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तिनका कबहुँ ना निंदिये, जो पाँव तले होय ।

कबहुँ उड़ आँखो पड़े, पीड गहरी होय ॥

श्रम से ही सब कु छ होत है, बिन श्रम मिले कु छ नाही |


सीधे ऊँ गली घी जमो, कबसू निकसे नाही ||

मन उन्मना न तोलिये, शब्द के मोल न तोल |


मुर्ख लोग न जान्सी, आपा खोया बोल ||

पहले शब्द पहचानिये, पीछे कीजे मोल |


पारखी परखे रतन को, शब्द का मोल ना तोल ||

शब्द बराबर धन नहीं, जो कोई जाने बोल |


हीरा तो दामो मिले, शब्द मोल न टोल ||

पढ़ा सुना सीखा सभी, मिटी ना संशय शूल |


कहे कबीर कै सो कहू, यह सब दुःख का मूल ||

हद में चले सो मानव, बेहद चले सो साध |


हद बेहद दोनों तजे, ताको बता अगाध ||

हद में चले सो मानव, बेहद चले सो साध |


हद बेहद दोनों तजे, ताको बता अगाध ||

नींद निशानी मौत की, ऊठ कबीरा जाग |


और रसायन छोड़ के , नाम रसायन लाग ||

लूट सके तो लूट ले, राम नाम की लूट |


पाछे पछतायेगा, जब प्राण जायेंगे छू ट ||

जैसी भक्ति करे सभी, वैसे पूजा होये |


भय पारस  है जीव को, निर्भय होय ना कोये ||

कबीरा यह संसार है, जैसा सेमल फू ल |


दिन दस  के व्यवहार में, झूठे रंग न भूल ||
भक्ति महल बहु ऊँ च है, दूर ही से दर्शाय |
जो कोई जन भक्ति करे, शोभा बरनी ना जाय ||
दास कहावन कठिन है , में दासन का दास |
अब तो ऐसा होए रह,ू पाँ व तले की घास ||
कहता हँ ू कही जात हँ ,ू कहत बजाये ढोल |
स्वसा ख़ाली जात है , तीन लोक का मोल ||
सतगु रु मिला तो सब मिले , ना तो मिला न कोय |
मात पिता सूत बान्धवा, यह तो घर घर होय ||
कबीरा सीप समुं दर की, खरा जल नाही ले |
पानी पिए स्वाति का, शोभा सागर दे ||
करता रहा सो क्यों रहा, अब करी क्यों पछताए |
बोये पे ड़ बबूल का, अमु आ कहा से पाए ||
कस्तूरी कुंडल बसे , मृ ग ढूँढत बन माहि |
ज्यो घट घट राम है , दुनिया दे खे नाही |
नै ना अं तर आव तू, नै न झापी तोही ले ऊ |
न में दे खू और को, न तोही दे खन दे ऊ ||
प्रेमी ढूँढत में फिरू, प्रेमी मिलिया न कोय |
प्रेमी को प्रेमी मिले , तब विष अमृ त होय ||
राम रसायन प्रेम रस, पीवत अधिक रसाल |
कबीर पीवत दुर्लभ है , मां गे सीस कलाल ||
साधू शब्द समुं दर है , जा में रतन भराय |
मं द भाग मु ट्ठी भरे , कंकर हाथ लगाय ||

साधू भूखा भाव का, धन का भूखा नाही |


धन का भूखा जो फिरे , सो तो साधू नाही ||
भे ष दे ख ना पु जिये , पूछ लीजिये ज्ञान |
बिना कसौटी होंत नाही, कंचन की पहचान ||
बूँद समानी है समुं दर में , जानत है सब कोई |
समुं दर समाना बूँद में , बु झे बिरला कोई ||
हे रत हे रत हे सखी, रहा कबीर हे राय |
बूँद समानी समुं दर में , सो कत हे री जाय ||
तू तू करता तू भया, मु झमें रही न हँ ू |
बारी फेरी बलि गई, जित दे खू तित तू ||
प्रेम गली अति सं करी, तामें दाऊ न समाई |
जब में था तब हरी नहीं, अब हरी है में नाहीं ||
प्रेम न बाड़ी उपजे , प्रेम न हाट बिकाई |
राजा प्रजा जिस रुचे , सीस दे य ले जाई ||
जिन ढूंढा तिन पाईया, गहरे पानी पै ठ |
में बोरी डूबन डरी, रही किनारे बै ठ ||
कबीरा गर्व न कीजिये , कबहू न हँसिये कोय |
अजहू नाव समुं दर में , न जाने क्या होय ||
माटी कहे कुम्हार से , तू क्या रोंधे मोहे |
एक दिन ऐसा आये गा, में रोंधु गी तोहे ||
मलिन आवत दे ख के, कलियन करे पु कार |
फू ले फू ले चु न लिए, काल हमारी बार ||
काची काया मन अथिर, थिर थिर काम करत |
ज्यों ज्यों नर निधड़क फिरे , त्यों त्यों काल हसत ||
आज कहे हरी कल भजु ं गा, काल कहे फिर काल |
आज कालके करत ही, अवसर जासी चाल ||
मीठा सबसे बोलिए, सु ख उपजे चाहू ओर |
वशीकरण यह मं तर् है , तजिये वचन कठोर ||
मधु र वचन है औषधि, कुटिल वचन है तीर |
श्रवन द्वार है सं चरे , साले सकल सरीर ||
कथनी मीठी खांड सी, करनी विष की लोई |
कथनी छोड़ी करनी करे , विष का अमृ त होई ||
कबीर सब जग निर्धन, धनवं ता नाहि कोय |
धनवं ता सोई जानिए, राम नाम धन होय ||
रुखा सु खा खाई के, ठं डा पानी पी |
दे ख पराई चु पड़ी, मत ललचाओ जी ||
Bin pani bin sabun, nirmal kare subhav
निं दक नियरे राखिये , आँ गन कुटी छवाय |
बिन पानी बिन साबु न, निर्मल करे सु भाव ||

सीलवं त सबसे बड़ा, सब रतनो की खान |


तीन लोक की सम्पदा, रही सील में आन ||

एक शब्द गु रुदे व का, ताका अनं त विचार |


थके मु नि जन पं डिता, वे द न पावे पार ||
What can the poor Guru does if the disciple has faults. The Guru can only guide, but
the disciple has to walk.

हरी कृपा तब जानिए, दे मानव अवतार |


गु रु कृपा तब जानिए, मु क्त करे सं सार ||

तिमिर गया रवि दे खते , कुमति गयी गु रु ज्ञान |


सु मति गयी अति लोभाते , भक्ति गयी अभिमान ||

गु रु को कीजै बं दगी, कोटि कोटि परनाम |


कीट न जाने भृं ग को , गु रु करले आप सामान ||

मूं ड मुं डावत दिन गए, अजहँ ू न मिलया राम |


राम नाम कहू क्या करे , जे मन के औरे काम ||

माला तो कर में फिरे , जीभ फिरे मु ख माहि |


मनु आ तो चहुं दिश फिरे , यह तो सु मिरन नाहि ||

आशा जीवे जग मरे , लोग मरे मरी जाई |


सोई सूबे धन सं चते , सो ऊबरे जे खाई ||

आग जो लगी समुं दर में , धुं आ न परगट होए |


सो जाने जो जरमु आ जाकी लगी होए ||

जब तू आया जगत में , लोग हँ से तू रोय |


ऐसी करनी ना करी, पाछे हँ से सब कोय ||

ज्यों नै नों में पु तली, त्यों मालिक घट माहिं |


मूरख लोग न जानहिं , बाहिर ढूढ़न जाहिं ||

कबीरा किया कुछ ना होत है , अनकिया सब होय |


जो किया कुछ होत है , करता और कोय ||

कबीरा गर्व ना कीजिये , ऊंचा दे ख आवास |


काल पड़ो भू ले टना, ऊपर जमसी घास ||

चिं ता ऐसी डाकिनी, काट कले जा खाए |


वै द बे चारा क्या करे , कहा तक दवा लगाए ||

कबीर सोई सूरमा, मन सूं मांडे झझ ू |


पं च पयादा पाडी ले , दरू करे सब दजू ||

जै से तिल में ते ल है , ज्यों चकमक में आग |


ते रा साईं तु झ में है , तू जाग सके तो जाग ||

बोली तो अनमोल है , जो कोई जाने बोल |


हृदय तराजू तोल के, तब मु ख बहार खोल ||

लघु ता में प्रभु ता बसे ,प्रभु ता ते प्रभु दरू |


चींटी ले शक्कर चली, हाथी के सर धूर ||

सज्जन जन वही है जो, ढाल सरीखा होए |


दुःख में आगे रहे , सु ख में पाछे होए ||

आछे दिन पाछे गए, हरी से किया हे त |


अब पछताए होत क्या, चिड़िया चु ग गयी खे त ||

जो तोको कांटा बु वै, ताहि तू बु वै फू ल |


तो को फू ल को फू ल है , काँटा को तिरसूल ||

कबीरा मन निर्मल भया, जै से गं गा नीर |


पाछे लागा हरी फिरे , कहत "कबीर, कबीर" ||

मां गन मरण सामान है , मत मां गे कोई भीख |


मां गन से मरना भला, यह सतगु रु की सीख ||

मां गन मरण सामान है , मत मां गे कोई भीख |


मां गन से मरना भला, यह सतगु रु की सीख ||

बड़ा हुआ तो क्या हुआ, जै से पे ड़ खजूर |


पं थी को छाया नहीं, फल लागे अति दरू ||

धीरे धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय |


माली सीचे सों घड़ा, ऋतू आये फल होय ||

साईं इतना दीजिये , जा में कुटु म समाय |


में भी भूका ना रह,ू साधू न भूखा जाय ||

सब धरती कागज करूँ, ले खनी सब बनराय


सात समुं दर की मसि करूँ, गु रुगु ण लिखा न जाय

कागा काको धन हरे , कोयल काको दे त |


मीठे शब्द सु नायके, जग अपनों कर ले त ||

एक दिन ऐसा होये गा, सब सो परे बिछोहू |


राजा रानी राव रं क, सावध क्यों नाहि होहु ||

आये है तो जायें गे , राजा रं क फकीर |


एक सिं हासन चड़ी चले , एक बां धे जं जीर ||

दुर्लभ मानु स जनम है , मिले न बारम्बार |


तरुवर जो पत्ती झडे , बहुरि ना लागे डार ||

गु रु बिन ज्ञान न ऊपजे , गु रु बिन मिले न मोक्ष |


गु रु बिन लिखे न सत्य को, गु रु बिन मिटे न दोष ||

जब में था तब हरी नहीं, अब हरी है में नाहि |


सब अँ धियारा मिट गया, जब दीपक दे खया माहि ||

चलती चक्की दे ख कर, दिया कबीरा रोये |


दो पाटन के बीच में , साबु त बचा ना कोए ||

खोद्खाद धरती सहे , काटकू ट बनराय |


कुटिल वचन साधू  सहे , और से सहा न जाय ||

मे रा मु झ में कुछ नहीं, जो कुछ है सो तोह |


ते रा तु झको सौपता, क्या लागे है मोह ||

बु रा जो दे खन में चला, बु रा ना मिलया कोए |


जो मन दे खा आपना, मु झसे बु रा ना कोए ||

माया मरी ना मन मारा, मर मर गए शरीर |


आशा तृ ष्णा ना मरी, कह गए दास कबीर ||

पोथी पढ़ पढ़ जग मु आ, पं डित भया न कोए |


ढाई अक्षर प्रेम का, पढ़े सो पं डित होए ||

कबीरा खड़ा बाज़ार में , सबकी मां गे खै र |


ना काहू से दोस्ती, ना काहू से बै र ||

माला फेरत जु ग भया, फिरा ना मन का फेर |


कर का मनका ढार दे , मन का मनका फेर ||

कबीरा गर्व ना कीजिये , काल गहे कर केश |


ना जाने कित मारे है , क्या घर क्या परदे श  ||

काल करे सो आज कर, आज करे सो अब |


पल में पर्लय होएगी, बहुरि करे गा कब ||

गु रु गोविन्द दोहु खड़े , काके लां गू पाँय |


बलिहारी गु रु आपने , गोविन्द दियो बताये ||

ऐसी वाणी बोलिए, मन का आपा खोय |


औरन को शीतल करे , आपहु शीतल होय ||
Hum dono mein aankein koi geeli nahi karta, Gham wo nahi karta hai to
main bhi nahi karta, Mauqa toh kai baar mila hai mujhe lekin, Main uss se
mulaqaat mein jaldi nahi karta, Wo mujhse bichadne ko bhi taiyaar nahi hai,
Lekin wo buzurgo ko khafa bhi nahi karta, Khush rehta hai wo apni gareebi
mein hamesha. ‘Rana’ kabhi shaahon ki ghulami nahi karta.

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