You are on page 1of 52

√दुआओं में याद रखना _

काशी
महादेव
गाय ी पॉल
Humrooh Publication House
Copyright, 2022, Gayatri Paul

काशी महादेव
All rights reserved. No part of this book can be reproduced,
stored or transmitted in any form without prior permission of
the writer.
Genre- Poetry
1st edition
Edited by- Kishan Kushwaha
Instagram- unpublished_drafts
Cover by- Aakash Das
Instagram- aakash_das
Catch us on different platforms as:
Email ID- humroohpublicationhouse@gmail.com
Instagram ID- humrooh_publication_house
Twitter ID- @humroohpublicationhouse
Facebook ID- @humroohpublicationhouse
Humrooh publication house is an impeccably soulful
platform to immensify one’s hidden writing talent before
everyone. With a petaly effervescence, flowery team of
Humrooh spreads it’s fragrance by quantifying the talent of
writers across the country, making a fruitful garden of sweet
and young dream chasers. All the cherishing members who are
indeed blessed writers create an aurafil environment to support
writers to showcase their writing skills and help them in
publishing them too though their love and support at a much
affordable price.

Our Publication House published 231 plus books in just 1 year


and 1 month. Some of the anthologies of Our family are Maa,
Bachpan, Vedna, Aatmik Prem, Ek Safar- An Unconditional
Journey, 2020- Curse To The World, Khwahishen, Safar, Meri
Mitti, Bhartiya Hai Hum, Man Mera, Vidya Mata, Stree
(Hindi), Stree- A Warrior, Jazbaato Ke Darmiyaan, Kasoor,
Safar Ka Naam Zindagi, Sintaprokhut- a Field To Reflect, Har
Har Mahadev, Flying Towards Freedom, Ankahi Dastaan:- An
Untold Tale, Zindagi As It’s, Arshi, Peaceful Chaos, Kuch
Baate Dil Ki, Parchhai, Aaghaz, Apnapan- Ek Ehaas, Trust-
Bat Bharose Ki, Akhiri Mohabbat, Moh Maya, Lonely Soul,
Silent Screams, Muqammal Dastaan, Rainbow- The Shade Of
Love, The Long Silence, Memories- Kuch Yaadein Kal Ki,
Mayanagri, Jazbaat, Housemaker, Mere Jazbaat, Zikr Pyaar
Ka, Beshumaar Ishq, Ecstasy Of Our Heart, Soch Ek Hathiyar,
Desired Love, Book Of Nature, Dread, Ibaadat, Aaradhya,
Ishq, Dear Diary, Maa (2021), Jeevan Pathik, Dream, Betaab
Zindagi, Kaash, The Book Of Nature, Paryavaran, Coronakaal,
Tera Chehra, Pita, Khud Se Jung, Cancer, Betiyan Aur Dahej
Ki Kashmakash, Kitni Mohabbat Hai, Adhura Ishq, Yoga,
Asaan Lafzo Mein, Laal, Maa, Namami Gange, Humsafar,
Janamdin, Sachdev Aur Sahab, Dread, Saajan, Zindagi Ki
Kitaab, Shivshakti, Alfaaz, Intezar, Guru, Baarish, Hayaat, My
Dear Comrade, Soldiers, Khairiyat, Mulaqat, Pyar, Ishq,
Mannat, Lockdown Ka Pyaar, Jannat, Dread, Deepawali,
Astitwa, Broken, Bhaiya Dooj, Covid 19, Chhath, Khwaab Ya
Haqeeqat, Rishta Saat Janmo Ka, Navchetna, Songs Of My
Heart, Ghazal e Amar, Mere Jazbaat, Sukoon, Lafzon Ka
Karwan, Phir Milenge, Ek Duje Ke Waaste, Precious Gems,
Hausla, Ankahe Lafz, Zindagi Ka Safar, Pehli Mulakat, Love
You Hamesha, Apno Ke Qisse, Ishq, Holiday’s, Mannat, and
so on.

Such family of artistically immersed fellas try their utmost to


contribute in bringing the best word players before the world.
Humrooh offers one of the most banging resourceful
opportunities to each and every of that dream catcher who
believes in what he writes. Just like a fruitful tree it lays down
Emerging with an unknown fate, Abhishar Ganguly took
himself to an artistically, beautified journey and chose writing
as both his passion and profession. His craft of writing has
been scribbled in many of the banging ventures like Article of
Inarticulate, Bhartiya Hai Hum, Ek Safar, Khwahishen, Safar,
Bhartiya Hai Hum, School Days, Dreams, Free to fly, The
Man In Me and so on and so forth.

Apart from this, he has contributed his words to an extravagant


world record holder Anthology named Unity in diversity
which signifies and illustrates the recognition of all the
constitutional languages of India. Not so far till now, He has
marshaled (compiled) various beautous anthologies such as
Rang, Maa, Atmik Prem, Bachpan, Vedna, Meri Mitti, 2020,
Man Mera Vidya Mata, Stree a Warrior, Har Har Mahadev,
Rang2, Jai Shree Ram, Khat, Silent Screams, Mazdoor, Maa2,
Laal, Housemaker, Paryavaran, Coronakaal, Pita, Yoga: a
Healthy Way Of Living, Adhura Ishq, Maahi,
Doctors:Warriors, Kissa, Dosti: a Selfless Relationship,
Kitaabein, Books, Yuva, Naagpanchami, Fauji, Buzurg, Rakhi,
Vijeta, Soulmates, Deepawali, Karwa Chauth, Jai Maa Durge,
Chhath, Athithi, Garbhawastha, Betrayed Beliefs, Ganpati
Bappa Moraya, Pari Ek Farishta, Secret That Shines, Saajan,
Dulhan and many more. He has compiled 71 anthologies and
scribbled down in more than 151 anthologies.
He also runs various marvelous writing platforms and contests.
One of them is truly praiseworthy Aarambh ek pratiyogita.
These all golden steps by him are for the talented writers
across the country who wants their talents to come and shine
brightly as stars. His main motive behind opening his
publication house is to provide gems of the writing culture, a
dreamful recognition and dignified establishment as authors in
a much affordable price and help them in enhancing their
sunshine a bit more.
अ5वीकृ त
इस संकलन क T सभी किवताएँ और कृ तयाँ मूल V प से लेखक के
ारा उनक T सहम त से ली गई ह तथा लेखक के ारा इसके
ाकृ तक और सािहि यक होने क T पुिW क T गई है। इन रचनाओं
म लेखक ने अपनी क पना और सािहि यक ि वचार को रखा है,
िजसका िकसी भी जा त, समुदाय तथा िकसी जीिवत या मृत
यिN से संबंध नह होना चािहए। इसे मूल रखने के िलए हम सभी ने
कड़ी मेहनत क T है। अगर हमारे ान से कु छ छू ट गया है, तो
इसके िलए काशक, संकलनकता´ और संपादक िज़ मेदार नह ह
गे। लेखक पूरी तरह िज़ मेदार ह गे।
काशक
अ भशार
गाँगुली
इस िकताब को िलखने का उ₹े य ये था िक पूरी दुिनया को बता सकँ ू
कT
मुझे मोह ē बत हुई है। वो भी िकसी श स से नह एक शहर से। एक
ऐसा शहर िजसने िवदे शय को भी ख़ुद म िवलीन कर रखा
है, वो भी बड़े
िवन e ता से।
इस िकताब के िलए सबसे पहले म श 5 ती सचदेव दी को ध यवाद
क ँ गी। अगर वो ना होती तो मेरे ज बात मेरे डायरी के प Ч तक ही
िसिमत रहती। मेरी लेखनी को आगे बढ़ाने म उनका बहुत यादा
योगदान रहा है। तहे
िदल से आपका शुि या शि5 त दी।
मेरी लेखनी िकसी क T जुबान ने पढ़ी F य िक वो “हम V ह पिē लके
शन” म छपी। इसके िलए “हम V ह पिē लके शन” और उनक T टीम
और अ भशार गाँगुली सर का बहुत ध यवाद।
“ ”–
“काशी महादेव” ये िकताब म ने अपना ेम य N करने के िलए
िलखी है। इस िकताब म मेरा महादेव से लगाव काशी से ेम और
मेरी Ė ज़दगी के कु छ खूबसूरत पल क T या या क T गई है।
आशा है िक मेरी िलखी किवता और बनारस क T अनोखी बात
आपका िदल जीत ल गी और इस िकताब के ज़ रये आपको भी
काशी से ेम हो जाएगा।
इस िकताब म छोटी-छोटी किवताएँ ही इस पु5 तक क T आ मा ह ।
आशा है आपको ये िकताब पसंद आएगी।
“ ,


म कभी एक जड़ से नह बंधी रही, शायद यही वजह है िक िकसी
एक जगह से नह रही। मेरे कहने का मतलब ये है िक वैसे तो म
झारख t ड से हूँ पर पैदा हुई उ V र देश के डि5 ट F ट
सोनभ 7 म और मौज़ क T Ė ज़दगी जी काशी म ।
म काशी अपनी पढ़ाई के िलए गई थी, तो बस इतना था िक पढ़ाई
ख़ म तो शायद काशी से र ता भी ख़ म। पर काशी क T लत ऐसी लगी
क T, िज 5 म वहां रहे या ना रहे पर V ह हमेशा उस शहर म ही रहती
है।
मुझे सफ़र बहुत पसंद है पर िसफ़´ Ė हदी वाला इंि लश वाला नह
। हर एक शहर घूमना चाहती हूँ, याद समेटना चाहती हूँ, पर
िफर लौट कर काशी क T ही होना चाहती हूँ।
महादेव
सफ़रनामा
इ क़-ए-बनारस
बनारसी बाई हाट´
मनमौजी बनारसी
कोिवड का क़हर
दुिवधा/सुिवधा
नमामी गंगे
म5त मौला बनारस
सुख हो या हो दु:ख बाबा म तो तेरे दर पे
आऊँ गी, महादेव कहते-कहते एक िदन म
राख हो जाऊँ गी।
िकतना कोई रोके मुझको तेरे शरण रह जाऊँ
गी, महादेव कहते-कहते एक िदन म राख हो
जाऊँ गी। भ 5 म लगाये तलक चढ़ाये गंगा घाट
म आऊँ गी, महादेव कहते-कहते एक िदन म
राख हो जाऊँ गी। बाबा तेरी छिव अनोखी कान
म न कं ु डल मोती, बस 7ा क T माला
और गले म सप´ िवराजा,
बाबा तेरा िनवास काशी और म काशी
िनवासी गंगा म डु बक T लगाऊँ गी,
महादेव कहते-कहते एक िदन म राख हो जाऊँ
गी। मसान क T होली खेले भ 5 म म ही रंग जाऊँ
गी, महादेव कहते-कहते एक िदन म राख हो
जाऊँ गी।
सारी दुिवधा तुझपे छोड़ म तो नत-म5तक हो जाऊँ
गी, महादेव कहते-कहते एक िदन म राख़ हो जाऊँ गी।
मेरा महादेव से र ता बचपन से ही जुड़ा हुआ है। उ ह जग का िपता
कहा जाता है। म ने भी उ ह अपना िपता मान िलया। मेरे िलए
एक मेरा प रवार है और एक दूसरा महादेव से जुड़ा प रवार। िपता
महादेव, माँ पाव´ती, ग Чू भईया एक प रवार ये भी बना िलया म ने। म
कभी-कभी अके ला रहना पसंद करती हूँ और जब अके ले रहती
हूँ महादेव से बात िकया करती हूँ। शकायते करती हूँ,
ख़ु शय के िलए ध यवाद कहती हूँ, हर बेटी िजस बचपने से
अपने िपता से बात करती है उसी बचपन से सारी बात कह देती
हूँ।
“जब कोई िदल म बात हो
तो अब म बस तेरे पास ही
आऊँ ,
मेरा हाथ हमेशा थाम रहना महादेव
कभी लड़खड़ाऊँ भी तो संभल जाऊँ ।”
एक यक T न रहता है कु छ भी हो महादेव संभाल ल गे। दुःख
आयेगा तो झेल ल गे F य िक झेलने क T शिN महादेव द गे। एक
भरोसा होता है जो हम िकसी श स पे करते ह और वो टू ट जाए तो
तकलीफ़ होती है। पर वही िव ास हम अपने माता-िपता से रख तो
वो हमारा िव ास टू टने नह देते। महादेव भी मेरा िव ास
कभी टू टने नह द गे।
मुझे हर वो चीज़ िमली जो म ने चाहा कु छ आसानी से तो कु छ
तकलीफ के बाद। कई बार हम कु छ हािसल करने क T िज़द
पकड़नी पड़ती है। और मुझे मेरी चीज़ महादेव से माँगने के िलए
ख़ामोशी रखनी पड़ती है। ये मान लो वो ये देख रहे ह क T म िकतना
इंतज़ार कर सकती हूँ और उस चीज़ के िलए तड़प कर भी
ख़ामोश रहना िकतना आसान या मुि कल है मेरे िलए।
“सब मोह माया है ये सोच कर मेरी सोच आगे बढ़
गई, सुकू न कT चाहत म म महादेव के बहुत
करीब हो गई।”
मुझे महादेव से F या जोड़ता है पता नह पर इ Vा पता है कु छ तो है
जो उनके सामने िसफ़´ म Ч त माँगने को हाथ नह बढ़ते। माफ़ T माँगने
को सर झुकते ह शकायत करने को ज़ुबान खुलती है। एक इंसान क T
तरह हक़ ज़माने का िदल करता है।
“िबन माँगे इतना कु छ िदया है अब और F या
ही माँगू, ग़म भी हो कोई Ė ज़दगी म तो बस तेरे सामने
हाथ जोड़ खड़ी रहूँ और मु5कु रा दूँ।
शकायत इस बात क T नह मुझे क T कु छ छन
िलया तूने, यकTन है कT मेरी Ėज़दगी म कु छ
बेहतर िलखा होगा तूने। अब तेरी चौखट पे कभी
सवाल िलए नह आऊँ गी,
बस हाथ जोड़ तुझे ध यवाद कहने आऊँ गी।”
कभी-कभी हम कोई ऐसा श स ढूँढ़ते ह जो िसफ़´ ख़ामोशी से
हमारी बात सुने ना कोई सवाल कर और ना कोई ान दे F य िक
लाख आप िकसी क T बात सुन लो पर आिख़र म करते अपने मन क T
हो।
म महादेव से बात करती हूँ जो ख़ामोशी से बात सुनते ह । सवाल
भी ख़ुद से ज़वाब भी ख़ुद को ये िसलिसला आज भी चलता है और उ
मीद है आगे भी चलती रहेगी।
मन िवचिलत हो तो चैन भी उनके पास ही आता है
जैसे सर पे हाथ रख कह रहे हो
शांत हो जा मेरी ब ी म हूँ न। एक िपता कभी अपनी बेटी का
साथ नह छोड़ेगा। म हाथ पकड़ कर तुझे चलाना नह चाहता बस चाहता
हूँ तू अपना रा5 ता ख़ुद ढूँढ़े। इस रा5 ते पर चले, िगरे, उठे,
संभले और िफर चले यही तेरी Ėज़दगी है। म बस हार बार तेरे िगरने
पर अपनी ऊँ गली थमाऊँ गा तािक तुझे उठने म आसानी हो।
यहाँ सबको अपनी लड़ाई ख़ुद ही लड़नी पड़ती है। िफर वो ज़माने से
हो या ख़ुद से, महादेव िसफ़´ सहारा बनते ह तािक दुःख झेलने म
आसानी हो वरना तो िवकलांग को भी अपना सहारा ख़ुद ही
ढूँढ़ना पड़ता है।
भोलेनाथ का भोलापन तो सबने देखा पर उनका िवशाल ोध कौन
सह पाया है। यही आदत हमेशा मेरी भी रही गु5 सा या तो आता नह
और जब आता है तो ख़ुद को संभालना मुि कल होता है।
“कभी ख़ुद से ख़फ़ा तो कभी ज़माने
से मेरी जंग रही ख़ुदा से ख़ुद को
जलाने म हाथ फै लाये म ने पर माँगा
कु छ भी नह
वो जनता है मुझे डर नह ख़ुदा के घर जाने से”
महादेव से मेरा लगाव शायद इसिलए भी है F य िक उनका सभी को
5 वीकार लेना मन को भाता है। वो अ छा-बुरा, गलत-सही सब अपना
लेते ह । कोई अपनी गलती मान ले उ ह वो भी 5 वीकार है। कोई दद´ दे
कर छमा माँग ले वो भी 5 वीकार है। उ ह ने देवी-देवता, भूत-िपशाच,
अहोरी-साधु, रा स-दानव, िजव-ज तु सभी को अपना मान रखा है।
कभी-कभी लगता है गलती कर के माफ़ T माँगना और ये अपे ा
करना क T माफ़ T िमलेगी ि कतना मुि कल होता है। बुरा करना
आसान तो नह होता पर अ छा करना शायद उससे भी किठन होता
है। रोज़ ऊपर वाले से
िसफ़ा रश करना कT मेरी तकलीफ कम कर द िकस हद तक सही है?
F या बुरा F या भला वो सब जानते ह ,
यहाँ तो प थर को भी भगवान मानते ह ।
हारने से ख़ुद को बचाये रखना कोई गलत बात नह
पर िव ास के आगे अंध-िव ास को
चुनना
ये भी तो सही बात नह ।
रख िह मत कर िव ास ई र पर ना कर बुरे
काम कोई और जो करे बुरा तो रख िह मत
सज़ा पा िफर ना कर ई र से सवाल कोई
शोर है मेले म
सुकू न है अके
ले म
ख़ु शयाँ िमल गी सबके साथ होने म
पर ख़ुद को पा लोगे अके ले
म ये सोच कर परेशान होना
क T आज जो है मेरे पास कल वो खो न
दँू F य पड़ना ऐसे झमेल म
ख़ुद से िमलने क T इ छा
हो तो रह कर देखो अके ले

हर कहानी क T शु वात एक सफ़र से होती है और वो मुसािफ़र कभी
अके ला होता है तो कभी िकसी राहगीर के साथ। उसे पता होता है
मंिज़ल क T तलाश म भटकना पड़ेगा और वो ख़ुशी ख़ुशी गिलय म
अपनी परेशािनय के साथ घूमता िफरता है।
“ये Ėज़दगी का सफ़र भी बहुत मज़ेदार होता
है मंिज़ल होती तो मौत है िफर भी
जीने कT लड़ाई लड़नी पड़ती है।”
मेरा भी एक सफ़र शुV हुआ महादेव क T नगरी काशी म । काशी मुझे
जानता है या म काशी को ये बता पाना शायद मुि कल है। काशी एक
शहर नह Ė ज़दगी सा लगता है।
म अके ले म ख़ुद को ढूँढ़ने वाली श स हूँ और भीड़ म ख़ुद को
खो देने वाली। मुझे अके लापन परेशान नह करता और लोग क T
मौजूदगी मुझे बेपरवाह रखती है। यँू कह लो म अँधेरे से भी नह डरती
और उजाले सुकू न भी नह देते।
आज कल हर श स एक शहर से दूसरे शहर ब 5 ता रहता है कोई पढ़ाई के
िलए, कोई रोज़गार के िलए, कोई ख़ुद कT तलाश म । म ने भी एक
शहर चुना और चली आई कं धे पे ब 5 ता टाँगे। मुसािफ़र बन एक तलाश
म कु छ पाने को।
कभी-कभी हम उस रा5 ते पर चलते ह िजसक T मंिज़ल हम पता ही
नह होती। ना ही उस रा5 ते का न F शा हमारे पास होता है बस चलते
रहते ह F य िक कने क T ना कोई वजह होती है ना दूसरा रा5 ता
िमलता है। उस एक रा5 ते से ही अलग-अलग मोड़ से अलग-अलग
रा5 ते ढूँढ़ लेते ह हम।
म सोनभ 7 क T रहने वाली हूँ। म हर व त शांत रहने वाली कम
बोलने वाली लड़क T थी। नस´री से 5ास दसव तक जब भी मेरे पापा
पैर ?स टीचस´ मीट ग म जाते उ ह टीचर से एक ही शकायत सुनने को
िमलती।
“ये तो कु छ बोलती ही नह है” मुझे लगता था म बािक ब से इतना
अलग F य हूँ। ना तो शैतािनय म मेरा नाम होता था ना टॉपस´ म ।
म कह िबच म थी और उस िबच का कोई वजूद नह । वो कहते ह न
“होना ना होना एक बराबर” वैसा ही कु छ। ख़ुद से सवाल करती रहती
थी िक
“ये दुिनया अलग है या म अलग
हूँ?” “कम बोलना खामीयाँ है
या खूिबयाँ?”
“हर बार ज़वाब देना सही होता है या ख़ामोश रहना?”
ऐसे बहुत से सवाल ह जो मेरे मन म उठते थे। कभी लगता था बदल दँू ख़ुद
को और के िहसाब से या कायम रखँू अपनी आदत। हर बार सोचती थी
बन जाती हूँ वैसा जैसा लोग चाहत ह पर सोचती थी। ये मुखौटा
अपना कर कब तब रह पाऊँ गी और िकसको ख़ुश क ँ गी ये सब कर
के , और को? F य िक ख़ुद को तो बनवािट Ė ज़दगी से ख़ुश रखना
नामुमिकन है। बस यही सब सोच कर ख़ुद को कभी बदलने क T को शश
नह क T। बस ये सोच लेती हर बार िक
“जो होगा देखा जाएगा” सब व त पर छोड़
िदया मान िलया जब जो बदलाव Ė ज़दगी
म आ जाये अपना िलया जायेगा।
“हालात को व त पर छोड़ देना चािहए
कभी-कभी चीखने से बेहतर होता है ख़ामोश रहना।”
5ास दसव के बाद क T पढ़ाई के िलए म काशी आ गई। ये शहर
मुझे पहले बहुत ख़ामोश लगता था, मेरी ही तरह पर ये शहर मुझे कभी
अनजान नह लगा। लगता था जाना पहचाना सा है, बस घुलने-िमलने
म व त लगेगा और व त के साथ ये भी मुझे अपना लेगा और म भी इस
शहर को जानने
लगूँगी। व त के साथ सब बदल गया ये मौन रहने वाली लड़क T खुल
कर जीने लगी थी। म हॉ5 टल क T सारी दीिदय के साथ गंगा आरती
देखने गई थी।
ख़ामोशी से ख़ुद को बाँध रखा था िजसने वो उस िदन चीख पड़ी
और गंगनाहट क T आवाज म बोल पड़ी
“हर हर महादेव”
पहली बार म ने अपनी बुलंद आवाज़ म कु छ बोला था। िजतनी
ख़ुशी एक माँ को उसके ब े के बोलने पे होता है। उस िदन मुझे
उतनी ही ख़ुशी थी। शायद ये बहुत आम बात हो पर वो पल मेरे
िलए जैसे जशन का िदन हो।
वो पहला िदन था जब म ने ख़ुद को भीड़ म भी सबसे अलग पाया था।
शायद ख़ुद से जो जंग थी मेरी उसक T जीत का आगाज़ हो चूका था।
जंग लंबी थी पर हौसले बुलंद। एक छोटी बात इतना भाव डालेगी सोचा
न था।
उन िदन मेरी एक ही उलझन रहती थी, और वो ये िक कोĖ चग
और 5 कू ल दोन को कै से संभाला जाए। िदन म 5 कू ल और
शाम से रात कोĖ चग। मुझे लगता था ये पढ़ने वाले ब े ख़ुद को समय
देते भी ह या िकताब को नोचने म इतने य 5 त हो जाते ह िक ख़ुद
को भुलाना आसान होता है। ख़ैर इस दुिवधा से तो आज भी कु
छ ब े िसत ह ।
हॉ5 टल क T हर एक िदवार पर ‘िप रयोडीक टेबल’ चपका होता
था। आँ ख म न द होती थी और झपकती आँ ख के साथ ‘के िमकल
ब ड’ याद िकया जाता था। सब उस रेस म आगे िनकलने को दौड़ते
थे और म जहाँ रेस ख़ म होती है बस उस लाइन तक पहुँचने के
िलए दौड़ रही थी।
इस रेस म भीड़ बहुत है कु छ थक कर क जाते ह कु छ चार से
पाँच बार दौड़ म भाग़ लेते ह और कु छ उस भीड़ म दब जाते ह ड
ेशन, 5 ट ेस,
िदमागी तनाव और आ f थक ि5 त थ से।
पहली बार घर से दूर थी अनजान लोग और ये अनजान शहर। कहाँ
पता था िक ये अनजान लोग एक िदन जान बन जाय गे और ये शहर
मेरी पहली मोह ē बत बन जायेगी।
सुबह हॉ5टल से 5कू ल िफर 5कू ल से हॉ5टल और िफर
शाम म हॉ5टल से कोĖ चग और कोĖ चग से हॉ5 टल यही रोज़ क T ि
या थी जो सोमवार से शिनवार तक कायम रहती थी।
एक रिववार होता था िजसका बेस ी से इंतज़ार िकया जाता था।
ऐसा लगता था एक िदन के िलए सही पर अपने साथ थकान क T
गोली, हमारी परेशािनय का इलाज़ और बहुत कु छ ले कर आता
है, और एक िदन के
िलए सुकू न दे कर चला जाता है।
हॉ5 टल म म सबसे छोटी थी तो एक तरीके से सबक T लाड़ली भी थी।
और कभी न तो ये एहसास हुआ क T वो अनजान है या ना उ ह ने
एहसास कराया क T म अनजान हूँ।
“कभी सफ़र म िमले कोई तो मु5 कु रा कर हाथ
बढ़ाना रा5 ते खूबसूरत और सफ़र ख़ुशनुमा सा लगने
लगता है।” “कभी ख़ुद से दगाबाजी नह क T F य िक
सफ़र को पाना था
मंिज़ल क T तलाश म न जाने कब तलक ख़ुद को भटकाना
था।” बहुत बार लोग को ये कहते सुना है
“जो होता है अ छे के िलए होता है।”
“वही होता है जो िक़ 5 मत म िलखा होता है।”
कई बार सोचती हूँ शायद सही कहते ह लोग और कई बार उ ह
गलत सािबत करना सही लगता है। ये दुिनया इतनी उलझन से भरी
है िक जो चीज़ आज सही लागती है वही कल बुरी। ये दोहरी Ė ज़दगी
है लोग क T या सही गलत के फसाने म भी कोई िम 5 ट ी है। अब
आप ये सोच रहे ह गे क T इन बात से आपको F य उलझाया जा रहा है।
हमारी हर बात एक उलझन ही है। वो कहते ह न क T “सीधी-सीधी बात
करो” पर बात सुनने और सुनाने वाले को भी पता होता है िक बात
सीधे- सीधे कहना आसान नह होता वरना बात को घुमा के पेश
करने क T ज़ रत ही F या पड़ती।
दरअसल इंसान को समझ पाना ही मुि कल
है। ठीक वैसे ही जैसे के िलए किठन
था।

तुम इंसान मुझे समझ नह आते हो।


कहते हो दुःख बाटने से दुःख
कम होता है,
लेिकन तुम दूसरे कT छोड़ ख़ुद अपनी सुनाने लग जाते हो।
यार् तुम इंसान मुझे समझ नह आते हो
िफर कहते हो क T ख़ुशी बाटने से ख़ुशी दुगुनी
होती है, पर िब ू क T माँ का कहना है तुम नज़र
लगाते हो।
यार तुम इंसान मुझे समझ नह आते हो।
ये िसख दी जाती है िक ‘झूट बोलना पाप है’
पर र तेदार क T कॉल आने पर ‘पापा घर पर नह ह
’ ऐसा अपने ब े से कहलवाते हो।
यार तुम इंसान मुझे समझ नह आते
हो। वैसे तो तुम एकता का पाठ पढ़ाते
हो,
िफर F य हर बात म जा तवाद पे आ जाते
हो? तुम इंसान मुझे समझ नह आते हो।
मेरा ये सफ़र अब मुझे अ छा लगने लगा था। याल आता था िक अब
बस यह ठहर जाऊँ । पर व त कब ठहरा है जो तब ठहरता। व त तेजी से
रेत क T तरह िफसल रहा था। दो साल कब इतनी आसानी से गुज़र
गए पता ही न चला।
इस शहर को अलिवदा कहने म उतनी ही तकलीफ हो रही थी िजतनी
एक माशूका को उसके मेहबूब से दूर जाने पर होती है। जब हम अपने
शहर से
िकसी दूसरे शहर जाते ह तो डर लगता है पर जब वो शहर हम
अपना ले तब उसे छोड़ कर वापस अपने शहर आने म उससे भी यादा
डर लगता
है। और ऐसा शायद इसिलए होता है F य िक हम उसक T आदत हो
चुक T होती है। और आदत बुरी नह होती तो छोड़ने का याल भी नह
आता। और काशी क T तो बात ही अलग है इसे और को ख़ुद म रंगना
बखूबी आता है।
ये सफ़र यह रोकने का इरादा तो ना था पर सफ़र जहाँ से शुV क T या
था वहाँ वापस लौट कर जाना था। और उस व त ये नह पता था
िक कु छ व त के िलये या हमेशा के िलए। पर न जाने F य
एक िव ास था क T काशी
िफर एक बार आवाज़ देगा और िफर ये सफ़र एक बार शुV होगा।
इस शहर से दूर जाने का डर इसिलए था F य िक ख़ुद को पा
िलया था म ने तो डर था िक िफर से कह खो ना दँू ख़ुद को।
वो बुलंद आवाज़ िफर से सहमी आवाज़ बन जायेगी।
मेरी आँ ख ने हर एक चीज़ देखी थी वही धुप वही चाँद िफर भी सब
कु छ ख़ास लगता था काशी म । माँगा कु छ भी नह था िफर भी
िमला सब कु छ था। ख़ुद पर तो सबकT हुकू मत होती है न
पर म ने ख़ुद पर हुकु मत एक जंग जीत कर पाई थी और वो जंग भी
मेरी ख़ुद से थी और ख़ुशी इस बात क T थी क T महादेव ने काशी म ये
जंग ख़ म िकया।
हाँ म अलबेली
हूँ ख़ुद ही ख़ुद कT
सहेली हूँ।
अपनी ख़ुशी सबके साथ बाट लेती
हूँ और कोई ग़म हो तो अके ले म बैठ
रो लेती हूँ।

ख़ुद ही ख़ुद को संभाल लेती हूँ


छोटी छोटी याद को याद कर मु5 कु रा लेती
हूँ। गंगा घाट पे बैठ अपने सवाल के जवाब
पा लेती हूँ हाँ म ऐसी ही हूँ

ख़ुद ही ख़ुद को बहला लेती हूँ


ये सफ़र यह थम गया पर ख़ म नह हुआ था।
- -
“मेरी दूसरी मोह ē बत मुझे धोखा दे ये
मुमिकन है पर मेरी पहली मोह ē बत कभी
बेवफा ना होगी। चाहे िजस शहर भी घूम
आऊँ म महादेव
बनारस से मेरी मोहēबत कभी कम ना होगी।”
सबक T मोह ē बत अलग होती है कोई िकसी श स से यार कर बैठता
है तो कोई अपने सपन से। मुझे पहली बार मोह ē बत हुइ भी तो काशी
से। इस शहर म F या जादू है ये तो म कभी समझ ना पाई पर इतना
ज़ V र समझ
िलया क T जैसे महादेव न दी को कभी ख़ुद से दूर नह कर पाए ठीक वैसे ही
इस शहर से हर कोई ख़ुद को जोड़े रखता है।
बाबा िव नाथ जहाँ हर िफ़ छोड़ आते ह । गंगा घाट जहाँ
भीड़ म भी सुकू न सा महसूस होता है। बी.एच.यू. ‘ श ा
का क 7’ जहाँ अनेक कहािनयाँ मौज़ म 5 ती के साथ-साथ
कािबिलयत को दशा´ते ह । बाबा काल भैरव िज ह बनारस वािसय का
र क माना जाता है।
सुकू न और म गंगा घाट, मंज़ूर है।
तू काशी और म काशी िव नाथ, मंज़ूर
है। तू बनारसी और म बनारसी पान, मंज़ूर
है। तू बतकही और म चाय क T दुकान,
मंज़ूर है। तू ह र& 7 और म महा मशान,
मंज़ूर है।
तू धतूरा और म भांग, मंज़ूर है।
तू अघोरी और म बाबा भैरोनाथ, मंजूर है।
तू बनारस का भौकाल और म बवाल, मंजूर
है।
मोह ē बत क T कहानी अ फ़ाज़ म बयाँ करना मुि कल होता है F या?
अगर आसान होता है तो मुझे F य न िमल रहे अपनी मोह ē बत बयाँ
करने को।
कभी देखा है शोर म भी स Чाटा, कभी पाया है ऐसी मोह ē बत िजसे
ना पा लेने क T चाहत हो ना खो देने का डर।
एक िदन म सुबह-सुबह गंगा घाट आई थी ये महसूस करने क T इसक T
सुबह क T रोशनी और ढ़लती शाम एक ही अहसास देती है या कु छ
अलग है।
- -
अ F सर शाम देिख है गंगा घाट
क T, आज इसक T सुबह देखने
आई हूँ। अ F सर वो आवारा
रात देखी है म ने,
आज सुबह का सुकू न महसूस करने आई
हूँ। अ F सर घाट पे डू बता सूरज देखा
है म ने,
आज इस घाट पे उगते हुए सूरज को देखने
आई हूँ। अ F सर इस घाट पे भीड़ का शोर
सुना है,
आज सुबह क T शां त म चिड़य क T चेहचहाहट सुनने आई हूँ।
ये गंगा घाट हर व त एक जैसा नह रहता ये बस वैसा रहता है जैसा आप
महसूस करते हो। ख़ुश रहने वाल के िलए खुशिमजाज, दुःखी
रहने वाल के िलए ग़मगीन, म जे वाल के िलए म 5 ताना, ेिमय
के िलए सुहाना। बस ऐसा ही जादु है इसका।
“सुकू न कT चाहत म सुबह कT रोशनी से िमलती जा
रही हूँ, ख़ुद को पाने क T इ छा म बनारस शहर म
खोते जा रही हूँ, मुझे ढूँढ़ने क T को शश ना
करना,
म सबके आँ ख से ओझल होती जा रही हूँ।”
सभी क T मोह ē बत अ 5 सी क T घाट पर टहलती देिख है, वाद हज़ार
करते देखे ह । हाथ थाम घाट क T ख़ुबसूरती संग वो अपनी मोह ē बत
का आगाज़ करते रहते ह ।
िकसी क T पहली मोह ē बत का पहला इज़हार कै सा होता है काशी म
? देखो ऐसा होता है:-
गंगा घाट, काशी क T चाट, तेरी और मेरी पहली मुलाक़ात।
तेरा हाथ मेरे हाँथ म , और म बस खोई रहती थी तेरी बात
म । उलझे हुए को सुलझा कर, सुकू न दे िदया तुमने
अपना बना कर।
अब हाथ थामा है तो दूर तक
चलना, सफ़र अ 5 सी घाट से शुV
िकया था
तो अब म णक f णका घाट पर ही कना।
जीवन से मृ यु तक का सफ़र मेरे साथ ही तय
करना, म इस शहर क T दीवानी और तुम शहर
बनारस रहना।

इस शहर से मुझे मोह ē बत कब हुई मुझे पता भी ना चला। और कहते


ह न मोह ē बत मुक़ मल हो तो बहुत खूबसूरत और अधूरी रह जाए
तो दद´नाक, पर मोह ē बत बनारस से हो तो मुक़ मल होने क T िफ़ ही
नह होती और अधूरी रह जाए इसका सवाल ही पैदा नह होता।
बनारस मोह ē बत के बदले म कु छ माँगता नह है, बस हज़ार चीज
देता है वो भी िबना माँगे। सबसे बड़ी चीज़ F या देता है पता है? सुकू
न वो गंगा घाट पर आराम से बैठो और खो जाओ, कह और नह ख़ुद म ।
और ये मोह ē बत ऐसी है न िजसे ना भुला सकते ह ना िमटा सकते
ह । जब इस शहर से जाना पड़ता है न तो लोग बनारस अपने िदल म
बसा कर ले जाते ह ।
िजतने भी सवाल ह तु हारे वो ख़ुद से करो खुदी से ज़वाब पाते हो।
ये शहर ही कु छ ऐसा है मोह ē बत करने पर मज़बूर कर देता है।
सबकT शकायत होती है िक Ėज़दगी म सुकू न नह
िमलता। एक बार बनारस के घाट पर शाम िबता कर
तो देखो,
उस शोर म भी एक सЧाटा सा होता
है, जो तु ह तुमसे िमलायेगा।
वो गंगा आरती करीब से देखो तो सही मन,
‘मनमु ध’ हो जायेगा।
गंगा के पार रेत पर बैठ उस ढ़लते सूरज को
देखना, ह ठ पे मु5 कान होगी और लगेगा
कल के नए सवेरे के साथ
कु छ तो नया Ėज़दगी म आयेगा।
ये बनारस है, यहाँ Ė ज़दगी उ V म है और मौत मो । इस शहर म आने के
िलए आपको महादेव का बुलाना ज़ री है, और इस शहर से ना जाने के
िलए आपका बहाना बनाना ज़ री है।
उनके नाम के आगे सब कु छ भूलना
चाहती हूँ, म पाव´ती बन अपने शव से
िमलना चाहती हूँ।
एक चाहत है मेरी िक मेरी पहली मोह ē बत के ज़ रए ही मुझे मेरी
दूसरी मोह ē बत िमले। सीधे श ē द म कहूँ तो मुझे मेरा मुक़
मल इ क़ इस शहर काशी म ही पाने क T तम Чा है।
एक बात मेरी मान, मुझको कर दे अपने
नाम। ये जहाँ, इस जहाँ म मुझे खो जाने दे,
मुझे तेरा हो जाने दे।
ये पल दो पल क T बात नह
, इससे दूर रहना आसान
नह ।
इस शहर को बस एक शहर ना मान,
ये बनारस है मेरी जान।
म ने अपनी तरफ़ से मोह ē बत िनभा ली है। अब ये शहर मुझे हमेशा
के िलए अपनायेगा या ख़ुद से दूर कर देगा ये तो महादेव जाने पर
को शश करती रहूँगी, हर बार लौट कर इसक T गिलय म इसक T
बनी रहूँगी।
हम िफर वही मोहēबत िनभाएँ गे
िफर एक बार अपनी िक़5मत आजमाएँ गे
िफर िकसी क T चाहत म डू ब
जाएँ गे आज़ाद प Ė रद क T तरह छोड़ द
गे हम उ ह
िफर देख गे वो उड़ कर कहाँ
जाएँ गे हम िफर वही
मोह ē बत िनभाएँ गे।
यार वही होगा पर श स दूसरा
मेरी चाहत वह ह गी पर चेहरा
दूसरा
म वही रहूँगी बस मेरा यार दूसरा।
ना कोई िदखावा होगा
ना कोई झूठ फरेब का साया
होगा। ना वो मेरे चेहरे का दीवाना
होगा ना वो मेरे िज 5 म का
यासा होगा। उसे मेरी बात से
चाहत होगी
मेरे बचपने से मोहēबत होगी
मेरे साथ होने कT उसे आदत होगी
म जैसी हूँ बस वैसे ही अपनाने क T
बात होगी। ये सब सच होगा एक िदन
कोई ख़ास िदन होगा वो
िजस िदन मेरा यार मेरे साथ
होगा। हम िफ़र िकसी के
साथ इन
बनारस कT गिलय म खो जाएँ गे,
िक़5मत म हुआ तो बनारस के ही
हो जाएँ गे हम िफर वही मोह ē बत
िनभाएँ गे।
िफर अपनी िक 5 मत
आजमाएँ गे हम िफर वही
मोहēबत िनभाएँ गे।
“सभी इ क़ म आज़ादी क T वािहश रखते ह
म तो तेरी मोह ē बत म क़ै द हो कर रहना चाहती
हूँ।” मुझे नह पता लोग क T नज़र म यार
F या होता है मेरे िलए तो बस एक एहसास है
जो बयाँ करना मुि कल होता है।
हर व त उसके साथ रहना मुमिकन तो नह
पर हर पल याल म बस उसका होना लाजमी
है
भीड़ म भी आँ ख बस उसी पर जा के
के और उसक T आँ ख बस मुझ पर
िटके शोर म भी एक ख़ामोशी होती
है।
जब उसके पास होने पर
बस िदल कT धड़कन सुनाई देती है
नई सी हूँ म पर मेरा इ क़ जरा पुराना
सा है, जरा सोच समझ कर आना मेरी
Ėज़दगी म ये मेरा िदल ‘कु मार
सानू’ के ज़माने का है।
F या िलखँू और िकसे
िलखँू, इस शहर को
िलखँू या,
इस शहर के लोग के बारे म
िलखँू, यहाँ सब भौकाल ही
तो है,
यहाँ के राजा महाकाल ही तो ह ।
बहुत गुV र के साथ सबके जुबान पे ये होता है िक म बनारसी
हूँ। बड़े ताव से कहते ह बनारस के लोग क T यहाँ हमारा भौकाल
है। पर हम जैसे जो
िकसी और शहर से आते ह और बनारस के ही होके रह जाते ह । उ
ह F या नाम िदया जाए? तो इस वजह से म ख़ुद का प रचय देने के
िलए बोल िदया करती थी क T
‘I am banarasi not by birth but by heart’
“िदल से िकसी को जी लो तो वो तु
हारा है तेरा-मेरा F या करना यहाँ तो सब
हमारा है।”
िकसी और क T चीज़ को अपना कहने म एक िझझक सी रहती है।
पर ये शहर ऐसा है िक इसे सभी अपना मान लेते ह F य िक ये शहर
हम इतना
यार से अपनाता है िक अपनापन सा महसूस होता है।
इस शहर ने मुझे वो सुकू न िदया है जो मुझे कह और िमला ही नह
जैसे- “गंगा घाट पर शोर म भी एक शां त होती है।”
“बनारस कT गिलयाँ बयाँ करती
ह कह भी मुड़ जाओ
पहुँचोगे वह जहाँ तु हारी
मंिज़ल है।”
“हर व त महादेव क T गूंज एहसास कराती
है बाबा हमेशा साथ ह ।”
महादेव-महादेव काशी म मुझे समा द
मुझे और कु छ भाता ही नह काशी िनवासी बना द ।
इस शहर म म पैदा तो ना हुई पर इ क़ इतना कमाल का हुआ है
िक अब सोचती हूँ कम से कम शादी ही हो जाए जो इस शहर म
Ė ज़दगी गुजारने क T वजह बन जाए।
तेरे ीत ने कु छ इस तरह
बांधा है पतंग क T डोर सा तू माँझा
सा तेरा इ क़
और मेरी उड़ान को तूने थामा है।
बाँध ले एक बंधन म मुझे तू उ e भर के
िलए
लगे क T इस बार हीर को लेने राँझा बरात ले के
आया है। ना क रह ना भाग रही बस चलती जा
रही हूँ
म अपनी मोहēबत िकतनी मासूिमयत से िनभा रही हूँ।
महादेव पे छोड़ रखा है सब कु छ, िक़ 5 मत म ये शहर िलखा है
या इस शहर से दू रयाँ वो तो व त बतायेगा पर ये िदल बनारसी
हमेशा रहेगा।
गंगा घाट पर बैठ जब गंगा म नाव को तैरता देखती हूँ तो लगता है
Ė ज़दगी भी कु छ इन नावो जैसी ही तो है। जैसे गंगा क T लहर कब
बढ़ या घट जाएँ गी
िकसे पता वैसे ही Ė ज़दगी म कब उफान आयेगा और कब शां त कौन
जानता है। हम पतवार से Ė ज़दगी क T नाव को आगे बढ़ाते रहते ह जब
तक
िकनारा ना िमल जाए। और गंगा का िकनारा तो पता है पर
Ė ज़दगी के नाव को िकस िकनारे ले जाना है ये तो नह पता होता।
ये बहती गंगा कभी ठहरती तो नह है और बहती गंगा म नाव ठहराना
बहुत ही मुि कल है।
िफर F य ये आशा होती है िक Ė ज़दगी भी एक ठहराव के साथ चलेगी।
इन बहती हवाओं से कहना अपनी िफ़ज़ा म इ क़ ना
घोले आदत लग जाती है इसक T तो कु छ पसंद भी
नह आता इन काि5 तय से कहना बेवजह डगमगाया ना
कर । उलझन िदमाग क T यँूही ना बढ़ाया कर
रात क T जगमगाहट जो अपनी तरफ ख च लाती है
हम यँू ही ना बहकाया
कर । काशी-काशी पुकार
ले
मन म ही एक मंिदर बसा ले।
F य घूम घूम ढूँढ़े ह महादेव को
काशी म िवलीन हो काशी तुझे अपना ले।
हर शहर अपने आप म एक अनोखा होता है। पर काशी म ऐसा F या है
जो सबसे अलग है। जहाँ सब अंत मानते ह (शमशान घाट) उसे यहाँ
ार भ माना जाता है। शमशान क T राख िजसे कोई हाथ भी ना
लगाये उससे यहाँ होली खेली जाती है। F या ये अपने आप म ही एक
िव च नह है? हो भी F य न महादेव के अलावा कौन ही थे िज ह
ने सभी को अपनाया देव को भी दानव को भी िजनका 5 वग´ से भी
नाता रहा और नक´ से भी। ये शहर भी वैसा ही है।
यहाँ क T धारणा से देखँू तू कु छ भी सही या गलत नह लगता। जो
जैसा है उसे वैसा ही अपना लेना शायद सही गलत से कह अलग है।
कानून के
िहसाब से भी सही गलत प रि5 थ त के िहसाब से देखा जाता है।
िफर भाव के िहसाब से भी हो सही गलत का त“य अलग-अलग हो
सकता है। अलग लोग के अलग-अलग िवचार से भी सही गलत के
मायने बदल सकते ह ।
म ज़माने से अलग नह अपने िवचार से अलग
हूँ, म सही और गलत के बीच अपने भाव से
िवभ N हूँ।
कभी िदल क T सुनू तो कभी िदमाग क T ये उलझन म , इस शहर
के भरोसे छोड़ िदया। इस शहर म म ने सबको मनमौजी जीते देखा है
िदल के द रया म बहते देखा है
िदमाग क T उलझन से तर कर जाते ह िदल को बहलाते ह और
म 5 त हो जाते ह । कह न कह म ने भी Ė ज़दगी को िदल के द रया म
धके ल िदया है। अब िदमाग को उलझन से दूर रखती हूँ
और िदल को म 5 तमौला।
ये Ė ज़दगी एक रेत सी है िफसलती जायेगी इसे थामने का फायदा नह
। अ छा च र वाला स f टिफके ट लेके मरना है या िबना िकसी
स f टिफके ट के जी के वो आप पे िनभ´र है।
म ख़ुद को बनारसी बाई हाट´ F य कहती हूँ पता है? F य िक कु
छ र ते िदल से जुड़ते ह हर र ते िसफ़´ ख़ून के नह होते। एक
यार होता है जो हम उससे बांधे रखता है। एक डोर िजसक T न तो
कोई ओर होती है न कोई छोर।
अब ये र ता िकसी श स से िनभा लो या िकसी शहर से या ख़ुद
से मज़ आपक T। मुझे काशी म जीने क T भी तम Чा है और मरने क T
भी।
अ छा िलखा, बुरा िलखा,
सब िलखा मेरी
िक़ 5 मत म । आग
िलखा, धुवाँ िलखा,
नशा िलखा मेरी
िक़ 5 मत म । अंधेरे संग
उजाला िलखा, एक वाब
पुराना िलखा। सागर संग
िकनारा िलखा, एक
अजब नज़ारा िलखा। सर
का ताज िलखा, एक नया
आगाज़ िलखा मेरी
िक़ 5 मत म । मेरा और उसका
साथ िलखा,
ज़माना िख़लाफ़ िलखा मेरी िक़ 5 मत म ।

- ?
मुझे? मुझे ये शहर जानता है, और इस शहर से बेहतर मुझे कोई नह
जानता। जब ख़ुद से V ठती हूँ तो ख़ुद को मनाने दुगा´ मंिदर
जाती हूँ। खोया-खोया महसूस करती हूँ तो गंगा घाट जाती
हूँ। जानता है ये शहर क T घाट और महादेव के अलावा कु छ
और सुकू न नह देता मुझे। मरने का
याल आए तो म णक f णका घाट िफर से जीने क T उ मीद देता है।
मौत एक जशन है ये म णक f णका बताता है, F य िक जी िलया
तुमने तकलीफ़ और ख़ुशी का िम ण अब बस तौफा सुकू न का
िमलेगा िजसे 5 वीकारने से कोई पीछे नह हटता।
ये शहर सुकू न है और म सुकू न म
िज़ दा हूँ। पं छय क T उड़ान
कहाँ तक जाती है? देखो, पतंग भी तो
वह तक जाती है।
पंछी अपनी उड़ान ख़ुद भरता है और पतंग क T उड़ान उस धागे से बंधी
होती है और उसे उड़ान के िलए हवा क T ज़ रत होती है। उड़ान तो
दोन
भरते ह पर उनकT उड़ान म जमीन आ5माँ का फ़क´ होता है।
वैसे ही हमारी Ė ज़दगी होती तो एक जैसी ही है पर जीते अलग-अलग
तरीके से ह । अलग-अलग सोच के साथ। हम ख़ुद को इस दुिनया
से अलग नह कर सकते ना अलग दुिनया बना सकते ह , पर
दुिनया नए तरीक़े से िदखा सकते ह । कु छ समझ कर कु
छ समझा कर।
पीढ़ी दर पीढ़ी सब बदलता गया। बदलने और ख़ म होने म बहुत फ़क´
होता है। काशी म भी बहुत कु छ बदला, बस कु छ नह बदला तो
यहाँ क T परंपरा, द रयािदली और अ हड़पन।
वैसे तो भारत के हर कोने म जुगाड़ श ē द बहुत फे मस है। और हो
भी F य ना इसका मतलब भारतीय के अलावा समझ भी िकसे आता
है। बनारस म भी हर काम के िलए जुगाड़ पहली ि या होती है।
अगर जुगाड़ से काम नह हुआ तो बात गंभीरता से देखी जाती है।
पहली बाजी मारने का जुगाड़, लंबी कतार म बचने से पं डत से प रचय
का जुगाड़ और न जाने िकतने जुगाड़ जो रात -रात तु ह राजा या
फ़क T र कर दे।
फ़क़ T र से याद आया यहाँ कोई भी श स आपको उसके कपड़ से तो
फ़क T र लग सकता है पर सोच, िवचार और ान से यहाँ सभी राजा
ह । यही वजह है िक यहाँ सब ‘का हो गु ’ से ही बोला करते ह । यहाँ
फ़क़ T र भी राजा है।
यहाँ सभी को गु इसिलए भी माना जाता है F य िक ान देने म
कोई पीछे नह रहता िफर बात श ा क T हो, सं5 कृ त क T हो,
गंगा मइया क T हो, या
िफर राजनी त हो।
मोह ē बत-मोह ē बत पुकारा क ँ
गी सारे शहर को तेरा नाम बताया क ँ
गी, फ T रती रहूँ चाहे दर-बदर
िकसी राह पे लौट कर िफर तुझ
तक ही आया क ँ गी। ख़ामोशी क T
भी एक धुन है ये िकसे पता
िदल है ग़ुम कहाँ ये तो है बस मुझे पता,
आँ खे बंद कर इस शहर का न F शा बताया क ँ
गी हर फजीहत से सुकू न पाने तुझ तक आया
क ँ गी।
गंगा घाट के पार रेत पर पैर के िनशां छोड़ने ह
िदल अ 5 सी को तो िज 5 म म णक f णका को
सौपने ह , मर कर इस शहर म ख़ुद को म Ė ज़दा
पाया क ँ गी
ज़माने भर को पता है लौट कर तुझ तक ही आया क ँ
गी।
बनारिसय क T बात ही अलग है। वो अ हड़पन, वो अतरंगी Ė ज़दगी जैसे
शमा बांध दे त है। कोई िदन योहार से कम नह लगता और कोई
यौहार एक जशन का माहौल बनाये रखने म कसर नह छोड़ता। हर
िदन हर व त बाबा क T गूँज रहती है इस शहर म । एक अलग रंगत जो
बनारिसय से बंधी रहती है।
मुह म पान, गले म गमछा, हाथ म चाय और चाय क T नुW ड़ पे बतकही।
हर गली हर चौराहे पे ान देते िमल जाय गे िफर वो युवा पीढ़ी
हो या बुजुग´। सब अपने ही भौकाल म लगे रहते ह ।
घाट पर ब े डु बक T लगाते िमल जाय गे, पं डत ा कराते,
नािवक सैर को पूछते िफर गे और कु छ अपनी ही धुन म बैठे न
जाने F या ि नहारते रहते ह घंटो। और कु छ बेिफ़ हो खुले
आसमाँ तले असीम Ė न 7ा म पड़े रहते ह ।
बनारस क T हर गली म आ शक का बसेरा
है घाट पर तो अघो रय का डेरा है
यहाँ कल और आज म फ़क´ नह होता।
कल भी तेरा और आज भी तेरा है
ये बनारस है गु यहाँ हर िदन जशन का मेला है।
जब तक कोई यौहार या िफर कोई मेला ना लागा हो सड़क पर भीड़ नह
िदखती। पर गंगा क T घाट पर उमड़ी भीड़ हमेशा यही जताती है
िक हर एक पल हर एक ल हा मौज़ से िबताओ। यहाँ िफ़ बाबा
पर छोड़ देते ह और तकलीफ गंगा माँ कT गोद म । अतरंगी है Ėज़दगी
और फTकT Ėज़दगी जीने म F या ही मज़ा।
िजतनी सु दर सुबह क T िकरण घाट को िबना आवाज़ के भी
मधुर और म म सा महसूस करती है जैसे छठ के पव´ पर घात सुनहरा
सा लगता है ठीक वैसे ही और हर शाम िटमिटमाती लाइट घाट क T
रौनक बनाये रखती है।

यहाँ गािलय के िबना कौन जुबाँ खोले


ह , यहाँ सब सुबह-सुबह ‘हर हर महादेव’
बोले ह ।
यहाँ पान से ही िदन क T शु वात
और पान से ही रात होवे ह
यहाँ शां त मन के अंदर है
शोर तो महादेव क T गूँज म
होवे ह । यहाँ Ė ज़दगी पावन
है और मौत मो ाि
बतलावे ह यहाँ हर रस का
5 वाद है
इसिलए सब बनारसीया कहलावे ह ।
वैसे तो यू.पी. म लगभग हर जगह ही पान क T बात होती है। िफर भी
बनारसी पान का बोल बाला कह अ धक है। और हो भी F य ना िसफ़´
पान के प Vे और जद` सुपारी वाली पान तो सबने खा के मुँह लाल
िकया होगा।
पर बनारस के पान म ऐसा F या अनोखा है जो “खइके पान बनारस
वाला खुल जाये बंद अकल का ताला” वही ज़दा´, वही सुपारी, वही
पान का प Vा, बस रहता है तो बनारसी अंदाज़, जो बनारस क T गिलय
और नुकड़ पे बनारिसय के ज़ुबान से छलकता है।
इस संसार म गिलय का इ 5 तेमाल आिख़र कौन नह करता? हम
अ F सर गाली का इ 5 तेमाल िकसी को बुरा बोलने के िलए करते ह
। पर यहाँ, यहाँ तो जुबान से गिलयाँ ऐसे िनकलती है जैसे तु हारी
तारीफ़ म गुलद 5 ते नह पूरा गाड´न बना िदया गया हो। ये अजीब
बात हो सकती है, पर यहाँ के लोग उसम भी अपनापन समझते ह ।
हर श स िसफ़´ अ छाइय को समेटना चाहता है और बुराइय को
अ F सर नज़रअंदाज़ कर देता है। पर बनारस और बनारसी अ छाई
और बुराई दोन को अपनाने म आगे ह । पर अपने अंदाज़ म ।
एक जनम मुझे ऐसा िमले महादेव कT
नगरी कशी म रह के बनारिसया कहलाऊँ
यह िजयँू और यह मर जाऊँ ।
‘अबे ओ, बनारसी ह हम’ एक बार पुरे ज़ोश म भौकाल के साथ और पूरे
हक़ से ये बोलने का मन है। ख़ुद को अपने शहर से जोड़ने का और ख़ुद
को उस शहर का बताने के िलए एक िवशेष नाम रख िलया गया
है जैसे िबहार वाले िबहारी, कानपुर वाले कनपु रया वैसे ही बनारस
वाले बनारसी।
“हम ह बनारस के भइया ओ ता ता थाइया िजसको भी चाह नचा द ”
ये बाबा क T नगरी है बाबा के कािफले को अड़भंगी कह कर संबो धत
िकया जाता था।
यहाँ के लोग भी अड़भंगी ही ह एकदम मनमौजी, जब जो जी म आया कर
िदया। ये हाथ िमलाना भी जानते ह और अकड़ िदखने वाले का
हाथ तोड़ना भी।
सुकू न कT चाहत म
सुबह कT रोशनी से
िमलती जा रही हूँ,
ख़ुद को पाने क T इ छा म
बनारस शहर म खोते जा रही
हूँ। मुझे ढूँढ़ने क T
को शश ना करना
म सबके आँ ख से ओझल होती जा रही
हूँ, सब कु छ छोड़ पावन गंगा क T
गोद म वीलीन होती जा रही हूँ।
भोरे भोर ही काशी वासी गंगा म डु बक T लगाने चले आते ह । उ ह न
गंगा का पानी ठंड म अलग लगता न और ना ही िकसी और मौसम म ।
न जाने कहाँ- कहाँ से लोग गंगा म पिव होने को डु बक T लगाने आते ह
। िफर यहाँ के लोग का हर हर गंगे बम बम भोले ठंड म भी जारी
रहता है।
गंगा सी पावन बहती धारा ड ē बे म बंद घर-घर जा
रहा। सारे पाप उसके धूल जाए जो काशी म गंगा
नहाए।
जलती दीप बहाये गंगा म कह कर उनसे इ छा
अपनी। बैठ गंगा िकनारे सीिढ़य पर, िमल
जायेगी शां त वह ।
बनारस अपनी मौज़ म था। यौहार का समय था तो गदोिलया माक` ट
जगमगा रहा था और चहल-पहल पहले से भी अ धक हो चुक T थी।
बनारस और बनारसी बेपरवाह हो कर अपने महादेव को रंग से रंगने म
मशगूल थे। बनारस म मसान क T होली खेली जाती है, िजसम महा
मशान क T राख से होली खेलते ह । मानते ह िक जीवन का अंत, अंत
नह एक नई शु वात होती है। इसिलए बनारस म मृ यु शोक़ नह उ सव
माना जाता है। और यही वजह है िक शमशान क T राख से मसान क T
होली खेली जाती है।
ये शहर अपनी बेिफ़ ी म था और एक रोग पुरे दुिनया को धीरे-
धीरे अपने क ē जे म करते हुए आगे बढ़ रहा था। वैसे तो हर एक
परेशानी महादेव पे छोड़ दी जाती है। सबका एक ही िव ास, महादेव
काशी क T हर एक िवपदा से उभार द गे इसिलए कोई इतना परेशान
था ही नह ।
पर िकसे पता था ये िवपदा इतनी भारी है िक लोग कमजोर पड़ने
लग गे। व त बीतता गया और ये कोरोना वायरस अपनी ताकत
िदखता गया।
िवपदा इतनी बढ़ गयी क T लॉकडाउन क T नौबत आ गई। ये शहर जो
कभी ख़ामोश ना रहा वो एकदम से शांत हो गया। िफर भी घर के हर
एक कोने म महादेव क T गूँज बरक़रार थी। उस गूँज ने ही सबक T िह
मत बाँध रखी थी।
ये कै सा कहर बरपा है,
जहाँ मौत एक जशन होता था वो म णक f णका
घाट, आज कै सा खौफ़नाक शमशान िदख रहा
है।
इस व त हम िकतने लाचार ह ,
शारीर छोड़ो अब तो मन से भी बीमार ह

ये कै सा अजीब मंज़र है,
जहाँ देखो वहाँ बस लाश ही लाश
है। कल तक खुल कर िजया
करते थे, आज तो साँस लेना भी
दु4 वार है, ये मंज़र िकतना
खौफ़नाक है।
म णक f णका घाट, जहाँ बैठ कर यर महसूस होता था जीवन का अंत है
तो सही, पर जीने क T इ छा िलए हम िफरते रहते ह , F य ? आिख़र
म एक िदन मरना ही तो है।
तो रोज़ मर कर जीने से अ छा है हर एक िदन जी कर िफर मरो। ये
घाट कभी खौफ़नाक नह लगता था चाहे िजतनी भी चताएँ जलते देख
लो। पर कोवीड का कहर इस घाट क T Ė चताओं को बुझने का व त नह
देता था। उस व त न जाने गंगा माँ ने िकतनो के शव को ख़ुद म
बसाया होगा।
सारे शहर म लोग बाहर जाने को उ सुक थे। ऐसा हाल था सबका जैसे
पं छय के भा त उ ह Ė पजड़े म क़ै द कर िदया गया हो। बनारस म
िकसी क T कमी थी तो वो था बाबा का बंद कपाट, माँ गंगा क T
आरती, बी.एच.यू कै पस
लॉकडाउन खुलने से यादा इस बात पर चचा´ होती थी क T बाबा का
बंद कपाट खुले, गंगा आरती िन f मत तरीके से हो भले वो भीड़ ना
उमड़े पर काशी वासी रह भी कै से पाते िबना बाबा के दश´न िकये
माँ गंगा कT आरती म सि मिलत हुए उनका मन कै से मानता आिख़र।
पर सुर ा पे “यान देना उस समय अ त आव यक था।
व त क T र तार ने धीरे-धीरे इस िवपदा म सैयम पाया और Ė ज़दगी
क T गाड़ी ने धीरे-धीरे अपनी र तार पकड़ी। अभी भी ये िवपदा हमेशा
के िलए ख़ म तो नह हुई है पर इतनी िह मत सबने कर ली है
िक इससे लड़ा जा सकता है।
बाबा क T नगरी बाबा के भरोसे हर परेशानी को टालने क T िह मत रखता है।
/
ठंड के समय कोहरे म सब झुप जाता है न? सब ढ़क लेता है वो, िफर
सूरज क T िकरण धीरे-धीरे कोहरे को ख़ म कर देती है। वैसे ही कोहरा
दुिवधा है जो कु छ व त के िलए परेशानी खड़ी करता है और
सूरज क T िकरण क T तरह उस दुिवधा का समाधान सुिवधा के
ारा िवलु होता है।
‘ - ’
िजतना मशहूर बनारस का पान है उतनी ही िव च बनारस क T
गिलयाँ। मंिज़ल एक और गिलयाँ अनेक। वैसे आज के समय म हम
रा5 ता भटक जाएँ तो गूगल म प का इ5तेमाल कर लेते ह । पर बनारस म
गूगल म प सुिवधा नह दुिवधा है। पर बनारस क T इन छोटी गिलय
म ही सबक T जान ब 5 ती है।

‘ - ’
सबके काम का समय होता है एक समय के बाद सड़क भी खाली हो
जाती है और एक ड ाइवर अपने ट से अलग िदशा तो कभी
जायेगा नह । यहाँ के ऑटो ड ाइवर क T एक ख़ास बात है। वो होते
तो ऑटो ड ाइवर ह पर उनक T सेवा ओला और उबर िक तरह
होती है। बस अपनी मंिज़ल बता दो िफर उसका रा5 ता तु ह
पता हो या न हो उसे उस तरफ जाना हो या ना हो ऑटो तु हारी
मंिज़ल तक ज़ V र जायेगा।

‘ - ’
ये बात झुटलाई नह जा सकती क T बनारस म ठगी बहुत ह । वैसे सच
ये भी है िक ठगता तो हर कोई है। पर बनारस के ठग बेवकू फ को
नह समझदार को ठगने क T कािबिलयत रखते ह । अगर शहर म नए हो
तो अपनी कािबिलयत पे भरोसा रखना वरना ठग िलए जाओगे।

‘ - ’
बनारस म कई िफरंगी आते ह । और हर िफरंगी के साथ गाइड नह
होता तो ऑटो वाले, दुकान वाले, यहाँ तक क T घाट पर चाय वाले
उनक T बात समझने और अपनी बात समझाने म उ ह कोई परेशानी नह
होती F य िक
“they have all knowledge without any college”
िहब हो या 5 पेिनश या कोई और भाषा
उनकT जुबान सब जानती है।
और ये भाषा िसखने का जुगाड़ तो बस वही जानते ह ।

‘ - ’
बा रश के मौसम म हर साल माँ गंगा उफान मारती ह । उनक T लहर घाट
िकनारे मकान को ढ़क लेती ह । पूरा घाट माँ गंगा म डू बा होता है।
गदोिलया सड़क भरा होता है। पर मजाल है कोई घर से ना िनकले।
लोग घर से
िनकलते ही ह ये देखने के िलए क T गंगा बढ़ी िकतनी ह ।
‘ - ’
माँ गंगा को बढ़ते देख घर को छोड़ दूसरी जगह रहने चले जाते ह ।
गंगा जब घटने लगती ह तो िफर वह रहने आ जाते ह िबना ये सोचे
क T हर बार यही झेलना होगा।
ना शकायत ना िकसी से कोई माँग बस एक-दूसरे क T मुसीबत म
मदद। यही उनक T हर दुिवधा का समाधान है।
हर-हर काशी हर-हर
गंगे! हर-हर काशी हर-
हर गंगे!
महादेव कT जटा से िनकली करने सबको पावन गंगे
िनम´ल धारा, शु और पिव है नमो-नमो नमािम
गंगे। मो ाि को म णक f णका, अि थयाँ
वािहत को गंगे
पाप के ाय &त को 5 वीकारती, िनम´ल धारा
बहती गंगे। हर-हर काशी हर-हर गंगे!
हर-हर काशी हर-हर गंगे!
मन क T यकु लता को समेटे बैठी रहूँ म घाट
िकनारे गंगे शाम ढ़लते घाट क T रौनक, मनभावन तेरी
आरती माँ गंगे। हादसा भी हो तो हो ऐसा गोद म अपनी
सुलाये मुझे माँ गंगे तन जले म णक f णका पर, िफर
िमल जाऊँ तुझम ही गंगे।
हर-हर काशी हर-हर गंगे! हर-हर काशी हर-हर
गंगे! काशी क T अइुत माया कभी ि5 थर कभी
चंचल गंगे मन से पावन करती काशी, तन से पावन
करती गंगे। गंगे िबन िवचिलत काशी और
काशी िबन याकु ल गंगे

दोन के जुड़ाव से है मन क T शां त पावन काशी िनम´ल


गंगे।
हर-हर काशी हर-हर
गंगे! हर-हर काशी हर-
हर गंगे!
वैसे तो भारत के हर एक कोने म अनेको योहार मनाये जाते ह । होली,
िदवाली तो हर शहर म ज़ोश और उ ास के साथ मनाया जाता है। पर कु

योहार कु छ शहर म ऐसे होते ह जो परंपरा क T धरोहर होती ह । जैसे
काशी म महा शवराि और देव दीपावली मनाई जाती है।
‘ ’
बनारसी हर व त एक अलग ही ज़ोश म दीखते ह । पर महा शवराि पर
बनारस और बनारसी दोन के अंदर एक अलग ही हलचल होती है। माता
पाव´ती और महादेव का िववाह धूम धाम से मनाता है ये शहर। हर
बनारसी बाबा क T बारात म शािमल होने के िलए उ सुक होता है।
पूरा बनारस सज़ा होता है। काशी के गली-गली म फ़ोकट क T भांग क T
लास बट रही होती है। हर मंिदर के आगे बाबा का साद हण कर रहे
होते ह लोग। और पूरा काशी झूम रहा होता है “बम-बम बोल रहा है
काशी” एकदम ऐसा ही माहौल बना रहता है। बाबा क T बारात म पूरा
शहर आमंि त रहता है। बाबा क T बारात िनकलती है िजसे
पंचकोशी या ा कहते ह । ये या ा म णक f णका से शुV होती है और
अंत भी या ा का म णक f णका घाट ही है।
इस या ा को शुV करने से पहले म णक f णका के कं ु ड म या
िफर अ 5 सी घाट से गंगा 5 नान करते ह । 5 नान के बाद संक प लेते
ह और ि फर ारंभ होता है पंचकोशी या ा । इस या ा म न
िसफ़´ बनारसी बि क साधु, अघोरी, पं डत यहाँ तक क T दूर से
आए लोग भी सि मिलत होते ह ।
जैसे बाबा क T बारात म 5 वग´लोक और पाताललोक दोन ही प के
लोग अपनी ा और ेम से उपि5 थत हुए थे।
एक और योहार है िजस िदन पूरा बनारस जगमगा रहा होता है।
“देव दीपावली” पुरे बनारस को िब कु ल एक दु हन क T तरह
सजाया जाता है। इस िदन िदय क T जगमगाहट म घाट क T
खूबसूरती िकसी िझलिमल
िसतार से कम नह होती।
‘ ’
देव दीपावली िब कु ल िदपावाली क T तरह ही मनाई जाती है।
पूरा बनारस झालर क T लिड़य से सजा होता है। हर घर म दीप जलाए
जाते ह । पर
सबसे यादा रौनक होती है घाट पर। पूरा घाट िदय से सजाया जाता
है। ये दीपावली देवो क T दीपावली मानी जाती है। एक कथा है िक
“असुर क T उ डता से देवता गढ़ काफ T परेशान थे, और उ ह बस म
करना देवताओं के िलए किठन होता जा रहा था। वो इस परेशानी के
समाधान के िलए महादेव से गुहार लगाने पहुँचे और महादेव ने
असुर का संघार िकया िजसके उ सव म देवताओ ारा दीय से पूरा
5 वग´लोक सजाया गया। इसे ही बनारस म देव दीपावली के V प म
मनाते ह ।
“ / / ”
यँू तो इसे कई नाम से बुलाते ह
भोलेनाथ क T नगरी, सुबह-ए-बनारस, इ क़-ए-
बनारस, यहाँ कई िदवाने ह ,
कु छ भोलेनाथ के , तो कु छ इस
शहर के कु छ दीवाने कं ु दन
(रांझना) जैसे भी ह । यहाँ कई
कहािनयाँ बनती ह
ेम क T, भिN क T, मौज़ क T, मो
क T। जीवन और मृ यु का संगम
है बनारस।
ख़ास बात तो ये है िक यहाँ सब गु ह चेला कोई नह ,
इस शहर को आप जानो या नह
पर ये शहर आपको ज़ V र जान लेता
है।
लोग गंगा जी म तैरना चाहते ह ,
और बनारस म डू ब जाना।
Some more literary masterpieces from the
collection of Humrooh Publication House…

Contact no. 6207124550

Mail: humroohpublicationhouse@gmail.com

Insta: humrooh_publication_house

You might also like