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प्रश्न :- आद्य शङ्कराचार्यजी से पहले जगद्गुरु कौन थे ?

उत्तर:- श्रीमन्महाराज सार्वभौम युधिष्ठिरजी के २६३१ वर्ष व्यतीत होने पर तदनुसार विक्रम पूर्व ४५० में स्वयं
जगद्गरु
ु भगवान ् शङ्कर आद्य शङ्कर भगवत्पादके रूप में इस धरा धाम पर प्रकट हुए थे । पज्
ू य भगवत्पादने
प्राचीन चतुराम्नाय सम्बद्ध चतुष्पीठों पर अपने चार प्रमुख शिष्यों को जगद्गुरु शङ्कराचार्य के रूप में ख्यापित किया
था । यथा ऋग्वेद से सम्बद्ध पूर्वाम्नाय श्रीगोवर्द्धनमठ जगन्नाथ पुरी , पर पूज्य जगद्गुरु पद्मपादाचार्यजी को
यधि
ु ष्ठिर संवत ् २६५५ में (वर्तमान से २५०१ वर्ष पर्व
ू में ) अभिषिक्त किया । यजर्वे
ु द से सम्बद्ध दक्षिणाम्नाय
श्रीशङ्
ृ गेरी-शारदामठ शङ्
ृ गेरी, पर पूज्य जगदगुरु श्रीहस्तामलकाचर्यजी को युधिष्ठिर संवत ् २६५४ में (वर्तमान से
२५०२ वर्ष में ) पूर्व अभिषिक्त किया गया । सामवेद से सम्बद्ध पश्चिमाम्नाय द्वारिका-शारदामठ द्वारिका , पर
पज्
ू य जगद्गरु
ु श्रीसरु े श्वराचार्य जी का यधि
ु ष्ठिर संवत ् २६४९ में (वर्तमान से २५०८ वर्ष पर्व
ू में )अभिषेक किया गया ।
और अथर्ववेद से सम्बद्ध उत्तराम्नाय ज्योतिर्मठ बद्रिकाश्रम ,पर पूज्य जगद्गुरु श्रीटोटकाचार्यजी को युधिष्ठिर
संवत ् २६५४ में (वर्तमान से २५०२ वर्ष पूर्व ) अभिषेक किया । वर्तमान में चतुराम्नाय चतुष्पीठों पर पूज्य जगद्गुरु
महाभाग पूर्व में परु ीपीठ में अनन्तश्रीविभूषित भगवान ् स्वामी श्रीनिश्चलानन्द सरस्वती जी महाभाग अभिषिक्त हैं
,गत २६ वर्षों से पीठ पर विराजमान हैं । दक्षिणमें शङ्
ृ गेरीमठ में पूज्य जगद्गुरु अनन्तश्रीविभूषित भगवान ् स्वामि
श्री भारतीय तीर्थ महाभाग अभिषिक्त हैं । पश्चिम में शारदामठ में पूज्य जगद्गुरु अनन्तश्रीविभूषित भगवान ्
स्वामि श्रीस्वरूपानन्द सरस्वती महाभाग अभिषिक्त हैं ,वे गत ३६ वर्षोंसे पीठ पर विराजमान हैं । उत्तर में
ज्योतिर्मठ में पज्
ू य जगद्गरु
ु अनन्तश्रीविभषि
ू त भगवान ् स्वामि श्रीस्वरूपानन्द सरस्वतीजी महाभाग अभिषिक्त हैं
,वे गत ४५ वर्षों से पीठ पर विराजमान हैं । यह सार्वभौम जगद्गुरु की परम्परा अतिप्राचीन ही नहीं अपितु सनातन
भी हैं । कृत ,त्रेता ,द्वापर आदि युगों में मन्त्र दृष्टा ऋषियोंसे प्रसारित ज्ञान के द्वारा धर्म की व्यवस्था बनी रहती है ।
किन्तु कलियग
ु में अल्पमेधा वाले ,तपोबल और शद्ध
ु ता-पवित्रता रहित मनष्ु यों को भगवत्साक्षात्कार ,दे वताओका
साक्षात्कार और ऋषियों का साक्षात्कार प्रत्यक्ष नहीं होता है । क्योंकि दिव्य महापुरुषों के दर्शनों की क्षमता नहीं होती
है कलियुग के अल्पशक्ति सम्पन्न लोगों में । ऐसे में ऐसे मनष्ु यों पर कृपा करने के लिये स्वयं भगवान ्
श्रीमन्नारायण प्रत्येक द्वापर के अंतमें व्यास अवतार लेकर वेदों का विभाजन करके परु ाणों के द्वारा वेदों का
सरलीकरण करके जन-जन तक ज्ञान के प्रसार का मार्ग प्रशस्त करते हैं । उन्हीं भगवान ् व्यास नारायण की
सहायताके लिये जगद्गुरु भगवान ् साम्ब शिव स्वयं अवतार धारण करते हैं और व्यासजी के आदे श पर अपने चार
प्रमख
ु शिष्यों को चतरु ाम्नाय चतष्ु पीठों पर ख्यापित करके धर्म की पन
ु ः स्थापना करते हैं । इस श्वेतवराहकल्प का
प्रारम्भ १९७२९४९१२० वर्ष पूर्व हुआ था ,इतने बह
ृ त्तम इतिहास को भगवान ् व्यास नारायण के अतिरिक्त लिखने में
कोई अन्य समर्थ नहीं ,उन्हीं भगवान ् व्यासनारायण की कृपा से मैं इस श्वेतवराह कल्प के ७वें मन्वन्तर के २८
कलियुगों के सार्वभौम जगदगुरुओं का सङ्केत मात्र में वर्णन करने का प्रयास कर रहा हूँ । श्रीश्वेतवराहकल्पके
सप्तम मन्वन्तर वैवस्वत का शुभारम्भ १२०५३३१२० वर्ष पूर्व हुआ था । वैवस्वत मन्वन्तरके आद्य कलियुग
११६६४५१२० वर्ष पूर्व में जब भगवान ् ब्रह्माजी स्वयं व्यासजी के पद पर प्रतिष्ठित थे ,तब भगवान ् शिवने उनकी
सहायता के लिये जगद्गुरु श्वेतके रूप में अवतार लिया और चतुराम्नाय चतुष्पीठों पर अपने चार प्रमुख शिष्यों
श्वेतलोहित ,श्वेताश्व ,श्वेतशिख और श्वेत को अभिषिक्त किया । (यह चतुराम्नाय पूर्ववत ऋक् ० ,यजु: ,साम और
अथर्व के क्रम से है । पाठक गण कृपया निम्न सूची को स्वयं इसी क्रम से चतुराम्नाय चतुष्पीठों से सम्बन्ध ज्ञात कर
सकते हैं । )

द्वितीय कलियग
ु के प्रारम्भ में ११२३२५१२० वर्ष पर्व
ू जब प्रजापति सत्य व्यासजी थे तब भगवान ् शिव जगद्गरु

सुतार के नाम से अवतरित हुए ,उनके चार प्रमुख शिष्य जगद्गुरु हुए ,केतुमान ् ,हृषीक ,शतरूप व दन्ु दभि
ु । तीसरे
कलियुग के प्रारम्भ में १०८००५१२० वर्ष पूर्व महर्षि भार्गव व्यासजी थे तब भगवान ् शङ्कर जगदगुरु दमन के रूप में
प्रकट हुए और उनके प्रमुख शिष्य थे ,पापनाशन ,विपाप ,विशेष व विशोक ।

चतुर्थ कलियुग के प्रारम्भ में १०३६८५१२० वर्ष पूर्व भगवान ् अङ्गिरा व्यासजी थे और उनके सहायक भगवान ् शङ्कर
जगद्गरु
ु सह
ु ोत्र केरूप में प्रकट हुए ,उनके प्रमख
ु शिष्य हुए दरु तिक्रय ,दर्दु म ,दर्मु
ु ख व सम
ु ख
ु । पञ्चम कलियग
ु के
प्रारम्भ में ९९३६५१२० वर्ष पूर्व भगवान ् सविता व्यासजी थे (शुक्लयजुर्वेद इन्हीं से प्रकट हुआ ) तब उनके सहायक
भगवान ् शङ्कर जगद्गुरु हँस (कङ्क) के रूप में प्रकट हुए ,उनके प्रमुख शिष्य थे ,सनत्कुमार ,सनन्दन ,सनातन व
सनक । षट् कलियग
ु के प्रारम्भ में भगवान ् मत्ृ यु (सर्य
ू पत्र
ु - बालक नचिकेता के गरु
ु ) व्यासजी के पद पर थे ,तब
भगवान ् महे श्वर उनकी सहायता के लिये जगद्गुरु लोकाक्षीके रूप में प्रकट हुए ,उनके प्रमुख शिष्य हुए ,विजय
संजय ,विरजा व सुधामा । सप्तम कलियुग के प्रारम्भ में ९०७२५१२० वर्ष पूर्व भगवान ् शतक्रतु (इन्द्र ) थे ,जो कि
महर्षि भरद्वाज और विश्वामित्र के गुरु और प्राचीन व्याकरण के रचयिता थे । उनकी सहायतार्थ भगवान ् शङ्कर
जगद्गुरु जैगीषव्य के रूप में प्रकट हुए ,उनके शिष्य हुए -सुवाहन ,मेघवाहन ,योगीश व सारस्वत । अष्टम कलियुग
के प्रारम्भ में ८६४०५१२० वर्ष पूर्व भगवान ् वसिष्ठ व्यासजी के पद पर थे (ऋग्वेद सप्तम मण्डल के दृष्टा ऋषि
,वसिष्ठ धर्मसूत्र ,वसिष्ठ शिक्षा व वसिष्ठ स्मति
ृ की रचना इसी समय की ) उनकी सहायतार्थ भगवान ् शङ्कर
जगद्गरु
ु दधिवाहन के रूप में प्रकट हुए ,उनके शिष्य थे शाल्वल ,पञ्चशिख ,आसरि
ु व कपिल । नवम कलियग
ु के
प्रारम्भ में ८२०८५१२० वर्ष पूर्व भगवान ् सारस्वत व्यासजी थे ,उनके सहायक भगवान ् शङ्कर जगदगुरु ऋषभ के रूप
में हुए ,उनके प्रमुख शिष्य हुए गिरीश ,भार्गव ,गर्ग व पराशर । दशमें कलयग
ु के प्रारम्भ में ७७७६५१२० वर्ष पूर्व
भगवान ् त्रिधन्वा व्यासजी थे ,उनके सहायक शिवावतार जगद्गरु
ु योगेश्वर हुए ,उनके प्रमख
ु शिष्य हुए ,केतश
ु ङ्
ृ ग
,नरामित्र ,बलबन्धु व भङ्
ृ ग , चक्रवर्ती सम्राट मान्धाता इसी चतुर्युगी में हुए । एकादश कलियुग के प्रारम्भ में
७३४४५१२० वर्ष पूर्व भगवान ् त्रिवत
ृ व्यासजी थे ,उनके सहायक शिवावतार जगद्गुरु तप हुए ,उनके प्रमुख शिष्य हुए
प्रलम्बक ,केशलम्ब ,लम्बाक्ष व लम्बोदर । द्वादश कलियग
ु के प्रारम्भ में ६९१२५१२० वर्ष पर्व
ू भगवान ् शततेजा
व्यासजी थे ,उनके सहायक शिवावतार जगद्गुरु अत्रि हुए ,उनके प्रमुख शिष्य हुए ,शर्व ,साध्य ,समबुद्धि व सर्वज्ञ ।
त्रयोदश कलियुग के प्रारम्भ में ६४८०५१२० वर्ष पूर्व भगवान ् नारायण व्यासजी के पद पर थे ,उस समय उनके सहायक
भगवान ् शिवजगदगुरु बलि के रूप में प्रकट हुए ,उनके प्रमुख शिष्य हुए ,विरजा ,वसिष्ठ ,काश्यप व सुधामा । चतुर्द श
कलियुग के आदिमें ६०४८५१२० वर्ष पूर्व भगवान ् ऋक्ष व्यासजी के पद पर थे ,उनके सहायक शिवावतार जगद्गुरु
गौतम थे (गौतमधर्मसूत्रके रचयिता ) ,उनके प्रमुख शिष्य हुए ,श्नविष्टक ,श्रवण ,वशद व अत्रि । पञ्चदश कलियुगमें
५६१६५१२० वर्ष पूर्व भगवान ् व्यास के पद पर त्रय्यारुणि थे ,उनके सहायक शिवावतार जगद्गुरु वेदशिरा थे ,उनके
प्रमख
ु शिष्य हैं ,कुनेत्रक ,कुशरीर ,कुणिबाहु व कुणि । षोडश कलियग
ु में ५१८४५१२० वर्ष पर्व
ू भगवान ् व्यास के पद पर
दे व आरूढ़ थे ,उनके सहायक शिवावतार जगद्गुरु गोकर्ण जी थे (जिन्होंने अपने भाई धुंधकारी को पिशाच योनि से
मुक्त किया ) ,उनके प्रमुख शिष्य हुए ,बह
ृ स्पति (अर्थशास्त्र के रचयिता ) ,च्यवन (आयुर्वेद के प्रवर्तक
) ,उशना(उशनास्मति
ृ अथवा शक्र
ु नीति के रचयिता ) व काश्यप ,चक्रवर्ती सम्राट भरत इसी चतर्यु
ु ग में हुए । सप्तदश
कलियुग में ४७५२५१२० वर्ष पूर्व भगवत ् व्यासके पद पर दे वकृतञ्जय व उनके सहायक शिवावतार जगद्गुरु गुहावसी
थे ,उनके प्रमुख शिष्य हुए ,महाबल ,महायोग ,वामदे व व उतथ्य । अष्टदश कलियुग के आदि में ४३२०५१२० वर्ष पूर्व
भगवान ् व्यास ऋतञ्जय थे ,व उनके सहायक शिवावतार जगद्गरु
ु शिखण्डी थे ,उनके प्रमख
ु शिष्य हुए ,यतीश्वर
,श्यावास्य,रुचीक व वाचश्रवा । एकोन्विंशति कलियुग में ३८८८५१२० वर्ष पूर्व भगवान ् भरद्वाज व्यासजी थे व उनके
सहायक शिवावतार जगद्गुरु माली थे ,उनके प्रमुख शिष्य प्रधिमि ,लोकाक्षी ,कौसल्य व हिरण्यनामा थे ,इसी चतुर्युग
में भगवान ् परशरु ामजी हुए । विंशति कलियग
ु के आदि में ३४५६५१२० वर्ष पर्व
ू भगवान ् व्यास गोतम ऋषि थे (गोतम
न्यायदर्शन के प्रणेता ) ,उनके सहायक शिवावतार जगद्गुरु अट्टहास हुए ,उनके प्रमुख शिष्य हुए कुणिकन्धर
,कबन्ध ,वर्वरि व सुमन्त । एकविंशति कलियुग के आदि में ३०२४५१२० वर्ष पूर्व भगवान ् व्यास जी वाचाश्रवा थे उनके
सहायक शिवावतार जगद्गुरु दारुक थे ,उनके प्रमुख शिष्य हुए गौतम ,केतुमान ् ,दर्भामणि व प्लक्ष । द्वाविंशति
कलियुग के आदि में २५९२५१२० वर्ष पूर्व शुष्ययण व उनके सहायक शिवावतार जगद्गुरु लाङ्गुली भीम हुए ,उनके
प्रमुखं शिष्य हुए श्वेतकेतु ,पिङ्ग ,मधु व भल्लवी । त्रविंशति कलियुग के आदि में २१६०५१२० वर्ष पूर्व महर्षि
तण
ृ बिन्द ु वेदव्यास जी थे (इन्हीं के दौहित्र महर्षि विश्रवा थे ) ,उनके सहायक शिवावतार जगद्गुरु श्वेत थे ,उनके
शिष्य हुए कवि ,दे वल ,बह
ृ दश्व व उशिक । चतर्विं
ु शति कलियग
ु के आदि में १७२८५१२० वर्ष पर्व
ू भगवान ् वेद व्यास थे
ऋषि यक्ष ,उनके सहायक हुए शिवावतार जगद्गुरु शूली ,उनके प्रमुख शिष्य हुए शरद्वसु ,युवनाश्व ,अग्निवेश
(धनुर्वेद के आचार्य -द्रोणाचार्य के गुरु) व शालिहोत्र ,इसी चतुर्युगी में वेदवेद्य जगदीश्वर श्रीरामभद्रका अवतार हुआ ।
पञ्चविंशति कलियग
ु के आदि में १२९६५१२० वर्ष पर्व
ू भगवान ् व्यासके पद पर वसिष्ठ पत्र
ु शक्ति थे ,उनके सहायक
शिवावतार मुण्डीश्वर हुए ,उनके प्रमुख शिष्य हुए प्रवाहक ,कुम्भाण्ड ,कुण्डकर्ण व छगल । षड्विंशति कलियुग के
आदि में ८६४५१२० वर्ष पूर्व शक्ति पुत्र पाराशर भगवान ् वेदव्यास के पद पर थे (विष्णुपुराण के संकलनकर्ता) ,उनके
सहायक हुए शिवावतार जगद्गरु
ु सहष्णु ,उनके प्रमख
ु शिष्य हुए आश्वलायन (शौनक शिष्य आश्वलायन ऋग्वेद की
एक सम्पूर्ण शाखा के प्रवर्तक हैं ),शम्बूक ,विद्युत व उलूक । सप्तविंशति कलियुग के आदि में ४३२५१२० वर्ष पूर्व
महर्षि जातूकर्ण वेदव्यास थे ,उनके सहायक शिवावतार जगद्गुरु सोमशर्मा थे ,उनके प्रमुख शिष्य हुए वत्स ,उलूक
,कुमार व अक्षपाद । अष्टविंशति कलियुग के आदि में ५१२० वर्ष पूर्व ,जिस दिन भगवान ् श्रीकृष्ण इस धराधाम को
अनाथ करके गोलोक धाम को गये ,भगवान ् श्रीकृष्णद्वैपायन वेदव्यासजी ने २८ वे वेदव्यास के पद पर रखकर
महाभारत ग्रन्थ सहित १८ पुराणों व ब्रह्मसूत्र की रचना की व वेदोंका विभाजन किया । उनके सहायक शिवावतार
जगद्गुरु योगेश्वर लकुलीश हुए ,उनके प्रमुख शिष्य हुए पौरुष्य ,मित्र ,गर्ग व कुशिक (इन्ही जगद्गुरु कुशिक की
दशवीं शिष्य परम्परा में आर्य उदिताचार्य हुए जिन्होंने परमभट्टारक राजाधिराज समुद्रगुप्त के प्रतापी सत्पुत्र परम
भट्टारक राजाधिराज चन्द्रगप्ु त द्वितीय विक्रमादित्य के यज्ञ सम्पन्न किये थे ,व दो शिवलिंगों की स्थापना भी थी --
दे खिये गुप्त सम्राट चन्द्रगुप्त द्वितीय का गुप्त शक ६१ का मधुरा स्तम्भ लेख ,तीन वर्ष पूर्व यह उक्त अभिलेख को
हमने फेसबुक पर प्रेषित भी किया है ) । २८वे भगवान ् वेदव्यास के आदे श पर ही शिवावतार जगद्गुरु आदि
शङ्कराचार्य जी ने अपने चार शिष्यों ,श्रीपद्मपाद ,श्रीहस्तामलक,श्रीसरु े श्वर व श्रीटोटकको चतष्ु पीठों पर जगद्गरु
ु कर
रूप में ख्यापित किया । जयति लोक शङ्कर: 🙏 🚩

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