You are on page 1of 15

किसान आंदोलन का

गुटका
न स े ज ड़
ु े ह र सवाल जवाब
 किसान आ
ंदोल
वि र ोध ी क ान ून का पूरा सच
 हर किसान ष्प्र च ार क ा भंडाफोड़
र दरब ार ी द ु
 सरकारी औ

लेखक : योगेंद्र यादव


1
लेखक परिचय: योगेंद्र यादव ‘संयुक्त किसान
मोर्चा’ की सात सदस्यीय राष्ट्रीय समन्वय मोदी जी की किसान से क्या बात हुई?
समिति के सदस्य। वर्ष 2015 जय किसान
आंदोलन के संस्थापक। पिछ्ले छह वर्ष से एक दिन प्रधानमंत्री नरें द्र मोदी जी को एक किसान मिल गया।
किसान आंदोलन में सक्रिय: 2015 में भूमि वह बोले: आप “मन की बात” सुनते हैं?
अधिग्रहण अध्यादे श के विरूद्ध ट्रैक्टर मार्च, 2015 में दे शव्यापी किसान मुंहफट था, बोला: आप बड़े आदमी हो। आपके मन की
सूखे पर संवेदना यात्रा, 2015-16 में सूखे के दौरान किसान के बात तो हर महीने सुनता हूं। आज एक किसान के मन की बात
अधिकार के लिए सुप्रीम कोर्ट में मुकदमा, 2016 में मराठवाड़ा भी तो सुन लो। दोनो में बात शुरू हो गई।
और बुंदेलखंड में जल हल पदयात्रा, 2017 में मंदसौर गोली
कांड के बाद अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति मोदी जी: आपको पता है, हमारी सरकार किसानों के लिए
की स्थापना में भूमिका, 2017 में दे शभर में किसान मुक्ति यात्रा, ऐतिहासिक कदम उठा रही है?
2018-19 में “किसान संसद” के आयोजन से जुड़ाव, 2018- किसान: अब क्या बंद करने जा रहे हो जी? बुरा न मानना,
19 में एमएसपी सत्याग्रह और हरियाणा में सरसों और बाजरा आप जब-जब किसी बात को ऐतिहासिक बोलते हो तो मुझे
खरीद आंदोलन। डर लगता है। पहले ऐतिहासिक नोटबंदी की, फिर कोरोना में
ऐतिहासिक दे शबंदी, अब किसानो का क्या बंद करोगे?

सहयोग राशि: 10 रुपये (या आप जितना दे सकें ) मोदी जी: मैं तो उन तीन ऐतिहासिक कानूनों की बात कर रहा
इस पुस्तिका का कोई कॉपीराइट नहीं है। किसान आंदोलन था जो सरकार किसानों के लिए लेकर आई है। यह किसानों
के वास्ते इसको छापने और बांटने के लिए किसी इजाजत की के लिए हमारी सौगात है।
जरूरत नहीं है। किसान: सुनो जी, सौगात या उपहार वो होती है, जो किसी

1
ने मांगी हो, या उसकी ज़रुरत हो, या उसके किसी काम की थी। कांग्रेस के राज में भी यही योजना बनी थी। कांग्रेस के
हो। आप ही बताओ। दे श में लॉकडाउन था। किसान कह रहा मैनिफेस्टो …
था मुझे फसल का पूरा दाम चाहिए, नुकसान का मुआवजा किसान: कांग्रेस ने क्या किया, क्या नहीं किया, मुझे इससे
चाहिए, सस्ता डीज़ल चाहिए। वो तो आपने दिया नहीं। उसके क्या मतलब जी? कांग्रेस से तंग आकर ही तो मैंने आपको वोट
बदले पकड़ा दिए ये तीन कानून। आपके ये तीन कानून क्या दिया था। आप ये बताओ कि अगर ये तीन कानून किसानो के
कभी भी किसानों या उनके नेताओं ने मांगे थे? इन कानूनों को लिए सौगात है तो दे श का एक भी किसान संगठन इन तीन
लाने से पहले आपने किसी भी किसान संगठन से राय-बात कानूनों के समर्थन में क्यों नहीं खड़ा?
की थी?
मोदी जी: वो तो विरोधी हैं। विरोध करना उनकी आदत है।
मोदी जी: अरे भाई, सभी किसान कहते थे कि मंडी की व्यवस्था किसान: विरोधियों की बात छोड़ दो! आप के पचास साल
में सुधार की जरुरत है। मैंने सुधार कर दिया। आप अब भी खुश पुराने सहयोगी अकाली दल ने इन तीन कानूनों के खिलाफ
नहीं हो? आप का साथ क्यों छोड़ दिया? आपका अपना संगठन भारतीय
किसान: मेरा सवाल न टालो आप। बीमारी तो थी। इलाज तो किसान संघ आज भी खुलकर इन कानूनों का समर्थन क्यों
चाहिए था। आज भी दवा चाहिए। लेकिन आप तो जहर का नहीं कर रहा?
इंजेक्शन दे रहे हो। मैं पूछ रहा था कि ये तीन कानून वाला
इंजेक्शन क्या कभी किसी किसान संगठन ने माँगा था आपसे? मोदी जी: सब राजनीति है! मैं कह रहा हूँ न, आज किसान
को समझ आये या न आये, इन सुधारों से किसान का फायदा
मोदी जी: हर सुधार के लिए मांग का इंतजार नहीं किया जाता। होगा।
पिछले बीस साल में कई एक्सपर्ट कमेटी ने यह सिफारिश की किसान: वाह जी वाह! मतलब किसान तो बच्चा है जिसे अपने

2 3
भले बुरे की समझ नहीं। और आपके जिन अफसरों ने एक दिन के चुनाव में पॉलिटिक्स होती है। अगर आप मंडी व्यवस्था
भी खेती नहीं की वो समझदार हैं! अच्छा, ऐसा करो। आप मुझे सुधारो तो मेरे जैसे सब किसान आपके साथ हैं। लेकिन आप
ही समझा दो कि इन कानूनों से किसान का क्या भला होगा। तो सुधारने की बजाय इसे बंद करने का इंतजाम कर रहे हो।
आज तो मंडी में जाकर मैं शोर भी मचा लेता हूँ, अपनी बात
मोदी जी: इससे आपको आजादी मिल जाएगी। जहां चाहो सुना लेता हूँ। प्राइवेट मंडी में मेरी कौन सुनेगा? शॉपिंग मॉल
अपनी फसल बेच सकते हो। की तरह उनका गार्ड ही मुझे निकाल दे गा।
किसान: यह आजादी तो मुझे पहले भी थी। गांव में बेचूं, मंडी
में बेचूं, कहीं और ले जाकर बेचूं, ना बेचूं, फेंकूं। कहने को तो मोदी जी: ये किसने कहा है की मंडी बंद कर रहे हैं? अब तक
सारी आज़ादी थी, लेकिन मैं अपनी मंडी से दूर कहां जाऊं? कोई मंडी बंद हुई है क्या? हम तो बस एक और विकल्प दे रहे
कैसे जाऊं? दूसरा राज्य छोड़ो, अपनी फसल बेचने के लिए हैं। कोई जबरदस्ती थोड़े ही है।
दूसरे जिले में जाना मेरे बस की बात नहीं है। पिछले साल सब्जी किसान: इतना भोला भी नहीं हूँ जी मैं। सरकारी मंडी उसी
लगाई थी, रे ट इतना गिर गया कि सारी फसल सड़क के किनारे तरह बंद होगी जैसे जिओ के मोबाइल ने बाकी कंपनियों को
फेंकनी पड़ी। ऐसी आजादी का मैं क्या करूं? बंद कर दिया। जब अंबानी ने जिओ का मोबाइल शुरू किया,
तब कहा था जितना मर्जी कॉल करो, जहां मर्जी करो, हमेशा
मोदी जी: इसीलिए तो हमने व्यवस्था की है कि अब सरकारी फ्री रहेगा। सब लोग जिओ के साथ हो लिए, बाकी मोबाइल
मंडी में फसल बेचना जरूरी नहीं है। अब प्राइवेट मंडी भी खुल की कंपनियां ठप्प हो गई। फिर जिओ कंपनी ने अपने रे ट बढ़ा
जाएगी। आपका जहां मन है वहां अपनी फसल बेचो। दिए। यही खेल प्राइवेट मंडी में होगा। पहले एक-दो सीजन
किसान: सरकारी मंडी से मैं कोई खुश नहीं हूँ। मंडी कर्मचारी किसान को सौ-पचास रुपया ज्यादा दे दें गे। इतने में सरकारी
पैसा लेता है। कई आढ़ती किसान का शोषण करते हैं। मंडी मंडी बैठ जाएगी, आढ़ती वहां अपनी दुकान बंद कर दें गे। फिर

4 5
प्राइवेट मंडी वाले पांच सौ रुपया कम भी दें गे तब भी मजबूरी में मुख्यमंत्री थे तब 2011 में उन्होंने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को
किसान को वहीं जाकर अपनी फसल बेचनी पड़ेगी।मुझे पता चिठ्ठी लिख कर यह मांग की थी कि एमएसपी की कानूनी
है सरकारी मंडी एक साल में बंद नहीं होगी, उसे दो-तीन साल गारं टी दे दी जाय। अब तो आप खुद ही प्रधानमंत्री हो, मोदी
लगेंगे। पिछले कुछ महीनों में मंडियों की आमदनी कम हो गयी जी। किसी दूसरे की छोड़ो, आप अपनी ही बात मान लो ना!
है। आप बताओ, जब मंडियां बैठ जाएँगी तो सरकारी खरीद
कहाँ होगी? प्राइवेट मंडी में मुझे सरकारी रे ट कैसे मिलेगा? मोदी जी: भाई आप तो पुरानी बातें ले कर बैठ गए। आगे दे खो,
इन तीनो कानूनों से आपकी आमदनी बढ़ेगी।
मोदी जी: अरे भाई, मैंने बार-बार बोला है कि एमएसपी थी, किसान: ये अच्छी याद दिलाई आपने। कुछ साल पहले आपने
है और रहेगी। न्यूनतम समर्थन मूल्य की व्यवस्था बनी रहेगी। कहा था न कि किसान की आय छह साल में दुगनी कर दें गे?
आप को मुझ पर भरोसा नहीं है? ठीक-ठीक तो याद नहीं है, लेकिन वो घोषणा किये पांच साल
किसान: भरोसा तो बहुत किया था जी। भरोसा किया था कि तो हो गए ना? कितनी बढ़ी किसान की आमदनी? चलो आप
नोटबंदी से भ्रष्टाचार खत्म हो जायेगा। भरोसा तो ये भी किया था कोरोना वाले समय को छोड़ दो, इससे पहले जो चार साल हो
कि 21 दिन में कोरोना भाग जायेगा। थाली भी बजाई थी। भरोसा गए थे तब तक कितनी आय बढ़ी थी? टीवी पर सुना था कि
अब भी करने को तैयार हूँ, बस इस बार आप लिख कर दे दो। चार साल में पूरे दे श के किसान की आय दोगुना या डयोढ़ा तो
जैसे फटाफट तीन कानून बना दिए हैं, वैसे ही एक कानून बना छोड़ो, रुपये में 10 पैसा भी नहीं बढ़ी है। मेरी आय तो एक पैसा
दो कि सरकार जो न्यूनतम समर्थन मूल्य या एमएसपी घोषित भी नहीं बढ़ी। फिर आप कहोगे पुरानी बात लेकर बैठ गया।
करती है, कम से कम उतना रे ट किसान को गारं टी से मिलेगा। कुछ नई बात बताओ आप।
अगर कम मिला तो सरकार भरपाई करे गी। मुझे तो नहीं पता
लेकिन मास्टर जी बता रहे थे कि जब मोदी जी गुजरात के

6 7
मोदी जी: और कुछ हो न हो, बिचौलिए से तो आपका पीछा किसान: आप तो खुद व्यापारी रहे हो मोदी जी। आप ही
छुट जाएगा ना? बताओ, व्यापारी ने दुकान खोली है या धर्मशाला? आप कहते
किसान: वो कैसे होगा जी? अगर अंबानी या अडाणी प्राइवेट हो तो मान लेता हूं कि ज्यादा स्टॉक रखकर वह ज्यादा मुनाफा
मंडी खोलेंगे तो वो कौन सा खुद आकर किसान की फसल कमायेगा और चाहे तो किसान को ज्यादा रे ट दे सकता है।
खरीदें गे? वो भी बीच में एजेंट को लगाएंगे। एक की बजाय दो लेकिन वो मुझे ज्यादा रे ट क्यों दे गा? वह अपना गोदाम भरे गा।
बिचौलिए हो जाएंगे एक कोई छोटा एजेंट और उसके ऊपर जब मेरा फसल बेचने का टाइम आएगा उससे पहले कुछ माल
अंबानी या अडाणी। दोनों अपना-अपना हिस्सा लेंगे। फर्क बाजार में उतार दे गा ताकि रे ट गिर जाए। और जब सब किसान
इतना ही है कि आज आढ़ती जितना कमीशन लेता है, तब फसल बेच लेंगे तब जमाखोरी कर लेगा ताकि भाव चढ़ जाए।
दोनों बिचौलिए मिलाकर उसका दुगना कमीशन काट लेंगे। मेरे लिए फसल का रे ट गिर जायेगा, लेकिन गरीब खरीददार
आज मैं आढ़ती के तख्त पर जाकर बैठ जाता हूं, जरुरत में को मंहगा पड़ेगा। किसान और मजदूर दोनों को ही मार पड़ेगी,
उससे पैसा पकड़ लेता हूं। उसकी जगह कंपनी हुई तो सारा बड़ा व्यापारी मालामाल हो जायेगा। वैसे भी मंडी में जब किसान
टाइम फोन पकड़कर बैठा रहूंगा, सुनता रहूंगा कि अभी सारी को रे ट दे ने की बात आती है तो सब व्यापारी मिलीभगत कर
लाइनें व्यस्त हैं। मास्टर जी बता रहे थे कि नए कानून में आपने लेते हैं और बोली चढ़ने नहीं दे ते।
किसान और व्यापारी के इलावा “थर्ड पार्टी” को जगह दी है। ये
थर्ड पार्टी बिचौलिया नहीं तो और क्या है? मोदी जी: ऐसा न हो उसके लिए हमने कॉन्ट्रैक्ट की खेती की
व्यवस्था भी कर दी है। फसल बुवाई से पहले ही आप कंपनी
मोदी जी: हमने यह भी व्यवस्था कर दी है कि व्यापारी चाहे तो से कॉन्ट्रैक्ट कर लो कि कितने भाव में कितनी फसल बेचोगे।
अपने गोदाम में जितना मर्जी माल रख सकता है। इससे वह किसान: मैंने तो कभी ऐसा कॉन्ट्रैक्ट नहीं किया लेकिन उसकी
आपको बेहतर रे ट दे पाएगा। कहानी सुनी है। पंजाब में पेप्सी कंपनी ने आलू चिप्स के लिए

8 9
आलू के किसानों से 6 रुपये किलो के भाव से कॉन्ट्रैक्ट किया और पांच साल की सजा का कानून भी बना दिया है। मुझे पता
था। पहले साल मंडी में दाम 8 रुपये किलो चल रहा था तो लगा की किसान की सस्ती बिजली बंद करने का कानून भी
कंपनी ने कांट्रेक्ट दिखाकर किसानों से 6 रुपये किलो में आप बना चुके हो।
खरीदा। अगले साल जब मंडी में भाव गिरकर 4 रुपये किलो
हो गया तो कंपनी मुकर गयी। बोली तुम्हारे आलू की क्वालिटी मोदी जी: हो सकता है इन कानूनों में कोई कमी रह गयी हो।
ठीक नहीं है। किसान बेचारा कंपनी के वकीलों से कहां जाकर आप बताओ इनमे क्या बदलाव चाहिए? हम संशोधन के लिए
लड़ता? अब आप ही बताओ, इतने लम्बा चौड़े कॉन्ट्रैक्ट मैं तैयार हैं। तीनों कानून रद्द ही हों, यह जिद क्यों?
क्या समझूंगा? वकीलों की फीस कौन दे गा? आपके कॉन्ट्रैक्ट किसान: अच्छा मजाक करते हो आप। मुझे चाहिए थी पैंट, आपने
से तो हमारा मुँहज़बानी ठे का और बंटाई का तरीका ही अच्छा है। बना दी सलवार, और अब कहते हो इसमें कांट-छांट करवा लो।
संशोधन तो तब होता है जब कानून की मूल भावना सही हो, कोई
मोदी जी: आपको सारी ग़लतियाँ हमारी ही नज़र आती है? छोटी-मोटी कसर रह गयी हो। ये तीनों कानून तो किसान को जो
पिछली सरकारों के राज में क्या किसान खुश थे? चाहिए उसके उलट हैं। इनमे संशोधन से कैसे काम चलेगा? वैसे भी
किसान: अगर किसान तब खुश होते तो आज आप इस कुर्सी अगर ये मेरे लिए सौगात थी और मुझे पसंद नहीं है तो वापिस क्यों
पर बैठे न होते। किसान दुखी थे इसीलिये तो आपकी बातों पर नहीं कर सकता मैं? सौगात में सौदेबाजी की क्या जरूरत? कुछ भी
भरोसा किया।पिछली सरकारों के निकम्मेपन के चलते हट्टा- संशोधन करवा लो बस कानून रद्द नहीं हों, यह जिद क्यों?
कट्टा किसान हस्पताल में पहुंच गया। आपकी सरकार ने उसे
आईसीयू तक पंहुचा दिया। अब आप उसकी ऑक्सीजन हटाने मोदी जी: हमने तो उसे भी छोड़ दिया। हमने तो कह दिया कि डेढ़
पर तुले हो। अब भी मन नहीं भरा आपका। पराली जलाने को साल के लिए तीनों कानूनों पर रोक लगा देते हैं। इसमें भी आप
रोकने के लिए आपने किसानो पर एक करोड़ रुपये के जुर्माने नहीं मान रहे?

10 11
किसान: अगर रोक लगाने को तैयार हो तो मतलब कुछ है। पहले नोटबंदी, फिर दे शबन्दी और अब किसान की
गड़बड़ है न? अगर गड़बड़ है तो सिर्फ रोक क्यों लगा घेरा बंदी।
रहे हो, रद्द क्यों नहीं कर रहे? डेढ़ साल का ऐसा क्या दे खो मोदी जी, ये जो मंडी हैं न, ये समझो एक छप्पर है
मुहूर्त निकला है? अगर आपको लगता है कि डेढ़ साल मेरे सर पर। छप्पर टूटा है, इसमें पानी टपकता है, इसकी
में किसान आपकी बात मान जायेंगे तो अभी रद्द कर दो, मरम्मत की जरूरत है। लेकिन आप तो छप्पर ही हटा
डेढ़ साल बाद किसानो से पूछकर नया कानून ले आना। रहे हो। और कहते हो इससे मुझे खुला आकाश दिखाई
इसे आप अपनी नाक का मामला क्यों बना रहे हो? दे गा, रात को चाँद-तारे दिखाई दें गे! बिना छप्पर के
जीने की आज़ादी मुझे नहीं चाहिए ...
मोदी जी: मैं तुम्हे कैसे समझाऊं? ये नेता लोग तुम्हे
बहका रहे हैं, डरा रहे हैं, गुमराह कर रहे हैं। किसान की नज़र आकाश से नीचे उतरी तो दे खा कि
किसान: सच बोलूं प्रधानमंत्री जी? वो नहीं, आप और मोदी जी झोला उठाकर चले जा रहे थे।
आपके दरबारी बहका रहे हो इतने महीनों से। कभी वो भी उठ खड़ा हुआ, किसान आंदोलन में शामिल होने
कहते हो मैं अन्नदाता हूँ, कभी मुझे आतंकवादी बताते के लिए।
हो। कभी कहते हो हमारा आंदोलन पवित्र है, कभी हमें
दे शद्रोही बताते हो। कहते हो बातचीत के दरवाजे खुले
हैं, लेकिन किसानों के खिलाफ केस बनाते हो, रास्ते में
कील और तार बिछाते हो।आपका मन खुला नहीं है।
मैंने सुना था बड़े नेता बंद रास्तों को खोलते हैं। पता नहीं
क्यों आपको चलती हुई चीजों को बंद करने का शौक

12 13
पूरा सच:
किसान विरोधी कानूनों का पूरा सच  व्यापारी तो ज्यादा कमाएगा, लेकिन किसान को बेहतर भाव नहीं
दे गा।
जमाखोरी छूट कानून  असीमित स्टॉक रखने वाला व्यापारी बाजार से खेलेगा। फसल आने
से पहले भाव गिरा देगा और उपभोक्ता को बेचने से पहले दाम बढ़ा दे गा।
सरकारी नाम: आवश्यक वस्तु (संशोधन) अधिनियम 2020  वेयरहाउस और कोल्ड स्टोर में पैसा लगाने से से सरकार हाथ खींच
असली काम: जमाखोरी और कालाबाजारी पर रोक/टोक बंद लेगी। सुविधा वहां बनेगी जहां कंपनी को मुनाफा मिलेगा, वहां नहीं जहां
फायदा: अडाणी, बड़े स्टॉकिस्ट, थोक व्यापारी व एक्सपोर्ट कंपनी को किसान को जरूरत है। छोटे किसान को सबसे ज्यादा नुकसान होगा।
नुकसान: छोटे किसान को, गरीब उपभोक्ता को  नए नियमों के तहत सरकार को स्टॉक और बाजार की सूचना ही
कानून का ब्यौरा: इस कानून से 1955 के जमाखोरी रोकने वाले कानून नहीं होगी। जरूरत पड़ने पर भी सरकार दखल नहीं दे पाएगी।
में संशोधन किया गया है। पहले जरूरत पड़ने पर सरकार खाद्य पदार्थों  जब स्टॉक की लिमिट हटाने से किसान को फायदा हो सकता है तब
जैसे अनाज, दाल, तेल, बीज, आलू, प्याज आदि को एक हद से ज्यादा नहीं हटाई जाएगी। इस साल आलू और प्याज में यही हुआ। लेकिन जब
जमा स्टॉक इकट्ठा करने पर पाबंदी लगा सकती थी। अब यह पाबंदी व्यापारी को फायदा होगा तब लिमिट हटा ली जाएगी।
लगभग हटा दी गई है। सिर्फ प्राकृतिक आपदा आदि में पाबंदी लग  एक्सपोर्ट की छूट के नाम पर अडाणी जैसे व्यापारियों पर कभी भी
सकती है, या अगर अनाज का दाम डेढ़ गुना और सब्जी दुगना हो जाए। लिमिट नहीं लग सकेगी।
एक्सपोर्ट करने वालों पर कोई पाबंदी नहीं लग सकती।  यह कानून आने से पहले ही अडाणी एग्रो लॉजिस्टिक कंपनी
सरकारी तर्क : ने बड़े-बड़े गोदाम (साइलो) बनाने शुरू कर दिए थे। लॉकडाउन के
 बड़ी कंपनियां अब खुलकर वेयरहाउस और कोल्ड स्टोर बनाएगी समय कंपनी को हरियाणा सरकार ने सी एल यू की अनुमति दी थी
 खाद्य पदार्थों का भंडारण बढ़ेगा, बर्बादी घटेगी असली खेल यही है।
 व्यापारी ज्यादा कमाएगा तो किसानों को भी बेहतर भाव दे गा

14 15
मंडी बंदी कानून कमीशन कम होगा, भ्रष्टाचार कम होगा।

पूरा सच:
सरकारी नाम: कृषक उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और  संविधान के अनुसार केंद्र सरकार कृषि व कृषि मंडियों पर कानून बना
सरलीकरण) अधिनियम 2020 ही नहीं सकती, यह अधिकार सिर्फ़ राज्य सरकारों के पास है।
असली काम: सरकारी मंडी को धीरे धीरे ख़त्म करना, ताकि सरकारी  व्यवहार में किसान को फसल जहां चाहे वहां बेचने की आजादी हमेशा
खरीद के सरदर्द से बचा जा सके रही है। आज भी 70% फसल सरकारी मंडी के बाहर बिकती है।
फायदा: प्राइवेट मंडी के मालिकों और उनके कमीशन एजेंट को  किसान को मंडी से आजादी नहीं चाहिए। उसे जितनी आज हैं उनसे
नुक़सान: सरकारी मंडी पर निर्भर किसानों और आढ़तियों को ज्यादा व बेहतर मंडियां चाहिए जिनकी निगरानी अच्छे तरीके से हो।
कानून का ब्यौरा: अब तक किसान की फसल को व्यापारी सिर्फ सरकारी  पहले एक-दो साल प्राइवेट मंडी में सरकारी मंडी से थोड़ा अधिक
मंडी (एपीएमसी) में ही खरीद-बेच सकता था। अब सरकारी मंडी के बाहर दाम दिया जाएगा। इससे सरकारी मंडी बैठ जाएगी। फिर प्राइवेट मंडी के
कहीं भी व्यापार हो सकेगा। प्राइवेट मंडी भी खुल सकेगी। दोनो मंडियों पर व्यापारी किसान को मनमाने तरीके से लूटग ें ।े
दो अलग तरह के नियम कानून लागू होंगे। सरकारी मंडी के बाहर होने वाले  बिहार में 2006 में सरकारी मंडिया खत्म कर दी गई थी। आज बिहार के
व्यापार पर न तो कोई फीस या टैक्स लगेगा, न ही रजिस्ट्रेशन या रिकॉर्डिंग किसान को धान, मक्का, गेहूं का दाम बाकी देश से बहुत कम मिलता है।
होगी, न ही सरकार उसकी निगरानी करेगी। देशभर के किसान को गेह,ूं धान, मक्का का जो भाव मिलता है बिहार के
सरकारी तर्क : किसान को उससे बहुत कम मिलता है।
 किसान को पहली बार फसल जहां मर्जी बेचने की आजादी होगी।  सरकारी मंडी के बाहर एक नहीं दो बिचौलिए होंगे। प्राइवेट मंडी
 किसान को एक से ज्यादा विकल्प मिलेगा जिससे वह बाजार में बेहतर खोलने वाली कंपनी भी अपने एजेंट नियुक्त करेगी। वह भी अपना कमीशन
भाव वसूल कर सकेगा। लेंग।े ऊपर से प्राइवेट मंडी का मालिक भी अपना कट लेगा।
 किसान बिचौलियों के चंगल ु से मुक्त हो जाएगा।  सरकारी मंडी की फीस कम होने से सरकार के पास ग्रामीण इलाकों में
 प्राइवेट मंडी का मुकाबला होने से सरकारी मंडी में फीस घटेगी, सड़क और अन्य सुविधाएं बनाने के लिए पैसे नहीं बचेंग।े

16 17
बंधआ
ु किसान कानून पूरा सच:
 कॉन्ट्क्ट
रै की कानूनी बारीकियां और पेंच समझना किसान के बस की
सरकारी नाम: कृषि (सशक्तिकरण और संरक्षण) कीमत अश्वासन और बात नहीं है।
कृषि सेवा करार अधिनियम, 2020  कंपनी के पास ज्यादा सूचना होगी, बेहतर वकील होंगे, ज्यादा ताकत
असली काम: बड़ी कंपनियों को सीलिंग के कानून से बचाकर बड़े पैमाने होगी। इसलिए कॉन्ट्क्ट रै में किसान के ठगे जाने की संभावना है।अगर
पर खेती का रास्ता साफ़ करना कम्पनी को नुक़सान होता दिखा तो वो कॉंट्क्ट रै से हाथ झाड़ लेगी।
फायदा: रिलायंस जैसी बड़ी कंपनियों और वकीलों को  पंजाब के किसानों के साथ यही हुआ। जब मंडी में आलू के
नुकसान: अनपढ़ या भोले किसानों को दाम कॉन्ट्क्ट रै से ज्यादा मिल रहे थे तब तो कंपनी ने कॉन्ट्क्ट रै वाले रेट
कानून का ब्यौरा: किसान और कंपनी पांच साल तक का कॉन्ट्क्ट रै कर पर खरीदा। लेकिन जब दाम कम हो गए तो कंपनी ने आलू की क्वालिटी
सकेंगे। कॉन्ट्रैक्ट में पहले से लिख दिया जाएगा कि कंपनी किसान की खराब होने का बहाना लगाकर हाथ झाड़ लिए।
कौन सी फसल, किस क्वालिटी की, कितने दाम पर खरीदेगी। अगर दोनों  कॉन्ट्क्ट रै में किसान को न्न यू तम मूल्य की गारंटी नहीं है।
में विवाद होता है तो फैसला एसडीएम या कलेक्टर करेंग।े  कम्पनी को अधिकार है की वो किसान से अपना पूरा निवेश
वसूल,े चाहे किसान को अपना घर और ज़मीन बेचनी पड।़े आमतौर पर
सरकारी तर्क : कांट्क्ट
रे महंगी फसलों का होता है जिसमें कम्पनी के मुकरने पर किसान
 किसान कॉन्ट्रैक्ट तभी करेगा अगर उसे अपना फायदा दिखाई देगा। को भारी नुकसान होता है, जमीन बेचने की नौबत आ जाती है।
 किसान और कंपनी दोनों भाव के उतार-चढ़ाव के जोखिम से बचेंग।े  सहकारी खेती को धक्का लगेगा, क्योंकि इस कानून में किसानों के
 कॉन्ट्रैक्ट के लिए किसान इकट्ठे होकर समूह बना लेंग।े इससे सहकारी संगठन और कंपनी को एक बराबर कर दिया है।
खेती बढ़ेगी।  कॉन्ट्क्टरै के बहाने चोर दरवाजे से कंपनियां खेती की जमीन पर धीरे-
 सरकार कानून में संशोधन कर देगी ताकि कम्पनी ज़मीन पर लोन ना धीरे कब्जा शुरू कर सकती हैं।
ले सके, किसान की कुर्की ना हो सके।

18 19
अपराधी किसान कानून बिजली झटका कानून
सरकारी नाम: राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र और इससे जुड़े क्षेत्रों में वायु सरकारी नाम: विद्युत अधिनियम (संशोधन) विधेयक, 2020
गुणवत्ता प्रबंधन के लिए आयोग अध्यादे श, 2020 असली काम: बिजली के वितरण का धंधा प्राइवेट कंपनियों को सौंपना
असली काम: वायु प्रदुषण रोकने में सरकारों के निकम्मेपन से जनता फायदा: बिजली वितरण के बिज़नेस में घुसने को बेताब प्राइवेट
का ध्यान हटा कर किसान पर दोष डाल दे ना कंपनियों को
फायदा: दिल्ली के अमीरों का, प्रदूषण कमीशन इंस्पेक्टरों का नुकसान: सस्ती बिजली पाने वाले किसान और शहरी गरीब को,
नुकसान: दिल्ली, हरियाणा, पंजाब, राजस्थान ,उत्तर प्रदेश के किसानों का सरकारी बिजली कंपनियों को
कानून का ब्यौरा: दिल्ली और एनसीआर इलाके में वायु प्रदूषण को कानून का ब्यौरा: बिजली के बिजनेस में सबसे ज्यादा मुनाफा वितरण
रोकने के लिए केंद्र सरकार ने एक कमीशन बनाया है। यह कमीशन यानी ग्राहकों तक बिजली पहुंचाने के काम में है। यह प्रस्तावित कानून
दिल्ली,हरियाणा, पंजाब, राजस्थान और उत्तर प्रदे श में कहीं भी प्रदूषण अभी संसद में पेश नहीं हुआ है, लेकिन अगर यह कानून बन गया तो
कम करने के लिए कोई भी आदे श दे सकेगा। आदे श न मानने पर बिजली वितरण में प्राइवेट कंपनियों के घुसने का रास्ता साफ़ हो
एक करोड़ रुपए तक का जुर्माना और पांच साल तक की सजा होगी। जायेगा। साथ में उन्हें गरीबों, किसानों और गाँव को सस्ती बिजली दे ने
अपील सिर्फ एनजीटी में होगी। के झंझट से मुक्ति मिल जाएगी। राज्य सरकारों पर पाबन्दी लग जाएगी
कि वो अपनी जेब से भी सस्ती या मुफ्त बिजली नहीं दे सकेंगी।
सरकारी तर्क : दिल्ली और आसपास के इलाकों की हवा में भयानक
प्रदूषण को कम करने के लिए सख्ती से किसानों द्वारा पराली जलाना सरकारी तर्क : सरकारी बिजली बोर्ड और कम्पनियो के घाटे और
रोकना पड़ेगा। बिजली की चोरी को रोकने के लिए यह जरूरी है।
पूरा सच: वायु प्रदूषण के सबसे बड़े स्रोत उद्योग, वाहन व भवन निर्माण पूरा सच: यह राज्य सरकार का फैसला होना चाहिए, केंद्र सरकार
हैं, पराली का धुआं नहीं। इतनी कड़ी सजा दे ने की ताकत कमीशन को का नहीं। इससे किसान का खर्चा और बढ़ेगा। गाँव-कस्बे और गरीब
देने से दलाल व इंस्पेक्टर किसान को हमेशा परे शान करें गे। बस्तियों में बिजली की सप्लाई खराब होगी।

20 21
एमएसपी गारंटी कानून सरकार क्या करेगी? खराब क्वालिटी को कैसे खरीदेगी?
 किसान को मुआवजा देने के लिएजितना पैसा चाहिए वह सरकार के
प्रस्तावित नाम: कृषि उत्पादों का न्यूनतम समर्थन मूल्य गारंटी विधेयक, पास नहीं है। सरकार का सारा बजट इसी में खर्च हो जाएगा।
2021  न्न यू तम रेट फिक्स कर देने से बाजार बिगड़ जाएगा। मांग-आपूर्ति का
असली काम: किसान को कानूनी गारंटी देना कि उसे हर फसल का कम संतल
ु न नहीं बचेगा।
से कम एमएसपी के बराबर दाम मिलेगा।
पूरा सच:
फायदा: किसान को, देश की अर्थव्यवस्था को
 सरकार को सभी फसलें पूरी खरीदना जरूरी नहीं है। इस कानून में
नुकसान: किसान को लूटने वालों को
किसान को फसल का रेट दिलाने के कई और तरीके सुझाए गए हैं।
कानून का ब्यौरा:
जैसे बाजार में सीमित दखल(मार्केट इंटरवेंशन), आयात-निर्यात नीति में
पिछले 54 साल से केंद्र सरकार स्थाई तौर पर कुछ फसलों का न्न यू तम
बदलाव, भाव कम मिलते पर भरपाई और एमएसपी से नीचे बोली पर
समर्थन मूल्य घोषित कर देती है, लेकिन लेकिन इसकी कोई व्यवस्था नहीं
कानूनी रोक।
करती कि किसान को कम से कम उतना मूल्य मिले। इसलिए किसान
 अगर सरकार सचमुच चाहे तो बजट में पैसा निकल आएगा वर्तमान
चाहते हैं कि ऐसा कानून हो कि एक स्वतंत्र और कानूनी दर्जा प्राप्त कमीशन
एमएसपी दिलाने के लिए 50 हजार करोड़ रु खर्च होगा। स्वामीनाथन
बने जो हर फसल की एमएसपी को स्वामीनाथन कमीशन के अनुसार
कमीशन के हिसाब से संपर्ण
ू लागत की डेढ़ गुना एमएसपी दिलाने के लिए
संपर्ण
ू लागत का डेढ़ गुना पर तय करे। सरकार द्वारा घोषित एमएसपी
लगभग तीन लाख करोड़ रुपए खर्च होगा। सरकार का बजट 34 लाख
किसान को सचमुच मिले, गारंटी से मिले, इसके लिए सरकारी खरीद में
करोड़ रुपए है।
दाल, तिलहन और मोटे अनाज को भी शामिल किया जाए। सरकार देशी
 अगर बाजार व्यवस्था में उपभोक्ताओं के लिए एमआरपी फिक्स हो
और विदेशी बाजार में दखल देकर किसान को एमएसपी दिलाए। फसल
एमएसपी से नीचे बिकने पर सरकार किसान की भरपाई करे। मंडी में बोली सकती है, मजदूर के लिए न्नयू तम मजदूरी तय हो सकती है, तो किसान के
एमएसपी से ही शुरू हो। लिए एमएसपी क्यों नहीं?
 सरकारी खरीद वर्तमान FAQ(फेयर एंड एवरेज क्वालिटी) मानक केंद्र
सरकारी तर्क :
के अनुसार होगी। खराब क्वालिटी होने पर रेट में कटौती होती है।
 सारी फसलें खरीदना सरकार के लिए संभव नहीं है। इस भंडार का
22 23
किसान कितने भाव की गारं टी चाहते हैं:

वर्तमान स्वामीनाथन वर्तमान स्वामीनाथन


फसल एमएसपी एमएसपी फसल एमएसपी एमएसपी देखो मोदी जी की अक्लमंदी
(रुपये) (रुपये) (रुपये) (रुपये) पहले नोटबंदी, फिर देशबन्दी
गेहूं 1975 2201 मक्का 1850 2409 अब किसान की घेराबंदी
धान 1868 2501 अरहर 6000 8196
बाजार अडाणी-अम्बानी का, किसान की मंडी बंद
सरसों 4650 5205 मूंग 7196 9434
मंडी नहीं रहेगी तो फसल की सरकारी खरीद बंद
चना 5100 6018 उड़द 6000 8355 गेहूं धान की खरीद बंद तो राशन की दुकान बंद
जौ 1600 2106 मूंगफली 5275 6768 जमाखोरी और कालाबाजारी पर हर रोकटोक बंद
ज्वार 2620 3590 सूरजमुखी 5885 7619 कंपनियों से कॉन्ट्क्ट
रै में किसान की किस्मत बंद
खेती के लिए फ्री या सस्ती बिजली मिलनी बंद
रागी 3295 4145 सोयाबीन 3880 5270
पराली के बहाने किसान पांच साल जेल में बंद
मसूर 5100 6306 कपास 5515 7403

बाजरा 2150 2333 तिल 6855 9323 किसान ने भी कर ली मुठ्ठी बंद


जात-बिरादरी और पार्टीबाजी बंद
नोट: “वर्तमान एमएसपी” का मतलब भारत सरकार द्वारा पिछले सीजन (खरीफ किसान विरोधी नेताओं का वोट बंद
2020-21 और रबी 2021-22) में घोषित न्यूनतम समर्थन मूल्य। “स्वामीनाथन ऐसी सरकारों का बोरिया-बिस्तर बंद
एमएसपी” का मतलब स्वामीनाथन कमीशन द्वारा सुझाए गए फार्मूले यानी संपूर्ण
लागत का डेढ़ गुना (C2+50%) के हिसाब से एमएसपी कितनी होनी चाहिए।
स्रोत: CACP, भारत सरकार, की नवीनतम खरीफ और रबी की रपट।

24
जय किसान आंदोलन
‘जय किसान आंदोलन’ अखिल भारतीय गैर चुनावी
किसान संगठन है। वर्ष 2015 में स्थापित यह संगठन
फिलहाल हरियाणा, पंजाब, राजस्थान, उत्तर प्रदे श,
पश्चिम बंगाल, ओडिशा और कर्नाटका में सक्रिय है
और अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति
(AIKSCC) का घटक संगठन है।

जुड़ने के लिए
मिस्ड कॉल करें
844 889 3011
स्वराज अभियान प्रकाशन
JaiKisanAndolan @_jaikisan jkanational@gmail.com

हेल्पलाइन : 7206855400
मुद्रण: सहारा प्रिं टर, दिल्ली

You might also like