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Cooperative Banks
Cooperative banking is a small scale banking carried on a no profit no loss basis for
mutual cooperation and help.
Engaged in financing rural and agricultural development.
They are established under the cooperative Credit Societies Act of 1904.
Liquidation Process
Liquidation proceedings of the closed banks is left to the Registrar of Cooperatives Societies.
From the day liquidation proceedings are issued, RBI washes off its hands.
What are main problems with cooperative banks?
Dual control – this leads to lesser supervision by RBI like on other banks.
Lot of political influence – as it is also regulated by state governments.
सहकारी बैंक:-
सहकारी बैंक छोटे पैमाने पर एक ऐसा बैंक है जो आपसी सहयोग और मदद के लिए नो-प्रॉलिट नो-िॉस
आधार पर कायय करता है ।
ये ग्रामीण और कृलि लिकास के लित्तपोिण से सं बंलधत हैं ।
यह सहकारी क्रेलिट सोसायटी अलधलनयम 1904 के तहत स्थालपत लकए गए हैं ।
सहकारी बैंकों को बैंलकंग और सहकारी लिधान दोनों द्वारा लनयंलित लकया जाता है क्ोंलक िे सहकारी सलमलत
अलधलनयम 1965 के तहत पंजीकृत हैं और बैंक िॉर एग्रीकल्िर एं ि रूरि िे ििपमेंट (NABARD) और भारतीय
ररजर्वं बैंक द्वारा लिलनयलमत हैं ।
बैंलकंग कानूनों को 1966 में बैंलकंग लिलनयमन अलधलनयम 1949 में सं शोधन के माध्यम से सहकारी सलमलतयों पर िागू
लकया गया था। तब से आरबीआई द्वारा बैंलकंग सं बंधी कायों को लिलनयलमत लकया जाता है और प्रबंधन सं बंधी कायों को
सं बंलधत राज्य सरकारों द्वारा लिलनयलमत लकया जाता है ।
िाभ सेिा
जनता से जमा स्वीकार करना और व्यक्तियों सदस्यों और जनता से जमा स्वीकार करना,
और व्यिसायों को ऋण दे ना। और लकसानों और छोटे व्यापाररयों को ऋण
दे ना।
प्राथवमक क्रेविट स सायटी (पीसीएस)
• प्राथलमक क्रेलिट सोसाइटी गां ि या शहर के स्तर पर बनाई जाती हैं ।
• यह मूि रूप से एक लिशे ि इिाके में रहने िािे सदस्यों का एक संघ है ।
• सदस्य उधारकताय या गैर-उधारकताय हो सकते हैं ।
• इस सोसाइटी केलिए िंि लिपॉलजट शे यर पूं जी और केंद्रीय सहायक बैंको से ऋण द्वारा प्राप्त लकये
जाते हैं ।
शहरी सहकारी बैंक (पीसीबी) से प्राथवमक क्रेविट स सायटी(यूसीबी)
शहरी सहकारी बैंक (यूसीबी) सहकारी सलमलतयों के कोि में लसिय प्राथलमक क्रेलिट सोसायटी (पीसीएस) हैं ।
ये पीसीएस कुछ शतों के तहत बैंकों में पररिलतयत हो जाते हैं और आरबीआई उन्हें िाइसेंस प्रदान कर दे ता
है ।
संपूणय लनयमन का पररहास इस बात पर लनभय र करता है लक इस तरह का िाइसेंस प्राप्त करने के लिए लसिय
एक िाख रुपये होना पयाय प्त है ।इसका शासन दशकों तक अपररिलतय त रहता है ।
इतने कम स्तर की पूं जी िािे बैंक के संस्थान की क्तस्थरता की उम्मीद कैसे की जा सकती है ?
भारतीय ररजिं बैंक द्वारा गलित मरािे सलमलत और माधिराि सलमलत ने ऐसे शहरी सहकारी बैंक (यूसीबी)
के लिए आिश्यक पूं जी के द्वारा लनम्न स्तर को बढाने की आिश्यकता का उल्ले ख लकया है । िे लकन
आरबीआई ने दशकों तक सीमा क्ों नहीं बढाई यह आत्मलनरीक्षण का लििय है ।
पररसमापन प्रवक्रया
बंद बैंकों की पररसमापन काययिाही सहकारी सलमलतयों के रलजस्ट्रार के पास छोड़ दी जाती है । लजस लदन से
पररसमापन की काययिाही जारी की जाती है आरबीआई इससे अपना पीछा छु ड़ा िे ता है ।
सहकारी बैंक ों की मुख्य समस्याएों :-
• दोहरा लनयंिण: - इसके कारण अन्य बैंकों की तरह भारतीय ररजर्वं बैंक द्वारा कम पययिेक्षण
होता है ।
• बहुत अलधक राजनीलतक प्रभाि: - क्ोंलक यह राज्य सरकारों द्वारा भी लिलनयलमत है।
आगे की राह:-