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प्रातः काल का संध्या वंदन

अपने भारतीय धर्म में, संध्या-वंदन के दो समय नियत हैं—एक प्रात:काल, एक सायंकाल। जो रात्रि और दिन दोनों
मिलते हैं, तब उसको संध्या-काल कहते हैं। ये काल सबेरे भी होता है, और सायंकाल को भी ये होता है। इसीलिए
संध्या-वंदन—जब सूर्य उदय होता हो तब, और जब सूर्य अस्त होता हो तब, करना चाहिए।

ये संध्या, आध्यात्मिक जीवन में एक और तरीके से भी हम कर सकते हैं—सोने को रात मान लें, और जागने को दिन
मान लें। तब, तब फिर प्रात:काल का, और सायंकाल की संध्या-वंदन का आध्यात्मिक समय वो बनेगा, जब कि
आदमी सो कर के उठे गा, अथवा सोएगा।

प्रात:काल और सायंकाल की संध्या-वंदन के लिए तो ये भी हो सकता है कि लोग शिकायत करें - उस वखत तो


हमको नींद नहीं खुलती है, उस वखत तो हम दक ु ान पे रहते हैं, अमुक काम करते हैं।

लेकिन ये संध्या-वंदन हर एक आदमी के लिए संभव है कि जब प्रात:काल उठे —कभी तो उठे गा—रात को नींद पूरी
कर के उठे गा न, तब तो समय मिलेगा। सोएगा तो सही—कै बजे सोए।

सोने का समय हो, तो रात्रि का संध्या-वंदन का समय मान लिया जाए। प्रात:काल जब उठा जाए, तो प्रात:काल का
संध्या-वंदन का समय मान लिया जाए। इन दोनों समयों को संध्या-वंदन का अगर आप समय मान लें, तो फिर किसी
को ये शिकायत नहीं रहेगी, कि हमको समय नहीं मिलता।

कइयों को स्थान नहीं होता—घर में स्थान नहीं है, पूजा के सामान नहीं हैं, नहाने को समय नहीं है—तो चलिए न
सही। फिर आप ऐसे किया कीजिए, चारपाई पे पड़े-पड़े ही आप ये संध्या-वंदन कर सकते हैं। इसके लिए न उठने की
ज़रूरत है न कोई—इससे सरल तो कोई तरीका नहीं हो सकता है, इतना सरल तरीका और क्या हो सकता है,
बताइए।

ये सबसे सरलतम तरीका है कि आप प्रात:काल और सायंकाल का संध्या-वंदन, अपनी चारपाई पे पड़े हुए, उस
समय कर लिया करें, जब कि आपकी नींद खुलती है, और नींद आप लेने के लिए चले जाते हैं।

दो समय संध्या-वंदन—आप इसको भूलना मत। इसमें सिवाय आपकी लापरवाही और गैर-ज़िम्मेदारी के, और कोई
बाधा इसमें नहीं हो सकती। आप चाहें तो नियमित रूप से, हर परिस्थितियों में, बीमारी में भी, सफर में भी, कहीं भी,
कहीं भी, कहीं भी आप कर सकते हैं, और ये करनी चाहिए।

प्रात:काल की संध्या—सायंकाल की संध्या—क्या करें? क्या कहना चाहिए? क्या विचार करना चाहिए?

आपको इन दोनों समय में, आत्मबोध और तत्वबोध की साधना करनी चाहिए।

प्रात:काल जब उठा करें, तो आप अपने-आप का एक नया जन्म हुआ अनुभव किया कीजिए। ये अनुभव किया
कीजिए कि रात को सोने का अर्थ है—पिछला जन्म और जब सबेरे उठने का जन्म है नया जन्म। जब आँ ख खुली तब
नया जन्म। आप ये अनुभव कर लिया करें, तो मज़ा आए। आप ये सबेर,े हर दिन अनुभव कीजिए, कि आज हमारा
नया जन्म हुआ।

अब नए जन्म में क्या करना चाहिए? आपकी सारी बुद्धिमानी इस बात पर टिकी हुई है, कि आप अपने जीवन की
सम्पदा का किस तरीके से उपयोग किया—बस एक ही बुद्धिमानी है।
ये मानना सही नहीं है कि ये जनम भजन करने के लिए मिला हुआ है। भजन करने के लिए नहीं मिला हुआ है—कर्तव्य
करने के लिए मिला हुआ है, और इसीलिए मिला हुआ है कि आप इस जन्म की सम्पदा को ठीक तरीके से इस्तेमाल
करें। ये आपकी परीक्षा है। परीक्षा में जो पास हो जाते हैं, फिर क्लास चढ़ा दिए जाते हैं। फिर और चढ़ जाते हैं, और
पास करा दिए जाते हैं।

अगर आप ये पहली परीक्षा, जो भगवान ने आपको मनुष्य का जीवन देकर के दी है, ली है, उसमें एक ही आपका फर्ज़
हो जाता है, कि आपको इसको अच्छे से अच्छा उपयोग कर के दिखाना है। बस, भगवान ने यही अपेक्षा की है
आपसे, और आपसे, और यही उसकी उम्मीद है, और यही वो चाहता है।

न आपसे पूजा चाहता है, न उपवास चाहता है, न भजन चाहता है, न आपके लिए उपहार चाहता है, न मिठाई चाहता
है, न कपड़े चाहता है, न कीर्तन चाहता है, न कथा चाहता है—इन बातों से भगवान का कतई, कोई ताल्लुक नहीं है। ये
तो अपने-आप के परिशोधन की प्रक्रियाएँ हैं, जिसे न जाने क्यों लोगों ने ये मान लिया है कि इससे भगवान प्रसन्न हो
जाएगा। आप विश्वास रखें, इससे भगवान किसी प्रकार प्रसन्न नहीं हो सकता। इससे आपका जीवन के संशोधन करने
में, और अपने कषाय-कल्मष को निवारण करने में तो सहायता मिल सकती है, इसमें संदेह नहीं—पर जहाँ तक
भगवान की प्रसन्नता का ताल्लुक है, वहाँ सिर्फ एक बात है—आपको जो बहुमूल्य मनुष्य का जीवन दिया गया था, उस
जीवन का आपने किस तरीके से और कहाँ उपयोग किया। बस, एक प्रश्न है, दस ू रा कुछ प्रश्न नहीं है।

जब आपको ये दिया गया है, तो भगवान ने अपनी सबसे बहुमूल्य सम्पत्ति आपके हाथ में सुपुर्द कर दी। इससे बड़ी
सम्पत्ति भगवान के खजाने में कोई नहीं है, आप विश्वास रखें—मनुष्य के जीवन से बढ़ के और क्या हो सकता है?

आप दस ू रे प्राणियों पे नज़र डालिए न—सब बेचारे किस तरीके से—कोई नंगा फिर रहा है, किसी का खाने का ठिकाना
नहीं है, कोई कहीं से कहीं न बोल सकता है, न लिख सकता है।

आपको सारी सुविधाओं से भरा हुआ जीवन, आपको सिर्फ इसलिए दिया है कि आप इसका अच्छे से अच्छा उपयोग
कर के दिखाएँ ।

क्या अच्छा उपयोग बन सकता है? दो ही अच्छे उपयोग हैं—एक तो आप स्वयं में, अपनेआप को ऐसा बनाएँ , जिसको
कि आदर्श कहा जा सकता हो—दस ू रों के सामने आपका उदाहरण इस तरीके से पेश होना चाहिए, जिसको देख कर
के दसू रे आदमियों को प्रकाश मिले, रोशनी मिले, आपके पीछे चलने का मौका मिले, और आपकी अंतरात्मा कषाय
और कल्मषों से परिशोधन करती हुई, और साफ और स्वच्छ बनती चली जाए—ये आपका स्वार्थ है।

परमार्थ —परमार्थ आपका ये है कि ये भगवान की विश्व वाटिका, जिसमें आपको काम करने के लिए भेजा गया है—एक
अच्छे माली की तरीके से काम करें।

भगवान को सहायकों की ज़रूरत है, साथियों की ज़रूरत है, इंजीनियरों की ज़रूरत है ताकि इसके इतने बड़े बगीचे,
इतने बड़े कारखाने का सुव्यवस्था करने में हाथ बँटा सकें।

आपको हाथ बँटाने के लिए पैदा किया गया है—खुशामदें करने के लिए नहीं, नाक रगड़ने के लिए नहीं, चापलूसी करने
के लिए नहीं, चमचागिरि करने के लिए नहीं, मिठाई उपहास उपहार भेंट करने के लिए नहीं पैदा किया गया है। आपको
सिर्फ इसलिए पैदा किया गया है कि आप बेहतरीन जिंदगी जिएँ ।

इसके लिए क्या करना चाहिए? आमतौर से आदमी भूल जाते हैं—काम-काम की बातें सब भूल जाते हैं, और बेकार
की बातें, बेवकूफी की बातें सब याद रखते हैं।

आपको सबेरे उठते ही, ये ध्यान करना चाहिए, प्रात:काल चारपाई पे पड़े-पड़े—आज हमारा नया जन्म हुआ है, और
हमको इतनी बड़ी कीमत मिली, सम्पत्ति मिली, जिसकी तुलना में और किसी प्राणी को और कोई चीज़ नहीं दिया है।
आप अपने-आप को सौभाग्यवान अनुभव कीजिए, भाग्यशाली अनुभव कीजिए। ये अनुभव कीजिए कि हमारे बराबर
भाग्यवान कोई नहीं है।

अभागों अभावों की बात, कठिनाइयों की बात, चिंता की बात आप सोचते रहते हैं। ये क्यों नहीं सोचते ? इतना बड़ा
मनुष्य का जीवन भगवान ने आपको दे दिया, और इतने आप बड़े सौभाग्यशाली हैं।

आप सौभाग्य को सराहें—लेकिन साथ-साथ में, सराहना के साथ-साथ में एक और बात भी ध्यान रखें—ऐसी स्कीम
बनाएँ , योजना बनाएँ , जिससे कि इस जीवन का अच्छे से अच्छा उपयोग करना संभव हो सके।

ये प्रयोग एक दिन के जीवन से करना चाहिए। एक दिन-जिस दिन आप सो कर के उठें , उसी दिन ये रखिए कि बस
एक ही दिन हमारे लिए जिंदगी का है, और इस आज के दिन को हम अच्छे से अच्छा बना कर के दिखाएँ गे। बस
इतनी बात कर लें, तो आप इसी क्रम को रोज-रोज अपनाते हुए, सारी जिंदगी को भी अच्छा बना सकते हैं।

एक-एक दिन को हिसाब से जोड़ देने का मतलब होता है—सारे समय को और सारी जिंदगी को ठीक तरह से और
सुव्यवस्थित बना देना।

प्रात:काल उठा कीजिए और ये ध्यान, ये ध्यान किया कीजिए—नया जन्म—हर दिन नया जन्म - हर दिन नया जन्म
को प्रात:काल से ले के सायंकाल तक आप कैसे उपयोग करेंगे, इसके लिए एक टाइम-टेबल सबेरे उठ के बना लेना
चाहिए।

आप क्या करेंगे? और कैसे करेंगे? क्यों करेंगे? क्रिया के साथ-साथ में चिंतन को आप जोड़ दीजिए। चिंतन और क्रिया
को, दोनों को जोड़ देते हैं, तो एक समग्र बात बन जाती है।

आप शरीर से काम कर नित करते रहें, पर कोई उद्देश्य न हो और उद्देश्य आप ऊँचे रखें लेकिन उसको क्रियान्वित
करने का कोई मौका न हो तो दोनों ही बातें बेकार हो जाएं गी।

इसीलिए आप सबेरे उठते ही जहाँ आज अपने जीवन को सराहें, जहाँ मनुष्य के जीवन पर गर्व-गौरव अनुभव करें, वहाँ
एक और बात साथ-साथ चालू कर दें—सबेरे प्रात:काल से ले कर के सायंकाल तक का एक ऐसा टाइम-टेबल बनावें,
जिसको सिद्धांतवादी कहा जा सके, आदर्शवादी कहा जा सके। इसमें भगवान की हिस्सेदारी रखिए। शरीर के लिए भी
गुजारे का समय निकालिए, भगवान के लिए भी समय गुजारे का निकालिए।

भगवान भी तो हिस्सेदार है, उसके लिए भी तो कुछ करना है। आपका शरीर ही सब कुछ थोड़े ही है, आत्मा भी तो
कुछ है, आत्मा के लिए भी तो कुछ किया जाना चाहिए। सब कुछ शरीर को ही खिलाने और पिलाने के लिए आप
करेंगे—ऐसा क्यों करेंगे? आत्मा का कोई वकत नहीं है? आत्मा की कोई इज़्ज़त नहीं है? आत्मा का कोई मूल्य नहीं
है? आत्मा से आपका कोई संबंध नहीं है?

अगर है, तो फिर आपको ऐसा करना पड़ेगा—उसके साथ-साथ में दिन‌दिनचर्या में आदर्शवादी सिद्धांतों को मिला के
रखना पड़ेगा। दिनचर्या ऐसी बनाइए जिसमें आपका पेट भरने का‌भी गुंजाइश हो, और अपने कुटु म्ब के और परिवार
करने वालों के लिए भी गुंजाइश हो। लेकिन साथ-साथ में एक और गुंजाइश भी रहनी चाहिए - कि उसमें आत्मा को
संतुष् संतोष देने के लिए, और परमात्मा को प्रसन्न देने के लिए, कार्यों का और विचारों का भी समावेश हो।

आप स्वाध्याय का दैनिक जीवन में स्थान रखिए, आप सेवा का दैनिक जीवन में स्थान रखिए, आप उपासना का
दैनिक जीवन में स्थान रखिए। इन सब बातों का, समन्वित जीवन का आप अभ्यास कर लें, तो बस, आपका सबेरे
प्रात:काल वाली संध्या-वंदन पूरा हो जाएगा।
सायंकाल का संध्या वंदन
आप ये विचार ले के जाया कीजिए—हम संसार से अब चले, भगवान के यहाँ गए। भगवान के यहाँ गए, तो फिर क्या
करना चाहिए ऐसी स्थिति में? आपका लगाव जितना ज्यादा होगा, उतने ज्यादा आप कष्ट पाएँ गे। आप लगाव को छुटा
दीजिए। लगाव ही सबसे ज्यादा कष्टकारक है।

ज़िम्मेदारियों का निभाना कष्टकारक नहीं है, ज़िम्मेदारियाँ तो निभानी ही चाहिए आपको। माता के प्रति निभाइए, पत्नी
के प्रति निभाइए, बच्चों के प्रति निभाइए, मोहल्ले, समाज के लिए, सबके प्रति निभाइए - लेकिन लगाव आपको बहुत
हैरान कर देगा। ये मेरा ही बच्चा है—अब‌भगवान का बच्चा है, ये क्यों नहीं मान सकते? ये हमारी बीवी है—आप यों क्यों
कहते हैं? यों क्यों नहीं कहते—भगवान की बेटी है? यों कह देंगे तो क्या हर्ज़ है?

आप इस तरीके से, आप रात्रि को, जब आप सोया करें, और आप मौत को याद किया करें, तो आप साथ-साथ में
दो बातें और भी ध्यान रखा कीजिए—हम खाली हाथ जा रहे हैं, लालच हमारे साथ जाने वाला नहीं है, और व्यामोह
भी हमारे साथ जाने वाला नहीं है। हर प्राणी अपनी अप अपने संस्कार ले के आया है, और अपने संस्कार से चला
जाएगा। जो है फिर आप उनके मालिक कैसे हुए?

सम्पत्ति, जो आप में पेट में खा सकते हों, तन में ढक सकते हैं, सिर्फ उतनी ही आपके इस्तेमाल करने के लिए, बाकी
जमीन पे छोड़नी ही पड़ेगी—चाहे संबंधियों के लिए छोड़ें, चाहे उत्तराधिकारियों के लिए छोड़ें, चाहे पुलिसवाले के लिए
छोड़ें, चाहे किसी के लिए छोड़ें। जब छोड़नी ही पड़ेगी, तो आप उन लोगों के लिए क्यों न छोड़ें, जो कि इसके हकदार
हैं? आप उतनी ही क्यों न कमाएँ , जिससे कि आप ईमानदारी के साथ में अपने लोक और परलोक को बनाए रह
सकते हैं। आप अपने खर्च उतने ही क्यों न रखें, जिससे कि सीमित जीविका से ही आ आदमी का गुजारा बन सकता
है।

आप, ऐसे-ऐसे हजारों विचार हैं, जो आपको तब आएँ गे, जब आप ये विचार करेंगे—हमको मौत के मुँह में जाना है।
अगर ये विचार नहीं कर सकते—मौत के मुँह में जाने का विचार नहीं कर सकते—फिर तो आप पर यही व्यामोह छाया
रहेगा, यही भवबंधन छाए रहेंगे—और, और कमाना चाहिए। लालच छाया ही रहेगा, चाहे ज़रूरत है, चाहे नहीं ज़रूरत
है। मोह छाया ही रहेगा, चाहे उसकी ज़रूरत है, चाहे नहीं ज़रूरत है। बेटे, पोते सब बड़े समर्थ हो गए हैं, तो भी आप
यही सोचते रहेंगे—इनकी सहायता करें, इनको ही पैसा दें, इनको ही सहायता करें, इनको ही पैसा दें। आपके मन में
कभी ख्याल ही नहीं आएगा कि ये भी, इनके अलावा भी कोई दनि ु या में बन सकता है।

ये त्याग की वृत्ति, ये वैराग्य की वृत्ति, तब आती है, जब आदमी मृत्यु का स्मरण करता है। आप मृत्यु का स्मरण
कीजिए, मृत्यु का स्मरण करना बहुत ज़रूरी है।

ॐ क्रतो स्मर क्लिबे स्मर कृतग्वं स्मर—किए को याद करो, मौत को याद करो। भस्मांतग्वं शरीरम्—ये मरने वाले शरीर
के बारे में ध्यान रखो, कि ये कल न परसों मिट्टी में मिलने वाला है। फिर हम क्यों ऐसे गलत काम करें, जिससे कि
हमारी परम्परा भी बिगड़ती हो, पीछे वालों को आपको धिक्कारने का मौका मिलता हो, और आपकी आत्मा को
असंतोष की आग में जलने का मौका मिलता हो। आप मत कीजिए ऐसे।

ये दोनों शिक्षाएँ —आपको, नया जीवन और नया मौत, इन दोनों का स्मरण करने से मिल सकती हैं, और कोई तरीका
नहीं है। आप इन दोनो को, संध्या वंदन को, आप भूलिए मत। गायरी मंत्र को जप करते हैं—दस ू रे समय पे कीजिए,
लेकिन प्रात:काल ये सिर्फ चिंतन और मनन कीजिए, चिंतन और मनन किजिए—नया जन्म, नई मौत—हर दिन का
नया जन्म, हर रात को नई मौत। और ये मौत और जिंदगी के झूले में आप झूलते हुए, अपने फर्ज़, कर्तव्य और
बुद्धिमत्ता के बारे में विचार करेंगे, तो आपको ऐसी हजारों बातें समझ पड़ेंगी, जिसके आधार पर आपका ये जन्म
सार्थक हो सके, और आप अध्यात्मवाद के सच्चे अनुयायी और उत्तराधिकारी बन सकें। यही कहना था आज आपसे।
॥ॐ शान्तिः॥

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