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आ द शंकर वै दक व ा सं ान
रभाष: 9044016661
भगव पाद आचाय शंकर और म डन म के बीच शा ाथ
क ां वहा म बु े तव प ा प भराम ।
शखाय ोपवीता यामं ुतेभारो भ व य त ।
शखां य ोपवीतं चे येत सव भूः वाहे य सु प र य या मानम व त ।
ाणसंघारणाथ यथो काले वमु ो भै माचर मुदरपा ण े । जाबाल 6
हे बु े ! तु हारे पता तो गृह थे । अतः उनके ारा भी ढोने के अयो य
क ा को तो म अव य ढो रहा ँ । पर तु शखा और य ोपवीत तो ु त के
लए महान भार होगा । य क यह ु त सं यासी होने पर शखा और सू के
याग का वधान करती है ।
क च - परी य लोका कम च ा ा णो नवदमायात ( कम से स ा दत
लोक - फल का परी ण कर अथात अ न य अनुभव कर ा ण वैरा य को
ा त हो )
यदहरेव वरजेतदहरेव जेत । जाबाल ख ड 4 ( जस दन वैरा य हो ।
उस दन सं यास हण करे )
चाया ा गृहा ा वना ा ( चया म से गृह ा म से अथवा
वान ा म से सं यास हण करे )
न कमणा न जया धनेन यागैनैके अमृत वमानशुः । महा नारायण
उप नषद 10/5 ( 1 शाखा वाले ऐसा कहते ह - न कम से । न जा से । न
धन से अमृत व ा त होता है । क तु याग से ही ा त होता है )
अथ प र ाड् ववणवासा मु डोऽप र हः । जाबाल 5 आ द ु त वा य म
ान के लए सं यास हण करने का नदश है । य द शखा सू
का व धवत प र याग कर सं यास हण न कया जायगा । तो उ ु त का
नवाह नह हो सके गा । अतः शखा सू ु त के लए भारभूत है । ु त को
आ द शंकर वै दक व ा सं ान
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भगव पाद आचाय शंकर और म डन म के बीच शा ाथ
भार से मु करने के लए सं यास हण करना बु मता है । बु तो तुम
हो । जो ऐसा नह कया है ।
शंकर के वचन को सुन म डन म कहते ह - तुमने य न से गाहप य,
आहवनीय, द णा न इन तीन ौत अ नय को अपने घर से हटा दया है ।
सं यास हण के कारण । अतः तुमको इ ह या पाप लगेगा । वीरहा वा एष
दे वानां योऽ नीनु ासय त, अ नय को र हटा दे ने वाला इ आद
दे व क ह या करने वाला होता है ।
आचाय शंकर म डन को ललकारते ए कहते ह - त व को न जानने
वाला आ मह या को ा त होता है । अस ेव स भव यसद् े त चे े द,
असत है । नह है । य द ऐसा जानता है । तो वह असत ही हो जाता है ।
असूया नाम ते लोका अ ने तमसाऽवृताः ।
ताँ ते े या भग त ये के चाऽ महनो जनाः । । ईशावा योप नषद 3
आ द शंकर वै दक व ा सं ान
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भगव पाद आचाय शंकर और म डन म के बीच शा ाथ
आचाय शंकर क त ा
ै ैकं परमाथस दमलं व प चा मना
शु यपरा मनेव बहला ानावृतं भासते ।
त ाना खल प च नलया वा म व ापर
नवाणं ज नमु म युपगतं मानं ुतमे तकम ।
शंकर ने त ा कया - सत् चत् नमल तथा परमाथ है । जैसे म या
ान से सीप रजत प म भासती है । वैसे ही सत, चद आन द व प
म या अना द अ ान से इस यमान प च प से भा सत होता है । जब
इसे त वम स, अहं ा म आ द उप नषद वा य ारा जीव ै य ान
उ प होता है । तब अना द कारण म या ान स हत यह सम त प च
नवृ हो जाता है । और यह अपने असली च मय व प म त त हो
ज म मरण से र हत होकर मु हो जाता है । यही हमारा स ांत है । इसम
उप नषद माण है । म फर अपने इस कथन को हराता ँ । जीव ै य
{ जीव 1 है } मेरा वषय है । उसम उप नषद वा य माण ह ।
एकमेवा तीयं { छा दो य 6/2/1 } स यं ानमन तं { तैतरेय
2/1/1 } सव ख वदं { छा दो य 3/14/1 } व ानमान दं
{ बृहदार यक 3/9/28 } वद् ैव भव त । वदा ो त परम ।
वाचार णं वकारो नामधेयं मृ तके येव स यम । त को मोहः कः शोकः
एका मनुप यतः इ या द ु तयाँ माण ह ।
आचाय आगे कहते ह -
बाढं जये य द पराजयभागहं यां
सं यासम प र य कषायचैलम ।
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भगव पाद आचाय शंकर और म डन म के बीच शा ाथ
शु लं वसीय वसनं यभारतीयं
वादे जयाजयफल तद पका तु ।
आ द शंकर वै दक व ा सं ान
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भगव पाद आचाय शंकर और म डन म के बीच शा ाथ
वेदावसानेषु ह त वमा दवचां स जसा यघमषणा न ।
फ
ं मुखानीव वचां स यो ग ैषां वव ाऽ त कु ह वदथ ।
अथात जैसे वेद म ,ँ फट् आ द मु य वा य जप पाठ करने से पाप नाशक
होते ह । वैसे ही वेदा त म त वम स आ द वा य जप करने से पाप नवतक
होते ह । अतः हे यो गन् ! इन त वम स आ द वा य क जप आ द से
अ त र कसी अथ म वव ा नह है ।
भा यकार सव शंकरदे शक कहते ह - कसी अथ के तीत न होने पर
व ान ने ,ँ फट आ द को जपोपयोगी कहा है । पर तु हे ा ! यहाँ
त वम स के वषय म तो अथ तीत होता है । तो वह जपाथक कै से
होगा ?
म डन म कहते ह - हे य तवर ! कसी अंश म आपका यह कथन ा है ।
पर तु त वम स वा य से जीव ई र का अभेद आपतपः { वना वचार कये }
तीत होता है । व तुतः वह य ा द कम के कता क शंसा के ारा व ध
का अंग ही है । अभेद बोध से तो के वल जीवा मा क न यता कट करता है
। य क आ मा को न य समझने पर पु ष य ा द कम से वू होता है ।
अ यथा नह । अतः वेद का ान का ड कम का ड के स व तु के
लए नह ।
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भगव पाद आचाय शंकर और म डन म के बीच शा ाथ
तै रीय ु त के आधार पर शा ाथ ।
स यं ानमन तं यो वेद न हतं गुहायां परमे ोमन ।
सोऽ ुते सवा कामान सह णा वप ते त । तै रीय 2/1
म डन म कहते ह - जो सत चद आन द व प को परम आकाश
अथात दय के अ दर गुफा म त जानता है । वह सव ा के साथ सब
कामना को भोगता है । इस ु त से यह स होता है क मु म
जीव और अलग अलग रहते ह । अतः भेद स य है ।
आचायपाद कहते ह - इसका यह अथ नह है क ा के साथ सम त
कामना को भोगता है । क तु इसका अ भ ाय है यह है क अ व ा कृ त
आवरण र होने से व प होकर वह एक साथ उन सभी कामना को
भोगता है । जो थम ही उसके अ दर व मान थ । पर तु अ व ा के कारण
अ व ामान सी थ ।
व पाचाय म डन कहते है - आ मा वा अरे ः ोत ो म त ो
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भगव पाद आचाय शंकर और म डन म के बीच शा ाथ
न द या सत ः । बृहदार यक ु त 2/4/1
या व य - हे मै ये ी ! आ मा है । अतः उसका वण, मनन तथा
न द यासन करना चा हये । इस ु त म जीव को सा ात करने वाला । तथा
परमा मा का सा ात करने के यो य बतलाया गया है । इस लये दोन का भेद
स य है ।
शंकर वामी कहते ह - यहाँ भी व हार स भेद को लेकर कम और कता
का तपादक है । अ यथा अभेद बोधक ु तय के साथ वरोध होगा ।
य क ु तय का सही ता पय अभेद अथात एक व म है । इस लए यहाँ भी
लोक स भेद का अनुवाद मा है ।
अथाप माण को लेकर शा ाथ ।
व पाचाय म डन कहते ह - हे यो गन ! य द जीव क के साथ
एकता हो । तो सबको तीत होनी चा हए - जीव है । पर तु एक व ान
नह होता है । इस लये दोन म अभेद नह । क तु भेद ही है ।
शंकर वामी कहते ह - अ रे े म घट घड़ा ात नह होता । तो इससे यह नह
समझा जाता क अ रे े म घड़ा नह है ? य क काश से अ कार के
नवृ होने पर वह तीत होता है । इसी कार अ व ा के कारण य प
अभेद ान नह होता । फर भी ऐसा नह कहा जा सकता क अभेद नह है
। य क व ा से अ व ा के नवृ हो जाने पर अभेद ात होता है ।
{इस कार ब त दन तक यह शा ाथ होता रहा । दोन वा दय ने अपने
अपने प क स म ब त से तक दये । माण उप त कये । पर तु
अ त म य तवर भगव पाद ने म डन म को सब कार से न र कर
शा ाथ म परा त कर दया । आचाय क इन अकाटय व ढ़ यु य का
सर वती ने अनुमोदन कया । उसने म डन म के हष को खेद मे प रव तत
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भगव पाद आचाय शंकर और म डन म के बीच शा ाथ
कर दया । प त के भावी सं यास हण करने के कारण ख होकर सर वती
ने अपने सा ी होने का माण भी दे दया । जससे स होकर दे वता ने
आकाश से सुग त पु प क वृ क । }
इ ंयत तपतेरनुमो यु मालां च म डनगले म लनामवे य ।
भ ाथमु लतम युवा म तमावाच तं पुन वाच य त दम बा ।
य तराज क यु य का अनुमोदन कर और म डन के गले क माला को
मलीन दे ख उभय भारती ने कहा - आप दोन भ ा के लए च लये । और
शंकर से वह वशेष प से फर बोली - ाचीन काल म अ त ोध वश
वासा ने मुझे शाप दया था । उस शाप क अव ध आपका यह वजय है ।
अब मेरा यह शाप समा त हो गया । इस लये हे य त ! म अपने धाम को
जा रही ँ । इतना कहकर जब उभय भारती शी ता पूवक जाने लगी । तब
आचाय शंकर ने नव गा म ारा उ ह बाँध रखा । य क वे उनको भी
परा त करना चाहते थे । शंकर वामी का सर वती के ऊपर वजय पाना
अपनी सव ता दखला कर त ा ा त करने के लये नह था । क तु
अपने अ ै त स ा त क स के लये था ।
आचाय शंकर सर वती से बोले - म आपको भली भाँ त जानता ँ । आप
शव क सहोदर बहन है । तथा ा क धम प नी ह । इस संसार के
क याणाथ आपने अवतार धारण कया है । इस लये जब तक आपके जाने
म हमारी इ ा न हो । तब तक आप यहाँ वराजमान ह । आचाय के
सारग भत वचन को सुनकर सर वती ने शंकर वामी के अनुकूल होने क
अनुम त दे द । तब मु न आन द से गदगद हो गये । और म डन म के
दयगत भाव को जानने के लए उ सुक ए ।
य त े आचाय शंकर भगव पाद के वेदाथ नणय करने वाले, याय से यु
वचन से म डन म ने जब अपने को शा ाथ म परा त होने का अनुभव
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भगव पाद आचाय शंकर और म डन म के बीच शा ाथ
कया । तब उनका ै ता ह य प शा त हो गया । तो भी उ ह ने स दे ह कर
सभा म यह कहा - हे य त ! मुझे इस समय अपने अ भनव पराजय से
त नक भी ःख नह है । क तु इस बात का खेद अव य है क काल
जै म न मु न के वचन का आपने ख डन कया है । वे तपो न ध वेद के
चार और जगत के हत म रत थे । भला इ ह ने गलत सू क रचना य
क ?
सव शंकर दे शक कहते ह - जै म न के स ांत म कह पर भी अ यास
संशय तथा वपय नह है । यह के वल हमारी अन भ ता है क जससे उनके
अ भ ाय को नह समझ सकते । जै म न का अ भ ाय परमान द व प
पर के तपादन म ही है । पर तु वषय वाह म बहने वाले जन साधारण
को उसक ओर ले जाने के लए पु य कम को करने क व ा क ।
य क न काम पु य कम से अतःकरण क शु होती है । जो ान
क ा त म सहायक है । इससे शु अतःकरण वाले को
ज ासा हो सकती है । इस अ भ ाय को ु त भी करती है -
तमेतं वेदानुवचनेन ा णा व व दष त । य ेन दानेन तपसाऽनाशके न ।
ज ासु वेद के अ ययन, य , दान तथा अनाशक तप से उन को
जानने क इ ा कर ।
व पाचाय म डन म कहते ह - हे य तवय ! तब इस जै म न सू का
या ता पय है ? आ नाय य याथ वादादाथ यमतदथानाम । जै म न सू
1/2/1 ( कम का तपादन करने वाली ु तयाँ ही साथक है । जो वेद भाग
य आ द या के लए नह है । वह नरथक है } इस सू से स
होता है क स ूण वेद सा ात व पर रा से कम का वणन करता है । न क
का ।
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भगव पाद आचाय शंकर और म डन म के बीच शा ाथ
सव शंकर दे शके कहते ह - ु त का ता पय तो अ ै त के तपादन
म ही है । पर तु पर रा से आ म ान उ प करने वाले कम म भी ु त का
यान है । इस कार यह सू कम के करण म है । अतः उसका अथ कम
परक मानना चा हए । पर तु व ा का करण तथा वषय इससे भ है
। इस लए इस सू के अ भ ाय वेदा त वा य नरथक नह हो सकते ।
म डन कहते ह -
ननु स दा मपरताऽ भमता य द कृ नवेद नचय य मुनेः ।
फलदातृतामपु ष य वद त कथं नराह परमे रम प ।
-जब सम त वेद का स दान द के तपादन म ता पय है । तब
परमे र से भ कम ही फलदाता है । इस स ा त का तपादन मु न ने
ई र का नराकरण कर कै से कया ?
आचाय शंकर भगव पाद कहते ह - हे व प ! येक कम कसी कता
ारा होता है । जग काय ई रकृ तृ कं काय वात, यथा मकान कसी कारीगर
से बनाया जाता है । तथा जगद प काय भी कसी वशेष कता ारा होना
चा हये । वह कता सव ई र है । यह अनुमान आगम वचन के वना ई र
को स करता है । ु तयाँ के वल अनुमान का अनुवाद मा करती है । यह
वैशे षक का मत है । पर तु यह शु क अनुमान ई र स म पया त नह
है । { वेद को न जानने वाला उस बृहद औप नषद को नह जान
सकता } यह ु त वचन ई र को वेद के न जानने वाल के लए अगोचर
सू चत करता है । ऐसी दशा म अनुमान ई र को कै से स कर सकता है ?
इसी भाव को अपने मन म रखकर मु न जै म न ने ई र परक अनुमान का
तथा ई र से जगत के उदय उ त आ द होते ह । इन सब वैशे षक स ा त
का सैकड़ अकाटय यु य से ख डन कया है । आशय यह है क जै म न
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भगव पाद आचाय शंकर और म डन म के बीच शा ाथ
मु न ु त स ई ष का अलाप ख डन नह करते । क तु ता कक स मत
ु त हीन अनुमान का ही ख डन करते ह । इसी तरह मेरी समझ म
उप नषद रह य से जै म न का स ा त लेशमा भी व नह है । जै म न
के इस गूढा भ ाय को न जानकर व ान लोग उ ह अनी रवाद बतलाते ह ।
व पाचाय म डन कहते ह - या इतने से ही त व वे ा म े मु न
नरी रवाद स हो सकते ह ? या कह पर भी उ लू से क पत
अ कार दन म सूय के काश को म लन कर सकता है ? कभी नह ।
इसी कार अ व ान से क पत म या दोष जै म न मु न को अनी रवाद
नह बना सकता । इस कार जै म न मु न के अ भ ाय को य तवर शंकर
वामी ारा तपा दत कये जाने पर शारदा म डन म तथा सब
सभासद अ त स ए । पर तु शंकर के कथन से मीमांसा के आशय को
समझ लेने पर भी म डन के मन म फर भी कु छ संदेह बना रहा । य क
उनक लगभग स ूण आयु इसी काय म तीत ई थी । सहसा वे सं कार
कै से र होते ? न र होने पर भी पूण व ास नह हो रहा था । इस लये
मान सक शंका को नवृ करने के लए मु न के वचन ही उनके अ भ ाय
को जानने के लए म डन म ने मु न जै म न का मरण कया । जससे
मु न शी म डन म के समीप कट ए ।
मु न जै म न म डन म को स बो धत करते ए कहते ह -
हे यश वी ! मेरे वचन से संदेह याग दो । इस रह य को सुनो । संसार म
नम न पु ष के उ ाराथ शरीर धारण करने वाले आचाय शंकर को तुम
शव समझ ।
आ े स वमु नः सतां वतर त ानं तीय युगे
द ौ ापुरनामके तु सुम त ासः कलौ शङ् करः ।
इ येवं ु टमी रतोऽ य म हमा शैवे पुराणे यत-
त य वं सुमते मते ववतरेः संसारवा ध तरेः ।।
अथात सतयुग म क पल मु न ने व ान को ान दया । ते ायुग म द ा ये
ने । ापर म सुम त ास ने । और इस क ल म आचाय शंकर ने । इनक
म हमा शव पुराण म व णत है । हे सुमते ! तुम इनके मत म व होकर
संसार समु को पार कर ।
म डन म को सभा म इस कार ान दे कर तपोमु न जै म न आचाय
शंकर को मन ही मन आल न कर अ तधान हो गये ।
या क के सभा म मुख म डन ने आचाय शंकर को णाम कर कहा -
व दतोऽ त सं त भवा गतः कृ त नर तसम ता तशयः ।
अवबोधमा वपुर यबुधो रणाय के वलमुपासतनुः ।
आ द शंकर वै दक व ा सं ान
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भगव पाद आचाय शंकर और म डन म के बीच शा ाथ
हे भगवन ! अब मने आपको जान लया । आप संसार के कारण भूत ह ।
सम त वशेष से र हत ह । ान मा व प होते भी आपने अ ा नय के
उ ाराथ यह वपु धारण कया है । व तुतः आप शरीर र हत ह ।
हे य त राजे ! आ मा वा इदमेक एवा आसीत, वा इदम आसीत,
सदे व सो येदम आसीत, एकमेवा तीयम इस कार उप नषद जस एक
अ तीय का तपादन करते ह । उसका त वम स वा य आयुध है ।
और आप उसके तपालक ह । य द ऐसा न होता । तो वह पथ
बौ के लाप पी अ कू प म गरकर न जाने कब का लय पा चुका
होता ।
बु ोऽहं व ा द त कृ तम तः व मपरं
यथा मूढ़ं व े कलय त तथा मोहवशगाः ।
वमु म ये ते क त च दहलोका तरग त
हस येता दा सा तव ग लतमायाः परगुरोः ।।
ायः दे खा जाता है क म व से जागा आ ँ । यह वचार कर कोई मूढ़
व के भीतर एक सरे व को दे खता है । यही दशा कु छ अ य
भ क है । जो मोह के वशीभूत होकर लोका तर गमन वैकु ठ ा त को
मु मानते ह । माया एवं मोह से र हत आप परम गु के दास ऐसे लोग पर
हंसते ह । लोका तर ा त मा को मु मानना हा या द है ।
हे परमगुरो ! अ व ा पी रा सी ने अ खल व के अ धप त ई र को
नगल डाला था । आपने उसके पेट को फाड़कर उसम से ई र को नकाल
बाहर कया है । हनुमान ने रा सय से घरी सीता का के वल उ ार कया ।
तो इतने से वे लोक म पू य हो गये । तो उससे भी आपक म हमा कतनी
अ धक होनी चा हए । हे जगत क पीड़ा को न करने वाले ! तु हारी इस
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भगव पाद आचाय शंकर और म डन म के बीच शा ाथ
कार क अ च य म हमा को न जानकर मने आपके सम जो अनु चत
बाते क ह । हे कृ पासागर ! उन सबको आप मा कर द ।
अ मत तभाशाली क पल, कणाद, गौतम आ द ऋ ष लोग भी जस ु त
के अथ का नणय करने म मो हत असमथ रहे । उसे भला परम शव के
अंश भूत वना आपके और कौन समथ हो सकता है । अ प बु ट काकार
क ट का का चार बल सप के समान है । उनके काटने से ु तयां
जजर हो गई ह । य द वे आपके वचन पी सुधा के सचन से जी वत न ह ।
तो आ मा म व ास रखने वाले व ान लोग कै से वहार कर सकते ह ?
कम पी य पर चढ़कर म तप, शा , घर, ी, पु , भृ य तथा धन आ द
म अ भमान रखकर संसार प कू प म गरा आ था । उससे आपने मेरा
उ ार कर लया । पूव ज मा जत अन त पु य के भाव से मने आपके
दशन का सौभा य ा त कया । तथा शा ाथ कया । अ यथा यह सब कै से
हो सकता था ? इस लए म अपने पु , ी, घर, धन, गृह ा म, कत कम
इन सबको छोड़कर आपके चरण क शरण आता ँ । कृ पया त व का उपदे श
क जये । म आपका ककर ँ । इस कार बु मान म डन म ने वनीत
तथा मधुर श द से आचाय शंकर का वणन कया । जते य शंकर ने
म डन पर दया करते उनक ी क ओर दे खा । आचाय के आशय को
समझकर वह बोली ।
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भगव पाद आचाय शंकर और म डन म के बीच शा ाथ
माता ने उनका आ त य कर लेने पर उनसे पूछा - हे काल महा मन ! म
इस पु ी के भा य के वषय म कु छ पूछना चाहती ँ । इसक आयु य कतनी
होगी ? कतने पु तथा कै से प त को यह ा त करेगी ? धन धा य स
होकर यह कतने य करेगी ?
ण भर आँखे मूंदकर उन तप वी ने कहा - हे दे वी ! भूतल पर वै दक माग के
उ हो जाने पर वयं दे व { ा } वेद माग के उ ार के लए म डन
प डत के प म अवत रत ह गे । जस कार पावती ने शंकर क , ल मी ने
व णु को ा त कया । उसी कार तु हारी क या भी अपने अनु प म डन
को प त प म पाकर सम त य को करेगी । और पु के साथ ब त दन
तक स रहेगी । अन तर इस लोक म मत ारा न ए उप नषद्
स ांत को र करने के लए वयं आ द दे व महादे व नर प लेकर अपने
चरण से इस भूतल को अलंकृत करगे । उस य त वेषधारी शंकर के साथ
तु हारी क या के प त का शा ाथ होगा । जसम इसका प त परा त होकर
गृह ा म का याग कर संसार को शरण दे ने वाले उन य त क शरण म
जायेगा ।
इतना कहकर वे तप वी चले गये । हे व न् ! वे सभी वचन उनके स य ए
ह । तो यह वचन कै से म या होगा ? पर तु हे व न ! अब तक तुमने प डत
म े मेरे प त को पूरी तरह से नह जीता है । य क म उनक अधा गनी ँ
। और उसे तुमने अभी तक नह जीता है । इस लए मुझे जीतकर आप इ ह
अपना श य बनाइये । य प तुम इस जगत के मूल कारण हो । सववे ा
परम पु ष हो । फर भी तु हारे साथ शा ाथ करने के लए मेरा मन
उ कु ठत हो रहा है ।
शंकर वामी - यह तु हारा वचन अनु चत है । य क यश वी पु ष म हला
के साथ वाद ववाद नह करते ।
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भगव पाद आचाय शंकर और म डन म के बीच शा ाथ
उभय भारती - हे भगवन ! अपने मत का ख डन करने के लए जो चे ा
करता हो । चाहे वह ी हो या पु ष । उसके जीतने का अव य य न करना
चा हए । य द अपने प क र ा करना अभी हो । इस लए गाग { गाग
ऋ ष वच नु क क या थी । इस लए उसका नाम गाग आ था { महाभारत
शा त पव अ याय 320 } के साथ मह ष या व य ने शा ाथ कया । तथा
सुलभा ने धम वज नाम वाले राजा जनक के साथ वाद ववाद कया । या
ी से शा ाथ करने पर भी वे यश वी न ए ?
इस लए यु यु उभय भारती के वचन को सुनकर ु त पी न दय से
पूण समु के समान आचाय सव शंकर दे शक ने सर वती उभय भारती
के साथ शा ाथ करना वीकार कया ।
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