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युग पवततकः संत शी आसारामजी बापू

संत िमलन
संसारवयवहार केिलए भारतीय दिृिकोण
भारत भूिम अनािद काल से ही संतो-महातमाओं और अवतारी महापुरषो की चरणरज से पावन होती चली आ रही
है। यहा कभी मयादापुरषोतम शीराम अवतिरत हएु तो कभी कभी लोकनायक शीकृषण। शासतो केजान को संकिलत
करकेपूरे िवश को अधयातमजान से आलोिकत करन व े ा ल े भ ग व ा न व ेदवयासकीजनमसथलीभ
अिहसं ा, सतय, असतेय आिद को फैलानवेाले भगवान बुद भी इसी धरती पर अवतिरत हएु थे। सूर , तुलसी, रैदास, मीरा,
एकनाथ, नामदेव, कबीर, नानक, गुरगोिवनदिसंह, रामतीथत, रामकृषण परमहस ं , िववेकानदं, रमम महिषत, मा आनदंमयी,
उिििया बाबा, सवामी लीलाशाहजी महाराज आिद अनक े ानक े नामी-अनामी संत-महापुरषो की लीलासथली भी यही
भारतभूिम रही है, जहा से पेम, भाईचारा, सौहादत, मानवता, शाित और आधयाितमकता की सुमधुर सुवािसत वायु का पवाह
संपूणत जगत मे फैलता रहा है।
इसी कडी मे आज एक है अलौिकक आतमारामी, शोितय, बहिनष, योिगराज पातः समरणीय परम पूजयपाद संत
शी आसारामजी बापू, िजनहोन क े , वरन् संपूणत िवश को अपनी अमृतमयी वाणी से आपलािवत कर िदया है।
े वलभारतहीनही
बालक आसुमल का जनम िसंध पात केबेराणी गाव मे चैतवद षषी , िवकम संवत् 1998, तदनुसार 17 अपैल
1941 केिदन हआ ु था। आपकेिपता थाऊमलजी िसरमलानी नगरसेठ थे तथा माता महगँीबा सरल सवभाव और धमतपरायणा
थी। बालयकाल से ही आपशी केचेहरे पर आितमक तेज तथा अलौिकक सौमयता , िवलकण शाित और नत े ो मे एक अदभुत
तेज दिृिगोचर होता था, िजसे देखकर आपकेकुलगुर न भ 'आगे चलकर यह बालक एक महान
े ि व षयवाणीभीकीथीिक
संत बनगेा। लोगो का उदार करेगा।' इस भिवषयवाणी की सतयता आज िकसी से ििपी नही है।
लौिकक िवदा मे तीसरी कका तक की पढाई करन व े ा -बडे
लेआ सुमवैलआजबडे
जािनको, दाशतिनको, नते ाओं
तथा अफसरो से लेकर अनक े िशिकत-अिशिकत साधक-सािधकाओं को अधयातमजान की िशका दे रहे है, भटकेहएु
मानव-समुदाय को सही िदशा पदान कर रहे है.... आप शी बालयकाल से ही अपनी तीवर िववेकसंपन बुिद से संसार की
असतयता को जानकर तथा पबल वैरागय केकारण अमरपद की पािपत हेतु गृह तयागकर पभुिमलन की पयास मे जगंलो -
बीहडो मे घूमते-तडपते रहे। ईशर की कृपा कहो या ईशर -पािपत की तीवर लालसा, ननैीताल केजगंल मे परम योगी बहिनष
सवामी शी लीलाशाहजी बापू आपको सदगुर केरप मे पापत हएु। आपकी ईशर -पािपत की तीवर तडप को देखकर उनहोने
आपको िशषय केरप मे सवीकार िकया।
कुि ही समय केपशात 23 वषत की अलपायु मे ही पूणत गुर की कृपा से आपन प े ू ण त तवकासाकातकारकरिलया।
उसी ििन से आप आसुमल में साँईं शररी आसारामजी बापू के रूप में पहचाने जाने लगे।
आप शी केिवषय मे कलम चलाना मानो , सूरज को दीया िदखान क े े ब र ा ब र है।सारेिवशकेिलएिवशेशरर
गहण करन व े ा ल े आ प श ीकेबारे, मकम ेिजतनाभीिलखाजाय
ही होगा। कहा तो आप शात िगिर-गुफाओं मे आतमा की
मसती मे मसत बन औ े र क ह ा इसकलहयु -कपट, गराग-मेिदेलष से भरे मानव-समुदाय केबीच लोकसंगह केिवशाल
कायों मे ओत-पोत ! संसार केकोलाहल से भरे वातावरण मे भी आप अपन प े ू ज य सदगुर, देवकीआजािशरोधायतकर
अपनी उचच समािध अवसथा का सुख िोडकर अशाित की भीषण आग से तपत लोगो मे शाित का संचार करन ह े ेतुसमाज
केबीच आ गये।
आज से करीब 30 वषत पहले सन् 1972 मे आप शी साबरमती केपावन तट पर पधारे जहा िदन मे भी भयानक
मारपीट, लूट-पाट, िकैती व असामािजक कायरर होते थे। वही मोटेरा गाँव आज लाखों करोििों
शदालुओं का पावन तीथतधाम, शाितधाम बन चुका है। इस साबर तट िसथत आशमरपी िवशाल वटवृक की शाखाए आ ँ ज
भारत ही नही, अिपतु संपूणत िवशभर मे फैल चुकी है। आज िवशभर मे करीब 130 आशम सथािपत हो चुकेहै िजनमे सभी
वणत, जाित और संपदाय केलोग देश -िवदेश से आकर आतमानदं मे डुबकी लगाते है , अपन क े ोधनय -धनय अनुभव करते
है तथा हृदय मे परमेशरीय शाित का पसाद पाते है।
अधयातम मे सभी मागों का समनवय करकेपूजयशी अपन ि े श ष य ो क े सवागीणिवकासकामागतसुगम
भिितयोग, जानयोग, िनषकाम कमतयोग और कुणडिलनीयोग से साधक -िशषयो का, िजजासुओं का आधयाितमक मागत सरल
कर देते है। पूजय शी समग िवश केमानव -समुदाय की उनित केपबल पकधर है। इसीिलए िहनदू , मुिसलम, िसिख, ईसाई,
पारसी व अनय धमावलमबी भी पूजय बापू को अपन हेदृ य-सथल मे बसाये हएु है और अपन क े ो पू जयबापूकेिशषयकहलाने
मे गवत महसूस करते है। आज लाखो लोग पूजयशी से दीिकत हो चुकेहै तथा देश -िवदेश केकरोडो लोग उनहे शदासिहत
जानते-मानते है व सतसंग-रस मे सराबोर होते है। भारत की राषटीय एकता और अखणडता तथा शाित केपबल समथतक
पूजयशी न र े ा ष ट क े क ल याणाथतअपनापूराजीवनसमिपततकरिदयाहै।
पूजय बापू कहते है- "हे देश केनौिनहालो ! संसार केिजतन भ े ीमजहब, पथं , मत, नात, जात आिद जो भी है, वे
उसी एक चैतनरय परमातरमा की सतरता से सरफुिरत हुए हैं और सारे-के-सारे एक िदन उसी मे समा
जायेगे। िफर अजािनयो की तरह भारत को धमत, जाित, भाषा व समपदाय केनाम पर ियो काटा -तोडा जा रहा है ? िनदोष
लोगो केरित से भारत की पिवत धरा को रिंजत करन व े ा ल े ल ो ग ो थ ा अपनत े ुचिसवाथोंकीखाितर
िवदोह फैलान व े ा ल ो क ो ऐ स ा स बक ि स ख ा या ज ानाचािहएिकभिवषयमेभार
सके।"
आज एक ओर जहा सारा िवश िचंता, तनाव, अराजकता, असामािजकता और अशाित की आग मे जल रहा है,
वही दस
ू री और गाव-गाव, नगर-नगर मे पूजय बापू सवय ज ं -वाणी से समाज मे पेम, शाित, सदभाव तथा
ाकरअपनीपावन
अधयातम का संचार कर रहे है।
अनुकम
ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

,
,
-
"देशभर की पिरकमा करते हएु जन-जन केमन मे अचिे संसकार जगाना एक ऐसा परम राषटीय कततवय है िजसने
आज तक हमारे देश को जीिवत रखा है और िजसकेबल पर हम उजजवल भिवषय का सपना देख रहे है। उस सपन क े ो
साकार करन क े ी श ि ि त ,औरभिितएकतकररहे
पूजय बापूजी। सारे देहशै मे भमण करकेवे जागरण का शंखनाद कर
रहे है, अचिे संसकार दे रहे है। अचिे और बुरे मे भेद करना िसखा रहे है। हमारी जो पाचीन धरोहर थी , िजसे हम लगभग
भूलन क े ा प ापकरबै , उस ठधरोहर
ेथे को िफर से हमारी आँखों के आगे और ऐसी आँखों के
आगे रख रहे है िजसमे उनहोन ज े ा न " जनलगायाहै।
काअं
, ,
"पूजय बापू दारा देश केकोने -कोन म े े ि द य ा ज ा न , िजतना
वेालानिै तकताकासंदेशिजतनाअि
अिधक बढेगा उतनी ही माता मे राषट का सुख -संवधतन होगा, राषट की पगित होगी। जीवन केहर केत मे इस पकार केसंदेश
की जररत है।"
, ,
"सवामी आसारामजी केपास से भाित तोडन क े ी "
दिृििमलतीहै ।

"कलह, िवगह और देष से गसत वततमान वातावरण मे बापू िजस तरह सतय, करणा और संवेदनशीलता केसंदेश
का पसार कर रहे है, इसकेिलए राषट उनका ऋणी है। "
, ,
"संतो की िनगाह से तन पभािवत होता है और उनकेवचनो से मन भी पिवतता का मागत पकड लेता है। "
, ,
"पूजय बापू की वाणी मानवमात केिलए कलयाणकारी वाणी है। "
. . ,
"पूजय बापू जैसे महान संतपुरष केबारे मे मै अिधक िया कहूँ ? मनुषय चाहे लाख सोच-िवचार करे, पर ऐसे संत
केदरबार मे वही पहँच
ु सकता है िजसकेपुणयो का उदय हआ ु हो तथा उस पर भगवान की कृपा हो। "
, , ।
"िवदेशो मे जान क े े क ा र ण म ेरे,परदि
परतंू षतपरमाणु लगगयेकथे े े ब ा द
ु वहा से लौटन यहमेरापरमसौभागयह
िक यहा महाराजशी केदशतन व पावन सतसंग -शवण करन स े े म े र े ि च त की सफाईहोगयी।मेरेयहसौभा
यहा महाराजशी को सुनन क े ा "
स ुअवसरपापतहआ ु है।
, , ।
"अनक े पकार की िवकृितया मानव केमन पर , सामािजक जीवन पर, संसकार और संसकृित पर आकमण कर रही
है। वसतुतः इस समय संसकृित और िवकृित केबीच एक महा संघषत चल रहा है जो िकसी सरहद केिलए नही बिलक संसकारो
केिलए लडा जा रहा है। इसमे संसकृित को िजतान क े ा ब म ह ै य ो ग श िित।आपकीकृपासेइसयोगकीिदव
लाखो लोगो मे पैदा हो रही है.... ये संसकृित केसैिनक बन रहे है। "
, ,
"मै िवगत 16 वषों से पूजय संत शी आसारामजी बापू केसािनधय मे आशीवाद व पेरणा पापत करता रहा हूँ। "
, ,
"भारतभूिम सदैव से ही ऋिष-मुिनयो तथा संत-महातमाओं की भूिम रही है, िजनहोन ि े व श कोशाितऔरअधयातम
का संदेश िदया है। आज केयुग मे पूजय संत शी आसारामजी दारा अपन स े त स ं ग ो मेिदवयआधयाितमकसंदेश
है, िजससे न केवल भारत वरन् िवशभर मे लोग लाभािनवत हो रहे है।
, ।
"उतरतरांचल राजरय का सौभागरय है िक िेवभूिम में िेवता-सवरप पूजय आसारामजी बापू का
आशम बन रहा है। सिमित यहा ऐसा आशम बनाये जैसा कही भी न हो। यह हम लोगो का सौभागय है िक अब पूजय बापूजी
की जानरपी गंगाजी सवय ब ं ह क र य ह ा आ ग यी ह ै । अबगंगाजाकरदशतनकरनवेसनानकर
नही है िजतनी संत शी आसारामजी बापू केचरणो मे बैठकर उनकेआशीवाद लेन क े ीहै।"
, , ।
"बापू जी ! पडोसी (पािकसतान) अपना घर तो सँभाल नही पा रहे और हमे अमन-चैन से रहन न े ह ीदेतेहै।सबसे
बडी चीज संतो की दआ ु है, परमातमा की ताकत है। हम िहनदसुतानी मुसलमान है। हमारे िहनदसुतान मे अमन-चैन रहे, ऐसी
आप दआ ु करे।"
. , ,
"मैन अ े भ ी त क म ह ा र ा ज श ी का -आपको
न ामभरसु नाथा।आजदशतनकरनक े ा
कमनसीब मानता हँू ियोिक देर से आन क े े क ा र ण इ त नस े म यतकगुरदेवकीवाणीसुननस े ेविं
कोिशश रहेगी िक मै महाराजशी की अमृतवाणी सुनन क े ा ह "
र अवसरयथासं भवपासकू। ँ
, ,
"िहनदसुतान ऋिषयो की, गुरओं की धरती है। इस िहनदसुतान मे अमन, शाित, एकता और भाईचारा बना रहे
इसिलए पूजय बापू जी से आशीवाद लेन आ े य ा ह ू ँ । म ै आ श ी ष ल े याहूँऔरमेरेिलएयहएकब
ेनआ
जब-जब पूजय बापूजी पज ं ाब आयेगे, मै दशतन करन अ े वशयआऊ "ँगा।
, ,
अनुकम
ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

भारतीय ऋिष-मुिनयो न ि े त ि थ य ो , मानिसक व आधयाितमक


औरतयोहारोकािनधारणबडीसू कमतासेशारीिरक
लाभ को दिृि मे रखकर िकया है। अतः इन िदनो मे करणीय-अकरणीय िवषयो मे उनकेआदेशो का यथावत पालन
सवसथ, सुखी व सममािनत जीवन अनायास पापत करा देता है।
भारतीय ितिथ-तयौहार पकृित से सीधा तालमेल रखते है। जैसे , पूिणतमा केिदन चनदमा की िकरणे सीधी धरती पर
पडती है। उस िदन िवशाल सागर पर जवार-भाटा का पभाव िवशेष रप से देखा जा सकता है। इसी तरह इन ितिथयो का
पभाव हमारे शरीर केजलीय अंश व सपतधातु पर भी पडता है। अतः अिमी , एकादशी, चतुदतशी, पूिणतमा, अमावसया,
संकािनत, इिजयत ं ी आिद पवों मे, ऋतुकाल की तीन राितयो मे, पदोषकाल मे, गहण केिदनो मे और शाद तथा पवत केिदनो
मे संसारवयवहार करन व े ा ल े , रोगी, दःुवखालेदेन वेाले, िवकृत अंगवाले , दबुतल तन, मन और बुिदवाले
केयहाकमआयु
बालक पैदा करते है।
शासताजा की अवहेलना करकेअपनी िवषय -वासना की अनधता मे अयोगय देश, काल और रीित से संसारवयवहार
करन स े ेबीमार , तेजोहीन, चंचल, कुद सवभाववाले, झगडालू, अशात, उपिररवी बचरचे पैिा होते हैं। इसी
तरह पदोषकाल मे मैथुन करन आ े िध-वयािध-उपािध आ घेर लेते हैं तथा ििन में और संधरया की
वेला मे िकये गये गभाधान से उतपन संतान दरुाचारी और अधम होती है।
इन िदनो आधयाितमक दिृिकोण से जप, धयान, साधना करन स े े , मेधावी,
अ न ुपमलाभहोताहै ।तेसुजशसवी
ील,
बुिदमान, िववेकी, भित, वीर, उिार संतान पररापरत करने के िलए भारतीय िृििरटकोण ही अनुकरणीय
है।
अनुकम
ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ
"िजस पकार सूयत की रोशनी, चंदा की चादनी तथा बादलो की वषा का लाभ सभी लेते है उसी पकार सतसंग और
ईशर की बनदगी का लाभ भी सभी को लेना चािहए। अपने -पराये का भेद मन की हलकी अवसथा मे होता है। वासतव मे
सब तुमहारे ही है और तुम सभी केहो , ियोिक सबमे तुमहारा परमातमा बस रहा है।"

िजनहोन अ े प न के ो अनतं, परमातमाक


ऐसे संतो क िलए देश -काल-जाित-धमत-ऊँच -नीच कोई
ेसे ाथिमलािलया
महततव नही रखते। वे सभी को अपना जानते है , सभी से पेम करते है। उनका दार सभी केिलए खुला रहता है। चाहे कोई
िकसी भी धमत-संपदाय का ियो न हो पतयेक शदालु उनकेदार से अपनी योगयता केअनुसार कुि -न-कुि लेकर ही जाता
है। सभी को उनकी िनगाहो मे अपना परमातमा नजर आता है।
, ?
िवशाल हृदय से जीनवेाले महापुरष को िकसी भी धमत, जाित, संपदाय केिलए नफरत नही होगी। ऐसे नक े
िवचारवादी इनसान धरती पर केदेवता मान ज े ातेहै।
,
,
,

अनुकम
ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

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