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श्री नाथ संप्रदाय सिद्धांत
श्री नाथ संप्रदाय सिद्धांत
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"नाथ अवधूत का लक्षण और स्वरुप"
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कौन है अवधूत? :-
नाथ अवधूत योगी भगवे अथवा श्वेत वस्त्र धारण करते है,
अपनी इच्छा अनुसार कोई पूणग वस्त्र तोह कोई योगी जन
ससर्ग लंगोट और कटीवस्त्र पहनते है ,
कर्नी कंथा, अल्फी, गाती यह कुछ प्रकार के अन्य वस्त्र है
और साथ ही अपने ससर पर सार्ा, पघडी, अथवा
"गोरख टोपी" धारण करते है,
नाथ योगी अपने ससर को सनत्य आराधना और अन्य कमग ,
जैसे की ध्यान धारणा, आरती पूजा, भोजन के
समय ढक कर रखते है,
सजससे आतंररक योग उजाग का "सहस्रार चि" से क्षय न हो,
इसी कारण नाथ योगी और साधक खुले ससर को ठीक नहीं मानते ,
नाथ संप्रदाय के अवधूत योगी अपने कानो में कुंडल धारण करते है,
यह "जीवात्मा" और "परमात्मा" का असभन्न-एकत्व ससद् करते है,
इन्हें मुद्रा या दशगन भी कहते है,
सशष्य के पररपक्व और योग्य होने पर सदगुरु द्वारा उन्हें
कुंडल पहनाये जाते है. सजसमे दोनों कानो के मध्य चीरा लगा कर
समट्टी से सनसमगत िड़े कुंडल पहनाये जाते है,
यह सम्पूणग सिया असत गुप्त रूप से होती है,
सजसे साधारण जन में नहीं िताया जाता,