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********चौसठ योगिनी नामस्तोत्रम्:-***********

गजास्या सिंह-वक्त्रा च, गध्र


ृ ास्या काक-तुण्डिका ।

उष्ट्रा-स्याऽश्व-खर-ग्रीवा, वाराहास्या शिवानना ॥

उलक
ू ाक्षी घोर-रवा, मायरू ी शरभानना ।

कोटराक्षी चाष्ट-वक्त्रा, कुब्जा चविकटानना॥

शुष्कोदरी ललज्जिह्वा, श्व-दं ष्ट्रा वानरानना ।

ऋक्षाक्षी केकराक्षी च, बह
ृ त ्-तुण्डा सुराप्रिया ॥

कपालहस्ता रक्ताक्षी, शुकी श्येनी कपोतिका ।

पाशहस्ता दं डहस्ता, प्रचण्डा चण्डविक्रमा ॥

शिशुघ्नी पाशहन्त्री च, काली रुधिर-पायिनी।

वसापाना गर्भरक्षा, शवहस्ताऽऽन्त्रमालिका ॥

ऋक्ष-केशी महा-कुक्षिर्नागास्या प्रेतपष्ृ ठका।

दन्द-शूक-धरा क्रौञ्ची, मग
ृ -श्रंग
ृ ा वष
ृ ानना ॥

फाटितास्या धम्र
ू श्वासा, व्योमपादोर्ध्वदृष्टिका ।

तापिनी शोषिणी स्थूलघोणोष्ठा कोटरी तथा ॥

विद्युल्लोला वलाकास्या, मार्जारी कटपूतना।

अट्टहास्या चकामाक्षी, मग
ृ ाक्षी चेति चा मताः ॥

फल-श्रुति :-

चतष्ु षष्टिस्तय
ु ोगिन्यः पजि
ू ता नवरात्रके।

दष्ु ट-बाधां नाशयन्ति, गर्भ-बालादि-रक्षिकाः॥


नडाकिन्यो नशाकिन्यो, न कूष्माण्डा नराक्षसाः ।

तस्य पीड़ांप्रकुर्वन्ति, नामान्येतानि यः पठे त ् ॥

बलि-पूजोपहारै श्च, धूप-दीप-समर्पणैः।

क्षिप्रं प्रसन्ना योगिन्यो, प्रयच्छे यर्म


ु नोरथान ् ॥

कृष्णा-चतुर्द शी-रात्रावुपवासी नरोत्तमः ।

प्रणवादि-चतुर्थ्यन्त-नामभिर्हवनं चरे त ् ॥

प्रत्येकं हवनं चासां, शतमष्टोत्तरं मतम ् ।

स-सर्पिषा गुग्गुलुना, लघु-बदर-मानतः॥

विधि :-

साधक कृष्ण-पक्षकी चतुर्द शी को उपवासकरे ।

रात्रि में गुग्गुलऔर घत


ृ से भक्तियुक्त प्रत्येक नामके आगे प्रणव ॐलगाकर, प्रत्येक नाम से१०८ आहुतियाँ अर्पित
करे ।

पूरी तरह शुद्ध होकर, एकाग्र-मनसे जो इन नामों का पाठ करता है । उसे डाकिनी, शाकिनी, कूष्माण्ड और राक्षस आदि
किसी प्रकार की पीड़ा नहीं होती ।

धप
ू -दीपादि उपचारों सहित पज
ू न और बलि प्रदान करने से योगनियाँ शीघ्र प्रसन्न होकर सभी कामनाओं को परू ा
करती है ।

हवनके लिये चौंसठ योगिनी नाम इस प्रकार है । प्रत्येक नाम के आदि में ‘ॐ’तथा अन्त में स्वाहा लगाकर हवन करें ॥

ॐगजास्यै स्वाहा ॥ ॐ सिंह-वक्त्रायैस्वाहा ॥ ॐ गध्र


ृ ास्यायैस्वाहा ॥ ॐकाक-तुण्डिकायै स्वाहा ॥ ॐ
उष्ट्रास्यायैस्वाहा ॥ ॐअश्व-खर-ग्रीवायैस्वाहा ॥ ॐवाराहस्यायै स्वाहा ॥ ॐशिवाननायै स्वाहा ॥ ॐ उलूकाक्ष्यै
स्वाहा ॥ ॐ घोर-रवायैस्वाहा ॥ ॐमायूर्यै स्वाहा ॥ ॐशरभाननायै स्वाहा ॥ ॐकोटराक्ष्यै स्वाहा ॥ ॐअष्ट-वक्त्रायै
स्वाहा॥ ॐकुब्जायै स्वाहा ॥ ॐविकटाननायै स्वाहा ॥ ॐ शुष्कोदर्यैस्वाहा ॥ ॐललज्जिह्वायैस्वाहा ॥ ॐश्व-
दं ष्ट्रायैस्वाहा ॥ ॐवानराननायै स्वाहा ॥ ॐ ऋक्षाक्ष्यै स्वाहा ॥ ॐ केकराक्ष्यै स्वाहा ॥ ॐबह
ृ त ्-तण्
ु डायैस्वाहा ॥
ॐसुरा-प्रियायै स्वाहा ॥ ॐकपाल-हस्तायै स्वाहा ॥ ॐरक्ताक्ष्यै स्वाहा ॥ ॐ शुक्यै स्वाहा ॥ ॐश्येन्यैस्वाहा ॥
ॐकपोतिकायै स्वाहा ॥ ॐ पाश-हस्तायै स्वाहा ॥ ॐदण्ड-हस्तायैस्वाहा ॥ ॐप्रचण्डायै स्वाहा ॥ ॐचण्ड-विक्रमायै
स्वाहा ॥ ॐशिशुघ्न्यैस्वाहा ॥ ॐपाश-हन्त्र्यै स्वाहा ॥ ॐ काल्यै स्वाहा ॥ ॐरुधिर-पायिन्यै स्वाहा ॥ ॐ वसा-पानायै
स्वाहा ॥ ॐगर्भ-भक्षायैस्वाहा ॥ ॐशव-हस्तायै स्वाहा ॥ ॐआन्त्र-मालिकायै स्वाहा ॥ ॐ ऋक्ष-केश्यैस्वाहा ॥
ॐमहा-कुक्ष्यै स्वाहा ॥ ॐ नागास्यायै स्वाहा ॥ ॐप्रेत-पष्ृ ठकायै स्वाहा ॥ ॐदं ष्ट्र-शूकर-धरायै स्वाहा ॥
ॐक्रौञ्च्यैस्वाहा ॥ ॐमग
ृ -श्रंग
ृ ायै स्वाहा ॥ ॐवष
ृ ाननायै स्वाहा ॥ ॐफाटितास्यायै स्वाहा ॥ ॐ धूम्र-श्वासायै स्वाहा
॥ ॐव्योम-पादायै स्वाहा॥ ॐऊर्ध्व-दृष्टिकायैस्वाहा ॥ ॐतापिन्यै स्वाहा ॥ ॐशोषिण्यै स्वाहा ॥ ॐस्थूल-
घोणोष्ठायैस्वाहा ॥ ॐकोटर्यैस्वाहा ॥ ॐविद्यल्
ु लोलायै स्वाहा॥ ॐबलाकास्यायै स्वाहा ॥ ॐमार्जार्यैस्वाहा ॥
ॐकट-पूतनायै स्वाहा ॥ ॐअट्टहास्यायै स्वाहा॥ ॐकामाक्ष्यैस्वाहा ॥ ॐ मग
ृ ाक्ष्यै स्वाहा ॥

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