You are on page 1of 3

िवलक्षण भगवत्कृ पा

भगवान्पर पर संसारपर तो कभी िवश्वास करना चािहये, िवश्वास नहीं करना चािहये । देखने, सुनने, समझने अददमें जो संसार अता है, वह प्रितक्षण ही बदल रहा है—यह सबका ऄनुभव है; ऄतः ईसपर िवश्वास कै से दकया जाय ? संसार िवश्वासपात्र नहीं है, प्रत्युत सेवापात्र है । िवश्वासके योग्य तो के वल भगवान् ही हैं, जो कभी बदले नहीं, कभी बदलेंगे नहीं और कभी बदल सकते नहीं; जो सदा ज्यों-के -त्यों रहते हैं । दूसरे , आस बातपर िवश्वास करना चािहये दक जब भगवान्ने कृ पा करके ऄपनी प्राििके िलये मानवशरीर ददया है तो ऄपनी प्राििकी साधन-सामग्री भी हमें दी है । साधन-सामग्री कम नहीं दी है, प्रत्युत बहुत ऄिधक दी है । आतनी ऄिधक दी है दक ईसमें हम कइ बार भगवान्की प्रािि कर सकते हैं,
स्वामी श्रीरामसुखदासजी महाराज

जबदक वास्तवमें भगवान्की प्रािि एक बार ही होती है और सदाके िलये होती है । साधकको प्रायः ऐसा प्रतीत होता है दक मेरे पास साधन-सामग्री नहीं है । ऄतः वह आच्छा करता है दक कहींसे कोइ साधन-सामग्री िमल जाय, कोइ कु छ बता दे, कु छ समझा दे अदद-अदद । ऄजुुन भी यही सोचता है दक मेरेमें साधन-सामग्री (दैवी सम्पिि) कम है । ऄतः भगवान् ईसको अश्वासन देते हैं दक तुम्हारे में दैवी सम्पिि कम नहीं है, प्रत्युत स्वतः स्वाभािवक िवद्यमान है, आसिलये तुम िचन्ता मत करो, िनराश मत होओ—‘मा शुचः सम्पदं दैिवमिभजतोऽिस पाण्डव’ (गीता १६/५) । भगवान् कल्याण करनेके िलये मनुष्यशरीर तो दे दें, पर कल्याणकी साधन-सामग्री न दें—ऐसी भूल भगवान्से हो ही नहीं सकती । भगवान्ने ऄपना कल्याण करनेके िलये िववेक भी ददया है, योग्यता भी दी है, ऄिधकार भी ददया है, समय भी ददया है, सामर्थयु भी दी है । ऄतः यह िवश्वास करना चािहये दक भगवान्ने हमें पूरी साधन-सामग्री दी है । ऄगर हम यह िवचार करते हैं दक हमें भगवान्ने ऐसी योग्यता नहीं दी, आतनी बुिि नहीं दी, आतनी सामग्री नहीं दी, ऐसी सहायता नहीं दी तो हम क्या करें , ऄपना ईिार कै से करें
स्वामी श्रीरामसुखदासजी महाराज

तो यह हमारी कृ तघ्नता है, हमारी भूल है ! क्या सबपर िबना हेतु कृ पा करनेवाले भगवान् देनेमें कमी रख सकते हैं ? कदािप नहीं रखते ।
(शेष अगेके ब्लॉगमें) —‘ भगवान् और ईनकी भिि’ पुस्तकसे

स्वामी श्रीरामसुखदासजी महाराज

You might also like