You are on page 1of 197

रण े म

थम दो – असुरे र दुभ क वापसी


ापर युग म मानव , असुर और नाग के बीच
पाँच िदन तक चले महासमर क महागाथा

उप यास
उ कष ीवा तव

अंजुमन काशन
इलाहाबाद
अ य पा
मह : िवदभ का सेनापित।
भगवान महाबली : दुशल के पुवज, िज ह वामन देव का आशीवाद ा है। पौरािणक
गाथाओं म इ ह ई र तुली माना गया है।
महाऋिष िव ािम : भारतीय पौरािणक गाथाओं म इनका नाम बहत चिलत है।
वहृ द : िवदभ का सेनापित।
अनु म
अपनी बात
पहले खंड क कथा

1. दुशल : एक अन य यो ा
2. दो महारिथय का ज म
3. असुरे र दुभ
4. एक असुर क ेम कथा
5. िवजयधनुष क खोज
6. असुरे र का पतन
7. र गु का षड्यं
8. जयवधन के िव षड्यं
9. असुरे र क वापसी
10. महाबली अख ड
11. हि तनापुर का युवराज
12. नए वीर का युग
13. ोही कौन?
14. ेम पीड़ा
अपनी बात
या कारण हो सकता है इस शंख ृ ला को िलखने का? सच कहँ तो म भी नह जानता।
कभी-कभी तो मुझे वयं पर िव ास नह होता, िक इन महावीर क गाथा मने िलखी है।
असुरे र दुभ , केवल एक पा नह , अधअसुर के प म ज मा, वह राजकुमार एक
सामा य मनु य के भाव को दशाता है, िजसे केवल और केवल याय और स मान क अिभलाषा
है। पहले मेरी योजना थी िक यह शंखृ ला तीन भाग म समा हो जाएगी, िक तु अब यिद मने
ऐसा िकया तो इस कथा के साथ म याय नह कर पाऊँगा, इसिलए अब यह शंख ृ ला चार भाग
क होगी।
3. दुभ और दुधरा
4. भरतवंश का उदय
थम ख ड केवल आधार था; इसिलए उसे मुझे एक भाग म ही समा करना पड़ा, िक तु
वा तव म इस गाथा का आर भ तो अब हआ है। यहाँ हम माकश (दुशल), िव मािजत और दुभ
जैसे यो ाओं क स पण ू जीवन गाथा के िवषय म ात होगा। अब तक यह गाथा पण ू प से
का पिनक थी, िक तु अब यह भारतीय पुराण के कुछ ऐसे नायक से जुड़ने जा रही है िज ह ने
आयावत म अपनी अिमट छाप छोड़ी; उनका नाम है ‘महाराज भरत,’ िजनके नाम पर हमारा देश
भारतवष के नाम से जाना जाता है।
जहाँ तक हमारे पुराण हम बताते ह, चं वंशी महाराज भरत ने सम आयावत को एकसू
म बाँधा, और उसे भारतवष नाम िदया। वह महाराज दु यंत और शकुंतला (िव ािम क पु ी) के
पु थे, और उनके बारे म हम सभी को केवल इतना ही ात है।
यहाँ मने िदखाया है िक िकस कार दुभ और सवदमन एक दूसरे से संबंिधत ह।
दुभ , जो अपनी पीड़ा और अपने साथ हए हर अ याय को लगभग भल ू चुका था, ‘सवदमन’
(भरत का पुराना नाम) के सामने आते ही कैसे उसके सारे घाव हरे हो गए। केवल इतना ही नह ,
इस कथा म और भी कई पा ह, िजनक जीवन गाथा इस भाग म पढ़ने को िमलेगी।
जब कथानक का फै लाव इतना अिधक हो तो लेखन काय असंभव सा लगने लगता है,
इसिलए सबसे पहले म अपने िम अिभनव ीवा तव का ध यवाद करना चाहँगा, िजसने इस
कथा के अं ेजी वजन म एिडिटंग का काय िकया है। िवशेष तौर पर म ‘अंजुमन काशन’ का भी
ध यवाद करना चाहँगा, िज ह ने इस शंख ृ ला के काशन और सार का कायभार सँभाला है।
म अपनी माता ीमती अंजू ीवा तव और िपता ी रमेश चं ीवा तव, तथा बड़े भाई हष
चं के समथन का िवशेष ध यवाद करना चाहँगा; और अंत म म अपने िम , िवकास राय,
िवकास िसंह, रि म पा डे य और आयुषी िच ांश का नाम लेना नह भल ू सकता, िज ह ने मेरा
साथ कभी नह छोड़ा।
- उ कष ीवा व
पहले ख ड क कथा - र राज माकश का अंत
िवदभ के युवराज िव मािजत, राजकुमारी िच लेखा के वयंवर के उपल य म
बिल गढ़ पहँचते ह, वहाँ वो असुरजाित के एक साम यवान यो ा ‘ि काल भैरव’ का वध करके
वयंवर क शत को परू ा करते ह, िक तु व लभगढ़ के राजा अ बरीश से यह सहन नह होता,
य िक उसक वासना भरी ि िच लेखा पर होती है।
शी ही अ बरीश ने र राज माकश (ि काल भैरव का ये ाता) से हाथ िमलाया।
उ ह ने िव मािजत के साथ छल िकया, िजसका प रणाम उनक िच लेखा क म ृ यु के प म
सामने आता है और इतना ही नह , िव मािजत को महिष शंकराचाय का ाप िमला, िजसके
कारण उ ह अपने पु ‘तेज वी’ से अलग होकर अपनी मिृ तयाँ खोनी पड़ । अ बरीश मारा गया,
िक तु माकश बच िनकला। इसके उपरांत अपनी मिृ तयाँ खो चुके िव मािजत घायल अव था म
नागलोक पहँचे, जहाँ उनका िववाह नाग क राजकुमारी किन का से हआ; उन दोन के पु का
नाम युगांधर पड़ा।
सोलह वष के उपरांत, बिल गढ़ ने िवदभ पर आ मण िकया। उस यु म िव मािजत
क भट उनके पु तेज वी से हई, जो बिल गढ़ क ओर से यु कर रहा था। अपने पु को पश
करते ही उनक अतीत क सारी मिृ तयाँ लौट आय , और अपनी प नी िच लेखा क म ृ यु का
वह ममातक य भी। तेज वी को जब अपनी माता क म ृ यु के िवषय म ात हआ, उसने ण
िलया िक जब तक वह र राज माकश का अंत नह कर देता, तब तक वह वन म रहे गा।
िव मािजत भी अपने पु के साथ घने वन म चले गए। िक तु आठ वष के उपरांत एक बार िफर
िव मािजत के साथ छल हआ, और उनके अपने ाता ‘भानुसेन’ ने उनक ह या कर दी।
भानुसेन ने अपना रह य खोला, िक वा तव म वह र राज माकश का ये पु है, िजसे
िव मािजत के िपता महाराज भभिू त ने गोद िलया था।
ोिधत तेज वी भानुसेन का वध करने पहँचा, िक तु महाबली अख ड (भानुसेन का
पु ), सयू म (िव मािजत के दूसरे भाई वीरसेन का पु ) उसे बचाने आ पहँचे। ोिधत तेज वी
वन म लौट गया, य िक वह भानुसेन का अपराध िस करने म िवफल रहा।
कुछ समय के उपरांत, तेज वी को अपनी बा याव था क ेिमका ‘सुवणा’ (बिल गढ़
क राजकुमारी) का संदेश ा हआ। वो उससे िवनती कर रही थी िक तेज वी उसका हरण कर
ले, य िक उसका िववाह उसक इ छा के िव सुबाह (र राज माकश का पौ ) से कराया जा
रहा था। महाबली अख ड क सहायता से तेज वी ने सुवणा का हरण िकया, िजसके कारण थम
बार तेज वी और र राज माकश का आमना-सामना हआ। उन दोन का ं परू े एक िदन तक
चला। जब तेज वी, माकश के सम कमजोर पड़ने लगा, तब अपने नायक युगांधर (नाग का
राजा और िव मािजत क ि तीय संतान) के साथ नाग क सेना वहाँ आ पहँची। उ ह ने र राज
को परािजत कर िदया, िक तु तेज वी ने उ ह मिू छत र राज का वध नह करने िदया।
वह िव मािजत क म ृ यु के बाद उनके अनुज ‘वीरसेन’ को िवदभ का नया महाराज
घोिषत िकया गया। शी ही वीरसेन पर भी ाणघातक आ मण हआ। उनके उपचार के िलए
‘िद यमिण’ क आव यकता थी, जो श ुओ ं के रा य बिल गढ़ म थािपत थी; और यिद िकसी
रा य म िद यमिण क थापना हो, तो संसार का सव े यो ा भी उस रा य को उसक भिू म
पर परािजत नह कर सकता, इसिलए तेज वी ने अपने ाताओं युगांधर,महाबली अख ड
(भानुसेन का पु ), सय ू म (वीरसेन का पु ) के साथ एक समहू बनाया, और वे सभी िद य
िवजयधनुष क खोज म पाताल लोक क या ा पर िनकले । (िजस यो ा के हाथ म यह धनुष
होगा, वह कभी परािजत नह हो सकता)
पाताललोक म सारे भाइय को छल ारा एक दूसरे से अलग कर िदया गया। इसके
उपरांत युगांधर, सुवया से िमला और उसके ेम म पड़ गया। वह सय ू म ने महाबली व बाह को
मु िकया, िजसके उपरांत व बाह ने उसे जीवन भर साथ िनभाने का वचन िदया। इसके उपरांत
चार भाई एक बार िफर िमले, और व बाह क सहायता से र राज के ारा बंदी बनाये गए एक
लाख ि य यो ाओं को मु कराया। इसके उपरांत उ ह ने एक सेना का िनमाण िकया, और
र राज के महल पर आ मण िकया।
तेज वी और सय ू म, माकश के साथ म य त थे, िक तु दूसरी ओर र गु
भैरवनाथ ने युगांधर को अपने जाल म फँसा िलया। उसे बचाने के िलए उसक ेिमका सुवया को
अपने जीवन का याग करना पड़ा, य िक इसके अित र उनके पास कोई और उपाय नह था।
सुवया के इस बिलदान ने उन चार यो ाओं को असुर पर िवजय िदलायी; उ ह ने र राज को
भागने पर िववश कर िदया। इसके उपरांत तेज वी ने िद य िवजयधनुष ा िकया।
तेज वी और उसके ाताओं ने लौटकर बिल गढ़ पर आ मण िकया और िद यमिण ा
क , वह दूसरी ओर भानुसेन ने वीरसेन (जो उस समय मिू छत थे) का वध करने का षड्यं रचा,
िक तु सेनापित गज ने उसक योजना िवफल कर दी। वह महामं ी संजय का साथ पाकर
वीरसेन के ाण क र ा करने म सफल रहा, िक तु उसे अपने ाण गँवाने पड़े ... भानुसेन ने
उसका वध कर िदया। संजय, वीरसेन को सुरि त थान पर ले आये।
तेज वी, सयू म, अख ड और युगांधर लौट आये। उ ह ने महाराज वीरसेन को खोजा, और
िद यमिण क सहायता से उ ह व थ िकया। इसके उपरांत तेज वी और सय ू म, अपनी सै य
शि बढ़ाने के अिभयान पर िनकले। वह अख ड, िवदभ क ओर लौटा, और युगांधर नागलोक
क ओर। अख ड के लौटते ही भानुसेन और र गु भैरवनाथ ने अख ड को अपने प म करने
का षड्यं रचा, और सफल भी हए। वह युगांधर सुवया का शव लेकर नागलोक पहँचा और
उसका अंितम सं कार िकया।
वह इस समयाविध म र राज माकश अपनी सारी शि याँ एक करने के िलए घोर
तप या कर रहा था। अब भानुसेन, िवदभ का राजा था।
तीन वष के उपरांत, र राज माकश वापसी के िलए तैयार था। तेज वी, िवदभ क ि थित
का जायजा लेने पहँचा। वो वहाँ क जा क ि थित देख त ध रह गया। ोध म उसने िवदभ से
यु क घोषणा कर दी।
िवदभ पर आ मण के िलए तेज वी, युगांधर और सय ू म ने बिल गढ़ और नाग क सेना
एक क , वह िवदभ को र राज माकश और उसक सेना का समथन ा था।
बिल गढ़ के प म तेज वी, सय ू म, युगांधर, वीरसेन, महिष शंकराचाय, बिल गढ़ के
राजा भागव व उनके पु राजवीर और वषृ भान, नागराज िवषंधर और संजय जैसे वीर यो ा थे,
वह िवदभ के प से र राज माकश, महाऋिष किपश, महाबली अख ड, भानुसेन और उसके
सभी पु और सुबाह थे।
यह एक महािवकराल यु था। तीसरे िदन जब सय ू म म ृ युश या पर था, तब उसने
सहायता के िलए महाबली व बाह का आवाहन िकया। म ृ यु से पवू सय ू म ने व बाह से वचन
िलया िक वह उसके ाता तेज वी के प म यु के अंत तक लड़े गा।
व बाह क यु म उपि थित ने यु म बहत बड़ा प रवतन ला िदया। बिल गढ़ क सेना
अब यु म हावी हो रही थी। िक तु शी ही एक षड्यं रचा गया, िजसम फँसकर यु के चौथे
िदन युगांधर भी वीरगित को ा हआ।
अंतत: चौथे िदन महाराज िव मािजत क आ मा, तेज वी के शरीर म समािहत हई, और
र राज माकश का अंत हआ। माकश क म ृ यु के कुछ ही ण उपरांत व बाह के म तक म
भीषण पीड़ा हई, और उसने रणभिू म छोड़ िदया।
िक तु यु अभी समा नह हआ था। भानुसेन और अख ड इस यु को पाँचव िदन तक
ले गए। तेज वी, भानुसेन का वध करना चाहता था, िक तु अख ड उसके माग का एक बड़ा
अवरोध था। अंतत: तेज वी ने अख ड को म उलझा िलया, और वीरसेन ने भानुसेन का वध
कर िदया।
यु अब समा हो चुका था, िक तु किन का (युगांधर क माता) ने अख ड को अपने
पु युगांधर क म ृ यु का उ रदायी मानकर उस पर हार कर उसे गहरी खाई म धकेल िदया।
तेज वी, यह देख त ध रह गया, िक तु कुछ कह न सका।
तेज वी, िवदभ रा य लौट आया, यु अब समा हो चुका था। तेज वी अब भी यही िवचार
कर रहा था, िक उसे इस यु से या ा हआ? शी ही व बाह, तेज वी से भट करने िवदभ
पहँचा।
उसने तेज वी को बताया िक र राज माकश क म ृ यु होते ही उसक मिृ तयाँ लौट आयी
ह। तभी, महाबली अख ड वहाँ आ पहँचा। वो तेज वी का वध करने को आतुर था, िक तु व बाह
ने उसे पीछे धकेलकर तेज वी क र ा क ।
इसके उपरांत, व बाह ने बताया िक वह माकश का िम था। उसने माकश क कथा
सुनानी आरं भ क (जो पहले दुशल के नाम से जाना जाता था)। उसने उ ह बताया िक वह
वा तव म एक अन य और महान यो ा था, िजसने अतीत म धम के प म यु िकया था, और
असुरे र दुभ (जो मानवता पर संकट बनकर मँडरा रहा था) को परािजत करने म तेज वी के
पवू ज क सहायता क थी।
िक तु िफर वह मानवता के िव हो गया, य िक उसे लगता था िक महाराज भभिू त
(िव मािजत के िपता) ने उसक ि य प नी िशव या (भानुसेन क माता और राजा भभिू त क
बहन) क ह या क है... िक तु वा तव म वह भैरवनाथ का षड्यं था।
ृ ला के ि तीय ख ड म ात होगा।
या था वह षड्यं ? ये हम इस शंख
1. दुशल-एक अन य यो ा
‘‘युवराज तेज वी आपके पु क म ृ यु के उ रदायी ह, यह आप या कह रह ह
नागदेवी?’’ किन का के कटु श द को सुन, वह नागयो ा चिकत रह गया।
‘‘हाँ, य िक उसक अितउ सुकता ही िवदभरा य म हए इस भीषण गहृ यु का कारण है,
िजसके कारण आज मेरा पु युगांधर इस संसार म नह है।’’ किन का ोिधत थ ।
‘‘म जानता हँ, मुझे इस िवषय म कुछ भी कहने का कोई अिधकार तो नह है, िक तु म
केवल एक बात कहना चाहता हँ, िक इस िवनाश का मुख कारण महाऋिष शंकराचाय का िदया
गया वह ाप है; इस िवनाश के िलए वही उ रदायी ह।’’ ये कहते हए वो नागयो ा घुटन के बल
झुक गया।
‘‘म कुछ सुनना नह चाहती; वे दोन समान प से इस िवनाश के उ रदायी ह। म इस
समय एकांत म रहना चाहती हँ, इसिलए तु ह यहाँ से जाना चािहये।’’ किन का ने अपने सैिनक
को बाहर जाने का िनदश िदया।
अब किन का अपने क म अकेली थ । कुछ समय प ात वो अपने कुलदेवता, देव
शेषनाग के मंिदर आय । उनक मिू त के सम वो झुक , और अपने दोन हाथ जोड़ िलए।
‘‘हे देव शेषनाग! आज म आपके सम हँ; िब कुल अकेली हो गयी हँ; नागजाित को
िदशा िदखने वाला अब कोई नह रहा... मुझे नह लगता िक म नागलोक के िसंहासन पर
िवराजने यो य हँ, और अब तो मेरे पास जीिवत रहने का कोई कारण भी नह है; कृपा करके मुझे
जीिवत रहने का कोई उ े य दान क िजये।’’ किन का, नाग के कुलदेव के सम घुटन पर
बैठकर िवलाप करने लगी।
एक हर के उपरांत उ ह ने अपने ने खोले। वो अपने सम उस मरू त को देख
आ यचिकत रह गय । देव शेषनाग क मरू त के नीचे महावीर यो ा युगांधर का िद य फरसा
प िदखाई दे रहा था। यह देख किन का उठ ; उनके ने अ ुओ ं से भरे थे।
‘‘म आपका संकेत समझ गयी भु! म आपका संकेत समझ गयी; आपने मुझे जीिवत
रहने का एक कारण दे िदया है, मेरा पु लौटेगा, और म उसे तभी पहचान लँग ू ी, जब वह यह
िद य फरसा उठायेगा वो जो आपने उसे वरदान म िदया था। अब म नाग का नेत ृ व क ँ गी, तब
तक, जब तक मेरा पु लौटकर नह आता।’’ उनके ने म स नता के अ ु छलक आये।
‘‘वो एक उ े य के िलए लौटेगा... अव य कुछ काली शि याँ अभी भी जीिवत ह; मेरा पु
उन सबका िवनाश करने लौटेगा। वह अव य लौटेगा.....।’’ किन का ने अपने हाथ जोड़े , और
मुड़कर नागलोक क रा यसभा क ओर थान कर गय ।
शी ही वह नागलोक क सभा म पहँचकर र िसंहासन पर िवराजमान हो गय ।
उ ह ने एक नागयो ा को आदेश िदया, ‘‘िजतना शी हो सके, नागलोक के सभी े यो ाओं
को इस सभा म तुत करो।’’
‘‘जो आ ा नागदेवी।’’ वह नागयो ा, अपनी रानी के आदेश का पालन करने थान
कर गया। शी ही नागजाित के सभी े यो ा नागलोक क सभा म उपि थत थे।
किन का, िसंहासन से उठ और घोषणा क , ‘‘इस यु के उपरांत केवल पं ह हजार नाग
यो ा जीिवत बचे ह। इस यु के उपरांत नागजाित िवनाश के कगार पर थी; मने भी अपनी सारी
आशाएँ खो दी थ , िक तु आज हमारे कुलदेवता ने हम एक आशा क िकरण िदखाई है, उस
महावीर यो ा के लौटने का संकेत िदया है उ ह ने।’’
एक नागयो ा अपने आसन से उठे और िकया, ‘‘आशा क िकरण; कैसी आशा
आशा क िकरण महारानी?’’
‘‘हमारे कुलदेव, देव शेषनाग के मंिदर म उनक मरू त के ठीक नीचे एक िद य फरसा आ
धँसा है; वो वही िद या है, जो मेरे पु युगांधर ने हमारे कुलदेव से वरदान व प ा िकया
था; इसिलये जो यो ा वह फरसा उठाएगा, वही हमारा नायक होगा।’’ किन का ने घोषणा क ।
‘‘हम सब आपके िनणय का समथन करते ह महारानी!’’ एक नागयो ा ने उठकर अपनी
महारानी का समथन िकया।
‘‘हमारा नायक अव य लौटेगा।’’ दूसरे नागयो ा ने भी श उठाकर अपनी महारानी का
समथन िकया।
‘‘पािपय के िवनाश के िलए, और नागजाित के उ ार के िलए... हर हर महादेव!’’ नाग
क रानी ने अपनी तलवार उठाकर घोषणा क ।
‘‘हर हर महादेव।’’ सभी नाग यो ाओं ने अपनी रानी के समथन म भीषण विन उ प न
क।
दूसरी ओर िवदभ के महल के सामने व बाह, र राज माकश के अतीत क कथा सुना
रहा था, िक तु शी ही एक दासी वहाँ पहँची और ह त ेप िकया।
‘‘महारानी वैशाली क ि थित अ यंत गंभीर हो गयी है, महाबली अख ड! वै राज का
कहना है िक उनके पास जीिवत रहने का कोई कारण नह है, इसिलए वह जीिवत नह रहना
चाहत , और यह ि थित उनके उपचार म बहत बाधा पहँचा रही है; उ ह बचाना किठन हो रहा
है।’’
तेज वी अख ड क ओर मुड़ा, ‘‘पहले आपको अपनी माता के ाण बचाने चािहए ये ;
उ ह तो यह लगता है िक आप जीिवत ही नह ह, कदािचत् इसीिलए उनके पास जीिवत रहने का
कोई कारण शेष नह है; अब अपनी माता के ाण केवल आप ही बचा सकते ह।’’
‘‘हाँ यही उिचत होगा; मुझे उनके क म ले चलो; उ ह पता होना चािहए िक म अभी
जीिवत हँ; व बाह, तुम यहाँ हमारी ती ा करना।’’ अख ड अपनी माता के ाण बचाने के िलए
दौड़ा।
‘‘िब कुल, अख ड।’’ व बाह ने सहमित म सर िहलाया।
शी ही अख ड और तेज वी, वैशाली के क म पहँचे। अख ड अपनी माता क ि थित
देख त ध रह गया। धीरे -धीरे वो अपनी माता के पास आया। उसने उनका हाथ पकड़ा, और उ ह
यह एहसास कराया िक उनका एक पु अभी भी जीिवत है।
वैशाली के हाथ काँपने लगे। उ ह ने अपने ने कुछ ण के िलए खोले, और अख ड क
ओर देखा।
‘‘अख ड! मेरा पु ....।’’ वैशाली ने अपने पु से वाता करने का य न िकया, िक तु वे
शी ही मिू छत हो गय ।
‘‘आशा क िकरण िदखाई दे रही है महाबली अख ड; इनके जीिवत रहने क संभावना
बढ़ गयी है; कृपा करके आप यहाँ से जाय।’’ वै राज के ने म आशा क िकरण िदखाई दे रही
थी।
‘‘ठीक है वै राज; मुझे अपनी माता जीिवत चािहए।’’ अख ड ने वै राज को चेतावनी दी।
‘‘हम परू ा य न कर रहे ह युवराज, आप िचंितत मत होइए; आपक माता को कुछ नह
होगा, य िक आपने उ ह जीिवत रहने का एक कारण दे िदया है।’’
वै राज के उन श द से अख ड कुछ हद तक संतु हआ।
‘‘महारानी वैशाली अब सुरि त ह; वै राज उनके ाण बचाने म स म ह; अब समय आ
गया है िक हम व बाह के पास चल... हम अतीत का रह य ात करना है; वह अतीत िजससे
हम अभी तक अंजान ह, चिलए ये ।’’ तेज वी, उस अतीत के िवषय म जानने को उ सुक था,
िजसका िववरण व बाह देने वाला था।
‘‘हाँ तुम ठीक कह रहे हो, हम चलना चािहये; म भी जानना चाहता हँ िक व बाह
आिखर कहना या चाहता है।’’
अख ड और तेज वी वहाँ से थान कर गए, और शी ही महल के बाहर उस थान पर
पहँचे, जहाँ व बाह उनक ती ा कर रहा था।
‘‘अब मुझे परू ी कथा सुनाओ; म सुनना चाहता हँ।’’ अख ड, अतीत का रह य जानने को
उ सुक था।
‘‘हाँ व बाह, हम जानना चाहते ह।’’ तेज वी भी उ सुक था।
‘‘म आपको परू ी कथा सुनाऊँगा, िक तु उससे पवू आपको हम तीन के िवषय म जानना
होगा; म, महाऋिष ओमे र और र राज माकश, जो पहले एक अन य यो ा दुशल के नाम से
जाना जाता था। वह पहला यो ा था, िजसने मुझे म परािजत िकया था।’’ व बाह ने अतीत
क कथा सुनाता गया।
व बाह तो केवल वही बतायेगा, जो उसने अतीत म देखा होगा, िक तु परू ी कथा जानने
के िलए हम 65 वष पीछे जाना होगा।
* * *
एकच नगरी। महाराज ययाित का रा य। महिष ओमे र इस रा य के कुलगु थे;
िक तु महिष ओमे र घुम कड़ विृ के थे। वे अपने िश य व बाह के साथ ाय: आयवत के
रा य क या ा पर िनकल जाते थे। वे एक थान पर अिधक समय तक िटक ही नह पाते थे।
एक िदन जब वे एकच नगरी लौटे तो उ ह ने महल के थान पर अपने कुटीर को
िव ाम के िलए चुना। वे कुटीर म अपनी श या पर सो रहे थे, व बाह उनके पाँव दबा रहा था।
कुछ समय प ात उ ह ने अपने ने खोले और व बाह क ओर देखते हए श या से उठ गए।
‘‘ या हआ गु देव?’’ व बाह अपने गु क िन ा अक मात् भंग होने से चिकत रह
गया।
‘‘कुछ नह व बाह, िक तु ऐसा तीत होता है िक तुम दय से मेरा स मान नह
करते।’’ महिष ओमे र ने व बाह क ओर देखा।
‘‘यह स य नह है गु देव। म तो दय क गहराई से आपका स मान करता हँ।’’ व बाह
अपने गु के श द सुनकर चिकत रह गया था।
‘‘म कई िदन से देख रहा हँ, तु हारे ने म कई िदखाई देते ह; तु हारा िश ण
अब पण ू हो चुका है व बाह; अब तुम अपनी हर सम या मेरे साथ साझा कर सकते हो; और यिद
तुम मेरा स मान करते हो, तो तुम अपने दय म छुपा हर मुझसे पछू सकते हो।’’
‘‘आपने उिचत कहा गु देव; मेरे दय म बहत सारे ह।’’ व बाह उठा। उसका मुख
देखकर साफ़ तीत हो रहा था, जैसे उसके दय म कई सवाल ह ।
‘‘तो िफर ती ा िकस बात क कर रहे हो?’’ महिष ओमे र ने िकया।
‘‘म केवल अपने ज म का कारण जानना चाहता हँ; अपने इस अतु य बल का कारण
जानना चाहता हँ। मेरे जीवन का उ े य...! या है मेरे जीवन का उ े य? य मुझे इस साम य
और अतु य बल का वरदान ा हआ?’’
‘‘तु ह यह वरदान वयं भगवान िशव से ा हआ है व बाह; म इस िवषय म कुछ नह
कह सकता; िक तु इसके पीछे कोई बड़ा कारण अव य होगा।’’ महिष ओमे र ने समझाने का
य न िकया।
‘‘म िकसी ऐसे यो ा से िमलना चाहता हँ, जो मुझे ट कर दे सके; या इस संसार म ऐसा
कोई यो ा है जो मेरे बल का सामना कर सकता है गु देव?’’
‘‘अपने अहम् पर िनयं ण रखो व बाह; म तु ह चेतावनी देता हँ... अहंकार का यह
वभाव सदैव से तुम असुर के र म बहता आया है, और तुमम भी इसके ल ण प िदखाई
देने लगे ह।’’ ोिधत महाऋिष ओमे र अपनी श या से उठ खड़े हए।
‘‘मुझे मा क िजये गु देव, यह मेरी भल ू थी; मने अपने बल के अहंकार म अपनी
सीमाओं का उ लंघन िकया, कृपा करके मुझे मा क िजये।’’ व बाह, अपने गु के सम हाथ
जोड़कर घुटन के बल बैठ गया।
महिष ओमे र का ोध कुछ हद तक शांत हआ। उ ह ने व बाह क ओर देखा; उ ह
अपने श द पर लािन हई। उ ह ने उसके कंधे पर हाथ रखा, और उसे ऊपर लाये।
‘‘िन:संदेह तु हारा बल अतु य है व बाह; िक तु या यु म केवल बल काम नह
आता... यिद तुमने बुि का योग नह िकया, तो एक कुशल यो ा अव य ही तु ह परािजत कर
सकता है। इस संसार म जो भी होता है िकसी उ े य के िलए होता है; िकसे पता, महादेव ारा
तु ह िदया गया यह वरदान भी िकसी महान उ े य के िलए हो।’’ महिष ओमे र ने अपने िश य
को समझाने का य न िकया।
तभी महिष ओमे र के ा ण िश य, महिष जापित का कुटीर म आगमन हआ। वे बहत
िचंितत िदखाई दे रहे थे।
‘‘ या हआ जापित? तुम इतने यिथत य िदखाई दे रहे हो?’’ महिष ओमे र ने उनक
ि थित देख, िकया।
‘‘दु..दु.. दुशल...’’ जापित बहत थके हए लग रहे थे, उनक साँस थोड़ी अटक रही थी।
‘‘दुशल...? या तुम र राज के िवषय म बात कर रहे हो? तुम इतने िचंितत य िदखाई
दे रहे हो?’’ महिष ओमे र ने िकया।
‘‘असुरजाित का एक अन य यो ा दुशल, जो अभी-अभी पाताललोक के िसंहासन पर
िवराजमान हआ है, एक च नगरी पर आ मण क तैयारी म है।’’ जापित ने सिू चत िकया।
‘‘दुशल... भगवान महाबली का वंशज; वह ऐसा कैसे कर सकता है? यह संभव नह है।
भगवान महाबली के वशंज तो भगवन महािव णु के उपासक ह; वह तो शांित म िव ास रखते ह,
यु म नह ; या तु ह परू ा िव ास है, जापित?’’ महिष ओमे र चिकत थे।
‘‘मुझे परू ा िव ास है गु देव; मने सुना है िक केवल 21 वष क उ म ही एक कुशल
धनुधर, अ ुत तलवारबाज़ और म लयु म पारं गत यो ा बन गया है।’’ जापित ने दुशल के
यु कौशल के िवषय म बताया।
‘‘म तु हारी बात समझ रहा हँ जापित।’’ इसके उपरांत महिष ओमे र ने अपने िश य
व बाह क ओर गव से देखा।
‘‘तु हारे मन म बहत सारे थे न व बाह; तु हारे पहले का उ र अब तु हारे
सम है।’’
‘‘पहले का उ र? म समझा नह गु देव, कृपया िव तार से बताएँ ।’’ व बाह ने
अपने गु के सम हाथ जोड़े ।
‘‘समय आ गया है व बाह; र राज दुशल अहंकारी हो गया है; तु ह उसका अिभमान
तोड़ना है, यह तु हारे बल और साम य का परी ण है; या पता यह से तु ह तु हारे जीवन का
उ े य भी िमल जाये... यह तु हारी या ा का आरं भ है; तु ह र राज के अहंकार को न करना
है।’’ महिष ओमे र ने गव से अपने िश य के कंध पर हाथ रखा।
‘‘मुझे ऐसे अवसर क कब से ती ा थी गु देव! म आपका सर झुकने नह दँूगा।’’
व बाह ने झुककर अपने गु के चरण पश िकये।
‘‘चलो व बाह, हम र राज को रोकना है।’’ महिष ओमे र ने अपने िश य को आदेश
िदया।
र राज को रोकने के िलए वे दोन पाताललोक क ओर थान कर गये।
वह जापित उन दोन को तब तक देखते रहे , जब तक उन दोन के अ , घने वन म
अ य नह हो गये। उनके घने वन म अ य होने के उपरांत, महिष ओमे र के वे िश य,
जापित मु कुराये और वयं ही महिष ओमे र का वेश धर िलया। वह यि िफर मु कुराया।
कौन था वो? या कोई संकट एकच नगरी क ओर बढ़ रहा था?
शी ही वो यि , िजसने महिष ओमे र का प धरा हआ था, एकच नगरी के महल
क ओर बढ़ा। एक हर के भीतर वह यि एकच नगरी के महाराज ययाित के सम खड़ा
था। िसंहासन पर बैठे महाराज ययाित ने उनका वागत िकया तथा िसंहासन से उठकर िनकट
आये और झुककर उ ह णाम िकया।
‘‘आपको यहाँ देखकर बहत स नता हई, ऋिषवर!’’ महाराज ययाित ने उनके सम
अपने हाथ जोड़े ।
‘‘आपक प नी आपके पु को कब ज म देने वाली ह?’’ महिष ओमे र का वेश धारण
िकये उस यि ने राजा से पछ ू ा।
‘‘आप तो भली-भाँित जानते ह, ऋिषवर, िक मेरी प नी एक स ाह या दस िदन के भीतर
कभी भी मेरे पु को ज म दे सकती है; िफर आप यह य पछू रहे ह?’’ ययाित ने कुलगु
क ओर संदेहपवू क देखा।
‘‘ य िक आने वाला बालक, स पण ू मानवजाित के िलए बहत मह वपण ू है।’’
‘‘म जानता हँ, ऋिषवर, इसीिलए म उसके ज म का िवशेष यान रख रहा हँ; आपके
वरदान से मेरा पु आपक ही भाँित एक साम यवान यो ा बनेगा, और आपके आशीवाद से ही
वो आपक पंचशि य का वामी ज म से ही होगा। वे शि याँ, जो आपने वष साधना कर
अिजत क ह।’’
‘‘हम यह सब भली-भाँित ात है महाराज ययाित, इसिलए म आपके पु के िलए एक फल
लाया हँ।’’ ओमे र पी उस यि ने अपने थैले म से एक फल िनकालकर महाराज ययाित को
िदया।
‘‘यह या है ऋिषवर?’’ राजा ययाित चिकत थे।
‘‘यह एक िद य फल है, जो तु हारे पु को और भी अिधक शि शाली बना देगा; इससे
पवू िक तु हारा िशशु ज म ले, तुम इसे अपनी प नी को िखला दो।’’
‘‘जो आ ा ऋिषवर; मेरी प नी इसे आज ही खाएगी; आप आसन हण क िजए, आपक
सेवा करके म वयं को ध य समझँ।ू ’’
‘‘नह , नह महाराज, मुझे िवलंब हो रहा है; मुझे थान करना होगा।’’ वह बह िपया
िजसने महिष ओमे र का वेश धर रखा था, शी से शी वहाँ से िनकलना चाहता था।
‘‘जैसी आपक इ छा ऋिषवर; आप जानते ही ह, िक म आपके श द का िवरोध नह कर
सकता... यिद आप जाना चाहते ह, तो आपको भला कौन रोक सकता है?’’ महाराज ययाित ने
अपने हाथ जोड़े ।
यह कहना किठन था िक महल म या चल रहा था, और उस बह िपये का वा तव म
या उ े य था।
वह दूसरी ओर महिष ओमे र और व बाह, पाताललोक के माग पर थे। एक र क ने
उ ह दूर से ही आते देख िलया। वह अपने राजा को सिू चत करने दौड़ा।
‘‘महामिहम! एक ह -पु असुर, और एक ा ण आपके महल क ओर बढ़ रहे ह।’’ उस
र क ने अपने राजा र राज दुशल को सच ू ना दी।
र राज अपने िसंहासन से उठा, और िवचार िकया, ‘‘एक ऋिष एक असुर के साथ, या
कारण हो सकता है? वो लोग पाताललोक क ओर य आ रहे ह?’’ र राज िवचार म ही था,
िक एक गरजते हए वर ने उसे चुनौती दी।
‘‘र राज दुशल! बाहर आओ और मेरे साथ क चुनौती वीकार करो।’’ व बाह,
महल के ार पर खड़ा होकर दहाड़ रहा था।
शी ही दुशल, महिष ओमे र और व बाह के सम आया। उसने अपने हाथ जोड़कर
महिष ओमे र से िकया, ‘‘आप कौन ह ऋिषवर, और आपके यहाँ आने का उ े य या है?’’
इससे पवू िक महिष ओमे र कुछ कहते, व बाह मु कुराया, और उसने िफर चुनौती दी,
‘‘दुशल! र का राजा दुशल; आज म तु हारे बल का परी ण करना चाहता हँ, और यह जानना
चाहता हँ िक तुम र राज के िसंहासन के यो य हो या नह ।’’
‘‘सव थम अपना प रचय दो, और यहाँ आने का कारण बताओ; या तुम मेरे िसंहासन
पर अिधकार करना चाहते हो?’’ दुशल थोड़ा ोिधत होकर बोला।
व बाह ने दुशल पर हँसकर उस पर छ टाकशी क , ‘‘ऐसा तीत होता है, जैसे महान
र राज को पराजय से भय लग रहा है।’’
‘‘तुम जो भी हो, वयं पर इतना अहंकार मत करो; तु ह देखकर लगता है िक तुमम
अ ुत बल है, िक तु यु म सदैव बल काम नह आता िम !’’ दुशल ने व बाह को चेतावनी दी।
महिष ओमे र आगे बढ़े , और अपने िश य के कंधे पर हाथ रखा, ‘‘यह तुम नह , तु हारा
भय है दुशल; तुम भली-भाँित जानते हो िक तुम मेरे िश य व बाह के सम एक हर भी नह
िटक सकते।’’ र राज को ललकारते हए महिष ओमे र, व बाह के मुख के भाव क ओर देख
रहे थे। तु हारा अहंकार बहत अिधक बढ़ गया है व बाह, यह पराजय तु हारे िलए एक सबक
होगा।
‘‘आपसे ऐसे श द क आशा नह थी, ऋिषवर!’’ दुशल ने अनमने भाव से महिष ओमे र
क ओर देखा।
‘‘ श द का नह है र राज; म इस के प रणाम से भलीभाँित अवगत हँ, म
केवल इतना चाहता हँ िक िवजेता को स मान िमले, और परािजत यो ा को सबक।’’ महिष
ओमे र अपने िश य व बाह क ओर देख रहे थे, िक तु व बाह को इस बात का भान नह
हआ।
दुशल बड़ी दुिवधा म था। उसे यह समझ नह आ रहा था िक आिखर महिष ओमे र चाहते
या थे।
अगले ही ण व बाह ने उसे िफर से चुनौती दी, ‘‘िकस बात क ती ा कर रहे हो
दुशल? मुझे तो तीत होता है िक तुम संसार के सबसे बड़े कायर हो; म इतनी देर से तु ह
चुनौती दे रहा हँ, और तुम अभी भी मौन हो।’’ व बाह ने उस पर छ टाकशी क ।
‘‘बस बहत हआ व बाह!’’ दुशल व बाह पर चीखा।
‘‘तुमने केवल मुझे नह , सम त दै यजाित को चुनौती दी है; म भगवान महाबली का
वंशज हँ; िहंसा म िव ास नह रखता, िक तु आज तुमने मुझे अपने साम य का दशन करने
को िववश कर िदया है... यिद तुम शि दशन ही चाहते हो, तो म तैयार हँ।’’ दुशल, िसंह क
भाँित दहाड़ा।
‘‘तो िफर ती ा िकस बात क है? आओ करो मुझसे; यह ही िनधा रत
करे गा, िक हमम से े कौन है।’’ व बाह अपनी छाती पीटकर दहाड़ा।
दुशल हवा म पं ह गज ऊपर उछला; व बाह भी उछला... दोन महारथी टकराये और एक
दूसरे को पीछे धकेला। दोन यो ा भिू म पर िगर पड़े ।
वे दोन भिू म से उठे , और एक दूसरे क ओर दौड़े । उन दोन के म य का आरं भ हो
गया। दो हर बीत गये, िक तु िनणय अभी तक नह हो पाया। व बाह, िकसी भी तरह दुशल क
कमर पर पकड़ बनाना चाहता था, िक तु अपनी चपलता से दुशल हर बार उसे मात दे रहा था।
वह दुशल, व बाह क िकसी कमजोर नस क खोज म था। दो और हर तक
चला। अंतत: दुशल को व बाह क कमजोर नस िमल ही गयी। उसने व बाह के कंधे क
कमजोर नस पर भीषण दबाव बनाया, फल व प उसका शरीर कुछ ण के िलए सु न पड़
गया। र राज दुशल ने उन ण का परू ा लाभ उठाया, और व बाह को भिू म पर पटक िदया।
अगले ही ण, उसने व बाह क छाती पर अपना दायाँ पाँव रख, भीषण दबाव बनाया। व बाह
अब िवरोध करने म अ म था। दुशल का पाँव उसक छाती पर था। उसका एक हाथ दुशल ने
अपने बाय पाँव से दबाया, और दूसरा हाथ अपनी कोहनी से दबाकर उसे परू ी तरह िववश कर
िदया। िववश व बाह अब गजभर भी िहलने के यो य नह रहा।
‘‘अब बताओ, यहाँ आने का या उ े य था तु हारा?’’ दुशल, अब भी उसके वहाँ आने का
कारण जानना चाहता था।
व बाह ने अपने गु क ओर देखा, ‘‘गु देव, आप िकस बात क ती ा कर रहे ह?
आप इस दुशल को सरलता से परािजत कर सकते ह; आप ऐसा करते य नह ?’’
दुशल ने व बाह को मु कर उसे भिू म पर ही छोड़ िदया। उसने महिष ओमे र क ओर
देखा, और अपने हाथ जोड़े , ‘‘मुझे िववश मत क िजए, ऋिषवर; आप एक ा ण ह; म आप पर
श नह उठाना चाहता।’’
‘‘म तु ह धमसंकट म नह डालँग ू ा र राज दुशल, य िक म जानता हँ िक तुम एक
आदश यो ा के जीते जागते उदाहरण हो; तुम भगवान महाबली के स चे वंशज हो।’’ महिष
ओमे र, दुशल को देख मु कुराये।
यह सुनकर व बाह भिू म से उठा। अपने गु के श द सुन वह चिकत रह गया, ‘‘यह आप
या कह रहे ह गु देव? आपके सबसे िव ासपा और ि य िश य, महिष जापित ने हम यह
सचू ना दी थी, िक यह र राज दुशल एकच नगरी पर आ मण करने वाला है... हम इसे यहाँ
रोकने आये ह, और आप इसक शंसा कर रहे ह, य ?’’
र राज दुशल यह सुनकर चिकत रह गया, ‘‘यह कैसा आरोप है? प ृ वीलोक के िकसी
भी रा य पर आ मण करने क मेरी कोई मंशा नह थी।’’
महिष ओमे र मु कुराये, ‘‘म जानता हँ दुशल; वह एक षड्यं था; मुझे इसका आभास
तभी हो गया था, जब मने व बाह से वाता करते समय तु हारा धीरज देखा... व बाह तु ह बार-
बार चुनौती दे रहा था, िक तु उसके उपरांत भी तु हारा धैय देख म आ य म था। म तु हारा श ु
था, िक तु इसके उपरांत भी तुमने मुझसे वाता करने से पहले मुझे नमन िकया, यह सारी बात
िस करती ह िक तुम भगवान महाबली के स चे वंशज हो, और वैसे भी िजस कार हमारे आने
से तुम चिकत हए थे, मुझे लगा ही नह िक तुम िकसी यु क तैयारी म हो; मने यह िन कष
िनकाला िक अव य ही हमारे बीच कोई मतभेद उ प न करने का य न कर रहा है।’’
व बाह यह सब सुनकर चिकत रह गया; उसने ह त ेप िकया, ‘‘आपने ऐसा य िकया
गु देव? जब आपको स य का आभास हो ही गया था तो आपने हमारा य नह रोका?’’
महिष ओमे र ोिधत हो गये। उ ह ने व बाह को फटकारा, ‘‘तु हारे इसी यवहार के
कारण मने तु ह नह रोका; उस समय भी, जबिक म कुछ कहता, इससे पवू ही तुमने र राज को
चुनौती देना और अपमािनत करना आरं भ कर िदया। मने तु ह नह रोका, य िक प रणाम को
लेकर म आ त था। तुम वयं को अितबलशाली मान रहे थे, और म जानता था िक तु हारा यह
अहंकार तु ह पराजय क ओर ले जायेगा... म चाहता था िक इस से तु ह कुछ सीखने को
िमले, इसिलए मने तु ह नह रोका।’’
व बाह को अपने िकये पर लािन हई; वह एक भी श द बोलने यो य नह रहा। वह
अपने ने झुकाए, भिू म क ओर देखता हआ बुत क भाँित खड़ा था।
‘‘अब तु हारे पास कहने को श द नह बचे ह?’’ महिष ओमे र ने अपने िश य व बाह
क और दया भरी ि से देखा।
‘‘मुझे मा क िजये गु देव; यह मेरी भलू थी... म तो केवल अपने जीवन का उ े य
खोज रहा था; वह उ े य, िजसके िलए मेरा ज म हआ है; अपने बल का कारण जानना चाहता
था म।’’ व बाह अपमािनत महसस ू कर रहा था।
र राज दुशल ने व बाह क ओर देखा, और उसके िनकट आया, ‘‘मेरे कुल सात भाई ह,
िक तु वह सब अभी बहत छोटे ह; लाख असुर क सेना ह जो मेरे नेत ृ व म काय करती है।
िक तु वा तिवकता यह है िक मेरे पास ऐसा कोई िम नह , िजससे म अपने दय क भावनाएँ
साझा कर सकँ ू ; मेरे पास सब कुछ है, िक तु ऐसा कोई िम नह , िजस पर म स पण ू िव ास
कर सकँ ू । महावीर व बाह, या तुम मेरे वह िम बनना चाहोगे?’’ र राज ने व बाह के सम
अपनी िम ता का ताव रखा।
व बाह िबना कुछ कहे दुशल क ओर देखने लगा। महिष ओमे र दुशल के िनकट आये,
और उसके क ध पर हाथ रखकर गव से कहा, ‘‘तुम वा तव म भगवान महाबली के स चे
वंशज हो दुशल; एक महावीर यो ा, िजसके पास धैय भी है, और िवशाल दय के साथ-साथ वो
माशील भी है।’’
इसके उपरांत महिष, व बाह क ओर मुड़े, ‘‘अपने सम खड़े यो ा के धैय को देखो;
तुमने इसे चुनौती देकर इससे यु िकया, िक तु इसके उपरांत भी इसने तु हारी ओर िम ता का
हाथ बढ़ाया है; एक आदश यो ा म यह सभी गुण होते ह व बाह। तुम मेरे िश य हो, और मुझे इस
बात पर गव है; िक तु अभी भी तु ह बहत कुछ सीखना बाक है, जो म तु ह नह िसखा सकता;
कुछ बात केवल तु हारा अनुभव तु ह िसखा सकता है।’’
व बाह आगे आया, ‘‘यह मेरे जीवन का पहला पाठ था गु देव! आप ने उिचत कहा;
र राज दुशल केवल एक अन य यो ा ही नह , अिपतु आपके उपरांत िजतने भी लोग से म
िमला हँ, उनम सबसे आदशवादी पु ष ह; इनक िम ता मेरे िलए स मान क बात है।’’
व बाह, दुशल क ओर बढ़ा। दुशल भी व बाह क ओर बढ़ा। उन दोन ने हाथ िमलाये
और एक दूसरे को दय से लगा िलया। महिष ओमे र मु कुरा रहे थे।
इसके उपरांत दुशल उनक ओर बढ़ा, ‘‘ऋिषवर, मने आपके जैसा ा ण कभी नह
देखा; आपके मुख का तेज अ ुत है, जो यह दशाता है िक आप एक िस ा ण ह... ऐसा तेज
मने पहले कभी नह देखा।’’
व बाह ने आगे बढ़कर दुशल के कंधे पर हाथ रखा, ‘‘यह महाऋिष ओमे र ह,
पंचशि य को साधने वाले एक िस ा ण।’’
दुशल, कुछ ण के िलए त ध रह गया, उसके मुख से वर नह फूट पा रहे थे।
‘‘ या हआ िम , तुम इतने त ध य िदखाई दे रहे हो?’’ व बाह, दुशल के मुख के
भाव देख चिकत रह गया।
‘‘म... वो... म इनक पहचान से पण
ू त: अनिभ था।’’
दुशल, महिष ओमे र के िनकट आया, ‘‘महाऋिष ओमे र, आपके िवषय म बहत सुन
रखा था; आपक िद य शि य , आपक तप या और साधना के िवषय म तो सारा संसार जानता
है; मुझे िव ास नह हो रहा िक आप मेरे सम खड़े ह।’’ वह अपने घुटन के बल बैठ गया।
‘‘आपक सेवा करना मेरे िलए स मान क बात है ऋिषवर; मुझे मेरे अपराध के िलए मा
क िजये।’’
महिष ओमे र मु कुराये, और दुशल को से वंâधे पकड़कर उठाया, ‘‘केवल म ही नह ,
एक िदन ऐसा आयेगा, जब आयावत का हर एक नायक तु हारे िस ांत का दय से स मान
करे गा। भगवान महाबली अपने काल के सव े यो ा थे; तुम उनके स चे वंशज हो; तु हारे
पवू ज महाबली को वामन अवतार ने स मािनत िकया था, और अपने िदए वचन के अनुसार वो
सुतललोक म आज तक तु हारे पवू ज के महल के र क बनकर रह रहे ह। तु हारे िस ांत के
िवषय म जानकर उ ह अव य तुम पर गव होगा।’’
इसके उपरांत महिष ओमे र, व बाह क ओर मुड़े, ‘‘अब समय आ गया है,
एकच नगरी म चल रहे षड्यं के िवषय म ात करने का; मुझे पण ू िव ास है िक िजस
जापित से हमारी भट हई थी, वह कोई बह िपया था, जो जापित का वेश धरकर हम िमत
करने आया था। मुझे उसे खोजना होगा, य िक मुझे ऐसा आभास हो रहा िक एकच नगरी म
कुछ बहत गलत होने वाला है।’’
‘‘आप उिचत कह रहे ह गु देव, चिलए।’’ व बाह अपने गु क सहायता को त पर था।
‘‘नह व बाह, तु ह आने क आव यकता नह है; एकच नगरी का कुलगु हँ म, और
यह मेरा दािय व है िक म रा य म चल रहे षड्यं के िवषय म ात क ँ ; तुम अपने िम दुशल
के साथ यह को।’’ महिष ओमे र अपने अ क ओर बढ़े ।
‘‘िक तु िकए गु देव!’’ व बाह ने उ ह रोकने का य न िकया।
‘‘यह मेरा आदेश है व बाह, इसका पालन करो; दुशल अभी-अभी िसंहासन पर
िवराजमान हआ है; इसे एक िम क आव यकता है।’’ महिष ओमे र ने व बाह को अपना
िनणय सुना िदया।
व बाह ने कुछ कहना उिचत नह समझा। महिष ओमे र अपने अ क ओर बढ़े , ‘‘हम
शी ही िमलगे व बाह।’’
वह एकच नगरी क ओर िनकल गए। उनका िश य उ ह अपने ने से ओझल होने तक
देखता रहा।
‘‘वे एक िस ा ण ह िम , उ ह अपना काय करने दो!’’ दुशल ने अपने िम को पास
आकर समझाया।
‘‘हाँ, वे एक िस ा ण तो ह; उनके इस िनणय के पीछे कोई न कोई कारण अव य रहा
होगा।’’ व बाह ने भी स य को वीकार िलया।
‘‘म तुमसे सहमत हँ, िक तु अब तुम मेरे साथ आओ; पाताललोक के यो ा अपने
सेनापित क ती ा कर रहे ह।’’
2. दो महारिथय का ज म
‘‘सेनापित! यह आप या कह रहे ह र राज?’’ व बाह, दुशल क बात सुन चिकत रह
गया।
‘‘हाँ िम , तुम इस स मान के यो य हो; म िकसी ऐसे यि को खोज रहा था जो इस
पद के यो य हो, और यह कहते हए मुझे बहत गव हो रहा है, िक तुम इस पद के सवािधक यो य
हो।’’ दुशल ने अपने िम से ेमपवू क कहा।
व बाह थोड़ा िहचिकचा रहा था। दुशल ने उसे समझाने का य न िकया, ‘‘आओ, हमारे
लोग से िमल; अपने दािय व को सँभालने से पवू तु हारा उन सबको जान लेना आव यक है।’’
‘‘अव य िम ।’’ दोन यो ा, भीतर अपने लोग से िमलने चल िदए।
* * *
महिष ओमे र, एकच नगरी पहँचे। वहाँ पहँचते ही उ ह ने अपने िश य को बुलवा भेजा,
‘‘िजतनी शी हो सके जापित को बुलाओ।’’
‘‘जो आ ा गु देव।’’ उनका एक िश य, जापित को खोजने गया।
शी ही जापित, अपने गु महिष ओमे र के सम खड़े थे।
‘‘तुम अपनी या ा से कब लौटे जापित?’’ महिष ओमे र ने अपने िश य से िकया।
‘‘म तो कल ही लौटा हँ गु देव।’’ जापित ने बताया।
महिष ओमे र उठ खड़े हए; वह िचंितत िदखाई दे रहे थे।
‘‘ या हआ गु देव? आप इतने िचंितत य िदखाई दे रहे ह?’’ जापित ने अपने गु से
िकया।
‘‘पाँच िदन पवू हमारे पास एक यि आया था; वह िब कुल तु हारी तरह िदखता था;
हम अभी तक नह जान पाए, िक वा तव म वह था कौन।’’
‘‘ या? यह आप या कह रहे ह गु देव? म तो कल ही लौटा हँ, यह कैसे संभव है?’’
जापित चिकत रह गये।
‘‘म जानता हँ तुम िनद ष हो; िक तु वह यि तु हारे प म आया था... उसने हम
िमत िकया, कदािचत् वह हम इस रा य से कुछ समय के िलये दूर रखना चाहता था।’’
‘‘संभव है गु देव, िक तु म पण
ू प से इस घटना से अनिभ हँ; हमारा अगला कदम
या होना चािहये?’’
‘‘हम महल क ओर चलना चािहये। म यह देखना चाहता हँ िक महल म सब कुशल मंगल
है या नह , य िक एकच नगरी का राजकुमार शी ही ज म लेने वाला है।’’
‘‘जी गु देव, म आपके साथ महल चलने को तैयार हँ।’’
महिष ओमे र और उनके िश य जापित, एकच नगरी के महल क ओर थान कर
गये। शी ही वे दोन महल पहँचे।
‘‘महाऋिष ओमे र पधारे ह महाराज! वो आपसे शी अित शी भट करना चाहते ह।’’
एक र सैिनक ने आकर अपने राजा को सच ू ना दी।
‘‘तुम उ ह लेकर य नह आये? हमसे भट करने के िलए उ ह िकसी क आ ा क
आव यकता नह है; उ ह भीतर ले आओ मख ू ’’ महाराज ने अपने सैिनक को आदेश िदया।
‘‘आज मेरे पु का ज म होने वाला है, और कुलगु यहाँ उपि थत ह गे; इससे बढ़कर
सौभा य क बात और या हो सकती है।’’ अपने गु के आगमन से महाराज ययाित स न हो
उठे ।
महिष ओमे र, अपने िश य के साथ शी ही महाराज ययाित के सम तुत हए।
जब महाराज ययाित ने महिष ओमे र के मुख के भाव को देखा, तो वे पछ ू ने पर िववश
हो गये, ‘‘ या हआ ऋिषवर? आप इतने िचंितत य िदखाई दे रहे ह?’’
‘‘पहले आप ये बताइये िक आपका पु कब ज म लेनेवाला है?’’ महिष ओमे र ने
महाराज ययाित से पछ ू ा।
‘‘आप यह य पछ
ू रहे ह गु देव? मने तो 6 िदन पहले ही आपको बताया था िक
मेरा पु सात से दस िदवस के म य म कभी भी ज म ले सकता है।’’ महाराज ययाित थोड़ा
चिकत थे।
‘‘ये आप या कह रहे ह महाराज...’’ जापित ने ह त ेप करने का य न िकया।
िक तु महिष ओमे र ने अपने िश य का हाथ पकड़ उ ह मौन रहने का संकेत िदया।
‘‘ या हआ ऋिषवर? सब कुशलमंगल तो है न?’’ महाराज ययाित अभी भी थोड़ी शंका म
थे।
‘‘कुछ नह , सब कुशल मंगल है महाराज; हम यह आपके पु के ज म क ती ा
करगे।’’ महिष ओमे र उस अंजान यि के षड्यं के िवषय म अभी महाराज को नह बताना
चाहते थे।
जापित चिकत थे, वे सोच नह पा रहे थे िक उनके गु के मन म या चल रहा था।
शी ही एक दासी ने आकर महाराज को सिू चत िकया, ‘‘महारानी को सव पीड़ा आरं भ
हो गयी है महाराज; आपक संतान कभी भी ज म ले सकती है।’’
‘‘यह तो स नता का िवषय है; जाओ और शी से शी मुझे शुभ सच ू ना दो।’’ महाराज
ययाित उ सुक थे।
एक हर बीता। महाराज ययाित के दूसरे पु ने अपने ने खोले।
दासी ने आकर सिू चत िकया, ‘‘महाराज! आपके पु ने अपने ने खोल िलए ह,
िक तु....।’’ दासी भयभीत िदखाई दे रही थी।
‘‘मेरे पु का ज म हआ है, यह तो आनंद का िवषय है; तो तुम भयभीत य हो?’’
महाराज ययाित, दासी के मुख का भाव देख चिकत थे।
‘‘आपका पु सुरि त है, िक तु महारानी क म ृ यु हो गयी महाराज; हम उ ह नह बचा
पाए।’’ यह सच ू ना देते समय दासी के ने म भय प िदखाई दे रहा था।
महाराज ययाित त ध रह गए। वो कुछ भी कहने म असमथ तीत हो रहे थे। यह उनके
िलए अ यंत पीड़ादायक ण था। वो अपने घुटन के बल भिू म पर बैठ गए। उस ण उ ह िव ास
ही नह हो रहा था िक या हआ।
महिष ओमे र ने उनक ओर देखा; उ ह ने ययाित को संबल देने का यास िकया।
‘‘हम भिव य का िवचार करना चािहए महाराज; आप कमजोर नह पड़ सकते।’’
‘‘मेरा ये पु साकेत एक माह पवू ही गु कुल के िलए िनकला है; जब वह लौटेगा, तो
म उसका सामना कैसे क ँ गा?’’ महाराज ययाित के ने से अ ु छलक आये।
‘‘िक तु आपको कठोर बनना होगा... केवल आपके पु के िलए ही नह , आपक जा
को भी आपक आव यकता है।’’
महाराज ययाित ने कोई उ र नह िदया, वह मौन बैठे रहे । महिष ओमे र ने उनके दय
के घाव भरने का य न िकया।
‘‘चिलए महाराज, नवजात िशशु का मुख देख आय।’’
‘‘मुझे मा कर ऋिषवर, िक तु म उस बालक का मुख नह देखना चाहता।’’ महाराज
ययाित तिनक ोिधत होकर बोले।
‘‘म समझ सकता हँ महाराज; जैसी आपक इ छा... आओ जापित, हम नवजात िशशु के
पास चलना है।’’
महिष ओमे र और जापित उस क क ओर बढ़े , जहाँ नवजात िशशु को रखा गया था।
‘‘यह तो एक साधारण बालक क भाँित िदखता है गु देव; तो वह षड्यं या हो सकता
है िजसके िवषय म हम खोज कर रहे ह?’’ महाराज ययाित के पु क ओर देखते हये महिष
जापित ने कहा।
महिष ओमे र, घुटन के बल बैठे और उस बालक का अ छे से िनरी ण िकया। उसके
उपरांत उ ह ने उस बालक को अपनी गोद म उठाया।
‘‘नह , यह कोई साधारण बालक नह है; यह पंच िद य शि य के साथ ज मा है,
इसिलए इसके मुख का तेज अ ुत होना चािहए था; िक तु यह तो एक साधारण बालक तीत हो
रहा है।’’ महिष ओमे र ने उस बालक को घुमाकर उसक पीठ का िनरी ण िकया।
अगले ही ण वे त ध रह गए, ‘‘तो यह षड्यं असुर का था, और इसम वह सफल
रहे ।’’
‘‘ या हआ गु देव? आप िकस िवषय म बात कर रहे ह?’’ जापित चिकत रह गए।
‘‘इसके कंठ के िपछले िह से क ओर देखो; यह असुर का िच ह है; कदािचत कोई
दु ा मा इसके भीतर समािहत हो गयी है, या िफर यह कह लो िक यह वयं एक दु ा मा है, जो
पंच िद य शि य के साथ ज मा है।’’ महिष ओमे र िचंितत थे।
‘‘तब तो हम िजतनी शी हो सके, इसे मार देना चािहये गु देव।’’ जापित भयभीत
िदखाई दे रहे थे।
‘‘म ऐसा नह कर सकता जापित; यह पंच िद य शि याँ लेकर ज मा है, म इसका वध
करने म स म नह हँ।’’
‘‘िक तु गु वर, आप वयं भी तो पंचशि य के वामी ह, और आपने ही कहा था िक
एक पंचशि धारक ही दूसरे पंचशि धारक का वध कर सकता है।’’ जापित ने आ य से
पछू ा।
‘‘मने कठोर साधन करके ये िद य शि याँ अिजत क ह, िक तु यह बालक उ ह लेकर
ज मा है; म इसे अकेले परािजत नह कर सकता।’’ महिष ओमे र िववश िदखाई दे रहे थे।
जापित भी िचंितत हो उठे , ‘‘तो अब हम या करना चािहए गु देव? यह पंचशि य के
साथ ज मा असुर है, हम इसे कैसे रोकगे?’’
‘‘एक माग है जापित। पंचशि य को साधना सरल काय नह है; अब यह तु हारा
दािय व है िक तुम इस पर अपनी ि बनाये रखो; यह िकसी असुर या दै यगु के संपक म न
आये। र राज दुशल भी तो र जाित का है, िक तु वो दु विृ त का नह है, इसिलए यह भी
संभव है िक यह बालक अपने जीवन म कोई दु कृ य न करे , िक तु एक बात को लेकर म परू ा
आ त हँ, यह अव य ही उस नीच दै यगु भैरवनाथ का षड्यं है।’’ महिष ओमे र के ने
से ोध क वाला धधक रही थी।
‘‘यह आप कैसे कह सकते ह गु देव?’’ जापित चिकत थे।
‘‘ य िक ऐसा करने का साहस िकसी और म नह है जापित; र राज दुशल उसक
उ च आकां ाओं पर खरा नह उतरा, इसिलए कदािचत् वह असुर के नेत ृ व के िलए िकसी दूसरे
यो ा क खोज म है... अब तुम इस बालक का िवशेष यान रखोगे, और इस बात का भी यान
रखोगे िक इसे अपनी शि य के िवषय म तिनक भी भान न हो, यह अब तु हारा उ रदािय व
है; तुम इस बालक के साथ अब यह कोगे।’’
‘‘जैसी आपक आ ा गु देव, िक तु आप इस समय कहाँ जा रहे ह?’’ जापित ने
िकया।
‘‘कदािचत एक समय ऐसा आएगा, जब इस बालक क काली शि याँ अव य जागतृ
ह गी; मुझे इसका समाधान खोजना ही होगा।
इसके उपरांत वे महाराज ययाित के पास आये। वे अभी भी शोक त थे। यह देख महिष
ओमे र को ोध आ गया। उ ह ने राजा को फटकार लगाई।
‘‘आप एक राजा ह महामिहम; आप इतने वाथ और कमजोर नह हो सकते।’’
‘‘म..मुझे मा कर ऋिषवर, कुछ ण के िलए म कमजोर पड़ गया था।’’ लािन भाव से
भरे राजा ययाित ने कुलगु के सम अपने हाथ जोड़े ।
महिष ओमे र कुछ हद तक शांत हए, ‘‘मुझे भलीभाँित ात है िक आप पीड़ा म ह,
महाराज, िक तु अपनी जा के िलए आपको जीना ही होगा।’’
‘‘म जानता हँ गु देव, म जानता हँ।’’ महाराज ययाित ने वयं के मन को िनयंि त करने
का यास िकया।
‘‘अब जो म कहने जा रहा हँ, उन सभी िनदश का आप कठोरता से पालन करगे।’’
महाऋिष ओमे र ने कठोर श द म कहा।
‘‘अव य गु देव; किहये।’’
‘‘यह िनदश आपके पु के िवषय म है। उ च िश ा के िलए आप अपने पु को कभी
गु कुल म नह भेजगे; मेरा िश य जापित यह रहे गा, और इसक िश ा का िवशेष यान
रखेगा... यह बालक आपके रा य के िलए एक उ जवल भिव य ला सकता है, िक तु उसके िलए
आपको मेरे िदये गए सभी िनदश का पालन करना होगा।’’
‘‘अव य गु देव; म अपने पु को वयं से कभी अलग नह क ँ गा, िक तु म आपको
एक और क देना चाहँगा गु देव।’’
‘‘कैसा क ?’’ महिष ओमे र ने आ य से िकया।
‘‘अब आप ही इस बालक का नामकरण क िजये ऋिषवर, य िक म यह न कर सकँ ू गा।’’
महाराज ययाित ने िवनती क ।
महिष ओमे र के आदेश से महिष जापित, उस बालक को उनके पास ले आये। ओमे र
ने उस बालक को गोद म उठाया और अपने मुख के भाव छुपाकर कहा, ‘‘इसका नाम होगा
‘सुजन’, और भिव य म यह एक अन य यो ा बनेगा।’’
इसके उपरांत वे महाराज ययाित क ओर घम ू े, ‘‘म िवदभ के िलए िनकल रहा हँ, िक तु
उससे पवू म आपको बता दँू, िक आपको अपने मि त क म एक बात समािहत करके रखनी है;
अपने पु को िकसी गलत संगत म मत पड़ने दीिजयेगा, अ यथा प रणाम भयंकर होगा।’’ महिष
ओमे र ने कठोरता से कहा। महाराज ययाित ने सहमित म सर िहलाया।
इसके उपरांत महाऋिष ओमे र, िवदभ देश क ओर िनकल गए। तीन िदवस क या ा के
उपरांत वे िवदभ रा य पहँचे।
‘‘महामिहम! महाऋिष ओमे र हमारे महल म पधारे ह, वे आपसे भट करने के इ छुक
ह।’’ एक र िवदभ क राजसभा म आया और उसने ऊँचे िसंहासन पर बैठे महाराज भभिू त को
सचू ना दी।
‘महाऋिष ओमे र, इतने वष के उपरांत!’ महाराज भभिू त सोच म पड़ गए... उनके
आगमन क उ ह तिनक भी आशा नह थी।
‘‘आप का आदेश या है महाराज?’’ र , अपने राजा के आदेश क ती ा म था।
‘‘हाँ, हाँ,... उ ह भीतर ले आओ, और मरण रहे , उनके वागत स कार म कोई कमी
नह होनी चािहए।’’ महाराज भभिू त िवचार म डूबे थे, वह ठीक से आदेश भी न दे पाए।
उनके आगमन का या कारण हो सकता है? महाराज भभिू त अभी भी िवचार कर रहे थे।
महिष ओमे र राजसभा म उपि थत हए। महाराज भभिू त, िसंहासन से उतरकर उनके
पास आये, ‘‘ णाम ऋिषवर, इतने वष बाद आपके दशन पा कर म ध य हआ। आदेश कर।’’
‘‘मुझे आपसे एकांत म वाता करनी है महाराज!’’
‘‘अव य मुिनवर, चिलये।’’
शी ही महाराज भभिू त और महिष ओमे र एक क म थे, वहाँ और कोई उपि थत नह
था।
‘‘किहये ऋिषवर, या सेवा कर सकता हँ म आपक ?’’ राजा भभिू त ने स मानपवू क
िकया।
‘‘मुझे यह ात हआ िक आप शी ही िपता बनने वाले ह!’’ महिष ओमे र, िमली सच ू ना
क पुि करना चाहते थे।
‘‘आपने उिचत सुना है ऋिषवर, लगभग तीन मास और रह गए ह।’’ महाराज भभिू त ने
उ र िदया।
महिष ओमे र ने अपने थैले म से एक फल िनकाला, और राजा को िनदश िदया, ‘‘अपनी
प नी से किहये िक वह इस फल का सेवन कर, और अब आपको अपने पु का िवशेष यान
रखना होगा।’’
‘‘िक तु... सब कुशल तो है न?’’ महाराज भभिू त ने िहचिकचाते हए िकया।
‘‘मुझे ात है िक आप मुझे अिधक समय से नह जानते, िक तु िव ास रिखये, म कुछ
अनुिचत नह कर रहा।’’
‘‘नह , नह ऋिषवर, मुझे आप पर पण ू िव ास है।’’
‘‘तो िफर मेरे िनदश का पालन क िजये।’’
‘‘अव य ऋिषवर।’’
‘‘कृपा करके अपने पु को उ चिश ा हे तु गु कुल न भेिजयगा, जब तक म न कहँ।’’
‘‘िक तु ऋिषवर...’’ महाराज भभिू त असंतु िदखाई पड़ रहे थे।
‘‘उसक िश ा क िचंता मत क िजए; मने आपके पु के िलए ा ण के े यो ा को
बुलावा भेजा है; वे कोई साधारण यो ा नह , भगवान परशुराम के िश य ह।’’
‘‘भगवान परशुराम के िश य, मेरे पु के िलए; यह तो बहत ही स मान क बात है; मेरा
होने वाला पु वा तव म भा यशाली है; कौन ह वो? म उनसे भट करना चाहता हँ।’’ महाराज
ययाित स न हो उठे ।
‘‘वे शी ही यहाँ पहँचगे; म भी उनसे िमलने को उ सुक हँ।’’ महिष ओमे र मु कुराये।
दो हर बीता। मुख पर अ ुत तेज िलए एक ह पु ा ण, िवदभ के महल के मु य
ार तक आया। उसके हाथ म धनुष भी था। र क सैिनक उसे देख चिकत रह गए। उनम से एक
उसक ओर बढ़ा।
‘‘आप कौन ह मुिनवर, और इधर-उधर या देख रहे ह?’’
‘‘म महिष ओमे र को खोज रहा हँ; उ ह ने मुझे यहाँ बुलाया है; िजतनी शीघ हो सके म
उनसे भट करना चाहता हँ।’’ उस ा ण ने उ र िदया।
‘‘ मा कर ऋिषवर, वे महाराज ययाित के साथ िकसी िवशेष वाता म य त ह, और
उ ह ने हम प आदेश िदया है िक उनक इस वाता म कोई िव न न डाले।’’ र क ने ा ण
को समझाने का य न िकया।
‘‘महिष ओमे र ने मुझे आदेश िदया था िक म िदन के चौथे हर के बीतने से पवू कैसे
भी उनसे भट क ँ ; म क नह सकता, मुझे उनसे भट करनी ही है।’’ उस ा ण ने कठोर
श द म कहा।
‘‘हम राजा ा का उ लंघन नह कर सकते; यिद को आपको आगे बढ़ना है तो मेरी शि
क परी ा लेनी होगी।’’ ोिधत र क ने यान से तलवार ख च िनकली।
‘‘तुम मेरा समय न कर रहे हो!’’ उस ा ण ने उस र क क तलवार अपने बाय हाथ
से पकड़ा, और दाय हाथ से उसक छाती पर मुि हार कर उसे भिू म पर िगरा िदया। वह मिू छत
हो गया।
यह देख ार पर खड़ा दूसरा र क, महल क ओर भागा। वह िवदभ के सेनापित मह के
पास गया और उ ह सच ू ना दी।
‘‘महामिहम, एक मनचला ा ण राजा ा का उ लंघन कर महल म वेश करने का
यास कर रहा है।’’
मह यह सुनकर ोिधत हो गये, तलवार पर उनक पकड़ मजबत ू हो गयी, ‘‘देखते ह
कौन है वह दु साहसी ा ण।’’
वह ा ण, महल का मु य ार पारकर, महल के भीतरी ार क ओर बढ़ा, िक तु मह
ने उसका माग अव कर िदया।
‘‘ िकए ऋिषवर! कृपया अपने यहाँ आने का योजन बताएँ ।’’
‘‘मुझे सयू ा त से पवू महिष ओमे र से भट करनी है; मुझे सच ू ना िमली थी िक वह
सय ू ा त के उपरांत मुझसे नह िमल पायगे, और िदन का चौथा हर बीतने को है, इसिलए मेरा
माग छोड़ो।’’ वह ा ण अधीर हो रहा था।
‘‘ मा कर मुिनवर; हम प िनदश िमले ह; महिष ओमे र, हमारे महाराज भभिू त के
साथ वाता म य त ह, जब तक वाता समा नह हो जाती, हम उनक वाता म िव न नह डाल
सकते।’’मह ने िवन तापवू क कहा।
‘‘िक तु महिष ओमे र ने मुझे संदेश भेजा था िक वे हर हाल म सय ू ा त से पवू मुझसे
िमलना चाहते ह, इसिलए मेरा माग छोड़ो।’’
‘‘ क जाइए मुिनवर, मुझे एक ा ण पर श उठाने पर िववश मत क िजये।’’ मह ने
उस ा ण को चेतावनी दी।
‘‘मने कहा मेरा माग छोड़ो!’’ उस ा ण ने मह को भिू म पर धकेल िदया।
महल के र क ने उस ा ण को घेरना आरं भ कर िदया।
‘‘ क जाओ सैिनक ! हमारे म य कोई नह आएगा।’’ मह ने अपने सैिनक को आदेश
िदया।
वह ा ण मह क ओर मुड़ा और मु कुराया। मह भिू म से उठे और उस ा ण क ओर
देखा।
वे उस ा ण क ओर दौड़े । दोन यो ा टकराये। कुछ ही ण म वह ा ण भिू म पर था।
वह भिू म से उठा और मु कुराया।
‘‘मुझे ऐसा लगा था िक तुम केवल मेरा समय न कर रहे हो; िक तु यह मेरी भल ू थी;
मने तु ह कमतर आँकने क भल ू क , िक तु यह भल
ू दोबारा नह होगी, आओ, करो।’’ उस
ा ण ने मह को ललकारा।
मह एक बार िफर उस ा ण क ओर दौड़ा और छलाँग लगायी। उस ा ण ने उ ह भिू म
पर धकेल िदया। वे आ मण करने के िलए एक बार िफर उठे , िक तु इस बार उस ा ण ने मह
के कंधे पर एक ह का हार िकया।
मह का दायाँ कंधा सु न हो गया, वे अपना हाथ तक नह िहला पा रहे थे।
‘‘ तीत होता है िक इतना पया है तु हारे िलए।’’ वो ा ण मह क ओर देख
मु कुराया।
यह सुनकर मह ोिधत हो गए। उ ह ने अपने बाएँ हाथ से तलवार उठाई और उस
ा ण क ओर दौड़े ।
‘‘ क जाओ मह , बहत हआ!’’ महाराज ययाित के वर ने मह के कदम रोक िदए।
महिष ओमे र, महाराज के साथ ही थे। वो ा ण और मह उनक ओर मुड़े।
‘‘यह आपके िलए छोटी सी परी ा थी... इसीिलए मने आपको सय ू ा त से पवू मुझसे भट
करने को कहा था।’’ महिष ओमे र उस ा ण को देख मु कुराये।
‘‘आपने उिचत कहा था ऋिषवर; यह ा ण िन:संदेह एक अन य यो ा ह; सेनापित
मह आयावत के े यो ाओं म से ह, िज ह इन ा ण देव ने बड़ी सरलता से परा त कर
िदया।’’ महाराज भभिू त गिवत अनुभव कर रहे थे।
‘‘आप अपना प रचय वयं द मुिनवर।’’ महिष ओमे र ने उस ा ण क ओर देखा।
‘‘मेरा नाम किपश है; म भगवान परशुराम का िश य हँ।’’ उस ा ण ने महिष ओमे र
और महाराज भभिू त के सम अपने हाथ जोड़े ।
इसके उपरांत वे मह क ओर मुड़े, ‘‘िचंितत मत होइए, घाव अिधक गंभीर नह है; एक
हर म आपक पीड़ा वयं समा हो जाएगी।’’
मह मु कुराये, ‘‘कोई बात नह ऋिषवर, म ठीक हँ।’’
महिष ओमे र, किपश के िनकट आये, ‘‘मने आपको यहाँ एक उ े य के िलए बुलाया है
किपश; आपको एक बड़ा उ रदािय व स पने का इ छुक हँ म।’’
‘‘यिद म आपके िकसी काम आ सका, तो मेरे िलए यह बहत स मान क बात होगी।’’
महिष किपश ने िवन तापवू क कहा।
‘‘आपको कुछ महीने यह रहना होगा; तब तक, जब तक महाराज भभिू त क संतान
ज म नह ले लेती।’’
महाराज ययाित आगे आये, और उ ह ने महिष किपश के सम अपने हाथ जोड़े , ‘‘आपके
िवषय म बहत सुना है, मेरे िलए यह बड़े स मान क बात होगी, यिद आप इस रा य के कुलगु
के पद को वीकार कर।’’
‘‘ये मेरे िलए भी स मान क बात है महाराज; म कुलगु के इस पद को वीकार करता
हँ।’’ किपश ने िवन तापवू क कहा।
इसके उपरांत महिष किपश और राजा ययाित, महल के भीतर चले गए। िक तु महिष
ओमे र तो घुम कड़ विृ त के थे, वह एक थान पर अिधक समय तक नह रह सकते थे,
इसिलए वह थान कर गए। महाराज भभिू त ने महिष ओमे र का िदया हआ िद य फल अपनी
भाया को िखला िदया।
तीन मास बीते। राजा भभिू त क प नी ने पु को ज म िदया। महाऋिष ओमे र को जैसे
ही इसक सच ू ना िमली, वे िवदभ के महल पहँचे।
शी ही वह बालक, महाराज भभिू त, महिष ओमे र और कुलगु किपश के सम था।
महिष ओमे र ने उसे उठाया और उसे किपश क गोद म िदया, ‘‘अब ये आपका उ रदािय व है
किपश; कदािचत् यह बालक ही भिव य म सम आयावत का सुर ा कवच बनेगा।’’
‘‘यह आप या कह रहे ह मुिनवर? या आयावत पर कोई भारी संकट आने वाला है?’’
किपश थोड़े चिकत थे।
महाराज भभिू त भी आगे आये और उ ह ने िकया, ‘‘मेरे मन म भी अनेक ह
ऋिषवर; आपने जो फल मेरी प नी को खाने को िदया था वह कैसा फल था?’’
‘‘म केवल इतना जानना चाहता हँ िक आप दोन को मुझ पर िव ास है या नह ?’’ महिष
ओमे र, उनके सम परू ा भेद नह खोलना चाहते थे, इसिलए उ ह ने वयं को ोिधत
िदखाया।
‘‘नह , नह ऋिषवर, हम आप पर पण ू िव ास है।’’ महाराज ययाित ने हाथ जोड़कर कहा।
किपश आगे आये, ‘‘म जानता हँ कोई रह य है, िजससे हम सब अनिभ ह, िक तु यिद
आप चाहते ह िक वह रह य अभी न खुले तो इसके पीछे अव य कोई कारण होगा... म आपसे इस
िवषय म अब कुछ नह पछ ू ू ँ गा, िक तु म चाहता हँ िक आप एक काय अव य संप न कर।’’
‘‘कैसा काय?’’ महिष ओमे र ने आ य से पछ ू ा।
‘‘ये बालक मेरा िश य होगा; म चाहता हँ िक आप ही इसका नामकरण कर।’’ कुलगु
किपश ने उस बालक को महिष ओमे र को िदया।
महिष ओमे र ने उस बालक को उठाकर उसक ओर गव से देखा, ‘‘यह कालश का
तीक होगा; एक ऐसा यो ा, जो कभी िकसी म परािजत नह होगा। यह बालक
िव मािजत के नाम से जाना जायेगा।’’
इसके उपरांत महिष ओमे र, महिष किपश क ओर घम ू े, ‘‘अब म आपसे एक वचन
चाहता हँ किपश!’’
‘‘कैसा वचन ऋिषवर? म आपको आ त करता हँ िक म आपको न नह क ँ गा।’’
किपश ने महिष ओमे र को िव ास िदलाया।
‘‘एक संकट आयावत म पनपने वाला है, कदािचत् वह िवदभ तक भी पहँच सकता है,
इसिलए म आपसे वचन चाहता हँ िक आप अपनी अंितम ास तक िवदभ क र ा कर।’’
किपश ने ओमे र को िव ास िदलाया, ‘‘जैसी आपक आ ा, ऋिषवर! म आपको वचन
देता हँ, िक म अपनी अंितम ास तक िवदभ के िसंहासन क र ा के िलए लडूँगा।’’
कुलगु किपश ने वचन तो दे िदया, िक तु वे यह नह जानते थे िक भिव य म इसका
प रणाम या होने वाला है।
‘‘अब मेरे थान का समय हो गया है।’’ महिष ओमे र ने थान करने का मन बना
िलया।
वे दोन महिष ओमे र क ओर अभी भी शंिकत ि से देख रहे थे। महिष ओमे र यह
देख मु कुराये, ‘‘िचंितत मत होइए, जब तक म हँ कुछ भी अनुिचत नह होगा।’’
‘‘हम आप पर िव ास है ऋिषवर।’’ राजा भभिू त ने हाथ जोड़कर कहा।
‘‘अब मुझे थान करना होगा, िक तु म शी ही लौटूँगा; आप अपने िश य को उसी
भाँित िशि त क िजयेगा, जैसे भगवान परशुराम ने आपको िश ा दी है किपश, और मुझे पता है
िक आप मुझे िनराश नह करगे।’’ महिष ओमे र को कुलगु किपश पर पण ू िव ास था।
महाऋिष ओमे र वहाँ से थान कर गए। वे दोन अभी भी उनक ओर िनहार रहे थे।
उनके मन म कई अनु रत रह गए थे।
3. असुरे र दुभ
सोलह वष बीत गए, दोन महारथी अपने-अपने गु ओं के िदशा-िनदश म प रप व हो रहे
थे।
िक तु शी ही वह िदन आया, जो एकच नगरी के राजकुमार सुजन के िलए उसका
ार ध िनधा रत करने वाला था। जीवन म थम बार वह राज ांगण से बाहर िनकला था। उसने
अपने साथ िकसी दास या र क को नह िलया।
अभी तक सुजन इस बात से अंजान था, िक वो अधअसुर है, जो पंच िद य शि याँ लेकर
ज मा है। िदखने म वो एक सुंदर राजकुमार जैसा ही लगता था।
‘‘आपको अपने साथ कुछ सैिनक को ले लेना चािहए था कुमार!’’ सारथी ने सुजन को
सुझाव िदया।
‘‘म बड़े से बड़े संकट का सामना अकेले कर सकता हँ; आप केवल एक बात का यान
रिखये, िक हमारा माग अव न हो, य िक यिद ऐसा हआ तो ये हमारे रा य के िलए एक बड़ा
दुभा य लेकर आयेगा; और ये हमारे िपता महाराज का प आदेश है।’’ सुजन ने अपने सारथी
को आदेश िदया।
‘‘अव य राजकुमार; म इस बात का िवशेष यान रखँग ू ा िक हमारे माग म कोई बाधा न
पहँचे।’’ सारथी ने रथ हाँकना जारी रखा।
िक तु अगले ही ण एक बकरी, रथ के सामने आ गयी। उसक र ा के िलए लगभग
दस वष का एक बालक भी सामने आ गया।
सारथी रथ रोकने पर िववश हो गया। उसने अ क लगाम ख ची।
‘‘यह या िकया? आपने रथ य रोका?’’ सुजन ोिधत हो गया।
‘‘म या करता कुमार, वह बालक मेरे माग म आ खड़ा हआ था, मुझे रथ रोकना ही
पड़ा।’’ सारथी ने अपनी िववशता समझायी।
ोिधत सुजन रथ से कूदा, और उस बालक क ओर बढ़ा। उसने उस बालक क गदन
पकड़ी और उसे ऊपर उठा िदया। उसक आसुरी आ मा उस पर हावी हो रही थी, उसका ोध
बढ़ता ही जा रहा था।
उस बालक क माँ वह से गुजर रही थी। अपने पु क अव था देख वो तड़प उठी। वह
अपने पु क र ा करने दौड़ी, और सुजन क ओर दौड़कर उसके चरण म आ िगरी।
‘‘नह , नह कुमार, कृपा करके पु को छोड़ दीिजये।’’ उसक माँ तड़प उठी।
‘‘म इसक ह या तो नह क ँ गा, िक तु इसने गंभीर अपराध िकया है। आप सबको पहले
ही कठोर िनदश िदया गया था, िक मेरा माग अव नह होना चािहए, िक तु इसके उपरांत भी
तु हारा बालक मेरे माग म आया, इसका साहस कैसे हआ? इसका द ड इसे अव य िमलेगा।’’
सुजन ने उसक गदन पर पकड़ और मजबत ू क।
‘‘नह , नह कृपा कर कुमार।’’ उसक माता ने िवनती क ।
िक तु इससे कोई अंतर नह पड़ा। वह सुजन का दय िपघलाने म िवफल रही। उस दस
वष य बालक को द ड देने क िलए सुजन ने उसे दूर फका।
िक तु इससे पवू िक वो बालक भिू म पर पड़े प थर से टकराता, दो सश भुजाओं ने उसे
पकड़ िलया, और उसक र ा क । सुजन ने उस युवक क ओर देखा। वो राजसी व म था।
‘‘कौन हो तुम, और मेरी याय ि या म ह त ेप कैसे िकया?’’ सुजन ोिधत था।
‘‘म वो हँ, िजसे हर उस अपराधी को द ड देने का अिधकार है जो एकच नगरी क जा
के मन म भय उ प न करने का यास करे गा।’’ वो युवक सुजन क ओर बढ़ा।
सुजन के सारथी ने उस युवक क ओर यान से देखा। उसने िवचार िकया, यह मुख मने
पहले कह देखा है; हे ई र! यह तो युवराज साकेत ह। मुझे दो ाताओं म टकराव होने से
रोकना होगा।’’
साकेत और सुजन एक दूसरे के िनकट आये। दोन एक दूसरे को ोध से देख रहे थे।
णभर म सुजन ने साकेत को भिू म पर धकेल िदया। साकेत एक कुशल यो ा था, वह
णभर म भिू म से उठकर सुजन क ओर दौड़ा। दोन यो ा एक बार िफर टकराए। सोलह वष य
बालक का बल देख साकेत आ यचिकत था। उसे एक बार पीछे हटना पड़ा।
‘‘ क जाइए कुमार, ये आपके ये ाता युवराज साकेत ह; आप वष से बड़ी उ सुकता
से इनक ती ा कर रहे थे, और अब आप इनसे ही यु कर रहे ह।’’ अपने सारथी के इन श द
से सुजन के हाथ क गए।
साकेत भी ये सुनकर चिकत रह गया। वो भिू म से उठा और सुजन क ओर देखा। इसके
उपरांत वह उसक ओर बढ़ा।
‘‘मुझे गु कुल म सच ू ना िमली थी, िक मेरे एक अनुज ने ज म िलया है। िक तु यिद वो ये
है, तो इस बात पर मुझे बेहद लािन है।’’ साकेत अभी भी ोध म था।
सुजन ने अपने ये के सम ने उठाने का साहस नह िकया।
इसके उपरांत साकेत, अपने अ पर आ ढ़ हो एकच नगरी के महल क ओर बढ़
चला।
महाराज ययाित एवं अ य राजकुल के लोग उसके वागत के िलए वहाँ उपि थत थे।
साकेत महल पहँचा। उसके िपता महाराज ययाित एवं अ य लोग ने उसका भ य वागत
िकया। वह साकेत क ि अपनी माता को खोज रही थी।
‘‘मेरी माता कहाँ ह िपता ी? म वष से उ ह देखने क ती ा कर रहा हँ।’’ साकेत ने
अपने िपता से िकया।
महाराज ययाित त ध रह गये, उनके मुख से श द नह फूट पा रहे थे, य िक युवराज
साकेत अपनी माता क म ृ यु से अभी तक अनिभ था।
‘‘तु हारी माता अभी यहाँ नह ह, वह माता महाकाली के मंिदर क या ा पर गयी ह।
इसिलए वह अरावली क पहािड़य क ओर गयी ह।’’ महाराज ययाित अपने पु को समझाते हए
िहचिकचा रहे थे।
‘‘ या उ ह ात नह िक म आने वाला हँ?’’ साकेत थोड़ा उदास हो गया।
‘‘नह , नह , उ ह यह ात नह , अ यथा तुम तो जानते ही हो, वह तुमसे दूर नह रह
सकत ।’’ महाराज ययाित ने स य को उजागर करना उिचत नह समझा।
‘‘वष हो गए उ ह देखे हए, तो मुझे कुछ समय और ती ा करनी होगी उनसे भट करने
के िलए।’’
तभी रथ के पिहय का वर युवराज साकेत के कण को छू गया, वो पीछे मुड़ा। सुजन,
महल लौट आया था।
उसने सुजन क ओर देखा, ‘‘यह बालक कौन है िपता ी?’’ युवराज साकेत ने अपने
िपता से पछ ू ा।
‘‘ये तु हारा अनुज सुजन है।’’ महाराज ययाित ने अपने पु क शंका िमटाई।
‘‘ये मेरा ाता है? यिद ये स य है तो मुझे इस बात पर बहत लािन हो रही है।’’ साकेत
उसे देख ोध म आ गया है।
महाराज ययाित चिकत रह गये, ‘‘ य ? अपने अनुज के िवषय म ऐसे कटु श द का
योग य कर रहे हो?’’
‘‘ये एक दस वष य बालक का वध करने जा रहा था, केवल इसिलए, िक उस बालक ने
कुछ ण के िलए इसका माग अव कर िदया था।’’ साकेत ने अपना मत रखा।
‘‘यह केवल एक बालक है, जो उ च िश ा के िलए कभी गु कुल नह गया; आज ये
थम बार महल राज ागंण से बाहर गया था। कदािचत् यह नह जानता िक आम जनता से कैसे
यवहार करना है।’’ महाराज ययाित ने अपने ि तीय पु का प िलया।
‘‘िक तु यह अभी तक गु कुल य नह गया? म तो दस वष क आयु से ही गु कुल म
िश ा ा कर रहा हँ।’’ साकेत चिकत था।
‘‘महल के भीतर आओ पु , हम इस िवषय म बाद म चचा करगे... तुम लंबी या ा से लौटे
हो, थके होगे।’’ महाराज ययाित ने वाता से बचने का य न िकया।
एक हर बीता। एकच नगरी के राजमहल म सभा बुलाई गयी। युवराज साकेत के साथ-
साथ सभी मं ी और सेनापित भी राजसभा म उपि थत थे, िक तु सुजन वहाँ उपि थत नह था।
महाराज ययाित िसंहासन से उठे और घोषणा क ।
‘‘मेरा ये पु गु कुल से लौट आया है; सोलह वष के कड़े प र म और अ यास के
उपरांत वह आयावत के अन य यो ाओं म से है। आज यह राजसभा मने एक िवशेष घोषणा करने
के िलए बुलाई है; आज म एक माह क या ा पर िनकल रहा हँ, इसिलए मुझे लगता है िक तब
तक इस रा य का उ रदािय व मुझे अपने ये पु को स प देना चािहए... म कुमार साकेत को
अपना उ रािधकारी घोिषत करता हँ, एकच नगरी का युवराज घोिषत करता हँ।’’
राजसभा के लोग यह घोषणा सुन, स निचत हो उठे , उ ह ने एकच नगरी के नए
युवराज साकेत का अिभनंदन िकया।
इसके उपरांत युवराज साकेत अपने आसन से उठे , ‘‘एकच नगरी का युवराज होने के
नाते मुझे भी कुछ घोषणा करनी है; कुमार सुजन को सभा म लाया जाये।’’
‘‘ या हआ पु ? तुम उसे य बुला रहे हो?’’ महाराज ययाित चिकत थे।
‘‘म एकच नगरी का युवराज हँ, और ये मेरा दािय व है िक म उस हर अपराधी को द ड
दँू, िजसने जा के मन म भय उ प न करने का यास िकया हो।’’
सुजन को राजसभा म लाया गया।
‘‘इसने हमारी जा के मन म भय उ प न करने का यास िकया है, इसिलए इसे इसका
द ड िमलना ही चािहए।’’ युवराज साकेत ने घोषणा क ।
सुजन क आँख ोध से धधक रही थ , िक तु उसने वयं पर िनयं ण रखा, और
महाराज के सम अपने हाथ जोड़े , और अपना प रखा, ‘‘मने कुछ भी अनुिचत नह िकया,
मने तो वही िकया जैसा एकच नगरी के महाराज ने मुझे करने के िलए कहा था।’’
‘‘ या? ये या लाप कर रहे हो? तु हारा कहने का अथ यह है िक महाराज ने तु ह उस
दस वष य बालक क ह या करने को कहा था?’’ साकेत चिकत रह गया।
‘‘नह मने ऐसा तो नह कहा; पहली बात तो ये है िक म उस बालक का वध नह करने
वाला था, िक तु मुझे यह प िनदश िमला था िक मेरी या ा म बाधा नह पहँचनी चािहए; यिद
ऐसा हआ तो वह इस रा य के िलए बड़ा दुभा य िस होगा। म तो केवल उस बालक को अपने
माग म बाधा पहँचाने का द ड दे रहा था।’’ सुजन ने अपना प रखा।
‘‘यह सही कह रहा है; मने ही इसे यह िनदश िदया था, इसिलए इससे कोई अपराध नह
हआ।’’ महाराज ययाित ने अपने पु का बचाव करते हए कहा।
‘‘िक तु इसका द ड तो इसे िमलेगा ही महाराज; इसे ये भान होना चािहए िक मासमू जा
से कैसे यवहार करते ह, इसिलए इसे गु कुल भेजा जायेगा, तािक यह अपने नैितक कत य
का पालन करना सीख सके।’’
साकेत के इन श द से सुजन के मुख भाव म प रवतन आ गया। उसने िवचार िकया, ‘‘म
वा तव म महामख ू हँ; म यह कैसे भल
ू सकता हँ िक ये मेरे ये ह; ये मेरे िलए कभी अनुिचत
थोड़ी न सोचगे।’’
‘‘नह , यह इस रा य से बाहर नह जायेगा।’’ महाराज ययाित यह कहते समय पीिड़त
तीत हो रहे थे।
‘‘िक तु य ? आप इसे इस महल म बाँधकर य रखना चाहते ह?’’ साकेत ने
िकया।
‘‘वष से म भी आपसे यही कर रहा हँ महाराज; म भी बाहर का संसार देखना चाहता
हँ, िक तु आप मुझे इस महल के भीतर बंधन म य रखना चाहते ह?’’ सुजन ने अपने िपता से
िकया।
महाराज ययाित अपने िसंहासन से उतारकर सुजन के पास आये, ‘‘ या तुम अपने गु
महिष जापित से संतु नह हो?’’
‘‘मने ऐसा नह कहा महाराज, िक तु वे सदैव यहाँ उपि थत तो नह रह सकते; उनका
भी एक प रवार है, और अब म यह महल छोड़ना चाहता हँ, संसार के दशन करना चाहता हँ।’’
सुजन ने अपनी बात रखी।
‘‘नह , तुम नह जा सकते, यह तु हारे जीवन के िलए संकटकारी िस हो सकता है।’’
महाराज ययाित यह कहते हए थोड़ा िवचिलत हो गए।
साकेत भी अपने आसन से उतरकर उन दोन के पास आया, ‘‘यह आप या कह रहे ह
िपता ी? म िपछले सोलह वष से गु कुल म िश ा ले रहा हँ, िक तु इसके उपरांत भी इसने मुझे
म परा त कर िदया, जबिक यह केवल सोलह वष का है; इसे कई नयी यु कलाएँ सीखने
क आव यकता है जो इसे और प रप व बनायेगी। ये तो इतना साम यवान है िक अकेले ही एक
समय म सौ यो ाओं को परािजत कर सकता है; मेरा मत यह है िक इसक शि और इसका
साम य यथ नह जाना चािहए, ये उ च िश ा और अ यास के यो य भी है और इसे इसक
आव यकता भी है; और तो और, इससे हमारे रा य को भी बल िमलेगा।’’ युवराज साकेत ने
कठोरतापवू क कहा।
सुजन मु कुराया, ‘‘म ये के मत से सहमत हँ महाराज; म भी इस महल को कुछ
समय के िलए छोड़ना चाहता हँ।’’
महाराज ययाित एक बड़े धमसंकट म पड़ गए। वह सोच नह पा रहे थे िक वे या कर,
य िक महाऋिष ओमे र ने उ ह प िनदश दे रखा था िक सुजन एकच नगरी क सीमा
पार न करे । यह देख महाराज ययाित ने वाता से बचने का यास िकया।
‘‘यह मेरे िलए मेरा संसार है; म केवल इसे वयं से दूर नह करना चाहता था, िक तु
तु हारा कहना भी उिचत है साकेत; म इस समय कोई िनणय नह ले सकता, य िक मुझे अभी
या ा पर िनकलना है। परू े एक मास तक मुझे गहरे सागर म या ा करनी है, और इसके िलए मुझे
वयं को तैयार करना है; एक मास प ात जब म लौटूँगा, तब इस िवषय म िनणय लँग ू ा; िदन का
चौथा हर बीतने को है, इसिलए मुझे थान करना चािहए।’’
‘‘जैसी आपक इ छा िपता ी, हम आपके लौटने क ती ा करगे।’’ सुजन ने अपने िपता
के िनणय का स मान िकया।
कुछ समय के उपरांत, एक रथ को आव यक साम ी से लादा गया। इसके उपरांत
महाराज ययाित अपने उस रथ पर आ ढ़ हए, और अपनी या ा पर िनकल गए।
‘‘आओ लौट चल सुजन, और मरण रखना, दोबारा िकसी मासम ू जाजन के साथ
दु यवहार नह करना।’’ साकेत ने सुजन को चेतावनी दी।
‘‘हाँ, हाँ, म ऐसा नह क ँ गा ये ।’’ सुजन ने सहमित म सर िहलाया।
दोन ाता महल क ओर बढ़ चले। साकेत ने अपने अनुज से िकया।
‘‘हमारी माता कैसी ह सुजन? म यह जानना चाहता हँ, िक अब वे कैसी िदखती ह, म
उ ह देखने के िलए बहत उ सुक हँ।’’ साकेत अपनी माता से िमलने को बहत उ सुक था।
सुजन ये सुनकर आ य म पड़ गया, ‘‘ये आप या कह रहे ह, ये ? मने तो ज म से
आज तक माता को देखा ही नह , आप िकसके िवषय म बात कर रहे ह?’’
ये सुनकर साकेत को गहरा झटका लगा; उसके मुख से श द नह फूट पा रहे थे,
‘‘इसका अथ यह है िक मेरे िपता ने मुझसे अस य कहा... तो िफर स य या है? यिद मेरे िपता ही
ने मुझसे अस य कहा, तो म महल के िकसी अ य यि पर िव ास कैसे कर सकता हँ?’’
साकेत, गहन िवचार म खो गया।
‘‘ या हआ ये ?’’ सुजन ने अपने ाता को मौन देख उ ह टोका।
‘‘वो... कुछ नह , तुम महल क ओर थान करो, म शी ही आता हँ।’’
‘‘िक तु य ? आप मेरे साथ य नह आ सकते?’’ सुजन ने िकया।
‘‘वो... या है िक म इस रा य म वष के उपरांत लौटा हँ, इसिलए मुझे एकच नगरी क
सामा य जा से भी वाता करनी है; म एकच नगरी के लोग क ि थित का जायजा लेना
चाहता हँ।’’ साकेत, सुजन को दूर भेजकर कुछ समय एकांत म रहना चाहता था।
‘‘िक तु आप वहाँ अकेले य जा रहे ह, र क को अपने साथ ले जाइये।’’ सुजन ने
सुझाव िदया।
‘‘नह , म ऐसा नह कर सकता; म एक साधारण मनु य का वेश धरकर ही जाऊँगा,
तािक कोई मुझे पहचान न सके, तुम महल जाओ।’’
‘‘जैसी आपक इ छा ये ।’’ सुजन महल क ओर िनकल गया।
‘‘इसके उपरांत, साकेत एक गु थान पर गया, और सामा य नगरवासी का वेश धर
िलया, तािक कोई उसे पहचान न सके। वो एक गाँव पहँचा और वहाँ के लोग से घुलिमल गया।’’
वो िकसी ऐसे यि क खोज कर रहा था, जो उसके भीतर क शंकाएँ िमटा सके।
अक मात् ही वह एक व ृ यि से जा टकराया।
‘‘ या तुम ने हीन हो?’’ वह व ृ मिदरा के नशे म था।
‘‘ मा क िजये, मा क िजये महोदय।’’ उसने उस व ृ यि क खड़े होने म सहायता
क।
वह व ृ यि साकेत पर चीखा, ‘‘ या तु ह िदखाई नह देता युवक? को, एक ण...
कौन हो तुम? तु ह यहाँ इस गाँव म पहले तो कभी नह देखा।’’ वह व ृ यि साकेत क ओर
घरू रहा था।
‘‘म इसी गाँव का रहने वाला हँ; वो या है िक म वष के उपरांत लौटा हँ; शायद इसीिलए
आप मुझे पहचान नह पा रहे ।’’ साकेत ने समझाने का यास िकया।
‘‘अ छा, वा तव म? चलो तु हारी बात पर म िव ास कर भी लँ,ू तो ये बताओ िक म कौन
हँ?’’ उस व ृ ने साकेत से िकया।
साकेत को सझ ू ही नह रहा था, िक वह उस व ृ यि को या उ र दे।
‘‘म इस गाँव का मुिखया था, या तु ह मरण है?’’ उस व ृ यि ने पछ ू ा।
‘‘हाँ, हाँ, य नह , मुझे मरण है न... आप मुिखया थे।’’ साकेत ने िबना िवचारे कह
िदया।
‘‘हा.. हा...’’ नशे म उस व ृ ने अ हास िकया।
‘‘आप इस कार हँस य रहे ह?’’ साकेत को कुछ समझ नह आ रहा था।
‘‘इस रा य के युवक उसी राह पर चल रहे ह िजस पर वह नीच राजकुमार सुजन उ ह
चलाना चाहता है; उसक ही भाँित तुम भी झठ ू े हो, िजसका मि त क षड्यं से भरा है। म केवल
दो वष से यहाँ रह रहा हँ, म इस गाँव का मुिखया कैसे हो सकता हँ? म बस तु ह यह कहना
चाहता हँ, या कह लो िक सुझाव देना चाहता हँ, िक तु ह जहाँ जाना है जाओ, जो करना है करो,
मुझे कोई परवाह नह ,’’ वो व ृ यि साकेत के मन म कई छोड़ आगे बढ़ गया।
‘‘ िकए.. िकए महोदय!’’ साकेत ने घम ू कर उस व ृ यि क पीठ पर हाथ रख उसे
रोकने का यास िकया।
‘‘अब या है? तु ह मुझसे या चािहए?’’ वह व ृ यि थोड़ा सकपकाया।
‘‘वो... या है िक म उस िवषय म जानना चाहता हँ, िजस िवषय म आप बात कर रहे थे;
आप राजकुमार सुजन के िलए इतने कटु श द का योग य कर रहे ह?’’
‘‘अब तो मुझे परू ा िव ास हो गया है िक तुम इस रा य के नाग रक नह हो; तुम मुझसे
यह पछ ू रहे हो िक म राजकुमार सुजन के िलए ऐसे श द का योग य कर रहा हँ? या तु ह
अभी-अभी हई घटना के िवषय म नह पता? िकस कार उस नीच राजकुमार सुजन ने दस वष य
बालक को केवल इसिलए तािड़त िकया, य िक उसने उसका माग अव कर िदया था।’’ वह
व ृ यि ोिधत होकर बोला।
‘‘वो राजकुमार अभी एक बालक है, उससे भल ू हो गयी होगी... वह बालक तो सुरि त है,
और आपको ऐसा नह लगता िक यह कोई ऐसा अपराध नह है, िजसे मा नह िकया जा
सकता।’’ साकेत ने अपने ाता का बचाव िकया।
‘‘अ छा ऐसा या? या केवल एक बालक को तािड़त करने का है? या तुम यह
नह जानते िक वो नीच राजकुमार सुजन, अपनी माता का ह यारा है।’’
साकेत यह सुनकर जड़ हो गया। वह कुछ ण के िलए मरू त बनकर उस व ृ यि क
ओर देखने लगा। कुछ ही ण म वो एक छोटे से प थर पर आ बैठा, तािक वह व ृ यि उसके
मुख के भाव को न देख पाए। उसके िलए वह िव ास करना लगभग असंभव था िक उसक माता
इस संसार म नह रह ।
‘‘ या हआ युवान् इतने िचंितत य िदखाई दे रहे हो?’’ उस व ृ यि ने पछ ू ा।
साकेत ने अपनी भावनाओं को िनयंि त करने का यास िकया, ‘‘वो... कुछ िवशेष नह ;
या आप बता सकते ह िक राजकुमार सुजन ने िकस कार अपनी माता क ह या क थी?’’
‘‘कई बार ये सुनने को िमलता है िक वह ज म से ही अपनी गदन के िपछले िह से पर
दुभा य का िच ह लेकर ज मा था। वह सदैव ही आम जनता के मन म भय उ प न करता था,
इसिलए उसक माँ उससे घण ृ ा करती थी; इसिलए उसने अपनी माँ के भोजन म िवष िमलाकर
उसक ह या कर दी।’’ उस व ृ यि ने साकेत को िम या वचन कहे , िक तु य , ये अनुमान
लगाना किठन था।
साकेत गहरे सदमे म था। वह प थर से उठा और अपने महल क ओर चल िदया।
‘‘कहाँ चल िदए युवान्?’’ उस व ृ ने साकेत से पछ
ू ा।
‘‘कुछ अपरािधय को द ड देने का समय है ये, और म वही करने जा रहा हँ।’’ साकेत
अपने महल क ओर बढ़ चला।
वह व ृ यि मु कुरा रहा था। इसके उपरांत वह अपने असली प म आ गया। ये कोई
और नह , दु र गु भैरवनाथ था, िजसने साकेत को भड़काने के िलए व ृ का वेश धरा था।
‘‘योजना सफल हई; अब शी ही सुजन असुरजाित के साथ होगा।’’ भैरवनाथ ने अ हास
िकया।
िदन का छठवाँ हर आरं भ हो गया था। साकेत, एकच नगरी के महल पहँचा, और उसने
आपातकालीन सभा बुलाई।
शी ही सारे मं ी, सेनापित और अ य राजकुल के लोग सभा म उपि थत थे।
राजकुमार सुजन भी वहाँ पहँचे। सभी इस सभा क आपातकालीन बैठक से चिकत थे। उन
सभी के मन म अनेक थे। साकेत लगातार सुजन क ओर देख रहा था। इसके उपरांत उसने
अपने एक मं ी को बुलाकर पछ ू ा।
‘‘म आपसे एक करने जा रहा हँ, और म केवल स य सुनना चाहता हँ।’’ िसंहासन
पर बैठे सुजन क आँख म वाला धधक रही थी।
‘‘हाँ, हाँ, अव य, म आपसे स य ही कहँगा।’’ वो मं ी थोड़ा घबरा गया।
इसके उपरांत साकेत ने अपनी उँ गली सुजन क ओर क , और अपने मं ी से िकया,
‘‘मुझे ात हआ है िक ये नीच मेरी माता क म ृ यु का उ रदायी है; म जानना चाहता हँ यह स य
है या नह ।’’
सुजन चिकत रह गया, ‘‘यह कैसा आरोप है? मने तो....’’
‘‘तुम मौन रहो।’’ साकेत, सुजन पर चीखा। इसके उपरांत वह अपने मं ी क ओर घम ू ा।
‘‘तो या ये स य है या नह ?’’
‘‘यह स य तो है युवराज, िक तु....’’
िक तु इससे पवू वह मं ी अपने श द परू े कर पाता, साकेत ने उसे मौन रहने का संकेत
िदया। उसने णभर के िलए अपने ने बंद िकये। कुछ ण प ात उसने अपने ने खोले और
सुजन क ओर देखा।
‘‘सुजन, मेरे िनकट आओ।’’ उसने अपने अनुज को आ ा दी।
सुजन, साकेत के समीप आया।
‘‘पीछे घम
ू जाओ।’’
साकेत ने सुजन क ओर यान से देखा। वह ये देख पण ू त: त ध रह गये, िक वा तव म
उसक गदन के िपछले िह से पर आसुरी िच ह बना हआ था।
इसका अथ यह है िक उस गाँव का वह व ृ स य कह रहा था। साकेत, गहन िवचार म
खो गया। कुछ ण उपरांत वह िसंहासन से उठा और घोषणा क ।
‘‘समय आ गया है, इस नीच अपराधी को द ड देने का; आज म यराि से पवू इसे इस
महल का याग करना होगा।’’
‘‘ या? िक तु य ? आप ऐसा कैसे कर सकते ह?’’ सुजन यह समझ ही नह पा रहा था
िक उसे िकस अपराध का द ड िदया जा रहा है।
‘‘तुम मेरे अनुज हो, इसिलए तु ह म ृ युद ड नह दे रहा; चले जाओ यहाँ से ह यारे , तु ह
इस रा य से िन कािसत िकया जाता है।’’ साकेत, सुजन पर चीखा।
सारे मं ीगण एवं राजकुल के अ य लोग चिकत रह गए। साकेत, सुजन पर ऐसे आरोप
लगा रहा था मानो उसने जानबझ ू कर उसक माता क ह या क हो; िक तु साकेत के ने क
वाला देख उसके इस िनणय पर करने का साहस िकसी ने नह िकया।
शी ही सुजन, एकच नगरी क सीमा के पास था। सकड़ आम नाग रक और ामीण
भी वहाँ उपि थत थे। म यराि का समय था। साकेत रथ पर आ ढ़ हो अपने कुछ सैिनक के
साथ वहाँ आया था। वह अपने रथ से उठा और एकच नगरी के लोग के म य घोषणा क ।
‘‘इसे िजतना हो सके अपमािनत करो, तािक ये िफर कभी इस रा य म लौट कर ना
आये... चले जाओ ह यारे , चले जाओ!’’ साकेत ने एक प थर उठाकर अपने अनुज क ओर फका।
‘‘सभी मेरा अनुसरण कर।’’ साकेत चीखा।
सबसे पहले वह दस वष य बालक आगे आया सुबह िजसक गदन सुजन ने पकड़ी थी,
और उसने गाय का गोबर उस पर दे मारा।
‘‘चले जाओ ह यारे !’’ वह बालक उस पर चीखा।
सुजन ने साकेत को ोध से देखा, ‘‘म आज केवल अपने िपता के कारण मौन हँ, और
आप इस ि थित का लाभ उठा रहे ह, िक तु िव ास रिखये, इसका द ड आपको अव य िमलेगा;
मुझे अपने िपता पर पण ू िव ास है, वह आपको द ड अव य दगे, और यिद उ ह ने आपको
दि डत नह िकया, तो म लौटूँगा तुम सबके िवनाश के िलए।’’ सुजन, साकेत पर चीखा।
‘‘चले जाओ ह यारे , चले जाओ!’’ एकच नगरी क सम त जा ने सुजन पर प थर और
गोबर फकना आरं भ कर िदया।
िक तु इसका उस पर कोई भाव नह पड़ा। उसने एकच नगरी क सीमा पार क , और
िकसी अ ात माग क ओर चल पड़ा।
सुजन बहत ही उलझन म था। उसने एकच नगरी क सीमा थम बार लाँघी थी। वो
िकसी भी माग से प रिचत न था। उसे समझ ही नह आ रहा था िक वो कहाँ जाये। वो परू े दस
हर तक चलता रहा। सय ू क िकरण अपनी चरम सीमा पर थ । अंतत: सुजन थककर एक
गुफानुमा छाँव म लेट गया।
‘‘मुझे यँ ू िन कािसत करने का आिखर या कारण हो सकता है?’’ सुजन अभी तक
अपने रा य से िन कािसत होने के कारण के िवषय म सोच रहा था।
वो बहत ही अिधक थक गया था, प रणाम व प, वो शी ही िन ाम न हो गया।
* * *
जब उसके ने खुले तो सय ू अ तचल क ओर थान कर चुका था। वो अब भी गुफा म
था।
र गु भैरवनाथ उसके सम बैठा था। सुजन के म तक म भीषण पीड़ा हो रही थी।
भैरवनाथ ने उसे कुछ फल िदए।
‘‘ये लो, अ छा महसस ू करोगे।’’
सुजन िपछले दस हर से भख ू ा था। उसने िबना िवचारे वे फल ले िलए और खाने लगा।
‘‘ध यवाद, इसके िलए बहत-बहत ध यवाद।’’ सुजन ने कृत ता कट क ।
‘‘तु ह एक अ छे भोज क आव यकता है... लाया जाये।’’ भैरवनाथ ने पुकार लगाई।
एक असुर, हाथ म चार थाली म चार कार के वािद पकवान िलए वहाँ तुत हआ।
यह देख सुजन को एहसास हआ िक यह गुफा वो गुफा नह है जहाँ वह सोया था, वह िकसी अ य
थान पर पहँच चुका है। जीवन म पहली बार सुजन ने िकसी असुर को देखा था; वह थोड़ा
भयभीत हआ।
‘‘भयभीत मत हो, तुम हमम से ही एक हो।’’ भैरवनाथ ने उसे समझाने का य न िकया।
‘‘यह आप या कह रहे ह? म तो एक मनु य हँ, ये या लाप कर रहे ह आप?’’ सुजन
यह सब सुनकर चिकत रह गया।
‘‘तुम ज म से ही आधे मानव और आधे असुर हो; तुम पंच िद यशि याँ अथात अि न,
जल, वायु आकाश और धरती क शि याँ लेकर ज मे हो; ये पंचत व इस संसार का आधार ह,
िजससे हर जीिवत ाणी के शरीर का िनमाण होता है... तुम तो वयं के िवषय म कुछ जानते ही
नह , िक तुम इस म ृ युलोक के सव े यो ा बनने यो य हो।’’ भैरवनाथ ने सुजन का उ साह
बढ़ाने का य न िकया।
‘‘म कुछ नह समझ पा रहा िक आप िकस िवषय म बात कर रहे ह!’’ सुजन थोड़ी
उलझन म था।
‘‘ठीक है, तो िफर तु ह बताओ िक तु हारे अपने ये ाता ने तु ह रा य से
िन कािसत य कर िदया?’’ भैरवनाथ ने िकया।
‘‘म नह जानता; म भी अपने ित उनके यवहार को देख अचंिभत हँ।’’
‘‘ या तुम वा तिवक कारण नह जानना चाहोगे, िक तु हारे ाता ने तु ह िन कािसत
य िकया?’’ भैरवनाथ ने सुजन के मन म िवष घोलना आर भ िकया।
‘‘हाँ, म अव य जानना चाहँगा; मेरे अपने ाता ने मुझ पर यह आरोप लगाया िक म
अपनी ही माता का ह यारा हँ, जबिक जबसे मने ज म िलया है मने तो उ ह देखा ही नह , िक तु
पता नह उ ह ने मुझ पर यह आरोप य लगाया।’’ सुजन, वयं को िमले द ड के कारण से अभी
तक अंजान था।
‘‘ य िक तु हारा यह अतु य बल देखकर वह तुमसे भयभीत हो गया था। वयं को
पहचानो; केवल सोलह वष के हो तुम, और तुमने ण भर म अपने ाता को म परा त कर
िदया... एक ऐसे यो ा को परा त कर िदया, जो सोलह वष तक गु कुल से िश ा ा कर एक
साम यवान यो ा बनकर आया था। ये उसके वािभमान और अहंकार पर गहरी चोट थी; वह
भयभीत हो गया िक तुम एकच नगरी के लोग म अिधक लोकि य हो जाओगे, और एक िदन
ऐसा आएगा, जब तुम उससे उसका िसंहासन छीन लोगे। इसिलए उसने एकच नगरी क सम त
जा के सम तु ह अपमािनत िकया।’’ भैरवनाथ ने सुजन क बुि को दूिषत करना जारी रखा।
सुजन यह सुनकर परू ी तरह िवचिलत हो गया। उसे ोध आ रहा था, उसके ने म
ितशोध क वाला धधक रही थी... कदािचत् सुजन के असुरी गुण उस पर हावी हो रहे थे।
‘‘ ये साकेत को इसका मोल चुकाना होगा... और केवल वही नह एकच नगरी क
सम त जा को इसका मोल चुकाना होगा; उ ह ने मेरा उपहास िकया, मुझे अपमािनत िकया।’’
इसके उपरांत सुजन भैरवनाथ के सम घुटन के बल झुक गया, ‘‘आपने मेरे ाण क
र ा क है, अब आप ही मेरा मागदशन कर। म आपको अपना गु वीकार करता हँ, बताइये
या करना होगा मुझे आगे?’’
‘‘तु हारे पास पंचत व क शि है, तु ह उसे अपने शरीर म जागतृ करना होगा।’’
भैरवनाथ ने उसे उ सािहत िकया।
‘‘िक तु म यह क ँ गा कैसे?’’
‘‘तु ह ितिदन चार हर तक कठोर साधना करनी होगी; तु ह ये साधना कम से कम
पाँच वष तक करनी होगी।’’ भैरवनाथ ने सुझाव िदया।
‘‘जैसी आपक आ ा गु देव; म पाँच वष तक कठोर साधना क ँ गा।’’ सुजन तैयार हो
गया।
‘‘िक तु इससे पवू तु ह र राज दुशल को परािजत करना होगा, और उसके िलए कम से
कम तु ह एक वष तक कठोर साधना करनी होगी।’’
‘‘र राज दुशल? मने अपने गु महिष जापित से उसके िवषय म बहत सुन रखा है। वो
तो आयवत के े यो ाओं म से है, भला म उसे कैसे परािजत क ँ गा?’’ सुजन यह सुनकर
चिकत रह गया; उसे समझ नह आ रहा था िक उसके गु के मन म या है।
भैरवनाथ उसके पास आया और उसे समझाया, ‘‘ वयं पर िव ास रखो सुजन; तुम पंच
िद य शि य के साथ ज मे हो; इस म ृ युलोक म तुमसे अिधक शि शाली कोई नह ... या िफर
स य कहँ तो शी ही वो समय आएगा, जब तुम इस युग के सव े यो ा कहलाओगे; मानव हो
या दानव जो भी तु हारा नाम सुनेगा, वह भय से थर-थर काँप उठे गा।’’
‘‘मुझे आम लोग के म य अपने नाम का भय फ़ै लाने क या आव यकता है? म तो
केवल अपने जीवन के उ े य को खोज रहा हँ? म या हँ, और यहाँ य हँ?’’ सुजन बड़ी
उलझन म था।
‘‘अभी तुम अनुभवहीन हो, भलू गए िक कैसे एकच नगरी के लोग ने तु ह अपमािनत
िकया था? ये मनु य होते ही ह दास व म बँधने के िलए। वे सभी दास व के िलए ही ज मे ह; उ ह
कोई अिधकार नह िक वे हमारे सम बराबरी म खड़े ह ।’’ भैरवनाथ उस सोलह वष य बालक
के मन म िवष घोलता रहा।
भैरवनाथ के वे श द सुजन के मि त क पर गहरा भाव डाल रहे थे। दु र गु
भैरवनाथ ने उसका मुख पढ़ िलया; उसने उसे और भड़काने का यास िकया।
‘‘उन मानव ारा तु ह अपमािनत िकया गया, िन कािसत िकया गया। िस कर दो िक
तुम कायर नह हो; उ ह इस बात का भान होना चािहए िक उ ह ने तु ह अपमािनत कर िकतना
बड़ा अपराध िकया है।’’
‘‘आप... आप उिचत कह रहे ह गु देव, उन सबको द ड िमलना चािहए... िक तु म ये
नह कर सकता।’’
‘‘तुम ऐसा य नह कर सकते? सम या या है?’’ भैरवनाथ ने आ य से पछ ू ा।
‘‘अभी तक एकच नगरी के महाराज मेरे िपता ह, और म अभी भी उनसे ेम करता हँ,
इसिलए म एकच नगरी पर आ मण नह कर सकता।’’ सुजन िववश सा महसस ू कर रहा था।
‘‘ठीक है, म समझ सकता हँ, िक तु िफर भी तु ह अपनी शि बढ़ाने क आव यकता
है, और उसके िलए तु ह र राज दुशल को परािजत करना ही होगा, तािक असुर सेना को तु हारे
जैसा नायक िमल सके।’’ भैरवनाथ ने उसे सुझाव िदया।
‘‘असुर का नायक? आप मुझे असुर का नायक बनाना चाहते ह, ये आप या कह रहे
ह?’’ सुजन चिकत रह गया।
‘‘हाँ, तुम असुर के नायक बनोगे... असुर म संसार पर अिधकार करने का साम य है,
िक तु उ ह तु हारे जैसे नायक क आव यकता है, और तु ह भी अपने ाता से ितशोध लेने के
िलए उनक आव यकता पड़े गी।’’
सुजन ने कुछ ण िवचार िकया, ‘‘म इसके िलए तैयार हँ गु देव।’’ सुजन ने उसके
सम अपने हाथ जोड़े ।
‘‘सव थम तु ह ितिदन चार हर कठोर साधना करनी होगी; कम से कम एक वष तक
तु ह यह साधना करनी होगी, तभी तुम र राज दुशल को परािजत करने िजतना साम य जुटा
सकोगे; और एक और बात, र राज दुशल एक िवशेष दाँव जानता है; वो अ सर अपने ित ी
क गदन के कमजोर िह से को खोज उस पर वार करता है, िजससे सामने वाले का लगभग
आधा शरीर कुछ समय के िलए सु न पड़ जाता है; उस दाँव को रोकने के िलए तु ह िवशेष
िश ण लेना होगा।’’ भैरवनाथ र राज दुशल के हर एक दाँव का िववरण सुजन को समझाता
चला गया।
* * *
सुजन ने कठोर साधना और श संचालन का अ यास परू े एक वष तक िकया। ये एक
सोलह वष य बालक के िलए बहत किठन समय था, िक तु उसने अपना संघष जारी रखा।
* * *
एक वष के कड़े अ यास और साधना के उपरांत, सुजन र राज से यु करने के िलए
तैयार था। भैरवनाथ उसक शि और साम य देख बहत स न हआ।
‘‘अब असुरजाित को एक नया नायक िमलेगा, जो सम आयावत म असुर का डं का
बजाएगा।’’ भैरवनाथ, सुजन को असुर का नायक बनाने के िलए अधीर हो रहा था।
* * *
पाताललोक के िसंहासन पर दुशल िवराजमान था। अक मात् ही एक र क वहाँ आया
और उसने दुशल को सिू चत िकया, ‘‘महामिहम! गु भैरवनाथ पधारे ह, वे आपसे भट करना
चाहते ह।’’
भैरवनाथ... इतने वष के उपरांत, या कारण हो सकता है? दुशल गहन िचंतन म था।
‘‘ या हआ दुशल? यह भैरवनाथ कौन है? और तुम इतने िचंितत य तीत हो रहे हो?’’
व बाह ने र राज क िचंता का कारण जानना चाहा।
दुशल अपने िसंहासन से नीचे उतरा और र क को आदेश िदया, ‘‘तुम जाओ और उ ह
भीतर ले आओ।’’
इसके उपरांत वह व बाह क ओर मुड़ा, ‘‘भैरवनाथ, असुर के मुख सलाहकार और
गु ह; उनका मन अधम और कुिटल योजनाओं से प रपण ू है। वे सदैव ही मानव पर असुर का
आिधप य थािपत करवाना चाहते ह, िक तु म ऐसा नह हँ जो केवल िसंहासन के िलए िनद ष
के ाण ले।’’
भैरवनाथ, स ह वष य सुजन के साथ पाताललोक के महल के भीतर आया।
‘‘अब आप यहाँ य आये ह?’’ दुशल ने भैरवनाथ से कठोरता से िकया।
भैरवनाथ, दुशल के िनकट आया, ‘‘तुम तो कभी असुरजाित के उदय के िवषय म िवचार
करोगे नह , इसिलए रा स को नए नायक क आव यकता है, जो उनके उ थान के िलए काय
कर सके।’’
‘‘अ छा,यिद ऐसा है तो आपको र जाित के िकसी ऐसे यो ा को मेरे सम लाना होगा
जो मुझे परािजत कर सके।’’ दुशल मु कुराया।
‘‘हाँ य नह ... म ये भलीभाँित जानता हँ, इसिलए म एक ऐसे यो ा के साथ आया हँ जो
तु ह परािजत करने का साम य रखता है।’’ भैरवनाथ ने दुशल को चुनौती देते हए कहा।
‘‘ या वा तव म? यिद ऐसा है तो म भी उस यो ा से िमलना चाहँगा जो मुझे परा त
करने क साम य रखता है।’’ दुशल उ सुक था।
यह सुनकर स ह वष य सुजन आगे आया, ‘‘म हँ वह यो ा, िजसके िवषय म मेरे गु
बात कर रहे ह।’’
दुशल ने उसक ओर यान से देखा, ‘‘तुम तो एक बालक तीत होते हो; म एक बालक
पर श नह उठा सकता, यह मेरे िस ांत के िव है; इसिलए मेरा सुझाव है िक तु ह यहाँ से
लौट जाना चािहए।’’
सुजन, दुशल के और िनकट आया, ‘‘ या महान र राज को पराजय से भय लग रहा
है?’’
दुशल ने उसक ओर ण भर देखा। उसने भैरवनाथ को फटकारा, ‘‘ल जा आती है आप
पर; आप वयं को असुर का गु कहते ह, और अपनी इ छाओं क पिू त के िलए एक बालक का
योग कर रहे ह।’’
‘‘मुझे ऐसा करना ही पड़ा, य िक तुम असुर के उ थान का उ रदािय व भल ू गए हो; ये
तो ज मा ही है तुमसे यु करने के िलए... मने स ह वष इसक ती ा क है, और अब यह
तुमसे यु के िलए तैयार है।’’ भैरवनाथ ने र राज दुशल को चुनौती दी।
‘‘म इस पर श नह उठा सकता, ये मेरे िस ांत के िव है।’’ दुशल ने सुजन से
करने से प प से मना कर िदया।
तब र जाित का एक मं ी अपने आसन से उतरकर उसके पास आया।
‘‘आप र के राजा ह महामिहम... कदािचत् यह आपके िस ांत के िव हो, िक तु
र राज होने के नाते आप इस चुनौती को अ वीकार नह कर सकते।’’
‘‘यह या लाप कर रहे हो तुम? मेरे सम ये केवल एक बालक है, और तो और, हम ये
भी नह जानते िक ये असुर है भी या नह ; जैसा हम सभी देख सकते ह, यह तो मानव तीत हो
रहा है, जैसे कह का राजकुमार हो।’’ दुशल ने सुजन क ओर देखा।
‘‘यह आधा मानव और आधा असुर है; इसे देख कर कोई नह कह सकता िक यह असुर
है; िक तु एकच नगरी का यह राजकुमार सुजन, ज मा ही है र जाित पर शासन करने के
िलये।’’ भैरवनाथ ने गव से कहा।
दुशल, सुजन के िनकट आया। इसके उपरांत उसने मं ी से पछ ू ा, ‘‘आपका या सुझाव
है?’’
‘‘आपको यह चुनौती वीकार कर लेनी चािहए महामिहम, अ यथा जा आपका स मान
नह करे गी।’’
भैरवनाथ उस मं ी क ओर देखकर मु कुराया। मं ी ने उसी मुखभाव से उ र िदया। वे
दोन िमले हए थे, िक तु दुशल इस षड्यं से अनिभ था।
‘‘ठीक है, म के िलए तैयार हँ।’’ दुशल ने के िलए सहमित दे दी।
‘‘तो इस म दाँव पर या होगा?’’ भैरवनाथ ने िकया।
‘‘दाँव पर?’’ दुशल चिकत रह गया।
‘‘तुम मुझे ऐसे य देख रहे हो? यिद दाँव पर कुछ हो ही न, तो िफर का अथ ही
या है? िवजेता को पुर कार तो िमलना ही चािहए।’’ भैरवनाथ ने ताव रखा।
भैरवनाथ क मंशा ताड़ना किठन था, िक तु इसके उपरांत भी दुशल ने वीकार िकया,
‘‘ठीक है, िफर आप ही बताइये, दाँव पर या होना चािहए?’’
यह सुनकर सुजन आगे आया, ‘‘यिद आप मुझे परािजत करते ह, तो म जीवनभर आपका
दास बनके रहँगा, इसका अथ ये है िक म वयं क वतं ता दाँव पर लगाता हँ।’’
दुशल भी आगे बढ़ा और घोषणा क , ‘‘यिद तुम वयं को दाँव पर लगा रहे हो, तो म भी
वयं को दाँव पर लगाने के िलए तैयार......’’
‘‘ क जाओ दुशल!’’ व बाह ने दुशल के श द परू े नह होने िदए।
दुशल पीछे मुड़ा, ‘‘ या हआ व बाह?’’
‘‘तुम असुर के नायक हो, तु ह वयं को दाँव पर लगाने क कोई आव यकता नह है;
म अभी हँ यहाँ; इस म म दाँव पर लगँग ू ा।’’ व बाह वयं को दाँव पर लगाने के िलए तैयार
हो गया।
‘‘िक तु व बाह...।’’
िक तु इससे पवू दुशल कुछ कह पाता, भैरवनाथ ने ह त ेप िकया, ‘‘हम यह ताव
वीकार है; शी तय करो, हमारे पास वाता करने का समय नह है।’’
असुर के मं ी ने भी व बाह का समथन िकया, ‘‘म सेनापित व बाह से सहमत हँ; आप
र राज ह, आपका वयं को दाँव पर लगाना शोभा नह देता।’’
‘‘म ऐसा नह कर सकता।’’ दुशल धमसंकट म फँस सा गया।
‘‘तु ह यह करना होगा िम ! मुझे भलीभाँित ात है िक िवजयी तुम ही होगे; तुम तो वो
यो ा हो िजसने मुझे परािजत िकया था, यह तो िफर भी एक नादान बालक है।’’ व बाह ने
अपने िम का उ साह बढ़ाया।
‘‘तो िफर िनणय हो गया, इस म दाँव पर व बाह लगेगा। ये सम असुर सेना
के सम लड़ा जाएगा, उ ह भी तो अपने नए नायक के साम य का प रचय िमलना ही चािहए।’’
भैरवनाथ ने गव से कहा।
‘‘म तैयार हँ, वह सभी इस के दशक ह गे।’’ दुशल, आ मिव ास से प रपण
ू था।
शी ही के िलए एक अखाड़ा तैयार िकया गया। एक हर के उपरांत आरं भ
होने वाला था। सुजन एक क म था। भैरवनाथ उसे े रत करने वहाँ आया।
‘‘ या तुम के िलए तैयार हो?’’ भैरवनाथ ने पछ
ू ा।
‘‘म तैयार तो हँ गु देव, िक तु मुझे वयं पर िव ास नह है।’’
‘‘तु ह अपने भीतर का आ मिव ास जागतृ करना होगा; तु ह अपने ितशोध के िलए
असुर सेना क आव यकता है; जब भी तुम दुशल के सम कमजोर पड़ो, तो उस अपमान का
िवचार करना, जो एकच नगरी के लोग ने तु हारा िकया था... वो सारी मिृ तयाँ तु हारी
सहायता अव य करगी। तु ह उन सबको द ड देना है, िक तु उससे पवू तु ह र राज दुशल को
परा त करना होगा।’’ भैरवनाथ ने अपने िश य को े रत िकया।
‘‘म के िलए तैयार हँ।’’ सुजन उठा, और उसने वयं के भीतर आ मिव ास जगाने
का यास िकया। इसके उपरांत वह अखाड़े क ओर बढ़ा।
‘‘ क जाओ सुजन!’’ भैरवनाथ ने उसे रोका।
सुजन पीछे मुड़ा, ‘‘ या हआ गु देव?’’
‘‘तुम असुर के नायक बनने जा रहे हो; वह सभी तु हारी पज ू ा ई र क भाँित करगे,
इसिलए यह सुजन नाम तुम पर शोभा नह देता।’’
‘‘तो िफर असुर के नए नायक का या नाम होना चािहए?’’ सुजन ने िकया।
भैरवनाथ उसके िनकट आया, ‘‘यिद तुम इस म िवजयी हए तो तुम दुभ
कहलाओगे; िवनाश का तीक, असुरे र दुभ ।’’
उन श द ने सुजन का उ साह बढ़ाया, ‘‘जैसा आप चाह गु देव।’’ सुजन अखाड़े क ओर
बढ़ा।
शी ही दुशल और सुजन एक दूसरे सम खड़े थे। र सेना का स पण ू समथन दुशल के
िलए था, िक तु इससे सुजन के आ मिव ास पर कोई भाव नह पड़ा।
दोन यो ाओं ने के िलए भाले का चयन िकया। इसके उपरांत वो दोन एक दूसरे
क और दौड़े और दोन भाले टकराए। दुशल उस स ह वष य बालक क गित और एका ता देख
चिकत रह गया। शी ही सुजन ने उस पर भीषण हार िकया; दुशल ने सफलतापवू क अपना
बचाव िकया, िक तु उसका दायाँ हाथ थोड़ा चोिटल हो गया। यह देख असुर सेना म शांित छा
गयी। घायल दुशल ने सुजन क ओर देखा, ‘‘अ छा दाँव था बालक, मने तु ह कमतर आँका,
िक तु अब कोई दया नह ।’’
दुशल ने अपनी स पण ू शि से यु करना आरं भ िकया। उसने सुजन पर हार कर उसे
कुछ गज पीछे धकेल िदया। असुर सेना ने एक बार िफर दुशल का उ साह बढ़ाना आरं भ कर
िदया। सुजन ने अपनी शि जुटाई और एक बार िफर दुशल क ओर दौड़ा। दो हर तक उनका
चला। दोन यो ा बहत देर पहले ही िन:श हो चुके थे और अब िनणय बाहबल से होना
था। दोन यो ा एक दूसरे क ओर दौड़े और एक बार िफर टकराए। दुशल, उस स ह वष य
बालक का बल और दाँव देख चिकत रह गया। दुशल को सुजन से कड़ी ट कर िमल रही थी, जो
वहाँ उपि थत सभी के िलये मौन का कारण बन गयी थी।
दोन यो ाओं का र ती ता से बह रहा था। दुशल ने िवचार िकया िक उस दाँव के
योग का समय आ गया है, िजससे ित ी का आधा शरीर सु न पड़ जाता है। उसने सुजन
पर छलाँग लगायी और उसक गदन अपनी भुजा से जकड़ ली। वह सुजन के कंधे पर हार करने
ही वाला था, िक तु सुजन उस दाँव के िलए तैयार था। अपने कंधे क ओर आते उसके हाथ को
सुजन ने रोका, और अपने ित ी क छाती पर भीषण हार िकया। दुशल को पीछे हटना
पड़ा।
वह भिू म पर िगर पड़ा, ‘‘अब बहत हआ, मुझे यह समा करना होगा।’’ र राज
दुशल, ोिधत था। वह भिू म से उठा और सुजन क ओर देख उसक ओर दौड़ा। उसने सुजन क
छाती पर भीषण हार िकया, िजससे वह भिू म पर िगर पड़ा।
‘‘र राज दुशल क जय हो...!’’ असुर सेना ने एक बार िफर दुशल को ो सािहत करना
आरं भ कर िदया। सुजन का र ती ता से बह रहा था, उसका आ मिव ास भी कम हो रहा था।
भैरवनाथ ने उसके मुख के भाव पढ़ िलए। वह कुिटल र गु उठा और असुर सेना के सम
आया। वह दुशल और सुजन का जारी था।
भैरवनाथ असुर पर चीखा, ‘‘मौन रहो मख ू ।’’
असुर सेना म शांित छा गयी। भैरवनाथ िफर से िच लाया।
‘‘तुम सब मख ू हो, मख ू ही नह , तुम सब कायर भी हो... हम असुर ह, देव िजतने
शि शाली ह, हम ज मे ही ह शासन करने के िलए; यिद र का राजा दुशल रहा, तो तुम सब
कभी पाताललोक से बाहर नह जा पाओगे, अपने जीवन के अंत तक तुम सब यह रह जाओगे,
बाहर के सुंदर संसार को देखने का अवसर तु ह कभी ा नह होगा। तुम सब मानव पर
शासन करने यो य हो; वो मानव, जो शि और साम य म हमारे आगे कुछ भी नह । तो या
चाहते हो तुम सब? जीवन भर यह रहोगे या बाहर के सुंदर संसार के दशन करोगे?’’ भैरवनाथ
ने असुर का भड़काने का य न िकया।
असुर सेना म शांित सी छा गयी। अगले ही ण उनम थोड़ी खुसफुसाहट शु हो गयी,
इससे र राज का यान भटकने लगा। सुजन ने उसे भिू म पर धकेल िदया। दोन यो ा गंभीर प
से घायल थे, उनके शरीर से र ती ता से बह रहा था।
भैरवनाथ ने उस ि थित का लाभ उठाने का यास िकया, ‘‘इन दोन क ओर देखो, एक
ओर र का राजा दुशल है, और दूसरी ओर है यह स ह वष य बालक, जो अनुभवी दुशल पर
हावी हो रहा है... तो तुम सब ही िनणय लो िक तु हारा नायक कौन होना चािहए।’’
असुर के म य खुसफुसाहट बढ़ने लगी।
मेरे लोग का िव ास मुझ पर से उठ रहा है, उनका िव ास पाने के िलए मुझे इस बालक
को परािजत करना ही होगा। दुशल अपनी परू ी शि जुटाकर उठा, और सुजन क ओर बढ़ा।
सुजन भी दुशल क ओर दौड़ा। दोन घायल यो ा एक बार िफर दूसरे के सम थे।
‘‘वा तव म अब तक मने िजतने भी यो ाओं से िकया है, तुम उन सबसे े हो,
िक तु अब मुझे अपने लोग का िव ास पाने के िलए यह समा करना ही होगा।’’ दुशल ने
उसके मुख पर एक भीषण मुि हार िकया।
सुजन के मुख से र क धारा फूट पड़ी, वह भिू म पर िगर गया। इसके उपरांत दुशल ने
उसके ऊपर अपना पाँव रखकर उसे भिू म पर ही िचत करने का य न िकया, िक तु सुजन ने
उसका पाँव अपने हाथ से रोककर उसे पीछे धकेल िदया।
‘‘यिद अब तक आपसे करने वाल म सबसे े हँ, तो आपने ये कैसे सोच िलया
िक मुझे परािजत करना इतना सरल होगा?’’ सुजन, दुशल पर कूदा... जारी रहा।
भैरवनाथ के स का बाँध टूटने लगा। उसने असुर सेना को एक बार िफर भड़काने का
य न िकया, ‘‘तुम सब या िवचार कर रहे हो? यही उिचत समय है, अपने नायक का चयन
करो; दुशल, या िफर यह स ह वष य दुभ , जो तु हारे सुनहरे भिव य का िनमाण कर सकता
है... यिद तुम असुरजाित क गित चाहते हो तो अभी िनणय लो, असुर के नए नायक असुरे र
दुभ क जयजयकार करो।’’
दुशल का वह मं ी, जो भैरवनाथ से िमला हआ था, उसने भी असुर जा को भड़काने का
य न िकया, ‘‘गु भैरवनाथ उिचत कह रहे ह; म उनका समथन करता हँ, और तुम सभी को
भी करना चािहए, इसिलए म असुर के नए नायक असुरे र दुभ का समथन करता हँ।’’
‘‘उठो और समथन करो!’’ भैरवनाथ चीखा।
‘‘असुरे र दुभ क जय हो!’’ भीड़ म से एक असुर ने दुभ का समथन िकया।
‘‘असुरे र दुभ क जय हो! असुरे र दुभ क जय हो!’’ कुछ ही ण म सम त
असुर सेना, दुभ का समथन करने लगी। दुभ के इस समथन ने दुशल का आ मिव ास
तोड़कर रख िदया।
इस षड्यं से अनिभ व बाह अपने िम क ि थित देखकर चिकत रह गया।
अपनी जा के यवहार ने दुशल को मानिसक प से परािजत कर िदया था। सुजन ने
उसक छाती पर अंितम हार िकया। दुशल भिू म पर था, और सुजन का पाँव उसक छाती पर।
‘‘आप परािजत हए र राज! जैसा मने वचन िलया था, यह संसार अब मुझे दुभ
कहे गा... आप र राज थे, केवल असुर पर राज कर सकते थे, म असुरे र हँ, म उनका आरा य
बनँग ू ा।’’
4. एक असुर क े म कथा
दुशल भिू म पर था। व बाह ने उसके िनकट जाकर उसे सँभाला।
िक तु भैरवनाथ ने दो िम के म य ह त ेप िकया, ‘‘तो जैसा िनधा रत हआ था, अब
तुम असुर के नए नायक के दास हो।’’
दुशल बुरी तरह घायल था। वह िकसी कार उठा, ‘‘मुझे मा कर दो व बाह, म तु हारी
वतं ता क र ा नह कर पाया।’’
व बाह दुशल के िनकट आया और उसे दय से लगा िलया, और परू े िव ास के साथ
उसके कान म कहा।
‘‘तुमने वीरता से यु िकया दुशल; तु ह तु हारी जा ने परािजत िकया है। तुम महिष
ओमे र क खोज म एकच नगरी क ओर थान करो, वो तु हारी सहायता अव य करगे,
मुझे परू ा िव ास है िक तुम दोन इस बालक को परािजत करने अव य लौटोगे, तािक म इसके
दास व से मु हो सकँ ू ।’’
‘‘अव य व बाह, म तु ह मु कराने अव य लौटूँगा; इस बार भैरवनाथ के षड्यं ने
मुझे अपने ही लोग से अलग कर िदया, िक तु इसके उपरांत भी म अपने लोग के िलए लौटूँगा;
मुझे उनका िव ास वापस पाना होगा।’’ दुशल पीड़ा म था।
‘‘व बाह, इसे इस महल से बाहर िनकाल दो!’’ भैरवनाथ ने आदेश िदया।
‘‘म तु हारा दास नह हँ भैरवनाथ; तु हारे आदेश का पालन करने को म िववश नह हँ।’’
व बाह, र गु पर चीखा।
यह सुनकर दुभ आगे आया, ‘‘िक तु मेरा आदेश मानने के िलए तो तुम िववश हो न
व बाह; मेरे श ु को बाहर करो, और िजतनी शी हो सके लौटो।’’
दुशल ने व बाह क ओर देखा, ‘‘ये जैसा कहता है वैसा करो, म तु ह मु करने अव य
लौटूँगा।’’
इसके उपरांत दुशल और व बाह, महल के मु य ार क ओर बढ़े । दुशल अपने अ पर
आ ढ़ हआ।
‘‘अब म तु हारी और कोई सहायता नह कर सकता दुशल।’’
दुशल ने अपने िववश िम क ओर देखा, ‘‘म अपना यान रख सकता हँ, और तुम
िचंितत मत हो; म तु ह मु कराने शी लौटूँगा।’’
दुशल, एकच नगरी क ओर िनकल गया। घने वन म िवलु होने तक व बाह उसे
देखता रहा।
दुशल, चार हर तक या ा करता रहा। उसके शरीर के कई िह स म गंभीर चोट आई थी,
िक तु उसने अपनी या ा जारी रखी।
वह िवदभ रा य से गुजर रहा था। सय ू ादय होने को था, िक तु दुशल उस सय
ू ादय को नह
देख पाया। उसक आँख सय ू ादय से पवू ही बंद हो गय और वह मिू छत हो गया। उसका अ ,
मिू छत अव था म ही उसे ढोता रहा।
सैकड़ सैिनक का दल एक रथ को र ा म िलए वहाँ से गुजर रहा था। दस सैिनक रथ
के आगे थे, और शेष सैिनक और दािसयाँ रथ के पीछे थे। यह एक सुंदर राजकुमारी क या ा थी,
जो उस रथ पर िवराजमान थी।
शी ही दुशल का वह अ उस दल के सम आ खड़ा हआ।
‘‘वह यि कौन है? जाओ और पता करो।’’ राजकुमारी ने आदेश िदया।
एक सैिनक अ के पास आया, और दुशल का िनरी ण िकया।
‘‘यह गंभीर प से घायल है राजकुमारी।’’ उस सैिनक ने राजकुमारी को वापस आ कर
बताया।
वह राजकुमारी अपने रथ से उतरी और दुशल के िनकट आयी।
‘‘ िकए राजकुमारी, यह एक असुर है, आपको इससे दूर रहना चािहए।’’ सुर ाकिमय
के मुिखया ने राजकुमारी को सावधान िकया।
‘‘मुझे मत बताइए िक मुझे या करना चािहए और या नह ; इसे उपचार क आव यकता
है, वै को िजतनी शी हो सके बुलाया जाए।’’ राजकुमारी ने आदेश िदया।
‘‘ मा कर राजकुमारी, िक तु इस वन म िकसी वै का िमलना अ यंत दु कर है।’’ उस
सैिनक ने उ र िदया।
‘‘यह अभी जीिवत है; हमारा िशिवर यह लगा दो, म इसे जीिवत रखने तक का उपचार तो
कर ही सकती हँ, तब तक तुम जाकर शी से शी िकसी वै को खोज कर लाओ।’’ राजकुमारी
ने आदेश िदया।
यह सुनकर एक व ृ सैिनक राजकुमारी के िनकट आया, ‘‘िक तु आपको तो शी से
शी एकच नगरी पहँचना था; वहाँ के युवराज साकेत से आपका िववाह िनि त हआ है; वह
िववाह से पवू आपसे भट करना चाहते ह, और आपक ती ा कर रहे ह, इसिलए आपको वहाँ
समय पर पहँचना चािहए।’’
‘‘जैसा मने कहा है, आप सभी वैसा कर; युवराज साकेत हमारी ती ा कर सकते ह,
िक तु जब तक कोई वै नह आ जाता, म इस घायल को नह छोड़ सकती।’’
जैसा राजकुमारी ने आदेश िदया था, उपयु थान देखकर िशिवर लगाया गया।
दुशल को उस िशिवर म लाया गया। राजकुमारी ने शी ता से घाव पर कुछ प का लेप
लगाना आरं भ िकया। दुशल अभी भी मिू छत था।
तभी एक सैिनक िशिवर के भीतर आया। उसने दुशल के मुख को यान से देखा। अगले
ही पल वह त ध रह गया।
‘‘आप इसक सहायता य कर रही ह राजकुमारी? यह तो एक असुर है, या कहँ िक यह
केवल असुर नह , अिपतु असुरजाित का नायक दुशल है।’’
सभी उपि थत सैिनक हत भ रह गये, िक तु राजकुमारी के मुख के भाव म कोई
प रवतन नह आया।
‘‘इसे बाहर िनकाल दीिजये राजकुमारी, बाहर िनकाल दीिजये!’’ उस सैिनक ने
राजकुमारी को चेतावनी दी।
‘ठहरो।’ तभी एक व ृ सैिनक ने ह त ेप िकया।
सारे सैिनक म शांित छा गयी।
उस व ृ सैिनक ने कहना जारी रखा, ‘‘हाँ, यह र का अिधपित दुशल है, िक तु या
जानते हो तुम सब इसके िवषय म? यह भगवान महाबली का वंशज है, आदशवाद का तीक है,
असुर होने के उपरांत भी यह आयवत के कई राजाओं से अिधक धािमक और यायि य है; यह
िन वाथ यो ा है, जो वयं के जीवन से पहले जा के जीवन को ाथिमकता देता है... जहाँ तक
म जानता हँ, िक इस समय आयावत म ऐसा कोई यो ा है ही नह , जो इसके साम य के आगे
िटक सके, िक तु इसके उपरांत भी इसने िसंहासन के लोभ म आयावत के िकसी भी रा य पर
अकारण आ मण नह िकया। िक तु यह िव ास करना किठन हो रहा है िक यह इतना घायल
कैसे हो गया, य िक आयावत म इसे परािजत करने का साम य मेरी जानकारी के अनुसार तो
िकसी म नह है।’’
उस व ृ सैिनक के वह श द उस राजकुमारी के दय पर गहरा भाव डाल रहे थे, िक तु
उसने अपनी भावनाओं का दशन नह िकया।
‘‘तो िनणय हो गया, हम इनक सहायता करगे।’’ राजकुमारी ने घोिषत िकया।
‘‘वै आ गए ह राजकुमारी।’’ एक सैिनक ने आकर सच ू ना दी।
‘‘अब हम एकच नगरी क ओर थान करना चािहए, युवराज साकेत आपक ती ा
म ह गे।’’ सुर ाकिमय के मुिखया ने कहा।
उस राजकुमारी क वहाँ से जाने क इ छा नह हो रही थी, ‘‘यह तो राि का समय है,
यिद हम इस समय अपनी या ा ारं भ करते ह, तो यह संकटकारी हो सकता है, इसिलए हम
अपनी या ा सय ू ादय के साथ आरं भ करगे, कदािचत् र राज क मछ ू ा भी तब तक टूट जाए।’’
‘‘जैसी आपक इ छा राजकुमारी।’’
राि का अंितम हर बीतने को था। राजकुमारी ने सय ू ादय तक ती ा क । उसने दुशल
क चेतना लौटने क ती ा क , तािक वह उसे भट कर सके, िक तु ऐसा नह हआ। सय ू ादय
होते ही राजकुमारी को एकच नगरी के िलए थान करना पड़ा।
दुशल क चेतना अंतत: लौट आयी, िक तु तब तक राजकुमारी वहाँ से जा चुक थी। जब
उसक आँख खुल तो उसने वै और कुछ सैिनक को अपने सम देखा।
‘‘आप लोग कौन ह? और म कहाँ हँ?’’ दुशल ने उन अनजान लोग से िकया।
‘‘हम िवदभ के यो ा ह, और आप हमारे िशिवर म ह।’’ एक सैिनक ने उसका संदेह
िमटाया।
दुशल ने अपने घाव क ओर देखा, ‘‘मेरी सहायता के िलए आप सभी का बहत बहत
ध यवाद; म आप लोग के िलए एक अ ात यि था, िक तु इसके उपरांत भी आप लोग ने
मेरी सहायता क , म आप लोग का ऋणी रहँगा।’’
‘‘आपको ध यवाद हमारा नह , अिपतु हमारी राजकुमारी िशव या का करना चािहए,
िज ह ने आपक सहायता करने को हम िववश िकया, य िक आपका आसुरी प देख कोई भी
आपक सहायता करने को तैयार न था; और तो और, उ ह ने ही आपको वै के आने से पवू
औपचा रक िचिक सा दी... वह आपसे भट करना चाहती थ , िक तु उ ह िवलंब हो रहा था,
इसिलए वह अपनी या ा पर िनकल गय ।’’ एक व ृ सैिनक ने िव ततृ वणन िकया।
दुशल कुछ ण शांत रहा, इसके उपरांत वह श या से उठा।
‘‘आप सभी का ध यवाद, िक तु मुझे अितआव यक काय है, इसिलए मुझे थान करना
होगा।’’
‘‘आप अभी िकसी या ा के लायक व थ नह ह; आपको कम से कम एक िदन और
िव ाम करना चािहए, तािक आपके घाव कुछ भर सक।’’ वै ने सुझाव िदया।
‘‘ध यवाद वै राज, िक तु अब मुझे थान करना ही होगा; कुछ उ रदािय व मेरे ाण
से अिधक मह वपण ू ह, और मुझे वो दािय व िनभाना है।’’ दुशल उस िशिवर से बाहर आया, और
अपने अ को खोजकर उसपर आ ढ़ हो गया। इसके उपरांत वह िवदभ के यो ाओं क ओर
मुड़ा।
‘‘मेरे ाण क र ा के िलए एक बार िफर से ध यवाद कहना चाहँगा।’’ दुशल एक बार
िफर एकच नगरी क या ा पर िनकल गया।
वह अभी भी उस राजकुमारी िशव या के िवषय म िवचार कर रहा था, िजसने उसके ाण
बचाए थे, कौन हो सकती है वो राजकुमारी? म उसे एक बार देखना अव य चाहँगा। वह गहन
िवचार म था।
अक मात् ही उसका अ िबदक गया और ती ता से िहनिहनाकर क गया। अपने
िवचार म खोया दुशल, सामने का य देख दंग रह गया।
सकड़ सैिनक और दािसय के शव वहाँ पड़े थे। वह परू ा माग र रं िजत हो गया था। तभी
दुशल ने देखा िक एक दासी अभी भी जीिवत है। वह अपने अ से कूदा और उस दासी के िनकट
आया।
‘‘कौन हो तुम? और यह सब कैसे हआ?’’ दुशल ने उस दासी से िकया।
‘‘हमारी राजकुमारी... कृपया उन...क र ा क िजये... जंगल के डकैत उ ह उठा ले गए
ह।’’ उस दासी ने िवनती क ।
‘‘ या? कहाँ ले गए ह वो उ ह?’’ दुशल ने उस दासी से िकया।
वह केवल अपनी उँ गली के इशारे से उसे िदशा बता पायी, उसके उपरांत उसने सदा के
िलए अपने ने बंद कर िलए। दुशल को उसके िलए दु:ख हआ।
‘‘एक मानव राजकुमारी, अथात् िवदभ क राजकुमारी ने मेरे ाण क र ा क थी, मुझे
इस राजकुमारी के ाण क र ा करनी चािहए, िजसे वह डकैत उठाकर ले गए ह।’’ दुशल, दासी
क िदखाई हई िदशा क ओर तेजी से बढ़ा।
वह वन म चला जा रहा था, जैसा िक उस दासी ने बताया था। कुछ ही समय प ात उसने
एक पेड़ के प पर र क कुछ बँदू िगरी हई देख ।
‘यह तो ताजा र है; कदािचत् वह डकैत इस थान से कुछ ही दूरी पर ह।’ दुशल ने
अनुमान लगाया।
उसका अनुमान सही था। उसने एक गुफा को खोज िनकाला, जहाँ से बहत सारी आवाज
आ रही थ । वह धीरे -धीरे उस गुफा क ओर बढ़ा। गुफा के ार पर उसे कुछ र क िदखाई िदए।
वह वयं एक व ृ के पीछे छुप गया। शी ही एक र क उस व ृ के समीप आया। यह
दुशल के िलए एक उिचत अवसर था। उसने उस डकैत को पकड़कर व ृ के पीछे ख च िलया।
उसने उस डकैत के कंधे पर हार कर उसे मिू छत कर िदया, इसके उपरांत उसने वयं उस डकैत
का प ले िलया।
दुशल अब हबह उस डकैत क भाँित िदख रहा था। वह गुफा के भीतर जाने लगा, तभी
एक दूसरे र क ने उसे रोका।
‘‘कहाँ जा रहे हो? हम यहाँ कने का िनदश िदया गया है, इसिलए यह को।’’
‘‘वो... या है िक, हमारे सरदार ने मुझे बुलावा भेजा है, इसिलए म उनसे भट करने जा
रहा हँ।’’ दुशल थोड़ा िहचिकचा रहा था।
‘‘ठीक है, तुम जाओ, म यहाँ पहरा दे रहा हँ।’’
इसके उपरांत दुशल ने गुफा के भीतर वेश िकया। वह गुफा क ि थित देख दंग रह गया।
वह राजकुमारी एक खंबे से बँधी हई थी, और उसके आसपास अनेक डकैत न ृ य कर रहे थे।
यह देख दुशल ोध से भर गया, िक तु िफर उसने िकसी कार वयं पर िनयं ण रखने
का िनणय िलया। उसने उिचत समय तक कने का िनणय िलया।
‘‘ क जाओ!’’ उन डाकुओं के सरदार ने इशारा िकया।
इसके उपरांत वह अपने आसन से उठा, और वासना भरी ि से उस राजकुमारी क ओर
देखा, ‘‘मने इतनी सुंदर क या आज तक नह देखी, अ ुत है ये; म इसे चाहता हँ, िक तु यिद
इसे ा करने क कोई चुनौती ही न हो, तो िफर आनंद कैसे आएगा? म तुम सबको आमंि त
करता हँ, मुझसे यु करो और मुझे परािजत करो; जो डकैत मुझे परािजत करे गा, यह क या
उसक हो जाएगी।’’
‘‘तु ह इसका गंभीर प रणाम भोगना होगा नीच! तु ह यह भान ही नह है िक म कौन हँ;
म िवदभ क राजकुमारी िशव या हँ।’’ िशव या उस पर िच लायी।
यह सुनकर दुशल चिकत रह गया। िजस राजकुमारी से वह िमलना चाहता था, वो उसके
सम ही खड़ी थी।
डाकुओं के सरदार ने िशव या के श द को अनसुना कर िदया। उसने कहना जारी रखा,
‘‘ या हआ तुम सबको? या कोई ऐसा है, जो मुझसे कर सके?'
िकसी का एक भी श द बोलने का साहस नह हआ।
दुशल िवचार कर रहा था, ‘इस राजकुमारी ने मेरे ाण क र ा क थी, इसिलए अब मेरा
उ रदािय व है िक म इसक र ा क ँ ।’
‘‘िकसी म मुझसे करने का साहस नह है? उिचत है; तुम सबम यह भय होना
चािहए... तो िनणय हो गया, यह सुंदरी अब मेरी है।’’ डकैत का सरदार नीचे उतरा और िशव या
क ओर बढ़ा।
‘‘इतना सरल नह है; म आपसे क ँ गा सरदार।’’ एक डकैत का प िलए दुशल
सामने आया।
डकैत का सरदार उसक ओर मुड़ा, और उसे देख हँस पड़ा, ‘‘एक र क; आज तक
तुमने एक मानव क ह या नह क होगी, और आज तुम मुझसे करना चाहते हो?'
दुशल उसे घरू रहा था। सरदार उसके पास आया, ‘‘यह तु हारी पहली भल ू है, इसिलए
तु ह मा कर रहा हँ, चले जाओ।’’
‘‘आप तो कायर िनकले सरदार, या वा तव म कहँ तो आप इस समहू के सरदार बनने
यो य ह ही नह ।’’ दुशल ने उस पर ताना कसा।
डकैत के सरदार को ोध आ गया, ‘‘उिचत है; यिद तुम ही चाहते हो, तो इस
सुंदरी के िलए अव य होगा; कदािचत इसक सु दरता देख तु हारा मानिसक संतुलन
िबगड़ गया है, जो अपने ाण खोने को आतुर हो रहे हो।
डकैत के स पण ू समहू ने दुशल पर हँसना आरं भ कर िदया।
दुशल ने सरदार को चुनौती दी, ‘‘अपने ित ी को कभी कमतर नह आँकना चािहए,
सरदार; कौन जीिवत रहे गा और िकसे म ृ यु िमलेगी, इसका िनणय शी हो जायेगा, आओ
करो मुझसे।’’
दुशल और डकैत का सरदार एक दूसरे क ओर दौड़े ।
दुशल का केवल एक हार, और डकैत का वह सरदार भिू म पर िगर पड़ा, उसके मुख से
र क धारा फूट पड़ी। वह र क का बल देख चिकत रह गया।
इसके उपरांत भी वह भिू म से उठा और के िलए आगे बढ़ा। इस बार दुशल ने उसक
गदन पकड़ उसे हवा म उठा िदया। डकैत का समहू मौन होकर यह यु देख रहा था। ारर क
का बल देख वह सभी चिकत थे।
इस बार दुशल ने डकैत के सरदार को उठाया, और उसे नीचे लाकर अपने घुटने से
उसक पीठ पर जोरदार हार िकया और उसे भिू म पर पटक िदया।
डकैत का सरदार अब भिू म पर था। वह अ यंत पीड़ा म था, वह अब खड़ा होने यो य भी
नह रहा, उसक रीढ़ क हड्डी टूट चुक थी।
‘‘अब यह राजकुमारी केवल मेरी है।’’ दुशल, िशव या क ओर बढ़ा।
समहू म से िकसी ने भी उसे रोकने का साहस नह िकया।
िशव या उस पर िच लायी, ‘‘मेरे िनकट मत आ नीच, अ यथा अपने ाण से हाथ धो
बैठेगा।’’
िक तु दुशल, िशव या क ओर बढ़ता चला गया। वह उसके पास आया और उसका हाथ
कसकर पकड़ा, और उसके कान म कहा।
‘‘म यहाँ केवल आपक र ा के िलए आया हँ; िव ास क िजये राजकुमारी, मुझे आपसे
कुछ नह चािहए।’’ उसके यह श द िशव या पर कुछ हद तक भाव डालने म सफल रहे ।
इसके उपरांत दुशाल ने उसके बंधन खोल िदए।
‘‘आइए, हम थान करना चािहए।’’
िक तु िशव या ने उसके श द को अनसुना कर िदया और आगे बढ़ गयी। उसका माग
रोकने का साहस िकसी ने नह िकया। दुशल उसके पीछे -पीछे चलता रहा।
गुफा के बाहर दो अ का बंध िकया गया था, दुशल और िशव या उन अ पर आ ढ़
हो गए।
दुशल और िशव या जंगल क ओर िनकल गए। इसके उपरांत उस र क डकैत क
चेतना लौट आई िजसे दुशल ने मिू छत िकया था। गुफा का ार, जहाँ पर सभी डकैत खड़े थे, वह
भी वहाँ आया। डकैत उसे देख दंग रह गए।
‘‘यिद तुम यहाँ हो, तो वो कौन था, जो उस राजकुमारी को अपने साथ ले गया?’’ एक
डकैत ने र क से िकया।
उस डकैत ने अपना म तक थामा, उसके म तक म भीषण पीड़ा हो रही थी, ‘‘म नह
जानता; िकसी ने मुझपर आ मण िकया था, िजसके उपरांत म मिू छत हो गया था।
‘‘इसका अथ यह है िक वह कोई घुसपैिठया था, जो र क डकैत का बह िपया बनकर
यहाँ राजकुमारी को बचाने आया था, पीछा करो उसका!’’ एक डकैत ने आदेश िदया।
वह िशव या शी ता म थी। जैसे ही अ पर सवार हई, उसने अपने अ क लगाम
कसकर ख ची और उसे भगाने लगी, िक तु दुशल उसक सुर ा के िलए उस पर ि बनाये
रखना चाहता था, इसिलए वह उसका पीछा करता रहा।
‘‘ क जाइए राजकुमारी, आप इतनी शी ता म य ह?’’ दुशल ने उसे रोकने का य न
िकया।
िक तु िशव या ने अपनी या ा जारी राखी, उसने दुशल क पुकार को अनसुना कर
िदया।
जब दुशल और िशव या के म य क दूरी बढ़ने लगी, तब दुशल ने एक छोटे माग का
चयन िकया। िशव या अपने अ पर सवार होकर चली जा रही थी, िक तु शी ही उसे महसस ू
हआ िक वह भटक गयी है। वह आगे का माग नह खोज पा रही थी; उसे समझ नह आ रहा था
िक उसे कौन सा माग चुनना चािहए। अंतत: उसने एक माग का चयन िकया और अपने अ को
लेकर उस ओर बढ़ चली।
‘‘वह माग नरभ ी भेिड़य से भरा हआ है!’’
िशव या यह वर सुन पीछे मुड़ी। एक डकैत के प म दुशल उसके सम था।
‘‘तुम यहाँ या कर रहे हो? म अपनी या ा अकेले जारी रख सकती हँ।’’ िशव या ने
अहंकारपवू क कहा।
‘‘आप राजकुल के लोग इतने अहंकारी य होते ह? आप मेरी सहायता केवल इसिलए
लेना चाहत िक म एक साधारण मनु य हँ।’’ दुशल ने ताना कसा।
‘‘साधारण मनु य? तुम वयं को साधारण मनु य कहते हो? तुम एक डकैत हो, जो
साधारण मनु य को हािन पहँचाता है, म तुम पर िव ास कैसे कर सकती हँ?’’ िशव या ने उससे
िकया।
‘‘हाँ, यह भी उिचत है, िक तु वा तिवकता और वतमान ि थित यह कहती है िक आपको
मेरी सहायता क आव यकता है, अ यथा आप यँ ू ही इस वन म भटकती रहगी... िव ास
क िजये, मेरा इसम कोई िनजी वाथ नह है।’’ दुशल ने उसे समझाने का य न िकया।
‘‘ठीक है, ठीक है, सहायता के िलए ध यवाद, िक तु हमारे म य दूरी बनाये रखना।’’
िशव या उस डकैत से सहायता लेने को तैयार हो गयी।
‘‘तो िफर उिचत है; यह माग िवदभ क ओर जाता है, हम इस ओर चलना चािहए।’’ दुशल
ने संकेत िकया।
‘‘तुम कैसे कह सकते िक मुझे िवदभ ही जाना है?’’ िशव या को कुछ संदेह हआ।
‘‘वो... या है िक आपने ही तो वहाँ चीख-चीखकर कहा था िक आप िवदभ देश क
राजकुमारी ह, इसीिलए मने सोचा िक आपको िवदभ ही जाना होगा।’’ दुशल थोड़ा िहचिकचा रहा
था।
‘‘ओह! तब ठीक है; िक तु मुझे शी से शी एकच नगरी पहँचना है; वहाँ मेरे ये
ाता महाराज भभिू त मेरी ती ा कर रहे ह गे।’’ िशव या ने िव ततृ वणन िकया।
‘‘ या संयोग है; म भी एकच नगरी क ओर ही जा रहा था, इसिलए हम उिचत माग
लेकर अपनी या ा ारं भ करनी चािहए।’’ दुशल मु कुराया।
‘‘तुम पर िव ास करना किठन है; मुझे पता है िक मेरे पास और कोई िवक प नह है,
िक तु म िफर भी जानना चाहँगी िक तुम मेरी सहायता य कर रहे हो?'
दुशल एक बार िफर मु कुराया, ‘‘एक बार जब म संकट म था, तब एक राजकुमारी ने मेरे
ाण क र ा क थी; और वैसे भी यिद म आपक सहायता करता हँ, तो या पता आपके भाई से
मुझे कुछ उपहार ही िमल जाये... वा तव म म इस डकैती के काय से ऊब चुका हँ, अब म एक
साधारण मनु य का जीवन जीना चाहता हँ।’’ डकैत के प म दुशल कथाएँ रचता गया।
‘‘अ छा िवचार है; हम चलना चािहए।’’ िशव या को उस पर िव ास होने लगा।
दुशल और िशव या ने अपनी या ा जारी रखी, िक तु शी ही वन म राि का गहरा
अंधकार छा गया।
‘‘हम यहाँ क जाना चािहए राजकुमारी; अब यहाँ से आगे या ा करना सुरि त नह है...
हम सय ू ादय के साथ ही अपनी या ा ारं भ करना चािहए।’’ दुशल ने सुझाव िदया।
‘‘उिचत है, िक तु अभी कहाँ कगे?’’ िशव या ने िकया।
‘‘हाँ, म कने का कोई उपयु थान खोजता हँ।’’
शी ही दुशल को एक उपयु थान िमला। उसने आग जलाई और राजकुमारी को
पुकारा, ‘‘आ जाइए राजकुमारी जी, हम इस थान पर कम से कम तीन हर तक क सकते
ह।’’
िशव या वहाँ पहँची, ‘‘तो या अब मुझे घास क श या पर सोना पड़े गा?'
‘‘हाँ, इतना तो आपको करना ही होगा, िक तु केवल आज के िलए; कल सं या तक हम
अव य एकच नगरी पहँच जायगे।’’ दुशल ने िशव या को समझाने का य न िकया।
‘‘ठीक है, म देख लँगू ी।’’ िशव या घास पर लेट गयी।
दुशल भी अि न के पास बैठ गया, ‘‘यिद आपको कोई आपि न हो तो या म एक
कर सकता हँ?’’ दुशल के मन म बहत सारे थे।
‘‘ठीक है, वैसे भी मेरे पास कोई काय नह है, पछ ू ो या पछ
ू ना चाहते हो?’’ िशव या ने
दुशल क ओर देखा।
‘‘आप वैसे एकच नगरी य जा रही ह? या कोई पव है?’’
िशव या यह सुनकर थोड़ा उदास हो गयी।
‘‘ या हआ राजकुमारी? आप िचंितत तीत हो रही ह।’’ दुशल ने उसके मुख के भाव को
देख िकया।
‘‘कुछ नह ; कुछ िवशेष नह ... एकच नगरी के युवराज साकेत से मेरा िववाह िनि त
हआ है, और मेरे होने वाले पित, िववाह से पवू मुझसे भट करना चाहते है।’’ िशव या यह कहते
हए थोड़ा खीझ गयी।
‘‘आप इतने ोध म य ह? तीत होता है आप उससे िववाह नह करना चाहत , या आप
िकसी और को मन ही मन पसंद करती ह।’’
‘‘यह मेरी िनजी सम या है, म इस िवषय पर बात नह करना चाहती।’’ िशव या का मन
िवचिलत था।
‘‘अथात् आप िकसी और को पसंद करती ह।’’
‘‘अपना मुख बंद रखो, और मेरे िनजी जीवन म ह त ेप करने का दु:साहस मत करो...
यह स य है िक म िकसी और को चाहती हँ, िक तु यह मेरी िनजी सम या है।’’ िशव या ने
कठोरतापवू क कहा।
‘‘ठीक है, ठीक है, कोई बात नह ; यिद आप नह बताना चाहत तो म आपको िववश नह
क ँ गा।’’
इसके उपरांत दुशल और िशव या कुछ समय तक शांत रहे । कुछ समय के उपरांत
िशव या ने दुशल से िकया।
‘‘मुझे भी तुमसे एक पछ
ू ना है।’’
‘‘हाँ य नह , म आपके क ती ा कर रहा हँ राजकुमारी।’’ दुशल राजकुमारी के
क ती ा म था।
‘‘म केवल वा तिवक कारण जानना चाहती हँ, िक तुमने मेरे जीवन क र ा य क ,
और अभी तक तुम मेरी सहायता य कर रहे हो?'
दुशल कुछ ण शांत रहा, िक तु कुछ िवचार करने के उपरांत उसने अपना मुख खोला,
‘‘मने तो आपसे पहले भी कहा था राजकुमारी, िक म इस डकैती के काय को छोड़ना चाहता हँ।’’
‘‘तु हारी िहचिकचाहट यह साफ कह रही है िक तुम अस य कह रहे हो, िक तु कोई बात
नह ; कदािचत् तु हारे पास भी इसका कोई िवशेष कारण हो।’’ िशव या अभी तक िचंितत िदखाई
दे रही थी।
दुशल ने णभर उसे घरू कर देखा।
‘‘ या हआ? तुम मुझे ऐसे य देख रहे हो?’’ िशव या ोिधत हो गयी।
‘‘वो... कुछ नह , आप िचंितत िदखाई पड़ रह थ , इसिलए म यह कहना चाहता हँ िक
यिद आपके मन म कुछ है, िजसे आप िकसी के साथ बाँटना चाहती ह, तो मुझे अपना िम
समझकर उसे मेरे साथ बाँट लीिजये; यिद मन क बात को मन म ही दबाकर रखगी, तो आपका
जीना दु ार हो जायेगा।’’ दुशल ने िशव या को समझाने का य न िकया।
‘‘ये कुछ नया एहसास है, िजसे मने पहले कभी महसस ू नह िकया; ऐसा लगता है िक
मेरा ज म ही उनके िलए हआ है।’’
‘‘और यह आप िकसके िवषय म बात कर रही ह?’’ डकैत के प म दुशल ने िकया।
‘‘र राज दुशल... म नह जानती य , िक तु मेरे दय म उनका अलग थान सा बन
गया है।’’ िशव या यह कहते हए थोड़े से संदेह म थी।
दुशल यह सुनकर स न रह गया। उसने िशव या क ओर कुछ ण देखा। कुछ ण
उपरांत उसने सँभलकर कहा, ‘‘वह तो एक असुर है; इसके उपरांत भी आप उसे पसंद करती ह,
य ?'
‘‘वह आयवत के कई राजाओं से अिधक े और गुणी ह, वो एक िन वाथ असुर ह, और
आदशवाद के तीक भी।’’
‘‘यह आप कैसे कह सकती ह? और ये सब आपसे िकसने कहा?’’ दुशल ने थोड़ी
कठोरता से िकया।
‘‘तुम मुझसे ऐसे कैसे बात कर रहे हो?’’ िशव या चिकत रह गयी।
‘‘वो... कुछ िवशेष नह , िक तु आपको समझना चािहए िक आप एक मनु य ह, और वह
एक असुर; आप दोन का मेल कैसे संभव है?’’ दुशल ने आ य से िकया।
‘‘म नह जानती यह कैसे संभव होगा, िक तु म केवल इतना जानती हँ, िक उनके िबना
मेरा जीिवत रहना अ यंत किठन है।’’ िशव या ने दुखी मन से कहा।
‘‘यह ेम नह , िणक आकषण है राजकुमारी; िक तु म ये अव य कहना चाहँगा िक
ध यवाद तो उसे आपका करना चािहए, य िक आपने उसके ाण बचाए।’’
िशव या यह सुनकर चिकत रह गयी, ‘‘तु ह यह कैसे ात हआ िक मने र राज दुशल
के ाण बचाए?'
दुशल, णभर के िलए स न रह गया; उसने िवचार िकया, ‘‘म इतनी बड़ी मख ू ता कैसे
कर सकता हँ? म तो भल ू ही गया िक म एक डकैत के वेश म हँ।’’
दुशल बड़े धमसंकट म पड़ गया। उसे सझ ू ही नह रहा था िक वह राजकुमारी के सम
या कहे ।
िक तु इससे पवू दुशल कुछ कहता, अक मात् ही एक भाले ने ती गित से आकर उसके
कंधे को घायल कर िदया। िशव या इस अक मात् हए आ मण से चिकत रह गयी।
डाकुओं का दल वहाँ पहँच आया।
‘‘बह िपये! तुम हमारे समहू के नह थे, तुमने हमारे साथ छल िकया, अब तु ह इसका
द ड भोगना होगा।’’ वह र क डकैत जो इस समय हबह दुशल क भाँित िदखा रहा था, उस पर
चीखा।
‘‘दो मनु य... एक मुख और एक कदकाठी।’’ िशव या चिकत थी।
वह उस दल के एक दूसरे डकैत ने दुशल से िकया, ‘‘तुम वा तव म हो कौन?
अपने असली प म आओ।’’
‘‘म जो भी हँ, तु ह इससे या सरोकार है... म तुम सबको चेतावनी देता हँ, यिद अपना
जीवन बचाना चाहते हो, तो यहाँ से चले जाओ; िबना कारण िकसी क ह या करना मेरे िस ांत
के िव है, इसिलए मुझे िववश मत करो।’’ दुशल ने उन डकैत को चेताया।
यह देख िशव या ने ह त ेप िकया, ‘‘पहले ये बताओ िक तुम हो कौन? कौन हो तुम,
और मुझसे या चाहते हो?'
तभी एक डकैत ने ह त ेप िकया, ‘‘यह एक घुसपैिठया है; मुझे तो लगता है िक इसने
केवल अपनी वासना क भख ू क शांित के िलए आपक सहायता क है।’’
दुशल यह सुनकर ोिधत हो गया। वह एक िवशाल च ान क ओर बढ़ा। उसने अपनी परू ी
शि लगाकर वह च ान उठा ली। वह डकैत पर चीखा।
‘‘िजतनी शी हो सके तुम सब के सब यहाँ से चले जाओ, अ यथा मुझ पर आरोप लगाने
के िलए तुम सबम म से कोई जीिवत नह रहे गा।’’
दुशल का भीषण बल देख, उस समहू के कई डकैत पीछे हटने लगे। बाक डकैत ने भी
उनका अनुसरण िकया। शी ही वह थान र हो गया। वहाँ केवल डकैत पी दुशल और
िशव या उपि थत थे।
दुशल ने वह प थर नीचे रखा। िशव या अभी भी उसी क ओर देख रही थी। दुशल ने इस
पर गौर िकया, िक तु उसने कुछ भी कहना उिचत नह समझा।
‘‘कौन हो तुम? मुझे जानना है।’’ िशव या अधीर हो रही थी।
‘‘हम एकच नगरी क ओर थान करना चािहए राजकुमारी, हमारे पास न करने
के िलए समय नह है; सय ू ादय होने को है, हम सं या तक अपने ल य तक पहँचना है।’’ दुशल ने
उसके श द को अनसुना कर िदया।
‘‘जो िबना कारण िकसी का वध नह करता, जो िन वाथ है; म आपके साथ िपछले तीन
हर से हँ, िक तु आपने इसका तिनक भी लाभ उठाने का यास नह िकया... िबना िकसी
कारण आप िपछले तीन हर से मेरी सहायता कर रहे ह र राज दुशल, यह आप ही ह न!’’
िशव या ने अनुमान लगाया।
दुशल, िशव या का बुि चातुय देख त ध रह गया।
‘‘अ ुत! म तु हारे बुि चातुय क शंसा करता हँ।’’ दुशल अपने वा तिवक प म आ
गया। वह िशव या क ओर घम ू ा।
िशव या उसे देख लजा गयी, उसके ने चमकने लगे; दुशल यह देख खीझ गया।
‘‘देखो मेरी ओर; एक असुर हँ म, और तुम एक मानव क या हो... तुम मुझसे ेम कैसे
कर सकती हो?’’ दुशल ने उसे समझाने का यास िकया।
‘‘तो या हआ? आप बुरे नह ह, आपका दय पिव है, इसीिलए तो आपने मेरे ाण क
र ा क ।’’
‘‘मने तु हारे ाण क र ा केवल इसिलए क , य िक तुमने उस समय मेरे ाण क
र ा क थी, जब म घायल था; और जहाँ तक तु हारी भावनाओं क बात है, तो उस पर तु ह
िनयं ण रखना चािहए, य िक तु हारे लोग मुझे कभी वीकार नह करगे।’’ दुशल ने अपना
मुख घुमा िलया।
‘‘ठीक है, म आपक सम या समझ सकती हँ; यिद आपको मेरे लोग से भय लगता है तो
म आपको िववश नह क ँ गी।’’ िशव या यह कहते हए थोड़ा हो गयी।
‘‘म भयभीत नह हँ, िक तु किठन प रि थितय का सामना केवल तु ह करना पड़े गा...
पहले तु हारे ये ाता, राजा भभिू त मुझे वीकार नह करगे, और दूसरी ओर तु हारे लोग मुझे
कभी नह अपनायगे; या इतनी सारी किठनाइय का सामना करके तुम मुझसे िववाह कर
सकती हो?’’ दुशल ने िशव या से िकया।
िशव या ने कुछ ण िवचार िकया, ‘‘आपके इस का उ र म शी ही दँूगी, िक तु
इस समय हम एकच नगरी क ओर थान करना चािहए; म आपको िव ास िदलाती हँ, िक
आपके इस का उ र आपको वहाँ अव य िमलेगा।’’
यह अनुमान लगाना किठन था िक िशव या के मि त क म या चल रहा था, िक तु
दुशल ने इस बात को गंभीरता से नह िलया। वह उठा, ‘‘उिचत है, हम अब चलना चािहए, सं या
तक हम अपने ल य तक पहँचना है।’’
‘‘ िकए... मुझे जल क आव यकता है, या आप वह मेरे िलए ला सकते ह?’’ िशव या
ने िवनती क ।
‘‘हाँ, हाँ य नह ; म लेकर आता हँ, और वैसे भी आगे क या ा के िलए हम कुछ फल
वगैरह भी इक े कर लेने चािहए।’’ दुशल, जल क खोज म िनकल गया।
वह िशव या के चंचल मन म कुछ चल रहा था। उसने व ृ से बँधे दो अ क ओर देखा।
उसने एक अ क गाँठ खोलकर उसे मु कर िदया, ‘‘लौट कर वापस कभी मत आना।’’
अब व ृ से केवल एक अ बँधा था। इसके उपरांत िशव या उसी थान पर आ बैठी, जहाँ
वह पहले थी। शी ही दुशल वहाँ कुछ फल और जल लेकर लौटा।
‘‘यह जल शी ता से पी लो, हम अपनी या ा के िलए शी िनकलना होगा।’’
‘‘हाँ अव य।’’ िशव या ने जल का पा उठाया।
इसके उपरांत दुशल व ृ क ओर बढ़ा। वह यह देख चिकत रह गया िक व ृ से केवल
एक अ बँधा था। उसने िशव या से पछ ू ा,
‘‘यहाँ तो केवल एक अ है और वो मेरा है, आपका अ कहाँ गया, राजकुमारी?'
िशव या ने ऐसे यवहार िकया मानो उसे इस िवषय म कुछ ात ही न हो। वह उठकर
उसक ओर घम ू ी, ‘‘ या? मेरा अ कहाँ है? वह कुछ ण पहले तो यह था; अब हम या
करगे?'
‘‘तुम यहाँ को, म उसे खोजकर लाता हँ; कदािचत् वो आसपास ही हो।’’ दुशल ने कहा।
‘‘नह , नह , म इस वन म एक राि और नह िबता सकती; यिद हम समय पर पहँचना
है, तो हम अपनी या ा अभी आरं भ करनी होगी।’’ िशव या अब और िवलंब नह करना चाहती थी।
‘‘िक तु हमारे पास केवल एक अ है, और यिद हमने पैदल या ा आरं भ क , तो कम से
कम हम तीन िदवस का समय लगेगा।’’
‘‘हम पैदल या ा करने क या आव यकता है? आपका अ तो काफ शि शाली
तीत होता है, यह आपका वजन उठा सकता है... मुझे ऐसा लगता है िक यह हम दोन को एक
साथ ले जा सकता है, य िक मेरा वजन अिधक नह है।’’
िशव या के उन श द को सुन दुशल को कुछ शंका हई। वह कुछ ण शांत रहा। वह
समझ गया िक यह िशव या क शरारत है, िक तु उसने कुछ कहा नह ।
‘‘ या हआ र राज? हम और िवलंब नह करना चािहए, चिलए।’’ िशव या उस अ क
ओर बढ़ी।
‘‘उिचत है, हम थान करना चािहए।’’ दुशल और िशव या एक ही अ पर आ ढ़ हए
और एकच नगरी क ओर थान कर गए।
वह दोन एकच नगरी क ओर चले जा रहे थे। जैसा पवू ानुमािनत था, सं या तक वो
एकच नगरी के गाँव से गुजर रहे थे, और महल पहँचने ही वाले थे।
माग म आने वाले ामीण, राजकुमारी को र राज के साथ देख चिकत और भयभीत हो
रहे थे।
महल के मु य ार पर राजा भभिू त और युवराज साकेत चहलकदमी कर रहे थे। वो दोन
िचंितत थे िक िशव या अभी तक वहाँ य नह पहँची।
िक तु शी ही दुशल को वहाँ आते देख वह दोन चिकत रह गये, िशव या उसके पीछे
बैठी थी। जैसे ही वो दोन महल के िनकट पहँचे, िशव या ने दुशल क कमर को कसकर अपनी
बाँह म भर िलया।
‘‘अब मुझे लगता है िक आपको आपके का उ र िमल गया होगा। युवराज साकेत
और मेरे ये ाता राजा भभिू त दोन यहाँ उपि थत ह; मुझे ना तो अपने ये का भय है न
युवराज साकेत का।’’ िशव या ने पण ू आ मिव ास से कहा।
दुशल ने एक श द भी नह कहा। महल के मु य ार पर पहँचकर वह दोन अ से उतरे ।
‘‘यह या है िशव या?’’ राजा भभिू त थोड़ा ोिधत हए।
युवराज साकेत को भी यह उिचत नह लगा, िक तु पा रवा रक मामले म ह त ेप करना
उसने उिचत नह समझा।
‘‘यह दुशल ह; र राज दुशल; इ ह ने डकैत से मेरे ाण क र ा क । हमारे कोई भी
सुर ा सैिनक और दासी जीिवत नह रहे ... जंगल के डकैत ने उन सबके ाण ले िलए।’’
िशव या ने िव ततृ िकया।
राजा भभिू त कुछ हद तक शांत हए। वो दुशल के िनकट आये।
‘‘म आपका आभारी हँ र राज, सहायता के िलए ध यवाद।’’ राजा भभिू त ने थोड़ी ता
िदखाकर कहा।
िक तु दुशल ने इस पर अिधक यान नह िदया, ‘‘म केवल दुशल हँ, अब म र राज नह
रहा; अब असुर का नायक ‘दुभ ’ है, या कहँ िक एकच नगरी का राजकुमार सुजन है।’’
दुशल ने युवराज साकेत क ओर देखा।
साकेत यह सुनकर परू ी तरह आ य म पड़ गया। वह दुशल के िनकट आया, ‘‘यह आप
या कह रहे ह? यह कैसे संभव है? सुजन तो एक मानव राजकुमार है, वह असुर का शासक
कैसे हो सकता है?’’
‘‘वह आधा मानव, और आधा असुर है।’’ दुशल ने पाताललोक म हई घटना के िवषय म
बताना आरं भ िकया।
इसके उपरांत वह कुछ ण मौन रहा, िफर उसने अपना वा तिवक उ े य बताया, ‘‘मेरी
थम ाथिमकता मेरे िम व बाह को उस नीच दुभ के दास व से मु कराना है, और उसके
पहले म िकसी और िवषय म नह सोच सकता।’’
िशव या यह सुनकर थोड़ी उदास हो गयी, िक तु दुशल के अित र िकसी ने इस पर
गौर नह िकया।
दुशल ने युवराज साकेत से िकया, ‘‘ या आप बता सकते ह िक महाऋिष ओमे र
मुझे कहाँ िमलगे? य िक उनके अित र मेरी सहायता और कोई नह कर सकता।’’
युवराज साकेत ने कहा, ‘‘महिष ओमे र घुम कड़ विृ के ह, यह कहना बहत किठन
है िक इस समय वह कहाँ िमलगे।’’
तभी महिष ओमे र के िश य जापित वहाँ पहँचे, ‘‘वह अभी एकच नगरी म ही
उपि थत ह।’’
युवराज साकेत और राजा भभिू त ने उनका वागत िकया।
‘‘ या म जान सकता हँ िक आप कौन ह?’’ दुशल, जापित को थम बार देख रहा था।
‘‘यह महाऋिष ओमे र के िश य, महिष जापित ह।’’ युवराज साकेत ने उनका प रचय
िदया।
‘‘आपसे िमलकर स नता हई मुिनवर; या आप मेरी भट महिष ओमे र से करा सकते
ह?’’ दुशल ने जापित से िवनती क ।
‘‘हाँ य नह , आइए मेरे साथ।’’ जापित सहमत थे।
िक तु इससे पवू िक महिष जापित और दुशल वहाँ से थान करते, िशव या ने दुशल
का हाथ पकड़ िलया और उसक ओर उि नता से देखा।
दुशल ने उसे समझाने का यास िकया, ‘‘मेरी ती ा करना, म तु हारे िलए अव य
लौटूँगा।’’
िशव या मु कुरायी और कुछ हद तक उसने राहत महसस ू क । वह राजा भभिू त उसक
ओर ोध से देख रहे थे। िक तु इससे पवू वो उससे कुछ कहते, महिष जापित ने ह त ेप
िकया।
‘‘आपको अपने ये पु िव मािजत को शी से शी िवदभ से यहाँ बुला लेना चािहए,
महाऋिष ओमे र उससे भट करना चाहते ह।’’
‘‘अव य ऋिषवर।’’ महाराज भभिू त ने सहमित म सर िहलाया।
महिष जापित और दुशल, महिष ओमे र से भट करने चल िदए।
वह राजा भभिू त ने िशव या को फटकारना आरं भ िकया, ‘‘ या तुम देख नह सकती,
वह एक असुर है; मने तु हारा िववाह युवराज साकेत से िनि त िकया था, और तुम यह जानती
थी, िफर भी ऐसा य िकया?'
यह सुनकर युवराज साकेत ने उनके म य ह त ेप िकया, ‘‘यह कोई बड़ा िवषय नह है
महाराज, हमारे पास और भी कई जिटल िवषय ह चचा करने के िलए, और वैसे भी, म उस क या
से िववाह करने का इ छुक नह हँ, िजसके मन म कोई और बसा हो।’’
‘‘िक तु म ऐसा होने नह दँूगा; यह मेरी बहन है, इसका िववाह म िकसी असुर से नह
होने दँूगा।’’ राजा भभिू त वहाँ से थान कर गए।
िशव या अपने ये के यवहार से दुखी हो गयी, िक तु उसने एक श द नह कहा।
वह जापित और दुशल, महाऋिष ओमे र से भट करने पहँचे। महिष ओमे र घोर
साधना म लीन थे।
‘‘वो साधना म लीन ह, हम ती ा करनी होगी।’’ जापित ने सुझाव िदया।
‘‘अव य ऋिषवर।’’
दुशल और जापित ने धैयपवू क ती ा क । कुछ समय प ात महिष ओमे र ने अपने
ने खोले। वह दुशल को अपने सम देख चिकत रह गए।
‘‘र राज दुशल, तु ह देखकर स नता हई; कैसे हो? और मेरा िश य व बाह कहाँ है?’’
महिष ओमे र ने िकया।
‘‘म अब र राज नह रहा ऋिषवर; असुर का नया नायक अब दुभ है।’’ दुशल ने उ र
िदया।
‘‘ या? दुभ ? कौन है यह दुभ ? और वह तु ह कैसे परािजत कर सकता है?’’ महिष
ओमे र चिकत रह गए।
‘‘वो एकच नगरी का राजकुमार था; पहले उसका नाम सुजन था, िक तु अब उस
कपटी गु भैरवनाथ ने उसका नामकरण असुरे र दुभ के प म िकया है।’’ दुशल ने उ ह भी
पाताललोक म हए यु का िववरण िदया।
‘‘इसका अथ यह है िक मेरा िश य अब एक दास है?’’ महिष ओमे र िचंितत हो गए।
‘‘हाँ ऋिषवर, यही स य है।’’ दुशल क आँख नीची थ ।
महिष ओमे र ने णभर के िलए अपने ने बंद िकये, ‘‘मुझे इसका अनुमान पहले से ही
था दुशल; मने महाराज ययाित को चेतावनी दे रखी थी िक सुजन िकसी गलत यि से न
िमलने पाए; मने उनसे कहा था, िक सुजन इस रा य से बाहर न जाने पाए। िक तु एक वष पवू ,
महाराज ययाित क अनुपि थित म, युवराज साकेत ने उसे एकच नगरी से िन कािसत कर
िदया, और अब प रणाम हमारे सामने है। म यह कहना चाहता हँ दुशल, िक अभी तक जो तुमने
देखा, वह केवल एक झलक है; अगर असुर के नए नायक असुरे र दुभ को उसक स पण ू
शि ा हो गयी, तो उसे परािजत करना लगभग असंभव हो जायेगा।’’
‘‘इसका कोई तो उपाय होगा ऋिषवर? हम उसे खोजना होगा।’’ दुशल अपना धैय खो रहा
था।
‘‘म एक महाशि शाली अ , पंचश का िनमाण िपछले कई वष से कर रहा हँ; पांच
तलवार िजनम पंचत व क शि है... अब तक चार तलवार का िनमाण हो चुका है, िक तु
पाँचव का िनमाण करना अभी शेष है। यह उस यि का वध कर सकता है जो पंचशि धारक
हो; िक तु उसका वध भी केवल एक पंचशि धारक ही कर सकता है।’’
‘‘म समझा नह ऋिषवर, िव तार से किहये।’’ दुशल उनक बात समझ नह पा रहा था।
‘‘म केवल इतना कह रहा हँ, िक यिद दुभ ने पंचश से मुझ पर हार िकया, तो मेरी
म ृ यु िनि त है, िक तु यिद मने उस पर यह श चलाया, तो उसक म ृ यु होगी या नह , इसम
मुझे संदेह है, य िक वह ज म से ही पंचशि धारक है। दुभ और िव मािजत, दोन मेरे अंश
से ही ज मे ह, इसिलए दुभ को परािजत करने के िलए हम िव मािजत क आव यकता
होगी... म नह जानता हम यह कैसे करगे, िक तु हम उसक आव यकता है।’’ महिष ओमे र
वयं ही शंका म थे।
‘‘िव मािजत? या आप िवदभ के राजकुमार के िवषय म बात कर रहे ह?’’ दुशल ने
िकया।
‘‘हाँ, म िवदभ के राजकुमार के िवषय म ही बात कर रहा हँ; मने उसे बुलावा भेजा है, वो
शी ही यहाँ पहँचेगा; िक तु जब तक पंचश क पाँचव तलवार का िनमाण नह हो जाता, हम
दुभ पर आ मण करने का िवचार भी नह कर सकते, अथात् कम से कम एक वष तक।’’
‘‘एक वष? अथात् मेरा िम व बाह एक वष तक दास बना रहे गा?’’ दुशल, वयं को
िववश महसस ू कर रहा था।
‘‘हमारे पास और कोई िवक प है ही नह दुशल; हम ती ा करनी ही होगी, वैसे तुम उसे
समझाने के िलए संदेश िभजवा सकते हो, िक वह एक वष म मु हो जायेगा।’’ महिष ओमे र ने
सुझाव िदया।
‘‘तो िफर ठीक है, म उसे संदेश िभजवा दँूगा।’’ दुशल पीछे मुड़ा।
िशव या को अपने सम देख वह चिकत रह गया।
‘‘िश...िशव या, तुम यहाँ या कर रही हो?’’ दुशल ने िकया।
‘‘म अपने ये को छोड़कर आई हँ, य िक वो हमारे िववाह के िव ह, अब आप ही
िनणय लीिजये, हम या करना चािहए?’’ िशव या ने दुशल क ओर आशा से देखा।
‘‘िशव या... राजा भभिू त भी वहाँ पहँच आये, वह अपनी बहन पर िच लाये।
िक तु इससे पवू िक राजा भभिू त आगे कुछ भी कहते, महिष ओमे र ने ह त ेप िकया,
‘‘ क जाइए महाराज! राजकुमारी िशव या को अपना जीवनसाथी चुनने का अिधकार है,
आपको इसम बाधा नह बनना चािहए।’’
‘‘िक तु यह तो एक असुर है, और मेरी बहन एक मानव क या है, यह कैसे संभव है?’’
भभिू त अपने ोध पर िनयं ण रखकर बोले।
‘‘हाँ, दुशल एक असुर है, िक तु वह आयावत के कई राजाओं से े और उ म है, यह
आपक बहन के िलए सबसे उपयु जीवनसाथी है।’’ महिष ओमे र ने राजा भभिू त को समझाने
का यास िकया।
‘‘म इसका समथन कभी नह क ँ गा।’’ राजा भभिू त ोिधत थे, िक तु महाऋिष ओमे र
के िव जाने का साम य उनम नह था, इसिलए वो वहाँ से थान कर गए।
इसके उपरांत महिष ओमे र, दुशल और िशव या क ओर मुड़े, ‘‘तुम दोन साथ म अ छे
लग रहे हो; अगले एक वष हम कुछ कर तो सकते नह , इसिलए तुम दोन को िववाह कर एक
वष तक शांित से जीना चािहए... मेरा अनुमान है िक जब तक राजा ययाित जीिवत ह, दुभ ,
एकच नगरी पर आ मण नह करे गा; उसे भी अपनी शि य को जागतृ करने के िलए समय
चािहए, इसिलए अभी हम िचंता करने क आव यकता नह है; तुम दोन जाओ, मुझे अपनी
साधना जारी रखनी है।’’ महिष ओमे र ने उ ह अपना समथन दे िदया, इसके उपरांत वह अपनी
साधना म लीन हो गए।
‘‘उिचत है, हम चलना चािहए।’’ दुशल और िशव या वहाँ से थान कर गए।
वो दोन वन म मण कर रहे थे, जहाँ उनके अित र और कोई नह था।
िशव या बहत स न थी। उसने दुशल क ओर देखा, ‘‘अब आप मना नह कर सकते,
अब तो महिष ओमे र ने भी अपनी सहमित दे दी है।’’
दुशल, िशव या क ओर देख मु कुराया, ‘‘मने कभी मना तो िकया ही नह था।’’ दुशल
ने िशव या क कमर पकड़, उसे अपने िनकट ख च िलया।
िशव या लजा गयी, ‘‘यह आप या कर रहे ह? अभी हमारा िववाह नह हआ है।’’
‘‘तो या हआ? या म तु हारी भाँित थोड़ी अठखेिलयाँ नह कर सकता?’’ दुशल
मु कुराया।
‘‘अठखेिलयाँ? मने ऐसी कौन सी अठखेली क ?’’
‘‘मुझे भलीभाँित ात है िक जंगल म तु ह ने अपने अ को मु िकया था, तािक हम
दोन एक अ पर सवार होकर या ा कर सक, या यह स य नह है?’’ अपनी बाँह म भरकर
दुशल, िशव या क ओर देखता रहा।
िशव या के गाल पर ल जा क लािलमा छा गयी। वह लाज के मारे कुछ कह ही नह पा
रही थी। दुशल ने यह देख उसे कसकर गले लगाया, ‘‘वैसे मुझे तु हारी यह अठखेली बहत पसंद
आयी; अब हम चलना चािहए।’’
5. िवजयधनुष क खोज
लगभग एक वष बीत गया। दो संदेशवाहक पाताललोक आये। एक व बाह के िलए और
दूसरा दुभ के िलए था।
अपने िसंहासन पर बैठे दुभ ने उन दोन को अपने िनकट बुलाया। व बाह उसके पीछे
खड़ा था।
‘‘मेरे िलए या सच ू ना है? पढ़ा जाए।’’ दुभ ने संदेशवाहक से कहा।
वह संदेशवाहक संदेश पढ़ने ही वाला था, िक तु दुभ ने कुछ ण िवचार िकया और
उसे रोका, ‘‘एक ण ठहरो! पहले वह संदेश पढ़ो, जो व बाह के िलए आया है।’’
‘‘जो आ ा महामिहम।’’ दूसरे संदेशवाहक ने व बाह क ओर देखा।
‘‘यह संदेश असुर के पवू राजा दुशल क ओर से है; उनक भाया राजकुमारी िशव या ने
पु को ज म िदया है, इसिलए वह अपने सबसे ि य िम क ती ा कर रहे ह, तािक आप उनके
िशशु को आशीवाद दे सक।’’
यह सुनकर व बाह दुभ क ओर मुड़ा, ‘‘आपका या आदेश है महामिहम? मुझे जाना
चािहए या नह ?’’
‘‘कुछ ण को; पहले मेरे िलए जो संदेश आया है उससे जानने दो।’’ दुभ ने
संदेशवाहक को संकेत िकया।
‘‘यह संदेश एकच नगरी के युवराज साकेत क ओर से है; आपके िपता महाराज ययाित
म ृ यु श या पर ह; उनके पास अिधक समय नह है, युवराज साकेत ने आपको उनक अंितम
या ा म उपि थत रहने का िनमं ण िदया है।’’
दुभ क मु याँ िभंच गय , अ ु क कुछ बँदू े उसके ने से बह उठ । वह अपने िसंहासन
से उठा।
‘‘तुम दोन यहाँ से थान करो; और व बाह, तुम अपने िम से भट करने जा सकते
हो।’’ दुभ वहाँ से थान कर गया।
व बाह यह सुनकर स न हो गया, वह भी अपनी या ा क तैयारी करने वहाँ से
थान कर गया।
िक तु दुभ िवचिलत था। वो अपने गु भैरवनाथ के पास जा पहँचा।
‘‘ या हआ दुभ , तुम िवचिलत िदखाई दे रहे हो?’’ भैरवनाथ ने अपने िश य का मुख
पढ़ िलया।
‘‘मेरे िपता म ृ युश या पर ह, और मेरे ये ाता ने मुझे केवल उनक अंितम या ा म
उपि थत रहने का िनमं ण िदया है।’’ दुभ के मुख पर ोध और दुख का िमि त भाव था।
‘‘अपने िपता क म ृ यु से पवू तु ह उनसे भट कर लेनी चािहए; मुझे सच ू ना िमली थी, िक
अपनी या ा से लौटने के उपरांत उ ह ने तु ह हर जगह खोजा, िक तु तु हारे ये साकेत ने
सदैव उनके माग म बाधा उ प न क ... उ ह अभी तक ात नह िक तुम पाताल म हो; इसिलए
मेरा सुझाव है िक तु ह अपने िपता से भट करने जाना चािहए।’’ भैरवनाथ ने दुभ को सुझाव
िदया।
‘‘तो िफर ठीक है, मुझे थान करना होगा।’’ ोिधत दुभ उठा और वहाँ से थान
कर गया।
* * *
इधर एकच नगरी म, युवराज साकेत जो श या पर लेटे िपता के पास बैठा था। शी ही
एक संदेशवाहक वहाँ आ पहँचा।
‘‘राजकुमार सुजन, महल के मु य ार पर पधारे ह, वह महल के भीतर वेश क आ ा
माँग रहे ह।’’
‘‘उसे भीतर ले आओ।’’ युवराज साकेत ने आदेश िदया।
शी ही सुजन ने उस क म वेश िकया। राजा ययाित उसे देख भावुक हो गए। अपने
दूसरे पु को वष बाद देख राजा ययाित चिकत रह गए। उ ह ने अपना हाथ उठाकर उसे िनकट
आने का संकेत िकया। दुभ उनके िनकट आया और उनका हाथ पकड़ा।
‘‘तुम... तुम कहाँ थे सुजन?’’ राजा ययाित पीड़ा म थे।
‘‘आप शांत हो जाइए िपता ी; म अभी यह हँ, और म सदैव आपके साथ रहँगा।’’ उसके
ने से अ ु बह उठे ।
उसके उपरांत उसने ोध से युवराज साकेत क ओर देखा। राजा ययाित अपने दो पु के
म य इस श ुता को देख िववश सा महसस ू करने लगे।
‘‘तुमने जो... कुछ... सहा है, वह... एक ग़लतफहमी थी; मेरी ......बात सुनो।’’
िक तु इससे पवू िक राजा ययाित अपने श द परू े कर पाते, दुभ ने उनका हाथ पकड़ा,
‘‘आपको कुछ कहने क आव यकता नह है िपता ी; आप शांत हो जाइए म आपके ये पु
का वध नह क ँ गा। यह मेरा वचन है आपको, िक आपका ये पु जीिवत रहे गा ‘िक तु म
यह वचन नह देता िक िकस ि थित म होगा।’ दुभ के वह अंितम श द इतने धीमे थे, िक
महाराज ययाित उ ह सुन नह सके।
महाराज ययाित ने मु कुराकर अपनी आँख बंद कर ल । कुछ ही ण म उनम जीवन के
ल ण िदखना बंद हो गए। महाराज ययाित क देह अब मत ृ हो चुक थी।
* * *
महाराज यायाित क मत ृ देह को िचता पर िलटाया गया। महाराज ययाित क अं येि के
उपरांत, दुभ साकेत के िनकट आया।
‘‘मुझे ात हो चुका है, िक आप ही मेरे िपता क म ृ यु के उ रदायी ह; मेरे िपता अ व थ
होते हए भी मुझे आयावत के सभी रा य म खोजते रहे , िक तु आपने कभी उनक खोज परू ी
नह होने दी।’’
साकेत ने अपने ाता को समझाने का यास िकया, ‘‘तुम मुझे गलत समझ रहे हो, मने
कभी...'
िक तु दुभ ने उसक छाती पर हार कर उसे पीछे धकेल िदया, और उसे चेतावनी दी,
‘‘म आपक मंशा से भलीभाँित प रिचत हँ; अब तक म मौन था तो केवल अपने िपता के िलए,
िक तु अब कोई बंधन नह ... िवचिलत मत होइये, म आपका वध नह क ँ गा, मने अपने िपता
को वचन िदया है िक आप जीिवत रहगे, िक तु िकस ि थित म, मने ऐसा कोई वचन नह िदया।
आज मेरे िपता क अं येि है, आज म आप पर घातक हार नह क ँ गा; म आपको तेरहव तक
शोक मनाने का समय देता हँ... आज से चौदहव िदन म अपनी सेना के साथ एकच नगरी पर
चढ़ाई क ँ गा; म अपने अपमान के ितशोध के िलए लौटूँगा, और इस रा य के हर मनु य क
ू रता से ह या क ँ गा, र का सागर बहे गा इस रा य म, इसिलए आपके पास केवल तेरह िदन
का समय है; या तो शोक मना लीिजये, या आने वाले िवनाश के िलए तैयार हो जाइए।’’ दुभ ने
अपने ये को चेतवानी दी और वहाँ से थान कर गया।
साकेत उसे जाते हए देखता रहा। उसे अपना प रखने का अवसर ही नह िमला। वह
भिू म से उठा और गहन िचंतन म खो गया। इसके उपरांत वह अपने अ पर आ ढ़ हआ और
िकसी िनि त थान क ओर बढ़ चला।
वह दूसरी ओर व बाह, एकच नगरी पहँच आया। उसे अपनी कुिटया म उपि थत देख
दुशल बहत स न हआ।
‘‘कैसे हो व बाह? वैसे स य कहँ तो म शंिकत था िक तुम आओगे या नह ।’’
‘‘िक तु इस समय म तु हारे सम हँ; अब म और ती ा नह कर सकता, म तु हारे पु
को शी ही देखना चाहता हँ।’’ व बाह उस िशशु को देखने के िलए अधीर हो रहा था।
तभी महिष ओमे र भी वहाँ पधारे । दोन यो ाओं ने उनका आदरपवू क वागत िकया।
िशव या भी अपने पु को लेकर वहाँ पहँची। व बाह उसके िनकट आया और िशव या से
उस िशशु को माँगने लगा। िशव या ने व बाह को थम बार देखा था; उसने दुशल क ओर
देखा। दुशल ने सहमित म सर िहलाया।
व बाह उस िशशु को अपनी गोद म उठाकर अित स न हआ। महिष ओमे र उसके
िनकट आये, ‘‘म तु ह एक अवसर देता हँ व बाह; तुमने अपने िम दुशल के िलए बहत बड़ा
बिलदान िदया है... तुम यहाँ इस िशशु को आशीवाद देने आये थे न, तो मेरा यह वचन है तु ह,
िक तुम इस बालक को जो भी आशीवाद दोगे, वह इसके िलए वरदान बन जायेगा।’’
व बाह और दुशल यह सुनकर स न हो गए। व बाह ने उस िशशु क ओर गव से देखा
और घोषणा क , ‘‘यह और इसके सभी वंशज मेरे ही समान अतु य बल लेकर ज मगे, इसका
नाम होगा महाबली भानुसेन।’’
दुशल और िशव या यह सुनकर स न हो उठे , िक तु व बाह के मुख के भाव पर शी
ही आ यजनक प रवतन आ गया।
‘‘ या हआ व बाह?’’ दुशल ने अपने िम के मुख के भाव के अक मात् प रवतन का
कारण जानना चाहा।
‘‘मुझे आप लोग से भट करने के िलए बहत सीिमत समय िदया गया है; म यह नह भल ू
सकता िक म उस नीच दुभ का दास हँ... मुझे अब लौटना होगा; तुम सबक मिृ त सदैव मेरे
मन म रहे गी।’’ व बाह दुखी था।
महिष ओमे र ने उसके िनकट आकर उसे समझाने का य न िकया, ‘‘िचंितत मत हो
व बाह; पंचश क पाँचव तलवार का िनमाण हो चुका है, इसिलए यह केवल कुछ िदन का
िवषय है; तु ह शी ही उस नीच दुभ के दास व से मुि िमल जाएगी।’’
‘‘मुझे आप पर पण ू िव ास है गु देव, िक तु अब मेरे जाने का समय आ गया है; मुझे
अपने वामी का आदेश मानना है।’’ व बाह कुिटया से बाहर िनकल अपने अ के िनकट
आया, और उस पर आ ढ़ होकर थान कर गया।
तभी युवराज साकेत भी वहाँ पहँचा। महिष ओमे र और दुशल उसका यह अक मात्
आवागमन देख थोड़े चिकत हए।
‘‘ या हआ युवराज, आप इतने िचंितत य िदखाई दे रहे ह?’’ महिष ओमे र ने
िकया।
‘‘मेरे अनुज सुजन ने मुझे चेतावनी दी है िक आज से चौदहव िदन वो एकच नगरी पर
अपनी सेना के साथ चढ़ाई करे गा; मुझम उसका सामना करने क शि नह है, कृपया मेरी
सहायता कर।’’ युवराज साकेत ने िवनती क ।
‘‘आप िचंितत मत होइए; आप अपने रा य लौट जाय और अपनी जा क सुर ा पर यान
द युवराज; हम िवचार करते ह िक हम या कर सकते ह।’’ महिष ओमे र ने साकेत को
समझाया।
‘‘जैसी आपक इ छा ऋिषवर।’’ युवराज साकेत वहाँ से थान कर गए।
महिष ओमे र िचंितत थे। दुशल को यह देख थोड़ा आ य हआ, ‘‘ या हआ ऋिषवर?
आपने तो कहा था िक आपने पंचश क अंितम तलवार का िनमाण कर िलया है, तो िफर
सम या या है?'
‘‘मने तुमसे पहले भी कहा था दुशल िक म दुभ के वध का वा तिवक माग नह
जानता... म यह प के तौर पर नह कह सकता िक यह अ दुभ का वध कर पायेगा या
नह ।’’ महिष ओमे र कुछ ण के िलए मौन हो गए।
कुछ समय िवचार करने के उपरांत उ ह ने दुशल क ओर देखा, ‘‘अब तु ह मेरी सहायता
करनी होगी दुशल।’’
‘‘अव य ऋिषवर, आप आदेश द मुझे या करना होगा?’’ दुशल, महिष ओमे र के सम
हाथ जोड़ उनके आदेश क ती ा कर रहा था।
‘‘तु ह सुतललोक जाना होगा, िवजयधनुष ा करने के िलए।’’
‘‘सुतललोक? िवजयधनुष? मने तो इसके िवषय म कभी सुना ही नह ।’’ दुशल थोड़ा
चिकत था।
‘‘तु हारे पवू ज, भगवान महाबली िचरं जीवी ह, और उनका िनवास सुतललोक म है, जहाँ
महान वामन अवतार उनके महल के ार र क ह। एक समय था, जब राजा बिल ने स पण ू
प ृ वीलोक को जीत िलया था; उनक िवजय का कारण उनका साम य और वो िद य धनुष था,
जो िवजयधनुष के नाम से जाना गया। िजस यो ा के हाथ म वह धनुष हो, वह कभी िकसी
म परािजत नह हो सकता।’’
‘‘और मेरे िवचार से आप यह चाहते ह िक म उस िवजयधनुष को ा क ँ ?’’ दुशल ने
अनुमान लगाया।
‘‘तुमने उिचत अनुमान लगाया दुशल; तु ह हो वह यो ा, िजसे कदािचत् सुतललोक म
वेश करने का अवसर िमले; िक तु एक बात मरण रखना, इस या ा म तु ह बहत सारी
किठनाइय का सामना करना होगा। केवल भगवान महाबली का वंशज होना िवजयधनुष उठाने
क यो यता को िस नह करता।’’ महिष ओमे र ने दुशल को चेतावनी दी।
‘‘म हर बाधा को पार क ँ गा मुिनवर, िक तु मुझे यह तो बताइये, मुझे सुतललोक क
खोज म िकस िदशा क ओर बढ़ना होगा? मने तो कभी इसके िवषय म सुना ही नह ।’’ दुशल ने
अधीरता से िकया।
महिष ओमे र गहन िवचार म खो गए। तभी राजा भभिू त उस थान पर पहँचे। दुशल को
वहाँ देख वह ोिधत हो गए, िक तु िकसी कार उ ह ने अपने ोध पर िनयं ण रखा।
दुशल उनका वागत करने आगे बढ़ा, िक तु राजा भभिू त ने उसे कने का संकेत िदया।
वह महिष ओमे र क ओर मुड़े।
‘‘म यहाँ आपके आदेश पर आया हँ ऋिषवर; कृपया किहये, आपका मुझे यहाँ बुलाने का
या उ े य है?’’ राजा भभिू त ने महिष ओमे र से िकया।
महिष ओमे र ने राजा भभिू त के यवहार को देखते हए उ ह चेतावनी दी, ‘‘हम यहाँ
दुभ को परािजत करने के िलए इक ा हए ह, आपस म लेश करने के िलए नह ।’’
‘‘ मा क िजये मुिनवर। िक तु म इस असुर को अपने सम नह देखना चाहता।’’ राजा
भभिू त ने ता से कहा।
तभी िशव या भी कुिटया से बाहर आयी। अपने ये को अपने सम देख उसका मुख
स नता से िखल गया, िक तु जैसे ही वो उनक ओर बढ़ी, राजा भभिू त ने उसे फटकारा, ‘‘दूर
रहो िशव या, दूर रहो मुझसे! म तु हारा मुख भी नह देखना चाहता; यिद ि थित मेरे िनयं ण म
होती, तो म तु हारी ही ह या कर देता।’’
‘‘भभिू त!’’ अपनी तलवार यान से ख च, दुशल, राजा भभिू त पर चीखा।
िक तु राजा भभिू त क ओर उसके बढ़ते कदम को महिष ओमे र ने रोक िलया, ‘‘शांत
हो जाओ दुशल, अपने ोध पर िनयं ण रखो!’’
इसके उपरांत, महिष ओमे र ने राजा भभिू त पर छ टाकशी, ‘‘और आप महाराज भभिू त!
म यह अव य कहना चाहँगा िक आज आप िसंहासन पर बैठने के यो य नह रहे ; आप तो ऐसे
यि ह जो केवल अपने अहंकार क संतुि के िलए अपनी ही बहन क ह या करना चाहता है;
म अनुमान नह लगा पा रहा िक िकस कार के यि ह आप?'
महाराज ययाित वयं को अपमािनत महसस ू कर रहे थे। उनका ोध थोड़ा शांत हआ,
और उ ह ने मा माँगी, ‘‘मुझे मा क िजये ऋिषवर, कृपा करके मुझे यहाँ बुलाने का उ े य
बताय।’’
महिष ओमे र का ोध भी कुछ हद तक शांत हआ, ‘‘एक वष पहले, म आपके पु से
िमला था, मने उसे िव तार से अपनी योजना समझायी थी, इसिलए अब समय आ गया है, िक
आप अपने पु िव मािजत को बुलावा भेज, हम उसक आव यकता है।’’
‘‘अव य ऋिषवर, म शी से शी उसे बुलावा भेजता हँ।’’ महाराज भभिू त ने सहमित म
सर िहलाया।
इसके उपरांत महिष ओमे र, दुशल क ओर घम ू े, ‘‘तुम सुतललोक के माग के िवषय म
पछू रहे थे; स य कहँ तो म भी वहाँ का माग नह जानता, िक तु म इतना अव य कहना चाहँगा
िक वो तुम ही हो, जो वहाँ का माग खोज सकते हो; यिद तुम िस कर पाए िक तुम भगवान
महाबली के स चे वंशज हो, यिद तु हारा दय और उ े य पिव है, तो तु ह माग अव य
िमलेगा।’’
महिष ओमे र, दुशल को देख मु कुराते रहे , िक तु दुशल अभी भी शंिकत था।
दुशल अभी भी िवचार कर रहा था िक उसे या करना चािहए। िशव या ने उसे िचंितत देख
िकया, ‘‘ या हआ? आप इतने िचंितत य ह?'
‘‘वो... कुछ िवशेष नह िशव या; मुझे उस िद यधनुष क खोज म िनकलना होगा, तुम
अपना यान रखना।’’
‘‘िक...िक तु आप कहाँ जा रहे ह? मुझे आपक आव यकता है... मने आपको कभी
अकेले नह छोड़ा, म इस या ा म आपके साथ चलँग ू ी।’’ िशव या ने प प से कह िदया।
महिष ओमे र ने उन दोन के म य ह त ेप िकया, ‘‘ये तो अित उ म िवचार है, तु ह
इसे अपने साथ ले जाना ही चािहए।’’
‘‘िक तु मुिनवर, िफर हमारे पु का यान कौन रखेगा?’’ दुशल ने उठाया।
‘‘तु ह उसक िचंता करने क आव यकता नह है, महाराज भभिू त अपने भांजे का यान
रखगे।’’ महिष ओमे र, राजा भभिू त क ओर मुड़े।
महाराज भभिू त थोड़ा शंिकत हए, िक तु महिष ओमे र क आ ा का उ लंघन नह कर
सकते थे, ‘‘अव य मुिनवर, म इस बालक का यान रखँग ू ा।’’
महिष ओमे र एक बार िफर दुशल क ओर मुड़े, ‘‘तुम दोन को अब शी से शी
थान करना चािहए।’’
दुशल, महाराज भभिू त को लेकर थोड़ा शंिकत था, िक तु महिष ओमे र पर उसे परू ा
िव ास था, इसिलए उनके िनणय पर उठाना उसे उिचत नह लगा।
शी ही दुशल और िशव या, या ा के िलए तैयार हो गए। महिष ओमे र ने दुशल को एक
बार िफर मरण कराया, ‘‘अपने मि त क म यह बात िबठाकर रखना दुशल िक तु हारे पास
केवल तेरह िदन का समय है।’’
‘‘अव य मुिनवर, हम शी ही लौटगे।’’
िशव या और दुशल वहाँ से थान करने को थे। नवजात भानुसेन, अब राजा भभिू त क
गोद म था। उस नवजात िशशु के मुख के अ ुत तेज ने महाराज भभिू त के ोध का नाश कर
िदया। वह उस बालक को ेम भरी ि से देखने लगे।
अंतत: दुशल और िशव या अपनी या ा के िलए िनकल गए। महिष ओमे र, महाराज
भभिू त के िनकट आये, ‘‘दुशल और िशव या एक अ यंत संकटकारी या ा पर िनकले ह, पता
नह वो लौटगे भी या नह ।’’
‘‘आप ऐसा य कह रहे ह ऋिषवर? हाँ मने अव य कहा था िक म िशव या क ह या
करना चाहता हँ, िक तु वह कटु श द ोध म मेरे मुख से बाहर िनकले थे... वह मेरी बहन है, म
उसे मतृ नह देख सकता।’’ राजा भभिू त िचंितत हो उठे ।
‘‘यह उनके साहस और बुि चातुय पर िनभर करता है, जो यह िनधा रत करे गा िक वह
लौटगे या नह ; म भी इस िवषय म कुछ नह कह सकता, िक तु यिद वो नह लौटे, तो आप इस
बालक का यान रखगे।’’
‘‘म ऐसा अव य क ँ गा मुिनवर, िक तु मुझे पण ू िव ास है िक दुशल और िशव या
अव य लौटगे।’’ राजा भभिू त वहाँ से थान कर गए।
* * *
दुशल और िशव या ने अपनी या ा जारी रखी। वह उस माग पर चले जा रहे थे, िजसका
उ ह वयं भान नह था िक वह उिचत है या नह ।
‘‘हम कब तक यँ ू ही अपने अ को चलाना होगा?’’ िशव या थकावट महसस ू कर रही
थी।
‘‘उिचत है; हम कुछ समय यह िव ाम करगे।’’ दुशल अपने अ से नीचे उतरा।
‘‘हाँ, हम इसक आव यकता भी है।’’ िशव या तिनक ोिधत होकर बोली।
वह दोन एक व ृ क छाँव म बैठ गए। दुशल बहत थका हआ था, शी ही उसक आँख
लग गय । िशव या उसे ोध से देखे जा रही थी।
‘‘ या हआ? तुम मुझे ऐसे य देख रही हो?’’ दुशल ने अपने ने खोल उससे पछ ू ा।
‘‘म आपको तबसे देख रही हँ, आप इतने चैन से कैसे बैठ सकते ह?’’ िशव या ने
िकया।
‘‘अरे तु हारी सम या या है? तुमने ही तो कहा था िक तु ह िव ाम करना है; वा तव म
ी के मन को समझना असंभव है।’’ दुशल चिकत था।
‘‘हाँ मने कहा था, िक तु तब भी हम भगवान महाबली तक पहँचने के माग का तो िवचार
करना चािहए।’’ िशव या ने समझाने का यास िकया।
‘‘म सोचने का हर संभव यास कर तो रहा हँ, िक तु कोई माग सझ ू ही नह रहा।’’
दुशल, वयं को िववश महसस ू कर रहा था।
िशव या ने कुछ ण िवचार िकया, इसके उपरांत उसने कहा, ‘‘ या आपको ‘ओणम’ पव
के िवषय म ात है?’’
‘‘ओणम का पव? हाँ, हाँ, मुझे मरण है; भगवान महाबली के ज बू ीप से िनवासन के
उपरांत, उ ह वामन अवतार से यह वरदान ा हआ था, िक वह वष म एक बार अपने लोग को
देखने आयावत क भिू म पर आ सकगे; उनके आगमन का वह िदन दि णी आयावत म ओणम
के यौहार के प म मनाया जाता है।’’ दुशल ने िव तार से कहा।
‘‘िफर तो हम आयावत के दि णी भाग क ओर ही जाना चािहए, कदािचत् हम वह कोई
संकेत िमले?’’ िशव या ने सुझाव िदया।
‘‘हाँ, कदािचत् तुम उिचत कह रही हो; हम वह चलना चािहए।’’ दुशल उठा।
‘‘ िकए, िकए; हम वहाँ ऐसे नह जा सकते।’’ िशव या ने दुशल को रोका।
‘‘ य , अब या हआ?’’ दुशल ने िकया।
‘‘हम अपनी वेशभषू ा, ामीण क भाँित प रवितत कर लेनी चािहए, यही उिचत होगा;
इससे हमारे िलए आम लोग से वाता करना सरल हो जायेगा।’’ िशव या ने समझाया।
‘‘म तुमसे सहमत हँ; हम यही करना चािहए।’’
दुशल और िशव या, आयावत के दि णी भाग क ओर चल िदए। छ: िदन क या ा
करके वो दोन दि ण के एक रा य महाबलीपुरम के एक गाँव पहँचे।
‘‘छह िदन बीत चुके ह, हमारे पास केवल सात िदन का समय शेष है; हम दो िदन म
अपना काय संप न करना होगा, तािक हम समय पर अपने ल य तक पहँच सक।’’ दुशल
िचंितत था।
‘‘िचंितत मत होइए, हम भगवान महाबली के मंिदर क ओर चलना चािहये, कदािचत् हम
वहाँ कोई संकेत िमले।’’ िशव या ने सुझाव िदया।
शी ही वो दोन महाबलीपुरम के भगवान महाबली के सबसे िव यात मंिदर म पहँचे।
उ ह ने साधारण ामीण जैसे व पहने हए थे। वे िकसी ऐसे यि क खोज कर रहे थे जो
उनक शंकाओं को िमटा सके।
तभी दुशल क ि एक व ृ पंिडत पर पड़ी। वो उनके िनकट गया और उ ह णाम
िकया। वो पंिडत दुशल को देख थोड़ा हो गये, ‘‘कौन हो तुम? मने तु ह पहले तो कभी यहाँ
नह देखा।’’ उस पंिडत ने िकया।
‘‘आपने उिचत अनुमान लगाया; हम यहाँ थम बार आये ह, वो या है िक हम ओणम के
यौहार पर इस थान पर उसका उ सव देखने आये थे; हम यह देखना चाहते थे इस थान पर
यह उ सव कैसा होता है।’’ दुशल ने िव तार से बताया।
वह पंिडत अपने आसन से उठा, ‘‘तुम लोग यहाँ उिचत समय पर आये हो; ओणम पव का
उ सव कल सय ू ादय होते ही आरं भ हो जायेगा... कहा जाता है िक भगवान महाबली ितवष इस
िदन महाबलीपुरम पधारते ह; उनके आगमन के सुख म हम यह पव मनाते ह।’’ उस पंिडत ने गव
से कहा।
‘‘हाँ, हाँ, बहत ही स नता क बात है; या भगवान महाबली से कोई भट कर सकता
है?’’ दुशल ने उ सुकतावश िकया।
वह पंिडत दुशल पर हँस पड़ा, ‘‘ या तुम मानिसक प से व थ हो? महाबली ई र ह;
एक साधारण मनु य क भट उनसे कैसे हो सकती है? कहा तो ये जाता है िक हर वष ओणम के
अवसर पर वह अपने लोग क ि थित देखने आते ह, िक तु यह भी कहा जाता है िक उनके
वंशज म उ ह पहचानने क शि होती है... वैसे यह स य है या नह , यह तो मुझे भी ात नह ।
तुम दोन यहाँ उ सव देखने आये तो उ सव देखो, इन सबके िवषय म य जानना चाहते हो?'
‘‘वो... बस ऐसे ही , हम तो केवल अपनी िज ासा शांत कर रहे थे, और अब हम लगता है
िक हम थान करना चािहए, हम ठहरने के िलए िकसी उपयु थान क खोज भी करनी है।’’
दुशल ने थान क आ ा माँगी।
‘‘उिचत है, तुम दोन जाओ, मुझे भी कुछ आव यक काय है, और हाँ, उ सव म सि मिलत
अव य होना, तु ह वह अव य पसंद आएगा।’’ उस पंिडत ने गव से कहा।
दुशल और िशव या ने राि का समय उसी गाँव म िबताने का िनणय िलया।
सयू ादय के साथ ही ओणम पव के उ सव का आरं भ हो गया। उस े के लोग उ सव म
सि मिलत होकर आनंद ले रहे थे, वह दुशल और िशव या िकसी एक संकेत क ती ा म थे।
वह एक िवशाल उ सव था, इसीिलए उनका ल य बहत ही जिटल था।
तभी उनक ि एक बालक पर पड़ी। कदािचत् वह अपने अिभभावक से िबछड़ गया था।
वह रो रहा था। यह देख दुशल और िशव या उसके िनकट आये।
‘‘कौन हो तुम? या खो गए हो?’’ िशव या ने ममतामयी वर म उस बालक से पछ ू ा।
िक तु उस बालक ने उ र नह िदया। वह कुछ पग पीछे हटा और उलटी िदशा म भागने
लगा। दुशल और िशव या को कुछ संदेह हआ, वह दोन उस बालक के पीछे गए।
वह बालक एक सेतु के एक खतरनाक िकनारे पर आकर क गया। नीचे नदी का बहाव
बहत ती था।
‘‘ क जाओ..!’’ दुशल उसे रोकने के िलए चीखा। भीड़ का यान उसक ओर चला गया,
िक तु उसके वर से उस बालक क र ा नह हो पायी। वह सेतु के िकनारे से िफसलकर नदी म
िगर गया।
दुशल और िशव या त ध रह गए। वह दोन सेतु के िकनारे क ओर दौड़े ।
‘‘हम उस बालक क र ा करनी होगी।’’ कहते हए दुशल ती ता से नदी म कूद गया।
कुछ ण के उपरांत िशव या के िनकट एक यि आया और उससे िकया,
‘‘आपके साथ वह पु ष कौन था?'
‘‘वो मेरे पित थे, य ?’’ िशव या उस यि के मुख के भाव को देख तिनक आ य म
पड़ गयी।
‘‘ या वह मानिसक प से िवि ह?’’ वह यि हँस पड़ा।
‘‘चुप रिहये! उ ह ने द रया म छलाँग उस मासमू बालक के ाण बचाने के िलए लगाई है,
और आप उ ह िवि कह रहे ह?’’ िशव या ोिधत हो गयी।
‘‘बालक? कहाँ था बालक? तीत होता है िक आप दोन ही मानिसक प से िवि ह;
हमम से तो िकसी ने िकसी बालक को द रया म िगरते नह देखा... जैसे ही आपके पित ने िबना
कारण द रया के िकनारे ती वर म पुकार लगायी, परू ी भीड़ का यान आप दोन क ही ओर
था।’’ उस यि ने हँसना जारी रखा।
िशव या यह सुनकर त ध रह गयी। उसके मुख से श द नह फूट पा रहे थे।
‘‘ या आपको परू ा िव ास है, िक वहाँ कोई बालक नह था?’’ िशव या को अब वयं पर
शंका हो रही थी।
वह यि िफर से हँसा, ‘‘मुझे तीत होता है िक आपक मानिसक ि थित अभी सही नह
है, आपको िव ाम करना चािहए।’’
िशव या चलते हए सेतु के िकनारे तक पहँची। अब नदी का जल शांत था। वहाँ कोई
गितिविध िदखाई नह दे रही थी, न ही दुशल और न ही वह बालक दूर-दूर तक िदखाई दे रहे थे।
‘‘इसका अथ यह हआ िक वह एक माया थी।’’ िबना कुछ िवचारे , िशव या ने भी द रया म
छलाँग लगा दी।
भीड़ यह देखकर त ध रह गयी। उसके नदी म िगरने के उपरांत लोग ने उसे बहत
खोजा, पर वो कह न िमली।
वह दूसरी ओर दुशल क आँख खुल । वह एक घने काले जंगल म था।
‘‘वो बालक कहाँ गया? और म कहाँ हँ?’’ दुशल चिकत था।
शी ही उसने एक िनि त िदशा म बढ़ने का िनणय िलया।
‘‘िशव या उ सव म अकेली है, मुझे यहाँ से िजतनी शी हो सके िनकलना होगा।’’ दुशल
उस िदशा क ओर बढ़ते हए िवचार कर रहा था।
तभी उसे एक थान िदखा, जहाँ से ह का काश आ रहा था। यह उसके िलए उ मीद क
िकरण जैसा था, वह उस ओर दौड़ा। शी ही उसे एक िवशाल ार िदखाई िदया, िजसका हरी
एक ा ण था।
दुशल शंिकत था। वह धीरे -धीरे उस थान क ओर बढ़ा। उस हरी ने दुशल के कदम क
आहट सुन ली। वह दुशल क ओर मुड़ा।
‘‘ वागत है दुशल, हम तु हारी ही ती ा म थे!’’
दुशल उस हरी के िनकट आया। उस हरी का मुख देख वह त ध रह गया। उसका
मुख िब कुल वैसा ही था जैसा द रया म कूदने वाले उस बालक का था।
‘‘आ य म मत पड़ो, म वामन हँ, इस महल का हरी।’’ वह ा ण िफर से मु कुराया।
‘‘वा..वामन... महान वामन अवतार; इसका अथ यह है िक म अपने ल य तक पहँच
गया, यही भगवान महाबली का महल है।’’ दुशल स न हो उठा, उसने वामन अवतार के चरण
पश िकये।
‘‘यह तो केवल आरं भ है, मेरा आशीवाद तु हारे साथ है, िकसे पता तु ह इसक
आव यकता पड़ ही जाये।’’
महान वामन क वह रह यमयी भाषा दुशल क समझ से परे थी।
‘‘इतने गहन िवचार म खोने क कोई आव यकता नह है; भीतर जाओ, तु हारे पवू ज
महाराज महाबली तु हारी ती ा कर रहे ह।’’ वामन ने ार खोला और उसे भीतर का माग
िदखाया।
दुशल ने उनके िदखाए माग का अनुसरण िकया। वामन अवतार उसे जाते हए मु कुराकर
देख रहे थे।
दुशल ने राजा बिल के महल म वेश िकया। सारे ार र क, महाराज महाबली के उस
वंशज के स मान म अपने घुटन पर झुक गए। शी ही राजा बिल उसके सम थे।
वो लगभग बीस गज ऊँचे वण िनिमत िसंहासन पर बैठे थे। दुशल ने अपने पवू ज के
सम अपने दोन हाथ जोड़ िलए। उनका भ य प और वैभव देख दुशल के मुख से श द ही
नह फूट पा रहे थे।
महाराज महाबली अपने िसंहासन से उठे । वह नीचे उतारकर दुशल के िनकट आये।
‘‘कैसे हो दुशल?’’ बिल ने िकया।
‘‘म... म ठीक हँ।’’ दुशल िहचिकचा रहा था।
महाराज महाबली ने उसे दय से लगाया, ‘‘तु हारे िवषय म बहत सुना था दुशल; और म
यह कहना चाहँगा िक मुझे तुम पर बहत गव है, तुम मेरे स चे वंशज हो। जो मेरे हर िस ांत का
अनुसरण करता है।’’
‘‘यह मेरे िलए बहत स मान क बात है महामिहम; आपसे ो साहन पाकर म वयं भी
बहत गिवत अनुभव कर रहा हँ, िक तु आपको कैसे ात हआ िक म यहाँ आने वाला हँ?’’ दुशल
ने िकया।
‘‘हर वष ओणम के अवसर पर, म अपने परू े रा य का मण करता हँ, इस बार भी मने
वही िकया, और अपने े म मने तु हारी उपि थित का आभास िकया... मने तु हारे िवषय म
पहले ही सुन रखा था, इसिलए तुमसे भट करने को अितउ सुक था, इसिलए मने भगवान वामन
से िवनती क , िक वो तु ह यहाँ ले आय।’’ बिल ने िव ततृ उ र िदया।
‘‘यह तो बहत ही उिचत हआ महामिहम, म आपके े म आपसे भट करने क ही इ छा
लेकर आया था।’’
‘‘मुझसे भट करने का भला तु हारा या औिच य था?’’ महाराज महाबली को थोड़ा
आ य हआ।
‘‘असुरजाित एक बार िफर मानवजाित के िव यु करने जा रही है; असुर का
महागु भैरवनाथ, और उनके नये नायक असुरे र दुभ ने मुझे परािजत कर मेरा िसंहासन
मुझसे छीन िलया, और उस नीच असुर को परा त करने के िलए, मुझे आपके िद य िवजयधनुष
क आव यकता है, इसिलए म यहाँ आया हँ।’’
महाबली दुशल को देख मु कुराये, ‘‘ मा करना पु दुशल, िक तु अपनी यो यता िस
िकये िबना तुम इस िद यधनुष को पश भी नह कर सकते।’’
दुशल ने अपने हाथ जोड़कर परू े आ मिव ास से कहा, ‘‘म आपक हर परी ा से गुजरने
के िलए तैयार हँ भु।’’
‘‘उिचत है, िक तु मरण रखना, तु ह मेरे वंशज होने का कोई लाभ नह िमलेगा; तु ह
एक सामा य यो ा क भाँित सारी परी ाओं से गुजरना होगा।’’ बिल ने दुशल को चेतावनी दी।
‘‘म तैयार हँ भु।’’
महाराज महाबली ने ताली बजाई। अपने दोन हाथ म तलवार िलए एक यो ा वहाँ आ
खड़ा हआ।
‘‘परािजत करो इस यो ा को; यह तु हारी परी ा का पहला चरण है... तुम िन:श हो,
और तु ह इस सश यो ा को परािजत करना है।’’
दुशल ने उस यो ा क ओर देखा। वह उस यो ा क ओर बढ़ा। उसने उस यो ा के ने म
झाँककर देखा। वह यो ा दुशल क ओर दौड़ा, और उसका म तक काटने के िलए तलवार
घुमायी, िक तु दुशल ने सफलतापवू क अपनी सुर ा क । अगले ही ण उसने उस यो ा के दाय
हाथ पर हार िकया, प रणाम व प, उसके दाय हाथ म थमी तलवार भिू म पर िगर गयी। दुशल
ने अ ुत चपलता का दशन िकया और वह तलवार लपक ली। अगले ही ण उसने उस यो ा के
बाय हाथ पर हार िकया। वह यो ा अब िन:श था... दोन तलवार अब महावीर दुशल के हाथ
म थी।
महाबली ने उसे ो सािहत करने के िलए ताली बजाई, ‘‘मुझे तुम पर वा तव म बहत गव
है दुशल; यह हमारे र क दल के शि शाली यो ाओं म से एक है, िक तु तुमने तो इसे बड़ी
सरलता से परािजत कर िदया। तुमने बल का परी ण तो पार कर िलया, अब तु हारी ि तीय
परी ा क बारी है।’’
दुशल अगली चुनौती क ती ा कर रहा था।
‘‘पीछे घम
ू जाओ दुशल!’’ राजा बिल ने उसे आदेश िदया।
यह सुनकर दुशल पीछे मुड़ा। िशव या को अपने सम देख वह चिकत रह गया। वह
घायल थी। वह तलवार फक उसक ओर दौड़ा, ‘‘िश....िशव या, तुम यहाँ कैसे पहँची?’’
‘‘म नदी म आपका पीछा करने कूदी;... मेरी चेतना लु हो गयी थी, और अब म आपके
सम हँ।’’ िशव या पीड़ा म थी।
‘‘तुम...तुम िचंितत मत हो, तुम व थ हो जाओगी।’’ दुशल ने िशव या को कसकर अपने
दय से लगा िलया।
‘‘बस करो दुशल!’’ महाराज बिल िच लाये।
दुशल चिकत रह गया। उसने आ य से राजा बिल क ओर देखा। महाराज बिल उसके
िनकट आये और उ ह ने भिू म से तलवार उठाई।
‘‘यह तलवार लो, और इसका वध कर दो।’’ राजा बिल ने दुशल को आदेश िदया।
दुशल यह सुनकर त ध रह गया। वो अभी भी आ य से राजा बिल क ओर देख रहा था।
‘‘िकस बात क ती ा कर रहे हो? यह तलवार लो और वध कर दो इसका।’’ राजा बिल
ने उसे िफर से फटकारा।
दुशल ने भिू म से उठकर िकया, ‘‘िक तु य ? आप मुझे ऐसा करने का आदेश य
दे रहे ह?'
‘‘तु ह जो िद य िवजयधनुष चािहए, उसे ा करना इतना सरल नह है; या तुम एक
बात जानते हो? सिदय पवू जब भु राम ने लंका पर चढ़ाई क थी, तब रा स का राजा रावण
भी मेरे पास सहायता के िलए आया था, तािक वह इस िद यधनुष को ा कर सके, िक तु वह
मेरी परी ा म िवफल रहा, इसिलए उसे लौटना पड़ा... िबना कोई बिलदान िदए तुम इस िद य
धनुष को ा नह कर सकते, इसिलए तु ह उस यि का वध अपने हाथ से करना होगा जो
तु ह सबसे अिधक ि य हो, तभी तुम उस िवजयधनुष को ा कर सकते हो। इस संसार म हर
व तु का एक मोल होता है; यिद तु ह इस िवजयधनुष को ा करना है, तो तु ह इसका मोल
चुकाना होगा।’’ बिल ने उसे िवक प दे डाले।
दुशल धमसंकट म पड़ गया। उसके मि त क ने काय करना बंद कर िदया। उसके हाथ
काँप रहे थे। वह अपने घुटन के बल बैठ गया, उसके ने अ ुओ ं से भर गए। उसने िशव या क
ओर देखा। वह कुछ भी कहने म असमथ थी।
‘‘मुझे मा क िजये महामिहम, म यह नह कर सकता; म अपने ाण का बिलदान दे
सकता हँ, िक तु म इसक ह या अपने इ ह हाथ से नह कर सकता।’’ दुशल ने बिल के सम
अपने हाथ जोड़ िलए।
‘‘इसका अथ यह हआ िक म गलत था; तुम तो वाथ िनकले, य िक तु हारी प नी का
ेम तु हारे लोग के उ ार से अिधक मह वपण ू हो गया है। तु ह उस नीच दुभ को परा त
करने के िलए इस धनुष क आव यकता है, िक तु तुम तो अपनी प नी के जीवन का चुनाव कर
रहे हो... तुमने मुझे गलत िस कर िदया, तुम मेरे स चे वंशज नह हो।’’ महाराज महाबली ने
अपने वंशज दुशल को फटकारा।
महाराज बिल के वह कटु श द दुशल के दय को बहत क पहँचा रहे थे। वह एक बार
िफर उठा और िवनती क , ‘‘म आपसे िवनती करता हँ भु, मुझे ऐसा करने के िलए िववश मत
क िजये।’’
‘‘म तु ह िववश नह कर रहा; यह तो चुनाव का िवषय है, या तो तुम अपनी प नी क
ह या करो, या यहाँ से चले जाओ।’’ महाराज बिल ने कठोरता से कहा।
दुशल एक बड़े धमसंकट म फँस गया, उसके मुख से श द नह फूट पा रहे थे। िशव या ने
उसक ओर कुछ ण देखा। दुशल ने उसे कसकर दय से लगाया, उसके ने से अ ु बहे जा रहे
थे।
‘‘हमारे पास अिधक समय नह है, अपना िनणय शी लो; या तो तुम अपनी प नी के
जीवन का चुनाव करो, या आयवत और दै यजाित क सुर ा का... यिद तुम अपनी प नी का
चुनाव करते हो, तो दुभ , असुर का नायक होगा, और तब मानव और असुर के म य
महासं ाम िछड़ना िनि त है, अपने चुनाव से पवू इन बात का यान अव य रखना।’’ महाराज
बिल ने उसे प रि थितय का मरण कराया।
दुशल ने कुछ ण के िलए अपने ने बंद िकये। उसके ने से अ ु धाराएँ बहे जा रही थ ।
उसने अपने मि त क को िनयंि त करने का यास िकया, और तलवार िशव या के उदर म
उतार दी। िशव या क चीख सुन दुशल का दय थरा गया।
‘‘हमारा ेम अमर रहे गा िशव या; तुम िचंितत मत हो, तुम जहाँ भी जाओगी, म तु हारे
साथ आऊँगा।’’ िशव या अब भिू म पर लेटी थी।
िशव या के ने शी ही बंद हो गए। दुशल ने अपने मि त क पर िनयं ण रखने का
य न िकया। राजा बिल ने अपना हाथ उसके कंधे पर रखा।
‘‘िद य िवजयधनुष उठाने का समय आ गया है, वह अब तु हारे सम है।’’
दुशल ने अपनी आँख खोल । एक ती कश म चमकता िद यधनुष उसे िदखाई िदया।
वह भिू म से उठा और उस धनुष क ओर बढ़ा।
‘‘एक िन वाथ यि , िजसका दय दया से प रपण ू हो, िजसक बुि ि थर हो, और जो
अपने ल य के ित समिपत हो; िजस यि म सारे गुण ह गे, वही इसिद य धनुष को उठा
सकेगा।’’ महाराज महाबली ने उसे िव तार से बताया।
दुशल उस धनुष के िनकट आया, और उसे यान से देखा। उसने अपने ने बंद िकये, और
अपनी परू ी शि जुटाई। अगले ही ण िद य िवजयधनुष उसके हाथ म था।
महाराज महाबली ने उसक ओर गव से देखा, ‘‘तुम वह दूसरे यो ा हो जो इस धनुष को
उठाने म सफल रहा; तुम इस स मान के यो य हो, तुम वा तव म मेरे स चे वंशज हो, मुझे तुम
पर बहत गव है।’’
दुशल, महाराज महाबली क ओर मुड़ा, ‘‘म आपका स मान करता हँ भु, िक तु केवल
इसिलए य िक आप मेरे पवू ज ह, म आपको कभी मा नह क ँ गा। अब मेरे जीवन का केवल
एक उ े य शेष रह गया है, उस दुभ क पराजय, इसिलए मुझे जाना होगा।’’ ोिधत दुशल ने
मु य ार क ओर देखा।
महाराज महाबली उसे देख मु कुरा रहे थे। दुशल ार क ओर बढ़ा। अगले ही ण वह
त ध रह गया। जैसे ही ार खुला, उसक ि य भाया िशव या उसके सम थी। यह देख वह
मौन सा हो गया, वह िशव या उसे देख मु कुरा रही थी।
महाराज महाबली उसके िनकट आये, ‘‘जो तुमने पहले देखा, वह केवल एक मायाजाल
था, तु हारे ल य के ित तु हारे समपण क परी ा थी वो; और मुझे बहत गव है िक तुमने उस
परी ा को सफलतापवू क पार िकया; तुम इस धनुष को उठाने के यो य हो।’’
दुशल के ने म स नता के अ ु छलक आये। उसने महाराज महाबली के सम अपने
हाथ जोड़े , ‘‘म अपने कटु श द के िलए मा चाहता हँ भु!’’
तब महाराज महाबली ने उन दोन को आदेश िदया, ‘‘तो िफर उिचत है, तुम दोन को अब
थान करना चािहए; तु ह उस नीच असुरे र दुभ को परािजत करना है।’’
दुशल और िशव या ने भगवान महाबली के चरण पश िकये, बिल ने उ ह आशीवाद
िदया।
इसके उपरांत दुशल और िशव या अपने ल य क ओर चल पड़े । महाराज महाबली, अपने
वंशज को जाते देखते रहे ।
6. असुरे र का पतन
दुशल और िशव या, एकच नगरी क ओर िनकल गए।
दुभ क असुर सेना ने एकच नगरी के पास िशिवर लगाने आरं भ कर िदए।
अ ारह वष य दुभ , एक थान पर खड़ा चं मा को िनहार रहा था। भैरवनाथ उसके
िनकट आया।
‘‘ या तुम यु के िलए तैयार हो?’’ भैरवनाथ ने िकया।
‘‘अव य, म सय ू ादय क बड़ी उ सुकता से ती ा कर रहा हँ; कल मेरे िपता क म ृ यु के
उपरांत चौदहवाँ िदन है; एकच नगरी के हर एक मनु य को मेरे अपमान का मोल चुकाना
होगा... उन लोग के म य म ऐसा ऐसा कहर बरपाऊँगा, िक उनक सात पीिढ़याँ मरण रखगी।
मने अपने िपता को वचन िदया था, िक म अपने ये ाता का वध नह क ँ गा, िक तु उसक
गित म ऐसी अव य बना दँूगा, िक वो अपनी म ृ यु क िभ ा माँगे।’’ दुभ , उ सुकता से सय ू ादय
क ती ा म था।
‘‘मेरे साथ आओ, मुझे तुमसे कुछ वाता करनी है।’’ भैरवनाथ, दुभ को एक गु थान
पर ले गया।
संयोग से जंगल के िजस थान पर भैरवनाथ दुभ को ले आया था, व बाह उसी थान
पर एक व ृ के नीचे बैठा था, जहाँ से वो उनक वाता बड़ी सरलता से सुन सकता था। वहाँ
भैरवनाथ ने दुभ को अपनी एक योजना समझानी आरं भ क ... व बाह, भैरवनाथ क योजना
सुन त ध रह गया।
वह दुभ यह योजना सुन ोिधत हो गया, ‘‘नह , कदािप नह ; दुशल एक महारथी है,
उसके िव इस छल म म आपका समथन नह क ँ गा।’’
वह व बाह भी उन दोन के सम आ खड़ा हआ, भैरवनाथ उसे देख त ध रह गया।
‘‘दुभ , इसे रोको, यह हमारी योजना के िवषय म दुशल को बता देगा; यिद ऐसा हआ तो
दुशल हमारे प म कभी नह आएगा।’’ भैरवनाथ थोड़ा भयभीत था।
‘‘ये कुिटल योजना आपक है, मेरी नह गु देव; म आपक इस योजना का समथन तो
नह क ँ गा, िक तु म इस बात का यान अव य रखँग ू ा, िक आपके श द का अपमान न हो।
(वह व बाह क ओर मुड़ा) व बाह! तु ह हमारी सेना का उ दािय व सँभालना है; सय ू ादय होने
को है, तुम हमारी सेना क टुकिड़य को एकच नगरी के मु य ार तक ले जाओ, और यह
मेरा आदेश है।’’ दुभ ने व बाह को आदेश िदया।
‘‘जो आ ा महामिहम।’’ ोिधत व बाह वहाँ से थान कर गया।
सयू ादय होते ही दुभ क सेना एकच नगरी महल के मु य ार पर खड़ी थी, इस
सेना का नेत ृ व व बाह कर रहा था।
एक संदेशवाहक ने एकच नगरी के महल आकर महाराज साकेत को सिू चत िकया,
‘‘महामिहम! असुर क सेना हमारे मु य ार तक आ पहँची है।’’
साकेत यह सुनकर भयभीत हो गया। वो अपने िसंहासन से उठा, और उस संदेशवाहक के
िनकट आया, ‘‘जाओ, शी से शी महाऋिष ओमे र के पास जाकर उ ह यहाँ क ि थित से
अवगत कराओ।’’
‘‘जो आ ा महाराज।’’ संदेशवाहक, महिष ओमे र क खोज म चल पड़ा।
दूसरी ओर दुभ भी महल के मु य ार तक पहँच आया। मु य ार अभी भी बंद था।
साकेत ने अपने सैिनक को ार क र ा करने का आदेश दे रखा था। जब दुभ ने यह गौर
िकया, िक मु य ार पर कोई हरकत नह हो रही, उसने व बाह से िकया।
‘‘ या तुमने आ मण क चुनौती िभजवायी थी व बाह?'
‘‘हाँ महामिहम; संदेश िभजवाये एक हर बीत चुका है।’’ व बाह ने उ र िदया।
दुभ ने अपने ने बंद िकये, ‘‘इतना समय पया था; ार तोड़ दो।’’
कुछ ही ण म असुर का एक समहू एक िवशाल व ृ को ले आया, और परू ी शि से
ार पर हार िकया, िक तु भीतर के सैिनक अपनी परू ी शि से ार क र ा कर रहे थे, तािक
ार न टूटे। कई यास के उपरांत भी असुर का समहू ार तोड़ने म सफल न हो पाया, यह देख
दुभ ने अपने सेनापित को आदेश िदया, ‘‘व बाह! अपने स पण ू बल का योग करो और यह
ार तोड़ दो।’’
‘‘जैसी आपक इ छा महामिहम।’’ व बाह ने अपनी स पण ू शि जुटायी और िवशाल
ार क ओर दौड़ा; अगले ही ण उसने उस ार पर भीषण हार िकया। भीतर के सैिनक उस
हार से भयभीत हो गए... ार लगभग टूट ही गया था, और बहत से सैिनक व बाह के उस
हार से भिू म पर िगर पड़े थे।
अगले ही ण व बाह ने ार पर एक और भीषण हार िकया। इस बार ार परू ी तरह
व त हो गया, कई सैिनक उस िवशाल ार के नीचे दबकर म ृ यु को ा हो गए।
साकेत, अपने सम इतनी िवशाल सेना को देख भयभीत हो गया। वह अपने सेनापित
क ओर मुड़ा, ‘‘हम इस सेना का सामना एक हर से अिधक नह कर सकते, इसिलए उिचत
यही होगा िक हम अपनी आधी सेना अपने लोग क र ा के िलए भेज द, और हमारी आधी सेना
इस यु म भाग लेगी।’’
‘‘िक तु महाराज, आपका जीवन हमारे िलए कह अिधक मह वपण ू है, और आपक र ा
करना हमारा दािय व है।’’ सेनापित, महाराज साकेत के िलए िचंितत थे।
‘‘आप मेरी िचंता मत क िजये; सुजन ने वचन िदया है िक वह मेरा वध नह करे गा,
िक तु वो एकच नगरी क जा क ह या अव य करे गा, य िक उसे अपने अपमान का
ितशोध चािहए, इसिलए हमारी ाथिमकता हमारी जा क सुर ा होनी चािहए, इसिलए हमारी
आधी सेना लेकर आप वयं जाएँ उनक र ा करने, आधी सेना का नेत ृ व म वयं क ँ गा।’’
‘‘जो आदेश महाराज’’ सेनापित, आधी सेना एक करने थान कर गए।
साकेत और उसक सेना ार पर एक होने लगी। व बाह ार पर खड़ा था, उसे अपने
नायक के संकेत के िबना कुछ भी करना उिचत नह लगा।
दुभ ने अपने अ क लगाम ख ची, और अकेले ही उस िवशाल ार के भीतर वेश
कर साकेत के िनकट आया।
‘‘बड़े आ य क बात है, आपके सम सागर सी सेना है; यहाँ से इस सेना का दूसरा छोर
कोई नह देख सकता, और आप यहाँ केवल तीस हजार यो ाओं के साथ आये ह... पहले मुझे ये
बताइए, िक ये आ मघाती माग आपने चुना य ?’’ दुभ ने अपने ये से िकया।
‘‘ य िक म भलीभाँित जानता हँ, िक तुम मेरा वध नह करोग; तुम यहाँ एकच नगरी
के जाजन क ह या करने आये हो, िक तु हम तु ह ऐसा करने नह दगे।’’ साकेत ने दुभ
को चुनौती दी।
‘‘अ छा! वा तव म आपको ऐसा लगता है िक आप और आपक यह सेना मुझे और मेरी
सेना को रोक सकते ह?’’ दुभ हँस पड़ा।
‘‘आओ अपनी सेना के साथ, हम तु हारा सामना करने को तैयार ह।’’ साकेत ने चुनौती
दी।
‘‘उिचत है, यही सही।’’ दुभ , पीछे मुड़कर अपनी सेना के म य म आकर खड़ा हो गया।
इसके उपरांत, उसने अपने सैिनक को आदेश िदया, ‘‘सैिनक ! एकच नगरी के येक
सैिनक और जा क िनममता से ह या करना, िक तु मरण रहे , उनके नायक को कोई ित न
पहँचाना, उसे हम बंदी बनाना है।’’
असुर क सेना, महल के मु य ार क ओर दौड़ी। एकच नगरी के तीस हजार
यो ाओं क पकड़ उनक तलवार पर कसती चली गयी। अगले ही ण साकेत ने अपने दो
सैिनक को संकेत िकया।
उसके संकेत पर दोन सैिनक ने मु य ार से जुड़े दो उ ोलक को घुमाया। असुर सेना
इसका प रणाम देखकर दंग रह गयी। उनके माग म भिू म पर एक िवशाल िछ बन गया; वह एक
गहरी खाई जैसा तीत हो रहा था, जो पहले घास से ढका हआ था। उस खाई म जलती आग क
भयावह भ ी थी, जो हवा के संपक म आते ही भड़क उठी थी... अपनी गित के कारण सैकड़
असुर उसम िगर गए और जीिवत ही जल गए।
दुभ ने अपने सैिनक को कने का संकेत िकया, ‘‘अ छी योजना थी, मने आपको
कमतर आँका, िक तु आप तो उ म िनकले; यह परू ी तरह अ यािशत था, बहत अ छे ये ।
(वह व बाह क ओर मुड़ा), ‘व बाह’
‘‘आ ा महामिहम।’’ व बाह ने झुककर कहा।
‘‘अपने सम खड़ी इस सेना का नाश कर दो।’’ दुभ ने व बाह को आदेश िदया।
व बाह ने अपनी स पण ू शि का योग कर एक िवशाल च ान उठा ली। एकच नगरी
के सैिनक उसका यह अतु य बल देख भयभीत रह गए। व बाह ने वह च ान श ु सेना क ओर
फक ।
कई सैिनक उस च ान के नीचे दबकर मारे गए, भिू म उनके र से लाल हो रही थी।
व बाह ने िफर से एक च ान उठाई और श ुसेना क ओर फक । एक बार िफर कई सैिनक उस
च ान के नीचे दबकर मारे गए। एकच नगरी के सैिनक ने आगे आकर व बाह पर भाले
बरसाने आरं भ कर िदए।
यह देख व बाह ने अपनी शि जुटायी, अपना आकर बढ़ाया, और एक िवशाल गज म
प रवितत हो गया।
साकेत के साथ-साथ एकच नगरी क परू ी सेना यह भयावह य देख थरा उठी। भाले
क चोट व बाह के शरीर को खर च तक नह पहँचा पा रही थी।
‘‘व बाह, साकेत को छोड़, इन सबका िवनाश कर दो।’’ दुभ ने आदेश िदया।
व बाह िचंघाड़ते हए एकच नगरी के सैिनक क ओर दौड़ा, और मु य ार के भीतर
उस माग से वेश कर गया, जहाँ कोई गहरी खाई नह थी। भिू म काँप उठी थी, जैसे कोई भक ू ंप
सा आ गया हो।
एकच नगरी के सैिनक म भयंकर भगदड़ मच गयी। मुख ार के बाहर और भीतर
का थान र रं िजत होकर शव से भर गया।
साकेत त ध रह गया। वह िववश महसस ू कर रहा था। उसके सैिनक उसके सामने मर
रहे थे, िक तु वह कुछ नह कर पा रहा था।
दुभ ने अपना माग सुगम देखा। उसने अपने अ क लगाम ख ची, और मु य ार क
ओर बढ़ चला। वो साकेत के िनकट आया और अपने अ से उतरा।
‘‘ या प रणाम हआ ये ? अपनी सेना क ओर देिखये, वो सभी भयभीत होकर अपने
ाण बचाने को भाग रहे ह।’’
साकेत पणू त: िवचिलत था, िक तु उसने अपनी भावनाओं को िनयंि त िकया, ‘‘िक तु
तुम तो अपने उ े य म िवफल हो गए; तुम यहाँ एकच नगरी क िनद ष जा का िवनाश करने
आये थे, िक तु हम उनक र ा करने म सफल रहे ; शी ही एकच नगरी क जा सीमा के पार
होगी, तुम उ ह छू भी नह पाओगे।’’
दुभ यह सुनकर ोिधत हो गया, ‘‘म उन सबको खोजकर अपने पाँव के नीचे कुचल
दँूगा, आप बस देखते जाइए।’’
दुभ , साकेत को भिू म पर िगराकर अपने अ क ओर बढ़ा।
‘‘सैिनक , रोको उसे।’’ साकेत ने अपने सैिनक को आदेश िदया।
उसके आदेश पर बीस सश सैिनक ने अपने-अपने श पर पकड़ मजबत ू क और
दुभ क ओर दौड़ पड़े ।
यह देख दुभ ने व बाह को आदेश िदया, ‘‘व बाह, एकच नगरी क जा महल के
बाहर नह पहँचनी चािहए।’’
‘‘जो आ ा महामिहम।’’ व बाह पुन: एक िवशाल गज म प रवितत होकर महल के
अंितम छोर क ओर दौड़ पड़ा।
वह दुभ को बीस यो ाओं ने घेर रखा था। दुभ ने साकेत क ओर देखा, ‘‘ या
आपको वा तव म लगता है िक आपके यह सैिनक मेरा माग रोक सकते ह?’’
साकेत ने कोई उ र नह िदया; उसे अपनी जा क िचंता थी। व बाह उनके पीछे लगा
हआ था।
वह दुभ ने यान से दो तलवार ख च िनकाल , और उन घेरा बनाने वाले यो ाओं क
ओर देखा। असुर सेना उसक र ा को आगे बढ़ी, िक तु दुभ ने उ ह कने का संकेत िदया,
‘‘ क जाओ सैिनक , यह यु केवल मेरा है।’’
असुर क सेना ने अपने श नीचे कर िदए। दुभ उन बीस यो ाओं िक ओर एकटक
देख रहा था, जो उस पर आ मण करने का अवसर खोज रहे थे।
अगले ही ण, चार िदशाओं से कई भाले दुभ क ओर बढ़े , िक तु वह छलाँग लगाकर
उन भाल पर ही चढ़ गया। इससे पहले क वह सैिनक भाले वापस ख चते, वह एक बार िफर
कूदा, और इससे पवू िक वह सैिनक कुछ समझ पाते, उसने अ ुत गित से एक ही हार से चार
सैिनक क गदन काट दी।
प रणाम व प, सैिनक के घेराव म र थान बन गया। दुभ उस घेरे से बाहर आ
गया। वह वापस पीछे मुड़ा, और इससे पवू िक वह सैिनक उसका दाँव समझ पाते, उसने तीन और
गदन काट द ।
‘‘सात िगर गए, तेरह बचे।’’ दुभ ने उन यो ाओं क ओर देखा।
* * *
व बाह, एकच नगरी के लोग का पीछा कर रहा था। एकच नगरी के सैिनक, जा
को ार पार करवाने ही वाले थे, िक तु इससे पवू िक, वह ार पार करते, व बाह वहाँ पहँच
आया।
एकच नगरी के सैिनक ने ार खोलना आरं भ िकया। यह देख व बाह ने एक िवशाल
च ान उठाई, और ार क ओर फका। सामा य जा यह देख भयभीत हो गयी। व बाह ने िफर से
कई िवशाल च ान उठाय और उसे महल के ार क ओर फका। वह ार िवशाल च ान से बंद हो
गया।
* * *
दुभ ने सभी बीस यो ाओं का वध कर िदया। उसक तलवार उन सबके र से नान
कर उसके हाथ म थी, ‘‘एक नया अनुभव था ये, आनंद आया।’’
दुभ अपने अ पर आ ढ़ हआ और महले के दूसरे ार क ओर बढ़ चला। साकेत ने
उसका पीछा िकया।
उनके वहाँ से जाते ही महिष ओमे र, िव मािजत को लेकर एकच नगरी के महल के
ार तक पहँचे। असुर क सेना को वहाँ न ृ य करते देख दोन अचंिभत रह गए। असुर सेना
दुभ के पीछे -पीछे जा रही थी।
महिष ओमे र और िव मािजत वहाँ का य देख त ध रह गए। महल के ार के भीतर
वेश करते ही उ ह शव का ढे र िदखाई िदया। र क धाराओं से परू ा ांगण लाल था... हजार
शव ने शव का पहाड़ बना िदया था। कटे और कुचले म तक का अंबार लगा था।
‘‘इतनी नशृ ंसता! मुझे ये अनुमान ही नह था िक सुजन, दुभ बनकर इतना नश ृ ंस हो
सकता है; उसका ोध सीमा पार कर चुका है, उसका अंत अब अित आव यक है।’’ महिष
ओमे र आगे बढ़े ।
तभी उ ह एक घायल सैिनक लँगड़ाता हआ िदखाई िदया। िव मािजत उसके पास गया
और उसे सहारा देकर महिष ओमे र के पास ले आया। असुर क सेना अभी भी दुभ के पीछे -
पीछे चल रही थी।
‘‘ या हआ था यहाँ पर? िव तार से बताओ।’’ महिष ओमे र ने िकया।
‘‘राजकुमार सुजन ने तो केवल हमारे बीस यो ाओं का वध िकया, िक तु वह िवशाल
हाथी, उसने तो इतनी नश ृ ंसता से हमारे सैिनक का वध िकया िक िकसी को ाण बचाने तक
का अवसर नह िमला।’’ उस सैिनक ने िव तार से परू े यु का िववरण बताया।
‘‘इसका अथ यह है िक इतनी नश ृ ंसता और यह सारी ह याएँ करने वाला व बाह है।’’
महिष ओमे र अपना आपा खोने लगे।
िव मािजत ने उ ह सँभाला, ‘‘शांत हो जाइए, मुिनवर, धीरज रिखये।’’
‘‘दास व का अथ या यह है, िक वो इस कार ह याएँ करे , और तो और, वो
एकच नगरी के लोग के पीछे भी गया, अथात् वो उ ह भी मारे गा।’’ महिष ओमे र त ध थे।
‘‘इससे पहले िक अिधक िवलंब हो, हम उनके पीछे जाना चािहए।’’ िव मािजत ने सुझाव
िदया।
‘‘व बाह ने अ य अपराध िकया है, म उसे मा नह क ँ गा, चलो।’’
महिष ओमे र और िव मािजत, असुर सेना के पीछे चल िदए।
वह दूसरी ओर दुभ अपनी असुर सेना के साथ महल के दूसरे ार के पास आया।
साकेत और बचे हए तीस हजार यो ा भी वहाँ उपि थत थे, िक तु िफर भी जाजन के
मुख पर भय छाया हआ था।
दुभ ने लगभग सभी मुख का िनरी ण िकया; सबके मुख पर भय छाया हआ था।
उसने अपने ने णभर के िलए बंद िकये... िकसी के िलए अनुमान लगाना संभव न था िक
उसका अगला कदम या होगा।
अगले ही ण उसने अपने ने खोले और घोषणा क , ‘‘म कायर नह हँ; म उन लोग क
ह या नह कर सकता, िजनके मुख पर पहले ही म ृ यु का भय छाया हआ है, म यहाँ केवल अपने
अपमान के ितशोध के िलए आया हँ, इसिलए मुझे वह बालक चािहए, जो मेरे अपमान क जड़
है; िजसने मुझपर सव थम क चड़ फका था।’’
लोग म स नाटा छा गया।
‘‘म तुम सबको अवसर दे रहा हँ, एक बार और िवचार कर लो; म एक केवल एक बालक
क माँग कर रहा हँ, म तुम सबको मु कर दँूगा।’’ दुभ ने एक बार िफर उ ह चेतवानी दी।
उस बालक को इतनी बड़ी भीड़ म खोजना बहत किठन था, िक तु उस बालक ने भरपरू
साहस का दशन िकया; वह भीड़ से िनकलकर वयं बाहर आ गया।
‘‘म तु हारे सम हँ।’’ उस बालक ने वीरता से कहा।
दुभ ने उसे देख यान से तलवार ख च िनकाली, और उस बालक क ओर बढ़ा। वह
बालक थोड़ा भयभीत हआ, िक तु उसने अपने मुख के भाव िछपा िलए।
दुभ उसके िनकट आकर उस घरू ने लगा। अगले ही ण उस बालक क माता, असुरे र
के चरण म आ िगरी।
‘‘नह , कृपा करके मेरे पु को मा कर दीिजये कुमार, वह अबोध है।’’ वह ं दन करने
लगी।
साकेत ने भी उसे समझाने का यास िकया, ‘‘तुम असुर नह हो सुजन; तुम कोई जंगली
पशु नह , तुम इतने ू र कैसे हो सकते हो?'
दुभ कुछ ण शांत रहा, इसके उपरांत उसने साकेत क ओर देखा, ‘‘म सुजन नह हँ,
म असुरे र हँ, असुरे र दुभ हँ।’’
यह कहकर उस बालक क गदन काटने के िलए उसने तलवार चलायी। िक तु इससे पवू
वो उस बालक क गदन काट पाता, उसके हाथ वयं क गए।
साकेत ने इस पर गौर िकया और उसे िफर से समझाने का यास िकया, ‘‘अपनी ओर
यान से देखो सुजन, तुम एक यो ा हो; तुम एक अबोध बालक का वध कैसे कर सकते हो? अब
तक िजनका वध तुमने िकया, वह सश यो ा थे, िक तु यह तो एक िन:श अबोध है, इसका
वध कर तुम वयं से कभी ि नह िमला पाओगे; तु हारे दय म अभी भी मानवता और दया
शेष है सुजन।’’
दुभ के हाथ काँपने लगे। तभी कपटी र गु भैरवनाथ वहाँ आ पहँचा। उसने दुभ के
मुख को देखा और ि थित क गंभीरता का आकलन िकया।
‘‘आप ती ा िकस बात क कर रहे ह असुरे र? वध कर दीिजये इसका।’’ भैरवनाथ ने
दुभ को उकसाया।
‘‘नह नह सुजन, तुम अब भी एक मानव हो, असुर क भाँित िनदय मत बनो।’’ साकेत
ने उसे रोकने का यास िकया।
‘‘नह असुरे र, तु ह अपने अपमान का ितशोध लेना होगा, वध कर दो इस बालक का,
यह िनरपराध नह है।’’ भैरवनाथ ने उसे उकसाने का परू ा य न िकया।
दुभ गहन िवचार म पड़ गया, िक उसे उस बालक का वध करना चािहए या नह ।
अंतत: उसने अपना िनणय िलया और अपनी तलवार उठायी। हर कोई भयभीत था, और उसके
अगले कदम क ती ा कर रहा था।
ती ा समा हई, दुभ ने भीषण हार िकया... िक तु उसका वह हार भिू म पर था।
वह बालक सुरि त था। दुभ के ने पीड़ा से प रपण ू थे। उसने णभर उस बालक क ओर
देखा, इसके उपरांत उसने भीड़ क ओर देखा।
‘‘म ृ यु तु हारा द ड नह , वो पुर कार है तुम सबके िलए; इसिलए म तुमम से िकसी का
वध नह क ँ गा।’’ दुभ ने घोषणा क ।
जा अब भी भयभीत थी। दुभ ने एक बार िफर उन लोग क ओर देखा, ‘‘िचंितत मत
हो, म तुमम से िकसी के ाण नह लँग ू ा, िक तु िव ास रखो, मेरा अगला कदम तु ह एक
पीड़ादायक जीवन अव य देगा; मुझे तुम सबका मुख मरण है, तुम लोग के कारण म दो वष
से, म ृ यु से भी अिधक पीड़ादायक जीवन जी रहा हँ, मने अपने िपता को भी खोया... म तुमम से
िकसी को मा नह क ँ गा।’’
दुभ अपनी सेना क ओर मुड़ा, ‘‘असुर ! इनके गाँव को तबाह कर दो; भोजन, जल,
या िफर जीवनयापन के िजतने भी संसाधन ह, सब न कर दो, और एक बात का मरण
रखना, इनम से िकसी के भी ाण नह जाने चािहए; म चाहता हँ िक यह सब म ृ यु क िभ ा
माँग।’’
असुरे र के आदेश पर असुर सेना, एकच नगरी के संसाधन न करने दौड़ पड़ी।
साकेत ने दुभ को रोकने का यास िकया, ‘‘नह सुजन, तुम ऐसा नह कर सकते।’’
दुभ ने उसे भिू म पर धकेल िदया।
वह व बाह एक मरू त क भाँित खड़ा था।
‘‘तुम िकस बात क ती ा कर रहे हो? तु ह या िकसी िवशेष िनमं ण क आव यकता
है?’’ दुभ ने उस पर ताना कसा।
‘‘म भी?’’ व बाह ने आ य से पछ ू ा।
‘‘हाँ तुम भी; तुम सेनापित हो, तु हारी उपि थित वहाँ अिनवाय है, समा कर दो उनके
सारे संसाधन।’’
‘‘जो आ ा महामिहम।’’ व बाह िववश सा महसस ू कर रहा था, िक तु असुरे र का
आदेश मानने के अित र उसके पास कोई माग न था। व बाह वहाँ से थान कर गया।
महिष ओमे र और िव मािजत छुपकर यह सारा य देख रहे थे।
‘‘हम ामीण के घर , और संसाधन क र ा करनी होगी, नह तो यहाँ क जा भख ू से
मर जाएगी; हम सव थम असुरसेना और व बाह का सामना करना होगा; और तु हारा काय है
व बाह को परा त करना, और उसक पराजय का केवल एक उपाय है।’’ महिष ओमे र ने
िव मािजत को अपनी योजना समझायी।
वह साकेत, भिू म से उठकर दुभ के िनकट आया, ‘‘तुमने अपनी मानवता खो दी है
सुजन!’’
‘‘हाँ, मने खो दी है, अब म एक असुर हँ! असुरे र दुभ ।’’ दुभ ने गव से कहा।
दुभ ने साकेत को बंदी बनाकर उसे भारी बेिड़य से बाँध िदया, और उन बेिड़य का एक
िसरा अपने रथ से बाँध िदया। इसके उपरांत वो अपने रथ पर आ ढ़ हआ, और अपने अ क
लगाम ख ची। वो साकेत को उन बेिड़य से घसीटता चला गया।
वह महिष ओमे र और िव मािजत, असुर और व बाह के माग म आ खड़े हए। अपने
गु को देख व बाह के ने झुक गए।
‘‘हमारा माग छोड़ दो व बाह, म तु ह तु हारे िकये अपराध के िलए मा कर दँूगा।’’
महिष ओमे र ने उसे चेतावनी दी।
‘‘मुझे मा क िजये गु देव, िक तु मुझे अपने वामी के आदेश का पालन करना ही है।’’
व बाह ने अपने गु के सम हाथ जोड़े ।
‘‘म इसका मुख भी नह देखना चाहता, िव मािजत इसे परािजत करो, म असुर क
सेना को सँभालता हँ।’’ महिष ओमे र ने िव मािजत को आदेश िदया और वयं असुर के सेना
क ओर दौड़ पड़े ।
वह िव मािजत व बाह क ओर दौड़ा और छलाँग लगायी। व बाह ने उसक छाती पर
भीषण हार कर उसे दस गज पीछे धकेल िदया। अ ारह वष य बालक िव मािजत, अपने
ित ी का अतु य बल देख अचंिभत रह गया।
‘यह मुझसे बहत अिधक बलवान है; मुझे उस दाँव का योग करना होगा जो महिष
ओमे र ने मुझे समझाया था।’ सोचकर िव मािजत एक बार िफर व बाह क ओर दौड़ा। वह
कूदकर व बाह क पीठ क ओर गया, और णभर म, उसके बाय कंधे क कमजोर नस दबा
दी, जो दुशल ने वष पहले व बाह के साथ िकया था। प रणाम व प व बाह का आधा शरीर
सु न पड़ गया। इसके उपरांत िव मािजत ने िफर से उसके दाय कंधे क भी कमजोर नस दबा
दी; व बाह िववश होकर भिू म पर िगर पड़ा।
वह महाऋिष ओमे र, अपने दोन हाथ म तलवार िलए असुर सेना क ओर बढ़े ।
पंचशि धारक उस ऋिष ने असुर क सेना म कोलाहल मचा िदया। उनक गित और बल देख
असुर सेना म भय फै ल गया। कुछ ही समय म उ ह ने सकड़ असुर को मार िगराया। व बाह
भिू म पर पड़ा था... असुर सेना का नेत ृ व करने वाला अब कोई नह था, यह देख असुर पीछे
हटने लगे।
दूसरी ओर दुभ ने अपने अ क लगाम ख च रथ को रोका। वह रथ से कूदा और
साकेत के िनकट आया। साकेत बुरी तरह घायल था।
दुभ ने उसक गदन पकड़ी और िकया, ‘‘तो या ा हआ आपको ये सब
करके?'
‘‘समझने का यास करो सुजन, वो एक केवल एक ग़लतफहमी थी, मेरी बात सुनो।’’
साकेत ने सुजन को समझाने का यास िकया।
सुजन ने साकेत को भिू म पर धकेल िदया।
इसके उपरांत वह वयं उसके िनकट गया, और एक बार उसे उठाकर अपने िनकट लाया,
‘‘म भलीभाँित जानता हँ, िक आपने मुझे रा य से िन कािसत य िकया; आप भयभीत थे िक म
आपसे े हँ, इसिलए म जा म आपसे अिधक लोकि य हो जाऊँगा और आपका िसंहासन छीन
ू ा... आप ऐसा िवचार अपने मन म कैसे ला सकते ह? अरे ये
लँग ाता थे आप मेरे, मने तो
ऐसा िवचार भी कभी अपने मन म नह लाया, और आपने मुझपर अपनी ही माता क ह या का
आरोप लगा िदया; अरे अगर मुझे ज म देते ही उनक म ृ यु हो गयी तो इसम मेरा या दोष है?’’
सुजन ने उसे िफर धकेल िदया।
‘‘नह सुजन; यिद तुम चाहते हो तो मेरा िसंहासन ले लो, िक तु यह आरोप मुझपर मत
लगाओ।’’ साकेत ने उसे िफर से समझाने का य न िकया... वह घायल था, इसिलए अिधक बोल
नह पा रहा था।
सुजन मु कुराया। उसके ने म अ ु भी थे और मुख पर ोध भी, ‘‘आप चाहते ह िक म
आपका िसंहासन ले लँ?ू या क ँ गा म उस िसंहासन का? िकस पर शासन क ँ गा म? उन
लोग पर, जो मेरा नाम तक सुनकर थर थर काँप उठते ह... चिलए मान लीिजये िक म आपके
िसंहासन पर िवराजमान हो भी गया, तब मेरा स मान कौन करे गा? सब तो यही कहगे न, िक
मने अपने ही ये का िसंहासन छीन िलया; केवल आपके कारण मने परू ी एकच नगरी क
जा के सम अपना आ मस मान खो िदया; आपने मुझे उन सबके सम अपमािनत िकया,
इसिलए आज मने भी एकच नगरी के लोग के सम आपको इन बेिड़य म बाँधकर घसीटा
और अपमािनत िकया।’’
सुजन कुछ कदम पीछे हटा और अपने घुटन पर बैठ गया, ‘‘मेरा उ े य पण ू हआ, मुझे
अपना ितशोध िमल गया; अब मुझे जाना होगा, और मेरा यह यास रहे गा िक मुझे इस भिू म पर
दोबारा लौटकर न आना पड़े ।’’
इसके उपरांत सुजन उठा और जाने लगा। साकेत ने उसे रोकने का य न िकया, ‘‘मुझे
मा कर दो सुजन, लौट आओ अनुज।’’
सुजन ने कोई उ र नह िदया। वह अपने रथ क ओर बढ़ा। वह अपने रथ पर आ ढ़ हआ
और अपने अ क लगाम ख ची।
िक तु अचानक अ ात िदशा से ती गित से एक बाण आया, िजसने सुजन के रथ का
वज तोड़ डाला। दुभ चिकत रह गया, ‘इतनी ती गित का बाण! कौन है वो धनुधारी?’
दुभ उस धनुधर को खोजने लगा।
अगले ही ण एक और बाण ती गित से उसक ओर आया। दुभ अपने रथ से कूद
पड़ा; उसका रथ छित त हो गया, दुभ चिकत रह गया।
‘‘कौन है? सामने आओ!’’ दुभ चीखा।
दुभ के इस चुनौती भरे वर का उ र देने के िलये, अपने अ पर आ ढ़ एक यो ा,
धनुष लेकर उसके सम आ खड़ा हआ। दुभ के समान वह भी एक अ ारह वष य युवा ही था।
दुभ ने उसक ओर यान से देखा। वो युवा अपने अ से कूदा और अपना धनुष लेकर
दुभ के िनकट आया।
‘‘कौन हो तुम, और मेरा माग य अव कर रहे हो?’’ दुभ ने िकया।
‘‘म िवदभ का राजकुमार िव मािजत हँ, और तु ह यहाँ चुनौती देने आया हँ।’’ उस बालक
ने अपना धनुष उठाकर दुभ को चुनौती दी।
‘‘िव मािजत...। नाम म काफ वजन है।’’ दुभ ने भिू म से उठकर िव मािजत क ओर
देखा।
‘‘म यहाँ तु ह क चुनौती देने आया हँ।’’ िव मािजत ने उसे एक बार िफर चुनौती
दी।
दुभ ने यान से तलवार ख च िनकाली और अपने ित ी क ओर देखा, ‘‘म बड़ी
उ सुकता से ती ा कर रहा हँ, मुझे भी चुनौितय का सामना करना अ छा लगता है।’’
िव मािजत ने भी अपना धनुष नीचे कर तलवार िनकाल ली।
‘‘नह कुमार! क जाओ।’’ साकेत ने उसे रोकने का य न िकया।
तभी महिष ओमे र भी असुर सेना को परािजत कर वहाँ आ पहँचे। उ ह ने साकेत को
फटकारा, ‘‘नह साकेत, अब कोई दया नह होगी; िव मािजत, जाओ और करो!’’ उ ह ने
िव मािजत को आदेश िदया।
दोन यो ा एक दूसरे क ओर दौड़े । उन दो तलवार के टकराव ने भीषण कंपन का वर
उ प न िकया। दोन यो ाओं को पीछे हटना पड़ा।
दुभ एक बार िफर दौड़ा और भीषण हार िकया, िक तु िव मािजत ने सफलापवू क
अपना बचाव भी िकया और अपने दूसरे हाथ से दुभ के मुख पर मुि हार भी।
दुभ उसका यह दाँव देख त ध रह गया। वह भिू म पर िगर पड़ा। उसके मुख से र क
धारा बह उठी। िव मािजत का बल देख वह चिकत रह गया।
‘‘यह तो दुशल से भी उ म यो ा है, मुझे सावधान रहना होगा।’’ दुभ ने िवचार िकया।
वह एक बार िफर उठा, और िव मािजत क ओर देखा।
‘‘ या हआ? कह भयभीत तो नह हो गए?’’ िव मािजत ने उस पर यं य क ।
‘‘इतना अहंकार उिचत नह है।’’ दुभ एक बार िफर िव मािजत क ओर दौड़ा।
दोन यो ाओं ने अपनी अपनी तलवार, ती तम गित से चलाय । तलवार के टकराते ही
िव मािजत ने िपछले दाँव का िफर से उपयोग करने का य न िकया, िक तु दुभ ने उसका
दाँव सफलतापवू क काटा और अपने ित ी के मुख पर मुि हार िकया। इस बार
िव मािजत अपने मुख से र उगलता हआ भिू म पर िगर पड़ा।
वह उठा और दुभ क ओर ोध से देखा। िफर से आरं भ हआ।
एक हर बीत गया, जारी रहा।
दुभ और िव मािजत का कने का नाम ही नह ले रहा था। तभी व बाह भी
सामा य होकर वहाँ आ पहँचा। महिष ओमे र ने उसक ओर ोध से देखा। व बाह क आँख
नीची थ ।
वह अंतत: दुभ , िव मािजत पर भारी पड़ गया। उसने अपने दोन हाथ से िव मािजत
को उठाया, और महिष ओमे र के िनकट फक िदया।
िव मािजत िफर से उठा, और दुभ क ओर बढ़ा, िक तु महिष ओमे र ने उसका हाथ
पकड़ उसे रोक िलया, ‘‘नह कुमार, इसे परािजत करना सरल नह है।’’
िव मािजत ने आ य से िकया, ‘‘िक तु आप ही ने तो कहा था िक इसक पराजय
अिनवाय है।
महिष ओमे र ने अपने ने बंद िकये और कुछ मं का उ चारण िकया, फल व प
िद य पंचश उनके हाथ म कट हआ।
दुभ ने णभर महिष ओमे र क ओर देखा, जबिक महिष ओमे र ने िव मािजत क
ओर देखा, ‘‘मने अपनी अिधकतम शि याँ इस महाअ के िनमाण म लगा दी ह; म नह
जानता िक म इसे परािजत कर पाऊँगा या नह । यिद म जीिवत नह रहा, तो तुम ही एक हो जो
इसे परा त कर सकते हो... दो वष पवू यह एक युवा था, िजसने कभी बाहर का संसार नह देखा
था, िक तु अब यह र गु भैरवनाथ का बल श है; मरण रखना, यह जीिवत नह रहना
चािहए।’’
िव मािजत ने दुभ क ओर देखा, ‘‘अव य ऋिषवर।’’
महिष ओमे र ने दुभ को चुनौती दी, िक तु वह मौन था।
‘‘मौन य हो? श उठाओ!’’ महिष ओमे र ोिधत होकर बोले।
‘‘आप एक ा ण ह, म आप पर श नह उठा सकता, य िक म अपने म तक पर
ह या का पाप नह उठा सकता।’’ दुभ ने प ता से कहा।
‘‘पाप? तुम पाप के िवषय म बात कर रहे हो; या तुम कोई पाप करने से भयभीत हो
सकते हो? तो तुमने एकच नगरी क जा के साथ या िकया?’’ महिष ओमे र ने उस पर
यं य िकया।
दुभ चीख पड़ा, ‘‘वह ितशोध था; मेरे अपमान का ितशोध, िक तु िफर भी मने उनम
से िकसी के ाण नह िलए।’’
‘‘हाँ, तुमने उनम से िकसी के ाण नह िलए, िक तु उनका जीवन नकतु य बनाने का
यास तुमने ही िकया।’’ ओमे र ने उसे फटकारा।
‘‘हाँ मने िकया, य िक अपमान हआ था मेरा; म भी ऐसे ही जंगल म भख ू ा यासा भटक
रहा था, तब तो मुझे सहारा देने के िलए भी कोई न था।’’
दुभ और महिष ओमे र कुछ ण के िलए शांत हो गए। महिष ओमे र के पास कहने
को कुछ नह था। तभी भैरवनाथ भी वहाँ आ पहँचा। ि थित देख भैरवनाथ ने दुभ को भड़काया,
‘‘इस ा ण का वध कर दो असुरे र; यही एक यि है जो तु ह हािन पहँचा सकता है।’’
िक तु दुभ एक मरू त क भाँित खड़ा था। उसने एक श द भी नह कहा।
महिष ओमे र ने दुभ क ओर देखा, ‘‘तुम एक आदश यो ा हो सुजन, िक तु तु हारी
अधीरता और तु हारा ोध यह िस करता है, िक तुम उन शि य के यो य नह हो, जो तु हारे
पास ह; मेरी तुमसे कोई िनजी श ुता नह है, िक तु तु हारी म ृ यु आव यक है।’’
यह कहकर महिष ओमे र ने पंचश का वार कर दुभ का उदर चीर िदया।
दुभ चिकत रह गया; उसने महिष ओमे र क ओर आ य से देखा।
‘‘ मा करना सुजन, िक तु आज तुमने िस कर िदया िक तुम जीिवत रहने के यो य
नह हो।’’ महिष ओमे र ने पंचश को वापस ख चा और दुभ को पीछे धकेल िदया।
दुभ भिू म पर िगर गया। वह अ यंत पीड़ा म था। साकेत और भैरवनाथ त ध रह गये।
कुछ ण बीते। भैरवनाथ ने दुभ क ओर देखा। वह यह देख त ध रह गया िक दुभ
के घाव अपने आप भर गए। भैरवनाथ यह देख उ सािहत हो उठा।
‘‘उठो असुरे र! तु हारे घाव भर चुके ह।’’
दुभ ने अपने घाव का िनरी ण िकया। उसके कवच पर केवल र के ध बे थे। वह भिू म
से उठा, और आ यचिकत रह गया।
‘‘तुम एक महारथी हो, असुरे र; तुमम कई िद यशि याँ ह, िजनसे अभी तक तुम वयं
अंजान हो... इस संसार म कोई ऐसा नह , जो तु ह परािजत कर सके; उठो और इस नीच ा ण
का वध कर दो।’’ भैरवनाथ ने उसे िफर से उकसाया।
दुभ ने महिष ओमे र क ओर देखा, ‘‘इस बार म आपको नह छोड़ँ गा, ऋिषवर; आपने
मुझ पर तब हार िकया, जब म िन:श था, आप ा ण कहलाने के यो य नह रहे , इसिलए
आपका वध करने म मुझे कोई लािन नह होगी।’’
महिष ओमे र ने कोई उ र नह िदया।
यही वह ण था जब दुशल वहाँ आ पहँचा। महिष ओमे र, दुशल के हाथ म िवजयधनुष
देख उ सािहत हो उठे ।
िफर उ ह ने दुभ को चेताया, ‘‘तु हारा अंत िनकट है सुजन, सावधान हो जाओ।’’
उ ह ने िद य पंचश क ओर देखा और कुछ मं का जाप िकया।
प रणाम व प पंचश एक बाण म प रवितत हो गया। उसके उपरांत वह दुशल क ओर
मुड़े, ‘‘दुशल, िवजयधनुष िव मािजत को स प दो!’’
दुशल को यह बात थोड़ी अटपटी सी लगी, यह देख महिष ओमे र ने उसे समझाया,
‘‘िव ास रखो दुशल, तु हारे उपरांत केवल यही एक यो ा है जो इस धनुष को उठा सकता है।’’
दुशल अपने अ से उतरा और िव मािजत के िनकट आया। िव मािजत, दुशल क ओर
आ य से देख रहा था।
‘‘इस िवजयधनुष को उठाओ िव मािजत; अब केवल तुम ही हो जो इस असुर को परा त
कर सकते हो।’’ महिष ओमे र ने िव मािजत का उ साह बढ़ाया।
‘‘एक बात का मरण रखना; एक िन वाथ यि , िजसका दय दया से प रपण ू हो,
िजसक बुि ि थर हो, और जो अपने ल य के ित समिपत हो, केवल वही इस िद यधनुष को
उठा सकता है।’’ दुशल ने िव मािजत को िव तार से समझाया।
िव मािजत ने उस िद य धनुष क ओर देख उसे पश िकया।
‘‘ वयं पर पणू िव ास रखो, तब तुम अव य ही इस धनुष को उठा पाओगे।’’ दुशल ने
िव मािजत को ो सािहत िकया।
शी ही िवजयधनुष िव मािजत के हाथ म था, इससे उसका आ मिव ास कई गुना बढ़
गया।
वह दुभ और भैरवनाथ समझ ही नह पा रहे थे िक ये या हो रहा है। महिष ओमे र,
िव मािजत क ओर बढ़े । भैरवनाथ को महसस ू हो गया िक कुछ अनुिचत होने वाला है।
‘‘असुरे र! महाऋिष ओमे र तु हारा वध नह कर पाए, य िक वह अपनी शि याँ खो
चुके ह, िक तु इस बालक िव मािजत के िवषय म म कुछ नह जानता; तु ह महिष ओमे र को
रोकना होगा, वह िद या िव मािजत के हाथ म नह पड़ना चािहए।’’
‘‘अव य गु देव, म ऐसा नह होने दँूगा।’’ दुभ ने भिू म से दो तलवार उठाय और महिष
ओमे र के हाथ और पैर पर चला द ।
महिष ओमे र शि हीन थे, वो अपना संतुलन खोकर भिू म पर िगर पड़े । पंचश उनके
हाथ से िगर गया। घायल ओमे र भिू म पर थे।
वह दुभ और िव मािजत उस अ को लेने दौड़े । दोन यो ा टकरा गए।
‘‘अभी तक तुम यु के िनयम क बात कर रहे थे, िफर असावधान महिष ओमे र पर
तुमने हार य िकया?’’ िव मािजत ने दुभ पर कटा िकया।
‘‘िज ह ने मेरे साथ छल िकया, मुझपर िन:श अव था म आ मण िकया, उनके साथ
म छल य न क ँ ? तु हारे साथ कोई छल क ँ तो कहना।’’ दुभ ने परू े आ मिव ास से उ र
िदया।
दोन यो ा लड़ते रहे । वह महाअ िकसी को ा नह हआ। यह देख महिष ओमे र ने
दुशल क ओर देखा, ‘‘दुशल, भिू म पर िगरा वह अ उठाओ!’’
यह सुनकर दुभ ने भी व बाह को आदेश िदया, ‘‘व बाह! दुशल को वह अ उठाने
से रोको।’’
व बाह भी पंचश क ओर दौड़ा। इससे पहले िक दुशल वह अ उठाता, व बाह ने
उसे रोका, ‘‘ मा करना िम , मुझे ये करना ही होगा, य िक म एक दास हँ।’’ उसने दुशल को
पीछे धकेल िदया।
दुशल उस ण त ध रह गया, और ितरोध नह कर पाया। वह महाअ अब व बाह
के हाथ म था।
‘‘व बाह, वह अ मुझे दो!’’ दुभ ने व बाह को आदेश िदया।
दुशल भिू म पर था। उसने व बाह को रोकने का यास िकया, ‘‘नह व बाह, तुम ऐसा
नह कर सकते।’’
‘‘म एक दास हँ दुशल, मुझे असुरे र का आदेश मानना ही होगा।’’ व बाह ने वह अ ,
दुभ क ओर उछाल िदया।
दुभ ने िव मािजत को पीछे धकेल, वह अ उठा िलया।
‘‘उस ा ण का वध कर दो असुरे र।’’ भैरवनाथ ने दुभ को उकसाया।
दुभ ने वह महाअ , महिष ओमे र क छाती को ल य बनाकर चला िदया।
‘गु देव!’ महिष ओमे र क छाती म उस अ के धँसते ही व बाह त ध रह गया।
िक तु महाऋिष ओमे र ने आशा नह छोड़ी। वह एक च ान क भाँित खड़े रहे ।
‘‘आपक म ृ यु छल से हो, यही आपके िलए उपयु था ा ण देव; आप ऐसी ही म ृ यु के
यो य ह।’’ दुभ ने कटा िकया।
महिष ओमे र ने कोई उ र नह िदया। वह िव मािजत क ओर मुड़े।
‘‘िवजयधनुष उठाओ राजकुमार िव मािजत!’’
उनके आदेश से िव मािजत ने वह िद यधनुष उठा िलया। महिष ओमे र ने अपनी छाती
से वह बाण िनकाला। उनक छाती से भीषण र वाह होने लगा, िजसे देख तीन यो ाओं;
व बाह, िव मािजत और दुशल के ने भीग गए।
‘‘यह लो महाअ , और वध कर दो इस असुर का।’’ महिष ओमे र ने वह महा िद या
िव मािजत के हाथ म िदया।
अब वह महाअ िव मािजत के हाथ म था।
‘‘इसके दय क ओर ल य करो, कुमार।’’
िव मािजत ने महिष ओमे र के आदेशानुसार बाण चलाया। णभर म वायु क गित से
वह बाण दुभ के दय को चीर गया।
‘‘िफर से छल! तुमने एक िन:श यो ा पर हार िकया, तु ह इसका मोल चुकाना होगा
िव मािजत, तु ह इसका मोल चुकाना होगा।’’ पीड़ा से तड़पता हआ दुभ , भिू म पर िगर पड़ा।
उसक चेतना लु हो गयी।
‘‘तुम इसी के यो य थे दुभ ।’’ िव मािजत ने उ र िदया।
‘‘उस अ को इसक छाती से ख च िनकालो, वह गलत हाथ म नह पड़ना चािहए।’’
महिष ओमे र ने िव मािजत को आदेश िदया।
यह सुनकर भैरवनाथ दुभ क ओर बढ़ा।
भैरवनाथ, दुभ के बहत िनकट था। उसने वह अ ख च िनकाला, िक तु शी ही उसे
एहसास हआ िक वह अ गम होता जा रहा है। उसके हाथ जलने लगे, िक तु िफर भी उसने वह
अ नह फका।
िव मािजत ने भी उसके िनकट आकर उसके हाथ से वह अ छीनना आरं भ कर िदया।
यह देख महाऋिष ओमे र ने कुछ मं का जाप आरं भ िकया।
भैरवनाथ ने उस श पर पकड़ बनाने म अपनी परू ी शि लगा दी। उसके हाथ जले जा
रहे थे, िक तु िफर भी वह िद य पंचश को छोड़ने के िलए तैयार नह था।
महिष ओमे र मं का जाप करते रहे । प रणाम सबके सामने आया... एक ती काश
फूटा, और वह महाअ पाँच तलवार म िवभािजत हो गया।
एक तलवार भैरवनाथ के हाथ म अभी भी थी, और दूसरी तलवार िव मािजत के हाथ म
थी; शेष तीन तलवार भिू म पर थ । यह देख महिष ओमे र ने िव मािजत को आदेश िदया,
‘‘िव मािजत, उस नीच असुर व बाह का वध कर दो!’’
िव मािजत आ य म पड़ गया, ‘‘िक तु मुिनवर...’’
‘‘जैसा म कहता हँ वैसा करो।’’ महिष ओमे र पीड़ा म थे, िक तु िफर भी वह ि थर खड़े
थे।
व बाह ने अपने हाथ जोड़े , ‘‘म इसी के यो य हँ कुमार िव मािजत; आप वैसा ही
क िजये, जैसा इ ह ने कहा; मुझे मेरे पाप का द ड दीिजये।’’
िव मािजत ने वह तलवार उठायी, और न चाहते हए भी व बाह के उदर क ओर ल य
कर तलवार चला दी।
‘‘नह ! क जाओ।’’ दुशल चीख पड़ा।
िक तु िवलंब हो चुका था। वह तलवार व बाह के उदर को चीर गयी।
महिष ओमे र ने व बाह को फटकारा, ‘‘तुम मेरी म ृ यु के उ रदायी हो; तुमने
एकच नगरी के संसाधन को न करने का यास िकया, तुमने एकच नगरी के सैिनक
क िनममता से ह या क ; यह मेरा ाप है तु ह, तुम म ृ यु को ा नह होगे... तुम अपनी
सम त मिृ तयाँ खो दोगे, और एक प थर क मरू त बनकर रह जाओगे, जो केवल देख और सुन
सकेगा, िक तु न उसे समझ पायेगा और न ही कुछ कह पायेगा।’’
महाऋिष ओमे र के उस ाप ने शी ही अपना रं ग िदखाना आरं भ कर िदया। व बाह
को महसस ू हआ िक वह अपना पाँव नह िहला पा रहा। वह प थर क मिू त म प रवितत होने
लगा।
‘‘नहा नह ! िकए गु देव, मुझे दुशल को बहत ही मह वपण ू सचू ना देनी है।’’ व बाह
िवचिलत हो उठा। वह भैरवनाथ क योजना के िवषय म दुशल को अवगत करना चाहता था।
दुशल, दौड़ता हआ महिष ओमे र के पास पहँचा और िवनती क , ‘‘कृपा कर, कृपा कर
ऋिषवर; इसे मा क िजये, इसके पाप का उ रदायी म हँ; इसने मुझ पर िव ास कर वयं को
दाँव पर लगाया था... यह मेरा अपराध है मुिनवर।’’
महिष ओमे र भिू म पर िगर पड़े । दुशल ने उ ह थाम िलया। महिष ओमे र ने दुशल क
और देखा, ‘‘म अपने श द को वापस नह ले सकता, िक तु अपराधी तो तुम भी हो, द ड तो
तु ह भी िमलना चािहए; और तु हारा द ड यह है िक जब तक तुम जीिवत हो, व बाह क
मिृ तयाँ कभी वापस नह आयगी, और यह तभी मु होगा, जब राजा भभिू त का कोई वंशज
इसके उदर से तलवार िनकालेगा... िक तु िफर भी इसक मिृ तयाँ लौटकर नह आयगी।
दुशल त ध रह गया, िक तु िफर भी उसने वयं के िवषय म नह सोचा, ‘‘म अपने िम
के िलये म ृ यु का आिलंगन करने को तैयार हँ ऋिषवर, आप िचंितत ना होइए, व बाह जीिवत
रहे गा।’’
दुशल उठा और उसने िव मािजत से िवनती क , ‘‘कुमार, आप राजा भभिू त के वंशज ह,
कृपा करके मेरे िम के उदर से तलवार को िनकाल दीिजये!’’
‘अव य।’ िव मािजत व बाह क ओर बढ़ा।
वह र गु क ि दुभ क ओर गयी। उसके शरीर म जीवन का कोई िच ह
ि गोचर नह हो रहा था। इसके उपरांत उसने व बाह क ओर देख िवचार िकया, ‘यिद
व बाह जीिवत हो गया, तो वह दुशल को मेरी योजना बता देगा... यह दुशल को उकसाने का
उ म अवसर है, म इसे जाने नह दे सकता।’’
भैरवनाथ पीड़ा म था। उसके हाथ जले हए थे। वह मिू छत दुभ के िनकट गया और
उसक न ज क जाँच क । अगले ही ण उसने अ हास कर घोषणा क , ‘‘असुरे र दुभ अभी
जीिवत है, वह तुम सबका नाश करने अव य लौटेगा।’’ यह कहकर भैरवनाथ ने मं का जाप
आरं भ िकया।
अगले ही ण भिू म पर एक िवशाल िछ बन गया। व बाह, दुभ और वह तलवार जो
भैरवनाथ के हाथ म थी, उसम समा गए।
‘‘हम शी लौटगे।’’ भैरवनाथ उन सबके साथ अ य हो गया।
सबके के मुख पर स नाटा छा गया, िकसी को समझ ही नह आया िक उस ण या
हआ। कुछ ही ण क बात थी, और सबकुछ अ य हो गया।
महाऋिष ओमे र िचंितत हो उठे । वह अ यंत पीड़ा म भी थे। तभी महाराज भभिू त भी वहाँ
आ पहँचे।
तीन यो ा अब महाऋिष ओमे र के सम थे। महाऋिष अपनी अंितम साँस ले रहे थे।
उ ह ने बेिड़य म बँधे साकेत क ओर देखा।
‘‘पहले उसे मु करो।’’ महाऋिष ओमे र ने िव मािजत को आदेश िदया।
िव मािजत ने युवराज साकेत को मु िकया।
चार यो ा उनके चार ओर घेरा बनाकर बैठ गए। उ ह ने उन चार क ओर देखा, ‘‘इस
बार म दुभ का वध करने म सफ़ल नह हआ, य िक म िद य पंचश को िनिमत करने म
अपनी अिधकतम शि याँ खो चुका था। वह अधअसुर एक िदन अव य लौटेगा; और यह मेरा ण
है, िक जब वह असुर उठे गा, म उसका वध करने लौटूँगा।’’
इसके उपरांत वह िव मािजत क ओर मुड़े, ‘‘कुमार, तुम कालश का तीक हो,
इसिलए दुभ तब तक सु ाव था म रहे गा जब तक तु हारा या तु हारे िकसी वंशज के र क
बँदू े उसे नह िमलती... वह केवल तभी जागेगा, जब तु हारा कोई वंशज, अपनी इ छा से उस नीच
असुरे र को अपना र दान करे ।’’
‘‘आप िचंितत ना होइए ऋिषवर, ऐसा कभी नह होगा।’’ िव मािजत ने उ ह िव ास
िदलाया।
इसके उपरांत महाऋिष ओमे र ने चार क ओर देखा, ‘‘अब म आप सबको एक
मह वपण ू उ रदािय व स पने जा रहा हँ; इन तीन तलवार का दािय व, यह तीन तलवार अलग
अलग थान पर छुपानी ह गी।’’
महाऋिष ओमे र उ ह समझाते रहे ।
7. र गु का षड्यं
इसके उपरांत, महिष ओमे र ने उन लोग क ओर देखा, ‘‘यह तलवार लो, और जैसा
मने कहा है वैसा ही करो।
‘‘अव य ऋिषवर; यह भेद हमारे बीच रहे गा।’’ महाराज भभिू त ने महिष ओमे र को
िव ास िदलाया।
‘‘तो िफर समय आ गया है, मुझे थान करना होगा।’’ महिष ओमे र ने मं का जाप
आरं भ िकया।
कुछ ही ण म उनक काया िन ाण हो गयी। सारे यो ाओं के ने उनके स मान म
झुक गये।
* * *
महिष ओमे र का शरीर िचता पर था। चार यो ा उनक अं येि म उपि थत थे। राजा
भभिू त, िव मािजत क ओर बढ़े , ‘‘तुम महाऋिष ओमे र के आशीवाद से ज मे हो, इसिलए मुझे
लगता है िक इस िचता को अि न देने का अिधकार केवल तु ह है।’’
‘‘अव य िपता ी, म अपना दािय व िनभाऊँगा।’’ िव मािजत ने मशाल ली और िचता को
मुखाि न दी।
महाऋिष ओमे र के स मान म सभी यो ाओं ने हाथ जोड़े । िचता के परू ी तरह जलने तक
चार यो ा वह खड़े रहे ।
इसके उपरांत साकेत, एकच नगरी लौट गया; और दुशल, िशव या, महाराज भभिू त और
िव मािजत िवदभ के िलये थान कर गये।
* * *
राजा भभिू त अपने क म बैठे थे। उ ह ने दुशल को वहाँ बुलाकर िकया, ‘‘तो या
िनणय िलया है तुमने, अब कहाँ जाओगे?'
‘‘मुझे पाताललोक लौटना होगा, मेरी जा को मेरी आव यकता है।’’ दुशल ने उ र िदया।
‘‘तु हारा कहने का अथ है िक मेरी बहन िशव या अब असुर के साथ रहे गी?’’ महाराज
भभिू त ने िकया।
‘‘हाँ, य नह , अब वो उनक महारानी है।’’ दुशल, राजा भभिू त के मुख के भाव को देख
थोड़ा चिकत हआ।
‘‘वह एक मानव क या है, और तुम उसे असुर क महारानी बनाना चाहते हो; मेरी बात
यान से सुनो दुशल, मेरी बहन मेरे जीवन का अिभ न भाग है, मने उसके िववाह के िलए
सहमित अव य दी है िक तु म तु ह उसे पाताललोक नह ले जाने दँूगा... यिद तुम चाहो, तो तुम
मेरा आधा रा य ले लो।’’ महाराज भभिू त थोड़ा ोध म बोले।
दुशल यह सुनकर ोिधत हो गया, ‘‘अपनी िज ा को रोिकये महाराज भभिू त, म िभ ुक
नह हँ, म र राज हँ।’’
‘‘र राज? एक ऐसा राजा िजसक जा ही उसके िव हो चुक है।’’ राजा भभिू त ने उस
पर कटा िकया।
‘‘बस महाराज भभिू त, आप सीमा पार कर रहे ह।’’ दुशल ोिधत हो उठे ।
इतने ऊँचे वर को सुन, िशव या उस क म आ पहँची।
‘‘ या हआ? आप दोन इस कार लड़ य रहे ह?’’ िशव या ने िकया।
राजा भभिू त िशव या क ओर बढ़े , ‘‘अब यह तु हारे हाथ म है, तु ह िनणय लेना है, तु ह
मेरा साथ चािहए या दुशल का।’’
‘‘आपको हआ या है? आप ऐसा य कह रहे ह?’’ िशव या शंिकत थी।
‘‘यह चुनाव का समय है िशव या; दुशल तु ह पाताललोक ले जाना चाहता है, उससे कह
दो िक तुम उसके साथ नह जा सकती।’’ राजा भभिू त ोिधत थे।
िशव या धमसंकट म पड़ गयी, ‘‘ या हो गया है ये , आप इस कार य यवहार कर
रहे ह?'
राजा भभिू त ने उसे मरण कराया, ‘‘तुम एक मानव क या हो िशव या, तुम पाताललोक
म कैसे रह सकती हो?'
िशव या के ने अ ुओ ं से भर गए, ‘‘मुझे जाना होगा ये । यही मेरा ार ध है, मुझे
र राज के साथ जाना ही होगा।’’
राजा भभिू त यह सुनकर खीझ गए। उ ह ने अपने ने णभर के िलए बंद िकये। अपनी
आँख खोल वह िशव या क ओर मुड़े, ‘‘ठीक है, तुम जाओ इसके साथ; िक तु तु हारे जाने से
पवू म तुमसे कुछ माँगना चाहता हँ।’’
यह सुनकर दुशल का ोध थोड़ा शांत हआ। उसने िकया, ‘‘उिचत है, किहये, या
चािहए आपको?'
‘‘पहले म तुम दोन से वचन चाहता हँ, िक म जो भी माँगँग ू ा, तुम उसे मुझे दोगे।’’
यह अनुमान लगाना किठन था िक राजा भभिू त के मि त क म या चल रहा था, िक तु
इसके उपरांत भी दुशल उनक ओर बढ़ा, ‘‘यह मेरा वचन है; आप जो भी माँगगे, आपको अव य
ा होगा।’’
‘‘वचन िदया है तो भल ू मत जाना!’’ राजा भभिू त ने उन दोन को मरण कराया।
‘‘म नह भल ू ँग
ू ा।’’ दुशल ने िव ास िदलाया।
‘‘उिचत है... म तु हारे पु भानुसेन को चाहता हँ।’’
‘‘ या? यह आप या कह रहे ह ये ? आप चाहते ह िक म अपने पु का याग कर
दँू?’’ िशव या चिकत रह गयी, दुशल क भी मु याँ िभंच गय ।
‘‘हाँ, मुझे वही चािहए; भानुसेन एक मानव के प म ज मा है... म नह चाहता िक वह
असुर के म य रहे ... उसे अतु य बल का वरदान ा है, इसिलए म चाहता हँ िक जब तक वह
इतना अनुभवी न हो जाये िक अपना िनणय वयं ले सके, तब तक वो असुर के साथ न रहे ,
य िक पाताल लोक म न जाने िकतने षड्यं रचे जा रहे ह गे; और सबसे मह वपण ू बात यह है
िक अपने पु से भट करने के इसी बहाने से तुम मुझसे भी िमलने आती रहोगी।’’ राजा भभिू त के
ने म अ ु छलक आये।
‘‘िक तु ये ...।’’
‘‘यह मेरी िवनती है, िशव या।’’ राजा भभिू त ने अपनी बहन को मनाने का य न िकया।
दुशल ने आगे बढ़कर राजा भभिू त का समथन िकया, ‘‘उिचत है, म आपसे सहमत हँ...
यह स य है िक पाताललोक म इस समय अनेक षड्यं चल रहे ह, इसिलए उिचत यही होगा िक
मेरा पु आपके साथ रहे ।’’
‘‘िक तु....।’’ िशव या अभी भी अपने पु का याग करने को तैयार न थी।
दुशल उसके िनकट आया और उसे दय से लगा िलया, ‘‘िचंितत मत हो िशव या; हम हर
वष यहाँ आयगे, हमारा पु सुरि त रहे गा।’’
िशव या अ ु बहाने लगी, िक तु अंतत: वह इसके िलए मान गयी। दुशल ने उसक ओर
देखा, ‘‘अब समय हो गया है, हम जाना चािहए।’’
शी ही दुशल और िशव या थान को तैयार हो गए। वह दोन रथ पर आ ढ़ हए और
अपने ल य क ओर बढ़ चले। राजा भभिू त उ ह जाते हए देखते रह गए।
दुशल और िशव या थान कर गए। अगले ही ण उस थान पर धँुध छा गई। जब धँुध
छटी, तब महाराज भभिू त वहाँ नह थे। ारर क, िव मािजत को सिू चत करने दौड़े ।
वह दुशल और िशव या क या ा जारी थी। अक मात् ही दुशल ने अपने अ क लगाम
ख ची और रथ को रोका।
‘‘ या हआ? आपने रथ य रोक िदया?’’ िशव या ने िकया।
‘‘हमारे रथ के ठीक सामने एक यि भिू म पर िगरा पड़ा है।’’ दुशल ने अपने रथ के
सामने भिू म पर िगरे यि क ओर संकेत िकया।
िशव या ने भी उसक ओर यान से देखा, ‘‘हाँ, तीत होता है िक उसे सहायता क
आव यकता है।’’
‘‘तुम यह को, म देखता हँ।’’ दुशल, रथ से नीचे उतरकर उस यि क ओर बढ़ा।
जैसे ही दुशल उस यि के िनकट आया, वह यि उठ गया और उसने दुशल क ओर
देखा। अगले ही ण वह यि घने वन म भाग िनकला और अ य हो गया।
‘‘यह या था?’’ दुशल चिकत था। वह पीछे मुड़ा।
अगले ही ण वह त ध रह गया... िशव या रथ पर नह थी।
‘िशव या...!’ दुशल, चीखकर रथ क ओर दौड़ा।
उसने हर िदशा म देखा, िक तु उसे खोज नह पाया। उन ण म उसके मि त क ने काय
करना बंद कर िदया, िक तु शी ही उसने अपनी भावनाओं को िनयंि त िकया और िफर से
िच लाया, ‘िशव या।’
‘दुशल!’ िशव या का पीिड़त वर सुनाई िदया।
यह सुनकर दुशल उस वर क िदशा म दौड़ा। वह िशव या िफर से चीखी, ‘दुशल!’
इस बार दुशल को वह वर प सुनाई पड़ा। वह वर पीड़ा से भरा हआ था। दुशल िफर
से उस वर क िदशा म दौड़ा।
अगले ही ण अपने सामने का य देख वह त ध रह गया। िशव या एक व ृ क छाँव
म िगरी पड़ी थी, और राजा भभिू त अपने हाथ म एक लंबा भाला िलए उसके सामने खड़े थे।
‘‘ य ? आप मुझे य मारना चाहते ह ये ?’’ िशव या चिकत थी।
‘‘हाँ, म तु हारी ह या क ँ गा, मुझे तु हारे जैसी बहन नह चािहए, िजसने एक असुर से
िववाह कर िलया।’’ भभिू त ोिधत थे।
‘भभिू त!’ दुशल चीखा, और उसने एक प थर को पैर से मारकर भभिू त क ओर फका।
वह प थर सीधा जाकर राजा भभिू त के हाथ पर लगा। भाला उनके हाथ से िगर पड़ा।
दुशल, िशव या क ओर दौड़ा।
‘‘तुम ठीक हो?’’ दुशल ने िकया।
वह राजा भभिू त, भिू म से उठे । उ ह ने भाला उठाया और दुशल क पीठ पर चला िदया।
यह देख िशव या ने दुशल को बाय ओर धकेल िदया, और वह भाला िशव या के उदर को
चीर गया।
‘िशव या!’ दुशल त ध रह गया। िशव या का र ती ता से बहने लगा।
‘भभिू त!’ दुशल ने उठकर राजा भभिू त के मुख पर भीषण मुि हार िकया।
प रणाम व प, राजा भभिू त र उगलते हए भिू म पर िगर पड़े ।
‘‘म तु हारा वध करने के िलए अव य लौटूँगा, िक तु इस समय मुझे अपनी भाया के ाण
बचाने ह।’’ दुशल ने उसके उदर से भाला िनकाला, और उसे उठाकर वह खड़े एक अ पर
आ ढ़ हो गया।
इसके उपरांत, वह वै क खोज म िनकल पड़ा, ‘‘िचंितत मत हो िशव या, तुम शी ही
व थ हो जाओगी।’’ दुशल ने िशव या को समझाने का य न िकया।
वह दूसरी ओर िवदभ का राजकुमार िव मािजत वन म पहँचा। उसने अपने िपता को भिू म
पर मिू छत पाया। वह उनके िनकट आया और उनके मुख पर जल के छ टे मारे ।
राजा भभिू त क मछ ू ा शी ही टूट गयी। िव मािजत ने उनसे िकया, ‘‘ या हआ
िपता ी? आपके साथ यह सब िकसने िकया?'
राजा भभिू त चिकत िदखाई दे रहे थे, ‘‘म...म नह जानता िक कुछ समय पवू या हआ;
ऐसा तीत हो रहा था जैसे मेरा मि त क िकसी के वश म था... अंितम बात मुझे यह मरण है
िक मुझे कोई स मोिहत करने का यास कर रहा था, इसके उपरांत या हआ, मुझे कुछ मरण
नह ।’’
‘‘और वह यि कौन था?’’ िव मािजत ने िकया।
‘‘म वा तव म नह जानता िक वह कौन था; उसने मुझे घने धँुध म ख च िलया और मेरे
ने क ओर णभर देखा, इसके उपरांत मुझे कुछ भी मरण नह ।’’ राजा भभिू त शंिकत थे।
तभी अक मात् ही िव मािजत क ि अपने सम पड़े एक भाले पर पड़ी। उसने वह
भाला उठाया और उसे यान से देखा, ‘‘यह भाला तो आपका है िपता ी; और यह र से सना
हआ है; इसका अथ यह है िक कुछ बहत अनुिचत हो रहा है।’’
राजा भभिू त उठकर अपने पु के िनकट गए और उस भाले क जाँच क , ‘‘हाँ, यह तो
मेरा है, म...मुझे कुछ मरण नह मने या िकया।’’
‘‘िवचिलत ना होइए, िपता ी, हम शी ही इसका पता लगा लगे।’’ िव मािजत ने अपने
िपता को समझाने का य न िकया।
वह दुशल, वै क खोज म था। वह लगातर अपने अ को चलाये जा रहा था, और अपने
ल य तक पहँचने ही वाला था, तभी कई सैिनक ने उसे घेरकर उसका माग अव कर िदया।
दुशल यह देख बौखला उठा, ‘‘कौन हो तुम सब? मेरे माग से हट जाओ।’’
यह सुनकर उनम से एक ने दुशल को चुनौती दी, ‘‘हम िवदभ के सैिनक है, और हम यह
प आदेश िमला है, िक हम तु ह रोककर रखना है।’’
यह सुनकर दुशल का ोध सीमा पार हो गया। वह अपने अ से उतरा और िशव या को
एक सुरि त थान पर िबठाया। इसके उपरांत उसने िवजयधनुष का आवाहन िकया और उन
सैिनक पर अपने बाण क वषा आरं भ क ।
उसने कुछ ही ण म उनम से कई क िनममता से ह या कर दी, िक तु अगले ही ण
िशव या क चीख सुन वह त ध रह गया।
एक सैिनक ने िशव या क गदन पर अपनी तलवार रखी हई थी।
‘‘नह , ऐसा मत करना।’’ दुशल ने िद यधनुष भिू म पर िगरा िदया और सैिनक से िवनती
क।
िद यधनुष अ य हो गया। दुशल िशव या क ओर दबे पाँव बढ़ा।
‘‘आगे मत आना, अ यथा म इसक ह या कर दँूगा।’’ उस सैिनक ने दुशल को चेतवानी
दी।
िशव या बहत पीड़ा से गुजर रही थी, उसके शरीर से र बह रहा था, दुशल यह देखकर
तड़प उठा। तभी उसक ि एक छोटे से प थर पर पड़ी। उसने उस प थर को पैर से मारकर उस
सैिनक के हाथ क ओर ल य कर उछाला।
प रणाम व प, तलवार उस सैिनक के हाथ से िगर पड़ी। दुशल उसक ओर दौड़ा, और
णभर म उसक छाती पर भीषण हार कर उसका दय चीर डाला।
वह सैिनक उसी ण मर गया। दुशल, िशव या क ओर बढ़ा, ‘‘िचंता मत करना िशव या,
तुम व थ हो जाओगी।’’ उसने उसे िफर से उठाया और वै क खोज म दौड़ा।
िक तु शी ही उसने यह अनुभव िकया िक िशव या का शरीर कोई हरकत नह कर रहा।
‘‘िशव या! िशव या! अपने ने खोलो िशव या।’’ दुशल ने उसे उठाने का यास िकया।
वह र गु भैरवनाथ यह य, एक व ृ के पीछे खड़ा होकर देख रहा था। उसने िवचार
िकया, ‘योजना सफल हई।’ यह मानव सेना वा तव म असुर सेना थी, जो मानव का प धरे हए
थी; यह केवल तु हारा समय न करने के िलए था, और तुम इसम फँस गए, अब तुम वही
करोगे जो म चाहँगा।’’
शी ही दुशल, वै क कुिटया म आ पहँचा।
‘‘कृपा क रए वै राज! इसके ाण बचा लीिजये।’’ दुशल ने वै से िवनती क ।
‘‘ठीक है, ठीक है, आप इ ह श या पर िलटा दीिजये।’’ वै ने श या क ओर संकेत
िकया।
दुशल ने िशव या को श या पर िलटाया। वै ने उसक दय गित और नाड़ी क जाँच क ।
‘‘नह , आपको िवलंब हो गया; म मा चाहता हँ, िक तु यह जीिवत नह है।’’ वै ने उसे
मतृ घोिषत कर िदया।
दुशल णभर के िलए त ध रह गया। वह िशव या क ओर बढ़ा और उसके मुख क ओर
देखा, ‘‘आप इसको एक बार देिखये, ऐसा तीत होता है जैसे अगले ही ण बोल पड़े गी, कृपया
एक बार िफर जाँच ल।’’
‘‘ठीक है, आपक संतुि के िलए म एक बार िफर जाँच कर लेता हँ।’’ वै ने िशव या क
दोबारा जाँच क ।
‘‘नह , म मा चाहता हँ, यह जीिवत नह है।’’ वै ने पुि कर दी।
दुशल मौन सा हो गया। वह एक श द भी बोलने म असमथ था। वह भिू म पर बैठ गया। उसे
गहरा झटका लगा था। उसक बुि ने काय करना बंद सा कर िदया था।
‘‘धैय रिखये; इस संसार म कोई अमर नह ; सबक म ृ यु एक न एक िदन होती ही है।’’
वै ने दुशल को समझाने का यास िकया।
दुशल ने अपनी भावनाओं पर िनयं ण रखने का य न िकया। वह भिू म से उठा, ‘‘आप
इसका यान रिखयेगा, मुझे कुछ आव यक काय समा करना है, म शी ही लौटूँगा।’’
दुशल अपने अ पर आ ढ़ हआ और अपने ल य क ओर बढ़ चला।
शी ही वह िवदभ के राजमहल के मु य ार पर पहँचा।
‘भभिू त!’ दुशल दहाड़ा।
यह वर सुनकर महाराज भभिू त और िव मािजत, महल के मु य ार पर आ पहँचे।
‘‘ या हआ दुशल? तुम इस भाँित य चीख रहे हो?’’ महाराज भभिू त ने िकया।
‘‘म तुम पर य चीख रहा हँ? या तु ह वाकई लगता है िक मुझे यह समझाने क
आव यकता है िक म तुम पर य िच ला रहा हँ?’’ दुशल ने उ ह ोध से देखा।
राजा भभिू त ने उसे फटकारा, ‘‘म नह जानता िक तुम िकस िवषय म बात कर रहे हो;
या तुम प प से कह सकते हो?’’
दुशल ने िव मािजत क और देखा, ‘‘ओह! म समझा, तुम अपने पु के सम अपना
अपराध नह वीकारना चाहते, अ यथा तुम इसक ि म िगर जाओगे; िक तु तु ह द ड तो
अव य िमलेगा।’’
दुशल ने िद य िवजयधनुष का आवाहन िकया। उसने धनुष उठाया, बाण चढ़ाया और राजा
भभिू त क ओर ल य साधा।
यह देख िव मािजत ने भी अपना धनुष उठाया और अपने िपता क र ा के िलए दुशल
के सम आ खड़ा हआ।
‘‘मुझे इससे कोई अंतर नह पड़ता िक मेरे माग म कौन खड़ा है; आज जो भी मेरे माग म
आयेगा, म उसका वध िनममता से क ँ गा, अब हर ओर केवल िवनाश होगा।’’ दुशल ने यंचा
ख ची और बाण का संधान िकया।
िव मािजत ने उसके बाण का उ र िदया। बाण से बाण टकराकर िगर गए। वह
कुछ ही ण तक चला।
अक मात् ही दुशल को कुछ अजीब सा महसस ू हआ। िवजयधनुष का भार बढ़ता गया।
दुशल अब उसका भार नह सँभाल पा रहा था।
अगले ही ण िव मािजत का एक बाण दुशल के दाय हाथ पर लगा। िवजयधनुष दुशल
के हाथ से िगर गया।
दुशल यह देख आ यचिकत रह गया, ‘यह या हो रहा है? म इस धनुष पर पकड़ य
नह बना पा रहा? मुझे इतनी कमजोरी य महसस ू हो रही है?’’ दुशल िवचिलत था।
वह िव मािजत ने दूसरा बाण चलाया और दुशल का कंधा घायल कर िदया। इसके
उपरांत उसने दुशल का वध करने हे तु िद या का आवाहन िकया।
अगले ही ण, वहाँ घना धुआँ छा गया। एक हाथ ने दुशल को ख च िलया। जब धुआँ छं टा,
तब दुशल वहाँ नह था।
‘‘कहाँ गया कायर?’’ िव मािजत चीख पड़ा।
तभी एक वै , िवदभ के महल पधारे । वह महाराज भभिू त क ओर बढ़े , ‘‘आपके िलए एक
सच ू ना है महाराज!’’
‘‘कैसी सच ू ना वै जी?’’ राजा भभिू त ने थोड़े अचरच से िकया।
‘‘आपक बहन िशव या इस संसार म नह रही; यहाँ जो भी हआ, मने सब कुछ देखा;
दुशल अपनी प नी क म ृ यु के कारण ोिधत है।’’ वै ने िव तार से बताया।
राजा भभिू त यह सुनकर त ध रह गए, ‘‘ या? यह आप या कह रहे ह, मेरी बहन
जीिवत नह है?'
‘‘यही स य है महाराज, म अस य य कहँगा?’’ वै ने राजा भभिू त को समझाने का
यास िकया।
िव मािजत, राजा भभिू त क ओर बढ़े , ‘‘शांत हो जाइए िपता ी, यिद मेरा अनुमान सही
है, तो कदािचत् आपने ही अपनी बहन क ह या क है।’’
राजा भभिू त, िव मािजत पर िच ला उठे , ‘‘ या? यह या लाप कर रहे हो तुम
िव मािजत?’’
‘‘शांत हो जाइए िपता ी, म केवल अनुमान लगा रहा हँ; य िक आप स मोहन म थे और
आपका भाला र रं िजत था।’’ िव मािजत ने िव तार से बताया।
‘‘नह नह , ऐसा नह हो सकता; म अपनी ही बहन क ह या नह कर सकता।’’ राजा
भभिू त के ने से अ ु छलक आये।
‘‘धीरज रिखये िपता ी; हम यह पण ू िव ास से तो नह कह सकते; हाँ यह स य है, िक
आपने जो भी िकया अपनी इ छा से नह िकया।’’
वह दूसरी ओर दुशल ने अपने ने खोले। र गु भैरवनाथ उसके सम खड़ा था।
‘‘आप? आप यहाँ या कर रहे ह?’’ दुशल ोिधत हो गया।
‘‘म यहाँ तु हारी सहायता करने आया हँ दुशल।’’ भैरवनाथ ने उसक ओर दया भरी ि
से देखा।
दुशल, भिू म से उठा और भैरवनाथ पर कटा िकया, ‘‘वह यि िजसने मेरे िव
षड्यं रचा; मेरी जा को मेरे िव कर िदया, वह आज ये कह रहा िक वह मेरी सहायता करने
आया है, बड़े आ य क बात है।’’
भैरवनाथ ने दुशल को फटकारा, ‘‘मने षड्यं रचा, य िक तुम अनुिचत माग पर थे; मेरे
जीवन का केवल एक ही ल य है, असुरजाित का उदय... तुम ही बताओ, तुमने मानव का साथ
िदया, असुर और मानव म शांित थािपत करने का यास िकया, और अब प रणाम तु हारे
सामने है।’’
दुशल कुछ ण मौन रहा। ‘‘ या हआ? मेरे का उ र नह है न तु हारे पास।’’
भैरवनाथ ने िकया।
‘‘आपने मेरे पवू ज, भगवान महाबली के िवषय म सुना है? वह भी तो अपने शासन म
इ ह आदश और िनयम का पालन करते थे।’’ दुशल ने उ र िदया।
‘‘हाँ, म तुमसे सहमत हँ; महाराज महाबली शांित के प म थे, उ ह ने िबना भेदभाव
िकये अपनी जा का यान रखा, िक तु या तु ह ात नह िक इससे उ ह या ा हआ...
देवताओं ने उनके िव षड्यं रचे, और अंततः उ ह उनक ही भिू म से िनवािसत होना पड़ा।’’
भैरवनाथ दुशल को उकसाने का परू ा य न कर रहा था।
दुशल के ने म अ ु छलक आये, िक तु अगले ही ण उनम ितशोध क वाला
धधकने लगी, ‘‘आप कदािचत् उिचत कह रहे ह; यह मानव िव ास के यो य कभी थे ही नह ।’’
‘‘इसीिलए म तुमसे कहता था, उनका ज म ही दास व के िलए हआ है; हम उनपर शासन
करना चािहए।’’ भैरवनाथ ने आग म घी डालने का य न िकया।
‘‘वो दास व के िलए ज मे ह या नह , यह म नह जानता, िक तु एक बात म कहना
चाहता हँ, राजा भभिू त और उसके सम त प रवार को मेरी प नी क म ृ यु का मोल चुकाना
होगा; म उसके स पण ू प रवार का नाश कर, अपने पु भानुसेन को ले आऊँगा।’’ दुशल ने
िवजयधनुष का आवाहन िकया।
जैसे ही वह धनुष उसके हाथ म कट हआ, उसका भार बढ़ता गया और वह दुशल के
हाथ से िगर गया।
यह या हो रहा है? म इस धनुष को य नह उठा पा रहा? दुशल शंिकत था।
अक मात् ही धनुष से एक वर सुनाई िदया, ‘‘तुम अब इसे नह उठा सकते दुशल,
य िक अब तुम इसके यो य नह रहे ; तु हारे दय म कोई दया नह बची, तु हारा कोई ल य
नह रहा... अब तुमम केवल और केवल िवनाश क आकां ा बची है।’’
‘‘मन छोटा मत करो दुशल; इस धनुष को इतना मह व मत दो; वयं पर िव ास रखो...
तुमम अपने ल य तक पहँचने का साम य है।’’ भैरवनाथ ने दुशल को े रत िकया।
दुशल ने कुछ ण के िलए अपने ने बंद िकये। कुछ ण उपरांत उसने अपने ने खोले
और भैरवनाथ क ओर देखा, ‘‘म आपसे सहमत हँ; म िवदभ का सा ा य िमटने क साम य
रखता हँ, और उनके नाश का समय आ गया है।’’ दुशल ने यान से तलवार ख च िनकली।
‘‘नह नह , अभी उिचत समय नह है, तुम उ ह अभी परा त नह कर सकते; मने
िव मािजत के िवषय म पता लगाया है; उसने दुभ को परा त िकया है, और पंचशि धारक
वह यो ा अभी तक सु ाव था म है; िव मािजत, महिष ओमे र के आशीवाद से ज मा है, वह
कालश का तीक है... म नह जानता वा तव म इसका अथ या है, िक तु इस बार
िव मािजत का सामना करने से पवू तु ह अपनी शि बढ़ानी होगी, य िक िव मािजत,
भगवान परशुराम के िश य महाऋिष किपश का िश य भी है।’’ भैरवनाथ ने िव तार से बताया।
‘‘उिचत है, िक तु सव थम मुझे अपनी प नी िशव या का अंितम सं कार करना है; मुझे
वहाँ जाना होगा।’’
‘‘हाँ हाँ, अव य।’’
दुशल वहाँ से थान कर गया।
िवदभ रा य म राजा भभिू त और िव मािजत, िशव या क िचता जलाने वाले थे। राजा
भभिू त, िचता को जलाने आगे बढ़े ।
अक मात् ही एक भाला ती गित से आया और राजा भभिू त के हाथ से टकराया। जलती
मशाल उनके हाथ से िगर पड़ी। वह पीछे मुड़े। दुशल उनके सम खड़ा था।
‘‘तु हारा साहस कैसे हआ उसके शरीर को पश करने का?’’ दुशल अपने अ से
कूदकर राजा भभिू त के िनकट आया।
‘‘पहले तुमने मेरी प नी क ह या क , और अब उसक िचता जलाने आये हो।’’ दुशल
राजा भभिू त पर दहाड़ा।
यह देख िव मािजत ने ह त ेप िकया, ‘‘ क जाइए; वह केवल एक ग़लतफहमी थी;
मेरे िपता को िकसी ने स मोहन म बाँध िलया था।’’
‘‘ या वा तव म? तुम एक यो ा हो िव मािजत, इस कार का अस य तु ह शोभा नह
देता; तु हारा िपता अपराधी है, और तु ह यह वीकार करना ही होगा। मुझे तो तभी इसक मंशा
पर संदेह हो गया था, जब इसने मेरे पु भानुसेन को मुझसे माँगा था, और अब यह अपना जीवन
बचाने के िलए अस य बोल रहा है। यिद यह स मोहन म था भी, तो जब म िशव या को वै के
पास ले जा रहा था, तब िवदभ के िजन सैिनक ने मेरा माग अव िकया, या वह सभी
स मोहन म थे? मुझे तो ऐसा नह लगता।’’ दुशल ने राजा भभिू त पर आरोप लगाया।
िव मािजत और भभिू त यह सुनकर त ध रह गए। उ ह सझ ू ही नह रहा था िक वह या
कह।
‘‘यिद इसने अपनी बहन से वा तव म ेम िकया होता, तो संसार का कोई स मोहन इसे
इसक अपनी बहन क ह या करने पर िववश नह कर पाता; वा तव म यह राजा कहलाने के
यो य तो है ही नह , यह तो ल जा का एक तीक है।’’ दुशल, राजा भभिू त पर कटा करता
गया।
िव मािजत का ोध बढ़ता गया, उसक पकड़ उसक तलवार पर कसती चली गयी।
राजा भभिू त ने उसे रोका, ‘‘धैय रखो िव मािजत, यह जो करना चाहता है इसे करने दो।’’
‘‘म आज कुछ नह क ँ गा, य िक आज िशव या क अं येि है।’’ दुशल ने िव मािजत
क ओर देखा और जलती मशाल उठायी।
इसके उपरांत वह उस िचता क ओर बढ़ा, िजस पर िशव या लेटी थी। उसने िशव या के
मुख क ओर देखा और उसका माथा चम ू ा। इसके उपरांत, वह पीछे हटा और िचता को अि न दी।
उसके ने अ ुओ ं से भरे थे।
दुशल के ने , ितशोध क अि न से भी जले जा रहे थे, ‘‘यह मेरा ण है, िक म अपनी
भाया क म ृ यु का ितकार अव य लँग ू ा; म तुम सबके िवनाश का ण लेता हँ, ह यार ; और
उससे पवू म इस धरा का याग नह क ँ गा, और यिद म अपना ितशोध लेते हए म ृ यु को भी
ा हो गया, तब भी म अपना ण परू ा करने अव य लौटूँगा।’’
इसके उपरांत वह राजा भभिू त क ओर मुड़ा, ‘‘ ती ा करना मेरी, म शी ही लौटूँगा।’’
दुशल अपने अ पर आ ढ़ हआ और अपने ल य क ओर थान कर गया।
शी ही दुशल और भैरवनाथ साथ म पाताललोक पहँचे।
र गु भैरवनाथ ने असुरसेना को एक थान पर एक िकया और दुशल को उनके
सम ले आया।
यह देख असुर क सेना म खुसफुसाहट आरं भ हो गयी।
‘‘ठहरो! तुम सबके िलए एक सच ू ना है।’’ भैरवनाथ ने उ ह आदेश िदया।
असुर मौन हो गए। इसके उपरांत भैरवनाथ ने कहना आरं भ िकया।
‘‘असुरे र दुभ नह रहे , इसिलए मने िनणय िलया है िक तु हारा पवू नायक िफर से
तुम सबका नेत ृ व करे गा; पवू दुशल क अब म ृ यु हो चुक है, उसने; अपने दय म मानव के
ित संवेदना खो दी है, अब यह पण ू प से असुरजाित के उ थान के िलए काय करे गा... आज म
तु हारा प रचय असुर के नए नायक र राज माकश से करवाने जा रहा हँ।’’
दुशल ने आ य से भैरवनाथ क ओर देखा।
‘‘आ य म मत पड़ो दुशल! तु हारा नाम दुशल तब था, जब तुम शांित के पुजारी थे, तुम
मानव और असुर , दोन जाित के उ थान के िलए काय करते थे; िक तु अब तुम केवल असुर
के लाभ और उ नित के िलए काय करोगे, और मानव के िलए भय का पयाय बनोगे।’’
‘‘र राज माकश क .....
‘‘जय हो! जय हो, जय हो! असुरसेना, नये र राज क जयजयकार करने लगी।
‘‘अब समय आ गया है िवदभ पर आ मण करने का; आप या कहते ह गु देव?’’
दुशल, भैरवनाथ क ओर मुड़ा।
‘‘गु देव? तुमने मुझे गु देव कहा?’’ भैरवनाथ चिकत था।
‘‘हाँ; य नह ; आपने मुझे उिचत माग िदखाया, याय का माग िदखाया; इसिलए म
आपको अपना गु वीकार करता हँ; हम यु पर जाना चािहए; अब न कोई बंधन होगा, और न
कोई िनयम... साम दाम द ड भेद िकसी का भी योग करना पड़े , मुझे मेरा श ु कैसे भी मत ृ
चािहए।’’ दुशल ने तलवार ख च िनकाली।
‘‘यिद तुमने मुझे अपना गु वीकार कर ही िलया है, तो अपनी भावनाओं पर िनयं ण
रखो; िवदभ पर आ मण करने का यह उिचत समय नह है।’’
र राज माकश को यह बात उिचत नह लगी, ‘‘यह उिचत समय नह है, यह आप या
कह रहे ह? म उ ह परािजत करने म स म हँ।’’
‘‘नह , तुम नह हो; हाँ, महाराज भभिू त और उनक सेना को तुम परा त कर सकते हो,
िक तु िव मािजत; तुम उसे परािजत नह कर पाओगे; वो महाऋिष ओमे र के आशीवाद से
ज मा है, और महिष किपश का िश य भी है; और महिष किपश के िवषय म म तु ह बता दँू, िक
वह भगवान परशुराम के े िश य म से एक ह।’’ भैरवनाथ ने िव तार से बताया।
‘िक तु।’
‘‘नह माकश, वयं पर िनयं ण रखो; तु ह अपनी शि बढ़ाने क आव यकता है;
तु हारे छह भाई ह, उ ह तु हारी आव यकता है। तु हारे छह भाई ि काल भैरव, दुदु भी, दंशक,
ि भुज, अधीम और िहिड ब अभी प रप व नह हए ह, उ ह अपनी शि बढ़ाने के िलए किठन
प र म और तप या क आव यकता है, तािक वो तु हारा साथ दे सक; इसिलए मेरा सुझाव है
िक तु ह अपने ाताओं के साथ कठोर तप या म लीन हो जाना चािहए... तु ह ऐसे वरदान क
आव यकता है जो तु ह लगभग अमर बना दे, तभी तुम अपनी प नी क म ृ यु का ितशोध ले
पाओगे।’’ भैरवनाथ ने उसे समझाया।
‘‘उिचत है, म आपके िदखाए माग पर ही चलँग ू ा।’’ माकश ने तलवार रखी और अपने
क क ओर बढ़ा।
र गु भैरवनाथ, असुर से वाता करता रहा।
* * *
सोलह वष बाद
युवा िव मािजत अब चौतीस वष के हो चुके थे। सुहानी सुबह थी। वह अपने अनुज
ाताओं वीरसेन और भानुसेन के साथ नगर मण पर िनकले थे।
तीन ाता वन से होकर जा रहे थे।
तभी वहाँ धंुध छा गयी। उनम से िकसी को कुछ िदखाई नह दे रहा था।
कुछ समय प ात अब धुंध छटी, िव मािजत और वीरसेन यह देख अचंिभत रह गए िक
भानुसेन वहाँ उपि थत नह था।
‘‘भानुसेन! भानुसेन...! िव मािजत ने उसे खोजने के िलए आवाज लगायी।
वीरसेन ने भी उनका अनुसरण िकया।
दोन ाता भानुसेन क खोज म लग गए, िक तु वह उ ह नह िमला। िक तु उ ह ने हार
नह मानी, उ ह ने अपनी खोज जारी रखी।
जब भानुसेन ने अपनी आँख खोली, उसने वयं को एक बंद क म पाया। वह भारी
बेिड़य से बँधा हआ था।
शी ही ार खुला, और र राज के छह भाईय ने र गु के साथ उस क म वेश
िकया।
भानुसेन यह देख ोिधत हो उठा, ‘‘कौन हो तुम सब? और तुमने मेरा अपहरण य
िकया?'
भैरवनाथ आगे आया, ‘‘िचंितत मत हो भानुसेन, हम तु हारे श ु नह ह।’’
‘‘तो िफर मुझे इन भारी बेिड़य से य बाँध रखा है?’’ भानुसेन ने िकया।
‘‘ठीक है, यिद तु ह िव ास नह हो रहा, तो म तु ह मु कर देता हँ।’’ भैरवनाथ ने
ि काल भैरव को संकेत िदया।
उसके आदेश पर ि काल भैरव आगे बढ़ा और उसने भानुसेन क बेिड़याँ खोल उसे मु
कर िदया।
अगले ही ण भानुसेन उठा और भैरवनाथ को भिू म पर धकेल िदया। माकश के छह
भाइय ने उसे पकड़ने का यास िकया, िक तु वह उसे रोकने म सफल नह हो पाए। भानुसेन ने
उन सबको पीछे धकेल िदया, इसके उपरांत उसने खुले ार क ओर देखा, और उस ओर भागा।
वह ार से बाहर आया, िक तु शी अपने सम बैठे यि को देख उसके कदम िठठक गए।
उसक ि िजस यि पर पड़ी, वह कोई और नह , र राज माकश था। यह अनुमान
लगाना किठन था िक भानुसेन के कदम उसे देख य िठठक गए थे, जो घोर तप या म य त
था। उसक आँख बंद थ । भानुसेन उसक ओर एकटक देखे जा रहा था।
‘‘अब क य गए? जाते य नह ? यिद तु ह अपनी नकली पहचान के साथ ही जीवन
जीना है तो चले जाओ।’’ भैरवनाथ ने भानुसेन को फटकारा।
‘‘नकली पहचान?’’ भानुसेन णभर के िलए गहन िवचार म खो गया।
‘‘ या हआ? िकन िवचार म खो गए?’’ भैरवनाथ ने िकया।
‘‘म यह िवचार कर रहा था िक मने यह मुख कह तो देखा है।’’ भानुसेन अभी भी माकश
क ओर ही देख रहा था।
‘‘हाँ, तुमने यह मुख अव य देखा होगा, जानते हो य ? य िक यह तु हारे िपता ह।’’
यह सुनकर भानुसेन मु कुराया और भैरवनाथ क ओर देखा, ‘‘पहले यह बताइए िक
आप कौन ह?'
‘‘म असुर का गु भैरवनाथ हँ।’’
‘‘ओह, भैरवनाथ! बालपन से तु हारे िवषय म सुनता आ रहा हँ; मुझे भलीभाँित ात है
िक तुम िकस कार के यि हो... तो तुम यह सोच भी कैसे सकते हो, िक म तुम पर िव ास
क ँ गा?’’ भानुसेन का यान िफर से माकश क ओर गया।
भैरवनाथ, भानुसेन को देख मु कुराया, ‘‘ या तुमने कभी र राज दुशल के िवषय म
सुना है?'
भानुसेन ने कुछ ण िवचार िकया, ‘‘हाँ, मने सुना है; वह एक महान यो ा थे, और हमारे
प रवार के सद य भी; िक तु उनक प नी क म ृ यु के उपरांत वो कहाँ गए, यह कोई नह
जानता, उनके िवषय म हमारे पास कोई सच ू ना नह है।’’
‘‘दुशल, िजसने सदैव आदशवाद का माग चुना; उसने सदैव असुर और मानव , दोन के
िहत के िलए काय िकया; वह मेरे िवचार के िव था, और प रणाम तु हारे सामने है... सोलह
वष से यह केवल अपनी प नी क म ृ यु का ितशोध लेने के िलए तप या कर रहा है।’’
भैरवनाथ ने माकश क ओर देखा।
भानुसेन, एकटक माकश क ओर देखे जा रहा था, ‘‘तु हारे कहने का अथ है, िक यही
र राज दुशल ह, जो वष से लापता ह।’’
‘‘हाँ, यह वही ह, जो िपछले सोलह वष से अपनी प नी िशव या क म ृ यु के ितशोध के
िलए तप या कर रहे ह; और जानते हो म िकसके िवषय म बात कर रहा हँ? म तु हारी माता
िशव या के िवषय म बात कर रहा हँ।’’ भैरवनाथ ने उसे भड़काने का परू ा य न िकया।
भानुसेन कुछ ण के िलए त ध रह गया, िक तु उसने वयं को शी ही सँभाल िलया
और भैरवनाथ क ओर देखा, ‘‘ या तु ह वा तव म लगता है िक म तुम पर िव ास क ँ गा? मेरे
िपता का नाम महाराज भभिू त है, और मेरी माता का नाम नंदनी है।’’
‘‘ या तुमने कभी अपनी माता का मुख देखा है?’’ भैरवनाथ ने िकया।
‘‘नह , मने नह देखा, य िक मेरे ज म के समय ही मेरी माता क म ृ यु हो गयी थी।’’
‘‘ या प रहास है ये; िवदभ क महारानी नंदनी क म ृ यु अपने दूसरे पु वीरसेन को
ज म देते समय ही हो गई थी; और तु हारे अित र , तु हारे रा य म यह सभी जानते ह।’’
भैरवनाथ ने उस पर ताना कसा।
भानुसेन कुछ ण मौन रहा। भैरवनाथ से उसका मौन सहन न हआ, ‘‘तुम राजा भभिू त
क बहन िशव या के पु हो; तु हारी माता िशव या को एक असुर, दुशल से ेम हो गया था,
उसने उससे िववाह कर िलया, िक तु राजा भभिू त से यह सहन नह हआ िक उसक बहन का
िववाह एक असुर से हो, इसिलए उसने छल से अपनी ही बहन क ह या कर दी, और तु ह भी
उसने इसिलए गोद िलया, य िक तु ह अतु य बल का वरदान ा है; और जानते हो यह
वरदान तु ह िकसने िदया? तु हारे िपता के सबसे ि य िम महाबली व बाह ने।’’ भैरवनाथ ने
उसे भड़काने का परू ा यास िकया।
भानुसेन दुिवधा म पड़ गया। वह सोच नह पा रहा था िक उसे भैरवनाथ पर िव ास
करना चािहए या नह । वह मरू त क भाँित खड़ा र गु क ओर देख रहा था।
कुछ समय प ात उसने भैरवनाथ से िकया, ‘‘ या अभी जो कुछ भी कहा है, उसे
आप िस कर सकते हो?'
भैरवनाथ, भानुसेन को देख मु कुराया। वह उसक ओर बढ़ा, ‘‘म अपना हरे क कहा श द
स य तो िस नह कर सकता, िक तु म यह अव य िस कर सकता हँ िक तुम एक असुर क
संतान हो, तु हारे शरीर म आसुरी अंश है, और यही कारण है िक जब तुमने अपने िपता को पहली
बार देखा, तुम उनक ओर आकिषत हए।’’
‘‘ठीक है, म तु ह एक अवसर देता हँ; अपने श द को िस करो, अ यथा मेरा माग छोड़
दो।’’ भानुसेन, लगभग भैरवनाथ के जाल म फँस चुका था।
‘‘ठीक है, म यह तु ह बता दँू िक हरे क असुर के पास ज म से ही कोई न कोई िवशेष
शि होती है, िक तु उस शि को कठोर साधना से बल करना पड़ता है। अपने सम खड़े
इन छह असुर क ओर देखो, यह तु हारे िपता के अनुज ह; इन सबके पास ज म से ही कोई न
कोई छुपी हई शि है, तु हारे पास भी अव य होगी।’’
भैरवनाथ कहता गया, ‘‘जब भी एक असुर अपनी सु शि य को खोजने का यास
करता है, उसक आँख म कुछ ण के िलए लािलमा छा जाती है, और उसका परू ा शरीर एक
महाकाय असुरके समान हो जाता है; इसिलए मुझे लगता है िक तु ह कम से कम एक हर तक
साधना पर बैठना चािहए, तु ह अपनी शि य का पहला संकेत अव य ा होगा, और तुम
अपने शरीर म प रवतन महसस ू करोगे।’’
भानुसेन अभी भी शंिकत था, ‘‘म नह समझ पा रहा िक तुम या कह रहे हो; िकस
कार क साधना?'
भैरवनाथ ने भानुसेन को समझाया, ‘‘यहाँ बैठो, और अपने मि त क को कि त करो,
तु ह तु हारा उ र शी ा होगा।’’
भानुसेन साधना पर बैठ गया।
भैरवनाथ ने उसक ओर देखा, और उ सुकता से ती ा क । एक हर के उपरांत
भानुसेन ने अपने ने खोले।
अक मात् ही वह चीख पड़ा, वह भीषण पीड़ा म था।
‘‘आईना लाओ, शी ता करो।’’ उसने एक असुर को आदेश िदया।
भानुसेन भिू म से उठा। उसने वयं को उस आईने के सम पाया। वह यह देख त ध रह
गया िक उसक आँख म लािलमा छाई हई है, दाँत लंबे और नुक ले हो गए ह, और उसके शरीर
पर बाल क मा ा बहत अिधक बढ़ गयी है।’’
‘‘यही तु हारी वा तिवकता है भानुसेन; तुम र राज दुशल के ये पु हो, और
भगवान महाबली के वंशज भी।’’ भैरवनाथ, भानुसेन को उकसाता रहा।
कुछ ही ण म भानुसेन सामा य हो गया।
‘‘तो यह तु हारा स य है भानुसेन; तुम असुर के भावी राजा हो, और अब भी तुम मानव
के साथ रह रहे हो।’’ भैरवनाथ, भानुसेन को उकसाने म लगभग सफल हो चुका था।
सोलह वष य भानुसेन ने माकश क ओर देखा और भैरवनाथ से िकया, ‘‘मेरी माता
क म ृ यु कैसे हई, मुझे परू ी कथा िव तार से बताइए!’’
भैरवनाथ ने िशव या क म ृ यु क स पण ू कथा कह सुनाई, िक तु उसने राजा भभिू त का
वही प उसके सम रखा जैसा, उसने दुशल के सम रखा था।
भानुसेन यह सब सुनकर ोिधत हो गया। उसने यान से तलवार ख च िनकाली और
दहाड़ा, ‘‘म अपने िपता क इ छा पण ू क ँ गा; म िवदभ के स पण
ू राजप रवार का िवनाश कर
दँूगा।’’
‘‘नह , तुम ऐसा नह कर सकते; स पण ू आयवत म ऐसा कोई यो ा नह , जो
िव मािजत को परािजत कर सके... तु हारे िपता घोर तप या कर रहे ह, य िक वह ऐसा
वरदान ा करना चाहते ह, तािक वह िव मािजत को परा त कर सक, िक तु मुझे शंका है िक
वह सफल हो पायगे; िव मािजत िवदभ का र ाकवच है, और उस कवच को िकसी छल ारा ही
तोड़ा जा सकता है।’’ भैरवनाथ ने िव तार से बताया।
‘‘तो आप ही बताइए िक म या क ँ ? मेरे हाथ राजा भभिू त के र के यासे हो रहे ह।’’
भानुसेन का ोध बढ़ता जा रहा था।
‘‘तुम िवदभ जाओ, और ऐसे यवहार करो जैसे तु ह कुछ भी ात नह हआ; जैसे ही
तु हारे िपता क तप या पण ू होगी, हम आगे क योजना पर काय आरं भ करगे।’’ भैरवनाथ ने
सुझाव िदया।
‘‘ठीक है, म वापस जाता हँ, िक तु म ऐसा कैसे क ँ गा? मेरे कहने का अथ है िक
िव मािजत और वीरसेन मेरी खोज म ह गे।’’
‘‘िचंता मत करो, उसके िलए भी मेरे पास एक योजना है।’’ भैरवनाथ ने भानुसेन को
अपनी कुिटल योजना के िवषय म बताना आरं भ िकया।
वह िव मािजत और वीरसेन, भानुसेन क खोज म वन म भटक रहे थे। सय ू ा त होने को
था, वह अभी तक उसे खोज नह पाए थे।
‘‘हम भानुसेन क खोज करने के िलए और सैिनक क आव यकता है; हम अपने
सैिनक को वन म फै लाना होगा।’’ िव मािजत ने अपने अ क िदशा बदली। वीरसेन ने उनका
अनुसरण िकया।
वह अपने महल क ओर लौट रहे थे, िक तु शी ही भानुसेन को अपने सम देख वह
दोन त ध रह गए। वह भिू म पर िगरा पड़ा था। िव मािजत और वीरसेन अपने-अपने अ से
कूदे और उसके िनकट आये।
‘‘यह तो बुरी तरह घायल है; हम इसे महल ले जाना होगा।’’ िव मािजत ने भानुसेन को
उठाया और महल क ओर दौड़े ।
शी ही राजवै को बुलवाया गया, और राजकुमार भानुसेन का उपचार आरं भ हआ।
कुछ समय उपरांत, वै भानुसेन के क से बाहर आये, ‘‘ तीत होता है िक व य पशुओ ं
के समहू ने इनक यह दशा क है, िक तु िचंता का कोई िवषय नह है।’’
यह सुनकर राजा भभिू त, िव मािजत और वीरसेन, भानुसेन के क म आये। उ ह ने
भानुसेन क ओर देखा, िजसके ने बंद थे। उसके िव ाम म िव न डालना उ ह उिचत न लगा।
‘‘यह सब कैसे हआ िव मािजत?’’ राजा भभिू त ने िव मािजत से धीमे वर म कठोरता
से िकया।
‘‘म नह जानता िपता ी; अक मात् ही हमारे माग म धुंध छा गई, और भानुसेन उस
थान से अ य हो गया।’’ िव मािजत ने समझाने का यास िकया।
राजा भभिू त यह सुनकर ु हो गए, ‘‘तु ह भलीभाँित ात है िव मािजत, हम भानुसेन
का िवशेष यान रखना है, य िक यह मेरी बहन िशव या क अंितम िनशानी है; हम इसे खो
नह सकते, और हम इस बात का भी यान रखना है िक यह उस नीच भैरवनाथ के संपक म न
आये, य िक वह भानुसेन को हमारे िव उकसा सकता है। इसके िपता दुशल इस समय कहाँ
ह, यह कोई नह जानता, इसिलए हम इस बात का यान रखना है िक यह िकसी गलत संगत म
न पड़े ।’’
‘‘अव य! आज से हम इस बात का िवशेष यान रखगे।’’ िव मािजत ने अपने िपता को
िव ास िदलाया।
भानुसेन क आँख बंद अव य थ , िक तु वह मिू छत नह था। वह उनक वाता प ता से
सुन रहा था।
‘‘उिचत है, हमारे रा य के राजपुरोिहत को बुलावा भेजो, मुझे उनसे भानुसेन के िवषय म
कुछ करना है।’’ राजा भभिू त ने आदेश िदया।
‘‘अव य महाराज।’’ िव मािजत क से बाहर चले गए।
इसके उपरांत, राजा भभिू त ने णभर भानुसेन क ओर देखा। इसके उपरांत वह भी
वीरसेन के साथ क से बाहर चले गए।
भानुसेन ने अपने ने खोले और श या से उठा। उसके ने ितशोध क अि न से जल रहे
थे, अब यह मािणत हो गया िक र गु भैरवनाथ उिचत कह रहे थे; ये लोग मुझसे िपछले सोलह
वष से अस य कह रहे ह, िक तु अब इन सबको द ड िमलेगा, अब र गु क योजना पर अमल
करने का समय है। उसने िवचार िकया।
िवदभ के राजपुरोिहत, महल क ओर आ रहे थे। तभी उनके सारथी ने रथ रोक िदया।
‘‘ या हआ? तुमने रथ य रोक िदया?’’ राजपुरोिहत ने सारथी से िकया।
सारथी उस पुरोिहत क ओर मुड़ा और उसके ने म देखा।
‘‘अब तुम मेरे वश म हो; अब तुम वही करोगे जो म तुमसे कहँगा।’’ वह सारथी अपने
वा तिवक प म आ गया। वह वा तव म भैरवनाथ था।
इसके उपरांत भैरवनाथ ने िफर से सारथी का प ले िलया और उस पुरोिहत को समझाया
िक उसे या करना है।
शी ही वह पुरोिहत, महल पहँचा। राजा भभिू त ने उसका भ य वागत िकया।
राजा भभिू त अपने िसंहासन पर िवराजमान हए। राजपुरोिहत उनके समीप बैठे।
‘‘मने आपको यहाँ एक िवशेष उ े य के िलए बुलाया है; म चाहता हँ िक आप मेरे सबसे
छोटे पु भानुसेन क कु डली देख उसके भिव य के िवषय म कुछ बताय।’’ राजा भभिू त ने
पुरोिहत से कहा।
‘‘अव य महाराज; कृपया मुझे उनक कु डली िदखाय।’’ पुरोिहत ने उ र िदया।
राजा भभिू त ने भानुसेन क कु डली लाने का संकेत िकया। एक दास उसे लेकर शी ही
वहाँ तुत हआ, और उसे राजपुरोिहत के हाथ म दे िदया।
पुरोिहत ने भानुसेन क कु डली को यान से देखा। अगले ही पल वह च क गये।
‘‘आपके मुख पर ऐसा भाव य आया? या हआ?’’ महाराज भभिू त चिकत थे।
‘‘भानुसेन को इस वष बहत सारी किठनाइय का सामना करना पड़ सकता है महाराज;
यह उनके जीवन के िलए भी संकटकारी िस हो सकता है।’’ पुरोिहत ने िव ततृ उ र िदया।
राजा भभिू त अपने िसंहासन से उठे । वह गहन िवचार म थे। इसके उपरांत उ ह ने पुरोिहत
से िकया, ‘‘ या इसका कोई हल नह है?'
‘‘इसका केवल एक ही हल है।’’ पुरोिहत ने कहा।
‘‘और वह या है?’’
‘‘राजकुमार भानुसेन का िववाह एक स ाह के भीतर ही कराना होगा, इस संकटकारी
समय से मुि का यही एक उपाय है।’’ पुरोिहत ने सुझाव िदया।
‘‘िक तु यह कैसे संभव है? भानुसेन केवल सोलह वष का है, उसके अ ज अभी तक
अिववािहत ह।’’ राजा भभिू त चिकत रह गए।
िव मािजत ने उठकर ह त ेप िकया, ‘‘िक तु हम ऐसा करना ही होगा, महाराज, यह
हमारे अनुज के जीवन का है।’’
‘‘म तुमसे सहमत तो हँ िव मािजत, िक तु एक सोलह वष के बालक को अपनी क या
कौन देगा?’’ राजा भभिू त सोच म पड़ गए।
पुरोिहत ने उनके म य ह त ेप िकया, ‘‘मेरे पास इसका एक हल है; म नवगढ़ के राजा
के िवषय म बात कर रहा हँ; उनक पु ी वैशाली प ह वष क है। मुझे लगता है िक जोड़ी उिचत
रहे गी।’’
‘‘िक तु या नवगढ़ के महाराज अपनी पु ी क इतनी छोटी आयु म िववाह क सहमित
दगे?’’ राजा भभिू त संदेह म थे।
‘‘यिद उ ह ने सहमित नह दी, तो हम उ ह िववश करना होगा; भानुसेन का जीवन
हमारे िलए बहत मू यवान है।’’ िव मािजत ने तलवार पर अपनी पकड़ बनायी।
‘‘उिचत है; िव मािजत, तुम नवगढ़ जाओ और उ ह हमारी ि थित के िवषय म बताओ,
और यिद इसके उपरांत भी वह सहमित नह देते ह, तो तुम मेरी ओर से श उठाने के िलए
वतं हो।’’ महाराज भभिू त ने िव मािजत को आदेश िदया।
‘‘अव य महाराज।’’ िव मािजत थान कर गए।
िवदभ के भावी राजा िव मािजत नवगढ़ क ओर थान कर गए।
* * *
नवगढ़ के दूत ने अपने महाराज को िव मािजत के आगमन क सच ू ना दी।
नवगढ़ के महाराज ुतसेन ने िव मािजत का भ य वागत िकया। इसके उपरांत
िव मािजत ने अपनी िववशता और ताव, दोन महाराज ुतसेन के सम रखा।
‘‘ मा क िजये युवराज, िक तु मेरी पु ी अभी िववाह के िलए अ पायु है।’’ नवगढ़ के
राजा ने ताव ठुकरा िदया।
‘‘एक बार और िवचार कर लीिजए, महाराज ुतसेन; यह मेरे अनुज के जीवन का है,
और इसके िलए म कुछ भी कर सकता हँ।’’ िव मािजत ने ुतसेन को चेतावनी दी।
‘‘तु हारा साहस कैसे हआ? तुम मुझे चुनौती दे रहे हो?’’ राजा ुतसेन अपने िसंहासन से
उठ खड़े हए और िव मािजत पर चीखे।
‘‘आप मुझे कमतर आँक रहे ह; यह मेरी चुनौती है, आप और आपक सम त सेना को...
परािजत क रए मुझे यिद कर सक तो।’’ िव मािजत ने धनुष उठा िलया।
सेनापित, मं ी और कुछ सैिनक, हाथ म तलवार िलए िव मािजत क ओर दौड़ पड़े ।
िव मािजत को उन सबको परािजत करने के िलए केवल दस बाण चलाने पड़े । शी ही वह सभी
घायल होकर भिू म पर पड़े थे।
इसके उपरांत, िव मािजत ने नागपाशा का आवाहन िकया और राजा ुतसेन क ओर
ल य साधकर छोड़ िदया। िवदभ के युवराज ने नवगढ़ के राजा को बंदी बना िलया।
‘‘अब आप वही करगे जैसा म आपको आदेश दँूगा; आपक पु ी वैशाली मेरे साथ
जाएगी।’’ युवराज िव मािजत ने ुतसेन क ओर देखा।
ुतसेन क आँख नीची थ , उनके पास कोई िवक प नह था। िव मािजत, राजकुमारी
वैशाली को साथ लेकर िवदभ के महल पहँचे।
तीन िदन के भीतर ही भानुसेन और वैशाली का िववाह संप न हो गया। भैरवनाथ भी इस
िववाह समारोह म एक दास का पधर के सि मिलत हआ। उसने भानुसेन क ओर देख िवचार
िकया, योजना सफल हई, अब िवदभ का ये राजपु र राज का वंशज होगा।’’
8. जयवधन के िव षड्यं
वतमान काल
‘‘तो यह था वह स य, जो आप लोग के िलए जानना आव यक था।’’ व बाह ने अपनी
बात परू ी क ।
तेज वी और अख ड कुछ ण मौन रहे । दोन यो ाओं के ने म अ ु छलक आये।
‘‘उिचत है व बाह; अब तुम िकसी भी कार क दासता से मु हो, जहाँ चाहो वहाँ जा
सकते हो।’’ अख ड ने व बाह से कहा।
व बाह ने अपने हाथ जोड़े , ‘‘ध यवाद महाबली अख ड; मेरे जीवन का उ े य अब पण ू
हआ, अब मुझे भी शांित चािहए।’’
व बाह अ य हो गया।
कुछ ण के उपरांत, अख ड, तेज वी क ओर मुड़ा, ‘‘मुझे कुछ आव यक काय है,
इसिलए मुझे जाना होगा; तुम इस रा य के िसंहासन पर िवराजो, िवदभ के नए राजा अब तुम
होगे।’’
‘‘नह ये , ऐसा नह हो सकता; आप िवदभ रा य के ये राजपु ह, इस िसंहासन
पर बैठकर इस रा य पर शासन करने का अिधकार केवल आपका है।’’ तेज वी ने अपने ये
के सम हाथ जोड़े ।
‘‘तुम भलू रहे हो तेज वी, म भगवान महाबली का वंशज हँ, मेरे शरीर म आसुरी अंश है,
और वैसे भी म तो राजा भभिू त का वंशज भी नह हँ, इसिलए इस िसंहासन पर मेरा कोई अिधकार
नह है।’’ अख ड ने तेज वी को समझाने का यास िकया।
‘िक तु...’
इससे पवू िक तेज वी कुछ कहता, एक दास ने वहाँ आकर उन दोन के म य ह त ेप
िकया, ‘‘महाबली अख ड, आपक माता आपको बुला रही ह।’’
‘‘मुझे लगता है िक पहले आपको अपनी माता से िमलना चािहए।’’ तेज वी ने सुझाव
िदया।
अख ड ने सहमित म िसर िहलाया और महल क ओर बढ़ा।
शी ही उसने अपनी माता के क म वेश िकया। महारानी वैशाली श या पर थ । वह
बोलने म असमथ थ । अख ड उनके पास बैठा और उनका हाथ पकड़ा, ‘‘मेरी ओर देिखये माता,
म जीिवत हँ, आपका पु जीिवत है।’’
वैशाली क आँख स नता के अ ुओ ं से भर गय । यह देख अख ड ने अपनी माता को
वचन िदया, ‘‘आप िचंितत मत होइए; माता ी यह ितशोध का समय है; मुझे उस अपराधी को
द ड देना है जो इस महािवकराल यु का उ रदायी है।’’
वैशाली बोल नह पा रही थ , उ ह ने वह खड़े तेज वी क ओर देखा।
‘‘नह माता, वा तिवक अपराधी यह नह है; वा तिवक अपराधी वह नीच र गु
भैरवनाथ है, िजसने हमारे प रवार के म य लेश उ प न िकया, िजसने इस यु क न व रखी।’’
अख ड ने अपनी माता को समझाने का यास िकया।
एक हर बीत गया। अख ड अपनी माता के पास बैठा रहा। इसके उपरांत अख ड ने
अपनी माता से कहा, ‘‘अब मुझे जाना होगा माता; मेरी प नी और मेरे नवजात पु का यान
रिखयेगा, म शी ही लौटूँगा।’’
वैशाली यह सुनकर तड़प उठ । उ ह ने अख ड को रोकने के िलए उसका हाथ पकड़
िलया। अख ड ने उ ह समझाने का यास िकया, ‘‘म शी ही लौटूँगा माता, िक तु अभी मुझे
जाना होगा।’’ अख ड, उठकर क से बाहर चला गया।
तेज वी उसका पीछा करते हए क से बाहर आया, ‘‘आपको हो या गया है? आप कहाँ
जा रहे ह?’’
अख ड तेज वी क ओर मुड़ा, ‘‘धीरज रखो तेज वी; असुर को एक नायक क
आव यकता है, अ यथा भैरवनाथ उ ह िफर से पथ कर देगा, और वैसे भी मुझे उस नीच
भैरवनाथ को भी खोजना है।’’
‘‘िक तु ये , आप उसे कैसे खोजगे? उसका वध तो राजा भागव ने कब का कर
िदया।’’ तेज वी को थोड़ा आ य हआ।
‘‘भैरवनाथ अमर है, उसे मारा नह जा सकता।’’ अख ड ने तेज वी को बताया।
तेज वी को कुछ शंका हई, ‘‘भैरवनाथ अमर है? आज से पहले तो मने यह कभी नह
सुना, आप ऐसा कैसे कह सकते ह?'
अख ड ने तेज वी क ओर देखा, ‘‘अधीर मत हो तेज वी, ऐसी बहत सी बात ह जो तुम
अब तक नह जानते; जब समय आएगा, तु ह वयं सब कुछ ात हो जायेगा, और अब यह मेरा
आदेश है िक इस रा य के िसंहासन पर तु ह बैठोगे।’’
‘‘िक तु ये ....’’
‘‘तु हारा रा यािभषेक आज ही होगा।’’ अख ड ने घोषणा क ।
‘‘जैसी आपक इ छा ये ।’’
* * *
एक समारोह का आयोजन हआ िजसम अख ड ने वयं तेज वी को राजमुकुट पहनाकर
उसे िवदभ का महाराज घोिषत िकया। नए महाराज तेज वी क जयजयकार से िवदभ क सभा
गँज
ू उठी।
अक मात् ही एक क या, राजसभा म आ पहँची और उसने तेज वी क ओर ोध से
देखा।
‘सुवणा!’ तेज वी को उसे देख थोड़ा आ य हआ।
‘‘कदािचत् आप अपना वचन भल ू चुके ह महाराज; म आपको यहाँ केवल आपक भल ू का
एहसास करवाने आयी हँ।’’ सुवणा, तेज वी क ओर देखती रही।
यह सुनकर, तेज वी अपने िसंहासन से उठकर नीचे सुवणा के िनकट आया।
‘‘मुझे मा का दो सुवणा, मुझसे भलू हो गयी, अब कृपा करके मा भी कर दो।’’ तेज वी
ने सुवणा के सम हाथ जोड़े ।
यह देख उसके ने से अ ु बह उठे , ‘‘नह नह , तेज वी, मुझे मा क रए; आप अब भी
मेरे बालसखा तेज वी ह।’’ सुवणा सबके सम तेज वी के दय से लग गयी।
‘‘म अपना वचन आज ही पण ू क ँ गा। हमारा िववाह आज ही होगा।’’
वह अख ड ने उन दोन के म य ह त ेप िकया, ‘‘तुम लोग के सम कई लोग ह
राजसभा म, उनके बारे म तो िवचार करो।’’
सुवणा पीछे हट गयी। दोन लजा गए। सबक ि उन दोन पर ही थी।
अख ड हँस पड़ा, ‘‘तु हारा िववाह आज ही होगा।’’
दो हर के म य ही सारी तैयारी हो गयी। अंततः तेज वी और सुवणा का िववाह संप न
हआ।
वह राि के अंधकार म अख ड ने महल छोड़ने का िनणय िलया। वह िबना िकसी से कहे
महल से जाने लगा, तभी तेज वी उसके माग म आ खड़ा हआ।
‘‘कहाँ चल िदए ये ?’’ तेज वी ने अख ड से िकया।
‘‘मुझे जाना होगा तेज वी, यिद हम मानव और असुर के म य शांित बनाये रखना है, तो
मुझे जाने दो; वैसे भी म उस नीच र गु भैरवनाथ क खोज म जा रहा हँ, और मुझे इस बात का
भी यान रखना है, िक दुभ क चेतना न लौटे। मेरी प नी ने अभी अभी मेरे पु िव ांत को
ज म िदया है; मेरे जाने के उपरांत, मेरी माता और मेरी प नी को समझा देना िक एक िदन
अपना ल य पण ू कर म अव य लौटूँगा।’’ अख ड ने समझाने का यास िकया।
‘‘उिचत है, आप थान क िजये; म इस रा य क र ा क ँ गा।’’ तेज वी ने अपने ये
अख ड को िव ास िदलाया।
अख ड ने तेज वी को दय से लगा िलया, इसके उपरांत वह अपने ल य क ओर
थान कर गया।
‘‘म आपक ती ा क ँ गा ये ।’’ तेज वी, अख ड क ओर देखता रहा।
प चीस वष बाद
महाबली अख ड अब तक नह लौटे, िक तु तेज वी को यह आशा थी िक वह एक िदन
अव य लौटगे। एक शाम महाराज तेज वी अपने महल क छत पर खड़े महल के मु य ार क
ओर िनहार रहे थे। कदािचत् वह यह िवचार कर रहे थे िक महाबली अख ड कभी भी लौट सकते
ह।
िवदभ के नए सेनापित िवराट छत पर आये और महाराज तेज वी को सिू चत िकया,
‘‘महाराज! आपके दोन पु ने गु कुल म अपनी िश ा और श ा यास क िश ा पण ू कर ली
है, वह दोन कल ात: यहाँ पहँचगे।’’
तेज वी मौन थे। िवराट को थोड़ा आ य हआ, ‘‘ या हआ, महाराज?'
‘‘कुछ िवशेष नह िवराट; यिद ये अख ड भी यहाँ उपि थत होते तो यह बड़े आनंद का
िवषय होता। अपने पु महाबली िव ांत को देख उ ह अव य गव का अनुभव होता; मने उनक
खोज पाताललोक म भी क , िक तु वष से म उ ह खोज नह पाया।’’
‘‘इसके पीछे कोई न कोई कारण अव य होगा; यह अनुमान लगाना किठन है िक वह
वयं को हमसे य छुपा रहे ह, िक तु मुझे इतना िव ास है, िक जब हम उनक आव यकता
होगी, वह अव य लौटगे।’’ िवराट ने महाराज तेज वी को समझाने का य न िकया।
‘‘हाँ ऐसी आशा तो है; हम कल दोन राजकुमार का भ य वागत करना है... िव ांत
को अभी तक यह ात नह िक म उसका िपता नह हँ; वह िवदभ का ये राजपु है, उसे
िकसी कार क भावना मक पीड़ा नह िमलनी चािहए।’’
‘‘अव य महाराज।’’ िवराट ने तेज वी को िव ास िदलाया।
अगले िदन सुबह राजसभा बुलायी गयी। महाराज तेज वी अपने िसंहासन पर िवराजमान
थे। दोन राजकुमार िव ांत और जयवधन ने सभा म वेश िकया।
तेज वी अपने िसंहासन से उतरकर िव ांत और जयवधन के िनकट आये और दोन को
दय से लगा िलया।
‘‘समय आ गया है, अब तुम दोन इतने साम यवान हो चुके हो िक अपना उ रदािय व
सँभाल सको, इसिलए आज म तुम दोन को अपना अपना कायभार स पने जा रहा हँ।’’ तेज वी
ने उन दोन यो ाओं क ओर देखा।
‘‘हम इसके िलए तैयार ह महाराज।’’ िव ांत उनके आदेश क ती ा कर रहा था।
‘‘आज युवराज िव ांत को िवदभ का युवराज घोिषत िकया जायेगा, और जयवधन, िवदभ
के गाँव का मण करे गा; उसे उनक सम याओं के िवषय म जानकारी इक ी करनी होगी।’’
तेज वी ने दोन राजकुमार को अपना आदेश कह सुनाया।
‘‘जैसा आप कह महाराज; म ये िव ांत के रा यािभषेक होते ही थान क ँ गा।’’
जयवधन ने सहमित म सर िहलाया।
कुछ ही िदन म एक भ य आयोजन म राजकुमार िव ांत को महाराज तेज वी का
उ रािधकारी घोिषत िकया गया। कई रा य के राजा और राजकुमार उस सभा म उपि थत हए।
इसके उपरांत राजकुमार जयवधन, अपने ल य क ओर थान करने के िलए तैयार
हआ।
‘‘तु हारे साथ कोई नह होगा; यह केवल तु हारी या ा है जयवधन; भिव य म तु ह इस
रा य का र ाकवच बनना है, इसिलए यह या ा तु हारी थम परी ा है।’’ महाराज तेज वी ने
उसे िव तार से समझाया।
‘‘जो आ ा िपता ी, म शी ही लौटूँगा।’’ जयवधन अपने अ पर आ ढ़ हो अपने ल य
क ओर बढ़ चला।
वह युवराज िव ांत, महाराज तेज वी के िनकट आया, ‘‘आपने जयवधन को उसका
दािय व तो स प िदया; िवदभ के युवराज के प म मेरे िलए थम आदेश या है?'
‘‘उसक िचंता मत करो; तु ह अपने उ रदािय व का भार शी ही िमलेगा।’’
‘‘अव य महाराज।’’ िव ांत वहाँ से थान कर गया।
* * *
एक थान पर, भैरवनाथ एक नदी के पास बैठा था। शी ही सुबाह (र राज का पौ , पाँच
िदन के महासं ाम म िवदभ के प से जीिवत रहने वाला एकमा मुख यो ा) वहाँ आ पहँचा।
भैरवनाथ ने उसक ओर देख िकया, ‘‘मने तुमसे कुछ कहा था, या तुमने वह
िकया?'
‘‘हाँ गु देव, जैसा आपने कहा था, मने सात वष तक कठोर तप या क और देव से
वरदान ा िकया। म आपक खोज वष से कर रहा था, आप थे कहाँ?’’ सुबाह ने र गु को
सच ू ना दी।
‘‘तुमने अपना काय स प न िकया सुबाह, और जहाँ तक मेरा है, वष से म यँ ू ही
आयवत क भिू म पर भटक रहा था।’’ भैरवनाथ ने कहा।
‘‘उिचत है, हमारा अगला कदम या होना चािहए?’’ सुबाह ने िकया।
‘‘म तु ह शी ही बताऊँगा, अभी तुम यहाँ से जाओ।’’ भैरवनाथ ने उसे आदेश िदया।
सुबाह पीछे मुड़ा, ‘‘उिचत है, म जा रहा हँ; िक तु मुझे अपनी योजना शी बताइएगा, मेरे
हाथ तेज वी का वध करने को तड़प हो रहे ह; उसने मुझसे सुवणा को छीना था, इसिलए मेरे
जीवन का अब केवल एक ही ल य है, तेज वी क म ृ यु।’’
भैरवनाथ, उठकर सुबाह के िनकट आया, ‘‘तुमने देव से या वरदान ा िकया?’’
‘‘मेरा शरीर म ृ यु को ा हो सकता है, िक तु म नह ... मेरी आ मा िकसी भी शरीर म
वेश कर सकती है, और िजस शरीर म म वेश क ँ गा, म उस यि को पण ू प से अपने वश
म कर सकता हँ, और उसके स पण ू साम य का उपयोग कर सकता हँ।’’
यह सुनकर भैरवनाथ ने उसक ओर देखा, ‘‘तो िफर यान से सुनो िक तु ह या करना
है।’’
भैरवनाथ ने उसे अपनी योजना समझनी शु क ।
* * *
राजकुमार जयवधन, िवदभ के गाँव म मण कर रहा था। दो िदन तक वह िनरं तर या ा
करता रहा।
अक मात ही उसने माग म एक व ृ मिहला को देखा। वह घायल अव था म भिू म पर पड़ी
थी। जयवधन अपने अ से उतरा और उस व ृ मिहला क ओर बढ़ा।
‘‘ या हआ? आप यहाँ इस कार य ह?’’ जयवधन ने व ृ मिहला से पछ ू ा।
‘‘मेरा पैर घायल है, मेरे िलए चलना बहत मुि कल हो रहा है।’’ उस व ृ मिहला ने बताया।
जयवधन ने कुछ ण िवचार िकया, ‘‘ठीक है, आप बताइये आपको कहाँ जाना है?'
‘‘म यह िनकट ही रहती हँ, कृपया वहाँ पहँचने म मेरी सहायता क िजये।’’ व ृ मिहला ने
िवनती क ।
‘‘ठीक है, म आपको वहाँ पहँचा दँूगा।’’
जयवधन ने उस मिहला को अ पर सवार होने म सहायता क । इसके उपरांत वह अ
क लगाम ख च उसके साथ पैदल ही चल पड़ा। वह व ृ मिहला उसे िदशा िदखा रही थी।
शी ही जयवधन को यह भान हआ िक वह िवदभ क सीमा से बाहर आ पहँचा है, िक तु
उसे इस बात क परवाह नह थी।
‘‘आगे कौन सी िदशा म मुड़ना है?’’ जयवधन ने िकया।
िक तु उसे कोई उ र ा नह हआ। वह पीछे घम ू ा और यह देख त ध रह गया िक वह
व ृ मिहला वहाँ नह थी।
यह या हआ? वह व ृ ा कहाँ गयी? जयवधन ने हर िदशा म देखा।
उसने हर िदशा म उसे खोजने का यास िकया, िक तु उसे खोज नह सका।
‘‘कैसा मायाजाल था यह?’’ जयवधन गहन िवचार म खो गया।
शी ही उसे कह से ं दन सुनाई िदया। वह मुड़ा और सामने का य देख आ य म पड़
गया।
वह एक बैलगाड़ी थी, िजसम फल, सि जयाँ, कुछ बक रयाँ लदी हई थ । िक तु जब
जयवधन ने िनकट आकर देखा, तो पाया िक एक बालक भी उसी बैलगाड़ी पर सवार है, और वह
ी जो कदािचत् उसक माता है, लगातार रोये जा रही है, और कुछ लोग उस मिहला को उससे
दूर करने का यास कर रहे ह।
‘‘ या हो रहा है यहाँ पर? आप लोग इस कार ं दन य कर रहे ह?’’ जयवधन ने भारी
वर म पछ ू ा।
यह सुनकर भीड़ का यान जयवधन क ओर गया।
‘‘तुम यहाँ से चले जाओ, हमारे मामले म ह त ेप मत करो।’’ एक व ृ ने उसे टोका।
‘‘म िवदभ का राजकुमार हँ, और यह मेरा कत य है िक म आपक सम याओं को सुनकर
उसका िनदान क ँ ।’’ जयवधन ने उ र िदया।
‘‘तुम अभी अनुभवहीन बालक हो राजकुमार, या तु ह यह भान ही नह हआ िक तुम
िवदभ क सीमा से बाहर आ चुके हो? यह श भलगढ़ का गाँव है, इसिलए हम तु हारा आदेश
मानने को िववश नह ह।’’ उस व ृ ने कटा िकया।
‘‘मुझे भलीभाँित ात है िक म िवदभ क सीमा के पार आ चुका हँ, िक तु म आप लोग
क सहायता करना चाहता हँ, इसिलए म चाहता हँ िक आप अपनी सम या मुझसे साझा कर।’’
‘‘उिचत है, यिद तुम सहायता ही करना चाहते हो, तो इस बैलगाड़ी क ओर देखो; यह
बैलगाड़ी जंगल म जा रही है, हम हर स ाह जंगली लोग के िलए इसे भेजना पड़ता है। वह अपने
दाता को हर स ाह एक बालक क बिल चढ़ाते ह, और यिद िकसी स ाह हम यह भट भेजने म
असफल हो जाते ह, तो वह जंगली हमारे गाँव पर आ मण कर कई िनद ष क ह या कर देते
ह।’’
‘‘आप िचंितत मत होइए; आज के उपरांत, आपको उ ह यह भट देने क आव यकता नह
है; आज इस बैलगाड़ी को म चलाऊँगा, इसिलए अपनी खा साम ी, संसाधन और इस बालक
को भी इस बैलगाड़ी से उतारकर इसम बड़े बड़े प थर को रखकर कपड़ से ढक दीिजये।’’
‘‘नह , हम ऐसा नह करगे; हम तुम पर िव ास य कर?’’ वह व ृ यि तिनक
ोिधत हआ।
‘‘यिद ऐसा ही चलता रहा, तो एक-एक करके आप सबक बिल चढ़ जाएगी, और एक
िदन ऐसा आएगा जब इस गाँव म कोई मनु य बचेगा ही नह , इसिलए उिचत यही होगा, िक आप
मुझ पर और मेरे श बल पर िव ास रख, िव ास क रए, यिद आज आपने वर नह उठाया, तो
आप और आपके प रवार के सम तजन क म ृ यु लगातार होती रहे गी, इसिलए आपक र ा का
अवसर द मुझे।’’ जयवधन क पकड़ उसके श पर मजबत ू हई।
उस व ृ यि ने कुछ ण िवचार िकया, ‘‘उिचत है, यिद आप हमारे िलए अपने ाण
को दाँव पर लगाना ही चाहते ह, तो हम आपको रोकगे नह ।’’
वह व ृ यि ामीण क ओर मुड़ा, ‘‘जैसे इ ह ने कहा है, वैसा ही करो।’’
शी ही उस बैलगाड़ी पर बड़े -बड़े प थर लादकर उसे कपड़ से ढक िदया गया।
जैसा पवू िनधा रत था, जयवधन उस बैलगाड़ी को चलाने लगा और उसे जंगल क ओर ले
गया। जैसे ही वह िनधा रत थान पर पहँचा, जंगली लोग ने उसे घेर िलया। उनके हाथ म ल बे-
ल बे भाले थे।
जयवधन ने वयं को कंबल से ढक रखा था, तािक उसे कोई पहचान न सके िक वह एक
राजकुमार है। उनम से एक जंगली ने संसाधन समझकर प थर से कपड़ा हटाया।
‘‘छल! छल! इ ह ने छल िकया हमारे साथ।’’ जंगली लोग संसाधन के थान पर प थर
को देख त ध रह गए।
यह देख जयवधन ने अपना कंबल हटाया। उसका ह -पु शरीर देख जंगली थोड़ा
भयभीत हए।
जयवधन भाल से िघरा हआ था। उसने अपना धनुष उठाया और बैलगाड़ी से छलाँग
लगाकर उनम से एक भाले पर चढ़ गया, और अगली छलाँग लगाकर उन जंगली लोग का घेरा
पार कर भिू म पर उतर गया। जंगली, उसक यह अ ुत चपलता देख त ध रह गए।
इसके उपरांत, जयवधन ने अपने धनुष से बहबाण संधान िकया। प रणाम व प, जंगली
लोग के हाथ म पकड़े हए भाले एक साथ णभर म छूटकर िगर गए।
जंगली यह देख भयभीत हो गए। उन सबने भागने का यास िकया, िक तु जयवधन ने
उनम से एक को पकड़ िलया।
‘‘मुझे अपने सरदार के पास ले चलो।’’ जयवधन ने उस जंगली को धमकाया।
‘‘ठीक है, ठीक है, म आपको ले चलँग ू ा।’’ वह जंगली इसके िलए तैयार हो गया।
बचे हए जंगली भागकर अपने सरदार के पास पहँचे और उ ह सच ू ना दी, ‘‘महामिहम उन
ामीण क र ा के िलए एक राजकुमार आ पहँचा है, उसने हम सबको परािजत कर िदया।’’
उन जंगिलय का सरदार भ ा अपने आसन से उठ खड़ा हआ, ‘‘ या लाप कर रहे हो?
उसने अकेले ही तुम दस को परा त कर िदया? यह कैसे संभव है, कौन है वो?'
‘‘म हँ वो!’’ जयवधन, भ ा के सम पहँचा।
‘‘कौन हो तुम? और हमारे अनु ान म बाधा पहँचाने का साहस कैसे िकया?’’ भ ा
ोिधत था।
‘‘म िवदभ का राजकुमार जयवधन हँ, और म यहाँ तु ह चेतावनी देने आया हँ िक िनद ष
के ाण लेना बंद करो अ यथा तुम वयं जीिवत नह रह पाओगे।’’
ोिधत भ ा ने तलवार उठा ली, ‘‘बहत वाचाल हो तुम, तु हारी िज ा कटनी ही चािहए।’’
जयवधन मु कुराया। उसने बाण चढ़ाया और भ ा के हाथ पर हार िकया।
प रणाम व प, वह िन:श हो गया।
अगले ही ण जयवधन ने बाण का समहू भ ा क ओर छोड़ा।
जंगिलय का सरदार अपने िसंहासन पर िचपक कर ही बंदी बन गया।
जयवधन भ ा के िनकट आया, ‘‘अब कहो, या क ँ तु हारे साथ?'
‘‘मुझे मा करो राजकुमार; यह सब म अपनी इ छा से नह कर रहा।’’ भ ा ने िवनती
क।
‘‘तो िफर तु हारे पीछे कौन है? बताओ मुझे, अभी इसी समय।’’ जयवधन उस पर चीखा।
‘‘सुबाह नाम का एक असुर हर स ाह यहाँ आता है; जो भी साम ी हम ामीण से ा
होती है, हम उसे स प देते ह। वह एक बालक क माँग भी करता है, य िक उसे मानव माँस बहत
पसंद है... और यिद हम उसे यह सब देने म कभी असफल हए, तो वह हमारे लोग को मार देगा।’’
भ ा ने िव तार से बताया।
जयवधन क आँख ोध से धधकने लग , ‘‘वह कोई असुर नह , एक नरभ ी है, या
वह आज आने वाला है?'
‘‘हाँ, वह आज आने वाला है।’’ भ ा ने उ र िदया।
‘‘तो िफर ती ा करते ह उस नरभ ी क ।’’ जयवधन ने भ ा को मु िकया, और पास
ही बैठकर सुबाह क ती ा करने लगा।
शी ही एक र क ने आकर भ ा को सिू चत िकया, ‘‘वह असुर सुबाह आ पहँचा है
महामिहम।’’
जयवधन क पकड़ अपने धनुष पर स त हो गयी, ‘‘आने दो उसे, म तो कब से ती ा
कर रहा हँ उसक ।’’
‘‘मेरा भोजन लाओ!’’ एक दहाड़ता हआ वर सुनाई िदया।
जयवधन उस वर क िदशा म चल पड़ा। शी ही सुबाह और जयवधन एक दूसरे के
सम खड़े थे।
योजना काम कर रही है; बेचारा जयवधन, इसे तो भान ही नह है िक यह या मख ू ता
करने जा रहा है। सुबाह ने िवचार िकया।
जयवधन ने सुबाह को चेतावनी दी, ‘‘मेरा एक िनयम है; म िकसी अपराधी को केवल
एक बार मा करता हँ, इसिलए म तु ह एक अवसर देता हँ; नरभ ी बनकर बालक क ह या
करना बंद करो, अ यथा आज तु हारे जीवन का अंितम िदन होगा।’’
यह सुनकर सुबाह जयवधन पर हँसा, ‘‘एक राजकुमार, मुझे मारे गा? अरे इसके भोले
मुखड़े क ओर तो देखो; अरे बालक, जीवन म कभी िकसी का वध िकया भी है?'
‘‘हाँ, अभी तक तो मने िकसी का वध नह िकया, िक तु तीत होता है िक तुम पहले
होगे।’’ जयवधन ने यान से तलवार ख च िनकाली।
सुबाह ने भी तलवार ख ची और जयवधन क ओर बढ़ा, ‘‘ य नह , हो ही जाये; म
वष से इस अनुभव को पाने क ती ा म था।’’
दोन यो ा एक दूसरे क ओर दौड़े । उनक तलवार के टकराव ने भीषण विन उ प न
क।
वह आधे हर तक चला। अंततः सुबाह िन:श होकर भिू म पर िगर पड़ा।
‘‘तुम परािजत हए, इसिलए जाओ और कभी लौटकर मत आना।’’
जयवधन वापस मुड़ा। वह सुबाह ने तलवार उठाई और जयवधन क जंघा पर हार िकया।
जयवधन ि थित भाँपकर पीछे हटा और अपनी र ा करने का यास िकया, िक तु िफर भी
उसक जंघा घायल हो गयी।
‘‘यह यु है, इसिलए प रणाम या तो िवजय होगा, या िफर मरण।’’ सुबाह ने
जयवधन को िफर से चुनौती दी।
ोिधत जयवधन मुड़ा और उसने ती गित अपनी तलवार चलायी।
अगला य बहत ही भयावह था। जयवधन क तलवार र से नान क हई तीत हो
रही थी, और सुबाह का म तक भिू म पर पड़ा था; उसका धड़ अलग ही थान पर िगरकर छटपटा
रहा था।
‘‘तु ह िवजय अथवा मरण क आशा थी न; दूसरा िवक प तु हारे िलए सवा म था, तुम
इसी के यो य थे।’’ जयवधन ने अपनी परू ी शि लगाकर अपनी तलवार भिू म म गाड़ दी।
राजकुमार जयवधन एक थान पर खड़ा रहा। जंगली लोग ने उसके जयकारे लगाने
आरं भ कर िदए।
तभी अक मात् ही सुबाह का धड़ काँपने लगा। कोई अ ात शि उसके शरीर से
िनकलकर राजकुमार जयवधन के शरीर म समािहत हो गयी।
जयवधन पीड़ा से चीखा, और भिू म पर िगर पड़ा।
जंगली लोग राजकुमार क दशा देख त ध रह गए। अब सुबाह मत ृ था और जयवधन
मिू छत।
कुछ समय उपरांत, राजकुमार जयवधन ने अपनी आँख खोल । वह भिू म से उठा और
जंगली लोग क ओर देखा।
‘‘योजना सफल हई, अब राजकुमार जयवधन का शरीर मेरे वश म है।’’ सुबाह क आ मा
अब जयवधन के शरीर म थी।
भ ा, जयवधन के िनकट आया, ‘‘ या हआ कुमार? आप कैसा महसस ू कर रहे ह?'
जयवधन ने भ ा क ओर ोध से देखा, ‘मेरी इ छा हो रही है िक म इसका यह वध कर
दँू, िक तु इससे हमारी योजना पर दु भाव पड़े गा।’
‘‘ या हआ राजकुमार? आप मुझे इस कार य देख रहे ह?’’ भ ा ने आ य से
िकया।
‘‘व...वो कुछ नह ; वो या है िक मुझपर बहत अिधक कायभार है, इसिलए मुझे चलना
चािहए।’’ जयवधन अब वहाँ से िनकलना चाहता था।
9. असुरे र क वापसी
जयवधन वहाँ से थान करने को अधीर हो रहा था। भ ा ने उससे वहाँ कुछ समय
कने क िवनती क , िक तु वह इसके िलए तैयार नह हआ।
वह अपने अ पर आ ढ़ हआ और अपने िनधा रत ल य क ओर बढ़ चला। एक हर क
या ा करने के उपरांत वह भैरवनाथ के सम तुत हआ।
‘‘मेरे सम कौन है? सुबाह या जयवधन?’’ भैरवनाथ ने िकया।
‘‘हमारी योजना सफल हई गु देव; अब यह शरीर परू ी तरह मेरे वश म है।’’ सुबाह क
आ मा राजकुमार जयवधन के शरीर को परू ी तरह वश म कर चुक थी।
‘‘उिचत िकया तुमने; सुबाह, या म कहँ राजकुमार जयवधन... मेरे साथ आओ, हम जाना
होगा।’’ भैरवनाथ ने सुबाह को आदेश िदया।
‘‘अव य गु देव, हम चलना चािहए।’’
वह दोन अपने-अपने अ पर आ ढ़ हए और अपने ल य क ओर बढ़े ।
दोन एक गुफा म पहँचे। भैरवनाथ अपने अ से नीचे उतरा। जयवधन उनके पीछे था।
उन दोन ने गुफा म वेश िकया। भैरवनाथ एक ब से के पास आया और उसे खोला। बफ
क िसि लय से भरा वह ब सा देख जयवधन आ यचिकत रह गया। कुछ ही समय म भैरवनाथ
ने बफ क िसि लयाँ हटाय ।
‘‘यह कौन है? यह तो बालक तीत होता है।’’ जयवधन ने ब से म लेटे यि क ओर
देखकर कहा।
भैरवनाथ मु कुराया, ‘‘हाँ तुमने सही कहा; इसक आयु केवल अ ारह वष है; और एक
बात जानकर तु ह आ य होगा, यह िपछले स र वष से अ ारह वष का ही है।’’
‘‘ या? यह आप या कह रहे ह? म कुछ समझ नह पा रहा।’’ जयवधन शंिकत था।
‘‘तुम िचंता मत करो, शी ही तु ह सब कुछ ात हो जायेगा; इस समय यह खंजर लो
और अपने हाथ पर एक चीरा लगाओ।’’ भैरवनाथ ने एक खंजर जयवधन को िदया।
‘‘ या? िक तु य ?'
‘‘पहले जैसा म कहता हँ वैसा करो।’’ भैरवनाथ ने जयवधन को आदेश िदया।
‘‘ठीक है।’’ जयवधन ने खंजर िलया और अपने हाथ पर चीरा लगाया।
‘‘यह र इस ब से म रखे शरीर पर िगराओ, यान रहे , तु हारा र सीधा इसके मुख म
जाना चािहए।’’ भैरवनाथ ने जयवधन को आदेश िदया।
‘‘हाँ अव य।’’ राजकुमार जयवधन ने वैसा ही िकया जैसा भैरवनाथ ने उससे कहा था।
प रणाम व प, ब से म रखा वह शरीर काँपने लगा। शी ही उस अ ारह वष य बालक ने
अपनी आँख खोल ।
‘‘हम सफल हए; केवल िव मािजत का कोई वंशज ही ऐसा कर सकता था; वागत है
असुरे र दुभ ।’’
जयवधन के शरीर पर क जा िकये सुबाह इन सबसे परू ी तरह अनिभ था।
‘‘असुरे र दुभ ? मने इसके िवषय म पहले तो कभी नह सुना।’’
‘‘यह वह यो ा है, जो वष से सु ाव था म था; यह िव मािजत से परािजत हआ था,
इसिलए उसका कोई वंशज ही इसे इसका जीवन लौटा सकता था।’’
यह सुनकर ोिधत दुभ उठा, ‘‘म परािजत नह हआ था, म िव मािजत से परािजत
नह हआ था; वह एक छल था, िव मािजत ने मुझपर तब हार िकया था, जब म िन:श था।’’
‘‘ठीक है, ठीक है, धैय रखो दुभ ।’’ भैरवनाथ ने उसे समझाने का यास िकया।
दुभ उस ब से से बाहर आया। उसके हाथ अभी भी काँप रहे थे। भैरवनाथ ने उसके कंधे
पर हाथ रखा और उसे समझाने का यास िकया।
‘‘धैय रखो दुभ ; तु ह अपनी शि बढ़ाने क आव यकता है, य िक तुमने लंबे समय
के उपरांत अपनी आँख खोल ह।’’
‘‘इस बात से कोई अंतर नह पड़ता; यह समय ितशोध का है, म...मुझे...उस
िव मािजत का... वध करना है।’’ दुभ ब से से बाहर आया। चलते हए उसने अपना संतुलन
खो िदया, िक तु िगरने से पवू जयवधन ने उसे सँभाल िलया।
‘‘यह...यह या हो रहा है? म...इतना...कमजोर य महसस ू ....कर रहा हँ?’’ दुभ
आ यचिकत रह गया।
‘‘केवल इसिलए, य िक तुमने वष बाद अपने ने खोले ह।’’ भैरवनाथ ने िव तार से
बताया।
‘‘लंबे समय के उपरांत? िकतना समय?’’ दुभ ने िकया।
भैरवनाथ मौन था।
‘‘आप मौन य ह? बताइए मुझे।’’ दुभ िच लाया।
‘‘स...स र वष असुरे र।’’ भैरवनाथ ने अंतत: उसे स य बता िदया।
दुभ त ध रह गया। वह एकटक भैरवनाथ क ओर देख रहा था।
भैरवनाथ उसके िनकट आया।
‘‘दूर रिहये; मने कहा मुझसे दूर रिहए।’’ दुभ ोिधत था।
‘‘िक तु...’’
‘‘नह , म एकांत म रहना चाहता हँ। आप दोन यहाँ से जाईये।’’ दुभ ने उ ह गुफा से
बाहर जाने को कहा।
‘‘ठीक है, ठीक है, म जाता हँ; हम चलना चािहए जयवधन।’’
भैरवनाथ और जयवधन वहाँ से थान कर गए।
‘‘म अभी तक नह समझ पा रहा िक यह सब हो या रहा है?’’ जयवधन ने अपनी शंका
भैरवनाथ के सम रखी।
‘‘वह एक महाअ है, एक महायो ा है; िव ास रखो, उसक सहायता के िबना तुम
तेज वी और उसके यो ाओं को परािजत नह कर सकते।’’
‘‘ठीक है, आप वैसा ही क िजये जो आपको उिचत लगता है; मुझे बताइए िक मुझे या
करना होगा?’’ जयवधन का शरीर धारण िकये सुबाह ने िकया।
‘‘तुम िवदभ के महल जाओ, और एक सामा य जीवन यतीत करो, और इस बात का
यान रखना िक तु ह अपने ये िव ांत से पवू िववाह करना होगा।’’
‘‘िक तु मुझे इतनी शी िववाह य करना है?'
‘‘ य िक म चाहता हँ िक तु हारा पु िवदभ का ये राजपु हो; िक तु नह , इस समय
तुम यह को; मेरे पास एक योजना है, उसके िलए मुझे तु हारी अभी यहाँ आव यकता है।’’
भैरवनाथ ने उसे िव तार से अपनी योजना समझायी।
वह दुभ गुफा म अकेले था। अतीत के य उसके ने के सम दौड़ रहे थे।
‘‘इतने वष बीत गए, और म अभी भी उसी आयु का हँ; अब ऐसा कोई नह िजस पर म
िव ास कर सकँ ू ; इतने वष से मेरा अपना जीवन यथ हआ। और वह नीच कायर िव मािजत,
वह जीिवत होगा भी या नह ? म अपना ितशोध कैसे लँग ू ा? य , य सदैव मेरे साथ ही ऐसा
होता है? मने तो कभी कुछ गलत नह िकया, िक तु िफर भी मुझे मेरे ही रा य से िन कािसत
कर िदया गया। सारे षड्यं और पंच का आखेट म बना, य ? य म ही आखेट बना?’’
दुभ िवि सा हो गया; उसने िफर से अपने ने बंद कर िलए।
एक हर के उपरांत दुभ ने अपनी आँख िफर से खोल । वह उठा और गुफा से बाहर
आया।
‘‘ या हआ दुभ ? तुम ठीक हो?’’ भैरवनाथ ने िकया।
‘‘कुछ िवशेष नह , बस कुछ देर खुली हवा म रहना चाहता हँ; आपके साथ यह यि
कौन है?’’ दुभ ने जयवधन क ओर देख िकया।
‘‘यह जयवधन है, राजा तेज वी का पु , और िव मािजत का पौ ।’’
‘‘िव....िव मािजत का पौ ; आपका कहने का अथ है िक यह आपके साथ है?’’ दुभ
आ य म पड़ गया।
‘‘नह , वा तव म यह मेरे साथ नह है, इसका शरीर मेरे साथ है।’’
‘‘म समझ नह पा रहा, आपका कहने का अथ या है?’’ दुभ ने अपनी शंका जािहर
क।
‘‘हमारे एक अनुयायी असुर, सुबाह क आ मा ने इसके परू े शरीर को अपने अिधकार म
कर िलया है, इसिलए राजकुमार जयवधन अब इसके िनयं ण म है; और यिद वह इसके िनयं ण
म है, िन:संदेह यह मेरे िनयं ण म भी है।’’ भैरवनाथ ने िव तार से बताया।
यह सुनकर दुभ ोिधत हो गया, ‘‘म समझ नह पा रहा, िकस कार के यि ह
आप? या अपना काय करने के िलए आप कोई उिचत माग नह चुन सकते?’’
‘‘ओह, तो अब तु ह लगता है िक मेरा चुना माग अनुिचत है; तुम जानते भी हो िक
िव मािजत का कोई वंशज ही तु ह तु हारा जीवन लौटा सकता था? तो तु ह बताओ, म कौन
सा माग चुनता?’’ भैरवनाथ ने कठोरता से उ र िदया।
दुभ यह सुनकर मौन हो गया। उसके पास इस तक क कोई काट नह थी।
वह जयवधन, दुभ के िनकट आया, ‘‘आप िचंितत मत होइए महामिहम, अपने दय
पर कोई भार मत रिखये।’’
दुभ ने सुबाह क ओर देखा, ‘‘तुमने मुझे मेरा जीवन लौटाया, म अब तु हारा ऋणी हो
चुका हँ, इसिलए म चाहता हँ िक तुम मुझसे कुछ माँग लो; िव ास िदलाता हँ मना नह
क ँ गा।’’
सुबाह ने भैरवनाथ क ओर देखा और मु कुराया। कदािचत् यह उनक कोई योजना ही
थी, जो सफल होने को थी।
जयवधन, दुभ क ओर मुड़ा और कहा, ‘‘ठीक है, यिद आप चाहते ह िक म आपसे कुछ
माँग लँ,ू तो म आपका समथन माँगता हँ; मुझे जब भी आपक आव यकता होगी, आपको मेरी
सहायता करनी होगी, और आप मेरे िव कभी श नह उठायगे।’’
दुभ ने णभर जयवधन क ओर देखा, ‘‘ठीक है, िफर यह मेरा वचन है, जब भी तु ह
आव यकता होगी, म शि और श के साथ तु हारा समथन करने उपि थत रहँगा।’’
‘योजना सफल हई।’ भैरवनाथ मन ही मन मु कुराया।
‘‘मुझे एक अ चािहए।’’ दुभ ने भैरवनाथ से कहा।
‘‘अव य महामिहम, आप इसे ले जा सके ह।’’ जयवधन ने अपना अ असुरे र क सेवा
म तुत िकया।
दुभ उस अ पर आ ढ़ हो गया और भैरवनाथ क ओर मुड़ा, ‘‘म आपसे शी ही
िमलँग
ू ा; अभी म कुछ समय या ा करना चाहता हँ।’’
‘‘ठीक है, शी िमलगे, और एक बात का मरण रहे , अपनी शि बढ़ाने के िलए तु ह
कठोर साधना और कड़े श ा यास क आव यकता है।’’
दुभ ने भैरवनाथ क ओर ण भर देखा, ‘‘उिचत है, म मरण रखँग ू ा।’’
दुभ ने अ क लगाम ख ची और िकसी अिनि त थान क ओर चल पड़ा।
वह तीन हर तक या ा करता रहा। उसे बहत कमजोरी और थकावट महसस ू होने लगी।
उसने अ क लगाम ख च उसे रोका। इसके उपरांत वह अपने अ से नीचे उतरा और जल क
खोज करने लगा।
एक ा ण अपने िश य के साथ वन माग से गुजर रहे थे। दुभ को महसस ू हआ िक
उनसे सहायता माँगने म कोई हािन नह है।
वह धीरे -धीरे उनके िनकट आया, और उन ा ण देव के सम अपने हाथ जोड़े ।
‘‘ या मुझे थोड़ा जल िमल सकता है? म बहत समय से यासा हँ।’’
उस ा ण ने णभर दुभ क ओर देखा, ‘‘ठीक है, हमारे साथ आओ, तु ह पया जल
िमलेगा।’’
अपने सारे िश य के साथ वह ा ण देव अपने गु कुल क ओर चल पड़े । दुभ भी
अपना अ िलए उनके साथ पैदल ही चलने लगा।
अक मात् ही उनके सम एक बाघ आ खड़ा हआ। दुभ का अ जोर से िहनिहनाया
और भाग खड़ा हआ।
ा ण देव और उनके दो िश य के हाथ म कोई श नह थे। बाघ ने उनके एक िश य
पर छलाँग लगायी।
दुभ जानता था िक वह शि हीन है, िक तु वह इतना भी अश नह हआ था िक एक
बाघ से न लड़ सके। उसने उस ा ण के िश य को बचाने के िलए छलाँग लगायी और उस बाघ
के मुख पर भीषण मुि हार िकया।
बाघ, भिू म पर िगर पड़ा, उसने मुख से र उगल िदया। कुछ ण उपरांत वह बाघ उठा
और घने वन म भाग गया।
उस ा ण का िश य भिू म से उठा।
‘‘ध यवाद!’’ उस िश य ने दुभ के ित कृत ता य क ।
वह ा ण देव, इस युवा का बल देख चिकत थे। उ ह ने मन ही मन िवचार िकया, ‘इस
आयु म इतना भीषण बल? कौन है ये?’
‘‘अब सब ठीक है, हम चलना चािहए; और तुम भी हमारे साथ आ सकते हो।’’ उस ा ण
ने दुभ क ओर देखा।
वह सभी शी ही गु कुल पहँचे। वह ा ण एकटक दुभ क ओर देखे जा रहे थे। वह
िजस िश य के ाण दुभ ने बचाए थे, वह उसके िलए एक घड़े म पानी भर लाया।
‘‘तुम तो अ ुत हो; मेरा जीवन बचाने के िलए एक बार िफर से ध यवाद।’’ उस ा ण
देव के िश य ने दुभ को सराहा।
‘‘यह तो मेरा दािय व था िम ।’’ दुभ जल पीता रहा।
कुछ ही ण म परू ा घड़ा र हो गया।
‘‘ तीत होता है िक तुम बहत अिधक यासे थे।’’
‘‘हाँ, वो तो है; म िपछले एक हर से जल क खोज म था... इसके िलए ध यवाद।’’
वह िश य दुभ के िवषय म जानने को उ सुक हो रहा था, ‘‘उिचत है, चलो हम एक
दूसरे के िवषय म जान लेना चािहए; म एकच नगरी का राजकुमार श ुघन हँ।’’
एकच नगरी का नाम सुनकर दुभ त ध रह गया। उसने मुख म भरा जल थोड़ा
उगल िदया।
‘‘ या हआ िम ? या तुम ठीक हो?’’ श ुघन ने उसे सँभालने का यास िकया।
‘‘हाँ हाँ, म ठीक हँ।’’ दुभ कुछ ही ण म सामा य हो गया।
‘‘प के तौर पर?’’ श ुघन ने िफर से पछ ू ा।
‘‘हाँ, प के तौर पर; वैसे तुम कह रहे थे िक तुम एकच नगरी के राजकुमार हो, तो वहाँ
का वतमान प र य या है?'
‘‘वतमान प र य? ठीक ही होगा; असल म म तो िपछले छह वष से इस गु कुल म हँ,
इसिलए म वतमान प र य के िवषय म नह जानता, य िक हमारे यहाँ कम से कम दस वष
तक गु कुल म िश ा ा करने क था है।’’
‘‘हाँ, यह तो मुझे भी ात है।’’ दुभ बहाव म कह गया।
‘‘तु ह भी ात है? इसका या अथ है?’’ श ुघन को उसक बात सुनकर थोड़ा आ य
हआ।
‘‘हाँ... य नह ; आयावत के कई रा य क यही परं परा है।’’ उसने ि थित सँभाल ली।
श ुघन कुछ हद तक संतु हआ, ‘‘हाँ, कदािचत् ऐसा ही है; वैसे तुम बताओ, तुम कौन
हो? अब तु हारे प रचय का समय है।’’
दुभ ने कुछ ण िवचार िकया, ‘‘सुजन; मेरा नाम सुजन है, म एक साधारण सा
ामीण हँ।’’
‘सुजन...’ श ुघन ने कुछ ण दुभ क ओर देखा।
‘‘ या हआ? मेरा नाम सुनकर तु ह इतना आ य य हआ?’’ दुभ ने िकया।
‘‘वो...कुछ खास नह ; यह नाम हमारे रा य म बहत िस है।’’
‘‘और यह िस य है?’’ दुभ िज ासु हो रहा था।
‘‘वा तव म, वह हमारे एक पवू ज थे; वह एक ऐसे यो ा थे, जैसा आयवत म अब तक नह
ज मा, िक तु उनम धैय क कमी थी, और न ही उ ह अपने ोध पर कोई िनयं ण था, जो
उनक म ृ यु का कारण बना।’’
‘‘बस इतना ही?’’ दुभ ने श ुघन क ओर देखा।
‘‘हाँ, इतना ही, या तुम कुछ और आशा कर रहे थे?’’
‘‘नह ... ऐसा कुछ नह है, अब मुझे चलना चािहए।’’ दुभ उठ खड़ा हआ।
‘‘अरे ...अरे , को, को! तुम य इतने ोिधत तीत हो रहे हो? तुम तो वह नह हो।’’
‘‘हाँ, म वह नह हँ, म असुरे र हँ।’’ दुभ ने श ुघन क ओर देखा।
‘‘हा हा हा... वैसे अ छा प रहास था; अपने मुख क ओर देखो; एक मासम ू युवा से तीत
होते हो; तो मेरे िलए या आ ा है असुरे र?’’ दुभ ने उसे स य ही बताया, िक तु श ुघन ने
उसे प रहास समझ िलया।
दुभ , श ुघन को देख मु कुराया, ‘‘तुम इस कार िवदूषक क भाँित य हँस रहे
हो?’’
‘‘अ छा, म िवदूषक! तुम यहाँ खड़े -खड़े हा या पद प रहास कर रहे हो, और मुझे
िवदूषक कह रहे हो।’’ श ुघन ने उस पर ताना कसा।
‘‘हाँ, वह वा तव म एक प रहास ही था।’’ दुभ को उसे स य बताना उिचत नह लगा।
वह श ुघन के प म एक अ छे िम को देख पा रहा था। वह वापस प थर पर बैठ गया।
यह देख श ुघन ने उससे िफर िकया, ‘‘अब बताओ, तुम कहाँ से हो? अपने माता
िपता के बारे म कुछ बताओ।’’
दुभ यह सुनकर कुछ ण मौन रहा, िक तु शी ही वह सँभलकर बोला, ‘‘म एक
अनाथ हँ, मेरे जीवन म कोई नह है।’’
श ुघन कुछ ण मौन रहा। कुछ समय उपरांत वह उठकर दुभ के िनकट आया, ‘‘ या
तुम मुझसे िम ता करोगे? िव ास रखो तुम यहाँ मेरे साथ रह सकते हो, और गु देव वसुधर से
तु ह यहाँ कई िव ाएँ सीखने को िमलगी, जो इस आयु म हम सीखने क आव यकता है... मने
आज तु हारा साहस देखा है, िन:संदेह तुम एक अन य यो ा बनने यो य हो; मेरे गु देव तु ह
िश ा अव य दगे।’’
दुभ ने श ुघन क ओर देखा, ‘‘पहले िकसी ने कभी इतना नेह नह जताया मुझपर,
म इसके िलए तु हारा ध यवाद अव य करना चाहँगा, िक तु या तु हारे गु मुझे िश ा दगे?’’
‘‘ऐसा लगता तो है, आओ उनसे ही पछ ू ते ह।’’
‘‘उिचत है, म तु हारे साथ आता हँ।’’
दुभ और श ुघन, महिष वसुधर के पास आये। उ ह ने ा ण देव के सम अपने हाथ
जोड़े ।
‘‘ या बात है श ुघन?’’ ा ण देव ने िकया।
‘‘म आपका िश य बनना चाहता हँ ा ण देव, कृपा करके मुझे वीकार क िजये।’’
दुभ ने िवनती क ।
महिष वसुधर ने दुभ से िकया, ‘‘तुम हो कौन? पहले अपना प रचय तो दो।’’
‘‘मेरा नाम सुजन है; म एक अनाथ हँ, मेरे जीवन म कोई नह ।’’
महिष वसुधर ने णभर दुभ क ओर देखा, ‘‘ठीक है, यिद तु ह मेरा िश य बनना है,
तो तु ह एक छोटी सी परी ा देनी होगी।’’
‘‘अव य मुिनवर, म तैयार हँ।’’
‘‘यह तलवार लो, और मेरे साथ अखाड़े म आओ।’’ महिष वसुधर ने उसे िदशा िदखायी।
‘‘अव य मुिनवर।’’
शी ही महिष वसुधर और दुभ अपने-अपने हाथ म तलवार िलए अखाड़े म थे।
‘‘ हार करो मुझपर।’’
दुभ , महिष वसुधर क ओर दौड़ा, और तलवार घुमायी। ा ण देव उसके दाँव से
भािवत हए और उसका हार रोका।
वह दोन एक हर तक अ यास करते रहे । अक मात् ही दुभ पीछे हटा और ा ण देव
ने उसके मुख पर मुि से हार िकया। ोिधत दुभ पलटा और उसने भीषण हार िकया,
िक तु महिष वसुधर ने सफलतापवू क उसका हार रोका।
‘‘अपने ोध पर िनयं ण रखो सुजन; यह तु हारे श ु का अ बन सकता है।’’ वसुधर
ने उसे पीछे धकेल िदया।
दुभ भिू म पर िगर पड़ा। उसे बहत थकावट महसस ू हो रही थी।
‘‘तुम एक अ छे यो ा बन सकते हो, िक तु बहत ज दी थक जाते हो; तु ह अ यास क
आव यकता है।’’
दुभ उठा और ा ण देव के िनकट आया, ‘‘आप उिचत कह रहे ह; मुझे मागदशन क
आव यकता है, कृपा करके मुझे अपना िश य वीकार क िजये।’’
‘‘वो तो म कर ही चुका हँ सुजन।’’
दुभ यह सुनकर स न हो उठा, ‘‘ध यवाद गु देव।’’ उसने महिष वसुधर के चरण
पश िकये।
वह श ुघन उसके िनकट आया, ‘‘मने कहा था न सुजन, गु देव तु ह अपना िश य
वीकार कर ही लगे।’’
दुभ , श ुघन को देख मु कुराया, ‘‘हाँ, तुमने उिचत कहा था िम ।’’
दुभ और श ुघन ने महिष वसुधर के मागदशन म अपनी िश ा जारी रखी। कुछ ही
समय म वह दोन बहत ही अिभ न िम बन गए।
तीन वष बाद
र गु भैरवनाथ ने उससे िकया, ‘‘सुबाह योजना क या गित है?'
‘‘िब कुल गु देव; मेरा िववाह िव ांत से पवू हो गया, और मेरा पु अब तीन महीने का
है, वह िव ांत के पु के ज म को केवल दस िदन बीते ह।’’
‘‘बहत अ छे सुबाह।’’
‘‘आप जैसे संबोिधत कर, म उ र दँूगा।’’ जयवधन (सुबाह) मु कुराया।
‘‘हाँ, वो तो है; अब हमारी योजना के अगले चरण पर अमल करने का समय आ गया है।’’
भैरवनाथ मु कुराया।
‘‘और वह या है?'
‘‘मुझे एक नयी सच
ू ना िमली है, और वह ये है िक िव ांत, राजा तेज वी क संतान नह
है।’’
जयवधन चिकत रह गया, ‘‘ या? या वा तव म? यिद यह स य है तो मुझे तेज वी के
िव िव ोह करने का एक कारण िमल गया है।’’
‘‘िब कुल सही समझे; िवदभ के िव िव ोह करने का समय आ गया है।’’
‘‘अव य; म चलता हँ।’’ जयवधन थान करने लगा।
‘‘नह , को।’’
‘‘ या हआ गु देव?'
भैरवनाथ, जयवधन के िनकट आया, ‘‘इससे पहले िक तुम िवदभ के महाराज तेज वी से
िव ोह करो, तु ह दुभ से सहायता माँगनी होगी; उसके समथन के िबना तुम तेज वी को
परा त नह कर सकते।’’
‘‘दुभ ? िक तु मने तो उ ह वष से नह देखा, म उ ह खोजँग ू ा कहाँ?'
भैरवनाथ मु कुराया, ‘‘ या तुम मुझे इतना मखू समझते हो? तीन वष पवू जब दुभ ने
हम छोड़ा था, तबसे मने कई असुर को उस पर ि रखने के िलए िनयु िकया हआ है...
िपछले तीन वष से दुभ , महिष वसुधर के िदशािनदश म श ा यास कर रहा है; िमली सच ू ना
के अनुसार उसक सु शि याँ जा त हो चुक ह, और अपने साम य से न जाने उसने िकतने
िद या को साध रखा है।’’
‘‘यह तो बहत ही उ म सच ू ना है; म जाऊँगा, और महावीर दुभ से सहायता मागँग ू ा,
इसिलए अब मुझे थान करना चािहए।’’
जयवधन अपने अ पर आ ढ़ हआ, और दुभ के गु कुल क ओर थान कर गया।
शी ही वह अपने िनधा रत ल य पर पहँच गया।
‘‘सुजन! तु हारा कोई िम तुमसे िमलने आया है।’’ श ुघन, दुभ के पास आया।
‘‘मेरा िम ?’’ दुभ को थोड़ा आ य हआ।
‘‘हाँ, तुमने बताया नह िक तु हारा कोई और िम भी है।’’ श ुघन ने दुभ को घरू कर
देखा।
दुभ उठा, ‘‘पहले म वयं तो जान लँ,ू िक वह कौन सा िम है, जो मेरी ती ा म है।'
शी ही दुभ गु कुल के बाहर आया। जयवधन वहाँ उसक ती ा कर रहा था।
‘जयवधन!’ उसे देख दुभ को थोड़ा आ य हआ।
‘‘ वागत है... या आपको अपना वचन मरण है?'
दुभ ने णभर उसक ओर देखा, ‘‘हाँ, मुझे भलीभाँित अपना वचन मरण है... तुम
बताओ, यहाँ य आये हो?'
‘‘म िवदभ पर आ मण करने जा रहा हँ; म चाहता हँ िक आप मेरी सेना का नेत ृ व कर,
और मुझे लगता है िक आप सेनापित के इस पद को अ वीकार नह करगे।’’ जयवधन ने दुभ
से िवनती क ।
‘‘तुम िचंता मत करो, म समय पर तु हारी सहायता के िलए उपि थत रहँगा, अभी तुम
यहाँ से जाओ।’’ दुभ ने जयवधन को िव ास िदलाया।
‘‘उिचत है, म आपक ती ा क ँ गा।’’ जयवधन अपने अ पर आ ढ़ हआ और वापस
लौट गया।
दुभ , लौटते हए जयवधन क ओर देखता रहा। श ुघन ने उन दोन क परू ी वाता सुनी।
वह दुभ के सम आया।
‘‘तुम कहाँ जा रहे हो सुजन? और वह यि कौन था? या तुम वा तव म िकसी यु
पर जा रहे हो?'
दुभ मु कुराया, ‘‘वष पहले जब म म ृ युश या पर था, तब उसने मेरे ाण क र ा क
थी, यही कारण है िक मने उसे हर ि थित म अपना समथन देने का वचन िदया है; वह िवदभ देश
पर आ मण करने जा रहा है, और मुझे उसक सहायता करनी है।’’
‘‘िव...िवदभ!’’ श ुघन त ध रह गया।
‘‘ या हआ? इतने त ध य हो गए?’’
‘‘ या तुमने कभी र राज माकश का नाम सुना है?'
‘‘नह , मने यह नाम कभी नह सुना।’’
श ुघन आ यचिकत रह गया, ‘‘माकश, तुम र राज दुशल के िवषय म नह जानते?'
‘‘ को को, पहले िनधा रत कर लो, माकश या दुशल।’’
‘‘म र राज दुशल के िवषय म बात कर रहा हँ, िजनका नाम आगे चलकर माकश पड़ा।’’
दुभ यह सुनकर कुछ ण िवचार म खो गया।
‘‘सुजन... सुजन! अब तुम िकन िवचार म खो गए?’’ श ुघन ने उसे पकड़कर िहलाया।
‘‘वो... कुछ िवशेष नह ; तुम कुछ कह रहे थे न, अपनी बात परू ी करो।’’
‘‘हाँ हाँ, म कह रहा था; म यह कह रहा था िक तुम िवदभ रा य पर आ मण करके एक
आ मघाती कदम उठाने जा रहे हो।’’ श ुघन ने उसे चेतावनी दी।
‘‘आ मघाती कदम य ?’’ दुभ को थोड़ा आ य हआ।
‘‘कुछ वष पवू आयावत म एक भीषण महासं ाम हआ था; यह महािवकराल यु था, जो
पाँच िदन तक चला था, िजसम लाख यो ाओं को अपने ाण क बिल देनी पड़ी थी। यह
मानव , नाग और असुर के म य चला महासं ाम था। िवशेषतः ानी लोग उस यु के चौथे
िदन का िववरण देते ह, जब युवराज तेज वी और र राज माकश के म य भयावह हआ था।
लोग कहते ह िक वह इस युग का सबसे महान था। अंतत: महावीर यो ा तेज वी ने,
र राज माकश को परािजत कर उसका वध िकया।’’ श ुघन को िजतना ात था उसने बता
िदया।
दुभ यह सब सुनकर मु कुरा रहा था।
‘‘ या हआ? तुम मु कुरा य रहे हो?’’ श ुघन आ य म था।
‘‘म अपने उस िम का बहत-बहत ध यवाद करना चाहँगा, य िक उसने मुझे वो अवसर
िदया है िजसक म कब से ती ा कर रहा था।’’
‘‘उसने तु ह अवसर िदया है... तु हारे कहने का अथ या है?’’ श ुघन को अभी भी
समझ नह आ रहा था िक वह या कहना चाहता था।
‘‘हाँ, यह एक दुलभ अवसर है; सम आयावत ये मानता है िक इस युग के सव े
यो ा, महाराज तेज वी ह; यह यु सबका म िमटा देगा; यह अपनी शि और साम य िस
करने का दुलभ अवसर है। मुझे जीवन म केवल यही आशा है, िक समाज मेरी शि और साम य
को स मान दे, य िक म वयं को इसके यो य मानता हँ... समय आ गया है, िक अब सम
आयावत को ात हो जाये, िक म तेज वी से े यो ा हँ।’’ दुभ ने अपनी तलवार क ओर
देखा।
श ुघन का यान दुभ के ने क ओर था, ‘‘ या हआ सुजन? तु हारे ने म ोध के
साथ-साथ इतनी पीड़ा य है?'
‘‘पीड़ा? नह तो, मेरी आँख म तो कोई पीड़ा नह है।’’
श ुघन, दुभ के िनकट आया, ‘‘म तु ह तीन वष से जानता हँ सुजन, म तु हारे मुख
के भाव पढ़ सकता हँ; यिद तुम नह बताना चाहते तो म तु ह िववश नह क ँ गा, िक तु तु हारे
साथ इस यु म म भी भाग लँग ू ा।’’
दुभ ने श ुघन क ओर देखा, ‘‘नह , तुम नह जा सकते, अभी तुम इस यु के िलए
तैयार नह हो; यह यु िवदभ से है, इसिलए यह कोई साधारण यु नह है, और वैसे भी मेरे
जीवन म तु हारे अित र और कोई नह , तुम मेरे िलए एक ाता से बढ़कर हो, म तु ह खोना
नह चाहता।’’
श ुघन, दुभ के दय से लग गया, ‘‘तुम मुझे खो नह सकते, और तु ह लगता है िक
म तु ह इस िवकराल यु म अकेले जाने दँूगा; जहाँ तुम जाओगे, म तु हारे साथ आऊँगा, इसिलए
िववाद बंद करो, और यु पर चलो।’’
‘‘ठीक है, िक तु परू े यु के दौरान तुम मेरे साथ रहोगे।’’ दुभ ने श ुघन को चेतावनी
दी।
‘‘हाँ हाँ ठीक है, म तु हारे साथ ही रहँगा, अब समय न न करो और चलो।’’
दुभ और श ुघन अपने अपने अ पर आ ढ़ हए और अपने ल य क ओर बढ़ चले।
शी ही वह दोन उसी थान पर पहँचे, जहाँ जयवधन ने उ ह बुलाया था।
उनके वहाँ पहँचते ही, उ ह ने भैरवनाथ को अपने सम खड़ा पाया। श ुघन दुभ क
वा तिवकता से अब तक अनिभ था। दुभ ने श ुघन क ओर देखा, ‘‘तुम यह को श ुघन,
म अभी आता हँ।’’
इसके उपरांत वह भैरवनाथ के िनकट आया, ‘‘मुझे आपसे कुछ वाता करनी है गु देव,
मेरे साथ आइये।’’
भैरवनाथ और दुभ गुफा के भीतर आये। जयवधन भी वहाँ उपि थत था।
‘‘मेरा नाम सुजन है, और म सुजन बनकर ही इस यु म भाग लँग ू ा; मेरा िम श ुघन
मेरे जीवन क वा तिवकता नह जानता; वह यह स य नह जानता िक म आधा असुर और आधा
मानव हँ; उसके िलए म एक मानव हँ, इसिलए आप सबको इस बात का यान रखना होगा िक
उसे मेरी वा तिवकता ात नह होनी चािहए।’’
भैरवनाथ ने दुभ से िकया, ‘‘तुम असुर क सेना का नेत ृ व करने जा रहे हो, तो
तुम अपना स य अपने िम से कैसे छुपाओगे?'
‘‘म नह जानता िक आप लोग ये सब कैसे करगे, िक तु यिद आपको मेरा समथन
चािहए, तो आपको ऐसा करना ही होगा।’’
‘‘उिचत है, हम िवचार करते ह, िक तु इस समय हम अपनी योजना पर काय करना है।’’
भैरवनाथ ने कहा।
जयवधन ने आगे आकर उसका समथन िकया, ‘‘अव य गु देव, म इसके िलए तैयार
हँ।’’
‘‘िवदभ से िव ोह करने का समय आ गया है; थान करो जयवधन!’’
‘‘अव य गु देव।’’ जयवधन गुफा से बाहर आया, और अपने अ पर आ ढ़ होकर
िनधा रत ल य क ओर बढ़ चला।
दुभ , गुफा के बाहर आकर श ुघन से िमला, ‘‘हम कुछ िदन म आ मण करना है;
चलो, हम चलकर योजना बनानी आरं भ कर देनी चािहए।’’
‘‘उिचत है, चलो।’’ श ुघन को वैसे भी कुछ समझ नह आ रहा था।
10. महाबली अख ड ( जीिवत रहने का रह य
)

शी ही जयवधन, िवदभ के महल आया। वो महल ऐसे समय पर पहँचा, िजस समय वहाँ
सभा बुलायी गयी थी।
वो िबना िकसी से आ ा िलये सभा क ओर बढ़ा चला जा रहा था।
‘‘ये या अभ ता है जयवधन! इस तरह िबना िकसी से आ ा िलये तुम सभा म वेश कैसे
कर सकते हो?’’ तेज वी ने जयवधन को फटकारा।
जयवधन, ोध से तेज वी क ओर घरू रहा था। युवराज िव ांत, महिष शंकराचाय, अ य
मं ी एवं सभासद उसके मुख का यह भाव देख आ य म थे।
‘‘ या हआ? तुम मुझे ऐसे य घरू रहे हो?’’ तेज वी अब तक आ य म थे।
जयवधन, िव ांत क ओर मुड़ा, ‘‘ये मनु य आपका पु नह है, िफर य आपने इसे
अपना उ रािधकारी घोिषत िकया?'
िव ांत यह सुनकर स न रह गया, और तेज वी क ओर मुड़ा, ‘‘ या? यह या कह रहा
है िपता ी? और यह इस तरह य यवहार कर रहा है?'
जयवधन ने ह त ेप िकया, ‘‘हाँ, तुम महाराज तेज वी क वा तिवक संतान नह हो;
तु हारे वा तिवक िपता महाबली अख ड ह, जो उस र राज माकश के पौ ह... इसका अथ ये है
िक तुम भी एक असुर हो।’’
ोिधत तेज वी, अपने िसंहासन से उठ खड़े हये, और अपने पु को फटकार लगाई,
‘‘नह , महाबली अख ड असुर नह ह, वो मेरे ये ह, इसिलये उनका नाम आदर से लो।’’
‘‘बस बहत हआ, बहत हआ महाराज; ये िसंहासन मेरा है, और यिद आपने मुझे अपना
उ रािधकारी घोिषत नह िकया, तो म िव ोह क ँ गा।’’ जयवधन ने ोध म उ र िदया।
यह सुनकर महाराज तेज वी अपने िसंहासन से उठकर नीचे जयवधन के पास आये,
‘‘तुम मेरी ओर से वतं हो, तु हारी जो इ छा हो कर सकते हो।’’ उ ह ने जयवधन को भिू म पर
धकेल िदया।
जयवधन भिू म से उठा और तेज वी क ओर घरू ा, ‘‘आपका ये दु:साहस? आपका साहस
कैसे हआ मुझे यँ ू अपमािनत करने का? आप मुझे नह जानते; इसका प रणाम बहत भयंकर
होगा।’’
तेज वी ने अपने पु क गदन पकड़ी, और उसे तमाचे लगाने शु िकये। जयवधन ने
उ ह पीछे धकेल िदया। तेज वी भिू म पर िगर पड़े , अपने पु का यवहार देख उनका दय पीड़ा
से भर गया। वो भिू म से उठे और जयवधन क ओर घरू ा।
‘‘चले जाओ जयवधन, चले जाओ, और लौटने का साहस मत करना।’’ महाराज तेज वी
के ने ोध से जल रहे थे।
जयवधन अभी भी महाराज क ओर घरू रहा था, ‘‘म लौटूँगा अपनी सेना के साथ; आने
वाले यु के िलये तैयार हो जाइए महाराज तेज वी।’’ जयवधन मुड़कर वापस जाने लगा।
महाराज तेज वी अभी भी अपनी संतान क ओर देख रहे थे। महाऋिष शंकराचाय और
िव ांत उनके पास आये।
‘‘कुछ तो गलत हआ है जयवधन के साथ; ऐसा तीत होता है, जैसे वो िकसी दु आ मा
के वश म है।’’ महिष शंकराचाय ने उ ह समझाने का य न िकया।
महाराज तेज वी यह सुनकर चिकत रह गये, ‘‘दु आ मा? यह आप कैसे कह सकते
ह?'
‘‘ य िक म अपने दोन िश य को भलीभाँित जानता हँ महाराज; यह वह नह है; यह
राजकुमार जयवधन का यवहार नह है; वह कभी अपने िपता का अपमान नह कर सकता।’’
महिष शंकराचाय ने परू े िव ास से कहा।
िव ांत ने भी उनका समथन िकया, ‘‘म कुलगु से सहमत हँ महाराज; उसके यवहार
म इस अक मात् प रवतन से म भी आ य म हँ; ऐसा तीत होता है, िक वह जयवधन है ही
नह ।’’
महाराज तेज वी कुछ हद तक संतु हए, ‘‘हाँ, अब तो मुझे भी ऐसा लगने लगा है िक
आप लोग उिचत कह रहे ह; म भी उसके यवहार म इस अक मात् प रवतन से आ य म पड़
गया था; िव ांत, तुम जाकर स य का पता करो, मुझे परू ा िव ास है, िक ये अव य ही उस नीच
र गु भैरवनाथ का षडयं है।’’
‘‘जो आ ा महाराज।’’ िव ांत वहाँ से िनकलने ही वाला था।
‘‘एक ण को िव ांत!’’ तेज वी ने उसे रोका।
‘‘ या हआ महाराज?’’
महाराज तेज वी िव ांत के पास आये, ‘‘अभी-अभी तुमने बहत कुछ सुना; या तुम
मुझसे कोई पछ
ू ना नह चाहते?'
िव ांत मु कुराया, ‘‘मुझे आप पर िव ास है महाराज, आप अभी भी मेरे िपता ह, और मुझे
आप पर स पण ू िव ास है; म महाबली अख ड के िवषय म जानना अव य चाहता हँ, िक तु ये
समय सही नह है, इस समय मुझे जयवधन क िचंता है, इसिलये मुझे जाना होगा, मुझे जाना
चािहए।’’
िक तु इसे पवू िक िव ांत महल से जाता, सभा म एक दूत का वेश हआ। वो एक असुर
था। तेज वी उसे देख आ य म पड़ गये, ‘‘एक असुर! तुम यहाँ िकसिलए आये हो?'
‘‘म केवल एक दूत हँ महाराज।’’ उस असुर ने शांितपवू क कहा।
तेज वी ने णभर उस दानव को घरू ा और कहा, ‘‘ठीक है, तुम वह काय करो िजसके
िलये तुम यहाँ आये हो।’’
उस असुर ने तेज वी को एक प िदया, ‘‘ये आपके पु जयवधन का संदेश है।’’
‘‘मेरे पु का संदेश?’’ तेज वी आ यचिकत थे।
महिष शंकराचाय ने उ ह शांत करने का य न िकया, ‘‘धैय रिखये महाराज, मुझे देखने
दीिजये।’’
महिष शंकराचाय ने वो प िलया और उसे पढ़ना आरं भ िकया।
म जानता था िक आप मेरी इ छा पण ू नह करगे, इसिलये मने अपनी सेना पहले से ही
तैयार कर रखी थी। म आपको एक िदन का समय देता हँ; या तो मुझे िवदभ देश का युवराज
घोिषत क िजये, अ यथा कल यु के िलये तैयार हो जाइये। जयवधन।
यह सुनकर तेज वी ु हो गये, ‘‘जाओ और उससे कह दो, हम यु के िलये तैयार ह;
कल सय ू ादय के साथ ही यह यु आरं भ होगा।’’
‘‘जैसी आपक इ छा महाराज।’’ दूत वापस लौट हो गया।
महिष शंकराचाय चिकत थे, ‘‘म बड़े आ य म हँ महाराज, िबना कुछ िवचारे अपने यह
िनणय कैसे ले िलया?'
तेज वी ने महिष शंकराचाय क ओर घरू ा, ‘‘आप िचंितत न होइए, मने यह िनणय बहत
सोच-समझकर िलया है... जयवधन ने हम समय िदया है, हम इस समय म स य का पता करना
है। समय कम है, हम शी ता से काय करना होगा; आप और िव ांत यु क तैयारी क िजये,
स य का पता अब म जाकर लगाऊँगा।’’
‘‘आपके मन म चल या रहा है महाराज?’’ शंकराचाय ने तेज वी क ओर देखा।
‘‘िचंितत ना होइये ऋिषवर; िव ास रिखये, म समय पर लौट आऊँगा।’’
महाराज तेज वी थान कर गये। उसके उपरांत वो एक गु थान पर पहँचे, और कुछ
मं का उ चारण िकया। उनका प प रवितत हो गया, और अब वो अपने पु जयवधन क भाँित
िदख रहे थे। उसके उपरांत वो एक अ पर आ ढ़ हए और श ु के िशिवर क ओर बढ़ चले।
वह दुभ और श ुघन, वन म मण कर रहे थे। महाराज तेज वी भी उसी े से गुजर
रहे थे। दुभ क ि उन पर पड़ी। उसे लगा िक वो जयवधन है।
‘‘जयवधन!’’ दुभ ने उसे पुकारा।
यह सुनकर तेज वी क गये। वो दुभ क ओर मुड़े।
दुभ और श ुघन उनक ओर बढ़े ।
‘‘तुमने तो कहा था िक आज राि तुम दि ण क सेना क यव था और देख-रे ख
करोगे, तो यहाँ या कर रहे हो?’’ दुभ ने उ ह जयवधन समझकर िकया।
तेज वी अभी भी उसक ओर घरू रहे थे।
‘‘ या हआ? मौन य हो? ऐसा तो नह िक योजना कुछ और ही है? म प कर दँू िक
मने तु हारी सेना का नेत ृ व वीकार िकया है मगर मेरे नेत ृ व म यु म कोई छल नह होना
चािहए।’’
यह सुनकर तेज वी अपने अ से उतरे और अपने वा तिवक प म आ गये।
‘‘कौन हो तुम? और जयवधन के प म हमारे सम य आये?’’ दुभ ोिधत हो उठा।
‘‘म िवदभ का राजा तेज वी हँ।’’ तेज वी का वर भारी था।
दुभ ने कुछ ण उनक ओर देखा, ‘‘िवदभ के महाराज तेज वी; म बड़े आ य म हँ िक
िजस यो ा के िवषय म मने इतनी कथाएँ सुन रखी थ , वो अपने श ु का प िलये घम ू रहा है।’’
‘‘जयवधन मेरा श ु नह , मेरा पु है, और म यहाँ उस षड्यं के िवषय म पता करने
आया हँ, िजसके कारण मेरा पु मेरे िव हो गया है।’’
‘‘जयवधन आपका पु है?’’ दुभ ने ऐसा िदखाया, जैसे उसे कुछ ात ही न हो।
‘गु देव ने यह मुझे पहले ही बता िदया था, िक तु मुझे श ुघन के सम अंजान बनकर रहना
होगा।’
‘‘हाँ, वो मेरा पु है।’’ तेज वी थोड़ा दुखी तीत हो रहे थे।
दुभ कुछ ण तक शांत रहा, उसके उपरांत उसने उनक ओर देखा, ‘‘आपका पु
जयवधन एक असुर के िनयं ण म है; सुबाह नाम क एक दु ा मा ने उसके शरीर म वेश कर
उस पर परू ी तरह काबू पा िलया है।’’
तेज वी यह सुनकर स न रह गये। वो गहरे सदम म थे। श ुघन को भी यह सुनकर
आ य हआ।
उसके उपरांत तेज वी ने दुभ क ओर देखा, ‘‘तुम कह रहे थे िक तुम जयवधन के
सेनापित हो, िफर तुमने मुझे स य य बताया?'
‘‘ य िक म एक यायपण ू यु चाहता हँ; मने आपको स य इसिलये बताया, य िक म
नह चाहता िक आप यह यु करते समय िकसी धमसंकट म रह।’’ दुभ ने उ र िदया।
तेज वी ने कुछ ण तक उसे देखा और िकया, ‘‘कौन हो तुम? तु हारे िवषय म
जानने को बहत उ सुक हँ म।’’
‘‘मेरा नाम सुजन है, और कल के यु म आपके और िवजय ी के म य म सबसे बड़ी
दीवार हँ।’’
तेज वी, दुभ को देख मु कुराये, ‘‘तो तुम असुर के सेनानायक हो; िक तु तु ह
देखकर तो लगता है िक तुम िकसी रा य के राजकुमार हो... इसिलये मेरा यह सुझाव है िक
पहले परू ी तरह से वयं को तैयार करो, य िक यु म केवल शि का ही नह , अनुभव का भी
कह अिधक मह व होता है।
इससे पवू िक दुभ उ र दे पाता, श ुघन ने ह त ेप िकया, ‘‘यह या कह रहे ह!
सुजन, तुम असुर क सेना का नेत ृ व करने वाले हो?’’
श ुघन उसक ओर देख रहा था। दुभ मौन था।
‘‘तुम उ र य नह देते? बताओ मुझे, या तुम असुर क ओर से यु करने वाले हो?’’
श ुघन ने उससे दोबारा पछ ू ा।
‘‘म...म िववश हँ श ुघन; म अपने िदये से वचन से बँधा हँ; मुझे इस यु म भाग लेना ही
होगा, िक तु तु हारे िलये अभी भी समय है, तुम यह यु े छोड़कर जा सकते हो।’’ दुभ ने
श ुघन को समझाने का य न िकया।
‘‘तुम जानते हो म ऐसा नह कर सकता; म तु ह इस प रि थित म छोड़ नह सकता।’’
श ुघन ने कहा।
यह देख तेज वी ने ह त ेप िकया, ‘‘ तीत होता है िक तुम दोन बहत अिभ न िम हो;
म जानना चाहता हँ, िक तुम दोन ने असुर का साथ देना य िनि त िकया?'
‘‘राजकुमार जयवधन ने एक बार मेरे ाण बचाए थे, इसिलये मुझे उसका साथ देना ही
होगा।’’ दुभ ने उ र िदया।
‘‘ठीक है, यह तु हारा िनणय है, म ह त ेप नह क ँ गा; सय ू ादय के साथ ही हम यु म
िमलगे; कल म भी तु हारा यु कौशल देखना चाहँगा... अभी मुझे कुछ आव यक काय है, मुझे
जाना होगा।’’ तेज वी अपने अ क ओर बढ़े ।
जाने से पवू वो एक बार िफर दुभ क ओर मुड़े, ‘‘तुमसे िमलकर अ छा लगा सुजन,
तुमसे यु करके आनंद आएगा।’’
दुभ , तेज वी क ओर देखता रहा। वो घने वन म चले जा रहे थे। दुभ ने िवचार िकया,
‘आप अपने िपता िव मािजत क भाँित नह ह, आपसे एक उिचत क आशा है।’
महाराज तेज वी दो हर बाद अपने महल पहँचे। महिष शंकराचाय उनक ती ा कर रहे
थे।
‘‘ या हआ महाराज? या कोई जानकारी िमली?’’ महिष ने िकया।
‘‘आपका अनुमान उिचत था ऋिषवर; उस नीच सुबाह क दु ा मा ने मेरे पु के स पण

शरीर और आ मा पर अिधकार िलया है; हमारे पास यु के अित र और कोई माग नह है; हम
जयवधन को बंदी बनाना होगा, उसके उपरांत हम जयवधन को उस दु ा मा सुबाह से मु
करने का उपाय ढूँढ़गे।’’ तेज वी ने अपनी योजना कह डाली।
‘‘तो िफर ठीक है महाराज, इसका अथ यह है िक यु िनि त है?’’
‘‘हाँ ऋिषवर, हम कल के यु के िलये तैयार रहना होगा।’’
‘‘सय ू ादय होने वाला है, हमारी सेना को महल के मु य ार से बाहर लाया जाये।’’
महाराज तेज वी ने आदेश िदया।
उनके आदेश पर, युवराज िव ांत, तेज वी के पास आये, ‘‘सेना तैयार है महाराज; आधे
हर के भीतर सारी सेना, महल के मु य ार के बाहर होगी।’’
‘‘अ ुत काय िकया िव ांत; अब हम चलना चािहए; हम यह यु शी से शी समा
करना है।’’ तेज वी पीछे मुड़े।
‘‘अब आप कहाँ जा रहे ह महाराज?’’ महिष शंकराचाय ने िकया।
‘‘म अभी आता हँ ऋिषवर; आप सब महल के बाहर जाकर यु को तैयार रिहये, म आपसे
वह िमलँग ू ा।’’ तेज वी, मुड़कर एक गु क क ओर बढ़ चले।
उस क म पहँचते ही िद य िवजयधनुष उनके सम था। वो उस िद य धनुष के पास
आये, और अपने दोन हाथ जोड़े ।
‘‘पहले म इस धनुष क िद यता को नह जानता था; िजस यो ा के हाथ म यह िद य
धनुष होगा, वो कभी परािजत नह हो सकता। आज म वष के उपरांत आपका उपयोग करने जा
रहा हँ, आज मुझे आपके साथ क आव यकता है, य िक म अपने पु का वध नह कर सकता;
मेरी ही भाँित वो भी एक कुशल धनुधर है, और मुझे उसे परािजत करना ही है।’’
तेज वी, उस िद य धनुष के सम अपने घुटन पर बैठ गये और उसे णाम िकया। उसके
उपरांत उ ह ने उस धनुष को पकड़ा और उसे हवा म उठा िलया, ‘‘हर हर महादेव!’’
सय ू ादय होते ही िवदभ और असुर क सेना एक दूसरे के सम खड़ी थ ।
िव ांत, तेज वी के पास आया, ‘‘महाराज, हमारा मु य ल य जयवधन है; हमारी
योजना के अनुसार आप जयवधन पर आ मण करगे, और हम सब बाक श ु सेना को रोकगे।’’
तेज वी ने िव ांत को सावधान िकया, ‘‘अपने श ु को कमतर मत आँको िव ांत; श ु
प म दो और यो ा ह, उनक उ बीस वष के करीब होगी; उनम से एक हमारे िलये संकट
उ प न कर सकता है, तुम उसका िवशेष यान रखना... उसका नाम सुजन है, मने उसका
आ मिव ास देखा है, उससे सावधान रहना।’’
‘‘आप िचंितत न होइए, म सावधान रहँगा।’’ िव ांत ने परू े आ मिव ास से उ र िदया।
उसके उपरांत तेज वी ने िव ांत (िवदभ के सेनापित) क ओर देखा, ‘‘सेनापित, यु
आरं भ करने का समय आ गया है।’’
‘‘जो आ ा महाराज।’’
आदेश िमलते ही िवदभ क सेना ने यु का शंखनाद िकया।
यह देख िवरोधी सेनापित, सुजन (दुभ ) ने भी शंखनाद का िनदश दे िदया।
महाराज तेज वी ने िवजयधनुष क यंचा ख ची। टंकार का वो वर इतना ती था,
िजसने स पण ू वातावरण िहलाकर रख िदया। दुभ भी वह वर सुनकर त ध रह गया। वो ती
वर, श ु क सेना म भय उ प न करने के िलये पया था।
यह देख दुभ ने भी अपने धनुष क यंचा ख ची। उसके धनुष क टंकार ने भी भीषण
विन उ प न क । उसक विन िवजयधनुष से कुछ ही कम थी; इससे असुर सेना का मनोबल
भी ऊँचा हो गया।
‘‘कौन है वो यो ा? या वो जयवधन है?’’ िव ांत चिकत था।
‘‘नह िव ांत, मुझे पता है सुबाह ने उसके शरीर पर अिधकार कर िलया है; वो उसके
साम य का उपयोग कर सकता है, िक तु साहस का नह ; वो मेरे पु के साहस क बराबरी नह
कर सकता।’’ तेज वी ने गिवत होकर कहा।
यह सुनकर िवराट ने अपनी सेना को आदेश िदया, ‘‘आ मण का समय आ गया है, आगे
बढ़ो...'
वह दुभ ने भी अपनी सेना को आदेश िदया, ‘आ मण!’
दोन सेनाएँ टकराय । एक और महासं ाम आरं भ हो गया।
तेज वी का केवल एक ही उ े य था। वो जयवधन क खोज म थे। शी ही उनक ि
एक लाल पताका क ओर घम ू ी। वो श ु के नायक का वज तीत हो रहा था।
‘‘कदािचत् वो जयवधन हो; सारथी, उस वज का पीछा करो।’’ तेज वी ने अपने सारथी
को आदेश िदया।
सारथी ने उस वज का पीछा करना आरं भ िकया। उनका अनुमान सही था। जयवधन
शी ही उनके सम खड़ा था।
सुबाह तेज वी क ओर देख मु कुराया, ‘‘तो अंतत: आप मेरे सम आ ही खड़े हए
िपता ी!’’
‘‘मुझे अपना िपता मत कह नीच, म भलीभाँित जानता हँ सुबाह, िक तुमने मेरे पु के
शरीर को अपने वश म कर रखा है।’’ तेज वी जयवधन पर चीखे।
यह सुनकर सुबाह स न रह गया।
‘‘ या हआ सुबाह? कह तुम यह सोचकर आ य म तो नह पड़ गये, िक मुझे यह सब
कैसे ात हआ?’’ तेज वी ने िवचारम न जयवधन को देखकर उसक चु पी तोड़नी चाही।
सुबाह एक बार िफर मु कुराया, ‘‘उिचत ही हआ, जो तु ह स य का ान हो गया; अब म
तु ह स पण ू स य से अवगत करा देता हँ; मुझे वरदान ा है, िक म ृ योपरांत म िजसके भी
शरीर म वेश क ँ गा, उसके स पण ू बल और साम य का म उपयोग कर सकँ ू गा, और मुझे
भलीभाँित ात है िक तु हारा पु जयवधन तु हारी ही भाँित एक कुशल धनुधर है, तो एक भीषण
के िलये तैयार रहो।’’
तेज वी भी मु कुराये, ‘‘िन:संदेह तुम मेरे पु के साम य का उपयोग कर सकते हो िक
़ तु
साहस; मेरे पु िजतना साहस कहाँ से लाओगे? वो मनु य क अंतरा मा से ा होता है, और
तु हारी ये दु आ मा मेरे पु के साहस क बराबरी कभी नह कर सकती इसिलये ़ सावधान हो
जाओ।’’
तेज वी ने अपना धनुष उठाया, और एक बाण जयवधन क ओर छोड़ा।
उस बाण ने जयवधन के कंधे को घायल कर िदया।
‘‘ या हआ सुबाह? भयभीत तो नह हो गये?’’ तेज वी ने उस पर यं य िकया।
जयवधन (सुबाह) ने तेज वी क ओर घरू ा। हार का उ र देने के िलये उसने भी एक बाण
छोड़ा, िक तु तेज वी ने उसका वो बाण पलभर म तोड़ िदया।
जयवधन ने बाण क वषा आरं भ कर दी। तेज वी ने सफलतापवू क उसका सामना िकया।
वो यु आधे हर तक चला। जयवधन का रथ टूट गया। अब वो भिू म पर था।
‘‘तु ह बंदी बनाने का समय आ गया है; अब म तु हारी दु ा मा अपने पु के शरीर से
िनकाल फकँ ू गा।’’ तेज वी ने अपना धनुष उठाया और नागपाश का आवाहन िकया।
उ ह ने जयवधन को बंदी बनाने के िलये वो बाण छोड़ा, िक तु इससे पवू वो बाण
जयवधन तक पहँचता, कह से एक और बाण आया और नागपाश को िवफल कर िदया।
तेज वी परू ी तरह चिकत रह गया, ‘‘कौन है वो यो ा? म ह त ेप करने का
दु साहस कैसे िकया?'
‘‘म हँ वो यो ा।’’ अपने रथ पर आ ढ़ हआ दुभ , तेज वी के सम आ खड़ा हआ।
तेज वी ने दुभ क ओर देखा और चेतावनी दी, ‘‘तुम अभी बालक हो, इस से दूर
रहो।’’
‘‘म सेनापित हँ, और अपने नायक क र ा करना मेरा दािय व है; जयवधन, आप जाइए
यहाँ से।’’ दुभ ने अपना धनुष उठाया और उसक यंचा ख ची।
उस धनुष क टंकार का ती वर सुन तेज वी अचंिभत रह गया। जयवधन ठहाका
मारकर हँस पड़ा, ‘‘यह है मेरा र ाकवच; अब आओ, और मुझे बंदी बनाकर िदखाओ।’’
तेज वी, दुभ क ओर मुड़े, ‘‘म भी देखता हँ िक तु हारा यह र ाकवच मेरे िवजयधनुष
के सम कब तक िटक पाता है।’’
तेज वी ने धनुष उठाया औरे बाण क वषा ारं भ कर दी। दुभ ने भी परू ी शि से उन
बाण का उ र िदया।
उसके बाण क गित और बल देख तेज वी अचंिभत रह गये।
वो तेज वी के िलये किठन होता जा रहा था। वह िवराट और िव ांत, असुर क
सेना के संहार म लगे थे।
इतने म िवदभ के सेनापित िवराट ने अपने राजा तेज वी क ि थित को देखा िजसम वो
फँसे हये थे। त काल ही वो िव ांत क ओर बढ़ा, ‘‘युवराज िव ांत! महाराज तेज वी को िकसी
यो ा ने य त रखा हआ है, जयवधन िन:श है, यही अवसर है उसे बंदी बनाने का।’’
‘‘हाँ सेनापित, म आपक योजना समझ रहा हँ।’’ िव ांत ने अपने अ क लगाम ख ची
और जयवधन क ओर बढ़ चला।
िक तु इससे पवू िक वो जयवधन तक पहँचता, अपने हाथ म तलवार िलये श ुघन उसके
माग म आ खड़ा हआ। श ुघन ने तलवार घुमाकर कुछ ऐसी चलाई, िजससे िव ांत के अ क
लगाम कट गयी, उसका संतुलन िबगड़ गया और वह भिू म पर िगर पड़ा। िव ांत त काल ही भिू म
से उठा और श ुघन के पास आया, िक तु श ुघन का मुख देख उसने उस पर आ मण करना
उिचत नह समझा।
‘‘मेरा माग छोड़ो, तुम अभी बालक हो, मुझे नह रोक पाओगे।’’
श ुघन, िव ांत क गदन क ओर तलवार लहराते हए मु कुराया, ‘‘ मा करना
महारथी, िक तु मुझे परािजत िकये िबना आप जा नह सकते।’’
िव ांत ने यान से तलवार ख च िनकली, ‘‘देखते ह तुम मेरे सम िकतने समय तक
िटक पाते हो।’’
दोन क तलवार टकराय । िव ांत ने श ुघन को पल भर म िन:श कर भिू म पर
धकेल िदया।
‘‘ तीत होता है िक अब तुमम मुझसे टकराने क इ छा नह बची है, इसिलये अब यह
को, य िक तुम मेरे साम य क बराबरी कभी नह कर सकते।’’ िव ांत, जयवधन क ओर
बढ़ा।
िक तु हठी श ुघन ने उसके पैर ख चकर उसे भिू म पर िगरा िदया। ोिधत िव ांत, भिू म
से उठा। उसने श ुघन के मुख पर भीषण मुि हार िकया, प रणाम व प, श ुघन, र उगलते
हए भिू म पर िगर पड़ा।
तभी जयवधन ने अपनी ओर बढ़ते हये िव ांत को देखा। उसने अपने मन म कुछ िवचार
िकया, और पास ही पड़ा एक धनुष उठा िलया। िक तु िव ांत पर आ मण करने के थान पर
उसने वह बाण तेज वी क ओर चला िदया।
वह बाण सीधा तेज वी के उदर म आ धँसा।
‘‘जयवधन! मेरे म ह त ेप करने का दु साहस कैसे िकया तुमने?’’ दुभ ने उसे
फटकारा।
यह देख िव ांत के ोध क सीमा पार हो गयी। वह जयवधन क ओर दौड़ा। इतने म
श ुघन भी वहाँ आ पहँचा। उसने एक भाला घुमाकर फका, जो सीधा जाकर िव ांत के पैर पर
लगा। वह भिू म पर िगर पड़ा। श ुघन उस पर कूदा।
ोिधत िव ांत ने उसे धकेल िदया, उसके उपरांत उसने भिू म पर िगरी हई एक तलवार
उठाई और श ुघन के पास आया।
‘‘तुम एक बहत ही हठी बालक हो, तुम इसी के यो य हो।’’ िव ांत ने वो तलवार श ुघन
के उदर म उतार दी।
पीड़ा से चीखता हआ श ुघन भिू म पर िगर पड़ा।
पीड़ा से पणू उसक चीख सुन दुभ स न रह गया। उसके हाथ से धनुष िगर गया। वो
श ुघन क ओर भागा।
उसने िव ांत को पीछे धकेला और श ुघन के पास आया।
‘‘सुजन सुजन... मुझे बचा लो, म इतनी शी म ृ यु को ा नह होना चाहता, हम अभी
बहत समय साथ म िबताना है।’’ श ुघन के ने पीड़ा से प रपण ू थे।
‘‘धीरज रखो श ुघन, तु ह कुछ नह होगा, कोई है? कृपा करके सहायता करो हमारी।’’
दुभ पीड़ा से चीखा।
चार सैिनक भागकर श ुघन के पास आये, और शी ही उसे उठाकर िशिवर क ओर
भागे।
‘‘ यान रहे , मेरे िम को कुछ नह होना चािहए।’’ दुभ ने अपने सैिनक को चेतावनी
दी।
इसके उपरांत दुभ िव ांत क ओर मुड़ा, ‘‘ र था मेरा जीवन; एक श ुघन ही तो था,
िजसे म अपना कह सकता था, और आज वो तु हारे कारण म ृ युश या पर है, तु ह इसका मोल
चुकाना होगा।’’ दुभ ने भिू म पर िगरी तलवार उठाई और िव ांत क ओर देखा।
घायल तेज वी ने उसके ने क ओर देखा। दुभ का ोध चरम सीमा पर था। तेज वी
वयं भी थोड़ा भयभीत हो गया, ‘‘ये ोध िकसी मनु य का नह है।’’ वो अपने रथ से कूदे और
िव ांत क ओर बढ़े ।
इतने म दुभ ने िव ांत पर एक भीषण हार िकया। िव ांत ने वो हार तो रोक िलया,
िक तु उ ह कुछ गज पीछे हटना पड़ा।’’
तेज वी यह देख चिकत रह गये, ‘एक बीस वष के युवान म इतना बल? सुबाह ने
जयवधन के शरीर पर अिधकार िकया, य ? मेरे िपता महाराज िव मािजत का कोई वंशज ही
‘उसे’ उसका जीवन लौटा सकता था; यिद मेरा अनुमान सही है, इसका अथ यह दुभ है,
असुरे र दुभ ।’
वह दुभ ने एक बार िफर िव ांत को भिू म पर धकेल िदया। अब िव ांत, दुभ के पैर
के नीचे था।
तेज वी ने दुभ के ने क ओर देखा, ‘वो एक ऐसा असुर है, िजसके पास पंचत व
क शि है... ओह नह ; मुझे िव ांत क र ा करनी होगी।’
तेज वी, िव ांत क ओर दौड़े , िक तु जयवधन अपना धनुष िलये उनके माग म आ खड़ा
हआ।
‘‘मेरा माग छोड़ो सुबाह! िव ांत मेरा ये का पु है, मुझे उसक र ा करनी है, इसके
िलये म तु हारा वध भी कर सकता हँ।’’ तेज वी ने सुबाह को चेतावनी दी।
‘‘उिचत है, मुझे परािजत करो और जाओ।’’ सुबाह ने तेज वी को चुनौती देते हये अपना
बाण चलाया।
तेज वी उसके आ मण का उ र देने को िववश हो गये।
वह दुभ , ोध से िव ांत क ओर घरू रहा था, ‘‘िपछले तीन वष से म अपने ोध पर
िनयं ण करने का यास कर रहा हँ, िक तु आज तुमने मुझे िववश कर िदया; अब कोई यु नह
होगा, केवल िवनाश होगा।’’ दुभ ने तलवार सीधा िव ांत के दय म उतार दी।
‘िव ांत...!’ िवजयधनुष तेज वी के हाथ से िगर गया।
दुभ दहाड़ा, ‘‘असुरे र हँ म, असुरे र दुभ हँ म।’’
िवदभ क स पण ू सेना यह सुनकर त ध रह गयी। असुर सेना भी चिकत थी। यु थम
गया था।
तेज वी को िन:श देख, जयवधन ने अपने धनुष पर तीन बाण चढ़ाये और उ ह
तेज वी क ओर छोड़ िदया।
पहला बाण उनके कंधे म आ धँसा, दूसरा बाण तेज वी क छाती चीर गया, और तीसरा
बाण उनके उदर म आ धँसा। महायो ा महाराज तेज वी भिू म पर िगर पड़े ।
इसके उपरांत जयवधन ने एक बाण धनुष पर चढ़ाया, और उसका ल य तेज वी के कंठ
क ओर िकया। अक मात् ही उसके हाथ काँपने लगे, उसके ने से अ ु छलक आया।
‘‘नह म यह नह कर सकता, नह कर सकता।’’ जयवधन क आ मा ने सुबाह क
दु ा मा पर हावी होने का य न िकया।
सुबाह ने कुछ ण के िलये अपने ने बंद िकये, ‘म सुबाह हँ, जयवधन नह ।’ उसने
तेज वी के कंठ क ओर अपना बाण छोड़ िदया।
िक तु इससे पवू िक वो बाण तेज वी तक पहँचता, कह से एक गदा आई और जयवधन
के उस बाण को तोड़ िदया।
‘‘हर हर महादेव!’’ गदा फकने वाले यो ा को देख िवदभ क सेना का उ साह कई गुना
बढ़ गया।
यह कोई और नह , महाबली अख ड थे। तेज वी उ ह देख फुि लत हो उठे ।
घायल तेज वी, भिू म से उठे , ‘‘ वागत है ये , वागत है!’’
महाबली अख ड, तेज वी के पास आये, ‘‘म आ गया हँ अनुज, अब यह नीच दुभ तु ह
कोई ित नह पहँचा सकता।’’
‘‘म..महाबली अख ड।’’ सुबाह भयभीत हो गया।
अख ड ने एक बार िफर गदा उठाई, और जयवधन क ओर चलाई। इससे पवू जयवधन
कुछ समझ पता, उसका धनुष टूट गया, और वह भिू म पर िगर पड़ा।
दुभ ने अख ड क ओर घरू ा, ‘अब यह कौन है?’ उसने भी गदा उठाई, और अख ड क
ओर बढ़ा।
अख ड ने भी गदा उठाई, और दुभ क ओर दौड़ा। एक और भयंकर आरं भ हो
गया।
वह तेज वी, िव ांत क ओर दौड़े , जो म ृ यु के बहत करीब था।
‘‘िव ांत! िव ांत! अपने ने खोलो पु िव ांत।’’
िव ांत कोई हरकत नह कर रहा था। तेज वी ने उसके मुख पर जल के छ टे मारे ,
िक तु इसके उपरांत भी िव ांत ने अपने ने नह खोले। तेज वी ने दयगित क जाँच क ।
‘‘िव ांत! नह िव ांत यह नह हो सकता।’’ तेज वी चीख पड़े ।
िव ांत वीरगित को ा हो चुका था।
यु े से दूर, िवदभ के महल म एक सैिनक भागता हआ आया। वो शी ही महिष
शंकराचाय के पास पहँचा।
कुलगु ने उसे देखते ही उससे िकया, ‘‘कहो या सचू ना है?'
‘‘युवराज िव ांत वीरगित को ा हए ऋिषवर, असुरे र दुभ रणांगण म आ पहँचा है,
महाराज तेज वी गंभीर प से घायल ह, और उनक र ा करने रणभिू म म महाबली अख ड आ
पहँचे है।’’
शंकराचाय त ध रह गये। वो अपने आसन से उठ खड़े हए ‘‘ या! यह तुम या कह रहे
हो? असुरे र दुभ ? वो वापस आ गया है... महाबली अख ड लौट आये ह, उसके उपरांत भी
महाराज तेज वी घायल ह और िव ांत वीरगित को ा हो गये, नह , यह नह हो सकता।’’
‘‘ मा क िजये ऋिषवर, िक तु यही स य है।’’
महिष शंकराचाय ने उस सैिनक को आदेश िदया, ‘‘ठीक है तुम जा सकते हो।’’
वो सैिनक वहाँ से थान कर गया। महिष शंकराचाय उठे और एक क म जा पहँचे। उस
क म दो नवजात िशशु थे। एक जयवधन का पु था, और एक िव ांत का। महिष शंकराचाय ने
उन दोन िशशुओ ं को उठाया, ‘‘मुझे इन दोन िशशुओ ं क र ा करनी होगी।’’
इसके उपरांत उ ह ने एक सैिनक को बुलाया और उसे आदेश िदया, ‘‘कदािचत् हम यह
यु न जीत पाय; तुम अपने कुछ िव ासपा सैिनक को एक करो और महल क ि य के
साथ यहाँ से सुरि त थान क ओर थान करो।’’
‘‘जो आ ा ऋिषवर।’’ वो सैिनक सेना एक करने हे तु थान कर गया।
महिष शंकराचाय अपने महल से बाहर आये, अपने अ पर आ ढ़ हए और वहाँ से
थान कर गये।
रणभिू म म, दुभ िन:श हो गया। इसके उपरांत उसने तलवार उठाई, और अख ड पर
जोरदार आ मण िकया। इस बार महाबली अख ड ने अपना संतुलन खो िदया और िन:श हो
गये, दुभ ने उ ह कई गज पीछे धकेल िदया।
दुभ ने अख ड को ल य कर तलवार घुमाकर उसक ओर फक । िक तु इससे पवू िक
वो तलवार अख ड तक पहँचती, महाराज तेज वी बीच म आ गये और वो तलवार उनके उदर को
चीर गयी। वो भिू म पर िगर पड़े । परू ी शि जुटाके उ ह ने तलवार अपने उदर से ख च िनकाली।
‘तेज वी!’ महाबली अख ड त ध रह गये।
‘‘अब मेरे पास कोई और िवक प नह है, मुझे अपना रह य खोलना ही होगा।’’ अख ड
क ि , भिू म पर पड़े िवजयधनुष क ओर गयी।
दुभ ने उ ह चुनौती दी, ‘‘श उठाओ महारथी! म िन:श पर हार नह करता;
तु हारा राजा िगर चुका है, और अब केवल तुम बचे हो मेरे सम , इसिलये अपना श चुनो।’’
अख ड ने कुछ ण दुभ क ओर देखा। उसके उपरांत वो िवजयधनुष क ओर बढ़े ।
तेज वी यह देख चिकत रह गये।
अख ड ने िवजयधनुष क ओर देखा, ‘‘म वष के उपरांत आपको उठाने जा रहा हँ; वष
पवू मेरे कुकम के कारण आपने मुझे अ वीकार कर िदया था, िक तु म आपको िव ास िदलाता
हँ, अब म आपको उठाने यो य हो गया हँ।’’
घायल तेज वी, भिू म से उठे । महाबली अख ड के वो श द सुन वह चिकत थे।
वह महाबली अख ड, अपने घुटन के बल बैठ गये, और िवजयधनुष के सम अपने
दोन हाथ जोड़े । णभर म उ ह ने वो िवजयधनुष उठा िलया।
िवदभ क स पण ू सेना ने महाबली अख ड क जय जयकार के नारे लगाने आरं भ कर
िदये।
‘‘हर हर महादेव!’’ महाबली अख ड दहाड़े ।
तेज वी सकते म थे, ‘‘यह कैसे संभव है? िवजयधनुष को तो केवल तीन महारथी उठा
सकते थे; मेरे िपता, म और र राज माकश... केवल एक कुशल धनुधर ही इस धनुष को उठा
सकता है; ये अख ड ने यह कैसे कर िलया?'
दुभ ने भी अपना धनुष उठाया और अख ड के सम आ खड़ा हआ। उसने अपने धनुष
क यंचा ख ची, िजसने वातावरण को कँपा देने वाली विन उ प न क । अख ड ने भी
िवजयधनुष क यंचा ख ची। उस टंकार का वर दुभ के धनुष क टंकार पर परू ी तरह हावी
रहा। यह वर उस वर से भी ती था, जब तेज वी ने िवजयधनुष क यंचा ख ची थी।
उन दोन यो ाओं के म य आरं भ हो गया। इस बार महाबली अख ड क गित और
एका ता, दुभ के साम य पर हावी हो रही थी।
तेज वी, यह देख आ य म पड़ गये, ‘‘अ ुत... तीत होता है िक ये अख ड ने इतने
वष म धनुिव ा म भी कुशलता ा कर ली है।’’
अख ड, दुभ पर दहाड़े , ‘‘ये भगवान महाबली के िद यधनुष का ताप है, महाबली
अख ड का बल है, और दुशल का कौशल है; तुम अभी इतने यो य नह , जो इस संगम को
परािजत कर सको; इसके िलए तु ह कह अिधक अ यास क आव यकता पड़े गी दुभ ।’’
दुशल का नाम सुनकर तेज वी अचंिभत रह गये।
अख ड ने बाण चलाया, उस बाण ने दुभ के कंधे को घायल िकया। वो भिू म पर िगर
पड़ा।
वह गंभीर प से घायल तेज वी भी भिू म पर िगर पड़े । अख ड का यान भंग हो गया। वो
तेज वी क ओर दौड़े ।
तेज वी ने अख ड क ओर देखा, ‘‘मुझे मा क िजये ये , म आपके पु क र ा नह
कर पाया।’’ इतना कहते हए तेज वी मिू छत हो गये।
अख ड ने उसक नाड़ी क जाँच क , ‘‘यह अभी जीिवत है; मुझे इसे बचाना होगा, और
इसके िलये मुझे यह रणभिू म छोड़नी होगी।’’
अख ड ने तेज वी को उठाया, िक तु इससे पवू वो वहाँ से जाते, दुभ ने उ ह ललकारा,
‘‘ क जाओ! ये अभी समा नह हआ।’’
अख ड ने दुभ क ओर देखा, ‘‘म शी ही लौटूँगा दुभ , िक तु इस समय मुझे अपने
अनुज क र ा करनी है, इसिलये मुझे जाने दो।’’
यह सुनकर दुभ ने अपना धनुष नीचे कर िलया, ‘‘ठीक है, म तु हारी ती ा क ँ गा;
म उस िदन क ती ा क ँ गा, जब इस अधरू े को पणू करने तुम लौटोगे महाबली
अख ड।’’
सुबाह से यह सहन नह हआ। उसने अपना धनुष उठाया और अख ड क ओर एक बाण
छोड़ा।
यह देख दुभ ोिधत हो गया। उसने बाण चलाकर सुबाह के बाण को काट िदया।
‘‘मेरे िनणय के िव जाने का दु साहस मत करो जयवधन, म तु हारा सेनापित हँ,
और तु ह वैसे ही चलना होगा जैसा म आदेश दँूगा।’’ दुभ ने सुबाह को फटकारा।
सुबाह, धनुष नीचे करने पर िववश हो गया।
अख ड ने कुछ ण दुभ क ओर देखा, इसके उपरांत वो तेज वी को लेकर अ पर
आ ढ़ हए और रणभिू म से थान कर गये।
‘‘िवजय हमारी हई।’’ दुभ ने अपनी तलवार उठाकर घोषणा क ।
िवदभ के सेनापित िवराट ने अपनी तलवार भिू म पर िगरा दी, शेष सेना ने भी अपने श
डालकर समपण कर िदया।
दुभ , सुबाह के पास आया, ‘‘िवदभ का यह सा ा य अब तु हारा हआ; मेरा काय समा
हआ, अब मुझे जाना होगा।’’
‘‘हाँ ठीक है, आपको थान करना चािहए।’’ सुबाह को अपनी िवजय पर िव ास ही
नह हो रहा था।
दुभ अपने अ पर आ ढ़ हआ, और रणभिू म से थान कर गया। वो त काल ही उस
िशिवर क ओर पहँचा, जहाँ श ुघन का उपचार चल रहा था। दुभ , वै के पास आया, ‘‘अब
श ुघन कैसा है?’’
‘‘िचंितत मत होइए, वो अब संकट से बाहर है।’’
यह सुनकर दुभ को कुछ राहत महसस ू हई। वो िशिवर के भीतर गया और श ुघन क
ओर देखा।
‘‘इसक चेतना लौटने म कुछ समय लगेगा।’’ वै ने उसे समझाने का य न िकया।
शी ही भैरवनाथ भी उस िशिवर म आया, ‘‘अपने िम से कब तक स य छुपाओगे
असुरे र?'
दुभ , भैरवनाथ क ओर घम ू ा, ‘‘तब तक, जब तक म छुपा सकता हँ, गु देव; यिद उसे
ात हआ िक म एक असुर हँ, तो वह मुझसे घण ृ ा करे गा, और म यह सह नह सकता।’’
भैरवनाथ मु कुराया, ‘‘परू े यु े म तुमने चीख-चीखकर ये घोषणा क है िक तु ह हो
असुरे र दुभ ... अब स पण ू आयावत को ात हो चुका है िक असुरे र दुभ लौट आया है,
िफर ये स य तुम अपने िम से कैसे छुपाकर रखोगे?'’
दुभ यह सुनकर खीझ गया, ‘मुझे अपने ोध पर िनयं ण रखना चािहए था; गु देव
वसुधर ने मुझे चेताया था, िक मुझे अपने ोध पर िनयं ण रखना चािहए, िक तु जब श ुघन
घायल हआ तो म सह नह पाया।’
दुभ कुछ ण तक शांत खड़ा रहा। भैरवनाथ उसके पास आया और पछ ू ा, ‘‘तो या
िनणय िलया तुमने?'
दुभ ने कुछ समय के िलये अपने ने बंद िकये। कुछ ण प ात् उसने अपने ने
खोले, ‘‘अब मुझे कुछ कठोर िनणय लेने ह गे।’’
‘‘और वह िनणय या है?’’ भैरवनाथ ने िकया।
‘‘म श ुघन से दूर रह सकता हँ, िक तु म यह नह सह सकता िक वह मुझसे घण ृ ा करे ;
उसके ने म सदैव म अपने िलए पहले क तरह स मान देखना चाहता हँ, और इसके िलये
आपको उसे एक अस य कहना होगा।’’ दुभ ने भैरवनाथ क ओर देखा।
‘‘कैसा अस य?'
‘‘यिद वह आपसे मेरे िवषय म पछ ू े , तो किहयेगा िक हम यु म िवजयी हए, और मने
वीरता से यु करते हए वीरगित ा क ; उससे किहयेगा िक म जीिवत ही नह रहा। अब संसार
से म अपने असुरे र होने का भेद नह छुपा सकता, िक तु मेरे िम को मेरी वा तिवकता का
भान नह होना चािहए, और इसके िलये उसक ि म सुजन को मरना होगा... कह दीिजयेगा
उससे, िक म उसे बचाते हए वीरगित को ा हआ। अब मुझे थान करना होगा, और इस बात
का यान रखना होगा िक म िफर उससे कभी न िमलँ;ू कम से कम उसके दय म अपने िम के
िलये स मान तो रहे गा।’’ अपने ने म अ ु िलए दुभ , िशिवर से बाहर आ गया।
उसक पलक अभी भी भीगी हई थ , ‘मेरे जीवन म एक ही मनु य था, िजसे म अपना िम
कह सकता था; आज अपने ोध के कारण मने उसे भी खो िदया, मेरा यह ोध ही मेरा
वा तिवक श ु है, मुझे इसका उपाय खोजना होगा।’
दुभ , श ुघन के िशिवर क ओर मुड़ा, ‘मुझे मा करना श ुघन, अब हम कभी नह
िमलगे; तुम सदैव मेरे दय म रहोगे, और म सदैव अपनी ओर से तु हारी सहायता क ँ गा, और
म तु ह िव ास िदलाता हँ, िक आयवत का कोई रा तु हारे रा य पर आ मण करने का
साहस न कर सकेगा।’’
उसके उपरांत वो अपने अ पर आ ढ़ हआ, और चल पड़ा िकसी अंजान थान क ओर।
वह दूसरी ओर, अख ड, तेज वी को वै के पास ले आये। उनका उपचार आरं भ हआ। वो
उपचार एक हर तक चला। अख ड, िशिवर के बाहर ती ा कर रहे थे।
शी ही वै िशिवर के बाहर आये और अख ड को सच ू ना दी, ‘‘महाराज तेज वी क
चेतना लौट आई है, िक तु म मा चाहँगा, उनके पास अिधक समय नह है; उनके घाव बहत
अिधक गहरे ह, कदािचत् वो एक हर से अिधक जीिवत नह रहगे।’’
अख ड यह सुनकर त ध रह गये, ‘‘नह , यह नह हो सकता; तेज वी िवदभ का
महाराज है; जब तक वो जीिवत है िवदभ क जा क आशाएँ जीिवत ह, यिद इसक म ृ यु हो गयी
तो िवदभ के लोग क आशाएँ भी समा हो जायगी।’’
‘‘मुझे मा क िजये महाबली अख ड, हमने अपनी ओर से परू ा य न िकया, िक तु स य
यही है िक उनके पास समय बहत कम है; वो आपसे भट करने के इ छुक ह।’’ वै ने अपनी
असमथता जािहर क ।
अख ड, भागते हए िशिवर के भीतर आये। तेज वी, श या पर लेटे हए थे, उ ह ने हाथ
उठाकर महाबली अख ड को अपने पास आने का संकेत िदया।
अख ड उनके पास आये और उ ह समझाने का य न िकया, ‘‘िचंितत मत हो तेज वी,
तुम शी ही व थ हो जाओगे।’’
महाराज तेज वी मु कुराये, ‘‘मुझे झठ
ू ी िदलासा देने का य न न कर ये ; मुझे ात
है िक मेरे आस अिधक समय नह है, िक तु मेरे मन म बहत सारी शंकाएँ ह, म ृ यु से पवू म वो
शंकाएँ दूर करना चाहता हँ।’’
‘‘िचंितत मत हो तेज वी, म तु हारी शंकाएँ िमटाने का य न क ँ गा; मुझे बताओ, या
िज ासा है तु हारी?’’ अख ड ने तेज वी से पछ ू ा।
तेज वी ने अख ड क ओर देखा, ‘‘म स य जानना चाहता हँ ये ; आप भलीभाँित
जानते ह मेरे कहने का अथ या है; म उस पाँच िदन के महासं ाम म आपके जीिवत रहने का
रह य जानना चाहता हँ।’’
अख ड ने तेज वी क ओर घरू ा, ‘‘म जानता हँ तेज वी, जबसे मने वह िवजयधनुष
उठाया है, तबसे तु हारी िज ासा बहत अिधक बढ़ गयी है, इसिलये अब समय आ गया है, िक म
तु हारी सारी िज ासा शांत कर दँू।’’
अख ड कुछ ण शांत रहे ।
‘‘म सुन रहा हँ ये ।’’ तेज वी ने उनक चु पी तोड़नी चाही।
‘‘एक िस ा ण का ाप कभी िम या नह हो सकता, और यह महाऋिष शंकराचाय
का ाप था िक उस पाँच िदन के महायु म तु हारे अित र िवदभ का कोई और राजवंशी
जीिवत नह रहे गा।’’ अख ड ने कहना आरं भ िकया।
‘‘कोई और राजवंशी जीिवत नह रहे गा? अ.. आपके कहने का अथ या है?’’ तेज वी
परू ी तरह आ य म पड़ गये।
‘‘मेरे कहने का अथ है िक तु हारे ये ाता अख ड, उस लयंकारी यु के पाँचव िदन
ही म ृ यु को ा हो चुके थे; उसक आ मा ने तो इस न र संसार का याग उसी िदन कर िदया
था।’’ अख ड ने िव तार से बताया।
तेज वी, पण ू प से चिकत रह गये। उ ह ने महाबली अख ड क ओर देखा, ‘‘इसका
अथ यह है, िक मने जो अनुमान लगाया था वह सही था; आपने मेरे ये के शरीर को अपने
वश म कर रखा है र राज माकश।
‘‘माकश नह तेज वी; म दुशल हँ, और दुशल ही रहना चाहता हँ।’’ उस यो ा के ने से
अ ु छलक आये।
वह तेज वी के नैन भी अ ुओ ं से भर गये, ‘‘और यही कारण था जो आप वष पवू िवदभ
का महल यागकर चले गये थे?’’
‘‘हाँ यह स य है; केवल महल म रहने का नह था; उस महल म बहत लोग रहते थे,
उनम से एक अख ड क प नी भी थी। म अपने पौ क वधू को पश कैसे करता? और अपनी
प नी िशव या क म ृ यु का ितशोध लेने का ण भी तो िलया था मने, और उसके िलये मुझे इस
धरा पर रहना ही था; इसके िलये मेरे पौ का मत ृ शरीर सबसे बेहतर िवक प था; और इतना ही
नह , अतीत म मने बहत पाप िकये ह, उनका ायि त भी तो मुझे करना ही था।’’ दुशल ने उ ह
स पण ू वा तिवकता से अवगत कराया।
तेज वी ने अपने ने बंद िकये और मु कुराये। उ ह ने दुशल के सम अपने हाथ जोड़
िलये, ‘‘म आपके ेम के ित समपण को णाम करता हँ र राज दुशल; यह संसार महाराज
िव मािजत को भल ू सकता है, मुझे और इस युग के हर एक यो ा को भल ू सकता है, िक तु यह
संसार आपका आपके ेम के ित समपण कभी नह भल ू सकता। यिद आप चाहते तो इस संसार
को छोड़कर वग म अपनी प नी के पास जा सकते थे, िक तु आपने अपने पाप के ायि त का
माग चुना। म ृ यु के उपरांत भी आपने अपनी प नी क म ृ यु ितशोध लेने का िनणय िलया; मुझे
उस पल के िवषय म सोचकर बहत लािन होती है, जब मने आपका वध िकया था।’’
‘‘नह तेज वी, तु ह लािन महसस ू करने क आव यकता नह ; यह मेरा पाप था, जो
मने िबना स य जाने मने उस भीषण यु का चुनाव िकया। केवल मेरे कारण उस पाँच िदन के
महायु म लाख लोग को अपने ाण गँवाने पड़े ।’’
तेज वी ने उनका हाथ पकड़ा और उ ह ढाँढस बँधाया, ‘‘अतीत के िलये पछताने का कोई
लाभ नह ; अतीत म हम सबसे कोई न कोई भल ू हई है, िक तु अब हम भिव य का िवचार करना
चािहए; मेरे उपरांत आपको ही दुभ और जयवधन से यु कर िवदभ का िसंहासन वापस पाना
होगा।’’
‘‘दुभ , पंचत व क शि का वामी है, उसे परािजत करना या उसका वध करना मेरे
वश क बात नह है। समय के साथ वह और भी शि शाली होता जायेगा, इसिलये म उसे केवल
रोक सकता हँ, िक तु यह और भी िवनाशकारी िस हो सकता है।’’ अख ड ने िव ततृ िकया।
‘‘अथात् दुभ को परािजत करने का एक ही माग है। महिष ओमे र ने सौगंध ली थी
िक जब दुभ लौटेगा तो वो वयं लौटगे उसका अंत करने; मुझे परू ा िव ास है िक एक िदन वो
दुभ का अंत करने अव य लौटगे।’’ तेज वी ने परू े िव ास के साथ कहा।
‘‘म तुमसे सहमत हँ तेज वी।’’ अख ड संतु िदखे।
तेज वी कुछ ण शांत रहे । वो म ृ यु के बहत करीब थे। उ ह ने अख ड के सम एक
और उठाया, ‘‘मेरे मन म एक और संदेह है।’’
‘‘कैसा संदेह?’’ अख ड ने पछू ा।
‘‘म यु से पवू भी दुभ से िमला हँ; मुझे ऐसा तीत नह होता िक वह दु विृ त का
है, वो मानवजाित के िलये िवनाशक िस कैसे हो सकता है? वह तो एक आदश यो ा तीत
होता है, जो यु के सभी िनयम का पालन करता है, िफर हर कोई उसे य मारना चाहता है?’’
तेज वी ने अख ड से िकया।
‘‘वो ज म से ही पंचत व क शि याँ लेकर ज मा है; वो महिष ओमे र के आशीवाद से
ज मा है, वो महिष ओमे र क आ मा के अंश से ज मा है, इसिलए उसके मन म थोड़ा वैरा य
भाव भी है। िजतना म उस युवान् को जानता हँ, उसम संसार पर अपना आिधप य थािपत करने
क कोई इ छा नह है; वो वयं को िस करना चाहता है, वो स मान और ेम चाहता है, जो उसे
परू े जीवन म नह िमला। इससे उसका ोध और भी अिधक बढ़ गया है। म जो कह रहा हँ वो
केवल एक अनुमान है; मने जहाँ तक पता िकया है, उसने सुबाह का साथ देने का वचन िदया
हआ है, इसका अथ यह है िक वह अधम के प म है। वह उस नीच भैरवनाथ के िदशा िनदश म
है। इसिलये उन सबके िव खड़े होना हमारा ार ध है।’’ अख ड ने िव तार से दुभ के िवषय
म बताया।
तेज वी को कुछ संतोष हआ, ‘‘मेरा समय अब समा हो चुका है, ये , मेरी शंकाएँ
समा हो गय , िक तु अब भी मेरे दय म एक पीड़ा है... मेरी आ मा पर एक बोझ है, िक म
अपने पु को उस दु ा मा सुबाह से नह बचा पाया। अब म आपसे एक वचन चाहता हँ ये ,
आप कभी मेरे पु का वध नह करगे, आप कुछ भी करके मेरे पु के शरीर को उस नीच सुबाह
क दु ा मा से मु करगे। वचन दीिजये र राज दुशल, म आपको अब भी अपना ये अख ड
ही मानता हँ; मेरे उपरांत, आप मेरे पु को मु कराने के िलये अपना स पण ू साम य लगा
दगे।’’
महाबली अख ड ने तेज वी का हाथ पकड़ा और उसे िव ास िदलाया, ‘‘यह मेरा वचन है
तेज वी, म कुछ भी करके तु हारे पु को उस दु ा मा सुबाह से अव य मु कराऊँगा।’’
तेज वी के मुख पर शांित छा गयी, उ ह ने अपने ने बंद कर िलये। उनके शरीर म अब
कोई हरकत नजर नह आ रही थी। महायो ा तेज वी अब मत ृ थे।
‘‘अलिवदा महारथी, यह एक परू े युग का समापन है।’’ दुशल, तेज वी के शांत मुख क
ओर िनहार रहे थे।
तभी वै भी िशिवर के भीतर आये। दुशल उस वै के पास आये, ‘‘ये सच ू ना बाहर िकसी
के पास नह पहँचनी चािहए, यिद ये बात बाहर आई, िक महाराज तेज वी क म ृ यु हो चुक है तो
िवदभ के लोग क आशाएँ भी मत ृ हो जायगी... आप जाकर यह समाचार फै ला दीिजये, िक
महाराज तेज वी गंभीर प से घायल ह, उ ह व थ होने म समय लगेगा, और एक िदन वह
जयवधन को परािजत करने लौटगे।’’
‘‘जैसी आपक इ छा महामिहम; म शी ही यह समाचार लोग म फै ला दँूगा।’’ वै
थान कर गये।
शी ही अख ड ने तेज वी के िलये एक िचता क यव था क । उ ह ने महाराज तेज वी
को अंितम िवदाई दी।
‘‘म वचन देता हँ तेज वी, म तु हारे पु का जीवन वापस लौटाऊँगा।’’ दुशल ने महारथी
तेज वी क िचता पर सौगंध ली।
11. हि तनापुर का युवराज
सुबाह ने जयवधन के प म िवदभ के िसंहासन पर अिधकार कर िलया। िवदभ क जा
म अभी भी आशा बची थी िक महाराज तेज वी एक िदन लौटगे, िक तु केवल महाबली अख ड
को यह ात था िक वह कभी नह लौट सकते। सुबाह वष तक िवदभ पर शासन करता रहा।
* * *
िवदभ से सैकड़ कोस दूर, हि तनापुर का एक जंगल।
म यराि का समय था। एक नौ वष य बालक अपनी कुिटया म सोया था।
‘‘नह , मने कोई छल नह िकया, मने कोई छल नह िकया।’’ वह बालक न द म बड़बड़ा
रहा था।
अक मात् ही वह बालक उन श द को बड़बड़ाते हए न द से उठ गया। उसक माता उसके
बगल म ही सोयी थी, उसके श द को सुन उनक भी न द खुल गयी।
‘‘ या हआ सवदमन? तुम इस भाँित यहवहार य कर रहे हो?’’ माता ने अपने पु से
पछू ा।
‘‘मने वह व न िफर से देखा माता।’’
उसक माता ने उसे कसकर गले से लगा िलया।
तभी एक ा ण देव उस कुिटया के भीतर आये, ‘‘ या हआ, शकंु तला? ये कैसा वर
था?'
वह कोई और नह , महाऋिष िव ािम थे।
‘‘इसने वह व न िफर से देखा िपता ी!’’ शकुंतला िचंितत थ ।
महिष िव ािम सवदमन के िनकट आये, ‘‘पहले मने इस बात को गंभीरता से नह
िलया, िक तु आज म जानना चाहता हँ सवदमन, तुम िकस कार के व न देखते हो?’’
सवदमन, श या से उठा और महिष िव ािम के िनकट आया, ‘‘म समझ नह पा रहा िक
वा तव म वह या है; उस व न म म केवल एक यो ा को देखता हँ; वह िन:श है, और
उसके छाती म कोई श धँसा हआ है; ऐसा तीत होता है जैसे वह मुझपर कोई आरोप लगा रहा
है।’’
‘‘आरोप? कैसा आरोप?’’ महिष िव ािम ने िकया।
‘‘वह मुझपर आरोप लगा रहा है िक मने उसके साथ छल िकया; ऐसा तीत होता है जैसे
वह मुझपर चीख रहा है, और मानो कहना चाहता हो िक वह ितशोध के िलए अव य लौटेगा...
इसके उपरांत य धँुधला हो जाता है।’’ सवदमन ने िव तार से बताया।
महाऋिष िव ािम यह सब सुनकर चिकत रह गए।
‘‘ठीक है, तुम दोन अभी िव ाम करो, म इस िवषय म िवचार क ँ गा।’’ महिष िव ािम
ने उन दोन को समझाया और कुिटया से बाहर आ गए।
शकुंतला और सवदमन श या पर लेट गए। शकुंतला अभी भी अपने पु क पीड़ा के
िवषय म सोच रही थी।
सय ू ादय के साथ ही रोज क तरह, सवदमन जंगल म खेलने चला गया।
एक राजा अपने मं ी के साथ वन म मण कर रहे थे। अक मात् ही राजा का पैर एक
प थर से टकराया और उ ह ने अपना संतुलन खो िदया; िक तु इससे पवू िक वह भिू म पर िगरते,
उनके मं ी ने उ ह थाम िलया।
‘‘आपको हो या गया है महाराज? आप तो इतने यिथत जान पड़ रहे ह िक अपने सामने
रखे प थर को भी नह देख पा रहे ।’’ मं ी ने राजा से िकया।
राजा ने वयं पर िनयं ण रखने का यास िकया, ‘‘मुझसे एक गंभीर अपराध हआ है
भगद । वष पवू मेरी प नी शकुंतला मेरे पास आई थी, िक तु म उसे पहचान ना सका, िक तु
जब मने उस मछली के पेट से िनकली मुि का को देखा, तब शकंु तला क सारी मिृ त मेरे ने
के सम आ गयी। वष से वह पीड़ा झेल रही है, िक तु अब ऐसा नह होगा; म उसे खोज
िनकालँग ू ा, और आशा करता हँ, िक वह मुझे मा कर दे।’’
भगद ने राजा क ओर देखा, ‘‘वैसे तो म आपका मं ी हँ, िक तु उससे पवू म आपका
बालसखा भी हँ दु यंत; म आपक पीड़ा समझ सकता हँ। िपछले तीन मास से आप अपनी भाया
को खोज रहे ह, िक तु सफलता हाथ नह आयी; िफर भी म बस यही कहना चाहता हँ िक आप
अपना साहस बनाये रिखए; आपका ेम स चा है, इसिलए मुझे परू ा िव ास है िक वो आपको
ज र िमलगी ’’
‘‘मेरा साहस बढ़ाने के िलए ध यवाद भगद ।’’ राजा दु यंत ने अपने िम क ओर देखा।
दोन िम वन म मण करते रहे । अक मात् ही उ ह एक िसंह के दहाड़ने का वर सुनाई
िदया।
‘‘वहाँ या है?’’ भगद चिकत था।
‘‘आओ चलकर देखते ह।’’
दु यंत और भगद उस वर क ओर बढ़ चले।
उस वर का कारण देख दु यंत और भगद परू ी तरह चिकत रह गए।
एक बाघ दहाड़ रहा था। एक बालक ने उसका जबड़ा पकड़ा हआ था। वह बड़ी ही िनडरता
से उसके दाँत िगन रहा था।
‘‘अ ुत! या साहस है; कौन है यह बालक?’’ दु यंत चिकत थे।
वह दोन उस बालक क ओर बढ़े । उ ह देख उस बालक ने बाघ का जबड़ा छोड़ िदया।
बाघ वन म भाग गया। राजा दु यंत उस बालक के िनकट आये, ‘‘कौन हो तुम? या इन भयावह
व य पशुओ ं के साथ खेलते हए तु ह भय नह लगता?’’
वह बालक उठा और दु यंत को उ र िदया, ‘‘मेरा नाम सवदमन है, और इन जंगली
पशुओ ं के साथ खेलना तो मेरा सबसे ि य खेल है।’’
दु यंत ने सवदमन क ओर यार से देखा, ‘‘अ ुत! तुम हो कौन? और तु हारे िपता का
नाम या है?'
सवदमन यह सुनकर थोड़ा खीझ गया, ‘‘म अपने िपता का नाम नह जानता, और स य
कहँ तो जानना भी नह चाहता; मेरे िपता ने मेरी माता को तब छोड़ िदया जब वो िब कुल अकेली
थ , इसिलए म घण ृ ा करता हँ उनसे।’’
‘‘ठीक है, ठीक है, यिद तुम नह बताना चाहते तो म तु ह िववश नह क ँ गा।’’ दु यंत ने
सवदमन को िव ास िदलाया।
तीन कुछ ण मौन रहे । इसके उपरांत दु यंत ने सवदमन से िकया, ‘‘ या तु हारी
िच श म है?'
‘‘हाँ, मुझे बहत िच है, िक तु माता कहती ह िक इसके िलए म अभी बहत छोटा हँ,
इसिलए वह सदैव श को मुझसे दूर रखती ह।’’
दु यंत उसे देख मु कुराये, ‘‘कौन कहता है िक तुम बहत छोटे हो? एक बालक जो एक
बाघ को खेल खेल म इतना िववश कर सकता है, वो िन:संदेह श संचालन के यो य है।’’
सवदमन कुछ ण मौन रहा।
दु यंत ने उसक चु पी तोड़नी चाही, ‘‘आज, म इसी वन म कने वाला हँ; मेरे साथ
आओ, म तु ह श चलाना िसखाऊँगा।’’
सवदमन थोड़ा िहचिकचाया, ‘‘िक...िक तु म तो आपको जानता ही नह , म आपके साथ
कैसे आ सकता हँ?'
यह सुनकर भगद आगे आया, ‘‘यह हि तनापुर के महाराज ह; तुम इ ह मना कैसे कर
सकते हो?'
‘‘तिनक धैय से भगद ।’’ दु यंत ने अपने मं ी को आदेश िदया। इसके उपरांत वह
सवदमन क ओर मुड़े।
‘‘म तु ह िववश नह कर रहा सवदमन, िक तु यिद तुम मेरे साथ आओगे तो मुझे अ छा
लगेगा।’’
सवदमन ने कुछ ण राजा दु यंत क ओर देखा, ‘‘ठीक है, या आप केवल आधे हर
तक मेरी ती ा कर सकते ह? आपके साथ आने से पवू म अपनी माता को सिू चत करना चाहता
हँ, अ यथा वह िचंितत ह गी।’’
‘‘हाँ अव य, तुम जाओ, हम तु हारी ती ा करगे; जाओ और अपनी माता को सिू चत कर
आओ।’’ दु यंत सहमत हो गए।
सवदमन अपनी माता को सिू चत करने दौड़ा। मं ी भगद को यह सब देख बड़ा आ य
हआ, ‘‘आपको हो या गया है? आप अपनी प नी शकंु तला क खोज कर रहे थे, और अब आप
एक बालक क ती ा करगे?'
दु यंत भगद क ओर मुड़े, ‘‘म नह जानता य भगद , िक तु इस बालक से बहत
अपनापन सा महसस ू हो रहा है; ऐसा तीत होता है जैसे म इसे जानता हँ, इसिलए मुझे उसक
ती ा करनी चािहए, म इसका कारण तु ह नह समझा सकता।’’
‘‘जो भी हो, जैसी आपक इ छा।’’ भगद खीझ गया।
शी ही सवदमन अपनी माता शकुंतला के पास कुिटया म पहँचा।
‘‘कहाँ थे तुम? म कबसे तु हारी ती ा म थी, तु ह भोजन नह करना या?’’ शकुंतला
ने सवदमन पर क बौछार कर दी।
‘‘म तो केवल वन म खेल रहा था।’’ सवदमन थोड़ा िहचिकचाया।
‘‘दोपहर होने को है, और अभी तक तुम खेल ही रहे थे?’’ शकुंतला तिनक ोिधत हई।
‘‘वो... या है िक...’’ सवदमन अब भी िहचिकचा रहा था।
‘‘पहले अपना भोजन समा करो, इस िवषय म हम बाद म बात करगे।’’ शकुंतला ने
थाली क ओर संकेत िकया।
‘‘हाँ, अव य।’’ सवदमन बैठकर भोजन करने लगा।
‘‘तु ह इतनी शी ता िकस बात क है?’’ सवदमन के भोजन करने क ती गित को
देख शकुंतला को थोड़ा आ य हआ।
सवदमन ने अपना भोजन बहत कम समय म समा कर िलया। िफर उसने अपने हाथ
धोये और अपनी माता के पास आकर बैठ गया, ‘‘माता, मुझे आपसे कुछ कहना था।’’
‘‘हाँ, म इसी आशा म थी।’’ शकुंतला ने अपने पु क ओर देखा।
‘‘आज म वन म एक राजा से िमला। उ ह ने मुझे श िव ा िसखाने का वचन िदया है,
वह मुझे हर कार के अ और श चलाना िसखायगे; म इसके िलए बहत उ सुक हँ, या म
उनके पास जाऊँ?’’ सवदमन ने शकुंतला से आ ा माँगी।
शकुंतला यह सुनकर ोिधत हो गय , ‘‘नह , तुम नह जा सकते; मुझे घण ृ ा है उन
राजकुल के लोग से; वह सदैव छल करते ह, उन पर िव ास नह िकया जा सकता।’’
अपने पित दु यंत का मरण करते हए शकुंतला के ने म अ ु छलक आये, ‘‘राजकुल
के लोग िव ास के यो य नह होते पु ।’’
‘‘जैसी आपक इ छा माता, म नह जाऊँगा।’’ सवदमन उठकर कुिटया म एक कोने म
जाकर बैठ गया।
सवदमन कुिटया के कोने म बैठा रहा। शकुंतला से उसका मौन सहन न हआ। वह उसके
िनकट आय ।
‘‘समझने का यास करो सवदमन।’’ शकुंतला ने अपने पु को समझाने का यास
िकया।
‘‘म जानता हँ माते; म आपक बात से सहमत हँ, आप िचंितत मत होइए, म आपक
अव ा नह क ँ गा।’’ सवदमन मु कुराया।
शकुंतला ने मु कुराकर अपने पु को दय से लगा िलया।
‘‘चलो ठीक है, वैसे यह तो बताओ िक वो राजा कौन था, िजससे आज तु हारी भट हई?’’
शकुंतला ने अपने पु से िकया।
सवदमन ने मु कुराकर कहा, ‘‘वह हि तनापुर के महाराज थे।’’
शकुंतला णभर के िलए त ध रह गयी।
सवदमन को थोड़ा आ य हआ, ‘‘ या हआ माता?'
‘‘वो... कुछ भी नह ।’’ शकुंतला ने अपने पु को दय से लगाकर अपने अ ु छुपा िलए।
इसके उपरांत उसने सवदमन क ओर देखा, ‘‘तुम उस राजा से िमलने वन म जाना
चाहते थे न; म तु ह आ ा देती हँ, तुम जा सकते हो।’’
सवदमन यह सुनकर स निच हो उठा, ‘‘ या वा तव म...?'
‘‘हाँ, िब कुल...’’ शकुंतला मु कुराय ।
सवदमन भिू म से उठा, ‘‘उिचत है, आप मेरी ती ा क रयेगा, म शी ही लौटूँगा।’’ वह
उ सािहत होकर कुिटया से बाहर भागा।
शकुंतला, उ सािहत सवदमन क ओर देखती रह , ‘एक पु को उसके िपता से दूर नह
रखा जा सकता; यह तो िनयित का खेल है, िक उसने िपता पु को एक दूसरे के सम लाकर
खड़ा कर िदया है।’
दु यंत, वन म सवदमन क ती ा कर रहे थे। भगद उनके िनकट आये, ‘‘आप अपना
समय यथ कर रहे ह दु यंत; आप पर आपके रा य का भी उ रदािय व है, यह आप कैसे भल ू
सकते ह?'’
दु यंत भगद क ओर मुड़े, ‘‘कदािचत तुम उिचत कह रहे हो भगद ; ऐसा तीत होता
है िक उस बालक क माता ने उसे यहाँ आने क आ ा नह दी; कोई बात नह , आओ लौट चलते
ह।’’
जैसे ही दु यंत मुड़े, उ ह कदम क आहट सुनायी दी।
वह वापस मुड़े। सवदमन उनक ओर दौड़ा चला आ रहा था।
महाराज दु यंत उसे देख स न हो उठे । सवदमन उनके िनकट आया, ‘‘ ... मा, िवलंब
के िलए मा चाहता हँ।’’
दु यंत मु कुराये, ‘‘ तीत होता है िक तुम कुछ अिधक ही थक गए हो।’’
‘‘नह , ऐसा कुछ नह है। म ठीक हँ।’’ सवदमन ने हाँफते हए उ र िदया।
‘‘तो िफर चलो।’’
दु यंत, सवदमन और भगद , जंगल म अपने िशिवर क ओर बढ़े ।
दु यंत, सवदमन को अपने साथ िशिवर ले आये। सवदमन को ऐसे ऐसे अ और श
को देखने का अवसर िमला, जो उसने जीवन म कभी नह देखे थे। सव थम, दु यंत ने धनुष
उठाया और सवदमन के िनकट आये।
‘‘पकड़ो इसे।’’
सवदमन अपने हाथ म धनुष देख उ सािहत था।
‘‘यह बाण लो, और मेरा अनुसरण करो।’’ दु यंत ने बाण उठाया और एक प े को ल य
कर संधान िकया।
वह बाण, प े को पेड़ से अलग कर उसे लेकर दु यंत के पास लौट आया।
‘‘वाह! या बात है; िनसंदेह आप एक महान धनुधारी ह।’’ सवदमन चिकत था।
महाराज दु यंत सवदमन क ओर मुड़े, ‘‘अब तुम यह बाण लो, और संधान का यास
करो।’’
‘अव य।’ सवदमन वह बाण उठाता है, और उस प े क ओर ल य करता है।
बाण उसके धनुष से छूटकर अ ुत गित से प े क ओर बढ़ता है। वह बाण प े को उड़ा ले
जाता है, िक तु वह प ा वापस लाने म सफल नह होता।
सवदमन थोड़ा िनराश होता है, िक तु राजा दु यंत उसक ितभा देख चिकत रह जाते ह।
‘‘अ ुत काय सवदमन, तु हारी ितभा देख म वा तव म आ य म हँ। इस आयु म तु हारे
बाण म इतना बल और वेग कैसे हो सकता है?'
सवदमन यह सब सुनकर वयं भी आ य म था, उसने णभर राजा दु यंत क ओर
देखा।
दु यंत उसके िनकट आये, ‘‘तुम िवल ण ितभा के धनी हो! सवदमन। तुम एक अन य
यो ा बनने के यो य हो; हि तनापुर को तु हारे जैसे वीर क आव यकता है, और म कहना
चाहँगा िक तुम इस स मान के अिधकारी हो। मेरे साथ हि तनापुर के महल चलो, तु ह अिधक
िश ण क आव यकता है।’’
सवदमन यह सुनकर स न तो हआ, िक तु अगले ही ण वह थोड़ा िहचिकचाया,
‘‘िक तु मेरी माता; म अपनी माता को अकेला नह छोड़ सकता।’’
दु यंत ने कुछ ण िवचार िकया, ‘‘ठीक है, म तु हारी माता से िमलना चाहता हँ; म उनसे
िवनती क ँ गा िक वह हमारे साथ हि तनापुर के महल चल... आओ, तु हारी माता से िमलने
चल।’’
सवदमन यह सुनकर उ सािहत हआ, ‘‘हाँ, अव य ही यह उ म िवक प है।’’
दु यंत और सवदमन, वन म ि थत कुिटया क ओर बढ़े । कुिटया पहँचते ही सवदमन
अपनी माता से िमलने कुिटया के भीतर गया।
‘‘माता, हि तनापुर के महाराज आपसे िमलना चाहते ह।’’
शकुंतला यह सुनकर आ यचिकत रह गय । वह िवचार म खो गय , ‘वष पवू जब म
हि तनापुर गयी थी, तब महाराज दु यंत ने मुझे पहचानने तक से मना कर िदया, अब वह यहाँ
या करने आये ह?’’
‘‘ या हआ माता? आप मौन य ह?’’ सवदमन ने अपनी माता क चु पी तोड़नी चाही।
‘‘वो... कुछ नह पु , उनसे कहो िक म आ रही हँ।’’ शकुंतला ने सवदमन को आदेश
िदया।
सवदमन कुिटया से बाहर आया। शकुंतला ने अपना मुख प लू से ढक िलया, तािक
महाराज दु यंत उ ह देख न सक।
इसके उपरांत वह कुिटया से बाहर आय । दु यंत ने उनके सम अपने हाथ जोड़े , ‘‘आप
स मान के यो य ह, य िक आपने एक महावीर पु को ज म िदया है; इस बालक म स पण ू
हि तनापुर का प र य बदलने का साम य है।’’ दु यंत उनके चरण छूने आगे बढ़े ।
‘‘नह नह , कृपा करके ऐसा मत क रए, आप हि तनापुर के महाराज ह।’’ शकुंतला पीछे
हट गय ।
‘‘तो या हआ, आप इस स मान के यो य ह।’’
‘‘नह नह , नह अथात् नह ।’’ शकुंतला िफर से पीछे हट ।
‘‘ या हो रहा ह यहाँ?’’ पीछे से एक वर सुनाई िदया। यह कोई और नह , महिष
िव ािम थे।
महाराज दु यंत, महिष क ओर मुड़े। वह उ ह देख परू ी तरह आ यचिकत रह गए।
‘‘महाऋिष िव ािम !’’ दु यंत उनक ओर बढ़े ।
दु यंत ने उनके सम अपने दोन हाथ जोड़े , ‘‘आप कहाँ थे ऋिषवर? म िपछले तीन मास
से आपको खोज रहा हँ, और आप मेरे ही रा य म ह।'
महिष िव ािम ने ोध से दु यंत क ओर देखा, ‘‘तुम हम खोज रहे थे? या म इसका
कारण जान सकता हँ?'
महाराज दु यंत अपने घुटन के बल आ गए, ‘‘मुझे मेरे िकये पाप के िलए मा क िजये
मुिनवर! वष पवू , मने अपनी प नी शकुंतला को पहचानने तक से मना कर िदया था, िक तु
जब एक मछली पेट से यह मुि का मुझे िमली, तब शकुंतला क सारी मिृ तयाँ मेरे ने के सम
आ गय ।’’
महाऋिष िव ािम ने उस मुि का क ओर यान से देखा।
महाराज दु यंत के ने अ ु से भरे थे, ‘‘मने एक महाभल ू क है मुिनवर, आज म आपके
सम अपने पाप के ायि त के िलए तुत हँ।’’
महिष िव ािम , दु यंत को ऊपर लाये, इसके उपरांत वह शकुंतला क ओर मुड़े,
‘‘शकंु तला, यहाँ आओ।’’
दु यंत, िव ािम के श द सुन चिकत रह गए। वह शकुंतला क ओर मुड़े। देवी शकुंतला
ने अपने मुख से प लू हटाया।
दु यंत का मन अपनी भाया को अपने सम देख स नता से िखल उठा, ‘शकंु तला!’
वह शकुंतला क ओर दौड़े ।
शकुंतला और दु यंत एक दूसरे के िनकट आये। दोन के पास कहने को श द नह थे।
वह खड़े सवदमन को कुछ भी समझ नह आ रहा था।
महाऋिष िव ािम उन दोन के िनकट आये।
‘‘यह िनयित का खेल था; इसका उ रदायी वा तव म महाऋिष दुवासा का वह ाप है,
िजसने तुम दोन को अलग िकया था... उ ह ने शकुंतला को ाप िदया था, िक िजस यि से
वह ेम करती है, वह उसे भल ू जायेगा, िक तु बहत अनुनय िवनय के प ात, उ ह ने शकुंतला
से कहा िक जब दु यंत उस मुि का को देखेगा, जो उसने ेम िच ह के प म शकुंतला को दी
थी, तब उसक मिृ तयाँ लौट आयगी; और आज तुम दोन एक दूसरे के सम हो।’’
दु यंत ने शकुंतला के सम अपने हाथ जोड़े , ‘‘ या तुम मुझे मा करोगी?'
शकुंतला के ने म अ ु थे। उ ह ने झुककर दु यंत के चरण पश करने चाहे , िक तु
दु यंत ने उ ह रोककर दय से लगा िलया।
नौ वष य बालक सवदमन, उनक ओर देखे जा रहा था। दु यंत उसक ओर बढ़े ।
‘‘इसका अथ यह है िक सवदमन मेरा पु है।’’ दु यंत, सवदमन के सम घुटन पर बैठ
उसे िनहारने लगे।
सवदमन अभी भी शंिकत था। महिष िव ािम उसके िनकट आये, और अपने हाथ उस नौ
वष य बालक के कंध पर रखे।
‘‘हाँ, यह तु हारा ही पु है दु यंत, और इस पर तु ह सदैव गव होगा, यह हि तनापुर को
एक नयी ऊँचाई पर ले जायेगा। जब इसका ज म हआ था, तब यह आकाशवाणी हई थी, िक यह
बालक स पण ू आयावत का प र य बदलकर रख देगा, इस चं वंशी बालक का ज म ही सम
आयावत को एक सू म बाँधने के िलए हआ है; यह सभी दु शि य का नाश करके धम क
वजा फहरायेगा।’’ महिष िव ािम ने गव से कहा।
दु यंत उसके िनकट आये, ‘‘अब बहत हआ पु ; तुमने वष से बहत कुछ सहा है, अब
समय आ गया है िक हि तनापुर के युवराज को उसका स मान वापस िमले।’’
सवदमन ने स न होकर अपने िपता के चरण पश िकये।
दु यंत ने उसे उठाया और एक हाथ शकुंतला क ओर बढ़ाया, ‘‘आओ, हि तनापुर क
ओर चल।’’
शी ही दु यंत ने शकुंतला और सवदमन के िलए एक रथ का बंध िकया। भगद
उनका सारथी बना।
वह सभी हि तनापुर रा य क ओर बढ़ चले।
12. नए वीर का युग
सोलह वष बीत गए। सवदमन प चीस वष का हो गया और उसे हि तनापुर का युवराज
घोिषत िकया गया। इसके उपरांत हि तनापुर के युवराज ने आयवत क या ा ारं भ क ।
वो अकेले ही आयावत के कई रा य से गुजर चुका था। शी ही वह िवदभ रा य पहँचा,
और वहाँ के वन माग से गुजर रहा था।
अक मात् ही उसने प म खड़खड़ाहट का वर सुना। वो वर सुनकर वह अपने अ से
नीचे उतरा। अगले ही ण उसपर िकसी ने पीछे से भाले से आ मण िकया। िक तु सवदमन
चौक ना था, उसने पलटकर उस भाले के साथ-साथ उस आ मणकारी को भी पकड़ा, िजसके
हाथ म वह भाला था।
सवदमन ने उसे भिू म पर धकेल िदया, िक तु शी ही वह चार िदशाओं से भाल से िघर
गया। वह सभी ोध से सवदमन क ओर देख रहे थे। सबके मुख पर काला कपड़ा और सर पर
काली पगड़ी बँधी हई थी। सवदमन ने उन पर आ मण करना उिचत न समझा। उसने कुछ
िवचार िकया और समपण क मु ा म हाथ उठा िदए।
‘‘कौन हो तुम?’’ उनम से एक ने िकया।
िक तु इससे पवू सवदमन उ र देता, उनम से एक ने कटा िकया, ‘‘पछ ू ने क या
आव यकता है, कदािचत् राजा जयवधन का कोई गु चर ही होगा, जो हमारी खोज म यहाँ आया
है।’’
‘‘छोड़ो उसे!’’ पीछे से एक वर सुनाई िदया।
उस एक यि के आदेश पर सभी भाले पीछे हो गए। उस यि का मुख भी काले व
से ढका हआ था।
अब वह यि और सवदमन एक दूसरे के सम खड़े थे।
‘‘कौन हो तुम?’’ सवदमन ने भारी वर म पछ ू ा।
वह यि सवदमन के िनकट आया, ‘‘ तीत होता है िक तुम िकसी रा य के राजकुमार
हो; कहाँ से आये हो?'
‘‘म तु ह अपना प रचय य दँू? पहले मने िकया है।’’ सवदमन ने उस यि क
ओर देखा।
उस यि ने यान से तलवार ख च िनकाली और सवदमन क ओर देखा, ‘‘तुमसे यह
करना ही मेरी भलू थी; तुम जैसे राजकुल के लोग म वाथ और अहंकार के अित र और
कुछ नह होता, और तु हारे इसी अहंकार ने हम तु हारे िव श उठाने पर िववश िकया है।’’
‘‘ तीत तो तुम केवल एक डकैत से होते हो, जो सामा य जा को लटू ता और तािड़त
करता है, और तुम इसके िलए राजकुल पर आरोप लगा रहे हो?’’ सवदमन ने भी यान से
तलवार ख च िनकाली।
उसने उस काले व पहने यि क ओर देखा, ‘‘तु हारे जैसे मनु य केवल द ड के
अिधकारी ह।’’
सवदमन के पीछे खड़े डकैत ने अपने-अपने भाले उठा िलए, िक तु सवदमन के सम
खड़े डाकू ने उ ह श नीचे करने का संकेत िदया।
इसके उपरांत वह सवदमन क ओर बढ़ा, ‘‘तु ह वा तव म लगता है िक तुम मुझे परा त
कर सकते हो?'
सवदमन ने उस डकैत क ओर देखा और मु कुराया, ‘‘तुम मुझे चुनौती दे रहे हो?’’
सवदमन ने िबजली क गित से तलवार घुमाई, िक तु उस डकैत ने सफलतापवू क उसका
हार रोककर उसक छाती पर मुि से हार िकया। सवदमन को कुछ गज पीछे हटना पड़ा।
‘‘एक डकैत म इतनी शि ?’’ सवदमन ने उस डकैत क ओर देखा।
‘‘चिकत मत हो, म उस गु का िश य हँ जो अपराजेय ह, और शी ही तु हारे राजा
जयवधन को मेरी तलवार का वाद चखने को िमलेगा।’’ वह डकैत, सवदमन पर चीखा।
सवदमन को यह सुनकर थोड़ा आ य हआ, ‘‘एक ण को; जयवधन? मने यह नाम
सुना है; वह तो िवदभ के राजा ह, और म तु ह अपना प रचय दे दँू, म हि तनापुर का युवराज
सवदमन हँ।’’
उस डकैत को थोड़ा आ य हआ, िक तु इससे पवू िक वो कुछ कह पाता, एक डकैत वहाँ
दौड़ते हए आया, और उसने अपने सरदार को सिू चत िकया, ‘‘िवदभ के सैिनक ने गाँव पर धावा
बोल िदया है महामिहम।’’
डकैत का वह सरदार ोिधत हो गया। वह सवदमन क ओर घम ू ा, ‘‘अभी मुझे उन
िनद ष क र ा करनी है, िक तु म तु हारा सामना करने अव य लौटूँगा सवदमन।’’
डकैत का सरदार अपने लोग क ओर मुड़ा, ‘‘चलो, शी ता करो, हम ामीण क र ा
करनी है।’’
सवदमन बुत क भाँित खड़ा रहा। उसने ह त ेप करना उिचत न समझा।
डकैत गाँव पहँचे। सैिनक, ामीण को तािड़त कर रहे थे।
‘ठहरो!’ डकैत का सरदार उन पर चीखा।
सैिनक और उनके सेनापित उनक ओर मुड़े। सवदमन उन डाकुओं का पीछा करता हआ
वहाँ आ पहँचा, और व ृ के पीछे छुपकर उन सब पर ि जमाये रहा।
िवदभ का सेनापित, डाकुओं के सरदार के िनकट आया, ‘‘कौन हो तुम? और हमारे काय
म िव न डालने का दु साहस कैसे िकया?'
डकैत के सरदार ने तलवार ख ची और हवा म छलाँग लगायी। अगले ही ण उसक
तलवार उसके ित ी क गदन पर थी।
उसने िवदभ के सेनापित को चेतावनी दी, ‘‘मेरा अ बल ही मेरा प रचय है नीच; अपने
सैिनक को श िगराने का आदेश दो।’’
‘‘म तु ह चेतवानी दे रहा हँ, इसका द ड तु ह अव य िमलेगा; म िवदभ का सेनापित
वहृ द हँ।’’ िवदभ का सेनापित, डकैत के सरदार पर िच लाया।
‘‘मने कहा अपने सैिनक को श यागने और ामीण को मु करने का आदेश दो,
अ यथा अपने राजा को यह सच ू ना देने के िलए तुम वयं जीिवत ही नह रहोगे।’’ डकैत के
सरदार क आँख ोध से जल रही थ ।
‘‘ठीक है, ठीक है; सैिनक ! अपने श िगरा दो।’’ वहृ द ने अपने सैिनक को आदेश
िदया।
िवदभ के सैिनक ने अपने श िगराए, और कुछ कदम पीछे हट गए।
‘‘घेर लो इ ह!’’ डकैत के सरदार ने अपने सािथय को आदेश िदया।
डकैत ने िवदभ के सैिनक को घेर िलया।
‘‘ या सं या है इनक ?’’ डकैत के सरदार ने िकया।
‘‘यह तो केवल पचास ह महामिहम।’’ एक डकैत ने उ र िदया।
डकैत के सरदार ने वहृ द को भिू म पर धकेल िदया। इससे पहले िक वहृ द उठता,
उसने उसक छाती पर पाँव रख उसे भिू म से सटा िदया।
‘‘इतनी भी या शी ता है सेनापित, और िचंितत मत हो; म तु हारे ाण नह लँग ू ा,
य िक तु ह हो, जो मेरा संदेश महाराज जयवधन तक पहँचा सकते हो; जाओ और उनसे कह
दो, िक आज से िवदभ के गाँव क सुर ा हम करगे, अब इन ामीण को कोई नह सता
सकता। हम पाँच हजार यो ाओं म इतना साम य है िक हम िवदभ क दो अ ौिहणी सेना का
सामना भी कर सकते ह, और उ ह परािजत भी कर सकते ह; कह देना उनसे, िक आज के
उपरांत कभी िकसी ामीण को सताने का यास न कर; यिद उ ह ने ऐसा िकया, तो महासं ाम
िनि त है।’’ डकैत के सरदार ने वहृ द को चेतावनी दी।
वहृ द मु कुराया, ‘‘तुम महाराज जयवधन से अपनी तुलना कर रहे हो? तु हारे मि त क
ने वा तव म काय करना बंद कर िदया है; मने तु हारे िवषय म पहले भी सुन रखा है; तुम
कदािचत् डकैत के उस समहू के मुिखया हो, जो अ सर हमारे सै यदल पर आ मण कर
लटू पाट करते ह, और आज तु हारा साहस इतना बढ़ गया, िक तुमने हम पर आ मण कर िदया।
इस समय हमारी सं या केवल पचास है, इसिलए तुमने हम इतनी सरलता से परािजत कर
िदया... तुम िवजयी हए हो, य िक तु हारी सेना हमसे सौ गुना अिधक है, यह केवल सं या का
बल है।’’
‘‘म इसी कारण तु हारे ाण नह ले रहा वहृ द ; जाओ और अपने राजा को सिू चत कर
दो, िक आज के उपरांत वह िकसी िनद ष ामीण पर आ मण करने का साहस न करे ।’’ डकैत
के सरदार ने उसक छाती पर से अपना पैर हटाया।
वहृ द भिू म से उठा और डकैत के सरदार क ओर देखा, ‘‘इसका प रणाम तु हारे सम
शी आएगा।’’
‘‘चलो यहाँ से।’’ उसने अपने सैिनक को आदेश िदया।
शी ही वह सभी वहाँ से थान कर गए।
वह सवदमन क ि अभी भी उन डकैत पर थी। डकैत का सरदार, ामीण के म य
आ खड़ा हआ, जहाँ सभी ामीण इक ा थे। इसके उपरांत उसने अपने मुख को ढका काला व
हटाया।
सवदमन, व ृ के पीछे खड़ा था। वह डकैत के सरदार का मुख देख चिकत रह गया,
‘ऐसा तीत होता है जैसे िकसी राजकुल से हो।’
ामीण उसे देख चिकत रह गए। उसके मुख का तेज देख उन सबके हाथ जुड़ गए। उनम
से एक आगे आया, ‘‘सहायता के िलए ध यवाद; अब तक हम लगता था िक आप केवल डकैत
ह, िक तु हम गलत थे, आप तो हमारे र क ह।’’
एक और ामीण आगे आया, ‘‘आप हमारे मसीहा ह युवान्; आप कौन ह? तीत होता है
िक आप िकसी राजकुल से ह; या आपको महाराज तेज वी ने हमारी सहायता के िलए भेजा
है?’’
‘‘महाराज तेज वी कहाँ ह, यह कोई नह जानता; उनके और महाबली अख ड के िवषय
म हमने केवल सुन रखा है, िक तु वह हमारे ेरणा ोत अव य ह... जहाँ तक मेरी बात है, म
िकसी राजकुटु ब से नह हँ; राजकुल के लोग केवल साधारण मनु य का शोषण करना जानते
ह, उनका मन केवल दु विृ और वाथ से प रपण ू होता है; िक तु म उनक भाँित नह हँ, म
केवल एक साधारण डकैत हँ।’’ डकैत के सरदार ने उ र िदया।
‘‘नह , आप साधारण मनु य नह ह; आपने उस नीच वहृ द को णभर म पर त कर
िदया; आपका साम य यह िस करता है िक आप अलग ह।’’ एक ामीण ने कहा।
‘‘म डकैत का सरदार मेघवण हँ; म और मेरे सारे साथी केवल अपने गु के िश य ह।
वष से हम िश ण केवल इसिलए िदया जा रहा है, तािक हम िवदभ म कुशासन का अंत कर
सक। आज एक आरं भ हआ है, िक तु हम आपको यह िव ास िदलाते ह, िक अब िवदभ के िकसी
िनद ष ामीण को कोई छू भी न सकेगा। हमारे साथी िवदभ के गाँव म फै लने लगे ह। िपछले दो
वष से हम िवदभ क सेना को लटू रहे ह, और अब हम आपक र ा करने िजतने साम यवान हो
गए ह, इसिलए आज के उपरांत आप लोग को भयभीत होने क आव यकता नह है।’’ डकैत के
सरदार मेघवण ने ामीण को िव ास िदलाया।
यह सुनकर सवदमन, व ृ के पीछे से िनकलकर मेघवण क ओर बढ़ा, ‘‘और यह सब
तुम करोगे कैसे?'
वह वर सुन मेघवण पीछे मुड़ा, ‘‘सवदमन, हि तनापुर का युवराज; म तु हारी ती ा म
था।’’
सवदमन, मेघवण के िनकट आया, ‘‘तुम एक महान उ े य के िलए लड़ रहे हो मेघवण,
तु हारा काय वा तव म शंसनीय है।’’
मेघवण मु कुराया, ‘‘म तुम पर िव ास कैसे क ँ ? तुम भी तो राजकुल के ही हो।’’
‘‘िक तु म तु हारी सहायता करना चाहता हँ।’’ सवदमन ने कहा।
मेघवण ने सवदमन क ओर देखा, ‘‘तुम पर िव ास करने का मेरे पास कोई कारण नह
है, तुम जा सकते हो।’’
‘‘िक तु...’’
‘‘मने कहा न, तुम अब जा सकते हो; मुझे तु हारी सहायता क आव यकता नह है।’’
मेघवण ने सवदमन को प मना कर िदया।
सवदमन पीछे मुड़कर अपने अ क ओर बढ़ा। वह अपने अ पर आ ढ़ हआ और
मेघवण क ओर देखा, ‘‘राजकुटु ब के सभी मनु य एक समान नह होते मेघवण।’’
मेघवण ने उसक बात अनसुनी कर दी। सवदमन ने अपने अ क लगाम ख ची और
वन क ओर िनकल गया।
वह वहृ द , िवदभ क राजसभा म पहँचा। उसक दशा देख महाराज जयवधन के प म
सुबाह चिकत रह गया।
‘‘यह सब कैसे हआ?’’ जयवधन ने वहृ द से िकया।
‘‘जंगल के डकैत का समहू महामिहम।’’ वहृ द ने उ र िदया।
ोिधत सुबाह अपने िसंहासन से उठा, ‘‘इसका अथ यह है िक उ ह ने हमारी सेना पर
खुलकर आ मण करना आरं भ कर िदया? बहत हआ, अब म वयं इस संकट का सामना
क ँ गा।’’
‘‘अव य महाराज।’’ वहृ द ने जयवधन के सम हाथ जोड़े ।
सुबाह अपने िसंहासन से नीचे आये और वहृ द से िकया, ‘‘उनक सं या िकतनी
है?’’
‘‘उनक सं या लगभग पाँच हजार है, और उनके सरदार ने आपको चुनौती दी है िक
यिद आपम साहस है तो िकसी िनद ष ामीण को छूकर िदखाएँ ।’’ वहृ द ने जयवधन को
उकसाने का भरपरू यास िकया।
सुबाह का ोध सीमा पार करने लगा, ‘‘सेना तैयार करो, म उन डकैत को कुचल
डालँगू ा; यह एक उदाहरण भी होगा, और उन ामीण के िलए भय का पयाय भी, जो उन डकैत
का समथन कर रहे ह।’’
‘‘अव य महाराज।’’ वहृ द मु कुराया।
एक िदन म ही अ ौिहणी सेना तैयार हो गयी। सुबाह अपने रथ पर आ ढ़ हआ और सम
सेना का िनरी ण िकया। इसके उपरांत वह सेनापित वहृ द के पास आये।
‘‘तो हमारी योजना या है?'
‘‘वो डकैत ह महाराज, वह कभी सामने आकर वार नह करगे; मुझे लगता है िक हम
कुछ सैिनक को ामीण को बंदी बनाने के िलए योग करना चािहए, उन डाकुओं को रणभिू म
म लाने का यही एक उपाय है। हम कम से कम दो गाँव पर आ मण करना होगा, तािक वह बँट
जाएँ , और उनक एका ता भंग हो जाये। उनका नेत ृ व करने वाला केवल एक है, इसिलए यिद
वह बँट गए, तो उनक शि िन:संदेह कम हो जाएगी। म सेना के एक भाग का नेत ृ व क ँ गा,
और आप दूसरे भाग का; और आपातकालीन ि थित म हमारे पास दो गु महाअ ह ही, आप
समझ रहे ह न, मेरे कहने का अथ या है?’’ वहृ द ने योजना समझायी।
‘‘हाँ, म समझ रहा हँ; उन अ को हम आपातकालीन ि थित म ही योग म लायगे।’’
जयवधन मु कुराये।
* * *
डकैत का समहू गुफा म था। शी ही एक डकैत अपने सरदार के पास आया और सच ू ना
दी, ‘‘सच ू ना आ गयी है महामिहम, उ ह ने हम बाहर िनकालने और िमत करने के िलए दो
गाँव पर आ मण करने क योजना बनायी है।’’
डकैत का सरदार उठा और मु कुराया, ‘‘उ ह लगता है िक हमारी सेना का नेत ृ व करने
वाला केवल एक है, उ ह लगता है िक हम केवल पाँच हजार ह; िक तु वह यह नह जानते िक
हमारी सं या पाँच हजार और है; जाओ और मेरे िम चं केतु को सिू चत करो... समय आ गया है
िक वह भी अपने गंधव सैिनक के साथ हमारे इस अिभयान म योगदान द।’’
‘‘जो आ ा महामिहम।’’ गु चर थान कर गया।
िवदभ क सेना दो भाग म बँटी हई थी। एक का नेत ृ व सुबाह कर रहा था, और सेना का
दूसरा भाग वहृ द के िदशा िनदशन म था।
वह दोन अलग अलग गाँव पर आ मण करने थान कर गए, िक तु मेघवण और
चं केतु इसके िलए तैयार थे।
वहृ द अपनी सेना के साथ वन माग से गुजर रहा था। अक मात् ही चार िदशाओं से
बाण का समहू आया और वहृ द के कई सैिनक को घायल कर िदया।
‘‘यह कैसे हो सकता है? इ ह कैसे पता चला िक हम यहाँ से गुजरने वाले ह?’’ वहृ द
आ य म था।
‘‘खुले मैदान क ओर बढ़ो।’’ वहृ द ने अपने सैिनक को आदेश िदया।
बाण क वषा से कई सैिनक मारे गए, बाक खुले मैदान क ओर बढ़े ।
शी ही वह सभी खुले मैदान म पहँचे। इसके उपरांत वहृ द ने चुनौती दी, ‘‘कायर
डकैत ! पीछे से आ मण कर रहे हो; सामने से वार करने का साहस नह या तुमम?'
यह सुनकर व ृ से एक यो ा कूदा और वहृ द के सम आया। उसका मुख ढँ का हआ
था, ‘‘हम डकैत नह , गंधव यो ा ह, और यहाँ ामीण क र ा को आये ह।’’
शी ही पाँच हजार गंधव यो ा अपने सरदार के पीछे खड़े थे। सभी के मुख भरू े व से
ढँ के हए थे, और सर पर भरू ी पगड़ी बँधी थी।
‘‘तुम लोग बीच म य आ रहे हो? हम यहाँ डकैत से लड़ने आये ह, जो वष से हम लटू
रहे ह।’’ वहृ द थोड़ा आ य म था।
गंधव का सरदार आगे आया, ‘‘वह डकैत अकेले नह ह, हम उनके साथ ह।’’
वहृ द को थोड़ा आ य हआ, िक तु अगले ही ण वह हँस पड़ा, ‘‘तुम प रहास तो नह
कर रहे ? तुम कुछ सह िदखते हो, और मेरे पीछे खड़ी सेना को देखा; पचास सह से अिधक
है यह सेना, कैसे सामना करोगे इनका?'
गंधव का सरदार वहृ द को देख मु कुराया, ‘‘तु ह शी पता चल जायेगा, िक हम या
कर सकते ह और या नह ।’’ वह अपने सैिनक क ओर मुड़ा।
‘‘सैिनक , वाि तका यहू ।’’ उसने अपने सैिनक को यहू िनमाण का आदेश िदया।
यहू िनमाण क तैयारी उ ह ने पहले से ही कर रखी थी। कुछ ही ण म यहू का
िनमाण हो गया। वहृ द उनक यह चपलता देख दंग रह गया।
‘र ाकवच...’ गंधवा के सरदार ने अपने सैिनक को आदेश िदया।
सारे सैिनक ने वयं को बड़ी-बड़ी ढाल से ढक िलया और भाले बाहर िनकाल िलए।
‘‘यह कैसी यु नीित है? इस यहू के िवषय म पहले न कभी सुना और ना कभी देखा।’’
वहृ द , वाि तका यहू को देख अचंिभत था।
‘‘ वाि तका को परू ी गित से घुमाओ!’’ गंधव के सरदार ने आदेश िदया।
‘आ मण!’ वहृ द ने अपने सैिनक को आदेश िदया।
िवदभ के सैिनक अपने श ुओ ं क ओर दौड़े , िक तु वाि तका यहू क अ ुत गित को
देख िवदभ के सैिनक सहम गए।
उस यहू ने अपने श ुओ ं का नाश आरं भ कर िदया। िवदभ के सैिनक व ृ से झड़ते प
क भाँित िगरने लगे। वो गंधव क गित के आगे कह नह िटक पा रहे थे।
वहृ द परू ी तरह आ य म था, ‘िकसने िश ा दी है इन यो ाओं को? हमारे सैिनक का
िव ास इनके सामने डगमगा सा गया है; ऐसा तीत होता है जैसे इन हर एक यो ाओं म सौ
सैिनक को परािजत करने िजतनी शि है; मुझे महाराज को सावधान करना होगा।’’
वहृ द ने अपने एक सैिनक को बुलाया, ‘‘जाओ और महाराज को सिू चत कर दो, िक
आपातकालीन ि थित आ गयी है; हम हमारे गु श का योग करना ही होगा।’’
‘‘अव य महामिहम।’’ वह सैिनक अपने अ पर आ ढ़ हआ और राजा जयवधन क ओर
बढ़ चला।
वह वहृ द गहन िवचार म था, ‘हमारे म य ोही कौन है? इ ह हमारी योजना क भनक
कैसे लगी? यिद गंधव यहाँ ह, तो अव य ही राजा जयवधन डकैत का सामना कर रहे ह गे।’’
वहृ द ने तलवार ख ची और वाि तका क ओर बढ़ा।
* * *
दूसरी ओर सुबाह, सेना क एक छोटी सी टुकड़ी के साथ एक गाँव क ओर बढ़ रहा था।
डकैत का समहू अपने सम इतने कम सैिनक को आता देख चिकत था।
यह या हो रहा है? राजा जयवधन इतनी कम सेना के साथ य आ रहे ह? डकैत का
सरदार मेघवण आ य म था।
‘‘ तीत होता है िक उसे अपनी धनुिव ा पर कुछ अिधक ही िव ास है, इसीिलए वह
केवल दस सह यो ाओं के साथ आया है।’’ एक डकैत ने िन कष िनकलने का यास िकया।
‘‘ि थित इतनी सीधी नह है िजतनी िदखाई दे रही है; हम ती ा करनी होगी।’’ मेघवण
और अ य डकैत व ृ के पीछे िछपे थे।
राजा जयवधन अपनी सेना के साथ खुले मैदान म थे। कुछ ण के उपरांत जयवधन ने
िद य अ अ नेया का आवाहन िकया और घोषणा क , ‘‘यह िद या परू े एक गाँव का
अि त व समा कर सकता है, इसिलए म तुम सबको चेतावनी देता हँ, यिद ामीण के ाण क
र ा करना चाहते हो, तो बाहर आओ; म सीिमत समय तक ती ा क ँ गा, बाहर आओ।’’
मेघवण धमसंकट म पड़ गया, ‘‘िकसी योजना पर काय करने का समय नह रहा हमारे
पास, न ही हमारे पास कोई और माग है; म ामीण के ाण दाँव पर नह लगा सकता, हम अब
सामने आना होगा।’’
‘‘िक तु आप तो जयवधन के इस अ को णभर म िन तेज कर सकते ह।’’ एक डकैत
ने सुझाव िदया।
‘‘म कायर नह हँ, म उससे सामने आकर यु क ँ गा, और वैसे भी पीछे रहने का हमारे
पास कोई कारण नह है; वो केवल दस हजार ह... या तु ह मुझ पर िव ास नह है?’’
‘‘हम आप पर पण ू िव ास है महामिहम।’’
‘‘तो िव ास रखो, हम उनका सामना करना है।’’
मेघवण और उसके डकैत साथी खुले मैदान म आये। जयवधन ने उन सबक ओर यान से
देखा। सबके मुख काले व से ढँ क हए थे।
जयवधन मु कुराये, ‘‘तो तुम सब हो वह यो ा, जो मुझे चुनौती दे रहे थे! कौन है तु हारा
सरदार?'
‘‘म हँ।’’ मेघवण अपने हाथ म धनुष लेकर आगे आया।
‘‘ओह, तो तुम धनुषिव ा भी जानते हो! या लगता है तु ह, या तुम मेरा सामना कर
सकते हो?’’ जयवधन (सुबाह) हँस पड़ा।
‘‘तुमम कुछ अिधक ही अहंकार भरा हआ है, देखते ह िवजय िकसक होती है; िव ास
रखो, हमारा हर एक साथी तु हारे सौ सैिनक पर भारी पड़े गा।’’ मेघवण ने धनुष उठाया और
अपने अ पर आ ढ़ हो गया।
‘आ मण।’ जयवधन ने अपनी सेना को आदेश िदया।
िवदभ के दस हजार सैिनक, डकैत क ओर दौड़े ।
‘‘सिू चमुख यहू ! मेघवण ने अपने सािथय को आदेश िदया।
यहू िनमाण म उन डकैत क गित और चपलता देख जयवधन चिकत रह गए, ‘िकसने
िश ण िदया है इन यो ाओं को? वा तव म हमारे सैिनक से यह सभी कह बेहतर ह।’
जयवधन िवचार म थे। मेघवण ने उ ह चुनौती दी, ‘‘ या हआ नरे श? भयभीत तो नह हो
गए?'
यह सुनकर जयवधन ोिधत हो गए। उ ह ने धनुष उठाया और मेघवण क ओर बाण
चलाया।
मेघवण ने भी उसका यथोिचत उ र िदया। उसके बाण का बल और गित देख जयवधन
को बहत आ य हआ।
‘‘तुम एक उ म यो ा हो, आनंद आयेगा तुमसे यु करने म।’’ जयवधन ने मेघवण पर
बाणवषा आरं भ कर दी। मेघवण ने भी उसका यथोिचत उ र िदया।
शी ही अ पर आ ढ़ हआ एक सैिनक, जयवधन के पास आया और सच ू ना दी,
‘‘महाराज, सेनापित वहृ द कमजोर पड़ चुके ह; इन डकैत के साथ गंधव क सेना भी
सि मिलत है, सेनापित वहृ द ने आपको आपातकालीन ि थित का संकेत देने भेजा है।’’
‘‘म िनधा रत क ँ गा िक उन दो गु अ का योग कब करना है, इस समय तुम यहाँ
से जाओ।’’ जयवधन मेघवण से यु करने म य त थे।
* * *
दूसरे मोच पर घम ू ते हए वाि तका यहू ने वहृ द के नेत ृ व वाली िवदभ क लगभग
आधी सेना समा कर दी।
वहृ द बहत िचंितत था। वह सोच ही नह पा रहा था िक वह या करे । उसने वाि तका
यहू का िनरी ण आरं भ िकया। अक मात् ही उसक ि आठ बिल यो ाओं पर पड़ी, जो
वाि तका यहू के क िबंदु पर थे। उनम से चार यो ाओं के हाथ म व ृ का एक एक तना था,
िजससे सभी सैिनक हाथ म बरछी और ढाल िलए बँधे हए थे, और चार अ य बिल उन चार को
धकेलकर वि तका यहू को घुमाने म सहायता कर रहे थे। वाि तका क चार पंि याँ उन
आठ यो ाओं से जुड़ी हई थ ।
‘‘यिद इनम से एक यो ा भी िगर जाए, तो कदािचत् यह परू ा यहू भंग हो जाये।’’ वहृ द
ने धनुष उठाया और वाि तका यहू के क िबंदु म खड़े एक यो ा क ओर ल य साधा।
िक तु वाि तका यहू क एक पंि के सबसे आगे खड़े गंधव के सरदार ने उसक
मंशा ताड़ ली। उसने अपने सैिनक को आदेश िदया, ‘‘एक हर पंि से बाहर!’’
उसके आदेश पर हर एक पंि म से एक एक सैिनक वयं क रि सयाँ खोलकर चपलता
से बरछी और ढाल लेकर बाहर आये, वह सभी, णभर म िनधा रत अव था म आये और वयं को
ढाल से ढँ क िलया। यह देख वहृ द ने िबना समय न िकये बाण छोड़ िदया।
गंधव के सरदार ने ढाल पर चढ़कर छलाँग लगायी, और उस बाण को अपनी छाती पर
झेल िलया, िक तु इसक परवाह िकये िबना उसने अगली छलाँग वहृ द क ओर लगायी, और
उसके मुख पर भीषण मुि हार िकया।
वहृ द अपने अ से िगर पड़ा, और शी ही वह गंधव के सरदार के पैर के नीचे था।
गंधव के सरदार ने अपनी छाती म धँसा बाण ख च िनकाला और वहृ द को फटकारा, ‘‘म
तु हारा ध यवाद करना चाहता हँ, य िक तुमने मुझे मेरी भल ू का एहसास करवाया है, िक तु
इस यहू को भंग करना इतना भी सरल नह है; यह मेरा यहू है, चं केतु का वाि तका यहू ।
गंधव के सरदार चं केतु ने परू े आ मिव ास से कहा।
इसके उपरांत गंधव के सरदार चं केतु ने वहृ द क ओर ोध से देखा, ‘‘तु हारे जैसे
यि को जीिवत रहने का कोई अिधकार नह है; आज म तु ह तु हारे सभी पाप से मु कर
दँूगा।’’ उसने भाला उठाया और वहृ द पर हार िकया।
वहृ द ने म ृ यु के भय से अपनी आँख बंद कर ल , िक तु चं केतु उसे मार न सका। एक
घम ू ती हई कटार, ती गित से आयी और उसके भाले को दो टुकड़ म िवभािजत कर िदया।
चं केतु अपने सम खड़े यो ा को देख हत भ रह गया, ‘राजा जयवधन, यह यहाँ कैसे आ
गया?'
यह देख वहृ द ने चं केतु पर पाँव से हार कर उसे पीछे धकेल िदया।
इसके उपरांत वहृ द ने चं केतु क ओर देखा, ‘‘इतने आ य म मत पड़ो चं केतु, यह
महाराज जयवधन नह ह, यह िवदभ क सेना का एक महाअ है, जो अब तक गु था; यह
महाराज जयवधन के ये पु ह, जो न केवल उ ह क भाँित िदखते ह, अिपतु उ ह के समान
एक कुशल यो ा भी ह; हमारे युवराज िदि वजय, तु ह चुनौती देने आ चुके ह।’’ वहृ द ने गव से
अपने युवराज का प रचय िदया।
अपने अ पर आ ढ़ हआ युवराज िदि वजय, चं केतु क ओर बढ़ा चला जा रहा था।
चं केतु ने वहृ द के मुख पर भीषण मुि हार िकया, िजससे िवदभ का वह सेनापित मिू छत हो
गया।
इसके उपरांत चं केतु ने िदि वजय क ओर देखा, ‘‘सािथय , वाि तका यहू भंग नह
होना चािहए, श ुओ ं का संहार करते रहो।’’
चं केतु ने बरछी और ढाल उठाई और िदि वजय क ती ा करने लगा। युवराज
िदि वजय अपने अ से उतरा और चं केतु के िनकट आया, ‘‘तु हारी आँख बता रही ह, िक
तु ह वयं पर कुछ अिधक ही िव ास है।’’
‘‘और तु हारी आँख म तु हारे िपता क ही भाँित अहंकार िदखाई देता है।’’ चं केतु ने
िदि वजय क ओर देखा।
‘‘सैिनक , पीछे जाओ!’’ िदि वजय ने हाथ उठाकर अपनी सेना को आदेश िदया।
िवदभ के सैिनक पीछे हटने लगे। चं केतु ने भी वाि तका यहू को रोकने का संदेश
िदया।
िदि वजय मु कुराया, ‘‘तो तुमने मेरी मंशा ताड़ ली; म यह सोच ही रहा था िक यथ म
इन सैिनक के ाण य गवाएँ ? य न इस यु का िनणय हम दोन कर।’’
‘‘हमारे बीच के से, है न?’’ चं केतु मु कुराया।
‘‘िब कुल सही समझे... मेरे श लाओ!’’ िदि वजय ने अपने सैिनक को आदेश िदया।
शी ही िदि वजय और चं केतु के हाथ म भाले और ढाल थे। वह दोन एक दूसरे क ओर
दौड़े ... एक और महा आरं भ हो गया।
वह दूसरी ओर जयवधन और मेघवण का जारी था। जयवधन ने अपनी सेना क
ओर देखा। िवदभ के सैिनक लगातार िगरते जा रहे थे।
‘‘दूसरे गु अ के योग का समय आ गया है।’’ जयवधन ने अपना धनुष उठाया और
पीछे क िदशा म बाण छोड़ा।
इसके उपरांत जयवधन एक बार िफर मेघवण से म य त हो गया।
जयवधन ारा छोड़ा गया बाण सीधा जाकर एक व ृ म जा धँसा।
कदािचत् वह कोई संकेत था। घने वन क झािड़य म दूर-दूर तक छुपे पचास सह
यो ा बाहर िनकल आये। अ पर आ ढ़ हआ एक यो ा अपने हाथ म धनुष िलए उस सेना का
नेत ृ व कर रहा था।
मेघवण यह देख त ध रह गया। जब वह यह सोच रहा था िक उसने लगभग यु जीत
िलया है, पचास सह और यो ा उसके सम आ खड़े हए। यह देख मेघवण ने अपने सािथय
को आदेश िदया, ‘‘सािथय , अपनी गित बढ़ाओ।’’
डकैत ने अपनी गित बढ़ायी। सिू चमुख यहू , श ु सेना क ओर बढ़ा।
यह देख, उस पचास सह के दल का नेत ृ व कर रहे यो ा ने अपने धनुष पर दो बाण
चढ़ाये और डकैत क ओर चलाये। वह दोन बाण सिू चमुख ़ यहू क दोन पंि य के म य म
खड़े यो ाओं को जा लगे। प रणाम व प, यहू का बहाव और गित िबगड़ गयी, और डकैत
यो ा एक दूसरे पर िगरने लगे। मेघवण यह देख त ध था।
सुबाह यह देख मु कुराया, ‘‘ या हआ डकैत के सरदार? आ य म हो? यह िवदभ के
गु अ म से एक है, मेरा पु राजकुमार ुतायुध; अब तुम मेरे साथ म य त होगे, और
मेरा पु तु हारे सािथय का वध करे गा।’’
मेघवण बड़े धमसंकट म फँस गया। वो अपने सािथय क र ा करने म असमथ था,
य िक जयवधन उसे इसका समय और अवसर नह दे रहा था। ोिधत मेघवण ने अपनी बाण
क गित बढ़ायी।
मेघवण का एक बाण सीधा उसके ित ी के रथ के पिहये पर जा लगा; रथ का एक
पिहया टूट गया, सुबाह रथ से कूद पड़ा।
सुबाह भिू म पर था, वह भिू म से उठे और अपना धनुष उठाया। मेघवण उनके आ मण का
उ र देने के िलए िववश हो गया, वह िफर से जयवधन के साथ म य त हो गया।
डकैत यो ा लगातार िगर रहे थे। लगभग एक हजार डकैत यो ा या तो वीरगित को ा
हो चुके थे, या बुरी तरह घायल थे। राजकुमार ुतायुध, िनरं तर डकैत के आ मिव ास का हनन
कर रहा था। मेघवण को सझ ू ही नह रहा था िक वह या करे ।’’
अक मात् ही ती गित से एक बाण आया और ुतायुध के धनुष को तोड़ िदया। वह
राजकुमार िन:श होकर भिू म पर िगर पड़ा। इस अक मात् हए आ मण से वह िवि मत रह
गया।
अ पर आ ढ़ हआ और अपने मुख को लाल व से ढँ का हए एक यि रण े म आ
खड़ा हआ। उसने िवदभ क सेना पर बाण क वषा आरं भ कर दी। िवदभ क सेना का ती ता से
नाश होने लगा। मेघवण और जयवधन, दोन ही उस यो ा के कौशल को देख आ य म थे।
ुतायुध िन:श होकर भिू म पर था। अपना धनुष उठाये वह यो ा ुतायुध क ओर बढ़ा।
उस यो ा ने िद य पाशा का ोयोग िकया और ुतायुध को बंदी बना िलया।
‘‘अपने श का याग कर दो, अ यथा मेरा अगला हार तु हारे पु का अंत कर
देगा।’’ उस यो ा ने जयवधन को चेतवानी दी।
सुबाह िवचिलत हो गया। उसने अपना धनुष िगराया और अपने सैिनक को आदेश िदया,
‘‘सैिनक पीछे हटो!’’
इसके उपरांत, सुबाह अपने पु ुतायुध क ओर दौड़ा। िवदभ क सेना पीछे हटने लगी।
उस यो ा ने जयवधन क ओर बाण चलाकर उसे भी भिू म पर िगरा िदया।
मेघवण, राजा जयवधन पर चीखा, ‘‘चले जाओ जयवधन, और आज से िकसी ामीण को
तािड़त करने का दु साहस मत करना; म तु ह अवसर दे रहा हँ, अपने पु क र ा करो और
चले जाओ यहाँ से।’’
सुबाह, लह का घँटू पीकर रह गया, िक तु अपने पु मोह के कारण वह कुछ न कर
सका, ‘‘इस समय म जा रहा हँ, िक तु म शी ही तुम सबका नाश करने लौटूँगा; तुम ती ा
करना, महान असुरे र वयं आयगे तु हारा नाश करने।’’
उस यो ा ने बाण चलाकर ुतायुध को मु कर िदया।
मेघवण यह देख थोड़ा चिकत था, ‘कौन है यह यि ? और यह हमारी सहायता य कर
रहा है?'
‘‘चले जाओ, अभी के अभी।’’ लाल व से अपना मँुह ढँ के उस यो ा ने जयवधन को
फटकारा।
सुबाह और उसक सेना ने रणभिू म छोड़ दी।
‘‘िवजय हमारी हई।’’ मेघवण ने धनुष उठाकर घोषणा क ।
इसके उपरांत मेघवण उस अजनबी यो ा क ओर बढ़ा, जो अक मात् ही उसक सहायता
को आ गया था।
‘‘सहायता के िलए ध यवाद; अपना प रचय तो द भ !’’ मेघवण ने उस वीर से
िकया।
‘‘मेरी ि तुम पर और इस यु पर आरं भ से ही थी, और मने ह त ेप तभी िकया, जब
मुझे लगा िक तु ह सहायता क आव यकता है।’’ यह कहकर वह यो ा अपने अ से उतरा और
अपने मुख को ढके व को हटा िदया।
मेघवण त ध रह गया, ‘सवदमन?’
‘‘हाँ, म यहाँ तु हारी सहायता के िलए उपि थत था, य िक म ऐसा करना चाहता था।’’
सवदमन ने अपना भेद खोल िदया।
मेघवण कुछ ण मौन रहा, इसके उपरांत उसने सवदमन क ओर देखा, ‘‘मुझे लगता
था, िक तुम भी अ य राजकुल के लोग क भाँित हो; िक तु जानकर स नता हई िक म गलत
था; या तुम हमारे समहू म सि मिलत होगे?'
सवदमन मु कुराया, ‘‘काश म ऐसा कर सकता मेघवण, िक तु म हि तनापुर का
युवराज हँ, इसिलए अपने रा य के ित भी मेरे कुछ उ रदािय व ह।’’
‘‘म समझ सकता हँ सवदमन, िक तु आज तुमने किठन समय म मेरी सहायता क है,
इसिलए म तु हारा ऋिण हो गया हँ ।’’
सवदमन आगे बढ़ा, ‘‘अगर ऐसा है तो म जीवन भर के िलए तु हारी िम ता चाहता हँ;
या इससे यह ऋण समा हो सकेगा हँ?'
मेघवण ने सवदमन क ओर देखा, ‘‘म तु हारा िम रहँगा, और मेरा वचन है िक म
तु हारा समथन भी क ँ गा; िक तु केवल तब, जब तुम धम के िलए यु करोगे; म िकसी भी
ि थित म अपने धम का याग नह कर सकता।’’
‘‘तुम जैसा िम पाकर म गिवत हआ मेघवण!’’ मेघवण और सवदमन ने हाथ िमलाया।
* * *
वह िदि वजय और चं केतु का जारी था। अंतत: िदि वजय क चपलता चं केतु पर
भारी पड़ गयी।
चं केतु िन:श हो गया, िदि वजय ने भाले से उस पर हार िकया। िक तु चं केतु ने
भाले पर भीषण मुि हार कर उसे दो भाग म िवभािजत कर िदया। िदि वजय चं केतु का बल
देख चिकत रह गया।
इसके उपरांत चं केतु ने िदि वजय के हाथ पर हार िकया। ढाल िदि वजय के हाथ से
िगर गयी। चं केतु पीछे हटा और एक िवशाल च ान के िनकट आया। िदि वजय उसके भीषण बल
को देख आ यचिकत था, चं केतु ने वह िवशाल प थर उठा िलया और िदि वजय क ओर फका।
िदि वजय ने छलाँग लगाकर अपनी र ा क । वह भिू म से उठा, तभी एक सैिनक वहाँ
आया और उसने सच ू ना दी, ‘‘युवराज िदि वजय! आपके िपता रणभिू म के दूसरे मोच पर परा त
हो चुके ह; उ ह ने आपको रणभिू म छोड़ने का प आदेश िदया है।’’
िदि वजय ने चं केतु क ओर देखा, ‘‘अपने मुख का व हटाओ, म तु हारा मुख देखना
चाहता हँ; प रचय दो अपना, म जानना चाहता हँ कौन हो तुम?'
‘‘म ऐसा नह कर सकता, िक तु िचंता मत करो, तु हारी म ृ यु से पवू म तु हारी यह
इ छा अव य परू ी क ँ गा; अभी तुम यहाँ से जाओ, कदािचत् शी ही हमारी भट हो।’’
िदि वजय पीछे हटने के िलए िववश सा हो गया। उसे अपने िपता के आदेश का पालन
करना ही था।
‘‘तुमसे पुन: िमलने क ती ा रहे गी।’’ िदि वजय ने चं केतु क ओर देखा और मुड़कर
रणागंण से जाने लगा।
यु समा हो चुका था। िवदभ क सेना दोन मोच पर परािजत हो चुक थी। ामीण अब
सुरि त थे, िक तु यह कहना किठन था िक वह कब तक सुरि त रहगे।
सुबाह अपने पु िदि वजय और ुतायुध के साथ अपने महल लौट आये। वह डकैत और
गंधव के िवषय म चचा करने के िलए राजसभा म आये।
‘‘ या कहते हो िदि वजय? अब हम या करना चािहए?’’ जयवधन ने अपने ये पु
से िकया।
‘‘कहने के िलए मा चाहता हँ महाराज, िक तु मुझे लगता है िक वह सभी अ ुत ह;
उनक गित उनक चपलता; िवशेषत: वह तीन यो ा, िजनके कारण हमारी सेना परािजत हई।
वाि तका यहू ? अरे इस यहू के िवषय म तो िकसी ने कभी सुना ही नह , और गंधव के
सरदार का बल, वा तव म अ ुत था; म परू े िव ास से कह सकता हँ िक वह केवल साधारण
डकैत और गंधव नह ह। उनक गित, एका ता और साम य यह िस करता है िक वह हमारे
सैिनक से कह अिधक बेहतर ह... ऐसा तीत होता है िक उन दस हजार यो ाओं को िवशेष प
से तैयार िकया गया है।’’
जयवधन शंिकत थे, ‘‘हाँ, म तुमसे सहमत हँ; हमारे पास तुम दोन के प म दो गु
अ थे; तुम दोन को वष से गु प से िशि त िकया जा रहा था; कोई तु हारे िवषय म नह
जानता था, िक तु उनके पास इस योजना का भी तोड़ था। हमने डकैत से यु क तैयारी क
थी, गंधव से हम पण ू प से अनिभ थे; ऐसा तीत होता है जैसे हमारे बीच कोई ोही है, जो
हमारी गु सच ू नाएँ उन तक पहँचा रहा है... िदि वजय, उस ोही को खोजना अब तु हारा
उ रदािय व है।’’
‘‘अव य महाराज।’’ िदि वजय ने सहमित म सर िहलाया।
जयवधन िसंहासन से उतरकर अपने दोन पु के िनकट आये, ‘‘समय आ गया है, हम
उनक आव यकता है; यही सही समय है उ ह बुलाने का।’’
‘‘आप िकनक बात कर रहे ह िपता ी?’’ ुतायुध को थोड़ा आ य हआ।
‘‘वह एक ऐसे वीर यो ा ह, जो अब तक आयावत म बनाये गए सभी यहू को तोड़ना
जानते ह; पंचशि य के वामी ह वह... स पण ू आयावत म, या कहँ इस संसार म ऐसा कोई
ज मा ही नह जो उ ह परािजत कर सके; वह ‘असुरे र दुभ ’ ह, और अब हम उनक सहायता
क आव यकता है। तुम दोन दो अलग िदशाओं म जाओ, और गंधव और डकैत का रह य पता
करो, म असुरे र दुभ से भट करने जा रहा हँ।’’ जयवधन ने अपने पु को आदेश िदया।
िदि वजय और ुतायुध अपने-अपने ल य क ओर थान कर गए। जयवधन ने
पाताललोक क ओर या ा ारं भ क ।
13. ोही कौन?
मेघवण और चं केतु अ य डकैत के साथ गुफा म अपनी िवजय का उ सव मना रहे थे।
वह सभी मिदरा के नशे म चरू होकर जंगली पशु क भाँित न ृ य कर रहे थे।
तभी एक डकैत वहाँ आया और उसने मेघवण को सिू चत िकया, ‘‘महामिहम! गु देव ने
आप दोन को शी अितशी अपने सम तुत होने का आदेश िदया है।’’
‘‘तुम प रहास तो नह कर रहे ? मेरे कहने का अथ है िक अभी-अभी हमने एक यु जीता
है, हम थके हए ह, और गु देव को हम दोन से अभी िमलना है?’’ मेघवण खीझ गया।
‘‘जी महामिहम, यह गु देव का प आदेश है।’’ उस डकैत ने दोहराया।
‘‘ठीक है तुम जाओ, हम शी ही वहाँ पहँचगे।’’ चं केतु ने डकैत को आदेश िदया। उसने
अ य डाकुओं को भी बाहर जाने का िनदश िदया।
उन सबके जाने के उपरांत मेघवण ने ोध म अपना मिदरा का पा जोर से भिू म पर
पटका।
चं केतु यह देखकर चिकत रह गया, ‘‘ या हआ मेघवण? तुम इस भाँित यवहार य
कर रहे हो?’’
मेघवण, चं केतु के पास आया, ‘‘म इस मनु य से तंग आ गया हँ; वह सदैव मेरे सुख म
बाधा पहँचाते ह। मुझे नह पता वह तभी य िव न डालते ह, जब म सबसे अिधक आनंद म रहता
हँ?’’
‘‘तुम ऐसा कैसे कह सकते हो मेघवण? वो हमारे गु ह, उ ह ने हम िश ा दी है; केवल
उनके कारण आज तुम आयवत के े धनुधर म से एक हो। तु ह उनका स मान करना
चािहये।’’ चं केतु ने मेघवण को समझाने का य न िकया।
मेघवण यह सुनकर ोिधत हो गया, ‘‘ या कहा तुमने अभी? केवल उनके कारण?
तु हारा कहने का अथ है िक मेरा वयं का कोई साम य ही नह ? या तु हारा कहने का अथ
यही है?'
‘‘मेरे कहने का यह अथ नह है, िक तु वो हमारे गु ह, तु ह उनका स मान करना
चािहए।’’ चं केतु ने समझाने का यास िकया।
‘‘गु , िश ा के नाम पर दस वष से वह मुझे तािड़त कर रहे ह। म केवल उस िदन क
ती ा कर रहा हँ, िजस िदन म उ ह परािजत करने िजतना साम यवान हो जाऊँ।’’ मेघवण क
आँख म वाला धधक रही थी।
‘‘म नह जानता तुम उनसे या चाहते हो, िक तु इस समय हम उनसे चलकर िमलना
चािहये।’’ चं केतु ने सुझाव िदया।
मेघवण एक प थर पर बैठकर मौन हो गया।
‘‘हठी बालक क भाँित यवहार मत करो मेघवण; वह हमारे गु ह। कदािचत् वह तु हारे
िलये कुछ नह , िक तु मेरे िलये वह ई र तु य ह।’’ चं केतु ने गव से कहा।
‘‘ई र तु य? या प रहास है ये; म ज म से ही एक डकैत हँ, म ई र म िव ास नह
रखता; और यिद तु ह अपने उस ई र पर इतना िव ास है, तो मेरा यह वचन है िक एक िदन म
तु हारे उस ई र को परािजत करके िदखाऊँगा, जो केवल एक साधारण िश क है और कुछ
नह , और मेरे िलये वह केवल एक ह यारा है।’’ मेघवण अभी भी ोिधत था।
‘‘िक तु इसके उपरांत भी तुम उनसे िश ण ा कर रहे हो।’’
‘‘यही तो वह रह य है िजसे म आज तक नह जान पाया। म ृ युश या पर मेरे िपता ने मुझे
ऐसा करने का आदेश िदया था, िक म उनके ह यारे से िश ा ा क ँ ; यह मेरे िपता क अंितम
इ छा थी।’’
‘‘तु ह भलीभाँित ात है मेघवण, िक वो डकैत तु हारे वा तिवक िपता नह थे।’’
यह सुनकर मेघवण ोिधत हो गया, ‘‘तो या हआ? उ ह ने आरं भ से म ृ यु तक मुझे
अपने पु के समान समझा था।’’
चं केतु, मेघवण के िनकट आया, ‘‘समझने का य न करो मेघवण; पहले यहाँ के डकैत
या करते थे, और अब तुम सब या करते हो... हमारे गु देव ने हम एक उ े य िदया है; संसार
के अधिमय के िव श ह हम, पािपय के मन का भय िस ह गे हम।’’
मेघवण प थर से उठा, ‘‘अपने िपता क म ृ यु का रह य जानने के िलये म मरा जा रहा हँ;
म ृ युश या पर अपने ही ह यारे के सम उ ह ने हाथ य जोड़े ? जब तक म स य का पता नह
लगाता, म गु देव को मा नह क ँ गा; और वैसे भी, िजस यि ने आज तक हम अपना नाम
तक नह बताया, अपना मुख नह िदखाया, हम उस यि का स मान य कर? म केवल उस
िदन क ती ा कर रहा हँ, िजस िदन म उ ह परािजत करने िजतना यो य हो जाऊँगा।’’
‘‘और उस िदन म तु ह अपना मुख अव य िदखाऊँगा।’’ पीछे से एक रोबीला वर सुनाई
िदया। एक मनु य ने गुफा म वेश िकया।
उसका शरीर बहत ही ह -पु था, और उसका मुख काले व से ढका हआ था।
उनके स मान म चं केतु अपने घुटन पर बैठ गया, और उ ह णाम िकया। औपचा रकता
के िलये मेघवण ने भी उनके सम हाथ जोड़े । वो यि मेघवण क ओर बढ़ा।
‘‘तुम यहाँ एक महान उ े य के िलये हो मेघवण, इसिलये म बड़ी उ सुकता से उस िदन
क ती ा कर रहा हँ, िजस िदन तुम मुझे परािजत करोगे।’’ उस यि ने मेघवण क ओर
देखकर कहा।
मेघवण ने कुछ ण अपने गु क ओर देखा, और िबना कुछ कहे एक प थर पर बैठ
गया।
वह चं केतु अपने गु के पास आया, ‘‘इसे मा कर गु देव; जब इसे अपनी भल ू का
एहसास होगा तब यह अव य पछतायेगा।’’
‘‘मुझे इस बात क कोई िचंता है ही नह चं केतु; वह अपने जीवन के ल य से शी ही
प रिचत हो जायेगा, और उस िदन से यह मेरा हर आदेश मानेगा।’’
मेघवण ने अपने गु क ओर देखा और बड़बड़ाया, ‘‘आपके व न म।’’
डकैत के गु देव, चं केतु क ओर मुड़े, ‘‘इसे छोड़ो, समय के साथ सब ठीक हो जायेगा;
तु ह तो अपने जीवन का उ े य भलीभाँित ात है चं केतु; इसे भी शी ही उसका भान हो
जायेगा।’’
‘‘म अपने जीवन के उ े य से भलीभाँित प रिचत हँ, गु देव। और वह केवल एक है,
असुरे र दुभ का वध।’’ चं केतु क आँख म वाला भड़क रही थी।
‘‘अपनी भावनाओं पर िनयं ण रखो चं केतु; तुम उससे ितशोध चाहते हो, िक तु यहाँ
केवल ितशोध का नह है, यह स पण ू मानव जाित के क याण का िवषय है; हम असुरे र
का स पण ू िवनाश सुिनि त करना है।’’
ितशोध क वाला अभी भी चं केतु के ने म भड़क रही थी, ‘‘म कैसे भल ू सकता हँ
गु देव; उस नीच दुभ ने कैसे बड़ी ही िनदयता से पाँच हजार गंधव क ह या क थी, िजसम
मेरे माता-िपता भी सि मिलत थे, म यह कैसे भलू सकता हँ?’’
यह सुनकर मेघवण, प थर से उठ और चं केतु के पास आया, ‘‘तु हारा ितशोध मेरा
ितशोध है चं केतु, म भी उस िदन क ती ा कर रहा हँ, िजस िदन मेरा सामना असुरे र कहे
जाने वाले उस नीच दुभ से होगा; और यह उन कारण म से एक है, जो म आपका अनुसरण
कर रहा हँ गु देव।’’ मेघवण, डकैत के गु देव क ओर मुड़ा।
‘‘अभी तक तुम इस यो य नह हए हो, िक दुभ का सामना कर सको; तु ह इसके िलये
अभी बहत किठन प र म करना होगा।’’ डकैत के गु देव ने उ ेिजत मेघवण को शांत िकया।
मेघवण अपने गु के पास आया, ‘‘वो आप ही थे, िज ह ने दस वष पवू बचे हये गंधव क
र ा क थी; इसका अथ यह है िक आप एक बार उसे परािजत कर चुके ह, तो आप यह य
चाहते ह िक म उससे यु क ँ गा?'
डकैत के गु देव ने मेघवण क ओर णभर देखा, ‘‘ ोध एक यो ा क दुबलता भी हो
सकता है, और उसका बल श भी; दस वष पवू जब दुभ , गंधव का िवनाश कर रहा था,
तब उसका ोध चरम सीमा पर था... म आज तक उसके उस ोध का कारण नह जान पाया,
िक तु उस ि थित म वह चार िदशाओं म ि रखना भल ू गया; तब मने एक व ृ से िछपकर
उस पर स मोिहनी अ का योग िकया, िजससे गंधव क र ा हो पायी, य िक उस समय
संसार का कोई भी यो ा, ोिधत दुभ के सम खड़ा नह हो सकता था।’’
मेघवण और चं केतु कुछ ण शांत रहे । कुछ ण प ात, चं केतु ने अपने गु से
िकया, ‘‘जब आप वयं दुभ को परािजत नह कर पाए, तो हम उसे कैसे परा त करगे?'
‘‘तुम दोन को इस सम या का हल शी ही िमलेगा; खैर वह बात छोड़ो, मने सुना है िक
तु हारी भट हि तनापुर के युवराज से हई।’’ गु ने अपने दोन िश य से पछ
ू ा।
‘‘यह आपको कैसे ात हआ?’’ मेघवण को थोड़ा आ य हआ।
‘‘इसक िचंता करने क आव यकता तु ह नह है मेघवण, वतमान ि थित यह है िक हम
अपने अिभयान म उसक सहायता क आव यकता है, और उसके िलए तुमम से िकसी एक को
सवदमन क बहन सुनंदा से िववाह करना होगा।’’ गु ने भारी वर म कहा।
मेघवण यह सुनकर खीझ गया। वह पीछे घम ू गया। वह चं केतु, जाने य शंिकत सा
था।
‘‘अपनी शंका यागो चं केतु; म तु हारी बालसखी सुनंदा क बात कर रहा हँ।’’ गु ने
चं केतु क चु पी तोड़नी चाही।
‘‘मेरी बालसखी सुनंदा? िक तु वह तो गंधव जाित क थी; म वष से उसे खोज रहा था...
वह युवराज सवदमन क बहन कैसे हो गयी?’’ चं केतु शंिकत था।
‘‘महाराज दु यंत ने उसे दस वष पवू गोद िलया था, इसिलए अब वह युवराज सवदमन
क बहन है।’’ गु ने प िकया।
चं केतु, कुछ ण मौन रहा। कुछ ण के उपरांत उसने कहा, ‘‘म उसक खोज वष से
कर रहा हँ, और अब जाकर मुझे ात हआ िक वह हि तनापुर म है।’’ चं केतु प थर पर बैठ
गया।
मेघवण, चं केतु क ओर एकटक देख रहा था। वह गु ने उन दोन से कहा, ‘‘मेरा आज
का काय परू ा हआ; अब तुम दोन यह काय अपनी इ छानुसार करो, तुम दोन इसके िलए
समझदार हो।’’
डकैत के गु पीछे मुड़े, और गुफा से बाहर चले गए। वह मेघवण, चं केतु के िनकट
आया, ‘‘िचंितत मत हो, म उस तक पहँचने म तु हारी सहायता क ँ गा।’’
‘‘िक तु युवराज सवदमन अपनी बहन का हाथ मुझे य दगे? म तो केवल एक साधारण
सा गंधव हँ।’’ चं केतु उदास सा हो गया।
‘‘िचंितत मत हो चं केतु, हम हि तनापुर जाना चािहए; म उसे समझाने का य न
क ँ गा, िक तु उससे पवू म जानना चाहता हँ िक सुनंदा तु हारे िलए या महसस ू करती है?’’
मेघवण ने चं केतु से िकया।
‘‘म नह जानता मेघवण, िक तु हमारा िववाह, बा याव था म ही हमारे अिभभावक ने
िनि त कर िदया था; म भी अपने ित उसक भावनाओं के िवषय म जानना चाहता हँ, िक तु
इसके िलए मुझे उससे िमलना होगा।’’ चं केतु अधीर हो रहा था।
‘‘िचंितत मत हो चं केतु, हम हि तनापुर चलना चािहए।’’ मेघवण उठा।
वह मेघवण और चं केतु के गु , अपने अ पर आ ढ़ हए धीमी गित से चले जा रहे थे।
अक मात् ही एक बाण, ती गित से आया और अ के ठीक सामने भिू म म धँस गया। उस बाण
से एक संदेश प बँधा हआ था। डकैत के गु अपने अ से उतरे , और उस बाण क ओर बढ़े ।
उ ह ने उस बाण को भिू म से िनकाला और वह संदेश प खोला।
‘‘जंगल क नदी के पास िनधा रत थान पर िमिलए।’’ उ ह ने संदेशप को पढ़ा।
डकैत के गु ने संदेश प वापस मोड़ा, और अपने अ पर आ ढ़ हो गए। उ ह ने अपने
अ क लगाम ख ची और िनधा रत ल य क ओर बढ़ चले।
शी ही वह जंगल क नदी िकनारे पहँचे। वह अपने अ से उतरे और अपने मुख को
ढका व हटाया। वह नदी के िकनारे पहँचे और जल के छ टे अपने मँुह पर मारे । अगले ही ण
उ ह ने कुछ क़दम क आहट सुनी।
वह उस यि ओर मुड़े और िकया, ‘‘ या सच
ू ना है युवराज िदि वजय?'
‘‘अब िवदभ के िलए केवल आप ही आशा क िकरण ह महाबली अख ड।’’ िवदभ का
युवराज घुटन के बल झुक गया।
डकैत के गु अथात् महाबली अख ड, िदि वजय के िनकट आये और वंâधे से पकड़कर
उसे ऊपर उठाया, ‘‘ या हआ? तुम इस कार क बात य कर रहे हो?'
‘‘महाराज जयवधन इस पराजय से ितलिमला गए ह, उ ह ने असुरे र दुभ से सहायता
माँगने का िनणय ले िलया है।’’ िदि वजय ने महाबली अख ड को सच ू ना दी।
महाबली अख ड ने कुछ ण िवचार िकया, ‘‘यह तो बहत ही गंभीर िवषय है; मेघवण
अभी इस यो य नह हआ है िक उसका सामना कर सके, अब तु ह ही इस ि थित को सँभालना
होगा।’’
‘‘िक तु कैसे?’’ िदि वजय ने िकया।
‘‘तु ह अपने इस चेहरे का लाभ उठाना होगा, जो िब कुल तु हारे िपता जैसा है; तुम
समझ रहे हो न म या कहना चाहता हँ?’’ महाबली अख ड मु कुराये।
िदि वजय ने कुछ ण िवचार िकया, िफर वह भी मु कुराया, ‘‘म समझ गया महाबली।’’
‘‘तो काय आरं भ कर दो।’’ महाबली अख ड पीछे मुड़ गए।
‘‘ िकए महाबली!’’ िदि वजय ने उ ह रोकने का यास िकया।
‘‘ या हआ?'
‘‘मेरे मन कुछ शंकाएँ ह।’’ िदि वजय ने महाबली अख ड क ओर देखा।
‘‘शंकाएँ ? कैसी शंकाएँ ?’’ महाबली अख ड ने िदि वजय क ओर देखा।
‘‘यह मेघवण कौन है? और वह यो ा कौन थे, िजनका सामना मने रण े म िकया?
उनका बल और साम य अिव सनीय था... म जानता हँ िक आपने उ ह िवशेष प से तैयार
िकया है, िक तु उनका नेत ृ व करने वाले वह महावीर नायक कौन थे, िज ह ने पण ू प से
रणभिू म म अपना डं का बजा िदया।’’ िदि वजय जानने के िलए उ सुक था।
‘‘वो ऐसे यो ा ह िजनक म ती ा कर रहा था। डकैत का सरदार मेघवण, महावीर
यो ा महाराज तेज वी का पौ है, अथात् वह तु हारा ये ाता है; और वह दूसरा यो ा
िजसने तु ह परािजत िकया था, वह मेरा पौ चं केतु है। म िपछले दस वष से इन यो ाओं को
िश ण दे रहा हँ; म उन दोन से तब िमला था, जब वष पहले दुभ ने गंधव क जाित पर
आ मण िकया था।’’
‘‘अ...आपके कहने का अथ है िक डकैत का सरदार मेघवण मेरे ये ाता ह? वह मेरे
ये ाता ह?’’ िदि वजय त ध था।
‘‘अपनी भावनाओं पर िनयं ण रखो िदि वजय; वह दोन ही अपनी वा तिवकता नह
जानते, उ ह ने मेरा मुख आज तक नह देखा; और जब तक वह असुरे र दुभ का सामना
करने िजतने यो य नह हो जाते, तब तक उ ह उनक वा तिवकता ात नह होनी चािहए।’’
‘‘इसका अथ यह है िक वो यह ही नह जानते िक आप कौन ह, तो िफर आपने मेरे सम
अपना भेद य खोला?’’ िदि वजय िज ासु हो रहा था।
‘‘हाँ, मने तु हारे सम अपना भेद खोला, य िक तु ह तु हारे िपता के िव खड़ा
करना था; अब तुम उन लोग म से हो, जो यह जानते ह िक महाराज तेज वी क म ृ यु हो चुक
है। यिद मेघवण और चं केतु को स य का पता चल गया, तो वह करगे िक महाराज तेज वी
कहाँ ह, य िक िवदभ क जा क िज ा पर आज भी उ ह का नाम है; िवदभ के जाजन अभी
भी इस आशा म ह िक एक िदन महाराज तेज वी लौटगे, और राजा जयवधन को परािजत कर
िवदभ म अमन और शांित क थापना करगे... इसिलए महाराज तेज वी क म ृ यु का रह य
बाहर नह आना चािहए, य िक यह िवदभ क जा क आशाओं का स पण ू िवनाश कर देगा;
और म यह भी नह जानता, िक यिद मेघवण को इस स य का पता चला, तो न जाने वह कैसे
यवहार करे गा... उसका यवहार ही ऐसा है, िक अनुमान लगाना किठन है िक वह कब या
कर दे; कदािचत् वह असुरे र दुभ से यु करने को आतुर हो जाये, और अभी तक वह इतना
यो य नह हआ है िक वह उसका सामना कर सके, इसिलए उिचत यही था िक म इस रह य को
रह य ही रखँ।ू ’’ महाबली अख ड ने परू ी ि थित का िववरण िदया।
िदि वजय ने महाबली अख ड क ओर देखा। उसके ने म अ ु छलक आये, ‘‘कैसी
िवकट प रि थित है यह; मेरे ाता मेरे ने के सम ह, िक तु म उ ह दय से नह लगा
सकता... वह यो ा िजसने मुझे परा त िकया, वह आपका पौ था, िजसका बाहबल एक वरदान
है।’’
‘‘हाँ, इस कथा के िवषय म तो तु ह ात ही है।’’
िदि वजय मौन था। महाबली अख ड ने उसे समझाने का य न िकया, ‘‘अब तु ह जाना
चािहए िदि वजय; जयवधन को अब तक अंदेशा हो गया होगा िक उसक गु सच ू नाएँ कोई बाहर
पहँचा रहा है; अव य ही वह उस ोही क खोज म होगा, इसिलए तु ह अपना काय करने थान
करना चािहए... तुम अपने ाताओं से शी ही िमलोगे।’’
‘‘जैसी आपक आ ा महाबली।’’ िदि वजय ने अपने हाथ जोड़े और पलटकर अपने अ
क ओर बढ़ा।
िक तु जाने से पवू उसने पीछे मुड़कर िकया, ‘‘मने अपने ये का मुख कभी नह
देखा, म उ ह पहचानँग ू ा कैसे?'
‘‘तु ह अभी इसक आव यकता भी नह है िदि वजय; अभी तुम अपना काय करो, तुम
उनसे उिचत समय पर िमलोगे।’’ महाबली अख ड ने भारी वर म कहा।
‘‘जैसी आपक इ छा महाबली।’’ िदि वजय अपने अ पर आ ढ़ हआ और अपने ल य
क ओर थान कर गया।
महाबली अख ड उसे जाते देखते रहे ।
* * *
जयवधन, असुरे र दुभ से भट करने पाताललोक पहँचा।
वह असुरे र के सम घुटन के बल बैठ गये।
‘‘उठो सुबाह! अब तुम एक राजा हो, यह तु ह शोभा नह देता।’’ ऊँचे िसंहासन पर बैठे
असुरे र दुभ ने कहा।
सुबाह भिू म से उठा, और असुरे र को णाम िकया।
‘‘ऐसा या हो गया, जो आज तु ह यहाँ मेरे पास आना पड़ा जयवधन?’’ दुभ ने
जयवधन से िकया।
‘‘गंधव और डकैत क सेना ने हम परािजत कर िदया, मुझे अब आपक सहायता क
आशा है।’’
‘ या?’ दुभ त ध रह गया। वह अपने िसंहासन से उठा और जयवधन के िनकट आया।
‘‘िवदभ क महासेना को गंधव और डकैत ने परािजत कर िदया? तुम प रहास तो नह
कर रहे ?’’ दुभ को अभी भी संदेह था।
‘‘म नह जानता कैसे, िक तु उन दस हजार यो ाओं का बल और साम य हमारी सेना से
कह अिधक था; म डकैत के सरदार को म परािजत करने म िवफल रहा; उसका मुख
काले व से ढका हआ था, इसिलए म उसका मुख भी न देख सका, िक तु उसके बाण का बल
और उसक गित अ ुत थी।’’ जयवधन ने िव तार से बताया।
दुभ ने कुछ ण िवचार िकया, ‘‘पहले मुझे यु का स पण ू िववरण दो, अथात् उस यु
का हर य और उनक हर एक यहू रचना का िववरण दो।’’
जयवधन, असुरे र दुभ को परू े यु का िववरण देने लगे।
दुभ ने कुछ ण िवचार िकया, ‘‘सिू चमुख यहू के िवषय म तो मने सुन रखा है,
िक तु वाि तका यहू ; इसके िवषय म तो कभी नह सुना... मने बहत से ंथ पढ़े ह, िक तु इस
यहू के िवषय म कह कुछ नह िलखा; यह कुछ दुलभ सा है, अ यंत दुलभ; यिद म गलत नह
हँ, तो कदािचत् तेज वी लौट आये ह।’’
जयवधन यह सुनकर त ध रह गया, ‘‘ या? यह आप या कह रहे ह?'
‘‘आयवत म केवल ऐसे तीन यो ा ह, जो तु ह धनुषिव ा म पधा दे सकते ह; म,
महाबली अख ड और महाराज तेज वी; तो तुम ही िवचार करो, वह यो ा कौन हो सकते ह? मुझे
लगता है िक महाबली अख ड का सामना िदि वजय से हआ, और तु हारा सामना तेज वी से।’’
दुभ ने अनुमान लगाने का य न िकया।
‘‘िक तु यह कैसे संभव है? मुझे नह लगता िक तेज वी जीिवत होगा; उस यु म िजस
कार वो घायल हआ था, उसके जीिवत रहने क संभावना लगभग न के बराबर है।’’
‘‘यह संभावना श द, मन म शंका उ प न करने के िलए पया है जयवधन; म नह
जानता मेरा अनुमान उिचत है या नह , िक तु तुम ही िवचार करो, ऐसा और कौन है जो तु हारे
सम खड़ा हो सके?’’ दुभ मु कुराया।
‘‘हो सकता है, िक तु आप मु कुरा य रहे ह?’’ जयवधन को थोड़ा आ य हआ।
‘‘म महाबली अख ड और तेज वी जैसे यो ाओं क ती ा वष से कर रहा था; मने
ग ण , वानर , रीछ से यु िकया, िक तु केवल रीछराज जा बवंत म ही मुझसे यु करने का
साम य था। मुझे भलीभाँित मरण है, जा बवंत और मेरा दो िदवस तक चला था, और म
उ ह परािजत नह कर सका, िक तु इस समय उस िवषय पर चचा करने का समय नह है; यिद
मेरा अनुमान उिचत है, तो मुझे एक बार िफर अख ड और तेज वी से यु करने का अवसर ा
होगा। वष से म िकसी ऐसे ित ी क खोज म हँ, जो मुझे कड़ी ट कर दे सके; तीत होता
है वह समय अब आ गया है।’’
‘‘आपके मन म या चल रहा है? आप या करने वाले ह?’’ जयवधन ने दुभ क ओर
देखा।
‘‘तुम बस ती ा करो और देखते जाओ जयवधन, म अपने तरीके से इस ि थित को
सँभालँगू ा; अब तु हारा काय यह है िक तुम उस ोही को खोज िनकालो, जो तु हारे श ुओ ं तक
तु हारी सारी गु सच ू नाएँ पहँचा रहा है, बाक मुझपर छोड़ दो।’’
‘‘जैसी आपक इ छा असुरे र; मुझे अब जाना चािहए... म जानता हँ िक आप इस ि थित
को अकेले ही सँभाल सकते ह।’’ जयवधन अपने हाथ जोड़ वहाँ से थान कर गया।
दुभ उसे जाते देखता रहा।
युवराज िदि वजय चपल गु चर क भाँित एक ख बे के पीछे खड़े होकर उनक सारी बात
सुन रहा था। दुभ और जयवधन क ि उस पर नह गयी।
‘मुझे पता करना होगा िक दुभ के मन म या चल रहा है।’ िदि वजय ने िवचार िकया।
िदि वजय अपनी योजना पर काय करने के िलए उिचत अवसर क ती ा म था। दुभ ,
अपने महल से बाहर िनकलकर अपने अ क ओर बढ़ा। व ृ के पीछे छुपा िदि वजय, उस पर
अपनी ि जमाये हए था।
अक मात् ही दुभ के मन म कोई िवचार आया। वह जाने य अपने अ से उतरा, और
महल म वापस चला गया।
‘‘यही अवसर है।’’ िदि वजय ने कुछ ण िवचार िकया और महल के मु य ार के
सामने आकर खड़ा हो गया।
जब दुभ लौटकर आया, उसने िदि वजय को अपने सम देखा, िजसने जयवधन जैसा
भेष बनाया हआ था।
‘‘सुबाह, तुम यहाँ या कर रहे हो? तुम शी ता करो, और जाकर उस ोही को ढूँढो।’’
दुभ को थोड़ा आ य हआ।
‘‘वो... या है िक म आपको उन गंधव और डकैत का गु थान बताना तो भल ू ही
गया।’’ िदि वजय उसे भटकाने का यास कर रहा था।
‘‘इसका अथ है िक तुम उनका िनवास थान जानते हो, तो तुमने मुझे पहले य नह
बताया?’’ दुभ ने सुबाह से आ य से िकया।
‘‘वो, म भल
ू सा गया था।’’
दुभ ने उसे ोध से देखा, ‘‘तुम इतनी बड़ी भल ू कैसे कर सकते हो सुबाह?'
‘‘म मा चाहता हँ असुरे र, मुझसे भलू हो गयी।’’ िदि वजय घुटन के बल बैठ गया।
‘‘ठीक है, तुम मुझे उनका िनवास थान बताओ; उन गंधव से दोबारा िमलने के िलए म
बहत उ सुक हँ।’’
िदि वजय उसे वहाँ का माग समझाता गया। इसके उपरांत दुभ अपने अ पर आ ढ़
हआ और अपने ल य क ओर बढ़ चला।
िदि वजय मु कुरा रहा था, ‘‘अब तुम केवल आयावत क पहािड़य के च कर काटते
रहोगे दुभ ।’’
दुभ अपने अ को दौड़ता रहा। अक मात् ही उसने अपने अ क लगाम ख ची और
िवचार िकया, पहले सुबाह ने मुझसे कहा था िक उसने उन यो ाओं का मुख तक नह देखा;
उ ह बाहर िनकालने के िलए उसे ामीण पर आ मण करना पड़ा था, तो उसे इतनी शी उनके
िनवास थान के िवषय म कैसे पता चल गया? यह संभव नह है... यह कोई छल सा तीत होता
है, मुझे लौटना होगा, यह मुझे िमत करने के िलए था... िक तु सुबाह मुझे य िमत करना
चाहता है?'
दुभ ने अपनी िदशा प रवितत क , और परू ी गित से अपने महल क ओर बढ़ा। शी ही
वह महल के मु य ार तक आया, और ारपाल से िकया।
‘‘सुबाह िकस िदशा म गया है, बताओ मुझे?’’ दुभ अधीर हो रहा था।
ारपाल ने अपनी उँ गली उस िदशा क ओर क , िजस ओर िदि वजय गया था। दुभ ने
अपने अ क लगाम ख ची और दुगनी गित से सुबाह का पीछा करना आरं भ िकया। एक हर
क या ा के उपरांत, उसने सुबाह को अ दौड़ाते हए देखा। दुभ ने उस पर ि जमाये रहने
का िनणय िलया, और इस बात का यान रखा िक सुबाह उसे देख न पाये।
िदि वजय ने अपने अ क लगाम ख ची और एक नदी के पास आकर क गया। दुभ
भी क गया।
िदि वजय अपने अ से उतरा, और नदी क ओर बढ़ा। दुभ उसका मुख देख चिकत
था।
व तो वही ह, िक तु इसक दाढ़ी कहाँ गयी; यह तो िब कुल सुबाह जैसा तीत होता
है; िक तु नह , यह सुबाह नह है, यह कोई और ही है।’’ दुभ उसके और िनकट गया।
िदि वजय ने धनुष उठाया, और संदेशप से बँधा एक बाण आकाश म छोड़ा। दुभ
उसक गितिविधय को यान से देख रहा था। िदि वजय ने कुछ समय नदी के िकनारे ती ा
क । कुछ समय उपरांत, अपने मुख को काले व से ढँ के एक यि वहाँ आया।
जब उस यि ने अपने मुख का व हटाया, दुभ उसका मुख देख दंग रह गया।
महाबली अख ड? यह इनसे य िमल रहा है? और यह युवान् कौन है, जो िब कुल
सुबाह क भाँित िदखता है? यहाँ हो या रहा है? मुझे पता करना होगा।’’ दुभ थोड़ा और
िनकट आया, तािक वह उनक वाता सुन सके।
‘‘तो जैसा अपने कहा था, मने अपने िपता का भेष बनाकर दुभ को भटका िदया है; वह
कम से कम दो मास तक डकैत और गंधव को पहािड़य म खोजता रहे गा; अब हमारी आगे क
योजना या है?’’ िदि वजय ने िकया।
दुभ यह सुनकर ोिधत हआ, िक तु िफर भी उसने वयं पर िनयं ण रखा। वह उनक
वाता सुनता रहा।
‘‘हमारी आगे क कोई िवशेष योजना नह है िदि वजय; इस समय मुझे उन दो यो ाओं
को तैयार करना है, वे अभी भी प रप व नह हए ह, उ ह और अिधक समय तक िश ण और
अ यास क आव यकता है, तािक वह उस दुभ के िव खड़े हो सक... मुझे अब जाना होगा;
तुम िवदभ रा य क गितिविधय पर ि जमाये रखो, और मुझे सच ू ना देते रहो।’’ अख ड,
मुड़कर अपने अ क ओर बढ़े ।
दुभ ने उनक परू ी वाता सुन ली, ‘इसका अथ यह है िक सुबाह का पु ही वह ोही है,
जो िवदभ क सम त गु सच ू नाएँ श ुओ ं तक पहँचा रहा है; िक तु वह दो यो ा कौन थे, िजनके
िवषय म अख ड बात कर रहा था? मुझे पता करना होगा। यिद इस रह य को ात करना है, तो
इस समय मुझे िदि वजय को छोड़, महाबली अख ड का पीछा करना होगा; म भी उ सुक हँ उन
यो ाओं के िवषय म जानने को, जो मेरे िव खड़े होने वाले ह।’
अख ड ने अपने अ क लगाम ख ची और िकसी िनि त िदशा क ओर बढ़ चले।
‘अभी मुझे िदि वजय का िवचार नह करना; यह अख ड के पीछे जाने का समय है; सारे
रह य सुलझाने का अब यही एक माग है; यिद तेज वी जीिवत ह, तो म उनसे िमलने को बहत
उ सुक हँ।’ दुभ भी अपने अ पर आ ढ़ हआ और अख ड का पीछा आरं भ िकया।
दुभ , महाबली अख ड का पीछा करता रहा, इस बात का यान रखते हए, िक अख ड
उसे देख न पाये। कुछ हर क या ा के उपरांत महाबली अख ड ने एक गुफा के पास अपना
अ रोका।
शी ही वह अपने अ से उतरे और गुफा म वेश कर गए। गुफा के ार पर कुछ डकैत
यो ा, र क के प म खड़े थे।
‘मुझे िकसी भी तरह इस गुफा म वेश पाना होगा, और उसके िलए मुझे अपनी वेशभषू ा
बदलनी होगी।’ दुभ ने कुछ ण िवचार िकया। इसके उपरांत उसने साधारण ामीण जैसा भेष
बना िलया।
कुछ समय उपरांत उसने एक बाघ को देखा, जो र क डकैत पर आ मण करने को
तैयार बैठा था।
‘यही अवसर है।’ बाघ दहाड़ा। र क डकैत भिू म पर िगर पड़ा, िक तु इससे पवू िक बाघ
उस र क पर आ मण करता, दुभ ने दो प थर रगड़े और वहाँ क घास म आग लगा दी।
बाघ, भाग खड़ा हआ।
र क डकैत, पीछे से हए इस अक मात् आ मण से त ध सा था। वह भिू म से उठा और
ामीण का वेश धरे दुभ के िनकट आया, ‘‘सहायता के िलए ध यवाद।’’
‘‘आप लोग ने तो अपने ाण दाँव पर लगाकर िवदभ के जाजन क र ा क है; या
हम आपक छोटी सी सहायता नह कर सकते?’’ दुभ ने उ र िदया।
‘‘भ मनु य जान पड़ते हो, एक बार िफर से तु हारा ध यवाद करना चाहँगा।’’ र क,
वापस अपने थान पर आकर खड़ा हो गया।
‘‘िक तु म कहना चाहता था िक...’’ दुभ बड़बड़ाया।
‘‘ या हआ? या तु ह कुछ चािहए?’’ र क डकैत ने िकया।
‘‘वो या है िक बा यकाल से ही मुझे धनुधरी और तलवारबाजी म बहत िच है; म यहाँ
आपके समहू म सि मिलत होने क आशा लेकर आया हँ, तािक म इस महान उ े य म आपका
सहयोग कर सकँ ू ।’’ दुभ के मि त क म न जाने या चल रहा था।
र क ने दुभ क ओर यान से देखा, ‘‘तु हारा नाम या है?'
‘‘वो... मेरा नाम सुजन है, म िवदभ का एक ामीण हँ।’’ दुभ ने अपना पुराना प रचय
िदया।
‘‘ठीक है, अभी भीतर एक आव यक वाता चल रही है, जैसे ही हमारे गु बाहर आयगे, म
तु ह अपने सरदार के पास ले जाऊँगा; अंितम िनणय वही लगे, िक तुम हमारे समहू म सि मिलत
हो सकते हो या नह ।’’ उस र क ने दुभ से कहा।
‘‘अव य, म ती ा कर लँग ू ा।’’ दुभ इसके िलये सहमत हो गया।
कुछ देर म महाबली अख ड गुफा से बाहर आये। र क डकैत अपने घुटन के बल झुक
गए। दुभ ने भी उनका अनुसरण िकया, तािक अख ड उसका मुख न देख सक। शी ही
अख ड, घने वन म लु हो गये।
‘‘ या अब हम चल?’’ सुजन ने पछ
ू ा।
‘‘नह , पहले मुझे इसक सच
ू ना अपने सरदार को देनी होगी।’’ वह र क डकैत गुफा के
भीतर गया।
गुफा के अ दर मेघवण और चं केतु, हि तनापुर क ओर िनकलने क योजना बना रहे
थे। र क ने वहाँ आकर मेघवण को सिू चत िकया, ‘‘महामिहम, एक ामीण आया है, सुजन नाम
है उसका; उसने बाघ से मेरे ाण क र ा क , और अब वह हमारे समहू म सि मिलत होना
चाहता है।’’
मेघवण अपने थान से उठा, ‘‘एक साधारण सा ामीण हमारे गु थान तक कैसे
पहँचा?'
चं केतु ने ह त ेप िकया, ‘‘यह हमारे िलए संकटकारी हो सकता है; उसे भीतर ले
आओ।’’
मेघवण और चं केतु ने अपना मुख ढक िलया। र क डकैत, सुजन को भीतर ले आया।
मेघवण ने सुजन क ओर देखा।
‘‘तु हारे ह -पु शरीर और यि व से म भािवत हआ सुजन, िक तु तुम यहाँ पहँचे
कैसे?’’ मेघवण ने सुजन से िकया।
सुजन ने कुछ ण िवचार िकया, ‘‘वो... या है िक म यु के समा होते ही आपका
पीछा कर रहा था; मने डकैत के पाँव के िच ह का पीछा िकया और यहाँ तक आ पहँचा।’’
सुजन ने कथा गढ़ी।
‘‘और तुम चाहते हो िक हम तु हारा िव ास कर ल? हम इस थान से कम से कम दो
कोस तक कोई िच ह नह छोड़ते।’’ चं केतु, सुजन को घरू रहा था।
‘‘हाँ, यही तो वह कारण था, िजसके कारण मुझे इतना िवलंब हो गया; यिद मुझे प
पदिच ह िमल जाते, तो म बहत पहले ही यहाँ पहँच जाता, और दो कोस कोई बड़ी दूरी तो नह
है।’’ सुजन, अस य पर अस य कहता रहा।
मेघवण को कुछ हद तक संतुि हई, ‘‘उिचत है, म संतु हँ; तो तु हारी िवशेषता या
है?'
‘‘म एक उ म तलवारबाज हँ।’’ सुजन ने कहा।
‘‘तो िफर यह तलवार लो, और मेरे साथ अखाड़े म आओ।’’ मेघवण ने तलवार ख च
िनकाली और सुजन के हाथ म दी।
‘‘अव य महामिहम।’’
शी ही सुजन अखाड़े म था। बहत से यो ा उस अखाड़े म श ा यास कर रहे थे। मेघवण
ने एक यो ा क ओर संकेत िकया, ‘‘यह हमारे समहू के उ म यो ाओं म से है; या इसका
सामना करने का साहस ह तुमम?'
‘अव य।’ सुजन क पकड़ तलवार पर स त हई।
वह चं केतु अभी भी उसे शंिकत ि से देख रहा था। सुजन उस तलवारबाज क ओर
दौड़ा और उससे यु करने लगा।
‘इसम तो मेरे सम णभर खड़े रहने का साम य नह है; िक तु म इसे इतनी शी
परािजत नह कर सकता, यह इन लोग के मि त क म मेरे ित संदेह उ प न कर देगा।’ लड़ते
हए सुजन ने िवचार िकया।
अंततः, आधे हर के उपरांत, जब सुजन को लगा िक यही उिचत समय है, उसने अपने
ित ी के कंधे पर हार कर उसक तलवार छुड़ा दी।
‘‘बहत अ छे सुजन! यह हमारे समहू के सबसे साम यवान यो ाओं म से था; िक तु अब
मुझे तु हारी शि क सीमा ात करनी है, तो के िलए तैयार हो जाओ सुजन।’’ मेघवण ने
अपनी तलवार ख च िनकाली और सुजन क ओर बढ़ा।
‘‘अव य महामिहम।’’ सुजन, मेघवण क ओर दौड़ा।
एक और आरं भ हो गया। सुजन को वयं पर कुछ अिधक ही िव ास था, िक तु
शी ही मेघवण ने उसक छाती पर हार कर उसे पाँच कदम पीछे धकेल िदया। सुजन
आ यचिकत रह गया।
वह मेघवण क ओर देखते हए िवचार कर रहा था, ‘वष के उपरांत म िकसी ऐसे यो ा से
िमला हँ; एक ऐसा यो ा जो वा तव म मुझसे टकराने का साम य रखता है... म आपक शंसा
करता हँ महाबली अख ड; बड़ा ही उ म यो ा तैयार िकया है आपने मेरे िव ।’
‘‘ या िवचार कर रहे हो सुजन? अभी समा नह हआ है।’’ मेघवण ने उसका मौन
भंग करना चाहा।
‘‘अव य महामिहम।’’ सुजन दुगनी गित से दौड़ा। इस बार सुजन का बल और गित देख
मेघवण त ध रह गया।
एक हर तक चलता रहा। शी ही सुजन ने यह गौर िकया, िक चं केतु उसक
ओर शंिकत ि से देख रहा है।
‘परािजत होने का समय आ गया है, अ यथा इन लोग को मुझपर संदेह हो जायेगा।’
सुजन ने िवचार िकया, और जानबझ ू कर मेघवण से परािजत हो गया। उसक तलवार भिू म पर
िगर गयी।
मेघवण को कुछ हद तक संतोष िमला। उसने अपना मुख, घड़े के पानी से धोया। इसके
उपरांत वह सुजन के िनकट आया, ‘‘म तुमसे बहत भािवत हँ सुजन; इन सभी यो ाओं म से
िकसी म इतना साम य नह , जो मेरे सम आधे हर भी िटक पाय, और तुम एक हर तक
लड़ते रहे , अ ुत!’’
इसके उपरांत मेघवण ने अपने मुख को ढका व हटाया, ‘‘हमारे समहू म तु हारा
वागत है; म तु हारा सरदार मेघवण हँ।’’
‘‘यह मेरा सौभा य है महामिहम।’’
िक तु चं केतु अभी भी शंिकत ि से सुजन क ओर देख रहा था, ‘मुझे िव ास नह
होता, मेघवण इतनी शी ता से िनणय कैसे ले सकता है?’
वह मेघवण ने अपने नए साथी का उ साह बढ़ाया, ‘‘तु हारी शि और तु हारा साम य
अ ुत है सुजन; हम तु हारे जैसे यो ा क आव यकता है, जो हमारी अनुपि थित म हमारे समहू
का यान रख सके; अब आओ, और मेरे िम चं केतु से िमलो।’’
चं केतु ने भी अपने मुख को ढका व हटाया, और सुजन के िनकट आया। उसने सुजन
से हाथ िमलाकर अपना प रचय िदया, ‘‘म गंधव का सरदार चं केतु हँ।’’
गंधव का नाम सुनकर सुजन का ोध बढ़ गया। उसके ने म वालामुखी फट रहा था।
उसक पकड़ उसक तलवार पर स त हो गयी।
‘‘ या हआ? तुम मौन य हो?’’ चं केतु ने उसक चु पी तोड़नी चाही।
‘‘वो... कुछ नह , कुछ िवशेष नह ।’’ सुजन ने अपने मुख के भाव िछपा िलए।
‘‘तो िफर ठीक है सुजन, मेरे पास तु हारे िलए एक काय है।’’ मेघवण ने सुजन के कंधे
पर हाथ रखा।
‘‘और वह या है?’’ सुजन ने िकया।
‘‘म और चं केतु हि तनापुर जा रहे ह, म तु हारे जैसे िकसी यो ा क ही खोज म था, जो
हमारे समहू का यान रखे सके, और मुझे लगता है िक इसके िलए तुम सबसे उ म हो।’’
‘‘हाँ, अव य।’’ ‘असुरे र होकर मुझे इन डकैत का यान रखना होगा; न जाने और
या या करना पड़े गा।’ सुजन ने उ र देते हए िवचार िकया।
‘‘तो िफर चलो चं केतु, हम सुनंदा से भट करने हि तनापुर चलना चािहए।’’
‘‘अव य मेघवण, चलो।’’
मेघवण और चं केतु गुफा के बाहर आये। मेघवण अपने अ क ओर बढ़ा, िक तु चं केतु
ने उसे रोका, ‘‘तुम ऐसा कैसे कर सकते हो मेघवण?'
‘‘ या हआ चं केतु? तुम ऐसी बात य कर रहे हो?’’ मेघवण ने चं केतु क ओर आ य
से देखा।
‘‘िबना गु देव से िवचार िवमश िकये, तुम हमारे समहू म एक अजनबी यो ा को
सि मिलत कैसे कर सकते हो? और वैसे भी उस ामीण पर हम इतना िव ास कैसे कर सकते
ह? तुमने तो उससे यह तक नह पछ ू ा िक वह कहाँ से आया है, उसका प रवार कैसा है; और
तु ह सोचो, एक साधारण ामीण म इतनी शि कहाँ से आ गयी िक वह तु ह इतनी कड़ी
ट कर दे सके?’’ चं केतु ने मेघवण को फटकारा।
मेघवण यह सुनकर ोिधत हो गया, ‘‘शि और साम य िकसी यि के ज म पर
आधा रत नह होती; मेरी ओर देखो, अपनी ओर देखो; म नह जानता िक म कौन हँ; और तुम
भी तो गंधव क ही जाित से हो, िक तु हम सबम इतना साम य है िक हम िवदभ के उन
राजकुल के यो ाओं को परािजत कर सकते ह, इसिलए िकसी के ज म पर मत उठाओ।’’
‘‘हम हमारे गु ने िश ा दी है मेघवण, जो इस युग के सबसे साम यवान यो ा ह।’’
‘‘हँह... सबसे साम यवान यो ा; जो असुरे र दुभ का सामना करने से भयभीत ह;
अब सुजन यह िस करे गा िक केवल हमारे गु ही नह ह जो हमारे जैसे यो ाओं को तैयार कर
सक; म उसक ितभा को िनखा ँ गा, और यह िस कर दँूगा िक म उनसे कह अिधक े
हँ।’’
‘‘िफर भी तुम उ ह परािजत करने िजतने साम यवान नह हए हो मेघवण।’’ चं केतु ने
मेघवण पर ताना कसा।
‘‘शी ही वह िदन भी आएगा, जब म उ ह परािजत क ँ गा, और यह िस कर दँूगा, िक
हम उनक आव यकता नह है; आज तक वह य मेरे ने के सम घम ू ता है, जब उ ह ने
तलवार से मेरे िपता के उदर को चीर िदया था... म उ ह केवल अपने िपता को िदए वचन के
कारण सहन कर रहा हँ; तो या हआ िक वह मेरे वा तिवक िपता नह थे, िक तु उनका ेम मेरे
ित एक पु से कम न था।’’ मेघवण ोिधत था।
‘‘शांत हो जाओ मेघवण, म तु हारी पीड़ा समझता हँ; िक तु वह तु ह िशि त कर रहे ह,
तािक तुम दुभ के िव खड़े हो सको।’’
‘‘म जानता हँ मुझे दुभ के िव खड़ा होना है, िक तु केवल तु हारे ितशोध के िलए
चं केतु, उनके िलए नह ; इसिलए अब हम हि तनापुर क ओर िनकलना चािहए, यह सुनंदा से
भट करने का समय है।’’ मेघवण अपने अ पर आ ढ़ हो गया।
‘‘म िफर भी कहँगा, उस अजनबी पर इतनी शी पर िव ास करना उिचत नह है।’’
चं केतु ने मेघवण क ओर देखा।
‘‘अब बस भी करो चं केतु, हम चलना चािहए।’’ मेघवण ने उसके श द को अनसुना कर
िदया और अपने अ को आगे बढ़ाया।
चं केतु भी अपने अ पर आ ढ़ हो गया। वह अपने िम का अनुसरण करने को िववश
हो गया।
वह दुभ ने व ृ के पीछे छुपकर उनक सारी वाता सुन ली।
‘बहत ही िदलच प है यह कथा। ऐसे यो ाओं को िनिमत करने के िलए महाबली अख ड
वा तव म शंसा के यो य ह; अब म तुम दोन के िवषय म सबकुछ जानकर रहँगा, मेघवण और
चं केतु। तुम अपनी वा तिवकता से अनिभ हो मेघवण, िक तु म तु हारी वा तिवकता का पता
लगाऊँगा। वष के उपरांत िकसी ऐसे यो ा से भट हई है, जो तलवार को चपला क गित से घुमा
सकता है, िजसक भुजाओं म पवत का बल है, और िसंह सा साहस है; म तु हारे िबना अधरू ा हँ
मेघवण; तुम ही हो वो, िजसक म वष से ती ा म था, इसिलए या तो तुम मेरे अिभ न िम
बनोगे, या िफर धान श ु। अब तो मेरे पास यहाँ कने का िवशेष कारण है, इसिलए अब म यह
कँ ू गा। वैसे तो तुम एक ोही हो, िक तु िफर भी म तु हारा ध यवाद करना चाहँगा िदि वजय;
केवल तु हारे कारण ही आज मुझे मेघवण और चं केतु जैसे वीर से भट करने का अवसर िमला
है, इसिलए कुछ िदन के िलए, अब मुझे सुजन बनकर ही रहना होगा।’ सुजन गुफा म लौट गया।
वह मेघवण और चं केतु हि तनापुर पहँचे। वो महल के मु य ार म वेश करने ही वाले
थे।
ार पर खड़े र क ने उ ह रोकने का यास िकया, ‘‘ क जाओ! कौन हो तुम लोग?
और या चाहते हो?'
‘‘हम यहाँ कोई िववाद करने नह आये; अपने युवराज सवदमन को जाकर सिू चत करो
िक मेघवण उनसे भट करना चाहता है।’’ मेघवण ने न ता से कहा।
‘‘पहले मुझे अपना मुख िदखाओ, तभी म युवराज को सिू चत क ँ गा।’’ र क ने कहा।
‘‘उिचत है।’’ मेघवण और चं केतु ने मुख को ढँ का व हटाया।
यह देख ारपाल भीतर गया। शी ही सवदमन, महल से बाहर आया। मेघवण को अपने
सम देख वह स निचत हो उठा।
‘‘मेघवण, तुम यहाँ कैसे?’’ सवदमन ने िकया।
‘‘हम यहाँ कुछ िवशेष काय से आये ह।’’ मेघवण ने कहा।
‘‘ठीक है ठीक है, पहले मेरे साथ महल के भीतर तो आओ।’’ सवदमन उन दोन को महल
के भीतर ले आये।
शी ही वह तीन सवदमन के क म पहँचे।
‘‘तो तुम या कह रहे थे मेघवण? और यह कौन है?’’ सवदमन ने चं केतु क ओर देख
िकया।
‘‘यह मेरा बचपन का िम , और गंधव यो ाओं का सरदार चं केतु है। मने तु ह इसके
िवषय म बताया नह था।’’ मेघवण ने कहा।
‘‘हाँ, तुमने नह बताया था; खैर छोड़ो, तुम बताओ तुम िकस िवषय म बात कर रहे हो?’’
‘‘म केवल इसके कारण तु हारे पास आया हँ।’’ मेघवण ने चं केतु क ओर देखा।
‘‘और वह कारण या है?’’ सवदमन ने िकया।
‘‘अब कह भी दो चं केतु, इतना भी या लजाना, कह दो।’’ मेघवण ने चं केतु क ओर
देखा।
चं केतु ने मेघवण क ओर ोध से देखा, ‘‘यिद म बात कर सकता, तो तु ह यहाँ य
लाता?'
‘‘यह हो या रहा है?’’ सवदमन आ य म था।
मेघवण मु कुराया, ‘‘वैसे... यह तु हारी बहन सुनंदा के िवषय म है, जो चं केतु क
बालसखी है; दस वष पवू इनके अिभभावक ने इनका िववाह िनि त िकया था, िक तु जैसा तु ह
ात ही है, वष पवू गंधव पर आ मण हआ था, िजसम चं केतु के माता-िपता क म ृ यु हो गयी,
और वह सारी योजनाएँ र हो गय । दस वष से यह सुनंदा को खोज रहा था, और अभी अभी हम
ात हआ िक वह तु हारे साथ यहाँ है, और तु हारे िपता ने उसे गोद िलया है, इसिलए म यहाँ
आया हँ।’’
सवदमन ने मेघवण के श द यान से सुने। वह अपने आसन से उठा, और क के
रोशनदान के पास जा पहँचा।
‘‘ या हआ सवदमन?’’ मेघवण भी उठा।
सवदमन ने मेघवण क ओर देखा, ‘‘यह मेरे हाथ म नह है मेघवण, या स य कहँ तो, न
ये मेरे हाथ म है, और न ही मेरे िपता के हाथ म; इसके िलये तु ह िकसी और से बात करनी
होगी।’’
‘‘और वह कौन है?’’ मेघवण को थोड़ा आ य हआ।
‘‘सुनंदा क बड़ी बहन ‘दुधरा'; सुनंदा के जीवन का िनणय लेने का अिधकार केवल उ ह
है, और मेरे िपता ने उ ह इस िवषय म वचन िदया हआ है।’’ सवदमन ने िव तार से बताया।
‘‘उिचत है; हम िव ास है िक वह इस सबंध के िलए मना नह करगी, य िक सुनंदा और
चं केतु का संबंध बा यकाल से ही िनधा रत है; वैसे हमारी भट उनसे कैसे होगी?’’ मेघवण ने
िकया।
‘‘तुम उ ह बहत ह के म ले रहे हो मेघवण; आओ, म तु हारी भट उनसे कराता हँ।’’
सवदमन, मेघवण और चं केतु को लेकर दुधरा से भट करने पहँचा।
शी वह सभी एक क म पहँचे, जहाँ पण ू त: अंधकार था।
‘‘यह या है? यहाँ इतना अंधकार य है?’’ चं केतु को आ य हआ।
‘‘चलते रहो, और मौन रहो; उ ह शोर पसंद नह है।’’ सवदमन ने सुझाव िदया।
‘‘हाँ, अव य।’’ मेघवण ने सहमित म सर िहलाया।
‘‘म जो कर रहा हँ उसका अनुसरण करो।’’ सवदमन अपने घुटन के बल बैठ गया।
मेघवण और चं केतु भी उसका अनुसरण करते हए घुटन के बल बैठ गए।
‘‘यह सुनंदा के िलए आये ह; यह यो ा उससे िववाह करना चाहता है।’’ सवदमन ने कहा।
यह सुनकर, एक ी अपनी श या से उठी और उन तीन यो ाओं क ओर बढ़ी। अँधेरे म
उसका मुख िदखाई देना असंभव था। वह चं केतु के िनकट आयी, ‘‘कौन हो तुम? अपना प रचय
दो।’’
‘‘म गंधव का सरदार चं केतु हँ।’’
‘‘चं केतु? या तुम वही बालक हो, िजससे दस वष पवू सुनंदा का िववाह िनि त हआ
था?’’ दुधरा ने चं केतु से िकया।
‘‘हाँ, म वही हँ, और म सुनंदा को वष से खोज रहा हँ।’’ चं केतु ने कहा।
‘‘अव य, यह वचन तो मेरे माता-िपता ने िदया था, मुझे इसे िनभाना ही है; तुम िचंितत
मत हो, म तु ह सुनंदा का वर वीकार करती हँ।’’ दुधरा सहमत थ ।
‘‘िक तु...चं केतु कहने म िझझक रहा था।
‘‘िक तु या चं केतु?’’ दुधरा ने िकया।
‘‘वो या है िक िववाह से पवू म सुनंदा से िमलना चाहता हँ; म जानना चाहता हँ िक वह
मेरे िलए या महसस ू करती है।’’
दुधरा के वर म ोध सा भर गया। उसका मुख तो कोई देख न सकता था, इसिलए
केवल उसका वर सुनकर ही अनुमान लगाया जा सकता था, ‘‘इसका कोई मह व नह है
चं केतु... उसक भावनाओं से कह अिधक मह वपण ू मेरे िपता का िदया हआ वचन है। और ेम,
या है ेम? एक ऐसी भावना, जो केवल पीड़ा देती है; इसिलए वयं को इस भावना से दूर रखो।
सुनंदा के लौटते ही म उससे इस िवषय म वाता क ँ गी, अभी तुम यहाँ से जाओ।’’ दुधरा अपनी
श या पर लौट गय ।
‘‘अब चलो यहाँ से।’’ सवदमन उठा। मेघवण और चं केतु उसका अनुसरण करते हए क
से बाहर आ गए।
‘‘यह इस कार य यवहार कर रही ह?’’ मेघवण ने िकया।
‘‘म इसका कारण नह जानता, िक तु िपता ी कहते ह िक िपछले दस वष से इ ह ने
अपना मुख िकसी को नह िदखाया, यहाँ तक क मने भी इनका मुख कभी नह देखा, केवल
मेरे िपता ने इ ह देखा है; उ ह पु ष से घण ृ ा है, इसिलए वह अब तक अिववािहत ह, म इनके
िवषय म बस इतना ही जानता हँ।’’ सवदमन ने िव तार से बताया।
चं केतु ने ह त ेप िकया, ‘‘िपछले दस वष से म इ ह खोज रहा हँ; मुझे ात है िक
दुभ ने इनके माता-िपता क ह या क है, िक तु उसके उपरांत या हआ, अब सुनंदा ही मेरे
सारे का उ र दे सकती है, म उससे भट करना चाहता हँ।’’
‘‘इस समय वह यहाँ नह है।’’ सवदमन ने कहा।
‘‘तो िफर वो कहाँ है?'
‘‘मुझे नह पता, कदािचत् वह गंधव के ाम गयी हो, या िकसी और थान पर।’’
सवदमन ने ऐसे कहा, जैसे उसे कोई परवाह ही न हो।
यह सुनकर चं केतु को थोड़ा ोध आया, ‘‘आप इतने बेपरवाह कैसे हो सकते ह युवराज
सवदमन? वह आपक बहन है।’’
सवदमन हँस पड़ा, ‘‘तुम उसे जानते नह चं केतु, वो अकेले ही बीस बीस यो ाओं को
परािजत कर देती है; वैसे जब तुम उससे िमलोगे, तु ह उसके िवषय म और भी बहत सारी बात
ात ह गी, बस ती ा करो और देखते जाओ; और जहाँ तक उसक सुर ा का िवषय है, मेरे
सैिनक सदैव गु प से उसके साथ होते ह, िक तु वह उसके सम नह आते, य िक उसे
लगता है िक उसे सुर ा क आव यकता नह है।’’
‘‘मुझे उससे िमलने क ती ा रहे गी।’’ चं केतु भी मु कुरा िदया।
* * *
िदि वजय, अपने अ पर आ ढ़ हआ िवदभ क ओर बढ़ रहा था। अक मात् ही उसके
अ का पाँव िकसी व तु म फँस गया। वह अ उसे साथ लेकर भिू म पर िगर पड़ा। कुछ ही ण
म उसे लगभग बीस ी यो ाओं ने घेर िलया। उन सबके मुख ढँ के हए थे, और सर पर पगड़ी
बँधी हई थी।
िदि वजय, अब चार ओर से भाल से िघरा हआ था।
‘‘िवदभ का युवराज? तुमने इस े से गुजरने का दु:साहस कैसे िकया?’’ एक ी
यो ा ने ोध से िदि वजय से िकया।
िदि वजय को यह सुनकर थोड़ा ोध आया। उसने उन ि य को चेतावनी दी, ‘‘म तुम
सबको चेतावनी देता हँ, छोड़ो मुझे, म िकसी ी पर श नह उठाना चाहता।’’
‘‘वाह या बात है; तु हारे सैिनक िनयिमत प से हमारे गाँव क ि य का शोषण
करते ह, और तुम कहते हो िक तुम ि य पर श नह उठाते; हम अपनी र ा करने म समथ
ह, हम तु हारे जैसे िकसी राजसी क ड़े का भय नह है, बंदी बना लो इसे।’’ उन ि य क
नाियका ने अपने यो ाओं को आदेश िदया।
यह सुनकर िदि वजय का ोध बढ़ा। उसने उन ी यो ाओं क उस नाियका का भाला
पकड़ा और अ य सभी ी यो ाओं को पीछे धकेलते हए उठ खड़ा हआ। उसने भाला फककर
तलवार ख च िनकाली। इसके उपरांत उसने उन ी यो ाओं क नाियका को अपनी ओर ख चा
और अपने बाय हाथ से ही उसक गदन और दायाँ हाथ जकड़ िलया। उसके दाय हाथ म तलवार
थी, उससे वह अ य ी यो ाओं के हार को रोक रहा था। वह उन ि य क नाियका को
समझाने का य न भी कर रहा था, ‘‘हर कोई एक जैसा नह होता; म मानता हँ, मेरे िपता दु
विृ त के ह, िक तु िव ास करो, म ऐसा नह हँ; म जानता हँ, तुम लोग ने बहत कुछ झेला है,
इसिलए म तु ह कोई ित नह पहँचाना चाहता।’’ उसने ी यो ाओं क नाियका को पीछे
धकेल िदया।
वह एक व ृ से टकरायी। उसक पगड़ी खुल गयी। उसके मुख को ढँ का व हट गया,
और उसका हाथ व ृ क एक शाखा से टकराकर चोिटल हो गया। िदि वजय से उसका र देखा
नह गया।
‘सुवया!’ अ जाने म िदि वजय के मुख से एक श द फूट पड़ा।
यह सुनकर वह ी यो ा, िदि वजय क ओर मुड़ी। िदि वजय उसका सौ दय देख
हत भ रह गया।
‘‘अभी-अभी या कहा तुमने?’’ ि य क नाियका ने िदि वजय से िकया।
‘‘म नह जानता; यह मने जानबझ ू कर नह कहा, मेरे मुख से िनकल गया।’’ िदि वजय
वयं शंिकत था।
‘‘तुम राजकुटु ब के लोग पर कभी िव ास नह िकया जा सकता; छल तु हारे र म
है।’’ ि य क नाियका ने अपना भाला ऊँचा िकया। अ य सभी ी यो ा श ु पर टूट पड़ ।
इस बार िदि वजय उनका सामना करने को परू ी तरह तैयार था। उसने उन सबको कोई
िवशेष ित पहँचाए िबना भिू म पर धकेल िदया। उसने तलवार घुमानी आरं भ क , और बीस म से
लगभग दस भाले काट िदए। इसके उपरांत उसने नाियका क ओर देखा।
‘‘अब हमारे म य कोई नह आएगा!’’ ि य क नाियका ने अपने यो ाओं को आदेश
िदया, और िदि वजय पर हार िकया।
‘वाह! या िबजली क गित से तलवार घुमाती है यह।’ िदि वजय ने उसका हार रोकते
हए िवचार िकया।
लगभग आधे हर तक चला। अंतत: िदि वजय ने उसे अपनी ओर ख चा और उसक
कमर पकड़ ली, ‘‘बहत हआ, एक हठी बािलका क भाँित यवहार करना बंद करो; म कह रहा
हँ, िक मेरी कोई बुरी मंशा नह है, िफर भी तुम मुझसे यु िकये जा रही हो।’’
‘‘िवदभ के िकसी यो ा पर िव ास करने से तो अ छा होगा िक म अपने ाण याग दँू।’’
िदि वजय यह सुनकर खीझ गया। उसने उसे छोड़ िदया, और अपनी तलवार भिू म पर
पटक दी।
‘‘अब देखो मेरी ओर; म िन:श हँ; यिद तुम मेरे िपता के कम का द ड मुझे देना
चाहती हो, तो चलाओ अपना श ; मुझे स नता होगी, यिद मेरे बिलदान से तुम संतु हो
सको।’’ िदि वजय ने ि य क नाियका के सम समपण कर िदया।
ि य क नाियका के मुख पर मौन छा गया। िदि वजय क उपि थित उसके दय पर
गहरा भाव डाल रही थी। उसने अपना भाला नीचे कर िलया। यह देख, एक ी यो ा ने पीछे से
िदि वजय क पीठ पर भाले से हार िकया।
‘‘नह , ऐसा मत करो!’’ ि य क नाियका न जाने य उसक पीड़ा देख न पायी।
‘‘ या हआ? इसे पीड़ा म देख आपको इतनी पीड़ा य हो रही है?’’ एक ी यो ा ने
नाियका से िकया।
िदि वजय अपने घुटन के बल आ गया। उसक ि थित देख नाियका का ोध सीमा पार
कर गया। उसने अपनी ही यो ा को पीछे धकेला, और भिू म पर िगरते िदि वजय क ओर दौड़ी।
उसने िदि वजय को थाम िलया, ‘‘हम िकसी िनद ष क ह या नह कर सकते; अब इसे
उठाने म मेरी सहायता करो।’’ नाियका ने अपने यो ाओं क ओर देखा।
शी ही िदि वजय को एक कुटीर म लाया गया। ि य ने उसका उपचार आरं भ िकया।
वह ि य क नाियका एक व ृ के पास खड़ी थी। एक ी यो ा उसके िनकट आयी,
‘‘ या हआ सुन दा? तुम इतनी िचंितत य हो?’’
‘‘मुझे वा तव म नह पता; न जाने मेरे साथ या हो रहा है.... उसे घायल देख मुझे इतनी
पीड़ा य हो रही है? उसके मुख से िनकला वह सुवया श द मेरे दय को इतना भािवत य
कर रहा है? मुझे समझ ही नह आ रहा िक मेरे साथ या हो रहा है।’’ ी यो ाओं क नाियका
सुन दा, शंिकत थी।
उसके समहू क ी यो ा मु कुरायी, ‘‘ऐसा तीत होता है उस राजकुमार ने आपको
बहत गहराई से भािवत िकया है; वैसे मुझे भी लगता है िक वह अपने िपता क भाँित नह है, वह
अलग है; वह उिचत और अनुिचत म भेद करना जानता है, इसिलए उसक सहायता करने के
तु हारे िनणय का म समथन करती हँ।’’
‘‘म तुमसे सहमत हँ, पर कुछ ऐसा नह है; वह कुछ अलग ही है। जब उसने मुझे छुआ,
मुझे लगा िक म वह पश पहचानती हँ; जैसे वह मुझे पहले भी छू चुका हो।’’ सुनंदा क पकड़
उसक तलवार पर कस रही थी।
‘‘ या तुम ेम म हो सुनंदा?’’ वह ी मु कुरायी।
यह सुनकर सुनंदा को ोध आ गया। उसने तलवार के एक ही हार से व ृ क एक
मोटी शाखा काटकर रख दी। इसके उपरांत, वह अपने समहू क उस ी क ओर मुड़ी, ‘‘ ेम
केवल िकसी यि क कमजोरी हो सकता है; मुझे अपनी बड़ी बहन दुधरा का अनुभव
भलीभाँित मरण है... ेम केवल पीड़ा देता है, और मुझे वह पीड़ा नह चािहए।’’
‘‘तुम मानो या ना मानो, तु हारे ने म प िदखायी देता है; म तुमसे बस यह कहना
चाहती हँ िक हर पु ष एक जैसा नह होता, और मुझे लगता है िक वह तु हारे िलए उिचत
जीवनसाथी है।’’
‘‘बस, बहत हआ; चली जाओ यहाँ से, म और कुछ सुनना नह चाहती; म एकांत म रहना
चाहती हँ।’’ सुनंदा, अपने दल क ी पर चीखी।
‘‘जैसी आपक इ छा नाियका।’’ वह ी यो ा कुछ कदम पीछे हटी, और वहाँ से थान
कर गयी।
सुनंदा वह व ृ के पास खड़ी रही। शी ही घायल अव था म िदि वजय वहाँ पहँचा।
‘‘तुम यहाँ य आये? तु ह िव ाम क आव यकता है; तु हारे घाव अभी तक भरे नह
ह।’’ सुनंदा से उसक ि थित देखी नह जा रही थी।
‘‘नह , म ठीक हँ; मुझे शी से शी िवदभ पहँचना होगा, अ यथा वह सभी मुझे खोजने
िनकल पड़गे, और यह तुम सबके िलए संकटकारी िस हो सकता है।’’ िदि वजय, पीड़ा म
होकर भी थान करने को आतुर था।
अक मात् ही वह अपना संतुलन खोकर िगर पड़ा, िक तु सुनंदा ने उसे पकड़कर सँभाल
िलया, ‘‘हठी बालक क भाँित यवहार मत करो; तु ह िव ाम क आव यकता है, म तु ह जाने
नह दे सकती।’’
इतने म िदि वजय ने अपनी चेतना भी खो दी। सुनंदा उसे देख मु कुरायी, ‘‘और तुम कह
रहे थे िक तुम जाना चाहते हो।’’
सुनंदा, िदि वजय को अपने कंधे के सहारे कुिटया तक ले आई। उसने उसे श या पर िलटा
िदया।
‘‘इसका यान रिखयेगा।’’ उसने पास ही बैठे वै को आदेश िदया।
इसके उपरांत वह कुिटया से बाहर आई, ‘कैसा मख ू है!’ सोचते हए वह मु कुरा रही थी।
राि का अंितम हर बीतने को था। सुनंदा और उसक सभी यो ा िव ाम कर रह थ ।
जैसे ही उनके ने खुले, वह सभी िवदभ के सकड़ सैिनक से िघरी हई थ । वह सभी त ध रह
गय ।
सैिनक हँस पड़े , ‘‘बहत िन ा हो गयी, अब चल?’’ उन सैिनक का भाला, सुनंदा क
गदन पर था।
शी ही वह सभी बंदी बना िलए गए और उनक नाियका सुनंदा को घुटन के बल झुका
िदया गया। अब सुनंदा क गदन, तलवार पर िटक थी।
‘‘हमारे युवराज िदि वजय को बंदी बनाने का साहस कैसे िकया तुमने? अब लो, म ृ यु का
वरण करो।’’ वह सैिनक, सुनंदा को मारने ही वाला था।
िक तु इससे पवू िक वह ऐसा कर पाता, उसक ही गदन कटकर िगर गयी। िवदभ के
सैिनक यह देख त ध रह गए। युवराज िदि वजय ने अपने ही सैिनक क गदन उड़ा दी थी।
‘‘िजस ी ने मेरे ाण क र ा क , तुम उसे मारना चाहते हो; मु करो इन सबको।’’
ोिधत िदि वजय अपने सैिनक पर चीखा।
सैिनक, उसके मुख के भाव देख भयभीत हो गए। उसका आदेश ण म रं ग लाया। सारी
ी यो ाओं को मु कर िदया गया।
िदि वजय, सुनंदा के पास आया और िकया, ‘‘कौन था वह सैिनक, िजसने तु ह
सव थम पश करने का साहस िकया था?'
सुनंदा ने अपनी उँ गली एक सैिनक क ओर क । ोिधत िदि वजय, उस सैिनक क ओर
मुड़ा और र से सनी तलवार लेकर उसक ओर बढ़ने लगा।
14. े म पीड़ा
िदि वजय उस सैिनक क ओर बढ़ा। उस सैिनक क तलवार उसके हाथ से छूट गयी।
उसके पैर भय से काँप रहे थे। िक तु इससे पवू िक िदि वजय उसका वध करता, सुनंदा ने उसका
हाथ पकड़ िलया।
‘‘यँ ू अपने ही सैिनक का वध करना उिचत नह युवराज, ऐसा करके आप एक ू र
शासक कहलायगे; अपने िपता क भाँित मत बिनए, जो िबना कारण िनद ष के ाण लेते ह।’’
‘‘िबना कारण? इसने तुम पर श उठाया है सुवया, म इसे मा नह कर सकता।’’
िदि वजय के ने ोध से लाल हो रहे थे।
सुवया नाम सुनकर सुनंदा थोड़ा सा सकपका गयी। िदि वजय वयं भी चिकत था िक ये
उसने या कहा। वो दोन कुछ ण शांत रहे ।
कुछ ण के प ात सुनंदा ने िदि वजय क ओर देखा, ‘‘अब आपको जाना चािहए
युवराज िदि वजय; आशा करती हँ, हम दोबारा कभी न िमल।’’ सुनंदा ने अपना मुख फेर िलया।
िदि वजय का ोध ण भर म शांत हो गया। वो ि थर होकर खड़ा था।
‘‘अब हम चलना चािहए युवराज।’’ उन सैिनक का सरदार, िदि वजय के पास आया।
‘‘मुझे मा करना; मुझे वयं ात नह , मुझे या हो रहा है।’’ िदि वजय ने तलवार भिू म
पर पटक दी।
‘‘हम चलना चािहए।’’ िदि वजय, एक अ क ओर मुड़ा और उस पर आ ढ़ हो गया।
उसके सैिनक उसके पीछे हो िलये।
जाते समय िदि वजय ने मुड़कर सुनंदा क ओर देखा। सुनंदा भी उसी क ओर देख रही
थी। िक तु अगले ही ण सुनंदा ने अपना मँुह फेर िलया।
‘‘इसे समझना किठन है।’’ िदि वजय, िवदभ क ओर बढ़ चला।
सुनंदा कुछ समय तक मौन खड़ी रही, िक तु शी ही वो अपने अ क ओर मुड़ी, और
उस पर आ ढ़ होकर िकसी अिनि त थान क ओर बढ़ चली।
‘‘उसे हो या रहा है?’’ पास ही खड़ी एक ी यो ा ने सुनंदा क ओर देखते हये कहा।
‘‘वह ेम म है, और यह ेम पीड़ा है।’’ दूसरी ने उ र िदया।
शी ही सुनंदा एक तालाब के पास आकर क । वह अपने अ से उतरकर तालाब के
पास आयी, और अपने मुख को तालाब के जल से धोया। उसके उपरांत सुनंदा ने जल ितिबंब क
ओर देखा।
‘ये मुझे या हो रहा है? मुझे बार बार उसका मरण य हो रहा है? वो श द सुवया मुझे
मेरे दय के इतने पास यँ ू महसस ू हो रहा है? यँ ू जब वो मुझे पश करता है, तो म उसका
िवरोध नह कर पाती?’ सुनंदा का दय उससे कई पछ
ू रहा था।
वह दूसरी ओर िदि वजय भी गहरी सोच म था, ‘ यँ ू ये श द सुवया मेरी िज ा से िनकल
पड़ता है? यँ ू वो मुझे इतना भािवत करती है? मुझे उसका पश प रिचत सा यँ ू लगता है, जैसे
म उसे पहले भी िमल चुका हँ? ये बहत ही दुलभ भावना है, जो पहले कभी महसस ू नह हई।’
अपने अ पर आ ढ़ हये िदि वजय ने अपनी या ा जारी रखी।
* * *
दुभ (सुजन), डकैत के साथ ही रह रहा था। महाबली अख ड शी ही वहाँ पहँचे और
एक डकैत को बुलाकर पछ ू ा, ‘‘कहो, या समाचार है?'
‘‘एक महावीर यो ा हमारे समहू म सि मिलत हये ह; हमारे सरदार मेघवण उनके
श कौशल और बल से इतने भािवत हए, िक अपनी अनुपि थित म उ ह हमारा सरदार िनयु
कर गये।’’ उसने मेघवण और सुजन के म य हये क िव ततृ या या क ।
यह सुनकर महाबली अख ड को ोध आ गया, ‘‘हमसे पछ ू े िबना उसने अकेले ही ये
िनणय कैसे ले िलया?'
‘‘ये हमारे सरदार का िनणय था, हम इसके िव नह जा सकते थे गु देव।’’ उस डकैत
क आँख नीची थ ।
‘‘हम उस यो ा से िमलना है।’’
‘‘जैसी आपक इ छा गु देव।’’
दुभ , अखाड़े म अ यास कर रहा था। राि का समय था। एक डकैत वहाँ आया और उसे
सच ू ना दी, ‘‘महामिहम! हमारे गु देव यहाँ आये हए ह, वो त काल ही आपसे िमलना चाहते ह।’’
दुभ कुछ ण के िलए सोच म पड़ गया, ‘महाबली अख ड... वो मेरे ने देखते ही मुझे
पहचान लेगा; मुझे उससे दूर रहना होगा।’
‘‘ या हआ महामिहम? हमारे गु देव आपक ती ा कर रहे ह!’’ उस डकैत ने दुभ
क चु पी तोड़ने का य न िकया।
‘‘अ... कुछ नह , उनसे कह दो म आ रहा हँ।’’ दुभ ने उ र िदया।
‘मुझे अपनी पहचान गु रखनी होगी; मुझे अपने बोलने का वर तक प रवितत कर
लेना चािहए; मुझे परू ा अनुमान है िक महाबली अख ड मेरे वर से भी मुझे पहचान सकता है।’
चलते हए दुभ सोच रहा था।
जब दुभ वहाँ पहँचने ही वाला था तो उसने उस गुफा म तीन जलती हई मशाल देख ।
मुझे िकसी भी तरह ये मशाल बुझानी ह गी, और उसके िलये मुझे अपनी पंचशि य म से
एक का योग करना ही होगा; वायु क ती गित िन:संदेह इन मशाल को बुझा देगी। दुभ ने
अपने हाथ से कुछ हरकत क ।
प रणाम व प उस गुफा म तेज हवाएँ बहने लग , और देखते ही देखते गुफा क तीन
मशाल बुझ गय ।
‘‘यह या हआ? अक मात ही इतनी तेज हवा कैसे बहने लग ?’’ महाबली अख ड
चिकत थे।
बाक डकैत ने मशाल जलाने का य न िकया, िक तु सफल नह हए। इतने म दुभ ,
महाबली अख ड के सम आ खड़ा हआ, िक तु अँधेरे के कारण उसका मुख प िदखाई नह
दे रहा था।
अख ड ने णभर के िलये उसक और देखा और पछ ू ा, ‘‘कहाँ से आये हो?'
‘‘म सोपारा गाँव से आया हँ; वो यहाँ से कुछ ही दूरी पर है महामिहम।’’ दुभ , अपने
बोलने का वर बदलने म सफल रहा, और पास के ही िकसी गाँव का नाम ले िलया।
महाबली अख ड थोड़ा संतु िदखे। उ ह ने उससे उसका नाम नह पछ ू ा। उ ह ने उसक
ओर घरू ा, और िकया, ‘‘हमने सुना है िक तुमने एक हर तक मेघवण से यु िकया था,
या यह स य है?'
‘‘जी महामिहम, यह स य है।’’ दुभ ने उ र िदया।
यह सुनकर महाबली अख ड उसके पास आये, ‘‘तुम िन:संदेह हमारी सेना के एक भाग
का नेत ृ व करने के यो य हो; हमारा उ े य है अिधक से अिधक युवक को हमारे समहू म
सि मिलत करना; तुमने अभी मुझे या बताया? मेरे कहने का अथ है, तु हारे गाँव का नाम?’’
‘‘सोपारा, महामिहम।’’
‘‘तो तु हारा काय ये है िक तुम अिधक से अिधक युवक को यहाँ लाओ, और हमारे समहू
म सि मिलत कर हमारी शि बढ़ाओ; जैसे ही मेघवण और चं केतु वापस आते ह, तुम अपने
काय म लग जाओ।’’ महाबली अख ड ने दुभ को आदेश िदया।
‘‘जो आ ा महामिहम।’’
‘‘अब तुम जा सकते हो।’’
लौटते समय दुभ िवचार कर रहा था, ‘ या- या करना पड़े गा अब इन दो यो ाओं का
रह य जानने के िलये?’
दुभ के जाते ही, अख ड ने अपने मुख का व हटाया। वो ोध से दुभ को गुफा से
बाहर जाते हए देख रहा था।
या लगता है तु ह, म तु ह पहचान नह सकता? तुम मुझसे िमलने आये, और हवाओं
का बहाव अक मात् ही ती हो गया, मुझे तभी संदेह हो गया था िक यह तुम ही हो दुभ ।
तु हारे अित र कोई और वातावरण म ऐसा अक मात् प रवतन नह ला सकता। म यह तो
जानता हँ िक तुम िकसी पर छल से आ मण नह करोगे, िक तु तु हारे यहाँ आने का कारण म
अव य जानना चाहता हँ। िकसी ने यहाँ भेजा है तु ह? या तुम वयं अपनी इ छा से यहाँ आये हो?
तु ह हमारे िठकाने का पता कैसे चला? मुझे ककर देखना होगा िक तुम आिखर चाहते या
हो? महाबली अख ड, दुभ को घरू रहे थे।
हवाओं का बहाव क गया। महाबली अख ड ने अपना मुख ढँ का और एक डकैत को
आदेश िदया, ‘‘मशाल जला दो!’’
‘मुझे उसका पीछा करना होगा।’ महाबली अख ड दुभ का उ े य जानने के िलये
उसके पीछे गये।
वह दुभ ने चलते हए एक बाज का वर सुना। वो वर सुन दुभ वन क ओर दौड़ा,
महाबली अख ड ने उसका पीछा िकया।
शी ही दुभ , वन के एक खुले मैदान म आ पहँचा। एक बाज उड़ता हआ आया और
उसके हाथ पर आ बैठा। उसके पंजे म एक संदेश बँधा हआ था।
दुभ ने उस संदेश को खोलकर पढ़ना ारं भ िकया।
वो संदेश र गु भैरवनाथ का था,
‘हम तु हारी आव यकता है दुभ ! हि तनापुर ने हमारा शांित ताव ठुकरा िदया है;
उ ह ने िवदभ क स ा वीकार करने से मना कर िदया है, और इससे हमारा बनाया हआ भय
कम हो सकता है, इसिलये ये समय यु का है; हम सेना तैयार कर रहे ह। तुम शी अित शी
यहाँ पहँचो।’
दुभ उस संदेश को पढ़कर खीझ गया, ‘यु ... िफर एक यु ; हर वष मुझे दस से बारह
यु करने पड़ते ह; म थक गया हँ इनसे... आज मुझे पछतावा हो रहा है िक मने जयवधन को
जीवनभर सहायता का वचन यँ ू िदया।’
कुछ समय तक दुभ शांत खड़ा रहा, उसके उपरांत उसने उस बाज क ओर देखा। उसने
वो प उठाया और उसके िपछले भाग पर िलखना आरं भ िकया। उसके उपरांत उसने वो संदेश
बाज के पैर से बाँध िदया।
‘जाओ और उ ह संदेश दो, िक हम सेनाओं के यु क आव यकता नह है; यथ ही
सैिनक के ाण गँवाने का कोई लाभ नह ; वो सब िवदभ म ही क, हि तनापुर को परािजत
करने के िलये म अकेला ही पया हँ... उनसे कह दो, इस यु म और कोई भाग नह लेगा,
िवदभ के िसंहासन का ितिनिध व म वयं क ँ गा।’’
वो बाज उड़ चला। दुभ के मुख से िनकले उन श द को सुनकर व ृ के पीछे िछपे
महाबली अख ड परू ी तरह आ यचिकत रह गये। दुभ , गुफा क ओर बढ़ चला। महाबली
अख ड अभी भी एक व ृ के पीछे ही छुपे थे।
‘बड़े ही आ य क बात है; तु ह समझना बहत किठन है दुभ । कभी तुम एक जंगली
पशु क भाँित बताव करते हो, तो कभी एक आदश यो ा लगते हो; मुझे मरण है, वष पहले जब
यु म तेज वी घायल था, तब केवल तु हारे कारण ही म उसे रणभिू म से िनकालकर ले जा पाया
था। वष पहले िव मािजत और महिष ओमे र ने िमलकर छल से तु ह परािजत िकया था, उसके
उपरांत भी तुम एक आदशवादी यो ा रहे ... बहत ही दुलभ यो ा हो तुम दुभ , बहत ही दुलभ;
अब मुझे वयं पर संदेह हो रहा है, िक तु हारे िव इन यो ाओं को तैयार कर म सही कर रहा
हँ या नह ; अब तो म यह जानने के िलये और भी उ सुक हो रहा हँ, िक आिखर वष पहले तुमने
पाँच हजार गंधव का वध यँ ू िकया?’ महाबली अख ड, गहरी सोच म थे।
दुभ , गुफा से होकर वापस अखाड़े म पहँचा। उसने अखाड़े म अ यास करते हए यो ाओं
क ओर देखा, ‘मुझे मेघवण और चं केतु क ती ा करनी होगी; जैसे ही वो दोन यहाँ पहँचगे,
म हि तनापुर क ओर िनकल जाऊँगा।’
* * *
दो िदन के प ात मेघवण और चं केतु वहाँ वापस लौटे। लौटकर सबसे पहले मेघवण,
सुजन से िमलने आ पहँचा।
‘‘कैसे हो सुजन? और यहाँ का अ यास कैसा चल रहा है?’’ मेघवण ने सुजन से
िकया।
‘‘जो भी है, आपके सम है।’’
मेघवण ने अ यास करते हये अपने सािथय क ओर देखा। उनम से एक ने तलवार के
एक ही वार से चार पानी के घड़ को तोड़ िदया।
‘‘अ ुत काय सुजन; तुमने तो हमारे यो ाओं म बहत अिधक सुधार ला िदया।’’ मेघवण,
अपने यो ाओं क िनखरी हई श कला को देख बहत भािवत हआ।
‘‘ध यवाद महामिहम।’’ सुजन मु कुराया।
मेघवण, चं केतु क ओर मुड़ा, ‘‘मने तुमसे कहा था न!’’
चं केतु कुछ हद तक संतु था। मेघवण, सुजन क ओर बढ़ा और उसे दय से लगा
िलया।
‘‘तुम इससे कह अिधक के यो य हो सुजन, इसिलये आज से तु हारा ओहदा हमारे
बराबर का है; अब हम िम ह, और हम तीन िम िमलकर उस असुरे र दुभ का भय संसार से
समा कर दगे।’’
सुजन को कुछ अ छा महसस ू हआ, िफर भी वो अपनी योजना पे अिडग रहा। उसने ऐसा
दिशत िकया जैसे उसे कुछ पता ही न हो, ‘‘असुरे र दुभ ? या तु हारी उससे कोई
यि गत श ुता है?'
‘‘नह , उससे मेरी कोई िनजी श ुता नह है, िक तु मेरे िम चं केतु क है; वो उससे
ितशोध चाहता है। दुभ इसके माता-िपता का ह यारा है, और हमारे गु देव का कहना है क
दुभ को रोकने के िलये मुझे चुना गया है; इसिलये, अब मेरे िम का ितशोध मेरा ितशोध
है।’’ मेघवण ने चं केतु क ओर देखते हए कहा।
या िम ता है; शंसनीय है। सुजन ने अपना मुख ऐसा बनाया जैसे वो िचंितत है, और
एक ओर मुड़ गया।
मेघवण ने उसके मुख को पढ़ िलया, ‘‘ या हआ सुजन? तुम इतने िचंितत य िदखाई दे
रहे हो?’’
सुजन, मेघवण क ओर मुड़ा, और एक और कहानी बनायी, ‘‘संदेश आया था, मेरी माँ
बहत बीमार है, मुझे जाना होगा।’’
मेघवण कुछ ण के िलये शांत रहा, उसके उपरांत उसने कहा, ‘‘उिचत है सुजन, तु ह
जाना ही चािहए।
‘‘म कुछ ही िदन म लौट आऊँगा।’’ सुजन मुड़ा और गुफा के बाहर क ओर चल िदया।
शी ही वो अपने अ पर आ ढ़ हआ और िवचार िकया, ‘हि तनापुर पर आ मण करने
का समय आ गया है।’
दुभ ने अपने अ क लगाम ख ची और हि तनापुर क ओर िनकल गया।
मेघवण और चं केतु उसे जाते हए देख रहे थे।
‘‘मुझे लगता है तु हारा िनणय ठीक था मेघवण, िक तु तु ह ऐसा नह लगता िक हम
इसके िवषय म सबकुछ जानने का य न करना चािहए?’’ चं केतु ने मेघवण से िकया।
यह सुनकर मेघवण खीझ गया, ‘‘तु ह हो या गया है चं केतु? वो एक महान यो ा है,
और उसे प रचय क आव यकता नह है; उसका बल और श कला ही उसका प रचय देने के
िलये पया है। तुम देख रहे हो िक उसने कुछ ही िदन म हमारे सािथय के श संधान म
िकतना प रवतन ला िदया, िफर भी तुम ऐसा कह रहे हो।’’
‘‘म बस उसके िवषय म परू ी तरह से जान लेने क बात कर रहा हँ; या तुमने गौर िकया
िक वो तुमसे परािजत हआ था? और अब तक तुम इतने साम यवान नह हए िक हमारे गु देव
को परािजत कर सको; तु ह सोचो िक वो इतना प रप व कैसे हो सकता है जो हमारे सािथय
क कला को इतना िनखार दे?’’ चं केतु ने उठाया।
‘‘ये तो िसखाने क कला है चं केतु, कदािचत् इसम वो हमारे गु देव से बेहतर है।’’
‘‘म तुमसे पहले भी कह चुका हँ मेघवण, अपने गु का स मान करना सीखो।’’
‘‘मेरे मन म उनके िलये कोई स मान नह है, म केवल अपने िपता को िदये हए वचन के
कारण उ ह झेल रहा हँ।’’ ोिधत मेघवण, गुफा के भीतर चला गया।
चं केतु उसे जाते देख रहा था, ‘‘मुझे नह पता तुम अपनी पीड़ा से बाहर कब आ पाओगे
मेघवण, िक तु अपने समहू क सुर ा के साथ म कोई समझौता नह कर सकता... मुझे इस
िवषय म गु देव से वाता करनी होगी।’’ चं केतु भी गुफा के भीतर चला गया।
अगले ही िदन, एक डकैत, मेघवण और चं केतु के पास आया और उ ह सच ू ना दी,
‘‘महामिहम, गु देव पधारे ह; वो आप दोन से शी ही िमलना चाहते ह, और त काल ही आप
दोन को बुलाया है।’’
‘‘ठीक है, तुम जाओ हम आते ह।’’ चं केतु ने उस डकैत को जाने के िलये कहा।
‘‘अब या हो गया?’’ मेघवण खीझा हआ था।
‘‘चलो, चलकर मालम ू करते ह।’’
शी ही मेघवण और चं केतु, महाबली अख ड के सम खड़े थे।
‘‘तुम दोन को शी अितशी हि तनापुर के िलये थान करना होगा।’’ महाबली
अख ड ने उन दोन को आदेश िदया।
‘‘जैसी आपक इ छा, िक तु या हम इसका कारण जान सकते ह, गु देव?’’ चं केतु ने
िकया।
‘‘हि तनापुर संकट म है; मुझे सच ू ना िमली है िक असुरे र दुभ िबना िकसी सेना के
हि तनापुर पर आ मण करने जा रहा है, और िबना िकसी सेना, वो अिधक घातक है, इसिलये
तु ह अपने िम सवदमन क सहायता करने के िलये जाना चािहए।’’
मेघवण यह सुनकर उ ेिजत हो गया, ‘‘हम सवदमन क सहायता करनी होगी,चलो
चं केतु।’’
‘‘ क जाओ, तु हारे साथ एक और यो ा जायेगा।’’ अख ड ने उसे रोका।
‘‘और वो कौन है गु देव?’’ चं केतु थोड़ा चिकत था।
‘‘बाहर आओ!’’ महाबली अख ड के आदेश पर एक यो ा सामने आया। उसका मुख
काले व से ढँ का हआ था, और सर पर पगड़ी बँधी हई थी।
‘‘ये तु हारे साथ जायेगा; अब तुम दोन जाओ और या ा क तैयारी करो, और मरण रहे ,
ये मेरा गु प से तैयार िकया हआ श है; तुमम से कोई इसका भेद जानने का य न नह
करे गा।’’ महाबली अख ड ने कठोर वर म आदेश िदया।
‘‘आपक आ ा का पालन होगा गु देव, चलो मेघवण।’’
मेघवण और चं केतु या ा क तैयारी करने गुफा के भीतर चले गये। महाबली अख ड उस
यो ा के पास आये।
‘‘वो दोन नह जानते िक तुम उनके ाता हो युवराज िदि वजय, और उ ह ये बात पता
चलनी भी नह चािहए।’’
िदि वजय ने अपने मुख का व हटाया, ‘‘आप िचंितत न होइए महाबली, म उ ह ये भेद
पता नह लगने दँूगा, म यहाँ केवल उनक सहायता करने आया हँ।’’
‘‘सावधान रहना िदि वजय, तुम इस युग के सबसे े यो ा से यु करने जा रहे हो;
मेघवण इतना पारं गत और अनुभवी नह है िक उसे परािजत कर सके, िक तु हम सवदमन क
सुर ा का भी यान रखना है, इसिलये तुम सबको इस यु पर जाना ही होगा... मेघवण म धैय
नह है; मुझे पता है चं केतु उसे सँभाल लेगा, िक तु तु ह भी उसका यान रखना होगा; मरण
रखना, तुम तीन क एकता उससे यु करने म सबसे बड़ी शि िस होगी।’’
इतने म मेघवण और चं केतु भी गुफा से बाहर आ गये। िदि वजय ने शी ता से अपना
मुख ढका।
‘‘हम थान के िलये तैयार ह गु देव!’’ चं केतु ने अख ड से थान क आ ा माँगी।
‘‘ठीक है; मेरा यह यो ा भी थान को तैयार है; एक बात का मरण रखना, इस यो ा
को कमतर आँकने क भल ू मत करना; ये मेरा गु प से तैयार िकया हआ श है; शि और
साम य म यह तुम दोन के समान है, इसिलये तु हारी एकता ही दुभ से यु करने म सबसे
बड़ी शि िस होगी।’’ महाबली अख ड ने मेघवण और चं केतु को प िनदश िदये।
‘‘आपका आदेश हमारे िलये ई र का आदेश है गु देव, चलो िम ।’’ चं केतु ने िदि वजय
का समहू म वागत िकया। वह मेघवण एक बुत क भाँित खड़ा था।
कुछ ही ण म तीन यो ा अपने-अपने अ पर आ ढ़ हो गये। हि तनापुर क ओर
उनक या ा ारं भ हई।
एक िदन और एक रात क या ा के उपरांत दुभ हि तनापुर पहँचा। वो हि तनापुर के
राजमहल से कुछ दूरी पर खड़ा था, जहाँ से हि तनापुर का मु य वज उसे प िदखाई दे रहा
था।
उसने धनुष उठाया और बाण चढ़ाया। उसक ि अभी भी हि तनापुर के मु य वज क
ओर थी। णभर म ही उसने बाण छोड़ा, और उस मु य वज को तोड़ िदया। हि तनापुर के र क
सैिनक इस अक मात वार से चिकत रह गये।
उसके उपरांत दुभ ने एक दूसरा बाण िनकाला, िजससे िवदभ का वज बँधा हआ था।
उसने बाण छोड़ा, और कुछ ही ण म िवदभ देश का वज हि तनापुर के िकले पर लहरा रहा
था।
‘‘जाओ और युवराज को सच ू ना दो।’’ एक र क सैिनक ने दूसरे से कहा।
एक र क, युवराज सवदमन के पास आया और उसे सच ू ना दी, ‘‘महामिहम, िकसी ने
हमारा मु य वज न कर िदया है, और िकसी दूसरे रा य का वज हमारे महल क ऊँचाई पर
लहरा रहा है।’’
‘‘ या? ये या कह रहे हो? या तु ह परू ा िव ास है?’’ सवदमन सकते म था।
‘‘जी महामिहम, मने अपने ने से देखा है।’’ र क सैिनक ने उ र िदया।
‘‘इसका अथ है िक श ु हमारे रा य म वेश कर चुका है, और िन:संदेह वो िवदभ से है।
हमने िवदभ का आिधप य वीकार नह िकया, इसिलये वो लोग ये ओछी हरकत कर रहे ह। इस
समय हमारे िपता महाराज दु यंत यहाँ उपि थत नह ह, इसीिलए उ ह ने ये सोचा होगा िक
हि तनापुर इस समय कमजोर है... ये खुली चुनौती है, और अब उ ह मेरी तलवार का वाद
चखने को िमलेगा।’’ युवराज सवदमन, दौड़कर अपने महल से बाहर आया।
महल से बाहर आते ही उसने अपने महल क ऊँचाई पर चढ़े वज क ओर देखा। यह देख
सवदमन ु हो गया। उसने एक भाला उठाया, उसपर हि तनापुर का वज बाँधा, और िवदभ के
वज क ओर िनशाना साधकर न कर िदया। अब हि तनापुर का वज, महल पर लहरा रहा
था।
दूर खड़ा दुभ यह देख मु कुराया, ‘‘तो चुनौती वीकार हो गयी।’’ उसने अपने अ
क लगाम ख ची और हि तनापुर के महल क ओर चला।
शी ही सवदमन अपने महल के बाहर आया और चुनौती दी, ‘‘कौन हो तुम? बाहर आओ
कायर!’’
अपने अ पर आ ढ़ हआ दुभ शी ही सवदमन के सम आ खड़ा हआ, ‘‘म कायर
नह हँ, युवराज; तु हारे सम तु हारी हर चुनौती वीकारने के िलये खड़ा हँ।’’
सवदमन ने उसक ओर यान से देखा, ‘‘कौन हो तुम? ऐसा तीत होता है जैसे िकसी
रा य के राजकुमार हो; कदािचत् िवदभ रा य के राजकुमार हो?’’
दुभ मु कुराया, ‘‘म केवल िवदभ रा य का ितिनिध हँ; म यहाँ तु ह चेतावनी देने
आया हँ िक िवदभ का अिधप य वीकार लो, अ यथा म तु हारे रा य का सवनाश कर दँूगा।’’
सवदमन ने कुछ ण उसे घरू ा और पछ ू ा, ‘‘इसका अथ ये है िक तुम हि तनापुर को यु
क चुनौती दे रहे हो?'
‘‘िन:संदेह म तुम सबको यु क चुनौती दे रहा हँ।’’
सवदमन मु कुराया, ‘‘तो िफर तु हारी सेना कहाँ है?'
‘‘म वयं एक सश सेना हँ, और म यहाँ िवदभ के िसंहासन का ितिनिध व कर रहा
हँ।’’ दुभ ने गव से कहा।
‘‘तुम अकेले ही हि तनापुर क दो अ ौिहणी सेना से यु करोगे? मुझे तो तुम कोई
सरिफरे तीत होते हो; सैिनक ! बंदी बना लो इसे।’’ सवदमन ने अपने सैिनक को आदेश िदया।
र क सैिनक, दुभ को बंदी बनाने उसक ओर दौड़े ।
दुभ मु कुराया। उसने धनुष उठाया और पाशा का आवाहन िकया। उसने वो
िद या उन र क क ओर ल य करके छोड़ िदया। सारे र क अब बंदी थे।
सवदमन चिकत रह गया, पाशा ! नह ये कोई साधारण यो ा नह हो सकता।
दुभ ने एक बार िफर उसे चुनौती दी, ‘‘तो तु हारा अंितम िनणय या है युवराज?
समपण करो, या अपनी स पण ू सेना लेकर आओ।’’
सवदमन ने यान से तलवार ख ची, ‘‘मने तु ह कमतर आँकने क भल ू क , िक तु तुम
एक बेहतर के यो य हो; अब कोई हमारे बीच नह आएगा, तुम यहाँ अकेले आये हो, म भी
तुमसे अकेले ही यु क ँ गा... ये केवल तु हारे और मेरे म य का होगा।’’
दुभ ने उस पर ताना कसा, ‘‘तुम का अथ जानते हो? या तुम जानते भी हो िक
तुम िकसे चुनौती दे रहे हो? मै दुभ हँ, असुरे र दुभ ।’’
सवदमन यह सुनकर चिकत रह गया। उसक पकड़ उसक तलवार पर और मजबत ू हो
गयी। वो दुभ क ओर घरू रहा था, ‘‘दुभ ! असुरे र दुभ ! बहत सुना है तु हारे िवषय म
दुभ ; सम आयावत म तु हारा भय या है, और आज इस म म हर मनु य के दय से
तु हारा भय समा कर दँूगा, और रही बात क , तो म भलीभाँित जानता हँ, िक के
केवल दो अथ ह, िवजय अथवा मरण।’’
दुभ ने भी यान से तलवार ख ची और अपने अ से कूदा। सवदमन भी उसक ओर
दौड़ा। दोन तलवार टकराय और आरं भ हो गया। दुभ , सवदमन को कमतर आँक रहा
था, इसिलये वो अपनी स पण ू शि का योग नह कर रहा था।
प रणाम शी ही सामने आया। सवदमन ने उसक छाती पर भीषण मुि हार िकया,
िजससे वो दस गज दूर जा िगरा। दुभ परू ी तरह चिकत रह गया।
तीत होता है िक ये एक कुशल तलवारबाज है, मुझे थोड़ी और शि लगानी होगी।’’
दुभ वापस सवदमन क ओर दौड़ा, और परू ी गित से हार िकया, िक तु वह यह देख परू ी तरह
आ य म पड़ गया, जब सवदमन ने उसका यह दाँव सफलतापवू क रोक िलया।
उन दोन का जारी था। शी ही सवदमन क छाती पर एक भीषण मुि हार हआ
और कुछ दूर जा िगरा।
वह सवदमन क ओर देखते हए दुभ िवचार कर रहा था, ‘ध यवाद, गु देव, केवल
आपके कारण ही आज मेरा सामना आयावत के एक और े यो ा से हआ है; म इसका वध
नह क ँ गा, िक तु अपने वचन का मान रखने के िलये मुझे इसे परािजत कर बंदी तो बनाना ही
होगा।’
सवदमन उसक ओर दौड़ा। जारी रहा। उन दोन तलवार का टकराव भीषण विन
उ प न कर रहा था, जो हि तनापुर के परू े महल म गँज ू रहा था। दो हर तक यु चलता रहा।
यु क वह ती विन महल के भीतर के लोग को बहत पीड़ा पहँचा रही थी।
उन तलवार के टकराव का वर इतना अिधक ती था, िक उसने दुधरा के ार पर भी
द तक दे दी, जो चार ओर से बंद था। दुधरा, वो वर सुन आ य म पड़ गयी। उसने एक दासी
को र क सैिनक को बुलाने का संकेत िकया।
‘‘ या हो रहा है र क? ये कैसा ती वर है, जो स पण ू महल म फै ल रहा है?’’ उसने
र क से पछ ू ा।
‘‘हि तनापुर म एक यो ा आ पहँचा है; उसने युवराज सवदमन को चुनौती दी है, यह
उ ह क तलवार के टकराव का वर है।’’ र क ने िव तार से बताया।
‘‘युवराज सवदमन, महिष िव ािम के िश य ह; वो आयावत के े यो ाओं म से ह;
ऐसा कौन सा यो ा है िजसने उ ह चुनौती दी है?’’ दुधरा ने उस र क सैिनक से पछ
ू ा।
‘‘हि तनापुर ने िवदभ का आिधप य वीकार नह िकया, इसिलये िवदभ ने अपना एक
ितिनिध यो ा भेजा है।’’
‘‘और वो ितिनिध कौन है?’’ दुधरा, जानने को उ सुक थी।
‘‘िदखने म तो वो एक मनु य तीत होता है, िक तु वयं को असुरे र दुभ कहता
है।’’
दुधरा उसका नाम सुनकर स न रह गयी। उसके हाथ ोध से काँप रहे थे। वो आगे
बढ़कर उस थान पर आई, जहाँ से उसका मुख प िदखाई देने लगा। उसके मुख के भाव देख
वो र क सैिनक भयभीत होकर कुछ कदम पीछे चला गया। दस वष के उपरांत िकसी ने उसका
मुख देखा था। उसने िवधवा के व पहन रखे थे। उसके ने म कदािचत् िकसी ितशोध क
वाला धधक रही थी।
‘‘दुभ ... असुरे र दुभ ; तुमने सही कहा, िदखने म तो वो एक सु दर राजकुमार
तीत होता है, िक तु वो एक वहशी द रं दा है।’’ दुधरा ने तलवार उठाई और ार क ओर बढ़ी।
‘‘ िकये, मुझे आपका र क िनयु िकया गया है, म आपको जाने नह दे सकता।’’ वो
र क, दुधरा के सम आ खड़ा हआ।
ोिधत दुधरा ने उस र क पर आ मण कर णभर म उसे िन:श कर िदया। अब
दुधरा क तलवार उस र क क गदन पर थी।
‘‘युवराज सवदमन के ाण संकट म ह; महाराज दु यंत का वो उ े य मत भल ू ो, िजसके
कारण उ ह ने मुझे और मेरी बहन को गोद िलया था; म हि तनापुर का र ाकवच हँ।’’ दुधरा ने
उस सैिनक को पीछे हटाया और बाहर चली गयी।
सवदमन और दुभ का जारी था। अगले ही ण उन दोन क तलवार टकराकर
टूट गय ।
दुभ परू ी तरह आ य म पड़ गया, जो यो ा मेरी तलवार तोड़ सकता है, वो साधारण
यो ा नह हो सकता; ये बहत ही दुलभ पल ह, अब ि थित गंभीर हो रही है, मुझे ये शी
समा करना होगा।’’
दुभ ने टूटी हई तलवार भिू म पर पटक दी। सवदमन ने भी तलवार भिू म पर पटक और
दुभ क ओर दौड़ा। इस बार दोन के म य म लयु आरं भ हआ। दुभ , सवदमन के दाँव देख
आ य म पड़ गया।
सवदमन ने उसे पीछे धकेल िदया। दुभ ने सवदमन क ओर देखा, ‘ये दाँव! इस दाँव
को म जानता हँ; ये तो उसी यो ा का दाँव है, िजसने वष पहले मेरे साथ छल िकया था, िजसके
कारण म स र वष तक सु ाव था म रहा। िव मािजत... ये दाँव तो उस नीच यो ा िव मािजत
का है, म उसके दाँव को कभी नह भल ू सकता।’
दुभ अपने थान पर खड़ा था। सवदमन उसक ओर दौड़ा। वो दोन एक दूसरे से
टकराए। वो दोन एक दूसरे क आँख म ोध से देख रहे थे।
‘‘कौन हो तुम? िकसने तु ह िश ा दी है? ऐसा य लगता है जैसे म तुमसे पहले भी यु
कर चुका हँ?’’ दुभ , सवदमन को घरू रहा था।
सवदमन ने भी उसक ओर घरू ते हए उ र िदया, ‘‘बड़े संयोग क बात है दुभ ; मुझे भी
कुछ ऐसा ही तीत हो रहा है, जैसे िक म तुमसे पहले भी यु कर चुका हँ।’’
सवदमन ने एक बार िफर दुभ को पीछे धकेल िदया। सवदमन के उन श द को
सुनकर दुभ के ने ोध से जल रहे थे। उसक नस म र के बहाव क गित ती हो गयी।
सवदमन एक बार िफर उसक ओर दौड़ा।
दुभ ने अपनी मु ी भ ची। अपनी स पण ू शि जुटाई और सवदमन क छाती पर भीषण
हार िकया। उस हार से सवदमन कुछ ण तक हवा म था। वो भिू म पर िगरा। उसके मुख से
र क धारा फूट पड़ी। दुभ , उसक ओर दौड़ा और उसे जकड़ िलया।
दुभ ने अपनी परू ी शि लगायी और सवदमन को परू ा उठाकर हवा म फका। सवदमन
अपने महल के मु य ार से जा टकराया, ार चटक गया।’’
वह भिू म पर िगरकर अ यंत घायल हो गया। उसके शरीर से ती ता से र बह रहा था।
ोिधत दुभ , अपने अ क ओर मुड़ा और यान से एक और तलवार ख च िनकाली। वो
सवदमन क ओर बढ़ा।
भिू म पर िगरा सवदमन अ यंत घायल और र रं िजत था, िक तु उसके उपरांत भी उसने
अपनी परू ी शि जुटाई और भिू म से उठा। उसने र क के हाथ से तलवार छीनी, और दुभ क
ती ा क ।
िक तु उन दोन तलवार के टकराने से पवू ही दुभ पीछे हटने को िववश हो गया।
िवधवा के व म खड़ी उस ी को अपने सम देख दुभ त ध रह गया। वो दुधरा थी, और
उसक तलवार दुभ क गदन पर थी।
दुभ ने उसे देख अपनी तलवार नीचे कर ली। सवदमन यह देख चिकत रह गया। उस
समय दुभ क मनोि थित िकसी िवि बालक सी तीत हो रही थी।
‘‘चले जाओ असुरे र दुभ , म हि तनापुर क र ाकवच दुधरा हँ।’’ दुधरा ने दुभ क
ओर घरू ा।
दुभ उस समय िवि सा तीत हो रहा था। वो कुछ कदम पीछे हटा। उसके उपरांत वो
मुड़कर वन क ओर जाने लगा। उसे यह भी भान नह रहा िक उसके साथ एक अ भी है। वो
पैदल ही वन क ओर बढ़ता चला गया। उसके अ ने उसका पीछा िकया।
इतने म मेघवण, चं केतु और िदि वजय भी वहाँ आ पहँचे। मेघवण का यान दुभ क
ओर गया, िक तु उसने उसे गंभीरता से नह िलया। वन म जाते समय उसने केवल उसक पीठ
देखी।
महल के मु य ार पर पहँचते ही सवदमन क ि थित देखकर वो स न रह गये। मेघवण
त काल ही अपने अ से उतरा और उसक ओर दौड़ा।
‘‘ या तुम ठीक हो सवदमन? यह सब कैसे हआ िम ?’’ मेघवण ने सवदमन के पास
आकर िकया।
‘‘असुरे र दुभ यहाँ आया था।’’
यह सुनकर मेघवण खीझ गया, ‘‘मुझे मा कर दो िम , मेरे पास यह सच ू ना थी, िक तु
िफर भी म िवलंब से आया।’’
‘‘कोई बात नह मेघवण; िन:संदेह वो अब तक सबसे किठन ित ी था, िक तु तीन
हर के यु के उपरांत भी वो मुझे परािजत नह कर पाया।’’ सवदमन ने गिवत होकर कहा।
यह सुनकर मेघवण बहत स न हआ, ‘‘मुझे तुम पर गव है िम ; िन:संदेह तुम आयवत
के े यो ाओं म से एक हो।’’
वह दुधरा, घमू कर वापस जाने लगी।
‘‘ िकए देवी दुधरा!’’ सवदमन, दुधरा क ओर बढ़ा।
‘‘आपको देखकर दुभ क तलवार नीचे य हो गयी?’’ सवदमन ने दुधरा से
िकया।
यह सुनकर मेघवण, चं केतु और िदि वजय भी सकते म आ गये।
‘‘म हि तनापुर का र ाकवच हँ, और यही वो कारण था, िजसके िलए महाराज दु यंत ने
मुझे और मेरी बहन को गोद िलया था।’’ दुधरा ने उ र िदया।
‘‘आप इस संवाद से बच नह सकत ; म आपके उ र से संतु नह हँ... बताइए हम, या
देखा उस दुभ ने आपम, जो वो एक िवि बालक सा तीत होने लगा, और वन म लौट गया?
य िपछले दस वष से आपने वयं को एक क म बंद कर रखा था? हम जानना चाहते ह,
बताइए हम।’’ सवदमन क िज ासा बढ़ती ही जा रही थी।
दुधरा ने उसक ओर देखा। मेघवण, चं केतु और िदि वजय भी उसके उ र क ती ा
कर रहे थे।
दुभ घने वन म चला जा रहा था। उसक बुि ने मानो काम करना बंद कर िदया था।
वो एक प थर पर बैठ गया, और तलवार के सहारे अपना माथा नीचे कर िलया। उसके ने से
अ ु बह रहे थे। वषा क ती बँदू उस पर िगरने लग , िक तु इससे कोई अंतर नह पड़ा। वो एक
बुत क भाँित बैठा था।
* * *
एक परू ा िदन बीत गया। वो अब भी एक बुत बनकर बैठा था। शी ही एक हाथ उसके कंधे
पर आया।
उस यि क ओर देख, दुभ कुछ हद तक चेतना म आया, ‘गु देव!’ वो यि कोई
और नह , भैरवनाथ था।
‘‘ या हआ दुभ , तुम तो हि तनापुर पर आ मण करने आये थे न? तो तुम यहाँ या
कर रहे हो? जाओ और हि तनापुर का िवनाश कर उस पर िवदभ क वजा फहराओ।’’ भैरवनाथ
ने दुभ को आदेश िदया।
‘‘नह गु देव, म ऐसा नह कर सकता।’’ दुभ ने उ र िदया।
‘‘ या? तुम ऐसा नह कर सकते? पंचशि य का वामी महाबली दुभ आज यह कह
रहा है िक वो हि तनापुर को परािजत नह कर सकता? तु ह हो या गया है?’’ भैरवनाथ आ य
म था।
‘‘हि तनापुर के पास एक ऐसा र ाकवच है, िजसे म कभी भेद नह सकता।’’
‘‘र ाकवच? आयावत म ऐसा कोई र ाकवच नह जो तुम न भेद सको दुभ , िफर तुम
िकस र ाकवच क बात कर रहे हो?’’ भैरवनाथ ने आ य से पछ ू ा।
‘‘दुधरा है वो र ाकवच... मने आज उसे दस वष के उपरांत देखा।’’ अ ु क कुछ बँदू
उसके ने िनकल पड़ ।
भैरवनाथ उसका नाम सुनकर स न रह गया।
कथा जारी रहे गी........
या हो रहा है ये? य दुभ क तलवार, दुधरा को देखकर नीची हो गयी? वष के
उपरांत दुधरा को देख, दुभ क मनोि थित िवि सी य हो गयी? वो या कारण है, जो
मेघवण, महाबली अख ड से ेष रखता है?
िदि वजय ने सुनंदा को सुवया कहकर य बुलाया? आिखर सुनंदा और िदि वजय एक
दूसरे के िलये या महसस ू करने लगे ह? या होगा जब चं केतु को इस िवषय म ात होगा?
इन सारे के उ र रण े म् शंख
ृ ला के तीसरे ख ड म ा ह गे।

You might also like