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Cosmos An International Journal of Art & Higher Education

A Refereed Research Journal


Vol 8 / No 1 / Jan-Jun 2019 ISSN: 2319-8966
हिं दी साहित मे प्मेंद का योगदान
*
Neelam
**
Dr. Madhubala
सािांश
उपनास समार प्मेंच न् जहं ची साजहत को एक यथाथलवाची जचशा जचया है आ प्मेंच का साजहत ुि क् समय मे भी उतना ही पासंजगक
है जितना उनक् अपन् चौर मे थाआ जकसानों और गरीबों क् िीवन क् जवरय मे प्मेंद का समझ च् खत् हए उनकी पासंजगकता ुि क्
समय मे और अजधक िान पडती है आ प्मेंच का कथा साजहत उस समय मे जितना यथाथलवाची था ुि क् समय मे भी उन सभी मूलों
और मापचं डों पर खरा उतरता है ऐसा कहना कचाजेत उजेत है आ प्मेंच की रेनानं मे जकसान, सी, गरीब और शजमकों क् िीवन का
माजमलक जेतण जकया गया है तथा इनक् िीवन पर अन्कों कहाजनयों और उपनासों को जलखा गया है आ पूस की रात, गोचान, सदजत िैस्
साजहततक रप इस बात का पतक उचाहरण है आ प्माशम, रं गभूजम और गोचान मे जिस पकार क् जकसानों का वणलन जकया गया है उस
पकार क् जकसान ुि भी भारत क् गां वों मे सषतया च् ख् िा सकत् है आ जहं ची साजहत क् क्त मे प्मेंच का योगचान अजवसरणीय है आ
उनोंन् उपनास और कहानी क् मापम स् लोगों को जहं ची साजहत स् जमलान् का काम जकया तथा उनक् दारा जलखा गया साजहततक रप
ुि क् समय मे भी यथाथलवाची परल पर श्रता को पचजशलत करता है आ

परिेय सुने जिस् 'फैिी' न् अकबर क् मनोरं िन ह् तु जलखा थाआ इनीं


मुंशी प्मेंच क् बेपन का नाम धनपत राय था, जिनका िन कहाजनयों को पूर् 1 वरल होन् क् बाच प्मेंच की कलना को नई
31 िुलाई 1880 ईसी को उतर पच् श राज क् वाराणसी जिल् जचशा जमली तथा साजहत की अन अमूल रेनाएं भी प्मेंच क्
क् लमही नामक गां व मे हुआ मुंशी िी क् जपताशी का नाम दारा कही गईआ इनमे स् सरशार की कृजतयाँ और र् नाल की
अिायब राय था िो डाकखान् मे ककल क् पच पर पचसथ थ्आ 'लंचन रहस' श्र बताई िाती है आ उतर पच् श क् गोरखपुर मे
बेपन मे ही इनक् माता िी का च् हावसान हो गया था और बुत् लाल नाम क् पुसक जवक्ता स् उनकी चोसी हई और
उसक् बाच उनकी चू सरी मां क् च् खर् ख मे उनका बेपन बहत प्मेंच इनकी चु कान की जकताबे अपन् जवदालय मे ब्ेा करत्
ही कषमय वतीत हुआ धनपत राय बेपन स् ही कहानी थ् और इसक् भुगतान मे व् कुि कहाजनयों और उपनासों को
सुनन् क् अतंत शौकीन थ् जिसस् इनकी इनीं ुचतों न् इने कुि समय क् जलए पढन् क् जलए ल् िात् थ्आ इस पकार स्
महान कहानीकार क् मागल पर जवकजसत जकयाआ प्मेंच जक उनोंन् शुरुती क् वर् मे सैकडों कहाजनयों और उपनासों
जशका एक होनहार जवदाथा क् रप मे संपन हईआ सातक क् को पढे और उसक् बाच इनोंन् गोरखपुर मे ही अपन् सबस्
बाच कम ुयु मे ही इनकी शाची संपन करा ची गई ल्जकन पहली साजहत कृजत को रप जचयाआ
मनोवां जित पती ना होन् क् कारण बाल जवधवा जशवरानी च् वी स्
जववाह संपन हुआ प्मेंच की कृजतयाँ भगवान शंकर क् सरप स् पभाजवत िान
पडती है आ इनोंन् सतम जशवम सुंचरम क् तथ को अपनाया है आ
प्मेंच को शरतेंद ेटोपापाय न् सवलपथम 'उपनास समार' भगवान जशव की कलातकता को उनोंन् ुतजपलत जकया है आ
क् नाम स् नवािा, इसक् बाच उनकी यह उपाजध साजहततक प्मेंच न् ना तो भूतकाल का गुणगान जकया है और ना ही
िगत मे ुि भी समान क् साथ उने पचत है आ वह जहं ची और भजवष काल की कलनानं को िीया है आ उनोंन् बडी ही
उचू ल क् महान भारतीय ल्खकों मे शीरलसथ है जिनोंन् कहानी इमानचारी क् साथ वतलमान मे िीत् हए वतलमान काल की
और उपनास की एक ऐसी परं परा का उदव जकया जिसस् पूरी पररतसथजतयों को अपन् कृजतयों मे समुजेत सथान जचया है आ
शती न् सीखाआ इनक् साजहत क् अपयन क् जबना जहं ची साजहत प्मेंच गरीबों व जकसानों क् जवरय मे कहत् है जक इनक् ऊपर
का अपयन अधूरा है , ऐसा कहना कचाजेत अनुजेत नहीं बंधन नहीं है बत् यह मानजसक रप स् बंधन क् िाल मे
होगाआ मुंशी िी एक संव्चनशील ल्खक होन् क् साथ-साथ िकड् हए है यजच यह सभी मानजसक रप स् यह सीकार कर
कुशल वका, िागरक नागररक तथा सुजध संपाचक भी थ्आ ल् जक इने कोई भी चबा नहीं सकता, उनका उतीडन नहीं कर
इनका योगचान जहं ची साजहत िगत मे अतुलनीय है आ सकता तो व् सभी अपनी समसानं और उतीडन की जवजभन
पताडनानं स् मुक हो िाएं ग्आ
प्मेंद का साहिततक जीवन एवं योगदान
धनपत राय का साजहततक नाम प्मेंच था िो इनक् दारा सामाहजक सुधाि क् हवषय मे
िीवन क् अजधकां श वर् क् वतीत हो िान् क् बाच अपनाया प्मेंच न् समाि क् िागरण क् जवरय मे अतंत सराहनीय कायल
गयाआ शुरुत मे िब उनोंन् सरकारी नौकरी करत् हए जकया है आ उनोंन् सामान िनमानस को साजहत मे समुजेत
कहानी का ल्खन ुरं भ जकया था तब वह नवाब नायक क् सथान जचया है आ समािकलाण की यह भावना उने कभी-कभी
नाम स् जलखा करत् थ्आ इनको िानन् पहेानन् वाल् तथा उनक् कालजनकता जक नर बरबस खीे ं ल् िाती है ल्जकन उनोंन्
करीबी चोस, जमत इताजच इने नवाब राय क् नाम स् ही उस कालजनकता मे भी सवलचा शोजरत िनों का जहत ही ेाहा
ुिीवन संबोजधत करत् रह् आ भारत सरकार क् दारा इनका है आ ेाह् कालजनकता जकतनी भी ेरम सीमा पर हो ल्जकन
पहला कहानी संगह 'सोि् वतन' को िप कर जलया गया उनोंन् इस् वासजवक िीवन क् सरोकारों स् िोडा है और सचा
जिसक् कारण इने नवाब राय का नाम िोडना पडाआ इसक् ही उस् समाि कलाण की भावना स् नतपोत जकया है आ
बाच का साजहत इनका प्मेंच क् नाम स् जलखा गयाआ पहला प्मेंच ुयलसमाि, गां धीवाची, वामपंथी जवेारधारा ुजच स्
कहानी संगह सोि् वतन को भारत सरकार दारा िप कर ल्न् पभाजवत थ्, ल्जकन इन सब का सार तत उनोंन् िन समाि क्
क् बाच प्मेंच न् बड् पैमान् पर कहाजनयों और उपनासों को कलाण क् रप मे अपनी कृजतयों मे उक्रा है और उनकी
पढना पारं भ जकयाआ शुर मे व् एक तंबाकू जवक्ता की चु कान मे कोमल सहचयता पतक च् खी िा सकती है आ इनकी रेनानं मे
िाकर कहाजनयों क् अकय भंडार 'जतजलस् होशरबा' का पाठ गरीब व मिचू रों क् जलए सभाजवक कलाण की इचा पतक
*Research Scholar, Sunrise University, Alwar, Rajasthan.
**Research Supervisor, Sunrise University, Alwar, Rajasthan.
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पचजशलत होती है आ गोचान मे गरीबी और लाेारी का िो जेतण भाग एक और चो तथा कफन है आ प्मेंच क् च् हावसान क्
प्मेंच न् जकया है वह अतुलनीय है आ यजच हम इनक् युग का पशात उनकी कहाजनयों को 'मानसरोवर' शीरलक च् कर ुठ
ुरं भ स्वासचन को कहे तो इस युग का उतरल का काल भागों मे पकाजशत जकया गयाआ प्मेंच क् साजहत क् मूल
गोचान ही होगाआ प्मेंच ुचशलवाची जवेारधारानं को अपन् अजधकार क् समाप होत् ही अनान संपाचकों और पकाशकों
साजहततक पातों पर बोझ नहीं बनात् थ् बत् उनकी अंतराता न् प्मेंच की कहाजनयों को अलग-अलग संकलन क् रप मे
की ुवाि की तरह सभाजवक रप स् पकर करन् का पकाजशत कराएं आ मुंशी िी की कहाजनयों मे जवरय और जशल
समुजेत पयास करत् थ्आ की जवजवधता च् खन् को जमलती है आ उनोंन् मानव क् सभी वग्
क् साथ-साथ पशु पजकयों को भी अपनी कहाजनयों मे मुख पात
संपचाय स् संबंजधत समसानं को उनोंन् स्वा सचन और क् रप मे सह् िा है आ उनकी कहाजनयों मे मिचू रों, तसयों,
कायाकल मे उिागर जकया है तथा रं गभूजम कमलभूजम और जकसानों, चजलतों ुजच की समसानं को गंभीरता क् साथ
गोचान क् साथ-साथ स्वा सचन मे उनोंन् अंतिाल तीय जववाह का जेजतत जकया गया है आ उनोंन् समािसुधार, साधीनता संगाम,
वणलन जकया है आ नाररयों की तसथजत समाि मे जकस पकार की है च् श प्म ुजच जवरयों स् संबंजधत अन्कों कहाजनयां जलखी है आ
और उने अपन् अजधकारों क् पजत िागृत करन् क् जलए प्मेंच उनकी ऐजतहाजसक कहानी व कथा तथा प्म युक कहाजनयां
न् अपन् सभी उपनासों मे पयास जकया है आ जनमलला और गबन मे काफी लोकजपय हई थीआ प्मेंच की पमुख कहाजनयों मे
मपम वगल की समसानं का सिीव जेतण प्मेंच क् दारा अगजलतखत कहाजनयों को शुमार जकया िा सकता है - पंे
च् खन् को जमलता है आ हररिनों की जववशता और उनकी कुंठा परम्शर, गुली डं डा, चो बैलों की कथा, बड् भाई साहब, पूस
को कमलभूजम मे शीरल रप स् वजणलत जकया गया है आ की रात, ईचगाह, ठाकुर का कुुं , कफन, बूढी काकी, सदजत,
मंत, चू ध का चाम इताजचआ
उपनास
जहं ची साजहत क् उपनास का जवकासयुग प्मेंच िी क् पहल् नाटक
उपनास स्वासचन क् पकाजशत होन् क् साथ ही पकाश मे प्मेंच न् नारक क् क्त मे भी अपना अजमर िाप िोडा है ,
ुया जिस् प्मेंच युग क् नाम स् भी िाना िाता है आ यह समय जिनमे संगाम, कबलला, प्म की व्ची पमुख है आ यह नारक जशल
भारतीय सतंतता संगाम और समाि सुधार का काल थाआ और संव्चनानं क् सर पर उतम है ल्जकन उनकी कहाजनयों
अंग्िों क् शासन और इनक् जशका नीजतयों एवं अंग्िी सभता और उपनासों न् इतनी महानता पाप कर ली थी जक नारक क्
क् वेलस स् भारतीय समाि मे उपतसथत कुरीजतयों, अंधजवशासों क्त मे प्मेंच को अतजधक पजसत् नहीं जमली यह नारक
और धाजमलक ुडं बरों क् तखलाफ जवदोह स् एक नई िागृजत वसुतु संवाचातक उपनास तक ही सीजमत रह गएआ
और समान की भावना का जवकास हो रहा थाआ इस समय बापू
रािनीजत मे पभावी तरीक् स् अपनी उपतसथजत चिल कर ेुक् थ्आ ल्ख
इस समय गां धी िी क् जवेार और सतागह, सचाेार, अजहं सा, प्मेंच एक संव्चनशील कहानीकार ही नहीं थ् बत् व्
तसयों क् उनजत िैस् जवेारों का िागरण हो ेुका था तथा रस िागरक नागररक व संपाचक भी थ् जिनोंन् हं स, िागरण,
क् जवजान और अजवषारों स् िनसाधारण क् मानजसकता पर माधुरी िैस् पत-पजतकानं का संपाचन करत् हए ततालीन
वापक असर पडा था जिसक् कारण रोमां स, ेमतार, अन समकालीन साजहततक पजतकानं िैस् मयाल चा, ेां च,
कलना और इं दिाल स् हरकर जहं ची िगत क् उपनासकार सच् श ुजच मे भी अपन् साजहत और सामाजिक जेंतानं को
सत की धरातल पर लोगों क् जहत मे अपनी रेनानं का जनबंधों तथा ल्खों क् मापम स् वक जकयाआ अमृत राय क्
जवकास कर रह् थ्आ दारा संपाजचत प्मेंच जवजवध पसंग 3 भाग वासजवकता मे मुंशी
िी क् ही ल्खों का संकलन है आ
इन सभी जवेारधारानं स् प्ररत व अग पंतक मे खड् मुंशी
प्मेंच िी न् अपन् स् पहल् क् उपनासकारों क् जवरय मे कहा
प्मेंद की साहिततक हवश्षताएं
था जक "जिने िगत की गजत नहीं वातप व् िासूसी व जतजलसी
प्मेंच की रेनातकता अनान साजहततक रपों मे जनखर
ेीिे जलखा करत् है आ"
कर ुई है आ वह बहमुखी पजतभा क् धनी वतक थ्आ उनकी
रेनानं मे समकालीन इजतहास बोलता हु जचखता है आ
किानी उनोंन् अपनी रेनानं मे िनसाधारण की भावनानं, उनकी
प्मेंच की अजधकतर कहाजनयां मे जनेल् व मपम वगल का समसानं और पररतसथजतयों का समुजेत जवव्ेन जकया है आ
जवव्ेन जमलता है आ डॉ. कमल जकशोर गोयनका न् मुंशी िी की उनकी कृजतयाँ भारत क् सबस् अजधक जवशाल और जवसृत वगल
पूर् जहं ची व उचू ल कहाजनयों को प्मेंच कहानी रेनावली क् नाम की कृजतयों मे िानी िाती है आ अपनी कहाजनयों स् मुंशीिी न्
स् पकाजशत कराया है आ जकशोर िी क् अनुसार मुंशी िी न् कुल मानव सभाव की ुधारभूत महता पर बल जचया है आ इन बातों
301 कहाजनयों को रप जचया है जिनमे स् तीन अभी अनुपलब की जसत् क् जलए अग जलतखत कुि उचाहरण पसुत है -
है आ प्मेंच का पहला कहानी संगह सोि् वतन क् नाम स् िून 'नमक का चरोगा' इस कहानी मे चरोगा बहत ईमानचार वतक
1960 मे पकाश मे ुया था इसी संगह की पहली कहानी है जिस् घूस च् कर जबगाडन् मे सभी पयास असमथलता को पाप
चु जनया का सबस् अनमोल रतन को सामानतया प्मेंच की हएआ जफर उस् सरकारी कमलेारी गलत जस् करक् नौकरी स्
पहली कहानी क् रप मे िाना िाता है आ डॉकर गोयनका क् बखाल स कर च् त् है ल्जकन जिसक् कारण वह बखाल स हु
कथन अनुसार कानपुर स् पकाजशत होन् वाली उचू ल माजसक रहता है वही वतक उस् अपन् घर पर मैन्िर की नौकरी च् ता
पजतका िमाना क् अपैल वाल् अंक मे पकाजशत सां साररक प्म है कोंजक वह एक ईमानचार और कतलव परायण वतक को
और च् श प्म असल मे उनकी पहली पकाजशत कहानी है आ अपन् घर काम पर रखना ेाहता है आ पंे परम्शर मे भी गां व
का पंे वतकगत चु शनी को भूल कर क् सचा नाय करता
प्मेंच क् िीवन काल मे कुल 9 कहानी संगह का पकाशन
है आ ऐसा गामीण पररव्श मे कम च् खन् को जमलता है ल्जकन
हु िो कम स् सोि् वतन, सप् त सरोि, नवजनजध, प्मपूजणलमा,
प्मेंच न् सकारातकता को उिागर करन् क् जलए ऐस्
प्म-पजतमा, प्म-पेीसी, समरयाता, प्म-दाचशी, मानसरोवर
कहाजनयों और उचाहरण को पसुत जकया है आ

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प्मेंद की कृहतयाँ समाि को यथाशतक कथा साजहत दारा मुक करन् का पयत
मुंशी िी की कृजतयाँ जहं चुसान क् सबस् अजधक जवशाल और जकया| अपनी कहाजनयों क् बालक क् मापम स् यह उच् घोजरत
जवसृत वगल की कृजतयों मे शुमार की िाती है आ उनोंन् कहानी, करत् हए कह् जक "मै जनरथलक रजढयों और वथल क् बंधनों का
नारक, उपनास, समीका, संपाचकीय, ल्ख, संसरण इताजच चास नहीं हं आ"
अन्क जवधानं मे साजहत की रेना की है जकंतु पमुख रप स्
वह कथाकार है उनोंन् अपन् िीवन काल मे ही उपनास सामाहजक रहढवाहदता
समार की उपाजध पाप कर ली थीआ प्मेंच क् दारा कुल 15 सामाजिक रजढयों मे प्मेंच न् जववाह स् संबंजधत रजढयो िैस्
उपनास, 300 स् अजधक कहाजनयां, 10 अनुवाच, सात बाल बहजववाह, ब्म्ल-जववाह, अजभभावकों दारा ुयोजित जववाह,
पुसक् तथा 3 नारक और हिारों पृरों क् ल्ख, भारण, चह् ि पथा, पुनजवलवाह, जवधवा जववाह, पचाल पथा, वृ् जववाह,
संपाचकीय, पत, ुजच की रेना की गई है आ जिस समय मे बाल जववाह तथा पजतवत धमल क् संबंध मे बडी संव्चना और
प्मेंच न् जलखना पारं भ जकया था उस समय उनक् पीि् ऐसी से्तना क् साथ जलखा है आ उस समय क् समाि मे यह बात घर
कोई ठोस जवरासत जवदमान नहीं थी और ना ही जवेार और न कर गई थी जक तीन पुतों क् िन क् बाच िनमन् वाली ब्री
ही पगजतशीलता का कोई पारप उनक् सामन् था जसवाय बां गा अशुभ होती है आ प्मेंच न् इस रजढवाजचता का अपनी कहानी
भारा क् साजहत क्आ प्मेंच क् समय मे बंजकम ेंद ेरिा तीतर क् मापम स् पुरिोर जवरोध जकया है | होली क् शुभ
तथा शरतेंद थ् और इनक् अजतररक रॉलसॉय िैस् रस क् अवसर पर पाए िान् वाली रजढवाजचता की जनंचा करत् हए वह
साजहतकार थ्आ ल्जकन ुत् ुत् समय मे उनोंन् अंत मे कहत् है जक अगर पीन् जपलान् क् बाविूच होली एक पजवत
गोचान ko िैसी कालिई उपनास की रेना की िो ुधुजनक तोहार है तो ेोरी और ररशतखोरी को भी पजवत मानना ेाजहए|
काजसक क् रप मे पजतजरत माना िाता है आ उनक् अनुसार तोहारों का अथल है अपन् भाइयों स् प्म और
सहानुभूजत रखना, ुजथलक समसानं क् बाविूच अजतजथ
प्मेंद को पार पुिसाि सतार को मयाल चा एवं पजतरा का प् समझ ल्न् िैस्
सबस् श्र पुरसार की बात करे तो प्मेंच की याच मे भारतीय रजढवाचीतानं का भी उनोंन् पुरिोर जवरोध जकया है आ
डाक की नर स् 31 िुलाई सन 1980 ईसी को उनकी
िनशती क् अवसर पर 30 पैस् मूल का डाक जरकर िारी धमर स् संबंहधत रहढयां
जकया गया थाआ उतर पच् श क् गोरखपुर जिल् क् जिस जवदालय प्मेंच को एक महान साजहतकार क् साथ साथ एक महान
मे वह जशकक पच पर कायलरत थ् वहां प्मेंच साजहत संसथान चाशलजनक भी कह् तो अजतशयोतक नहीं होगीआ प्मेंच क् भीतर
की सथापना की गई है उसक् बरामच् मे एक जभजत ल्ख भी है क् चाशलजनक न् धमल की ुड मे िन सामान क् शोरण करन्
िहां उनस् संबंजधत वसुनं का एक संगहालय जवदमान है | वहां वालों को पहेान जलया था| वह उनक् बाहरी जवजध-जवधानों तथा
पर उनकी एक अपतक पजतमा भी सथाजपत की गई है | प्मेंच अंचरनी अशुत्यों को पहेान ेुक् थ्| इनसब को अची तरह
की िीवन संजगनी जशवरानी च् वी न् प्मेंच घर क् नाम स् स् च् खन् व परखन् क् बाच प्मेंच न् यह ठान जलया था जक वह
उनकी िीवन कहानी जलखी और उनक् वतकत क् उस जहस् धाजमलक रजढवाजचतानं को खत करन् क् जलए हर एक संभव
को उिागर जकया जिसस् लोग अनजभज थ्| प्मेंच क् ही ब्र् पयास करे ग्आ
अमृत राय न् कलम का जसपाही नाम स् अपन् जपताशी की
िीवन कथा जलखी है | प्मेंच िी की सभी पुसकों क् अंग्िी व साहित मे प्मेंद का अहवसिवीय योगदान
उचू ल रपां तरण तो हए ही है साथ मे रसी, ेीनी िैस् अन्क साजहत क् क्त मे प्मेंच का अजदतीय योगचान सवलजवजचत है |
जवच् शी भारानं मे भी उनकी रेनाएं काफी पजसत् को पाप उनोंन् उपनास और कहाजनयों क् दारा िन सामान को
की है आ साजहत स् िोडन् का स्तु सथाजपत जकया है आ उनकी जलखी
कृजतयाँ ुि क् समय मे भी उतनी ही पासंजगक है आ
सहवरम युग
प्मेंच क् उपनास कला क् सजणलम युग की बात करे तो सन प्मेंच क् जलए इस पकार क् उदार युक वेन अन्कान्क
1931 क् ुरं भ मे गबन का पकाशन हु था उसक् बाच 16 जहं ची क् जवदानों क् दारा अनायास ही सुना िा सकता है आ
अपैल 1931 ईसी को प्मेंच न् अपनी एक और श्र रेना प्मेंच न् एसबीुई की सचसता गहण करत् हए गां व मे 5
कमलभूजम की शुरुत की िो अगस 1932 मे िन सामान क् साल तक जनरीकण जकए और उसक् चौरान िो भी च् खा उने
जलए उपलब हो गई| प्मेंच क् पतों क् अनुसार सन 1932 मे उपनासों और कहाजनयों क् मापम स् समाि क् सामन् पसुत
वह अपना अंजतम महान उपनास गोचान को जलखना पारं भ कर जकया िो ुि क् समय मे भी पासंजगक िान पडता है आ
जचए थ् यदजप हं स और िागरण स् युक अन्क कजठनाइयों क्
मुंशी प्मेंच की कहाजनयां हचयसशा होती है जिने एक बार
कारण इसका पकाशन िून 1936 मे ही संभव हो सका|अपनी
पढ या सुन ल्न् स् मानस परल पर अजमर िाप बन िाता है आ
अंजतम बीमारी क् जचनों मे उनोंन् एक और उपनास मंगलसूत
प्मेंच की कहाजनयों और उपनासों मे ुन् वाल् गावों और
जलखना शुर ही जकया था ल्जकन अकाल मृतु क् कारण यह
जिल् को एक अलग तरह का पहेान जचया जिस् वहां क्
अधूरा ही रह गया| कमलभूजम गबन और गोचान जिस्
जनवासी कभी भुला नहीं सकत्| साजहत मे जकए गए उनक् काय्
उपनासतयी क् नाम स् जवश पजसत् जमली है | कमलभूजम अपन्
क् जलए पूरा साजहत िगत उने कभी जवसृत नहीं कर सकताआ
कां जतकारी े्तना क् कारण जवश पजस् हुआ

रहढवाहदता का हविोध उपसंिाि


प्मेंच न् अपन् समय मे अन्कों कृजतयाँ जलखी है आ प्मेंच की
प्मेंच क् िन क् समय का युग सामाजिक और धाजमलक
िैसी कृजतयाँ उस समय स् ल्कर अब तक जकसी और क् दारा
रजढवाजचयों स् भरा हु था| इन रजढवाजचयों स् सयं प्मेंच
च् खन् को नहीं जमली और ुग् जमलना भी मुत्ल िान पडता
भी ुहत हए थ्| तब क् समय मे प्मेंच न् कथा साजहत का
है आ प्मेंच क् िीवन क् कुि अंजतम जचन वाराणसी और
सफर पारं भ जकया और अन्कों पकार क् रजढवाजचयों स् युक
लखनऊ मे गुिर् िहां पर उनोंन् अन्क पत-पजतकानं का

18
सफल संपाचन जकया और अपन् साजहत सृिन का अजमर िाप 3. प्मेंच 1936. साजहत क् उद् द
िोडत् रहे | 8 अकू बर सन् 1936 ईसी को िलोचर रोग क् 4. प्मेन : िीवन पररेय ( जहनी ) ( एे . री . एम .
कारण उनका च् हां त हो गयाआ यह महान उपनासकार इस एल ) आ अजभगमन जतजथ : 9 नवंबर , 2010
चु जनया स् शारीररक रप स् तो ेला गया ल्जकन वह अपनी 5. मनोि कुमार पर 8:50 pm ल्बल: उपनास
कहाजनयों और उपनासों क् मापम स् अब तक िीजवत है और साजहत , प्मेंच , मनोि कुमार , साजहतकार
ुग् ुन् वाली पीढी अभी भुला नहीं सकेगीआ 6. कृजतयों की रपर् खा अंग्री मे जलखत् थ् प्मेंच
( जहनी ) ( एे . री . एम . एल )आ अजभगमन जतजथ : 9
संदरर – सूेी अकू बर , 2010
1. प्मेंच (2003), प्मेंच की 75 लोकजपय कहाजनयाँ , 7. अपाय 16, पृ . 574 , जहनी साजहत का इजतहास,
जचली, भारत: रािा पकाशन, ुई॰ऍस॰बी॰ऍन॰आ डॉ॰ नग्न, 33 वां संसरण - 2007, मयूर प्परबैक ,
2. जहनी साजहत का इजतहास : प्मेंद शुकआ नौएडा

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