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ववननयोगः
अथ ऋ यार्दन्त्यासः न्त्यासः ।
अथ करन्त्यासः ।
अथ डङ्गन्त्यासः ।
ॐ ववश्वां ववष्णव
ु ि ट्कार इनत हृदयाय नमः ।
अमत
ृ ाांशूद्भवो भानुररनत शशरसे स्त्वाहा ।
ब्रह्मण्यो ब्रह्मकृद्ब्रह्मेनत शशखायै व ट् ।
सवु णित्रबन्त्दरु क्षोभ्य इनत कवचाय हुम ् ।
ननशम ोऽननशम ः स्रग्वीनत नेररयाय वौ ट् ।
रथाङ्गपाणणरक्षोभ्य इत्यस्त्राय फट् ।
अथ ध्यानम ् ।
शान्त्ताकारां भज
ु गशयनां पद्मनाभां सरु े शां
ववश्वाधारां गगनसदृशां मेघवणं शभ
ु ाङ्गम ् ।
लक्ष्मीकान्त्तां कमलनयनां योगगशभध्यािनगम्यां
वन्त्दे ववष्णुां भवभयहरां सविलोकैकनाथम ्२॥
ववश्वां ववष्णव
ु ि ट्कारो भत
ू भव्यभवत्प्रभःु ।
भत
ू कृद्भत
ू भद्
ृ भावो भत
ू ात्मा भत
ू भावनः ॥ १॥
पत
ू ात्मा परमात्मा च म्
ु तानाां परमा गनतः ।
अव्ययः पुरु ः साक्षी क्षेरज्ञोऽक्षर एव च ॥ २॥
योगो योगववदाां नेता प्रधानपुरु ेश्वरः ।
नारशसांहवपःु श्रीमान ् केशवः पुरु ोत्तमः ॥ ३॥
सविः शविः शशवः स्त्थाणभ
ु त
ूि ार्दननिगधरव्ययः ।
सम्भवो भावनो भताि प्रभवः प्रभुरीश्वरः ॥ ४॥
स्त्वयम्भःू शम्भरु ार्दत्यः पष्ु कराक्षो महास्त्वनः ।
अनार्दननधनो धाता ववधाता धातरु
ु त्तमः ॥ ५॥
अप्रमेयो हृ ीकेशः पद्मनाभोऽमरप्रभःु ।
ववश्वकमाि मनस्त्
ु त्वष्टा स्त्थववष्ठः स्त्थववरो ध्रव
ु ः ॥
६॥
अग्राह्यः शाश्वतः कृष्णो लोर्हताक्षः प्रतदि नः ।
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( यहााँ स्त्तोर पाठ समाप्त होता है ! )
द्वारा,
हमारे अनभ
ु व में आया है कक , एकािशी के दिन २१ पाठ ( श्री
शालिग्राम अलभषेक के साि ) से इस सहस्त्र नाम को लसध्ि करने पर
संकल्प पूवक
व प्रततदिन ११ पाठ २१ अिवा ४० दिन तक करने पर घर
– पररवार के िोष समाप्त होने िगते है और आश्रिवक समस्त्याओं का
तनवारण होने िगता है ! घोर िाररद्रय व्यस्क्त भी इस पाठ से सख
ु ी
जीवन जी सकता है ! अलभषेक के जि को पान करना चादहए अिावत
प्रसाि स्त्वरुप सभी को पीना चादहए तिा शंख द्वारा घर में तिड़कना
भी चादहए ! ऐसा ४० दिन प्रयोग करने पर घर के वातावरण में
सकारात्मक पररवतवन अनुभव आएगा ! आसुरी तत्व नष्ट होकर
घर – पररवार में ईश्बरमय वातावरण तनलमवत होता है !