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उलक
ू ाक्षी घोर-रवा, मायरू ी शरभानना ।
ऋक्षाक्षी केकराक्षी च, बह
ृ त ्-तुण्डा सुराप्रिया ॥
दन्द-शूक-धरा क्रौञ्ची, मग
ृ -श्रंग
ृ ा वष
ृ ानना ॥
फाटितास्या धम्र
ू श्वासा, व्योमपादोर्ध्वदृष्टिका ।
अट्टहास्या चकामाक्षी, मग
ृ ाक्षी चेति चा मताः ॥
फल-श्रुति :-
चतष्ु षष्टिस्तय
ु ोगिन्यः पजि
ू ता नवरात्रके।
प्रणवादि-चतुर्थ्यन्त-नामभिर्हवनं चरे त ् ॥
विधि :-
पूरी तरह शुद्ध होकर, एकाग्र-मनसे जो इन नामों का पाठ करता है । उसे डाकिनी, शाकिनी, कूष्माण्ड और राक्षस आदि
किसी प्रकार की पीड़ा नहीं होती ।
धप
ू -दीपादि उपचारों सहित पज
ू न और बलि प्रदान करने से योगनियाँ शीघ्र प्रसन्न होकर सभी कामनाओं को परू ा
करती है ।
हवनके लिये चौंसठ योगिनी नाम इस प्रकार है । प्रत्येक नाम के आदि में ‘ॐ’तथा अन्त में स्वाहा लगाकर हवन करें ॥