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महाभारत के अमर पा

कत यिन कु ती

eISBN: 978-93-5278-581-0
© काशकाधीन
काशक: डायमंड पॉकेट बु स ( ा.) ल.
X-30 ओखला इंड टयल ए रया, फेज-II
नई िद ी-110020
फोन: 011-40712100, 41611861
फै स: 011-41611866
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वेबसाइट: www.diamondbook.in
सं करण: 2017
कत यिन कु ती
लेखक: डॉ. िवनय
भूिमका
महाभारत भारतीय सं कृित का अ यतम ंथ है। इसे पांचवां वेद कहा गया है। अनेक
भारतीय-पा चा य िव ान ने इसे महाका य मानकर सं कृित, दशन त व, िचंतन, भि क
स पूण अिभ यि का मूल ोत माना है। वयं महाभारत म कहा गया है िक ‒

धम चाथ चकामे च मो ेच भरतषम।


यिद हा त तद य य े हा त न त विचत्।।
म. 1/62/53

[‘‘हे भरत े ! धम, अथ, काम और मो के संदभ म जो कुछ इस ंथ


म है, वही और थान पर है और जो इसम नह है, वह कह नह है।’’]
और यह वयं स है िक इतने महान ंथ म जो व तु (कथा) होगी वह महानतम होगी
य िक कथा ही वह मूल आधार है जससे स यता, सं कृित, दशन के िविभ आधार ोत
सृ जत होते ह! कथा के साथ व तु के आधार प म च र भी अपने गुण, कम, वभाव से
लोको र होते ह। यह मनु य क अ यंत वाभािवक वृ है िक वह लोक को इतना उठाता है
िक लोको र हो जाए और लोको र को अपनी समझ सीमा म लाने के लए... लोक का...
या सामा य बनाता है। महाभारत म ये दोन थितयां िव मान ह।
और, महाभारत म जस िवराट सं कृित, धम, अथ, काम, मो के यवहार क आधारिशला
रखी गई है, उसका वहन करते ह योगीराज कृ ण, भी म, ोण, कौरव, पा डव और कृित
शि म कुं ती, ौपदी तथा गांधारी जैसी सती! इनके साथ सां कृितक िवकास के आरोह-
अवरोह म सहयोगी होते ह ‒ कण, ुपद तथा अ य पा (च र ) जो सीधे महाभारत के रचना
धरातल पर सि य ह।
इन सि य च र के साथ पुराकाल के अ य कथानक ह जो इस रचना को भूत, वतमान
और भिव य क ि का आकार ंथ बना देते ह!
भि क ि से महाभारत के ितपा ह योगीराज कृ ण अथात् महाभारत का अनुकूल
प कृ ण व है और जो कृ ण के अनुकूल नह , वह िवरोधी है, अधम है साथ ही या य भी!
इसी ि से महाभारत म आये अ य पा क थित देखी जा सकती है पर ये सभी पा अपने
यि व म िविच , उ ेजक, ेरणा द और मानवीय अनुभव से भरे ह। इनका एक धरातल
महाभारत म वेद यास के श द म य होता है और उसके अित र समय वाह क
अनुकूलता- ितकू लता म उनके अनेक वर उभरते ह, इसी लए महाभारत म यह भी कहा गया
है िक यह ंथ युग तक किवय , रचनाकार को आंदो लत करता रहेगा।
महाभारत के पा म यिद आ चयजनक िद यानुभाव है तो उतना ही मानवानुभाव भी! चाहे
धृतरा ह , अजुन ह , भी म ह ... सब कह -न-कह सव च भाव भूिम पर िति त होकर
कह -न-कह सामा य भी बन जाते ह! वे सहष अपने बड पन क चादर पर छोटेपन का
ध बा लगने देते ह जससे उनक सहजता और िव वसनीयता बनी रह सके।
हमने इन अमर पा को औप या सक शैली म िचि त करने का यास िकया है। यह
उप यास नह है, न जीवन च र ... कह कु छ दोन का संगम बन पड ा है। हमने पूरा यास
िकया है िक उनका महाभारतीय च र यथावत बना रह सके और उनम से मानवीय सहजता
क अिभ यि भी हो सके।
हम कहां तक सफल ह! जब तक आप पढ गे नह , कैसे पता चलेगा?

‒ डॉ. िवनय
25, ब लो रोड
िद ी-110007
कत यिन कु ती
इस दा ण य क प रक पना इससे पहले िकसी ने भी नह क होगी। नदी का िकनारा
सफेद व पहने मिहलाओं से भरा हआ था। िगने चुने पु ष, कु छ वृ और कु छ बालक उनके
बीच म इधर-उधर आते-जाते िदखाई दे रहे थे। पांच पांडव, माता कु ती और ौपदी को साथ
लेकर अपने ब धुजन को जलांज ल देने के लए एकि त हए थे।
कु ती ौपदी का सहारा लेकर बहत सहमे-सहमे मन से यु धि र के पास आई। यु धि र को
लगा िक मां कु छ कहना चाहती है। उ ह ने पूछा, “ या बात है मां कु छ कहना है या?”
“हां व स यिद आज भी नह कह पाई तो िफर कब कहग
ं ी।”
“ऐसी कौन-सी बात है जसके िवषय म आप इस तरह से कह रही ह। और आपका मन
अशांत है।” यु धि र बोले।
“जब िकसी बोझ को मन पर बहत अ धक देर रखा जाता है तो ऐसा ही होता है।”
“आ ा दी जए।”
यु धि र और मां को इस तरह उदास भाव से बात करते हए देख कर शेष भाई भी वह आ
गये। ौपदी कु छ जानी और अनजानी अनुभूितय के साथ अतीत का एक िच देखने लगी।
उसने सोचा िक हो न हो माता ी कु छ न कु छ बहत रह यमय बात कहना चाहती ह।
यु धि र ने जैसे ही कु ती से कु छ पूछना चाहा वैसे ही कु ती उनसे बोली‒“व स, जलांज ल
देते हए कण को भी जलांज ल तु ह ही देनी होगी।”
यु धि र एकदम भ च के रह गये और माता क आंख म ि डाल कर कहने लगे‒“ या
यह सच है?”
“म जानती हं तु ह यह सुनकर कु छ िविच नह लगेगा। य िक तुम वयं भूत और भिव य
का बहत कु छ जानते हो, िक तु हे पु ! कण तुम सबका बड ा भाई था और केवल मेरे ारा
स य को वीकार न करने क िह मत के कारण उसे जीवन भर सूतपु बनकर रहना पड ा।”
“यह आप या कह रही ह माता?” सभी पांडव एक साथ बोले।
“म जो समझती थी वही सच है।” ौपदी ने भी अपने आपसे कहा।
“हां व स! यह मुझ अभागे जीवन क एक रह य गाथा है जसे कृ ण, सूय के अित र और
कोई नह जानता। यूं तो यह ऐसी बात है जसे देवता तो जानते ही ह गे! कण सूय के ारा
मुझसे उ प पु था जो तु हारे िपता पा डु से िववाह के पूव एक ज ासावश उ प हआ था।”
कु ती ने एक ल बी सांस ली और कहा‒“यह जो जीवन-भर उपेि त रहा है, जो हमेशा
अजुन से ेष रखता था, जसे ौपदी के वयंवर म सूतपु कहकर वयं ौपदी ने अपमािनत
िकया और जो अपने ही भाई के ारा मारा गया वह कण मेरा और सूय का पु था। कण को भी
जलांज ल दो व स!”
“जलांज ल तो म दग
ं ू ा ही, िक तु मां कण के स ब ध म जो कभी-कभी मेरे मन म आदर का
भाव उठा करता था उसका कारण यही था। अनेक बार ऐसा लगता था जैसे र क एक धारा
दसरी
ू धारा को ख च रही है। बताओ मां इस पूरे आ यान का श द-श द बताओ जससे अपनी
आंख को आंसुओं से धोकर म कु छ प चाताप कर सकूं ।”
“तु ह प चाताप करने क कोई आव यकता नह है। क मेरा था मने भोगा और यिद तुम
कह ही रहे ही तो म आ ोपांत सारा वृ ांत सुना देती ह।ं म िकस-िकस तरह आ ममंथन के माग
से िनकली हं यह म ही जानती ह।ं ”
यु धि र के हाथ म जल था। वह अपने भाई का तपण कर रहे थे और जैसे उनके सामने उस
अतीत का य धीरे -धीरे बोलने लगा जसके पा वे कई बार वयं रह चुके थे।

कु तभोज का दरबार
राजा कु तभोज का दरबार लगा हआ था। दाएं-बाएं उ चासन पर सेनापित, मं ी प रषद के
सद य िवराजमान थे। और सामने रा य संहासन पर राजा कु तभोज अपनी स पूण आभा से
िव मान थे। प रचा रका चंबर डु ला रही थी। आज राजा के सामने हष और भय का समान
अवसर था। उनके िवशेष दतू ने सूचना दी थी िक महिष दवु ासा उनके रा य म वेश कर चुके
ह और कभी भी दरबार म आ सकते ह।
महिष दवु ासा को कौन नह जानता...उन ोधी मुिन को! स ह तो तीन लोक क िन ध दे
द और यिद ाणी के दभु ा य से अ स हो जाएं तो ो धत होकर ऐसा शाप द िक सवनाश हो
जाए।
दरबार के अ य सभासद को भी संकेत से राजा ने बता िदया था िक एक ा ण आने वाले
ह। अतः आज ितिदन का राजकाय नह होगा। मा और द ड क यव था महामं ी वयं देख
लगे। राजा अ यंत उ सुकतापूवक ा ण महाराज क ती ा कर रहे थे। एक-एक ण बेचन ै ी
से कट रहा था।
तभी अ यंत ऊंचे कद के एक च ड तेज वी ा ण उप थत हए। उ ह ने दाढ ी-मूंछ, द ड
और जटा धारण कर रखी थी।
उनका व प देखने ही यो य था। उनके सभी अंग िनद ष थे। वे तेज से जव लत होते से
जान पड ते थे। उनके शरीर क का त मधु के समान पीले वण क थी। वे मधुर वचन बोलने
वाले तथा तप या ओर वा याय प सदगुण से िवभूिषत थे।
उन महातप वी ने राजा कु तभोज से कहा‒“िकसी से ई या न करने वाले नरे श! म तु हारे
घर म िभ ा त भोजन करना चाहता ह,ं पर तु एक शत है तुम या तु हारे सेवक कभी मेरे मन
के ितकू ल आचरण न कर। अनघ! यिद तु ह मेरी यह शत ठीक जान पड े, तो उस दशा म
म तु हारे घर म िनवास क ं गा।”
“म अपनी इ छा के अनुसार जब चाहग ं ा, चला जाऊंगा और जब जी म आयेगा चला
आऊंगा। राजन्! मेरी शैया और आसन पर बैठना अपराध होगा। अतः यह अपराध कोई न
करे ।”
तब राजा कु तभोज ने बड ी स ता के साथ उ र िदया‒“िव वर ‘एवम तु’‒जैसा आप
चाहते ह, वैसा ही होगा।” इतना कहकर वे िफर बोले‒“हे तप वी! मेरे यहां मेरी पृथा नाम क
एक यश वनी क या है, जो शील और सदाचार से स प , सा वी, संयम-िनयम से रहने वाली
और िवचारशील है। वह सदा आपक सेवा-पूजा के लये उप थत रहेगी। उसके ारा आपका
अपमान कभी न होगा। मेरा िव वास है िक उसके शील और सदाचार से आप संतु ह गे।”
ऐसा कहकर उन ा ण देवता क िव धपूवक पूजा करके राजा ने अपनी िवशाल ने वाली
क या पृथा के पास जाकर कहा‒
“व से! ये महाभाग ा ण मेरे घर म िनवास करना चाहते ह। मने ‘तथा तु’ कहकर इ ह
अपने यहां ठहराने क ित ा कर ली है।”
“बेटी! तुम पर भरोसा करके ही मने इन तेज वी ा ण क आराधना वीकार क है, अतः
तुम मेरी बात कभी िम या न होने दोगी, ऐसी आशा है। तुम इनक सेवा के लए िनयु क गई
हो।”
“ये ि यवर महातेज वी, तप वी, ऐ वयशाली तथा िनयमपूवक वेद के वा याय म संल
रहने वाले ह। ये जस- जस व तु के लये कह, वह सब इ ह ई या रिहत हो ा के साथ
देना।”
“ य िक ा ण ही उ कृ तेज है, ा ण ही परम तप है, ा ण के नम कार से ही सूय देव
आकाश म कािशत हो रहे ह।”
“माननीय ा ण का स मान न करने के कारण ही महान असुर वातािप और उसी कार
तालजंघ द ड से मारे गये।”
“अतः बेटी! इस समय सेवा का यह महान भार मने तु हारे ऊपर डाला है। तुम सदा
िनयमपूवक इन ा ण देवता क आराधना करती रहो।”
“माता-िपता का आन द बढ ाने वाली पु ी। म जानता ह,ं बचपन से ही तु हारा िच एका
है। सम त ा ण , गु जन , ब धु-बा धव के साथ सदा यथोिचत बताव करती आयी हो। तुमने
अपने स ाव से सबको भािवत कर लया है।”
“िनद ष अंग वाली पु ी! नगर म या अ तःपुर म, सेवक म भी कोई ऐसा मनु य नह है, जो
तु हारे उ म बताव से संतु न हो।”
“तथािप पृथ!े तुम अभी बा लका और मेरी पु ी हो, इस लये इन ोधी ा ण के ित बताव
करने के िवषय म तु ह कु छ उपदेश देने क आव यकता म अनुभव करता ह।ं ”
“वा ण वंश म तु हारा ज म हआ है। तुम शूरसेन क यारी पु ी हो। पूवकाल म वयं तु हारे
िपता ने बा याव था म ही बड ी स ता के साथ तु ह मेरे हाथ स पा था।”
“तुम वसुदेव क बिहन तथा मेरी संतान म सबसे बड ी हो। पहले उ ह ने यह ित ा कर
रखी थी िक म अपनी पहली संतान तु ह दे दग ं ू ा। उसी के अनुसार उ ह ने तु ह मेरी गोद म
अिपत िकया है, इस कारण तुम मेरी द क पु ी हो।”
“वैसे उ म कु ल म तु हारा ज म हआ तथा मेरे े कु ल म तुम पा लत और पोिषत होकर
बड ी हई।ं जैसे जल क धारा एक सरोवर से िनकलकर दसरे ू सरोवर म िगरती है, उसी
कार तुम एक सुखमय थान से दसरे ू सुखमय थान म आयी हो।”
“शुभ!े जो दिषत
ू कु ल म उ प होने वाली यां ह, वे िकसी तरह िवशेष आ ह म
पढ कर अपने अिववेक के कारण ायः िबगड जाती ह।”
“पृथ!े तु हारा ज म राजकु ल म हआ है। तु हारा प भी अ ुत है। कु ल और व प के
अनुसार ही तुम उ म शील, सदाचार और स गुण से संय ु एवं स प हो। साथ ही
िवचारशील भी हो।”
“सु दर भाव वाली पृथ!े तुम दप, द भ और मान को यागकर यिद इन वरदायक ा ण क
आराधना करोगी, तो परम क याण क भािगनी होओगी।”
“क यािण ! तुम पाप रिहत हो। यिद इस कार इनक सेवा करने म सफल हो गय , तो तु ह
िन चय ही क याण क ाि होगी और यिद तुमने अपने अनुिचत बताव से इन े ा ण
को कु िपत कर िदया, तो मेरा संपूण कु ल जलकर भ म हो जायेगा।”
अपने िपता क बात सुनकर कु ती ने कहा‒
“िपता! म िनयम म आब रहकर आपक ित ा के अनुसार िनरं तर इन तप वी ा ण क
सेवा-पूजा के लए उप थत रहग
ं ी। म झूठ नह बोलती ह।ं म यथाशि उनक सेवा क ं गी।”
“यह मेरा वभाव ही है िक म ा ण क सेवा-पूजा क ं और आपका ि य करना तो मेरे
लये परम क याण क बात है ही।”
“ये पूजनीय ा ण यिद सायंकाल आव, ातःकाल पधार अथवा रात या आधी रात म भी
दशन द, ये कभी भी मेरे मन म ोध उ प नह कर सकगे। म हर समय इनक समुिचत सेवा
के लये तुत रहग ं ी।”
“मेरे लये महान लाभ क बात यही है िक म आपक आ ा के अधीन रहकर ा ण क
सेवा-पूजा करती हई सदैव आपका िहत-साधन क ं ।”
“महाराज! िव वास क जये। आपके भवन म िनवास करते हये ये ि ज े कभी अपने मन
के ितकू ल कोई काय नह देख पायगे। यह म आपसे स य कहती ह।ं ”
“मेरे िपता एवं िन पाप नरे श! आपक मान सक िच ता दरू हो जानी चािहये। म वही काय
करने का य न क ं गी, जो इन तप वी ा ण को ि य और आपके लये िहतकर हो। य िक
हे राजा! महाभाग ा ण भली-भांित पू जत होने पर सेवक को तारने म समथ होते ह और
इसके िवपरीत अपमािनत होने पर िवनाशकारी बन जाते ह।”
“म इस बात को जानती ह।ं अतः इन े ा ण को सब तरह से संतु रखूंगी। राजन्! मेरे
कारण इन ि ज े से आपको कोई क नह ा होगा। आपक िश ा मेरा संबल बनेगी।”
“हे िपता! िकसी बा लका ारा अपराध बन जाने पर भी ा ण लोग राजाओं का अमंगल
करने को उ त हो जाते ह, जैसे ाचीनकाल म सुक या ारा अपराध होने पर महिष यवन
महाराज शयाित का अिन करने को उ त हो गये थे। इस लए आपक िचंता वाभािवक है
िक तु म आपके ारा बताए ा ण के ित बताव करने के िवषय म जो कु छ कहा है, उसके
अनुसार उ म िनयम के पालनपूवक इन े ा ण क सेवा म उप थत रहग ं ी, म िकसी
कार का माद नह क ं गी।”
इस कार कहती हई कु ती को बारं बार गले से लगाकर राजा ने उसक बात का समथन
िकया और कैसे-कैसे या करना चािहए, इसके िवषय म उसे सुिन चत आदेश िदया।
“भ े। अिन दते! मेरे, तु हारे तथा कु ल के िहत के लये तु ह िनःशंक भाव से इसी कार
यह सब काय करना चािहये।”
ा ण ेमी महायश वी राजा कु तभोज ने पु ी से ऐसा कहकर उन आये हए ि ज क सेवा
म पृथा को दे िदया। वे बहत स हए
और ा ण से कहा- यह मेरी पु ी पृथा अभी बा लका है और सुख म पली हई है। यिद
आपको कोई अपराध कर बैठे, तो भी आप उसे मन म नह लाइयेगा।
“वृ , बालक और तप वी जन यिद कोई अपराध कर द, तो भी आप जैसे महाभाग ा ण
ायः कभी उन पर ोध नह करते।”
“हे भु! सेवक का महान अपराध होने पर भी ा ण को मा करना चािहये तथा शि
और उ साह के अनुसार उनके ारा क हई सेवा-पूजा वीकार कर लेनी चािहये।”
ा ण ने “ऐसा ही होगा” कहकर राजा का अनुरोध मान लया। इससे उनके मन म बड ी
स ता हई। उ ह ने ा ण को रहने के लये हंस और च मा क िकरण के समान एक
उ वल भवन दे िदया।
वहां अि हो घर म उनके लये चमचमाते हए सु दर आसन क यव था हो गयी। भोजन
आिद क सब साम ी भी राजा ने वहां तुत करा दी।
राजकु मारी कु ती आल य और अिभमान को दरू भगाकर ा ण क आराधना म बड े
य न से संल हो गयी।
बाहर-भीतर से शु हो सती-सा वी पृथा उन पूजनीय ा ण के पास जाकर देवता क भांित
उनक िव धवत आराधना करके उ ह पूण प से संतु रखने लगी।
इस कार वह क या पृथा कठोर त का पालन करती हई शु दय से उन उ म तधारी
ा ण को अपनी सेवाओं ारा संतु रखने लगी। उसके मन म कभी माद नह आया।
वे े ा ण कभी यह कहकर िक म ातःकाल लौट आऊंगा चल देते और सायंकाल
अथवा बहत रात बीतने पर पुनः वापस आते थे पर तु वह क या ितिदन हर समय पहले क
अपे ा अ धक-अ धक प रमाण म खाने-पीने आिद क साम ी तथा शैया-आसन आिद तुत
करके उनक सेवा-स कार िकया करती थी।
िन य ित अ आिद के ारा उन ा ण का स कार अ य िदन क अपे ा बढ कर ही
होता था। उनके लये शैया और आसन आिद क सुिवधा भी पहले क अपे ा अ धक ही क
जाती थी। िकसी बात म तिनक भी कमी नह क जाती थी िक तु तप वी ा ण अपने उ
वभाव के कारण कभी-कभी ध कारते, कभी बात-बात म दोषारोपण करते और ायः कटु
वचन भी बोला करते थे, तो भी पृथा उनके ित कभी कोई अि य बताव नह करती थी।
वे कभी ऐसे समय म लौटकर आते थे, जबिक पृथा को दसरे
ू काम से दम लेने क भी
फुरसत नह होती थी और कभी वे कई िदन तक आते ही नह थे। आने पर भी ऐसा भोजन मांग
लेते, जो अ यंत दल
ु भ होता।
पर तु कु ती उ ह उनक मांगी हई सब व तुएं इस कार तुत कर देती थी, मानो उनको
पहले से ही तैयार करके रखा हो। वह अ यंत संयत होकर िश य, पु ी तथा छोटी बिहन क
भांित सदा उनक सेवा म लगी रहती थी।
उस अिन क या र न कु ती से उन े ा ण को उनक िच के अनुसार सेवा करके
अ यंत स कर लया।
उसके शील, सदाचार तथा सावधानी से उन ि ज े को बड ा संतोष हआ। उ ह ने कु ती
का िहत करने का पूरा य न िकया।
िपता कु तभोज ितिदन ातःकाल और सायंकाल म पूछते थे‒“बेटी! तु हारी सेवा से ा ण
को संतोष तो है न?”
वह यश वनी क या उ ह उ र देती‒“हां िपताजी! वे बहत स ह।” यह सुनकर महामना
कु तभोज को बड ा हष ा होता था।
तदनंतर जब एक वष पूरा हो गया और पृथा के ित वा स य नेह रखने वाले जयकताओं
म े ा ण दवु ासा जी ने उसक सेवा म कोई ुिट नह देखी, तब वे िच होकर पृथा से इस
कार बोले‒“भ े! म तु हारी सेवा से बहत स ह।ं शुभ!े क यािण! तुम मुझसे ऐसे वर मांगो,
जो यहां दसरे
ू मनु य के लये दल ु भ ह और जनके कारण तुम संसार क सम त सु द रय को
अपने सुयश से परा जत कर सको।”
कु ती बोली, “वेदवे ाओं म े ! जब मुझ सेिवका के ऊपर आप और िपताजी स हो
गये, तब मेरी सब कामनाएं पूण हो गय । िव वर! मुझे वर लेने क आव यकता नह है।” इस
पर दवु ासा बोले‒
“भ े! पिव मु कान वाली पृथ!े यिद तुम मुझसे वर नह लेना चाहती हो, तो देवताओं का
आवाहन करने के लये यह एक मं ही हण कर लो।”
“भ े! तुम इस मं के ारा जस जस देवता का आवाहन करोगी, वह तु हारे अधीन हो जाने
के लये बा य होगा।”
“वह देवता कामना रिहत हो या कामनायु , मं के भाव से शा त िच हो, िवनीत सेवक
क भांित तु हारे पास आकर तु हारे अधीन हो जायेगा। और उसके आने से तु हारा क याण
होगा।”
सा वी पृथा दसरी
ू बार उन े ा ण क बात न टाल सक , य िक वैसा करने पर उसे
उनके शाप का भय था।
तब ा ण ने िनद ष अंग वाली कु ती को उस मं समूह का उपदेश िदया। यह मं इस
कार पहले केवल ऋिषय को ही ा था।
पृथा को वह मं देकर ा ण ने राजा कु तभोज से कहा‒“राजन्! म तु हारे घर म तु हारी
क या ारा सदा समा त और संतु होकर बड े सुख से रहा ह।ं अब हम अपनी काय सि
के लये यहां से जायगे।” ऐसा कहकर वे ा ण वह अ तधान हो गये।
ा ण को अ तिहत हआ देख उस समय राजा को बड ा िव मय हआ और उ ह ने अपनी
पु ी कु ती का िवशेष आदर-स कार िकया।

मं परी ा
े ा ण दवु ासा के चले जाने पर िकसी कारणवश राजक या कु ती ने मन ही मन सोचा,
इस मं के समूह म कोई बल है या नह ।
“उन महा मा ा ण ने मुझे यह कैसा म समूह दान िकया है? उसके बल को म शी ही
जानूग
ं ी।” कु ती क ज ासा बढ ने लगी थी।
इस कार सोच-िवचार म पड ी हई कु ती ने अक मात अपने शरीर म ऋतु का ादभु ाव
हआ देखा। क याव था म ही अपने को रज वला पाकर उस बा लका ने ल जा का अनुभव
िकया।
तदन तर एक िदन कु ती अपने महल के भीतर एक बहमू य पलंग पर लेटी हई थी। उसी
समय उसने पूव िदशा म उिदत होते हए सूयम डल क ओर ि पात िकया। उसने पहले उधर
से अपना मुंह हटाया िफर देखने पर भी ातः सं या के समय उगते हए सूय क सुम यमा कु ती
को तिनक भी ताप का अनुभव नह हआ। उसके मन और ने उ ह म आस हो गये।
उस समय उसक ि िद य हो गयी। उसने िद य प म िदखायी देने वाले भगवान सूय क
ओर देखा। वे कवच धारण िकये एवं कु डल से िवभूिषत थे।
उ ह देखकर कु ती के मन म अपने मं क शि क परी ा करने के लये कौतूहल पैदा
हआ। तब उस सु दरी राजक या ने सूयदेव का आवाहन िकया।
उसने िव धपूवक आचमन और ाणायाम करके भगवान् िदवाकर का आवाहन िकया। राजन!
तब भगवान सूय बड ी उतावली के साथ वहां आये।
उनक अंगका त मधु के समान िपंगल वण क थी। भुजाएं बड ी-बड ी और ीवा शंख
के समान थी। वे हंसते हए जान पड ते थे। उनक भुजाओं म अंगद चमक रहे थे और म तक
पर बंधा हआ मुकुट शोभा पाता था। वे स पूण िदशाओं को जव लत-सी कर रहे थे।
वे योग शि से अपने दो व प बनाकर एक तो वहां आये और दसरे ू आकाश म तपते रहे।
उ ह ने कु ती को समझाते हए परम मधुर वाणी म कहा‒“तुमने मुझे बुलाया है।”
“भ े! म तु हारे म के बल से आकृ होकर तु हारे वश म आ गया ह।ं राजकु मारी!
बताओ, तु हारे अधीन रहकर म कौन-सा काय क ं ? तुम जो कहोगी, वही क ं गा।”
“भगवान! आप जहां से आये ह, वह पधा रये। मने आपको कौतूहल-वश ही बुलाया था।
भो! स होइये।”
“तनुम यमे! जैसा तुम कह रही हो, उसके अनुसार म चला तो जाऊंगा ही, पर तु िकसी देवता
को बुलाकर उसे यथ लौटा देना याय क बात नह है। यह िकसी भी प म उिचत नह ।”
“सुभगे! तु हारे मन म यह संक प उठा था िक सूयदेव से मुझे एक ऐसा पु ा हो, जो
संसार म अनुपम परा मी तथा ज म से ही िद य कवच एवं कु डल से सुशोिभत हो।”
“अतः गजगािमनी! तुम मुझे अपना शरीर समिपत कर दो। अंगने! ऐसा करने से तु ह अपने
संक प के अनुसार तेज वी पु ा होगा।”
“भ े! सु दर मु कान वाली पृथ।े तुमसे समागम करके म पुनः लौट जाऊंगा, पर तु यिद आज
तुम मेरा ि य वचन नह मानोगी, तो म कु िपत होकर तुमको, उस म दाता ा ण को और
तु हारे िपता को भी शाप दे दग
ं ू ा। तु हारे कारण म उन सबको जलाकर भ म कर दग ं ू ा, इसम
संशय नह है।”
“तु हारे मूख िपता को भी म जला दगं ू ा। जो तु हारे इस अ याय को नह जानता है तथा
जसने तु हारे शील और सदाचार को जाने िबना ही म का उपदेश िदया है, उस ा ण को भी
अ छी सीख दग ं ू ा।”
“भािमनी! ये इ आिद सम त देवता आकाश म खड े होकर मु कराते हए से मेरी ओर
इस भाव से देख रहे ह िक म तु हारे ारा कैसे ठगा गया। देखो न, इन देवताओं क ओर! मने
तु ह पहले से ही िद य ि दे दी है, जससे तुम मुझे देख सक हो।”
सूय क बात सुनकर कु ती भयभीत हो गई िक तु तभी एक ण बाद राजकु मारी कु ती ने
आकाश म अपने-अपने िवमान पर बैठे हए सब देवताओं को देखा। जैसे सह िकरण से यु
भगवान सूय अ यंत दीि मान िदखायी देते ह, उसी कार वे सब देवता कािशत हो रहे थे।
उ ह देखकर बा लका कु ती को बड ी ल जा हई। उस देवी ने भयभीत होकर सूयदेव से
कहा‒“िकरण के वामी िदवाकर! आप अपने िवमान पर चले जाइये। छोटी बा लका होने के
कारण मेरे ारा आपको बुलाने का यह दःु खदायक अपराध बन गया है।”
“मेरे िपता-माता तथा अ य गु जन ही मेरे इस शरीर को देने का अ धकार रखते ह। म अपने
धम का लोप नह क ं गी। य के सदाचार म अपने शरीर क पिव ता को बनाये रखना ही
धान है और संसार म उसी क शंसा क जाती है।”
“ भो! भाकर! मने अपने बाल- वभाव के कारण मं का बल जानने के लये ही आपका
आवाहन िकया है। एक अनजान बा लका समझकर आप मेरे इस अपराध को मा कर द।”
“कु तभोजकु मारी कु ती। बा लका समझकर ही म तुमसे इतना अनुनय-िवनय करता ह।ं
दसरी
ू कोई ी मुझसे अनुनय का अवसर नह पा सकती। भी ! तुम मुझे अपना शरीर अपण
करो। ऐसा करने से ही तु ह शांित ाि हो सकती है।”
“िनद ष अंग वाली सु दरी! तुमने म ारा मेरा आवाहन िकया है, इस दशा म उस आवाहन
को यथ करके तुमसे िमले िबना ही लौट जाना मेरे लये उिचत न होगा। भी ! यिद म इसी
तरह लौटूंगा, तो जगत म मेरा उपहास होगा। शुभ!े स पूण देवताओं क ि म भी मुझे िनंदनीय
बनना पड ेगा।”
“अतः तुम मेरे साथ समागम करो। तुम मेरे ही समान पु पाओगी और सम त संसार म
िविश समझी जाओगी, इसम संशय नह है।”
सूय अपनी बात पर ढ थे अतः राजक या मन वनी कु ती नाना कार से मधुर वचन
कहकर अनुनय िवनय करने पर भी भगवान को मनाने म सफल न हो सक ।
जब वह बाला अ धकार नाशक भगवान सूयदेव क टाल न सक तब शाय से भयभीत हो
दीघकाल तक मन ही मन कु छ सोचने लगी।
उसने सोचा िक या उपाय क ं ? जसम मेरे कारण मेरे िनरपराध िपता तथा िनद ष ा ण
को ोध म भरे हए इस सूयदेव से शाप न ा हो।
“स जन बालक को भी चािहये िक वह अ यंत मोह के कारण पापशू य तेज वी तथा तप वी
पु ष के अ यंत िनकट न जाये।”
“पर तु म तो आज अ यंत भयभीत हो भगवान सूयदेव के हाथ म पड गयी ह,ं तो भी वयं
अपने शरीर को देन-े जैसा न करने यो य नीच कम कैसे क ं ?”
कु ती शाप से अ य त डरकर मन ही मन तरह-तरह क बात सोच रही थी। उसके सारे अंग
मोह से या हो रहे थे। वह बार-बार आ चयचिकत हो रही थी। एक ओर तो वह शाप से
आतंिकत थी, दसरी
ू ओर उसे भाई-ब धुओं का भय लगा हआ था। उस दशा म वह ल जा के
कारण िव ृख
ं ला वाणी ारा सूयदेव से इस कार बोली‒
“देव! मेरे िपता, माता तथा अ य बा धव जीिवत ह। उन सबके जीते जी वयं आ मदान करने
पर कह शा ीय िव ध का लोप न हो जाये।”
“भगवन! यिद आपके साथ मेरा वेदो िव ध के िवपरीत समागम हो तो, मेरे ही कारण जगत
म इस कु ल क क ित न हो जायेगी। अथवा तपने वाल म े िदवाकर! यिद ब धुजन के
िदये िबना ही मेरे साथ अपने समागम को आप धमयु समझते हो तो म आपक इ छा पूण कर
सकती ह।ं ”
“दधु ष देव! म आपको आ मदान करके भी सती सा वी रह सकती ह।ं आप म ही देहधा रय
के धम, यश, क ित तथा आयु िति त ह।”
“शुिच मते! वरारोहे! तु हारा क याण हो। तुम मेरी बात सुनो। तु हारे िपता, माता अथवा
अ य गु जन ही तु ह देने म समथ नह ह। तुम वयं भी यह िनणय ले सकती हो।”
“सु दर भाव वाली कु ती! ‘कम’ धातु से क या श द क सि होती है। सु दरी! वह सब वर
म से िकसी को भी वतं तापूवक अपनी कामना का िवषय बना सकती है, इस लए इस जगत म
उसे क या कहा गया है। यह क या का अ धकार है।”
“कु ती! मेरे साथ समागम करने से तु हारे ारा कोई अधम नह बन रहा है। भला म लौिकक
कामवासना के वशीभूत होकर अधम का वरण कैसे कर सकता ह? ं ”
“मेरे लए सभी यां और पु ष आवरण रिहत ह, य िक म सबका सा ी ह।ं जो अ य सब
िवकार ह, वह तो ाकृत मनु य का वभाव माना गया है।”
“तुम मेरे साथ समागम करके पुनः क या ही बनी रहोगी और तु ह महाबाह एवं महायश वी
पु ा होगा।”
“सम त अ धकार को दरू करने वाले सूयदेव! यिद आपसे मुझे पु ा हो तो वह महाबाह,
महाबली तथा कु डल और कवच से िवभूिषत शूरवीर हो।”
“भ े! तु हारा पु महाबाह, कु डलधारी तथा िद य कवच धारण करने वाला होगा। उसके
कु डल और कवच दोन अमृतमय ह गे।”
“ भो! आप मेरे गभ से जसको ज म दगे, उस मेरे पु के कु डल और कवच यिद अमृत से
उ प हए ह गे, तो भगवन्! आपने जैसा कहा है, उसी प म मेरा आपके साथ समागम हो।
आपका वह पु आपके ही समान वीय, प, धैय, ओज तथा धम से यु होना चािहये।”
“यौवन के मद से सुशोिभत होने वाली भी राजकु मारी! माता अिदित ने मुझे जो कु डल
िदये ह, उ ह म तु हारे इस पु को दे दग
ं ू ा। साथ ही यह उ म कवच भी उसे अिपत क ं गा।”
“भगवान! गोपते! जैसा आप कहते ह, वैसा ही पु यिद मुझे ा हो, तो म आपके साथ
उ म रीित से समागम क ं गी।”
तब बहत अ छा कहकर आकाशचारी राह श ु भगवान सूय ने योग प से कु ती के शरीर
म वेश िकया और उसक नािभ को छू िदया।
तब वह राजक या सूय के तेज से िव ल और अचेत-सी होकर शैया पर िगर पड ी।
“सु दरी! म ऐसी चे ा क ं गा, जससे तुम सम त श धा रय म े पु को ज म दोगी
और क या ही बनी रहोगी।”
तब संगम के लये उ त हए महातेज वी सूयदेव क ओर देखकर ल जत हई उस राजक या
ने उनसे कहा‒“ भो! ऐसा ही हो।”
ऐसा कहकर कु तनरे श क क या पृथा भगवान सूय से पु के लये ाथना करती हई अ यंत
ल जा और मोह के वशीभूत होकर कटी हई लता क भांित उस पिव शैया पर िगर पड ी।
त प चात् सूयदेव ने उसे अपने तेज से मोिहत कर िदया और योग शि के ारा उसके
भीतर वेश करके अपना तेजोमय वीय थािपत कर िदया। उ ह ने कु ती को दिषत
ू नह िकया।
उसका क याभाव अछू ता ही रहा। तदन तर वह राजक या िफर सचेत हो गयी।

ccc

समय यतीत होता गया। आकाश म जैसे च मा का उदय होता है, उसी कार यारहव मास
के शु ल प क ितपदा को कु ती के उदर म भगवान सूय के ारा गभ थािपत हआ।
सु दर किट देश वाली कु ती भाई-ब धुओं के भय से उस गभ को िछपाती हई धारण करने
लगी। अतः कोई भी मनु य नह जान सका िक वह गभवती है।
एक धाय के सवा दसरी ू कोई ी भी इसका पता न पा सक । कु ती सदा क याओं के
अ तःपुर म रहती थी एवं अपने रह य को िछपाने म वह अ य त िनपुण थी।
तदन तर सु दरी पृथा ने यथासमय भगवान सूय के कृपा साद से वयं क या ही बनी रहकर
देवताओं के समान तेज वी एक पु को ज म िदया।
उसने अपने िपता के ही समान शरीर पर कवच बांध रखा था और उसके कान म सोने के
बने हए दो िद य कु डल जगमगा रहे थे। उस बालक क आंख संह के समान और कंधे वृषभ-
जैसे थे।
उस बालक के पैदा होते ही भािमनी कु ती ने धाय से सलाह लेकर एक िपटारी मंगवायी और
उसम सब ओर से सु दर मुलायम िबछौने िबछा िदये। इसके बाद उस िपटारी म चार ओर मोम
चुपड िदया, जससे उसके भीतर जल न वेश कर सके। जब वह सब तरह से िचकनी और
सुखद हो गयी, तब उसके भीतर उस बालक को लटा िदया और उसका सु दर ढ कन बंद कर
िदया तथा रोते-रोते उस िपटारी को अ व नदी म छोड िदया।
य िप वह यह जानती थी िकसी क या के लये गभधारण करता सवथा िनिष और अनुिचत
है, तथािप पु नेह उमड जाने से कु ती वहां क णाजनक िवलाप करने लगी।
उस समय अ व नदी के जल म उस िपटारी को छोड ते समय रोती हई कु ती ने जो बात
कह । कण उनको व न म ही सुनते रहे। कु ती कह रही थीः
“मेरे ब चे! जलचर, थलचर, आकाशचारी तथा िद य ाणी तेरा मंगल कर। सारी ाकृितक
शि यां तेरी र ा कर।”
“तेरा माग मंगलमय हो। बेटा! तेरे पास श ु न आय। जो आ जाय उनके मन म तेरे ित ोह
क भावना न रहे। तू सुरि त रहे।”
“जल म उसके वामी राजा व ण तेरी र ा कर। अ त र म वहां रहने वाले सवगामी
वायुदेव तेरी र ा कर।”
“पु ! ज ह ने िद य रीित से तुझे मेरे गभ म थािपत िकया है वे तपने वाल म े तेरे िपता
भगवान सूय सव तेरा पालन कर।”
“आिद य, वसु, , सा य, िव वेदेव, इ सिहत म दगण, िदकपाल सिहत िदशाएं तथा
सम त देवता सभी समिवषम थान म तेरी र ा कर। यिद िवदेश म भी तू जीिवत रहेगा, तो म
इन कवच-कु डल आिद िच ह से उपलि त होने पर तुझे पहचान लूग
ं ी।”
“बेटा! तेरे िपता भगवान भुवन भा कर ध य ह, जो अपनी िद य ि से नदी क धारा म
थत हए तुझको देखगे।”
“देवपु ! वह रमणी ध य है, जो तुझे अपना पु बनाकर पालेगी और तू भूख- यास लगने पर
जसके तन का दधू िपयेगा।”
उस भा यशा लनी नारी ने कौन-सा ऐसा शुभ व न देखा होगा, जो सूय के समान तेज वी,
िद य कवच से संय ु , िद यकु डल भूिषत, कमलदल के समान िवशाल ने वाले, लाल कमल
दल के स श और का त लाने, सु दर ललाट और मनोहर केश समूह से िवभूिषत तुझ जैसे
िद य बालक को अपना पु बनायेगी।
“व स! जब तू धरती पर पेट के बल सरकता िफरे गा और समझ म न आने वाली मधुर
तोतली बोली बोलेगा, उस समय तेरे धू लधस रत अंग को जो लोग देखगे, वे ध य ह।”
“पु ! िहमालय के जंगल म उ प हए केसरी संह के समान तुझे जवानी म जो लोग दखेगे
वे ध य ह।”
इस तरह बहत-सी बात कहकर क ण िवलाप करती हई कु ती ने उस समय अ व नदी के
जल म वह िपटारी छोड दी।
आधी रात के समय कमलनयनी कु ती पु शोक से आतुर हो उसके दशन क लालसा से
धा ी के साथ नदी के तट पर देर तक रोती रही।
पेटी को पानी म बहाकर, कह िपताजी जग न जाय, इस भय से वह शोक से आतुर हो पुनः
राजभवन म चली गयी।
राजभवन जाकर भी मां को चैन कहां। कु ती ने थोड े समय बाद ही एक िवशेष दती
ू सब
कु छ जानने के लए भेज दी। दती
ू ने आकर उ ह समाचार िदया िक उनका पु सुरि त है। मां
केवल यही सुनकर शांत न रह सक । कु ती ने िव तार से जानना चाहा िक िकस तट उसका पु
जल क तरं ग पर तैरता उतराता‒कहां गया? और िकसने उसे पाला।
तो दती
ू ने बताया िक...
वह िपटारी अ व नदी से चम वती नदी म गयी। चम वती से यमुना म और वहां से गंगा म
जा पहच
ं ी। अभी तक बालक का कु छ भी नह िबगड ा। िपटारी म सोया हआ वह बालक गंगा
क लहर से बहाया जाता हआ च पापुरी के पास सूत रा य म जा पहच
ं ा।
उसके शरीर का िद य कवच और कान के कु डल‒ये अमृत से कट हए थे। वे ही िवधाता
ारा रिचत उस देव कु मार को जीिवत रख रहे थे।
इसी समय राजा धृतरा का िम अ धरथ सूत अपनी ी के साथ गंगाजी के तट पर गया।
उसक परम सौभा यवती प नी इस भूतल पर अनुपम सु दरी थी। उसका नाम था राधा। उसके
कोई पु नह हआ था।
राधा पु ाि के लये िवशेष य न करती रहती थी। दैवयोग से उसी ने गंगा जी के जल म
बहती हई उस िपटारी को देखा।
िपटारी के ऊपर उसक र ा के लये लता लपेट दी गयी थी और स दरू का लेप लगा होने से
उसक बड ी शोभा हो रही थी। गंगा क तरं ग के थपेड े खाकर वह िपटारी तट के समीप
आ लगी।
भािमनी राधा ने कौतूहल वश उस िपटारी को सेवक से पकड वा मंगाया और अ धरथ सूत
को इसक सूचना दी।
अ धरथ ने उस िपटारी को पानी से बाहर िनकालकर जब य ारा उसे खोला, तब उसके
भीतर एक बालक को देखा।
वह बालक ातःकालीन सूय के समान तेज वी था। उसने अपने अंग म वणमय कवच
धारण कर रखा था। उसका मुख कान म पड े हए दो उ वल कु डल से कािशत हो रहा
था।
उसे देखकर प नी सिहत सूत के ने कमल आ चय एवं स ता से खल उठे । उसने बालक
को गोद म लेकर अपनी प नी से कहा‒
“भी ! भािमिन! जब से म पैदा हआ ह,ं तब से आज तक मने ऐसा अ ुत बालक नह देखा
है। म समझता ह,ं यह कोई देव बालक ही हम भा वयवश ा हआ है।”
“मुझ पु हीन को अव य ही देवताओं ने दया करके यह पु दान िकया है।” ऐसा कहकर
अ धरथ ने वह पु राधा को दे िदया।
राधा ने भी कमल के भीतरी भाग के समान का तमान, शोभाशाली तथा िद य पधारी उस
देव बालक को िव धपूवक हण िकया। िन चय ही दैव क ेरणा से राधा के तन से दधू भी
झरने लगा।
उसने िव धपूवक उस बालक का पालन-पोषण िकया और वह धीरे -धीरे सबल होकर
िदन िदन बढ ने लगा। तभी से उस सुत-द प के और भी अनेक औरस पु उ प हए।

पा डु से िववाह और पु का ज म
कु ती अपने पु क सूचना पाती रहती िक तु कण क सूचना से उसे जतना हष होता उतनी
ही िचंता भिव य को देखकर रहती। कु ती जानती थी िक समय गितमान है और ये सारी
यव थाएं ऐसी ही नह रहेगी। इस पूरे जीवन म समय का कोई ख ड तो ऐसा होगा ही जब वह
जल म वािहत अपने बेटे को पु कहकर पुकारे गी।
जो व तु मनु य के पास होती है वह उसक िचंता कम करता है और जो उसक होते हए भी
उसके पास नह रहती उसके ित उसका रागा मक झुकाव बना रहता है। यह क पना क बात
नह िक अपनी ही संतान अपने पास नह । वह कह और पल रही है तो उसके ित एक िवशेष
कार का उ ेजना मक आ ह बनेगा ही। कु ती यही अनुभव करती और यही िचंता उसे
पीड ा भी देती।
यह पीड ा जतनी मन को मथ देने वाली थी उतना ही उसका भिव य म िकतना भाग मन
का रहेगा और िकतना िववेक का, वह इसका तालमेल बैठा रही थी।
कु ती सोच ही रही थी िक उसको िविश सखी ने िपता ी के ारा बुलाये जाने क सूचना
दी “मुझे िपता बुला रहे ह। यह अवसर ऐसा तो नह है िक तु कोई भी काम आ सकता है”
कु ती अ यंत शी ता से अपने िपता के पास आई।
“आ ा िपता ी” कु ती ने िपता के समीप आते हए बड े मोहक श द म कहा।
“आ ा नह बेटी एक सूचना है। और मुझे तु हारा मत भी लेना है।” कु तभोज ने अपनी पु ी
के सर पर हाथ रखते हए कहा।
“ या बात है िपता ी?”
तब कु तभोज बोले‒उ ह ने अपनी आंख आकाश क ओर कर ल ‒“तु हारे वयंवर का
समय आ गया है। मेरे पास अनेक राजाओं के िनमं ण आ रहे ह। अनेक राजकु मार तु ह ा
करने के लए याकु ल ह िक तु राजकु ल क मयादा के अनुसार वयंवर तु हारा अ धकार है।
तु हारी वीकृित हो तो वयंवर क ित थ िन चत कर द।”
कु ती िपता क बात का या उ र देती, उसने लजाकर अपना मुख नीचे कर लया मानो
िपता क बात को वीकार कर लया।
समय आने पर कु तभोज ने वयंवर क सभी िव ध पूरी क । उसने अनेक राजाओं को
िनमं ण भेजा। जब सभी राजाओं को कु ती के वयंवर का पता चला तो जो िववाह के इ छु क
थे वे वयंवर म पधारे । वहां पर िकसी कार क वीरोिचत शत नह रखी गयी थी। यह वयंवर
केवल दशन मा से ही स प होना था।
कु तभोज क सभा यव थत प से सजाई गई थी। सभा के चार कोन पर अलग-अलग
िदशाओं से आने वाले राजा और राजकु मार अपने आसन पर बैठ गये। धीरे -धीरे वयंवर थल
पर िनद ष अंग वाली शुभ ल ण से स प कु ती ने अपनी स खय सिहत वेश िकया। उसने
चार ओर देखा तो एक िविश घोषक खड ा हो गया।
घोषक ने सबसे पहले सभा म उप थत राजाओं का प रचय िदया। उसने एक-एक क वीरता
का वणन करते हए राजकु मारी का यान बारी-बारी से सबक ओर आकिषत िकया। िफर
उसके बाद उसने कु ती के िवषय म राजाओं को बताया िक वह िवशाल ने वाली तथा धम
और प से स प है। यह महान त का पालन करने वाली है।
हमारी राजकु मारी म य के सभी गुण िव मान ह। वह युवा है, प यौवन से प रपूण
उसके शरीर क कांित आने आप ही प रलि त हो रही है।
घोषक के प रचय के बाद कु ती ने एक बार िफर वरमाला हाथ म लये चार ओर देखा।
उसने देखा िक एक ओर भरतवंश िशरोमिण पा डु बैठे ह। पा डु को देखकर कु ती के मन म
नेह के भाव जाग उठे । पा डु का िवशाल चौड ा व , बड े-ने , शरीर से कट होने वाला
वीर व और तेज, सूय क तरह से कािशत यि व।
कु ती धीरे -धीरे मनु य म े पा डु के समीप आई और उनके गले म जयमाला डाल दी।
जब शेष राजाओं ने यह देखा तो उ ह ने पा डु को बधाई दी और अपने-अपने रथ तथा अ य
वाहन पर बैठकर वे सब लौट गये।
िववाह क वेदी सज गयी थी और अि देवता क सा ी के साथ पा डु तथा कु ती का िववाह
हो गया। यह कु ती का वयं का िनणय था इस लए िकसी के मन म िकसी कार क कोई
ि िवधा नह थी, िक तु कु ती राजाओं के िववाह स ब धी प को भी जानती थी। इसी लए जब
भी म जी ने पा डु के दसरे
ू िववाह क चचा क तो कु ती को आ चयजनक नह लगा। उसने
सुना िक म देश के राजा श य क बहन मा ी से भी म पा डु का िववाह करना चाहते ह।
कु ती यह तो नह सोच पा रही थी िक दसरे
ू िववाह क या आव यकता पड गयी है िफर
भी उसने बहत सहजता से उसको वीकार िकया। अब तक का जतना भी उसका जीवन बीता
था उसके आरोह और अवरोह से केवल वही प रिचत थी। कु ती क सखी ने दतू के ारा सभी
सूचना पाकर कु ती को आकर बताया िक भी म ने श य से उनक बहन पा डु के लए मांगी
है। एक तरह से भी म ने श य से िवनती क और जब श य ने शु क लेने के िनयम को
दोहराया तो भी म ने कहा िक आव यक नह िक पर परा का अंधानुकरण िकया जाये। िफर भी
महातेज वी भी म ने राजा श य को वणाभूषण, मोती, मूंगे के आभूषण दान िकये।
श य ने बहत अ धक धन देखकर स ता य क और मा ी को पा डु से िववाह के लए
समिपत कर िदया।
भी म मा ी को ह तनापुर लेकर आये और िव धवत पा डु से िववाह करा िदया।
पा डु के िववाह उनके जीवन म बहत मह वपूण होकर आये। सबसे पहली बात तो यही हई
िक उ ह ने अपने िववाह के बाद एक िवलासी के जीवन के प म अपना जीवन न िबताकर
एक यो ा बनना ही िन चत िकया और िवजय के लए िनकल पड े। उ ह ने िव य पवत के
पूव दि ण क ओर िवजय के लए िनकल पड े। उ ह ने िव य पवत के पूव दि ण क ओर
थत देश पर अ धकार िकया, िफर मगध को जीतकर िम थला को भी परा त िकया। जो भी
पा डु के सामने उनका मुकाबला करने के लए आते उनसे पा डु यु करते और जो र न आिद
से पा डु का वागत करते उनसे पा डु मै ी करते।
वह समय भी आ गया जब पा डु अपना िवजय पथ स प करके ह तनापुर लौटे, िक तु यह
कैसा िविच यि है, कु ती सोचने लगी। इतनी अथाह रािश और उ मु हाथ से दान! कु ती
ने देखा िक उनके पित पा डु राजा धृतरा को, भी म को, अपनी माताओं तथा ब धु-बांधव को
बांटते चले जा रहे ह। कु ती को अनुभव हआ िक उसने राजा वेश म एक वीतरागी से िववाह
िकया है।
वीतरागी से िववाह और अपने भीतर उ प होता हआ एक िवराग कु ती ने अनुभव िकया।
उसे लगा जैसे वह एक ऐसी के ीय शि है जसक उ प उसके तेज म इस लए िनिहत है
िक वह कु छ भी पाने क लालसा न रखे। कु ती को लगा िक ये पांच त व िकसी भी प म एक
माया त व से गुथ
ं े हए आकार लेते ह और उसे भी कु छ ऐसी चीज को आकार देना होगा जो न
कभी पहले रही और न बाद म होगी।
अपनी सोच को इतनी ज दी फ लत होता हआ जानकर कु ती को कोई आ चय नह हआ।
अभी-अभी तो उसके पित िवजयी होकर लौटे थे और यह या सूचना जो उसके कान म रस भी
घोल रही है और कठोर विन भी कर रही है। कु ती या कर? मा ी से कु छ पूछे तो उसे पता है
मा ी सदा क भांित सर झुका देगी।
िनणय तो कु ती को ही लेना होगा और वह भी या िनणय लेगी? वन म जाने का िनणय तो
पा डु कर ही चुके ह। उसे तो केवल अपने पित के पीछे -पीछे जाना है। एक ण के लए कु ती
सोचने लगी।
“िवधाता को या वीकार है। एक अ ात भय उसक िशराओं म वेश करने लगा। वन!
वन उसके जीवन म िकतना लखा है। अभी तो उसने राजमहल को ठीक तरह से देखा भी
नह । िपता के राजमहल भी उसके लए अप रिचत थे और अब तो सीधा वन उसे िदखाई दे रहा
है। कु ती अपने पित के साथ सु दर शैयाएं छोड कर वन म आकर रहने लगी।”
पा डु वन म िशकार खेलने चले जाते और कु ती तथा मा ी कु िटया को सजाती रहत । कभी-
कभी दोन पा डु के साथ वन म चली जात । वन के अ य िनवासी उ ह कभी देवता समझते
और पूजा भाव से भरकर तरह-तरह के समान भट करते।
वैसे धृतरा भी इस बात का यान रखते िक पा डु वन म जहां-जहां रह उ ह उनक सूचना
िमलती रहे। वे इस बात का भी यान रखते िक पा डु के पास जीवन चलाने क आव यक
व तुएं लगातार भेजी जाती रह। पा डु और कु ती तथा मा ी िनःशंक होकर िवचरण करते और
इस तरह बीतते हए समय को कभी पकड ते हए और कभी उस ओर यान न करते हए
जीवनयापन करते।
पा डु तप या म लीन। मा ी कु िटया का काम करती है और कु ती को भिव य क िचंता
साकार होकर उभरती है।
या िकया जाये िक वंश क वृि हो और या िकया जाये िक कु ती वयं पु वती हो। कु ती
का पु के लए सोचना न अ वाभािवक था और न असामाियक। िफर भी जब तक पा डु को
मुिन का शाप ा नह हआ था तब तक कु ती ने कोई िचंता नह क , िक तु मुिन से शािपत
होने के बाद वयं पा डु िचंितत रहने लगे और कु ती तो इस सोच म बहत ही अ धक डू ब गयी।
पा डु से मृग पधारी मुिन क ह या हो गयी। मुिन उस समय काम ड ा कर रहे थे।
पा डु को दोहरा आघात हआ। एक तो मुिन के वध का और दसरा ू िविच वीय के कामभोगी
जीवन का मरण।
“मनु य इतना कामास य होता है? य इस सांसा रक कम म इतना िवलीन होता है?
या इससे छु टकारा नह िमल सकता?” पा डु को अपने ज म के िवषय म याद आया और
उ ह ने िन चय िकया िक वे सं यास लगे।
कु ती सामने आ गयी और बोली‒
“आप अपने शरीर और मन को अ यंत कठोर तप या म लगा सकते ह। िभ ा मांगकर
जीवन चला सकते ह। अकेले रह सकते ह लेिकन कु छ हमारा भी सोिचए। मनु य यिद केवल
संतान क उ प से रिहत हो जाये तो सारा जीवन-नह यागना चािहए। संतान उ प एक धम
है िक तु उससे भी बड े धम जीवन म ह। आप उन सारे धम ं का पालन क जए और सं यास
मत ली जए।”
कु ती ने कहा‒“सं यास के अित र एक आ म वान थ भी है। जसम आप अपनी प नय
के साथ रह सकते ह। हम दोन आपक प नी भी कामसुख का प र याग करके अपनी इ य
को वश म रखते हए तप या करगी।”
पा डु वन म पहच ं गये। शत ृग ं पवत उस समय ध य हो गया जब पा डु ने वहां अपनी
कु िटया बनाई। छोटे-छोटे ऊंचे िशखर के बीच देवदार क घनी छांव म पा डु क कु िटया बनी।
कु ती, मा ी और पा डु दोन का यान रखते हए अपने कत य का पालन करती रही। वन म
पा डु और ऋिषय का पर पर बहत वातालाप होता। उनम ेम क वृि होती रही और आयु म
बड े ऋिष पा डु को अपना पु मानकर उनक र ा करने लगे।
कु ती के लए वह िदन बहत दशनीय रहा जब अनेक ऋिष एकि त होकर लोक के लए
थान करना चाहते थे, िक तु मन का एक बहत बड ा कोना खाली होता हआ िदखाई िदया।
पा डु और मुिनय के संवाद म कु ती और पा डु दोन को ही पता चला िक संतान न होने से
वग का दरवाजा नह खुलता और िपतृ ऋण भी नह चुकाया जा सकता। पा डु ने ऋिषय के
जाने पर कु ती को अपने समीप बुलाया और उससे कहा “संतान न होने क अव था म मेरे
शरीर के नाश होने के बाद मेरे िपतर का पतन हो जायेगा। तो या मेरे िपतर ा के िबना ही
रहगे? हे कु ती! या म संतानहीन होने के कारण अ छे लोक को ा नह क ं गा?” पा डु
बहत धीरे -धीरे कु ती के सामने अपना दय खोल रहे थे। उ ह ने कहा िक धम शा म छह
कार के पु बताये गये ह‒
पहला पु वह है, जो िववािहता प नी से अपने ारा उ प िकया गया हो, उसे वयं जात
कहते ह। दसरा
ू णीत कहलाता है, जो अपनी ही प नी के गभ से िकसी उ म पु ष के अनु ह
से उ प होता है। तीसरा जो अपनी पु ी का पु हो, वह भी पु के ही समान माना गया है। चौथे
कार के पु क पौनभव सं ा है, जो दसरीू बार याही हई ी से उ प हआ हो। पांचव कार
के पु क कानीन सं ा है (िववाह से पहले ही जस क या को इस शत के साथ िदया जाता है
िक इसके गभ से उ प होने वाला पु मेरा पु समझा जायेगा। उस क या के पु को कानीन
कहते ह। जो बिहन का पु (भानजा) है, वह छठा कहा गया है।
कु ती का मन अभी भी पा डु क बात से सहमत नह हो पा रहा था। “य िप प प से
पा डु ने मुझसे कहा िक यिद मेरे वयं जात संतान नह हो सकती तो णीत संतान का यास
करना तो मेरे अ धकार म आता है।”
कु ती सोचने लगी और सोचते-सोचते उसे यान आया िक िकस तरह पहले समय म पित ता
प नी भ ा ने अपने पित के कहने के बाद भी िकसी दसरे
ू से समागम न करने का िन चय िकया
था। कु ती ने यह कथा पा डु को सुनाई। पा डु ने बहत यान से सुनी लेिकन उसके उ र म वे
बोले‒
“तुमने जो भी कहा वह स य है िक तु म भी तु ह एक धम का त व बताता ह।ं और इसी
कारण म तु ह इस ाचीन धम के अनुसार संतान उ प के लए कह रहा ह।ं धम का एक प
यह भी है िक पित जो कु छ अपनी प नी से कहे प नी का कत य है िक वह उसे पूरा करे ।”
“तो इस कत य क धार पर मुझे भी चलना होगा।” कु ती ने बहत नेह से अपने पित से
कहा और उतने ही नेह से पा डु ने कु ती के सामने अपनी बात रखी‒“िनद ष अंग वाली
शुभल णे। म चूंिक पु का मुंह देखने के लए लालाियत ह,ं अतएव तु हारी स ता के लये
म तक के समीप या अंज ल धारण करता ह,ं जो लाल-लाल अंगु लय से यु तथा कमल दल
के समान सुशोिभत ह। सु दर केश वाली ि ये! तुम मेरे आदेश से तप या म बढ े-चढ े हए
िकसी े ा ण के साथ समागम करके गुणवान पु उ प करो। सुरोिण! तु हारे य न से म
पु वान क गित ा क ं , ऐसी मेरी अिभलाषा है।”
कु ती ने अपने पित क आ ा मानकर उनसे दवु ासा के मं ा होने क बात कही और यह
भी कहा िक मेरे लए यह कठोर त है और वह केवल आपके कहने से इसका पालन कर रही
है। कु ती ने िव तार से बताया िक दवु ासा ने उसे जो मं िदया था उसके भाव से कोई भी
देवता अपने समान पु का वरदान दे सकता है। कु ती ने कहा‒“अब यह समय आ गया है िक
म आपक आ ा िमलने पर यह काय स प क ं ।”
पा डु बोले‒“ि ये! म ध य ह,ं तुमने मुझ पर महान अनु ह िकया। तु ह मेरे कु ल को धारण
करने वाली हो। उन महिष को नम कार है, ज ह ने तु ह ऐसा वर िदया। धम ! अधम से जा
का पालन नह हो सकता। इस लये वरारोहे। तुम आज ही िव धपवूक इसके लये य न करो।
शुभ!े सबसे पहले धम का आ ान करो, य िक वे ही स पूण लोक म धमा मा ह।”
“इस कार करने पर हमारा धम कभी िकसी तरह अधम से संय ु नह हो सकता। वरारोहे!
लोक भी उनको सा ात् धम का व प मानता है। धम से उ प होनेवाला पु कु वंिशय म
सबसे अ धक धमा मा होगा। इसम संशय नह है। धम के ारा िदया हआ जो पु होगा, उसका
मन अधम म नह लगेगा। अतः शूिच मते। तुम मन और इ य को संयम म रखकर धम को
भी सामने रखते हए उपचार और अिभचार के ारा धम देवता का आ ान करो।
अपने पित पा डु के य कहने पर ना रय म े कु ती ने तथा तु कहकर उ ह णाम िकया
और आ ा लेकर उनक प र मा क ।
जब गांधारी को गभ धारण िकये एक वष बीत गया, उस समय कु ती ने गभ धारण के लए
अ युत व प भगवान धम का आ ान िकया।
देवी कु ती ने बड ी उतावली के साथ धम देवता के लये पूजा के उपहार अिपत िकये।
त प चात् पूवकाल म महिष दवु ासा ने जो मं िदया था, उसका िव धपूवक जप िकया।
तं मं बल से आकृ हो भगवान धम सूय के समान तेज वी िवमान पर बैठकर उस थान
पर आये, जहां कु ती देवी जप म लगी हई थी।
तब धम ने हंसकर कहा‒“कु ती! बोलो, तु ह या द?
ं ू ” धम के ारा हा यपूवक इस कार
पूछने पर कु ती बोली‒“मुझे पु दी जए।”
तदन तर योगमूित धारण िकये हये धम के साथ समागम करके सु दरांगी कु ती ने एक ऐसा
पु ा िकया, जो सम त ािणय का िहत करने वाला था।
तदन तर जब च मा ये ा न पर थे, सूय तुला रािश पर िवराजमान थे, शु ल प क
पूणा नाम वाली पंचमी ित थ थी और अ य त े अिभ जत नामक आठवां मुहत िव मान था,
उस समय कु ती देवी ने एक उ म पु को ज म िदया, जो महान यश वी था। उस पु के ज म
लेते ही आकाशवाणी हई‒
“यह े पु ष धमा माओं म अ ग य होगा और इस पृ वी पर परा मी एवं स यवादी राजा
होगा। पा डु का यह थम पु यु धि र नाम से िव यात हो तीन लोक म सि एवं याित
ा करे गा। यह यश वी, तेज वी तथा सदाचारी होगा।”
उस धमा मा पु को पाकर राजा पा डु ने पुनः कु ती से कहा‒
“ि ये! ि य को बल से भी बड ा कहा गया है। अतः एक ऐसे पु का वरण करो, जो
बल म सबसे े हो। जैसे अ वमेध सब य म े है, सूयदेव स पूण काश करने वाल म
धान ह और ा ण मनु य म े ह, उसी कार वासुदेव बल म सबसे बढ -चढ कर ह।
अतः सु दरी अब क बार तुम पु ाि के उ े य से सम त ािणय ारा शं सत देव े
वायु का िव धपूवक आ ान करो। वे हम लोग के लये जो पु दगे, वह मनु य म सबसे
अ धक ाणशि से स प और बलवान होगा।”
वामी के इस कार कहने पर कु ती ने तब वायुदेव का आ ान िकया।
तब महाबली वायु मृग पर आ ढ हो कु ती के पास आये और य बोले‒“कु ती! तु हारे
मन म जो अिभलाषा हो, वह कहो। म तु ह या द?
ंू ”
कु ती ने ल जत होकर मु कराते हए कहा‒“सुर े ! मुझे एक ऐसा पु दी जये, जो
महाबली और िवशालकाय होने के साथ ही सबके घम ड को चूर करने वाला हो।”
वायुदेव से भयंकर परा मी महाबाह भीम का ज म हआ। उस महाबली पु को ल य करके
आकाशवाणी ने कहा‒“यह कु मार सम त बलवान म े है।” भीमसेन के ज म लेते ही एक
अ ुत घटना यह हई िक अपनी माता क गोद से िगरने पर उ ह ने अपने अंग से एक पवत क
च ान को चूर-चूर कर िदया। बात यह थी िक यदकु ु लन दनी कु ती सव के दसव िदन पु को
गोद म लये उसके साथ एक सु दर सरोवर के िनकट गयी और नान करके लौटकर देवताओं
क पूजा करने के लये कु िटया से बाहर िनकली। भरतन दन पवत के समीप होकर जा रही थी
इतने म ही उसको मार डालने क इ छा से एक बहत बड ा या उस पवत क क दरा से
बाहर िनकल आया। देवताओं के समान परा मी कु े पा डु ने उस या को दौड कर
आते देख धनुष ख च लया और तीन बाण मारकर उसे िवदीण कर िदया। उस समय वह अपनी
िवकट गजना से पवत क सारी गुफा को ित विनत कर रहा था। कु ती बाघ के भय से सहसा
उछल पड ी।”
उस समय उसे इस बात का यान नह रहा िक उसक गोद म भीमसेन है। उतावली म वह
व के समान शरीर वाला कु मार पवत पर िगर पड ा।
िगरते समय उसने अपने अंग से उस पवत क िशला को चूण-िवचूण कर िदया। प थर क
च ान को चूर-चूर हआ देख महाराज पा डु बड े आ चय म पड गये।
जब च मा मघा न पर िवराजमान थे, बृह पित संह ल म सुशोिभत थे, सूयदेव दोपहर
के समय आकाश के म य भाग म तप रहे थे, उस समय पु यमयी योदशी ित थ के मै मुहत
म कु ती देवी ने अिवचल शि वान भीमसेन को ज म िदया था। भरत े भूपाल! जस िदन
भीमसेन का ज म हआ था, उसी िदन ह तनापुर म दयु धन क उ प हई।
भीमसेन के ज म लेने पर पा डु ने िफर इस कार िवचार िकया। म कौन-सा उपाय क ं ,
जससे मुझे सब लोग से े उ म पु ा हो।
यह संसार दैव तथा पु षाथ पर अवल बत है। इसम दैव तभी सुलभ होता है, जब समय पर
उ ोग िकया जाये।
मने सुना है िक देवराज इ ही सब देवताओं म धान ह, उनम अथाह बल और उ साह है। वे
बड े परा मी एवं अपार तेज वी ह। म तप या ारा उ ह को स तु करके महाबली पु
ा क ं गा। वे मुझे जो पु दगे, यह िन चय ही सबसे े होगा और सं ाम म अपना सामना
करने वाले मनु य तथा मनु येतर ािणय को भी मारने म समथ होगा। अतः म मन, वाणी और
ि या ारा बड ी भारी तप या क ं गा।
ऐसा िन चय करके कु न दन महाराज पा डु ने महिषय से सलाह लेकर कु ती को
शुभदायक सांव सर त का उपदेश िदया।
वे महाबाह धमा मा पा डु वयं देवताओं के ई वर इ देव क आराधना करने के लये
िच वृ य को अ य त एका करके एक पैर से खड े हो सूय के साथ-साथ उ तप करने
लगे अथात् सूय दय होने के समय एक पैर से खड े होते और सूया त तक उसी प म
खड े रहते।
इस तरह दीघकाल यतीत हो जाने पर इ देव उन पर स हो उनके समीप आये और इस
कार बोले‒
“राजन! म तु ह ऐसा पु दग
ं ू ा, जो तीन लोक म िव यात होगा। वह ा ण , गौओं तथा
सु द के अभी मनोरथ क पूित करने वाला और श ुओं को शोक देने वाला तथा सम त
बंधु-बांधव को आन दत करने वाला होगा। म तु ह स पूण श ुओं का िवनाश करने वाला
सव े पु दान क ं गा।”
महा मा इ के य कहने पर धमा मा कु न दन महाराज पा डु बड े स हए और देवराज
के वचन का मरण करते हए कु ती देवी से बोले‒
“क यािण! तु हारे त का भावी प रणाम मंगलमय है। देवताओं के वामी इ हम लोग पर
संतु ह और तु ह तु हारे संक प के अनुसार े पु देना चाहते ह। वह अलौिकक कम
करने वाला, यश वी, श ु दमन, नीित , महामना, सूय के समान तेज वी, दघु ष, कमठ तथा
देखने म अ य त अ ुत होगा।”
“सु ोिण! अब ऐसे पु को ज म दो, जो ि योिचत तेज का भंडार हो। पिव मु कान वाली
कु ती! मने देवे क कृपा ा कर ली है। अब तुम उ ह का आ ान करो।”
महाराज पा डु के य कहने पर यश वनी कु ती ने इ का आ ान िकया। तदन तर देवराज
इ आये और उ ह ने अजुन को ज म िदया। इस कार पा डु क कामना पूण क ।
वह फा गुन मास म िदन के समय पूवाफा गुनी और उ राफा गुनी न के सं धकाल म
उ प हआ। फा गुन मास और फा गुनी न म ज म लेने के कारण उस बालक का नाम
फा गुन हआ।
कु मार अजुन के ज म लेते ही अ य त ग भीर नाद म समूचे आकाश को गूज
ं ाती हई
आकाशवाणी ने पिव मु कान वाली कु ती देवी को स बो धत करके सम त ािणय और
आ मवा सय के सुनते हए अ यंत प भाषा म इस कार कहा‒
“कु तभोज कु मारी! यह बालक क तवीय अजुन के समान तेज वी, भगवान िशव के समान
परा मी और देवराज इ के समान अजेय होकर तु हारे यश का िव तार करे गा। जैसे भगवान
िव णु ने वामन प म कट होकर देवमाता अिदित के हष को बढ ाया था, उसी कार यह
िव णु तु य अजुन तु हारी स ता को बढ ायेगा।”
“तु हारा यह वीर पु म , कु , सोमक, चेिद, कािश तथा क ष नामक देश को वश म
करके कु वंश क ल मी का पालन करे गा।”
“वीर अजुन उ र िदशा म जाकर वहां के राजाओं को यु म जीत कर असं य धन-र न
क रािश ले आयेगा। इसके बाहबल से खा डव वन म अि देव सम त ािणय के मद का
आवंटन करके पूण तृि लाभ करगे।”
“यह महाबली े वीर बालक सम त ि य समूह का नायक होगा और यु म भूिमपाल
को जीतकर भाइय के साथ तीन अ वमेघ य का अनु ान करे गा। यह तु ह अ य त सुख
देगा।”
“कु ती! यह परशुराम के समान वीर यो ा, भगवान िव णु के समान परा मी, बलवान म
े और महान यश वी होगा।”
“यह यु म देवा धदेव भगवान शंकर को संतु करे गा और संतु हए उन महे वर से
पाशुपत नामक अ ा करे गा। िनवातकवच नामक दै य देवताओं से सदा ेष रखते ह।
तु हारा यह महाबाह पु इ क आ ा से उन सब दै य का संहार कर डालेगा।”
“तथा पु ष म े यह अजुन स पूण िद या का पूण प से ान ा करे गा और अपनी
खोयी हई स प को पुनः वापस ले आयेगा।”
कु ती ने सौरी म से ही यह अ यंत अ ुत बात सुनी। उ च वर म उ चा रत वह
आकाशवाणी सुनकर शत ंग िनवासी तप वी मुिनय तथा िवमान पर थत इ आिद देव
समूह को बड ा हष हआ।
तदन तर आकाश म फूल क वषा के साथ देव-द ु दिु भय का तुमुल नाद बड े जोर से गूज

उठा।
िफर झुड
ं के झुड
ं देवता वहां एक होकर अजुन क शंसा करने लगे। क ू के पु नाग,
िवनता के पु ग ड प ी, गंधव,अ सराएं, जापित स िषगण‒भार ाज, क यप, गौतम,
िव वािम , जमदि , व स तथा जो न के प म सूया त होने के प चात उिदत होते ह वे
भगवान अ भी वहां आये।
मरीिच और अिगरा, पुल य, पुलह, ऋतु एवं जापित द , गंधव तथा अ सराएं भी आय ।
उन सबने िद य हार और िद य व धारण कर रखे थे। वे सब कार के आभूषण से
िवभूिषत थे। अ सराओं का पूरा दल वहां जुट गया था। वे सभी अजुन के गुण गाने और नृ य
करने लग ।
महिष भी वहां सब ओर खड े होकर मांग लक मं का जप करने लगे। गंधव ं के साथ
ीमान तु बु ने मधुर वर से गीत गाना ार भ िकया।
भीमसेन तथा उ सेन, ऊणायु और अनध, गोपित एवं धृतरा , सूय वचा तथा आठव युगप्,
तृणम, काि ण न द एवं िच रथ, तैरहव शाली िशरा और चौदहव पज य, प हव क ल और
सोलहव नारद, ऋ वा और बृह वा, बृहक एवं महामना कराल, चारी तथा िव यात गुणवान
सुवण िव वासु एवं सुम यु, सुच और श तथा गीत माधुय से स प सुिव यात हाहा और
हह‒ये सब देख ग धव वहां पधारे थे।
इसी कार सम त आभूषण से िवभूिषत बड े-बड े ने वाली परम सौभा यशली
अ सराएं भी हष ास म भरकर वहां नृ य करने लग ।
अ सराओं म अनूचाना और अनव ा, गुणमु या एवं गुणवरा, अि का तथा सोमा, िम केशी
और अल बुषा, मरीिच और शुिचका, िव ु पणा, ितलो मा, अ बका, ल णा, ेमा, देवी,
र भा, मनोरमा, अ सता और सुबाह, सुि या एवं वपु, पु डरीका एवं सुग धा, सुरसा और
मा थनी, का या तथा शार ती आिद। ये झुड
ं क झुड
ं अ सराएं नाचने लग । इनम मेनका,
सहज या, किणका और पुं जक थला, ऋतु थला एवं घृताची, िव वाची और पूविच , उ लोचा
और लोचा‒ये दस िव यात अ सराओं ने नृ य िकया।
इ ह धान अ सराओं क ण े ी म यारहव उवशी है। ये सभी िवशाल ने वाली सु द रयां
वहां गीत गाने लग । धाता और अयमा िम और व ण, अंश और भग, इ , िवव वान और
पूषा, व ा एवं सिवता, पज य तथा िव णु‒ये बारह आिद य माने गये ह। ये सभी पा डु न दन
अजुन का मह व बढ ाते हए आकाश म खड े थे।
श ुदमन महाराज! मृग याध और सप, महायश वी िनऋित एवं अजैकपाद, अिहबुध य और
िपनाक , दहन तथा ई वर, कपालो एवं थाणु तथा भगवान भग‒ये यारह भी वहां आकाश
म आकर खड े थे।
दोन अ वनी कु मार तथा आठ वसु, महाबली म गण एवं िव वे-देवगण तथा सा यगण
वहां सब ओर िव मान थे।
कक टक सप तथा वासुिक नाग क यप और कु ड, महानाग और ल क‒ये तथा और भी
बहत से महाबली, महा ोधी और तप वी नाग वहां आकर खड े थे।
ता य और अ र नेिम ग ड एवं अ सत वज, अ ण तथा आ िण िवनता के ये पु भी
उस उ सव म उप थत थे।
वे सब देवगण िवमान और पवत के िशखर पर खड े थे। उ ह तपः स महिष ही देख पाते
थे, दसरे
ू लोग नह ।
यह महान आ चय देखकर वे े मुिनगण बड े िव मय म पड े। तब से पांडव के ित
उनम अ धक ेम और आदर का भाव पैदा हो गया। तदन तर महायश वी राजा पा डु पु लोभ
से आकृ हो अपनी धमप नी कु ती से िफर कु छ कहना चाहते थे, िकंतु कु ती उ ह रोकती हई
बोली‒
“आय पु ! आप काल म भी तीन से अ धक चौथी संतान उ प करने क आ ा शा ने
नह दी है। इस िव ध के ारा तीन से अ धक चौथी संतान चाहने वाली ी वै रणी होती और
पांचव पु के उ प होने पर जोवह कु लटा समझी जाती है।”
“िव न! आप धम को जानते हए भी माद से कहने वाले के समान धम का लोप करके अब
िफर मुझे संतोनो प के लए य े रत कर रहे ह?”
पा डु ने कहा‒“ि ये! वा तव म धमशा का ऐसा ही मत है। तुम जो कहती हो, वह ठीक
है।” इसके बाद कु ती धैयपूवक अपने पु का पालन-पोषण करती रही। राजकु मार के आने से
आ म म और भी अ धक आनंद का अनुभव िकया जाने लगा।

ccc

वन क सुषमा दगु नी-चौगुनी होकर ितिदन क तरह फैल रही थी, लेिकन कु ती को आज
यह वन का सौ दय और भी अ धक भा रहा था। या चािहए एक ी को- ेम और स मान
करने वाला पित। सु दर और पु संतान। कु ती अपने भा य को िवशेष ध यवाद देने लगी
य िक यह भा य का ही चम कार था जसके कारण वह पु वती हई।
उसे याद आता है दवु ासा का म और म का थम योग। लेिकन तीन पु को देखकर
पहले योग क यातना कम रही है। िफर भी वह कसक िमटाए नह िमटती।
कु ती अपने पु क शि पर िव वास करते हए भी एक मां क तरह उनक िच ता करती
हई पालन-पोषण करती रही। कु ती का मन हआ िक एक बार िफर सूय को िनमं ण दे और
उनसे कु छ बात करे । सूय देख भी तो रहे ह गे िक उनके बाद मने तीन पु को ज म िदया।
कु ती का मन अक मात् हष के उ ेल से अवसाद म प रवितत हो गया। वह सोचने लगी िक
देव शि मेरे इन पु क अपने आप र ा करे गी, िक तु यह या उसे सामने से आती हई मा ी
िदखाई दी।
मा ी ने कु ती के चरण छु ए य िक वह मन म अपने को बड ी समझते हए भी हमेशा
कु ती से छोटी बनी रही। मा ी को देखकर कु ती के मन म यह िवचार उठा िक य न मा ी को
भी संतान हो जाए।
कु ती ने मा ी को अपने गले से लगाया और कहा, “तुम पु वती होना चाहती हो?”
“ऐसी कौन-सी ी होगी जो पु वती न होना चाहे।”
“तो िफर म तु हारे लए यास क ं गी। य िक अपना सुख देखना उतनी बड ी बात नह
होती जतनी दसरे
ू के सुख को बनाना और उसे दान कर देना।”
कु ती ने एक बहत सु दर-सा आसन िबछाया और उस पर मा ी को िबठा िदया। कु ती ने
कहा‒“तुम अपने मन म िकसी देवता का िचंतन करो और म तु हारे लए म पढ ती ह।ं ”
“िकस देवता का िचंतन क ं ?” मा ी ने लजाते हए पूछा।
“िकसी भी अपने मन के देवता का िचंतन करो। तुम जस देवता का िचंतन करोगी उसी के
समान तेज वी संतान उ प होगी।”
मा ी ने कु ती के आ ह पर अ वनी कु मार का िचंतन िकया। िचंतन करते समय वह यह
भूल गई िक अ वनी कु मार एक देवता का नाम नह है वह देवता युगल है इस लए जब म
के आवाहन से अ वनी कु मार आये तो उनके सहवास से नकु ल और सहदेव (जो बाद म नाम
रखा गया था) उ प हए। ये दोन राजकु मार अ वनी कु मार से भी अ धक सु दर और
आकषक थे।
वन का वातावरण धीरे -धीरे बहत सु दर, आकषक और राग से भर गया था। पु के
नामकरण करने का अवसर था और ऋिष लोग न के अनुसार नामकरण सं कार करके
बहत स हए। बड े पु का नाम यु धि र िफर उसके बाद भीम तथा अजुन और मा ी के
पु का नाम नकु ल और सहदेव रखा गया। येक पांडव एक-एक वष के अ तराल म उ प
हए थे िफर भी उनके मुख क का त एक संव सर के समान थी।
समय बीतता गया। महाराजा पांडु, कु ती और मा ी अपनी संतान के साथ स िच होकर
वन म रह रहे थे। इस बीच राजकु मार क िविभ अ -श क िश ा का अवसर आने पर
अनेक य का अनु ान करने वाले और िपतर के आराधक महा मा राजा शुक ने पांडव को
अ -श क िश ा दी।
खेल-खेल म िकस कार 14-15 वष बीत गये यह न पांडु को पता चला और न कु ती को,
िक तु कु ती यथासंभव इस बात का यान रखती िक पांडु के मन म कामभाव उ प न हो।
इस लए वह अपने सौ दय साधन पर िबलकु ल यान नह देती और मा ी को तो कम से कम
उनके सामने जाने देती।
पु के साथ रहकर तेज वी राजा पांडु ने तप या म अ धक समय लगाना ार भ कर िदया,
पर समय अपनी गित से चलता है और उसके बीच-बीच के िनणय िकसी के ारा नह रोके जा
सकते। यही हआ।
अजुन 14 वष के हो चुके थे और इन चौदह वष ं म अजुन ने धनुवद क पूरी िश ा ा
कर ली थी। उनसे बड े भाई भीम ने गदा चलाने म और यु धि र ने तोमर फकने म कु शलता
ा क । नकु ल और सहदेव ने तलवार क िश ा ा क । राजा शुक ने यह जान लया िक
अजुन धनुवद का ाता हो गया है। और इससे आगे इस ान म वह िद य तर पर बढ ता
रहेगा तो उ ह ने चमक ला धनुष और नाराच भी उसको दे िदये। अजुन अपने गु से श पाकर
स हए।
अजुन का चौदहवां वष और उनक ज मित थ। चार ओर ऋिषय मुिनय क कतार। भोज
का उ सव और कु ती को यान नह रहा िक महाराज पांडु को भी देखना है। वे ा ण को
भोजन कराने म लग गई।ं पांडु को न जाने या हआ वे मा ी को लेकर वन म चले गये। उस
समय वन म खले हए पलाश, ितलक, आम और च पा के फल फूल क गंध उनके काम भाव
म वृि करने लगी। मा ी उनके पीछे -पीछे आ रही थी तब पांडु ने काम के वशीभूत होकर मा ी
का पश िकया। मा ी ने उनसे छू टने का बहत यास िकया लेिकन पांडु पर काम का वेग था
और िफर शाप के वशीभूत होकर पांडु को मृ यु ा हई।
कु ती ने अपना सर पीट लया। वह अपने बालक को कु िटया म छोड कर पांडु के शव के
पास आई। उसने मा ी को भला-बुरा भी कहा लेिकन अब या हो सकता था। केवल यही हआ
िक मा ी पांडु के साथ सती हो गई।
कु ती का सौभा य दभु ा य म बदल गया, लेिकन कु ती केवल प नी नह थी वह मां भी थी।
पांडु क िचता के सामने कु ती ने मन म ित ा क िक यिद मने अपने जीवन म जो कु छ िकया
वह धम के अनुकूल था तो हे भु! मुझे शि देना म इन पांच पु को सवदा एक रख सकूं ।
इनम कभी संघष न हो। धन-स प , नारी कोई भी इनम भेदभाव उ प न कर सके।
आकाश म बादल िघर आये थे मानो इ कु ती क ित ा पर तथा तु कह रहे ह ।
हवा तेज चलने लगी थी मानो वायु कु ती का साथ देने का वचन दे रही हो।
कृित म सब कु छ समय पर हो रहा था मान धमराज कु ती के उ साह म और कत यिन ा
म सहयोग देने का वचन दे रहे ह ।
चार तरफ सुग ध फैल रही थी लगता था अ वनी कु मार ने कु ती क सुर ा का वचन िदया
हो।
कृित के बनते-िबगड ते प को देखकर कु ती ने सोचा, “म अब अपने पु को लेकर
ह तनापुर जाऊंगी ज ह वन म रहने का चाव था वे तो चले गये। अब म अपने पु को उस
वैभव से अलग य रखूं जस वैभव के वे अ धकारी ह।”
िपतामह भी म के संदेश भी आते रहते लेिकन काफ समय से कोई समाचार नह आया।
कु ती सोच ही रही थी िक वहां िनवास करने वाले ऋिषय ने कु ती के समीप आकर उनसे
कहा‒“हे महाभागा! महाराजा पांडु अपने पु को तु हारे पास छोड कर चले गये यिद तुम
चाहो तो तु ह ह तनापुर पहच
ं ा िदया जाये।”
कु ती मन से यही चाहती थी उसने सहष ऋिषय का ताव वीकार कर लया। िफर उसके
मन म ण-भर के लए यह भी आया िक इन ऋिषय के सा य से ही इन पु क ामािणकता
प हो जायेगी।
कु ती ऋिषय के साथ अपने पु को लेकर चलने के लए तैयार हो गई। उ ह ने बहत
थोड ा-सा सामान अपने साथ लया और चल िदये।

कु ती और ह तनापुर
ह तनापुर ितिदन क तरह हष और उ ास म डू बा हआ था। य िप राजभवन म गांधारी
सिहत येक यि को इस बात का ोभ रहता था िक वन म रहते हए भी कु ती के यहां पहले
संतान उ प हो गई और इस लए स भवतः भिव य के नीित िनधारण म कु छ सम या आये।
कु ती इन सब बात से अवगत नह थी।
कु ती के साथ उसके पांच पु िकशोरवय का काश और मुखमंडल पर देवताओं जैसी
कांित‒जैसे ही राजकु मार ने नगर क सीमा म वेश िकया वैसे ही नगर का एक-एक वृ
प व फूल जगमगा उठर। कु ती को छोड ने आये हए ऋिष आगे-आगे चल रहे थे और
उनके पीछे कु ती थी तथा कु ती के पीछे पांच पांडव।
ह तनापुर क सीमा पर आकर कु ती ने पीछे मुड कर उस ल बे रा ते को देखा जस पर
चलकर वह नगर तक आई थी। अपनी माता का अनुकरण करते हए यु धि र सिहत अ य
भाइय ने भी पीछे मुड कर देखा।
“ या वन को िवदा दे रही ह माता ी?” यु धि र ने उ सुकता से पूछा। तो कु ती ने उ र
िदया‒
“नह , वन को िवदा नह दे रही हं अिपतु यह सोच रही हं िक न जाने िफर कब इस सौ दय
को आंख म भर सकूं गी।”
“म वयं भी यही सोच रहा था।” यु धि र ने कहा।
एकाएक भीम तमतमा कर बोले, “आप दोन को तो वन बहत अ धक ि य है। िपता ी को
भी वन इतना ि य था तो िफर हम वन से आये ही य ?” कु ती मु कराई और उसने कहा‒
“छोटी-छोटी बात पर ोध करना तु हारा वभाव बन गया है। वन हम इस लए ि य है िक
वहां मनु य क ताम सक वृ यां नह जागत । वन-वन नह है वह आ म है और आ म म हम
राग ेष से रिहत रहते ह।” नगर म आते-आते इस कार के संवाद से ऋिषय ने पीछे
मुड कर देखा तो उनम से एक बोले‒
“नगर क सं कृित आ म क सं कृित से िभ होती है। िफर भी तुम राजकु मार हो इस लए
तु ह तो नगर म रहना ही होगा। हम तो केवल इतना कहते ह िक नगर म रहकर आ म का पूरी
तरह से संर ण करना। कु ती ने ऋिषय के आगे म तक झुका िदया और उनको देखकर पांच
पांडव ने भी वैसा ही िकया।”
ह तनापुर नगर का बहत िवराट ार ारपाल से सजा हआ और पांच पांडव अपने र क
ऋिषय के साथ खड े। ारपाल ने राजसीय अनुशासन म इन राजकु मार मुिनय का
अिभवादन िकया। नगर का वरधमान ार ण-भर म खल उठा।
“महाराजा धृतरा को हमारे आने क सूचना दो।” तप वी मुिनय ने ारपाल से कहा।
ारपाल ने तुर त सभा म जाकर मुिनय को समाचार दे िदया। लोग को बड ा आ चय
हआ और ण-भर म ही सह पुवासी मुिनय के दशन के लए वहां आ गये।
जन ा ण क यां कभी नगर से बाहर नह आई थ और जन ि य य ने घर म ही
िनवास िकया था वे सब नगर से िनकलने लग और मुिनय के दशन करते हए बहत स हई।ं
एकि त जा इधर-उधर छंटने लगी य िक अ वारोिहय ने भी म, धृतरा और िवदरु के
आगमन क सूचना दी।
देवी स यवती, कौशला और गांधारी भी पांडव का वागत करने के लए आये।
दयु धन और उसके भाई िविच वेशभूषा पहनकर ा ण और ऋिषय के दशन के लए
आये।
सारा समुदाय एकि त हो गया। तब ऋिषय म से एक ऋिष उठे और कु ती को आगे करके
उ ह ने पांडु पु का प रचय िदया।
ऋिषय ने भी म जी से बताया िक यु धि र, भीम और अजुन धमराज वायु और इ के अंश
से उ प हए और अ वनी कु मार के अंश से ये नकु ल और सहदेव।
पांडव का प रचय देते-देते मुिनय का गला भर आया जब उ ह ने बताया िक पांडु िकस
कार मृ यु को ा हए।
ऋिषय ने मा ी के सती होने का वृतांत भी कह सुनाया और कहा िक अब आप इन पु को
हण कर। यह कहते ही एक ऋिष ने एक बतन भी म के हाथ म िदया और कहा िक यह पांडु
और मा ी क अ थयां ह अब आप इनका िप डदान क जए।
कु ती देख रही थी िक िकस कार भी म कृपाचारी आिद ने पांडव का वागत िकया और
िकस तरह दयु धन आिद ने ई या अनुभव क । कु ती ने गांधारी के समीप आकर पूरे समपण के
भाव से नम कार िकया और उसे अनुभव हआ िक गांधारी के साधुवाद म कोई छल नह था।
वृ के नीचे कु िटया म कु शा पर सोने वाले पांडव राजभवन म सुख शैया पर सोने लगे
िक तु कु ती ने अपनी शैया का व प पहले जैसा ही रखा। कु ती िकसी भी कार अपने मन
और ऐ वय का सम वय नह करना चाहती थी। उसका अ धकतम समय अपने पु क देख-
रे ख म ही यतीत होता और वे कभी-कभी बहत गहराई से उस अपने ही रा य म अपने पराए
होने का अनुभव भी करती।
कु ती को बार-बार यह लगता जैसे वह यहां आरोिपत हो गई है। यह ह तनापुर वही है जहां
वह ंगार करके वधु बनकर आई थी।
यह ह तनापुर वही है जहां से अपने पित के कहने पर वह सब कु छ छोड कर वन म गई
थी।
यह ह तनापुर वही है जहां वह सब कु छ अपना होते हए भी अपने न होने के बीच म रह रही
है।
कु ती को दंश एक नह अनेक ह लेिकन वह जानती है िक उसे अपने पांच पु के लए एक
के ीय धुरी के प म बने रहना है।
यह कृित अ यंत िविच है। वह िकसी को िकस लए और िकसी को िकसी और कारण के
कारण उ प करती है। बार-बार य िच क तरह से आ जाता है जीवन। उस जीवन म कह
पर दवु ासा क सेवा करती हई वह वयं होती है, कह पर िपछले ार से वेश करते हए सूय।
सूय के पश से क पन अनुभव करती हई कु ती।
सूय के समागम के बाद अपने पु को गंगा क धार पर बहाती हई कु ती।
अपने पित से भोग-िवलास के आधार को अपने से अलग करती हई कु ती और यह
ह तनापुर है िक उसक इन सब बात का उ र एक भीतर ही भीतर राख म छु पी रह गई
िचंगारी के समान कभी भी पैर जला देता है।
आकाश म सूय अभी पूरी तरह िदखाई नह िदये थे िक कु ती ने अपनी िव वसनीय दासी को
भेजकर कण के िवषय म पता करवाने के बाद यु धि र को बुलाया।
“मुझे याद िकया है माता ी?” यु धि र बोले।
“हां तात, मन बहत याकु ल हो रहा है। सोचा तुमसे कु छ बात कर लू।ं ”
“ या बात है अ बे? वा य तो ठीक है।”
“हां, वा य िब कु ल ठीक है पर मन याकु ल है।”
“पांच पु क मां और मन याकु ल! तो म यह कह सकता िक बहत भावुक होकर आप
िपता ी को याद कर रही ह गी।”
“नह रे , ऐसा कु छ नह । तु हारे िपता अपनी का त तुम पांच म बांट गये ह। जब तुम पांच
मेरे सामने होते हो तो लगता है वे सव च होकर मुझे आशीवाद और साहस दे रहे ह।”
“हम पांच म वही एक का त है। हम कभी अलग नह ह गे।”
“तु ह कैसे पता चला िक म तुमसे यह बात कहने जा रही ह।ं ”
“आपक गोदी म पला ह।ं आपक ि से आपका आदेश और मन क बात जान लेने का
अ यासी हो गया ह।ं ”
“तो मुझे िचंता नह करनी चािहए?” कु ती ने पूछा।
“नह , िब कु ल नह । जतना िव वास आपको अपने आप पर है। आप चाह तो उससे अ धक
िव वास हम पर कर सकती ह।”
यु धि र और कु ती बात कर ही रहे थे िक दौड ते हए अजुन आए और मु कराते हए भाई
और माता से बोले, “मां, ाता ी‒आपने भाई भीम को देखा है या?”
“नह ... या हआ भीम को? कहां है वह?” घबराकर कु ती बोली।
“घबराओ मत माता ी, उनक तो आदत ही है इधर-उधर चले जाने क । लेिकन हम लोग ने
वन म बगीच म कई थान पर देखा तो वे िमले नह इस लए िचंता हो गई।”
अजुन क मु कराहट पर यु धि र ने यान देते हए कहा, “तुम मु करा य रहे हो?”
“ ाता ी इतने बड े यि को खोजने क भावना से मु करा रहा हं अब आप ही किहए
उ ह खोजना ठीक है या नह ।”
“सामा य प र थितयां होत तो कोई बात नह थी। लेिकन जब राजकु ल म ही िवरोधी त व
बैठे ह तो िचंता होनी वाभािवक है। कु ती अपने थान से हटकर भीम को खोजने के लए जाने
लगी।”
यु धि र ने माता को रोका और कहा िक आप िचंता मत क जए। थोड े समय बाद ही
िवदरु भी वहां आ गये। िवदरु को देखकर कु ती ने कहा िक यु धि र तुम अपने छोटे-भाइय के
साथ भीम को खोजने का यास करो। िफर वह िवदरु जी को स बो धत करते हए बोली िक
आपको तो पता ही है िक मेरा पु भीम दयु धन क आंख म हमेशा शूल क तरह गड ता है,
कह उसने उसे मरवा न िदया हो।
कु ती क बात सुनकर िवदरु बोले, “ऐसा मत कहो। इस कार के अपश द मुंह से नह
िनकालते। वह यह कह चला गया होगा। तु ह मालूम है तु हारे पु दीघजीवी ह और भीमसेन
तो अपनी शारी रक शि म सव प र है। उसका कोई कु छ नह िबगाड सकता।”
कु ती अपने क म शांत बैठी थी लेिकन उसका मन याकु ल था, पर यह याकु ल मन कब
तक याकु ल रहता िक अनायास भीम उनके सामने आकर खड े हो गये। भीम ने माता को
अपने नागलोक क या ा का वृतांत सुनाया और अपने मामा के यहां से वह शि रस पीने के
बाद िकतना शि शाली होकर आया है बताने के लए भीम माता से बोले‒
“मेरी शि देखना चाहती हो तो म इस महल के इस ख भे को िगरा द।ं ू ”
पु के आने से हिषत कु ती बोली‒
“इस त भ को िगराओगे तो या महल सुरि त रहेगा। इसक छत िगर नह जायेगी।”
“तो म छत को अपने हाथ से रोक लूग
ं ा।”
माता और पु इस संवाद से हंसने लगे।
पु के आने क स ता और दसरी
ू स ता यह िक वह शि शाली होकर लौटा है, कु ती
ण-भर के लए अपने आप से बात करने लगी। “मुझे लगता है ये दैवी अंश नये युग का
सू पात करगे।”
कु ती ने भीम को यु धि र के पास भेज िदया और वहां पांच भाइय ने िमलकर अपने आपम
माता क बात को दोहराया।
जब पांच भाई एक थान पर एकि त होकर अपने मन ही मन एक सू ता क ित ा कर रहे
थे तभी वातावरण म सुगध
ं ी फैल गयी और पांच ने पर पर एक-दसरे
ू क आंख म देखा िक
आभा आरोह और अवरोह के साथ अपने थान पर छा रही है। पांच ने एक-दसरे
ू का हाथ
पकड कर इस कार घेरा डाल लया जैसे वे सूयम डल को घेरकर खड े ह।
पीछे से कु ती ने वेश िकया और मु कराकर पूछा, “यह कौन-सा खेल खेला जा रहा है?”
“यह खेल नह है। हम पांच भाई िमलकर सूयम डल को घेर रहे ह।” अजुन क बात सुनकर
पांच भाई हंस पड े िक तु कु ती के मन म न जाने कैसा िवशाद िघर आया िक वह उतने
उ साह से पु क मु कराहट का साथ न दे सक और सबको आशीवाद देती हई अपने क म
लौट गई।

रं गभूिम
ह तनापुर म िपछले कई िदवस से वातावरण सुग ं धत होने के साथ-साथ वीरता क चचाओं
से भर गया था। अवसर था रं गभूिम का आयोजन।
महाराजा धृतरा ने कु लगु कृपाचाय और िपतामह भी म क आ ा से रं गभूिम का आयोजन
करने क आ ा दी जसम सभी राजकु मार जा के सामने अपने अ कौशल का दशन
करगे।
जा को पता चल जाना चािहए िक वतमान राजा के बाद ग ी पर बैठने वाले उनके युवराज
और राजा अप रिमत शि शाली ह। सारी जा पूण प से िनभय होकर रह सकती है। पहले तो
धृतरा ने रं गभूिम के समारोह क ित थ िन चत नह क । इस लए जा म अिन चय-सा छाया
रहा, िक तु उ ह ने एक िदन ित थ क घोषणा भी कर दी लेिकन यह घोषणा करते समय धृतरा
का गला भर आया और वे अपनी िववशता से बहत दख ु ी हो उठे । आचाय ोण, कृपाचाय और
भी म ने िमलकर एक भूिम देखी और उस पर रं गभूिम का आयोजन िकया। जा के लए
रं गभूिम का दशन जतना उ साहवधक था उतना ही कु ती के लए यातनादायक।
राजा धृतरा ने आचाय ोण को बहत भट दी और उनका ध यवाद िकया य िक उ ह ने
राजकु मार को िश ा दी थी।
सभी राजकु मार अपने-अपने वेश म रं गम डप म पधारे और सबने आचाय ोण को नम कार
िकया तथा अपने-अपने िवशेष श के आधार पर रण कौशल कट िकया।
अजुन का अ कौशल दशन और जा क वाह-वाही। िक तु यह या! एकदम सारी
जा, आचाय ोण, भी म और कृपाचाय ने देखा िक ार से एक परम तेज वी वीर वािभमानी
चाल से चला आ रहा है। उसे आता हआ देखकर सभी दशक उसक ओर देखने लगे। दयु धन
खड ा हो गया और उसने िवशेष प से उस वीर को देखा।
यह कण था जसे बाहर रोकने का साहस ारपाल नह जुटा पाये थे।
उसने कवच और कु डल धारण िकये हए थे। उसके चेहरे पर सूय जैसी आभा झलक रही
थी। पहले तो कु ती कु छ समझ नह पायी लेिकन जब कण ने सीधे अजुन के साथ अपनी
ित पधा अिभ य क तो उसे यान हो आया िक यह और कोई नह है उसका अपना ही अंश
है। कण को देखते ही कु ती के सामने अपना अतीत बहत तेजी से घूम गया।
कु ती ने बहत यास करके अपने को वतमान म रखा और उसने सुना कण अजुन से कह
रहा था-हे कु ती के पु जो कु छ भी तुमने िकया है म वह सब कु छ करके िदखा सकता ह।ं कण
को देखकर दयु धन के मन म न जाने कैसी अ ात हष क रे खाएं वािहत हो गई।ं
जब कृपाचाय ने िमले हए माण म कण को सूतपु कहकर पुकारा तब कु ती को बहत बुरा
लगा लेिकन वह कु छ कह नह सकती थी, बस अपने सामने ही अपने पु को वीर होते हए भी
उपेि त होता हआ अनुभव कर रही थी।
कण अजुन से कह रहा था‒“हे अजुन जो बल और परा म म े होते ह उनका कोई दसरा

आधार नह होता। तुम चाहो तो मेरे से यु कर सकते हो।”
कण यु के लए तैयार हआ और उधर अजुन ने अपने धनुष पर बाण चढ ाया।
कु ती से बैठा नह गया िक तु वह खड ी भी नह हो सकती थी। उसके मन ने कहा‒यह
अवसर है यिद तू चाहती है िक कण दयु धन के प म न जाये तो स य बात कह दे। िक तु मन
कहता रहा और कु ती का िववेक उसे रोकता रहा।
कु ती को इस बात क अ धक िचंता नह थी िक सूय क तरह कािशत उसका पु उससे दरू
है। िचंता इस बात क थी िक कण दयु धन क ओर झुक रहा था और जस समय अजुन और
कण को लेकर जा म एक कार का िवभाजन हो गया तो आगे या होगा, यह सोचकर कु ती
को मूछा हो आई।
िकसी को भी कु ती क मूछा का कारण नह पता लगा लेिकन िवदरु जी ने जल मंगवाकर
उनके मुंह पर िछड कवाया और उ ह चैत य िकया।
कु ती के पास कोई आधार नह था िक वह कण और अजुन को रोक पाती। उ ह ने अपनी ही
आंख के सामने यह देखा िक कण क जाित पूछने पर कण ने अपने को अपमािनत अनुभव
िकया और उस अवसर का लाभ उठाकर दयु धन ने कण को अंग देश का राजा बना िदया।
राजा बनने के बाद दयु धन और कण के बीच जैसे एक ण म अटू ट मै ी हो गई। थोड े
समय के बाद ही जा ने देखा िक अ धरथ रं गभूिम म आ गया है। वह पसीने से लथपथ हो रहा
है। अ धरथ को देखते ही कण संहासन से उठा और उसने िपता के चरण छु ए। अ धरथ ने बेटा-
बेटा कहकर कण को यार िकया।
कु ती क से पागल हो रही थी।
भीमसेन अ धरथ को देखकर ोध से उ मु हो उठे और उ ह ने कण का अपमान िकया।
भीमसेन ने कहा‒“सूतपु होने के कारण हे कण तू अजुन से यु करने यो य नह है।”
भीम क बात सुनकर दयु धन को भी ोध हो आया तो उसने कहा, “अरे मूख, तु ह तो ऐसी
बात नह कहनी चािहए। कण जैसा प और गुण वाला सूत जाित क ी का पु कैसे हो
सकता है? और िफर शूरवीर और निदय क वा तिवक उ प के थल को कौन जान
सकता है? तु हारा ज म िकस कार हआ यह भी मुझे मालूम है। इस कार दयु धन ने भीम क
गव ि का उ र तो िदया लेिकन दोन प रवार के बीच श ुता क एक ऐसी खाई बन गई जो
िफर िकसी के भी प र म करने से भरी नह जा सक ।”
रं गभूिम क ड ा समा हो गई थी। सब लोग हिषत होकर वापस लौट रहे थे लेिकन उस
सारे समूह म केवल एक ी थी जो बहत धीरे -धीरे भारी पैर से चल रही थी। और वह इस
तरह से य चल रही थी यह िकसी को नह मालूम था। ज ह मालूम था उनम से कोई भी उस
समय नह था।
वह माता कु ती थी।

वारणावत या ा
राजा ासाद म इस सूचना से सबको आ चय हआ िक वारणावत के वािषक पव के अवसर
पर अब क बार महाराजा धृतरा नह जा रहे ह। जब से कु ती अपने पु को लेकर
ह तनापुर आई है तब से बहत सारी सामा य होने वाली बात भी िवशेष लगने लग ।
कु ती के लए यह बात बहत संतोषजनक थी िक धीरे -धीरे यु धि र जा म लोकि य होते
जा रहे ह। रं गभूिम के संग को उसने धीरे -धीरे अपने से काटकर फक िदया। और यही सोचा
िक सब कु छ िवधाता के हाथ म है और जस कार क ड ा वह कर रहा है उसे सहना ही
होगा।
अपने क म बैठी-बैठी कु ती यान म थी िक चा रका आई और बोली‒“आपके ये
पु यु धि र आपसे िमलना चाहते ह।”
“तो िफर आ ा लेने क कौन-सी बात है। ऐसा कौन-सा िवधान है जो पु को मां के पास
आने से रोकता है।”
थोड ी देर बाद ही स तापूवक कदम रखते हए यु धि र ने वेश िकया और माता के
सामने सर झुका कर खड े हो गये।
“ये आ ा लेकर आने का नया िवधान तुमने बनाया है?”
यु धि र मु कराये और बोले‒“आपसे पूछने म या संकोच था। मने केवल इस लए पुछवाया
था िक कह आप िकसी और काय म य त न ह ।”
“अ छा तो बोलो या काय है?”
“म अपने आपको बड ी िविच थित म अनुभव कर रहा ह।ं ”
“जरा सा भी कोई न तु हारे सामने आता है तो तु हारी थित िविच हो जाती है। क य
अक य, धम अधम का यान रखकर और राजसी यवहार के बीच कु छ अंतर होना
आव यक है।”
“म आपक बात नह समझा।”
“तुम जा क बात कहना चाहते हो न।”
“हां, मने सुना है िक जा दयु धन और महाराज धृतरा से स नह है।”
“तो इसम तुम या कर सकते हो। जा को स करना राजा का काम है और तुम तो राजा
नह हो। यह देखना जेठ जी का काम है िक उनक जा उनसे िकतना स रहती है। अभी
न यह नह है। मुझे लगता है तु हारे मन म कु छ और बात है।” कु ती ने ढ ता से कहा।
यु धि र बोले‒“इस बार वारणावत् म पव म भाग लेने के लए महाराज वयं नह जाना
चाहते और मुझे भेजना चाहते ह।”
“तो िफर इसम सोचने क या बात है। महाराज क आ ा का पालन करो और वारणावत
चले जाओ।”
“यिद इतनी ही बात होती तो म केवल आ ा लेने आ जाता लेिकन इस समय मुझे एक
परामश भी करना है।” यु धि र गंभीर मु ा म अपनी माता से बोले‒“म अकेला जाने के लए
ही इ छु क था िक तु मेरे छोटे भाई कहते ह िक वे भी साथ जायगे।”
“तो इसम िवचारने क या बात है उ ह भी अपने साथ ले जाओ। जब सब लोग साथ रहगे
तो समय बहत अ छी तरह यतीत होगा।”
यह कहते ही कु ती के मन म िवशेष कार के भाव पैदा होने लगे। वह यह नह जान पाई िक
ये भाव अनुकूल ह या ितकू ल और ये य उठ रहे ह।
यु धि र ने अपनी माता को सोचते हए देखा तो बोले‒“पता नह य मुझे ऐसा अनुभव हो
रहा है िक आपको भी साथ चलना चािहए।” “यह तो और भी स ता क बात है। तुम लोग के
िबना म यहां क ं गी भी या? म तो वह रहना चाहती हं जहां मेरे पु ह । तुम जब थोड ी देर
के लए यहां से चले जाते हो तो मेरा मन घबरा जाता है।”
यु धि र कु ती से बात करके चले गये और कु ती अपने ही ऊहापोह म खो गयी। वह
ह तनापुर क राजनीित से बहत प रिचत नह थी िक तु इस बीच दयु धन के ारा जो-जो
घटनाएं होती रह उन पर बहत गंभीरता से न भी िवचार िकया जाये तो भी कु छ न कु छ तो अथ
िनकलता ही है।
तो या करे कु ती? अपने पु के साथ जाये और उनक र ा करे ?
कु ती के लए यु धि र का युवराज होना और दयु धन का िनरं तर उसके िवपरीत काय
करना बहत क दायक हो रहा था।
सं या का समय था। कु ती सं या के पूजन क तैयारी कर रही थी िक पांच पु उसके पास
पहच
ं े। पांच को एक साथ आते हए देखकर कु ती के मन म एक तरफ तो हष का संचार हआ
लेिकन साथ-साथ िकसी कार के अशुभ क आशंका भी मन म घर कर गयी। कु ती को
यु धि र ने बताया‒“हम शी ही वारणावत चले जाना है। वहां हमारे लए िवशेष भवन बनाया
गया है। हम वहां क जा से िमलने का अवसर िमलेगा, िक तु जाने से पहले िवदरु काका ने
बुला भेजा है और हम उनके पास जा रहे ह। माग म आपसे िमलने के लए आ गये।”
कु ती ने बड ी ग भीरता से यु धि र क बात सुनी और कहा‒“इस सारे राजभवन म
केवल िवदरु काका ही ऐसे ह जो हमेशा तु हारे िहत क बात सोचते ह। तुम उनके पास जाओ
और यान से सुनना। वे जो कु छ भी कह उसके गूढ अथ क ओर भी यान देना।”
कु ती ने पांडव क ओर देखा और उसक आंख म वा स य छलछला गया। ये सब इतने
बड े हो गये ह, वीर ह, िद य अंश ह िफर भी मेरे सामने आकर इतने िवन और ब चे बन
जाते ह।
पुलिकत कु ती अपनी आंख का भीगापन नह िछपा पाई और वह पांच भाइय पर कट हो
गया। अजुन बोले, “हम इसी लए आपको अपने साथ ले चल रहे ह। पांच वीर पु क मां और
आंख म यह भीगापन।”
“अ छा-अ छा जाओ िवदरु काका से िमलने जाओ।” अपनी आंख क कोर को प छते हए
कु ती ने कहा और पांच भाई माता के चरण पश करके वहां से चले आये।
अब कु ती अकेली थी। पूजा म भी मन नह लग रहा था। उसने अपने आपसे पूछा ऐसा य
हो रहा है। म अपने ब च के साथ जा रही हं िफर मन म यह य?
आ खर िवदरु ने वारणावत जाने से पहले िवशेष प से पांडव को भट करने के लए य
बुलाया है? चलो जो कु छ भी हो कल तो चले जाना है।
वारणावत नगर म पुरोचन ने पांडव का वागत िकया। कु ती ने देखा िक सब लोग जयकार
करते हए उनके पु के चार ओर खड े हो गये ह और सारी जा अपने घर से िनकलकर
अपने युवराज क अगवानी के लए आई है। राजमहल के औपचा रक वातावरण से िनकलकर
कु ती और पांडव को बहत अ छा लग रहा था।
“राजमहल हमारे लए बना ही नह ।” भीम ने अपनी माता के चेहरे पर आई हई स ता क
रे खाओं को देखकर कहा। और यह सुनकर नकु ल सहदेव भी चुप नह रहे। वे बोले‒
“हमारा िनवास ऐसे थान पर होना चािहए। जहां एक ओर जंगल और दसरी
ू ओर नगर हो।
हम नगर से अ धक वन अ छा लगता है।”
जा से स मान पाकर माता सिहत सभी पांडव ने वारणावत नगर म वेश िकया और सबसे
पहले अपने धम क साख रखने वाले ा ण के घर म गये और उसके बाद वहां के यो ाओं
और यापा रय तथा सेवक से भट क ।
पुरोचन ने उ ह उस भवन का रा ता बताया जहां उ ह ठहरना था। पांच पांडव अपनी माता के
साथ उस भवन म रहने लगे और बहत आन द के साथ उनका समय बीतने लगा। ितिदन नगर
िनवासी कु छ न कु छ भट लेकर युवराज के पास आते और युवराज उसम से थोड ी भट लेकर
शेष नगर िनवा सय को वािपस कर देते।
वारणावत आने से पहले िवदरु जी ने जो कु छ गूढ संकेत िदये थे धीरे -धीरे उनका अथ
कु ती क समझ म आने लगा था। उनके पु को िवदरु जी ने कहा था‒“जब जंगल म आग
लगती है तो िबल म रहने वाले चूहे तथा और जो ज तु रहते ह नह जलते।”
कु ती और यु धि र ने पुरोचन क अित र भि पर शंकालु होकर उस भवन पर िवचार
करना आर भ कर िदया।
“यह भवन तो लगता है आग भड काने वाली व तुओं से बना है। इसम चब क गंध आती
है।”
“मुझे यही लग रहा है िक इसक दीवार पर उस सामान का योग िकया गया है जो ज दी ही
आग पकड लेता है। या करना चािहए?”
कु ती ने कहा‒“मुझे लगता है िक दयु धन तुम लोग को जला कर न करना चाहता है।”
यु धि र बोले, “आप िचंता न कर। काका िवदरु ने हम कु छ ऐसे संकेत िदये थे जससे
इसका आभास पहले ही हो गया था।”
कु ती को यु धि र के कहने के बाद यह िव वास हो गया िक उसने जो कु छ भी सोचा था
वह ठीक था। उन दोन के वातालाप म भाग लेने के लए भीम भी आ गये। भीम ने माता कु ती
और अ ज से कहा‒“यिद आप ऐसा मानते ह िक इस घर का िनमाण अि को उ ी करने
वाले त व से हआ है तो हम यहां से चले जाना चािहए।”
इस पर यु धि र ने उ र िदया‒“हम अपनी िकसी भी चे ा से यह अिभ य नह होने देना
चािहए िक हम दयु धन के ष ं का ान हो चुका है। यिद पुरोचन हमारी िकसी भी चे ा से
हमारे भीतरी मनोभाव को ताड लेगा तो वह शी तापूवक अपना काम बनाने के लये उ त
हो हम िकसी न िकसी हेतु से जला भी सकता है।”
“यह मूढ पुरोचन िन दा अथवा अधम से नह डरता एवं दयु धन के वश म होकर उसक
आ ा के अनुसार आचरण करता है।”
“यिद हमारे जल जाने पर िपतामह भी म कौरव पर ोध भी कर तो वह अनाव यक है,
य िक िफर िकसी योजन क सि के लए वे कौरव को कु िपत करगे।”
“अथवा स भव है िक यहां हम लोग के जल जाने पर हमारे िपतामह भी म तथा कु कु ल के
दसरे
ू े पु ष धम समझकर ही उन आतताियय पर ोध कर, पर तु वह ोध हमारे िकस
काम का होगा?”
“यिद हम जलने के भय से डर कर भाग चल तो भी रा यलोभी दयु धन हम सबको अपने
गु चर ारा मरवा सकता है। इस समय वह अ धकारपूण पद पर िति त है और हम उससे
वंिचत ह। वह सहायक के साथ और हम असहाय ह। उसके पास बहत बड ा खजाना है और
हमारे पास उसका सवथा अभाव है। अतः िन चय ही वह अनेक कार के उपाय ारा हमारी
ह या कर सकता है।”
“इस लये इस पापा मा पुरोचन तथा पापी दयु धन को भी धोखे म रखते हए हम यह कह
िकसी गु थान म िनवास करना चािहये।”
“हम सब मृगया म रत रहकर वहां क भूिम पर सब ओर िवचर, इससे भाग िनकलने के लए
हम बहत से माग ात हो जायगे।”
“इसके सवा आज से ही हम जमीन से एक सुरंग तैयार कर, जो ऊपर से अ छी तरह ढक
हो। वहां हमारी सांस तक िछपी रहेगी। िफर हमारे काय ं क तो बात ही या है। उस सुरंग म
घुस जाने पर आग हम नह जला सकेगी।”
“हम आल य छोड कर इस कार काय करना चािहये, जससे यहां रहते हए भी हमारे
संबधं म पुरोचन को कु छ भी ान न हो सके और िकसी पुरवासी को भी हमारे बचाव काय क
कान कान खबर न हो।
कु ती के सामने उसके पु क सुर ा के न को लेकर एक बहत बड ा य उप थत
हो गया। और वह सोचने लगी िक मने जीवन-भर जेठ के ित भि भाव रखा है और वे अपने
पु को ष ं करने से भी नह रोक सकते।”
दो चार िदन ही बीते ह गे िक िवदरु का एक िव वासपा ला ागृह म आया और उसने िवदरु
जी के संब ध म समाचार सुनाकर उनसे पूछा िक म या कर सकता ह? ं
“पुरोचन कृ ण प क चतुदशी को आग लगाने का िवचार कर रहा है।”
“ह!ं तो उसका समय अब िन चत प से आ गया है।” अपनी माता के सामने ही यु धि र
ने खनक से कहा।
ष ं कारी होने के बावजूद पुरोचन के ित कु ती के मन म एक भाव पैदा हो गया िक तु
उसने कोई भी बात मुंह से नह िनकाली। वह सब कु छ अपनी ि से अपने पु के ारा होता
हआ देख रही थी।
“दयु धन ऊपर से बहत ठीक बनता है और भीतर से वह मुझे भी मेरे पु के साथ जलाना
चाहता है तो उसक इ छा इतनी गहरी हो गयी है। राजा बनने क इ छा मनु य को िकतना िगरा
देती है।”
“राजा ही नह , वाथ का थोड ा-सा भी अंश मनु य को िगराने के लए बहत होता है।
मनु य अपने पथ से िगरता ही तब है जब वह अपने वाथ से मुि ा नह कर पाता।”
कु ती बहत सतक होकर बैठी थी य िक उ ह इस बात क भी िचंता थी िक उनके मन के
असंतुलन से कह िकसी को कु छ पता न चल जाये।
िवदरु ने जस खनक को भेजा था वह पांडव के सामने बैठ गया और उनक आ ा क
ती ा करने लगा।
यु धि र ने खनक से कहा‒“तुम अपने य न से हमको बचाओ और इस काय म शी ता
होनी चािहए य िक हमारे जल जाने पर उसका मनोरथ पूरा हो जायेगा।”
जल जाने क क पना करते ही कु ती का मन और भी बेचन
ै हो गया। उसने खनक क तरफ
आशापूण ि से देखा और कहा िक तुम शी से शी ऐसा काय करो जससे पुरोचन को
हमारे िवषय म कु छ पता न चले।
तब उस सुरंग खोदने वाले ने बहत अ छा ऐसा ही होगा, यह ित ा क और काय सि के
लए य न म लग गया। खाई क सफाई करने के याज से उसने एक बहत बड ी सुरंग
तैयार कर दी।
उसने उस भवन के ठीक बीच म से वह महान सुरंग िनकाली। उसके मुहाने पर िकवाड
लगे थे। वह भूिम के समान सतह म ही बनी थी। अतः िकसी को मालूम नह हो पाती थी।
पुरोचन के भय से उस सुरंग खोदने वाले ने उसके मुख को बंद कर िदया था। द ु बुि
पुरोचन सवदा मकान के ार पर ही िनवास करता था। और पांडवगण भी राि के समय श
स हाले सावधानी के साथ उस ार पर ही रहा करते थे। इस लए पुरोचन को आग लगाने का
अवसर नह िमलता था। वे िदन म िह पशुओं को मारने के बहाने एक वन से दसरे ू वन म
िवचरते रहते थे। पांडव भीतर से तो िव वास न करने के कारण सदा चौक े रहते थे, पर तु
ऊपर से पुरोचन को ठगने के लए िव व त क भांित यवहार करते थे। वे संतु न होते हए
भी संतु क भांित िनवास करते और अ यंत िव मययु रहते थे।
िवदरु के मं ी और खुदाई के काम म े उस खनक को छोड कर नगर के िनवासी भी
पांडव के िवषय म कु छ नह जान पाते थे।
एक ातःकाल कुं ती और पांडव ने िमलकर यह िन चय िकया िक अब उ ह यहां रहते-रहते
बहत समय हो गया है। ला ागृह छोड देना चािहए। सबने इस बात का समथन िकया और
िफर एक रात महारानी कु ती ने दान देने के लए ा ण को भोजन कराया। ा ण के साथ
बहत सी यां भी आ गई। कु ती ने सबको बड े ेम से भोजन कराकर िबलकु ल इसी भाव
से िक वह यह थान छोड रही ह, िवदा िकया।
िक तु काल बड ा बलवान होता है। पांडव के ान के अभाव से ही एक भीलनी पांच बेट
को लेकर वहां आई। ऐसा लगता था जैसे काल ने ही उ ह े रत करके वहां भेजा हो। नह तो
कु ती और पांडव म से िकसी का भी यह मन नह था िक पुरोचन के अित र िकसी और को
इस ला ागृह के ष ं का भाजन होना पड े।
भीलनी और उसके पु सुरापान से मतवाले हो रहे थे और उ ह ने िबना िकसी को बताये उस
घर म िव ाम िकया और सो गये।
रात का समय था। आंधी बहत जोर से चल रही थी। िकसी को एक दसरेू क सुध नह थी
और यह वाभािवक है िक ऐसे म कु छ भी हो सकता था। य िक लोग वैसे उस महल से दरू थे
और यिद पास भी होते तो भी देखने का अवसर न िमलता।
पांच पांडव ने अपनी माता को उठाया और सुरंग के दरवाजे तक ले आये। भीम उ ह वहां
सुरि त नीचे उतारकर उस घर म चार तरफ से आग लगाने लगे और जब उ ह यह िव वास
हो गया िक चार तरफ आग पूरी तरह से लग चुक है तो वे वयं ही उस सुरंग के रा ते नीचे
उतरने लगे।
घर के अ दर सुरंग से कु ती सिहत पांडव िनकल रहे थे और भवन म भयंकर आग लगी हई
थी। जो पुरवासी अभी तक अपने घर म थे उ ह ने जलने क तड ातड आवाज से
घबराकर अपने ार खोल िदये और देखा िक जस ला ागृह म पांडव ठहरे हए थे वह धधक
कर जल रहा है। उस घर को जलता हआ देखकर पुरवा सय के मुख पर दख ु छा गया।
“अरे ! इस महल म आग लग गई। पांडव लोग जल गये ह गे।”
“नह , नह ऐसा नह हो सकता। हमारे ि य युवराज इस तरह जल कर नह मर सकते।”
“माता कु ती का या हआ होगा?”
“यह केवल एक दघु टना है।”
“नह , मुझे तो इसम पुरोचन का ष ं लग रहा है। मने कई बार देखा है िक दयु धन इधर
आया करते थे और पुरोचन से गुपचुप बात िकया करते थे।”
“ या वा तव म पांडव जल गये ह गे?”
पुरवासी तरह-तरह क बात करते हए अपने-अपने पु य को याद करते हए जलते हए भवन
के आसपास इक े हो गये। कोई कह रहा था। यह धृतरा और दयु धन का ष ं है। राजा
धृतरा क बुि िबगड गई। पांडव जल गये।
सारे पुरवा सय क आंख से आंसू िनकल रहे थे। भय, ोध और लािन से उनके मन क
भावनाएं ने य नह हो पा रही थ । वे िव वास भी नह कर पाते थे िक पांडव इस तरह से
जल गये ह गे और दसरीू ओर भीमसेन क शारी रक शि का लाभ उठाकर पांडव बहत
ज दी-ज दी उस सुरंग के रा ते से वन म पहच
ं ना चाहते थे।
ला ा ह से थोड ी ही दरू वन शु हो जाता था और िवदरु के भेजे हए खनक ने ला ागृह
से वन के शु होने तक ही सुरंग का िनमाण िकया था।
माता सिहत पांच पांडव िन चंत प से न सोने के कारण आल य म थे लेिकन भीम सदा
क तरह सचेत थे िक तु चलते हए भी कु ती को मान सक यं णा सता रही थी। यु धि र को
आ चय हो रहा था और भीम को ोध आ रहा था। भीम चाहते थे िक उसी समय कु छ ऐसा कर
िदया जाये जससे दयु धन का स यानाश हो जाये।
“आ खर हम य इस कार िछपकर भाग रहे ह?” उ ह ने माता से पूछा और िफर जोर
देकर कहा‒“हम अभी ह तनापुर वािपस चलना चािहये।”
“नह , हम अभी ह तनापुर नह जायगे।” कु ती बोली।
“आपको वन म बहत क होगा।”
“म हमेशा ही वन म रहती आई ह।ं मुझे न अपने पित के साथ वन म क हआ है और न
अपने पु के साथ होगा। अपने कत य का पालन म तब भी करती थी और अब भी। यह मेरा
कत य है िक म तु हारे साथ रहकर वन म ही तु हारे जीवन के िविभ आयाम को िव तार द।ं ू
देखो ‘भीम’ कु ती ने आगे कहा‒ष ं कारी को शु म पकड लेने से उसका पाप पूरा नह
होता इस लए हम थोड े से क उठाने ह गे और इससे यह पता चलेगा िक इस राज संहासन
को लेकर जो एक अ दर ही अ दर संघष केवल एक तरफ से कौरव के मन म पल रहा है वे
उसके लए कहां तक जा सकते ह।”
कु ती ने कहा‒“देखो तु हारे काका िवदरु यिद चाहते तो इस ष ं का भ डाफोड वह
कर सकते थे? या यह भी हो सकता था िक यहां नगरवा सय को बुलाकर भवन क साम ी
िदखाई जाती िक तु जानते हए भी उ ह ने ऐसा य नह िकया?”
कु ती ण-भर के लए ठहरी और बोली‒
“उ ह ने ऐसा इस लए नह िकया िक इससे एक तो स पूण जा क सहानुभूित तु हारे ित
होगी और दसरेू दयु धन क द ु ता िकसी से भी नह िछपी रहेगी। और जब ह तनापुर म हम
सब लोग के जीिवत रहने का समाचार पहच ं ेगा तो जन लोग ने अपने मुख और मन दोहरे
चेहरे बना रखे ह उनके मुखमंडल साफ हो जायगे।”
“काले-काले िदखाई दगे, सफेद-सफेद।”
इस बार अजुन चुप नह रह सके और बोले‒“अब ज दी ही आगे का काय म िन चत
िकया जाये।”
पांच पांडव माता कु ती के साथ चलकर गंगा के समीप पहच
ं रहे थे।
िवदरु को यह भी देखना था िक िकसी कार पांडव के बच िनकलने क बात ज दी से िकसी
को पता न चले। उ ह ने एक पु ष वहां पर भेजा जसका काम था पांडव को गंगा के पार
उतारना। पांडव गंगा के िकनारे पहच
ं गये थे और उ ह ने देखा िक वहां एक नाव है उसक
वजाएं बड ी ऊंची-ऊंची ह। उसम नौका चलाने का एक यं भी लगा हआ है।
जैसे ही पांडव वहां पर पहच
ं े तो उ ह ने देखा‒िक वह पु ष हाथ जोड कर कह रहा
था‒“घास-फंू स तथा सूखे वृ के जंगल को जलाने वाली और सद को न कर देने वाली
आग िवशाल वन म फैल जाने पर भी िबल म रहने वाले चूहे आिद ज तुओं को नह जला
सकती। य समझकर जो अपनी र ा का उपाय करता है, वही जीिवत रहता है।”
“इस संकेत से आप यह जान ल िक म िव वासपा हं और िवदरु जी ने ही मुझे भेजा है।
इसके सवा, सवतोभावेन अथ सि का ान रखने वाले िवदरु जी ने पुनः मुझसे आपके लये
यह संदेश िदया िक कु तीन दन तुम यु म भाइय सिहत दयु धन, कण और शकु िन को अव य
परा त करोगे इसम संशय नह है।”
“यह नौका जलमाग के लये उपयु है। जल म यह बड ी सुगमता से चलने वाली है। यह
नाव तुम सब लोग को दश से दरू छोड देगी, इसम संदेह नह है।”
इसके बाद माता सिहत नर े पांडव को अ य त दखु ी देख नािवक ने उन सबको नाव पर
चढ ाया और जब वे गंगा के माग से थान करने लगे, तब िफर इस कार कहा‒
“िवदरु जी ने आप सभी पा डु पु को भावना ारा दय से लगाकर और म तक सूंघकर यह
आशीवाद िफर कहलवाया है िक तुम शा तिच हो कु शलपूवक माग पर बढ ते जाओ।”
िवदरु जी के भेजने से आये हए उस नािवक ने उन शूरवीर नर े पांडव से ऐसी बात
कहकर उसी नाव से उ ह गंगाजी के पार उतार िदया।
पार उतरने के प चात् जब वे गंगाजी के दसरे
ू तट पर जा पहच
ं े तब उन सबके लये जय हो,
जय हो, यह आशीवाद सुनाकर वह नािवक जैसे आया था, उसी कार लौट गया।
कु ती ने इस बीच अपने मन म अनेक कार के िन चय लये जैसे वह अपने पांच
लड क के लए एक शि के प म उभरना चाहती थी। य िप उसके पु वयं शि शाली
ह िफर भी वह अपना माता का कत य पूरा करके उ ह और भी अ धक शि शाली बनाना
चाहती है िक तु थोड ी देर बाद ही कु ती ने यह महसूस िकया िक गंगातट पार करने के बाद
वह ऐसे थान पर आ गये है जहां िदशाओं का ान भी समा हो गया है। कु ती को एक ओर
अपने मन क ढ ता से िचंता हो रही थी और दसरी ू ओर वह थक रही थी। कु ती क थकान
देखकर भीम को बहत क णा आई और कभी-कभी उ ह मूछा भी होने लगती थी।
य िप भीम अपने पैर से अनेक वन पितय को र दकर रा ता बनाते हए चलते जा रहे थे
िफर भी और क दबु लता से उ ह भी क होता था।
उ ह ने िवचार िकया िक ऐसे माग से चल जहां गु थान पर पहच
ं जाय। माता कु ती को
अपने कंधे पर िबठाकर कभी-कभी तो वे अपने भाइय को भी अपनी गोद म उठा लया करते
थे और इस तरह से चलते रहे।
एक रमणीक थान पर आकर भीमसेन ने अपना वेग कम िकया। कु ती उनके कंधे से उतरी
और पृ वी पर लेटते ही उ ह न द आ गई। थोड ी देर के बाद कु ती ने कहा‒“मुझे यास लगी
है।”
उनक थित देखकर भीम का दय क णा से भर गया और वे तुर त पानी लेने के लए
िनकले। थोड ी देर म ही वे पानी लेकर आ गये और सबने पानी पीकर शांित क सांस ली।
माता कु ती और भाइय को पृ वी पर इस तरह से सोये हए देखकर भीम का बलशाली दय
भी िपघलने लगा। उ ह ने सोचा िक हम माता को य क दे रहे ह। िकतना अ छा होता िक
इ ह हम ह तनापुर छोड आते िक तु सहसा ही उ ह यह लगा, यह म या सोच रहा ह-ं सच
या झूठ। जैसे ही माता को पता चलता िक हम यहां पर जला िदया गया है तो इसके बाद भी िक
हम बच जाते माता क या दशा होती?
भीमसेन सोच रहे थे हमारा यह प रवार मां और हम पांच से िमल करके ही तो बन रहा है।
बाक ह तनापुर म या है। जो भी है वे संहासन से जुड े हए ह।

कु ती और िहिड बा
एक भयंकर आवाज को सुनकर कु ती क न द खुल गयी। वे घबराकर उठ और चार तरफ
देखने लग । पहले तो कु छ पता नह चला िक तु बाद म उ ह ने देखा िक थोड ी-सी दरी
ू पर
उनका मझला पु भीम एक सु दर युवती के साथ बात कर रहा है। कु ती के मन म आया िक
वह उनक ओर बढ चले। कहां तो यह भयंकर विन और कहां उनका पु एक सु दर युवती
से बात कर रहा है। दोन म कोई मेल नह ।
अरे ! ये तो मेरे समीप आ रहे ह। कु ती कु छ और सचेत हो गई। भीम और वह सु दर युवती
कु ती के पास आये और उस युवती ने माता कु ती के पैर छु ए।
“आयु मान भव।” कु ती के मुंह से आशीवाद िनकला और िफर उ ह पता चला िक या- या
हआ। उनके सोते-सोते उनके वतमान संसार म एक और संसार बन गया।
“तु ह अपने भाई क मृ यु का कोई दख
ु तो नह ?” कु ती ने िहिड बा से पूछा।
“भाई क मृ यु का दख
ु िकसे नह होता माता, िक तु भाई को भी भाई होना चािहए। जस
पु ष का म वरण कर चुक हं उसे यिद मेरा भाई मारना चाहे तो म उसे कैसे वीकार कर
सकती ह।ं ”
“मने बहत समझाया िक तु मेरा भाई मनु य के मांस के लए इतना पागल हो उठा था िक
उसने अपनी बिहन के मन क कोमल भावनाओं का भी आदर नह िकया।”
कु ती को सारा वृ ांत पता चला िक िकस कार ू र रा स िहड ब ने सोते हए पांडव क
मानस गंध से अपने म भूख क उ ेजना अनुभव क और अपनी बिहन को पांडव के पास
भेजा। उसका आदेश था िक वह इ ह देखे और उसके लए भोजन तैयार करे ।
वह बेडोल रा स पांडव के पास आया और उनके मांस िमलने क संभावना से मन म तु
होने लगा। पहले उसने अपनी बिहन को आदेश िदया िक हमारे े म सोने वाले उन मनु य को
मारकर तुम मेरे पास ले लाओ िफर हम उ ह खायगे और स होकर नृ य करगे।
िहिड बा भाई क बात मानकर वहां पर आई और उसने देखा िक ये पांच भाई वहां ह जनम
से माता के साथ चार तो सोये हए ह और एक भीमसेन जाग रहे ह।
धरती पर उगे हए साखू के पौधे क भांित मनोहर भीमसेन को देखते ही वह रा सी मु ध हो
उ ह चाहने लगी। इस पृ वी पर वे अनुपम पवान थे।
उसने मन ही मन सोचा इन यामसु दर त ण वीर क भुजाएं बड ी-बड ी ह, कंधे संह
जैसे ह, ये महान तेज वी ह, इनक ीवा शंख के समान सु दर और ने कमलदल के स श
िवशाल ह। ये मेरे लये उपयु पित हो सकते ह।
मेरे भाई क बात ू रता से भरी है, अतः म कदािप उसका पालन नह क ं गी। नारी के दय
म पित ेम ही अ य त बल होता है। भाई का सौहा उसके समान नह होता। इन सबको मार
देने पर इनके मांस से मुझे और मेरे भाई को केवल दो घड ी के लये तृि िमल सकती है
और यिद न मा ं तो बहत वष ं तक इनके साथ आन द भोगूग ं ी।
िहिड बा इ छानुसार प धारण करने वाली थी। वह मानव जाित क ी के समान सु दर प
बनाकर लजीली ललना क भांित धीरे -धीरे महाबाह भीमसेन के पास गयी। िद य आभूषण
उसक शोभा बढ ा रहे थे। तब उसने मु कराकर भीमसेन से इस कार पूछा‒“पु ष र न!
आप कौन ह और कहां से आये ह? ये देवताओं के समान सु दर प वाले पु ष कौन ह, जो
यहां सो रहे ह?”
“और अनघ! ये सबसे बड ी उ वाली यामा सुकुमारी देवी आपक कौन लगती है, जो
इस वन म आकर भी ऐसी िनःशंक होकर सो रही है, मानो अपने घर म ही हो।”
“इ ह यह पता नह है िक यह गहन वन रा स का िनवास थान है। यहां िहिड बा नामक
पापा मा रा स रहता है।”
“वह मेरा भाई है। उस रा स ने द ु भाव से मुझे यहां भेजा है। देवोपम वीर! वह आप लोग
का मांस खाना चाहता है।”
“आपका तेज देवकु मार का सा है, म आपको देखकर अब दसरे
ू को अपना पित बनाना नह
चाहती। म यह स ची बात आपसे कह रही ह।ं ”
“धम ! इस बात को समझकर आप मेरे ित उिचत बताव क जये। मेरे तन-मन को
कामदेव ने मथ डाला है। म आपक सेिवका ह,ं आप मुझे वीकार क जये।”
“महाबाहो! म इस नरभ ी रा स से आपक र ा क ं गी। हम दोन पवत क दगु म
क दराओं म िनवास करगे। अनध! आप मेरे पित हो जाइये।”
“वीर! म आपका भला चाहती ह।ं कह ऐसा न हो िक आपके ठु कराने से मेरे ाण ही मुझे
छोड कर चले जाय। श ुदमन! यिद आपने मुझे याग िदया तो म कदािप जीिवत नह रह
सकती। म आकाश म िवचरने वाली ह।ं जहां इ छा हो वह िवचरण कर सकती ह।ं आप मेरे
साथ िभ -िभ लोग और देश म िवहार करके अनुपम स ता ा क जए।”
“ये मेरे ये ाता ह, जो मेरे लये परम स माननीय गु ह, इ ह ने अभी तक िववाह नह
िकया है। ऐसी दशा म तुमसे िववाह करके िकसी कार प रवे ा नह बनना चाहता। कौन ऐसा
मनु य होगा, जो इस जगत म साम यशाली होते हए भी, सूखपूवक सोये हए इन ब धुओं को,
माता को तथा बड े ाता अरि त छोड कर जा सके।”
“मुझ जैसा कौन पु ष कामपीिड त क भांित इन सोये हए भाइय और माता को रा स का
भोजन बनाकर अ य जा सकता है।”
“आपको जो ि य लगे, म वही क ं गी। आप इन सब लोग को जगा दी जये। म इ छानुसार
उस मनु य भ ी रा स से इन सबको छु ड ा लूग
ं ी।”
“मेरे भाई और माता इस वन म सूखपूवक सो रहे ह, तु हारे दरु ा मा भाई के भय से म इ ह
जगाऊंगा नह ।”
“सुलोचने! मेरे परा म को रा स, मनु य, ग धव तथा य भी नह सह सकते ह।”
“अतः भ े! तुम जाओ या रहो, अथवा तु हारी जैसी इ छा हो, वही करो त वंिग। अथवा यिद
तुम चाहो तो अपने नरमांस भ ी भाई को ही भेज दो।”
तब यह सोचकर िक मेरी बहन को गये बहत देर हो गयी, रा सराज िहिड ब उस वृ से
उतरा और शी ही पांडव के पास आ गया।
उसक आंख ोध से लाल हो रही थ , भुजाएं बड ी-बड ी थ , केश ऊपर को उठे हए थे
और िवशाल मुख था। उसके शरीर का रं ग ऐसा काला था, मानो मेघ क काली घटा छा रही
हो। तीखे दात वाला वह रा स बड ा भयंकर जान पड ता था।
देखने म िवकराल उस रा स िहिड ब को आते देखकर ही िहिड बा भय से थरा उठी और
भीमसेन से इस कार बोली‒
“दे खये वह द ु ा मा नरभ ी रा स ोध म भरा हआ इधर ही आ रहा है। अतः म भाइय
साहत आपसे जो कहती ह,ं वैसा क जये।”
“वीर! म इ छानुसार चल सकती ह,ं मुझम रा स का स पूण बल है। आप मेरे इस किट देश
या पीठ पर बैठ जाइये। म आपको आकाश माग से ले चलूग
ं ी।”
“तुम डरो मत, मेरे सामने यह रा स कु छ भी नह सुम यमे! म तु हारे देखते-देखते इसे मार
डालूग
ं ा।”
“यह नीच रा स यु म मेरे आ मण का वेग सह सके, ऐसा बलवान नह है। ये अथवा
स पूण रा स भी मेरा सामना नह कर सकते।”
“हाथी क सूंड जैसी मोटी और सु दर गोलाकार मेरी इन दोन भुजाओं क ओर देखो। मेरी ये
जांघ प र ध के समान ह और मेरा िवशाल व थल भी सु ढ एवं सुगिठत है।”
“शोभने! मेरा परा म भी इ के समान है, जसे तुम अभी देखोगी। िवशाल िनत ब वाली
रा सी तुम मुझे मनु य समझकर यहां मेरा ितर कार न करो।”
“आपका व प तो देवताओं के समान ही है। म आपका ितर कार नह करती। म तो
इस लये कहती हं िक मनु य पर ही इस रा स का भाव म कई बार देख चुक ह।ं मने अपनी
आंख से अपने भाई को मानव को मारकर उनका खून पीते देखा है।
िहिड बा अपने भाई के िवषय म कहती जा रही थी और डर भी रही थी। उसे भाई के संदभ म
दो बात का डर हो रहा था। एक तो यह िक उसका भाई मनु य से ेम करने के कारण उसे
तािड त करे गा और दसरा ू यह िक उससे इनक हािन न हो जाये।”
अब तक का जो भी संवाद दोन के बीच म हआ उससे यह स हो गया था िक कोई भी
ू से कम नह है। माता कु ती ने दोन क ओर देखा और ह त ेप करते हए
एक-दसरे
बोल ‒“पु ी तुम िचंता मत करो। तुम कौन हो इसको जाने बगैर म इतना कह सकती हं िक मेरे
पु क शि अप रिमत है। और इसी लये मने तुमसे पहले ही कह िदया था िक िचंता क कोई
बात नह है।”
अपने पु और िहिड ब रा स के बीच यु क सारी सूचनाएं पाकर कु ती का स होना
वाभािवक था। कु ती ने दोन को मन से आशीवाद िदया और ग धव िववाह करने क अनुमित
दे दी।
कु ती ने अनुभव िकया िक और भाइय के साथ रहते हए भीम और िहिड बा को संकोच होगा
इस लए उनका वहां से चले जाना उिचत है। और इन दोन का अकेले छोड देना चािहए।
कु ती का यह ताव जब भीम के सामने आया तो भीम ने ही उ र िदया िक आपका ऐसा
सोचना भावुकता से भरा हआ है। हम कोई संकोच नह होगा। भीम क भावना समझकर कु ती
ने थोड ी-सी दरू पर ही उनके साथ िनवास िकया।
कु ती ने जब िहिड बा से अपने पु के िवषय म थोड ी-सी िचंता अिभ य क तो िहिड बा
ने कहा िक आप जब भी मेरा मरण करगी म आपके पास आजाऊंगी।
कु ती ने यह भी अनुभव िकया िक यिद िहिड बा को उसक भावना के अनु प काय न करने
िदया जाये तो यथ क थितयां पैदा ह गी।
भीम और िहिड बा के बीच इस भावा मक स ब ध का एक प वह था िक उन दोन म संतान
क उ प तक यह स ब ध बना रहेगा और उसके बाद भीम अपने भाइय को लेकर या ा के
दसरे
ू आव यक पड ाव पर चला जाएगा।
समय यतीत हआ और कु ती ने देखा िक भीम और िहिड बा का पु घटो कच अपनी माता
के अनु प गया है। वह मायावी-सा लग रहा था-छाती चौड ी और नाक बहत बड ी। उसे
देखकर भय-सा उ प होता था।
िहिड बा ने अपने पु के िवषय म माता कु ती से बताया िक इसका सर घड े क तरह
केश रिहत है इस लए इसका नाम घटो कच रखा जाता है।
पु क उ प के बाद थोड े समय तक पांडव क प र मा करता हआ घटो कच वह
साथ म रहने लगा तो एक िदन कु ती ने उससे कहा‒“हे पु ! तुम कु कु ल म ज मे हो और मेरे
लये सा ात भीमसेन के समान हो। हमारी सहायता करो।”
“आप आ ा दी जये म या क ं । म इतना कहता हं िक जब भी आप मुझे मरण करगे तभी
म उप थत हो जाऊंगा।”

कु ती पुद रा य क ओर
माग बहत ल बा था और थकान भी पैर पर लपटी जा रही थी, िक तु जस ा ण के यहां
एक च ानगरी म पांडव ने रहने का िन चय िकया उसके घर आकर उ ह संतोष और आन द
का अनुभव हआ। माग म उ ह यास जी िमले और उ ह ने उपदेश िदया िक सोच-समझकर
काय करो और लगभग एक मास तक इसी थान के आसपास रहो।
कु ती ने यास जी का आदेश मानकर एकच नगरी म रहना वीकार िकया, िक तु भा य
अनेक प धारण करके आता है। कु ती के लए वह िदन एक अ ुत िनणय का िदन था जब
चार भाई िभ ा के लए गये हए थे और भीम माता के साथ घर पर ही थे।
अक मात कु ती ने सुना िक सारा ा ण प रवार आतनाद कर रहा है। एक तो वह उस घर
म रह रही थी। दसरे
ू वभाव से ही दयालु होने के कारण वह इस दन से अलग नह रह
सक । उ ह ने ा ण के पास जाकर उससे पूछा‒
“तु हारे क और रोने कारण या है?”
“म अपने अित थय को अपना क बताकर उ ह तंग नह कर सकता।”
“िक तु अित थय का भी कत य होता है िक वे जहां रहते ह वहां के लोग क यथासंभव
सहायता कर। य िक धम यही कहता है िक जसने उपकार िकया है उसका कु छ न कु छ काय
उपकारी यि को अव य करना चािहए। य िक उपकार से जतना पु य ा होता है
ितउपकार से उससे भी अ धक होता है।”
कु ती के वचन सुनकर ा ण ने अपने क का वणन कर िदया और उनका यह क घर
पर होने के कारण भीमसेन को भी पता चल गया।
भीमसेन आये और उ ह ने कहा‒
“माता ी आपने अभी तो मुझसे पूछा था िक ा ण प रवार का िकस कार कु छ भला िकया
जाये तो अब समय आ गया है। हम इनका भला कर सकते ह।”
बात यह समा हो गई है और ा ण अपनी प नी से बातचीत करने के लए घर के अ दर
के भाग म चला गया।
भीम और कु ती थित पर िवचार करते हए वह पर बातचीत करते रहे तब उ ह ने सुना िक
ा ण अपनी प नी से कह रहा था‒“मने बार-बार तुमसे दसरी
ू जगह जाने के लए कहा िक तु
तुम नह मान । भला ऐसे थान पर य रहा जाये जहां जीवन क र ा भी न हो सके। तुमने उस
थान के ित आसि अिभ य क है जहां अब हमारा कोई भी नह रहा।”
उन दोन क बात हो रही थी िक ा णी ने अपने को तुत करने क अिभलाषा अिभ य
क और उसने कहा‒“पित के िहत के लए िकया गया उ सग पु यदायक होता है। म यिद
आपके काम आ जाऊं तो मुझे इस लोक म यश िमलेगा और परलोक म शांित तथा सदगित।”
“नह , नह म ऐसा नह कर सकता। तु हारे िबना ब चे अनाथ हो जायगे। म भी अपने क य
का पालन क ं गा।”
कु ती ने देखा िक ा ण क या भी उस बातचीत म स म लत हो गई है और तब कु ती उनके
पास गई तो उसी के सामने ा ण क या बोली‒
“आप िच ता न कर म आपके दख ु का िनवारण क ं गी। पु तो इस लए आव यक है िक
िपता का तपण करता है और क या तो दसरे
ू के घर क ही होती है। म आप सबके जीवन क
र ा क ं गी।”
कु ती ने ा ण क या के सर पर हाथ रखा और कहा‒“तुमम से िकसी को भी जाने क
आव यकता नह है। अब सारी बात मुझे पता चल गई है तो अब आप िनणय सुन ली जए।”
कु ती ने कहा‒“आपके तो एक ही पु है और एक ही पु ी और इनके पालन के लए आपक
प नी। आपके प रवार म से तो कु छ भी नह हटाया जा सकता। अब आप मेरी बात यान से
सुिनये। मेरे पांच पु म से एक पु रा स क ब ल साम ी लेकर चला जायेगा।”
“नह , नह , ऐसा नह हो सकता। यिद मने ा ण क ह या कराई तो मेरे दोन लोक न हो
जायगे।”
कु ती ने कहा‒“आप िचंता मत क जए। मेरा पु बलवान है और मने इससे पहले भी रा स
से इसके यु देखे ह। अनेक रा स मेरे पु के ारा मारे गये ह और मुझे पूरा िव वास है िक
मेरा बलशाली पु इस रा स को भी मारकर केवल आपको ही संकट से मु नह करे गा
अिपतु सारे देश को संकट से बचाएगा।”
कु ती ने य िप िनणय ले लया था िफर भी वह अपने बड े पु से पूछना चाहती थी। जब
चार पु लौट कर आये तो कु ती और भीम दोन के मुखमंडल पर यु धि र को कु छ ऐसा लगा
िक इन लोग ने कु छ करने का िन चय िकया है िक तु यह जानना शेष था िक वह काम या
है? उ ह ने माता के समीप आकर कु छ पूछना चाहा िफर कु ती बोली‒
“बेटा आज भीमसेन मेरी आ ा से एक महान काय करने जा रहे ह। जससे इस स पूण नगर
के ऊपर बहत समय से आया हआ संकट समा हो जायेगा।”
जब यु धि र को सारी बात का पता चला तो उ ह ने कहा‒“हे माता! आपने जो िनणय लया
है वह तो ठीक है लेिकन अपने पु को इस तरह संघष के लए भेज देने म या औिच य है।”
“मने जो िनणय िकया है वह िकसी दबु लतावश नह िकया। एक तो तुम भीम का बल जानते
हो और दसरे
ू मुझे ा ण के उपकार का बदला भी चुकाना है।”
कु ती दरवाजे के पास खड ी थी और गव तथा क णा से देख रही थी िक उनका बलशाली
पु भीमसेन बाहर दो छकड म अनाज भर के ा ण क खा साम ी लेकर जाने के लए
तैयार है। कु ती ने मन ही मन वायु देवता का मरण िकया और उनसे अपने पु क र ा क
ाथना क । सहसा वायु का वेग तेज हआ और कु ती ने अनुभव िकया िक छकड े को ले
जाने वाले पशु अ धक वेग से चले जा रहे ह।
समय बड ा बलवान होता है वह कब िकस प म िकसके प और िवप म होता है
मालूम नह पड ता। मन-मन म हास-प रहास, क , िच ता और शि स प काय ं को करते
हए पांडव और कु ती एकच ा नगरी छोड कर आगे क या ा ार भ करने लगे। एकच ा
नगरी म ही ा ण के घर पर आये हए एक अित थ से उ ह ने अनेक िविच कथाएं सुन और
उनम यह भी िक िकस तरह से ौपदी और धु ू न का ज म य िव ध से हआ।
ुपद ने ौणह ता पु पाने क कामना से य िकया था और उ ह एक पु और पु ी िमले।
कु ती के सिहत पांच पांडव वन म थोड ा आगे जाकर उस माग को पकड ना चाहते थे
जो सीधा उ ह ुपद क राजधानी म ले जाता, लेिकन वे या देखते ह िक भगवान वेद यास
सामने से चले आ रहे ह। उ ह ने पहले पांडव का नम कार वीकार िकया, कु ती को आशीवाद
िदया और उ ह बताया िक ौपदी अपने पूव ज म म महादेव जी क पूजा से एक वर ा कर
चुक है और इस ज म म वह ुपद के यहां पैदा हई है तथा िनयित ने उसे तुम लोग क प नी
िनयु िकया है।
कु ती ने सुना और कु छ-कु छ अपने जीवन का ख ड याद हो आया। म के ारा भगवान
सूय का आवाहन। धमराज, वायु, देवराज इ जैसे एक-एक करके उसके मृित िब ब म
क धने लगे।
यास के मुख से जो बात सुनकर उसे एक ण को झटका-सा लगा था वह अब एक बहत
बड ी तकशि से िव वास बन गया था। कु ती को लगा जैसे उन सबके जीवन म देव शि
का इस कार का ह त ेप िकसी न िकसी बड े काय के लए उसके बलवान पु और इन
पु के लए िनयत एक ही प नी जो िवधाता को वीकार हो। और उसने मन ही मन िन चय
िकया िक वह कु छ ऐसा करे गी जससे प नी को लेकर इनम संघष पैदा न हो।
यास जी चले गये और कु ती ने पहले ग भीर होकर और िफर ह के से मु कराकर अपने
पु क ओर देखा वह उ ह साथ लेकर आगे ही आगे इस तरह से बढ चली जैसे पांच संह
को एक सू म बांध कर उनका संर क चलता है।
ुपद क राजधानी समीप आ गई थी। पांडव ने अपने वेश को िछपाने के लए जस कार
का अनुलेप िकया था उसे और गाढ ा कर िदया। जससे कोई उ ह पहचान न सके। कु ती ने
यह भी िन चय िकया िक उसके पु ा ण क भीड म ही अ धक से अ धक रह। वैसे यिद
वे पहचाने भी गये तो या हो सकता है। य िक वे तब तक अ धक सुरि त ह जब तक
ह तनापुर म उनके होने क सूचना नह पहच
ं ती।
सुरि त तो वे बाद म भी रहगे लेिकन वे जस संघष को टालना चाहते ह वह स भवतः उनके
कंध पर आ जायेगा। कु ती मन से नह चाहती थी िक उनके पु िकसी संघष म पड ।
“तुम कहां रहने का िवचार कर रहे हो व स?” कु ती ने यु धि र से पूछा।
“िकसी कु भकार के घर म रहना चाहते ह और इसके लए मने नकु ल सहदेव को जरा आगे
भेजा है िक वे थान देख ल।”
कु छ समय बाद ही थान से प रचय पाकर नकु ल और सहदेव नगर सीमा पर लौट आये िफर
उसके साथ माता कु ती और शेष भाई कु भकार के यहां गये।
एक दो िदन बाद ही उ ह ने ुपद क घोषणा को सुना। सुनकर कु ती ने यु धि र से
कहा‒“इस घोषणा से तु ह कु छ अनुभव हआ है।”
“कह नह सकता िक जो म सोच रहा हं आपका आशय उसी से है।”
“तो बताओ तुम या सोच रहे हो?”
“म सोच रहा हं िक महाराजा ुपद ने अजुन को ढू ढं ने के लए इस कार के धनुष क
िनिमती क है और इतना किठन ल य वेद रखा है। माता इस वेद को कोई आपका पु ही पूरा
कर सकता है।”
कु ती ने यह बात सुनी और िफर मृित का एक झ का जैसे उनके पास से गुजर गया। उ ह ने
पु को आदेश िदया िक वे ा ण के साथ ही ल य वेद करने जाय। और वह वयं घर म
उनक ती ा करगी।
लौटकर जब भीम ने बाहर से ही कहा‒“देखो मां, हम या िभ ा लाए ह।”
तो मां ने िबना देखे ही सहज वर म कह िदया‒
“तुम पांच भाई पा लो।” कहते ही कु ती ने पीछे मुड कर देखा तो भीम और अजुन के
साथ एक सु दर सुकुमारी खड ी थी।
“यह या हआ?” वह सोचते-सोचते बाहर आई और तब अजुन ने माता को ौपदी वयंवर
का पूरा वृतांत सुनाया िक तु कु ती को वृतांत सुनने के बाद भी अपने वचन क च रताथता पर
क अनुभव होने लगा। यह उ ह ने या कह िदया िक पांच पाओ। यह तो िभ ा नह है जसे
पांच म िवभा जत कर लया जाये।
कु ती िचंता म पड गई िक तु यास जी का कथन भी उनके सामने मूत हो आया। यास
जी ने यही कहा था‒
मेरे मुख से भी ऐसा ही कु छ िनकला।
पांच भाई बहत ग भीर होकर माता के साथ बैठे थे और इस नई थित पर िवचार चल रहा
था। ौपदी के वयंवर पर आशा, िनराशा के भाव आ जा रहे थे। ौपदी को लेकर पांच
भाइय म फूट न पड े इस लए यु धि र ने कहा‒“हे अजुन! तुम अि को सा ी करके
ौपदी के साथ िववाह करो।”
“आप मुझे अधम का भागी बनाना चाहते ह िक बड ा भाई अिववािहत रहे और छोटे का
िववाह हो जाये।”
“तो या िकया जाये?” यु धि र ने कहा।
“वही जो धम के अनुकूल है। पहले आपका िववाह हो िफर भीमसेन का और िफर मेरा। आप
वयं धम के अनुकूल िवचार कर सकते ह।”
पांच पांडव ने यास जी क बात मरण करके कु छ दैवयोग से और कु छ मान सकता से
ौपदी को अपने मन म बसा लया।
यु धि र ने अपना िनणय िदया िक ौपदी हम पांच क प नी होगी।
बहत सारी थितयां अपने आप नह तय होत । थोड ी देर के बाद ही बलराम जी को साथ
लेकर कृ ण वहां आये और अपना प रचय देकर उनसे बोले िक हमने आपको पहचान लया।
आग िकतनी भी य न िछपी हो वह पहचानने म आ ही जाती है। सब लोग बहत स हए।
और िफर पया समय तक ुपद के पास जाने के बाद वातालाप का म चलता रहा।
कु ती जैसे एक भाव से अपने पांच पु को सब कार से एक करना चाहती थी। अब न
यह नह रह गया था िक कु ती ने ऐसा कहा िक तु न यह था िक ुपद और उनके पु को
िकस कार समझाया जाये। य िक सामा य थित म पु ी का कोई भी िपता अपनी पु ी का
िववाह पांच पु ष से नह करना चाहेगा िक तु जब ुपद और उनके लड के को यह पता चला
िक ौपदी को ल यवेद म जीतने वाले अजुन ह तो अपनी ित ा पूरी होते हए देखकर उ ह
बहत स ता हई िक तु‒
“यह कैसे हो सकता है िक एक ी का पांच पु ष से िववाह हो।”
“ऐसा इससे पहले भी हआ है राजन्। और इसम धमशा क अलग-अलग िव धयां ह। जब
दैव ही िकसी बात को िन चत करता है तो उसम कोई भी ह त ेप नह कर सकता।”
पुरोिहत और यु धि र क बातचीत से भी ुपद कु छ आ व त हए और उ ह ने पांडव को
बुला भेजा।
पांडव मान मयादा और शान के साथ ुपद के घर म आये। अब उनके मुखम डल पर
ा ण व नह ब क अपने मूल प का तेज अिभ य हो रहा था। भोजन के समय पांडव
छोटे-बड े के म से पंि म बैठ गये और िफर बहत देर तक ुपद और यु धि र क
बातचीत हई।
अपनी पु ी के िवषय मे ुपद बहत िचंितत थे िक तु यास जी के कहने से उनक िचंता दरू
हई और वह सु दर समय उप थत हआ जब ौपदी का पांच पांडव के साथ िववाह हो गया।
अब कु ती के पास एक छोटा-सा कत य बचा था िक वह अपनी बह को कु छ उपदेश दे।
कु ती ने ौपदी को अपने पास बुलाया और कहा‒“हे पु ी जैसे इ ाणी इ म, वाहा अि
म, रोिहणी च मा म, दमय ती नल म, भ ा कु बेर म, अ धती व स म तथा ल मी भगवान
नारायण म भि भाव एवं ेम रखती ह, उसी कार तुम भी अपने पितय म अनुर रहो।”
“भ े! तुम अन त सौ य से स प होकर दीघजीवी तथा वीर पु क जननी बनो।
सौभा यशा लनी, भोग साम ी से स प , पित के साथ य म बैठने वाली तथा पित ता होओ।”
“अपने घर पर आये हए अित थय , पु ष , बड े-बूढ , बालक तथा गु जन का
यथायो य स कार करने म ही तु हारा येक वष बीते।”
“तु हारे पित कु जांगल देश के धान- धान रा तथा नगर के राजा ह और उनके साथ ही
रानी के पद पर तु हारा अिभषेक हो। धम के ित तु हारे दय म वाभािवक नेह हो।”
“तु हारे महाबली पितय ारा परा म से जीती हई इस समूची पृ वी को तुम अ वमेध नामक
महाय म ा ण के हवाले कर दो।”
“क याणमयी गुणवती बह! पृ वी पर जतने गुणवान र न ह, वे सब तु ह ा ह और तुम
सौ वष तक सुखी रहो।”
“बह! आज तु ह वैवािहक रे शमी व से सुशोिभत देखकर जस कार म तु हारा
अिभन दन करती ह,ं उसी कार जब तुम पु वती होओगी, उस समय भी अिभन दन क ं गी,
तुम स गुण स प हो।”
ौपदी ने कु ती क बात बहत यान से सुनी और चरण पश करके कहा‒“हे माता! म अपने
कत य म िकसी भी कार िश थलता नह आने दग ं ू ी। मने पांच पांडव का वरण िकया है और
िकसी भी कार का भेदभाव मेरे मन को िवच लत नह कर पायेगा। आप िन चंत रह।”
कु ती सोच रही थी िकस कार िवधाता उनके साथ कभी कु छ, कभी कु छ करता रहता है
िक तु उसके सारे करने और न करने म गुण अ धक ह। वह मूल प से ौपदी को पु वधु के
प म पाकर बहत स हई थी।
इस स ता का कारण यह भी था िक कौरव के सामने अब प प से उनके पु का प
बढ रहा था।
एक मां को अपने पु के संदभ म इससे अ धक और या चािहए!

ह तनापुर म वापसी
जब थितयां इस कार बदलती ह िक िमलना और न िमलना गुणा भाग म कु छ अ धक हो
जाता है तो मन म शंका का पैदा होना बहत वाभािवक है। कु ती ने कभी यह क पना भी नह
क थी िक ौपदी वयंवर के बाद महाराजा धृतरा , महामं ी िवदरु को ौपदी और पांडव को
लेने के लए पांचाल देश भेजगे लेिकन हआ ऐसा ही।
कु ती बड ी गिवत चाल म यह सूचना पाकर िक िवदरु आये ह िवदरु से िमलने के लए गई ं
और उ ह ने िवदरु के सामने अपनी शंका रख दी।
“ या यह उिचत होगा िक पांडव ह तनापुर लौट?”
“मेरे िवचार म तो इसम कोई बुराई नह है।”
“ह तनापुर ेष और ितिहंसा का घर बन गया है और तुम जानते हो।” कु ती ने तेज सांस
लेकर कहा।
“तभी तो कह रहा हं िक ह तनापुर म कु छ तो ऐसा हो जो ष ं के उ र म सहयोग क
विन दे सके। कु छ तो ऐसा हो जसे वहां के िनवासी ेम कर सक। कु छ तो ऐसा हो जो
ह तनापुर क जा के िव वास का पा बन सके।” िवदरु कह रहे थे और कु ती सुन रही थी।
“म तु हारे कहने का मतलब पूरी तरह से नह समझी।”
“ऐसा तो मत किहए आप सब कु छ ठीक तरह से समझती ह और यह आपके ही समझने
और ठीक िनणय लेने के कारण है िक इतनी िवरोधी शि यां होने के बाद भी पांडव का कु छ
नह िबगड ा। और मुझे हष भी इसी बात का है।”
“ला ागृह से तुमने हम बचाया इसके लए...”
“यह आपको शोभा नह देता िक महामं ी को उसके छोटे से कम के लए ध यवाद िदया
जाये।”
“मेरा आशय यह नह था, िक तु यिद तुम कहते हो तो म पु से िवचार करके ह तनापुर
जाने के िवषय म सोचती ह।ं ”
“हमारे म त य को समझने के लए अब यहां पर महाराज ुपद ह और वासुदेव कृ ण भी। वे
जैसा कहगे वैसा ही होगा।”
कु ती अपने पु के साथ खड ी राजा ुपद के स मान को हण कर रही थी। राजा ुपद ने
बहत भावभीनी थित म अपनी पु ी को िवदा िकया। िवदा का अवसर बहत भावमय था। अजुन
जैसा पु ी का पित पाकर राजा ुपद अपने मन क एक भावना को पूरा होता हआ अनुभव कर
रहे थे और पु ी के िवदा के अवसर पर भावुक भी हो रहे थे।
कु ती ने अपनी मृितय को अपने मन म समेटकर आकाश क ओर देखा और ह तनापुर
जाने क तैयारी करने लगी।
कु ती के मन म बार-बार राजभवन, नगर, बड े-बड े राजमाग और िफर िफरकर वन
के कुं ज घूम रहे थे। वह यह िन चय नह कर पा रही थी िक ह तनापुर जाना या अब तक के
संकट का हल है या नये संकट का िनमं ण। िफर भी जाना तो है ही और कु ती अपने पु को
लेकर ह तनापुर आ गई।
कु ती को सूचना िमली िक दयु धन पांडव को रा य नह देना चाहते और भी म ने उसे आधा
रा य देने क सलाह दी है। भी म पांडव के ित भी अपने कत य क पूित करते रहे ह। कु ती
को इसम कोई स देह नह था। एक िवशेष दतू ने भी म और दयु धन म हई बातचीत कु ती से
बताई। उ ह ने कहा िक उनका पैतृक रा य अंश इ भी नह ले सकते। उनके िच म और एक
िवचार है। इस रा य पर तु हारा और पांडव का एक साथ समान अ धकार है।
कु ती को यह भी पता चला िक आचाय ोण ने भी पांडव को उपहार भेजकर उ ह नगर म
बुलाने के लए स मित दी थी। लेिकन यह या कु ती सोचते-सोचते ऐसे चोट खा गयी जैसे
पहाड से िगरी हो। अब इस पर वह या करे उसके पास इस थित का कोई समाधान नह
है। उनका अपना तेज अपना पु है। भरी सभा म कह रहा है िक कण पांडव को रा य म नह
आने देना चाहता। तो या कण ही उनके पु के माग म बहत बड ी बाधा है। यह कैसे स भव
हो रहा है िक वृ क एक डाल ही पूरे वृ को बढ ने से रोक रही है।
कण का संग आते ही कु ती के मन म न जाने या- या िवचार पैदा हो जाते-अपने पांच
पु को एक सू म बांधने वाली म, उनके जीवन क र ा करने वाली म, उनके साथ अनेक
संकट का सामना करने वाली म इस एक िब द ु के सामने आते ही य दबु ल हो जाती ह।ं
कु ती! तु ह अपने आपको इस संदभ के लए हमेशा तैयार करना होगा। जब तक यह जीवन
है, कब तक ह तनापुर का रा य है, जब तक दयु धन और पांडव संसार म अपने कम का
पालन कर रहे ह तब तक यह संग शूल क तरह चुभता रहेगा। हे देव! तु हारी इ छा या है?
देव क इ छा मनु य क इ छा से िभ नह हो सकती और अगर िभ होगी तो उसी क इ छा
का पालन होगा।
कु ती अपने महल के बाहरी भाग से नये बने हए इ थ नगर को देख रही है। स भवतः
उनके जीवन म ऐसे अवसर बहत कम आये ह िवशेष प से िववाह के बाद, जहां उ ह ने अपने
आपको समृि और वैभव के बीच पाया है। उ ह ने तो हमेशा अपने आपको संघष क कृित के
बीच पाया है। इसी लये कभी-कभी उ ह अपनी ऐसी थित पर िव वास नह होता।
कु ती को नह मालूम था िक पांच पु का िववाह करने के बाद इ थ के िनमाण के बाद
भी उनके जीवन म कोई ऐसा अवसर आयेगा जब िफर उ ह आशंका का सामना करना
पड ेगा।
नारद ारा िनधा रत िनयम को भंग करने के कारण अजुन 12 वष के लए िफर से वनवास
के लए जा रहे ह। माता का दय िचंितत हो आया, िक तु वे इस िवषय म िववश थ ।
ह तनापुर म वािपस आने के बाद अजुन से यह उनका पहला और बड ा संवाद था।
“आप िचंता य करती ह माते! थोड े समय क बात है और म तुरंत यह समय यतीत
करके चरण म आ जाऊंगा।”
“बात िचंता क उतनी नह है जतनी इस बात क िक तुम पांच के एक साथ होने क
अ यासी म एक तु हारे न होने पर कैसे आराम से रह पाऊंगी।”
“आपके चार पु तो आपके साथ ह गे। और म भी जहां-जहां जाऊंगा आपके पास सूचना
िमलती रहेगी। मेरा कोई अिहत नह होगा।”
“मुझे पता है मेरे पु को अपने-अपने ऊपर बहत िव वास है और म इसी िव वास के बल
पर अब तक सब कु छ सहन कर पाई ह।ं ”
“आप अपना उिचत यान रखना। य िप मुझे आपके संदभ म महाराज और िकसी भी यि
के ित कोई संदेह नह है िफर भी...।”
“नह पु नह , ऐसा मत सोचो। तुम िन च त होकर जाओ और देखो आय भी म ये
महाराज धृतरा और दयु धन भी मेरे ित वैमन य नह रखते। इस लए तुम जाओ और अपने
ि ितज का िव तार करके लौटो।”
अजुन ित ा पूरी करने के लए चल िदये और जहां-जहां वे गये वहां जाकर उ ह ने अपनी
सफलता ा क और िकसी न िकसी कार से उनक ये सफलताएं ह तनापुर म भी पहच ं ती
रह । कु ती हष और उ ास म डू बती उतराती कभी आशंका से त होती और कभी अित र
स ता से भरकर समय को ध यवाद देती हई अपने पु का रा य देखती रही, िक तु पांडव के
भा य म ऐ वय का संगम िवधाता ने बहत कम लखा था और वह िदन कु ती के लए िफर से
िच ताओं और क का िदन बन गया जस िदन शकु िन के कहने पर राजा धृतरा ने यु धि र
को ूत ड ा के लए बुलाया। कु ती को एक नई आशंका ने घेर लया था। और अब सारे
सू उसके हाथ से िनकल चुके थे। उसने िन चय िकया िक पु जो भी करगे करते रह। म अब
ये जी और दीदी गांधारी को छोड कर नह जाऊंगी। पता नह य उसे िव वास हो गया
था िक उनके थान पर अब पांडव क एकसू ता ौपदी के हाथ म आ गई थी।

वनवास पर कु ती
इ थ रा य क शोभा, मय के ारा बनाई गई सभा, राजसूय य और समृि का अपार
जाल उस होनी को नह टाल सका जससे यह िन चत होता है िक मनु य का भा य उसके कम
से बहत तेज चलता है।
िवदरु के बुलाने पर पांडव ौपदी सिहत ह तनापुर आ गये और दयु धन के िवरोध के
बावजूद उ ह आधा रा य िमल गया और उ ह ने इ थ नगरी का िनमाण िकया। स भवतः
राजा ुपद से उ ह इतना ा हो गया था िक वह अपने नये रा य क थापना कर सकते थे।
जस समय कृ ण के परामश पर राजसूय य क तैयारी क गई थी उसी समय कु ती के मन
म ह क -सी शंका पैदा हो गई थी। न जाने उ ह बार-बार य लग रहा था िक उनक जो संतान
जंगल म पैदा हई है, वह बढ ी-पली है उसे यह राज साद कैसे रास आयेगा!
अपने सामने से जाते हए मुकुट पहने जब कु ती यु धि र को देखती तो उसे िविच प से
अनुभव होता। उसने तो पूरे जीवन अपने इस पु को शांित और याग क बात कहते हए
सामा य से व म देखा है। उ प हआ था तो उसके बाद भी वन म घास-फंू स पर सोता रहा।
आ म क सुग ं धत वायु इसे तरं िगत करती रही और अब यह वण से िनिमत मुकुट उसके सर
पर रखा है और वह शायद ठीक तरह से हंस भी नह पा रहा है।
हां, भीम को देखकर कु ती को ज र यह लगता िक कोई एक यि ऐसा है जो इस सारे
ऐ वय को अपने मन से भोग रहा है। और जब कभी वह ौपदी के ऊपर अपनी ि डालती तो
उसे कभी लगता िक इस ी के मन म इस ऐ वय के ित जरा-सा भी िवरि का भाव है या
नह । लेिकन जब भी ौपदी राजसी व म उसके सामने आती तो उसे यह िव वास ज र होता
िक जब कभी इसके ये व इसके पास नह ह गे तब भी यह िकसी शि से कम नह होगी।
कु ती सोचती थी कभी स होती और कभी आशंकाओं से िघरती और कभी-कभी िबलकु ल
अपने मौन म बनी रहती। लेिकन जब-जब भी वे गांधारी क सेवा म उप थत होत उ ह लगता
िक वे सब कु छ िनिवकार होने के बाद भी सहजता से गांधारी का सामना नह कर पात और
गांधारी तो केवल श द सुन सकती है उन श द क विन से िनकलते अथ यिद पूरी तरह से
पकड म आ जाय तो चेहरे क भावभंिगमा का अनुमान लगा सकती है नह तो उनके लए
केवल श द ह।
गांधारी बड े नेह से यु धि र आिद के बारे म पूछती और वे ण तो कु ती के लए
असहनीय से हो जाते जनम वह दयु धन के हठ धम को लेकर कु ती से मा मांगती। एक बार
कु ती के मन म तो आया िक वह कह द‒“जीजी अपनी आंख क प ी खोल दो और अपने
प रवार के जस कम िवधान को तुमने अपने भाई या और के ऊपर छोड रखा है उसे खुद
संभालो।” पर कु ती इतनी बड ी बात कैसे कह सकती।
शकु िन के महाराजा धृतरा पर बढ ते हए भाव क सूचना कु ती के पास भी आती जा
रही थी और उसक द ु ि या को सुनकर वे बार-बार सहम जात , िक तु आज तो उनके
आ चय का िठकाना नह रहा जब उ ह पता चला िक यु धि र ने उनसे िबना पूछे राजा धृतरा
का ूत का िनमं ण वीकार कर लया है।
आकाश म कभी-कभी छोटा-बड ा काला बादल िदखाई देता है िक तु इस सूचना से कु ती
को लगा जैसे उसके चार तरफ भयंकर कालापन लये दीवार रं गी गई ह। बादल के बीच से
िनकलकर शायद आकाश क कोई थाह ली जा सके लेिकन दीवार से तो सर म चोट ही
लगेगी।
कु ती अपने महल के क म उन सब तैया रय का अनुमान लगा रही थी जो धृतरा के
िनमं ण पर यु धि र क तैया रय के प म हो सकती थ । उ ह लगा िक यु धि र िबना िकसी
िवकार के तो इस खेल को जानते ह लेिकन शकु िन वह कैसे िवकारहीन खेल खेलेगा। कु ती
को यह समझ नह आ रहा था िक शकु िन जस ष ं के रा ते पर अब तक दयु धन और
उसके भाइय को ले गये ह उससे उनक इ छा या है। वे कौरव वंश का लाभ चाहते ह या
उसका नाश। अब तक तो उनके सारे काम का प रणाम दोन कु ल को संघष क ओर ले गया
है और इस संघष से केवल नाश ही होना है।
एक बार उनके मन म आया िक शकु िन क वृ को जीजी के सामने खोलकर कह लेिकन
उ ह यह पता था िक आ खर उनक भावना और अपने भाई के बीच वे भाई को ही मह व दगी।
कु ती ने कु छ नह कहा और वह चुपचाप देखती रही िक यु धि र ूत ड ा के लये चल
िदये ह।
न वह यु धि र को रोक पाई और न जीजी से कु छ कह पाई। उ ह लगा िक सब कु छ स प
होने के बाद भी अब सब कु छ अपनी िदशा म चलना शु हो गया है। उ ह ने अब तक जन
िदशाओं को अपनी ि से संयिमत करके रखा था वे सब खुल गयी ह और उनम जो कु छ भी
िबखरे गा उसे न वे समेट सकती ह और न कोई उनके मन के अनुसार उ ह िबखरने से रोक
सकता है, य िक जो उनक तप या है शायद उसका फल पूरा हो गया है।
िफर भी सभा म भी म ह गे, ोण और कृपाचाय ह गे, अ याय होने का अवसर कम है िक तु
अब तक कहां रोक पाए ह ये लोग, दयु धन के अ याय को। इसके ितकार म या तो केवल
उनके पु के श चले ह या कृ ण और िवदरु क नीित के ारा उनक र ा हई है।
कु ती को िव वास नह होता भी म, ोण और कृपाचाय पर।
कु ती कैसे अिव वास कर सकती है िपतामह, आचाय और राज-पुरोिहत पर।
ण- ण बीतकर अतीत क एक माला बना देते ह और वह माला कभी कु ती के गले म
डल जाती है और कभी हाथ म लपट जाती है िक तु कभी-कभी ऐसा होता है िक कु ती
अनुभव करती है िक वह माला पांडु क ितमा पर पड ी है और धीरे -धीरे उसका एक-एक
फूल झरकर िगर रहा है।
पांडु क ितमा के सामने खड ी कु ती अपने ई वर का मरण करते हए मना रही थी िक
ूत ड ा से उनके पु सकु शल लौट आएं िक तु ऐसा कहां होता है िक हर बार मनु य क
इ छा पूरी हो और उसने ण-भर म देखा िक तट थ मुखमु ा लए यु धि र, ोधी भीम और
उसके भाई माता के सामने खड े ह।
सभा भवन का सारा वृतांत सुनकर कु ती ने सोचा िक वह िकसको दोष दे। उसक कु लवधु
क लाज बच गई, यही बहत है। कैसे हआ यह सब कु छ और सबके सब िनवीय से बैठे रहे।
घटना बड ी िविच थी और उस घटना से उ प होने वाला प रणाम और भी अ धक िविच
था। तेरह वष का वनवास जसम एक वष का अ ातवास। तो यह कारण था िक कु ती को
यु धि र के सर पर रखा हआ मुकुट बहत उ े जत और स नह करता था। तो यह कारण
था िक वह ौपदी के राजसी व के बीच एक तप वनी क वेशभूषा देखती थी। कु ती ने तेज
और म द चलते हए वायु को अपनी बांह म लया। अपनी आंख म व जैसा तेज अनुभव
िकया और प पातहीन होकर धम का िवचार करते हए सोचा‒
दोष तो सभी का है उनका भी ज ह ने ूत का िनमं ण िदया। वे अपनी ही आंख के सामने
अपना िवनाश देखगे।
दोष उनका भी है जो इस िनमं ण पर चले गये और अपनी प नी तक को व तु समझकर दांव
पर लगा िदया‒अपने सामने यातना के पवत से उ ह भी चढ कर िवष पीना पड ेगा।
और दोष मेरा भी है िक मने अपने हाथ के कसाव को ढीला य छोड िदया। म अब
ऐ वय भोग से िवरत बस अपने म लीन रहग ं ी।
कु ती ने अनुभव िकया िक अ त र म ह-उप ह आपस म टकरा रहे ह और िकसी के
टकराने से िनकली चंचला उसके घर म काश कर रही है और िकसी के टकराने से कट-
कटकर िगर रहा है आसमान। अब या होगा? उ ह नह मालूम था।
उ ह ने बहत यान से देखा। पांडु के गले म पड ी हई अतीत के मनक क माला का एक
फूल और झर गया है।

कण क याद
सूय अभी पूरी तरह से आकाश म आये नह थे। गुनगुनी उषा क िकरण पुरोिहत के मंिदर के
ार से उनके पूजा थल तक झांकना चाह रही थ िक पुरोिहत उठे और मंिदर से बाहर आ गए।
राजकु ल का पुरोिहत आज थोड ा-सा अशा त है। अशा त इस लए नह िक उसक पूजा म
कोई यवधान आया है। अशा त इस लए नह िक उस पर कोई ो धत हआ है। वह इस लए
अनमना है िक राजमाता कु ती ने िवशेष दतू भेजकर उ ह पूजा के लए बुलाया है।
िकतनी बार लड े पुरोिहत अपने आपसे। िकतनी बार आ मा म उठते हए न का उ र न
िमलने पर भी वैसे ही बने रहे जैसे उनके जीवन म न है ही नह ।
पुरोिहत ने िकतना चाहा िक उसके मं दोन प के लए समान अथवाचक ह, िक तु ऐसा
कैसे हो सकता है। उसे आदेश है मंगलिवधान को स पूण करने का और ऐसा मंगल िवधान जो
पांडव के जीवन को सुरि त करे और कौरव प का नाश करे ।
ऐसा य सोचती है राजमाता िक मेरे ारा िकया गया य और उसम पढ े गए मं पांडु
पु क र ा करगे और कौरव के लए हािनकारक स ह गे।
म पुरोिहत ह।ं धमगु ! मेरे वचन अका माने जाते ह। सृि के आिद और अ त के िवषय
म कोई कु छ नह जानता िक तु म जो भी कह देता हं लोग उसे ही मान लेते ह। म कभी गु के
पद पर था। मेरे सामने ही वीभ स राजनीित ने गु के पद को अपमािनत िकया और ाण सं ाम
ार भ होने से थोड े ही पहले मुझे राजमाता कु ती के आदेश से पांडव के प म मंगलिवधान
करना है।
“तो आप आ गए।” अपनी घबराहट रोककर कु ती ने पुरोिहत से कहा।
“राजमाता का आदेश हआ था। म न आने का साहस कहां से जुटा पाता।”
“नह , ऐसा नह है पुरोिहत जी। आप तो राजगु ह पर मेरे लए यह तो वाभािवक है िक म
अपने पु के लए मंगल कामना क ं ।”
“िक तु राजमाता हम केवल भु को याद कर सकते ह। उनसे अपने अनुकूल होने क ाथना
कर सकते ह लेिकन अगर आप आ ा द तो म एक बात कहना चाहता हं िक मं ीय शि दो
तरफ भािवत नह होती। यह कैसे स भव है िक म मं पढू ं और उसके भाव से पांडव क
र ा हो और कौरव क असुर ा।”
“म तो िकसी क भी असुर ा नह चाहती। म मां हं पुरोिहत जी मेरे लए जतने ि य पांडव
ह, उतने ही ि य कौरव भी। िक तु या क ं , दयु धन क हठ, यु धि र ने तो केवल पांच ाम
ही मांगे थे।” यह कहते-कहते कु ती गहरी सोच म डू ब गय ।
पुरोिहत ने कहा‒“आ चयजनक िवसंगित है जीवन म राजमाता िक हम अपने लए िवजय
क कामना करते ह और दसरू के लए पराजय क । और यह बाहर ार पर खड ा यु है
इसम या सैिनक लड गे।”
“तो और कौन लड ेगा?”
“देवताओं के आशीवाद।”
“मनु य के जीवन म देवताओं का ह त ेप अभी भी है और इसी लए शायद म यह कह ही
नह सकता िक म ऐसे मं नह पढू ग ं ा जनम एक वग को जीवन िमले और दसरेू वग को
मृ यु।”
“नह , नह म ऐसा नह चाहती।”
पुरोिहत इस संवाद को आगे नह बढ ाना चाहते थे य िक उ ह पता था िक रा य स ा के
सामने उनका कोई भी तक नह ठहर सकता। वह तो इस रा य म बहत छोटे से यि ह।
भी म, ोण, कृपाचाय भी इस यु को नह रोक पाए।
पुजारी ने पूजा क थाली ठीक क और मं का उ चारण करने लगे। कु ती वैसे-वैसे ही
करती जाती जैसे-जैसे पुजारी उ ह िवधान बताते।
पुजारी ने आचमन के लए राजमाता क अंजली म जल डाला ही था िक बाहर से बहत तेज
आवाज आने लग । नगाड े, तूरी और शंख बज उठे जैसे यु का पूवाभास हो रहा हो।
राजमाता कु ती क अंजली कांप गयी। और उ ह ने सुना‒िक एक सैिनक कह रहा था‒
“जानता हं िक तु हम सैिनक ह
आ ा म बंधे हए
हमको तो लड ना है
हम नह जीतगे
हम नह हारगे
जीतगे राजपु ष
राजपु ष हारगे।”
पुरोिहत ने बंटता हआ यान िफर से पूजा म लगाते हए कहा‒“आप सैिनक क बात सुनकर
घबरा गय ।”
“नह -नह िफर भी मेरा यु से घबराना बहत वाभािवक है। तुम जानते हो पुरोिहत यु क
ित जो देश और धरती क होती है वह दबु ारा पूरी हो जाती है लेिकन जो ित मनु य क होती
है और िविश प से नारी क वह नह भरती।”
तभी बाहर से सैिनक का वर और भी ती होकर पूजा के क म गुज
ं ायमान होने लगा।
सैिनक कह रहे थे‒“अरे तुम या समझते हो”
िक इस लड ाई म
कौन जीतेगा
िकसी भी महारथी का
िवषैला तीर कर देगा समा ।
उसे उ र देते हए जैसे दसरे
ू सैिनक ने कहा, “असली लड ाई तो भाई ोण, भी म म नह
होगी। यु का िनणय तो न ुपद करगे न भीम। और दसर
ू क तो बात ही या है।”
“तो िफर कौन िनणय करे गा?” एक सैिनक ने पूछा तो दसरे
ू ने तपाक से उ र िदया‒
“असली यु होगा
िनणायक यु होगा
कण और अजुन के बीच।”
विन अक मात जैसे कु ती के पूरे शरीर से टकरायी। वे एकदम कांप गय । उनका अंजली
का जल पृ वी पर िगर गया।
“ या हआ राजमाता?”
“कु छ नह ‒कु छ नह । आप अपना मंगलिवधान पूरा कर ली जये।”
पुरोिहत ने िफर साहस करके पूछा‒“आप व थ तो ह।”
कु ती ने बहत ढ ता से कहा‒“म व थ ह।ं ” पु के मंगल कामना के अवसर पर
अ व थता कैसी।
पुरोिहत ने पूजा पूरी क । और दसरे
ू िदन क ातःकाल का िवधान बताकर जाने लगे।
कु ती एक ण के लए पुरोिहत को रोककर बोली‒
“एक बात आपसे पूछना चाहती ह।ं ”
“आ ा हो राजमाता।”
कु ती अब तािक सहज हो गयी थ । उ ह ने पुरोिहत से कहा‒“इस भयानक यु के अवसर
पर मेरे ारा क गयी ये पूजा अपने पु के मंगल के साथ या दसरे
ू पु के अमंगल क सूचक
भी है? और यिद अपने ही पु का अमंगल हो।”
यह कहते-कहते कु ती सहज होते हये भी बहत असहज िदखाई दी।
पुरोिहत ने कहा‒“आप अपने पु के िवषय म िच तत न ह ? हमारी ओर धम है, हमारी
ओर कृ ण ह। हमारे प का अमंगल नह होगा।”
पुरोिहत चले गये और क म कु ती अकेली रह गय । उनके कान म अभी भी सैिनक के
श द गूज ं रहे ह जैसे बार-बार कोई उनसे कह रहा हो ये यु केवल उनके दो पु के बीच होना
है। या उसे िन चत प से इन दोन म से िकसी एक पु को खोना होगा। कु ती के मन के
सभी तार झनझना उठे । वह अपने आपको पूण अकेला अनुभव करने लगी, लेिकन अकेली भी
वह कहां रह , उनके साथ उनके , वतमान और अतीत के न चार तरफ च कर लगा रहे
थे।
कु ती के सामने अपने िववाह से लेकर अब तक के सभी घटनाच घूम गये। कु ती का
िववाह, िववाह से पूव सूय से संगम, बालक कण का जल वाह और िफर पित के आ ह से
देवताओं का आ ान, पु ाि ।
य छोड कर चले गये मुझे मेरे पित? य एक शीतयु चल रहा है इ और सूय म?
उ ह लगा िक सिदय से चलती आ रही पु ष धान स ा म नारी को उपेि त य िकया जाता
है? य सूय सोचते ह िक कण केवल उनका पु है और य इ सोचते ह िक अजुन केवल
उनका पु है? ये दोन य नह सोचते ह िक ये दोन पु मा कु ती के पु ह।
कु ती सोचने क ि या ब द करना चाहती थी या और गहराई से सोचना चाहती थी िक अब
वह या करे ?
कु ती ने सोचते-सोचते ार क ओर देखा िक यु धि र िच ताम चले आ रहे ह। यु धि र
के मुखम डल पर उसने हमेशा एक सहजता देखी है जैसे राग ेष से मु यि अपनी शा त
म ही िवलीन रहता है। जब-जब भी न के घेरे उसके ये पु के सामने आये वह उनम से
िनिवकार बालक क तरह बाहर आ गये। क हो तो कोई घबराहट नह , हष हो तो अित र
उ साह नह ।
कैसे पु को ज म िदया है कु ती ने। और यही पु सारे न का उ रदाता भी है।
यु धि र माता के सामने आये और शीश झुकाकर माता को णाम िकया। इस अवसर पर
यु धि र को आया देखकर कु ती को थोड ा आ चय तो हआ िक तु वह यह भी जानती है
िक जब धमराज के इस पु को मान सक वेदना भेदती है या जब कु छ न अनुत रत रह जाते
ह तो ह तनापुर का ये युवराज, बालक बनकर अपनी मां क गोद म आ जाता है।
यु धि र नमन के बाद माता के सामने खड े थे।
“पूजा हो गयी माता ी?” यु धि र ने पूछा।
“हां व स! पूजा हो गयी िक तु ये पूजा अपूण है और पूजा तो क ही जाती है वह चाहे पूण हो
या अपूण।”
यु धि र ने अनुभव िकया िक माता ी कु छ बात को लेकर उतनी ही याकु ल ह जतने वह
वयं। उ ह ने माता से कहा‒
“आपने जो कु छ भी कहा है वह ठीक है। इस यु क भयंकरता के बीच पूजा।”
यु और पूजा म िकतना अ तर है। पूजा मन को जोड ती है और यु मन, तन, रा य और
िव वास के टु कड े-टु कड े कर देता है‒
कु ती अब यु धि र से उनके मन क बात सुनना चाहती थी य िक जो बात कु ती के मन म
है वह तो यु धि र से कही ही नह जा सकती। कु ती ने यु धि र से केवल इतना कहा “व स
पूजा और यु दोन ही शा वत ह।”
“िक तु सच यह भी है माता ी िक यु को भु ने नह बनाया। हमने ही अपने अहंकार और
वाथ ं से यु को ज म िदया। हम कभी शा त से रहना ही नह चाहते। ऐसा लगता है जैसे
राजकु ल का येक सद य यु नदी के िकनारे खड ा है और अवसर क ती ा म है िक
कब वह लड े और दसरे
ू को मारे ।”
यु धि र अपनी मां के सामने अपना मन खोलने आये थे। वे माता से यु के औिच य और
अपनी संल ता के िवषय म बात करना चाहते थे।
कु ती ने यु धि र को देखा और अनुभव िकया िक वे बहत अ धक िचंितत लग रहे ह।
यु धि र ने गहरी सांस लेकर मां से कहा िक माता यु ारं भ होने वाला है। मने बहत कोिशश
क िक यह यु क जाये लेिकन मुझे लगता है िक म भी कह न कह इस यु म कारण रहा
ह।ं
“तुम इस यु म कारण रहे हो....” जैसे कु ती को िव वास नह हआ िक यह बात उनके पु
धमराज कह रहे ह।
यु धि र बोले, “हां म भी शायद कारण रहा हं य िक म अकेला, कभी नह रहा। लेिकन
मने अकेले ने कभी अपनी बात भी तो नह मानी। ऐसा लगता है जैसे मेरा कोई भी िनणय मेरा
नह था। जैसे-जैसे मुझे लोग ने कहा म मानता चला गया। मने इस बात क भी िचंता नह क
िक इितहास कल मुझे या कहेगा। हो सकता है कल क पीढ ी मुझे इस बात के लए मा न
करे और यह भी हो सकता है िक लोग मुझे लांिछत कर।”
“यह तुम या कह रहे हो और अब यु से दो िदन पूव ऐसा य कह रहे हो मेरी समझ म
नह आ रहा। म जानती हं यु धि र! िक तुम िकतने दोषी हो और िकतने िनद ष। यह भी एक
िविच बात है िक सब कु छ सहने के बाद भी तुम अपने को दोषी मानते हो।”
यु धि र बोले‒“माता जब-जब म यु क तैयारी करते हए सैिनक क शंख विनयां सुनता
हं तब-तब लगता है जैसे मेरा अहंकार ही, मेरा वाथ ही इसम बोल रहा हो। मुझे लगता है िक
समूह का वाथ और मेरा वाथ दोन िमलकर इस यु क बुनावट करते रहे।”
कु ती ने बहत सहमी हई ि से अपने पु क ओर देखा। वह जानना चाहती थी िक उसके
मन म या कु छ उमड रहा है। राजसूय य म जीतकर ूत म सब कु छ हार जाने के बाद
यु धि र एक पराजय बोध से त हो गया।
“मने तु हारे मुंह से ऐसे वचन कभी नह सुने और जो कु छ सामने आया है...कु ती का वा य
पूरा नह हो पाया िक यु धि र बोले‒
“हां माता ी पहले आपने मेरे मुंह से ऐसे वचन कभी नह सुन।े मुझे ोभ इस बात पर है िक
म समूह क भावना से परा जत य हो गया और यह समूह भी राजकु ल का है जसम जा का
अंश नह है।”
“और आज यु मेरे सामने है और म चाहं भी तो इस यु को छोड कर नह जा सकता।
आपने िकतने क उठाये ह वन म?”
“ ौपदी को िकतना अपमान सहना पड ा वन म।”
“भाइय को िकतना क उठाना पड ा, बार-बार।”
“ जा के िव अधम फैलाते रहे कौरव‒
“और यही सब कारण ह िक म भीतर ही भीतर सोच म डू बा हआ ह।ं ”
यु धि र माता के चरण म झुक गये और कु ती बोली, “तुम स भवतः ठीक कहते हो और
मुझे लगता है िक तु हारी ही बात मानी जाती तो यु क जाता था।”
“नह , नह , मुझे यह लगता है शायद मेरे मन म भी स ाट बनने क इ छा थी। जब जब म
अपने हाथ को अपने क ध से ऊपर करता मुझे लगता िक मेरे- सर पर एक मुकुट है म उसे
छु ऊं।”
“और जब गुनगुनाते अंधरे े के बाद ऊषा क ला लमा फूटे तो चारण के गीत से मेरी न द
खुले।”
“तुम या यही लाप करने आये हो मेरे पास िक तु म समझती हं केवल तुम यु के कारण
नह हो। तुमने तो अजुन और भीम क बहत सारी बात का िवरोध िकया। म नह समझती िक
तु ह इस बात को लेकर कोई भी प चात होना चािहए िक यह यु तु हारे कारण से हो रहा है।”
“म कारण हं इस यु क ।”
“महाराज धृतरा कारण ह।”
“भी म, दयु धन, शकु िन सबने थोड ा-थोड ा योगदान िदया है िक यह यु हो। और व स
इस यु म चाहे तुम जीतो और चाहे कौरव सबसे अ धक पीड ा मुझे होगी।”
यु धि र क आंख म आ चय िम त क फैल गया। “ य माता?”
कु ती बोली, “इस लये िक मने अब तक जो कु छ भी सहा और जो कु छ भी समेटकर रखना
चाहा वह िबखर जायेगा।”
“जब-जब भी मने अपने अतीत को देखकर वतमान को अनुभव करना चाहा है तब-तब मुझे
अपनी सारी सफलताओं के बीच एक असफलता भी िदखाई देती रही है।”
कु ती ने यु धि र क ओर बहत आ मीय ि से देखा और कहा‒“िकसी भी छोटी या
बड ी घटना के लए कई बार एक यि दोषी नह होता लेिकन यह भी समझना चािहए िक
घटनाओं का बहत-सा च पहले से ही तय होता है।”
यु धि र ने माता क ओर देखा और कहा, “सब कु छ पहले से िन चत है िफर भी हम कम
करते ह। और यह नह मालूम िक हमारे कम से िन चत भा य रे खा म कु छ प रवतन होता है
या नह । मुझे िकसी बात का भय नह लेिकन जब-जब इस यु कारण पर गहराई से िवचार
करता हं तो लगता है िक इस यु का ार भ रं गभूिम म ही हो गया था।”
यु धि र माता क ओर देख रहे थे लेिकन अब उनके चेहरे से ि हटाकर उ ह ने आकाश
क ओर देखा और कहा‒“रं गभूिम म जैसे ही सूतपु कण का वेश हआ मेरे मन म उनके ित
एक ा-सी उमड ी। ऐसा य लगा था मां? जैसे कण मेरा बहत अपना हो। और जब उसने
अजुन से अपनी ित पधा थािपत क तो मेरे मन म यह िन चत हो गया था िक यु होगा।
इसी लये बार-बार वन म जाने क थित को स ता से वीकार करता हआ म इस घटना के
लए तैयार था।”
यु धि र के मुख से कण के िवषय म ऐसा सुनकर कु ती का मन पता नह कैसा हो आया
िफर भी उसने यु धि र के सर पर हाथ रखकर कहा, “एक वीर दसरे
ू को देखकर ेम या ा
ही कर सकता है।”
कु ती यु धि र के सामने खड ी थी और जैसे उनके कान म सैिनक का वर गूज ं ने लगा
था िक इस यु का िनणय कण और अजुन के बीच म होगा। और यु धि र भी यही कह रहे ह
िक दयु धन का प कण से ही बल है। तो यह यु तो प क सेनाओं के बीच नह , एक ही
मां के दो पु के बीच होगा। और यह िकतनी बड ी िवड बना है िक म उसे कह नह सकती।
यु धि र ने माता को शांत िचंितत मु ा म देखकर कहा‒
“ या बात है माते! आप बहत िचंितत िदखाई दे रही ह।”
“एक मां को यु से िचंता तो होगी ही और म केवल तु ह लोग क मां नह ह।ं उन असं य
सैिनक क भी मां हं जो यु म िबना िकसी अपने वाथ के मारे जायगे। राजकु ल के पु ष का
िनिहत वाथ होता है लेिकन उन सैिनक का या अपराध?”
“मेरे मन म भी यही न बार-बार उठता है। और इसी हेतु म आया हं िक अपना मन आपके
सामने खोल सकूं । मेरे मन म जो अपराध बोध जगा था वह आपके दशन करके कम हो गया
है। मुझे लगता है िक म पूरे मन से यु के प म नह हो पाया।”
“िक तु अब संशय का समय नह है और यिद यह यु टल सकता होता तो भगवान कृ ण
अजुन का सारथी बनना वीकार न करते। कृ ण ने िकतना यास िकया और तुमने भी तो कम
यास नह िकया िफर भी।”
“तो माता आ ा है? म अब जाकर कु छ यव था देखं।ू मुझे तो कोई कु छ करने ही नह देता।
सेनापित धृ ु न अपने आप सारी यव था संभाल रहे ह। दो िदन यु म शेष ह।”
कु ती धीरे -धीरे उदास कदम से जाते हए यु धि र को देख रही थी और उ ह लग रहा था
जैसे उनके ाण का एक भाग धीरे -धीरे शरीर से बाहर िनकल रहा है।
कलाकार अपने क म शांत मु ा म चहलकदमी कर रहा था िक अ तःपुर क एक िविश
सेिवका ने आकर उसे सूचना दी िक महारानी कु ती ने आपको बुलाया है।
महारानी कु ती ने बुलाया है, चहलकदमी तेज हो गयी और मुखमंडल पर हष तथा घबराहट
एक साथ फैल गई। वह राजमहल म अनेक िच बना चुका है। िक तु एक उस बालक का िच
नह बना पाया जसके लए राजमाता कु ती ने कई बार कहा है।
राजमाता का आदेश और उसक असफलता। वह य नह बना पाता है ऐसा िच जसम
सूय का तेज हो और अजुन क वीरता तथा कृ ण क िद यता। ऐसा कौन-सा बालक होगा
जसम यह सब कु छ आ सकता है। कलाकार क बेचनै ी बढ गयी और उसने एक स ाह का
समय मांगा।
“कोई भी बलपूवक कलाकार को िकसी कलाकृित के लए िववश नह कर सकता। इस लए
एक स ाह का समय और िदए जाने म कोई आप नह है िक तु मेरा मन उस िच को देखने
के लए बहत बेचनै है।”
“म यास क ं गा िक बहत ज दी ही वह िच बन जाये।” कलाकार वािपस आ गया था और
उसने अपनी क पना को आकाश म चार तरफ दौड ाया। फूल से बातचीत क , िकरण के
रं ग को अपनी हथेली पर लेना चाहा और तेज अंधड सुग धत वायु, जल क हा थय जैसी
उठने वाली लहर और मंद-मंद वाह न जाने या- या उसने अपने मन म समेट लया।
और िफर वह ण। जब सहसा उसके म त क म एक य क ध गया था। उसे लगा िक
अजुन, कृ ण और सूय यिद एक साथ ह । यिद उनक अपनी-अपनी िवशेषता एक साथ िमला
दी जाये तो शायद यह य बन जायेगा।
कलाकार क तू लका चलनी ार भ हई और चलती रही।
एक तेज वी बालक का िच बन गया।
िक तु उसे यह नह मालूम था िक इस िच को देखने के बाद राजमाता कु ती उससे ऐसा
न भी कर सकती ह। और न का उ र तो उसको देना ही होगा।
“िनभय होकर कहो, तुम जो कहना चाहते हो।” राजमाता ढ ता से बोल ।
कलाकार ने अपना उ रीय संभाला और हाथ जोड कर िवन मु ा म बोलने लगा, “मने
आकाश-पाताल एक कर िदया िक आपके मन का स य इस बालक म उतार लूं तब कह
जाकर सफलता िमली है।”
“तुम मेरे मूल न पर य नह आ रहे हो?”
“म मा चाहता हं राजमाता, इस बात क या या म नह कर पाऊंगा। और जो कु छ मेरे
सामने था उसे म कैसे कह।ं या इतना पया नह िक यह िच बन गया और आप स तु
ह?”
“नह इतना पया नह । म जानना चाहती हं िक मेरे मन के सच का यह ित प तुम कैसे
बना पाये?”
“मुझे अभय दान िमले राजमाता। म एक बार िफर आपसे िनवेदन करता हं िक इस रचना
ि या को मुझसे न पूछ।”
“मेरे मुख से आदेश या िनवेदन बार-बार नह िनकलता।”
“जानता हं राजमाता, लेिकन आप केवल राजमाता नह ह, मेरे लए माता ी भी ह। मुझे याद
आता है जब मेरे बचपन म म अपनी माता के पास से भागकर आपके यहां आता था तो आप
िकतने नेह से‒मुझे मालूम भी नह पड ता था िक म इस रा य के छोटे से कलाकार का बेटा
ह।ं कभी-कभी तो म वयं को राजकु मार म से एक समझने लगता था।”
“आज भी तु हारी वही थित है लेिकन‒”
“राजमाता जस वीर पु ष को मने देखा था। वह मुझे उतना ही तेज वी लगा जतने सूय ातः
काल से लेकर सायंकाल तक रहते ह। वह मुझे उतना ही महान धनुधर लगा जैसे महाराजकु मार
अजुन ह। वह मुझे उतना ही िद य लगा जैसे भगवान कृ ण ह, िक तु”‒कलाकार कहते-कहते
क गया जैसे अब भीतर क विन बाहर आने के लए बाधा डाल रही हो।
“बोलो सब कु छ िव तार से बताओ।”‒कु ती ने कहा।
“कहने का यास कर रहा हं राजमाता। तो मने जैसे ही उस वीर पु ष को देखा तो उसके
बचपन क प रक पना क और धीरे -धीरे उसे छोटा करता हआ बचपन तक ले आया। जैसे
कोई ेय जात एक ही िदन का बालक।”
कु ती के क म सह घंिटयां बजने लग ज ह केवल वही सुन सकती थी। एक साथ
उनके मन पर आ मण हआ तेज हवा के झ के का और िदपिदपाती हई िकरण का। उ ह लगा
जो उनके मन म है कह कलाकार वही न कह दे। उ ह ने िबना उसक तरफ देखे हए
कहा‒“आगे या हआ?”
कलाकार अब तक और भी संयत हो चुका था। वह अपनी शि क अिभ यि के सारे
प रणाम वीकार करने के लए तैयार था िक तु अस य भाषण नह कर सकता था। उसे िचंता
म देखकर राजमाता बोली‒
“इस बालक म तुमने मेरे मन का स य तुत कर िदया है उसे एक आकार दे िदया है। म
तुमसे संतु ह।ं हां तो तुम बताओ ना, िकस वीर पु ष को देखा था तुमने?”
कलाकार के चेहरे पर शंसा से आई हई ांित एकदम ितरोिहत हो गई। लेिकन उसने अपने
सारे साहस को समेटा और कहा‒“राजमाता! म एक बार आपसे कु छ कहना चाहता ह।ं ”
“कहो! या बात है?”
“ या उस वीर का नाम बताना बहत आव यक है?”
“हां, बहत आव यक है। म जानना चाहती हं िक मेरा स य या है?”
“राजमाता उस वीरवर का नाम सभी लोग अलग-अलग प म लेते ह। कोई उसे दानवीर
कण कहता है,” कलाकार ने अपना मुंह कु ती के मुंह से िब कु ल िवपरीत कर लया था, “कोई
उसे महारथी कण कहता है, सूतपु अंगराज, न जाने िकन-िकन नाम से बुलाया जाता है वह।”
अपनी बात कहते-कहते कलाकार को इस बात का यान भी नह रहा िक उसके कहने का
या असर राजमाता कु ती पर होता है। उसने जब अपना मुंह राजमाता क ओर िकया तो देखा
िक वे बहत याकु ल होकर अपने मंच पर बैठ गई। वह िवन मु ा म पूरी तरह से धरती पर
लेट गया और बोला‒“मुझे मा क जए राजमाता, श ु के प का स य इस बालक म िचि त
हो गया है। मेरी कला दिषत
ू हो गई है।”
अब तक कु ती स भल गई थ और बोल ‒“कला कभी दिषत
ू नह होती। कला सवदा स य
क अिभ यि करती है और स य िकसी भी तर पर अंिकत हो जाता है।” कु ती ने उस िच
को उठाकर क के गोपनीय थल पर रख िदया। कलाकार अब भी सामने खड ा था जैसे
वह ती ा कर रहा हो िक उसे द ड िमले।
कु ती ने बड े नेह से उसे कहा‒“देखो कलाकार तुमने जो िच बनाया है वह िकसी का
भी हो सकता है। तुमने चाहे वह िच महारथी कण को देखकर य न बनाया हो। यह अजुन
का भी हो सकता है और िकसी और का भी। कला क क पना का मूत आधार केवल उसके
अ तर संसार को समृ और े रत करता है। अब तुम जाओ राजकोष से तु ह पुर कार िदया
जायेगा।”
कलाकार यह नह सोच पाया िक राजमाता संतु ह या असंतु । उसने सब कु छ स य
बताकर उिचत िकया है या अनुिचत िक तु जब वह क से बाहर लौट रहा था तो उसम एक
आ मिव वास झलक रहा था य िक वह इतना तो जानता था िक राजमाता कु ती को उसके
सभी िच से यह िच अ धक अ छा लगा है।
उसने भी तो बहत प र म िकया है, क पना को स य म प रवितत करने के लए‒
कलाकार क से बाहर िनकल रहा था और कु ती कभी उसे देखती थी और कभी वातायन
से झांकने वाली सूय क िकरण को। वातायन से सूय ऐसे झांक रहे थे जैसे आकाश से समृि
और ऐ वय उसके क म बरस रहे ह । कु ती के मन म हो आया िक वह एक बार िफर सूय
से बात करे , एक बार िफर अतीत को ण के वतमान क हथे लय पर रखकर देखे िक
उनका रं ग कैसा है। एक बार िफर से अपनी पहली ज ासा को अनुभव करे ।
िक तु यह यु और उसके पु । कु ती को यान नह रहा िक उसके क का ार बहत धीरे
से खुला और आिदम रात क तरह सूयदेव ने वेश िकया।
“आप! आय आप!” आ चय से कु ती बोली।
“हां! म! हां, म। तुम एक संकट अनुभव कर रही हो।”
“आपको कैसे पता चला भगवन्?”
“ या यह न मन से िकया है?”
“नह , केवल कौतूहलवश। अ यथा म जानती हं िक धरती पर ऐसी कौन-सी घटना है जसे
सूय देख न पाये। येक मनु य के जीवन म एक धरती और एक सूय होता है।”
“तु ह िच ता िकस बात क है। पु मोह या यु क िवभीिषका से बचने का कोई आधार।
दोन ही हो सकते ह।”
“हां, आपने ठीक कहा, एक और पु मोह और दसरी
ू ओर यु को रोकने क भावना, दोन
एक साथ मेरे मन म उठती ह। कारण यह है देव िक यह सर पर सवार यु मेरे अपने ही पु
के बाण से लखा जाने वाला है तो म इसे य नह रोक पा रही ह।ं या म यह नह कह
सकती िक कण मेरा पु है।”
कु ती ने बहत याकु ल होकर कहा‒“ या म अपने क म कण और अजुन को एक साथ
बुलाकर कह नह सकती िक तुम दोन मेरे पु हो यु मत करो। म ऐसा कु छ नह कर
सकती?”
“नह , तुम ऐसा कु छ नह कर सकती।”
“कारण।”
“तुम भी जानती हो िक िनयित का च मनु य के स पूण कम िवधान का िनयं ण करता है।
और म और तुम‒देवता मनु य‒जलचर नभचर सब उस च के आरे के संकेत से काम करते
ह।”
सूय ने कु ती को आ व त करते हए कहा, “तुम यह मानकर चलो िक कण तु हारा पु था,
पु है और पु रहेगा। केवल इस स ब ध क सामा जक पुि ही तो नह है।”
“तुम यह मानकर चलो िक कण कभी भी तु हारा पु नह था और कभी भी तु हारा पु नह
रहेगा।”
“तुम यह मानकर चलो कु ती िक संसार हमेशा कण को सूतपु कहेगा और वह कु ती के
पु से जाना जायेगा।”
“इतनी उलझन भरी बात म कैसे समझ लू।ं ”
“तुम बहत शि वान नारी हो। तु ह नह ात तु हारी मातृ व भावना से पा लत पोिषत और
सुरि त तु हारे पु इस यु म िवजयी ह गे। तुम िचंता न करो। मेरे पूरे यास के बाद भी तु हारे
पु ने देवेश इ को कवच और कु डल का दान कर िदया। या यह इस त य का तीक नह
िक कण को अमर बनाने वाला उसका कवच उसके शरीर से बाहर आ गया और वह असुरि त
हो गया।”
“तो इसका अथ यह हआ िक म ही अपना कोई पु खोऊंगी।”
“केवल तु ह नह सह माताएं यु म अपना पु खोती ह और इससे भी अ धक दा ण
य उन य के आतनाद का होता है जनके पित यु म वीरगित ा करते ह। यु हमेशा
ही िवनाश लेकर आता है।”
कु ती ने सहसा देखा िक सूयदेव जधर से आये थे उधर ही चले गये लेिकन उसके लए
सोचने का एक आधार छोड गये।
ज म और मृ यु तो जीवन क बहत सहजताएं ह। ज म होता है य िक उसे होना है और मृ यु
होती है य िक उसे भी होना ही है। िफर भय िकस बात का? िक तु भय होता है। ये संबध
ं , ये
माता, पु , भाई, सगे-संबध
ं ी सब िमलकर एक ऐसा मोहजाल बनाते ह जससे छु टकारा नह
िमलता। या भी म छु टकारा पा सकगे?
या भगवान कृ ण सांसा रक क ा नह करगे?
कु ती ने अनुभव िकया िक मनु य शरीर को धारण करने वाला िद य त व सामा य मनु य के
क और दख ु को धारण करता है। शरीर धारण करने का अथ ही क को पहनना है और
जब दख
ु अवसाद इतना अिनवाय हो तो िचंता या?
िफर भी म एक और संवाद क ं गी। म इतनी शी ता से न असफलता का वणन करना
चाहती हं और न मृ यु का।
कु ती के मुखम डल पर एक ढ ता क का त य हई और बाहर ितहारी ने समय
प रवतन क सूचना दी।

कु ती और कण
यु िब कु ल िनकट आ गया था, सेनाओं क तैया रयां चल रही थ , असं य सैिनक मृ यु पव
के लए जैसे अपने आपको तैयार कर रहे थे, जैसे यह महो सव मृ यु का महो सव हो।
कु ती ने अपने क से ितहारी को बुलाने के लए घंटी बजाई और उनक सेिवका आकर
सामने खड ी हो गई।
“जरा मेरे पास आओ, बात गोपनीय है।” यह कु ती क बहत िव वसनीय सेिवका थी।
इस लए कु ती ने बहत धीरे से उसे कहा, “एक रथ तैयार कराओ म महारथी कण से िमलना
चाहती ह।ं ”
सेिवका के आ चय का िठकाना नह रहा। इतने िदन बाद वष ं के इस अ तराल म कु ती
उसी पु से िमलना चाहती है जसे उसने उसके सामने िपटारी ब द करके नदी म बहा िदया था।
“कौन-सी िववशता आन पड ी है, राजमाता?” सेिवका ने औपचा रक संबोधन से कु ती से
पूछा।
“ऐसे ही सोचा उसे अपने मुंह से पहले बता दं ू िक म उसक मां ह।ं या पता यु कोई नई
िदशा ले ले।”
“इतने िदन बाद और जीवन म पहली बार, यह बात तो आप रं गभूिम म भी बताना चाहती
थी।”
“तुझे मालूम तो है चाहते हए भी य नह बता पायी। तब मेरे पास अवसर नह था िक म उस
तक पहचं सकूं और तब या वह मेरी बात मानता।” कु ती थोड ा याकु ल हो आई थी।
कु ती को याकु ल देखकर सेिवका ने धैय बंधाते हए एक न और पूछा‒“यिद वह अब भी
नह माना तो?”
“तो मेरा और मानव जाित का दभु ा य।”
“मानव जाित का न या पैदा हो गया?”
“म सोचती हं िक यिद कण मेरी बात मान जाये। तो संभवतः यु क जाये। य िक दयु धन
कण के बलबूते पर ही यु कर रहा है।”
“यह आपका म है राजमाता! महारथी कण उनक शि का एक भाग है, स पूण शि नह ।
जैसे अजुन और योगीराज कृ ण आपक स पूण शि कहे जा सकते ह।”
“दोन म कोई तुलना नह है। िफर भी तुम रथ तैयार करवाओ, म एक बार अपने मन क बात
अपने बेटे से कहना चाहती ह।ं ”
यथासमय रथ तैयार हो गया। कु ती अपनी सेिवका को लेकर कण से िमलने के लए चलने
लगी।
रथ धीरे -धीरे चल रहा था िक तु कु ती का मन बहत तेज दौड रहा था। उ ह ने एक साथ न
जाने िकतने न और िकतनी बात कण के सामने कह द । कु ती को लगा जैसे उनक एक-एक
बात सुनकर कण का मन िपघल गया हो। उनम एक आशा का संचार हो आया। रथ और भी
तेजी से दौड ने लगा तो नदी के िकनारे एक वृ क छाया म क गया।
सेिवका को रथ पर ही छोड कु ती पूजा करते हए अपने पु से िमलने पैदल ही चल
पड ी। तपती हई नदी िकनारे क रे त पर एक राजमाता चली जा रही है। सूय जैसे ोध म िछप
रहे ह। हवा जैसे कु ती को सहला रही है। आकाश म बादल का छु टपुट टु कड ा कभी उसके
ऊपर छाया करता हआ अंत र म िवलीन हो रहा है।
थोड ी दरू पैदल चलकर कु ती ने देखा िक कण सूय क उपासना कर रहे ह। अपने अंज ल
से अ यदान करते हए कण कु ती को बालक से लगे। कु ती कु छ ण वैसे ही खड ी रही और
िफर धीरे -धीरे और आगे आ गई। अब तक कण ने कु ती को देखा नह था लेिकन अ यदान
देकर वे जैसे ही मुड े उ ह कु ती िदखाई दी।
“म राजमाता को णाम करता ह।ं सूतपु कण का णाम वीकार हो।”
“आयु मान भव।” कु ती ने हकलाते हए गले से कहा।
अतीत का एक-एक पृ मन से भी ती गित से दोन के बीच म उलट-पुलटकर इधर-उधर
हो गया जैसे उसका कोई भी िब द ु पकड म न आ रहा हो। और कु ती को लगा िक वह कु छ
भी नह कह पाएगी। िफर भी उसने साहस बटोरा और कहा‒
“तुम सूतपु नह हो कण।”
“म सूतपु ह।ं इसे म ही नह जानता, सारा संसार जानता है। जब से मने होश संभाला है तब
से आज तक राधा मां और िपता अ धरथ क छाया म पला ह।ं वे सूत ह तो म सूतपु य नह
हआ?”
“म सूय को सा ी मानकर कहती हं तुम सूतपु नह हो।”
कु ती ने कण के सामने से मुंह िफराकर आकाश म चमकते हए सूय क ओर देखा और िफर
कहने लगी‒“तुम यिद मेरी आ मा को समझ सको तो अव य समझोगे।”
“मुझे आप आज अपनी यातना बताने य आई ह?”
“अवसर ही ऐसा आन पड ा है।”
“तो किहए राजमाता, कण आपके िकस आदेश का पालन करे ?”
“म तु हारे सामने राजमाता बनकर नह आई ह।ं केवल माता बनकर आई ह।ं और तु ह पहले
यह वीकारना पड ेगा िक तुम सूतपु नह हो।”
कण ने कु ती क ओर देखा और उसे लगा िक वह इस ी पर बहत तीखा ोध नह कर
सकता। उसके सामने वह ी खड ी है जसने उसे वंश, मान-मयादा से वंिचत िकया है। कारण
कु छ भी रहा हो लेिकन स पूण यि व म केवल यही एक दरार है जससे कभी-कभी इतनी
िवपरीत थितय का सामना करना पड ता है।
कण सोचने लगे, जैसे उ ह कु ती के आने का आभास न रहा हो और कु ती भी उस थान के
बंधन से मु होकर सोचने लगी िक इसी कण के कारण यु धि र ने अभी-अभी कहा था िक
सं ध के सारे य न यय ह सभी लोग यु चाहते ह। जैसे सब यह चाह रहे ह िक चार ओर
लपट उठ और उसके बीच शांित जैसी व तु िनिमत हो जाये।
य चाह रहे ह सब यु और म इसे य रोकना चाहती ह।ं य िक म जानती हं िक याग
और तप जब असफल हो जाते ह तो यु होता है। और जब यु होता है तो अनेक क अपने
आप िनमंि त हो जाते ह।
यु धि र ने ठीक ही तो कहा था िक म सोचता हं िक पांडव के प म अजुन और कृ ण ह
िक तु कौरव प म यिद दयु धन िकसी पर िनभर करता है तो वह कण है।
यही कण मेरे सामने खड ा है।
कु ती को िफर से यु धि र क बात याद आ गई।ं उसने िकतनी भावना से कहा था िक कण
को देखकर उसके मन म ा उमड ती है और घृणा भी होती है।
कण जैसे अपनी न द से जागा और उसने िचंतन म म कु ती क ओर देखकर कहा, “आ ा
हो राजमात! आप यहां इतनी दरू से चलकर आई ह उसका कोई न कोई तो कारण होगा ही।”
“हां, कारण तो होगा और यह कारण तु ह ही बताना है इस लए यहां तक चलकर आई ह।ं तुम
पहले यह मानो िक तुम सूतपू नह हो।”
“जीवन के ार भ से लेकर अब तक के स य को म कैसे नकार द?
ंू ”
“यह भी तो हो सकता है िक जसे तुम स य समझते हो वह स य न हो।”
“िक तु जो म देख रहा हं अनुभव कर रहा हं वह तो स य मान सकता ह।ं आप यथ के
िववाद म न पड मुझे यह बताएं िक मेरे लए आ ा या है?”
कु ती को श द नह िमल रहे थे िक वह िकन श द म अपने ही बेटे के सामने अपनी कायरता
क कहानी सुनाये िक तु उसे कु छ न कु छ तो कहना ही पड ेगा। य िक जब उसने स य को
िछपाने क मता ा क तो िफर स य को बताने क शि भी उसे ा करनी होगी य िक
स य चाहे जतना भी भयंकर य न हो उससे बचा नह जा सकता।
“आ ा हो राजमाता! मुझे आदेश द म राधा का पु आपको णाम करते हए आपसे आ ा
चाहता ह।ं ”
“आप राजमाता ह। आपको देखने के लए सूय क िकरण भी बहत सावधानी से महल म
जाती ह गी, बताइए न या आदेश है। कोई न कोई ऐसी बात अव य होगी जससे श ु क मां
श ु के ार पर आई है।”
कु ती से अब नह रहा गया और वह बोली, “म श ु क माता नह हं तु हारी भी माता ह।ं
पांडव तु हारे श ु नह , छोटे भाई ह। तुम अभी तक अपने भाइय के साथ नह पले इस लए मुझे
केवल श ु क माता मान रहे हो।”
“म यह कहने आई हं िक तुम मेरे पु हो और इस यु को रोकने के लए अपने वंश म लौट
चलो। पांडव तु हारे भाई है। तुमने मेरे गभ से ज म लया है। म तु हारी मां ह।ं ”
“मां! मां ऐसी ही होती है जसने मुझे आज तक एक िदन भी नह पाला और पैदा होते ही पानी
म बहा िदया हो, वह मां है। ममता का इतना अपमान मत करो राजमाता! म राधा का पु ह,ं
सारा संसार जानता है।”
यह सुनकर कु ती आर हो गई और बोली, “मुझे जो कु छ भी कहना हो कहो, िक तु इतना
सच तो अव य मान जाओ िक तुम मेरे पु हो।”
“यही सच तो नह माना जा सकता। और िफर राजामाता, इस संसार म कौन िकसका पु है।
यिद मेरी माता होती तो अपने घर के दरवाजे पर खड ी हई ती ा कर रही होती और वह
जानती िक वह अजेय वीर कण क माता है िफर भी बार-बार पूछती पु तुम सकु शल तो हो।”
“रहने दी जए राजमाता, म आपको जानता हं आप यु धि र, भीम और अजुन क माता है।”
“मुझे माता नह मानते। केवल राजामाता मान रहे हो लेिकन म केवल माता बन कर ही आई
ह।ं मुझे तुमसे कु छ नह चािहए जब तक तुम मुझे माता नह मानोगे।”
“म लाट जाऊंगी कण, तु ह दोष नह दग
ं ू ी।”
कण ने सुना और जैसे उसके कान म हजार-हजार प थर टकरा गये ह -
दोष...दोष....दोष....। सारे दोष मेरे म ही ह। ज म म, कम म, मेरी वीरता म और मेरे भीतर
एक ऐसा पु ष है जो याकु लता से दोष से रिहत धरातल ा करना चाहता है।
“म संसार के िनयामक से पूछता हं राजमाता िक कोई यि अपनी इ छा से िकसी क कोख
म नह आता और म वयं नह जानता िक मुझे ज म िकसने िदया और राधा मुझे य पाल रही
है। म यह िकससे पूछूं िक परशुराम ने मुझे िश ा य नह दी?”
“आचाय ोण ने मुझे अपेि त य िकया?”
“आचाय कृपाचाय ने भरी सभा म मेरा अपमान य िकया?”
मेरे से ही देवराज इ छल से कवच-कु डल मांगकर य ले गये और भी म ने सबके सामने
मुझे अधरथी य कहा?
“जानती हो राजमाता! मेरी वीरता मेरी तेज वता सब को एक कलंक लगा हआ है। केवल
एक नारी के चुप रहने से।”
“म अपना दोष वीकार करती हं बेटा।”
“आप कहती ह म आपको मां वीकार क ं । यिद आप मेरी मां होत तो सारे अपमान के बीच
कह एक कोने म मुझे अपनी छाया म ले जात और म सारे ऐ वय को छोड कर चुपचाप
आपके पास अपना जीवन िबता लेता। म इस तरह अपमािनत तो न होता।”
कण के शरीर म जैसे वह अपमान बोझ लहर लेने लगा हो और उसने अ यंत नीरस भाव से
कहा‒
“राजमाता म जाितहीन ही ठीक ह।ं रं गभूिम का उ च वंश से रिहत यह कण अब िकसी वंश
को नह वीकार करे गा।”
“तुम ठीक कहते हो। तु हारा कोई दोष नह है। म तु हारे इस ोध के आगे मां होने के बाद भी
नतम तक ह।ं मने तु ह शि से स प रं गभूिम म अपने ही भाई के िव लड ने के लए
तैयार होते हए देखा और जस समय सब तु हारे िवरोध म बोल रहे थे और जब तुमसे वंश और
गो पूछा गया और जब तु ह सूतपु कहकर पुकारा गया, सच मानना कण, एक बार मेरे मन म
आया था सारी मयादाएं तोड कर म उस सभा म कहं िक कण मेरा पु है िक तु म नह कह
सक ।”
“यह आप अस य बोल रही ह। आपने कभी नह चाहा िक आप मुझे पु के प म वीकार
कर। य िक यिद आप चाहत तो अव य करत , पर आप डर गयी ह गी कलंक से। आपको सब
कु छ पता था। आपके सामने मेरा अपमान हआ लेिकन आपने मेरा अपमान सहा िक तु अपने
म तक को दोषी नह होने िदया।”
“नह , नह कण ऐसा नह है। तुम िन चत जानो िक अब तक तु ह सूतपु कहा जाता रहा,
जब-जब भीम ने तु हारा अपमान िकया, जब-जब तु ह िकसी भी कार का जाितगत संकट
वीकार करना पड ा म तब-तब अपने आपसे बहत लड ती रही। म कैसे िव वास िदलाऊं
िक मने िकतनी बार संक प िकया िक म सबकु छ सबको बताकर स य वीकार कर लूं लेिकन
हर बार यह सोच कर चुप रही िक यिद मेरे कहने पर भी तुमने उसे वीकार नह िकया तो या
होगा?”
“और अब भी या होगा? जब म अपना सब कु छ दयु धन को लौटा चुका ह।ं अब उससे कु छ
भी नह ले सकता।”
“ऐसा य कहते हो व स?”
“म ठीक कहता हं य िक उसने मेरे मान क र ा क । मुझे अंग का राजा बनाया और जहां
भरी सभा म मेरा अपमान हो रहा था वहां मेरा मान िकया। मने तो तभी से ही अपना जीवन तन,
मन, उसे स प िदया था। दयु धन के ारा भेजी गई काश क िकरण से मने अपना मुकुट बना
लया उसके श द को अपना धम और यह अटू ट मै ी मेरे जीवन का सबसे बड ा आधार है।
या आप चाहती ह िक म कृत न होकर सुयोधन से वैर क ं । इस समय पांडव म जाकर िमल
जाऊं?”
“नह राजमाता, नह । यह म नह कर सकता और कोई आदेश द तो मुझे वीकार है।”
“पहले मुझे माता कहो।”
“मेरे कहने से या होगा? लेिकन जस तरह आपके मन म मेरे मुख से मां सुनने क लालसा
है या कह मेरे मन म आपके मुंह से बेटा सुनने क लालसा नह हो सकती?”
कण के मुख से ये श द िनकले ही थे िक कु ती को लगा जैसे हजार घंिटयां अिभनव राग से
भरी होकर वातावरण म गूज
ं गई।ं सुग धत वायु चलने लगी, सूय क चमक म वृि हो गई।
कु ती जरा आ व त हई तो कहा‒“व स।”
और कण ने मां कहकर कु ती के चरण को पश िकया। कण बोला‒“मां तु हारा यह उपेि त
पु तु हारे चरण म पड ा है कहो या कहना है?”
“मेरा तो यही कहना है िक चलो, मेरे साथ चलो। सारा वंश रा य और वैभव तु हारी ती ा
कर रहा है और यिद तुम चलोगे तो िन चत ही यह यु क जायेगा।”
“नह मां, अब बहत देर हो गई। आपने मुझे अपना पु वीकार करने म बहत िवल ब कर
िदया और यिद म आपक बात मानकर अपने वंश म लौट चलूं तो लोग मुझे कायर कहगे। और
कहगे िक कण अपनी मृ यु के भय से इस नये स ब ध को जोड कर उस राजा को धोखा देकर
चला गया जसने सारे अपमान के बीच उसक मान-मयादा क र ा क थी। इससे मां मेरा ही
मान नह न होगा, पांडव का मान भी न होगा।”
कु ती को समझाते हए कण ने कहा िक आपके इस सावजिनक कथन के बाद भी मेरा आपके
प म आना उिचत नह है।
वातावरण क घंिटयां धीरे -धीरे मंद होने लगी थ िफर भी कु ती बोली‒“तुमने मुझे मां कहा
और चलने से मना कर रहे हो। मुझे ऐसा लगता है जैसे यह यु मेरे ही दो बेट के बीच म होगा।
हो सकता है तुम जीतो या हो सकता है अजुन। इसी लए कहती हं तुम लौट चलो। यह यु भी
क जायेगा और यह िवनाश टल जायेगा। धम क िवजय हो जायेगी।”
कण बोला‒“जानता हं माता धम क िवजय होती है और जसक िवजय हो जाती है धम भी
उसी ओर हो जाता है। िफर भी या कोई जान पाया है वा तिवक धम को। धम तो हमारा आपस
का आचरण है लेिकन यह भी संसार के वग ं के साथ िवभा जत हो जाता है। हमारे म दोष यही है
िक हम स य को नह जान पाते, धम को नह जान पाते और हवा म तलवार चलाते ह िक धम
क िवजय होगी।”
“मुझे लगता है मां यु शु हो जाने दी जए, येक धमा मा भी बड े-बड े अधम और
कू टनीित के काम करे गा। बस म तो अपने िवषय म जानता हं िक सारे ह और उप ह मेरे
िव ह िफर भी मुझे अपने उ सग के ित एक आ था है। और आज आपको मां कहकर वह
आ था भी पूरी हो गई। म नह समझता था िक जीवन के िकसी भी ण मुझे इतना सुख और
आन द िमलेगा िक म अपनी मां के मुंह से अपने लए यह ेम भरा स बोधन सुन पाऊंगा।”
“तो िफर अपने वंश म लौट चलो। यिद तुम चाहते हो िक मेरी सुर ा हो तो अपने वंश म लौट
चलो।”
“मने कहा न यह असंभव है। य िक अब म केवल अपना नह रहा हं । म अपने वग का
अ स व बन गया ह।ं मेरा अ त व तो बहत छोटा-सा है। म इतने बड े समूह को अब यु
करने से नह रोक सकता।”
“यह म जानती हं बेटा, मनु य को उसक सामा जक नैितकता बांध देती है और अपने होने न
होने क इ छा क पूित भी वह सामा जक संदभ म ही करता है। यि क पूणता इतनी ही
आव यक होती है जतनी समाज क । येक यि अपना-अपना स य चाहता है। मने अपने
जीवन म एक स य िछपाया तो मुझे लगा िक पीड ाओं को िनमं ण दे िदया। आज जब तु हारे
सामने उस स य को वीकार िकया है तो यह अव य संतोष होता है िक मने अपने आपको
थोड ा ऊंचा कर लया है।”
कण जैसे िनयित के भिव य के संकेत सुन रहा था, वह बोला‒कैसा पूरा स य मां, हम सबका
यि व खंिडत है। िकसी क पूणता घम ड से खंिडत हो जाती है, कोई स ा क ल सा से आधा
हो गया है और कम से छोटा हो गया है। सबक अपनी-अपनी सीमा है। सीमा से बंधकर और
सीमा से हीन होकर मनु य अपना ही सब कु छ तोड ता है।
“यह या कह रहे हो?”
“म ठीक कह रहा ह।ं यह ार पर आया हआ यु सीमाएं टू टने का ही तो प रणाम है और
सबने अपनी-अपनी सीमाएं तोड ी ह। दयु धन ने शि क सीमा, यु धि र ने सहन क सीमा
और कोई यह नह जानता िक सीमाएं टू टने पर बाक कु छ नह बचता।”
“माता अब थित ऐसी है िक म आपका घोिषत पांडु पु नह बन सकता और आप घोिषत
मेरी मां नह बन सकत । और ये दोन बात स य ह।”
कु ती के सामने कण का यि व धीरे -धीरे बहत िवराट होकर खुल रहा था। उसने सोचा था
उसके स य के वीकार करने से कण मान जायगे और अपने प म आकर दयु धन को छोड
दगे। लेिकन उसका यह बेटा जतना वीर है उतना दाशिनक भी। अब इससे या कहा जाये।
इस दाशिनक ि से कैसे पार पाऊंगी। यह मेरा ही पु है जो सब कु छ अपने िवरोध म
जानकर भी मृ यु को गले लगाना चाहता है।
कैसे-कैसे पु को ज म िदया है तूने कु ती!
एक है िक मृ यु को गले लगाना चाहता है।
एक है िक हर समय सब कु छ छोड ने के लए तैयार रहता है पर म या क ं । मुझे तो यह
िवचार करना ही है िक म यु न होने द।ं ू
कु ती ने कण क ओर देखा। यिद सब कु छ पूव िनधा रत है तो या हम अपने स य और
मंगल के सारे िवधान छोड द?
कण ने िव वास भरी ि से माता क ओर देखा और कहा‒“नह मां ऐसा नह है। हम मृ यु
को समिपत ह लेिकन हर पल जीते भी ह िफर भी म अपने इस पूरे समूह को अब यु से अलग
नह कर सकता। समय हाथ से िनकल जाता है मां और यह जो तुम कभी-कभी नगाड े बजते
हए सुन रही हो। यह जो तैयार होने वाले सैिनक क अ -श क विन आती है ये सब जानते
ह िक यु म िवनाश होगा। सब जानते ह िक वे िकसी भी ण मर सकते ह िक तु वे यु करगे।
इसके अित र उनक कोई िनयित नह है।”
कु ती के मन म आशा और िनराशा का संचार हो रहा था। कभी उसे लगता था िक वह कण
को मना लेगी और कभी लगता था नह , कण नह मानेगा िफर भी वे बोल -यिद तुम चाहो तो यह
िवनाश नह होगा। य िक मनु य के जीवन का अ त व शांित म ही फलता है।
माता क बात सुनकर कण बोला‒“यह तो जीवन का स य है मां। मनु य का अ त व संकट
म ही पलता है िक तु आप आई ह इस लए एक न करता हं िक म पांच पांडव म से अवसर
िमलने पर भी यु धि र, भीम, नकु ल, सहदेव का वध नह क ं गा।”
कण ने अपनी माता क ओर से आंख दसरी ू ओर करके कहा‒“इस यु म िनणायक यु
अजुन और कण के बीच म होगा। कण जीतेगा तो कौरव जीतगे, और यिद कण हार गया‒”
कु ती क दशा बहत िविच हो रही थी। कण ने उसका अनुभव िकया और कहा‒“आप िचंता
न कर मां, कण नह जीत पायेगा। और यिद भा य ने कोई चम कार कर िदया, अजुन के बुरे
िदन आ गये। यिद कृ ण भी असफल हो गये तो हे मां! म अपनी सारी िवजय, सारा वैभव, सारा
धन सुयोधन को समिपत करके तु हारे पास आ जाऊंगा और आप िचरकाल तक पांच पांडव क
ही मां बनी रहगी। आप इस छठे बेटे के लए बहत िचंता मत करना।”
कु ती से न कण का यह नेह सहा जा रहा था और न उसक दानी वृित। पर या करे ! एक
बेटा आज बहत िदन बाद अपनी मां को बहत कु छ दे रहा है। एक मां अपने बेटे को बहत कु छ
देना चाहती है। यह आदान- दान संसार म कोई भी नह देख पायेगा। कु ती ने अपने कोर से
आंसू प छे और बोली‒“म तो िवनाश रोकने के लए आई थी तुमने यह ण करके मुझे कु छ दे
िदया और मेरे से बहत कु छ ले लया।”
कण के मन म भी एक सामा य यि , एक पु पनत पैदा हो रहा था। वह चाहता था िक अपनी
इस मां के अपराध को िब कु ल मा कर दे और अपने रा य म ले जाये और राजमाता के
संहासन पर िबठा दे िक तु नह , ऐसा वह कु छ नह कर सकता।
कण ऐसा कु छ नह कर सकता जससे उसके और पांडव के मान म कोई भी शूल चुभ।े उसने
केवल इतना ही कहा‒“अब जाओ मां यह यु नह केगा और यु के बाद जब आप मुझे याद
करगी तो मेरा जीवन ध य हो जायेगा। आज आपके यहां आने से म ध य हो गया ह।ं कम से कम
अब मेरे मन म यह न या कु ठा तो नह रही िक मुझे मेरी मां ने वीकार नह िकया।”
कु ती कु छ कहना चाहती थी िक कण ने रोक िदया और िफर से कहा‒“अब बस यु ही
हमारी िनयित को एक िदशा देगा। मेरा यह आ मदान यथ नह जायेगा मां, संसार कभी न कभी
इस बात को जानेगा िक एक िदन एक मां अपने बेटे के यार के वशीभूत होकर लोक-लाज और
ग रमा को भी हटाकर उससे िमलने आई थी।”
कु ती के आकाश म फूल भी झर रहे थे और अंगारे भी।
राजमहल म वािपस आकर कु ती का मन शांत नह हआ। बार-बार अतीत क बात उसके मन
को मथ रही थ । यु धि र का भाव, कण का आ मदान अलग-अलग अथ ं म उसके मन-
म त क पर चोट कर रहा था। सहसा ही कु ती के मन म उभरा िक हम यां ही सारा क
सहती ह िफर चाहे वह कु ती हो, गांधारी, सुभ ा, ौपदी या वे भी जनका नाम इितहास नह
जानता, वे सब सहती ह। पु ष के अहं से िनकले हए अंगारे नारी के व पर ही चोट करते ह।
यु होता है तो हो।
िक तु यह या मेरे मन म कण के लए ममता जागी य ? या वा तव म यह ममता उसी के
लए जागी या मुझे अजुन के लए कण के संदभ म भय लग रहा है।
कु ती क अ तरं ग सखी भैरवी ने क म वेश िकया और राजमाता को िच ताम पाया तो
कहने लगी‒“इतनी िचंता िकस बात के लए है?”
कु ती को अपना मन खोलने के लए एक अवसर िमल गया, वह कहने लगी‒“आज मुझे डर
य लग रहा है और यह डर है या ममता। म नह समझ पाती। यिद यह डर है तो िकस बात का
और अगर ममता है तो िकसके लए है? और कह ऐसा तो नह िक म मानव जाित का िवनाश
अनुभव करके उसके लए िचंितत ह?ं ”
भैरवी ने बहत यान से अपनी सखी राजमाता क ओर देखा और कहने लगी, “आप िबलकु ल
ठीक कह रही ह लेिकन आपके सोचने से यु नह केगा। आप चाहती ह िक आपके पु क
र ा हो। आप चाहती ह िक येक मां का पु सुरि त रहे िक तु ऐसा होता है या? इन छोटी-
छोटी बात को लेकर संघष, यु और यिद इसको भी छोड िदया जाये तो कृित का िवनाश‒
हम सब कु छ सहना होगा।”
भैरवी चली गई और कु ती अकेली रह गई।
कु ती को इस कार अपना अकेला रहना कई बार बहत अ छा लगता है और कई बार वह
समझ नह पाती िक उसके मन म घबराहट िकस बात क है और अभी-अभी तो सूचना िमली है
िक कण ने भी म के सेनापित व म यु न लड ने का िन चय िकया है।
या करता है यह पु , बड ी-बड ी िविच बात। और कु ती ने उठकर कलाकार ारा
बनाया गया कण के बचपन का िच उठाया और उसे देखने लगी।
यह सच है बेटे िक जब मुझे चािहए था िक म अपना सारा मातृ व तेरे ऊपर लुटा देती तब मने
तुझे जल तरं ग पर छोड िदया और आज तुझसे िमलकर आने के बाद एक अपराधबोध जग
रहा है।
यह मेरे क म काश कैसा?‒कु ती ने जैसे ही आंख ऊंची क वैसे ही सूय ने धीरे -धीरे
वेश िकया और ार पर खड े होकर ही कहा‒“अपराध इस लये िक अपने पु को लेकर
आज तु हारे मन म पहली बार संकट उ प हआ। तुमने पहली बार सोचा है िक एक के न रहने
पर कैसा अनुभव होगा? और यही तु हारा अपराध है िक तुम अब इस िवषय म सोचने लगी हो।
य िक इसी से पैदा होता है।”
“आप, आप अचानक कैसे आ गये?”
“जब मन क दबी हई पुकार न को ज म देने लगती है तो और तो कोई नह देखता लेिकन
जो मन म बैठे हए राग-अनुराग के त व होते ह उससे वे न िछप नह सकते। और तु हारे यहां
तो सब यु क तैयारी कर रहे ह ऐसे म िकसी को मन क बात सुनने का अवसर ही कहां
िमलता है।”
“कैसे आना हआ आज?”
“हां, तुम कह सकती हो िक तुमने िकसी भी मं क शि से मुझे नह बुलाया िफर भी म आ
गया य िक तु हारे और मेरे बीच एक सेतु तो है।”
कु ती सहमती हई बोली‒“आज तो वह सेतु भी मेरा अपना नह है। और म म फंसी हई
या ा कर रही ह।ं म तो कु छ भी नह कहती िकसी से जो भी कु छ मने समिपत िकया आपको
और जो कु छ भी पाया आपसे मेरे पास तो कु छ भी नह रहा। यथ हो गया है सब कु छ। अब म
या क ं ?”
कु छ भी नह िकया जा सकता। या तो याद िकया जा सकता है उन मधुर ण को या िफर
वतमान म चार ओर आग लगी है उसे अनुभव िकया जा सकता है। उसम जलते हए िच ाया
जा सकता है। जानती हो‒जब हम पहली बार िमले थे समय ठहर गया था, भाव और िवभाव
िमल गये थे एक-दसरे
ू से और उस अपूव संयोग म िबजली का क धना और तु हारा कांपना
िबलकु ल एक जैसा लग रहा था और ऐसा भी जैसे लहर के बीच अंगारे उड रहे हो और
अंगार के बीच लहर।
कु ती इस अव था म भी इस उि से थोड ा-सा लजा गई और बोली‒“जो कु छ भी था, जैसा
भी था वह सब स य था उसे न भुलाया जा सकता है और न इनकार िकया जा सकता है। उसे
य याद करते ह आय। वह अपने आपम स य था। हां नैितक था या नह म नह , जानती।”
कु ती क ओर नेह भाव से देखते हए सूय बोले‒“जो स य होता है वह हमेशा नैितक होता
है। िफर चाहे वह यि का हो चाहे समाज का।”
“आप ठीक कहते ह। म अपने मन के गहरे से लड कर यही जान पाई हं िक सामा जक
नैितकता से अलग एक यि गत नैितकता होती है और कभी-कभी उसको वीकारने और
अ वीकारने से बहत भय लगता है। वीकारा जाता नह और अ वीकार करने म क होता है।”
“तु हारा यही है िक तुम दोन म से िकसी क भी र ा नह कर पाई ं कु ती। य िक जो
चाहा और जो ा िकया उसके बहत बड े अंश को संसार के सामने नह रख पाई।”
कु ती ने बहत यान से सूय क बात सुनी और बोली‒“संभवतः आप ठीक कहते ह। म यिद
अपने मन को समझा पाती और साहस से जीवन के नैितक और अनैितक न को झुलसा लेती
तो इतना बड ा अपराध न करती। वह ण िकतना भयानक रहा होगा जब मने यह अपराध
िकया। मने संपूण अपने को पराया य बनने िदया।”
कु ती कहती जा रही थी और अब उसक आंख म आंसू छलछला रहे थे। राजमाता का
गौरवमय पद, भीम, अजुन जैसे वीर पु क मां जसके एक आदेश पर कु छ भी हो सकता है
वह रो रही है, एक वेदना से भरी जा रही है। इसे इस वेदना से मुि तो देनी ही होगी।
सूय को पहली बार लगा िक कु ती अपने पु को लेकर बहत अ धक मान सक यातना सह
रही है। आज उसे य लग रहा है िक वह िकसी िनतांत अपने को अपना नह बना सक । वे उसे
समझाते हए बोले‒“बहत कु छ होता है यि के करने से। बहत कु छ होता है उसके समझने से
और इस जीवन म बहत कु छ होता है करने समझने से। बाहर के िनणय म तुमने जो समझा था
वह तु हारा स य था, तुमने जो िकया‒वह अवसर क िववशता थी। कभी-कभी स य और
िववशता के बीच एक ऐसा घटना च ज म ले लेता है। होता है कारण से लेिकन अकारण हो
जाने क भावना मूत को अमूत कर देती है यथ ही।” सूय िकसी भी तक से कु ती को सा वना
देना चाहते थे य िक उसक याकु लता उ ह भी तंग कर रही थी। कु ती बोली‒
“तो िफर या क ं म? एक माया चार ओर से घेरती चली जाती है। एक भय उसी तरह
तािड त करता है। ‘कहं न कह’ं के बीच िघर गई ह,ं म िकससे कह?
ं कैसे कह?
ं मानेगा
कौन?”
“गोपनीय अब तक जो मन म िछपा रखा था, वह कहने के बाद भी यु नह टल पाया तो
िफर या पाऊंगी? कहने के बाद भी पु के ाण पर यु मंडराता रहा, नैितक भी अनैितक बन
मुझको ही सालता रहा तो या होगा।”
िकतना छोटा है यि मू य के सामने। समूहगत मू य के सामने।
य िक वह जो कु छ सोचता है करना चाहता है। कभी-कभी समाज उसे वही नह करने देता।
इस पर सूय ने कहा‒
“यह थित आज है। पहले भी ऐसी ही थी और कल भी ऐसी रहेगी। सवकाल, सवयुग‒सारे
समाज म िभ -िभ स यता के मानद ड होते ह” नीित िभ होती है‒ यि का यि से, यि
का समाज से व समाज से मू यगत और संघष आचरण का िनर तर होता है। ओर ऐसी
थित म मनु य या तो परा जत हो जाता है या अपनी शि से समाज को बदलता है।”
पुनः कु ती बोली‒“म तुम से ही पूछती हं आय, जो कु छ भी तु हारे साथ जाने-अनजाने हआ
और एक सामा जक मयादा म और के साथ वह या िफर मेरे ही साथ बार-बार होता रहा तो िफर
एक इतना बड ा अस य य ? और दसरा ू उसक तुलना म मयािदत, नैितक और सव वीकृत
य ? ऐसा य होता है िक जो बात समाज वीकार कर लेता है वही उिचत हो जाती है, और
दसरी
ू अनुिचत कह दी जाती है।”
“यही सं कृित को पाियत करता है। यही यि के मन म न उठाकर उससे
समाज क जड ता तुड वाता है। स य के िशखर के प, ऐसे समय म बदल जाते ह।”
घटनाएं एक-सी होती ह कृित म संग के भेद से िक तु उनके अथ बदल जाते ह। और भी यह
समाज का ही स य है िक जो कु छ समथ कर सकता है सहज ही वही असमथ के लए अपराध
होता है। जानती हो‒साम य शि का भेद केवल वग ं म ही नह प रवार और यि क चेतना
म होता है।
“कभी कभी चेतना का एक शि शाली अंश दसरे
ू अंश का शोषण कर लेता है। बस यही
है मानव चेतना म और हम जानते ह ऐसे ही से समय के िवकास क ि या शु होती है।
यि के भीतर का स य कभी बाहर का िनणय अिनणय का माग बदल लेता है।”
“उस समय तु हारी चेतना का भाव ख ड सामा जक नैितकता क सीमा के ख ड से शोिषत हो
गया था। स य दब गया था। और आज जैसा भी, जो कु छ भी तु हारे मन म है िनर तर समय के
गितमान से उपजा है। स य को िछपाया था, पीड ा म वष ं रह , स य को य करा होगा।
यिद पीड ा थी तो भी स तोष कम नह होगा।”
सूय ने पूरे तक और भावना के आवेग म कु ती को यह समझाना चाहा िक जो कु छ भी हआ
है, वही िनयित है और कु छ नह ।
कु ती बोली‒“म इतने बड े मू यगत ास के बीच कब से जी रही ह।ं उस समय िव ोह कर
देती तो स भव था आगे क अनैितक ृख ं लाएं न बनत , यु नह होता। यह अपने पु क ाण
र ा का न अपने ही पु के सामने न होता। और अब जो कु छ है वह बड ा भयंकर है
य िक अपने वश म नह है।”
“सूय ने कहा, “लगता है न के भयंकर घेरे नह , ममता के गुज
ं लक तुमको सताते ह। कण
और अजुन म कौन है अ धक ि य और तुम इनम से चाहती हो िकसक र ा, तु ह को ात
नह । य िक अब थित यह है िक स भवतः तुमको इन दोन म से कोई एक चुनना पड े। यह
यु अब अव य भावी लगने लगा है।”
“मेरे अ त क इतनी-सी बात नह , इससे भी बड ा न सामने पाती ह।ं म कभी-कभी
लगता है‒िच ाकार पूछूं सारे धम, नैितकता, मयादा के र क से िक वे अ तर कहां करते ह,
और कैसे अ तर करते ह? आपके आ ान और धम के आ ान म, वायु के बुलाने और इ के
िनमं ण म। सबके सब मेरी ही भावना से उपजे ह। सबके सब मेरी ही िववशता के फल ह।”
“स पदी इतनी िनणायक होती है, या कम क समानता म भेद कर देती है। मेरी यह
पीड ा‒कौन समझेगा आय? या क ं अकेली थी नदी के िकनारे जब ाण का अंश वािहत
कर रही थी, म आज भी वैसी ही िनपट अकेली हं अपने उबलते र के छीट म, कहने न कहने
क यातना लए हए। और म कर भी या सकती ह।ं जब भी मने इस बात पर िवचार िकया
हमेशा एक म फंस गई।”
“िक तु तुम चुप रह रं गभूिम के य म और तुमने नह कहा कु छ ौपदी वयंवर के समय।
तुम तो नह थी वहां, िक तु कभी भी जब, स य पकड पाता है मानव, अपने से बाहर होकर
कह सकता है या िफर अपने ही म स य वीकारता हआ िकसी भी अपराध का प रशोध कर
सकता है। यिद उस समय तुम कण को अपना पु वीकार कर लेत तो यह िवप नह आती।”
“यिद म जानता ज म पूवज का आय उनके संदभ म नैितक-अनैितक न को सरल होते‒
तो आज कहे देती हं इतनी बड ी यातना कभी नह सहती। विणत कर देती स यवती, गंगा के
आचरण क नैितकता? ये धृतरा , िविच वीय और िवदरु सबक गाथाओं क नैितकता
खोलती और िफर पूछती मेरा अपराध या था? तब एक नैितक साहस के सच म अपने ही पु
को पराया नह होने देती।”
“तुम जानती नह सामा जक नैितकता िभ नह होती है वैयि क नैितकता से! वह केवल
समथ ं का आड बर मा है। जतने भी िनणायक, मू यगत अवयव ह हमारे समाज के‒सब
सापे ह। उनका वीकारने का बल ही अपेि त है चाहे हो यि गत या िफर समि गत।”
“हम यि के दािय व को समाज से अलग कर देते ह, िक तु ऐसा होना नह चािहए।”
यह सुनकर कु ती बोली‒“अ छा िकया देव! इस क म भूिम म आपने नैितक साहस
िदया है मुझे। अब म तैयार ह‒
ं िक स य को वीकार क ं । अपने ही अंश को दा ण सं ाम म
एक बार देख लू।ं गोपनीय स य को य करने के बाद नैितकता कौन से धरातल पर िवभूिषत
होती और जसे अब तक अनैितक कहते ह लोग स य िकतना है वह?”
“स य क र ा के लए सब कु छ कह दग ं ू ी म जसे अब तक ाण से दरू िकया, उसे िनज
ाण म समाकर देखंगू ी। चाहे कहे कोई कु ती डर गई थी पु के िहत! िक तु इस यु क
गहराती छाया म एक ण करती ह।ं गोपनीय स य को य करने के बाद चाहे म ं या म रह,ं
घृणा क पा बनूं या िकसी के नेह क , िक तु म कहग ं ी सारे आवरण चीर कर-मेरा पु कण
है‒कण मेरा पु है।”
“मेरे पु ! मेरे यार! मेरे....कण!”
और देखा िक वहां कोई नह । आय आय। चले गए। उ ह जाना ही था। िक तु इस समय मुझे
अपने इस ान म दािय व का परम बोध स म और समथ कर रहा है। अब उठती ह।ं उठती हं
आय म अब अपने म उठती ह।ं य िक यह कु ती अभी जीिवत है िक स य को वीकार कर
सके।
कु ती ने क के बाहर खड े होकर देखा पुरोिहत कह रहे थे। भोर हो गई है, सब राजपु ष
जाग, भोर हो गई है सब जाजन जाग। भोर हो गई है सब सैिनकगण जाग।
कु ती पुरोिहत को देखकर सोचने लगी‒पर जैसे पुरोिहत सहसा क गया‒सोचने लगा।
भोर हो गई है सब जाग गये ह गे, चलता हं राजमाता के क म। पूजा का िवधान अभी पूरा
करना है। आज का िदन शेष है। और िफर कल से भयंकर यु आरं भ हो जायेगा, धम क र ा
के लए, स य क र ा के लए, याय क र ा के लए।
धम, स य, याय। अब केवल श द रह गए ह। अथ राजनीित के दाव म खो गया। धम, जो
स य आचरण का तीक है। याग का, तप का, बंधु व का सार है उसे अब केवल मतवाद म
बदलकर राजनीित क शि संक ण कर रही है। येक यि शांित के लए श एकि त
करता है। यु शांित के लए‒यु ‒अ धकार के लए समथ क इ छा को यापकता देने के
लए।
यु िकसी को भूिम न देने के लए, यु धरती पर, सागर पर, रा य के लए। धम कहां आता
है‒यु के िवधान म। धम तो मानव को मानव से जोड ता है, वयं को सुसं कृत कर िवराट
बनाता है, यु म या सं कृित? और या िवराट प?
िफर भी पुरोिहत! मंगल िवधान करो।
स ा-संघष म...सावभौम मानव का प याग अपने अ दाता के भूगोल क र ा के मं
पढ ो...वेद मं !
पुरोिहत कु ती के सामने आकर खड े हो गए िवन ! उ ह देखकर कु ती कहने लगी‒
“पूजा का िवधान पूण हो गया पुरोिहत जी। आप चाह तो और मं ो चार से अपना संतोष कर।
अब मुझे मं के उ चारण से पूजा नह करवानी। मेरी पूजा हो गई।”
“कैसे राजामता?”
“कु छ पूजा पुरोिहतजी आ म ान से स प होती है। और आ म ान थितय के स य को
वीकारने से आता है। मेरे संदभ म स य प हो गया और जस ण से मने आ म स य पाया
है, लगता है पूजा पूरी हो गई है....। अब िकसी मं के उ चारण क आव यकता नह रही।”
पुरोिहत ने सुना और कहा‒“म राजकु ल का पुरोिहत राजमाता को आशीष देता ह।ं श ु सब
न ह । यु म पांडव क िवजय हो। धमराज यु धि र च वत स ाट बन।”
पुरोिहत चले गए! कु ती अपनी सोच म डू ब गई। वह सहसा उ े जत हो उठी‒
हां, हां, म स म हं स य को िछपाने म।
हां, हां म स म हं पीड ा झेलने म।
मने वयं भी पीड ा झेली और ौपदी को भी पीड ा दी।
ौपदी! ुपद सुता। तुझको मने िवभा जत कर िदया। य िकया? य िकया? कु ती उ ेजना
म हांफने लगी।
तुझे पांच पु क प नी बनाना या राजनीित े रत था?
राजकु ल क एकता बनाने क लालसा थी या िफर अपने बह पित व क पुि म सामा जक
वीकृित पाने क भावना थी। सोच नह पाती हं या था उस आ ा म।
ौपदी!‒तूने िवरोध य नह िकया? तेरी ही एकमा वीकृित से सारे नीित , धमशा
अवगाहते‒पांच पु ष क प नी के प म ज म-ज मांतर क कथा उकेरते रहे। िकसी ने मुझे
कु छ नह कहा।
सारे धमशा , सारे नीित बार-बार श द को अपने प म करने म स म ह। यिद ऐसा हो
सकता है ौपदी के लए वहां नैितकता अवरोध नह बनती है। तो िफर, यिद कण क बात म
कह देती। चुप हो जाते धमशा ? चुप हो जाते वे नीित ? या कहते वे।
नह ! नह मेरी ही कायरता थी। म ही अपने बेटे को अपना बेटा न कह सक ।
एक स य को िछपाकर िकतना बड ा अपराध िकया है मने।
कु ती ने ितशटी को बुलाकर अपना मन शांत करने के लए ौपदी को बुला भेजा। कु छ
समय बाद ौपदी ने आकर कहा‒
“मुझको बुलाया मां। आ ा दो! या क ं ?‒आज आपने मुझे बुलाकर मान िदया। धमराज
कह रहे थे आप िकसी बात से िचंितत हो रही ह। आ ा दी जए।”
“आ ा देने क थित म नह हं आज! आज तो जैसे एक जीवन का इितवृ तेजी से आंख
के सामने खुलता है, उसम कह तुम हो, कह म...और कह आकाश-सी सीमाहीन बेचन ै ी। एक
िदन शेष ह महासं ाम म। मुझे लगता है इस यु को म रोक सकती थी। और नह तो अपनी और
तु हारी इस गाथा म इतनी दख
ु ी न होती।”
“आ चय है माता ी, आप कह रही ह सारे इितवृ म आप, केवल आप ह और म। और यहां
जतने भी अ य लोग ह जो शेष ह वे िकस कारण से मह वहीन हो गए।”
“ जनके जीवन क िवराट योगशाला म हम न हे िब द ु ह।”
“भी म, ोण, धृतरा और वसुर पांडु भी वे सब कैसे मह वहीन हो गये। सारा रसायन तो
उनक आ ा का है उनके अ धकार का, बचता है शेष वह घृिणत राजनीित का है। िफर इस वृ
म केवल आप! केवल म!! यह म पहली बार आपसे सुन रही हं िक इस यु के संग म म और
केवल आप इतने मह वपूण हो गए।”
“केवल म! केवल तुम! इस लए िक यातना अ दर क , बाहर क , मने सही थी कभी, और
िफर बाद म तुमने सही है। या तुम अपने इस जीवन से सुखी हो? या ऐसा नह िक राजनीित
म जो कु छ तु हारे सर पर लाद िदया तुमने उसे वीकार कर लया। यही है यातना।”
“ या कह रही ह आप! कौन-सी यातना? जब से इस राजकु ल म आई हं माता म तब से
जीवन क सारी उपल धयां एक-एक सांस ही वाभािवक बन गई।” ौपदी ने शि भरकर कहां
और कु ती क ओर देखने लगी।
ौपदी िफर बोली‒“िक हे माता! थित भी तो देखने वाल क ि भेद से दसरी
ू हो जाती है।”
कु छ लोग समझते ह गे िक जो मेरे जीवन म जो क है, जनको समझते ह लोग सांसा रक
क मेरे लए तो वे परी ा के ण थे। और परी ा िकसक नह होती मां! मेरी परी ा हई और
म जानती हं आपने भी समय-समय पर परी ा दी है।
“मुझे अपने पु क प नी पर गव है। जानती ह,ं तुमने बहत अपमान सहा, हंसकर सहन
िकया जंगल के क को। यही नह अजुन ारा जीती जाकर भी तु ह शेष भाइय क प नी भी
बनना पड ा, मेरी आ ा क मयादा के लए। तुमको या इसका िब कु ल भी ोभ नह ? या
तुमने कभी नह सोचा िक मने तु हारे जीवन म आप जनक थित ला दी थी।”
“नह मां! नह ! अब ऐसा मत कहो! िक तु वह अव य है िक आज ध य हई माता म‒माता म
ध य हई। आज इस यु क भयंकरता के बीच िकसी ने इस राजकु ल म मेरे यि व को
वीकार िकया है। ध य हई माता म....। आपके अनायास इस तरह करने से, अक मात् आपके
इस तरह पूछने से लगता है म भी.... यि ह,ं व तु नह । मुझे मेरा मान लया गया। िक तु
माता‒ या सचमुच मेरे िवभाजन पर आपको ोभ है?”
कु ती को इस न क आशा थी िक तु यह न तुर त आ जाएगा, उसने नह सोचा था।
कु ती बोली‒
“म सोच नह पाती ह,ं उसको देखे िबना, उस घोिषत आ ा का औिच य िकतना था? था
भी...या नह ?” और यह कहकर कु ती ने अपना मुंह दसरी
ू ओर फेर लया। जैसे वह ौपदी का
सामना नह करना चाहती हो! ौपदी ने कहा‒
“औिच य-अनौिच य क बात बहत पीछे छू ट गई है मां! अब वह यथाथ ही मेरा नैितक
आचरण है। अब उसके िव म कु छ भी नह सोचती। मने पूरी िन ा से अपनी स पूण भावना से
पांच पांडव को पित वीकार िकया। मने प नी व िनभाया भी है िक तु कभी-कभी मुझको भी
लगता रहा िक िन ा को बलात वीकारा है मने, क म होते ह‒जब कभी धमराज या कभी
भीम या नकु ल-सहदेव अपने म गहन अनुभव करती हई केवल प रचा लत-सी इधर-उधर
घूमती, सारे कत य का पालन करती ह।ं चाहे वह शैया का क पन हो बाहर से या िफर हो
अ तर का ेमपरक आलोड न, हाथ क ि या हो या अधर क िति या। पूरे यि व का
भावमय संघषण....आज माता! ोभ के न पर माता म कहती हं िन पंद बनी रहती ह।ं पंदन
क ित ा म...।”
कु ती ने पहली बार ौपदी के मुख से स य का अनुभव िकया। उसे लगा िक वह उिचत ही
कह रही हे। िफर भी पूछ लया‒
“और अब अजुन...।”
ौपदी भी जानती थी िक आज सास, सास नह है। एक मां होकर मन का थाह लेना चाहती है।
वह बोली‒
“यह न कैसा मां?”
कैसे कह पाऊंगी अनुभव के गहरे ण, अनुभव के गहरे ण िकतने तरल होते ह। िफर भी
आंधी के आवेग से आते ह क म और जल वाह से रोमाव ल िभगोचर चार तरफ फैल जाते
ह। चार ओर ही नह , अ तर ही अ तर म िबना विन िबना प, ओस के कण से, मुंदी हई
पलक म धीरे -धीरे आ जाते ह...और....मां!
मृग छोने से आकर िछपकर बैठते ह।
एक िवराट नाद होता है चार ओर और दो िब दओ
ु ं से पर पर िवलीन हो कभी-कभी सीपी,
और कभी-कभी मोती से लहर के गजन म आ लंिगत होते ह।...आपने यह कैसा न पूछ लया
मां और या म इस न का उिचत उ र दे पाऊंगी। आप नह जानत िक मुझे व तुतः ा
िकसने िकया था। सब कु छ तो आपको ात है।
“अजुन का मोह तु ह बहत है ौपदी?”
“यह िफर मेरी ाथना को सुन लेने जैसा न! पर मां!”
मोह! मोह! मातृ ी, मोह बहत छोटा है। अनुभव के वृ से पाथ क परछाई ं मृित म आते ही,
हाथ पर...पलक पर...मन क तरं ग पर...इ धनुष उतरता है! और म जैसे ही ठहराना चाहती
हं ओझल हो जाता है। म उसे पकड नह पाती ह,ं और भी यह सच है मां म िकतना यास
करती ह,ं िकसी भी प म उनक भुजाओं म काया बन रह सकूं , िक तु काया कहां रह जाती है
अंत म मन और ाण एकमेव होकर...मुझे मेरे अ त व से अलग कर देते ह। वे िमलकर एक
िवराट सं लेष बना देते है! उनके सहवास म म नह होती ह।ं मुझे नह ात मां म कहां होती ह?

मंिदर म जलती हई गंध-िशखर सा मा आ मा का अ त व रह जाता है। और म उनम कह खो
जाती ह।ं ”
कु ती ने अनुभव िकया िक ौपदी के मन म िवभाजन का क तो नह रहा िक तु अजुन के
ित उसका मोह अ धक है। उ ह ने िफर कहा “और अब चार और यु का गजन है। या तु ह
अभी भी शंका नह यापी है पित के अिहत क , पु के अमंगल क । और या तुमने कभी
िवचारा है‒यु क जाये...। िवनाश के अ य अंगारे बरसने को याकु ल ह योम म क
जाय।.... या तुम नह चाहत िक यु के।”
ौपदी को समझ नह आया िक इस समय माता उसे यु के िवषय म कु छ भी कहने के लए
य कह रही है। िफर भी उसने साहस के साथ कहा‒
“नह ! नह ! मातृ ी यु से भय नह है मुझे। म सदा यु क छाया म पली हं और िफर यु
को िनमं ण मने नह िदया, आपने भी नह , िकसी भी पांडव ने यु नह चाहा था, वे तो स तु थे
पांच ाम लेकर ही।”
“यह तो दयु धन क बढ ती हई ल सा थी, सरलता के सामने, याग क तुलना म...। और
िफर जस पर उसे पूरा भरोसा है। राधा का पु ! कण! िकतनी ही बार जसे परा जत कर चुके ह
आय! शौय पर अपने वह बहत गव करता है। िकतना बड ा म है? केवल वंचना! म
केवल उसे श ु मानती ह।ं यिद वह चाहता तो यु क सकता था। िवनाश क सकता था। वंस
नह होता यह।...िक तु वह िपपासु है, आय के र का...। मां! म उससे घृणा करती ह।ं ”
कहते कहते कु ती के सामने ही ौपदी का मुखमंडल ोध से भर गया। वह बोली‒
“मां! म चाहती ह‒ं आय उसका कटा हआ म तक मेरे चरण म डाल द। मुझे तभी शांित
िमलेगी। उसने मुझे बहत सारे अपश द कहे ह मां! उसक ेरणा से मेरा अनेक बार अपमान हआ
है। मने उसक चढ ी हई डोरी पर से अपनी वरमाला हटा ली थी न। मने अ वीकार कर िदया
था उसे।”
“कैसी अनगल बात करती हो, िकसी क मृ यु क कामना अमानवीय है। कण भी िकसी का
पु है। और सारे प को श ु न मान करके केवल एक यि को श ु मानना अनुिचत है।
भयानक कम तो और ने िकए ह। कण ने नह ।”
“आपका प है यह‒आप माता ह, नेह से भरी हई, िक तु म िवभा जत ह‒ ं िवभा जत और
अपमािनत भी। मुझे मेरा अहं बार-बार कहता है‒ ितकार हो, यु हो, वंस हो, िवनाश हो।”
“ ौपदी असाधारण ितिहंसा क मूित है, ौपदी दःु शासन के र क यासी है, ौपदी कण का
म तक चाहती है, ौपदी अपने िवभाजन का मू य, आपसे नह धमराज से नह ‒ यि पम
िकसी से भी नह , सारी यव था से चाहती है जीवन म। मातृ ी आप बहत िवच लत ह यु से
और म स ह।ं ”
कु ती को लगा जैसे ौपदी आज अपने मन क सारी भावनाएं य करना चाहती है। उससे
अब कु छ नह कहा जा सकता। कु ती बोली‒
“म नह िवच लत ह,ं तुम बहत ु ध हो, जाओ िव ाम करो। अब तु हारे से इस िवषय पर
या कहना।”
“हां, हां, िव ाम क ं गी म, अपने अनेक िवभा जत अंश को लेकर, िकसी एक िनणय के ण
तक, केवल िवराम है। अपनी ही ितिहंसा क अि म जलकर भ म हो जाने क कामना के
साथ केवल िव ाम है। अब तो सेना लड ेगी रणभूिम म। वीर मरगे। यां तो िव ाम करगी
अपने घर म।”
कु ती ने सुना और सोचा िक या िकया जाए, यि व का िवभाजन और अपमान, सरल
मनु य को कठोर बना देता है। िकसी का दोष नह , थितयां मनु य से अ धक बलवान ह। हम
सब थितय के ददु य संघष से प रचा लत होते ह।
कु ती ने देखा ौपदी चली गई, िक तु यह या झुके-झुके से यु धि र कैसे आ रहे ह। इ ह ने
मेरा और ौपदी का संवाद सुन लया है। अब हो भी या सकता है। यह िन चय तो कोई भी नह
कर पायेगा िक सच िकस ओर है।
“उिचत नह था मां कु छ भी सुनना! िफर भी जतना सुन पाया हं उससे मुझे ौपदी का प
उिचत लगता है।” यु धि र मां के पास आकर भावुक वर म कहने लगे। जैसे वे िफर से िकसी
संकट से उबरने क कोिशश कर रहे ह ‒उ ह ने कहा‒
“ ौपदी यु के कारण म अपने अपमान को मु य मानती है, उसके मन म ती ितिहंसा है।
और यह ितिहंसा मानवीय ि से उिचत भी है। केवल आदश ही इसका िवरोध कर सकता है।
ौपदी अपना प ठीक मानती है। िकतना अपमान, िकतने क ! उनसे या मातृ ी आशीष
वचन िनकलेगा‒? जो कु छ भी सहा है वन म ौपदी ने उन सबका ितकार केवल यह यु है।”
कु ती यु धि र क ओर देखने लगी और बोली‒
“तु हारी ि म भी यह यु उिचत है?”
यु धि र ने आवेश रोककर कहा‒
“ ि क बात कहां रही है मां, दसरे
ू प ने कभी हमारी ि को समझा है‒मह व िदया है?
हमारी सरलता, शि हीनता समझी गई, और हमारे साथ छल िकए गए।”
“लेिकन इस यु म व स, सब कु छ न हो जायेगा।”
“नाश और िनमाण या? एक-एक दप अब बाण बन जायेगा। एक-एक क श द शंख क
गूज
ं म अिभ यि पायेगी।....
और कु छ नह होगा मां।” यु धि र खड े हो गए!
“महाकाल ज ह वीरगित के नाम पर असमय ही समा कर देगा, उनको िमलेगा
वग....और जो जीतेगा रा य पा जायेगा।”
“मातृ ी जीत यह बहत भयानक होगी‒शव पर तैरती! दोन प म बंधु-बांधव ह, कैसी यह
जीत मां, कैसी यह हार होगी...? म बहत िचंितत ह।ं ”
कु ती को िफर से यु धि र म उठे यागी का प झकझाोरने लगा वह बोली‒
“िफर वीतरािगता। अब यह सब कु छ नह ।”
“नह ! नह ! मातृ ी इधर से आ रहा था आपके क म काश देख आ गया। जाता हं मातृ ी!
एक िदन शेष है। मुझको आशीष दो।”
“अपने त के पु य का फल सब कु छ म तुम पर यौछावर करती ह।ं यु म िवजय हो।”
कु ती ने बड े साहस के साथ यु धि र को िवजय का आशीवाद िदया और इसी आशीवाद
के साथ उसने भिव य के मह वपूण अंश को काटकर फक िदया। आशीवाद देते हए कु ती के
ह ठ कांपे थे, मन िच ाया था लेिकन इतना बड ा जो बाहरी स य है उसे म कैसे झुठला
सकती ह।ं सूय और यु धि र और ौपदी तीन से ही अलग-अलग बात करके जैसे उसने अपने
सारे कम िवधान को िफर से याद करते हए उ ह एक औिच य दे िदया था। ौपदी से वातालाप म
यह भी िन चत हो गया था िक इसम ौपदी भी िनयित और दैव को मुख मानती है। कु ती और
पांडव को इतना दोषी नह मानती।
सूय के साथ बातचीत करते हए उसने भरपूर नैितक और अनैितक न को उठाया और यही
अनुभव हआ िक जो जीवन म होता है जसके होने को हम टाल नह सकते, वह स य भी होता है
और समय ही उसका िनधारण करता है। सारा का सारा वातावरण असाधारण हो उठा था। कु छ
भी तो सामा य नह रहा था।
कण से िमलकर कु ती के मन म जो िनराशा और आशा क भावना पैदा हई थी वह अभी तक
वैसी ही बनी हई है। वह यह िनणय नह कर पा रही है िक अजुन के साथ ित पधा म कण
िकतने उिचत ह और जब याग क बात करते हए यु धि र िकतने उिचत रहते, एक यि सब
कु छ छोड ने के लए तैयार है और एक यि अपने सारे जीवन का ल य केवल एक से यु
करने के लए बनाये हए है।
कु ती का आकाश कभी बड ा होता था, कभी छोटा होता था लेिकन उसक ि म यह बात
समा गई थी िक इस यु म उसे कु छ न कु छ खोना अव य है।
और हआ भी यही। यु ार भ हो गया। कौरव क ओर से पता चला िक भी म को सेनापित
बनाया गया है। पांडव क ओर से सेना क देख-रे ख के लए भीमसेन को िनयु िकया गया
लेिकन सेनापित बनाया गया धृ ु न को। और इसके पीछे हो सकता है ुपद क ित ा क
भावना भी जुड ी हई हो, िक तु कु ती के लए यह सूचना कम आ चयजनक नह थी िक दोन
सेनाओं के बीच म खड े होकर अजुन ने यु करने से मना कर िदया है।
पहले िदन के यु क समाि के बाद कु ती को सूचना िमली िक अजुन ने ीकृ ण से कहा
िक म अपने इन बंधु-बांधव को कैसे मार पाऊंगा?
कृ ण ने इसके उ र म अजुन को समझाते हए कहा था िक तुम उनको मारने क बात कर रहे
हो जो पहले ही मृ यु को ा ह। जो मृ यु को ा है उसे कोई नह मार सकता, केवल उसक
मृ यु का बहाना बन सकता है। अजुन के न करने पर भगवान बोले थे िक ये सब पूव ज म म
भी थे िक तु उसे जानते नह और अगले ज म म भी ह गे लेिकन उसे जानगे नह , केवल म ही
पूवापद ज म के िवषय म जानता ह।ं
आ मा और शरीर क स ब ता को बड ी यापकता से समझाते हए कृ ण ने कहा था‒
आ मा अजर और अमर है इसे कोई नह मार सकता।
कृ ण के कहने का सार था जो मनु य इस आ मा को ठीक तरह से नह समझता वही
प चा ाप करता है, दख
ु ी होता है।
जब अजुन को कृ ण के कम क बात समझ म आने लगी तो उसने योग, भि और सां य के
िवषय म िव तार से पूछा। इन सब बात का उ र देते हए कृ ण ने ई वर क िविभ िवभूितय
का वणन िकया और इसी बात पर बल िदया िक कमयोग से जीवन क सफलता िन चत है।
तो िफर म इस संघष और पु के वैमन य को लेकर इतनी िचंितत य हो रही ह।ं यिद
भगवान का कहना ठीक है िक आ मा अजर और अमर है तो िफर म ही िकसी के लए िचंता
य कं?
यह यु होना है होकर रहेगा।
अजुन और कण म से िकसी एक ने रहना है तो िनयित के संयोजन से एक ही रहेगा और
य िक अजुन के साथ कृ ण ह इस लए मुझे कण को ही खोना पड ेगा, यह बात म जानती ह,ं
सूय जानते ह और ई वर जानता है।
एक-एक िदन यु होता और सांझ के समय जब ब ल हए और बचे हए सैिनक और वीर क
बात होती तो कु ती का मन बार-बार करता िक यु भूिम म जाकर बीच म खड े होकर इस
यु को रोक दे लेिकन वह कैसे रोक पायेगी? कु ती हो, गांधारी हो, ये लोग यु म पैदा होने
वाली यातना को भोगने के लए बनी ह, यु के िवषय म िनणय लेने के लए नह ।
भी म बहत भयंकर प से यु कर रहे ह इस सूचना के साथ ही कु ती के सामने भी म का
वह प आ गया जब वे उसे याह कर लाये थे। या कु ती इस अ तर को समझ सकती है िक
िपतामह जो इसे अपने रा य के युवराज क वधु बनाकर लाये थे आज उसी के बेटे के सामने
धनुष बाण लेकर खड े ह गे। और िपछले पांच िदन के यु से उसके क का कारण केवल
यही रहा है िक पांडव के सामने अ धकांश प से कौरव क पराजय हो रही है तो वे
वा तिवकता को य नह समझ पाते।
कु ती को पता चलता है िक भी म और ोण कोई भी यु के प म नह था और अब भी हर
शाम वे यु रोकने का यास करते ह लेिकन एक यि ऐसा है जो धीरे -धीरे दयु धन के सामने
भावशाली बनता जा रहा है। एक छल से और एक बल से। छल से भावशाली बन रहा है
शकु िन और बल से उनका अपना पु कण। वह कौन-सी माया है जसके कारण यह जानते हए
भी िक पांडव के सामने वे हारगे यु ब द य नह हो रहा। कु ती सोचती है और केवल सोचती
है कम का कोई भी सू पु अब उनके हाथ म नह है।
वह कु ती जसने वन म रहकर अपने पु का िहत साधन िकया, वह कु ती जसने ी के
संग म भी अपने पु को एक बनाये रखा। अब इस प रवार को एक नह बना सकती।
आठव िदन के यु क सूचना से कु ती का मन दहल गया और वह बाद म पैदा होने वाली
िकसी भी आशंका के लए तैयार हो गई। वह रोज-रोज सूचना ा करती है िक आज मुख
राजघराने के यि य म से कौन-कौन मारा गया। लगता है जैसे सारा संसार इस रणभूिम म
आकर अपने को होम कर देगा।
िक तु आज का समाचार मन को और भी य थत कर देने वाला है। सुना है भी म बहत
भयंकर यु करगे। भी म के भयंकर प से यु करने का अथ कु ती जानती है। वह जानती है
िक यिद भी म चाह तो वह इ का भी सामना कर सकते ह। भी म म भी वह िद य अंश है
जसके होते उनका अिहत नह हो सकता और जब कु ती को यह सूचना िमली िक वा तव म
भी म ने भयंकर यु िकया और अजुन इतनी बुरी तरह से उनके बाण के वृ म िघर गया िक
कृ ण को रथ से उतरकर रथ के पिहए को च क तरह से उठाना पड ा।
भी म ने अपने श रख िदए और हाथ जोड कर खड े हो गए‒“म आपका अिभन दन
करता हं वासुदेव, आपने अपने भ क लाज रख ली।”
“इसका या अथ हआ िपतामह?”
“मने ित ा क थी िक या तो म आज आपको अ उठाने पर िववश कर दग
ं ू ा या अजुन को
मार िगराऊंगा। िक तु...”
“आप अजुन को नह मार सकते िपतामह। कोई भी िपतामह अपने ब चे को नह मार
सकता।”
“इसी लए तो आपने अ उठा लया।”
अब कु ती या करे ? अजुन क र ा के लए कृ ण को श उठाना पड ा और िफर
िशखंडी को आगे रखकर अजुन के ारा भी म ने पराजय वीकार क । भी म शरशैया पर लेट
गये। सर को ऊंचा करने के लए भी अजुन को ही तीन बाण मारने पड े और पानी िपलाने के
लए भी अजुन का बाण काम आया। यह कैसा नेह और कैसी श ुता है। न श ुता ठीक तरह से
प रभािषत होती है और न िम ता।
कु ती के लए यह सूचना और भी याकु ल कर देने वाली थी िक आचाय ोण के सेनापित व
म कण भी यु के लए तैयार हो गये ह। तो अब कण यु करे गा? अथात् ोण और कण
िमलकर पांडव पर आ मण करगे। कु छ न कु छ ऐसी अनहोनी तो होगी ही जससे जो कु छ भी
सामने आयेगा वह क कारक ही होगा। कु ती यु क सूचनाओं के िवषय म अ धक यान देने
लगी है। ोण के सेनापित व म पहले िदन का यु समा होने पर कु ती ने पूछा था िक कौन-
कौन यु म वीरगित को ा हआ है?”
और वह िदन कु ती के लए बहत ही भारी बनकर आया जब सात महार थय ने िमलकर
अजुन क अनुप थित म अिभम यु का वध कर िदया था। कु ती समझ नह पाई थी िक यु म
या मानव यवहार और मू य इतने न हो जायगे िक िनह थे पर वार होगा।
सुभ ा का आतनाद कु ती क समझ म नह आ रहा था िक वह इसे कैसे झेले। उ रा अलग
िबलख रही थी। आज कु ती को लगा िक अपने पु क मृ यु क सूचना पर गांधारी का या
हाल होता होगा? प रवार का यह यु हम ना रय को रोने के अित र और या दे सकता है?
कु ती का मन हआ जाकर देखे गांधारी को लेिकन अभी तो सुभ ा सामने है और आप
ाणपित कहती हई उ रा बार-बार अपनी सास और बड ी सास के पैर म िगर जाती है।
जब सवेरे अजुन को दसरीू ओर से यु का िनमं ण िमला था तभी ऐसा लगने लगा था िक
कु छ अिन होगा लेिकन कृ ण ह िक िकसी बात को अिन मानते ही नह । जो है और जो हो
रहा है वह होना ही है। इस लए वह िकसी एक के लए ामक प म अिन है और दसरे ू के
लए उससे अ धक ामक प म सुख देने वाला।
कु ती अब तक के यु म पहली बार बहत भीतर तक कांपी थी य िक अिभम यु के वध के
बाद घटती हई सेनाओं क सं या और भीम के ारा मारे गये गांधारी पु क िगनती उसको िकस
िदशा तक ले जायेगी।
अिभम यु का शव सामने था। अजुन सिहत सभी लोग शोकाकु ल थे। और उ रा का िवलाप तो
चरमसीमा पर पहचं रहा था। िफर भी कु ती ने सबको धैय बंधाया और दाशिनक वर म ज म
और मृ यु क अिनवायता पर काश डालते हए सबको शांत िकया।
भगवान कृ ण को लग रहा था िक उनक बुआ वन म तप कर कंचन बन गयी थी और अब
यु से तप कर ढ ता से सारी स यता को समझने क शि ा कर चुक है।
कु ती ने बड े भारी मन से सब लोग को अपने-अपने क से िवदा िकया। शव का अंितम
सं कार हआ। ितिदन जलती हई िचताओं से जो अि िनकलती थी आज उस आग का रं ग
काला ि गोचर हआ। पांडव प के वीर म आज एक सबसे छोटा बालक यु क ब ल वेदी
पर चढ ा।
कृ ण ने कु ती को धैय बंधाते हए उनक शि क शंसा क तो कु ती बोली‒“म तु हारे
जीवन दशन के िवषय म जानती ह।ं म तु हारा मन भी पहचानती हं और तुम यह सब कु छ य
कर रहे हो, म यह भी जानती ह।ं ”
कृ ण हंस पड े और बोले, “जब सब कु छ जानती हो तो िफर िकसी बात पर शोक य
करती हो?”
“ या अपना मनु य का वभाव छोड द।ं ू िकसी अिन पर शोक करना और िकसी अ छे
पर स होना यह तो मनु य का वभाव है। कु ती के इस तक को कृ ण भी नह काट पाये और
उ ह ने चलते-चलते केवल इतना कहा‒“बुआ सब कु छ भा य के हाथ म है। अब यह यु तब
तक नह केगा जब तक िक कोई एक प िबलकु ल ही व त न हो जाये। यु धि र को तो तुम
िफर से वन म भेज सकती हो लेिकन दयु धन के अहं के िवषय म या करोगी? और मृ यु या
संकट कोई भी हो केवल अपनी ही हठधम से यह गलती से नह आता इसम दसरे ू का भी योग
होता है।”
पांडव िशिवर म शोक और हष दोन एक समान फैले थे। ौपदी स थी और कु ती के लए
यह िन चय करना बहत किठन था िक इस दख ु क छाया म वह अब कहां तक जायेगी, य िक
ोण को लेकर अजुन के मन म जो एक िवशेष भाव था उससे कु ती प रिचत थी। और वह यह
भी जानती थी िक अजुन आचाय ोण का वध नह कर सकेगा। और इन सब बात से वह बहत
अ धक िचंितत थी िक तु यु धि र का न तो बहत मािमक था। िकसी के भी कहने से यु धि र
झूठ य बोलने लगे। और यह भी तय था िक जब तक ोण के हाथ म श ह तब तक उनका
कोई वध नह कर सकता। और कु ती ने सुना िक यु धि र ने आधा झूठ बोल िदया। चाहे झूठ
बोला हो या न बोला हो लेिकन अपने वाथ क पूित के लए श द को इधर-उधर करके
उ चा रत करना भी झूठ से कम नह है।
यह सुनकर कु ती को बहत आ चय हआ िक यु धि र के झूठ पर िव वास करके जब
आचाय िनह थे होकर रणभूिम म बैठ गये तो धृ ु न ने उनका वध कर िदया। यह जघ य काय
िकसी के लए िवजय का कारण बना और िकसी प के लए पराजय का लेिकन इससे उठे हए
अनेक नैितकता के न कु ती क आंख के सामने तैर गये। और वह यह अनुभव कर पाई अब
इस यु के समय कु छ भी धम और अधम नह रहा है। पहले जतने बल से यु धि र के याग
और तप को दयु धन क अधम भावना ने लील लेना चाहा अब वे सारे काय दोन ओर से हो रहे
ह। एक मां या कर सकती है। न वह सवेरे-सवेरे सैिनक वेश म सजे अपने पु को रोक सकती
है और न ाण को खोकर जो वीर वीरगित पा चुका है उसक सांस वािपस ला सकती है।
ये ह और न ही आगे यु कर रहे ह। रणभूिम म यु करने वाले सैिनक केवल बहाना ह।
यु हो रहा है कृित क दो शि य म और यह नह मालूम िक कौन-सी शि जीतेगी लेिकन
राजमहल क गंध म बहत प रवतन हो रहा है। कृ ण िकसको बुलाने भेज रहे ह?
कृ ण भीम के पु घटो कच को बुलाने का ताव रख रहे ह। य बुलाया जा रहा है भीम का
वह पु जस पर हमारा कोई अ धकार नह ? हमने या िदया है उस पु को? हम िकस
अ धकार से उसे बुलाना चाहते ह।
आचाय ोण के सेनापित व म अिभम यु का वध हो चुका है तो या घटो कच भी इसी रा ते
जायेगा िक तु नह , घटो कच तो माया स प है। उसका कोई कु छ नह िबगाड सकता। और
उसके बुलाने का कोई िवशेष अथ तो होगा ही।
कु ती जब-जब कण और अपने अ य पु के यु के िवषय म सुनती और जब-जब उसे पता
चलता िक कण परा जत हआ है तब भी और जब उसे पता चलता िक भीम या नकु ल क
पराजय हई तब भी उसक थित एक-सी रहती। वह केवल अपने को उपाल ब देने के अित र
और कु छ भी न कर पाती। जब से कण ने यु म भाग लेना शु िकया है तब से वह िदन-
ितिदन ण- ण याकु ल रहने लगी है। भीम और कण का यु हआ और कण क पराजय,
कु ती स हो या दखु अिभ य करे । य िक भीम अ -श से तो कण को परा जत नह
कर सकता था। वह नीचे उतरा और कण के रथ को उठाकर पटक िदया। ऐसी थित म कण को
भागने के अित र और कोई अवसर नह था।
कु ती ने यह भी सुना िक दयु धन ने ोण को भला-बुरा कहा और ोण ने कु छ न कु छ
अनहोनी करने क ित ा क । शायद इस लए घटो कच को बुलाया गया है।
घटो कच यु म भाग ले रहा है और सबसे पहला यु उसका अ व थामा के साथ होता है।
िपता और पु यानी भीम और घटो कच िमलकर अ व थामा और दयु धन को भगा देते ह।
घटो कच बहत भयंकरता से लड रहा है। वह कण पर हार पर हार िकए जाता है।
उसक शि से कौरव सेना म भगदड मची हई है। दयु धन बार-बार कण को उकसा रहा है
िक वह िकसी तरह से घटो कच का वध करे , िक तु कण अभी अपनी शि का योग नह
करना चाहते। कण समझता है िक यिद उसने घटो कच के ऊपर अपनी शि का योग कर
िदया तो वह आगे यु म कु छ नह कर पायेगा।
सं या हो रही है और कु ती अनुमान लगाती है िक सेनाओं के लौटने का समय हो गया है,
लेिकन यह या! सामने से कृ ण और अजुन लौटते हए स हो रहे ह और शेष पांडव सेना
बहत दख ु ी-दख
ु ी सी लौट रही है।
कु ती के मन म आशंका जागी िक हो न हो घटो कच का वध हो गया है और अब दतू उनके
सामने खड ा है और बता रहा है िक िकस कार भीम के इस पु ने कौरव सेना म भगदड
मचा दी थी। दयु धन के बार-बार कहने पर भी सेना नह क रही थी और तब उसने कण से
कहा था िक इस मायावी रा स से कौरव सेना को छु टकारा िदलाओ। कण बहत ती गित से
हार पर हार कर रहा था िक तु ऐसा लगता था जैसे भीम के इस बेटे के शरीर पर वे फूल से
लग रहे ह । और एक बार उसने िच ाकर कहा‒“और फको अपने अ और फको।”
जब अक मात् दयु धन कण के समीप आया और आदेश के वर म बोला‒िक घटो कच का
वध करो। अगर आज इसका वध नह हआ तो कल कौन-सी सेना लेकर लड गे और िफर‒
यह सुनते ही कु ती कांप गई‒दतू कह रहा था िक दयु धन का आदेश पाकर कण ने इ क
दी हई शि को हाथ म लया और क गया जैसे उसका मन कह रहा हो कण, क जाओ। इस
साधारण मायावी रा स के लए इ क शि को छोड ना उिचत नह है।
कण के हाथ बार-बार के और इसी बीच दयु धन ने अपना आदेश दोहराया। कण के हाथ म
अब कु छ नह रहा था िक तु श फकने से पहले उसने यह ज र कहा िक मेरे इस अ का
हार यथ नह जायेगा। इसे अजुन भी नह काट सकता, िक तु हे आय सुयोधन! तु हारी आ ा
से अपने जीवन और कौरव के िवजय क सारी आशा न करता ह।ं
कण ने शि अपने हाथ म ली और जैसे कह रहा हो िदशाएं कांपो, अ हास करो। पवत
अपने थान से िहल जाओ और जो भी घटो कच क र ा के लए सामने आये वह न हो जाये।
म इस एकाि शि से घटो कच पर हार करता ह।ं
घटो कच धरती पर आ िगरा, घटो कच अब नह रहा और पांडव सेना म दख
ु याप गया और
कृ ण के मुखमंडल पर एक यं यपूण हंसी दौड गई। इस हंसी का रह य उस समय अजुन को
भी पता नह चल पाया।
कु ती सामने से मु कराते आते हए कृ ण और अजुन को देख रही है। वे दोन उसे नम कार
करके चले जाते ह और अ यंत भ य और पंिदत चाल से ौपदी कु ती के पास आकर उनक
चरणवंदना करती है।
“तु हारे मुख पर बहत स ता खल रही है। या कोई शुभ समाचार लाई हो? यु कवाने
का कोई उपाय िनकाला है या? यु यिद आज भी क जाए तो िकतना अ छा हो।”
“माता ी! आप कौन से व न म खोई ह। िवजय और पराजय के इतने िनकट आकर या यु
कता है कभी। िवजेता सोचता है िक वह यु य रोके और परा जत इस आशा म िक कोई भी
चीज उसके अनुकूल हो सकती है। अपनी शेष बची हई शि भी दांव पर लगा देता है। जैसे
आय यु धि र ने सब कु छ लौटाने क कामना लेकर ौपदी को दांव पर लगा िदया था। अब यु
को कौन रोकेगा। अब तो यह यु तभी केगा जब अंितम समय अंितम प से दयु धन का सर
धड से अलग होकर भूिम पर लोटेगा।”
घटो कच के वध से जो शांित और स ता ौपदी को िमली थी वह उसने पूरी क पूरी यथ
कर दी और उसके चेहरे पर हंसी देखकर कु ती ने पूछा‒“बहत स हो तुम, इतनी भयानक
ची कार के बीच म भी यह हंसी।”
ौपदी ने हंसी को रोक मु कराहट म बदला और कहा, “हां माता, आज क मेरी हंसी मेरी
वा तिवक हंसी है। य िक आज ाण ि य पाथ के ऊपर जो संकट छाया हआ था वह समा हो
गया।”
एक ण क कर ौपदी ने िफर कहा‒“सोलह िदन के इस भीषण सं ाम म म देख रही थी
िक िवजय का संहासन पांडव के प म बढ रहा है िक तु िफर भी कु छ आशंका रहती थी।”
“आपको याद है माता ी िक आय इ ने जाने य कण को एक शि दी थी जससे वह
िकसी एक यि को मार सकता था। आज उसने वह शि घटो कच के ऊपर चला दी। उसका
वध हो गया और पाथ अब पूरी तरह सुरि त ह माता ी।”
कु ती के शोक म ौपदी क हंसी ने पीड ा का वेश करा िदया और वह कहने लगी िक
या इसी लए घटो कच को बुलाया गया था।
अिभम यु और घटो कच, अ तर इतना ही तो है िक एक ने दादा क उं गली पकड कर
िवकास िकया और दसराू माया के कारण अपने आप म स प रहा। कु ती ने बहत क के साथ
ौपदी क ओर देखा। वह अब भी मु करा रही थी। उसे देखकर कु ती बोली‒“वह हमारा पु था।
पांडव सेना िनराश लौटी है तु ह भी स ता नह मनानी चािहए।”
ौपदी ने ह क -सी गंभीरता से कहा, “माता ी, म स हं िक तु आप दख
ु ी ह और इन दोन
का कारण एक ही है‒घटो कच का वध। लेिकन यह संयोग नह इस लए िपछले िदन के सं ाम
म मुझे बार-बार यह लगता रहा है िक कण कह आय अजुन क अकाल मृ यु के प म सामने
न आ जाये।”
“तुम कण को अजुन क अकाल मृ यु समझती रही हो। लेिकन कण िकस तरह से उसक
अकाल मृ यु हो सकता है। पाथ भी तो कण क अकाल मृ यु बन सकता है और जतने भी ये
सैिनक मरे ह या सबक वाभािवक मृ यु हई है?”
ौपदी ने कु ती के चरण क ओर देखते हए कहा, “म जानती हं माता ी कु छ रह यमय बात
कण के स ब ध म आपके मन म है।”
कु ती बहत ग भीर हो गई और उसने लगभग ो धत होते हए कहा‒“ ौपदी चुप रहो, तु हारी
यह स ता िकसी के भी सामने कट नह होनी चािहए।”
ौपदी कु ती को नम कार करके अपने क म चली गई और इधर कु ती िफर से आकाश क
ओर देखकर अपनी भा य लपी के सभी आलेख पढ ने लगी। कु ती को लग रहा था िक इस
राजभवन और िशिवर म सभी पांडव िव ाम कर रहे ह लेिकन उसका एक पु इस समय भी
िचंितत होगा। हो सकता है वह केवल अंधकार म खड ा हो और काश उसके लए न होने
के समान हो।
कु ती ने अपने आपको संभाला य िक वह नह चाहती थी िक कृ ण और अजुन क स ता
के बीच उसक कोई इतनी अ स ता देख ले।
दतू रणभूिम से इतनी ज दी समाचार देने के लए महल म आयेगा, यह कु ती को आशा नह
थी िक तु समाचार ही ऐसा था या िकया जाता अब कौरव के पास और चारा ही या बचा था?
ोण के वध के बाद कण के अित र अब था कौन, जसे वह सेनापित बनाता। कण सेनापित
बन गये। कु ती स हो या दख ु ी कु छ समझ म नह आ रहा।
कण सेनापित बन गये और उ ह ने भयंकर यु िकया। लेिकन पहले िदन के यु म केवल
इसके िक सामा य प से सैिनक या दयु धन के कु छ भाई मृ यु को ा हए और कु छ िवशेष
नह हआ। िक तु इस दतू के साथ यह दसरा
ू कौन चला आ रहा है। पता करने पर पता चला िक
श य ने अपना एक दतू भेजकर कु ती से इस बात क मायाचना क है िक उ ह ने कण क
सारथी बनना वीकार कर लया है और साथ म उ ह ने यह भी बताया िक वे अजुन का िहत
करते रहगे। सारथी बनते-बनते भी कण को हत भ करते रहगे। दतू ने सारी बात कु ती से कह
और कु ती ने उसे भा य क रे खा समझते हए वीकार कर लया।
अब अपने अ जर म या महल के िकसी भी क म समाचार आने तक कु ती कु छ नह कर
सकती।
दतू आ गया है और कु ती पूछती है‒यु का समाचार या है? दतू कहता है घमासान यु हो
रहा है। दोन ओर से कभी कण भारी पड ते ह कभी अजुन। दोन को यु करते हए देखकर
ऐसा लगता है जैसे सूय और इ एक दसरेू से यु कर रहे ह ।
दतू ने यह उपमान कहां से लया। इसम इतनी बुि कैसे हई िक कण क तुलना सूय से और
अजुन क इ से करे ।
कु ती या चाहती है बस ऐसे ही यु होता रहे और िनणय न हो। नह , ऐसा हो नह सकता।
िनणय तो होगा ही। दतू के बताने पर कु ती को पता चला िक एक बार तो कण ने अजुन का
मुकुट भी नीचे िगरा िदया था और तब पूछने पर दतू ने खा डव वन क सारी कथा सुना दी थी।
िक तु सहसा यु का रं ग बदल गया और यु अजुन के प म आ गया। यह बड ी िविच
बात हई िक दतू बता रहा था िक अजुन का केवल िकरीट ही नह िगरा उसके धनुष पर भी चोट
लगी लेिकन अंत म पराजय कण के ही भाा य म लखी थी।
मृ यु से पहले घटनाएं भी बहत िविच थित म घटती गई।ं अ वसेन सप को कण ने वीकार
नह िकया और इसके बाद सारे िन फल अजुन के बाण िफर भी अजुन संभल गये और कण ने
अनुभव िकया िक उसके रथ का पिहया धरती म धंसने लगा है वह और कु छ नह कर सके,
िववश होकर अपने रथ से नीचे उतर गये और पिहया िनकालने लगे िक तु पिहया नह िनकलना
था नह िनकला। इस बीच अजुन ने बाण का हार करना छोड िदया था िक तु कृ ण के कहने
पर अजुन ने िफर से आ मण िकया और िनह थे पर वार करते हए अजुन को ोभ भी हो रहा
था िक तु अजुन या करते! यु तो यु होता है और उसम चाहे जस मा यम से हो िवजय
लखी जाती है।
अजुन ने अपने बाण का हार और तेज कर िदया। कण अपने दोन हाथ से पिहया िनकालने
म य त और व पर पड रहे ह अजुन के बाण। कण कु छ कहना चाहते ह लेिकन कह भी
नह पाते।
और कु छ ण के बाद आंज लक बाण से‒दतू अपना वा य पूरा भी नह कर पाया था िक
कु ती होश खोकर िगरते-िगरते बची और ध म से अपने मंच पर बैठ गई।
“कण, बेटे कण, तुमने जो कहा था वही ठीक था और वही तुमने कर भी िदखाया। म तु हारी
िचरअपरा धन मां तुमसे मा मांगती ह।ं ”
सारा का सारा राजप रवार कण के वध पर हष ास म डू बा हआ था और उसके बीच बाहरी
हष िदखाते हए केवल एक ी बची थी जो भीतर से बहत दख ु ी थी और वह थी कु ती जो िकसी
को कु छ कह भी नह सकती थी िक सहसा ौपदी उनके सामने आई और कहने लगी, “माता ी‒
वध आय भी म का भी हआ था, स ता हई थी, मृ यु आचाय ोण को भी िमली थी, िपता का
ण पूरा हआ इस लए स ता दगु ुनी हो गई थी िक तु आज कण क मृ यु पर मेरे र के उबाल
म एक िविच हंसी ुल रही है, िविच शांित घुल रही है जैसे धीरे -धीरे शरीर, मन और आ मा
एक साथ संगीतमय हो रहे ह । अ छा माता चलती ह।ं ”
स ता से भरी हई, लौटती हई ौपदी बोली, “पांडव सेना के वागत क तैयारी क ं आज तो
आय के घाव म िवशेष चमक होगी। यह यु मुझे लगता है मने आज पहली बार जीता है और
यह िवजय पाथ क यि गत िवजय है।”
ौपदी के मन का भाव कु ती समझती थी इस लए उसने कु छ नह कहा। कहती भी या और
कैसे? कु ती यह तो कभी नह चाहती थी िक अजुन को कु छ हो जाये य िप यह भी उसने कभी
नह चाहा िक कण को कु छ हो। उसने हमेशा यही यास िकया िक अजुन और कण दोन को
साथ-साथ देख सके लेिकन जब भी देखा आमने-सामने एक-दसरेू पर आ मण करते हए देखा,
गले िमलते हए नह ।
इतनी बड ी यातना िछपाये हए है कु ती अपने मन म।
अ धरथ और राधा का या हाल हो रहा होगा। उनका वह अपना पु तो नह िक तु पा लत पु
अव य था। कु ती को अकेले अ धरथ और राधा क ही िचंता य हई? इससे पहले यु म
अनेक सैिनक मारे गये ह उनके माता-िपता भी उसी यातना को सह रहे ह गे जो कु ती ने
अिभम यु के संदभ म सही और अ य पु के संदभ म।
बाहर का बहत कु छ शांत हो गया था लेिकन भीतर अभी तक बहत कु छ अशांत था। यह तो
लगभग िन चत हो गया था िक जीत पांडव क होगी िक तु अभी भी बहत कु छ शेष रह गया
था।

ccc

रात लगभग-लगभग आधी हो चुक थी और अपने दतू से कु ती ने यह समाचार ा कर


लया था िक शोकाकु ल कौरव सेना अपने िशिवर म सो रही है और अभी कण का शव उनके
घर के बाहर न रखकर अ धरथ के घर के बाहर रख िदया गया था।
कु ती ने अपनी िव वसनीय दासी से रथ तैयार करवाया और कण को देखने के लए जाने
लगी। कु ती धीरे -धीरे उठ रही थी, मन बहत तेज दौड रहा था, कदम चुपचाप शांत थे िफर भी
चल रहे थे। आंख मने आंसू थे और न िकसी कार क ज ासा। बस एक बार अपने उस
अपा लत पु को देखने क इ छा थी।
रथ बहत धीरे -धीरे रणभूिम के बीच से गुजरता हआ श ु िक िशिवर क ओर बढ रहा था।
कु ती को इस बात का भय िबलकु ल नह था िक उनके साथ कु छ अिन हो सकता है य िक
वह जानती थी िक यु के बाद आपस म िमलने क पर परा बहत पहले से ही है। उसक आंख
के सामने वह य भी घूम गया जब भी म के पतन के बाद उनसे िमलने के लए कौरव पांडव
एक साथ गये थे।
घोड े बहत दबे पांव चले जा रहे थे। िव वसनीय सारथी और उस सखी के अित र और
कोई साथ नह था। धीरे -धीरे रथ अ धरथ के पड ाव के पास पहच
ं ा और कु ती ने देखा िक एक
ी िन चत ही कण के शव के पास बैठी रो रही थी।
कु ती ने रथ थोड ी दरू पर ही रोक िदया और िफर धीरे -धीरे चल कर वहां आ गई। जैसे ही
वह शव के पास पहच ं ी उस ी ने अपनी आंख से आंसू प छ ज ासा का भाव लेकर कु ती क
ओर देखा।
“तुम मुझे नह पहचानत ”‒कु ती ने कहा।
“मने आपको कह देखा ही नह तो म कहां से पहचानूग
ं ी।” राधा ने उ र िदया‒“आप बताएं
आप कौन ह?”
“म कु ती ह।ं ”
यह नाम सुनकर राधा सकपका गई और हकलाती हई-सी बोली‒“आप...आप कु ती ह,
पांडव क माता कु ती।”
“हां, म कु ती हं पांडव क माता कु ती।”
“मेरा बेटा इस समय मृ यु को ा हए पड ा है म आपका कोई भी वागत आित य नह
कर सकती।”
“यह समय वागत और आित य का नह है। म शोक कट करने आई ह।ं मुझे कण के मरने
का बहत दख
ु है।”
“आप तो राजमाता ह आपको तो येक सैिनक के मरने का दख
ु होता होगा, िक तु मेरा तो
यह एक मा बेटा था।”
कु ती ने अनुभव िकया िक धीरे -धीरे एक रथ और चला आ रहा है और उसम से जो ी उतर
रही है वह और कोई नह , उनक पु वधू ौपदी है। य आई है ौपदी यहां? कु ती को समझते
देर नह लगी िफर भी उसने पूछा िक तुम यहां िकस लए आई हो।
ौपदी को भी कु ती को वहां देखकर कम आ चय नह हआ था। जैसे उसके मन म उठता
हआ एक-एक न अपने अथ खोल रहा हो। वयंवर म केवल दो ही यि धनुष पर डोर
चढ ा सके थे एक तो इनका अपना पाथ जो कु ती का पु है और दसरा
ू कण। तो या‒इसके
आगे ौपदी नह सोच पाई। उसने माता से कहा, “आप यहां आई ह कारण म नह जानती। म तो
केवल यह देखने आई हं िक या वा तव म कण मर चुका है?”
“कण तो मर ही चुका है। इस पर और िन चय करने आई थी।” कु ती के श द पूरी तरह से
मुख से िनकले भी नह थे िक पा व से घायल अव था म एक सैिनक आता है और उसे देखकर
कु ती ने अक मात् कहा िक तुम यहां आधी रात को घायल के बीच।”
अपने अ त- य त व संभाल कर सैिनक बोला, “म अकेला कहां हं राजमाता! आप यहां
पर ह राजरानी भी यह ह और मेरे वामी का यह पा थव शरीर यह पड ा हआ है। म इ ह और
माता राधा को छोड कर कहां जा सकता हं िक तु अब मुझे छोटा-सा क य िनभाना है।”
“क य, कैसा क य?”
“अपने वामी का आदेश आप तक पहच ं ाना है।” अपने घाव को सहलाता हआ सैिनक बोला,
“अजुन के भीषण आ मण के बीच जब मेरे वामी को अपनी मृ यु का िन चय हो गया तो
उ ह ने कराहते हए मुझसे कहा िक मेरी मृ यु के बाद जब मेरा अ त व शू य म िमल जाये तो
राजमाता कु ती से कहना िक मेरी मृ यु िवधाता का एक िविच खेल था, िब कु ल वैसे ही जैसे
मेरा ज म। एक मां ने मुझे पैदा िकया एक दसरीू मां ने मुझे पाला। जब से मने तोतली वाणी
छोड कर श संभाला तब से उसने मुझे बड े होते हए देखा और हे सैिनक राजमाता, कु ती
से कहना िक मुझे मा कर।”
सैिनक कराहने लगा था जैसे उसे यह कहते हए बहत क हो रहा हो। उसने कहा िक ौपदी
से भी कहना िक मने अपने मन से कभी उससे घृणा नह क है। मेरे मन म उसके ित कभी भी
अपमान नह रहा और जतनी बार मने उसका अपमान िकया उतनी बार ही मने अपने को काट
करके फका।
सैिनक के वचन न ठीक तरह से कु ती सुन पा रही थी और न ौपदी को सुनाई दे रहे थे
लेिकन कण क मृ यु के बाद उ ह वह सब कु छ अनुभव हो रहा था जो कभी-कभी पहले जीवन
म होता था। और आज वह प होकर सामने आ गया है।
तो यह सच है िक इस यु म येक यि परा जत होगा और जीतेगा कोई नह ।
यु म सब कु छ समा हो गया था और अब महल, महल जैसे न रहकर उजड े हए घर रह
गए थे। न यह था िक धृतरा और गांधारी के अंितम समय म िकस तरह यवहार िकया जाये
िक उ ह बुरा न लगे। कु ती चाहती थी िक पांडव क जीत के हष क भनक भी देवी गांधारी को
न पड े। इस लए उ ह ने अपने पु से कहा िक रा य पाने के बाद भी तुम धृतरा को आगे
रखकर राजकाज करो।
इस तरह पांडव रा य पाने के बाद िवदरु , स य और युय ु सु के साथ धृतरा क सेवा म
उप थत रहकर उनक सलाह से पृ वी का पालन करने लगे। प ह वष ं तक राजा धृतरा क
सलाह से ही रा य का पालन करते रहे। वीर पांडव ातःकाल उनके चरण म णाम करने जाते
और अपना समय उ ह देते। धृतरा भी नेहवश पांडव का म तक सूंघकर उ ह जब जाने क
आ ा देते तब जाकर रा य का कायभार संभालते। कु ती भी सदा गांधारी को कोई अभाव न
महसूस होने देती। और कु ती क पु वधुएं समान प से कु ती एवं गांधारी क समान भाव से
सेवा करत । राजा यु धि र राजा के उपभोग म आने यो य सभी बहमू य पदाथ और वािद
भोजन धृतरा क सेवा म समय-समय पर उप थत कराते रहते। कु ती को इस बात क िचंता
सदैव रहती थी िक रा य के अ धकारी उसके पु से उनके ये धृतरा को कोई तकलीफ न
हो इस लए वह हमेशा वयं उनक सेवा म उप थत रहती थी।
दख
ु तो सबको एक समान िमला था। कु ती के लए केवल यही संतोष था िक उसके बेटे
राजग ी पर बैठ गए लेिकन वे भी जस यातना का सामना कर रहे ह वह कम तो नह है। एक
िनवद का भाव उसके मन म बार-बार बैठ जाता है और वह सोचती है िक वह वन म चली जाए।
लेिकन वह अपने मुंह से कैसे कहे। अगर अपने पु को कहती है तो वे होते ह और यथ म
उसे रा य वैभव का एक अंश भोगने के लए कहते ह।
उसे सबसे अ धक डर भीम से लगता है। भीम जस तरह से बात-बात पर पहले नाराज हो
जाता है। उसी तरह से अब यं य करते ह, अ हास करते ह और पूरा ऐ वय भोगते ह। उसका
कारण होगा िक भीम को सबसे अ धक ास देने का यास िकया गया लेिकन यु धि र लािन से
भरे रहते ह।
जब-जब वह देखती है ौपदी के पु क वधुओं को, तब-तब जीवन क सारहीनता िवराट
आकार लेकर खड ी हो जाती है। यह कैसी िवजय है जो उसे ण-भर भी सहज नह होने देती।
जब-जब उसके मन म बहत उ ेलन होता है वह गांधारी के पास बैठ जाती है। और तभी गांधारी
भी अनुभव करती है िक उसने और कु ती म समान प से खोया है।
कु ती अभी-अभी गांधारी के पास जा रही है। और उसके सामने क पूण ण िच क तरह
आ जाते ह‒
दयु धन कह िछप गया है‒
पांडव दयु धन को ढू ढं रहे ह।
दयु धन एक तालाब म िछप गया है और यु धि र वहां भी अपनी सहज सरलता नह खोते।
वह कहते ह िक हम पांच म से िकसी एक से यु करके भी यिद तुम जीत जाते हो तो जीत
तु हारी।
ऐसा य होता है िक वह हर बार बड ी से बड ी बात दांव पर लगा देते ह। यिद दयु धन
नकु ल या सहदेव म से िकसी एक को यु के लए चुनता तो या होता। वह तो उसक मित ही
ऐसी है लेिकन मित का न भी या वीर तो दयु धन भी था और इसी लए उसने भीम को ही
चुना।
इस सूचना से दोन प म याकु लता फैल गई थी। उस समय कु ती और गांधारी अलग-
अलग िशिवर म थ । कु ती का मन हो आया िक भागकर गांधारी जीजी के पास चली जाए और
उनसे कहे िक जीजी, हम दोन चल। एक बार और दयु धन को समझाने क कोिशश कर।
स भवतः वह मान जाए।
लेिकन कु ती अपने ऊपर ही िव वास नह कर पाती िक या इस अव था म भी दयु धन और
भीम का संघष टाला जा सकता है। और या ये दोन प जो िवजय और पराजय के कगार पर
पहच
ं चुके ह वा तव म उसक बात मान जायगे।
वह यु धि र के िवषय म तो ढ तापूवक कह सकती ह और यु धि र मानगे भी लेिकन
गांधारी कभी भी ढ तापूवक अपने ब च के बारे म कभी कु छ य नह कह पाई। कु ती का
मन हआ िक वह जाकर अपनी जीजी को कम से कम एक बार यह बात अव य कहे िक यिद
उ ह ने अपनी आंख पर प ी न बांधी होती तो न भीम के ारा दःु शासन का खून िकया जाता
और न अपने ही बड के ारा अिभम यु मारा जाता। वह ौपदी के चीरहरण क बात सोचे या
न सोचे िक तु इतना अव य सोचती है िक मेरे पु पर क और अपमान क झिड यां लगी
रह और गांधारी के पु के पास शि भी रही, ऐ वय भी रहा, बड े-बड े नायक उनके प
म रहे िफर भी कु ती उनक पराजय का कारण नह ढू ढं पाती।
कृ ण! कृ ण ह जो पराजय और िवजय के कारण ह। पांडव क िवजय और कौरव क
पराजय लेिकन कृ ण को या िमला?
कृ ण को यि गत प से कु छ ा करना ही नह था। िकतने तट थ होकर कृ ण ने यु म
अजुन का रथ चलाया और जब भी कु छ िकया तो सामने वाले भ को देखकर िकया।
कृ ण क याद आते ही कु ती को यह अनुमान हआ िक इस समय जो यु अंितम ण म है
वहां भी तो कृ ण ह गे।
कु ती सोचती रही और केवल सोचती रही। वह न गांधारी के पास जा पाई और न यु धि र
को कु छ कह पाई। आकाश क ओर देखकर अंितम चरण के यु का प रणाम सुनने के लए
अपने मंच पर बैठ गई।
प रणाम वही हआ जो अब तक का काल म बता रहा था। गदायु म भीम ने दयु धन को
परा त कर िदया िक तु यह या! लोग कह रहे ह िक भीम ने िनयम के िव गदा चलाई और ये
कौन है? अरे , यह तो जीजी आ रही ह। कु ती ने देखा। ितहा रय का सहारा लेकर गांधारी
उसक ओर आ रही है। पास आते ही गांधारी ने कहा‒
“कु ती मने तुझसे कभी नह कहा लेिकन आज एक बात कहती ह।ं ”
“कहो जीजी या आ ा है?”
“ जसके सौ पु मार डाले गये ह वह या आ ा दे सकती है लेिकन एक उपाल ब ज र दग ंू ी
िक िकसी और का कहना मानते या न मानते तु हारे बेटे तु हारा कहना ज र मानते। म वािपस
अपने बेटे को कह ले जाती िक तु भीम को तु ह कहना चािहए था िक वे दयु धन को न मारे ।”
“जीजी मारने और मरने के इस रा ते म मेरा और तु हारा िनणय माना ही कब गया। हम दोन
तो ऐसे दशक रहे ह इस यु के, जनक छाती म हर य सह -सह छे द कर गया। जीजी,
जस िदन तु हारा पहला बेटा मारा गया था दख
ु तु ह और मुझे बराबर हआ था।”
“जीजी जस िदन अिभम यु मारा गया था दख
ु तु ह और मुझे बराबर हआ था।”
“बस-बस और कु छ मत कह। म जान गई। म सब कु छ जान गई। इस समय मेरी मती िफर
गई थी जो म तु ह उपाल ब देने के लए चली आई।”
गांधारी और कु ती बात कर रही थ । यु धि र को यह अनुमान भी नह था िक माता और
ये माता इस कार क बात कर रही ह गी। वे तब तक बाहर के रहे जब तक गांधारी चली
नह गई। गांधारी के जाने के बाद यु धि र ने अनुभव िकया िक वे अब मां को इस लूली-
लंगड ी िवजय क सूचना दे सकते ह। वे कह सकते ह िक दयु धन का वध हो गया।
जस दयु धन क ई या के कारण तु ह तु हारे लड क को वन-वन भटकना पड ा वह
दयु धन वीरगित को ा हो गया।
यु धि र कु छ नह कह पाये। अनमने मन से माता के चरण छु ए और बहत धीरे से बोले, “हम
अंितम प से िवजयी हो गये ह मां।”
यह कहकर यु धि र बहत तेजी से वािपस चले गये।
और यह नदी का िकनारा हाथ म जल लये तपण करते हए यु धि र सारी महाभारत जैसे
सामने से रसती चली गई। कण को ांज ल देने के लए लया गया अ य जल अंजु ल से बह
गया था और भी न जाने िकतना कु छ बह गया था पर उसे िकसने देखा है।

ccc

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