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Polity 365 Hindi Vision Ias
Polity 365 Hindi Vision Ias
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ववषय सूची
1. संवध
ै ावनक मु े ....................................................................................................................................... 4
2.1. ववधावयका............................................................................................................................................... 18
2.1.1. संसदीय सवमवतयााँ .............................................................................................................................. 18
2.1.2. अचार सवमवत ................................................................................................................................... 18
2.1.3. ववशेषावधकार का ईल्िंघन .................................................................................................................. 18
2.1.4. दि-प रवतयन ववरोधी कानून ................................................................................................................. 19
2.1.5. राज्य ववधान प रषद् ........................................................................................................................... 20
2.1.6. ववपक्ष का नेता................................................................................................................................... 21
2.1.7. गैर-सरकारी सदस्य के ववधेयक ............................................................................................................. 22
2.1.8. ववधेयक का पगत होना ................................................................................................................... 22
2.1.9. िाभ का पद ..................................................................................................................................... 23
2.2. मंविमंडिीय सवमवतय का पुनगयठन .............................................................................................................. 23
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4. न्यायपाविका....................................................................................................................................... 36
5. वनवायचन ............................................................................................................................................ 44
6. महत्वपूणय ववधान/ववधेयक........................................................................................................................ 49
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9. ववववध .............................................................................................................................................. 77
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1. सं वै धावनक मु े
(Issues Related to Constitution)
1.1. अरक्षण
(Reservation)
कें द्र सरकार ने पदो वत में SC/ST को अरक्षण देने से संबंवधत जरनैि सह बनाम िक्ष्मी नारायण गु ा वाद, 2018 में
ई तम न्यायािय ारा प्रदि वनणयय के पुन विोकन क मांग क है।
हाि ही में, ई तम न्यायािय ने कनायटक राज्य के नुसूवचत जावत और नुसूवचत जनजावत समुदाय के सरकारी कमयचा रय
को पदो वत में अरक्षण प्रदान करने वािे एक कानून ''कनायटक में अरक्षण के अधार पर पदो त सरकारी सेवक तक
प रणामी व र ता का ववस्तार (राज्य क वसववि सेवा में पद के विए) वधवनयम, 2018'' को मान्य ठहराया है।
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ई तम न्यायािय का यह मानना है क:
संववधान के नुच्छेद 16(4) और 16(4-A) के तहत ईपिब्ध प्रावधान सक्षमकारी प्रावधान (enabling provisions) ह। आन
नुच्छेद के तहत राज्य सरकार में वववेकावधकार क शव वनवहत है क वे प रवस्थवतय क मांग के नुरूप अरक्षण के
विए ईपबंध कर सकते ह।
o नुच्छेद 16(4) राज्य को कसी भी वपछडे हुए नाग रक के कसी वगय के पक्ष में , वजनका प्रवतवनवधत्व राज्य क राय में
राज्य के धीन सेवा में पयाय नहीं है, वनयुव य या पद के अरक्षण के विए ईपबंध करने हेतु सश करता है।
o नुच्छेद 16(4-A) राज्य को SC/ST कमयचा रय के विए पदो वत के मामि में अरक्षण के विए ईपबंध करने हेतु
सश करता है।
यह सुस्थावपत वववध है क राज्य को सावयजवनक पद पर वनयुव हेतु अरक्षण प्रदान करने के विए वनदेवशत नहीं कया जा
सकता है। आस वनणयय में यह भी कहा गया क राज्य, पदो वत के मामि में SC और ST के विए अरक्षण प्रदान करने हेतु
बाध्य नहीं है।
1.1.6. नु सू वचत जनजावत श्रे णी में और वधक जनजावतय को शावमि करने के विए ववधे य क
1.2. वधकार
(Rights)
ई तम न्यायािय का विोकन
आंटरनेट शटडाईन (प्रवतबंध) पर:
आंटरनेट के माध्यम से वाक् -स्वातंत्र्य और वभ व -स्वातंत्र्य संववधान के नुच्छेद 19(1)(a) के तहत एक मूि वधकार है।
आंटरनेट पर प्रवतबंध, नुच्छेद 19(2) के तहत शावमि अनुपावतकता के वस ांत (principles of proportionality) के
नुरूप होने चावहए।
यह वस ांत वनवायय रूप से यह व णत करता है क दंड को पराध या ईसक प्रकृ वत के सापेक्ष संगत
(disproportionate) नहीं होना चावहए तथा कसी वधकार का ईपयोग करते समय राज्य के हस्तक्षेप क सीमा वनवाययतः
आसके ारा प्रा कए जाने वािे िक्ष्य के नुपात में होनी चावहए।
आंटरनेट के माध्यम से ापार और वावणज्य क स्वतंिता भी नुच्छेद 19(1)(g) के तहत संवैधावनक रूप से संरवक्षत वधकार
है।
वनव त काि के विए आंटरनेट का वनिंबन नु ेय नहीं है।
CrPC क धारा 144 पर:
धारा 144 के तहत प्रा शव का ईपयोग कसी भी ववचार या वशकायत क वैध वभ व या िोकतांविक वधकार के
ईपयोग को प्रवतबंवधत करने हेतु नहीं कया जा सकता है।
जब धारा 144 को कसी भी अशं कत खतरे के संदभय में अरोवपत कया जाता है, तो वह खतरा अपात (eme genc )
होना चावहए।
धारा 144 के अरोपण क वस्थवत में वनवाययतः व के वधकार और राज्य क चता के मध्य संतुिन स्थावपत कया
जाना चावहए। धारा 144 के तहत शव य का ईपयोग वनवाययतः युव यु और प्रमावणक रीवत से कया जाना चावहए।
PT 365 - राज वस्था
दूरसंचार सेवा का स्थायी वनिंबन (िोक अपात या िोक सुरक्षा) वनयम, 2017 (वनिंबन वनयम)
आन वनयम का वनमायण संचार मंिािय ारा कया गया है और भारतीय तार वधवनयम क धारा 5 (2) ारा आन्हें शव यां
प्रदान क गइ ह। आस धारा में भारत क प्रभुता और खंडता के वहत में संदश
े को ंतरुय या वनरु करने के प्रावधान ह।
यह सरकार को िोक अपात या िोक सुरक्षा के वहत में देश के कसी भी वहस्से में संदश
े के प्रसारण को प्रवतबंवधत करने का
वधकार प्रदान करता है।
आन वनयम के तहत आंटरनेट को वनिंवबत करने वािा कोइ भी अदेश , के वि वनव त ववध के विए ही जारी रह सकता है,
न क वनव त ववध तक।
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1.2.2. सं प वि का वधकार
(Right to Property)
सु िय में क्य ?
ई तम न्यायािय ारा एक यावचका पर सुनवाइ क जा रही थी, वजसमें यावचकाकताय क भूवम को वषय 1967 में वहमाचि प्रदेश
सरकार ारा वधगृहीत कर विया गया था।
ई तम न्यायािय का वनणयय
कसी व को ईसक वनजी संपवि से वववध क सम्यक प्र िया के वबना वंवचत करना मानवावधकार का ईल्िंघन माना
जायेगा।
o नुच्छेद 300A, (संपवि के वधकार से संबवं धत प्रावधान) के नुसार राज्य ारा कसी व को ईसक वनजी संपवि
से वववध क सम्यक प्र िया तथा प्रावधकार ारा ही वंवचत कया जा सकता है न्यथा नहीं।
o आसे वषय 1978 में 44वें संववधान संशोधन ारा मूि वधकार क सूची से हटा दया गया था।
राज्य को पने नाग रक क भूवम को प्रवतकू ि कब्जे के वस ांत (doctrine of adverse possession) के तहत वधग्रवहत
करने क नुमवत नहीं दी जा सकती है।
1.2.3. राजद्रोह
(Sedition)
सु खय में क्य ?
नाग रकता संशोधन वधवनयम (Citizenship Amendment Act) के वखिाफ ववरोध प्रदशयन करने और पा कस्तान के समथयन में
नारे िगाने के अधार पर बेंगिुरु और कश्मीर में हुइ हाविया वगरफ्ता रय ने भारत के राजद्रोह कानून पर बहस को पुनः तेज कर
दया है।
भारत में राजद्रोह कानून के बारे में
भारतीय दंड संवहता (IPC) क धारा 124A के नुसार, राजद्रोह को कसी ऐसी कारयवाइ जो भारत सरकार के प्रवत घृणा या
वमानना ईत्प करती हो थवा ईत्प करने का प्रयास करती हो, के रूप में प रभावषत कया जाता है।
धारा 124 A का मसौदा थॉमस बै बगटन मैकािे ारा तैयार कया गया तथा वषय 1870 में IPC में शावमि कया गया था।
धारा 124 A के तहत दंड गैर-जमानती पराध है।
आस कानून के तहत अरोपी व सरकारी नौकरी के विए अवेदन नहीं कर सकता है। ऐसे व य को पने पासपोटय के
वबना रहना होता है तथा अवश्यकता पडने पर स्वयं को न्यायािय में प्रस्तुत करना होता है।
प्रवस राजद्रोह मुकदमे: वषय 1891 में जोगेंद्र चंद्र बोस पर चिाया गया मुकदमा, वषय 1922 में बाि गंगाधर वतिक पर
चिाए गए तीन राजद्रोह मुकदमे तथा महात्मा गांधी पर यंग आंवडया में प्रकावशत ईनके िेख के विए चिाया गया मुकदमा
कु छ प्रवस राजद्रोह मुकदमे ह।
राजद्रोह वधवनयम के विए अवश्यक तत्व: रोमेश थापा वाद, के दार नाथ सह वाद, कन्हैया कु मार वाद जैसे वववभ वाद में
दए गए वनणयय के नुसार एक राजद्रोही कृ त्य को पुनः प रभावषत कया गया तथा ईसमें वन विवखत अवश्यक तत्व को
सवम्मवित कया गया:
o िोक वस्था का ववघटन,
o कानून का ईल्िंघन कर वववधपूवयक स्थावपत सरकार के पतन का प्रयास करना,
o राज्य या जन सामान्य क सुरक्षा को खतरा पहुाँचाना
रा ीय ल्पसंख्यक शैक्षवणक संस्था अयोग (National Commission for Minority Educational Institutions: NCMEI)
NCMEI, एक य-न्यावयक वनकाय है, जो संपूणय भारत में ल्पसंख्यक शैक्षवणक संस्थान के प्रमाणन को वववनयवमत करता है।
आसका ध्यक्ष ई न्यायािय का एक सेवावनवृि न्यायाधीश होता है और आसके तीन सदस्य को कें द्र सरकार ारा नावमत
कया जाता है।
आसे दीवानी न्यायािय क शव यााँ प्रा ह। आस तरह के मामि में आसे अरंवभक और पीिीय वधका रता प्रा ह, जैसा क
जोसेफ ऑफ़ क्िूनी बनाम पव म बंगाि राज्य वाद में ई तम न्यायािय ारा वनधाय रत कया गया है।
अयोग को वधवनणयय और परामशी शव यााँ प्रा ह।
यह एक ल्पसंख्यक शैक्षवणक संस्थान के वव वव ािय के रूप में प्रमाणन संबंधी वववाद का वनणयय करता है।
PT 365 - राज वस्था
आसे स्वत: सं ान के अधार पर पनी पसंद के वशक्षण संस्थान को स्थावपत करने और प्रशावसत करने संबंधी ल्पसंख्यक के
वधकार से ईन्हें वंवचत करने या ईनके ईल्िंघन से संबंवधत वशकायत क जांच करने क शव प्रा है।
यह ल्पसंख्यक ारा स्थावपत पनी पसंद के संस्थान क ल्पसंख्यक वस्थवत और ववशेषता को बढ़ावा देने तथा संरवक्षत
करने के ईपाय को वन द करता है।
यह नुदान क शत का ईल्िंघन करने वािे संस्थान को प्रदि ल्पसंख्यक दजे को भी वनरस्त कर सकता है।
भाषाइ ल्पसंख्यक संस्थान (Linguistic minority institutions: LMIs) से संबवं धत मु े
संववधान के नुच्छेद 350 (B) के तहत स्थावपत रा ीय भाषाइ ल्पसंख्यक अयोग (NCLM) के पास NCMEI क तुिना
में कम शव यां प्रा ह।
यह के वि भाषाइ ल्पसंख्यक के वधकार के संरक्षण के विए सुरक्षोपाय क समीक्षा कर सकता है और पने वनष्कष के
अधार पर संसद को वसफा रशें प्रस्तुत कर सकता है।
न्य संबवं धत तथ्य
ल्पसंख्यक संस्थान के वववनयमन के सन्दभय में ई तम न्यायािय ने दोहराया क ल्पसंख्यक संस्थान के वहत को प्रभाववत
कए वबना य द ऐसे कदम का ई ेश्य ल्पसंख्यक संस्थान में ईत्कृ ता (वशक्षक क वनयुव के मामिे सवहत) सुवनव त करना
है, तो यह नुमत है ।
न्यायािय ने आस मामिे पर वनणयय देने के िम में टी.एम.ए. पाइ फाईं डेशन बनाम कनायटक राज्य वाद को भी संदभय के तौर पर
प्रस्तुत कया।
आस वाद में, ई तम न्यायािय ने कहा था क नुच्छेद 30 (1) के तहत मूि वधकार न तो वनरपेक्ष ह और न ही वववध से
उपर ह ।
ल्पसंख्यक शैक्षवणक संस्थान (Minority Educational Institutions: MEIs)
रा ीय ल्पसंख्यक शैक्षवणक संस्था अयोग (National Commission for Minority Educational Institutions:
NCMEI) वधवनयम, MEI को ऐसे कॉिेज या शैक्षवणक संस्थान के रूप में प रभावषत करता है जो कसी ल्पसंख्यक या
ल्पसंख्यक ारा स्थावपत और प्रशावसत ह।
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भारतीय संववधान में ल्पसंख्यक शब्द को प रभावषत नहीं कया गया है। ात है क NCMEI वधवनयम में कें द्र सरकार
ारा वधसूवचत समुदाय को ल्पसंख्यक के तौर पर प रभावषत कया गया है।
भारत सरकार क वधसूचना के नुसार, भारत में कु ि 6 वधसूवचत धा मक ल्पसंख्यक समुदाय ह - मुवस्िम, वसख,
इसाइ, बौ , पारसी और जैन।
कें द्र सरकार ारा अज तक कसी भी भाषाइ ल्पसंख्यक को वधसूवचत नहीं कया गया है। आस प्रकार, भाषाइ ल्पसंख्यक
NCMEI के दायरे से बाहर ह।
पािता मापदंड:
o शैक्षवणक संस्थान क स्थापना और प्रशासन ल्पसंख्यक समुदाय ारा कया जाना चावहए।
o य द आसका संचािन कसी रस्ट/पंजीकृ त सोसायटी ारा कया जाता है, तो आसके वधकांश सदस्य ल्पसंख्यक समुदाय
से होने चावहए।
o आसक स्थापना ल्पसंख्यक समुदाय के िाभ के विए होनी चावहए।
ऐसे संस्थान के मान्यता और प्रमाणन के संबंध में कु छ राज्य ने स्वयं के दशा-वनदेश जारी कए ह।
एक बार ल्पसंख्यक वशक्षण संस्थान का दजाय दए जाने के प ात् , अववधक रूप से आसके नवीनीकरण क कोइ अवश्यकता
नहीं होती है।
ल्पसंख्यक शैक्षवणक संस्थान (MEIs) को प्रा वधकार
प्रवतवनवधय पर वनयंिण के संबंध में, ल्पसंख्यक वशक्षण संस्थान को न्य संस्थान क तुिना में त्यवधक शव यां प्रा ह।
MEIs संववधान के नुच्छेद 15 के तहत अरक्षण नीवत के दायरे से बाहर होते ह।
छाि के प्रवेश के मामिे में, MEI में ल्पसंख्यक समुदाय के छाि के विए 50 प्रवतशत तक अरक्षण के प्रावधान कए जा
संवध
ै ावनक नैवतकता/सदाचार (Constitutional Morality)
'नैवतकता' या 'संवैधावनक नैवतकता (सदाचार)' शब्द को संववधान में प रभावषत नहीं कया गया है।
वषय 2018 के सबरीमािा वनणयय में न्यायािय ारा बहुमत से नुच्छेद 25 में व णत सदाचार (morality) को संवैधावनक
नैवतकता के रूप में प रभावषत कया गया था।
ई तम न्यायािय के नुसार, "मूि वधकार के ईल्िंघन क वस्थवत में 'सदाचार' शब्द का तात्पयय स्वाभाववक रूप से
संवध
ै ावनक नैवतकता होता है और न्यायािय ारा पनाया गया कोइ भी दृव कोण, संवैधावनक समानता क वधारणा के
वस ांत एवं बुवनयादी वनयम के नुरूप होना चावहए।"
संबवं धत तथ्य
आंवडयन यंग िॉयसय एसोवसएशन और न्य बनाम के रि राज्य और न्य वाद (2018) में, ई तम न्यायािय क पांच-
न्यायाधीश क पीठ ारा 4:1 के बहुमत से एक ऐवतहावसक वनणयय में मावसक धमय के दौरान मवहिा के सबरीमािा मं दर
में प्रवेश पर अरोवपत दशक पुराने प्रवतबंध को समा कर दया था।
o आस वनणयय में टप्पणी क गइ क सबरीमािा मं दर में मवहिा के प्रवेश पर प्रवतबंध, स्पृश्यता का समथयन करने जैसा
PT 365 - राज वस्था
वनवाययता का वस ांत: " वनवाययता" का वस ांत वषय 1954 में 'वशरुर मठ' मामिे में ई तम न्यायािय क सात न्यायाधीश क
पीठ ारा प्रवतपा दत कया गया था, वजसके तहत न्यायािय ने वनणयय दया था क "धमय" शब्द में एक धमय के विए वनवायय
सभी "संस्कार और प्रथाएं" शावमि ह गी और एक धमय के विए वनवायय तथा गैर- वनवायय प्रथा को वनधाय रत करने का
ईिरदावयत्व ई तम न्यायािय का होगा।
1.3 रा पवत
(President)
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भारत में रा पवत पर महावभयोग चिाने क प्र िया ( नुच्छेद मे रका में रा पवत पर महावभयोग चिाने क प्र िया
61)
महावभयोग के प्रस्ताव को संसद के कसी भी सदन में महावभयोग क काययवाही के वि हाईस ऑफ रप्रेजटें े टहस
पुरःस्थावपत कया जा सकता है। (वन सदन) में अरंभ क जा सकता है।
आन अरोप पर सदन (वजस सदन ने अरोप िगाए) के एक- एक बार जब प्रस्ताव साधारण बहुमत से पा रत हो जाता
चौथाइ सदस्य ारा हस्ताक्षर कए जाने चावहए और है, तो प्र िया का परीक्षण कया जाता है।
रा पवत को 14 दन का नो टस दया जाना चावहए।
महावभयोग प्रस्ताव को ईस सदन क कु ि सदस्यता के दो- तत्प ात, सीनेट (ई सदन) न्यायािय के रूप में कायय
वतहाइ बहुमत से पा रत होने के प ात्, ईसे दूसरे सदन में करती है जहााँ दोन पाटी पना पक्ष (साक्ष्य) प्रस्तुत करते
भेजा जाता है, वजसे आन अरोप क जााँच करनी होती है। ह।
य द दूसरा सदन आन अरोप को सही पाता है और आस सुनवाइ के प ात् य द सीनेट आन अरोप क पुव
महावभयोग प्रस्ताव को कु ि सदस्यता के दो-वतहाइ बहुमत करने के साथ-साथ महावभयोग प्रस्ताव को दो-वतहाइ
से पा रत करता है, तो रा पवत को प्रस्ताव पा रत होने क बहुमत से पा रत कर देती है तो रा पवत को पद से हटा
दया जाता है।
o य द दोन प्र का ईिर स्वीकारात्मक है, तो के वि तभी नौवीं नुसूची में शावमि कए गए कानून को संवैधावनक
घोवषत कया जा सकता है।
एक पंजीकृ त OCI काडयधारक व को भारत में अगमन पर कसी भी ववध तक रहने हेतु ववदेशी क्षेिीय पं जीकरण
वधकारी (Foreign Regional Registration Officer) या ववदेशी पंजीकरण वधकारी (Foreign Registration
Officer) के समक्ष पंजीकरण से छू ट प्रदान क गइ है।
नुच्छेद ाख्या
नुच्छेद कसी मंिी ारा पना पदग्रहण करने से पहिे, राज्यपाि तीसरी नुसूची में आस प्रायोजन के विए दए
164(3) गए प्रारूप के नुसार पद और गोपनीयता क शपथ दिाएगा।
संववधान क तीसरी नुसूची में शपथ का ईल्िेख है।
नुसूची के नुसार शपथकताय -इ र के नाम पर, या सत्यवन ा के अधार पर शपथ िेते ह।
नुच्छेद 340 यह रा पवत को वपछडे वग क दशा के न्वेषण के विए अयोग क वनयुव का वधकार प्रदान करता
है।
आसके ंतगयत, 2017 में न्य वपछडा वगय (OBC) के ईप-वगीकरण क वनगरानी हेतु न्यायमू त जी.
रोवहणी क ध्यक्षता में एक अयोग का गठन कया गया था।
नुच्छेद 371 यह भारतीय संववधान का 21वां भाग है तथा यह देश के कु छ राज्य के विए स्थायी, संिमणकािीन तथा
से 371(J) ववशेष प्रावधान का ईपबंध करता है।
जब क नुच्छेद 371 संववधान के अरंभ होने के समय आसका वहस्सा था; तथा नुच्छेद 371(A) से
371(J) को बाद में ंतःस्थावपत कया गया है।
नुच्छेद 371 गुजरात तथा महारा , 371A- नागािड, 371B सम, 371C-मवणपुर, 371D&E- अन्ध्र
प्रदेश, 371F-वस म, 371G-वमजोरम, 371H- रुणाचि प्रदेश, 371I-गोवा, 371J-कनायटक से संबंवधत
है।
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PT 365 - राज वस्था
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2.1. ववधावयका
(Legislature)
(Parliamentary Committees)
सु िय में क्य ?
संसद के ववगत सि में, सभी ववधेयक को संसदीय स्थायी सवमवतय क संवीक्षा के वबना ही पा रत कर दया गया था।
संसदीय सवमवतय के बारे में
संसदीय सवमवतयां दो प्रकार क होती ह: :
स्थायी सवमवतयााँ: प्रकृ वत में स्थायी; प्रत्येक वषय सृवजत; सतत रूप से काम करती ह।
तदथय सवमवतयााँ: प्रकृ वत में स्थायी; स पे गए कायय के समा हो जाने के बाद कायय करना बंद कर देती ह।
संववधान वववभ स्थान पर आन सवमवतय का ईल्िेख करता है, िे कन ईनक संरचना, काययकाि अ द के बारे में कोइ ववशेष
प्रावधान नहीं करता है। आन सभी मामि का वनधायरण दोन सदन के वनयम ारा कया जाता है।
ये
o ववस्तृत संवीक्षा और सरकार क जवाबदेही को बनाए रखती ह।
(Ethics Committee)
सु िय में क्य ?
अचार सवमवत ारा िोकसभा सदस्य हेतु एक अचार संवहता वन मत करने का वनणयय विया गया।
अचार सवमवत के बारे में
आस सवमवत क स्थापना राज्य सभा में 1997 तथा िोक सभा में 2000 में क गइ थी। यह सवमवत सांसद हेतु अचार संवहता
को प्रव तत करती है। यह दु यवहार संबंधी मामि क जांच करती है और ईपयु काययवाही क नुशंसा करती है। यह कसी
प्रकरण में स्वतः-सं ान िेते हुए भी जांच-पडताि भी कर सकती है।
आस सवमवत में िोक सभा के 15 तथा राज्य सभा के 10 सदस्य शावमि होते ह।
राज्य सभा सदस्य के विए अचार संवहता वषय 2005 में वन मत क गइ थीl
(Breach of Privilege)
सु िय में क्य ?
हाि ही में, राफे ि िडाकू जेट ववमान सौदे के संबंध में प्रधानमंिी और रक्षा मंिी के ववरु ववशेषावधकार ईल्िंघन प्रस्ताव
प्रस्तुत कया गया था।
ववशेषावधकार के प्रकार
सामूवहक ववशेषावधकार
सदन क काययवाही से बाहरी व य को पव जत करना। ववधावयका क गु बैठक अयोवजत करना।
प्रेस को संसदीय काययवाही क सही रपोटय प्रकावशत करने के विए स्वतंिता प्रा है। िे कन यह गु बैठक के मामिे में
ईपिब्ध नहीं है।
के वि संसद ही पनी काययवाही को वनयंवित करने के विए वनयम बना सकती है।
सदन क काययवाही (भाषण, मतदान आत्या द) क जांच करने से न्यायािय को प्रवतबंवधत कया गया है।
व गत
सि के दौरान तथा सि के 40 दन पूवय और 40 दन प ात् तक वगरफ्तारी से सुरक्षा। यह सुरक्षा के वि वसववि मामि में
ईपिब्ध है,अपरावधक मामि में नहीं।
संसद में दए गए कसी भी व के विए न्यायािय क काययवाही से ईन्मुव ।
सदन के सि में होने के दौरान साक्षी के रूप में ईपवस्थवत से ईन्मुव ।
ई श्े य ह:
o सदन में वाक् एवं वभ व क स्वतंिता क रक्षा और सदन में कए गए वहार के संबंध में न्यावयक मुकदमेबाजी से
सुरक्षा।
o भाषण, मुद्रण या प्रकाशन के माध्यम से कसी भी पमान के ववरु रक्षा।
o यह सुवनव त करना क ईनका कायय संचािन नावश्यक प्रभाव, दबाव या जबरदस्ती के वबना हो।
o संसद क संप्रभुता को सुवनव त करना।
ववशेषावधकार प्रस्ताव कसी सदस्य ारा तब िाया जाता है जब ईसे िगता है क कसी मंिी ने कसी मामिे के तथ्य को
वछपाकर थवा गित या ववकृ त तथ्य प्रदान कर सदन थवा ईसके एक या एक से वधक सदस्य के ववशेषावधकार का हनन
कया है।
ववशेषावधकार सवमवत
संसद / राज्य ववधानमंडि के प्रत्येक सदन में ववशेषावधकार संबंधी स्थायी सवमवत का प्रावधान कया गया है।
िोकसभा और राज्यसभा क ववशेषावधकार संबंधी स्थायी सवमवत में िमशः 15 और 10 सदस्य शावमि होते ह वजन्हें िमशः
ध्यक्ष और सभापवत ारा नावमत कया जाता है।
आसका कायय ववशेषावधकार के ईल्िंघन संबंधी मामि क जांच करना और ध्यक्ष/सभापवत को ईवचत कारयवाइ क
वसफा रश करना है।
(Anti-Defection Law)
सु िय में क्य ?
हाि ही में, ई तम न्यायािय ने कनायटक ववधानसभा के 17 बागी ववधायक को वनरहय घोवषत करने के वहााँ के ववधानसभा के पूवय
ध्यक्ष के वनणयय को मान्य ठहराया, िे कन न्यायािय ने बागी ववधायक को ईपचुनाव िडने क नुमवत प्रदान कर दी।
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हाि ही में, ई तम न्यायािय ारा संसद को संववधान संशोधन करने के विए कहा गया ता क ववधानसभा ध्यक्ष ारा
पने ववशेषावधकार का ईपयोग करके दिबदि ववरोधी कानून के तहत योग्य ठहराए जाने का वनणयय िेने क नन्य शव
को समा कया जा सके ।
दि प रवतयन ववरोधी कानून
दसवीं नुसच
ू ी संववधान में 52वें संववधान संशोधन वधवनयम, 1985 ारा ंतःस्थावपत क गइ थी।
यह ववधावयका के पीठासीन वधकारी ारा ववधायक को दि प रवतयन के अधार पर वनरहय घोवषत करने हेतु प्र िया को
ईपबंवधत करती है।
o ध्यक्ष के पास न तो एक व क वनरहयता क ववध तय करने (वजसके विए ईसे वनरहय घोवषत कया गया है) और न
ही ईसे चुनाव िडने से प्रवतबंवधत करने क शव है।
आस कानून के नुसार, संसद थवा राज्य ववधान-मंडि के कसी भी सदस्य को वनर हत कया जा सकता है, य द:
o वह पने राजनीवतक दि क सदस्यता का स्वेच्छा से त्याग करता है;
o सदन में मतदान के दौरान राजनीवतक दि के नेतत्ृ व के वनदेश क वहेिना करता है { पने दि के वहहप (सचेतक) के
अदेश के ववरु सदन में मतदान करता है या मतदान से नुपवस्थत रहता है;}
o यह ईन स्वतंि सदस्य थवा मनोनीत सदस्य , जो कसी राजनीवतक दि क सदस्यता ग्रहण कर िेते ह, पर भी िागू
होता है।
यह कानून संसद और राज्य ववधान-मंडि दोन पर िागू होता है।
कानून के तहत पवाद: ववधायक कु छ प रवस्थवतय में योग्यता के जोवखम के वबना पना दि प रवतयन कर सकते ह।
o यह कानून कसी दि को कसी न्य दि के साथ वविय करने क नुमवत प्रदान करता है बशते क कम से कम दो-वतहाइ
ववधायक वविय के पक्ष में ह ।
वववन य हेतु पीठासीन यह कानून वनरहयता संबंधी एक यावचका पर वनणयय िेने हेतु पीठासीन वधकारी के विए
वधकारी के विए समय कोइ समयाववध वन द नहीं करता है। ई तम न्यायािय ने राज्य ववधानसभा ध्यक्ष से
सीमा: योग्यता यावचका पर चार स ाह में वनणयय देने को कहा।
आस प्रकार के वववश संकल्प को राज्य ववधानसभा ारा ववशेष बहुमत थायत ववधानसभा क कु ि सदस्य संख्या के बहुमत
ारा तथा ईपवस्थत और मत देने वािे सदस्य क संख्या के कम से कम दो-वतहाइ बहुमत ारा पा रत कया जाना चावहए।
संसदीय वववध ारा संववधान के नुच्छेद 168 (1) (a) में संशोधन कया जा सकता है, वजसमें दो सदन वािे राज्य के नाम
शावमि ह।
संसद क यह वववध नुच्छेद 368 के प्रयोजन हेतु संववधान का संशोधन नहीं मानी जाएगी और आसे एक सामान्य ववधान
ववधान प रषद् वािे राज्य: वतयमान में 6 राज्य , नामतः अंध्र प्रदेश, तेिंगाना, ईिर प्रदेश, वबहार, महारा और कनायटक में
गया हो, ववधानसभा ारा स्वीकृ त कर दया जाए, तो वह ववधेयक समा हो जाता है।
PT 365 - राज वस्था
o संववधान संशोधन ववधेयक में प रषद प्रभावी रूप से कु छ नहीं कर सकती है। आस मामिे में भी ववधानसभा ही वभभावी
रहती है।
2.1.6. ववपक्ष का ने ता
(Leader of Opposition)
सु िय में क्य ?
हाि ही के िोकसभा चुनाव में कोइ भी राजनीवतक दि ववपक्ष के नेता के पद क योग्यता के विए अवश्यक, सदन के कु ि सदस्य
हािां क, ववपक्ष के नेता को मान्यता देते समय ध्यक्ष को 1956 में जारी िोकसभा ध्यक्ष के दशावनदेश का पािन करना
चावहए।
वनदेश के नुसार, य द सदन में सबसे बडी ववपक्षी पाटी के सदस्य क संख्या सदन क बैठक के विए अवश्यक गणपू त
थायत सदन के कु ि सदस्य संख्या के 1/10 के बराबर नहीं है तो िोकसभा ध्यक्ष ई पाटी के कसी सदस्य को ववपक्ष के
ववपक्ष के नेता को कै वबनेट मंिी का दजाय प्रा होता है और वह ईन पैनि का सदस्य होता है जो CVC, CBI के वनदेशक,
िोकपाि जैसे वैधावनक और संवैधावनक पद के सदस्य क वनयु करते ह।
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(Lapsing of Bills)
सु िय में क्य ?
हाि ही में, ईपरा पवत ने ईस प्रावधान पर पुन वचार करने का अह्वान कया जो िोकसभा में समय क बबायदी करने वािे
ववधेयक के पगत को स्वचावित बनाता है।
पगत ववधेयक के विए प्रावधान
नुछेद 107 ववधेयक के पुरःस्थापन और पा रत कये जाने के संबंध में ईपबंध करता है।
ईपयुय नुछेद के नुसार िोक सभा के ववघटन पर ववधेयक का पगत होना:
िोकसभा में प्रारंभ और ववचारणीय ववधेयक पगत हो जाएगा।
राज्यसभा ारा प्रारंभ और पा रत ववधेयक जो िोकसभा में ववचाराधीन ह, पगत हो जाएगा।
िोकसभा ारा प्रारंभ और पा रत ववधेयक जो राज्यसभा में ववचाराधीन ह, पगत हो जाएगा।
राज्यसभा ारा प्रारंभ कोइ ववधेयक वजसे िोकसभा ारा संशोधन सवहत िौटा दया गया हो और वह
राज्यसभा में ववचाराधीन हो, पगत हो जाएगा।
2.1.9. िाभ का पद
(Office of Profit)
सु िय में क्य ?
हाि ही में, िाभ का पद धारण करने के कारण रा पवत ारा दल्िी ववधानसभा के ववधायक को योग्य घोवषत कर दया गया।
िाभ का पद क्या है?
नुच्छेद 102(1)(a) एवं 191(1)(a) में िाभ के पद के अधार पर वनरहयता का ईल्िेख है, कतु िाभ के पद को न तो
संववधान में प रभावषत कया गया है और न ही जन-प्रवतवनवधत्व वधवनयम में।
परंतु आसे न तो संववधान में और न ही िोक प्रवतवनवधत्व वधवनयम, 1951 के त
ं गयत प रभावषत कया गया है।
प्र त
ु बारदोिाइ बनाम स्व रॉय वाद (2001) में ई तम न्यायािय ने िाभ के पद क जांच के विए वन विवखत प्र को
रेखां कत कया:
PT 365 - राज वस्था
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प्रकायय: ये मंविमंडि के त्यवधक काययभार को कम करने हेतु एक प्रकार के संगठनात्मक ईपकरण ह। ये सवमवतयां नीवतगत
मु क गहन समीक्षा और प्रभावी समन्वय क सुववधा प्रदान करती ह।
मंविमंडि आनके ारा विए गए वनणयय क समीक्षा कर सकता है।
संरचना: सामान्यतः आनमें के वि कै वबनेट मंिी शावमि होते ह। हािां क, कै वबनेट मंविय के वत र न्य मंविय को भी
आनका सदस्य बनाया जा सकता है। आनमें न के वि संबंवधत मामि के प्रभारी मंिी शावमि होते ह बवल्क न्य व र मंिी भी
शावमि होते ह। आनके सदस्य क संख्या तीन से िेकर अठ तक हो सकती है।
सवमवतय के प्रमुख: वधकांश सवमवतय का ध्यक्ष प्रधानमंिी होता है। कभी-कभी न्य कै वबनेट मंिी भी ध्यक्ष के रुप में
कायय करते ह। कन्तु, य द प्रधानमंिी कसी सवमवत का सदस्य होता है, तो ईसके ारा ही ईस सवमवत क ध्यक्षता क जाती
है।
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अयोग यह सुवनव त करेगा क ईसे स पे गए वववश क्षेि संबंधी अ थक रणनीवत और नीवत में रा ीय सुरक्षा के वहत को
समावहत कया गया है।
समाज के ईन वग पर ववशेष ध्यान के वन्द्रत करना वजन्हें अ थक प्रगवत के पयाय िाभ प्रा नहीं हुए ह।
सहकारी संघवाद के प्रवत प्रवतब ता के माध्यम से
नाग रक सहभावगता को प्रोत्साहन;
वसर तक समतावादी पहुंच;
सहभावगतापूणय एवं स्वीकायय शासन; तथा
प्रौ ोवगक के प्रयोग को बढ़ावा देना।
o अकांक्षी वजिा काययिम (ADP) : सबका साथ, सबका ववकास ववजन को ियावन्वत करना तथा यह सुवनव त करना
क भारत क ववकास प्र िया समावेशी बनी रहे।
दीघयकाविक दृव कोण के साथ प्रमाण अधा रत नीवत-वनमायण को सक्षम बनाना तथा ईत्पादक क्षमता में वृव करना
o तीन वषीय रा ीय कायय एजेंडा तथा वभनव भारत @75 के विए काययनीवत (S rategy for New India @75) जो
भारत क प रव तत वास्तववकता के साथ ववकासात्मक रणनीवत के बेहतर संरेखण को प्रोत्सावहत करेंगे।
o के न्द्रीय सावयजवनक क्षेिक ई म (CPSEs) में सुधार।
o संतुवित क्षेिीय ववकास।
पूव िर को ववकास सहायता।
पूव िर के विए नीवत फोरम।
o स्वास्थ्य एवं पोषण संबंधी क्षेि में सुधार।
पोषण (POSHAN) वभयान का शुभारंभ।
रा ीय पोषण रणनीवत का ववकास।
औषध (फामायस्यू टकल्स) क्षेि में सुधार।
o उजाय क्षेि में सुधार।
नीवत अयोग ारा आंवडयाज रन्यूएबि आिेवक्रवसटी रोडमैप 2030 संबंधी एक रपोटय को तैयार और प्रकावशत
कया गया है।
रा ीय खवनज नीवत, 2018 में संशोधन हेतु रोडमैप।
ई मशीिता और नवाचारी पा रतंि को बढ़ावा देना।
o टि आनोवेशन वमशन ने भारत में नवाचारी पा रतंि में सुधार करने हेतु पहिे से ही सराहनीय कायय कया है।
ईल्िेखनीय है क टि आनोवेशन वमशन के ंतगयत भारत में टि टक रग प्रयोगशािा का वनमायण कया गया है।
o वैव क ई वमता वशखर सम्मेिन, 2017: वुमेन फस्टय, प्रॉस्पे रटी फॉर ऑि'
o मवहिा ई वमता मंच (WEP)
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राज्य को प्रदि ववकल्प में वृव : राज्य को ईनके ारा कायायवन्वत क जाने वािी वैकवल्पक योजना के चयन का ववकल्प
प्रदान कया गया है।
वनवधय के ईपयोग से संबवं धत कठोरता में कमी: प्रत्येक CSS के विए कये जाने वािे समग्र वा षक अबंटन में फ्िेक्सी-फं ्स
(िोचशीि वनवध) क रावश में वृव क गइ है। राज्य और संघ शावसत प्रदेश हेतु आसे 10% से बढ़ाकर िमशः 25% और
30% कर दया गया है।
CSS का मूल्यांकन: CSS के नुमोदन को ववि अयोग क समयाववध के साथ संब (को-ट मनस) कया जा रहा है। नीवत
अयोग सभी CSSs के मूल्यांकन प्र िया में शावमि है।
भाषा के संबध
ं में न्य संवध
ै ावनक प्रावधान
नुच्छेद 29 प्रत्येक भारतीय को पनी वववश भाषा, विवप और संस्कृ वत को संरवक्षत रखने का वधकार प्रदान करता है।
नुच्छेद 30 धमय या भाषा पर अधा रत सभी ल्पसंख्यक-वग को पनी रुवच क वशक्षा संस्था क स्थापना और
प्रशासन का वधकार वधकार प्रदान करता है।
नुच्छेद 350A: प्राथवमक स्तर पर मातृभाषा में वशक्षा क सुववधाएं
नुच्छेद 350B: भाषाइ ल्पसंख्यक-वग के विए ववशेष वधकारी
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NPE, 2019 में आसे पुनः प्रस्तुत कया गया, परंतु बाद में आस ववचार को प्रारूप नीवत से हटा दया गया।
ात है क राज्य नेक दशक से व -भाषा सूि का नुपािन कर रहे ह, वजसके ंतगयत वव ािय में के वि ंग्रेजी और
एक क्षेिीय भाषा वनवायय है।
सु िय में क्य ?
हाि ही में, के रि और छिीसगढ़ ने भारतीय संववधान के नुच्छेद 131 के तहत नाग रकता संशोधन वधवनयम (के रि) और
रा ीय न्वेषण वभकरण वधवनयम (छिीसगढ़) जैसे वववभ कें द्रीय कानून क संवैधावनक वैधता को चुनौती देते हुए ई तम
न्यायािय में यावचका दायर क है।
नुच्छेद 131 के बारे में
संववधान का नुच्छेद 131 ई तम न्यायािय क अरंवभक वधका रता से संबंवधत है। आसके तहत ई तम न्यायािय भारत
सरकार और एक या वधक राज्य के मध्य; एक र भारत सरकार तथा कसी राज्य या राज्य और दूसरी र एक या
वधक न्य राज्य के मध्य; एवं दो या वधक राज्य के मध्य के कसी वववाद का वनस्तारण करता है।
आसका तात्पयय यह भी है क कोइ भी न्य न्यायािय आस तरह के वववाद क सुनवाइ नहीं कर सकता है।
नुच्छेद 131 के तहत कसी मामिे को दायर करने के विए ईस मामिे को कें द्र और राज्य के मध्य का वववाद होना चावहए
और ईसमें अवश्यक रूप से वववध का या तथ्य का ऐसा कोइ प्र ंत नवहत होना चावहए वजस पर कें द्र और राज्य के वववधक
वचनबंध, सनद या वैसी ही न्य विखत से ईत्प हुअ है जो आस संववधान के प्रारंभ होने से पहिे क गइ थी और ऐसे
प्रारंभ के प ात् प्रवतयन में है या जो यह ईपबंध करती है क ई वधका रता का ववस्तार ऐसे वववाद पर नहीं होगा;
o कसी ंतरायज्यीय (inter-state) नदी या नदी-दून के या ईसमें जि के प्रयोग, ववतरण या वनयंिण से संबंवधत वववाद;
ईपरा पवत के वनवायचन से संबंवधत वववाद , ऐसे मामिे वजसमें कें द्र एवं राज्य दोन शावमि ह और मूि वधकार के ईल्िंघन
से संबंवधत मामि का समाधान करने क नन्य शव है।
रट वधका रता: ई तम न्यायािय को कसी पीवडत नाग रक के मूि वधकार के प्रवतयन हेतु बंदी प्रत्यक्षीकरण (habeas
corpus), परमादेश (mandamus), प्रवतषेध (prohibition), वधकारपृच्छा (quo warranto) और ईत्प्रेषण (certiorari)
रट जारी करने का वधकार है।
संबवं धत तथ्य:
नुच्छेद 256 यह वन द करता है क प्रत्येक राज्य क काययपाविका शव का प्रयोग आस प्रकार से कया जाएगा वजससे संसद
ारा बनाइ गइ वववधय का और ऐसी वव मान वववधय का, जो ईस राज्य में िागू ह, का नुपािन सुवनव त रहे।
आसमें यह भी वन द कया गया है क संघ क काययपाविका शव का ववस्तार कसी राज्य को ऐसे वनदेश देने तक होगा जो
भारत सरकार को ईस प्रयोजन के विए अवश्यक प्रतीत हो।
संबवं धत तथ्य
रा पवत ने जम्मू और कश्मीर राज्य सरकार क सहमवत से संववधान (जम्मू और कश्मीर में िागू) अदेश, 2019 {The
Constitution (Application to Jammu and Kashmir) Order, 2019} प्रख्यावपत कया है। आस अदेश में यह
ईवल्िवखत है क भारतीय संववधान के सभी प्रावधान राज्य में प्रवतयनीय ह गे। आसका तात्पयय यह है क वे सभी प्रावधान जो
जम्मू और कश्मीर हेतु एक पृथक संववधान के अधार का वनमायण करते ह, ईन्हें वनरस्त कर दया गया है। आस प्रकार, नुच्छेद
35A स्वत: वनरवसत हो गया है।
आसके साथ ही, रा पवत के ई अदेश के प्रभाव से ुत्प प्रावधकार का प्रयोग करते हुए संसद ारा एक सांवववधक संकल्प
को भी नुमो दत कया गया, वजसमें यह नुशंसा क गइ क रा पवत नुच्छेद 370 (के वधकांश प्रावधान) को वनष्प्रभावी
(abrogate) करते ह।
साथ ही, संसद ारा जम्मू और कश्मीर पुनगयठन वधवनयम, 2019 (Jammu and Kashmir Reorganization Act, 2019)
को भी पा रत कया गया है। आसके ारा जम्मू और कश्मीर को दो संघ शावसत प्रदेश में ववभावजत कर दया गया है, यथा- जम्मू
और कश्मीर वडवीजन (ववधानसभा यु ) तथा ि ाख (ववधानसभा रवहत)।
नुच्छेद 370 और 35A का वनरसन कै से संभव हुअ?
रा पवत ने संववधान के नुच्छेद 370 (1) के त
ं गयत एक रा पतीय अदेश (presidential order) जारी कया था। यह खंड
रा पवत को जम्मू और कश्मीर सरकार क सहमवत से राज्य में प्रवतयनीय मामि को वन द करने क शव प्रदान करता है।
आस अदेश ारा नुच्छेद 367 में भी संशोधन कया गया। नुच्छेद 367 में कु छ प्रावधान के पठन थवा ईनक ाख्या
संबंधी रीवत का समावेश है। संशोवधत नुच्छेद यह घोषणा करता है क नुच्छेद 370 (3) में ईवल्िवखत राज्य क संववधान
सभा वभ व को राज्य क ववधान सभा पढ़ा जाएगा। ईल्िेखनीय है क, नुच्छेद 370 (3) में यह प्रावधावनत था क
नुच्छेद 370 को राज्य क ववधान सभा क सहमवत से ही संशोवधत कया जाएगा। हािां क, आस संशोधन के कारण ब आसे
राज्य ववधान-मंडि क नुशंसा के अधार पर भी सम्पा दत कया जा सकता है।
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दूसरे शब्द में , सरकार ने संववधान के एक प्रावधान ( नुच्छेद 367) में संशोधन करने हेतु नुच्छेद 370 (1) ारा प्रदि
शव य का प्रयोग कया तथा तत्प ात नुच्छेद 370 (3) को संशोवधत कया गया। प रणामस्वरूप यह सांवववधक संकल्प
(भारतीय संववधान के नुच्छेद 370 के वनरसन हेतु संकल्प) को प्रस्तुत करने का कारक बना। चूाँ क, जम्मू और कश्मीर
रा पवत शासन के धीन था, आसविए राज्यपाि क सहमवत को ही जम्मू और कश्मीर सरकार क सहमवत स्वीकार कर
विया गया।
o आस प रवतयन का प्रमुख ई ेश्य न्य भारतीय राज्य से संबंवधत िोग से मूि वनवावसय (indigenous people) के
वहत क सुरक्षा कर स्थानीय चता का समाधान करना था।
ILP को संबंवधत राज्य सरकार ारा जारी कया जाता है।
o आसे ऑनिाआन या प्रत्यक्ष अवेदन के ईपरांत प्रा कया जा सकता है।
ILP पर यािा क वतवथ थायत् ववध वनधाय रत करने के साथ ही राज्य में ईन ववशेष क्षेि को भी वन द कया जाता है, जहााँ
ILP धारक यािा कर सकता है।
3.7.पूव िर प रषद
(North Eastern Council)
सु खय में क्य ?
हाि ही में, सरकार ारा पूव िर प रषद (NECs) के बजट का 30% वंवचत क्षेि के ववकास हेतु अबं टत करने का वनणयय विया
गया।
पूव िर प रषद क भूवमका और काययप्रणािी
यह पूव िर प रषद वधवनयम, 1971 (वषय 2002 में संशोवधत) के ंतगयत स्थावपत एक सांवववधक सिाहकार वनकाय है।
पूव िर क्षेि में 8 के राज्य रुणाचि प्रदेश , सम, मवणपुर, मेघािय, वमजोरम, नागािड, वस म और विपुरा के अ थक
और सामावजक ववकास के विए नोडि एजेंसी है।
आसक संगठनात्मक संरचना में वन विवखत शावमि ह-
o पदेन सभापवत - कें द्रीय गृह मंिी [पूवय में यह DoNER (पूव िर क्षेि ववकास) मंिी था]
o ईपाध्यक्ष - राज्य मंिी (स्वतंि प्रभार), DoNER मंिािय
o सदस्य - सभी अठ राज्य के राज्यपाि और मुख्यमंिी तथा रा पवत ारा नावमत 3 सदस्य।
PT 365 - राज वस्था
यह पूव िर क्षेि के विए क्षेिीय योजना वनकाय के रूप में कायय करने हेतु वधदेवशत है।
o क्षेिीय योजना को तैयार करते समय यह प रषद दो या वधक राज्य को िाभ पहुंचाने वािी योजना और
प रयोजना को प्राथवमकता प्रदान करेगी। प रषद वस म के मामिे में ववशेष प रयोजनाएं और योजनाएं बनाएगी।
3.8. त
ं र-राज्य प रषद
(Inter State Council: ISC)
सु खय में क्य ?
हाि ही में, त
ं र-राज्य प रषद (ISC) को पुनगय ठत कया गया है।
ISC के बारे में
संववधान का नुच्छेद 263 ंतरायज्यीय प रषद (ISC) के गठन का प्रावधान करता है।
आसका गठन सरका रया अयोग क नुशस
ं ा पर वषय 1990 में रा पवत के अदेश से कया गया।
यह ंतरायज्यीय, कें द्र-राज्य तथा कें द्र व संघ राज्य क्षेि से संबंवधत मु के विए एक परामशयदािी वनकाय है।
आसका ई ेश्य सम्बंवधत मु क जांच , चचाय और ईन पर सिाह प्रदान करने के माध्यम से आनके मध्य समन्वय को बढ़ावा
प्रदान करना है।
यह एक स्थायी संवध
ै ावनक वनकाय नहीं है, कतु य द रा पवत को प्रतीत हो क ऐसी प रषद का गठन सावयजवनक वहत में है तो
आसे कभी भी स्थावपत कया जा सकता है।
संगठन क संरचना में शावमि ह:
o ध्यक्ष के रूप में प्रधानमंिी
o सभी राज्य के मुख्यमंिी
o ववधानसभा वािे संघ राज्य क्षेि के मुख्यमंिी
o ईन संघ राज्य क्षेि के प्रशासक जहां ववधानसभा नहीं है
o रा पवत शासन के धीन राज्य के राज्यपाि
o प्रधानमंिी ारा नावमत छह कें द्रीय कै वबनेट मंिी (गृहमंिी सवहत)।
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वषय 1990 के रा पवत अदेश का दो बार संशोधन कया गया। आन संशोधन के माध्यम से िमशः ये प्रावधान कये गये क
राज्य के रा पवत शासन के धीन होने पर राज्य का राज्यपाि प रषद् क बैठक में भाग िेगा तथा न्य कें द्रीय मंविय में से
स्थायी अमंवित का नामांकन ध्यक्ष ारा कया जाएगा।
वषय 1996 में प रषद के ववचाराथय मामि पर सतत परामशय और वनपटान हेतु प रषद क एक स्थायी सवमवत क स्थापना क
गइ। आसमें वन विवखत सदस्य शावमि होते ह:
o ध्यक्ष के रूप में कें द्रीय गृह मंिी
o पांच कें द्रीय कै वबनेट मंिी
o नौ मुख्यमंिी
छठी नुसूची में ईिर-पूवय के चार राज्य - सम, मेघािय, विपुरा और वमजोरम के जनजातीय क्षेि के प्रशासन के संबंध में
ववशेष ईपबंध शावमि ह।
छठी नुसच ू ी के प्रावधान
स्वायि वजिे: आन राज्य में जनजातीय क्षेि को स्वायि वजि के रूप में ग ठत कया गया है। प्रत्येक वजिे में एक-एक स्वायि
वजिा प रषद और प्रत्येक स्वायि क्षेि में 30 सदस्य वािी एक पृथक क्षेिीय प रषद क स्थापना का प्रावधान कया गया है।
वतयमान समय में ऐसी 10 प रषदें ह।
ववधायी शव : भूवम, वन, नहर का जि, झूम कृ वष, ग्राम प्रशासन, संपवि का ईिरावधकार, वववाह और वववाह ववच्छेद तथा
सामावजक रीवत- रवाज जैसे कु छ वन द ववषय पर वववध वनमायण हेतु आन्हें ववधायी वधकार दए गए ह। आसके विए आन्हें
राज्यपाि क स्वीकृ वत िेने क अवश्यकता होती है।
न्यावयक शव : वजिा प रषद जनजातीय िोग के मुकदम और वाद क सुनवाइ हेतु ग्राम प रषद या न्यायािय का गठन
कर सकती है। ऐसे मुकदम और वाद के विए ई न्यायािय का वधकार क्षेि राज्यपाि ारा वन द कया जाता है।
वववनयामक शव : वजिा प रषद वजिे में प्राथवमक वव ािय , औषधािय , बाजार , नौकाघाट , मत्स्य पािन क्षेि , सडक
आत्या द क स्थापना, वनमायण और ईनका प्रबंधन कर सकती है। यह गैर-जनजातीय िोग ारा धन ईधार दए जाने और ईनके
ारा कए जाने वािे ापार को वनयंवित करने हेतु वववनयम बना सकती है। हािााँ क आसके विए ईसे राज्यपाि क स्वीकृ वत
िेने क अवश्यकता होती है।
कर राजस्व संग्रह: वजिा और क्षेिीय प रषद को भूवम राजस्व के अकिन एवं संग्रहण तथा कु छ वववश कर के वधरोपण
संबंधी शव यां प्रा ह।
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4. न्यायपाविका
(Judiciary)
(Addition of Judges)
सु िय में क्य ?
हाि ही में, संसद ने भारत के मुख्य न्यायाधीश सवहत ई तम न्यायािय में न्यायाधीश क स्वीकृ त संख्या को 31 से बढ़ाकर 34
करने हेतु एक कानून पा रत कया है।
संवध
ै ावनक प्रावधान
मूि रूप से, भारतीय संववधान के नुच्छेद 124 के तहत ई तम न्यायािय में न्यायाधीश क संख्या अठ (एक मुख्य
न्यायाधीश और सात न्य न्यायाधीश) वनधाय रत क गयी थी।
नुच्छेद 124 (1) के तहत यह प्रावधान कया गया है क य द संसद को यह अवश्यक प्रतीत होता है तो वह न्यायाधीश क
संख्या में वृव कर सकती है।
संसद ने ई तम न्यायािय (न्यायाधीश क संख्या) वधवनयम, 1956 के माध्यम से ई तम न्यायािय के न्यायाधीश क
संख्या बढ़ाकर 10 कर दी थी।
(Transfer of Judges)
सु िय में क्य ?
मद्रास ई न्यायािय क मुख्य न्यायाधीश को मेघािय ई न्यायािय में सामान्य स्थानांतरण के कारण कॉिेवजयम प्रणािी के
संबंध में वववाद ईत्प हुअ है।
न्यायाधीश के स्थानांतरण क प्र िया
संवध
ै ावनक प्रावधान: संववधान के नुच्छेद 222(1) के तहत एक ई न्यायािय से दूसरे ई न्यायािय में न्यायाधीश का
स्थानांतरण भारत के मुख्य न्यायाधीश से परामशय के प ात् रा पवत ारा कया जाता है।
नुच्छेद 217(1) यह प्रावधावनत करता है क भारत के मुख्य न्यायमू त से , ईस राज्य के राज्यपाि से और मुख्य न्यायमू त से
वभ कसी न्यायाधीश क वनयुव क दशा में ईस ई न्यायािय के मुख्य न्यायमू त से परामशय करने के प ात् , रा पवत
ारा ई न्यायािय के न्यायाधीश क वनयु क जाएगी।
न्यावयक वनवयचन: ई तम न्यायािय वस्तुतः न्यायाधीश के चयन, वनयुव और स्थानांतरण संबंधी शव को तीन न्यायाधीश
वाद (Th ee J dge Ca e ) में दए गए पने वनणयय से ग्रहण करता है। न्यायाधीश के स्थानांतरण के ववषय में
ई तम न्यायािय के वनणयय से, वन विवखत बदु ईत्प हुए ह:
o कसी न्यायाधीश का स्थानांतरण दंडात्मक ईपाय नहीं हो सकता।
o 'न्याय के बेहतर प्रशासन' के विए के वि 'जनवहत' के ववषय पर स्थानांतरण का अदेश दया जा सकता है।
o स्थानांतरण का अदेश रा पवत ारा के वि भारत के मुख्य न्यायाधीश से प्रभावी परामशय और ईसक सहमवत के बाद ही
दया जा सकता है।
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ई तम न्यायािय को
1) संवैधावनक न्यायािय (Constitutional court) और
2) रा ीय पीिीय न्यायािय (National court of appeal) में ववभावजत कया जाता है।
स्वयं ई तम न्यायािय ारा पूवय में ही वषय 1986 में चे इ, मुब
ं इ और कोिकाता में क्षेिीय न्यायपीठ के साथ रा ीय
पीिीय न्यायािय क स्थापना क नुशंसा क गइ थी।
वी वसंत कु मार वाद, 2016 में ई तम न्यायािय ने रा ीय पीिीय न्यायािय के संबंध में वनणयय हेतु मामिे को एक
संवैधावनक न्यायपीठ को संद भत कया।
चे इ, मुंबइ और कोिकाता में क्षेिीय न्यायपीठ के साथ रा ीय पीिीय न्यायािय का ई ेश्य दीवानी, फौजदारी, श्रम और
राजस्व मामि में ई न्यायािय और न्यायावधकरण ारा ईनके क्षेिावधकार के भीतर दए गए वनणयय के प ात क गइ
पीि के वनपटान हेतु न्याय के ंवतम न्यायािय के रूप में कायय करना है।
वनयुव यां: राज्य सरकार ारा ई न्यायािय के परामशय से प्रत्येक ग्राम न्यायािय के विए न्यायावधकारी नामक एक
पीठासीन वधकारी क वनयुव क जाएगी, वजसके पास प्रथम श्रेणी के एक न्यावयक मवजस्रेट के रूप में वनयु होने क
पािता हो।
o न्यायावधकारी के वेतन, भिे तथा न्य सेवा शत प्रथम श्रेणी के न्यावयक मवजस्रेट के समान ह गे।
o नुसूवचत जावत, नुसूवचत जनजावत, मवहिा और न्य वग के सदस्य को प्रवतवनवधत्व प्रदान कया जाएगा।
वधका रता, शव यां और प्रावधकार: ग्राम न्यायािय को फौजदारी एवं दीवानी दोन न्यायािय क शव यां प्रा ह गी।
दीवानी मामि में ग्राम न्यायािय ारा पा रत वनणयय को एक वडि (न्यावयक वनणयय) माना जाएगा।
o ग्राम न्यायािय ारा आस वधवनयम क पहिी और दूसरी नुसूची में वववन द अपरावधक मामि , दीवानी मुकदम ,
दाव या वाद पर न्यायाियी काययवाही संचावित क जा सकती है। आसमें वन विवखत सवम्मवित ह:
मृत्युदड
ं , अजीवन कारावास या दो वषय से वधक क ववध के कारावास क सजा से वभ पराध।
कें द्रीय कानून से संबवं धत पराध, जैसे- मजदूरी का भुगतान, न्यूनतम मजदूरी, नाग रक वधकार का संरक्षण,
बंधुअ मजदूरी, घरेिू हसा से मवहिा का संरक्षण अ द।
o ग्राम न्यायािय वधवनयम क पहिी और दूसरी नुसूची में कें द्र और राज्य दोन सरकार ारा संशोधन कया जा
सकता है।
ग्राम न्यायािय; भारतीय साक्ष्य वधवनयम, 1872 में प्रावधावनत रूल्स ऑफ़ एववडेंस (साक्ष्य वनयमाविी) के नुसार कायय
करने हेतु बाध्य नहीं है, वपतु ये प्राकृ वतक न्याय के वस ांत ारा वनदेवशत होते ह तथा ई न्यायािय ारा वन मत कसी
भी वनयम के धीन होते ह।
o फौजदारी मामिे के वनणयय के ववरु पीि सि-न्यायािय में प्रस्तुत क जाएगी, जब क दीवानी मामिे में पीि वजिा
न्यायािय में क जाएगी। पीि क सुनवाइ और वनस्तारण छह माह के भीतर क जाएगी।
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वधकरण
वधकरण एक य -न्यावयक वनकाय होता है। भारत में आनका गठन नुच्छेद 323-A या 323-B के ंतगयत संसद या राज्य
ववधान-मंडि के वधवनयम ारा आनके समक्ष प्रस्तुत वववभ वववाद के न्यायवनणययन या ववचारण हेतु कया जा सकता है।
संववधान में नुच्छेद 323A और 323B को स्वणय सह सवमवत क वसफा रश के अधार पर वषय 1976 में 42वें संववधान
संशोधन वधवनयम के माध्यम से ंतःस्थावपत कया गया था।
नुच्छेद 323-A प्रशासवनक वधकरण से संबंवधत है।
नुच्छेद 323-B न्य ववषय के विए वधकरण से संबंवधत है।
ये ववशेष रूप से तकनीक ववशेष ता क अवश्यकता वािे वववाद के न्यायवनणययन में महत्वपूणय भूवमका का वनवयहन करते
ह।
ये वसववि प्र िया संवहता और भारतीय साक्ष्य वधवनयम के तहत वनधाय रत कसी भी एकसमान प्र िया का पािन करने हेतु
बाध्य नहीं ह, िे कन आनके ारा नैस गक न्याय के वस ांत का नुपािन करना वनवायय है।
आन्हें दीवानी न्यायािय (civil court) क कु छ शव यां प्रा होती ह, जैसे - समन जारी करना और गवाह को साक्ष्य प्रस्तुत
करने क नुमवत प्रदान करना। आसके वनणयय कानूनी तौर पर पक्षकार के विए बाध्यकारी होते ह, हािां क आनके ववरु
पीि क जा सकती है।
संबवं धत जानकारी:
वववधक सूचना प्रबंधन और ब्री फग वसस्टम ( Legal Information Management & Briefing System: LIMBS) सरकारी
ववभाग तथा मंिािय के वववभ न्यावयक वाद क वनगरानी एवं संचािन के विए वववध और न्याय मंिािय ारा ववकवसत एक
वेब-अधा रत पोटयि है।
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वनयम के मामिे में, ई तम न्यायािय को स्वयं ारा दए गए कसी भी वनणयय का पुन विोकन करने क शव प्रा होगी।
आसके दो ई ेश्य ह: न्याय के दुवयहन को रोकना (avoid miscarriage of justice) और प्र िया के दुरुपयोग को रोकना
सु िय में क्य ?
हाि ही में ई तम न्यायािय ने राज्य को गवाह संरक्षण योजना पनाने हेतु वनदेश दया है।
य वप रा ीय न्वेषण वभकरण (NIA) वधवनयम के तहत गवाह संरक्षण का प्रावधान पहिे से ही है, तथावप आस योजना
के तहत न्य सभी मामि में भी खतरे के स्तर के नु सार गवाह हेतु संरक्षण का ववस्तार कया गया है। गवाह संरक्षण
ववधेयक भी भी िंवबत है।
जावहरा शेख बनाम गुजरात राज्य वाद में ई तम न्यायािय ारा यह माना गया क स्वतंि और वनष्पक्ष सुनवाइ हेतु गवाह
संरक्षण अवश्यक है।
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5. वनवाय च न
(Elections)
(Delimitation Commission)
सु िय में क्य ?
हाि ही में, कें द्र सरकार ारा संघ शावसत प्रदेश जम्मू एवं कश्मीर और साथ ही साथ सम, रुणाचि प्रदेश, मवणपुर तथा
नागािड राज्य क ववधान सभा व संसदीय वनवायचन क्षेि के प रसीमन के प्रयोजनाथय प रसीमन अयोग का गठन कया गया
है।
न्य संबवं धत तथ्य
आस प रसीमन अयोग ारा जम्मू और कश्मीर पुनगयठन वधवनयम, 2019 के प्रावधान के नुसार जम्मू -कश्मीर में
प रसीमन वषय 2011 क जनगणना के अधार पर कया जाएगा।
तथा प रसीमन वधवनयम, 2002 के प्रावधान के नुसार सम, रुणाचि प्रदेश, मवणपुर व नागािड राज्य के वनवायचन
क्षेि का प रसीमन कया जाएगा।
o िोक सभा और राज्य ववधान सभा के वनवायचन के प्रयोजनाथय वषय 2001 क जनगणना के अंकड के अधार पर
प रसीमन कायय को नवंबर 2008 में पूणय कया गया था।
o हािां क, आस प्र िया को रुणाचि प्रदेश, सम, मवणपुर और नागािड में शांवत एवं िोक वस्था से संबवं धत ितरे को
सं ान में िेते हुए स्थवगत कर दया गया था।
o आस अयोग क ध्यक्षता ई तम न्यायािय क पूवय न्यायाधीश रंजना प्रकाश देसाइ ारा क जाएगी।
प रसीमन के बारे में
प रसीमन का शावब्दक अशय ववधायी वनकाय वािे कसी देश या कसी प्रांत के क्षेिीय वनवायचन क्षेि क प रसीमा
थवा सीमा का वनधायरण करने के कायय या प्र िया से है।
संववधान के नुच्छेद 82 के तहत, संसद प्रत्येक जनगणना के ईपरांत एक प रसीमन वधवनयम वधवनयवमत करती है,
वजसके तहत प रसीमन अयोग का गठन कया जाता है।
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नुच्छेद 170 के त
ं गयत, राज्य को भी प्रत्येक जनगणना के प ात् प रसीमन वधवनयम के नुसार प्रादेवशक वनवायचन-क्षेि
में ववभावजत कया जाता है।
भारत में, ऐसे प रसीमन अयोग को 4 बार ग ठत कया गया है, यथा- वषय 1952, 1963, 1973 और वषय 2002 में।
प रसीमन अयोग को भारत के रा पवत ारा वनयु कया जाता है और यह भारत वनवायचन अयोग के सहयोग में कायय
करता है।
प रसीमन अयोग में तीन पदेन सदस्य होते ह, यथा-
o ध्यक्ष के रूप में ई तम न्यायािय का एक सेवारत या सेवावनवृि न्यायाधीश;
o मुख्य वनवायचन अयु (CEC) थवा CEC ारा नावमत वनवायचन अयु ; और
o संबंवधत राज्य का राज्य वनवायचन अयु ।
आसके काय में शावमि ह:
o सभी वनवायचन क्षेि क जनसंख्या को िगभग समरूप बनाने और जनसंख्या के समान खंड को समान प्रवतवनवधत्व प्रदान
करने हेतु वनवायचन क्षेि क संख्या और सीमा का वनधायरण करना।
o नुसवू चत जावतय और नुसवू चत जनजावतय के विए (जहााँ भी ईनक जनसंख्या पेक्षाकृ त त्यवधक हो) अरवक्षत
सीट क पहचान करना।
ात है क प रसीमन अयोग के अदेश में वववध का प्रभाव वनवहत होता है और आसे कसी भी न्यायािय के समक्ष प्र गत
नहीं कया जा सकता।
कें द्र सरकार ारा कायायवन्वत वववभ प रवार वनयोजन काययिम के कारण वषय 1981 और 1991 क जनगणना के प ात्
कोइ प रसीमन नहीं हो सका था।
वषय 2002 में, 84वें संववधान संशोधन के माध्यम से वषय 2026 तक के विए िोक सभा और राज्य ववधान सभा क
राजनीवतक दि का पंजीकरण
वनवायचन अयोग वनवायचन के ई ेश्य से राजनीवतक दि को पंजीकृ त करता है और ईन्हें ईनके चुनावी प्रदशयन के अधार पर
रा ीय या राज्यस्तरीय दि के रूप में मान्यता प्रदान करता है।
न्य दि को के वि पंजीकृ त गैर-मान्यता प्रा दि के रूप में घोवषत कया जाता है।
राजनीवतक दि का पंजीकरण जन प्रवतवनवधत्व वधवनयम, 1951 क धारा 29A के प्रावधान ारा शावसत होता है।
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6. महत्वपू णय ववधान/ववधे य क
(Important Legislations/Bills)
कया गया है क कें द्र सरकार ारा CIC और ICs क पदाववध को वधसूवचत कया जाएगा।
वेतन का वनधायरण: RTI वधवनयम के नुसार, CIC और ICs (कें द्रीय स्तर पर) का वेतन िमशः मुख्य वनवायचन अयु
(CEC) और वनवायचन अयु (ECs) के वेतन के समान होगा। आसी प्रकार, राज्य मुख्य सूचना अयु और राज्य सूचना
अयु (राज्य स्तर पर) का वेतन िमशः राज्य के वनवायचन अयु और मुख्य सवचव के समान होगा।
आस संशोधन के माध्यम से कें द्र और राज्य स्तर के मुख्य सूचना अयु व सूचना अयु के वेतन, भिे एवं न्य सेवा शत का
वनधायरण करने हेतु कें द्र सरकार को सश बनाया गया है।
संशोवधत वधवनयम के तहत वन विवखत सूचना के वधकार (RTI) वनयम प्रस्तुत कए गए:
o यह "सेवा क शत " को वनधाय रत करने के विए सरकार को पूणय शव प्रदान करता है , जो वनयम ( ववश शव य के
प्रयोग में) में स्प रूप से समावव नहीं ह।
आस प्रकार के मामि में, कें द्र सरकार का वनणयय सूचना अयु (ICs) के विए बाध्यकारी होता है।
o सरकार वनयम के प्रावधान क प्रवतयनीयता को वशवथि करने हेतु प्रावधकृ त है।
o सभी वनयम क ंवतम वववेचना का वधकार कें द्र सरकार में वनवहत है।
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RTI वधवनयम क धारा 2(h) के धीन िोक प्रावधकारी का थय , कसी भी ऐसे प्रावधकरण या वनकाय या स्वायि
सरकारी संस्था से है वजसे -
RTI और न्यायपाविका
RTI वधवनयम ने भारत के ई तम न्यायािय के मुख्य न्यायाधीश और राज्य के ई न्यायािय के मुख्य न्यायाधीश को
आसके प्रावधान के प्रवतयन हेतु वधकार प्रदान कए ह और आस संदभय में आन सभी न्यायािय ने पने- पने वनयम वन मत
कए ह।
हािां क, ई तम न्यायािय के वनयम ने चार प्रमुख तरीक से RTI को क्षीण कर दया है। RTI वधवनयम के ववपरीत, ये
वनयम वन विवखत के सम्बन्ध में ईपबंध नहीं करते ह-
o सूचना प्रदान करने के विए समय सीमा;
o एक पीि तंि;
o सूचना प्रदान करने में वविंब या सूचना देने में नुवचत स्वीकृ वत के विए थयदड
ं तथा
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o "यथोवचत कारण (good cause shown) के अधार पर " नाग रक के विए अकवस्मक प्रकटीकरण करना।
RTI वधवनयम क धारा 23 कसी भी न्यायािय को आस वधवनयम के धीन कए गए कसी अदेश के संबंध में कोइ वाद,
अवेदन या न्य काययवाही स्वीकार करने से व जत करता है। य वप, आस तथ्य से एक ववरोधाभास भी ईत्प होता है
क्य क भारतीय संववधान ई तम न्यायािय और ई न्यायािय को कसी भी कानून का वधरोहण करने का वधकार
प्रदान करता है।
आसके वत र , ई तम न्यायािय के नुसार न्यायािय के रवजस्रार जनरि का वनणयय ंवतम होगा और कें द्रीय सूचना
अयोग में कसी भी स्वतंि पीि के धीन नहीं होगा।
1993 के मूि वधवनयम में संशोधन Amendments to the original Act of 1993
राज्य मानवावधकार अयोग मूि वधवनयम के नुसार, ई आस संशोधन के माध्यम से यह प्रस्ताववत कया
(State Human Rights न्यायािय के सेवावनवृि मुख्य गया है क SHRC के ध्यक्ष के रूप में ई
Commission: SHRC) न्यायाधीश को SHRC का ध्यक्ष न्यायािय के सेवावनवृि मुख्य न्यायाधीश या
का ध्यक्ष वनयु कया जाता है। न्यायाधीश को वनयु कया जाएगा।
पदाववध (Term of office) मूि वधवनयम के नुसार, NHRC संशोवधत वधवनयम के नुसार, काययकाि क
और SHRC के ध्यक्ष और सदस्य ववध को कम करके तीन वषय या 70 वषय क
पांच वषय या 70 वषय क अयु तक, जो अयु, जो भी पहिे हो, कर दी गइ है।
भी पहिे हो, पद पर बने रहते ह। संशोवधत वधवनयम के ारा पांच वषय क
ववध हेतु पुन नयुव के प्रावधान को समा
आसके वत र , मूि वधवनयम में
कर दया गया है।
यह भी प्रावधान है क, NHRC और
SHRC के सदस्य को पांच वषय क
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कें द्र शावसत प्रदेश आस वधवनयम के तहत, कें द्र सरकार यह प्रावधान
कर सकती है क कें द्र शावसत प्रदेश ारा एक
SHRC के मानवावधकार संबंधी काय का वनवयहन
कया जा सकता है। दल्िी के मामिे में मानव
वधकार से संबंवधत काय का वनपटारा NHRC
ारा कया जाएगा।
o त
ं रायज्यीय नदी जि वववाद वधवनयम, 1956 (IRWD वधवनयम): यह वधवनयम ऐसे वववाद के समाधान हेतु
वधकरण का गठन करने के विए कें द्र सरकार को शव प्रदान करता है। यह ऐसे वववाद के संबंध में ई तम न्यायािय
के वधकार क्षेि को भी आससे पृथक करता है।
नुच्छेद 262 के बावजूद, जि वववाद का न्याय वनणययन करना ई तम न्यायािय के वधकार क्षेि में है, बशते क पक्षकार
ारा पहिे जि वधकरण के समक्ष पीि क गइ हो और तत्प ात य द ईन्हें प्रतीत होता है क वनणयय संतोषजनक नहीं है
तो ईनके ारा नुच्छेद 136 के तहत ई तम न्यायािय में पीि क जा सकती है।
o यह नुच्छेद भारत में कसी भी न्यायािय या वधकरण ारा पा रत अदेश, वडि या वनणयय के ववरु पीि करने का
वववेकावधकार प्रदान करता है।
तंरायज्यीय नदी जि वववाद (संशोधन) ववधेयक, 2019 के मुख्य प्रावधान:
वववाद समाधान सवमवत (Disputes Resolution Committee: DRC): कें द्र सरकार ारा वववाद को वधकरण के समक्ष
प्रस्तुत करने से पूवय DRC क स्थापना क जाएगी। आस सवमवत का यह ईिरदावयत्व होगा क वह वववाद को एक वषय
(हािां क, आस ववध को छह महीने तक बढ़ाया जा सकता है) के भीतर वाताय के माध्यम से हि करे और आस संबंध में कें द्र
सरकार को पनी रपोटय स पे।
एकि तंरायज्यीय नदी जि वववाद वधकरण क स्थापना: कें द्र सरकार ारा आसक स्थापना क जाएगी। सभी मौजूदा
वधकरण को भंग कर दया जाएगा तथा ऐसे मौजूदा वधकरण के समक्ष िंवबत जि वववाद को नए वधकरण को
स्थानांत रत कर दया जाएगा।
वधकरण को वनणयय िेने के विए प्रदि समय (Timeline): प्रस्ताववत वधकरण को दो वषय के भीतर वववाद पर पना
वनणयय देना होगा। आस ववध को वधकतम एक वषय के विए और बढ़ाया जा सकता है।
वधकरण का वनणयय: वधकरण का वनणयय ंवतम और बाध्यकारी होगा।
डाटा संग्रह और डेटाबक का रखरखाव: कें द्र सरकार ारा वनयु और वधकृ त एक एजेंसी ारा रा ीय स्तर पर प्रत्ये क नदी
o वैकवल्पक वववाद समाधान को बढ़ावा देने के विए रा ीय और ंतराय ीय स्तर के न्य संस्था एवं संगठन के साथ
सहयोग को बढ़ावा देना।
माध्यस्थम् और सुिह (संशोधन) वधवनयम, 2019 के बारे में
आसे हाि ही में संसद ारा पा रत कया गया है। यह घरेिू और ंतराय ीय माध्यस्थम् से वनपटने के विए माध्यस्थम् और सुिह
वधवनयम, 1996 में संशोधन करता है।
आसके तहत, भारतीय माध्यस्थम् प रषद (Arbitration Council of India: ACI) नामक एक स्वतंि वनकाय क स्थापना क
जाएगी। आस वनकाय के वन विवखत कायय ह गे:
o वैकवल्पक वववाद समाधान तंि को बढ़ावा देना;
o माध्यस्थ संस्थान (arbitral institutions) क ग्रे डग और माध्यस्थ (arbitrators) को मान्यता प्रदान करने हेतु
नीवतयां बनाना;
o भारत और ववदेश में हुए माध्यस्थ वनणयय क एक वडपॉवजटरी का वनमायण करना; तथा
o सभी वैकवल्पक वववाद वनवारण मामि के विए समान पेशेवर मानक को बनाए रखना।
माध्यस्थ क वनयुव ब ई तम न्यायािय ारा नावमत माध्यस्थ संस्थान ारा क जाएगी, जो पहिे पक्षकार ारा स्वयं
क जाती थी।
यह ंतराय ीय वावणवज्यक माध्यस्थम (international commercial arbitrations) के विए समय प्रवतबंध को समा करने
का प्रयास करता है। आसमें यह ईल्िेख है क वधकरण को 12 महीन के भीतर ंतराय ीय माध्यस्थम के मामि को वनपटाने
का प्रयास करना चावहए।
माध्यस्थ क वनयुव के छह माह के भीतर विवखत प्रस्तुवतय (written submissions) को पूणय कर विया जाना चावहए।
आससे पहिे कोइ समय सीमा वनधाय रत नहीं थी।
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माध्यस्थम् (Arbitration)
यह दािती कारयवाइ क शरण विए वबना एक तटस्थ तीसरे पक्ष (मध्यस्थ) ारा कसी नुबंध से संबंवधत दोन पक्ष के
मध्य वववाद के समाधान क एक प्र िया है।
यह वैकवल्पक वववाद समाधान (Alternative Dispute Resolution: ADR) का एक तरीका है। न्य तरीक में
वन विवखत सवम्मवित ह: मध्यस्थता, सुिह और िोक दाितें।
यह दाित क तुिना में गोपनीय, तीव्र और सस्ता होता है।
आनके वनणयय ( थायत् माध्यस्थम् वनणयय) बाध्यकारी और दाित के माध्यम से प्रवतयनीय होते ह।
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पृ भूवम
हािां क, वषय 2016 में सरकारी िाभ के ंतरण हेतु प्रमुख साधन के रूप में सरकार ारा अधार (Aadhaar) का चयन
कया गया था, जब क NPR क धीमी प्रगवत के कारण NPR के प्रवतयन को रोक दया गया था।
RGI ारा गस्त 2019 में जारी वधसूचना के माध्यम से आस योजना को ब पुनजीववत कया गया है। साथ ही, वत र
अंकड के साथ NPR-2015 को वतत करने का कायय अरम्भ कया गया है, वजसे वषय 2020 तक पूणय कर विया जाएगा।
o हाि ही में पूणय हुए NRC (रा ीय नाग रक रवजस्टर) को ध्यान में रखते हुए के वि सम को NPR में सवम्मवित नहीं
कया जाएगा।
NPR में पंजीकृ त 18 वषय के अयु वगय के सभी सामान्य वनवावसय हेतु वनवास पहचान-पि जारी कए जाने का प्रावधान भी
कया गया है।
enrollment): UID में पंजीकरण हेतु व य को एक नामांकन कें द्र में जाना होता है जब क NPR के तहत घर-घर जाकर
वनवावसय का पंजीकरण कया जाएगा।
वग्रम दस्तावेजीकरण बनाम जनगणना सामग्री: UID दस्तावेजीकरण और पहचान-वनधायरण के वग्रम रूप पर अधा रत है
जब क NPR जनगणना ारा प्रदि सूचना पर अधा रत होगा।
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(Nationwide NRC)
सु िय में क्य ?
हाि ही में, भारत सरकार ने एक रा ापी रा ीय नाग रक रवजस्टर (National Register of Citizens: NRC) को िागू करने
के स्प संकेत दए ह।
NRC के बारे में
NRC वस्तुतः देश के सभी वैध नाग रक (अवश्यक दस्तावेज धारक) क एक सूची होती है।
आससे पूवय, ई तम न्यायािय के अदेश का नुपािन करते हुए, सरकार ारा सम में NRC को पडेट करने का कायय कया
गया था। आसके प रणामस्वरूप, 19 िाख से वधक अवेदक NRC क सूची में स्थान प्रा करने में सफि रहे थे। (बॉक्स
देखें)
नाग रकता के वनधायरण के विए मानदंड
नाग रकता वधवनयम, 1955 में स्प रूप से यह व णत है क 26 जनवरी 1950 को या ईसके प ात् परंतु 1 जुिाइ 1987
के पूवय जन्मा व जन्म से भारत का नाग रक होगा।
भारत में 1 जुिाइ 1987 को या ईसके प ात् परंतु 3 दसम्बर 2004 {नाग रकता (संशोधन) वधवनयम, 2003 के िागू होने
क वतवथ} से पूवय जन्मा व के वि तभी भारत का नाग रक माना जाएगा, य द ईसके जन्म के समय ईसके माता-वपता में से
कोइ एक भारत का नाग रक हो।
य द कसी व का जन्म 3 दसंबर 2004 को या ईसके प ात् भारत में हुअ है, तो वह ईसी दशा में जन्म से भारत का
नाग रक माना जाएगा, य द ईसके माता-वपता दोन ईसके जन्म के समय भारत के नाग रक ह थवा माता या वपता में से
NRC का मूि सम स्टेट स्टूडेंट्स यूवनयन और भारत सरकार के मध्य वषय 1985 में हस्ताक्ष रत समझौता ापन
(Memorandum of Settlement) थवा सम समझौते (Assam Accord) में वनवहत है। यह समझौता 1980 के दशक
के प्रवासी ववरोधी हसक अंदोिन का प रणाम था तथा आसमें वैध प्रवास (illegal migration) को वनयंवित करने हेतु
वववभ खंड का समावेश कया गया था।
ईल्िेखनीय है क सम समझौते के प ात् 1 जनवरी 1966 से पूवय बांग्िादेश से अए सभी भारतीय मूि के िोग को
भारतीय नाग रक के रूप में मान्यता प्रदान करने हेतु नाग रकता वधवनयम, 1955 में संशोधन कया गया था।
आसमें यह प्रावधान शावमि था क ईन सभी ववदेवशय क पहचान क जाएगी, वजन्ह ने 25 माचय 1971 के प ात् सम में
प्रवेश कया है तथा तत्प ात ईन्हें वैध प्रवासी ( वधकरण ारा वनधायरण) वधवनयम, 1983 {Illegal Migrants
(Determination by Tribunals) Act, 1983 (IMDT)} के तहत पता िगाकर वनवायवसत कया जाएगा। आसमें वनवायचक
नामाविी से ववदेवशय के नाम को हटाने का भी ईपबंध कया गया है।
सम में NRC को सम समझौते (Assam Accord) के नुसार पडेट कया गया था I
NRC सूची में नाम दजय करवाने में ववफि िोग हेतु प्रावधान
सम सरकार ने NRC सूची में नाम दजय करवाने से चूक गए िोग को यह अ ासन दया है क ईन्हें तत्काि प्रभाव से
ववदेशी थवा वैध प्रवासी घोवषत नहीं कया जाएगा।
ऐसे िोग को ववदेशी ववषयक वधकरण के समक्ष पने पक्ष को रखने ( थायत् ववरोध दजय कराने) क नुमवत प्रदान क
जाएगी। आसके वत र , वे आस मामिे में ई न्यायािय और यहााँ तक क ई तम न्यायािय में पीि दायर कर सकते ह।
राज्य सरकार NRC सूची से वंवचत वनधयन िोग को वववधक सहायता भी प्रदान करेगी।
ववदेशी ववषयक वधवनयम, 1946 के ंतगयत, कोइ व नाग रक है या नहीं, यह प्रमावणत करने का ईिरदावयत्व
व गत अवेदक पर वनभयर करता है न क राज्य पर। आसके वत र , यह भी ात नहीं ह क आस प्रकार के कायय को कस
प्रकार संपा दत कया जाएगा।
D-मतदाता वे मतदाता होते ह वजन्हें सरकार ारा ईनके ईवचत नाग रकता प्रमाण-पि के कवथत भाव के अधार पर
मतावधकार से वंवचत कर दया जाता है तथा ईनका समावेशन ववदेशी ववषयक वधकरण (Foreigners Tribunal) के
वनणयय पर वनभयर करेगा।
सम्बंवधत तथ्य
हाि ही में, ववदेशी नाग रक के विए न्यायावधकरण (Foreigners tribunals) स्थावपत करने हेतु सभी राज्य तथा संघ
शावसत क्षेि में वजिा वधका रय को सश करने हेतु ववदेशी नाग रक (न्यायावधकरण) अदेश , 1964 को संशोवधत कया
गया।
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o वैध दस्तावेज के साथ देश में प्रवेश करता है, िे कन भारत में ईस समयाववध से वत र समय तक रहता है, वजतनी
ववध के विए ईसे नुमवत प्रदान क गइ थी।
नाग रकता संशोधन वधवनयम (Citizenship Amendment Act: CAA), 2019 के प्रमुख प्रावधान
आस संशोधन वधवनयम के ंतगयत यह प्रावधान है क वन विवखत शत को पूरा करने वािे वैध प्रवावसय को आस
वधवनयम के ंतगयत वैध प्रवासी नहीं समझा जाएगा:
o य द वे हदू, वसख, बौ , जैन, पारसी या इसाइ समुदाय से ह;
o य द वे फगावनस्तान, बांग्िादेश या पा कस्तान से संबंवधत ह;
य द ईन्ह ने 31 दसंबर 2014 को या ईससे पूवय भारत में प्रवेश कया है तथा वे संववधान क छठी नुसच
ू ी में सवम्मवित कु छ
जनजातीय क्षेि ( सम, मेघािय, वमजोरम या विपुरा) या आनर िाआन परवमट के तहत अने वािे क्षेि ( थायत् रुणाचि
प्रदेश, वमजोरम और नागािड) में नहीं रह रहे ह ।
o आन जनजातीय क्षेि में काबी अंगिांग ( सम), गारो वहल्स (मेघािय), चकमा वजिा (वमजोरम) और विपुरा जनजावत
क्षेि वजिा शावमि ह।
वैध प्रवासन या नाग रकता के संबंध में प्रवावसय क आन श्रेवणय के ववरु सभी कानूनी काययवाही बंद हो जाएगी।
प्रवावसय क ईपयुय श्रेवणय के विए देशीयकरण क ववध 11 वषय से घटाकर 5 वषय कर दी गइ है।
1955 का वधवनयम एक व को देशीयकरण ारा नाग रकता जयन के विए अवेदन करने क नुमवत प्रदान करता है,
य द वह व वन विवखत योग्यता को पूरा करता है:
o य द वह भारत में रह रहा हो या ववगत 12 माह से भारत सरकार क सेवा में हो तथा ववगत 14 वष में से 11 वष तक
भारत में रहा हो।
प्रवासी भारतीय नाग रक (Overseas Citizen of India: OCI) के पंजीकरण को र करने के विए अधार: आस संशोधन
यह ऐसे पराध क जांच और ऐसे पराध के पीवडत के राहत एवं पुनवायस के विए ववशेष न्यायािय क स्थापना का
प्रावधान करता है।
यह कें द्र सरकार को वधवनयम के ई ेश्य को पूणय करने हेतु वनयम बनाने के विए वधकृ त करता है।
आस वधवनयम के तहत SC और ST समुदाय के िोग के अत्म-सम्मान को क्षवत पहुाँचाने; ईन्हें अ थक, िोकतांविक एवं
सामावजक वधकार से वंवचत करने तथा भेदभाव, ईत्पीडन व वववधक प्र िया के दुरुपयोग अ द से संबंवधत पराध को
बढ़ावा देने वािे वववभ कृ त्य से संबंवधत 22 पराध को सूचीब कया गया है।
आस वधवनयम को संबवं धत राज्य सरकार और संघ शावसत प्रदेश के प्रशासन ारा िागू कया जाता है, वजन्हें वधवनयम के
प्रावधान के प्रभावी कायायन्वयन के विए कें द्र प्रायोवजत योजना के तहत कें द्रीय सहायता प्रदान क जाती है।
आस वधवनयम में वषय 2016 में संशोधन कया गया था, वजसके तहत जूत क मािा पहनाना अ द जैसे न्य त्याचारपूणय
कृ त्य को पराध क श्रेणी में शावमि कया गया था। आसके वत र आस संशोधन के माध्यम से 'पीवडत और गवाह के
वधकार से संबंवधत प्रावधान को सवम्मवित कया गया, िोक सेवक ारा 'जानबूझकर क गइ िापरवाही' को प रभावषत
कया गया तथा संभाववत पराध को समावव करने जैसे न्य प्रावधान समावव कए गए।
अधार वधवनयम, 2016 {अधार (वविीय और न्य सवब्सडी, िाभ और सेवा के िवक्षत ववतरण) वधवनयम, 2016} के
प्रावधान के तहत स्थावपत UIDAI एक सांवववधक प्रावधकरण है। UIDAI, आिेक्रॉवनक और सूचना प्रौ ोवगक मंिािय
(MeitY) के तहत कायय करता है।
अधार में बायोमे रक डेटा के साथ चार प्रकार क व गत जानकारी, यथा- नाम, अयु, िग और पता को समावव कया
जाता है।
आसके वत र , अधार में वचुय ि अइ.डी. जैसी नइ ववशेषता को शावमि कया गया है जो व क वनजता को सुरवक्षत
रखने में सहायता करती है।
अधार का एक महत्वपूणय ई ेश्य कल्याणकारी सेवा पर वनभयर देश के बहुसंख्यक वनवावसय को कु शि, पारदशी और िवक्षत
तरीके से सेवा ववतरण करने हेतु राज्य क क्षमता में सुधार करना रहा है।
न्य वनष्कषय
95% वयस्क और 75% ब के पास अधार है।
8% िोग ( नुमावनत 102 वमवियन िोग) के पास अधार नहीं है।
80% िाभा थय का मानना है क अधार ने PDS राशन, मनरेगा तथा सामावजक पेंशन को और वधक वव सनीय बना
दया है।
कु छ मामि में सूचना का प्रकटीकरण: के वि ई न्यायािय (या आससे उपर) के ारा अदेश हेतु प्रकटीकरण क नुमवत
प्रदान करता है।
o रा ीय सुरक्षा के वहत में सूचना का प्रकटीकरण करने के विए वनदेश सवचव या ईससे उपर के वधकारी ारा ही जारी
कया जा सकता है।
UIDAI वनवध: आस वधवनयम के तहत भारतीय वववश पहचान प्रावधकरण वनवध का सृजन कया गया है। UIDAI ारा प्रा
सभी शुल्क, नुदान और प्रशुल्क आस वनवध में जमा कए जाएंगे। वनवध का ईपयोग UIDAI के य (वजसमें कमयचा रय के
वेतन और भिे सवम्मवित ह) के विए कया जाएगा।
वशकायतें: यह कसी व को पनी पहचान का प्रवतरूपण या न्य व ारा प्रकटीकरण सवहत कु छ मामि में वशकायत
दजय करने क नुमवत प्रदान करता है।
यह नामांकन एजेंवसय , अग्रह करने वािी एजेंवसय और ऑफ़िाआन सत्यापन हेतु प्रयासरत संस्था को सवम्मवित करने हेतु
अधार पा रतंि को प रभावषत करता है।
थयदड
ं : UIDAI अधार पा रतंि में कसी संस्था के ववरु वशकायत क पहि कर सकता है य द वह संस्था (1) अधार
वधवनयम या UIDAI के वनदेश का पािन करने में तथा (2) UIDAI ारा पेवक्षत सूचना प्रस्तुत करने में ववफि रहती है।
दूरसंचार वववाद समाधान और पीि वधकरण, वनणययन वधकारी के वनणयय के ववरु पीिीय प्रावधकारी ह गे।
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प्रकाशन से पूवय दस्तावेज से संवेदनशीि सूचना को वछपाने या हटाने के माध्यम से चयन या नुकूिन करना ही संपादन
(Redaction) है। प रणामस्वरूप, पूणय वावणवज्यक वववरण नहीं दए गए और रपोटय में खरीद समझौते के अंकड को कािा कर
दया गया।
7.2. िोकपाि
(Lokpal)
सु खय में क्य ?
हाि ही में RTI के माध्यम से यह प्रकट हुअ है क िोकपाि वधवनयम के पा रत होने के 5 वषय से वधक समय के बाद भी
िोकपाि के प्रमुख प्रावधान का िागू नहीं कया गया है।
िोकपाि के बारे में
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वषय 2011 में जन िोकपाि ववधेयक को िेकर हुए ववरोध प्रदशयन क श्रृंखिा के साथ-साथ भ्र ाचार ववरोधी अंदोिन के बाद
िोकपाि और िोकायु वधवनयम, 2013 को वधवनयवमत कया गया था।
संरचना: िोकपाि में एक ध्यक्ष और वधकतम अठ सदस्य ह गे, वजनमें से 50% सदस्य का चयन न्यावयक सेवा और 50%
नुसूवचत जावत/ नुसूवचत जनजावत/ न्य वपछडा वगय, ल्पसंख्यक और मवहिा के मध्य से कया जाएगा।
वनयुव प्र िया: यह दो चरण वािी प्र िया है।
o खोज सवमवत (search committee), जो ई - वधकार प्रा चयन सवमवत को नाम के एक पैनि क नुशंसा करती
है।
o चयन सवमवत (selection committee) में प्रधानमंिी, िोकसभा ध्यक्ष, िोकसभा में ववपक्ष का नेता, भारत का मुख्य
न्यायाधीश (या ईनके ारा नावमत न्यायाधीश) और एक प्रख्यात न्यायववद (पैनि के न्य सदस्य क नुशंसा पर
रा पवत ारा नावमत) शावमि ह।
o रा पवत नुशंवसत नाम क वनयुव करेगा।
वधका रता (क्षेिावधकार): िोकपाि का क्षेिावधकार वन विवखत तक ववस्ता रत है:
o वतयमान या भूतपूवय प्रधानमंिी, कें द्र सरकार के मंविय और संसद सदस्य के साथ-साथ ग्रुप A, B, C और D सेवा में
काययरत कें द्र सरकार के वधकारी।
o कसी भी बोडय, वनगम, सोसाआटी, न्यास (रस्ट) या स्वायि वनकाय (संसद के वधवनयम ारा स्थावपत थवा कें द्र ारा
पूणत
य ः या अंवशक रूप से ववि पोवषत) के ध्यक्ष, सदस्य, वधकारी और वनदेशक।
o कोइ भी सोसाआटी या न्यास या वनकाय जो 10 िाख से वधक का ववदेशी नुदान प्रा करती है।
प्रधानमंिी के विए पवाद
o य द प्रधानमंिी के ववरु अरोप ंतराय ीय संबंध , बा और अंत रक सुरक्षा, िोक वस्था, परमाणु उजाय तथा
ंत रक्ष से संबंवधत ह तो आस वधवनयम के तहत जांच नहीं क जाएगी।
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o प्रधानमंिी के ववरु वशकायत क जांच तब तक नहीं क जा सकती है, जब तक क िोकपाि क संपूणय पीठ जांच प्रारंभ
करने पर ववचार नहीं करती है और कम से कम 2/3 सदस्य आसे नुमो दत नहीं कर देते ह।
o प्रधानमंिी के ववरु क जाने वािी जांच (य द संचावित क गइ हो) का संचािन बंद कमरे में कया जाएगा और य द
िोकपाि आस वनष्कषय पर पहुंचता है क वशकायत को वनरस्त कया जाना चावहए, तो जांच से संबंवधत रकॉडय को
प्रकावशत नहीं कया जाएगा थवा कसी को भी ईपिब्ध नहीं कराया जाएगा।
िोकपाि ध्यक्ष से संबंवधत वेतन, भिे और सेवा शत भारत के मुख्य न्यायाधीश के समान ह गी तथा न्य सदस्य हेतु ये
सव न्यायािय के न्यायाधीश के समान ह गी।
जांच खंड और वभयोजन खंड: आस वधवनयम के तहत िोकपाि, कसी वशकायत के प्रा होने पर प्रारंवभक जांच के विए
जांच खंड और िोक सेवक के वभयोजन के ई ेश्य से वभयोजन खंड के गठन का अदेश करेगा।
CBI के संबध
ं में शव : िोकपाि ारा संद भत मामि के विए आसे CBI सवहत कसी भी जांच एजेंसी पर धीक्षण करने
और ईन्हें वनदेश देने क शव प्रा होगी। िोकपाि ारा प्रेवषत मामि क जांच करने वािे CBI के वधका रय का
स्थानांतरण िोकपाि क सहमवत से ही कया जाएगा।
जााँच एवं न्वेषण क समय-सीमा: आस वधवनयम के ंतगयत, जााँच पूरी करने के विए 60 दन क समय-सीमा और CBI
ारा जााँच पूरी करने के विए 6 माह का समय वनधाय रत है। 6 माह क आस ववध को िोकपाि ारा CBI के एक विवखत
नुरोध पर ही बढ़ाया जा सकता है।
संपवि क जब्ती: वधवनयम में वभयोजन के िंवबत होने पर भी िोक सेवक ारा भ्रष्ट साधन के माध्यम से जत संपवि
क कु क और जब्ती के प्रावधान शावमि ह।
िोकपाि के प्रशासवनक य, वजनके ंतगयत िोकपाि के ध्यक्ष, सदस्य या सवचव या िोकपाि के न्य वधका रय या
हाि ही में, कें द्रीय मंविमंडि ने तीन वषय क ववध के विए 22वें वववध अयोग के गठन को स्वीकृ वत प्रदान क है।
वववध अयोग के बारे में
वववध अयोग भारत सरकार ारा ग ठत एक गैर-सांवववधक वनकाय है, वजसे प्रत्येक तीन वषय पर ग ठत कया जाता है।
आसका प्रमुख कायय वववधक सुधार हेतु सुझाव देना तथा वववध और न्याय मंिािय के विए एक परामशयदािी वनकाय के रूप में
कायय करना है।
वब्र टश शासनकाि के दौरान 1833 इ. के चाटयर वधवनयम के तहत 1834 इ. में प्रथम वववध अयोग का गठन कया गया था,
वजसक ध्यक्षता िॉडय मैकािे ने क थी।
o हािां क, स्वतंि भारत में प्रथम वववध अयोग का गठन वषय 1955 में हुअ था तथा श्री एम. सी. सीतिवाड आसके ध्यक्ष
थे।
यह ब तक 277 रपोट्सय प्रस्तुत कर चुका है।
सु िय में क्य ?
हाि ही में, प्रधानमंिी क ध्यक्षता वािी एक सवमवत ारा नए कें द्रीय सतकय ता अयु (CVC) का चयन कया गया है।
कें द्रीय सतकय ता अयोग (Central Vigilance Commission: CVC) के बारे में
के न्द्रीय सतकय ता अयोग (CVC) कें द्र सरकार में भ्र ाचार वनवारण हेतु स्थावपत एक प्रमुख संस्था है।
वषय 1964 में भ्र ाचार वनवारण हेतु ग ठत संथानम सवमवत (1962-64) क वसफा रश पर कें द्र सरकार ारा पा रत एक
काययकारी प्रस्ताव के ंतगयत CVC क स्थापना क गइ थी। वषय 2003 में आसे सांवववधक दजाय प्रदान कया गया।
CVC एक बहुसदस्यीय संस्था है वजसमें एक के न्द्रीय सतकय ता अयु तथा दो से नवधक सतकय ता अयु होते हI
आनक वनयुव रा पवत ारा एक तीन सदस्यीय सवमवत क वसफा रश पर क जाती है, वजसमें ध्यक्ष के रूप में प्रधानमंिी
और न्य सदस्य िोकसभा में ववपक्ष के नेता व कें द्रीय गृह मंिी होते ह।
आनका काययकाि 4 वषय थवा 65 वषय क अयु (जो भी पहिे हो) तक होता है।
पने काययकाि के प ात वे कें द्र थवा राज्य सरकार के कसी भी पद को धारण करने के पाि नहीं होते ह।
रा पवत, कु छ ववशेष प रवस्थवतय में CVC को ईसके पद से हटा सकते ह।
आनका वेतन, भिे एवं न्य सेवा शत, संघ िोक सेवा अयोग (UPSC) के सदस्य के समान होती ह। वजनमें सेवा के दौरान
कसी प्रकार का िाभकारी प रवतयन नहीं कया जा सकता है।
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NCRB के संबध
ं में:
NCRB क स्थापना वषय 1986 में पराध और परावधय से संबंवधत सूचना के संग्राहक (repository) के रूप में कायय
करने हेतु क गइ ता क पराध से परावधय का सम्बन्ध जोडने में जााँचकताय क सहायता क जा सके ।
यह रा ीय पुविस अयोग (1977-1981) और गृह मंिािय क टास्क फोसय (1985) क नुशंसा के अधार पर स्थावपत
कया गया था। आसक स्थापना गृह मंिािय के एक संि कायायिय के रूप में क गइ थी।
यह ववदेशी परावधय के फगर प्रट (fingerprint - FP) रकॉडय सवहत दोष-वस व य के फगर प्रट रकॉडय के रा ीय
संग्राहक के रूप में कायय करता है।
यह भारत के कारागार संबध ं ी अंकडे भी जारी करता है।
कु छ रुझान
वषय 2016-17 के दौरान मवहिा के ववरु पराध में वृव हुइ है, वजसमें ईिर प्रदेश सव स्थान पर है।
वषय 2016 क तुिना में वषय 2017 में साआबर पराध में 77% क वृव हुइ।
वषय 2015 से वषय 2017 के मध्य कारागार क संख्या में कमी अइ है।
जेि में क्षमता से वधक कै दय क समस्या, ईिर प्रदेश के कारागार में क्षमता से वधक कै दय क समस्या से सवायवधक
ग्रस्त ह l
वषय 2015-17 के दौरान ववचारणाधीन कै दय क संख्या में वृव हुइ है।
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o आसे वषय 1973 में वधवनयवमत कया गया था, य वप आसे प्रारंवभक रूप से 1882 इ.में वन मत कया गया था।
o यह पराध क जांच, सं दग्ध परावधय क वगरफ्तारी, साक्ष्य एकवित करने, वभयु व के पराध थवा
वनरपराधता के वनधायरण तथा दोवषय क सजा के वनधायरण के विए एक वस्था प्रदान करती है।
पुविस नुसध
ं ान एवं ववकास ब्यूरो (Bureau of Police Research and Development: BPRD), IPC, CrPC,
भारतीय साक्ष्य वधवनयम, स्वापक औषवध और मन:प्रभावी पदाथय वधवनयम अ द कानून क समीक्षा करेगा।
o BPRD क स्थापना वषय 1970 में गृह मंिािय के ंतगयत पुविस बि के अधुवनक करण के विए सरकार के ई ेश्य को
प्रोत्साहन प्रदान करने हेतु क गइ थी।
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पहि ववशेषताएं
राष्रीय इ-गवनस प्रभाग राष्रीय इ-गवनस प्रभाग का गठन एक स्वायत्त हयापार प्रभाग के रूप में आिेक्रॉवनक और
(NeGD) सूचना प्रो ोवगक मंिािय ारा राष्रीय इ-गवनस योजना के काययिम प्रबंधन का
ईिरदावयत्व साँभािने हेतु कया गया है।
आसके ारा कें द्रीय मंिािय /ववभाग /राज्य सरकार को ईनक इ-गवनस पहि के प्रसार में
सहायता प्रदान कए जाने क पेक्षा है।
NeGP सभी सरकारी सेवा को आिेक्रॉवनक मीवडया के माध्यम से भारतीय नाग रक को
ईपिब्ध कराने हेतु प्रारंभ सरकार क एक पहि है।
गवमट आंस्टट मैसे जग वसस्टम यह हहाट्सएप जैसे िोकवप्रय मैसे जग प्िेटफॉमय का एक भारतीय संस्करण है, वजसका
भुवन पंचायत V 3.0 आसे आसरो (ISRO) के रा ीय सुदरू संवेदन कें द्र (National Remote Sensing Centre)
(Bhuvan Panchayat V ारा ववकवसत कया गया है।
3.0) यह सरकारी प रयोजना क बेहतर वनयोजन और वनगरानी के विए आसरो क SISDP
(ववकें द्रीकृ त वनयोजन के विए ंत रक्ष अधा रत सूचना सहायता) प रयोजना के ंतगयत
ईपयोगकताय के नुकूि वेब अधा रत एक वजयो पोटयि है।
यह पोटयि पंचायती राज मंिािय क ग्राम पंचायत ववकास योजना (GPDP) प्र िया में
सहायता के विए भू-स्थावनक सेवाएं प्रदान करेगा।
यह ग्राम पंचायत सदस्य और न्य वहतधारक जैसे PRI एवं िोग के िाभ के विए डेटाबेस
ववज़ु िाआजेशन, डेटा एनावि टक्स, ऑटोमै टक रपोटय के वनमायण, मॉडि अधा रत ईत्पाद
और सेवा के माध्यम से सहायता करता है।
आस पोटयि के माध्यम से देश भर में वनयोजन हेतु पहिी बार एक कृ त ई रजॉल्यूशन ईपग्रह
डेटा के साथ ई स्तर पर एक वथमे टक डेटाबेस ईपिब्ध होगा।
वजयो स्पेवसयि डाटा, सेवा और वव ेषण के विए ईपकरण के साथ भुवन, ISRO ारा
ववकवसत एवं संचावित एक रा ीय वजयो-पोटयि है।
ईपभो ा एप हाि ही में, सरकार ने ईपभो ा ऐप िॉन्च क है, जो ईपभो ा को पनी वशकायत को
(Consumer App) ऑनिाआन दजय करने में सहायता करेगी तथा साथ ही, ईपभो ा से संबंवधत मु पर सुझाव
भी प्रदान करेगी।
वशकायत क वस्थवत क मंिािय ारा दैवनक अधार पर तथा कें द्रीय ईपभो ा मामिे,
खा एवं सावयजवनक ववतरण मंिी ारा सा ावहक अधार पर वनगरानी क जाएगी।
आससे ईपभो ा को 42 क्षेिक से संबंवधत सूचना प्रा करने में सहायता प्रा होगी,
वजसमें टकाउ ईपभो ा वस्तुए,ं आिेक्रॉवनक ईत्पाद, इ-कॉमसय, ब कग, बीमा आत्या द
शावमि ह।
रा ीय इ-गवनस सेवा ववतरण प्रशासवनक सुधार और िोक वशकायत ववभाग ारा पहिी बार रा ीय इ-गवनस सेवा
मूल्यांकन ववतरण मूल्यांकन (NeSDA) र कग जारी क गइ।
(National E-Service यह मुख्य रूप से 7 मापदण्डड सरि ईपयोग, सामग्री ईपिब्धता, पहुाँच, सूचना सुरक्षा और
Delivery Assessment) गोपनीयता, ंवतम ईपभोग हेतु सेवा ववतरण, एक कृ त सेवा ववतरण तथा वस्थवत और
PT 365 - राज वस्था
नुरोध रै कग के अधार पर सभी राज्य /के न्द्र शावसत प्रदेश और कें द्रीय मंिािय सेवा
पोटयि का अकिन करता है।
फ्रेमवकय छह क्षेि को कवर करता है, थायत ववि, श्रम और रोजगार, वशक्षा, स्थानीय
सरकार और ईपयोवगताएाँ, समाज कल्याण (कृ वष और स्वास्थ्य सवहत) और पयायवरण ( व
सवहत) क्षेि
संतु पोटयि का ई ेश्य जमीनी स्तर पर वनरंतर वनगरानी के माध्यम से श्रम एवं रोजगार
संतु पोटयि मंिािय क योजना एवं नीवतय के प्रभावी कायायन्वयन और सावयजवनक सेवा के प्रभावी
(Poratl Santusht) ववतरण तथा पारद शता एवं जवाबदेही को सुवनव त करना हैI
अस्क दशा चैटबोट अस्क दशा चैटबोट भारतीय रेिवे ारा 2018 में प्रारंभ एक कृ विम बुव मता अधा रत
(ASKDISHA Chatbot) चैटबोट है वजसे IRCTC क वववभ सेवा के संबंध में रेि याविय क समस्या का
आंटरनेट के माध्यम से समाधान करने के विए ववकवसत कया गया हैI
प्रारम्भ में आसे ंग्रेजी भाषा में शुरू कया गया था िे कन ब आसे हदी भाषा में बातचीत
के विए पग्रेड कया गया हैI
जन सूचना पोटयि हाि ही में, राजस्थान सरकार ारा पनी तरह के पहिे जन सूचना पोटयि का िोकापयण
(Jan Soochna Portal) कया गया।
आस पोटयि को नाग रक समाज तथा न्य वहतधारक के साथ वमिकर सूचना प्रौ ोवगक एवं
संचार ववभाग (DoIT&C) ारा ववकवसत कया गया है।
यह देश में पनी तरह क पहिी प्रणािी है तथा आसमें एक ही मंच पर 13 ववभाग क 23
सरकारी योजना एवं सेवा क जानकारी प्रा होगी।
यह पहि सूचना का वधकार वधवनयम, 2005 क धारा 4(2) क भावना से प्रे रत है,
थायत सूचना का स िय प्रकटीकरण है।
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9. ववववध
(Miscellaneous)
भारत के शिु सम्पवि वभरक्षक (Custodian of Enemy Property for India: CEPI)
व तीय वव यु के दौरान जब्त क गइ शिु संपविय से वनपटने के विए CEPI के कायायिय को वषय 1939 में स्थावपत कया
गया था।
शिु संपवि वधवनयम, 1968 के तहत CEPI के कायायिय को सांवववधक दजाय प्रदान कया गया।
वतयमान में, CEPI का कायायिय गृह मंिािय के स्वतंिता सेनानी और पुनवायस प्रभाग का धीनस्थ कायायिय है, वजसका
मुख्य कायायिय नइ दल्िी में है तथा आसक तीन शाखाएं मुंबइ, कोिकाता एवं िखनउ में वस्थत ह।
CEPI शिु संपवि वधवनयम के तहत एक य -न्यावयक प्रावधकरण है तथा वसववि प्र िया संवहता, 1908 के तहत एक
दीवानी न्यायािय के तौर पर कायय करता है।
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वजिा पुविस में दोहरी कमान संरचना से तात्पयय यह शहर में पुविस बि के एकमाि प्रमुख के रूप में पुविस अयु {जो क
है क, वजिे में पुविस पर वनयंिण और वनदेशन का ईप महावनरीक्षक (DIG) या ईससे उपर क रक का वधकारी होता है}
वधकार पुविस धीक्षक (वजिा पुविस के प्रमुख) और के नेतृत्व में एक कृ त कमान संरचना।
वजिावधकारी (काययकारी) में वनवहत होता है।
पुविस धीक्षक (SP) को वत र / सहायक / पुविस अयु को ववशेष / संयु / वत र / ईपायु अ द ारा सहायता
प्रदान क जाती है। आंस्पेक्टर से नीचे क रक के बाद संरचना समान होती
ईपाधीक्षक (SP), आंस्पेक्टर और पुविस दि ारा
है।
सहायता प्रदान क जाती है।
जाएगा, ईन्हें जनजावत का दजाय दया जाएगा, मतदान का वधकार प्रदान कया जाएगा और एक बार क (one-time)
वविीय सहायता प्रदान क जाएगी।
ईन प्रत्याव तत ब्रू शरणा थय के विए वमजोरम सरकार वजम्मेदार होगी, वजन्हें 1997 क वमजोरम क वनवायचक नामाविी के
नुसार पहचाना और सत्यावपत कया गया था।
सूचकांक में नॉवे को सव स्थान जब क ईिर को रया को सबसे वन स्थान प्रा हुअ है।
िोकतंि सूचकांक क वैव क र कग में भारत 10 स्थान क वगरावट के साथ 51वें स्थान पर अ गया है। भारत का समग्र स्कोर
वषय 2018 में 7.23 से वगरकर वषय 2019 में 6.90 हो गया था।
वगीकृ त सूचकांक में भारत को "दोषपूणय िोकतंि" (flawed democracies) क श्रेणी में शावमि कया गया है।
o आन देश (दोषपूणय िोकतंि) में स्वतंि और वनष्पक्ष चुनाव अयोवजत कराए जाते ह तथा यहां मौविक नाग रक
स्वतंिता का सम्मान कया जाता है, परन्तु िोकतंि के न्य पहिु से संबंवधत गंभीर दोष भी वव मान ह, जैसे
शासन में समस्याएं, ववकवसत राजनीवतक संस्कृ वत और राजनीवतक सहभावगता का वन स्तर अ द।
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आसका ईपयोग परावधय के भारत अगमन पर प्रवतबन्ध िगाने हेतु कया जाता है क्य क कोइ व पने मूि रा में
पराध कर वभयोजन से बचने के विए भारतीय वीजा हेतु अवेदन कर सकता है।
यह सूची सभी राज्य सरकार , कें द्रीय और राज्य असूचना एजेंवसय के आनपुट के साथ नुरवक्षत है।
यह घोषणा करता है क 15 गस्त 1947 को कसी न्यायािय या प्रावधकरण के समक्ष िंवबत कसी ईपासना स्थि के स्वरूप के
संप रवतयन से संबंवधत सभी वाद, पीि या न्य काययवावहयां, आस वधवनयम के प्रवतयन के साथ ही समा हो जाएंगी।
वधवनयम के प्रवतयन से छू ट:
o योध्या के वववा दत स्थि को वधवनयम से छू ट प्रदान क गयी है।
o यह वधवनयम ईन स्मारक तथा स्थि पर िागू नहीं होता, जो प्राचीन स्मारक तथा पुरातत्व स्थि और वशेष
वधवनयम, 1958 के ंतगयत अते ह।
दंड: वधवनयम क धारा 6 के नुसार वधवनयम के प्रावधान का ईल्िंघन करने पर वधकतम तीन वषय के कारावास के दंड के
साथ थयदड
ं भी अरोवपत कया जाएगा।
PT 365 - राज वस्था
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