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राधे गोविन्दाय नम: 1

Dr.VIRENDRA SINGH BISHNIO MD MEDICINE MMM Govt.Ayu.Col.UDAIPUR 9413720487

हा त सं ता
By-RGC UDAIPUR
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राधे गोविन्दाय नम: 2
Dr.VIRENDRA SINGH BISHNIO MD MEDICINE MMM Govt.Ayu.Col.UDAIPUR 9413720487

हाररत संहहता –संहदग्ध संहहता; वैधकसववस्वं


(वैधक सववस्व एक टिका भी है -ले खक-नकुल)
 उपदे ष्टा-आत्रेय
 तं त्रकताव-हाररत (आत्रेय के 6 टिष्यों में से एक)
 सोंटहता टवषय वर्वनानुसार स्थान व अध्याय चरक सम अथाव तव 8 स्थान व 120 बताये है पर टनम्न
अध्याय व स्थान उपलब्ध है |
 6 स्थान में 102 अध्याय +1 पररहिष्ट अध्याय अंत मेंकुल-103 अध्याय
प्रथम स्थान अन्नपान 23अध्याय ; 
स्थान
हदतीय स्थान अररष्ट 9अध्याय
स्थान
तृ तीय स्थान हिहकत्सा 58अध्याय
स्थान
ितु थव स्थान सूत्र 6अध्याय
स्थान
पं िम स्थान कल्प 5 अध्याय
स्थान
षष्ठम स्थान िारीर 1 अध्याय
स्थान

 ये सोंटहता अभी जामनगर में सोंरटित है |


 वतव मान काल -10 -12 वी िती के बीच माना जाता है |
 कायहिहकत्सा- कषायचूर्वगुटिका पञ्चानाों ियधनाटन च |कयष्ठामयानाों िमनीटिया
कायटचटकत्सितम||
 बालरोग=गभोपिमटवज्ञानों सुटतकयपिमस्तथा|बालानाों रयगिमनीटिया बाल टचटकितम||
 अगदतन्त्र को “अगद हवष तन्त्र” कहा है |तथा अगद तंत्र व हवष तन्त्र दोनों की पररभाषा
अलग अलग बताई है |
 अगद तन्त्र=गुदामयों बत्सस्तरुजों िमनों बत्सस्तरूहकम|आस्थापन अनुवासन्तु अगद नाम एव च ||
 हवषतं त्र-सपववृटिकलु तानाों टवषयपिमनी तु या | सा टिया टवषतों त्रि.....
 टिव उपासना के साथ ग्रन्थ िु रू टकया है
 ज्वर में हनुमन्त पूजा के स्दरभव में बयला है
 क्षीर दोष -5 –घन उष्ण अम्ल अल्प क्षार
 पांडू के 5 भेद माने
 अपस्मार के हलए टमगी िब्द का प्रययग टकया
 मृदु गुर् युक्त िीर श्रेष्ठ
 िार के अटतसेवन से नेत्ररयगयत्पटि
 ताम्बुल का वर्व न –नागवल्री नाम से
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 प्रमेह में –घृत मेह, ति मेह, खटिका मेह (भेल=भस्ममेह)


 मसूररका व्याटध –बसोंत नाम से वर्व न
 चावल िब्द का वर्व न
 वर्व नानुसार ज्वर भेद –ब्राह्मर् वैश्य िटत्रय िुद्र
 गटभवर्ी में िार प्रययग टनषेध
 उपक्रम 2 प्रकार के – 1.कोपक 2.िमन
 हों सयदक कय अोंिुदक नाम टदया
 हाररत ने कास के 8 भेद
 बुत्सि का पाों चभौटतक सोंगठन टदया –आकाि महाभूत प्रधान (भाप्र –सत्व गुर् बहुल –बुत्सि )
 उपांग हि.= टिन्न टभन्नों तथा भग्नों ित टपत्सितमेव च |तेषाों दग्धप्रटतकार:प्रयक्त ियपाों ग सोंज्ञक||
 जाठरागनी पाक से िम = सबसे पहले आहार टिर दयष टिर धातु प्रार्िय
 वैध कय सुख दु ुःख का कारर् नही मानना चाटहए क्ूोंटक जीव के सुख दु ुःख में कारर् कमवटवपाक
हयते है |
 राजा,धटन,मण्डलीक,बलाटधप लयगय से टचटकिा के बदले टवि ग्रहर् करना चाटहए
 दे ि-3-
o आनुप –VK प्रकयप
o साधारर्
o जाों गल-PR प्रकयप
 काल के 3 प्रकार- अतीत,वतवमान,अनागत (वाग्भि के अनुसार मात्रा आटद काल के 12 टवभाजन
हयते है )
 सृटि उत्पटि के स्दरभव में काल के 3 भे द – उत्पादक (उत्पटि), प्रवतव क(त्सस्थटत), सोंहारक (टवनाि)
भी माने
 वषाव ऋतू-प्रमुटदतटिटमकीिभृतामही ...पोंकभूषर्टवभूटषता धरा...
 िरद ऋतू में प्रातुः काल टनमवल दटध सेवन पथ्य माना है |
 ग्रीष्म ऋतू-टदिी टदिी मृगतृष्णाचयष्ण.....
 वय के 4 प्रकार बाल-16 वषव तक; युवा -25 वषव तक; मध्यम -70 वषव तक ; वृि =70 से
उपर
 पु रुष 25 के बाद से लेकर 50 वषव की आयु तक बलवान होते है तथा कहिन पररश्रम करने
योग्य होते है ,ये पु रुषो की उत्तम आयु है |
(बाद में 27-50 वषव कय पुरुष की उिम आयु भी बताया है )
 स्त्री में वय अनुसार नाम -
o बाला – 0-5 वषव
o मुग्धा – आगे के 6 वषव तक अथाव तव 11 वषव तक
o बाला -12 वषव तक
o मुग्धा – आगे के 7 वषव तक अथाव तव 19 वषव तक
o प्रौढ़ा- आगे के 9 वषव तक अथावतव 28 वषव तक
o प्रगल्भा- आगे के 13 वषव तक अथाव तव 41 वषव तक
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 स्त्री की उत्तम आयु 24वषव से ले कर 37 वषव तक होती है |


 60-80 हीन आयु
 80 से उपर हीनतम आयु
 वाहतक प्रकृहत-सूक्ष्माटतदन्तय नखवृत्सिमेटत....चम्लीरसभयजनेच्छु....
 पै हतक प्रकृहत –मधुटपोंगनेत्र ....लौल्यटप्रय....स्तुटतटप्रय....
 कफज प्रकृहत- सोंगीतवाधयअटतसटहष्णु िील:...
 काटतव क,मागविीषव,माघ,आषाढ़ मास कय ऋतू सत्सि का काल माना है |
 ऋतू सोंटध के समय हयने वाले रयग -
o गाय-टतलक रयग
o मनुष् –यक्ष्मा रयग
o गज-पावक रयग
o अश्व –वेध रयग
 ऋतू सोंटध के समय कुिल वेध इस तरह इन इन जीवय में दयष िामक टचटकिा करे –
o गज-टपिों िामक
o घयड़य-कि िामक
o मनुष्-वातिामक

 षड रसों में लवण के स्थान पर क्षार को माना है –


“मधु र: कषायस्तिक्तोम्लकश्च क्षार:कटू : षडर सनाधे यम”
 हाररत ने 2-2 रसों से िमन व कोपन बताया है (बाकी सब ने 3-3 से )
V प्रकयपक रस = िार+कषाय ; V िामक रस =किु +अम्ल
P प्रकयपक रस = किु +अम्ल ; P िामक रस =मधु र हतक्त
K प्रकयपक रस = मधुर +हतक्त ; K िामक रस =किु +कषाय
अथाव तव
o क्षार कषाय – V
o मधु र हतक्त – K व P
o कटु अम्ल – P व V
“िार:कषाय पवन प्रकयपयों, किप्रकयपी मधुरय टतक्त | किु अम्ल्कौ टपिटवकारकाररनौ च
किू अम्ल्कौ वातिमौ||
टपतस्य नािी मधुर टतक्त किु कषायौ िमनौ किस्य”
 उसके बाद सामान्य टसिाों त(च.सम) से पुनुः 3-3 रसय से दयषयों का कयप व िामकता भी बतायी है |
 िार – क्लेद जनयटत मुखेअस्वादु रुष्णय..... आमाहारों जनयटत पुनववटिसिुिर्:....रसमहान्सववतय.....
(महान रस)
 जल के भेद =2 – अन्तररि,औत्सिद
अन्तररि जल के 2 भेद –गाों ग, सामुद्र
औत्सिद-8 प्रकार (सुश्रुत ने 7, वाग्भि =8, आठवा वाटप); 9 वा जल नाररकेल जल मानता है
हाररत |
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 हों सयदक कय अोंिुदक कहा है | तथा जल के पापयदक,रयगयदक,अोंिुदक, आरयग्यदायक आटद भी


बताये |
 गोंगा सटहत 900 नटदया समुद्रगा/समुद्रगाटमनी अथाव तव समुद्र में टगरती है |
o एक ियि दु री तक बहने वाली नदी कय “कुल्या”;
o एक ययजन तक बहने वाली नदी –“नदी”;
o 2ययजन तक बहने वाली –महानीरा कहलाती है |
 िीर कय अटग्न सौमात्मक बताया है |
 बोंध्या स्त्री की िीर नाड़ी वात से पूररत हयती है इसटलए िीर नही आता

 लों घन – 6 प्रकार – अनिन,वमन टवरे चन रक्तमयिर् तप्ततययपान,स्वेदन


 क्वाथ = 6 या 7 प्रकार (दयनयों बताये)- पाचन,िमन,दीपन,क्लेदन.....ियधन
 गुल्म सोंज्ञक ग्रहर्ी रयग के लिर् बताये है |
 गुल्म टचटकिा =
o हृदय =यकृत गुल्म (िीघ्र मरर् )
o कुिी=अटष्ठला/कयटष्ठला/वाताटष्ठला
o बत्सस्त=चन्द्रटवभद्रक
o नाटभ=ग्रोंटथ
o मध्य=प्लीहा रयग
 कृटम= 2 भेद  बाहा-7; आभ्योंतर-6
 सूटचमुखीकृटम-“यकृत वा भक्ष्यत्सन्त अन्य.......”
 पाों डू रयग – 5 भेद – V P K S रुिर्जन्य(मृटतकाभिर् जन्य )
 अपस्मार/टमगी – दयष (VPK+उदान); पतिे काष्ठवत लाला स्त्राव......
 दीप घृत –अपस्मार टचटकिा
 उन्माद -8 प्रकार – V P K द्दर् ज S टवषज
 वातव्याटध-84 प्रकार (च.80)
 भृोंगराज ते ल= हाररत = वातव्याटध (FA= भृोंगराज ते ल = श्वास टचटकिा )
 गृध्रसी – वात+रक्त से उत्पन्न
 हररत ने बंध्या के 6 भेद माने
 (बोंध्या=RRS-9= आटदबोंध्या, R,V,P,K,भुतजन्य,दे वजन्य,अटभचारजन्य, Sजन्य  इनमे से िमि
िु रू से 4 बोंध्या गभवस्त्रावी,मृतविा,स्त्रीप्रसूटत,काकबोंध्या हयती है |
आटदबोंध्या=पापकमवटवटनटमवता हयती है | )
 गभव उपद्रव-8-हल्रास,िदी,ियथ,ज्वर,ियक,अरुटच ; ियक टच-उष्ण जल स्वेदन,टवरे चन टनषेध
 क्षीर दोष -5 “घनिीरा उष्णिीरा अम्लिीरा अल्पिीरा िारिीरा” (च.-8 दयष)
 मृदुिीरा=(िुि िीरा)
 उत्फुस्तिका/उत्फुि रोग- आध्मात िुल्र कुिी ....श्वास .....
o टच.-जलयका दारा उदर पर रक्त मयिर्
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o अटग्न द्वारा िलाका से दहन कमव, उदर(जठर) पर टबोंदु आकृटत का दहन


 ग्रह-10
 प्रबोंधन-4
 टत्रिला क्वाथ-
o चिुधावन के क्वाथ-नेत्र रयग टनवारर्
o िीतकाल में गुड+िुों ठी
o उष्ण काल-िकवरा +िीर
o वषाव –िु ण्ठी
o िीर्इत्सन्द्रय,जीर्व ज्वर,यक्ष्मा में – िीर के साथ
 गुग्गुलु कक- मरुभुमय प्रजायन्ते प्रायि खुरपाद....
o गुर्-आयुष्.....टववधवने|
o मात्रा-1कषव से प्रारों भ कर के 1 पल तक
o अवरसेवन काल -7 टदन , मध्य-14 टदन,प्रवर-21 टदन
 मासनुमाटसक वृत्सि-
प्रथम टदन कलल
10टदन- बुदबुदाकार,ियटर्त आकृटत
15टदन- घन
20टदन- माों स टपण्ड
25टदन- पोंचमहाभूतात्मक
30हदन- हपण्ड
50टदन- अोंकुरयत्पटि
3 माह- हस्त पाद प्रवधवन
साढ़े 3 माह- टिर उत्पटि
4 माह- लयम उत्पटत
5 माह- सुजीव
6माह – प्रस्फुरर्
8माह - अहियोग
9माह- चेिा युक्त
10-11 माह प्रसव हे तु

 प्रधान महाभूत –आकाि


 आकाि से जल,जल से पृथ्वी,पृथ्वी इ ते ज,ते ज से तम की उत्पटि
 िु ि श्लेष्मा से उत्पन्न
 मेद रस अत्सस्थ –रक्त से उत्पन्न
 टपि हृदय में आटश्रत हयता है
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 यकृत की उत्पटि वात+रक्त से


 उरु- रक्त,कि, रस का आश्रय
 प्लीहा – कि एव रक्त का आश्रय

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