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ी नवकार मं नव ह शांित तो
संपक गु व कायालय
92/3. BANK COLONY, BRAHMESHWAR PATNA,
BHUBNESWAR-751018, (ORISSA) INDIA
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GURUTVA KARYALAY
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अनु म
राखी पू णमा वशेष
राखी पू णमा का मह व 6 राखी पू णमा से जु ड पौरा णक कथाएं 8
ज मा मी वशेष
कृ ण के मुख म ांड दशन 10 ा रिचत कृ ण तो 16
कृ ण मरण का मह व 11 ीकृ णा कम ् 17
ी कृ ण का नामकरण सं कार 12 कृ ण के विभ न मं 19
ीकृ ण चालीसा 13 कृ ण मं 20
व प ीकृ त ीकृ ण तो 14 ीकृ ण बीसा यं 21
ाणे र ीकृ ण मं 15
पयु षण वशेष
ी नवकार मं (नम कार महामं ) 22 महावीरा क- तो म ् 33
विभ न चम कार जैन मं 24 महावीर चालीसा 34
जैन धम के चौबीस तीथकार के जीवन का
28 पयू षण का मह व 36
सं ववरण
जब महावीर ने एक योितषी को कहां तु हार व ा
दे वदशन तो म ् 31 38
स ची है ?
ी मंगला क तो (जैन) 32 घंटाकण महावीर सव िस महायं 41
अथ नव ह शांित तो (जैन) 32 गौतम केवली महा व ा ( ावली) 45
थायी लेख
संपादक य 4 अग त-2011 मािसक त-पव- यौहार 57
ज म वार से य व 40 अग त 2011 - वशेष योग 63
वा तु िस ांत 42 दन के चौघ डये 64
ह तरे खा ान 44 दन क होरा - सूय दय से सूया त तक 65
मािसक रािश फल 50 ह चलन अग त -2011 66
अग त 2011 मािसक पंचांग 55
हमारे उ पाद
जैन धमके विश यं ो क सूची 29 YANTRA LIST 70
सव काय िस कवच 30 GEM STONE 72
रािश र 54 सूचना 74
सव रोगनाशक यं /कवच 67 हमारा उ े य 76
मं िस कवच 69 मं िस साम ीयां पु संखया: 35,37,39.48.49,60,61
संपादक य
य आ मय
बंधु/ ब हन
जय गु दे व
र ाबंधन- राखी पू णमा भाई-बहन के बच िन वाथ ेम का बंधन। भारतीय पंचांग के अनुशार ावण मास के शु ल
प क पू णमा के दन राखी पू णमा का योहार मनाया जाता ह इस दन बहन अपने भाई या धमभाई के हाथ पर
राखी बाँधती ह। भारतीय सं कृ ित म आज के भौितकतावाद समाज म भोग और वाथ म िल व म भी ायः
सभी संबंध म िनः वाथ और प व होता ह।
भारतीय सं कृ ित सम मानव जीवन को समुचे मानव समाज को महानता के दशन कराने वाली सं कृ ित ह।
भारतीय सं कृ ित म ी को केवल मा उपभोग का साधन न समझकर उसका पूजन करने वाली महान सं कृ ित ह।
क तु आजका पढा िलखा आधुिनक य अपने आपको सुधरा हु वा मानने वाले तथा पा ा य सं कृ ित का
अंधा अनुकरण करके, ी को समानता दलाने वाली खोखली भाषा बोलने वाल को पेहल भारत क पारं प रक सं कृ ित
को पूण समझ लेना चा ह क पा ा य सं कृ ित से तो केवल समानता दलाई हो परं तु भारतीय सं कृ ित ने तो ी का
दे वी प म पूजन कया ह।
पुराणो म उ लेख ह।
'य नाय तु पू य ते रम ते त दे वताः।
भावाथ: जहाँ ी पूजी जाती है , उसका स मान होता है , वहाँ दे व रमते ह- वहाँ दे व का िनवास होता है ।' ऐसा भगवान
मनु का वचन है ।
राखी बांधने क परं परा कई युग से चली आरह ह इस का प उ लेख वेद म है क दे व और असुर सं ाम म
दे व क वजय ाि क कामना के िनिम दे व इं ाणी ने ह मत हारे हु ए इं के हाथ म ह मत बंधाने हे तु राखी बाँधी थी
उसी काल से दे वताओं क वजय से र ाबंधन का योहार शु हु आ। अिभम यु क र ा के िनिम कुंतामाता ने अिभम यु को
राखी बाँधी थी।
र ाबंधन पव पुरो हत ारा कया जाने वाला आशीवाद कम भी माना जाता है । ये ा ण ारा यजमान के
॥कृ णम ् व दे जग गु ॥
ज मा मी भगवान ीकृ ण के ज म का पव ह।
भगवान ीकृ ण क म हमा अनंत व अपार ह। ीकृ ण क नाम क म हमा ला वणन करते हु वे ी शु दे वजी कहते
ह।
सकृ मनः कृ णापदार व दयोिनवेिशतं त ु णरािग यै रह।
न ते यमं पाशभृ त त टान ् व नेऽ प प य त ह चीणिन कृ ताः॥
भावाथ: जो मनु य केवल एक बार ीकृ ण के गुण म ेम करने वाले अपने िच को ीकृ ण के चरण कमल म
लगा दे ते ह, वे पाप से छूट जाते ह, फर उ ह पाश हाथ म िलए हु ए यमदू त के दशन व न म भी नह ं हो सकते।
ीकृ ण क कैसी अनोखी म हमा ह ।
भगवान ीकृ ण के भ ो के व य म उ लेख िमलता ह। क ..
श यासनाटनाला ीडा नाना दकमसु।
न वदु ः स तमा मानं वृ णयः कृ णचेतसः॥
भावाथ: ीकृ ण को अपना सव व समझने वाले भ ीकृ ण म इतने त मय रहते थे क सोते, बैठते, घूमते, फरते,
बातचीत करते, खेलते, नान करते और भोजन आ द करते समय उ ह अपनी सुिध ह नह ं रहती थी।
य ह कारण ह क ीकृ ण क भ म ेमरस से डू बे भ ो को अपने जीवन म सभी बाधाओं एवं क से मु
िमलती ह एवं अनंत सुख क ाि होती ह।
॥िम छामी दु क म ् ॥
िचंतन जोशी
6 अग त 2011
राखी पू णमा का मह व
िचंतन जोशी
र ाबंधन- र ाबंधन अथात ् ेम का बंधन। र ाबंधन के हजारो वष पूव हमारे पूव जो न भारतीय सं कृ ित
दन बहन भाई के हाथ पर राखी बाँधती ह। र ाबंधन के म र ाबंधन का उ सव शायद इस िलये शािमल कया
साथ ह भाई को अपने िनः वाथ ेम से बाँधती है । यो क र ाबंधन के तौहार को प रवतन के उ े य
भारतीय सं कृ ित म आज के भौितकतावाद से बनाया गया हो?
समाज म भोग और वाथ म िल व म भी ायः बहन ारा राखी हाथ पर बंधते ह भाई क
सभी संबंध म िनः वाथ और प व होता ह। बदल जाए। राखी बाँधने वाली बहन क ओर वह वकृ त
भारतीय सं कृ ित सम मानव जीवन को महानता न दे ख,े एवं अपनी बहन का र ण भी वह वयं
के दशन कराने वाली सं कृ ित ह। भारतीय सं कृ ित म करे । ज से बहन समाज म िनभय होकर घूम सके।
ी को केवल मा भोगदासी न समझकर उसका पूजन वकृ त एवं मानिसकता वाले लोग उसका मजाक
करने वाली महान सं कृ ित ह। उड़ाकर नीच वृ वाले लोगो को दं ड दे कर सबक िसखा
क तु आजका पढा िलखा आधुिनक य अपने सके ह।
आपको सुधरा हु वा मानने वाले तथा भाई को राखी बाँधने से पहले बहन
पा ा य सं कृ ित का अंधा उसके म त क पर ितलक करती
अनुकरण करके, ी को ह। उस समय बहन भाई के
समानता दलाने वाली म त क क पूजा नह ं
खोखली भाषा बोलने वाल अ पतु भाई के शु वचार
को पेहल भारत क और बु को िनमल करने
पारं प रक सं कृ ित को पूण हे तु कया जाता ह, ितलक
समझ लेना चा ह क लगाने से प रवतन क
पा ा य सं कृ ित से तो केवल अ ुत या समाई हु ई होती
समानता दलाई हो परं तु भारतीय ह।
सं कृ ित ने तो ी का पूजन कया ह। भाई के हाथ पर राखी बाँधकर बहन
एसे ह नह ं कहाजाता ह। उससे केवल अपना र ण ह नह ं चाहती, अपने साथ-साथ
भावाथ: जहाँ ी पूजी जाती है , उसका स मान होता है , हं अपना भाई बा श ुओं और अंत वकार पर वजय ा
वहाँ दे व रमते ह- वहाँ दे व का िनवास होता है ।' ऐसा करे और सभी संकटो से उससे सुर त रहे, यह भावना भी
हाथ म र ाबंधन बाँधा था, जससे इं वजयी हु ए थे। व णु ने सबकुछ नाप िलया था और फर तीसरे कदम,जो
बिल के िसर पर रखा था, उससे उसे पाताल लोक पहु ँचा दया
अनेक पुराण म ावणी पू णमा को पुरो हत ारा
था। लगता है र ाबंधन क परं परा तब से कसी न कसी प
कया जाने वाला आशीवाद कम भी माना जाता है । ये ा ण
म व मान थी।
ारा यजमान के दा हने हाथ म बाँधा जाता है ।
ऋ षय के तप बल से भ क र ा क जा सके।
शिन तैितसा यं
ऐितहािसक कारण से म ययुगीन भारत म र ाबंधन शिन ह से संबंिधत पीडा के िनवारण हे तु
भ व य पुराण क कथा
भ व य पुराण क एक कथा के अनुसार एक बार
दे वता और दानव म बारह वष तक यु हु आ पर तु दे वता
वजयी नह ं हु ए। इं हार के भय से दु:खी होकर दे वगु
बृ ह पित के पास वमश हे तु गए। गु बृ ह पित के सुझाव पर
इं क प ी महारानी शची ने ावण शु ल पू णमा के दन
विध- वधान से त करके र ासू तैयार कए
और वा तवाचन के साथ ा ण क उप थित म इं ाणी ने
वह सू इं क दा हनी कलाई म बांधा जसके फल व प
इ स हत सम त दे वताओं क दानव पर वजय हु ई।
र ा वधान के समय िन न जस मं का उ चारण कया
गया था उस मं का आज भी विधवत पालन कया जाता है :
"येन ब ोबली राजा दानवे ो महाबल: ।
तेन वामिभब नािम र े मा चल मा चल ।।"
इस मं का भावाथ है क दानव के महाबली राजा
बिल जससे बांधे गए थे, उसी से तु ह बांधता हू ।ँ हे र े!
(र ासू ) तुम चलायमान न हो, चलायमान न हो। महाभारत म ह र ाबंधन से संबंिधत कृ ण और ौपद का
यह र ा वधान वण मास क पू णमा को ातः एक और वृ ांत िमलता है । जब कृ ण ने सुदशन च से
काल संप न कया गया यथा र ा-बंधन अ त व म
िशशुपाल का वध कया तब उनक तजनी म चोट आ गई।
आया और वण मास क पू णमा को मनाया जाने लगा।
ौपद ने उस समय अपनी साड़ फाड़कर उनक उँ गली पर
महाभारत संबंधी कथा प ट बाँध द । यह ावण मास क पू णमा का दन था।
महाभारत काल म ौपद ारा ी कृ ण को तथा ीकृ ण ने बाद म ौपद के चीर-हरण के समय
कु ती ारा अिभम यु को राखी बांधने के वृ ांत िमलते ह। उनक लाज बचाकर भाई का धम िनभाया था।।
भा य ल मी द बी
सुख-शा त-समृ क ाि के िलये भा य ल मी द बी :- ज से धन ि , ववाह योग, यापार
वृ , वशीकरण, कोट कचेर के काय, भूत ेत बाधा, मारण, स मोहन, ता क बाधा, श ु भय,
चोर भय जेसी अनेक परे शािनयो से र ा होित है और घर मे सुख समृ क ाि होित है , भा य
ल मी द बी मे लघु ी फ़ल, ह तजोड (हाथा जोड ), िसयार िस गी, ब ल नाल, शंख, काली-
सफ़ेद-लाल गुंजा, इ जाल, माय जाल, पाताल तुमड जेसी अनेक दु ल भ साम ी होती है ।
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11 अग त 2011
कृ ण मरण का मह व
िचंतन जोशी
ी शुकदे वजी राजा पर त ् से कहते ह- श यासनाटनाला ीडा नाना दकमसु।
सकृ मनः कृ णापदार व दयोिनवेिशतं त ु णरािग यै रह। न वदु ः स तमा मानं वृ णयःकृ णचेतसः॥
न ते यमं पाशभृ त त टान ् व नेऽ प प य त ह भावाथ: ीकृ ण को अपना सव व समझने वाले भ
भावाथ: जो मनु य केवल एक बार ीकृ ण के गुण म फरते, बातचीत करते, खेलते, नान करते और भोजन
ेम करने वाले अपने िच को ीकृ ण के चरण कमल आ द करते समय उ ह अपनी सुिध ह नह ं रहती थी।
ी कृ ण का नामकरण सं कार
िचंतन जोशी
वसुदेवजी क ाथना पर यदु ओं के पुरो हत महातप वी गगाचायजी ज नगर पहु ँ चे। उ ह दे खकर नंदबाबा
अ यिधक स न हु ए। उ ह ने हाथ जोड़कर णाम कया और उ ह व णु तु य मानकर उनक विधवत पूजा क ।
इसके प ात नंदजी ने उनसे कहा आप कृ या मेरे इन दोन ब च का नामकरण सं कार कर द जए।
इस पर गगाचायजी ने कहा क ऐसा करने म कुछ अड़चन ह। म यदु वंिशय का पुरो हत हू,ँ य द म तु हारे
इन पु का नामकरण सं कार कर दू ँ तो लोग इ ह दे वक का ह पु मानने लगगे, य क कंस तो पहले से ह
पापमय बु वाला ह। वह सवदा िनरथक बात ह सोचता है । दू सर ओर तु हार व वसुदेव क मै ी है ।
अब मु य बात यह ह क दे वक क आठवीं संतान लड़क नह ं हो सकती य क योगमाया ने कंस से यह
कहा था अरे पापी मुझे मारने से या फायदा है ? वह सदै व यह सोचता है क कह ं न कह ं मुझे मारने वाला अव य
उ प न हो चुका ह। य द म नामकरण सं कार करवा दू ँ गा तो मुझे पूण आशा ह क वह मेरे ब च को मार
डालेगा और हम लोग का अ यिधक अिन करे गा।
नंदजी ने गगाचायजी से कहा य द ऐसी बात है तो कसी एका त थान म चलकर विध पूव क इनके
जाित सं कार करवा द जए। इस वषय म मेरे अपने आदमी भी न जान सकगे। नंद क इन बात को सुनकर
गगाचाय ने एका त म िछपकर ब चे का नामकरण करवा दया। नामकरण करना तो उ ह अभी ह था, इसीिलए
वे आए थे।
गगाचायजी ने वसुदेव से कहा रो हणी का यह पु गुण से अपने लोग के मन को स न करे गा। अतः
इसका नाम राम होगा। इसी नाम से यह पुकारा जाएगा। इसम बल क अिधकता अिधक होगी। इसिलए इसे लोग
बल भी कहगे। यदु वंिशय क आपसी फूट िमटाकर उनम एकता को यह था पत करे गा, अतः लोग इसे संकषण भी
कहगे। अतः इसका नाम बलराम होगा।
अब उ ह ने यशोदा और नंद को ल य करके कहा- यह तु हारा पु येक युग म अवतार हण करता
रहता ह। कभी इसका वण ेत, कभी लाल, कभी पीला होता है । पूव के येक युग म शर र धारण करते हु ए इसके
तीन वण हो चुके ह। इस बार कृ णवण का हु आ है, अतः इसका नाम कृ ण होगा। तु हारा यह पु पहले वसुदेव के
यहाँ ज मा ह, अतः ीमान वासुदेव नाम से व ान लोग पुकारगे।
तु हारे पु के नाम और प तो िगनती के परे ह, उनम से गुण और कम अनु प कुछ को म जानता हू ँ ।
दू सरे लोग यह नह ं जान सकते। यह तु हारे गोप गौ एवं गोकुल को आनं दत करता हु आ तु हारा क याण करे गा।
इसके ारा तुम भार वप य से भी मु रहोगे।
इस पृ वी पर जो भगवान मानकर इसक भ करगे उ ह श ु भी परा जत नह ं कर सकगे। जस तरह
व णु के भजने वाल को असुर नह ं परा जत कर सकते। यह तु हारा पु स दय, क ित, भाव आ द म व णु के
स श होगा। अतः इसका पालन-पोषण पूण सावधानी से करना। इस कार कृ ण के वषय म आदे श दे कर
गगाचाय अपने आ म को चले गए।
13 अग त 2011
॥ ीकृ ण चालीसा ॥
दोहा केितक महा असुर संहार्यो। कंस ह केस पक ड़ दै मार्यो॥
बंशी शोिभत कर मधुर, नील जलद तन याम। मात- पता क ब द छुड़ाई। उ सेन कहँ राज दलाई॥
अ णअधरजनु ब बफल, नयनकमलअिभराम॥ म ह से मृ तक छह सुत लायो। मातु दे वक शोक िमटायो॥
पूण इ , अर व द मुख, पीता बर शुभ साज। भौमासुर मुर दै य संहार । लाये षट दश सहसकुमार ॥
जय मनमोहन मदन छ व, कृ णच महाराज॥ दै भीम हं तृ ण चीर सहारा। जरािसंधु रा स कहँ मारा॥
जय यदु नंदन जय जगवंदन। जय वसुदेव दे वक न दन॥
असुर बकासुर आ दक मार्यो। भ न के तब क िनवार्यो॥
जय यशुदा सुत न द दु लारे । जय भु भ न के ग तारे ॥
द न सुदामा के दु ःख टार्यो। तंद ु ल तीन मूंठ मुख डार्यो॥
जय नट-नागर, नाग नथइया॥ कृ ण क हइया धेनु चरइया॥
ेम के साग वदु र घर माँगे। दु य धन के मेवा यागे॥
पुिन नख पर भु िग रवर धारो। आओ द नन क िनवारो॥
लखी ेम क म हमा भार । ऐसे याम द न हतकार ॥
वंशी मधुर अधर ध र टे रौ। होवे पूण वनय यह मेरौ॥
भारत के पारथ रथ हाँके। िलये च कर न हं बल थाके॥
आओ ह र पुिन माखन चाखो। आज लाज भारत क राखो॥
िनज गीता के ान सुनाए। भ न दय सुधा वषाए॥
गोल कपोल, िचबुक अ णारे । मृ द ु मु कान मो हनी डारे ॥
मीरा थी ऐसी मतवाली। वष पी गई बजाकर ताली॥
रा जत रा जव नयन वशाला। मोर मुकुट वैज तीमाला॥
राना भेजा साँप पटार । शाली ाम बने बनवार ॥
कुंडल वण, पीत पट आछे । क ट कं कणी काछनी काछे ॥
िनजमाया तुम विध हं दखायो। उर ते संशय सकल िमटायो॥
नील जलज सु दरतनु सोहे । छ बल ख, सुरनर मुिनमन मोहे ॥
तब शत िन दा क र त काला। जीवन मु भयो िशशुपाला॥
म तक ितलक, अलक घुँघराले। आओ कृ ण बांसुर वाले॥
जब हं ौपद टे र लगाई। द नानाथ लाज अब जाई॥
क र पय पान, पूतन ह तार्यो। अका बका कागासुर मार्यो॥
तुरत ह वसन बने नंदलाला। बढ़े चीर भै अ र मुँह काला॥
मधुवन जलतअिगन जब वाला। भैशीतललखत हं नंदलाला॥ अस अनाथ के नाथ क हइया। डू बत भंवर बचावइ नइया॥
सुरपित जब ज च यो रसाई। मूसर धार वा र वषाई॥ 'सु दरदास' आस उर धार । दया क जै बनवार ॥
लगत लगत ज चहन बहायो। गोवधन नख धा र बचायो॥ नाथ सकल मम कुमित िनवारो। महु बेिग अपराध हमारो॥
ल ख यसुदा मन म अिधकाई। मुखमंह चौदह भुवन दखाई॥ खोलो पट अब दशनद जै। बोलो कृ ण क हइया क जै॥
दु कंस अित उधम मचायो। को ट कमल जब फूल मंगायो॥ दोहा
नािथ कािलय हं तब तुम ली ह। चरण िच दै िनभय क ह॥ यह चालीसा कृ ण का, पाठ करै उर धा र।
क र गो पन संग रास वलासा। सबक पूरण कर अिभलाषा॥ अ िस नविनिध फल, लहै पदारथ चा र॥
अ ल मी कवच
अ ल मी कवच को धारण करने से य पर सदा मां महा ल मी क कृ पा एवं आशीवाद बना
रहता ह। ज से मां ल मी के अ प (१)-आ द ल मी, (२)-धा य ल मी, (३)-धैर य ल मी, (४)-
गज ल मी, (५)-संतान ल मी, (६)- वजय ल मी, (७)- व ा ल मी और (८)-धन ल मी इन सभी
पो का वतः अशीवाद ा होता ह। मू य मा : Rs-1050
14 अग त 2011
व प ीकृ त ीकृ ण तो
व प य ऊचुः
वं परमं धाम िनर हो िनरहं कृितः।
िनगु ण िनराकारः साकारः सगुणः वयम ् ॥१॥
सा प िनिल ः परमा मा िनराकृ ितः।
कृ ितः पु ष वं च कारणं च तयोः परम ् ॥२॥
सृ थ यंत वषये ये च दे वा यः मृ ताः।
ते वदं शाः सवबीजा - व णु-महे राः ॥३॥
य य लो नां च ववरे चाऽ खलं व मी रः।
महा वरा महा व णु तं त य जनको वभो ॥४॥
तेज वं चाऽ प तेज वी ानं ानी च त परः।
वेदेऽिनवचनीय वं क वां तोतुिमहे रः ॥५॥
महदा दसृ सू ं पंचत मा मेव च।
बीजं वं सवश नां सवश व पकः ॥६॥
सवश रः सवः सवश या यः सदा।
वमनीहः वयं योितः सवान दः सनातनः ॥७॥
अहो आकारह न वं सव व हवान प।
सव याणां वषय जानािस ने यी भवान ् ।८॥
सर वती जड भूता यत ् तो े य न पणे।
जड भूतो महे श शेषो धम विधः वयम ् ॥९॥
पावती कमला राधा सा व ी दे वसूर प। ॥११॥
इित पेतु ता व प य त चरणा बुजे।
अभयं ददौ ता यः स नवदने णः ॥१२॥
व प ीकृ तं तो ं पूजाकाले च यः पठे त।् स गितं व प ीनां
लभते नाऽ संशयः ॥१३॥
॥ इित ी वैवत व प ीकृ तं कृ ण तो ं समा म॥्
ाणे र ीकृ ण मं
िचंतन जोशी
मं :-
गाय ी छं दः-, ीकृ ण-परमा मा दे वता, लीं बीजं, ीं श ः, ऐं क लकं, ॐ यापकः, मम सम त- लेश-प रहाथ, चतुव ग- ा ये,
सौभा य वृ यथ च जपे विनयोगः।
ऋ या द यासः- ीवेद यास ऋषये नमः िशरिस, गाय ी छं दसे नमः मुख,े ीकृ ण परमा मा दे वतायै नमः द, लीं बीजाय
नमः गु े, ीं श ये नमः नाभौ, ऐं क लकाय नमः पादयो, ॐ यापकाय नमः सवा गे, मम सम त लेश प रहाथ, चतुव ग
ा ये, सौभा य वृ यथ च जपे विनयोगाय नमः अंजलौ।
कर- यासः- ॐ ऐं ीं लीं अंगु ा यां नमः ाणव लभाय तजनी यां वाहा, सौः म यमा यां वष , सौभा यदाय अनािमका यां हु ं
ीकृ णाय किन का यां वौष , वाहा करतलकरपृ ा यां फ ।
अंग- यासः- ॐ ऐं ीं लीं दयाय नमः, ाण व लभाय िशरसे वाहा, सौः िशखायै वष , सौभा यदाय िशखायै कवचाय हु ,ं
ीकृ णाय ने - याय वौष , वाहा अ ाय फ ।
ाण ित त दु गा बीसा यं
शा ो मत के अनुशार दु गा बीसा यं दु भा य को दू र कर य के सोये हु वे भा य को जगाने वाला माना
गया ह। दु गा बीसा यं ारा य को जीवन म धन से संबंिधत सं याओं म लाभ ा होता ह। जो य
आिथक सम यासे परे शान ह , वह य य द नवरा म ाण ित त कया गया दु गा बीसा यं को थाि कर
लेता ह, तो उसक धन, रोजगार एवं यवसाय से संबंधी सभी सम य का शी ह अंत होने लगता ह। नवरा के दनो
म ाण ित त दु गा बीसा यं को अपने घर-दु कान-ओ फस-फै टर म था पत करने से वशेष लाभ ा होता
ह, य शी ह अपने यापार म वृ एवं अपनी आिथक थती म सुधार होता दे खगे। संपूण ाण ित त एवं
पूण चैत य दु गा बीसा यं को शुभ मुहू त म अपने घर-दु कान-ओ फस म था पत करने से वशेष लाभ ा होता
ह। मू य: Rs.550 से Rs.8200 तक
16 अग त 2011
ा रिचत कृ ण तो
ोवाच :
र र हरे मां च िनम नं कामसागरे ।
मं िस ा
दु क ितजलपूण च दु पारे बहु संकटे ॥१॥ एकमुखी ा -Rs- 1250,2800
भ व मृ ितबीजे च वप सोपानदु तरे ।
दो मुखी ा -Rs- 100,151
अतीव िनमल ानच ुः- छ नकारणे ॥२॥
तीन मुखी ा -Rs- 100,151
ज मोिम-संगस हते यो ष न ाघसंकुले।
चार मुखी ा -Rs- 55,100
रित ोतःसमायु े ग भीरे घोर एव च ॥३॥
पंच मुखी ा -Rs- 28,55
थमासृ त पे च प रणाम वषालये।
छह मुखी ा -Rs- 55,100
यमालय वेशाय मु ाराित व तृ तौ ॥४॥
ीकृ णा कम ्
पाव युवाच- मुरलीवादनाधार राधायै ीितमावहन।्
कैलासिशखरे र ये गौर पृ छित शंकरम।् अंशांशे यः समु मी य पूण पकलायुतः॥१२॥
ा डा खलनाथ वं सृ संहारकारकः॥१॥ ीकृ णच ो भगवा न दगोपवरो तः।
वमेव पू यसेलौकै व णुसुरा दिभः। ध रणी पणी माता यशोदान ददाियनी॥१३॥
िन यं पठिस दे वेश क य तो ं महे रः॥२॥ ा यां ायािचतो नाथो दे व यां वसुदेवतः।
आ यिमदम य तं जायते मम शंकर। णाऽ यिथतो दे वो दे वैर प सुरे र॥१४॥
त ाणेश महा ा संशयं िछ ध शंकर॥३॥ जातोऽव यां मुकु दोऽ प मुरलीवेदरे िचका।
ी महादे व उवाच- तयासा वचःकृ वा ततो जातो मह तले॥१५॥
ध यािस कृ तपु यािस पावित ाणव लभे। संसारसारसव वं यामलं महदु वलम।्
त ेऽहं सं व यािम ृ णु वाव हता ये। दु वाससो मुनेम हे काित यां रासम डले।
योऽसौ िनरं जनो दे व व पी जनादनः॥८॥ ततः पृ वती राधा स दे हं भेदमा मनः॥२०॥
संसारसागरो ारकारणाय सदा नृ णाम।् िनरं जना समु प नं मयाऽधीतं जग मिय।
ीरं गा दक पेण ैलो यं या य ित ित॥९॥ ीकृ णेन ततः ो ं राधायै नारदाय च॥२१॥
ततो लोका महामूढा व णुभ वव जताः। ततो नारदतः सव वरला वै णवा तथा।
व ा ाि हे तु सर वती कवच और यं
आज के आधुिनक युग म िश ा ाि जीवन क मह वपूण आव यकताओं म से एक है । ह दू धम म व ाक
अिध ा ी दे वी सर वती को माना जाता ह। इस िलए दे वी सर वती क पूजा-अचना से कृ पा ा करने से बु कुशा एवं
ती होती है ।
आज के सु वकिसत समाज म चार ओर बदलते प रवेश एवं आधुिनकता क दौड म नये-नये खोज एवं
संशोधन के आधारो पर ब चो के बौिधक तर पर अ छे वकास हे तु विभ न पर ा, ितयोिगता एवं ित पधाएं
होती रहती ह, जस म ब चे का बु मान होना अित आव यक हो जाता ह। अ यथा ब चा पर ा, ितयोिगता एवं
ित पधा म पीछड जाता ह, जससे आजके पढे िलखे आधुिनक बु से सुसंप न लोग ब चे को मूख अथवा बु ह न
या अ पबु समझते ह। एसे ब चो को ह न भावना से दे खने लोगो को हमने दे खा ह, आपने भी कई सैकडो बार
अव य दे खा होगा?
ऐसे ब चो क बु को कुशा एवं ती हो, ब चो क बौ क मता और मरण श का वकास हो इस िलए
सर वती कवच अ यंत लाभदायक हो सकता ह।
सर वती कवच को दे वी सर वती के परं म दू ल भ तेज वी मं ो ारा पूण मं िस और पूण चैत ययु कया जाता
ह। ज से जो ब चे मं जप अथवा पूजा-अचना नह ं कर सकते वह वशेष लाभ ा कर सके और जो ब चे पूजा-
अचना करते ह, उ ह दे वी सर वती क कृ पा शी ा हो इस िलये सर वती कवच अ यंत लाभदायक होता ह।
मं िस प ना गणेश
भगवान ी गणेश बु और िश ा के कारक ह बुध के अिधपित दे वता ह। प ना गणेश बुध के
सकारा मक भाव को बठाता ह एवं नकारा मक भाव को कम करता ह।. प न गणेश के
भाव से यापार और धन म वृ म वृ होती ह। ब चो क पढाई हे तु भी वशेष फल द ह
प ना गणेश इस के भाव से ब चे क बु कूशा होकर उसके आ म व ास म भी वशेष
वृ होती ह। मानिसक अशांित को कम करने म मदद करता ह, य ारा अवशो षत हर
व करण शांती दान करती ह, य के शार र के तं को िनयं त करती ह। जगर, फेफड़े ,
जीभ, म त क और तं का तं इ या द रोग म सहायक होते ह। क मती प थर मरगज के बने
होते ह।
Rs.550 से Rs.8200 तक
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19 अग त 2011
कृ ण के विभ न मं
िचंतन जोशी
मूल मं : तेईस अ र मं :
कृ ं कृ णाय नमः ॐ ीं ं लीं ीकृ णाय गो वंदाय
यह भगवान कृ ण का मूलमं ह। इस मूल मं के गोपीजन व लभाय ीं ीं ी
िनयिमत जाप करने से य को जीवन म सभी यह तेईस अ र मं के िनयिमत जाप करने से य क
बाधाओं एवं क से मु िमलती ह एवं सुख क ाि सभी बाधाएँ वतः समा हो जाती ह।
होती ह। अ ठाईस अ र मं :
स दशा र मं : ॐ नमो भगवते न दपु ाय
ॐ ीं नमः ीकृ णाय प रपूण तमाय वाहा आन दवपुषे गोपीजनव लभाय वाहा
यह भगवान कृ ण का स रा अ र का ह। इस मूल मं यह अ ठाईस अ र मं के िनयिमत जाप करने से य
के िनयिमत जाप करने से य को मं िस हो जाने को सम त अिभ व तुओं क ाि होती ह।
के प यात उसे जीवन म सबकुछ ा होता ह। उ तीस अ र मं :
स ा र मं : लीलादं ड गोपीजनसंस दोद ड
गोव लभाय वाहा बाल प मेघ याम भगवन व णो वाहा।
इस सात अ र वाले मं के िनयिमत जाप करने से यह उ तीस अ र मं के िनयिमत जाप करने से थर
जीवन म सभी िस यां ा होती ह। ल मी क ाि होती है ।
अ ा र मं : ब ीस अ र मं :
गोकुल नाथाय नमः न दपु ाय यामलांगाय बालवपुषे
इस आठ अ र वाले मं के िनयिमत जाप करने से कृ णाय गो व दाय गोपीजनव लभाय वाहा।
य क सभी इ छाएँ एवं अिभलाषाए पूण होती ह। यह ब ीस अ र मं के िनयिमत जाप करने से य क
दशा र मं : सम त मनोकामनाएँ पूण होती ह।
लीं ल लीं यामलांगाय नमः ततीस अ र मं :
इस दशा र मं के िनयिमत जाप करने से संपूण ॐ कृ ण कृ ण महाकृ ण सव वं सीद मे।
िस य क ाि होती ह। रमारमण व ेश व ामाशु य छ मे॥
ादशा र मं : यह ततीस अ र के िनयिमत जाप करने से सम त
ॐ नमो भगवते ीगो व दाय कार क व ाएं िनःसंदेह ा होती ह।
इस कृ ण ादशा र मं के िनयिमत जाप करने से इ यह ीकृ ण के ती भावशाली मं ह। इन मं के
िस क ाि होती ह। िनयिमत जाप से य के जीवन म सुख, समृ एवं
सौभा य क ाि होती ह।
20 अग त 2011
कृ ण मं
भगवान ी कृ ण से संबंधी मं तो शा म भरे पडे ह। ले कन जन
साधारण म कुछ खास मं का ह चलन और अ यािधक मह व ह।
ॐ कृ णाय वासुदेवाय हरये परमा मने।
णतः लेशनाशाय गो वंदाय नमो नमः॥
इस मं को िनयिमत नान इ या द से िनवृ त होकर व छ
कपडे पहन कर 108 बार जाप करने से य के जीवन म कसी
भी कार के संकट नह ं आते।
ॐ नमः भगवते वासुदेवाय कृ णाय
लेशनाशाय गो वंदाय नमो नमः।
इस मं को िनयिमत नान इ या द से िनवृ त होकर व छ कपडे पहन कर
108 बार जाप करने से आक मक संकट से मु िमलित ह।
हरे कृ ण हरे कृ ण, कृ ण-कृ ण हरे हरे ।
हरे राम हरे राम, राम-राम हरे हरे ।
इस मं को िनयिमत नान इ या द से िनवृ त होकर व छ कपडे पहन कर 108 बार जाप करने से य को जीवन
मे सम त भौितक सुखो एवं मो ाि होती ह।
कनकधारा यं
आज के युग म हर य अितशी समृ बनना चाहता ह। धन ाि हे तु ाण- ित त कनकधारा यं के सामने
बैठकर कनकधारा तो का पाठ करने से वशेष लाभ ा होता ह। इस कनकधारा यं क पूजा अचना करने से ऋण
और द र ता से शी मु िमलती ह। यापार म उ नित होती ह, बेरोजगार को रोजगार ाि होती ह।
ी आ द शंकराचाय ारा कनकधारा तो क रचना कुछ इस कार क ह, जसके वण एवं पठन करने से आस-
पास के वायुमंडल म वशेष अलौ कक द य उजा उ प न होती ह। ठक उसी कार से कनकधारा यं अ यंत दु ल भ
यं ो म से एक यं ह जसे मां ल मी क ाि हेतु अचूक भावा शाली माना गया ह।
कनकधारा यं को व ानो ने वयंिस तथा सभी कार के ऐ य दान करने म समथ माना ह। जग ु शंकराचाय ने
दर ा ण के घर कनकधारा तो के पाठ से वण वषा कराने का उ लेख ंथ शंकर द वजय म िमलता ह।
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21 अग त 2011
ीकृ ण बीसा यं
कसी भी य का जीवन तब आसान बन जाता ह जब उसके चार और का माहोल उसके अनु प उसके वश
म ह । जब कोई य का आकषण दु सरो के उपर एक चु बक य भाव डालता ह, तब लोग उसक सहायता एवं
सेवा हे तु त पर होते है और उसके ायः सभी काय बना अिधक क व परे शानी से संप न हो जाते ह। आज के
भौितकता वा द युग म हर य के िलये दू सरो को अपनी और खीचने हे तु एक भावशािल चुंबक व को कायम
रखना अित आव यक हो जाता ह। आपका आकषण और य व आपके चारो ओर से लोग को आक षत करे इस
िलये सरल उपाय ह, ीकृ ण बीसा यं । यो क भगवान ी कृ ण एक अलौ कव एवं दवय चुंबक य य व के
धनी थे। इसी कारण से ीकृ ण बीसा यं के पूजन एवं दशन से आकषक य व ा होता ह।
ीकृ ण बीसा यं के साथ य को ढ़ इ छा श एवं उजा ा
होती ह, ज से य हमेशा एक भीड म हमेशा आकषण का क रहता ह।
ीकृ ण बीसा कवच
य द कसी य को अपनी ितभा व आ म व ास के तर म वृ ,
अपने िम ो व प रवारजनो के बच म र तो म सुधार करने क ई छा होती ीकृ ण बीसा कवच को केवल
ह उनके िलये ीकृ ण बीसा यं का पूजन एक सरल व सुलभ मा यम वशेष शुभ मुहु त म िनमाण कया
ीकृ ण बीसा यं पर अं कत श शाली वशेष रे खाएं, बीज मं एवं ाहमण ारा शुभ मुहु त म शा ो
सबसे आगे एवं सभी े ो म अ णय बनाने म सहायक िस होती ह। ारा िस ाण- ित त पूण चैत य
ीकृ ण बीसा यं के पूजन व िनयिमत दशन के मा यम से भगवान यु करके िनमाण कया जाता ह।
ीकृ ण बीसा यं अलौ कक ांड य उजा का संचार करता ह, जो य को शी पूण लाभ ा होता
ीकृ ण बीसा यं के पूजन से य के सामा जक मान-स मान व ह। गले म धारण करने से कवच
व ानो के मतानुशार ीकृ ण बीसा यं के म यभाग पर यान योग य पर उसका लाभ अित ती
नवकार मं जप के लाभ
जब कोई य ा पूण भाव से नवकार मं का (सागरोपम अथात ् जसे िगनने म क ठनाई हो इतने
केवल एक अ र उ चरण करता ह, तो उसके 7 अरब वष।)
सागरोपम जतने पापो का नाश होता ह। गभवती य के िलए इस मं का जाप करना ब चे
जब कोई य "नमो अ रहं ताणं" का उ चरण कर ा के िलये अित उ म ह।
मं िस फ टक ी यं
" ी यं " सबसे मह वपूण एवं श शाली यं है । " ी यं " को यं राज कहा जाता है यो क यह अ य त शुभ
फ़लदयी यं है । जो न केवल दू सरे य ो से अिधक से अिधक लाभ दे ने मे समथ है एवं संसार के हर य के िलए
फायदे मंद सा बत होता है । पूण ाण- ित त एवं पूण चैत य यु " ी यं " जस य के घर मे होता है उसके िलये
" ी यं " अ य त फ़लदायी िस होता है उसके दशन मा से अन-िगनत लाभ एवं सुख क ाि होित है । " ी यं " मे
समाई अ ितय एवं अ यश मनु य क सम त शुभ इ छाओं को पूरा करने मे समथ होित है । ज से उसका
जीवन से हताशा और िनराशा दू र होकर वह मनु य असफ़लता से सफ़लता क और िनर तर गित करने लगता है एवं
उसे जीवन मे सम त भौितक सुखो क ाि होित है । " ी यं " मनु य जीवन म उ प न होने वाली सम या-बाधा एवं
नकारा मक उजा को दू र कर सकार मक उजा का िनमाण करने मे समथ है । " ी यं " क थापन से घर या यापार के
थान पर था पत करने से वा तु दोष य वा तु से स ब धत परे शािन मे युनता आित है व सुख-समृ , शांित एवं
चार अ र का मं :-
1. अरह त
2. अ िस साहू
पंचा र मं :-
अ िस आ उ सा
ष ा र मं :-
1. अरह त िस
2. अरह त िस सा
3. ॐ नमः िस े य
4. नमोह स े यः
स ा र मं :-
ॐ ीं ं अह नमः।
अ ा र मं :-
ॐ नमो अ रहं ताणं।
एका अ र का मं :-
ॐ (ओम ्)
सोलह अ र का मं :-
ॐ श द क विन पांचो परमे ी नाम के पहले अ र को
अरहं त िस आइ रया उव झाया साहू
िमलाने पर बनती ह।
जैन मुिनय के मत से अरह त का पहला अ र 'अ' जो
35 अ र का मं :-
अशर र अथात िस का 'अ' ह। ओम श द म आचाय
णमो अ रहं ताणं, णमो िस ाणं, णमो आइ रयाणं ।
का 'आ', उपा याय का 'उ', तथा मुिन अथात साधु
णमो उव झायाणं, णमो लोए स वसाहू णं ।।
जनो का 'म ्', इस कार सभी श दो को जोडने ॐ बनता
ह। लघु शा त मं :-
ॐ म ् अहम ् अिसआउसा सवशा म
त ् कु कु वाहा ।
दो अ र का मं :-
1. िस मनोरथ िस दायक मं :-
2. ॐ ं ॐ म् ीम ् अहम ् नमः।
25 अग त 2011
रोगनाशक मं :-
ॐ ऐम ् म् ीम ् किलकु डद ड वािमने नमः आरो -य
परमे यम ् कु कु वाहा ।
(रोग शांित हे तु उ म को ीपा नाथ जी क ितमा
के स मुख शु ता व ् िनयम से 108 बार जप करना अित
लाभदायक होता ह।)
रोग िनवारक मं :-
ॐ ं सकल-रोगहराय ी स मित दे वाय नमः ।
(उ मं क ित दन एक माला जप करने से सव
कार के रोगो क शांित होती ह। रोगी य के क मे
सविस दायक मं :-
यूनता आती ह।)
ॐ ं लीं ी अह ी वृ षभनाथ तीथकराय नमः ।
मंगलदायक मं :- (उ म के ित दन 108 बार जप से साधक को
ॐ म ् वरे सुवरे अिसआउसा नमः वाहा । सम त काय म िस ा होती ह।)
(उ म को एका त म ित दन 108 बार धूप के साथ,
शु भावपूव क जपने से अिधक लाभ द होता ह।) मनोवांिछत कायिस मं :-
ॐ ं नमो अ रहं ताणं िस धाणं सूर णं उवजझायाणं
ऐ यदायक मं :- साहू णं मम ऋ वृ समी हतं कु कु वाहा।
ॐ म ् अिसआउसा नमः वाहा । (उ मं को ातः काल मूंगे क माला से धुप दे कर
(उ म को सूय दय के समय पूव दशा म मुख करके 3200 जप करने से सव कामनाएं पूण होती ह।)
ित दन 108 बार जप करने से शी लाभ ा होता ह।)
सवकामना पूरण अह मं :-
क याणकार मं :-
ॐ ं अह नमः।
ॐ अिसआ उसा नमः।
(उ मं को कसी शुभ दन या मूहू त पर पूवािभमुख
(उ मं को पूवािभमुख बेठ कर 1,25,000 जप करने
बेठ कर यथाश जप कर। 12,500 जप पूण होने पर
से शी फलदायी होता ह व शांित ा होती ह। साधक
मं िस होता ह। साधक क सव मनोकामनाएं पूण होने
के भय, कलेश, दु ःख दा र दू र होते ह। लगती ह।)
26 अग त 2011
ादश महा यं
यं को अित ािचन एवं दु ल भ यं ो के संकलन से हमारे वष के अनुसंधान ारा बनाया गया ह।
परम दु लभ वशीकरण यं , सह ा ी ल मी आब यं
भा योदय यं आक मक धन ाि यं
मनोवांिछत काय िस यं पूण पौ ष ाि कामदे व यं
रा य बाधा िनवृ यं रोग िनवृ यं
गृ ह थ सुख यं साधना िस यं
शी ववाह संप न गौर अनंग यं श ु दमन यं
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27 अग त 2011
सव ह शा त मं :- ल मी ाि मं :-
ॐ ां ं ूं ः अिसआउसा सव-शा तं कु कु ॐ ं अह नमो अ रहं ताणं ं नमः।
वाहा । ( कसी शुभ दन या मूहू त पर जप शु कर। आसन,
(उ म को सूय दय के समय जप करने से शी शुभ माला, व पीले रखे। 1,25,000 जप करने से ल मी
फलो क ाि होती ह।) स न होती ह। फर यथा श रोज 1 माला जप कर।)
शा तकारक मं :- नव ह शा त हे तु मं :-
1. ॐ ं परमशा त वधायक ी शा तनाथाय नमः । सूय के िलए : ॐ णमो िस ाणं । (10 हजार)
2. ॐ ं ी अनंतानंत परमिस े यो नमः ।
च के िलए: ॐ णमो अ रहं ताण । (10 हजार)
सव काय िस कवच
जस य को लाख य और प र म करने के बादभी उसे मनोवांिछत सफलताये एवं कये गये काय
म िस (लाभ) ा नह ं होती, उस य को सव काय िस कवच अव य धारण करना चा हये।
कवच के मुख लाभ: सव काय िस कवच के ारा सुख समृ और नव ह के नकारा मक भाव को
शांत कर धारण करता य के जीवन से सव कार के दु:ख-दा र का नाश हो कर सुख-सौभा य एवं
उ नित ाि होकर जीवन मे सिभ कार के शुभ काय िस होते ह। जसे धारण करने से य यद
यवसाय करता होतो कारोबार मे वृ होित ह और य द नौकर करता होतो उसमे उ नित होती ह।
सव काय िस कवच के साथ म सवजन वशीकरण कवच के िमले होने क वजह से धारण करता
क बात का दू सरे य ओ पर भाव बना रहता ह।
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दे वदशन तो म ्
दशनं दे वदे व य, दशनं पापनाशनम ् । अ यथा शरणं ना त, वमेव शरणं मम।
दशनं वगसोपानं, दशनं मो साधनम ् ।1। त मा का य-भावेन, र र जने र।8।
नवर ज ड़त ी यं
शा वचन के अनुसार शु सुवण या रजत म िनिमत ी यं के चार और य द नवर जड़वा ने पर यह नवर
ज ड़त ी यं कहलाता ह। सभी र ो को उसके िन त थान पर जड़ कर लॉकेट के प म धारण करने से य
को अनंत ए य एवं ल मी क ाि होती ह। य को एसा आभास होता ह जैसे मां ल मी उसके साथ ह।
नव ह को ी यं के साथ लगाने से ह क अशुभ दशा का धारण करने वाले य पर भाव नह ं होता ह।
गले म होने के कारण यं पव रहता ह एवं नान करते समय इस यं पर पश कर जो जल बंद ु शर र को
लगते ह, वह गंगा जल के समान प व होता ह। इस िलये इसे सबसे तेज वी एवं फलदािय कहजाता ह। जैसे
अमृ त से उ म कोई औषिध नह ं, उसी कार ल मी ाि के िलये ी यं से उ म कोई यं संसार म नह ं ह एसा
शा ो वचन ह। इस कार के नवर ज ड़त ी यं गु व कायालय ारा शुभ मुहू त म ाण ित त करके
बनावाए जाते ह।
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32 अग त 2011
ी मंगला क तो (जैन)
अह तो भगवत इ म हताः, िस ा िस रा, योित य तर-भावनामर हे मेरौ कुला ौ थताः,
आचायाः जनशासनो नितकराः, पू या उपा यायकाः। ज बूशा मिल-चै य-श खषु तथा व ार- या षु।
ीिस ा तसुपाठकाः, मुिनवरा र याराधकाः, इ वाकार-िगरौ च कु डला द पे च न द रे ,
प चैते परमे नः ित दनं, कुव तु नः मंगलम ्॥1॥ शैले ये मनुजो रे जन- हाः कुव तु नः मंगलम ् ॥6॥
ीम न - सुरासुरे - मुकुट - ोत - र भा- कैलाशे वृ षभ य िन ितमह वीर य पावापुरे,
भा व पादनखे दवः वचना भोधी दवः थाियनः। च पायां वसुपू यसु जनपतेः स मेदशैलेऽहताम ् ।
ये सव जन-िस -सूय नुगता ते पाठकाः साधवः शेषाणाम प चोजय तिशखरे नेमी र याहतः,
तु या योगीजनै प चगुरवः कुव तु नः मंगलम ्॥2॥ िनवाणावनयः िस वभवाः कुव तु नः मंगलम ्॥7॥
स य दशन-बोध- ममलं, र यं पावनं, यो गभावतरो सवो भगवतां ज मािभषेको सवो,
मु ीनगरािधनाथ - जनप यु ोऽपवग दः। यो जातः प रिन मेण वभवो यः केवल ानभाक् ।
धम सू सुधा च चै यम खलं, चै यालयं यालयं, यः कैव यपुर- वेश-म हमा स प दतः विगिभः
ो ं च वधं चतु वधममी, कुव तु नः मंगलम ्॥3॥ क याणािन च तािन पंच सततं कुव तु नः मंगलम॥8॥
्
नाभेया द जनाः श त-वदनाः याता तु वशितः, सप हारलता भव यिसलता स पु पदामायते,
ीम तो भरते र- भृ तयो ये च णो ादश। स प ेत रसायनं वषम प ीितं वध े रपुः।
ये व णु- ित व णु-लांगलधराः स ो रा वंशितः, दे वाः या त वशं स नमनसः कं वा बहु ूमहे,
ैका ये िथता ष -पु षाः कुव तु नः मंगलम ् ॥4॥ धमादे व नभोऽ प वषित नगैः कुव तु नः मंगलम॥9॥
्
ये सव षध-ऋ यः सुतपसो वृ ं गताः प च ये, इ थं ी जन-मंगला किमदं सौभा य-स प करम ्,
ये चा ाँग-महािनिम कुशलाः येऽ ा वधा ारणाः। क याणेषु महो सवेषु सुिधय तीथकराणामुषः।
प च ानधरा योऽ प बिलनो ये बु ऋ राः, ये व त पठ त तै सुजनैः धमाथ-कामा व ताः,
स ैते सकलािचता मुिनवराः कुव तु नः मंगलम॥5॥
् ल मीरा यते यपाय-र हता िनवाण-ल मीर प ॥10॥
अथ नव ह शांित तो (जैन)
जग ु ं नम कृ यं, ु वा स ु -भा षतम ् । नेिमनाथो भवे ाहोः केतु: ीम लपा योः ।।६।।
हशा तं व यािम, लोकोनां सुखहे तवे ।।१।। ज मल नं च रािशं च, य द पीड़य त खेचराः ।
जने ा: खेचरा ेयाः, पूजनीया विधः मात ् । तदा संपूजये धीमान,् खेचरान सह तान ् ितनान ् ।।
७।।
पु पै वलेपनै धू पै, नवे ै तु हे तवे ।।२।। आ द य सोम मंगल, बुध गु शु े शिन:।
प भ य मातड- भ य च । राहु केतु मेरवा े या, जनपूजा वधायकः॥८॥
वासुपू य य भूपु ो, बुध ा जनेिशनाम ्।।३।। जनान ् नमो न य ह, हाणां तु हे तवे।
वमलान त धमश,् शा तः कु वर निम। नम कारशतं भ या, जपेद ो रं शतम ् ।।९।।
वधमान जने ाणां, पादप म ् बुधो नमेत ् ।।४।। भ बाहु गु वा मी पंचमः ुतकेवली ।
ऋषभा जतसुपा ा-सािभन दनशीतलौ । व ा साद:, पूण, हशा त- विध-कृ ता ।।१०।।
सुमितः संभव वामी, ेयांसेषु बृह पितः ।।५।। यः पठे त ् ात थाय, शुिचभू वा समा हतः।
सु वधेः किथतः शु े , सु त शनै रे । वप तो भवे छांित ेमं त य पदे पदे ॥११॥
33 अग त 2011
॥ महावीरा क- तो म ् ॥
िशख रणी छं द विच ा मा येको नृ पित-वर-िस ाथ-तनय:।
यद ये चैत ये मुकुर इव भावा दिचत: अज मा प ीमान ्? वगत-भव-रागो ु त-गित?
समं भा त ौ य यय-जिन-लस तोऽ तर हता:। महावीर- वामी नयन-पथ-गामी भवतु मे॥5॥
जग सा ी माग- कटन परो भानु रव यो
यद या वा गंगा व वध-नय-क लोल- वमला
महावीर- वामी नयन-पथ-गामी भवतु म॥1॥
बृ ह ाना भोिभजगित जनतां या नपयित।
अता ं य च ु: कमल-युगलं प द-र हतं इदानीम येषा बुध-जन-मरालै प रिचता
जना कोपापायं कटयित वा य तरम प। महावीर- वामी नयन-पथ-गामी भवतु मे॥6॥
फुटं मूितय य शिमतमयी वाित वमला
अिनवारो े क भुवन-जयी काम-सुभट:
महावीर- वामी नयन-पथ-गामी भवतु मे॥2॥
कुमाराव थायाम प िनज-बला ेन व जत:
नम नाक ाली-मुकुट-म ण-भा जाल ज टलं फुर न यान द- शम-पद-रा याय स जन:
लस पादा भोज- यिमह यद यं तनुभ ृ ताम?।
् महावीर- वामी नयन-पथ-गामी भवतु मे॥7॥
भव वाला-शा यै भवित जलं वा मृ तम प
महामोहातक- शमन-पराक मक-िभषक?
महावीर वामी नयन-पथ-गामी भवतु मे॥3॥
िनरापे ो बंधु व दत-म हमा मंगलकर:।
यद चा-भावेन मु दत-मना ददु र इह शर य: साधूनां भव-भयभृ तामु मगुणो
णादासी वग गुण-गण-समृ : सुख-िनिध:। महावीर- वामी नयन-पथ-गामी भवतु मे॥8॥
लभ ते स ा: िशव-सुख-समाजं कमुतदा
महावीरा कं तो ं भ या भागे दु ना कतम।
महावीर- वामी नयन-पथ-गामी भवतु मे॥4॥
य: यठे णुया चा प स याित परमां गितम॥9॥
कन वणाभासोऽ यपगत-तनु ान-िनवहो
या आप कसी सम या से त ह?
आपके पास अपनी सम याओं से छुटकारा पाने हे तु पूजा-अचना, साधना, मं जाप इ या द करने का समय नह ं
ह? अब आप अपनी सम याओं से बीना कसी वशेष पूजा-अचना, विध- वधान के आपको अपने काय म
सफलता ा कर सके एवं आपको अपने जीवन के सम त सुखो को ा करने का माग ा हो सके इस िलये
गु व कायालत ारा हमारा उ े य शा ो विध- वधान से विश तेज वी मं ो ारा िस ाण- ित त पूण चैत य
यु विभ न कार के य - कवच एवं शुभ फलदायी ह र एवं उपर आपके घर तक पहोचाने का है ।
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34 अग त 2011
॥ महावीर चालीसा ॥
दोहा िन वष करो आप भगव ता । अनहद श दभयो ितहु ँ लोका ।
महाम गज मद को झारै, इ ने ने सह क र दे खा,
िस समूह नम सदा,
भगै तुरत जब तुझे पुकारै । िगर सुमेर कयो अिभषेखा ।
अ सुम ं अरह त ।
फार डाढ़ िसंहा दक आवै, कामा दक तृ णा संसार ,
िनर आकुल िनवा छ हो,
ताको हे भु तुह भगावै । तज तुम भए बाल चार ।
गए लोक के अंत ॥
होकर बल अ न जो जारै , अिथर जान जग अिनत बसार ,
मंगलमय मंगल करन,
तुम ताप शीतलता धारै । बालपने भु द ा धार ।
वधमान महावीर ।
श धार अ र यु लड़ ता, शांत भाव धर कम वनाशे,
तुम िचंतत िचंता िमटे ,
तुम साद हो वजय तुर ता । तुरत ह केवल ान काशे ।
हरो सकल भव पीर ॥
पवन च ड चलै झकझोरा, जड़-चेतन य जग के सारे ,
चौपाई भु तुम हरौ होय भय चोरा । ह त रे खवत ्? सम तू िनहारे ।
जय महावीर दया के सागर, झार ख ड िग र अटवी मांह ं, लोक-अलोक य षट जाना,
जय ी स मित ान उजागर । तुम बनशरण तहां कोउ नांह ं । ादशांग का रह य बखाना ।
शांत छ व मूरत अित यार , व पात क र घन गरजावै, पशु य का िमटा कलेशा,
वेष दग बर के तुम धार । मूसलधार होय तड़कावै । दया धम दे कर उपदे शा ।
को ट भानु से अित छ ब छाजे, होय अपु दर संताना, अनेकांत अप र ह ारा,
दे खत ितिमर पाप सब भाजे । सुिमरत होत कुबेर समाना । सव ा ण समभाव चारा ।
महाबली अ र कम वदारे, बंद गृ ह म बँधी जंजीरा, पंचम काल वषै जनराई,
जोधा मोह सुभट से मारे । कठ सुई अिन म सकल शर रा । चांदनपुर भुता गटाई ।
काम ोध त ज छोड़ माया, राजद ड क र शूल धरावै, ण म तोपिन बा ढ-हटाई,
ण म मान कषाय भगाया। ता ह िसंहासन तुह बठावै । भ न के तुम सदा सहाई ।
रागी नह ं नह ं तू े षी, यायाधीश राजदरबार , मूरख नर न हं अ र ाता,
वीतराग तू हत उपदे शी । वजय करे होय कृ पा तु हार । सुमरत पं डत होय व याता ।
भु तुम नाम जगत म सांचा, जहर हलाहल दु पय ता,
सोरठा
सुमरत भागत भूत पशाचा । अमृ त सम भु करो तुर ता ।
करे पाठ चालीस दन
रा स य डा कनी भागे, चढ़े जहर, जीवा द डस ता,
िनत चालीस हं बार ।
तुम िचंतत भय कोई न लागे । िन वष ण म आप कर ता ।
खेवै धूप सुग ध पढ़,
महा शूल को जो तन धारे, एक सहस वसु तुमरे नामा,
ी महावीर अगार ॥
होवे रोग असा य िनवारे । ज म िलयो कु डलपुर धामा ।
जनम द र होय अ
याल कराल होय फणधार , िस ारथ नृ प सुत कहलाए,
जसके न हं स तान ।
वष को उगल ोध कर भार । शला मात उदर गटाए ।
नाम वंश जग म चले
महाकाल सम करै डस ता, तुम जनमत भयो लोक अशोका,
होय कुबेर समान ॥
35 अग त 2011
राम र ा यं
राम र ा यं सभी भय, बाधाओं से मु व काय म सफलता ाि हे तु उ म यं ह। जसके योग
से धन लाभ होता ह व य का सवागी वकार होकर उसे सुख-समृ , मानस मान क ाि होती
थापीत करना चा हये जससे आने वाले संकटो से र ा हो उनका जीवन सुखमय यतीत हो सके
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36 अग त 2011
पयू षण का मह व
िचंतन जोशी
मं िस ा
एकमुखी ा -Rs- 1250,2800 छह मुखी ा -Rs- 55,100 यारहमुखी ा -Rs- 2800
दो मुखी ा -Rs- 100,151 सात मुखी ा -Rs- 120,190 बारह मुखी ा -Rs- 3600
तीन मुखी ा -Rs- 100,151 आठ मुखी ा -Rs- 820,1250 तेरह मुखी ा -Rs- 6400
चार मुखी ा -Rs- 55,100 नौ मुखी ा -Rs- 820,1250 चौदह मुखी ा -Rs- 19000
पंच मुखी ा -Rs- 28,55 दसमुखी ा -Rs- ........ गौर षंकर ा -Rs-
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पु षाकार शिन यं
पु षाकार शिन यं ( ट ल म) को ती भावशाली बनाने हे तु शिन क कारक धातु शु ट ल(लोहे ) म बनाया गया
ह। जस के भाव से साधक को त काल लाभ ा होता ह। य द ज म कुंडली म शिन ितकूल होने पर य को
अनेक काय म असफलता ा होती है , कभी यवसाय म घटा, नौकर म परे शानी, वाहन दु घ टना, गृ ह लेश आ द
परे शानीयां बढ़ती जाती है ऐसी थितय म ाण ित त ह पीड़ा िनवारक शिन यं क अपने को यपार थान या
घर म थापना करने से अनेक लाभ िमलते ह। य द शिन क ढै ़या या साढ़े साती का समय हो तो इसे अव य पूजना
चा हए। शिनयं के पूजन मा से य को मृ यु, कज, कोटकेश, जोडो का दद, बात रोग तथा ल बे समय के सभी
कार के रोग से परे शान य के िलये शिन यं अिधक लाभकार होगा। नौकर पेशा आ द के लोग को पदौ नित
भी शिन ारा ह िमलती है अतः यह यं अित उपयोगी यं है जसके ारा शी ह लाभ पाया जा सकता है ।
मू य: 1050 से 820
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38 अग त 2011
व तक.ऎन.जोशी
.
भगवान महावीर के समय म पु य नाम का एक पु य योितषी ने महावीर से पूछा "ये पदिच तो आपके
बड़ा सु िस योितषी था। उसका योितष ान इतना मालूम होते ह ?"
सट क रहता था क पु यको अपने योितष ान पर पूरा महावीर बोले: "हाँ।"
व ास था। दू रदे श से लोग उससे योितष व ा के पु य कहने लगे "मुझे अपने योितष पर भरोसा ह।
वषय म पूछने आते थे। आज तक मेरा योितष झूठा नह ं पड़ा। पदिच से
पु य योितषी जो कह दे त,े व तुतः स चा पड़ लगता है क आप च वत स ाट हो। ले कन आपको
जाता। योितषी व ा म वहं इतने तेज थे क लोग के बेहाल दे खकर दया आती है क आप िभ ुक हो। मेर
पदिच क रे खाएँ दे खकर भी वह लोग क थित बता व ा आज झूठ कैसे पड़ ?"
सकते थे। ऐसे ब ढ़या कुशा योितषी थे। महावीर मु कराकर बोलेः "तु हार व ा झूठ नह ं है ,
उन दन म वधमान (भगवान महावीर) घर दन स ची है ।
म तो मभ करते और जैसे सं या होती, अंधेरा होते ह एक बात बताओं च वत को या होता है ?"
एका त खोजकर बैठ जाते। थोड़ दे र आराम कर लेते पु य बोले: "उसके पास वजा होती है , कोष होता है ,
फर बैठकर चुपचाप, यान म थर हो जाते। उसके पास सै य होता है । आप तो बेहाल हो"
पु य योितषी ने दे खा क रे त पर कसी के महावीर फर मु कराकर बोलेः "धम क वजा मेरे पास
पदिच ह। पदिच को यान से परखा ओर योितष है । कपड़े क वजा ह स ची वजा नह ं है । स ची
व ा से जाना क ये तो च वत के पदिच ह। च वत वजा तो धम क वजा है । मेरे पास सद वचार पी
यद यहाँ से गुजरे है तो उनके साथ म मं ी होने चा हए, सै य है जो कु वचार को मार भगाता है । मा मेर रानी
सिचव होने चा हए, अंगर क होने चा हए, िसपाह होने है । च वत के आगे च होता है तो समता मेरा च है ,
चा हए। पदिच च वत के और साथ म कोई और ान का काश मेरा च है ।
पदिच नह ं यह स भव नह ं हो सकता। योितषी ! या यह ज र है क बाहर का च ह
परं तु पु य योितषी पहू ं चा हु वा योितष था च वत के पास हो ? बाहर क ह वजा हो ? धम क भी
उसको अपनी योितष व ा पर पूरा भरोसा था। उसक वजा हो सकती है । धम का भी कोष हो सकता है ।
नींद हराम हो गयी। चाँदनी रात थी इस िलये जहाँ तक यान और पु य का भी कोई खजाना होता है ।
चल सका पदिच दे खता हु आ चला, फर कह ं क कर राजा वह जसके पास भूिम हो, स ा हो। सुबह जो सोचे
आराम कर िलये। फर सुबह-सुबह ज द चलना चालू तो शाम को प रणाम आ जाय। ानरा य म मेर िन ा
है । जो भी मेरे माग म वेश करता है , सुबह को ह चले
कया। उसेतो खोजना था, पदिच कहाँ जा रहे ह। दे खा
तो शाम को शांित का एहसास हो जाता है , थोड़ा बहु त
क बना कोई साधन के, एक य शांत भाव म बैठा
प रणाम आ जाता है । यह मेर ान क भूिम है ।" जो
हु आ है । पदिच वह ं पूरे होते ह। उसके इदिगद दे खा,
योितषी हारा हु आ िनराश होकर जा रहा था वह स तु
चेहरे पर दे खता रहा। इतने म महावीर क आँख खुली।
होकर, समाधान पाकर णाम करता हु आ बोलाः "हाँ
अबतक योितषी िच ता म डू बता जा रहा था।
महाराज ! इस रह य का मुझे आज पता चला। मेर व ा
भी स ची और आपका माग भी स चा है ।"
39 अग त 2011
ादश महा यं
यं को अित ािचन एवं दु ल भ यं ो के संकलन से हमारे वष के अनुसंधान ारा बनाया गया ह।
परम दु लभ वशीकरण यं , सह ा ी ल मी आब यं
भा योदय यं आक मक धन ाि यं
मनोवांिछत काय िस यं पूण पौ ष ाि कामदे व यं
रा य बाधा िनवृ यं रोग िनवृ यं
गृ ह थ सुख यं साधना िस यं
शी ववाह संप न गौर अनंग यं श ु दमन यं
.
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40 अग त 2011
ज म वार से य व
िचंतन जोशी
योितष शा के अनुशार स ाह के सभी वार का य
के जीवन पर गहरा भाव पड़ता ह. य का ज म
जस वार म हु वा हो उस वार के भाव से य का बुधवार के दन ज म लेने वाला य बुध के भाव के
वा तु िस ांत
िचंतन जोशी
के अनु प भवन बनाते समय इस बात का खास यान
रखा जात ह।
सूय से ा सकारा मक ऊजा के ोत का सव
े उपयोग करने म वा तुशा हमारे िलये वशेष
मागदशक ह।
जस भवन म ात:काल के अलवा दोपहर को भी
सूय क करणे वेश करती हो, उस भवन मे रहने वाले
य ओ का वा य ितकूल रहता ह। यो क दोपहर
के समय भवन पर पड़ने वाली सूय क करण
नकारा मक(अ ा वायलेट) होती ह, जो वा य के िलए
नुकसानदे ह होती ह। इसी वजह से वा तुशा म द ण
और प म क द वार को ऊंचा रखने का उ लेख
आज भौितकता क दौड म भवन क बनावट को िमलता ह।
सुंदर व भ य बनाने क ज र हो गई है , इस भ य एवं द ण और प म दशाओं म उ र व पूव क
सुंदर भवनो के िनमाण के चलते य को वा तु का तुलना म कम खड़क -दरवाजे रखे जाते ह, ज से भवन
खयाल नह रहता। म रहने वाले सद य इन नकारा मक ऊजा यु सूय
ले कन को ा टर या आ कटे ट के बनाये हु वे करण के संपक म कम से कम रह। ज से उ र-पूव
लान पर मकान को सुंदरता दान करने हे तु भवन को दशा म थत जल ोत पर सूय क करण का
अिनयिमत आकार को मह व दे ने लगे ह। इन सब नकार मक भाव पड़ने से बचाव कया जासक।
कारण मकान बनाते समय जाने-अनजाने वा तु िस ांत जस भवन का द ण और प म (नैऋ य
क अवहे लना हो जाती ह। इ से वा तु दोष लगता ह। कोण), कसी भी कार से नीचा हो या वहां कसी भी
वा तु दोष के कारण घर के अंदर नकारा मक कार का भूिमगत जल ोत होए जेसे का पानी क
ऊजा से घर म असंतुलन क थित पैदा होती रे हती है । टांक , कुआं, बोरवेल, से टक टक इ या द थत हो तो,
इस कारण वहां रहने वाल के शार रक व मानिसक रोग वहां रहने वाले के असामियक मृ यु का िशकार होने क
उ प न होने लगते ह। यादा आशंका बनी रहती ह। यान रहे वा तुशा एक
वा तु िस ा त म सभी दशा अपना अलग भाव िस ा त एक व ान ह। घर क बनावट म ह वा तु
रखती ह, इस िलये दशाओ के अनु प भवन िनमाण िस ा त को अपना कर वा तुदोष को दू र कया जा
करने से अ यािधक सुफल ा होते दे खे गये ह। सकता है ।
ाकृ ितक उजा का मुख एवं अ ु त तो सूय ह, वा तु यो क वा तुदोष यु घरोम कुछ समय उस
भवन मे बताने के बादमे जब घर म रे हने वाले य ओ
43 अग त 2011
वा तु दोष िनवारक यं
भवन छोटा होया बडा य द भवन म कसी कारण से िनमाण म वा तु दोष लगरहा हो, तो शा म उसके िनवारण हे तु
वा तु दे वता को स न एवं स तु करने के िलए अनेक उपाय का उ लेख िमलता ह। उ ह ं उपायो म से एक ह वा तु यं
क थापना जसे घर-दु कान-ओ फस-फै टर म था पत करने से संबंिधत सम त परे शानीओं का शमन होकर वा तु
दोष का िनवारण होजाता ह एवं भवन म सुख समृ का आगमन होता ह। मू य मा Rs : 550
44 अग त 2011
ह तरे खा ान
िचंतन जोशी
भाग:2
ह त रे खा वशे के मत म क ह ं दो हाथ पर अं कत मत म य द सू म से अवलोकन कया जाय, तो इस
रे खाएं कुछ-कुछ िमलीझुली होती ह। कुछ ब च के हाथ अं कत िच कसी भी समय दे खे जा सकते ह। इनम
पर अं कत रे खाएं अपने माता- पता से कोई समानता अिधकांश िच उसक हथेली पर जीवन के अंितम ण
123: आपके अभी काय म सफलता अव य िमलेगी। करने क इ छा है वह हो सकेगी। मकान बनाने का तथा
इतने पापकम के थे तथा आपने महान संकट उठाये ह। जमीन खर दने का तु हारा इरादा सफल होगा। तुमको
अब शुभ दन आए ह। बहु त का भला कया, क तु जमीन से लाभ है । भा यबल से काय िस ह गे।
उ होन उपकार न माना। धम के िनिम का िनकाला 213: दु ःख के दन अब दू र हो गए ह। सुख के दन
हु आ पैसा घर म न रखो। तीथ क या ा करो, जस शु हु ए ह। बहु त दन से क उठा रहे हो, परदे श गए
थान पर दु ःखी हु ए हो, उस थान का याग करो, दू सरे तो भी सुख क ाि न हु ई, क तु अब सुख भोगने के
थान म जाकर रहो। परदे श म लाभ होगा। तु हारा दल दन ा हु ए ह। आब बढ़े गी, संतान का सुख होगा।
िच ता म डू बा रहता है । अब शुभ कम का उदय हु आ है । इतने दन िम तथा कुटु बी जन क तरफ से दु ःख
वचारे हु ए काय म सफलता एवं धन ा होगा। सहन कया। जहाँ तक बना दू सर का भला कया, पर तु
उन लोग ने गुण नह ं माना। श ु लोग पग-पग पर
131: जो बात आपने सोची है वह अव य िस होगी, तैयार रहते ह, क तु उनका जोर नह ं चलता य क
जसका नुकसान हु आ है वह दू र होकर भ व य म लाभ तु हारा भा य बलवान ् है । पास म धन थोड़ा है , क तु
होगा। धन िमलेगा। तु हारे हाथ से धम के काय ह गे। इ जत अ छ है , इसिलये जतना ा करने का वचार
जस मनु य से मुलाकात चाहते हो वह होगी। िच ता के करोगे उतना ा कर सकोगे। िम लोग से जैसा चा हए
दन अब गए ह। धातु, धन, स प और कुटु ब क वैसा सुख नह ं है । इ जत आब के िलये खच बहु त
वृ होगी। करते हो। तु हारा धम सुधरा हु आ है , इसिलए धम पर
132: आज तक तु हारे बड़े -बड़े दु मन हु ए अब उनका ा रखो।
जोर नह ं चलेगा। मन म वचारे हु ए काय म सफलता 221: इतने दन गए वे अ छे गए, जो जो काय कए वे
ा करोगे। इ जत म वृ होगी। तु हारे हाथ से धम भी पार पड़ गए, क तु अब जो काय दल म वचारा है
के काय ह गे, मन वांिछत सुख क ाि होगी। भाइय वह पाप कम के उदय से पूण नह ं होगा। िम लोग भी
का िमलाप होगा। दान-पु य के भाव से सुखी ह गे। श ु हो जाएँगे। कुटु ब म अनबन रहे गी, भाई जुदा ह गे।
133: इतने दन संकट रहा। िचंितत काय अ छ तरह जो काम दल म वचारा है , उसका याग करना ह े
से पार न पड़ा, अब अ छे दन क शु आत हु ई है , जो है । धम पर ा रखो, इ दे व क सेवा करो, दान-पु य के
काय वचारा है वह फलीभूत होगा, कसी भी कार का भाव से सुख िमलेगा।
व न नह ं आयेगा। इ दे व के भाव से ल मी ा 222: जो काम मन म वचारा है, उसको छोड़कर दू सरा
होगी, यजन से अचानक लाभ होगा। काम करो। य द इस वचारे हु ए काय को करोगे तो संकट
211: तुमने मन म जस काय का वचार कया है , वह उ प न होगा, नुकसान होगा, श ु लोग व न उप थत
सफल नह ं होगा। इसके िसवाय कोई दू सरा काम करो। करगे। इ दे व क सेवा करो, तीथ पर जाओ, जससे
तीथ क या ा करो, जससे पु य का लाभ हो। दु मन दू सरे काय भी सुधरगे। दल म व वध कार क
लोग तुमको बाधाएँ डालते ह। िच ताओं ने वास कया है , वह वचारे हु ए काय को छोड़
212: वचारा हु आ काय होगा। ेिमका से लाभ होगा। दे ने से दू र होगी।
कुटु ब क वृ होगी। बहु त मु त से वचारा हु आ काय 223: यह सवाल अ छा है , सुख के दन नजद क आए
होगा। दु मन तु हारे व कोिशश करगे, क तु तु हारे ह। यापार से धन ा होगा, ऐशो-आराम ा करोगे।
स ा य के आगे उनका जोर नह ं चलेगा। तीथ क या ा प ी का सुख ा करोगे तथा संतान क वृ होगी, जो
47 अग त 2011
काय करोगे उसम लाभ ा करोगे। ईमानदार से काम धम पर ा रखो जससे संकट दू र ह । अपने हाथ से
करते हो तो अ त म भला ह होगा। धम के भाव से ल मी ा करोगे।
सुखी ह गे, इसिलये धम को भूलना मत, धम के काय म 312: जो काय वचारा है उसे छोड़कर कोई दू सरा काम
सु ती रखना ठ क नह ं। करो अ यथा श ु लोग व न डालगे, दौलत क खराबी
231: जस काय के िलए मन म वचार कया है , वह होगी, घर के मनु य तथा पशुओं पर संकट आएगा,
काय तीन मास म होगा। अपनी ी क तरफ से लाभ इसिलए वचारे हु ए काय को छोड़ दे ना ह उिचत है । धम
होगा। आज तक कुटु बीजन क तरफ से सुख नह के भाव से सब काय सफल होते ह। िनराि त को
िमला, क तु भ व य म िमलेगा। संतान क वृ होगी। आ य दो तथा दे वािधदे व का मरण करो जससे सुखी
ससुराल के खच क िच ता है , सो िमट जाएगी। आब ह गे।
के िलए आमदनी से खच अिधक करना पड़ता है । तीथ 313: यह अ छा है । धन तथा ी से सहयोग एवं
क या ा करने का इरादा है , क तु व न आता है । सुख िमलेगा। संतान से सुख िमलेगा। संतान होगी,
भ व य म धम काय कर सकोगे। दय म जस काय क यजन का िमलाप होगा। अमुक मु त क धार हु ई
िच ता है , वह धम के भाव से दू र हो जाएगी, इसिलए धारणा सफल होगी। िच ता के दन अब दू र हु ए ह। दे व
धम पर ा रखो, जससे सफलता ा कर सकोगे। गु तथा धम क सेवा करो। दु मन लोग सताते ह,
232: जो काम वचारा है , उसे छोड़कर कोई दू सरा काम क तु अब तु हारा ार ध बलवान ् बना है जससे इन
करो। वचारे हु ए काय को करने म लाभ नह ं है , य द लोग का जोर नह ं चलेगा। जमीन से लाभ होगा। क ित
करोगे तो तुमको तु हारा थान छोड़कर दू सरे थान पर के िलए खच अिधक करना पड़ता है । िम से लाभ
जाना पड़े गा, कुटु बीजन का वयोग होगा। इसिलए होगा।
उिचत है क इस काय को छोड़ दो। धम म होिशयार 321: जमीन, मकान अथवा बाग-बगीचे से लाभ होगा।
रहना तथा अपनी श के अनुसार दान-पु य करना धन ा करोगे, नेह जन से िमलाप होगा। कसी भी
जससे सुख हो। मनु य के साथ िम ता होगी और उसके ारा धना द क
233: थोड़े दन म धन िमलेगा। जो काम वचारा है , ाि होगी। पु य के उदय से इ छाएँ पर पूण होगी। धम
वह पूण होगा। यजन से िमलाप होगा। जमीन, जागीर का आराधन करो। दु मन लोग पग-पग पर तैयार रहगे,
अथवा मकान से लाभ होगा। आब बढ़े गी। धम काय म क तु स मुख होने से उनका जोर नह ं चलेगा। अपनी
खच करो। उसके ताप से सुख-चैन रहे गा। रा यप से श के अनुसार खच करो। मकान बनाने के मनोरथ
लाभ होगा। मन क धारणा पूण होगी। ी क तरफ से फलीभूत ह गे। धन पैदा करते हो, क तु खच अिधक
सुख है । एक समय अक मात ् लाभ िमलेगा। होने से इक ठा नह ं होता है , पता से धन थोड़ा िमलेगा।
311: यह सवाल बहु त ह गरम है । जस काय का ी क तरफ से लाभ होगा। वृ ाव था म धम के काय
वचार कया है , वह पूण होगा। मुकदमा जीत जाओगे, बन सकते ह।
यापार रोजगार म लाभ होगा। क ित बढ़े गी, रा य क 322: जो काय आपने मन म वचारा है , उसमे श ु लोग
तरफ से लाभ होगा। धम के भाव से सुख िमला है तथा व न डालगे, प रणाम अ छा नह ं। रा य क तरफ से
भ व य म भी िमलेगा। दू सर के काय प र म से पूरा नाराजगी होगी य द सुखी होना चाहते हो, तो वचारा
करते हो, क तु अशुभ कम उ दत होने से अपने कम म हु आ काय छोड़कर दू सरा काय करो, तु हारे सहयोगी
उदासीन रहते हो, वदे श या ा होगी और वहाँ लाभ होगा।
48 अग त 2011
संपक कर:
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वशेष यं
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50 अग त 2011
मािसक रािश फल
िचंतन जोशी
मेष: 1 से 15 अग त 2011 : प रवार के सद य के साथ आपके र त म कुछ खटास आ सकती है । श ुओं पर आपका
भाव रहे गा। आिथक सम याओं का सामना करना पड सकता ह। काय क अिधकता
और य तता से मानिसक शांित म कमी रहे गी। वाणी एवं ोध पर िनयं ण रखे अ यथा
आपके बने बनाये काय बगड सकते ह। आपको पेट के रोग के कारण पीडा हो सकती ह।
वृ षभ: 1 से 15 अग त 2011: आिथक थती थोड कमजोर हो सकती ह। पूण प र ाम एवं संघष से कये गये
मह वपूण काय लाभकार रहे ग। पा रवा रक सम याओं के कारण आप मानिसक तनाव
म रह सकते ह। दांप य जीवन म क एवं मानिसक वेदना का अनुभव हो सकता ह।
िम एवं नजद क र ते को िनभाने म सावधानी बत। िम एवं प रवार के लोग का
पूण सहयोग िमलेगा। ेम संब धो म सफलता ा होगी।
वाणी एवं ोध पर िनयं ण रखे अ यथा आपके बने बनाये काय बगड सकते ह। यय
पर िनय ण रखने का यास कर और ऋण लेने से बचे और पुराने ऋण का भुगतान
करने का यास करे । प रवार और र तेदार से आ मीयता के अनुभव म कमी रह
सकती ह।
तुला: 1 से 15 अग त 2011: नई प रयोजनाओं को शु करने और मह वपूण िनणय लेने हे तु समय फायदे मंद सा बत हो
सकता ह। यवसायीक काय के िलये आपको कज लेना पड सकता ह जो लाभ द
िस हो सकता ह। भूिम-भवन इ याद म पूं ज िनवेश लाभ द रहे गा। आपक
मानिसक थती अ यािधक संवेदनशील रह सकती ह उस पर िनयं ण रखने का
यास कर। प रवार एवं िम ो से धनलाभ संभव ह।
16 से 31 अग त 2011: नौकर - यवसाय म उनाित होगी। कये गये पूं ज िनवेश ारा
आक मक धन ाि के योग बन रहे है । यवसायीक या ाएं सफल होगी। िम एवं
संबंिधओं से बहु मू य व तु उपहार म ा कर सकते ह। आपके का हु वे काय पुनः
आरं भ हो सकता ह। काय क य तता, अ यािधक भाग-दौड के कारण आपको थकावट हो सकती ह। आपको पेट के रोग के
कारण पीडा हो सकती ह।
होस अकते ह सावधानी वत। आपको मन म अनाव य िचंताएं सता सकती ह। अपनी
अपने ोध पर िनयं ण रखे। आपके कय का बोझ भी बढ सकता ह। अ यािधक भाग-दौड के कारण आपको थकावट हो
सकती ह।
53 अग त 2011
मकर: 1 से 15 अग त 2011 : नौकर - यवसाय म संबंधो का सू म अवलोकन करना लाभ द रहे गा। इस दौरान
मीन: 1 से 15 अग त 2011 : इस दौरान नौकर यवसाय म काय म प रवतन हो सकता ह। आपको सरकार एवं
सकती ह। सावधान रहे । वाहन चलाते समय सावधान रहे । मानिसक परे शानी म िलये
ह।
करना नु शान दे सकता ह। आपके िनणयो के अनु प आपका आने वाला भ व य पूण
प से िनभर हो सकता ह अतः गलत िनणयो को लेने से बचे। अपने खान पानका
वशेष यान रखे। पेट से संबंिधत परे शानी हो सकती ह। आव यकता से अिधक भाग-दौड के कारण आपको थकावट हो
सकती ह।
54 अग त 2011
रािश र
मूंगा ह रा प ना मोती माणेक प ना
तुला रािश: वृ क रािश: धनु रािश: मकर रािश: कुंभ रािश: मीन रािश:
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55 अग त 2011
1 सोम ावण शु ल तीया 19:07:30 मघा 26:20:37 यितपात 07:52:30 बालव 08:30:00 िसंह
2 मंगल ावण शु ल तृतीया 16:16:30 पूवाफा गुनी 24:16:30 पर ह 25:07:07 गर 16:16:30 िसंह
ष ी-
शु ावण शु ल िच ा सा य 15:19:08 तैितल 07:58:30 क या 07:25:00
5
07:58:30 18:36:57
स मी
स मी-
शिन ावण शु ल वाती शुभ व तुला
6
27:42:12 17:15:00 12:27:12 16:38:27
अ मी
अ मी-
7 रव ावण शु ल 26:06:12 वशाखा 16:14:38 शु ल 09:54:00 बालव 14:51:12 तुला 10:28:00
नवमी
12 शु ावण शु ल चतुदशी 23:45:32 उ राषाढ़ 16:51:09 आयु मान 24:53:58 गर 11:33:21 मकर
5मी
पंचमी-
शु भा पद कृ ण रे वित गंड 27:49:19 तैितल 09:43:42 मीन
19
09:43:42 05:59:38 06:00:00
ष ी
रव भा पद कृ ण स मी भरणी ुव बव मेष
21
14:26:00 11:51:19 29:20:23 14:26:00 18:31:00
26 शु भा पद कृ ण ादशी 16:14:33 पुनवसु 17:05:11 यितपात 24:16:26 तैितल 16:14:33 िमथुन 11:18:00
अमाव य-
सोम भा पद कृ ण मघा िशव नाग िसंह
29
08:34:50 11:38:35 14:19:50 08:34:50
एकम
एकम-
मंगल भा पद शु ल 25:41:55 पूवाफा गुनी 09:03:28 िस 10:25:02 बालव 15:26:55 िसंह
30
14:23:00
तीया
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57 अग त 2011
शा ो मत से भा पद मास म दह या य,
रव भा पद कृ ण एकम
14
25:34:26
कजिलयां (म. .), गाय ी पुर रण ारं भ,
शु भा पद कृ ण पंचमी- ष ी च ष ी त,
19
09:43:42
मं िस यं
गु व कायालय ारा विभ न कार के यं कोपर ता प , िसलवर (चांद ) ओर गो ड (सोने) मे
विभ न कार क सम या के अनुसार बनवा के मं िस पूण ाण ित त एवं चैत य यु कये जाते
है . जसे साधारण (जो पूजा-पाठ नह जानते या नह कसकते ) य बना कसी पूजा अचना- विध
वधान वशेष लाभ ा कर सकते है . जस मे िचन यं ो स हत हमारे वष के अनुसंधान ारा बनाए
गये यं भी समा हत है . इसके अलवा आपक आव यकता अनुशार यं बनवाए जाते है . गु व कायालय
ारा उपल ध कराये गये सभी यं अखं डत एवं २२ गेज शु कोपर(ता प )- 99.99 टच शु िसलवर
(चांद ) एवं 22 केरे ट गो ड (सोने) मे बनवाए जाते है . यं के वषय मे अिधक जानकार के िलये हे तु
स पक करे
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60 अग त 2011
गणेश ल मी यं
ाण- ित त गणेश ल मी यं को अपने घर-दु कान-ओ फस-फै टर म पूजन थान, ग ला या अलमार म था पत
करने यापार म वशेष लाभ ा होता ह। यं के भाव से भा य म उ नित, मान- ित ा एवं यापर म वृ होती
ह एवं आिथक थम सुधार होता ह। गणेश ल मी यं को था पत करने से भगवान गणेश और दे वी ल मी का
संयु आशीवाद ा होता ह। Rs.550 से Rs.8200 तक
मंगल यं से ऋण मु
मंगल यं को जमीन-जायदाद के ववादो को हल करने के काम म लाभ दे ता ह, इस के अित र य को ऋण
मु हे तु मंगल साधना से अित शी लाभ ा होता ह। ववाह आ द म मंगली जातक के क याण के िलए मंगल
यं क पूजा करने से वशेष लाभ ा होता ह। ाण ित त मंगल यं के पूजन से भा योदय, शर र म खून क
कमी, गभपात से बचाव, बुखार, चेचक, पागलपन, सूजन और घाव, यौन श म वृ , श ु वजय, तं मं के दु भा,
भूत- ेत भय, वाहन दु घ टनाओं, हमला, चोर इ याद से बचाव होता ह। मू य मा Rs- 550
कुबेर यं
कुबेर यं के पूजन से वण लाभ, र लाभ, पैत ृक स प ी एवं गड़े हु ए धन से लाभ ाि क कामना करने वाले
य के िलये कुबेर यं अ य त सफलता दायक होता ह। एसा शा ो वचन ह। कुबेर यं के पूजन से एकािधक
ो से धन का ा होकर धन संचय होता ह।
नवर ज ड़त ी यं
शा वचन के अनुसार शु सुवण या रजत म िनिमत ी यं के चार और य द नवर जड़वा ने पर यह नवर
ज ड़त ी यं कहलाता ह। सभी र ो को उसके िन त थान पर जड़ कर लॉकेट के प म धारण करने से य को
अनंत ए य एवं ल मी क ाि होती ह। य को एसा आभास होता ह जैसे मां ल मी उसके साथ ह। नव ह को
ी यं के साथ लगाने से ह क अशुभ दशा का धारण करने वाले य पर भाव नह ं होता ह। गले म होने के
कारण यं पव रहता ह एवं नान करते समय इस यं पर पश कर जो जल बंद ु शर र को लगते ह, वह गंगा
जल के समान प व होता ह। इस िलये इसे सबसे तेज वी एवं फलदािय कहजाता ह। जैसे अमृ त से उ म कोई
औषिध नह ,ं उसी कार ल मी ाि के िलये ी यं से उ म कोई यं संसार म नह ं ह एसा शा ो वचन ह। इस
कार के नवर ज ड़त ी यं गु व कायालय ारा शुभ मुहू त म ाण ित त करके बनावाए जाते ह।
अ ल मी कवच
अ ल मी कवच को धारण करने से य पर सदा मां महा ल मी क कृ पा एवं आशीवाद बना
रहता ह। ज से मां ल मी के अ प (१)-आ द ल मी, (२)-धा य ल मी, (३)-धैर य ल मी, (४)-
गज ल मी, (५)-संतान ल मी, (६)- वजय ल मी, (७)- व ा ल मी और (८)-धन ल मी इन सभी
पो का वतः अशीवाद ा होता ह। मू य मा : Rs-1050
मं िस यापार वृ कवच
यापार वृ कवच यापार के शी उ नित के िलए उ म ह। चाह कोई भी यापार हो अगर उसम लाभ के थान पर
बार-बार हािन हो रह ह। कसी कार से यापार म बार-बार बांधा उ प न हो रह हो! तो संपूण ाण ित त मं
िस पूण चैत य यु यापात वृ यं को यपार थान या घर म था पत करने से शी ह यापार वृ एवं
िनत तर लाभ ा होता ह। मू य मा : Rs.370 & 730
मंगल यं
( कोण) मंगल यं को जमीन-जायदाद के ववादो को हल करने के काम म लाभ दे ता ह, इस के अित र य को
ऋण मु हे तु मंगल साधना से अित शी लाभ ा होता ह। ववाह आ द म मंगली जातक के क याण के िलए
मंगल यं क पूजा करने से वशेष लाभ ा होता ह। मू य मा Rs- 550
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62 अग त 2011
ववाह संबंिधत सम या
या आपके लडके-लडक क आपक शाद म अनाव यक प से वल ब हो रहा ह या उनके वैवा हक जीवन म खुिशयां कम
होती जारह ह और सम या अिधक बढती जारह ह। एसी थती होने पर अपने लडके-लडक क कुंडली का अ ययन
अव य करवाले और उनके वैवा हक सुख को कम करने वाले दोष के िनवारण के उपायो के बार म व तार से जनकार ा
कर।
िश ा से संबंिधत सम या
या आपके लडके-लडक क पढाई म अनाव यक प से बाधा- व न या कावटे हो रह ह? ब चो को अपने पूण प र म
एवं मेहनत का उिचत फल नह ं िमल रहा? अपने लडके-लडक क कुंडली का व तृ त अ ययन अव य करवाले और
उनके व ा अ ययन म आनेवाली कावट एवं दोषो के कारण एवं उन दोष के िनवारण के उपायो के बार म व तार से
जनकार ा कर।
या आप कसी सम या से त ह?
आपके पास अपनी सम याओं से छुटकारा पाने हे तु पूजा-अचना, साधना, मं जाप इ या द करने का समय नह ं ह?
अब आप अपनी सम याओं से बीना कसी वशेष पूजा-अचना, विध- वधान के आपको अपने काय म सफलता ा
कर सके एवं आपको अपने जीवन के सम त सुखो को ा करने का माग ा हो सके इस िलये गु व कायालत
ारा हमारा उ े य शा ो विध- वधान से विश तेज वी मं ो ारा िस ाण- ित त पूण चैत य यु विभ न कार के
य - कवच एवं शुभ फलदायी ह र एवं उपर आपके घर तक पहोचाने का है ।
ओने स
जो य प ना धारण करने मे असमथ हो उ ह बुध ह के उपर ओने स को धारण करना चा हए।
उ च िश ा ाि हे तु और मरण श के वकास हे तु ओने स र क अंगूठ को दाय हाथ क सबसे छोट
उं गली या लॉकेट बनवा कर गले म धारण कर। ओने स र धारण करने से व ा-बु क ाि हो होकर मरण
श का वकास होता ह।
63 अग त 2011
योग फल :
काय िस योग मे कये गये शुभ काय मे िन त सफलता ा होती ह, एसा शा ो वचन ह।
पु कर योग म कये गये शुभ काय का लाभ तीन गुना होता ह। एसा शा ो वचन ह
दन के चौघ डये
समय र ववार सोमवार मंगलवार बुधवार गु वार शु वार शिनवार
ह चलन अग त -2011
Day Sun Mon Ma Me Jup Ven Sat Rah Ket Ua Nep Plu
1 03:14:24 04:00:43 02:04:22 04:06:58 00:14:56 03:10:08 05:18:19 07:28:32 01:28:32 11:10:21 10:06:04 08:11:22
2 03:15:22 04:15:15 02:05:02 04:07:07 00:15:01 03:11:22 05:18:24 07:28:25 01:28:25 11:10:19 10:06:03 08:11:21
3 03:16:19 04:29:51 02:05:42 04:07:10 00:15:07 03:12:35 05:18:28 07:28:19 01:28:19 11:10:18 10:06:01 08:11:20
4 03:17:16 05:14:25 02:06:23 04:07:08 00:15:12 03:13:49 05:18:33 07:28:13 01:28:13 11:10:17 10:06:00 08:11:19
5 03:18:14 05:28:51 02:07:03 04:07:01 00:15:17 03:15:03 05:18:38 07:28:10 01:28:10 11:10:16 10:05:58 08:11:17
6 03:19:11 06:13:06 02:07:43 04:06:49 00:15:21 03:16:17 05:18:42 07:28:08 01:28:08 11:10:15 10:05:57 08:11:16
7 03:20:09 06:27:07 02:08:23 04:06:31 00:15:26 03:17:31 05:18:47 07:28:08 01:28:08 11:10:14 10:05:55 08:11:15
8 03:21:06 07:10:55 02:09:03 04:06:09 00:15:30 03:18:45 05:18:52 07:28:09 01:28:09 11:10:12 10:05:54 08:11:14
9 03:22:04 07:24:29 02:09:43 04:05:41 00:15:34 03:20:00 05:18:57 07:28:10 01:28:10 11:10:11 10:05:52 08:11:13
10 03:23:01 08:07:50 02:10:22 04:05:08 00:15:38 03:21:14 05:19:02 07:28:09 01:28:09 11:10:10 10:05:50 08:11:12
11 03:23:59 08:20:59 02:11:02 04:04:31 00:15:42 03:22:28 05:19:07 07:28:07 01:28:07 11:10:08 10:05:49 08:11:11
12 03:24:56 09:03:56 02:11:42 04:03:50 00:15:46 03:23:42 05:19:13 07:28:02 01:28:02 11:10:07 10:05:47 08:11:10
13 03:25:54 09:16:42 02:12:21 04:03:06 00:15:49 03:24:56 05:19:18 07:27:55 01:27:55 11:10:05 10:05:46 08:11:09
14 03:26:51 09:29:17 02:13:01 04:02:19 00:15:53 03:26:10 05:19:23 07:27:46 01:27:46 11:10:04 10:05:44 08:11:08
15 03:27:49 10:11:41 02:13:40 04:01:30 00:15:56 03:27:24 05:19:29 07:27:35 01:27:35 11:10:02 10:05:42 08:11:07
16 03:28:47 10:23:54 02:14:20 04:00:40 00:15:59 03:28:38 05:19:34 07:27:24 01:27:24 11:10:01 10:05:41 08:11:06
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25 04:07:26 02:13:18 02:20:11 03:24:54 00:16:16 04:09:47 05:20:26 07:26:50 01:26:50 11:09:45 10:05:26 08:10:59
26 04:08:24 02:26:42 02:20:50 03:24:43 00:16:17 04:11:01 05:20:32 07:26:47 01:26:47 11:09:43 10:05:24 08:10:58
27 04:09:22 03:10:33 02:21:28 03:24:40 00:16:18 04:12:15 05:20:38 07:26:41 01:26:41 11:09:41 10:05:23 08:10:58
28 04:10:20 03:24:51 02:22:07 03:24:44 00:16:19 04:13:30 05:20:44 07:26:33 01:26:33 11:09:39 10:05:21 08:10:57
29 04:11:18 04:09:32 02:22:45 03:24:57 00:16:19 04:14:44 05:20:50 07:26:23 01:26:23 11:09:37 10:05:19 08:10:57
30 04:12:16 04:24:27 02:23:24 03:25:18 00:16:19 04:15:58 05:20:56 07:26:12 01:26:12 11:09:35 10:05:18 08:10:56
31 04:13:14 05:09:27 02:24:02 03:25:47 00:16:19 04:17:13 05:21:03 07:26:02 01:26:02 11:09:33 10:05:16 08:10:56
67 अग त 2011
सव रोगनाशक यं /कवच
मनु य अपने जीवन के विभ न समय पर कसी ना कसी सा य या असा य रोग से त होता ह।
उिचत उपचार से यादातर सा य रोगो से तो मु िमल जाती ह, ले कन कभी-कभी सा य रोग होकर भी असा या
होजाते ह, या कोइ असा य रोग से िसत होजाते ह। हजारो लाखो पये खच करने पर भी अिधक लाभ ा नह ं हो
पाता। डॉ टर ारा दजाने वाली दवाईया अ प समय के िलये कारगर सा बत होती ह, एिस थती म लाभा ाि के
िलये य एक डॉ टर से दू सरे डॉ टर के च कर लगाने को बा य हो जाता ह।
भारतीय ऋषीयोने अपने योग साधना के ताप से रोग शांित हे तु विभ न आयुवर औषधो के अित र यं ,
मं एवं तं उ लेख अपने ंथो म कर मानव जीवन को लाभ दान करने का साथक यास हजारो वष पूव कया था।
बु जीवो के मत से जो य जीवनभर अपनी दनचया पर िनयम, संयम रख कर आहार हण करता ह, एसे य
को विभ न रोग से िसत होने क संभावना कम होती ह। ले कन आज के बदलते युग म एसे य भी भयंकर रोग
से त होते दख जाते ह। यो क सम संसार काल के अधीन ह। एवं मृ यु िन त ह जसे वधाता के अलावा
और कोई टाल नह ं सकता, ले कन रोग होने क थती म य रोग दू र करने का यास तो अव य कर सकता ह।
इस िलये यं मं एवं तं के कुशल जानकार से यो य मागदशन लेकर य रोगो से मु पाने का या उसके भावो
को कम करने का यास भी अव य कर सकता ह।
कवच के लाभ :
एसा शा ो वचन ह जस घर म महामृ युंजय यं था पत होता ह वहा िनवास कता हो नाना कार क
आिध- यािध-उपािध से र ा होती ह।
पूण ाण ित त एवं पूण चैत य यु सव रोग िनवारण कवच कसी भी उ एवं जाित धम के लोग चाहे
ी हो या पु ष धारण कर सकते ह।
ज मांगम अनेक कारके खराब योगो और खराब हो क ितकूलता से रोग उतप न होते ह।
कुछ रोग सं मण से होते ह एवं कुछ रोग खान-पान क अिनयिमतता और अशु तासे उ प न होते ह। कवच
एवं यं ारा एसे अनेक कार के खराब योगो को न कर, वा य लाभ और शार रक र ण ा करने हे तु
सव रोगनाशक कवच एवं यं सव उपयोगी होता ह।
आज के भौितकता वाद आधुिनक युगमे अनेक एसे रोग होते ह, जसका उपचार ओपरे शन और दवासे भी
क ठन हो जाता ह। कुछ रोग एसे होते ह जसे बताने म लोग हच कचाते ह शरम अनुभव करते ह एसे रोगो
को रोकने हे तु एवं उसके उपचार हे तु सव रोगनाशक कवच एवं यं लाभादािय िस होता ह।
येक य क जेसे-जेसे आयु बढती ह वैसे-वसै उसके शर र क ऊजा होती जाती ह। जसके साथ अनेक
कार के वकार पैदा होने लगते ह एसी थती म उपचार हे तु सवरोगनाशक कवच एवं यं फल द होता ह।
जस घर म पता-पु , माता-पु , माता-पु ी, या दो भाई एक ह न मे ज म लेते ह, तब उसक माता के िलये
अिधक क दायक थती होती ह। उपचार हे तु महामृ युंजय यं फल द होता ह।
जस य का ज म प रिध योगमे होता ह उ हे होने वाले मृ यु तु य क एवं होने वाले रोग, िचंता म
उपचार हे तु सव रोगनाशक कवच एवं यं शुभ फल द होता ह।
नोट:- पूण ाण ित त एवं पूण चैत य यु सव रोग िनवारण कवच एवं यं के बारे म अिधक जानकार हे तु हम
से संपक कर।
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Article dose not produce any bad energy.
Our Goal
Here Our goal has The classical Method-Legislation with Proved by specific with fiery chants
prestigious full consciousness (Puarn Praan Pratisthit) Give miraculous powers & Good effect All
types of Yantra, Kavach, Rudraksh, preciouse and semi preciouse Gems stone deliver on your door
step.
69 अग त 2011
मं िस कवच
मं िस कवच को वशेष योजन म उपयोग के िलए और शी भाव शाली बनाने के िलए तेज वी मं ो ारा
शुभ महू त म शुभ दन को तैयार कये जाते है . अलग-अलग कवच तैयार करने केिलए अलग-अलग तरह के
मं ो का योग कया जाता है .
य चुने मं िस कवच?
उपयोग म आसान कोई ितब ध नह ं
कोई वशेष िनित-िनयम नह ं
कोई बुरा भाव नह ं
कवच के बारे म अिधक जानकार हे तु
कवच सूिच
सव काय िस कवच - 3700/- ऋण मु कवच - 730/- वरोध नाशक कवचा- 550/-
सवजन वशीकरण कवच - 1050/-* नव ह शांित कवच- 730/- वशीकरण कवच- 550/-* (2-3 य के िलए)
अ ल मी कवच - 1050/- तं र ा कवच- 730/- प ी वशीकरण कवच - 460/-*
आक मक धन ाि कवच-910/- श ु वजय कवच - 640/- * नज़र र ा कवच - 460/-
भूिम लाभ कवच - 910/- पद उ नित कवच- 640/- यापर वृ कवच - 370/-
संतान ाि कवच - 910/- धन ाि कवच- 640/- पित वशीकरण कवच - 370/-*
काय िस कवच - 910/- ववाह बाधा िनवारण कवच- 640/- दु भा य नाशक कवच - 370/-
काम दे व कवच - 820/- म त क पृ वधक कवच- 640/- सर वती कवक - 370/- क ा+ 10 के िलए
जगत मोहन कवच -730/-* कामना पूित कवच- 550/- सर वती कवक- 280/- क ा 10 तक के िलए
पे - यापार वृ कवच - 730/- व न बाधा िनवारण कवच- 550/- वशीकरण कवच - 280/-* 1 य के िलए
Shastrokt Yantra
GURUTVA KARYALAY
92/3. BANK COLONY, BRAHMESHWAR PATNA, BHUBNESWAR-751018, (ORISSA)
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(ALL DISPUTES SUBJECT TO BHUBANESWAR JURISDICTION)
72 अग त 2011
GURUTVA KARYALAY
NAME OF GEM STONE GENERAL MEDIUM FINE FINE SUPER FINE SPECIAL
Emerald (प ना) 100.00 500.00 1200.00 1900.00 2800.00 & above
Yellow Sapphire (पुखराज) 370.00 900.00 1500.00 2800.00 4600.00 & above
Blue Sapphire (नीलम) 370.00 900.00 1500.00 2800.00 4600.00 & above
White Sapphire (सफ़ेद पुखराज) 370.00 900.00 1500.00 2400.00 4600.00 & above
Bangkok Black Blue(बकोक नीलम) 80.00 150.00 200.00 500.00 1000.00 & above
Ruby (मा णक) 55.00 190.00 370.00 730.00 1900.00 & above
Ruby Berma (बमा मा णक) 2800.00 3700.00 4500.00 10000.00 21000.00 & above
Speenal (नरम मा णक/लालड ) 300.00 600.00 1200.00 2100.00 3200.00 & above
Pearl (मोित) 30.00 60.00 90.00 120.00 280.00 & above
Red Coral (4 jrh rd) (लाल मूंगा) 55.00 75.00 90.00 120.00 180.00 & above
Red Coral (4 jrh ls mij) (लाल मूंगा) 90.00 120.00 140.00 180.00 280.00 & above
White Coral (सफ़ेद मूंगा) 15.00 24.00 33.00 42.00 51.00 & above
Cat’s Eye (लहसुिनया) 18.00 27.00 60.00 90.00 120.00 & above
Cat’s Eye Orissa (उ डसा लहसुिनया) 210.00 410.00 640.00 1800.00 2800.00 & above
Gomed (गोमेद) 15.00 27.00 60.00 90.00 120.00 & above
Gomed CLN (िसलोनी गोमेद) 300.00 410.00 640.00 1800.00 2800.00 & above
Zarakan (जरकन) 150.00 230.00 330.00 410.00 550.00 & above
Aquamarine (बे ज) 190.00 280.00 370.00 550.00 730.00 & above
Lolite (नीली) 50.00 120.00 230.00 390.00 500.00 & above
Turquoise ( फ़रोजा) 15.00 20.00 30.00 45.00 55.00 & above
Golden Topaz (सुनहला) 15.00 20.00 30.00 45.00 55.00 & above
Real Topaz (उ डसा पुखराज/टोपज) 60.00 90.00 120.00 280.00 460.00 & above
Blue Topaz (नीला टोपज) 60.00 90.00 120.00 280.00 460.00 & above
White Topaz (सफ़ेद टोपज) 50.00 90.00 120.00 240.00 410.00& above
Amethyst (कटे ला) 15.00 20.00 30.00 45.00 55.00 & above
Opal (उपल) 30.00 45.00 90.00 120.00 190.00 & above
Garnet (गारनेट) 30.00 45.00 90.00 120.00 190.00 & above
Tourmaline (तुमलीन) 120.00 140.00 190.00 300.00 730.00 & above
Star Ruby (सुय का त म ण) 45.00 75.00 90.00 120.00 190.00 & above
Black Star (काला टार) 10.00 20.00 30.00 40.00 50.00 & above
Green Onyx (ओने स) 09.00 12.00 15.00 19.00 25.00 & above
Real Onyx (ओने स) 60.00 90.00 120.00 190.00 280.00 & above
Lapis (लाजवत) 15.00 25.00 30.00 45.00 55.00 & above
Moon Stone (च का त म ण) 12.00 21.00 30.00 45.00 100.00 & above
Rock Crystal ( फ़ टक) 09.00 12.00 15.00 30.00 45.00 & above
Kidney Stone (दाना फ़रं गी) 09.00 11.00 15.00 19.00 21.00 & above
Tiger Eye (टाइगर टोन) 03.00 05.00 10.00 15.00 21.00 & above
Jade (मरगच) 12.00 19.00 23.00 27.00 45.00 & above
Sun Stone (सन िसतारा) 12.00 19.00 23.00 27.00 45.00 & above
Diamond (ह रा) 50.00 100.00 200.00 370.00 460.00 & above
(.05 to .20 Cent ) (Per Cent ) (Per Cent ) (PerCent ) (Per Cent) (Per Cent )
Note : Bangkok (Black) Blue for Shani, not good in looking but mor effective, Blue Topaz not Sapphire This Color of Sky Blue, For Venus
*** Super fine & Special Quality Not Available Easily. We can try only after getting order
fortunately one or two pieces may be available if possible you can tack corres pondence about
73 अग त 2011
In special cases we don't have the time available about your Specific Questions We will taken some time for
properly Analysis your birth chart and we get back with an alternate or ask you for an alternate.
All the time mentioned is Indian Standard Time which is + 5.30 hr ahead of G.M.T.
Many clients prefer the chat so that many questions that come up during a personal discussion can be
answered right away.
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74 अग त 2011
सूचना
प का म कािशत सभी लेख प का के अिधकार के साथ ह आर त ह।
प का म कािशत कसी भी नाम, थान या घटना का उ लेख यहां कसी भी य वशेष या कसी भी थान या
घटना से कोई संबंध नह ं ह।
अ य लेखको ारा दान कये गये लेख/ योग क ामा णकता एवं भाव क ज मेदार कायालय या संपादक
क नह ं ह। और नाह ं लेखक के पते ठकाने के बारे म जानकार दे ने हे तु कायालय या संपादक कसी भी
कार से बा य ह।
हमारे ारा पो ट कये गये सभी लेख हमारे वष के अनुभव एवं अनुशंधान के आधार पर िलखे होते ह। हम कसी भी य
वशेष ारा योग कये जाने वाले मं - यं या अ य योग या उपायोक ज मेदार न हं लेते ह।
यह ज मेदार मं -यं या अ य योग या उपायोको करने वाले य क वयं क होगी। यो क इन वषयो म नैितक
मानदं ड , सामा जक , कानूनी िनयम के खलाफ कोई य य द नीजी वाथ पूित हे तु योग कता ह अथवा
योग के करने मे ु ट होने पर ितकूल प रणाम संभव ह।
हमारे ारा पो ट कये गये सभी मं -यं या उपाय हमने सैकडोबार वयं पर एवं अ य हमारे बंधुगण पर योग कये ह
ज से हमे हर योग या मं -यं या उपायो ारा िन त सफलता ा हु ई ह।
पाठक क मांग पर एक ह लेखका पूनः काशन करने का अिधकार रखता ह। पाठक को एक लेख के पूनः
काशन से लाभ ा हो सकता ह।
FREE
E CIRCULAR
गु व योितष प का अग त -2011
संपादक
िचंतन जोशी
संपक
गु व योितष वभाग
गु व कायालय
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INDIA
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76 अग त 2011
हमारा उ े य
य आ मय
बंध/ु ब हन
जय गु दे व
जहाँ आधुिनक व ान समा हो जाता है । वहां आ या मक ान ारं भ हो जाता है , भौितकता का आवरण ओढे य
जीवन म हताशा और िनराशा म बंध जाता है , और उसे अपने जीवन म गितशील होने के िलए माग ा नह ं हो पाता यो क
भावनाए ह भवसागर है , जसमे मनु य क सफलता और असफलता िन हत है । उसे पाने और समजने का साथक यास ह े कर
सफलता है । सफलता को ा करना आप का भा य ह नह ं अिधकार है । ईसी िलये हमार शुभ कामना सदै व आप के साथ है । आप
अपने काय-उ े य एवं अनुकूलता हे तु यं , हर एवं उपर और दु ल भ मं श से पूण ाण- ित त िचज व तु का हमशा
योग करे जो १००% फलदायक हो। ईसी िलये हमारा उ े य यह ं हे क शा ो विध- वधान से विश तेज वी मं ो ारा िस
ाण- ित त पूण चैत य यु सभी कार के य - कवच एवं शुभ फलदायी ह र एवं उपर आपके घर तक पहोचाने का है ।
GURUTVA KARYALAY
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AUG
2011