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वक्रतुण्ड महाकाय सूययकोटि समप्रभ ।

टिटवयघ्नं कुरु मे दे व सवयकायेषु सवयदा ॥

मङ्गलम् भगवान ववष्णुः, मङ्गलम्गरुणध्वजुः।


मङ्गलम् पण ण्डरी काक्षुः, मङ्गलाय तनो हररुः॥

गुरुर्ब्यह्मा गुरुटवयष्णु गुरुदे वो महेश्वर: ||


गुरुसायक्षात परर्ब्ह्म तस्मै श्री गुरवे िमः ||

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आपदामपहतायरं दातारां सवयसम्पदाम्।
लोकाटभरामं श्रीरामं भूयो-भूयो िामाम्यहम्॥

रामाय रामभद्राय रामचंद्राय मािसे।


रघुिाथाय िाथाय सीतायाः पतय िमः ||

िीलाम्बुजश्यामलकोमलाङ्गं,
सीतासमारोटपतवामभागम।
पाणौ महासायकचारूचापं ,
िमाटम रामं रघुवंशिाथम ||
लोकाटभरामं रणरं गधीरं राजीव िेत्रं रघुवंशिाथम्।
कारुण्यरूपं करुणाकरं तं श्री रामचन्द्रं शरणं प्रपद्ये॥

वसुदेव सुतं दे वं कंस चाणूर मदय िं |


दे वकी परमािंदं कृष्णं वंदे जगद् गु रुं ||

त्वमे व माता च टपता त्वमे व। त्वमे व बन्धुश्च सखा त्वमे व।।


त्वमे व टवद्या द्रटवणं त्वमे व। त्वमे व सवय मम दे वदे व।।

अब कछण नाथ न चावहअ मोरें । दीन दयाल अनणग्रह तोरें ॥


जेवह वववि होई नाथ वहत मोरा,करहु सो वे वग दास मैं तोरा||
तण म्ह जानत सब अंतरजामी। पणरवहु मोर मनोरथ स्वामी॥
अब प्रभण कृपा करौ एवह भााँ वत,सब तवज भजन करहुाँ वदनराती|

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