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क वताएँ

मृ यु-बोध : जीवन-बोध

डा. मह भटनागर
(1) आभार

मृ यु है ;
मृ यु िन त है,
अटल है
जीवन इसिलए ह तो
इतना का य है !
इसिलए ह तो
जीवन-मरण म
इतना पर पर सा य है !
मृ यु ने ह
जीवन को दया सौ दय
इतना
अशेष - अपार !
मृ यु ने ह
मानव को दया
जीवन-कला-सौकय
इतना
िसँगार-िनखार !
िन:संदेह
है वीकाय
न रता,
म य दशन / भाव
ितपल मृ यु-तनाव !
आभार
मृ यु के ित
ाण का आभार !

(2) आभार; पुन:

मौत ने ज़ दगी को
बड़ा ख़ूबसूरत बना दया,

लोक को,
असिलयत म
सुखद एक ज नत
बना दया,

अथ हम यार का
जान पाये, तभी तो
सह -सह ,

आदमी को
अमर दे व से;
और उ नत बना दया !

(3) काल-च

िनमम है
काल-च
अितशय िनमम !
जसके नीचे
जड़-जंगम
मश: पसता और बदलता
हर ण, हर पल !
थर-थर कँपता भू-मंडल !

अ य
िन:श द कये
अ वरत घूम रहा
यह काल-च
िन व न ... िन वकार !

इसके स मुख
थरता का कोई
अ त व नह ,ं
इसक गित से
सतत िनय त
जीवन और मरण,
धरती और गगन !

(4) िन न

मृ यु से डरते रहगे
तो
हो जायगा
जीना िनरथक !
भार बो झल
शु क नीरस
िन वषय मानस।

अत:
साथक तभी
जीवन,
मरण-डर मु हो
हर ण।

अशुभ है
नाम लेना
मृ यु-भय का,
या लय का
इसी कारण।

(5) िच तन

मृ यु ?
एक -िच ह !
भेद जानना
द ु ह ह नह ;ं
मनु य के िलए
अ- ात
सब।
दे ह पंच-त व म वलीन
सब बखर- बखर !
समा ।
ाण लौटना नह ;ं
न स भवी
पुन: सचेत कर सक,
रह य ात कर सक
वयं जब नह ।ं
मरण - हे िलका
अजब हे िलका !
अबूझ आज तक
गज़ब हे िलका !
य यथ
मृ यु-अथ य हो सके;
ज टल क ठन
वचारणा।

(6) पहे ली

या कहा ?
तन
रहने यो य नह ं रहा;

इसिलए ...
आ मन !
तुम चले गये।

नये क चाह म
कसी राह म;

कहाँ ?
ले कन कहाँ ??

अ ात है,
सब अ ात है !
घुप अंधेर रात है,
रह यपूण
हर बात है !

कसका है ?
उ र कसका है ?

(7) सचाई

मृ यु नह ं होती
तो ई र का भी अ त व नह ं होता,
कभी नह ं करता
मानव
ार धवाद से समझौता !

ई र तीक है
ई र माण है
मानव क लाचार का,
मृ युपरा त तैयार का।

वग-नरक का
सारा दशन-िच तन
क पत है,
मानव
मृ यु-दत
ू क आहट से
हर ण आतं कत है,
रह-रह रोमांिचत है !
मालूम है उसे
'मृ यु सुिन त है !'
इसीिलए पग-पग पर
आशं कत है !
यह नह ं
तथाकिथत म यलोक से
िनता त अप रिचत है;
वह।
अत: तभी तो
जाता है
ई र क शरण म
पाने िचर-शा त मरण म !
अत: तभी तो
गाता है
एक-मा
'राम नाम स य है !'
अरे , ज म-मृ यु कुछ नह ं
उसी का
वनोद- ू र कृ य है !

(8) मृ यु- प

मृ यु ाकृितक हो
या आक मक दघटना
ु हो
िन कष एक है
अ त-कम जीवन का,
होना चेतनह न
स य तन का,
सदा-सदा को होना सु
दय- प दन का !
दोन ह तथाकिथत
विध-लेख हो,
भा य-िल प अ अिमट रे ख हो !
ले कन
जीवन-वध
चाहे आ म-हनन हो,
या ह या-भाव-वहन हो,
या य और समाज र ा हे तु
द र द का दमन-दलन हो,
नह ं मरण;
है ाण-हरण।
भले ह अंत एक
मृ यु !
सह मृ यु या अकाल मृ यु।

(9) िन कष

मृ यु ?
-िच ह।

थर
अनु रत
अड़ा,
व बन
खड़ा।

पर, नह ं
मनु य हार मानना,
तिनक न ईश क पना
बचाव म,
सवाल के जवाब म,
नह ं, नह ं !

रह य मृ यु का
िनरावरण ... कट
अव य
अव य
एक दन !

(10) ज म-मृ यु

मृ यु :
ज म से बँधी
अटू ट डोर है,

ज म :
एक ओर;

मृ यु :
दसरा
ू तीप छोर है !
ज म - एक तट
मरण - वलोम तीर;
ज म :
हष य ?
मृ यु :
पीर ... !
य ?
ज म-मृ यु
जब समान हो ?

एक / पवान;
दसरा
ू / महािनधान है !

ज म
सू पात है,
मृ यु
नाश है : िनघात है !

ज म ... ात,
मृ यु ... अ- ात !

ज म : आ द,
मृ यु : अ त है !
ज म : ीगणेश,
मृ यु : ित दग त है !

ज म : हाँ, हयात है,


मृ यु : हा! वघात है !

ज म : नव- भात है,


मृ यु : घोर रात है !

(11) यु म

चार ओर फैली
म भूिम रे तीली
बुझते द पक लौ-सी
भूर
पंगल।
पीत-ह रत
जल-र हत
ढलती उ
मरणास न !
ले कन
अनिगनती
लहराते ... ह रआते
म प !
कँट ले
प र हत
पनपते पेड़
जीवन-िच ह
पताकाएँ !
जलाशय
आशय ... जीवन-द
ाणद !

(12) वलोम

जीवन : हष लास
मृ यु : अंितम िन ास
मधुर राग / ची कार !
शुभ-कृत / हाहाकार !

(13) समान

ात भी अ ण
सा य भी अ ण
ात-सा य एक हो।

ज म पर दन
मृ यु पर दन
ज म-मृ यु एक हो।

यह
सह ववेक है,
यथाथ ान है,
यथ
और ... और यान है।

(14) साखी
इतने उदास य होते हो ?
होशोहवास य खोते हो ?
जीवन - बहमू
ु य है; सह
है अटल मृ यु; य रोते हो ?

(15) कामना

जएँ सम त िशशु त ण
अकाल मृ यु है क ण।

(16) वा तव

''मृ यु
ज म है
पुन: - पुन:
आ म - त व का।''
अस य; इस वचार को
क स य मान ल ?
अंध मा यता
तक ह न मा यता !

ाण / पंच - त व म वलीन,
अंत / एक सृ का,
अंत / एक य का,
एक जीव का।
कह ं नह ं
यहाँ ... वहाँ।

सह यह
क लय सदै व को।
न है नरक कह ,ं
न वग है कह ,ं
यथाथ लोक स य है।
मृ यु स य है,
ज म स य है।
(17) जीवन-दशन

ब हगित
भौितक प दन;
अ तर-गित
जीवन।

जीवन गित का वाहक


मो
सतत िनय क
मो
जब - तक
गितशील रहे गा जीवन
इितहास रचेगा
मानव-मन
मानव-तन।

लय हो न कभी;
जीवन लयवान रहे ,
कण-कण गितमान रहे ।

लयगत होना
अ तर गित खोना।

(18) चरै वेित

संघष -सं ाम से
जीवन क िनिमित,
होना िन य
ापक - आस न मरण का,
थमना जीवन क प रणित।
जीवन : केवल गित,
अ वरित गित !
मश: वकिसत होना,
होना प रवितत
जीवन का धारण है !
थरता
ाण- वह न का
था पत ल ण है !

जीवन म क पन है, प दन है ,
जीव त उर म अ वरल धड़कन है !

कना
अ त व - वनाशक
अशुभ मृ यु को आमं ण,

चलते रहना ... चलते रहना !


एक मा मूल-मं
साधक जीवन !

(19) योगरत

आदमी म
चाह जीवन क
सनातन और सवािधक बल है;

जब क
हर जीव त क
अ तम सचाई
मृ यु है !
हाँ, अ त िन त है,
अटल है !

ले कन / स य है यह भी
अमरता क : अजरता क
लहकती वासना का वेग
होगा कम नह ,ं
अ त
ु परा म आदमी का
चाहता कलरव,
दन मातम नह ं !
हर बार
ुव मृित क चुनौती से
िनर तर जूझना वीकार !
मृ युज
ं य
बनेगा वह; बनेगा वह !

(20) साथकता

जीना-भर
जीवन-साथकता का
नह ं माण,
जीना -
मा ववशता
जैसे - मृ यु ..... याण।

जो वाभा वक
उसके धारण म
कोई वैिश य नह ,ं
सं ा
ाणी होना मा
मनु य नह ।ं

मानव - म हमा का
उ घोष तभी,
मन म हो
स चा तोष तभी
जब हम जीवन को
अिभनव अथ दान कर,
भरे अंधेरे म
नव - नव योितल क का
संधान कर।

सृ -रह य को ात कर,
चाँद-िसतार से बात कर।
परमाथ
हमारे जीने का ल य बने,
हर भौितक संकट
पग-पग पर भ य बने।
इतनी मताएँ
अ जत ह ,
फर,
ाण भले ह
मृ यु सम पत ह ,

कोई लािन नह ,ं
कोई खेद नह ,ं
इसम
कंिचत मतभेद नह ,ं

जीवन सफल यह
जीवन वरल यह
ध य मह !

(21) ाथना

वांिछत
अमरता नह ;ं
चाहता हँू
अजरता।
सकल वा य, आरो य
िन नता
तन और मन क ।

अिभ ेत वरदान यह
क पत कसी ईश से
नह ं।

व-सािधत सतत साधना से


आराधना से नह ।ं

तन लेश-मु
मन लेश-मु

हाँ,
एक-सौ-और-प चीस वष
जएँ हम!
अपने िलए,
दसर
ू के िलए।

(22) मृग - तृषा

उ छृंखल और मह वाकां ी
मानव
धन के पीछे भाग रहा है
सुख के पीछे भाग रहा है
जीवन क क़ मत पर।
आ य अरे
इस अ त
ु द ू षत नीयत पर !

जीवन है तो / धन-योग बनेगा,


जीवन है तो / सुख-भोग सधेगा !

खं डत और वशृख
ं ल जीवन
रोग- त / हत घायल जीवन
ण-भंगरु
मृ यु-कु ड म
िगरने को आतुर !

अंधा, सं म, अ ानी
मानव
धन ह वच व समझ रहा है
सुख को सव व समझ रहा है !

बहमू
ु य िमला जो जीवन / धो बैठेगा,
जीवन क नेमत / खो बैठेगा !

(23) संक प

पूण िन ावान
हम,
आ त हो उतरे
वकट जीवन-मरण के
म !
बन िसपाह
अमर जीवन-वा हनी के,
िघर न पाएंगे
वप ी के कसी
छल-छ द म !

हार जाएँ,
पर, वच व मानगे नह ं
तिनक भी मरण का,
अिधकार अपना
िछनने नह ं दगे
जीवन वरण का !
जयघोष गूज
ँ ेगा
चरम िन ास तक,
संघषरत
बल- ाण जूझेगा
शेष आस / यास तक !

(24) जयघोष

सारा व सोता है
इतनी रात गुज़रे
कौन रोता है ?

सुना है
पास के घर म
मृ यु का धावा हआ
ु है,
स य है
कोई मुआ है !

यमदत
ू के
तीखे छुरे ने
आदमी को फर
छुआ है !

पहँु चो
अमृत-स वेदना-लहर िलए,
यह आदमी
फर- फर जए !

जीवन-दं द
ु भी
ु बजती रहे ,
ण- ण
भले ह , अरिथयाँ सजती रह !

(25) आ ान

अलख
जगाने वाले आये हो,
नव-जीवन का
य मधु गीत
सुनाने वाले आये हो !
सोहर गाने वाले आये हो !
उर-वीणा के तार-तार पर
जीवन-राग
बजाने वाले आये हो !

मन से हारो !
जागो !
तन के मारो !
जागो !

जीवन के
लहराते सागर म
कूदो
ओ गोताख़ोरो !
जड़ता झकझोरो !

(26) एक दन

जीवन
वजयी होगा
व ास कर,
नीच मीच से
न डर; न डर !
हर संशय का
नाश- वनाश कर !
जीवन जीतेगा
व ास कर !

घनघोर अंधेरा
मौत मर का
छाएगा / डरपाएगा;
सूरज के बल पर / दम पर
व ास कर !

इसका
क़तरा-क़तरा फ़ाश कर !
चार ओर काश भर !
जीवन जीतेगा
व ास कर !

(27) उ े य

हम
जो जीवन के िश पी हो
केवल जीवन क
बात कर,
जीवन क साथकता खोज,
जीवन - त व को
ात कर !

मरण
हमारा हरण करे तो
उस पर बढ़ कर
आघात कर,
जीवन का
जय - जयकार कर,
यम का
मृित का
संघात कर !
(28) अभी

जीवन-उपवन म
मृ यु स पणी का
अ त व न हो,
मृ यु भीत से आतं कत
मानव- य व न हो !

हर मानव
भोगे जीवन
संदेह र हत,
हो हर पल उसका
मधु रत िसंिचत !

जीवन - धम
जीवन से खेले,
भरपूर जये जीवन
हर सुख क बाँह
बाँह म ले ले !

(29) मन-वांिछत

जब-तक
जीना चाहा
हमने;
ख़ूब जये !
मान
वषा म भी
जलते रहे दये !

नह ं कसी क
रह कृपा,
जूझे -
अपने बल पर
व ास कये !

(30) िस द
जजी वषु
नह ं करे गा
मृ यु- ती ा !
सोना
स चा खरा तपा
य दे गा
अ न-पर ा ?

म तोड़ो,
काल-च को मोड़ो !
जीवन से नाता जोड़ो !
जड़ता छोड़ो !

(31) व थ

वयं को
शा त समझ कर
जीते हो,
िन त
हँ सते और गाते हो,
बे फ़
खाते और पीते हो;
जीना
या इसे ह
हम कह ?

अंत से
जब -ब- ह,
अ यथा
अनिभ ह उससे रह,
या
जीना इसे ह
हम कह ?

(32) सा य
गाता हँू
वजय के गीत
गाता हँू !
मृ यु पर
जीवन जगत क जीत
गाता हँू !
अित य व तु
जीवन- व फुरण क
बेधड़क जयकार
गाता हँू !

क़ तान के आकाश म
जो गूज
ँ ते हो वर
प र द के
व छ द र द के
अनुवाद हो
मेर
जीवन-भावनाओं के !
सहचार हो
मेर
जीवन-अचनाओं के !

(33) द शतअंगेज़

सावधान !
फहरा द है
हमने
घर-घर, गाँव-गाँव, नगर-नगर
जीवन क
नव-जीवन क
लाल पताकाएँ !

ब ती-ब ती, चौराह -सतराह पर,


यहाँ-वहाँ -
ठाँव-ठाँव !
लहरा द हो
र -पताकाएँ !
अब नह ं चलेगा
आतंक , घातक, जन-भ ी,
मद- वर- त
मरण-रा स का
कोई भी दांव !

तन के भीतर घुस कर
घात लगाता है,
अपने को अ व जत यम का
दत
ू बताता है,
तन के भीतर
व फोटक-बा द
बछाता है,

और ...
अ श थान से
िछप-िछप कर
दरू थ-िनय त-यं चलाता है !
दे ख
अब और कधर से आता है !

(34) मृ यु-दशन

मृ यु :
सुिन त है जब;
यथ इस क़दर
य होते हो
आशं कत,
आतं कत !

मृ यु से अरे कह दो
'जब चाहे आना; आये।'

इस समयाविध तो
आओ,
िमल कर नाच-गाएँ !
नाना वा बजाएँ !
तोड़ मौन;
मृ यु क िच ता
करता है कौन ?

(35) आमं ण

मृ यु
आना,
एक दन ज़ र आना !
और मुझे
अपने उड़नखटोले म
बैठा कर ले जाना;
दरू ... बहत
ु दरू
नरक म !
जससे मो
नरक-वािसय को
संग ठत कर सकूँ,
उ ह व ोह के िलए
ललकार सकूँ,
ज़ दगी बदलने के िलए
तैयार कर सकूँ !
नह ं मानता मो
कसी िच गु को
कसी यमराज को;
चुनौती दं ग
ू ा उ ह !
बस, ज़रा कूद तो जाऊँ
नरक-कु ड म !
िमल जाऊँ
नरक-वािसय के
वशाल झु ड म !

(36) मृ यु-पर से

मृ यु आओ
हम तैयार हो !
मत समझो
क लाचार हो ।
पूव-सूचना
दोगी नह ं या ?
आभार मेरा
लोगी नह ं या ?

आओगी -
बना आहट कये
आ य दे ती !
नटखट बािलका क तरह !

ठ क है,
वीकार है !
मेर चहे ती,
तु हारा खेल यह
वीकार है !

चुपचाप आओ,
मृ यु आओ
हम तैयार हो !

अ छ तरह
समझते हो
क जीवन-पु तका का
उपसंहार हो तुम !

इसिलए
मेरे िलए
पूणता का
शुभ-समाचार हो तुम !

आओ,
मृ यु आओ,
हम तैयार हो !
ती ा म तु हार
सज-धज कर
तैयार हो !

(37) िनवेदन
मृ यु
या हआ

य द तुम ी-िलंग हो,
तु ह िम बना सकता हँू !
शरमाती य हो ?

आओ
हमजोली बनो ना !
हमख़ाना नह ं तो
हमसाया बनो ना !

चाँद के टु कड़े जैसी तुम !


सामने वाली खड़क से
झाँकना,
ऑंकना !

और एक दन अचानक
मुझे साथ ले
चल पड़ना
ेत-लोक म !
य ह
नोकझ क म !

(38) मृ यु- विध

व न दे खते
आती होगी मृ यु,
तन से
ाण चले जाते ह गे
तभी।

व न दे खता रहता आदमी


दवंगत हो जाता होगा !

वह या जाने ?

दिनया
ु वाल से पूछो
ज ह ने
तन पर रख
ढक द है चादर !
या हआ
ु ?
हआ
ु या ?
आ ख़र ?

(39) तुलना

िशव म
शव म
अ तर है मा इकार का
(तीसरे वण वार का।)

िशव
मंगलकार है
सुख झड़ता है !
शव
अिन -सूचक
केवल सड़ता है !

िशव के तीन ने ह,
शव अंधा है !

कैसा गोरखधंधा है ?

(40) अ तर

आपने याद कया


आभार !
मीठा दद दया
वीकार !

कतना अ त
ु है संयोग
क अ तम वदा
अरे ! ओ ेम थम !
आये
ओझल होती राह पर,
िलए चाह ◌े
जो कभी पूर होनी नह ,ं
कभी वा तव थूल छुअन से
सह-अनुभूत हमार
यह दरू होनी नह ं !

जाता हँू
याद िलए जाता हँू,
दद िलए जाता हँू !

(41) अ त

समर
अब कहाँ है ?
सफ़र
अब कहाँ है ?

थम गया सब
बहता उछलता नद -जल तरल,
जम गया सब
नस म िधर क तरह !

दद से
दे ह क ह डयाँ सब
चटखती लगातार,
अब कौन
इ ह दबाए
टू टती आ ख़र साँस तक ?
अंधेरे-अंधेरे िघरे
जब न कोई
पास तक !

लहर अब कहाँ
एक ठहराव है,
ज़ दगी अब
िशिथल तार;
बखराव है !
(42) आघात

मोने ...
जी वत रखा तु ह
अत: तु हार
जी वत गिलत लाश भी
ढोऊंगा !
मूक ववश ढोऊंगा !

व ास का ख़ून कया
तुमने,
अरमान को
जलती भ ठ म भून दया
तुमने !
छल-छ का
सफल अिभनय कर,
जीवन के हर पल म
दद असह भर !

यारा नह ं बना,
ह यारा नह ं बना !
अरे ! नह ं छ ना जीने का हक़;
यद प हआ
ु बेपरदा शक,
हर शक !

जी वत रखा जब
नरका न म दहंू गा
बन संवेदनह न
सब सहंू गा !

पहले या फर
सब को
िचर-िन ा म सोना है,
िम ट -िम ट होना है !

ओ बद क़ मत !
फर, कैसा रोना है ?
(43) स य

ाण-पखे
उड़ जाएंग,े
उड़ जाएंगे !
ाण-पखे
उड़ जाएंगे !

काहे इतना जतन करे ,


शाम-सबेरे भजन करे ,
तेरे वश म या है रे
म दर-म दर नमन करे ,

इक दन तन के पंजर से
ाण-पखे
उड़ जाएंगे !
जो कभी न
वापस आएंगे !
उड़ जाएंगे
ाण-पखे
उड़ जाएंगे !

(44) िन ित

तय है क
तू
एक दन
मृ यु क गोद म
मौन
सो जायगा !

तय है क
तू
एक दन
मृ यु के घोर अंिधयार म
डू ब
खो जायगा !

तय है क
तू
एक दन
याग कर प ी
भ म म सात ्
हो जायगा !

(45) घोषणा

दिनया
ु वाल से
कह दो
अब
महे भटनागर सोता है !
िचर-िन ा म सोता है !

जो
होना होता है;
वह होता है !
रे मानव !
तू य रोता है ?

जीवन
जो अपना है,
उस पर भी
अपना अिधकार नह ,ं
घर-धन
जो अपना है
उसम भी
सचमुच
कोई सार नह ं !
उसके
तुम दावेदार नह ं !
बन कर
मौन वर - वरागी

चल दे ते हो
छोड़ सभी,
चल दे ते हो
नये-पुराने नाते- र ते
तोड़ सभी !

रे इस ण का
अनुभव
सब को करना है,
मृ यु अटल है
फर
उससे या डरना है ?

ओ, मृ यु अमर !
तुम समझो चाहे
लाचार मुझे,
उपसंहार मुझे,
वे छा से
करता हँू अंगीकार तु ह
तन-मन से वीकार तु ह !

सुखदायी
िम ट क शैया पर सोता हँू !
इस िम ट के
कण - कण म िमल कर
अपनापन खोता हँू !
नव जीवन बोता हँू !
जैसे जीवन अपनाया
वैसे
हे , मृ यु
तु ह भी अपनाता हँू !

जाता हँू,
दिनया
ु से जाता हँू !
सु दर घर, सु दर दिनया
ु से
जाता हँू !
सदा ... सदा को
जाता हँू !

(46) नमन

अल वदा !
जग क बहारो
अल वदा !
ओ, दमकते चाँद
झलिमलाते िसत िसतारो
अल वदा !
पहाड़ो ... घा टयो
ढालो ... कछारो
अल वदा !
उफ़नती िस धु-धारो
अल वदा !

फड़फड़ाती
मोह क पाँखो,
छलछलाती
यार क ऑंखो
अल वदा !

अटू टे बंध क बाँहो


अधूर छूटती चाहो
अल वदा !
अल वदा !

(47) अल वदा !

ार ध के मारे हए

हम,
ज़ दगी के खेल म
हारे हए

हम,
हाय !
अपन से सताए,
दय पर चोट खाए,
िसर झुकाए
मौन
जाते ह सदा को

कभी भी
याद मत करना,
आज के दन भी
सुनो,
मृित-द प मत रखना !

(48) तप वी

मृ यु पर पाने वजय
िस दाथ - साधक
एक और चला !

जसने हर चरण
यम-वा हनी क
छल-कुचाल को दला !

कसी भी यूह म
न फँसा,
मौत पर
अपना क ठन फंदा कसा !

गा रहा है जो
ज़ दगी के गीत
मृ यु-कगार पर,
एक दन
पा जायगा
पद अमर
अपना बदल कर प !

रखना सुर त
इस धरोहर को
बना कर तूप !

(49) मृ यु-प

रोना नह ,ं
द न-िनर ह होना नह ं !

आघात सहना,
संयिमत रहना।

आड बर से मु
अ तम कम हो,
यान म बस
पारलौ कक-पारमािथक मम हो !

मृ यूपरा त जगत व जीवन

न जाना कसी ने
न दे खा कसी ने ....
िनधा रत यव थाएँ सम त
कपोल-क पत हो,
सब अत कत ह।
अनुसरण उनका अवांिछत है !
अंधानुयायी रे नह ं बनना,
ान के आलोक म
हो सं कार-पूत उपासना।

आदे श यह
स म स ावना।

(50) कृ तकमा

द:ु ख य ?
शर र-धम क पूित पर
द:ु ख य ?

अंत
िच ह पूणता,
सफल चरण
द:ु ख य ?

जीव क समाि
एक म
द:ु ख य ?

शेष
जीवनी वृता त
अथ िस द दो,
नाम दो।

आ ख़र सलाम लो !

---------------.

रचनाकार प रचय:

उ कृ का य-संवेदना सम वत -भा षक क व :
ह द और अं ेज़ी।

सन ् 1941 से का य-रचना आर भ। ' वशाल भारत',


कोलकाता (माच 1944) म थम क वता का काशन।

लगभग छह-वष क का य-रचना का प र े य वतं ता-पूव भारत; शेष वातं यो र।


सामा जक-राजनीितक-रा ीय
चेतना-स प न रचनाकार।

ल ध- ित गितवाद -जनवाद क व। अ य मुख का य-


वषय ेम, कृ ित, जीवन-दशन ।

दद क गहन अनुभूितय के समा तर जीवन और जगत के ित आ थावान क व।


अद य जजी वषा एवं आशा-
व ास के अ त
ु -अक प वर के सजक।

ज म : 26 जून 1926 / झाँसी (उ र- दे श)


िश ा : एम.ए. (1948), पी-एच.ड . (1957) नागपुर
व व ालय से।
काय : कमलाराजा क या नातको र महा व ालय /
जीवाजी व व ालय, वािलयर से ोफ़ेसर-अ य पद से सेवािनवृ ।
स ित : शोध-िनदशक ह द भाषा एवं सा ह य।
काय े : च बल-अंचल, मालवांचल, बुंदेलखंड।
काशन % 'डा. मह भटनागर-सम ' छह खंड म
उपल ध।
कािशत का य-कृ ितयाँ 20
अनुवाद : क वताएँ अं ेज़ी, च, चेक एवं अिधकांश भारतीय भाषाओं म अनू दत व
पु तकाकार कािशत।
वेबसाइट : ह द और अं ेज़ी क अनेक वेबसाइट पर
का य-सा ह य य।
------------------.

स पकZ : फ़ोन : 0751-4092908


110, बलव तनगर, गांधी रोड,
वािलयर 474 002 (म. .) भारत

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