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अपराजिता

Alka Mishra Atulya


WORDSGENIX PUBLICATION

1
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“Where talent never hides”

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WORDSGENIX PUBLICATION

© Copyright, 2023, Alka Mishra Atulya

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means, electronic, mechanical, magnetic, Optical, chemical,
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written consent of it’s Writer.
“अपराजिता”, Alka Mishra Atulya
PUBLISHER: WORDSGENIX PUBLICATION

ISBN: 978-93-5605-691-6
Fiction: 1st edition
Typesetting by: Alka Mishra Atulya
Printing: Booksclub.in
Cover design: Rubleena Behera
Price: 349 INR

The opinions/ contents expressed in this book are solely of the


author and do not represent the opinions/ standings/ Thoughts of
Publisher.

3
DISCLAIMER

This Anthology is a work which is research-based. The writers


have tried to make sure that all the write-ups in this book are
original, and plagiarism free.

All the write-ups in this book are unique, and they belong solely
to the co-authors.
In case of any detection of plagiarism, neither the publishing
house, nor the compiler is to be held responsible.

The sole responsibility of the write-ups is on that writer.

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FOUNDER OF WORDSGENIX PUBLICATION
RUBLEENA BEHERA

Rubleena Behera, daughter of Mr. Gobinda Ch. Behera & Mrs.


MadhusmitaBehera, from Baripada, Odisha. The Founder of
Wordsgenix Publication, registered under MSME. She had
completed her bachelors from Ravenshaw University, Odisha,
currently pursuing her Masters in English Honours. She got 5
awards i.e., she has been awarded by Spectrum’s Award as “The
Young Entrepreneur”, OMG national award, Indian Professional
Award, Kalam’s International award as “The Best writer of 2020”
and by Magic book of records as “The Best Compiler Award”.
She got her contents published in National
Magazine,TaareZaame Par She’s maturely immature. For her,
writing is not just a passion, but an emotion in which she relieves
her way of life. She started writing from 2017 and is a highly
ambitious girl.
Insta handle: @requite_rub__._ & @words_addicted._
Contact no:- +91 6372293090

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PROJECT HEAD

Sruti Sarkar

इनका नाम श्रत


ु ी सरकार है। इनका िन्म अंडमान तथा ननकोबार द्वीप
समूह के पोर्ट ब्लेयर में 23 दिसंबर 2002 में हुआ था, परं तु ये अब
रववंद्र नगर हर् बे ललदर्ल अंडमान की ननवासी है। ये कववताएं ललखती
है। ये अपनी कववताओं में अपने ववचारों को व्यक्त करती है तथा उन
ववचारों से िस
ू रों को प्रेररत करने की कोलिि करती है और साथ ही
अपनी कववताओं में अपनी व्यजक्तगत भावनाओं को भी व्यक्त करती
है। इनकी कववताएं ननम्नललखखत है िो अब तक प्रकालित हो चुकी है ;
िैसे: मेरे सवाल, प्रेम का पववत्र बंधन, इश्क तेरा मेरा, नारी, नारी की
महानता, यािें , तेर ा मेरा ररश्ता, मध्यम वगीय लोग, समुद्र, भरोसा िो
एक ववश्वास है, बहता अश्क, सपनों की िनु नया, सच्चाई की लडाई,
आदि। इन्होंने धरती मां ककताब में संकललका का कायट भी ककया है। ये
कववताओं के साथ-साथ िायररयां भी ललख लेती है तथा साथ ही आगे
और भी बहुत कुछ ललखना चाहती है। इन्हें लेखन कायट से अनत प्रेम
है।

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मेहनत

मेहनत का नतीिा सफलता है


सफलता के ललए मेहनत िरूरी है
बबना मेहनत के सफलता अधरू ी है
मेहनत हर िीवन के ललए िरूरी है।
िीवन में रोिनी मेहनत से ही आती है
धरती के हर एक कण-कण में
मेहनत नज़र आती है
मेहनत से िीवन सल
ु भ बन िाती है
मेहनत अंधकार को रोिनी में बिल िे ती है
मेहनत हर िीवन के ललए िरूरी है।।
~ श्रुती सरकार

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COMPILER

Alka mishra atulya

लेखखका का नाम अलका लमश्रा अतल्


ु या है ये भरनो ग्राम जिला
गुमला की रहने वाली हैं।इन्होंने लिक्षा के क्षेत्र में दहन्िी सादहत्य
से क्षेत्रीय भाषा से स्नातकोत्तर ककया है और अभी ये कुिल
गह
ृ णी बनने की कोलिि में लगी हैं।
लेखन-सवटप्रथम 2009 ईस्वी में इनकी ललखी कववता छपी थी
इसके बाि अभ्यि
ु य पबत्रका में और ईपबत्रकाओं में भी इन्होंने
लेखन कायट ककया है।इनकी कुछ साझा संकलन के नाम
मुजक्त,प्रेमपथथक, मग
ृ तष्ृ णा, काव्यांिलल, नाव कागि की आँसू
का िररया इत्यादि हैं।मेरी कववताएं मेरी साधना इनकी रचना हैं।
ललखना इन्हें बचपन से पसंि था और ये िो बात साफ तरीके से
नहीं कह पातीं हैं उसे कववता के माध्यम से आप सबके समक्ष
रखती हैं।

8
बेटी तुम सयानी न होना

बेर्ी तुम सयानी न होना,


माँ तेरी है कमिोर,
सब के सब थगद्ध पडे हैं,
निर िमाए तुम पर ओ बेर्ी,
नहीं चाहती तू बने ननभटया,
नहीं चाहती तू बने अभया,
नहीं चाहती तुम बने उन्नाव की बेर्ी,
नहीं चाहती तुम कठुआ की आलसफा बन िाओ,
बेर्ी नहीं चाहती तुम हाथरस की मनीषा होओ,
बेर्ी नहीं चाहती तुम मखणपुर की बेर्ी होओ,
तुम सयानी न होना बेर्ी,
तेरी माँ है कमिोर,
तुम्हें आँच आने पर मैं कैसे िीऊँगी बेर्ी,
ककसी को फकट नहीं पडेगा ,
अंधे बहरे हैं सब के सब नेता नहीं आएँगे,
कोई बडे अथधकारी भी नहीं आएँगे,
कोई हंगामा नहीं होगा,
िंतर मंतर पर कोई धरना प्रििटन नही होगा,
न ही थाने पर कोई ताला बन्िी होगी,
चंि रुपयों के ललए वो बेच िें गे ईमान
तम
ु सयानी मत होना बेर्ी,
ये माँ नहीं चाहती कक तम
ु भी अत्याचार सहो,
ये माँ नहीं चाहती कक तम
ु भी सबकी थधक्कार सहो,

9
बेर्ी तुम सयानी तभी होना,
िब तेरी माँ इस थधक्कार से उबर िाए,
एक माँ की आिीष है बेर्ी,
खूब पढ़ो खब
ू बढ़ो,
खूब लडो अपने हक के ललए,
माँ की आँचल से बाहर ननकल तुम स्वयं अपनी कीनतटमान गढ़ो,
माँ को सबला बना कर बढ़ना बेर्ी।।
~ अलका लमश्रा अतल्
ु या

10
Index

1. ”पागल फ़क़ीरा”
2. रोशन बैठा
3. प्रवीण ममश्रा
4. रं गेश चन्द्रशेखर
5. पंकि मसंह ”दिनकर” (अककवंशी)
6. डॉ अचकना द्वववेिी
7. डॉ िक्षा िोशी( गि
ु रात)
8. महे श्वरी कनेरी
9. प्रयाग धमाकनी
10. अक्षय राि शमाक, मिवानी, हररयाणा
11. डॉ पल्लवी मसंह ‘अनम
ु ेहा’ बैतल
ू मप्र
12. डॉ श्रीमती रािकुमारी वी अग्रवाल
13. सुनीता ममश्रा ’मीत’
14. सररता श्रीवास्तव ’श्री’
15. प्रीतत िारती
16. अतनता चंरकार
17. रागगनी मौयक
18. लोकनाथ ताण्डेय ”मधुर”
11
19. मशवानी पचौरी
20. मासि
ु ा सामीहा
21. गुंिा अग्रवाल
22. नंदिता एकांक़ी
23. क्रिष्ना मालिे खूंटी (पोरबंिर -गुिरात)
24. वसध
ु ा(गचत्रा)
25. नवनीत कुमार ममश्र
26. मीनू रािेश शमाक
27. िे वजित कमलता
28. अपणाक गौरी शमाक
29. खूंटी िागतृ त मेंरू
30. अनुराग शुक्ल
31. लक्ष्मी मसंह
32. मीता लतु नवाल “मीत”
33. श्लोक ततवारी
34. हनी कटाररया
35. वपयूष परते ”कबीर”
36. आजाि
37. क्रकरन झा (ममश्री)
12
38. वीरें र िैन
39. अंिू छाररया “असीम”
40. सुंडाविरा तनशा खखमा

13
पागल फ़क़ीरा

”पागल फ़कीरा”
संस्थापक
नई कलम नया कलाम
भावनगर, गुिरात
मो :- 9879970039 / 9426246454

14
तकिीर

िरू क्षक्षनति पर सरू ि चमका, भोर खडी है आने को,


धंध
ु हर्े गी, धप
ू खखलेगी, दिन नया है छाने को।

सादहल पर बैठे बैठे डरते रहने से क्या होगा,


लहरों से लडना होगा उस पार समन्िर िाने को।

प्यार इश्क तो बात परु ानी, कैसे इनसे नज़्में सिें,


मेरी कलम वो ििट है लाई सोती रूह िगाने को।

याि दिलाता है गुज़रा दिन, भूली बबसरी बातें अब,


सुर नया हो, ताल नया, पढ़ें नये अफ़साने को।

करले ख़ुि के वि में ख़ुि की, हाथों की लकीरों को


रूठी है तकिीर फ़कीरा, आये कौन मनाने को।
~ पागल फ़कीरा

15
रोशन बैठा

वपठौररया – राँची का साधारण सा लडका,


ललखने की चाहत है जिसको,
ननकला है पहचान मे ख़ुि की,
एक मौके की तलाि है इसको |

16
कर मेहनत ऐसी क़ी दहमालय को झक
ु ा िाना

कर मेहनत ऐसी की दहमालय को झक


ु ा िाना
नामम
ु ककन नाम की कोई चीि नहीं यह सब को दिखा िाना

लक्ष्य पर अपने डर्े रहो


भर्कना तेरा काम नहीं
अभी तो दिन संघषट के हैं
करना अभी आराम नहीं

खामोि रहो इतना की


िीत का िोर तुम्हारा पररचय िे
तुम ऐसा ही अपना ककरिार बनाना
ताललयों की गडगडाहर्
सबको तुम सन
ु ा िाना

सैकडों लोग लमलेंगे


िो तम्
ु हारी बरु ाई करें गे
तम्
ु हें रोकने की खानतर
हर कोलिि प्रयास करें गे
पर मत आना तम
ु इन बातों मे
तम
ु अपनी दहम्मत ना खो िाना
सारी बातों को तुम अनसुना कर िाना

कामयाबबया खुि चल कर आएंगे तेरे पास


बस तुम मेहनत संघषट करते िाना
ठोकरो की चोर् से
17
तुम ना रुक िाना

कर मेहनत ऐसी की दहमालय को झक


ु ा िाना
नामम
ु ककन नाम की कोई चीि नहीं यह सब को दिखा िाना।।
~ रोिन बैठा

18
प्रवीण ममश्रा

नाम - प्रवीण लमश्रा


ननवास स्थान- गोड्डा, झारखंड
लिक्षा – स्नातकोत्तर (रािनीनतक ववज्ञान)
मो. न.- 9006040386
वतटमान समय में मैं लसववल सववटसेि की तैयारी कर रहा हूं। मैंने
2019 से कववताएं ललखना प्रारं भ ककया और वतटमान समय में
30 से अथधक कववताएं ललख चुका हूं।मुझे कववताएं, कहाननयां
और प्रमुख घर्नाओं पर आदर्टकल ललखना पसंि है।

19
िन्द्मिूमम

हे िननी, हे िन्मभलू म
मैं करता ननत तम्
ु हें प्रणाम
है बस एक ही अरमान
मैं करता रहूं तेरा ननत वैभव गान

िे मुझे तू इतना ज्ञान


कर सकंू मैं िीवन प्रकािवान
हूं मैं भाग्यवान िो दिया है
मुझे अपने चरणों में स्थान

हे िननी हे िन्मभूलम
मैं करता ननत तम्
ु हें प्रणाम

तेरी संस्कृनत तेरी वैभव का


मैं ननत गायन करता हूं
िे ख दहमालय की चोर्ी को
मैं ननि ननत साहस भरता हूं
स्वणटधरा सी पथ्
ृ वी का
मैं ननत पूिन करता हूं
गंगा की अवचल धारा का
मैं ननत स्मरण करता हूं
ऐसी भारत भूलम का
मैं ननत वंिन करता हूं
हे िन्मभूलम
मैं बारं बार तम्
ु हें प्रणाम करता हूं
20
हे िननी हे , िन्मभलू म
घोर अंधकार लमर्ाने को
एक नवल प्रभात बना िे ना
इतना िुरवीर बना मुझको
छाए संकर् के बािल िब तुझ पर
हे मां कलम को तलवार बना िेना

हे िननी हे िन्मभूलम
मैं करता ननत तम्
ु हें प्रणाम
है बस एक ही अरमान
मैं करता रहूं तेरा ननत वैभव गान।।
~ प्रवीण लमश्रा

21
रं गेश चन्द्रशेखर

रं गेि चन्द्रिेखर बेंगलरु


ु में रहने वाले एमबीए फाइनेंस और
माकेदर्ंग ग्रेिुएर् हैं। उन्हें ललखने का िौक है और वे ककताबों
और लेखों के बहुत बडे प्रेमी हैं, जिन्होंने कई संकलनों का सह-
लेखन और संकलन ककया है।

22
कडी मेहनत किी असफल नहीं होती

यह सब कडी मेहनत और समय पर ननभटर करता है कक आपकी


ककस्मत कैसे कुछ खास काम करे गी जिसकी आपने कल्पना नहीं
की है और अभी और अथधक अनुभव प्राप्त करना है, यह बहुत
से लोग िानते होंगे और कम समय में अथधक उपलजब्धयों की
इच्छा रखते हैं, िाने-अनिाने में िो मेरा है उसे हालसल करने के
ललए। अपनी ख़ुिी को पहचानने और उसके साथ काम करने या
बबताने के ललए िगह तलािने की ज़रूरत है, हर दिन और भी
अथधक पल लमलते हैं िो िीवन बनाते हैं।

कठोर हाथ उगते हुए खरपतवारों की अच्छी तरह िेखभाल करते


हैं,
कमों से बोए गए बीिों से फसलें उगने िें,
बहुत सारे पोषण और लाभाथथटयों को िोडना,
मैं उन भारतीय ककसानों की बात करता हूं िो अपना कतटव्य परू ी
लिद्ित से ननभाते हैं।

लेककन उनके काम की इतनी सराहना नहीं की िाती,


वे िीवन और प्रचललत मत्ृ यु के संकर्पूणट पुलों में रहते हैं,
आत्महत्या करना या पैसों के ललए भीख माँगना,
हमारे ककसानों को िीववकोपािटन के ललए बहुत कुछ करना पडता
है।

वे बडे घरों या कंपननयों की मांग नहीं करते,


बिले में वे केवल िे खभाल और वेतन वद्
ृ थध में सहायता के ललए
पूछते हैं,
23
भ्रष्र् दिमाग के कारण उनकी मेहनत व्यथट नहीं िानी चादहए,
बजल्क उन्हें उस काम के ललए ताि पहनाया िाना चादहए िो वे
ऐस के साथ करते हैं.

हमारे ककसान हमारा गौरव हैं और मैं उनके धैयट को सलाम करता
हूं,
चोर् लगना या मार खाना उनकी खेती के गुणों के सामने कुछ
भी नहीं है,
उवटरकों के साथ वे हमें स्वस्थ रहने के तरीके सुधारते हैं,
एक राष्र तब ववकलसत होगा िब िे खभाल करने वाला अमीर
होगा।
~ रं गेि चन्द्रिेखर

24
पंकि मसंह “दिनकर”

इनका नाम_ पंकि लसंह “दिनकर”(अकट वंिी) है।


इनकी माता श्रीमती ब्रिरानी लसंह एवम वपता श्री बैिनाथ लसंह
हैं। ये लखनऊ उत्तर प्रिे ि के ननवासी है। ये अध्यापन का कायट
करते है। ये 5 वषो से ललख रहे हैं। ये िोहा,मुक्तक कववता, गीत,
गिलें, संस्मरण इत्यादि ललखते हैं।
इनके ननम्नललखखत लेख प्रकालित हो चुके हैं िैसे-कलमकार हूं
मैं, आि का युवा, ववद्याथी िीवन मात,वपता
फुलवारी,िहाित,अकट वंि की आवाि, बाबुल का आंगन, संघषट की
राह,
इन्हें ननम्नललखखत पुरस्कार प्राप्त हुए हैं िैसे-सादहत्य रत्न,कलम
के िािग
ू र,सादहत्य के लसतारे ओिस्वी वक्ता_सादहत्य सारथी
इत्यादि।
इनकी रचनाओं में िे ि प्रेम एवम ् संस्कार की अद्भुत झलक िे खने
को लमलती है।

25
िीप िला ववश्वास का

िीप िला ववश्वास का आगे बढ़ते िाओ।


मात वपता आिीष से िग में नाम कमाओ।
िीवन के इस रं ग मंच पर कभी िूल कभी फूल।
संघषों के आिी बनकर बन िाओ अनुकूल।
दहम्मत अपनी कभी ना हारो चलो सत्य की राह।
बाधाएं ककतनी भी आएं करो नही परवाह।
जिसको जितनी लमलीं ठोकरें उतना हुआ महान।
अपनी मेहनत लगन से रोिन हुआ िहान।
करो कायट कुछ ऐसा िग में खखल िाए रं ग रूप।
मात वपता आिीष से चमके दिव्य स्वरूप।
कदठन कायट से कभी ना भागो मेहनत करो अपार।
कीचड में तुम कमल खखला िो खखल िाओ संसार।
ननडर साहसी दिल के सच्चे होते नही अधीर।
अपनी अद्भुत कला से बन िाओ रणवीर।
लक्ष्य हमेिा आंखो पर हो होना नही हताि।
दिनकर” की अद्भुत ककरणों सम िग में करो प्रकाि।।
~ पंकि लसंह “दिनकर”

26
डॉ. अचकना द्वववेिी

डॉ. अचटना द्वववेिी,( थचत्रकार, कवव एवं लेखक)


सहायक प्राध्यापक ,(डॉ. हरीलसंह गौर केंद्रीय ववश्वववद्यालय, सागर
(म.प्र.)
• िन्मनतथथ- 10 िुलाई 1976 * ववववध स्थानों में थचत्रकला प्रििटनी
में चयननत एवं प्रिलिटत थचत्र तथा ववलभन्न कला लिववर, कायटिाला
एवं कला महोत्सव में सहभाथगता। अनेक राष्रीय व अंतरराष्रीय
सेलमनार व वेबीनार में प्रस्तत
ु िोध पत्र एवं सहभाथगता, अनेक स्थानों
में ननणाटयक हेतु आमंबत्रत एवं ववववध मंचों में सम्माननत ।
• डॉ. अचटना िी की 9 पुस्तकें प्रकालित हो चुकी हैं, 1. कवव-
थचत्रकार िगिीि गप्ु त , 2. आधनु नक रे खाथचत्र ,3.मेरी कववताएं मेरे
रे खाथचत्र, 4. आधुननक थचत्रांकन , 5 .मानव थचत्रण , 6. संघषट की
रे खाएं,7आधुननक काव्य और मेरे रे खा थचत्र , 8. Various stands
of society , 9. पापा की परी पुस्तकें अमेिॉन तथा गूगल में भी
उपलब्ध हैं ।

27
मुझे अपराजिता बनना है

मुझे अपराजिता बनना है...।


बाकी तो सब सपना है...

िो लमला वही अपना है


बाकी तो सब सपना है...

यथाथटता में ही िीना है


अपना िीवन तो सपना है...

सपनों को हकीकत करना है


यथाथट के नए अथट भरना है...

अथट में रं गों को खोिना है


रं गों की खोि में डूबना है...

डूब कर आकार ननकालना है


उनसे ही थचत्र बनाना है...

थचत्र में िीवन भरना है


उसको िब्िों में उतारना है...

िब्िों में अथट खोिना है


िो पाया वही अपना है...

बाकी तो सब सपना है
िीवन में सुख िखु आना है...
28
उसी में िीवन बबताना है
िनु नया को पीछे छोडना है...

सबसे आगे ननकल िाना है


मुझे अपराजिता बनना है...।
~ डॉ. अचटना द्वववेिी

29
डॉ .िक्षा िोशी

नाम: डॉ िक्षा िोिी, वपता का नाम – श्री रलसकलाल िोिी


माता – श्रीमनत भानुमती िोिी, पनत- श्री भरत कुमार िवे
िन्म- ११/१०/१९५४, िन्म स्थान – दिव( केन्द्र िालसत)
लिक्षा – एम ए पीएचडी ( दहन्िी )। व्यवसाय – पूवट प्रधान आचायट,
एमिेके.आर्टटस,कामसट एंड कम्प्यूर्र साइंस कोलेि। रािकोर्,
गुिरात ।
प्रकािन वववरण – ३६ पुस्तकें प्रकालित,३ प्रकािाधीन।
सम्मान वववरण –
ववववध राष्रीय, अंतराटष्रीय पत्र-पबत्रकाओं में िताथधक आलेख एवं
कववताओं का प्रकािन।
राष्रीय, अंतराटष्रीय स्तर पर १५० एवोडट से सम्माननत।

30
िीत

िीत का मज़ा तब आता है िब सब आपके हारने का इंतज़ार


कर रहे हों।
लक्ष्य को हाँलसल करना हो तो ख़न
ू में उबाल चादहए,
सफ़र की हर कदठनाई को िरू करने का िूनन
ू चादहए,
िीत लमल िाएगी एक दिन,
बस इरािों में िीत की गँि
ू चादहये।
वविेता वो नहीं बनते िो कभी हारते नहीं हैं ,बजल्क वो बनते हैं
िो कभी हार मानते नहीं है।
कभी हम िीतते हैं और
कभी-कभी हम सीखते हैं।
हम िब तक हार नहीं सकते
िब तक अपनीहार मान ना लें।
चैंवपयंस वो नहीं होते िो हमेिा िीतते हैं, बजल्क वो होते हैं िो
िीतने से भी ज्यािा इससे सीखना – महारत हालसल करने के
रास्ते का दहस्सा है।
भले ही तकलीफ़ हो बडी राह में,
पर ख़ुि से यह वािा रखें,
दहम्मत रखें,
मज़बूत अपना इरािा रखें।
लमले िायेगी िीत एक दिन, बस

31
कोलिि कोलिि से ज्यािा करें ।हार के बाि ही िीत है ।
हार पर रोने के बिाए क्यों न िीतने के ललए कफ़र से कोलिि
की िाये?!
आप हारे या िीते उससे ज्यािा मायने यह रखता है कक
आपने खेल कैसा खेला,
आपने ककतनी कोलिि की।
~ डॉ िक्षा िोिी

32
महे श्वरी कनेरी

इनका नाम महे श्वरी कनेरी है। ये िे हरािन


ू उत्तराखंड की ननवासी
है। ये ररर्ायडट अध्यावपका है। ये २० सालों से ललख रही है। ये
कववता गीत गिल तथा कहाननयां ललखती है। इनकी
ननम्नललखखत पुस्तके प्रकालित हो चक
ु े है िैसे-
१ सरस अनुभूनत २_मन में आसमान
३ यािों का सफर
४_ लमल के गाए गीत अनेक।
इन्हें ननम्नललखखत पुरस्कार प्राप्त हुए हैं िैसे-
१_राष्रपनत पुरुषकार २_ उत्तराखंड रत्न ३_दहंिी सादहत्य सेवी
४_सादहत्य रत्न
५_उद्धार श्री सम्मान ।

33
मशाल अब तो िलनी चादहए
बफट सी ठं डी हथेललयों में, सूरि का सा ताप चादहए,
कफर बँध िाए मुठ्दठयाँ सभी,
कुछ ऐसे िज्बात चादहए ।

िुन्य संवेिनायें हैं सभी


अहसासों की थाप चादहए ,
नफरत भरी इस िीवार को प्रेम प्यार रस धार चादहए |

बांधे सर पे कफन कफर चलें कुछ करने की चाह चादहए,


मरकर भी िो लमर् सके नहीं ऐसे ककरिार चादहए |

चर्टर्ानों को िो चीर सके निी की सी उफान चादहए ,


अंिाम कुछ भी प्रवाह नही बस बढ़ने की चाह चादहए ।

हुंकार भरो नया कुछ करो रुख हवा की बिलनी चादहए ,


बनो क्ांनत के नवीन स्वर तम
ु .
मिाल अब तो िलनी चादहए |
~ महेश्वरी कनेरी

34
प्रयाग धमाकनी

नाम : प्रयाग धमाटनी


कायट क्षेत्र : प्राइवेर् िैक्षखणक संस्थान में कायटरत
िन्मनतथथ : 4 नवंबर
िन्मस्थान : भोपाल मध्यप्रिे ि
लिक्षा : स्नातक एवं वैकजल्पक थचककत्सा में पत्रोपाथध ।

सादहजत्यक गनतववथधयां : ववलभन्न पुस्तकों में लेखन, सहलेखन,


पत्र पबत्रकाओं में प्रकािन एवं काव्यगोजष्ठयों में भागेिारी ।

35
चल आ मैिान में..

चल आ मैिान में पुलककत हो,


ना कर थचंता ना ववचललत हो..
तेरे मागट की हर इक-इक व्याथध,
तेरी आत्मिजक्त से पररथचत हो..

भय बंधन कार् के बाहर आ,


ननत क्ंिन कार् के बाहर आ..
ना हो अलभमान से गिगि त,ू
अलभनंिन कार् के बाहर आ..
अब उठा प्रयत्नों की आँधी,
ताकक इनतहास भी गववटत हो..
तेरे मागट की हर इक-इक व्याथध,
तेरी आत्मिजक्त से पररथचत हो..

क्यों लगे ककसी का साथ तुझे,


क्यों थामे कोई हाथ तुझे..
है पवटत सा साहस तुझमे,
तो डरने की क्या बात तुझे..
कुछ कर ऐसा तेरे पररिन,
तेरे ही नाम से चथचटत हों..
तेरे मागट की हर इक-इक व्याथध,
तेरी आत्मिजक्त से पररथचत हो..

36
तू अववरल िल की धारा बन,
िै िीप्यमान ध्रुव तारा बन..
ना आस ककसी की रख मन में,
तू अपना खुि ही सहारा बन..
बस लक्ष्य साध और बढ़ता िा,
भर्काव न तुझमें ककं थचत हो..
तेरे मागट की हर इक-इक व्याथध,
तेरी आत्मिजक्त से पररथचत हो..
~ प्रयाग धमाटनी

37
अक्षय राि शमाक

अक्षय राि िमाट


एम०कफल०(दहंिी) ,एम०एड
सेवा-ननवत
ृ दहंिी अध्यापक
लगभग 30 वषों से स्वतंत्र पत्रकाररता/ स्थानीय वनौषथध माला
साप्तादहक पबत्रका के संपािक मंडल में िालमल/ववलभन्न पत्र-
पबत्रकाओं में दहंिी की ववलभन्न ववधाओं में रचनाएं प्रकालित।
-संप्रनत िब्िाक्षर सादहजत्यक संस्था, भारत के राष्रीय प्रचार मंत्री
-कािी सादहजत्यक संस्थान, वाराणसी में मीडडया – प्रमुख
-धमट िागरण समन्वय के उत्तर क्षेत्रीय मुख्यालय में कायाटलय
प्रमुख
मूलतः मुिफ्फरनगर, उत्तर प्रिे ि के ननवासी/ लगभग 50 – 55
सालों से हररयाणा में स्थावपत

38
अपराजित

िीवन-पथ पर चलते हुए िो,


मन में लाए ना हार-िीत।
भले ही हो लघु िीपक िग में,
वीर सिै व वह अपराजित।।

आत्म-ववश्वास से ओत-प्रोत रह,


पवन – वेग को लेता िीत।
कतटव्य-ननवटहन कर ननजश्चत,
सबका बनता वह मन-मीत।।

भय नहीं उसे ककसी कष्र् से,


रखता नहीं वह अंतद्टवंद्व।
गीत सफलता के वह गाकर,
प्रेररत हो करता अनब
ु ंध।।

लहरों के प्रबल थपेडे –


नहीं उसका मन िहलाएं।
पतझड भी मुस्काते – गाते,
उसके लसर से उतर िाए।।

तपती धरती पर भी चलकर,


कांर्ों से भी प्रीत ननबाहे ।
ऐसे तपे हुए कंु िन की ,
िग राह में बांहें फैलाएं ।।

39
सच मानो तो मेहनतकि को,
मेहनत से िजक्त लमलती है।
भले खाई हों उसने ठोकरें ,
पुरुषाथट से धरती खखलती है।।

लक्ष्य ननधाटररत नहीं करे औ’,


मेहनत करने से िो बच चलता।
किम – किम असफलता पाकर,
ननजष्क्य िीवन उसको खलता।।

प्रण करें , सद्चररत्र अपनाएं ,


वही वीर अपराजित कहलाएं।
िे ि-समाि के ववकास में िर्
ु ,
िन-दहत संग स्व-दहत कर पाएं।।
~ अक्षय राि िमाट

40
डॉ पल्लवी मसंह ‘अनुमह
े ा’

इनका नाम-डॉ पल्लवी लसंह ‘अनुमेहा’ है। ये बैतूल मध्य प्रिे ि


की ननवासी है ये श्री गणेि महाववद्यालय, मांडवी ,जिला-बैतूल में
प्राचायाट है। ये वपछले कई सालों से ललख रही है। ये गद्य एवं
पद्य िोनों ववधाओं में ललखती है। इनके द्वारा प्रकालित
पुस्तक *उपन्यासों में संवेिना और लिल्प* है। इनके ननम्नललखखत
लेख प्रकालित हो चुकी है ‘आधुननक दहंिी कववता’ , ‘दहंिी सादहत्य
: नारी अन्तद्टवंि’ , ‘,भारतीय संस्कृनत एवं मानव मूल्य ‘ , ‘लोक
सादहत्य और संस्कृनत’ , ‘’लोक सादहत्य’ (खण्ड -१) ,में आलेख
प्रकालित है। साथ ही अन्य कई आलेख भी प्रकालित हुए है। इन्हें
ननम्नललखखत पुरस्कार प्राप्त हुए हैं *श्री िाताराम सरस्वती
सम्मान* (अखखल भारतीय पररषि द्वारा) , SSPS (NCR) द्वारा
*Award of Excellence -2022*, नमटिा प्रकािन द्वारा
*सिटनोत्सव सादहत्य सम्मान* एवं *भावोिय सादहत्य सम्मान*
,कीनतटमान सादहत्य पबत्रका द्वारा *राष्र रत्न सम्मान* । Open
mic events में *1st winner* ।
41
रोशनी के बीि

ककतना ववस्तार िे ती,


मन के उिाले की,
एक ककरण को,
िो अब आभास मात्र है।
वह एक कोना भी,
अंधकार का,
नही लभगो सकती।
कुछ नमी,
कुछ सरलता भी तो-
नही बो सकती।
मेरा प्रयास तो था,
रोिनी के बीि बोकर,
आनन्ि की,
फसल कार्ना।।
~ डॉ पल्लवी लसंह ‘अनम
ु ेहा’

42
डॉ श्रीमती रािकुमारी वी अग्रवाल

इनका नाम डॉ श्रीमती रािकुमारी वी.अग्रवाल है। पनत का नाम-


श्री ववनोि कुमार िी अग्रवाल ये िि
ु ालपरु मंडी मध्य प्रिे ि की
ननवासी है। ये ग्रदहणी है। ये २५ सालों से ललख रही है। ये व्यंग
,लघु कथा, कववता, व्यंिन रे लसपी आदि ललखती है। इनकी
ननम्नललखखत लेख प्रकालित हो चुकी है िैसे-_अनेक, । इन्हें
ननम्नललखखत परु स्कार प्राप्त हुए हैं िैसे- ववद्या वाचस्पनत
,अंतरराष्रीय दहंिी लेखखका भोपाल द्वारा सम्माननत नवलेखन
,नव ककरण, िगमग िीप ज्योनत आदि आदि अनेक । स्व प्रकालित
पुस्तक( आलेख संग्रह)” िब्ि श्रंग
ृ ार” व (काव्य संग्रह) “काव्य
श्रंग
ृ ार” सांझा संकलन 40 से अथधक।

43
आंखों में आकाश रखो

“ऊंची मंजिल पा िाओगे


दहम्मत अपने पास रखो
पांव दर्काए रहो िमी पर
आंखों में आकाि रखो “

अपने कमट व मेहनत पर


रखो ववश्वास
एक दिन लक्ष्य को पा ही िाओगे
पांव दर्काए रखो िमी पर
आंखों में आकाि रखो!

मंजिल का सोपान चढ़ना


एक-एक किम
ना ऊंची छलांग लगाना
ठोकर खाकर थगर िाओगे
पांव दर्काए रखो िमीन पर
आंखों में आकाि रखो।

हर किम हो इमानिारी का
सच्चा सुख पाओगे
ना िौड लगा बेमानी की

44
ि:ु खी -ि:ु ख पाओगे
ऊंची मंजिल पा िाओगे
दहम्मत अपने पास रखो
अपने कमों पर ववश्वास रखो
आंखों में आकाि रखो।

मां वपता का तुम हो


सुनहरा सपना
जिन्होंने अपने फिट को ननभाया
अब बारी है आपके फिट की
पांव िमीन पर दर्काए
आंखों में सफलता का आकाि रखो।

करोगे एक दिन पररवार का


सपना सच
गवट करे गें िे ि का हर िन
बन दिखाओ कलाम ,अर्ल, सथचन
पांव दर्काए रखो िमी पर
आंखों में आकाि रखो “।।धन्यवाि
~ डॉ.श्रीमती रािकुमारी वी.अग्रवाल

45
सुनीता ममश्रा ‘मीत’

Name- Sunita Mishra


Education- m a in history
वविारि vocal classical
ललखने का िौक बचपन से ही था हमारे पापा हमें कववता
ललखने और कववता पाठ करने के ललए हमेिा ही प्रेररत ककया
आि वह हमारे बीच नहीं है कफर भी मैं आि भी उनसे ही
प्रेरणा लेकर ललखती हूं।

46
तो पााँव िमीं पर रखना

लिखर पर ननगाहें हो आकाि में फैली बाहें हो,


मुर्टठी में िमाना हो गर िनु नया िीत िाना हो,
तो पाँव िमीं पर रखना,
गर आँखों में गहरे सपने हो,
श्रम तुम्हारे अपने हो ,
धैयट साहस िील ववनय,
तो वविय नहीं है िरू वप्रय,
गर िनु नया िीत िाना हो ,
तो पाँव िमीं पर रखना,
दहमालय सा उच्च लिखर होगा ,
सागर से गहरा बल होगा,
गर पवन वेग तुम्हारा हो ,
तो मंजिल तम्
ु हें लमल िाएगी,
पर याि रहे िब िीत तम्
ु हारी हो िाये,
तो हार को छोर्ा मत करना,
गर हार नहीं तो िीत कहाँ,
यह गाँठ बांध तम
ु अब लेना,
गर िनु नया को िीत िाना हो,
तो पाँव िमीं पर रखना।।
~ सुनीता लमश्रा ’मीत’

47
सररता श्रीवास्तव “श्री”

मेरा नाम सररता श्रीवास्तव “श्री” है। मैं 2021 से ललख रही हूँ।
मैं पेिे से लिक्षक्षका, लेखखका, िायर, कवनयत्री धौलपरु (रािस्थान)
की ननवासी हूँ। मझ
ु े कववता, िायरी, गिल, मक्
ु तक, िोहे , छं ि,
कहाननयाँ इत्यादि ललखना पसंि हैं। मुझे सादहजत्यक क्षेत्र में
अबतक कई सम्मान प्राप्त हो चक
ु े हैं। 200+ साझा संकलन एवं
सोलो बुक्स महकते उद्गार, िब्ि मंिरी एवं खश्ु बू-ए-चमन अब
तक प्रकालित हो चक
ु ी हैं।

48
िीत

िीते तो खुलियाँ मनें, हार उिासी लाय।


हार बबना इस िीत का, आनन्ि कैसे पाय।।

िीत िीत कर िीत के, िीत सीढ़ी चढ़ाय।


हार पररष्कृत गलनतयाँ, चथचटत ववषय बन िाय।।

िीत का िज्बा िीत है, हार मान ली हार।


िीत कहाँ से पायगा, मन अंतर से हार।।

डर दिल में है हार का, िीत श्रम बढ़ िाए।


मेहनत वह प्रसन
ू है, श्रम स्वेि खखल िाय।।

ररश्ते को न हराइए, ररश्ते िाँव लग िाय।


हार िीत परे रखखए, ररश्ते दिल से ननभाय।।

तकलीफ से न हाररए, हराइए तकलीफ।


धीरि रख मन अंतरे , बीते वक्त तकलीफ।।

हार नहीं तो िीत ना, इक िि


ू े बबन रीत।
तप िाए िब सय
ू ट सी, ककरणें ननकले िीत।।

िीत की कोलिि कररए, तन-मन सब बबसराय।


िब तक गहरी पैठ ना, कैसे मोती पाय।।
49
िीत एक इजम्तहान सी, हो पूणट तैयार।
कमर कसे िुर् िाइए, िीत खडी “श्री” द्वार।।
~ सररता श्रीवास्तव “श्री”

50
प्रीतत िारती

मैं प्रीनत भारती बररयातू की रहने वाली हूं। वतटमान में कलकत्ता
पजब्लक स्कूल में संस्कृत लिक्षक्षका के रूप में कायटरत हूं। मझ
ु े
अपनी भावनाओं को िब्िों में वपरोना अच्छा लगता है।

51
िीवन एक संघषक

तू चल मुसाकफर रुक क्यों गए,


यह सफर इतना सरल तो नहीं,
सुख िःु ख की छर्ा ननराली,
चलो िीत रचते हैँ लमसालों वाली।
एक बार िीत की आगाि तो कर
एक दृढ़ ननणटय ले और चल,
खि
ु की ताकत को पहचानकर
अपने अंिर एक िूनून तो भर,
तूफ़ान में भी िो दिया िले
मेहनत की वह लौ तो बन,
मेहनत का एक समीकरण बना
मेहनतकि बन, मेहनत तो कर,
हर सवाल का िवाब बन,
संघषट से एक बार प्यार तो कर।
~ प्रीनत भारती

52
अतनता चन्द्राकर

नाम – अननता चन्द्राकर


संप्रनत – व्याख्याता (गखणत)
पता – लभलाई नगर जिला िग
ु ट छत्तीसगढ़

53
मेहनत

बबना मेहनत और लगन के, सफलता नहीं लमलती।


आलस की िमीं पर, कभी खुलियाँ नहीं खखलती।
संघषट बबना जज़न्िगी नीरस, कमट से लमलता सख
ु ।
चुपचाप बढ़ते िा पथ में, हार िाएगा हर िख
ु ।
उम्मीि मत छोडना साथी, साँझ हमसे यही कहती।
बबना मेहनत और लगन के, सफलता नहीं लमलती।
रुक मत िाना हारकर, लक्ष्य से ना होना ववमुख।
कमट करते रहना सिा, फल होगा एक दिन सम्मख
ु ।
मेहनत पर कर भरोसा, लकीरें तो बिलती रहती।
बबना मेहनत और लगन के, सफलता नहीं लमलती।
~ अननता चन्द्राकर

54
रागगनी मौयक

Name -राथगनी मौयट


Education -bachelor of commerce
My work -makeup artist
Hobby -reading and writing
मेरी जिंिगी का सफ़र बस यहाँ तक... कलम से ककताब तक।।

55
संघषक

मै रोि ननकल पडता हूँ, खुि को बेहतर बनाने के ललये


िायि उतना नहीं बन पाता, जितना चादहए िमाने के ललये ।।

मै हर रोि लडता हूँ, जिंिगी की चुनौनतयो से


और ककतना लडू मै अब ननखर िाने के ललये ।।

िमाने ने ककतनी तकीबे लगायी है.. मुझे थगराने मे


और ककतना थगरे गा ये िमाना मुझे थगराने के ललये

लडखडा कर सम्भल्ना और थगरकर उठना सीखा है राथगनी ने


ये जिन्िगी नहीं लमली है लसफ़ट बहाने बनाने के ललये ।।

मै एक लसतारा हू चमकने िो मुझे आसमा मे


कोई एन्र्ीक पीस नहीं हू ककसी का घर सिाने के ललये ।।

नहीं आता कोई ककसी का ििट बार्ने यहा


लोग लमलते ही है.. एक िस
ू रे को िहर वपलाने के ललये ।।

रूठ कर खुि ही खुि को मनाना पडता है यहा


कोई नहीं आता यहा ककसी को मनाने के ललये ।।

ककतने ही ििट सीने मे िफ़न ककये िाते हैं यहां


ककतना रोना पडता है यहा.. मुस्कुराने के ललये ।।
~ राथगनी मौयट

56
लोकनाथ ताण्डेय ‘’मधुर’’

नाम – लोकनाथ ताण्डेय ‘’मधरु ’’


ननवास स्थान – बबलाईगढ़, छत्तीसगढ़
मो.नं.-9907817535
लिक्षा – एम.ए.,बी.एड.
संप्रनत – लिक्षक
प्रकालित रचनाएँ- स्थानीय,राज्य एवं राष्रीय स्तर की ववलभन्न
पत्र पबत्रकाओं एवं YQ में रचनाएँ प्रकालित।
सम्मान – राज्य एवं राष्रीय स्तर पर ववलभन्न सादहजत्यक मंचों
एवं ववलभन्न संस्थाओं से 50 से अथधक सम्मान प्राप्त।

57
मेहनत

बबना खोिे समस्या का,


लमलता नहीं है हल,
संघषट के बबना कभी,
लमलती नहीं िीत है।।

बबना मेहनत ककए,


लमलता नहीं है कुछ,
बबना िब्िों के कभी,
बनते नहीं गीत है।।

मेहनत करने से,


स्वस्थ रहता िरीर,
मेहनत का तो फल,
होता सिा मीठ है।।

हाथ पर हाथ धरे ,


बैठो नहीं तुम अब,
करो मेहनत खूब,
सिा यही रीत है।।
~ लोकनाथ ताण्डेय ‘’मधुर’’

58
मशवानी पचौरी

She is Shivani Pachauri 23 yrs old Young Entrepreneur from


Nagla kripa, parsara, hathras (Uttar Pradesh). She wants to
become a successful person in her life.She really loves Reading
a book and write poems, poetries, stories, Quotes and articles.
She is co – author of more than 50+ book . Her dreams are build
her own Empire .

59
कडी मेहनत क़ी सफलता

एक समय की बात है, मुम्बई के हलचल भरे िहर में, ललयाम


नाम का एक यव
ु ा लडका रहता था। ललयाम अपनी अववश्वसनीय
कायट नीनत और समपटण के ललए िरू -िरू तक िाने िाते थे। बहुत
छोर्ी उम्र से ही, उन्होंने कडी मेहनत के मूल्य को समझ ललया
था और अपने रास्ते में आने वाले हर अवसर का अथधकतम लाभ
उठाने के ललए दृढ़ संकजल्पत थे।

ललयाम के माता-वपता मम्


ु बई में एक छोर्ी सी बेकरी चलाते थे,
और िब वह मजु श्कल से काउं र्रर्ॉप तक पहुंच पाता था, तब वह
उत्सुकता से आर्ा गूंधने, केक फ्रॉस्र् करने और पेस्री पैक करने
में उनकी मिि करता था। िैस-े िैसे उनकी उम्र बढ़ती गई, बेकरी
में उनकी जज़म्मेिाररयाँ बढ़ती गईं और उन्होंने हर नई चुनौती को
उत्साह के साथ स्वीकार ककया।

उनके समपटण पर ककसी का ध्यान नहीं गया। िहरवासी ललयाम


की कायट नीनत की प्रिंसा करते थे और अक्सर स्कूल, उसकी
बेकरी कतटव्यों और यहां तक कक स्थानीय सामि
ु ानयक केंद्र में
स्वयंसेवी कायट को संभालने की उसकी क्षमता पर आश्चयटचककत
होते थे। अपने व्यस्त कायटक्म के बाविि
ू , ललयाम के चेहरे पर
हमेिा गमटिोिी भरी मस्
ु कान होती थी और वह जिस ककसी से
भी लमलता था, उसके ललए ियालु िब्ि बोलता था।

60
िैसे-िैसे साल बीतते गए, कडी मेहनत के ललए ललयाम की
प्रनतष्ठा मुम्बई से परे फैल गई। उन्हें पास के िहर के एक
प्रनतजष्ठत पाक ववद्यालय में छात्रववृ त्त की पेिकि की गई थी,
एक ऐसा अवसर जिसे वह गँवा नहीं सकते थे। पाक कला
ववद्यालय में, ललयाम का दृढ़ संकल्प और कायट नीनत चमकती
रही। उन्होंने अपनी खाना पकाने की तकनीक को बेहतर बनाने,
नए स्वािों के साथ प्रयोग करने और प्रलसद्ध िेफ के अधीन
अध्ययन करने में अनथगनत घंर्े बबताए।

िीषट सम्मान के साथ स्नातक होने के बाि, ललयाम अपने पररवार


की बेकरी का ववस्तार करने के सपने के साथ मुम्बई लौर् आए।
उन्होंने छोर्ी सी िक
ु ान को एक संपन्न कैफे में बिलने के ललए
अपना दिल और आत्मा लगा िी, जिसमें स्वादिष्र् व्यंिनों की
एक ववस्तत
ृ श्रंख
ृ ला पेि की गई, िो पडोसी िहरों के आगंतुकों
को आकवषटत करती थी।

उत्कृष्र्ता के प्रनत ललयाम की प्रनतबद्धता और कडी मेहनत का


फल लमला। कैफ़े एक वप्रय सभा स्थल बन गया, और उन्हें एक
लोकवप्रय खाना पकाने की प्रनतयोथगता िो में अनतथथ न्यायाधीि
के रूप में भी स्थान लमला। लेककन ललयाम ववनम्र बने रहे ,
उन्होंने हमेिा अपनी सफलता का श्रेय अपने माता-वपता द्वारा
उनमें दिए गए मूल्यों और उनके साथ अथक पररश्रम से सीखे
गए सबक को दिया।
61
उनकी कहानी कई लोगों के ललए प्रेरणा बन गई और उन्हें याि
दिलाया कक समपटण, दृढ़ता और थोडे से िुनून के साथ कोई भी
अपने सपनों को हालसल कर सकता है। बेकरी में मिि करने
वाले एक युवा लडके से लेकर एक प्रलसद्ध िेफ और उद्यमी तक
ललयाम की यात्रा कडी मेहनत की िजक्त और अववश्वसनीय
ऊंचाइयों तक पहुंचने के प्रमाण के रूप में खडी है िो ककसी
व्यजक्त को पहुंचने में मिि कर सकती है। और इसललए, मुम्बई
के केंद्र में, ललयाम की कहानी और कडी मेहनत के प्रनत उनकी
अर्ूर् प्रनतबद्धता आने वाली पीदढ़यों के ललए आिा और प्रेरणा
की कहानी बन गई।

~ लिवानी पचौरी

62
मासुिा सामीहा

मेरा नाम मासुिा सामीहा है । मैं २० वषीय हुँ और कोलकाता की


रहने वाली हूँ । मैं एक स्नातक पाठ्यरत छात्रा हुँ । कववता,
िायरी और संगीत की िौकीन हूँ एवं खुि भी ललखने का िन ु ून
रखती हुँ । कववताओं के ज़ररए अपनी बात कहना और लोगों तक
पहुँचाना मुझे बेहि पसंि है। ललखने का िुनून मुझे सुकून िे ता
है।

63
अपरािय

कदठन है बन्िे या कुछ बढ़ा करना,


मुजश्कल है बहुत अपनी खालमयों से लडना,
परबत से उँ चे लक्ष्य है तेरे,
असान नहीं उसकी चोर्ी तक पहुँचना।
कभी पत्थरोँ से भी कडक चर्टर्ानें होंगी
कभी तेरी कोलिि के ववपरीत हवाएँ चलेंगी,
ककस्मत भी कुछ िफा तेरा हाथ छोरे गा
तो कई बार हौस्लें तेरा साथ छोरे गा।
कभी लोग तेरे इरािों पे िक फरमायेंगे,
तेरी काबबललयत पे उठे सवाल बार बार िोहराएंगे,
ऐसे मे मंजिल तक रास्ता ज़्यािा िरू नज़र आयेगा और,
असम्भव कहकर लौर्ने का फैसला आसान बन िायेगा।
पर तू बता ए राही, क्या तू हार मान पायेगा?
जिन सपनों से िीता रहा, उनसे मुह फेर के लौर् िायेगा?
माना, हालात कदठन है और कोलिि कम हो रही है,
तेरी दृढ़ता तेरे किमों मे आकर, अपना िम तोड रही है ।
यही वक़्त है, िगा अपने अन्िर के मिाल को
तप िो सपनों को सच करने की सबसे बडी लमसाल हो।
आत्मववश्वास को ढाल बना और मेहनत को तलवार
चीर हर उस तूफान को, िो तेरे रास्ते में खडा करे िीवार,
िब तक तेरे अन्िर, मंजिल पाने की चाह जिन्िा रहें गी
तब तलक तेरे सपनों की सांसें चलेंगी।
कल बातें बनाने वले, सर अपना झुकाएंगे
तेरी काबबललयत पर उठे सवाल खि
ु िवाब बन िायेंगे,
बबछाने िे ककस्मत को तेरी राहों में कार्ें
होने िे अपने किमों को लहुलुहां,
64
कैसे ििट भी तुझे पीछे खीच नहीं पाया
िे खेगा एक दिन पूरा िहाँ।
िब लमलेगी अपनी मंजिल तुझे,
िे खना उस दिन बेदहसाब फहाटत होगी
पूछना ज़रूर उन सपनों से
कभी सोचा था ऐसे बन्िे से मुलाकात होगी?
~ मासि
ु ा सामीहा

65
गुंिा अग्रवाल

My name is Gunja Agarwal. I had been writing since 2011 I write


many poems on various issues like dowry, girl child, rape,
friends, motivation poems related to life and on various common
topics.I had published a book tilted-अन्तमटन की अलभव्यजक्त:
मेरी अलभलाषा with Self Publishing feature of Yourquote.com
in this book She had expressed all my emotions on various social
and common topics.

66
मुसाक्रफर

मुसाकफर हूँ तो ठहरा हूँ,


नहीं होता तो चल िे ता।
पथथक हूँ मैं वो राहों का,
िो तुझको आत्मबल िे ता।
लसचां िाता िो सदियों तक,
वहीं पौधा है फल िे ता।
ज़माना कौन है मेरा,
िो मुझको कोई हल िे ता।
वो इंसाँ है िो इंसाँ को,
हाँ अंिर तक है छल िे ता।
मस
ु ाकफर हूँ तो ठहरा हूँ,
नहीं होता तो चल िे ता।
~ गंि
ु ा अग्रवाल

67
नंदिता एकांक़ी

नाम नंदिता एकांकी। िन्म नतथथ 10/09/1966। लिक्षा- डबल


ए म अथटिास्त्र अंग्रेिी ववषय लखनऊ ववश्वववद्यालय। माता का
नाम सुकृनत धर। वपता का नाम अरूण चन्द्र धर। संगीत की
प्रारजम्भक लिक्षा मां से िो मिहूर िास्त्रीय संगीत की
गानयका थी। ककताब प्रकालित 3 पंच रत्न ,सक ु ृ नत, रबीना
प्रकािन से दिल्ली। राज्य भाषा दहिी दहन्िी ववभाग राि भाषा
दिल्ली रे डडयो िरू ििटन अदि मे अनेक बार कायटक्म प्रसाररत
थथएर्र करीब भारतवषट के हर कोने ककया कहानी लेखन संगीत
ननिे िन ककया ।लगभग 35 वषट का अनभ
ु व लेखन संप्रनत प्रयाग
राि मे ननवास एवम संगीत साधना मे व्यस्त काफी मंच से
सम्माननत ककया गया।

68
आंखें

नीम सी मीठी तम्


ु हारी आखे
चमकी चमकी खम
ु ारी भरी आखे

ना िाने ककतनी सौिाई तुम्हारी आखे


नािो अिा से िरमाई आखे

सोई सोई खोई खोई तुम्हारी आखे


काले िुलफो के साये तले िरमाई आखे
नंदिता एकांकी
प्रयाग राि

वफा से लबरे ि मुहब्बत से भीगी आखे,


मय के लबो से र्कराती आखे
~ नंदिता एकांकी

69
क्रिष्ना मालिे खूंटी

मेरा नाम कक्ष्ना मालिे भाई हैं। मैं आठवीं कक्षा में पढ़ती हूं। मैं
कोलीखडा में रहती हूं। मेरे जिले का नाम पोरबंिर है। मुझे
कववताएं ललखना पसंि है। इस अपरािीता पस्
ु तक में मुझे आिा
है। कक मेरी कववता इस पस्
ु तक में छपेगी।

70
िीत पाकर िस्न मनाओ

करनी है। तो िीत हालसल करो।


हार के खडे हुए किम पीछे मत करो।

हार के िीत िीत से हार ननजश्चत,


जिसने हार से हाथ लमलाया उसकी ही। िीत ननजश्चत

भाई साहब हार तो लमली थी।


िीत तो आि हालसल की थी।

चाहे ककतना भी झक
ु ना पडे आि
मंजिल पाए बगैर नहीं आएंगे बाि।

िीतना है तो हार की रस्सी को पकड।


हार की रस्सी वही िीत की पकड।

थगरे हो तो क्या हुआ पेर से खडे हो।


हार पाई हो तो उसका सामना करके ही मंजिल पाओ।

थोडी सी हर हौसला खो िे ती है।


िरा सी िीत सफलता के ककनारे बहला िे ती है।

अरे थोडी सी िीत पाके िस्न मनाओ।


थोडी सी हार भी मांग के जिंिगी की नई मंजिल बढ़ाओ।

71
हार पाके अजस्तत्व ना भूले।
कभी िीत पाके अपनी औकात न भूले।

काया से मायावती करो।


हार से िीत का कभी सौिा भी करो।
~ कक्ष्ना मालिे खूंर्ी

72
वसुधा (गचत्रा)

मेरा नाम वसुधा (थचत्रा) है। मैं आगरा उत्तर प्रिे ि से हूं। िैक्षक्षक
दृजष्र् से मेरा अनुभव M.A in sociology nd Education nd
b.ed का है। मुझे लेखन में कोई वविेष रूथच नहीं थी परं तु िब
सारा िे ि महामारी से लड रहा था और घर में कैि था। तब मेरी
कलम ने मेरा सहारा दिया और मैंने अपना पहला लेखन Yq
पर ललखा । िहा मुझे बहुत सहारना लमली बस वही से मुझे मे
ललखने उमंग िाग्रत हुयी। और वही मेरी मुलाकात “अलका लमश्रा
िी” से हुई। जिन्होंने मुझे ललखने का हौसला दिया। उनके हौसले
से आि मेरी कलम हर ववषय पर ललखना िुरु कर िे ती है।

73
अब िीत क़ी तैयारी है

एक अकेला चराग़ ही,


तफ
ू ान से लडता रहा,
हालात से मिबरू था वो,
बबखरता रहा, संभलता रहा।

समेर् ललया एक दिन खुि को,


अपनी ज्वाला को आकार दिया,
आज़मा ले अपनी ताकत को आि,
तूफान को ललकार दिया।

मुसीबत का क्या है,


आि है कल र्ल िायेगी,
संकल्प हो लसर पर सवार,
तो पत्थर तक गल िायेगा।

ना चलो ककसी राह पर तो,


हर फासला िरू कोस होता है,
अब िान गया हूँ के मनुष्य,
मुजश्कलों से ही ठोस होता है।

अब सीने में एक आग सी है,


आँखो में भी थचंगारी है,
ककस्मत को धूल चर्ा िी है,
अब िीत की तैयारी है।
74
िब सपनों का मोती, हाथों से छूर् िाता है,
िब खुि का ही हौसला, ककसी कारण र्ूर् िाता है,
तब सारी िीवनी व्यथट और िख
ु भरी कहानी लगती है,
ज़ख्म हो ताज़ा कफर भी कोई पीर पुरानी लगती है।

हर ववपत्ती हर आपिा को हँस कर सहना पडता है,


िीवन के संघषट पथ पर खुि से भी लडना पडता है,
तब यकीन का एक बाण उठाया और अववश्वासों पर छोड दिया,
दृढ़ ननश्चय के झोंको से तफ
ू ानों का रुख मोड दिया।

खि
ु से मैं अब िीत चक
ु ा,
मंजज़ल, अब तेरी बारी है,
ककस्मत को धल
ू चर्ा िी है,
अब िीत की तैयारी है।
अब िीत की तैयारी है।।
~ वसुधा (थचत्रा)

75
नवनीत कुमार ममश्र

नाम : नवनीत कुमार लमश्र


कायट क्षेत्र : केंद्रीय ववद्यालय संगठन में कायटरत
िन्मनतथथ : 8 िून
िन्मस्थान : रांची झारखंड
लिक्षा : स्नातकोत्तर (संस्कृत) ।

76
िागो हर एक िे शवासी

िागो हर एक िे िवासी,
तम
ु ही िो बना सकता हैं,
अपने िे ि को स्वगट,
िागो मेरे संगी साथी,
िागो हर एक िे िवासी।।

तुम क्यों भर्क रहे हो,


अंधकार में यहाँ-वहाँ,
तुम क्यों नहीं ननकलते,
ज्ञान की खोि में,
बस तुम इन भौनतक चीज़ो के बारे में,
सोचते रह िाते हो,
आगे बढ़ो तुम्हारी,
इस िहाँ को िरूरत हैं,
िागो मेरे संगी साथी,
िागो हर एक िे िवासी।।
तुम मत भूलो कक,
तुम उस िे ि में रहते हो,
िहाँ कई महापरु
ु षों ने िन्म ललया,
उन्होंने इस समाि के खानतर,
बहुत कुछ हैं ककया,
तुम में भी वो िजक्त हैं,
अपने आप को िगाओ,
िागो मेरे संगी साथी,
77
िागो हर एक िे िवासी।।
युवा दिवस ताललयों से नहीं,
बहुत हौिलों से मनाओ |
िीवन सम्हालने की एक,
िीवन में नया रह बनाओ |
लमठाइयां खाने और खखलने,
से नहीं सम्हलती है जिंिगी |
केवल सोचने अनुमान से नहीं,
बिलती है ये अपनी जिंिगी |
सूरि िैसे ही है चमकना,
चंिा की तरह िीतल करना |
~ नवनीत कुमार लमश्र

78
मीनू रािेश शमाक

नाम - मीनू रािेि िमाट। ननवास स्थान – रायपुर छत्तीसगढ़। लिक्षा -


बी.ए ,एन.सी.सी (बेस्र् क्ेडेंर्)। भाषा ज्ञान – दहंिी एवं छत्तीसगढ़ी। रुथच
– लेखन, पठन, समाि सेवा एवं पाक कला। लेखन ववधा – कववता,
आलेख एवं लघक
ु थाएं। आििट – श्री लाल बहािरु सास्त्री, इंद्रा गाँधी ।
पसंिीिा लेखक – महािे वी वमाट, , अमत
ृ ा प्रीतम, हररवंि राय बच्चन ।
कायटक्षेत्र – गदृ हणी। पि – दहंि िे ि मध्यप्रिे ि इकाई की प्रचार सथचव,
गंगा ,िमुना ,सरस्वती मंच की कायटकताट , ब्रहमांड समाि की प्रिे ि
महासथचव ।प्रकािन- अमत
ृ वाणी समाचार पबत्रका। प्रोफेिनल सम्मान –
बल
ु ंिी वडट रीकॉडट से सम्मान, िमटनी के वडट ररकॉडट बक
ु में िे ि भजक्त
कववता से सम्मान पत्र प्राप्त हुआ,दहंि िे ि से सम्मान पत्र , हमारा
दहंिस्
ु तान , मानवीय मूल्यों की माला इन सब से सम्मान पत्र प्राप्त
हुआ है ।सादहजत्यक सम्मान – लगभग पंद्रह ऑनलाइन मंचो के द्वारा
काव्य पाठ हेतु सम्मान पत्र। ऑनलाइन दहंिी सादहजत्यक सम्मान पत्र
प्राप्त हुआ ।

79
िीत

जिसमें हारने का िज्बा होता हैं।


उसकी िीत ननजश्चत होती हैं।
िो ववपरीत पररजस्थनतयों में भी अपना संयम नहीं खोता है।
उसकी िीत ननजश्चत होती हैं।
आि रास्ता बना ललया है
तो कल मंजिल भी लमल िाएगी।
हौसलों से भरी कोलिि एक दिन िरूर रं ग लायेगी।
नतलचता बार बार चढ़ता है पेडों पर वो थगरता है
पर वो चढ़ना नही छोडता कफर अपनी मंजिल पा ही लेता है।
हमे भी हार कर मायस
ू नही होना चादहए।
िीत के पथ पर ननरं तर अग्रसर रहना चादहए।
हमें हमारी मंजिल िरूर लमलेगी।
िो रौिनी की रहो में दिए िलाते हैं तो क्या,
िो घनघोर अंधेरों में तफ
ू ानों से लडकर भी अपनी लौ िलाएं
रखें उस िीए की िीत ननजश्चत है।
संगमरमर से बना मरू त तो सुंिर ही होगा क्योंकक संगमरमर
खुि सुंिर होता हैं ,
परन्तु िो सामान्य पत्थर से सुंिर मूरत बनाएं तारीफ तो उस
लिल्पकार की हैं।
ककनारे पर खडे रहने से समुंिर पार नहीं होता है।
नभ को ननहारने से चांि तारे नहीं लमलते हैं।
तोडो सीमाओं को खि
ु को काबबल करो।
ताकत िो पंख को खोलो और उडान भरो।

80
खुि से जितने की जिद्ि ही तुम्हें भीड में आगे ले िायेगा।
तुम्हारा आत्मववश्वास ही तुम्हे िीत दिलाएगा।
िो बार बार थगर कर सम्हलता हैं वही तो इनतहास रचता है।
असफलता एक चन
ु ौती है इसे स्वीकार करो।
क्या कमी रह गई ये सोचो और सुधार करो,
िब तक ना सफल हो नींि चैन को त्यागो तुम संघषट का मैिान
छोडकर मत भागों तुम।
कुछ ककए बबना ही िय िय कार नहीं होती हैं।
कोलिि करने वालों की कभी हार नही होती हैं।
लसंधु में गोताखोर बार बार डुबकी लगता है पर हर बार मोती
नही लमलता।
लक्ष्य को बांधो तम
ु कफर तीर चलाओ सफलता तम्
ु हें िरूर
लमलेगी।
ववधाता की अिालत में वकालत बडी प्यारी है।
खामोि रदहए कमट कीजिए वहा सबका मक
ु िमा िारी है।
हमे हमारी मंजिल िरूर लमलेगी।
क्योंकक हमारी कोलिि िारी है।
~ मीनू रािेि िमाट

81
िे वजित कमलता

मेरा नाम िेवजित कललता हैं। मैं असम से हूँ। काफी संकलन में
मेंने अपना योगिान प्रिान ककया हैं । अब मैं प्राथलमक लिक्षा में
डडप्लोमा कर रहा हूँ।

82
तु हारा नहीं

हमेिा एक लडाई चलते है


अपने आप से,
मुसीबतें से भरा एक सागर,
के बीच में रहता है यह िीवन।

कोसों िरु िाने का चाह है,


िहाँ मुझे सुकून लमलेगा ।
आिा से बंधे हुए मेरा िीवन,
सिै व कुरवानी मांगते है।

कभी में हार िाता हु,


तो लगता है िीवन कदठन है।
लेककन जितने का िन
ू न
ू ,
कभी हार महसस
ू नहीं होने िे ते।

िब कोई कामना नज़र नहीं आते तो,


एक बार ओर कोलिि करना चादहए।
अपने को तुलना ना करके,
सर्ीक प्रररश्रम के साथ आगे बढ़े ।
~ िे वजित कललता

83
अपणाक गौरी शमाक

प्रोफेसर दहन्िी सादहत्य, रैकी हीलर, आध्याजत्मक पथ प्रििटक,


लेखखका, कववनयत्री, १००+ रचनाएं प्रकालित, बाल मनोवैज्ञाननक।

84
अपराजिता कहलाओ तुम

उठो नारी अब तलवार उठाओ तुम,


सती से अब िग
ु ाट भी बन िाओ तुम।

तुम ही हो हंस वादहनी सरस्वती भी,


सबको मयाटिा का पाठ पढ़ाओ तुम।

कललयुग में सीता बन कर क्या होगा,


अगर साथ मे राम ही ना पाओ तुम।

जिन्होंने ककया इतना ज़ल्


ु म तम
ु पर,
उन्हें अब काली रूप दिखाओ तम
ु ।

डराने वाली िनु नया खि


ु डर िाएगी,
बस एक पहला किम बढ़ाओ तम
ु ।

झुक िाएगी हर बरु ी नज़र “गौरी” ,


ननडर हो के नज़रें तो लमलाओ तुम।

सत्य, धमट,िे ि, िाश्वत प्रेम मागट है तेरा


इसके ललए न झुको , िष्ु र्ों -गद्िारों से लभड िाओ तुम

९९ गलनतयां माफ कर कृष्ण ने भी सुििटन उठाया था !


करोडों अपमान सह िंकर ने भी वीरभद्र रूप बनाया था!

85
रावण को सीता नहीं सौंप िी राम ने भी बाण चलाया था!

कहां ककतना झक
ु ना िबना है ये सबको समझाओ तम

सिा मौन और िांनत कायरता, अन्याय बढ़ाती है
अब तो रणचंडी बन िाओ तुम!!

तुम महाकाल की महाकाली हो ि:ु िासन से वस्त्र बचाओ तुम


हर बार कृष्ण नहीं आएंगे
आत्म रक्षा लिव से सीखकर आओ तुम !

तम
ु हो ननडर , सबल ,सस
ु स्
ं कृत!
बनो सफल , कामयाब
अपराजिता कहलाओ तम
ु !
~ अपणाट गौरी

86
खूंटी िागतृ त मेंरु

मेरा नाम िागनृ त मेरुभाई हैं। मैं आठवीं कक्षा में पढ़ती हूं। मैं
बखरला में रहती हूं। मेरे जिले का नाम पोरबंिर है। मुझे कववताएं
ललखना पसंि है। इस अपरािीता पस् ु तक में मुझे आिा है। कक
मेरी कववता इस पुस्तक में छपेगी।

87
सफलता

बहुत हो गया अब तो
कोई राह बनानी होगी
इस िग को तझ
ु े भी अपनी
आवाि सुनानी होगी
बस तोड िे अब तु सारी
मिबूरी की िंिीरे
मेहनत से ही है ननकले
धरती से चमकते हीरे
मेहनत करो आि तुम
कल मीठा फल लमलेगा
ि:ु ख होंगे िरूर आि
पर कल खुलियां भी होंगी।
गरीब हो आि तुम
कल अमीर बन िाओगे
आि अगर मेहनत कर
समय के साथ किम बढ़ाओ।
िो करना है तुम्हें
अपने िम पर करना है
आगे बढ़ना चाहता है
तो कदठन पररश्रम करना सीख।
~ खूंर्ी िागनृ त मेंरु

88
अनुराग शुक्ल

नाम:- अनरु ाग िुक्ल


वपता:- श्री अिय कुमार िुक्ल
माता:- श्रीमती आरती िुक्ला
लिक्षा:- बी०बी०ए०(आई० बी), एम.ए.( लोक प्रिासन)
संप्रनत- संपािक कंर्ें र् लेखक, एडडर्र यप
ू ी मोबाइल न्यूज़
पता:- ग्राम-चंिीपुर , पोस्र् व तह.-मुसाकफरखाना, िनपि- अमेठी,
राज्य – उत्तर प्रिे ि , वपन कोड – 227813

89
यात्रा क़ी मंजिल : मेहनत और िीत

प्रयासों की राह में,


संंंघषों से लमले सफलता की तकि,
मेहनत और िीत का संग्रहण,
बनाता है यात्रा को अववस्मरण।

पहले किम से ही,


दििाओं का लमलता है आििट,
दहम्मत से आगे बढ़कर,
होती है लक्ष्य की पहचान।

संघषों की मध्यवती में,


बनती है मंजिल की यात्रा,
हार न स्वीकारने वाले,
बिलते हैं ककस्मत के सारे तारे ।

अवसरों का सही उपयोग,


बनाते िीत का संयोग,
मेहनत से रचा िीवन का परु स्कार,
करता है दृढ़ता का अद्ववतीय संचार।

हाथों में संघषट की लमठास,


िे ता आत्मववश्वास का आभास,
मेहनत और िीत का संग्रहण,
बनाता है यात्रा को अववस्मरण।
~ अनुराग िुक्ल

90
लक्ष्मी मसंह

इनका नाम लक्ष्मी लसंह है। ये िौनपुर उत्तर प्रिे ि की ननवासी हैं।
इन्हें ललखना अत्यंत पसंि है । सालों से ललख रही है।

91
मेरी उडान

िे खो ! इधर िरा
मैं उड रही हूं

उस गौरै या की तरह
िो हर रोि आिािी का िश्न मनाती है

लेककन मैं आिाि होकर भी


आिाि नहीं हूं क्यूं

हर रोि एक नई मस
ु ीबत से
िझ
ू ना पडता है क्यंू

मैं तो स्वालभमानी हूं


कफर भी मझ
ु े अलभमानी कहा िाता है क्यंू

मैं ललखती हूं उन कववताओं को जिनमें


प्रेम ,ववरह ,वेिना ,ममता की झलक है

क्योंकक कलम तो पववत्र है


कफर भी इसे लोग कलंककत कहते हैं क्यूं

क्या मुझे पीडा नहीं होती


या मैं इंसान के भेष में पत्थर की लिला हूं

92
क्या मुझमें मैं अनुराग नहीं
और अगर नहीं है तो मैं ललखती हूं क्यूं

मेरे पंख को कतरना चाहते हैं सब लोग


मैं लडकी हूं तो मुझे उडने का हक नहीं है क्यूं।
~ लक्ष्मी लसंह

93
मीता लतु नवाल “मीत”

नाम-मीता लनु नवाल। ननवास स्थान-ियपरु , रािस्थान। लिक्षा-एम


ए समाििास्त्र। Email id- meetaluniwal5@gmail.com
आप एक समाि सेववका,लेखखका और कववनयत्री है,सभी ववधाओं
में कहानी, कववता, गिल,आलेख गीत,मक्
ु तक िेरो िायरी हर
ववषय पर ललखती है,हर महीने कई मालसक पबत्रकाओ, कई
समाचार पत्रों और सांझा संकलनो में भी रचनाए प्रकालित होती
रहती है,450 से ज्यािा सांझा संकलनों में रचानाए प्रकालित हो
चुकी है,1150 से ज्यािा सम्मान पत्र,मैडल, रॉफी लमल चुके
है।राष्रीय, अंतरराष्रीय ऑनलाइन कायटक्मो में भी भाग लेती
रहती है।

94
मेहनत क़ी िीत

मेहनत कक्ष इंसान होता है मििरू


गमी,सिी,बरसात में भी काम करता है
िो िन
ू की रोर्ी कमाने के ललए अपनी बीमारी भी नही िे खता
है मििरू ,
मेहनत से कभी कतराता नही है
कभी रोड बनाता,कही ऊँचे ऊँचे भवन
पर खुि कच्चे मकान में रहता है,
हाड तोड मेहनत करके रूखी सुखी खाता
आंधी बाररि से डरकर पीछे नही हर्ता,
ईमानिारी से रोिी रोर्ी कमाता
कफर भी िोषण,अत्याचार का लिकार होता,
दिहाडी मििरू को रोि काम की परे िानी होती
ककसी दिन काम ना लमले तो भख
ू े पेर् भी सोना पडता है
मििरू का िीवन बहुत कदठन है
कफर भी सक
ु ू न से िीवन िीता
इसकी मेहनत की िीत का पररणाम ही है
ये बडी बडी इमारतें, लम्बी लम्बी सडके
पुल बांध,भवन,ये बाग, खेत खललयान
अपनी मेहनत से बने इन सभी को खुि होता
अपनी िीत का अनुभव करता है।
~ मीता लुननवाल “मीत”

95
श्लोक ततवारी

नाम:- श्लोक नतवारी


वपता:- श्री अिय कुमार नतवारी
माता:- श्रीमती पष्ु पा िे वी
लिक्षा:- बी०ए०, एम०ए०( इकोनॉलमक्स)
पता:- ग्राम- परू े भोि नतवारी का परु वा , पोस्र्-बबरु ी,तह. व
िनपि- सल्
ु तानपरु , राज्य – उत्तर प्रिे ि , वपन कोड – 227805

96
िीत : एक संघषक सफर

संघषों से भरपूर ,िीत का सफर,


हौसलों से भरी, आगे की राह- यात्रा।
सपनों की ऊँचाइयों पर, हर किम पर चन
ु ौती,
डगमगाते नहीं, उत्साह से आगे बढ़ती ।
रुकावर्ों के बाविि
ू , नहीं हारती थमती,
हाथों में ललए सपने, अपने लक्ष्य की ओर बढ़ती ।
संघषों के बबना, िीत में मिा नहीं,
हर मुजश्कल को आवाज़ िेकर, अपने सपनों को पाना है।
हर हाल में उठाना, िीत का झंडा,
हर किम पर साहस से, अपने आत्मववश्वास को बढ़ाना है।
संघषट की तोहमतों से, अपने आप को बचाना है,
मंजिल को िे खते हुए भी, हर मोड पर सतकट रहना है।
िीत की लमठास सबके ललए अद्भत
ु होती है,
पर समय-समय पर संघषों का भी बखेडा चढ़ता है।
इस सफर में अगर रास्तों में लमले आफत,
तो ननरं तर प्रयास कर, अपनी मंजिल की ओर बढ़ते िाना है।
~ श्लोक नतवारी

97
हनी कटाररया

इनका नाम हनी कर्ाररया है। ये 5 वषों से ललख रहे हैं। ये पेिे
से व्यापारी हैं। ये मोगा िहर (पंिाब) के ननवासी हैं। ये पंिाब
यूननवलसटर्ी से ग्रेिुएर्े ड हैं। इनको भिन, गीत व िायरी ललखना
पसंि हैं। इनकी स्वयं की एक पुस्तक ‘सफर मेरी कलम का’ नाम
से प्रकालित हो चक
ु ी हैं। इसके अलावा इनकी 3 िायररयां और 2
कववताएं भी तक प्रकालित हो चुकी हैं।आप इन्हें इंस्र्ाग्राम पर
भी फॉलो कर सकते हैं , instagram I’d :-
@i_m_officialhoney

98
कुछ करके दिखाना है

चल उठ खडा हो कुछ करके दिखाना है


तू भी ककसी से कम नहीं ये सबको बताना है ,
मंजज़ल तेरे पास नहीं आयेगी
तुझे खुि मंजज़ल तक िाना होगा ,
अगर रास्ता न लमले कहीं
तो पहाडों को चीर कर रास्ता बनाना होगा ,
कुछ कर के दिखा ऐसा
जिससे सर ऊंचा हो तेरे मां बाप का ,
िो बोलते हैं तेरे बारे में
मुंह बंि हो िाए िनु नया वालों का ,
एक ववश्वास रख मेहनत पर
और िस
ू रा उस भगवान पर ,
इधर उधर नहीं अपने अंिर िे ख
अपनी खूबी की पहचान कर ,
उठा कलम और ललख िे िास्तां
अपने आने वाले कल की ,
उसी िास्तां को तू बिल िे हकीकत में
तेरे दिल से आह ननकले
ककसी को िे ख कर मुसीबत में ,
ककसी डूबते का सादहल बन

99
ककसी की मिि करने के काबबल बन ,
लोग िें लमसालें तेरी
तू इस किर कामयाबी हालसल कर ,
वक्त नहीं है पास तेरे
हनी िाग िा सोई हुई नींि से ,
और चल उठ खडा हो
कुछ कर के दिखाना है ,
तू भी ककसी से कम नहीं
ये सब को बताना है ।
~ हनी कर्ाररया

100
वपयूष परते “कबीर”

इनका नाम वपयूष परते “कबीर” है। इन्हें नई चीिें ललखना और


सीखना पसंि है, ये एक कलाकार, प्रेमी, योद्धा, ववज्ञान और पॉप
संस्कृनत उत्साही है। इन सबके अलावा भी वपयूष को कई तरह के
क्षेत्रों का ज्ञान है। इन्होंने कई नार्कों में अलभनेता के रूप में भी
काम ककया है और राष्रीय स्तर पर मािटल आर्ट में प्रथम स्थान
भी हालसल ककया है। एक लेखक के रूप में इनकी अब तक 36
रचनाएँ प्रकालित हो चुकी हैं। ललखने के अलावा, इन्हें व्यायाम
और ध्यान, थचत्रकारी, अलभनय, संगीत, नत्ृ य, पढ़ना, यात्रा करना,
फोर्ोग्राफी और दृश्य सामग्री िे खना भी पसंि है। ये बहुत ही
लमलनसार हृिय के व्यजक्त हैं, इसललए ननभीक होकर इनसे संपकट
करें ।
Instagram:
@the_world_calls_me_kabir
@kabir_ki_kala

101
अपराजिता

पररश्रम से रूवपत एक कहानी बन


ु ती,
िीवन की राह में हर किम वो चलती।
संघषों का सामना करती वो सिा,
हार नहीं मानती खुि को वो प्रकर् करती सिा।
उच्चाईयों की परवाह नहीं करती वो,
लसफ़ट मेहनत से अपने लक्ष्य को पा िाती वो।
आि िब वविय की पररप्रेक्ष्य में खडी हुई,
पररश्रम की लमठास लबों पर बबखरी हुई।
आपिाओं की धारा उसे नहीं रोक सकी,
अपनी मेहनत से वविय की पताका लहराई।
अपराजिता, वविय की लिखर पर खडी,
पररश्रम और उम्मीि की िीजप्त से िगमगाई।
~ वपयष
ू परते “कबीर”

102
आजाि

ये आज़ाि िी हैं। ये भोिपुर, बबहार के रहने वाले हैं।


इनकी अबतक तीन पस्
ु तकें प्रकालित हो चुकी है।पहली “तन्हा
तन्हा चाँि” और िस
ू री पुस्तक as a compiler “ गाँव या िहर
िाएं ककधर” भी पूरी करी है।तीसरी पुस्तक है “सत्य उवाच” इसके
अलावा इन्होंने बहुत सारी पस्
ु तकों में बतौर सह लेखक ललखा है।
इन्हें पढना और ललखना िोनों ही पसंि है। ये ककस्मत से ज्यािा
मेहनत पे भरोसा करते हैं और ये हमेिा कहते हैं,,,
“मुझे मेरी मेहनत ही मुझे मेरी मंजज़ल दिला सकती है”

103
कामयाबी

कामयाबी न पाने में है,


ना कुछ बन िाने में,,
कामयाबी तो है,,
मुस्कुराने में,,
आि इन्सान हंसता तो है,
पर िस
ु रों पे,,
कभी खुि पर हंसे,
तो िाने,,
क्या क्या सहते हैं लोग,
आि ज़माने में,,
कामयाबी न पाने में है,
ना कुछ बन िाने में,,
कामयाबी तो है,
खुलियां लुर्ाने में,,
खैर सबको अपनी पडी,
चाहे छोर्ी हो या बडी,,
ये उम्र है,
उम्रकैि नहीं,,
कोई मंदिर में खुि है,
तो कोई मयखाने में,,
कामयाबी न पाने में है,
ना कुछ बन िाने में,,
कामयाबी तो है,
राह दिखाने में,,
इक तष्ृ णगी है,
ये िो जज़न्िगी है,,
104
कहते हैं सब कक,
वक़्त की हेरा-फेरी है,,
वक़्त को ना गंवाओ,
वक़्त को आिमाने में,,
कामयाबी न पाने में है,
ना कुछ बन िाने में,,
कामयाबी तो है,
वक़्त को अपना बनाने में,,
सांस आती है िाती है,
सपनों का भी कुछ ऐसा ही है,,
एक जज़ि एक िुनून,
एक संकल्प ही है,,
िो काम आती है,
राह नई बनाने में,,
कामयाबी न पाने में है,
ना कुछ बन िाने में,,
कामयाबी तो है,
आसमां झुकाने में,,
कामयाबी तो है,
मस्
ु कुराने में,,
कामयाबी तो है,
मुस्कुराने में,,
~ आज़ाि

105
क्रकरन झा (ममश्री)

मेरा नाम ककरन झा (लमश्री) है। मैं एक गह


ृ णी हूं और ग्वाललयर
मध्य प्रिे ि में रहती हूं। मैं वपछले िो वषट से लेखन कायट में
अग्रसर हूं। मुझे कववताएं, ववचार,िायरी ललखने का िौक है। मेरी
कई रचनाएं समाचार पत्र, ई पबत्रका और पबत्रकाओं में प्रकालित
हो चुकी है।

106
मेहनत

कदठन पररश्रम से अपनी,


एक सफल मक
ु ाम को पाना है।
असफलता कई बार लमले चाहें ,
पर दहम्मत को नहीं डडगाना है ।।

िीत की राह में कई व्यवधान आयेंगे,


पर हार कभी भी नहीं मानना है।
हर एक हार से कुछ न कुछ सीखकर,
िीत की राह का मागट िानना है।।

कुछ अपने ही लोग लगे होते हराने में,


नीचे थगराने से बाि नहीं आयेंगे।
असफलता पर हंसी उडाकर,
मनोबल आपका सिा थगरायेंगे।।

सुनो सबकी,करो अपने मन की,


ये बात मन में ठान लेना है ।
अच्छी बरु ी िोनों बातों को समझकर,
कुछ न कुछ ज्ञान उससे ननकाल लेना है।।

लगन और िी तोड मेहनत से,


जिस दिन अपनी मंजिल पाते हैं।
नीचे थगराने,हंसी उडाने वाले लोग,
आपके सामने नतमस्तक हो िाते है।।
~ ककरन झा (लमश्री)

107
वीरे न्द्र िैन

वीरे न्द्र िैन िी नागपुर ननवासी लभलाई प्रवासी लेखक और समाि


सेवक हैं। इन्होंने अथटिास्त्र में स्नातकोत्तर डडग्री प्राप्त की है ।
आप दहंिी एवम ् अंग्रेिी में लेखन करते हैं । आप मख्
ु यत: पद्य,
कववता, हाइकु, गज़ल, गीत, नवगीत, हास्य व्यंग्य, कहानी आदि
ववधाओं में लेखन करते हैं। आपके 150 से अथधक राष्रीय एवम ्
अंतराटष्रीय साझा संकलन प्रकालित हो चक
ु े हैं । आपकी रचनाएं
िरू ििटन ववभागीय प्रकािन से ननरं तर प्रकालित होती हैं । इसके
साथ ही आप समाि सेवा में भी अग्रणी स्थान प्राप्त करते हैं।
आपका कायटक्षत्र
े थचककत्सीय ववभागों में मरीिों को बेड, ब्लड,
हाजस्पर्ल एवम ् िवा दिलाने से संबंथधत है । आप संपण
ू ट भारत
में कैं सर के मरीिों के ललए प्रमख
ु ता से काम करते हैं । आपने
वपछले 2 वषों में 1000 से अथधक रक्त एवम ् प्लेर्लेर्टस डोनेिन
करवाए हैं ।

108
मेहनत

आि कफर मैं सुबह के िागने से पहले उठा,


और सूरि से पहले घर से ननकल गया,
सफ़र लम्बा है और,
मंजिलों तक के फासले िो तय करने हैं !!
राहें पथरीली और उबड खाबड भी हैं तो क्या?
चांि पर घर बनाना है तो,
रास्ते में गड्ढे तो लमलेंगे ही !
चुनौनतयां भी बरसती रहें गी
पर, थकना नहीं है, हार कर रूकना नहीं है,
बस आंखों में सपने, चेहरे पर मस्
ु कान
और हाथों में साहस ललए चलते िाना है,
इक नई उम्मीि है इस मन में,
इक नई िरु
ु आत िे नी है अब िीवन को,
लमल गए हैं अब िो पंख मझ
ु को,
छू लेना है मुझको अपने गगन को !
मुजश्कलें िो आएंगी तो हौंसला रखता हूं,
हर मोड पर कायम अपना फैसला रखता हूं,
काबबलीयत इतनी है मुझमें कक बिल सकता हूं िहां को,
कमज़ोर िो पड िाऊं तो साथ िआ
ु ओं का काकफला रखता हूं!
~ वीरे न्द्र िैन

109
अंिु छाररया ’असीम ’

नाम : अंिु छाररया ’असीम ’। िन्म तारीख : 21/07


लिक्षा : दहंिी बी.एड। संप्रनत : लिक्षक्षका / कवनयत्री /अध्यावपका
(दहंिी ववभाग) नारायणा स्कूल्स न्यूर्ाउन , कोलकाता।
प्रकालित कृनतयां : ’ ग ’से गिल संग्रह पुस्तक में साझा संकलन
,नतरं गा ई पबत्रका में प्रकालित
सादहजत्यक लेखन : योर कोर्टस में रचनाएं प्रकालित
ऑनलाइन प्रनतभाथगता मे प्रमाण पत्र
ननवास स्थान / िहर _ कोलकाता / पजश्चम बंगाल

110
सच्ची डगर

मन हो पववत्र यदि तो कठौती में गंग है।


पूिा से भी ज़रूरी रोर्ी की िंग है।
आडम्बरों में बँधता हरथगज़ न आिमी,
इंसाननयत की जिसके मन में तरं ग है।

कमों के अपने पथ पर बढ़ते रहो हमेिा।


हर काम एक पूिा करते रहो हमेिा।
अच्छे करोगे काम तुम्हें नाम भी लमलेगा,
सच्ची डगर पकड कर चलते रहो हमेिा।

कमों का अपने केवल है खेल जज़न्िगी।


इक िस
ू रे से लभन्न सब बेमेल जज़न्िगी।
मेहनत के लसवा और कोई रास्ता नहीं,
मँह
ु मोडने से ये बने ववष वेल जज़न्िगी।
~ अंिु छाररया ’ असीम ’

111
सुंडाविरा तनशा खीमािाई

मेरा नाम ननिा खीमाभाई है। मैं । आठवीं कक्षा पढ़ती हूं। मेरा
गांव िे गाम है। मेरे िीले का नाम पोरबंिर है। मझ
ु े ककताबें पढ़ना*
पसंि है। मझ
ु े ककताबों में कहानी पढ़ना पसंि है।

112
मेहनत में िीत

तू लसफट मेहनत कर
तुझे फल में िं ग
ू ा।
तु आगे बढ़ता िा
तुझे िीत में िं ग
ू ा।
तू सत्य का साथ िें
तुझे वविय में दिलाऊंगा।
तू अदहंसा के मागट पर चल
उस रास्ते में आ रहे कंकर में िरू करूंगा।
तू लसफट कोलिि कर
उसमें तझ
ु े कामयाब मैं करूंगा।
तू मझ
ु पर भरोसा रख
मैं उसे कभी तर्
ू ने नहीं िं ग
ू ा।
~ संड
ु ाविरा ननिा खीमाभाई

113

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