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ओ३म्
ायाम का मह व
लेखक
दो श द
चाहे ी हो वा पु ष, जो भी भोजन करता है उसे ायाम क उतनी ही आव यकता होती है जतनी क
भोजन क । कारण प है । शरीर म ायाम पी अ न न दे ने से मनु य का शरीर आलसी, नबल और
रोगी हो जाता है, जन खा पदाथ से र आ द धातु का नमाण तथा बल का संचय होता है, वे सड़ने
लगते ह और शरीर म ग ध उ प करके मनु य के मन म अनेक कार के बुर-े बुरे वचार उ प करने लगते
ह, मनु य क बु और मरण श म द हो जाती है और युवाव था म ही उसे ःखदायी बुढ़ापा आ घेरता है
। य द मानव शरीर से आन द उठाना है तो उसे ायाम तथा चय र ा ारा व थ और ब ल करना
येक ी पु ष का परम धम है । इस ायाम का मह व नाम क लघु पु तका म ायाम से मनु य को
परम आरो य अथवा आदश वा य क कस कार ा त होती है, मु यतया इसी वषय पर काश डाला
गया है । इसको सं त प म इस लये नकाला गया है क जन साधारण इसे आसानी से खरीद सके, तथा
धनी मानी स जन इसे अपने दान से चाराथ बंटवा सक, ायाम के वषय म अ धक जानने के लए मेरे
ारा ल खत ायाम स दे श (स च ) पढ़ जसम दे श वदे श के ायाम के भेद, आसन के ायाम क
वशेषता तथा लाभ, ायाम का समय और थान, य के लए उपयु ायाम तथा आयु के अनुसार
ायामा द अनेक वषय पर व तार प से लखा गया है ।
य द कुछ भी युवक ने इसे पढ़कर नय मत ायाम करने का त लया तो म अपना प र म सफल समझूंगा
।
- सेवक
ओ३मान द सर वती
पृ १
ायाम का मह व
ायाम का मह व - आवरण पृ
संसार म सव म और सव य व तु वा य ही है । रोगी तो सर पर भार ही होता है । सांसा रक धन ऐ य
तथा भोग वलास के सब साधन क व मानता भी रोगी के लए ःख का ही कारण बनती है । वह
मलमू यागा द साधारण आव यकता को भी वयं पूरा नह कर सकता । उसे त ण सर का ही
सहारा और सहायता चा हये य क रोगी सदै व अ य त ःखी होने से सवथा पराधीन ही रहता है । सव
परवशं ःखम ...... पराधीन सुपने सुख नाह अतः रोगी का जीवन रोग का क भोगते-भोगते शु क,
नीरस और अ य त ःखमय हो जाता है । संसार म नरक के सा ात् दशन रोगी को ही होते ह । इसी लए
साधारण मनु य भी जानते ह - पहला सुख नरोगी काया - व थ मनु य के लए यह संसार वग समान है ।
एक द र मनु य जो पूण व थ है वही यथाथ म धनवान् है । य द एक च वत स ाट् भी रोगपी ड़त है तो
वह ःखी, द न, द र , रंक के समान है । रोगी वयं ःखी होता और अपने इ म तथा स ब धय को भी
ःखी रखता है । रोग से मनु य क श , बल और जीवन का ास होता है । कसी रोग म चाहे क वा ःख
भले ही थोड़ा हो क तु अमू य समय और शरीर क अव य ही हा न और नाश होता है । रोगी मनु य का लोक
और परलोक दोन ही बगड़ जाते ह । इस लए ातः मरणीय ऋ षय ने हमारे क याणाथ कतनी उ म
श ा द है ।
पृ २
धमाथकाममो ाणामारो य मूलमु मम् । मनु य के जीवन को सफल बनाने वाला “पु षाथचतु य”
अथात् धम, अथ, काम और मो क ा त का आधार वा मूल साधन आरो य ही है । सांसा रक सुख
(अ युदय) तथा पारलौ कक सुख ( न ेयस्) वा मो सुख क ा त बना आरो य के अनेक ज म म भी
नह होती । रोगी मनु य के वसाय ध धे तथा स या ई रोपासना द धम-काय सभी छू ट जाते ह । इसी लए
वा य ही हमारा सव व है । इसक र ा करना हमारा परम क है क तु अ य त ःख क बात है क
सभी भारतवा सय का वा य धीरे-धीरे गर रहा है । म या आहार होने से हमारा शरीर षत वा रोगी होता
है । मनु य अ ानवश वा कुसंग के कारण अनेक सन म फंसकर अपने आहार वहार को बगाड़ लेता है ।
कसी को खाने का सन है, कसी को पीने का सन है और कसी को वीयनाश वा वषय-भोग का सन
है, न जाने कतने सन ह । भला इन च क , वाद और सन ने ही हमारे भोजन-छादन और आहार-
वहार को बगाड़ा है तथा हमारे वा य का द वाला नकाला है । कहा भी है रोग तु दोषवैष यं
दोषसा यमरो गता म या आहार वहार से वात, प कफा द दोष म वषमता आ जाती है अथात् ये घट
बढ़ जाते ह । यही रोग का कारण है । जब ये समाव था म रहते ह तो हमारा शरीर नीरोग व व थ रहता है ।
मह ष ध व त र जी महाराज सु ुत म लखते ह -
समदोषः समा न समधातुमल यः ।
स ा मे यमनाः व थ इ य भधीयते ॥
पृ ३
है - “ जस मनु य के दोष वात, प और कफ, अ न (जठरा न), रसा द सात धातु, सम अव था म तथा
थर रहते ह, मल मू ा द क या ठ क होती है और शरीर क सब याय समान और उ चत ह, और
जसके मन इ य और आ मा स रह वह मनु य व थ है ।” मह ष ध व त र जी के कथन का सार यह है
क जस मनु य के शरीर म वात, प और कफ तीन दोष समान अव था म रहते ह, वे कभी घटते बढ़ते न
ह , पेट क अ न भी सम हो अथात् उ चत मा ा म खाये ए भोजन को भली भां त पचा सके, जससे ुधा
(भूख) खूब अ छ लगे, मल मू ा द का याग ठ क-ठाक होता हो, शरीर म रस से लेकर वीय पय त सात
धातु भलीभां त बनते ह और शरीर का अंग बनकर इसे पु और बलवान् बना रहे ह , कसी धातु का य वा
नाश न हो और चब मेदा द क अ धक वृ भी न हो अथात् मनु य म बल श ओज तेज उ साहा द गुण
पया त मा ा म पाये जाय, शरीर म कसी कार का क वा पीड़ा न हो, मन आ मा सदै व स रह और सब
इ यां अपना-अपना काय भली भां त करती ह वह मनु य पूण व थ और नीरोग है । ऐसा आदश वा य
या सबको ा त हो सकता है ? या येक मनु य पूण व थ और पूण सुखी हो सकता है ? अव यमेव !
परम पता परमा मा ने हम रोगी और ःखी होने के लए नह बनाया है । हम तो ःख और रोग को वयं
बुलाते ह । फर रोते और पछताते ह । पूण सुख और वा य क ा त का रह य सु ुत म मह ष ध व त र
जी वयं बताते ह ।
स चे सुख और पूण वा य क ा त का एकमा साधन ायाम ही है ।
पृ ४
ायाम से लाभ
मह ष ध व त र जी महाराज सु ुत म लखते ह । ायाम से शरीर बढ़ता है । शरीर क का त वा सु दरता
बढ़ती है । शरीर के सब अंग सुड़ौल होते ह । पाचनश बढ़ती है । आल य र भागता है । शरीर ढ़ और
ह का होकर फू त आती है । तीन दोष क (मृजा) शु होती है ॥१॥
म थकावट ला न ( ःख) यास शीत (जाड़ा) उ णता (गम ) आ द सहने क श ायाम से ही आती है
और परम आरो य अथात् वा य क ा त भी ायाम से ही होती है ।
मह ष जी के उ कथन पर भलीभां त वचार करना है । जो भोजन हम त दन करते ह वह थम हमारे
प वाशय (उदर) म, पेट क अ न जसे जठरा न कहते ह, खाये ए भोजन को पकाती है, आमाशय (पेट)
को पाकशाला के समान समझो । य द रसोई म अ न भलीभां त नह जलती तो भोजन अ छा वा सवथा नह
पक सकता । इसका फल यह होगा क सारा प रवार भूखा रहेगा वा खराब भोजन करके रोगी पड़ जायेगा ।
जसक जठरा न वा आमाशय ठ क कार काय नह करता उसका खाया आ भोजन भली कार से नह
पचता और शरीर का अंग भी नह बनता । फर सारा शरीर रोगी वा नबल हो जाता है । जसक पाचनश
वा जठरा न अ छ तथा ती होती
पृ ५
है उसको भोजन शी तथा अ धक मा ा म पचता है । भोजन पचने पर आमाशय से ही शेष अंग को प ंचता
है तथा सारे शरीर को श और आरो य दान करता है । ती जठरा न भोजन के पौ क सार भाग को मल
भाग म नह जाने दे ती । य क भोजन के ठ क पचने पर मल भाग (मल मू ा द) पृथक् तथा शु भाग
(रसा द) पृथक् हो जाते ह । जसक जठारा न ठ क काम करती है उसका खाया आ पौ क भोजन थ
नह जाता । उसका पचकर रस बन जाता है । फर रस से अ य धातु का नमाण होता है । जैसा क मह ष
धनव त र जी महाराज सु ुत म लखते ह -
रसा तं ततो मांसं मांसा मेदः जायते ।
मेदासोऽ थ ततो म जा म जायाः शु स भवः ॥
पृ ६
पृ ७
पृ ८
और सव म योग (नु खा) ायाम ही है । ायाम करने वाले को म दा न का दोष कभी नह होता । वह जो
भी पेट म डाल लेता है, सब कुछ शी ही पचकर शरीर का अंग बन जाता है । उस का खाया पीया घी, ध
आ द पौ क भोजन उसके शरीर को ही लगता है, ट म नह नकलता । अतः उसक बल श दन
त दन बढ़ती ही चली जाती है । उसके अंग यंग क वृ यथायो य होती है । शरीर के अंग को सुडौल,
सघन, गठ ला और सु दर बनाना ायाम का थम काय है । य द कोई मनु य केवल एक वष नर तर
नयमपूवक कसी भी ायाम को कर ले, तो उसका शरीर भी सु दर और सु ढ़ बनने लगता है और जो सदै व
ापूवक दोन समय यथा व ध ायाम करते ह उनका तो कहना ही या, उनके शरीर क सभी मांसपे शयां
लोहे क भां त कड़ी और सु ढ़ हो जाती ह और सभी नस ना ड़यां, सारा नायुम डल और शरीर का येक
अंग व वा इ पात (फौलाद) के समान कठोर और सु ढ़ हो जाता है । चौड़ी उभरी ई छाती, लं बी सुडौल
और गठ ई भुजाय, कसी ई पड लयां, चढ़ ई जंघाय, वशाल म तक तथा चमचमाता आ र वण
(लाल) मुखमंडल उसके शरीर क शोभा को बढ़ाता है । यथा व ध ायाम करने से शरीर का यक अंग
यथे वृ को ा त हो, अ य त सु दर सु ढ और घन बन जाता है । शरीर पर थ का मांस वा मेद (चब )
चढ़कर उसे ढ ला नह करने पाता, पेट शरीर से लगा रहता है, बढ़ने नह पाता । मह ष ध व त र जी महाराज
लखते ह -
पृ ९
न चा त स शं तेन क च थौ यापकषणम् ।
न च ाया मनं म यमदय यरयो भयात् ॥१॥
न चैनं सहसा य जरा सम धरोह त ।
थरीभव त मांसं च ायामा भरत य च ॥२॥
वयो पगुणैह नम प कुया सुदशनम् ॥३॥
पृ १०
पृ ११
पृ १२
पृ १३
पृ १४
पृ १५
पृ १६
इसी कार ायाम से मनु य का सब कार के रोग से छु टकारा हो जाता है । जब सूय उदय होता है तो
अ धेरा, उ लू और गीदड़ सब भाग जाते ह । इसी कार मह ष ध व त र जी के कथनानुसार ाधयो
नोपसप त सहं ु मृगा इव ायाम करने वाले मनु य के पास रोग नह फटकते । इसी कार क एक
घटना है “एक समय एक प डत क ी से कसी वै ने कुय पर पानी मांगा । वह ी कसी कारणवश
शी जल न दे सक । वै जी ोध म आ गए और कहने लगे क इसका बदला म उस समय लूंगा जब तेरा
प त रोगी होगा । ी बचारी बड़ी च ता म पड़ी, सारा वृ ा त अपने प त से कह सुनाया । प डत जी बड़े
बु मान् थे । उ ह ने उसी समय एक ोक लखकर वै जी के पास भेज दया । वै जी उस ोक को
पढ़कर दौड़े-दौड़े प डत जी क पास आये और न तापूवक मा याचना करने लगे ।” उस ोक का ता पय
यह है - “वै जी, जो लोग अपने वीय को थ नह खोते और
पृ १७
सदा ायाम करते रहते ह उनको रोगी और आप जैसे वै नह डरा सकते ।” अतः ायाम से बढ़कर शरीर
को व थ और पु बनाने वाला और कोई उ म साधन संसार म नह है । य क जस दे श का राजा बलवान्
और सदा यायकारी होता है उस दे श म चोर, डाकू, लुटेरे और पापी-जन नह ठहरते । इसी कार जस
मनु य ने ायाम क साधना से अपने शरीर के राजा (सार) वीय को अपने शरीर का अंग बना लया हो भला
ऐसे वीयवान् और ब ल के पास ये रोग पी लुटेरे कैसे फटक सकते ह ? भोगे रोगभयम् भोग का
फल रोग है अतः भोगी ही रोगी होता है । ायाम पी तप क भ म चारी के सब मैल, दोष और रोग
भ मसात् हो जाते ह । जसका आमाशय (पेट) और फु फुस - ये शरीर के दोन मु य अंग पु और व थ ह
तो फर च ता करने क कोई बात नह । उसे व म भी कोई रोग नह सता सकता । ायाम ही एक ऐसी
व तु है जससे आमाशय और फेफड़े रोगर हत और पु होते ह । म पहले बता चुका ँ क ायाम से हमारी
जठरा न ती वा द त हो जाती है । आमाशय और पेट क छोट बड़ी आंत ड़याँ खूब श शाली हो जाती ह
। भोजन खूब पचता और भोजन से रसा द पोषक बनकर शरीर का अंग बन जाता है । मल मू ा द
वसजन याय खूब भलीभां त होती ह । ुधा (भूख) दोन समय खूब टू टकर लगती है । इसी कार
ायाम करने से फेफड़ को बड़ी भारी श मलती है । जब मनु य ायाम करता है तो ास- ास क
सं या तथा वेग बढ़ जाता है । खूब ल बे-ल बे तथा गहरे ास लेता है । इससे फेफड़े तथा सभी अंग काम
करने लगते ह । गहरे ास लेने से वायु का ब त संचार होता है और फेफड़े का काम सारे शरीर म वायु का
प ंचाना तथा र को शु
पृ १८
पृ १९
पृ २०
भोले युवक को इतना भी ान नह क य द एक मशीन को वषभर न चलाया जाय तो उसक दशा कतनी
बगड़ जाती है । उसे पुनः चालू करने के लए नई मशीन के मू य से भी कह अ धक धन य कर दे ना पड़ता
है । इसी कार हमारा शरीर भी ायाम वा काय न करने से सवथा नबल और वकृत, रोग का घर बन जाता
है । पुनः य न करने पर भी ठ क होने म नह आता । सब जानते ह क तालाब का पानी थर होने से ही
सड़ता है । नद झरन का पानी चलने के कारण नमल और कांच के स श चमकता है । या कारण है क
हमारे युवक ायाम नह करते, इस जीवनोपयोगी व तु से य वमुख ह ? इसका मु य कारण कु श ा का
भाव अथवा श ा का अभाव ही है । माता पता बालक उ प तो कर दे ते ह क तु वे उनक शारी रक वा
मान सक उ त का कुछ यान नह रखते । उनका क तो यह है क वे अपने स मुख बालक को न य,
त दन ायाम कराय तथा उनके क याणाथ उ म श ा-गुण-कम और वभाव प आभूषण को धारण
कराय, यही माता- पता आचाय और स ब धय का मु य कम है । यही ऋ ष मह षय का उपदे श, वेद
शा क आ ा और मनु य मा का धम है । क तु यह धा मक तथा वयं ायाम करने वाले मनु य ही कर
सकते ह । य द बालक को ायाम का मह व समझा दया जाये, त दन बा यकाल से अ यास भी कराया
जाए तो वे बड़े होने पर ायाम कदा प नह छोड़ सकते । यो प के लोग ायः ऐसा ही करते ह । इस लए
उनके वा य हमारे से कह अ छे ह ।
जो बा याव था म ायाम का अ यास नह करते वे युवाव था म भी अ यास कैसे कर सकते ह । उ ह
ायाम भार दखाई दे ता है । फर बुढ़ापे क बात न पूछो, उस समय तो उ ह उठना-बैठना भी भारी
पृ २१
पृ २२
श क लोग ऐसे ह जो यह समझते ह क ायाम करना अनपढ़ मूख और नीच लोग का काय है । इसी लए
व ाथ तथा श त समाज के वा य क दशा है । इनका आमाशय ही ठ क काय नह करता, अजीणता
तथा को ब ता का रोग ायः सबको रहता है । कसी के पेट म गुड़गुड़ाहट है, कसी को वायु का शूल तंग
करता है, कसी क त ली बढ़ ई है, कसी का जगर खराब है । कसी को जुकाम है तो कसी को खांसी,
कसी का दय धड़कता है तो कसी क छाती म पीड़ा रहती है। ायः सभी कसी न कसी रोग से पी ड़त ह
। कसी से भी पूछो - ठ क तो हो? उ र मलता है - “नह , मेरी त बयत खराब है ।” “मेरे वा य म गड़बड़
ही रहती है ।” ऐसी अव था य है? हम पहले ही उ र दे चुके ह क आमाशय, पेट वा फेफड़े (फु फुस) के
बगड़ने से ही सब रोग होते ह और इनको व थ रखने का एकमा उपाय ायाम है । हम यह स कर चुके
ह । ायः संसार के सभी व ान , डा टर और वै , महापु ष का एक मत है क मनु य को व थ रखने म
ायाम से उ म संसार म कोई साधन नह है, इस लए संसार के वै और डा टर के परम गु ीधवतर
जी का यह वचन - आरो यं चा प परमं ायामा पजायते - परम आरो य अथात् आदश वा य क ा त
ायाम से ही होती है - कतना स य से कूट-कूटकर भरा आ है । यथाथ म तो बात यह है क संसार म आज
तक तो कोई ऐसा मनु य आ नह जसने बना ायाम के पूण वा य क ा त क हो । मह ष ध व त र
जी ायाम का गुणगान करते ए यहां तक लखते ह क -
ायामं कुवतो न यं व म प भोजनम् ।
वद धम वद धं वा नद षं प रप यते ॥
पृ २३
ायाम करने वाला मनु य ग र , जला आ अथवा क चा कसी कार का भी खराब भोजन य न हो,
चाहे उसक कृ त के भी व हो, भलीभां त पचा जाता है और कुछ भी हा न नह प ंचाता । ायाम
करने वाले मनु य को आप इस कार कहते ए कभी नह सुनगे क मुझे भोजन नह पचता वा मल साफ
नह होता अथवा अपचन रहता है । यह ग त तो ायाम न करने वाले के आमाशय क ही रहती है । उ ह
अजीण के कारण सदै व मलब ध (दायमी क ज) रहता है । कसी को म दा न का रोग रहता है । कसी को
अपचन के कारण ( वरेचन) द त आते ह, स ची भूख कभी नह लगती, कभी खुलकर (ट ) शौच नह आता
। उनक बड़ी अ तड़ी तथा गुदा ार सदै व मल से भरा रहता है । ख -ख डकार आत ह, कभी सर दद,
कभी जुकाम, खांसी सताते रहते ह । ऐसे लोग का शरीर ायः रोग का घर ही बना रहता है । उनके सारे
जीवन क कमाई डा टर और वै क भट चढ़ती है क तु उ ह वा य और स चे सुख के दशन जीवनभर
कभी नह होते । और वा य के बना जीवन का आन द है ही नह य क वा य ही आन द और सौ य
का उ म है ।
अतः वा य के े मयो ! सदै व याद रखो क डा टर, वै आपको कभी व थ नह बना सकते । इनक
औष धयां केवल आपक जेब को खाली करग । वा य ा त क सब औष धय से बढ़कर परम औषध
ायाम ही है । वलायत का स पहलवान म टर सडो अपनी ार भक अव था म रोगी ही था । कोई
अ छे से अ छा डा टर भी उसे व थ नह कर सका । अ त म उसने परम औषध ायाम का सहारा लया ।
उसी क कृपा से उसक पहलवानी का संसार म डंका बजा और अ त तक वह स पूण रोग का इलाज
ायाम ारा ही
पृ २४
करता रहा । म० सडो का यह वचन क स पूण रोग का इलाज ायाम से कया जा सकता है, मह ष
ध व त र जी क आ ा के अनुसार सवथा स य है ।
य द उ स य के सा ात् दशन करना चाहो तो बड़ौदा म जाकर ेय चारी ोफेसर मा णकराव जी के
दशन करो जो आज भी ८५ वष से अ धक वृ आयु म भी युवा ह तथा ायाम और मा लश के ारा सभी
रोग क च क सा करते ह । उ ह के पु षाथ के कारण आज बड़ौदा म चार-पांच लाख पये क
ायामशाला और श ागार बना आ है जसके दशन करके दशक आ या वत होकर उनके पु षाथ क
सराहना करते ह । इतना ही नह , उनक कृपा से महारा तथा द ण के लोग ब त कुछ बदल गये ह । वहां
ायामशालाय ायः नगर म तो सभी जगह बन ग ह । श त लोग का भी झुकाव उधर ायाम क ओर
होने लगा है । इसी कार सारे दे श म ायाम के चार क अ य ताव यकता है । सुधार तो तब हो जब हमारी
सरकार ऐसा रा य नयम ही बना दे जससे ववश होकर सबको अ नवाय प से ायाम करना पड़े ।
ायाम न करने वाल को सरकार द ड दे और सारा समाज घृणा क से दे खे । हमारी श णसं था म
ायाम का समु चत ब ध हो । अ य वषय क भां त इसक भी परी ा हो । इसम उ ीण होने वाला ही
उ ीण समझा जाये । दे ख फर ायाम का चार तथा हमारे वा य का सुधार कैसे न हो । नगर-नगर, ाम-
ाम और दे श के येक कोने म ायामशालाय व अखाड़े चलाये जाय । व थ और अ धक ब ल य
को पा रतो षक और स मान दये जाय । जो नबल और रोगी ह उ ह ववाह करने और स तान पैदा करने क
आ ा न द जाये । केवल व थ और ब ल युवा ी-पु ष ही स तान
पृ २५
पृ २६
पृ २७
से रोकने के लए ायाम से उ म कोई व तु नह है । वह बना क के मल को पचाता है और कृ त का
सहायक है ।
बू ली सीना लखते ह क जस मनु य म ायाम का साम य है वह स पूण उपाय से यु है और ायाम न
करने वाला ायः य (तपे दक) त होता है ।
कृरेशी कहता है - “ ायाम यागने से श यां ीण होती ह । ायाम के लाभ ब त ह । ायाम मल को र
करता है । जठरा न को उ त करता है और प को ढ़ करता है और रोमकूप को खोलता है ।”
डॉ नको लश लखता है क “ ायाम मांस प को बल दे ता है जससे मानवीय शरीर के अवयव अपना
काम उ मता से कर सकते ह । इससे नस-ना ड़य और स पूण र बनाने वाले अंग को पु मलती है ।
इससे ुधा बढ़ती है और जठरा न तेज होती है । फेफड क नस पे शयां अ धक बल से काम करती ह और
ास बढ़ जाता है, छाती फैलती है । फेफड़े बढ़ते ह, म त क म अ धक मा ा म उ म र आता है । उ म
र के प े अ धक उ मता से मल को बाहर नकालते ह । जसका नकालने का अवसर नह , वह थ नह
नकलेगा वरन् ायाम के ारा शरीर का आहार बन जायेगा । अतः ायाम को कभी नह छोड़ना चा हये
अ पतु न य करना चा हये ।”
डा टर सलव टर ाहम लखते ह क “ ायाम से र का संचार मण बढ़ता है और र लाख बाल से
भी सू म सब शरीर क नस म प ंच जाता है । ायाम से सब अंग म बल फू त आती है । सब अंग म
पूणता लचक वृ , सौ दय का त और बल उ प होता है । वा तव म ायाम शरीर के लए सबसे बढ़कर
पु दायक है ।”
पृ २८
पृ २९
पृ ३०
९ इंच ल बा सु दर शरीर, आजानु वशाल बा , उभरी ई चौड़ी छाती, मोट -मोट जंघाय, सुती ई कड़ी
पड लयां, तेजोमय वशाल ललाट, सु दर चमक ली आंख, व सम सघन सु वभ ओजप रपू रत दशनीय
सु दर शरीर क छ व वरोधी के मन म भी अगाध ा पैदा करती थी । अतुल बल और श के वे भ डार
थे । मह ष ने कणवास म राव कण सह क तलवार तोड़कर, जाल धर म सरदार व म सह क दो घोड़ क
ब घी को रोककर और काशी म क चड़ म फंसी ई दो बैल से न नकलने वाली गाड़ी को भी अकेले ही अपने
भुजबल से क चड़ से बाहर नकालकर तथा इसी कार क अनेक घटना से अपने बल और श का
प रचय दे कर दशक को म मु ध कर दया था । कांशी म म त सा ड ( जससे आने-जाने वाले सब डरते थे)
आपको दे खकर माग छोड़कर चला गया । भयंकर हसक भालू (र छ) तथा जंगल का राजा सह भी आपसे
डरकर कु े के समान पूंछ दबाकर भाग गया ।
जब माघ पौष म र को जमा दे ने वाली शीतल पवन चलती है, जो शरीर को छे दती ई पार नकल जाती है,
जस समय लोग घर के अ दर गम कपड़े और रजाई ओढ़कर ठ ड के मारे सकुड़े पड़े रहते ह, जब बाहर
नकलते समय उनका दय कांपता और ाण नकलते ह, ऐसे भयंकर शीतकाल म योगी दयान द गंगा
कनारे ठ डे रेत पर केवल एक लंगोट पहने ए च मा क शीतल चांदनी म सारी रा आसन लगाये
त दन यान म म त बैठे रहते थे । एक दन बदायूं के कलै टर एक पादरी के साथ गंगा पर आ नकले और
मह ष को ऐसी अव था म नंगा बैठे दे खकर आ य म पड़ गये और पूछने लगे क या आपको ठ ड नह
लगती? मह ष जी ने उ र दया - जैसे आपके मुख को नंगा
पृ ३१
होने पर भी ठ ड नह लगती, इसी कार मेरा शरीर सदा नंगा रहता है और इसे शीतो ण सहने का अ यास
पड़ गया है । पादरी और कलै टर कुछ दे र बात कर णाम करके चले गये । इसी कार माह मास क ठ ड
म एक थान पर आप उपदे श कर रहे थे । ोतागण भारी भारी गरम कपड़ म लपटे ए भी कांप रहे थे । ये
कौपीनधारी महा मा एक लंगोट म ही म त थे । कसी ने इसका कारण पूछा । उ र मला - योग का
अ यास । कसी ने पूछा या इससे भी कुछ अ धक श आ सकती है ? तब महाराज ने अंगठ ू े घुटन पर
रखकर बल लगाया तो झट सारे शरीर से पसीना गरने लगा । सब लोग च कत थे क ऐसी ठ ड म पसीना !!
ायाम, चय और योग से तपाये ए शरीर पर सद , गम , भूख- यास आ द कुछ भी भाव नह
डालते । इतना ही नह , ायामा द साधन शरीर को इतना ब ल बना दे ते ह क मारक वष भी नष भाव
होते दे खे गये ह । मह ष वामी दयान द जी महाराज को पा पय ने १६ बार वष दया । क तु वे उनके जीवन
का कुछ भी न बगाड़ सके । जस समय वे या ने उनके श ु से मलकर अ तम बार भयंकर हालाहल वष
दया तो वह सारे शरीर म रोम-रोम से फूटकर नकलने लगा, तब डा टर सूरजमल तथा ल मणदास, जो
महाराज के अन य भ थे और ज ह ने आपक बड़ी ा से सेवा शु ूषा तथा च क सा भी क थी, इस
भयंकर अव था को दे खकर कहने लगे क य द ऐसा भयंकर वष कसी मनु य को दया जाता तो वह पांच
मनट म ही मर जाता । क तु इतना ही नह , जोधपुर महाराजा के डा टर अलीमरदान खां, जो पहले दज के
खुशामद और अ य त नीच कृ त के थे, वामी जी महाराज को औष ध के थान पर वष ही दे ते रहे ।
य क इ ह रा य के उ च अ धकारी पौरा णक
पृ ३२
॥ ओ३म् शम् ॥
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