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मृ यु-बोध : जीवन-बोध
डा. मह भटनागर
(1) आभार
मृ यु है ;
मृ यु िन त है,
अटल है
जीवन इसिलए ह तो
इतना का य है !
इसिलए ह तो
जीवन-मरण म
इतना पर पर सा य है !
मृ यु ने ह
जीवन को दया सौ दय
इतना
अशेष - अपार !
मृ यु ने ह
मानव को दया
जीवन-कला-सौकय
इतना
िसँगार-िनखार !
िन:संदेह
है वीकाय
न रता,
म य दशन / भाव
ितपल मृ यु-तनाव !
आभार
मृ यु के ित
ाण का आभार !
मौत ने ज़ दगी को
बड़ा ख़ूबसूरत बना दया,
लोक को,
असिलयत म
सुखद एक ज नत
बना दया,
अथ हम यार का
जान पाये, तभी तो
सह -सह ,
आदमी को
अमर दे व से;
और उ नत बना दया !
(3) काल-च
िनमम है
काल-च
अितशय िनमम !
जसके नीचे
जड़-जंगम
मश: पसता और बदलता
हर ण, हर पल !
थर-थर कँपता भू-मंडल !
अ य
िन:श द कये
अ वरत घूम रहा
यह काल-च
िन व न ... िन वकार !
इसके स मुख
थरता का कोई
अ त व नह ,ं
इसक गित से
सतत िनय त
जीवन और मरण,
धरती और गगन !
(4) िन न
मृ यु से डरते रहगे
तो
हो जायगा
जीना िनरथक !
भार बो झल
शु क नीरस
िन वषय मानस।
अत:
साथक तभी
जीवन,
मरण-डर मु हो
हर ण।
अशुभ है
नाम लेना
मृ यु-भय का,
या लय का
इसी कारण।
(5) िच तन
मृ यु ?
एक -िच ह !
भेद जानना
द ु ह ह नह ;ं
मनु य के िलए
अ- ात
सब।
दे ह पंच-त व म वलीन
सब बखर- बखर !
समा ।
ाण लौटना नह ;ं
न स भवी
पुन: सचेत कर सक,
रह य ात कर सक
वयं जब नह ।ं
मरण - हे िलका
अजब हे िलका !
अबूझ आज तक
गज़ब हे िलका !
य यथ
मृ यु-अथ य हो सके;
ज टल क ठन
वचारणा।
(6) पहे ली
या कहा ?
तन
रहने यो य नह ं रहा;
इसिलए ...
आ मन !
तुम चले गये।
नये क चाह म
कसी राह म;
कहाँ ?
ले कन कहाँ ??
अ ात है,
सब अ ात है !
घुप अंधेर रात है,
रह यपूण
हर बात है !
कसका है ?
उ र कसका है ?
(7) सचाई
मृ यु नह ं होती
तो ई र का भी अ त व नह ं होता,
कभी नह ं करता
मानव
ार धवाद से समझौता !
ई र तीक है
ई र माण है
मानव क लाचार का,
मृ युपरा त तैयार का।
वग-नरक का
सारा दशन-िच तन
क पत है,
मानव
मृ यु-दत
ू क आहट से
हर ण आतं कत है,
रह-रह रोमांिचत है !
मालूम है उसे
'मृ यु सुिन त है !'
इसीिलए पग-पग पर
आशं कत है !
यह नह ं
तथाकिथत म यलोक से
िनता त अप रिचत है;
वह।
अत: तभी तो
जाता है
ई र क शरण म
पाने िचर-शा त मरण म !
अत: तभी तो
गाता है
एक-मा
'राम नाम स य है !'
अरे , ज म-मृ यु कुछ नह ं
उसी का
वनोद- ू र कृ य है !
(8) मृ यु- प
मृ यु ाकृितक हो
या आक मक दघटना
ु हो
िन कष एक है
अ त-कम जीवन का,
होना चेतनह न
स य तन का,
सदा-सदा को होना सु
दय- प दन का !
दोन ह तथाकिथत
विध-लेख हो,
भा य-िल प अ अिमट रे ख हो !
ले कन
जीवन-वध
चाहे आ म-हनन हो,
या ह या-भाव-वहन हो,
या य और समाज र ा हे तु
द र द का दमन-दलन हो,
नह ं मरण;
है ाण-हरण।
भले ह अंत एक
मृ यु !
सह मृ यु या अकाल मृ यु।
(9) िन कष
मृ यु ?
-िच ह।
थर
अनु रत
अड़ा,
व बन
खड़ा।
पर, नह ं
मनु य हार मानना,
तिनक न ईश क पना
बचाव म,
सवाल के जवाब म,
नह ं, नह ं !
रह य मृ यु का
िनरावरण ... कट
अव य
अव य
एक दन !
(10) ज म-मृ यु
मृ यु :
ज म से बँधी
अटू ट डोर है,
ज म :
एक ओर;
मृ यु :
दसरा
ू तीप छोर है !
ज म - एक तट
मरण - वलोम तीर;
ज म :
हष य ?
मृ यु :
पीर ... !
य ?
ज म-मृ यु
जब समान हो ?
एक / पवान;
दसरा
ू / महािनधान है !
ज म
सू पात है,
मृ यु
नाश है : िनघात है !
ज म ... ात,
मृ यु ... अ- ात !
ज म : आ द,
मृ यु : अ त है !
ज म : ीगणेश,
मृ यु : ित दग त है !
(11) यु म
चार ओर फैली
म भूिम रे तीली
बुझते द पक लौ-सी
भूर
पंगल।
पीत-ह रत
जल-र हत
ढलती उ
मरणास न !
ले कन
अनिगनती
लहराते ... ह रआते
म प !
कँट ले
प र हत
पनपते पेड़
जीवन-िच ह
पताकाएँ !
जलाशय
आशय ... जीवन-द
ाणद !
(12) वलोम
जीवन : हष लास
मृ यु : अंितम िन ास
मधुर राग / ची कार !
शुभ-कृत / हाहाकार !
(13) समान
ात भी अ ण
सा य भी अ ण
ात-सा य एक हो।
ज म पर दन
मृ यु पर दन
ज म-मृ यु एक हो।
यह
सह ववेक है,
यथाथ ान है,
यथ
और ... और यान है।
(14) साखी
इतने उदास य होते हो ?
होशोहवास य खोते हो ?
जीवन - बहमू
ु य है; सह
है अटल मृ यु; य रोते हो ?
(15) कामना
जएँ सम त िशशु त ण
अकाल मृ यु है क ण।
(16) वा तव
''मृ यु
ज म है
पुन: - पुन:
आ म - त व का।''
अस य; इस वचार को
क स य मान ल ?
अंध मा यता
तक ह न मा यता !
ाण / पंच - त व म वलीन,
अंत / एक सृ का,
अंत / एक य का,
एक जीव का।
कह ं नह ं
यहाँ ... वहाँ।
सह यह
क लय सदै व को।
न है नरक कह ,ं
न वग है कह ,ं
यथाथ लोक स य है।
मृ यु स य है,
ज म स य है।
(17) जीवन-दशन
ब हगित
भौितक प दन;
अ तर-गित
जीवन।
लय हो न कभी;
जीवन लयवान रहे ,
कण-कण गितमान रहे ।
लयगत होना
अ तर गित खोना।
संघष -सं ाम से
जीवन क िनिमित,
होना िन य
ापक - आस न मरण का,
थमना जीवन क प रणित।
जीवन : केवल गित,
अ वरित गित !
मश: वकिसत होना,
होना प रवितत
जीवन का धारण है !
थरता
ाण- वह न का
था पत ल ण है !
जीवन म क पन है, प दन है ,
जीव त उर म अ वरल धड़कन है !
कना
अ त व - वनाशक
अशुभ मृ यु को आमं ण,
(19) योगरत
आदमी म
चाह जीवन क
सनातन और सवािधक बल है;
जब क
हर जीव त क
अ तम सचाई
मृ यु है !
हाँ, अ त िन त है,
अटल है !
ले कन / स य है यह भी
अमरता क : अजरता क
लहकती वासना का वेग
होगा कम नह ,ं
अ त
ु परा म आदमी का
चाहता कलरव,
दन मातम नह ं !
हर बार
ुव मृित क चुनौती से
िनर तर जूझना वीकार !
मृ युज
ं य
बनेगा वह; बनेगा वह !
(20) साथकता
जीना-भर
जीवन-साथकता का
नह ं माण,
जीना -
मा ववशता
जैसे - मृ यु ..... याण।
जो वाभा वक
उसके धारण म
कोई वैिश य नह ,ं
सं ा
ाणी होना मा
मनु य नह ।ं
मानव - म हमा का
उ घोष तभी,
मन म हो
स चा तोष तभी
जब हम जीवन को
अिभनव अथ दान कर,
भरे अंधेरे म
नव - नव योितल क का
संधान कर।
सृ -रह य को ात कर,
चाँद-िसतार से बात कर।
परमाथ
हमारे जीने का ल य बने,
हर भौितक संकट
पग-पग पर भ य बने।
इतनी मताएँ
अ जत ह ,
फर,
ाण भले ह
मृ यु सम पत ह ,
कोई लािन नह ,ं
कोई खेद नह ,ं
इसम
कंिचत मतभेद नह ,ं
जीवन सफल यह
जीवन वरल यह
ध य मह !
(21) ाथना
वांिछत
अमरता नह ;ं
चाहता हँू
अजरता।
सकल वा य, आरो य
िन नता
तन और मन क ।
अिभ ेत वरदान यह
क पत कसी ईश से
नह ं।
तन लेश-मु
मन लेश-मु
हाँ,
एक-सौ-और-प चीस वष
जएँ हम!
अपने िलए,
दसर
ू के िलए।
उ छृंखल और मह वाकां ी
मानव
धन के पीछे भाग रहा है
सुख के पीछे भाग रहा है
जीवन क क़ मत पर।
आ य अरे
इस अ त
ु द ू षत नीयत पर !
खं डत और वशृख
ं ल जीवन
रोग- त / हत घायल जीवन
ण-भंगरु
मृ यु-कु ड म
िगरने को आतुर !
अंधा, सं म, अ ानी
मानव
धन ह वच व समझ रहा है
सुख को सव व समझ रहा है !
बहमू
ु य िमला जो जीवन / धो बैठेगा,
जीवन क नेमत / खो बैठेगा !
(23) संक प
पूण िन ावान
हम,
आ त हो उतरे
वकट जीवन-मरण के
म !
बन िसपाह
अमर जीवन-वा हनी के,
िघर न पाएंगे
वप ी के कसी
छल-छ द म !
हार जाएँ,
पर, वच व मानगे नह ं
तिनक भी मरण का,
अिधकार अपना
िछनने नह ं दगे
जीवन वरण का !
जयघोष गूज
ँ ेगा
चरम िन ास तक,
संघषरत
बल- ाण जूझेगा
शेष आस / यास तक !
(24) जयघोष
सारा व सोता है
इतनी रात गुज़रे
कौन रोता है ?
सुना है
पास के घर म
मृ यु का धावा हआ
ु है,
स य है
कोई मुआ है !
यमदत
ू के
तीखे छुरे ने
आदमी को फर
छुआ है !
पहँु चो
अमृत-स वेदना-लहर िलए,
यह आदमी
फर- फर जए !
जीवन-दं द
ु भी
ु बजती रहे ,
ण- ण
भले ह , अरिथयाँ सजती रह !
(25) आ ान
अलख
जगाने वाले आये हो,
नव-जीवन का
य मधु गीत
सुनाने वाले आये हो !
सोहर गाने वाले आये हो !
उर-वीणा के तार-तार पर
जीवन-राग
बजाने वाले आये हो !
मन से हारो !
जागो !
तन के मारो !
जागो !
जीवन के
लहराते सागर म
कूदो
ओ गोताख़ोरो !
जड़ता झकझोरो !
(26) एक दन
जीवन
वजयी होगा
व ास कर,
नीच मीच से
न डर; न डर !
हर संशय का
नाश- वनाश कर !
जीवन जीतेगा
व ास कर !
घनघोर अंधेरा
मौत मर का
छाएगा / डरपाएगा;
सूरज के बल पर / दम पर
व ास कर !
इसका
क़तरा-क़तरा फ़ाश कर !
चार ओर काश भर !
जीवन जीतेगा
व ास कर !
(27) उ े य
हम
जो जीवन के िश पी हो
केवल जीवन क
बात कर,
जीवन क साथकता खोज,
जीवन - त व को
ात कर !
मरण
हमारा हरण करे तो
उस पर बढ़ कर
आघात कर,
जीवन का
जय - जयकार कर,
यम का
मृित का
संघात कर !
(28) अभी
जीवन-उपवन म
मृ यु स पणी का
अ त व न हो,
मृ यु भीत से आतं कत
मानव- य व न हो !
हर मानव
भोगे जीवन
संदेह र हत,
हो हर पल उसका
मधु रत िसंिचत !
जीवन - धम
जीवन से खेले,
भरपूर जये जीवन
हर सुख क बाँह
बाँह म ले ले !
(29) मन-वांिछत
जब-तक
जीना चाहा
हमने;
ख़ूब जये !
मान
वषा म भी
जलते रहे दये !
नह ं कसी क
रह कृपा,
जूझे -
अपने बल पर
व ास कये !
(30) िस द
जजी वषु
नह ं करे गा
मृ यु- ती ा !
सोना
स चा खरा तपा
य दे गा
अ न-पर ा ?
म तोड़ो,
काल-च को मोड़ो !
जीवन से नाता जोड़ो !
जड़ता छोड़ो !
(31) व थ
वयं को
शा त समझ कर
जीते हो,
िन त
हँ सते और गाते हो,
बे फ़
खाते और पीते हो;
जीना
या इसे ह
हम कह ?
अंत से
जब -ब- ह,
अ यथा
अनिभ ह उससे रह,
या
जीना इसे ह
हम कह ?
(32) सा य
गाता हँू
वजय के गीत
गाता हँू !
मृ यु पर
जीवन जगत क जीत
गाता हँू !
अित य व तु
जीवन- व फुरण क
बेधड़क जयकार
गाता हँू !
क़ तान के आकाश म
जो गूज
ँ ते हो वर
प र द के
व छ द र द के
अनुवाद हो
मेर
जीवन-भावनाओं के !
सहचार हो
मेर
जीवन-अचनाओं के !
(33) द शतअंगेज़
सावधान !
फहरा द है
हमने
घर-घर, गाँव-गाँव, नगर-नगर
जीवन क
नव-जीवन क
लाल पताकाएँ !
तन के भीतर घुस कर
घात लगाता है,
अपने को अ व जत यम का
दत
ू बताता है,
तन के भीतर
व फोटक-बा द
बछाता है,
और ...
अ श थान से
िछप-िछप कर
दरू थ-िनय त-यं चलाता है !
दे ख
अब और कधर से आता है !
(34) मृ यु-दशन
मृ यु :
सुिन त है जब;
यथ इस क़दर
य होते हो
आशं कत,
आतं कत !
मृ यु से अरे कह दो
'जब चाहे आना; आये।'
इस समयाविध तो
आओ,
िमल कर नाच-गाएँ !
नाना वा बजाएँ !
तोड़ मौन;
मृ यु क िच ता
करता है कौन ?
(35) आमं ण
मृ यु
आना,
एक दन ज़ र आना !
और मुझे
अपने उड़नखटोले म
बैठा कर ले जाना;
दरू ... बहत
ु दरू
नरक म !
जससे मो
नरक-वािसय को
संग ठत कर सकूँ,
उ ह व ोह के िलए
ललकार सकूँ,
ज़ दगी बदलने के िलए
तैयार कर सकूँ !
नह ं मानता मो
कसी िच गु को
कसी यमराज को;
चुनौती दं ग
ू ा उ ह !
बस, ज़रा कूद तो जाऊँ
नरक-कु ड म !
िमल जाऊँ
नरक-वािसय के
वशाल झु ड म !
(36) मृ यु-पर से
मृ यु आओ
हम तैयार हो !
मत समझो
क लाचार हो ।
पूव-सूचना
दोगी नह ं या ?
आभार मेरा
लोगी नह ं या ?
आओगी -
बना आहट कये
आ य दे ती !
नटखट बािलका क तरह !
ठ क है,
वीकार है !
मेर चहे ती,
तु हारा खेल यह
वीकार है !
चुपचाप आओ,
मृ यु आओ
हम तैयार हो !
अ छ तरह
समझते हो
क जीवन-पु तका का
उपसंहार हो तुम !
इसिलए
मेरे िलए
पूणता का
शुभ-समाचार हो तुम !
आओ,
मृ यु आओ,
हम तैयार हो !
ती ा म तु हार
सज-धज कर
तैयार हो !
(37) िनवेदन
मृ यु
या हआ
ु
य द तुम ी-िलंग हो,
तु ह िम बना सकता हँू !
शरमाती य हो ?
आओ
हमजोली बनो ना !
हमख़ाना नह ं तो
हमसाया बनो ना !
और एक दन अचानक
मुझे साथ ले
चल पड़ना
ेत-लोक म !
य ह
नोकझ क म !
व न दे खते
आती होगी मृ यु,
तन से
ाण चले जाते ह गे
तभी।
वह या जाने ?
दिनया
ु वाल से पूछो
ज ह ने
तन पर रख
ढक द है चादर !
या हआ
ु ?
हआ
ु या ?
आ ख़र ?
(39) तुलना
िशव म
शव म
अ तर है मा इकार का
(तीसरे वण वार का।)
िशव
मंगलकार है
सुख झड़ता है !
शव
अिन -सूचक
केवल सड़ता है !
िशव के तीन ने ह,
शव अंधा है !
कैसा गोरखधंधा है ?
(40) अ तर
कतना अ त
ु है संयोग
क अ तम वदा
अरे ! ओ ेम थम !
आये
ओझल होती राह पर,
िलए चाह ◌े
जो कभी पूर होनी नह ,ं
कभी वा तव थूल छुअन से
सह-अनुभूत हमार
यह दरू होनी नह ं !
जाता हँू
याद िलए जाता हँू,
दद िलए जाता हँू !
(41) अ त
समर
अब कहाँ है ?
सफ़र
अब कहाँ है ?
थम गया सब
बहता उछलता नद -जल तरल,
जम गया सब
नस म िधर क तरह !
दद से
दे ह क ह डयाँ सब
चटखती लगातार,
अब कौन
इ ह दबाए
टू टती आ ख़र साँस तक ?
अंधेरे-अंधेरे िघरे
जब न कोई
पास तक !
लहर अब कहाँ
एक ठहराव है,
ज़ दगी अब
िशिथल तार;
बखराव है !
(42) आघात
मोने ...
जी वत रखा तु ह
अत: तु हार
जी वत गिलत लाश भी
ढोऊंगा !
मूक ववश ढोऊंगा !
व ास का ख़ून कया
तुमने,
अरमान को
जलती भ ठ म भून दया
तुमने !
छल-छ का
सफल अिभनय कर,
जीवन के हर पल म
दद असह भर !
यारा नह ं बना,
ह यारा नह ं बना !
अरे ! नह ं छ ना जीने का हक़;
यद प हआ
ु बेपरदा शक,
हर शक !
जी वत रखा जब
नरका न म दहंू गा
बन संवेदनह न
सब सहंू गा !
पहले या फर
सब को
िचर-िन ा म सोना है,
िम ट -िम ट होना है !
ओ बद क़ मत !
फर, कैसा रोना है ?
(43) स य
ाण-पखे
उड़ जाएंग,े
उड़ जाएंगे !
ाण-पखे
उड़ जाएंगे !
इक दन तन के पंजर से
ाण-पखे
उड़ जाएंगे !
जो कभी न
वापस आएंगे !
उड़ जाएंगे
ाण-पखे
उड़ जाएंगे !
(44) िन ित
तय है क
तू
एक दन
मृ यु क गोद म
मौन
सो जायगा !
तय है क
तू
एक दन
मृ यु के घोर अंिधयार म
डू ब
खो जायगा !
तय है क
तू
एक दन
याग कर प ी
भ म म सात ्
हो जायगा !
(45) घोषणा
दिनया
ु वाल से
कह दो
अब
महे भटनागर सोता है !
िचर-िन ा म सोता है !
जो
होना होता है;
वह होता है !
रे मानव !
तू य रोता है ?
जीवन
जो अपना है,
उस पर भी
अपना अिधकार नह ,ं
घर-धन
जो अपना है
उसम भी
सचमुच
कोई सार नह ं !
उसके
तुम दावेदार नह ं !
बन कर
मौन वर - वरागी
चल दे ते हो
छोड़ सभी,
चल दे ते हो
नये-पुराने नाते- र ते
तोड़ सभी !
रे इस ण का
अनुभव
सब को करना है,
मृ यु अटल है
फर
उससे या डरना है ?
ओ, मृ यु अमर !
तुम समझो चाहे
लाचार मुझे,
उपसंहार मुझे,
वे छा से
करता हँू अंगीकार तु ह
तन-मन से वीकार तु ह !
सुखदायी
िम ट क शैया पर सोता हँू !
इस िम ट के
कण - कण म िमल कर
अपनापन खोता हँू !
नव जीवन बोता हँू !
जैसे जीवन अपनाया
वैसे
हे , मृ यु
तु ह भी अपनाता हँू !
जाता हँू,
दिनया
ु से जाता हँू !
सु दर घर, सु दर दिनया
ु से
जाता हँू !
सदा ... सदा को
जाता हँू !
(46) नमन
अल वदा !
जग क बहारो
अल वदा !
ओ, दमकते चाँद
झलिमलाते िसत िसतारो
अल वदा !
पहाड़ो ... घा टयो
ढालो ... कछारो
अल वदा !
उफ़नती िस धु-धारो
अल वदा !
फड़फड़ाती
मोह क पाँखो,
छलछलाती
यार क ऑंखो
अल वदा !
(47) अल वदा !
ार ध के मारे हए
ु
हम,
ज़ दगी के खेल म
हारे हए
ु
हम,
हाय !
अपन से सताए,
दय पर चोट खाए,
िसर झुकाए
मौन
जाते ह सदा को
कभी भी
याद मत करना,
आज के दन भी
सुनो,
मृित-द प मत रखना !
(48) तप वी
मृ यु पर पाने वजय
िस दाथ - साधक
एक और चला !
जसने हर चरण
यम-वा हनी क
छल-कुचाल को दला !
कसी भी यूह म
न फँसा,
मौत पर
अपना क ठन फंदा कसा !
गा रहा है जो
ज़ दगी के गीत
मृ यु-कगार पर,
एक दन
पा जायगा
पद अमर
अपना बदल कर प !
रखना सुर त
इस धरोहर को
बना कर तूप !
(49) मृ यु-प
रोना नह ,ं
द न-िनर ह होना नह ं !
आघात सहना,
संयिमत रहना।
आड बर से मु
अ तम कम हो,
यान म बस
पारलौ कक-पारमािथक मम हो !
न जाना कसी ने
न दे खा कसी ने ....
िनधा रत यव थाएँ सम त
कपोल-क पत हो,
सब अत कत ह।
अनुसरण उनका अवांिछत है !
अंधानुयायी रे नह ं बनना,
ान के आलोक म
हो सं कार-पूत उपासना।
आदे श यह
स म स ावना।
(50) कृ तकमा
द:ु ख य ?
शर र-धम क पूित पर
द:ु ख य ?
अंत
िच ह पूणता,
सफल चरण
द:ु ख य ?
जीव क समाि
एक म
द:ु ख य ?
शेष
जीवनी वृता त
अथ िस द दो,
नाम दो।
आ ख़र सलाम लो !
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रचनाकार प रचय:
उ कृ का य-संवेदना सम वत -भा षक क व :
ह द और अं ेज़ी।