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ममममममममम मम ममममममम ममममम ममम 13 ममम ममममममम ममम ममम

मममममम ममममममममम, मममम ममम मम मममममममम ममममममममम मम


मममममममम ममममममम मम।

ममम-ममम मम मममममममममममम मम मम मम ममम मममम मम ममम मममममम,


मममममममममम ममम। मममम ममममम ममममम मममम मम मममम मम ममममममम
ममममम मम ममम मम मममम मममममममम मम।
ममममम ममम मममम मममममममममम मम मममममम मम ममममम मममम ममममम
मम। मम ममम ममम ममम मममम मम ममम ममम मममम, मम मम ममम मममम
ममममममममम मम मम मम मममममम ।

मममममम मम ममम मम मममम मम ममम मम ममम मम ममम मम ममममम ममम ममम


ममम मम ममममम
। ममममम मममममम ममम ममम मममम ममममममममम मम
मममममम मम मममम मम मममम मम मम ममम मममम। मममम मममममममम
ममममममममममम, मममम, मममममम मममम ममममममममम मम ममममम ममम मममम
ममममममम। मममम

वतन को लौटता मुलला नसरदीन...


शाम के सूरज की िकरणे बुखारा शरीफ के अमीर के महल के कंगूरो और मिसजदो की मीनारो को
चूमकर अलिवदा कह रही थी। रात के कदमो की धीमी आवाज दरू से आती सुनाई देने लगी थी।
मुलला नसरदीन ऊंटो के िवशाल कारवा के पीछे-पीछे अपने सुख-दुख के एकमात साथी गधे की
लगाम पकडे पैदल आ रहा था।
उसने हसरत-भरी िनगाह बुखारा शहर की िवशाल चारदीवारी पर डाली, उसने उस खूबसूरत
मकान को देखा, िजसमे उसने होश की आँखे खोली थी, िजसके आँगन मे खेल-कूदकर बडा हुआ
था। िकंतु एक िदन अपनी सचचाई, नयायिपयता, गरीबो तथा पीिडतो के पित उमडती बेपनाह
मुहबबत और हमददी के कारण उसे अमीर के िशकारी कुतो जैसे खूँखार िसपािहयो की नजरे
बचाकर भाग जाना पडा था।
िजस िदन से उसने बुखारा छोडा था, न जाने वह कहा-कहा भटकता िफर रहा था- बगदाद,
इसतमबूल, तेहरान, बखशी सराय, ितिफलस, दिमशक, तरबेज और अखमेज और इन शहरो के
अलावा और भी दस ू रे शहरो तथा इलाको मे। कभी उसने अपनी राते चरवाहो के छोटे से अलाव
के सहारे-ऊँ़ घते हुए गुजा़़रथी ी और कभी िकसी सराय मे , जहा िदन भर के थके-हारे ऊँट
सारे रात धुँधलके मे बैठ,े अपने गले मे बँधी घंिटयो की रनझुन के बीच जुगाली करने , अपने बदन
को खुजाने, अपनी थकान िमटाने की कोिशश िकया करते थे।
कभी धुएँ और कािलख से भरे कहवाखानो मे, कभी िभिशतयो, खचचर और गधे वाले गरीब मजदरू ो
और फकीरो के बीच, जो अधनंगे बदन और अधभरे पेट िलए नई सुबह के आने की उममीद से सारी
रात सोते-जागते
़ गुजा़़रदा ेते थे और पौ फटते ही िजनकी आवाजो से शहर की गिलया और
बाजा़
़ ़रि फ र से गूँजने लगते थे।नसरदीन की बहुत -सी राते ईरानी रईसो के शानदार हरम मे
नमर, रेशमी गदो पर भी गुजरी थी उनकी वासना की पयासी बेगमे िकसी भी मदर की बाहो मे रात
गुजारने के िलए बेबसी से हरम के जालीदार झरोखो मे खडी िकसी अजनबी की तलाश करती
रहती थी।

एक शानदार रात की याद

िपछली रात भी उसने एक अमीर के हरम मे ही िबताई थी। अमीर अपने िसपािहयो के साथ दुिनया
के सबसे बडे आवारा, बदनाम और बागी मुलला नसरदीन की तलाश मे सरायो और कहवाखानो की
खाक छानता िफर रहा था तािक उसे पकडकर सूली पर चढा दे और बादशाह से इनाम और पद
पापत कर सके।जालीदार खूबसूरत झरोखो से आकाश के पूवी छोर पर सुबह की लािलमा िदखाई
देने लगी थी। सुबह की सूचना देनेवाली हवा धीरे-धीरे ओस से भीगे पेड-पौधो को सुलाने लगी
थी। महल की िखिडकयो पर चहचहाती हुई िचिडया चोच से अपने पंखो को सँवारने लगी थी।
आँखो की नीद का खुमार िलए अलसायी हुई बेगम का मुँह चूमते हुए मुलला नसरदीन ने कहा,
“वकत़ हो गया, अब मुझे जाना चािहए।”

‘अभी रको।’ अपनी मरमरी बाहे उसकी गदरन मे डालकर बेगम ने आगह िकया। ‘नही िदलरबा,
मुझे अब जाने दो। अलिवदा’!
कया तुम हमेशा के िलए जा रहे हो? सुनो, आज रात को जैसे ही अँधेरा फैलने लगेगा, मै बूढी
नौकरानी को भेज दंगू ी ’

‘नही, मेरी मिलका। मुझे अपने रासते जाने दो। देर हो रही है।’ नसरदीन ने उसकी कमलनाल
जैसी बाहो को अपने गले मे से िनकालते हुए कहा, एक ही मकान मे दो राते िबताना कैसा होता है,
मै एक अरसे से भूल चुका हूँ। बस मुझे भूल मत जाना। कभी-कभी याद कर िलया करना ”

‘लेिकन तुम जा कहा रहे हो? कया िकसी दस


ू रे शहर मे कोई जररी काम है?’

‘पता नही।’ नसरदीन ने कहा, ‘मेरी मिलका, सुबह का उजाला फैल चुका है। शहर के फाटक
खुल चुके है। कारवा अपने सफर पर रवाना हो रहे है। उनके ऊँटो के गले मे बँधी घंिटयो की
आवाज तुमहे सुनाई दे रही है ना? घंिटयो की आवाजो को सुनते ही जैसे मेरे पैरो मे पंख लग गए
है। अब नही रक सकता। ’

‘तो िफर!’ अपनी लंबी-लंबी पलको मे आँसू िछपाने की कोिशश करते हुए बेगम ने नाराजगी के
साथ कहा, ‘लेिकन जाने से पहले अपना नाम तो बताते जाओ।’

‘मेरा नाम?’ मुलला नसरदीन ने उसकी आँसू भरी नजरो मे नजरे डालते हुए कहा, ‘सुनो, तुमने यह
रात मुलला नसरदीन के साथ िबताई थी। मै ही मुलला नसरदीन हूँ। अमन मे खलल डालने वाला,
बगावत और झगडे फैलाने वाला-मै ही मुलला नसरदीन हूँ, िजसका िसर काटकर लाने वाले को
भारी इनाम देने की घोषणा की गई है। मेरा जी चाहा था िक इतनी बडी कीमत पर मै खुद ही
अपना िसर इनके हवाले कर दँ। ू ’

मुलला नसरदीन की इस बात को सुनते ही बेगम िखल-िखलाकर हंस पडी।

‘तुम हंस रही हो मेरी ननही बुलबुल?’ मुलला नसरदीन ने ददर-भरी आवाज मे कहा, ‘लाओ, आिखरी
बार अपने इन गुलाबी होठो को चूम लेने दो। जी तो चाहता था िक तुमहे अपनी कोई िनशानी देता
जाऊँ-कोई जेवर। लेिकन जेवर मेरे पास है नही। िनशानी के रप मे पतथर का यह सफेद टुकडा
दे रहा हूँ। इसे सँभालकर रखना और इसे देखकर मुझे याद कर िलया करना।’

इसके बाद मुलला ने अपनी फटी खलअत पहन ली, जो अलाव की िचंगािरयो से कई जगह से जल
चुकी थी। उसने एक बार िफर बेगम का चुंबन िलया और चुपचाप दरवाजे से िनकल आया दरवाजे
पर महल के खजाने का रखवाला, आलसी और मूखर खोजा लंबा पगगड बाधे, सामने से ऊपर की
ओर मुडी जूितया पहने खराटे भर रहा था। सामने ही गलीचो और दिरयो पर नंगी तलवारो का
तिकया लगाए पहरेदार सोए पडे थे।

िफर शुर हुआ सफर

मुलला नसरदीन िबना कोई आवाज िकए अमीर के महल से बाहर िनकल आया। हमेशा की तरह
सकुशल। िफर वह िसपािहयो की नजरो मे छू मंतर हो गया। एक बार िफर उसके गधे की तेज
टापो से सडक गूँजने लगी थी। धूल उडने लगी थी और नीले आकाश पर सूरज चमकने लगा
था। मुलला नसरदीन िबना पलके झपकाए उनकी ओर देखता रहा।

.एक बार भी पीछे मुडकर देखे िबना, अतीत की यादो की िकसी भी कसक के िबना और भिवषय मे
आनेवाले संकटो मे िनडर वह अपने गधे पर सवार हो आगे बढता चला जाता। लेिकन अभी-अभी
वह िजस कसबे को छोडकर आया है, वह उसे कभी भूल नही पाएगा।

उसका नाम सुनते ही अमीर और मुलला कोध से लाल-पीले होने लगते थे। िभशती, ठठेर,े जुलाहे,
गाडीवान, जीनसाज
़ रात को कहवाखा़़न
मो े इकटे होकर उसकी वीरता की कहािनया सुना -
सुनाकर अपना मनोरंजन करते; और वे कहािनया कभी भी समापत न होती। उसकी पिसिद और
जयादा दरू तक फैल जाती।

अमीर के हरम मे अलसायी हुई बेगम बार-बार


़ सफे़दप तथर के उस टुकडे को देखती और
जैसे ही उसके कानो मे पित के कदमो की आवाज टकराती, वह उस सीप को िपटारी मे िछपा
देती।
िजरहबखत़र की िखलअत को उतारता, हाफता-कापता मोटा अमीर कहता, "ओह, इस कमबखत
आवारा मुलला नसरदीन ने हम सबकी नाको मे दम कर रखा है। पूरे देश को उजाडकर गडबड
फैला दी है। आज मुझे अपने पुराने िमत खुरासान के सबसे बडे अिधकारी का पत िमला था। तुम
समझती हो ना? उसने िलखा है िक जैसे ही यह आवारा उसके शहर मे पहुँचा अचानक लुहारो ने
टैकस देना बंद कर िदया और सरायवालो ने िबना कीमत िलए िसपािहयो को खाना िखलाने से इंकार
कर िदया। और सबसे बडी बात तो यह हुई िक वह चोर, वह बदमाश हािकम के हरम मे घुसने की
गुसताखी कर बैठा। उसने हािकम की सबसे अिधक चहेती बेगम को फुसला िलया। िवशास करो,
दुिनया ने ऐसा बदमाश आज तक नही देखा। मुझे इस बात का अफसोस है िक उस दो कौडी के
आदमी ने मेरे हरम मे घुसने की आज तक कोिशश नही की। अगर मेरे हरम मे घुस आता तो
उसका िसर बाजार के चौराहे पर सूली पर लटका िदखाई देता। "

खुले आकाश तले कटी रात:

(बुखारा की सरहद पर पहंुचते-पहंुचते शहर का दरवाजा बंद हो जाता है, सभी सरहद पर ही रात
िबताने की तैयारी करते है....)

मुलला नसरदीन ने गधे को सडक के िकनारे एक पेड से बाध िदया और पास ही एक पतथर का
तिकया लगाकर नंगी जमीन पर लेट गया। ऊपर आकाश मे िसतारो का चमकता हुआ जाल फैला
हुआ था। िसतारो के हर झुंड को वह पहचानता था।

इन दस सालो मे उसने न जाने िकतनी बार इसी पकार आकाश को देखा था। रात के दुआ के
पिवत घंटे उसे संसार के सबसे बडे दौलतमंद से भी बडा दौलतमंद बना देते थे।

धनसंपन लोग भले ही सोने के थाल मे भोजन करे, लेिकन वे अपनी राते छत के नीचे िबताने के
िलए मजबूर होते है और नीले आकाश पर जगमगाते तारो और कुहरे भरी रात के सनाटे मे संसार
के सौदयर को देखने से वंिचत रह जाते है।

इस बीच शहर के उस परकोटे के पीछे, िजस पर तोपे लगी थी, सराय और कहवाखानो मे बडे-बडे
कडाहो के नीचे आग जल चुकी थी। कसाईखाने की ओर ले जानेवाली भेडो ने ददरभरी आवाज मे
िमिमयाना शुर कर िदया था।

अनुभवी मुलला नसरदीन ने रात-भर आराम करने के िलए हवा के रख के िवपरीत सथान खोजा था
तािक खाने की ललचाने वाली महक रात मे उसे परेशान न करे और वह िनिशंतता से सोता रहे।
उसे बुखारा के िरवाजो की पूरी-पूरी जानकारी थी। इसिलए उसने शहर के फाटक पर टैकस
चुकाने के िलए अपनी रकम का अंितम भाग बचा रखा था।
बहुत देर तक वह करवटे बदलता रहा, लेिकन नीद नही आई। नीद न आने का कारण भूख नही
थी, वे कडवे िवचार थे, जो उसे सता रहे थे।
छोटी-सी काली दाढी वाले इस चालाक और खुशिमजाज आदमी को अपने वतन से सबसे अिधक
पयार था। फटा पैबदं लगा कोट, तेल से भरा कुलाह और फटे जूते पहने वह बुखारा से िजतना
अिधक दरू होता, उसकी याद उसे उतनी ही अिधक सताया करती थी।

परदेस मे उसे बुखारा की उन तंग गिलयो की याद आती, जो इतनी पतली थी िक अराबा (एक
पकार की गाडी भी) दोनो और बनी कचची दीवारो को रगडकर ही िनकल पाती थी। उसे ऊँची-
ऊँची मीनारो की याद आती, िजसके रोगनदार ईटो वाले गुबं दो पर सूरज िनकलते और डू बते समय
लाल रोशनी िठठककर रक जाती थी।

उन पुराने और पिवत वृको की याद आती, िजनकी डािलयो पर सारस के काले और भारी घोसले
झूलते रहते थे। नहरो के िकनारे के कहवाखाने , िजन पर िचनार के पेडो की छाया थी, नानबाइयो
की भटी जैसी तपती दुकानो से िनकलता हुआ धुआँ और खाने की खुशबू तथा बाजारो के तरह-
तरह के शोर-गुल याद आते। अपने वतन की पहािडया याद आती। झरने याद आते। खेत,
चरागाह, गाव और रेिगसतान याद आते।
बगदाद या दिमशक मे वह अपने देशवािसयो को उनकी पोशाक और कुलाह देखकर पहचान लेता
था। उसका िदल जोर-जोर से धडकने लगता था और गला भर आता था। जाने के समय की
तुलना मे वापस आते समय से अपना देश और अिधक दुखी िदखाई िदया।

पुराने अमीर की मौत बहुत पहले हो चुकी थी। नए अमीर ने िपछले आठ वषों मे बुखारा को बबाद
करने मे कोई कसर नही छोडी थी। मुलला नसरदीन ने टू टे हुए पुल, नहरो के धूप से चटकते
सूख तले, गेहूँ और जौ के धूप जले ऊबड-खाबड खेत देखे।

ये खेत घास और कँटीली झािडयो के कारण बबाद हो रहे थे। िबना पानी के बाग मुरझा रहे थे।
िकसानो के पास न तो मवेशी थे और न रोटी। सडको पर कतार बाधे फकीर उन लोगो से भीख
मागा करते थे, जो खुद भूख थे।

नए अमीर ने हर गाव मे िसपािहयो की टुकिडया भेज रखी थी और गाववालो को हुकम दे रखा था


िक उन िसपािहयो के खाने -पीने की िजममेदारी उनही पर होगी। उसने बहुत-सी मिसजदो की नीव
डाली और िफर गाववालो से कहा िक वे उनहे पूरा करे। नया अमीर बहुत ही धािमरक था। बुखारा
के पास ही शेख बहाउदीन का पिवत मजार था।

नया अमीर साल मे दो बार वहा िजयारत करने जरर जाता था। पहले से लगे हुए चार टैकसो मे
उसने तीन नए टैकस और बढा िदए थे। वयापार पर टैकस बढा िदया था। का़़़
नूनी ैकसो मे भी

वृिद कर दी थी। इस तरह उसने ढेर सारी नापाक दौलत जमा कर ली थी। दसतकािरया खतम
होती जा रही थी। वयापार घटता चला जा रहा था।

मुलला नसरदीन की वापसी के समय उसके वतन मे बेहद उदासी छाई हुई थी।
शहर के दरवाजे पर टैकस वसूली

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इसके पहले आपने पढा: खुले आकाश तले कटी रात

(अपने शहर के सीमा पर मुलला ने दस


ू रे वयापािरयो के साथ खुले आकाश तले रात िबताई, अब
उजाला फैलने लगा...)

सवेरे तडके अजान देने वालो ने मीनारो से िफर अजान दी। फाटक खुल गए और कारवा धीरे-
धीरे शहर मे दािखल होने लगा। ऊँटो के गले मे बँधी घंिटया धीरे-धीरे बजने लगी।

लेिकन फाटक मे घुसते ही कारवा रक गया। सामने की सडक पहरेदारो से िघरी हुई थी। उनकी
संखया बहुत अिधक थी। कुछ पहरेदार ढंग और सलीके से वदी पहने हुए थे। लेिकन िजनहे अमीर
की नौकरी मे अभी तक पैसा जुटाने का पूरा-पूरा मौका नही िमला था, उनके बदन अधनंगे थे।
पाव नंगे थे। वे चीख-िचलला रहे थे और उस लूट के िलए, जो उनहे अभी-अभी िमलने वाली थी,
एक-दसू रे को ठेल रहे थे, आपस मे झगड रहे थे।

कुछ देर बाद एक कहवाखाने से कीच भरी आँखोवाला एक मोटा-ताजा टैकस अफसर िनकला।
उसकी रेशमी खलअत की आसतीनो मे तेल लगा था। पैरो मे जूितया थी। उसके मोटे थुल-थुले
चेहरे पर अययाशी के िचनह साफ-साफ िदखाई दे रहे थे।

उसने वयापािरयो पर ललचायी हुई नजऱ डाली। िफर कहने लगा- ‘सवागत है वयापािरयो! अललाह
तुमहे अपने काम मे सफलता दे। तुमहे यह मालूम होना चािहए िक अमीर का हुकम है िक जो भी
वयापारी अपने माल का छोटे-से छोटा िहससा भी िछपाने की कोिशश करेगा, उसे बेत मार-मारकर
मार डाला जाएगा।’

परेशान वयापारी अपनी रँगी हुई दािढयो को खा़़़


मोश हलाते रहे। बेताबी से चहलकदमी करते

हुए पहरेदारो की ओर मुडकर टैकस अफसर ने अपनी मोटी उगिलया नचाई।

इशारा पाते ही वे चीखते-िचललाते हुए ऊँटो पर टू ट पडे। उनहोने उतावली मे एक-दस


ू रे पर िगरते-
पडते अपनी तलवारो से रससे काट डाले और सामान की गाठे खोल दी।

रेशम और मखमल के थान, काली िमचर, कपूर और गुलाब की कीमती इत की शीिशया, कहवा और
ितबबती दवाओं के िडबबे सडक पर िबखर गए।

भय तथा परेशानी ने वयापािरयो की जुबान पर जैसे ताले लगा िदए। जाच दो िमनट मे पूरी हो गई।
िसपाही अपने अफसर के पीछे कतार बाधकर खडे हो गए। उनके कोटो की जेबे लूट के माल मे
फटी जा रही थी।
इसके बाद शहर मे आने और माल टैकस की वसूली आरंभ हो गई। मुलला नसरदीन के पास
वयापार के िलए कोई सामान नही था। उसे केवल शहर मे घुसने का टैकस देना था।

अफसर ने पूछा, ‘तुम कहा से आ रहे हो? और तुमहारे आने की वजह कया है?’

मुहिररर ने सीग से भरी सयाही मे बास की कलम डुबाई और मोटे रिजसटर मे मुलला नसरदीन का
बयान िलखने के िलए तैयार हो गया।

‘हुजूर आला, मै ईरान से आ रहा हूँ। यहा बुखारा मे मेरे कुछ िरशतेदार रहते है।’

‘अचछा।’ अफसर ने कहा, तो तुम अपने िरशतेदारो से िमलने आए हो? इस हालत मे तुमहे
िमलनेवालो का टैकस अदा करना होगा।’

‘लेिकन मै उनसे िमलूँगा नही। मै तो एक जररी काम से आया हूँ।’ मुलला नसरदीन ने उतर
िदया।

‘काम से आए हो?’ अफसर िचललाया। उसकी आँखे चमकने लगी, ‘तो तुम िरशतेदारो से भी िमलने
आए हो और काम पर लगने वाला टैकस भी दो। और खुदा की शान मे बनी मिसजदो की सजावट
के िलए खैरात दो, िजनहोने रासते मे डाकुओं से तुमहारी िहफाजत की।’

मुलला नसरदीन ने सोचा, मै तो चाहता था िक खुदा उस समय मेरी िहफाजत करता। डाकुओं से
बचने का इंतजाम तो मै खुद ही कर लेता। लेिकन वह चुप रहा। उसने िहसाब लगा िलया था िक
अगर
़ वह बोला तो हर शबद की की़़म उत से दस तंके चुकानी पडेगी।

उसने अपना बटुवा खोला और पहरेदारो की ललचायी, घूरने वाली नजरो के सामने शहर मे दािखल
होने का टैकस, मेहमान टैकस, वयापार टैकस, मिसजदो की सजावट के िलए खै़ऱ़
दात ी।
अफसर ने िसपािहयो की ओर घूरा तो वे पीछे हट गए। मुहिररर रिजसटर मे नाक गडाए बास की
कलम घसीटता रहा।

टैकस अदा करने के बाद मुलला नसरदीन रवाना होने ही वाला था िक टैकस अफसर ने देखा,
उसके पटके मे अब भी कुछ िसके बाकी है।

‘ठहरो,’ वह िचललाया, ‘तुमहारे इस गधे का टैकस कौन अदा करेगा? अगर तुम अपने िरशतेदारो से
िमलने आए हो तो तुमहारा गधा भी अपने िरशतेदारो से िमलेगा।’

अपना पटका एक बार िफर खोलते हुए मुलला नसरदीन ने बडी नमी से उतर िदया ‘मेरे अकलमंद
आका, आप सच फरमाते है, सचमुच मेरे गधे के िरशतेदारो की तादाद बुखारा मे बहुत बडी है। नही
तो िजस ढंग से यहा काम चल रहा है, आप के अमीर बहुत पहले ही तख्त से धकेल िदए गए होते,
और मेरे बहुत ही कािबल हुजूर आप अपने लालच के िलए न जाने कब सूली पर चढा िदए गए
होते।’
इससे पहले िक अफसर अपने होशोहवास ठीक कर पाता, मुलला नसरदीन कूदकर अपने गधे पर
सवार हो गया और उसे सरपट भगा िदया। पलक झपकते ही वह सबसे पास की गली मे पहुँचकर
आँखो से ओझल हो गया।

मुलला अपने गधे पर

िपछली बार आपने पढा: शहर के दरवाजे पर टैकस वसूली

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टट टटटटट’

टटटट टटटट टट टटटट टटटट टटटटटटटट टटट टट टटटट, टटटटटट


टटटटटटटटट टटटटट टटटट टटट टट टटटट टट टटट टट टटट टटटट टटट
टटटटट टटट टटटटट टट टट टटटट टटट टट टटट टटट टटटटटटट टटटटट टट
टटट टट टटटट)

उसके आगे:

मुलला अपने गधे पर

वह बराबर कहता जा रहा था- ‘और तेज और जलदी मेरे वफादार गधे, जलदी भाग। नही तो तेरे
मािलक को एक और टैकस अपना िसर देकर चुकाना पडेगा।’

मुलला नसरदीन का गधा बहुत ही होिशयार था। हर बात को अचछी तरह समझता था। उसके
कानो मे शहर के फाटक से आती हुई पहरेदारो के चीखने-िचललाने की आवाजे पड चुकी थी। वह
सडक की परवाह िकए िबना सरपट भागा चला जा रहा था, इतनी तेज रफतार से िक उसके
मािलक को अपने पैर ऊँचे उठाने पड रहे थे।

उसके
़ हाथ गधे की गदरन से िलपटे हुए थे। वह जी़़न
स े िचपका हुआ था। भारी आवाज से
भौकते हुए कुते उसके पीछे दौड रहे थे। मुिगरयो के चूजे भयभीत होकर िततर-िबतर होकर इधर-
उधर भागने लगे थे और सडक पर चलने वाली दीवारो से िचपटे अपने िसर िहलाते हुए उसे देख
रहे थे।
शहर के फाटको पर पहरेदार इस साहसी सवतंत िवचार वाले वयिकत की तलाश मे भीड छान रहे
ू रे से कानाफूसी कर रहे थे। ‘यह उतर तो केवल मुलला
थे। वयापारी मुसकुराते हुए एक-दस
नसरदीन ही दे सकता था।’

दोपहर होते-होते यह समाचार पूरे शहर मे फैल चुका था। वयापारी बाजार मे यह घटना अपने
गाहको को सुना रहे थे और वे दसू रो को। सुनकर हर वयिकत हँसकर कहने लगता, ‘ये शबद तो
मुलला नसरदीन ही कह सकता था।’

मुलला पहंच
ु ा अपने शहरः िमली वािलद के मौत की खबर

(िपछले बार आपने पढाः मुलला अपने गधे पर

मुलला नसरदीन का गधा बहुत ही होिशयार था। हर बात को अचछी तरह समझता था। उसके
कानो मे शहर के फाटक से आती हुई पहरेदारो के चीखने-िचललाने की आवाजे पड चुकी थी। वह
सडक की परवाह िकए िबना सरपट भागा चला जा रहा था, इतनी तेज रफतार से िक उसके
मािलक को अपने पैर ऊँचे उठाने पड रहे थे। उसके हाथ गधे की गदरन से िलपटे हुए थे। वह
जी़़ ़न
स े िचपका हुआ था। भारी आवाज से भौकते हुए कुते उसके पीछे दौड रहे थे। मुिगरयो
के चूजे भयभीत होकर िततर-िबतर होकर इधर-उधर भागने लगे थे और सडक पर चलने वाली
दीवारो से िचपटे अपने िसर िहलाते हुए उसे देख रहे थे।

......मुलला गधे पर भागता हुआ अपने शहर मे दािखल होता है।)

उसके आगे

मुलला अपने शहर मे

बुखारा मे मुलला नसरदीन को न तो अपने िरशतेदार िमले और न पुराने दोसत। उसे अपने िपता का
मकान भी नही िमला। वह मकान, जहा उसने जनम िलया था। न वह छायादार बगीचा ही िमला,
जहा सदी के मौसम मे पेडो की पीली-पीली पितया सरसराती हुई झूलती थी। जहा मिकखया
मुरझाते हुए फूलो के रस की अंितम बूँद चूसती हईु भनभनाया करती थी और िसंचाई के तालाब मे
झरना रहसयपूणर अंदाज मे बचचो को कभी खतम न होने वाली अनोखी कहािनया सुनाया करता
था। वह सथान अब ऊसर मैदान मे बदल गया था। उस पर बीच-बीच मे मलबे के ढेर लगे थे।
टू टी हुई दीवारे खडी थी। वहा मुलला नसरदीन को न तो एक िचिडया िदखाई दी और न ही एक
मकखी। केवल पतथरो के ढेर के नीचे से, जहा उसका पैर पड गया था, अचानक ही एक लंबी तेल
की धार उबल पडी थी और धूप मे हलकी चमक के साथ पतथरो के दस ू रे ढेर मे जा िछपी थी। वह
एक साप था; अतीत मे इनसान के छोडे हुए वीरान सथानो का एकमात और अकेला िनवासी।
मुलला नसरदीन कुछ देर तक नीची िनगाह िकए चुपचाप खडा रहा। पूरे बदन को कँपा देने वाली
खासी की आवाज सुनकर वह चौक पडा। उसने पीछे मुडकर देखा। परेशािनयो और गरीबो से
दोहरा एक बूढा उस बंजर धरती को लाघते हुए उसी ओर आ रहा था। मुलला नसरदीन ने उसे
रोककर कहा, ‘अससलाम वालेकुम बुजुगरवार, कया आप बता सकते है िक इस जमी़़़ पर

िकसका मकान था?’ ‘यहा जीनसाज शेर मुहममद का मकान था।’ बूढे ने उतर िदया, ‘मै उनसे
एक मुदत से पिरिचत था। शेर मुहममद सुपिसद मुलला नसरदीन के िपता थे। और ऐ
मुसािफ़ऱ़ , तुमने मुलला नसरदीन के बारे मे जरर बहुत कुछ सुना होगा।’ ‘हा, कुछ सुना
तो है। लेिकन आप यह बताइए िक मुलला नसरदीन के िपता जीनसाज शेर मुहममद और उनके
घरवाले कहा गए?’ ‘इतने जोर से मत बोलो मेरे बेटे। बुखारा मे हजा़ऱ़
जो ासूस है। अगर वे
हम लोगो की बातचीत सुन लेगे तो हम परेशािनयो मे पड जाएँगे।...हमारे शहर मे मुलला नसरदीन
का नाम लेने की सख्त मुमािनयत है। उसका नाम लेना ही जेल मे ठूँस िदए जाने के िलए काफी
है। मै तुमहे बताता हूँ िक शेर मुहममद का कया हुआ।’

बूढे ने खासते हुए कहना शुर िकया,‘यह घटना पुराने अमीर के जमाने की है। मुलला नसरदीन के
बुखारा से िनकल जाने के लगभग अठारह महीने के बाद बाजा़़़रमो े अफवाह फैली िक वह गैर -
कानूनी ढंग से चोरी-िछपे िफर बुखारा मे लौट आया है और अमीर का मजा़़़
उ डाने वाले गीत

िलख रहा है। यह अफवाह अमीर के महल तक भी पहुँच गई। िसपािहयो ने मुलला नसरदीन को
बहुत खोजा, लेिकन कामयाबी नही िमली। अमीर ने उसके िपता, दोनो भाइयो, चाचा और दरू तक
के िरशतेदारो और दोसतो की िगरफ‍तारी का हुकम दे िदया। साथ ही यह भी हुकम दे िदया िक उन
लोगो को तब तक यातानाएँ दी जाएँ जब तक िक वे नसरदीन का पता न बता दे। अललाह का
शुक है िक उसने उन लोगो को खामोश रहने और यातनाओं को सहने की ताकत दे दी। लेिकन
उसका िपता जीनसाज शेर मुहममद उन यातनाओं को सहन नही कर पाया। वह बीमार पड गया
और कुछ िदनो बाद मर गया। उसके िरशतेदारो और दोसत अमीर के गुससे से बचने के िलए
बुखारा छोडकर भाग गए। िकसी को पता नही िक वे कहा है?....

‘लेिकन उन पर जोर-जुलम कयो िकए गए?’मुलला नसरदीन ने ऊँची आवाज मे पूछा। उसकी आँखो
मे आँसू बह रहे थे। लेिकन बूढे ने उनहे नही देखा।

‘उनहे कयो सताया गया? मै अचछी तरह जानता हूँ िक मुलला नसरदीन उस समय बुखारा मे नही
था।’‘यह कौन कह सकता है?’ बूढे ने कहा, ‘मुलला नसरदीन की जब जहा मजी होती है, पहुँच
जाता है। हमारा बेिमसाल मुलला नसरदीन हर जगह है, और कही भी नही है।’ यह कहकर बूढा
खासते हुए आगे बढ गया। नसरदीन ने अपने दोनो हाथो मे अपना चेहरा िछपा िलया और गधे की
ओर बढने लगा। उसने अपनी बाहे गधे की गदरन मे डाल दी और बोला, ‘ऐ मेरे अचछे और सचचे
दोसत, तू देख रहा है मेरे पयारे लोगो मे से तेरे िसवा और कोई नही बचा। अब तू ही मेरी
आवारागदी मे मेरा एकमात साथी है।’गधा जैसे अपने मािलक का दुख समझ रहा था। वह
िबलकुल चुपचाप खडा रहा।

घंटे भर बाद मुलला नसरदीन अपने दुख पर काबू पा चुका था। उसके आँसू सूख चुके थे।

‘कोई बात नही,’गधे की पीठ पर धौल लगाते हुए वह िचललाया,‘कोई िचंता नही। बुखारा के लोग
मुझे अब भी याद करते है। िकसी-न-िकसी तरह हम कुछ दोसतो को खोज ही लेगे और अमीर के
बारे मे ऐसा गीत बनाएँगे-ऐसा गीत बनाएँगे िक वह गुससे से अपने तखत़ पर ही फट जाएगा और
उसकी गंदी आँते महल की दीवारो पर जा िगरेगी। चल मेरे वफादार गधे!आगे बढ।
मुलला के शहर पहंुचा टैकस अफसर

(िपछले बार आपने पढाः मुलला अपने शहर मे)

बुखारा मे मुलला नसरदीन को न तो अपने िरशतेदार िमले और न पुराने दोसत। उसे अपने िपता का
मकान भी नही िमला।.....मुलला नसरदीन कुछ देर तक नीची िनगाह िकए चुपचाप खडा रहा। पूरे
बदन को कँपा देने वाली खासी की आवाज सुनकर वह चौक पडा।...मुलला नसरदीन ने उसे
रोककर कहा, ‘अससलाम वालेकुम बुजुगरवार, कया आप बता सकते है िक इस जमी़़़ पर

िकसका मकान था?’ ‘यहा जीनसाज शेर मुहममद का मकान था।’ बूढे ने उतर िदया......‘मुलला
नसरदीन
़ के बुखारा से िनकल जाने के लगभग अठारह महीने के बाद बाजा़रम
़ ो े अफवाह
फैली िक वह गैर-कानूनी ढंग से चोरी-िछपे िफर बुखारा मे लौट आया है और अमीर का मजा़़़
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उडाने वाले गीत िलख रहा है।....अमीर ने उसके िपता, दोनो भाइयो, चाचा और दरू तक के
िरशतेदारो और दोसतो की िगरफ‍तारी का हुकम दे िदया। लेिकन उसका िपता जीनसाज शेर मुहममद
उन यातनाओं को सहन नही कर पाया। वह बीमार पड गया और कुछ िदनो बाद मर गया।......

.....मुलला यह सुनकर रोता है और िफर आगे बढ जाता है।)

उसके आगे..

मुलला के शहर पहंुचा टैकस अफसर

तीसरे पहर का सनाटा चारो और फैला हुआ था। धूल से भरी सडक के दोनो और के मकानो की
कचची दीवारो और बाडो से अलसायी-सी गमी उठ रही थी। पोछने से पहले ही पसीना मुलला
नसरदीन के चेहरे पर फैल जाता था।

बुखारा की िचरपिरिचत सडको, मिसजदो की मीनरो और कहवाखानो को उसने बडे पयार से


पहचाना। िपछले दस वषों मे बुखारा मे रती भर भी फकर नही आया था। रँगे हुए नाखूनवाले हाथो
से बुका उठाए एक औरत बडे सजीले ढंग से झुककर गहरे रंग के पानी मे पतली-सी सुराही डुबो
रही थी।

मुलला के सामने सवाल यह था िक खाना कहा से और कैसे िमले? उसने िपछले िदन से तीसरे बार
पटका अपने पेट पर कसकर, बाध िलया था। ‘कोई-न-कोई उपाय तो करना ही पडेगा मेरे
वफादार गधे।‘ उसने कहा, ‘हम यही रककर कोई उपाय सोचते है। सौभागय से यहा एक
कहवाखाना भी है।‘

लगाम ढीली करके उसने गधे को एक खूँटे के आसपास पडे ितपितया घास के टुकडो को चरने
के िलए छोड िदया और अपनी िखलअत का दामन िसकोडकर एक नहर के िकनारे बैठ गया।

अपने िवचारो मे डू बा मुलला नसुरदीन सोच रहा था- ‘बुखारा कयो आया? खाना खरीदने के िलए
मुझे आधे तंके का िसका भी कहा से िमलेगा? कया मै भूखा ही रहूँगा? उस कमबखत़ टैकस वसूल
करने वाले अफसर ने मेरी सारी रकम साफ कर दी। डाकुओं के बारे मे मुझसे बात करना िकतनी
बडी गुसताखी थी।’

तभी उसे वह टैकस अफसर िदखाई दे गया, जो उसकी बबादी का कारण था। वह घोडे पर सवार
कहवाखाने की ओर आ रहा था। दो िसपाही उसके अरबी घोडे की लगाम थामे आगे-आगे चल रहे
थे। उसके पास कतथई-भूरे रंग का बहुत ही खूबसूरत घोडा था। उसकी गहरे रंग की आँखो मे
बहुत ही शानदार चमक थी। गदरन सुराहीदार थी।

िसपािहयो ने बडे अदब से अपने मािलक को उतरने मे मदद दी। वह घोडे से उतरकर कहवाखाने
मे चला गया। कहवाखाने का मािलक उसे देखते ही घबरा उठा। िफर सवागत करते हुए उसे
रेशमी गदो की ओर ले गया।

उसके बैठ जाने के बाद मािलक ने बेहतरीन कहवे का एक बिढया पयाला बनाया और चीनी
कारीिगरी के एक नाजुक िगलास मे डालकर अपने मेहमान को दे िदया। ‘जरा देखो तो, मेरी
कमाई पर इसकी िकतनी शानदार खा़़़ िहतरदारी ो रही है ! मुलला नसरदीन सोच रहा था।

टैकस अफसर ने डटकर कहवा िपया और वही गदो पर लुढक कर सो गया। उसके खराटो से
कहवाखाना भर गया। अफसर की नीद मे खलल न पडे, इस डर से कहवाखाने मे बैठ फुस-
फुसाकर बाते करने लगे। दोनो िसपाही उसके दोनो और बैठ गए और पितयो के चौरो मे मिकखया
उडाने लगे।

कुछ देर बाद, जब उनहे िवशास हो गया िक उनका मािलक गहरी नीद मे सो गया है तो उनहोने
आँखो से इशारा िकया। उठकर घोडे की लगाम खोल दी और उसके सामने घास का एक गटर
डाल िदया। वे नािरयल का हुका लेकर कहवाखाने के अँधेरे िहससे की ओर चले गए। थोडी देर
बाद मुलला नसरदीन की नाक के नथुनो से गाजे की मीठी-मीठी गंध टकराई। िसपाही गाजा पीकर
मदहोश हो चुके थे।

मुलला ने बेचा टैकस अफसर का घोडा

…..सुबह शहर के फाटक की घटनाओं की याद आते ही वह भयभीत होकर सोचने लगा िक कही
ये िसपाही उसे पहचान न ले। उसने वहा से जाने का इरादा िकया, लेिकन भूख से उसका बुरा
हाल था। वह मन-ही-मन कहने लगा, ऐ तकदीर िलखने वाले मुलला नसुरदीन की मदद करे।
िकसी तरह आधा तंका िदलवा दे, तािक वह अपने पेट की आग बुझा सके।

तभी िकसी ने उसे पुकारा, ‘अरे तुम हा, हा तुम ही जो वहा बैठे हो।’

मुलला नसरदीन ने पलटकर देखा। सडक पर एक सजी हुई गाडी खडी थी। बडा-सा साफा बाधे
और कीमतो िखलअत पहने एक आदमी गाडी के पदों से बाहर झाक रहा था।

इससे पहले िक वह अजनबी कुछ कहता, मुलला नसरदीन समझ गया िक खुदा ने उसकी दुआ सुन
ली है और हमेशा की तरह उसे मुसीबत मे देखकर उस पर करम की नजर की है।
अजनबी ने खूबसूरत अरबी घोडे को देखते हुए उसकी पशंसा करते हुए अकडकर कहा, ‘मुझे यह
घोडा पसंद है। बोल, कया यह घोडा िबकाऊ है?’मुलला नसरदीन ने बात बनाते हुए कहा, ‘दुिनया
मे कोई भी ऐसा घोडा नही, िजसे बेचा न जा सके।’

मुलला नसररदीन तुरत ं भाप गया था िक यह रईस कया कहना चाहता है। वह इससे आगे की बात
भी समझ चुका था। अब वह खुदा से यही दुआ कर रहा था िक कोई बेवकूफ मकखी टैकस
अफसर की गदरन या नाक पर कूदकर उसे जगा न दे। िसपािहयो की उसे अिधक िचंता नही थी।
कहवाखाने के अँधेरे िहससे से आने वाले गहरे अँधेरे से सपष था िक वे दोनो नशे मे धुत पडे
होगे।

अजनबी रईस ने बुजुगों जैसे गंभीर लहजे मे कहा, ‘तुमहे यह पता होना चािहए िक इस फटी
िखलअत को पहनकर ऐसे शानदार घोडे पर सवार होना तुमहे शोभा नही देता। यह बात तुमहारे
िलए खतरनाक भी सािबत हो सकती है, कयोिक हर कोई यह सोचेगा िक इस िभखमंगे को इतना
शानदार घोडा कहा से िमला? यह भी हो सकता है िक तुमहे जेल मे डाल िदया जाए’।

मुलला नसरदीन ने बडी िवनमता से कहा, ‘आप सही फरमा रहे है, मेरे आका। सचमुच यह घोडा
मेरे जैसो के िलए जररत से जयादा बिढया है। इस फटी िखलअत मे मै िजंदगी भर गधे पर ही
चढता रहा हूँ। मै शानदार घोडे पर सवारी करने की िहममत ही नही कर सकता।’

‘यह ठीक है िक तुम गरीब हो। लेिकन घमंड ने तुमहे अंधा नही बनाया है। नाचीज गरीब को
िवनमता ही शोभा देता है, कयोिक खूबसूरत फूल बादाम के शानदार पेडो पर ही अचछे लगते है,
मैदान की कटीली झािडयो पर नही। बताओ, कया तुमहे यह थैली चािहए? इसमे चादी के पूरे तीन
सौ तंके है।’, अजनबी रईस ने कहा।

मुलला नसरदीन िचललाया, ‘चािहए। जरर चािहए। चादी के तीन सौ तंके लेने से भला कौन
इनकार करेगा? अरे, यह तो ऐसे ही हुआ जैसा िकसी को थैली सडक पर पडी िमल गई हो।’

अजनबी ने जानकारो की तरह मुसकाराते हुए कहा, ‘लगता है तुमहे सडक पर कोई दस ू री चीज
िमली है। मै यह रकम उस चीज से बदलने को तैयार हूँ,’ जो तुमहे सडक पर िमली है। यह लो
तीन सौ तंके।’

उसने थैली मुलला नसरदीन को सौप दी और अपने नौकर को इशारा िकया। उसके चेचक के
दागो से भरे चेहरे की मुसकान और आँखो के काइयाफ को देखते ही मुलला नसरदीन समझ गया
िक यह नौकर भी उतना ही बडा मकार है, िजतना बडा मकार इसका मािलक है।

एक ही सडक पर तीन-तीन मकारो का एक साथ होना ठीक नही है, उसने मन-ही-मन िनशय
िकया। इनमे से कम-से-कम एक जरर ही फालतू है। समय आ गया है िक यहा से नौ-दो गयारह
हो जाऊँ।

अजनबी की उदारता की पशंसा करते हुए मुलला नसरदीन झपटकर अपने गधे पर सवार हो गया
और उसनए इतने जोर से एड लगाई िक आलसी होते हुए भी गधा ढुलकी मारने लगा।
थोडी दरू जाकर मुलला नसरदीन ने मुडकर देखा। नौकर अरबी घोडे को गाडी से बाध रहा था।
वह तेजी से आगे बढ गया।…

मुलला की मुलाकात रईस के िसपाही से

लेिकन थोडी दरू जाकर उसने िफर पीछे मुडकर देखा। वह अजनबी रईस और टैकस अफसर
एक-दसू रे से गुथे हुए थे और एक-दस
ू रे की दािढया नोच रहे थे। िसपाही उनहे अलग करने की
बेकार कोिशश कर रहे थे।

‘अकलमंद लोग दस ू रो के झगडो मे िदलचसपी नही लेते।’ मुलला नसरदीन ने मन-ही-मन कहा
और गली-कूचो मे चकर काटता हुआ काफी दरू िनकल गया।

जब उसे िवशास हो गया िक अब वह पीछा करने वालो से बच गया है, उसने गधे की लगाम खीची,
‘ठहर जा, अब कोई जलदी नही है।’

लेिकन तब तक देर हो चुकी थी। एक घुडसवार तेजी से सडक पर आ गया था। यह वही चेचक
के दागो से भरे चेहरे वाला नौकर था। वह उसी घोडे पर सवार था। अपने पैर झुलाते हुए वह
तेजी से मुलला नसरदीन की बगल से गुजर गया लेिकन अचानक घोडे को सडक पर आडा खडा
करके रक गया।

मुलला नसरदीन ने बडी िवनमता से कहा, ‘ओ भले मानस, मुझे आगे जान दे। ऐसी तंग सडको पर
लोगो को सीधे-सीधे सवारी करनी चािहए। आडे-आडे नही।’ नौकर ने हँसी के साथ कहा, ‘अब
तुम जेल जाने से नही बच सकते। तुमहे मालूम है, घोडे के मािलक उस अफसर ने मेरे मािलक की
आधी दाढी नोच डाली है। मेरे मािलक ने उसकी नाक से खून िनकाल िदया है। कुल तुमहे अमीर
की अदालत मे पेश िकया जाएगा।’

मुलला नसरदीन ने आशयर से पूछा, ‘कया कह रहे हो तुम? ऐसे इजजतदार लोगो की इस तरह
झगडने की वजह कया है? तुमने मुझे रोका कयो है? मै तो उनके झगडे का फैसला कर नही
सकता। अपने आप करने दो उनहे फैसला।’

‘खामोश!’ नौकर िचललाया, ‘वापस चल। तुझे घोडे के िलए जवाब देना होगा।’

‘कौन-सा घोडा? तुम गलत कह रहे हो’, मुलला नसरदीन बोला, ‘खुदा गवा है, इस मामले का घोडे
से कोई सरोकार नही है। तुमहारे दिरयािदल मािलक ने एक गरीब आदमी की मदद करने के इरादे
से मुझसे पूछा िक कया मे चादी के तीन सौ तंके लेने पसंद करँगा। मैने उतर िदया, ‘हा, मै यह
रकम लेना पसंद करँगा। तब उसने मुझे तीन सौ तंके दे िदए। अललाह उसे लंबी िजदंगी दे।
रपया देने से पहले उसने यह देखने के िलए िक मै इस इनाम का हकदार हूँ भी या नही, मुझ
नाचीज मे िवनमता है या नही, उसने कहा था- ‘मै नही जानना चाहता िक यह घोडा िकसका है और
कहा से आया है?’

चाबुक से अपनी पीठ खुजाते हुए नौकर सुनता रहा।‘देखा तुमने , वह यह जानना चाहता था िक
कही मै झूठे घमंड मे अपने को घोडे का मािलक तो नही बता बैठा। लेिकन मै चुप रहा। कहने
लगा, ‘मेरे जैसो के िलए यह थोडा जररत से जयादा बिढया है।’ मैने उसकी बात मान ली। इससे
वह और भी खुश होकर बोला, ‘मै सडक पर ऐसी चीज पा गया हूँ, िजसके बदले मे मुझे चादी के
िसके िमल सकते है।’ इसका इशारा मेरे इसलाम मे मेरे िवशास की ओर था।...इसके बाद उसने
मुझे इनाम िदया। इस नेक काम से वह कुरान शरीफ मे बताए गए बिहशत के रासते मे पडने वाले
उस पुल पर से अपनी याता और अिधक आसान बनाना चाहता था, जो बाल से भी अिधक बारीक
है. तलवार की धर से भी जयादा तेज है. इबादत करते समय मै अललाह से तुमहारे मािलक के इस
नेक काम का हवाला देते हुए दुआ करँगा िक वह उस पुल पर बाड लगवा दे।’

मुलला नसरदीन के भाषण के समापत हो जाने पर परेशान कर डालने वाली काइया हँसी के साथ
नौकर ने कहा, ‘तुम ठीक कहते हो। मेरे मािलक के साथ तुमहारी जो बातचीत हुई थी उसका
मतलब इतना नेक है, मै पहले समझ नही पाया था। लेिकन, कयोिक उस दस ू री दुिनया के रासते के
पुल को पार करने मे तुमने मेरे मािलक की मदद करने का िनशय कर िलया है तो अिधक
िहफाजत तभी होगी जब पुल के दोनो और बाड लग जाए। मै भी बडी खुशी से अललाह से दुआ
करँगा िक मेरे मािलक के िलए दस ू री ओर की बाड लगा दे।’

‘तो मागो दुआ। तुमहे रोकता कौन?’ मुलला नसरदीन ने कहा, ‘बिलक ऐसा करना तो तुमहारा फजर
है। कया कुरान मे िहदायत नही है िक गुलामो और नौकरो को अपने मािलको के िलए रोजाना दुआ
मागनी चािहए और इसके िलए कोई खास इनाम अलग से नही मागना चािहए?’
मूखर िसपाही से मुलला ने जान बचाई

घोडे को एड लगाकर मुलला नसरदीन को दीवार की ओर दबाते हुए नौकर ने सख्ती से कहा,
‘अपना गधा वापस लौटा। चल, जलदी कर। मेरा जयादा वक्त बबाद मत कर।’

मुलला नसरदीन ने उसे बीच मे ही टोककर कहा, ‘ठहरो, मुझे बात तो खतम कर लेने दो मेरे भाई।
मै तीन सौ तंको के िहसाब से उतने ही लफजो की दुआ काफी रहेगी। मेरी ओर की बाड कुछ
छोटी और पतली हो जाएगी। जहा तुमहारा संबध ं है तुम पचास लफजो की दुआ मागना। सब कुछ
जानने वाला अललाह इतनी ही लकडी से तुमहारी ओर भी बाड लगा देगा।’

‘कयो? मेरी ओर की बाड तुमहारी बाड का पाचवा िहससा ही कयो हो?’

‘वह सबसे जयादा खतरनाक जगह पर जो बनेगी।’

‘नही, मै ऐसी छोटी बाडो के लायक नही हूँ। इसका मतलब तो यह हुआ िक पुल का कुछ िहससा
िबना बाड का रह जाएगा। मेरे मािलक के िलए इससे जो खतरा पैदा होगा, मै तो उसे सोचकर ही
काप जाता हूँ। मेरी राय मे तो हम दोनो ही डेढ-डेढ सौ लफजो की दुआ मागे तािक पुल के दोनो
और एक ही लंबाई की बाडं हो। अगर तुम राजी नही होते तो इसका मतलब यह होगा िक तुम मेरे
मािलक का बुरा चाहते हो। यह चाहते हो िक वह पुल पर से िगर जाएँ। तब मै मदद मागूँगा और
तुम जेलखाने का सबसे पास का रासता पकडोगे।’

‘तुम जो कुछ कह रहे हो उससे लगता है िक पतली टहिनयो की बाड लगा देना ही तुमहारे िलए
काफी रहेगा। कया तुम समझ नही रहे िक बाड एक ओर मोटी और मजबूत होनी चािहए, तािक
अगर तुमहारे मािलक के पैर डगमगाएँ तो पकडने के िलए कुछ तो रहे।’ मुलला नसरदीन ने गुससे
से कहा। उसे लग रहा था िक रपयो की थैली पटके से िखसक रही है।
नौकर ने खुशी से िचललाते हुए कहा, ‘सचमुच तुमने ईमान और इंसाफ की बात कही है। बाड को
मेरी ओर से मजबूत होने दो। मै दो सौ लफजो की दुआ मागने मे आनाकानी नही करँगा।’

‘तुम शायद तीन सौ लफजो की दुआ मागना चाहोगे? मुलला नसरदीन ने जहरीली आवाज मे कहा?’

वे दोनो अलग हुए तो मुलला नसरदीन की थ़ैली का आधा वजन कम हो चुका था। उन लोगो ने
तय िकया था िक मािलक के िलए बिहशत के रासते वाले पुल के दोनो और बराबर-बराबर मजबूत
और मोटी बाड लगायी जाए।

‘अलिवदा, मुसािफर। हम दोनो ने आज बडे पुणय का काम िकया है।’ नौकर ने कहा। ‘अलिवदा,
वफदार और भले नौकर। अपने मािलक की बाड के िलए तुमहे िकतनी िचंता है! साथ ही मै यह
और कहे देता हूँ िक तुम बहुत जलद मुलला नसरदीन की टकर के हो जाओगे।’

नौकर के कान खडे हो गए, ‘तुमने उसका िजक कयो िकया?’‘कुछ नही, यो ही। बस मुझे ऐसा
लगा, मुलला नसरदीन बोला और सोचने लगा, ‘यह आदमी िबलकुल सीधा-सादा नही है।’

‘शायद उससे तुमहारा कोई दरू का िरशता है। शायद तुम उसके खानदान के िकसी आदमी को
जानते हो?’‘नही, मै उससे कभी नही िमला। और न मै उसके िकसी िरशतेदार को ही जानता हूँ।’

नौकर ने जीऩ पर बैठे-बैठे थोडा सा झुककर कहा, ‘सुनो, मै तुमहे एक राज की बात बताऊँ। मै
उसका िरशतेदार हूँ। असल मे मै उसका चचेरा भाई हूँ। हम दोनो बचपन मे साथ-साथ रहे थे।’

लेिकन मुलला नसरदीन खामोश ही रहा। चालबाज नौकर ने कहा, ‘अमीर भी िकतना बेरहम है।
बुखारा के सब वजीर बेवकूफ है। और हमारे शहरवाले अमीर भी उललू है। यह तो पूरे यकीन के
साथ नही कहा जा सकता िक अललाह है भी या नही।’

मुलला नसरदीन की जुबान पर एक करारा उतर आया, लेिकन उसने मुँह नही खोला। नौकर ने
अतयािधक िनराश होकर एक गाली दी और घोडे के एड लगाकर दो छलाग मे ही गली का मोड पार
करके गायब हो गया।

‘अचछा तो मुझे एक िरशतेदार िमल गया।’ मुलला नसरदीन मुसकुराया। उस बूढे ने झूठ नही कहा
था। बुखारा मे जासूस मकखी-मचछरो की तरह भरे पडे है। यहा चालाकी से काम लेना ही ठीक
रहेगा। पुरानी कहावत है- कुसूरवार जबान िसर के साथ काटी जाती है।

मुलला ने लगाई पैसो की जुगाड

शहर के दसू रे छोर पर पहुँचकर मुलला नसरदीन रक गया। अपने गधे को एक कहवाखाने के
मािलक को सौपकर खुद नानबाई की दुकान मे चला गया। वहा बहुत भीड थी। धुआँ और खाना
पकाने की महक आ रही थी। चूले गमर थे और कमर तक नंगे बाविचरयो की पसीने से तर पीठो पर
चूलो की लपटो की चमक पड रही थी। पुलाव पक रहा था। सीख कबाब भुन रहे थे। बैलो का
गोशत उबल रहा था। पयाज, काली िमचर, और भेड की दुम की चबी और गोशत भरे समोसे तले जा
रहे थे।

बडी मुिशकल से मुलला नसरदीन ने बैठने के िलए जगह तलाश की। दब-िपसकर वह जहा बैठा,
वह जगह इतनी तंग थी िक िजन लोगो की पीठ को धका देकर वह बैठा, वे जोऱ से गुरा उठे।
लेिकन िकसी ने कुछ कहा नही। मुलला नसरदीन ने तीन पयाले कीमा, तीन पलेट चावल और दो
दजरन समोसे डकार िलए।

खाना खाकर वह दरवाजे की ओर बढने लगा। पैर घसीटते हुए वह उस कहवाखाने तक पहुँचा,
जहा अपना गधा छोड आया था। उसने कहवा मंगवाया और गदो पर आराम से पसर गया। उसकी
पलके झुकने लगी। उसके िदमाग मे धीरे-धीरे खू़़
़बखसूरत याल तैरने लगे।

मेरे पास इस वकत़ अचछी-खासी रकम है, घुमकडी छोडने का वकत आ गया है। कया मै एक सुंदर
और मेहरबान बीवी हािसल नही कर सकता? कया मेरे भी एक बेटा नही हो सकता? पैगंबर की
कसम, वह ननहा और शोर मचानेवाला बचचा बडा होकर मशहूर शैतान िनकलेगा। मै अपनी सारी
ू ा। मुझे जीनसाज या कुमहार की दुकान खरीद लेनी
अकलमंदी और तजुबे उसमे उडेल दँग
चािहए।

वह िहसाब लगाने लगा, अचछी दुकान की कीमत कम-से-कम तीन सौ तंके होगी। लेिकन मेरे पास
है कुल डेढ सौ तंके। अललाह उस डाकू को अंधा कर दे। मुझसे वही रकम छीन ले गया,
िजसकी िकसी काम को शुर करने के िलए मुझे जररत थी।

‘बीस तंके’ अचानक एक आवाज आई। और िफर ताबे की थाली मे पासे िगरने की आवाज सुनाई
दी।

बरसाती के िकनारे, जानवर बाधने के खूँटो के िबलकुल पास कुछ लोग घे़़़रबा नाए बैठे थे।
कहवाखाने का मािलक उनके पीछे खडा था। जुआ, कुहिनयो के सहारे उठते हुए मुलला नसरदीन
ने भाप िलया। मै भी देखूँ। जुआ तो नही खेलूँगा। ऐसा बेवकूफ नही हूँ। लेिकन कोई अकलमंद
आदमी बेवकूफो को देखे कयो नही?’ उठकर वह जुआिरयो के पास चला गया।

‘बेवकूफ लोग,’ कहवाखा़


़ ने े मािलक के कान मे उसने फुसफुसाकर कहा -मुनाफे के लालच
़क
मे अपना आिख़़़
रि ी स का भी गँवा देते है। लेिकन उस लाल बालो वाले जुआरी की तकदीर
देखो, लगातार चौथी बार जीता है। अरे, यह तो पाचवी बार भी जीत गया। इसने दौलत का झूठा
सपना जुए की ओर खीच रखा है। िफर छठी बार जीत गया? ऐसी िकसमत मैने कभी नही देखी।
अगर यह सातवी बार जीता तो मै दाव लगाऊँगा।

काश! मै अमीर होता तो न जाने कब का जुआ बंद करा चुका होता।’ लाल बालो वाले ने पासा
फेका। वह सातवी बार िफर जीत गया।

मुलला नसरदीन िखलािडयो को हटाते हुए घेरे मे जा बैठा। उसने भागय शाली िवजेता के पासे ले
िलए। उनहे उलट पुलटकर अनुभवी आँखो से देखते हुए बोला, ‘मै तुमहारे साथ खेलना चाहता
हूँ।’
‘िकतनी रकम?’ लाल बालो वाले ने भराए गले से पूछा। वह जयादा-से-जयादा जीत लेने के िलए
उतावला हो रहा था।

मुलला नसरदीन ने खेला जुआ,ं पलटी िकसमत

मुलला नसरदीन ने अपना बटुआ िनकाला। जररत के िलए पचचीस तंके छोडकर बाकी िनकाल
िलए। ताबे के थाल मे चादी के िसके खनखनाकर िगरे और चमकने लगे। ऊँचे दावो का खेल
शुर हो गया।

लाल बालो वाले ने पासे उठा िलए। बहुत देर तक उनहे खनखनाता रहा, जैसे उनहे फेकते हुए
िझझक
़ रहा हो। सब लोग सास रोके देख रहे थे। आिख़रल़ ाल बालो वाले ने पासे फेके।
िखलाडी गदरन बढाकर देखने लगे और िफर एक साथ ही पीछे की ओर लुढककर बैठ गए। लाल
बालो वाला पीला पड गया। उसके िभंचे हुए दातो से कराह िनकल गई। जुआरी हार गया था।

अपने पर भरोसा करने के िलए तकरीद ने मुलला नसरदीन को सबक िसखाने का इरादा कर
िलया। इसके िलए उसने चुना उसके गधे, या कहो गधे की दुम को। गधा जुआिरयो की ओर
पलटा और उसने दुम घुमाई। दुम सीधी उसके मािलक के हाथ से जा टकराई। पासे हाथ से
िफसल गए। लाल बालो वाला जुआरी खुशी से भरायी चीख के साथ जलदी से थालपर लेट गया
और दाव पर लगी रकम अपने बदन से ढक ली।

मुलला नसरदीन की फटी-फटी आँखो के सामने दुिनया ढहती-सी नजर आ रही थी। अचानक वह
उछला। उसने एक डंडा उठा िलया और खूँटे के पास खदेडते हुए गधे को पीटने लगा।

‘कमबखत़, बदबूदार जानवर, सभी िजंदा जानवरो के िलए लानत।’ मुलला नसरदीन िचलला रहा
था, कया यही काफी़़़ ़़़़ न ह ी थ ा ि क अ पनेमािलककेप?ैसकया ेसेजुयह
आखेपैलसे ा
हारना भी जररी था। बदमाश, तेरी खाल खीच ली जाए तेरे रासते मे अललाह गडडा कर दे, तािक
तू िगरे और तेरे पैर टू ट जाएँ। न जाने तू कब मरेगा? मुझे तेरा बदनुमा चेहरा देखने से कब छुटी
िमलेगी?’

गधा
़ रेकने लगा। जुआरी िखलिखलाकर हँसने और िचललाने लगे। सबसे जयादा जो़़रस े लाल
बालो वाला जुआरी िचललाया। उसे अपनी खुशिकसमती पर पका यकीन हो गया था। थके हाफते
हुए मुलला नसरदीन ने डंडा फेक िदया तो लाल बालो वाले ने कहा, ‘आओ, िफर खेल लो। दो-चार
दाव और लग जाएँ। तुमहारे पास अभी पचचीस तंके तो है ही।’

यह कहकर उसने बाया पैर फैला िदया और मुलला नसरदीन के पित उपेका पकट करते हुए उसे
िहलाने लगा।

‘हा-हा, कयो नही।’ मुलला नसरदीन ने कहा। वह सोच रहा था-जब सवा सौ तंके चले गए तो अब
बाकी पचचीस का ही कया होगा? उसने लापरवाही से पासे फेके और जीत गया। हारी हुई रकम
थालपर फेकते हुए लाल बालो वाले ने कहा, ‘पूरी रकम।’ मुलला नसरदीन िफर जीत गया। लाल
बालो को िवशास नही हो रहा था िक िकसमत पलट गई। ‘पूरी रकम,’ उसने िफर कहा। उसने
लगातार सात बार यही कहा और हर बार हारता गया।
थाल रपयो से भर चुका था। जुआरी खामोश बैठे थे। लाल बालो वाला िचललाया, ‘अगर शैतान
ही तुमहारी मदद कर रहा हो तो बात दसू री है। वरना तुम हर बार जीत नही सकते।
कभी तो तुम हारोगे ही। थाल मे तुमहारे सोलह सौ तंके है। लगाओगे िफऱ एक बार पूरी रकम?
कल मै इस रकम से अपनी दुकान के िलए माल खरीदने वाला था। तो इसे भी दाव पर लगाता
हूँ।’

उसने सोने के िसको, ितलले और तुमानो से भरी एक छोटी सी थैली िनकाली। मुलला नसरदीन
उतावली भरी आवाज मे िचललाया, ‘अपना सोना इस थाल मे उडेल दे।’

इस मे े ऐसे भारी दाव देखे नही गए थे। मािलक उबलती हुई केितलयो को भूल
़ कहवाखा़़न
गया। जुआिरयो की सासे लंबी-लंबी चलने लगी। लाल बालो वाले ने पासे फेके और आँखे मूँद
ली। पास देखने मे उसे डर लग रहा था।

‘गयारह’ सब एक साथ िचलला उठे। मुलला नसरदीन अपने-आपको करीब-करीब हारा हुआ
समझने लगा। अब केवल दो छके यानी बारह काने ही उसे बचा सकते थे। अपनी खुशी को
िछपाए िबना लाल बालो वाला भी दोहराने लगा-गयारह-गयारह काने। देखो भई, मेरे गयारह है। तुम
हार गए, हार गए-हार गए।’

मुलला नसरदीन का जैसे सारा बदन ठंडा पड गया। उसने पास उठाए और फेकने की तैयारी
करने लगा। िफर अचानक उसने हाथ रोक िलया।

‘इधर पलट।’ उसने अपने गधे से कहा, ‘तू तीन काने पर हार गया था।’ ले, अब गयारह काने
पर जीने की कोिशश कर। नही तो मै तुझे इसी वकत कसाई के यहा ले चलूँगा।’

बाएँ हाथ से गधे की दुम पकडे-पकडे उसने दाएँ हाथ से गधे को ठोका। लोगो की ऊँची-ऊँची
आवाजो से कहवाखाना िहल उठा। मािलक कलेजा थामकर बैठ गया। यह तनाव उसकी बरदाशत
से बाहर था।

‘यह लो-एक-दो।’

पासो पर दो छके थे। लाल बालो वाले जुआरी की जैसे आँखे बाहर िनकल पडी और उसके सूखे
सफेद चेहरे पर काच की तरह जडी रह गई। वह हौले से उठा और रोता, डगमगाता चला गया।
मुलला नसरदीन ने जीती हुई दौलत को थैलो मे भर िलया। गधे को गले लगाया, उसका मुँह चूमा
और बिढया मालपुए िखलाए। वह होिशयार जानवर हैरान था िक अभी कुछ िमनट पहले ही उसके
साथ िबलकुल िवपरीत वयवहार हुआ था।

मुलला नसरदीन के खयाली पुलाव

अकलमंदी से भरे इस उसूल को याद करके िक उन लोगो से दरू रहना चािहए, जो यह जानते है
िक तुमहारा रपया कहा रखा है, मुलला नसरदीन उस कहवाखाने पर नही रका और फौरन बाजार
की ओर बढ गया।

बीच-बीच मे वह मुडकर यह देखता जाता था िक कोई उसका पीछा तो नही कर रहा है, कयोिक
जुआिरयो और कहवाखाने के मािलक के चेहरो पर उनहे सजजनता िदखाई नही दी थी। अब वह
तीन-तीन कारखाने खरीद सकता था। उसने यही िनशय कर िलया।

मै चार दुकाने खरीदँग


ू ा। एक कुमहारा की, एक जीनसाज, की, एक दजी को और एक मोची की।
हर दुकान मे दो-दो कारीगर रखूँगा। मेरा काम केवल रपया वसूल करना होगा। दो साल मे मै
रईस बन जाऊँगा। ऐसा मकान खरीदँग ू ा, िजसके बाग मे फववारे होगे। हर जगह सोने के िपंजरे
लटकाऊँगा। उनमे गाने वाली िचिडया रहा करेगी और दो-शायद तीन बीिवया भी रखूँगा। मेरी हर
बीवी के तीन-तीन बेटे होगे।
ऐसे ही सुनहरे िवचारो की नदी मे डू बता-उतराता वह गधे पर बैठा चला जा रहा था।

अचानक गधे ने लगाम ढोली पाकर मािलक के िवचारो मे खोये रहने का लाभ उठाया। जैसे ही वह
छोटे से पुल के पास पहुँचा, अनय गधो की तरह सीधे पुल पर चलने की अपेका उसने एक ओर को
थोडा-सा दौडकर खाई मे पार छलाग लगा दी।

और जब मेरे बेटे बडे हो जाएँगे तो मै उनहे एक साथ बुलाकर उनसे कहूँगा-मुलला नसरदीन के
िवचार दौड रहे थे िक अचानक वह सोचने लगा- मै हवा मे कयो उड रहा हूँ। कया अललाह ने मुझ
फिरशता बनाकर मेरे पंख लगा िदए है?

दस
ू रे ही पल उसे इतने तारे िदखाई िदए िक वह समझ गया िक उसके एक भी पंख नही है। गुलेल
के ढेले की तरह वह जी़़़
स े लगभग दस हाथ उछला और सडक पर जा िगरा।

जब वह कराहते हुए उठा तो दोसताना ढंग से कान खडे िकए उसका गधा उसके पास आ खडा
प़़
हुआ। उसके चेहरे पर भोलापन था। लगता था जैसे वह िफर से जी़न र बैठने की दावत दे
रहा हो।

कोध से कापती आवाज मे मुलला नसरदीन िचललाया, ‘अरे तू, तुझे मेरे ही नही, मेरे बाप-दादा के
भी गुनाहो की सजा के बदले भेजा गया है। इसलामी इनसाफ के अनुसार िकसी भी इनसान को
केवल अपने गुनाहो के िलए इतनी सखत़ सजा नही िमल सकती। अबे झीगुर और लकडबगघे की
औलाद।’

लेिकन एक अधटू टी दीवार के साये मे कुछ दरू बैठे लोगो की भीड को देखकर वह एकदम चुप हो
गया। गािलया उसके होठो मे ही रह गई। उसे खयाल आया िक जो आदमी ऐसे मजा़़़़ ़़
िकया
और बेइजजती की हालत मे जमीन पर जा पडा हो और लोग उसे देख रहे हो, उसे खुद हँसना
चािहए। वह उन आदिमयो की ओर आँख मारकर अपने सफेद दात िदखाते हुए हँसने लगा-

‘वाह, मैने िकतनी बिढया उडान भरी!’ उसने हँसी की आवाज मे जोर से कहा, ‘बताओ न, मैने
िकतनी कलाबािजया खाई?’ मुझे खुद तक को िगनने का वकत़ िमला नही। अरे शैतान-! हँसते हुए
उसने गधे को थपथपाया। हालािक जी चाह रहा था िक उसकी डटकर मरममत करे। लेिकन
हँसते हुए कहने लगा, ‘यह जानवर ही ऐसा है, इसे ऐसी ही शरारते सूझती रहती है। मेरी नजरे
दसू री और घूमी नही िक इसे कोई-न-कोई शरारत सूझी।’
गरीबो का मसीहा बना मुलला

मुलला नसरदीन खुलकर हँसने लगा। लेिकन उसे यह देखकर बडी हैरानी हुई िक उसकी हँसी मे
कोई भी शािमल नही हुआ। वे लोग िसर झुकाए, गमगीन चेहरे िलए खामोश बैठे रहे। उनकी औरते
गोद मे बचचे िलए चुपचाप रोती रही।

‘जरर कुछ गडबड है!’ उसने सोचा और उन लोगो की ओर चल िदया। उसने सफेद बालो और
सूखे चेहरे वाले एक बूढे से पूछा, ‘कया हुआ है बुजुगरवार! बताइए ना? मुझे न मुसकान िदखाई दे रही
है और न हँसी ही सुनाई दे रही है। ये औरते कयो रो रही है? इस गमी मे आप धूल भरी सडक पर
कयो बैठे है? कया यह अचछा न होता िक आप लोग अपने घरो की ठंडी छाह मे आराम करते?’

‘घरो मे बैठना उनही के िलए अचछा है िजनके पास घर हो। बूढे ने दुःख भरी आवाज मे कहा, ‘ऐ
मुसािफ़ऱ़ , मुझसे मत पूछ। हमारी तकलीफे बहुत ज‍यादा है। तू िकसी भी तरह हमारी
मदद नही कर सकता। रही मेरी बात, सो मै बूढा हूँ। अललाह से दुआ माग रहा हूँ िक मुझे जलद
उठा ले।’

‘आप ऐसी बाते कयो कर रहे है?’ मु़लला नसरदीन ने िझ़ड


़ह कते ुए कहा , ‘मदों को इस तरह
नही सोचना चािहए। अपनी परेशानी मुझे बताइए। मेरी गरीबो जैसी शकल पर मत जाइए। कौन
जानता है िक मै आपकी कोई मदद कर सकूँ।’

मेरी कहानी बहुत छोटी है। अभी िसफर एक घंटे पहले सूद़खोर जाफर अमीर दो िसपािहयो के
साथ हमारी गली से गुजरा। मुझ पर उसका कजर है। रकम चुकाने की कल आिख़रत ़़
ी ारीख
है। उनहोने मुझे घर से िनकाल िदया, कल वह मेरी सारी जायदाद, घर, बगीचा, ढोर-डंगर, अंगूर
की बेले-सब कुछ बेच देगा। बूढे की आँखे आँसुओं से तर हो गई। उसकी आवाज कापने लगी।

‘कया आप पर बहुत कजर है?’ मुलला नसरदीन ने पूछा।

‘मुझे उसे ढाई सौ तंके देने है।’

‘ढाई सौ तंके?’ मुलला नसरदीन के मुँह से िनकला, ‘ढाई सौ तंके की मामूली सी रकम के िलए भी
भला कोई इनसान मरना चाहेगा? आप जयादा अफसोस न करे।’

यह कहकर वह गधे की ओर पलटा और जी़़़


स े थैले खोलने लगा।

‘मेरे बुजुगर दोसत, ये रहे ढाई सौ तंके। उस सूदखोर को वापस कर दीिजए और लात मारकर घर
से िनकाल दीिजए। और िफर िजंदगी के बाकी िदन चैन से गुजािरए।’ चादी के िसको को
खनखनाहट सुनकर उस पूरे झुंड मे जान सी पड गई।’ बूढा आँखो मे हैरानी, अहसान और आँसू
िलए मुलला नसरदीन की ओर देखता रह गया।

‘देखा आपने ...इस पर भी आप अपनी परेशानी मुझे बता नही रहे थे।’ मुलला नसरदीन ने आिखरी
िसका िगनते हुए कहा। वह सोचता जा रहा था, ‘कोई हजर नही। न सही आठ करीगर, सात ही
रख लूँगा। ये भी कुल काफी है।’

अचानक बूढे की बगल मे बैठी एक औरत मुलला नसरदीन के पैरो पर जा िगरी और जो़ऱ़
़ -
जो़़़
रस े रोते हुए उसने अपना बचचा उसकी ओर बढा िदया।

‘देिखए, यह बीमार है? इसके होठ सूख रहे है। चेहरा जल रहा है, बेचारा बचचा, ननहा-सा बचचा
सडक पर ही दम तोड देगा। हाय, मुझे भी घर से िनकाल िदया है।’ उसके सुबिकया भरते हुए
बताया।

मुलला नसरदीन ने बचचे के सूखे खुले-पतले चेहरे को देखा। उसने पतले हाथ देखे, िजनसे रोशनी
गुजर रही थी। िफर उसने आसपास बैठे लोगो के चेहरो को देखा। दुःख की लकीरो और झिररयो
से भरे चेहरो और लगातार रोने के कारण धुँधली पडी आँखो को देखकर उसे लगा जैसे िकसी ने
उसके सीने मे छुरा भोक िदया हो। उसका गला भर आया। कोध से उसका चेहरा तमतमा उठा।

‘मै िवधवा हूँ। छह महीने बीते मेरे शौहर चल बसे। उसे सूदखो़़़
रके दो सौ तंके देने थे।
का़़़
कून े मुतािबक अब वह कजर मुझे चुकाना है।’ औरत ने कहा।

‘लो, ये दो सौ तंके और घर जाओ। बचचे के िसर पर ठंडे पानी की पटी रखो। और सुनो ये
पचास तंके और लेती जाओ। िकसी हकीम को बुलाकर इसे दवा िदलवाओ।’ मुलला नसरदीन ने
कहा और सोचने लगा, ‘छह कारीगरो से भी मै अचछी तरह काम चला लूँगा।’

तभी एक भारी-भरकम संगतराश उसके पैरो मे आ िगरा। अगले ही िदन उसका पूरा पिरवार
गुलामो की तरह बेचा जाने वाला था। उसे जाफर को चार सौ तंके देने थे।

‘चलो पाच कारीगर ही सही।’ मुलला नसरदीन ने उनहे काफी रकम दी। उसे कोई िहचक नही
हुई। उसके थैले मे अब कुल पाच सौ तंके बचे थे। तभी उसकी नजर एक आदमी पर पडी, जो
अकेला एक और बैठा था। उसने मदद नही मागी थी। लेिकन उसके चेहरे पर परेशानी और दःु ख
सपष िदखाई दे रहे थे।

मुलला बना मसीहा

मुलला नसरदीन ने पुकारकर कहा, ‘सुनो भाई, अगर तुमहे सूदखोर का कजर नही देना तो तुम वहा
कयो बैठे हो?’

‘कजर मुझ पर भी है।’ उस आदमी ने भराए गले से कहा, ‘कल मुझे जंजीरो मे जकडकर गुलामो
के़ बाजा़़रम े बेचने के िलए ले जाया जाएगा।’

‘लेिकन तुम चुपचाप कयो बैठे रहे?’

‘ऐ मेहरबान और दानी मुसािफर, मै नही जानता िक तुम कौन हो? हो सकता है तुम फकीर
बहाउदीन हो और गरीबो की मदद करने के िलए अपनी कब से उठकर आ गए हो। या िफर
खलीफा़़़़़़ ़़ ह ा र न र श ी द ह ो । मैनेतुमसेइसिलएमददनहीमागीिकतुमक
खचर कर चुके हो। मेरा कजर सबसे जयादा है। पाच सौ तंके। मुझे डर था िक अगर तुमने इतनी
बडी रकम मुझे दे दी तो इन औरतो की मदद के िलए कही तुमहारे पास रपया न बचे।’

‘तुम बहुत ही भले आदमी हो। लेिकन मै भी मामूली भला आदमी नही हूँ। मेरी भी आतमा है। मै
कसम खाता हूँ िक तुम कल गुलामो के बाजार मे नही िबकोगे। फैलाओ अपना दामन।’

और उसने अपने थैले का अंितम िसका तक उसके दामन मे उलट िदया। उस आदमी ने मुलला
नसरदीन को गले से लगाया और आँसूओं से भरा चेहरा उसके सीने पर रख िदया।

अचानक लंबी दाढीवाला भारी भरकम संगतराश जो़़़


रस े हँस पडा - ‘सचमुच आप गधे से बडे
मजे से उछले थे।’

सभी लोग हँसने लगे। ‘हो, हो, हो, हो,’ मुलला नसरदीन हँसी के मारे दोहरा हुआ जा रहा था, ‘आप
लोग नही जानते िक यह गधा है िकस िकसम का। यह बडा पाजी गधा है।’

‘नही-नही, अपने गधे के बारे मे ऐसा मत किहए।’ बीमार बचचे की मा बोल उठी, ‘यह दुिनया का
सबसे बेशकीमती, होिशयार और नेक गधा है। इस जैसा न तो कोई गधा हुआ है और न होगा।
खाई
़ पार करते समय अगर यह उछला न होता और जी़़न प र से आपको फेक न िदया होता तो
आप हमारी ओर देखे िबना ही चुपचाप चले जाते। हमे आपको रोकने की िहममत ही न होती।’

‘ठीक कहती है यह।’ बूढे ने कहा, ‘हम सब इस गधे अहसानमंद है, िजसकी वजह से हमारे दुख
दरू हो गए। सचमुच गधो का जेवर है। यह गधो के बीच हीरे की तरह चमकता है।’

सब लोग गधे की पशंसा करने लगे। िदन डू बने वाला था। साये लंबे होते चले जा रहे थे। मुलला
नसरदीन ने उन लोगो से जाने की इजाजत ली।

‘आपका बहुत-बहुत शुिकया आपने हमारी मुसीबतो को समझा।’ सबने झुककर कहा।

‘कैसे न समझता। आज ही मेरे चार कारखाने िछन गए है, िजनमे आठ होिशयार कारीगर काम
करते थे। मकान िछन गया है, िजसके बीच मे फववारे थे। पेडो से लटकते सोने की िपंजरो मे
िचिडया गाती थी। आपकी मुसीबत भला मै कैसे न समझता?

ऐ मुसािफर, शुिकया के तौर पर भेट देने के िलए मेरे पास कुछ नही है। जब मैने अपना घर छोडा
था, एक चीज अपने साथ लेता आया था। यह है कुरान शरीफ। इसे तुम ले लो। खुदा करो इस
दुिनया मे यह तुमहे रासता िदखाने वाली रोशनी बने।’ बूढे ने भावुक सवर मे कहा।मुलला की
दिरयािदली

मुलला नसरदीन के िलए धािमरक िकताबे बेकार थी। लेिकन बूढे के िदल को ठेस न पहुँचे, इसिलए
उसने िकताब ले ली। िकताब को उसने जी़़़स े लगे थैले मे रखा और गधे पर सवार हो

गया।

‘तुमहारा नाम? तुमहारा नाम कया है?’ कई लोग एक साथ पूछने लगे, ‘अपना नाम तो बताते जाओ।
तािक नमाज पढते वकत़ तुमहारे िलए दुआ माग सके।’
आप लोगो को मेरा नाम जानने की कोई जररत नही। सचची नेकी के िलए शोहरत की जररत
नही होती। रहा दुआ मागने का सवाल, सो अललाह के बहुत से फिरशते है, जो लोगो के नेक कामो
की खबर उसे देते रहते है। अगर फिरशते आलसी और लापरवाह हुए और नमर बादलो मे सोते रहे,
उनहोने इस दुिनया के पास और नापाक कामो का िहसाब न रखा तो आपकी इबादत का कोई असर
नही होगा।’

बूढा चौककर मुलला नसरदीन को घूरने लगा। ‘अलिवदा!’ खुदा करे तुम अमन-चैन से रहो।’
इस दुआ के साथ मुलला नसरदीन सडक के मोड पर पहुँचकर आँखो से ओझल हो गया।

अंत मे बूढे ने खा़़़


भोशी गं करते हुए गंभीर आवाज मे कहा , ‘सारी दुिनया मे केवल एक ही

आदमी ऐसा है, जो यह काम कर सकता है। िजसकी रह की रोशनी और गमी से गरीबो और
मजलूमो को राहत िमलती है। और वह इनसान है हमारा...।’

‘खबरदार, जुबान बंद करो,’ दसू रे आदमी ने उसे जलदी से डाटा, ‘कया तुम भूल गए हो िक दीवारो
के भी कान होते है?’ पतथरो के भी आँखे होती है? और सैकडो कुते सूँघते-सूँघते उसे तलाश कर
सकते है।’

‘तुम सच कहते हो,’ तीसरे आदमी ने कहा, ‘हमे अपना मुँह बंद रखना चािहए। ऐसा वकत़ है
जबिक वह तलवार की धार पर चल रहा है। जरा़़़ -सा भी धका उसके िलए खतरनाक बन
सकता है।’

बीमार बचचे की मा बोली, ‘भले ही लोग मेरी जुबान खीच ले लेिकन मै उसका नाम नही लूँगी।’

‘मै भी चुप रहूँगी।’ दस


ू री औरत ने कहा, ‘मै भले ही मर जाऊँ लेिकन ऐसी गल़ती नही करँगी, जो
उसके गले का फंदा बन जाए।’

संगतराश चुप रहा। उसकी अकल कुछ मोटी थी। उसकी समझ मे नही आ रहा था िक यिद वह
मुसािफर कसाई या गोशत बेचने वाला नही है तो कुते उसे सूँघकर कैसे तलाश कर लेगे? अगर
वह रससे पर चलने वाला नट है तो उसका नाम लेने मे कया हजर है? उसने
़ ़ े नथुने
जो़रस
फटकारे, गहरी सास भरी और िनशय िकया िक इस मामले मे वह और जयादा नही सोचेगा। वरना
वह पागल हो जाएगा।

इस बीच मुलला नसरदीन काफी दरू जा चुका था। लेिकन उसकी आँखो के आगे अब भी उन
गरीबो के मुरझाए चेहरे नाच रहे थे। बीमार बचचे की ओर उसके सूखे होठो तथा तमतमाए गालो
की उसे बराबर याद आ रही थी। उसकी आँखो के आगे उस सफेद बालो वाले बूढे की तसवीर
नाच रही थी, िजसे उसके घर से िनकाल िदया गया था।

वह कोध से भर उठा और गधे पर अिधक देर तक बैठा न रह सका। कूदकर नीचे आ गया और
गधे के साथ-साथ चलते हुए ठोकरो से रासते के पतथरो को हटाने लगा।
‘सूदखोरो के सरदार ठहर जा, मै तुझे देख लूँगा।’ वह बडबडा रहा था। उसकी आँखो मे शैतानी
चमक थी। ‘एक न एक िदन तेरी मेरी मुलाकात जरर होगी, तब तेरी शामत आएगी। अमीर, तू
काप और थरा, कयोिक मै मुलला नसरदीन बुखारा मे आ पहुँचा हूँ।’

मकार और शैतान जोको, तुमने दुखी जनता का खून चूसा है। लालची लकडबगघो, िघनौने गीदडो,
तुमहारी दाल हमेशा नही गलेगी। सूदखोर जाफर, तेरे नाम पर लानत बरसे। मै तुझसे उन तमाम
दुखो और मुसीबतो का िहसाब जरर चुकाऊँगा, जो तू गरीबो पर लादता रहा है।’

दिरयािदली का सफर

अपने वतन मे मुलला नसरदीन की वापसी का िदन बहुत सारी घटनाओं और बेचैिनयो से भरा हुआ
िसद हुआ। वह बेहद थका हुआ था। वह िकसी ऐसी जगह की तलाश मे था, जहा एकात हो और
वह आराम कर सके।

एक तालाब के िकनारे उसने लोगो की भारी भीड देखी और लंबी सास भरकर कहा, ‘लगता है,
आज मुझे आराम िमलेगा। यहा जरर कुछ गडबड है।’ तालाब सडक से थोडी दरू था। वह
सीधा अपने रासते जा सकता था। लेिकन वह उन लोगो मे से नही था, जो िकसी भी लडाई-झगडे
मे कूदने का मौका हाथ से जाने देते है।

इतने वषों से साथ रहने के कारण गधा भी अपने मािलक की आदतो से पिरिचत हो गया था। वह
अपने आप तालाब की ओर मुड गया। ‘कया बात है भाईयो? कया यहा िकसी का खून हो गया है?
कोई लुट गया है?’ भीड मे गधे को लेकर जाते हुए वह िचललाया, ‘जगह खाली करो, अलग
हटो।’

तालाब के िकनारे पहुँचकर मुलला नसरदीन ने एक िविचत दृशय देखा। िचकनी िमटी और काई से
भरे तालाब मे एक आदमी डू ब रहा था। वह आदमी बीच-बीच मे सतह पर आता लेिकन िफर डू ब
जाता। कई लोग उसे बाहर खीचने के िलए बार-बार हाथ बढा रहे थे। ‘हाथ बढाओ-इधर-यहा-
अपना हाथ दो।’ वे िचलला रहे थे।

लेिकन ऐसा लगता था िक डू बता हुआ आदमी उन लोगो की बाते नही सुन रहा है। वह पानी से
ऊपर आता और िफर डू ब जाता। इस दृशय को देखकर मुलला नसरदीन सोचने लगा, ‘बडी अजीब
बात है! इसका कया कारण हो सकता है? यह आदमी अपना हाथ कयो नही बढा रहा है? हो सकता
है यह कोई चतुर गो़़़

ह ाखोर ो , और शतर लगाकर गो़़़
ले गा रहा हो। यिद यह बात है तो

वह अपनी िखलअत कयो पहने हुए है?’

तभी डू बने वाला एक बार िफर से पाने की सतह पर आया और िफर डू ब गया। पानी मे रहने का
समय हर बार पहले अिधक था।

‘तू यही ठहर,’ मुलला नसरदीन ने गधे से उतरते हुए कहा, ‘पास जाकर देख,ूँ कया बात है।’ डू बने
वाला िफर पानी के भीतर पहुँच चुका था। इस बार वह इतनी देर तक पानी मे रहा िक िकनारे पर
खडे लोग उसे मरा समझकर उसके िलए दुआ मागने लगे।
अचानक वह िफर िदखाई िदया। ‘यहा, इधर-अपना हाथ दो-हमे हाथ दो।’ लोग िचलला उठे।
उनहोने अपने हाथ बढाए। लेिकन वह उनकी ओर सूनी आँखो से देखता रहा और िफर चुपचाप
पानी मे समा गया।

‘अरे बेवकूफो, उसके


़ रेशमी साफे और की़़म
ि ती ख लअत को देखकर तुमहे समझ लेना चािहए
िक यह कोई सूदखोर या अफसर है। तुम लोग सूदखोरो और अफसरो के तौर-तरीको को नही
जानते िक उनहे पानी से िकस तरह िनकालना चािहए।’ मुलला नसरदीन िचललाया।

‘तुम जानते हो तो िनकालो उसे बाहर। वह पानी के ऊपर आ गया है। उसे बाहर खीच लो।’
भीड से कई आवाजे उठी। ‘कया तुमने िकसी सूदखोर या अफसर को कभी िकसी को कुछ देते
देखा है?’ अरे जािहलो, याद रखो ये लोग िकसी को कुछ देते नही है, िसफर लेते है।’
मुलला ने बचाई सूदखोर की जान

‘अरे, वह िफर पानी मे चला गया।’

‘पानी
़ भी इतनी असानी से सूदखो़़रय ा अफसर को कबूल नही करेगा। वह उससे बचने की
पूरी-पूरी कोिशश करेगा।’ मुलला नसरदीन ने कहा और इंतजार करने लगा। कुछ देर बाद डू बता
आदमी िफर पानी की सतह पर िदखाई िदया। उस आदमी ने अकड के साथ मुलला के हाथ को
थाम िलया। उसकी पकड के ददर से मुलला कराह उठा।

वह कुछ देर िबना िहले-डुले िकनारे पर पडा रहा। वही खडे लुहार ने नसरदीन से कहा-‘लेिकन
तुमने इसे बचाकर ठीक नही िकया।’ मुलला नसरदीन आशयर से उसे देखता रह गया, ‘मै तुमहारी
बात समझ नही पाया लुहार भाई। कया िकसी इनसान को यह बात शोभा देती है िक वह डू बते हुए
इनसान के पास से गुजर जाए और उसकी मदद के िलए हाथ न बढाए?’

‘तो तुमहारे खयाल से सभी सापो, लकडबगघो और जहरीले जानवरो को बचा लेना चािहए?’ लुहार
िचललाया। िफर अचानक उसके िदमाग मे कोई बात कौध उठी। उसने पूछा, ‘कया तुम यही के
रहने वाले हो?’

‘नही।’

इसिलए तुम नही जानते िक तुमने िजसे बचाया है वह इनसानो के साथ बुरा करने वाला और उनका
खू़़
़न
च ूसने वाला आदमी है। बुखारा मे रहनेवाला हर तीसरा आदमी उसकी वजह से कराहता
और रोता है।’

एक भयानक िवचार मुलला नसरदीन के िदमाग मे कौध उठा, ‘लुहार भाई, मुझे उसका नाम तो
बताओ।’

तुमने सूदखोर जाफर को बचाया है। खुदा करे उसकी यह िजंदगी िबगडे, आकबत िबगडे। उसकी
चौदह पीिढया घावो से सडे। उनके घावो मे कीडे पडे।’

‘कया कहा लुहार भाई? लानत है मुझ पर। मेरे इन हाथो ने उस साप को डू बने से बचाया है।
सचमुच इस गुनाह की तौबा नही। लानत है मुझ पर।’

लुहार पर उसके दुख का असर पडा। वह कुछ नमर होकर बोला, ‘धीरज से काम लो मुसािफर,
अब कुछ नही हो सकता। गधे पर सवार होकर तुम उस वकत़ उधर से गुजरे ही कयो? तुमहारा
गधा सडक पर अड कयो न गया! तब सूदखोर को डू बने का पूरा-पूरा मौका िमल जाता।’

यह गधा अगर सडक पर अडता तो इसिलए िक िजससे लगे थैलो से रपया िनकल जाए। जब ये
भरे होते है तो इस बहुत भार लगता है। लेिकन यिद सूदखोर को बचाकर अपने ऊपर लानत
बुलाने की बात है तो िवशास करो यह मुझे वकत़ से पहले वहा पहुँचा देगा।
‘यह ठीक है। लेिकन जो हो चुका है, उसे
़ अब बदला नही जा सकता। उस सूदखो़़रको
कोई िफर से पानी मे धकेल नही सकता।’

मुलला नसरदीन को जोश आ गया, ‘लुहार भाई, मै कसम खाता हूँ, उस ़ सूदखो़़रज ाफर को
डुबाकर ही दम लूँगा। इसी तालाब मे डुबाऊँगा। जब तुम बाजार मे यह खबर सुनो तो समझ लेना
िक यहा के िनवािसयो का जो अपराध मैने िकया था, उसका बदला चुका िदया।’
बुखारा के बाजार मे...

पौ फटते ही जब तारो का पकाश धीमा होने लगा तो अँधेरे मे चीजो के आकार उभरने लगे।
सैकडो मेहतर, बढई, कु़ महार और सफाई करनेवाले बाजा़रम
़ े पहुँच गए और बडी लगन से
अपना काम करने लगे। उनहोने िगरे हुए शािमयानो को सीधा खडा िकया।

पुलो की मरममत की। बाडो के सुराखो को भरा और टू टे बतरनो तथा लकडी के टुकडो को साफ
िकया। और सूरज की पहली िकरण जब धरती पर उतरी तो बुखारा मे रात के हंगामे का कही
कोई िनशान बाकी नही रह गया था।

रात भर आराम से कब पर सोने के बाद मुलला नसरदीन अपने गधे पर सवार हुआ और बाजार की
ओर चल िदया। बाजार खुल चुके थे। चहल-पहल िदखाई देने लगी थी। लोगो के आने -जाने और
तरह-तरह की बोिलयो की भनभनाहट सुनाई देने लगी थी। वयापािरयो, फकीरो, िभिशतयो, नाइयो
और िभखािरयो की आवाजे सुनाई देने लगी थी।

डरावने औजारो को िहलाते हुए दात िनकालने वालो के शोर के बीच लोगो को अपनी आवाज तक
सुनाई नही दे रही थी।

मुलला नसरदीन जो़़ऱ -जो़़ ़रस े िचललाते हुए चला आ रहा था -हटो बचो, रासता दो, रंग-
िबरंगे लबादो, साफो, घोडो के कंबलो, कालीनो, बेचने-खरीदने वालो की चीनी, अरबी, मंगोिलयन
और भी अनय कई भाषाएँ उस धकम-धका करती, भनभनाती भीड मे शािमल थी।

उडकर धूल आकाश पर छा गई थी। आदिमयो का कभी खतम न होने वाला ताता लगा हुआ था।
अपना-अपना सामान फैलाकर वयापारी उस शोर मे अपनी आवाजे िमला रहे थे। कुमहार पतली
छिडयो से अपने बतरन बजा रहे थे और गुजरने वालो के लबादे पकड-पकडकर बतरनो की
खनखनाहट सुनने का आगह कर रहे थे तािक वे उनहे खरीदने के िलए राजी हो जाएँ।
ताबे के बतरनो की चमक चकाचौध पैदा कर रही थी। छोटे-छोटे हथौडो की आवाजे गूँज रही थी।
कारीगर सुरािहयो और िकिशतयो पर िडजाइन बना रहे थे। वे जो़ऱ़ -जो़़ रस
़ े अपनी
दसतकारी की तारीफे कर रहे थे। दसू रो के काम की बुराइया कर रहे थे।

़़
मुलला नसरदीन बाजा़रस े गुजरता हुआ आगे बढा तो उसे अमीर का महल िदखाई िदया।
उसके चारो और ितरछे घटाव की चारदीवारी थी, िजसमे तोपो के िलए सुराख बने हुए थे।

महल के फाटक के बाहर एक रंग-िबरं ़ गा खे़म


था ा। एक फटे हुए शािमयाने के नीचे गमी से
बेहाल लोग बैठे थे। कुछ चटाइयो पर लेटे थे। कुछ अकेले थे और कुछ अपने पिरवार के साथ
थे। औरते बचचो को दध ू िपला रही थी या फटे हुए गदो या लबादो की मरममत कर रही थी।
अधनंगे बचचे लडते-झगडते, चीखते-िचललाते दौड रहे थे और अपने िजसम के पोशीदा िहससे को
महल की ओर कर रहे थे।

‘लगता है, ये लोग यहा कई िदन से पडे है।’ मुलला नसरदीन ने सोचा। उसकी नजर दो आदिमयो
पर पडी। उनमे से एक गंजा था और दस ू रा दाढीवाला, अपने -अपने शािमयाने के नीचे वे नंगी
जमीन पर लेटे थे। पास ही उन दोनो के बीच एक दुबला-पतला बकरा खूँटे से बँधा था।

उसकी पसिलया खाल फाडकर बाहर िनकली पड रही थी। ददर भरी आवाज मे ‘मै-मै’ करता वह
खूँटे पर मुँह मार रहा था। खूँटे का आधा भाग वह खा भी चुका था। ‘अगर आप भले मुसलमान
है तो अपने घरो मे कयो नही रहते। महल के फाटक पर कयो पडे हो?’ ‘हम अपने आका-ए -
नामदार, िजनकी रोशनी सूरज को भी ढक लेती है, उनके इनसाफ का इंतजार कर रहे है।’

मुलला नसरदीन ने ताने भरी आवाज मे कहा, ‘अचछा! आप अपने बादशाह के सही और नेक
इनसाफ का इंतजा़़़
रकाफी़ ़़़़
़ द े र सेकररहेहै , िजसकी रोशनी सूरज को भी ढक लेती
है।’
आमीर के महल मे मुलला....

‘हम पाच हफते से इंतजार कर रहे है,’ गंजे आदमी ने कहा, ‘झगडालू दिढयल-अललाह इसे सजा
दे-शैतान अपनी दुम इसके िबसतर पर फैलाए। मेरा यह बडा भाई है। हमारे वािलद का इंतकाल
हो गया। वह हम लोगो के िलए जायदाद छोड गए थे। इस बकरे को छोडकर हमने सब कुछ बाट
िलया। अब अमीर ही फैसला करेगे िक यह बकरा िकसे िमलना चािहए?’

‘लेिकन जायदाद कहा है, जो आप लोगो को िवरासत मे िमलती थी?’ ‘सब कुछ बेचकर पैसा
इकटा कर िलया, कयोिक अजी िलखनेवाले मुशीरो, अहलदारो, पहरेदारो और दस
ू रे बहुत से लोगो
को भी तो पैसा देना होता है न।’

गंजे आदमी ने कहा और िफर अचानक उछल पडा। िफर दौडकर एक दरवेश को पकड िलया, जो
नंगे पाव था, गंदगी से भरा था, िजसके िसर पर नुकीली टोपी थी, बगल मे काली तूँबी लटक रही
थी।

‘ऐ नेकरह इनसान, मेरे िलए दुआ करो,’ गंजे ने कहा, ‘दुआ करो िक फै़़़
म ला ेरे हक मे हो।’

दरवेश ने उससे रकम ली और दुआ करने लगा। िफर जैसे ही उसने दुआ का आिखरी लफ‍ज
बोला, गंजे ने उसकी तूँबी मे एक िसका और डाल िदया। दरवेश िफर दुआ करने लगा।

दा़़़

व ी ाला परेशान होकर उठा और भीड पर नजर दौडाने लगा। काफी ढू ँढने के बाद उसे एक
दरवेश िदखाई दे गया, जो पहले दरवेश से भी जयादा फटेहाल और गंदा था। इसीिलए वह जयादा
पाक था। इस दरवेश ने बहुत बडी रकम मागी। दाढीवाला मोलभाव करना चाहता था।

लेिकन तभी दरवेश ने अपनी टोपी के नीचे से टटोलकर मुटी भर बडी-बडी जुएँ िनकाली।
दाढीवाला उसकी पिवतता को मान गया और मागी हुई रकम मंजूर कर ली और जीत की नजर से
अपने छोटे भाई की ओर देखते हुए रकम दे दी।

दरवेश घुटने मोडकर बैठ गया और जो़ऱ़


़ -जो़़ रस
़ े दुआ मागने लगा। इतने जो़रस
़ े
िक उसकी आवाज मे पहले दरवेश की आवाज दब गई।

गंजा परेशान हो उठा। उसने अपने दरवेश को कुछ िसके और दे िदए। दिढयल ने भी ऐसा ही
िकया। दोनो दरवेशो ने एक-दस
ू रे को हराने के िलए इतना शोर मचाया िक अललाह ने फिरशतो से
बिहशत की िखडिकया बंद करा दी होगी तािक इस शोरगुल से वह बहरे न हो जाएँ। खूँटे को
कुतरता हुआ बकरा लगातार ददर भरी आवाज मे िमिमया रहा था। गंजे ने उसके आगे ितपितया
घास का आधा गटर डाल िदया।

‘मेरे बकरे के सामने से हटा अपनी बदबूदार घास।’ दिढयल िचललाया उसने लात मारकर घास
हटायी और भूसी से भरा बतरन उसके सामने रख िदया। ‘नही, मेरा बकरा तुमहारी भूसी नही
खाएगा।’ गंजा गुससे से िचललाया और भूसी का बतरन भी घास के पास जा पडा। िगरते ही बतरन
टू ट गया। गया। भूसी सडक की धूल मे िमल गई। दोनो भाई गुससे मे एक-दस ू रे के गुंथ गए।

वे गािलयो और घूँसो की बौछार करने लगे। मुलला नसरदीन ने िसर िहलाते हुए कहा, ‘दो बेवकूफ
लड रहे है और दो ठग दुआ माग रहे है। इस बीच बकरा भूख से मर चुका है। ऐ नेक और आपसी
मुहबबत वाले भाइयो, जरा इधर तो देखो। अललाह ने बकरा छीनकर अपने ढंग से तुमहारा झगडा
िनबटा िदया है।’
दरवाजा खुल गया...

दोनो भाईयो को अकल आ गई। वे एक-दस ू रे से अलग हो गए। खून से लथपथ चेहरो से वे देर
तक मरे हुए बकरे को ताकते रहे। िफर गंजे ने कहा, ‘इसका चमडा िनकाल लेना चािहए।’
‘इसका चमडा मै िनकालूँगा’ दाढी वाले ने कहा। ‘तुम कयो िनकालोगे?’गुससे मे गंजी खोपडी लाल
पड गई।

‘बकरा मेरा है, चमडा भी मेरा है।’ ‘तेरा नही, मेरा है।’ इससे पहले िक मुलला नसरदीन कुछ कह
पाता, वे दोनो िफर गुथकर जमीन पर लौटने लगे। एक पल बाद ही एक भाई की मुटी मे काले
बालो का एक गुचछा िदखाई िदया।

मुलला नसरदीन ने अंदाजा लगा िलया िक बडे भाई की दाढी का आधा िहससा नुच चुका है।
िनराशा से िसर िहलाते हुए वह आगे बढ गया। अपनी पेटी मे िचमटा कोसे एक लुहार उसे आता
िदखाई िदया। यह वही लुहार था, िजससे एक िदन पहले ही तालाब पर उसकी बातचीत हुई थी।
मुलला नसरदीन खुशी से िचलला उठा, ‘लुहार भाई, सलाम। हम िफर िमल गए। कया तुम भी
अमीर से इनसाफ मागने आए हो?’ लुहार ने दुख भरे लहजे मे कहा, ‘ऐसे इनसाफ से कया फायदा?
मै लुहारो की िबरादरी की एक िशकायत लेकर आया हूँ। हमे पंदह िसपािहयो को तीन महीने तक
िखलाने की िजममेदारी सौपी गई थी। एक साल बीत चुका है, वे अब भी हमारे िसर पर सवार है।
इससे हमे बडा नुकसान हो रहा है।’

‘मै रँगरेजो की गली से आया हूँ। दस


ू रे आदमी ने कहा। उसके हाथो पर रंगो के दाग थे। सुबह
से शाम तक जहरीला धुआँ सूँघते हुए उसके चेहरे का रंग हरे रंग का हो गया था। मै भी ऐसी
िशकायत लेकर आया हूँ। हमे पचचीस िसपाही िमले है िखलाने को। हमारा कारोबार चौपट हो गया
और मुनाफा घट गया है। शायद अमीर हम पर रहम कर दे और इस बोझ से हमे छुटकारा िदला
सके।’

‘तुम लोगो को बेचारे िसपाही बुरे कयो लगते है? वे बुखारा के सबसे जयादा खराब और लालची
बािशंदे तो है नही। तुम, अमीर, वजीर और अफसरो को पालते हो। दो हजार मौलिवयो और छः
हजार दरवेशो को पालते हो। िखलाते-िपलाते हो। िफर बेचारे िसपाही कयो भूख रहे? कया तुमने
यह कहावत नही सुनी-जहा एक िसयार को खाना िमलता है, वहा तुरत ं दस िसयार आकर जमा हो
जाते है।

ऐ लुहार और रँगरेज भाई, तुमहारी नाराजगी मेरी समझ मे नही आती।’ ‘इतने जोर से मत बोलो।’
लुहार ने चारो और देखते हुए कहा। रँगरेज ने मुलला नसरदीन को टोकते हुए कहा, ‘तुम
खतरनाक आदमी हो। तुमहारी बात मे नेकी नही है। हमारे अमीर तो बहुत ही समझदार और उदार
है।’

उसने अपनी बात अधूरी ही छोड दी, कयोिक तभी ढोल और तुरही बजने की आवाजे आने लगी।
महल के पीतल जडे फाटक धीरे-धीरे
़ खुलने लगे और खे़मो े चहल -पहल आरंभ हो गई।

हर ओर से अमीर-अमीर की आवाजे आने लगी। लोग महल के सामने भीड लगाने लगे तािक
अमीर की सूरत देख सके। मुलला नसरदीन ने आगे की कतार मे एक सुिवधाजनक सथान खोज
िलया। सबसे पहले फाटक से दो लोग चीखते हुए िनकले। वे िचलला रहे थे, ‘अमीर के िलए
रासता खाली करो। आला हजरत अमीर के िलए रासता खाली करो।’

उनके पीछे-पीछे िसपाही िनकले, जो अपनी लािठया को दाएँ -बाएँ उन लोगो के िसरो और पीठ पर
मार रहे थे, जो दुभागय से फाटक के सामने आकर इकटे हो गए थे। भीड मे एक चौडा रासता बन
गया। ढोल, बासुरी, तंबूरे लेकर मीरासी िनकले। उनके पीछे हीरे जडे मखमली मयानो मे तलवारे
लटकाए, सुनहरे रेशमी कपडे पहने , नौकर-चाकर आ रहे थे िफर ऊँची अंबािरयो से सजे दो हाथी
िनकले।

सबसे अंत मे एक बहुत ही सजा हईु गाडी आई। उसमे चंदोवे के भीतर खुद महान अमीर आराम
से लेते हुए थे।

यह देखते ही भीड मे एक दबी फुसफुसाहट होने लगी। अमीर की आजा के अनुसार सब लोग
धरती पर लेट गए। अमीर का आदेश था िक वफादार िरयाया िवनमता का वयवहार करे और कभी
आँखे ऊपर उठाकर न देखे। नौकर दौड-दौडकर सवारी के सामने कालीन िबछा रहे थे।

गाडी के एक पंखा झलनेवाला घोडे की दुम के बालो का चँवर अपने कंधे पर रखे चल रहा था।
दसू री ओर अमीर का हुके वाला था, जो बडी शान और गंभीरता से सोने का तुकी हुका िलए साथ-
साथ चल रहा था। जुलूस मे सबसे पीछे पीतल की टोिपया पहने , ढाल, भाले, तीर कमान और नंगी
तलवारे िलए िसपाही चल रहे थे। उनके पीछे दो छोटी तोपे थी।
बेइनसाफी का तमाशा

चारो और दोपहर के सूरज की चमकीली धूप फैली हुई थी। उस तेज धूप मे जवाहरात दमक रहे
थे। सोने-चादी के जेवर चमचमा रहे थे। पीतल के टोप और ढाले चमाचमा रही थी। नंगी
तलवारे कोध रही थी। लेिकन धरती पर लेटी भीड मे न जवाहरात दमक रहे थे, न सोना; ताबा
तक नही।

सूरज की चमकदार रोशनी मे मन खुश करने के िलए वहा कुछ भी नही था। थी बस भूख, गरीबी
और फटे चीथडे। अमीर का शानदार जुलूस जब गंदे, जािहल, दबे-िपसे और फटेहाल लोगो के
बीच से गुजरा तो ऐसा लग रहा था जैसे गंदे चीथडे मे सोने का पतला डोरा डाल िदया गया हो।

िजस ऊँचे तखत़ पर बैठकर अमीर अपने वफादारो पर मेहरबािनया करने वाले थे, उसके चारो ओर
पहले से ही पहरेदार तैनात कर िदए गए थे। सजा देने वाले जललाद अमीर के हुकम को पूरा करने
की तैयािरया कर रहे थे।

बेतो की लचक और डंडो की मजबूती की जाच की जा रही थी। कुछ लोग कचची खाल की दुम
वाले चाबुको को नादो मे िभगो रहे थे और जमीन मे सूिलया तथा फासी के िलए खंभे गाड रहे थे।

जललादो का अफसर महल के पहरेदारो का अफसर था। उसका नाम असरला बेग था। अपनी
कूरता के िलए वह दरू -दरू तक बदनाम था। वह काले बालो और मोटे बदन का सुंदर नौजवान
था। उसकी दाढी उसके सीने को ढकती हुई पेट तक पहुँच गई थी। उसकी आवाज ऊँट की
बलबलाहट जैसी थी। लोगो पर िदल खोलकर लात-घूँसो की बौछार करने के बाद वह अचानक
झुक गया। िवनमता से उसका बदन कापने लगा।

धीरे-धीरे िहलती-डुलती सवारी तखत़ तक पहुँच गई। अमीर ने चंदोवे के पदे हटाकर लोगो को
दशरन िदए।
फिरयादी पर टैकस...

अमीर उतना सुंदर नही था, िजतना पिसद था। दरबारी शायद िजस चेहरे की तुलना चाद की
चमक से करते थे, वह जररत से जयादा पके खरबूजे से िमलता था। वजीरो के सहारे वह सवारी
से उतरा और सोने से मढे िसंहासन पर जा बैठा।

मुलला नसरदीन ने देखा, दरबारी शायरो के अनुसार उसका बदन नाजुक पेड की डाली की तरह
िबलकुल नही था। वह मोटा और भारी था। बाजू छोटे थे। पैर टेढे थे िक िखलअत भी उनके
बेढंगेपन को िछपा नही पा रही थी।
वजीर उसके दायी ओर तथा मौलवी और अनय अफसर बायी और खडे हो गए। मुहिररर अपनी
बिहया और दवाते िलए तखत़ के नीचे जा बैठा। तखत़ के नीचे अदर चंदाकार घेरा बनाकर दरबारी
शायर खडे हो गए और अमीर की गदरन की ओर बडी पाक नजरो से ताकने लगे। चँवर
डुलानेवाला चँवर डुलाने लगा। हुके वाले ने सोने की िनगाली अपने मािलक के होटो के बीच रख
दी।

तखत़ के चारो ओर खडी भीड सास रोके खडी थी। मुलला नसरदीन ने एिडयो पर उचककर गदरन
आगे बढाई और कान लगाकर सुनने लगा। नीद मे भरे अमीर ने िसर िहलाया। पहरेदारो के बीच
मे जगह थी। गंजा तथा दिढयल भाई मौका पडते ही आगे आ गए। वे घुटनो के बल िघसटते हुए
तखत़ तक पहुँचे और जमीन तक लटकते हुए कालीन को चूमने लगे।

वजीर
़ आजम बिखत़़य नार े हुकम िदया ‘उठो’ दोनो भाई उठकर खडे हो गए। वे इतनी िहममत
नही कर पा रहे थे िक अपने लबादो की धूल भी झाड सके। डर के मारे उनकी जबान बंद थी।

आवाज िमिमया रही थी। वे कया कह रहे थे, समझ मे नही आ रहा था। लेिकन अनुभवी वजीर
बिखतयार ने एक नजर मे ही सारी बात समझ ली। उसने बेचैनी से दोनो भाइयो को टोकते हुए
पूछा, ‘तुमहारा बकरा कहा है?’

‘ऐ खानदानी वजीर, अललाह ने उसे अपने पास बुला िलया।’ गंजे ने उतर िदया, ‘लेिकन उसका
चमडा हम मे से िकसे िमलेगा?’ बिखत़यार ने अमीर की ओर मुडकर पूछा, ‘शाहो मे सबसे
अकलमंद अमीर, कया फैसला होगा?’

अमीर ने जमहाई ली और बडी लापरवाही से आँखे मूँद ली। बिखत़यार ने बडी िवनमता से सफेद
साफे के साथ अपना िसर झुका िलया, ‘मेरे मािलक, फैस़ला तो आपके चेहरे पर िलखा िदखाई दे
रहा है।’

िफर दोनो भाईयो की ओर मुडकर बोला, ‘सुनो।’ दोनो भाई घुटनो के बल जमीन पर बैठ गए। वे
अमीर के रहम, इनसाफ और अकलमंदी के िलए उसका शुिकया अदा करने के िलए तैयार हो गए
थे।

बिखत़यार फै़़़
सला ुनाने लगा , ‘दुिनया के सूरज, मोिमनो के अमीर हमारे अमीरे-आलम ने ,
अललाह का उन पर करम रहा है, फैस़ला करने की मेहरबानी की है िक अगर बकरा अललाह के
पास चला गया है तो इनसाफ कहता है िक उसका चमडा इस दुिनया मे अललाह के जानशीन
खलीफा यानी खुद महान अमीर के पास जाए, इसिलए बकरे की खाल िनकाली जाए, उसे सुखाया
और नहलाया जाए और महल के शाही खजाने मे जमा कर िदया जाए।’

मुहिररर ने एक बडे रिजसटर मे फैसला िलख िदया। दोनो भाईयो ने घबराकर एक-दस ू रे की ओर
देखा। भीड मे हलकी भनभनाहट छा गई। बिखत़यार साफ और ऊँची आवाज मे कहने लगा-‘इसके
अलावा फिऱयाद करने वालो को दौ सौ तंके कानूनी कीमत, डेढ सौ तंके महल टैकस और पचास
तंके मुहिररयो के खचर के देने होगे और मिसजदो के रख-रखाव के िलए खैरात देनी होगी।’
उसने बोलना खतम ही िकया था िक असरला बेग के इशारे पर िसपाही उन दोनो भाइयो पर टू ट
पडे। उनके पटके खोल डाले। उनकी जेब,े खाली कर ली, लबादे फाड डाले और उनहे अधनंगा
करके छोड िदया। पूरे मामले मे मुिशकल से एक िमनट लगा।

फैसला सुनाए जाते ही दरबारी शायरो और आिलमो (िवदानो) ने तारीफ मे कसीदे पढने शुर कर
िदए- ‘ऐ बुिदमान अमीर, ऐ बुिदमानो के बुिदमान, बुिदमानो की बुिद से बुिदमान अमीर, ऐ बुिदमानो
मे सबसे बडे बुिदमान अमीर-’ बहुत देर तक वे इसी तरह गाते रहे, अपनी गदरन तखत़ की ओर
बढाए हुए।

हर एक इस कोिशश मे था िक उसकी आवाज अमीर सुन ले और िकसी की भी आवाज न सुने।


इस बीच तखत़ के चारो ओर खडी भीड दोनो भाइयो को रहम भरी नजरो से देखती रही।जललादो
का कहर...

दोनो भाई एक-दसू रे के गले मे बाहे डाले जोर-जोर से रोने लगे। मुलला नसरदीन ने तसलली देते
हुए, ‘कोई िफक नही दोसतो, छः हफते बाजार मे बैठकर तुमने वक‍त बबाद नही िकया। तुम लोगो
को िबलकुल सही इनसाफ िमला है। कयोिक सभी जानते है िक सारी दुिनया मे हमारे अमीर से
बढकर अकलमंद और मेहरबान कोई और नही है। अगर िकसी को इस बात मे शक है तो...।’

इतना कहकर उसने आस-पास खडे लोगो की ओर देखा...‘िसपाही को बुलाने मे देर नही लगेगी
और वे शक करने वाले उस नापाक बेवकूफ को जललादो के सुपुदर कर देगे और जललाद बडी
आसानी से उसकी गलती उसे समझा देगे। तुम इतमीनान से घर जाओ। अगर िफर कभी िकसी
मुगे को लेकर तुमहारा झगडा हो तो िफर अमीर की अदालत मे जाना। लेिकन आने से पहले अपने
खेत, मकान और अंगूर के बगीचे बेचना मत भूलना।वरना तुम टैकस नही चुका पाओगे, इसका
मतलब होगा अमीर के खजाने मे घाटा। इसका खयाल भी वफादार िरयाया की बदाशत से बाहर
होना चािहए।’

आठ-आठ आँसू रोते हुए दोनो भाई बोले, ‘इससे तो अचछा होता िक बकरे के साथ हम भी मर
जाते।’

मुलला नसरदीन ने कहा, ‘कया तुमहारा खयाल है िक बिहशत मे बेवकूफ कम है? भरोसे के कािबल
लोगो ने मुझे बताया है िक आजकल जनत और दोजख दोनो जगह, बेवकूफ भरे पडे है। और
जयादा बेवकूफो की वहा गुंजाइश नही है। मुझे साफ िदखाई दे रहा है िक तुम लोगो के िलए मौत
िलखी ही नही है। अब यहा से रफूचकर हो जाने मे देर मत करो। िसपाही इधर ही देखने लगे
है।’

जोर-जोर से रोते, अपना मुँह नोचते, िसरो पर सडक की पीली धूल डालते दोनो भाई वहा से चल
िदए।

अब लुहार अमीर के सामने आया। उसने अपनी िचडिचडी और भरायी आवाज मे अपनी िशकायत
सुनाई। वजीर-आजम बिखतयार अमीर की ओर मुडा, ‘मािलक, आपका कया फैसला है?’ अमीर सो
रहे थे। खुले मुँह से खराटे भर रहे थे। बिखत़यार ने कहा, मािलक, आपके जलाल भरे चेहरे पर मै
फैसला साफ पढ रहा हूँ।’
उसने गंभीरता से ऐलान िकया-

‘मुसलमानो के रहनुमा हमारे मािलक ने अपनी िरयाया की िफक करने मे, अपनी िखदमत मे लगे
वफादार िसपािहयो को रखने और िखलाने -िपलाने की इजजत बखश़ कर िरयाया पर बडी मेहरबानी
की है। उनहे हर िदन और हर घंटे अपने अमीर का अहसान मानने का शानदार मौका िदया है।
िफर भी लुहारो ने शराफत और पाकीजगी मे िबलकुल नाम नही कमाया। लुहार युसुफ ने गुनाह
करने वालो के िलए बाल के पुल और दस ू री दुिनया की तकलीफो को भूलकर अहसान-फरामोशी मे
जुबान खोलने की गुसताखी की है। हमारे मािलक और रहनुमा आका अमीर आलीजहा के कदमो मे
िशकायत पेश करने की गुसताखी की है।’

इसिलए हमारे अमीर आलीजान ने बहुत मेहरबानी करके इस फैसले का ऐलान िकया है िक यूसुफ
लुहार की दो सौ कोडे लगाए जाएँ। साथ ही लुहार टोले पर िफर से िसपाही रखने और िखलाने -
िपलाने की िजममेदारी डालने की मेहरबानी करते है और हुकम देते है िक वहा बीस िसपाही और भेज
िदए जाएँ’...दरबारी चापलूसो का गीत एकदम शुर हो गया।

अमीर की तारीफे गाई जाने लगी। िसपािहयो ने यूसुफ लुहार को पकड िलया और जललादो के
पास ले गए। युसूफ लुहार पेट के बल चटाई पर लेट गया। हवा मे कोडा लहराया और नीचे
िगरा। लुहार की पीठ खून से रंग गई। जललाद बेरहमी से उसे पीटते रहे। उसने लेटते ही अपने
दात जम़ीन मे गडा िदए थे तािक मुँह से चीख न िनकलने पाए।

‘नही, लुहार इस सजा को आसानी से नही भूलेगा।’ मुलला नसरदीन ने कहा, ‘अमीर की
मेहरबािनयो को मरते दम तक याद रखेगा, रंगसाज भाई, तुम िकस बात का इंतजार कर रहे हो?
जाओ, अब तुमहारी बारी है।’ रंगरेज ने एक बार थूका और िबना पीछे देखे भीड चीरकर िनकल
गया।

सूदखोरो का हमददर...

बिखत़यार ने दस
ू रे मामले भी िनबटाए लेिकन अमीर के खजाने को भरना नही भूला। उसने कई
गुनगारो को उनके पास भेजा। उनमे दस साल का एक बचचा भी था, िजसने अमीर के महल के
सामने की जमीन बगावत के इरादे से गीली की थी। उसे भी सजा िमली। इसे देखकर मुलला
नसरदीन का िदल गुससे से भर उठा।

वह जोर से बोला, ‘वाकई यह लडका बहुत बडा अपराधी है। ऐसे दुशमनो से अपने तखत़ की रका
करने मे अमीर की दरू दं ेशी की िजतनी तारीफ की जाए, कम है। इसे तो सूली पर चढा देना चािहए
था। यह लडका िसफर चार साल का था, लेिकन उम तो बहाना नही है। हमारे बुखारा मे दुशमनो ने
िकतने घोसले बना िलए है, यह देखकर ही मेरा िदल उदास हो जाता है। िफर भी हमे यकीन है िक
अमीर के िसपािहयो और जललादो की मदद से सारी बुराइया जलदी ही दरू हो जाएँगी और उनकी
जगह अचछाइया ले लेगी।’

अचानक नसरदीन ने देखा िक भीड छँट गई है। कुछ लोग जलदी से िखसक गए थे, कुछ भाग रहे
थे। सहसा उसने सूदखोर को आते देखा। उसके पीछे िसपािहयो से िघरा िमटी से सना लबादा
पहने सफेद दाढीवाला एक दुबला-पतला बूढा आ रहा था। उसके साथ बुका ओढे एक औरत थी।
नसरदीन की अनुभवी आँखे उसकी चाल देखकर भाप गई। वह जवान लडकी थी।

अपनी एक आँख से लोगो को ताकते हुए सूदखोर बोला,‘जािकर, जूरा, सईद और सािदक कहा है?
अभी तो वे यही थे। उनके कजर चुकाने का वकत आ रहा है। भागकर िछपना बेकार है।’ कूबड
के बोझ से लँगडाता हुआ वह आगे बढा।

लोग आपस मे बाते करने लगे,‘यह बूढा कुबडा कुमहार और उसकी बेटी को अमीर के सामने खीच
लाया है।’ ‘बेचारे कुमहार को उसने एक िदन की भी मोहलत नही दी।’ ‘खुदा इसे गारत करे।
मुझे भी एक पखवाडे बाद कजर चुकाना है।’ ‘मुझे तो एक हफ‍ते बाद ही चुकाना है।’

‘देखा, जब यह आता है तो लोग कैसे भागकर िछप जाते है। जैसे यह हैजा या कोढ लेकर आ रहा
हो।’ ‘सूदखोर तो कोढी से भी गया-बीता है।’ मुलला नसरदीन का मन दुख से भर उठा। उसने
अपनी कसम दोहराई, ‘मै इसे उसी तालाब मे डुबोकर दम लूँगा।’ असरला बेग ने सूदखोर को
उसकी बारी से पहले ही आ जाने िदया। उसके पीछे कुमहार और उसकी बेटी भी आ गई।

सूदखोर जाफर के कजरदार...

वे घुटनो के बल िगर पडे और कालीन को चूमने लगे। वजीरे-आजम ने बडी खुशिमजाजी से कहा,
‘ऐ अकलमंद जाफर, असलाम वालेकुम, कहो िकस काम से आए हो?’

जाफर ने अमीर को संबोिधत करते हुए कहना शुर िकया, ‘शहंशाहे-आजम, मेरे आका, मै आपसे
इनसाफ मागने आया हूँ। यह नयाज कुमहार है। इसने मुझसे सौ तंके उधार िलए थे। उस पर तीन
सौ तंके सूद हो गया है। आज सवेरे कजर चुकाना था, लेिकन कुमहार ने अभी तक कुछ नही
िदया। ऐ दुिनया के सूरज, ऐ दािनशमंद अमीर, मुझे इनसाफ चािहए।’

अमीर ने एक बार िसर िहलाया और खराटे भरने लगे। मुहिररर ने सूदखोर की िशकायत खाते मे
िलख ली। वजीर ने कुमहार की ओर मुडकर कहा, ‘वजीरे-आजम को जवाब दो, तुम यह कजर
कबूल करते हो?’ कुमहार ने दबी आवाज मे कहा,‘मुझे इनकार नही है। लेिकन मै एक महीने की
मोहलत चाहता हूँ। अपने अमीर से रहम की भीख मागता हूँ।’

बिखत़यार बोला, ‘मािलक, मुझे फै़़


़सला ुनाने की इजाजत दे। वह फैसला जो मैने आपके
चेहरे पर पढा है। कानून के मुतािबक जो कजरदार वकत़ पर कजर नही चुकाता वह अपने खानदान
समेत कजर देने वाले का गुलाम हो जाता है। और तब तक गुलाम रहता है, जब तक गुलाम रहने
के समय तक कजर सूद समेत चुका नही देता।’

कुमहार का िसर नीचे झुक गया और वह कापने लगा। भीड मे खडे अनेक लोगो ने गहरी सासे
भरी और उनहे िछपाने के िलए अपने मुँह मोड िलए। कुमहार की लडकी के कंधे कापने लगे थे।
वह बुरके के अंदर िससिकया भरने लगी थी।

‘गरीबी को सतानेवाले इस बेरहम की डू बकर ही मौत होगी।’ बिखत़यार ने ऊँची आवाज मे कहा,
‘लेिकन हमारे मािलक की दिरयािदली और रहमिदली की कोई हद नही है।’ बूढे कुमहार का चेहरा
उममीद से चमक उठा।

हालािक कजर अभी अदा होना है लेिकन नयाज कुमहार को मोहलत दी जाती है, एक घंटे की
मोहलत। अगर इस एक घंटे के अंदर-अंदर सूद के साथ कजर न चुकाया गया और इस तरह
इसलामी कानून की तौहीन की गई तो कानूनी काररवाई की जाएगी। कुमहार जा सकता है। अमीर
की रहमत उस पर बनी रहे।’

बिखत़यार के चुप होते ही तखत़ के पीछे खडे चापलूस मिकखयो की तरह भनभनाने लगे। इस बार
चापलूसो ने इतने बढा-चढाकर और इतने जोर से अमीर की तारीफ की िक अमीर की नीद उचट
गई। नाराज होकर मुँह बंद करने को कहा। वे चुप हो गए।

अचानक कान के पदे फाडने वाली रैकने की आवाज से सनाटा भंग कर िदया। यह गधा नसरदीन
का ही था। या तो वह एक ही जगह खडे-खडे थक गया था या उसे लंबे कानो वाला अपना कोई
भाई बंद िदखाई दे गया था, िजसका वह सवागत कर रहा था। दुम उठाकर, थूथुनी आगे को
बढाकर अपने पीले दात िदखाते हुए वह बहुत जो़़़
रस े रैका।

अमीर ने अपने कान बंद कर िलए। िसपाही भीड पर टू ट पडे। तब तक नसरदीन दरू िनकल
चुका था। अपने अिडयल गधे को घसीटते हुए वह जोर-जोर से उसे बुरा-भला कहता जा रहा
था,‘अबे गधे, लानत है तुझ पर। तू िकस बात पर इतना खुश हुआ। कया तू शोर मचाये िबना
अमीर की दिरयादली और मेहरबािरयो की तारीफ नही कर सकता था? शायद शोर करके तू
दरबार
़ च ापलूस बनने की उममीद कर रहा था।’
का खा़़स

भीड ठहाके मारकर हँसने लगी। भीड के कारण िसपाही नसरदीन तक नही पहुँच पाए। वरना वे
उसे पकडकर कोडे लगाते और गुसताखी के जुमर मे गधे को जबत कर लेते।
एक हसीना से मुलाकात...

जब नयाज कुमहार और उसकी बेटी गुलजान वहा से चल पडे तो सूदखोर जाफर उनके पास
जाकर कहने लगा, ‘ऐ मेरी हसीना, फैसला हो चुका है और अब तुम पूरी तरह मेरे कबजे मे हो।
आज ठीक एक घंटे बाद तुम मेरे घर पहुँच जाओगी। अगर तुमने मेरे साथ नमी का वयवहार िकया
तो मै तुमहारे िपता को बिढया खाना दँग
ू ा। हलका काम दँग
ू ा। लेिकन अगर तुमने िजद की तो मै
उससे पतथर तुडवाऊँगा, खाने के िलए कचची फिलया दँग ू ा और खीवा मे ले जाकर बेच दँग
ू ा। तुम
जानती हो िक खीवा के लोग गुलामो के साथ िकतनी बेरहमी का बताव करते है। िजद मत करो
गुलजान, अपना चेहरा िदखा दो।’

उस कामाध ने गुलजान का नकाब थोडा सा उठाया। गुलजान ने गुससे से उसका हाथ झटक
िदया। लेिकन नसरदीन ने गुलजान के चेहरे की एक झलक देख ली। वह इतनी सुंदर थी िक
नसरदीन अपनी सुध-बुध खो बैठा। उसके िदल की धडकने रक गई। घबरा कर उसने आँखे
मूँद ली।

कुछ पल बाद वह सँभला और गुससे से सोचने लगा-ओह यह लँगडा, कुबडा, काना बंदर इस सुंदरी
को चाहने की गुसताखी करता है। मैने कल उसे तालाब से कयो िनकाला? अबे गंदे सूदखोर, तू
इसका मािलक कभी नही बन सकता। उनहे एक घंटे की मोहलत िमली है और नसरदीन एक घंटे
मे वह कर िदखाएगा, जो दस
ू रे एक साल मे भी नही कर सकते।

तभी जाफर ने जेब से धूपघडी िनकालकर समय देखा। ‘ऐ कुमहार, इसी पेड के नीचे मेरे इंतजार
करना। िछपने की कोिशश मत करना। मै तुमहे समंदर की तह मे भी खोज लूँगा। हसीन
गुलजान, तुमहारे बाप की तकदीर अब इस बात पर िनभरर है िक तुम मेरे साथ कैसा बताव करती
हो।’

अपने
़ बदसूरत चेहरे पर इतमीनान की मुसकान िबखेरते हुए वह गुलजान के िलए जे़वखर रीदने
के िलए सराफो के टोले की ओर चल पडा। दुखो का मारा नयाज अपनी बेटी के साथ सडक के
िकनारे पेड की छाया मे रक गया।

नसरदीन ने उसके पास पहुँचकर कहा, ‘कुमहार भाई, मैने फैसला सुन िलया है। तुम बहुत बडी
मुसीबत मे हो लेिकन शायद मै तुमहारी कुछ मदद कर सकूँ। नयाज ने नाउममीदी से कहा, ‘नही
मेहरबान, मै तुमहारे पैबदं लगे कपडो से देख रहा हूँ िक तुम मालदार नही हो। मुझे चार सौ तंके
चािहए लेिकन कोई दौलतमंद मेरा दोसत नही है। दोसत गरीब है और टैकसो ने उनहे बबाद कर
डाला है।’

‘मेरा भी यहा कोई दौलतमंद दोसत नही है। िफर भी मै यह रकम जुटाने की कोिशश करँगा।’
‘एक घंटे मे चार सौ तंके? तुम सचमुच मेरा मजाक उडा रहे हो। यह काम तो िसफर नसरदीन ही
कर सकता था।’ गुलजान ने अपनी बाहे अपने िपता के गले मे डालकर रोते हुए कहा, ‘ऐ
अजनबी, हमे बचा लो, हमे बचा लो।’

गुलजान ने नकाब के अंदर से नसरदीन को देखा। उसकी आँखो मे पानीदार चमक थी, दुआ और
उममीद थी। गुलजान को देखते ही नसरदीन का खून तेजी से दौडने लगा। उसने नयाज से
कहा,‘बजुगरवार, आप यही ठहरकर मेरा इंतजार करे। अगर मै घंटे भर मे चार सौ तंके लेकर न
लौटू ँ तो मुझे दुिनया का सबसे गया-बीता इनसान समझना।’ यह कहकर वह अपने गधे पर सवार
हुआ और बाजार की भीड मे गुम हो गया।

पढने वाला गधा...

सुबह की अपेका इस समय बाजार मे भीड कम थी। दोपहर होने वाली थी। गमी से बचने और
नफा-नु़कसान का िहसाब लगाने लोग कहवाखा़़नको ी ओर जा रहे थे। कोडो और बदन के
बेढंगेपन को िदखाते हुए िभखमंगो ने आवाज लगाई, ‘ओ नेक आदमी, अललाह के नाम पर हमे भी
कुछ िमल जाए।’

नसरदीन िचढकर बोला, ‘अलग हटाओ अपने हाथ। मै भी उतना ही गरीब हूँ, िजतने तुम। मै खुद
िकसी ऐसे आदमी की तलाश मे हूँ, जो मुझे चार सौ तंके दे सके।’ िभखमंगे यह समझकर िक
नसरदीन उनहे ताने दे रहा है, उनहोने उस पर गािलयो की बौछार शुर कर दी।

नसरदीन उनकी गािलयो को अनसुना करके एक ऐसे कहवाखाने मे चला गया, जहा रेशमी गदे और
कालीन नही थे। गधे को खूँटे से बाधने के बजाय वह उसे सीिढयो पर चढाकर ले गया। लोगो ने
बडे आशयर और खामोशी से उसका सवागत िकया।

नसरदीन ने जीन से बँधे थैले मे से कुरान िनकाली और गधे के सामने रख दी। कहवाखाने के
लोग एक-दसू रे को ताकने लगे। गधे ने लकडी के फशर पर जोर से खुर पटका। ‘अचछा? इतनी
जलदी?’ नसरदीन ने पना पलटते हुए कहा, ‘तू तो तारीफ के कािबल तरकी कर रहा है।’
कहवाखाने का मसखरा तुँिदयल मािलक वहा आ गया।

बोला, ‘सुन भले आदमी, कया यह गधा लाने की जगह है? और यह पाक िकताब तुमने इसके सामने
कयो रखी है।’ ‘मै इस गधे को धमर-कमर िसखा रहा हूँ।’ नसरदीन ने बडे इतमीनान से कहा, ‘हम
कुरान खतम कर रहे है। बहुत जलदी शरीयत पढना शुर कर देगे।’

कहवाखाने मे फुसफुसाहट होने लगी। लोग तमाशा देखने के िलए इकटे हो गए। कहवाखाने के
मािलक की आँखे फटी रह गई। मुँह खुला रह गया। अपनी िजंदगी मे ऐसी आशयरजनक बात
उसने कभी नही देखी-सुनी थी। तभी गधे ने िफर खुर पटका।

पना पलटते हुए नसरदीन ने कहा, ‘अचछा! ठीक है। िबलकुल ठीक है। बस जरा सी कसर रह
गई है बेटे। िफर तू मदरसे मे उसताद बनने के कािबल हो जाएगा। बस, यह िकताब के पने अपने
आप नही पलट सकता। िकसी को इसकी मदद करनी चािहए। अललाह ने इसे बहुत जहीन
बनाया है। बडी अचछी याददाशत है इसकी। बस, इसे उँगिलया देना भूल गया।’ लोग कहवे के
पयाले छोडकर पास आ गए। थोडी सी देर मे काफी भीड इकटी हो गई।
मुलला के आने की खुशी...

नसरदीन समझाने लगा, ‘यह कोई मामूली गधा नही है। अमीर का गधा है। एक िदन अमीर ने
मुझे बुलाकर कहा, ‘कया तुम मेरे गधे को धमर-कमर िसखा सकते हो, तािक वह भी उतना ही सीख
जाए, िजतना मै जानता हूँ। मैने गधे को देखकर कहा, ‘महान अमीर, यह गधा उतना ही बुिदमान
है, िजतने आप है, या आपके वजीर लेिकन इसे दीिनयात िसखाने मे बीस बरस लगेगे।

अमीर ने खजाने से सोने के पाच हजार तंके मुझे िदलवाकर कहा, ‘गधे को ले जाओ और पढाओ।
अगर यह बीस साल के बाद दीिनयात न सीख पाया और इसे कुरान जबानी याद न हुई तो मै
ू ा।’
तुमहारा िसर कटवा दँग

कहवाखाने के मािलक ने कहा, ‘तो तुम अपने िसर को अलिवदा कह लो। गधे को दीिनयात और
कुरान पढते कया िकसी ने देखा-सुना है?’

‘बुखारा मे ऐसे गधो की कमी नही है। मुझे सोने के पाच हजार तंके चािहए और ऐसे अचछे गधे
रोज-रोज तो िमलते नही। मेरे िसर के कटने की िफक मत करो दोसत। कयोिक बीस सालो मे हम
मे से एक-न-एक जरर मर जाएगा। या तो मै, या अमीर का यह गधा। और तब यह पता लगाने मे
बहुत देर हो चुकी होगी िक दीिनयात जाननेवाला सबसे बडा िवदान कौन है।’

कहवाखाना जोरदार कहकहो से गूँज उठा। मािलक नमदे पर िगर गया। हँसते-हँसते उसके पेट
मे बल पड गए। आँसुओं से भीग गया। वह बहुत ही हँसोड और खुशिमजाज था। हँसते हुए बोलो,
‘सुना तुमने, हा-हा तब तक यह जानने के िलए बहुत देर हो चुकी होगी िक इससे बडा आिलम
(िवदान) कौन है-हा-हा-हा।’

अचानक उसे कुछ याद आ गया। उसने कहा, ‘ठहरो, ठहरो, तुम हो कौन? कहा से आए हो? तुम
कही नसरदीन तो नही हो?’ ‘यह कया कोई कहने की बात है। मै नसरदीन ही हूँ। बुखारा शहर
के िनवािसयो, आपको सलाम।’

काफी देर तक लोग खामोश रहे। िफर िकसी ने खुशी भरी आवाज मे कहा, ‘नसरदीन?’ िफर
एक-एक करके और लोग भी िचलला उठे, ‘नसरदीन-नसरदीन।’ उनकी आवाज दस ू रे कहवाखानो
तक पहुँची और िफर सारे बाजार मे फैल गई।

शोर मच गया, ‘नसरदीन-नसरदीन!’ और लोग दौड दौडकर आने लगे, नसरदीन का सवागत करने
लगे। िकसी ने एक बोरा जई, एक गटर ितपितया घास और एक बालटी पानी लाकर गधे के सामने
रख िदया। ‘तूम खूब आए नसरदीन! कहा भटकते रहे थे अब तक?

नसरदीन ने झुक-झुककर भीड को सलाम करते हुए कहा, ‘मै दस बरस तक आप लोगो से दरू
रहा। आज आपसे िमलकर मेरा िदल खुशी से नाच रहा है।’ उसने िमटी का एक बतरन उठा िलया
और गाने लगा।

उसने गा-गाकर अमीर के अनयाय और सूदखोर जाफर के अतयाचारो की कहािनया सुना डाली।
नयाज कुमहार की कहानी सुनाने के बाद उसने कहा, ‘सूदखोर और उसके जुलम से बचाने के िलए
हमे कुमहार की मदद करनी चािहए। आप सब उसे अचछी तरह जानते है। कुछ िदनो के िलए कया
कोई मुझे चार सौ तंके दे सकता है?’

एक िभशती नंगे पैर आगे बढा, ‘नसरदीन, हमारे पास तंके कहा? हमे भारी टैकस अदा करने पडते
है। लेिकन मेरे पास यह पटका है। लगभग नया ही है। शायद इससे तुमहे कुछ िमल जाए।’

उसने अपना पटका नसरदीन के कदमो मे डाल िदया। भीड मे कानाफूसी होने लगी। कुलाडी,
जूितया, पटके, रमाल, लबादे उड-उडकर
़ उसके कदमो मे आने लगे। कहवाखा़़न े
का मौजी
मािलक सबसे बिढया कहवादािनया और ताबे की तशतिरया ले आया। भेट मे दी गई चीजो का ढेर
बढता चला गया।

‘बस, काफी है।’ नसरदीन चीखकर बोला, ‘अब मै नीलामी शुर करता हूँ। यह रहा िभशती का
पटका, जो इसे खरीदेगा उसे कभी पयास नही सताएगी। मै इसे ससते ही बेच रहा हूँ। ये रहे कुछ
मरममत िकए हुए पुराने जूते। ये जरर दो बार मका हो जाए है। जो उनहे पहनेगा उसे लगेगा िक
वह िजयारत कर रहा है। ये है चाकू और लबादे, ससते मे ही बेच रहा हूँ। वकत़ बहुत कीमती है।
जलदी करो।’

लेिकन वजीरे-आजम बिख्तयार ने बडी मेहनत से ऐसा इंतजाम कर िदया था िक बुखारा मे


रहने ने े
़ वालो की जेब मे ताबे तक का फूटा िसका नही बचता था। फौरन अमीर के खजा़़म
पहँुच जाता था।
कहवाखाने मे नीलामी...
तभी उधर से सूदखो़़़
रज ाफर गुजरा। उसका थैला सोने -चादी
़ के जे़वसरो े फूल रहा
़ ये जे़वउर सने गुलजान के िलए खरीदे थे। एक घंटे का िदया हुआ वक्त खतम हो रहा
था।
था।
़ सूदखो़़रब डी बेताबी से जलदी -जलदी जा रहा था।

लेिकन नसरदीन की नीलामी की आवाज सुनते ही वह लालच मे फँस गया। उसे देखते ही लोग
एक ओर हट गए, कयोिक हर तीसरा आदमी उसका कजरदार था। जाफर ने नसरदीन को पहचान
िलया, ‘तो तुम ही हो, िजसने कल मुझे तालाब से िनकाला था?

तुम यहा ितजारत कर रहे हो? तुमहे इतना माल कहा से िमल गया?’ ‘हजरत जाफर! ’ नसरदीन ने
उतर िदया, ‘कया आपको याद नही िक आपने कल मुझे आधा तंका िदया था। मैने उसी से
ितजारत की और तकदीर ने मेरा साथ िदया।’

जाफर ने कहा, ‘मेरे िसके से तुमहे बहुत फायदा हुआ। इस ढेर का कया लोगे?’ ‘छः सौ तंके’
‘पागल हो गए हो कया? िजसने तुमहारा भला िकया उससे इतनी बडी रकम मागते हुए तुमहे शमर
आनी चािहए। दो सौ तंके-मै बस इतने ही दे सकता हूँ।’

‘पाच सौ तंके। मै आपकी इजजत करता हूँ जाफर साहब! आप पाच सौ तंके ही दे दीिजए।’
‘अहसान, फरामोश, कया तेरी यह दौलतमंदी मेरी वजह से नही है?’ नसरदीन बदाशत नही कर
पाया। बोला, ‘अबे सूदखोर, कया तू मेरी वजह से िजंदा नही है? अगर माल खऱीदना है तो ठीक से
दाम लगा।’ ‘तीन सौ।’

नसरदीन चुप रहा। जाफर अनुभवी आँखो से माल की कीमत आँकने लगा। जब उसे तसलली हो
गई िक सारा माल कम-से-कम सात सौ तंको मे िबक जाएगा, तब उसने दाम बढाने का िनशय
िकया। ‘साढे तीन सौ।’ ‘नही चार सौ।’ ‘पौने चार सौ।’ ‘चार सौ।’ नसरदीन अडा रहा।

जाफर ने एक-एक तंका करके दाम बढाए। सौदा पट गया। उसने चार सौ तंके िगनते हुए कहा,
‘अललाह कसम, इस माल की दुगनी कीमत दे रहा हूँ। मेरी आदत ही है। रहमिदली की वजह से
मै नुकसान उठाता हूँ।’

एक िसका लौटाते हुए ख्वाजा नसरदीन ने कहा, ‘यह िसका खोटा है। और ये पूरे चार सौ तंके
नही है, कुल तीन सौ अससी है। तुमहारी नजर कमजोर होती जा रही है, जाफर साहब।’
सू़ दखो़़रखोटा िसका बदलने और बीस तंके और देने को मजबूर हो गया। उसने चौथाई तंके
पर एक मजदरू िलया और सारा माल उस पर लादकर चल िदया।

नसरदीन ने कहा, ‘मै भी उसी ओर जा रहा हूँ। वह गुलजान को देखने के िलए बेताब था, इसिलए
जलदी-जलदी जा रहा था। लेिकन लँगडा होने के कारण जाफर धीरे-धीरे चल रहा था। ‘तुम
इतनी जलदी-जलदी कहा जा रहे हो?’ आसतीन से पसीना पोछते हुए जाफर ने पूछा। आँखो मे
शरारत भरी चमक लाकर नसरदीन ने कहा, ‘वही जहा आप जा रहे है। मै और आप एक ही जगह
एक ही काम से जा रहे है, जाफर साहब।’

‘तुमहे मेरे काम का कया पता? अगर तुम जान जाते तो तुमहे जलन होने लगती।’ नसरदीन ने
हँसते हुए कहा, ‘ऐ सूदखोर, अगर तुमहे कल की खबर होती तो तुम मुझसे दस गुना जलने
लगते।’

जाफर ने इस जबान को गुसताखी समझकर गुससे से कहा, ‘तू बहुत जबान चलाता है। बुखारा मे
कुछ ही लोग मुझसे बडे है। मै रईस हूँ। मेरी मनचाही होने मे कोई रकावट नही पडती। मैने
बुखारा की सबसे हसीन लडकी चाही थी और आज वह मेरी हो जाएगी।’

तभी एक आदमी डिलया मे चेरी िलए हुए उधर से गुजरा। नसरदीन ने डिलया मे से लंबे डंठल
वाली एक चेरी उठा ली और जाफर को िदखाते हुए बोला, ‘जाफर साहब, एक कहानी सुिनए। एक
िसयार ने एक बहुत ऊँचे पेड पर एक चेरी देखी। उसने मन-ही-मन कहा, जब तक यह चेरी मुझे
नही िमल जाएगी, मै चैन से नही बैठूँगा। वह पेड पर चढने लगा।

टहिनयो से बुरी तरह िछलते हुए वह घंटे तक चढता रहा। जब वह चेरी के पास पहुँचा और मुँह
फाडकर उसे खाने की तैयारी करने लगा, एक बाज ने झपटा मारा और चेरी को लेकर उड गया।
िसयार को पेड से उतरने मे िफर दो घंटे लगे और वह और जयादा िछल गया। रो-रोकर कहने
लगा-मै इस चेरी के िलए पेड पर चढा ही कयो? सभी जानते है िक पेडो पर चेरी िसयारो के िलए
नही उगा करती।’

जाफर ने घृणा से कहा, ‘तू बेवकूफ है। इस िकससे मे मुझे तो मतलब की कोई बात िदखाई नही
देती। ‘गहरे मतलब फौरन िदखाई नही देते।’ नसरदीन ने कहा। चेरी का डंठल उसके कुलाह मे
दबा था और चेरी उसके कान के पीछे लटक रही थी।
मुलला ने चुकाया कजर, टू टी गुलामी की जंजीर...

भीड के सामने ही कुमहार अपनी बेटी के साथ एक पतथर पर बैठा था। कुमहार उठ खडा हुआ।
उसकी आँखो की रही-सही आस भी बुझ गई। गुलजान ने एक आह भरी। ऐसी ददर भरी आवाज मे
बोली, िजसे सुनकर पतथर भी रोने लगते, ‘अबबा, हम बबाद हो गए।’

ले़ िकन सूदखो़रज


़ ाफर तो पतथर से भी कठोर था। उसके चेहरे पर कूरता भरी िवजय झलक
रही थी। उसने कहा, ‘नयाज, िमयाद खतम हो गई। अब तुम मेरे गुलाम हो। और तुमहारी बेटी
मेरी गुलाम रखैल है।’

नसरदीन को नीचा िदखाने और चोट पहुँचाने के िलए उसने मािलको जैसे अंदाज मे गुलजान के
चहरे पर से नकाब हटा िदया। ‘देखो, यह खूबसूरत है ना? आज मै इसी के साथ सोऊँगा। अब
बताओ, िकसे िकससे जलन होनी चािहए?’ ‘सचमुच लडकी खूबसूरत है। लेिकन कया तुमहारे पास
कुमहार की रसीद है?’

‘रसीद के िबना कोई कैसे काम कर सकता है। सभी चोर और धोखेबाज है।’ जाफर ने कहा
और रसीद िदखाते हुए बोला, ‘यह यही रसीद, िजस पर कजर की रकम और उसे चुकाने की
तारीख िलखी है। नीचे कुमहार के अंगूठे का िनशान है।’

मुलला नसरदीन ने कहा, ‘हा, रसीद तो ठीक है। अब रसीद के मुतािबक अदायगी के आप गवाह
़ जाइए।’ िफर नसरदीन ने रसीद फाडकर फेक दी और रकम सूदखो़़रको िगन दी।
बन
नयाज और उसकी बेटी खुशी और अचंभे से खडे थे। सूदखो़़़रग ुससे से पतथर की मूितर बन
गया। गवाहो ने एक-द़स
ू रे को आँख मारी और बदनाम सूदखो़़रकी हार पर खुश होकर हँसने
लगे।

नसरदीन ने कान के पीछे से चेरी िनकाली और सूदखोर की ओर आँख मारकर मुँह मे रख ली।
िफर
़ होठ चटखाने लगा। सूदखो़़रका बदनुमा बदन कापने लगा। उसकी अचछी वाली आँख
गुससे से बाहर को उबल आई। उसका कूबड कापने लगा।

उसने तुतलाकर कहा, ‘मुझे अपना नाम तो बता दो, तािक मुझे यह मालूम हो जाए िक मै िकसके
िलए बदुआ करँ?’ नसरदीन का चेहरा चमक रहा था। उसने सपष और ऊँची आवाज मे कहा,
‘बगदाद मे, तेहरान मे, इसतमबूल और बुखारा मे, मुझे हर शहर मे लोग एक ही नाम से जानते है
और वह नाम है- मुलला नसरदीन।’

सू़ दखो़़रड र के मारे सफेद पड गया। िफर पीछे की ओर हटते हुए बोला , ‘नसरदीन?’ और
अपने मजदरू को खदेडते हुए भागने लगा। आसपास खडे लोग ऊँची आवाज मे खुशी से बोल उठे,
‘नसरदीन-नसरदीन।’ नकाब के पीछे गुलजान की आँखे चमक उठी। बूढा नयाज अभी तक
अपने -आपको सँभाल नही पाया था। वह हवा मे हाथ िहलाते हुए िमनिमनाने लगा।

अमीर की अदालत मे सूदखोर जाफर

अमीर की अदालत अभी तक जारी थी। जललाद कई बार बदले जा चुके थे। बेत खाने वालो की
संखया बढती चली जा रही थी। दो आदमी सूली पर लटक रहे थे। तीसरे का िसर धड से अलग
हो चुका था।

धरती
़ खू़न
स े तर हो चुकी थी। लेिकन कराहने और चीखने की आवाजे नीद मे भरे अमीर के
कानो तक नही पहुँच रही थी, कयोिक दरबारी चापलूस उसके कानो पर कसीदो की बौछार कर रहे
थे। तारीफ करते समय वजीरे-आजम अनय वजीरो और असरला बेग को शािमल करना नही भूलते
थे।

यहा तक िक चँवर डुलाने वाले और हुके वाले को भी शािमल कर लेते थे। उनका खयाल था िक
हर एक को खुश करने की कोिशश करनी चािहए। कुछ की इसिलए िक वे फायदेमदं सािबत हो
और कुछ िक इसिलए िक वे खतरनाक सािबत न हो।

असरला बेग ने दरू से आती हुई आवाजो को बडी बेचैनी से सुना और अपने दो अनुभवी जासूसो को
बुलाकर कहा, ‘पता लगाकर आओ िक लोग इतने जो़़़ रस े कयो बोल रहे है ?’ दोनो जासूस,
फकीर और दरवेश के वेश मे चल िदए। लेिकन इससे पहले िक वे लौटते सूदखोर जाफर दौडता
हुआ वहा पहुँच गया।

वह पीला पड रहा था। उसके पैर लडखडा रहे थे और बार-बार उसके लबादे मे उलझ जाते थे।
असरला बेग ने वयगता से पूछा, ‘कया हुआ जाफर साहब?’ कापते होठो से जाफर िचललाया,
‘मुसीबत, असरला बेग साहब, मुसीबत। हम पर बडी भारी मुसीबत आ पडी है। मुलला नसरदीन
हमारे ही शहर मे मौजूद है। मैने उसे अभी-अभी देखा है। उससे बाते भी की है।’
असरला बेग की आँखे बाहर िनकल आई। वह टकटकी बाधे उसे देखते रह गया। तख्त की
सीिढया उसके बोझ से दबने लगी। वह दौडकर नीद मे बेसुध पडे अपने मािलक के पास पहुँचा
और उसके कान पर झुक गया।

अमीर चौककर सीधा बैठ गया। जैसे िकसी ने काटा चुभा िदया हो। वह िचललाया, ‘तू झूठ
बोलता है।’ कोध और भय से उसका चेहरा बदसूरत िदखाई देने लगा। यह सच नही है। कुछ ही
िदन पहले बगदाद के खलीफा ने मुझे िलखा था िक उनहोने उसका िसर कटवा िदया है।

तुकी के सुलतान ने िलखा था िक उनहोने उसे सूली पर लटकवा िदया है। ईरान के शाह ने खुद
अपने हाथ से मुझे िलखा था िक उसे उनहोने फासी दे दी है। खीवा के खान ने िपछले बरस आम
ऐलान िकया था िक उनहोने उसकी खाल िखंचवा ली है। यह मुलला नसरदीन! उस पर लानत
बरसे, चार-चार शाहो के हाथो से बचकर कैसे िनकल सकता है?’

मुलला की खबर से बौखलाया अमीर...

वजीर और दरबारी के चेहरे मुलला नसरदीन का नाम सुनते ही पीले पड गए। चँवर डुलाने वाले के
हाथ से चँवर िगर गया। हुके वाले के गले मे धुआँ फँस गया और वह जो़ऱ़ -जोर से खासने
लगा। चापलूसो की जुबाने तालू से िचपक गई। असरला बेग ने दोहराया ‘वह यही है।’

‘तू झूठ बोलता है,’ अमीर िचललाया। और िफर शाही हाथ ने उसके गाल पर जोर से तमाचा जड
िदया, ‘तू झूठा है। अगर वह वाकई यहा है तो वह बुखारा मे कैसे घुस आया। तेरे और पहरेदारो
के रहने से कया फायदा? कल रात बाजार मे जो कुछ हुआ, उसी की शरारत थी? उसने िरयाया को
हमारे िखलाफ भडकाने की कोिशश की लेिकन तूने कुछ नही सुना?’

अमीर ने िफर असरला बेग को पीटा। वह झुका और जैसे ही अमीर का हाथ नीचे िगरा, उसे
चूमकर बोला, ‘मािलक, वह यही है, बुखारा मे ही। कया आप सुन नही रहे?’ इस पर होने वाला शोर
भूचाल की तरह फैलने लगा। जो लोग अदालत मे खडे थे। वे भी जोश मे आ गए।

पहले धीमी-धीमी भनभनाहट हुई और िफर साफ-साफ आवाज सुनाई देने लगी। आवाज कुछ देर मे
ही ऊँची और बुलंद होने लगी। अमीर का अपना िसंहासन और तख्त िहलता हुआ महसूस होने
लगा। तभी भीड मे से एक नाम उठा और एक िसरे से दसू रे िसर तक गूंजता चला गया। मुलला
नसरदीन। इस नाम से अदालत गूँज उठी।

पहरेदार मशाले िलए तोपो की ओर भाग छू टे। अमीर का िदल घबरा उठा। वह िचललाए, ‘इजलास
खतम करो। चलो सब महल को।’ और अपनी िखलअत का दामन समेटते हुए वह महल की ओर
भाग छू टा। उसके पीछे नौकर-चाकर िगरते-पडते भागने लगे।

वजीर-िसपाही, मीरासी और अनय लोग जान बचाकर एक-दस ू रे को धका देते भागने लगे। उनके
जूते वही छू ट गए। िसफर हाथी अपनी पुरानी शान-शौकत से वापस लौट सके। उनके जूते वही
छू ट गए। िसफर हाथी अपनी पुरानी शान-शौकत से वापस लौट सके।

अमीर के जुलूस का िहससा होते हुए भी उनहे िरयाया से डरने की कोई जररत नही थी। महल के
पीतल जडे फाटक अमीर और उनके दरबार के भीतर पहुँचते ही खडखडाहट के साथ बंद हो
गए। इस बीच बाजार खचाखच भर चुका था और वहा मुलला नसरदीन का नाम रह-रहकर गूँजने
लगता था।
मुलला नसरदीन ने बदला भेष...

बहुत पुराने जमाने से कुमहार बुखारा शहर के पूरबी फाटको के पास िमटी के एक बडे टीले के
आस-पास बसे हुए थे। इससे अचछी जगह वे अपने िलए कही तलाश नही कर सकते थे। िमटी
पास ही िमल जाती थी। शहर के परकोटे के नीचे बहने वाली िसंचाई की नहर से पानी िमल जाता
था।

कुमहारो के दादा, परदादा और लकडदादा ने िमटी लेते-लेते टीले को आधा कर िदया था। वे अपने
घर इसी िमटी से बनाते। इसी िमटी से बतरन बनाते और एक िदन उनके िरशतेदार रोते-धोते उनहे
इसी िमटी मे दफन कर आते।

यही, नहर के िबलकुल िकनारे पुराने छायादार पेडो के नीचे नयाज कुमहार का घर था। पितया हवा
के
मे झूमती रहती, पानी गाता-गुनगुनाता बहता रहता और घर का छोटा-सा़ बगीचा गुलजा़़न
गानो से गूँजता रहता।

मुलला नसरदीन ने नयाज के घर रहने से इनकार कर िदया। नही नयाज, तुमहारे घर मे पकडा जा
सकता हूँ। रात मै पास ही एक जगह पर िबताया करँगा। िदन मे आकर तुमहारे काम मे मदद
िकया करँगा। वह सूरज िनकलने से पहले ही नयाज के घर पहुँच जाता।

दुिनया का कोई भी ऐसा काम नही था, िजसकी बारीिकयो से वह पिरिचत नही था। वह ऐसे िचकने
और खनकदार बतरन बनाता, िजनमे गमर से गमर मौसम मे भी पानी बफर जैसा ठंडा रहता था। बूढे
नयाज की आँखे कमजोर होती जा रही थी।

िदन भर मे वह मुिशकल से पाच-छह घडे बना पाता था। लेिकन अब तो तीस, चालीस और कभी-
़ तो पचास घडे तक धूप मे सूखते िदखाई देते थे। बाजा़़रके िदन नयाज घर लौटता तो
कभी
उसकी थैली भरी होती। रात मे पकते हुए पुलाव की खुशबू सारी बसती मे फैल जाती थी। पडोसी
उसके िदन िफरने पर बहुत खुश थे।

आिखर नयाज की िकसमत पलट ही गई। अललाह की शान, उसकी गरीबी हमेशा के िलए दरू हो
गई। वे एक-दस ू रे से कहा करते-‘सुना है, अपनी मदद के िलए उसने एक कारीगर रख िलया है।
वह कुमहारगीरी मे अचछे-अचछो के कान काटता है।’ ‘मैने भी सुना है। एक िदन मै नयाज के घर
गया था, उसके कारीगर को देखने। जैसे ही मै बगीचे के फाटक मे घुसा, कारीगर चला गया।
िफर पलटकर नही आया।’

बूढा अपने कारीगर को िछपाकर रखता है। उसे डर है िक उसे कोई लालच देकर फुसला न ले।
अजीब आदमी है। जैसे हम कुमहारो के आतमा ही नही या हम उसकी िकसमत िबगाडने की कोिशश
करेगे।

िकसी को संदेह तक नही हुआ िक नयाज का कारीगर कोई दस


ू रा नही है, खुद मुलला नसरदीन
ब े ुखारा छोडकर
है। कयोिक सबको पूरा-पूऱ ा िवशास था िक मुलला नसरदीन तो बरसो बी़़त
कही चला गया था।

यह अफवाह खुद मुलला नसरदीन ने फैलाई थी, तािक जासूस परेशान हो जाएँ और उनका जोश
ठंडा पड जाए। उसे अपने इस उदेशय मे सफलता भी िमली थी। दस िदन बाद ही शहर के सभी
फाटको पर से आधे पहरेदार हटा िदए गए थे और रात को हिथयार खडखडाते मशालो की
चकाचौध फैलाते गशत वाले िसपािहयो से बुखारा िनवािसयो को छुटकारा िमल गया था।
गुलजान पर िफदा मुलला नसरदीन..

एक िदन बूढे नयाज ने मुलला नसरदीन ने कहा, ‘तुमने मुझे और मेरी बेटी को गुलामी और
बेइजजती से बचाया है। तुम मेरे साथ काम करते हो। मुझसे दस गुने घडे बना डालते हो। जब
तुमने मेरी मदद शुर की है, तबसे मै तीन सौ पचास तंके कमा चुका हूँ। इस रकम पर तुमहारा
हक है, तुम इसे ले लो।’

चाक रोककर मुलला नसरदीन आशयर से बूढे को देखने लगा। िफर बोला, ‘लगता है, तुमहारी
तिबयत कुछ खराब है। तभी तुम ऐसी बाते कर रहे हो। तुम मािलक हो और मै तुमहारा नौकर हूँ।
अगर तुम मुझे िसफर पैतीस तंके दे दो तो मुझे जररत से जयादा तसलली िमल जाएगी।’

नयाज की फटी-पुरानी थैली मे से पैतीस तंके िनकालकर उसने बाकी तंके उसे वापस दे िदए।
लेिकन नयाज ने रकम न लेने की िजद पकड ली। ‘यह ठीक नही है मुलला नसरदीन। यह रकम
तुमहारी है। पूरी नही तो आधी तो ले ही लो।’

‘यह थैला हटा लो और दुिनया का दसतूर मत िबगाडो। अगर सभी मािलक अपने कारीगरो को
मुनाफे का आधा िहससा देने लगेगे तो कया होगा। िफर न मािलक रहेगे न नौकर। न रईस न
गरीब, न पहरेदार और न अमीर। अमीर ऐसी बेइनसाफी कैसे बदाशत करेगा।’

यह कहकर मुलला नसरदीन िफर अपना चाक घुमाने लगा, ‘यह घडा बहुत ही खूबसूरत बनेगा।
हमारे अमीर के िसर की तरह बोलता है। इसे मुझे महल तक ले जाना पडेगा तािक अगर अमीर
का िसर िफर जाए तो यह घडा काम आ सके।’ ‘होिशयार मुलला नसरदीन! ऐसी बाते कहकर
कही तुम अपना िसर न खो बैठो।’

‘मुलला नसरदीन का िसर उडा देना हँसी-खेल नही है।’ मुलला नसरदीन ने कहा और एक गीत
गाने लगा, िजसमे बुखारा के अमीर का खुलकर मजाक उडाया गया था। नयाज की पीठ के पीछे
अंगूर की बेलो से गुलजान का हँसता हुआ चेहरा एक पल को िदखाई िदया। मुलला नसरदीन ने
गीत अधूरा छोड िदया और रहसयपूणर इशारे करने लगा।

‘उधर कया देख रहे हो?’ नयाज ने पूछा। ‘बिहशत की िचिडया, जो दुिनया मे सबसे जयादा सुंदर
है।’ नयाज बडी किठनाई से पीछे की ओर घूमा। लेिकन तब तक गुलजान बेलो के पीछे गुम हो
चुकी थी। केवल दरू से आती उसकी रपहली हँसी सुनाई दे रही थी।

धूप की चकाचौध से बचने के िलए आँखो पर हाथ की आड बनाए वह देर तक अपना कमजोर
आँखे उधर गडाए रहा लेिकन उसे एक डाल से दसू री डाल पर कूदती-फूदकती गौरैया के िसवा
और कुछ िदखाई नही िदया। ‘समझ से काम लो नसरदीन। यह तो मामूली गौरैया है। यह बिहशत
की िचिडया कैसे हो गई?’

नसरदीन कहकहा लगाकर हँस पडा। बेचारा नयाज हँसी की तुक न समझकर िनराशा से िसर
िहलाने लगा। रात के खाने के बाद नसरदीन चला गया तो नयाज ऊपर छत पर जाकर हलकी गमर
हवा के झोको मे सोने की तैयारी करने लगा। थोडी देर बाद ही उसके खराटे गूँज उठे।
गुलजान से मुलला की मुलाकात...

तभी छोटे जँगले के पीछे से खासने की हलकी- सी आवाज सुनाई दी। नसरदीन लौट आया था।
‘अबबा सो गए है!’ गुलजान ने फुसफुसाकर कहा। एक ही छलाग मे मुलला नसरदीन ने जंगला
पार कर िलया। वे दोनो िचनार के पेडो के साये मे आ गए।

हरे िलबास मे िलपटे लंब-े लंबे पेड धीरे-धीरे ऊँघते िदखाई दे रहे थे। नीचे आकाश मे चाद चमक
रहा था। उसकी पूरी रोशनी मे गुलजान नसरदीन के सामने खडी थी। नसरदीन ने बहुत ही धीमी
आवाज मे कहा,‘मेरी रह की मिलका, मैने िजंदगी मे पहली और आिखरी बार मुहबबत की है। मेरी
िजंदगी तेरा ही इंतजार कर रही थी। अब मैने तुझे पा िलया है। तेरे िबना मै िजंदा नही रह
सकता।’

‘मुझे यकीन है िक तुम यह बात पहली बार नही कर रहे हो।’ ‘गुलजान, तूने ऐसा कैसे कहा?’
नसरदीन ने गुससे से पूछा। नसरदीन के इस गुससे मे सचचाई थी। गुलजान को िवशास हो गया।
वह अपनी कही बात पर खेद पकट करती हुई उसके पास आ बैठी। नसरदीन ने अपने होठ
उसके होठो से सटा िदए।

‘सुनो, हमारे यहा का िरवाज है िक िजस लडकी को चूमते है, उसे कोई-न-कोई तोहफा देते है।
एक हफते से जयादा हो गया। हर रात तुम मुझे चूमते हो, लेिकन तुमने अभी तक तार का एक
टुकडा तक नही िदया।’ गुलजान ने िशकायत भरे लहजे मे कहा।

मेरे पास पैसा नही था। आज तुमहारे अबबा ने मुझे पैसे िदए है। मै कल ही तुमहारे िलए एक बिढया
तोहफा लाऊँगा। बताओ तुमहे कया पसंद है? मोती, रमाल या िबललौर जडी अंगूठी?

‘कुछ भी सही, तुमहारा जो भी तोहफा हो, वही बहुत है। मै तो तुम पर उसी वक्त िनछावर हो गई
थी, जब पहली बार बाजार मे तुम हमारे पास आए थे। जब तुमने उस बदमाश सूदखोर जाफर को
भगाया था, मेरा पयार और भी बढ गया था।’

नसरदीन गुलजान से और सटकर बैठ गया। उसने अपना हाथ बढाया और हथेली से उसका
उभरा हुआ नमर गुदगुदा सीना थाम िलया। उसकी सास रक गई। उस पर जाद ू सा छा गया।
तभी उसकी आँखो के आगे िचंगािरया उडने लगी। उसका गल झनझना उठा।

‘बदतमीज?’ गुलजान ने टोककर कहा, ‘यही कया कम बात है िक मै लाज-शमर छोडकर िबना बुके
के तुमहारे सामने आ जाती हूँ। तुम अपने लंबे हाथ उधर कयो बढाते हो, िजधर तुमहे नही बढाने
चािहए।’ ‘मेहरबानी करके यह बता दो िक यह िकसने तय िकया है िक हाथ िकधर बढाने चािहए,
िकधर नही? अगर तुमने सबसे बडे आिलम इब तुफैल की िकताबे पढी होती?’
‘खुदा का शुक है िक मैने ऐसी गंदी िकताबे नही पढी।’ गुलजान कुद होकर बीच मे ही बोल
पडी।’ मै इजजत की िहफाजत करती हूँ, जो हर शरीफ लडकी को करनी चािहए।’

वह उसके पास से तेजी से चली गई। जी़़़ के ी सीिढया उसके धीमे कदमो से चरमराई और

िफर बारजे की िझरीदार िखडकी से रोशनी आती िदखाई देने लगी। मैने उसके मन को ठेस
पहुँचाई। मै बहुत बडा बेवकूफ हूँ। कोई बात नही कम-से-कम यह पता तो लग गया िक उसका
सवभाव कैसा है।

अगर वह इस तरह मेरे तमाचा मार सकती है तो िकसी और के भी जड सकती है। वह बहुत ही
वफादार बीवी सािबत होगी। िजस तरह शादी से पहले वह मेरे तमाचे मार सकती है, अगर शादी
के बाद इसी तरह दसू रो के भी तमाचे मार सके तो मुझे बडी तसलली होगी। पंजे के बल चलकर
वह बारजे तक पहुँचा। उसने हलके से पुकारा, ‘गुलजान! गुलजान।’

खुशबू, अँधेरा और खामोशी। नसरदीन उदास हो उठा। और इतनी धीमी आवाज मे एक पयारा भरा
गीत गाने लगा िक नयाज के कानो तक उसकी आवाज न पहुँच पाए। वह गाता रहा। लेिकन
गुलजान ने न तो कुछ कहा और न सामने ही आई।

उसे िवशास था िक ऐसा पयार भरा गीत सुनकर कोई भी लडकी बैठी नही रह सकती। वह जरर
सुन रही होगी। उसका अनुमान सही था। कुछ देर बाद िझलिमली थोडी सी खुली। ‘आओ,’
गुलजान से फुसफुसाकर कहा, ‘लेिकन धीरे से आना। कही अबबा जाग न जाएँ।’ वह जीना
चढकर ऊपर पहुँचा और उसके पास जा बैठा। वे दोनो बाते करने लगे।तोहफे की तलाश मे
मुलला...

छत पर बूढा खासता, खरखर सास लेता कुनमुनाया। उसने नीद भरी आवाज मे गुलजान को
पुक
़ ारकर पानी मागा। गुलजान ने धीरे से मुलला नसरदीन को दरवाजे़ की ओर हलके से
धकेल िदया। वह जीने से हलके पाव उतरा और मुँह-हाथ धोकर अपने लबादे के दामन से मुँह
पोछता हुआ िफर लौट आया और लकडी के फाटक को खटखटाने लगा।

‘अससलामवालेकुम नसरदीन!’ नयाज ने छत से ही उसका सवागत िकया? िपछले कई िदनो से तुम


बहुत तडके उठने लगे हो। सोने का वक्त तुमहे कब िमलता है। चलो काम शुर करने से पहले
कहवा पी ले।’

दोपहर मे नसरदीन गुलजान के िलए तोहफा खरीदने बाजार की ओर चल पडा। उसने बदखशा का
रंगीन साफा बाध िलया। नकली दाढी लगा ली। इस तरह वेश बदलने पर वह पहचाना नही जाता
था और जासूसो के डर के िबना दुकानो और कहवाखानो मे चला जाता था।

वापसी मे नसरदीन ने बाजार की मिसजद के पास भीड देखी। लोग िघचिपच खडे गदरने उठाए
एक-दसू रे के कंधो के पास कुछ देख रहे थे।

पास आने पर नसरदीन को एक िचडिचडी और ऊँची आवाज सुनाई दी-‘ए मोिमनो! अपनी आँखो से
देख लो। इसे लकवा मार गया है। दस साल से यह िबना िहले-डुले इसी तरह लेटा है। इसके
बदन के िहससे ठंडे और बेजान हो गए है। यह आँखे भी नही खोल पाता। बहुत दरू से हमारे शहर
मे आया है। इसके मेहरबान दोसत और िरशतेदार इसे यहा इसिलए लाए है िक जो एक इलाज बच
गया है, उसे भी आजमा ले। एक हफते बाद इसे पाकवली बहाउदीन के उसर के िदन मजार की
सीिढयो पर िलटा िदया जाएगा। हजारो अंधे, लँगडे, अपािहज चंगे हो चुके है। ऐ मुसलमानो, दुआ
करो िक पाक शेख इस पर करम करे और इस बदिकसमत को चंगा कर दे।’

लोग दुआ करने लगे। वही तेज-तरार आवाज िफर सुनाई दी-‘ऐ मोिमनो, अपनी आँखो से देख लो।
यह आदमी दस साल से िबना िहले-डुले इसी तरह पडा है।’ नसरदीन धका देकर भीड मे आगे बढ
गया। उसने पंजे के बल उचककर उसे लंबे, दुबले, पतले वयिकत को देखा, िजसकी आँखे छोटी
और शरारत भरी थी। चेहरे पर कचची दाढी थी।

वह िचलला-िचललाकर अपनी उँगली से अपने पैरो के पास पडी एक चारपाई की ओर इशारा कर


रहा था, िजस पर लकवा मारा आदमी लेटा हुआ था। ऐ मुसलमानो देखो, िकतना बदिकसमत,
िकतना रहम के कािबल है यह आदमी! लेिकन एक हफते मे बहाउदीन वली इसे चंगा कर देगे और
इसे नई िजंदगी िमल जाएगी।

बीमार आधी आँखे मूँद,े चेहरे पर उदासी िलए, मुदे की तरह राहत की भीख मागता चारपाई पर पडा
था। नसरदीन ने आशयर से सास ली। चेचक के दागो से भरे इस चेहरे और चपटी नाक को वह
हजारो के बीच भी पहचान सकता था।

शायद वह बहुत िदनो से चारपाई पर पडा था। आलसय और आराम ने उसके चेहरे को बहुत मोटा
कर िदया था। उस िदन के बाद जब भी नसरदीन उस खास मिसजद के सामने से गुजरता उस
दुबले-पतले लकवे के िशकार उस आदमी को देखना न भूलता, िजसके चेचक के दागो से भरे
चेहरे पर चबी चढती चली जा रही थी।

आिखर शेख बहाउदीन के उसर का िदन आ गया। परंपरा के अनुसार रबी-उससानी के महीने मे
(मई मे) दोपहर को उनका इनतकाल हुआ था। आकाश मे बादल नही थे। िदन साफ था। लेिकन
उनकी मौत के समय सूरज धुँधला गया था। जमीन काप उठी थी।

बहुत से घर, िजनमे गुनहगार रहते थे, िगर गए थे और गुनहगार उनही के नीचे दबकर मर गए थे।
मौलवी मिसजदो मे यह कहानी सुनाकर मुसलमानो को िहदायत करते थे िक वे शेख के मजार पर
आएँ तािक उनकी िकसमत भी उन गुनहगारो जैसी न बन जाए। अभी अँधेरा था। िजयारत करने
वाले घरो से िनकल पडे।

सूरज िनकलते-िनकलते मजार के आसपास की जगह लोगो से खचाखच भर गई। पुराने िरव़ाज
के अनुसार लोग नंगे पाव थे, जो बहुत दरू से आए थे या वे धािमरक िवचारो के थे, िजनहोने कोई
भारी गुनाह िकया था। शौहर बाझ बीिवयो को और मा अपने बीमार बचचो को लेकर आई थी।
लँगडे बैसािखयो के सहारे आए थे। वे सब मजार के सफेद गुमबद पर उममीद भरी नजरे जमाए
खडे थे।
मजार पर अमीर का इंतजार....

अमीर का इंतजार था, इसिलए इबादत भी शुर नही हुई थी। सूरज की झुलसा देने वाली धूप मे
लोगो को बैठने की िहममत नही हो रही थी। उनकी आँखो से लालच और भूख भरी लपटे िनकल
रही थी। इस दुिनया मे सुख पाने की आशा से वंिचत वे िकसी चमतकार की पतीका कर रहे थे।
दो दरवेशो को हाल आ चुका था।

वे जमीन मे मुँह गडाए िमटी खा रहे थे। उनके मुँह से खून बह रहा था। औरते चीख रही थी।
अचानक हजारो गलो से दबी-दबी आवाज फूट पडी-‘अमीर-अमीर।’

महल के पहरेदारो ने लािठया घुमा-घुमाकर भीड मे रासता बनाया। उस रासते पर अमीर मजार की
ओर बढने लगा। नंगे पाव, झुका िसर, आसपास के शोरगुल से बेखबर, पाक ख्यालो मे डू बे हुए।
नौकरो की फौज चुपचाप पीछे-पीछे चल रही थी। वे अमीर के आगे कालीन िबछाने और आगे बढ
जाने पर उसे लपेटकर िफर आगे िबछाने के िलए भाग-दौड कर रहे थे।

अमीर उस िमटी के ढेर के पास पहुँच गए, जो मजार के सामने था। वहा नमाज पढने के िलए
कपडा िबछाया गया। दोनो ओर खडे वजीरो ने सहारा िदया। अमीर घुटनो के बल बैठ गए।
सफेद लबादे वाले मुलला आधा दायरा बनाकर उनके पीछे आ खडे हुए और धुँधले गमर आसमान की
ओर हाथ उठाकर जो़़़ र -जोर से आयते पढने लगे।

इबादत का न खतम होनेवाला िसलिसला जारी हो गया। बीच-बीच मे नसीहत की तकरीरे होती
रहती। नसरदीन भीड की नजरे बचाता एक वीरान कोने वाली उस कोठरी के पास चला गया,
जहा अंधे, लँगडे,-लूले और बीमार रखे गए थे। वे अपनी बारी आने का इंतजार कर रहे थे।
कोठरी के दरवाजे खुले थे। लोग अंदर झाक-झाककर पूछताछ कर रहे थे। खैरात लेने के िलए
मौलवी ताबे के बडे-बडे थाल िलए खडे थे।

बडा मौलवी कह रहा था-‘तभी से शेख बहाउदीन पाक वली की दुआ हमेशा-हमेशा के िलए सूरज
की तरह बुखारा शरीफ के अमीर और यहा के रहनेवालो पर जगमगा रही है। हर साल इसी िदन
शेख बहाउदीन वली खुदा के हम नाचीज बंदो को चमतकार िदखाने की ताकत बख्शते है। ये अंधे,
लँगडे-लूले, िजनो और भूत-पेतो के मारे और बीमार अपने दुखो और बीमािरयो से छुटकारा पाने का
इंतजार कर रहे है। हमे उममीद है िक हम शेख बहाउदीन वली की मदद से इनहे तकलीफो से
छुटकारा िदला देगे।’

इस तकरीर के जवाब मे कोठरी के भीतर से रोने , चीखने’ और दात िकटिकटाने की आवाजे आने
लगी। अपनी आवाज को और ऊँची करते हुए मौलवी ने कहा, ‘खुदा पर ईमान रखने वाले
मुसलमानो, मिसजदो की देखभाल के िलए खुले िदल से खैरात दो, अललाह तुमहारी खैरात कबूल
करेगा।’

नसरदीन ने कोठरी के भीतर झाककर देखा, दरवाजे के पास ही मोटे थुलथुल, चेचक के दागो
वाले चेहरे वाला चारपाई पर पडा था। उसके पास ही पिटयो मे िलपटे खटोलो पर पडे अपािहजो
और बैसािखयो की मदद से चलने वाले लँगडो की भीड थी।

कल पिढए, मौलवी के चमतकार को बडे गौर से देखता रहता है मुलला नसरदीन। उसके िदमाग मे
तेजी से कुछ चल रहा होता है, िफर कया होता है...।
मौलवी के चमतकार पर मुलला की नजर...

अचानक मजार की ओर से बडे मौलवी की आवाज आई, ‘उस अंधे आदमी को मेरे पास लाओ।’
नसरदीन को धकेलते हुए कई मौलवी अँधेरी कोठरी मे घुस गए और िभखमंगो जैसे फटे-चीथडे
वाले अंधे आदमी को िनकालकर ले आए। अंधा हाथो को आगे बढाकर टटोलते हुए, पतथरो से
लडखडाता िगरता-पडता आगे बढ रहा था।

वह बडे मौलवी के सामने पहुँचा और मुँह के बल उसके कदमो मे िगर गया। उसने अपने होठ
मजार की सीिढयो पर िचपका िदए। बडे मौलवी ने उसके िसर पर हाथ फेरा। वह फौरन चंगा हो
गया। ‘मेरी आँखो की रोशनी लौट आई। मै देख सकता हूँ। मै देख सकता हूँ।’

कापती हुई ऊँची आवाज मे वह िचललाने लगा, ‘ऐ बहाउदीन वली, मुझे िदखाई देने लगा। मै अब
देख सकता हूँ। कैसा शानदार और अचंभे भरा चमतकार हुआ है। वाह-वाह।’

लोगो की भीड उसके पास िघर आई। वे उससे पूछने लगे, ‘बताओ, मैने कौन-सा हाथ उठाया है?
दाया या बाया?’ उसने हर एक के सवाल के ठीक-ठाक जवाब िदए। सबको यकीन हो गया िक वह
सचमुच देखने लगा है।

तभी मौलिवयो की फौज ताबे के थाल िलए उस भीड मे घुस आई और िचलला-िचललाकर कहने
लगे, ‘ऐ सचचे मुसलमानो, तुमने अपनी आँखो से अभी-अभी एक चमतकार देखा है। मिसजदो की
देखभाल के िलए कुछ खैरात दो।’ सबसे पहले अमीर ने मुटी भर अशिफरया थाल मे डाली।
उसके बाद वजीरो और अफसरो ने थाल मे एक-एक अशफी डाली। भीड भी िदल खोलकर चादी
और ताबे के िसके थालो मे डालने लगी।

थाल तेजी से भर रहे थे। मौलिवयो को तीन बार थाल बदलने पडे। िफर जैसे ही खैरात मे कुछ
सुसती आई, एक लँगडे को कोठरी से िनकालकर लाया गया। और जैसे ही उसने मजार की
सीिढयो को छुआ, उसने बैसािखया फेक दी और टागे उठाकर चलने लगा। मौलवी थाल िलए िफर
भीड मे घुस गए और िचलला-िचललाकर कहने लगे, ‘ऐ मुसलमानो, तुमने अभी-अभी एक किरशमा
देखा है। खैरात करो। तुमहारी खैरात का अललाहा तुमहे फल देगा।’

नसरदीन ने काफी ऊँची आवाज मे कहा, ‘तुम इसे किरशमा कहते हो और मुझसे खैरात मागते हो?
पहली बात तो यह है िक खैरात के िलए मेरे पास फूटी कौडी नही है। और दस ू री बात यह है िक
कया तुमहे मालूम नही िक मै खुद एक पहुँचा हुआ फकीर हूँ और इससे भी बडा किरशमा िदखा
सकता हूँ।’

‘तू फकीर है?’ मुलला जोर से िचललाया, ‘ऐ मुसलमानो, इसकी बात पर यकीन मत करना। इसकी
जुबान से शैतान बोल रहा है।’

नसरदीन भीड की ओर मुडा, ‘मौलवी को यकीन नही है िक मै किरशमे िदखा सकता हूँ। मैने जो
कहा है उसका सबूत दँगू ा। इस छपपर वाली कोठरी मे अंधे, लँगडे, बीमार िबसतर पर पडे है। मै
इनहे हाथ लगाए िबना चंगा कर देने का दावा करता हूँ। मै िसफर कुछ लफज कहूँगा और ये लोग
अपनी-अपनी बीमािरयो से छुटकारा पा जाएँगे। खुद ही उठकर इतनी तेजी से भागने लगेगे िक
तेज अरबी घोडे इनहे पकड नही पाएँगे।’

छपपर वाली कोठरी की िमटी की दीवारे पतली थी और जगह-जगह से चटक रही थी। नसरदीन
ने एक ऐसी जगह खोज ली थी, जहा दरारे बहुत जयादा थी। उसने अपने कंधे से वही धका
िदया। थोडी सी िमटी िगर गई।

िमटी के िगरने की हलकी सी सरसराहट हुई, नसरदीन ने जोर का धका मारा। इस बार िमटी का
एक बडा सा लोदा जोरदार आवाज के साथ अंदर जा िगरा। दीवार के उस बडे छेद से अँधेरे की
ओर से गदर उडती िदखाई दी। नसरदीन पागलो की तरह चीख उठा,‘जलजला, भूचाल, भागो,
दौडो, बचाओ, बचाओ।’ साथ ही उसने दीवार मे एक धका और मारा, भरभराती हुई िमटी िगरने
लगी।
चमतकार की पोल खुली...

एक पल तो कोठरी मे सनाटा छाया रहा। लेिकन िफर हंगामा मच गया। सबसे पहले चेचक के
दागो वाला मरीज दरवाजे की ओर लपका। लेिकन उसकी खाट दरवाजे मे अड गई और पीछे आने
वालो का रासता रक गया। अँधे, लँगडे, बीमार और अपािहज एक-दस
ू रे को धके देते हुए िचललाने
लगे। नसरदीन ने दीवार मे एक ओर धका मारा।

तीसरा लोदा िगरा और िफर एक जोरदार धके के साथ सारे बीमार चेचक के दागो वाले आदमी
और चूल-चौखट़ समेत दरवाजे़ को बाहर ठेल अपनी बीमारी भूल िनकल भागे। भीड जोर -
जोर से हँसने लगी। ताने कसने लगी। सीिटया बजाने लगी। शोर मचाकर बू-बू करने लगी। इस
शोर को भी दबाने वाली ऊँची आवाज मे नसरदीन ने चीखकर कहा, ‘देखा तुमने ? मैने कहा था ना
िक मेरे कुछ लफज ही उनहे चंगा कर देगे।’

मौलवी की नसीहत मे लोगो की िदलचसपी खतम हो चुकी थी। जैसे-जैसे लोगो को इस घटना का
पता चलता जाता है, वे ठहाके मारकर हँसने लगते है। थोडी ही देर मे लोगो को पता चल गया िक
कोठरी मे कया हुआ था। जब बडे मौलवी ने हाथ उठाकर लोगो को खामोश हो जाने की िहदायत
दी तो भीड ने और भी जोर से सीिटयो, गािलयो और बू-बू के शोर-शराबे से जवाब िदया।

‘नसरदीन लौट आया। हमारा पयारा नसरदीन!’की आवाजे गूँजने लगी। चारो ओर शोर मच
गया। िचढाने-िचललाने वाली आवाजो से घबराकर सारे मौलवी खैरात से भरे थाल छोड-छोडकर
भीड से िनकलकर भाग गए।

नसरदीन तब तक बहुत दरू पहुँच चुका था। उसने अपना रंगीन साफा और नकली दाढी लबादे मे
िछपा ली थी। इसिलए अब उसे जासूसो से मुठभेड होने का डर नही रहा था। वे सब मजार के
आसपास ही खाक छान रहे थे। लेिकन जलदबाजी मे नसरदीन यह नही देख पाया िक सूदखोर
जाफर उसका पीछा कर रहा है।

एक सूनी गली मे पहुँच कर नसरदीन एक दीवार के पास पहुँचकर हाथो से दीवार पकडकर
उछला और धीमे से खासा। फौरन हलके कदमो की आवाज के साथ िकसी औरत की आवाज
आई, ‘आ गए मेरे िदलवर?’
पेड के पीछे िछपे सूदखोर को उस युवती की आवाज पहचानने मे देर नही लगी। िफर उसे
फुसफुसाहट, दबी-दबी हँसी और चुबं नो की आवाज सुनाई दी। ‘अचछा तो तूने इसे अपने िलए
मुझसे छीना था।’ ईषया से जलते-तडपते सूदखोर ने मन-ही-मन कहा।

गुलजान से िवदा होकर नसरदीन ने इतनी तेजी से कदम बढाए िक सूदखोर जाफर उसका पीछा
न कर पाया। जलद ही नसरदीन तंग गिलयो की भूल-भुलैयो मे खो गया। ‘हाय, अब मै उसे
िगरफतार कराने का इनाम नही पा सकूँगा।’ सूदखोर अफसोस करने लगा। ‘लेिकन कोई परवाह
नही! होिशयार नसरदीन, मै बदला लेकर ही छोडू ँगा।’
खजाने को नुकसान

उस ने
़ घटना से अमीर के खजा़़को बहुत घाटा हुआ था। बहाउदीन वली के मजार पर िजतनी
दौलत इकटी होती थी, इस बार उसका दसवा िहससा भी इकटा नही हो पाया था। इससे भी बुरी
बात
़ यह थी िक लोगो के िदमाग मे आजा़़दख याली के बीज िफर बो िदए थे।

मजार पर जो घटना हुई थी उसकी खबर राजय के कोने-कोने मे पहुँच चुकी थी और उसके
पिरणाम िदखाई देने लगे थे। तीन गाव की िरयाया ने मिसजदो के िनमाण मे सहायता देने से इनकार
कर िदया था। चौथे गाव वालो ने मौलवी की बेइजजती करके गाव से िनकाल िदया था।
अमीर ने वजीरे-आजम बिख्तयार को दरबार लगाने का हुकम िदया।

दुिनया के सबसे सुंदर महल के बाग मे दरबार लगा। लेिकन वजीर, रईस और आिलम इस सुंदरता
की ओर से आँखे मूँदे रहे, कयोिक उनके िदमाग अपने िनजी लाभ, दुशमनो के हमले से बचने , उस
पर अपने दाव चलाने मे लगे हुए थे; और उनके सूखे और सख्त िदलो मे िकसी चीज की गुंजाइश
ही नही थी।

वे आए तो उनकी आँखे बुझी हुई थी। होठ सफेद थे। रेतीले रासते पर अपने चमडे के सलीपरो
त बूदार ुलसी की घनी झािडयो के झुरमुट के पीछे ठंडे
को़ घसीटते हुए चल रहे थे। वे खु़श
बँगले मे घुस आए। उनहोने फीरोजे की मूठवाली अपनी छिडया दीवार से िटका दी और रेशमी गदो
पर बैठ गए। भारी भरकम सफेद साफो के बोझ से दबे अपने िसर झुकाये वे अमीर के आने का
इंतजार करने लगे।

दुःख भरे खयालो मे डू बे, माथे पर सलवटे डाले, भारी कदमो से अमीर जब वहा पहुँचे तो वे सब
उठकर खडे हो गए। जमीन तक झुककर कोिनरश की और तब तक खडे रहे जब तक अमीर ने
हलका सा इशारा नही िकया। वे सब बडे अदब से घुटनो के बल बैठ गए और बदन का बोझ
एिडयो पर डालकर उँगिलयो से कालीन छू ने लगे। सब कोई यही सोच रहे थे िक अमीर का कहर
िकस पर टू टेगा और उससे वह कया लाभ उठा सकता है?

दरबारी शायर हमेशा की तरह अमीर के पीछे अदरचंदाकार खडे हो गए और धीरे-धीरे खासकर
अपने गले साफ करने लगे। िजस शायर को शायरे-आजम का िखताब िमला था, वह मन-ही-मन
उन शेरो को दोहरा रहा था, जो उसने आज सवेरे ही िलखे थे। उनहे अमीर को इस अंदाज से
सुनाना चाहता था, जैसे अचेतन अवसथा मे कहे डाले हो। चँवर डुलानेवाला और हुकेवाला अपनी-
अपनी जगह आ खडे हुए थे।
‘बुखारा पर िकसकी हुकूमत है?’ धीमी आवाज मे अमीर ने बोलना शुर िकया। सुनने वाले काप
उठे। ‘मै पूछ रहा हूँ, बुखारा मे िकसकी हुकूमत है? हमारी या उस कमबख्त कािफर नसरदीन
की?’ कहते-कहते गुससे से अमीर का गला रँध गया। िफर गुससे पऱ काबू पाकर गुराकर बोला,
‘हम तुम लोगो का जवाब सुनना चाहते है। बताओ।’

ू रे को कोहनी मार रहे थे। ‘पूरी


दरबारी डर से भयभयीत हो उठे थे। वजीर चोरी-चोरी एक-दस
सलतनत मे उसने कहर मचा रखा है।’ अमीर िफर कहने लगे, ‘राजधानी के अमन मे खलल डाल
रखा है। हमारा आराम और हमारी नीद हराम कर दी है। हमारे खजाने की जायज आमदनी उडा
दी है। खुलेआम िरयाया को बगावत और गदर के िलए ललकार रहा है। इस बदमाश से कैसे
िनबटा जाए, मै जवाब मागता हूँ।’

तमाम दरबारी एक साथ बोल उठे, ‘ऐ अमन के रखवाले, उसे कडी-से-कडी सजा िमलनी चािहए।’

‘तो िफर वह अभी तक िजंदा कयो है? कया यह हमारा काम है िक हम बाजार मे जाकर उसे पकडे
और तुम लोग अपने-अपने हरम मे अपनी हवस की भूख िमटाते रहो और िसफर तनख्वाह िमलने के
िदन ही अपना फजर याद िकया करो? बिख्तयार, कया जवाब है तुमहारा?’ बिख्तयार का नाम सुनते
ही दसू रो ने आराम की सास ली। असरला बेग के होठो पर जहर भरी मुसकान खेल गई।
बिख्तयार से उसका बहुत पुराना झगडा चल रहा था।
बेबस हुए दरबारी

पेट पर हाथ बाधे बिख्तयार अमीर के सामने जमीन तक झुक गया। िफर कहने लगा, ‘अललाह
मुसीबतो और परेशािनयो से हमारे अमीर को बचाए। इस नाचीज गुलाम की वफादारी और िखदमते
अमीर को अचछी तरह मालूम है। मेरे वजीर-आजम के ओहदे पर मुकररर होने से पहले सलतनत
का खजाना करीब-करीब खाली था। लेिकन मैने कई टैकस जारी िकए। नौकरी पाने पर टैकस
लगाया। हर उस चीज पर टैकस लगाया, िजस पर लगाया जा सकता था और शाही खजाने मे
रकम जमा कराए िबना कोई छीकने तक की िहममत नही कर सकता।’

‘इसके अलावा मैने सरकार के छोटे नौकरो और िसपािहयो की तनख्वाहे आधी कर दी। उनहे
बुखारा के लोगो से खाने -कपडे का खचर िदलवाना शुर िकया; और ने
़ इस तरह शाही खजा़़की
काफी बडी रकम बचने लगी। मैने अभी अपनी तमाम िखदमते बयान नही की है। मेरी ही कोिशशो
से बहाउदीन वली के मजार पर किरशमे होने लगे है और हजारो लोग मजार पर िजयारत के िलए
आने लगे है। इस तरह हर साल शाही खजा़़़ ने े इतना रपया आ जाता है िक खजाना

लबालब भर जाता है। शाही आमदनी कई गुना बढ गई है।’

‘कहा है वह आमदनी?’ अमीर ने टोका, ‘नसरदीन की वजह से वह हमसे िछन गई। हम तुमसे
तुमहारी िखदमतो के बारे मे नही पूछ रहे है। उनहे तो हम कई बार सुन चुके है। तुम यह बताओ
िक नसरदीन िकस तरह पकडा जाए?’

‘मािलक, वजीरे-आजम के कामो मे मुजिरमो को पकडना शािमल नही है। सलतनत मे यह काम
असरला बेग साहब को सुपुदर है, जो महल के पहरेदारो और फौज के सबसे बडे हािकम है।’
बिख्तयार ने इतना कहकर कोिनरश की और असरला बेग की ओर जीत की दुशमनी भरी नजरो से
देखने लगा।
अमीर ने असरला बेग को हुकम िदया, ‘बोलो।’ बिख्तयार को गुससे से देखते हुए असरला बेग
उठकर खडा हो गया। उसने लंबी सास ली। उसकी काली दाढी तोद पर उठी और िफर िगर
गई। ‘अललाह सूरज जैसे हमारे जहापनाह को हर आफत से बचाए। बीमारी और गम से उनकी
िहफाजत करे। मेरी िखदमते अमीर को अचछी तरह मालूम है। जब खीवा के खान ने बुखारा के
िखलाफ जंग छेडी, अमीर ने मुझे बुखारा की फौज की कमान देने की मेहरबानी फरमाई। मै दुशमन
को िबना खून-खराबे िकए खदेडने मे कामयाब हो गया था और पूरा मामला हमारे हक और फायदे
मे रहा था।’

‘मैने खीवा की सरहद से कई िदन के रासते तक अपनी सलतनत के सभी कसबो और गावो को,
फसलो, बागो, सडको और पुलो को बबाद करने का हुक्म दे िदया था। जब खीवा की फौजे हमारे
इलाके मे आई तो उनहे रेिगसतान ही िदखाई िदया। बाग-बगीचे तबाह हो चुके थे। उनहोने आगे
बढने से इनकार करते हुए कहा,‘हम बुखारा नही जाएँगे। वहा न तो कुछ खाने को िमलेगा, न लूटने
को। और फौजे लौट गई। मेरी चाल मे फँसकर बेइजजत होकर लौट गई। हमारे अमीर ने माना
था िक अपने फौज से ही अपना मुलक बबाद कराना बहुत ही कारगर और दरू दं ेशी का काम था।
उनहोने हुकम िदया िक जो बबाद हो चुका है, उसे दोबारा आबाद न िकया जाए। शहर, गाव, खेत,
सडके सभी बबाद हालत मे छोड िदए जाएँ तािक आइंदा कोई दुशमन हमारी सरजमीन पर कदम
रखने की िहममत न करे। इसके अलावा मैने बुखारा मे हजारो जासूसो को टेिनंग दी।’

‘खामोश, जबादराज!’अमीर िचललाए, ‘तुमहारे उन जासूसो ने नसरदीन को पकडा कयो नही?’


परेशानी और घबराहट की वजह से असरला बेग बहुत देर तक खामोश रहा। आिखर उसे कबूल
करना पडा, ‘मािलक, मैने हर तरीका़़़
़ ़़़आ जमािलयाहै ; लेिकन इस बदमाश कािफर पर
मेरा िदमाग काम नही करता। मेरा खयाल है आिलमो की सलाह लेनी चािहए।’

अमीर गुससे से भडक उठे, ‘बुजुगों की कसम, तुम लोगो को तो शहरपनाह पर फासी दे देनी
चािहए।
़ ’ गुससे और खीझ मे उनहोने हुके वाले को जोर का चाटा मार िदया िजसने गलत मौके़
पर शाही हाथ के करीब होने की कमबख्ती की थी। अमीर ने सबसे बूढे आिलम को हुकम िदया,
जो अपनी उस लंबी दाढी की वजह से मशहूर था, िजसे वह दो बार अपनी कमर मे लपेट सकता
था।

तीन हजार तंके का इनाम...

सारे िदन अमीर कोध मे भरे बैठे रहे। दस


ू रे िदन सवेरे भी भयभीत दरबािरयो ने उनके चेहरे पर
कोध की काली छाया देखी। उनके िदल को बहलाने की सारी कोिशशे बेकार गई।

दरबारी आपस मे फुसफुसा रहे थे, ‘ओफ, यह कमबख्त खवाजा नसरदीन, यह हरामजादा, हमारे
ऊपर उसने कैसी-कैसी आफते ढाई है।’

असरला बेग ने अपने िसपािहयो और जासूसो को अपने कमरे मे इकटा िकया। उनमे वह जासूस भी
था, िजसके चहेरे पर चेचक के दाग थे। तुम लोगो को मालूम होना चािहए िक जब तक बदमाश
नसरदीन पकडा नही जाता तब तक तुम लोगो को तनख्वाहे नही िमलेगी। अगर उसका पता नही
लगा सके तो िसफर तनख्वाह से ही नही, तुमहे अपने िसरो से भी हाथ धोने पडेगे। मै िकसी को
छोडू गा नही। जो भी नसरदीन को पकडेगा, उसे तरकी के साथ तीन हजार तंके इनाम मे िमलेगे
और उसे जासूस-खास का ओहदा िदया जाएगा।

सारे जासूस, फकीर, िभशती, वयापारी और दरवेश बनकर उसी समय वहा से चल पडे। चेचक के
दागो वाले चेहरे वाला जासूस सबसे जयादा काइया था। कमली पहनकर तसबीह हाथ मे लेकर
कुछ पुरानी िकताबे लेकर जौहिरयो और अतारो के ढोले के नुकड पर बाजार मे जा खडा हुआ।
जयोितषी के वेश मे उसने औरतो से रहसय उगलवाने की योजना बनाई थी।

घंटे भर बाद बाजार के चौराहो पर सैकडो ऐलान करने वाले पहुँच गए और अमीर के हकु म का
ऐलान करने लगे-‘नसरदीन अमीर का दुशमन और कािफर है। उससे िकसी तरह का मेलजोल
रखना, उसे पनाह देना जुमर है। इसकी सजा मौत होगी। उसे पकडकर जो भी िसपािहयो के सुपुदर
करेगा, उसे बख्शीश के साथ तीन हजार तंके इनाम मे िदए जाएँगे।’

कहवाखानो के मािलक, लुहार, िभशती, जुलाहे, ऊँट-खचचर वाले आपस मे फुसफुसाने लगे-‘इसके
िलए अमीर को मुदत तक इंतजार करना पडेगा।’ ‘बुखारा वाले पैसे के लालच मे उसके साथ दगा
नही कर सकते।’

और सूदखोर जाफर बाजार मे रोजाना की तरह उन लोगो को परेशान करता घूम रहा था। ‘तीन
हजार तंके।’ बडे अफसोस के साथ वह सोचने लगा। कल यह रकम करीब-करीब मेरी जेब मे
थी। नसरदीन िफर उस लडकी से िमलने जाएगा। लेिकन मै अकेले उसे नही पकड सकता।
अगर यह भेद िकसी और को बताया तो इनाम मुझसे िछन जाएगा। नही, मुझे दस
ू रे ढंग से काम
करना पडेगा।’

सोच मे डू बा वह महल की ओर चल पडा। बहुत देर बाद फाटक खटखटाता रहा।

सूदखोर की चुगली

फाटक बंद रहे। पहरेदार ने सुना ही नही, कयोिक वे सब नसरदीन को पकडने की तरकीबो पर
गमागमर बहस कर रहे थे।

िनराश होकर जाफर िचललाया,‘ऐ बहादुर िसपािहयो, कया तुम सो रहे हो?’ उसने फाटक मे लगा
लोहे का बेडा खटखटाया। काफी देर के बाद िकसी के कदमो की आहट सुनाई दी। िफर साकल
के खटखटाने की आवाज के साथ ही लकडी का छोटा फाटक खुल गया। सूदखोर ने जलदी से
कहा, ‘अमीर से फरमाइए िक मै उनका गम दरू करने आया हूँ।’

अमीर ने उसे बुलाया। लेिकन नाराजगी के साथ कहा, जाफर, ‘अगर तुमहारी खबर से मेरे िदल
को खुशी नही हुई तो तुमहे दो सौ बेतो की सजा िमलेगी।’

‘शहंशाहे-आलम, आपके इस नाचीज गुलाम को मालूम है िक हमारे शहर मे एक ऐसी लडकी है,
िजसकी खूबसूरती की िमसाल इस शहर कया पूरी सलतनत मे नही िमलेगी।’
अमीर उठकर बैठ गए और िसर उठाकर उसकी ओर देखने लगे। िहममत पाकर सूदखोर बोला,
‘मेरे आका, उसकी खूबसूरती का बयान करने के कािबल मेरे पास लफज नही है। लंबा कद है,
नाजुक है, सुगढ बदन है। उसका माथा चमकदार है, गाल दिमशकी है। आँखे िहरनी जैसी है।
भौहे दजू के चाद जैसी है। उसका मुँह हजरत सुलेमान की अँगूठी जैसा है। होठ याकूत जैसे है।
दात मोितयो जैसे है। उसका सीना? आय हाय! जैसे संगमरमर तराश कर उस पर दो लाल चेरी
नकश कर दी गई हो। उसके कंधे-।’

अमीर ने उसे रोककर कहा, ‘अगर वह ऐसी ही है जैसी तुम बता रहे हो तो वह हमारे हरम के
कािबल है। कौन है वह?’

‘मेरे आका, वह नीच खानदान की है। एक कुमहार की बेटी है। डर से मै उस कुमहार का नाम लेने
की भी िहममत नही कर सकता िक कही मेरे शहंशाह के कानो की बेइजजती न हो जाए। मै उसका
घर बता सकता हूँ। लेिकन इस वफादार गुलाम को कया कोई इनाम िमलेगा?’

अमीर ने बिख्तयार को इशारा िकया। एक थैली सूदखोर के पैरो के पास आ िगरी, िजसे उसने
लालच भरी फुती से लपक िलया। “अगर वह ठीक ऐसी ही हुई तो तुमहे इतनी ही रकम और
िमलेगी।’ अमीर ने कहा। ‘लेिकन हुजूर जरा जलदी कीिजए। मुझे मालूम है िक उस नाजु़़

़क
िहरनी का पीछा िकया जा रहा है।’ अमीर की भौहे िमल गई। नाक पर सलवटे पड गई। ‘कौन
कर रहा है उसकी पीछा?’ ‘नसरदीन’ ‘िफर नसरदीन? इसमे भी नसरदीन? हर जगह नसरदीन?’
अमीर ने कहा और िफर वजीरो की ओर मुडकर कहने लगे, ‘तुम लोग माबदौलत की बेइजजती के
िसवा कुछ नही कर सकते। असरला बेग, तु़ म खु़दज ाओ। वह लडकी फौरन हमारे हरम मे आ
जानी चािहए। अगर तुम नाकाम लौटे तो तुमहे जललाद के हवाले कर िदया जाएगा।’

थोडी देर बाद ही िसपािहयो की एक बडी टुकडी महल के फाटक से िनकली। उनके हिथयार
खडक रहे थे। ढाले सूरज की रोशनी मे चमक रही थी। आगे-आगे असरला बेग चल रहा था और
िसपािहयो के साथ बहुत ही बेढंगेपन से लँगडाता-िघसटता सूदखोर चला जा रहा था।

मुलला की पेिमका पर अमीर का कहर

नसरदीन ने बतरन बनाकर धूप मे रख िदया और दसवे बतरन के िलए िमटी का लोदा उठा िलया।
तभी दरवाजे पर िकसी ने जोर से दसतक दी। वे पडोसी, जो कभी-कभी पयाज या नमक मागने
आते थे, इस तरह दसतक नही िदया करते थे।

नसरदीन और नयाज ने एक-दस


ू रे की ओर परेशान नजरो से देखा। भारी मुको की बौछारो से
फाटक चरमरा रहा था। सहसा नसरदीन के कानो मे लोहे की खनक सुनाई दी।

उसने फुसफुसाकर नयाज से कहा, ‘िसपाही।’

़ जाओ।’ नयाज ने जो़़रद ेकर कहा।


‘भाग
नसरदीन बाग वाली दीवार से बाहर कूद गया।
उसे दरू िनकल जाने का मौका देने के िलए नयाज ने दरवाजा खोलने मे काफी वकत़ लगा िदया।
िफर जैसे ही उसने दरवाजा खोला, अंगूर की बेलो मे बैठी िचिडया फुरर से उडकर िततर-िबतर हो
गई। लेिकन बूढे नयाज के तो पंख थे नही, बेचारा कैसे उड सकता था। असरला बेग को देखते
ही पीला पड गया और झुककर कापने लगा।

असरला बेग ने कहा, ‘ऐ कुमहार, तुमहारे खानदान को बहुत बडी इजजत बख‍शी जा रही है। हमारे
आका अमीर को पता चला है िक तुमहारे बगीचे मे एक खूबसूरत गुलाब िखला है। उस गुलाब से
वह अपने महल को सजाना चाहते है। कहा है तुमहारी बेटी?’

बूढे़़़
़़़़ न य ा जक ा स फ े द ब ा ल ोसेभरािसरिहलाऔरउसकीआँखोके
गया। जब िसपाही उसकी बेटी को मकान से खीचकर आँगन मे लाने लगे तो उसकी चीख नयाज
ने सुनी। उसकी टागे लडखडाई और वह मुँह के बल जमीन पर िगर पडा। इसके बाद उसने न
कुछ देखा और न कुछ सुना।

असरला बेग ने िसपािहयो से कहा, ‘बेचारा हद से जयादा खुशी िमलने से बेहोश हो गया है। इसे
छोड दो। जब इसे होश आ जाएगा, महल मे आकर अमीर की मेहरबानी का शुिकया अदा कर
जाएगा। चलो, वापस चलो।’

इसी बीच नसरदीन पीछे की गिलयो के चकर काटकर सडक के दस ू रे िसरे पर पहुँच गया।
झािडयो के पीछे से उसे नयाज के घर का फाटक, दो िसपाही और एक आदमी िदखायी िदया।
उस आदमी को नसरदीन ने पहचान िलया। वह सूदखोर जाफर था।

‘अचछा लँगडे कुते, तू लाया है इन िसपािहयो को, मुझे िगरफतार कराने के िलए। मेरी होिशयारी से
तुझे खाली हाथ लौटना पडेगा।’ वासतिवक मामला न भापकर नसरदीन ने मन-ही-मन कहा।

लेिकन िसपाही खाली हाथ नही लौटे। नसरदीन ने उनहे अपनी पेिमका को ले जाते हुए देखा। डर
से उनका खून जम गया। गुलजान छू टने की भरपूर कोिशश कर रही थी। फूटफूट कर इस तरह
हो रही थी िक सुननेवालो के िदल टू ट रहे थे। लेिकन िसपाही उसे कसकर पकडे हुए थे और
ढालो की दोहरी कतार से घेरे हुए थे।

एक बडी गलती...

जून के महीने का गमर िदन था, लेिकन नसरदीन के बदन मे ठंडी-ठंडी लहरे दौड रही थी। वह
जहा िछपा था, िसपाही उसी ओर आ रहे थे। उसके िदमाग पर धुँधलापन छा गया। उसने एक
बडा सा खंजर िनकाला और जमीन से सटकर बैठ गया।

असरला बेग सोने का चमचमाता तमगा लटकाए िसपािहयो के आगे-आगे चल रहा था।

नसरदीन का खंजर उसकी दाढी के नीचे उसकी मोटी गदरन मे धँस गया होता िक तभी एक भारी
हाथ नसरदीन के कंधे पर पडा और उसे जमीन पर दबा िदया। वह चौक पडा। उसने घूमकर
हमला करने के िलए हाथ उठाया। लेिकन यूसुफ लुहार का कािलख भरा चेहरा देखकर हाथ खीच
िलया।
‘चुपचाप पडे रहो। यूसुफ लुहार ने कहा, ‘तुम पागल हो। ये बीस है और हिथयारो से लैस है।
तुम अकेले और िनहतथे हो। उस बेचारी की तो मदद कर नही पाओगे खुद जरर खतम हो
जाओगे। चुपचाप लेटे रहो।’

जब तक सडक के मोड पर िगरोह आँखो से ओझल नही हो गया, वह मुलला नसरदीन को दबाए
रहा। ‘तुमने मुझे रोका कयो? अचछा होता िक मै मर गया होता।’ नसरदीन िचललाया।

‘शेर के मुकाबले हाथ उठाना या तलवार के मुकाबले मुका उठाना अकलमंदी नही है।’ यूसुफ
लुहार की सख्ती से उतर िदया, मै बाजार से ही इन िसपािहयो का पीछा कर रहा था। तुमहारी
बेवकूफी को रोकने के िलए वकत़ पर पहंुच गया। तुमहे उसके िलए मरना नही है। लडना और उसे
बचाना है। मुिशकल तो है लेिकन बेहतर भी है। दुखी होकर सोच-िवचार करने मे वक्त बबाद मत
करो। उनके पास तलवारे है, ढाले है, भाले है। लेिकन अललाह ने तुमहे इनसे ताकतवर हिथयार
िदए है। तुम अकलमंद हो, चालबाज हो। इन दोनो मे तुमहारा मुकाबला कोई नही कर सकता।’

यूसुफ लुहार की बाते मदों जैसी और लोहे की तरह कठोर थी। नसरदीन का िदल उनहे सुनकर
डगमगाना छोडकर सख्त हो गया।

‘शुिकया लुहार भाई, मेरी िजंदगी मै इससे जयादा नाउममीदी की घिडया कभी नही आई। लेिकन
नाउममीद हो जाना मुनािसब नही है। मै जा रहा हूँ िक अपने हिथयारो का ठीक-ठीक इसतेमाल
करँ।’ िफर वह झािडयो से िनकलकर सडक पर आ गया।

तभी पास के एक मकान से सूदखोर जाफर िनकला। वह एक कुमहार को कजर की याद िदलाने के
िलए रक गया था। नसरदीन से उसका आमना-सामना हो गया। उसे देखते ही सूदखोर पीला पड
गया और वापस भागकर उसी मकान मे घुस गया। उसने भडाक से दरवाजा बंद करके साकल
लगा ली।
नसरदीन ने िचललाकर कहा, ‘ओ साप के बचचे, मैने सब कुछ देख-सुन िलया है। मै सब कुछ
जानता हूँ।’ एक पल की खामोशी के बाद सूदखोर बोला, ‘मेरे दोसत, चेरी न तो िसयार को िमली
और न बाज को। वह तो शेर के मुँह मे पहुँच गई।’

नसरदीन ने कहा, ‘देखा जाएगा िक आिखर मे चेरी िकसे िमली? लेिकन मेरी बात याद रखना
जाफर। मैने तुझे तालाब से िनकाला था। मै कसम खाता हूँ िक तुझे उसी तालाब मे डुबोऊँगा।’
तालाब की काई से तेरा बदन ढका होगा और घास-फूस मे फँसकर तेरा दम िनकलेगा।”

िफर उतर की पतीका िकए िबना नसरदीन आगे बढ गया। वह नयाज के घर के सामने भी नही
रका, यह सोचकर िक सूदखोर देख न ले और बूढे नयाज की िशकायत अमीर से न कर दे।

सडक के छोर पर पहुँचकर जब उसने यकीन कर िलया िक कोई उसका पीछा नही कर रहा है तो
दौडकर उसने मैदान पार िकया और कूदकर नयाज के घर मे चला गया।

नयाज अभी तक जमीन पर िसर डाले पडा था। असरला बेग के फेके हुए चादी के कुछ िसके
उसके पास पडे थे। आहट सुनकर उसने धूल और आँसुओं से भरा चेहरा उठाया। उसके होठ
िहले लेिकन कुछ कह नही सका। तभी उसे वह रमाल िदखाई दे गया था, जो उसकी बेटी का
था। जब िसपाही उसे ले जा रहे थे, वह वही िगर गया था।

बूढा नयाज उसे देखते ही अपनी दाढी नोचने और अपना िसर जमीन पर पटकने लगा। उसे शात
करने मे नसरदीन को कुछ वक्त लगा।

उसने बूढे को एक ितपाई पर बैठाकर कहा, ‘सुिनए बुजुगरवार, यह गम अकेला आपका नही है।
शायद आप नही जानते हम दोनो एक-दस ू रे को पयार करते थे। हमने शादी करने का फैसला कर
िलया था। मै िसफर इस इंतजार मे था िक काफी रपया इकटा कर लूँ तािक आपको अचछा दहेज
दे सकूँ।’

नयाज ने रोते हुए कहा, ‘मुझे दहेज की परवाह नही है। कया मै अपनी बचची की मजी के िखलाफ
कोई काम कर सकता था? अब ये बाते बेकार है। वह चली गई। अब तक तो वह हरम मे पहुँच
चुकी होगी. लानत है मुझ पर। मै खुद महल मे जाऊँगा। अमीर के पैरो मे िगरकर रो-रोककर
भीख मागूगा। शायद उसका िदल पसीज जाए।’

वह उठा और डगमगाते कदमो से फाटक की ओर चल िदया। ‘ठहिरए।’ नसरदीन बोला, ‘आप


यह भूल जाते है िक अमीर आम इनसानो जैसे नही होते। उनके िदल नही होता। उनके आगे
िगडिगडाना बेकार है। उनसे तो बस छीना जा सकता है। और मै नसरदीन अमीर से गुलजान को
छीन लाऊँगा।’

‘वह बहुत ताकतवर है। उसके पास हजारो िसपाही है। हजारो पहरेदार और जासूस है। तुम
उनका मुकाबला कैसे करोगे?’

‘मै कया करँगा, मै अभी यह सोच नही पाया हूँ। लेिकन इतना जरर जानता हूँ िक अमीर गुलजान
को वश मे नही कर पाएगा। वह उसे कभी भी अपना नही कर सकेगा। अपने आँसू पोछ लीिजए।
रोकर मेरे सोचने मे खलल मत डािलए।’

कुछ देर तक नसरदीन सोचता रहा, िफर बोला, ‘आपने अपनी बीवी के कपडे कहा रखे है?’

‘वहा उस बकस मे।’ नसरदीन ने बकस की चाबी ली और अंदर चला गया। थोडी देर बाद वह
औरतो के िलबास मे िनकला। उसका चेहरा घोडे के बालो से बुने नकाब से ढँका हुआ था। उसने
नयाज से कहा- “मेरा इंतजार कीिजएगा और अकेले कोई काम करने की कोिशश मत
कीिजएगा।“ उसने गधे की जीन कसी और वहा से चल पडा

बेतुके शायर की तारीफ

महल के बाग मे ले जाकर गुलजान को अमीर के सामने पेश करने से पहले असरला बेग ने हरम
की कुछ बूढी औरतो को बुलाया और उनहे हुकम िदया िक गुलजान को अचछी पोशाक पहनाई जाए
और इतनी खूबसूरती से सजाया जाए िक अमीर खुश हो जाए।

बूढी औरतो ने गमर पानी से गुल़जान का आँसू भरा चेहरा धोया। उसे महीन-झीने रेशम के कपडे
पहनाए, सुमा लगाया, भौहे काली की, गालो
़ पर सुखी़़ मली , नाखून रँगे और बालो मे गुलाब का
इत लगा िदया।

िफर ख्वाजा सरा को बुलाया। ‘वाकई बहुत खू़़


़बहसूरत ै। ’ खवाजा सरा ने अपनी पतली
आवाज मे कहा, ‘इसे अमीर के पास ले जाओ।’

बूढी औरते खामोश और पीली पडी गुलजान को महल के बगीचे मे ले गई। अमीर उठे, उसके पास
पहुँचे और उसका नकाब उलट िदया। वजीरो, आिलमो और अफसरो ने अपने लबादे की असतीनो
से अपनी आँखे ढक ली। अमीर बहुत देर तक देखता रहा। उसके सुंदर चेहरे पर से अपनी नजरे
हटा नही पा रहे थे। सूदखोर ने सच ही कहा था। ‘हमने उसे इनाम देने का वायदा िकया था
उससे तीन गुनी रकम उसे दे दी जाए।’

दरबारी आपस मे फुसफुसाने लगे, ‘अमीर को िदल बहलाने का सामान िमल गया है। वह खु़़़


है। उसके िदल का बुलबुल उसके चेहरे के गुलाब पर झुक आया है। कल सवेरे वह और जयादा
खुश होगे। िकसी पर िबजली िगरी या पतथर, तूफान तो गुजर ही गया।’

िहममत पाकर दरबारी शायर आगे बढे और अमीर की तारीफ करने लगे। अमीर ने मुटी भर िसके
शायरे-आजम की ओर फेक िदए। शायरे-आजम कालीन पर िगर पडा और रेग-रेगकर अशिफरयो
को बटोरने लगा। अशिफरया बटोरते-बटोरते उसने अमीर की जूितया भी चूम ली। अमीर ने
अटहास सा करते हुए हँसकर कहा, ‘माबदौलत ने भी एक नजम कही है। सुनो- ‘जब हम शाम को
बगीचे मे पहुँचे
चाद
़ खु़दक ो नाचीज समझ शमर से बादलो की ओट मे
िछप गया
सारी िचिडया खामोश हो गई।
हवा भी थम गई।
हम खडे रहे शान से
सूरज की तरह ताकतवर।’

सभी शायर घुटनो के बल िगरकर िचलला-िचललाकर कह उठे-‘वाह-वाह, कया शायरी है! कया
अजमत है! आपने तो शायर रदकी को भी मात कर िदया।’ कुछ ने तो तारीफ करते-करते
कालीन पर िसर रख िदया जैसे बेहोश हो गए हो। नाचने वाली आ गई। उसके पीछे-पीछे मसखरे,
बाजीगर और फकीर भी आ गए। अमीर ने आज िदल खोलकर इनाम िदए। अमीर ने कहा, ‘दुख
है िक सूरज पर मेरा हुकम नही चलता। वरना मै आज उससे जलद िछप जाने के िलए कहता।’
इस मजाक पर सारे दरबारी हँस पडे।

औरत के वेश मे...

बाजार मे खूब चहल-पहल थी। खरीदने-बेचने का यही खा़़़स


व ा कत था। जैसे -जैसे सूरज
आसमान पर चढता जा रहा था, खरीदने, बेचने और अदला-बदली का वयापार बढता चला जा रहा
था। गमी की वजह से लोग छपपरदार कतारो की घनी, महकती छाव मे जा रहे थे। चारो और
साफे, खलअते और रंगी हुई दािढया चमक रही थी। पािलशदार तागा कौधता सा लगता था और
यह
़ कौध चमडे के कालीनो पर पड सराफो के सोने के जे़वकरो ी दमक के सामने फीकी पड
जाती थी।

नसरदीन ने उसी कहवाखाने के सामने गधा रोका, िजसके बरामदे मे खडे होकर महीना भर पहले
उसने बुखारा के िनवािसयो से अपील की थी िक वे नयाज को जाफर के जुलमो से बचाएँ। इसी
थोडे से अरसे मे उसने कहवाखाने के खुशिमजाज, सीधे और भरोसे के योगय ईमानदार मािलक से
दोसती कर ली थी।

मौका देखकर नसरदीन ने पुकारा, ‘अली!’

कहवाखाने के मािलक ने चारो और नजरे दौडाई। वह चकरा गया था। उसे पुकारा था िकसी
मदानी आवाज ने लेिकन उसे िदखाई दे रही थी एक औरत। अपना नकाब हटाए िबना मुलला
नसरदीन ने कहा, ‘मै हूँ अली। अललाह के वासते इस तरह मत घूरो। कया तुम जासूसो की
मौजूदगी भूल गए।’

अली ने चारो और बडी सावधानी से नजरे दौडाई और िफर उसे िपछवाडे के एक कमरे मे ले गया,
जहा ईधन और फालतू सामान भरा पडा था। बाजार का शोरगुल बहुत ही हलका-हलका सुनाई दे
रहा था।

नसरदीन ने कहा, ‘अली, मेरा गधा रख लो। इसे िखला-िपलाकर तैयार रखना, कयोिक िकसी भी
पल मुझे इसकी जररत पड सकती है। मेरे बारे मे िकसी से िजक तक मत करना।’

‘लेिकन तुमने औरतो के कपडे कयो पहन रखे है?’ अली ने दरवाजा बंद करते हुए पूछा।

‘मै महल मे जा रहा हूँ।’

‘पागल हो गए हो कया? अपने िसर शेर के मुँह मे देने जा रहे हो?’

‘यह तो करना ही होगा अली। तुमहे जलदी ही मालूम हो जाएगा िक ऐसा करना कयो जररी है। मै
खुद ही खतरनाक मुिहम पर जा रहा हूँ। आओ, गले िमल ले। कयोिक अगर मै...।’ वे दोनो गले
िमले। कहवाखाने के मािलक की आँखो से मचलकर आँसू ढलककर उसके गालो पर बहने लगे।
उसने नसरदीन को िवदा कर िदया और अपनी लंबी सासो को रोकते हुए अपने गाहको की ओर
चला गया।

पहरेदारो ने नसरदीन को रोका तो वह औरतो की आवाज मे कहने लगा, ‘मै बहुत बुिढया हूँ, और
गुलाब का इत लाई हूँ। मुझे हरम मे जाने दो। माल बेचने के बाद मुनाफे मे से तुमहे भी िहससा
ू ी।’
दँग

‘भाग बुिढया, जा बाजार मे जा। वही बेच अपना माल।’ िसपािहयो ने उसे धता बताई।

अपने उदेशय मे असफल हो जाने पर मुलला नसरदीन बहुत ही दुखी और गंभीर हो उठा। उसके
पास समय कम था, कयोिक दोपहर के बाद सूरज ढलने लगा था। उसने महल के चारो और चकर
लगाया। चीनी चूने से दीवार के पतथर इतनी मजबूती से जमाए गए थे िक कही एक छेद तक
िदखाई नही िदया। नािलयो के मुँह पर लोहे की जािलया पडी थी।
नसरदीन ने अपने आपसे कहा, ‘मुझे महल मे जाना ही है। अगर तकदीर से अमीर ने मेरी मंगेतर
छीन ली है तो मेरी तकदीर मे उसे वापस पाना कयो नही? मेरी बात जरर पूरी होगी।’ वह बाजार
मे लौट गया।

नसरदीन की नजर से कुछ भी चूकता नही था। उसके आँख, कान और िदमाग बेहद सधे हुए थे।
जहा जौहिरयो और अतारो के टोले िमलते थे, वहा उसके कानो मे जो आवाज पडी, उसे सुनकर
वह चौक पडा।

जासूस का भंडाफोड

‘तुम कहती हो िक तुमहारे शौहर ने तुमहे पयार करना छोड िदया है। वह तुमहारे साथ सोता तक
नही है। तुमहारी इस मुसीबत का एक इलाज है। लेिकन इसके िलए मुझे नसरदीन से मशवरा
करना पडेगा। तुमने सुना होगा, वह यही है। पता लगाओ कहा है। िफर मुझे खबर दे देना। िफर
हम दोनो िमलकर तुमहारे शौहर को तुमहारे पास ले आएँगे।’

मिहला के वेष मे िछपा नसरदीन और िनकट पहुँचा तो उसे दागो से भरा चेहरा िदखाई िदया। चादी
का एक िसका िलए एक औरत उसके सामने खडी थी। जयोितषी बना जासूस नमदे पर मनके
फैलाए एक बहुत पुरानी िकताब के पने पलट रहा था। ‘लेिकन अगर तू नसरदीन की तलाश
करने मे कामयाब न हुई तो तुझ पर लानत बरसेगी। तेरा शौहर तुझे हमेशा के िलए छोड देगा।’
मुलला नसरदीन ने सोच िलया िक इस जयोितषी को थोडा सा सबक देना बुरा न होगा। वह
जयोितषी के सामने बैठ गया।

ू रो की तकदीर देखने वाले अकलमंद, मुझे मेरी िकसमत के बारे मे बताओ।’


‘दस

जयोितषी ने मनके िबखेर िदए। िफर इस तरह बोला जैसे भयभीत हो उठा हो, ‘ऐ हय, तुझ पर
खुदा की मार है और मौत अपना काला पंजा तेरे िसर पर उठा चुकी है।’ आसपास खडे कई
तमाशबीन पास आ गए। मौत का वार बचाने मे मै तेरी मदद कर सकता हूँ लेिकन यह काम अकेले
नही हो सकता। मुझे नसरदीन से मशवरा करना होगा। अगर तू उसे खोजकर मुझे बता सके तो
तेरी जान बच जाएगी।

‘अचछी बात है, मै नसरदीन को तुमहारे पास ले आऊँगी।’


‘कहा?’

‘यही, एकदम पास।’

‘लेिकन कहा, मै तो उसे देख नही पा रहा हूँ।’

‘तुम अपने आपको जयोितषी कहते हो? कया तुम िहसाब नही लगा सकते? सोच नही सकते? लो यह
रहा नसरदीन।” और िफर उसने झटके से नकाब हटा िदया।
नसरदीन का चेहरा देखते ही जयोितषी घबराकर पीछे हट गया। नसरदीन ने िफर दोहराया, ‘यह
रहा वह। बोल, मुझसे िकस बारे मे मशवरा करना चाहता था? तू झूठा है। तू जयोितषी नही, अमीर
के जासूसो मे से एक है। ऐ मुसलमानो, इसका यकीन मत करो। यह आदमी तुमहे धोखा दे रहा
है। यहा बैठकर यह िसफर नसरदीन का पता लगाने की कोिशश कर रहा है।’

जासूस ने इधर-उधर नजरे दौडाई। लेिकन दरू तक कोई िसपाही िदखाई नही िदया। िनराशा से
रआँसा होकर वह नसरदीन को जाते देखता रहा। उसके आसपास खडी भीड कोध से भर उठी
और पास िसमट आई। चारो और से आवाजे उठने लगी, ‘जासूस-जासूस! अमीर का जासूस! गंदा
कुता।’ जासूस उठा और अपना नमदा समेटने लगा। उसके हाथ काप रहे थे। िफर वह िजतनी
तेजी से दौड सकता था, दौडता हुआ महल की ओर भाग गया।

बाजार मे मची भगदड...

धूल, धूआँ और बदबू से भरी िसपािहयो की एक गंदी बैरक मे पहरेदार एक िघसे-िपटे नमदे पर बैठे
हुए थे, जो िपससुओं का अखाडा बना हुआ था। अपने िजसमो को खुजाते हुए वे नसरदीन के
पकडने की सँभावनाओं पर िवचार-िवमशर कर रहे थे। तीन हजार तंके जरा सोचो तो। तीन हजार
तंके और जासूस खास का ओहदा।

‘कोई-न-कोई तो िकसमत का धनी होगा ही।’‘काश, वह कोई मै ही होता। एक मोटा आलसी


पहरेदार बोला। यह सबसे जयादा बेवकूफ पहरेदार था। उसे नौकरी से इसिलए बखासत नही
िकया गया था िक उसने िछलके समेत कचचे अंडे खाने का हुनर सीख िलया था। अकसर यह
हुनर िदखाकर वह अमीर का मन बहलाया करता था और उससे बख्शीश पाता रहता था। यह
अलग बात है िक बाद मे उसे पेट के ददर से तडपना पडता था।

चेचक के दागो वाला जासूस तूफान की तरह वहा पहुँचा, ‘यही है नसरदीन- यही है-बाजार मे
जनाने िलबास मे यही है। यही है बाजार मे।’

िसपाही फाटक की ओर लपके और अपने हिथयार उठाकर बाहर िनकल गए। वे कहते जा रहे थे,
‘इनाम मेरा है। सुन रहे हो ना, सबने पहले मैने देखा है। इनाम मुझे िमलना चािहए।’

बाजार मे िसपािहयो के पहुँचते ही लोग िततर-िबतर होने लगे। और िफर चारो और घबराहट और
भगदड मच गई। िसपाही भीड मे घुस गए, जो सबसे जयादा जोश मे था और आगे-आगे दौड रहा
था, उसने एक और को पकड िलया और उसका नकाब फाड डाला। औरत का चेहरा भीड मे नंगा
हो गया। वह जोर से चीख उठी।

तभी दसू री ओर से एक चीख और सुनाई दी। िफर तीसरी औरत की चीख सुनाई दी, जो
िसपािहयो से जूझ रही थी-और िफर चौथी-पाचवी। पूरा बाजार औरतो की चीखो और रोने -
िचललाने की आवाजो से भर गया।

बगावत की लहर...
हकी-बकी भीड चुपचाप खडी देखती रह गई। इससे पहले बुखारा मे ऐसी वहिशयाना हरकत
कभी-देखी-सुनी नही गई थी। कुछ लोग भयभीत होकर पीले पड गए। कुछ गुससे से लाल हो
गए। हर एक के िदल मे बगावत जाग उठी थी। िसपाही औरतो को पकडने , उनहे इधर-उधर
धकेलने, मारने, पीटने और उनके कपडे फाडने की कूरता-भरी हरकते करते रहे।

‘बचाओ-बचाओ!’ औरते िचलला रही थी। यूसुफ लुहार ने भीड पर काबू पाकर ऊंची आवाज मे
कहा, ‘ऐ मुसलमानो, तुम कयो िझझक रहे हो? कया तुम िदन-दहाडे अपनी औरतो की बेइजजती
बदाशत करते रहोगे?’ ‘बचाओ, बचाओ।’ औरते चीख उठी।

भीड मे गुराहट सुनाई देने लगी। बेचैनी आ गई। एक िभशती ने अपनी घरवाली की आवाज
पहचान ली। वह उसे बचाने दौडा। िसपािहयो ने उसे धकेल िदया लेिकन दो जुलाहे और तीन
ताबागर उसकी मदद के िलए दौड पडे और िसपािहयो को खदेड िदया।

झगडा शुर हो गया। धीरे-धीरे हर आदमी उसमे शािमल हो गया। िसपाही तलवारे लहराने लगे
और उन पर हर ओर से बतरनो, तशतिरयो, घडो, केतिलयो, लकडी के टुकडो और पतथरो की
बौछारे होने लगी। पूरे बाजार मे लडाई फैल गई। अमीर आराम से महल मे ऊँघ रहा था।
अचानक वह उछला और िखडकी की ओर दौडा, उसे खोला। लेिकन दस ू रे ही पल भयभीत होकर
फाटक बंद कर िदया। बिखत़यार दौडता हुआ आया। वह पीला पड रहा था। उसके होठ काप रहे
थे। अमीर ने िभनिभनाकर पूछा, ‘कया बात है? कया हो रहा वहा? असरला बेग कहा है? तोपे कहा
है?’

असरला बेग दौडता हुआ आया और मुँह के बल िगर पडा, ‘आका! मेरे आका! मेरा िसर धड से
अलग करने का हुकम दे।’‘हुआ कया?’ जमीन पर पडे-पडे ही असरला बेग ने उतर िदया, ‘ऐ सूरज
के मािनंद मेरे आका, मेरे...।’ गुससे से पैर पटकते हुए अमीर ने कहा, ‘खामोश! यह तेरे-मेरे िफर
कर लेना। बता वहा कया हो रहा है?’

‘मुलला नसरदीन मेरे आका! मुलला नसरदीन! वह औरत के वेश मे आया है। सारी बदमाशी उसी
की है। यह सब उसी की वजह से हो रहा है। मेरा िसर कलम करवा दीिजए। लेिकन अमीर के
सामने दसू री परेशािनया थी।’

बगदाद का जयोितषी ...

नसरदीन ने बाजार मे वक्त बबाद करना ठीक नही समझा। एक-एक िमनट कीमती था। एक
िसपाही का जबडा, दसू रे के दात और तीसरे की नाक तोडता हुआ वह सही सलामत अली के
कहवाघर मे पहुँच गया। िपछवाडे वाले कमरे मे जाकर उसने जनाने कपडे उतारे। बदखशा का
रंगीन साफा बाधा। नकली दाढी लगाई और एक ऊँची लडाई का नजारा देखने लगा।

भीड से िघरे िसपािहयो ने भीड के हमले का डटकर मुकाबला करना शुर कर िदया था। अचानक
उसने कचचे अंडे खाने वाले िसपाही को ददर से चीखते-िचललाते देखा। अली ने उस पर गमागमर
कहवा उडेल िदया था, जो उसकी मोटी गदरन पर पडा था। वह पीठ के बल जमीन पर िगर पडा
था और हाथ-पैर हवा मे फेक रहा था।
अचानक एक बूढे की कापती हुई आवाज सुनाई दी-‘मुझे जाने दो, अललाह के नाम पर मुझे जाने
दो। यहा यह कया हो रहा है?’ कहवाघर के पास ही लडाई के बीचो-बीच झुकी पतली नाक और
सफे़़़
द ाढीवाला एक आदमी ऊँट पर बैठा िदखाई िदया। सूरत -शकल से वह अरब िदखाई दे
रहा था। उसकी पगडी का शमला टँका हुआ था, िजससे पता चलता था िक वह आिलम (िवदान)
है।

डर के मारे वह ऊँट के कूबड से िचपका हुआ था। उसके चारो ओर मार-काट मची हुई थी।
एक आदमी उसकी टाग पकडकर ऊँट पर से उतारने की कोिशश कर रहा था। बूढा बुरी तरह
छटपटा रहा था। चीख-पुकार और शोर-गुल से कान के पदे फटे जा रहे थे। सुरिकत सथान मे
पहँुचने की जी-तोड कोिशश के बाद बूढा कहवाघर पहँुचने मे सफल हो गया। वह लडखडाते हुए
ऊँट से उतरा और अपना ऊँट ख्वाजा नसरदीन के गधे के पास बाध िदया और बरामद मे चढ
गया।

‘िबिसमलािहररहमानुररहीम! इस शहर मे यह हो कया रहा है?’

‘बाजार!’ नसरदीन ने संिकपत उतर िदया।

‘कया बुखारा मे ऐसा ही बाजार लगता है? मै महल तक कैसे पहुँचूँगा?’

‘महल’ शबद के सुनते ही नसरदीन समझ गया िक इस बुजुगर आदमी की मुलाकात मे ही वह मौका
िछपा हुआ है, िजसका वह इंतजार कर रहा था। िजससे वह अमीर के हरम मे घुसकर गुलजान
को बचाकर ला सकता है।

बुजुगर ने कराहकर लंबी सासे लेते हुए कहा, ‘ऐ पाक परवरिदगार, मै महल तक कैसे
पहुँचूँगा?’‘कल तक इंतजार कीिजएगा।’ नसरदीन ने कहा।

‘मै कल तक नही ठहर सकता। महल मे मेरा इंतजार हो रहा होगा।’

‘आला हजरत! मै न तो आपका नाम जानता हूँ, न पेशा। लेिकन कया आपको यकीन है िक महल
मे रहनेवाले कल तक आपका इंतजार नही कर सकते? बुखारा के बहुत से लोग महल मे जाने के
िलए हफतो इंतजार करते रहते है।’

नसरदीन की बात से गुससा होकर बुजुगर ने कहा, ‘तुमहे मालूम होना चािहए िक मै एक बहुत मशहूर
कािबल जयोितषी और हकीम हूँ। अमीर की दावत पर मै बगदाद से आ रहा हूँ। सलतनत का काम
चलाने मे अमीर की मदद करने।’

अतयिधक सममान पदिशरत करते हुए नसरदीन ने झुककर कहा, ‘ओह! खुश आमदीद (सवागत है)
आिलम शेख। एक बार मै बगदाद गया था, इसिलए वहा के आिलमो को जानता हूँ। आपका शुभ
नाम?’ ‘अगर तुम बगदाद गए हो तो तुमहे पता होगा िक मैने खलीफा की कया-कया िखदमते की है।
मैने उनके पयारे बेटे की जान बचाई थी। इस बात का सारे मुलक मे ऐलान भी िकया था।

मुलला के जाल मे

“मेरा नाम मौलाना हुसैन है।“


‘मौलाना हुसैन?’ नसरदीन ने आशयर भरे लहजे मे कहा, ‘कया आप खुद मौलाना हुसैन है?’

मौलाना हुसैन को बगदाद से यहा इतनी दरू तक फैली अपनी पिसिद देखकर बडी खुशी हुई।
लेिकन उसे िछपाने की असफल कोिशश करते हुए बोले,‘तुमहे हैरानी कयो हो रही है। हा, आिलमो
मे सबसे बडा आिलम, इलाज करने और िसतारो को पढने के हुनर मे मािहर मशहूर आिलम मौलाना
हुसैन मै ही हूँ। लेिकन मुझमे घमंड नाम को भी नही है। देखो ना, मै तुम जैसे नाचीज आदमी से
भी िकतनी नमी से बाते कर रहा हूँ।’ बुजुगर ने हाथ बढाकर मसनद उठाई और उस पर कोहनी
िटकायी।

वह नसरदीन को अपनी िवदा के बारे मे बताने की तैयारी कर रहे थे। उनहे पूरी उममीद हो गई थी
िक यह आदमी इस मुलाकात की चचा बढा-चढाकर जगह-जगह करेगा। िजन लोगो की मुलाकात
बडे आदिमयो से हो जाती है, वे ऐसा ही करते है।

यह सोचकर मौलाना हुसैन ने सोचा, ‘जरर यह आदमी मेरी शोहरत आम आदिमयो तक फैला देगा;
और आम आदिमयो मे होने वाली शोहरत जासूसो के जिरए अमीर के कानो तक पहुँचेगी और मेरी
अकलमंदी का िसका जम जाएगा।

नसरदीन पर अपनी िवदता की धाक जमाने के िलए उनहोने बहुत सारे वाकय दोहराये और िसतारो
ं बताने लगे।
के योग और उनके आपसी संबध

नसरदीन बडे धयान से सुनता रहा और हर शबद को याद करने की कोिशश करता रहा। िफर
बोला, ‘नही, मुझे अब भी यकीन नही हो रहा है िक आप सचमुच मौलाना हुसैन ही है।’

‘इसमे हैरानी की कया बात है?’

अचानक नसरदीन ने तरस और डर भरी आवाज मे कहा,‘ऐ बदनसीब मौलाना हुसैन, आ गए।’

बुजुगर के हाथ से कहवे का िगलास छू टकर िगर गया। उसकी सारी अकड और शेखी गायब हो
गई, ‘कयो? कया बात हुई? उसने परेशानी से पूछा।

बाजार की ओर इशारा करते हुए नसरदीन ने कहा, ‘कया आपको मालूम नही िक यह सारी गडबडी
आपकी वजह से ही हो रही है। हमारे अमीर के कानो तक यह बात पहुँच गई है िक बगदाद से
रवाना होने से पहले आपने खुलेआम यह ऐलान िकया था िक आप अमीर के हरम मे पहुँचकर
उनकी बेगमो को फँसा लेगे। लानत है आप पर मौलाना हुसैन।’

बूढे मौलाना का मुँह खुला का खुला रह गया। आँखे फट गई। डर के मारे िहचिकया आने लगी।
हकलाकर बोला, ‘मै? मै? हरम मै-मै?’

‘आपने काबे की कसम खाई थी िक आप ऐसा करेगे। अमीर ने हुकम जारी कर िदया है िक जैसे
ही आप बुखारा की सरजमीन पर कदम रखे आपको िगरफतार कर िलया जाए और फौरन आपका
िसर धड से अलग कर िदया जाए।’

बूढा बुरी तरह घबरा उठा। वह सोच नही पा रहा था िक उसकी बबादी की यह चाल िकस दुशमन
ने चली है। उसे इस बात की सचचाई पर रतीभर भी संदेह नही हुआ। सवयं उसने भी कई बार
दरबार की सािजशो मे अपने दुशमनो को खतम करने के िलए ऐसी ही चाले चली थी और अपने
दुशमनो को सूली पर चढता देख इतमीनान और चैन की सास ली थी।
मौलाना के वेश मे मुलला

जब अमीर को तसलली हो गई और िवशास हो गया िक बाजार की लडाई ठंडी पड गई है तो


उनहोने दरबारे-आम मे जाकर मुसािहबो से िमलने का िनशय कर िलया।

वह अपने चेहरे पर ऐसा भाव लाने की कोिशश कर रहे थे, िजससे इतमीनान के साथ िचंता भी
पकट हो और िजससे दरबािरयो के मन मे यह बात न आ सके िक शाही िदल भयभीत हो सकता
है।

जैसे ही अमीर दरबारे-आम


़ मे पहुँचे दरबारी खा़़म
होश ो गए। उनहे डर था िक उनकी आँखो या
चेहरो से पकट न हो जाए िक वे अमीर की वासतिवक भावनाओं से पिरिचत है।

अमीर खामोश थे। दरबारी खामोश थे। िफर इस खामोशी को तोडते हुए अमीर ने कहा, ‘तुम
लोगो को हमसे कया कहना है? तुमहारी कया सलाह है?’

िकसी ने उतर नही िदया। िसर तक नही उठाया।

अचानक िबजली की तरह कौधती ऐंठन ने अमीर के चेहरे को िबगाड िदया।

इस समय न जाने िकतने िसर जललाद के काठ पर रखे होते, चापलूसी करने वाली िकतनी जुबाने
कटकर
़ हमेशा के िलए खा़़हमोश ो चुकी होती। झूठी और पूरी न होने वाली उममीदो , हवसो
और कोिशशो, धोखे देकर कमाई गई दौलतो की याद िदलानेवाली जुबाने, सफेद पडे होठो से दात
की पीडा से बाहर िनकल आई होती।

लेिकन ऐसा नही हुआ। कंधे पर िसर बन रहे।

चापूलसी करने वाली जुबाने सही सलामत रही, कयोिक उसी समय महल के दरबान ने अंदर सूचना
दी, ‘आलमपनाह की उम लंबी हो, एक अजनबी महल के फाटक पर आया हुआ है। अपने आपको
बगदाद का आिलम मौलाना हुसैन बताता है। कहता है, उसे बहुत जररी काम है और जहापनाह
की रोशन नजर के सामने उसे फौरन पेश िकया जाए।’
अमीर वयगता से िचलला उठे, ‘मौलाना हुसैन? उनहे आने दो। उनहे यहा ले आओ।’

मुलला महल मे

भेष बदले आिलम आए नही बिलक दौडते हुए घुस गए। अपने धूलभरे जूते भी उतारने भूल गए।

तख्त के सामने पहुँचकर उनहोने झुककर कोिनरश की-‘इस दुिनया के चाद-सूरज, दुिनया भर मे
मशहूर, दुिनया के जमाल और जलाल, यह गुलाम आपके िलए दुआ करता है। मै कई िदन और
रात लगातार चलकर अमीर को एक खौफनाक खतरे से आगाह करने के िलए भागता चला आ रहा
हूँ। अमीर मुझे बताएँ िक आज वह िकसी औरत से तो नही िमले? मेरे आका, इस नाचीज गुलाम
को जवाब देने की मेहरबानी करे!’

अमीर उठकर खडे हो गए। उनका चेहरा पीला पड रहा था। एक लंबी सास उनके होठो से
िनकल गई।

हुसैन जोर से बोले, ‘अललाह की शान, अललाह ने समझदारी और संजीदगी के िसतारे को डू बने से
बचा िलया। अमीरे-आजम को मालूम हो िक कल रात िसतारो और सैयारो (उपगहो) का ऐसा
जमाव था, जो उनके िलए नुकसानदेह सािबत होता। और मै नाचीज गुलाम, जो अमीर के कदमो
की खाक चूमने के भी कािबल नही हूँ, िसतारो और सैयारो का िहसाब लगाता हूँ और जानता हूँ िक
जब तक िसतारे नेक घरो मे न पहुँच जाए, अमीर को िकसी औरत से नही िमलना चािहए। वरना
उनकी बबादी यकीनी है। अललाह का शुक है िक मै वक्त पर उनहे आगाह कर सका।’

‘मै वक्त पर आ पहुँचा। उम भर मुझे इस बात का फख रहेगा िक मैने अमीर को आज के िदन


औरत को छू ने से रोक िदया और सारी दुिनया को गम के समंदर मे डू बने से बचा िलया।’ मौलाना
हुसैन इस खुशी और जोश के साथ बोल रहे थे िक अमीर को उनका िवशास करना पडा।

“जब मुझ हकीर और नाचीज को इस दुिनया के परविरदगार का पैगाम िमला िक मै बुखारा जाऊँ
और अमीर की िखदमत मे हािजर होकर उनहे आगाह करँ तो मुझे लगा िक खुशी के समंदर मे
गोते खा रहा हूँ। कहना बेकार है िक मै पाक परवरिदगार के इस हुकम को पूरा करने के िलए
फौरन बगदाद से चल पडा। लेिकन चलने से पहले मैने कई िदन अमीर का जायचा (जनमपती)
तैयार करने मे खचर िकए। इस तरह मैने उन िसतारो और सैयारो की चाल मालूम करके अमीर
की िखदमत करनी शुर कर दी। कल इस आसमान की तरफ देखा तो पता चला िसतारे और
सैयारे अमीर के िलए खतरा पैदा करने वाले घर मे है। िसतारा अशशुला (वृिशक), िजसकी िनशानी
डंक है, के मुकािबले िसतारा अलकलव जो िदल को जािहर करता है, खतरे मे है। िफर मैने तीन
िसतारे अलगफ, जो औरत की नकाब की िनशानी है, दो िसतारे अल-इकलील, जो नाग की िनशानी
है और दो िसतारे अल-शरतान भी देख,े जो सीग की अलामत है।

“यह सब मैने मंगल के िदन देखा, जो िमिरख िसतारे (मंगल) का िदन है। और यह िदन जुमेरात
(बृहसपितवार) के िखलाफ लोगो व अजीम शिखस़यतो की मौत का है और अमीरो के िलए बहुत ही
बदशगुनी का है। इन सबको और राहु को देखकर मै नाचीज नजूमी समझ गया िक ताज पहनने
वाले को मौत के डर का खतरा है, अगर वह िकसी के नकाब को छू ता है। इसीिलए मै ताज
पहनने वाले को आगाह करने के िलए जलदी-जलदी भागा चला आया। मै िदन और रात लगातार
चला। दो ऊँट मार डाले और िफर पैदल ही बुखारा शरीफ पहुँचा। अमीर पर इस बात का गहरा
पभाव पडा। बोले, ‘अलला हो अकबर, कया यह मुिमकन है िक माबदौलत पर इतना बडा खतरा
आया हुआ? मौलाना हुसैन, तुमहे ठीक-ठाक मालूम है िक तुम गलती नही कर रहे हो?’

‘गलती? और मै?’ मौलाना हुसैन ने जोर से कहा, ‘अमीर को मालूम हो िक बगदाद से बुखारा तक
कोई ऐसा आदमी नही है, जो िसतारो के अंदाज को समझने , इलाज करने या इलम मे मेरी बराबरी
कर सके। मेरे आका आप अपने आिलमो से पूछ ले िक मैने आपके जायचे (जनमपती) के िसतारो
को सही बताया है या नही। और उनकी कैिफयत (िववरण) ठीक बयान की है या नही।’

अमीर के इशारे पर टेढी गदरनवाला आिलम आगे बढा। उसने कहा, ‘इलम मे लासानी मौलाना हुसैन
ने िसतारो के सही नाम बताए। इसीिलए उनके इलम पर शक नही िकया जा सकता।’

लेिकन टेढी गदरन वाली ऐसी आवाज मे बोल रहा था, िजससे नसरदीन को जलन और बुरी नीयत
की झलक िदखाई दी।

‘अकलमंदी मे अववल मौलाना हुसैन ने अमीर आजम को चाद की सोलहवी मंिजल के बारे मे और
उन रािशयो के बारे मे कयो नही बताया, िजनमे यह मंिजल िमल जाती है। कयोिक इन कैिफयतो
(हालतो) के िबना यह कहना बेबुिनयाद होगा िक िमिरख (मंगल) का िदन अजीम शिख्सयतो की
मौत का िदन है, िजसमे ताजदार बादशाह भी शािमल है। सैयारे िमिरख (मंगलगह) की मंिजल एक
वगर (रािश) मे है, गित दस
ू रे मे है। ठहरता तीसरे मे है और उठता चौथे मे है। इस िहसाब से
सैयारे िमरब के एक नही चार अंदाज है लेिकन दािनशमंद हजरत मौलाना हुसैन ने एक ही बताया
है।”

काइयापन से मुसकुराते हुए आिलम खामोश हो गया। दरबािरयो ने इतमीनान और खुशी के साथ
आपस मे कानाफूसी शुर कर दी। वह समझ रहे थे िक नया आिलम परेशानी मे पड गया है।
अपने रतबे और आमदनी का धयान रखते हुए हर बाहरी आदमी को वह बाहर की रखने की
कोिशश करता था। हर नए आने वाले को वे अपना पितदंदी समझते थे।

लेिकन नसरदीन जब भी िकसी काम को हाथ मे लेता था, उसे अधूरा नही छोडता था। अब तक
उसने अमीर के आिलमो और दरबािरयो की िवदता की गहराई भाप ली थी। िबना िकसी परेशानी
और िझझक के कहने लगा,‘मेरे दािनशमंद होिशयार साथी इलम के िकसी दसू री िवभाग मे भले ही
मुझसे जयादा जान ले लेिकन जहा तक िसतारो का ताललुक है उनके लफजो से जा़़़िहहर ै िक
सबसे बडे आिलम इबे बजजा की तालीम के बारे मे कुछ भी नही जानते। ककर रािश मे है, ठहराव
तुला रािश और अरज (उदय) मकर रािश मे है। लेिकन हर हाल मे वह मंगल ही है। उसकी
नजर टेढी होना ताजदारो के िलए घातक है।’

यह उतर देते समय नसरदीन को अनपढ होने के आरोप की िबलकुल आशंका नही थी, कयोिक वह
जानता था िक ऐसी बहसो मे िवजय उसी की होती है, जो सबसे जयादा बातूनी हो; और इसमे बहुत
ही कम लोग उसका मुकािबला कर सकते थे।
भिवषयवाणी की सचचाई

मुलला नसरदीन आिलम की आपित के इंतजार मे इस तैयारी से खडा था िक उसे उिचत उतर
दे।

लेिकन आिलम की चुनौती सवीकार नही की और चुपचाप खडा रहा। उसकी िहममत नही थी िक
वह बहस कर पाता, कयोिक वह अपनी योगयता से भली-भाित पिरिचत था। नए आिलम को उसकी
नीचा िदखाने की कोिशश का उलटा असर हुआ। दरबारी उस पर कुद हो उठे। अपनी िनगाह से
उसने उनहे समझाया िदया िक िकस तरह खुलेआम बहस करने मे पितदंदी खतरनाक सािबत हो
सकता है।

मुलला नसरदीन की नजर से ये इशारे भी नही बच सके। उसने मन-ही-मन कहा,‘जरा ठहरो, अभी
बताता हूँ।’

अंत मे अमीर बोले,‘तुमने अगर सभी िसतारो का सही नाम और अंदाज बताया है मौलाना हुसैन तब
तुमहारे मानी िबलकुल ठीक है लेिकन हमारी समझ मे यह बात नही आती िक िसतारे अशतरान (मेष)
कहा से आ गया, िजसकी िनशानी सीग है। वाकई मौलाना हुसैन, तुम सही वक्त पर आ गए।
कयोिक आज सुबह ही एक जवान लडकी हमारे हरम मे लाई गई है और हम तैयारी...।’

मुलला नसरदीन ने भयभीत होकर हाथ िहलाते हुए कहा, ‘ऐ अमीर, उसे अपने खयालो से िनकाल
दीिजए। उसके बारे मे सोिचए भी मत।’ वह यह भूल गया िक अमीर से केवल अनय पुरष मे ही
बात की जा सकती है। वह जानता था िक वह इस तरह बोलना िशषाचार के िवरद है लेिकन
इसे अमीर के पित वफादारी और उसकी िजंद़गी को बचाने की भावना समझा जाएगा। यह उनके
िवरद नही पडेगा बिलक वह अमीर से अतयंत िनकट पहुँच जाएगा और अमीर की नजरो मे ऊँचा
उठ जाएगा।

उसने िचलला-िचललाकर पूरे जोश के साथ अभी से उस लडकी को न छू ने की पाथरना की और


कहा, ‘मुझ हुसैन को आँसुओं की नदी न बहानी पडे और मातमी काला िलबास न पहनना पडे।’

अमीर पर इस बात का बहुत गहरा असर पडा। ‘घबराओ मत, परेशान मत हो। इतमीनान रखो
मौलाना हुसैन, हम िरयाया के दुशमन नही है, जो उसे गम और अफसोस मे डाले। हम वायदा करते
है िक अपनी बेशकीमती िजंद़गी की िहफाजत करेगे और उस लडकी से नही िमलेगे। हम हरम मे
तब तक नही जाएँगे जब तक िसतारे मुबारक (शुभ) नही होते और यह तुम हमे ठीक वक्त पर बता
देना। इधर आओ।’

यह कहकर उनहोने हुका बरदार को इशारा िकया। जोर का एक कश लेकर सोने की मुँह नाल नए
आिलम की ओर बढ गई। यही उसके िलए बहुत बडा सममान और कृपा की बात थी। नीची नजर
िकए झुककर नए आिलम ने अमीर की इस कृपा को सवीकार िकया। इस िवचार से उसके बदन मे
खुशी की लहर दौड गई िक दरबारी जलन से मरे जाते है।

अमीर ने कहा, ‘माबदौलत आिलम मौलाना हुसैन को अपनी सलतनत का सदर-उल-उलेमा (आिलमो
का सदर) मुकिररर करने की मेहरबानी फमाते है। उनकी दानाई और इलम के साथ ही माबदौलत
के िलए वफादारी औरो के िलए िमसाल है।’

दरबार के मुहिररर ने अपने कतरवय के अनुसार अमीर के हर काम और हर शबद का पशंसा भरे
शबदो मे िववरण िलखा तािक आने वाली पीिढयो के िलए उनका बडपपन िछपा न रह जाए िक अमीर
को इस बात की बहुत िचंता रहती थी।

दरबािरयो को संबोिधत करते हुए अमीर ने कहा, ‘जहा तक तुम लोगो का ताललुक है माबदौलत
अपनी नाराजगी जािहर करते है। कयोिक नसरदीन की पैदा की हुई तमाम परेशािनयो के अलावा
तुमहारे आका पर मौत का साया मँडरा रहा था, लेिकन तुममे से िकसी ने भी उसके िखलाफ ऊँगली
नही उठाई। इन लोगो को देखा मौलाना हुसैन, बेवकूफी से भरे इन नालायको के चेहरे देखो, कया
ये िबलकुल गधो-से नही िमलते? िकसी भी बादशाह के इतने बेवकूफ और लापरवाह वजीर नही
होगे।’

रमाल की चोरी

नसरदीन ने दरबािरयो को इस तरह देखा जैसे पहले हमले का िनशाना ले रहा हो। िफर बोला,
‘हुजूर, आप सच फरमा रहे है। इन लोगो के चेहरो पर दािनशमंदी की छाप मुझे िदखाई नही दे
रही।’

अमीर ने अतयिधक पसन होकर कहा, ‘िबलकुल ठीक। सुन रहे हो बेवकूफो।’ नसरदीन ने कहा,
‘मै यह भी कहना चाहता हूँ िक इन लोगो के चेहरो पर नेकी और ईमानदारी की भी छाप नही है।’

पूरे यकीन से अमीर ने कहा, ‘ये लोग चोर है। सबके सब चोर है। रात िदन हमे लूटते रहते है।
हमे महल की हर चीज की िहफाजत करने पर मजबूर होना पडता है। जब भी हम चीजो को िगनते
है तो कोई-न-कोई चीज गायब िमलती है। आज सुबह ही हम अपना रमाल बाग मे भूल आए।
आधे घंटे के बाद वह गायब हो गया। इनमे से भला कौन चोर हो सकता है? तुम समझ रहे हो ना
मौलाना हुसैन?’

जब अमीर बोल रहे थे, टेढी गदरन वाले आिलम ने बडी मकारी से आँखे नीची की थी। िकसी और
समय यही मामूली सी हरकत शायद िदखाई न देती लेिकन इस समय नसरदीन चौकना था। वह
फौरन समझ गया िक माजरा कया है।

बडे इतमीनान से नसरदीन उस आिलम के पास पहुँचा और उसके लबादे के अंदर हाथ डालकर
बडी खूबसूरती से कढा हुआ एक रमाल िनकाल िलया। ‘अमीर-आजम, इसी रमाल के खोने पर
अफसोस कर रहे है कया?’

आशयर और भय से सारे दरबारी सकते मे रह गए। ये नया आिलम सचमुच ही खतरनाक पितदंदी
सािबत हो रहा था, कयोिक िजसने उसका िवरोध िकया था, उसी का भंडाफोड हो गया था।
आिलमो, शायरो, वजीरो और अफसरो के िदल बैठने लगे।
अमीर ने िचललाकर कहा, ‘अललाह गवाह है। यही है हमारा रमाल। वाकई मौलाना हुसैन तुमहारी
सूझबूझ बेजोड है।’

और िफर वह सफलता तथा संतुिष के साथ दरबािरयो की ओर मुडकर बोले, ‘आिखरकार रंगे
हाथो पकडे ही गए। अब तुम हमारा एक धागा भी चुराने की कोिशश नही कर सकते। तुमहारी
लूट हम काफी भुगत चुके है। और जहा तक इस गए-बीते चोर का ताललुक है, िजसने इतनी
गुसताखी से हमारा रमाल चुराया था इसके िसर, बदन और मुँह के सारे बोल नोच िलए जाएँ ,
इसके तलवो मे सौ कोडे लगाएँ जाएँ। इसे नंगा करके गधे पर उलटा बैठाकर, चोर बताते हुए सरे-
आम शहर मे घुमाया जाए।’

आिलम को सजा

असरला बेग के इशारा करते ही जललादो ने आिलम को पकड िलया और उसे धकेलते हुए बाहर ले
गए और िफर उस पर टू ट पडे। कुछ देर बाद उसे िफर दरबार मे धेकल िदया गया। वह नंगा
था। उसके बाल गायब थे। बहुत ही गंदा और बदनुमा लग रहा था। उसकी दाढी और बेडोल
साफा अब तक उसकी बदकारी और बेवकूफी को िछपाए हुए थे। ऐसी शकल वाला आदमी नंबरी
चोर और बदमाश ही हो सकता था।

घृणा से मुँह िबगाडकर अमीर ने हकु म िदया, ‘ले जाओ इसे।’ जललाद उसे खीचकर ले गए। एक
पल बाद ही िखडकी के बाहर से चीखो और डंडो की फटाफट सुनाई देने लगी। िफर उसे गधे पर
दुम की ओर मुँह करके बैठा िदया गया। और तुरही तथा ढोल की आवाजो के साथ िसपाही उसे
ले़ कर बाजा़रक
़ ी ओर चल िदए।

अमीर देर तक नए आिलम से बाते करते रहे। दरबारी िबना िहले-डुले खामोश खडे रहे। गमी बढ
रही थी। लबादो के नीचे उनके बदन खुजला रहे थे। इस समय वजीरे-आजम बिखत़यार नए
आिलम से सबसे जयादा डरा हुआ था।

दरबािरयो से मशवरा करके इस नए पितदंदी को बबाद करने का उपाय खोजने की कोिशश मे था


और दरबारी सोच रहे थे िक इस मोचे पर िकसकी जीत होगी। वे आसार देखकर ऐन मौके पर
अपने लाभ के िलए बिख्तयार को दगा देने की तैयारी कर रहे थे तािक वे आिलम की िमतता पापत
कर सके।

अमीर नसरदीन से खलीफा की कुशलता बगदाद के समाचारो, याता मे हुई घटनाओं आिद के बारे
मे पूछ रहे थे और वह िजतने अचछे सही उतर बन पड रहे थे, दे रहा था। थकान महसूस करके
अमीर ने आराम करने के िलए अपना िबसतर तैयार करने का हुकम िदया ही था िक बाहर से चीख-
पुकार और शोरगुल सुनाई िदया।

महल का दरबान दौडकर आया। उसका चेहरा खुशी से दमक रहा था। उसने ऊँची आवाज मे
ऐलान िकया, ‘अमीर-आजम को मालूम हो िक अमन मे खलल डालने वाला कािफर नसरदीन
िगरफतार कर िलया गया है और महल मे ले आया गया है।’
उसके ऐसा कहते ही अखरोट की लकडी का नक्काशीदार दरवाजा खुला और हिथयारो की
खडखडाहट के बीच पहरेदार लंबी-झुकी नाक और सफेद दाढी वाले एक बूढे को अंदर ले आए
और उसे तख्त के सामने कालीन पर पटक िदया। वह औरतो के िलबास मे था।

उसे देखते ही नसरदीन जैसे जाग गया। उसे लगा जैसे दरबार की दीवारे िगर रही है। दरबािरयो
के चेहरे हरी धुध
ं मे तैर रहे है।
मौलाना बेचारा, मुलला का मारा

बगदाद का आिलम मौलाना हुसैन शहर के फाटक पर पकडा गया। वह अपने नकाब मे से चारो
ओर आनेवाली सडको को देख रहा था। उसे हर सडक दुभागय से मुिकत िदलानेवाली िदखाई दे
रही थी। लेिकन फाटक पर तैनात िसपाही ने पुकारकर उसे रोक िदया था, ‘ ऐ औरत, तू कहा जा
रही है?’

आिलम ने ऐसी आवाज मे उतर िदया, जो उस मुगें की बाग जैसी लग रही थी, िजसका गला पड
गया हो, ‘मै जलदी मे हूँ। अपने शौहर से िमलने जा रही हूँ। बहादुर, िसपािहयो, मुझे जाने दो।’

िसपािहयो को आवाज पर संदेह हो गया। वे एक-दस


ू रे को ताकने लगे। एक िसपाही ने ऊँट की
नकेल पकड ली, ‘तुम रहती कहा हो?’ आिलम ने आवाज और ऊँची करके उतर िदया, ‘यही पास
ही।’ आवाज ऊँची करने के कारण उसे खासी आ गई थी। सास थरथराने लगी थी।

िसपाही ने उसका नकाब फाड डाला। बूढे को देखकर उनहे बडी खुशी हुई। वे एकदम िचलला
उठे, ‘यही तो-यही है वह। पकड लो इसे। पकड लो इसे। िगरफतार कर लो।’ वे उसे बाधकर
महल मे ले आए। रासते मे वे बहस करते रहे िक इस बूढे की मौत िकस तरह होगी और तीन
हजार तंको का इनाम िकसे िमलेगा?

उनकी बातचीत का हर शबद बूढे के िदल पर जलते हुए अंगारे के समान लग रहा था। तख्त के
सामने पडा बूढा बुरी तरह रो रहा था और रहम की भीख माग रहा था। ‘इसे खडा करो,’ अमीर ने
हकु म िदया। िसपािहयो ने उसे खडा कर िदया।

तभी दरबािरयो की भीड से िनकलकर असरला बेग आगे बढा, ‘अमीर इस वफादार गुलाम की बात
सुनने की मेहरबानी अता फमाएँ। यह आदमी नसरदीन नही है। नसरदीन जवान है। उसकी उम
तीस से कुछ ही ऊपर है, जबिक यह आदमी बूढा है।’

िसपाही िनराश हो गए। उनके हाथ से इनाम िनकला जा रहा था। बूढे ने कापते हुए कहा, “मै
मेहरबान अमीर के महल के िलए रवाना हुआ था। लेिकन मेरी मुलाकात एक अजनबी आदमी से हो
गई, िजसने मुझसे कहा िक मेरे बुखारा पहुँचने से पहले ही अमीर ने मेरा िसर काट देने का हुकम
जारी कर िदया है। डरकर मैने वेश बदलकर िनकल भागने का फैसला कर िलया।” अमीर हँस
पडे, जैसे सब कुछ समझ गए हो, ‘तब भी तुमने उसका यकीन कर िलया? अजीब िकससा है यह
तो। और हम तुमहारा िसर कयो कलम करवा रहे थे?’

‘उसने बताया िक मैने बगदाद से चलते वक्त खुले-आम ऐलान िकया था िक मै अमीर-आजम के
हरम मे घुस जाऊँगा। लेिकन खुदा गवाह है। मेरे िदमाग मे ऐसा खयाल कभी आ ही नही सकता।
मै बूढा और कमजोर आदमी हूँ। मैने तो बहुत िदन पहले ही औरतो से अपना िरशता तोड िलया
है।’

अमीर ने होठ भीचकर कहा, ‘तुम हमारे हरम मे घुस जाओगे? तुम हो कौन और कहा से आए हो?’

मौत की सजा ...

अमीर के चेहरे से ऐसा लग रहा था िक उसका संदेह बढता जा रहा है।

“मै बगदाद का आिलम, नजूमी, हकीम मौलाना हुसैन हूँ। अमीरे-आजम के फमान पर मै यहा आया
हूँ।“

‘मौलाना हुसैन?’ अमीर ने दोहराया, ‘तुम मौलाना हुसैन हो? तुमहारा नाम मौलाना हुसैन है? तू सफेद
झूठ बोल रहा है। यह रहे मौलाना हुसैन।’ अमीर ने इतनी जोर से हँसकर कहा िक शायरे-आजम
घुटनो के बल कालीन पर िगर पडे।

बूढा आशयर से पीछे हट गया। लेिकन फौरन उसने अपने -आपको सँभाला और िचललाकर बोला,
‘यही तो है वह आदमी, जो मुझे बाजार मे िमला था। इसी ने कहा था िक अमीर ने मुझे मरवा
डालने का हुकम जारी कर िदया है।’

अमीर ने परेशान होकर कहा, ‘मौलाना हुसैन, कया कह रहा है यह?’

बूढा िचललाया, ‘मौलाना हुसैन यह नही, मै हूँ। यह धोखेबाज है। जािलया है। इसने मेरा नाम चुरा
िलया है।’

नसरदीन ने अमीर के आगे झुककर कहा, ‘शहंशाहे-आजम, मेरी गुसताखी माफ हो। लेिकन इसकी
बेशमी वाकई हद से गुजर गई है। यह कहता है िक मैने इसका नाम चुरा िलया है। अब शायद
यह कहेगा िक मैने इसकी पोशाक भी चुरा ली है।’

बूढा िचललाया, ‘हा-हा, यह पोशाक भी मेरी है।’

नसरदीन ने िचढाने के अंदाज मे कहा, ‘और शायद यह साफा भी तुमहारा है?’

‘हा, मेरा ही है। तुमने मुझे जनाने कपडे देकर मेरे कपडे और साफा ले िलया था।’

नसरदीन और अिधक वयंगय भरे लहजे मे हँसा, ‘तब तो यह पटका भी तुमहारा है? यह कमरबंद
भी?’

बूढे ने गुससे से कहा,हा यह भी मेरा है।


नसरदीन तख्त की ओर मुडा, ‘अमीरे-आजम ने खुद जान िलया है िक यह आदमी िकस िकसमत
का है। यह बूढा और नफरत के कािबल आदमी कह रहा है िक मैने इसका नाम छीन िलया है और
ये कपडे, यह साफा और यह पटका इसी का है। कल यह कहेगा िक यह महल और यह सलतनत
उसी की है। और बुखारा के अमीर यह नही है, जो हमारे सामने सूरज की तरह चमक रहे है
बिलक यह जलील बूढा है। ऐसे आदमी से तो हर बात की उममीद की जा सकती है। यह बुखारा
कयो आया है? अमीर के हरम मे घुसने के िलए तो नही, जैसे यह हरम इसी का हो।’

अमीर ने कहा, ‘तुम सही कहते तो मौलाना हुसैन। हमे यकीन है िक यह बूढा खतरनाक है और
मुझे शक है िक इसकी नीयत अचछी नही है। इसके िदल मे कोई खोट है। हमारी राय है िक
इसका िसर फौरन धड से अलग कर िदया जाए।“
बूढे ने अपने हाथो से मुँह ढाप िलया और घुटनो के बल िगरकर कराहने लगा।’

मुलला नसरदीन की मदद..

लेिकन नसरदीन ऐसे आदमी को मरने नही दे सकता था, िजस पर झूठा आरोप लगाया गया हो।
भले ही वह दरबारी आिलम हो और उसने धोखे से बहुतो को बबाद िकया हो।

उसने अमीर के आगे अदब से झुककर कहा, ‘अमीर-आजम, मेरी बात सुनने की मेहरबानी फमाएँ।
इसका िसर काटने मे कभी देर नही लगेगी। यह काम तो कभी भी िकया जा सकता है। लेिकन
इसका िसर काट लेने से पहले कया यह जान लेना मुनािसब न होगा िक इसका असली नाम कया है
और यह यहा कयो आया है? यह भी पता लग जाएगा िक यह अकेले है या इसके कुछ और साथी
भी है। हो सकता है यह कोई बदमाश जादगू र हो, जो िसतारो की खतरनाक गिदरश से फायदा
उठाना चाहता हो। अगर ऐसा हुआ तो यह अमीरे-आजम के कदमो की धूल मे िचमगादड का
िदमाग िमलाकर हुजूर के हुके मे डाल देगा, िजससे हुजूर की सेहत खतरे मे पड जाएगी। इस
वकत तो इसकी िजंदगी बखश दी जाए और इसे मेरे सुपुदर कर िदया जाए। मामूली िसपािहयो को तो
यह जादू के जोर से अपने वश मे कर सकता है लेिकन मेरे सामने इसका जादू बेकार सािबत
होगा। कयोिक मै जादगू री के इलम की सारी चाले जानता हूँ। मै इसे ताले मे बंद कर दँग
ू ा और
ताले पर ऐसी दुआ फूकूँगा, जो िसफर मै ही जानता हूँ। यह अपने जादू के जोर से उस ताले को
खोल नही पाएगा। इसके बाद मै इससे सब कुछ मालूम कर लूँगा।’

‘तुम ठीक कह रहे हो मौलाना हुसैन।’ अमीर ने कहा, ‘इसे ले जाओ और जो मजी हो करो।
लेिकन इतना खयाल रखना िक यह भागने न पाए।’

‘यह िजममेदारी मै अपने जान देकर भी पूरी करँगा।’

आधे घंटे बाद अमीर के आिलमो के सदर और िवशेष जयोितषी नसरदीन अपने नए मकान मे
पहुँचे। यह मकान महल की दीवार पर बने एक ऊँचे मीनार पर उनके िलए तैयार िकया गया था।
नसरदीन के पीछे िसपािहयो से िघरा िसर झुकाए अपराधी असली मौलाना हुसैन चला आ रहा था।

मीनार मे एक छोटा-सा गोल कमरा था। उसमे सलाखो वाली एक िखडकी थी। नसरदीन ने एक
बडी चाबी से पीतल के पुराने ताले को खोला। लोहा जडा दरवाजा खुल गया तो िसपािहयो ने बूढे
को उसमे धकेल िदया। उसे िबछाने के िलए एक मुटा पुआल तक नही िदया गया था। बंद दरवाजे
पर नसरदीन काफी देर तक ऊँची आवाज मे कुछ पढता रहा। िसपाही उसमे से िसफर अललाह का
नाम सुन और समझ पाए।
नसरदीन अपने मकान मे बहुत खुश था। अमीर ने एक दजरन गदे, आठ मसनदे, बहुत से पयाले-
तशतिरया, मतरबान भरकर शहद, एक टोकरी सफेद रोिटया और अपने दसतरखान से ढेर सारे
बिढया-बिढया खाने भेज िदए थे।

नसरदीन बहुत ही थका हुआ और भूखा था। उसने गदे और चार मसनदे उठाई और कैदी के पास
पहुँच गया। बूढा एक कोने मे िसकुडा बैठा था। उसकी आँखे बौखलाई िबलली की आँखो की तरह
चमक रही थी।

‘मौलाना हुसैन, इस मीनार मे हम लोग बडे आराम से रहेगे।’ नसरदीन ने बडी नमी से कहा, ‘मै
नीचे, आप ऊपर यानी आपकी उम और इलम के िलए जैसा िक मुनािसब है। ओह यहा िकतनी धूल
है। उिठए, मै जरा सफाई कर दँ। ू ’

नीचे जाकर वह एक घडा पानी और झाडू ले आया। बडी सफाई से फशर धोया और उस पर गदे
िबछा िदए। मसनदे लगा दी। िफर नीचे से खाना ले आया और अपने कै़़़
दकी े साथ बैठकर
खाने लगा।

‘मौलाना हुसैन, यहा आपको खाने -पीने की कोई परेशानी नही होगी। मै अचछा इंतजाम कर लूँगा।
वह रखा है हुका और तंबाकू।’

उस कमरे को अपने कमरे की अपेका अचछी तरह सजाकर नसरदीन वापस चला आया। बूढा
कमरे मे अकेला रह गया। वह आशयर मे डू बा हुआ था। उसकी समझ मे नही आ रहा था िक यह
कया हो रहा है। िदन भर की परेशािनयो ने उसे बुरी तरह थका िदया था। उसने अपना भागय खुदा
के हाथो मे सौप िदया और सोने की तैयारी करने लगा
कैदी की खाितरदारी...

आधे घंटे बाद अमीर के आिलमो के सदर और िवशेष जयोितषी नसरदीन अपने नए मकान मे
ु े। यह मकान महल की दीवार पर बने एक ऊंचे मीनार पर उनके िलए तैयार िकया गया था।
पहंच
नसरदीन के पीछे िसपािहयो से िघरा िसर झुकाए अपराधी असली मौलाना हुसैन चला आ रहा था।

मीनार मे एक छोटा-सा गोल कमरा था। उसमे सलाखो वाली एक िखडकी थी। नसरदीन ने एक
बडी चाबी से पीतल के पुराने ताले को खोला। लोहा जडा दरवाजा खुल गया तो िसपािहयो ने बूढे
को उसमे धकेल िदया। उसे िबछाने के िलए एक मुटा पुआल तक नही िदया गया था। बंद दरवाजे
पर नसरदीन काफी देर तक ऊंची आवाज मे कुछ पढता रहा। िसपाही उसमे से िसफर अललाह का
नाम सुन और समझ पाए।

नसरदीन अपने मकान मे बहुत खुश था। अमीर ने एक दजरन गदे, आठ मसनदे, बहुत से पयाले-
तशतिरया, मतरबान भरकर शहद, एक टोकरी सफेद रोिटया और अपने दसतरखान से ढेर सारे
बिढया-बिढया खाने भेज िदए थे। नसरदीन बहुत ही थका हुआ और भूखा था। उसने गदे और
चार मसनदे उठाई और कैदी के पास पहंुच गया।

बूढा एक कोने मे िसकुडा बैठा था। उसकी आँखे बौखलाई िबलली की आँखो की तरह चमक रही
थी। ‘मौलाना हुसैन, इस मीना मे हम लोग बडे आराम से रहेगे।’ नसरदीन ने बडी नमी से कहा,
‘मै नीचे, आप ऊपर यानी आपकी उम और इलम के िलए जैसा िक मुनािसब है। ओह यहा िकतनी
धूल है। उिठए, मै जरा सफाई कर दं।ू ’ नीचे जाकर वह एक घडा पानी और झाडू ले आया। बडी
सफाई से फशर धोया और उस पर गदे िबछा िदए। मसनदे लगा दी। िफर नीचे से खाना ले आया
और अपने कै़़़दकी े साथ बैठकर खाने लगा।

‘मौलाना हुसैन, यहा आपको खाने -पीने की कोई परेशानी नही होगी। मै अचछा इंतजाम कर लूंगा।
वह रखा है हुका और तंबाकू।’ उस कमरे को अपने कमरे की अपेका अचछी तरह सजाकर
नसरदीन वापस चला आया।

बूढा कमरे मे अकेला रह गया। वह आशयर मे डू बा हुआ था। उसकी समझ मे नही आ रहा था िक
यह कया हो रहा है। िदन भर की परेशािनयो ने उसे बुरी तरह थका िदया था। उसने अपना भागय
खुदा के हाथो मे सौप िदया और सोने की तैयारी करने लगा।
खाली होते खजाने की िचंता...

नसरदीन ने अमीर की ओर मुडकर कहा, ‘ऐ मेरे आका, उम ने भले ही उसके िसर पर चादी िबखेर
दी हो लेिकन यह सजावट बाहरी है। उसके िसर के अंदर जो कुछ है, उम ने उसे नही बदला है।
यह मेरे इलम को समझ नही पाया है। काश लुकमान को मात करने वाले अमीर की अकल और
समझदारी का हजारवा िहससा भी इसे िमला होता।’ अमीर संतोष से मुसकरा िदया।

कई िदन से नसरदीन अमीर को समझा रहा था िक उनकी अकलमंदी की कोई िमसाल नही है।
वह जो भी बात अमीर को समझाता, वह बडे धयान से सारी बात सुनते और इस डर से बहस न
करता िक कही उनकी िवदता की वासतिवक गहराई का पता न लग जाए। अगले िदन बिख्तयार
ने दरबािरयो के सामने अपने िदल का बोझ हलका िकया।

उसने कहा, ‘यह नया आिलम तो हम लोगो को बबाद कर देगा। िजस िदन टैकस वसूल िकए जाते
है हम लोगो को शाही खजाने मे आनेवाली बाढ से कुछ फायदा उठाने और दौलत इकटी करने का
मौका िमलता है। लेिकन अब जब इस सैलाब से कुछ फायदा उठाने का मौका आया है, मौलाना
हुसैन रासते मे रोडा बन गया है।

वह फौरन िसतारो की कैिफयत बताने लगता है। कया िकसी ने कभी यह सुना है िक जो िसतारे
बडे आदिमयो के िलए बदशगुन के हो, वही कारीगरो के िलए नेक हो? दरबारी कुछ नही बोले।
कयोिक वे समझ नही पा रहे थे िक िकसका साथ देने मे लाभ है- बिख्तयार का या नए आिलम
का? बिख्तयार कह रहा था,‘टैकसो की वसूली िदनो िदन कम होती जा रही है।

अब कया होगा? मौलाना हुसैन ने अमीर को यह समझाकर गचचा िदया है िक टैकस वसूली िसफर
थोडे िदनो के िलए टाली गई है। बाद मे टैकस िफर लगाए ही नही, बढाए भी जा सकते है। हम
जानते है िक टैकस रद करना तो आसान है लेिकन नया टैकस लगाना बहुत मुिशकल है।

खजाना खाली हो जाएगा और सारे दरबारी बबाद हो जाएंगे। जरी के कपडे पहनने के बजाए हमे
सादे कपडे पहनने पडेगे। चार बीिवयो के बजाय दो से ही गुजर करनी पडेगी। चादी के बतरनो की
जगह िमटी के बतरनो मे खाना पडेगा, िजसमे कुते और कारीगर खाते है।
नया आिलम यह सब हमारी िकसमत मे िलखवाता जा रहा है। जो आदमी इस बात को न देख,े न
समझे वह अंधा है। दरबािरयो को नए आिलम के िवरद उभारने के िलए बिख्तयार इसी तरह
बोलता रहा लेिकन उसे सफलता नही िमली और मौलाना हुसैन अपने नए औहदे पर एक के बाद
एक सफलता पापत करता चला गया।
अमीर की तारीफ का एक खास िदन...

एक पुराने िरवाज के अनुसार हर महीने अमीर के सामने एक िदन सभी वजीर, ओहदेदार, आिलम
और शायर इकटे होते थे और उनकी तारीफ करने की होड करते थे। इसमे जो सबसे अिधक
बढ-चढकर तारीफ करता था, उसे इनाम िमलता था।

उस िदन नया आिलम िवशेष रप से चमक गया। उस िदन हर एक ने अपना कसीदा पढा लेिकन
अमीर को िबलकुल तसलली नही हुई। उनहोने कहा, ‘िपछली बार भी तुम लोगो ने ये बाते ही कही
थी। हम देखते है िक तारीफ करने मे तुम लोग मािहम और मुकममल नही हो।

तुम लोग अपने िदमागो पर जोर डालने के िलए तैयार नही हो। लेिकन हम आज तुमसे काम लेकर
ही मानेगे। हम सवाल करेगे। और तुमहे इस तरह जवाब देना होगा िक जवाब मे सफाई भी शािमल
रहे और हमारी तारीफ भी। गौर से सुनो।

हमारा पहला सवाल यह है िक तुम लोगो का कहना है िक हम बहुत ताकतवर है। हम पर कोई भी
फतह नही पा सकता। िफर कया वजह है िक आस-पास के मुिसलम मुलको के सुलतानो ने हमे
बादशाह मानकर बिढया-बिढया सौगाते नही भेजी?’

दरबारी परेशानी मे डू ब गए। सीधा उतर न देकर वे िभनिभनाने लगे। केवल नसरदीन िबना
घबराए बैठा रहा। जब उसकी बारी आई तो उसने कहा, ‘अमीरे-आजम, मेरी हकीर लफजो को
सुनने की मेहरबानी फमाएं। हमारे शहंशाह के सवाल का जवाब बहुत आसान है।

सभी पडोसी मुलको के सुलतान हमारे आका की ताकत से डरकर हमेशा कापते रहते है। वे सोचते
है-अगर हम बिढया सौगात भेजेगे तो बुखारा के ताकतवर अमीर समझेगे िक हमारा मुलक दौलतमंद
है। इससे उनके िदल मे यहा आने और हमसे युद करने का लालच पैदा हो जाएगा। और अगर
मामूली सौगात भेजेगे तो वह नाराज होकर हमारे मुलक पर चढाई कर देगे।

बुखारा के अमीर ताकतवर है, बडी शान वाले है। इसिलए सलामती इसी मे है िक अपनी नाचीज
हसती उनहे याद ही न िदलाई जाए।’ दस ू रे सुलतान भी ऐसा ही सोचते है। शानदार सौगात लेकर
अपने (राजदत ू ) बुखारा न भेजने की वजह उन लोगो के डर और अंदेशे मे ढू ंढनी होगी, जो हमारे
शहंशाह की ताकत ने पैदा कर दी है।
मौलाना हुसैन को वाहवाही...

नसरदीन ने जो पशंसा की, उससे पसन होकर अमीर खुशी से िचलला उठा, ‘वाह, अमीर के सवाल
का सही जवाब इसी तरह िदया जाना चािहए। सुना तुम लोगो ने ? ओ बेवकूफो, ओ कु ंदजहनो,
इनसे सीखो। वाकई मौलाना हुसैन इलम मे तुम सबसे दस गुना बडे है। माबदौलत तुमहारा शाही
तौर पर शुिकया अदा करते है।’
मीर बकरावल दौडता हुआ मुलला नसरदीन के पास पहंुचा और उसके मुंह से िमठाइया और हलवा
भर िदया। उसके गाल फूल गए। दम घुटने लगा और चाशनी उसकी ठोढी तक बहने लगी।
अमीर ने कई उलझे हुए पश िकए। हमेशा नसरदीन का उतर ही सबसे बिढया रहा।

‘दरबारी का सबसे पहला फजर कया है?’ अमीर ने पूछा। नसरदीन ने उतर िदया, ‘ऐ अजीमुशशान
बादशाह, दरबारी का पहला फजर रोजाना अपनी रीढ की हडडी को कसरत कराना है, िजससे
उसमे जररी लोच बना रहे। िजसके िबना वह वफादारी और आदाब का इजहार (पदशरन) कर ही
नही सकता। दरबारी की रीढ को आसानी से हर ओर मुड और घूम सकना चािहए। मामूली
इनसान का अकडी हुई रीड की तरह नही होनी चािहए, जो ठीक से झुककर सलाम करना भी नही
जानता।’

अमीर बहुत खुश हुए। बोले, ‘बहुत खूब, िबलकुल सही रीढ की हडडी की रोजाना कसरत। वाह,
वाह! हम दस ू री बार मौलाना हुसैन के शाही शुिकए का ऐलान करते है।’ एक बार िफर नसरदीन
के मुंह मे गमर िमठाइया और हलवा ठूंस िदया गया। उसी िदन से दरबािरयो ने बिख्तयार के सथान
पर नसरदीन की वफादारी शुर कर दी।

उसी िदन बिख्तयार ने असरला बेग को अपने घर पर दावत दी। नया आिलम दोनो के िलए एक
जैसा खतरनाक था। उसे बबाद करने के िलए कुछ िदनो के िलए उन दोनो ने पारसपिरक वैर-
िवरोध ताक पर रख िदया। ‘उसके पुलाव मे कुछ िमला देना ठीक रहेगा। असरला बेग ने सलाह
दी।’

‘लेिकन अगर पता चल गया तो अमीर हमारे िसर कलम करवा देगे।’ बिख्तयार ने कहा, ‘नही
असरला बेग, हमे कोई दस
ू रा तरीका सोचना होगा। हमे हर तरह मौलाना हुसैन के इलम और अकल
की तारीफ करके उसे आसमान पर चढा देना चािहए तािक अमीर के िदल मे शक पैदा हो जाए िक
कही दरबारी मौलाना हुसैन को अमीर से बढकर अकलमंद तो नही समझने लगे है।

हमे लगातार उसकी तारीफ के पुल बाधने चािहए। जलदी ही वह िदन आ जाएगा, जब अमीर को
उससे जलन होने लगेगी।’
एक भारी भूल

लेिकन तकदीर नसरदीन के साथ थी। असरला बेग और बिख्तयार जब मौलाना हुसैन की तारीफ
करके अमीर के िदल मे ईषया की आग भडकाने की कोिशश कर रहे थे, नसरदीन एक भारी भूल
कर बैठा। एक िदन वह बाग मे अमीर के साथ टहल रहा था। अमीर खामोश थे। इस खामोशी मे
नसरदीन को दुशमनी की झलक िदखाई दी। लेिकन वह इसकी वजह नही समझ पाया।

अमीर ने पूछा, ‘ तुमहारे उस बुडढे-कै़़़


दकी ा कया हाल है ? कया तुमने उसका असली नाम और
बुखारा आने की वजह जान ली?’ नसरदीन इस वक्त गुलजान के ख्यालो मे खोया हुआ था।
उसने अनमने ढंग से उतर िदया, ‘बादशाह सलामत, इस नाचीज की खता माफ फमाएं। अभी तक
मै उस बुडढे से एक लफज भी नही कबुलवा पाया हूं।

वह तो एकदम गूंगा है, मछली की तरह।’ ‘कया तुमने उसके साथ सखती से काम नही िलया?’ ‘जी
हा, परसो मैने उसकी गाठो को उमेठा था। कल िदन-भर मै गमर िचमटे से उसके दात िहलाता
रहा।’ अमीर ने तारीफ करते हुए कहा, ‘दात ढीले करना तो अचछी बात है। हैरत है िक तब भी
खामोश रहा। कया तुमहारी मदद के िलए िकसी होिशयार तजुबेकार जललाद को भेजा जाए?’ ‘नही
हुजूर।

आप अपने आपको ऐसी िफको से परेशान न करे। कल मै उसे एक नए ढंग की सजा दंगू ा।
उसकी जीभ और मसूडो मे जलता हुआ वरमा घुसेडूंगा।’ ‘ठहरो-ठहरो।’ अमीर िचललाए। उनका
चेहरा खुशी से चमक उठा, ‘अगर तुम उसकी जुबान जलते हुए वरमे से छेद दोगे तो वह अपना
नाम कैसे बताएगा? तुमने इस बात पर गौर नही िकया, या िकया था? देखो न माबदौलत ने फौरन
इस बात पर गौर िकया और तुमहे एक बहुत बडी गलती करने से रोक िलया।

इससे सािबत हो जाता है िक हालािक तुम लाजवाब आिलम हो िफर भी हमारी अकल तुमसे बढ
चढकर है। तुमने अभी-अभी यह बात देखी है ना?’अमीर ने खुशी से दमकते चेहरे से हुकम िदया,
‘दरबारी फौरन बुलाए जाएं।’

दरबार लग गया। अमीर ने दरबार मे पहंुचकर ऐलान िकया िक आज उनहोने मौलाना हुसैन से
जयादा अकलमंदी िदखाई है और उसे एक ऐसी गलती करने से रोक िलया है, जो नुकसानदेह
सािबत होती। दरबार के मुहिररर ने बडी मेहनत से अमीर के बयान का एक-एक लफज िलख िलया
तािक आने वाली पीिढया उनहे भूल न जाएं। उस िदन के बाद से अमीर के िदल मे जलन पैदा नही
हुई। इस पकार संयोग से हो जाने वाली गलती से नसरदीन ने दुशमनो की धूतरतापूणर ितकडमो को
बेकार कर िदया।

बुखारा शहर के आसमान पर पूरा चाद अपनी छटा िबखेर रहा था। मीनारो पर खपरैले चमक रही
थी। नसरदीन खुली िखडकी मे बैठा था। उसे िवशास था िक गुलजान अभी सोई नही है, जाग
रही है और उसी के बारे मे सोच रही है। शायद वे दोनो एक ही मीनार की ओर ताक रहे हो लेिकन
एक-दस ू रे को न देख पा रहे हो। कयोिक उनके बीच दीवारे, लोहे की सिरयो वाली जािलया,
जनखो, पहरेदारो और बूढी औरतो की रोक थी।

नसरदीन को महल मे घुसने का मौका तो िमल गया था लेिकन अभी तक हरम मे पहंुचने का कोई
रासता नजर नही आया था। कोई संयोग या घटना ही उसे वहा पहंच
ु ा सकती थी। वह गुलजान
तक कोई खबर भी नही िभजवा पाया था। उसका िदल अब थक चुका था।

चापलूसी और तारीफो के बदले सीधी-सादी बातचीत और िदल खोलकर जोरदार हंसी के िलए वह
सोने के िलबास को छोडने के िलए तैयार था।
नया ओहदा

अमीर ने एक िदन असमय ही नसरदीन को बुलवा िलया। अभी पौ नही फटी थी। सारा महल
सोया पडा था। शाही आरामगाह मे जाते हुए सुखर-सफेद सीिढयो पर चढते हुए वह सोचने लगा िक
अमीर को इस वक्त उससे कया काम हो सकता है? रासते मे उसकी मुलाकात बिख्तयार से हईु ,
जो आरामगाह से चुपचाप साये की तरह िनकला था। िबना रके दुआ-सलाम हुई।

नसरदीन को लगा िक कोई सािजश की गई है। उसे सावधान हो जाना चािहए। आरामगाह मे
उसने शाही कोच के सामने ख्वाजा सरा को पडा देखा। वह कराह रहा था। उसके पास ही सोने
की मूठ वाले बेत के टुकडे पडे थे।

अमीर रेशमी िलहाफ से बाहर, बालो भरी टागे लटकाए बैठे थे। उसे देखते ही बोल उठे, ‘मौलाना
हुसैन, माबदौलत इस वक्त बहुत दुखी है और उनके दुख की वजह यह ख्वाजा सरा है।’ ‘कया
इसने कोई गुसताखी करने की िहममत की थी, आलमपनाह?’

नसरदीन ने घबराकर पूछा, ‘मेरे आका, कया इसने कोई गुसताखी करने की जुररत की थी?’ ‘अरे
नही।’ अमीर ने हाथ िहलाकर मुंह बनाते हुए कहा, ‘आपकी अकलमंदी से हमने पहले ही सारी बाते
सोच-समझ कर सावधानी बरत रखी है। भला इसकी ऐसी मजाल कैसे हो सकती है।

हमे आज पता चला िक सलतनत के सबसे बडे ओहदो मे से एक ओहदे पर मुकररर िकए जाने की
हमारी मेहरबानी भूलकर यह िहजडा अपना फजर पूरा करने मे गफलत करता रहा है।’ इस बात
का फायदा उठाकर िक हम कई िदनो से हरम मे नही जा रहे है, इसने तीन िदन तक लगातार हरम
मे जाकर गाजा पीने की गुसताखी की। हमारी रखैले इसे नशे मे मदहोश देखकर आपस मे लडती-
झगडती रही।

एक-दस ू रे का मुंह और बाल नोचती रही। इससे बहुत भारी नुकसान हुआ है। नुचे हुए मुंह और
गंजे िसर वाली औरते हमारी नजर मे पूरी तरह हसीन नही होती। इसके अलावा एक बात और हुई,
िजसका हमे बेहद अफसोस है। हमारी नई रखैल बीमार पड गई है। तीन िदन से उसने खाना नही
खाया है। मुलला नसरदीन चौक पडा।

‘ठहरो, अभी हमने अपनी बात खतम नही की। वह बीमार है और शायद बचे नही। अगर हम
उससे एक बार िमल चुके होते तो उसकी बीमारी या मौत से हमे जयादा तकलीफ न होती। लेिकन
मौलाना हुसैन, तुम तो समझ ही सकते हो िक जो हालात है उनकी वजह से हम िकतने परेशान
है।

इसिलए हमने तय िकया है िकया िक हम इस बदमाश गंजेिडए को इसके ओहदे से बखासत कर दे


और इसे दो सौ कोडो की सजा दे। और मौलाना हुसैन हमने तुमहे ख्वाजा सरा के ओहदे पर
मुकररर करने की मेहरबानी फमाई है।’
एक सुनहरा मौका

नसरदीन को लगा, ‘उसकी सास गले मे फंसकर रह गई है। पेट मे ठंडक और पैरो मे कमजोरी
महसूस होने लगी। लेिकन जलदी ही खुद को संभालकर झुककर कोिनरश करते हुए बोला,
‘अललाह हमारे ताजदार का साया हमेशा हमारे िसर पर बनाए रखे। मुझ नाचीज गुलाम पर अमीर
की बेशुमार मेहरबािनया।

शहंशाहे-आजम अपनी िरयाया के िदल की पोशीदा-से-पोशीदा ख्वािहशे जान लेने का जादू जानते
है। इसी से वह अपनी िरयाया को रहम-ओ-करम से लाद देते है। कई बार मुझ नाचीज गुलाम ने
इस आलसी और बेवकूफ इंसान की जगह लेने की तमना की है, जो मुनािसब सजा पाकर फशर पर
पडा है। लेिकन मै इसका िजक करने की िहममत नही कर पाया। अब कयोिक हुजूर ने खुद
ही...।’
खुश होकर अमीर ने नमी से कहा, ‘तो िफर डरे कयो हो। माबदौलत अभी हकीम को बुलाते है।
वह अपने चाकू ले आएगा और तुम उसके साथ कही तनहाई मे चले जाना। हम बिख्तयार को
बुलाकर तुमहे ख्वाजा सरा मुकररर करने का हुकम जारी करते है।’ अमीर ने ताली बजाई।

दरवाजे की ओर घबराकर देखते हुए नसरदीन जलदी से बोला, ‘बादशाह सलामत इस नाचीज के
हकीर लफजो को सुनने की तकलीफ फमाएं। मै बडी खुशी से हकीम के साथ तनहाई मे जाने को
तैयार हूं लेिकन बादशाह की खुशी की िफक मुझे ऐसा करने से रोक रही है। हकीम से िमलने के
बाद मुझे कई िदन िबसतर पर गुजारने पडेगे। इस बीच नई रखैल आ भी सकती है।

तब अमीर का िदल सदमे की धुंध से भर जाएगा। इस बात का खयाल भी इस गुलाम को बदाशत


नही हो सकता। इसिलए मेरी सलाह है िक पहले उस रखैल की सेहत ठीक हो जाए। िफर मै खुद
को हकीम के सुपुदर करके ख्वाजा सरा के ओहदे के कािबल बनने की तैयारी मे लग जाऊं।’
‘हूँ।’ अमीर ने कहा और फशर पर पडे िहजडे की ओर पलटकर बोले, ‘अबे मकडी की नािकस
(तुचछ) औलाद, जवाब दे। कया हमारी नई दाशता बहुत बीमार है? कया हमे उसकी मौत का अंदेशा
होना चािहए?’

‘ऐ अजीमुशशान अमीर!’ िहजडे ने जवाब िदया, ‘वह एक चाद की तरह पीली पड गई है। चेहरा
मोम जैसा हो गया है। ऊंगिलया ठंडी पड गई है। बूढी औरते कह रही है िक आसार खराब है।’
‘ऐसी बात है तो शायद वह सचमुच मर जाए। उसके मरने से हमे सदमा होगा। लेिकन मौलाना
हुसैन, कया तुमहे यकीन है िक तुम उसे अचछा कर दोगे?’ ‘हुजूरे-आला को मालूम है िक बगदाद से
बुखारा तक मुझसे जयादा होिशयार हकीम नही है।’

‘जाओ मौलाना हुसैन, उसके िलए दवा तैयार करो।’ ‘हुजूर, मुझे पहले उसकी बीमारी का पता
लगाना होगा। इसके िलए मुझे जाच करनी होगी।’ अमीर हंस पडे, ‘मौलाना हुसैन, जब तुम
ख्वाजा सरा बन जाओ, तब इतमीनान ने उसकी जाच कर लेना।’ नसरदीन झुककर जमीन से
लग गया, ‘बादशाह सलामत, मुझे जाच करने की इजाजत दे।’

अमीर िचलला उठा, ‘नाचीज गुलाम, कया तू नही जानता िक मौत से पहले कोई भी मदर हमारी सती
रखैलो के चेहरे नही देख सकता।’ ‘जानता हूं बादशाह सलामत। मेरा मतलब उसके चेहरे की
जाच करने से नही था। उसके चेहरे की ओर नजर उठाने की गुसताखी मै कभी नही कर
सकता। मुझे अपने पेशे की इतनी जयादा जानकारी है िक मै नाखूनो की रंगत देखकर ही बीमारी
का पता लगा सकता हूं।

मेरे आका, मेरे िलए उसका हाथ देख लेना ही काफी होगा।’ ‘हाथ? यह तुमने कयो नही कहा?
वरना मुझे गुससा न आता। हाथ? हा यह तो हो सकता है। तुमहारे साथ हम भी चलेगे। हमे
उममीद है िक तुम अगर हमारी रखैल का िसफर हाथ देखोगे तो हमे कोई परेशानी नही।’ ‘बादशाह
सलामत को कतई जलन नही होगी।’

नसरदीन ने तसलली देते हुए कहा। वह सोच रहा था िक गुलजान से अकेले मे तो कभी मुलाकात
हो नही सकेगी। िकसी-न-िकसी का साथ रहना जररी है। अचछा है िक िकसी और के बजाए
खुद अमीर ही साथ है, तािक उनहे शक न हो सके।
गुलजान के काफी करीब...

नसरदीन को आिखरकार हरम मे जाने का मौका िमल ही गया। वह इतने िदनो से इसी मौके की
तलाश मे था। पहरेदार अदब से झुककर एक ओर हट गए। पतथरो की सीिढया चढकर अमीर के
पीछे-पीछे
़ उसने लकडी का एक फाटक पार िकया और एक खू़बसूरत गीचे मे पहंच ु गया।
नसरदीन पर एक रंग आता था, एक जाता था।

िहजडे
़ ने अखरोट की लकडी का नक्काशीदार दरवाजा़़ खोला। अंदर अंधेरा था।
वहा से कपूर, मुशक और गुलाब की गहरी खुशबू आ रही थी। यही वह हरम था, जहा अमीर की
खूबसूरत रखैले कैद थी। नसरदीन ने बडी होिशयारी से कोनो, नुकडो और गिलयो का िहसाब
लगा िलया था िक अंितम अवसर पर रासता न भूल जाए और अपने और गुलजान के ऊपर मुसीबत
न बुला ले।

वह मन-ही-मन याद करता जा रहा था दाएं-िफर बाएं-यह रहा जीना िजस पर बुिढया का पहरा है-
अब िफर दाएं। एक महराबी दरवाजे के सामने पहंुचकर िहजडा रक गया। ऐ मेरे आका, ‘यही है
वह।’ अमीर के पीछे-पीछे नसरदीन ने भी उस दरवाजे को पार िकया, िजसके अंदर उसकी
िकसमत कै़़
़थ
द ी।

कमरा छोटा था। उसका फशर और दीवारे कालीनो से ढकी हुई थी। ताको पर सीक की टोकिरयो
मे तरह-तरह के जेवर रखे थे। चादी का एक बडा आईना दीवार से लटक रहा था। बेचारी
गुलजान ने इतनी दौलत सपने मे भी नही देखी थी। नसरदीन ने उसकी मोती जडी जूितया देखी
तो िसहर उठा। जूितयो की एिडया िघसने का समय गुलजान ने यही िबताया था।

कमरे के एक कोने मे रेशमी परदे की ओर इशारा करते हुए िहजडे ने कह, ‘वह वहा सो रही है।’
नसरदीन को फुरफुरी आ गई। इतने पास थी उसकी पेिमका। उसने मन-ही-मन खुद को डाटकर
कहा, खबरदार नसरदीन सब कर। फौलाद बन जा।’ वह परदे के पास पहंुचा तो नीद मे बेसुध
गुलजान की सासे सुनाई दी। उसने मसहरी पर रेशम को उठते-िगरते देखा। उसका गला भर
आया। आवाज रंध गई। आंखो से आंसू बहने लगे।

मौलाना हुसैन, ‘कया बात है! इतनी सुसती कयो िदखा रहे हो?’ अमीर ने कहा। ‘बादशाह सलामत,
‘मै उसकी सासे सुन रहा हूं। उसके िदल की धडकनो को सुनने की कोिशश कर रहा हूं।

इसका नाम कया है हुजूर?’ ‘इसका नाम है गुलजान।’‘नसरदीन ने हौले से पुकारा, ‘गुलजान।’
गमर सास

मसहरी के ऊपरी िहससे पर उठता-िगरता रेशम रक गया। गुलजान जाग गई थी। वह सास रोके
पडी थी। उसे िवशास नही हो रहा था िक वह सचमुच अपने पेमी की आवाज सुन रही है। वह
सोच रही थी-शायद यह सपना है। नसरदीन ने िफर पुकारा, ‘गुलजान!’ इस बार गुलजान के होठो
से हलकी सी चीख िनकल गई।

नसरदीन ने जलदी से कहा, ‘मेरा नाम मौलाना हुसैन है।’ मै नया हकीम, नजूमी और आिलम हूं।
अमीर की िखदमद के िलए बगदाद से आया हूं। तुम समझ रही हो ना गुलजान!’ िफर वह अमीर
की ओर पलटकर बोला, ‘िकसी वजह से वह मेरी आवाज सुनकर डर गई है। मुमिकन है शहंशाह
की गै़ऱ़
़ -मौजूदगी मे यह िहजडा उससे बेरहमी से पेश आया हो।’अमीर ने जलती हुई आंखो
से िहजडे को घूरा। वह कापकर जमीन पर झुक गया। बोलने तक की िहममत नही कर पाया।

नसरदीन ने कहा, ‘ऐ गुलजान, तुमहारे िसर पर मौत मंडरा रही है। लेिकन मै तुमहे बचा लूंगा।
तुमहे मुझ पर पूरा यकीन करना चािहए। मै हर मुिशकल और मुसीबत पर काबू पा सकता हूं।’
‘बगदाद के आिलम मौलाना हस ु ैन, मै आपकी बाते सुन रही हूं। गुलजान ने धीमी और महीन आवाज
मे कहा, मै आपको जानती हूं। मुझे आप पर यकीन है। मै यह बात शहंशाह की मौजूदगी मे कह
रही ह,ूं िजनके कदम मुझे परदे के बीच की दरार से िदखाई दे रहे है।’

रेशम का पदा िहला और एक ओर सरक गया। नसरदीन ने आिहसता से गुलजान का हाथ थाम
िलया। वह िसफर उसका हाथ दबाकर ही अपने िदल की बात कह सकता था। उतर मे गुलजान
ने भी हौले से उसका हाथ दबा िलया। नसरदीन देर तक उसकी हथेली देखता रहा। वह मन-ही-
मन सोच रहा था, गुलजान िकतनी कमजोर हो गई है।

अमीर उसके कंधे पर से देख रहा था। उसकी गहरी सासे नसरदीन को अपने कानो पर सुनाई दे
रही थी। उसने गुलजान की छोटी ऊंगली का नाखून अमीर को िदखाया और अपशकुन पदिशरत
करने वाली मुदा मे िसर िहलाया। ‘कहा ददर होता है?’ मुलला नसरदीन ने पूछा। ‘िदल मे,’ लंबी
सास लेकर गुलजान बोली, ‘मेरा िदल गम और चाहत के ददर से भरा है।’‘तुमहारे गम की
वजह?’‘वजह यह है िक मै िजससे मुहबबत करती हूं, वह मुझसे दरू है।’‘कयोिक यह आपसे जुदा
है, इसिलए बीमार है।’

खुशी से अमीर का चेहरा िखल उठा। ‘मै िजससे मुहबबत करती हूं वह मुझसे जुदा है।’ गुलजान
ने कहा, ‘मुझे लग रहा है िक मेरा पयार इस वक्त मेरे िबलकुल पास है। लेिकन मै न तो उसे गले
लगा सकती हूं, न उससे पयार कर सकती हूं। हाय, वह िदन कब आएगा, जब वह मुझे िदल से
लगाएगा और अपने पास रखेगा।’

‘या अललाह! नसरदीन ने बनावटी आशयर से कहा, ‘इतने थोडे से िदनो मे ही बादशाह सलामत ने
इसके िदल मे िकतनी मुहबबत पैदा कर दी है। अललाह! अललाह!’ खुशी के मारे अमीर बाहर हो
गया। वह एक सथान पर खडा नही हो पा रहा था। आसतीन मे मुंह िछपाए, बेवकूफो की तरह ही-
ही करता हुआ उछल-कूद कर रहा था।

नसरदीन ने कहा, ‘ऐ गुलजान, िफक मत करो। तुम िजससे मुहबबत करती हो, वह तुमहारी बात
सुन रहा है।’ अपने आप पर काबू न रख पाकर अमीर बीच ही मे बोल उठा,‘मै सब सुन रहा हूं
गुलजान, तेरी पयार भरी बाते सुन रहा हूं।’परदे के पीछे से नदी की कलकल जैसी हंसी सुनाई
दी।
हकीम की कामयाबी

लेिकन नसरदीन कहता गया, ‘ऐ गुलजान, तुमहारे िसर पर खतरा मंडरा रहा है। लेिकन डरो मत।
मै मशहूर आिलम, नजूमी और हकीम मौलाना हुसैन तुमहे बचा लूंगा।’ अमीर ने भी ये शबद दोहराए,
‘हा-हा हम तुमहे बचा लेगे। जरर बचा लेगे।’ ‘सुना तुमने ?’ नसरदीन ने कहा, ‘शहंशाह कया
फरमा रहे है? मुझ पर यकीन रखो, मै तुमहे खतरे से बचा लूंगा। तुमहारी खुशी का िदन बहुत
नजदीक है।

िफलहाल बादशाह सलामत तुमहारे पास नही आ सकेगे। कयोिक मैने उनहे आगाह कर िदया है िक
िसतारो का हुकम है िक वह िकसी औरत का नकाब न छुए। ं लेिकन िसतारे अपनी चाल बदल रहे
है, जलदी ही मुबािरक होगे और तुम अपने पयारे की बाहो मे होगी। िजस िदन मै तुमहारे िलए दवा
भेजूंगा, उसका अगला िदन तुमहारी खुशी का िदन होगा। मेरी बात समझ रही हो ना। दवा पाने के
अगले िदन तुम तैयार रहना।’

खुशी से हंसती-रोती गुलजान ने कहा, ‘शुिकया मौलाना हुसैन, लाख-लाख शुिकया। बीमािरयो का
अचूक इलाज करने वाले हकीम, आपका शुिकया। मेरा पयार मेरे पास है, मुझे लग रहा है। जैसे
मेरे और उसके िदल की धडकने एक हो गई है।’ अमीर और नसरदीन वापस चल पडे।

ख्वाजा सरा दौडकर फाटक पर आ गया और घुटनो के बल िगरकर िगडिगडाया, ‘मेरे


आका़़़
ऐ सा होिशयार हकीम दुिनया मे दस
। ू रा नही है। तीन िदन से वह िबना िहले -डुले पडी
थी। लेिकन अब िबसतर छोडकर उठ बैठी है। वह गा रही है। हंस-हंसकर नाच रही है। मै
उसके पास गया तो उसने मेरे कान पर घूंसा जडने की मेहरबानी की।’

‘सचमुच वह मेरी ही गुलजान है,’ मुलला नसरदीन सोचने लगा, अपने घूंसो का इसतेमाल करने मे
वह हमेशा फुती िदखाती है। सुबह के खाने के समय अमीर ने सभी दरबािरयो को बखशीश दी।
नसरदीन को उनहोने दो थैिलया दी। एक बडी थैली चादी के िसको से भरी थी और दस ू री छोटी
थैली मे सोने के िसके थे।

अमीर ने हंसते हुए कहा, हा-हा-हा-हा हमने भी कैसी जोरदार चाहत जगा दी है उसमे। तुमहे भी
मानना पडेगा मौलाना हुसैन, ऐसी बात तुमने अकसर नही देखी होगी। कैसी काप रही थी उसकी
आवाज। जैसे वह एक साथ हंस भी रही हो और रो भी रही हो। लेिकन उस नजारे के मुकािबले
यह कुछ भी नही है, जो तुम ख्वाजा सरा के ओहदे पर पहंुचकर देखोगे।’

दरबािरयो मे कानाफूसी होने लगी। बिखत़यार काइयापन से मुसकुराया। मुलला नसरदीन समझ
गया िक उसे ख्वाजा सरा बनाने की सलाह अमीर को िकसने दी है। अमीर ने कहा, ‘अब उसकी
तिबयत संभल गई है। तुमहे इस ओहदे को संभालने मे देर नही करनी चािहए, मौलाना हुसैन। तुम
इसी वक्त हकीम के साथ जाओ।’ िफर उनहोने हकीम से कहा, ‘जाओ, तुम अपने चाकू ले
आओ। और बिख्तयार तुम वह हुकम िलखकर मेरे पास लाओ।’ गमर कहवे से नसरदीन का हलक
जल गया।

वह खासने लगा। िलखा हुआ हुकम लेकर बिख्तयार आगे बढा। खुशी और बदले की आकाका से
उसका िदल बिललयो उछल रहा था। उसने अमीर को कलम दे दी। उसने दसतख्त िकया और
हुकमनामा बिखत़यार को लौटा िदया।

‘मौलाना हुसैन, खुशी की इिनतहा से शायद बोल भी नही पा रहे है। तो भी अदब की माग है िक
शुिकया करे।’ बिख्तयार बोला। नसरदीन तख्त के सामने झुक गया।
एक और चाल
‘आिखर मेरी तमना पूरी हो गई। मुझे िसफर इस बात का गम है िक अमीर की रखैल के िलए दवा
तैयार करने मे देर हो जाएगी। उसके इलाज के बारे मे मुझे पूरी तसलली होनी चािहए। वरना
बीमारी िफर घर कर जाएगी।’ ‘कया दवा बनने मे इतनी देर लगेगी?’ परेशान होकर बिख्तयार ने
कहा, ‘आधे घंटे मे तो दवा जरर तैयार हो जाएगी।’‘हा, आधा घंटा काफी होगा।’ अमीर ने
समथरन िकया।

नसरदीन ने अपना सबसे अिधक कारगर, अंितम हिथयार इसतेमाल करते हुए कहा, ‘ऐ आका-ए -
नामदार, यह तो िसतारे सादे (बाहरवे नकत) पर मुनहिसर है। उसकी वजह से दवा तैयार करने मे
मुझे दो से पाच िदन तक लग सकते है।’ ‘पाच िदन?’ बिख्तयार िचलला उठा, ‘मौलाना हुसैन, दवा
तैयार करने मे पाच िदन लगते मैने कभी नही सुना।’ नसरदीन ने अमीर की ओर मुडकर कहा,
‘अमीर-आजम, शायद उस नई रखैल का इलाज वजीर बिख्तयार से कराना पसंद करे। यह
कोिशश करे तो शायद उसे चंगा भी कर दे। लेिकन उस हालत मे उसकी िजंद़गी की िजममेदारी मै
नही लूंगा।’

अमीर घबरा उठे, ‘कया कहा मौलाना हुसैन? बिख्तयार दवा-दार के बारे मे कुछ भी नही जानता।
यह बात माबदौलत तुमहे पहले भी बता चुके है, जब तुमहे वजीरे-आजम का ओहदा देने की बात हो
रही थी।’ बिख्तयार काप उठा। उसने जहर-बुझी नजरो से नसरदीन की ओर देखा, ‘तुम इससे
कम वक्त मे दवा तैयार नही कर सकते?’ अमीर ने कहा, ‘हम चाहते है अपने नए ओहदे को तुम
जलद से जलद संभाल लो।’

‘शहंशाहे-आजम, मै तो उस ओहदे के िलए खुद ही उतावला हो रहा हूं। मै जलद-से-जलद दवा


तैयार करने की कोिशश करंगा। नसरदीन ने कहा और कोिनरश करके दरबार से चल पडा।
रासते मे गुससे से दात िकटिकटाते हुए नसरदीन कह रहा था-‘बिख्तयार। साप के बचचे! दगाबाज
लकडबगघे! तेरा दाव खाली गया। अब तू मुझे नुकसान नही पहंच ु ा सकेगा।

मै जो भी जानना चाहता था, जान गया हूं। अमीर के हरम मे जाने और वापसी के रासते मुझे
मालूम हो चुके है।’ वह मीनार के पास पहंुचा तो मीनार के नीचे पहरेदार पासे खेल रहे थे। उनमे
से एक सब कुछ हार चुका था। दाव पर लगाने के िलए अब अपने जूते उतार रहा था।

नसरदीन सीिढया चढकर बगदाद के आिलम के कमरे मे पहंच ु ा। बूढे की शकल वहशी (जंगली)
इंसान जैसी िदखाई दे रही थी। कै़़
़दम े रहते -रहते उसकी दाढी और बाल बढ गए थे। भौहो
के नीचे आंखे चमक रही थी।
आिलम को मुलला की सजा

नसरदीन को देखते ही उसने गािलयो की बौछार शुर कर दी, ‘हरामजादे, तू मुझे यहा कब तक
बंद रखेगा? खुदा करे तेरे िसर पर पतथर पडे और तलवो से िनकले। बदमाश, दगाबाज, तूने मेरा
नाम, मेरी पाशाक, मेरा साफा, मेरा पटका चुरा िलया? तेरे बदन मे कीडे पडे। तेरा िजगर और पेट
सड जाएं।’ नसरदीन ऐसी गािलया सुनने का अभयसत हो चुका था। उसने बुरा नही माना।

‘िकबला मौलाना हुसैन, आज मैने आपके िलए एक नई सजा तय की है। रससी के फंदे मे लकडी
बाधकर आपका िसर दबाया जाएगा। पहरेदार नीचे बैठे है। आपकी इतनी जोर से चीखना चािहए
िक वे सुन ले।’ बूढा सलाखो वाली िखडकी के पास चला गया और जोर-जोर से िचललाने लगा,
‘या अललाह, मुझे िकतनी तकलीफ हो रही है। हाय-हाय मेरा िसर मत दबाओ। रससी के फंदे से
मेरा िसर मत दबाओ। मर गया-ऐसी तकलीफ से तो मौत अचछी है।’

मुलला नसरदीन ने बीच मे टोका, ‘ठहिरए मौलाना, आप िचललाने मे भी सुसती करते है। आपकी
इन चीखो से यकीन नही होता िक आपका िसर सचमुच बेरहमी से दबाया जा रहा है। ऐसे मामलो
मे पहरेदार बहुत ही तजुबेकार है। अगर उनहे शक हो गया िक आपकी चीख-पुकार बनावटी है तो
वे असरलाबेग को खबर दे देगे। और िफर आपको जललादो को सौप िदया जाएगा। जोर से
िचललाने मे ही आपकी भलाई है।

देिखए, मै िचललाकर बताता हूं।’ वह िखडकी के पास चला गया। सास भरी और इतनी जोर से
चीखा िक बूढा कान बंद करके पीछे हट गया। ‘अबे कािफर की औलाद! बूढे ने िशकायत भरे
लहजे मे कहा, ‘मै ऐसा गला कहा से लाऊं? इस तरह कैसे िचललाऊं िक आवाज शहर के दसू रे
छोर तक पहंुच जाए?’ ‘अगर असली जललादो के हाथ नही पडना चाहते तो यही एक सूरत है।’

बूढे ने इस बार पूरा जोर लगा िदया। इतनी ददर-भरी आवाज मे िचलला रहा था िक मीनार के नीचे
बैठे पहरेदारो ने जुआ खेलना बंद कर िदया और उसके ददर का मजा लेने लगे। चीखते-चीखते बूढे
को खासी आ गई, गला घरघराने लगा। िरिरयाते हुए बोला, ‘हाय-हाय, अबे नािकस आवारा, अब तो
खुश है तू। इजराइल (मौत का फिरशता) तुझे उठा ले।’

‘हा, मुझे अब इतमीनान हो गया। अपनी कोिशश के िलए यह इनाम लीिजए।’ नसरदीन ने कहा
और अमीर से िमली दोनो थैिलया एक कशती मे उडेलकर दो िहससो मे बाट दी।
िसतारो की सही जानकारी

‘मौलाना, आपके नाम पर मैने बटा नही लगाया है। आप यह रकम देख रहे है? अमीर ने यह रकम
मशहूर नजूमी और हकीम मौलाना हुसैन को अपने हरम की एक लडकी का इलाज करने के िलए
दी है।’ ‘तूने लडकी का इलाज िकया था? जािहल, बदमाश-ठग, तू बीमािरयो के बारे मे कया
जानता है?’ ‘मै बीमािरयो के बारे मे कुछ भी नही जानता। लेिकन लडिकयो के बारे मे बहुत कुछ
जानता हूं।

मैने उस लडकी को यो ही अचछा नही िकया बिलक िसतारो की हालत समझकर अचछा िकया है।
कल रात मैने देखा िक िसतारे सादससअद (बृहसपित) साद-उल-अकिबरा (वृिशक) के केरान
(योग) मे थे और वृिशक सरतान (ककर रािश) की ओर मुखाितब था।’

गुससे से बौखलाकर बूढा िचललाया, ‘कया कहा जािहल? तू िसफर गधे हाकने के कािबल है। तू नही
जानता िक बृहसपित वृिशक के केरान (योग) मे जा ही नही सकते। ये एक ही केरान के िसतारे
है। ककर रािश तुझे इस महीने मे कैसे िदखाई दी। कल सारी रात मैने आसमान देखते हुए िबताई
है। िसतारे साबदुला और अिसतमय केरान मे थे और अल जबह उतार पर सुनहरा है, काठ के
उललू। अब गधे हाकने वाले ने उन मामलो मे भी दखल देना शुर कर िदया है, िजनका उसे इलम
ही नही। िसतम अलबुतैन के जो अल हक के िखलाफ है तू अकबर समझ बैठा।’

नसरदीन की मूखरता को पदिशरत करने के इरादे से बूढा देर तक उसे िसतारो की सही िसथित
समझाता रहा। वह एक-एक शबद को िदमाग मे बैठाता रहा तािक आिलमो के सामने अमीर से बात
करते समय गलती न कर बैठे। ‘जािहल! जािहल की औलाद! तेरी सात पीिढया जािहल है।’

बूढा अपसनता से बडबडाता रहा, ‘तू यह भी नही जानता िक आजकल यािन चाद की उनीसवी
मंिजल मे जो अशशुला कहलाती है और जो धनुरािश मे है इंसान की िकसमत इसी रािश के िसतारो
के मातहत होती है। आला दािनशमंद शहाबुदीन महमूद अलदराजी ने अपनी िकताब मे यह बात
साफ-साफ िलखी है।’

नसरदीन याद करता गया। ‘शहाबुदीन महमूद अलदराजी! कल मै अमीर की मौजूदगी मे उस


दाढीवाले आिलम का इस िकताब के न जानने पर भंडाफोड करंगा। उसके िदल और िदमाग मे
मेरे िलए, इजजत और डर पैदा हो जाएगा। यह बहुत अचछी बात होगी।’
सूदखोर जाफर पर संकट

सूदखोर जाफर के घर मे सोने से भरे मुहरबंद बारह मतरबान थे। लेिकन उसकी हिवस थी िक
कम-से-कम बीस मतरबान होने चािहए। भागय ने उसे शकल ऐसी दी थी िक उसकी बेईमानी और
उसका लालच उसके चेहरे से साफ झलक जाता था। जो लोग अनुभवहीन, सीधे-सादे और
भलेमानस थे, वे भी उससे सावधान रहते थे। उसके िलए नए िशकार फासना बहुत मुिशकल था।
इसिलए उसके मतरबान बहुत धीमी रफतार से भर रहे थे।

लंबी सास लेकर वह सोचता-‘काश मै अपने बदन के बदनुमापन से छुटकारा पा सकता। तब लोग
मुझे देखते ही भागने न लगते। मेरी चालबाजी भापे िबना मेरा यकीन कर लेते। तब उनहे फंसाना
िकतना आसान होता। मेरी आमदनी िकतनी जलदी बढती।’

शहर मे जब यह अफवाह फैली िक अमीर ने नए आिलम मौलाना हुसैन के इलाज ने चमतकार


िदखाए है तो सूदखोर जाफर ने बिढया-बिढया सौगातो से एक टोकरी भरी और महल मे पहंच

गया। टोकरी को सामने देखकर असरला बेग ने मदद करने की पूरी इचछा पकट की। ‘िकबला
जाफर साहब, तुम बहुत ठीक मौके पर आए हो। हमारे आका, शहंशाह का िमजाज आज बहुत
अचछा है। वह तुमहारी दरख्वासत जरर मान लेगे।’

अमीर ने सूदखोर की बात सुनी, सोने के हाथी दात जडी शतरंज की भेट सवीकार की और नए
आिलम मौलाना हुसैन को बुलवा िलया। नसरदीन ने आकर कोिनरश की। ‘मौलाना हुसैन, यह है
सूदखोर जाफर। हमारा वफादार गुलाम। इसने हमारी बहुत िखदमते की है। हमारा हुकम है िक
तुम फौरन इसका लंगडापन, कुबडापन कानापन और दस ू री किमयो को दरू कर दो।’ हुकम
सुनाकर अमीर ततकाल चले गए। जैसे यह िदखाने के िलए वह अपने हुकम के िखलाफ कोई बात
सुनने के िलए तैयार नही है।

िसर झुकाकर नसरदीन ने आदाब बजाया और वह भी चल िदया। उसके पीछे-पीछे अपने कूबड
घसीटते हुए सूदखोर भी कछुए की तरह चल पडा। ‘ऐ हजरत मौलाना हुसैन साहब। हम लोग
जरा जलदी चले। नकली दाढी वाले नसरदीन को न पहचानकर सूदखोर बोला, ‘कयोिक अभी
सूरज ढला नही है। मै रात होने से पहले ही ठीक हो जाऊंगा। जैसा िक अमीर ने हुकम िदया है
िक आप मुझे फौरन चंगा कर दे।’

नसरदीन मन-ही-मन अमीर को, सूदखोर को और अपने -आपको गािलया दे रहा था िक उसके इलम
की इतनी चचा कयो हुई? इतनी पिसिद कयो हुई? इस मुिशकल से छुटकारा कैसे िमलेगा? जलदी
चलने के िलए सूदखोर बार-बार आसतीने समेटने लगता था। सडके सुनसान पडी थी।

नसरदीन के पाव गमर रेत मे बार-बार धंस जाते थे। उसने चाल सोच ली। अचछी तरह ठोक-
बजाकर देख िलया। िफर मन-ही-मन कहने लगा, ‘हा समय आ गया है गरीबो को सताने वाले
बेरहम सूदखोर, तू आज ही डू बकर मरेगा।’ वे लोग एक गली मे मुडे, जहा हवा रेत के बबूले उठा
रही थी।
बुखारा के तालाब पर

सूदखोर ने अपने घर का दरवाजा खोला। आंगन के दसू रे छोर पर एक नीची बाड के पीछे
जनानखाना था। नसरदीन ने हरे पतो और डािलयो के पीछे हलकी आवाज और हंसी सुनी।
सूदखोर की बीिवया और रखैले नए अजनबी के आगमन पर आनंद ले रही थी, वे खुश थी। कयोिक
अपनी कै़़
़दम े उनके पास मन बहलाने को कोई साधन नही था।

सूदखोर िजस कमरे मे नसरदीन को ले गया, उसमे एक भी िखडकी नही थी। दरवाजे मे तीन
ताले और कई साकले लगी हुई थी, िजनहे खोलने का रहसय केवल सूदखोर ही जानता था। उसे
काफी देर मेहनत करनी पडी, तब दरवाजा खुला। वही वह अपने सोने से भरे मतरबान रखता था।
तहखाने के दरवाजे पर लगे तख्तो पर ही सोया करता था।

‘कपडे उतारो।’ नसरदीन ने हुकम िदया। सूदखोर ने कपडे उतार िदए। नंगा हो जाने पर वह
बहुत ही भदा और बदनुमा िदखाई देने लगा था। नसरदीन ने दरवाजा बंद कर िदया और दुआएं
पढने लगा। इसी बीच जाफर के बहुत से िरशतेदार आ-आकर आंगन मे इकटा होने लगे। उनमे से
कई पर जाफर का कजर था। उनहे उममीद थी िक इस शुभ अवसर की यादगार मे वह इन कजों
को माफ कर देगा। लेिकन उनकी उममीद गलत थी। बंद कमरे के बाहर अपने कजरदारो की
आवाजे सुनकर शैतान जाफर खुशी से फूल उठा था।

उसने सोचा, आज मै इन लोगो से कह दंगू ा िक मैने कजर माफ िकया। लेिकन इनहे रसीद वापस
नही करंगा। चकमे मे आकर ये लोग कजर चुकाने मे लापरवाही बरतने लगेगे। मै खामोश रहूंगा।
चुपचाप कजर का िहसाब रखूंगा। और जब एक-एक तंके का दस-दस कीमत से जयादा हो जाएगी
तो अपना वायदा भूलकर काजी को बुलाऊंगा और रसीदे उसके सामने पेश कर दंगू ा। उनकी
जायदादे बेच दंगू ा। उनहे कंगाल बना दंगू ा और अपना एक मतरबान और सोने से भर लूंगा।

नसरदीन बोला, ‘चलो जाफर, अब हम लोग बुखारा के तालाब पर चलेगे। तुम तालाब के पास
पानी मे नहाओगे। इलाज के िलए यह िनहायत जररी है।’ ‘बुखारा के पाक तालाब पर?’ सूदखोर
बदहवास होकर िचलला उठा, ‘एकबार मै उसमे डू बते-डू बते बचा हूं। ऐ दानी मौलाना हुसैन, आपको
मालूम होना चािहए िक मै तैरना नही जानता।’ ‘कोई बात नही। तालाब जाते वक्त तुमहे बराबर
दुआएं पढनी होगी और दुिनया की चीजो को िबलकुल भूल जाना होगा।

तुमहे अपने साथ चोने के िसको से भरी एक थैली भी ले चलनी होगी। रासते मे जो भी िमले, उसे
तुमहे एक-एक िसका देना होगा।’ सूदखोर ने ठंडी आह भरी और कराहने लगा। लेिकन उसने
आदेशो का पूरा जोश से पालन िकया। रासते मे कारीगर, िभखमंगे, हर तरह के लोग िमले हालािक
ऐसा करने मे उसका िदल टू ट रहा था िफर भी हर एक को सूदखोर ने सोने का एक-एक िसका
िदया। िरशतेदार पीछे-पीछे आ रहे थे।

नसरदीन ने जानबूझ कर उन लोगो को साथ ले िलया था तािक सूदखोर को डुबो देने का आरोप
न लगे। जाफर ने कपडे उतारे और तालाब की ओर बढते हुए िशकायती लहजे मे बोला, ‘यहा
पानी बहुत गहरा है मौलाना हुसैन। मै तैरना नही जानता।’
एहसानफरोसी

िरशतेदार चुपचाप खडे रहे थे। शमर के कारण अपने हाथो से अपना बदन िछपाते हुए भय से
दुबकते हुए सूदखोर तालाब के चारो और घूमकर अपनी जगह तलाश करने लगा। िफर वह एक
जगह बैठ गया। ऊपर से लटकती टहिनयो को पकडकर डरते-डरते उसने अपने एक पैर का
पंजा पानी मे डाला।

‘बाप रे, यह तो बहुत ठंडा है?’ वह बडबडाया। घबराहट के कारण उसकी आंखे बाहर िनकल पड
रही थी। ‘तुम वक्त खराब कर रहे हो जाफर। अगर तुमहे इलाज कराना है तो पानी मे उतरो।
सूदखोर पानी मे उतरने लगा। इतने धीरे-धीरे िक पानी जब उसके घुटनो तक पहंच ु ा तो उसका
पेट िकनारे पर ही था। िफर भी जब पानी कमर तक पहंच ु ा तो ठंड से उसके कंधे कापने लगे।
पानी उसके कूबड तक पहंुच गया।

‘आगे बढो और आगे बढो।’ पानी कानो तक पहंच ु ने लगा। ‘अगर आगे नही बढोगे तो मै तुमहारे
इलाज की िजममेदारी नही लूंगा, शाबाश आगे बढो िहममत करो! एक कदम और जरा और आगे।’
मुलला नसरदीन ललकार कर कहता रहा। सूदखोर के मुंह से गडगड की आवाज आई और िफर
वह पानी की सतह के नीचे गायब हो गया। िरशतेदार िचलला उठे, ‘अरे वह डू ब रहा है।’

नसरदीन दौड-दौडकर िचलला रहा था, ‘जाफर साहब अपना हाथ मुझे दीिजए। अपना हाथ आगे
बढाइए।’ सभी िरशतेदार एक साथ िचललाए, ‘दीिजए, अपना हाथ इधर दीिजए।’ सूदखोर डू बता
और िफर ऊपर आ जाता। हर बार ऊपर आने मे पहले से जयादा देर लगती। उस पिवत तालाब
मे उसकी िजंदगी खतम हो गई होती अगर तभी मशक िलए भागता हुआ एक िभशती वहा न आ
ु ता। डू बने वाले को देखकर चौककर बोला, ‘अरे, यह तो सूदखोर जाफर है।’ और िफर
पहंच
िबना िझझके पानी मे कूद पडा और हाथ बढाकर िचललाया, यह लो, मेरा हाथ पकड लो।’ सूदखोर
ने उसका हाथ थाम िलया और सही सलामत बाहर िनकल आया।

िभशती उनके िरशतेदारो को बताने लगा, ‘तुम लोग गलत तरीके से उसकी मदद कर रहे थे।
लीिजए-लीिजए की जगह दीिजए-दीिजए िचलला रहे थे। एक बार जाफर साहब इसी तालाब मे
लगभग डू ब चुके थे, जब एक अजनबी ने इसी तरकीब से इनहे बचाया था। मुझे यह तरकीब याद
थी। जो आज मेरे काम आ गई।’ नसरदीन ने सुना तो होठ काट िलया, ‘खैर कोई बात नही। यह
डू बकर मरेगा, यह मेरी िजममेदारी है। चाहे इसके िलए मुझे साल भर बुखारा मे रहना पडे।’

सूदखोर िशकायत भरे लहजे मे कराह-कराहकर कहने लगा, ‘मौलाना हुसैन, तुमने तो कहा था िक
तुम मेरा इलाज करोगे। लेिकन तुमने तो मुझे डुबो ही िदया था। मै कसम खाता हूं िक इस तालाब
के सौ कदम पास से भी कभी नही गुजरंगा। लाओ मेरा साफा और लबादा। चलो मेरे आका।
अंधेरा हो रहा है। हमे वह काम पूरा करना है, जो हमने शुर िकया था।’
िफर वह िभशती की ओर मुडकर बोला, ‘और िभशती, तुमहे हफते भर बाद मेरा कजर चुकाना है। यह
मत भूलना। लेिकन मै तुमहे कुछ इनाम देना चाहता हूं। मै तुमहारे कजर का दसवा िहससा माफ
करता हूं। हालािक मै तुमहारी मदद के िबना भी आसानी से अपने-आपको बचा सकता था।’
िभशती सहमकर बोल, ‘जाफर साहब, आप मेरी मदद के िबना िजंदा नही बच सकते थे। कया आप
मेरे कजर का चौथाई भी माफ नही कर सकते?’ ‘तो तूने मुझे अपनी गरज से बचाया था।’

सूदखोर िचललाया, ‘तूने नेक मुसलमान के जजबे से नही, लालच से मुझे बचाया था। इस बात की
तो तुझे सजा िमलनी चािहए। अब मै कजर की एक पाई भी माफ नही करंगा।’
इलाज की नई युिकत

िभशती झेपकर आगे बढ गया। नसरदीन उसके कान मे कुछ कहने लगा। जाफर ने कहा, ‘चलो
मौलाना हुसैन! तुमहे उसके कान मे फुसफुसाने से कया िमल गया?’ नसरदीन ने कहा, ‘ठहरो। तुम
भूल गए िक िजस िकसी से भी िमलोगे उसे सोने का एक िसका दोगे। िभशती को तुमने िसका नही
िदया।’ सूदखोर िरिरयाने लगा, ‘लानत है मुझ पर। मै तो िबलकुल बबाद हो जाऊंगा। मुझे इस
लालची और नाचीज िभशती तक को सोने का िसका देना पडेगा।’

उसने थैली खोलकर एक िसका िनकाला और िभशती की ओर फेककर बोला, ‘यह आिखरी मतरबा।
अब अंधेरा हो गया है। वापसी मे रासते मे अब कोई नही िमलेगा। लेिकन नसरदीन ने िभशती के
कान मे बेकार ही फुसफुसाकर बाते नही की थी।’ वे वापस चल पडे। आगे-आगे सूदखोर उसके
पीछे नसरदीन। और सबसे पीछे िरशतेदार थे। अभी वे लोग पचास कदम भी नही चले होगे िक
एक गली मे से वही िभशती िनकल आया। उसे अनदेखा करने के िलए सूदखोर मुडा ही था िक
नसरदीन ने डाटा, ‘जाफर साहब, याद रिखए। हर एक को जो भी तुमहे िमले।’ अँधेरे मे ददर भरी
कराह सुनाई दी।

जाफर थैली खोल रहा था। िभशती ने िसका िलया और रात के अंधरे े मे गायब हो गया। लेिकन
और पचास कदम चलते ही िफर उसके सामने आ खडा हुआ। सूदखोर पीला पड गया और कापने
लगा। िगडिगडाकर बोला, ‘मौलाना, यह तो िफर वही..!’ बंद हवा मे एक बार िफर कराह उभरी।
जाफर थैली खोल रहा था। जाफर समझ नही पा रहा था िक यह कया हो रहा है। िसका थमा
कर वह सीधा भागने ही वाला था िक न जाने कहा से िफर वही िभशती सामने आ खडा हुआ।

अपनी रकम बचाने के िलए सूदखोर ने जलदी-जलदी चलना शुर कर िदया और िफर दौडने लगा।
लेिकन वह लंगडा था। उस िभशती से कैसे टकर ले सकता था। सूदखोर को रासते मे वह कम-
से-कम पंदह बार िमला। सूदखोर के घर के िबलकुल पास आिखरी बार छत से कूदकर सामने आ
गया और फाटक मे घुसने का रासता रोक िलया।

सूदखोर घर के आंगन मे पहंच


ु ा। नसरदीन उसके पीछे-पीछे था। जाफर ने अपनी खाली थैली
नसरदीन के पैरो मे फेक दी और गुससे से बोला, ‘मौलाना हुसैन साहब, मेरा इलाज बहुत महंगा पड
रहा है। अब तक सौगात, खैरात और इस मलाऊन िभशती पर तीन हजार तंके से जयादा खचर कर
चुका हूं।’

नसरदीन ने कहा, ‘इतमीनान रखो भाई, आधे घंटे के भीतर तुमहे इसका इनाम िमलेगा। आंगन के
बीचो-बीच खूब बडी आग जलाने के िलए कहो।’ जब नौकर ईधन ला-लाकर आग लगा रहे थे तो
नसरदीन ऐसी चाल सोच रहा था िक सूदखोर के इलाज न होने की िजममेदारी सूदखोर पर ही
पडे। जब आग जोर से जलने लगी तो नसरदीन ने कहा, ‘जाफर साहब, कपडे उतािरए और आग
के तीन चकर लगाइए।’ ठीक चाल उसकी समझ मे अभी तक नही आई थी।

वह केवल समय िबता रहा था। सूदखोर आग के चारो और चकर लगा रहा था। जैसे जंजीर से
बंधा कोई बनमानुस हाथ िहलाते हुए नाच रहा हो। अचानक नसरदीन का चेहरा चमक उठा।
उसने कहा, ‘मुझे एक कमबल दो। जाफर और तुम सब लोग यहा आओ।’
िचत भी अपनी, पट भी अपनी

उसने िरशतेदारो को एक गोल घेरे मे खडा िकया और बीच मे जमीन पर जाफर को िलटा िदया।
िफर सब लोगो से बोला, ‘मै जाफर को इस कमबल से ढंक दंगू ा। और दुआ पढू ंगा। जाफर और
तुम सब मेरे साथ दुआ दोहराना। लेिकन यह बहुत जररी है, यह शतर अगर पूरी न हईु तो जाफर
साहब का इलाज नही हो पाएगा। तुम लोग कान लगाकर सुनो।’

नसरदीन ने ऊंची आवाज मे कहा, ‘मेरे साथ जब तुम दुआ के लफज दोहराओ तो तुममे मे कोई भी
बंदर के बारे मे न सोचे। और जाफर साहब तो िबलकुल ही न सोचे। अगर तुममे से िकसी ने भी
बंदर के बारे मे सोचा तो इलाज नही हो सकेगा।’ ‘हम लोग समझ गए।’ िरशतेदार ने कहा।
कमबल से सूदखोर को ढकते हुए नसरदीन ने बडी गभीर आवाज मे कहा, ‘जाफर साहब, तैयार हो
जाइए।

अपनी आंखे बंद कर लीिजए।’ िफर उसने िरशतेदारो की ओर पलटकर कहा, ‘मेरी शतर याद रखो
और अपनी आंखे बंद कर लो। खबरदार बंदर के बारे मे िबलकुल मत सोचना।’ िफर वह दुआ
पढने लगा।

िरशतेदार भी बेमेल आवाज को दोहराने लगे। एक िरशतेदार खासने लगा। दस ू रा दुआ के लफजो मे
अटक गया। तीसरे ने िसर िहलाया जैसे आंखो के सामने से िकसी दृशय को हटा रहा हो। एक
पल बाद ही कमबल उठा और बेचैनी से िहलने लगा। बहुत ही घृणा उतपन करने वाला, बदसूरत
एक बंदर अपनी लंबी दुम िहलाता पीले दात िदखाता उसके िदमाग के परदे पर आ खडा हुआ।

दुआ पढते-पढते अचानक नसरदीन रक गया। जैसे कुछ सुनने की कोिशश करने लगा हो।
िरशतेदार भी चुप हो गए। कमबल के नीचे जाफर दात िकटिकटा रहा था, कयोिक बंदर गंदी हरकते
करने लगा था। कािफरो, शरारत पसंदो। नसरदीन गरज उठा, ‘मैने िजस बात के िलए मना िकया
था उसे करने की मजाल? उस चीज का खयाल करते हुए तुम लोग दुआ कैसे कर सके, िजसकी
मैने खास तौर पर मनाही की थी।’

िफर वह फुती से कमबल हटाकर सूदखोर की ओर लपका, ‘तूने मेरी मदद कयो मागी थी? मै समझ
गया िक तू इलाज कराना नही चाहता था। तू िसफर मुझे जलील करना चाहता था। तू मेरे दुशमनो
का साथ दे रहा था। होिशयार जाफर, कल अमीर को सब कुछ पता चल जाएगा। मै उनहे बता
दंगू ा िक दुआ मागते वक्त तूने जान बूझकर, कािफराना इरादे से बंदर के बारे मे सोचा। और तुम
सब लोग भी होिशयार हो जाओ। तुमहे आसानी से छुटकारा नही िमलेगा। कुफ की जो सजा होती
है, तुम लोग जानते ही होगे?’
कुफ के िलए हमेशा कडी सजा िमलती थी। इसिलए िरशतेदार िमिमयाने-िरिरयाने लगे। जाफर ने
िघिघयाकर समझ मे न आने वाले लफजो मे अपनी सफाई पेश करनी चाही। लेिकन नसरदीन उसे
सुनने के िलए नही रका। वह घूमा और खटाक से फाटक बंद करता हुआ बाहर िनकल आया।
टू टते हुए तारे

भाग िनकलने की तैयारी पूरी हो चुकी थी। नसरदीन ने अपने कैदी के पास पहंच
ु कर कहा-‘ऐ
दािनशमंद मौलाना हुसैन, आपकी कैद की िमयाद पूरी हो गई। आज रात मै महल छोड दंगू ा।
आपका दरवाजा एक शतर पर खुला छोड जाऊंगा िक आप यहा से दो िदन बाद िनकलेगे। अगर
आप इससे पहले िनकले तो हो सकता है, मै महल मे ही रहूं और आप पर इलजाम लगाने पर मजबूर
हो जाऊं िक आप िनकलकर भाग जाना चाहते थे। उस सूरत मे मुझे आपको जललाद के हवाले
करना पडेगा।

आपको एक काम और करना पडेगा। आपको मेरा असली नाम और सही घटना बतानी होगी। जरा
धयान से सुिनए मौलाना हुसैन, मेरा नाम है नसरदीन।’ ‘क-क-कया?’ बूढे ने पीछे हटते हुए आशयर
से कहा। इस नाम ने जैसे उसे गूंगा बना िदया था। उसके मुंह से एक शबद भी नही िनकला।
नसरदीन कमरे से िनकलकर सीिढयो की ओर बढ गया। जब उसके कदमो की आवाज धीमी पड
गई तो बूढे ने दरवाजा टटोला। दरवाजा खुला हुआ था। उसने झाककर बाहर देखा। कोई भी
िदखाई नही िदया। उसने जलदी से दरवाजा बंद कर िदया।

‘भले ही मुझे यहा एक हफते रहना पडे, मै नसरदीन से कोई सरोकार रखना पसंद नही करंगा।’
वह बडबडाया। रात होने पर जब आकाश मे तारे चमकने लगे तो नसरदीन ने िमटी की एक
सुराही उठाई और अमीर के हरम के दरवाजे पर तैनात पहरेदारो के पास पहंुचा। साबुत अंडे
िनगलने वाले मोटा-कािहल िसपाही कह रहा था, ‘वह देखो, एक िसतारा और टू टा। तुम कहते हो
िक िसतारे टू टकर जमीन पर िगरते है तो लोगो को पडे कयो नही िमलते?’ ‘शायद वे समंदर मे
िगरते है।’ दसू रे िसपाही ने उतर िदया। ‘ऐ बहादुर िसपािहयो, ख्वाजा सरा को बुलाओ। मै बीमार
रखैल के िलए दवा लाया हूं।’ नसरदीन ने कहा।

िसपाही ख्वाजा सरा को बुला लाए। ख्वाजा सरा ने बडे सममानपूवरक सुराही ले ली। उसमे सादा
पानी के अलावा और कुछ नही था। नसरदीन ने दवा पीने के बारे मे उसे िहदायत दी। ‘मौलाना
हुसैन, आप बहुत ही दािनशमंद है। आप बहुत कुछ जानते है।’ मोटी िसपाही ने चापलूसी भरी
आवाज मे कहा, ‘आपके इलम की कोई हद नही है। आप हमे यह बताइए िक आसमान से टू टने
वाले तारे कहा जाते है? और लोगो को िमलते कयो नही है?’

नसरदीन ने बडे संजीदगी से कहा, ‘तुम नही जानते? जब िसतारे टू टते है तो वे चादी के छोटे-छोटे
िसके बन जाते है और फकीर उनहे बटोर लेते है। लोगो को मैने इस तरह दौलतमंद बनते देखा
है।’ िसपाही आशयर से एक-दसू रे को देखने लगे। उनकी मूखरता पर हंसता हुआ नसरदीन अपने
रासते चल िदया। उसने सोचा भी न था िक उसका यह मजाक िकसी समय बहुत ही कारगर
सािबत होगा।

आधी रात तक वह मीनार मे रहा िफर चुपचाप उतरकर दबे पाव अमीर के हरम की ओर बढने
लगा। वह सोच रहा था िक पहरेदार अब तक सो चुके होगे लेिकन वहा पहंच
ु ने पर उसे धीरे-धीरे
बोलने की आवाज सुनाई दी। उसे बडी िनराशा हुई। मोटा कािहल िसपाही कह रहा था, ‘काश
एक तारा टू टकर यहा भी िगर जाता।

हम लोग भी चादी बटोर कर दौलतमंद बन जाते।’ उसके साथी ने कहा, ‘भई, मुझे तो यकीन नही
होता िक तारे टू टकर चादी के िसके बन जाते है।’ ‘लेिकन बगदाद के आिलम ने तो यही कहा
था।’

साये मे िछपा नसरदीन भुनभुनाया, ‘खुदा की मार इन लोगो पर। मैने इनसे िसतारो की बात की ही
कयो? अब तो सवेरे तक यही बहस होती रहेगी और भाग िनकलने मे देर हो जाएगी।’
कैद से बाहर

तभी एक ननहा सा तारा टू टा और आकाश मे ितरछा-ितरछा अपनी मौत की मंिजल की ओर बढ


गया। तभी जलती हुई लकीर सी छोडता हुआ एक और िसतारा उसके पीछे चल पडा। ‘अगर ये
सचमुच चादी के िसके बनकर िगरते।’ दस ू रे पहरेदार ने कहा। अचानक नसरदीन के िदमाग मे
एक िवचार कौध गया। उसने जलदी से चादी के िसको से भरी थैली खोली और जैसे ही एक और
तारा टू टा ऊंचे नीचे पतथरो पर एक िसका खनक उठा।

आशयर से पहरेदार बुत बन गए और एक-दस ू रे को घूरते हुए उठकर खडे हो गए। पहले ने कापती
आवाज मे पूछा, ‘सुना तुमने ?’ ‘हा, सुना तो है।’ दसू रा हकलाकर बोला। नसरदीन ने दस ू रा
िसका फेका। वह चादनी के उजाले मे िगरा और चमकने लगा। मोटा पहरेदार झपटकर उसके
ऊपर लेट गया। दस ू रा पहरेदार ठीक से बोल नही पा रहा था। जोश के मारे उसके मुंह से शबद
िनकल नही पा रहे थे, ‘कया तुमहे वह िमला?’ ‘िमल गया, िमल गया।’ मोटा िसपाही कापते हुए
होठो से हकलाया।

उसने उठकर िसका िदखाया। अचानक कई तारे एक साथ टू टे और तेजी से धरती पर जा िगरे
नसरदीन मुटी भर भरकर िसके फेकने लगा था। रात का सनाटा िसको के खनकने की आवाज
से कापने लगा। िसपाही अकले खो बैठे। उनहोने भाले फेक िदए और धरती पर लेटकर िसके
खोजने लगे। ‘यहा-यहा यह रहा। पहले िसपाही ने फटी आवाज मे कहा। दस ू रा रेगता हुआ आगे
बढा। उसे बहुत से िसके िमल गए। खुशी से वह गाने लगा।

नसरदीन ने एक मुटी िसके और उछाले और दरवाजे मे घुस गया। उसके पैरो की आहट कालीनो
मे खो गई। िहजडे सो रहे थे। गुलजान उससे िलपट गई। ‘जलदी करो।’ नसरदीन ने फुसफुसा
कर कहा।

िकसी ने उनहे नही रोका। एक िहजडा नीद मे भुनभुनाया और कराहने लगा। नसरदीन जलदी से
उस पर झुका। लेिकन िहजडे की मौत अभी आई नही थी। उसने होठ चटखारे और िफर खराटे
भरने लगा। चोर दरवाजे पर पहंुचकर नसरदीन ने सावधानी से बाहर नजर डाली। आंगन मे
िसपाही घुटनो के बल बैठे गदरने उठाए आकाश की ओर टकटकी बाधे तारे के टू टने की पतीका
कर रहे थे।

नसरदीन ने एक मुटी िसके और फेके जो पेडो के पीछे जा िगरे। उनकी खनखनाहट सुनकर
पहरेदार उधर दौड पडे। खुशी के कारण वे आसपास देख नही रहे थे। नसरदीन ने कहा, ‘जलदी
करो गुलजान।’ दोनो दौडकर मीनार पर पहंुच गए। नसरदीन ने अपने िबसतर के नीचे से एक
रससा िनकाला। ‘बहुत ऊंचाई है। मुझे डर...। गुलजान फुसफुसाई।

नसरदीन ने एक फंदा बनाया और उसमे गुलजान को बाध िदया। उसने िखडकी की सलाखो को
हटा िदया, िजनहे उसने पहले ही रेत डाला था। गुलजान िखडकी मे जा बैठी। डर से वह काप
रही थी। ‘बाहर उतरो।’ गुलजान की पीठ पर धका देते हुए नसरदीन ने कहा।

गुलजान ने आंखे मूंद ली और िचकने पतथर से िफसलकर हवा मे झूलने लगी। जमीन पर
ु कर वह संभल गई। ऊपर से आवाज आई, ‘भागो, भागो, भाग जाओ।’ िखडकी पर झुके हुए
पहंच
नसरदीन ने हाथ िहलाया और रससा ऊपर खीच िलया। गुलजान दौडती हुई बाजार मे गायब हो
गई।
महल मे हंगामा

नसरदीन को पता ही नही था िक पूरे महल मे हंगामा मच गया है। मार खाने के कषदायक
अनुभव के बाद ख्वाजा सरा को आधी रात को अपनी िजममेदारी का खयाल आया। उसने नई
रखैल के कमरे मे जाकर देखा, उसका िबसतर खाली पडा था। वह भागा अमीर के पास पहंच ु ा
और उनहे जगाकर नई रखैल के गायब हो जाने की सूचना दी।

अमीर ने असरला बेग को बुलाया। असरला बेग ने पहरेदारो को जगाया। िफर कया था, मशाले जल
उठी। ढाले और भाले खडकने लगे। बगदाद के मौलाना हुसैन को बुलवा िलया गया। अमीर ने
िशकायत भरी तेज आवाज मे कहा, ‘मौलाना हुसैन, यह कया हो रहा है? माबदौलत को अपने महल
मे भी नसरदीन से छुटकारा नही। ऐसा मैने कभी सुना नही िक अमीर के हरम से उसकी रखैल
को कोई चुरा ले जाए।’ ‘ऐ अमीरे-आजम, मुमिकन है यह नसरदीन की ही करतूत हो।’
बिख्तयार ने िहममत बटोरकर कहा।

‘और कौन कर सकता है?’अमीर ने फटी हुई आवाज मे कहा, ‘सुबह हमे इितला दी जाती है िक
वह बुखारा मे लौट आया है और रात को हमारी रखैल गायब हो जाती है। उसके अलावा और हो
ही कौन सकता है? तलाश करो उसे। िसपािहयो की तादाद तीन गुना कर दो। असरला बेग, तेरे
कंधे पर तेरा िसर खैिरयत से नही है।’

वह सभी महल का कोना-कोना छान आया। सबसे जयादा दौड-धूप नसरदीन कर रहा था। कभी
कालीन उठाता, कभी संगमरमर के हौज मे छिडया डालकर देखता। केतली, सुराही, मतरबान यहा
तक िक चूहो के िबलो तक मे झाक रहा था। आरामगाह मे लौटकर उसने कहा, ‘शहंशाहे-आलम,
नसरदीन महल से िनकल गया है।’ ‘मौलाना हुसैन, तुमहारी बेवकूफी पर हमे ताजजुब हो रहा है।’

अमीर गुससे से िचललाए, ‘मान लो उसे महल मे कोई िछपने की जगह िमल गई हो? तब तो वह
हमारी आरामगाह मे आ धमकेगा। पहरेदारो को बुलाओ।’ बाहर तोपे गरज उठी। ये तोपे भगोडे
नसरदीन को डराने के िलए दागी जा रही थी। अमीर का डर तभी दरू हुआ जब असरला बेग ने
आरामगाह के दरवाजे पर तीन और हर िखडकी के नीचे दस-दस िसपाही तैनात कर िदए।

तब अमीर कोने से िनकले और बडी नमी से बोले, ‘मौलाना हुसैन, सच-सच बताओ, कया तुमहे
यकीन है िक वह बदमाश अब हमारी आरामगाह मे नही है?’ ‘दरवाजे और िखडिकयो पर पहरा लगा
िदया गया है। कमरे मे हम िसफर दो आदमी है। नसरदीन यहा हो ही नही सकता है।’ नसरदीन
ने उतर िदया।

अमीर का भय कोध मे पिरवितरत हो गया, ‘खबरदार, भागने का उसे मौका नही िमलना चािहए।’
वह िचललाए, ‘वह हमारी रखैल को भगाकर नही ले जा सकता। हम उस रखैल से एक बार भी
नही िमल सके। सोचो तो एक बार भी नही। एक खयाल आते ही िदल कराह उठता है। मौलाना
हुसैन, यह सब तुमहारे उन बेवकूफ िसतारो के ही कारण है।

इस बेइजजती के िलए हम काट पाते तो सारे िसतारो के िसर काट डालते। असरला बेग को हमने
हुकम दे िदया है। मौलाना हुसैन, तुम भी उसे पकडने की पूरी कोिशश करो। याद रखो, ख्वाजा
सरा के ओहदे पर तुमहारी तैनाती इसी काम की तुमहारी कामयाबी पर िनभरर है।’

अमीर की ऊंगिलया रह-रहकर ऐंठ रही थी, मानो नसरदीन के गले को टटोल रही हो। शैतानी से
अपनी आंख दबाते हुए नसरदीन कोिनरश के िलए झुक गया।
अपनो को िमली कैद

बाकी सारी रात नसरदीन उस कािफर, बदमाश नसरदीन को पकडने की तरकीबे अमीर को
बताता रहा। ये तरकीबे बहुत ही चालाकी भरी थी। अमीर उनहे सुनकर बहुत खुश हुए। सोने के
िसको से भरी एक थैली अमीर से खचर के िलए लेकर नसरदीन अंितम बार मीनार की सीिढया
चढा। उसने थैली एक पेटी मे रखकर चारो और देखा। उसके होठो से एक लंबी सास िनकल
गई।

इस जगह को छोडते हुए उसे दुख तो हो रहा था। यहा उसने बहुत-सी राते अकेले, िबना सोये
काटी थी। इन खौफनाक दीवारो के पीछे उसकी रह का एक िहससा हमेशा के िलए छू ट रहा
था। दरवाजा बंद करके दबे पाव वह नीचे उतर आया। एक बार िफर दुिनया उसके िलए खुल गई
थी। वह फाटक से लगकर खडा हो गया। िसपािहयो की भीड से िघरे उसके दोसतो की एक लंबी
कतार फाटक के अंदर आ रही थी। उनके हाथ बंधे हुए थे। िसर झुके हुए थे।

इनमे बूढा नयाज कुमहार था, कहवाखाने का मािलक अली था, यूसुफ लुहार था। और भी बहुत से
लोग थे। िजस िकसी ने भी कभी नसरदीन से बात की थी, उसे पानी िपलाया था, या उसके गधे
के िलए एक मुटी घास दी थी, वे सभी थे, उन सबके पीछे-पीछे असरला बेग चल रहा था। जब तक
नसरदीन संभल पाता फाटक बंद हो गया। कै़़ ़दजी ेलखाने मे बंद कर िदए।

नसरदीन असरला बेग की तलाश मे लौट आया। ‘असरला बेग साहब, कया हुआ? इन लोगो को िकस
जुमर मे िगरफतार िकया गया है?’ असरला बेग ने िवजेता की मुदा मे कहा, ‘ये सब लोग नसरदीन के
साथी और उसे पनाह देने वाले है। मेरे मुखिबरो और जासूसो ने इन लोगो का पता बताया था।
इन सबको बेरहमी से सरेआम मौत की सजा दी जाएगी। या िफर ये सबूत पेश करेगे िक उनका
नसरदीन के साथ कोई संबध ं नही है।

लेिकन मौलाना हुसैन, आप इतने पीले कयो पड रहे है? आप बहुत परेशान िदखाई दे रहे है।’
नसरदीन चौक पडा, ‘पीला?’ हा-हा, कयो नही, इसका मतलब है इनाम मुझे नही, आपको िमलेगा।’
नसरदीन महल मे रकने पर मजबूर हो गया। बेगुनाह लोग मौत के मुंह मे जा रहे हो तो वह इसके
अलावा कर ही कया सकता था? दोपहर को फौज ने बाजार मे मोचा जमाया।
शाही तख्त के चारो और तीन-तीन की कतार मे िसपाही खडे हो गए। नकीवो ने सजा की घोषणा
कर दी थी। भीड चुपचाप खडी थी। महल के फाटक खुले। पाचीन परंपरा के अनुसार पहले
चोबदार, िफर पहरेदार, िफर मीरासी, िफर हाथी और दरबारी िनकले। अंत मे अमीर की सवारी
आई। भीड ने जमीन पर लेटकर कोिनरश की। अमीर तख्त पर आ बैठे। अपराधी फाटक के
बाहर लाए गए।

भीड ने फुसफुसाहट ने उसका सवागत िकया। अपरािधयो के िरशतेदार और दोसत सामने वाली
कतार मे उन पर टकटकी बाधे खडे थे। जललाद कुलािडया तेज करने , सूिलया गाडने और रससे
तैयार करने लगे थे। उनहे िदन भर के िलए काम िमल गया था। कयोिक एक के बाद एक साठ
आदिमयो को मौत के घाट उतारना था।
मौत की सजा

अपरािधयो की भीड मे सबसे आगे बूढा नयाज। जललादो ने उसे बाहो मे जकड रखा था। दायी
और फासी थी और बायी और लकडी का कु ंदा, िजस पर िसर रखकर कुलाडी चलाई जाने वाली
थी। वजीरे-आजम बिख्तयार ने संजीदा लेिकन जोरदार आवाज मे ऐलान िकया-‘िबिसमललाह-उल-
रहमान-उल रहीम! बुखारा के सुलतान दुिनया के सूरज अमीर-आजम ने इनसाफ के तराजू मे
तौलकर अपनी िरयाया मे से साठ आदिमयो के जुमों का फैसला िकया है। इन लोगो ने अमन मे
खलल डालने , फूट फैलाने वाले, शरारत-पसंद, कािफर नसरदीन को पनाह दी थी।’

अमीर-आजम का हुकम है िक आवारा नसरदीन को बहुत िदनो तक अपने घर मे पनाह देनवे ाले
नयाज कुमहार को सबसे पहले मौत की सजा दी जाए। उसका िसर कलम कर िदया जाएगा।
जहा तक दसू रे मुजिरमो की बात है उनकी पहली सजा यह है िक नयाज की मौत देखे तािक अपने
िलए और भी तकलीफदेह मौत का तसववर कर सके। इनमे से हर एक को िकस ढंग से मारा
जाएगा, इसका ऐलान बाद मे िकया जाएगा।

चारो और इतनी गहरी खामोशी छाई हुई थी िक बिख्तयार का हर ल़फज आिखरी कतार तक
सुनाई दे रहा था। अपनी आवाज को और ऊंचा करते हुए उसने कहा, ‘हर एक को मालूम हो िक
आइनदा नसरदीन को पनाह देनेवाला शख्स अगर उस कािफर बदमाश का पता बता देगा तो न
िसफर उसकी सजा माफ कर दी जाएगी बिलक उसे इनाम भी िमलेगा। वह औरो की सजा माफ
कराने का भी हकदार होगा।

नयाज कुमहार, कया तुमहे नसरदीन का पता बताना और अपने -आपको और दस ू रो को बचना मंजूर
है?’ नयाज कुछ देर िसर झुकाए खामोश खडा रहा। बिख्तयार ने अपना सवाल िफर दोहराया तो
उसने जवाब िदया, ‘नही, मै नही जानता िक वह कहा है।’ जललाद उसे खीचकर लकडी के कु ंदे
के पास ले गए। भीड मे कोई रो उठा। नयाज ने अपना सफेद बालो वाला िसर कु ंदे पर रख
िदया।

तभी दरबािरयो को कोहनी से हटाता हुआ नसरदीन अमीर के सामने आ खडा हुआ और इतने जोर
से बोलने लगा िक सारी भीड सुन ले। ‘ऐ आका, जललादो को हुकम दे िक सजा की तामील रोक
दी जाए। मै नसरदीन को इसी वक्त और यही िगरफतार करा दंगू ा।’ अमीर आशयर से उसकी
ओर देखने लगे। भीड मे खलबली मच गई। अमीर के इशारे पर जललाद ने कुलाडी कंधे से
उतारकर पैरो के पास रख ली।

नसरदीन ने ऊंची आवाज मे कहा, ‘शहंशाह, कया इन नाचीज पनाह देने वालो को सजा देना
मुनािसब होगा, जबिक वह शख्स छोड िदया जाए, िजसके यहा िपछले काफी िदनो से नसरदीन रह
रहा है। िजसने उसे िखलाया है, इनाम िदए है और उसकी पूरी देखरेख की है?’ अमीर ने कुछ
सोचते हुए कहा, ‘तुम ठीक कहते हो। अगर इस तरह सरदार को मौत की सजा नही दी और उसे
िजंदा रहने िदया तो कया पनाह देनेवाले इन छोटे आदिमयो की मौत की सजा देना इनसाफ होगा?’

‘अगर हम पनाह देने वालो के सरदार को मारना नही चाहते तो इन सब लोगो को जरर छोड
देगे।’ अमीर ने परेशान होकर कहा, ‘लेिकन हमारी समझ मे यह बात नही आ रही िक सरदार को
मौत की सजा देने से हमे रोकने की वजह कया हो सकती है? वह है कहा। हमे उसे िदखा भर दो।
हम फौरन उसका िसर धड से अलग कर देगे।’
जान जोिखम मे

नसरदीन भीड की ओर मुडा, ‘कया आप लोगो ने अमीर की बात सुनी? बुखारा के सुलतान ने अभी-
अभी फमाया है िक अगर वह पनाह देने वालो के सरदार को, िजसका नाम मै अभी कुछ ही िमनटो
मे बताऊंगा, मौत की सजा नही देगे तो पनाह देने वाले इन छोटे लोगो को माफ कर िदया जाएगा।

ऐ शहंशाह, मैने सच कहा है?’ अमीर ने समथरन िकया, ‘तुमने सच कहा है मौलाना हुसैन। हम
वायदा करते है िक ऐसा ही होगा लेिकन तुम अब जलदी से उस सरदार की सूरत िदखाओ।’
नसरदीन ने भीड से पूछा, ‘आप लोग सुन रहे है न! अमीर ने वायदा िकया है।’ उसने लंबी सास
ली। हजारो आंखे उसी पर िटकी हुई थी। ‘पनाह देने वालो का सरदार।’ वह लडखडा गया।
तभी अमीर बेताबी से िचललाए, ‘जलदी करो मौलाना हुसैन। जलदी बताओ।’

नसरदीन ने खनकती हुई आवाज मे कहा, ‘पनाह देने वालो के सरदार आप है अमीर।’ और िफर
उसने अपनी नकली दाढी और साफा उतारकर फेक िदया। भीड की सास जैसे ऊपर की ऊपर
रह गई। अमीर की आंखे बाहर को िनकल पडी। उसके होठ िहले लेिकन आवाज नही िनकली।
दरबारी इस तरह खडे रह गए जैसे बुत बन गए हो। ‘नसरदीन! नसरदीन!’ भीड खुशी से िचलला
उठी। ‘नसरदीन! दरबारी घबरा उठे। ‘नसरदीन!’ असरला बेग चौक पडा।

अमीर ने संभलकर धीरे से कहा, ‘नसरदीन!’ ‘हा नसरदीन! ऐ अमीर, फौरन जललादो को हुकम
दीिजए िक आपका िसर धड से जुदा कर दे। कयोिक मुझे पनाह देने वालो के सरदार आप है। मै
आपके साथ महल मे रहा, आपके साथ मैने खाना खाया। आपसे इनाम पाए। आपके मामलो मे
सलाह देनेवाला सबसे बडा सलाहकार मै था।

नसरदीन को पनाह देनेवाले आप है। अभी हुकम दीिजए जललादो को िक आपका िसर कलम कर
दे।’ पलक झपकते नसरदीन को पकड िलया गया। उसने अपने आपको बचाने की कोई कोिशश
नही की। अमीर ने वायदा िकया है िक मौत की सजा पाने वाले सभी लोग िरहा कर िदए जाएंगे।
बुखारा शरीफ के बािशंदो, अमीर की बात आप सबने सुनी है। आपने उनहे वायदा करते सुना है।
भीड मे खलबली मच गई। वह आगे बढने लगी।

िसपािहयो की कतारे भीड को रोकने की पूरी कोिशश कर रही थी। नारे बुलंद हो रहे थे। ‘कैिदयो
को िरहा करो।’‘अमीर ने वायदा िकया है।’‘कै़क
़़
िदयो ो िरहा करो।’ नारे बुलंद होते चले
गए। िसपािहयो की कतारे िततर-िबतर होने लगी। बिख्तयार ने अमीर के कान मे झुककर कहा,
‘आका, इन लोगो को िरहा करना होगा। वरना िरयाया बगावत कर देगी।’ अमीर ने सवीकृित मे
िसर िहला िदया।

बिख्तयार िचललाया, ‘अमीर वायदा पूरा करते है।’ िसपािहयो ने रासते दे िदया। मौत की सजा
पाने वाले भीड मे समा गए। िसपाही नसरदीन को महल की ओर लेकर चल िदए। भीड मे बहुत
से लोग रो-रोकर िचलला उठे-‘अलिवदा नसरदीन!’

नसरदीन सीना ताने, िसर उठाए चल रहा था। चेहरे पर भय की हलकी सी भी रेखा नही थी।
फाटक पर पहंच
ु कर उसने मुडकर भीड की ओर देखा। भीड जोर से चीख उठी-‘अलिवदा!’
अमीर जलदी से सवारी मे जा बैठे। शाही जुलूस तेजी से महल मे चला गया।
मुलला नसरदीन को िमली मौत की सजा

नसरदीन का फैसला सुनाने के िलए दरबार लगाया गया। जब नसरदीन को िसपाही दरबार मे
लेकर पहंुचे तो दरबािरयो ने आंखे नीची कर ली। आिलम भौहे चढाकर दािढयो पर हाथ फेरने
लगे। वे एक-दस ू रे को देखते ही शरमा रहे थे। असरला बेग लंबी सास लेता, गला साफ करता
अमीर दसू री ओर ताकने लगा।

लेिकन नसरदीन की नजर और साफ थी, उसके हाथ अगर पीछे न बंधे होते तो यही लगता िक
वह अपराधी नही है, अपराधी तो दरबारी है, जो वहा बैठे है। फै़़़

म ले े देर नही लगी।
नसरदीन को मौत की सजा सुना दी गई। केवल यह िनिशत करना था िक मौत िकस ढंग की
हो। असरला बेग बोला, ‘मेरी राय मे मुजिरम की सूली दी जाए तािक वह तडप-तडप कर मरे।’

नसरदीन ने आंख तक नही झपकाई। खुशी से मुसकुराता हुआ रोशनदान से आती सूरज की
िकरणो को ताकता रहा। अमीर ने सूली की सजा देने से मना कर िदया। बताया िक तुकी के
सुलतान ने इस कािफर को सूली देने की कोिशश की थी। सपष है िक यह इस तरह की सजा से
बेदाग छू टने की तरकीब जानता है, वरना िजंदा न बच पाता।

बिख्तयार ने सलाह दी, ‘इसका िसर काट िदया जाए। यह सबसे आसान मौत है। लेिकन सबसे
यकीनी मौत यही है।’ ‘नही।’ अमीर बोला, ‘बगदाद के खलीफा ने इसका िसर काट िदया था
लेिकन वह अब भी इसके कंधो पर सही सलामत है।’

एक के बाद एक दरबारी उठे और नसरदीन को फासी लगाने , उसकी िजंदा खाल िखंचवा लेने की
सलाह देने लगे। अमीर ने हर सुझाव को ठुकरा िदया। वह लगातार नसरदीन की ओर ताक रहा
था। उसे उसके चेहरे पर डर का िनशान तक िदखाई नही दे रहा था। इन सुझावो को वह बेकार
समझता था।

तभी बगदाद का आिलम असली मौलाना हुसैन उठा। वह दरबार मे पहली बार बोल रहा था।
अपनी सलाह पर उसने अचछी तरह िवचार कर िलया था तािक उसकी बुिदमता का िसका जम
जाए। ‘ऐ खलक के शहंशाहे-आजम! अब तक यह मुजिरम हर तरह की सजा से बेदाग छू ट
िनकला है तो इससे यह सािबत नही होता िक नापाक ताकते अंधेरे की रहे िजनका अमीर के
हुजूर मे नाम लेना मुनािसब नही, इसकी मदद करती रही है।’

यह कहकर आिलम ने अपने कंधे पर फूंक मारी। नसरदीन को छोडकर बाकी सभी लोगो ने ऐसा
ही िकया। मौलाना हुसैन ने कहा, ‘मुजिरम के बारे मे िमली खबरो पर गौर करके हमारे अमीरे-
आजम ने सारे सुझावो का ठुकरा िदया है। उनहे अंदेशा है िक एक बार िफर नापाक ताकते मुजिरम
की मदद करके इसे सजा से बचा लेगी।

मौत का यह और तरीका है, जो मुजिरम पर अभी तक आजमाया नही गया है। वह तरीका है-पानी
मे डुबोकर मारने का।’ नसरदीन चौक पडा। अमीर ने उसका चौकना देख िलया, ‘ओ हो, तो यह
है इसका भेद।’ नसरदीन सोच रहा था, इन लोगो ने नापाक रहो की बात की है। यह अचछा
शगुन है। अभी उममीद नही खोनी चािहए।

बगदाद के आिलम ने कहा, ‘मैने जो कुछ पढा-सुना है उससे मुझे पता चला है िक बुखारा मे एक
पाक तालाब है-शेख तुरखान का तालाब। बदी की ताकते ऐसे तालाब के पास फटकने की िहममत
नही कर सकती। मुजिरम को पाक पानी मे काफी देर तक डुबाए रखा जाए। यह यकीनन मर
जाएगा।’ ‘यही अकलमंदी की और इनाम के कािबल सलाह है।’

अमीर ने कहा। नसरदीन ने आिलम को डाटा, ‘अरे मौलाना हुसैन, जब तुम मेरे कबजे मे थे तब
कया मैने तुमहारे साथ ऐसा ही सुलूक िकया था? तुमहारी ऐसी हरकत के बाद कोई िकसी इनसान का
अहसान मानने पर यकीन करेगा?’

मुलला को मौत की सजा

तय िकया गया िक सूरज डू बने के बाद नसरदीन को शेख तुरखान के तालाब मे डुबोकर मार
डाला जाए और उसे थैले समेत डुबो िदया जाए। सारे िदन तालाब के िकनारे कुलािडया बजती
रही। बढइयो ने एक ऊंचा तख्ता बनाया। हर बढई के पीछे एक-एक िसपाही खडा था। इसिलए
बेचारे चुपचाप काम करते रहे। उनके चेहरो पर दुःख की छाया थी। जब काम खतम हो गया तो
उनहोने मजदरू ी लेने से इनकार कर िदया। मजदरू ी बहुत ही कम थी। नीची नजरे िकए वे वापस
चले गए।

तालाब के एक िकनारे और तख्ते पर कालीन िबछा िदए गए। दस ू रा िकनारा िरयाया के िलए खाली
छोड िदया गया। मुखिबरो ने खबर दी िक सारे शहर मे खलबली और नाराजगी फैली हुई है।
सतकर असरला बेग ने तालाब के चारो और िसपाही तैनात कर िदए। इस डर से िक कही िरयाया
नसरदीन को रासते मे ही छीन न ले असरला बेग ने चार थैलो मे चीथडे भरवा िदए थे।

उसका इरादा था िक ये चारो थैले खुलेआम भीड-भरे बाजारो मे से तालाब पर भेजे जाएंगे और
िजस पाचवे थैले मे नसरदीन होगा, सूनी गिलयो मे से ले जाया जाएगा। उन चारो थैलो के साथ
आठ-आठ पहरेदार होगे जबिक असली पाचवे थैले के साथ िसफर तीन िसपाही होगे। इससे िकसी
को यह संदेह नही हो जाएगा िक उसी थैले मे नसरदीन है।

असरला बेग ने पहरेदारो से कहा, ‘तालाब से जब मै तुमहारे पास खबर भेजूं तो झूठे थैलो को एक
के बाद एक साथ ही ले आना। लेिकन असली थैले को थोडी देर बाद जब फाटक पर मौजूद भीड
नकली थैलो के साथ चली जाए तब लोगो की नजरो से बचाकर लाना।’ ढोल पीटकर शाम को
बाजार बंद करने का ऐलान कर िदया गया। लोग तालाब की ओर चल पडे। थोडी देर के बाद
अमीर की सवारी आई।

तख्ते पर उसके आसपास मशाले जला दी गई। दस ू रे िकनारे पर अंधेरा फैला हुआ था। तख्ते
पर से वहा खडी भीड िदखाई नही देती थी केवल उसके िहलने -डुलने और सास लेने की आवाज
सुनाई देती थी। रात की हवा के झोको पर सवार अनजाना और परेशान करनेवाला शोर फैलता
चला जा रहा था। बिख्तयार ने ऊंची आवाज मे नसरदीन की सजा का ऐलान िकया। हवा थम
सी गई। खामोशी छा गई। और इस खामोशी से डरकर अमीर का बदन कापने लगा। हवा ने आह
भरी भीड मे हजारो सीनो से आह उठी।

अमीर ने कापते हुए कहा, ‘असरला बेग, अब कया देर है।’ शहंशाह, ‘मैने खबर भेज दी है।’
अचानक अंधेरे से आवाजे आने लगी। हिथयार खडकने लगे। कही लडाई शुर हो गई थी। डर
के मारे अमीर चौक पडे। खाली हाथ आठ िसपाही मंच के सामने रोशनी मे आ खडे हुए। ‘मुजिरम
कहा है?’ अमीर िचललाए, ‘कया लोगो ने उसे िसपािहयो से छुडा िलया?’ कया वह भाग गया? असरला
बेग, तूने यह सब कयो होने िदया?’

‘शहंशाह, आपके नाचीज गुलाम ने यह खतरा पहले ही भाप िलया था। उस थैले मे िसफर चीथडे
थे।’ तभी दस
ू रे िकनारे से लडाई-झगडे की आवाजे आने लगी। असरला बेग ने जलदी से अमीर को
समझाया, ‘आका, उनहे यह थैला भी ले लेने दीिजए। इसमे भी चीथडे है।’ िसपािहयो से पहला
थैला कहवाखाने के मािलक अली और उसके दोसतो ने छीना था।

दसू रा यूसुफ लुहार के साथ लुहारो ने , तीसरा कुमहारो ने और चौथा िबना छीना-झपटी के सकुशल
पहंचु गया। मशालो की रोशनी मे भीड को देखते हुए िसपािहयो ने उस थैले को उठाया और उलट
िदया। चीथडे बाहर िनकल पडे। परेशान और हैरान भीड िनराशा से चुपचाप खडी रही।

यही असरला बेग की चाल थी। वह जानता था िक नासमझी से इनसान नकारा हो जाता है। पाचवे
थैले से िनबटने का समय आ गया था। न जाने कयो उसे लाने वाले पहरेदारो को रासते मे देर हो
गई थी। अभी तक वे आए नही थे।

मौत का थैला

िसपाही नसरदीन को कै़़़


दसखाने े बाहर लाए तो उसने कहा , ‘कया तुम लोग मुझे अपनी पीठ
पर लादकर ले चलोगे? अफसोस मेरा गधा इस वक्त यहा नही है। वह हंसी के मारे लोटपोट हो
जाता।’ ‘खामोश, अपना मुंह बंद कर।’ िसपािहयो ने िबगडकर कहा। वे उसे कमा नही कर
सकते थे, कयोिक उसने खुद ही अपने -आपको अमीर के सुपुदर कर िदया था, िजससे उनका इनाम
मारा गया था।

उनहोने एक संकरे बोरे मे नसरदीन को ठूंसना शुर कर िदया। दोहरा-ितहरा होता हुआ नसरदीन
िचललाया, ‘अरे शैतानो, कया तुमहे बडा थैला नही िमल सकता था?’ पसीने से लथपथ, हाफते हुए
िसपािहयो ने डपटकर कहा, ‘खामोश, अब तेरी चलने की नही है। इस तरह मत फैल, वरना तेरे
पैर तेरे पेट मे ठूंस देगे।’
बडी कोिशश के बाद िसपाही नसरदीन को बोरे मे बंद करने और बोरे का मुंह रससे से बाध पाने मे
सफल हो सके। बोरे के भीतर अंधेरा, घुटन और बदबू थी। नसरदीन की रप पर काला कोहरा
छा गया। अब बच िनकलने की कोई उममीद नही रही थी। उसने भागय और सबसे अिधक
शिकतशाली अफसर से पाथरना की, ‘ऐ िकसमत, तू मेरी मा की तरह मुझ पर मेहरबान है।

ऐ सबसे जयादा ताकतवर मौके, तूने अब तक अपने बचचे की तरह मेरी िहफाजत की है। कहा हो
तुम? नसरदीन की मदद के िलए जलदी कयो नही आते। इन लोगो ने मुझे गंदे बदबूदार थैले मे बंद
कर िदया है और कीचड भरे पोखरे मे डुबाने ले जा रहे है। इनसाफ कहा है? सचचाई कहा है?
नही, यह नही हो सकता। कुछ-न-कुछ तो होना ही चािहए। आग, भूचाल, बगावत। ऐ िकसमत, ऐ
मौके, कुछ-न-कुछ तो होना ही चािहए।’

इस बीच पहरेदार तालाब का आधा रासता पार कर चुके थे। लेिकन अब तक कुछ भी नही हुआ
था। वे बारी-बारी थैला लाद रहे थे। हर दो सौ कदम पर बोझा बदल रहे थे। नसरदीन छोटे-
छोटे कदम िगन रहा था। इससे उसने अनुमान लगा िलया था िक िकतना रासता तय हो चुका है
और िकतना बाकी है।

वह जानता था िक भागय और अवसर उस वयिकत की सहायता नही करते, जो रोता-पीटता है। जो


िदलेरी से काम नही लेता। लेिकन जो लगन से बढता जाता है वही मंिजल पर पहंुच पाता है।
‘नही, मै आज नही मरंगा।’ उसने दात भीचकर कहा, ‘मै आज मरना नही चाहता।’

िफर उससे थैले के अंदर से कहा, ‘ऐ बहादुर िसपािहयो, जरा एक पल के िलए रको। मरने से
पहले मै दुआ करना चाहता हूं तािक अललाह मेरी रह को कबूल कर ले।’ ‘अचछा दुआ कर लो।’
गडा हुआ खजाना

िसपािहयो ने थैला जमीन पर रख िदया, ‘हम तुमहे बाहर नही िनकालेगे। थैले मे से ही दुआ कर
लो। लेिकन जलदी।’ ‘हम है कहा?’ नसरदीन ने पूछा, ‘मुझे यह मालूम होना चािहए, कयोिक तुमहे
मेरा मुंह मिसजद की ओर करना होगा।’ ‘हम लोग दशी फाटक के पास है। यहा चारो और
मिसजदे-ही-मिसजदे है। बस जलदी से अपनी दुआ खतम करो।’ ‘शुिकया बहादुर िसपािहयो।’

गम-भरी आवाज मे नसरदीन ने कहा। वह खुद नही जानता था िक कया होने वाला है। उसने
सोचा, दुआ करने के नाम पर मुझे कुछ िमनटो की मोहलत िमल जाएगी। िफर देखा जाएगा। तब
तक कुछ ऐसा हो सकता है िक...। वह जोर-जोर से दुआ करने लगा। िसपाही बाते करने लगे।
एक ने कहा, ‘आिखर ऐसा हुआ ही कैसे िक हम लोग भाप ही नही पाए िक नसरदीन ही नया
आिलम है। काश, उसे पहचानकर हम पकड लेते तो अमीर से हमे भारी इनाम िमलता।’

नसरदीन फौरन इसका लाभ उठाने के िलए तैयार हो गया। तभी एक िसपाही थैले मे लात मारकर
गुराया, ‘जलदी खतम कर अपनी दुआ। हम अब जयादा इंतजार नही कर सकते।’ ‘ऐ नेक और
बहादुर िसपािहयो, मुझे खु़़
़दसा े एक ही इिलतजा करनी है। ऐ मेहरबान अललाह , तू ऐसा कर दे
िक िजस िकसी को भी मेरे दस हजार तंके िमले, वह उनमे से एक हजार िकसी मिसजद मे दे आए
और मुलला से मेरे िलए एक साल तक दुआ करने को कहे।’‘दस हजार तंके?’
दस हजार तंको की बात सुनकर िसपाही खामोश हो गए। ‘अब मुझे ले चलो। मैने अपनी रह
अललाह के सुपुदर कर दी।’ नसरदीन ने सहमकर दबी जबान से कहा। एक िसपाही ने उसे
उकसाते हुए कहा, ‘हम जरा देर और सुसता ले। तुम यह मत समझना िक हम लोग बुरे है या
हमारे िदल नही है। अपने कजर की वजह से तुमहारे साथ ऐसा सख्त बताव करने पर मजबूर है।

अमीर से तनख्वाह पाए िबना अगर हम अपने कुनबे को पालने लायक हो जाते तो तुमहे िरहा करने
मे हमे कोई िहचक न होती।’ दसू रा िसपाही फुसफुसाया, ‘यह तुम कया कह रहे हो?’ हमने इसे
बाहर िनकाला तो अमीर हमारा िसर काट डालेगे। पहले िसपाही ने ठंडी सास लेकर कहा, ‘अपनी
जबान बंद रख। हमे तो िसफर इसका रपया चािहए।’ नसरदीन उनकी फुसफुसाहट नही सुन
सका। लेिकन समझ गया िक वे िकस िसलिसले मे बाते कर रहे है।

बडी िववशता से आह भरते हुए बोला, ‘ऐ बहादुरो, मुझे तुमसे कोई िशकायत नही है। तुम कह रहे
हो िक अगर तुमहे अमीर की तनख्वाह की जररत न होती तो तुम मझे थैले से बाहर आ जाने
देते। जरा सोचो िक तुम कया कह रहे हो। तुम अमीर के हकु म के िखलाफ काम करते, जो बहुत
बडा गुनाह है। नही, मै नही चाहता िक मेरी खाितर तुमहारी रहो पर गुनाह का साया पडे।

उठाओ थैला और मुझे तालाब की ओर ले चलो। अमीर की मंशा और अलला की मंशा होकर
रहेगी।’ तीसरे िसपाही ने अपने सािथयो को आंख मारकर कहा, ‘मै अपने वतन मे एक मिसजद
बनवा रहा हूं। इसके िलए मै और मेरे खानदान वाले भरपेट खाना भी नही खाते।

मै ताबे का एक-एक तंका बचाकर रखता हूं। लेिकन मिसजद का काम बहुत आिहसता चल रहा
है। मैने हाल ही मे अपना ऊंट बेच डाला है। भले ही मुझे जूते तक बेच देने पडे लेिकन वह काम
पूरा हो जाए, जो मैने शुर िकया है। मै नंगे पाव चलने के िलए तैयार हूं।’
कामयाब चाल

नसरदीन ने थैले के भीतर एक िससकी भरी। िसपािहयो ने एक-दस ू रे को ताका। चाल काम कर
रही थी। उनहोने अपने चालाक साथी को कोहनी मारी िक वह अपनी बात जारी रखे। वह बोला,
‘काश, मुझे ऐसा आदमी िमल जाता जो मिसजद पूरी करने के िलए आठ-दस हजार तंके दे देता। मै
उससे वायदा कर लेता िक पाच बिलक दस साल तक अललाह के तखत की ओर मिसजद की छत
से इबादत के महकते हुए बादलो से िलपटा उसका नाम रोजाना ऊपर उठता रहेगा।’

ू रा िसपाही बोला, ‘दोसत, मेरे पास दस हजार तंके नही है, लेिकन तुम मेरी कमाई की सारी
दस
बचत पाच सौ तंके कबूल कर लो। मेरी यह नाचीज भेट ठुकराना मत। कयोिक मै भी इस नेक
काम मे हाथ बंटाना चाहता हूं।’ दबी हुई खुशी और हंसी से कापता दस ू रा िसपाही हकलाकर
बोला, ‘और मै भी-लेिकन मेरे पास तो कुल तीन सौ तंके है।’ ददर भरी आवाज मे नसरदीन बोला,
‘ऐ नेक आदमी, सबसे जयादा पाक िसपाही, काश मै तुमहारी पोशाक का दामन अपने होठो से चूम
सकता।

मुझ पर मेहरबानी करो। मेरी भेट लेने से इंकार मत करना। मेरे पास दस हजार तंके है। मैने
किबसतान मे गाड िदए थे। कब के एक पतथर के नीचे।’ िसपाही िचलला उठे, ‘किबसतान? अरे
वह तो पास ही है।’ ‘हा, हम लोग किबसतान के उतरी कोने पर है। तुमने तंके कहा िछपाए है?’
नसरदीन ने कहा, ‘किबसतान के पिशमी कोने मे है। लेिकन ऐ नेक िसपाही, पहले मुझसे वायदा
करो िक मेरा नाम सचमुच दस बरस तक मिसजद मे रोजाना िलया जाएगा।’ बेताब होकर िसपाही
बोला, ‘मै वायदा करता हूं, मै अललाह और उनके पैगंबर के नाम पर वायदा करता हूं। अब तुम
जलद बताओ िक तंके कहा गडे है?’

नसरदीन ने उतर देने मे काफी समय लगाया। वह सोच रहा था िक अगर इन लोगो ने तय िकया
िक पहले मुझे तालाब पहंुचा दे और रपयो की खोज कल तक टाल दे तो गजब हो जाएगा। नही,
ये लोग बेताबी और लालच के मारे मरे जा रहे है। इनहे पता होगा िक कोई और इनसे पहले आकर
रकम िनकाल कर न ले जाए।

इन लोगो को आपस मे भी एक-दस ू रे पर यकीन नही है। इनहे कौन-सी जगह बताऊं, जहा ये
जयादा देर तक खोजते रहे। थैले पर झुके िसपाही जवाब का इंतजार कर रहे थे। ‘अचछा सुनो,’
नसरदीन ने कहा, ‘किबसतान के पिशमी कोने मे कबो के तीन पुराने पतथर है, जो एक ितकोन
बनाते है। इस ितकोने के तीनो कोनो के नीचे मैने तीन हजार तीन सौ तैतीस और एक ितहाई
तंका गाड रखे है।’

‘ितकोने के तीनो कोनो के नीचे!’ िसपािहयो ने एक साथ दोहराया, ‘तीन हजार तीन सौ तैतीस और
ितहाई तंका...!’ उनहोने तय िकया िक दो िसपाही तंको की खोज मे जाएंगे और तीसरा यही पहरा
देगा।
राहगीर का इंतजार

दो िसपाही किबसतान की ओर चले गए। तीसरा गहरी सासे भरता, खासता और सडक पर
हिथयार खडखडाते हुए चहलकदमी करने लगा। कुछ देर बाद उसने कहा, ‘बडी देर लगा दी उन
लोगो ने।’ ‘शायद वे रकम को िकसी दस
ू री जगह िछपा रहे होगे तािक आप सब कल इकटे आकर
उसे ले जाएं।’

नसरदीन ने कहा। बात असर कर गई। िसपाही ने जोर से सास खीची और जमहाई लेने का
बहाना करने लगा। ‘मरने से पहले कोई नसीहत भरी कहानी सुनना चाहता हूं। ऐ नेक िसपाही,
शायद तुमहे कोई कहानी याद हो।’ थैले मे से नसरदीन ने कहा। िसपाही नाराज होकर बोला,
‘नही, मुझे कोई कहानी याद नही है। मै थक गया हूं। मै जाकर जरा घास पर लेटूंगा।’

उसे मालूम नही था िक सख्त जमीन पर उसके कदमो की आवाज दरू से सुनाई देगी। पहले तो
वह धीरे-धीरे चला िफर नसरदीन को तेज कदमो की आवाज सुनाई दी। िसपाही तेजी से भाग रहा
था। कुछ कर गुजरने का वक्त आ गया था। नसरदीन बहुत लोटा-पोटा- लुढका। लेिकन रससा
नही टू टा। ‘ऐ मुकदर िकसी राहगीर को भेज दे। ऐ अललाह िकसी राहगीर को भेज दे।’
नसरदीन दुआ करने लगा। और मुकदर ने एक राहगीर भेज िदया। राहगीर धीरे-धीरे आ रहा था।

उसकी चाल से मुलला नसरदीन ने अनुमान लगा िलया िक वह लंगडा है। हाफ रहा था इससे
सपष हो गया िक वह बूढा है। थैला रासते के बीचो बीच पडा था। राहगीर रका, कुछ देर तक
थैले को देखता रहा िफर पैर से टटोलने लगा। ‘कया हो सकता है इस थैले मे? यह आया कहा
से?’ उसने खरखराती आवाज मे कहा। नसरदीन ने आवाज पहचान ली।
वह सूदखोर जाफर की आवाज थी। वह धीरे से खासा। ‘ओ हो, इसमे तो कोई आदमी है।’
जाफर पीछे को हटते हुए बोला। ‘बेशक इसमे आदमी है।’ नसरदीन ने आवाज बदलकर बडे
इतमीनान से कहा, ‘इसमे ताजजुब की कया बात है?’ ‘ताजजुब की बात? तुम थैले मे बंद कयो हो?’
‘यह मेरा िनजी मामला है। तुमहे इससे कया। अपना रासता नापो।

मुझे अपने सवालो से परेशान मत करो।’ ‘सचमुच बडे ताजजुब की बात है।’ सूदखोर बोला, ‘एक
आदमी थैले मे बंद है और थैला सडक पर पडा है। ऐ भाई, तुमहे जबदरसती इस थैले मे बंद िकया
गया था?’ ‘जबदरसती?’ नसरदीन िचढकर बोला, ‘कया छः सौ तंके इसिलए खचर करंगा िक कोई
मुझे जबदरसती थैले मे बंद करे।’ ‘छः सौ तंके? तुम छः सौ तंके कयो खचर िकए?’

‘ऐ मुसािफर, अगर तुम वायदा करो िक मेरी बात सुनने के बाद तुम अपना रासता लोगे और मुझे
परेशान न करोगे तो मै तुमहे पूरी कहानी सुना दं।
ू यह थैला एक अरब का है, जो बुखारा मे रहता
है। इसमे जादू की खूबी है िक बीमारी और बेडौल बदन को ठीक कर देता है। इसका मािलक इसे
िकराए पर देता है। लेिकन भारी रकम लेता है। और हर ऐरे-गैरे को नही देता।

मै लंगडा था। मेरा कूबड िनकला था। एक आंख से काना भी था। मै शादी करना चाहता हूं।
लडकी का बाप अपनी बेटी को मेरी बदसूरती देखने से बचाना चाहता था। मुझे उस अरब के पास
ले गया। मैने उसे छः सौ तंके दे िदए और चार घंटे के िलए यह थैला ले िलया।’
मुलला बाहर जाफर अंदर

थैला अपना असर किबसतान के करीब ही िदखाता है। इसिलए सूरज डू बते ही मै कशी किबसतान
मे चला आया। मेरी होने वाली बीवी का बाप मुझे इस थैले मे घुसाकर और ऊपर से रससा बाधकर
चला गया। मुमिकन था िक िकसी गै़रक़़ी मौजूदगी मे इलाज न हो पाता। थैले वाले ने मुझे
बताया था िक जैसे ही मै अकेला रह जाऊंगा, तीन िजन जो़़ऱ -जोर से पीतल के पंख
खडखडाते हुए आएंगे।

इनसानो की जबान मे मुझसे पूछेगे िक दस हजार तंके किबसतान के िकस िहससे मे गडे है? मै
जवाब मे उनहे जादू के बोल सुनाऊंगा, ताबे जैसी ढाल है िजसकी, उसका माथा ताबे का। उकाब
के पर उललू। ऐ िजन, तू पूछता है पता उस रकम का, जो तूने िछपाई नही। इसिलए पलट और
चूम मेरे गधे की दुम।

जैसा उसने बताया था िक ठीक वैसा ही हुआ। िजन आए और मुझसे पूछा-‘दस हजार तंके कहा
गडे है?’ मैने जवाब िदया तो वे तैश मे आ गए और मुझे पीटने लगे। लेिकन मै िहदायत के
मुतािबक िचललाता रहा। ताबे जैसी ढाल है िजसकी, उसका माथा ताबे का इसिलए पलट और चूम
मेरे गधे की दुम। िजनो ने थैला उठा िलया और चल पडे। इसके बाद मुझे कुछ याद नही। दो
घंटे होश आया तो देखा मै िबलकुल तंदुरसत हो गया हूं और वही पडा हूं, जहा से वे मुझे ले गए
थे।’

‘मेरा कूबड गायब हो गया है। मै दोनो आंखो से देख सकता हूं। अब मै यहा इसिलए बंद हूं िक
पूरी रकम अदा करने के बाद उसे बेकार जाने देना ठीक नही। बेशक मैने एक गलती की। मुझे
पहले ही एक ऐसे आदमी से समझौता कर लेना चािहए था, िजसे मेरी जैसी सारी बीमािरया होती।
तब हम लोग थैले को साझे मे िकराये पर ले लेते और दो-दो घंटे इसमे रहते। इस तरह तीन-तीन
सौ तंके खचर होते लेिकन अब कया हो सकता है। रकम तो बबाद हो ही गई। लेिकन खुशी है िक
मेरा इलाज पूरा हो गया।’

‘ऐ राहगीर, तुमने पूरी कहानी सुन ली। अब अपना वायदा पूरा करो। अपनी राह पकडो। इलाज
के बाद मुझे कमजोरी महसूस हो रही है। तुमसे पहले नौ आदमी मुझसे यही सवाल कर चुके है।
बार-बार दोहराते मै थक गया हूं।’ सूदखोर ने सारी बाते धयान से सुनी िफर बोला, ‘ऐ थैले मे बंद
इनसान, मेरी भी सुन।

हमारी इस मुलाकात से हम दोनो को फायदा हो सकता है। तुमहे इस बात का गम है िक तुमने


िकसी ऐसे साझीदार को ढू ंढने की कोिशश नही की, िजसको तुमहारी जैसी बीमािरया हो। लेिकन
घबराओ मत। देर नही हुई है। मै कुबडा हूं। दाएं पैर से लंगडा हूं और एक आंख से काना हूं। मै
बाकी दो घंटे थैले मे रहने के िलए खुशी से तीन सौ तंके तुमहे दे सकता हूं।’

‘मेरा मजाक मत उडाओ। कही ऐसा भी संयोग हुआ है। लेिकन अगर तुम सच बोले रहे हो तो
अललाह का शुिकया अदा करो, िजसने ऐसा मौका तुमहे दे िदया। मै थैला खाली करने के िलए
तैयार हूं लेिकन मैने थैले का िकराया पेशगी िदया था। तुमसे भी पेशगी लूंगा। थैला उधार नही
दंगू ा।’ ‘मै पेशगी दंगू ा।’

थैले को खोलते हुए सूदखोर बोला, ‘लेिकन वक्त बबाद नही करना चािहए। अब हर िमनट मेरा
है।’ थैले से िनकलते समय नसरदीन ने अपना चेहरा आसतीन से िछपा िलया। लेिकन सूदखोर ने
उसकी ओर नही देखा। वह फुती से रकम िगनकर कापते, कराहते थैले मे घुस गया। नसरदीन
ने थैले के मुंह पर रससा कस िदया और एक पेड की आड मे जा िछपा।

तभी किबसतान की ओर से िसपािहयो के जोर-जोर से गाली देने की आवाजे सुनाई दी। थोडी देर
मे ही अपने ताबे के भाले चमकाते वे थैले के पास पहंच
ु गए।

सूदखोर की हुई िपटाई

‘कयो बे चालबाज!’ थैले मे ठोकर मारते हुए िसपाही िचललाए। उनके हिथयार ठीक उसी तरह
खडक रहे थे िजस तरह िक ताबे के पंख खडकते है, ‘यह बदमाशी?’ हमने किबसतान का चपपा-
चपपा छान डाला लेिकन कुछ भी हाथ नही लगा। ठीक-ठाक बता, कहा है वे दस हजार तंके?’

सूदखोर ने अपना पाठ अचछी तरह रट िलया था। ‘ताबे जैसी ढाल है िजसकी उसका माथा ताबे
का।’ थैले के अंदर से सूदखोर बोला, ‘उकाब के पर उललू। ऐ िजन, तू पूछता है पता उस रकम
का जो तूने िछपाई नही। इसिलए पलट और चूम मेरे गधे की दुम।’

यह सुनकर िसपाही गुससे से बौखला उठे। ‘तूने धोखा िदया है जलील कुते। हमे बेवकूफ बनाया
है। देखो न, थैला धूल से भरा है। हम लोगो के जाने के बाद लोट-पोटकर िनकल भागने की
कोिशश की थी इसने। अब गीदड की औलाद, तुझे यह चालबाजी महंगी पडेगी।’ ‘तूने धोखा
िदया है जलील कुते। हमे बेवकूफ बनाया है। देखो न, थैला धूल से भरा है।

िफर वे थैले की मुको से कुटाई करने लगे। िफर लोहे के नालदार जूतो से उसे अचछी तरह
रौदा। लेिकन सूदखोर िचललाता रहा-‘ताबे जैसी ढाल है िजसकी...!’ िसपाही और भी िभना उठे।
जी मे आया िक इस बदमाश को यही मार डाले लेिकन वे ऐसा कर नही सकते थे। उनहोने थैला
उठाया और तेजी से तालाब की ओर चल िदए।

नसरदीन पेड की आड से िनकलकर िसंचाई की नहर के िकनारे आ गया। हाथ-मुंह धोकर लबादा
उतारा और रात की ठंडी हवा मे आजादी की सास ली। उसने एक सुरिकत सथान देखकर अपना
लबादा िछपा िदया और एक पतथर िसरहाने रखकर लेट गया। समय की कमी पूरी करने के िलए
िसपाही तेजी से तालाब की ओर चल पडे थे। अंत मे वे दौडने लगे।

थैले मे धके और िहचकोले खाता हुआ सूदखोर इतमीनान से इस अनोखे सफर के खतम होने का
इंतजार कर रहा था। िसपािहयो के हिथयारो की झनझनाहट और उनके बूटो के नीचे पतथरो की
खड-खड सुनते हुए वह सोच रहा था िक ये ताकतवर िजन उड कयो नही रहे? अपने ताबे के पंखो
को जमीन पर रगडते हुए मुगे़़़
़ ़क ी त र हकयोदौडरहे ? है

दरू पहाडी झरने जैसी आवाज सुनाई दी तो सूदखोर ने समझा िक िजन शायद अपने रहने की
जगह, रहो की चोटी पर पहंुच गए है। लेिकन तभी इनसानो की आवाजे सुनाई देने लगी। शोर-
शराबे से वह समझ गया िक यहा हजारो आदमी इकटे है, बाजार की तरह। लेिकन बुखारा मे रात
के वक्त बाजार लगता ही नही था।

बुखारा को सूदखोर जाफर से छुटकारा

अचानक उसे लगा, वह ऊपर उठ रहा है। तो आिखरकार िजनो ने हवा मे उडने का फैसला कर
ही िलया। उसे कैसे मालूम हो सकता था िक िसपाही थैले को तख्ते पर पहंच
ु ाने के िलए सीिढया
चढ रहे है। ऊपर पहंुचकर उनहोने थैले को पटक िदया। थैले के बोझ से तख्ता िहला और
चरमराया।

सूदखोर कराह उठा, ‘अरे ओ िजनो,’ उसने िचललाकर कहा, ‘अगर तुमने थैले को इस तरह
पटकना शुर िकया तो इलाज होना दो दरू , मेरे हाथ-पाव टू ट जाएंगे।’ जवाब मे एक जोरदार
ठोकर लगी। ‘पाक तुरखान के तालाब की तह मे बहुत जलदी ही तेरा इलाज हो जाएगा
हरामजादे।’ िकसी ने कहा।

सूदखोर घबरा उठा। पाक तुरखान के तालाब का इस इलाज से कया वासता? और िफर जब फौज
के िसपहसालार असरला बेग की आवाज सुनाई दी तो उसकी घबराहट आशयर मे बदल गई। भीड
का शोरगुल बढता जा रहा था। एक शबद िभनिभनाता था, गूंजता था, गरजता था और दरू जाती
गूंजो मे खतम हो जाता था। बहुत देर मे वह समझ पाया।

वह शबद था-नसरदीन।’ भीड मे हजारो गलो से वही आवाज िनकल रही थी। ‘नसरदीन।’
‘नसरदीन।’ तभी उसे एक दस ू री आवाज सुनाई दी। वह आवाज वजीर बिख्तयार की थी, ‘हुकम
से कुफ फैलाने वाले बदमाश, अमन मे खलल डालने वाले नसरदीन को इस थैले मे बंद करके
तालाब मे डुबोया जा रहा है।’ कुछ हाथो ने थैले को पकडकर ऊपर उठाया।
अब सूदखोर को वासतिवकता का पता चला। वह िचलला उठा, ‘ठहरो, ठहरो, मै नसरदीन नही हूं।
मै तो सूदखोर जाफर हूं। छोड दो मुझे। कहा ले जा रहे हो मुझे? मै सच कहता हूं मै सूदखोर
जाफर हूं।’ अमीर और दरबारी खामोशी से उसकी चीख-पुकार सुनते रहे।

बगदाद के आिलम मौलाना हुसैन ने परेशानी से िसर िहलाते हुए कहा, ‘इस बदमाश की बेशमी की
हद नही है। देिखए न एक वक्त इसने अपने आपको बगदाद का मौलाना हुसैन बताया था और
अब चाहता है िक हम उसे सूदखोर जाफर मान ले। ‘यह सोच रहा है िक यहा सब बेवकूफ बैठे
है। उसकी बात पर यकीन कर लेगे।’

‘मुझे छोड दो। मै नसरदीन नही हूं। मै जाफर ह,ूं जाफर।’ थैले मे से सूदखोर िचललाया। तभी
असरला बेग ने इशारा िकया। हवा मे टेढा-मेढा झूलता हुआ थैला उछला और एक जोरदार छपाके
के साथ तालाब मे जा िगरा। सूदखोर जाफर के गुनहगार िजसम और गुनहगार रह को पानी ने
अपने नीचे दबा िलया।

भीड मे से एक गहरी सी आह उठी और िफर िदल को िहला देने वाली एक चीख उभरी। यह चीख
गुलजान की थी, जो अपने बूढे बाप की बाहो मे तडप रही थी, रो रही थी। कहवाखाने का मािलक
अली िसर थामकर बैठ गया। यूसुफ लुहार इस तरह कापने लगा जैसे उसे जूडी चढ आई
महल मे जश

काम पूरा हो जाने के बाद अमीर अपने दरबािरयो के साथ महल लौट गया। इस बात का खतरा
भापकर िक अपराधी के पूरी तरह डू ब जाने से पहले ही उसे बचाने की कोिशश की जा सकती है,
असरला बेग ने तालाब के चारो और पहरेदार तैनात कर िदए थे। उनहे हुकम दे िदया था िक कोई
भी तालाब के िकनारे फटकने भी न पाए। भीड कुछ आगे बढी। लेिकन पहरेदारो को देखकर पीछे
हट आई।

िफर गुससे मे एक बडी और काली दीवार की तरह खडी हो गई। असरला बेग ने भीड को िततर-
िबतर करने की कोिशश की। लोग वहा से दस ू री जगह हटकर अंधेरे मे िछप गए। लेिकन थोडी
देर बाद िफर उस जगह आ खडे हुए। महल मे खुशी के नगाडे बज रहे थे। अमीर दुशमन पर
फतह का जश मना रहा था। लेिकन महल के बाहर शहर मे सनाटा छाया हुआ था। शहर ने
अंधेरे और उदास खामोशी का कफन ओढ रखा था।

अमीर ने उस िदन बडी उदारता से इनाम बाटे। बखशीशे दी। कसीदे गाते-गाते शायरो के गले
थक गए। बार-बार झुककर सोने -चादी के िसके बटोरने वालो की पीठ मे हलका ददर होने लगा।
‘मुहिररर को बुलाया जाए।’ अमीर ने हकु म िदया। मुहिररर दौडता हआ
ु आ गया और तेजी से कलम
घसीटने लगा।

‘बुखारा के सुलतान, अजीमुशशान अमीर की तरफ से खीवा के अजीमुशशान खान को सलाम के


गुलाब और दोसती की िलिल कबूल हो। अपने पयारे शाही भाई को हम एक ऐसी इितला दे रहे है,
िजसकी खुशी के जोश से उनका िदल धडक उठेगा। िदल को सुकून िमलेगा।

वह खु़़
़श
य खबरी ह है िक इस महीने की सतहवी तारीख को बुखारा के अमीरे -आजम
माबदौलत ने सारी दुिनया मे कुफ और नापाक कारनामो के िलए बदनाम नसरदीन को, अललाह की
उस पर मार, सरेआम मौत की सजा दे दी। हमने अपने सामने एक बोरे मे बंद करके और डुबोकर
उसे मौत की सजा दी।

इसिलए अपने शाही बयान की हम तसदीक करते है िक अमन मे खलल डालनेवाला, बगावत
करनेवाला वह कािफर अब िजंदा लोगो मे शािमल नही है। अपनी नापाक हरकतो से हमारे पयारे
भाई को अब कभी भी परेशान नही कर पाएगा।’

मै हूं तुमहारा मुलला

इसी पकार के पत बगदाद के खलीफा, तुकी के सुलतान, ईरान के शाह, अफगािनसतान के अमीर
और दरू -पास के सभी देशो के शासको के नाम िलखवाए गए। वजीर बिख्तयार ने पतो का
िलफाफा बनाया, शाही मुहर लगाई और हरकारो को फौरन रवाना कर िदया। उसी रात हरकारे
इसतामबूल, बगदाद, काबुल और दस ू रे शहरो को दौड पडे।

उनके घोडो की टापो से पतथर िततर-िबतर हो रहे थे। नालो की रगड खाकर पतथरो से िचंगािरया
िनकल रही थी। आधी रात के सनाटे मे तालाब मे थैला फेके जाने के चार घंटे बाद असरला बेग ने
तालाब पर से पहरा उठा िलया। ‘खुद शैतान ही कयो न हो चार घंटे पानी मे रहने के बाद िजंदा
नही बच सकता।’ असरला बेग ने कहा, ‘उसे िनकालने की जररत नही। जो चाहे उसकी
बदबूदार लाश िनकाल सकता है।’

रात के अंधेरे मे जैसे ही आिखरी पहरेदार गायब हुआ शोर मचाती भीड िकनारे पर पहंुच गई।
झािडयो मे िछपी मशाले िनकालकर जला ली गई। नसरदीन की िकसमत पर मिसरया पढती आंखे
मातम करने लगी। ‘हमे चािहए िक एक दीनदार मुसलमान की तरह उसे दफनाएं।’ नयाज ने
कहा, ‘उसके कंधे का सहारा िलए सकते की हालत मे खडी गुलजान खामोश थी। हाथो मे
कंिटया लेकर कहवाखाने का मािलक अली और यूसुफ लुहार पानी मे कूद पडे।

काफी देर तक तलाश करने के बाद उनहोने बोरे को पकड िलया और कंिटया मे फंसाकर िकनारे
पर घसीट लाए। काई और खरपतवार मे िलपटा बंद बोरा सतह पर आया तो औरते जोर-जोर से
रोने लगी। महल से उठती जश की आवाजे उसमे डू ब गई।’ दजरनो हाथ एक साथ बढे और बोरे
का उठा िलया।

एक बडे पेड के नीचे बोरा रख िदया गया। लोग उसे घेरकर खडे हो गए। यूसुफ ने चाकू से बडी
सावधानी से बोरे की लंबाई मे काट िदया। िफर जैसे ही लाश के चेहरे पर नजर डाली, चौककर
पीछे हट गया। उसकी आंखे बाहर िनकली पड रही थी। मुंह से बोल नही फूट रहा था। यूसुफ
की सहायता के िलए अली दौडकर उसके पास पहंुच गया। लेिकन उसकी भी यही हालत हुई।

‘कया हुआ? कया माजरा है?’ भीड मे से आवाजे उठने ली, ‘हमे भी देखने दो भाई। हटो-हटो। हम
भी देखे।’ रोती हुई गुलजान घुटने पकडकर लाश के पास जा बैठी। लेिकन जैसे ही िकसी ने
लाश की ओर मशाल बढाई डरकर अचंभे से पीछे हट गई। बहुत सी आवाजे एक साथ उभरी।
‘यह तो सूदखोर जाफर है।’ ‘यह नसरदीन नही है।’‘यह सूदखोर जाफर है। कसम से। यह
देखो, यह रहा उसका बटुआ।’ ‘लेिकन नसरदीन कहा है?’ शोर मच गया।
‘नसरदीन कहा है?’ ‘यहा है नसरदीन।’ एक जानी-पहचानी आवाज आई। सबने घूमकर देखा।
सामने जीता-जागता मुलला नसरदीन चला आ रहा है। बडे आराम से जमहाई लेते हुए। ‘लो यह
रहा नसरदीन।’ वह बोला, ‘जो कोई मुझसे िमलना चाहता हो यहा आ जाए। ऐ बुखारा के शरीफ
बािशंदो, तुम सब तालाब पर कयो इकटे हुए हो और यहा कया कर रहे हो?’

‘कया कर रहे है?’ तुम पूछते हो। हम यहा कया कर रहे है? सैकडो आवाजो ने जवाब िदया, ‘ऐ
नसरदीन, हम लोग तो तुमहे अलिवदा कहने आए थे। तुमहारा मातम करने, तुमहे दफनाने।’

‘मुझे दफनाने ? बुखारा के नेक बािशंदो, कया तुम इतना भी नही जानते िक नसरदीन का मरने का
वक्त अभी नही आया है। न अभी उसका मरने का इरादा है। किबसतान मे मै आराम करने के
िलए लेट गया था। तुम लोग समझ बैठे िक मै मर गया हूं।’

कजर के दसतावेज

कहवाखाने का मािलक अली और यूसुफ लुहार खुशी से िचललाते हुए उससे िलपट गए। सभी ने
नसरदीन भीचकर अधमरा कर िदया। लडखडाता हुआ आगे बढा। लेिकन भीड का धका खाकर
एक ओर जा िगरा। नसरदीन एक-एक से गले िमलता जा रहा था और ठीक उस ओर बढ रहा था
िजस ओर गुलजान की बेताब और नाराजगी भरी आवाज सुनाई दे रही थी।

िफर जब दोनो आमने -सामने हुए तो गुलजान ने उसके गले मे बाहे डाल दी। नसरदीन ने उसका
नकाब उलट िदया और इतने लोगो के सामने उसे चूम िलया। वहा मौजूद लोगो मे से िकसी को
भी, यहा तक िक तहजीब और कायदो के िहमायितयो को भी इसमे कोई बेवजह बात िदखाई नही
दी, िजस पर वे ऐतराज करते।

‘तुम लोग मेरा मातम करने के िलए यहा जमा हुए थे। बुखारा के शरीफ बािशंदो, तुम नही जानते
िक मै मर नही सकता।’ ‘मुलला नसरदीन यह बताओ, तुमने अपनी जगह सूदखोर जाफर को कैसे
डुबा िदया? िकसी ने िचललाकर पूछा।’ ‘यूसुफ भाई, तुमहे मेरी कसम याद है ना?’ अचानक
नसरदीन को याद आ गया। ‘जरर याद है। और तुमने अपनी कसम पूरी कर दी।’

यूसुफ ने कहा। ‘वह है कहा? कया तुमने उसका बटुआ ले िलया?’ ‘नही। हमने बटुए को छुआ
तक नही है।’ ‘अरे-रे-रे।’ नसरदीन ने कहा, ‘बुखारा के शरीफ बािशंदो, शराफत और नेक
खयाल तो तुमहे खुले हाथो िमले है लेिकन मामूली अकल कम िमली है।

कया तुम नही जानते िक अगर यह बटुआ सूदखोर के वािरसो को िमल गया तो वे पाई-पाई कजर
वसूल कर लेगे। उसका बटुआ लाकर मुझे दो।’ कुछ लोगो ने बटुआ लाकर नसरदीन को दे
िदया।

बटुए मे रसीदे भरी थी। नसरदीन ने एक मशाल ली और कहा, ‘मै तुम से रखसत चाहता हूं।
लंबे सफर पर रवाना होने का वक्त आ गया। गुलजान, कया तुम मेरे साथ चलोगी?’ ‘तुम जहा
जाओगे मै तुमहारे साथ चलूंगी।’ गुलजान ने कहा।
बेहतरीन तोहफे

बुखारा की सरायो के मािलको ने गुलजान के िलए रई जैसा सफेद गधा िदया। उसकी खाल पर
एक भी काला धबबा नही था। यह नसरदीन की आवारगी के वफादार साथी से ईषया नही थी। वह
चुपचाप खडा बडे मजे से रसीली घास खा रहा था। कभी-कभी थूथनी से सफेद गधे को दरू भी
हटा देता था। मानो उसे यह बताना चाहता हो अपनी खूबसूरती के बावजूद सफेद गधा अभी
वफादारी मे उसके सामने कुछ भी नही है।

लुहार अपने औजार ले आए और दोनो गधो के नए नाल लगा िदए। गधो पर दो बिढया जीने कस
दी। सुनहरी मुलला नसरदीन के िलए और दस ू री चादी जडी गुलजान के िलए। कहवाखाने के
मािलक ने बहुत बिढया चीनी के पयाले और बेशकीमती कहवादािनया दी। िछपलीगरो ने इसपात की
एक तलवार भेट की, िजससे वह डाकुओं से अपनी सुरका कर सके। कालीन बनानेवालो ने जीन
पर िबछाने के िलए कालीन िदए।

रससे बनानेवाले घोडे के बालो का ऐसा रससा तैयार करके लाए, िजससे मुसािफर सोते समय अपने
चारो और घेरा बना देते थे। इससे जहरीले साप आिद रससे के कटीले बालो के ऊपर से आने की
िहममत नही कर पाते थे और इस तरह मुसािफर को कोई हािन नही पहंुचा पाते थे। जुलाहे, दजी,
मोची सभी अपनी-अपनी कारीगरो के तोहफे लाए। मौलिवयो, अफसरो और रईसो को छोडकर
बुखारा के सभी बािशंदो ने नसरदीन की याता के िलए सामान इकटा िकया। बेचारे कुमहार मन
मारे अलग खडे थे।

नसरदीन को देने के िलए उनके पास कुछ भी नही था। भला कोई आदमी िमटी के बतरनो का कया
करता जबिक उसके पास ताबे के बतरन थे। अचानक सबसे बुजुगर कुमहार ने ऊंची आवाज मे
कहा, ‘कौन कहता है िक हम कुमहारो ने नसरदीन को कुछ नही िदया? कया इसकी हसीन दुलन
गुलजान कुमहारो के शरीफ और मशहूर खानदान की बेटी नही है?’ कुमहार खुशी से िचलला उठे,
‘वाह-वाह, खूब कहा!’

सभी ने गुलजान को िहदायत दी िक वह नसरदीन की वफादार और सचची हमराही बने तािक


उसके खानदान के नाम और शोहरत को बटा न लगे। ‘सुबह होनेवाली है,’ नसरदीन ने कहा,
‘थोडी देर मे ही शहर के फाटक खुल जाएंगे। मेरा और मेरी दुलन को चुपचाप िनकल जाना
जररी है।

अगर तुम लोग मुझे रखसत करने चले तो पहरेदार समझेगे िक बुखारा की पूरी आबादी कही
दस
ू री जगह बसने के इरादे से शहर छोडकर जा रही है। तब वे फाटक बंद कर देगे। और कोई
भी बाहर न जा पाएगा। इसिलए तुम लोग अपने -अपने घर जाओ।

अललाह करे तुमहे चैन की नीद आए। बदिकसमती का काला साया तुमहारे िसर पर कभी न पड।
तुमहे कामयाबी िमले। अब नसरदीन तुमसे रखसत होता है। कब तक के िलए, यह बात खुद नही
जानता।’
अलिवदा बुखारा !

एक बारीक, हलकी-सी िकरण पूरब मे फूटी। तालाब पर हलका-सा कोहरा उठा। भीड छंटने
लगी। मशाले बुझाई गई। ‘अललाह करे तुमहारा सफर खैिरयत और हंसी-खुशी के साथ पूरा हो।’
लोगो ने दुआ देते हुए कहा, ‘अपने वतन को मत भूल जाना नसरदीन।’ यूसुफ लुहार और
कहवाखाने के मािलक अली से रखसती िदल िहला देने वाली थी। मोटा अली आंसुओं पर काबू
नही कर पा रहा था।

फाटक खुलने तक नसरदीन नयाज के मकान मे रहा। जैसे ही शहर के मुअिजजम की गमजदा
आवाज शहर के ऊपर गूंजी नसरदीन और गुलजान अपनी मंिजल पर चल िदए। बूढा नयाज
उनके साथ सबसे पास के कोने तक गया।

नसरदीन उसे और आगे नही जाने देना चाहता था। वह बेचारा वही खडा आंसुओं के परदे के पीछे
से उनहे तब तक देखता रहा, जब तक मोड पर पहंुचकर वे दोनो गायब न हो गए। सुबह की
हलकी-सी हवा उठी और बडी सफाई से सडक साफ करती हुई सारे सुराग िमटाती चली गई।

नयाज दौडकर वापस घर पहंच ु ा। वह छत पर जा चढा। वहा से शहर के परकोटे के पार दरू तक
देखा जा सकता था। वह बहुत देर तक खडा-खडा देखता रहा। िफर उसे दरू बहुत दरू दो छोटे-
छोटे साए से िदखाई िदए। एक भूरा और एक सफेद। वे धीरे-धीरे छोटे होते चले गए।

पहला पहर बीत रहा था। अचानक अपने पीछे कोई आवाज सुनकर नयाज ने चौकते हुए पीछे
मुडकर देखा। तीनो पडोसी भाई एक-एक कर सीिढया चढ रहे थे। वे तीनो कुमहार खूबसूरत और
तंदुरसत थे। नयाज के पास पहंुचकर तीनो भाई अदब से झुक गए। बडा भाई बोला, ‘नयाज
साहब, आपकी बेटी नसरदीन के साथ चली गई। लेिकन आपको इस बात से दुखी नही होना
चािहए।

भला कोई हसीन लडकी एक सचचे और वफादार शौहर के िबना कैसे रह सकती है। हम तीनो
भाइयो ने तय िकया है िक जो नसरदीन का िरशतेदार है, हमारा िरशतेदार है। बुखारा मे रहनेवालो
का िरशतेदार है।

आप जानते है िक आपके दोसत और अपने पयारे वािलद मुहममद अली साहब को हमने िपछले बरस
रोते-कलपते दफनाया था। तभी से हमारे घर मे खानदान के बुजुगर की जगह खाली है। इसिलए
नयाज साहब, हम आपसे इिलतजा करने आए है िक आप हमारे घर चिलए। हम लोगो के वािलद
और हमारे बचचो के दादा बन जाइए।’

उन तीनो भाईयो की िजद के आगे नयाज इनकार नही कर पाया। बुढापे मे उसे ईमानदारी और नेक
िजंदगी का सबसे बडा ईनाम िमला, जो बहुत बडी िनयामत है। वह उनके खानदान का दादा बन
गया। उसे पूरा सममान िदया गया।
इसतमबूल का सफर

नसरदीन वहा जा पहंचु ा, जहा उसके पहंच


ु ने की कतई उममीद नही थी। वह इसतमबूल मे जा
पहंच
ु ा। अमीर का खत सुलतान को िमलने के ठीक तीसरे िदन हजारो िढंढोचरी इस शानदार
बंदरगाह के गावो और शहरो मे जाकर नसरदीन की मौत का ऐलान कर रहे थे। मिसजदो मे
मौलवी खत पढते और सुबह-शाम अललाह का शुिकया अदा करते।
महल के बाग मे, फववारो की ठंडी फुहारो से भीगे िचनार के बाग मे सुलतान जश मना रहे थे।
उनके चारो और वजीरो, आिलमो, शायरो और अनय मुसािहबो की भीड थी, जो बख्शीश और इनाम
की उममीद मे खडे थे। सुरािहया, हुके और गमर पकवानो से भरी तशतिरया िलए हबशी भीड मे घूम
रहे थे। सुलतान आज बहुत खुश थे और महल मे थे।

आंखो को दबाते हुए उनहोने शायरो और आिलमो से पूछा, ‘कया बात है गमी के बावजूद हवा मे
खु़़
़श
औबूदार र खुशगवार नमी है ?’ इसके जवाब मे सुलतान के हाथ मे चमडे के बटुए को
लालच भरी नजरो से ताकते हुए शायरो और आिलमो ने कहा, ‘हमारे अजीमुशशान शहंशाह की
सासे हवा मे खुशगवार नमी पैदा करती है। और उसमे खुशबू इसिलए है िक कािफर नसरदीन की
नापाक रह ने सारी दुिनया मे जहर फैलाने वाली अपनी गंदी बदबू फैलाना बंद कर िदया है।’

इसतमबूल मे अमन कायम रखने वाला महल के पहरेदारो का सरदार दरू खडा देख रहा था िक
सारे काम कायदे और कानून से हो रहे है या नही। बुखारा के असरला बेग और उसमे फकर िसफर
यह था िक वह असरला बेग के मुकािबले जयादा दुबला-पतला था। लेिकन बेरहमी मे उससे बढकर
था।

उसकी लंबी-दुबली गदरन पर उसका साफेवाला िसर इस तरह टंगा था जैसे बास पर जड िदया
गया हो। सब कुछ ठीक-ठाक चल रहा था। दावत बदसतूर जारी थी। िकसी भी खतरे का
अनदेशा नही था। महल के गुमाशते को दरबािरयो की भीड से बडी होिशयारी से सरदार की ओर
बढकर उसके कान मे कुछ कहते हुए िकसी ने भी नही देखा।

सरदार चौक पडा। उसके चेहरे का रंग बदल गया। िफर वह तेजी से बाहर िनकल गया। लेिकन
कुछ िमनट बाद ही वह िफर लौट आया। उसका रंग पीला पड गया था, मुंह से आवाज नही िनकल
पा रही थी।
मुसीबत

ु ा और कोिनरश मे झुक गया। ‘ऐ


कोहनी से दरबािरयो को हटाते हुए वह सुलतान के पास पहंच
शहंशाहे आजम!’ ‘कयो? अब कया मुसीबत है?’ सुलतान ने िचढकर कहा, ‘कया आज के िदन भी तुम
हवालात और कोडो की खबर अपने तक नही रख सकते? बोलो कया बात है?’

‘ऐ अजीमुशशान सुलतान, मेरी जुबान बोलने से इंकार करती है।’ सुलतान ने परेशान होकर भौहे
तानी। सरदार ने फुस-फुसाकर कहा-‘ऐ आका, वह इसतमबूल मे है।’ ‘कौन...?’ सुलतान ने कडक
कर पूछा। हालािक वह समझ गए थे िक सरदार िकस आदमी की चचा कर रहा है। ‘नसरदीन’
यह नाम सरदार ने बहुत ही धीमी आवाज मे िलया था, लेिकन दरबािरयो के कान बहुत तेज थे,
उनहोने सुन िलया। महल के पूरे मैदान मे कानाफूसी फैल गई।

‘नसरदीन इसतमबूल मे है।’ ‘तुमहे कैसे मालूम हुआ?’ अचानक सुलतान ने खोखली आवाज मे
पूछा, ‘तुमसे िकसने कहा? यह तो हो नही सकता। जबिक बुखारा के अमीर का यह खत हमारे
हाथ मे है, िजसमे उनहोने शाही यकीन िदलाया है िक नसरदीन अब िजंदा नही है।’

सरदार ने महल के गुमाशते को इशारा िकया। वह एक आदमी को लेकर सुलतान के पास आ


गया। उस आदमी की नाक चपटी थी, चेहरा चेचक के दागो से भरा था। आंखे पीली और काईया
थी। सरदार ने कहा, ‘यह आदमी बुखारा के अमीर के दरबार मे बहुत िदनो तक जासूस रहा है।

नसरदीन को अचछी तरह पहचानता है। जब यह इसतमबूल मे आया था तो मैने इसे जासूस का
काम सौप िदया था।’ ‘तूने उसे अपनी आंखो से देखा है?’ जासूस ने हामी भर दी। ‘शायद तूने
गलती की है।’ जासूस ने यकीन िदलाया, ‘नही, इस मामले मे वह गलती कर ही नही सकता।

नसरदीन के साथ एक और भी थी, जो सफेद गधे पर सवार थी।’ ‘तूने उसे वही कयो नही
पकडा?’ सुलतान िचलला उठे, ‘तूने उसे पकडकर िसपािहयो को कयो नही सौप िदया?’ जासूस ने
घुटनो के बल िगरकर कहा, ‘ऐ संजीदा सुलतान, मै एक बार बुखारा मे नसरदीन के हाथ पड गया
था। अललाह की मेहरबानी से ही मेरी जान बची थी।

आज सुबह मैने जब उसे इसतमबूल की सडको पर देखा तो डर के मारे मेरी नजर धुंधली पड गई।
िफर जब तक मेरे होश-हवास संभले वह गायब हो चुका था।’ िसपािहयो के सरदार को घूरते हुए
सुलतान ने कहा, ‘तो ये है तेरे जासूस?’ मुजिरम को देखते ही इनके होश उड जाते है।

ठोकर मारकर सुलतान ने जासूस को एक और हटा िदया और उठकर आरामगाह की ओर चल


िदए। पीछे-पीछे गुलामो की कतार चल पडी। वजीर, शायर और आिलम बेचैन भीड मे से बाहर
िनकलने के रासते की ओर भाग छू टे। कुछ देर बाद सरदार को छोडकर बाग मे एक भी आदमी
नही रहा। मजबूरी मे खाली जगह को घूरते हुए सरदार फववारे के िकनारे बैठ गया। बहुत देर तक
वहा बैठा रहा।

पानी के हंसने और धीरे-धीरे उछलने की आवाज सुनता रहा। अचानक वह इतना सूखा और
िसकुड गया िक अगर इसतमबूल के िनवासी उसे देख पाते तो भगदड मच जाती। वे अपनी जूते
छोडकर िजधर मुंह उठता, भाग िनकलते।
िदलचसप वाकयो का िसलिसला

इस बीच चेचक के दागो से भरे चेहरेवाला जासूस शहर की गिलयो से भागता हुआ तेजी से समुद
की ओर जा रहा था। उसकी सास फूल रही थी। उसने बंदरगाह पर खडे एक जहाज को देखा,
जो रवाना होने वाला था। जहाज के मािलक को जरा भी शक नही था िक यह आदमी कोई फरार
मुजिरम है। उसे जहाज मे ले जाने के िलए उसने बहुत ही जयादा िकराया मागा।

मोलभाव करने के िलए जासूस नही रका। जलदी से जहाज पर चढ गया और एक गंदे कोने मे
िछपकर धमम से िगर पडा। बाद मे जब इसतमबूल की पतली मीनारे नीले कोहरे मे िछप गई और
ताजा हवा से उसके फेफडे भर गए, वह अंधेरे कोने से िनकला और जहाज मे घूम-घूमकर एक-
एक चेहरे को बडे धयान से घूरने लगा। जब उसे यकीन हो गया िक नसरदीन जहाज पर नही है
तो उसने चैन की सास ली।

उसी िदन से वह जासूस भय और आशंका का जीवन िबताता रहा। िजस शहर मे भी वह जाता-
बुखारा, कािहरा, दिमशक, तेहरान, कही भी तीन महीने से अिधक चैन से न ठहर पाता।

कयोिक नसरदीन हर जगह पहंुच जाता और जासूस उससे मुलाकात हो जाने के डर से वही से
भाग िनकलता। नसरदीन उस आंधी के समान था, जो सूखी पितयो और घास-फूस को उडा ले
जाती है। दस
ू रे िदन से ही इसतमबूल मे अनोखी िदलचसप घटनाएं होने लगी थी।

समापत...।

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