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रेने देकार्त की जीवनी,दार्शनिक प्रणाली,निगमन - Philosophic Method of Rene Descartes in Hindi
रेने देकार्त की जीवनी,दार्शनिक प्रणाली,निगमन - Philosophic Method of Rene Descartes in Hindi
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इितहास के नोस्ट् स
(https://hindiguider.com/categor
y/%e0%a4%87%e0%a4%a4%e0%
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Get Quote
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इितहास/History
(https://hindiguider.com/categor
Car Insurance @ Just Rs. 2094*
y/%e0%a4%87%e0%a4%a4%e0%
a4%bf%e0%a4%b9%e0%a4%be
%e0%a4%b8-history/) (53)
िशक्षाशास्त्र/Education
(https://hindiguider.com/categor
y/%e0%a4%b6%e0%a4%bf%e0%
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%e0%a4%be%e0%a4%b6%e0%a
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%b0-education/) (114)
सन् १६१९ तक ये हॉलैण्ड (Holland) में सैि नक सेव ा करते रहे। िस्वट् ज रलैण्ड , इटली आिद 4%a8%e0%a5%80%e0%a4%95%
e0%a5%80-educational-
देश ों का इन्होंने भ्रमण िकया। इनकी अिधक कृ ितयाँ हॉलैण्ड में ही िलखी गयीं।
technology/) (107)
रेन े देक ातर् एकान्तिप्रय, मननशील व्यिक्त थे। ये अिधक लोगों से िमलना नहीं चाहते थे। इस समाज और िशक्षा
कारण इन्होंने कई बार अपना मकान बदला। देक ातर् का अिन्तम समय स्वीडेन (Sweden) (https://hindiguider.com/categor
में बीता। स्वीडेन की राजकु मारी िक्रस्टीना (Christina) रेन े देक ातर् के दाशर्ि नक िवचारों से y/%e0%a4%b6%e0%a4%bf%e0%
a4%95%e0%a5%8d%e0%a4%b7
:
बहुत प्रभािवत हुई थीं। स्वीडेन की जलवायु देक ातर् के स्वास्थ्य के िलए अच्छी नहीं थी। ये %e0%a4%be%e0%a4%b6%e0%a
यहाँ बहुत काल तक न रह सके । इनकी मृत्य ु शीताघात के कारण सन् १६५० ई. में स्वीडेन में 4%be%e0%a4%b8%e0%a5%8d%
e0%a4%a4%e0%a5%8d%e0%a4
हुई।
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रेन े दे क ातर् की प्रमुख कृ ितयाँ-
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(क) िडस्कोसर् ऑन मेथ ेंड (Discourse on Method, Published in 1937)
e0%a4%be/) (11)
Tags
रेन े दे क ातर् की दाशर्ि नक प्रणाली (Philosophic Method of
B.ED
Descartes) (HTTPS://HINDIGUIDER.COM/TAG/BED/)
FAMOUS PERSONALITY
रेन े देक ातर् को आधुि नक दशर्न का नहीं, वरन आधुि नक दाशर्ि नक प्रणाली का िपता (Father (HTTPS://HINDIGUIDER.COM/TAG/FAMOUS-
PERSONALITY/)
of modern method) मानते हैं, क्योंिक देक ातर् ने सवर्प्र थम दशर्न के क्षेत्र में वैज्ञ ािनक
HINDIGUIDER.COM
प्रणाली (Scientific method) को जन्म िदया। देक ातर् के पूव र् का दशर्न अन्धिवश्वास और (HTTPS://HINDIGUIDER.COM/TAG/HINDIGUIDER-
COM/)
रूिढगत परम्पराओ ं से ग्रिसत है। मध्य युग का दशर्न धािमर् क आस्था से ओतप्रोत था। दशर्न
पर धमर् का आिधपत्य होने के कारण दाशर्ि नक सत्यों का सही मूल्य ांक न नहीं हो पाता था।
M.ED
(HTTPS://HINDIGUIDER.COM/TAG/MED/)
अतः दशर्न भी धमर् के समान आस्था और अन्धिवश्वास का िवषय बन गया था। जनता की RURAL SOCIOLOGY
िचन्तन शिक्त स्वतन्त्र न थी। लोग िकसी भी दाशर्ि नक सत्य को परम्परा की ओट में देख ने के (HTTPS://HINDIGUIDER.COM/TAG/RURAL-
SOCIOLOGY/)
िलए बाध्य िकये जाते थे।
SOCIOLOGY
(HTTPS://HINDIGUIDER.COM/TAG/SOCIOLOGY/)
रेन े देक ातर् ने स्वयं कहा है िक प्लेट ो और अरस्तू को पढ़कर हम दाशर्ि नक नहीं बन सकते,
SUPER TET
यिद हम स्वतन्त्र िनणर्य न कर सकें । इसी कारण दशर्न शास्त्र िववादों का अखाड़ा (Battle (HTTPS://HINDIGUIDER.COM/TAG/SUPERTET/)
ground of controversy) बन गया था। अतः देक ातर् की सबसे नदी समस्या थी दशर्न के इितहास
(HTTPS://HINDIGUIDER.COM/TAG/%E0%A4%87%E0%A4%A
क्षेत्र में िनिवर् वाद तथा िनस्सन्देह सत्य की प्रािप्त। परन्तु ऐसे सत्यों की प्रािप्त कै से हो? देक ातर्
कक्षा 4
अपने प्रारिम्भक काल से गिणत के प्रित बड़े आकष्ट थे। (HTTPS://HINDIGUIDER.COM/TAG/%E0%A4%95%E0%A4%9
4/)
उनके अनुस ार गिणत में िनश्चयात्मकता है। उसके िसद्धान्त िनिवर् वाद और िनस्सन्देह सत्य हैं। कहानी
(HTTPS://HINDIGUIDER.COM/TAG/%E0%A4%95%E0%A4%B
अतः देक ातर् की दृिष्ट में दशर्न की नींव भी गिणत के समान सुदृ ढ़ होनी चािहये िजससे दोषों
का िनराकरण हो तथा िनस्सन्देह सत्य की प्रािप्त हो। अपनी प्रिसद्ध कृ ित ‘दी िडस्कोसर् ऑन ग्रामीण समाजशास्त्र (HTTPS://HINDIGUIDER.COM/TAG/%E0%A4%
%E0%A4%B8%E0%A4%AE%E0%A4%BE%E0%A4%9C%E0%
मेथ ेंड ’ (The Discourse on Method) में देक ातर् अपनी प्रणाली के मुख्य चार अंग
प्रिसद्ध हिस्तयाँ
बतलाते हैं जो िक िनम्निलिखत हैं- (HTTPS://HINDIGUIDER.COM/TAG/%E0%A4%AA%E0%A5%8
%E0%A4%B9%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%
िववेच ना करते हैं। इसी कारण प्रणाली िवमशर् देक ातर् की प्रमुख कृ ित। मानी जाती है। यह maadhyamik-shiksha-aayog/)
छ: भागों में िवभक्त है। अपनी इस प्रिसद्ध कृ ित में देक ातर् गिणत से िवशेष प्रभािवत मालूम वतर्म ान भारतीय समाज में िशक्षा का
पड़ते हैं। उनके अनुस ार गिणत की प्रणाली ही यथाथर् प्रणाली है। दशर्न शास्त्र में भी इसी प्रभाव, िशक्षा हमारे जीवन के िलए क्यों
प्रणाली का प्रयोग होना चािहये। गिणत के िनष्कषर् सवर्म ान्य होते हैं। परन्तु दशर्न शास्त्र के महत्वपूण र् है?
नहीं। (https://hindiguider.com/vartam
aan-bhaarateey-samaaj-mein-
इसका एकमात्र कारण यही है िक दशर्न की नींव गिणत के समान सुदृ ढ नहीं। देक ातर् shiksha-ka-prabhaav/)
प्रणाली िवमशर्’ में दशर्न के प्रित बड़ी गहरी िचन्ता व्यक्त करते हुए कहते हैं िक ‘मैं दशर्न के वैय िक्तक एवं सामािजक उद्देश्य क्या है? |
सम्बन्ध में इससे अिधक कु छ नहीं कहूँ ग ा। बहुत िदनों से तथा बड़े- बड़े िवद्वानों ने इस पर Coordination of Personal and
िवचारिवमशर् िकये हैं, तो भी इस पर कोई भी ऐसा िवचार नहीं जो िववाद के परे हो तथा Social Goals in Hindi
कोई भी ऐसा िवषय नहीं जो सन्देह से रिहत हो। संक्ष ेप में, हम कह सकते हैं िक दशर्न (https://hindiguider.com/vaiyakti
िववादों का अखाड़ा है। इन िववादों का कारण के वल दाशर्ि नक प्रणाली में दोष है। यिद हम k-evan-saamaajik-uddeshy-kya-
hai/)
गिणत की प्रणाली को दशर्न में अपनाएँ तो दशर्न में भी गिणत के समान िनष्कषर् प्राप्त होंगे।
इससे स्पष्टतः प्रतीत होता है िक देक ातर् गिणत से िवशेष प्रभािवत थे। िशक्षा के सामािजक उद्देश्य क्या है? |
Social Purpose of Education in
रेन े देक ातर् की दाशर्ि नक प्रणाली को गिणतीय प्रणाली (Mathematical method) भी Hindi
कहते हैं, क्योंिक रेन े देक ातर् ने अपनी इस प्रणाली में गिणत का अनुक रण करने का प्रयास (https://hindiguider.com/shiksha
िकया है। देक ातर् के अनुस ार दाशर्ि नक िनष्कषर् गिणत के िनष्कषर् के समान सन्देह रिहत तथा -ka-saamaajik-uddeshy-kya-hai/)
सवर्म ान्य तभी हो सकते हैं जब दशर्न में गिणत की प्रणाली को अपनाया जाय। देक ातर् ने िशक्षा के उद्देश्य - सावर्भ ौिमक उद्देश्य ,
स्वयं अपने प्रणाली-िवमशर् में बतलाया है िक वे तकर् पूण ,र् सन्देह -रिहत िनष्कषर् के कारण ही िविशष्ट उद्देश्य | Aims of Education
गिणत से िवशेष प्रभािवत हैं। रेन े देक ातर् का , िक गिणत की प्रणाली के िबना सन्देह रिहत, in Hindi
सवर्म ान्य सत्यों की प्रािप्त सकती। (https://hindiguider.com/shiksha
-ke-uddeshyon-ka-vargeekaran/)
गिणत में हमें िनिश्चत िनष्कषोर्ं की प्रािप्त होती हैं। २+२=४ को कोई की दृिष्ट से नहीं देख
मूल्य िशक्षा क्या है एवं महत्व, िशक्षा के
सकता। यह सवर्म ान्य, सावर्भ ौम तथा सावर्ज िनक सय दशर्न में भी ऐसे ही सत्य प्राप्त हों तो
उद्देश्य एवं लक्ष्य, उद्देश्य ों का अथर् | What
दाशर्ि नक िववादों का िनिश्चत जायेग ा। रेन े देक ातर् गिणत के सत्यों में स्पष्टता is Value Education in Hindi
(https://hindiguider.com/shiksha
:
(Clearness) तथा सुि भन्नता (Distinctness) पाते हैं। अतः स्पष्टता तथा सुि भन्नता की -ke-uddeshy-evan-lakshy/)
प्रािप्त के िलये वे गिणत की प्रणाली का अनुक रण करना चाहते हैं। िशक्षा के उद्देश्य तथा मूल्य , शैि क्षक लक्ष्य
और िशक्षण लक्ष्य में अन्तर | Concepts
रेन े देक ातर् बुि द्धवादी है और बौिद्धक ज्ञान में उनका अटू ट िवश्वास है। अपनी “प्रणाली
Related to Education in Hindi
िवमशर्’ में रेन े देक ातर् (https://hindiguider.com/shaiksh
(https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B0%E0%A5%87%E0%A4%A8 ik-lakshy-aur-shikshan-lakshy-
%E0%A5%87_%E0%A4%A6%E0%A5%87%E0%A4%95%E0%A4%BE mein-antar/)
%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%A4) ने बुि द्ध का िवश्लेष ण करते हुए दो
इन्ट्रानेट तथा इण्टरनेट क्या है? , इण्टरनेट
मुख्य िसद्धन्तों का प्रितपादन िकया है- की िवशेष ताएँ | Intranet and
Internet in Hindi
(क) बुि द्ध में यथाथर् ज्ञान प्राप्त करने की सामथ्यर् है।
(https://hindiguider.com/intaran
et-kya-hai-intaranet-kee-
(ख) बुि द्ध में यथाथर् अयथाथर् ज्ञान को पृथ क् करने की भी सामथ्यर् है। पहले का तात्पयर् है
visheshataen/)
िक बुि द्ध ही यथाथर् ज्ञान की जननी है तथा दू सरे का तात्पयर् है िक बुि द्ध, ज्ञान और भ्रम में भी
भेद कर सकती है। परन्तु यहाँ एक आवश्यक प्रश्न यह है िक ज्ञान का स्वरूप क्या है तथा मौड्यूल र एप्रोच क्या है? , मौड्यूल िनमार्ण
के पद, िवशेष ताएँ | Modular
इसको प्राप्त करने की िविध क्या है?
Approach in Hindi
देक ातर् बुि द्धवादी हैं, इनके अनुस ार बुि द्ध ही यथाथर् ज्ञान की जननी है। यह यथाथर् ज्ञान (https://hindiguider.com/maudyo
olar-eproch-kya-hai/)
सावर्भ ौम (Universal), सुि निश्चत (Certain) और अिनवायर् (Necessary) है। यही
ज्ञान का स्वरूप है। इस प्रकार के ज्ञान का आदशर् गिणत-शास्त्र है। इस प्रकार के यथाथर् उपग्रह/सैटेल ाइट सम्प्रेष ण क्या है? - SITE,
ज्ञान की प्रािप्त के दो साधन हैं। INSAT | Satellite Based
Education in Hindi
(https://hindiguider.com/saitelait
(क) सहज ज्ञान (Intuition) (ख) िनगमन (Deduction) इन दोनों साधनों पर पृथ क-
-aadhaarit-sampreshan-insat/)
पृथ क प्रकाश आवश्यक है।
व्यिक्तिनष्ठ अनुदे श न प्रणाली की
िक्रयािविध, लाभ, सीमाएँ | Mechanism
Of Personalized Instruction in
Hindi
(https://hindiguider.com/vyaktini
सहज ज्ञान या अन्तबोध (Intuition) shth-anudeshan-pranaalee-kee-
kriyaavidhi/)
यह स्वयंि सद्ध सद्यः ज्ञान है। यह पूण र्त ः सुस्प ष्ट तथा सुि भन्न होता है। यह इिन्द्रयों द्वारा प्राप्त
नहीं होता। प्रत्यक्ष, अनुम ान आिद के िलए इिन्द्रयों का आवश्यकता है। अतः अन्य सभी ज्ञान
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इिन्द्रय-सापेक्ष है। परन्तु सहज-ज्ञान तो सद्यः अनुभ ूि त है। इसे िकसी साधन या माध्यम की
आवश्यकता नहीं तथा इसके िलए िकसी प्रमाण की आवश्यकता नहीं। अन्य प्रमाणों में
प्रामािणकता का आधार तो सद्यः अनभूि त ही है।
(https://
यह मौिलक ज्ञान है। यह सबका आधार है, परन्तु यह स्वतः सम्भूत , स्वयंि सद्ध और सवार्ध ार hindigui मॉिरसन िशक्षण प्रितमान : बोध स्तर का
मौिलक ज्ञान है। आत्मज्ञान पूण र्त ः सुस्प ष्ट तथा सुि भन्न ज्ञान है। यह स्वतः सत्य है तथा अन्य der.com िशक्षण
(https://hindiguider.com/morisan-
ज्ञानों की अपेक्ष ा इतना सुस्प ष्ट तथा सुि भन्न है िक इसे िसद्ध करने की आवश्यकता नहीं। /morisa
n- shikshan-pratimaan-in-hindi/)
देक ातर् के अनुस ार अन्य ज्ञान तो आत्मज्ञान के समान सुस्प ष्ट तथा सुि भन्न है, मान्य है। अत: AUGUST 25, 2022 /
shiksha
आत्मज्ञान सवार्ध ार मौिलक सत्य है।
0 COMMENTS
(HTTPS://HINDIGUIDER.COM/MORISAN-
n- SHIKSHAN-PRATIMAAN-IN-HINDI/#RESPOND)
pratima
an-in-
hindi/)
िनगमन (Deduction)
यह अनुम ान जन्य ज्ञान है। अनुम ान में आधार वाक्य तथा िनगमन दोनों का सम्बन्ध
िदखलाकर आधार-वाक्य से िनगमन िनकाला जाता है। रेन े देक ातर् के अनुस ार आधार तो
सहज-ज्ञान है, परन्तु िनष्कषर् िनगमनात्मक ज्ञान है। िनष्कषर् की सत्यता आधार-वाक्यों पर
िनभर्र रहती है, परन्तु आधार-वाक्य तो स्वतः िसद्ध सत्य है। इससे स्पष्ट है िक िनगमनात्मक
ज्ञान साक्षात् नहीं परोक्ष ज्ञान है। देक ातर् के अनुस ार आत्मज्ञान तो सहज-ज्ञान है, क्योंिक यह
:
िबल्कु ल सुस्प ष्ट तथा सुि भन्न है। यह आधार वाक्य है। अन्य जो भी ज्ञान आत्म-ज्ञान के
समान सुस्प ष्ट तथा सुि भन्न हैं, आत्मा के समान मान्य हैं। इस प्रकार अन्य ज्ञान तो आत्म-
ज्ञान पर आधािरत हैं। अन्य ज्ञान िनगमनात्मक है।
(https://
पिरवार क्या हैं,अथर्,पिरभाषा व
hindigui
िवशेषताएं
See also कालर् माक्सर् की आिथर् क िवकास िसद्धांत | माक्सर् का अितिरक्त मूल्य का िसद्धांत der.com
(https://hindiguider.com/pariwar-
क्या है? /pariwar
kya-hai-arth-paribhasha-
-kya-
(https://hindiguider.com/marx-ka-atirikt-mulya-ka-sidhant/) visheshta/)
hai-
DECEMBER 17, 2021 /
arth- 0 COMMENTS
उपरोक्त िववरण से स्पष्ट है िक सहज ज्ञान या अन्तबोर्ध तथा िनगमन दोनों ही ज्ञान-प्रािप्त
(HTTPS://HINDIGUIDER.COM/PARIWAR-KYA-
paribha HAI-ARTH-PARIBHASHA-
VISHESHTA/#RESPOND)
के साधन हैं। प्रश्न यह है िक दोनों में अिधक प्रामािणक कौन है? इसमें सन्देह नहीं िक sha-
सहज-ज्ञान तो सवार्ध ार और स्वयंि सद्ध है, परन्तु िनगमनात्मक ज्ञान सहज-ज्ञान से कम vishesh
प्रामािणक नहीं। रेन े देक ातर् के अनुस ार िनष्कषर् की सत्यता तो आधार-वाक्यों पर आधािरत ta/)
है। यिद आधार वाक्य सत्य हैं तो िनष्कषर् भी सत्य होगा। अतः यिद सहज-ज्ञान सत्य है तो
िनगमन भी समानतः सत्य होगा। इस प्रकार दोनों समानतः सत्य, समानतः प्रामािणक हैं।
(https://
रेन े देक ातर् आत्म-ज्ञान को सहज बोध, स्वतः िसद्ध मानकर अन्य िवषयों का ज्ञान आत्म-ज्ञान
hindigui
पर आधािरत मानते हैं। अन्य िवषयों का ज्ञान भी आत्म-ज्ञान के समान ही सत्य है क्योंिक der.com वतर्मान भारतीय समाज में िशक्षा का प्रभाव,
िशक्षा हमारे जीवन के िलए क्यों महत्वपूणर्
अन्य िवषयों का ज्ञान आत्म-ज्ञान के समान सुस्प ष्ट तथा सुि भन्न है। इस प्रकार देक ातर् का /vartam
है?
िनष्कषर् है िक सहज-बोध तथा िनगमन दोनों ही ज्ञान के साधन या प्रणाली (Method) है। aan-
(https://hindiguider.com/vartamaan-
इन दोनों साधनो से ही हमें सिनिश्चत, सावर्भ ौम ज्ञान प्राप्त होता है। सुि निश्चत तथा bhaarat bhaarateey-samaaj-mein-shiksha-
सावर्भ ौम ज्ञान बौिद्धक ज्ञान है। अतः बौिद्धक ज्ञान की प्रािप्त अन्तबोर्ध और िनगमन से होती eey- ka-prabhaav/)
है। दू सरे शब्दों में, अन्तबोर्ध और िनगमन ही रेन े देक ातर् की प्रणाली के दो अंग हैं। इन्हीं दोनों samaaj- OCTOBER 2, 2022 /
0 COMMENTS
mein-
साधनों से हमें यथाथर् या सत्य ज्ञान की प्रािप्त होती है। (HTTPS://HINDIGUIDER.COM/VARTAMAAN-
BHAARATEEY-SAMAAJ-MEIN-SHIKSHA-KA-
shiksha PRABHAAV/#RESPOND)
(क) बचपन से ही हमारी बुि द्ध शरीर में िनमग्न है। हम बाल्यकाल से ही अनेक भ्रान्त kya-hai-
0 COMMENTS
(HTTPS://HINDIGUIDER.COM/VASTUNISHTH-
PAREEKSHAN-KYA-HAI-AUR-GUN-DOSH/#RESPOND)
धारणाओ ं और पूव ार्ग्र हों के िशकार है। इसी कारण हमें सुि भन्न तथा स्पष्ट बोध नहीं हो aur-
पाता। gun-
dosh/)
(ख) ज्ञान की अिभव्यिक्त शब्दों के माध्यम से होती है। शब्दों के आवरण में यथाथर् ज्ञान छु प
जाता है। अतः जब तक हम शब्दों से भाव को पृथ क नहीं करते, हमें सत्य का बोध नहीं हो
सकता। पाषाण काल नोट् स | प्रागैितहािसक काल
(https://
नोट् स
(ग) परम्परा अन्धिवश्वास और जनश्रुि त आिद के कारण भी सत्य ज्ञान नहीं हो पाता। hindigui
(https://hindiguider.com/paashaan-
der.com
kaal-nots-in-hindi/)
उपरोक्त तीनों कारण भ्रमात्मक ज्ञान के साधन हैं और यथाथर् बौिद्धक ज्ञान के बाधक हैं। इन /paasha JUNE 6, 2022 /
0 COMMENTS
बाधक तत्वों के कारण ही हम अन्तबोर्ध और िनगमनात्मक प्रणाली का प्रयोग नहीं कर पाते। an-kaal- (HTTPS://HINDIGUIDER.COM/PAASHAAN-KAAL-
NOTS-IN-HINDI/#RESPOND)
फलतः हमें सुस्प ष्ट और सुि भन्न बौिद्धक ज्ञान नहीं हो पाता। अतः हमें सबसे पहले अपनी nots-in-
hindi/)
बुि द्ध को इन भ्रमों से मुक्त करना चािहये। भ्रम के िनराकरण से िनधार्न्त ज्ञान होगा। परन्तु
भ्रम का िनराकरण कै से हो? बुि द्ध से भ्रम के िनराकरण के िलये हमें संश य का सहारा लेन ा
होगा।
:
संश य के सहारे ही हम सत्य और असत्य में भेद कर सकते हैं और सत्य को अपनाकर असत्य
का पिरत्याग कर सकते हैं। इस प्रकार भ्रान्त और िनधार्न्त में, सत्य और असत्य में भेद तो
संश य या सन्देह से सम्भव है। इसी कारण सत्य की प्रािप्त के िलए देक ातर् सन्देह का सहारा (https://
लेत े हैं। िनस्सन्देह की प्रािप्त के िलए सन्देह मागर् को अपनाते है। देक ातर् की प्रिसद्ध कृ ित hindigui
मेि डटेश न्स (Meditations) सवर्प्र थम संश यवाद से प्रारम्भ होती है। der.com मध्य युगीन प्रमुख दाशर्िनक-जॉन स्कॉट् स
/madhy एिरजेना,एन्सेल्म,थॉमस एिक्वनस
a- (https://hindiguider.com/madhya-
yugeen- yugeen-pramukh-darshanik-
pramuk scotus-erigena-anselm/)
h- FEBRUARY 6, 2022 /
0 COMMENTS
darshan (HTTPS://HINDIGUIDER.COM/MADHYA-YUGEEN-
PRAMUKH-DARSHANIK-SCOTUS-ERIGENA-
ik- ANSELM/#RESPOND)
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arth- DECEMBER 16, 2021 /
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PARIBHASHA-VISHESHTA/#RESPOND)
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vishesh
ta/)
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