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Car Insurance @ Just Rs. 2094*

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इितहास के नोस्ट् स
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Get Quote
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इितहास/History
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Car Insurance @ Just Rs. 2094*
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ग्रामीण समाजशास्त्र/Rural Sociology


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रेने दे कातर् की जीवनी,दाशर्िनक प्रणाली,िनगमन | दशर्न शास्त्र/Philosophy

Philosophic Method of Rene Descartes in (https://hindiguider.com/categor


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Table of Contents  e0%a5%8d%e0%a4%b0-
1. रेन े देक ातर् (Rene Descartes)[ सन् १५९६ से सन् १६५०] philosophy/) (61)
2. रेन े देक ातर् की दाशर्ि नक प्रणाली (Philosophic Method of Descartes) पिरवतर्न और िवकास/Change and
3. सहज ज्ञान या अन्तबोध (Intuition) Devlopment
4. िनगमन (Deduction) (https://hindiguider.com/categor
5. यथाथर् और अयथाथर् ज्ञान y/%e0%a4%aa%e0%a4%b0%e0%
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रेन े दे क ातर् (Rene Descartes)[ सन् १५९६ से सन् १६५०] %e0%a5%8d%e0%a4%a4%e0%a


:
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पाश्चात्य दशर्न /Western Philosophy


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Car Insurance @ Just Rs. %e0%a4%b6%e0%a4%be%e0%a


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Car Insurance Sta0ing @ Just Rs. 2094* philosophy/%e0%a4%aa%e0%a4
with TATA AIG.
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TATA AIG Car Insurance Get Quote
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रेन े देक ातर् (Rene Descartes) का जन्म फ्रान्स के तुर न े (Touraine) नामक नगर में
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१५९६ ई. में हुआ था। इनका जन्म मध्यमवगीर्य पिरवार में हुआ था। इनके िपता वकील western-philosophy/) (57)
(Lawyer) थे तथा अपने समय की राजनीित में भाग लेत े थे। रेन े देक ातर् के जन्म लेन े के
मशहूर हिस्तयाँ/ Famous Personalty
कु छ ही िदनों बाद इनकी माता का देह ावसान हो गया। माँ के अभाव के कारण ही रेन े
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देक ातर् बचपन में सम्भवतः अत्यन्त दुब र्ल रहे तथा अन्त तक इनका शरीर क्षीण ही रहा।
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िशक्षाशास्त्र/Education
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शैि क्षक तकनीकी/Educational


Technology
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बाल्यावस्था से ही रेन े देक ातर् अपने शरीर पर ध्यान न देक र के वल िचन्तन में लीन रहा करते
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थे| आठ वषर् की अवस्था में लाप्लेच े (LaPleche) में इनकी पाठशालीय िशक्षा प्रारम्भ हुई।
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यहाँ इन्होंने भौितकशास्त्र, गिणतशास्त्र, नीितशास्त्र, तकर् शास्त्र, तत्व-मीमांस ा आिद अनेक
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शास्त्रों का अध्ययन िकया। ये गिणत के बड़े प्रेम ी थे तथा बराबर गिणत के िसद्धान्तों के 4%be%e0%a4%b8%e0%a5%8d%
िवषय में सोचा करते थे। e0%a4%a4%e0%a5%8d%e0%a4
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इसके बाद रेन े देक ातर् पेि रस (Paris) गये। यहाँ इनकी िशक्षा बड़े शानदार ढंग से हुई। education/%e0%a4%b6%e0%a5
इनकी पेि रस की िशक्षा पर इनके िपता ने बहुत अिधक धन खचर् िकया तथा इनके । िलए %88%e0%a4%95%e0%a5%8d%e
सुख के सभी साधन इकट्ठे िकये गये। परन्तु रेन े देक ातर् स्वभावतः िचन्तनशील थे, अतः 0%a4%b7%e0%a4%bf%e0%a4%
सांस ािरक भोग-िवलास में अिधक लीन नहीं रहते थे। इनके मन में नये िवचारों की खोज 95-
करने की बड़ी आस्था थी। नये िवचार की खोज में ये जगह-जगह घूम ते रहे। सन् १६१७ से %e0%a4%a4%e0%a4%95%e0%a

सन् १६१९ तक ये हॉलैण्ड (Holland) में सैि नक सेव ा करते रहे। िस्वट् ज रलैण्ड , इटली आिद 4%a8%e0%a5%80%e0%a4%95%
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देश ों का इन्होंने भ्रमण िकया। इनकी अिधक कृ ितयाँ हॉलैण्ड में ही िलखी गयीं।
technology/) (107)

रेन े देक ातर् एकान्तिप्रय, मननशील व्यिक्त थे। ये अिधक लोगों से िमलना नहीं चाहते थे। इस समाज और िशक्षा
कारण इन्होंने कई बार अपना मकान बदला। देक ातर् का अिन्तम समय स्वीडेन (Sweden) (https://hindiguider.com/categor
में बीता। स्वीडेन की राजकु मारी िक्रस्टीना (Christina) रेन े देक ातर् के दाशर्ि नक िवचारों से y/%e0%a4%b6%e0%a4%bf%e0%
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:
बहुत प्रभािवत हुई थीं। स्वीडेन की जलवायु देक ातर् के स्वास्थ्य के िलए अच्छी नहीं थी। ये %e0%a4%be%e0%a4%b6%e0%a
यहाँ बहुत काल तक न रह सके । इनकी मृत्य ु शीताघात के कारण सन् १६५० ई. में स्वीडेन में 4%be%e0%a4%b8%e0%a5%8d%
e0%a4%a4%e0%a5%8d%e0%a4
हुई।
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रेन े दे क ातर् की प्रमुख कृ ितयाँ-
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(क) िडस्कोसर् ऑन मेथ ेंड (Discourse on Method, Published in 1937)
e0%a4%be/) (11)

(ख) दी मेि डटेश न्स (The Meditations, Published in 1944) समाजशास्त्र/Sociology


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(ग) दी िप्रिन्सपल्स ऑफ िफलॉसफी (The Principles of Philosophy, Published y/%e0%a4%b8%e0%a4%ae%e0%
in 1944) a4%be%e0%a4%9c%e0%a4%b6
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(घ) दी पेश न्स ऑफ दी सोल (The Passions of the Soul, Published in 1946)। 5%8d%e0%a4%a4%e0%a5%8d%
e0%a4%b0-sociology/) (45)
रेन े देक ातर् की कृ ितयों में “The Discourse on Method” का महत्व सवोर्पिर है। यथाथर्
िहन्दी कहानी/ Hindi Story
में यह पुस्त क वतर्म ान युग को देक ातर् की देन है। इस पुस्त क में ही देक ातर् ने अपनी दाशर्ि नक
(https://hindiguider.com/categor
पद्धित का िदग्दशर्न कराया है। यूर ोपीय दशर्न के इितहास में यह एक नयी िदशा है। आगे y/%e0%a4%b9%e0%a4%bf%e0%
हम इस पद्धित पर पूर ी तरह िवचार करेंग े। “The Meditations” में रेन े देक ातर् के दाशर्ि नक a4%a8%e0%a5%8d%e0%a4%a6
िवचारों का सार िनिहत है। “The Principles of Philosophy” में देक ातर् के दाशर्ि नक %e0%a5%80-
िवचारों की सुव्य विस्थत व्याख्या है तथा “The Passions of the Soul” में मनोवैज्ञ ािनक %e0%a4%95%e0%a4%b9%e0%a
और नैि तक समस्याओ ं की िववेच ना की गयी है। 4%be%e0%a4%a8%e0%a5%80-
hindi-story/) (3)

Tags
रेन े दे क ातर् की दाशर्ि नक प्रणाली (Philosophic Method of
B.ED
Descartes) (HTTPS://HINDIGUIDER.COM/TAG/BED/)

FAMOUS PERSONALITY
रेन े देक ातर् को आधुि नक दशर्न का नहीं, वरन आधुि नक दाशर्ि नक प्रणाली का िपता (Father (HTTPS://HINDIGUIDER.COM/TAG/FAMOUS-
PERSONALITY/)
of modern method) मानते हैं, क्योंिक देक ातर् ने सवर्प्र थम दशर्न के क्षेत्र में वैज्ञ ािनक
HINDIGUIDER.COM
प्रणाली (Scientific method) को जन्म िदया। देक ातर् के पूव र् का दशर्न अन्धिवश्वास और (HTTPS://HINDIGUIDER.COM/TAG/HINDIGUIDER-
COM/)
रूिढगत परम्पराओ ं से ग्रिसत है। मध्य युग का दशर्न धािमर् क आस्था से ओतप्रोत था। दशर्न
पर धमर् का आिधपत्य होने के कारण दाशर्ि नक सत्यों का सही मूल्य ांक न नहीं हो पाता था।
M.ED
(HTTPS://HINDIGUIDER.COM/TAG/MED/)

अतः दशर्न भी धमर् के समान आस्था और अन्धिवश्वास का िवषय बन गया था। जनता की RURAL SOCIOLOGY
िचन्तन शिक्त स्वतन्त्र न थी। लोग िकसी भी दाशर्ि नक सत्य को परम्परा की ओट में देख ने के (HTTPS://HINDIGUIDER.COM/TAG/RURAL-
SOCIOLOGY/)
िलए बाध्य िकये जाते थे।
SOCIOLOGY
(HTTPS://HINDIGUIDER.COM/TAG/SOCIOLOGY/)

रेन े देक ातर् ने स्वयं कहा है िक प्लेट ो और अरस्तू को पढ़कर हम दाशर्ि नक नहीं बन सकते,
SUPER TET
यिद हम स्वतन्त्र िनणर्य न कर सकें । इसी कारण दशर्न शास्त्र िववादों का अखाड़ा (Battle (HTTPS://HINDIGUIDER.COM/TAG/SUPERTET/)

ground of controversy) बन गया था। अतः देक ातर् की सबसे नदी समस्या थी दशर्न के इितहास
(HTTPS://HINDIGUIDER.COM/TAG/%E0%A4%87%E0%A4%A
क्षेत्र में िनिवर् वाद तथा िनस्सन्देह सत्य की प्रािप्त। परन्तु ऐसे सत्यों की प्रािप्त कै से हो? देक ातर्
कक्षा 4
अपने प्रारिम्भक काल से गिणत के प्रित बड़े आकष्ट थे। (HTTPS://HINDIGUIDER.COM/TAG/%E0%A4%95%E0%A4%9
4/)

उनके अनुस ार गिणत में िनश्चयात्मकता है। उसके िसद्धान्त िनिवर् वाद और िनस्सन्देह सत्य हैं। कहानी
(HTTPS://HINDIGUIDER.COM/TAG/%E0%A4%95%E0%A4%B
अतः देक ातर् की दृिष्ट में दशर्न की नींव भी गिणत के समान सुदृ ढ़ होनी चािहये िजससे दोषों
का िनराकरण हो तथा िनस्सन्देह सत्य की प्रािप्त हो। अपनी प्रिसद्ध कृ ित ‘दी िडस्कोसर् ऑन ग्रामीण समाजशास्त्र (HTTPS://HINDIGUIDER.COM/TAG/%E0%A4%
%E0%A4%B8%E0%A4%AE%E0%A4%BE%E0%A4%9C%E0%
मेथ ेंड ’ (The Discourse on Method) में देक ातर् अपनी प्रणाली के मुख्य चार अंग
प्रिसद्ध हिस्तयाँ
बतलाते हैं जो िक िनम्निलिखत हैं- (HTTPS://HINDIGUIDER.COM/TAG/%E0%A4%AA%E0%A5%8
%E0%A4%B9%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%

(अ) हम िकसी भी िवषय को तब तक सत्य न मानें जब तक परीक्षा न हो जाये। तात्पयर् यह समाजशास्त्र


(HTTPS://HINDIGUIDER.COM/TAG/%E0%A4%B8%E0%A4%A
है िक पूण र्त : परीिक्षत सत्य ही यथाथर् सत्य है। सत्य के िनश्चय होने पर ही सन्देह का
िनराकरण सम्भव है।
:
(ब) िकसी भी िवषय की सत्य की परीक्षा करने में हमें उस िवषय को उसके अंग -प्रत्यंग ों में
Recent Posts
िवभक्त कर देन ा चािहये। ऐसा करने पर ही िकसी समस्या का समाधान सम्भव है।
राष्ट्रीय िशक्षा नीित 1986 की प्रमुख
(स) हमें अपनी समस्या के सरल भाग से प्रारम्भ कर क्रमश: जिटल की ओर अग्रसर होना िवशेष ताओ ं का वणर्न कीिजए।
चािहये। िकसी समस्या का क्रमश: अध्ययन करने से िवचार में सामञ्जस्य रहता है। (https://hindiguider.com/feature
s-of-education-policy-1986/)
(द) िकसी िनष्कषर् पर पहुँ च ने के पहले हमें पूण र्त ः िवश्वस्त होना चािहये िक समस्या का राष्ट्रीय िशक्षा नीित क्या है? | राष्ट्रीय
कोई अंग छू टा तो नहीं। िजससे हमारे िनष्कषर् में िकसी प्रकार की त्रुि ट न उत्पन्न हो उपरोक्त िशक्षा नीित की आवश्यकता | National
चारों िनयम देक ातर् के दशर्न में अत्यन्त महत्वपूण र् माने जाते हैं। ये चारों िनयम देक ातर् के Education Policy In Hindi
िनणार्य क िनयम (Guiding principles) माने जाते हैं। इन्हीं िनयमों के आधार पर देक ातर् (https://hindiguider.com/raashtr
दाशर्ि नक सत्यों की छानबीन प्रारम्भ करते हैं। िकसी भी परीक्षा के िलए हमें सवर्प्र थम eey-shiksha-neeti-kya-hai/)
मापदण्ड की आवश्यकता है। राष्ट्रीय िशक्षा नीित 1986 क्या है तथा
िनष्कषर् | National Education
Policy 1986
See also डेि वड ह्यूम का द्रव्य-िवचार तथा आत्मा का खण्डन | David Hume's Matter in
(https://hindiguider.com/raashtr
Hindi
eey-shiksha-neeti-1986-kya-hai/)
(https://hindiguider.com/david-hume-ka-dravya-vichar/)
वतर्म ान पिरप्रेक्ष्य में भारत में िशक्षा के
उद्देश्य
रेन े देक ातर् के दशर्न में उपरोक्त चार िनयम ही मापदण्ड का कायर् करते हैं। इन्हीं िनयमों के (https://hindiguider.com/vartam
सहारे हमें दशर्न शास्त्र में िनस्सन्देह तथा िनिवर् वाद सत्य की प्रािप्त हो सकती है तथा दशर्न के aan-pariprekshy-mein-bhaarat-
क्षेत्र में िववाद और अराजकता का अन्त हो सकता है। परीक्षा के िबना सत्य के वल mein-shiksha-ke-uddeshy/)
अन्धिवश्वास या भ्रम है। रेन े देक ातर् स्वयं कहते हैं िक हम स्वतन्त्र िनणर्य के िबना के वल प्लेट ो िवश्विवद्यालय िशक्षा आयोग, माध्यिमक
और अरस्तू के तकर् का अध्ययन कर दाशर्ि नक नहीं बन सकते। िशक्षा आयोग तथा िशक्षा आयोग (1964-
66)
रेन े देक ातर् दाशर्ि नक समस्याओ ं की अपेक्ष ा दाशर्ि नक प्रणाली पर सवर्प्र थम िवचार करते हैं। (https://hindiguider.com/vishvav
प्रणाली िवमशर्’ (Discourse on the Method) में देक ातर् दाशर्ि नक प्रणाली की िवशद idyaalay-shiksha-aayog-aur-

िववेच ना करते हैं। इसी कारण प्रणाली िवमशर् देक ातर् की प्रमुख कृ ित। मानी जाती है। यह maadhyamik-shiksha-aayog/)

छ: भागों में िवभक्त है। अपनी इस प्रिसद्ध कृ ित में देक ातर् गिणत से िवशेष प्रभािवत मालूम वतर्म ान भारतीय समाज में िशक्षा का
पड़ते हैं। उनके अनुस ार गिणत की प्रणाली ही यथाथर् प्रणाली है। दशर्न शास्त्र में भी इसी प्रभाव, िशक्षा हमारे जीवन के िलए क्यों
प्रणाली का प्रयोग होना चािहये। गिणत के िनष्कषर् सवर्म ान्य होते हैं। परन्तु दशर्न शास्त्र के महत्वपूण र् है?
नहीं। (https://hindiguider.com/vartam
aan-bhaarateey-samaaj-mein-
इसका एकमात्र कारण यही है िक दशर्न की नींव गिणत के समान सुदृ ढ नहीं। देक ातर् shiksha-ka-prabhaav/)
प्रणाली िवमशर्’ में दशर्न के प्रित बड़ी गहरी िचन्ता व्यक्त करते हुए कहते हैं िक ‘मैं दशर्न के वैय िक्तक एवं सामािजक उद्देश्य क्या है? |
सम्बन्ध में इससे अिधक कु छ नहीं कहूँ ग ा। बहुत िदनों से तथा बड़े- बड़े िवद्वानों ने इस पर Coordination of Personal and
िवचारिवमशर् िकये हैं, तो भी इस पर कोई भी ऐसा िवचार नहीं जो िववाद के परे हो तथा Social Goals in Hindi
कोई भी ऐसा िवषय नहीं जो सन्देह से रिहत हो। संक्ष ेप में, हम कह सकते हैं िक दशर्न (https://hindiguider.com/vaiyakti
िववादों का अखाड़ा है। इन िववादों का कारण के वल दाशर्ि नक प्रणाली में दोष है। यिद हम k-evan-saamaajik-uddeshy-kya-
hai/)
गिणत की प्रणाली को दशर्न में अपनाएँ तो दशर्न में भी गिणत के समान िनष्कषर् प्राप्त होंगे।
इससे स्पष्टतः प्रतीत होता है िक देक ातर् गिणत से िवशेष प्रभािवत थे। िशक्षा के सामािजक उद्देश्य क्या है? |
Social Purpose of Education in
रेन े देक ातर् की दाशर्ि नक प्रणाली को गिणतीय प्रणाली (Mathematical method) भी Hindi
कहते हैं, क्योंिक रेन े देक ातर् ने अपनी इस प्रणाली में गिणत का अनुक रण करने का प्रयास (https://hindiguider.com/shiksha
िकया है। देक ातर् के अनुस ार दाशर्ि नक िनष्कषर् गिणत के िनष्कषर् के समान सन्देह रिहत तथा -ka-saamaajik-uddeshy-kya-hai/)
सवर्म ान्य तभी हो सकते हैं जब दशर्न में गिणत की प्रणाली को अपनाया जाय। देक ातर् ने िशक्षा के उद्देश्य - सावर्भ ौिमक उद्देश्य ,
स्वयं अपने प्रणाली-िवमशर् में बतलाया है िक वे तकर् पूण ,र् सन्देह -रिहत िनष्कषर् के कारण ही िविशष्ट उद्देश्य | Aims of Education
गिणत से िवशेष प्रभािवत हैं। रेन े देक ातर् का , िक गिणत की प्रणाली के िबना सन्देह रिहत, in Hindi
सवर्म ान्य सत्यों की प्रािप्त सकती। (https://hindiguider.com/shiksha
-ke-uddeshyon-ka-vargeekaran/)
गिणत में हमें िनिश्चत िनष्कषोर्ं की प्रािप्त होती हैं। २+२=४ को कोई की दृिष्ट से नहीं देख
मूल्य िशक्षा क्या है एवं महत्व, िशक्षा के
सकता। यह सवर्म ान्य, सावर्भ ौम तथा सावर्ज िनक सय दशर्न में भी ऐसे ही सत्य प्राप्त हों तो
उद्देश्य एवं लक्ष्य, उद्देश्य ों का अथर् | What
दाशर्ि नक िववादों का िनिश्चत जायेग ा। रेन े देक ातर् गिणत के सत्यों में स्पष्टता is Value Education in Hindi
(https://hindiguider.com/shiksha
:
(Clearness) तथा सुि भन्नता (Distinctness) पाते हैं। अतः स्पष्टता तथा सुि भन्नता की -ke-uddeshy-evan-lakshy/)
प्रािप्त के िलये वे गिणत की प्रणाली का अनुक रण करना चाहते हैं। िशक्षा के उद्देश्य तथा मूल्य , शैि क्षक लक्ष्य
और िशक्षण लक्ष्य में अन्तर | Concepts
रेन े देक ातर् बुि द्धवादी है और बौिद्धक ज्ञान में उनका अटू ट िवश्वास है। अपनी “प्रणाली
Related to Education in Hindi
िवमशर्’ में रेन े देक ातर् (https://hindiguider.com/shaiksh
(https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B0%E0%A5%87%E0%A4%A8 ik-lakshy-aur-shikshan-lakshy-

%E0%A5%87_%E0%A4%A6%E0%A5%87%E0%A4%95%E0%A4%BE mein-antar/)
%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%A4) ने बुि द्ध का िवश्लेष ण करते हुए दो
इन्ट्रानेट तथा इण्टरनेट क्या है? , इण्टरनेट
मुख्य िसद्धन्तों का प्रितपादन िकया है- की िवशेष ताएँ | Intranet and
Internet in Hindi
(क) बुि द्ध में यथाथर् ज्ञान प्राप्त करने की सामथ्यर् है।
(https://hindiguider.com/intaran
et-kya-hai-intaranet-kee-
(ख) बुि द्ध में यथाथर् अयथाथर् ज्ञान को पृथ क् करने की भी सामथ्यर् है। पहले का तात्पयर् है
visheshataen/)
िक बुि द्ध ही यथाथर् ज्ञान की जननी है तथा दू सरे का तात्पयर् है िक बुि द्ध, ज्ञान और भ्रम में भी
भेद कर सकती है। परन्तु यहाँ एक आवश्यक प्रश्न यह है िक ज्ञान का स्वरूप क्या है तथा मौड्यूल र एप्रोच क्या है? , मौड्यूल िनमार्ण
के पद, िवशेष ताएँ | Modular
इसको प्राप्त करने की िविध क्या है?
Approach in Hindi

देक ातर् बुि द्धवादी हैं, इनके अनुस ार बुि द्ध ही यथाथर् ज्ञान की जननी है। यह यथाथर् ज्ञान (https://hindiguider.com/maudyo
olar-eproch-kya-hai/)
सावर्भ ौम (Universal), सुि निश्चत (Certain) और अिनवायर् (Necessary) है। यही
ज्ञान का स्वरूप है। इस प्रकार के ज्ञान का आदशर् गिणत-शास्त्र है। इस प्रकार के यथाथर् उपग्रह/सैटेल ाइट सम्प्रेष ण क्या है? - SITE,
ज्ञान की प्रािप्त के दो साधन हैं। INSAT | Satellite Based
Education in Hindi
(https://hindiguider.com/saitelait
(क) सहज ज्ञान (Intuition) (ख) िनगमन (Deduction) इन दोनों साधनों पर पृथ क-
-aadhaarit-sampreshan-insat/)
पृथ क प्रकाश आवश्यक है।
व्यिक्तिनष्ठ अनुदे श न प्रणाली की
िक्रयािविध, लाभ, सीमाएँ | Mechanism
Of Personalized Instruction in
Hindi
(https://hindiguider.com/vyaktini
सहज ज्ञान या अन्तबोध (Intuition) shth-anudeshan-pranaalee-kee-
kriyaavidhi/)
यह स्वयंि सद्ध सद्यः ज्ञान है। यह पूण र्त ः सुस्प ष्ट तथा सुि भन्न होता है। यह इिन्द्रयों द्वारा प्राप्त
नहीं होता। प्रत्यक्ष, अनुम ान आिद के िलए इिन्द्रयों का आवश्यकता है। अतः अन्य सभी ज्ञान
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इिन्द्रय-सापेक्ष है। परन्तु सहज-ज्ञान तो सद्यः अनुभ ूि त है। इसे िकसी साधन या माध्यम की
आवश्यकता नहीं तथा इसके िलए िकसी प्रमाण की आवश्यकता नहीं। अन्य प्रमाणों में
प्रामािणकता का आधार तो सद्यः अनभूि त ही है।
(https://
यह मौिलक ज्ञान है। यह सबका आधार है, परन्तु यह स्वतः सम्भूत , स्वयंि सद्ध और सवार्ध ार hindigui मॉिरसन िशक्षण प्रितमान : बोध स्तर का
मौिलक ज्ञान है। आत्मज्ञान पूण र्त ः सुस्प ष्ट तथा सुि भन्न ज्ञान है। यह स्वतः सत्य है तथा अन्य der.com िशक्षण
(https://hindiguider.com/morisan-
ज्ञानों की अपेक्ष ा इतना सुस्प ष्ट तथा सुि भन्न है िक इसे िसद्ध करने की आवश्यकता नहीं। /morisa
n- shikshan-pratimaan-in-hindi/)
देक ातर् के अनुस ार अन्य ज्ञान तो आत्मज्ञान के समान सुस्प ष्ट तथा सुि भन्न है, मान्य है। अत: AUGUST 25, 2022 /
shiksha
आत्मज्ञान सवार्ध ार मौिलक सत्य है।
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(HTTPS://HINDIGUIDER.COM/MORISAN-
n- SHIKSHAN-PRATIMAAN-IN-HINDI/#RESPOND)

pratima
an-in-
hindi/)

िनगमन (Deduction)

यह अनुम ान जन्य ज्ञान है। अनुम ान में आधार वाक्य तथा िनगमन दोनों का सम्बन्ध
िदखलाकर आधार-वाक्य से िनगमन िनकाला जाता है। रेन े देक ातर् के अनुस ार आधार तो
सहज-ज्ञान है, परन्तु िनष्कषर् िनगमनात्मक ज्ञान है। िनष्कषर् की सत्यता आधार-वाक्यों पर
िनभर्र रहती है, परन्तु आधार-वाक्य तो स्वतः िसद्ध सत्य है। इससे स्पष्ट है िक िनगमनात्मक
ज्ञान साक्षात् नहीं परोक्ष ज्ञान है। देक ातर् के अनुस ार आत्मज्ञान तो सहज-ज्ञान है, क्योंिक यह
:
िबल्कु ल सुस्प ष्ट तथा सुि भन्न है। यह आधार वाक्य है। अन्य जो भी ज्ञान आत्म-ज्ञान के
समान सुस्प ष्ट तथा सुि भन्न हैं, आत्मा के समान मान्य हैं। इस प्रकार अन्य ज्ञान तो आत्म-
ज्ञान पर आधािरत हैं। अन्य ज्ञान िनगमनात्मक है।
(https://
पिरवार क्या हैं,अथर्,पिरभाषा व
hindigui
िवशेषताएं
See also कालर् माक्सर् की आिथर् क िवकास िसद्धांत | माक्सर् का अितिरक्त मूल्य का िसद्धांत der.com
(https://hindiguider.com/pariwar-
क्या है? /pariwar
kya-hai-arth-paribhasha-
-kya-
(https://hindiguider.com/marx-ka-atirikt-mulya-ka-sidhant/) visheshta/)
hai-
DECEMBER 17, 2021 /
arth- 0 COMMENTS

उपरोक्त िववरण से स्पष्ट है िक सहज ज्ञान या अन्तबोर्ध तथा िनगमन दोनों ही ज्ञान-प्रािप्त
(HTTPS://HINDIGUIDER.COM/PARIWAR-KYA-
paribha HAI-ARTH-PARIBHASHA-
VISHESHTA/#RESPOND)
के साधन हैं। प्रश्न यह है िक दोनों में अिधक प्रामािणक कौन है? इसमें सन्देह नहीं िक sha-
सहज-ज्ञान तो सवार्ध ार और स्वयंि सद्ध है, परन्तु िनगमनात्मक ज्ञान सहज-ज्ञान से कम vishesh
प्रामािणक नहीं। रेन े देक ातर् के अनुस ार िनष्कषर् की सत्यता तो आधार-वाक्यों पर आधािरत ta/)

है। यिद आधार वाक्य सत्य हैं तो िनष्कषर् भी सत्य होगा। अतः यिद सहज-ज्ञान सत्य है तो
िनगमन भी समानतः सत्य होगा। इस प्रकार दोनों समानतः सत्य, समानतः प्रामािणक हैं।
(https://
रेन े देक ातर् आत्म-ज्ञान को सहज बोध, स्वतः िसद्ध मानकर अन्य िवषयों का ज्ञान आत्म-ज्ञान
hindigui
पर आधािरत मानते हैं। अन्य िवषयों का ज्ञान भी आत्म-ज्ञान के समान ही सत्य है क्योंिक der.com वतर्मान भारतीय समाज में िशक्षा का प्रभाव,
िशक्षा हमारे जीवन के िलए क्यों महत्वपूणर्
अन्य िवषयों का ज्ञान आत्म-ज्ञान के समान सुस्प ष्ट तथा सुि भन्न है। इस प्रकार देक ातर् का /vartam
है?
िनष्कषर् है िक सहज-बोध तथा िनगमन दोनों ही ज्ञान के साधन या प्रणाली (Method) है। aan-
(https://hindiguider.com/vartamaan-
इन दोनों साधनो से ही हमें सिनिश्चत, सावर्भ ौम ज्ञान प्राप्त होता है। सुि निश्चत तथा bhaarat bhaarateey-samaaj-mein-shiksha-
सावर्भ ौम ज्ञान बौिद्धक ज्ञान है। अतः बौिद्धक ज्ञान की प्रािप्त अन्तबोर्ध और िनगमन से होती eey- ka-prabhaav/)
है। दू सरे शब्दों में, अन्तबोर्ध और िनगमन ही रेन े देक ातर् की प्रणाली के दो अंग हैं। इन्हीं दोनों samaaj- OCTOBER 2, 2022 /
0 COMMENTS
mein-
साधनों से हमें यथाथर् या सत्य ज्ञान की प्रािप्त होती है। (HTTPS://HINDIGUIDER.COM/VARTAMAAN-
BHAARATEEY-SAMAAJ-MEIN-SHIKSHA-KA-
shiksha PRABHAAV/#RESPOND)

यथाथर् और अयथाथर् ज्ञान


-ka-
prabhaa
v/)
रेन े देक ातर् के अनुस ार सावर्भ ौम और सुि निश्चत ज्ञान ही सत्य या यथाथर् का िजसकी प्रािप्त
हमें अन्तबोर्ध तथा िनगमन से होती है। परन्तु अन्तबोर्ध और िनस के अितिरक्त भी ज्ञान के
साधन हैं, जैस े प्रत्यक्ष, कल्पना, स्मरण आिद। इन साधनों से भी हमें ज्ञान प्राप्त होता है,
परन्तु िमिश्रत ज्ञान, अन्तबोर्ध और िनगमन अितिरक्त जो भी ज्ञान हमें प्राप्त होता है वह (https://
असत्य या भ्रमात्मक ज्ञान है। प्रश्न गर है िक भ्रमात्मक ज्ञान का कारण क्या है? रेन े देक ात hindigui वस्तुिनष्ठ परीक्षण क्या है?,िवशेषताएँ एवं
der.com सीमाएँ | Objective Type Test in Hindi
के अनुस ार बौिद्धक ज्ञान ही यथाथर् ज्ञान है िजसकी प्रािप्त हमें अन्तबोर्ध और िनगमन से होती
/vastuni (https://hindiguider.com/vastunishth
है। परन्तु हम शरीरधारी भी हैं। शरीर के कारण बुि द्ध का यथाथर् स्वरूप िवकृ त हो जाता है।
shth- -pareekshan-kya-hai-aur-gun-
बुि द्ध का स्वरूप िवकृ त होने पर हमें भ्रम होता है। इस भ्रम की उत्पित्त के कई कारण हैं, जैस -े pareeks
dosh/)
han- SEPTEMBER 18, 2022 /

(क) बचपन से ही हमारी बुि द्ध शरीर में िनमग्न है। हम बाल्यकाल से ही अनेक भ्रान्त kya-hai-
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(HTTPS://HINDIGUIDER.COM/VASTUNISHTH-
PAREEKSHAN-KYA-HAI-AUR-GUN-DOSH/#RESPOND)
धारणाओ ं और पूव ार्ग्र हों के िशकार है। इसी कारण हमें सुि भन्न तथा स्पष्ट बोध नहीं हो aur-
पाता। gun-
dosh/)

(ख) ज्ञान की अिभव्यिक्त शब्दों के माध्यम से होती है। शब्दों के आवरण में यथाथर् ज्ञान छु प
जाता है। अतः जब तक हम शब्दों से भाव को पृथ क नहीं करते, हमें सत्य का बोध नहीं हो
सकता। पाषाण काल नोट् स | प्रागैितहािसक काल
(https://
नोट् स
(ग) परम्परा अन्धिवश्वास और जनश्रुि त आिद के कारण भी सत्य ज्ञान नहीं हो पाता। hindigui
(https://hindiguider.com/paashaan-
der.com
kaal-nots-in-hindi/)
उपरोक्त तीनों कारण भ्रमात्मक ज्ञान के साधन हैं और यथाथर् बौिद्धक ज्ञान के बाधक हैं। इन /paasha JUNE 6, 2022 /
0 COMMENTS
बाधक तत्वों के कारण ही हम अन्तबोर्ध और िनगमनात्मक प्रणाली का प्रयोग नहीं कर पाते। an-kaal- (HTTPS://HINDIGUIDER.COM/PAASHAAN-KAAL-
NOTS-IN-HINDI/#RESPOND)
फलतः हमें सुस्प ष्ट और सुि भन्न बौिद्धक ज्ञान नहीं हो पाता। अतः हमें सबसे पहले अपनी nots-in-
hindi/)
बुि द्ध को इन भ्रमों से मुक्त करना चािहये। भ्रम के िनराकरण से िनधार्न्त ज्ञान होगा। परन्तु
भ्रम का िनराकरण कै से हो? बुि द्ध से भ्रम के िनराकरण के िलये हमें संश य का सहारा लेन ा
होगा।
:
संश य के सहारे ही हम सत्य और असत्य में भेद कर सकते हैं और सत्य को अपनाकर असत्य
का पिरत्याग कर सकते हैं। इस प्रकार भ्रान्त और िनधार्न्त में, सत्य और असत्य में भेद तो
संश य या सन्देह से सम्भव है। इसी कारण सत्य की प्रािप्त के िलए देक ातर् सन्देह का सहारा (https://
लेत े हैं। िनस्सन्देह की प्रािप्त के िलए सन्देह मागर् को अपनाते है। देक ातर् की प्रिसद्ध कृ ित hindigui
मेि डटेश न्स (Meditations) सवर्प्र थम संश यवाद से प्रारम्भ होती है। der.com मध्य युगीन प्रमुख दाशर्िनक-जॉन स्कॉट् स
/madhy एिरजेना,एन्सेल्म,थॉमस एिक्वनस
a- (https://hindiguider.com/madhya-
yugeen- yugeen-pramukh-darshanik-
pramuk scotus-erigena-anselm/)
h- FEBRUARY 6, 2022 /
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hai/)  February 7, 2022

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 February 1, 2022

hindigui िसद्धान्त तथा माक्सर्वाद का


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MARCH 7, 2022 /
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हमारे ब्ला◌ॅ ग पर स्वागत करता है।
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