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वास्तु अनुसार गणपति स्थापन

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कहां किस तरह के गणेश स्थापित करना चाहिए और गणेश जी कैसे आपके घर का वास्तु सुधार सकते हैं जानिए।

👉 सख
ु , शांति, समद्धि
ृ की चाह रखने वालों को सफेद रं ग के विनायक की मर्ति
ू लाना चाहिए।साथ ही, घर में इनका
एक स्थाई चित्र भी लगाना चाहिए।

सर्व मंगल की कामना करने वालों के लिए सिंदरू ी रं ग के गणपति की आराधना अनुकूल रहती है । - घर में पूजा के
लिए गणेश जी की शयन या बैठी मुद्रा में हो तो अधिक शुभ होती है । यदि कला या अन्य शिक्षा के प्रयोजन से पूजन
करना हो तो नत्ृ य गणेश की प्रतिमा या तस्वीर का पज
ू न लाभकारी है ।

👉 घर में बैठे हुए और बाएं हाथ के गणेश जी विराजित करना चाहिए। दाएं हाथ की ओर घुमी हुई सूंड वाले गणेशजी
हठी होते हैं और उनकी साधना-आराधना कठीन होती है । वे दे र से भक्तों पर प्रसन्न होते हैं।

👉 कार्यस्थल पर गणेश जी की मूर्ति विराजित कर रहे हों तो खड़े हुए गणेश जी की मूर्ति लगाएं। इससे कार्यस्थल पर
स्फूर्ति और काम करने की उमंग हमेशा बनी रहती है ।

👉 कार्य क्षेत्र पर किसी भी भाग में वक्रतुण्ड की प्रतिमा या चित्र लगाए जा सकते हैं, लेकिन यह ध्यान जरूर रखना
चाहिए कि किसी भी स्थिति में इनका मुंह दक्षिण दिशा या नैऋय कोण में नहीं होना चाहिए।

👉 मंगल मूर्ति को मोदक और उनका वाहन मूषक अतिप्रिय है । इसलिए मूर्ति स्थापित करने से पहले ध्यान रखें कि
मर्ति
ू या चित्र में मोदक या लड्डू और चह
ू ा जरूर होना चाहिए।

👉 गणेश जी की मूर्ति स्थापना भवन या वर्किं ग प्लेस के ब्रह्म स्थान यानी केंद्र में करें । ईशान कोण और पूर्व दिशा
में सुखकर्ता की मूर्ति या चित्र लगाना शुभ रहता है ।
👉 यदि घर के मख्
ु य द्वार पर एकदं त की प्रतिमा या चित्र लगाया गया हो तो उसके दस
ू री तरफ ठीक उसी जगह पर
दोनों गणेशजी की पीठ मिली रहे इस प्रकार से दस
ू री प्रतिमा या चित्र लगाने से वास्तु दोषों का शमन होता है ।

👉 यदि भवन में द्वारवेध हो यानी दरवाजे से जुड़ा किसी भी तरह का वास्तुदोष हो(भवन के द्वार के सामने वक्ष
ृ ,
मंदिर, स्तंभ आदि के होने पर द्वारवेध माना जाता है )। ऐसे में घर के मुख्य द्वार पर गणेश जी की बैठी हुई प्रतिमा
लगानी चाहिए लेकिन उसका आकार 11 अंगल
ु से अधिक नहीं होना चाहिए।

👉 भवन के जिस भाग में वास्तु दोष हो उस स्थान पर घी मिश्रित सिन्दरू से स्वस्तिक दीवार पर बनाने से वास्तु
दोष का प्रभाव कम होता है ।

👉 स्वस्तिक को गणेश जी का रूप माना जाता है । वास्तु शास्त्र भी दोष निवारण के लिए स्वास्तिक को उपयोगी
मानता है । स्वास्तिक वास्तु दोष दरू करने का महामंत्र है । यह ग्रह शान्ति में लाभदायक है । इसलिए घर में किसी भी
तरह का वास्तुदोष होने पर अष्टधातु से बना पिरामिड यंत्र पूर्व की तरफ वाली दीवार पर लगाना चाहिए।

रविवार को पष्ु य नक्षत्र पड़े, तब श्वेतार्क या सफेद मंदार की जड़ के गणेश की स्थापना करनी चाहिए। इसे सर्वार्थ
सिद्धिकारक कहा गया है । इससे पूर्व ही गणेश को अपने यहां रिद्धि-सिद्धि सहित पदार्पण के लिए निमंत्रण दे आना
चाहिए और दस
ू रे दिन, रवि-पष्ु य योग में लाकर घर के ईशान कोण में स्थापना करनी चाहिए।

👉 श्वेतार्क गणेश की प्रतिमा का मुख नैऋत्य में हो तो इष्टलाभ दे ती है । वायव्य मुखी होने पर संपदा का क्षरण,
ईशान मुखी हो तो ध्यान भंग और आग्नेय मुखी होने पर आहार का संकट खड़ा कर सकती है ।

👉 पूजा के लिए गणेश जी की एक ही प्रतिमा हो। गणेश प्रतिमा के पास अन्य कोई गणेश प्रतिमा नहीं रखें। एक
साथ दो गणेश जी रखने पर रिद्धि और सिद्धि नाराज हो जाती हैं।
👉 गणेश को रोजाना दर्वा
ू दल अर्पित करने से इष्टलाभ की प्राप्ति होती है । दर्वा
ू चढ़ाकर समद्धि
ृ की कामना से ऊं गं
गणपतये नम: का पाठ लाभकारी माना जाता है । वैसे भी गणपति विघ्ननाशक तो माने ही गए हैं।

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