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सीता सोचती थ

(उप यास)
डॉ. अशोक शमा

रे ड बै बु स
इलाहाबाद
प रचय - डॉ. अशोक शमा
से ल बक ऑफ इि डया से सेवािनव ृ डॉ. अशोक शमा ऐितहािसक और पौरािणक पा को
के म रख कर उप यास िलखने के िलये जाने जाते ह। आपके पवू कािशत दो उप यास
‘कृ ण : अि तम िदन म’ और ‘सीता के जाने के बाद राम’ तुित म त य-परक ि एवं, पा
गठन क िवशेषता एवं अपनी रोचकता के कारण जाने जाते ह। िजसम वे सभी पा के साथ
समुिचत याय करने म सफल रहे ह।
‘कृ ण : अि तम िदन म’ के अं ेजी अनुवाद ‘Krishna – in his last days’ के साथ-साथ
आपके दो का य सं ह ‘ ी कृ ण शरणम्’ एवं ‘मेरे पंख मेरा आकाश’ भी कािशत ह।
तुत उप यास म भी पा -गठन म सीता के साथ-साथ अ य सभी पा के कद के साथ कोई
समझौता नह हआ है, िफर भी रोचकता तथा पठनीयता िनरं तर बनी रहती है।
आ म-क य
हम भारतीय को इस बात पर गव होना चािहये िक हमारी स यता लगभग 10000 वष से भी
अिधक और प ृ वी पर सबसे पुरानी स यता है। म य-यरू ोप के लोग और भारतीय के म य कुछ
समानताओं को आधार बना कर 1500 ई.प.ू यरू ोप से आ कर आय के भारत पर आ मण करने
और िफर यह बस जाने क कहानी जानबझ ू कर गढ़ी गई, य िप बाद म इस मत को ितपािदत
करने वाले मै स-मल ू र ने वयं ही इसे अ वीकार कर िदया। ि िटश रा य म ार भ क हई
मैकाले क िवचारधारा वाली िश ा णाली ने हर भारतीय यि व और िवचार को हीन िस
करने का यास िकया। िकसी ने भी इस के िव सोचने का यास या साहस नह िकया।
गौरवशाली स पण ू ाचीन भारतीय इितहास को किव क कपोल क पना बता िदया गया। आज
हमारे इस गौरवशाली इितहास क खुले हये मन और मि त क से पुनरावलोकन क बहत
आव यकता है।
भारतीय जन मानस म राम हमारी आ था के ही नह हमारी अि मता के भी तीक ह, िक तु
पवू ा ह-पणू िच तन ने उ ह भी इितहास पु ष के थान पर किव क क पना क सिृ बतलाने
का असफल यास िकया। उनके होने के माण माँगे गये और इस बात को सरलतापवू क भुला
िदया गया िक इितहास माण से परे भी होता है। आय- िवड संघष क ामक प रक पनाएँ सच
कह कर तुत क गय , जब िक आय, असुर, देव, दै य, रा स आिद िविभ न कुल थे। वयं
रावण, आय कुल के िपता और दै य कुल के सुमाली का नाती था। आय- िवड़ संघष क
प रक पना भारतीय के म य िवष बीज बोने का काय करती है। यह गौरवशाली भारतीय
सं कृित और स यता को िवदेशी स यताओं क तुलना म छोटा िस करने क कड़ी का ही एक
भाग है।
य िप हमारा अिधकांश सािह य िवदेशी आ मणका रय ारा िवकृत ही नह बुरी तरह न भी
िकया गया और नाल दा तथा त िशला जैसे िव िस िव िव ालय के पु तकालय को
जलाया जाना इसका माण है, िक तु हमारा इितहास लोक कथाओं और का या मक तुितय
के मा यम से जीिवत रह ही गया। आज पुराताि वक सा य , वा मीिक रामायण म दी गयी
घटनाओं के समय क ह और न क ि थितय और आधुिनक युग के लेनेटो रयम
सॉ टवेयर ारा क यटू रीकृत गणनाओं म पाई गई एक पता ने राम को इितहास पु ष िस
कर िदया है।
भौितकवाद का हावी न होना और ारि भक ि थित म पेट भरा होना, अ या म क ओर जाने क ,
दो मुख आव यकताएँ ह। ाचीन भारत के हमारे मनीषी ऋिष, वे सनातन धम के मानने वाले
रहे ह या जैन और बु धम के वतक, सभी ने अ याि मक िवचार को मुखता दी है। उनके
पास अ त ि थी और िन कष थे, भले ही वे इन िन कष के िलये आज के िव ान क भाँित
कोई तािकक आधार न दे पाये ह ।
या यह केवल संयोग या मा अटकल का प रणाम है िक उ ह ने सय ू के रथ म सात घोड़े बताये
और यान देने क बात यह है िक काश म सात ही रं ग होते ह। भगवान िव णु के िलये आसमान
जैसे नीले रं ग क क पना क । आसमान अनािद, अन त, सव यापी, कभी न न होने वाला है।
सब कुछ इसी से पैदा होता और इसी म िवलीन हो जाता है, आिद आिद।
िबना िकसी साधन के, ह क ि थितय के सटीक आकलन िकये और उनके आधार पर
भिव यवािणयाँ क जब िक आज तो ह क ि थितय को जानने के बहत से साधन ह। उ ह ने
मंगल को लाल बताया और मंगल लाल है।
पजू ा म आरती, शंख विन और घंटा बजाना सि मिलत िकया। िकसी भी पदाथ का िवख डन
करते जाने के बाद, परमाणु और उसको भी तोड़ने के बाद अि न, विन और तरं ग ही शेष रह
जाती ह। आरती, शंख विन और घंटा बजाना, या इस वै ािनक स य को प तया रे खांिकत
करते हये तीक नह ह?
एक बात और कहना चाहँगा। िशविलंग को लेकर एक बहत बड़ी ांित समाज म है। कुछ लोग
इसे शरीर के एक अंग िवशेष क अनुकृित समझते ह, िक तु यिद ऐसा है तो पुिलग, ीिलंग,
नपुंसकिलंग और योितिलंग का या अथ लगायगे। वा तव म सं कृत म िलंग श द का अथ
तीक भी होता है। ई रीय शि िजसम सारी शि याँ समािहत ह और जो अज मी, अन त और
सव यापी है, वह िशव है। िशविलंग उसी का तीक है। तीक क आव यकता हर धम म समझी
गई, उनका प ॉस हो, काबा शरीफ म ि थत संगे-असवद हो, िनशान साहब हो या कुछ और।
केवल िह दू योगी ही इससे ऊपर उठ पाते ह। ई र के तीक के प म िशविलंग क थापना,
सरल और सहज है। शायद इसीिलये राम ने लंका थान से पवू रामे रम म िशविलंग क
थापना कर ई र क पज ू ा अचना क थी।
आज के परमाणु रए टर देिखये, बम और राकेट का आकार देिखये। वे सब इसी आकार के ह
य िक इस आकार म सवािधक ऊजा संजोई जा सकती है। िशविलंग म अरघा होता है और
परमाणु रए टर म उसका बेस होता है जो परमाणु ऊजा के वत: िवख डन को रोकने के िलए
होता है। िकसी दीपक क लौ के अ दर बनती छोटी सी िशविलंग के आकार क आकृित या
दीपक क बहत छोटी सी लौ और उसके नीचे गोलाकार दीपक देिखये, या इसम िशविलंग क
अनुकृित नह िदखती? वा तव म िशविलंग घनीभत ू शि का तीक है और कुछ नह ।
यह केवल कुछ उदाहरण ह। ऐसे अनेक अ य उदाहरण भी हो सकते ह, िक त वतमान समय म
हमारे इितहास पु ष और देव पु ष को तरह-तरह के तक-कुतक देकर लांिछत करना और
उ ह उपहास का पा बनाने का यास करना, कुछ लोग के िलये गितशील होने का दूसरा
नाम हो गया है।
इस पु तक को िलखने क आव यकता मुझे इसिलये भी लगी य िक उन महान च र को उसी
तरह क ि से देखना भी आव यक है। साथ ही मुझे यह भी लगा िक ीराम के ऊपर
अ यिधक सािहि यक लेखन हआ है िक तु सीता जो रामायण म उतना ही मुख च र थ ,
उनके ऊपर जो भी लेखन मेरी ि म आया है, उसम एक ी के प म उनक भावनाओं का
िच ण बहत कम थान पा सका। इस छोटी सी पु तक म मने, सीता के वयंवर से लेकर धरती
क गोद म समाने तक के व ृ ांत तक, वे िजन मनःि थितय से होकर गुजर गयी ह गी, उनके
िच ण का यास िकया है।
इस पु तक को िलखते समय वभावत: मेरे मन म कुछ उठे , जैसे िक वे राम िजनक
यायि यता क सौग ध उठाई जाती है और आदश रा य को रामरा य कह कर स बोिधत िकया
जाता है, या उ ह ने सचमुच कुछ सुनी हई बात के आधार पर और सीता के प क उपे ा
करते हये उ ह गभवती अव था म जंगल म छुड़वा िदया होगा।
िज ह ने अवण शबरी के जठ ू े बेर खाये ह , उसका दाह-सं कार वयं िकया हो, केवट को गले
लगाया हो, जटायु का दाह-सं कार िकया हो, िज ह अवण वा मीिक का महिष होना सहष
वीकार हो, उ ह ने मा वण, के कारण श बक ू के तप या करने को अपराध मान कर उसको
म ृ यु दी होगी। यिद उनक ि म वण इतना ही िनणायक था तो उ ह ने अग य जैसे अनेक
उ च वण के महिषय के होते हये भी अपनी गभवती प नी को अवण महिष वा मीिक के आ म म
य भेजा?
यान देने क बात यह है िक इस समय उपल ध िजस वा मीिक रामायण के आधार पर कुछ
आरोप लगाये जाते ह, उसम कुछ ेिपत सग भी ह। मुझे लगा िक इस तरह के संग को, ि
पर पड़े आवरण और मन म समाये आ ह को हटाकर देखने क आव यकता है और मने यह
यास िकया भी है। इस यास म जो किमयाँ ह, वे मेरी ह, िक तु जो कुछ भी अ छा है तो वह
माता सीता और भगवान ीराम क कृपा व प ही है और उ ह से मेरी ाथना है िक उनके इस
िनमल च र को पढ़ने या पढ़ने के िलये े रत करने वाल पर उनक अहे तुक कृपा सदैव बनी
रहे ।
अ त म ‘प रिश ' म ीराम के जीवन क कुछ घटनाओं क ितिथय को इस समय चिलत
अं ेजी कैले डर के अनुसार भी िदया गया है।
इस पु तक के लेखन म व र मनीषी सािह यकार ी िशवनारायण िम िनवासी-
गोसाँईगंज,लखनऊ का अपवू सहयोग व ो साहन िमला है और इसके िलये म उनके ित कृत
हँ।
अ त म महोपिनषद के एक ोक से अपनी वाणी को िवराम दँूगा।
यािन दु:खािन या त ृ णा दु:सहा ये दुराधय:। शा तचेत:
सु त सव तमोऽवâि वव न यित ।।29।। (अ याय 4)
शा त िच यि य के दु:ख, त ृ णाय एवं दु:सह दुि ताय उसी कार न हो जाते ह जैसे सय ू
क िकरण से अंधकार न हो जाता है।
- डॉ. अशोक शमा
अनु म
1. अयो या क ओर
2. किठन से पल
3. अपन के म य
4. पीड़ाय िफर भी ह
5. व न जगे तो
6. वयंवर
7. अिन क आशंकाओं के म य
8. साँसो म गीत
9. और... एक मोड़
10. महल से चलकर
11. अिह याएँ होती ह
12. कल क आहट
13. कैद हये िदन
14. पेड़ के साये
15. आती जाती छाँव
16. दद भरे गीत के ये वर
17. नये मोड़ के स दभ
18. एक और प ृ
19. सच जीिवत तो है
20. एक और लेिकन
21. म सीता हँ
22. और इित
प रिश 1
प रिश 2
प रिश 3
1. अयो या क ओर
अयो या-पित ीराम अपने बाहबल से अब तक सु ीव और िवभीषण को िमलाकर यारह रा य
िकि क धा, लंका, दि ण कोशल, म य, शंग ृ वेरपुर, काशी, िस धु, सौवीर, सौरा व अंग और
बंग के राजाओं का रा यािभषेक कर चुके थे, और ये सभी रा य उनके िम रा य थे। राम ने और
भी कई रा य जीतकर और उ ह अपने भाइय के पु को बाँटकर सय ू वंश के अनेक नये रा य
थािपत िकये थे। उस काल मे रामनाम क मिहमा और आय का बल भाव थािपत हो चुका
था। राम का यि व भावशाली और रा य बहत यापक था। उनके जैसा सावभौम स ाट प ृ वी
पर नह था।
इसी रा य क राजधानी अयो या क गिलय म हलचल सी थी। झु ड के झु ड लोग सज-धज कर
बात करते हये राजमाग क ओर बढ़ रहे थे, जो पैदल यि य , रथ , घोड़ आिद से भरा था। ऐसे
म एक यि , जो कह दूर से आया लगता था, यह सब देखता, चिकत सा चला जा रहा था। ऐसा
लगता था, जैसे उसक िनगाह िकसी को खोज रही ह। उसने साथ चलते एक थानीय यि से
पछू ा,
‘‘सब लोग इस तरह सज-धज कर कहाँ जा रहे ह?''
इसके उ र म उस यि ने ित िकया,
‘‘ या तुम यहाँ नह रहते?''
‘‘नह ।''
‘‘िफर?''
‘‘िमिथला से आया हँ।''
‘‘अथात् महारानी सीता के पीहर से?''
‘‘हाँ।''
‘‘अकेले आये हो?''
‘‘नह , एक यि और था।''
‘‘वह कहाँ है?''
‘‘िबछड़ गया है; उसे खोज रहा हँ, िक तु तुमने मेरे का उ र नह िदया... या यहाँ कोई
उ सव है?''
‘‘हमारे राजा राम अ मेध य कर रहे ह; हम सब लोग वह जा रहे ह... सुनते ह वहाँ जो भी जा
रहा है, खाली हाथ नह आ रहा है; राजा खुले हाथ से दान कर रहे ह।''
‘‘अ मेध य ?''
‘‘हांँ, अ मेध य ; बहत दूर-दूर से लोग आ रहे ह। कई रा य के नरे श भी आये ह... बहत से
ऋिष, मुिन भी आये ह; सबके ठहरने के िलये हमारे महाराज ने बहत यापक ब ध िकये ह।''
‘‘ या य शु हो गया है?'' बाहर से आये यि ने पछ ू ा।
‘‘हाँ, हमारे महाराज तो राजसय
ू य करना चाहते थे, िक तु कुछ सोचकर उ ह ने अ मेध य
करने का िन य िकया... कहते ह अ मेध य भगवान िशव को बहत ि य है।
‘‘ या इस य को महाराज अकेले ही स प न करगे? मने सुना है, तु हारी महारानी सीता तो
कह िकसी वन म रहती ह।''
हाँ, वह वन तो है, िक तु महारानी सीता, गंगाजी के िकनारे महिष वा मीिक के आ म म रहती
ह। महाराजा ने महिष वा मीिक को भी िनमं ण भेजा है; वे आ ही रहे ह गे, हो सकता है महारानी
भी उनके साथ आय।''
‘‘िक तु अभी महारानी क अनुपि थित म य कैसे चल रहा है?''
‘‘कहते ह, महाराज ने महारानी क एक सोने क ितमा बनवाकर उनके थान पर िति त
क है।''
‘‘िक तु तु हारी महारानी महल को छोड़कर आ म गइ ही य ? िफर सुना है िजस समय वे यहाँ
से गय , उस समय वे गभवती भी थ ,'' िमिथला से आये यि ने कहा।
‘‘देखो भाई, ये राज प रवार क बात ह, और हम ठहरे साधारण जा, अत: बहत तो हम नह
पता, पर सुनते ह कुछ लोग, रावण के यहाँ रहने के कारण उनक आलोचना कर रहे थे; उसी से
दुखी होकर महारानी महल छोड़कर, महिष वा मीिक के आ म चली गई ं।''
‘‘िक तु इसम महारानी का या दोष हआ? वहाँ तो वे िववशता म रही थ , िफर सुनते ह रावण ने
उनका अपहरण अव य िकया था, िक तु उसने उ ह अपने महल से दूर अशोक वािटका म रा स
ि य के पहरे म रखा था और कभी भी उसने उनके साथ कोई अभ यवहार भी नह िकया
था,'' िमिथलावासी यि ने कहा।
‘‘हाँ, तुम ठीक कह रहे हो।’’, अयो या के यि ने कहा।
बात करते-करते कब राजपथ आ गया, उ ह पता ही नह लगा। तब तक िमिथला से आये यि
को अपना साथी भी िमल गया था, अत: उसने उस थानीय यि का साथ छोड़ िदया और अपने
साथी के साथ धीरे -धीरे बात करते चलने लगा।
‘‘तु ह या लगा?'' एक ने दूसरे से पछू ा।
‘‘मुझे लगता है अिधकांश लोग आज भी अपनी महारानी को िनद ष समझते ह और उनम ा
रखते ह, पर तु कुछ लोग, कुछ उ टी-सीधी बात भी करते ह।''
‘‘तु ह या लगता है, वे लोग कौन हो सकते ह?''
‘‘ऐसा लगता है उ ह िकसी ने बहका रखा है; वे दूिषत भावनाओं से यु कुछ लालची विृ के
लोग लगते ह, और मेरा अनुमान है िक य के दौरान भी कुछ िववाद खड़ा कर यवधान डालने
क चे ा कर सकते ह।''
‘‘चलो, य थल क ओर चलते ह।''
‘‘चलो।'' कहकर दोन उस भीड़ के साथ चलते हये य थल तक पहँच गये।
2. किठन से पल
अपार जनसमहू उमड़ा हआ था। अ मेध-य चल रहा था। महा माओं और ऋिषय के िलये एक
बहत बड़े मैदान म बहत सी पणशालाय बनवाई गई थ । य शाला म भी उनके बैठने के िलये
िवशेष थान सुिनि त िकया गया था। िविभ न रा य से आये राजपु ष , िविवध दरबा रय ,
ि य और िविश जन के िलये थान िनि त थे। इसके अित र आम जन के िलये भी वहृ द
ब ध िकये गये थे।
महिष वा मीिक अपने आ म के बहत से लोग के साथ य म सि मिलत होने के िलये आ चुके
थे। उनके साथ सीता और उनके दोन पु लव तथा कुश भी आये हये थे। वे ऋिषय के िलये बनी
एक पणकुटी म ठहरे हये थे। राम ने उ ह बुलाने के िलये ल मण को भेजा। महिष वा मीिक, लव
और कुश के साथ पधारे । राम ने णाम कर उ ह उिचत आसन िदया। लव और कुश ने अपने
प रचय म वयं को महिष वा मीिक का िश य बताया और उनके आदेश पर स वर रामायण का
गान तुत िकया। यह गायन शा ीय संगीत क धुन से प रपण ू था।
रामायण के इस गायन के प ात् कुछ व र जन ारा उनसे जो िकये गये, उसम उ ह ने
अपनी माँ का नाम सीता और िपता का नाम राम बतलाया। कुश बड़े और लव छोटे थे। (समय
आने पर राम ने अवध के दो भाग कर कुश को अयो या व दि ण कोशल और लव को ाव ती
का रा य िदया था। कुश क प नी नागपु ी कुमुदावती थ । कुश क म ृ यु, दुजय नामक एक
असुर से यु म हई थी। उनके पु अितिथ ने दुजय को मारकर अपने िपता क म ृ यु का ितशोध
िलया था।
उस समय महिष से यह सुनकर राम को रोमांच सा हो आया। उ ह ने महिष वा मीिक क ओर
ि उठाई। उस ि म अनेक िछपे थे। महिष ने वह ि पढ़ी। वे राम के पास आये और
धीरे से बोले,
‘‘तु हारे ही पु ह।''
सुनकर राम ने होठ को दबाया, धीरे से एक गहरी साँस ली, शू य क ओर देखा िफर पलक जोर
से भ चकर आँख खोल द । ऐसा लगा, जैसे इन कुछ ही पल म वे पता नह कहाँ-कहाँ से गुजर
गये ह। महिष ने शायद उनका मन पढ़ िलया, बोले,
‘‘इनक माँ भी आई ह।''
यह सुनकर राम ने वाचक ि से उनक ओर देखा, और पुन: एक गहरी साँस ली, ऐसा
लगा, जैसे बहत देर से कड़ी धपू म चलते, थके हए शरीर को कोइ छायादार थान िदखाई दे गया
हो। इतनी देर म पता नह िकतने रं ग उनके चेहरे पर आये और चले गये ।
‘‘िजस पणकुटी म म ठहरा हँ, उसी के पास वाली कुटी म वे इन बालक के साथ क हई ह।''
महिष ने कहा।
‘‘ या वे यहाँ आयगी?''
‘‘ यास करता हँ; ल मण को मेरे साथ भेज दो।''
‘‘ल मण!'' कहते हए राम ने ल मण क ओर देखा तो वे शी ता से राम के पास आये।
‘‘महिष क बात सुनो।'' राम ने कहा
‘‘ल मण, सीता आई ह; मेरे साथ चलो।''
सुखद आ य से ल मण कि पत हो उठे और चलने के िलये य भी। राम क ओर देखकर बोले,
‘‘म सिवनय उनसे, यहाँ आने क ाथना क ँ गा।''
राम ने ल मण क ओर देखा। कुछ कहा नह , िक तु ल मण ने उनके ने क भाषा पढ़ ली। वे
महिष के साथ चल पड़े । उनके दोन पु , अंगद और च केतु भी वह थे और साथ चलना चाहते
थे, िक तु ल मण ने उ ह कने का संकेत िकया और महिष के साथ सीता को लेने के िलये
चल पड़े । काला तर म अंगद, अंगदनगर और च केतु, च ावती के राजा हए।
ल मण के जाने के बाद राम य - थल से थोड़ा हटकर खड़े हो गये। महल क ओर देखा। सीता
के क क िदशा म ि गई, िफर आसमान क ओर, और िफर उ ह ने ने ब द कर िलये।
पल भर म उ ह छोड़कर वा मीिक-आ म के िलये थान करती सीता का य उनके ने म
सजीव हो उठा। िफर सीता के साथ अपना िववाह, वन गमन के समय साथ चलने के िलये आ ह
करती सीता उनके साथ वन म िबताये िदन, और भी पता नह या- या, राम के ने म चलिच
क भाँित आने लगा। सीने म िकतनी पीड़ा उभरी, पता नह ।
‘‘म तु ह खोना नह चाहता सीते!’’ उ ह ने वयं से कहा और अ ु क एक-एक बँदू दोनो ने
क अलक और पलक के बीच आकर फँस गई। उ ह ने अपने दाय हाथ क हथेली से म तक को
प छा। हथेली कुछ भीग सी गई। उँ गिलय से ने म आये अ ु प छे । चेहरे पर कुछ वाभािवकता
लाने के य न म उ ह ने हँसने का यास िकया। एक दद भरी हँसी अधर पर आई और िफर
चली गई। उ ह ने ह के से िसर को झटका, और पुन: य - थल पर आकर य त हो गये।
महिष और ल मण, जब सीता क पणकुटी के पास पहँचे, वे बाहर ही बैठी हई थ । उनका चेहरा
भाव-शू य, िक तु तेज से भरा हआ था। ने ब द थे, और वे ई र के यान म म न िकसी सा वी
सी लग रही थ । ल मण ने पास पहँचकर पुकारा,
‘‘भाभी!''
सीता ने आँख खोल द , और महिष को देखकर खड़ी हो गई ं। ल मण ने चरण- पश िकये तो
सीता ने आशीवाद िदया। ल मण ने सीता को अयो या क महारानी के प म वष देखा था। आज
सब कुछ होते हए भी अ य त साधारण व म, एक पणकुटी, म भावशू य चेहरे के साथ उ ह
देखकर वे आहत थे। चरण- पश करने पर सीता ने आशीवाद अव य िदया था, िक तु वर म
ऊ मा नह थी। बहत िनिवकार और िनरपे सा वर था।
ल मण ने बहत यु लड़े थे। उ ह वीरवर कहा जाता था। उ ह ने िववािहत होते हये भी चौदह वष
अपनी प नी से अलग और चय का पालन करते हए िबताये थे। कई बार उिमला क याद ने
उ ह परे शान भी िकया था; िक तु उ ह एक भी ण ऐसा याद नह था, जब उ ह ने धैय खोया हो
या अपने को कमजोर अनुभव िकया हो; िक तु आज सीता के भावशू य चेहरे और ाणहीन वर
ने उ ह िव ल कर िदया। उ हांने भरे हए गले से कहा,
‘‘भाभी, मुझे मा कर द!''
‘‘िकसिलए ल मण? तु हारा या दोष है?''
‘‘आपके वर से ऐसा लगा, आपने आशीवाद भी, कत य क भाँित ही िदया है; मन से नह ...
अव य ही मेरा कुछ दोष होगा।''
‘‘नह ल मण, तु हारा कह कोई दोष नह ; िफर कत य के स मुख मन होता ही या है।''
‘‘आप ठीक कह रही ह... कत य के स मुख मन कुछ नह होता... कुछ भी नह ।''
ल मण के ने पहले ही सजल थे, अब अ ु लुढ़ककर सीता के पैर के पास िगर पड़े । सीता को
ऐसा लगा, जैसे ल मण ने अपना िसर उनके पैर पर रख िदया है। उनका मन कुछ देर के िलये
िवचिलत हआ, िफर उ हांने अपने को सँभाल िलया और बोल ,
‘‘जो कुछ हआ, वह उस समय क प रि थितय को देखते हए तु हारे भाई क सहमित से िलया
हआ, मेरा अपना िनणय था; उसके िलये म आज भी दुखी नह हँ, अिपतु कह सकती हँ िक एक
िनता त नये, शाि त और आन द देने वाले अनुभव से गुजर रही हँ, और यान देना िक यह मा
सुख नह , आन द का अनुभव है; िफर तुम य दुखी हो रहे हो ल मण?''
अब तक ल मण बहत कुछ सामा य हो चुके थे। कुछ क कर सीता ने पुन: कहा,
‘‘ल मण, यह मत समझना िक मेरा कुछ िछन गया है; सच तो यह है िक मने वयं याग िदया
है... िक तु देखो, इन बात म तु ह बैठने के िलए कहना ही भल ू गई।''
‘‘भाभी, म बैठने नह , भाई क आ ा से आपको लेने आया हँ।''
‘‘लेिकन य ?''
‘‘आपके िबना यह अ मेध-य का अनु ान कैसे परू ा हो पायेगा?''
‘‘ल मण, य िप मुझे इससे अ तर नह पड़ता, िक तु िफर भी म यह जानना चाहती हँ िक या
यह आमं ण केवल य को स प न कराने हे तु है?''
‘‘नह भाभी, म ऐसा नह समझता; शायद य परू ा करने क बात एक बहाना ही है... स चाई
इससे इतर ही होगी, और इतना तो म िव ास से कह सकता हँ िक आज भी आप भाई के दय म
पवू क भाँित ही मौजदू ह।''
‘‘तु हारी यह बात मुझे स य लगती है िक यह य म सि मिलत होने का आमं ण एक बहाना
मा है; और ल मण, म बीते हये पल को िफर से नह जीना चाहती।''
महिष, जो अभी तक चुपचाप सुन रहे थे, बोले,
‘‘बेटी, यह बीते हये नह , वतमान पल को जीने क बात है... जब तु ह िकसी से कोई िशकायत
नह है, और जब अपने पित के पावन कम को पण ू ता देने का उठ खड़ा हआ है, तब अपने
कत य-बोध से पछ ू कर देखो और िफर िनणय करो।'
महिष के इस कथन के बाद सीता ने िनणय लेने म कोई देर नह क ।
‘‘ठीक है म चलती हँ,'' कहकर वे कुटी के अ दर चली गय , िक तु वहाँ, वे ने ब द करके कुटी
क दीवार के सहारे खड़ी हो गई ं। उनके मन म बहत से अ त ् व चल रहे थे।
सीता चलने के िलये तैयार हो गई ं ह, इस बात से ल मण को स तोष हआ, िक तु उ ह यह भी
लग रहा था िक बात बहत ही नाजुक मोड़ से गुजर रही ह। उ ह लगा, उनके ने के अ ु ही
नह , गला भी सख ू रहा है। कुछ दूर पर जल था। ल मण उस ओर गये, अपने मुख पर छीट मार ,
व से चेहरे को प छा, कुछ जल िपया और वापस आ गये। महिष ने उनके मन क ि थित समझी
और बोले,
‘‘ल मण, कमजोर मत बनो; यह पु षोिचत नह है।''
‘‘यह भी िवड बना ही तो है महिष,'' ल मण ने कहा।
‘‘नह , यह िवड बना नह है; पु ष मजबत ू हो, यह कृित क आव यकता है।''
‘‘और ी?'' ल मण ने कहा।
‘‘लचीले होने का अथ कमजोर होना नह है... ी को लचीला होने क सुिवधा है।''
कुछ समय बाद महिष को लगा, सीता को आने म देर हो रही है। उ ह ने बाहर से ही आवाज दी,
‘‘बेटी सीते!''
महिष क आवाज सुनकर सीता जैसे त ा से बाहर आ गई ं। उ ह ने उ र िदया,
‘‘आई,' और िफर वे शी ता से तैयार होकर बाहर आई ं तो महिष ने कहा,
‘‘आओ चल; राम ती ा कर रहे ह गे।'' कहकर वे चल पड़े ।
सीता िठठक । वे चाहती थ िक ल मण आगे-आगे चल, िक तु ल मण ने दोन हाथ जोड़कर
उ ह आगे चलने का संकेत िकया और सीता के आगे बढ़ने पर वे उनके पीछे हो गये। पीछे -पीछे
चलते ल मण क ि सीता के चरण पर थी। उ ह वनवास के िदन मरण हो आये। तब भी
ल मण सीता के पीछे ही चला करते थे। उ ह लगा, आज वष के अ तराल के बाद भी, चरण वही
थे- कमलवत् मदृ ु और लािलमा िलये हए; िक तु चाल म बहत गा भीय आ चुका था।
3. अपन के म य
थोड़ी देर म ही य थल आ गया। सीता ने पाया, राम सचमुच बहत अधीरता से उनक ती ा
कर रहे थे। सीता को देखते ही वे उनके पास आये और बोले,
‘‘आय।''
िववाह के बाद से सीता, राम से इतने ल बे समय के िलये दूर नह रह थ । आज वष बाद एक
बार िफर राम का वर सुनकर उ ह बहत अ छा लगा, िक तु साथ ही उ ह ने इसम छुपी वेदना
को भी महसस ू िकया। उ ह लगा, उनके दय म कुछ हआ है। उ ह ने चार ओर ि डाली। सभा
ऋिषय , राजपु ष और स ा त यि य से भरी हई थी, और य चल रहा था। लव और कुश,
ऋिषय के म य बैठे हए उ ह क ओर देख रहे थे।
सीता ने ने उठाकर राम क ओर देखा। बारह वष के अ तराल के बाद वही राम थे। कुछ भी
बदला नह था। बस, उ ह वे थोड़े दुबले से लगे। जब वे उनसे िमलने के िलये चली थ , तब पता
नह िकतनी ही बात उनके मन म आ रही थ । उ ह महसस ू हो रहा था िक इन वष म उ ह ने
िकतने भी मोह यागे ह , िक तु राम क कुशलता क िच ता सदैव उनके मन म थी।
अब उ ह सकुशल देखकर सीता को लगा िक मन के शमन के इतने ल बे अ यास के बाद भी,
राम उनका हाल पछ ू ने कभी भी नह आये; यह िशकायत मन के िकसी कोने म शेष रह ही गई
थी। वा मीिक आ म म रहते हए अ सर उ ह लगता था, कभी राम िमलगे तो वे उनसे यह
अव य पछ ू गी, िक तु आज राम को स मुख पाकर और उनका धीर-ग भीर वर सुनकर वे यह
िशकायत िब कुल ही भल ू गई ं। उ ह ने पछ
ू ा,
‘‘कहाँ?''
‘‘मेरे साथ।''
लव और कुश उन लोग क ओर देख ही रहे थे। राम ने संकेत करके उ ह भी बुलाया। सीता देख
रही थ , राम के वर म अनुरोध है, आदेश नह ... यह उ ह असहज लग रहा था।
राम सबको लेकर य म बैठ गये। उ ह ने देखा, लव और कुश बालक होते हए भी म का
बहत ही शु उ चारण कर रहे थे। राम को उनके ान और शालीनतापण ू यवहार पर गव सा
अनुभव हआ। य क अि न से, सीता सिहत उन दोन बालक के चेहरे र ाभ हो उठे थे। तभी
उ ह ने देखा िक य म बैठे कुछ लोग कुछ असहज हो रहे थे और आपस म कुछ बात करने लगे
थे, िक तु उ ह ने उस ओर िवशेष यान नह िदया।
कुछ देर तक य म बैठने के प ात् राम, सीता व बालक को लेकर उठे और महल क ओर चल
िदये। सीता उनके साथ महल के अ दर गई ं, तो उ ह ने देखा, अनेक ि याँ उ ह िव मय िक तु
स नतापण ू ि से देख रही थ । सभी ने सीता का अिभवादन और वागत िकया। राम सभी
को लेकर माताओं के क क ओर गये। सीता और ब च के आने का समाचार सुनकर, कैकेयी
और सुिम ा भी कौश या के क म आ गई थ । सीता क बहन उिमला, मा डवी और ुतक ित
भी वहाँ आ गई थ ।
ग धव ने भरत क निनहाल कैकेय देश पर अिधकार कर िलया था। भरत ने उनके आदेश से
ग धव को हराकर ग धव और कैकेय देश पर पुन: अिधकार कर िलया था, और राम ने उ ह,
वहांँ का राजा बना िदया था। मा डवी, उनके और अपने ब च त और पु कर के साथ वहांँ आयी
हई थ । इ ह के ारा बसाये महानगर अब त िशला और पेशावर (पु करावती) नाम से जाने
जाते ह।
मधुपुर (मथुरा) का शासक लवणासुर, रा स धम को मानने वाला, नरभ ी और राम के शासन
को नकारने वाला था। उनके आदेश से श ु न ने उसका दमन िकया था। इसके बाद राम ने उ ह,
वहांँ का शासक िनयु कर िदया था। ुतक ित, उनके और अपने ब च सुबाह और श ुघाती के
साथ वष बाद वहाँ आई थ । (काला तर म सुबाह को मथुरा और श ुघाती को िविदशा का रा य
िमला)।
राम, सीता और दोन बालक सिहत माताओं के पास गये और णाम िकया। सीता जब कैकेयी
के चरण- पश करने लग , तो कैकेयी रो पड़ । उ ह ने सीता के हाथ थामे और अपने सीने से
लगा िलये।
‘‘ य रो रही ह माँ?'' सीता ने कहा।
‘‘मेरी आ मा शायद मुझे कभी माफ नह करे गी बेटी।''
‘‘िक तु जो कुछ भी हआ, उसम आपका दोष ही या था, और िफर हमने वन म बहत अ छे िदन
िबताये। रावण के ारा मेरा हरण और िफर उसक कैद म िबताये िदन को यिद छोड़ द, तो वे
बहत आन दपण ू और सदैव मरण रहने वाले िदन थे।''
‘‘बेटी, तेरा मन सचमुच बहत उदार है।''
‘‘...और उन पुरानी बात को मरण करके आप आज य दुखी हो रही ह; वह करण तो वष
पहले समा हो चुका है।''
‘‘हाँ बेटी, म भी यही सोचकर स तोष कर रही थी, िक चलो वह करण समा हआ और इसी
बहाने रावण भी मर गया... िक तु जब तुझे दुबारा अकेले और गभवती अव था म वन जाना पड़ा,
तब मुझे लगा िक वह करण बीता नह है, उसक काली छाया अब भी मँडरा रही है, और जहाँ
तक रावण क बात है, वह शरीर से ज र मरा, िक तु कई लोग के मन म आज भी जीिवत है,
और शायद हमेशा इसी तरह जीिवत रहे गा।''
सभी आ य और मनोयोग से कैकेयी और सीता के म य होने वाले इस संवाद को सुन रहे थे।
कैकेयी ने थोड़ा ककर पुन: कहा,
‘‘और सीते, प रवार म िकसी एक यि का भी दुरा ह परू े प रवार पर िकतना अिधक भारी
पड़ता है, यह भी इस कैकेयी के दुरा ह से ही बहत अिधक प हो जाता है। महाराज दशरथ ने
ाणा तक पीड़ा झेली; राम, ल मण और तुमने वन म जो क उठाये, वे सबको पता ह, िक तु
िनद ष उिमला और सुिम ा के दय ने भी बहत पीड़ा झेली है... इनका दुःख इसिलये भी और
बड़ा हो जाता है िक इ ह ने परू ी तरह मौन रहकर यह सब सहा है।''
‘‘दीदी, मेरा पु ल मण, राम और सीता के काम आया, यह मेरे िलये अ य त गव और अ यिधक
स तोष का िवषय है; अत: यिद आपके मन म कह भी यह हो िक आपने मुझे कभी भी क
पहँचाया है तो कृपया इस बात को मन से िनकाल द... िफर मेरा एक पु और दोन बहएँ , तो मेरे
पास ही थे,'' सुिम ा ने कहा।
सीता ने भी कहा,-‘‘माँ आप दुखी मत ह ! हमारे मन म आपके िलये आज भी आदर भाव ही है।''
‘‘यह तेरा बड़ पन है बेटी।'' कैकेयी ने कहा।
राम, जो चुपचाप सब कुछ सुन रहे थे, बोले,
‘‘अ छा, म जाने क अनुमित चाहता हँ; य थल पर लोग मेरी ती ा कर रहे ह गे।''
‘‘हाँ बेटे, तुम जाओ।'' कौश या ने कहा।
राम के जाते ही सीता क बहन ने उ ह घेर िलया। बहत सी बात चल िनकल । बात -बात म
सीता ने उिमला से कहा,
‘‘उिमल, ीराम तो अपने िपता क आ ा मानकर वन चले गये थे और म उनक प नी थी,
इसिलये उनके साथ जाना मेरा धम भी था और सुख भी; िक तु ल मण ने तो अकारण ही
वनवास का क झेला और उ ह ने भी चलो, अपने भाई का साथ देने के िलये यह िकया, िक तु
तुमने तो अकारण ही चौदह वष तक जो मानिसक स ताप सहा, उसक क पना भी मुझे
िवचिलत कर जाती है।''
‘‘दीदी, म इस प रवार क इकाई हँ; इसके सुख-दुःख म साथ देना मेरा कत य बनता था, और
मेरे तो चिलये, पित साथ म नह थे, और वे अपनी भाभी और भाई क सेवा कर अपने कत य का
पालन कर रहे थे, इसिलये मने उस िवरह को सहन िकया, िक तु बहन मा डवी के बारे म
सोचकर मेरा मन बहत िवचिलत हो उठता है। जेठ भरत जी ने चौदह वष िजस तरह पीड़ा म
िबताये, लोग उसको भी ा से मरण करते ह, उ ह महान बताते ह और यह बात कह न कह
उनक पीड़ा को कम करती होगी... िक तु बहन मा डवी ने जो पीड़ा इतने वष तक झेली, वह
अकथनीय है और शायद उपेि त भी।''
मा डवी, जो इतनी देर से इस वातालाप को चुपचाप सुन रही थ , अपनी चचा होने से कुछ
असहज सी हो गइ, शायद कुछ शरमा भी गई थ । तभी उिमला ने कहा,
‘‘हम सब इतनी देर से अपनी-अपनी पीड़ा क बात कर रही ह, िक तु म आप सब को कुछ और
भी िदखाना चाहती हँ।''
‘‘ या?'' सीता ने कहा।
‘‘मेरे साथ आय,'' उिमला ने कहा, तो सीता, मा डवी और ुतक ित उनके साथ हो ल । लव व
कुश भी साथ जाना चाहते थे, िक तु कौश या ने नेहपवू क उनके हाथ पकड़कर अपने पास
िबठा िलया।
ब चे क गये। उिमला सबको साथ लेकर महल के िपछले भाग म पड़े खाली थान पर पहँच ।
वहाँ पर एक साधारण सी कुिटया बनी हई थी, िजसम कोई दरवाजा नह था। सीता ने देखा, कुश
क बनी चटाई, एक चौक और कुछ व रखे थे। उ ह ने वाचक ि से उिमला क ओर
देखा। उिमला ने कहा,
‘‘यह जेठ जी क कुिटया है।''
‘‘उनक कुिटया?'' सीता ने आ य से पछ ू ा।
‘‘हाँ, जबसे आप महल छोड़ कर गई ह, वे इसी म रहते ह, और यही उनका कुल सामान है।''
सीता के दय म बहत जोर से धक् सा हआ।
मा डवी व ुतक ित भी यह सुनकर अचि भत रह गय । सीता ने िजस समय अयो या छोड़कर
महिष वा मीिक के आ म जाने का िन य िकया था, उ ह यह अनुमान था िक राम बहत अिधक
अकेलापन महसस ू करगे य िक वे उनसे बहत ेम करते ह; िक तु जो कुछ उनके सामने था,
वह उनक क पना से परे था। राम क पीड़ा क अनुभिू त उ ह बहत गहरे तक झकझोर गयी।
उनको मरण हो आया, राम बहधा कहते थे, ‘सीते, हमारे सुख-दु:ख कभी अलग-अलग नह
ह गे, उ ह लगा राम ने जो कहा था उसे जीकर िदखा िदया।
उनक कुिटया, और उनका मा एक चटाई पर सोना देखकर उ ह अपना सारा दु:ख भल ू गया।
इससे अ छी तो उनक , महिष वा मीिक के आ म क कुटी थी। मन संवेदनाओं म डूबा तो देह भी
िनचुड़ी हई सी लगी। उ ह लगा वे खड़ी नह रह पायगी। सीता ने कुटी क दीवार के सहारे पीठ
िटका दी ओर िफर कुछ देर बाद एक कोने म जाकर मुख िछपाकर रो पड़ । बहन उ ह देख रही
थ । ुतक ित उ ह चुप कराने के िलये बढ़ने लग तो उिमला और मा डवी ने उ ह रोका।
‘‘उनके अ दर पता नह िकतनी पीड़ा भरी होगी, थोड़ा रो लेने दो... इससे वह पीड़ा कुछ तो कम
होगी ही।’’ मा डवी ने कहा। ुतक ित क गय । कुछ देर रो लेने के बाद सीता कुछ शा त हइ
तो कोने से हटकर दीवार के सहारे खड़ी हो गय । िवचार ने िदशा बदली। उ ह अपने िपता जनक
और उनका वभाव याद आया। सीता को वे सदैव एक से भाव म ही िदखे। िनिल और िनिवकार।
इसीिलये वे िवदेह कहे जाते थे और उनक पु ी होने के कारण सीता भी वैदेही कही जाने लगी
थ।
सीता के ने के स मुख एक बार िफर राम का िच आ गया। वैदेही को लगा, उनके िपता राजा
जनक क भाँित, राम भी िवदेह ही तो ह। सीता के मन म अपने पित राम के िलए अगाध ा भर
गई। सब कुछ छोड़कर, दूर जाकर यागी और िवरागी बनना आसान है; िक तु सारे वैभव के
म य रहते हए और राजा के दािय व का िनवहन करते हये, याग और वैरा य का जो ितमान
राम ने थािपत िकया था, वह अतुलनीय लगा।
सीता को थकान सी लगने लगी थी। उ ह ने भिू म पर पड़ी चटाई क ओर देखा। राम इसी पर सोते
ह गे। वे राम के पश क अनुभिू त क क पना से भर उठ । उनका मन हआ, वे उस चटाई पर बैठ,
और वे उस ओर बढ़ , िक तु िफर िठठक गय ।
संभवत: बहन के वहाँ उपि थत होने से वे संकोच म पड़ गयी थ । उनका यह छोटा सा यास
उिमला क ि से िछपा नह रह सका। उ ह ने सीता क मन:ि थित का अनुमान िकया और
उनका संकोच तोड़ने के िलये बोल ,
‘‘आओ, हम सब थोड़ी देर यहाँ बैठ!'' कहते हए उिमला, कुटी क भिू म पर बैठ गई ं। उिमला के
वर से सीता को यान आया िक उसने भी उनके वनवास काल म, ल मण क अनुपि थित म
चौदह वष का समय सम त राजसी वैभव को यागकर साधारण भोजन, व और भिू म पर
शयन करके ही िबताया था। सीता का मन हआ िक वे ई र से पछ ू िक 'हे िवधाता! यह इस
रघुवंश क कैसी िनयित है?' उिमला के आ ह पर मा डवी और ुतक ित भी वह भिू म पर बैठ
चुक थ ; िक तु जब सीता भी वहाँ बैठने लग , तो उिमला ने उ ह रोक िदया, बोल ,
‘‘नह दीदी, आप उस चटाई पर बैठ; आप वह शोभा देती ह।''
सीता चटाई पर बैठ गई ं। उ ह लगा, मानो वे फूल के आसन पर बैठी ह। अनायास ही उनके ने
ब द हो गये और उ ह अपने शरीर का भान नह रहा, और पल भर म सीता के ने के सामने
वह य आ गया, जब उ ह ने राम को पहली बार देखा था।
मन को अचंिभत कर देने वाला आकषण था। उ ह याद आया, राम के ने म िकतनी शालीनता
और संकोच था। इसका आभास होते ही, िक सीता उनक ओर देख रही ह, उ ह ने अपने ने
झुका िलये थे, और वे कह और देखने लगे थे। सीता को याद आया, उस िदन िशव-मि दर म
जाकर पु प अचना कर गौरी से या ाथना क थी; और जब उ ह लगा था िक माँ गौरी ने
उनक ाथना सुन ली है और उनके अधर पर मु कराहट है तो कैसे एक बारगी उनके शरीर म
रोमांच हो आया था।
आज पुन: उस बात के मरण से उनके शरीर म रोमांच सा हआ। उनके ने खुल गये। अब
उ ह ने यान िदया िक उस कुटी म एक ओर भगवान िशव और माँ गौरी क थापना क हई है
और वे उसी के सामने बैठी ह। सीता उठ । कुटी के बाहर कई पौधे थे, िजनम कुछ फूल िखले हए
थे। सीता बाहर उन पâू ल के पास खड़ी होकर उ ह िनहारने लग ।
‘‘बहत यारे पâू ल ह न!’’, उिमला ने कहा।
‘‘हाँ, बहत।’’ सीता ने कहा, िफर जैसे सहसा कुछ मरण हो आया हो, ऐसे अपने आँचल का िसरा
िलया, कुछ पâू ल चुनकर उसम रखे, कुटी म वापस आइ, गौरा और िशव पर वे पु प अिपत कर
णाम क मु ा म बैठकर ाथना म खो गय ।
सीता के साथ-साथ उनक बहन ने भी गौरा और िशव को णाम िकया। कुछ देर वह क , िफर
सीता क ाथना म िव न न पड़े , उ ह थोड़ा एका त िमले, सोचकर कुटी से बाहर आकर उनक
ती ा करने लग । तभी उिमला ने मा डवी और ुतक ित से कहा,
‘‘तुमने देखा; पता नह इतने पâू ल के होते हए भी दीदी ने मा ेत पु य ही य चुने।
‘‘हाँ, पता नह उ ह ने कुछ सोचकर ऐसा िकया या अनायास ही ऐसा हो गया।’’ उनम से एक ने
कहा।
‘‘नह , यह अनायास तो नह लगता; उ ह ने रं गीन पु य छोड़कर ेत चुने ह।’’ उिमला ने कहा।
सीता ने ाथना करने के प ात ने खोले तो उनके दय म बहत िनद ष सी शाि त थी, जो
उनके मुख पर झलक आई थी। उ ह ने देखा, बहन कुटी के बाहर, उनक ती ा म थ । सीता
बाहर आय तो िफर उिमला ने धीरे से सीता से पछ ू ही िलया।
‘‘दीदी, आपने मा सफेद फूल ही य चुने?''
सीता ने होठ को थोड़ा ितरछा करते हए उिमला क ओर देखा, धीरे से कंधे िहलाये और कोई
उ र नह िदया। उिमला ने उनक भाव-भंिगमा देखी। उनका कुतहू ल शा त नह हआ था। उ ह ने
िफर कहा,
‘‘दीदी, अपने बताया नह !''
सीता ने कुछ पल के िलये अपने ने ब द कर िलये, िफर बोल ,
‘‘रं ग का या- ेत शाि त देता है।''
इसके उ र म उिमला ने कुछ चंचलता से पछ ू ा, ‘और माँगा या?’’
‘‘माँगना या है, जो देना होगा दगे।’’
उनके इस उ र से स नाटा सा पसर गया। थोड़ी देर बाद उिमला ने कहा,
‘‘चल? ब चे और माताय हमारी ती ा कर रहे ह गे।'' इस वर से सीता का यान टूटा तो उ ह
लगा जैसे वे िकसी दूसरी दुिनया से वापस आई ह।
‘‘हाँ, चल।'' उ ह ने कहा और उठकर खड़ी हो गई ं।
सभी बहन िफर माताओं के क म आ गई ं। कौश या, कैकेयी, सुिम ा सभी, लव और कुश से
बात म लगी हई थ ।
‘‘कहाँ चली गयी थ ?'' कौश या ने सीता से पछ ू ा, िफर वयं ही बोल ,
‘‘सीते, ब च को तो मने अ पाहार करा िदया है, तुम भी कुछ खा लो!''
मेरा अभी िब कुल भी मन नह है माँ, अ यथा म आपके अनुरोध को टालती नह ।''
‘‘अ छा िफर जाओ अपने क म, जाकर थोड़ा िव ाम कर लो, ब चे मेरे साथ िहल गये ह, वे जब
तक यहाँ बैठना चाहगे, बैठगे; उसके बाद म, इ ह तु हारे पास िभजवा दँूगी।''
‘‘माँ, ई र को छोड़कर मेरा कुछ भी नह है; ये ब चे भी मेरे पास आप सबक धरोहर ह... म अब
िकसी मोह म पड़ना भी नह चाहती; िक तु आप का संकेत िजस क क ओर है, म वहाँ चली
जाती हँ,'' कहकर सीता उठ और एक प रचा रका के साथ उस क क ओर चली गई ं। क के
ार पर उ ह छोड़कर प रचा रका चली गई।
भीतर जाकर सीता ने पाया िक वहाँ कोई प रवतन नह था। वष पवू वे जैसा, जो कुछ छोड़कर
गई थ , सब कुछ वैसा ही यवि थत और साफ सुथरा था। वे एक िबछावन पर बैठ गइ। सहसा
उनक ि उस पा पर पड़ी, िजसम वे िन य कुछ ताजे फूल लाकर रखती थ । आज भी वह पा
वह था और उसम ताजे फूल का एक गु छा भी। सीता को िव मय हआ। तभी उ ह ने क के
ार पर खट्-खट् क विन सुनी तो कहा,
‘‘कौन है? आ जाओ।''
दो प रचा रकाय अ दर आई ं। सीता ने देखा, दोन उनक पुरानी प रचा रकाय ही थ । उ ह ने
पछ ू ा,
‘‘िकसी व तु क आव यकता तो नह है?
‘‘नह ।'' सीता ने कहा, िफर फूल के पा को इंिगत कर पछ ू ा,
‘‘यह इस पा म ताजे फूल का गु छा कैसे आया? या तुमम से िकसी को मेरे आने का
पवू ानुमान था?''
‘‘महारानी, यह हमने नह रखा; महाराज ने वयं लाकर रखा है।''
इतने वष म सीता क ‘महारानी' स बोधन सुनने क आदत छूट गई थी। आज पुन: यह
स बोधन कुछ असहज कर गया। उ ह लगा, अब वे पुन: इस स बोधन के मायाजाल म नह
पड़ना चाहत । उ ह ने प रचा रकाओं को जाने का इशारा िकया। वे चली गइ, तो सीता अधलेटी
मु ा म होकर कुछ सोचने लग , तभी क के ार पर पुन: खट्-खट् हइ।
सीता उठ और क के ार क ओर उ मुख हई ं। उ ह ने देखा, माता कौश या एक प रचा रका
के साथ आई थ । प रचा रका के हाथ म एक थाल था, िजसम कुछ िम ा न और फल थे। सीता,
सादर उ ह लेकर अ दर आइ, आसन िदया और वयं नीचे बैठ गय कौश या ने प रचा रका को
जाने का संकेत िकया। वह थाल वह रखकर चली गई। कौश या ने कहा,
‘‘बेटी!''
‘‘माँ, आप मुझे बुलवा लेत , आपने य क िकया! ‘‘सीता ने कहा।
‘‘यह क नह है सीते; मेरा मन था िक म कुछ देर तु हारे साथ बैठूँ, तुमसे बात क ँ और इस
बीच हमारे और तु हारे अित र कोई अ य न हो।''
‘‘यह मेरा सौभा य है माँ।''
‘‘सीते, बेटी पहली बात तो यह िक नीचे नह , मेरे पास बैठो।''
‘‘म यहाँ ठीक हँ माँ।''
‘‘नह , उठो मेरे पास बैठो।''
अब सीता मना नह कर सक । वे उठकर कौश या के पास ही बैठ गई ं। कौश या ने सीता क
पीठ पर हाथ फेरा, उनका मुख सहलाया और िफर उ ह अपने पास समेट िलया। इस नेह से
सीता क आँख भर आई ं। कौश या ने उनका िसर अपने कंधे पर िटका िलया। अब सीता अपना
िसर उनके सीने पर िटका कर रो पड़ ।
‘‘बेटी'' कहकर कौश या उनका िसर सहलाने लग और वे वयं भी रो पड़ । कुछ देर बाद
कौश या ने अपने को संभाला, सीता के आँसू अपने आँचल से प छे और बोल ,
‘‘बेटी, तुमसे बहत सी बात करनी ह, पर पहले तुम कुछ खा लो।''
‘‘मेरी इ छा नह है माँ।’’
‘‘ य इ छा नह है? मुझे पता है, सुबह से तुमने कुछ नह खाया है।''
इस पर सीता चुप रह । कौश या ने एक टुकड़ा िम ा न उठाया और सीता के मुख क ओर
बढ़ाया। कहने लग ,
‘‘अ छा मँुह खोलो और मेरे हाथ से खा लो।''
इस पर सीता ने उनका हाथ पकड़ िलया और बोल ,
‘‘ठीक है माँ, म खा लँग ू ी, पर पहले आप कुछ ल।''
‘‘म भी ले लँग ू ी।'' कौश या ने कहा।
इसके बाद दोन ने िमलकर कुछ िमठाइयाँ और फल िलये। अब तक उनके मन थोड़े सहज हो
चुके थे। इस अ पाहार के प ात् कौश या ने अपने व को िभगोकर सीता के मुख को अ य त
नेह से प छ िदया और बोल ,
‘‘बेटी सीते, तुमने िनद ष होते हये भी बहत दुःख उठाये ह, और इतने छोटे से जीवन म ही तुम
िकतना कुछ झेल गई हो; यही हाल राम का है। उसने नेक और स चा होते हए भी संघष को ही
िजया है... सारे वैभव होते हए भी, तुम छोटे-छोटे ब च सिहत वन म और वह परा मी और इतने
बड़े राजा होते हए भी, साधुओ ं क भाँित कुिटया म रहता है।''
‘‘माँ, वे कुिटया म रहते ह, यह सचमुच बहत क द है।''
‘‘यिद तु ह भी ऐसा ही लगता है, तो एक वचन दो बेटी।''
‘‘ या माँ?'' सीता ने कहा।
‘‘अब तुम लौटकर वन नह जाओगी; यह रहोगी... िफर राम अव य वह कुटी छोड़कर महल म
रहने लगेगा, और ब चे लव और कुश राज-कुमार ह; वे भी राजकुमार जैसे रहगे; तु हारे िबना
यहाँ बहत सन ू ापन लगता है।''
‘‘माँ, मेरे यहाँ रहने से या वे लोग जो हमारे बारे म तरह-तरह के उठाते ह, शा त रह
पायग? या वे पुन: उसी तरह क ु मानिसकता वाले उठाकर आपके पु के तनाव का
कारण नह बनगे?''
‘‘सीते, उस बात को बारह वष से अिधक हो चुके ह; वे लोग भी उन बात को अब तक भल ू चुके
ह गे और हमारे िलये भी उ ह भल ू जाना ही ेय कर है।''
‘‘माँ, म उस बात को ही नह , पुराना सब कुछ भल ू कर, नये जीवन म वेश कर चुक हँ; िक तु
आपके पु को सारे रा य का और राजधम का पालन करना है- उनका काय किठन और दािय व
बहत अिधक है।
लोग क मानिसकता मुि कल से बदलती है; कुछ ु कृित के लोग, िफर ऐसी ही बात कर
सकते ह... इससे रघुकुल न दन तनाव म हो सकते ह; यह अिन कारी होगा।''
‘‘बेटी, म राम से भी बात क ँ गी, िक तु तुम अपना िन य तो बताओ।''
‘‘माँ, आपक पीड़ा िकतनी गहरी है, म समझ सकती हँ, िक तु आपसे मेरा बहत ही िवन
अनुरोध है िक मेरा मन, जो तरह-तरह के मोह को यागकर िन पहृ होने के िलये य नशील है,
उसे पुन: मोह क ओर लौटने के िलये न कह।''
‘‘बेटी, म ऐसा कुछ भी नह चाहती हँ, जो तु हारी इ छा के िवपरीत हो और िफर मोह को छोड़कर
िन पहृ होने के यास को म ई र क ओर उ मुख होने का पयाय समझती हँ... तुम मुझे राम से
कम ि य नह हो, िफर भी यिद स भव हो, तो मेरी बात पर िवचार करना,''
इतना कह कर कौश या क और सीता के चेहरे क ओर देखने लग । सीता शा त थ , िक तु
उनका चेहरा बहत कुछ कह रहा था। कौश या ने उसे पढ़ा, िफर बोल
‘‘अ छा, अब तुम आराम करो; ब च क िच ता मत करना, वे मेरे पास ह।'' कहते हए कौश या,
भारी मन िलए उठ और क से बाहर चली गइ।
कौश या को राम से वाभािवक ही बहत नेह था। सीता को मरण हो आया िक राम के िलये
वनगमन का आदेश होने के बाद ोिधत ल मण ने राम से, अपने सहयोग से बलपवू क अयो या
के िसंहासन पर अिधकार कर लेने का अनुरोध िकया था। तब कौश या ने इसका िवरोध नह
िकया था, अिपतु इसे उनका परो समथन ही था, िक तु सीधे-सीधे ऐसा आदेश देकर वे राम को
धमसंकट म नह डालना चाहती थ , अत: उ ह ने इसके िलये राम से अपने िववेक का योग
करने क बात क थी। पु के ित इस नेह को सीता ने मन ही मन नमन िकया।
कौश या के जाने के बाद सीता के मन म, राम का िच और उनक कुिटया आ गई, िफर उनक
ि राम के लाये फूल पर पड़ी। बहत ही ढं ग से यवि थत िकये पु प थे। वे भावनाओं के वाह
म बह गई ं। उ ह ने उस फूल के गु छे को उठाया और उनको धीरे से छुआ, तो एक पल के िलए
लगा िक उ ह ने वयं ीराम के हाथ को छुआ है।
सीता को कुछ थकान सी लगने लगी थी। उ ह ने एक गहरी साँस ली, ने ब द िकये और पलँग
पर लेट गय । राम के ारा उनके आने पर फूल के पा म कुछ नये, ताजे, सु दर फूल का
सजाना उनके मन को छू गया था। सीता सोचने लग , राम ने अनुमान लगाया होगा िक सीता
अपने क म अव य आयगी... िफर कब उ ह ने समय िनकालकर फूल चुने ह गे, यहाँ आये ह गे
और इन पा म फूल लाकर रखे ह गे। िकस तरह इतनी य तता म भी समय िनकालकर
उ ह ने िबना कुछ बोले अपनी बात कह दी थी। उ ह लगा िक राम के महल के िपछले भाग म
एक साधारण सी कुिटया म रहने के और वयं उनके महिष वा मीिक के आ म म बारह वष से
अिधक िबताने के बाद भी, उन दोन के मन म एक दूसरे के िलये लगाव कह से भी कम नह
हआ है। आज जबसे वे यहाँ आई थ , तब से पता नह य उनके मन के िकसी कोने म राम के
मन म झाँकने क इ छा होने लगी थी। यह शायद सहज और वाभािवक इ छा थी। सीता को
इसम कुछ भी अनुिचत नह लग रहा था। राम के मन का कुछ प रचय उ ह राम के कुटी म रहने
से िमल गया था, शेष इस फूल के गु छे ने प कर िदया था। उ ह लगा जैसे इन फूल क
सुगंध उनके ाण म भर रही है। एक पल को उ ह लगा जैसे कोई उनके मन को गुदगुदा गया है।
उनके होठ पर ह क सी हँसी तैर गयी। फूल के गु छे को उ ह ने सीने पर रख िलया। मिृ तयाँ
उ ह पुन: घेरने लगी थ । वे इनसे बचना चाहती थ , पर ऐसा हो नह पा रहा था।
याग और वैरा य
ठीक है
अ छा है, पर
विणम सी मिृ तयाँ
िफर भी
िमटती ह या
4. पीड़ाएँ िफर भी ह
सीता इन फूल क महक म खोने लगी थ । तभी उ ह लगा, क के ार पर खट्-खट् हई है। वे
उठ कर बैठ गई ं और आवाज दी,
‘‘कौन है?''
‘‘बेटी, म हँ।
कैकेयी क आवाज थी। सीता ज दी से उठकर ार तक आय , बोल ,
‘‘आइये माँ, िक तु आपने य क िकया, मुझे बुलवा िलया होता।''
कैकेयी अ दर आ गई ं, िक तु शा त रह । उ ह ने इस बात का कोई उ र नह िदया। वे चुपचाप
खड़ी थ । सीता ने कहा,
‘‘माँ, बैठ।''
कैकेयी पलँग पर एक ओर बैठ गई ं। सीता ने पुन: आ ह िकया,
‘‘माँ, कृपया आराम से बैठ।''
‘‘म ठीक हँ बेटी, तुम बैठो।''
सीता पास ही बैठकर उनके मुख क ओर देखने लग । कैकेयी ने अपना हाथ बढ़ाकर सीता का
हाथ, अपने हाथ म ले िलया, बोल
‘‘बेटी कैसी हो?''
सीता धीरे से हँस ; बोल ,
‘‘म ठीक हँ माँ, पर मुझे आपके चेहरे से लग रहा है िक आपके मन म अव य कुछ पीड़ा है।'
‘‘बेटी, तुम क पना नह कर सकत िक राम के साथ तु हारे और ल मण के वन जाने के बाद,
मने जीवन को िकस कार िजया है। क तो सभी ने उठाये, िक तु तुमने िनद ष होते हये भी जो
कुछ सहा है, वह अक पनीय है और आज लव व कुश के प म हमारी भावी पीढ़ी भी उस ासदी
को झेल रही है... बेटी आ म लािन मुझे जीने नह दे रही है।''
‘‘माँ, आप यथ ही अपने को इस सब का कारण समझ रह ह; यही हमारा ार ध रहा होगा, और
ार ध से कौन लड़ सकता है... हम सब िनिम मा ही तो ह।''
‘‘हो सकता है तुम ठीक कह रही हो सीते, िक तु िनयित ने इसके िलये मुझे ही य िनिम
बनाया? यह मुझे जीने नह दे रहा है।''
‘‘माँ, अपने मन को शा त क िजये; अगर मने कुछ दु:ख झेले ह तो इसके िलये म िनयित के
अित र , िकसी को दोषी नह मानती।''
‘‘बेटी म समझती हँ... मन को समझाने के िलये इस तक का सहारा िलया जा सकता है।''
‘‘माँ, यह केवल मन समझाने का तक नह है, पर हाँ, म आपक पीड़ा समझ सकती हँ... िजस
पित के जीवन क आपने दो बार अपनी जान पर खेल कर र ा क , उसक म ृ यु के िलये परो
प से लोग आप को ही दोषी मानते ह। इससे बढ़कर पीड़ा और या हो सकती है... िफर आपने
तो भरत जैसा पु भी खो िदया है- यह पीड़ा छोटी नह है।''
इन श द से, कैकेयी क आँख से आँसुओ ं क धार बह िनकली। उनका गला िहचिकय से ँ ध
गया, वे रो पड़ । सीता अवाक् हो गई ं। उ ह ने कैकेयी का िसर अपने क धे पर िटका िलया। िकसी
के पास कुछ भी बोलने के िलये नह था। सीता ने अपने ने ब द कर िलये और कैकेयी के
जीवन के कुछ अंश उनके मन म घमू गये।
कैकेयी, भोग-िवलास को ही सब कुछ न मानने वाली, महान िवदुषी, कूटनीित म िनपुण, वीरता
से भरी हई, और श ुओ ं से मोचा लेने वाली थ । उनम बड़ पन और सि चार क कमी नह थी। वे
कैकेय नरे श राजा अि निजत क पु ी थ और उनके िववाह के समय ही महाराज दशरथ ने
कैकेय नरे श को वचन िदया था िक कैकेयी का पु ही अयो या के राजिसंहासन का
उ रािधकारी बनेगा। िजस समय महाराज दशरथ ने राम के राजितलक क घोषणा क , भरत
अपने नाना के पास ही थे।
इस कार उनक अनुपि थित म राम का राजितलक, कैकेय नरे श को रघुकुल पर स देह का
अवसर दान करता, और दोन रा य म स ब ध िबगड़ सकते थे। कैकेयी, दशरथ के आ ह के
अनुसार, केवल भरत के राजितलक का एक ही वर माँगकर स तोष कर सकती थ , िक तु वे
राम के चौदह वष के सुदूर दि ण म द डकवन म वनवास के िलये भी अड़ गई थ ।
य हआ ऐसा? या राम को भरत से अिधक ेम करने वाली कैकेयी, इतने कठोर दय क थ
िक उ ह ने दशरथ क ममा तक पीड़ा को भी मह व नह िदया, या इसके पीछे महाराज दशरथ
को िदया गया, वण कुमार के माता-िपता का ाप भी काय कर रहा था, िजसने कैकेयी को
इतना कठोर बना िदया था।
वनवास से लौटने के बाद, सीता को, कैकेयी के ारा राम को चौदह वष के ल बे वनवास और
द डकवन भेजने का कारण बहत कुछ प हो गया था।
रावण अपने रा य क सीमाओं का िव तार कर रहा था। द डक वन, उसका उपिनवेश और
उसक बहन सुपणखा का ड़ा थल सा बन चुका था। उनका दमन आव यक था। राम और
सीता के वनवास के तेरह वष लगभग िबना िकसी िवशेष घटना और िव न बाधा के पार हो गये
थे। यह उनके वनवास का अि तम समय ही था, जब सुपणखा का करण, सीता का अपहरण
और रावण वध हआ, और इसके साथ ही चौदह वष का समय भी परू ा हो गया। यिद यह वनवास
चौदह वष से कम का होता तो रावण का िवनाश नह हो पाता, और यिद यह चौदह वष से अिधक
का होता तो वह यथ होता। रावण के वध के प ात, राम, वनवास परू ा कर अयो या आ गये थे
और एक िदन भी कम या अिधक नह ; यह ठीक चौदह वष का का समय था।
सीता को लगा, या माँ कैकेयी ने िकसी अतीि य शि से े रत होकर चौदह वष का वनवास
माँगा था? सीता को मरण हो आया, जब एक बार उ ह ने राम से पछ ू ा था, िक अगर रावण का
िवनाश कैकेयी का म त य था तो य था? या केवल इस कारण िक वह अपने रा य क
सीमाओं का िव तार करता हआ, भारत के दि ण म आ चुका था और कभी भी अयो या के
सा ा य के िलये चुनौती खड़ी कर सकता था, या इसके पीछे कुछ और कारण भी थे।
राम ने बताया था, िक म दोदरी क छोटी बहन के ित असुरपित ितिम वज श बर, िजसके वज
पर े ल मछली का िच ह हआ करता था, से एक बार राजा दशरथ का यु हआ था। उस यु म
कैकेयी ने रथ चलाने वाले सारथी के प म, दशरथ का रथ चलाकर उनका साथ िदया था।
श बर ने दशरथ के रथ को बुरी तरह ित त कर िदया था और उसका एक पिहया िनकलने
वाला था, िजससे दशरथ िवरथ हो जाते और श बर बहत आसानी से उनका वध करने म स म
हो जाता।
दशरथ वयं भी याकुल हो उठे थे। उस समय कैकेयी एक हाथ से रथ का पिहया संभालते हए,
रथ हाँकती रह , और अ ुत कौशल का प रचय देते हये उ ह यु - थल से िनकाल ले गई थ ।
िनि त ही, श बर का साढ़ रावण, जब अपनी शि और सा ा य बढ़ाते हए भारत के दि ण
तक आ पहँचा, तब राजकाज म िनपुण, कूटनीित और दूर- ा कैकेयी का िचि तत होना
वाभािवक था, और उसके वध के िलये राम से अिधक उपयु कौन हो सकता था।
सीता ने यह भी सुन रखा था िक एक बार दशरथ, एक ऐसी शारी रक यािध से पीिड़त हो गये
थे, िजसम उनका जीिवत बचना किठन था; साथ ही उनके साथ रहकर उनक सेवा करने वाले
को भी वह भयंकर यािध स सकती थी। तब एक मा कैकेयी ही ऐसी थ , िज ह ने दशरथ के
रोगमु होने तक, अपने जीवन को खतरे म डालकर उनक सेवा कर, उनके ाण बचाये थे।
वे सोचने लग , यह िविध क िवड बना ही तो है िक दो-दो बार अपने जीवन पर खेलकर अपने
पित के ाण बचाने वाली ी पर पित क म ृ यु का कारण बनने का आरोप लगा।
उ ह यान आया, भरत ने राम के वनवास पर जाने के बाद से कैकेयी को कभी माँ कहकर
स बोिधत नह िकया था। वयं राम के आ ह पर भी उ ह ने सिवनय मा माँग ली थी, पर
कैकेयी को माँ नह कहा।
आज कैकेयी को इस प म पाकर, सीता का मन भी रो उठा। िज ह ने दो-दो बार अपने ाण पर
खेलकर अयो यापित दशरथ क ाणर ा क , िज ह यह स मान ा था िक दशरथ का मुकुट
सदैव उनके महल म ही रखा जाता था, जो अयो या के सा ा य के िलये सबसे बड़े खतरे के प
म उभरते कदाचारी रावण के िवनाश का कारण बन , िज ह ने अपने सगे बेटे से अिधक राम को
नेह िदया और परो प से उनके सा ा य को अख ड िकया, उन कैकेयी को, कभी न िमटने
वाले अपयश का भागी बनना पड़ा।
जो पु ष से अिधक शौयवान, अित सु दर और महान िवदुषी थ , उ ह ने या पाया? पित तो
खोया ही, पु भी लगभग खो ही िदया, और पाये बहत से लांछन। सीता ने कैकेयी का िसर अपने
क धे से उठाया। आँसू उनके चेहरे पर सख ू चुके थे। सीता ने अपने आँचल से उनके चेहरे को
हलके-हलके साफ िकया, िफर कहा,
‘‘माँ, आप केवल बहत वीर रमणी ही नह रह , पित ता, कत यिन और दूर ा भी रही ह,
और इस सब के बदले म िकतना िवष आज तक आपने अकेले ही िपया है। आप आ म लािन का
भाव याग दीिजये! आपने जो भी िकया रघुवंश के भले के िलये ही िकया है; यिद आप नह होत
तो राम, राम नह होते। हमारे मन म आपके िलये आदर के िसवा कुछ नह है, िफर आपक आँख
म आँसू य ?''
‘‘बेटी, पहले प ाताप के आँसू थे, िफर तु ह सीने से लगा पाने क खुशी के... िक तु तुमसे बात
करके मेरा मन आज बहत हलका हो गया है। ई र तु हारे ऊपर सदैव कृपालु रह।' कहते हए
कैकेयी ने एक बार पुन: सीता को सीने से लगाया और चलने का उप म करने लग ।
‘‘माँ, मुझे भी आपका आना और पास बैठना बहत अ छा लगा, थोड़ी देर और बैिठये न!'' सीता ने
कहा।
कैकेयी पुन: बैठ गई ं। तभी उनक ि सीता के पास रखे हये फूल के उस गु छे पर पड़ी और
पल भर म उ ह बहत कुछ समझ म आ गया। उ ह ने कहा।
‘‘बेटी ,तुम दोन म बहत ेम है, िफर भी तुम अलग-अलग य रहते हो? मुझसे तुम लोग का
वैरा य-पवू क अलग-अलग रहना देखा नह जाता। मेरा एक आ ह मान लो; अब तुम पुन: यह
घर छोड़कर मत जाना।''
सीता ने इसका कोई उ र नह िदया। वे चुप हो गई ं। कैकेयी ने उठते हए सीता का हाथ पकड़ा
और बोल ,
‘‘अ छा बेटी, म चलँ?ू '' सीता उनके पैर को देखती रह ।
वो िव ास भरे पग
जो हर कदम साथ थे
काँट से भर गये
खन ू से लाल हो गये
टीस भरा मन
पीड़ा का पयाय हो गया।
उनके जाने के बाद सीता पुन: हाथ म उ ह फूल को लेकर लेट गई ं, और शायद उ ह न द आ
गई।
5. व न जगे तो
सीता अपने माता-िपता क बड़ी और दुलारी बेटी थ । छोटी बहन उिमला उनक छोटी बहन होने
के साथ-साथ बहत यारी सखी थ । उनके महल के प रसर के पास एक बहत सु दर और िवशाल
उपवन था। िविभ न पेड़ पौध से भरे इस उपवन म एक छोटा सा सरोवर और भगवान िशव और
पावती का मि दर था।
सीता, बहधा िन य सायंकाल उिमला और अपनी सिखय के साथ यहाँ आती थ , अत: उस समय
उस जगह पर पु ष का आना विजत था। मि दर म जाकर पज ू ा करना और िफर कुछ देर सरोवर
के पास बैठकर सिखय से बात करना उ ह ि य था। उनके वयंवर क ितिथ और उसके िलये
ितब ध उनके िपता राजा जनक िनधा रत कर चुके थे। उसम मा एक िदन शेष था। शाम हो
चुक थी। सीता अपनी सिखय के साथ उपवन म आई ं।
दो अनजान युवक सरोवर के पास खड़े थे। सीता को आ य भी हआ और कौतहू ल भी। वे वयं
वह क गई ं और एक सखी को उनके स ब ध म जानकारी करने भेजा। थोड़ी देर म उन युवक
से बात करने के बाद वह सखी लौट आई। उसने बताया िक वे अयो या-नरे श दशरथ के पु थे
और नगर देखने िनकले, तो उपवन क शोभा से आकिषत होकर अ दर आ गए। उ ह पता नह
था िक अ दर आना विजत है। वे अपनी भल ू का पता लगते ही मा-याचना सिहत लौटने के िलए
उ त थे, िक तु वह उ ह यह कहकर रोक आई थी िक वह राजकुमारी से पछ ू कर आती है, उसके
बाद ही वे कोई िनणय कर। बड़े और यामवण के राजकुमार का नाम राम और छोटे, गौरवण वाले
उनके अनुज ल मण ह।
सीता ने राजा दशरथ क क ित सुन रखी थी। वे राजा दशरथ के पु ह, यह जानकर सीता
आ त हई ं... उ ह ने कहा,
‘‘उनसे जाकर कह दो िक वे कुछ देर तक यहाँ क सकते ह।'' िफर सहसा जैसे मरण हो आया
हो। उ ह ने पछ
ू ा,
‘‘ या तुमने, उनसे इस नगर म आने का कारण भी पछ ू ा?''
‘‘जी, वे कल होने वाले वयंवर को देखने आये ह।''
उ र सुनकर सीता सकुचा गई ं। बरबस उनक ि उन राजकुमार क ओर उठ गई, उ ह ने
देखा गौरवण का राजकुमार बहत सु दर था, िक तु सीता के मन को यामवण के राम अि तीय
लगे। वे उनके मुख क ओर देख ही रही थ िक सहसा राम ने भी उनक ओर देखा। पल भर के
िलए ि टकराई और सीता को ऐसा लगा जैसे िबजली सी क ध गई हो। अ ुत तेज से भरी हई
िन पाप आँख थ ।
सीता को रोमांच सा हो आया। उ ह लगा, ऐसे ने उ ह ने शायद कभी नह देखे थे। उन ने क
चमक उनके दय म उतर गई, वे अपने को रोक न सक । उ ह ने पुन: पलक उठाई ं और उन
अ ुत आभा वाले ने के वामी पर ि डाली। इस बार ने नह िमले। राम ने सकुचाकर ि
हटा ली थी। इसने सीता को राम के स पण
ू यि व पर ि डालने का अवसर िदया।
पीले व , याम रं ग, सुगिठत शरीर, वाभािवक तने हए सीने पर गजमु ा क माला, काले
और कुछ घँुघराले केश, म तक पर च दन का टीका और चेहरे पर तेज। वे उ ह पु षोिचत
सौ दय के मिू तमान तीक लगे। कुछ ण के िलये सीता कुछ खो सी गई ं, िफर एक सखी क े
ह क सी हँसी से उनका यान टूटा। उ ह ने देखा, सभी सिखय के मुख पर हँसी खेल रही थी।
वे समझ गई ं िक उन सबने उनक चोरी पकड़ ली है। वे शरमाई ं और तेजी से मि दर क ओर
बढ़ने लग । एक सखी, जो अिधक चंचल थी, बोली,
‘‘इतनी तेज चलोगी जनकलली?''
सीता ने इसम िछपे हए प रहास को समझा, बोल ,
‘‘नह , तुझे साथ ही रखँग ू ी।''
सीता के इस उ र से, सभी म हँसी क एक लहर सी दौड़ गई। हँसी क यह खनखनाहट राम
तक भी पहँची और बरबस उनक ि उस ओर चली गई। सीता अपनी सिखय के साथ मि दर
के पास तक पहँच चुक थ । मि दर क सीिढ़याँ चढ़ते-चढ़ते, उ ह ने मुड़कर देखा, तो ि एक
बार पुन: टकरा गई। राम इसी ओर देख रहे थे। ि िमलते ही सीिढ़य पर चढ़त सीता, ह के से
लड़खड़ाई ं, िफर सँभल गई ं। राम ठगे से थे। सहसा उनक ि ल मण क ओर गई। उनके होठ
पर ह क सी मु कान तैर रही थी, िजसे देखकर राम कुछ शरमा से गए, िफर ल मण का हाथ
थाम कर बोले,
‘‘चलो वापस चलते ह, ऋिषवर हमारी ती ा कर रहे ह गे।''
‘‘जैसी आ ा।'' कहकर ल मण दूर से ही मि दर को णाम कर भाई के साथ वापस चल िदये।
सीता, मि दर क सीिढ़याँ चढ़कर मि दर के ार तक पहँच चुक थ । भीतर वेश करने लग तो
एक सखी ने उ ह ल य कर कहा,
‘‘दशन तो हो ही चुके ह!''
सीता के चेहरे पर लािलमा दौड़ गई। उ ह ने बनावटी गु से से उसे घरू ा, तो सभी िफर हँस पड़ ।
उसने िफर कहा,
‘‘आज हम सबको भी मि दर म माँ से कुछ माँगना है।''
सीता ने चुपचाप सुना। बोल कुछ नह । िसर झुका िलया, िक तु मु कराहट उनके अधर पर भी
तैर गई।
‘‘सीते, पछ
ू ोगी नह , हम सब या माँगने वाली ह!'' उसने पुन: कहा।
‘‘नह ।''
‘‘चलो, म वयं ही बता देती हँ।''
‘‘नह रहने दो।''
‘‘ य , सुन तो लो।''
‘‘नह , या करना है सुनकर।’’
तब एक दूसरी सखी, पहली वाली को इंिगत कर बोली।
‘‘सीते, सुन लो, अ यथा इसके पेट म पीड़ा हो जायेगी।’’
‘‘होने दो, अ छा है।’’
इस पर पहली वाली, दोन हाथ ऊपर करके बोली।
‘‘भई, मुझे तो बताना है, कोई सुने या न सुने।’’ िफर उसने कहा,
‘‘हम माँगना है िक माँ, कल वयंवर म उस यामवण के अयो या के राजकुमार के अित र
और कोई उस िशव-धनुष को िहला भी न पाये।''
सभी सिखयाँ एक साथ बोल ,-‘‘हाँ, सचमुच! हम देवी माँ से आज यही माँगना है।''
सीता ने अपने बाय हाथ क मु ी से उस सखी क पीठ पर ह के से मारा और हँसते हए मि दर म
वेश कर गई ं। िशव और पावती के चरण म पु प अिपत िकये। िविधवत् पज ू ा क ; िक तु जब
अचना करने के िलये हाथ जोड़े तो वे समझ नह पा रही थ िक या कह, और िकन श द म
कह। उस थम ि के आकषण ने ही उ ह पल भर के िलये श द िवहीन कर िदया था। वे मा
ई र का यान करते हये ठगी सी खड़ी रह गई ं। सहसा उ ह लगा, पावती जी मु कराते हये कुछ
कह रही ह।
उ ह ने ने खोले और पावती जी क मिू त के मुख क ओर देखा। उ ह लगा, वह मिू त सचमुच
मु कराकर उ ह देख रही है। वे अपना िसर उनके चरण पर रखकर उठ , तो उनके दय म
संगीत, चेहरे पर चमक और मन म खुशी थी। सब कुछ पा लेने जैसा भाव िलये हए वे मि दर से
बाहर आइ, तो ि पुन: उस ओर उठ गई, िजधर राम और ल मण खड़े थे। िक तु वे वहांँ नह थे।
दय म कुछ धक् सा हआ, िफर लगा, जैसे वे िकसी पु य लोक से वापस आ गई ह। सिखय क
ओर देखा तो वे सभी हँस पड़ । उसी चंचल सखी ने कहा,
‘‘हम भलू ही गई थ जनकलली; यह तो चलो ठीक है, पर माता पावती से तो सब कुछ माँग
िलया, उसम तो कुछ नह भल ू ?''
सीता ने उसका हाथ पकड़कर कहा,- ‘‘चल, लेिकन आजकल तू बोलने बहत लगी है।''
‘‘ य , मने कुछ गलत कहा या?''
‘‘नह , बहत सही कहा... अब चल।''
बेला और रजनीग धा के फूल
हवा महक -महक सी
और रोशनी क िकरण के
झु ड दय म
िफर िफर मन
उपवन-उपवन
सा हो जाता है
सीता, सिखय सिहत लौटकर महल म आई ं, तो माँ ती ा करती िमल । बोल ,
‘‘बहत देर लगा दी बेटी; ि याँ तु हारी राह देख रही ह... अभी बहत सी र म बाक ह; जाओ
ज दी-ज दी सब परू ी करवा लो, कल तु हारा वयंवर है न।''
‘‘जी माँ।'' कहकर सीता आगे बढ़ तो वही चंचल सखी सीता के पास आकर धीरे से बोली,
‘‘कल जरा कम सजना, ऐसे ही उस साँवले राजकुमार क ि तुझसे हट ही नह रही थी।''
सीता का चेहरा इस बात को सुनकर लाल हो गया,
‘‘ब द कर बक-बक,'' कहते हए उ ह ने उसे ह के से ढकेल सा िदया।
सारी र म परू ी होते-होते राि हो गई। सीता को बहत थकान सी लग रही थी, िक तु वे बैठी हई
थ । माँ ने उ ह देखा तो बोल ,
‘‘सो जाओ जाकर; यहाँ तो रात भर कुछ न कुछ काय म चलते ही रहगे।''
सीता, माँ क आ ा पाकर उठ और अपने शयनक म आ गई ं। कुछ ि याँ झु ड म बैठकर गीत
गा रही थ । उनक आवाज सीता के क तक आ रही थ । सीता, शै या पर लेटकर वे गीत सुनने
लग । तभी उ ह अपने वयंवर के िलये रखी, अपने िपता क शत याद आ गई।
िशव का वह धनुष बहत िवशाल और भारी था, और छह पिहय वाले एक ब से म रखा रहता था,
िफर भी कई लोग िमलकर ही उसे िखसका पाते थे। सीता ने सुन रखा था, िक सती के िपता
राजा द ने य िकया था, िजसम उ ह ने िशव को नह बुलाया था। िपता का घर सोचकर, सती
िबना बुलाये वहाँ चली गई ं थ , िक तु उ ह आशा थी िक उनके िपता न केवल उनसे िशव के न
आने का कारण पछ ू गे अिपतु उनके न आने का उलाहना भी दगे; लेिकन द ने घर आयी बेटी
का वागत तो िकया पर िशव क चचा भी नह क ।
सती को िशव क यह उपे ा बहत खली, िक तु उ ह ने सोचा, संभवत: य क यतताओं के
कारण ऐसा हआ होगा, पर इन य तताओं के बाद िपता उ ह िशव के न आने का उलाहना
अव य दगे।
य ार भ हआ तो था के अनुसार सभी देवताओं के भाग िनकाले जाने लगे। सती को आशा थी
िक िशव तो उनके िपता के दामाद ह, उनका नाम ार भ म ही आयेगा। वे अ त तक ती ा
करती रह , िक तु देवताओं क उस सच ू ी म िशव का नाम आया ही नह ।
पित क इस उपे ा पर सती आ य, पीड़ा और ोध से भर उठ । उनका यह भाव तब और अिधक
ती हो गया, जब य स प न करा रहे ऋिषय म से एक ने द को धीरे से िशव का नाम छूट
जाने का मरण कराया, और द ने ऋिष से इसक उपे ा कर उ ह शा त रहने का संकेत
िकया।
सती ने यह देख िलया। अब वे िनि त प से जान गय िक उनके िपता ारा िशव क उपे ा भल ू
से नह अिपतु जानबझ ू कर क जा रही है। उ ह िशव क बात मरण हो आयी। उ ह ने सती को
यहाँ आने से रोकते हए कहा था िक उ ह िबना बुलाये वहाँ नह जाना चािहये।
वे िशव का यह अपमान नह सह सक । यहाँ आने क अपनी भल ू पर उ ह बहत ोभ हआ। वे
अपने थान पर खड़ी हो गय । कुछ पल के िलये चार ओर देखा, और िफर लोग कुछ समझ पाते
इसके पवू ही बहत तेजी से आगे बढ़ और य क अि न म वâू द गय ।
उनके ऐसा करते ही वहाँ हाहाकार मच गया। लोगोे ने बहत यास कर वह अि न तो बुझा दी,
िक तु सती न बच सक । यह समाचार िशव तक शी ही पहँच गया। वे अ यिधक पीड़ा और ोध
से भरे हए वहाँ पहँचे। द उनका थम कोप-भाजन बने। इसके बाद उ ह ने य का िव वंस कर
डाला और सती के शव को क धे पर ही लादकर िनकल पड़े ।
उसके बाद उ ह ने या िकया और वे कैसे शा त हए यह एक अलग कथा है, िक तु उ ह ने
शा त होने पर अपना धनुष भी देवताओं को दे िदया, जो देवताओं के ारा सीता के िपता जनक
के पवू ज िनिम के पु महाराज देवरात के पास धरोहर के प म रखवाया गया था। तभी से यह
धनुष सीता के प रवार म था।
एक बार, मा सात वष क अव था म सीता ने िकसी कारणवश वह धनुष हटाया, तो सीता क
शि देखकर उनके िपता ने यह कहा था िक वे सीता का िववाह उसी युवक से करगे, जो इस
धनुष पर यंचा चढ़ा सकेगा... और यह पर राम का चेहरा सीता के स मुख आ गया। सुगिठत
देहयि , तेजपण ू चेहरा, चमकते ने और वीरता के तीक लगते राम, या िवशाल धनुष पर
यंचा चढ़ा सकगे?
उ ह लगा, उनके िपता ने कुछ अिधक ही किठन शत रख दी है। उ ह यह भी समझ म नह आ
रहा था िक यिद िकसी अ य राजा या राजकुमार ने राम के यास करने से पवू ही उस धनुष पर
यंचा चढ़ा दी तो या होगा? या उ ह उसी से िववाह करना पड़े गा?
वे मन ही मन ाथना करने लग िक राम और केवल राम ही इस किठन शत को परू ा करने म
सफल ह । ाथना करते-करते उ ह मरण हो आया िक उनक इस कामना पर मि दर म पावती
क मिू त मु कराती और आशीवाद देती हई लगी थी।
राि अिधक हो चुक थी। महल से आने वाले लोग के चलने-िफरने, बात करने और ि य ारा
िकये जाने वाले गायन क आवाज धीरे -धीरे कम होती जा रही थ , िक तु सीता क आँख से
न द बहत दूर थी। उ ह आ य हो रहा था िक न द य नह आ रही है। ऐसा अनुभव उ ह पहली
बार हो रहा था। मन अशा त तो नह था, पर शा त भी नह था।
वे उठ । िब तर पर बैठ गई ं। हाथ जोड़े और ई र का यान करने का िन य िकया; तभी उ ह
यान आया िक िशव को पाने के िलये माँ पावती ने िकतना अिधक तप िकया था। या उनका
मन भी कह इसी कार के तप के िलये तैयार है? वे मन ही मन तुितय म डूब गइ।
अपना शिश
अपने हाथ म
पाने क कामना िलये
गौरा क , िशव क
तुितय म डूबा मन
कह खो गया
कुछ देर बाद शरीर का भान समा हो गया। कुछ समय ऐसे ही बीता िफर ने खुल गये। उ ह ने
ह के से, हाथ को अपने मुख पर िफराया और लेट गय ।
सीता को अपनी बहन उिमला, मा डवी और ुतक ित का यान आया। उिमला उनक सगी
बहन, और मा डवी तथा ुतक ित उनके िपता के छोटे भाई और सांका य के राजा कुश वज क
बेिटयाँ थ । सांका य नगर के राजा सुध वा ने एक बार जनक क िमिथलानगरी को घेर िलया
था और उनसे िशव-धनुष और सीता क माँग क थी।
भयंकर यु हआ और सांका य का राजा सुध वा मारा गया। जनक ने वह रा य अपने छोटे भाई
कुश वज को दे िदया। कुश वज, सांका य म रहने चले गये, तो मा डवी और ुतक ित भी उ ह
के साथ चली गई ं। तब से उिमला उनक छोटी बहन ही नह , सब से ि य सखी भी थ ।
सीता ने वयं अपने ज म के बारे म सुन रखा था िक जब उनके िपता, य के िलये भिू मशोधन
करते समय हल चला रहे थे, तभी हल के अ भाग से भिू म पर िखंची रे खा से एक क या कट
हई। चँंिू क इस तरह क रे खा को सीता भी कहते ह, अत: उ ह भी सीता नाम िदया गया। बचपन
म तो वे कुछ समझती नह थ , िक तु थोड़ा बड़े होने पर यह बात उ ह बहत अ ुत लगने लगी,
इसिलये उ ह ने एक िदन अपनी माँ से पछू ा था,
‘‘माँ या म आपक कोख से नह , धरती से पैदा हई थी?''
इस पर माँ कुछ देर तक उनका मुख देखती रह , िफर हाथ पकड़कर उ ह अपने पास
ख चकर गोद म िबठाया और बोल ,
‘‘िकसी म म मत रहो बेटी; म ही तु हारी माँ हँ; हर ी धरती ही तो होती है।''
‘‘कैसे माँ? या आप धरती ह?'' सीता ने पछ ू ा था।
‘‘ ी, धरती कैसे होती है, यह तुम बड़ी होकर वयं समझ जाओगी।''
‘‘िफर िपता ी के हल चलाने वाली बात भी या िम या है?''
‘‘वह भी िम या नह है... इस समाज को चलाने म पु ष क अपनी भिू मका होती है; वह वही
कर रहे थे।''
‘‘माँ, मेरी कुछ समझ म नह आ रहा, आप या कह रही ह?''
‘‘मने कहा न बेटी, बड़े होने पर तु ह वयं ही सब समझ म आ जायेगा।''
आज िफर सीता का मन हो रहा था िक वे माँ से पछ ू िक ‘माँ या धरती भी सपने देखती है? या
धरती को सपने देखने चािहये?' आज उनक आँख य सपने देखने म लगी हई ह?
अचानक सीता को कुछ आहट सी लगी। उ ह ने आवाज दी,
‘‘कौन?''
‘‘म,'' उ र आया। यह उिमला क आवाज थी।
‘‘आओ, बहत अ छा िकया तुम आ गइ, िक तु इतनी रात तक तुम सोइ य नह ?''
‘‘वैसे ही... पता नह य न द नह आ रही थी; मने सोचा देख आप जाग रही ह या सो गई ं।''
‘‘उिमला, पता नह य , मुझे भी आज न द नह आ रही है।''
‘‘म समझ सकती हँ दीदी, न द आपके पास य नह आ रही है।''
‘‘अ छा! बड़ी ानी हो गई है।''
‘‘ ानी नह हँ, िक तु आपको न द न आने का कारण बता सकती हँ।''
‘‘बता,'' सीता ने कहा।
‘‘ वयंवर म थोड़ा सा ही समय बचा है, इसिलये रात भर जागकर ई र से ाथना करनी है िक
िशवधनुष, वे साँवले राजकुमार दशरथन दन राम ही उठा सक और कोई नह ,'' उिमला ने कहा।
‘‘ ाथना तो रात भर जागकर तुझे भी यही करनी है, उिमला।''
‘‘ य , मुझे या िमलना है?''
‘‘मै बताती हँ, तुझे या िमलना है... वह छोटा और गौरवण राजकुमार िकसी से कम नह है; यिद
राम ने धनुष पर यंचा चढ़ा ली, तो मेरा िववाह होने के बाद, िपता ी तुझे उसी छोटे राजकुमार
से याहने पर िवचार करगे और राम के ारा धनुष पर यंचा चढ़ाये िबना यह स भव नह
लगता।''
‘‘दीदी...,'' उिमला ने कहा।
‘‘अ छा उिमला, एक बात बता।''
‘‘ या!''
‘‘एक बार बचपन म माँ ने मुझसे कहा था िक ी धरती होती है; िफर यह भी कहा था िक म
बड़ी होकर इसका अथ समझँग ू ी। उनक यह बात मुझे याद है, और आज इस बात का अथ कुछ-
कुछ समझ म भी आ रहा है, पर एक दूसरा भी मन म उठ रहा है।''
‘‘वह या?'' उिमला ने पछ ू ा।
‘‘उिमला, या धरती सपने भी देखती है, और या धरती को सपने देखने चािहये?''
‘‘दीदी, म समझती हँ धरती को सपने देखने चािहये... धरती सपने देखती है, इसीिलये तो यह
कृित है।''
उिमला के इस उ र पर सीता मौन हो गई ं, पर उनके मन म बहत कुछ चल रहा था। तभी उिमला
ने सीता का मौन देखकर प रहास से कहा,
‘‘दीदी, मुझे लगता है, धरती, आसमान के सपन म खोई हई है।''
उिमला क इस बात पर सीता जोर से हँस पड़ । अपनी जगह से उठ , उिमला के पास आकर उनके
क धे को हाथ से ठे लकर बोल ,
‘‘हे महा ानी, अब जा, तू भी सो और सपने देख।''
‘‘ठीक है, म जाती हँ; सोऊँगी और सपने देखँगू ी, िक तु आप भी थोड़ी देर सो ल... ई र आपक
मनोकामना परू ी करे गा, यह मेरा आशीवाद है,'' उिमला ने हँसते हए कहा।
‘‘भाग यहाँ से'' कहते हए सीता ने तिकया उठाकर उिमला क पीठ पर ह के से मारी, िफर बोल ,
‘‘खुद को न द नह आ रही है और मुझसे बात बना रही है।''
‘‘ य होती ह; मने कुछ अनुिचत कहा या?'' कहते हए उिमला हँसती हई चली गई ं।
6. वयंवर
सुबह जब सीता क आँख खुल , पि य का गाना शु हो चुका था। िबछावन पर लेटे-लेटे सीता
को लगा, आज क सुबह कुछ अलग सी है। इतनी सुबह भी सारा महल जागा हआ और हलचल
से भरा हआ था। लोग वयंवर से स बि धत तैया रय म य त थे। उनके चलने, बोलने और काय
करने क विनयाँ बराबर आ रही थ ।
सीता उठ और िबछावन पर बैठ गई ं। मन म अपने वयंवर को लेकर उ क ठा, िच ता और
उ लास के िमि त भाव थे। उ ह लगा, जैसे दय म कुछ हो रहा है। यह उनके जीवन का अब तक
का सबसे मह वपण ू िदन था। उनके भा य का िनणय होना था। उ ह ने ने ब द िकये, दोन
हाथ जोड़े और मन ही मन गौरी को णाम कर उनक तुित करने लग ।
तुित समा हई। ने खोले तो देखा सामने माँ खड़ी ह और अ य त ेम से उ ह िनहार रही ह।
सीता ने अपने पैर िब तर से भिू म पर रखने के पवू भिू म को हाथ से छूकर म तक से लगाया,
िफर माँ को णाम करने लग , तो माँ ने उ ह पकड़कर सीने से लगा िलया और उनके िसर पर
हाथ फेरते हये बोल ,
‘‘सीते!''
‘‘माँ,'' सीता ने उ र िदया
‘‘तू ठीक तो है बेटी?''
‘‘हाँ माँ, ठीक हँ।''
‘‘आ बाहर चल; सभी ि याँ तेरी ती ा म ह।''
‘‘अ छा माँ।''
थोड़ी देर म एक प रचा रका उबटन लेकर आई। उबटन लगवाने के बाद सीता नानािद से िनव ृ
होकर आई ं, तो सिखयाँ उ ह, सजाने के िलये तैयार खड़ी थ । तभी माँ ने कहा,
‘‘देखो, उसका त है; उसे बहत परे शान मत करना।''
‘‘भख ू लगी ही कहाँ होगी,'' एक चंचल सी सखी ने अधर ितरछे करते हए धीरे से कहा। सभी हँस
पड़ । िफर सिखय ने उ ह सजाना शु कर िदया। सिखयाँ, सीता को इंिगत कर शरारत भरी
बात से उ ह छे ड़ती भी जा रही थ । सीता ने कुछ देर तक तो उ र िदये, िफर उ ह ने इन बात के
उ र देने ब द कर िदये। जब तक उ ह सजाने का काय परू ा हआ, सीता को बहत थकान सी
लगने लगी थी। माँ ने उनका चेहरा देखा तो उ ह सीता क थकान का आभास हो गया। उ ह ने
कहा,
‘‘सीता, जाओ बेटी, थोड़ा आराम कर लो।''
माँ क बात सुनकर सीता उठ , तो उनके साथ उनक बहन उिमला, मा डवी और ुतक ित भी हो
ल । सीता अपने क म पहँचकर िब तर पर लेट , तब उ ह महसस ू हआ िक सचमुच वे िकतनी
थक हई ह। तीन बहन उनके पास ही बैठ गई ं। उिमला ने हँसी म कहा,
‘‘आज सीता के साथ और िदन िबता ल; िफर तो यह अपने पित के घर चली जायगी और या
पता वहाँ जाकर हम याद भी रखगी या नह ।''
‘‘इसक आव यकता नह पड़े गी,'' सीता ने कहा। उनके इस उ र ने सबको च का िदया।
‘‘ य ?'' सबने लगभग एक साथ पछ ू ा।
‘‘ य िक म अकेली नह जाऊँगी; तुम सब को साथ ले जाऊँगी...
‘‘कैसे?’’
‘‘ वयंवर के बाद जान लेना।’’
सीता ने कहा। तीन बहन शरमाकर हँस पड़ , िक तु िकसी को नह पता था िक सीता क
अनजाने ही कही गई ये बात सच होने वाली है, और सचमुच सब सीता के साथ ही जायगी।
सीता जब थोड़ी देर िव ाम करने के बाद उठ , तो पता लगा वयंवर क सभा सज चुक थी।
बहत से राजाओं और राजकुमार से सभा थल परू ी तरह भर चुका था। ऋिष, मुिन सभा थल के
एक ओर ऊँचे थान पर अपने-अपने आसन पर िवराजमान थे। जनकपुरी क जा सभा थल के
अ दर तो थी, िक तु जो अ दर थान नह पा सके थे, ऐसे हजार यि सभा थल के बाहर
जमा थे। जन-सैलाब उमड़ा पड़ रहा था।
एक ऊँचे थान पर, फूल से िलपटा िशव जी का धनुष रखा था। सीता महल क ऊपरी मंिजल के
एक क म अपनी बहन और सिखय के साथ थ और वे सभी िखड़िकय से वयंवर-सभा क
गितिविधय को उ सुकतापवू क देख रही थ ।
उिमला उनके साथ ही थ । राम और ल मण िदखाई िदये तो उिमला ने सीता को छूकर उस ओर
इशारा िकया। गु िव ािम के साथ दोन भाई बैठे हए थे। सीता ने उ ह देखा; िफर एक ि
िशव जी के िवशाल धनुष पर डाली और कुछ उदास सी हो गई ं। उिमला ने उनका मन पढ़ िलया।
बोल ,
‘‘धनुष चाहे िजतना भारी हो, मेरा मन कह रहा है, केवल महाराजा दशरथ के पु वे साँवले
राजकुमार ही उसे उठाकर, उस पर यंचा चढ़ा सकग।''
सीता एक गहरी साँस लेकर हलके से मु कराय । आँख ब द करके एक बार पुन: गौरी और िशव
को याद िकया, िफर ने खोले और सभा भवन पर ि डाली।
िसंह क खाल का व पहने और श ा िलये, बहत ही शा त मु ा म रा स-राज रावण भी
वहाँ बैठा हआ था। उसका शरीर सौ व और बैठने का तौर-तरीका उसे और से अलग िदखा रहा
था। अ य राजाओं क भाँित उसके चेहरे पर उ ेजना के िच ह नह थे। उसके िनकट ही बाणासुर
बैठा हआ था। तभी राजा जनक, महल से िनकलकर सभा थल पर आये। लोग उनके स मान म
खड़े हो गये। उ ह ने आसन हण िकया और सीता को लाने का संकेत िकया।
एक सखी दौड़ती हई महल के अ दर गई और राजा जनक का स देश सुनाया। महल म हलचल
सी मच गई। सीता, दु हन के वेश म सिखय म िघरी हई बैठी थ । यह स देश सुनते ही सिखयाँ
उठ खड़ी हई ं। दो सिखयाँ उनके दोन तरफ हो गई ं। एक ने उनका हाथ पकड़ िलया, दूसरी ने
एक ह के व के टुकड़े से उनके मुख पर हये शंग ृ ार को एक बार िफर ठीक िकया। तभी माँ
ज दी से आकर उनके साथ हो गई ं। सभी ि याँ उ ह लेकर वयंवर- थल पर गई ं।
जो आसन सीता के िलये बनाया गया था, सीता जब उस पर बैठ , तो माँ उनके पीछे जाकर उनके
िसर पर हाथ रखकर, और सिखयाँ, उनके चार ओर खड़ी हो गई ं। उिमला पास ही खड़ी थ ।
सीता ने उनका हाथ पकड़ िलया। सिखय ने फूल से उनका शंग ृ ार िकया था और लाल रं ग के
व म उ ह सजाया था। उनके चेहरे पर काि त बरस रही थी और उनक शोभा वणनातीत थी।
ऐसा लग रहा था मानो सीता के प म वहाँ सा ात सौ दय िव मान था।
सीता के वहाँ उपि थत होकर आसन हण करने के प ात, महाराजा जनक के संकेत पर एक
भ ृ य ने खड़े होकर नगाड़े पर चोट क । सारी सभा म स नाटा छा गया। िफर भ ृ य ने ऊँचे वर म
उस िशव के धनुष का इितहास बताते हए राजकुमारी सीता के वयंवर के स ब ध म जनक के
िनणय को सुनाया और उपि थत राजपु ष से अपने बल और सौभा य को परखने का आ ान
िकया।
िशव धनुष क मिहमा सुनकर, बहत कम राजपु ष ने ही उस धनुष तक जाने का साहस िकया,
और जो गये भी, वे धनुष को िहलाने म भी असफल रहने के बाद िसर झुकाकर वापस अपने
थान पर बैठ गये।
बहत से नपृ को आशा थी िक रावण उस धनुष पर यंचा चढ़ाने का यास अव य करे गा,
िक तु रावण शा त भाव से बैठा रहा, उसने उठने का कोई यास नह िकया।
तभी महिष िव ािम का संकेत पाकर ीराम उठे । उनके उठते ही सीता के दय क धड़कन बढ़
सी गई ं। उ ह ने उिमला के हाथ को कुछ और कसकर पकड़ िलया। राम, म थर गित से चलते हए
धनुष तक आये, िफर एक ि अपने गु िव ािम के चरण पर डालकर उ ह मन ही मन
णाम िकया। भाई ल मण के चेहरे पर खुशी, उ साह और उमंग क लहर थ । राम ने एक ि
सारे सभा भवन पर डाली और िफर अनायास ही उनक ि उस ओर चली गई, िजस ओर सीता
थ।
सीता एकटक उ ह देख रही थ । ि टकराई, तो दोन ने सकुचा कर ि हटा ली। राम के
अधर पर हलक सी मु कराहट िदखी। उ ह ने िबना िकसी िवशेष यास के ही धनुष उठा िलया।
तणू ीर से बाण िनकालकर उस पर रखा और यंचा ख ची। अचानक एक अितभयंकर विन के
साथ धनुष टूट गया।
वहाँ उपि थत जन समुदाय एक बार काँप सा गया, िक तु धनुष-भंग होने क बात समझ म आने
के साथ ही ‘जय ीराम', ‘जय जनकलली' के तुमुल जयघोष से सभा थल गँज ू ने लगा। सीता के
दय म धक सी हई, साँस एक ण के िलये क और िफर एक गहरी और सुकून भरी साँस के
साथ उ ह ने राम क ओर देखा। वे उ ह तेजि वता क मिू त लगे। धनुष-भंग के बाद राम वह
खड़े थे।
राजा जनक का चेहरा स नता से जगमगा रहा था। वे अपना आसन छोड़कर उठ खड़े हए और
सीता को लाने का संकेत िकया। उिमला ने पास आकर सीता को उठाया। सिखयाँ उ ह लेकर
थोड़ा सा बढ़ , तो माँ उनके साथ हो गई ं। बहन, मा डवी और ुतक ित सिहत बहत सी, उ ह
घेरकर चलने लग । उिमला उनको सहारा देते हए राम के पास तक ले गय । उधर से ऋिष
िव ािम और ल मण आकर राम के पास खड़े हो गये।
सिखयाँ और प रचा रकाय थाल म मालाय रखकर लाई ं और उिमला ने उनसे लेकर एक-एक
माला राम और सीता के हाथ म पकड़ा दी। िव ािम के संकेत पर सीता एक कदम आगे
बढ़कर राम के पास आई ं। उ ह ने राम के गले म वरमाला डालने के िलये हाथ ऊँचे िकये। राम ने
अपनी गदन झुका दी। सीता ने राम के गले म और राम ने सीता के गले म माला डाली। वहाँ
उपि थत ि य ने समवेत वर म मंगल गान गाने ार भ कर िदये। पंिडत ने उ च वर म
मं का उ चारण शु कर िदया। लोग ने पुन: राम और सीता के जयकारे लगाने ार भ कर
िदये। वातावरण अ य त कोलाहलपण ू हो गया था।
इसी कोलाहल के म य रावण, श सिहत अपने आसन से उठा। जहाँ पर राम और सीता खड़े
थे, वहाँ पहँचकर उनके पैर पर ि डाली। वहाँ पर पु प क कुछ पंखुिड़याँ पड़ी थ । रावण ने
उनम से कुछ पंखुिड़याँ राम के पैर के पास से और कुछ सीता के पैर के पास से उठाइ, अपने
म तक से लगाई ं और चुपचाप उ ह अपने हाथ म समेटे, सभाभवन से बाहर िनकल गया।

7. अिन क आशंकाओं के म य
राजा जनक के आमं ण पर राजा दशरथ अपने शेष दोन पु , भरत, श ु न व अ य दरबा रय
सिहत बारात लेकर जनकपुरी आ चुके थे। ऋिष िव ािम के सुझाव के अनुसार राम और सीता
के िववाह के साथ ही उिमला और ल मण, व राजा जनक के छोटे भाई कुश वज क बड़ी पु ी
मा डवी के साथ भरत व छोटी पु ी ुतक ित के साथ श ु न का िववाह स प न हआ। कुछ
समय वहाँ िबताने के प ात् राजा दशरथ बारात वापस लेकर अयो या क ओर चले।
माग म कुछ दूर चलते ही भयंकर पि य के शोर के प म अपशकुन और मग ृ के दाय ओर से
िनकलने के कारण शुभशकुन दोन िमलने लगे। अपशकुन के कारण राजा दशरथ को िकसी
अिन क आशंका होने लगी, िक तु शुभशकुन के कारण उ ह यह भी लगा िक जो भी अिन
होगा, टल जायेगा। तभी बहत जोर क आँधी उठी और आसमान कािलमा से भर गया। बहत से
लोग, पशु और व ृ उस हवा के भीषण वाह से धराशायी हो गये।
राम और सीता रथ पर सवार थे। सीता, आँधी के वेग से भयभीत सी होकर राम के िनकट
िखसककर बैठ गइ। राम ने उनका हाथ थामकर मानो उ ह आ त िकया। राम के इस थम
पश से सीता रोमांिचत हो उठ । उनके ने के स मुख, उपवन म राम का थम दशन, िफर माँ
गौरी क मिू त पर सजी मु कुराहट अनायास ही छा गई। भावनाओं से भरी सीता ने ने ब द कर
िलये।
अचानक उ ह लगा, बहत तेज काश क धा है। उ ह ने ने खोल िदये। देखा, महान तेज वी
परशुराम वायुवेग से आ पहँचे थे। उनका अपना वयं का तेज तो था ही, वे िव त ु के समान
चमकते अपने फरसे के साथ ही एक िवशाल धनुष और बाण भी िलये हये थे। जटाय खुली हई थ
और मुख पर अ यिधक ोध िवराजमान था।
सीता आशंिकत हो गई ं। उ ह ीराम के ारा िशवधनुष टूटना मरण हो आया। उ ह ने सुन रखा
था, इस िशवधनुष से परशुराम जी को बहत अिधक लगाव है। वे समझ गई ं िक अव य ही
िशवधनुष का टूटना ही परशुराम जी के ोध का कारण है, और वे इसी कारण यहाँ उपि थत हए
ह। उनके परा म क कहािनयाँ उ ह ने सुनी थ । उ ह लगने लगा िक िन य ही वे ीराम पर
अपना ोध उतारगे।
अिन क आशंकाओं ने सीता का मन घेर िलया। तभी उ होन देखा, उनके सुर, राजा दशरथ
आगे बढ़कर ऋिष क अ यथना कर रहे ह, िक तु ऋिष बराबर गु से म कुछ कहते जा रहे थे। दूर
होने के कारण वातालाप सुनाई नह दे रहा था। राम का यान भी उसी ओर था। वे उस थल पर
जाने के िलये उठे तो सीता कुछ बोल नह , िक तु आशंका त ने से उनक ओर देखा।
राम ने आ त करने के भाव से उनका हाथ दबाया और रथ से उतरकर िपता दशरथ और
परशुराम क ओर बढ़ने लगे। सीता ने उ ह रथ से उतरते देखा। ल मण भी अपने रथ से उतरे और
भाई के पीछे -पीछे चल पड़े । भरत और श ु न यह देखकर अपने रथ को आगे ले आये।
सीता यह देख रही थ िक कुछ देर के बाद सुर दशरथ एक ओर शा त खड़े हो गये ह, िक तु
ीराम और परशुराम म कुछ संवाद हो रहा है।
राम, शा त भाव से उ र दे रहे थे, िक तु परशुराम बराबर ोिधत ही लग रहे थे। ोध क
अव था म ही परशुराम ने अपने क धे पर टँगा धनुष हाथ म िलया और एक बाण अपने तण ू ीर से
िनकाला। यह देखकर सीता के दय क धड़कन बढ़ गई ं। य िप राम के बल और कौशल का
प रचय उ ह धनुष-य के समय िमल चुका था, िक तु िफर भी मन िवचिलत हो रहा था। उ ह ने
अपने सुर और देवर क ओर देखा।
ल मण के मुख पर कुछ उ ेजना के भाव थे, िक तु सभी शा त खड़े थे। यह देखकर उ ह ने
अनुमान लगाया िक अव य ही िच ता क कोई बात नह होगी। तभी उ ह ने देखा, परशुराम
अपने साथ लाया धनुष और तीर ीराम क ओर बढ़ा रहे ह। राम ने उसे िलया, बाण को धनुष पर
रखकर यंचा चढ़ाकर उसे आसमान क ओर िकया। वे तीर छोड़ने ही वाले थे िक परशुराम ने
हाथ उठाकर राम को तीर छोड़ने से रोका। सीता ने देखा इसके साथ ही परशुराम का ोध ऐसे
शा त हो गया, जैसे अि न पर पानी पड़ गया हो।
उ ह ने ीराम को णाम िकया और िजस कार आये थे, वैसे ही वापस हो गये। उनके जाने के
बाद दशरथ और ल मण अपने-अपने रथ क ओर बढ़ गये।
8. साँसो म गीत
राम, म थर गित से आकर रथ म सीता के पा व म बैठ गये। सीता ने उनके मुख क ओर देखा।
वे पहले जैसे ही शा त थे, िक तु अधर पर ह क सी मु कराहट थी। सीता ने पछ ू ा,
‘‘ या बात थी, सब कुशल तो है?''
‘‘आप िचि तत न ह ; ऋिष, िशव का धनुष टूटने से ोिधत थे, िक तु अब शा त होकर गये ह।''
‘‘आपने उनसे या कहा?'' सीता ने पछ ू ा।
‘‘वे एक धनुष िलये हये थे; उ ह ने वह धनुष मुझे िदया और बोले िक यिद मुझम सचमुच िशव के
धनुष को तोड़ने जैसा परा म है, तो इस धनुष से तीर चलाकर िदखाऊँ। मने उनसे वह धनुष ले
िलया और उस पर बाण रखकर यंचा ख ची ही थी, िक उ ह ने मुझे रोक िदया और इसके बाद
वे पता नह य , मुझे ही णाम कर वापस हो गये।''
यह सुनकर सीता को आ य लगा, िक तु साथ ही यह भी लगा िक राम अव य ही अ ुत ितभा
के धनी ह।
सीता और राम के म य यह थम स भाषण था। राम का ग भीर, पु षोिचत और आ त करने
वाला वर, सीता को बहत अ छा लगा। उ ह अपने भा य पर गव सा होने लगा। उ ह ने िफर कुछ
नह कहा।
वातावरण सामा य हो चुका था। बारात, म थर गित से पुन: अयो या क ओर बढ़ने लगी, िक तु
कुछ दूर चलने के उपरा त ही शाम िघरने लगी, तो राजा दशरथ ने िनदश िदया िक थोड़ा तेज
चला जाये, तािक राि होने से पवू िकसी डे रा डालने यो य थान तक पहँचा जा सके। थोड़ी देर
म ही ऐसा थान आ गया। बारात ने वहाँ पर डे रा डाला और सैिनक अ -श लेकर चार ओर
तैनात हो गये। राम ने िशिवर तक जाने के िलये सीता को हाथ थामकर रथ से उतारा और कहा,
‘‘सीते!''
सीता ने सर झुकाये झुकाये ही उ र िदया, -‘‘जी।''
‘‘मेरी ओर देखो।''
सीता ने संकोच से उनक ओर देखा। ि िमली तो राम ने कहा,
‘‘सीते, तु ह पाना मेरा सौभा य था और भगवान िशव क मुझ पर बहत बड़ी कृपा थी िक उ ह ने
मुझे इतनी शि दी िक म उनका धनुष उठा सका।''
सीता ने ये श द सुने तो उ ह लगा िक उनका जीवन-साथी अ यिधक वीर होने के साथ ही
िकतना िवन भी है। उनके दय क धड़कन बढ़ सी गई। वे कहना चाहती थ िक आपको पाने
के िलये तो मने माँ गौरी से पता नह िकतनी ाथनाय क थ , िक तु धीरे से केवल इतना ही
कह सक ,
‘‘मेरा सौभा य,'' और उ ह ने पुन: सर झुका िलया
‘‘सीते, आपक उस वािटका म म भल ू से पहँच गया था; िक तु आज मुझे लग रहा है िक म
जीवन भर उस सु दर भल ू का ऋणी रहँगा। आपको देखने के बाद जीवन म थम बार मेरे अ दर
िकसी ी के ित आकषण जागा था।'' राम ने कहा।
सीता ने कहना चाहा िक वे वयं भी उस राि सो नह सक थ और यह उनके जीवन म पहली
बार हआ था; िक तु ल जा ने उनको कुछ भी कहने से रोक िदया। उनका चेहरा लाल हो उठा
और साँस ती हो गई ं।
‘‘सीते, आप कुछ कहगी!'' राम ने पुन: कहा।
‘‘ या कहँ।''
‘‘अ छा एक बार मेरी ओर देिखये।''
सीता ने पलक उठाई ं, राम क ओर देखा। राम ने कहा,
‘‘आपके इन बोलते से ने के सौ दय के वणन के िलये हर उपमा बहत छोटी होगी... आज
पहली बार मने आपका वर सुना है और म परू े िव ास से कह सकता हँ िक बाँसुरी के, वीणा के,
कोयल के और छोटे ब च क िन छल हँसी के वर क सि मिलत मधुरता भी आपके वर क
मधुरता क बराबरी नह कर सकती।''
राम क इस बात पर सीता ने कोई उ र न दे कर पलक झुका ल । उनका मुख एक बार पुन:
रि म हो उठा। राम ने सीता का हाथ अपने हाथ म लेकर कहा,
‘‘सीते!''
‘‘हँ,'' कहते हए सीता ने ने उठाये।
‘‘म, तु ह वचन देता हँ िक मेरे जीवन म तु हारे अित र दूसरी ी कभी भी नह आयेगी
और.....''
‘‘और या?''
‘‘और हमारे सुख-दु:ख कभी अलग नह ह गे।''
इस वातालाप म कब सीता के िलये ‘आप' के थान पर ‘तुम' आ गया, इसका राम को पता ही
नह चला; िक तु अपने िलये स बोधन म आये इस प रवतन पर सीता का यान गया। उनका
मन आन द से भर उठा। उ ह ने इसे अनुभव करते हए िसर झुकाया, ने ब द िकये और अधर
को दबाते हए, मु कराहट को िछपाने का एक असफल यास िकया।
अभी-अभी तो
उनक उन पर ि पड़ी थी
और दय क वीणा के
सब तार बज उठे
िफर संगीत उठा मन म
िफर न ृ य छा गया
सीता नह कह सकती थ िक राम क बात ने उनको कहाँ पहँचा िदया था। उ ह ने राम क ओर
देखा तो उ ह लगा, जैसे बड़े से नीले आकाश म एक छोटी रोशनी क िकरण जैसी वे, उस
ग रमामय यि व म कह खो चुक ह। इसी खोये हये मन के साथ स मोहन जैसी ि थित म
उ ह ने राम क हथेली थामी, अपने म तक से लगायी और बोल ,
‘‘मेरे सौभा य, म मन वचन और ाण से सदा-सदा के िलये आपक और केवल आपक हँ।''
क- ककर चलती बात का वाह, भोर क पहली िकरण के साथ िकसी पंछी के वर से टूटा।
बारात के, अयो या क ओर थान करने क तैया रयाँ होने लग । थोड़ी देर म सीता का रथ भी
चल पड़ा, िक तु सीता के मन म िवचार का वाह अभी भी चल रहा था। उनक बहन तो उनके
साथ ही थ , िक तु सीता को िपता ी जनक और माँ क बहत याद आ रही थी।
सुबह िपता के िलये अ पाहार लेकर वे वयं जाती थ , तब वे उ ह बहत सी बात बताया करते थे।
सीता जानती थ िक उनके िपता िवदेह कहे जाते ह और उनक पु ी होने के कारण ही बहत से
लोग उ ह वैदेही भी कहते ह।
सीता ने उ ह बहत पास से देखा था। वे सचमुच ही िवदेह थे। इतना ऐ य होते हए भी उनका
खान-पान, रहन-सहन बहत सादा और वभाव बहत सरल था। िकतनी भी मू यवान व तु हो,
उ ह उससे कोई मोह नह था। व तुओ ं के ित मोह-रिहत होना, उ ह ने अपने िपता से ही सीखा
था।
सहसा उनका यान अपनी ससुराल क ओर चला गया। सुर दशरथ का वभाव उ ह अपने
िपता क भाँित ही सरल लग रहा था। अपने देवर म ल मण, उ ह अपने बड़े भाई राम से बहत
अनुराग रखने वाले लगे। उनको, उ ह ने राम के साथ वािटका म; िफर पुन: परशुराम के साथ
संवाद होते समय भी उनके साथ खड़े देखा था। वे उ ह राम के ित अ यिधक ावनत, िक तु
कह कुछ ोधी वभाव के लगे थे।
अपने देवर , भरत और श ु न के बारे म वे कोई िवचार अभी तक नह बना पाई थ , और अपनी
तीन सास के बारे म भी उ ह अिधक कुछ पता नह था। वे उनका मन, िवशेषकर राम क माँ
कौश या का मन कैसे जीत पायगी, इसको लेकर भी उनके मन म बहत िवचार आ-जा रहे थे।
उ ह ने एक बार ि उठाकर राम क ओर देखा और बहत स बल महसस ू िकया।
सीता िवचार म खोई हई थ । अचानक िविभ न कार के वा यं एवं मंगल गान क विन से
उनका यान भंग हआ। उ ह ने देखा, सड़क साफ थ , उन पर जल का िछड़काव हो रहा था।
दोन ओर खड़ी हई भीड़ उन पर पु प क वषा कर रही थी एवं जयकारे लगा रही थी।
वे समझ गई ं िक अयो या आ गई है। उ ह ने देखा, भ य भवन , चौड़े माग और अयो या के
िनवािसय के मुख एवं व से यह एक सम ृ नगर लग रहा था। उ ह यह नगर कुछ-कुछ
अपनी िमिथला जैसा ही लगा।
थोड़ी देर म ही उ ह आभास होने लगा िक राजमहल आने वाला है। उनके दय क धड़कन बढ़ने
लग । शी ही महल आ गया। उनक सास एवं अ तःपुर क ि य ने उनका वागत िकया।
िविवध र म हइ और अ य नववधुओ ं के साथ ही वे भी महल के अ दर चलने वाले अनु ान म
खो गइ।
9. और... एक मोड़
सीता के िववाह के लगभग छह मास हए थे। अि न मास म उनका िववाह हआ था और चै चल
रहा था। ससुराल म बहत अिधक नेह पाकर उनके िदन अितशय स नता म यतीत हो रहे थे।
माता कैकेयी का उन पर िवशेष अनुराग था। एक शाम, वे राम के साथ महल के उपवन म बैठी
थ - न िवशेष गम थी न सद । राम वयं ही सीता को वहाँ लेकर आये थे। हमेशा शा त और
स निचत िदखाई देने वाले राम आज ग भीर से लग रहे थे। सीता को लगा, अव य कुछ िवशेष
है। वे राम के मुख क ओर िनहारते हए बोल ,
‘‘कुछ िवशेष है या?''
‘‘हाँ सीते! वही बताने के िलये तु हारे साथ यहाँ आया हँ'' राम ने कहा।
‘‘िफर बताइये न; म य हँ।''
‘‘तुम भावी राजमिहषी बनने वाली हो।''
‘‘अ छा! अथात् आप का राजितलक होने वाला है?''
‘‘हाँ सीते, िपता ी मुझे युवराज घोिषत करना चाहते ह।
‘‘ऐसा कब कहा उ ह ने?''
‘‘अभी थोड़ी देर पवू ही मुझे बुलाकर उ ह ने कहा िक उनक अव था काफ हो गई है और वे
रा य के कायभार से िमत हो जाते ह, अत: वे चाहते ह िक म राजकाय को अिधक समय देकर
उनसे भली-भाँित प रिचत हो जाऊँ, तािक उनके बाद म इस रा य को सँभाल सकँ ू ।''
‘‘िक तु आप तो वैसे भी राजकाय म िनयिमत उनका सहयोग करते ही रहते ह।''
‘‘हाँ सीते, तुम ठीक कह रही हो; यह बात मने उनसे कही थी, िक तु वहाँ गु विश , सुम व
अ य िविश यि भी थे; वे भी िपता ी क बात का समथन कर रहे थे और मुझे उनक बात
माननी पड़ी।''
‘‘आप युवराज बनगे, यह समाचार मेरे िलये शुभ है, िक तु अभी िपता ी पण ू व थ और स म ह
और भरत व श ु न भी यहाँ नह ह... अपने निनहाल गये हये ह, ऐसे म यह आयोजन या उिचत
होगा? िपता ी को इतनी शी ता य है?''
‘‘यह मने भी उनसे िकया था।''
‘‘िफर या कहा उ ह ने?''
‘‘सीते, वे कह रहे थे िक आजकल उ ह बहत अमंगलकारी व न आ रहे ह; योितिषय के
अनुसार भिव य म उनका वा य ठीक न रहने के संकेत ह... वे तो यह भी कह रहे थे िक
जीवन का कोई भरोसा नह ; जो शुभ हो उसे शी ाितशी कर डालना चािहये।''
‘‘शायद उनके मन म यह भी हो िक उनके बाद रा य के उ रािधकार के पर कोई िववाद न
खड़ा हो।''
‘‘हाँ, अव य ही यह बात भी उनके मन म हो सकती है, य़ िप मुझे नह लगता, मेरे भाई िकसी
भी कार का िववाद खड़ा करने क बात सोच भी सकते ह।''
‘‘िक तु म समझ नह पा रही हँ िक यह समाचार सुनकर हँसँ ू या रोऊँ।''
‘‘ य सीते?''
‘‘आप युवराज बनगे, यह मेरे िलये अ य त सुखद समाचार है, िक तु िपता ी के वा य के
स ब ध म जो आशंकाय योितषी य कर रहे ह, वे िन य ही दय िवदारक ह।''
‘‘सीते, तुम जानती हो िक म युवराज बनने के िलये िब कुल भी य नह हँ, िक तु िपता ी ने
अ त म इसे अपना आदेश कहकर मुझे यह ताव वीकार करने पर िववश कर िदया है।''
‘‘समझती हँ...'' कहकर एक गहरी िनः ास छोड़कर सीता चुप हो गई ं। इसके बाद राम और
सीता शा त बैठ गये, मानो और कुछ कहने के िलये शेष न हो, तभी ितहारी ारा महामं ी
सुम के आने क सच ू ना िमली। राम ने उससे, उ ह वह बुला लाने के िलये कहा। सुम को
आते देख राम और सीता उनके स मान म खड़े हो गये और पास आने पर अिभवादन िकया।
सुम ने हाथ जोड़कर उनसे िनवेदन िकया िक महाराज दशरथ ने त काल ही उन दोन को
महल म बुलाया है। राम और सीता उठे और उनके साथ ही चल पड़े ।
महल म पहँचकर उ ह ने देखा, वहाँ राजा दशरथ, गु विश तथा कुछ अ य िविश यि
बैठे हए थे और उ ह क ती ा थी। राजा दशरथ ने राम को वह िबठाकर, सीता को कौश या
के क म जाने के िलये कहा।
सीता ने धीरे से आँख उठाकर, राजा दशरथ के शरीर और मुख पर ि डाली। उ ह उनके मुख
पर कुछ िच ता तो िदखी, िक तु शरीर म अ व थता जैसी कोई बात नह लगी। वे दशरथ के
आदेशानुसार कौश या के क क ओर बढ़ गई ं और वहाँ पहँचकर माता कौश या के चरण-
पश िकये। कौश या ने उनका हाथ पकड़कर नेह से अपने पास िबठा िलया। उनके चेहरे पर
मु कान थी। बोल ,
‘‘सीते, राम युवराज बनने वाले ह।''
‘‘हाँ, ऐसा कुछ देर पवू वे भी कह रहे थे; िक तु माँ, इतनी शी ता या थी? िफर भरत व श ु न
भी तो इस समय यहाँ नह ह।''
‘‘हाँ, भरत व श ु न क ती ा करने क बात मने भी महाराज से क थी, िक तु उनका िवचार
था िक शुभ-काय िजतनी शी हो कर डालना चािहये; पता नह कब या यवधान खड़ा हो
जाये। उनक इस बात से म चुप हो गई।''
‘‘यह तो ठीक है, िक तु मेरे मन म पता नह य , कुछ घबराहट सी है।''
‘‘ य बेटी, िकस बात क शंका है तु ह? राम मेरे पु ह, इसिलये नह कह रही हँ, िक तु वे
सबसे बड़े पु होने के साथ ही बहत गुणी, िव ान, वीर और सबके ि य भी ह; वे राजा होने के
अिधकारी भी ह और परू ी तरह से यो य भी, िफर तु ह िकस बात क शंका हो रही है सीते?''
‘‘माँ, आपने िजतनी भी बात कही, सभी उिचत ह, िक तु मेरा मन य आशंका से त है पता
नह ?''
‘‘अशा त मत हो बह; शुभ काय के म य शंका करना उिचत नह है।''
‘‘ठीक है माँ,'' कहकर सीता चुप हो गई ं। तभी ितहारी ने आकर सच ू ना दी िक राजा दशरथ व
राम आ रहे ह। कौश या व सीता दोन थोड़ा सावधान सी हो गई ं। दशरथ और राम आये तो
कौश या ने उ ह आसन िदये और वयं भी बैठ गई ं, िक तु सीता एक ओर िसमटी सी खड़ी रह ।
दशरथ ने उ ह देखा और बोले,
‘‘सीते, बेटी खड़ी य हो!''
‘‘जी'' कहते हए सीता एक ओर बैठ गई ं। दशरथ ने कौश या को ल य कर कहा,
‘‘कौश या, कल पु य न है; महिष विश कह रहे थे िक बहत शुभल न है, अत: म चाहता हँ
िक कल ही राम का युवराज पद के िलये अिभषेक हो जाये।''
‘‘अचानक इतनी बड़ी खुशी और इतना बड़ा समारोह; मेरी तो स नता का िठकाना नह है,
िक तु या इतनी शी सारी तैया रयाँ परू ी हो जायगी?'' कौश या ने कहा।
‘‘सब हो जायेगा कौश या! महाम ी सुम ने सभी को िविभ न िज मेदा रयाँ बाँट दी ह। महिष
विश ने कहा है िक राम और सीता कल ातःकाल से ही उपवास रखगे। महिष वयं, कल
ातःकाल ही अिभषेक म होने वाले अनु ान के िलये आ जायगे... उस समय हम सब को तैयार
िमलना है।''
‘‘ठीक है, हम तैयार ही िमलगे; िक तु भरत और श ु न के िबना यह समारोह अधरू ा सा रहे गा...
मेरा आपसे एक बार और अनुरोध है िक उ ह आ जाने द।''
‘‘उनक कमी सभी को खल रही है, िक तु सब कुछ तय हो गया है, अब िवल ब उिचत
नह ,''दशरथ ने कहा।
‘‘ठीक है, िक तु आपने बहन कैकेयी और सुिम ा क सहमित तो ले ली है न?''
‘‘महिष विश और सुम से मं णा के बाद सीधे यह आ रहा हँ, अत: उनसे बात करने का
समय नह िनकाल सका हँ, िक तु मुझे िव ास है िक इतना शुभ समाचार सुनकर, उ ह भी
अित स नता होगी; िफर कैकेयी का तो राम पर िवशेष ेम है... सुबह उन दोन क सहमित ले
लँगू ा,'' कहते हए दशरथ क ि अनायास सीता पर चली गई। उ ह लगा, वे कुछ कहना चाहती
ह, अत: बोले,
‘‘बेटी सीते, मुझे लगता है तुम कुछ कहना चाहती हो!''
‘‘िपता ी, भरत और श ु न नह ह; उनके िबना यह समारोह िकतना अधरू ा सा लगेगा... मुझे
लगता है िक उनक ती ा कर लेते और उनके आने के प ात् िकसी शुभ मुहत म यह काय
स प न होता तो या उिचत नह होता।''
‘‘तुम ठीक कह रही हो बेटी; मुझे तुमसे ऐसी ही आशा थी; इससे ये पता लगता है िक तु हारे मन
म अपने देवर के िलये िकतना थान है, िक तु बेटी सब कुछ िनधा रत हो चुका है... उसे टाल
कर म इस काय के िलये और ती ा भी नह करना चाहता।''
‘‘जी,'' कहकर सीता शा त हो गई ं।
दशरथ, कौश या के क से बाहर आये, िक तु राम और सीता को कौश या ने रोक िलया और
िफर दूसरे िदन सुबह के िलये कुछ िनदश देकर उ ह अपने क म जाकर सोने के िलये कहा।
सुबह तो रोज जैसी ही थी, िक तु सीता उठ तो उ ह लगा, आज क भोर का सरू ज कुछ अिधक
लाल है, और कुछ अिधक काशमान भी; पर साथ ही उ ह लगा िक वह कुछ अिधक तप भी रहा
है। वे उठ । िन य के काय िनपटाने लग । शी ही तैयार होकर उ ह ीराम के साथ िपता ी
दशरथ क आ ानुसार राजमहल पहँचना था। राम भी तैयार होने लगे। वे लगभग तैयार हो चुके
थे, तभी ितहारी आया। उसने कहा,
‘‘महामं ी सुम दशन करना चाहते ह।''
‘‘उ ह आदरपवू क िबठाओ; हम लगभग तैयार ही ह,''राम ने सहज भाव से कहा, िक तु सीता के
मन म उठा िक कह कोई िवशेष बात तो नह है; हम तो वयं ही वहाँ आ रहे थे, िफर सुम के
इस अचानक आगमन का या अथ हो सकता है? पर उ ह ने कुछ कहा नह ।
थोड़ी देर बाद राम और सीता, सुम से िमले तो उ ह ने बताया िक महाराज ने उ ह अित शी
बुलाया है। राम ने कहा, -‘‘चिलये।'' िक तु इस समाचार पर उ ह भी कुछ आ य हआ। सीता भी
साथ म चलने लग , तो सुम ने कहा,
‘‘ मा कर देिव, महाराज ने केवल ीराम को बुलाया है।''
राम, सुम के साथ चले गये। सीता वह ककर राम क ती ा करने लग । प रि थितयाँ
अनपेि त शी ता के साथ बदल रही थ । सीता समझ नह पा रही थ , िक तु पता नह य
उनका मन इस राज-ितलक करण के ार भ से ही बहत आशंिकत था, और अब यँ ू ात:काल म
जब वे और राम वयं तैयार होकर वहाँ जाने ही वाले थे, महाराज दशरथ ारा सुम को भेजकर
अकेले राम को बुलवाना, उ ह बहत बेचन ै कर गया। वे ई र से मंगल-कामनाय करती हइ
सुम के साथ जाते हये राम को देखती रह ; िफर वह बैठकर बहत आतुरता से उनके लौटने
क ती ा करने लग ।
राम को आने म देर हई, तो वे उठकर टहलने लग और कुछ देर तक टहलने के बाद मान थक
गयी ह और कुछ समझ म न आ रहा हो, इस भाव से िसर िहलाकर िफर बैठ गय । य - य
समय यतीत होता जा रहा था, उनक याकुलता बढ़ती जा रही थी।
राम बहत देर से वापस आये। सीता त काल उनके पास आइ। राम के मुख क ओर देखकर बहत
अधीरता से बोल ,
‘‘बहत देर लग गई; या बात हो गई थी? आपका मुख बता रहा है िक कुछ िवशेष अव य है...
यह अ ुत संयोग है िक आप उदास भी लग रहे ह और मु करा भी रहे ह।''
‘‘सीते, िपता ी ने मुझे बुलाकर कहा, माँ कैकेयी चाहती ह िक म नह , भरत युवराज बन'' राम ने
कहा।
सीता के मन म उठा ‘बस'। उ ह ने स तोष क साँस ली, िफर कहा,
‘‘ या आपको युवराज पद न िमलने क पीड़ा है?''
‘‘नह ; सीते; मुझे इस पद क कोई अिभलाषा न थी, न है और शायद भिव य म भी नह होगी;
िफर भरत से मुझको िजतना नेह और आदर िमलता है, उसको देखते हये यह मेरे िलये हष का
िवषय ही है।''
‘‘िफर...''
‘‘माँ कैकेयी यह भी चाहती ह िक म शी ाितशी द डक-वन चला जाऊँ और चौदह वष तक
वह रहँ,'' राम ने कहा।
‘‘ओह'' कहकर सीता ने ने ब द कर िलये। पल भर म ही बहत कुछ प हो गया।
‘‘माँ ऐसा य चाहती ह, यह म नह समझ पा रहा हँ। सीते, या वे यह सोचती ह गी िक यहाँ
रहकर म भरत क राह म मुि कल पैदा क ँ गा।''
‘‘वे ऐसा न भी सोचती ह , तो भी यह वाभािवक है िक छोटा भाई राजा होगा, तो राजा होने के
कारण उसे बड़े भाई को आदेश भी देने ह गे; यह उसे बहत ही असहज लगेगा और िफर छोटे भाई
से आदेश लेने म बड़े भाई का अहम् कभी भी आड़े आ सकता है... कुल िमलाकर यह एक अि य
ि थित को ज म देगा; शायद यही सोचकर वे चाहती ह िक आप पया समय के िलये यहाँ से दूर
ही रह। माँ न भी कहत तो भी, इसके बाद इस थान को छोड़ देना ही हमारे िलए उिचत होता,''
सीता ने कहा।
‘‘तुम ठीक ही कहती हो।''
‘‘िक तु िपता ी...''
सीता के इस के उ र म राम मौन रहे , िक तु पीड़ा के भाव उनके चेहरे पर झलक उठे ।
‘‘हम शी ता करनी चािहये, तािक िपता ी को पुन: िकसी अि य ि थित का सामना न करना
पड़े ।''
‘‘सीते, इस हम श द से तु हारा या अिभ ाय है?''
‘‘बस इतना ही िक म भी साथ चलँग ू ी; जहाँ आप ह गे, वह सीता का संसार होगा... म आपसे
अलग नह रह सकती। मुझे भी वन बहत अ छे लगते ह। सव बड़े -बड़े व ृ , कह नदी, कह
सरोवर, िविभ न पशु प ी, उस हरे -भरे ाकृितक वातावरण म अपनी छोटी सी कुटी और आपक
बड़ी भुजाओं का सहारा, सब कुछ क पना से अिधक सुखकारी है।
‘‘देखो, दि ण िदशा म ि थत यह द डकवन जंगली, िहंसक जानवर और मायावी रा स का
े है। यह िजतना सु दर है उतना ही अिधक खतरनाक है। वहाँ जीवन बहत क सा य होगा;
और वहाँ चौदह वष तक रहने का आदेश राम को िदया गया है, सीता को नह ।''
‘‘िजस िदन हमने गाँठ बाँधकर अि न के साथ फेरे िलये थे, उसी िदन राम और सीता का अ तर
समा हो गया था। यह गाँठ सुिवधानुसार बाँधने और खोलने के िलये नह लगाई गई थी। जो यह
समझते ह िक यह वनवास केवल राम को िदया गया है; सीता तो आराम से महल म ही रहे गी, वे
सीताराम को ख ड म बाँटकर देखने का यथ यास कर रहे ह।''
‘‘सीते, यथाथ क भिू म कठोर होती है; तुम भावुक हो रही हो।''
‘‘नह ; क क िकसी भी घड़ी म सीता पहले और राम बाद म ह गे... यह िनरी भावुकता नह है,
अिपतु सीताराम क या या है; यही यथाथ है।''
इसके बाद राम के पास कहने के िलये कुछ भी नह बचा था उ ह ने, सीता को साथ ले चलने क
मौन सहमित दे दी।
तभी ितहारी ने सच ू ना दी िक ल मण आये हए ह। राम, क से बाहर आये तो पीछे सीता भी
आई ं। ल मण बहत ोध म लग रहे थे। वे राजमहल से भरत के अिभषेक और राम के चौदह वष
के वनवास क बात सुनकर आ रहे थे। उ ह शा त करने के िलये राम और सीता ने उ ह बहत
समझाया, तब उनका ोध शा त हआ; िक तु उ ह ने वयं को भी साथ ले चलने का आ ह
िकया। वे िकसी भी ि थित म राम और सीता को छोड़ने के िलये राजी नह थे। ल मण के इस
आ ह से राम धम-संकट म पड़ गये। उ ह ने कहा,
‘‘ल मण, सीता पहले ही साथ चलने क हठ िकये हये ह, अब तुम भी यथ ही वन के क को
भलू कर साथ जाने का हठ कर रहे हो।''
‘‘भइया, जब भाभी और आप वन-वन भटक रहे ह गे, तब ल मण का महल म होना, उसके
जीवन को यथ कर देगा।''
-‘‘िक तु ल मण, उिमला और माँ सुिम ा के बारे म भी तो सोचो; तु हारे इस कार चले जाने से
उ ह िकतना क होगा, और यह भी सोचो िक तु हारे िववाह के भी अभी छह माह ही तो हए ह;
उिमला पर तो यह बहत अ याचार जैसा होगा।''
‘‘भइया, माँ ने मुझे हमेशा यही समझाया है िक म आपक सेवा का कोई अवसर न छोडूँ; उनका
आप पर बहत अिधक िव ास और नेह है। वे हमेशा कहती ह िक आप कुछ गलत कर ही नह
सकते, अत: मुझे तो लगता है वे भी यही चाहगी िक म आपके साथ ही रहँ, आपको अकेला न
जाने दँू।''
‘‘और उिमला? या तुमने उसके बारे म भी सोचा है?''
‘‘हाँ, मने उनके बारे म भी सोचा है; वह भाभी ी क सगी छोटी बहन ह; बचपन से उिमला ने
उ ह जाना है, उनके सुख-दु:ख म साथ रही ह। भाभी ी के िलये जो ा उनम है, वह आपम मेरी
ा से कम नह है। इतने थोड़े से िदन म िजतना मने उ ह समझा है, उससे मुझे िव ास है िक
उ ह इस बात से सुख और स तोष ही िमलेगा िक मने िकसी दुःख क घड़ी म उनक बहन और
आपको अकेला नह छोड़ा, य िप यह िनता त वाभािवक है िक इतने ल बे समय के िलये मुझसे
दूर रहने का दुःख उ ह होगा।''
‘‘यही तो ल मण; म उिमला के िकसी भी दुःख का कारण नह बनना चाहता।''
‘‘आप िकसी के भी दुःख का कारण नह ह ाता ी; दुःख का कारण वह हठ है, जो अयो या के
राज िसंहासन को उसके वाभािवक और यो यतम उ रािधकारी से वंिचत ही नह कर रहा है,
वरन् उसे चौदह वष के िलये द डकार य जैसे बहत दूर ि थत खतरनाक वन म भेजना चाहता
है।''
‘‘ल मण, वह परो कारण होगा; य कारण तो म ही रहँगा।''
‘‘ ाता ी, िकसी के भी दुःख का न आप य कारण ह न परो ... अपने साथ चलने के िलये
आप मुझसे नह कह रहे ह, उ टे आप तो बराबर मुझे मना ही कर रहे ह; आपको साथ जाने का
मेरा अपना िन य है, इसम आपका या दोष?''
‘‘ठीक है, िक तु चलने के पवू माँ और उिमला से सहमित लेकर आओ, अ यथा हमारे साथ चलने
का िवचार याग दो।''
‘‘ठीक है ाता ी, म उनक भी सहमित लेकर आता हँ।''
इसके बाद सीता, राम और ल मण अपने बड़ से अनुमित लेने के िलये चल पड़े ।
दशरथ वेदना से भरे हये थे। कौश या भी बहत दुःखी थ । इन दोन से सीता और ल मण को
आ ा लेने म बहत मुि कल आई। कैकेयी तो मान इसक ती ा ही कर रही थ , और सुिम ा ने
ल मण को राम और सीता के साथ जाने क अनुमित सहष ही दे दी। तब राम ने ल मण से कहा
िक वे उिमला क सहमित लेने के बाद ही िनणय कर।
* * *
उिमला अपने क म थ । राम का राजितलक होने वाला है, इसको लेकर मन म सुबह से ही बहत
उ साह भी था और उ लास भी। वे उस समय पहनने के िलये अपने व भी चुन चुक थ । उन
ण क क पना मा से शरीर रोमांच से भर उठता था। अधर पर कुछ गुनगुनाने जैसे वर
बार-बार वत: ही आ रहे थे।
तभी उनक एक सेिवका, िजसका नाम मानसी था, लगभग दौड़ती हई आयी। उिमला को उसक
य ता देखकर लगा, संभवत: कुछ िवशेष अ छा समाचार होगा, िक तु उसके मुख पर पीड़ा के
भाव देखकर वे चिकत हइ।
‘‘ या हआ मानसी? इतने शुभ अवसर पर तू इतनी यिथत सी य है? उिमला ने उससे पछू ा।
‘‘अनथ, घोर अनथ!’’
‘‘ या हआ, कुछ कहे गी भी!’’
‘‘माता कैकेयी.... कहते हये उसने हाथ इस तरह उठाया जैसे कैकेयी कह पास म ह और वह
उ ह इंिगत कर रही हो।
‘‘ या हआ माता कैकेयी को? उिमला ने य ता से पछ ू ा।
‘‘उ ह तो कुछ नह हआ, िक तु उनके चाहने से महाराज ने ीराम को चौदह वष के वनवास
का आदेश दे िदया है।’’
‘‘ या!? तू कह िवि तो नह हो गयी है मानसी? उनका तो राजितलक होने वाला है।’’
‘‘नह म िवि नह , िक तु समाचार िवि करने वाला ही है।’’
‘‘ठीक से परू ी बात बता मानसी, पहे िलयाँ मत बुझा।’’
‘‘बताती हँ, बताती हँ... कहते हये मानसी रो पड़ी।
‘‘अपने को सँभाल और ठीक से परू ी बात कह।’’ उिमला ने य ता से कहा।
‘‘माता कैकेयी ने महाराज से वर माँगा है िक ीराम चौदह वष के िलए वनवास पर जाय और
ाता भरत ी का राजितलक हो।’’
‘‘और महाराज, माता कैकेयी को यह दुरा ह मान गये?’’
‘‘िकसी कारण से महाराज उनके ित वचनब थे, अत: उनके पास माता कैकेयी क बात
मानने के अित र कोई उपाय ही नह था; िक तु यह आदेश देकर वे इतने दु:खी ह िक देखा
नह जाता।’’
‘‘हे भगवान!’’ कहते हये उिमला माथे पर हाथ रखकर धम् इस कार भिू म पर बैठ गय मान
उनके पैर म ाण न रह गये ह ।
‘‘और दीदी...!’’ उ ह ने सीता के स ब ध म पछ ू ा।
‘‘वे भी ीराम के साथ ही जायगी; िकसी भी तरह कने को तैयार नह ह।’
‘‘आह!’’ उिमला के मँुह से िनकला। उ ह अपना िसर घम ू ता सा लगा। उ ह ने दीवार का सहारा ले
िलया और अपना िसर उस पर िटका िदया। ने म अ ु छलक आये थे। कुछ देर तक वे ऐसे ही
बैठी रह , िफर जैसे सहसा कुछ मरण हो आया हो, इस तरह पछ ू ा।
‘‘और ये कहाँ ह? उनका आशय ल मण से था।
‘‘वह ह, िक तु जो कुछ मने सुना है.....।’’ मानसी ने बात अधरू ी ही छोड़ दी।
‘‘ या सुना है तनू े, कहती य नह ?’’
‘‘कैसे कहँ...?’’
समझ गयी; वे ाता और दीदी को अकेले वन नह जाने दे सकते... अव य ही उ ह ने भी साथ
जाने का िन य िकया होगा।’’
मानसी ने पीड़ा भरे ने से उिमला क ओर देखा, बोली कुछ नह , िक तु उिमला क आशंका
सच है, यह उसके ने म था। उिमला ने उसके ने क भाषा पढ़ ली और...
कैसे हो गया यह अनथ?’’ कहकर फफक पड़ ।
कुछ देर बाद ही वहाँ ल मण ने वेश िकया। उनको आते देख मानसी, जो उिमला के पास बैठकर
उ ह ढाँढ़स बँधाने का यास कर रही थी, धीरे से उठी और म थर गित से चलती हई क से
बाहर िनकल गयी।
ल मण को देखकर उिमला खड़ी हो गय । वे अब तक रोते-रोते चुप हो चुक थ , िक तु साँस क
गित अब भी ती थी। वे ल मण को देखते ही एक बार पुन: रो पड़ । ल मण उनके पास आये।
हाथ पकड़कर उ ह उठाया और दोन वह दीवार के सहारे खड़े हो गये। उिमला िसर झुकाये हए
थ । ल मण ने उ ह पुकारा,
‘‘उिमला!’’
अब उिमला ने ल मण के मुख क ओर देखा। उ ह वहाँ दु:ख के साथ-साथ ोध के भाव भी
बहत प िदखे। उनके मुख पर ोध के भाव देखकर उिमला िवचिलत हो उठ । उनका मन
िकसी और भी अिन क आशंका से भर उठा। एक पल के िलये वे अपना दु:ख भल ू सा गय ।
‘‘सभंवत: तु ह भी पता लग ही गया है’’ ल मण ने उिमला को रोते देखकर कहा।
‘‘हाँ।’’
‘‘िफर’’
‘‘िक तु आप दु:ख के साथ-साथ ोध म भी लग रहे ह।’’ उ ह ने ल मण क ओर देखकर कहा।
‘‘कैकेयी का ऐसा दुरा ह; ोध क बात नह है या?’’
उिमला ने यान िदया, ल मण ने कैकेयी को मा ‘कैकेयी’ कहकर स बोिधत िकया था; सदा
क भाँित ‘माता कैकेयी’ नह ।
वे समझ गय , ल मण भी बहत ही असहज ह। वे िकसी नये अिन क स भावना से भर उठ ।
‘‘इस अवसर पर ोध िकसी और अिन को भी आमंि त कर सकता है।’’ उ ह ने कहा।
ल मण ने होठ ितरछे करते हए पलवâ भ च और िफर ने खोलकर ऐसे साँस ली जैसे कह
बहत पीड़ा भी हो और िववशता भी।
उिमला ने इसे देखा और उनके दु:ख और पीड़ा को कम करने के यास म कहा।
‘‘हो सकता है इसम भी कोई अ छाई िछपी हो।’’
ल मण कुछ यं य से हँसे, बोले,
‘‘हाँ, संभवत: यही होगा, िक तु...’’ उ ह ने वा य अधरू ा छोड़ िदया।
ल मण के ‘िक तु’ से उिमला का मन एक बार पुन: आशंकाओं से भर उठा।
‘‘िक तु या?’’ उ ह ने पछ ू ा
‘‘लगता है इस अ छाई का सारा ेय कैकेयी ही ले जायगी’’ उिमला समझ गय ल मण बहत
ोध म ह। इनके ोध का शा त होना बहत आव यक है, सोचकर वे ल मण के हाथ अपने
दोन हाथ म थामकर दय के पास ले आइ, बोली,
‘‘मुझे वचन दीिजये िक आप ोध नह करगे।’’
‘‘ठीक है, नह क ँ गा ोध, पर......’’ ल मण ने कहा।
‘‘ या?’’
‘‘उिमला!’’
‘‘हाँ’’
‘‘भाई और भाभी क सेवा के िलये म भी उनके साथ जाना चाहता हँ; इस हाल म उ ह अकेले कैसे
छोड़ा जा सकता है? इसके िलये मुझे तु हारी अनुमित चािहये।’’
‘जो आशंका थी वह सच हो ही गयी’ उिमला ने मन म सोचा और िसर झुका िलया।
‘‘बोलो उिमले, तु ह यह कुछ अनुिचत लग रहा है या? या यह मेरा कत य नह है?’’
‘है’ उिमला ने कहा, िफर जोड़ा, ‘‘और मेरे ित...’’
‘‘तु हारे ित भी मेरा कत य कम नह है, उिमल, तभी तो तुमसे अनुमित माँग रहा हँ।
‘‘जब आप िन य कर ही चुके ह, तो मेरा कुछ भी कहना यथ ही तो है,'' उिमला ने कहा।
‘‘नह , आपका कुछ भी कहना यथ नह होगा।''
‘‘ या आप मेरे कहने से क जायगे?''
‘‘हाँ,'' ल मण ने कहा।
उिमला ने देखा, एक पल म ही उनके मुख पर पता नह िकतने भाव आये और चले गये, िफर
एक गहरी उदासी का भाव आकर ठहर गया। सदा चमकते रहने वाले चेहरे का यह भाव उिमला
को भीतर तक िहला गया। केवल एक छोटी सी ‘हाँ' म ल मण के मन का बहत सा दद छलक
उठा था।
उिमला को उनके मुख पर िकसी छोटे ब चे सा भोलापन िदखा, और पीड़ा क इस घड़ी म भी उ ह
ह क सी शरारत सझ ू गई। उ ह ने आँख को गोल करते हये, िसर को िहलाया और पछ ू ा,
‘‘सच!''
‘‘हाँ, सच।'' ल मण ने कहा, िक तु कुछ पल बाद ही जोड़ा ,
‘‘पर तु...''
‘‘पर तु या?''
‘‘ ाता के िबना म यहाँ िबना ाण के शरीर जैसा ही रह जाऊँगा।''
‘‘म यह जानती हँ, और आप दुखी ह ऐसा म व न म भी नह सोच सकती। सीता मेरी सगी बड़ी
बहन ह, और म जानती हँ िक वे िकतनी िन पाप और िन छल ह। उनका कोई भी क , मेरा
क है; िफर म आपको भु ीराम और देवी सीता के सािन य और सेवा से वंिचत करने का घोर
पाप कर भी नह सकती... आप जाय िक तु...'' कहते कहते उिमला क गई ं।
‘‘आप कुछ कहते-कहते क गई ह, कृपया अपनी बात परू ी कर।'' ल मण ने कहा।
‘‘ थम तो यह िक आप मुझे आप कहकर य स बोिधत कर रहे ह?’’
‘‘यह अनायास ही हआ है; मुझे तु हारा कद बहत बड़ा लगने लगा है, संभवत: यह कारण हो।’’
‘‘नह , म तुम ही ठीक हँ... आपके मुख से अपने िलये ‘आप’ श द चुभता है मुझे।’’
‘‘ठीक है, िक तु तुम कुछ और भी कहना चाह रही थ ।’’
‘‘हाँ’’
‘‘ या?’’
‘‘ या म भी साथ नह चल सकती?''
‘‘उिमले, यह मुझे बहत अ छा लगता, िक तु आप भी चली जायगी तो माताओं और िपता ी का
या होगा, सोिचये!''
‘‘ठीक है।'' कहते कहते उिमला के ने म अ ु छलछला आये। वे पास क दीवार पर पीठ
िटकाकर खड़ी हो गई ं, िफर िसर पीछे दीवार पर िटकाया और बहत धीरे से बोल ,
‘‘हे ई र! कोई मुझे भी वनवास दे देता।''
ल मण ने सुना। उ ह ने उिमला का हाथ पकड़ा और उसे अपने दय के पास लाकर बोले,
‘‘उिमले, म जानता हँ, मेरी अनुपि थित म चौदह वष तक यहाँ रहना तु ह िकसी भी वनवास से
अिधक पीड़ा देगा।'
‘‘हँ ...'' उिमला के वर म दद छलक उठा।
‘‘तु हारे इस याग और सहयोग के िलये मेरा मन सदैव तु हारा ऋणी रहे गा।’’
‘‘ऐसा मत किहये; इसे याग का नाम मत दीिजये।'’
‘‘ य उिमल?''
‘‘यह मेरा धम है।''
‘‘तु हारा मन िन छल और सिमपत है, इसीिलये तुम ऐसा कह रही हो।’’
इतने दुःख म भी उिमला के अधर पर मु कराहट क एक रे खा िखंच गई, और कुछ प रहास सझ ू
गया; बोल ,
‘‘अ छा, िकसके ित समिपत है मेरा मन?'
‘‘म भी जानता हँ और तुम भी,’’ ल मण ने कहा।
‘‘हाँ,'' कहकर उिमला ने एक गहरी सी साँस ली।
‘‘िक तु आने वाला समय इसे याग क पराका ा के प म ही मरण करे गा,'' ल मण ने कहा।
‘‘हँ'' उिमला ने कहा। उ ह ने लाई रोकने के यास म अधर भ च रखे थे।
ल मण ने उिमला क हथेिलयाँ थाम , अपने ने से लगाई ं और िफर उ ह अपने सीने म समेट
िलया। बोले,
‘‘म कह भी रहँ, तुम सदैव मेरे दय म ही रहोगी उिमले!''
‘‘जानती हँ’ और आप जब लौटकर आयगे तो इसी जगह आपक ती ा करते िमलँग ू ी,'' कहते
हए बहत रोकते-रोकते भी उिमला क आँख से आँसुओ ं क बँदू िगरने लगी।
तभी सीता वहाँ आई ं। उ ह ने उिमला को देखा और उनके मन क पीड़ा का अनुमान लगाने म
कोई गलती नह क । उ ह ने ज दी से पास आकर उिमला को सीने से लगा िलया। उिमला के
स का बाँध टूट गया। वे फफककर रो पड़ । बड़ी किठनाई से बोल सक '
‘‘दीदी, अपना यान रिखयेगा।''
सीता के भी ने छलछला आये थे। उ ह ने अपने व से उिमला के अ ु प छे और कहा,
‘‘उिमल, ऐसे ही रोकर िवदा दोगी!''
‘‘नह , रोकर नह '' उिमला के अधर पर फ क सी हँसी आई और िफर वे सीता और राम के
चरण- पश कर पास ही खड़ी हो गय ।''
राम और सीता, जाने के िलये मुड़े तो उिमला भी उनके साथ ही पीछे हो ल । वे ार तक पहँचे, तो
महल के लगभग सभी लोग क भीड़ सी थी। उिमला चुपचाप उ ह के साथ खड़ी हो गय और
य िप बहत से लोग उनके साथ-साथ पीछे -पीछे गये, उिमला जड़वत वह खड़ी उ ह जाते हये तब
तक देखती रह , जब तक वे आँख से ओझल नह हो गये। िफर िसर झुकाये धीरे -धीरे चलते हये
अपने क म आकर िनढाल सी िब तर पर लेट गय ।
लेटे हये कुछ ही समय हआ था िक उ ह िकसी के क म आने क आहट सुनाई दी। आँचल से
अ ु प छकर वे उठकर बैठ गय । सामने कौश या थ । उिमला उ ह देखकर, उठकर खड़ी हो
गय ।
‘‘माँ!’’ उ ह ने कहा। कौश या ने उ ह गले से लगा िलया, बोल ,
‘‘म तेरी पीड़ा समझ सकती हँ बेटी।’’
‘‘ य नह ; हमारी पीड़ा साझा ही तो है माँ।’’ उिमला ने कहा।
10. महल से चलकर
बहत अिधक लोग िवदा करने आये थे, और अयो या पीछे छूट गई थी। वे वापस जाने को तैयार
नह हो रहे थे, िक तु बहत समझा बुझाकर राम ने उ ह िवदा िकया। दोपहर-ढलने सी लगी थी।
राम, सीता और ल मण वन के रा ते पर चले जा रहे थे। सभी मौन थे। सहसा राम ने कहा,
‘‘ल मण, थोड़ी देर म शाम होने वाली है; कोई राि िबताने लायक थान ि म आये तो यान
रखना।''
‘‘जी भैया।'' कहकर ल मण, जो चुपचाप राम और सीता के कदम को देखते हये चले जा रहे थे,
ठहरने लायक थान के िलये चार ओर देखते हये चलने लगे।
अभी तक सभी लोग बहत चुपचाप चले जा रहे थे। राम के वर से यह शाि त भंग हई, तो सीता
राम के मुख क ओर देखने लग । वे इतने शा त भाव से चले जा रहे थे िक उनके मुख पर कुछ
भी पढ़ना सीता को स भव नह लगा।
जब तक लोग घेरे हए थे, तब तक तो सीता का यान उ ह लोग पर था, िक तु जब सारी भीड़
िवदा हई थी, उन के दय म भावनाओं का वार सा उमड़ रहा था।
सीता को उिमला के ने याद आ रहे थे, जो रोने से लाल हो गये थे। उ ह लगा िक वे भले ही वन
म ह , िक तु अपने पित के साथ तो ह, िक तु उस उिमला का या हाल होगा, जो िववाह के कुछ
माह बाद ही अपने पित से चौदह वष के ल बे अ तराल के िलये िबछड़ गई है। िजसका पित एक
षड़य पण ू हठ के कारण जंगल-जंगल ठोकर खाने के िलये िववश है, उसके िलये महल के
सुख का या मू य।
उिमला भले ही महल म हो, ल मण से दूर रहने के कारण िवरह के काँटे उसे चुभते ही रहगे। उ ह
लगा, उिमला के दुःख के सम उनका क कुछ भी नह है।
सहसा, िवचार क िदशा बदली। वे सोचने लग , माता कैकेयी ने चौदह वष क समय सीमा ही
य रखी? वे प ह वष, बीस वष, या यिद भरत के रा य को िन क टक ही करना था, तो राम
के आजीवन वनवास क माँग भी रख सकती थ । वैसे तो जीवन का कुछ भरोसा नह है, िक तु
एक आदमी के िलये चौदह वष जीवन का एक िह सा मा है।
माता कैकेयी के मन म, राम के ित कह न कह , अव य ही कुछ कोमल भावनाय रही ह गी या
शायद यह उनका अपराध-बोध रहा होगा, अ यथा वे उ ह चौदह वष बाद भी अयो या वापस आने
क अनुमित नह देत । सीता को लगा, आने वाला भिव य, इस अविध के चौदह वष ही रखने का
शायद कोई तक संगत कारण दे सके।
िवचार का म और आगे बढ़ा, तो वे सोचने लग िक माता कैकेयी, उ ह िकसी भी वन जाने के
िलये कह सकती थ ... उ ह ने बहत दूर घोर दि ण म ि थत द डकवन ही य चुना? या उ ह
यह आशंका थी िक केवल वनवास के िलये कहने पर राम, पास के ही िकसी वन म जाकर
िनवास कर सकते ह और उनके पु भरत के रा य को िन क टक नह रहने दे सकते ह। सीता
ने इस िवषय म ीराम से चचा करने का मन बनाया और उनक ओर देखकर पछ ू ा।
‘‘ भु, द डकवन क या िवशेषता है?''
‘‘मने सुना है सीते, वह बहत रमणीक थान है, और वहाँ पर बहत से महान तप वी और ऋिष भी
रहते ह।''
‘‘ भु, या वे वहाँ िनभय होकर िनवास करते ह?''
‘‘हाँ सीते, मेरी जानकारी के अनुसार लगभग िनभय ही।''
‘‘लगभग िनभय का अथ तो यह हआ िक वहाँ कुछ भय का कारण भी िव मान है।''
‘‘हाँ, ऐसा है सीते... यह वन बहत बड़े े म फै ला हआ है, अत: इसम बहत से िहंसक पशु तो ह
ही, लंका का राजा रावण और उसके गण आकर अ सर इन लोग को सताते रहते ह; रावण ने
यह े अपनी बहन सुपणखा को दे रखा है। ‘‘
‘‘ या लंका वहाँ से पास ही है?''
‘‘बहत पास तो नह , िक तु बहत दूर भी नह है।''
‘‘ या रावण बहत शि शाली है?''
‘‘हाँ, रावण बहत शि शाली है; वह सात ीप का अिधपित है, साथ ही रा स धम को मानने
वाला है, अत: देवताओं को पज ू ने वाले ऋिषय से उसका वाभािवक बैर है।''
‘‘हँ'' कहकर सीता चुप हो गइ। उनको लगा िक माता कैकेयी ारा राम को द डकवन भेजने का
कारण कुछ प हो रहा है। सीता ने सुन रखा था िक बचपन म जब राम और ल मण सोलह वष
से भी कम उ के बालक थे, तभी उ ह ने महिष िव ािम के आ म जाकर मारीच और सुबाह
तथा उनके अ य साथी रा स का वध िकया था। उ ह ने वहाँ ताड़का नामक महाबलशाली
रा सी का भी वध िकया था। कैकेयी को राम और ल मण क शि का सहज अनुमान रहा
होगा और यह भी अनुमान रहा होगा िक राम और ल मण म आपस म बहत अिधक ेम है और
ल मण, राम को अकेले वन नह जाने दगे... वे भी अव य ही राम के साथ जायगे।
सीता को लगा िक कैकेयी ने यह भी सोचा होगा िक जो रावण, सीता के वयंवर म िमिथला तक
आ सकता है, वह अपने सा ा य के िव तार के िलये अयो या तक भी आ सकता है; िक तु राम
और ल मण के द डकवन म होने के कारण वह पहले उ ह से उलझेगा, और कम से कम चौदह
वष के ल बे अ तराल तक राम और रावण दोन क ओर से िनि त होकर भरत को अयो या
पर अपने शासन को सु ढ़ करने का अवसर िमल जायेगा।
िवचार का यह वाह आगे बढ़ा तो उ ह लगा, उनके सुर, महाराज दशरथ ने भरत और श ु न
के अयो या म न होने के समय ही, अक मात् राम के राजितलक का फै सला य िकया? अगर
उ ह अपने िगरते वा य के कारण इसक शी ता थी, तो वे समय रहते भरत और श ु न को
बुलवा सकते थे और उनके आने के बाद का कोई मुहत िनि त कर सकते थे।
अव य ही उ ह िकसी यवधान क आशंका रही होगी, और कैकेयी को उ ह ने दो वर देने का
आ ासन भी दे रखा था। अत: यह यवधान कैकेयी क ओर से बहत सरलता से उ प न िकया
जा सकता है, यह अनुमान भी उ ह रहा होगा। कैकेय देश से कैकेयी क सेवा म आई दासी
म थरा क कुिटलता और कैकेयी पर उसके भाव का अनुमान भी उ ह अव य ही रहा होगा।
रा य के िलये सगे भाइय म भी यु के बहत से उदाहरण भी उ ह पता ह गे, शायद इसीिलये
उ ह ने भरत क अनुपि थित म इस काय को अितशी ता से िनपटा डालने क सोची होगी,
िक तु िनयित को यह वीकार नह था। म थरा ने कैकेयी को भड़काकर कुिटलतापवू क उनक
योजना को व त ही नह िकया, दोन ने िमलकर उ ह दय-िवदारक पीड़ा भी पहँचाई। चँिू क
दशरथ, राम के राजितलक के प म थे, अत: अव य ही दशरथ का अश होना भी कैकेयी को
उिचत ही लगा होगा। कैकेयी क िनममता को याद कर सीता का मन उनके यवहार के ित
िवत ृ णा से भर उठा।
वे चलते हये दूर आ चुके थे और साँझ ढलने लगी थी। ल मण ने यास करके एक सरोवर ढूँढ़ा
और उसके पास ही कुछ पुआल इ यािद बटोरकर िबछा िदया। वे जंगल से कुछ फल भी ले आये।
महल से बाहर, जंगल के ाकृितक वातावरण म यह सीता के जीवन म पहली राि थी। सरोवर
का िकनारा व सघन व ृ के कारण हवा थोड़ी तेज और ठ ढी थी। इस हवा म ह रयाली क
सुग ध भरी हई थी। कभी-कभी िकसी प ी का वर भी सुनाई दे जाता था। प से गुजरती हवा
भी विन पैदा कर रही थ ।
सीता, पुआल पर सरोवर क ओर मुख करके बैठ गई ं। राि क कािलमा िघर चुक थी। आकाश
म च मा और तार का सा ा य था। कभी हवा से और कभी पानी म रहने वाले िकसी ाणी के
चलने के कारण, सरोवर के पानी म उठने वाली च मा क छाया िहल-डुल रही थी। पास ही राम
और ल मण भी बैठे हये थे।
सभी के मन म कुछ न कुछ चल रहा था, िक तु कोई कुछ बोल नह रहा था। तभी ल मण ने
खामोशी तोड़ी। वे बोले,
‘‘कल हम इस समय अयो या के राजमहल म थे, आज यहाँ ह, कल पता नह कहाँ ह गे।''
‘‘यही ार ध है।'' राम ने कहा।
सीता ने सुना, तो वे बोल ,
‘‘बुरा या है; यह भी जीवन क पु तक का एक प ृ ही तो है, और मुझे लगता है इस पर ग
नह गीत िलखा हआ है।''
‘‘सीता, या तु ह यह गीत अ छा लग रहा है?'' राम ने कहा।
इस के उ र म सीता मौन हो गय , कुछ बोल नह ।
‘‘सीते!’’ राम ने पुकारा
‘‘ या।’’
‘‘मने पछू ा, या तु ह यह गीत अ छा लग रहा है?’’
‘‘मुझे उिमला का मरण हो आया है; सच तो यह है िक उसक वे रोई-रोई आँख म पल भर के
िलये भी भुला नह पा रही हँ; पता नह य , पर मुझे बराबर लग रहा है िक इस या ा म हम तीन
नह चार ह, भले ही उिमला शरीर से हमारे साथ न ह ।
राम चुप रह गये, िक तु पीड़ा उनके चेहरे पर भी छलक आयी।
सीता ने िफर कहा,
‘‘मुझे यह गीत बहत अ छा लगता, यिद इसम उिमला क पीड़ा का दद नह होता।''
‘‘तुम ठीक कहती हो।'' उ ह ने कहा और बरबस उनक ि ल मण क ओर चली गई। ल मण
ने इसे महसस ू िकया। उ ह ने दोन को इंिगत करके कहा,
‘‘जो सौभा य है, उसे पीड़ा कैसे कह सकते ह; आपके िलये कुछ कर पाने का अवसर या पीड़ा
है?''
इसके बाद िफर मौन छा गया। थोड़ी देर म सभी अपने-अपने थान पर लेट गये।
महल से चलकर
पुआल के िब तर तक
आ पहँचा जीवन
पर मन के घट
अब भी
अमतृ भरा हआ है
पुआल के िब तर पर लेटी सीता को सब कुछ व नवत् लग रहा था। लेटे-लेटे सीता क थक हई
आँख म कब न द भर गई और वे सो गई ं, उ ह पता ही नह लगा।
सुबह पि य के कलरव से आँख खुल । जंगल क ताजी हवा उ ह ाणवायु सी लगी। इस हवा म
सुबह क ऐसी सुग ध थी, जैसी उ ह ने अपने अब तक के जीवन म कभी भी नह महसस ू क
थी। उ ह ने देखा, राम भी जाग चुके थे, िक तु ल मण नह िदखाई दे रहे थे। कुछ िच ता सी हई।
तब तक उ ह ल मण आते हये िदखे। सीता ने देखा, वे अपनी ातःकालीन िदनचया परू ी कर
चुके थे, उ ह ने वाचक ि से ल मण क ओर देखा तो, वे बोले,
‘‘बस, यह आस-पास टहल रहा था, कुछ फल भी िमल गये ह, लेता आया हँ।
‘‘ल मण, तुम यह बैठो; हम लोग भी सं या पज ू न आिद करके आते ह'' कहकर राम, सीता के
साथ उठ खड़े हये।
कुछ देर बाद उ ह ने अपनी आगे क या ा ार भ कर दी।
11. अिह याएँ होती ह
िच कूट आिद िविभ न थान पर कते, बहत से ऋिषय और ऋिष-पि नय का आशीवाद ा
करते, िविभ न अनुभव से गुजरते हये ीराम, सीता और ल मण, द डकवन पहँच चुके थे। उ ह
अयो या से चले लगभग एक वष हो चुका था। वे सं यािसय के वेष म तो थे ही, उ ह के जैसा
जीवन जीते-जीते मन से भी सं यासी ही हो चुके थे।
सीता को हर िदन कुछ नया-नया सा लगता था। कभी-कभी कोई ऋिष या मुिन भी आ जाते थे,
िजनसे राम क कुछ आ याि मक चचाय भी होती थ , और सीता उ ह बड़े मनोयोग से सुनती थ ।
उस िदन ल मण, जंगल म कुछ फल इ यािद लेने गये हये थे, और सीता, राम के साथ एक घने
व ृ क छाया म बैठी थ । कुछ ठ ढी और धीरे -धीरे बहती हवा, कुछ प ी, कुछ फूल वाले व ृ
और आसमान पर ह के बादल थे, इसिलये धपू नह थी। सीता ने राम क ओर देखा। साँवला,
सुगिठत शरीर, बाल बढ़कर जटाओं जैसे हो गये थे। उनका, राम ने िसर पर जड़ ू ा सा बना रखा
था। संयािसय जैसे व और मुख पर तेज देखकर सीता के मन म ा उमड़ पड़ी।
सीता ने महसस ू िकया िक ीराम को देखने मा से उनके अ दर अ ुत आन द तो भर ही जाता
है, जो दैिहक ेम से जिनत िकसी ि य को देखने से िमलने वाली खुशी से सवथा अलग है, साथ
ही यह मन म पिव ता का भाव भी भर देता है।
उ ह मरण हो आया िक जब ीराम, िव ािम के आ म से उनके वयंवर म भाग लेने के िलये
िमिथला आ रहे थे, तो रा ते म अिह या, िजनके बारे म कहा जाता था िक वे पाषाण हो चुक थ ,
उनके पश-मा से अपने वाभािवक मानवीय प म लौट आई थ । यह कथा उ ह ने बहत लोग
से सुन रखी थी। यह सब कुछ उ ह बहत आ यजनक लगता था।
सीता ने भरपरू ि राम पर डाली तो शरीर म िसहरन सी भर उठी और तब उ ह लगा िक
िजसका दशन मा , शरीर म प दन भर दे, उसके पश से पाषाण जीिवत हो उठा हो, इसम
आ य या है। उ ह यह भी मरण हो आया िक जब थम बार उ ह ने राम को देखा था, उस
समय वे थम ि म हो जाने वाले ेम क आयु म ही थ , िक तु उनका वह ेम कोई शारी रक
आकषण से हो उठने वाला ेम नह था।
वह मा भावना मक ेम भी नह था, िक तु जो भी था उसे य करने क साम य श द म
नह थी। उनके इस टकटक सी लगाकर देखने से राम को लगा िक शायद वे कुछ कहना
चाहती ह। उ ह ने कहा,
‘‘सीते।''
‘‘ भु।''
‘‘ या देख रही हो? कुछ कहना चाहती हो या।''
‘‘ या आप मुझे अिह या करण के बारे म बतायगे?''
‘‘हाँ, य नह !''
‘‘बताइये।''
‘‘सीते, अिह या गौतम ऋिष क प नी थ । यह िवड बना ही है िक वे अ य त बा याव था म ही
गौतम ऋिष को िमली थ और ऋिष ने ही उनका लालन-पालन िकया था, िक तु बड़े होने पर वे
वयं ही उन पर मु ध हो गये और उनसे िववाह कर िलया। वाभािवक है, यह अिह या के िलये
बहत क कारक रहा होगा।
यह अ याचार वे सह गई ं, िक तु एक बार जब िकसी अ य पु ष ने गौतम ऋिष क अनुपि थित
म उनके जैसा बनकर और धोखे से घर म घुसकर उनसे जबरद ती करने का यास िकया, तब
उनक आँख बेबसी, शम, पीड़ा और अपने दुभा य क आग म जल उठ ।
तभी गौतम ऋिष आ गये और उ ह ने अिह या से िकसी कार क सहानुभिू त िदखलाने के
थान पर उ ह को लांिछत और अपमािनत िकया।
‘‘ भु, या ऐसा नह है िक जब पित-प नी क आयु म बहत अिधक अ तर होता है, तो पु ष
बहधा अपनी प नी पर िव ास नह रख पाते, शंकालु हो जाते ह!''
‘‘तुम ठीक कह रही हो सीते; िब कुल यही हआ; गौतम ऋिष के यवहार से पहले से ही पीिड़त
अिह या, उनके ारा िकये गये इस अपमान से हतबुि होकर रह गई ं। वे घोर अवसाद क ि थित
म चली गई ं और उनके ने म इतना शू य भर गया िक उ ह ने िकसी भी बात पर िति या देना
ब द कर िदया।
एक बार तो उनका न हा ब चा भख ू के कारण रोता रहा और वे उसी अवसाद क ि थित म शू य
म देखती रह । ब चे ने रो-रोकर अपने ाण याग िदये, िक तु वे िति या-िवहीन ही रह । लोग
कहने लगे िक अिह या प थर हो गई ह।''
‘‘िफर आपने उ ह कैसे ठीक िकया?''
‘‘कुछ नह , केवल उ ह 'माँ' कहकर पुकारा, थोड़े नेह के बोल बोले; उ ह प रि थितय से हारने
क नह , लड़ने क सलाह दी।''
‘‘िफर...''
‘‘िकसी से अपनी बात कह लेने से मन तो हलका हो ही जाता है, पीड़ाय भी कुछ कम लगने
लगती ह न!
‘‘हाँ’’
‘‘तो वही उनके साथ भी हआ। मेरे सहानुभिू त और आदर के कुछ श द ने उनके मन क गाँठ
खोल द । वे मान पâू ट पड़ । अपने बचपन से लेकर वतमान तक क पता नह िकतनी बात कह
डाल । बहत पीड़ा थी उनके मन म। अपनी यथा कहते कई बार वे रो पड़ती थ । उनका रोना और
उनके आँसू मुझसे देखे नह जा रहे थे, िक तु म चुपचाप उ ह सुनता रहा।’’
‘‘ओह! वे रो पड़ी! इसका अथ है िक बहत पीड़ाजनक अनुभव को िजया होगा उ ह ने।’’
‘‘हाँ, और वह सब कुछ कह लेने के बाद जब वे कुछ शा त हइ तब मुझसे मेरे स ब ध म पछ ू ने
लग ।’’
सीता ने राम के मुख क ओर देखा। वे उ ह बहत महान लगे।
‘‘िफर या बताया आपने? उ ह ने पछ ू ा।
‘‘जो था वही। ठीक से तो सब कुछ याद नह पर हाँ, हम बहत देर तक बात करते रहे । मने उ ह
कभी-कभी अपने सुख-दु:ख िकसी से बाँटते रहने और िवपरीत प रि थितय म भी मन को ढ़
रखने का परामश भी िदया, और इस सबके अ त म उ ह ने नेह से मेरे िसर पर हाथ फेरा, मुझे
आशीवाद िदया और सामा य ि थित म लौट आई ं।''
‘‘िफर?''
‘‘बस इतना ही... और लोग कहने लगे िक अिह या, जो प थर हो गई थ , वे राम के पश से
पुन: ी हो गई ं ह। बात समा करने के बाद राम ने देखा, सीता के ने आँसुओ ं से भरे हये थे।
उ ह ने सीता के हाथ अपने हाथ म लेकर कहा,
‘‘िक तु आप य रो रही ह?''
‘‘कुछ नह , ऐसे ही।'' सीता ने अ ु प छते हए कहा।
12. कल क आहट
राम और ल मण के साथ सीता द डकवन आ चुक थ । इस िवशाल वन म ऋिषय के बहत से
आ म थे। माग म पड़ने वाले सभी आ म म उनका दय से वागत हआ था। इस या ा म जव
नामक रा स के पु िवराघ ने सीता को उनसे छीनने का यास िकया। राम और ल मण से
उसका भयंकर यु हआ, िजसम िवराघ मारा गया। िवराघ को अपना पवू ज म मरण था। मरने
से पवू उसने राम को िनकट बुलाया। बोला -
‘‘ भु! पवू ज म म म ग धव था, िक तु इस ज म म तो रा स ही हँ; मेरी िवनती है िक म ृ यु के
बाद रा स क था के अनुसार ही आप मुझे िम ी म दफन करवा द।’’
म ृ यु के बाद, उसक इस इ छा का स मान करते हये राम के आदेश से ल मण ने एक बड़ा
गढ्ढा खोदकर िवराघ क देह को उसम दफना िदया।
वे वहाँ से चले तो शरभंग ऋिष के आ म पहँचे। शरभंग अपनी इि य पर िवजय ा कर चुके थे
और अपनी देह छोड़ने का िन य कर चुके थे, िक तु जब उ ह ीराम के इस ओर आने का
समाचार िमला तो ऋिष ने उनके दशन तक देह म ही रहने का िन य िकया।
राम आये। शरभंग ने उनका बहत ा और भि के साथ वागत िकया। कुछ देर तक
आ याि मक चचा भी क , और िफर उ ह ने राम से कहा।
‘‘आपके दशन क मेरी अिभलाषा पण ू हई इससे अिधक कोई या चाह सकता है; अब आप जाने
को त पर ह तो मुझे भी इस संसार को यागने क अनुमित दीिजये।’’
‘‘ऋिषवर, आपक िकसी भी इ छा का अनादर म नह कर सकता... आपने कुछ सोचकर ही यह
िनणय िलया होगा।’’
ऋिष शरभंग ने अपनी देह के याग के िन य से अि न विलत करायी और राम से ाथना
क िक उनक देह के पण ू होने तक वे वह के रह, जाय नह ।
ू त: भ मीभत
सीता का मन इस संग से बहत अिधक याकुल हो उठा था। राम ने इसे समझा और उनसे कहा,
‘‘सीते, याकुल मत ह ; ऋिषवर अपनी आयु ही नह परू ी कर चुके, वे अपनी इि य पर पण ू
िवजय भी ा कर चुके ह, अब उ ह यह न र देह छोड़नी तो है ही।’’
राम के समझाने से सीता का मन कुछ तो शा त हआ िक तु जब शरभंग म ो चार करते हए
अि न म वेश करने लगे, सीता क देह रोमांच से भर उठी। उ ह ने राम का हाथ कसकर पकड़
िलया और ने ब द कर िलये।
उ ह लग रहा था िक संभवत: कुछ देर म ऋिष के पीड़ा भरे वर और चम जलने क ग ध से
वातावरण भर उठे गा, िक तु उ ह बहत आ य हआ, जब ऐसा कुछ भी नह हआ। कुछ देर बाद
उ ह राम का वर सुनाई िदया।
‘‘सीते!’’
‘‘हाँ।’’
‘‘ने खोलो।’’
सीता ने ने खोले। शरभंग मुिन क देह राख हो चुक थी और अि न भी लगभग शा त हो चुक
थी। उनके जीिवत जलने क क पना से सीता क देह म एक बार पुन: िसहरन सी दौड़ गयी। वे
बहत आ यचिकत थ िक न ऋिष क पीड़ा क विनयाँ, न चम जलने क कोई ग ध ही आयी
और सब कुछ इतना शी हो गया था, जैसे बस कोई एक क से उठकर दूसरे क म चला गया
हो।
शरभंग के आ म से चलकर राम, ऋिष सुती ण के आ म पहँचे। उनसे िमलकर राम को लगा िक
उ ह द डक वन े क अ छी जानकारी है, अत: उनसे िवदा लेते समय राम ने उनसे कहा,
‘‘ऋिषवर, आपको इस े म िनवास करते बहत समय हो गया है, अत: वनवास के समय हमारे
ठहरने के िलये आपक ि म कौन-सा थान उ म है?’
‘‘ ीराम मेरा सौभा य होगा यिद आप लोग सुखपवू क यह िनवास कर; यहाँ समय-समय पर
ऋिषय के समुदाय भी आते रहते ह। अ छा सतसंग रहे गा और िफर यह थान सभी सुिवधाओं से
यु भी है। म वयं भी आप सभी का बहत यान रखँग ू ा।’’ इतना कहने के बाद ऋिष जैसे कुछ
सोचकर बोले, -‘‘बस, यहाँ पर मग ृ बहत अिधक ह और बहधा उनका उप व भी रहता है।’’
‘‘आपके इस ताव के िलये हम कृत ह, िक तु आप अ यथा न ल; हम अपना यह समय
िकसी एकांत और अिधक शा त थान म चाहते थे।’’
‘‘िफर तो मेरी ि म पंचवटी का े आपके िलये बहत अ छा रहे गा...। वह थान बहत सु दर
भी है और शा त भी।’’
चलते समय सुती ण ने उनसे द डकार य े के रा स के शमन क ाथना क और राम ने
उ ह इसका आ ासन भी िदया। राम के रा स के शमन के आ ासन पर सीता कुछ िचि तत
हइ। माग म सीता ने उनसे कहा,
‘‘आपने ऋिष को रा स के शमन का आ ासन िदया है।’’
‘‘हाँ।’’
‘‘िक तु म चाहती हँ िक कभी भी आपके हाथ से िकसी िनरपराध का वध न हो, भले ही वह
रा स ही य न हो।’’
‘‘आपने मेरे मन क बात क है सीते; और म कभी भी िकसी िनरपराध का वध न करने का
आपको आ ासन देता हँ।
िविभ न ऋिषय , मुिनय से िमलते हए राम, पंचवटी े म पहँचे तो उस थान के ाकृितक
सौ दय से अिभभत ू हो उठे । वहाँ उ ह अपनी अपे ा के अनु प शाि त भी लगी, तो उ ह ने सीता
और ल मण क सहमित से वह वास करने का िन य िकया और सबक सहायता से, रहने के
िलये एक पणकुटी का िनमाण कर िलया।
पंचवटी का े था। हे म त ऋतु आ चुक थी। भयंकर ठ ढ और पाले के िदन थे। प े झड़ जाने के
कारण व ृ सन ू े िदखाई दे रहे थे। सयू दि णायन हो चुके थे। रात बड़ी और िदन छोटे होने लगे थे।
धपू का पश बहत सुखद तीत होने लगा था। यह े तरह-तरह के जीव ज तुओ ं से भरा हआ
था, िक तु अ यिधक ठ ढ होने के कारण वे भी कम िदखाई देने लगे थे। पाला पड़ने से
अिधकतर पौध म केवल डं िडयाँ ही बची हई थ ।
ातःकाल का समय था। पेड़-पौधे और भिू म पर उगी घास पर ओस क बँदू चमक रही थ । राम,
ल मण और सीता, गोदावरी म नान करने के बाद एक थोड़े ऊँचे थान पर सुबह क ह क
नम धपू म बैठे थे। कह से ढूँढ़कर ल मण, एक बड़े से प े का दोना सा बनाकर कुछ पु प
एकि त कर लाये थे।
सब ने पास ही एक छोटा सा मि दर भी बना िलया था। अब सभी िमलकर उसी मि दर गये और
म ो चार के साथ िविधवत पज ू न- अचन िकया। उसके बाद सीता सबके िलए कुछ अ पाहार का
ब ध करने आ म म चली गई ं। राम और ल मण वह बैठकर उनक ती ा करने लगे।
सीता, आ म म अ पाहार तैयार कर रही थ , तभी उ ह लगा िक राम िकसी ी से बात कर रहे
ह। इस घोर वन म कौन आ गया, इस उ सुकता से सीता ने आ म क िखड़क से झाँका, तो
देखा, सचमुच राम मु कराते हये एक ी से बात कर रहे ह और ल मण कुछ दूर हटकर खड़े
थे।
सीता ने देखा, ी एक सु दर नवयुवती थी, िक तु उसके मुख पर नारी सुलभ ल जा और
कोमलता नह थी। उ ह, उसके हाव-भाव भी अ छे नह लगे। थोड़ी देर म उ ह ने देखा िक राम ने
ल मण क ओर इशारा िकया और वह ी, ल मण के पास जाकर बात करने लगी।
अब तक अ पाहार तैयार हो चुका था। सीता, राम और ल मण को बुलाने के िलये बाहर आ गई ं।
उ ह ने देखा, ल मण भी उससे हँसते हए बात कर रहे थे। सीता ने राम के पास आकर धीरे से
पछू ा,
‘‘यह ी कौन है?''
‘‘यही रावण क बहन सुपणखा है और इस े क वािमनी है। इसने रावण क इ छा के िव
एक युवक के साथ भागकर िववाह कर िलया था, इससे वयं को अपमािनत अनुभव कर रावण
ने उस युवक का वध कर िदया, िक तु अपनी युवा िवधवा बहन के अ ु प छने के िलये रावण ने
द डकार य का े इसे स प िदया।’’ राम ने कहा।
‘‘ य आई है?''
सीता के इस पर राम ह के से हँस पड़े । बोले,
‘‘पहले यह मेरे पास आयी थी।’’
‘‘िक तु य ?’’
‘‘इसे जाने दो, बाद म बताऊँगा; अभी तो मने ही इसे ल मण के पास भेजा है।’’
‘‘कुछ िवशेष है या? सीता का कुतहू ल जा नह रहा था। राम ने सीता के मुख क ओर देखा,
मु कराये, िफर बोले,
‘‘कुछ देर बाद यह तु ह वयं ही प हो जायेगा, मुझे कुछ भी बताना नह पड़े गा।
सीता ठगी सी सुपणखा क ओर देखने लग , िफर जैसे कुछ मरण हो आया हो ऐसे बोल ,
‘‘अरे हाँ, म जो कहने आयी थी वह तो भल ू ही गयी।’’
‘‘ या?’’
‘‘अ पाहार तैयार है।’’
‘‘ल मण को आने दो, चलते ह।’’ सीता, िफर ल मण और सुपणखा क ओर ही देखने लग ।
उ ह ने देखा, ल मण भी हँसते हए राम को इंिगत करते हये कुछ कह रहे ह। वह ल मण को
छोड़कर राम के पास आ गयी।
ल मण से बात करते समय सुपणखा ने एक दो बार सीता क ओर भी देखा था; िक तु उसने
एक बार भरपरू ि सीता पर डाली और उपे ा से मँुह फेर िलया। वह कुछ खीजी, िचढ़ी और
उ ेिजत लग रही थी। उसने राम क ओर देखा, तो राम ने पछ ू ा।
‘‘ या हआ?’’
यु र म उसने अित गव से कहा,
‘‘म लंकापित रा से रावण क भिगनी हँ राम! मुझसे बात मत बनाओ, अिपतु अपने को ध य
समझो िक म तुमसे णय-िनवेदन कर रही हँ; इसे वीकार करो।’’
अब सब कुछ सीता क समझ म आ गया। अव य इसने पहले राम से णय-िनवेदन िकया होगा,
इस पर उ ह ने हँसी करते हए ल मण के पास भेजा होगा, और ल मण ने पुन: इसे राम के पास
भेजा है; िक तु सीता ने पहली बार इस तरह िनल जतापवू क िकसी ी को णय-िनवेदन करते
सुना था। वे आ यचिकत रह गई ं और राम क ओर देखने लग । तब तक ल मण भी पास आ गये
थे। राम ने सीता को इंिगत करते हये सुपणखा से कहा,
‘‘सुपणखा, ये मेरी भाया ह और म एक प नी तधारी हँ, तु हारी मनोकामना पण ू नह कर
सकता।''
सुपणखा ने बहत ोध से सीता क ओर देखा। सीता ने देखा, उसके ने लाल हो गये थे और
चेहरा तन गया था। उसने इतना कसकर अपना िसर झटका िक उसके केश खुलकर िबखर गये,
िफर दाँत पीसते हये कहा,
‘‘राम, म अपनी राह के इस रोड़े को अभी समा कर देती हँ। इसके बाद तु ह मेरा आ ह वीकार
करने म कोई बाधा नह रह जायेगी।''
यह कहते हए वह सीता क ओर झपटी। सीता उसके इस अचानक आ मण से च ककर पीछे हट
और उ ह ने देखा िक पता नह कब, तलवार िलए ल मण का हाथ उन दोन के म य आ गया
था। सुपणखा अपने को सँभाल नह सक । ल मण क तलवार से उसका मुख टकरा गया। वह
चोट खाकर भिू म पर िगर पड़ी।
सीता ने देखा, सुपणखा के इस काय से राम आ य-चिकत और ल मण ोिधत िदखाई दे रहे
थे। उ ह ने भिू म पर पड़ी हई सुपणखा को देखा। उसके नाक और कान पर तलवार से और भिू म
पर िगरते समय िकसी प थर से टकराने से घाव हो गये थे।
बहते हये िधर से उसका चेहरा रँ ग गया था, और कुछ र भिू म पर भी पड़ा था। सीता ने सहारा
देकर उसे उठाया, िक तु उसने उठते ही सीता को ध का दे िदया। ल मण ोिधत होकर उसक
ओर झपटे, िक तु सीता ने सँभलते हए हाथ के इशारे से उ ह रोक िदया और बोल ,
‘‘म ठीक हँ, िचि तत मत हो।''
सुपणखा अब तक सँभल चुक थी। उसने अपने चेहरे पर हाथ फेरा तो हाथ र से सन गया।
सुपणखा अपमािनत और घायल थी। उसने पैर पटकते हये कहा,
‘‘िच ता या होती है, और वह कैसे िचता बन जाती है, यह तुम सबको शी ही ात हो जायेगा।
तुमने अपने काल को वयं आमंि त िकया है राम।’’
िफर वह बहत तेजी के साथ वहाँ से चली गई। उसके जाने के बाद सीता को लगा, जैसे कोई तेज
धलू भरी आँधी गुजर गई हो। उनका दय कुछ जोर से धड़क रहा था। उ ह ने ल मण क ओर
देखा उनके चेहरे पर शाि त थी। िफर उ ह ने राम क ओर देखा। ग भीर चेहरा िक तु ह ठ थोड़े
से ितरछे । उ ह लगा, राम कुछ सोच रहे है। उ ह ने उनसे पछ
ू ा,
‘‘आप कुछ सोच रहे ह; या वह िफर आयेगी?''
‘‘आ भी सकती है।’’
‘‘ य ?’’
‘‘बदला लेने का यास अव य करे गी।''
सीता को लगा, उनके दय म एक बार पुन: धक् से हआ है।
इसके बाद राम ने सावधानी रखते हए, ल मण को धनुष-बाण धारण कर, सीता को व ृ से
िघरी, पवत क एक गुफा म ले जाकर सुरि त रखने का आदेश िदया। ल मण इसके िलये तुर त
तैयार हो गये, िक तु सीता िठठक । उ ह ने राम से तो कुछ नह कहा, िक तु ल मण क ओर
देखकर बोल ,
‘‘यँ ू अकेले इ ह छोड़कर कैसे जा सकते ह हम?’’
‘‘िच ता क बात नह है, वे अकेले ही उन सबके िलये बहत ह।’ ल मण ने कहा।
राम का अनुमान स य िस हआ। शी ही सुपणखा के उलाहने से अित उ ेिजत खर और दूषण
बहत से साथी रा स क सेना लेकर लड़ने के िलये आ गये। सुपणखा भी साथ ही थी। बाण क
भयंकर वषा करते हये राम ने अकेले ही उनके िव मोचा सँभाल िलया। कुछ ही समय के यु
के बाद बहत से रा स मारे गये, तो शेष ने वहाँ से भागने म अपनी कुशल समझी। िवलाप करती
हई सुपणखा भी उनके पीछे -पीछे चली गयी।
सीता मन मारकर ल मण के साथ चल तो पड़ , िक तु जाते-जाते बार-बार मुड़-मुड़कर राम को
देखती जा रही थ । ल मण के उ र से उनक आशंकाय कम तो हई थ , िक तु समा नह । राम
उनक ओर ही देख रहे थे। उ ह ने सीता क मन:ि थित समझी और कुछ मु कराकर हाथ
उठाकर उ ह आ त करने का यास िकया।
सीता चली तो गय , िक तु सुपणखा के प म लड़ने आये रा स के िवनाश के बाद जब तक
राम उ ह लेने नह आये, वे बेचन ै ही रह और मन ही मन उनक कुशलता क कामना करती
रह । वापस आकर रा स क िवशाल सेना का िवनाश देखकर राम के परा म के ित उनका
मन गव से भर उठा।
िच कूट म दस माह और उसके प ात् इस द डकार य म रहते हए लगभग बारह वष यतीत हो
चुके थे। सीता अपने आ म म बैठी हई थ । उ ह ने इसे बहत सु िचपण
ू ढं ग से सजाया था। रै न-
बसेरे से शु होकर, यह एक छोटे से आ म का प ले चुका था। सीता सोचने लग , बस लगभग
एक वष और यहाँ रहना है, उसके बाद घर प रवार के लोग िमलगे।
घर प रवार का यान आते ही सबसे पहले उ ह उिमला का यान आया उस बेचारी ने अभी देखा
ही या था? िववाह के मा छह माह बाद ही वह अपने पित से चौदह वष के ल बे अ तराल के
िलये िबछुड़ गई थी। सीता सोच नह पा रह थ िक उसके िदन कैसे कटते ह गे; िक तु इस चौदह
वष के वनवास के समा होने पर सबसे अिधक खुश होने वाली वही होगी। उ ह ने उिमला क
खुशी के िलये इस एक वष के ज दी बीतने क कामना क ।
उ ह लग रहा था िक उिमला भले ही उनक छोटी बहन थी, िक तु इतने बड़े याग के बाद उसका
कद बहत अिधक बड़ा हो गया था। िफर उ ह अपने सुर, महाराज दशरथ का मरण हो आया। वे
एक सीधे स चे इंसान थे। अपने बड़े पु राम का राजितलक देखना चाहते थे, िक तु कैकेयी के
यवहार ने उ ह इस सुख से ही वंिचत नह िकया बि क उनको ाणा तक पीड़ा भी दी।
कैकेयी का च र उ ह पहे ली सा लगने लगा। वे राम को भरत से अिधक चाहती थ ,िफर उ ह ने
ऐसा हठ य िकया? पहले राम से इतना अिधक ेम, िफर उ ह मा व कल व म चौदह वष
के िलये सुदूर दि ण म ि थत द डकवन भेजना, उनक कूटनीित थी या यह इस प रवार का
भा य था और वे इसके िलये एक बहाना मा थ ।
सीता के मन म राम और अपने िलये नह , िक तु उिमला और ल मण के िलये बहत अिधक दुःख
था। वे िब कुल अकारण ही यह दुःख उठा रहे थे। िवदा लेते समय उिमला का आँसुओ ं से भरा हआ
चेहरा सीता क आँख के आगे से हट नह रहा था। उिमला के दुःख को याद कर सीता के ने
भर आये। सहसा एक िगलहरी उनके पाँव को छूते हए िनकल गई ं। इससे वे च क गइ। सीता ने
अपनी आँख प छ । उ ह लगा, यिद कह ीराम या ल मण ने उ ह रोते देखा, तो वे भी दुःखी हो
जायगे। उ ह ने सामा य होने का यास िकया, िक तु िवचार का म टूट नह रहा था।
सीता को, माता कौश या का सदैव ममता भरा यवहार याद आया, तो उ ह लगा, ई र सभी को
ऐसी सास दे। उ ह माता सुिम ा क याद आई, तो िफर लगा िक वे भी अचानक ही कैकेयी के
दुरा ह का िशकार होकर स तान से िबछड़ने का दु:ख पा रही ह। उ ह लगा, कैकेयी ने अपना
अ तो ीराम पर चलाया था, िक तु उसक चपेट म परू ा प रवार ही आ गया, और िजस भरत के
िलये उ ह ने यह सब िकया वही सबसे अिधक दुःखी और कैकेयी के िवरोधी हो गये।
तभी एक ब दर दौड़ता हआ आया और सीता के पास रखी टोकरी से एक फल उठाकर भाग
गया। उस दुःख म भी सीता को ब दर क यह हरकत देखकर हँसी आ गई। उ ह ने फल क
टोकरी उठाकर अ दर रखी और वयं आ म से बाहर आकर अपने इस िनवास को देखने लग ।
उ ह लगा, कह न कह , उ ह यह आ म और यह थान ि य लगने लगा है। ऐसा लगता है, जैसे
यह कृित क गोद म उनका एक छोटा सा घर है, िजसम वे अपने पित और देवर के साथ रहती
ह। िकतना सीधा, सादा और सरल जीवन है। उ ह लगा, उनके मन म इस घर और थान के िलये
मोह पैदा हो रहा है।
उनका आ म केले, कनेर, अशोक, आम आिद तरह तरह के व ृ से दूर-दूर तक िघरा हआ था।
इनम बहत से व ृ सीता के अपने लगाये हए थे। भाँित-भाँित के फूल के पौधे भी थे। ये भी सीता
के अपने हाथ के लगाये हये थे। व ृ पर बहत से पि य का बसेरा था और कु ज म बहधा िहरन
आिद िदखाई पड़ जाते थे। उ ह ने आ म के िनकट ही एक छोटी सी गौशाला बनाकर उसम एक
गाय भी पाल रखी थी। वे उठकर आ म से बाहर आई ं और टहलने लग । धपू बहत ह क थी। हवा
म शीतलता थी।
सीता िनकट के एक कनेर के व ृ के पास आई ं। कनेर के कुछ पु प चुनकर उ ह ने अपनी बाँय
हथेली म समेटे, िफर वे एक-एक फूल उठाकर िहरन के ब च पर फकने लग । िकसी ब चे को
फूल लग जाता, तो अपने शरीर को िहलाकर वह उछलते हए भागता और सीता हँस पड़त । उ ह
यह खेल बहत अ छा लग रहा था।
सहसा उ ह ने एक बहत सु दर मग ृ देखा। वह अ य मग ृ से अलग था। रं ग सुनहरा और
चमकदार था। ऐसा लगता था, िकसी ने सोने का मग ृ बना डाला है। सीता आ य से भर गइ। उस
मगृ क सु दरता ने उ ह मोिहत कर िलया। उ ह ने देखा, उस मग ृ का चलना, दौड़ना, कुलाँचे
भरना, सब कुछ दूसरे मग ृ से अलग था। उ ह ने ल मण को आवाज दी। जब उनक ओर से
यु र िमला, तो उ ह ने कहा िक वे अपने भाई को साथ लेकर शी आ जाय, एक अ ुत मग ृ
िदखाना है। ल मण, राम को लेकर आ गये। उनके आने पर सीता ने उस मग ृ को इंिगत कर
कहा,
‘‘ल मण देखो, वह मग ृ िकतना अ ुत है!'' ल मण उसे गौर से देखने लगे। उ ह ने इसका कुछ
उ र नह िदया। सीता ने पुन: राम क ओर देखा और कहा,
‘‘बहत सु दर है न!''
राम ने कहा,- ‘‘हाँ सचमुच बहत सु दर है।''
राम के उ र से उ सािहत होकर सीता ने कहा,
‘‘वह मग ृ मुझे ला दो, म पालँग ू ी... हमारा वनवास का समय परू ा होने पर जब हम वापस अयो या
चलगे, म इसे भी ले चलँग ू ी; सभी लोग इसे देखकर आ य करगे।''
राम उनक बात सुनकर मु कराये और बोले,
‘‘मग ृ को जीिवत पकड़ पाना आसान नह होता; वे बहत तेज भागते ह और हमारे पास कोई जाल
भी तो नह है।''
‘‘यिद आप उसे जीिवत पकड़ सक तो बहत अ छा है, अ यथा उससे ा मग ृ चम, आसन के िलये
िकतना सु दर होगा... ऐसा मग ृ चम िकसी के पास नह होगा।''
ल मण अभी तक शा त होकर सुन रहे थे, बोले,- ‘‘मुझे उस मग ृ पर स देह है।''
‘‘ या?''राम ने कहा।
‘‘यह वन देश है; यहाँ रा स का अ सर उप व रहता है; यह देश रा सराज रावण क पहँच
से बहत दूर भी नह है।''
‘‘ या कहना चाहते हो ल मण?''
‘‘मुझे यह मायावी मग ृ लगता है। यह वयं कोई रा स या िकसी रा स क माया हो सकता है;
इसे पाने क चे ा यथ और खतरनाक हो सकती है।
‘‘तुम ऐसा य सोचते हो ल मण, या तुम भयभीत हो?'' सीता ने कहा,
‘‘भय या होता है, यह ल मण ने कभी नह जाना, िक तु यथ म खतरा मोल लेना भी मुझे
उिचत नह लगता,'' ल मण ने कहा।
िक तु राम, सीता के आ ह को यथ नह जाने देना चाहते थे। उ ह मरण था िक िच कूट म
अनसुइया और पंचवटी म महिष अग य ने उनसे सीता क हर इ छा परू ी करने को कहा था।
अत: वे बोले,
‘‘ल मण, तु हारी बात ठीक हो सकती है, िक तु तब तो उसका मारा जाना और भी आव यक
है।''
थोड़ा ककर राम ने िफर कहा,
‘‘यिद वह सचमुच मग ृ है, तो सीता क इ छा परू ी हो जायेगी, और यिद वह रा सी माया है, तो
िजसने हमारे आ म तक गलत भावना लेकर आने का दुःसाहस िकया है, उसका अ त आव यक
है।''
‘‘ठीक है ाता ी, जैसा आप उिचत समझ।''
इसके बाद, राम तो धनुष लेकर उस मग ृ के पीछे िनकल पड़े , िक तु सीता को ल मण ारा राम
को रोका जाना, अ छा नह लगा था। वे वह बैठकर राम क ती ा करने लग । ल मण भी वह
थोड़ा हटकर खड़े हो गये। अचानक राम के वर म हा सीते! हा ल मण' सुनाई पड़ा, और सीता
के आदेश से ल मण उ ह ढूँढ़ने िनकले। जाते-जाते ल मण ने उ ह िकसी अजनबी पर िव ास न
करने क सलाह दी।
इस बीच पहले से बनाई गयी योजना के अनुसार ही साधु वेष म रावण आया। सीता ने ल मण क
सलाह का यान न रखते हए उसका िव ास िकया। और रावण सीता का अपहरण कर रा ते म
बाधा डालने वाले जटायु को परा त करते हए लंका पहँच गया।
राम और ल मण लौटकर आये। उ ह ने सीता को न आ म और न आस-पास ही कह पाया।
उनका मन आशंकाओं से भर उठा, और शी वे समझ गये िक अव य ही सीता िकसी संकट म ह।
दोन के ने म र और साँस म तफ ू ान भर उठा।
इधर रावण ने पहले सीता को महल म ले जाकर अपना वैभव िदखा कर भािवत करने का
यास िकया, िक तु उसम सफल न होने पर उ ह अशोक के व ृ क एक वािटका म कुछ
अ य त िनमम रा िसय के पहरे म कैद कर िदया।
13. कैद हये िदन
सीता, अशोक के पेड़ से िघरी वािटका म पहँच चुक थ । रोते-रोते उनके गले म तकलीफ होने
लगी थी। आँख से बहे हए आँसू प छ-प छकर उनके व का एक कोना भीग चुका था और मुख
पर आँसू सख ू े हए थे। अशोक वािटका पहँचकर सीता एक व ृ के सहारे खड़ी हो गय । उ ह लग
रहा था, उनके शरीर म जान नह है।
उ ह पानी पीने और कह बैठने क ती इ छा हो रही थी। उ ह ने आँख उठाकर हर ओर देखा।
थोड़ी दूर पर कुछ रा स ि याँ आपस म कुछ बात कर रही थ । कुछ रा स ि याँ चार ओर
िबखरकर भी खड़ी थ । सीता समझ गई ं, ये उन पर पहरा रखने के िलये ही वहाँ ह गी। उनको
अपनी ओर देखते पाकर, उसम से एक उनक ओर आई। सीता ने देखा, उसके मुख पर ू रता
नह , सरलता िव मान थी। उसने पास आकर पछ ू ा,
‘‘कुछ चािहये बेटी?''
‘‘पानी,'' सीता बहत किठनाई से कह पाय ।
‘‘बेटी, म अभी लाई।'' कहकर वह चली गई और कुछ ही देर म पानी से भरा एक पा ले आई और
कहने लगी,
‘‘लो, शु जल है; पीलो और आँख भी धो लो; चेहरे पर आँसू सख ू गये ह।''
सीता को उसके वर म अपन व लगा। उ ह ने उसके हाथ से पानी िलया। मुख पर डाला तो ठ ढे
पानी का पश जैसे अ दर तक ठ ढक भर गया। सीता ने मुख धोया और िफर वे बहत सा पानी
पी गई ं। पानी पीकर सीता को कुछ जान सी िमली, तो उ ह ने देखा, वह ी इतनी देर म कुछ
पुआल, एक आसन और एक केले के प े पर रखकर कुछ फल ला चुक थी। उसका नेह
देखकर सीता का मन भर आया- वे बोल ,
‘‘माँ, इस हतभािगनी के िलये आप इतना परे शान न ह ।''
‘‘ऐसे नह कहते बेटी'' कहते हये उसने पुआल िबछाये, िफर उसके ऊपर एक आसन डाल िदया
और बोली,
‘‘लो बैठो, और कुछ फल लाई हँ, इ ह खालो।''
सीता उस आसन पर बैठ गई ं। बैठते ही उ ह लगा, जैसे थकान और दद से उनका पोर-पोर दुख
रहा है। उस ी ने सीता के सर पर हाथ फेरा और बोली,
‘‘बेटी, मेरा नाम ि जटा है; म इसी जगह रहँगी... तु ह कभी भी िकसी व तु क आव यकता हो
तो मुझे बुला लेना,'' िफर थोड़ा ककर बोली,
‘‘तुमने फल नह िलये बेटी।''
‘‘मुझे भखू नह है माँ,'' सीता ने कहा।
िक तु ि जटा नह मानी। वह आ ह करती ही रही, तो सीता ने फल लेकर रख िलये और बोल ,
‘‘माँ, म इ ह थोड़ी देर बाद खा लँगू ी।''
‘‘तुम खा अव य लेना बेटी, िक तु म अब चलती हँ; तुम थोड़ा िव ाम कर लो, म िफर आऊँगी।''
उसके जाने के बाद सीता, व ृ से पीठ िटकाकर बैठ गई ं। बैठे-बैठे ही कब उनक आँख लग गई,
उ ह पता ही नह लगा। कुछ देर बाद जब उनक आँख खुल तो दोपहर ढल चुक थी। सीता को
यान आया िक यिद वे अपनी कुटी म होत , तो यह समय शाम क पज ू ा का होता।
उ ह लगा दुिनया िकतनी ज दी बदल जाती है। वे िमिथला म अपने िपता का घर छोड़कर एक
िदन अयो या आई थ और थोड़े समय बाद, जब वे अयो या के अपने नये प रवार के बीच वयं को
ढाल ही रही थ िक उ ह राम के राजितलक का समाचार िमला; िफर अचानक ही उ ह महल को
छोड़कर वन-वन भटकने क अपनी िनयित को वीकार करना पड़ा, और िफर जब वे वहाँ उस
द डकवन म रच बस गई थ , तभी अचानक एक काली आँधी सा रावण आया। सीता के उस छोटे
से घर को भी ितनक सा उड़ाकर, उ ह यहाँ ले आया और आज वे उसक बि दनी हो चुक ह।
उ ह लगा, वे िनपट अँधेरे म खुले आसमान के नीचे बैठी ह। उनके साथ ऐसा य हो रहा है, यह
सोचते हए उ ह ने एक गहरी साँस लेकर अपने ने ब द कर िलये। सीता को लगा, उनक साँस
तेज हो रही ह, िक तु थोड़ी देर म ही इन साँस क गित वाभािवक और िफर धीमी हो गई ं।
मन शा त होने लगा, और सीता यान क गहन अव था म पहँच गई ं। उ ह लगा, वह शू य म
तैरते हए कह िहमालय के वन म पहँच गई ह, जहाँ वे ऋिष कुश वज क अ य त सु दर और
तपि वनी क या वेदवती ह। उनके शीश पर जटा है और वे एक अ य त रमणीक थान पर बैठी,
ई र का यान कर रही ह। सहसा रावण वहाँ आया और वेदवती से णय िनवेदन करने लगा।
वेदवती को रावण का यह ताव बहत अपमानजनक लगा। उसे ोध आया और उसने रावण क
बहत भत ना क । रावण ने ोिधत होकर उसके केश पकड़कर ख चे। वेदवती ने अपने केश को
झटके के साथ सर से अलग कर िदया। इसम उसे भयंकर पीड़ा हई। उस ोभ, पीड़ा और ोध क
अव था म ही वेदवती ने पेड़ क टहिनयाँ एकि त कर अि न विलत क और उसम वेश
करते हए रावण को स बोिधत कर कहा,
‘‘नीच! इस ज म म तो म मजबरू हँ, िक तु शी ही अगला ज म लेकर तेरी म ृ यु का कारण
बनँग
ू ी।''
सीता को आग क भीषण तपन महसस ू होने लगी। उनका शरीर काँप सा गया और उनके ने
खुल गए। दय जोर से धड़क रहा था। उ ह लगा िक वे कोई भयानक व न देखकर उठी ह।
थोड़ी देर बाद वे सामा य हई ं तो उ ह लगा िक शायद उ ह अपने साथ हो रहे इस घटना-च के
कारण का बोध हो गया है। वे शाि त अनुभव करने लग । उ ह लगने लगा िक अव य ही वे रावण
के वध का कारण बनने के िलए ही लंका पहँची ह, और शी ही इस काय को परू ा कर, राम उ ह
ले जायगे।
एक गहरी साँस लेते हए उ ह ने अब तक के हए घटना म पर एक िवहंगम ि डाली, तो उ ह
लगने लगा िक इस घटना के पीछे कुछ न कुछ कारण अव य है। मन हलका लगने लगा था।
उ ह ने ि जटा के रखे फल म से कुछ फल िलये, िफर उसी थान पर लेट गई ं और थोड़ी देर म
थके हए शरीर और रोने के कारण लाल हए ने वाली सीता को न द आ गई।
* * *
सीता क आँख खुल तो उस समय राि हो चुक थी। आँख खुलते ही एक बार वे च क उठ । चार
ओर गहन स नाटा और अंधकार पसरा हआ था। केवल हवा के चलने से व ृ से विन उ प न
हो रही थी। कभी-कभी इस स नाटे को चीरती िकसी प ी या िकसी ज तु क आवाज सुनाई दे
जाती थी। वे उठकर बैठ गई ं। कुछ देर तक उ ह समझ म ही नह आया िक वे कहाँ ह, िक तु
थोड़ी देर बाद उ ह यान आया िक वे रावण क कैद म ह।
इतना घोर स नाटा था िक उ ह अपने दय क धक्-धक् भी सुनाई दे रही थी। थोड़ी देर म जब वे
सामा य ि थित म आई ं, तो उस अंधकार म ही चार ओर देखने का यास करने लग । आसमान
म कुछ तारे और चार ओर चाँद का हलका-हलका काश था। उसी काश म व ृ के झु ड,
छायाओं क भाँित िदख रहे थे। हवा के वाह से उनक डािलयाँ िहल रही थ ।
सीता को मरण हो आया िक वे जब तक जाग रही थ , बहत सी रा स ि याँ उ ह घेरे हए थ ।
शायद वे यह कह ह गी। सहसा उ ह लगा, कोई मानवाकृित कुछ दूर पर बैठी हई है। वे बहत
जोर से च क गई ं और बोल ,
‘‘कौन है?''
उ र िमला,-‘‘बेटी, म हँ ि जटा; अ यथा मत समझना, िक तु तु ह अकेला छोड़कर जाने का
मन नह हआ।''
सीता अचि भत हई ं, बोल ,
‘‘माँ, या आप तब से इसी कार बैठी हई ह?''
‘‘हाँ बेटी; अब उ हो गई है... वैसे भी रात भर ठीक से न द कहाँ आती है, और िफर यहाँ कोई
क ड़ा-मकोड़ा या व य-ज तु कभी भी आ सकता है।''
‘‘यिद ऐसा है तो आप सो जाइए माँ, म बैठी हँ।''
‘‘नह बेटी, तु हारा क देखकर मेरी छाती फटी जा रही है। म सो नह पाऊँगी, पर तुम लेट
जाओ; कुछ देर म आँख लग जायेगी। तु हारा इस कार बैठे रहना, मेरे क को बढ़ा देगा।''
सीता समझ गई ं, ि जटा नह मानेगी। वे चुपचाप पुन: लेट गई ं। सीता के ने म न द नह थी।
उनक आँख के आगे सोने के मग ृ के िलये अपने आ ह का िच आया, तो उ ह लगा िक उनक
बुि को या हो गया था? वे य नह समझ पाई ं िक मग ृ सोने का नह हो सकता, जबिक
ल मण बराबर कह रहे थे िक यह िकसी रा स का कपट हो सकता है।
उ ह याद आया िक जब राम पर खतरे क आशंका से, वे ल मण को उ ह ढूँढ़ने भेज रही थ , तब
भी ल मण बराबर कह रहे थे िक राम को कोई खतरा नह हो सकता; इसम अव य ही कोई चाल
है और उनको ढूँढ़ने जाने क आव कता नह है; पर उ ह ने ल मण को जबरद ती भेजा था। वे
ल मण के ित कटु हो गई थ । यिद ल मण वह होते, तो रावण उनका अपहरण करने का
साहस नह कर पाता। उ ह ने िकसी अजनबी पर िव ास न करने क सलाह भी दी थी, िक तु
उ ह ने ल मण क सलाह को भी मह व नह िदया था।
या यह िकसी सीमा-रे खा या ल मण-रे खा का उ लंघन नह था? ल मण के ित अपने
यवहार को याद कर उ ह अपने दय म पीड़ा का अनुभव हआ। कुछ आ म लािन सी होने लगी।
उ ह लगा, उनका क ठ ँ ध रहा है। उ ह ने दोन हाथ अपने सीने पर रखकर ने ब द कर
िलये और गहरी साँस लेने लग । थोड़ी ही देर म उ ह पुन: न द आ गई।
सीता को अशोक वािटका म रहते हए दो तीन िदन यतीत हो गये थे। वे अब तक इस वािटका से
थोड़ा प रिचत भी हो चुक थ । वहाँ बहत से सु दर फल और फूल वाले व ृ थे, िजन पर भाँित-
भाँित के प ी कलरव करते रहते थे। एक सरोवर भी था। उसके तट पर भी बहत सु दर व ृ थे
और उनसे िगरने वाले फूल उसके पानी पर तैरते हए बहत सु दर लगते थे। इनम कुछ जल पर
तैरने वाले प ी भी तैरा करते थे। सारे उपवन क भिू म इन व ृ से झड़ने वाले पु प और प से
भरी रहती थी।
इस उपवन म अशोक के व ृ बहत अिधक मा ा म थे, शायद इसीिलये लोग इसे अशोक वािटका
कहने लगे थे। यहाँ कुछ मग ृ और खरगोश भी थे। इस उपवन म एक भ य िशव मि दर भी था।
सीता के ये िदन शाि त से यतीत हए थे। न रावण, न कोई रा सी या रा स ही उ ह तंग करने
आया था।
ि जटा, व ृ ाव था क ओर अ सर ी थी। वह रा स जाित क अव य थी, िक तु अ य त
कोमल दय क थी। उसने सीता को अपने साथ लेकर आस-पास का े िदखा िदया था और
आव यक बात भी समझा दी थ । वह अपने घर से कुछ व भी ले आई थी, िजनसे सीता का
काम चल रहा था। वह व ृ से छाँट-छाँटकर कुछ मधुर फल भी ले आती थी और बहत समझा-
बुझाकर आ हपवू क सीता को वे फल िखला देती थी।
सीता, उस िशव मि दर को देखती थ , तो उनक बहत इ छा होती थी िक वे उसम जाय और
भगवान िशव के सामने बैठकर खबू रो ल, िक तु उ ह भय लगता था िक कह उसी समय रावण
वहाँ न आ जाये। ि जटा पास आई तो उ ह ने उससे पछ ू ा,
‘‘माँ, या रावण उस मि दर म आता है?''
‘‘नह , वह शायद ही कभी यहाँ आता है,'' ि जटा ने कहा।
‘‘ या म वहाँ जा सकती हँ? या यह सुरि त होगा?''
‘‘हाँ, तुम स नतापवू क जा सकती हो, और यिद कभी रावण के आने क स भावना हई तो म
तु ह पहले से ही सावधान कर दँूगी।''
‘‘माँ, म उस मि दर म जाना चाहती हँ।''
‘‘ठीक है बेटी, जब इ छा हो तब चलना, म तु हारे साथ ही रहँगी।'' सीता आ त हई ं। वे मि दर
जा सकगी, यह बात सोचकर मन म कह हष भी हआ। बोल ,
‘‘म शी ही वहाँ जाना चाहती हँ।'' सीता ने अपनी बात समा ही क थी िक दो रा स ि याँ
वहाँ आ गई ं। सीता ने भयभीत और वाचक ि से उनक ओर देखा। उनम से एक बोली,
‘‘सीते, मेरा नाम िवशाला ी है, और मेरे साथ यह च डोदरी है; हमसे भयभीत होने क
आव यकता नह है; हम रा सराज रावण, जो स दीप के वामी, बहत वीर और दयालु ह, क
ओर से तु हारे िलये अ य त सु दर और मू यवान व ाभषू ण लाई है, वह अपने साथ कुछ नये
व और बहत से आभषू ण लाई थी। तुम अपना मिलन वेष यागो और ये व ाभषू ण धारण करो।''
वे अपने साथ कुछ नये व और बहत से बहमू य आभषू ण लायी थ ।
िवशाला ी के प ात् च डोदरी बोली,
‘‘सीते, तुम बहत भा यशाली हो, िक हमारे महा तापी राजा ने तु ह अपनी भाया बनाने का
िन य िकया है; उस वन-वन भटकते राम के पास रखा ही या है? तुम उसे भल ू कर इस महान
सौभा य को वीकार करो... संसार क सभी सुख सुिवधाय तु हारी चेरी ह ग ।''
सीता जब से यहाँ आई थ , उ ह पण ू आशंका थी िक रावण क ओर से इस तरह क बात आयगी,
िक तु इस समय अचानक इन रा स ि य क बात से वे िवचिलत हो गई ं, िफर अपने को
सँभालकर बोल ,
‘‘मेरे िलये ऐसी बात सुनना भी बहत क दायक है; म ीराम के अित र िकसी अ य पु ष का
िवचार भी मन म नह ला सकती।''
िवशाला ी पुन: बोली,
‘‘तुम गलती कर रही हो सीते; सौभा य के ऐसे अवसर बार-बार नह आते... िफर हमारे महाराज
तो तु ह बहत अिधक चाहते ह; तुम उनक सबसे ि य रानी बनकर रहोगी।''
िवशाला ी के श द सुनकर सीता को लगा, जैसे िकसी ने उनके ऊपर ग दगी फक दी हो।
उनका मन िवत ृ णा से भर उठा और वाणी ित हो उठी। वे बोल ,
‘‘पुन: ऐसा िन दनीय ताव लेकर मत आना, अ यथा ीराम उस दुरा मा रावण के वध के
साथ-साथ तु ह भी दि डत करगे।''
सीता का कथन सुनकर दोन रा स ि याँ यं य से हँस । च डोदरी चेतावनी सी देती हई
बोली,
‘‘सीता, तुम अपनी म ृ यु को िनमं ण दे रही हो!''
‘‘मुझे म ृ यु का भय नह है; मेरे िलये इस ताव को मानने से म ृ यु कई गुना अिधक ेय कर
है।''
‘‘ठीक है, िफर म ृ यु क ही ती ा करो।'' कहते हए वे वापस लौट गई ं।
उनके जाते ही सीता उठ और मि दर क ओर चल पड़ । उनके ने म आँसू थे और क ठ ँ ध
रहा था। ि जटा दुःखी मन से उनके पीछे -पीछे आ रही थी। सीता मि दर के पास तक पहँचकर
सीिढ़य पर ऐसे बैठ गई ं, जैसे बहत थक गई ह । ि जटा पास आई, उनका हाथ पकड़ा और बोली,
‘‘बेटी, उठो अ दर चलो।''
सीता उठ । सीिढ़याँ चढ़कर मि दर म पहँच । िशव को णाम िकया, िफर मि दर क दीवार से
सटकर बैठ गई ं और ऐसे फूट-फूटकर रोने लग , जैसे कोई बहत दुःख के बाद अपने का सािन य
पाकर रोता है। ि जटा चुपचाप देखती रही। उसे श द नह सझ ू रहे थे। बहत देर तक रोने के बाद
सीता चुप हो गई ं। बैठे-बैठे उ ह न द सी आ गई। थोड़ी देर बाद उ ह ने अपने ने खोले तो ि जटा
ने सीता के िसर पर हाथ रखा और बोली,
‘‘बेटी, अभी बैठोगी या चलोगी?''
‘‘यहाँ से जाने का मन तो नह कर रहा है, िक तु चलना तो होगा ही।'' कहकर सीता उठ । एक
बार पुन: िशव को णाम िकया और धीरे -धीरे चलते हए बाहर आ गई ं।
सीता को अशोक वािटका म रहते हए कुछ िदन हो गये थे। अब तक उ ह ने अपनी िदनचया
िनयिमत कर ली थी। सुबह नानािद के बाद कुछ फूल एकि त करना, और िफर मि दर जाकर
पजू न-अचन करना। मि दर क साफ-सफाई का काय भी वे करने लगी थ । इसके बाद का
उनका अिधकांश समय मि दर म यान क अव था म बैठे-बैठे ही यतीत होता था।
शाम को वे थोड़ी देर आस-पास टहलती थ । इस सारे समय म, रावण ारा पहरे पर िनयु क
हई रा स ि याँ उन पर कड़ी ि रखती थ । िक तु ि जटा का उ ह बहत अिधक सहारा था।
वह साये क भाँित उनके साथ रहती थी। उसी के लाये फल खाकर वे िदन यतीत करती थ ।
ि जटा, उनके व आिद भी धोकर सुखाकर लाती थी। दोन अ सर राम क चचा िकया करती
थ । इससे उन दोन को बहत सुख िमलता था।
रावण क भेजी हई रा स ि याँ, लगभग रोज ही सीता को समझाने आती थ । वयं रावण भी
एक दो बार आया था, िक तु स तोष क बात यह थी िक वह हमेशा दूर से ही बात करता था।
उसने कभी सीता को छूने या जबरद ती करने का कोई यास नह िकया था। य िप सीता को
ढृढ़ िव ास था िक शी ही राम आयगे और रावण को मारकर उ ह मु कराकर ले जायगे, िफर
भी उ ह ने ि जटा क मदद से एक जंगली, जहरीले फल वाले व ृ के कुछ फल इक े कर िलये
थे, तािक यिद कभी रावण उनके साथ जबरद ती करने का यास करे , तो वे उसे खाकर अपने
ाण याग सक।
सीता, अशोक वािटका म ि थत िशव मि दर से सटे एक व ृ के नीचे उसके तने का सहारा
लेकर बैठी हई थ । शरीर पर ि जटा के लाये ह के पीले व , खुले हए केश, मुख पर उदासी और
आँख म सन ू ापन; अधर का बार-बार कुछ िहलना... कुल िमलाकर उ ह देखने से ही लग रहा
था िक वे अव य कह िवचार म खोई हई ह।
अचानक हवा कुछ तेज हई और िजस व ृ के नीचे वे बैठी थ , उससे बहत से फूल टूटे। कुछ सीता
के ऊपर, कुछ उनके पैर पर और कुछ उनके आस-पास िबखर गये। सीता के ऊपर जो फूल िगरे
थे, उनम से कुछ उनके िसर पर िगरकर, बाल पर और कुछ उनके क ध पर ठहर गये थे।
इन फूल ने अचानक उ ह उन फूल क याद िदला दी, जो उनके वयंवर के समय उन पर और
ीराम पर बरसाये गये थे। सीता को लगा, वे बहत सुनहरे और भा य के चरमो कष के ण थे।
राम को उ ह ने मा एक िदन पवू थम बार देखा था और उसी समय वे उस पु षोिचत सौ दय
के स मुख मन हार गयी थ । एक मा वे ही िशव-धनुष तोड़ सक, इस कामना के साथ मन ही
मन उस घड़ी से लेकर राम के धनुष तोड़ने तक, उ ह ने पता नह िकतनी ाथनाय, िकतनी
मनौितयाँ कर डाली थ ।
आज वे पुन: उसी तरह ीराम के आने क ती ा म ई र से िवनितयाँ कर रह थ । आज िफर
उनक आँख म राम का प उतर आया था। साधारण से व म और स यािसय जैसी वेशभषू ा
म भी, वे वयंवर के समय वाले राम से कम िच ाकषक नह थे। वन म उनके पीछे चलते समय
वे राम के मदृ ु ल चरण िनहारती हई चला करती थ । धरती पर बने हए राम के पद िच ह को
बचाते हये चलना उनके िलए खेल भी था और राम के ित ा भी।
सीता उठ । व ृ के नीचे से हटकर खुले म आई ं। कुछ कदम चल । घास का पश पैर को बहत
अ छा लगा। वे मि दर क सीिढ़य तक आई ं और उन पर बैठकर आसमान क ओर देखने लग ।
सीता सोचने लग , यह कहाँ से शु और कहाँ ख म है, कोई नह जानता; यह क पनाओं से परे
और इसीिलये िकसी भी वणन से भी परे है... मन क िकसी भी दौड़ से भी आगे िनकल जाता है।
िवचार म खोई सीता, सीिढ़य से उठ और मि दर के अ दर पहँच गइ। ई र के िव ह को
णाम करके, उन पर चढ़े पु प म से एक पु प उठाकर अपने म तक पर लगाया, िफर उसे
अपनी दोन हथेिलय के म य रखकर मि दर म एक ओर बैठ गई ं। उ ह ने िशव, िफर गौरी क
मिू त क ओर देखा। उ ह मरण हो आया िक जब उपवन म राम को थम बार देखकर, वे मि दर
म गौरी क मिू त के स मुख खड़ी होकर, ाथना म ीराम को माँग रही थ , तब उ ह लगा था
िक मिू त ने मु कराकर उ ह आशीवाद िदया है।
आज पुन: वे इसी याचना के साथ गौरी के स मुख खड़ी थ । या आज िफर गौरी उ ह
मु कराकर आशीवाद दगी? सीता ने आशापण ू ि से गौरी क ओर देखा, िफर िसर झुकाकर
और उस फूल को अपनी दोन हथेिलय के म य रखकर अपने म तक से लगा िलया। फूल का
शीतल और मदृ ु ल पश उ ह गौरी क हथेली के पश के आभास सा लगा। उ ह ने ने ब द कर
िलये और उस फूल को अपनी दोन पलक से छुआकर िफर शा त बैठ गई ं।
उ ह अपने अ दर काश सा लगा और लगा, िक राम से उनका िमलन अब बहत दूर नह है। कुछ
देर तक वे इसी अव था म बैठी रह , िफर धीरे से उठ । भगवान के िव ह को णाम िकया और
वापस हो ल ; िक तु उ ह ने अनुभव िकया, बहत िदन के बाद उनके अधर पर ह क सी
मु कराहट, मन म शाि त, स तोष और कुछ आन द सा था।
सुबह का समय था। सीता मि दर से लौटकर व ृ के एक कंु ज के नीचे िवचार म खोई हई बैठी
थ । तभी उ ह ने देखा िक कुछ ि य से िघरा हआ रावण उनक ओर ही आ रहा था। उसने बहत
मू यवान व और आभषू ण धारण कर रखे थे। तनी हई गदन, गवपण ू ि िलये, वह एक-एक
कदम भिू म पर बहत अिभमान से रखता हआ चला आ रहा था। उसके साथ जो ि याँ थ , उनम से
कुछ ने अपने हाथ म, क मती व से ढके थाल पकड़ रखे थे। ऐसा लग रहा था, उन थाल म
अव य ही कुछ बहमू य व तुएँ ह गी। उसके इरादे का अनुमान कर सीता ोध से जल उठ । वे
उठकर खड़ी हो गई ं और उसके पास आने क ती ा करने लग । रावण ने सीता को उठकर
खड़े होते देखा तो समझा िक वह उनके स मान म खड़ी हो गई ह। वह मन ही मन हिषत हआ।
पास आया और बोला,
‘‘सुमुिख, तुम सचमुच बहत अिधक सु दर और कमनीय हो, और म महान परा मी और वीर हँ।
अंग ीप (सुमा ा), यव ीप (जावा), मलय ीप (मलाया), शंख ीप (बोिनयो), कुशदीप (अ का)
और वाराह ीप (मेडागा कर) तक मेरा रा य फै ला हआ है; तुम उस वन-वन भटकने वाले राम
को भल ू जाओ, मेरा णय िनवेदन वीकार करो और संसार के सम त सुख और वैभव क
वािमनी बनो।''
रावण क बात सुनकर सीता का ोध फूट पड़ा। वे बोल ,
‘‘तु हारे बल और परा म का प रचय मुझे अपने वयंवर म होने वाले धनुष य म िमल चुका है।
िजस िशव-धनुष को म बड़ी आसानी से उठाकर इधर से उधर रख देती थी, तुम उस धनुष के
िनकट आने का साहस भी नह जुटा सके थे।''
रावण हँसा और बोला,
‘‘सुमुिख, वह भगवान िशव का धनुष था; म उनका भ हँ और उनके ित आदर-भाव के कारण
ही, मने उस धनुष को हाथ लगाने का यास नह िकया; िक तु इतने िवशाल सा ा य का
वामी िबना परा म के नह बना हँ... राम मेरे स मुख कुछ भी नह ह।''
‘‘िव वा मुिन के पु और दै यराज सुमाली के नाती रावण! मुझे यह भी पता है िक तुम िकस
तरह अपने बड़े भाई कुबेर का रा य छीनकर लंकापित बने हो,'' सीता ने कहा।
‘‘राजनीित म यह सब करना पड़ता है, िक तु मेरा परा म और वीरता असंिद ध है।''
‘‘रावण, यिद तुम इतने ही वीर थे, तो अपनी बहन सुपणखा के अपमान का बदला लेने सामने
य नह आये? राम से, स मुख यु करते; उनसे बदला लेने के िलये कायर क भाँित,
छलपवू क, पीठ पीछे मेरा हरण य िकया? अरे , तुम तो िनह थे जटायु से भी नह जीत सकते थे,
इसीिलये तुमने उस पर तलवार से आ मण िकया... वह वीरता थी या?''
थोड़ा ककर सीता पुन: बोल ,-‘‘िजस कार स मुख जीत न सकने वाले कायर, िसयार क
भाँित िछपकर पीठ के पीछे से वार करते ह, उसी कार तुम मुझे चुराकर लाये हो; मेरी ि म
तुम इससे अिधक कुछ नह हो।''
इतने अिधक अपमान से रावण ितलिमला उठा। वह भुजा उठाकर ोिधत वर म बोला,
‘‘बस, बहत हो गया; यिद म तु हारे सौ दय से अिभभत ू होकर, तु हारे णय का याचक नह
होता, तो अब तक मेरी तलवार तु हारे िसर को धड़ से अलग कर चुक होती। महाबली रावण का
इस कार अपमान करने का साहस धरती पर िकसी म नह है।''
‘‘रावण! मरण करो, तुमने अपनी प नी म दोदरी क बड़ी बहन माया का, उसके पित श बर
क अनुपि थित म जबरन शील-हरण िकया था, िजसके द ड- व प श बर ने तु ह बुरी तरह
मारने के बाद अ धे कुएँ म कैद कर िदया था। उसक म ृ यु के बाद, सती होते समय, माया ने तुम
पर दया िदखलाई, तभी तुम उस अ ध-कूप से मु हो सके थे, तब भी तु हारा परा म कह चला
गया था।
रावण, यह वही राम ह, िजनके जयमाल से टूटी हई, पु प क पंखुिड़याँ उठाकर और उ ह म तक
से लगाकर मेरे वयंवर- थल से तुम चुपचाप वापस हो गये थे।'' सीता ने कहा।
इतना सुनते ही, ोध के कारण रावण क साँस फूलने लगी। वह एक पल के िलये का, िफर
बोला,
‘‘बस, बहत हो गया... म तु ह एक माह का समय देता हँ; तुम अपने भा य का िनणय कर लो,
और या तो मेरा णय िनवेदन वीकार कर संसार के वैभव क वािमनी बनो, अ यथा म ृ यु
तु हारे पीछे ही खड़ी है,'' कहते हए रावण पैर पटकता हआ वापस जाने के िलये मुड़ गया। सीता
क ओर उसक पीठ हो गई।
‘‘तु ह िकस बात का घम ड है रावण? अपने सा ा य का, अपनी वीरता का या अपने ब धु-
बा धव का? मरण रखना, लोग मुझे धरती क पु ी कहते ह; और धरती िहलती है, तो बड़े -बड़े
सा ा य पल भर म न हो जाते ह; कोई वीरता, ब धु-बा धव उस समय काम नह आते, और
तेरे पैर के नीचे क धरती तो शी ही िहलने वाली है।
म ृ यु तो तेरे पीछे ही खड़ी है रावण; तू सीता के प म अपना काल लेकर आया है... शी ही
ीराम आकर तुझे म ृ यु शै या देने वाले ह।''
‘‘तू मेरे परा म से प रिचत नह है, सीते! जैसे तू बात कर रही है, ऐसे मुझसे बात करने का
साहस िकसी म नह है। तन ू े मेरे ोध क अि न म घतृ डालने का काय िकया है... मुझे लगता है
िक एक माह प ात मुझे तेरा िशरो छे द ही करना होगा।’’
‘‘असहाय और अकेली ी के स मुख वीरता िदखाने वाले भी , तू िकतना परा मी है, यह
प िदखाई दे रहा है; िक तु तू आँख खोलकर देख रावण, म असहाय और अकेली ी नह ,
अिपतु तेरा काल हँ।’’ सीता ने जाते हए रावण से कहा।
सीता कुछ देर के िलये उ ेग से भर उठ । रावण के ित स बोधन म वे कब तुम से तू पर आ गई ं,
यह उ ह पता भी नह लगा, िक तु रावण ने उनक बात के साथ-साथ इसका सं ान भी िलया।
वह ोध से पागल हो उठा। उसने हंकारते हए एक बार पुन: भिू म पर पैर पटके, िसर झटका और
िफर ती गित से वापस हो गया।
14. पे ड़ के साये
रावण चला गया था, िक तु सीता के मन म उ ेजना बनी रह गयी थी। उनक साँस क गित
अभी भी ती थी। वे अपनी दोन हथेिलय से म तक थामकर बैठ गय ।
उ ह वे ण मरण हो आये, जब उ ह ने रावण को साधु समझ के उसका िव ास िकया था।
दुभा य िकतने-िकतने प रखता है, उ ह ने वयं से कहा। उनके ने म कैकेयी का मुख,
वण-मग ृ , साधुवेष धारी रावण, उनका अपहरण करता रावण और िफर उ ह धमकाते रावण के
िच आने लगे।
सीता बहत देर तक वैसे ही बैठी रह । ल मण क बात न मानकर अजनबी यि का िव ास
करने क भल ू पर वयं पर बहत अिधक ोध आया। उ ह ने िसर उठाया और आसमान क ओर
देखा। ‘ई र वह कही होगा’, उ ह ने सोचा।
‘छोटी-सी भल ू का इतना बड़ा द ड कब तक दोगे तुम’ उ ह ने ई र से कहा।
िफर यान आया, उसने एक दूत भेजा तो था... जटायु। मन उसके ित कृत ता से भर गया।
बेचारे ने उनके िलये रावण से यु मोल िलया और अपने ाण क आहित दे दी। रावण से यु ...।
एक दीपक का च ड तफ ू ान म छाये घटाटोप अँिधयारे से लड़ने का यास।
‘‘हे ई र! मेरे दुभा य से तु हारा दूत भी हार गया।’ उ ह ने पुन: आसमान क ओर देखकर
कहा, और यं य से भरी हई फ क हँसी उनके अधर पर आ गयी। िफर उ ह ने अपनी देह क
ओर देखा, पैर पर ि डाली, हाथ सामने िकये। यह सब िम ी ही तो है’ उ ह ने सोचा। ‘रावण
एक माह के बाद इसे िम ी म िमला ही देगा तो या? पर राम के ित मोह िफर जागतृ हो उठा।
जीवन रहते एक बार उनके दशन हो जाते... चलो रावण को िमटा लेने दो यह देह, िक तु आ मा
तो वह कभी नह िमटा पायेगा; वह तो सदैव राम के चरण म रहे गी ही’ उ ह ने वयं से कहा।
तभी उ ह कुछ रा स ि याँ के जोर-जोर से िखलिखलाकर हँसने क विनयाँ सुनाई पड़ ।
िवचार का वाह टूट गया। उ ह ने देखा, वे ि याँ उनक ओर देखकर कुछ संकेत करती हई
हँस रही थ । सीता ने अनुमान लगाया िक अव य ही ये ि याँ उनका उपहास कर रही ह गी। मन
कड़वा हो उठा। िवचार के वाह ने िदशा बदल दी।
उ ह राम का प और उनका शौय मरण हो आया। ‘एक माह बहत होता है’ उ ह ने सोचा।
दीपक क लौ, बुझने से पवू तेज हो जाती है; हो सकता है मेरी मुि लेकर रावण का काल आने
वाला हो, और इस िवचार के साथ ही उनके मन म स बल संच रत हो उठा।
तभी उ ह उन ि य के म य ि जटा िदखाई दी। शायद अभी आई थी। उसके हाव-भाव से लग रहा
था िक वह उन ि य को कुछ बता समझा रही थी। ‘उनसे या कह रही होगी यह? उ ह ने सोचा
और आ य से देखा िक वे ि याँ दूर से सीता को णाम कर-कर के वापस जा रही थ ।
सीता आ य से भर उठ और ि जटा के िनकट आने क ती ा करने लगी। कुछ शुभ लगता है,
उ ह लगा। वह वयं कहने लगी,
‘‘बेटी, तुम तिनक भी दुखी मत रहो; शी ही रावण का अ त होने है।’’ सीता ने देखा, ि जटा के
मुख पर कुछ उ ेजना और कुछ उ लास दोन थे।’’
सीता के िलये यह जीवनदाियनी बात थी; बहत बड़ी। उनके ने के सामने रावण िफर घम ू गया।
‘‘माँ, कैसे? उ ह ने हष िमि त आ य से पछ ू ा।
‘‘मने कल रात व न म देखा है िक यु म भु राम िवजयी हए ह, रावण गधे पर बैठकर दि णा
िदशा क ओर जा रहा है, और लंका का रा य िवभीषण को िमल गया है।’’
‘‘माँ, यह मा व न ही तो है।’’
‘‘नह , केवल व न नह ... भोर का देखा हआ व न है; लोग कहते ह, भोर के देखे व न सच
होते ह, और िफर मेरी आ मा भी कह रही है िक यह केवल व न नह भिव य क आहट है।’’
‘‘माँ!’’ कहते हए सीता ने ि जटा का हाथ पकड़कर अपने म तक से लगा िलया।’’ आपने देह म
ाण को लौटा देने वाली बात बतायी है, म आप का ऋण जीवन भर नह उतार सवँâू गी।’’
‘‘ऐसा मत कहो बेटी; तुम राजरानी हो और राजरानी ही रहोगी।’’ ि जटा ने कहा और िफर।
‘‘अ छा म चलँ।ू ’ कहकर वापस हो ली।
अव य ही इसने उन रा स ि य को भी यही व न बताया होगा, तभी वे उ ह दूर से ही णाम
कर-कर के लौट गय । िफर भी इसे ि जटा से जानने क इ छा हई। उ ह ने कहा,
‘‘माँ, बस कुछ पल और...।’ जाती हई ि जटा लौट पड़ी।’’
‘‘बोल बेटी!’’ उसने कहा।
‘‘उन रा स ि य से भी आप यही बता रही थ या?’’
‘‘हाँ, तू िच ता मत कर; खुश रह बस! सब अ छा ही अ छा होगा। समय बदलते देर नह लगती
है बेटी; िक तु अब मुझे जाने दे।’ ि जटा ने कहा।
‘‘जाइए माँ।’’
सीता का दु:ख और ोध से भरा मन शा त हो चुका था। वे ने ब द करके बैठ गय । ‘ या
सचमुच शी ही उनक इस नक से वापसी होने वाली है। यहाँ, रावण क कैद म रहते उ ह एक
वष से कुछ अिधक ही हो गया था। रावण क म ृ यु या सचमुच िनकट आ चुक है।’’ जैसे बहत से
िवचार उनके मन म आने लगे।
रावण क बात मन म आते ही उसके घायल और मत ृ शरीर का िच उनक क पना म आ गया।
मन बड़ा अजीब सा हो गया, िफर साथ ही मन म उठा।’’ और म दोदरी? रावण क म ृ यु के
बाद उनका या होगा?’’
म दोदरी, मय दानव और हे मा नामक अ सरा क क या थी। उसके ज म के बाद ही हे मा अपने
पित मय को छोड़कर इ ु न नामक देवता के साथ चली गयी थी। म दोदरी, िबना माँ के पली,
बढ़ी और बड़े होने पर उसके िपता ने उसक इ छा-अिन छा क परवाह िकये िबना उसे रावण को
स प िदया।
इस म दोदरी के जीवन म, रावण से िववाह के प ात उसक माँ हे मा एक बार पुन: तब आयी,
जब रावण अपना िवजय रथ लेकर िनकला और व णा-लोक तक पहँच गया। रावण क सेना
और व ण-लोक के िनवासी वा णेय के म य भयंकर यु हआ।
इ ु न भी वा णेय ही था। वा णेय, रावण के स मुख िटक नह सके; मारे गये या पलायन
कर गये, िक तु इ ु न ने हार नह मानी। उसने और रावण ने एक दूसरे पर अ य त घातक
अ का योग िकया। िक तु रावण ने जब उसक छाती पर शि हार िकया तो वह उसे सहन
नह कर सका, िगर पड़ा। रावण ने िगरते हये इ ु न पर तब तक हार करना जारी रखा, जब
तक वह मर नह गया।
इसके बाद रावण ने हारे हए वा णेय से छीनकर हे मा को ब दी बना िलया और वापस आकर
उसे उिचत द ड देने के िलये अपने सुर, अथात् म दोदरी के िपता मय को स प िदया।
मय, ितशोध से भरा हआ था और हे मा बहत घबराई हई थी। वह जब मय के स मुख लायी गयी
तो हे मा को देखकर मय का हाथ अनायास ही अपनी कमर पर बँधी कटार पर आ गया। संभवत:
वह उसके वध का िन य करके ही आया था, िक तु हे मा के स मुख आते ही वह उसके अभी भी
वतमान वैसे ही प और यौवन को देखकर आ य म पड़ गया और कुछ पल तक उसे िनहारता
ही रह गया। कटार से उसक पकड़ ढीली पड़ गयी।
हे मा बहत यान से उसे देख रही थी। ी-सुलभ बुि से उसने मय के मुख पर आये प रवतन को
बहत कुछ पढ़ िलया। उसका भय कुछ कम हो गया और आ म िव ास बढ़ गया।
‘‘कहाँ गयी थी?’’ मय ने उससे पछू ा
‘‘तु ह पता है।’’
‘‘ य गयी थी? या तुझे मुझसे कोई क था?’’
‘‘नह ।’’
‘‘ या मने तुझे वह सब कुछ नह िदया जो देना चािहये था?’’
‘‘िदया।’’
‘‘िफर?’’
‘‘ मेरा ार ध।’’
हे मा के इस उ र से मय का ोध कुछ और कम हो गया।
‘‘अब ?’’ उसने कहा।
‘‘जो तुम चाहो।’’
कुछ देर के ऐसे ही वातालाप के बाद अपने सौ दय, बुि और वाक्-चातुय के बल पर हे मा ने मय
के ोध को िपघला िदया और मय एक बार पुन: उसके वश म हो गया।
इस सारे करण म म दोदरी क भिू मका मा एक दशक क रही पर इसने, िजस पीड़ा को वह
भल ू चुक थी, उसे पुन: हरा कर िदया। व तुत: उसक चली तो नह , िक तु उसने अपनी माँ के
ारा पुन: उससे स ब ध बनाने के सारे यास को िवफल कर िदया।
‘बेचारी म दोदरी’ सीता के मन म आया।
* * *
प क सरसराहट से िवचारो से डूबी हई सीता का यान भंग हो गया। ऐसा लगा जैसे कोई आया
है। उ ह ने उस ओर देखा, तो एक व ृ क ओट से एक मानवाकृित िदखाई दी।
सीता का मन थोड़ा सशंिकत हआ, िक तु भय िबलकुल नह लगा। दुख क मार ने उ ह मजबत ू
बना िदया था और ाण का भय वे छोड़ चुक थ । उ ह ने थोड़ा उ च वर म पछ ू ा,
‘‘कौन?''
मानवाकृित हाथ जोड़े हए सामने आ गई। उसने कहा,
‘‘माँ, म हनुमान!''
सीता ने देखा, उनके स मुख, ेत व म एक यि खड़ा था। ऊँचा म तक, उस पर टीका,
मुख पर तेज, ठुड्डी थोड़ी दबी हई, ऊँचा कद और सामा य से अिधक बाल वाला शरीर; पलक
िवन ता से झुक हई ं। सीता ने पछ ू ा,
‘‘हनुमान कौन?''
हनुमान ने भिू म को छूकर उ ह णाम िकया, िफर हाथ जोड़कर खड़े हो गये और बोले,
‘‘माँ, म वनचर हँ; हम जंगल म रहते ह, शाकाहारी ह और िहंसक व य ज तुओ ं से बचने के
िलये अिधकतर अपना बसेरा पेड़ या िक ह ऊँचे थान पर बनाते ह... तेज दौड़ना और ऊँची
छलाँग लगाना हमारी आव यकता है, और िवशेषता भी। मेरी माँ का नाम अंजनी और िपता का
नाम पवन है।''
‘‘यहाँ य आये हो? ‘‘सीता ने पछ ू ा।
‘‘अपने राजा सु ीव क आ ा से, म भु ीराम का दूत बनकर आया हँ।''
‘‘तुम ने मुझे कैसे पहचाना?''
‘‘माँ, भु ीराम ने आपके बारे म कुछ बताया अव य था, िक तु उसक आव यकता नह पड़ी;
आपके अलग यि व और तेज ने ही आपक पहचान करा दी।''
इन श द म िछपी शंसा ने सीता को कुछ पल के िलये असहज कर िदया, िक तु उ ह ने शी
ही अपने को सँभालकर िकया।
‘‘तुम ीराम के दूत हो, या तु हारे पास इसका कोई माण है?''
‘‘माँ, मेरे पास इसका माण है।'' कहते हए हनुमान ने ीराम क अँगठू ी उनके स मुख रख दी।
सीता ने अँगठ ू ी उठाई और बहत गौर से देखी। सचमुच, ीराम क ही अँगठू ी थी। उ ह ने आ य से
हनुमान क ओर देखा। हनुमान ने उस ि म छुपे पहचाने और अपना व ीराम के िमलने
का संग सं ेप म सुनाया। सीता ने राम के स ब ध म कुछ अ य भी पछू े और सभी का
सही उ र िमलने पर जब उ ह हनुमान पर िव ास हो गया, तब उ ह ने हनुमान क कुशल ेम
पछू ने के उपरा त कहा-
‘‘हनुमान, तुम ीराम के दूत बनकर ही नह , इस हतभा य सीता के िलये ाणवायु बनकर भी
आये हो; शी कहो, तुम मेरे भु का या स देश लेकर आये हो?''
‘‘माँ, थम बात तो यह है िक आप का दशन ही बहत बड़ा सौभा य है, िफर आप हतभा य कैसे
हो सकती ह! अपने पावन चरण म इस अिकंचन का णाम वीकार कर।''
‘‘और दूसरी बात।''
‘‘ भु, ीराम शी ही आपको लेने आने वाले ह।
अचानक िमले इस समाचार ने सीता के शरीर म िसहरन सी भर दी। उनके ने भर आये। उ ह ने
पछ ू ा,
‘‘िक तु यह िवल ब य है?''
‘‘माँ, उ ह आपका पता नह मालम ू था। म आपको खोजते हए ही यहाँ पर आया हँ। अब म उ ह
आपके बारे म बताऊँगा और िफर शी ही वे आपको लेने आयगे।'' हनुमान ने कहा।
सीता ने हनुमान क यह बात सुनी। ऐसा लगा, जैसे गम क कड़ी धपू म दूर से आते हए यि
को बैठने के िलये कोई थोड़ा छायादार थान िमल गया हो। उ ह ने एक गहरी साँस ली और धीरे
से बोल ,
‘‘आह!''
हनुमान ने यह विन सुन ली। उ ह सीता क पीड़ा बहत अ दर तक छू गई, पर साथ ही इसम
कुछ भी न कर पाने क अपनी असमथता का बोध भी हआ।
उ ह यह भी मरण था िक उनके णाम के बाद सीता ने उ ह आशीवाद नह िदया था। अव य ही
उनके मन का दुःख ही इसका कारण रहा होगा। हनुमान ने कहा,-‘‘माँ!''
‘‘हाँ,'' सीता ने कहा।
‘‘माँ, मने आपको णाम िकया था, िक तु अभी तक आपके आशीवाद से वंिचत हँ।''
‘‘भले ही श द म नह िदया, िक तु तुम मेरे आशीवाद से वंिचत नह हो।'' िफर सीता ने उनसे
पछू ा,
‘‘मेरे देवर ल मण कुशल से तो ह?''
‘‘माँ वे कुशल से ह,'' हनुमान ने उ र िदया। अब सीता ने कुछ संकोच से पछ
ू ा,
‘‘और उनके भाई।''
‘‘वे भी, िक तु आपके अपहरण क वेदना, बहधा उनके यवहार म प रलि त हो जाती है।''
सीता कुछ पल के िलये खामोश हो गई ं और दाँत से होठ को दबाकर पलक को भ च सा िलया।
दय क वेदना, उनके मुख पर छलक उठी थी, िक तु उ ह ने शी ही अपने को सँभालकर पछ ू ा,
‘‘हनुमान, या सचमुच?''
‘‘माँ, मुझे तो लगता है वे एक पल के िलये भी आपको भल ू नह पाते ह।''
‘‘व स हनुमान, वापस जाकर अपने वामी को कहना िक सीता ित ण उनक ती ा म ही
जी रही है।''
‘‘माँ, जैसे भु ीराम ने अपनी अँगठ ू ी, मुझे माण के प म दी थी, या इसी कार आप भी मुझे
कोई िनशानी दे सकगी।''
‘‘लो'' कहते हये सीता ने अपनी चड़ ू ामिण उतारकर हनुमान को देते हए कहा,
‘‘हनुमान, जो समाचार तुमने मुझे िदया है, उसके बाद मुझे समझ म नह आ रहा है िक म
तु हारा या ित-उपकार क ँ ? मेरे पास इस समय तु ह देने के िलये आशीवाद के अित र
कुछ भी नह है।''
‘‘माँ, आपके दशन और आशीवाद से बड़ा मेरे िलये कुछ भी नह है।''
तपती धपू और अंगारे
इधर-उधर िबखरे
तभी दैव स दय हआ
बादल िघर आये
हनुमान के जाने के कुछ देर बाद ही, सीता को शोर सा सुनाई पड़ने लगा। दौड़ने-भागने के साथ
ही मारो-मारो क आवाज सुनाई पड़ रही थ । शोर बढ़ता ही जा रहा था। जबसे सीता लंका म आई
थ , पहली बार उ ह ने इस तरह का शोर सुना था। ऐसा लग रहा था, जैसे कह बड़ी लड़ाई हो रही
हो।
सीता का मन, हनुमान क कुशलता को लेकर आशंिकत हो गया, िफर उ ह लगा िक िजसे
ीराम ने दूत बनाकर भेजा है; जो वनचर इतना िवशाल समु लाँघकर और उनका स देश लेकर
सुरि त यहाँ तक पहँच गया, वह साधारण नह हो सकता... अव य ही बहत परा मी होगा। उ ह
लगा, यह रा स उसका कुछ नह िबगाड़ पायगे और वह अव य ही सुरि त अपने वामी तक
पहँच जायेगा।
सीता ने देखा, उनके आस-पास जो रा स ि याँ घम ू ा करती थ , वे भी अ त- य त इधर-उधर
दौड़ रही थ । उ ह ने ि जटा से पछू ा,
‘‘माँ, यह कोलाहल और दौड़-भाग य हो रही है?''
‘‘म अभी देख कर आती हँ... बेटी तुम अपना यान रखना।'' कहकर ि जटा गई। कुछ देर बाद
वापस आई और बोली,
‘‘बेटी, कोई वनचर आया है, उसी ने यह सब उप व मचा रखा है। लोग कह रहे ह, उसने कई व ृ
उखाड़ डाले ह, अनेक रा स को ही नह , रावण क सेना के पाँच सेनापित और राजकुमार
अ य कुमार को भी मार डाला है।''
सीता समझ गई ं, यह हनुमान ने ही िकया होगा। अकेले ही रावण क सेना को चुनौती देने वाला
राम का दूत ही हो सकता है; िक तु रावण क सेना के कई सेनापितय और उसके पु अ य
कुमार के भी हताहत होने क बात सुनकर वे आ यचिकत हइ। उ ह हनुमान क साम य का
अनुमान तो था िक तु, अ य कुमार के बारे म उ ह ने सुना था िक वह बहत बड़ा यो ा था; अत:
उ ह ने िफर पछ ू ा,
‘‘अ य कुमार तो बहत बड़ा धनुधर था; कहते ह उसका ल य-वेध अचक ू था... वह भी...’’
‘‘हाँ, वह भी; वह बड़ा धनुधर अव य था, िक तु इस अव था म ही बहत से दुगुण से यु यु हो
चुका था।
‘‘हाँ।’’
‘‘और एक कु नी (वे या) है; बड़ा अलग सा नाम है उसका... मुझे इस समय उसका नाम मरण
नह है। वह बहत से ि य को अपने मोहजाल म पँâसाकर राजा से रं क बना चुक है।
‘िफर...।’
‘‘यह उसक बेटी पर आस था। वह लड़क इतनी पवती थी िक उसे मदन-मिदनी कह तो भी
अनुिचत न होगा, िक तु उसका नाम मदालसा था।
‘‘नाम भी सु दर है।’’ सीता ने कहा।
‘‘तो बेटी, उस कु नी ने इसका लाभ उठाते हए मदालसा के मा यम से इससे बहत सा वण
ठगा, और िफर माँ बेटी ने एक िदन इसको लेकर आपस म लड़ाई का नाटक रच िदया।
‘हाँ...!’ सीता ने आ य से कहा।
‘‘हाँ, िफर एक िदन जब यह उससे िमलने गया तो मदालसा इसको देखकर रोने लगी।’’
‘‘ या हआ? तु हारे ने म अ ु य ? इसने पछ ू ा।
‘‘मेरी माँ को तु हारा यहाँ आना और मुझसे िमलना पस द नह है; वह कह रही है िक यिद म
तुमसे िमलना नह छोड़ँ गी तो वह मुझे अपने गहृ से िनकाल देगी।’’ उसने कहा।
‘‘िफर?’’
‘‘िफर या, यह मख ू उस पर आसि के कारण अ धा हो चुका था, अत: उस कुच म पँâस
गया। लड़क को माँ से अलग एक सु दर महल म ले जाकर रखा और उसे बहमू य र नाभषू ण
से लाद िदया; िक तु वे याय भी कभी िकसी क हो पाती ह या? एक िदन वह सारा वण और
र नाभषू ण लेकर िफर अपनी माँ के पास वापस चली गयी। कहने लगी, म अपनी माँ के िबना
नह रह सकती।’’
‘‘ओह,’’ सीता ने कहा और इतने दु:ख म उनके भी अधर पर हँसी आ गयी।’’
‘‘वह अपने दुगुण से अपना तेज खो चुका था।’’ कहकर ि जटा चुप हो गयी। सीता या कहत ।
वे चुप रह , तो ि जटा ने िफर कहा,
‘‘अ य बहत अ छा ल यवेधी अव य था, िक तु था ल यहीन।’’ सीता ने सब सुना, ओर वे
समझ गय िक अव य हनुमान ने उस पर सहज ही िवजय ा कर ली होगी।
‘‘लोग बता रहे थे िक यु म उस वनचर ने अ य के मुख पर एक भयंकर मु का जड़ा िजसे वह
सहन नह कर सका। मँुह से र वमन करते हए िगर पड़ा और िफर नह उठा।’’ ि जटा ने कहा।
‘‘ओह!’ सीता ने कहा। उ ह अ य कुमार के िलये दु:ख भी हआ और साथ ही राम के दूत के बल
पर गव भी। िफर भी उनके मन से हनुमान क िच ता गयी नह , अत: उ ह ने ि जटा से पछ ू ा,
‘‘अ छा, वह अभी लंका म ही है, या चला गया?''
‘‘मने सुना है, रावण का बड़ा पु मेघनाद, सेना लेकर आया और उसे ब दी बनाकर रावण के
दरबार म ले गया है।''
इस समाचार से सीता का मन बहत अशा त हो गया। उ ह ने ने ब द कर िलये और मन ही मन
ई र से ाथना करने लग िक हनुमान को कुछ न हो। कुछ समय इसी भाँित यतीत हो गया।
अचानक पुन: बहत शोर सुनाई देने लगा।
सीता ने ने खोले। जगह-जगह से धुयँ क ऊँची-ऊँची मीनार उठ रही थ । लगता था, कह बड़ी
आग लगी हई है। बचाओ-बचाओ! भागो-भागो। क आवाज सुनाई दे रही थ , और साथ ही बहत
तेज हवाय भी चलने लग , जैसे बहत तेज आँधी चल रही हो बहत धल ू उड़ रही थी, और अंधकार
सा छा रहा था।
सीता, व से मँुह ढक कर िसर घुटन म िछपाकर बैठ गय । ऐसा लग रहा था, जैसे सब कुछ
उड़ जायेगा। कुछ देर बाद हवा क गित कम हई तो उ ह ने िसर उठाया। पेड़ से झड़े प से धरती
पटी हई थी। वे अभी भी उड़ रहे थे और रह-रहकर हवा का शोर भी सुनाई पड़ रहा था। कुछ ही दूरी
पर एक िवशाल व ृ भी उखड़ा पड़ा हआ था।
‘ओह, िकतनी भयानक काली आँधी थी’ सीता ने सोचा। उ ह ने देखा उनके आस-पास दूर-दूर
तक स नाटा पसरा हआ था, िक तु दूर से कुछ चीख पुकार जैसी आवाज अभी भी रह-रहकर आ
रही थ । जो रा स ि याँ उन पर पहरा दे रही थ , वे भी कह िदखाई नह दे रही थी। ‘शायद
आँधी से बचने के िलये वे भी कह छुपी ह गी’ उ ह ने सोचा। उ ह ि जटा क िच ता हई, ‘पता
नह कहाँ ह गी।’’
जब से वे अशोक वािटका म आई थ , ऐसा स नाटा उ ह ने पहली बार देखा था, अ यथा रावण
क िनयु क हई पहरे दार ि याँ उनके आस-पास मँडराती ही रहती थ , और कोई न कोई पशु
या प ी भी बहधा िदख ही जाते थे।
हवा का वेग शा त हआ तो वे उठ और दूर तक चलकर देखने लग , कह कोई नह िदखा। उ ह
कुछ घबराहट सी लगने लगी। वे अपने थान पर लौटकर एक व ृ के तने पर हाथ रखकर खड़ी
हो गय । सहसा दय राम क मिृ तय से भर उठा। उनके अधर से बहत ही पुâट वर म
िनकला, ‘‘कहाँ हो, कब आओगे? और िकतनी ल बी चलेगी यह ती ा?’
सीता पुन: आस-पास टहलने लग , िक तु कुछ ही देर म उ ह सीने म बहत भारीपन सा लगने
लगा। वे एक व ृ के सहारे भिू म पर बैठ गय और मँुह घुटन म डालकर रोने लग । रोते-रोते ही
पता नह कब उनक आँख लग गयी।
सोई हई सीता क आँख म एक व न उतर आया। उ ह ने देखा िक वे िकसी बहत बड़े जंगल म
अकेली खड़ी ह। यहाँ आई तो वे राम के साथ ही थ , िक तु अब राम पता नह कहाँ खो गये थे,
कह िदखाई ही नह दे रहे थे। सीता उ ह खोजने लग । वे पहले धीरे -धीरे चल ; िफर तेज, िफर
और तेज-तेज और िफर ‘ वामी!’ ‘ वामी!’ पुकारती दौड़ने लग । पाँव काँट से भर गये, साँस
पâू लने लगी और वे थककर िगरने ही वाली थ िक अचानक राम िमल गये और उ ह ने आकर
सीता को सँभाल िलया। सीता उनके सीने पर िसर रखकर रोने लग ।
वे कब तक ऐसे ही सोती और व न देखती रह , उ ह पता नह लगा। िकसी के आवाज देने से
उनक आँख खुली। व न टूट गया। राम नह थे, अिपतु उ ह कैद रखने वाली अशोक वािटका ही
िफर सामने आ गयी। उ ह ने व न म ही सही, पर राम को देख पाने क आशा म िफर ने ब द
कर िलये; िक तु अब िसफ़ अँधेरा था... राम नह थे।
राम का साथ छूटने क िख नता; भले ही वह व न का साथ मन से भर उठी। सीता ने िसर
उठाकर देखा, सामने ि जटा थी। उसे सामने देखकर उ ह कुछ स तोष हआ।
‘‘माँ।’’ उ ह ने ि जटा से कहा।
ि जटा ने उनका ला त मुख देखा। कपोल पर आँसू सख ू े हए थे और बाल लट के प म मुख
पर िबखरे हए।
‘‘बेटी, रो रही थ या?’’
‘‘नह ।’’
‘‘नह , तुम रो तो रही थ , लेिकन य ?’’
‘‘कुछ नह माँ, बस ऐसे ही... यहाँ पर कुछ देर पहले इतना अिधक स नाटा पसरा था िक मन
घबरा उठा।
‘‘होता है; अ छा म पानी लायी हँ, मुख धो ले और थोड़ा सा पानी पी भी ले।’’
‘‘अ छा माँ! कहकर सीता ने उससे पानी िलया, मुख धोया और थोड़ा पानी िपया भी। उ ह अपने
शरीर म कुछ जान सी लगी। इस घटना म म उ ह ि जटा क सुर ा क भी िच ता थी। अब उसे
सामने देखकर उ ह स तोष हआ। उ ह ने अ य त आ मीय भाव से ि जटा का हाथ थाम िलया,
िफर पछ ू ा
‘‘माँ, पहले धुआँ, िफर भाँित-भाँित क बचाओ, बचाओ, भागो, भागो क विनयाँ और िफर यह
च ड काली आँधी; या है यह सब कुछ... और आप कुशल से तो ह।
‘‘बेटी, यह वनचर बड़ा ही तेज िनकला। रावण ने उसके व म आग लगवाकर उसे जलवाने का
यास िकया; वह तो बच गया िक तु लंका के कुछ महल अव य आग के हवाले कर गया। वह
आग सारी लंका म फै ल चुक है।''
सीता आंशिकत हइ, उ ह ने ि जटा से पछ ू ा,
‘‘माँ, आपने जो कुछ सुना हो, या आप मुझे िव तार से बतायगी? यह व म आग लगाने क
बात य आई?''
‘‘'बेटी, मने सुना है, जब उस वनचर को रावण के स मुख ले जाया गया तो रावण ने उससे वाता
के म य राम को मनु य बताते हए उन पर कुछ कटा िकये। वह इस पर यं य से हँसा और
बोला, ‘रावण, भु ीराम क बात छोड़ो; तु ह द ड देने के िलये तो म ही बहत था, पर दूत होने
के कारण म तु ह द ड नह दे सकता; िक तु अपने भु ीराम के साथ शी ही आऊँगा और तब
तु ह इस सब का प रणाम भुगतना पड़े गा।'
इस पर रावण ने पुन: यं यपवू क उससे कहा, ‘अरे ! यह तो ऐसे उछल रहा है जैसे िकसी वानर
क पँछ ू म आग लग गई हो,' िफर वह बहत जोर से हँसा। उसक इस बात से हनुमान को से भर
उठे । बाहर आये, और वहाँ एकि त लंकावािसय को स बोिधत कर गजना क , िक वे शी ही
ीराम के साथ आयगे व इस रावण के रा य को खाक कर दगे। जो लंकावासी अपनी जीवन र ा
चाहते ह , यह नगर छोड़कर चले जाय।
इस पर रावण के इशारे पर कुछ लोग ने उसके व म आग लगा दी। वह वनचर तो वहाँ से
िनकलने म सफल रहा, िक तु रावण के महल के पास ि थत, उसके कुछ खास लोग के महल
म कब और िकस कार आग फै ल गई यह कोई नह समझ सका; और िफर वह काली आँधी!
उसने तो और भी सवनाश कर िदया। वह धुआँ और भागो- भागो के वर इसी कारण थे।''
यह सुनकर सीता ने स तोष क साँस ली। वे समझ गई ं िक हनुमान सुरि त वापस हो गये ह।
प रि थितयाँ बदलती हई लग रही थ । सीता मन ही मन इनका िव े षण करने लग ।
रावण ने हाल म ही अपने िवशाल सा ा य और अपने परा म का वणन उनके स मुख िकया था।
सीता सोचने लग िक इतने बड़े सा ा य के बल तापी अिधपित क राजधानी म, जहाँ वह
वयं बैठा हो, वहाँ एक अकेला वनचर इतना अिधक िव वंस कर जाये, यह अित आ यजनक
नह है या! उसक सेना क टुकड़ी उसके अित वीर कहे जाने वाले पु अ य के नेत ृ व म भी
उसका कुछ भी नह िबगाड़ सक , उलटे वयं अ य और उसके बहत से सैिनक उस वनचर से
लड़ते हए म ृ यु को ा हो गये। यह तो ऐसे ही हो गया जैसे खर,दूषण और उनक सेना का
अकेले राम ने संहार िकया था।
हनुमान का समु को पार कर लंका तक आना और पहरे दार के होते हए उनका पता लगाकर
यहाँ तक पहँच जाना, वयं उनसे इतनी शालीन वाता और िफर संघष करते और लंका वािसय
के दय म भय पैदा करते हये सकुशल िनकल जाना भी कम िव मयकारी नह है और
िन:स देह ीराम के इस दूत क े ता को िस करता है। वह बुि मान भी है और अ यिधक
िनडर ओर वीर भी।
सीता को लगा िक िजस सेना म हनुमान जैसे लोग ह , उसका रावण पर िवजय ा कर लेना
कुछ किठन तो नह होगा। उ ह राम के कौशल पर गव क अनुभिू त भी हई, िजसने अपने गहृ
देश से इतनी अिधक दूर, िबना िकसी संसाधन के ऐसी सेना खड़ी कर ली।
और िफर एक अि तम बात। इतनी ती काली आँधी उसी समय य आयी, जब लंका म आग
लगी हई थी। उसने आग को सभी िदशाओं म भयंकर प से इतना फै ला िदया होगा िक उस पर
काबू कर पाना िकसी के बस क बात नह रह पायी होगी; या यह केवल संयोग था?
िजस काली आँधी से वे इतनी याकुल हो गयी थ , वह तो व तुत: राम के श ुओ ं को कि पत
करने के िलये ही आयी थी। उ ह लगा, अव य ही ई र क कृपा से िविध उनके अनुवâू ल हो रही
है, और उनक मुि भी अब िनि त ही बहत दूर नह होगी। उ ह आँधी के समय देखा गया
अपना व न भी राम से िमलन का स देश देता ही लगा।
मुि , और राम से शी ही िमलन क स भावना प िदखाई दे रही है, उ ह ने सोचा, और
इसके साथ ही उनके मन म खुिशयाँ न ृ य कर गय ।
इस िन कष के बाद जब िवचार का वाह िफर आगे बढ़ा तो उ ह हनुमान बहत बुि मान, िश
और सरल लगे थे, िफर भी उनक बात वे ीराम से पता नह िकतना कह पायगे। ‘िक तु
हनुमान िजतना भी कहगे उतने से ही राम उनक बात को समझ तो जायगे ही’ सीता ने सोचा।
वे क पना करने लग िक हनुमान, ीराम से उनका हाल बता रहे ह और वे उसे बहत यान से
सुन रहे ह। इस क पना मा से उनके दय क धड़कन कुछ तेज हो गयी। वे उठ और ई र को
ध यवाद देने मि दर क ओर बढ़ गई ं।
सीता मि दर से होकर आई ं, तो उ ह ने देखा, उनके िलये पहरे पर तैनात क गई रा स ि याँ
इधर-उधर छोटे-छोटे झु ड बनाकर कुछ चचा कर रही थ । सीता को लगा, अव य ही कुछ िवशेष
हआ है, िक तु उ ह बतायेगा कौन? ि जटा भी उ ह म से एक झु ड म थी। वे मि दर के पास ही
एक व ृ के नीचे बैठ गइ। उ ह लगा, हनुमान के वापस जाने के बाद राम उनका पता पा चुके
ह गे। वे शी ही िकसी बड़ी घटना क अपे ा कर रही थ ।
कुछ देर बाद ि जटा वहाँ आ गई। वह अपने साथ कुछ फल भी लाई थी। उसने सीता को फल खाने
को िदये, िक तु उ ह कुछ भी खाने क िब कुल भी इ छा नह थी। उ ह ने ि जटा से पछू ा,
‘‘माँ, कोई िवशेष बात है या? सभी ि याँ इस कार एक होकर या चचा कर रही ह?''
‘‘बेटी, रावण के भाई िवभीषण ने रावण से तु ह राम को लौटाने और यु से बचने क सलाह दी
थी।''
‘‘तो या रावण ने उनक सलाह मानी?''
‘‘नह , उलटा उसे अपमािनत करके दरबार से िनकाल िदया। वह ीराम क शरण म चला गया
है; रावण के दुिदन िनकट ही लगते ह।''
सीता सोचने लग । इस रा स क नगरी लंका म भी अ छे लोग ह। इस वातावरण म भी,
िवभीषण जैसे पु ष और ि जटा और सरमा जैसी ि याँ ह, िज ह ने अपनी आ मा बचाकर रखी
है। सरमा एक और रा स ी थी, जो उनके ऊपर पहरा देने वाले दल म थी, िक तु सीता के ित
उसका यवहार सदा सहानुभिू तपण ू रहता था।
िवभीषण क बात आयी तो सीता सोचने लग ‘िवभीषण तो लंका छोड़कर जा चुके ह, वह भी
रावण के श ु ीराम क शरण म... अब उनका प रवार यहाँ पर िनराि त ही तो होगा। कह
उनका ोध रावण उनके प रवार पर तो नह उतारे गा।’’ उ ह ने ि जटा से पछ ू ा।
‘‘माँ िवभीषण के प रवार म कौन-कौन है?’’
‘‘उसक प नी और एक पु ी तो ह ही।’’
‘‘उनका या होगा अब? कह रावण उ ह तािड़त तो नह करे गा?’’
‘‘संभवत: नह , संभवत: हाँ।’’
‘‘ या अथ हआ इसका?’’
‘‘वह कब या करे गा, इस बारे म कोई कुछ नह कह सकता।
‘‘िफर भी आपका अनुमान या है?’’
‘‘मुझे आशा है िक वह ऐसा कुछ नह करे गा।’’
‘‘आपक इस आशा का कोई कारण?’’
‘‘वह उसके सगे छोटे भाई का प रवार है, और मुझे नह लगता िक कोई भी यि िसफ़ बुरा ही
हो सकता है; िफर म दोदरी है न, वह भी उसे ऐसा करने से रोकेगी।’’
‘‘ओह’, कहकर सीता ने स तोष क साँस ली, साथ ही ि जटा के इस वा य से उनका यान
अपने ित रावण के यवहार पर चला गया। उनका अपहरण भी उसने उ ह क धे पर िबठाकर
िकया था, और िफर उसके बाद से आज तक उसने उनका व भी छूने का यास नह िकया था।
‘‘बेटी, िफर कुछ सोचने लग या? ि जटा ने कहा।
‘‘माँ, या आप िवभीषण के प रवार क ि थित पता कर सकती है?’’
‘‘तु हारी इ छा है तो म यास क ँ गी; िक तु बेटी, कुछ फल खा लो,'' ि जटा ने पुन: अनुरोध
िकया
‘‘माँ, मेरा कुछ भी खाने का मन नह है; बस एक ही मन म उठता रहता है िक ीराम कब
आयगे, और मुझे कब यहाँ से मुि िमलेगी,'' सीता ने कहा।
‘‘िच ता मत करो बेटी। मेरा मन कहता है, उनके आने म और तु हारी मुि म अब देर नह है।
कोई समाचार िमलते ही म तु ह बताऊँगी।'' कहकर ि जटा चुप हो गई। थोड़ी देर बाद पुन: बोली,
‘‘बेटी, मेरा अनुरोध नह मानोगी?''
‘‘ या माँ?''
‘‘कुछ फल खा लो, वैसे ही बहत कमजोर हो गई हो।''
सीता अब ि जटा का आ ह और न टाल सक ।
आज ि जटा आई तो सीता ने देखा, लाख छुपाने पर भी उसके मुख पर खुशी तैर रही है। सीता
समझ गई ं, अव य ही कोई अ छी खबर है। वे उ सुकता से उसक ओर देखने लगी। ि जटा ने
थोड़ा पास आकर कहा,
‘‘रावण का काल आ गया है बेटी।''
‘अथात?' सीता ने पछ ू ा।
‘‘राम, समु पर पुल बनाकर सेना सिहत लंका आ चुके ह; उनक सेना ने सुवेल पवत पर पड़ाव
डाल रखा है।''
‘‘सच!''
‘‘हाँ, सच, िक तु बेटी, अपने चेहरे पर कोई भाव भी मत आने देना अ यथा म संकट म फँस
सकती हँ।''
‘‘ठीक है माँ; इसीिलये आप रोज क तरह ग भीर मु ा म ही यहाँ आई ं।''
‘‘हाँ, तुम ठीक कह रही हो।''
‘‘िक तु आपके चेहरे क खुशी िछप नह रही थी।''
ि जटा के चेहरे पर मु कान तैर गई।
‘‘अभी चलती हँ, िफर आऊँगी,'' कहकर ि जटा उठी, तो सीता ने उसका हाथ थाम कर उसक
ओर देखा और बोल ,
‘‘ज दी आना।''
‘‘अ छा,''
कहकर ि जटा चली गई। सीता उसे जाते हए देखती रह । उ ह लगा, इतनी अ छी खबर देने के
बाद भी वे उसके िलये ित उपकार म कुछ नह कर सकत । जाती हई ि जटा, सीता को सचमुच
अपनी माँ जैसी लगी। वे उसके ित मंगल कामनाओं से भर उठ ।
अपने हाथ दीप िलये
आया जब कोई
घोर अँधेरे म बैठा मन
हाथ उठा कर
उस को देने लगा दुआय
15. आती जाती छाँव
सरमा, सीता क पहरे दारी म िनयु रा स ि य क मुख थी, िक तु मन ही मन वह सीता
का िहत चाहती थी और उनम ा रखती थी। यु के अिधकतर समाचार सीता को उसके
मा यम से ही िमल रहे थे।
रावण को मेघनाद क वीरता और रण-कौशल पर बहत अिधक भरोसा था, और वह उसे बहत
अिधक ि य भी था। उसके वध के समाचार ने रावण को दु:ख और िनराशा से पागल कर िदया।
सीता ने देखा, रावण लगभग उ म ता क ि थित म ने म र और साँस म वाला भरे , कुछ
अ य रा स के साथ उनक ओर आ रहा है। सीता से कुछ ही दूरी रहने पर उसने बहत ोध
करते हये यान से तलवार िनकाल ली। सीता को मरण हो आया िक रावण ने अपनी बात न
मानने पर उ ह जान से मारने क धमक दी थी। उ ह लगा, संभवत: वह ण आ गया है, िक तु
उ ह जरा भी भय नह लगा, अिपतु वे हँसकर खड़ी हो गय और लगभग भेद देने वाली ि से
रावण क ओर देखकर बोल ,
‘‘आओ म ृ यु, तु हारा वागत है।’’
िनह थी और अकेली सीता को इस कार खड़े होते रावण और उसके दल ने देखा और वे हतबुि
से कुछ पल के िलये जहाँ थे वह ठहर गये। तभी सीता ने देखा िक म ी सा लगने वाला एक
यि रावण को कुछ समझा रहा है। रावण और उसके म य कुछ िववाद सा होता भी िदखा, और
िफर उ ह ने देखा िक ोिधत रावण ने अपनी तलवार यान म वापस रखी और ोध से पैर
पटकते हए अपने दल के साथ वापस हो िलया।
सीता एक बार पुन: हँस पड़ ।
‘‘म ृ यु!’’ उ ह ने ऐसे कहा, जैसे कोई सामने खड़े िकसी यि को स बोिधत कर रहा हो,
‘‘िकससे डर गयी त?ू मुझसे या मेरे दुभा य से?’’
सीता वैसे ही खड़ी, रावण के दल को वापस जाते तब तक देखती रह जब तक वह ने से
ओझल नह हो गया और िफर उ ेजना शा त होने पर अपने थान पर बैठ गय । बाद म सीता को
पता चला िक रावण के दल का वह यि उसका मं ी सुपा व था।
कुछ िदन बाद ही सीता को पता लगा िक मेघनाद ल मण के साथ हए भयंकर यु म मारा गया
था। उसक म ृ यु के बाद सुलोचना उसक िचता पर सती हो गयी थी। सुलोचना सती ही नह हई,
वरन् वह इतनी वीर और िनभ क ं थी िक एक बार जब मेघनाद यु े म था, तब वह राि म
यु िवराम के समय राम क सेना के म य से होते हए उससे िमलने यु भिू म म चली गयी थी।
मेघनाद क िचता सजने के बाद जब सुलोचना सती होने के िलये िचता क ओर बढ़ रही थी, तब
रावण ने उसे पुकार कर कहा,
‘‘सुलोचना, ठहर! अपने ाण मत दे; तेरे पित का वध करने वाले ल मण और उसके भाई राम
का शी मेरे हाथ वध होगा, उसे देखकर िनि त ही तेरे सीने म ठं ढक होगी।
‘‘तात! मुझे आपके परा म पर िव ास है और आपके ोध पर भी; अव य ही वे शी ही आपके
ोध क अि न का ताप भुगतगे, िक तु वह तो िजनके भा य म होगा वे देखगे; मेरे जीवन का
अ याय मेरे पित के उनके साथ ही समा हो गया है... मा ाथ हँ, म क नह सकती।’’
‘‘पु ी!’’ रावण ने जोर से पुकारा, -‘‘ क जा!’’ उसके वर म नेह भी था और बहत अिधक
याकुलता भी, िक तु सुलोचना सब कुछ अनसुना कर मेघनाद क िचता क ओर बढ़ गयी।
मेघनाद क िचता को अि न देने के प ात रावण कुछ देर तक हतबुि सा उसे देखता रहा, िफर
िसर धुनता हआ भिू म पर िगरकर मिू छत सा हो गया।
मेघनाद के वध के प ात दु:ख म डूबे रावण को कई बार अपना मनोबल टूटता सा लगा, िक तु
वह महाबली था। उसने हर बार अपने को सँभाल िलया। उसने मेघनाद के िविधवत ि या कम के
िलये यु को कुछ िदन तक थिगत रखने क बात क , िजसे राम ने वीकार कर िलया।
इस बीच म दोदरी ने उसे यु ब द करने और सीता को राम को वापस देने के िलये पुन: बहत
समझाया; इससे होने सकने वाले महानाश क चेतावनी भी दी, िक तु रावण पर उसक िकसी
बात का असर नह हआ। वह दु:ख और ोध से भरा हआ था। तब म दोदरी को लगा िक संभवत:
वह अपना िववेक खो चुका है, अत: अब वह यु से िवरत नह होगा, और िफर लगभग एक
स ाह बाद यु पुन: ार भ हो गया।
सीता को ीराम और रावण के म य होने वाले यु क मुख घटनाओं क सच ू नाय, ि जटा या
सरमा से बराबर िमल रही थ । रावण के भाई कु भकण का वध, िफर मेघनाद के वध क सच ू नाय
उन तक पहँच चुक थ । आजकल रावण ने सीता को तािड़त करने के िलये आना छोड़ िदया था।
उसके ारा सीता के पहरे पर िबठाई गयी रा स ि य के धमक भरे वर भी कमजोर पड़ने
लगे थे।
सीता सुन रही थ िक अब रावण वयं ीराम से यु कर उ ह परािजत करे गा। य िप इस यु म
ीराम क िवजय पर उ ह स देह नह था, िक तु िफर भी, कभी-कभी मन आशंका त हो जाता
था, तब वे राम के परा म को याद कर वयं को धीरज देती थ ।
मेघनाद क म ृ यु के बाद लगभग एक स ाह तक सीता को यु का कोई समाचार नह िमला।
मेघनाद क िचता को अि न देने के बाद रावण िसर धुनता हआ भिू म पर िगरकर मिू छत सा हो
गया था। उ ह पता लगा िक सारी लंका मेघनाद के शोक म डूबी हई है।
एक स ाह बाद ि जटा ने बताया िक अब रावण अ य त ोध के साथ राम को सीधे ललकारते
हआ वयं यु भिू म म पहँच गया है, और उनके म य भीषण यु होने क स भावना है। इस
समाचार से सीता, राम क कुशलता को लेकर िचि तत भी हई ं, साथ ही राम के परा म म
िव ास होने के कारण शी ही इस कैद से छूटने क बात सोचकर, वे हिषत भी हई ं।
राम और रावण के म य यह महासं ाम पुन: एक स ाह तक चला। अ तत: रावण मारा गया।
चौरासी िदन तक यह यु चला। राम ने, लंका क ग ी पर िवभीषण का रा यािभषेक कर िदया।
सीता के ऊपर से पहरे हट गये। सीता को लंका आये हए लगभग तेरह मास हो चुके थे। सीता को,
राम क िवजय का समाचार देने के िलये हनुमान वयं ही आये। यह समाचार सुनकर उनके ने
म अ ु छलक उठे । उ ह ने कहा,
‘‘हनुमान, इतना शुभ समाचार देने के िलये म सदैव तु हारी आभारी रहँगी, पर इतना ही पया
नह है; म इसके िलए तु ह कुछ उपहार देना चाहती हँ... यहाँ पर मेरे पास कुछ भी नह है, िक तु
एक बार अयो या पहँचने के बाद म ीराम से कहकर तु ह उिचत पुर कार अव य िदलवाऊँगी।''
‘‘माँ, आपके और ीराम के चरण क सेवा से बड़ा मेरे िलए कोई पुर कार नह है।''
ू ने वाले यि के िलये इस संसार म कुछ भी
‘‘ठीक है, तो म तु ह आशीवाद देती हँ, िक तु ह पज
अ ा य नह रहे गा।''
‘‘माँ, म कृतकृ य हआ।''
‘‘हनुमान, बताओ मुझे भु राम के दशन कब ह गे? ‘‘
‘‘शी ही माते! अित शी ; म अभी जाकर ीराम को आपक कुशलता और दशन क ती इ छा
क सच ू ना देता हँ।''
थोड़ी देर बाद ही िवभीषण, राम का यह स देश लेकर आये िक राम ने उ ह बुलवाया है। उ ह ने
कुछ आभषू ण और बहमू य व भी सीता के िलये िभजवाये थे। सीता का साथ देने के िलये कुछ
ि याँ भी आई ं थ । िवभीषण के आने और उनके ारा लाये गये इस ताव से सीता च क गई ं।
उनके मन को बहत ध का सा लगा।
सीता सोच रही थ िक उ ह ने, िजनक याद के सहारे इतने क सहते हए तेरह मास काट
िदये; एक-एक पल, िजनक राह ताकते हए गुजारा है, वे ीराम, लंका पर िवजय पाते ही उनसे
िमलने और उनका हाल पछ ू ने वयं आयगे... वे देखगे िक सीता ने यह समय कैसे, कहाँ और
िकस हाल म िबताया है। उ ह सा वना दगे और वे उनके क धे पर िसर रखकर रो लगी, िक तु
उ ह ने वयं आने के थान पर पहले हनुमान को उनका समाचार लेने और िफर िवभीषण को
उ ह लाने भेज िदया, और अब ये व ाभषू ण धारण करने का आदेश उ ह और भी क दे गया।
उ ह लग रहा था, वे दौड़कर जाय; राम के चरण म अपना िसर रख और िफर ल मण को बहत-
बहत आशीष और नेह द। अब िजतनी देर इन तैया रय म लगेगी, उतनी देर और वे उनके दशन
से वंिचत रहगी। उनका मन रो उठा। िफर भी उठ और भारी मन से तैयार होने लग । सीता तैयार
होने के बाद िवभीषण के लाये रथ म सवार होकर उस थान क ओर चल , जहाँ ीराम अपने
मि य और सैिनक के साथ बैठे थे।
जब ीराम क सभा िदखाई देने लगी, सीता ने रथ कवा िदया। वे उतर और पैदल ही उनक
ओर चल पड़ । ल मण ने उ ह आते देखा, तो वे वत: ही उ ह लेने उनक ओर बढ़ चले। पास
जाकर उ ह ने सीता को णाम िकया। सीता ने ल मण को, उनका म तक छूकर, िक तु मौन
रहकर आशीवाद िदया। उ ह आशीवाद देते समय सीता का मन िवचिलत हो उठा। उ ह ल मण
अपनी स तान जैसे लगे। वन म वणमग ृ के करण के समय ल मण क सलाह न मानने का
दुःख एक बार पुन: मन कचोट गया।
सीता, सभा थल पर पहँची, तो सारी सभा ने खड़े होकर उनका वागत िकया। स पण ू सभा थल
राम और सीता के जयकार से गँज ू ने लगा। लोग दौड़-दौड़कर राम और सीता के चरण पश कर
रहे थे, िक तु भीड़ के कारण अिधकतर लोग उन तक नह पहँच पा रहे थे, अत: वे उनक ओर
मुख कर हाथ जोड़कर और म तक झुकाकर अपने-अपने णाम िनवेिदत कर रहे थे। राम,
आसन छोड़कर सीता को लेने आगे आये।
उ ह लेकर अपने आसन तक पहँचे और उनको अपने बगल के आसन पर िबठाने के बाद वयं
भी बैठ गये, िफर सीता क ओर देखकर पछ ू ा,
‘‘आप ठीक तो ह?''
इस ने सीता के स का बाँध तोड़ िदया। उ ह ने िसर झुकाकर और मुख एक ओर घुमाकर
अपनी आँख प छ , िक तु िफर भी अपने को रोक नह सक और व से मँुह ढककर िससक
उठ । राम ने उनको इंिगत कर कहा,
‘‘मुझे आपके दुःख का अनुमान है, और यह केवल आपके ही मन का दुःख नह है।''
सीता ने ँ धे हये क ठ से कहा,-‘‘मेरे जीवन म तेरह महीने क राि के बाद सुबह हई है, ये उसी
खुशी के आँसू ह।''
‘‘अपने को सँभािलए सीते! इस भरी हई सभा म हम अपनी मयादा क र ा भी करनी है, और इस
मयादा के िनवाह के िलये ही आपसे िमलने क अित ती इ छा होते हये भी म वयं आपको लेने
नह आ सका... पहले हनुमान और िफर सु ीव को भेजना पड़ा।''
राम के इस कथन से सीता को इस बात का उ र िमल गया िक राम वयं उ ह लेने य नह
आये, और उ ह ने नये व ाभषू ण और कुछ ि य को भेजना य उिचत समझा। उनका दुःख
बहत कम हो गया। वे बोल ,
‘‘म आप क बात समझ सकती हँ, और आपके न आने के कारण मुझे जो वेदना हई थी, वह भी
बहत कम हो गई है।
‘‘सीते, मुझे आपसे एक बात और कहनी है।''
‘‘कह।''
म जानता हँ, आप गंगाजल क भाँित पिव ह, िक तु .....''
‘‘िक तु या... कहते-कहते सीता का मन एक बार िफर काँप गया। समय और काल क
प रि थितय के अनुसार उ ह इस तरह के ‘िक तु' क परू ी आशंका थी। इतने िनः वाथ और परू े
समपण के बाद भी इस तरह के ‘िक तु’ उठ सकते ह, इसका उ ह अनुमान था।
िन छल और समिपत
मन पर भी शंकाय
जहर बुझे तीर जैसा
घायल करती ह
गहरे ज म
बहत गहरी
पीड़ा देते ह।
सीता के का उ र राम नह दे सके। बस, उ ह ने सीता क ओर देखा। सीता ने उनक
आँख म तैरती बेचारगी और िच ह दोन पढ़ िलये। सीता का मुख एक पल के िलये कुछ
कठोर, िक तु दूसरे ही पल िनिवकार सा हो गया। ऐसा लगा जैसे उ ह ने िन य कर िलया है। वे
बोल ,
‘‘म आपक ित ा या राजधम पर कोई आँच नह आने दँूगी... आप अि न जलवाने का ब ध
कर, म उसम वेश कर अि न-परी ा दँूगी।''
राम ने देखा, सीता ने ये श द िबना िकसी उ ेजना के कहे थे। उ ह श द बहत कठोर लगे। वे
इस ताव से अवाक् रह गये। उ ह इतनी ती िति या क आशा नह थी। या कह, उ ह लगा
श द कह खो गये ह। सीता ने पुन: कहा,
‘‘आपके दशन के बाद मेरी कोई इ छा शेष नह रह गई है।''
राम ने सीता के मुख क ओर देखा। उस पर संक प क ढ़ता थी। उ ह ने िकसी के मुख पर
इतना तेज शायद कभी नह देखा था। सीता के िवयोग क क पना से उनका मन काँप गया।
‘‘नह सीते!'' कहते हये राम का वर तेज हो उठा। पास बैठे ल मण, हनुमान तथा अ य लोग
च क उठे । राम िवचिलत थे। वे स बोधन म आप और तुम का योग भल ू गये, बोले,
‘‘सीते, यिद अि न म वेश करना ही है, तो म भी साथ म रहँगा; तुम अकेले अि न म वेश नह
करोगी।’’
अब राम के इस वा य ने सीता को िवचिलत कर िदया। उनके ित ा के साथ-साथ दय म
तेज उभरी पीड़ा ने सीता को झकझोर िदया, िक तु उ ह ने शी ही इस पर काबू पा िलया और
बड़े ही शा त िक तु ढ़ वर म कहा,
‘‘आप जो कहना चाह रहे ह, वह म समझ रही हँ, िक तु म इतने बड़े अनथ का कारण नह बन
सकती।''
परू ी सभा त ध बैठी थी। कोई कुछ बोलने का साहस नह कर पा रहा था। सहसा जामव त उठ
खड़े हए, बोले,
‘‘ भु, म कुछ कहना चाहता हँ!''
‘‘कह,'' राम ने कहा।
‘‘ भु, हमम से िकसी को भी माता सीता पर लेशमा भी स देह नह है, न ही हम उनक िकसी
तरह क परी ा लेना चाहते ह; यह उनके िलये ही नह , हमारे िलये भी घोर अपमानजनक होगा।''
‘‘आप लोग क बात नह है जामव त, िक तु िफर भी कुछ लोग के मन म शंकाय उठ सकती
ह।''
ल मण बहत देर से चुपचाप सुन रहे थे। िक तु उनका चेहरा ोध से तमतमा रहा था। उनसे रहा
नह गया, बोले,
‘‘ऐसे दु के िलये मेरा एक बाण ही पया होगा।''
‘‘ल मण, तुम ठीक कह रहे हो; िक तु जा के अस तोष को दबाना नह , अिपतु उसका
समाधान ढूँढ़ना ठीक होता है।''
‘‘यिद ऐसा ही है तो अि न विलत क जाये और सीता उसे सा ी मानकर शपथ ले ल, इतना
पया होगा,'' जामव त ने कहा।
‘‘आप का ताव मुझे उिचत लग रहा है; इससे जा क शंका का यथोिचत समाधान भी हो
जायेगा, िक तु यह शपथ अकेले वैदेही ही नह लगी, म भी इसी तरह क शपथ लँग ू ा।''
अब सीता के मन म राम के िलये ेम और ा के अित र कुछ भी शेष नह था। आज पहली
बार मन म उनके ित कुछ असंतोष उभरा था िक तु वह भी अिधक समय तक जीिवत नह रह
सका।
राम के मन म भी उनके िलये ेम है, इसका उ ह िव ास था; िक तु आज जब उ ह ने उनके
साथ ही अि न म वेश क बात क , उस समय वे रोमांिचत हो उठी थ । यह ेम क पराका ा
थी... िक तु उस समय जीने क नह मरने क , एक पण ू िवराम क बात हो रही थी। वह पीड़ा से
भीग उठने क मन:ि थित थी।
अब, जब राम ने उनके साथ ही अि न क शपथ लेने क बात क , तब जीवन क , साथ-साथ
चलने क बात थी, सपने समा करने क नह ; िमल कर देखने क बात थी। एक बार पुन: वे
रोमांिचत थ , िक तु यह सुख म भीग उठने का रोमांच था।
सभा म साधुवाद के वर उठ रहे थे।
राम के ऐसा कहते ही सीता के मन म राम के ित एक बार पुन: अ यिधक ा उमड़ पड़ी। सारी
सभा से साधुवाद के वर उठने लगे। जामव त ने खड़े होकर कहा,
‘‘ भ,◌ु आज आप जो आदश थािपत कर रहे ह, वह िनि त ही आने वाले समय म समाज को,
ी और पु ष दोन को एक ही ि से देखने क िदशा देने वाला होगा।''
इसी समय महिष अग य व अ य बहत से ऋिष, राम का अिभन दन करने के िलये पधारे ।
उ ह ने वातावरण म तनाव का अनुभव िकया और इसका कारण जानना चाहा। राम, मन म,
रावण के वध के कारण हई ह या क वेदना और सीता का अपमान न होने पाये इसक
िच ता िलये हए थे। वयं सीता मानिसक स ताप म थ और ल मण इनके दुःख के कारण अित
याकुल और अधीर थे। िवभीषण के मन म भी अपने कुल से ोह करने का क था।
महिष अग य व अ य ऋिषय ने उनके मन को समझा और बताया िक ग धमादन पवत, सब
कार के क और मानिसक स ताप से मुि देने वाला है, व अि न भी जीवन के सभी
स ताप व पाप का शमन करती है। उ ह ने कहा, य िप िववशता म जो कुछ हआ, उस म िकसी
का कोई दोष नह है, िक तु मन क शाि त के िलये अि नहो -य कर, ग धमादन पवत पर
िशविलंग क थापना करना उिचत होगा।
सभी के सहयोग से यह महान य स प न हआ।
(संि कंधपुराण, ा ख ड, प.ृ 578, लंका मे ग धमादन पवत पर ि थत यह िशविलंग आज
भी अ य त पज ू नीय है)।
लंका िवजय के उपरा त राम ने शी ाित शी अयो या क ओर थान करने का िन य िकया
और या ा ार भ करने से पवू ी गणेश एवं भगवान िशव क िविधवत पजू ा अचना क । िवभीषण
ने उ ह इस या ा के िलये पु पक िवमान उपल ध कराया।
इसके प ात िवभीषण को लंका का अिधपित िनयु कर राम ने सीता, ल मण, हनुमान और
सु ीव के साथ पु पक िवमान ारा अयो या के िलये थान िकया। ( ीम ागवत पुराण, नवम
क ध, प0ृ 45)
अयो या पहँचने पर भरत ने बहत नेह और आदर से उनका वागत िकया और ीराम को रा य
िसंहासन स प िदया। सारी अयो या म खुिशयाँ मनाई गई ं। रात म दीप क लिड़य से सारे नगर
को सजा िदया गया।
अयो या म, ीराम के महल के ांगण म ही एक िव ततृ उपवन था, िजसम भाँित भाँित के बहत
से व ृ थे। इसम एक कृि म सरोवर भी था, और तरह-तरह के प ी भी यहाँ रहते थे। अयो या म
आने के बाद से राम और सीता अ सर यहाँ आकर बैठते थे।
सीता को महल क अपे ा यहाँ कृित के साथ समय गुजारना बहत ि य था। ऐसे ही एक िदन
शीतल हवाएँ और मनोहारी सं या थी। राम िदन के राजकाय से िनव ृ हो चुके थे। वे दरबार से
उठकर महल म आये तो सीता ती ा म थ । राम, हाथ-मँुह धोकर कुछ हलका जलपान ले चुके
तो सीता ने कहा,
‘‘िकतनी अ छी हवा चल रही है... स या बहत अ छी लग रही है न।’’
‘‘हाँ सच’’ राम मु कराये, ‘‘बाग म चलना है या? उ ह पता था िक स या को बाग म बैठना
सीता को बहत ि य है।
‘‘सीता!’’
‘‘चल’’ सीता ने स नता से कहा।
‘‘चलो।’’
वे बाग म आये और बात करते हए टहलने लगे। सीता के पास बहत सी बात थी। कुछ देर तक यँ ू
ही टहलने के बाद उ ह ने राम से कहा,
‘‘कुछ देर उस सरोवर के पास बैठ या!’’
‘‘हाँ, म भी यही कहने वाला था।’’
वे सरोवर के िकनारे जाकर बैठ गये। पानी म हवा के झ को के साथ उड़कर आये कुछ पâू ल भी
तैर रहे थे। सीता को उ ह देखना बहत अ छा लग रहा था। िफर यँ ू ही मन हआ, और थोड़ा
झुककर पानी म राम और अपना ितिब ब देखने लग । उनके मुख पर ब च सी मु कराहट थी।
सरोवर के पानी म दोन के ितिब ब िहल रहे थे। सीता को इसे देखना बहत अ छा लग रहा था।
वे बार-बार राम के मुख क ओर, िफर पानी म अपने ितिब ब क ओर देख रही थ । वे राम के
मुख क ओर देखत तो उन के मन म उठता ‘यह ये ह', िफर पानी म अपने मुख क ओर
देखकर मन म कहत , ‘यह म हँ।’
तभी राम ने उनके मुख क ओर देखा। सीता के चेहरे पर खुशी तैरती सी लगी। उ होने
मु कराकर पछ ू ा,
‘‘ या हआ?''
सीता ने पानी म राम के ितिब ब को िदखाकर कहा,
‘‘यह आप ह।'' िफर अपने ितिब ब क उँ गली उठाकर कहा,
‘‘यह म हँ,'' और िफर अपने दोन हाथ आगे िकये। एक हाथ राम के ितिब ब पर और दूसरा
अपने ितिब ब के ऊपर लाकर कहा,
‘‘यह हम दोन ह।''
राम हँस पड़े । सीता छोटे ब चे सी खुश थ । तभी एक प ी उड़ता हआ आया। िजस जगह उनके
ितिब ब थे उसी जगह के पानी पर पर मारता चला गया। पानी िहला और िब ब िबखर गये।
सीता के मुख से िनकला, -‘‘ओह!''
राम ने पछू ा,-‘‘ या हआ?''
‘‘उसने हमारी छायाय िबगाड़ दी ह।''
‘‘परे शान य हो, छायाएँ ही तो िबगाड़ी है।''
‘‘हाँ सच! आपके होते इससे अिधक साहस कोई कर भी नह सकता,'' कहते हए सीता ने अपना
िसर राम के क धे पर िटका िदया। थोड़ी देर बाद उ ह ने िफर कहा,
‘‘िक तु...''
‘‘कुछ कहना चाहती हो या सीते?'' राम ने कहा।
‘‘हाँ, पता नह य , यह मुझे कुछ अपशकुन सा लगा।''
राम ने इसका कोई उ र नह िदया, िक तु थोड़ी देर बाद उ ह ने िफर कहा,
‘‘सीते, तुम माँ बनने वाली हो; बताओगी तु ह या अ छा लगता है? म तु हारा या ि य क ँ ?''
सीता ने हँसकर कहा,-‘‘सब कुछ तो है मेरे पास।''
‘‘नह , िफर भी कुछ तो इ छा होगी।''
‘‘अगर इ छा क बात पछ ू रहे ह तो मुझे िहमालय क गोद से िनकली पिव गंगा के घाट पर
क दमल ू खाकर तप या करने वाले तेज वी महिषय के आ म म कुछ समय तक कृित के
साथ रहकर उस पिव ता को जीने क बड़ी अिभलाषा है।''
य , लगातार चौदह वष तक कृित के साथ रहकर भी यह अिभलाषा शेष रह गई है, सीते!''
राम ने प रहास म कहा।
‘‘म धरती क बेटी हँ आयपु , कृित मेरा जीवन है।''
‘‘और म?'' राम ने पुन: प रहास िकया।
‘‘आप मेरी ज म-ज मा तर क तप या का फल ह।''
‘‘ओह!'' राम हँस पड़े , िफर बोले,
‘‘ठीक है सीते, गंगा के तट पर महिष बा मीिक का ऐसा ही आ म है; वहाँ वे तेज वी महिष
अनेक महा माओं के साथ िनवास करते ह; तुम जैसा वातावरण चाहती हो, तु हे वहाँ वैसा ही
वातावरण िमलेगा; म शी ही तु हारे साथ वहाँ चलँग ू ा।''
‘‘सच?''
‘‘सच।''
इसके बाद सीता चुप हो गई ं। जब से राम सीता के जीवन म आये थे, उ ह ने राम को ग भीर
अिधक, और हँसते हए कम ही देखा था। आज राम का हँसता हआ चेहरा और उनक हँसी का
वर, सीता को इतना अ छा लगा िक उ ह लगा िक इस खुशी को केवल महसस ू िकया जा
सकता है, श द म नह िपरोया जा सकता। उनका मन हआ िक इस स ब ध म वे राम से कुछ
कह।
‘‘आप सदा इतने ग भीर से य रहते ह? सीता ने कहा।
‘‘ग भीर रहता हँ?’’
‘‘हाँ, और हँसते तो बहत कम ह।’’
‘‘अ छा! ग भीर भी रहता हँ और हँसता भी कम हँ?’’
‘‘हाँ...’’
इस पर राम पहले मु कराये िफर धीरे से हँसे! सीता उनके मुख क ओर ही देख रही थ । राम को
हँसते देख कर बोल ,
‘‘हँसते हये आप िकतने अ छे लगते ह।’’
‘‘अ छा, सच?’’ कहकर राम जोर से खुल कर हँस पड़े और सीता मु ध भाव से उ ह िनहारने
लग । राम ने उनको इस तरह देखते पाया, तो बोले,
‘‘वापस चल अब?’’
‘‘चिलये।’’ सीता ने कहा।
16. दद भरे गीत के ये वर
राम अपने दरबार म बैठे हये थे। भरत, ल मण, श ु न, हनुमान और अ य दरबारी अपने-अपने
थान पर सुशोिभत थे। सीता, राम के बगल के आसन पर िवराजमान थ । कुछ गु चर कुछ
सचू नाय लेकर आये हए थे। राम, उनके ारा दी गई सच ू नाय सुन रहे थे और उन पर दरबार म
चचा भी कर रहे थे। भ नामक एक गु चर का म जब आया, तो ऐसा लगा िक वह कुछ कहने
म िहचक रहा है। राम ने उससे पछू ा,
‘‘भ , या बात है? कुछ िवशेष है या?''
‘‘नह महाराज, लोग तो कुछ न कुछ कहते ही रहते ह।''
‘‘तु हारे इस ‘कुछ न कुछ कहते ही रहते ह, का या अथ है, प कहो।''
‘‘महाराज, अिधकतर पुरवासी आपके शौय क शंसा करते नह थकते ह, िक तु...''
‘‘िक तु या भ ?''
‘‘िक तु कुछ लोग कहते ह िक तेरह माह तक रावण के घर म रहने वाली सीता को, ीराम घर
ले आये, यह तो ठीक है, िक तु उ ह हमारी अयो या क महारानी बना िदया, यह अयो या के
गौरव के अनुकूल नह लगता।''
िजन राम को बड़े -बड़े असुर और महाबली रावण के अ -श छू भी नह पाये थे, उनके दय
को इस समाचार ने भयंकर चोट पहँचाई। णभर के िलये वे हतबुि से रह गये। पीड़ा उनके चेहरे
पर उभर आई, िक तु ल मण का चेहरा ोध से भर उठा और अनायास ही उनका हाथ अपने
श पर पहँच गया। वे बोल पड़े ,
‘‘इस तरह क दूिषत सोच वाले आसमान पर भी क चड़ उछाला करते ह; िक तु उ ह द ड देना
ल मण को भली-भाँित आता है... भ , तुम मुझे उनके बारे म िव तार से बताओे।''
राम ने उनक ओर देखकर इशारे से उ ह शा त रहने को कहा, िफर भ क ओर देखकर वह
बोले,
‘‘ठीक है, तुम जाओ।'' उ ह ने अ य दरबा रय क ओर देखकर उ ह भी जाने का संकेत िकया।
सीता दुःख और िवत ृ णा से भर उठी थ । उनके चेहरे पर पीड़ा प रलि त हो रही थी। राम उठे ;
सीता को साथ िलया और अपने क म आ गये।
दोन मौन बैठे थे। उनके दय म तफ ू ान चल रहा था। काफ देर इसी कार बैठे रहने के बाद
राम ने सीता का हाथ पकड़ा। उनक ओर देखा और बोले,
‘‘सीते, बहत चोट लगी है न?''
सीता ने देखा, राम के ने अ ुओ ं से भरे हए थे। उ ह ने अपना हाथ राम के क धे पर रखा और
बोल ,
‘‘यह भी शायद हमारा ार ध ही होगा।''
सीता के इस कथन के बाद पुन: मौन छा गया। कुछ देर बाद राम बोले,
‘‘सीता, एक बार तुम गंगा के तट पर बसे तपि वय के आ म म रहने क बात कर रही थ ।''
‘‘हाँ, और वह इ छा आज भी मेरे मन म है।''
‘‘िफर चलो; य न हम भरत को यह रा य स पकर वह चलकर रह; इससे माता कैकेयी क
इ छापिू त और िपता ारा उ ह िदये हये वचन का पालन भी हो जायेगा; हम इन रोज-रोज के
झंझट से मुि पाकर शाि त से रह सकगे औ ैर यह हमारे होने वाली स तान के िलये भी अ छा
ही रहे गा।''
‘‘नह , आपका ऐसा सोचना, प रि थितय से पलायन होगा और आपके िलये अपक ित का
कारक बनेगा। भरत को राजग ी तो िमल ही चुक थी; उ ह ने वयं ही उसे वीकार नह िकया।
आपके दूसरे भाई भी इस ताव को कभी वीकार नह करगे। यह यास अयो या क राजस ा
क ग रमा के अनुकूल भी नह होगा, और इससे अ यव था भी फै ल सकती है।''
‘‘िफर या लगता है तु ह, या होना चािहये?''
‘‘ भु, म आपको रा ता बताऊँ, यह अनुिचत होगा; म तो सदैव आपक अनुगािमनी रही हँ और
वही मुझे शोभा देता है।''
‘‘िफर भी सीते, या होना चािहये, इस िवषय म तुम अपनी सोच मुझसे िनःसंकोच कहो।''
‘‘ भु, ज म से आज तक मने महल म रहकर बहत देख िलया, और मुझे लगता है िक रावण के
ारा अपहरण के बाद, लंका म बीते तेरह माह के समय को यिद छोड़ द, तो शेष लगभग तेरह
वष का जीवन, जो वन म बीता वह बहत अ छा था। वहाँ कृित क गोद, खुला आसमान और
िकसी कार के षड़य क िच ता नह थी; िकसी क बुराई, भलाई नह थी। जीवन सरल,
सहज और सु दर था।''
‘‘तुम या कहना चाहती हो सीते?''
‘‘यही, िक इन महल के जीवन से मुझे िवत ृ णा सी हो रही है; रानी, महारानी आिद पद क
िनरथकता का बोध हो रहा है... यहाँ के तनाव भरे वातावरण म मेरी मनःि थित होने वाली
स तान के िलये भी हािनकारक हो सकती है।''
‘‘िफर?''
‘‘म चाहती हँ िक आप मुझे अकेले ही गंगा के तट पर बने उसी बा मीिक आ म म जाने क
अनुमित द, िजसक एक बार आपने चचा भी क थी, िक तु आप वयं राजधम से िवमुख होकर
अपक ित के भागी न बन, वरन् यह रहकर अयो या क जा के ित अपने कत य का िनवहन
करते रह।''
‘‘सीते, तु हारी यह बात ठीक है िक मुझे राजधम से िवमुख नह होना चािहये, और जा के ित
अपने कत य का िनवहन करना चािहये, िक तु तु हारे और अपनी होने वाली स तान के ित
मेरे कत य का या होगा? या उनसे मुख मोड़ना उिचत होगा?''
‘‘ जा के िहत के स मुख प रवार के िहत बहत गौण कहे जायगे; िफर प रवार के िहत म तो
मोह भी एक बहत बड़ा कारक होता है।''
‘‘हँ।''
‘‘म गंगा के िकनारे बसे ऋिषय के आ म म वे छा से जाना चाहती हँ; मुझे िव ास है िक वहाँ
म अपना शेष जीवन सुख और शाि त से िबता सकँ ू गी और अपनी होने वाली स तान को व थ
वातावरण और उिचत िश ा भी दे सकँ ू गी, िफर आप हमारी होने वाली स तान के िवषय म
िचि तत य ह?''
‘‘िक तु या तु ह, अपने इस िन य से मुझे होने वाली पीड़ा का अनुमान है?''
‘‘हाँ, मुझे आपको होने वाली पीड़ा का परू ा अनुमान है, िक तु यह तो मोह जिनत पीड़ा है, और
िन य ही यह अपक ित से होने वाली पीड़ा इससे बड़ी होगी।’’
‘‘ या हम िकसी अ य उपाय के बारे म नह सोच सकते ह?''
‘‘हो सकता है अ य उपाय ह , िक तु इस समय प रि थितय के अनुसार मुझे यही उपाय े
लग रहा है। हमारे धम म चार आ म बताये गये ह; चय, गहृ थ, वान थ और िफर संयास;
केवल इतना ही तो है िक मेरे जीवन म वान थ आ म थोड़ा ज दी आ गया।''
‘‘िक तु तुम ब च क माँ बनने वाली हो; अभी तु हारा गहृ थ आ म समा नह हआ है...
वान थ तो अ त म आता है।''
‘‘गहृ थ आ म कभी समा नह होता है; करना पड़ता है, िक तु म इस समय िजस ि थित म हँ,
उसम गहृ थ आ म को छोड़ नह सकती, अत: केवल इतना ही है िक मेरे िलये गहृ थ आ म
और वान थ दोन साथ-साथ चलगे।''
‘‘सीते, या यह कुछ....’’राम ने बात अधरू ी छोड़ दी। सीता ने उनका म त य समझा। उ ह ने
कहा
‘‘यह स भव है। हम दोन चौदह वष तक इसी कार का जीवन जी चुके ह, िजसम गहृ थ आ म
और वान थ साथ-साथ थे, और ल मण ने तो उस काल म ह्◌्मचय और वान थ साथ-साथ
िजये ह।’’
‘‘सीते, तुमने मेरी होने वाली अपक ित क चचा क थी; मुझे क ित या अपक ित क िच ता नह
है, िक तु या तु ह सचमुच लगता है िक तु हारे यहाँ रहने से हमारी होने वाली स तान पर कुछ
िवपरीत असर हो सकता है?''
‘‘ भु, िजस तरह क बात आज सुननी पड़ी ह, वैसी बात हम बार-बार सुनने को िमल सकती ह।
कुछ िवचार-शू य लोग कुछ न कुछ कहते ही रहते ह। अ सर दूसर म दोष िनकालने से बड़ा
ि य काम उनके िलये कोई नह होता। उनक बात सुन-सुनकर आप तनाव म रहगे, तो रा य के
काय को सुचा प से करने म यवधान होगा, और म तनाव म रहँगी तो हमारे होने वाले ब चे
पर ितकूल भाव तो होगा ही।''
‘‘िक तु सीते, िजस काय म तु हारी कोई भल ू नह , उसका द ड तु ह य ।''
‘‘ भु, दो बात ह; एक तो यह िक गंगा के िकनारे तप वी महिषय के आ म के शा त और पिव
वातावरण म रहना मेरे िलये द ड नह , एक सुखद संयोग होगा और मुझ पर इसका सकारा मक
भाव पड़े गा...'' इतना कहकर सीता चुप हो गई ं।
‘‘सीता, इसके अित र दूसरी बात या है?'' राम ने कहा।
‘‘दूसरी बात यह है िक इन प रि थितय के बनने म मेरी भी भल ू थी।''
‘‘कैसे सीते? तु हारी यह बात सुनकर मुझे आ य हो रहा है।''
‘‘यिद म सोने के मग ृ के मोह म नह पड़ती और ल मण क बात को समझ लेती िक इसम कुछ
छल है, सोने का मग ृ नह हो सकता, तो आप उस मग ृ के पीछे नह जाते, और यिद मने िकसी
अप रिचत यि पर िव ास न करने क मयादा क र ा क होती, वह ल मण-रे खा न लाँघी
होती, तो शायद मेरा अपहरण भी न होता।''
‘‘सीते, वह भल ू िकसी से भी हो सकती थी।''
‘‘हाँ, िक तु उसके बाद जब कोई आपक आवाज म िच लाया और मने ल मण को आपक
सहायता के िलए भेजना चाहा, तब भी ल मण ने मुझे बहत समझाया था िक आप कभी िकसी
संकट म नह फँस सकते, यह अव य ही हम धोखा देने का कोई यास है, िक तु म नह मानी।
ल मण पर ोध कर उ ह आपक सहायता पर जाने को िववश िकया। यिद म ल मण को
जबरद ती नह भेजती; आपके पु षाथ, साम य और ल मण क उिचत सलाह पर िव ास
रखती तो ऐसा नह होता; यह बड़ी भल ू थी।''
‘‘सीते, उसका कारण मेरे ित तु हारा ेम ही तो था; िफर म वण-मग ृ के पीछे भागा, यह मेरी
भलू भी तो थी।''
‘‘मेरी बात का अनादर न हो, यही कारण था आपक उस भल ू के पीछे ... िफर आपने वयं भी इस
भल ू का द ड भुगता तो है ही।’’
सीता क इस बात पर राम चुप हो गये। कुछ देर बाद सीता िफर बोली,
‘‘हमारी अपनी भल ू भी इन संकट का कारण रही ह, इसे हम नकार सकते ह या?’’
‘‘िफर भी, उस भल ू ने इतने संकट खड़े िकये; सच तो यह है िक जब भी कोई िववेक-शू य होकर
वण-मग ृ के पीछे भागने लगता है तब उसके दु प रणाम तो सामने आते ही ह।''
‘‘तुम सच कह रही हो सीते।'' राम ने कहा।
‘‘िक तु सीते, हमारे साथ-साथ ल मण ने भी तो क उठाये ह; उनक तो कह कोई भल ू ि
म नह आती; उ ह िकस बात का द ड िमला, और िफर उिमला, उसने भी तो िकतना अिधक सहा
है।
‘‘म समझती हँ ल मण और उिमला ने द ड नह भुगते; द ड तो अपराध के होते ह, उ ह ने तो
िवपरीत प रि थितय म भी धैय न खोने और संघष करने के ितमान थािपत िकये ह।’’ कहकर
सीता कुछ क , िफर बोल ,
‘‘वे हमसे छोटे ह, इस कारण हमारे मन म उनके िलये नेह तो है ही िक तु साथ ही उनके काय
के िलये ा क भावना भी कम नह है।’’
‘‘तुम ठीक कहती हो सीते।’’
‘‘ल मण क बात उठी है तो एक बात जो मुझे अ सर पीड़ा देती रही है, कहती हँ।’’
‘‘ या?’’
‘‘ल मण, पु वत् हमारी सेवा कर रहे थे; उ ह ने हमारे िहत क िच ता करते हए, जो कुछ भी
कहा, उसक उपे ा ही नह हई, मने उन पर अकारण ोध भी िकया।''
‘‘आज इन संग को उठाने के पीछे तु हारा कुछ म त य तो अव य ही होगा।''
‘‘हाँ, यह राजमहल और यह वैभव मुझे उसी वण-मग ृ सा लग रहा है।''
‘‘मुझे लग रहा है, तुमने जाने का िन य कर िलया है।''
‘‘ भु, आपक अनुमित के िबना म कुछ नह क ँ गी, िक तु मुझे इन महल के वातावरण से
िवत ृ णा उ प न हो चुक है। यह महल क राजनीित ही थी, िजसने अकारण हम चौदह वष के
िलए वन-वन भटकने पर मजबरू िकया; सच तो यह है िक मुझे इन सुख और सुिवधाओं क
िनरथकता का बोध होने लगा है।''
‘‘सीते, कह तु हारा मन वैरा य क ओर तो नह जा रहा है?''
‘‘नह भु, वैरा य से मेरा काम नह चलेगा; अभी मुझे अपनी होने वाली स तान के भिव य पर
यान देना है।''
‘‘हँ।’’ राम ने कहा, िफर कुछ मौन के बाद बोले,
‘‘सीते, जीवन म पहली बार ऐसा समय आया है जब म अपना क त य िनधा रत नह कर पा रहा
हँ; मेरी ि थित िकसी दोराहे पर खड़े हए यि सी हो रही है।’’
‘‘मन को ढ़ क िजये और िनणय लीिजये; और मुझे िव ास है िक आप जो भी िनणय लगे वह
उिचत ही होगा।
‘‘हँ।’’ कहकर राम चुप हो गये। उ ह ने अपने ने ब द कर िलये और िसर को आसमान क ओर
थोड़ा सा उठाया और कुछ सोचने लगे।
सीता उनके उ र क ती ा करने लग । राम कुछ देर बाद सामा य हए और बोले,
‘‘मुझे इस पर िवचार करने का समय दो।''
‘‘ठीक है, िक तु यिद आप कल ात: तक मुझे अपना िनणय दे दगे, तो अ छा होगा; हमारी
दुिवधाएँ ज दी समा हो जायगी,'' कहकर सीता उठ , तो राम भी साथ ही उठ िलये।
दोन चलकर अपने शयनक तक पहँचे और शै या पर बैठ गये। कुछ देर तक वे शा त बैठे रहे ।
ऐसा लग रहा था, जैसे कहने के िलये अब कुछ भी शेष नह है। सीता ने एक ि सारे शयनक
पर डाली, िफर क क दीवार पर बने अपने और राम के एक िच पर उनक ि अटक गयी।
यह िच राम ने बनवाया था।
सीता ने िच म बने राम के मुख को कुछ देर तक देखा, िफर अपने पा व म बैठे राम के मुख
को, और िफर उ ह अपने मायके क उस वािटका का मरण हो आया, िजसम उ ह ने इसके थम
दशन िकये थे और उनके भाम डल ने उ ह िकतने िव मय से भर िदया था।
उसके बाद िकतनी तुितय , िकतनी ाथनाओं के बाद वह ण आया था, जब राम के ारा
यंचा चढ़ाते ही, वह िशव-धनुष अ य त ती विन करते हये टूट गया था। सीता का सारा
शरीर रोमांिचत हो उठा था, और स नता का अितरे क कुछ पल के िलये उनके चेहरे पर
प रलि त हो उठा था, और उ ह ने उिमला का हाथ अपने दोन हाथ से कसकर पकड़ िलया था।
उस समय सय ू वंशी राम का चेहरा सय
ू क भाँित ही चमक रहा था।
सीता ने अपने ने ब द कर िलये। उनका सारा शरीर उस घटना को याद कर आज पुन:
रोमांिचत हो उठा था और साँस कुछ तेज हो गयी थ । पा व म बैठे राम ने इसको महसस ू िकया
और पछ ू ा,
‘‘ या हआ?''
‘‘कुछ नह , वैसे ही।''
इसके बाद िफर शाि त छा गई। राम क साँस भी कुछ तेज सी थ । सीता ने राम क साँस क
विन और ऊ मा महसस ू क । उ ह ने राम क एक हथेली अपने दोन हथेिलय म ब द कर
अपनी गोद म रख ली। राम ने उनक ओर देखा। एक पल के िलये ि िमली, िक तु सीता ने
ने झुका िलये।
उनक ि राम के पाव पर पड़ी। बड़े ही सुगिठत और मदृ ु तलव क लािलमा थोड़ी-थोड़ी ऊपर
उठकर पैर तक आ रही थ । ऐसा लग रहा था, जैसे िकसी लाल फूल क कली िचटककर िखलने
के िलये तैयार हो। सीता को लगा, अव य ऐसे ही पैर के िलये पद-कमल उपमा का सज ृ न हआ
होगा। उ ह याद आया िक इ ह पैर को ि म रखते हए उ ह ने चौदह वष का वनवास िबताया
था।
राम ने, जो िक ह िवचार म खोये हए थे, अपने पैर पर सीता क ि को महसस ू िकया और
उनके मुख क ओर देखा। सीता के मुख क चमक के स मुख दीपक का काश भी िन तेज
लग रहा था।
‘‘सीते!'' राम ने कहा।
‘‘हँ'' यु र िमला।
‘‘आओ, हम थोड़ी देर खुले आकाश के नीचे बैठ।''
‘‘ठीक है।'' कहते हए सीता उठ खड़ी हई ं। राम, सीता का हाथ पकड़ कर चलते हए महल के
बाहर बने हए, छोटे से बगीचे म आ गये। गहन िन त धता, कुछ व ृ , और ऊपर आसमान म कुछ
बादल के टुकड़े तैर रहे थे। ऐसे ही एक थोड़े बड़े टुकड़े ने च मा को ढक रखा था। राम ने उसे
देखा और कहा,
‘‘सीते, भले ही बादल के इस टुकड़े ने च मा को अभी ढक रखा हो, िक तु थोड़ी देर म यह
गुजर जायेगा और च मा िफर िनकल आयेगा।''
‘‘हाँ, िक तु कुछ देर म कोई दूसरा बादल का टुकड़ा उसे ढक लेगा।''
‘‘तुम ठीक कह रही हो, िक तु कब तक? थोड़ी ही देर म वह भी गुजर जायेगा और च मा िफर
िनकल आयेगा, यही िज दगी है।''
‘‘मुझे िज दगी से कोई िशकायत नह है, और म िकसी िनराशा के कारण, कोई िनणय नह ले
रही हँ। िजस िदन िवधाता ने आपको िदया था, उस िदन संसार क हर छोटी बड़ी खुशी मेरी झोली
म आ गई थी; अब कोई भी भौितक अलगाव हमारी आ माओं क सि ध को नह तोड़ सकता,
इसका मुझे िव ास है।''
‘‘मुझे भी।'' कहते हए राम ने सीता के मुख क ओर देखा। अपवू सौ दय के अित र िन छलता,
ेम और िव ास से भरी हई आँख थ । राम ने उ ह ऊपर से नीचे तक देखा, और िफर उनक
ि सीता के पैर पर आकर िटक गई। उ ह ने ने ब द कर िलये। उन पैर क छिव िफर भी
ने के बीच म रह गई। ये वही पैर थे जो वयंवर से आज तक हर मोड़ पर साथ चलते आये थे।
या अब ये पैर साथ छोड़कर िकसी और पथ पर चले जायगे? राम को अपने अ दर कुछ बेचन ै ी
सी लगने लगी। वे उठे और टहलने लगे। सीता ने देखा, राम ने जो कुछ िबना कहे ही कह िदया
था; उसे समझा, वयं भी उठ खड़ी हई ं और उनके पास पहँच गई ं।
दोन ने एक दूसरे का हाथ थाम िलया और िफर टहलने लगे। हवा कुछ तेज हो चली थी और व ृ
से उसके गुजरने क विन सुनाई पड़ने लगी थी। वे बहत देर तक शा त टहलते रहे और िफर
एक थोड़ा ऊँचे से थान पर बैठ गये। सीता, राम के क धे पर िसर और चरण पर ि िटकाकर
बैठ गई ं।
साथ साथ चलने वाले पग
अलग-अलग राह
चुनने को िववश हो गये
मन से मन का साथ
मगर अमर व पा गया
और िफर िबना पलक झपकाये सुबह हो गयी।
सुबह के काय के बाद पज
ू ा इ यािद करने के बाद जब दोन पुन: िमले तो राम ने सीता को ल य
करके कहा,
‘‘सीते, या तुम अभी भी वही सोच रही हो?''
‘‘मुझे वही ठीक लग रहा है, िक तु आपने या िन य िकया?''
‘‘हँ,'' कहते हए राम ने अपने ह ठ भ च। िलये कोई उ र नह िदया।
‘‘कब भेजगे?'' सीता ने िफर कहा।
‘‘सीते...'' राम ने कहा।
‘‘हाँ।''
‘‘एक बार, केवल एक बार और सोचने दो।''
‘‘ या यह मोह म फँसना नह है?''
‘‘होगा।''
सीता ने राम का हाथ पकड़ा। उनक हथेली अपनी दोन हथेिलय के बीच क , उनके ने म
देखा, िफर कहा,
‘‘आप राम ह।''
‘‘सीते, तुम जो कहना चाह रही हो म समझ रहा हँ; हाँ, म राम हँ, पर तुम मेरी प नी हो, यह म
नह भल ू सकता।''
‘‘म आपक प नी हँ, यह मेरा सबसे बड़ा सौभा य है, और हमम से कोई इसे भल ू े, यह म व न म
भी नह सोच सकती; िक तु इस समय क प रि थितय म म कोई अ य िवक प नह सोच पा
रही हँ ।''
राम ने इसका कोई उ र नह िदया। कुछ देर तक मौन पसरा रहा, िफर ‘ल मण' कहते हए राम
कुछ पग चले, लेिकन िफर क गये।
‘‘ या हआ?'' सीता ने कहा।
‘‘सीते, मुझे भलू मत जाना और......''
‘‘और या?''
‘‘ मा भी कर देना।''
‘‘ऐसा य कह रहे ह... आपका कोई दोष नह है।'' कहते हए सीता ने राम के पैर को हाथ
लगाया, बोल
‘‘म कह रह लँ,ू मेरा मन सदैव यह रहे गा।''
दोन ओर ने म अ ु थे। राम ने सीता का िसर अपने क धे से लगा िलया। थोड़ी देर बाद सीता
अलग हो गई ं, बोल ,
‘‘इतना मोह ठीक नह है।''
‘‘इसे मोह मत कहो सीते।''
‘‘यह हमारा मोह ही है; अपने को सँभािलए और ल मण को बोिलये िक मुझे छोड़ आय।''
‘‘ठीक है।'' कहते हए राम बोिझल कदम से बाहर चले गये।
ल मण ने राम का आदेश सुना तो वे हत भ रह गये। वे समझ गये िक यह भ ारा कल िदये
गये समाचार का ही प रणाम है। बड़े भाई क आ ा उनके िलये सव प र थी, िक तु यह बहत ही
कठोर और दय िवदारक आ ा थी। उ ह ने अपनी बात कहने का िन य िकया, बोले
‘‘मुझे लगता है, यह माता तु य मेरी भाभी के साथ बहत बड़ा अ याय होगा; वे सवथा िनद ष ह...
कुछ मख ू और दूसर म दोष ढूँढ़ने वाली िछ ा वेषी ि के लोग के स तोष के िलये एक
िनद ष को दि डत करना अनुिचत और रामरा य क ित ा के सवथा ितकूल होगा।
‘‘यह द ड नह है, और यह िनणय भी मेरा नह है, ल मण।''
‘‘िफर आप मुझे ऐसा आदेश य दे रहे ह? यिद यह द ड नह है तो द ड या होता है? म आपके
और भाभी ी के अित र अ य िकसी का भी िनणय मानने के िलये बा य नह हँ।''
‘‘यह तु हारी भाभी ी का ही िनणय है।''
‘‘ या!?'' ल मण को ऐसा लगा जैसे िकसी ने उ ह बहत ऊँचाई से समु म फक िदया हो।
‘‘िक तु भाभी ी ने ऐसा िनणय य िलया? आपने उ ह समझाया य नह ? िफर इस समय जब
वे माँ बनने वाली ह और उ ह िवशेष देखभाल क आव यकता है, तब वे वहाँ आ म म कैसे
रहगी?'' ल मण ने क झड़ी सी लगा दी।
‘‘म तु हारे मन क पीड़ा समझ सकता हँ ल मण, िक तु सीता ने यह िनणय य िलया, यह
तुम माग म उ ह से पछ ू लेना। मने उ ह समझाने का य न िकया था, पर उन क बात बहत
तकसंगत लग रही थ , य िप यह उनके िलये ही नह , मेरे िलये भी बहत किठन और क द
िनणय था। रही होने वाली स तान क बात, तो सीता यहाँ सहज होकर नह रह पायगी; तनाव म
रहगी, यह उनके िलये ही नह , आने वाले ब चे के िलये भी हािनकारक िस हो सकता है।''
इसके बाद ल मण चुप हो गये, य िप उनके मन म अभी भी बहत संघष चल रहा था। उ ह ने
िकसी से रथ तैयार करने को कहा। रथ आया, तब तक सीता भी तैयार हो चुक थ ।
सीता, जब राम के चरण- पश करने के िलये झुक , तो अ ु उनक आँख से लुढ़ककर राम के
चरण को िभगो गये। राम ने कुछ पल के िलये अपने उ रीय को अपने ने पर रख िलया और
जब उसे हटाया, तो वह गीला हो चुका था। सीता रथ पर चढ़ तो राम ने कहा,
‘‘सीते, अपना यान रखना।''
‘‘आप भी अपना यान रिखयेगा।'' कहते हए सीता रथ क ओर उ मुख हइ। वे पैर बढ़ा भी नह
पाई थ िक लगभग दौड़ती हई सी उिमला आई ं। आते ही उ ह ने सीता का हाथ पकड़ िलया। बहत
तेज चलने के कारण उनक साँस तेज चल रही थी। वे बोल ,
‘‘नह , इस बार म आपको अकेले नह जाने दँूगी, म भी साथ चलँग ू ी।''
सीता ने कुछ उ र नह िदया, केवल एक िनिवकार सी ि से उिमला क ओर देखा। उ ह
उिमला का चेहरा एक छोटी ब ची सा लगा, िजसके ने म अ ु भरे हए थे।
‘‘दीदी, जब आप चौदह वष के िलये वनवास पर गई थ , तब कम से कम आप अकेली नह थ ;
ये ी और ये, आपके साथ थे, और उस वनवास क एक समय सीमा भी थी; िक तु आज आप
अकेली और ब चे क माँ बनने वाली ह, और आपक वापसी क आशा भी नह है... म आपके
साथ ही चलँग ू ी, आपको नह छोड़ सकती,'' कहते हए उिमला ने सीता के दोन हाथ कसकर
पकड़ िलये।
सीता ने धीरे से अपने हाथ उिमला के हाथ से छुड़ाये, िफर अपने हाथ म उनके हाथ लेकर कहा,
‘‘उिमल, उस समय भी वह मेरा वे छा से िलया हआ िनणय था; आज प रि थितयाँ िभ न ह;
िक तु आज भी यह मेरा वे छा से िलया हआ िनणय है, और संभवत: समय का िनणय भी यही
है।''
उिमला ने सीता के क धे पकड़कर अपना िसर एक क धे पर िटका िदया,
‘‘दीदी, समय इतने कठोर िनणय य लेता है!'' उ ह ने कहा।
सीता ने उिमला का िसर अपने क धे से उठाया। आँसुओ ं से गीले उनके चहरे से सीता क
उँ गिलयाँ भीग गई ं थ ।
‘‘जैसे भी ह , समय के िनणय मानने तो ह गे ही, पर तू बहत भावुक है, उिमले,'' सीता ने कहा।
िफर उिमला के हाथ पकड़कर धीरे से दबाये, अपनी उँ गिलय से उनके ने मे आये अ ु प छे ।
अधर पर यास पवू क लायी हई मु कान के साथ उनक ओर देखकर िवदा लेने का संकेत
करते हए िसर िहलाया, िफर राम क ओर देखकर धीरे से हाथ जोड़े और िफर मुड़कर रथ क
ओर चल द ।
सीता के, रथ पर बैठने के बाद, ल मण भी रथ पर चढ़े और रथ चल पड़ा। सीता ने रथ से िसर
िनकालकर पीछे देखा, राम, ने म अ ु िलये सीता के रथ को जाते हए देख रहे थे। जब तक रथ
िदखाई देता रहा, वे उसे देखते रहे , िफर भारी कदम से महल के अ दर चलते हए सीता के क
म पहँचे।
वहाँ पर बहत ही अि य स नाटा पसरा हआ था। राम वहाँ रखी एक-एक व तु को देखने लगे।
उ ह लगा, जैसे उनम ही नह , वहाँ रखी व तुओ ं म भी सीता के िब ब भी ह और साथ ही र ता
और उदासी के भाव भी।
वे कुछ पल तक यँ ू ही खड़े कभी उन व तुओ ं को और कभी उस क को िनहारते रहे , िफर वह
पड़े एक आसन पर पीठ िटकाकर बैठ गये और िफर ने ब द कर िसर को भी पीछे िटका िदया।
उ ह लगा, जैसे उनके सीने म चल रही साँस म भी कुछ प रवतन है।
राम क ब द आँख म सीता के बहत से िच उभरने लगे। कुछ देर के िलये ऐसा लगा, जैसे वे
संसार क सुिध भल ू गये ह , िफर अचानक जैसे होश आ गया हो, इस भाव से ने खोलकर
उठकर खड़े हो गये और वयं से ही बोले,
‘‘ओह चलँ!ू अभी मेरे कत य का अ त नह हआ है।’ िक तु चलते-चलते उनक ि उस िच
पर पड़ी, जो कभी िकसी िच कार ने सीता और उनका बनाया था। सीता ने बड़े मन से दीवार पर
सजा रखा था। राम उसके स मुख खड़े हए और सीता के िच को देखने लगे।
वे िकतनी देर तक इसी कार खड़े रहे , उ ह पता नह लगा। क के बाहर कुछ आवाज सी हई,
तो उनका यान टूटा। उ ह ने सीता के िच पर अपनी हथेली रखी और िफर उसे अपने ने से
लगाकर ार क ओर चल पड़े ।
सामने प रचा रका थी, िजस पर सीता के क क यव था का दािय व था। राम ने उसे पास
बुलाया। वह आयी और अनायास ही उसक ि राम के मुख पर चली गयी।
भले ही वह प रचा रका थी, िक तु थी तो ी। उसने राम के मुख पर आयी पीड़ा पढ़ ली और उसे
लगा, जैसे यह पीड़ा उसके भीतर कह उतर गयी है। सीता और राम उसे रानी और राजा नह ,
आरा य लगते थे।
उसके िनकट आने पर राम कुछ पल के िलये ऐसे शा त रहे , जैसे वे अपने को संयिमत कर रहे
ह , िफर बोले ‘‘देखो, इस क क पहले क भाँित ही िन य सफाई तो होगी, िक तु जो व तु जैसे
रखी है, वैसे ही रखी रहे गी, उसे हटाना मत, और इस क का कोई भी और यि उपयोग नह
करे गा।''
‘‘जी,'' प रचा रका ने कहा और वह क के भीतर जाकर रो पड़ी। राम, क के ार पर ही थे,
प रचा रका का रोना उनसे िछप नह सका। वे पलटे और उससे बोले,
‘‘तुम रो रही हो?’’
राम के इस पर प रचा रका ने दोन हथेिलय से अपने मुख को ढँ क िलया। राम उसक ओर
ही देख रहे थे। कुछ पल बाद मुख से हथेिलयाँ हटा कर, उँ गिलय से अ ु प छते हए िहचिकय के
म य बोली,
‘‘म ही नह , सारी अयो या, रो रही होगी।’’
17. नये मोड़ के स दभ
रथ, अयो या से गंगा के िकनारे पहँचने के िलये बहत ती गित से जा रहा था, और अयो या से
काफ दूर पहँच चुका था। सीता और ल मण दोन चुपचाप बैठे हए थे, िक तु दोन के मन म
बहत कुछ चल रहा था।
सीता के मानस-पटल पर राम के साथ िबताये िदन बार-बार आ रहे थे। उ ह लग रहा था िक
इतने सारे वष म, जो िदन उ ह ने द डक वन के पंचवटी े म बनी पणशाला म िबताये थे, वे
बहत सु दर थे। गोदावरी नदी के तट पर बना, उनका वह आ म, अ य त सु दर फूल और फल
वाले व ृ से दूर-दूर तक िघरा हआ था। उनक अपनी गौशाला और एक सु दर मि दर भी था।
कभी-कभी उन वन म रहने वाले ऋिष आकर ान चचा करते थे। वे ातःकाल उठकर गाय क
सेवा करती थ , िफर नानािद और मि दर जाने के बाद सबके िलये कलेवा और भोजन का
ब ध करती थ । दोपहर को सब लोग एक साथ बैठकर अनेक िवषय पर चचा िकया करते थे।
कृित के सौ दय का इतना सािन य था िक मन जैसे सुबह से शाम तक गुनगुनाता सा रहता
था। कोई िच ता नह थी, कोई राजनीित या लेश नह था। कोई िन दा, कोई तुित नह थी। वह
आन द म रची-बसी शाि त थी। वहाँ हर पल राम का साथ था।
उ ह लगा, वहाँ कृित क गोद म रहते हए जो अनुभिू तयाँ हई ं, वे अलौिकक और िद य थ ;
िक तु बस एक छोटी सी भल ू , एक वण मग ृ क मरीिचका ने उनके जीवन को तफ ू ान से भर
िदया और तेरह माह रावण के स त पहरे म दुःखपवू क िबताने के बाद भी उसका ायि त परू ा
नह हआ था। वे आज भी उसके अिभशाप को जीने के िलये मजबरू थ । अब उस सब को याद
करने से कोई लाभ नह था, िक तु मिृ तयाँ पीछा नह छोड़ रही थ ।
सीता ने धीरे से िसर झटका, मान वे उन मिृ तय को झटक रही ह , िफर एक गहरी साँस लेकर
धीरे से आँख को मला और उनम तैरते िच को हटाकर सामने देखा, तो ऐसा लगा जैसे गंगा
का तट आने ही वाला हो। ल मण, जो चुपचाप बैठे कुछ सोच रहे थे, सीता क गहरी साँस क
आवाज से कुछ च क से गये। वे बहत देर से उनसे कुछ कहना चाह रहे थे, िक तु उ ह िवचार म
डूबा देखकर साहस नह कर पा रहे थे। अब उ ह लगा िक सीता का िवचार- वाह शायद का है।
उ ह ने सीता को पुकारा,
‘‘भाभी!''
‘‘हाँ ल मण, कुछ कहना चाहते हो?'' सीता ने कहा।
‘‘म सोच रहा हँ, इतने अि य और क दायक काय के िलये ई र ने मुझे ही य चुना?'
‘‘ल मण, थम तो यह िक जीवन ने मुझे जो िसखाया है उसके आधार पर म यह कह सकती हँ
िक ि य और अि य क भावना सदैव क देती है।''
‘‘और।''
‘‘हो सकता है िक िजसने तु ह इस काय के िलये चुना है, उसने तु ह ही इस काय के िलये सबसे
उपयु पाया हो।''
‘‘ऐसा य ?''
‘‘ल मण, माँ िजस हाथ से ब चे को भोजन देती है, भलू करने पर उसी हाथ से द ड भी देती है।
जब मेरा मन वण-मग ृ के मोह म उलझ गया था, तब उससे होने वाले दु प रणाम को सोचकर,
तु ह ने मुझे उस मोह से बचाने का यास िकया था; आज तु ह मुझे इस समय वन म छोड़ने के
िलये जा रहे हो... यह कृित का याय ही होगा।''
‘‘हो सकता यह िकसी ि कोण से याय होता हो, िक तु इस अव था म आपको अपना घर
छोड़कर वन जाना पड़ रहा है, यह घोर पीड़ा दायक तो है ही।''
‘‘ल मण, इंसान जहाँ रहने लगता है वह उसका घर बन जाता है, िफर मुझे कुछ छोड़कर जाना
पड़ रहा है यह स य नह है।''
‘‘िफर स य या है?''
‘‘यिद म वह रहना चाहती तो कोई मुझे यहाँ आने के िलए नह कहता; तु हारे भाई तो बहत
स न होते। उनका तो सब कुछ छोड़कर मेरे साथ वन आने के िलये भी बहत आ ह था। मने ही
उ ह रोका। यह िनणय वयं मेरा है और मने बहत सोच समझकर यह िनणय िलया है।''
‘‘िक तु, आपके मन म ीराम के िलये जो ेम है, या वह समा हो सकेगा? या आपको
उनक मिृ तयाँ परे शान नह करगी?''
‘‘ल मण, मोहजिनत ेम को म पीछे छोड़ आई हँ; ाजिनत ेम हमेशा रहे गा, और उनक
पावन मिृ तयाँ मुझे परे शान नह करगी, अिपतु मेरे िलये सदैव आन द का कारक ह गी।''
‘‘और आपक होने वाली स तान, या वह भी आपके ेम से वंिचत रहे गी? या उसके मोह से भी
आप दूर रह सकगी?''
‘‘ल मण मने मोह छोड़ा है, कत य नह ! उस ब चे को ज म देना, उसे माँ का यार देना, उसका
पालन-पोषण और अ छी िश ा-दी ा, यह मेरा कत य और उसका अिधकार होगा, म इसे परू ा
क ँ गी।''
ल मण मौन रह गये। उ ह लगा, अब कहने के िलये कुछ शेष नह है, िक तु सीता ने िफर कहा,
‘‘ल मण, म तु ह जानती हँ; आज तक तुमने जो भी काय िकये ह, िनः पहृ भाव से िकये ह, कुछ
पाने के िलये नह ; अब पुन: मुझे वन तक छोड़ने के काय को भी इसी भाव से करो और अपने
मन म िकसी िवषाद को थान मत दो।''
सीता क बात से ल मण के ने से अ ु छलक उठे । उ ह ने हाथ बढ़ाकर सीता के चरण- पश
िकये और बोले,
‘‘ठीक है देिव।''
अब तक रथ, गंगा के पास पहँच चुका था। ऋिषय के आ म िदखाई पड़ने लगे थे। सीता ने मन
ही मन गंगा को, ऋिषय को और उनके आ म को णाम िकया।
कुछ देर बाद रथ आ म के िनकट जाकर क गया। रथ कते ही, आ म म रहने वाले बालक,
जो इधर-उधर खेल रहे थे, रथ के पास आ गये। ल मण और सीता रथ से उतरे , तो उनम से कुछ
ब चे दौड़कर आ म के अ दर गये और महिष वा मीिक को उनके आने क सच ू ना दी। महिष
अपने कुछ िश य के साथ बाहर आये और उ ह सादर, आ म के अ दर ले गये। भीतर,आ म म
कुछ मुिनय क पि नय ने उनका वागत िकया। महिष ने सीता और ल मण को आसन िदया।
ल मण ने अपना प रचय िदया और आने का उ े य बताया। महिष ने उ ह आ त िकया िक
सीता यहाँ स मानपवू क आ म क ि य और ब च के साथ रह सकगी, उ ह कोई क नह
होगा।
सं या जाने को थी। महिष ने ल मण से रात वह िबताने का आ ह िकया, िजसे ल मण ने
वीकार कर िलया। ातःकाल होने पर वे अयो या वापस जाने के िलये त पर हए, तो सीता भी
उ ह िवदा करने आई ं,
सीता को देखकर ल मण ने उनके चरण- पश कर उ ह णाम िकया और िफर अनायास ही
उनके मुख से सीता के िलये िनकला,
‘‘माँ!’’ और िफर अपने मुख से सीता के िलये िनकले इस स बोधन से वे कुछ सकुचा गये। सीता
के यान म यह बात आ गयी। वे बोल ,
‘‘ल मण, तुम मेरे िलये पु वत ही हो, कहो!’’
सीता के इस वा य से ल मण के मन म सीता के ित आदर और भी घनीभत ू हो गया, वे बोले,
‘‘आप सदैव मेरे िलये माँ जैसी ही तो रही ह।’’
सीता ने इसका तो कोई उ र नह िदया, िक तु बोल
‘‘संभवत: तुम कुछ कहना चाहते थे ल मण।’’
‘‘ या आप ाता ी के िलये कोई स देश नह देना चाहगी।’’
‘‘हाँ ल मण’’
‘‘ल मण, अपने भाई से कहना, मेरे िलए िचि तत न ह ; यहाँ आ म के लोग बहत अ छे ह। गंगा
जी का िकनारा है और बहत ही रमणीक थान है, मुझे यहाँ बहत अ छा लग रहा है।''
‘‘भाभी, अपना यान रिखयेगा।''
‘ल मण, माताओं को मेरा णाम और िमलने पर उिमला, मा डवी और ुतक ित तथा भरत और
श ु न को आशीवाद कहना।''
सीता के साथ कुछ ऋिषय क पि नयाँ भी आई थ । ल मण ने उ ह हाथ जोड़कर णाम िकया।
आशीवाद देते हए, उनम से एक, जो मुख सी लग रही थी, ने कहा,
‘‘ल मण, हम इ ह राजमहल सा सुख तो नह दे सवâगे, िक तु यहाँ कोई क भी नह होने
दगे।
‘‘जानता हँ’ कहकर, उ ह हाथ जोड़कर ल मण ने आभार य िकया।
इसके बाद सीता ने अपनी बात िफर आगे बढ़ाई, बोल
‘‘ल मण, तु हारे भाई वीर ह, िच तनशील ह, िक तु साथ ही बहत भावुक भी ह।''
सुनकर ल मण ने सीता क ओर देखा। उ ह लगा जैसे सीता के अ दर अव य ही कुछ चल रहा
है। वे कुछ न कहकर उनक ओर देखते रह गये। सीता चुप थ ।
‘‘ या भावुक होना अनुिचत है?'' ल मण ने उनसे कहा।
‘‘नह , म ऐसा नह समझती; भावुकता मरी, तो संसार से कोमल भावनाय मर जायगी; िफर
िकसी क सहानुभिू त म कोई आँख गीली नह होगी... सब कुछ गिणत से ही तय होने लगेगा।''
ल मण चुप रह गये। सीता ने िफर कहा,
‘‘तु हारे भाई को मेरे पीछे कोई क न हो; उनका यान रखना और अपना भी।''
‘‘जी।'' कहकर ल मण सीता के चरण पश के िलये झुके तो सीता ने उ ह िसर पर हाथ रखकर
आशीवाद िदया।
य िप वयं सीता, और सभी ऋिषय क पि नय ने भी ल मण से सीता के िवषय म िच ता न
करने क बात क थी, िक तु िफर भी उनका मन सीता क ओर से आ त नह हो पा रहा था।
उधर, राम के मन क पीड़ा क क पना भी उनके मन को झकझोर रही थी। बहत भारी मन से
उ ह ने हाथ जोड़कर सीता का यान रखने के आ ासन के िलये एक बार पुन: आभार य
िकया और मन म उठते पर लगाम लगाने का यास करते हए वे बहत भारी मन िलये हये
वापस जाने के िलये हए मुड़े। उनके पैर िकसी बहत थके हए यि क भाँित उठ रहे थे। वे आ म
से बाहर आये, तो पीछे -पीछे सीता और कुछ आ मवासी ी व पु ष भी आये। ल मण ने एक बार
पुन: सीता को णाम िकया, िफर गंगा क ओर मुड़कर, ने ब द कर शा त खड़े हो गये। ऐसा
लग रहा था जैसे वे िकसी ाथना म डूबे हए ह।
थोड़ी देर बाद उ ह ने ने खोले, एक गहरी सी साँस ली और धीरे से रथ, पर चढ़कर एक बार
पुन: सीता क ओर घम ू े। एक बार िफर उ ह णाम िकया और रथ चलने का संकेत िकया। रथ
जब तक आँख से ओझल नह हो गया, सीता उसे देखती ही रह ।
जो संसार बसाया
वष तक सपन को
जोड़ गाँठकर
छोड़ उसे, मन उड़ा
व ृ क ऊँची टहनी पर
जा बैठा
ल मण, सीता को महिष वा मीिक के आ म म छोड़कर अयो या लौटे। राम बहत य ता से
उनक ती ा कर रहे थे। ल मण उनके पास गये, उ ह णाम िकया। राम ने पछ ू ा,
‘‘छोड़ आये?''
‘‘जी।''
‘‘उ ह वहाँ कैसा लगा?''
‘‘वे बहत स तु थ ; महिष, उनके िश य और आ म म उपि थत ऋिषय क पि नय ने उनका
बहत वागत िकया, और उनको कोई भी क न होने देने का आ ासन भी िदया''
‘‘ या मेरे िवषय म कुछ कह रही थ ?''
‘‘हाँ, उ ह ने कहा था िक आप बहत वीर ह, िच तनशील ह िक तु भावुक ह; उ ह ने मुझसे
आपका यान रखने के िलये भी कहा।''
अपने िवषय म सीता का यह आकलन उ ह ठीक ही लगा। उ ह लगा, सचमुच वह कभी-कभी
भावनाओं के वाह म बह जाते ह, और राजाओं के िलये आव यक कूटनीित क उनम कमी है।
उ ह ने िफर पछ ू ा,
‘‘यहाँ से जाते समय, या वे दुखी थ ?''
‘‘नह , मुझे तो लगा िक उ ह ने वयं को सुख-दु:ख से ऊपर उठा िलया है।''
‘‘ऐसा कैसे लगा ल मण?''
‘‘उ ह ने मुझे कहा था िक ल मण, ि य और अि य क भावना सदैव क देती है। यह भी, िक
वह मोहजिनत ेम छोड़ चुक ह, िक तु आपके िलये ाजिनत ेम उनके मन म सदैव रहे गा;
और कहा था िक उ ह ने मोह छोड़ा है, कत य नह । वे होने वाली स तान को ेम क कमी नह
महसस ू होने दगी और उसके ित अपने दािय व को परू ा भी करगी।''
राम ने ल मण क बात सुन । स तोष का अनुभव िकया; साथ ही उनका मन सीता के ित
अपार ा से भर गया।
जो दो चरण
साथ चलते आये थे अब तक
इतने मदृ ु थे और अ ण थे
मन हो आया
उन पर फूल चढ़ाने का
अंजुिल भर
18. एक और प ृ
ीराम के आदेश से, सै य सिहत, श ु न ने लवणासुर को मारने के िलये उसके रा य मधुपुर क
ओर थान िकया। रा ते म महिष वा मीिक का आ म था। श ु न, सेना को आगे भेजकर वयं
वा मीिक के आ म म क गये।
सीता को यहाँ रहते हए कुछ मास हो गये थे। पु ो पि का समय बहत िनकट था। राम, उनक
कुशलता के िलये िचि तत थे। वा मीिक ने श ु न का बहत वागत िकया। श ु न ने उनके
चरण म णाम िनवेिदत कर उ ह ीराम क िच ता से अवगत कराया। महिष ने उ ह सीता के
ित पणू आ त िकया और उ ह सीता से िमलवाया।
यह भी एक सुखद संयोग ही था िक िजस िदन श ु न वहाँ ठहरे थे, उसी िदन सीता ने जुड़वाँ
पु को ज म िदया। राि वह िबताने के बाद सुबह श ु न ने इस समाचार के साथ एक दूत को
अयो या भेजा और वयं मधुपुर क ओर थान क तैयारी करने लगे।
सुबह सीता ने श ु न को देखा। राम क अपने बारे म क गई िच ता को जाना, िक तु उ ह हष
या िवषाद कुछ नह हआ। आ म म रहते हए उनक िदनचया बहत बदल गई थी। स त और
ऋिषय के साथ ने उनके जीवन को एक नया मोड़ दे िदया था। पज ू ा-पाठ, यान और समािध के
अित र पेड़-पौध का साथ और उनक सेवा उनक िदनचचा म सि मिलत हो चुक था।
सीता का अिधकतर समय इसी म यतीत होता था। इससे उनका मन धीरे -धीरे िनिवकार होता
जा रहा था, िक तु अपने नवजात ब च के मुख को देखकर उनके अ दर ममता का झरना सा
फूट पड़ा। उस समय उ ह लगा िक जो भाव मन म उठ रहे ह, वे अिभ यि से कह ऊपर ह।
ब चे धीरे -धीरे बड़े होने लगे, िक तु सीता ने आ म क िदनचया को छोड़ा नह । बस, उसम इन
ब च का लालन-पालन बढ़ गया। सीता, िनिवकार तो अब भी थ , िक तु उ ह लगता था िक
कभी-कभी अकारण ही उनका मन गुनगुनाने सा लगता है। एक िदन उ ह ने महिष से इस िवषय
पर चचा क ... बोल ,
‘‘महिष, आपक िश ा के िवपरीत, म बहत मोह म फँसती जा रही हँ; यह ब च से तो है ही, मुझे
अपने जीवन से भी बहत मोह होता जा रहा है।''
‘‘बेटी, इसे मोह नह कहते; छोटे ब च के ित माँ के दय म ममता, उन ब च के बड़े और
समथ होने के िलये कृित क आव यकता है।''
‘‘महिष, जैसा मने आप से कहा, मुझे अपने जीवन से भी कुछ-कुछ मोह होता जा रहा है।''
‘‘यह भी कृित ारा पैदा िकया गया आव यकता-जिनत भाव ही है, य िक इन ब च को
तु हारी बहत अिधक आव यकता है।''
‘‘और यह जो मेरा मन अकारण ही गुनगुनाने लगता है?''
‘‘बेटी, यि को देश और काल के अनुसार सुख-दु:ख का अनुभव होता रहता है; तुम इसे
समान प से वीकार करने लगी हो... यही योग है, जो यि को ई र से जोड़ता है। ई र से
स पक, मन म आन द क ि थित पैदा कर देता है। तु हारे मन का अकारण ही गुनगुनाना, मन
म इसी आन द क ि थित का बोध कराता है।''
‘‘महिष, आपक इन बात से मुझे बहत बल िमला है।''
‘‘सीते, तु हारा क याण हो,'' महिष ने कहा।
सीता को आ म म रहते हए बारह वष से अिधक यतीत हो चुके थे। कृित क गोद म पल कर
ब चे, लव और कुश बड़े हो गये थे। वे पढ़ने म तो कुशा थे ही, अ -श के संचालन म भी
बहत िनपुण और वीर थे। उ ह राम कथा अ छी तरह याद थी और वे उसे शा ीय संगीत क धुन
म गाने म िनपुण थे। सीता परू ी तरह आ म के वातावरण म रच-बस गई थ ।
तभी एक िदन उ ह पता लगा िक लवणासुर का वध और मधुपुर म अपना रा य थािपत करने
के बाद, श ु न कुछ िदन के िलये अयो या जाते हए आ म म भी आयगे। आ म म उनके आने
के समाचार से हष का वातावरण था। श ु न आये। उनके साथ कुछ थोड़े से ही सैिनक थे। महिष
ने उनका वागत िकया। वे ब च , लव-कुश और सीता से िमले। लव और कुश ने महिष के आदेश
पर उनके स मुख स वर राम कथा का गायन िकया। श ु न, उनक इस तुित से अिभभत ू
हए। राम कथा पर चचा ार भ हो गई।
कैकेयी का संग आया तो ऐसा लगा जैसे चचा एक तीखे मोड़ पर आ गई हो। सीता ने वातावरण
को सहज करने का यास िकया। वे बोल ,
‘‘रावण के अ याचार से समाज को मु कराने के िलये उसका वध आव यक था; माता कैकेयी
ने शायद इसी कारण ीराम को द डकवन ही जाने का ितब ध रखा होगा।’’
श ु न इस िवचार से सहमत नह िदखे। वे बोले,
-‘‘यिद रावण का वध ही ीराम के िलये वनवास माँगने का कारण था, तो इसके िलये यह बहत
ही ू र तरीका था। राम उनका इतना स मान करते थे िक वे सीधे ही राम को रावण के वध का
आदेश देत , तो भी वे उसे परू ा करते, िक तु इसम िपता ी को ाणा तक क नह होता और
आपका अपहरण भी नह होता,'' श ु न के वर म ित ता थी।
‘‘िक तु श ु न, इस वध के िलये कोई कारण भी होना चािहये था; अकारण िकसी का वध
करना, ीराम को शोभा नह देता।'' सीता ने कहा।
‘‘देिव, आप ठीक कह रही ह, िक तु रावण अ याचारी और दुराचरण से यु था; उसके वध के
िलये अनेक कारण िमल जाते; आपका अपहरण ही कारण बने, यह आव यक नह था।''
श ु न क इस बात से सीता को वह व न याद आ गया जो अशोक वािटका म समािध क
अव था म देखा था, िजसम वे पवू ज म म ऋिष कुश वज क क या वेदवती थ , िजसके साथ
रावण ने अनाचार करने का यास िकया था और दुखी होकर उसने रावण क म ृ यु का कारण
बनने का संक प लेकर अि न म वेश कर, म ृ यु का वरण िकया था। उ ह ने श ु न को
समझाने के वर म कहा,
‘‘शु न, म रावण क म ृ यु बनी, इसके कुछ परो कारण भी हो सकते ह।''
‘‘हो सकता है इसके कुछ परो कारण ह , िक तु य कारण, कैकेयी का हठ ही था, िजसने
तमाम अनथ के साथ इन ब च के जीवन को भी भािवत िकया है।''
‘‘श ु न, िजस जीवन म घटनाय न ह , उतार-चढ़ाव न ह , वह भी कोई जीवन है? और इस
आ म म होने के कारण, इन बालक का जीवन अ त- य त नही, पण ू त: यवि थत है। यहाँ का
वातावरण, यहाँ के सीधे सरल और तप वी लोग और वयं महिष वा मीिक के सािन य का सुख
वही जान सकता है, िजसने इसे िजया है।''
‘‘िक तु वयं ीराम भी तो वहाँ आपके और ब च के िबना बहत दुखी ह गे, उनका या?''
श ु न ने कहा।
‘‘श ु न, राजा का थम दािय व अपनी जा क िहत िच ता है; यिद म वहाँ रहती, तो वे लोक
िन दा और अपवाद के कारण तनाव म रहते और जा के ित अपने कत य को बहत सुचा
प से परू ा नह कर पाते... हमारे इस तनाव का भाव इन ब च पर भी सकारा मक तो नह
होता।''
महिष सुन रहे थे। उ ह ने कहा,-‘‘यह तु हारी पा रवा रक बात है, अत: म कुछ िवशेष तो नह ,
िक तु इतना अव य कहँगा िक िजस कार सीता ने अपने मन को शा त कर िलया है, उसी
कार तुम भी अपने मन को शा त करो... िविध का िलखा हआ भी, कुछ तो अथ रखता ही
होगा।''
वातालाप समा हआ तो श ु न ने महिष और सीता को णाम कर, ब च , लव तथा कुश को
नेह देने के बाद िवदा ली।
19. सच जीिवत तो है
स या का समय था। प ी अपने बसेर क ओर लौट रहे थे। गंगाजी क लहर का शोर सुनाई
पड़ने लगा था। व ृ , फूल और नदी के जल को छूकर आती हई हवा म शीतलता तो थी ही,
ह रयाली क ाणदायी सुग ध भी थी। महिष वा मीिक के आ म म रहने वाले सभी लोग के
अित र , पास म रहने वाले लोग भी बड़ी सं या म नदी के तट पर एकि त थे। कुछ ही देर म
िन य क भाँित गंगाजी क आरती होनी थी।
महिष वयं एक थोड़े से ऊँचे थान पर आसन पर बैठे हए थे। उनके िनकट ही कुछ दूर पर एक
आसन पर सीता बैठी हई थ और उनके स मुख बहत सी ि याँ एकि त थ । लोग छोटे-छोटे
झु ड म िविभ न चचाओं म लीन थे। तभी एक आ मवासी ने उ च वर म कहा,
‘‘आप सभी लोग शा त हो जाय, महिष कुछ कहना चाहते ह।''
लोग आपस म बातचीत ब द कर, महिष क ओर उ मुख हए, तब महिष ने कहा,
‘‘अयो या के राजा ीराम अ मेध य कर रहे ह; उसम उ हांने आप सभी को आमंि त िकया है।
इस तरह के अवसर िबरले ही आते ह, अत: आप सभी इस अित िविश अनु ान म अपनी
भागीदारी सुिनि त कर।''
लगभग सभी ने हष विन से अपनी सहमित दी, िक तु महिष को लगा िक कुछ लोग के चेहरे
पर स नता का भाव नह है। उ ह लगा िक अव य ही इन लोग के मन म कह कुछ शंका है,
अत: उ ह ने ऐसे ही एक यि क ओर वाचक ि से देखा। वह यि खड़ा हो गया तो
महिष ने पछ ू ा,
‘‘कुछ शंका है या?''
‘‘महिष मा कर, हम लगता है िक राम एक िवशेष जाित के लोग के िवरोधी ह।''
‘‘ऐसा िकस आधार पर कहा तुमने?''
‘‘हमने सुना है िक उ ह ने तप या करते हये ऋिष श बक ू का, उनक जाित के कारण वध कर
िदया था।''
‘‘यही स य नह है।''
‘‘तो स य या है? कृपया हम बताय,'' कई वर एक साथ उठे । महिष ने कहा,
‘‘यिद राम ऐसे होते, तो शबरी के आ म पर जाकर उसके अितिथ न बनते, उसके जठ ू े बेर नह
खाते, उसक म ृ यु के प ात् शबरी के दाह सं कार म सहयोग नह करते। जटायु भी िकसी
उ चजाित का नह था; ीराम ने उसे ेम भी िदया और उसक म ृ यु के प ात् उसका दाह
सं कार भी िकया। शंग ृ वेरपुर का राजा गु भी िनषाद जाित का था; यिद ीराम जाित देखते
होते तो उसका आित य वीकार कर उसे गले से नह लगाते।''
‘‘और िफर...'' महिष ने आगे कहा,-‘‘तुम लोग यह य नह सोचते िक तु हारा यह महिष
वा मीिक भी समाज के उसी वग से आता है, िजसे कुछ लोग अवण कहते ह; यिद राम इस जाित
के िवरोधी होते तो वे अपनी गभवती प नी को इस आ म म नह भेजते... तथाकिथत उ च जाित
के ऋिषय और उनके ारा संचािलत आ म क कमी नह है। महिष अग य ही, ा ण वग के
भी ह और ीराम को बहत अिधक मान भी देते ह; वे सीता को उनके आ म म भी भेज सकते
थे।''
‘‘िक तु श बक ू का वध?'' एक वर आया
‘‘तप या करने का श बक ू का उ े य उिचत नह था। वह देवलोक पर िवजय ा कर सशरीर
वग जाना चाहता था; यह अनुिचत था, और स भव भी नह था। बहत पहले राम के ही कुल के
ि शंकु ने भी इसके िलये यास िकया था, िक तु वे भी सफल नह हो सके थे।
िकसी लोक पर िवजय ा करने का यास, उसके िव यु क घोषणा जैसा ही होता है; राम
ने इस अनुिचत यास क िनरथकता समझाकर, उसे िकसी साथक काय म लगने का सुझाव
िदया था।
...जो श बक ू को ऋिष बताकर और उसके ित राम के यवहार को उदाहरण बनाकर, उ ह
तथाकिथत अवण का िवरोधी िस करना चाहते ह, वे यिद राम के च र को सम ता म देखगे
तो उ ह यह िशकायत नह रहे गी।''
‘‘आप कह रहे ह िक ीराम ने श बक ू को समझाकर इस तरह के गलत उ े य को लेकर क जा
रही तप या से मा िवरत िकया था; िक तु लोग तो कहते ह, राम ने उनका वध िकया था।''
‘‘इस बात को समझने के िलये थोड़ा पीछे जाना होगा।'' महिष ने कहा।
‘‘रावण के वध के प ात, राम चाहते तो लंका को अपने अधीन भी रख सकते थे; अपने िकसी
भाई को वह िवशाल वैभवशाली रा य दे सकते थे, िक तु उ ह ने सहज भाव से वह रा य िवभीषण
को दे िदया। िवभीषण ने र सं कृित याग कर आय सं कृित को अपना िलया था।
कुछ रा स, जो रावण के भ थे व र -सं कृित के ित िन ा और िवभीषण से ेष रखते थे, वे
लंका से पलायन कर गये और भारत के दि णी भाग म, जो लंका के सबसे िनकट था,
अिधकतर वह आकर बस गये। वे राम के ित आ ोश और बदले क भावना रखते थे, िक तु
चँिू क वे सामने राम से यु करने का साहस नह रखते थे, अत: राम के रा य म आकर सीता
और राम के च र -हनन के यास म लग गये।''
सीता, जो इस वातालाप को मनोयोग से सुन रही थ । उ ह लगने लगा िक सचमुच राम अपने
सदाचरण और छल रिहत सरल वभाव के कारण िकस कार बराबर षड़यं का िशकार होते
रहे ह। इस तरह के षड़यं उनके राजितलक के समय पर कैकेय देश से आई हई दासी म थरा से
शु हए थे और आज तक चल रहे ह।
महिष ने पुन: कहना ार भ िकया, िक िकसी तरह क कोई रोक न होने के कारण ये लोग
अपने साथ पया मा ा म स पदा, सोना, चाँदी और र न इ यािद लाये थे। इन लोग ने राम क
जा के कुछ लोग को भी समझा-बुझाकर और लालच आिद देकर अपने प म कर िलया था।
पहले उ ह ने सीता के िवषय म यह चा रत करना ार भ िकया िक वे रावण के ारा उठा ले
जाने के बाद उसके यहाँ बहत िदन तक रहकर आई ह, अत: वे अयो या क राजमिहषी कैसे हो
सकती ह। सीता के उ पीड़न के अपने इस षड़य म वे सफल भी हए और सीता को राजमहल
छोड़ने का िन य करना पड़ा। इस षड़य ने सीता को िवरागी और राम को अकेला कर िदया''
महिष क बात जब इस मोड़ पर पहँची तो सीता का मन िवचिलत हो उठा। इतने िदन क साधना
और तप या से उ ह ने अपने मन को ढ़ िकया था; अब उ ह लगा, मन क वह ढ़ता कह
िवचिलत हो रही है। वे सोचने लग , या महल को छोड़ने का उनका वह िन य गलत था? या
उ ह ने राम के साथ अ याय िकया है? िफर उ ह ने अपने बालक लव और कुश क ओर देखा,
और उ ह लगा, नह ... इन बालक के भिव य और राम को लोक िन दा के तनाव से मु करने
के िलए िलया गया उनका वह िनणय सव म न सही, िक तु गलत भी नह था।
महिष जब अपनी बात कह रहे थे, लोग बहत ही शाि तपवू क उ ह सुन रहे थे, और उनक बात
से सहमत भी लग रहे थे। उ ह ने आगे कहा,
‘‘इस कार इन लोग ने एक तीर से कई िशकार िकये। सीता का च र हनन िकया; उ ह
गभवती अव था म महल से दूर वन म रहने को िववश िकया, राम को अकेला कर कमजोर
करने का यास िकया और िफर यह चा रत िकया िक राम ने सीता को गभवती अव था म ही
उ ह िबना बताये वन िभजवा िदया और इस तरह उ ह ने राम का च र -हनन भी िकया साथ ही
अयो या से उसके होने वाले उ रािधकारी को दूर कर, उ रािधकार के िलये संघष क स भावना
को ज म देकर, अयो या के परू े राजप रवार पर भी िनशाना लगाया।
एक षड़यं क सफलता ने उन रा स समुदाय के लोग के मनोबल को बहत बढ़ा िदया। सीता
दूर हो चुक थ । अब उ ह ने राम को एक बार पुन: अपना िनशाना बनाया। श बक ू , राम के
समझाने के बाद तप या छोड़कर कह अ ात थान म चला गया था, िक तु इन लोग ने यह
चा रत िकया िक राम ने अवण होने के कारण अपनी तलवार से गला काटकर उसका वध कर
िदया और देव सं कृित को मानने वाल ने पु प-वषा कर राम का अिभन दन िकया।
राम के इस च र -हनन म वे िकतना अिधक सफल रहे , यह इस सभा म कितपय लोग ारा
उठाई गई इन शंकाओं से ही प है।''
कुछ देर शा त रहने के प ात् महिष ने पुन: कहना ार भ िकया
‘‘राम चाहते तो राजसयू य कर सकते थे, िक तु इसम सभी राजवंश से अपनी स ा वीकार
करानी होती है। राम इसम स म थे, िक तु इसम होने वाली जनहािन को यान म रखकर
उ ह ने इस य का िवचार याग िदया।
वैसे भी राम को रा य का मोह या स ा क भख ू कभी नह रही, यह उनके अब तक के जीवन पर
ि डालने से एकदम प हो जाता है। उ ह ने आज तक जो भी िकया, ह कत य समझकर
िकया। वे धािमक अनु ान करना चाहते थे; अपने रा य का िव तार नह , इसीिलये उ ह ने
राजसय ू य का िवचार याग कर अव मेध य , जो भगवान िशव को बहत ि य बताया जाता है,
उसे करने का िन य िकया।
जो राम क उदारता और महानता पर िच ह लगाते ह, उ ह म एक बार पुन: सलाह दँूगा िक
वे राम को उनक सम ता म देख, िफर मू यांकन कर... अब मेरी बात समा हई; यिद िकसी के
मन म अब भी कोई शंका हो तो वह कह सकता है।''
उपि थत लोग म मौन छा गया। िकसी ने भी कोई शंका य नह क , तब महिष ने कहा,
‘‘समय हो गया है, गंगाजी क आरती ार भ कर।''
20. एक और ले िकन
अगले िदन ातःकाल से ही आ म म बहत हलचल थी। राम के ारा स पािदत होने वाले अ मेध
य म जाने के िलये सभी तैयार हो रहे थे। ब चे, लव और कुश बहत देर से तैयार होकर महिष के
पास आ चुके थे, िक तु सीता नह आई थ । महिष ने एक ऋिष क प नी को सीता को बुलाने के
िलये भेजा। सीता आई ं, िक तु वे रोज के व म ही थ । महिष ने कहा,
‘‘पु ी सीते, तुम तैयार नह हइ! ''
‘‘महिष, ब चे तो जा ही रहे ह।''
‘‘हाँ, ब चे तो जा रहे ह, िक तु तुम य नह तैयार हई ं; तु ह भी तो चलना है।''
‘‘मेरी इ छा नह है।''
‘‘ य , या तु ह राम से कुछ िशकायत है?''
‘‘वह बात नह है महिष, िक तु जीवन का जो अ याय ब द हो चुका है, म उसे पुन: खोलना नह
चाहती।''
‘‘बेटी, राम और तु हारा जीवन वैसे भी काफ संघष से भरा रहा है; तु हारे वहाँ न जाने से राम
को इस तरह क बात सुननी पड़ सकती ह िक लो इनके इतने बड़े धािमक अनु ान म भी
इनक प नी नह आई ं... यह अ छा नह लगेगा।''
‘‘महिष, अब मुझे कुछ अ छा या बुरा नह लगता; सुनती आई हँ िक म धरती क पु ी हँ, तो
उसके कुछ गुण तो मुझम होने ही चािहये, िफर भी यिद आपक ि म वहाँ जाना, उनक प नी
होने के नाते मेरा कत य बनता है, तो म चलती हँ, िक तु म वहाँ ठहरने के थान तक ही
रहँगी, िकसी कार क सि य भिू मका िब कुल भी नह िनभाना चाहँगी।''
‘‘ठीक है।'
बहत दूर तक चलकर
थक कर बैठे मन ने
अपने सारे ज म समेटे
और सी िलये
लेिकन िफर-िफर
उ ह -उ ह प ृ को
पढ़ने का आ ह
पीड़ा देता है।
21. म सीता हँ
कैकेयी के जाने के बाद से सीता के मन म अपने जीवन के िकतने ही प ृ एक-एक कर खुलते
जा रहे थे। मिृ तय का म टूटा, तो सीता को लगा जैसे इन सारे प ृ को पढ़ते-पढ़ते, िकसी
बहत दूर से आते पिथक क भाँित वे बहत थक गई ह। इस क म िकतना समय बीत गया है,
इसका अनुमान भी कह खो सा गया था। उनके सीने म ह का सा दद और िसर म भारीपन हो
आया था। उ ह ने अपने िसर को हलके से झटका, दोन हथेिलय को आपस म रगड़ा, ने पर
रखा, िफर िसर पर हाथ फेरते हए, आँख ब द कर ल ; लेटकर एक गहरी साँस ली और शरीर को
ढीला छोड़ िदया। उ ह लगा, जैसे उनके पोर-पोर से थकान िनकल रही है, तभी ार पर ह क
सी खट-खट क विन हई। सीता ने ने खोले। उ ह लगा, जैसे वे सपन से भरी हई बहत गहरी
न द से उठी ह। प रचा रका खड़ी थी। उसने पछू ा,
‘‘आप ठीक तो ह?''
‘‘हाँ, य ?''
‘‘आपका क बहत देर से ब द था, मुझे िच ता हई।''
‘‘यँ ू ही आँख लग गई थी।''
‘‘महाराज का स देश आया है; या आप य थल पर आना चाहगी?''
‘‘हाँ चलो, वे ती ा म ह गे।''
‘‘उनक आ ा से म आपके िलये व लेकर आई हँ।''
‘‘ठीक है रख दो, और बाहर ती ा करो।''
थोड़ी देर म सीता, राम के भेजे हए, उनक िच के व धारण कर बाहर आई ं। कई प रचा रकाय
तो थ ही; उिमला, मा डवी और ुतक ित भी थ । उिमला, शी ता से उनके पास आई ं और 'दीदी'
कहते हए उनका हाथ थाम िलया।
सीता सभी के साथ य थल पर पहँच । उनक ती ा ही हो रही थी। राम उठकर आये और उ ह
साथ लेकर य शाला क ओर चले और वहाँ पहँचकर, य म सि मिलत होने के िलये सीता के
साथ आसन पर बैठ गये।
य क सारी तैया रयाँ पण ू हो चुक थ । अपार जन-समहू उमड़ा हआ था। िविभ न यि य को
उनक ग रमा के अनु प ही थान िदया गया था।
वह एक अ ुत सु दर और क पनातीत य था। य ार भ ही होने वाला था, तभी सहसा, िजस
ओर आम नाग रक बैठे थे, उधर एक यि खड़ा हो गया और जोर-जोर से कुछ कहने लगा।
राम तक उसक विन नह पहँच रही थी, िक तु उसके आसपास बैठे लोग म, जो उसक बात
सुन रहे थे, कुछ कसमसाहट सी हई। उनक मु ाओं से लग रहा था िक उ ह उस यि क बात
बहत क द लग रही थ । वे लोग उसे आगे बोलने से रोकने का यास भी करते हए लगे। कई
सुर ा-कम दौड़कर, उस यि के पास पहँच गये। उसे पकड़कर अलग ले गये।
वह राजा से िमलने क िजद कर रहा था। सुम ने इशारे से एक सुर ा-कम को बुलाया और
उस यि को पास लाने के िलये कहा। शी ही उसे सुम के स मुख उपि थत िकया गया।
राम ने देखा, कुछ और लोग भी उसके साथ सुम के पास तक आ गये थे। तभी भ ने सुम
के पास आकर धीरे से कहा,
‘‘यह सब वही लोग ह जो महारानी के स ब ध म तरह-तरह क शंकाय िकया करते थे।''
‘‘मने अनुमान लगा िलया था।'' सुम ने कहा, िफर उन लोग से पछ ू ा,
‘‘ या बात है, या चाहते ह आप लोग?'' उनम से एक यि जो पहले खड़ा हआ था और कुछ
नेता सा लग रहा था, कहने लगा,
‘‘हम सब महाराज से कुछ कहना चाहते ह।''
‘‘कहो, तु हारी बात उन तक पहँचा दी जायेगी।'' सुम ने कहा। तब तक राम और उनके पीछे -
पीछे सीता, वहाँ आ चुके थे। उस यि ने उनको पास देखकर कहा,
‘‘म िवन तापवू क कहना चाहता हँ िक महारानी इस य म कैसे बैठ सकती ह?''
‘‘ य ?''
‘‘वे पहले लगभग एक वष तक, रावण जैसे दुराचारी के यहाँ, िफर अभी भी बारह वष से अिधक
समय तक वन म रहकर आई ह...।''
पास ही खड़ी सीता इस आरोप को सुनकर त ध रह गय । राम का मुख ोध से तमतमा गया।
ल मण का हाथ तलवार तक पहँच चुका था। उ ह ने कठोर वर म पछ ू ा,
‘‘ या चाहते हो?''
‘‘महारानी अपनी पिव ता क शपथ लेने के बाद ही य जैसे पिव काय म भागीदारी कर।''
महिष पास ही थे, बोले,
‘‘मने आज तक जीवन म झठ ू नह बोला है, और म िव ास से कहता हँ िक सीता, गंगाजल से
भी अिधक पिव ह।''
महिष क आवाज दूर तक गई और वहाँ उपि थत भीड़ ने हष- विन कर यापक समथन िदया।
सुम ने कहा,
‘‘सुन िलया, अब आप लोग जाय।''
िक तु वे लोग वैसे ही खड़े रहे , गये नह । सुम ने पुन: कहा,
‘‘अब या चाहते ह आप लोग?''
‘‘हम महिष का बहत स मान करते ह िक तु ...''
‘‘िक तु या?''
‘‘स य का कुछ सा य भी तो चािहये।''
‘‘अब कैसा सा य?''
‘‘यहाँ अयो या क अिधकांश जनता उपि थत है; महारानी आगे आकर वयं शपथ ले ल, बस हम
इतना चाहते ह।''
यह सुनकर ल मण क तलवार, यान से बाहर िनकल आई। राम ने इशारे से उ ह रोका। ल मण
ने तलवार तो यान म रख ली, िक तु वे िवकट ोध से भरे हए थे, कठोर वर म बोले,
‘‘मखू ! यिद यहाँ एक पिव य न चल रहा होता, तो इस कार महारानी का अपमान करने
वाले का सर धड़ से अलग हो चुका होता।''
वह यि अनुमान से अिधक ढीठ िनकला। बोला,
‘‘मेरी गदन आपके स मुख है, चाह तो काट द।''
ल मण उसक इस बात से बहत अिधक ोिधत होकर आगे बढ़े , िक तु सुम शी ता से पास
आये और उस यि को उनके पास से दूर हटा िदया, िफर उसके साथ खड़े अ य लोग को
स बोिधत कर बोले,
‘‘ या आप सब भी यही चाहते ह? या आप लोग को भी महिष वा मीिक क बात पर िव ास
नह है?''
सुम के इस से उन लोग म स नाटा छा गया। सुम ने िफर पछ ू ा,
‘‘आप सभी के मौन का या अथ है?''
उस झु ड म थोड़ी सी कसमसाहट सी हई। आपस म कुछ फुसफुसाहट, कुछ संकेत, िफर ‘कुछ
कहो न!', ‘तुम कहो न!' के धीमे-धीमे वर चले और िफर उनम से एक यि बोला,
‘‘महारानी वयं शपथ ले ल, इसम या आपि है? वे शपथ ले ल हम चले जायगे।''
सुम ने इसका उ र देने के पवू राम और िफर ल मण क ओर देखा। कोई संकेत न िमलने पर
सुम ने कहा,
‘‘ठीक है, आप लोग क बात पर िवचार िकया जायेगा, अब आप जाय।''
उनके जाने के बाद सुम , राम और सीता के पास आये, तो राम, सीता, ल मण, भरत और
श ु न, सुम के साथ एक ओर हटकर खड़े हो गये। सभी के चेहरे ग भीर थे, िक तु ल मण
ोध से भरे हए थे। उ ह ने शाि त तोड़ी। राम क ओर देखकर बोले,
‘‘अनुमित दीिजये, म उ ह भलीभाँित समझा सकता हँ।''
राम ने ल मण क बात का आशय समझा; उनक ओर देखा और ने से ही उ ह मना कर िदया।
‘‘आपका या आदेश है?'' सुम ने राम क ओर देखकर पछ ू ा। इसके उ र म राम मौन ही रहे ।
उनके चेहरे से लग रहा था िक वे कुछ सोच रहे ह।
वातावरण बहत बोिझल हो गया था और सभी खामोश थे। कोई समझ नही पा रहा था िक या
कहे ; िक तु ल मण बहत उ ेिजत थे। ऐसा लग रहा था जैसे वे अपने तरीके से इस सम या को
अितशी हल करने के िलये बहत याकुल थे।
राम के म तक पर िच ता क लक र थ । लग रहा था जैसे वे िकसी धमसंकट म ह। उ ह ने कुछ
पल के िलये ि ऊपर आसमान म गड़ा दी, लगा जैसे वे ई र से कुछ कह रहे ह ।
सहसा सीता आगे आई ं। उ ह ने राम के मुख क ओर देखा और कहा,
‘‘यिद आप क अनुमित हो तो म कुछ कहना चाहती हँ।''
सीता के इस अनुरोध से वहाँ उपि थत सभी लोग कुछ च क से गये। ल मण ने उनके मुख पर
ि डाली तो उ ह लगा िक सीता का चेहरा अ ुत तेज और िकसी ढ़ िन य से भरा हआ है।
िकसी अनहोनी क आशंका से उनका मन िहल उठा। राम वयं कुछ आ यचिकत से लग रहे थे,
उ ह ने कहा,
‘‘अव य महारानी, आप का वागत है।''
य िप राम ने लगभग त काल ही यह बात कही थी, िक तु सभी को ऐसा लगा जैसे इस बीच
समय का एक ल बा अ तराल गुजर गया है। सीता ने उनका उ र सुना। वे अभी तक राम से
अपने िलये ‘सीते' स बोधन सुनती आई थ , िक तु आज इस 'महारानी' स बोधन ने उ ह च का
िदया,िक तु िफर उ ह लगा िक स भवत: सावजिनक थान होने के कारण राम ने उ ह,
महारानी’ कहकर स बोिधत िकया होगा, अत: यह उिचत ही होगा।
‘िफर तो इस सभा म िकसी के ारा उठाया गया यह तो अयो या क महारानी और रघुकुल
क ित ा पर लगा हआ हो गया; अथात िजतना लगता है, उससे बड़ा हो गया यह
तो।’ सीता ने वयं से कहा।
‘नह , वे इस को इतना बड़ा नह होने दगी, अिपतु इसका समल ू नाश करगी,’ उ ह ने
सोचा, िफर मन को ढ़ िकया और बोल ,
‘‘यह मा िकसी क प नी पर ही नह , अिपतु अयो या क महारानी और रघुकुल क ित ा पर
लगा हआ भी है; इसका समलू नाश होना ही चािहये।’’......इतना कहकर वे एक गहरी साँस
लेकर चुप हो गय ।
उ ह याद आया, बचपन म एक बार माँ ने कहा था िक ‘ ी धरती ही तो होती है, और इसका अथ
तु ह बड़े होने पर वत: ही समझ म आ जायेगा' एक पल को उ ह लगा िक उ ह माँ के उस
कथन का अथ समझ म आने लगा है।
राम ने उनक यह गहरी साँस अपने अ दर तक महसस ू क । महान् परा मी और धैयवान राम
को भी यह िवचिलत कर गया। उ ह प रि थित क कठोरता का अनुमान था, िक तु सीता के
चेहरे पर जो भाव उ ह िदखा वह और भी कठोर लगा।
लग रहा था जैसे वे कोई कठोर िनणय ले चुक ह। सीता ने आँख उठाकर य म जल रही अि न
क ओर देखा । राम ने सीता के ने को, और उनम उस अि न के ितिब ब को देखा। उ ह
लगा, जैसे दोन ओर आग जल रही हो। उनके मन म भयंकर अिन क आशंका ने ज म िलया।
उ ह ने सीता के मुख क ओर देखा।
वे कहना चाहते थे िक सीता को! हम यह रा य नह चािहये; िक तु तभी सीता ने अपने दाय
हाथ क हथेली य म जल रही अि न क ओर क और कहना शु िकया,
‘‘म सीता, य म जल रही पिव अि न क शपथ लेती हँ िक...''
‘‘सीते, को!'' राम ने हाथ उठाकर कहा। उनके वर म िव लता और पीड़ा थी, िक तु सीता ने
मान कुछ नह सुना; उ ह ने अपना वा य परू ा िकया,
‘‘म मन, वचन और कम से पिव और अपने पित और धम के ित सदैव िन ावान रही हँ।''
इसके साथ ही राम को लगा, सीता उ ह पीछे छोड़कर मील आगे, बहत आगे िनकल गई ह। चार
ओर घोर स नाटा छा गया था। कोई कुछ भी कहने क ि थित म नह था। अचानक भीड़ म एक
ू ा ‘महारानी सीता क ...' और भीड़ ने उ र िदया ‘जय'। इसके बाद वह थल सीता और
वर गँज
राम क जयघोष और हष- विनय से गँज ू ने लगा। तभी सीता मुड़ । य थल क ओर चल द
और उसे पार करते हए बाहर िनकल गय । सभी उ ह आ य से देख रहे थे। कोई समझ नह पा
रहा था िक सीता कहाँ और य चली जा रही ह। राम ने आवाज दी,
‘‘सीते!''
सीता ने मुड़कर पीछे देखा। ने िमले। एक दद भरी मु कान उनके अधर पर तैर गई और िफर
उ ह ने अपना एक हाथ इस तरह उठाया, जैसे वे राम से ठहरने के िलए कह रही ह । राम के दय
म पता नह या हआ, वे एक पल के िलये िकंकत यिवमढ़ ू से हो गये। इसी बीच सीता आगे बढ़
तो भीड़ वत: उ ह रा ता देती गयी।
राम सशंिकत थे। उ ह ने ल मण क ओर देखा। िफर दोन भाई उसी ओर चलने को उ त हए।
भरत ने भी साथ चलने क अनुमित माँगी। उनके साथ श ु न और सुम भी हो िलये और सभी
भीड़ के बीच से माग बनाते हए चल पड़े ।
सीता के िनकलते ही वातावरण कोलाहल से भर गया था और भीड़ अ यवि थत हो गयी थी।
य िप कुछ सैिनक आगे-आगे माग बनाते हए चल रहे थे, िक तु िफर भी कोलाहल, अ यव था
और बहत अिधक भीड़ के कारण यह सरल नह था। राम क भ ह कुछ िसकुड़ी हई ं, ह ठ थोड़ा
स ती से िभंचे हए और चेहरे पर िच ता क लक र थ । जब तक वे भीड़ को पार कर सक, तब
तक सीता िनकल चुक थ ।
भीड़ उनके साथ चल पड़ी। सीता ने उन लोग को भी कने का संकेत िकया, िक तु िफर भी
बहत बड़ी सं या म वे उनके पीछे हो िलये, पर उनके इस संकेत के कारण वे दूरी बनाये हए थे,
पास आने का साहस नह जुटा पा रहे थे।
इस बीच सीता, राज-माग छोड़कर गिलय से होते हये वन जाने वाले माग पर आ चुक थ । उ ह
लगा िक उ ह इस तरह के माग पर चलने का बहत अ यास है। ऐसा लगा, जैसे उनको पंख िमल
गये ह । अचानक उनक गित बहत ती हो गयी; लगा, जैसे उ ह कह दूर जाने क शी ता है।
अयो या क एक बहत बड़ी भीड़ उनके पीछे थी, िक तु अब उनके और भीड़ के म य दूरी बढ़
चुक थी, और सीता का यान अब इस सब क ओर नह था। वे सब कुछ भल ू कर िवचार के
संसार म खो चुक थ ।
उनका मन बहत तेजी से दौड़ रहा था और मन म बहत से उठ रहे थे। उ ह लग रहा था, या
उनका इस कार य थल छोड़ना पलायन है?
उ ह याद आ रहा था िक लंका िवजय के बाद भी उन पर उठ सकने वाले -िच ह के शमन
हे तु, राम ने उ ह अकेले अि न म वेश करने क अनुमित नह दी थी; वे उनके साथ ही वयं भी
अि न म वेश करने को त पर थे, और आज उनक जा के कुछ बहके हए लोग ने पुन: -
िच ह लगाये, तो वे िकतने िव ल हो उठे थे और उ ह शपथ लेने से रोक रहे थे।
महिष वा मीिक के आ म म संत ी पु ष के साथ बारह वष िबताने के बाद उनक
मानिसकता पण ू प से प रवितत हो चुक थी। लव व कुश कुछ बड़े और समझदार हो चुके थे
और अपने िपता के संर ण म पहँच चुके थे। उनका वयं का मन िवरागी हो चुका था, इसिलये
आज उ ह ने सब कुछ यागने का मन बना िलया था। िक तु आज जो कुछ उ ह ने राम क
आँख म पढ़ा था, उससे उ ह िव ास हो गया था िक यिद वे इतनी शी ता न करत तो िनि त
ही राम सब कुछ छोड़कर उनके साथ चल देते और यह अयो या के िलये बहत अनथकारी होता।
उनके मन म िफर उठा, या यह पलायन क ेणी म आयेगा? उ ह ने और राम ने कभी भी डर
या िकसी लोभ से कोई काय नह िकया था, िफर भी यिद यह पलायन है तो याग या है?
सीता को लगा, इस म ही उ र िनिहत है, और इसके साथ ही उनक आँख के आगे राम का
चेहरा आ गया। अ ुत पवान, बहत वीर, परा मी, िवचारवान, धैयवान, बुि मान और दूसर के
िलये चुपचाप क सह जाने वाले; कौन सा गुण नह है उनम? एक बड़े सा ा य के शासक होते
हए भी एक प नी तधारी। वे बारह वष से अिधक समय तक उनसे दूर रह , िक तु राम ने िकसी
भी अ य ी को अपने जीवन म नह आने िदया।
अब उ ह लगा िक राम के गुण को िगना नह जा सकता। उनको याद आया िक जो कुछ उ ह ने
सुना और जाना था, उस के अनुसार उनके अपहरण के बाद राम बहत दुःखी और याकुल थे और
उनके वा मीिक आ म जाने के बाद तो उ ह ने भी एक कुटी म साधुओ ं क भाँित रहकर ही
अपना जीवन िजया।
उ ह ने महसस ू िकया िक िजतना ेम उ ह राम से था, उससे कम ेम उ ह राम से नह िमला था।
उ ह िमिथला म, िववाह से पवू राम का थम दशन मरण हो आया। वे िकतने सौ य और िश
लगे थे। तब से आज तक उ ह ने राम म कभी कोई कमी नह पाई थी। सीता ने ने खोलकर एक
बार चार ओर देखा। कुछ व ृ और उनके म य से जाता हआ एक सन ू ा सा पथ। उ ह ने आँख
उठाकर आसमान क ओर देखा।
नीला और साफ आसमान था। उनका मन हआ िक वे और राम एक दूसरे का हाथ थामकर उड़ते
हये इस आकाश म कह खो जाय। थोड़ी देर तक और चलने के बाद वे व ृ के एक कुंज के नीचे
जाकर, एक व ृ का सहारा लेकर खड़ी हो गई ं।
ऐसा लगा, जैसे उ ह यह तक आना था। सीता कुछ देर तक खड़े रहने के बाद उसी व ृ के तने
से पीठ िटकाकर बैठ गई ं। उ ह लगा, जैसे उनका शरीर थकान से चरू है। उ ह ने अपने पैर सीधे
िकये; िसर भी व ृ के तने से िटकाया और ने ब द कर िलये। तब उ ह लगने लगा िक पैर और
पीठ म थकान के कारण बहत दद है और शरीर िनढाल हो रहा है। उ ह ने ने ब द कर िलये
और सोचने लग िक वे तो धरती क बेटी ह, िफर उनक यह माँ उ ह अपनी गोद म छुपा य
नह लेत ?
22. और इित
राम के साथ आते हए लोग, सीता को ढूँढ़ते हए चार ओर फै ल चुके थे। तभी ल मण ने भिू म पर
सीता के पद-िच ह देखे। ये वही पद-िच ह थे, िजनके पीछे चलते हये उ ह ने वनवास का एक
ल बा समय िबताया था। उ ह ने राम का हाथ पकड़ा और उ ह पद-िच ह के सहारे बढ़ने लगे।
दूसरे बहत से लोग भी उनके साथ हो िलये। कुछ दूर के बाद ये पद-िच ह व ृ के एक कुंज तक
जाकर समा हो गये थे। इस कुंज के नीचे क धरती पर कुछ दरार थ और कुछ फूल पड़े हए थे।
लोग उसके आसपास बहत दूर-दूर तक ढूँढ़ आये, िक तु सीता का कोई पता नह चला। लोग
बात करने लगे िक सीता भिू म म समा गई ह।
िमिथला से आये दोन यि भी भीड़ के साथ ही थे। उ ह ने उस थान को छूकर णाम िकया;
वहाँ से कुछ फूल उठाकर म तक से लगाये, िफर उ ह संभालकर मु ी म दबाकर चुपचाप िमिथला
के िलए चल पडे ।
ेम भरे या उपाल भ के
सारे ही वर मौन हो गये
जो उ लास भरे पग थे
वे थके हए
िफर दद भरे
िफर िशिथल हो गये
एक या ा
चली वयंवर से
पहँची िफर िचर समािध तक।

प रिश -1
ीराम के समकालीन महिष वा मीिक ारा िलिखत महाका य रामायण म काला तर म जोड़े
गये कुछ ेपक को छोड़ द, तो यह एक ऐितहािसक द तावेज ही है। हजार वष से और हजार
पु तक म ीराम और सीता के स दभ ह। वे टारजन या शरलॉक हो स जैसे कोई का पिनक
च र नह ह। कोई भी का पिनक कथानक न इतनी पु तक म स दिभत िकया जाता है, न
इतने वष तक जीिवत रह सकता है, न ही यह स भव है िक िकसी का पिनक च र का ज म-
िदन अ यिधक ा और िव ास पवू क हजार वष तक िनर तर मनाया जाता रहे ।
िफर भी चचा के दूसरे प पर भी िवचार कर लेते ह। व र सािह यकार ी िशवनारायण िम ,
अपनी पु तक ‘लोिहया : एक समाना तर या ा’ म डॉ0 राम मनोहर लोिहया, जो िक राजनेता
के साथ-साथ बहत ही अ यनशील और मध ू य िव ान भी थे, को उ त ृ करते हए िलखते ह।
‘‘राम, कृ ण और िशव इस दुिनया म थे या नह , यह मह वपण ू नह है; मह व इसका है िक
उनक कहािनयाँ भारत के जन-जन के मि त क और दय म ऐसे खुदी हई ह जैसे प थर पर
िलखे आलेख होते ह। करोड़ िह दु तािनय ने उनम अपनी हँसी और सपन के रं ग भरे ह।
मह वपण ू यह भी है िक राम का नाम लेकर करोड़ लोग जीते ह।
राम उ र-दि ण और कृ ण, पवू -पि म क धुरी पर घम ू े। कभी-कभी तो ऐसा लगता है िक देश के
उ र-दि ण, पवू -पि म को एक करना ही उनका धम था।
राम, कृ ण और िशव, सबका रा ता अलग है। ये तीन अपने आप म पण ू ता के महान् व न ह।
राम क पण ू ता उनके मयािदत यि व म, कृ ण क उनमु ता म और िशव क पण ू ता उनके
असीिमत यि व म है। तीन क पण ू ता म कोई भेद नह है।’’
व तुत: जो अन त है वही पण ू है। एक पण ू से दूसरा पण
ू िभ न हो ही नह सकता। हमारे उपिनषद
िज ह ान का सागर कहा जाता है, अ यतारकोपिनषद म एक ोक है, जो कहता है िक पण ू
म से पणू िनकाल लेने पर भी पण ू ही शेष रहता है। यह है,
‘ऊँ पण
ू मद: पण ू िमंद पणू ा पण
ू मुद यते।
पणू य पण ू ामादाय पण ू मेवाविश यते।’
(वह पर वयम् म सब कार से पण ू है और यह सिृ भी वयम् म पण ू है। उस पणू त व से
इस पण ू िव क उ पि हई है। उस पण ू से यह पणू िनकाल लेने पर भी वह शेष पण ू ही रहता है।)
उपिनषद तक बात पहँची है तो हमारे ितिदन के जीवन से सरोकार रखने वाले एक और ोक
को उ त करने के लोभ का संवरण नह कर पा रहा हँ। हमारे सोच व हमारे जीवन पर पड़ने वाले
भाव को रे खांिकत करता यह ोक महोपािनषद म ह।
कृशोऽहं दु:खब ोऽहं ह तपादािदमानहम् । इित
भावानु पेण यवहारे ण ब यते (123)
नाहं दु:खी न मे देहो ब ध: कोऽ या मिन ि थत:। इित
भावानु पेण यवहारे ण मु यते। (124) (अ याय 4)
(हाथ पैर से यु म ीणकाय हँ, दु:ख से त हँ; इस कार क भावनाओं और यवहार वाला
यि ब धन त हो जाता है। म दुखी नह हँ, यह शरीर मेरा नह है, ब धन नह है; इन
भावनाओं और यवहार वाला यि मुि को ा कर लेता है।)
तो आइये, िफर उस पणू क ओर लौटते ह, िजसे राम कहते ह।
व तुत: राम के साथ हमारा जुड़ाव इतना वत: फूत है िक उसे िकसी माण व आ य क
आव यकता है ही नह , और िफर रामायण और महाभारत को हटाने के बाद इस देश क हजार
वष पुरानी सां कृितक िवरासत म शेष या रह जायेगा, यह भी िवचारणीय है।
जो लोग राम और कृ ण के होने पर िच ह-खड़े करते ह वे सोच-समझकर हमारी हजार वष
पुरानी सां कृितक िवरासत को न करने का यास करते ह।
राम के होने के पुराताि वक माण माँगने वाले और कृ ण के होने के पुराताि वक माण को
नकारने वाले, अ य धम के वतक के होने के िकसी भी कार के पुराताि वक माण न होने
पर भी उनके होने पर कोई िच ह खड़ा नह करते।
उन धम क पु तक म विणत अक पनीय चम का रक कहािनय को जस का तस वीकार
करने म भी उनका तािकक, व तुपरक, और सब कुछ वै ािनकता क कसौटी पर कसने वाला
मन कोई आपि तुत नह करता।
कुछ लोग सोचते ह िक तिमल-भाषी ऋिष किव क बन ने इनके िव िलखा है; िक तु उ ह ने
तो इन च र को अ यिधक सु दर ढं ग से तुत करते हए और अिधक महानता और ग रमा ही
दान क है। इसके अित र बहत से अ य यि य ने भी समय के िविभ न अ तराल पर
रामायण क रचना क है।
ीलंका, जो िक ीराम और सीता क भिू म अयो या से लगभग 1500 मील दूर है, म ही नह ,
दुिनया के िविभ न थल पर अनिगनत बार उनका िज हआ है, और आज भी हो रहा है; ऐसा
िकसी भी का पिनक च र के साथ स भव नह है।
ीराम के पवू ज और उनके बाद क पीिढ़य क एक ल बी सच ू ी है। उनके ारा िनिमत कराये
गये राम-सेतु के पुराताि वक और वै ािनक माण भी ह, िक तु हमम से कुछ लोग ारा कभी
अकारण, कभी राजनीितक कारण से, कभी कुछ रह या मक और कभी-कभी तो मा वयं को
आधुिनक और वै ािनक सोच का िदखाने के िलये हमारी ाचीन सां कृितक िवरासत पर
िच ह लगाये जाते ह। शायद वे कहना चाहते ह िक कुछ समझदार लोग को छोड़कर, शेष
भारतीय ने एक का पिनक कथा के नायक और नाियका को भगवान मानकर पज ू ना शु कर
िदया; िक तु या रामायण और महाभारत जैसी गाथाएँ , जो िक पता नह िकतनी घटनाओं को
अपने अ दर समेटे ह, केवल क पना से सिृ जत क जा सकती ह?
रामायण को िलखते समय, महिष वा मीिक ने, और महाभारत म महिष वेद यास ने बहत सी
घटनाओं के साथ-साथ उस समय के ह और न क ि थितय का भी वणन िकया है।
हम यह यान रखना होगा िक आकाश म ह क ि थितयाँ रोज ही बदलती रहती ह और इन
ह क वही ि थित लाख वष के बाद ही होती है, अत: यिद हम िकसी िदन क आकाश म ह
क ि थित का ान है, तो इितहास म वह िदन उन ह ि थितय वाला अकेला िदन ही होगा।
रामायण व अ य वैिदक थ म दी हई ह-ि थितय के आधार पर तारीख के िनधारण का
यास थम बार यात भारतीय बाल गंगाधर ितलक ारा उनक पु तक ‘द ओ रयन' (स िष
म डल) म िकया गया। य िप वह यास मानवीय गणनाओं पर आधा रत था।
1990 के दशक के अि तम वष म कई क यटू र सॉ टवेयर ह क ि थत के अ ययन और
उनके समय के िनधारण के िलये िवकिसत िकये गये। इसी तरह के अित शि शाली सॉ टवेयर
का योग कर रामायण और महाभारत म विणत घटनाओं क उनम दी गई उस समय क ह
ि थितय के आधार गणना पर क गई। क यटू र सॉ टवेयर से क गई इन गणनाओं म िकसी भी
तरह क हे राफेरी क स भावना नह होती।
इस तरह का यास करने वाल म एक, भारतीय राज व िवभाग के अिधकारी ी पु कर
भटनागर ने, ह और न क महिष वा मीिक ारा विणत ि थितय और लेनेटरी सॉ टवेयर
क सहायता से बहत सी घटनाओं क तारीख और उनके होने के समय क गणना क है, इनम
से कुछ नीचे तुत ह।
1.भगवान ीराम का अवतरण 10 जनवरी 5114 ई.प.ू दोपहर 12:30 (इस िदन चै माह के
शु ल प क नवमी थी, व ृ पित कक रािश म थे और राम क ल न भी कक थी)
2.भरत का ज म 11 जनवरी 5114 ई.प.ू सुबह 4:30
(राम के ज म के 16 घ टे बाद)
3.राम के रा यािभषेक के िलये
दशरथ का आदेश 4 जनवरी 5089 ई.प.ू (चै मास था और उसके अगले िदन च मा पु य-
न म होने वाला था)
4.राम का वन गमन व दशरथ का देहावसान5 जनवरी 5089 ई.प.ू
(दशरथ क रािश ‘मीन' व न रे वती था, िजसे सय
ू , मंगल और राह ने घेर िलया था। ह क
यह ि थत राजा के िलये मारक होती है। इसीिलये योितिषय क सलाह पर दशरथ कना नह
चाहते थे और इसी िदन राम का रा यािभषेक कर देना चाहते थे। राम इस समय 25 वष के थे)
5.खर-दूषण वध 7 अ टूबर 5077 ई.प.ू म या ह 3:10
(वा मीिक रामायण के अनुसार इस िदन अमाव या थी, व मंगल म य म था अथात् मंगल के एक
ओर शु व बुध थे व दूसरी ओर सय ू व शिन थे तथा सय ू हण भी था, जो िक पंचवटी (नािसक)
से देखा जा सकता था। अर य का ड के तेइसव सग म इन ि थितय का वणन पहले, नव व
बारहव ोक म है। इसी का ड के उ तीसव सग म खर, राम से कहता है िक ‘अभी म अपने
परा म के बारे म और बताता, िक तु म ऐसा नह क ँ गा, य िक यिद इस बीच सय ू ा त हो
गया तो यु ब द करना पड़े गा।'
इस स ब ध म कुछ यान देने यो य बात िन निलिखत ह।
(क) बहत ही कम ऐसा होता है िक सभी ह, िदन के आकाश म ि थत ह ; यह िवरलतम ि थित
है।
(ख) पवू से पि म तक शिन, सय ू , च , मंगल, बुध, शु व व ृ पित िबना िकसी यं के
िदखाई पड़े ।
(ग) इस समय सय ू हण एक परू ी तरह अि तीय घटना है। यह खगोल शा क िवरल म िवरल
ि थित है।
6.बािल का दमन 3 अ ल ै 5076 ई.प.ू ातःकाल
(उस िदन आषाढ़ क अमाव या थी)
7.हनुमान का लंका पहँचना 12 िसत बर 5076 ई.प.ू
(इस िदन अपण ू च हण था, जो लंका से िदखाई पड़ा)
8.हनुमान क लंका से वापसी 14 िसत बर 5076 ई.प.ू
(सय ू व च मा दोन िदखाई दे रहे थे। मंगल व व ृ पित भी थे। इस या ा म हनुमान को लगभग
चार घ टे लगे)
9.राम क सेना का लंका कूच 20 िसत बर 5076 ई.प.ू
(ल मण के स दभ से - शु पीछे चला गया था, स -ऋिष चमक रहे थे, ि शंकु सामने था और
रा स का रखवाला मल ू न धम ू केतु ारा बािधत था)
10. रावण वध 4 िदस बर 5076 ई.प.ू
11. राम वनवास समा 2 जनवरी 5075 ई.पू
(इस िदन भी चै माह के शु ल प क नवमी थी और राम 39 वष के हये थे)
रोचक बात यह है िक ‘इं टीट्यटू फॉर साइंिटिफक रसच ऑन वेदाज़ (घ्-एीन)’ नामक सं था भी
लेनेटो रयम सॉ टवेयर का योग कर इ ह तारीख क पुि करती है।
यह सं था यह दावा करती है िक उसने राम क ज म ितिथ क एकदम सही गणना क ह और
वै ािनक के पास राम के होने के ही नह , उनके वनवास के तेरहव वष म खर दूषण से यु के
भी समुिचत माण ह।
उपरो ितिथयाँ कुछ समय के िलये मन म म पैदा कर सकती ह, य िक राम नवमी तो बहधा
अ ल ै माह के दूसरे स ाह के आसपास पड़ती है, िक तु जब हम ऋतुओ ं के िवचलन के िस ा त
को देखते ह तो पाते ह िक 72 वष के अ तराल पर, िजसम िदन और रात बराबर होते ह, उस
िदन के होने म, िसतार क ि थित के अनुसार गणना िकये जाने वाले कैलडर म, लगभग एक
िदन का अ तर आ जाता है। हमारा कैले डर इसी कार का है। अत: रामनवमी के होने म
लगभग 7000 वष के अ तराल म इस िहसाब से लगभग तीन माह का अ तराल इन ितिथय
क पुि ही करता है।
मकर-सं ाि त, िजसे िखचड़ी, लोहड़ी, प गल, आिद नाम से जाना, और देश के िविभ न भाग
म मनाया जाता है, के उदाहरण से यह बहत कुछ प हो जायेगा। सन 2013 म वामी
िववेकान द क 150 जय ती मनाई गई थी। वे सन् 1838 म ज मे थे। उस िदन मकर-सं ाि त
जनवरी माह क 12 तारीख को थी। बाद म 72 वष तक यह 13 जनवरी को पड़ी और अब यह
14 जनवरी को पड़ती है। यह दो िदन का अ तर ऊपर िदये 72 वष के गिणत क पुि करता
है।
आचाय चतुरसेन ने भी अपनी पु तक 'वयं र ामः, म तीसरे अ याय ‘अब से सात सह ा दी पवू '
म रावण को 7000 वष पवू का बताया है।
प रिश -2
भगवान राम के पूवज
1. इ वाकु, 2. िवकु ी-सासद, 3. काकु थ, 4. अन स, 5. पथ ृ ु 6.िव तर व 7. अ , 8.
युवा व 9. ाव त, 10. वहृ दा व, 11. कुवाल व, 12. धा व, 13. मोद, 14. हय व, 15.
िनकु ब, 16. संहत व, 17. अ व, 18. सेनिजत, 19. युवां , 20. मा धाता, 21. पु कु स,
22. ा द् यु, 23. स भतू 24. अनर य, 25. ा द् व, 26. हय व-ि तीय, 27. वसुमत, 28.
ि ध वन, 29. या न 30. ि शंकु, 31. स य त, 32. ह र , 33. रोिहत 34. ह रत, कंकु,
35. िवजय, 36. का, 37. क, 38. बाह या अिसत, 39. सगर, 40. असमंजस, 41.
अंशुमान, 42. िदलीप- थम, 43. भगीरथ, 44. ुत, 45. नाभग, 46. अ बरीष, 47. िस धुदीप,
48. अयु युस, 49. ऋतुपण, 50. सवकाम, 51. सुदास, 52. िम सह, 53. अ माक, 54. मुलाक,
55. सतरथ, 56. एि दा, 57. िवव थ- थम, 58. िदलीप-ि तीय, 59. दीघबाह, 60. रघु, 61.
अज, 62. दशरथ, 63. राम
इ वाकु का नाम वेद म भी आया है व वा मीिक रामायण म राम व उनके भाइय को अनेक बार
इ वाकु कुल या काकु थ कुल का बताया गया है, व ऊपर िदये गये नाम म से अनेक नाम का
उ लेख भी है।
महाराजा ि शंकु के सशरीर वग जाने के असफल यास से व राजा भगीरथ के गंगा को धरती
पर लाने के सफल यास से हर िह दू प रिचत है और ‘ि शंकु क ि थित' व ‘भगीरथ यास'
बहत अिधक चिलत मुहावर के प म थािपत ह।
प रिश -3
भगवान राम के वशंज
1. कुश, 2. अितिथ, 3. िनषाद, 4. नल, 5. नाभस, 7. पु डरीक, 8. ेम वन, 9. देविनका, 10.
अिहंगु, 11. पा रपा , 12. बल, 13. उकथ, 14. व नाभ, 15. संखन, 16. युिसत व, 17.
िव सह-ि तीय, 18. िहर यनाभ, 19. पु य, 20. ुविस धु, 21. सुदशन, 22. अि नवण, 23.
िसघरा, 24. मा , 25. सु ुत, 26. सुसि ध, 27. अमष, 28. महा त, 29. िव ुतव त, 30.
बहृ ल, 31. बहृ त य
बीसव म पर आये ुविस धु क दो पि नयाँ थ । किलंग क मनोरमा और उ जैन क
लीलावती। ुविस धु शेर का िशकार करते हए मारे गये थे, इस समय सुदशन बालक ही थे।
उनक मां मनोरमा ने श ुओ ं से तािड़त होकर पु सिहत ऋिष भार ाज के आ म म शरण ली
थी। सुदशन बड़े ही वीर और िव ान थे। वे अपने श ुओ ं को मारकर ाव ती के नरे श बने। काशी
के राजा सुबाह क पु ी शिशकला ने वयंवर म उनका वरण िकया था।
तीसव म पर आये बहृ ल महाभारत के यु म लड़े और मारे गये थे।
इस सय ू वंश के इितहास िस अयो या-नरे श सेनिजत, गौतमबु के समकालीन थे। इसके
अित र उपरो नाम म बहत से नाम भी अनेक बार िविभ न संग म सुने गये ह। अ त म
राम सेतु क चचा कर म इस पु तक को पण ू क ँ गा।
पदाथवादी तक-शा ी, राम सेतु के िलये कुछ पुराताि वक सा य माँगते ह। पु कर भटनागर
कहते ह िक ई र क कृपा से म इसके पुराताि वक सा य पाने म सफल हआ हँ। यह सा य और
इनक तािकक िववेचना नीचे तुत है।
िजस कार लाख वष पुराने प थर से बनवाया हआ घर, लाख वष पुराना नह हो जाता, उसी
कार राम सेतु के प थर भले ही लाख वष पुराने ह, िक तु वह लाख वष पुराना नह है।
इस सेतु के अवशेष तिमलनाडु के ‘चेदु कराई' नामक थान पर आज भी उपल ध ह। चँिू क तिमल
भाषा म 'स' अ र नह है, अत: 'सेतु' का ‘चेदु' हआ और ‘कराई' का अथ तिमल म नदी या समु
का तट होता है। यह थान रामे रम से 22 िकमी. क दूरी पर ि थत है। इसे कुछ लोग नल सेतु
और कुछ फै शन पर त लोग एड स-ि ज भी कहते ह। यह समु म दस फुट क गहराई पर ,और
तट से लगभग 1.5 िकलोमीटर क दूरी पर है।
हम जानते ह िक िहम युग (लगभग 16000ई.प.ू ) क समाि के बाद से समु का जल तर
लगातार उठता जा रहा है। इस िवषय पर हए शोध के अनुसार 7000 वष पवू (राम के काल म)
समु का जल तर ठीक दस फुट नीचे (राम सेतु क आज क गहराई के ठीक बराबर) ही था,
तथा इन 7000 वष म समु 1.5 से 2 िकलामीटर (राम सेतु क समु तट से दूरी) धरती पर बढ़
आया है।
ये त य राम सेतु और ऊपर दी गई रामायण क मुख ितिथय क गणनाओं क भी पुि करते
ह। उपरो त य से प होता है िक राम कोई का पिनक च र नह इितहास पु ष थे। अिधक
जानकारी के िलये नीचे दी गई पु तक भी देखी जा सकती ह।
1. ‘ ीम ा मीिक रामायण' (गीता ेस, गोरखपुर)
2. गो वामी तुलसीदास कृत ‘रामच रत मानस' (गीता ेस, गोरखपुर)
3. पु कर भटनागर क ‘डे िटंग आफ एरा ऑफ लॉड राम' ( प ए ड कं0)
4. ‘राम-सेतु' (रामे रम् राम सेतु ोटे शन मवू मे ट, चे नई)
5. आचाय चतुरसेन कृत, ‘वयं र ाम:' (िह द पाकेट बु स)
6. ीराम मेहरो ा कृत, ‘राम कौन?' (वाणी काशन)
7. 108 उपिनषद, साधना ख ड, स पादक आचाय पं0 ीराम शमा

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