पिछली दो शदियों में ‘सौंदर्य’ के संबंध में बहुत विचार हुआ है। विभिन्न विद्वानों ने ‘सौंदर्य’ शब्द के चारों तरफ एक परिभाषाओं, सिद्धांतों व मतों का एक जंगल-सा खड़ा कर दिया है। कोई सुंदर को वस्तुनिष्ठ मानता हुआ समयितता, सम्मात्रा, सुव्यवस्था, वर्णयोजना और औचित्य अथवा अंग-सा सन्निवेश में सुंदरता के स्रोत का अनुसंधान करता है और कोई इसे आत्म-निष्ठ मानता है।
पिछली दो शदियों में ‘सौंदर्य’ के संबंध में बहुत विचार हुआ है। विभिन्न विद्वानों ने ‘सौंदर्य’ शब्द के चारों तरफ एक परिभाषाओं, सिद्धांतों व मतों का एक जंगल-सा खड़ा कर दिया है। कोई सुंदर को वस्तुनिष्ठ मानता हुआ समयितता, सम्मात्रा, सुव्यवस्था, वर्णयोजना और औचित्य अथवा अंग-सा सन्निवेश में सुंदरता के स्रोत का अनुसंधान करता है और कोई इसे आत्म-निष्ठ मानता है।
पिछली दो शदियों में ‘सौंदर्य’ के संबंध में बहुत विचार हुआ है। विभिन्न विद्वानों ने ‘सौंदर्य’ शब्द के चारों तरफ एक परिभाषाओं, सिद्धांतों व मतों का एक जंगल-सा खड़ा कर दिया है। कोई सुंदर को वस्तुनिष्ठ मानता हुआ समयितता, सम्मात्रा, सुव्यवस्था, वर्णयोजना और औचित्य अथवा अंग-सा सन्निवेश में सुंदरता के स्रोत का अनुसंधान करता है और कोई इसे आत्म-निष्ठ मानता है।
Acharya Shilak Ram dvara Rachit kavya-Sangrah PREM RAKSHI me Prem ka Vaicharik paksh (आचार्य शीलक राम द्वारा रचित काव्य-संग्रह प्रेम राक्षसी में प्रेम का वैचारिक पक्ष)