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आघ्मान

(Dyspepsia)
• परिचय :
आध्मान एक अवस्था विशेष है जो की उदावर्त एवं आनाह से समानता रखती है।
आचार्य भाव मिश्र ने ८० प्रकार की वात व्याधियों में आध्मान का उल्लेख किया है।
आचार्य वागभट ने वेगावरोध जन्य रोगों में आध्मान का वर्णन किया है।
प्राचीन सहिंताओ में आटोप एवं आध्मान का स्वतन्त्र अध्याय में वर्णन नहीं है।
इसका वर्णन अनेक व्याधियों के लक्षण के रूप में मिलता है, रोग के रूप में नही।
आनाह , आध्मान एवं उर्ध्ववात में लक्षणों की दृष्टि से भेद है।
आनाह में उदर स्तबध रहता है, एवं मल का संचय रहता है जबकि आध्मान में
आटोप( गुड़गुड़ाहट) के साथ उदर में वायु का संचय होने से उदर का फु लाव होता
है।
ऊर्ध्ववात में वायु की गति उर्ध्व होती है।
आध्मान में मल संचय नहीं होता। मल मूत्र की प्रवृति होती रहने के साथ उदर में
वायु की वृद्धि होने से आटोप, फु लाव एवं गुड़गुड़ाहट की ध्वनि होती है।
आध्मान शुद्ध वातज रोग है।
जब उदर में आटोप एवं फु लब उदर के ऊपरी भाग में सीमीठो तो उसे प्रत्याधमान
कहते है।
प्रमुख संदर्भ ग्रन्थ:
① चरक संहिता , चिकित्सा स्थान : अध्याय -२८
② सुश्रुत संहिता , निदान स्थान : अध्याय -१
③ सुश्रुत संहित, चिकित्सा स्थान : अध्याय -५
④ अष्टांग संग्रह्, सूत्र स्थान : अध्याय - ४-५
⑤ माधव निदान : अध्याय -२२

 निरूक्ति :
" वायुना कु पितेन नाभिरध: सशूलमपुर आध्मान:।" (अ.ह.सू. ५/८)
- अर्थात, वायु प्रकु पित होने के कारण नाभि के निचे होने वाला शूल आध्मान कहलाता है।

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