प्रिय मणि भाई जी,ये एक अच्छा सॊक े त है या बर े मध्य ु ा,इससे कह ॊ ज्यादा ये अनच ु ित है की आऩ साधना क अऩनी एकाग्रता बनाये रखने की अऩेऺा इन दृश्यों से िभाप्रित होते रहे , ये इतने महत्िऩूिण नह ॊ हैं कयॊक ू क अकसर रुई की बाती का आकार ऐसा हो जाता है . महत्िऩूिण ये होता की यदद आऩ या कोई भी अन्य साधक एकाग्रता का स्तर बनाये रखता तो ननश्िय ह अभभमॊत्रित द ऩक की ऱौ में त्रबम्बात्मक दर्णन मन्ि इष्ट क े हो जाते हैं. मैं आगे आऩसे यह कहूॉगा की भप्रिष्य की साधनाओॊ में आऩ इस महत्िऩूिण तथ्य का ध्यान रखेंगे और अऩने मन को अनुभन ॊ ठा से मुकत रखते हुए साधना करें गे,तब स्ित् ह अनुभि का सॊसार आऩक े भऱए ू त िाप्तत की उत्क खऱ ु जाएगा और तदनरू ु ऩ ऩररिाम की आऩको िाप्तत भी होगी,हमें माि जऩ सॊख्या की ऩररऩन ू तण नह ॊ करनी है अप्रऩतु दर्ों इप्न्ियों से साधना करते हुए स्ियॊ साधना बन जाना है ...आर्ा करता हूॉ की आऩ अऩने इस भाई की बात को सकारात्मक ऱें गे और यदद मेर ककसी बात से आऩका ह्रदय दख ु हो तो मुझे ऺमा करें गे.