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ायाम का मह व - वामी ओमान द सर वती

ओ३म्

ायाम का मह व

लेखक

व० वामी ओमान द सर वती

काशक - हरयाणा सा ह य सं थान, गु कुल झ जर, जला झ जर (हरयाणा)

आठवां सं करण - अग त २००६ ई०


(सं० २०६३ व०)

The author - Acharya Bhagwan Dev alias


Swami Omanand Saraswati

दो श द
चाहे ी हो वा पु ष, जो भी भोजन करता है उसे ायाम क उतनी ही आव यकता होती है जतनी क
भोजन क । कारण प है । शरीर म ायाम पी अ न न दे ने से मनु य का शरीर आलसी, नबल और
रोगी हो जाता है, जन खा पदाथ से र आ द धातु का नमाण तथा बल का संचय होता है, वे सड़ने
लगते ह और शरीर म ग ध उ प करके मनु य के मन म अनेक कार के बुर-े बुरे वचार उ प करने लगते
ह, मनु य क बु और मरण श म द हो जाती है और युवाव था म ही उसे ःखदायी बुढ़ापा आ घेरता है
। य द मानव शरीर से आन द उठाना है तो उसे ायाम तथा चय र ा ारा व थ और ब ल करना
येक ी पु ष का परम धम है । इस ायाम का मह व नाम क लघु पु तका म ायाम से मनु य को
परम आरो य अथवा आदश वा य क कस कार ा त होती है, मु यतया इसी वषय पर काश डाला
गया है । इसको सं त प म इस लये नकाला गया है क जन साधारण इसे आसानी से खरीद सके, तथा
धनी मानी स जन इसे अपने दान से चाराथ बंटवा सक, ायाम के वषय म अ धक जानने के लए मेरे
ारा ल खत ायाम स दे श (स च ) पढ़ जसम दे श वदे श के ायाम के भेद, आसन के ायाम क
वशेषता तथा लाभ, ायाम का समय और थान, य के लए उपयु ायाम तथा आयु के अनुसार
ायामा द अनेक वषय पर व तार प से लखा गया है ।

य द कुछ भी युवक ने इसे पढ़कर नय मत ायाम करने का त लया तो म अपना प र म सफल समझूंगा

- सेवक
ओ३मान द सर वती

पृ १

ायाम का मह व
ायाम का मह व - आवरण पृ
संसार म सव म और सव य व तु वा य ही है । रोगी तो सर पर भार ही होता है । सांसा रक धन ऐ य
तथा भोग वलास के सब साधन क व मानता भी रोगी के लए ःख का ही कारण बनती है । वह
मलमू यागा द साधारण आव यकता को भी वयं पूरा नह कर सकता । उसे त ण सर का ही
सहारा और सहायता चा हये य क रोगी सदै व अ य त ःखी होने से सवथा पराधीन ही रहता है । सव
परवशं ःखम ...... पराधीन सुपने सुख नाह अतः रोगी का जीवन रोग का क भोगते-भोगते शु क,
नीरस और अ य त ःखमय हो जाता है । संसार म नरक के सा ात् दशन रोगी को ही होते ह । इसी लए
साधारण मनु य भी जानते ह - पहला सुख नरोगी काया - व थ मनु य के लए यह संसार वग समान है ।
एक द र मनु य जो पूण व थ है वही यथाथ म धनवान् है । य द एक च वत स ाट् भी रोगपी ड़त है तो
वह ःखी, द न, द र , रंक के समान है । रोगी वयं ःखी होता और अपने इ म तथा स ब धय को भी
ःखी रखता है । रोग से मनु य क श , बल और जीवन का ास होता है । कसी रोग म चाहे क वा ःख
भले ही थोड़ा हो क तु अमू य समय और शरीर क अव य ही हा न और नाश होता है । रोगी मनु य का लोक
और परलोक दोन ही बगड़ जाते ह । इस लए ातः मरणीय ऋ षय ने हमारे क याणाथ कतनी उ म
श ा द है ।

पृ २

धमाथकाममो ाणामारो य मूलमु मम् । मनु य के जीवन को सफल बनाने वाला “पु षाथचतु य”
अथात् धम, अथ, काम और मो क ा त का आधार वा मूल साधन आरो य ही है । सांसा रक सुख
(अ युदय) तथा पारलौ कक सुख ( न ेयस्) वा मो सुख क ा त बना आरो य के अनेक ज म म भी
नह होती । रोगी मनु य के वसाय ध धे तथा स या ई रोपासना द धम-काय सभी छू ट जाते ह । इसी लए
वा य ही हमारा सव व है । इसक र ा करना हमारा परम क है क तु अ य त ःख क बात है क
सभी भारतवा सय का वा य धीरे-धीरे गर रहा है । म या आहार होने से हमारा शरीर षत वा रोगी होता
है । मनु य अ ानवश वा कुसंग के कारण अनेक सन म फंसकर अपने आहार वहार को बगाड़ लेता है ।
कसी को खाने का सन है, कसी को पीने का सन है और कसी को वीयनाश वा वषय-भोग का सन
है, न जाने कतने सन ह । भला इन च क , वाद और सन ने ही हमारे भोजन-छादन और आहार-
वहार को बगाड़ा है तथा हमारे वा य का द वाला नकाला है । कहा भी है रोग तु दोषवैष यं
दोषसा यमरो गता म या आहार वहार से वात, प कफा द दोष म वषमता आ जाती है अथात् ये घट
बढ़ जाते ह । यही रोग का कारण है । जब ये समाव था म रहते ह तो हमारा शरीर नीरोग व व थ रहता है ।
मह ष ध व त र जी महाराज सु ुत म लखते ह -
समदोषः समा न समधातुमल यः ।
स ा मे यमनाः व थ इ य भधीयते ॥

मह ष जी ने सागर म गागर भर दया है । इसका भावाथ यह

पृ ३
है - “ जस मनु य के दोष वात, प और कफ, अ न (जठरा न), रसा द सात धातु, सम अव था म तथा
थर रहते ह, मल मू ा द क या ठ क होती है और शरीर क सब याय समान और उ चत ह, और
जसके मन इ य और आ मा स रह वह मनु य व थ है ।” मह ष ध व त र जी के कथन का सार यह है
क जस मनु य के शरीर म वात, प और कफ तीन दोष समान अव था म रहते ह, वे कभी घटते बढ़ते न
ह , पेट क अ न भी सम हो अथात् उ चत मा ा म खाये ए भोजन को भली भां त पचा सके, जससे ुधा
(भूख) खूब अ छ लगे, मल मू ा द का याग ठ क-ठाक होता हो, शरीर म रस से लेकर वीय पय त सात
धातु भलीभां त बनते ह और शरीर का अंग बनकर इसे पु और बलवान् बना रहे ह , कसी धातु का य वा
नाश न हो और चब मेदा द क अ धक वृ भी न हो अथात् मनु य म बल श ओज तेज उ साहा द गुण
पया त मा ा म पाये जाय, शरीर म कसी कार का क वा पीड़ा न हो, मन आ मा सदै व स रह और सब
इ यां अपना-अपना काय भली भां त करती ह वह मनु य पूण व थ और नीरोग है । ऐसा आदश वा य
या सबको ा त हो सकता है ? या येक मनु य पूण व थ और पूण सुखी हो सकता है ? अव यमेव !
परम पता परमा मा ने हम रोगी और ःखी होने के लए नह बनाया है । हम तो ःख और रोग को वयं
बुलाते ह । फर रोते और पछताते ह । पूण सुख और वा य क ा त का रह य सु ुत म मह ष ध व त र
जी वयं बताते ह ।
स चे सुख और पूण वा य क ा त का एकमा साधन ायाम ही है ।

पृ ४

शरीरोपचयः का तगा ाणां सु वभ ता ।


द ता न वमनाल यं थर वं लाघवं मृजा ॥१॥
म लम पपासो णशीताद नां स ह णुता ।
आरो यं चा प परमं ायाम पजायते ॥२॥

ायाम से लाभ
मह ष ध व त र जी महाराज सु ुत म लखते ह । ायाम से शरीर बढ़ता है । शरीर क का त वा सु दरता
बढ़ती है । शरीर के सब अंग सुड़ौल होते ह । पाचनश बढ़ती है । आल य र भागता है । शरीर ढ़ और
ह का होकर फू त आती है । तीन दोष क (मृजा) शु होती है ॥१॥
म थकावट ला न ( ःख) यास शीत (जाड़ा) उ णता (गम ) आ द सहने क श ायाम से ही आती है
और परम आरो य अथात् वा य क ा त भी ायाम से ही होती है ।
मह ष जी के उ कथन पर भलीभां त वचार करना है । जो भोजन हम त दन करते ह वह थम हमारे
प वाशय (उदर) म, पेट क अ न जसे जठरा न कहते ह, खाये ए भोजन को पकाती है, आमाशय (पेट)
को पाकशाला के समान समझो । य द रसोई म अ न भलीभां त नह जलती तो भोजन अ छा वा सवथा नह
पक सकता । इसका फल यह होगा क सारा प रवार भूखा रहेगा वा खराब भोजन करके रोगी पड़ जायेगा ।
जसक जठरा न वा आमाशय ठ क कार काय नह करता उसका खाया आ भोजन भली कार से नह
पचता और शरीर का अंग भी नह बनता । फर सारा शरीर रोगी वा नबल हो जाता है । जसक पाचनश
वा जठरा न अ छ तथा ती होती

पृ ५

है उसको भोजन शी तथा अ धक मा ा म पचता है । भोजन पचने पर आमाशय से ही शेष अंग को प ंचता
है तथा सारे शरीर को श और आरो य दान करता है । ती जठरा न भोजन के पौ क सार भाग को मल
भाग म नह जाने दे ती । य क भोजन के ठ क पचने पर मल भाग (मल मू ा द) पृथक् तथा शु भाग
(रसा द) पृथक् हो जाते ह । जसक जठारा न ठ क काम करती है उसका खाया आ पौ क भोजन थ
नह जाता । उसका पचकर रस बन जाता है । फर रस से अ य धातु का नमाण होता है । जैसा क मह ष
धनव त र जी महाराज सु ुत म लखते ह -
रसा तं ततो मांसं मांसा मेदः जायते ।
मेदासोऽ थ ततो म जा म जायाः शु स भवः ॥

अथात् रस से र (ल ), र से मांस, मांस से मेद (चरबी) बनता है । मेद से अ थ (ह ी), अ थ से म जा,


म जा से शरीर के सार अमू य र न शु (वीय) क उ प होती है । इस कार मशः सात धातुय बनती
रहती ह जो शरीर को धारण, पु और ढ़ करती ह । ी के शरीर म जो सातव अ त शु धातु बनती है
उसको रज कहते ह । दोन म केवल भेद इतना है क वीय कांच के समान चकना और ेत (सफेद) होता है ।
ी का रज लाख के समान लाल होता है । ये शरीर को धारण करती ह इस लए धातु कहलाती ह । अथवा य
क हये धातु से ही शरीर का नमाण, वृ वा उपचय होता है और इनक घटती वा ास से ही शरीर का
नाश होता है । इस लए मह ष धनव त र जी महाराज ने कहा आषोडशाद् वृ ः सोलह वष से प चीस वष
तक क आयु वृ अव था मानी जाती है । इस आयु म

पृ ६

वीया द सभी धातु क वृ (बढ़ती) होती है । वृ अव था म कई कारण से जठरा न बड़ी ती होती है


। जो कुछ भी खाया, पीया जाता है वह शी पच, रसा द धातु बनकर शरीर का अंग बन जाता है और इसे ढ़
और पु बनाता है । जसक जठरा न म द होती है वह वृ अव था म नबल तथा युवाव था म भी बुड्ढ़ा
ही रहता है । सार यह है क हमारे उदर म एक कार क उ णता (अ न) है जो भोजन को पचाती, पौ क
भाग को हण करती और मल भाग को बाहर नकालती है और रसा द धातु से मनु य शरीर का नमाण वा
वृ करती है । इस उ णता (गम ) क सबको आव यकता है और ायाम से सारे ही शरीर म उ णता आ
जाती है । वह नस ना ड़य के ारा भोजन से रस को इस कार खचती रहती ह जस कार जल को पंज वा
म स ( याही) को म सशोषक ( याहीचूस) और यही उ णता शरीर म रस से र ा द धातु का नमाण और
संचार करती है । जस कार व ुत् क धारा से बजली के तार म उ ेजना (गम ) का संचार होता है उसी
कार ायाम से सारे शरीर म र उ े जत होकर नस ना ड़य के ारा अ य त ती ग त से दौड़ने लगता है ।
नस ना ड़यां सब उ े जत तथा कायशील हो जाती ह । सारे शरीर म र संचार भलीभां त होता है और
यथायो य सब अंग को श दान करता है । व ुत्-तार बना व ुत-् धारा (current) सवथा न त व वा
श हीन है उसी कार र संचा रणी सब नस ना ड़यां र संचार के बना थ ह और र संचार बना र
के बने हो कैसे ? र बनता है रस से और रस बनता है भोजन के पचाने से, भोजन पचता है उ णता (पेट क
गम ) से और उ णता क जननी है ायाम । और

पृ ७

इस उ णता से रस, रस से र ा द बनता और फर र नस ना ड़य के ारा नयम से सारे दे ह म प र मण


करता तथा श संचार करता है । ायाम से द त ई जठरा न भोजन से पोषक को ही हण नह
करती अ पतु इसम यह भी श है क यह शरीर से वजातीय ( थ के) मल मू ा द को बाहर नकाल
फकती और शरीर को शु प व बनाती है। जस कार झाड घर म माजन (सफाई) का काम करती है इसी
कार यह शरीर क गम अनेक माग ारा मल मू ा द पी कूड़े करकट को बाहर नकाल फकती है और
यह उ णता ायाम से शरीर म इतनी अ धक उ प होती है क यह थूल से थूल, सू म से सू म चपटे ए
मल और दोष को भी गुदा, मू े य, ने , कण, ना सका और रोमकूप (मसाम ) आ द के ार मल, मू ,
े मा, कफ, थूक, लार, प और वेद (पसीना) आ द के प म शरीर से बाहर नकलकर छोड़ती है । यहां
तक क ायाम करने से पसीने के ारा अनेक कार के वष भी शरीर से बाहर नकल जाते ह । इस वषय
म ो० राममू त के जीवन क एक घटना है । योरोप म इ ह नीचा दखाने के लए कुछ पा पय ने भोजन म
धोखे से वष दे दया । जब इ ह पता चला तो इ ह ने एक साथ दस प ह हजार द ड नकाल डाले, सब वष
वेद (पसीने) के ारा बाहर नकल गया और वे बच गए । ायाम करने वाले का शरीर अ य त शु वा
नमल और नद ष हो जाता है । मल मू ा द ठ क री त से नकल जाते ह । कभी मलब ध (क ज) नह होता
। उसे यह च ता नह करनी पड़ती क ट आएगी वा नह । शौच दोन समय खुलकर आता है, आमाशय वा
जठरा न को बल दे ने वाला सबसे स ता

पृ ८

और सव म योग (नु खा) ायाम ही है । ायाम करने वाले को म दा न का दोष कभी नह होता । वह जो
भी पेट म डाल लेता है, सब कुछ शी ही पचकर शरीर का अंग बन जाता है । उस का खाया पीया घी, ध
आ द पौ क भोजन उसके शरीर को ही लगता है, ट म नह नकलता । अतः उसक बल श दन
त दन बढ़ती ही चली जाती है । उसके अंग यंग क वृ यथायो य होती है । शरीर के अंग को सुडौल,
सघन, गठ ला और सु दर बनाना ायाम का थम काय है । य द कोई मनु य केवल एक वष नर तर
नयमपूवक कसी भी ायाम को कर ले, तो उसका शरीर भी सु दर और सु ढ़ बनने लगता है और जो सदै व
ापूवक दोन समय यथा व ध ायाम करते ह उनका तो कहना ही या, उनके शरीर क सभी मांसपे शयां
लोहे क भां त कड़ी और सु ढ़ हो जाती ह और सभी नस ना ड़यां, सारा नायुम डल और शरीर का येक
अंग व वा इ पात (फौलाद) के समान कठोर और सु ढ़ हो जाता है । चौड़ी उभरी ई छाती, लं बी सुडौल
और गठ ई भुजाय, कसी ई पड लयां, चढ़ ई जंघाय, वशाल म तक तथा चमचमाता आ र वण
(लाल) मुखमंडल उसके शरीर क शोभा को बढ़ाता है । यथा व ध ायाम करने से शरीर का यक अंग
यथे वृ को ा त हो, अ य त सु दर सु ढ और घन बन जाता है । शरीर पर थ का मांस वा मेद (चब )
चढ़कर उसे ढ ला नह करने पाता, पेट शरीर से लगा रहता है, बढ़ने नह पाता । मह ष ध व त र जी महाराज
लखते ह -

पृ ९

न चा त स शं तेन क च थौ यापकषणम् ।
न च ाया मनं म यमदय यरयो भयात् ॥१॥
न चैनं सहसा य जरा सम धरोह त ।
थरीभव त मांसं च ायामा भरत य च ॥२॥
वयो पगुणैह नम प कुया सुदशनम् ॥३॥

अथ - अ धक थूलता को र करने के लए ायाम से बढ़कर कोई और औष ध नह है, ायामी मनु य से


उसके श ु सवदा डरते ह और उसे ःख नह दे ते ॥१॥
ायामी मनु य पर बुढ़ापा सहसा आ मण नह करता, ायामी पु ष का शरीर और हाड़ मांस सब थर
होते ह ॥२॥
जो मनु य जवानी, सु दरता और वीरता द गुण से र हत है उसको भी ायाम सु दर बनाता है ॥३॥
ठ क ही है ायाम करने वाले का शरीर बड़ा कसा आ और सुता आ, अ य त सु दर और दशनीय होता है
। रंग रोगन नखर आता है, मुख पर या सारे शरीर पर लाली, अ त का त और तेज चमचमाता है । बुढ़ापा
उसके पास आता आ घबराता है । ायाम करने वाले से श ु भी भय खाता है । रोग, बुढ़ापा और मोटापे
क तो या बात, मृ यु को भी चार ठोकर लगाता है । वह गुण क खान और उसका शरीर सु दरता का तीक
(नमूना) बन जाता है । आ हा ! य द ऐसा युवक लंगोट बांधकर खड़ा हो जाये तो दशक क यही इ छा रहती
है क इसके सु दर शरीर को दे खते ही रह । उसका आदश वा य और मनोहर मानुष दे ह क कमनीय का त
उनके मन को मोह लेती है । मोहे य नह , जब जो पौ क भोजन उसने खाया वह पूणतया पच गया और
जो उसका सार (त व) वीय बना वह भी ायाम ारा पचकर र म मल जाता है और शरीर का ही अंग बन
जाता है ।

पृ १०

वीय वै बलम् वीय तो श और बल का भ डार है । ायाम से इसक ऊ व ग त हो जाती है और यह ओज


के प म चमकने लगता है । वीय क अधोग त होती ही नह और वीय के नाश और पतन क संभावना ही
नह रहती । शरीर म वीय क खूब वृ होकर थरता आ जाती है । इस लए महापु ष ने ायाम को
वीयर ा का सव म साधन माना है । ायामी पु ष को जागृत वा व ाव था म भी कसी कार भी
वीयनाश का भय नह रहता । फर ऐसे वीयवान् मनु य का शरीर य नह सु दर और सुडौल बने, य नह
उसके प व और प रपु दे ह पर मनोहर का त और सु दर छ व छाये । ायाम ेमी के वचार सदै व शु
और प व रहते ह । वह कुसंग, कु सत और कामुकता के वचार से सवथा र रहता है । य द कसी को
कुसं कारवश बुरे वचार तंग ही कर और कसी कार भी वश म न आय तो उसी समय तेज दौड़ आर भ कर
दे अथवा कोई भी ायाम करने लग जाना चा हए, फर दे खए क वचार कैसे पूंछ दबाकर भागते ह ।
उनका पता भी न चलेगा कहां गए । कामवासना का वेग कतना भी बल य न हो, तुर त ही दब जायेगा ।
ायाम का वाद (च का) भचार क भावना को सवथा समूल न कर दे ता है । नीच से नीच मनु य य द
नयमपूवक ायाम करने लग जाये तो वह वयं नीचता से घृणा करने लगता है । नय मत ायाम से
आचारहीन भचारी भी सदाचारी और चारी बन जाता है । ायाम से मनो वकार क अ ये हो
जाती है और मन सब इ य का राजा है, जब मन ही शु प व होकर वश म आ जाता है तो शरीर और
इ य के सब दोष र होकर वे वयं शा त और प व हो जाती ह ।

पृ ११

आ मा को शम और दम क श ा त होती है । ायाम से अ दर और बाहर क शु (मृजा) और सफाई


हो जाती है । वह सवथा शु प व और दे वता बन जाता है । ऐसी अव था म ायाम करने वाले के लए
वीयर ा वा चय का पालन वाम ह त का काम हो जाता है ।
मह ष पत ल के कथनानुसार चय त ायां वीयलाभः चय पालन से अपूव बल और श क
ा त होती है । नबलता कोस र भागती है । नबलता तो आलसी मनु य के ार पर ही डेरा लगाती है ।
यही मनु य को अ धक कामी और वलासी बनाती है । ायाम आल य का परम श ु है । जब त दन
मनु य नयम से ायाम करता है तो उसे शरीर से जान बूझकर प र म करना पड़ता है, और इस कार
नर तर ायाम करते रहने से उसका प र म करने का वभाव ही बन जाता है । फर कैसा आल य और
कैसा माद ? वहां आल य को कहां ठौर ठकाना ! ायाम से डरकर आल य सकड़ कोस र भाग जाता है
। ायामी ायः जलते ए मकान , डू बते ए लोग को बचाते ए दे खे गये ह । ायाम से शरीर हलका-
फुलका और फुत ला हो जाता है । व च ता यह है क ायाम अ धक थूल (मोटे ) मनु य को पतला और
पतले को मोटा बनाता है और यही संसार म दे खने म आया है क फौजी भाइय म बुढ़ापे म भी कतनी फू त
और उ साह होता है य क उ ह नय मत ायाम (पी.ट .) करना होता है । इसी कारण उनम आल य नाम
को भी नह होता और काय करने के लए त ण तैयार रहते ह । यह सब ायाम का फल है ।
ायाम के वषय म फांसी के त ते पर हंसते-हंसते झूलने वाले ० राम साद जी लखते ह – “म न य
म दर म आने-जाने लगा, पुजारी जी मुझे चय पालन का उपदे श दे ते थे, वह मेरे पथ दशक बने । मने
एक

पृ १२

सरे स जन क दे खादे खी ायाम आर भ कर दया। अब तो मुझे भ माग म कुछ आन द तीत होने


लगा और चार पांच महीने म ही ायाम भी खूब करने लगा । मेरी सब आदत और कुभावनाय जात रह ।
इसके बाद मने स याथ काश पढ़ा, इससे त ता ही पलट गया । स याथ काश के अ ययन ने मेरे जीवन म
एक नया पृ खोल दया । मने उसम उ ल खत क ठन चय के नयम का पालन करना आर भ कर दया
। म एक क बल को त त पर बछा कर सोता और ातःकाल चार बजे से ही श या याग दे ता । नान
स या द से नवृत ायाम करता । ायामा द करने के कारण मेरा शरीर बड़ा सुग ठत हो गया था और रंग
नखर आया था क तु मन क वृ यां ठ क न होत । सहसा ही बुरी आदत को छोड़ा था इसी कारण कभी-
कभी व दोष हो जाता । मने रा के समय भोजन करना याग दया, केवल थोड़ा सा ध ही रात को पीने
लगा । फर कसी स जन के कहने से मने नमक खाना भी छोड़ दया । केवल उबालकर साग या दाल से एक
समय भोजन करता । मच खटाई तो छू ता भी न था । इस कार पांच वष तक बराबर नमक न खाया । नमक
के न खाने से शरीर के सब दोष र हो गये और मेरा वा य दशनीय हो गया । सब लोग मेरे वा य को
आ यक से दे खा करते ।”
० राम साद ब मल के वषय म लखा है “उनम असाधारण शारी रक बल था । घोड़ा चढ़ने और तैरने
आ द म वे पूरे प डत थे । थकान कसे कहते ह वे जानते ही न थे । साठ-साठ मील बराबर चलकर भी आगे
चलने का साहस रखते थे । ायाम और ाणायाम वे इतना करते थे क दे खने वाले आ यच कत होते थे ।
ह द , उ , अं ेजी और बंगला चार भाषाय भली-भां त जानते थे । जब आप अं ेजी क दशव लास म

पृ १३

थे, आपक आयु १९ वष क थी। मैनपुरी व लव दल के नेता ी गदालाल द त को वा लयर क जेल से


छु ड़ाने के वा ते अपने साथ १० और व ा थय को लेकर जनक आयु २० वष से यून थी, पहली डकैती
डाली थी । यह डकैती समा त भी न होने पाई थी क गांव म खबर हो गई और चार ओर से ट चलने लग ग
। यह दे खकर लड़के घबरा गए । लाड़- यार के पाले गए कूल के उन लड़क ने अब तक ऐसा भयंकर काय
काहे को कया था ! ऐसे समय म ी राम साद जी ने बड़े साहस और ढ़ता से काम लया । आपने जस
ओर से ट आ रह थ उधर जाकर कहा - ट बंद कर दो वना गोली से मार दये जाओगे । इतने म एक ट
उनक आंख पर आ लगी और सारे कपड़े खून से तर हो गए । उस समय उस साहसी वीर ने आंख क कुछ
परवाह न कर गोली चलानी शु कर द । फायर के बाद ट बंद हो ग । डकैती समा त कर सब लोग
वा पस चल दए । पहले दन के भी सब थके ए थे । आधी र चलकर ायः सब लोग बैठने लगे, ब त कुछ
साहस बांधकर चले ही थे क एक व ाथ बेहोश होकर गर पड़ा । होश आने पर उसने कहा अब मुझ म
चलने क श नह , तुम मेरे लए अपने आपको संकट म न फंसाओ, अभी कुछ रात शेष है तुम आसानी से
अपने थान पर प ंच सकते हो । मेरा सर काट लेते जाओ, सर काट लेने पर मुझे कोई पहचान न सकेगा ।
इस कार आप सब लोग बच सकोगे । साथी क इस बात से सबक आंख म आंसू आ गये । हमारे दल के
नायक चारी राम साद जी को चोट लगने के कारण उस समय पया त ल नकल चुका था । सब सा थय
को चलने क आ ा द और उसे अपनी पीठ पर उठाया और साहस करके यथा थान प ंचा दया ।

पृ १४

“ चारी राम साद जी को ोध ब त कम आता था, क तु जब आता, लयानल का प धारण कर लेता


। ायः अभागे खु फया पु लस के गु तचर ही इनके ोध के भाजन बनते थे । एक बार इ ह ने एक खु फया
को इतना पीटा क वह ब त दन तक बछौने से उठ न सका । एक बार सरे खु फया क ऐसी मर मत क
क वह नौकरी से यागप दे कर चला गया । नय मत ायाम करने से चारी राम साद म इतना बल और
साहस आ गया था । जस समय मृ यु-द ड का स दे श सुनाया गया, उस दे शभ का स ता के मारे कई सेर
भार बढ़ गया । फांसी के समय जब फांसी के त ते के पास प ंचा तो उसने कहा - I wish the
downfall of British Empire - म टश सा ा य का नाश चाहता ं । इसके बाद फांसी के त ते पर
खड़े होकर ाथना के बाद ओ३म् व ा न दे व स वत रता न० आ द म का जाप करते ए वह वीर
गोरखपुर क जेल म भारत माता क वत ता के लए हंसते-हंसते फांसी के फ दे पर झूल गया ।”
उपरो घटनाय यह स करत ह क ायाम करने वाला क ठन से क ठन काम को हंसते-हंसते कर लेता है
। उसम काय करने क अद य श और फू त आ जाती है । वह व म भी कसी काय से नह डरता और
न ही जी चुराता है । न ही घृणा करके कसी काय से नाक और भ वे चढ़ाता है । थकना वा थककर ास
चढ़ना वा हांपना या होता है, वह जानता ही नह । वह सदै व पवत के समान थर वा ढ़ रहता है । उसके
लए ःख नाम क कोई व तु ही नह होती, तीन ताप और पांच लेश उससे र भाग जाते ह । वह मौत के
साथ भी हंसी करता है । फर उसके लए शीत (सद ), गम , भूख- यास, सुख- ःख, हा न-लाभ, मान-
अपमान, हष-शोक, जय-पराजय और

पृ १५

जीवन-मरण आ द पर पर वरोधी द को बना कसी च ता वा वलाप के सहना साधारण सी बात हो


जाती है । ायामशील इन द के साथ आन द के साथ यु (म यु ) करता है । पात ल
योगभा य म मह ष ास तपो सहनम् को सहने को तप मानते ह । ायाम भी एक कार का तप
है य क त दन नय मत ायाम करने से शरीर से इ छापूवक प र म ारा क सहने का अ यास कया
जाता है । अतः ायामशील तप वी वा क स ह णु वभाव से ही हो जाता है । आप शीतकाल म
ायाम करने वाले और अ य मनु य क दशा को दे खकर इस रह य को खूब समझ सकते ह । ायाम करने
वाला अपने सव काय को स तापूवक करता रहता है । वह तो ातःकाल तीन चार बजे मु त म
माघ पौष के र को जमा दे ने वाले भयंकर शीत म भी आकाश क छत के नीचे केवल एक लंगोट बांधे ए
शु प व शीतल वायु म खूब ायाम का आन द लूटता है । उधर ायाम न करने वाला शीत के डर के मारे
रजाई म मुख छपाये सकुड़ा पड़ा रहता है । मल-मू याग क इ छा होते ए भी बाहर जाते ए शीत के
कारण उसके ाण नकलते ह । आ य क बात यह है क ायाम से शीत सहन करने क नह वरन् गम
सहन करने क श भी आती है । ायाम करने से ास- ास अ धक सं या म अथात् वेग से आते ह ।
एक कार से भ का ाणायाम होता रहता है । इससे म तक और फेफड़े व (फौलाद) के समान ढ़ हो
जाते ह । सद गम का भाव थम म तक तथा फेफड़ (फु फुस) पर ही पड़ता है । अतः सद गम आ द
सहने क असाधारण श ायाम ारा ा त होती है । यथाथ बात तो यह है क सब कोई नबल का ही बैरी
है । ायाम नबल को भी सबल बनाता है ।

पृ १६

बलवान् और व थ मनु य से यह भी डरते ह । ायाम मनु य को तप वी बनाता है यह कतने मह व


क बात है । मह ष पत ल महाराज ने तप का बड़ा भारी फल लखा है ।
काये य स रशु या पसः

अथात् - तप से सब कार क अशु का नाश होता है । शरीर और इ य क स ा त होती है । तप


मल आ ेप और आवरण आ द मान सक रोग को र करके मन को प व नमल बनाता है और वात, प ,
कफ आ द शारी रक दोष को सा याव था म लाकर शरीर को व थ और ब ल बनाता है । इस लए मह ष
वामी दयान द जी महाराज भी लखते ह क चाहे राजकुमार हो वा राजकुमारी हो चाहे द र क स तान
हो, सबको तप वी होना चा हए ।

इसी कार ायाम से मनु य का सब कार के रोग से छु टकारा हो जाता है । जब सूय उदय होता है तो
अ धेरा, उ लू और गीदड़ सब भाग जाते ह । इसी कार मह ष ध व त र जी के कथनानुसार ाधयो
नोपसप त सहं ु मृगा इव ायाम करने वाले मनु य के पास रोग नह फटकते । इसी कार क एक
घटना है “एक समय एक प डत क ी से कसी वै ने कुय पर पानी मांगा । वह ी कसी कारणवश
शी जल न दे सक । वै जी ोध म आ गए और कहने लगे क इसका बदला म उस समय लूंगा जब तेरा
प त रोगी होगा । ी बचारी बड़ी च ता म पड़ी, सारा वृ ा त अपने प त से कह सुनाया । प डत जी बड़े
बु मान् थे । उ ह ने उसी समय एक ोक लखकर वै जी के पास भेज दया । वै जी उस ोक को
पढ़कर दौड़े-दौड़े प डत जी क पास आये और न तापूवक मा याचना करने लगे ।” उस ोक का ता पय
यह है - “वै जी, जो लोग अपने वीय को थ नह खोते और

पृ १७

सदा ायाम करते रहते ह उनको रोगी और आप जैसे वै नह डरा सकते ।” अतः ायाम से बढ़कर शरीर
को व थ और पु बनाने वाला और कोई उ म साधन संसार म नह है । य क जस दे श का राजा बलवान्
और सदा यायकारी होता है उस दे श म चोर, डाकू, लुटेरे और पापी-जन नह ठहरते । इसी कार जस
मनु य ने ायाम क साधना से अपने शरीर के राजा (सार) वीय को अपने शरीर का अंग बना लया हो भला
ऐसे वीयवान् और ब ल के पास ये रोग पी लुटेरे कैसे फटक सकते ह ? भोगे रोगभयम् भोग का
फल रोग है अतः भोगी ही रोगी होता है । ायाम पी तप क भ म चारी के सब मैल, दोष और रोग
भ मसात् हो जाते ह । जसका आमाशय (पेट) और फु फुस - ये शरीर के दोन मु य अंग पु और व थ ह
तो फर च ता करने क कोई बात नह । उसे व म भी कोई रोग नह सता सकता । ायाम ही एक ऐसी
व तु है जससे आमाशय और फेफड़े रोगर हत और पु होते ह । म पहले बता चुका ँ क ायाम से हमारी
जठरा न ती वा द त हो जाती है । आमाशय और पेट क छोट बड़ी आंत ड़याँ खूब श शाली हो जाती ह
। भोजन खूब पचता और भोजन से रसा द पोषक बनकर शरीर का अंग बन जाता है । मल मू ा द
वसजन याय खूब भलीभां त होती ह । ुधा (भूख) दोन समय खूब टू टकर लगती है । इसी कार
ायाम करने से फेफड़ को बड़ी भारी श मलती है । जब मनु य ायाम करता है तो ास- ास क
सं या तथा वेग बढ़ जाता है । खूब ल बे-ल बे तथा गहरे ास लेता है । इससे फेफड़े तथा सभी अंग काम
करने लगते ह । गहरे ास लेने से वायु का ब त संचार होता है और फेफड़े का काम सारे शरीर म वायु का
प ंचाना तथा र को शु

पृ १८

करना है । जब शु वायु म ायाम कया जाता है तो शु वायु ास के ारा पया त मा ा म ओषजन


(जीवनश ) लेकर फेफड़ के अ दर व होता है और दय शरीर म से आये ए र को शु होने क
लए फेफड़ म भेजता है । अशु र म वष (काबन) होता है । शु वायु (आ सीजन) को र म छोड़कर
और काबन को लेकर बाहर चला आता है । इस कार ास ास के ारा फेफड़ म र शु का काय
होता रहता है । इस कार ायाम से जहां फेफड़े बलवान् और पु होते ह वहां र भी शु हो जाता है ।
शरीर म र का खूब संचार होता है जससे उसका मन शरीर और आ मा पूण व थ, बलवान्, सुखी और
शा त हो जाता है । अथात् मह ष ध व त र जी के कथनानुसार उसे परम आरो य क ा त होती है । ायाम
छोड़ने से जो संसार क ग त ई है वह हमारे ने के स मुख है । आज या बालक या युवा सभी रोगी ह ।
हमारी आयु सभी दे श से यून है । भारतवष म उ प होने वाले एक सह बालक म से २९४ मर जाते ह ।
हमारे दे श म त मनट ३० मनु य तथा ६ बालक मृ यु के मुख म चले जाते ह । १९३१ क जनगणना के
अनुसार १,२०,३०४ मनु य पागल २,३,८१५ बहरे और गूंगे ६०,१,३०० अ धे और १,४७,९१२ कोढ़ थे ।
क तु यह सं या अब तो कई गुणा हो गई है । हा ! कतने ःख क बात है क तवष २२,००,००० (बाईस
लाख) युवक और युव तयाँ राजरोग (तपे दक) के ारा अपने पूण यौवन म वकराल काल के गाल म समा
जाते ह । जस समय थम महायु समा त आ उसके पीछे यु - वर के कोप से सवा दो करोड़ मनु य
आठ-नौ मास म भारत म मृ यु क भट चढ़ गये ।
जस दे श म जीवेम शरदः शतम् के अनुसार सौ वष से पूव

पृ १९

कोई मरता न था । तीन सौ या चार सौ वष क आयु पाना हमारे पु षा के लए साधारण सी बात थी ।


जस दे श म अजुन, भीम के समान यो ा थे जो हा थय को पकड़ पकड़ आकाश म उछालते थे । महाभारत
के गरे ए समय म भी चारी भी म पतामह क आयु १७६ वष तथा मह ष ास क आयु ३०० वष से
अ धक थी । और इन ऋ षय क स तान क यह दशा य ई ? इसका केवल एकमा कारण यही है क
हम ऋ षय क यारी श ा चय और इसके मु य साधन ायाम को छोड़ बैठे । हमारी वृ तो सवथा
वषय भोग म ही है । हम वषयी भोग वलास य और कामवासना के दास बन चुके ह । आज के युवक वा
युवती क अखाड़े वा ायामशाला म जाने क च वा ेम नह । इ ह तो वांग, थयेटर, सनेमा और
नाचघर यारे ह । नगर म सनेमाघर के आगे कतनी भारी भीड़ लगी रहती है और अखाड़े खाली पड़े रहते ह
। एकाध सौभा यशाली ही उधर को मुख करता है । इतने पर भी वा य और बल क आशा करते ह
और हमारे युवक अखाड़ पर जाकर कर भी या ? उ ह तो द ड-बैठक और कु ती से इस लए घृणा है क
कह इनके कोमल शरीर को अखाड़े क धूल वा म न लग जाये और इनके सु दर व वा शरीर ही न बगड़
जाय ! ऐसे ही ायाम-भी नपुंसक (हीजड़ ) से यह दे श भरा पड़ा है और इधर इ ह कोमल क ध पर ही
भारत माता क वत ता का भार है । क तु इनके ऊपर बाल बनाने, मांग फाड़ने और अनेक कार के
ृंगार करने और नाच, वांग, सनेमा दे खने का भूत सवार है । दे श धम भाड़ म जाये, न इनको अपने वा य
का ही यान, न ही अपने शरीर से यार है । अतः हमारे आगे अ धकार ही अ धकार है ।

पृ २०

भोले युवक को इतना भी ान नह क य द एक मशीन को वषभर न चलाया जाय तो उसक दशा कतनी
बगड़ जाती है । उसे पुनः चालू करने के लए नई मशीन के मू य से भी कह अ धक धन य कर दे ना पड़ता
है । इसी कार हमारा शरीर भी ायाम वा काय न करने से सवथा नबल और वकृत, रोग का घर बन जाता
है । पुनः य न करने पर भी ठ क होने म नह आता । सब जानते ह क तालाब का पानी थर होने से ही
सड़ता है । नद झरन का पानी चलने के कारण नमल और कांच के स श चमकता है । या कारण है क
हमारे युवक ायाम नह करते, इस जीवनोपयोगी व तु से य वमुख ह ? इसका मु य कारण कु श ा का
भाव अथवा श ा का अभाव ही है । माता पता बालक उ प तो कर दे ते ह क तु वे उनक शारी रक वा
मान सक उ त का कुछ यान नह रखते । उनका क तो यह है क वे अपने स मुख बालक को न य,
त दन ायाम कराय तथा उनके क याणाथ उ म श ा-गुण-कम और वभाव प आभूषण को धारण
कराय, यही माता- पता आचाय और स ब धय का मु य कम है । यही ऋ ष मह षय का उपदे श, वेद
शा क आ ा और मनु य मा का धम है । क तु यह धा मक तथा वयं ायाम करने वाले मनु य ही कर
सकते ह । य द बालक को ायाम का मह व समझा दया जाये, त दन बा यकाल से अ यास भी कराया
जाए तो वे बड़े होने पर ायाम कदा प नह छोड़ सकते । यो प के लोग ायः ऐसा ही करते ह । इस लए
उनके वा य हमारे से कह अ छे ह ।
जो बा याव था म ायाम का अ यास नह करते वे युवाव था म भी अ यास कैसे कर सकते ह । उ ह
ायाम भार दखाई दे ता है । फर बुढ़ापे क बात न पूछो, उस समय तो उ ह उठना-बैठना भी भारी

पृ २१

हो जाता है । थम तो माता पता का यान नह । तीय हमारी श ा म ायाम के लए कोई थान नह ।


तृतीय हमारे दे श म ायाम करने वाल का कोई स कार वा मान नह । इस लए हमारे युवक म उ साह श
जीवन और ाण नह । बात तो यथाथ म यह है क हमारे कूल क श ा इतनी थ, अरोचक, नक मी
और अधूरी है क इससे कसी कार का कोई भी लाभ नह । झूठ स यता क (प मी) लहर ने हमारे
व ाथ -समाज को आलसी, भोग- वलास य, ंगार-फैशन का त ककर बनाकर इसके वा य का बुरी
तरह सवनाश कर डाला है । हमारी श णसं था म श ाचार, सदाचार और वा य क श ा ही नह द
जाती । अतः अपने व ा थय क द न हीन शारी रक नबल अव था को दे खकर रोना आता है । १६ और २५
वष क वृ अव था म जनके मुखम डल सदै व हीरे क भां त चमकने चा हय थे आज वे न तेज बलहीन
मनमलीन लुते और मुंह पटे से दखाई दे ते ह । कतने तो पु तक को पढ़ते-पढ़ते सूखकर कांटे के समान हो
जाते ह । अपने वा य का नाश करके अपने म त क और दय को भी नबल कर डालते ह । ऐसे पु तक
क ड़ को ायाम का उपदे श कर तो वे हमारे पास तो ायाम के लए समय ही नह , ऐसा कहकर टाल दे ते
ह । ऐसे ही कतने व ाथ अपने त ण अव था म मृ यु के ास बनते ह ।
कूल कॉलेज म ायाम के नाम पर वालीवाल, हॉक , फुटबाल आ द अं ेजी ढ़ं ग के खेल खलाये जाते ह ।
उनम इने- गने थोड़े से ही व ाथ भाग लेते ह वा ले सकते ह । इन खेल से कोई वशेष लाभ नह । उनम
समय और धन का ही नाश होता है । या आ थोड़े ब त व ाथ ायाम करते ह । नह तो ायः अ धकतर
व ाथ और

पृ २२

श क लोग ऐसे ह जो यह समझते ह क ायाम करना अनपढ़ मूख और नीच लोग का काय है । इसी लए
व ाथ तथा श त समाज के वा य क दशा है । इनका आमाशय ही ठ क काय नह करता, अजीणता
तथा को ब ता का रोग ायः सबको रहता है । कसी के पेट म गुड़गुड़ाहट है, कसी को वायु का शूल तंग
करता है, कसी क त ली बढ़ ई है, कसी का जगर खराब है । कसी को जुकाम है तो कसी को खांसी,
कसी का दय धड़कता है तो कसी क छाती म पीड़ा रहती है। ायः सभी कसी न कसी रोग से पी ड़त ह
। कसी से भी पूछो - ठ क तो हो? उ र मलता है - “नह , मेरी त बयत खराब है ।” “मेरे वा य म गड़बड़
ही रहती है ।” ऐसी अव था य है? हम पहले ही उ र दे चुके ह क आमाशय, पेट वा फेफड़े (फु फुस) के
बगड़ने से ही सब रोग होते ह और इनको व थ रखने का एकमा उपाय ायाम है । हम यह स कर चुके
ह । ायः संसार के सभी व ान , डा टर और वै , महापु ष का एक मत है क मनु य को व थ रखने म
ायाम से उ म संसार म कोई साधन नह है, इस लए संसार के वै और डा टर के परम गु ीधवतर
जी का यह वचन - आरो यं चा प परमं ायामा पजायते - परम आरो य अथात् आदश वा य क ा त
ायाम से ही होती है - कतना स य से कूट-कूटकर भरा आ है । यथाथ म तो बात यह है क संसार म आज
तक तो कोई ऐसा मनु य आ नह जसने बना ायाम के पूण वा य क ा त क हो । मह ष ध व त र
जी ायाम का गुणगान करते ए यहां तक लखते ह क -
ायामं कुवतो न यं व म प भोजनम् ।
वद धम वद धं वा नद षं प रप यते ॥

पृ २३

ायाम करने वाला मनु य ग र , जला आ अथवा क चा कसी कार का भी खराब भोजन य न हो,
चाहे उसक कृ त के भी व हो, भलीभां त पचा जाता है और कुछ भी हा न नह प ंचाता । ायाम
करने वाले मनु य को आप इस कार कहते ए कभी नह सुनगे क मुझे भोजन नह पचता वा मल साफ
नह होता अथवा अपचन रहता है । यह ग त तो ायाम न करने वाले के आमाशय क ही रहती है । उ ह
अजीण के कारण सदै व मलब ध (दायमी क ज) रहता है । कसी को म दा न का रोग रहता है । कसी को
अपचन के कारण ( वरेचन) द त आते ह, स ची भूख कभी नह लगती, कभी खुलकर (ट ) शौच नह आता
। उनक बड़ी अ तड़ी तथा गुदा ार सदै व मल से भरा रहता है । ख -ख डकार आत ह, कभी सर दद,
कभी जुकाम, खांसी सताते रहते ह । ऐसे लोग का शरीर ायः रोग का घर ही बना रहता है । उनके सारे
जीवन क कमाई डा टर और वै क भट चढ़ती है क तु उ ह वा य और स चे सुख के दशन जीवनभर
कभी नह होते । और वा य के बना जीवन का आन द है ही नह य क वा य ही आन द और सौ य
का उ म है ।
अतः वा य के े मयो ! सदै व याद रखो क डा टर, वै आपको कभी व थ नह बना सकते । इनक
औष धयां केवल आपक जेब को खाली करग । वा य ा त क सब औष धय से बढ़कर परम औषध
ायाम ही है । वलायत का स पहलवान म टर सडो अपनी ार भक अव था म रोगी ही था । कोई
अ छे से अ छा डा टर भी उसे व थ नह कर सका । अ त म उसने परम औषध ायाम का सहारा लया ।
उसी क कृपा से उसक पहलवानी का संसार म डंका बजा और अ त तक वह स पूण रोग का इलाज
ायाम ारा ही

पृ २४

करता रहा । म० सडो का यह वचन क स पूण रोग का इलाज ायाम से कया जा सकता है, मह ष
ध व त र जी क आ ा के अनुसार सवथा स य है ।
य द उ स य के सा ात् दशन करना चाहो तो बड़ौदा म जाकर ेय चारी ोफेसर मा णकराव जी के
दशन करो जो आज भी ८५ वष से अ धक वृ आयु म भी युवा ह तथा ायाम और मा लश के ारा सभी
रोग क च क सा करते ह । उ ह के पु षाथ के कारण आज बड़ौदा म चार-पांच लाख पये क
ायामशाला और श ागार बना आ है जसके दशन करके दशक आ या वत होकर उनके पु षाथ क
सराहना करते ह । इतना ही नह , उनक कृपा से महारा तथा द ण के लोग ब त कुछ बदल गये ह । वहां
ायामशालाय ायः नगर म तो सभी जगह बन ग ह । श त लोग का भी झुकाव उधर ायाम क ओर
होने लगा है । इसी कार सारे दे श म ायाम के चार क अ य ताव यकता है । सुधार तो तब हो जब हमारी
सरकार ऐसा रा य नयम ही बना दे जससे ववश होकर सबको अ नवाय प से ायाम करना पड़े ।
ायाम न करने वाल को सरकार द ड दे और सारा समाज घृणा क से दे खे । हमारी श णसं था म
ायाम का समु चत ब ध हो । अ य वषय क भां त इसक भी परी ा हो । इसम उ ीण होने वाला ही
उ ीण समझा जाये । दे ख फर ायाम का चार तथा हमारे वा य का सुधार कैसे न हो । नगर-नगर, ाम-
ाम और दे श के येक कोने म ायामशालाय व अखाड़े चलाये जाय । व थ और अ धक ब ल य
को पा रतो षक और स मान दये जाय । जो नबल और रोगी ह उ ह ववाह करने और स तान पैदा करने क
आ ा न द जाये । केवल व थ और ब ल युवा ी-पु ष ही स तान

पृ २५

उ प और ववाह के अ धकारी ह । जनक स तान अ धक सु दर, व थ और बलवान् ह उनको अनेक


कार के पा रतो षक वा मा सक वृ यां दे कर सरकार ो साहन दे । नबल, रोगी स तान पैदा करने वाले को
भी यथो चत द ड दे , तब कह इस प तत भारत का भा य उदय हो सकता है । फर दे श खोई ई ाचीन
गौरव ग रमा को ा त कर सकता है य क ायाम तथा शारी रक म से घृणा करके कभी भी कोई दे श
नह उठ सकता ।
जमन रा को उठाने वाले हर हटलर के ायाम के त कतने सु दर भाव थे । मेरा संघष नाम क पु तक
म वे लखते ह क “अपनी श ा प त म सव थम थान ानोपाजन अथवा अ र अ यास को नह ,
ायाम श ा तथा व थ शरीर नमाण को दे ना होगा ।” वे आगे लखते ह “ य क सवमा य नयम यह है
क व थ और बलवान् आ मा व थ और बलवान् शरीर म ही पाई जाती है ।” हर हटलर ने अपने इन सु दर
वचार को थोड़े ही समय म काय प म प रणत कर अपने दे श को एक बार तो उ त के शखर पर चढ़ाकर
दखा दया । उनके जीवन क एक घटना है । एक बार का लज ने द घावकाश (ल बी छु ) ब द कर द और
दस हजार व ा थय को जनम लड़के-लड़ कयां दोन थे, बुलाकर कहा क रायन नद से एक ल बी नहर
तुम ने तीन मास क छु य म खोदकर नकालनी है । यही आपके दे श ेम क परी ा है । व ा थय ने अपने
दे श के नेता क इस आ ा को सहष वीकार कया और कई सौ ल बी नहर कठोर प र म करके तीन मास के
थान पर ढ़ाई मास म ही खोदकर तैयार कर द । इसका कारण नय मत ायाम तथा शारी रक म करने
का अ यास ही है । सभी प मी दे श म

पृ २६

ायाम श ा का अंग बन चुका है । वहां के सुधारक ायाम के मह व को भली भां त समझते ह ।


अतः प म म सव ायाम का खूब चार है । वहां के व ान के तो इस कार के वचार बन चुके ह जस
कार क जमन ोफेसर लखता है - “अ छा हो वह युवक मर जाये जो ायाम से अपने शरीर क श को
पु नह बनाता ।” भारत के स वै पं० ठाकुरद जी अमृतधारावाले लखते ह - “मनु य के शरीर क
बनावट ही इस कार क है य द यह चलता रहे, कामकाज करता रहे तो व य रहता है अ यथा रोगी हो
जाता है ।” ह के भीतर जब ायाम का रवाज था, बड़े-बड़े यो ा यहां हो चुके ह । भीम जैसे यो ा
का होना भी यह स भव था जो हाथी को उठाकर फक सकते थे । कलयुगी भीम राममू त जो हाथी को छाती
पर से गुजार सकता है, वह भी अपनी सारी श का ोत चय और ायाम को ही वणन करता है । वही
सरे थान पर लखते ह क ायाम के बना अ धक काल तक चारी रहना अस भव है । ायाम से
ब त ही लाभ ह । धर ब त सा तो हमारे अंग के भीतर खच होता है और हमारे शरीर को ढ़ करता है ।
जसका वीय बनकर बाहर नकल जाता था वह शरीर के भीतर ही रहता है और इससे बढ़कर यह भी लाभ है
क जो वीय बन जावे तो ायाम से फर शरीर के भीतर शोषण होकर शरीर और ह य को ढ़ करेगा ।
जसका नकलने का अवसर नह वह थ नह नकलेगा वरन् ायाम के ारा शरीर का आहार बन जायेगा
। अतः ायाम को कभी नह छोड़ना चा हए अ पतु न य त करना चा हए ।
यूनान का स वै अफलातून लखता है क मल को जमा होने

पृ २७
से रोकने के लए ायाम से उ म कोई व तु नह है । वह बना क के मल को पचाता है और कृ त का
सहायक है ।
बू ली सीना लखते ह क जस मनु य म ायाम का साम य है वह स पूण उपाय से यु है और ायाम न
करने वाला ायः य (तपे दक) त होता है ।
कृरेशी कहता है - “ ायाम यागने से श यां ीण होती ह । ायाम के लाभ ब त ह । ायाम मल को र
करता है । जठरा न को उ त करता है और प को ढ़ करता है और रोमकूप को खोलता है ।”
डॉ नको लश लखता है क “ ायाम मांस प को बल दे ता है जससे मानवीय शरीर के अवयव अपना
काम उ मता से कर सकते ह । इससे नस-ना ड़य और स पूण र बनाने वाले अंग को पु मलती है ।
इससे ुधा बढ़ती है और जठरा न तेज होती है । फेफड क नस पे शयां अ धक बल से काम करती ह और
ास बढ़ जाता है, छाती फैलती है । फेफड़े बढ़ते ह, म त क म अ धक मा ा म उ म र आता है । उ म
र के प े अ धक उ मता से मल को बाहर नकालते ह । जसका नकालने का अवसर नह , वह थ नह
नकलेगा वरन् ायाम के ारा शरीर का आहार बन जायेगा । अतः ायाम को कभी नह छोड़ना चा हये
अ पतु न य करना चा हये ।”
डा टर सलव टर ाहम लखते ह क “ ायाम से र का संचार मण बढ़ता है और र लाख बाल से
भी सू म सब शरीर क नस म प ंच जाता है । ायाम से सब अंग म बल फू त आती है । सब अंग म
पूणता लचक वृ , सौ दय का त और बल उ प होता है । वा तव म ायाम शरीर के लए सबसे बढ़कर
पु दायक है ।”

पृ २८

डॉ लैक लखता है क “जवानी म उ चत ायाम को इन बात से नह छोड़ दे ना चा हए जैसा क ायः कह


दया करते ह - मुझे समय नह मलता, आज ऋतु अ छ नह है, पोशाक अ छ नह है, लोग के सामने
करते बुरा लगता है, ायाम करने को जी नह चाहता, इससे शरीर कोमल नह रहता इ या द । ायाम शरीर
के लए आव यक व तु है ।”
एक और डा टर लखता है क ायाम से ायः रोग क जाते ह । कई र हो जाते ह । ब त रोग का ोत
आल य है ।
एक स वै एक थान पर लखते ह क चय क र ा के लए भी ायाम आव यक है । ायामी का
वीय पुनः उसी शरीर म खपकर ढ़ करता है । जो मनु य ायाम नह करता तो उसे व दोष होने लगता है ।
युवाव था के आर भ म ायाम क अ य त आव यकता है । यह वह काल है जब क शरीर म वीय बनता है
और कामो ेजना आर भ होती है । काम के वेग के कारण इस अव था म लड़के लड़ कयां सन म फंस
जाते ह । यह समय वीय नकालने का नह पर तु वा तव म शरीर को बढ़ाने, गांठने, ढ़ बनाने के लए होता
है । वीय स तानो प के यो य नह होता, इसे शरीर म खपाना चा हये । य द बुरे वचार न ह और ायाम
कया जाये तो वीय शरीर म लय होकर शरीर को ढ़ बनाता है । यही सब वै , डा टर का मत है ।
डॉ हालर साहब एक थान पर लखते ह क “वीय ब त अमू य र न है जो बल का भ डार है । ायाम से
यह र म पुनः मल जाता है और शरीर म अ त प रवतन उ प करता है दाढ़ , बाल, अ थ और सब
दै नक वहार को बल दे ता है । नपुंसक म यह

पृ २९

प रवतन इस लए नह होता क उनम वीय नह होता । ायामी अपनी इस वीय श क सर क अपे ा


अ धक र ा कर सकता है ।”
मह ष वामी दयान द जी महाराज राजा के क के वषय म स याथ काश म लखते ह क “ ातःकाल
समय उठ, शौचा द स योपासना, अ नहो कर वा करा .....नाना कार क ूह श ा अथात् कवायद कर
करा.....श और अ का कोश तथा वै ालय, धन के कोश को दे ख..... ायामशाला म जा, ायाम करके
भोजन के लए अ तःपुर अथात् प नी आ द के नवास थान म वेश करे ।”
अपने जीवनकाल म मह ष दयान द जी महाराज मेवाड़ के महाराजा स जन सह तथा इसी कार अनेक
अ य राजा-महाराजा को अपने वा य सुधार तथा चय क र ाथ न य त ायाम करने क श ा
मौ खक तथा प वहार ारा दे ते रहे । मह ष दयान द जी महाराज वयं त दन नयम से मण तथा
ायाम करते थे । वे का तक संवत् १९३५ का तक के मेले पर धम चाराथ गये थे । पं० घासीराम जी ारा
ल खत मह ष जी के जीवन च र म वामी जी महाराज क दनचया के वषय म लखा है - “पु कर म
महाराज ब त सवेरे मण करने चले जाते थे । वापस आकर ध और ा ी का वरस पान करते थे और
वेदभा य लखाने बैठ जाते थे । यारह बजे तक वेदभा य लखते थे और फर नान और द ड मु दर का
ायाम करके भोजन पाते थे ।”
इस कार नय मत ायाम तथा न कलंक अख ड चय पालन से मह ष दयान द जी महाराज का शरीर
अ य त सु दर, सुडौल और सु ढ़ हो गया था जस के दशन करने पर दशक आ य म पड़ जाते थे । उनक
मो हनी मू त सबके मन को मोह लेती थी । उनका ६ फुट

पृ ३०

९ इंच ल बा सु दर शरीर, आजानु वशाल बा , उभरी ई चौड़ी छाती, मोट -मोट जंघाय, सुती ई कड़ी
पड लयां, तेजोमय वशाल ललाट, सु दर चमक ली आंख, व सम सघन सु वभ ओजप रपू रत दशनीय
सु दर शरीर क छ व वरोधी के मन म भी अगाध ा पैदा करती थी । अतुल बल और श के वे भ डार
थे । मह ष ने कणवास म राव कण सह क तलवार तोड़कर, जाल धर म सरदार व म सह क दो घोड़ क
ब घी को रोककर और काशी म क चड़ म फंसी ई दो बैल से न नकलने वाली गाड़ी को भी अकेले ही अपने
भुजबल से क चड़ से बाहर नकालकर तथा इसी कार क अनेक घटना से अपने बल और श का
प रचय दे कर दशक को म मु ध कर दया था । कांशी म म त सा ड ( जससे आने-जाने वाले सब डरते थे)
आपको दे खकर माग छोड़कर चला गया । भयंकर हसक भालू (र छ) तथा जंगल का राजा सह भी आपसे
डरकर कु े के समान पूंछ दबाकर भाग गया ।
जब माघ पौष म र को जमा दे ने वाली शीतल पवन चलती है, जो शरीर को छे दती ई पार नकल जाती है,
जस समय लोग घर के अ दर गम कपड़े और रजाई ओढ़कर ठ ड के मारे सकुड़े पड़े रहते ह, जब बाहर
नकलते समय उनका दय कांपता और ाण नकलते ह, ऐसे भयंकर शीतकाल म योगी दयान द गंगा
कनारे ठ डे रेत पर केवल एक लंगोट पहने ए च मा क शीतल चांदनी म सारी रा आसन लगाये
त दन यान म म त बैठे रहते थे । एक दन बदायूं के कलै टर एक पादरी के साथ गंगा पर आ नकले और
मह ष को ऐसी अव था म नंगा बैठे दे खकर आ य म पड़ गये और पूछने लगे क या आपको ठ ड नह
लगती? मह ष जी ने उ र दया - जैसे आपके मुख को नंगा

पृ ३१

होने पर भी ठ ड नह लगती, इसी कार मेरा शरीर सदा नंगा रहता है और इसे शीतो ण सहने का अ यास
पड़ गया है । पादरी और कलै टर कुछ दे र बात कर णाम करके चले गये । इसी कार माह मास क ठ ड
म एक थान पर आप उपदे श कर रहे थे । ोतागण भारी भारी गरम कपड़ म लपटे ए भी कांप रहे थे । ये
कौपीनधारी महा मा एक लंगोट म ही म त थे । कसी ने इसका कारण पूछा । उ र मला - योग का
अ यास । कसी ने पूछा या इससे भी कुछ अ धक श आ सकती है ? तब महाराज ने अंगठ ू े घुटन पर
रखकर बल लगाया तो झट सारे शरीर से पसीना गरने लगा । सब लोग च कत थे क ऐसी ठ ड म पसीना !!
ायाम, चय और योग से तपाये ए शरीर पर सद , गम , भूख- यास आ द कुछ भी भाव नह
डालते । इतना ही नह , ायामा द साधन शरीर को इतना ब ल बना दे ते ह क मारक वष भी नष भाव
होते दे खे गये ह । मह ष वामी दयान द जी महाराज को पा पय ने १६ बार वष दया । क तु वे उनके जीवन
का कुछ भी न बगाड़ सके । जस समय वे या ने उनके श ु से मलकर अ तम बार भयंकर हालाहल वष
दया तो वह सारे शरीर म रोम-रोम से फूटकर नकलने लगा, तब डा टर सूरजमल तथा ल मणदास, जो
महाराज के अन य भ थे और ज ह ने आपक बड़ी ा से सेवा शु ूषा तथा च क सा भी क थी, इस
भयंकर अव था को दे खकर कहने लगे क य द ऐसा भयंकर वष कसी मनु य को दया जाता तो वह पांच
मनट म ही मर जाता । क तु इतना ही नह , जोधपुर महाराजा के डा टर अलीमरदान खां, जो पहले दज के
खुशामद और अ य त नीच कृ त के थे, वामी जी महाराज को औष ध के थान पर वष ही दे ते रहे ।
य क इ ह रा य के उ च अ धकारी पौरा णक

पृ ३२

घम डी जागीरदार पु करनाथ ा ण ने ७००) पये तथा दो र डय ने पांच-पांच सौ पये कुल १७००)


पये इ लए दये थे क वामी जी को वष दया जाये । इतनी अ धक मा ा म और बार-बार वष दये जाने
का यह भाव आ क वामी जी को भयंकर द त लगे । त दन सौ-सौ द त आने लगे, खून और आंत
कट-कट कर गरने लग । ऐसी भयंकर अव था होने पर भी महाराज जी अ य त शा त और धैय से रहे । ऐसा
भयंकर वष दे ने के पीछे भी एक मास तक और जी वत रहे । मृ यु के समय मुख पर कसी कार के शोक वा
घबराहट के च ह न थे । अपने घोरतम क को इस कार सहन करते थे क मुख से एक बार भी हाय वा
अ य क सूचक श द न नकलता था । महाराज बड़ी सावधानी से रहे, अ त समय कई वेदम पढ़े , सं कृत
तथा भाषा म ई रोपासना और ई र का गुणक तन कया । कुछ दे र समा ध लगाकर आंख खोल द और य
कहने लगे - “हे दयामय ! हे सवश मान ई र !! तेरी यही इ छा है, तेरी यही इ छा है, तेरी यही इ छा है,
तेरी इ छा पूण हो !!! तूने अ छ लीला क ।” यह कहकर ास को रोककर एकदम बाहर नकाल दया ।
य पाठकगण ! आप भी स चे चारी मह ष दयान द का अनुकरण करते ए चय के आन द को लूटो
। मृ यंजय कहलाओ और अपने प व मनु य जीवन को सफल बनाओ ।

॥ ओ३म् शम् ॥
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Zevyoq +917433906871

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