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महादेव ??ℍⓡयाणा आले)
महादेव ??ℍⓡयाणा आले)
काशी
महादेव
गाय ी पॉल
Humrooh Publication House
Copyright, 2022, Gayatri Paul
काशी महादेव
All rights reserved. No part of this book can be reproduced,
stored or transmitted in any form without prior permission of
the writer.
Genre- Poetry
1st edition
Edited by- Kishan Kushwaha
Instagram- unpublished_drafts
Cover by- Aakash Das
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”
म कभी एक जड़ से नह बंधी रही, शायद यही वजह है िक िकसी
एक जगह से नह रही। मेरे कहने का मतलब ये है िक वैसे तो म
झारख t ड से हूँ पर पैदा हुई उ V र देश के डि5 ट F ट
सोनभ 7 म और मौज़ क T Ė ज़दगी जी काशी म ।
म काशी अपनी पढ़ाई के िलए गई थी, तो बस इतना था िक पढ़ाई
ख़ म तो शायद काशी से र ता भी ख़ म। पर काशी क T लत ऐसी लगी
क T, िज 5 म वहां रहे या ना रहे पर V ह हमेशा उस शहर म ही रहती
है।
मुझे सफ़र बहुत पसंद है पर िसफ़´ Ė हदी वाला इंि लश वाला नह
। हर एक शहर घूमना चाहती हूँ, याद समेटना चाहती हूँ, पर
िफर लौट कर काशी क T ही होना चाहती हूँ।
महादेव
सफ़रनामा
इ क़-ए-बनारस
बनारसी बाई हाट´
मनमौजी बनारसी
कोिवड का क़हर
दुिवधा/सुिवधा
नमामी गंगे
म5त मौला बनारस
सुख हो या हो दु:ख बाबा म तो तेरे दर पे
आऊँ गी, महादेव कहते-कहते एक िदन म
राख हो जाऊँ गी।
िकतना कोई रोके मुझको तेरे शरण रह जाऊँ
गी, महादेव कहते-कहते एक िदन म राख हो
जाऊँ गी। भ 5 म लगाये तलक चढ़ाये गंगा घाट
म आऊँ गी, महादेव कहते-कहते एक िदन म
राख हो जाऊँ गी। बाबा तेरी छिव अनोखी कान
म न कं ु डल मोती, बस 7ा क T माला
और गले म सप´ िवराजा,
बाबा तेरा िनवास काशी और म काशी
िनवासी गंगा म डु बक T लगाऊँ गी,
महादेव कहते-कहते एक िदन म राख हो जाऊँ
गी। मसान क T होली खेले भ 5 म म ही रंग जाऊँ
गी, महादेव कहते-कहते एक िदन म राख हो
जाऊँ गी।
सारी दुिवधा तुझपे छोड़ म तो नत-म5तक हो जाऊँ
गी, महादेव कहते-कहते एक िदन म राख़ हो जाऊँ गी।
मेरा महादेव से र ता बचपन से ही जुड़ा हुआ है। उ ह जग का िपता
कहा जाता है। म ने भी उ ह अपना िपता मान िलया। मेरे िलए
एक मेरा प रवार है और एक दूसरा महादेव से जुड़ा प रवार। िपता
महादेव, माँ पाव´ती, ग Чू भईया एक प रवार ये भी बना िलया म ने। म
कभी-कभी अके ला रहना पसंद करती हूँ और जब अके ले रहती
हूँ महादेव से बात िकया करती हूँ। शकायते करती हूँ,
ख़ु शय के िलए ध यवाद कहती हूँ, हर बेटी िजस बचपने से
अपने िपता से बात करती है उसी बचपन से सारी बात कह देती
हूँ।
“जब कोई िदल म बात हो
तो अब म बस तेरे पास ही
आऊँ ,
मेरा हाथ हमेशा थाम रहना महादेव
कभी लड़खड़ाऊँ भी तो संभल जाऊँ ।”
एक यक T न रहता है कु छ भी हो महादेव संभाल ल गे। दुःख
आयेगा तो झेल ल गे F य िक झेलने क T शिN महादेव द गे। एक
भरोसा होता है जो हम िकसी श स पे करते ह और वो टू ट जाए तो
तकलीफ़ होती है। पर वही िव ास हम अपने माता-िपता से रख तो
वो हमारा िव ास टू टने नह देते। महादेव भी मेरा िव ास
कभी टू टने नह द गे।
मुझे हर वो चीज़ िमली जो म ने चाहा कु छ आसानी से तो कु छ
तकलीफ के बाद। कई बार हम कु छ हािसल करने क T िज़द
पकड़नी पड़ती है। और मुझे मेरी चीज़ महादेव से माँगने के िलए
ख़ामोशी रखनी पड़ती है। ये मान लो वो ये देख रहे ह क T म िकतना
इंतज़ार कर सकती हूँ और उस चीज़ के िलए तड़प कर भी
ख़ामोश रहना िकतना आसान या मुि कल है मेरे िलए।
“सब मोह माया है ये सोच कर मेरी सोच आगे बढ़
गई, सुकू न कT चाहत म म महादेव के बहुत
करीब हो गई।”
मुझे महादेव से F या जोड़ता है पता नह पर इ Vा पता है कु छ तो है
जो उनके सामने िसफ़´ म Ч त माँगने को हाथ नह बढ़ते। माफ़ T माँगने
को सर झुकते ह शकायत करने को ज़ुबान खुलती है। एक इंसान क T
तरह हक़ ज़माने का िदल करता है।
“िबन माँगे इतना कु छ िदया है अब और F या
ही माँगू, ग़म भी हो कोई Ė ज़दगी म तो बस तेरे सामने
हाथ जोड़ खड़ी रहूँ और मु5कु रा दूँ।
शकायत इस बात क T नह मुझे क T कु छ छन
िलया तूने, यकTन है कT मेरी Ėज़दगी म कु छ
बेहतर िलखा होगा तूने। अब तेरी चौखट पे कभी
सवाल िलए नह आऊँ गी,
बस हाथ जोड़ तुझे ध यवाद कहने आऊँ गी।”
कभी-कभी हम कोई ऐसा श स ढूँढ़ते ह जो िसफ़´ ख़ामोशी से
हमारी बात सुने ना कोई सवाल कर और ना कोई ान दे F य िक
लाख आप िकसी क T बात सुन लो पर आिख़र म करते अपने मन क T
हो।
म महादेव से बात करती हूँ जो ख़ामोशी से बात सुनते ह । सवाल
भी ख़ुद से ज़वाब भी ख़ुद को ये िसलिसला आज भी चलता है और उ
मीद है आगे भी चलती रहेगी।
मन िवचिलत हो तो चैन भी उनके पास ही आता है
जैसे सर पे हाथ रख कह रहे हो
शांत हो जा मेरी ब ी म हूँ न। एक िपता कभी अपनी बेटी का
साथ नह छोड़ेगा। म हाथ पकड़ कर तुझे चलाना नह चाहता बस चाहता
हूँ तू अपना रा5 ता ख़ुद ढूँढ़े। इस रा5 ते पर चले, िगरे, उठे,
संभले और िफर चले यही तेरी Ėज़दगी है। म बस हार बार तेरे िगरने
पर अपनी ऊँ गली थमाऊँ गा तािक तुझे उठने म आसानी हो।
यहाँ सबको अपनी लड़ाई ख़ुद ही लड़नी पड़ती है। िफर वो ज़माने से
हो या ख़ुद से, महादेव िसफ़´ सहारा बनते ह तािक दुःख झेलने म
आसानी हो वरना तो िवकलांग को भी अपना सहारा ख़ुद ही
ढूँढ़ना पड़ता है।
भोलेनाथ का भोलापन तो सबने देखा पर उनका िवशाल ोध कौन
सह पाया है। यही आदत हमेशा मेरी भी रही गु5 सा या तो आता नह
और जब आता है तो ख़ुद को संभालना मुि कल होता है।
“कभी ख़ुद से ख़फ़ा तो कभी ज़माने
से मेरी जंग रही ख़ुदा से ख़ुद को
जलाने म हाथ फै लाये म ने पर माँगा
कु छ भी नह
वो जनता है मुझे डर नह ख़ुदा के घर जाने से”
महादेव से मेरा लगाव शायद इसिलए भी है F य िक उनका सभी को
5 वीकार लेना मन को भाता है। वो अ छा-बुरा, गलत-सही सब अपना
लेते ह । कोई अपनी गलती मान ले उ ह वो भी 5 वीकार है। कोई दद´ दे
कर छमा माँग ले वो भी 5 वीकार है। उ ह ने देवी-देवता, भूत-िपशाच,
अहोरी-साधु, रा स-दानव, िजव-ज तु सभी को अपना मान रखा है।
कभी-कभी लगता है गलती कर के माफ़ T माँगना और ये अपे ा
करना क T माफ़ T िमलेगी ि कतना मुि कल होता है। बुरा करना
आसान तो नह होता पर अ छा करना शायद उससे भी किठन होता
है। रोज़ ऊपर वाले से
िसफ़ा रश करना कT मेरी तकलीफ कम कर द िकस हद तक सही है?
F या बुरा F या भला वो सब जानते ह ,
यहाँ तो प थर को भी भगवान मानते ह ।
हारने से ख़ुद को बचाये रखना कोई गलत बात नह
पर िव ास के आगे अंध-िव ास को
चुनना
ये भी तो सही बात नह ।
रख िह मत कर िव ास ई र पर ना कर बुरे
काम कोई और जो करे बुरा तो रख िह मत
सज़ा पा िफर ना कर ई र से सवाल कोई
शोर है मेले म
सुकू न है अके
ले म
ख़ु शयाँ िमल गी सबके साथ होने म
पर ख़ुद को पा लोगे अके ले
म ये सोच कर परेशान होना
क T आज जो है मेरे पास कल वो खो न
दँू F य पड़ना ऐसे झमेल म
ख़ुद से िमलने क T इ छा
हो तो रह कर देखो अके ले
म
हर कहानी क T शु वात एक सफ़र से होती है और वो मुसािफ़र कभी
अके ला होता है तो कभी िकसी राहगीर के साथ। उसे पता होता है
मंिज़ल क T तलाश म भटकना पड़ेगा और वो ख़ुशी ख़ुशी गिलय म
अपनी परेशािनय के साथ घूमता िफरता है।
“ये Ėज़दगी का सफ़र भी बहुत मज़ेदार होता
है मंिज़ल होती तो मौत है िफर भी
जीने कT लड़ाई लड़नी पड़ती है।”
मेरा भी एक सफ़र शुV हुआ महादेव क T नगरी काशी म । काशी मुझे
जानता है या म काशी को ये बता पाना शायद मुि कल है। काशी एक
शहर नह Ė ज़दगी सा लगता है।
म अके ले म ख़ुद को ढूँढ़ने वाली श स हूँ और भीड़ म ख़ुद को
खो देने वाली। मुझे अके लापन परेशान नह करता और लोग क T
मौजूदगी मुझे बेपरवाह रखती है। यँू कह लो म अँधेरे से भी नह डरती
और उजाले सुकू न भी नह देते।
आज कल हर श स एक शहर से दूसरे शहर ब 5 ता रहता है कोई पढ़ाई के
िलए, कोई रोज़गार के िलए, कोई ख़ुद कT तलाश म । म ने भी एक
शहर चुना और चली आई कं धे पे ब 5 ता टाँगे। मुसािफ़र बन एक तलाश
म कु छ पाने को।
कभी-कभी हम उस रा5 ते पर चलते ह िजसक T मंिज़ल हम पता ही
नह होती। ना ही उस रा5 ते का न F शा हमारे पास होता है बस चलते
रहते ह F य िक कने क T ना कोई वजह होती है ना दूसरा रा5 ता
िमलता है। उस एक रा5 ते से ही अलग-अलग मोड़ से अलग-अलग
रा5 ते ढूँढ़ लेते ह हम।
म सोनभ 7 क T रहने वाली हूँ। म हर व त शांत रहने वाली कम
बोलने वाली लड़क T थी। नस´री से 5ास दसव तक जब भी मेरे पापा
पैर ?स टीचस´ मीट ग म जाते उ ह टीचर से एक ही शकायत सुनने को
िमलती।
“ये तो कु छ बोलती ही नह है” मुझे लगता था म बािक ब से इतना
अलग F य हूँ। ना तो शैतािनय म मेरा नाम होता था ना टॉपस´ म ।
म कह िबच म थी और उस िबच का कोई वजूद नह । वो कहते ह न
“होना ना होना एक बराबर” वैसा ही कु छ। ख़ुद से सवाल करती रहती
थी िक
“ये दुिनया अलग है या म अलग
हूँ?” “कम बोलना खामीयाँ है
या खूिबयाँ?”
“हर बार ज़वाब देना सही होता है या ख़ामोश रहना?”
ऐसे बहुत से सवाल ह जो मेरे मन म उठते थे। कभी लगता था बदल दँू ख़ुद
को और के िहसाब से या कायम रखँू अपनी आदत। हर बार सोचती थी
बन जाती हूँ वैसा जैसा लोग चाहत ह पर सोचती थी। ये मुखौटा
अपना कर कब तब रह पाऊँ गी और िकसको ख़ुश क ँ गी ये सब कर
के , और को? F य िक ख़ुद को तो बनवािट Ė ज़दगी से ख़ुश रखना
नामुमिकन है। बस यही सब सोच कर ख़ुद को कभी बदलने क T को शश
नह क T। बस ये सोच लेती हर बार िक
“जो होगा देखा जाएगा” सब व त पर छोड़
िदया मान िलया जब जो बदलाव Ė ज़दगी
म आ जाये अपना िलया जायेगा।
“हालात को व त पर छोड़ देना चािहए
कभी-कभी चीखने से बेहतर होता है ख़ामोश रहना।”
5ास दसव के बाद क T पढ़ाई के िलए म काशी आ गई। ये शहर
मुझे पहले बहुत ख़ामोश लगता था, मेरी ही तरह पर ये शहर मुझे कभी
अनजान नह लगा। लगता था जाना पहचाना सा है, बस घुलने-िमलने
म व त लगेगा और व त के साथ ये भी मुझे अपना लेगा और म भी इस
शहर को जानने
लगूँगी। व त के साथ सब बदल गया ये मौन रहने वाली लड़क T खुल
कर जीने लगी थी। म हॉ5 टल क T सारी दीिदय के साथ गंगा आरती
देखने गई थी।
ख़ामोशी से ख़ुद को बाँध रखा था िजसने वो उस िदन चीख पड़ी
और गंगनाहट क T आवाज म बोल पड़ी
“हर हर महादेव”
पहली बार म ने अपनी बुलंद आवाज़ म कु छ बोला था। िजतनी
ख़ुशी एक माँ को उसके ब े के बोलने पे होता है। उस िदन मुझे
उतनी ही ख़ुशी थी। शायद ये बहुत आम बात हो पर वो पल मेरे
िलए जैसे जशन का िदन हो।
वो पहला िदन था जब म ने ख़ुद को भीड़ म भी सबसे अलग पाया था।
शायद ख़ुद से जो जंग थी मेरी उसक T जीत का आगाज़ हो चूका था।
जंग लंबी थी पर हौसले बुलंद। एक छोटी बात इतना भाव डालेगी सोचा
न था।
उन िदन मेरी एक ही उलझन रहती थी, और वो ये िक कोĖ चग
और 5 कू ल दोन को कै से संभाला जाए। िदन म 5 कू ल और
शाम से रात कोĖ चग। मुझे लगता था ये पढ़ने वाले ब े ख़ुद को समय
देते भी ह या िकताब को नोचने म इतने य 5 त हो जाते ह िक ख़ुद
को भुलाना आसान होता है। ख़ैर इस दुिवधा से तो आज भी कु
छ ब े िसत ह ।
हॉ5 टल क T हर एक िदवार पर ‘िप रयोडीक टेबल’ चपका होता
था। आँ ख म न द होती थी और झपकती आँ ख के साथ ‘के िमकल
ब ड’ याद िकया जाता था। सब उस रेस म आगे िनकलने को दौड़ते
थे और म जहाँ रेस ख़ म होती है बस उस लाइन तक पहुँचने के
िलए दौड़ रही थी।
इस रेस म भीड़ बहुत है कु छ थक कर क जाते ह कु छ चार से
पाँच बार दौड़ म भाग़ लेते ह और कु छ उस भीड़ म दब जाते ह ड
ेशन, 5 ट ेस,
िदमागी तनाव और आ f थक ि5 त थ से।
पहली बार घर से दूर थी अनजान लोग और ये अनजान शहर। कहाँ
पता था िक ये अनजान लोग एक िदन जान बन जाय गे और ये शहर
मेरी पहली मोह ē बत बन जायेगी।
सुबह हॉ5टल से 5कू ल िफर 5कू ल से हॉ5टल और िफर
शाम म हॉ5टल से कोĖ चग और कोĖ चग से हॉ5 टल यही रोज़ क T ि
या थी जो सोमवार से शिनवार तक कायम रहती थी।
एक रिववार होता था िजसका बेस ी से इंतज़ार िकया जाता था।
ऐसा लगता था एक िदन के िलए सही पर अपने साथ थकान क T
गोली, हमारी परेशािनय का इलाज़ और बहुत कु छ ले कर आता
है, और एक िदन के
िलए सुकू न दे कर चला जाता है।
हॉ5 टल म म सबसे छोटी थी तो एक तरीके से सबक T लाड़ली भी थी।
और कभी न तो ये एहसास हुआ क T वो अनजान है या ना उ ह ने
एहसास कराया क T म अनजान हूँ।
“कभी सफ़र म िमले कोई तो मु5 कु रा कर हाथ
बढ़ाना रा5 ते खूबसूरत और सफ़र ख़ुशनुमा सा लगने
लगता है।” “कभी ख़ुद से दगाबाजी नह क T F य िक
सफ़र को पाना था
मंिज़ल क T तलाश म न जाने कब तलक ख़ुद को भटकाना
था।” बहुत बार लोग को ये कहते सुना है
“जो होता है अ छे के िलए होता है।”
“वही होता है जो िक़ 5 मत म िलखा होता है।”
कई बार सोचती हूँ शायद सही कहते ह लोग और कई बार उ ह
गलत सािबत करना सही लगता है। ये दुिनया इतनी उलझन से भरी
है िक जो चीज़ आज सही लागती है वही कल बुरी। ये दोहरी Ė ज़दगी
है लोग क T या सही गलत के फसाने म भी कोई िम 5 ट ी है। अब
आप ये सोच रहे ह गे क T इन बात से आपको F य उलझाया जा रहा है।
हमारी हर बात एक उलझन ही है। वो कहते ह न क T “सीधी-सीधी बात
करो” पर बात सुनने और सुनाने वाले को भी पता होता है िक बात
सीधे- सीधे कहना आसान नह होता वरना बात को घुमा के पेश
करने क T ज़ रत ही F या पड़ती।
दरअसल इंसान को समझ पाना ही मुि कल
है। ठीक वैसे ही जैसे के िलए किठन
था।
- ?
मुझे? मुझे ये शहर जानता है, और इस शहर से बेहतर मुझे कोई नह
जानता। जब ख़ुद से V ठती हूँ तो ख़ुद को मनाने दुगा´ मंिदर
जाती हूँ। खोया-खोया महसूस करती हूँ तो गंगा घाट जाती
हूँ। जानता है ये शहर क T घाट और महादेव के अलावा कु छ
और सुकू न नह देता मुझे। मरने का
याल आए तो म णक f णका घाट िफर से जीने क T उ मीद देता है।
मौत एक जशन है ये म णक f णका बताता है, F य िक जी िलया
तुमने तकलीफ़ और ख़ुशी का िम ण अब बस तौफा सुकू न का
िमलेगा िजसे 5 वीकारने से कोई पीछे नह हटता।
ये शहर सुकू न है और म सुकू न म
िज़ दा हूँ। पं छय क T उड़ान
कहाँ तक जाती है? देखो, पतंग भी तो
वह तक जाती है।
पंछी अपनी उड़ान ख़ुद भरता है और पतंग क T उड़ान उस धागे से बंधी
होती है और उसे उड़ान के िलए हवा क T ज़ रत होती है। उड़ान तो
दोन
भरते ह पर उनकT उड़ान म जमीन आ5माँ का फ़क´ होता है।
वैसे ही हमारी Ė ज़दगी होती तो एक जैसी ही है पर जीते अलग-अलग
तरीके से ह । अलग-अलग सोच के साथ। हम ख़ुद को इस दुिनया
से अलग नह कर सकते ना अलग दुिनया बना सकते ह , पर
दुिनया नए तरीक़े से िदखा सकते ह । कु छ समझ कर कु
छ समझा कर।
पीढ़ी दर पीढ़ी सब बदलता गया। बदलने और ख़ म होने म बहुत फ़क´
होता है। काशी म भी बहुत कु छ बदला, बस कु छ नह बदला तो
यहाँ क T परंपरा, द रयािदली और अ हड़पन।
वैसे तो भारत के हर कोने म जुगाड़ श ē द बहुत फे मस है। और हो
भी F य ना इसका मतलब भारतीय के अलावा समझ भी िकसे आता
है। बनारस म भी हर काम के िलए जुगाड़ पहली ि या होती है।
अगर जुगाड़ से काम नह हुआ तो बात गंभीरता से देखी जाती है।
पहली बाजी मारने का जुगाड़, लंबी कतार म बचने से पं डत से प रचय
का जुगाड़ और न जाने िकतने जुगाड़ जो रात -रात तु ह राजा या
फ़क T र कर दे।
फ़क़ T र से याद आया यहाँ कोई भी श स आपको उसके कपड़ से तो
फ़क T र लग सकता है पर सोच, िवचार और ान से यहाँ सभी राजा
ह । यही वजह है िक यहाँ सब ‘का हो गु ’ से ही बोला करते ह । यहाँ
फ़क़ T र भी राजा है।
यहाँ सभी को गु इसिलए भी माना जाता है F य िक ान देने म
कोई पीछे नह रहता िफर बात श ा क T हो, सं5 कृ त क T हो,
गंगा मइया क T हो, या
िफर राजनी त हो।
मोह ē बत-मोह ē बत पुकारा क ँ
गी सारे शहर को तेरा नाम बताया क ँ
गी, फ T रती रहूँ चाहे दर-बदर
िकसी राह पे लौट कर िफर तुझ
तक ही आया क ँ गी। ख़ामोशी क T
भी एक धुन है ये िकसे पता
िदल है ग़ुम कहाँ ये तो है बस मुझे पता,
आँ खे बंद कर इस शहर का न F शा बताया क ँ
गी हर फजीहत से सुकू न पाने तुझ तक आया
क ँ गी।
गंगा घाट के पार रेत पर पैर के िनशां छोड़ने ह
िदल अ 5 सी को तो िज 5 म म णक f णका को
सौपने ह , मर कर इस शहर म ख़ुद को म Ė ज़दा
पाया क ँ गी
ज़माने भर को पता है लौट कर तुझ तक ही आया क ँ
गी।
बनारिसय क T बात ही अलग है। वो अ हड़पन, वो अतरंगी Ė ज़दगी जैसे
शमा बांध दे त है। कोई िदन योहार से कम नह लगता और कोई
यौहार एक जशन का माहौल बनाये रखने म कसर नह छोड़ता। हर
िदन हर व त बाबा क T गूँज रहती है इस शहर म । एक अलग रंगत जो
बनारिसय से बंधी रहती है।
मुह म पान, गले म गमछा, हाथ म चाय और चाय क T नुW ड़ पे बतकही।
हर गली हर चौराहे पे ान देते िमल जाय गे िफर वो युवा पीढ़ी
हो या बुजुग´। सब अपने ही भौकाल म लगे रहते ह ।
घाट पर ब े डु बक T लगाते िमल जाय गे, पं डत ा कराते,
नािवक सैर को पूछते िफर गे और कु छ अपनी ही धुन म बैठे न
जाने F या ि नहारते रहते ह घंटो। और कु छ बेिफ़ हो खुले
आसमाँ तले असीम Ė न 7ा म पड़े रहते ह ।
बनारस क T हर गली म आ शक का बसेरा
है घाट पर तो अघो रय का डेरा है
यहाँ कल और आज म फ़क´ नह होता।
कल भी तेरा और आज भी तेरा है
ये बनारस है गु यहाँ हर िदन जशन का मेला है।
जब तक कोई यौहार या िफर कोई मेला ना लागा हो सड़क पर भीड़ नह
िदखती। पर गंगा क T घाट पर उमड़ी भीड़ हमेशा यही जताती है
िक हर एक पल हर एक ल हा मौज़ से िबताओ। यहाँ िफ़ बाबा
पर छोड़ देते ह और तकलीफ गंगा माँ कT गोद म । अतरंगी है Ėज़दगी
और फTकT Ėज़दगी जीने म F या ही मज़ा।
िजतनी सु दर सुबह क T िकरण घाट को िबना आवाज़ के भी
मधुर और म म सा महसूस करती है जैसे छठ के पव´ पर घात सुनहरा
सा लगता है ठीक वैसे ही और हर शाम िटमिटमाती लाइट घाट क T
रौनक बनाये रखती है।
‘ - ’
सबके काम का समय होता है एक समय के बाद सड़क भी खाली हो
जाती है और एक ड ाइवर अपने ट से अलग िदशा तो कभी
जायेगा नह । यहाँ के ऑटो ड ाइवर क T एक ख़ास बात है। वो होते
तो ऑटो ड ाइवर ह पर उनक T सेवा ओला और उबर िक तरह
होती है। बस अपनी मंिज़ल बता दो िफर उसका रा5 ता तु ह
पता हो या न हो उसे उस तरफ जाना हो या ना हो ऑटो तु हारी
मंिज़ल तक ज़ V र जायेगा।
‘ - ’
ये बात झुटलाई नह जा सकती क T बनारस म ठगी बहुत ह । वैसे सच
ये भी है िक ठगता तो हर कोई है। पर बनारस के ठग बेवकू फ को
नह समझदार को ठगने क T कािबिलयत रखते ह । अगर शहर म नए हो
तो अपनी कािबिलयत पे भरोसा रखना वरना ठग िलए जाओगे।
‘ - ’
बनारस म कई िफरंगी आते ह । और हर िफरंगी के साथ गाइड नह
होता तो ऑटो वाले, दुकान वाले, यहाँ तक क T घाट पर चाय वाले
उनक T बात समझने और अपनी बात समझाने म उ ह कोई परेशानी नह
होती F य िक
“they have all knowledge without any college”
िहब हो या 5 पेिनश या कोई और भाषा
उनकT जुबान सब जानती है।
और ये भाषा िसखने का जुगाड़ तो बस वही जानते ह ।
‘ - ’
बा रश के मौसम म हर साल माँ गंगा उफान मारती ह । उनक T लहर घाट
िकनारे मकान को ढ़क लेती ह । पूरा घाट माँ गंगा म डू बा होता है।
गदोिलया सड़क भरा होता है। पर मजाल है कोई घर से ना िनकले।
लोग घर से
िनकलते ही ह ये देखने के िलए क T गंगा बढ़ी िकतनी ह ।
‘ - ’
माँ गंगा को बढ़ते देख घर को छोड़ दूसरी जगह रहने चले जाते ह ।
गंगा जब घटने लगती ह तो िफर वह रहने आ जाते ह िबना ये सोचे
क T हर बार यही झेलना होगा।
ना शकायत ना िकसी से कोई माँग बस एक-दूसरे क T मुसीबत म
मदद। यही उनक T हर दुिवधा का समाधान है।
हर-हर काशी हर-हर
गंगे! हर-हर काशी हर-
हर गंगे!
महादेव कT जटा से िनकली करने सबको पावन गंगे
िनम´ल धारा, शु और पिव है नमो-नमो नमािम
गंगे। मो ाि को म णक f णका, अि थयाँ
वािहत को गंगे
पाप के ाय &त को 5 वीकारती, िनम´ल धारा
बहती गंगे। हर-हर काशी हर-हर गंगे!
हर-हर काशी हर-हर गंगे!
मन क T यकु लता को समेटे बैठी रहूँ म घाट
िकनारे गंगे शाम ढ़लते घाट क T रौनक, मनभावन तेरी
आरती माँ गंगे। हादसा भी हो तो हो ऐसा गोद म अपनी
सुलाये मुझे माँ गंगे तन जले म णक f णका पर, िफर
िमल जाऊँ तुझम ही गंगे।
हर-हर काशी हर-हर गंगे! हर-हर काशी हर-हर
गंगे! काशी क T अइुत माया कभी ि5 थर कभी
चंचल गंगे मन से पावन करती काशी, तन से पावन
करती गंगे। गंगे िबन िवचिलत काशी और
काशी िबन याकु ल गंगे
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