लोभी कोधी, आलसी, सदा दुखी इनसान ।। िवधना ने दोनो रचे, सुखदुख एक समान । अपने अपने कमर फल, पाता चतुर सुजान ।।
जो िजसको अचछा लगे, वही उसे सुख-रप।
जो मन मे न भाय वह, भरा हुआ दुख कूप ।।
सुख-दुख मे कछु भेद निहं, जो ले जैसा मान ।
जानी दुख को सुख कहिहं, तजिहं मोह अजान ।।
सुख दुख का सचचा समन, थोडे मे संतोष ।
आतम शुिद, िचनता िवमुख, कबहंु न बयापै रोष ।।
जो दुख मे न दीन हो, कमर करै िचतालय ।
सुख दुख सम िदन बीतते, फकर न जाना जाय ।।
दान-पुणय, पूजन हवन, सदगुण मे तललीन ।
परिहत मे रत जो रहिहं, कबहंु न ते दुखदीन ।।
कबहंु न मनमे भावना, दुख दूजे को देय ।
ते नर हरदम सुख लहिहं, कतहंु न कुछ संदेह ।।
काम, कोध, मद, लोभ का, िजनिहं न वयापै रोग ।
कमरिनष सचचिरत सुिध, साधु जािनये लोग ।।
सुख-दुख मे न हो भिमत, तजिहं मोह अिभमाना ।
काम, कोध ईषरया, घृणा, तयागिहं साधु सुजान।।
धमर, जान पथ पर चलिहं, परिहत िजन मन मािहं ।
ितनको पंिडत मािनये, ये िवरले जग मािह ।।
अित आदर से निहं सुखी, दुखी न अित अपमान ।
सुख दुख सम िजनके िलये, साधू सुनहु सुजान ।।
ितनके से िचनता बडी, तन मन देय जलाय ।
िबना अिगन फंके सकल, सफल न कछू उपाय ।।
िचनता जवाल शरीर की, सके न सहज बुझाय ।
वे नर कैसे िजये िनत, िचनता िजनिहं सताय ।।
मानव मे तृषणा भरी, औ चाहत की चाह ।
िदन िदन दूनी बढत है, आसमान सी राह ।।
मनसा, इचछा, वासना, जीवन के घुन जान ।
तृिपत नही इनकी कही, जानत सकल जहान ।।
िबन कारण िचनता करत, भोगत तास महान ।
अपने अंदर झाक कर, पापत कीिजये जान ।।
सुर नर मुिन कोऊ नाय, िजनिह न वयापी यह वयथा।
ईशर िजनिहं सहाय, ते उवरिहं इस जवाल से ।।
िचनता को मारै हसी, तन मन देय फुलाय ।
यौवन को ताजा करै, खुिशयो से भर जाय ।।
परिननदा ईषा जलन, कोध मोह मद मान।
मानव जीवन मे गढ़त सदा दुखद सोपान।।
िमत-शतु कोई नही, जेिह जस लेविहं मान।
समय परे पर कीिजये, िमत-शतु पहचान।।
कोई बड़ा छोटा नही, सब जन एक समान।
करनी से नृप रंक हो, िनधरन हो धनवान।।
न कोउ दुबरल न बली, न कोउ बाज बटेर।
समय होत बलवान अित, िबगड़त बनत न देर।।
बोल चाल मे घोिलए, पेम और सदभाव।
जो चाहो कलयाण सुख, शतुिह-िमत बनाव।।
मोहन पीड़ा मे पला, यह जीवन संसार,
डगर डगर पर झेलनी,पड़ी यातना मार।।
तू जैसा चाहे नचा, आया तेरे दार,।
कठपुतली का नाच यह, नाच रहा संसार।।
देव अितिथ माता-िपता, का न करै सममान।
सकल पदारथ भोग नर,जीिवत मृतक समान।।
परिहत मे कछु न करै, नाहक वकत गमाय।
धरती पर बोझा बना, जीव अखारत जाय।।
``आनंद´´सब आननद है,जो ले जैसा मान,
पानी पानी मे फरक,समझत चतुर सुजान।।
नजर नजर के फेर मे,राई िदखत पहार।
दुशमन जब अपना लगे बदल जात वयवहार।।
नदी नािर नािगन नजर,चलती अपनी चाल।
इनको कबहंु न छेिड़ये,रओ चाहो खुशहाल।।
बषाZ आतप ताप मे,रिखये सदा समहार।
शिकत शािनत सदभावना,िनमरल सवचछ िवचार।।
बाहुबली सब जीत गए,हार गए कमजोर।
नाहक पीटी तािलया, मचा मचाकर शोर।।
नाग नाथ तो हट गए,साप नाथ गए आय।
उनने मारा पेट से ,आगे राम सहाय।।
आशा से अटका हुआ,जनता का आकाश।
उनका ढ़ाया अंधेरा शायद िमले पकाश।।
हमने तो तुम पर िकया, तन मन से िवशास।
तुम पत सबकी रािखयो, पूरी किरयो आस।।
जाित पात के भेद ने , दए समबनध िमटाय।
सुख-दुख मे कोउ कबहंु, करवै नही सहाय।।
तन मन धन से जीव की, सेवा िजनका कमर।
ऐसे जन युग-युग अमर, समझ लीिजये ममर।।
िचनता जवाल शरीर की, हाड़ मास खा जाय। जयो पानी िबन मछिलया,तड़पतड़प मर जाय।।
मानव मे तृषणा भरी, औ चाहत की चाह।
िदन-िदन दूनी बढ़त है, आसमान सी राह।।
मनसा इचछा कामना, जीवन के घुन जान।
तृिपत नही इनकी कही, जानत सकल जहान।।
जनम मरण के चक मे, सुख-दुख आये जाय।
मूरख िसर पीटै धुने , रो-रो के िचललाय।।
मनसा बाचा कमरणा, पर पीड़न न होय।
धमर पेम सदावना, जीवन के मग दोय
िचनता को मारै हंसी, तन मन देय फुलाय।
यौवन को ताजा करै, खुिशयो से भर जाय।।
हासय बढ़ावै शिकत को ,बल बधरक वरदान,
सुख मय जीवन के िलए, िचनता तजै सुजान।।
दुिनया कैसी वावरी, भूल गई पहचान।
बाहर िदखता आदमी,िछपा हुआ सैतान।। दमदार दोहे
बस मे भारी भीड़ लख मन ही मन मुसकाय।
खड़ी बगल मे सुनदरी, ध िदया लगाय। ( हाय कहकर मुसकाने , ) खीच जोर चाटा जड़ा, गाल पड़ गया लाल । िफर हँसकर बोली िमया किहए कैसे हाल । ( बुढ़ापे मे गराने ) एक हाथ मे झड़ गए मेरे बितस दात । मुझे बताओ िकस बजह, आप उठाया हाथ । ( होश आ गए िठकाने , बुढ़ापे मे गराने ) ऊमर के भीतर रहे ऊमर वाली बात, समझा दूँगी माजरा, घर लोटेगे रात । ( चले न एक बहाने ) घबराते घर मे सुसे, िसर पर टोप लगाय, धक धक धक िजयरा करे आगे राम सहाय। ( िमया बेहद घबराने ) लाज न आवत आपको, इस वय मे ये काम, बाहर आवारा िगरी, घर मे सीता राम । ( हमई को नई पहचाने ) चार और तुम मार लो, पर न बात बड़ाव, कान पकड़ता हूँ िपये, बचचो से न काव । ( लाज अब तुमई बचाने ) घर मे बनता महातमा, बाहर खोटी चाल, उठा लबुिदया िमया की बीबी खीची खाल । (बहुत रोये िचललाने बुढ़ापे मे गराने )