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अधूरा ज्ञान

अतिशयोक्ति का ढ़ोल बजाए


करे कम ज्यादा बतलाए
अल्प ज्ञान पा खल इतराए
अधजल गगरी छलकत जाए।

गुरु संग कु तर्क ,सत्य का खंडन


स्वयं का झूठा महिमा मंडन
गलत स्रोत की सहज कमाई
छोटी नदी जल भरी उतराई
थोड़े धन पा खल बौराए।
अधजल गगरी छलकत जाए।।

गलत करे समझे चतुराई


थोथी दलील, बेवजह लड़ाई
रचता झूठ, प्रपंच, भौकाल
स्वप्रचार एकमात्र खयाल
हल्के थोथे जल उपलाए।
अधजल गगरी छलकत जाए।।

अपने मुंह मियां मिट्ठू


स्वार्थी, स्वाँगी मिथ्यापिठू
वैशाखनंदन गलतफहमी माने
सुखी घास निज-चरा जाने
बिन खाये ही जाय आघाए।
अधजल गगरी छलकत जाए।।

गिरि-सम गंभीर होते पूर्ण ज्ञानी


शांत चित और मीठी वाणी
सम्पूर्णता, गुरुत्व,नम्रता वाहक
झुकते वृक्ष होके फल धारक
भरी गगरिया चुपके जाए।
अधजल गगरी छलकत जाए।।

अधजल गगरी छलकत जाय


अध मन बुद्धि खल वौराय,
कांचो घड़ा पानी विलगाय
मांछी के पेटें हाथी समाय।

कारो कौआ रो वोली तीत्तो


ढेला सें दै छै ढेलियाय,
सिंहों रो खाल गदहवा ओढ़ै
भेद खुलला पर डंटा खाय।

कांचो साधुवें भी रंग चढ़ाय


लाल पीरो की उजरो कार,
सकल धवल वगुला के चाल
ऐन्हों कामी धरती के भार।

जाय नरक यजमानों के साथ


दोनो के होयतै यमपुर वास,
पूरा पूरै ते पूरा के आस
अधुरा जीवन अंत निरास।

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