पर म द वष उसे ा ण क कथा सुनाने लगा।

कथा म : सोलह
य द नामक एक ा ण क भचा रणी प नी अपने यार के लए त दन उ मो म
पकवान बनाकर ले जाती थी। प त दे खता रह जाता था। एक दन उसने प नी से पूछ लया
क तुम त दन ये वा द म ा बनाकर कहां ले जाती हो? ी बोली—म गांव के बाहर
बने दे वी-म दर म एक अनु ान कर रही ,ं जहां दे वी को भोग लगाने के लए ये न ले
जाती ।ं
एक दन, पता नह , या सोचकर वह कुलटा सचमुच ही दे वी-म दर म जा प ंची
और म दर म म ा रखकर वह नद म नान करने के लए चल द । सरे माग से ा ण
भी वहां जा प ंचा और अपनी प नी के आचरण को दे खने के लए वह छपकर बैठ गया।
नद - नान से लौटने के प ात् उस ी ने दे वी को धूप-द प आ द सम पत कर उसक
पूजा क और फर उसे णाम करके बोली—मां! तू मेरे प त को अ धा बनाने क कृपा कर
दे । यह सुनकर म दर म छपे ा ण ने आकाशवाणी के समान उ च वर म कहा—य द तू
कुछ दन तक अपने प त को त दन वा द पकवान बनाकर खलायेगी, तो वह अव य
अ धा हो जायेगा।
अब तो वह कुलटा यार के लए बनाये पकवान प त को भी खलाने लगी। कुछ दन
बाद एक दन ा ण रोते-रोते कहने लगा—अरे, आज यह अचानक मुझे दखना य ब द

Downloaded from www.PDFshala.com


हो गया?
कुलटा ी ने इसे स य मानकर अपने यार को घर पर ही बुला लया। ले कन य ही
दोन अनै तक काय करने म जुटे, य ही ा ण ने हाथ म ड डा लेकर दोन क जमकर
पटाई क । उस ी का यार तो भाग गया और कुलटा प नी को ा ण ने घर से नकाल
दया।
यह कथा सुनाकर म द वष बोला—
सवमेत जाना म यथा वा ोऽ म द रैः ।
क च कालं ती योऽहं घृता धो ा णो यथा ।।
जस कार उस ा ण ने अपनी प नी को रंगे हाथ पकड़ने के लए अ धेपन का नाटक
कया था, उसी कार म भी अपने उ े य क पू त के लए मेढक को अपनी पीठ पर सवारी
करा रहा ं। शायद तुमने मेढक के मांस का वाद नह चखा।
इस पर जलपाद ने पूछा—मामा! यह तुमने या कहा?
म द वष बोला—म तो उस सांप से मज़ाक़ कर रहा था।
वा तव म, इस कार मेढक को धोखे म डालकर वह सांप उ ह अपना आहार बनाता
रहा।
यह कथा सुनाकर थरजीवी बोला—
क धेना प वहे छ ुं कालमासा बु मान् ।
महता कृ णसपण म डू का बहवो हताः ।।
जस कार मेढक को अपना आहार बनाने के लए म द वष नामक उस सांप ने उ ह अपने
पीठ पर बठाने को भी बुरा नह माना, उसी कार अपना काम नकालने के लए बु मान्
को श ु क सेवा करने म भी कभी संकोच नह करना चा हए।
जस कार म द वष ने अपने बु -बल से मेढक को अपना आहार बना लया था,
उसी कार मने भी इन उ लु को मौत के घाट उतार दया है।
वने व लतो व दह मूला न र त ।
समूलो मूलनं कु या ायुय मृ शीतलः ।।
जंगल क आग वृ को जलाकर उनक जड़ को भले ही छोड़ दे , क तु च ड वायु
तो वृ को जड़ समेत ही उखाड़ फकती है।
मेघवण ने कहा—तुम ठ क ही कहते हो। े संकट झेलकर भी अपने हाथ म
लये काम को पूरा करके ही व ाम करते ह।
मह वमेत महतां नयालङ् कारधा रणाम् ।
न मु च त यदार धं कृ े ऽ प सनोदये ।।
नी त पी आभूषण को ही स चा आभूषण मानने वाले महापु ष क यही पहचान है

Downloaded from www.PDFshala.com


क वे अपने दा य व का पूरी ईमानदारी से नवहण करते ह और अपने ल य को ा त करने
म ही व ास रखते ह।
ार यते न खलु व नभयेन नीचैः
ार य व न नहता वरम त म याः ।
व नैः सह गु णतैर प ह यमानाः
ार धमु मजना न प र यज त ।।
छोटे लोग संकट क आशंका से कसी बड़े काम म हाथ नह डालते। म यम दज के
लोग काम म हाथ तो डाल दे ते ह, पर तु कसी व न के आते ही ठ डे पड़ जाते ह। ले कन
इसके वपरीत हज़ार व न के आने पर भी बड़े लोग अपने हाथ म लये काम को पूरा कये
बना चैन नह लेते।
मेरे श ु को न करके और मेरे रा य को न क टक बनाकर तुमने भी अपनी
े ता का प रचय दया है।
ऋणशेषं चा नशेषं श ुशेषं तथैव च ।
ा धशेषं च नःशेषं कृ वा ा ो न सीद त ।।
े पु ष क पहचान ही यह है क वे ऋण, अ न, श ु और रोग को जड़ से न कर
डालने म ही व ास रखते ह; य क वे भली-भां त जानते ह क ये चार थोड़े से ही बढ़ते
ह। इस लए इ ह जड़ स हत मटा दे ने पर उ ह कभी कोई क नह सहना पड़ता।
थरजीवी बोला—महाराज! आपके सभी काय पूरे हो रहे ह, आप परम
सौभा यशाली ह, क तु आप यह न भूल क वजय के लए श और साम य के साथ ही
बु क भी अपे ा होती है;
श ैहता न हहता रपवो भव त
ाहता तु रपवः सुहता भव त ।
श ं नह त पु ष य शरीरमेकं
ा कुल च वभव च यश ह त ।।
य क श के हार से श ु के वनाश को प का न मानकर बु ारा नी त के योग से
ही श ु को न आ समझना चा हए। श से तो केवल शरीर का नाश होता है, ले कन
बु से श ु के वैभव, यश, स मान के साथ ही उसक च तनश भी न हो जाती है।
सर त म तः का यार भे ढ भव त मृ तः
वयमुपनय था म ो न ग छ त व लवम् ।
फुर त सफल तक ं समु तम ुते
भव त च र तः ा ये कृते नर य भ व यतः ।।
सोच-समझकर काय ार भ करने पर सफलता के संकेत मलने लगते ह, जससे

Downloaded from www.PDFshala.com


का आ म व ास सु ढ़ हो जाता है और उसके उ साह म वृ होने लगती है। काय
क सफलता जतनी बढ़ती जाती है, काय करने क इ छाश भी उतनी ही अ धक बढ़ती
जाती है और सफलता मलने पर तो काय करने क वृ के वभाव का अंग बन
जाती है।
महाराज! नी तकुशल, यागी एवं उ साही सेवक के ारा ही रा य थर रह पाता है।
या ग न शूरे व ष च संसग चजनो गुणी भव त ।
गुणव त धनं धना ः ीम या ा ततो रा यम ।।
यागी, शूरवीर और व ान का संग करने से ही गुणी होता है और गुणी
ही आ ापालन करके जहां वयं समृ हो जाता है, वह वह रा य क थरता का भी
आधार बन जाता है।
मेघवण बोला—नी तशा क मह ा पर कोई स दे ह नह कया जा सकता। तुमने
नी त के सहारे ही हमारे श ु को न करके नी तशा क उपयो गता को चार चांद लगा दये
ह।
ती णोपाय ा तग योऽ प योऽथ त या-
यादौ सं यः साधुयु ः ।
उ ु ा ः सारभूतो वनानां
मा या य य छ ते पादपे ः ।।
थरजीवी बोला—ती ण उपाय से ा त कये जाने वाले फल के लए भी पहले
कोमल वहार करना ही उ चत होता है। इसी लए तो कंट ले झाड़-झंखाड़ को उखाड़
फकने से पहले उ ह णाम कया जाता है।
महाराज! समय बीत जाने पर थ, न य एवं स न होने वाली बात करना भी
थ होता है।
अन तैर यवसायभी भः
पदे -पदे दोषशतानुद श भः ।
फलै वसंवादमुपागता गरः
या त लोके प रहासव तुताम् ।।
समथ य को फल के अ न त होने अथवा फल- ा त के माग म क़दम-क़दम
पर आने वाले व न क चचा करना शोभा नह दे ता। इस कार क बात से उनका मह व
घट जाता है और वे उपहास का पा बन जाते ह।
बु मान् को चा हए क वह छोटे -से-छोटे काम को भी हलकेपन से न ले।
श या म कतु मदम पमय नसा य-
म ादरः क इ त कृ यमुपे माणः ।

Downloaded from www.PDFshala.com


के च म मनसः प रताप ःख-
माप संगसुलभं पु षाः या त ।।
कसी भी काम को साधारण, बाय हाथ का खेल अथवा सहज सा य समझकर उसे
स करने म ग भीरता न बरतने से उलटा प रणाम ही सामने आता है। अतः बु मान्
को कसी भी काम को करते समय लापरवाही नह बरतनी चा हए। आल य आप
को बुलावा दे ता है, जसका प रणाम ःख और प रताप होता है।
आज श ु को जीतने के प ात् म सुखपूवक सो सकूंगा।
नःसप ब सप वा भवने सु यते सुखम् ।
सदा भुजंगे तु न ा ःखेन ल यते ।।
घर म सांप को दे ख लेने पर कसी के लए भी न त होकर सो पाना कभी स भव
नह होता। सांप के मारे जाने या पकड़े जाने पर ही घर के लोग सुखपूवक सो पाते ह।
व तीण वसायसा यमहतां न धोपभु ा शषां
का याणां नयसाहसो तमता म छापदारो हणाम् ।
मानो सेकपरा म स ननः पारं न याव ताः
सामष दयाऽवकाश वषया ताव कथं नवृ तः ।।
कठोर प र म, पू यजन के आशीवाद, नी त और साहस क अपे ा रखने वाले,
उ त के साधक तथा कसी महान् काय को स करने का ण करने वाले य को
सफलता ा त कये बना चैन से बैठना अ छा नह लगता।
अतः ार भ कये ए काय के स प हो जाने से मेरा मन पूणतः शा त है और
आपका रा य भी सवथा सुर त है। अब आप धमपूवक जापालन करते ए अपने पु
एवं पौ ा द के साथ धन और यश-लाभ कर आन दपूवक अपना जीवन बता सकते ह,
ले कन यह कभी मत भू लये
जा न र ये तु राजा र ा द भगुणैः ।
अजागल तन येव त य रा यं नरथकम् ।।
क अपनी जा का भली कार मनोर न, र ण और पालन न करने वाला राजा जा क
नज़र म बकरी के गले पर उभरे ए तन के समान नरथक कहलाता है।
गुणेषु रागो सने वनादरो
र तः सुभृ येषु च य य भूपतेः ।
चरं स भुङ् े चलचामरांशुकां
सतातप ाभरणां नृप यम् ।।
वही राजा चरकाल तक राजल मी को भोग सकता है, जो गुण का आदर करे,
सन से र रहे, सेवक पर सदा अनु ह करता रहे तथा राज च —चंवर और छ —को

Downloaded from www.PDFshala.com


ही अपना स चा आभूषण माने।
मुझे रा य मल गया है—यह समझकर राजा को कभी अहंकार त नह होना
चा हए और उसे यह भी कदा प नह भूलना चा हए क ल मी च चल है और बांस पर चढ़ने
के समान उसक ा त भी अ य त कर है। ल मी तो आराधना कये जाने पर भी वानर
क भां त च चल होने के कारण कह टककर नह रहती। कमलप पर पड़े जल ब के
समान समा त होने म कुछ भी दे र नह लगाती, वायु के समान हाथ म नह आती, के
समान धोखा दे जाती है। ल मी सांप के वष के समान असा य रोग क भी च क सा करने
वाली तथा पानी के बुलबुल के समान ण-भर म न हो जाने वाली है।
यदै व रा ये यतेऽ भषेक-
तदै व बु सनेषु यो या ।
घटा ह रा ाम भषेककाले
सहा भसैवापदमु र त ।।
राजा को राजग पर बैठते ही स भा वत संकट के बचने के उपाय करने म वृ हो
जाना चा हए और अपने ऊपर अ भषेक के लए गराये जा रहे जल- वाह को मुंह बाये
सामने खड़े संकट का समूह समझ लेना चा हए।
राम य जनं बले नयमनं पा डोः सुतानां वनं
वृ णीनां नधनं नल य नृपते रा या प र ंशनम् ।
ना ाचा यकमजुन य पतनं स च य लङ् के रे
सव कालवशा जनोऽ सहते कः कं प र ायते ।।
राजा को वप के समय कसी भी वषम थ त का सामना करने के लए तैयार
रहना चा हए। ीराम का वनगमन, ब ल का ब धन म पड़ना, पा डव का अ ातवास,
य वं शय का वनाश, राजा नल का रा य से युत होना, अजुन का वराट् के यहां नतक
बनना और रावण का यु म परा जत होना—ये सब घटनाएं इस त य क सूचक ह क
वप छोटे -बड़े सभी पर आती है और संकट के समय कोई भी कसी को बचा नह
सकता।
व स दशरथः वग भू वा महे सु तः
व स जल नधेवलां बद् वा नृपः सगर तथा ।
व स करतला जातो वै यः व सू यतनुमनु-
ननु बलवता कालेनैते बो य नमी लताः ।।
महाराज! त नक सो चये क इ क सहायता के लए वगलोक म जाने वाले
महाराज दशरथ, समु को नय त रखने वाले महाराज सगर, वेन क भुजा के म थन से
उ प और पृ वी को समतल बनाने वाले महाराज पृथु तथा सूय-पु मनु आज कहां ह?

Downloaded from www.PDFshala.com


इनके अ त व का न होना इस त य का माण है क एक-न-एक दन सबको काल का ास
बनना है।
मा धाता व गत लोक वजयी
राजा व स य तो
दे वानां नृप तगतः व न षः
स छा वान् केशवः ।
म य ते सरथाः सकु रवराः
श ासना या सनः
कालेनैव महा मना वनुकृताः
कालेन नवा सताः ।।
इ के साथ उनके आसन पर बैठने वाले लोक वजयी महाराज मा धाता, महाराज
स य त, दे वलोक के शासक महाराज न ष तथा न काम कम का उपदे श दे ने वाले भगवान्
ीकृ ण भी आज इ तहास के पा बन गये ह। यह संकेत है क काल ही सबको उ प
करता है और काल ही सबको समेट भी लेता है।
स च नृप त ते स चवा ताः
मदा ता न काननवना न ।
स च ते च ता ता न च
कृता त ा न न ा न ।।
वही राजा, वही म ी, वही यां और वही आमोद-वन, जहां नर तर राग-रंग चलता
था, जीवन धड़कता था, आज वह सब न हो गया है और आज वहां कौए कांव-कांव करते
ह।
अतः ल मी को मदम त हाथी के कान क भां त च चल समझकर उसे पाकर
अहंकार नह करना चा हए तथा याय एवं धमपूवक जा का र ण-पोषण करना चा हए।
इसी से तु ह सुख और शा त मलेगी।

।। तृतीय त समा त ।।

Downloaded from www.PDFshala.com


चतुथ त

ल ध णाशम्

ल ध णाश नामक चतुथ त का थम प इस कार है—


समु प ष
े ु का यषु बु य य न हीयते ।
स एव ग तर त जल थो वानरो यथा ।।
काय को ार भ करने पर अपनी बु को थर बनाये रखने वाला जल म
होने पर भी बु का स तुलन न खोने वाले वानर के समान अपने काय को पूण करने म
सफल हो जाता है।

कथा म : एक
कहते ह क समु तट पर उगे एक सदाबहार जामुन के वृ पर र मुख नामक एक वानर
रहता था। उसके पास ही समु म करालमुख नामक एक मगरम छ भी रहता था, जो ायः
रेतीले तट पर आकर बैठ जाता था। एक दन वानर ने उस मगरम छ को अपना अ त थ
मानते ए उसे कुछ मीठे जामुन खाने के लए दये। शा के अनुसार
यो वा य द वा े यो मूख वा य द प डतः ।
वै दे वा तमाप ः सोऽ त थः वगसं मः ।।
य म अथवा श ु, प डत अथवा मूख, अथात् ब ल वै दे व के समय घर पर आने वाला
कोई भी अ त थ कहलाता है।
न पृ छे छरणं गो ं न च व ां कुलं न च ।
अ त थ वै दे वा ते ा े च मनुर वीत् ।।
मह ष मनु के अनुसार—ब ल के अ त म अथवा ा के समय पधारे को
स मा नत अ त थ मानकर ही उसक सेवा करनी चा हए। उस समय उसके नवास, गो ,

Downloaded from www.PDFshala.com


वंश अथवा व ा आ द के स ब ध म कसी भी कार क पूछताछ नह करनी चा हए।
रमाग म ा तं वै दे वा तमागतम् ।
अ त थ पूजये तु स या त परमां ग तम् ।।
ल बी राह पर चलने से थके और वै दे व के अ त के समय घर पर आये को भी
अ त थ मानकर उसका यथो चत स मान करने वाला गृह थ परमग त को ा त करने का
अ धकारी बनता है।
अपू जतोऽ त थय य गृहा ा त व नः सन् ।
ग छ त वमुखा त य पतृ भः सह दे वताः ।।
जस गृह थ के घर से अपू जत होने के कारण ठ डी आह भरता आ अ त थ नराश
लौट जाता है, उस घर से पतर और दे वता भी ठ जाते ह।
यह कहते ए ही वानर ने मगरम छ को जामुन दये, ज ह खाकर वह बड़ा स
आ और दे र तक गपशप करने के बाद अपने घर लौट गया।
अब मगरम छ त दन वानर के पास आने लगा और वानर भी उसे खाने के लए
जामुन दे ने लगा। मगरम छ बचे ए जामुन अपने घर ले जाता और वहां अपनी प नी को भी
खलाता।
एक दन मगरम छ क प नी ने जब उससे पूछा—आप ये जामुन कहां से लाते ह, तो
मगरम छ ने उसे वानर के साथ अपनी म ता क कहानी सुना द । मगरम छ क प नी ने
अपने मन म सोचा क त दन इतने मधुर फल खाने वाले का दल तो ब त वा द होगा।
एक दन वह अपने प त से बोली—य द तुम मुझसे ेम करते हो, तो मुझे उस वानर का दल
ला दो।
मगरम छ ने अपनी प नी को ऐसा न करने के लए ब तेरा समझाया और म के
साथ व ासघात को पाप बताया।
एकं सूयते माता तीयं वाक् सूयते ।
वा जातम धकं ोचुः सोद याद प ब धुवत् ।।
उसने कहा क पु को ज म तो मां दे ती है, पर तु वाणी से भी कुछ स ब ध जोड़े
जाते ह। जसे वाणी से भाई कह दया जाता है, वह सगे भाई-जैसा ही होता है, इस लए
उसक र ा करना नै तक कत हो जाता है।
मगरम छ क प नी बोली—आज तक तुमने मेरी येक बात को पूरा कया है, कसी
भी बात को टाला नह है, मुझे लगता है क तुम जस वानर क बात कर रहे हो, वह कोई
वानरी है और तुम उसके ेमजाल म फंस चुके हो, तभी तो मेरी अवहेलना कर रहे हो। अब
मुझे समझ म आ गया है
सा ादं वचनं य छ स न मे नो वा छतं क चन

Downloaded from www.PDFshala.com


ायः ो छ् व स ष तं तवह वालासमं रा षु ।
क ठा ेषप र हे श थलता य ादरा चु बसे
त े धू द थता यतमा का च ममैवापरा ।।
क आजकल तुम मुझसे स होकर बात य नह करते और य मुझे कभी कोई उपहार
भी नह दे ते? इतना ही नह , रात को तु हारे ठ क से न सो पाने और ठ डी आह भरने का भी
यही कारण लगता है। तु हारा ठ क से मेरा आ लगन-चु बन न करने तथा मुझम च न लेने
का रह य भी यही है। उस वानरी से ेम करके तुमने मुझे धोखा दया है। तुम मुझे कपट
लगते हो।
अपनी प नी को इस कार बफरते दे खकर मधुर वचन से उसक ख़ुशामद करते ए
मगर बोला—
म य ते पादप तते कङ् कर वमुपागते ।
वं ाणव लभे क मा कोपने कोपमे य स ।।
म तु हारे पैर पर गरकर तु ह अपने ेम का व ास दलाता ं। तुम ोध छोड़ दो और
सामा य हो जाओ।
यह सुनकर तो मगर क प नी और भी बलख- बलखकर रोने लगी और बोली—
सा मनोरथशतै तव धू का ता
सैव थता मन स कृ मभावर या ।
अ माकम त न कथ च दहावकाश-
त मा कृतं चरणपात वड बना भः ।।
धूत! तु हारे मन म उस वानरी ने अपने लए घर कर लया है और तुम त दन उसके साथ
रंगर लयां मनाते हो। मेरे पैर पर पड़कर तुम मुझे धोखा नह दे सकते। अब म तु हारी
वा त वकता जान गयी ं। म तुम पर कभी व ास नह कर सकती।
य द तु ह उस वानरी से यार न होता, तो तुम मेरे आ ह को इस कार न ठु करा दे ते।
अब मेरी बात भी सुन लो। य द कल तुम मुझे उसका कलेजा लाकर नह दोगे, तो म अपने
ाण याग ं गी।
प नी के हठ पर मगरम छ च तत होकर कहने लगा—
व लेप य मूख य नारीणां ककट य च ।
एको ह तु मीनानां नीलीम पयो तथा ।।
शा म ठ क ही लखा है क महामूख, ी, केकड़ा, मछली, नीला रंग और शराबी क
पकड़ अ डग होती है। ी के हठ के आगे कसी का कुछ वश नह चलता। अब म या
क ं?
अगले दन उदासी के कारण मगरम छ वानर के पास दे र से प ंचा, तो वानर ने उससे

Downloaded from www.PDFshala.com


दे र से आने और उदास होने का कारण पूछा। मगरम छ बुझे वर म बोला— म ! म एक
धमसंकट म पड़ गया ं। आज तु हारी भाभी ने मुझे ख़ूब ऊंच-नीच सुनायी और मुझे कृत न
बताते ए बोली—तुम त दन अपने म के घर जाते हो, ले कन उसे कभी अपने घर नह
बुलाते, या यही तु हारा ेम है? तुम केवल खाना ही जानते हो? इस कार उसने मुझे
वाथ और नीच कहकर अपमा नत करते ए कहा है
ने च सुरापे च चौरे भ न ते शठे ।
न कृ त व हता स ः कृत ने ना त न कृ तः ।।
क ह या करने वाले, शराबी, चोर और तभंग करने वाले के लए तो ाय का
वधान है, क तु तुम-जैसे कृत न के उ ार का कोई उपाय नह है।
उसने मुझे चेतावनी द है क जब तक म तु ह अपने घर नह ले जाऊंगा, तब तक वह
अ -जल हण नह करेगी। इसी लए म उदास और च तत ं।
वानर ने कहा— म ! तु हारी प नी ठ क ही कहती है।
वजये कौ लकाकारं म ं ा तरो नरः ।
आ मनः स मुखं न यं य आकष त लोलुपः ।।
वा तव म, बु मान् को कसी लोभ के कारण म को अपने यहां त दन बुलाने
वाले, पर तु उसके यहां कभी न जाने वाले म को याग दे ना चा हए।
ददा त तगृ ा त गु मा या त पृ छ त ।
भुङ् े भोजयते चैव षड् वधं ी तल णम् ।।
स चे म के छह ल ण होते ह—कुछ दे ना और कुछ लेना, म को खलाना और
उसके यहां खाना, म को अपने रह य बताना तथा उसके रह य को जानना।
वानर बोला— म ! तु हारा नवास जल म है और म वहां नह जा सकता। तुम
अपनी प नी को ही यहां ले आओ।
मगरम छ बोला—हम समु के भीतर एक रेतीले प म रहते ह। म वहां तक तु ह
अपनी पीठ पर बठाकर ले चलूंगा।
वानर के सहमत होने पर मगरम छ उसे अपनी पीठ पर बठाकर समु के बीच चल
दया।
समु के म य म प ंचने पर मगरम छ से रहा न गया। वह अधीर होकर वानर से
बोला—वा तव म, मेरी प नी तु हारे दल को खाना चाहती है, इसी लए म तु ह फुसलाकर
ले जा रहा ं।
मगरम छ के वचन सुनकर वानर ने अपनी बु के स तुलन को बनाये रखा और
मधुर वर म बोला—अरे म ! इतनी-सी बात के लए तुम च तत य हो रहे हो? तुमने
मुझे यहां लाने से पहले ही यह य नह बताया? म तो अपना दल त दन वृ क कोटर
म रखकर ही नीचे उतरता ।ं तुमने पहले कहा होता, तो म उसे लेकर ही तु हारे साथ

Downloaded from www.PDFshala.com


चलता।
वानर क बात पर व ास करके मगरम छ बोला—अब या कर?
वानर ने कहा—मुझे वृ तक ले चलो। म वहां से अपना दल उठा लाऊंगा और फर
तु हारे साथ चल ं गा। मगरम छ ने वैसा ही कया। लौटने पर कनारे के पास आते ही वानर
कूदकर पानी से बाहर आ गया और वृ पर चढ़कर अपने ाण बचाने के लए भगवान् को
ध यवाद दे ते ए अपने आप से बोला क नी तकार ने ठ क ही कहा है
न व सेद व ते व तेऽ प न व सेत् ।
व ासा यमु प ं मूला य प नकृ त त ।।
क व ास के अयो य ाणी पर कभी व ास नह करना चा हए। यहां तक क व सनीय
पर भी अ धाधु ध व ास नह करना चा हए। सच तो यह है क व ास म आकर ही ाणी
अपना सब कुछ न कर बैठता है।
अपने ाण बचने को वानर अपना पुनज म मानने लगा, तो मगरम छ ने उससे दल
दे ने क मांग क । यह सुनकर वानर हंस दया और मगरम छ को ध कारते ए बोला—अरे
मूख! तू तो आ तीन का सांप है, तूने तो म ता को कलं कत कर दया! या कभी दल को
भी शरीर से अलग कया जा सकता है? अब से मेरा-तेरा स ब ध समा त। अब फर कभी
इधर मुंह न करना। नी तकार ने ठ क ही कहा है
सकृद् च यो म ं पुनः स धातु म छ त ।
स मृ युमुपगृ ा त गभम तरी यथा ।।
क एक बार कपट स हो जाने वाले ाणी से पुनः मै ी स ब ध रखने का अथ ख चरी
ारा गभधारण करने के प म जान-बूझकर अपनी मृ यु और अपने वनाश को आम ण
दे ना होता है।
वानर के वचन सुनकर मगरम छ ब त ल जत आ और घर प ंचने से पहले ही
वानर को अपने मन क बात बताने के लए अपने को कोसने लगा। फर वह कसी कार
वानर को पुनः व ास दलाने का यास करते ए बोला— म ! मने तो तु हारे साथ मज़ाक़
कया था, वरना या म अपने म के साथ ऐसा वहार कर सकता ं? अब चलो और
अपनी भाभी के आ त य को वीकार कर हम दोन को कृताथ करो।
वानर बोला— या तूने मुझे भी मूख समझ रखा है क म तुझ पर व ास कर लूंगा?
बुभु
तः क न करो त पापं
ीणा जना न क णा भव त ।
आ या ह भ े यदशन य
न गंगद ः पुनरे त कूपम् ।।
गंगद ने भी तो यदशन के पास यही स दे श भेजा था क अब वह दोबारा इस कुएं

Downloaded from www.PDFshala.com


म नह आयेगा; य क वह इस त य को समझ चुका है क भूखे नदय होते ह और वे
कोई भी पाप कर सकते ह।
मगरम छ ने कहा—यह कैसी कथा है?
इस पर वानर उसे सुनाने लगा।

कथा म : दो
कसी कुएं म रहने वाले मेढक के राजा गंगद ने अपने प रजन के वहार से खी होकर
उ ह कुछ पाठ पढ़ाने क सोची।
आप द येनापकृतं येन च
ह सतं दशासु वषमासु ।
अपकृ य तयो भयोः पुनर प
जातं नरं म ये ।।
कहा भी है क वप के समय अ हत करने वाले तथा संकट म पड़े का
मज़ाक़ उड़ाने वाले से बदला लेने वाला ही जी वत माना जाता है। क उपे ा
करने वाले को तो मृत ही समझना चा हए।
यह सोचते ए गंगद को एक सांप अपने बल म घुसता आ दखाई दया, तो
उसने सोचा क य न म इस सांप को अपने साथ इस कुएं म ले जाऊं, ता क मेरे वरो धय
का सवनाश हो जाये;
श ु भय जये छ ुं ब लना बलव रम् ।
वका याय यतो न या का च पीडाऽ त ये ।।
य क श ु को श ु के साथ और बलवान को बलवान के साथ भड़ा दे ने से उन
दोन क हा न हो जाती है, जब क अपना कुछ भी नह बगड़ता।
श म
ु ु मूलये ा ती णं ती णेन श ुणा ।
थाकरं सुखाथाय क टकेनैव क क टम् ।।
जस कार शरीर म घुसे कांटे को नकालने के लए कांटे का ही योग कया जाता
है, इसी कार अपने कसी श ु को न करने के लए उसके कसी बलवान् श ु को नयु
कर दे ना चा हए।
यह सोचकर गंगद ने सांप के बल के पास जाकर उसे पुकारा—अरे यदशन!
जरा बाहर आकर मेरी बात तो सुनो। सांप ने सोचा—मुझे पुकारने वाला कोई सांप तो नह
लगता, फर मुझे कौन बुला रहा है? बल से बाहर नकले बना तो पता लगाना स भव नह ,
ले कन बना जाने बल से बाहर आना भी ठ क नह ।

Downloaded from www.PDFshala.com


य य न ायते शीलं न कुलं न च सं यः ।
न तेन स त कु या द युवाच बृह प तः ।।
दे वगु बृह प त के अनुसार— कसी अ ात कुल, शील तथा आचरण वाले जीव का
संग-साथ कभी ख़तरे से ख़ाली नह होता, अतः ऐसे का साथ कभी नह करना
चा हए।
कौन जाने, मुझे बुलाने वाला मुझे ब धन म बांध ले अथवा अपना कोई बदला चुकाने
के लए कसी को अपने साथ ले आया हो। यह सोचकर सप ने पुकारने वाले से अपना
प रचय दे ने को कहा, तो गंगद बोला—म मेढक का राजा गंगद तु हारे साथ म ता
करने आया ं। इस पर उस सांप ने सोचा क भ क और भ य का स ब ध तो तनके और
आग के स ब ध-जैसा होता है।
यो य य जायते व यः स व ऽ
े प कथ चन ।
न त समीपम ये त त कमेवं ज प स ।।
जसका वध कया जाता है, वह तो भूलकर भी व धक के पास नह जाता, फर तुम
ये बे- सर-पैर क बात य कर रहे हो?
गंगद बोला—तुम ठ क कहते हो, हमारी-तु हारी तो ज मजात श ुता है, अतः मेरा
तु हारे पास आना वाभा वक नह है, ले कन मेरे जा त-ब धु ने मुझे ता ड़त करके
बदला लेने के लए ववश कर दया है। कहा भी गया है
सवनाशे च स ाते ाणानाम प संशये ।
अ प श ुं ण या प र े ाणधना न च ।।
क अपने सवनाश तथा ाणहा न क स भावना होने पर अपने धन व ाण क र ा के लए
गधे को भी बाप बनाने म संकोच नह करना चा हए। इसम कुछ भी ग़लत नह ।
सांप ने पूछा— यह बताओ क तु हारा अपमान कसने कया है?
गंगद ने कहा—मेरे अपने ही जा त-ब धु ने।
सांप ने पूछा—तुम रहते कहां हो, कुएं म, बावड़ी म या कसी प के तालाब म?
गंगद बोला—म प थर वाले कुएं म रहता ं।
सांप ने कहा—तुम तो जानते हो क पैर न होने के कारण हम उधर नह जा सकते।
जब म वहां जा ही नह सकता, तो तु हारे श ु का वनाश कैसे कर सकता ं? मेरे पास
तु हारा आना बेकार है।
य छ यं सतुं श तं तं प रणमे च यत् ।
हत च प रणामे य दा ं भू त म छता ।।
अपना हत चाहने वाले को वही पदाथ खाना चा हए, जो खाने यो य हो,
सुपा य हो तथा वा य के लए उपयोगी भी हो। इसी कार काम भी वही करना चा हए,

Downloaded from www.PDFshala.com


जो अपने वश का तथा लाभकारी हो।
गंगद बोला—तुम चलो तो सही। म तु ह कुएं म वेश करा ं गा। य द तु ह यह
वीकार न हो, तो कुएं के पास ही एक छोटा-सा तालाब है, तुम उसम रहना आर भ कर दो
और कुएं से नकलकर बाहर आये मेढक को अपना आहार बना लया करना।
सांप ने भी सोचा—अब म बूढ़ा हो गया ,ं दन म बड़ी मु कल से एक-आध चूहा
हाथ लगता है। जब यह मूख अपने ही प रवार का वनाश करना चाहता है, तो म इस अवसर
को य छोडं?
यो ह ाणप र ीणः सहायप रव जतः ।
स ह सवसुखोपायां वृ मारचयेद ् बुधः ।।
कसी भी असमथ और असहाय ाणी क बु मानी इसी म है क य द उसे पेट भरने
का सुगम साधन मल सकता हो, तो उसे वह साधन कभी नह छोड़ना चा हए।
यह सोचकर सांप ने गंगद से कहा—य द तुम कसी सुगम माग से मुझे कुएं तक
प ंचा सकते हो, तो मुझे वहां चलने म कोई आप नह ह। जब हम म बन ही गये ह, तो
मुझे तुम पर व ास करना ही होगा।
गंगद बोला— म यदशन! मेरा एक सुझाव है। म जन मेढक क ओर संकेत
क ं गा, तुम केवल उ ह ही खाओगे।
यह सुनकर यदशन ने अपनी सहम त जतलायी और वह गंगद के साथ चल
दया। गंगद ने उस सांप को एक सुर त थान म बठाकर अपने सभी श ु दखा दये,
ज ह वह एक-एक करके खा गया।
कुएं के सभी मेढक के समा त हो जाने पर सांप गंगद से बोला—अब तो सब
मेढक समा त हो गये ह। अब म या खाऊं? मुझे यहां तुम लाये हो, मेरे भोजन का ब ध
करना तु हारी ज़ मेदारी है। मेरे बल पर तो अब कसी और ने अपना अ धकार कर लया
होगा, अतः अब मेरा वहां लौट पाना भी स भव नह । अब तुम मुझे अपने ही प रवार का
एक-एक मेढक त दन खाने के लए दे दया करो, नह तो मुझे मनमानी करनी पड़ेगी।
अब गंगद क आंख खुल और वह सांप को वहां लाने क अपनी मूखता पर
पछताने लगा। उसे याद आ गया
योऽ म ं कु ते म ं वी या या धकमा मनः ।
स करो त न स दे हः वयं ही वषभ णम् ।।
क अपने से अ धक श शाली श ु को अपना म समझने वाला , तो वष खाकर
व थ जीवन क इ छा करने वाला मूख होता है।
अब मुझे त दन इस सांप को अपना एक प रजन स पना ही होगा;
सव वहरणे यु ं श ुं बु युता नराः ।

Downloaded from www.PDFshala.com


तोषय य पदानेन वाडवं सागरो यथा ।।
य क सब कुछ छ न लेने को तैयार श ु को थोड़ा-ब त दे कर स तु करने म ही बु मानी
है। इसी लए तो समु भी बड़वानल को त दन थोड़ा-ब त जल दे ता रहता है।
यो बलोऽ व प या यमानो
बलीयसा य छ त नैव सा ना ।
य छते नैव च द यमानं
खार स चूण य पुनददा त ।।
बल श ु ारा उसके ारा मांगी गयी व तु को उसे न दे ने वाला बल थोड़ा
बचाने के लालच म अपना सव व गंवा दे ने क मूखता करता है।
सवनाशे समु प े अ यज त प डतः ।
अ न कु ते का य सवनाशो ह तरः ।।
बु मानी इसी म है क य द सारा जाता दखाई दे और आधा दे कर आधे को बचाया
जा सके, तो आधा अव य दे दे ना चा हए। अपना काम आधे से ही चला लेने पर सहमत हो
जाना चा हए।
न व प य कृते भू र नाशये म तमाम रः ।
एतदे व ह पा ड यं य व पा रर णम् ।।
बु मान् को थोड़ा बचाने के लए अ धक को नह गंवा दे ना चा हए। थोड़ा
दे कर अ धक क र ा करना ही उ चत और बु मानी है।
यथा ह म लनैव यै त ोप व यते ।
एवं च लत व तु व शेषं न र त ।।
जस कार मैले व वाला कह पर भी बैठ जाता है, उसे कुछ भी ग दा होने
क आशंका नह होती, इसी कार अपना धन गंवा चुके को अपना धन पुनः ा त
करने का कोई उपाय नह दखाई दे ता।
त दन एक-एक मेढक को खाते-खाते वह सांप एक दन गंगद के बेटे यमुनाद
को भी खा गया। अब गंगद आंसू बहाने के सवा या कर सकता था? वह रोते-रोते अपने
आप से कहने लगा—
क द स रा द वप यकारक ।
वप य ये जाते को न ाता भ व य त ।।
अपने पैर पर अपने-आप कु हाड़ी मारने वाले मूख, अब तू य रोता है? जब तूने अपने
वंश को ही मरवा डाला, तो अब तुझे बचाने के लए कौन आयेगा?
अब भी समय है, अपने बचाव के बारे म सोच, वरना यह सांप तेरे सारे प रवार को
खा जायेगा। गंगद अभी इस वषय म सोच ही रहा था क उसे पता चला क अपने वंश म

Downloaded from www.PDFshala.com


वह अकेला ही बचा है, शेष सारे मेढक को सांप अपनी भूख मटाने के लए खा चुका है।
यदशन सांप गंगद से कहने लगा—अब तुम कसी अ य कुएं या तालाब आ द म
रहने वाले मेढक को यहां लेकर आओ, ता क मेरे भोजन का ब ध हो सके। तुम ही तो मुझे
यहां लाये हो, अतः मेरे भोजन क व था करना भी तु हारा ही कत है।
गंगद बोला—ठ क है, म सरे थान से मेढक को लाने के लए जाता ं, तुम मुझे
यहां से जाने क अनुम त दो। यदशन ने उसे जाने क अनुम त दे द और मेढक स हत
उसके लौटने क ती ा करने लगा। जब वह ब त दन तक न लौटा, तो नराश होकर उस
सांप ने अपनी पड़ो सन गोह से कहा—तुम तो गंगद को जानती हो, उसे कहला दो क
य द और मेढक का ब ध नह हो पा रहा है, तो वह आकर मुझे बता जाये।
गोह सेन सप का यह स दे श सुनकर गंगद बोला—
बुभु
तः क न करो त पापं
ीणा नरा न क णा भव त ।
आ या ह भ े यदशन य
न गंगद ः पुनरे त कूपम् ।।
मेरी ओर से उस सांप को कह दे ना क अब म समझ गया ं क भूख कसी भी ाणी
को कतना नमम बना दे ती है और भूखे कतने ववेकहीन हो जाते ह। अब गंगद
उसके पास जाने वाला नह ।
मगरम छ को यह कथा सुनाकर वानर बोला—म भी अब तेरे झांसे म आने वाला
नह ।
इस पर मगरम छ बोला— म ! ऐसा मत करो। य द तुम मेरे साथ नह चलोगे, तो
तु हारी भाभी अपना अनशन नह तोड़ेगी और म भी यह तु हारे सामने ही अनशन करके
अपने ाण याग ं गा।
यह सुनकर वानर बोला—म ल बकण क तरह मूख नह ं, जो अपने सवनाश को
जानकर भी वहां जाऊं।
अगत गत ैव ् वा सहपरा मम् ।
अकण दयो मूख यो ग वा पुनरागतः ।।
सह के परा म को दे खकर भाग गया ल बकण गधा अपने कान पर व ास न
करके वापस लौट आया और उस सह का आहार बन गया।
मगरम छ क ज ासा पर वानर उसे ल बकण गधे क कथा सुनाने लगा।

कथा म : तीन

Downloaded from www.PDFshala.com


जंगल म रहने वाला करालकेशर नामक सह एक बार कसी बलवान् हाथी से भड़ गया
और इतना घायल हो गया क उसका अपने लए आहार जुटाना भी स भव न रहा। इधर
उसका पुराना सेवक धूसरक शृगाल भी भूख मर रहा था। सह ने गीदड़ से कसी जीव को
फुसलाकर अपने पास लाने को कहा, तो खोज म भटकते ए धूसरक को पास ही कसी
गांव म ल बकण नामक गधा मल गया। वह हरी घास खाता आ आन दपूवक घूम रहा था।
गीदड़ उससे मीठ -मीठ बात करने लगा और उसे हरी घास से भरे एक बड़े मैदान क ओर
चलने क सलाह दे ने लगा। गीदड़ ने गधे को ऐसी ख़ुशामद क क वह उसे अपने साथ लाने
म सफल हो गया। गीदड़ ने ल बकण नामक उस लोभी और कामी गधे को उस थान पर
तीन ग धय के होने का आ ासन दे कर वहां जाने के लए इतना उकसाया क वह उतावला
हो उठा। वह बोला—
नामृतं न वषं क चदे कां भू वा नत बनीम् ।
य याः स े न जी ेत यते च वयोगतः ।।
ी-भोग के समान सुख इस संसार म सरा नह है। ी का संग अमृत के समान
जीवनदायी होता है और उसका वयोग वष के समान मृ युकारक होता है।
यासां ना ना प कामः या स मं दशनं वना ।
तासां क्स मं ा य य व त कौतुकम् ।।
ी का संगम तो बड़े सौभा य से मलता है, उसका नाम लेते ही ाणी के मन म काम
जागृत हो जाता है। ी के मलने पर न पघलने वाले पु ष को तो गया-गुज़रा ही समझना
चा हए।
बस, फर या था, गधा तुर त ही गीदड़ के साथ चल पड़ा। गधे को आता दे खकर
सह उस पर झपटा, क तु असमथ होने के कारण उसका प ा गधे क पीठ पर न लग
सका और गधा भाग खड़ा आ।
गीदड़ ने अपने प र म को थ करने के लए उस सह को ख़ूब खरी-खोट सुनायी,
तो सह ने अपनी का रोना रोकर गीदड़ से अनुरोध कया क तुम उस गधे को एक बार फर
यहां ले आओ, तो म अव य ही उसका वध कर डालूंगा।
गीदड़ गधे क ओर दोबारा चल दया और वहां प ंचकर गधे से बोला—तुम भाग
य आये? अरे, वह गधी तो तु हारा आ लगन करने के लए तु हारी ओर बढ़ रही थी।
तु हारे भाग आने से वह इतनी अ धक काम- व ल हो रही है क य द तुमने उमक इ छा
पूरी न क , तो वह मर जायेगी और उसक ह या का पाप तु ह लगेगा। यही नह , कामदे व भी
तुम पर नाराज़ होकर तु ह नपुंसक बना डालगे।
ीमु ां मकर वज य ज यन सवाथस प कर
ये मूढाः वहाय या त कु धयो म याफला वे षणः ।

Downloaded from www.PDFshala.com


ते तेनैव नह य नदयतरं न नीकृता मु डताः
के च पट कृता ज टलाः कापा लका ापरे ।।
या तुम नह जानते क य से र भागने वाले साधु-स त नंगे, सर घुटे, लाल
व धारी, जटाधारी एवं कापा लक य ह? यह कामदे व के कोप का ही प रणाम है। उन
मूख ने कामदे व के कभी थ न जाने वाले अ , सभी स प य क दाता तथा सृ का
व तार करने वाली ी क उपे ा करने का साहस कया है। इसी लए कामदे व ने उ ह
भूखा-नंगा रहने का शाप दया है और इसी के फल व प अब वे तप के बहाने अनेक कार
के क भोग रहे ह।
गीदड़ के वचन सुनकर काम-मो हत गधा पुनः उसके साथ सह के पास चल दया।
जान प नरो दै वा करो त वग हतम् ।
कम क क य च लोके ग हतं रोचते कथम् ।।
सच तो यह है क भा य का मारा जान-बूझकर न दत कम म वृ होता
है। य द ऐसा न हो, तो बुरे काम करना कसे अ छा लगता है?
इस बार पहले से तैयार बैठे सह ने पूरे ज़ोर से उछलकर गधे का वध कर डाला। गधे
के मारे जाने पर सह तो नान करने चला गया और मरे ए गधे क रखवाली का काम
गीदड़ को स प गया। गीदड़ ने गधे के दोन कान और दल को खा लया। नान करके
वापस लौटे सह ने गधे को दोन कान और दल से र हत दे खकर अपने शकार को जूठा
करने के लए गीदड़ को बुरा-भला कहा, तो गीदड़ बोला— वामी! मने कुछ नह कया। इस
गधे के कान और दल थे ही नह , तभी तो एक बार आपका सामना हो जाने पर भी वह
दोबारा यहां चला आया। सह ने गीदड़ क बात पर व ास कर लया और उसके ह से का
मांस उसे दे दया।
आगत गत ैव ् वा सहपरा मम् ।
अकण दयो मूख यो ग वा पुनरागतः ।।
मगरम छ को यह कथा सुनाकर वानर बोला—वह गधा कान और दल दोन से
सचमुच र हत था, तभी तो एक बार सह के आ मण से बचकर वह दोबारा अपने वनाश
के लए वहां जा प ंचा।
अरे मूख! तुमने मेरे साथ छल कया है। कहा भी है
वाथमु सृ य यो द भी स यं त
ू े सुम दधीः ।
स वाथात् यते नूनं यु ध र इवापरः ।।
क सच बोलने का अ भमान करने वाला अपने वाथ क च ता न करके स य-भाषण
करने लगता है। ऐसा मूख न त प से यु ध र नामक कु हार के समान अपने पैर
पर आप ही कु हाड़ी मार लेता है, अथात् अपनी हा न वयं ही कर लेता है।

Downloaded from www.PDFshala.com


मगरम छ क उ सुकता पर वानर उसे यु ध र कु हार क कथा सुनाने लगा।

कथा म : चार
गांव म रहने वाला यु ध र नामक कु हार एक बार कसी काम से दौड़ता आ अपने घर के
भीतर जा रहा था क अचानक अपना पैर फसलने के कारण वह आंगन म पड़े टू टे-फूटे
बरतन पर जा गरा और कसी नुक ले बरतन से टकरा जाने से उसका सर फट गया। सही
इलाज न हो पाने के कारण सर का घाव ठ क न हो सका।
अब कु हार का काम न कर सकने के कारण यु ध र काम क तलाश म कसी नगर
म प ंचा, तो वहां सै नक क भरती चल रही थी। भरती करने वाले ने कु हार के माथे पर
लगे घाव को दे खकर समझा क यह कोई यो ा है, जो सामने से वार झेलता है, अपनी पीठ
नह दखाता। उसे त काल सै नक भरती कर लया गया। इतना ही नह , उसे अ य सु वधाएं
भी द जाने लग , जससे अ य सै नक उससे ई या करने लगे, पर तु उसे अपने अ धकारी
का कृपापा जानकर वे कुछ भी कह नह सके। कुछ दन बाद, कसी पड़ोसी राजा ारा
मचाये जा रहे उ पात का समाचार सुनकर वहां यो ा क एक टु कड़ी भेजने का न य
कया गया। जब कु हार को एका त म बुलाकर उससे उसके सर के घाव के बारे म पूछा
गया, तो उसने अपनी जा त और अपने घाव के वषय म सच-सच बता दया। सेना य एक
साधारण कु हार को वीर यो ा समझने क अपनी मूखता पर ल जत हो उठा और उसे
तुर त ही वहां से चले जाने को कहा।
कु हार बोला—म मानता ं क म छोट जा त का ं और मने कभी यु नह कया,
क तु मेरी ाथना है क मुझे अपनी वीरता दखाने का अवसर द जये।
सेना य ने कहा—तुम कसी ग़लतफ़हमी का शकार होकर ड ग हांक रहे हो, क तु
तु हारा हत यहां से तुर त चले जाने म ही है। गीदड़ के अहंकार पर सहनी ने भी उसे यही
सीख दे ते ए कहा था—
शूर कृत व दशनीयोऽ स पु क ।
य म कुले वमु प ो गज त न ह यते ।।
हे पु ! माना क तुम व ान् होने के साथ-साथ साहसी और शूरवीर भी हो, क तु यह मत
भूलो क जस कुल म तुम उ प ए हो, वहां हाथी का वध नह कया जाता।
कु हार क उ सुकता पर सेना य उसे यह कथा सुनाने लगा।

कथा म : पांच

Downloaded from www.PDFshala.com


कसी जंगल म रहने वाली सहनी ने दो शावक को ज म दया, तो उसके लए भोजन का
ब ध सह ही कया करता था। एक दन सूया त हो जाने पर भी जब उसे उपयु शकार
नह मला, तो वह शाम को गीदड़ के एक छोटे -से बालक को उठा लाया। उसे दे खकर
सहनी बोली—
ी व ल गबालेषु ह ं न क ह चत् ।
ाण यागेऽ प स ाते व तेषु वशेषतः ।।
य , ा ण और बालक को शा भी अव य बतलाते ए कहते ह क ाण पर संकट
आने पर भी इनका वध कभी नह करना चा हए। अतः म इसे अपना आहार नह बना
सकती। इसका वध तो एक अनु चत कम होगा।
अकृ यं नैव क ं ाण यागेऽ प सं थते ।
न च कृ यं प र या यं धम एष सनातनः ।।
धम का वधान यही है क कसी भी हालत म को करणीय कम कभी छोड़ना
नह चा हए और अकरणीय कम कभी करना नही चा हए।
अपनी मां से बछड़े इस न हे-से ब चे को म अपना तीसरा बेटा मानकर इसका
पालन-पोषण क ं गी। बस, फर तो वह गीदड़ का ब चा भी शेर के ब च के साथ घूमने-
फरने और खेलने-कूदने लगा।
एक बार शेर के ब च ने जंगल म एक हाथी को दे खा, तो शेर के ब चे उस पर
आ मण करने को लपके, क तु गीदड़ का ब चा उ ह ऐसा करने से रोकते ए अपने ाण
के भय से भाग खड़ा आ। यह दे खकर शेर के ब चे सोच म पड़ गये। कहा भी गया है
एकेना प सुधीरेण सो साहेन रणं त ।
सो साहं जायते सै यं भरने भ मवा ुयात् ।।
क अकेले सेनाप त ारा रण म उ सा हत कये जाने पर, जहां सेना बल होने पर भी
चम कार करने म सफल हो जाती है, वह न सा हत कये जाने पर कभी-कभी बल सेना
को भी पराजय का मुंह दे खना पड़ जाता है।
अत एव ह वा छ त भूपा योधा महाबलान् ।
शूरा वीरा कृतो साहा वजय त च कातरान् ।।
यही कारण है क यु - व ा के प डत सेना म सदै व शूरवीर, उ साही, ख़तर से
खेलने वाले तथा ाण से मोह न रखने वाले युवक क ही भरती का समथन करते ह।
घर प ंचकर सह-शावक ने हाथी को दे खकर गीदड़ के ब चे के भाग खड़े होने और
अपने को न सा हत करने क शकायत क , तो गीदड़ का ब चा ु हो उठा और अपने
साहस क ड ग हांकने लगा। सहनी आशं कत हो उठ क कह यह झगड़ा यु का प न
ले ले और गीदड़ का ब चा मारा न जाये। सहनी ने तुर त ही एका त म बुलाकर उसे उसके

Downloaded from www.PDFshala.com


कुल क अस लयत बताकर वहां से भाग जाने क सलाह द । वह बोली—
शूरोऽ स कृत व ोऽ स दशनीयोऽ स पु क ।
य म कुले वमु प ो गज त न ह यते ।।
व स! माना क तू मेरा ध पीकर शूरवीर, साहसी और समझदार हो गया है, क तु तुझे यह
नह भूलना चा हए क तू जस कुल म उ प आ है, वहां हा थय का शकार नह कया
जाता।
मेरे ारा पाले जाने से तू गीदड़ से शेर नह बन गया। मेरे पु को वा त वकता का
पता चलने से पहले ही तुझे यहां से चले जाना चा हए, अ यथा कह तुझे अपने ाण से हाथ
न धोना पड़ जाये?
यह कथा सुनाकर सेना य बोला—अब तेरी भी अस लयत का पता चल गया है।
तेरा काम बरतन बनाना है, यु करना नह ।
सेना य क सही राय को मानकर कु हार तुर त अपने गांव को चल दया।
वाथमु सृ य यो द भी स यं त
ू े सुम दधीः ।
स वाथाद् यते नूनं यु ध र इवापरः ।।
अपने वाथ क हा न क च ता न करके सच बोलने का दखावा करने वाला
यु ध र कु हार क भां त घाटे म ही रहता है।
वानर बोला—अरे ! तूने अपनी प नी के बहकावे म आकर म ता क ब ल चढ़ा
द ! या यां भी कभी व सनीय होती ह?
ा ण बोला—
यदथ वकुलं य ं जी वता च हा रतम् ।
सा मां यज त नः नेहकः ीणां व से रः ।।
जस ी के लए मने अपने प रवार को छोड़ा, यहां तक क अपनी आधी आयु भी उसे दे
द , जब उस कृत न ी ने मेरे साथ ही व ासघात कया, तो ऐसी च र हीन य पर
व ास करना कहां तक उ चत है?
मगरम छ बोला—यह कैसी कथा है, मुझे भी सुनाइये।
इस पर वानर उसे यह कथा सुनाने लगा।

कथा म : छह
एक ा ण अपनी प नी से इतना यार करता था क वह उसके दोष को भी गुण समझता
था। अकारण उसक कलह यता से ऊबकर ा ण ने अपने माता- पता को भी छोड़ दया
और अपना अलग घर बसा लया।

Downloaded from www.PDFshala.com


एक बार प त-प नी तीथ- मण को नकले, तो माग म यास लगने पर प नी ने प त
से जल लाने के लए कहा। जल लेकर लौटे ा ण ने प नी को ाणहीन हो गया दे खा, तो
प नी के मोह म अ धा बना वह ा ण आ मह या करने को उ त हो गया। इसी बीच उसे
आकाशवाणी सुनाई द क य द वह अपना आधा जीवन अपनी प नी को दे ने का संक प
करे, तो उसक प नी जी वत हो जायेगी। ा ण ने हाथ म जल लेकर य ही संक प लेकर
अ भम त कया आ जल ी पर छड़का, य ही वह जी वत हो उठ और वे आगे क
या ा पर चल पड़े।
दो-तीन दन बाद प नी को एक कुएं पर छोड़कर ा ण भोजन क व था करने
नगर म गया। इस बीच उस ा णी ने एक पवान् पर तु लंगड़े युवक को मधुर क ठ से
गीत गाते दे खा, तो वह उस पर मु ध होकर उससे णय-याचना करने लगी। लंगड़े युवक ने
उससे बचने क ब त चे ा क , क तु ा णी क याचना पर युवक को उससे स भोग करना
ही पड़ा।
ा णी को उस युवक से स भोग म इतना आन द आया क अब वह ा ण को
छोड़कर उस लंगड़े युवक को ही चाहने लगी।
प त के लौटने पर ा णी ने उस लंगड़े युवक को दया का पा और अ त थ बताकर
अपने प त को उसे भी खाना दे ने के लए राज़ी कर लया और उसे अपने साथ से चलने क
बात भी मनवा ली।
माग म एक अ धा कुआं आया, तो उस ा ने लंगड़े युवक के साथ व छ द स भोग
करने क इ छा से अपने प त को कुएं म धकेल दया।
उस लंगड़े युवक के साथ ा णी एक नगर म प ंची, तो सै नक को अपना पीछा
करते दे खकर कुछ चोर ा णी क पटारी म लूट का माल डालकर भाग गये। जब सै नक
उस ा णी और लंगड़े युवक को यायाधीश के पास ले गये, तो ा णी ने अपनी नद षता
स कर द और अपराध-मु हो गयी।
इधर कसी राह चलते एक साधु ने कुएं म पड़े उस ा ण को बाहर नकाला, तो
ा णी को खोजता आ, वह ा ण भी वहां आ प ंचा। अपने प त को दे खकर भयभीत
ा णी ने पुनः याच र दखाना आर भ कर दया। वह यायाधीश से कहने लगी क उसे
उस ा ण से बचाया जाये। इस पर वह ा ण बोला—मुझे अपनी सफ़ाई म कुछ भी नह
कहना है। मेरी एक अमानत इस ा के पास है, उसे लेकर म तुर त ही चला जाऊंगा।
यह कहकर ा ण ने हाथ म जल लेकर य ही अ भम त जल उस ी पर डाला,
य ही वह नःशेष हो गयी।
बाद म वहां उप थत लोग क ज ासा पर उ ह सारी आप-बीती सुनाकर ा ण
बोला—
यदथ वकुलं य ं जी वता च हा रतम् ।

Downloaded from www.PDFshala.com


सा मां यज त नः नेह कः ीणां व से रः ।।
य पर व ास करने से बड़ी मूखता सरी कोई नह हो सकती। मने इस ा के लए
अपने माता- पता को छोड़ा और अपनी आधी आयु भी इसे दे द , ले कन फर भी इसने मेरी
ह या करने म संकोच नह कया। य का च र और वभाव ऐसा ही होता है।
वानर बोला— इसी स ब ध म एक अ य कथा इस कार है—
न क द ा क कुया ी भर य थतो नरः ।
अन ा य हेष ते शरः पव ण मु डतम् ।।
पु ष य को या नह दे ता और इ ह स करने के लए या नह करता? यहां तक क
अपना सर मुंड़वाने और प नी का घोड़ा बनकर हन हनाने म भी पु ष संकोच नह करता,
ले कन इतने पर भी इनक न ा का कोई व ास नह ।
मगरम छ क ज ासा पर वानर उसे यह कथा भी सुनाने लगा—

कथा म : सात
महा तापी राजा न द अपनी प नी से इतना ेम करता था क उसक भौह टे ढ़ होते ही वह
च तत हो उठता था। अपनी प नी क स ता के लए राजा न द कुछ भी कर सकने क
ड ग हांका करता था। एक बार उसक प नी ने अपने त अपने प त क अनुर क
परी ा लेनी चाही और कसी बात पर ठकर अनशन पर जा बैठ ।
प नी को दे खकर राजा ने अनेक यु य और ख़ुशामद से अपनी प नी को
रझाने का यास कया, पर तु सफलता न मली। अ त म, जब राजा ने प नी से उसके
स होने का उपाय पूछा, तो वह बोली—तु हारे सर मुंड़ाकर मेरे चरण म गरने पर म
स हो जाऊंगी। राजा ने तुर त ही नाई को बुलाकर अपना सर मुंड़वाया और प नी के
चरण म गरकर उसे स कया।
राजा क प नी को इस कार अपने प त पर शासन करता दे खकर राजा के धान
अमा य वर च क प नी म भी ई याभाव जाग उठा। वह भी अपने प त क अपने म
आस को जानना चाहती थी। उसने भी अकारण कसी बात पर होकर अपने प त को
आ मह या से अवगत कराया।
प त अपनी प नी को मनाने के य न करने म लग गया, क तु प नी राज़ी नह ई।
हारकर वर च ने प नी से पूछा—तु हारी स ता का कोई उपाय नह ? वह बोली—य द
तुम घोड़ा बनकर और मुझे अपनी पीठ पर बठाकर कुछ र चलो और घोड़े क तरह
हन हनाओ, तो म अपना ोध छोड़ सकती ।ं प नी के ेम म अ धे वर च को यह सब
करना पड़ा।

Downloaded from www.PDFshala.com


ातःकाल सभा म बैठे अमा य ने जब राजा से पूछा—महाराज! आपने कस
उपल य म मु डन कराया है, तो राजा ने कहा— म ! जस उपल य म तु ह घोड़ा बनकर
हन हनाना पड़ा है।
यह कथा सुनाकर वानर बोला—
न क द ा क कुया ी भर य थतो नरः ।
अन ा य हेष ते शरः पव ण मु डतम् ।।
ी क मांग पर प त उसक इ छानुसार उसे सब कुछ दे ता है और उसके सब काम भी
नबटाता है। फर य यां अपने प त को नचाने म व ास करती ह?
अरे ! तू भी राजा न द और उसके अमा य वर च के समान अपनी प नी का दास
है। तभी तो प नी के कहने पर तू मेरे ाण लेने को तैयार हो गया। यह तो मेरा सौभा य था
क तूने इस रह य को कट कर दया। इसी लए मौन को मह वपूण माना जाता है।
आ मनो मुखदोषेण व ते शुकसा रकाः ।
बका त न ब ते मौनं सवाथसाधनम् ।।
मौन रहकर ही बगुले ब धन म फंसने से बच जाते ह; य क ाध को उनके
नवास थान का पता ही नह चल पाता, ले कन इसके वपरीत शोर मचाने से शुक और
सा रका आ द प ी ब धन त हो जाते ह। इसी लए मौन को आ मर ा का सव म साधन
बताया गया है।
सुगु तं र यमाणोऽ प दशय दा णं वपुः ।
ा चम त छ ो वा कृते रासभो हतः ।।
दे खो, बाघ क खाल से ढका होने के कारण सुर त जीवन बता रहा गधा अपनी
वाणी के कारण ही मारा गया।
मगरम छ को गधे क कथा सुनाता आ वानर बोला—

कथा म : आठ
शु पट नामक एक धोबी का गधा पूरा भोजन न मलने के कारण ब त बला हो गया था।
एक दन अचानक धोबी ने एक मरे ए बाघ को दे खा, तो उसने गधे को सद से बचाने के
लए उस बाघ का चमड़ा उढ़ाने क सोची, जससे गधे को दो लाभ ए। एक, तो वह सद से
बच गया और सरे, वह खेत म ठाठ से हरी-हरी घास चरने लगा। खेत के मा लक गधे को
बाघ समझकर उसके पास आने क ह मत नह कर पाते थे। इस लए वह गधा कुछ ही दन
म इतना ह ा-क ा हो गया क धोबी के घर का दरवाज़ा भी उसके लए छोटा पड़ने लगा,
पर तु एक दन उस गधे ने एक गधी को रकते ए सुना, तो कामातुर हो जाने के कारण यह

Downloaded from www.PDFshala.com


गधा भी रकने लगा।
गधे के रकते ही खेत के मा लक को उसक अस लयत का पता चल गया। फर तो
कसान ने उस गधे क ऐसी पटाई क क उसे जान के लाले पड़ गये।
यह कहानी सुनाकर वानर मगरम छ से बोला—
सुगु तं र यमाणोऽ प दशय दा णं वपु: ।
ा चम त छ ो वा कृते रासभो हतः ।।
अपने भयंकर दखने वाले शरीर के कारण गधा मज़े से घास चरता था और आन द से
घूमता- फरता था, ले कन अपनी वाणी पर संयम न रख पाने के कारण उसे अपने जीवन से
ही हाथ धोने पड़े।
मगरम छ और वानर म यह वातालाप चल ही रहा था क मगरम छ के एक साथी ने
उसे अनशन पर बैठ उसक प नी के परलोकगमन का समाचार सुनाया, जसे सुनकर
मगरम छ वलाप करने लगा। कहा भी गया है—
माता य य गृहे ना त भा या च यवा दनी ।
अर यं तेन ग त ं यथाऽर यं तथा गृहम् ।।
क माता तथा यभा षणी प नी से वहीन घर नवास के यो य नह रह जाता। इन दोन के
न रहने पर ाणी को जंगल क राह ले लेनी चा हए। अस लयत तो यह है क ऐसा घर ही
जंगल बन जाता है।
वानर से मा मांगते ए मगरम छ बोला— म ! मुझे मेरे अपराध के लए मा
करो। अब म अपनी प नी के वयोग म आ मदाह करने वाला ं। वानर ने हंसते ए कहा—
मुझे तु हारे जो के ग़लाम होने क बात तो पहले से ही पता थी, अरे मूख! ऐसी ी से
छु टकारे को तो आन द का वषय मानना चा हए और इसके लए स होना चा हए, जब क
तुम उलट गंगा बहा रहे हो।
या भा या चा र ा सततं कलह या ।
भा या पेण सा ेया वद धैदा णा जरा ।।
व जन र तथा त दन लेश करने वाली ी को असमय ही अपने जवान
प त को बूढ़ा बना दे ने वाली बीमारी मानते ह।
त मा सव य नेन नामा प प रवजयेत् ।
ीणा मह ह सवासां य इ छे सुखमा मनः ।।
अतः सुख-शा त के इ छु क पु ष को ऐसी र और झगड़ालू ी का तो नाम भी
नह लेना चा हए, उससे तो र रहने म ही पु ष क भलाई है।
यद त त ज ायां य ज ायां न तद्ब हः ।
य तं त कुव त व च च रताः यः ।।

Downloaded from www.PDFshala.com


शायद तु ह मालूम नह क यां पहले तो अपने मन क बात कभी जीभ पर लात
नह और य द कभी भूल-े भटके ऐसी कोई बात उनक जीभ पर आ जाती है, तो वे उसे कट
नह होने दे त । वे पु ष के लाभ के लए कभी कुछ नह करत , उनका च र बड़ा ही
वल ण होता है।
क नाम न वन य त म या ाना त बनीम् ।
र यां य उपसप त द पाभां शलभा यथा ।।
द पक क यो त के पास प ंचे पतंग के समान मनोहर नत ब वाली ी का जाने-
अनजाने संग-साथ करने वाला कौन पु ष इनसे बच पाता है?
अ त वषमया ेता ब ह ैव मनोरमाः ।
गु ाफलसमाकाराः वभावादे व यो षतः ।।
यां घुंघुची के फल के समान भीतर से वषैली और बाहर से सु दर होती ह। इनक
मीठ -मीठ बात के पीछे छपा उ े य अ य त वषैला होता है।
ता डता अ प द डेन श ैर प वख डताः ।
न वशं यो षतो या त न दानैन च सं तवैः ।।
ड डे से पीटने, श से घायल करने, अपार धन दे ने अथवा ख़ुशामद करने-जैसे
कसी भी उपाय से य को अपने वश म नह कया जा सकता।
मगरम छ बोला— म ! तु हारी यह बात शत- तशत सही है, क तु म तो ऐसा
भा यहीन ,ं जसे एक साथ दो-दो क भुगतने पड़ रहे ह। एक ओर प नी क मृ यु के
कारण मेरा घर बरबाद हो गया, सरी ओर, तुम-जैसे म का व ास भंग हो गया।
इस स ब ध म एक र ी क मूखता क कथा इस कार है—
या शं मम पा ड यं ता शं गुणं तव ।
नाभू ारो न भ ा च क नरी स न नके ।।
एक गीदड़ी ने अपने को मूख बताने वाली एक कुलटा ी से कहा था—अरी, तू
मुझसे गुनी समझदार है, फर भी न तू प त क हो सक और न ही यार क हो सक ।
इसी लए अब नंगी बैठ रो रही है।
वानर ारा सुनने क ज ासा कट करने पर मगरम छ उसे यह कथा सुनाने लगा—

कथा म : नौ
कसी वृ , क तु धनवान् हलवाहे ने एक युवती से ववाह कर लया। ले कन उसक युवती
प नी अपने प त से स तु न होने के कारण न य- त कसी युवक क खोज म लगी रहती
थी और र त-भोग म स तु करने वाले युवक पर अपना धन लुटाया करती थी।

Downloaded from www.PDFshala.com


दो-चार बार हलवाहे क ी से स भोग कर चुके एक युवक ने एक दन उस ी से
कहा—ऐसा कब तक चलेगा? य द तुम चाहो, तो म तुमसे ववाह करके तु ह स भोग-सुख दे
सकता ं। हलवा हन को युवक का ताव उ चत लगा, तो वह उसके साथ कह और जाकर
रहने को तैयार हो गयी। युवक के पास धन नह था, ले कन हलवा हन को इसक कोई
च ता नह थी। उसका प त ब त धनी था। अतः वह ी अपने प त क नक़द और
आभूषण एक ब से म लेकर उस युवक के पास चली आयी।
युवक हलवा हन को अपने साथ लेकर कसी सरे नगर को चल दया। रा ते म एक
नद आयी, तो युवक ने अपनी े मका से कहा—म यह ब सा नद के सरे कनारे पर
रखकर आता ं, फर तु ह अपने क धे पर बठाकर ले चलूंगा। हलवा हन उसक बात म
आ गयी और उसने अपने व और आभूषण भी उतारकर अपने ेमी को स प दये।
नद पार करते ए उस युवक ने सोचा क इस कुलटा को अपने साथ ले जाकर कह
म फंस न जाऊं। इसका प त इसक खोज अव य करेगा। फर, जो कुलटा अपने प त क
नह हो सक , वह मेरी या रहेगी?
यह सोचकर वह सारा सामान समेटकर चलता बना और वह कुलटा नद कनारे नंगी
बैठ उसक ती ा करती रही। तभी एक गीदड़ी ने नद के कनारे पर कसी मगरम छ को
बैठा दे खकर अपने हाथ का मांस उसक ओर फक दया। ले कन उस मांस को एक गीध ने
उठा लया और वह आकाश म उड़ गया। मगरम छ जल म कूद पड़ा। मगरम छ को पाने क
आशा म अपने हाथ के मांस को गंवा दे ने पर गीदड़ी को उलाहना दे ते ए वह कुलटा बोली

गृ ण
े ाप तं मांसं म योऽ प स ललं गतः ।
म यमांसप र े क नरी स ज बुके ।।
तेरे हाथ के मांस को तो गीध ले गया और मगरम छ पानी म कूद गया। अब अपने
हाथ के मांस और मगरम छ को गंवाने के प ात् तेरे पछताने का या लाभ?
गीदड़ी ने भी अपने प त के धन और यार को गंवाकर नंगी बैठ उस कुलटा पर ं य
करते ए कहा—
या शं मम पा ड यं ता शं गुणं तव ।
माभू ारो न भ ा च क नरी स न नके ।।
तू तो मुझसे कह अ धक समझदार है, फर तूने य पहले अपने प त के धन को खोया और
फर अपने यार से धोखा खाया। अब तू यहां नंगी बैठ कसक बाट जोह रही है?
इसी बीच कसी अ य जलचर ने आकर मगरम छ को बताया क उसके नवास पर
कसी बड़े मगरम छ ने अ धकार कर लया है। अपने घर को उस बड़े मगरम छ से ख़ाली
कराने के उपाय पर वचार करते ए वह मगरम छ बोला—म कैसा अभागा ं
म ं म तां यातमपरं मे या मृता ।

Downloaded from www.PDFshala.com


गृहम येन च ा तं कम ा प भ व य त ।।
क मेरा म मुझसे ठ गया, मेरी प नी परलोक सधार गयी और मेरे नवास पर कसी ने
अ धकार कर लया। अब मेरा या बनेगा? व ान ने ठ क ही कहा है—
ते हारा नपत यभी ण-
म ये व त जाठरा नः ।
आप सु वैरा ण समु व त
वामे वधौ सव मदं नराणाम् ।।
क भा य के तकूल होने पर लोग को ब त कुछ सहना पड़ता है। घाव पर लगने वाली
चोट असहनीय होती ह और जब खाने के लए अ भी उपल ध नह होता, तब भूख बेचैन
करती है। संकटकाल म श ु क सं या और उनके उ पात म भी वृ हो जाती है।
मगरम छ सोचने लगा क या इससे यु करके इसे घर से बाहर नकालूं या कसी
अ य साधन का योग क ं ? य न इस बारे म उस वानर से ही सलाह कर लू;ं
यः पृ ् वा कु ते का य ा व हता गु न् ।
न त य जायते व नः क म द प कम ण ।।
य क अपने गु जन से पूछकर काय करने वाले को कभी असफलता का मुंह नह
दे खना पड़ता।
यह सोचकर वह वानर के पास जाकर उससे कहने लगा— म ! तुमने सुना होगा क
मेरे घर पर कसी ने क़ ज़ा कर लया है। अब मुझे या करना चा हए?
वानर ने उ र दया—मने तुझसे अपना स ब ध तोड़ लया है। अब म तुझे कोई
सलाह नह ं गा। तेरा मुझसे बात करना थ है।
मगरम छ कहने लगा—म अपने इस अपराध के लए मा- ाथना करता ं। इसे तुम
मेरी पहली और आ ख़री भूल समझकर अपना ोध थूक दो।
वानर बोला—तू तो मुझे अपनी प नी क भट चढ़ाने वाला था। माना क प नी
अ य त य होती है, पर तु इसका अथ यह तो नह होता क उसक स ता के लए अपने
कसी ब धु क ब ल चढ़ा द जाये। म तो तेरी मूखता को पहले ही भांपकर यह भी समझ
गया था क तेरा सवनाश होने वाला है।
सतां वचनमा द ं मदे न न करो त यः ।
स वनाशमवा ो त घ टो इव स वरम् ।।
अ भमान के कारण स जन के वचन क उपे ा करने वाला मूख गले म घ टा बंधे
ऊंट के समान शी ही न हो जाता है।
मगरम छ ने पूछा—यह कैसी कथा है?
इस पर वानर उसे यह कथा सुनाने लगा।

Downloaded from www.PDFshala.com


कथा म : दस
उ वलक नामक एक बढ़ई अपनी द र ता से खी होकर सोचने लगा क जब यहां रहकर
सुखपूवक नवाह नह हो पाता, तब तक य न कसी अ य थान पर जाकर अपना भा य
आज़माया जाये। यह सोचकर वह अपने घर से नकल पड़ा। शाम के समय उसने जंगल म
अपनी झु ड से बछड़ी तथा पीड़ा से ाकुल एक ऊंटनी को दे खा। उस ऊंटनी को ब चा
होने वाला था। बढ़ई ने उसे एक र सी से बांध दया और ऊंटनी के ब चा दे ने पर उन दोन
को अपने घर ले आया। इसके साथ ही वह उन दोन के लए जंगल से कुछ हरे और कोमल
प े भी ले आया। कुछ ही दन म ज चा-ब चा दोन -पु हो गये। अब वह बढ़ई ऊंटनी
का ध बेचकर अपना गुज़ारा करने लगा। ऊंटनी और उसके ब चे से बढ़ई को इतना नेह हो
गया क उसने ऊंट-पालन को ही अपना ध धा बना लया। धीरे-धीरे उसने अनेक ऊंट ख़रीद
लये और वह ऊंट के एक झु ड का मा लक बन बैठा। बढ़ई ने ऊंटनी के ब चे के गले म
घ टा बांध दया, ता क वह सर से अलग पहचाना जा सके। वह ब चा कुछ मोटा होने के
कारण चलते-चलते अपने सा थय से पीछे रह जाता था, इस लए सरे ब च को उसके
कसी हसक जीव का शकार हो जाने क आशंका बनी रहती थी।
एक दन नद पर पानी पीने जा रहे एक सह ने घ टे क आवाज़ सुनी, तो उसने ऊंट
के उस अकेले ब चे को दे खते ही उसे अपना शकार बना लया।
यह कथा सुनाकर वानर कहने लगा—इसी लए म कहता ं
सतां वचनमा द ं मदे न न करो त यः ।
स वनाशमवा ो त घ टो इव स वरम् ।।
क अहंकार के कारण स जन के कथन क उपे ा करने वाला मूख गले म घ टा
पड़े ऊंट के ब चे के समान शी ही न हो जाता है।
यह सुनकर मगरम छ बोला—
ा ः सा तपदं मै ं जनाः शा व चणाः ।
म ता च पुर कृ य क च या म त छृ णु ।।
म ! स जन के अनुसार, सात क़दम साथ चलने वाला भी म कहलाता है।
म तु ह अपनी म ता क शपथ दे कर ही मेरी सहायता करने का तुमसे अनुरोध करता ।ं
उपदे श दातॄणां नराणां हत म छताम् ।
पर म ह लोके च सनं नोपप ते ।।
शा का वचन है क सर के हत के लए उनका पथ- दशन करने वाल को इस
लोक म तथा परलोक म कभी कोई ःख नह उठाना पड़ता।
म कृत न सही, ले कन स जनता तो का भी हत करने म है। कहा भी गया है

Downloaded from www.PDFshala.com


उपका रषु यः साधु साधु वे त य को गुणः ।
अपका रषु यः साधु स साधुः स यते ।।
क भले लोग के साथ भलाई करने म कोई बड़ पन नह है? बुरे लोग का हत करने वाले
ही बड़ा कहलाने के अ धकारी होते ह।
वानर ने कहा—चलो, तुम पूछते हो, तो तु ह बताता ।ं मेरी सलाह मानो, तो तु ह
उससे यु करना चा हए;
हत वं ा य स वग जीवन् गृहमथो यशः ।
यु यमान य ते भा व गुण यमनु मम् ।।
य क यु करने म हारने पर भी और जीतने पर भी लाभ तु ह ही होगा। जीत जाओगे, तो
तु हारा घर तु ह वापस मल जायेगा और य द मारे गये, तो वग मलेगा और संसार म यश
भी फैलेगा।
उ मं णपातेन शूरं भेदेन योजयेत् ।
नीचम प दानेन समश परा मैः ।।
शा के अनुसार अपने से बलवान् श ु के सामने वन होकर उसे अपना बना लेना
चा हए, ले कन य द श ु अहंकार का दशन करे, तो उसके सै यदल म फूट डलवा दे नी
चा हए। य द श ु बल हो, तो उसे कुछ दे कर अपने अनुकूल बना लेना चा हए। ले कन
समान श वाले के साथ तो यु करना ही उ चत होता है।
इस स ब ध म वानर मगरम छ को यह कथा सुनाने लगा—

कथा म : यारह
महाचतुरक नामक एक गीदड़ को कसी जंगल म मरा पड़ा एक हाथी मल गया, जसे
पाकर वह स तो आ, ले कन उसके लए उस हाथी क खाल को फाड़ना अस भव था।
तभी उसने एक सह को अपनी ओर आते दे खा, तो वह उससे बोला— ीमन्! यह आपका
आहार है, म तो इसक रखवाली करने वाला आपका दास ं।
सह ने कहा—तुम तो अ छ तरह जानते हो क म सर के ारा मारा गया शकार
कभी नह खाता।
वनेऽ प सहा मृगमांसभ या
बुभु ता नैव तृणं चर त ।
एवं कुलीना सना भभूता
न नी तमाग प रलंघय त ।।
सह अपने ारा मारे गये पशु को ही खाता है। शकार न मलने पर वह भूखा रह

Downloaded from www.PDFshala.com


जाता है, क तु घास नह खाता। इसी कार कुलीन संकट आने पर भी अपनी मयादा
का प र याग नह करते। यह हाथी तु ह मुबारक हो, उसे तुम ही खाओ।
गीदड़ ने आभार कट कया, तो सह वहां से जाते ए कहने लगा—
अ याव थोऽ प महा वा मगुणा
जहा त शु तया ।
न ेतभावमु झ त शंखः
श खभु मु ोऽ प ।।
ाण के क ठ म अटक जाने पर भी महापु ष अपने आचरण का प र याग नह करते।
शु के लए अ न म डाला गया शंख अपनी शु ता का याग कभी नह करता, यह भी इस
त य का उदाहरण है।
सह के चले जाने पर वहां एक बाघ आ नकला, तो चतुरक ने भेद-नी त अपनाने का
वचार कया।
न य श यते कतु साम दानमथा प वा ।
भेद त यो ो यतः स वशकारकः ।।
साम अथवा दान नी तय के स न होने पर श ु को वश म करने का अचूक उपाय
उसम और उसके सा थय म फूट डलवाना ही है। इसे ही भेद कहते ह। भेद के ारा गुणी
को भी अपने वश म कया जा सकता है।
अ तः थेन व े न सुवृ न
े ा तचा णा ।
अ त भ ेन स ा तं मौ केना प ब धनम् ।।
जस कार सीप म थत अन व और सुडौल मोती को भी माला म परोने के लए
ब धना पड़ता है, उसी कार व ान् श ु को वश म करने के लए भेद का सहारा लेना पड़ता
है।
यही सोचकर गीदड़ उस बाघ से बोला—मामा! या तु हारा मन जीवन से उचाट हो
गया है, जो इधर आ गये हो? यह दे खो, इस हाथी को मारकर सह मुझे इसक रखवाली
करने के लए यह कहकर गया है क पछली बार एक बाघ ने मेरा भोजन झूठा कर दया
था, उसके बाद मने कतने ही बाघ को यमलोक भेज दया। बाघ लालची होता है, य द कोई
बाघ यहां आये, तो तुम मुझे इशारा कर दे ना, म उसके वंश का भी नाम मटा ं गा।
गीदड़ क बात सुनकर भयभीत आ वह बाघ वहां से भाग खड़ा आ।
थोड़ी दे र म वहां एक चीता आ गया, तो चतुरक ने सोचा क इसके दांत तो ब त
मज़बूत ह, य न इसे मांस का लालच दे कर इससे हाथी का चमड़ा कटवा लू,ं इससे मेरे
खाने का ब ध हो जायेगा। यह सोचकर चतुरक ने उस चीते से कहा—आओ भैया! तु हारा
वागत है। आओ, इस हाथी का मांस खाय। शेर के आने से पहले तुम इसक चमड़ी फाड़

Downloaded from www.PDFshala.com


दो, फर हम दोन इसे खायगे।
चीता बोला—ना भाई! म मांस नह खाता। मुझे तो फल-स ज़ी खाना ही पस द है,
उससे अपना शरीर हलका रहता है।
य छ यं सतुं ासं तं प रणमे च यत् ।
हत च प रणामे य दा ं भू त म छता ।।
अपना हत चाहने वाले ाणी को समझ लेना चा हए क आसानी से नगले जाने
वाला, ज द पच जाने वाला तथा सुख दे ने वाला भोजन करना ही लाभ द होता है।
गीदड़ बोला—तुम मांसाहारी होकर यह कैसी बात कर रहे हो? कभी-कभी मुंह का
ज़ाइका बदलने के लए मांस खाने म या बुराई है?
इस कार उस गीदड़ ने चीते को हाथी क चमड़ी फाड़ने के लए राज़ी कर लया।
चमड़ी फाड़ने के बाद य ही चीता मांस खाने को लपका, य ही गीदड़ ने शोर मचा दया—
भागो-भागो, सह आ गया। यह सुनते ही चीता भाग नकला। तब चतुरक कहने लगा—
उ मं णपातेन शूरं भेदेन योजयेत् ।
नीचम प दानेन समश परा मैः ।।
अपने से अ धक श शाली श ु को वनय के ारा, समान श वाले श ु को भेद के ारा,
अपने से हीन श ु को कुछ दे कर और ज़ श ु को अपने परा म से वश म कर लेना
चा हए।
यह कथा सुनाकर वानर मगरम छ से बोला—अब तुम भी अपने श ु के साथ यु
करके उसे मार गराओ, नह तो वह तु ह मार डालेगा। कहा भी गया है
स भा ं गोषु स प ं स भा ं ा णे तपः ।
स भा ं ीषुचाप यं स भा ं जा ततो भयम् ।।
क गाय से स प ता, ा ण म तप-साधन तथा य म चपलता के समान अपनी जा त
वाल से व े ष होना वाभा वक ही है।
सु भ ा ण व च ा ण श थलाः पौरयो षतः ।
एको दोषो वदे श य वजा तय यते ।।
नगर म रहने वाली य म खाने यो य उ म पदाथ को दान करने क वृ होती
है तथा वे मु ह त होती ह, पर तु वहां भी उनके जा त- बरादरी के लोग ारा यह दे खा नह
जाता।
मगरम छ क ज ासा पर वानर उसे न न ल खत कथा सुनाने लगा—

कथा म : बारह

Downloaded from www.PDFshala.com


कसी नगर म रहने वाला च ांग नामक एक कु ा अकाल पड़ जाने के कारण सरे नगर म
चला गया। वहां गृह थ यां जहां कु को उदारतापूवक खलाया करती थ , वह कुछ
बेपरवा भी थ । इस लए यह कु ा ायः उनके रसोईघर म घुसकर नाना कार के न
का आन द लेता, क तु वहां के पुराने कु से यह दे खा न गया, तो उ ह ने झप ा मारकर
उस कु े को घायल कर दया। रोज़-रोज़ के आ मण से घबराकर वह कु ा अपने पुराने
थान पर लौट आया। वापस लौटे कु े के सा थय ने उससे नगर के अनुभव बताने के लए
कहा, तो वह बोला—
सु भ ा ण व च ा ण श थलाः पौरयो षतः ।
एको दोषो वदे श य वजा तय यते ।।
न स दे ह वहां क यां उदार ह और खाने-पीने क भी मौज है, क तु हमारी
अपनी ही जा त वाल के ारा कसी बाहर वाले का वहां रहना दे खा नह जाता। इस लए
उ ह ने मेरी ऐसी ग त क क मेरा जीना भर कर दया।
वानर के मुंह से यह सुनकर मगरम छ अपने जीवन क परवा न करके अपने श ु से
भड़ गया और अपने श ु को न करने म सफल होकर सुखी जीवन जीने लगा।
नी तकार ने ठ क ही कहा है
अकृ य पौ षं या ीः क तया प सुभो यया ।
जर वः सम ा त दै वा पगतं तृणम् ।।
क य द बना प र म के स प ता ा त हो जाती है, तो उसे भोगने म वशेष आन द नह
आता। जस कार बूढ़ा और असमथ बैल केवल अपने भा य म लखी घास ही खाता है,
उसी कार बना प र म के ारा स प ा त कर लेने वाला भी उसका उपभोग वैसे ही
करता है। वा तव म, स प पाना और स प को भोगना—ये दोन अलग-अलग थ तयां
होती ह।

।। चतुथ त समा त ।।

Downloaded from www.PDFshala.com


प चम त

अपरी तकारकम्
( बना जांच-परख कये काम म जुटने का प रणाम)

अपरी तकारक नामक पांचव त का थम प इस कार है—


कु ं कुप र ातं कु ुतं कुपरी तम् ।
त रेण न क ं ना पतेना य कृतम् ।।
दे खने म षत लगने वाले, लोक म न दत समझे जाने वाले, कहने-सुनने म बुरा लगने वाले
तथा भली कार से जांचे-परखे बना मनु य को कसी भी काम को स प करने म वृ
नह होना चा हए। इस स ब ध म एक नाई क कथा इस कार है—

कथा म : एक
पाट लपु के नवासी म णभ नामक सेठ के धमानुसार काम करने पर भी भा य के
कारण उसका सव व न हो गया। अतः अभाव और द र ता को कोसते ए उसने अपने
आपसे कहा—नी तकार ने स य ही कहा है
शीलं शौचं ा तदा यं मधुरता कुले ज म ।
नो राज ते ह सव व वहीन य पु ष य ।।
क धनहीन के शील, प व आचरण, सहनशीलता, समझदारी, म भाषण तथा ऊंचे
कुल म ज म आ द गुण का कोई मह व नह होता।
मानो वा दप वा व ानं व मः सुबु वा ।
सव ण य त समं व वहीनो यदा पु षः ।।
धनहीन के मान-स मान, दप-अहंकार, ान- व ान, कला-कौशल तथा
च तन-श आ द का भी कोई अथ नह होता। उसके इन गुण पर कोई यान ही नह

Downloaded from www.PDFshala.com


दे ता।
त दवसं या त लयं
वस तवाताहतेव श शर ीः ।
बु बु मताम प कुटु ब-
भर च तया सततम् ।।
जस कार वस त ऋतु के आते ही पतझड़ ऋतु म दबाकर भाग जाती है, उसी
कार क द र ता तथा प रवार के भरण-पोषण क च ता उसके सम त गुण को न
कर दे ती है।
न य त वपुलमतेर प बु ः
पु ष य म द वभव य ।
घृतलवणतैलत डु लव े धन-
च तया सततम् ।।
वैभव के न होते ही बड़े-से-बड़े बु मान क बु भी हो जाती है। घी, तेल,
नमक व लकड़ी जुटाने क च ता म खोया आ अपने गुण के वकास क ओर कोई
यान ही नह दे पाता।
यही सोचते-सोचते म णभ को न द आ गयी। उसने व म दे खा क एक बौ
सं यासी प न ध उससे कह रहा है—म तु हारे पूवपु ष ारा अ जत उनका पु य ं। म
कल ातःकाल तु हारे घर पर साधु के वेश म आऊंगा, उस समय तुम मुझ पर कसी ड डे से
वार करना, म गर जाने पर वण के प म बदल जाऊंगा और तुम धन-स प एवं
सौभा यशाली बन जाओगे।
ातःकाल सोकर उठे म णभ को रात के सपने क याद आयी, तो उसे व पर
व ास नह आया। उसने सोचा, मुझे सदा धन का ही यान रहता है, इस लए ऐसी क पना
एक वाभा वक बात है।
ा धतेन सशोकेन च ता तेन ज तुना ।
कामातनाथ म ेन ः व ो नरथकः ।।
शा के अनुसार रोगी, शोक-पी ड़त, च ता त तथा कामवासना के शकार
ायः ऐसे ही व दे खा करते ह और उनके ारा दे खे व ायः अथहीन होते ह।
म णभ नाई से अपने पैर धुलवा रहा था क व म दखाई दया बौ भ ु उसके
सामने आ खड़ा आ। सेठ ने स होकर य ही उस पर लाठ का हार कया, वह पृ वी
पर गरते ही वण के ढे र म बदल गया। सेठ ने नाई को कुछ इनाम आ द दे कर उसे अपने घर
से वदा कया और इस घटना के बारे म कसी से भी चचा न करने क चेतावनी भी दे द ।
अपने घर प ंचकर नाई ने सोचा क मुंड़े ए सर वाले बौ भ ु के सर पर ड डे

Downloaded from www.PDFshala.com


से हार कये जाने पर वह वण के प म प रणत हो जाता है। य न म भी कसी बौ
भ ु को आम त करके ऐसा ही योग क ं और अपने भा य को बदल डालूं? इसी सोच
म नाई रात-भर ताने-बाने बुनता रहा।
ातःकाल होते ही वह नाई बौ सं या सय के वहार म जाकर भगवान् बु क इस
कार आराधना करने लगा—
जय त ते जना येषां केवल ानशा लनाम् ।
आज मनः मरो प ौ मानसेनोषरा यतम् ।।
ज म से ही कामवासना को ऊसर म पड़े बीज के समान थ बताने वाले, ान के भ डार,
शा त व प भगवान् बु दे व को म णाम करता ं।
सा ज ा या जनं तौ त त च ं य जने रतम् ।
तावेव च करौ ा यौ यौ त पूजाकरौ करौ ।।
बु क तु त करने वाली ज ा और बु म आस च ही साथक है तथा बु के
चरण को छू ने वाले हाथ भी साथक ह।
यान ाजमुपे य च तय स
कामु मी य च ुः णं
प यान शरातुरं जन ममं
ाता प नो र स ।
म याका णकोऽ स नघृणतर-
व ः कुतोऽ यः पुमान्
से य मारवधू भ र य भ हतो
बौ ो जनः पातु वः ।।
भगवान् बु क तु त करती ई कामदे व क प नी ने कहा था— यान करने के
बहाने कह आप कसी का मनी का च तन तो नह कर रहे? य द ऐसा है, तो मुझ
कामपी ड़ता को भी अनुगृहीत करने क कृपा क जये। जब आपने सबक र ा का भार
लया आ है, तो मेरी च ता य नह करते? मुझे मेरे प त से वयु करने वाले आप
दयालुता का ढ ग करते लगते ह। आपसे बड़ा नमम तो सरा कोई हो ही नह सकता।
इस कार भगवान् बु क व दना से नबटकर नाई धान भ ु के पास जाकर
कहने लगा—म आज इस वहार के भ ु को अपने घर भोजन के लए नम त करने
आया ं। आप मेरी ाथना वीकार कर।
भ ु ने उ र दया—शायद तु ह मालूम नह क हम कसी के घर भोजन नह करते।
हमारे यहां कसी घर से ा त भ ा के ारा ही नवाह कया जाता है। अतः हम तु हारा
नम ण वीकार करने म असमथ ह।

Downloaded from www.PDFshala.com


नाई ने दोबारा कहा—ठ क है, फर आज आप भ ा मांगने के लए मेरे घर पधार।
धान भ ु के ‘हां’ कहने पर नाई अपने घर लौट गया और अपने हाथ म एक मोटा ड डा
लेकर भ ु के आने क ती ा करने लगा।
एकाक गृहसं य ः पा णपा ो दग बरः ।
सोऽ प संवा ते लोके तृ णया प य कौतुकम् ।।
यह आ जनक बात है क एका त जीवन बताने वाले, घर- ार से मोह न रखने वाले,
अपने हाथ को ही पा बनाने वाले तथा सदा दग बर रहने वाले भ ु भी कभी-कभी लोभ
म आ जाते ह। सच तो यह है क तृ णा के पाश से मु होना बड़ा ही क ठन काम है।
जीय ते जी यतः केशा द ता जी य त जी यतः ।
च ुः ो े च जी यते तृ णैका त णायते ।।
बुढ़ापा आते ही बाल सफ़ेद हो जाते ह, दांत न हो जाते ह, दे खने-सुनने क श
जाती रहती है, ले कन तृ णा युवती ही बनी रहती है।
बौ भ ु के अपने घर म वेश करते ही नाई ने दरवाजे ब द कर दये और ड डे
से उनके सर फोड़ने लगा। भ ु क च ल-प सुनकर लोग कवाड़ तोड़कर भीतर आ
गये और सब कुछ दे खकर पु लस को सूचना द गयी, तो सपा हय ने जांच-पड़ताल करने
के प ात् उस नाई को जेल म डाल दया।
जब यायाधीश ने नाई से इस अनु चत काय को करने का कारण पूछा, तो उसने
म णभ सेठ के घर दे खी सारी घटना का वणन कर कया। अब म णभ सेठ को बुलाकर
पूछा गया, तो उसने भी उस व का वृ ा त सच-सच बता दया।
यायाधीश ने आंख मूंदकर सरे क नक़ल करने और भ ु का वध करने के लए
नाई को फांसी पर लटकाने का आदे श दे दया। यायाधीश ने कहा—
कु ं कुप र ातं कु ुतं कुपरी तम् ।
त रेण न क ं ना पतेना य कृतम् ।।
कसी भी को दे खने, जानने, सुनने और परखने म ग़लत स होने वाला कोई भी
काम कभी नह करना चा हए। नाई ने ऐसा करके ही अपनी मृ यु को नम ण दया है।
अपरी य न क ंक ं सुपरी तम् ।
प ा व त स तापो ा या नकुलाथतः ।।
म णभ बोला— बना सोचे- वचारे कोई भी काम नह करना चा हए। पूरी तरह से
सोच- वचार और जांच-परख करने के बाद ही करना चा हए। बना सोचे- वचारे काम करने
वाले को नेवले का वध करने वाली ा णी के समान ही पछताना पड़ता है।
यायाधीश के कहने पर म णभ उ ह यह कथा सुनाने लगा।

Downloaded from www.PDFshala.com


कथा म : दो
दे व शमा नामक ा ण क प नी के साथ ही उसके घर म घ सला बनाकर रहने वाली नेवली
ने भी एक ब चे को ज म दया, क तु भा यवश नेवली मर गयी, तो ा णी अपने ब चे के
साथ ही नेवले को भी पालने लगी। नेवले का बेटा ा णी के बेटे से ब त हल- मल गया।
दोन साथ-साथ खेलते रहते थे, क तु ा णी नेवले से सदा आशं कत रहती थी; य क
कसी के लए भी अपने जा तगत गुण-दोष को छोड़ना कभी स भव नह होता।
कुपु ोऽ प भवे पुंसां दयान दकारकः ।
वनीतः कु पोऽ प मूख ऽ प सनी खलः ।।
वनीत, कु प, मूख, सनी अथवा राचारी कुपु भी माता- पता के लए
आन ददाता होता है।
एवं च भाषते लोक दनं कल शीतलम् ।
पु गा य सं पश दनाद त र यते ।।
संसार म च दन के पश को शीतल माना जाता है, क तु पु के शरीर का पश
च दन से भी अ धक शीतल एवं सुखदायक होता है।
सौ द य न वा छ त जनक य हत य च ।
लोकाः पालक या प यथा पु य ब धनम् ।।
इसी लए सब म , स ब धी, पता, वामी तथा पालन-पोषण करने वाले से भी पु
के स ब ध को अ धक सु ढ़ मानते ह।
एक दन अपने सोते ए पु क दे ख-रेख का ज़ मा अपने प त को स पकर ा णी
कसी काम के लए घर से बाहर चली गयी क उसी समय नम त करने आये यजमान के
साथ ा ण भी बाहर चला गया। ले कन उसने बाहर जाते समय नेवले को ब चे का यान
रखने को कहा।
अचानक उस घर म एक सांप के घुस आने पर नेवले ने उसे ब चे क ओर जाने से
रोक दया और मार डाला। सांप के साथ संघष करते ए नेवले के मुंह म र लग गया।
ा णी को ार पर आया जानकर नेवला यह शुभ समाचार दे ने के लए भागकर
ार पर आ प ंचा। नेवले के मुंह पर र लगा दे खकर ा णी ने समझा क इसने मेरे बेटे
को काट खाया है। ोध से अ धी ई ा णी ने प थर मारकर नेवले को मार डाला। ले कन
घर के भीतर आने पर अपने बालक को सुर त और सांप को मरा पड़ा दे खकर उसक
समझ म सब कुछ आ गया। अब तो वह पछताने लगी। इसी बीच घर लौटे अपने प त से
ा णी बोली—तु ह ब चे क रखवाली का काम स पकर गयी थी, पर तु तुम तो भोजन के
लालच म यजमान के घर चल दये, अब उसका प रणाम दे खो। कहा भी गया है

Downloaded from www.PDFshala.com


अ तलोभो न क ो लोभं नैव प र यजेत् ।
अ तलोभा भभूत य च ं म त म तके ।।
क लोभ को सवथा छोड़ना स भव नह होता, फर भी, अ तलोभ से बचना ही चा हए।
अ तलोभी के सर पर सदा ही एक च घूमता रहता है।
ा ण क ज ासा पर ा णी उसे यह कथा सुनाने लगी।

कथा म : तीन
कसी नगर म चार ा ण-कुमार आपस म अ छे म थे। वे द र ता को अ भशाप समझते
थे और इस वषय म सदा एक- सरे से चचा कया करते थे। वे इस त य से भली-भां त
प र चत थे
वरं वनं ा गजा दसे वतं
जनेन हीनं ब क टकावृतम् ।
तृणा न श या प रधानव कलं
न ब धुम ये धनहीनजी वतम् ।।
क सह, हाथी, बाघ आ द हसक जीव से भरे वन म रहना अ छा है, कसी सुनसान एवं
झाड़-झंखाड़ से भरे क द इलाक़े म जीवन बताना अ छा है, तनक पर सोना और
व कल धारण करना भी अ छा है, क तु धनहीन होकर अपने ब धु-बा धव के बीच रहना
अ छा नह ।
तानीया य वकला न तदे व नाम
सा बु र तहता वचनं तदे व ।
अथ मणा वर हतः पु षः स एव
बा ः णेन भवती त व च मेतत् ।।
इ य और बु के व थ व स म रहते तथा बातचीत म पहले-जैसा ही रस घोलते
के धनहीन हो जाने पर उसका मान-स मान पहले-जैसा नह रहता। संसार क यह
व च री त है क जस के धनी होने पर उसे ‘गुण क खान’ कहकर सराहा जाता
था, धनहीन हो जाने पर उसके उन गुण का कोई मह व नह रह जाता।
चार ा ण-कुमार ने धन कमाने के लए कसी अ य थान पर जाने का नणय
कया और वे अपने घर-प रवार व ब धु-बा धव को छोड़कर वन को चल दये।
स यं प र यज त मु च त ब धुवग
शी ं वहाय जननीम प ज मभू मम् ।
स य य ग छ त वदे शमभी लोकं

Downloaded from www.PDFshala.com


च ताकुलीकृतम तः पु षोऽ लोके ।।
सच तो यह है क कुछ पाने के लए को अपने ब धु-बा धव , इ म ,
प रजन , यहां तक क माता- पता और ज मभू म के मोह को भी छोड़ना पड़ता है। मोह
याग कर ही अपना भा य बदल सकता है।
चार म घर- ार छोड़कर उ जैन जा प ंच।े वहां उ ह ने ा नद म नान कया
और महाकाले र के यो त लग का अचन-पूजन कया।
भगवान् शंकर क कृपा से उनक भट योगी भैरवान द से ई, तो उ ह उन चार क
धन कमाने क इ छा जानकर उन पर दया आ गयी। चार ा ण-कुमार ने यो गराज से
कहा क य द हम अपनी थ त नह सुधार सके, तो हम मृ यु का वरण कर लगे।
ा या ण ब न च ल य ते
वा छता न वणा न ।
अवसरतु लता भरतं तनु भः
साह सकपु षाणाम् ।।
हमने सुना है क साहसी य के लए संसार म कुछ भी लभ नह होता। यास
करने पर को दे र-सवेर अभी फल क ा त हो ही जाती है।
पत त कदा च भसः खाते पातालतोऽ प जलमे त ।
दै वम च यं बलवद्बलवा तु पु षकारोऽ प ।।
हमारा यह भी मानना है क जस कार जल कभी मेघ से ा त होता है, तो कभी
धरती खोदकर भी ा त कया जाता है, उसी कार कभी मनु य का भा य बल हो जाता
है, तो कभी उसका पु षाथ बल हो जाता है। अतः हम अपनी सफलता का प का व ास
है।
अ भमत स रशेषा भव त ह
पु ष य पु षकारेण ।
दै व म त यद प कथय स
पु षगुणः सोऽ य ा यः ।।
यह स य है क भा य मनु य के पूवज म के कये कम का फल है। इस से
पु षाथ ही बल दखाई दे ता है; य क पु षाथ अपने सभी मनोरथ को स करने म
सफल हो जाता है।
यह सब कहने के बाद चार ने यो गराज से सहायता क ाथना करते ए कहा—
आप वल ण श य के वामी ह तथा परोपकारी भी ह। कहा भी गया है
महा त एव महतामथ साध यतुं माः ।
ऋते समु ाद यः को वभ त वडवानलम् ।।

Downloaded from www.PDFshala.com


क स महा मा के पास सर के काय को स प करने का साम य होता है।
भैरवान द को उन पर दया आ गयी और उ ह ने उन चार को चार स ब यां
थमाकर कहा क वे उ र दशा क ओर चले जाय। जहां जसक ब ी गरे, वह वहां क
धरती क खुदाई करे और ा त धन को लेकर, चाहे, तो घर लौट जाये अथवा सरे सा थय
के साथ आगे बढ़ता चले।
भैरवान द के त कृत ता कट कर और उ ह णाम करके चार म उ र दशा
क ओर चल पड़े।
थोड़ी र जाने पर एक ा ण-कुमार के हाथ क ब ी गर गयी और वहां खुदाई
करने पर तांबे क खान मली। वह उसी से स तु हो गया और यथे छ तांबा लेकर वापस
लौट आया। उसने अपने सा थय को भी उतने ही पर स तोष करने और अपने साथ लौटने
को कहा, क तु वे सहमत नह ए।
थोड़ा आगे बढ़ने पर सरे के हाथ क ब ी गरी और वहां उ ह चांद क खान मली।
उसने भी इ छानुसार चांद लेकर अपने दोन म से लौट चलने को कहा, पर तु वे सहमत
न ए, अतः वह अकेला ही वापस लौट आया।
अब शेष रहे दोन म के थोड़ा आगे बढ़ने पर तीसरे के हाथ क ब ी गरी और
धरती खोदने पर उ ह सोना मला। उसने सरे से कहा— म ! पया त सोना लेकर लौट
चलो, अ धक लोभ अ छा नह । इस पर सरा बोला—पहले तांबा, फर चांद और अब
सोना मला है। आगे बढ़ने पर हीरे-जवाहरात मल सकते ह, अतः म तो आगे ही जाऊंगा।
म के हठ को दे खकर तीसरा ा ण-कुमार पया त सोना लेकर वापस लौट आया।
आगे चलने पर चौथा ा ण-कुमार भा यवश माग भूल गया और उस थान पर जा
प ंचा, जहां र से लथपथ एक खड़ा था और उसके सर पर एक च घूम रहा था।
ा ण-कुमार उस से कुछ पूछने ही वाला था क घूमता आ च उस को
छोड़कर ा ण-कुमार के सर पर चढ़ बैठा। अब उस ने ा ण को बताया क म भी
तेरी तरह स ब ी लेकर आया था और लोभवश बना के आगे बढ़ता जा रहा था। अब
जब तेरी तरह कोई सरा यहां आकर ऐसा ही आचरण करेगा, तब तेरे सर पर घूमता
आ यह च तुझे छोड़कर उसके सर पर जा बैठेगा और तुझे मु मल जायेगी। यह
कहकर वह वहां से चल दया।
उधर वण स ा ण आगे बढ़ने वाले अपने म क खोज म जब वहां प ंचा, तो
म क दयनीय थ त को दे खकर रोने लगा। वण स ने अपने म से इस थ त का
कारण पूछा, तो उसने सारी घटना कह सुनायी। इस पर वण स बोला—मने तु ह
अ तलोभ न करने के लए कतना समझाया था, ले कन तुमने मेरी एक नह सुनी। अब
प रणाम तु हारे सामने है।
वरं बु न सा व ा व ाया बु मा ।

Downloaded from www.PDFshala.com


बु हीना वन य त यथा ते सहकारकाः ।।
सच पूछा जाये, तो व ा से भी अ धक मह वपूण बु होती है; य क बु ही
व ा के ारा सही योग क जानकारी दे ती है। बु हीन ा ण ने अपनी व ा से मृत
सह को जी वत तो कर दया, क तु उसके प रणाम व प वे उस सह के शकार हो गये।
च धारी ने पूछा—यह कैसी कथा है?
इस पर वण स उसे बताने लगा—

कथा म : चार
कसी थान पर चार म एक साथ रहते थे। उन चार म केवल एक ावहा रक बु स प
तो था, ले कन व ा वहीन था। शेष तीन सु श त थे, क तु बु हीन थे।
एक बार उन चार ने सोचा क अपनी व ा के बल पर राजा को भा वत करके
धन कमाया जाये, अ यथा इस व ा क उपयो गता ही या है? यह सोचकर उन चार ने
वदे श जाने का वचार बनाया, तो एक बोला—हम तीन तो व ान् ह, क तु हमारा यह चौथा
साथी व ा वहीन है, इसे अपने साथ लेना थ होगा। इस बात का एक साथी ने समथन
कया, क तु सरे ने कहा—हमारा ऐसा वहार अनु चत कहलायेगा। फर या मालूम,
इसक वहारबु से ही हम लाभ हो जाये? म तो इसे भी अपने साथ ले चलने के प म
ं।
क तया यते ल या या वधू रव केवला ।
या न वे येव सामा या प थकै पभु यते ।।
प त ता ी क भां त केवल अपने ारा भोगी जाने वाली ल मी का कोई लाभ नह
होता। ल मी वही उ म होती है, जसका वे या क भां त अ धका धक लोग उपभोग कर।
य द इस से हमारा कोई साथी हमारे ारा कमाई गयी ल मी का उपभोग कर
लेगा, तो हमारा या बगड़ जायेगा?
अयं नजः परो वे त गणना लघुचेतसाम् ।
उदारच रताना तु वसुधैव कुटु बकम् ।।
अपने और पराये का भेद करना तो ओछ बु का प रचायक होता है। उदार दय
तो संसार के सभी जीव को अपने प रवार का सद य मानते ह।
इस कार समझाने-बुझाने पर तीन ने अपने व ा वहीन म को भी साथ ले लया।
थोड़ी र चलने पर उन चार ने जंगल म एक मृत सह को पड़े दे खा, तो तीन ने अपनी
व ा क परख करने के लए सह को जी वत करने का न य कया। बु स प म ने
उन तीन को ऐसा साहस न करने के लए ब त समझाया और कहा क सह जी वत

Downloaded from www.PDFshala.com


होकर हम सबको खा जायेगा। अतः तु ह ऐसा मूखतापूण काम नह करना चा हए।
ले कन तीन मूख व ान ने अपने साथी क सलाह को ठु कराते ए उसे बुरा-भला
कहा, तो वह बोला—ठ क है, ले कन म पढ़कर जल छड़कने से पहले मुझे अपने बचाव
का उपाय कर लेने दो।
यह कहते ही वह तुर त एक ऊंचे वृ पर चढ़ गया और प म छपकर अपने मूख
सा थय क ग त दे खने लगा।
य ही तीन ने अपने हाथ का अ भम त जल मृत सह पर डाला, य ही सह
जी वत हो उठा और उसी समय उन तीन को चबाकर खा गया। म के वनाश से खी
बु मान् साथी वृ से उतरकर अपने घर चला गया।
यह कथा सुनाकर वण स बोला—
वरं बु न सा व ा व ाया बु मा ।
बु हीना वन य त यथा ते सहकारकाः ।।
इसी लए बु का मह व व ा से कह अ धक है। श त व ान् भी बु हीन होने पर
मूख व ान क भां त न हो जाते ह।
अ प शा ेषु कुशला लोकाचार वव जताः ।
सव ते हा यतां या त यथा ते मूखप डताः ।।
शा - ान म नपुण होने पर भी लोक वहार को न जानने वाले व ान् मूख क
भां त हंसी का पा बन जाते ह।
च धर को लोक वहार से अप र चत चार व ान के उपे त होने क कहानी
सुनाते ए वण स बोला—

कथा म : पांच
चार ा ण म क ौज के एक सु स गु कुल म बारह वष तक मन लगाकर प र म
करने के प ात् अनेक व ा म पारंगत हो गये। श ा-समा त के प ात् उन चार ने
अपने आचाय से अनुम त ली और अपने-अपने घर क राह पकड़ी। चार म अनेक
व ा म नपुण थे, ले कन उ ह ने कभी अपने गु कुल से बाहर नकलकर समाज को नह
दे खा था, इस लए वे लोक वहार म एकदम कोरे थे।
गु कुल से नकलकर चार ा ण म कुछ ही र चले ह गे क माग म एक दोराहा
आ गया। उ ह कसी से अपने घर जाने का माग- दशा पूछने क कोई समझ नह थी। अतः
वे वह बैठ गये। इसी बीच एक शव को लेकर कुछ लोग मशान जा रहे थे। एक ा ण ने
अपनी पु तक खोलकर दे खा, तो वहां उसे लखा आ मला—उसी माग पर चलना चा हए,

Downloaded from www.PDFshala.com


जस माग पर महाजन चल रहे ह ।
यह व था धमाचरण के स ब ध म थी, जसका अथ है— े पु ष का अनुसरण
करना चा हए, क तु उ ह ने ‘महाजन’ का अथ नकाला—जनसमूह। अतः वे चार
शवया य के साथ मशान प ंच गये।
अ य लोग तो शवदाह के बाद लौट गये, क तु वे चार वह खड़े रहे। इसी समय वहां
एक गधा आकर खड़ा हो गया। सरे ा ण ने पु तक खोलकर पढ़ , तो उसे लखा आ
मला—
उ सवे सने ा ते भ े श ुसंकटे ।
राज ारे मशाने च य त त स बा धवः ।।
उ सव के समय, संकट म, अकाल क थ त म, श ु के हार के समय, थाना-कचहरी म
और मशान म साथ रहने वाला अपना ब धु होता है। इस आधार पर वे मशान म खड़े गधे
को ही अपना ब धु मानकर उसे गले लगाने और यार करने लगे।
थोड़ी दे र म कह से भागता आ एक ऊंट वहां आ नकला, तो तीसरे प डत ने
अपनी पु तक खोलकर पढ़ , जहां लखा था—धम क ग त ती होती है—तो इन मूख ने
ती ग त वाले ऊंट को ही सा ात् धम समझ लया और उसे णाम करने लगे।
अब चौथे ा ण ने अपनी पु तक म पढ़ा—इ म को धम के साथ जोड़ना
चा हए। उन मूख ने तुर त एक मोटे र से से गधे को ऊंट के गले म बांध दया।
कसी राहगीर ने गधे के मा लक धोबी को उन मूख क इस मूखता के बारे म बताया,
तो वह ड डा लेकर वहां आ प ंचा और उन मूख को पीटकर भगा दया।
थोड़ी र चलने पर उन मूख को अपने माग म एक नद दखाई द , उसम पलाश का
एक प ा बहता जा रहा था। एक ा ण ने पु तक खोलकर पढ़ा—बहते जा रहे प े पर
बैठने से उ ार होगा।
बस, उसने नद म छलांग लगा द , तो वह नद म डू बने लगा। अब एक ने पु तक
खोलकर पढ़ , तो वहां लखा था—
सवनाशे समु प े अ यज त प डतः ।
अ न कु ते का य सवनाशो ह ःसहः ।।
‘सारा जाता दे खये, तो आधा द जे छोड़,’ अथात् सब कुछ गंवाने क अपे ा आधे को
बचाना ही समझदारी है।
बस, उसने अपनी तलवार से तुर त नद के वाह म बहते म का गला काट डाला।
शेष तीन चलते-चलते कसी गांव म प ंच,े तो अलग-अलग तीन यजमान ने उ ह
अपने घर भोजन के लए आम त कया। एक ामीण ने ा ण को सवैयां परोस , तो
उ ह दे खकर ा ण ने पु तक खोलकर पढ़ा—द घसू ी न हो जाता है। (द घसू ी का अथ
आलसी होता है, क तु उसने अथ नकाला ल बा सूत), अतः वह भोजन को छोड़कर चला

Downloaded from www.PDFshala.com


आया।
सरे ामीण ने ा ण को म ा परोसा, तो उसने पु तक म लखा आ पढ़ा—
अ त व तृत पदाथ का सेवन वा य के लए हा नकारक होता है। अतः वह भी बना खाये
उठकर आ गया।
तीसरे यजमान ने ा ण को जलेबी-पूड़ी परोसी, तो ा ण ने पु तक खोलकर पढ़ा,
तो वहां लखा था—‘ छ वाला पदाथ अनथ का मूल होता है।’ अतः वह भी भोजन को
छोड़कर चला आया।
इस कार वे तीन ा ण न केवल भूखे रहने को ववश ए, अ पतु लोग के
उपहास के पा भी बने।
यह कथा सुनाकर वण स बोला—इस लए कहा गया है
अ प शा ेषु कुशला लोकाचार वव जताः ।
सव ते हा यतां या त यथा ते मूखप डताः ।।
क शा म नपुणता ा त करने वाले, ले कन लोक वहार म मूढ़ भी मूख व ान
के समान उपे ा और उपहास के पा बनते ह।
च धर ने कहा—मेरे वषय म ऐसा कोई कारण नह है। मेरे वचार म—
ब बु यो वन य त दै वेन ना शताः ।
व पबु योऽ येक मन् कुले न द त स ततम् ।।
दै व के तकूल होने पर बड़े-बड़े बु मान को भी ःख उठाना पड़ता है और इसके
ब कुल उलट दै व के अनुकूल होने पर साधारण बु वाले भी संसार के लभ सुख
भोगते ह। कहा भी गया है
अर तं त त दै वर तं
सुर तं दै वहतं वन य त ।
जीव यनाथोऽ प वने वस जतः
कृत य नोऽ प गृहे न जीव त ।।
क जसक र ा कोई नह करता, दै व के अनुकूल होने पर वह भी सुर त हो जाता है,
जब क दै व के तकूल होने पर सुर त भी सुर त नह रह पाता। अनाथ एवं
असहाय भी कसी नजन वन म प ंच जाने पर जी वत बच जाता है, जब क घर म
पूरी दे खभाल कये जाने पर भी दै व का मारा बच नह पाता।
शतबु ः शर थोऽयं ल बते च सह धीः ।
एकबु रहं भ े डा म वमले जले ।।
दे खो, साधारण बु वाला म छ मज़े से जल म ड़ा कर रहा है, जब क उससे सौ
गुना अ धक बु मान् म छ धीवर का शकार बन गये ह। यह सब भा य क अनुकूलता और

Downloaded from www.PDFshala.com


तकूलता का ही खेल है। वण स क उ सुकता पर उसे म छ क कहानी सुनाते ए
च धर बोला—

कथा म : छह
कसी सरोवर म रहने वाले शतबु और सह बु नामक दो म छ क एकबु नाम वाले
मेढक से म ता हो गयी, तो दोन म छ कनारे पर आकर कुछ दे र तक मेढक के साथ
गपशप करते और फर पानी म चले जाते।
एक दन गपशप करते म छ ने सायंकाल सर पर अनेक म छ लादे तथा जाल लेकर
आये मछु आर को यह कहते सुना—यह तालाब तो मछ लय से भरा पड़ा है। कल
ातःकाल हम यह पर अपना जाल डालगे।
यह कहते ए मछु आर के चले जाने पर सभी म छ च तत होकर अपने बचाव के
लए आगे क रणनी त पर वचार करने लगे। मेढक ने अपने म —शतबु और
सह बु —से मछु आर के वचन के बारे म उनसे उनके वचार पूछे, तो सह बु
मुसकराकर बोला— म ! कसी के इस कार कहे वचन को ग भीरता से नह लेना चा हए।
कहा भी गया है
सपाणा च खलाना च सवषां चेतसाम् ।
अ भ ाया न स य त तेनेदं व ते जगत् ।।
क संसार इसी लए टका आ है; य क सांप , और सर के अ न करने को तैयार
रहने वाले लोग के मनोरथ कभी पूरे नह होते।
पहले तो यह आव यक नह क मछु आरे कल ातःकाल यहां आ ही जायगे और य द
वे आ भी गये, तो भी च ता क कोई बात नह है। म पानी म छपने क अनेक यु यां
जानता ं, अतः अपने साथ तु ह भी बचा लूंगा। शतबु म छ भी अपने साथी सह बु
क गव से हांक ड ग का समथन करते ए कहने लगा—
बु े बु मतां लोके ना यग यं ह क चन ।
बु या यतो हता न दा ाण येना सपाणयः ।।
बु मान् अपनी बु के योग से कसी भी संकट से अपना उ ार करने म सदा समथ होते
ह। नह थे चाण य ने अपने बु -बल से ही श धारी सेना रखने वाले राजा न द को
परा जत करके बु क मह ा को स कर दया है।
न य ा त ग तवायो र मीना च वव वतः ।
त ा प वश याशु बु बु मतां सदा ।।
बु मान् तो अनेक ल काय को भी अपने बु -बल से सहज ही पूण कर लेते

Downloaded from www.PDFshala.com


ह। अतः मेरे वचार म तो कसी के कुछ कहने को ग भीरता से लेते ए भी अपनी ज मभू म
को छोड़ना उ चत नह है;
न त वगऽ प सौ यं या पशनशोभने ।
कु थानेऽ प भवे पुंसां ज मनो य स भवः ।।
य क अपनी ज मभू म म जैसा सुख और शा त मलती है, वैसी अन गनत पु य से ा त
होने वाले वग म भी नह मल सकती। अतः तुम न त हो जाओ और व ाम करो। य द
मछु आर ने अपना जाल बछाया भी, तो म तु ह तु हारी र ा करने का वचन दे ता ं। तु ह
मुझ पर व ास करना चा हए।
मेढक बोला— म ो! म तो इस तालाब को छोड़ने का मन बना चुका ं। य द तु ह मेरे
साथ कसी सरे तालाब म चलना हो, तो चलो, नह तो राम-राम।
अभागे म छ के असहमत होने पर मेढक तो अपनी प नी के साथ सरे थान पर
चला गया।
अगले दन ातःकाल मछु आर ने उसी तालाब म अपना जाल डालकर अनेक सरे
म छ के साथ शतबु और सह बु को भी पकड़ लया। उन दोन क बचाव क कोई
व ा कसी काम नह आयी। सायंकाल अपने म म छ शतबु और सह बु को
लेकर जाते ए मछु आर को दे खकर मेढक अपनी प नी से बोला—
शतबु ः शर थोऽयं ल बते च सह धीः ।
एकबु रहं भ े डा म वमले जले ।।
दे खो ये! मछु ए ने शतबु को अपने सर पर लादा आ है और सह बु को बांस पर
लटका रखा है, जब क म उनसे ब त थोड़ी बु वाला होने पर भी आन दपूवक तु हारे साथ
यहां घूम- फर रहा ।ं
यह कथा सुनाकर च धर बोला—बु होने पर भी मनु य का सदै व अपना वश नह
चलता।
वण स बोला—तु हारी यह सोच ठ क हो सकती है, ले कन हत च तक म क
बात को अनसुना करना भी उ चत नह होता। मने तु ह स तोष करने के लए समझाया था,
क तु लोभ ने तु ह अ धा कर दया था। कहा भी गया है—
साधु मातुल गीतेन मया ो ोऽ प न थतः ।
अपूव ऽयं म णब ः स ा तं गीतल णम् ।।
क एक गीदड़ गधे से कह रहा था—मामा! मने तु ह गीत गाने से कतना रोका, क तु तुमने
मेरी बात नह मानी। अब गले म पड़ी इस ओखली को ढोते ए तो तु ह अपने कये पर
पछतावा हो रहा होगा?
च धर ने इस कथा को सुनना चाहा, तो वण स उसे सुनाने लगा।

Downloaded from www.PDFshala.com


कथा म : सात
एक धोबी अपने उ त नामक गधे को खुला छोड़ दया करता था। वह गधा रात-भर घूम-
फरकर सवेरे अपने आप धोबी के घर प ंच जाता था। रात म घूमते-घामते उस गधे क एक
गीदड़ से दो ती हो गयी। दोन रात म ककड़ी-खीरे आ द के खेत म घुस जाते, जी-भरकर
खाते और सवेरा होने से पहले ही अपने ठकाने पर लौट आते।
चांदनी रात म एक बार खा-पीकर म त ए गधे ने जब कुछ गाने क इ छा कट क ,
तो गीदड़ ने उसे समझाते ए कहा—मामा! हम यहां चोरी करने आये ह, या चोर को शोर
मचाना चा हए? शा का वचन है—
कासयु यजे चौ य न ालु े स चो रकाम् ।
ज ालौ यं जा ा तो जी वतं योऽ वा छ त ।।
क जस कार जीने क इ छा करने वाले रोगी के लए जीभ के वाद को छोड़ना आव यक
है, उसी कार खांसी के रोगी और न द के ेमी के लए भी चोरी का ध धा ठ क नह है। इन
दोन को यह काम कभी नह करना चा हए।
फर तु हारा वर भी तो कुछ मधुर नह है, फटे बांस-जैसी तु हारी आवाज़ है। खेत
के रखवाले तु हारी आवाज़ को सुनते ही ल लेकर दौड़े आयगे। अतः मेरी मानो, भूलकर
भी ऐसी ग़लती मत करना।
गधा बोला—लगता है क तुझे संगीत क कोई जानकारी नह है, वरना तू मुझे गाने से
कभी न रोकता। अरे मूख!
शर यो नाहते रं तम स यस धौ ।
ध यानां वश त ो े गीतझंकारजा सुधा ।।
शरद ऋतु क चांदनी रात म अपने यजन के सामने गाना गाने और सुनने का आन द
क ह भा यशा लय को ही मलता है। म तो गीत गाने का न य कर चुका ं।
गीदड़ बोला—मामा! तु ह गाना-वाना नह आता और तु हारे गाने म कोई रस भी
नह है, तुम तो केवल रकते हो।
इस पर नाराज़ होता आ गधा बोला—म संगीत- व ा म न णात ं। तुम संगीत के
मह व को या जानो?
ना य ता यं लोके दे वानाम प यते ।
शु क ायु वरा ादा य ं ज ाह रावणः ।।
इस संसार म गीत से अ धक रोचक और कुछ भी नह है। तप या करके अपनी
इ य को सुखाने वाले रावण ने गीत गाकर ही शंकर भगवान् को स करके उ ह अपने
वश म कर लया था।

Downloaded from www.PDFshala.com


गीदड़ ने कहा—मामा! अगर तुमने पटने क ही ठान रखी है, तो दो मनट क
जाओ, मुझे छप जाने दो और फर मज़े से गाना।
गीदड़ तुर त झा ड़य म छप गया और गधा चीख़ने- च लाने लगा। खेत के रखवाल
ने पहले तो ड ड से गधे क अ छ -ख़ासी मर मत क और फर उसके गले म एक ओखली
लटका द । दद से कराहते ए गधा थोड़ी दे र म उठकर खड़ा हो गया।
सारमेय य चा य रासभ य वशेषतः ।
मु ता परतो न या हारज नता था ।।
वा तव म, कु े, घोड़े और वशेषतः गधे पर मार-पीट का असर कुछ दे र के लए ही
रहता है, इसी लए इन जानवर को ढ ठ कहा गया है।
गले म ओखली पड़ी होने से चलने म असमथ गधे को दे खकर गीदड़ बोला—
साधु मातुल गीतेन मया ो ोऽ प न थतः ।
अपूव ऽयं म णब ः स ा तं गीतल णम् ।।
मामा! वाकई तु हारा गाना बड़ा सुरीला था, तभी तो तु ह पुर कार म इतनी बड़ी म ण मली
है।
यह कथा सुनाकर वण स बोला— म ! इसी कार तुमने भी मेरे कहे को
अनसुना कर दया था।
च धर बोला—शा कार ने ठ क ही कहा है—
य य ना त वयं ा म ो ं न करो त यः ।
स एव नधनं या त यथा म थरकौ लकः ।।
क बु हीन अपने म के कथन से कोई भी लाभ नह उठा पाता, इसी लए म थर
जुलाहे के समान उसका भी वनाश हो जाता है।
वण स क ज ासा को शा त करने के लए च धर उसे म थर जुलाहे क कथा
सुनाने लगा।

कथा म : आठ
म थर नामक जुलाहे के कपड़ा बुनने के सारे औज़ार टू ट-फूट गये, तो वह नये औज़ार के
लए लकड़ी काटने पास के जंगल म जा प ंचा।
सु दर और मज़बूत लकड़ी क खोज म वह समु के कनारे ब त र तक चला गया।
अ त म उसे शीशम का एक वृ दखाई दया, तो वह स होकर उसे काटने के लए
कु हाड़ी चलाने लगा। उस वृ पर कसी दे वता ने अपना आवास बना रखा था। समु के
कनारे होने के कारण वह थान अ य त सुखद था और उस दे वता को य भी था। दे वता ने

Downloaded from www.PDFshala.com


जुलाहे से उस वृ को न काटने को कहा, तो जुलाहे ने कहा—म सारा दन भटकने के बाद
इस वृ को ढूं ढ़ पाया ं और अपने सारे औज़ार टू ट जाने के कारण अपनी रोज़ी-रोट भी
नह कमा सकता। य द मने इस वृ को नह काटा, तो म और मेरा प रवार भूखा मर
जायेगा।
यह सुनकर दे वता बोला—ठ क है, इस वृ को न काटने के बदले म तु ह मुंहमांगा
वर दे ने को तैयार ं। तु ह जो चा हए, मांग लो। मूख जुलाहा बोला—इसके लए मुझे अपनी
प नी से सलाह करनी होगी, उसके लए मुझे कुछ समय चा हए। दे वता ने समय दे ना
वीकार कर लया, तो जुलाहा अपने घर वापस लौट गया।
गांव म घुसते ही जुलाहे को नाई मल गया। जुलाहे ने दे वता के स होने क बात
नाई को बताकर उससे पूछा क उसे दे वता से या मांगना चा हए?
नाई बोला—तुम दे वता से रा य मांग लो, तुम राजा बनकर रा य करोगे, तो म तु हारा
म ी बन जाऊंगा। राजा से बढ़कर इस पृ वी पर सरा कौन होता है?
राजा दानपरो न य मह क तमवा य च ।
त भावा पुनः वग प ते दशैः सह ।।
राजा को न य त दान करने के कारण इस लोक म यश मलता है, तो परलोक म
सद्ग त ा त होती है। उसे दे व के साथ सुख-भोग का अवसर भी ा त होता है। इस कार
रा य से अ छा अ य कुछ भी नह ।
जुलाहे ने कहा—तु हारी सलाह उ चत है, फर भी, म अपनी प नी से पूछना
आव यक समझता ं।
नाई बोला— म ! अपनी प नी से पूछने क ग़लती मत करना। शा म इसक
मनाही है; य क य क बु अ य त अ प होती है, वे ठ क से सोच नह सकत ।
भोजना छादने द ा तुकाले च स मम् ।
भूषणा च नारीणां न ता भम ये सुधीः ।।
शा के अनुसार— य को मनचाहा भोजन, व एवं आभूषण आ द दे ने म कोई
बुराई नह । ऋतुकाल म उनके साथ मैथुन करके उ ह स रखने म भी कोई बुराई नह ,
क तु बु मान् को उनके साथ सलाह-मशवरा कभी नह करना चा हए।
य ी य कतवो बालो य ा शा सतः ।
तद् गृहं यमाया त भागवो हीदम वीत् ।।
य क गु वर शु ाचाय के अनुसार अ श त य , जन और अनाड़ी शासक
के साथ वचार- वमश करने वाला और उनके साथ रहने वाला गृह थ न हो जाता है।
जुलाहा बोला—तु हारा वचन स य है, ले कन म अपनी प त ता ी से पूछे बना
कुछ भी नह कर सकता।
जुलाहे ने घर प ंचकर अपनी प नी को दे वता के स होने तथा मुंहमांगा वर दे ने क

Downloaded from www.PDFshala.com


बात बताकर, नाई ारा द गयी रा य मांगने क सलाह से भी प र चत करा दया। इस पर
जुलाहे क प नी बोली—प तदे व! तुम उस नाई क मूखतापूण बात म मत आ जाना।
शा का कथन है—
चारणैव द भन चैना पतैबालकैर प ।
न म ं म तमा कु या सा भ ु भरेव च ।।
क बु मान् को चारण , भाट , नीच पु ष , नाइय , बालक और भ ुक के साथ
कभी सलाह-मशवरा नह करना चा हए। रा य करना कौन-सा ब च का खेल है? स ध,
व ह आ द के कारण रा य से अ धक क दायक कुछ भी नह है।
यदै व रा ये यतेऽ भषेक-
तदै व या त सनेषु बु ः ।
घटा नृपाणाम भषेककाले
सहा भसैवापदमु र त ।।
रा य पाते ही क बु हो जाती है और वह अनेक कार के सन म
भी फंस जाता है। राजा के अ भषेक के समय बड़े-बड़े कलश से जो जल डाला जाता है,
वह वप य का अ बार होता है।
राम य जनं वने नवसनं
पा डोः सुतानां वनं
वृ णीनां नधनं नल य नृपते
रा या प र ंशनम् ।
सौदासं तदव थमजुनवधं
स च य लंके रं
् वा रा यकृते वड बनगतं
त मा त ा छयेत् ।।
रा य के कारण ही ीराम को चौदह वष तक वन म भटकना पड़ा। रा य के कारण
ही कौरव और पा डव के बीच महाभारत का यु आ। रा य के कारण ही य वं शय का
सवनाश आ, रा य के कारण ही गु के शाप से सुदास को रा स यो न म जाना पड़ा और
रा य के कारण ही कातवीय और रावण का वध आ। इन सब बात पर वचार करने के
बाद भी बु मान् को रा य क आकां ा करने का अथ सब कार क वप य का
आ ान करना ही समझना चा हए।
यदथ ातरः पु ा अ प वा छ त ये नजाः ।
वधं रा यकृतां रा ां त ा यं रत यजेत् ।।
प तदे व! जस रा य के लए पता अपने पु का श ु बन जाता है, भाई अपने भाई

Downloaded from www.PDFshala.com


क ह या कर दे ता है, ऐसे रा य को तो र से ही नम कार करने म समझदारी है?
जुलाहा बोला— ये! तुम ठ क कहती हो, रा य क इ छा करना तो थ है। फर
या मांगना चा हए?
प नी ने उ र दया—तुम एक दन म बीस गज़ कपड़ा बुन लेते हो और उससे हमारे
घर का ख़च आसानी से चल जाता है। य द तु हारे एक सर और दो भुजाएं और लग जाय,
तो तुम त दन गुना कपड़ा बुन सकोगे। तब आधी आमदनी से घर का ख़च चल जाया
करेगा और आधी आमदनी जमा होती रहेगी। फर कुछ ही दन म हम अपने समाज म धनी
और त त कहलाने लगगे। इस लए तुम तो उस दे वता से एक अ त र सर और दो
अ त र भुजाएं ही मांग लो।
जुलाहे को भी अपनी प नी का ताव उ चत लगा और उसने दे वता के पास जाकर
यही मांगा। दे वता के ‘तथाऽ तु’ कहते ही उसके सर के पीछे एक अ त र सर और दो
अ त र भुजाएं लग गय । जब इस प म वह जुलाहा गांव म व आ, तो लोग ने उसे
रा स समझ लया और पीट-पीटकर मार डाला। इसी लए कहा गया है—
य य ना त वयं ा म ो ं न करो त यः ।
स एव नधनं या त यथा म थरकौ लकः ।।
क जस के पास अपनी बु नह होती और जो म क सलाह भी नह मानता,
ऐसा म थर जुलाहे के समान अकारण ही अपने ाण को गंवा बैठता है।
यह कथा सुनाकर च धर बोला—इसम कोई स दे ह नह क आशा के च कर म पड़े
न केवल अपना अ हत करते ह, अ पतु सर के उपहास का पा भी बनते ह। कसी
ने ठ क ही कहा है—
अनागतवत च तामस भा ां करो त यः ।
स एव पा डु रः शेते सोमशम पता यथा ।।
क अस भव एवं अनागत क च ता करने वाला सोम शमा के पता के समान वयं
अपना अ हत करके हाथ ही मलता रह जाता है।
वण स ने सोम शमा के पता क कथा सुनने क ज ासा कट क , तो च धर
उसे यह कथा सुनाने लगा।

कथा म : नौ
एक कंजूस ा ण ने भ ा म ा त और अपने खाने से बचाये स ु को एक मटके म
भरकर रख दया था। वह उस मटके को सदा अपनी आंख के सामने रखता था और उसी के
बारे म सोचता रहता था।

Downloaded from www.PDFshala.com


एक रात व म वह सोचने लगा क दे श म अकाल पड़ गया है और लोग दाने-दाने
को तरसने लगे ह। मने बड़े ऊंचे दाम म अपने स ू को बेचकर ख़ूब धन कमा लया है। उस
धन से मने घोड़ का ापार कया है और अब म लखप त सेठ बन गया ं। मेरे पास घर के
नाम पर एक बड़ा-सा महल है, जसम मेरी प नी अपने ब च के साथ आन दपूवक रहती
है।
थोड़ी दे र म उसका व कुछ आगे बढ़ा, तो उसने दे खा क मेरी प नी ब च के हठ
के कारण सारा दन उ ह सजाने-संवारने म ही लगी रहती है। इस लए मेरी सेवा करना तो र
रहा, मेरे बुलाने पर भी मेरे पास नह आती। प नी ारा मेरी इस उपे ा का कारण मेरा छोटा
बेटा सोम शमा है। य द इस बार उसने अपनी मां को तंग कया, तो म उसे ऐसी लात मा ं गा
क उसे अपनी नानी याद आ जायेगी। यह सोचकर उसने अपनी टांग हलायी तो वह उसके
पैताने रखे स ू के मटके को जा लगी, जससे वह मटका उलटकर उसके शरीर पर आ गरा
और स ू से उसका सारा शरीर नहा गया। तभी तो कहा गया है—
अनागतवत च तामस भा ां करो त यः ।
स एव पा डु रः शेते सोमशम पता यथा ।।
क अनागत और अस भव बात पर च ता करने वाला मूख सोम शमा के पता—कंजूस
ा ण—के समान अपना सव व गंवाकर हाथ मलता रह जाता है।
वण स ने कहा—इसम तु हारा कोई दोष नह है। लोभ के कारण ायः सभी लोग
क म पड़ते रहते ह। कहा भी गया है—
यो लौ या कु ते कम नैवोदकमवे ते ।
वड बनामवा ो त स यथा च भूप तः ।।
क प रणाम पर सोच- वचार कये बना, जो हड़बड़ी म काम करता है, वह राजा च
के समान ही तर कृत होता है।
च धर क ज ासा पर वण स उसे राजा च क कथा सुनाने लगा।

कथा म : दस
कसी नगर के राजा च के बड़े बेटे वानर के साथ खेलते थे और अपने साथी वानर को
अपने-जैसा ही पौ क भोजन खलाया करते थे, जसे खाकर वे वानर ख़ूब -पु हो गये
थे। राजमहल म छोटे ब चे मेढ़ के साथ खेलते थे। इस कार वानर के झु ड के साथ ही
मेढ़ का भी एक झु ड उस राजमहल म पलता था। मेढ़े ज ा क लोलुपता के कारण ायः
रसोईघर म घुस जाते और पक ई भोजन-साम ी खा जाते। रसोइये उ ह भगाने के लए
हाथ म आये बरतन, झाड तथा ड डा आ द कुछ भी उन पर फक दया करते थे।

Downloaded from www.PDFshala.com


वानर का नेता केवल आयु म ही वृ नह था, अ पतु ान और नी त म भी नपुण
था। उसने अपनी र से यह अनुमान लगा लया क मेढ़ के धूततापूण वहार के
कारण उसके वानरकुल का वनाश हो सकता है। इस लए उस वृ वानर ने सोचा क चटोरे
मेढ़े तो रसोई म जाना छोड़गे नह , ले कन रसोइया कसी दन उन पर जलती ई लकड़ी भी
फक सकता है। तब मेढ़े भागकर अ शाला म घुस जायगे, जहां एक करके रखी गयी सूखी
घास म लगी आग से घोड़े घायल हो जायगे। तब राजा के घोड़ के इलाज के लए वै
ब दर क चब क आव यकता बतायेगा, जसके लए राजा हम वानर के वध का आदे श दे
दे गा। अतः इस थ त के आने से पहले ही मुझे अपने प रजन को बचा लेना चा हए।
यह सोचकर उसने तुर त ही सभी वानर को बुलाकर कहा—
मेषेण सूपकाराणां कलहो य जायते ।
स भ व य यस द धं वानराणां यावहः ।।
म ो! मेढ़ ारा न य त होने वाला उ पात और रसोइय ारा उन पर कया जा रहा हार
अव य ही एक-न-एक दन हम वानर के वनाश का कारण बन जायेगा।
त मा या कलहो य गृहे न यमकारणः ।
तद् गृहं जी वतं वा छ रतः प रवजयेत् ।।
कसी ने ठ क ही कहा है क जस घर के दो समुदाय म नर तर यु -संघष अथवा
वैर- वरोध चलता रहता है, उस घर म रहना नरापद नह होता। वहां रहने वाल को दे र-सवेर
संकट का शकार होना ही पड़ता है।
कलहा ता न ह या ण कुवा या त च सौ दम् ।
कुराजा ता न रा ा ण कुकमा तं यशो नृणाम् ।।
शा के अनुसार—कलह के कारण घर, न दा अथवा चुग़ली के कारण म ता,
कुशासन के कारण रा य तथा कुकम के कारण मनु य के यश न हो जाते ह।
ऐसी थ त के आने से पहले ही हम इस घर को छोड़ दे ना चा हए; य क आग
लगने पर उसे बुझाने के लए कुआं खोदने म कोई समझदारी नह होती।
अपने नेता के वचार से असहम त कट करते ए एक वानर बोला—लगता है क
तुम स ठया गये हो। बुढ़ापे म तु हारी सोच भी बूढ़ हो गयी है। कहा भी गया है—
वदनं दशनैह नं लाला व त न यशः ।
न म तः फुर त वा प बाले वृ े वशेषतः ।।
क दांत से र हत और नर तर लार टपकाते रहने वाले बूढ़ क बु भी बालक क बु
के समान कु ठत हो जाती है। बालक क बु तो वक सत ही नह ई होती, ले कन बूढ़
क बु हो जाती है। हम तो राजमहल के वा द भोजन और सुखद आवास को
केवल क पना के भय से छोड़कर कह नह जायगे।

Downloaded from www.PDFshala.com


नेता ने वानर को समझाते ए कहा—आज तु ह यह सुख बड़ा यारा लग रहा है,
क तु इसका भयंकर प रणाम तुम नह दे ख रहे हो। अभी संभल जाओ, वरना बाद म हाथ
मलते रह जाओगे। तब कुछ नह हो सकेगा। म तुम सबका वनाश नह दे खना चाहता।
म ं सनस ातं व थानं परपी डतम् ।
ध या ते ये न प य त दे शभंगे कुल यम् ।।
ःख से त म को, श ु से पी ड़त अपने थान को, दे श के नाश को तथा अपने
कुल के य को न दे खने वाले ही सौभा यशाली कहलाते ह।
यह कहकर वानर का नेता अकेला ही वहां से चल दया। कुछ दन बाद मेढ़ के
उ पात से परेशान रसोइय ने उन पर जलती ई लक ड़यां फक द , तो झुलसते ए मेढ़े
रसोई से लगी अ शाला म घुस गये और वहां रखी घास म आग लगने से पूरी अ शाला ही
जल उठ । अ शाला म बंधे घोड़े बुरी तरह जल गये, कुछ तो अपनी आंख ही गंवा बैठे।
सभी घोड़ क चमड़ी बुरी तरह जल चुक थी।
राजा ने पशु- च क सक से घोड़ के इलाज और ओष ध के बारे म पूछा, तो उसने
वानर क चब क आव यकता बतायी, जसक पू त के लए वानर का सामू हक वनाश
कर दया गया। वै बोला—
कपीनां मेदसा दोषो व दाहसमु वः ।
अ ानां नाशम ये त तमः सू य दये यथा ।।
जस कार सूय दय से अ धकार का वनाश हो जाता है, उसी कार वानर क चब
से घोड़ क जलन शा त हो जाती है।
वानर के नेता को जब सभी वानर के वनाश का पता चला, तो वह पागल क भां त
जंगल म इधर-उधर घूमने लगा। उसे अपने प रवार का सामू हक वनाश करने वाले राजा से
बदला लये बना चैन नह पड़ रहा था।
मषयेदघषणं
् योऽ वंशजां पर न मताम् ।
भया ा य द वा कामा स ेयः पु षाधमः ।।
स य तो यह है क सर के ारा कये गये अपने कुल के अपमान अथवा वनाश को
भय, लोभ अथवा कायरता के कारण अनदे खा करने वाला अधम कहलाता है।
जंगल म भटकते-भटकते उस वृ वानर क वहां एक सरोवर म रहने वाले कसी
रा स से भट हो गयी। उस रा स ने अपने गले म मू यवान् मो तय क एक माला पहन
रखी थी। वह रा स जल म घुसे जीव को तो खा सकता था, पर तु वह पृ वी पर रहने वाले
कसी भी ाणी को छू भी नह सकता था। उस रा स ने कमल के ड ठल से जल पीते ए
उस वृ वानर को दे खा, तो उससे म ता करने क इ छा से उसके पास आकर बोला—म
ब त दन से भूखा ;ं य क यहां इस जल म कोई व ही नह आ। मुझे केवल जल म
घुसे को ही खाने का वर मला आ है। रा स ने यह भी बताया क वह जल म व

Downloaded from www.PDFshala.com


ए सैकड़ य को एक साथ खा सकता है।
वृ वानर को लोभन दे ते ए रा स ने कहा—य द तुम मेरे लए खाने क कुछ
व था कर सको, तो म तु ह अमू य हीर क यह माला पुर कार म दे ं गा।
वानर के नेता ने राजा से बदला लेने का इसे अ छा अवसर समझा और रा स से
बोला—तु ह मुझ पर व ास करके पहले यह माला मुझे दे नी होगी। इसी के ारा म लोग
को तु हारे भोजन के लए सरोवर म वेश करा सकूंगा। यह सुनकर रा स ने वह माला उस
वृ वानर को स प द ।
उस माला को अपने गले म पहनकर वृ वानर राजा च के पास गया, तो राजा ने
ेमपूवक उसका वागत कया और इतने दन तक दखाई न दे ने का कारण पूछा। इसके
साथ ही उसने वानर के नेता के गले म पड़ी क़ मती माला के स ब ध म भी पूछा।
वानर बोला—महाराज! मुझे कुबेर का सरोवर मल गया है, जसम नान करने वाले
माला पहनकर ही बाहर नकलते ह।
राजा ने वानर से कहा क तुम ऐसी झूठ बात य कर रहे हो?
इस पर वानर क़सम खाकर बोला—य द मेरा वचन म या स हो, तो आप मुझे
फांसी पर लटका दे ना।
यह सुनकर तो राजा के मुंह म पानी आ गया।
उसने पूछा— या तुम मेरे प रजन को वह सरोवर दखा सकते हो?
वानर बोला—महाराज! मने आपका नमक खाया है, आपको वह सरोवर दखाना तो
मेरा कत है। इस पर राजा च वानर का वागत करने लगा।
तृ णे दे व! नम तु यं यया व ा वता अ प ।
अकृ येषु नयो य ते ा य ते गमे व प ।।
दे खा जाये, तो तृ णा क म हमा ही ऐसी है क उसके फेर म पड़े धनी-मानी भी
अनु चत काय करने और भटकने के लए तैयार हो जाते ह।
इ छ त शती सह ं सह ी ल मीहते ।
ल ा धप तथा रा यं रा य थः वगमीहते ।।
इसी तृ णा के कारण सौ वाला हज़ार क , हज़ार वाला लाख क , लाख वाला करोड़
क , करोड़ वाला रा य क और रा य का वामी तीन लोक के वा म व क कामना म
ःख भोगता रहता है।
जी य ते जी यतः केशा द ता जी य त जी यतः ।
जी यत ुषी ो े तृ णैका त णायते ।।
बुढ़ापे म केश सफ़ेद हो जाते ह, दांत गर जाते ह, आंख म दे खने क और कान म
सुनने क श नह रहती, ले कन तृ णा फर भी युवती ही बनी रहती है और लोग को
मनचाहा नाच नचाती रहती है।

Downloaded from www.PDFshala.com


राजा भी अपने प रजन को साथ लेकर वानर के पीछे -पीछे चल दया। सरोवर पर
प ंचकर वानर ने राजा से कहा—आप कनारे पर क और अपने प रजन के नान के बाद
बाहर आने पर उन सब क मालाएं संभालने के बाद ही वयं जल म वेश कर।
राजा को वानर का सुझाव ठ क लगा और उसने अपने प रवार के लोग को सरोवर म
जाने को कह दया। इसी बीच वानर कूदकर वृ पर चढ़ गया और राजा से बोला—राजन्!
तुमने मेरे कुल का नाश कया था, अब मने तु हारे कुल का नाश कर दया है। तु हारे प रवार
के सारे सद य इस सरोवर म रहने वाले रा स के पेट म समा चुके ह। मने सोचा क जस
कार म अपने प रवार के वनाश से तड़प रहा ं, वैसे ही तुम भी तड़पो, इसी लए तु ह
सरोवर म नह जाने दया था। कहा भी गया है
कृते तकृ त कु या सते त ह सतम् ।
न त दोषं प या म े दौ यं समाचरेत् ।।
क उपकारी के संग उपकार, हसक के साथ हसा और के साथ ता करना ही याय
और धम है, इसम कुछ भी अनु चत नह ।
वानर के वचन सुनकर खी और नराश राजा चुपचाप घर को लौट गया। इधर रा स
सरोवर से बाहर आकर वानर क शंसा म बोला—
हतः श ुः कृतं म ं र नमाला न हा रता ।
नालेन पबतः तोयं भवता साधु वानर ।।
हे वानर! तुम सचमुच बु मान् हो। तुमने बड़ी आसानी से मुझसे म ता करके अपने
अपकारी से बदला ले लया, उसके कुल का सामू हक वनाश करके अपनी छाती ठ डी कर
ली, साथ ही मेरी द ई माला भी सुर त बचा ली। अब इस माला पर तु हारा अ धकार है।
यह कथा सुनाकर वण स बोला—
यो लौ या कु ते कम नैवोदकमपे ते ।
वड बनामवा ो त स यथा च भूप तः ।।
इसी लए म कहता ं क सोच- वचार कये बना ज दबाज़ी म काम करने वाला राजा
च के समान अपने समूचे प रवार का वनाश कर दे ता है।
वण स च धर से बोला—अब तुम मुझे जाने क अनुम त दो। ब त बात हो
चुक , मुझे घर लौटना है।
च धर बोला— या अपने म को इस कार संकट म अकेला छोड़कर तु ह अपने
घर चले जाना बुरा नह लगता? य द म ही म को संकट म छोड़ दे , तो उ ार का या
उपाय है?
य य वा सापदं म ं या त न ु रतां सु त् ।
कृत न तेन पापेन नरके या यसंशयम् ।।

Downloaded from www.PDFshala.com


म को वप म छोड़ जाने वाला कृत न कहलाता है और एक दन उसे
वयं इस वप को झेलना पड़ता है।
वण स बोला—य द म के लए स भव हो, तो उसे संकट म पड़े म क
सहायता अव य करनी चा हए, क तु जब म तु हारा कसी कार उ ार नह कर सकता,
तो तु हारी पीड़ा को दे खते रहना भी मेरे लए उ चत नह है। कह तु हारे साथ मुझ पर भी
वप न आ जाये, यह भी सोचने क बात है।
या शी वदन छाया यते तव वानर ।
वकालेन गृहीतोऽ स यः परै त स जीव त ।।
अपनी सहायता करने वाले वानर के चेहरे के भाव को दे खकर रा स बोला— म !
मुझे लगता है क मेरी सहायता के च कर म पड़कर तुम भी वकाल नामक दै य का शकार
बन गये हो।
च धर ने पूछा—यह कैसी कथा है?
इस पर वण स उसे वकाल दै य क कथा सुनाने लगा।

कथा म : यारह
कसी नगर के राजा भ सेन क क या ब त सु दर थी। वकाल नामक एक रा स उस पर
मु ध होकर उसके हरण क चे ा म रात को आता था, क तु सुर ा क ढ़ता के कारण
सफल नह हो पाता था। फर भी, वह बलपूवक उस क या से स भोग करता था। क या उस
रा स को सहन न कर पाने के कारण भयभीत होकर सहमी-सहमी रहती थी।
एक रात उस रा स ने राजकुमारी को अपनी सखी से यह कहते सुना— या आधी
रात म मेरा हरण करने के लए आने वाले इस रा स को न करने का कोई उपाय नह है?
रा स ने सोचा क मेरी तरह कोई अ य रा स भी राजकुमारी को पाने के लए य न
कर रहा लगता है। इस स य को जानने के लए उसने एक घोड़े का प धारण कया और
घोड़ के बीच शा मल हो गया। संयोग क बात क उसी रात घोड़ का एक ापारी वहां
आया और उसने उसी (रा स) घोड़े को ख़रीद लया।
ापारी ने घोड़े को लगाम के नय ण म न रहते दे खा, तो वह च तत हो उठा।
बेतहाशा भागते घोड़े पर सवार ापारी ने माग म एक वृ दे खा, तो वह घोड़े को छोड़कर
वृ क शाखा से लटक गया।
ापारी जस वृ क शाखा से लटककर अपना बचाव करने म सफल आ था,
उसी वृ पर उस रा स का म एक वानर रहा करता था। उसने रा स को स बो धत करते
ए कहा क यह मनु य तो तेरा भोजन है, तू इसे छोड़कर कहां भागा जा रहा है। वानर ारा

Downloaded from www.PDFshala.com


अपने को रा स का आहार बताते दे खकर उस ापारी ने वानर क पूंछ को इस कार
पकड़कर ख चा क वानर क बोलती ब द हो गयी और उसका चेहरा पीला पड़ गया। अपने
म वानर के चेहरे पर उभरी पीड़ा को दे खकर रा स बोला—
या शी वदन छाया यते तव वानर ।
वकालेन गृहीतोऽ स यः परै त स जीव त ।।
तु हारे चेहरे के हाव-भाव को दे खकर तो लगता है क तु ह भी वकाल रा स ने दबोच रखा
है। तभी तो म भागा जा रहा था; य क ाण क र ा का यही एक उपाय था।
यह कहता आ वह रा स वहां से भाग नकला।
यह कथा सुनाकर वण स बोला—इसी लए कहता ं क अब तुम मुझे घर जाने
दो। लोभ के फल को भुगतना ही तु हारी नय त है, मुझे य फंसा रहे हो?
च धर बोला— म ! यह ःख मेरे लोभ का फल नह है, यह तो अव य ही पूवज म
के मेरे कसी कुकम का फल है। कहा भी गया है—
ग कूटः प रखा समु ो
र ां स योधा धनदा च व म् ।
शा च य योशनसा णीतं
स रावणो दै ववशा प ः ।।
क कूट पवत-जैसे सुर त ग, समु -जैसी खाई और रा स -जैसे यो ा रखने वाला,
कुबेर से धन ा त करने वाला तथा शु नी त का कुशल वे ा रावण भी भा य के दोष से ही
वनाश को ा त आ था।
अ धकः कु जक ैव तनी राजक यका ।
योऽ य यायतः स ाः स मुखे कम ण थते ।।
अ धा व लंगड़ा पु ष तथा तीन तन वाली राजक या राचारी होने पर भी भा य के
अनुकूल होते ही दोष से नवृ हो गये थे।
वण स को यह कथा सुनाते ए च धर बोला—

कथा म : बारह
मधुपुर नामक नगर का राजा मधुसेन अ य त भोग य था। उसके घर तीन तन वाली एक
लड़क ने ज म लया, तो उसे अपने लए अशुभ मानकर राजा ने अपने व त सेवक से
कहा क वे उसे कह र जंगल म छोड़ आय।
सेवक बोला—महाराज! न स दे ह यह क या याग दे ने के यो य है, फर भी, हमारा
नवेदन है क इस बारे म ा ण से पूछ लेना उ चत रहेगा;

Downloaded from www.PDFshala.com


यः सततं प रपृ छ त शृणो त स धारय य नशम् ।
त य दवाकर करणैन लनीव वव ते बु ः ।।
य क सदा पूछते रहने वाले तथा मनन करने वाले क बु सूय क करण के ारा
वक सत होने वाले कमल के समान सदा वक सत होती रहती है।
पृ छकेन सदा भा ं पु षेण वजानता ।
रा से गृहीतोऽ प ा मु ो जः पुरा ।।
बु मान् तो से ा त उ र के ारा ही उप थत संकट से अपना उ ार
करने म सफल हो जाते ह। रा स के चंगुल म फंसा ा ण भी इसी कार मु हो गया था।
राजा क उ सुकता पर सेवक उसे यह कथा सुनाने लगा।

कथा म : तेरह
जंगल म रहने वाला च डकमा रा स उधर से गुज़र रहे ा ण के क धे पर सवार होकर
बोला—चल, मुझे सरोवर पर ले चल।
ा ण बड़ी क ठनाई से उस रा स को उठाकर चलने लगा। इसी बीच रा स के
चरण क कोमलता को दे खकर ा ण ने पूछ लया—भ ! तु हारे चरण इतने कोमल कैसे
ह?
इस पर रा स ने बताया—म कभी गीले पैर से धरती पर नह चलता।
सरोवर पर प ंचकर रा स ने अपने नान करने तक ा ण को कनारे पर बैठकर
अपने लौटने क ती ा करने को कहा। ा ण चुपचाप बैठ गया, ले कन जब वह रा स
सरोवर म व हो गया, तो ा ण ने सोचा क यह मुझे अपना आहार बनाकर ही
मानेगा, पर तु यह गीले पांव को तो धरती पर रखेगा नह , अतः मुझे अभी भाग नकलना
चा हए। यह सोचकर वह भाग नकला। इस कार उसे रा स से मु मल गयी। इस लए
म कहता ं
पृ छकेन सदा भा ं पु षेण वजानता ।
रा से गृहीतोऽ प ा मु ो जः पुरा ।।
क कसी से कुछ पूछ लेने म कोई बुराई नह होती, अतः बु मान् को कसी से कुछ
पूछने म संकोच नह करना चा हए। पूछने से ही तो वह ा ण उस रा स के चंगुल से मु
हो सका था।
सेवक के कहने पर राजा ने ा ण को बुलाकर उ ह अपनी तीन तन वाली क या
से मु का उपाय बताने को कहा, तो ा ण ने कहा—महाराज! सु नये।
हीना वाऽ धका वा या भवे क यका नृणाम् ।

Downloaded from www.PDFshala.com


भतुः या सा वनाशाय वशील नधनाय च ।।
न स दे ह, हीन अथवा अ धक अंग वाली क या अपने पतृकुल और प तकुल के
वनाश का कारण होती है।
या पुन तनी क या या त लोचनगोचरम् ।
पतरं नाशय येव सा तं ना संशयः ।।
पता को तो अपनी तीन तन वाली क या को दे खना भी नह चा हए। उसका तो
दशन भी अ न कारक होता है। इसम कोई स दे ह नह है। अतः आपका इसे कह छोड़ आने
का नणय तो उ चत ही है, ले कन फर भी पु ी के त पता का कुछ कत बनता है।
हमारे वचार म आप नगर म घोषणा ारा यह चा रत कर क य द कोई इस तीन तन
वाली लड़क से ववाह करेगा, तो उसे दहेज के प म एक लाख वण मु ाएं द जायगी,
ले कन उसे इस लड़क के साथ मेरे दे श से नकल जाना होगा। यह सब कहने के प ात्
ा ण बोले—राजन्! इससे आपको क या- याग का दोष भी नह लगेगा और संकट भी
टल जायेगा।
राजा ने ा ण के परामश को गौरव दे ते ए नगर-भर म चा रत कर दया।
उस नगर म दो म —एक अ धा और एक कुबड़ा—साथ-साथ रहते थे। अ धा
कुबड़े क सहायता से ही चलता- फरता था। ग़रीबी म दन बता रहे उन दोन ने सोचा क
य द राजा अपनी लड़क दे ने को सहमत हो जाये, तो एक लाख वण मु ा से कह भी
जाकर सुखपूवक जीवन बताया जा सकता है। कहा भी है
ल जा नेहः वरमधुरता बु यो यौवन ीः
का तास ो वजनममता ःखहा न वलासः ।
धमः शा ं सुरगु म तः शौचमाचार च ता
पूण सव जठर पठरे ा णनां स भव त ।।
क पेट भरने क सु वधा उपल ध होने पर ही कसी के लए ल जा, नेह, मधुर
भाषण, बु - वलास, यौवन क चमक-दमक, ी का संग-साथ, ब धु से नेह-स ब ध,
ःख-नाश, वलास, धम-कम, शा -चचा, दे व-गु -पूजन, भ , जीवन को प व बनाना
तथा सदाचार का पालन आ द सभी काय को करना स भव होता है। पेट क आग बुझाने
क व था न होने तक कोई भी कुछ भी शुभ-अशुभ करने म वृ नह होता।
कुबड़े ने अ धे से कहा—तुम इस अवसर को अपने हाथ से मत जाने दो।
अ धे को भी कुबड़े का यह सुझाव अ छा लगा और उसने राज ार पर जाकर गुहार
लगायी, तो राजा ने सोचा—
अ धो वा व धरो वा प कु ी वा य यजोऽ प वा ।
तगृ ातु तां क यां सल ां या दे शजः ।।

Downloaded from www.PDFshala.com


मने अपनी क या के स ब ध म जब कोई शत नह लगायी, तो सबसे पहले जो भी —
भले ही वह अ धा, बहरा, कोढ़ अथवा शू हो—इ छु क बनकर आयेगा, म उसे ही धनरा श
और दे श नकाले के साथ अपनी क या ं गा।
राजा के आदे श से नगर क सीमा पर थत नद के कनारे तनी राजकुमारी का
उस अ धे के साथ ववाह करा दया गया। अ धा अपनी प नी के साथ सरे दे श को चला,
तो कुबड़ा भी उनके साथ हो लया।
तीन कसी नये दे श म जाकर बसे, तो अ धा सारा दन पलंग पर लेटा रहता था। घर
का सारा काम-काज कुबड़ा ही कया करता था। धीरे-धीरे कुबड़े का उस तनी से ेम-
स ब ध हो गया। अब वे दोन अ धे को अपने माग का कांटा समझकर उसे र हटाने का
उपाय सोचने लगे। कहा भी गया है
य द या छ तलो व मा दहना मकः ।
सु वादः सागरः ीणां त सती वं जायते ।।
क अ न शीतल, च मा दाहक और समु का जल मधुर एवं पीने के यो य हो सकता है,
क तु य का सती बने रहना सवथा अस भव है।
तनी के कहने पर वष क खोज म भटकता कुबड़ा एक मरे ए सांप को ले
आया, तो तनी ने यह सोचकर सांप को तल-भूनकर अ धे को खलाने का न य कर
लया क वषैले सांप को खाने से अ धा मर भी जायेगा और कसी को स दे ह भी नह होगा।
तनी अपने अ धे प त से बोली—आज आपके लए मने आपक मनपस द मछली
मंगाकर पकायी है। आप इसे कलछ से हलाते-चलाते रह। वधाता का खेल व च है। सांप
के तलने से नकले वषैले धुएं से अ धे क आंख ठ क हो गय और उसे कुछ-कुछ दखाई
दे ने लगा। अ धे को अपनी प नी के साथ कुबड़े के अनु चत स ब ध क भनक लग चुक
थी। फर भी, अस लयत जानने के लए अ धे ने कुछ दे र तक अ धा बने रहने का अ भनय
कया। उसने दे खा क थोड़ी दे र म बाहर आया कुबड़ा उसक प नी का आ लगन-चु बन
करने लगा है। ोधावेश म अ धे ने कुबड़े क टांग पकड़कर उसे शू य म घुमाते ए इतनी
ज़ोर से तनी क छाती पर पटका क कुबड़े का कूबड़ ठ क हो गया और तनी का
तीसरा तन दब गया और वह सामा य ी बन गयी।
अ धकः कु जक ैव तनी राजक यका ।
योऽ य यायतः स ाः स मुखे कम ण थते ।।
इस कार भा य के अचानक ही अनुकूल होने से वे तीन —अ धा, कुबड़ा और
तनी राजकुमारी—सामा य हो गये। अ धा दे खने लगा, कुबड़े का कूबड़ र हो गया और
तनी तनी हो गयी।
यह कथा सुनाकर वण स बोला— वधाता क अनुकूलता होने पर अमंगल से भी
मंगल हो जाता है। फर भी, बु मानी इसी म है क स जन के कथन को मान ही

Downloaded from www.PDFshala.com


ले।
स जन के उपदे श क उपे ा का प रणाम तु हारे सामने है। दे खो,
एकोदराः पृथ ीवा अ यो यफलभ णः ।
असंहता वन य त भार डा इव प णः ।।
य द एक पेट, क तु दो सर वाले तथा एक- सरे को फल खलाने वाले पर पर सहयोग नह
करते, सहम त से नह रहते, तो भार ड प ी क भां त न हो जाते।
च धर को भार ड प ी क कथा सुनाते ए वण स बोला—

कथा म : चौदह
कसी सरोवर पर रहने वाले भार ड प ी का पेट तो एक था, क तु उसके सर दो थे। एक
बार उसे कसी वृ से गरा अमृत के समान एक वा द फल मला, तो पहला मुख उसे
खाते ए बोला—मने आज तक कतने ही मधुर फल खाये ह, क तु इस-जैसा वा द फल
मुझे पहली बार खाने को मला है। सरे मुख ने यह सुना, तो कहा क मुझे भी तो चखाओ,
ता क म भी इसका वाद ले सकूं। पहले मुख ने यह कहकर दे ने से इनकार कर दया क हम
दोन का पेट तो एक ही है और तृ त भी एक-जैसी है, अतः मेरे ारा खाया आ, तु हारे
ारा खाया आ भी तो हो गया।
इस इनकार से सरा मुख ख हो उठा और पहले मुख को द ड दे ने का अवसर
ढूं ढ़ने लगा। एक दन उसे एक वषफल मल गया, जसे खाने को उ त सरे मुख से पहला
मुख बोला—मूख! इससे तो हम दोन का एक साथ अ त हो जायेगा, तशोध लेने का यह
उपाय ठ क नह है, ले कन बदले क आग म जलते सरे मुख ने कुछ नह सुना। फल खाने
का प रणाम तो न त था।
एकोदराः पृथ ीवा अ यो यफलभ णः ।
असंहता वन य त भार डा इव प णः ।।
य द एक पेट और दो सर वाले अपने खान-पान म एक- सरे से सहयोग नह
करते अथवा आपस म मल-जुलकर नह रहते, तो भार ड प ी के समान अपने वनाश को
नम त करने वाले ही स होते ह।
च धर बोला—अब तुम घर जा सकते हो, पर तु मेरा कहा मानो, तो अकेले मत
जाओ; य क शा का वचन है
एकः वा न भु ीत नैकः सु तेषु जागृयात् ।
एको न ग छे द वानं नैक ाथान् च तयेत् ।।
क कसी वा द फल को अकेले नह खाना चा हए, सोते म से कसी एक को नह

Downloaded from www.PDFshala.com


जगाना चा हए, माग म कभी अकेले नह चलना चा हए तथा कसी काय को नबटाने के
लए अकेले सोच- वचार नह करना चा हए।
अ प कापु षो माग तीयः ेमकारकः ।
ककटे न तीयेन जी वतं प रर तम् ।।
भले ही माग म साथ चलने वाला कायर एवं नक मा य न हो, फर भी,
अकेले चलने क बजाय उसे साथ ले लेना अ छा होता है। केकड़े को साथ ले जाने से ही
ा ण सांप के उप व से बच गया था।
वण स क उ सुकता पर च धर उसे यह कथा सुनाने लगा।

कथा म:प ह
एक बार द को कह बाहर जाना पड़ा, तो उसक मां ने उसे अकेला जानकर कसी को
अपने साथ ले लेने को कहा। द मां से बोला—मां! च ता क कोई बात नह है। एक,
तो रा ता सीधा है, सरे, अब म साथी कहां से ढूं ढूं?
यह सुनकर ा णी पास क बावड़ी से एक केकड़े को पकड़कर ले आयी और बेटे
से बोली—बेटा! इस केकड़े को ही अपने साथ ले जा। मां के वचन को स मान दे ते ए
द ने केकड़े को कपूर क एक पु ड़या म बांधा और चल पड़ा।
माग म धूप से बचने के लए द एक वृ क छाया म सो गया। उसी वृ के
कोटर म एक काला सांप रहता था। वह बाहर नकला, तो कपूर क सुग ध से आक षत
होकर वह द को छोड़कर केकड़े क ओर चल दया। य ही वह सांप कपूर को खाने
लगा, य ही केकड़े ने सांप के फन को अपने दांत म दबाकर उसे मार डाला। न द से जागने
पर द ने सांप को मरा दे खा, तो मां के परामश के लए उसके त आभार जतलाने
लगा।
ीणः व त शशी र ववृ ौ
व य त पयसां नाथम् ।
अ ये वप द सहाया
ध ननां यमनुभव य ये ।।
जस कार सूय क सहायता से बढ़ने वाला च मा ीण होने पर भी अमृत क वषा
करता है और समु क लहर को ऊपर उठाता रहता है, उसी कार माग म साथ चल रहा
कोई स ब ध न रखने पर भी उप थत संकट से उभारने म सहायक स होता है।
म े तीथ जे दे वे दै व े भेषजे गुरौ ।
या शी भावना य य स भव त ता शी ।।

Downloaded from www.PDFshala.com


इन सात —म , तीथ, ा ण, दे वता, यो तषी, वै और गु —म ा और
व ास रखने वाले को ही अभी फल क ा त होती है। ा न होने पर कुछ भी ा त
नह होता। भावना के अनु प ही फल क ा त आ करती है।
यह कहते ए द अपने न त ल य क ओर चल दया।
यह कथा सुनाकर च धर बोला—
अ प कापु षो माग तीयः म े कारकः ।
ककटे न तीयेन सपा पा थः र तः ।।
इस लए म कहता ं क कह भी अकेले जाने क अपे ा कसी कायर को ही साथ लेना
अ छा रहता है। केकड़े के साथ होने से ही द सांप का शकार होने से बच गया था।
अ छ बात है—कहता आ वण स अपने घर को चल दया।

।। प चम त समा त ।।

Downloaded from www.PDFshala.com


Downloaded from www.PDFshala.com
Downloaded from www.PDFshala.com

You might also like