You are on page 1of 6

सदल म

सदल म (ज म 1767-68 ई0 तथा मृ यु 1847-


48) फोट व लयम कॉलेज से संब १८व सद के
आरं भक दौर के चार मुख ग कार म से एक ह।
गल ाइ ट के आ ह पर इ ह ने ना सकेतोपा यान
नामक पु तक लखी। इनक अ य रचनाएं ह-
रामच रत(आ या म रामायण)1806 और हद प सयन
श दकोश है। भाषा पर सं कृत का गहरा भाव है।

प रचय
खड़ी बोली के ग का ारं भक प उप थत करने
वाले चार मुख ग लेखक म सदल म का व श
थान है। इनम से दो ग लेखक ल लूलाल और सदल
म ने फोट व लयम कालेज म रहकर काय कया और
मुंशी सदासुखलाल तथा सैयद इंशाउ ला खाँ ने वतं
प से ग रचना क । अपने ंथ 'ना सकेतो पा यान' म
म जी ने अपनी भाषा को 'खड़ी बोली' लखा है।
इससे कट होता है क उस समय यह नाम च लत हो
चुका था। उ ह ने लखा है, अब संवत् 1860 म
ना सकेतोपा यान को जसम चं ावली क कथा कही
गई है, दे ववाणी म कोई समझ नह सकता। इस लये
खड़ी बोली से कया।

वा तव म ल लूलाल के साथ फोट व लयम कालेज म


इनक नयु च लत भाषा म ग ंथ के नमाण के
लये ई थी। ईसाई धम चारक एवं शासक को ग के
ऐसे व प एवं सा ह य क आव यकता थी, जनके
मा यम से वे जनसाधारण म अपना धम चार कर सके,
अपने था पत कूल के लये पाठय् पु तक का नमाण
कर सक तथा अपना शासक य काय चला सक अत:
जान गल ाइ ट क अ य ता म फोट व लयम कालेज
म इस काय का सू पात कया गया। यह अपने
कायकाल म ल लूलाल ने अपने मुख ंथ ' ेमसागर'
और सदल म ने 'ना सकेतोपा यान' तथा 'रामच र '
लखा। ये मूल ंथ न होकर अनुवाद ंथ ह। फोट
व लयम कालेज के ववरण म इनके पद 'भाखा मुंशी'
के लखे गए ह।

'ना सकेतोपा यान' म न चकेता ऋ ष क कथा है।


इसका मूल यजुवद म तथा कथा प म व तार
कठोप नषद् एवं पुराण म मलता है। कठोप नषद् म
ान न पण के लये इस कथा का उपयोग कया
गया है। अपने वतं अनुवाद म म जी ने ान
न पण को इतनी धानता नह द जतनी घटना के
कौतूहलपूण वणन को। पु तक के शीषक को आकषक
प दे ने के लये उ ह ने 'चं ावली' नाम रखा। उ ह ने
अ या म रामायण का 'रामच र ' नाम से अनुवाद कया।
इस पु तक पर कंपनी क ओर से पुर कार भी मला।

हद और फारसी क श दसूची तैयार करने पर भी


इ ह ने पुर कार ा त कया।

इन ारं भक ग लेखक म म जी क भाषा खड़ी


बोली के वशेष अनु प स ई, य प वह बहारी
भाषा से भा वत है। परंतु ल लुलाल क भाषा के
समान न ता उसम जभाषा के प क भरमार है और
न प ानुकूल वा यगठन और तुकबंद क ।
सदल म का यास इस लये वशेष अ भनंदनीय है क
उनम खड़ी बोली के अनु प ग लखने और भाषा को
वहारोपयोगी बनाने का यास वशेष ल त होता है।

आरा ( बहार) नवासी सदल म सीदे सादे वभाव के


कम न ा ण थे। अं ेज के नरंतर संपक म रहते ए
भी अपने खानपान और रहनसहन म आप क र
परंपरावाद थे। वे जीवन भर वयंपाक रहे। कसी के
हाथ का भोजन तो या, जल भी हण नह कया। फोट
व लयम कालेज क नयु के पूव आप ाय:
कथावाचन का काय करते थे। पटना म कथावाचन करते
समय उनका कुछ अं ेज अ धका रय से प रचय आ,
जनके भाव से उनक नयु फोट व लयम कालेज
म ई।
रा भाषा प रषद् (पटना) के कुछ अ धकारी व ान्
उनके वंश और जीवनवृ क खोज म संल न ह। अभी
तक उ ह जो साम ी उपल ध ई है उसके अनुसार
सदल म नंदम ण म के पु तथा ल मण म के
पौ थे। बदल म और सीताराम म उनके दो भाई
थे। अपने भाइय के पु से ही आगे इनका वंश चला। वे
न संतान थे। इनका ज म अनुमानत: 1767-68 ई0
तथा मृ यु 1847-48 ई0 के लगभग 80 वष क
अव था म ई।

बाहरी क ड़याँ
सदल म को नह जानती आज क पीढ़

"https://hi.wikipedia.org/w/index.php?
title=सदल_ म &oldid=4800798" से लया गया

You might also like