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Indusanchetana 04sep2016 PDF
Indusanchetana 04sep2016 PDF
संचेतना
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ु ंचेतना
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अंक में|||
सम्पादकीय
डॉ० गंगा प्रिाद शर्ाष/ 5
श्रद्ांजसि
हिंदी साहित्य के ‘बागी साहित्यकाि’ ‘मुद्रा िाक्षस’ को -िेखक दयानंद पांडय
े के ब्िॉग
'सिोकािनामा' से/10
आिेख
नवगीत की अवधारणा-डॉ० राजेश श्रीवास्तव, भोपाल/19, हहन्गदी िाहहत्य और स्री
िशक्तीकरण – प्रोफेिर पावन अग्रवाल /185, कंप्यूटर पर हहन्गदी- श्यार् बाबू शर्ाष/29,
इन्स्कन्गस्िप्ट कंु जीपटल है दे वनागरी के प्रवाह की कंु जी-डॉ०. एर्.एल. गुप्ता 'आहदत्य'/32,
चीन र्ें बैंड बाजा..... बारात-आशीर् गोरे /35 चल्
ु ल र्ुक्त दे श- दीपक शर्ाष ‘िार्षक’/119,
कविता
रे त के बने पुल तो बह ही जाने र्े- डॉ० राजेंद्र गौतर् /125, गीता पंडडत की कववताएँ-
गीता पंडडत/126, िुशील की आठ कववताएँ-िुसशल कुर्ार शैली/128, शेखर िावंत की
कववताएँ- शेखर िावंत/132, शुभकार्नाएं- डॉ० र्ोननका शर्ाष/133, पंकज की कववतायें-
पंकज कुर्ार िाह - पंकज कुर्ार िाह/134, नरे श खजुररया की कववताएँ /135, िुशांत िुवप्रय
की कववताएँ- िुशांत िुवप्रय/136, डॉ० िुधेश की कववताएँ - डॉ० िुधेश/139, र्ीता की
कववतायें--र्ीता दाि/143, चंद्रशेखर कुर्ार की कववतायें /144, ररतु दब
ू े की कववतायें/146,
अजन्गर्ी बच्ची - पररतोर् कुर्ार 'पीयूर्'/150
गजि
.जहीर कुरे शी की गजलें /148
किानी
िििों की बांसुिी-िूरज प्रकाश/38, कल्पवाि- राजेंद्र वर्ाष /75, िुवणाष बुआ- र्ाला वर्ाष/83,
कीलें – एि आर हरनोट/89, ्लोबल गाँव के अकेले-रर्ेश उपाध्याय/102, कल्पवाि- राजेंद्र
वर्ाष/141
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शो्
“डॉ०.रार्ववलाि शर्ाष की दृन्स्कटट र्ें रवीन्गद्रनार् का जातीय चचन्गतन”-बबजय कुर्ार
रबबदाि/161, बाल िाहहत्य िज
ृ न नई चन
ु ौनतयाँ- हदववक रर्ेश/166,
िीक से िटकि
िाहहत्यकार लक्ष्र्ण राव-राहुल दे व/107
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अपने दे श जाता हूँ तो ज़गह-ज़गह भार्ा के ज़ादग ू र तर्ाशा हदखाते हुए सर्ल जाते हैं। बड़े-
बड़े िंस्र्ानों और ववन्स्कश्वद्यालयों के भव्य र्ंचों िे लेकर तहिील/कचहरी/कलेक्टरी कहाँ-कहाँ
इनका ज़ाद ू नहीं पिरा है । जहाँ छोटे -र्ोटे ज़ादग
ू र लाल रं ग लगाकर गदष न काटने की शैली र्ें
दशषकों को ववश्वाि हदलाते हैं कक इनिे बड़ा हहंदी िेवक कोई नहीं है , वहीं बड़े-बड़े ज़ादग
ू र
हहंदी के िार्ने दिू री भार्ाओं के जहाज डुबाते हुए हदखाते हैं। दशषक गद्गद् होकर तासलयां
पीटते-पीटते हर्ेसलयां लाल कर लेते हैं । इनके सलए द्वार पर भी िेवक और पहरे दार लट्ठ
सलए खड़े सर्लते हैं । बाहर ननकलते िर्य हार् दे खे जाते हैं । ककिके हार् ककतने घायल हैं
इिके हहिाब उन्गहें भार्ा-भन्स्कक्त का प्रर्ाणपर सर्लता है । इिसलए जो ज़्यादा तासलयां नहीं
पीट पाते हैं उन्गहें इनिे बच-बचा के ननकलना पड़ता है । यहद ऐिा नहीं करें गे तो पकड़ र्ें
आने पर हार् नहीं कुछ और लाल कराके जाना पड़ िकता है । िभा या आयोजन स्र्ल िे
ननकलते हुए लगता है कक अब नहीं तब धर ही सलए जाएंगे।लगता है कक पकड़े गए तो
पक्का फोड़ दें गे कपार।
हर्ारी हहंदी िेवा की र्ौखखक परीक्षा भारत-चीन के आवागर्न के िर्य वायुयान र्ें ही
आरं भ हो जाती है । प्राय: िभी की प्रश्नावली क्या करते हैं िे शुरू होती है । पररचय र्ें हहंदी
सशक्षण की बात आते ही िबके पाि एक जैिे ही प्रश्नों की दे शी छरों और बारूद िे लोडेड
एकनाली बंदक
ू होती है । इन िभी की एकनाली बंदक
ू ों र्ें जो बारूद भरी रहती है , वह दे श
प्रेर् की होती है । िभी एक ही िवाल दागते हैं। चीन र्ें भी लोग हहंदी पढ़ते हैं क्या? इि
'क्या' पर वे इतना ज़ोर लगाते हैं कक कभी-कभी प्राण वायु और अपान वायु र्ें प्रनतयोचगता
-िी हो जाती है । उन्गहें ककि र्ीडडयर् िे पढ़ाते हो? इिके बाद वे क्यों पर आते हैं ? ये काफी
पढ़े -सलखे ककस्र् के लोग होते हैं।
ये लोग दि ू रों को हहंदी पढ़वाने का आनंद लेते हुए स्वयं
को आं्ल लोक र्ें प्रनतटठावपत कर चकु े होते हैं। इनके बच्चे अर्ेररका या ककिी यूरोपीय दे श
र्ें होते हैं। लेककन वे अंग्रेज़ी र्ाध्यर् िे ववज्ञान पढ़कर चचककत्िक या असभयंता बन कर
वहाँ गए हुए होते हैं। यही लोग हहंदी की ज़ादगू री करते हुए सर्लते हैं। औरों िे कहते हैं
हहंदी िे प्रेर् करो और अपने को उि ननयर् का अपवाद बनाए रखते हैं। र्ैं तो अपने दे श के
इन हहंदी िेवकों िे बहुत डरता हूँ। इनकी भन्स्कक्त बडी भावुक ककस्र् की होती है । उनिठ,
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उन्गहत्तर, उन्गयािी और नवािी र्ें अभेद भाव रखने वाले ये हहंदी भक्त जब भी परीक्षा पर
उतर आते हैं तो परीक्षार्ी की जान लेके ही छोड़ते हैं। र्िलन 'वहाँ हहंदी ककि र्ीडडयर् िे
सिखाते हैं? शुरू र्ें क्या सिखाते हैं? क्या क,ख, ग घ िे शुरू करते हैं?" जब हर् कहते हैं
कक 'नहीं' तो वे कफर िे नया िवाल दाग दे ते हैं, "कफर कहाँ िे शुरू करते हैं?" र्ैं कहता हूँ
'अ आ इ ई िे'। इिपर वे शसर्िंदा नहीं होते बन्स्कल्क डांटते हुए कहते हैं ,"बात एक ही है न
चाहे अ आ इ ई िे शुरू करो चाहे क ख ग घ िे ।" जब र्ैं कहता हूँ कक आप ही ने पूछा
र्ा कक कहाँ िे शुरू करते हैं, िो र्ैंने आपके प्रश्न के उत्तर र्ें यह बात कही है । इिर्ें क्या
है आगे िे हर् 'क ख ग घ' िे शुरू कर दें गे। र्ेरी बातों को वे बहुत हलके र्ें लेते हैं ।
इतने हल्के र्ें कक अगर वे नतनके के िार् हों तो फूंक र्ारने पर नतनके िे पहले उड़जाएं ।
इिी व्यन्गजना र्ें बातें करते हुए र्ंद-र्ंद र्ुस्काते जाते हैं। इि र्ुस्कान िे वे बताना चाहते
हैं कक ऐिा तुच्छ हहंदी ज्ञान लेकर वायुयान र्ें बैठे लोगों को र्ेरे द्वारा यह बताया जाना
कक, 'र्ैं दि
ू रे दे श र्ें हहंदी सिखाता हूँ, उनका ही नहीं वायय
ु ान का भी अपर्ान है ।' एक ही
नहीं कई तरह िे वे 'क ख ग घ 'पर ज़ोर दे कर र्ेरी औकात बताते हैं। र्ैं भी भीतर-भीतर
जान जाता हूँ कक इनका आशय क्या है पर बाहर िे अनसभज्ञ बना रहता हूँ और उनके धन
की गुरुता का भार र्हिूिता रहता हूँ।
दे श के भीतर खब
ू आंकड़े इकट्ठे ककए जाते हैं कक ककि दे श र्ें ककतने लोग हहंदी जानते
हैं। दनु नया की दि
ू री या तीिरी भार्ा िन
ु कर खश
ु ी िे लोग झूर्ने लगते हैं। लेककन कोई
इि िच्चाई को कबूलने के सलए तैयार ही नहीं रहता कक यह िंख्या उन गरीब और र्ध्यर्
वगष के कारण है न्स्कजन्गहें हहंदी या अंग्रेज़ी के राज-काज र्ें कोई फकष नहीं हदखता । आज भी
इनर्ें िे अचधकांश को तो अंगूठा लगाना होता है कफर उनका नार् अंग्रेज़ी र्ें हो या हहंदी र्ें
इि बात िे उन पर क्या फकष पड़ता है । इनकी चगनती पर अपनी जय बल
ु वाने वाले ज़ादग
ू र
नहीं तो और क्या हैं?
पबरका के वतषर्ान अंक के सलए िोचा कक कोई ववज्ञापन आ जाए तो बोझ कुछ कर् हो
जाएगा । इि हे तु यहाँ न्स्कस्र्त भारत की दो राटरीयकृत बैंकों र्ें िे एक को पर सलखा और
दि
ू री िे र्ौखखक अनरु ोध ककए। र्ैंने इि तरह भी बात की कक, 'आपकी आचर्षक िहायता
र्ेरी पबरका के सलए प्राणवायु का कार् करे गी। 'लेककन उन्गहोंने यह कहकर टाल हदया कक,
"ऊपर के अचधकाररयों ने र्ना कर हदया है । "ये ही वे लोग हैं जो हर्ें कफर िे 10 जनवरी
को 'ववश्व हहंदी हदवि' पर बुलाकर फूल र्ालाएं चढ़ाएंगे, चचर खींचेंगे और अपने र्ुख्यालय
(हदल्ली-र्ुंबई न्स्कस्र्त हे ड क्वाटष र) भेज दें गे। हहंदी िेवक होने के नाते इनके यहाँ पहले की
तरह कफर अपने ककराए िे जाऊंगा । ये लोग खूब लंबी-चौडी हाँकेंगे । र्ैं शांत भाव िे िुनूंगा
तो पर पहले की तरह अपने भार्ण र्ें हेड क्वाटष र भेजे जाने के सलए इनकी हहंदी िेवा की
झूठी तारीफें न ररकाडष करवा पाऊंगा। भले ही ये लोग िर्झें न िर्झें अगले िंबोधन र्ें र्ैं
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पक्का यही बोलने वाला हूँ कक 'हहंदी की िबिे बड़ी िेवा यही है कक शब्दों की आत्र्ा को
न्स्कजएं खद
ु उनकी ननर्षर् हत्या करके लाश न ढोएं। '
र्ुझे हहंदी के सलए अपने असभयान र्ें लगे दे खकर अनेक चीनी और कुछ भारतीयों ने
दे खा-िुना तो उनर्ें िे कुछ नेक जन आगे आए और अनेकश: तारीफें कीं । र्ैं गद्गद्
हुआ। कई अविरों पर फूलकर कुप्पा भी हुआ। लेककन हर बार यही अंदेशा रहता रहा है
कक यह िेवा कब तक कर पाऊंगा और कब तक झठ ू ी-िच्ची तारीफों की हवा िे कुप्पा होता
रहूंगा। कभी हवा िुरष िे ननकल गई तो 'कुप्पा' िे कुप्पी भी तो हो िकता हूँ और र्ेरा
र्ुखर स्वर र्ौन या चप्ु पी र्ें भी तो बदल िकता है । िही भी है बबना पैिों के पबरका तो
ननकलती नहीं। वे पैिे जो र्ैं इि व्यिन(?)पर लगाता हूँ उनपर सिफष र्ेरे िाहहन्स्कत्यक शौक
का ही नहीं र्ेरे बाल-बच्चों का भी अचधकार है ।
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र्ोडा-बहुत उतारा भी। अब र्ैं िोचता हूँ कक हहंदी का भला, भला ककन्गही नतलन्स्कस्र्यों
और ज़ादग ू रों के नतलस्र् या ज़ादग
ू री िे होगा या कफर इन िच्चे िेवकों के ऐिे उदार और
व्यावाहररक िहयोग िे।
हर्ारे पाठक यह न िर्झें कक र्ैं आलिी हूँ । इि सलए उन्गहें यह अवश्य बता दे ना चाहता
हूँ कक इिर्ें िंकसलत िार्ग्री बड़े जतन िे आई है । इिसलए पूरी पबरका पढ़ें । हर लेखक
या कवव पठनीय है। कोई छोटा या बडा नहीं है । ऐिे बडे को भी लेकर हर्-आप क्या करें गे
जो पढ़ने को ही न सर्ले। र्ैं बड़े-बड़े नार् जानता हूँ । चाहता हूँ कक उन बडों र्ें िे
अचधकांश इिर्ें छपें उिके सलए कोसशश भी करता हूँ। उनिे पराचार भी खब ू ककया है ।
एकाध पराचार आप भी दे खें-
वप्रय अग्रज जी! आपने र्ुझिे कुछ वादा ककया र्ा। और उिे ननयसर्त रखने का भी वायदा
ककया र्ा। शायद याद हो । 'इंद ु िंचत
े ना' पबरका के सलए कुछ भेन्स्कजए । व्यं्य/ कहानी,
िंस्र्रण या आलेख कुछ भी भेन्स्कजए । उत्कृटट न िही उन्स्कच्छटट ही भेन्स्कजए। बडों का उन्स्कच्छटट
भी ग्राह्य और पववर होता है । इि पबरका को ताररए जगन्गनार्! आपके लेखन िे जग तर
रहा है और र्ैं ही अभागा अछूत पडा रहूं । यह आप जैिे करुणा के िागर को शोभा नहीं
दे ता । कब तक ऐिे अतरे रखोगे? अब तो पार उतारो, तारो प्रभु! उपकृत करो
दीनानार्! र्ैं र्ानता हूँ कक आपको पबरका अपने स्तर की नहीं लगने का िंकोच होगा। िच
र्ें पबरका आपके स्तर की नहीं है। लेककन जब आप छपें गे तभी न पबरका आपके स्तर की
होगी।
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खैर! र्ैं भी
यह अच्छी तरह िे जानता हूँ कक र्ेरी यह आवाज़ 'नक्कारखाने र्ें तूती
की आवाज़' की तरह आिानी िे खो िकती है । इन ज़ादगू रों/नतलन्स्कस्र्यों के िार्ने र्झ
ु जैिे
छुटभैए हहंदी िेवकों की बबिात ही क्या है या इनके प्रभापूयष िूयष के प्रताप िे आशीवर्त
पबरकाओं के आगे 'इंद ु िंचत
े ना'जैिी पबरकाओं को कौन घाि डालेगा । अपने इन प्रभावशून्गय
शब्दों िे र्ैं उन ज़ादग
ू रों का बबगाड़ -उखाड़ भी क्या लूंगा ? लेककन यह भी उतना ही िच है
कक लाख नगाड़े बज रहे हों कफर भी उनके बीच ककिी सिरकफरे को कोई अपनी वपवपहरी
बजाने िे भी नहीं रोक िकता।
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श्रद्ांजसि
हिंदी साहित्य के ‘बागी साहित्यकाि’ ‘मद्र
ु ा िाक्षस’
िेखक दयानंद पांडय
े के ब्िॉग 'सिोकािनामा' से
अगर र्ुद्राराक्षि के सलए र्ुझ िे कोई एक वाक्य र्ें पूछे तो र्ैं कहूंगा कक हहंदी जगत
अगर चंबल है तो र्ुद्राराक्षि इि चंबल के बाग़ी हैं । जन्गर्जात बाग़ी । न्स्कज़ंदगी र्ें उलटी
तैराकी और िवषदा धारा के खिलाफ़ चलने वाला कोई व्यन्स्कक्त दे खना हो तो आप लखनऊ
आइए और र्ुद्राराक्षि िे सर्सलए। आप हं िते , र्ुिकुराते तर्ार् र्ुदों िे सर्लना भूल जाएंगे।
हहप्पोिेटों िे सर्लना भूल जाएंगे । र्ुद्राराक्षि की िारी न्स्कज़ंदगी इिी उलटी तैराकी र्ें नततर-
बबतर हो गई लेककन इि बात का र्लाल भी उन को कभी भी नहीं हुआ । उन को कभी
लगा नहीं कक यह िब कर के उन्गहों ने कोई ग़लती कर दी हो । वास्तव र्ें हहंदी जगत र्ें
वह इकलौते आहद ववद्रोही हैं। बहुत ही आत्र्ीय ककस्र् के आहद ववद्रोही। पल र्ें तोला, पल र्ें
र्ाशा ! वह अभी आप िे नाराज़ हो जाएंगे और तरु ं त ही आप पर कफ़दा भी हो जाएंगे । वह
कब क्या कर और कह बैठेंगे, वह िद
ु नहीं जानते। लेककन जानने वाले जानते हैं कक वह
िवषदा प्रनतपक्ष र्ें रहने वाले र्ानर्
ु हैं ।
वह जब बनतयाते हैं और अतीत र्ें जाते हैं तो लगता है कक कोलकाता र्ें ज्ञानोदय की
नौकरी का िर्य उन के जीवन का गोल्डन पीररयड र्ा। हालांकक वह ऐिा शब्द या कोई
भावना व्यक्त नहीं करते । लेककन जब एक बार र्ैं नवभारत टाइम्ि र्ें र्ा तब बातचीत र्ें
जो भाव उन के शब्दों र्ें आए, उन िे र्ैं ने यह ननटकर्ष ननकाला है । हो िकता है र्ेरा यह
आकलन िही भी हो, हो िकता है र्ेरा यह आकलन ग़लत भी हो । कुछ भी हो िकता है ।
पर कोलकाता के ज्ञानोदय और उि र्ें अपनी नौकरी का न्स्कज़ि वह तब के हदनों बड़े गुर्ान
िे करते सर्ले र्े । र्ुद्राराक्षि ने आकाशवाणी की गररर्ार्यी नौकरी भी की है । तब के
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हदनों वह असिस्टें ट डायरे क्टर हुआ करते र्े । पर यनू नयनबाज़ी र्ें वह चगररजा कुर्ार र्ार्रु
िे र्ोचाष खोल बैठे । झगड़ा जब ज़्यादा बढ़ गया तो वह नौकरी िे बेबात इस्तीफ़ा दे बैठे ।
नौकरी र्ें िर्झौता कर के जो रहे होते र्ुद्राराक्षि तो बहुत िंभव है वह डायरे क्टर जनरल
हो कर ररटायर हुए होते । नहीं डायरे क्टर जनरल तो डडप्टी डायरे क्टर जनरल हो कर तो
ररटायर हुए ही होते । जैिे कक उन के िार् के तर्ार् लोग हुए भी । अच्छी िािी पें शन पा
कर ऐशो आरार् की न्स्कज़ंदगी गुज़ार रहे होते । लेककन र्द्र
ु ा का चयन यह नहीं र्ा । िुभार्
चंद्र गुप्ता उफ़ष र्ुद्राराक्षि तो जैिे िंघर्ष का पट्टा सलखवा कर आए हैं इि दनु नया र्ें । घर
र्ें , बाह, िाहहत्य और न्स्कज़द
ं गी र्ें भी । र्ुद्रा तो जब हदनकर की उवषशी की जय जयकार के
हदन र्े तब के हदनों उन्गहों ने अपनी सलखी िर्ीक्षा र्ें उवषशी की बखखया उधेड़ दी र्ी ।
नाराज हो कर हदनकर ने उन िे कहा कक कुत्तों की तरह िर्ीक्षा सलखी है । तो र्ुद्रा ने पलट
कर हदनकर िे कहा कक कुत्तों के बारे र्ें कुत्तों की ही तरह सलखा जाता है । हदनकर चप
ु हो
गए र्े । ऐिा र्ुद्रा िद
ु ही बताते हैं ।
र्द्र
ु ाराक्षि शरु
ु आती हदनों र्ें लोहहयावादी र्े । लोहहया के सर्र भी वह रहे । इतना
कक रं गकर्ी सशराज जी िे र्द्र
ु ाराक्षि का वववाह भी लोहहया ने ही करवाया। लेककन यह
दे खखए बाद के हदनों र्ें लोहहया िे र्ुद्रा का र्ोहभंग हो गया । र्ुद्रा वार्पंर्ी हो गए ।
लोहहया को फासिस्ट सलखने और बताने लग गए र्ुद्राराक्षि । बात यहीं नहीं रुकी र्ुद्रा
जल्दी ही वार्पंचर्यों के कर्षकांड पर टूट पड़े । र्ाकपा एर् को वह भाजपा एर् कहने िे भी
नहीं चक
ू े । िब जानते हैं कक र्ुद्राराक्षि एक िर्य अर्त
ृ लाल नागर के सशटय र्े । न सिफ़ष
सशटय बन्स्कल्क उन का डडक्टे शन भी लेते र्े । नागर जी की आदत र्ी बोल कर सलखवाने
की । बहुत लोगों ने नागर जी का डडक्टे शन सलया है । र्ुद्रा भी उन र्ें िे एक हैं । र्ुद्रा
नागर जी के प्रशंिकों र्ें िे एक रहे हैं । लेककन कुछ िर्य पहले उत्तर प्रदे श हहंदी िंस्र्ान
के एक कायषिर् र्ें अर्त
ृ लाल नागर पर जब उन्गहें बोलने के सलए कहा गया तो र्ुद्राराक्षि ने
जैिे फ़तवा जारी करते हुए कहा कक अर्त ृ लाल नागर बहुत ही िराब उपन्गयािकार र्े ।
उपन्स्कस्र्त श्रोताओं, दशषकों र्ें उत्पात र्च गया । नागर जी के तर्ार् प्रशंिक र्ुद्राराक्षि पर
कुवपत हो गए । लेककन र्ुद्रा अड़ गए तो अड़ गए । नागर जी को वह िराब उपन्गयािकार
बताते ही रहे । इिी तरह एक िर्य र्ुद्राराक्षि भगवती चरण वर्ाष को जनिंघी बताते नहीं
र्कते र्े । लेककन िब कुछ और िारे जीवट के बावजूद र्ुद्राराक्षि इि िब र्ें बबखर गए ।
र्ुद्रा इि अकेले ककए जाने के दटु चि और अपर्ान की आह र्ें बबन कुछ बोले घुलते गए
हैं । नति पर उन की उलटी तैराकी और धारा के ववरुद्ध चलने , और एकला चलो की न्स्कज़द
उन्गहें ननरं तर पर्रीली राह पर ढकेलती रही है । जवानी र्ें तो िब कुछ िंभव बन जाता है ।
कैिे भी, कुछ भी हो जाता है । लेककन उम्र के िार् बदलते िर्य िे र्ुद्राराक्षि ने आज भी
िर्झौता नहीं ककया है । एकला चलो की उन की न्स्कज़द और जीवन शैली उन्गहें शायद आज
भी कहीं िहे जती है , ताकत दे ती है उन्गहें । पर बबखरने िे बचा नहीं पाती । नति पर उन पर
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लेककन र्ुद्राराक्षि तो ऐिे ही हैं । वह अर्ूर्न ककिी के शादी-व्याह र्ें या पारं पररक
कायषिर् र्ें भी कहीं नहीं दे खे जाते । वह बुलाने पर भी नहीं जाते । एक िर्य एक फीचर
एजेंिी राटरीय फ़ीचिष नेटवकष र्ें र्ैं िंपादक र्ा । इि का कायाषलय तब ववधानिभा र्ागष पर
आकाशवाणी िे िटा हुआ र्ा । एक बार वहां र्ुद्राराक्षि अचानक आ गए । र्ैं बहुत िश
ु
हुआ । उन िे सलखने का आग्रह ककया । वह तरु ं त र्ान गए । यह वर्ष 1994 -1995 का
िर्य र्ा । वह पहले हफ्ते र्ें एक लेख सलखते र्े । बाद र्ें दो लेख सलखने लगे । ववववध
ववर्यों पर । बि उन की शतष होती र्ी कक हर हफ़्ते भग
ु तान सर्ल जाना चाहहए । लेख चाहे
जब छपे । तो वह हफ़्ते र्ें तीन बार आते । दो बार लेख दे ने, एक बार भग
ु तान लेने । र्झ
ु
पर प्यार भी बहुत लटु ाते । इिी प्यार के वशीभत ू एक बार पाररवाररक कायषिर् र्ें बल
ु ाते
हुए ननर्ंरण पर हदया उन्गहें । उन्गहों ने आने िे िाफ इंकार कर हदया । कहने लगे ऐिे ककिी
कायषिर् र्ें नहीं आता-जाता । र्ैं चप ु रह गया र्ा तब । बहुत बार ककिी के ननधन आहद
पर अंत्येन्स्कटट र्ें भी वह अनप
ु न्स्कस्र्त होते हैं। हां , लेककन तीन बार अभी तक र्ैं ने उन्गहें लोगों
के ननधन पर ज़रूर दे खा है । एक अर्त ृ लाल नागर के ननधन पर वह बहुत ग़र्गीन सर्ले
भैिाकंु ड पर । दि
ू री बार राजेश शर्ाष की आत्र्हत्या के बाद उन के घर पर उन के पररवार
को िांत्वना दे ते हुए । और तीिरी बार श्रीलाल शुक्ल के ननधन पर कफर भैिाकंु ड पर । बहुत
ववचसलत र्ुद्रा र्ें । र्द्र
ु ाराक्षि को न्स्कजतना परे शान और ववचसलत श्रीलाल शुक्ल के ननधन
पर दे खा, उतना परे शान और ववचसलत र्ैं ने उन्गहें कभी नहीं दे खा । लगता र्ा कक जैिे उन
िे, उन का क्या नछन गया है । ऐिे जैिे वह ककिी गहरी यातना र्ें हों । उन के चेहरे पर
छटपटाहट की वह अनचगन रे खाएं र्ेरी आंखों र्ें जैिे आज भी जागती सर्लती हैं । तो इि
का कारण भी है । श्रीलाल शुक्ल और र्ुद्राराक्षि दोनों का ववववध ववर्यों पर अध्ययन
लाजवाब र्ा । ववद्वता की प्रनतर्ूनतष हैं दोनों । हहंदी , अंगरे जी , िंस्कृत और िंगीत पर दोनों
की ही अद्भुत पकड़ र्ी, है ही । फ़कष बि यह रहा कक र्ुद्राराक्षि ने कई बार अपने अनतशय
अध्ययन का अनतशय दरू
ु पयोग ककया है । ध्वंि की हद तक दरु
ु पयोग ककया है । और उिे
एकला चलो की न्स्कज़द पर कुबाषन कर हदया है । बारं बार । श्रीलाल जी ने अपने अध्ययन का
िुिंगत उपयोग ककया है । कहूं कक र्ैनेज ककया है । और इिी ' र्ैनेज ' के दर् पर अनचगन
बार र्ुद्राराक्षि को वह प्रकारांतर िे उकिाते रहे हैं और र्ुद्राराक्षि अनतयों की भें ट चढ़ते गए
हैं । ननरं तर ।
र्ुद्राराक्षि िे जब र्ैं पहली बार सर्ला तब बीि िाल का र्ा । यह 1978 की बात है ।
गोरखपुर र्ें र्ैं ववद्यार्ी र्ा । िंगीत नाटक अकादर्ी की नाट्य प्रनतयोचगता र्ें र्ुद्राराक्षि
बतौर ज्यूरी र्ें बर गोरखपुर गए र्े । लखनऊ िे ववश्वनार् सर्श्र और हदल्ली िे दे वेंद्र राज
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र्द्र
ु ाराक्षि ने राजनीनतक जीवन भी न्स्कजया है । दो बार चन
ु ाव भी लड़ा है इिी लखनऊ र्ें
और अपनी ज़र्ानत भी ज़ब्त करवाई है । लेककन राजनीनत र्ें भी कभी उन्गहों ने िर्झौता
नहीं ककया है । कभी ककिी के वपछल्गू नहीं बने हैं । ककिी की पररिर्ा नहीं की है ।
गरज यह कक िाहहत्य और न्स्कज़ंदगी की तरह वह राजनीनत र्ें भी िवषदा अनकफट ही रहे हैं ।
नरसिंहा राव तब के हदनों प्रधानर्ंरी र्े । र्नर्ोहन सिंह ववत्त र्ंरी र्े । डंकल प्रस्ताव की
दस्तक र्ी । पूवष प्रधानर्ंरी ववश्वनार् प्रताप सिंह लखनऊ के एक िेसर्नार र्ें आए र्े ।
िहकाररता भवन र्ें आयोन्स्कजत डंकल प्रस्ताव के खखलाफ यह िेसर्नार र्ा । तर्ार् रे ड
यूननयन के लोग उि र्ें उपन्स्कस्र्त र्े । ववश्वनार् प्रताप सिंह तब जनता दल के राटरीय
अध्यक्ष र्े । र्ुद्राराक्षि तब के हदनों लखनऊ शहर जनता दल के अध्यक्ष र्े । कायषिर् शुरू
होने की औपचाररकता हो चक
ु ी र्ी । ववश्वनार् प्रताप सिंह र्ंच पर उपन्स्कस्र्त र्े । अचानक
र्ुद्राराक्षि आए । िुरक्षा जांच के तहत र्ेटल डडटे क्टर िे गुज़रने को उन्गहें कहा गया । र्ुद्रा
बबदक गए । िुरक्षा कसर्षयों ने उन्गहें िर्झाया कक पूवष प्रधानर्ंरी की िुरक्षा िे जुड़ी यह
प्रकिया है । र्ुद्रा का बबदकना जारी रहा । कहा कक र्ैं उन की पाटटी का शहर अध्यक्ष हूं, र्ुझ
िे भी ितरा है उन्गहें ? और जब बबना जांच के उन्गहें घुिने िे र्ना कर हदया गया तो वह
पलट कर कायषिर् िे बाहर ननकल गए । ववश्वनार् प्रताप सिंह ने र्ंच पर बैठे ही बैठे िब
दे ख रहे र्े । उन्गहों ने कुछ कायषकताषओं िे कहा कक अरे , र्ुद्रा जी नाराज़ हो कर जा रहे हैं ।
उन्गहें र्ना कर ले आइए । उन्गहों ने पूवष ववधायक डी पी बोरा और उर्ाशंकर सर्श्रा को इंचगत
भी ककया । यह लोग लपक कर र्ुद्रा के पीछे लग गए । र्ुद्रा को र्नाने लगे । लेककन र्ुद्रा
तो यह गया, वह गया हो गए । ववधान भवन तक लोग र्ुद्रा को र्नाते हुए आए । लेककन
र्ुद्रा नहीं लौटे तो नहीं लौटे । र्ैं उन हदनों नवभारत टाइम्ि र्ें र्ा । कायषिर् की ररपोहटिं ग
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के सलए आया र्ा । लेककन कायषिर् छोड़ कर र्ैं भी िार्-िार् लग सलया यह दे खने के सलए
कक र्द्र
ु ा र्ानते हैं कक नहीं । र्ैं ने दे खा कक र्द्र
ु ा ककिी की बात िन
ु ने को भी तैयार नहीं
र्े । लगातार कहते रहे कक अब इि अपर्ान के बाद लौटना र्ुर्ककन नहीं है ।
र्ुद्राराक्षि के िार् ऐिी अनचगन घटनाएं उन के जीवन र्ें उपन्स्कस्र्त हैं । भारत र्ें उन
हदनों ववदे शी चैनलों की दस्तक और आहट के हदन र्े । वर्ष 1996 की बात है । र्ीडडया
र्ुगल रूपटष र्डोक ने स्टार र्ें एडवाइजर बनाने के सलए बात करने को बुलाया र्ा । ननर्ंरण
प्रस्ताव के िार् ही डॉ०लर वाला चेक भी नत्र्ी र्ा । उन हदनों र्ैं राटरीय िहारा र्ें आ चक
ु ा
र्ा । एक हदन र्ुद्रा जी राटरीय िहारा आए और रूपटष र्डोक की वह चचट्ठी हदखाई िब के
बीच और डॉ०लर वाला चेक भी । कहने लगे कक लेककन र्ैं जाऊंगा नहीं । र्ेरे र्ंह
ु िे ननकल
गया कक कफर यह चेक भी क्यों हदखा रहे हैं? र्द्र
ु ा हं िे । और वह डॉ०लर वाला चेक तरु ं त
फाड़ कर रद्दी की टोकरी र्ें डाल हदया । र्द्र
ु ाराक्षि के बहुत िे उपकार र्झ
ु पर हैं । पर
एक उपकार के न्स्कज़ि का र्ोह छोड़ नहीं पा रहा हूं । एक बार नागर जी पर सलखे एक
िंस्र्रणात्र्क लेख र्ें िंकेतों र्ें ही िही उन की न्स्कज़ंदगी र्ें आई कुछ न्स्कस्रयों का न्स्कज़ि कर
हदया र्ा । नागर जी िे अपनी एक परु ानी बातचीत के हवाले िे । राटरीय िहारा के
िंपादकीय पटृ ठ पर यह िंस्र्रणात्र्क लेख छपा र्ा । उि र्ें कुछ भी आपवत्तजनक नहीं
र्ा । लेककन दफ़्तर के ही कुछ िहयोचगयों ने नागर जी के िुपुर शरद नागर को भड़का
हदया । शरद नागर र्ेरे खिलाफ़ सलखखत सशकायत ले कर उच्च प्रबंधन के िम्र्ुख उपन्स्कस्र्त
हो गए । र्ुझ िे स्पटटीकरण र्ांग सलया गया । र्ैं ने स्पटटीकरण तो दे हदया पर िंकट
कफर भी टला नहीं र्ा । जाने कैिे र्ुद्राराक्षि को यह िब पता चल गया । फोन कर के र्ुझ
िे दररयाफ़्त ककया । र्ैं ने पूरा वाकया बताया । र्ुद्रा बोले, इि र्ें ग़लत तो कुछ भी नहीं है
। तुर् ने कुछ भी ग़लत नहीं सलखा है । बन्स्कल्क बहुत कर् सलखा है । ऐिे वववरण तो बहुत
हैं नागर जी के जीवन र्ें । र्ुझे बहुत पता है । और कफर कई और िारे वाकये बताए उन्गहों
ने । र्ुद्रा यहीं नहीं रुके । बबना र्ेरे कहे उच्च प्रबंधन िे भी वह अनायाि सर्ले और र्ेरी
बात की पुरज़ोर तस्दीक की । कहा कक कुछ भी ग़लत नहीं सलखा है । बात ित्र् हो गई
र्ी ।
हज़रतगंज के काफी हाऊि र्ें उन के िार् बैठकी के तर्ार् वाकये हैं । लेककन एक
वाकया भल
ु ाए नहीं भल
ू ता। एक जर्षन स्कालर आई र्ी । वह भारतीय नाटकों और िंगीत के
बारे र्ें जानना चाहती र्ी । वीरें द्र यादव, राकेश, आहद कुछ और लोग भी र्े । हहंदी उि की
िीर्ा र्ी । अंगरे जी और िंस्कृत लोगों की िीर्ा र्ी । अचानक र्ुद्राराक्षि ने हस्तक्षेप
ककया । और न्स्कजि तरह बारी-बारी िंस्कृत और अंगरे जी र्ें धाराप्रवाह बोलना शुरू ककया, वह
अद्भुत र्ा । हर् अवाक् दे खते रहे र्ुद्रा को । एक बार ऐिे ही कैिरबाग़ के कम्युननस्ट पाटटी
के दफ्तर र्ें िंस्कृत के कोट दे -दे कर भरत र्ुनन के नाट्य शास्र की धन्स्कज्जयां उड़ाते र्ैं
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र्द्र
ु ा को दे ख चक
ु ा र्ा । लेककन काफी हाऊि र्ें र्द्र
ु ा की यह ववद्वता दे ख कर र्ैं ही क्या
िभी दं ग र्े । काफी हाऊि र्ें वपन ड्राप िाइलें ि र्ा तब । भारतीय नाटकों और िंगीत पर
ऐिी दल
ु भ
ष जानकाररयां र्ुद्रा न्स्कजि अर्ॉररटी के िार् परोि रहे र्े, न्स्कजि तल्लीनता िे परोि
रहे र्े वह ववरल र्ा । वह जर्षन स्कालर जैिे गदगद हो कर गई र्ी । उि की गगरी भर
गई र्ी, ज्ञान के जल िे । र्ुद्रा के सलए उि के पाि आभार के शब्द नहीं रहा गए र्े ।
ननःशब्द र्ी वह । और हर् र्ोहहत । बाद के हदनों र्ें एक दोपहर रि रं जन के िर्य इि
घटना का न्स्कज़ि बड़े िम्र्ोहन के िार् र्ैं ने श्रीलाल शुक्ल िे एक बैठकी र्ें ककया । श्रीलाल
जी असभभूत र्े यह िुन कर। कफर धीरे िे बोले अध्ययन तो है ही उि आदर्ी के पाि । र्ैं
ने जोड़ा, और शापषनेि भी । श्रीलाल जी ने हार्ी भरी, िांि ली । और अफ़िोि के िार् बोले
पर इि िब का तो वह लगभग दरू
ु पयोग ही कर रहे हैं ! लखनऊ र्ेरा लखनऊ र्ें र्नोहर
श्यार् जोशी ने आज के र्ुद्राराक्षि को तब के िुभार् चंद्र गुप्ता को न्स्कजि तरह उपन्स्कस्र्त
ककया है वह भी अववस्र्रणीय है ।
स्री और दसलत ववर्शष के सलए झंडा भले राजेंद्र यादव के हार् र्ें चला गया र्ा लेककन
र्द्र
ु ाराक्षि के ज़रूरी हस्तक्षेप को हर् भला कैिे भल
ू िकते हैं? हां, यह भी ज़रूर है कक र्द्र
ु ा
इि ववर्शष र्ें अनत की हद तक ननकल जाते रहे हैं । शायद इिी सलए वह कई बार बहुत
लोगों को हजर् नहीं हो पाते । उन की बात लोगों को चभ
ु -चभ
ु जाती है । र्ुद्रा का र्किद
भी यही होता है कक उन की बात लोगों को चभ
ु े और िब
ू चभ
ु े । लेककन इि फेर र्ें वह दाल
र्ें नर्क की जगह नर्क र्ें दाल भी िब ू करते रहे हैं । और बहुतेरे लोगों के सलए जहरीले
बन कर उपन्स्कस्र्त होते रहे हैं । लेककन र्ुद्रा ने कभी इि िब की परवाह नहीं की है । शायद
करें गे भी नहीं । उदष ू को दि
ू री राजभार्ा बनाने के सलए भी उन के िंघर्ष को कैिे भूला जा
िकता है ? कई-कई हदन तक उन्गहें ववधान भवन के िार्ने हर्ने धरना दे ते दे खा है । बार-
बार इि के सलए लड़ते दे खा है । एक िर्य दसलत र्ुद्दों को ले कर वह बहुत िकिय र्े ।
र्ायावती उन्गहीं हदनों र्ुख्यर्ंरी बनीं । लोग कहने लगे कक हहंदी िंस्र्ान की कुिी हचर्याने
का उपिर् है यह । र्ैं ने लोगों िे कहा कक कफर आप लोग र्ुद्राराक्षि को नहीं जानते । वह
कैिे बन िकते र्े ? बाग़ी और ककिी कुिी पर ? नार्ुर्ककन ! िर्ाज के और ज़रूरी र्िलों
पर भी उन्गहें जूझते दे खा ही है लखनऊ की िड़कों ने, लोगों ने । र्ुद्रा चप
ु र्ार कर बैठ जाने
वालों र्ें िे नहीं हैं । हार शब्द तो जैिे उन की डडक्शनरी र्ें ही नहीं है । अिबारी कालर्ों
र्ें उन की आग की तरह दहकती हटप्पखणयां अभी भी र्न र्ें िुलगती सर्लती हैं । वैिे भी
वह कहानी, उपन्गयाि, नाटक आहद की जगह ववचार को ज़्यादा तरजीह दे ते रहते हैं । घर की
उन की लाइब्रेरी र्ें भी िाहहत्य िे ज़्यादा वैचाररक ककताबें ज़्यादा सर्लती हैं । रं गकर्ी राकेश
उन्गहें बुद्ध, कबीर और ग़ासलब का िर्ुच्चय र्ानते हैं । राकेश ठीक ही कहते हैं । हां, यह
ज़रूर है कक ग़ासलब और कबीर उन र्ें ज़्यादा हैं । बुद्ध कर् । ऐिा र्ेरा र्ानना है । राकेश
ग़ासलब का एक किस्िा िुनाते हैं । कक ग़ासलब र्न्स्कस्जद, नर्ाज़, वर्ाज के फेर र्ें नहीं पड़ते
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र्े । पर एक बार शराब का टोटा पड़ा तो वह नर्ाज़ के सलए र्न्स्कस्जद गए । अभी वजू कर
ही रहे र्े कक उन का एक िार्ी उन्गहें पक
ु ारते हुए , बोतल हदखाते हुए बोला कक, ग़ासलब
िाहब, ले आया हूं ! ग़ासलब बबना नर्ाज़ के लौटने लगे तो र्ौलवी ने टोका कक बबना नर्ाज़
के क्यों जा रहे हैं ? ग़ासलब बोले, जब वजू र्ें ही िुबूल हो गई तो नर्ाज़ का क्या करना !
और र्न्स्कस्जद िे बाहर आ गए । र्ुद्रा के िार् भी यह िब है । र्ुद्रा के िार् रि-रं जन के
भी कई किस्िे हैं । लेककन अभी एक ताज़ा किस्िा िुननए । कर्ािर् र्ें डडनर की रात
शैलेंद्र िागर ने र्ुद्रा को घर पहुंचाने का न्स्कजम्र्ा र्ुझ पर डाल हदया । र्ैं ने िहर्ष स्वीकार
सलया । अब हर् दवु वषजय गंज की गसलयों र्ें भटक गए । र्ुद्रा जी भी अपनी गली नहीं
पहचान पा रहे र्े । भटकते-भटकते हर् लोग र्ोती नगर की गसलयों र्ें बड़ी दे र तक घूर्ते
रहे । खैर ककिी तरह पहुंचे 78 दवु वषजय गंज । अब दि ू रे हदन भी लंच के बाद शैलेंद्र िागर
ने कफर र्ुझे र्ुद्रा जी को घर पहुंचाने का न्स्कजम्र्ा दे हदया । र्ैं अचकचाया । उन्गहें रात का
किस्िा बयान ककया । और बताया कक कल तो रात र्ी, अब हदन है , कार को बैक करने
र्ोड़ने र्ें भीड़ के कारण र्ुन्स्कश्कल होगी । गसलयां पतली हैं । शैलेंद्र िागर नहीं र्ाने । एक
िहयोगी ज़रुर िार् दे हदया । र्दद के सलए । कक अगर घर तक कार न भी पहुंच पाए तो
यह िहयोगी घर तक र्द्र ु ा को पहुंचा दे गा । अब यूननवसिषटी पेरोल पंप पर पेरोल डलवाते
िर्य र्ुद्रा ने उि िहयोगी िे कुछ कहा । कहा कक पुल पार करते ही बाईं तरफ दक
ु ान है ।
अब पुल पार करते ही उन्गहों ने रुकने को कहा । र्ैं रुक गया । अब वह िहयोगी कार िे
उतरने को तैयार नहीं हो रहा र्ा । र्ुद्रा बुदबुदाते हुए न्स्कह्वस्की की बात कर रहे र्े । र्ैं
न्स्कह्वस्की को बबन्स्कस्कट िुन रहा र्ा । र्ैं ने कहा भी कक आगे भी बहुत दक
ु ानें सर्लें गी । र्ुद्रा
बोले, यहीं ठीक रहे गा । र्ैं ने कहा कक कोई खाि ब्रांड का बबन्स्कस्कट है क्या ? िार् र्ें
कववयरी शीला पांडय
े जी भी र्ीं । वह बोलीं, बबन्स्कस्कट नहीं, न्स्कह्वस्की कह रहे हैं । तब र्ैं
अचकचाया । उि िहयोगी का कहना र्ा कक र्ेरे गांव का या कोई पररचचत दे ख लेगा तो
क्या कहे गा ? और उि ने शराब की दक
ु ान पर न्स्कह्वस्की लेने जाने िे िाफ इंकार कर हदया ।
र्ैं शराब आहद कभी िरीदता नहीं । िो र्ैं ने भी र्ना कर हदया । रास्ते र्ें र्द्र
ु ा लगातार
कहते रहे अब तर्
ु र्ेरे दोस्त नहीं रहे । बद
ु बद
ु ाते रहे , तर्
ु ककतने अच्छे दोस्त र्े । लेककन
अब दोस्त नहीं रहे । आहद-आहद । र्ैं चप ु चाप िन
ु ता रहा । खैर इतवार होने के नाते बहुत
भीड़ नहीं र्ी । िो कार कहीं फंिी नहीं । उन के घर आरार् िे पहुंच गए हर् लोग । र्द्रु ा
को कार िे उतार कर उन के घर र्ें दाखखल करते हुए लगभग उन िे र्ाफ़ी र्ांगते हुए कहा
कक र्ाफ़ कीन्स्कजए , आप की फरर्ाइश पूरी नहीं कर पाया । र्ुद्रा ने र्ेरी पूरी बात िुने बबना
कहा कोई र्ाफ़ी नहीं, र्ुझे आ्नेय नेरों िे दे खा और कफर दहु राया कक अब तुर् र्ेरे दोस्त
नहीं रहे , भाग जाओ ! और घर र्ें अकेले घुि गए । लेककन कल जब र्ुद्रा जी अपनों के
बीच कायषिर् र्ें वह सर्ले तो लपक कर गले लगा सलया र्ुझे । वैिे ही बच्चों की तरह
ननश्छल हं िी र्ें र्ुहदत । िवषदा की तरह ।
इंदस
ु ंचत
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कल उन के जन्गर्-हदन की पव
ू ष िंध्या पर यह कायषिर् िचर्च
ु र्ुद्रा जी के सलए ही नहीं,
लखनऊ के सलए भी िौभा्य बन कर आया । न्स्कजि तरह तर्ार् लेखक, रं गकर्ी र्द्र
ु ा जी िे
िारे भेद-र्तभेद बुला कर इकट्ठा हुए वह बहुत ही िैल्यूहटंग है । पूरा कायषिर् िब को ही
इतना भावुक कर दे ने वाला र्ा कक पूनछए र्त । धाराप्रवाह बोलने वाले, बोलने र्ें हरदर्
कठोर रहने वाले र्ुद्रा कल ककिी र्ोर्बत्ती की तरह वपघलते रहे , ककिी बफ़ष की सिल्ली की
तरह गल-गल कर बहते रहे भावनाओं र्ें । इतना कक जब उन के बोलने का िर्य आया तो
वह ठीक िे बोल नहीं पाए । कहा भी कई बार कक र्ैं आज ठीक िे बोल नहीं पा रहा ।
लोगों ने िर्झा कक अस्वस्र्ता के कारण, कर्जोर हो जाने के कारण वह नहीं बोल पा रहे ।
लेककन िच यह नहीं र्ा । िच यह र्ा कक वह बहुत भावुक हो गए र्े अपने िम्र्ान र्ें
बबछे िब को दे ख कर । इतना अपनत्व पा कर । अब तक उपेक्षक्षत चले आ रहे व्यन्स्कक्त को
अगर िर्ूचा लखनऊ एक िार् िैल्यूट करने उतर आया हो तो कोई भी हो , भले ही वह
र्ुद्राराक्षि जैिा बाग़ी ही क्यों न हो, भावुक तो हो ही जाएगा । वह तो र्ुद्राराक्षि र्े, उन की
जगह जो कोई और होता तो वह र्ारे िश
ु ी के ववह्वल हो कर रो पड़ता । िच र्ुद्रा को र्ैं ने
जाने ककतनी गरर्ी, बरिात, जाड़ा भोगते दे खा है । जाने ककतने िंघर्ष , जीते-र्रते और लड़ते
दे खा है । पर न्स्कजतना भावुक होते कल उन्गहें दे खा है , कभी नहीं दे खा । इि तरह तो नहीं ही
दे खा । एक बाग़ी भी भावुक हो िकता है , कफल्र्ों र्ें तो बहुत बार दे खा है , जीवन र्ें पहली
बार कल दे खा है । हहंदी जगत के इि चंबल के बाग़ी को ित-ित नर्न!
इंदस
ु ंचत
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नवगीत की अवधारणा
डॉ० राजेश श्रीवास्तव
1958 र्ें राजेंद्र प्रिाद सिंह ने एक गीत िंग्रह का प्रकाशन गीतांचगनी नार् िे ककया ।
इिकी भूसर्का र्ें उन्गहोंने नवगीत शब्द का प्रयोग भी ककया । गीत के अन्गदर नछपी एक नई
काव्यधारा का जन्गर् िंभवतः छायावादी तर्ा छायावादोत्तर गीतों िे र्तान्गतर हदखाने के सलये
ही ककया गया र्ा, ककंतु यह शब्द नए गीतों के सलये बहुत लोकवप्रय हो गया । नवगीत नई
कववता या नई कहानी की तजष पर रखा गया नार् अवश्य हो िकता है ककंतु यह कोई काव्य
आंदोलन नहीं र्ा बन्स्कल्क लोकचेतना, िंस्कृनत, उन्गर्क्
ु त जीवन, जातीय िंस्कार और
िौंदयषबोध िे जड़
ु ाव की एक िहज प्रककया र्ी ।
नवगीत के आगर्न के िंकेत हर्ें छायावादी युग र्ें ही सर्लने आरं भ हो गए र्े । यूँ तो
गीत परम्परा वैहदक ऋचाओं िे ववद्यापनत के गीतों तक और भन्स्कक्तकाल िे रीनतकाल के
कववयों र्ें भी ढूंढ़ी एवं प्रनतन्स्कटठत की जा िकती है ककंतु गीत एवं नवगीत का स्पटट
हदशान्गतर र्ानने पर इिका इनतहाि अचधक प्राचीन नहीं ननकलता । आत्र्ासभव्यंजना और
वैयन्स्कक्तकता प्रधान छायावादी युग के कववयों र्हादे वी, प्रिाद,ननराला, पंत ने िुंदर गीतों की
रचना की है । ‘तुर्ुल कोलाहल कलह र्ें ’ एक उत्कृटट गीत है । छायावाद के अवरोहकाल र्ें
इंदस
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इिी िर् र्ें हर् अनेक गीतकारों का उल्लेख कर िकते हैं न्स्कजन्गहोंने गीतों र्ें नयापन लाने
का प्रयाि ककया । अज्ञेय र्ें प्रयोग का नयापन र्ा तो भवानी प्रिाद सर्श्र र्ें लोकतत्वों का
िंग्रह । शर्शेर बहादरु सिंह बबंबों और भार्ा के स्तर पर नएपन की तलाश र्ें र्े तो नरे श
र्ेहता वैहदक ऋचाओं के िौंदयषबोध को हहन्गदी गीतों र्ें कफर ले आने का प्रयाि कर रहे र्े ।
धर्षवीर भारती ने लोकिंदभों का िंकलन ककया और कड़वे यर्ार्ष को गीतों र्ें स्र्ान हदया,
वहीं शंभुनार् सिंह ने गीतों को प्रणय, लोक ववज्ञान और िंवेदना की भूसर् पर लहलहाने का
अविर हदया ।
इिके पव
ू ष तारिप्तक र्ें चगररजा कुर्ार र्ार्रु गीत की नई िंभावनाएँ लेकर आए ।
उन्गहोंने रूर्ानी दनु नया और वायवीय कल्पना को गीतों िे लगभग ननटकासित ककया ककंतु
िार्ान्गयजन तक उनकी पहु च न हो िकी । अज्ञेय ने गीत सशल्पों का प्रयोग ककया ककंतु
प्रयोगवादी छवव को न सर्टा िके । शर्शेर ने पदावली और बबंबों की ताजगी के हुनर हदखाए
ककंतु उनका ध्यान गीतों पर अचधक केंहद्रत न रह िका । भवानी प्रिाद सर्श्र भी शी्र ही नई
कववता की ओर र्ुड़ गए । केदारनार् ने िाहहन्स्कत्यक गीत सशल्प और लोक सशल्प का
इंदस
ु ंचत
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िर्न्गवय कर ननन्स्कश्चत ही गीतों र्ें स्पटट बदलाव की अपनी नीनत को जगजाहहर ककया कफर
भी वे परू ा िर्य गीतों को न दे िके ककंतु तब तक नवगीत के सलये एक खािी जर्ीन
तैयार हो चक
ु ी र्ी ।
गीतों िे नवगीत तक पहु चने के पीछे कुछ और भी कारण र्े । पुराने गीतों का
रूर्ाननयत भरा रूप नघि चक ु ा र्ा । यर्ार्ष िे ितही जड़
ु ाव होने के कारण गीतों का
िाधारणीकरण भी कहठन हो चला र्ा । िौंदयषबोध र्ें कर्ी आ रही र्ी । ऐिी न्स्कस्र्नत र्ें
नवगीत कथ्य और सशल्प दोनों स्तर पर बदलाव लेकर आया । कथ्य र्ें ववववधता आई ।
नई पीढ़ी के तनाव, अजनबीपन, ननराशा और व्यर्षता के बोध को व्यक्त कर नवगीतकार ने
जीवन के िंवेदनशील िंदभों की तलाश की ।
इंदस
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डॉ० धर्षवीर भारती का एक और िंग्रह िात गीत वर्ष एक नई ताजगी के िार् आया ।
इिर्ें र्ध्यवगीय व्यन्स्कक्त के कड़वे र्ीठे िंघर्ों के बीच टूटे हुए र्न के ववक्षोभ को गीतों र्ें
बॉधकर धर्षवीर भारती ने असभव्यन्स्कक्त दी है । अपराधबोध िे ग्रस्त यव ु ा पीढ़ी की टूटी
आस्र्ाओं और ध्वस्त होते र्ल्
ू यों के बीच अपने गीतों र्ें नवगीतकार भारती को स्पटट
हदखाई दे ता है कक नई पीढ़ी चन
ु ौनतयों िे कतरा रही है । नई पीढ़ी के िंिसर्त र्न का यह
बोध ककिी अन्गय गीतकार के सलये कल्पना िे परे र्ा । ननरर्षकता और रािद जीवन के
अहिाि को डॉ० धर्षवीर भारती ने नवगीतों र्ें स्र्ान हदया। िात गीत वर्ष ने नवगीत के
सलये उवषर जर्ीन दी । यहीं िे नवगीत की दो धाराएं हो गईं । एक लोकिंदभों को लेकर
अग्रिर होने वाली और दि
ू री यर्ार्ष के तीखे बोध को लेकर प्रवाहहत होने वाली । एक र्ें
रागात्र्क िघनता है तो दि
ू रे र्ें यर्ार्षबोध । एक र्ें रागोद्वेलन के कारण, िौंदयष और प्रेर्
की िघनता है तो दि
ू रे र्ें यर्ार्षबोध के कारण व्यं्य का पैनापन। डॉ० धर्षवीर भारती के
नवगीतों की ववशेर्ता है यर्ार्ष की खरु दरु ी भार्ा और जीवन िंघर्ों को व्यक्त करने के सलये
युद्ध की शब्दावली का एकदर् नया प्रयोग ।
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ववद्यापनत के र्धरु गीतों के िार् न्स्कजि हहन्गदी कववता की ववकाि-यारा आगे बढ़ी है उिर्ें
कई िर्यिापेक्ष, यग
ु िापेक्ष और िर्ाजिापेक्ष पड़ाव आये हैं तर्ा हर पड़ाव पर बबहार के
गीत-रचनाकारों ने प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप िे अपनी उपन्स्कस्र्नत दजष की है । भारतेन्गद ु यग
ु
या र्हावीर प्रिाद द्वववेदी अर्वा र्ैचर्लीशरण गुप्त का काल यानी हर काल र्ें गीत-रचना
अपनी र्ाधरु ी और ऊजाष-ववस्फोट िे िार्ान्स्कजक चेतना र्ें िान्स्कन्गतकारी पररवतषन लाने के सलए
िंघर्ष करती रही है । र्ोहन लाल र्हतो ववयोगी के वाखणषक छन्गद र्ें सलखे गीतों ने अपनी
अलग पहचान बनाई है ।
इंदस
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आचायष जानकी वल्लभ शास्री के िर्कालीन गीतकारों र्ें रार्धारी सिंह हदनकर,
केदारनार् सर्श्र प्रभात, गोपाल सिंह नेपाली, श्यार् नन्गदन ककशोर, आरिी प्रिाद सिंह,
रार्गोपाल शर्ाष रुद्र, कलक्टर सिंह केशरी, जनादष न प्रिाद झा ‘द्ववज’, रार्दयाल पाण्डेय,
हं िकुर्ार नतवारी, अवधभूर्ण सर्श्र, गुलाब खण्डेलवाल, ववंध्यवासिनी दत्त बरपाठी, न्स्कजतेन्गद्र
कुर्ार प्रभनृ त का नार् प्रर्ुखता िे िन्स्कम्र्सलत ककया जा िकता है । गीतों की वैचाररक
अंतवषस्तु और प्रभावी अंतवषस्त,ु बनावट और बुनावट एवं असभव्यन्स्कक्त-भंचगर्ा के धरातल पर
इन िभी गीतकारों र्ें काफी सभन्गनताएँ हैं। रार्धारीसिंह हदनकर र्ूलतः राटरीय चेतना के
ओजस्वी कवव के रूप र्ें जाने जाते है । इन्गहोंने कुछ अच्छे गीत भी सलखे हैं, न्स्कजनर्ें उत्तर
छायावादी उल्लाि, उर्ंग तर्ा र्स्ती का स्वर छलछलाता हुआ हदखलाई दे ता है । रार्ववलाि
शर्ाष को ननराला के बाद हदनकर की काव्यभार्ा र्ें ही िबिे ज्यादा र्ेघ-र्ंद्र स्वर िन
ु ाई दे ता
है ।
जब-जब जनता पर दख
ु की बदली छाई है ,
तब-तब हर्ने ववप्लव-बबजली चर्काई है ,
र्ानवता का पररहाि बदलने वाले हैं,
हर् तो कवव हैं, इनतहाि बदलने वाले हैं।
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अन्स्क्न-शलाका हैं, शबनर् की सलवप र्ें सलखी िान्स्कन्गत की काररका हैं , और हहन्गदी जनगीत-
रचना के क्षेर र्ें शान्स्कन्गत िर्
ु न, शायद पहली स्री-गीतकार हैं,न्स्कजनकी रचनाएँ गीतबद्ध
िंघर्षशील जन-िंघर्ों र्ें जुझारू र्ेहनतकश अवार् के द्वारा गाए गए हैं।
दि
ू रा र्हत्वपूणष नार् ित्यनारायण का है । ित्यनारायण के गीतों का िर्िार्नयक
जीवन-दशषन, गहरा राजनीनतक बोध और अर्ष-गौरव उन्गहें िर्कालीन हहन्गदी गीत-रचनाकारों
की प्रर्र् पंन्स्कक्त र्ें शासर्ल कर दे ते हैं। ित्यनारायण के गीतों की भावर्क िहजता और
अनुभूनत की िंरचना की पारदसशषता ऊपरी ितह िे दे खने पर अकलात्र्क लग िकती है ,
परन्गतु तह र्ें उतरते ही उनके गीतों के अनेक अर्ाषनुर्ंग ककिी भी िहृदय व्यन्स्कक्त को
असभभत
ू कर दे ते हैं। उनके छोटे -छोटे चरण वाले छन्गद गौरै ये की तरह फुदकते दृन्स्कटटगोचर
होते हैं। उनके गीतों की वैववध्यभरी वस्तग
ु त दनु नया के अंतरं ग िाक्षात्कार के र्द्दे नजर ही
अवधेश नारायण सर्श्र इि ननटकर्ष पर पहुँचते हैं कक ित्यनारायण का गीत-िौन्गदयष नवगीत
की चाररबरक ववसशटटता का र्ानक है । जीवन के बहुआयार्ी तनावों, आतंकों,आदशषहीन
र्ल्
ू यों, अन्गयायों एवं वविंगनतयों को लयर्यी भार्ा दे कर नवगीतकार ने न्स्कजि िौन्गदयष-दशषन
का ववकाि ककया है उिर्ें कुरूपता, अिन्ग ु दरता और खरु दरु ापन को अचधक स्र्ान प्राप्त हुआ
है । ित्यनारायण के गीतों की अन्स्कस्र्ता भार्ा की आन्गतररक ऊजाष, बबम्बों की रागदीप्त
ववववधता, लयों का आवतषक िंयोजन, शब्दों का युगबोधी िंस्कार और अनुभूनत की र्ौसलकता
िे ननसर्षत होती है और इन्गहीं कारणों िे उनके नवगीत कववता की वरे ण्यता हासिल करते हैं
तर्ा िर्स्त युग-िजषना के प्रनतननचध स्वर बन जाते हैं।
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बद्
ु चधनार् सर्श्र के दो, ‘जाल फेंक रे र्छे रे’ तर्ा ‘सशखरणी’, यशोधरा राठौर के तीन, ‘उि
गली के र्ोड़ पर’, ‘जैिे धप
ू हँिती है एवं ‘भरें गे परवाज के पैगार् अक्षर’ और उदयशंकर
सिंह उदय के दो ‘धपू र्ें चलते हुए’ और ‘गीत कफर परचर् हुए’ तर्ा हृदयेश्वर के
तीन‘आँगन के इच-बीच’, ‘बस्ते र्ें भूगोल’ और ‘यह दे ती धप
ू ’ अब तक प्रकासशत हो चक
ु े हैं।
इनके गीतों र्ें आज के अत्यंत ही िंन्स्कश्लटट जीवन के अन्गतववषरोधों, वविंगनतयों और
ववद्रप
ू ताओं की जहटल अनुभूनतयों की िर्ग्रता र्ें असभव्यन्स्कक्त सर्ली है । बुद्चधनार् सर्श्र के
गीतों र्ें व्यक्त िघन लोक-चेतना उनके गीतों र्ें नई चर्क पैदा कर दे ती है ।
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1॰ र सिप्यंतिण - : आप र प प र और आप
आ प गर प । यह उन प्रयोक्ताओं के सलए है । न्स्कजन प्रयोक्ता को र्ोड़ा
बहुत हहंदी का टाइप करना होता है और वे हहंदी टाइवपंग नहीं जानते हैं। इिके सलए गूगल
हहंदी इनपटु , र्ाइिोिॉफ्ट का इंडडक आईएर्ई, बारहा आहद कई सलप्यंतरण - उपलब्ध
हैं। परन्गतु िबिे िरल एवं िुववधाजनक गूगल हहंदी इनपुट रहे गा। इिर्ें यह खासियत है कक
यह आपके द्वारा हदए गए पहले अक्षर िे ही आपको ववकल्प की िुववधा प्रदान करता है
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और यह आपके शब्दों को अपनी डडक्शनरी र्ें जोड़ता जाता है । इिसलए आप अपने र्न िे
यह भ्रर् ननकाल दें कक कंप्यट
ू र पर हहंदी टाइप करने के सलए आपको टाइवपंग िीखनी
पड़ेगी। सलप्यंतरण टूल का प्रयोग करें और जब आप रोर्न र्ें टाइप करें गे तो वह अपने आप
दे वनागरी र्ें बदल कर टाइप हो जाएगा।
2॰ िे समंग्टन की-बोडा- यह िबिे पुराना और अब काफ़ी हद तक आउटडेटेड तरीिा है । यह एक
टच टाइवपंग ववचध है । इिके सलए पहले िे टाइपराइटर पर हहंदी टाइवपंग िीखी होनी चाहहए।
यह सिफ़ष उनके सलए उपयोगी है न्स्कजन्गहोंने पहले िे टाइपराइटर पर हहंदी टाइवपंग िीखी हो
तर्ा इिके अभ्यस्त हों। कंप्यूटर पर नए सिरे िे िीखने हे तु यह उपयुक्त नहीं।
3॰ इन्स्क्स्क्रप्ट की-बोडा- इिका ववकाि भारत िरकार के राजभार्ा ववभाग ने ककया है । यह भी
एक टच टाइवपंग प्रणाली है । यह ववचध भारतीय भार्ाओं र्ें टाइवपंग की िवाषचधक वैज्ञाननक
ववचध है । इि ववचध िे कंप्यूटर पर िवाषचधक गनत िे हहंदी टाइप की जा िकती है । यह हहंदी
टाइवपंग की िवषश्रेटठ एवं िरल ववचध है । इि की-बोडष र्ें आप दे खेंगे कक व्यंजन दायीं ओर
तर्ा स्वर वायीं ओर हदए गए हैं। इिके सलए आपको सिफष हफ्ते-पंद्रह हदन अभ्याि करना
पड़ता है ।
इिप्रकार हर् कह िकते हैं कक आजकल लगभग िभी डडजीटल उपकरणों र्ें हहंदी र्ें
कार् करना िम्भव है । भार्ाई िर्र्षन ने तकनीकी ववभाजन की दरू ी को पाटने र्ें र्हत्वपूणष
भूसर्का ननभायी है । यूननकोड सिस्टर् ने हहंदी को िभी कम्प्यूहटंग डडवाइिों तक पहुँचा हदया
है । यूननकोड सिस्टर् के कारण कंप्यूटर पर हहंदी एवं अन्गय भारतीय भार्ाओं र्ें कार् करना
अंग्रेजी जैिा ही िरल हो गया है । इिी कारण अब आप दे खते होंगे कक इंटरनेट पर भी हहंदी
की वेबिाइटों की भरर्ार हो गई है । तो आइए! हर् भी अपने कंप्यूटरों र्ें हहंदी यूननकोड
िकिय करके उपयक्
ुष त र्ें िे ककिी एक की-बोडष के र्ाध्यर् िे हहंदी र्ें कार् करना प्रारं भ
करें ।
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टं कण र्ें पारं गत हो िकता है । स्कूल-कॉलेज र्ें यहद कुछ हदनों तक घंटा भर इि वैज्ञाननक
इन्स्कन्गस्िप्ट कंु जी पटल का प्रसशक्षण हदया जाए और इिे स्कूल स्तर पर आईटी सशक्षा के
पाठ्यिर् का हहस्िा बनाया जाए तो दे श के बच्चे दे श की ककिी भी भार्ा र्ें कंप्यूटर पर
कायष करने र्ें िक्षर् होंगे, चाहे कफर हहंदी हो, र्ातभ
ृ ार्ा हो या राज्य की राजभार्ा।
हहंदी व भारतीय भार्ाओं के िर्र्षक काफी िर्य िे इन्स्कन्गस्िप्ट कंु जी पटल के प्रसशक्षण
पाठ्यिर् का हहस्िा बनाए जाने की र्ाँग करते रहे हैं। ‘वैन्स्कश्वक हहंदी िम्र्ेलन’ के र्ंच िे
जुड़े िकिय हहंदी-िेववयों द्वारा भी हहंदी भार्ी राज्यों के र्ुख्य र्ंबरयों तर्ा िंघ िरकार के
िार्ने यह र्ाँग रखी गई है । प्रौद्योचगकीववद् डॉ०. ओर् ववकाि न्स्कजन्गहोंने हहंदी व भारतीय
भार्ाओं के सलए कंप्यूटर पर कायष के सलए काफी कायषककया है उन्गहोंने बताया कक जब वे
केंद्रीय र्ाध्यसर्क सशक्षा बोडष (CBSE) की आईटी सशक्षा पाठ्यिर् िसर्नत के अध्यक्ष र्े तो
िसर्नत ने स्कूलों र्ें इन्स्कन्गस्िप्ट कंु जी पटल का प्रसशक्षण आईटी सशक्षा के पाठ्यिर् का
हहस्िा बनाने की सिफाररश की र्ी, लेककन कुछ हुआ नहीं। दःु खी स्वर र्ें वे कहते हैं, 'इि
िर्स्या का िर्ाधान िम्र्ेलनों के प्रस्तावों िे नहीं ननकलेगा। वपछले दशक र्ें हहन्गदी के कई
र्ंचों पर आवाज उठाई है , लेख भी सलखे। हहन्गदी के िभी र्ठ िम्र्ेलन िर्ापन के िार्
िर्स्या को भल
ू जाते हैं।‘
हहंदी और भारतीय भार्ाओं के प्रवाह को न्स्कजि छोटे िे पें च ने रोक कर रखा है उिे दरू
करने की जरूरत िबिे अचधक है । यहद '10वें ववश्व हहंदी िम्र्ेलन' र्ें भारत िरकार तर्ा
िभी हहंदी-भार्ी राज्योंद्वारा िभी (िरकारी व गैरिरकारी) स्कूलों र्ें र्ाध्यसर्क स्तर
पर हहंदी र्ें कायष के सलए कंप्यट
ू र आहद पर इन्स्कन्गस्िप्ट की-बोडष के प्रसशक्षण को पाठ्यिर् र्ें
(परीक्षा िहहत) शासर्ल करने का ननणषय सलया जाता है तो इििे राज्य के लोगों की ही नहीं
दे श के हहंदी व भारतीय-भार्ा प्रेसर्यों की आकांक्षा पूरी होगी और हहंदी व भारतीय भार्ाओं के
बंद रास्ते खल
ु े जाएंगे । यहद ऐिा होता है तो '10वां ववश्व हहंदी िम्र्ेलन' इि ऐनतहासिक
पहल के सलए याद ककया जाएगा।
अब जबकक भारत ई-गवनेंि के रास्ते पर चलकर ‘डडन्स्कजटल इंडडया’ के र्ाध्यर् िे तर्ार्
िूचनाओं-िुववधाओं को ऑनलाइन करने की हदशा पकड़ कर तेजी िे आगे बढ़ने के सलए कृत
िंकल्प है । ऐिे र्ें दे श की अचधकांश आबादी को प्रगनत का िहभागी बनाने के सलए इनर्ें
हहंदी व भारतीय भार्ाओं के िर्ावेश के िार्-िार् इनके प्रयोग के सलए दे श की जनता को
दे श की भार्ा व सलवप र्ें कायष हे तु इन्स्कन्गस्िप्ट कंु जी पटल का प्रसशक्षण दे ना भी आवश्यक है ।
'10वें ववश्व हहंदी िम्र्ेलन' के अलावा भी हर स्तर पर इि छोटे कार् के सलए हर्
ननरन्गतर प्रयाि करें और भगीरर् की भांनत हहंदी व भारतीय भार्ाओं के प्रवाह को रोककर
खड़ी इि कहठनाई की चट्टान को हटा दें ताकक हहंदी और हर्ारी अन्गय भार्ाएं इंटरनेट और
प्रौद्योचगकी के रास्तों िे हो कर अववरल बह िकें।
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िििों की बांसुिी
(एक अनरु ोध: कहानी परू ी पढ़े बबना र्ेरे या कहानी के बारे र्ें कोई राय न बनायें)
सिू ज प्रकाश
अभी वाशरूर् र्ें हूँ कक र्ोबाइल की घंटी बजी है । िुबह-िुबह कौन हो िकता है ।
िोचता हूँ और घंटी बजने दे ता हूँ। पता है जब तक तौसलया बाँध कर बाहर ननकलूंगा, घंटी
बजनी बंद हो जायेगी। घंटी दि ू री बार बज रही है , तीिरी बार, चौर्ी बार। बजने दे ता हूं।
बाद र्ें भी दे खा जा िकता है , ककिका फोन है ।
र्ेरी है लो िन
ु े बबना िीधे िवाल दागा जाता है –इतनी दे र िे फोन क्यों नहीं उठा
रहे ?
बताता हूं -नहा रहा र्ा भई और र्ैं नहाते िर्य अपना र्ोबाइल बार्रूर् र्ें नहीं ले
जाता।
- डोर्ेन्स्कस्टक एयरपोटष पहुँचने र्ें आपको ककतनी दे र लगेगी? र्ैं है रान होता हूं। अंजसल
और र्ंब
ु ई एयरपोटष पर?
र्ैं कारण चाहता हूँ लेककन वही िवाल दोहराया जाता है – डोर्ेन्स्कस्टक एयरपोटष आने र्ें
आपको ककतनी दे र र्ें लगेगी?
र्ैं बताता हूँ– रै कफक न सर्ले तो पन्गद्रह सर्नट, नहीं तो आधा घंटा।
- हर्र्, तो आप एक कार् कीन्स्कजए। तीन हदन के सलए कैजुअल िे कपड़े एक बैग र्ें
डासलये, गाड़ी ननकासलये और र्ुझे आधे घंटे बाद डोर्ेन्स्कस्टक एयरपोटष ए-वन के अराइवल गेट
पर सर्सलये। अभी फ्लाइट लैंड हुई है ,तब तक र्ैं भी बाहर आ ही जाऊंगी।
र्ैं है रान होता हूँ-आप िुबह-िुबह बंबई र्ें कैिे? र्ेरी बात नहीं िुनी जाती। अंजसल
अपनी बात दोहराती हैं- र्ैं वेट करूंगी।
र्ैं िोच र्ें पड़ गया हूं - अंजसल बंबई आयी हैं। अभी फ्लाइट िे उतरी भी नहीं हैं।
र्ुझे एयरपोटष पर ही बुलाया है और तीन हदन के सलए कैजुअल कपड़े भी डालने के सलए कह
रही हैं। पता नहीं क्या है उनके र्न र्ें ।
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याद करता हूँ,कल ऑकफि की एक ज़रूरी र्ीहटंग र्ें र्ेरा होना बेहद ज़रूरी है । दे खें ,
ये तो अंजसल िे सर्लने के बाद ही पता चलेगा कक वे क्या चाहती हैं। र्ैं फटा-फट तैयार
होता हूँ। िफ़र के सलए ज़रूरी िार्ान और कपड़े बैग र्ें डालता हूँ। ब्रेकफास्ट का टाइर् नहीं
है । गाड़ी ननकालता हूँ। अभी गेट िे बाहर ननकला ही हूं कक कफर अंजसल का फोन है ।
र्ैं पूछना चाहताहूँ- ये िब क्या हो रहा है ,लेककन उन्गहोंने इतने प्यार िे कहा है कक
कुछ कहते नहीं बना। वावपि जा कर लैपटॉप लेकर आता हूँ।
र्ेरी फेि-बकु फ्रेंड हैं अंजसल। उनिे पहली बार सर्ल रहा हूँ। उनकी तस्वीर भी नहीं
दे खी है । पहचानंग ू ा कैिे। िारा झगड़ा ही तो फेिबक ु पर तस्वीर लगाने को हुआ र्ा और इि
चक्कर र्ें हर्र्ें र्हीने भर िे अबोला चल रहा र्ा। जाने दो। वे खद
ु ही पहचानें गी र्झ
ु ।े
अभी एयरपोटष पहुंचने ही वाला हूं कक उनका र्ैिज े आ गया है- वेहटंग नीयर डीकोस्टा
कॉफी शॉप। र्ैं र्ुस्कुराता हूं। पहचानने की िर्स्या उन्गहोंने खद
ु ही िुलझा दी है । गाड़ी धीरे -
धीरे अराइवल गेट के पाि बने कॉफी शॉप की तरफ ले जाता हूँ। दरू िे ही नज़र आ गयी
हैं। बेहद खब
ू िूरत। नीली टी-शटष नीली और ब्लैक राउज़र र्ें । वे ही होंगी। उनके पाि गाड़ी
रोकता हूं। वे र्ुझे दे खते ही हार् हहलाती हैं। गाड़ी बंद करता हूँ और उनकी तरफ बढ़ता हूं।
वे तपाक िे र्ेरी तरफ बढ़ती हैं। हं िते हुए कहती हैं -वाव, डैसशग ं । और उन्गहोंने र्ुझे
हौले िे हग ककया है । र्ैं र्ुस्कुरा कर उनके दोनों हार् दबाता हूं - वेलकर् अंजसल। वे हं िते
हुए र्ेरे हार् दे र तक र्ार्े रहती हैं। र्ैं इि रस्र् अदायगी के बाद उनका बैग डडकी र्ें
रखता हूँ और उनके सलए कार का दरवाजा खोलता हूं। वे बैठती हैं।
र्ैं गाड़ी स्टाटष करते िर्य पूछता हूं -अंजसल, र्ाय फेिबुक फ्रेंड नाउ टन्गडष इनटू
रीयलफ्रेंड। बतायेंगी, हर् कहां जा रहे हैं?
वे र्ुस्कुरा कर कहती हैं - हर् िीधे दर्न जा रहे हैं। र्ैं एतराज़ कहना चाहताहूँ कक
कल एक र्ीहटंग है न्स्कजिर्ें र्ेरा रहना बेहद ज़रूरी है लेककन कुछ नहीं कहता। र्ीहटं्ि रोज़
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चलती रहती हैं। र्ीहटंग र्ें र्ेरे न रहने िे आिर्ान नहीं टूट पड़ेगा। ककिी भी र्ीहटंग िे
ज्यादा ज़रूरी तो फेिबुक फ्रेंड िे एक्चअ
ु ल र्ीहटंग है । इि र्ीहटंग के बीच र्ें कोई र्ीहटंग
नहीं आनी चाहहये। जवाब र्ें र्ैं र्ुस्कुराता हूँ।
जवाब र्ें र्ैं र्ुस्कुराता हूँ। पूछता हूँ-अचानक इि तरह र्ुंबई र्ें िुबह-िुबह। अगर र्ैं
न सर्लता या शहर र्ें न होता तो आप क्या करतीं लेककन वे र्ेरे ककिी िवाल का जवाब
नहीं दे तीं। वे गुनगन
ु ा रही हैं, बाहर का नज़ारा दे ख रही हैं या अपने र्ोबाइल िे खेल रही हैं।
बात करने की नीयत िे र्ैं पूछताहूँ-ब्रेकफास्ट सलया है ?
वे बताती हैं -नहीं, सिफष कॉफी ली र्ी। ब्रेकफास्ट आपके िार् ही लेना है । हाइवे पर
कहीं ढाबे पर करें गे।
र्ैं पूछ ही लेता हूं -अचानक र्ुंबई आना और एयरपोटष िे ही दर्न की तरफ चल
दे ना। कोई खाि बात?
वे र्झ
ु े दे खती हैं - कोई और बात करो। आप इि बारे र्ें र्झ
ु िे कोई िवाल नहीं
पछ
ू ें गे। बि ये जान लीन्स्कजये कक इन तीन हदनों र्ें आप र्ेरे र्ेहर्ान हैं और र्ेहर्ान ज्यादा
िवाल पछ
ू ते अच्छे नहीं लगते। र्ैं र्स्
ु कुराता हूं। कुछ नहीं कहता। जानता हूं र्ेरे ककिी भी
िवाल का जवाब ऐिे ही सर्लना है । र्झ ु े भी जल्दबाजी नहीं करनी चाहहये। हर् तीन हदन
एक िार् हैं ही। खद
ु ही बतायेंगी। नहीं भी बतायें तो र्झ
ु े क्या। र्ेरे िार् एक बेहद खब
ू िरू त
दोस्त हैं जो पहली बार सर्ल रही हैं और अपने िार् तीन हदन दर्न जैिी खब
ू िरू त जगह
पर बबताने का न्गयौता दे रही हैं। िबिे बड़ा िच तो यही है जो िार्ने है ।
तभी अंजसल ने र्ुझिे कहा है - र्ैं एक ऐिा कार् करने जा रही हूं जो र्ेरे जैिी
शरीफ लड़की को इि तरह िे नहीं करना चाहहये। आप र्ोड़ी दे र के सलए र्ेरी तरफ र्त
दे खना और अपना िारा ध्यान ड्राइववंग पर लगाना। र्ैं इशारे िे कुछ पूछना चाहताहूँ लेककन
वे बनावटी गुस्िे र्ें र्ेरी तरफ दे खती हैं -र्ैं बहुत अन्गकम्फटे बल र्हिूि कर रही हूं। कुछ
चें ज करना है ।
र्ैं कफर पूछना चाहता हूं, वे घुड़क दे ती हैं - ककतने िवाल पूछते हैं आप। र्ैं िॉरी
कहता हूं अपना िारा ध्यान ड्राइववंग पर लगाता हूँ। र्ैं कपड़ों की िरिराहट र्हिूि कर रहा
हूं। र्ैं चाहते हुए भी उनकी तरफ नहीं दे खता।
दो तीन सर्नट बाद र्ैं र्हिूि करता हूँ कक उनका बैग खल ु ा है और कुछ रख कर
बंद ककया गया है । उनकी खखलखखलाहट िुनायी दी है -श्रीर्ानजी, अब आप इि तरफ दे ख
इंदस
ु ंचत
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िकते हैं। र्ैं इशारों ही इशारों र्ें पूछता हूँ-क्या ककया है । वे नकार दे ती हैं । र्ैं र्ुंह बबचकाता
हूं - र्त बताओ। र्ोड़ी दे र बाद वे खद
ु ही बताती हैं – कुछ खाि नहीं।िब ऑनलाइन शॉवपंग
की करार्ात है । कल ही अंडरक्लोथ्ि आये र्े। चेक करने का र्ौका नहीं सर्ला। िब
ु ह िाढ़े
तीन बजे तैयार हो कर घर िे ननकली र्ी और तब िे िांि अटकी हुई र्ी। अब जा कर
उििे र्ुन्स्कक्त पायी है तो जान र्ें जान आयी है ।
वे र्ािूसर्यत िे जवाब दे ती हैं -आप बुद्धू हैं , उिके बबना वो कैिे उतारती?
र्ैं बनावटी गुस्िे िे कहता हूं -कर्ाल करती हैं आप भी। हाइवे पर चलती गाड़ी र्ें
आगे की िीट पर बैठे हुए इि तरह िे ड्रेि चें ज करना। आप कैिे कर पायीं?
र्ैं है रान होता हूँ कक र्ेरठ जैिे परं परागत शहर र्ें रहने वाली अंजसल इतनी बोल्ड हो
िकती हैं। जानता हूँ र्ेरे अगले िवाल का जवाब भी दध ु ारी तलवार की तरह ही हदया
जायेगा। बात खत्र् हो जाने दे दे ता हूं।
तभी अंजसल ने र्ुझे गाड़ी ककनारे कर के रोकने के सलए कहा है । र्ैं इशारे िे पूछता
हूँ-क्याहै अब।
वे खझड़कती हैं - कहा ना, गाड़ी रोकें। र्ैंने गाड़ी ककनारे लगायी है । वे बाहर ननकली
हैं।र्ुझे भी बाहर आने के सलए कहा है । हर् आर्ने िार्ने हैं। उन्गहोंने र्ुझे तपाक िे गले
लगाया है । र्ैं इि अचानक प्यार भरे हर्ले िे घबरा गया हूं।िर्झ नहीं पा रहा हूँ ये क्या
दीवानापन है । कुछ तो िोचें ,कहाँ क्या कर रही हैं, कहां कर रही हैं और क्यों रही हैं। अजब
पागलपन है इि र्हहला र्ें । िारे अंदाज़ ननराले।
वे तकष दे ती हैं -इतनी तेजी िे आती-जाती गाडड़यों र्ें बैठे लोगों को क्या परवाह और
ककिकी परवाह कक कौन क्या कर रहा है । र्ेरा र्न र्ा कक जब हर् सर्लें , तपाक िे गले
सर्ल कर सर्लें। एयरपोटष पर हो नहीं पाया तो यहीं िही। इि बार भी र्ेरे पाि उनकी बात
का कोई जवाब नहीं।
तभी वे ड्राइववंग िीट की तरफ बढ़ी हैं और र्ुझे पैिेंजर िीट पर बैठने का इशारा
ककया - तो ये चाल र्ी र्दार् की र्ुझिे ड्राइववंग िीट हचर्याने की। वैिे ही कह हदया होता।
र्ना र्ोड़े ही करता।
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वे बहुत िंयर् िे गाड़ी चला रहीहैं। उन्गहोंने म्यून्स्कजक ऑन ककया है और कफर उिे
एकदर् धीर्े करते हुए कहना शुरू ककया है - र्झ
ु े पता है इि िर्य र्ुझे ले कर आपके र्न
र्ें बहुत िे िवाल जर्ा हो गए होंगे और आप डर भी रहे होंगे कक र्ैं आपके अगले िवाल
का जवाब भी गोलर्ाल ही दं गू ी। क्यों है ना ऐिा? पूछा है उन्गहोंने।
र्ैंने इतनी दे र र्ें पहली बार उनकी तरफ ध्यान िे दे खा है । वैिे भी ड्राइववंग करते
िर्य िार् वाले को इतने ध्यान िे दे खने का र्ौका ही कहां सर्ल पाता है । बेहद खब
ू िूरत
अंडाकार चेहरा। कंधे तक लहराते खलु े बाल, कंधे एक दर् तने हुए जो आत्र् ववश्वाि िे ही
ऐिे हो िकते हैं। शानदार िुगहठत दे हयन्स्कटठ न्स्कजिे बार-बार र्ुड़ कर दे खने को जी चाहे ।
िही कहा गया है कक र्हहलाएं पुरुर्ों की ननगाहों के बारे र्ें अनतररक्त रूप िे िजग
होती हैं। िार्ने िड़क पर दे खते हुए भी उन्गहोंने इि तरह िे र्ेरा दे खना ताड़ सलया है । झट
िे पूछ भी सलया है -क्या दे ख रहे हैं इतनी दे र िे। आपकी नीयत तो ठीक है जनाब।
र्ैं अंजसल के चेहरे की तरफ दे ख रहा हूं। ककि धरती की प्राणी हैं ये। कुछ तो नार्षल
भी करें । इतने बरिों िे पीते हुए र्ैंने कभी नाश्ते र्ें बीयर नहीं पी और ये र्ेरठ की रानी तो
र्ुझिे दि कदर् आगे हैं। र्ैं उन्गहें दे ख कर र्ुस्कुरा रहा हूं। उन्गहोंने बीयर का चगलाि उठाया
है और र्ुझे इशारा ककया है -बीयिष।
-िुननये, वे जैिे र्ेहरबान हो गयी हैं - र्ैं आपको िारी बातें बताऊंगी। जैिे-जैिे प्रिंग
आयेगा। अभी लखनऊ िे आ रही हूं। र्ेरठ िे कल आ गयी र्ी। एररया लेवल की र्ीहटंग र्ी
कल। आज िुबह की गोवा की फ्लाइट र्ी। एयरपोटष आकर पता चला कक गोवा की फ्लाइट
कैंसिल हो गयी है । दि
ू री फ्लाइट शार् को ही सर्लेगी। र्ेरे पाि तीन-चार च्वाइि र्े। पहला
कक हटकट कैंसिल करा के र्ेरठ वावपि जाती। दि
ू री च्वाइि कक होटल वापि जाती, दोबारा
चेक इन करती, और शार् की फ्लाइट लेती। उिका कोई र्तलब नहीं र्ा क्योंकक गोवा र्ें
आज ही पूरे हदन हर्ारी कंपनी का एनुअल डे फंक्शन चल रहा है और शार् की फ्लाइट ले
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कर र्ैं डडनर के सलए र्ुन्स्कश्कल िे पहुंच पाती। तीिरी च्वाइि ये र्ी कक र्ैं कोई भी फ्लाइट
लेकर ककिी ऐिी जगह जाऊं र्ैं तीन हदन अपने तरीके िे, अपने खचे परऔर अपनी पिंद
के ककिी नये दोस्त के िार् गुज़ार िकंू । पता ककया तो र्ुंबई फ्लाइट तैयार र्ी। र्ैंने यही
ऑप्शन हदया और अब तुम्हारे िार्नेहूँ। वैिे र्ैं र्ुंबई होते हुए भी गोवा जा िकती र्ी।
लेककन तुर्िे सर्लना सलखा र्ा र्ेरे हहस्िे र्ें तो तुम्हारे िार्ने हूं। अब इिर्ें र्ैं क्या करूं
कक िारे दोस्तों र्ें सिफष तुम्हारा ही नम्बर र्ेरे पाि र्ा। बाकी िब फेिबुक तक ही िीसर्त
हैं।
-एक बात तुर्िे और शेयर करती हूं और तम्ु हें यह जान कर खश ु ी होगी िर्ीर कक
लगातार तीिरे बरि का कंपनी का बेस्ट परफॉर्षर का एवाडष तम्
ु हारी इि सर्त ् रअंजसल को
ही सर्ला है और र्ैं यह एवाडष लेने ही गोवा जा रही र्ी। हं िी आ रही है , पैिे सर्लते गोवा
र्ें और र्ैं खचष कर रही हूँ दर्न र्ें । बि एक ही बात है , बेशक िर्ंदर वहां भी होता, तर्
ु
न होते।
-न्स्कजि बात के सलए हर्ारा अबोला हुआ र्ा। फेिबुक पर प्रोफाइल वपक्चर को ले कर।
र्ैं सिफष र्ुस्कुरा कर रह गया हूं। र्ार्ूली िी बात र्ी। फेिबुक पर वैिे भी ककिी
पोस्ट की उम्र कुछ घंटे होती है और ककिी र्द् ु दे की उम्र बहुत हुआ तो दो हदन। बात इतनी
िी र्ी कक एक र्हीना पहले र्ैंने अपनी फेिबुक वॉल पर सलखा र्ा कक आज एक दघ
ु ट
ष ना
जैिी हो गयी। रोज़ाना पाँच-िात र्ैरी अनुरोध आते हैं। कई बार तो नर और नारी का ही
पता नहीं चल पाता। तस्वीर की जगह फूल पत्ती, भगवान या पाककस्तानी नानयकाएं। कुछ
लोग हं सि का र्ोटवानी की तस्वीर लगा कर उि पर अहिान कर दे ते हैं। ये र्ैरी प्रस्ताव
ककिी पाटटी के बैनर वाला र्ा। बबना जांच पड़ताल के दोस्त बनाने के हदन लद गये। उनिे
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पहचान के सलए पूछा तो उन्गहोंने ताना र्ारा कक आपकी फ्रेंड सलस्ट र्ें कई ऐिे लोग शासर्ल
हैं न्स्कजन्गहोंने अपनी तस्वीर नहीं लगा रखी है तो हर्ीं पे ये शतष क्यों। बात िही र्ी।
आगे सलखा र्ा र्ैंने कक तब पहला कार् यही ककया कक बबना प्रोफाइल वपक्चर के कई
दोस्त ववदा ककये। इि असभयान र्ें पररचचत लेककन फूल पत्ती लगाये कई दोस्त शहीद हो
गए। अभी ये कार् बाकी है । वे दोस्त बेशक फेिबुक िे ववदा हुए, र्ेरे जीवन र्ें बने रहें गे।
इिी चक्कर र्ें र्ैंने अंजसल को भी अनफ्रेंड कर हदया र्ा। बेशक सिफष उन्गहीं के
इनबॉक्ि र्ें सलखा र्ा कक आपके गुलाब के फूल को भी र्ेरी िूची िे हटना पड़ना रहा है
ताकक कोई र्ुझे ये न कहे कक अनफ्रेंड करने र्ें भी भेदभाव बरता है । सलखा र्ा र्ैंने कक आप
र्ेरी दोस्त र्ीं, हैं और बनी रहें गी। अब तक वे र्ेरी बेहतरीन फेिबुक फ्रेंड र्ी। बेशक हर्ने
कभी एक दि
ू रे के बारे र्ें न तो ज्यादा जानने और न ही बताने की ज़रूरत ही नहीं िर्झी
र्ी। इतने हदनों र्ें र्ैंने कभी नहीं पूछा कक वे ककि कंपनी र्ें हैं और क्या कार् करती हैं।
हर् बरि भर िे फेिबुक सर्र र्े और अक्िर चैट करते रहते र्े और एक दि
ू रे के
िुख दःु ख के बारे र्ें पूछते रहते र्े। हर् जब भी बात करते र्े, दनु नया जहान की बात करते
र्े। र्ेरी पोस्ट अंजसल बहुत ध्यान िे पढ़ती र्ीं और उि पर अक्िर चलने वाली बहिों र्ें
हहस्िा लेती र्ीं। हर् दोनों ने कभी र्ोबाइल नम्बर एक्िचें ज नहीं ककये र्े। इि र्द्
ु दे के
बाद पता नहीं कहां िे उन्गहोंने र्ेरा र्ोबाइल नम्बर खोजा र्ा और र्ेरी अच्छी खािी लानत
र्लार्त कर दी र्ी। र्ेरी एक नहीं िन
ु ी र्ी और दोबारा भेजी गयी र्ेरी फ्रेंडसशप की ररक्वेस्ट
को भी ठुकरा हदया र्ा।
िारा र्ार्ला वहीं खत्र् हो गया र्ा। र्ैंने एक अच्छी दोस्त को खो हदया र्ा। िम्पकष
का कोई ज़ररया नहीं रह गया र्ा। धीरे धीरे र्ैं उनके बारे र्ें भल
ू भी चक
ु ा र्ा। और अब वे
ही दोस्त न केवल र्ेरे िार्ने बैठी हैं बन्स्कल्क उि बात की भरपाई करने के सलए इतना
शानदार न्गयौता ले कर आयी हैं।
नाश्ता करने के बाद जब हर् बाहर ननकले हैं तो हर्ें कफर िे यू टनष ले कर गुजरात
की तरफ जाने वाली िड़क पर जाना है । पूछ ही सलया है उन्गहोंने कक ऐिा क्यों है कक िारे
बार िड़क के इि तरफ ही हैं।
अंजसल ने िलार् र्ें हार् उठाया है - र्ान गये उस्ताद। बसलहारी है पीने वालों की।
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गाड़ी अंजसल ही चला रही हैं। र्ैं अचानक िोच पड़ गया हूं। अंजसल की तरफ दे ख
रहा हूं। लगातार तनाव र्ें हूँ। र्ेरे िार् एक युवा,बबंदाि और अपनी तरह िे भरपरू न्स्कज़ंदगी
जीने वाली र्हहला हैं जो तीन हदन की छुट्टी र्नाने के सलए अपने िार् र्ुझे ले कर आयी
हैं। हर् बेशक फेिबुक पर एक दि
ू रे को जानते रहे हैं लेककन आज अचानक पहली बार सर्ल
रही हैं। र्हीने भर िे चल रहे अबोले को खत्र् करने चली आयी है । िर्झ नहीं आ रहा है
कक अंजसल र्ें क्या िोच कर अपनी इि यादगार हरप के सलए र्ुझे चन
ु ा है । तीन घंटे पहले
तय ककया और बबना िोचे िर्झे चली आयीं। र्ैं न सर्लता या र्ुंबई र्ें ही न होता तो। ये
तो और वो तो……तो…… एक िार् तीन हदन और तीन रात रहना। जब नाश्ता ही बीयर िे हो
रहा है तो दर्न र्ें तो वक्त बेवक्त चलेगी। पता नहीं अंजसल जीके र्न र्ें क्या हो।
हर् नानी दर्न पहुंच गये हैं। कई बरि के बाद आ रहा हूं तो पता नहीं इि बीच
कौन-कौन िे नये होटल खल ु गये हैं। चेक करने के सलए र्ोबाइल ननकालता हूं लेककन
अंजसल जैिे अपनी ही धन
ु र्ें कार चला रही हैं। कुछ ही दे र र्ें हर् जजीरा होटल की लॉबी
र्ें हैं।
कार वेलेट पाककिंग के हवाले करके हर् ररिेप्शन पर आये हैं। अंजसल ने र्झ
ु े बैठने के
इशारा ककया है ।
पछ
ू ा है र्ैंने - इि होटल के बारे र्ें कैिे पता र्ा? पहले कभी आयी हैं?
- जी नहीं, हर् आज यहां पहली बार आये हैं और तर्
ु िे सर्लने के बाद तुम्हारी कार
र्ें बैठे हुए ही र्ैंने ऑनलाइन बकु कंग की र्ी। र्ैंने राहत की िांि ली है । अंजसल की पिंद
और सिस्टर् िे कार् करने के सलए उनकी तरफ तारीफ भरी ननगाह िे दे खता हूं।
कर्रे र्ें ही जा कर पता चला है कक अंजसल ने कर्रा न बुक कराके डीलक्ि िुइट
बुक कराया है । रूर् िववषि स्टाफ के जाते ही अंजसल ने कफर िे र्ुझे हग ककया है और र्ेरे
गाल चटु ककयों र्ें भरते हुए कहा है - ये पोशषन र्ेरा और र्ास्टर बेडरूर् आपका ताकक हर्
पाि रहते हुए भी दरू रहें और दरू रहते हुए भी पाि रहें ।
- सिंपल। अगर तुर् कर्ज़ोर पड़ गये तो र्ैं तुम्हें िंभालूंगी और कर्ज़ोर नहीं पड़ने
दं ग
ू ी और अगर कहीं र्ैं कर्ज़ोर पड़ गयी तो तुर् र्ुझे िंभाल लेना।
तभी र्ैंने अंजसल को दोनों कंधों िे र्ार्ा है और उनकी आंखों र्ें आंखें डाल कर पूछा
है - और अगर हर् दोनों ही कर्ज़ोर पड़ गये तो?
अंजसल ने जवाब र्ें र्ेरे कंधे दबाये हैं - र्दष हो ना, कर्ज़ोर होने की ही बात करोगे।
ये क्यों नहीं कहते कक हर् दोनों ही र्ज़बूत बने रहे तो ककतनी बड़ी बात होगी। वे र्ेरा हार्
र्ार्े र्ुझे िोफे तक लायी हैं। हर् बैठ गये हैं। र्ेरे हार् अभी भी उनके हार्ों र्ें हैं। वे र्ेरी
आंखों र्ें आंखें डाल कर कह रही हैं- िर्ीर, र्ैं यहां कर्ज़ोर हो कर या कर्ज़ोर होने नहीं
आयी हूं। र्ेरी पूरी फ्रेंडसलस्ट र्ें अकेले तुम्हीं रहे न्स्कजिने कभी भी कोई सलसर्ट िाि नहीं की
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वरना इि प्लेटफार्ष पर ऐिे लोग भी भरे पड़े हैं न्स्कजनका बि चले तो फेिबुक पर ही पहले
अपने और कफर िार्ने वाले के कपड़े उतारने र्ें एक सर्नट की दे री न करें । वे रुकी हैं। र्ैं
उनके चेहरे की तरफ दे ख रहा हूं।
वे आगे कह रही हैं - बि र्ुझे और कुछ नहीं कहना। आओ दे खें खखड़की िे िर्ंदर
का नज़ारा कैिा हदखता है । हर्ें आये हुए इतनी दे र हो गयी और अब तक हर्ने िर्ंदर िे
र्ुलाकात नहीं की।
तभी दरवाजे पर नॉक हुई है । दरवाजा खोलता हूं। तीन वेटर हैं। ढे र िारा िार्ान
सलये। फ्रूट, बबन्स्कस्कट, चॉकलेट्ि, कुकीज और दो वाइन बॉटल्ि। एक आइि बकेट र्ें और
एक रूर् टे म्परे चर पर। होटल की तरफ िे कम्पलीर्ें टरी बॉटल्ि दे खते ही अंजसल ने र्ुझे
आँख र्ारी है ।
हर् दोनों कर्रा दे खते हैं। दो तरफ की दीवार पर पूरी खखड़की है । िार्ने हर-हराता
िर्ंदर दे ख कर अंजसल की खश
ु ी के र्ारे उनकी चीख ननकल गयी है । िार्ने ठाठें र्ारता
अनंत जल ववस्तार है। होटल के गाडषन की दीवार िे टकराती ऊंची-ऊंची लहरें । हाइ टाइड
होना चाहहये। अंजसल ने एक बार कफर र्झ
ु े अपने िे िटा सलया है - हर् ककतने िही वक्त
पर आये हैं ना। हाइ टाइड हर्ारी अगवानी कर रही है - लेट्ि िेसलब्रेट।
र्ैं झल्लाता हूं -अंजसल जी,कपड़े रखने के सलए कहते िर्य आपने कहां कहा र्ा कक
हर् कहां जा रहे हैं। लेककन डोंट वरी। आप वाशरूर् र्ें जा कर चें ज करो। र्ैं हं िता हूं - र्दों
के सलए न्स्कस्वसर्ंग कॉस्टयूर् कहां होते हैं।
वे अपना कास्ट्यूर् पहन कर उि पर बार्रोब डाल कर तैयार हैं। वे छोटी बच्ची जैिी
चपल हो रही हैं िर्ंदर िे सर्लने जाने के सलए।
अंजसल ने बहुत एन्गजाय ककया है । दो घंटे हो गये हैं , पानी िे बाहर आने का उनका
र्न ही नहीं है । उजला फेननल जल जब वावपि लौटने लगा है तब भी वे वहीं रहना चाहती
हैं। र्ेरा हार् र्ार् कर वे पानी िे खब
ू अठखेसलयां कर रही हैं। र्ेरे सलए भी आज का
अनुभव एकदर् नया और हदल के बेहद करीब है । हर् दोनों पानी र्ें न्स्कजतनी र्स्ती रहे
हैं,लगता ही नहीं कक हर् आज चार घंटे पहले ही न्स्कज़ंदगी र्ें पहली बार सर्ले हैं।
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हर्ने तय ककया है कक खाना भी वहीं िर्ंदर के ककनारे गाडषन र्ें ही खा लेंगे। नहाने
की बाद र्ें िोची जायेगी। बि एक बार दोनों ही फ्रेश वाटर का शावर ले कर आ गये हैं।
हर् दोनों अभी भी बार् रोब र्ें ही हैं। बार्रूर् र्ें शावर ले कर आते िर्य अंजसल बेहद
खश
ु लग रही हैं। उनका चेहरा धप
ू िे, नर्कीन पानी की दर्क िे और यहां आने की,
िर्ंदर र्ें नहाने की खश
ु ी के सर्ले-जुले अिर िे इंद्रधनुर् हो रहा है । इि बार र्ैं पहल करता
हूं और हदन दहाड़े, िबके िार्ने और अरब र्हािागर को िाक्षी बनाते हुए उन्गहें गले िे लगा
सलया है | र्ैंने उनके गाल चर्
ू सलये हैं। र्न को तिल्ली दे लेता हूं कक इतने भर िे हर्
दोनों कर्ज़ोर नहीं हो जायेंगे। वे इतरायी हैं। र्ेरी छाती पर र्ुक्का र्ारते हुए बोली हैं - यू
नॉटी बाय।
लंच र्ें अंजसल ने कफर िे बीयर का ऑडषर हदया है । जानता हूं, जब तक यहां हूं,पीने
और िर्ंदर िे र्ुलाकातें करने का कोई हहिाब नहीं रखा जायेगा।
जब हर् कर्रे र्ें आये हैं तो दोपहर के चार बजे हैं। बार् लेने और चेंज करने के
बाद र्ैं अंजसल िे कहता हूं कक वे बेडरूर् र्ें िो जायें। इििे पहले कक वे अपना इरादा र्ुझ
पर लादें , र्ैं पहले वाले रूर् र्ें िोफा कर् बेड पर पिर गया हूं। लेककन अंजसल ने र्ेरी एक
नहीं र्ानी है और र्ेरा हार् पकड़ कर र्झ ु े बेडरूर् र्ें ले आयी हैं और बबस्तर पर धकेल
हदया है - सर्स्टर गेस्ट, ये आपके सलए है । र्ैं बाहर लेट रही हूं। और वे बाहर वाले कर्रे र्ें
चली गयी हैं।
अचानक कुछ िरिराहट िे र्ेरी नींद खल ु ी है । दे खता हूं अंजसल डबल बेड पर एकदर्
र्ेरे पाि अधलेटी लैपटॉप र्ें तस्वीरें दे ख रही हैं। कर्रे र्ें बवत्तयां जल रही हैं।
टाइर् दे खता हूं -आठ बजे हैं। र्ैं उठ बैठता हूं - तो इिका र्तलब र्ैं चार घंटे तक
िोता ही रहा। र्ुझे जागा दे ख कर अंजसल र्ुस्कुरायी हैं और र्ेरे हार् पर हार् रख कर बेहद
प्यार िे पूछती हैं - चाय या कॉफी? यहीं बनाऊं या रूर् िववषि िे र्ंगाऊं?
र्ैं अचकचाया हूं – नहीं, वो क्या है अंजसल कक आपकी पिषनैसलटी के िार् तुर् शब्द
कफट ही नहीं हो रहा। िब ु ह िे कहना चाह रहा हूं लेककन हर बार ज़बान तक आते-आते तुर्
अपने आप आप र्ें बदल जाता है ।
- ओके नो प्रॉब्लर्। हर् तुम्हारी र्दद करते हैं। उन्गहोंने र्ेरा हार् र्ार्ा है और कह
रही हैं, र्ेरे िार्-िार् बोलो - अंजसल, चाय की तलब लगी है , चाय वपलाओ ना।
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र्ैं हं िता हूं। अंजसल को छू कर पूछता हूं - अंजसल,तेरी चाय पीने की इच्छा है क्या,
बोल, कौन-िी वाली पीयेगी। और ये कहते हुए र्ैं िचर्ुच चाय बनाने के सलए उठ खड़ा हुआ
हूं।
अंजसल अभी भी लैपटॉप र्ें उलझी हैं। अपनी चाय ले कर र्ैं भी अंजसल के पाि
िरक आया हूं और तस्वीरें दे खने लगा हूं। वे वपकािा र्ें तस्वीरें दे ख रही हैं। स्लाइड शो चल
रहा है । वे लैपटॉप र्ेरी तरफ र्ोड़ दे ती हैं। तस्वीरें कुछ जानी पहचानी लग रही हैं। ध्यान िे
दे खता हूं- अरे ये तो र्ेरी ही तस्वीरें हैं। अब र्ैं लैपटॉप को ध्यान िे दे खता हूं। ये र्ेरा ही
तो लैपटॉप है ।
अंजसल हं िती हैं- िर्ीर, र्ैं 6 बजे ही जाग गयी र्ी। तुर् गहरी नींद र्ें र्े। कुछ
िूझा ही नहीं कक क्या करूं। पहले खखड़की के पाि खड़ी रही। िर्ंदर लो टाइड के कारण
बहुत पीछे चल गया र्ा। अच्छा नहीं लगा। कफर याद आया कक तुम्हें लैपटॉप लाने के सलए
कहा र्ा। बाकी िार्ान के िार् लैपटॉप भी कर्रे र्ें आ गया र्ा। खोला तो पािवडष नहीं
र्ा।
-हर्र्, अकेले रहने वाले ककिके सलए पािवडष रखें गे। कौन िे र्झ
ु े इि लैपटॉप िे
न्स्कस्वि बैंक के खाते र्ैनेज करने हैं।
र्ैं भी बेड की टे क लगा कर लैपटॉप के िार्ने हो गया हूं। हर् दोनों बेहद नज़दीक
हैं। इतने कक एक दि ू रे की िांिों की आवाज़ तक िुनायी दे । उनके खलु े बालों िे तो र्हक
आ ही रही है , उनके बदन िे उठती खश
ु बू की अनदे खी नहीं कर िकता। ककिी तरह खद
ु पर
कंरोल करके हर तस्वीर के बारे र्ें उन्गहें बता रहा हूं। एक अच्छी बात ये हो गयी है कक
उन्गहोंने लगभग िारी तस्वीरें पहले िे दे ख रखी हैं। वपकािा र्ें हर फोल्डर पर नार् सलखा है
और फोटो लेने या िेव करने का र्हीना और वर्ष सलखा है ।
इंदस
ु ंचत
े ना जुिाई-ससतंबि 2016
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नहीं, कर्ज़ोर नहीं पड़ना है । उठ कर पानी पीता हूं। बार्रूर् जाता हूं। हार् र्ुंह धो कर कुछ
हालत िंभली है । घड़ी दे खता हूं। पौने दि।
अंजसल िे कहता हूं - क्या ख्याल है अंजसल, काफी आरार् कर सलया है हर्ने। नीचे
चलें क्या?
र्ैं चें ज करने के बाद पहले वाले पोशषन र्ें चला आया हूं ताकक अंजसल तैयार हो िकें।
पछ
ू ा है अंजसल ने - क्या ख्याल है , बार र्ें बैठें, गाडषन र्ें या िीधे ही रे त पर?
र्ैंने हं ि कर कहा है - बार और गाडषन बार तम्
ु हारे शहर र्ें भी होंगे और र्ेरे शहर र्ें
भी हैं। रे त पर बैठ कर ही हर् शार् गज
ु ारें तो कैिा रहे । बेशक हवा चल रही है । िर्ंदर के
ककनारे बबतायी गयी शार् हर्ेशा याद रहे गी।
इतने र्ें रे स्तरां र्ैनेजर ने आकर िलार् ककया है । अंजसल िे उििे ही पूछा है - अगर
हर् रे त पर ही बैठें तो खाने पीने का इंतजार् हो जायेगा क्या?
उिने र्ुस्कुरा कर कहा है - श्योर र्ैडर्। हर् आपके सलए रे त पर ही आरार् कुसिषयां
लगा दे ते हैं। पीने का और खाने का इंतज़ार्हो जायेगा। हर् आपके सलए फुट रे स्ट भी ले
आयेंगे ताकक जब हाइ टाइड आये तो भी आप वहीं बैठे एन्गजाय कर िके। दै ट ववल दी रीयल
फन। बि दो सर्नट आप दीन्स्कजये, र्ैं िारा इंतज़ार् कर दं ग
ू ा।
वह रुका है - बाय द वे, आज की शार् आप कैिे िेसलब्रेट करना चाहें गे?
अंजसल ने र्ेरी तरफ दे खा है । र्ैंने बताया है आप हदन र्ें दो बीयर और हाफ वाइन
पी चक
ु ी हैं।
- शट अप। ये शट अप र्ेरे सलए है ।
इंदस
ु ंचत
े ना जुिाई-ससतंबि 2016
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- तो कफर आप तैयारी कीन्स्कजये, हर् पाँच सर्नट र्ें टहल कर आते हैं।
र्ैं है रान हूं। ववश्वाि नहीं हो रहा कक अंजसल र्ेरठ जैिे कस्बायी शहर िे आयी हैं।
रहा नहीं जाता, पूछ ही लेता हूं - यार, गज़ब है तुम्हारी नॉलेज। तुम्हें ये भी पता है कक
होटल के स्टॉक र्ें कौन िी इम्पोटे ड स्कॉच है । पहले िबिे अच्छा होटल ऑनलाइन बुक
कराया, अब उनके बार की भी पूरी खबर……..
-यार, ननरे बुद्धू हो तुर्। तुर् जब िो रहे र्े तो र्ैंने अपना िुइट ध्यान िे दे खा
र्ा।वहां एक सर्नी बार भी है । वहीं रखी दे खी र्ी र्ैंने ये स्कॉच और दि
ू री कई वाइन
बॉटल्ि। कफ्रज भी भरा पड़ा र्ा। जब िार्ने है तो चख कर दे ख भी ली जाये। कफर ये शार्
कहां और हर्तुर् कहां?
हर् रे त पर नंगे पाँव टहल रहे हैं। कुल सर्ला कर बीच पर अँधेरा ही है । एक तरफ
िर्ंदर है और दि
ू री तरफ होटलों की कतार। वहीं िे जो रौशनी आ रही है ,उिर्ें पानी पर
रौशनी के कतरे अपनी चचरकारी कर रहे हैं। बेहद रोर्ांहटक र्ाहौल। र्ैं र्ाहौल की तारीफ
करना चाहता हूं लेककन चप ु हूं। जानता हूं कुछ भी कहूंगा तो अंजसल अभी ्यारह टन का
कोई बर् र्ेरे सिर पर दे र्ारें गी। र्ेरी उं गसलयां अभी भी उनके हार् र्ें हैं।
िर्ंदर के ककनारे हर् दोनों के सलए र्हकफल िजा दी गयी है । चारों तरफ के घने
अंधेरे का र्ुकाबला करने के सलए एक चचर्नी र्ें र्ोर्बत्ती जला दी गयी है । हजारों र्ील
लम्बे िर्ंदर के आँगन वाला हर्ारा कैंडडल लाइट बार तैयार है ।
ये शार् र्ेरी न्स्कज़ंदगी की िबिे हिीन शार् है । स्कॉच अपना रं ग हदखा रही है और
इि रोर्ांहटक र्ाहौल का नशा उि स्कॉच के नशे र्ें जैिे घुल रहा है । हवा र्ें खन
ु की बढ़
गयी है और एक वेटर अंजसल को शॉल ओढ़ा गया है ।
र्ैंने अंजसल का हार् र्ार् रखा है । उन्गहोंने कुछ नहीं कहा है । हर् दोनों ही एक दि
ू री
दनु नया र्ें हैं। हर्ने बहुत कर् बातें की हैं। बि, एक दि
ू रे की र्ौजूदगी को र्हिूि ककया है ।
स्कॉच र्ोड़ी िी ही बची है और खाना लगा हदया गया है । र्ैंने बहुत कर् खाया है । ऐिे
र्ाहौल र्ें खाना खाने की िुध ही ककिे है । हर् हैं और हर्ारी तरफ हार् बढ़ाती अनचगनत
लहरें हैं जो हर बार और नज़दीक आकर हर्ारे पाँव र्पर्पा रही हैं , र्ानो कह रही हों, इट्ि
वंि इन लाइफ एक्िपीररंयि। बाट्म्ि अप एंड एन्गजाय अपटू द लास्ट ड्राप।
इंदस
ु ंचत
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अचानक अंजसल उठी हैं। ये र्ैं क्या दे ख रहा हूं। अंजसल ने कैंडल बुझा दी है । अब
तब जो र्ोड़ी बहुत रौशनी र्ी, वह भी दर् तोड़ गयी है । हर् जहां पर बैठे हैं , घुप्प अंधेरा हो
गया है , कफर भी र्ैं अंदाजा लगा पा रहा हूं कक अंजसल अपने कपड़े उतार रही हैं। इििे पहले
कक र्ैं कुछ िर्झ पाऊं या पूछ पाऊं, वेपूरी तरह िे न्गयूड हो कर िार्ने िर्ंदर र्ें िर्ा
गयी हैं।
र्ैं र्रर्रा रहा हूं। ये र्ैं क्या दे ख रहा हूं। पानी र्ें अंजसल का होना र्ैं र्हिूि कर
पा रहा हूं। उििे ज्यादा कुछ नहीं। वे जैिे लहरों िे र्ोचाष ले रही हैं। उठना चाहता हूं,
िोचना चाहता हूं लेककन दोनों ही कार् नहीं कर पाता। आंखें बंद कर लेता हूं। जैिे र्ैं एक
लम्बी दौड़ पूरी करके आया हूं और कुिी पर ननढाल पड़ गया हूं। उठने की हहम्र्त ही नहीं
रही है । पीछे र्ुड़ कर दे खने की कोसशश करता हूं कक होटल का कोई स्टाफ तो नहीं दे ख रहा
लेककन नहीं दे ख पाता।
लगता है ,अंजसल लौट आयी हैं और अब कपड़े पहन रही हैं। र्ैंने आंखें बंद कर ली हैं।
र्ेरा कंधा र्पर्पाया है अंजसल ने - अब चलें। र्ैं जैिे िपने िे जागा हूं।
इंदस
ु ंचत
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र्ुझिे सर्लने, र्ेरे िार् हॉलीडे र्नाने इतनी दरू िे आयी हैं अंजसल। यू आर….. यू
आर ग्रेट अंजसल। आइ लव यू अंजसल.. लव यू … आइ नीड यू अंजसल.. अंजसल आइ नीड
यू… र्ेरी सशरायें तन रही हैं। उठ बैठता हूं। पानी पीता हूं। अंजसल र्ैं कर्ज़ोर नहीं पड़ना
चाहता लेककन इतना र्ज़बूत भी नहीं हूं कक इतने खल ु े इन्गवीटे शन को ठुकरा दं ।ू अंजसल..
र्ुझे िर्झने की कोसशश करना। र्ैं तो आपको िर्झ नहीं पाया। उठ कर अंजसल के कर्रे
र्ें जाता हूं। नाइट लैम्प की हल्की रौशनी है । वे करवट ले कर िोयी हुई हैं। पता नहीं र्ैं
नशे र्ें हूं इिसलए वे ज्यादा खब ू िूरत लग रही हैं या वे खदु नशे र्ें हैं इिसलए ज्यादा
खब
ू िूरत लग रही हैं या दोनों का नशा। िर्ंदर र्ें उतरती उनकी न्न काया र्ैंने अभी र्ोड़ी
दे र पहले ही तो इतने पाि िे दे खी है ।। र्हिूि की है । अब र्ेरे िार्ने हैं अंजसल। र्ैं तुम्हारे
बबना नहीं रह िकता अंजसल। तुर् र्ुझे न्स्कजि र्ोड़ पर ले कर आयी हो, वहां िे र्ैं खाली
हार् नहीं लौट िकता। र्ैं जल रहा हूं। र्ैं वपघल रहा हूं। र्ैं र्र जाऊंगा।
एक झटका लगा है । र्ैं ये क्या कर रहा हूं। ये गलत है । कर्ज़ोर नहीं होना। वादा
ककया है अंजसल िे। लेककन अंजसल तुर् खदु ही तो र्ुझे कर्ज़ोर करने के सलए एक के बाद
एक जाद ू हदखा रही हो। क्या करूं र्ैं .. । जो होता है होने दो। दे खा जायेगा।
र्ैं अंजसल के बेड के पाि जर्ीन पर बैठ गया हूं। उनकी तरफ हार् बढ़ाता हूं। इििे
पहले कक र्ैं उन्गहें छू पाऊं, अंजसल उठी हैं। र्झ
ु े िहारा दे कर उठाया है और र्ेरा हार् र्ार्े
हुए बबना एक भी शब्द बोले र्झु े र्ेरे बबस्तर तक ला कर सलटा हदया है । र्ोड़ी दे र तक र्ैं
अपने र्ार्े पर उनके हार् का नरर् स्पशष र्हिूि करता हूं। और धीरे धीरे … नींद के आगोश
र्ें …
िुबह अंजसल ने ही जगाया है । चाय के सलए। र्ैं अंजसल की तरफ दे खता हूं। वे भेद
भरी र्ुस्कुराहट के िार् गुड र्ाननिंग कहती हैं। र्ैं वाशरूर् हो कर आता हूं। खखड़की के पाि
वाले िोफे पर बैठी हैं अंजसल।
वे चाय का प्याला र्ेरी तरफ बढ़ाते हुए पूछती हैं - रात कैिी कटी बाबू?
- कोई बात नहीं, हो जाता है । र्ैंने कहा र्ा ना कक तुम्हें कर्ज़ोर नहीं पड़ने दं ग
ू ी।
र्ैं अंजसल िे नज़र ही नहीं सर्ला पा रहा हूं। ककिी वप्रय की ननगाहों र्ें चगरना और
खद
ु की ननगाहों र्ें चगरना - दोनों चीज़ें र्ेरे िार् एक िार् हो रही हैं। र्ैं उनकी आंखों र्ें
शरारत दे ख रहा हूं। खद
ु पर गुस्िा आ रहा है , र्ैं ऐिा क्यों कर गया।
वे पूछती हैं - और चाय लोगे?
इंदस
ु ंचत
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उनके िार्ने िे हटने का यही तरीका है कक अब चाय र्ैं बनाऊं वरना उनके िार्ने
बैठा रहा तो झुलि जाऊंगा।
र्ैं चाय बनाने के सलए उठता हूं। अंजसल कह रही हैं - ब्रेकफास्ट के बाद ज़रा घूर्ने
चलेंगे। वैिे भी अरब र्हािागर र्हाराज अभी आरार् फरर्ा रहे हैं।
- रात कुछ ज्यादा ही हो गयी र्ी र्ुझ।े यही तरीका है कक र्ैं अपनी हरकत के सलए
उनकी शराब और उनके ओपन इन्गवीटे शन को ही दोर्ी ठहरा दं ।ू
- बहुत ज्यादा तो नहीं जनाब बि इतनी कक हर् खदु आपके बराबर ही पीने के बाद
आपको िहारा दे कर कर्रे तक लाये र्े, आपको आरार् िे िुलाया र्ा। लेककन क्या कहें ..
उन्गहोंने ठं डी िांि भरी है - लेककन क् या कहें आपके हिीन नशे का। उतरने का नार् ही नहीं
लेता र्ा। पहले आधी रात को आपको हर्ारे पाि लाया, हर्ने दोबारा आपको आपके बबस्तर
पर सलटाया, आपके िो जाने के बाद हर् वावपि आये तो भी आपके नशे ने आपको िोने
कहां हदया। आप रात भर जागते रहे । कभी खखड़की पर खड़े हो रहे हैं तो कभी बार्रूर् जा
रहे हैं। कभी उठ रहे हैं तो कभी बैठ रहे हैं।
-जनाब, हर्ें नहीं तो ककिे पता होगा। आपकी हरकतों न हर्ें भी िारी रात जगाये
रखा। उन्गहोंने जान बूझ कर उबािी ली है और अपने र्ुंह के आगे चट
ु की बजायी है - हर्ें तो
अभी भी नींद आरही हैं।
र्ैंने कुढ़ कर कहा है - तो रोका ककिने है । िो जाइये, वैिे भी हर्ें कौन िा कार्
करना है ।
वे चहकी हैं - इतना आिान है िोना? कहीं आपके भीतर का शेर कफर जाग गया तो?
र्ेरा जवाब िन
ु कर वे तपाक िे उठी हैं और ताली बजा कर र्ेरी तरफ बढ़ी हैं -क्या
तीर र्ारा है र्ेरे शेर ने। खश
ु कर हदत्ता। आ तुझे गले िे लगा लूं र्ेरे शेर और वे िचर्ुच
र्ेरे गले िे सलपट गयी हैं। चलो इि बात पर एक और चाय हो जाये।
र्ुझे िुकून सर्ला है कक िारा र्ार्ला है प्पी ऐंडडंग के िार् ननपट गया है ।
इंदस
ु ंचत
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हर् हदन भर खब
ू घूर्े हैं। पैदल। एक एक दक
ु ान र्ें जा कर झांकते रहे । अंजसल ने
ढे र िारी चीज़ें खरीदीं और िारी चीज़ें आखखरी दक
ु ान र्ें दे दीं कक होटल पहुंचवा दें ।
खाना भी हर्ने एक िरदार जी के ढाबे र्ें खाया है । िबिे ज्यादा वक्त वहीं गुज़ारा।
वहां बबछी चारपाई पर पिरे रहे और अंजसल िरदार जी िे घर पररवार की बातें करती रही।
पता चला कक िरदार जी की पचाि बरि पहले यहीं पर स्पेयर पाट्षि की दक
ु ान र्ी। लेककन
जबदे खा कक नार्ष इंडडयंि यहां आकर खाने के सलए बहुत परे शान होते हैं तो पंजाब िे अपने
एक पररचचत कुक को बुलवा कर ये ढाबा खोल सलया। अंजसल ने जब पूछा कक अपने घर िे
इतनी दरू घर वालों की याद नहीं आती तो बुजुगष िरदार जी र्ुस्कुरा कर बोले - ना जी, रब्ब
की र्ेहर है । दर्न और सिलवािा के ज्यादातर ढाबे र्ेरे बच्चों और भाइयों के ही हैं। एक
एक करके िबको यहीं बुला सलया है । िुन कर हर् खब
ू हं िे हैं। इिे कहते हैं अिली
इंटरप्रेनुअरसशप।
हर् चार बजे वावपि पहुंचे हैं। कर्रे र्ें आते ही अंजसल पलंग पर पिर गयी हैं।
उनका खरीदा िारा िार्ान आ चक ु ा है । र्ैं कफ्रज खोल कर दे खता हूं कक पीने के सलए नॉन
एल्होकोसलक क्या रखा है । र्ैं अपने सलए रे ड बल ु का कैन ननकालता हूं। अंजसल िे पछू ता हूं
-लोगी? वे चचढ़ जाती हैं - क्या लेडीज़ डड्रंक पी रहे हो। कुछ बीयर शीयर हो तो दो। र्ैं उन्गहें
स्रांग बीयर का कैन र्र्ाता हूं।
वे हं िती हैं। क्या ज़र्ाना आ गया है । र्दष लेडीज़ डड्रंक पी रहे हैं और लेडीज बेचारी…
च्च्च… र्ैं उन्गहें आंखें हदखाता हूं - बताऊं क्या?
र्ैं कहता हूं - नेकी और पूछ पूछ। हर् बहुत अच्छे श्रोता हैं,बि हर्ें बदले र्ें कोई
गाने के सलए न कहे ।
अंजसल िचर्ुच बहुत अच्छा गा रही हैं। बहुत िारे ऐिे पुराने और बीते हदनों के गीत
गाये हैं कक र्ैं है रान हूं कक ये िारे गीत अंजसल की स्र्नृ त का हहस्िा कब और कैिे बने
होंगे। अंजसल तीि बत्तीि बरि की,या बहुत हुआ तो चौंतीि बरिकी होंगी। लेककन वे जो
इंदस
ु ंचत
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गीत गा रही हैं, िब के िब छठे िा िातवें दशक के हैं। उनके गीत िुनते िुनते कब शार्
ढल गयी, पता ही नहीं चला।
हर् गाडषन रे स्तरां र्ें ही बैठे हैं। िर्ंदर ज्यादा दरू नहीं है । हार् बढ़ा कर छू लो।
अंजसल डड्रंक्ि केसलए र्ीनू दे ख रही हैं। र्ैं उन्गहें दे ख रहा हूं। वे र्ीनू दे खते हुए भी र्ेरा
दे खना ताड़ गयी हैं।
कह डालो।
बि यही या और कुछ?
इि तरह िे र्ना करने की वजह? वैिे इि बात की कोई गारं टी नहीं दी जा िकती।
अंजसल ने ही बात िंभाली है -दरअिल तुर् अचानक िोच ही नहीं पाये र्े कक र्ैं
कुछ ऐिा भी कर िकती हूं। िुबह िे एक के बाद एक झटके दे रही र्ी और ये झटका
तुम्हारे सलए इतना बड़ा र्ा कक तुम्हारे होश ही उड़ गये। एक परायी शादीशुदा और पहली ही
र्ुलाकात र्ें क्या क्या खेल हदखा रही है ।
बात तो अंजसल िही ही कह रही है । र्ैं िुबह िे सर्ल रहे झटकों र्ें ही डूब उतरा रहा
र्ा और रात वाला झटका तो र्ेरी निों तक र्ें उतर गया र्ा।
इंदस
ु ंचत
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र्ैंने अंजसल को र्नाने की कोसशश की है - अब रात गयी बात गयी। अपनी बात पूरी
करो ना।
-दरअिल र्ुझे िर्झ नहीं आ रहा कक शुरू िे शुरू करूं। अपनी बात आज िे शुरू
करके वहां तक पहुंचाऊं जहां िे ये दौड़ शुरू की र्ी या पीछे िे आज तक की यारा करूं।
बात लम्बी है और पूरी बात करने र्ें िर्य लगेगा।
- ओ के, दरअिल र्ैंने तुम्हें अपने बारे र्ें बहुत कर् बताया है । तुम्हें क्या, ककिी को
भी र्ेरे बारे र्ें कुछ भी नहीं पता। कल िे तर्ु एक चल ु बल
ु ी, बेलौि, खखलंदड़ी और एक्स्रा
र्ॉड लड़की िे ही सर्ल रहे हो जो नेशनल हाइवे पर चलती गाड़ी र्ें अपनी ब्रा उतार िकती
है , खब
ू पीती है , बीयर के िार् ब्रेकफास्ट करती है । फाइव स्टार होटल र्ें ठहरते हुए एक
पराये र्दष के िार्ने िर्ंदर र्ें नंगे बदन उतर जाती है और इिी तरह की हरकतें करती
रहती हैं और हां, अपने फेिबुक फ्रेंड के िार् अपनी पहली ही र्ुलाकात र्ें यादगार हॉलीडे
र्नाने के सलए दर्न तक चली आती है और एक ही कर्रे र्ें ठहरती है।
- तम्
ु हें पता है ना िर्ीर कक र्ैं गोवा जाने वाली र्ी। एक हदन हर्ारी ऑकफसशयल
र्ीट रहती और दो हदन हर्ारे र्ज़े र्ारने के सलए इंतज़ार् र्ा। कर् िे कर् 100 लोग होते
वहां लेककन र्ैं अगली िुबह यानी र्ीट के अगले हदन ही गायब हो जाने वाली र्ी और िीधे
कलंगट
ू बीच पर पहुंच जाती। तर्
ु जो जानते ही हो कक कलंगट ू बीच पर दनु नया भर िे आये
लोग हदन रात बीच पर ही नंग धड़ंग पड़े रहते हैं। र्न होता है तो पानी र्ें उतर जाते हैं
और कफर आ कर बीच पर लेट जाते हैं। र्ैं भी यही करने वाली र्ी लेककन वहां नहीं जा
पायी और यहां आ गयी। न्स्कजतना कर िकी, ककया और आज भी करती लेककन अब तुर्ने
आज के सलए र्ना कर हदया तो यही िही। आखखर र्दष जात हो ना, कैिे िहन कर पाते।
- कहती चलो।
- दरअिल ये एक तरीका होता है । नेचर िे, प्रकृनत िे िीधे इंटरे क्ट करने का। िीधे
िाक्षात्कार करने का। प्रकृनत को इन्गवाइट करो कक वह पूरी सशद्दत के िार्,पूरी खब
ू िूरती के
िार् अपने िारे कीर्ती उपहार आपको िौंपे। आपके पोर पोर को ननहाल कर दे । ये कार्
र्ैंने कई बार ककये हैं िर्ीर। धप
ू के िार्,बरिात के िार्,चाँदनी के िार्। र्ंद र्ंद बहती
ठं डी हवा के िार्। र्ैंने कई कई रातें खझलसर्ल तारों की िंगत र्ें नंगे बदन गुजारी हैं।
इंदस
ु ंचत
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धप
ू का उपहार दे ता है , बरिात र्ें पववर जल का उपहार र्ुझे सर्लता है और कई बार ऐिा
भी हुआ है कक र्ैंने चांदनी रात र्ें पूरी पूरी रात चाँदनी को अपने नंगे बदन का स्पशष करने
हदया है । तब र्ैं होती हूं और र्ेरे ऊपर खल ु ा आिर्ान होता है । र्ैं बहुत लकी हूं कक र्ुझ
पर नेचर खल ु े हार्ों अपना खजाना लुटाती है और जब र्ैं छत िे नीचे आती हूं तो पहले िे
और अर्ीर हो जाती हूं।
- ग्रेट। लेककन अंजसल, तुर्ने ये िब िीखा कहां िे? र्ेरठ जैिे शहर र्ें र्ैं िोच भी
नहीं िकता कक तुर् इतनी ऐय्याशी का जीवन जी रही हो।
हर्ारे डड्रंक्ि आ गये हैं। आज अंजसल ने वोदका र्ंगायी है । चीयिष करते हुए अंजसल
कह रही है - अरे र्ुझे ये िब िीखने के सलए कहीं नहीं जाना पड़ा। बि होता चला
गया।बेशक यहां तक की यारा बेहद र्ुन्स्कश्कल और इतनी तकलीफों िे भरी रही कक तुर्
िुनोगे तो दांतों तले उँ गली दबा लोगे।
- यारा के बारे र्ें बाद र्ें बताना, जो बता रही हो, ज्यादा रूर्ानी है । वही बताती
चलो।
- तो िन
ु ो एक शब्द होता है िेल्फ एक्चअ
ु लाइजेशन। हहंदी र्ें इिे पता नहीं क्या
कहें गे। लेककन र्ैंने अपने जीवन र्ें इिकी िारी अच्छी-अच्छी बातों को उतार सलया है । ये ही
र्ेरी जीवन शन्स्कक्त है । इि अकेले शब्द ने र्ेरी न्स्कज़ंदगी बदल कर रख दी है । वरना र्ैं कहां
र्ी, ये िोच के ही र्ेरी रूह कांप जाती है ।
- र्ैंने इिके बारे र्ें कभी गहराई िे जानने की कोसशश नहीं की। बेशक तम्
ु हारी वॉल
पर इि तरह की चीजें अक्िर नज़र आती र्ीं और हर्ेशा और ज्यादा जानने की इच्छा रही।
कभी हो नहीं पाया। दे खो आज ककतना अच्छा र्ौका सर्ला है , तर्
ु खद
ु बता रही हो।
- ज्यादा चर्चाचगरी करने की ज़रूरत नहीं। जो सर्ला है उििे ज्यादा कुछ सर्लने
वाला नहीं और जो नहीं सर्ला है , वह सर्लने वाला नहीं। वे इतरायी हैं।
- अरे तुर् तो बातों को फालतू र्ें गलत र्ोड़ दे रही हो। इि अरब र्हािागर की
किर् खाता हूं कक र्ेरी नीयत बबलकुल िाफ है और अगले कई हदन तक िाफ ही रहने
वाली है ।
- बनो र्त और बको र्त। र्ेरे िार्ने जब पहली बार ये शब्द आया तो र्ैं इिका
र्तलब नहीं जानती र्ी। डडक्शनरी र्ें ज्यादा र्दद नहीं सर्ली। तब घर पर कम्प्यूटर या नेट
नहीं र्ा। ये शब्द र्ा कक र्ेरा पीछा ही नहीं छोड़ रहा र्ा। कुछ र्ा इि शब्द र्ें जो र्ुझे
इन्गवाइट कर रहा र्ा। जानो र्ुझ।े आखखर र्ैं एक िाइबर कैफे र्ें गयी तो गूगल और
ववकीपीडडया िे इिके बारे र्ें ववस्तार िे पता चला। िब कुछ नोट ककया, िर्झा और उि
पर खब
ू र्नन ककया। कफर तो जहां िे भी इि शब्द के बारे र्ें जो भी सर्ला, उिे िर्झने
की कोसशश की।
इंदस
ु ंचत
े ना जुिाई-ससतंबि 2016
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अंजसल बात करते करते जैिे अतीत र्ें चली गयी - इि कफलािफी की एक एक बात
को अपने जीवन र्ें उतारने की कोसशश की और आज र्ैं जो भी हूं, इि अकेले शब्द की
र्ाया की वजह िे हूं।
र्ैं हं िा हूं- र्ोड़ा िा गुरू ज्ञान इधर भी दें भगवन ताकक हर्ारा जीवन भी िंवर जाये।
कब िे भटक रहे हैं।
- िेल्फ एक्चअ
ु लाइजर वह व्यन्स्कक्त होता है जो अपने जीवन को रचनात्र्क तरीके िे,
किएहटवटी के िार् जीता है और अपनी क्षर्ताओं का भरपूर इस्तेर्ाल कर बेहतर तरीके िे
जीने की कोसशश करता है । वह ऐिी िोच रखता है कक वह जो कार् कर िकता है , उिे
ज़रूर करे ।
- इि बात की कई परतें हैं जो एक एक करके खल ु ती हैं। र्ैं बहुत र्ोड़े शब्दों र्ें
बताऊंगी। अंजसल ने वेटर को अपना चगलाि भरने का इशारा ककया है । र्ैं है रान हूं कक कल
र्ैं न्स्कजि अंजसल का रूप दे ख रहा र्ा, उििे बबल्कुल अलग रूप र्ें अंजसल र्ेरे िार्ने बैठी
शराब की चन्स्कु स्कयां लेते हुए जीवन के गढ़
ू रहस्यों पर इतने अचधकार के िार् बात कर रही
है ।
- वाह, क्या खब
ू । आगे।
- अपने अनुभव और जजर्ें ट पर भरोिा करना।
- हर्र्।
- जो करो िहज तरीके िे करो और बबना आगा पीछा िोचे हुए करो। न्स्कजिे
स्पांटेननयि कहते हैं। खद
ु के प्रनत ईर्ानदार रहो।
-जैिे?
इंदस
ु ंचत
े ना जुिाई-ससतंबि 2016
60
- हर हाल र्ें अपने स्व को बचाये रखें , तारीफ र्ें कंजूिी न करें । जो भी िंबंध बनायें
इतने गहरे हों कक बि।एकांत का र्जा लेना िीखें । एकांत बहुत िुकून दे ता है । आपर्ें गजब
का िेंि ऑफ हयूर्र होना चाहहये। उििे ककिी को हटष न करें । जो भी अनुभव लें , वे खांटी
हों, बेहतरीन हों। पूरी तरह डूब कर अनुभव बटोरें । िार्ान्स्कजक रूप िे आप स्वीकायष हों।एक
कहावत है र्ेक यूअर प्रेजेंि ऑर एबिेंि फैल्ट। आप इन्गिान तो हैं ही आपर्ें इन्गिाननयत भी
हो। और िबिे आखखरी और अहर् बात, आपके र्ोड़े िे दोस्त हों। वे आपके इतने करीब हों
कक आप उनके िार् हों तो कम्फरटे बल हों। दोस्तों के नार् पर भीड़ जर्ा करने का कोई
र्तलब नहीं होता।
- तो बंधु ये ही वे बातें हैं न्स्कजन्गहें र्ैंने अपने जीवन र्ें ढालने की कोसशश की है और
अपने आपको कई-कई बार र्रने िे बचाया है ।
- बहुत खब ू । र्ैं अपनी जगह िे उठा हूं और अंजसल के पाि जा कर उिे उठने का
इशारा ककया है । र्ैंने अपनी तरफ िे उन्गहें पहली बार गले लगाया है ।
- अंजसल र्ोड़ी दे र पहले तक र्ैं तुम्हें न्स्कजि रूप र्ें दे ख रहा र्ा, दि सर्नट की इि
बातचीत ने तम्
ु हारा एक नया ही चेहरा र्ेरे िार्ने पेश ककया है । र्ैं बेशक तम्
ु हें वपछले एक
बरि िे तो जानता ही रहा होऊंगा लेककन फेिबक
ु पर तम्
ु हारा ये रूप कभी िार्ने नहीं आया
र्ा।
- फेिबक
ु चैट की एक िीर्ा होती है िर्ीर। वहां आप र्ोड़ी दे र के सलए, र्न बहलाव
के सलए, रोज़ाना की तकलीफ़ों िे ननजात पाने के सलए या रूटीन िे बदलाव के सलए आते
हैं। जीवन के गढ़
ू रहस्यों की बात करें गे तो आप इतने शानदार िोशल र्ीडडया प्लेट फार्ष
पर भी अकेले रह जायेंगे।
- िही है । शायद इिी वजह िे हर्ारी िे र्ुलाकात इतनी शानदार और यादगार रहने
वाली है । एक बात बताओ अंजसल, र्ोड़ी दे र पहले तुर्ने कहा र्ा कक बेशक यहां तक की
तुम्हारी यारा बेहद र्ुन्स्कश्कल और इतनी तकलीफों िे भरी रही कक र्ैं िुनूंगा तो दांतों तले
उँ गली दबा लूंगा। तो र्ोहतरर्ा, ये दांतों तली उँ गली दबाने का र्ौका आज सर्लेगा या कल
के सलए ररज़वष रखें इिे?
- िर्ीर िच कहूं तो र्ैंने अपनी न्स्कज़ंदगी की ककताब कभी भी ककिी के िार्ने नहीं
खोली है । कोई ऐिा सर्ला ही नहीं न्स्कजिे ये िब बताती। न्स्कजिे भी बताती वह र्झ
ु पर तरि
ही खाता जो र्ुझे र्ंजूर नहीं है । अब शायद तुम्हारे िार्ने ही ये ककताब खल
ु ेगी लेककन अभी
नहीं। डड्रंक्ि और डडनर के बाद हर् कल की तरह रे त पर कुसिषयां डाल कर बैठेंगे। नो
कैंडडल लाइट। तब हर् तुम्हें अपनी कहानी िुनायेंगे। अँधेरा र्ेरी र्दद करे गा। और उन्गहोंने
अपना डड्रंक रीपीट करने का इशारा ककया है ।
इंदस
ु ंचत
े ना जुिाई-ससतंबि 2016
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न्स्कजि वक्त रे त पर हर्ारी कुसिषयां लगायी गयी हैं बारह बज रहे हैं। अचानक अंजसल
ने वेटर को बुलवाया है और एक पैकेट सिगरे ट और लाइटर लाने के सलए कहा है । हर्र्। र्ैं
र्ुस्कुराता हूं - इिी की बि कर्ी र्ी।
अंधेरे र्ें अंजसल िार्ने ववशाल िर्ंदर की बार-बार पाि आती और सिर पटक कर
लौट जाती लहरों की तरफ दे ख रही हैं। जैिे खुद को अपनी कहानी िुनाने के सलए तैयार कर
रही हैं। सिगरे ट र्ंगवाना भी उिी तैयारी का हहस्िा है । उन्गहोंने सिगरे ट िुलगायी है और
पहला कश लगाया है - 17 बरि की र्ी जब दे िराज के घर िे र्ेरे सलए ररश्ता आया र्ा।
दे िराज र्ेरे पनत का नार् है । इि नार् ने और इि नार् के शख्ि ने कभी र्ेरे कानों र्ें
घंहटयां नहीं बजायीं। तुर्ने तालस्ताय का उपन्गयाि अन्गना केरे ननन्गना पढ़ा होगा। उि र्हान
उपन्गयाि र्ें अन्गना पहले ही पेज पर कहती है कक लोग अपने पाटष नर को उिकी िारी
खराबबयों के बावजूद प्यार करते हैं लेककन र्ेरी तकलीफ ये है कक र्ैं अपने पनत को उिकी
िारी अच्छाइयों के बावजूद प्यार नहीं कर पाती।
-िर्ीर र्ेरी भी यही तकलीफ है । र्ैं कभी दे िराज को प्यार नहीं कर पायी और न ही
र्झ
ु े ही उि शख्ि का प्यार सर्ला। तो र्ैं अपनी शादी का ककस्िा बता रही र्ी। र्ैं
नाबासलग र्ी लेककन इतनी िर्झ ज़रूर र्ी कक इतनी कर् उम्र र्ें शादी नहीं करनी चाहहये
लेककन र्ेरे र्ाता वपता के िार्ने कुछ ऐिी र्ज़बरू ी आन पड़ी र्ी कक वे चाहकर भी इि
ररश्ते को ठुकरा नहीं िकते र्े। र्ेरे पापा कस्बे के हाई-स्कूल के हे डर्ास्टर र्े। हर्ारा घर भी
कस्बे और गांव के बीच िी ककिी जगह र्ें र्ा।
-कुछ हदन ही पहले हर्ारे घर र्ें एक बहुत बड़ा हादिा हो गया र्ा न्स्कजिकी वजह िे
दे िराज जी के घर िे आए शादी के प्रस्ताव को ककिी भी कीर्त पर ठुकराया नहीं जा
िकता र्ा। र्ेरे इकलौते र्ार्ा की हत्या कर दी गई र्ी और र्ेरी र्ार्ी अपने दो बच्चों के
िार् हर्ारे ही घर पर आने को र्ज़बूर हो गयी र्ी।
-इतने अच्छे घर बार िे आया ररश्ता दे ख कर र्म्र्ी पापा ने अपने सिर जोड़े र्े और
तय ककया र्ा कक बबना दल्
ू हे को दे खे होने वाली शादी को स्वीकार कर सलया जाए। इि
गखणत िे बहुत िारे िर्ीकरण हल होते र्े। अच्छा खािा घर-बार र्ा। दहे ज की कोई र्ांग
भी नहीं र्ी और शादी का िारा खचाष लड़के वाले करने वाले र्े। हं िी आती है िर्ीर कक
हर्ारे यहां दल्
ू हा हर्ेशा लड़का ही रहता है । ये बात र्ुझिे छुपा ली गयी र्ी कक ये लड़का
दे िराज जो न्स्कजििे र्ैं ब्याही जा रही र्ी, 31 बरि का र्ा और र्ुझिे 14 बरि बड़ा र्ा। र्ैं
िरह बरि की भी नहीं र्ी और ्यारहवीं र्ें पढ़ रही र्ी। र्ेरी एक भी नहीं िुनी गयी र्ी
और र्ेरी शादी कर दी गयी र्ी। र्ेरी ििुराल वालों ने र्ेरे बहुत जोर दे ने पर इतना वादा
जरूर ककया र्ा कक र्ुझे पढ़ाई जारी रखने दें गे।
-और हर् ब्याह हदये गये र्े। इि वववाह िे दो अपराध एक िार् हुए र्े। एक तो
बाल वववाह और दि ू रे र्ेरे नाबासलग होने के कारण दे िराज का र्ुझिे शारीररक
इंदस
ु ंचत
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-र्ेरा भरा पूरा ििुराल र्ा। िाि ििुर, दो जेठ जेठाननयां, ननदें । बड़ी जेठानी की घर
र्ें चलती र्ी क्योंकक उनका एक बेटा र्ा। र्ुझिे बड़ी जेठानी की दो लड़ककयां र्ी। िंयुक्त
घर और िंयुक्त खानदानी कारोबार। र्ेरा बहुत अच्छे िे स्वागत हुआ र्ा। बेहद िुंदर जो र्ी
र्ैं। पता चला र्ा कक र्ुझिे पहले दे िराज कर् िे कर् 50 लड़ककयां ररजेक्ट कर चक ु ा र्ा।
र्ेरा बि चलता तो हर बार र्ैं ही उिे 50 बार ररजेक्ट करती। घर र्ें िबिे छोटी होने के
कारण िबकी िेवा करने का अनकहा भार र्ुझ पर आ पड़ा र्ा। अपने घर र्ें कार् करने की
आदत र्ी तो ननभ जाता र्ा।
इंदस
ु ंचत
े ना जुिाई-ससतंबि 2016
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कर दी र्ी जैिे सर्ि-कैररज करके र्ैंने उिके खानदान के प्रनत कोई अपराध कर हदया हो।
वह जान-बझ
ू कर कार् के सिलसिले र्ें टूअर पर जाने लगा र्ा। पागल र्ा। दि
ू रा बच्चा
होने के सलए तो उिे र्ेरे पाि आना और िोना ही र्ा। वह कई हदन ये दोनों कार् टालता
रहा। र्ेरे सलए भी अच्छा रहा कक र्ेरी िेहत इि बीच ठीक हो गयी र्ी। बेशक िब का र्ेरे
प्रनत व्यवहार चभ
ु ने की हद तक खराब हो चक
ु ा र्ा।
-अब र्ेरा एक ही कार् रह गया र्ा। र्ैं घर र्ें हदन भर अकेली छटपटाती रोती
रहती और िाि के ताने िुनती रहती। वहां कोई र्ेरे आंिू पोंछने वाला नहीं र्ा। कुल सर्ला
कर १८ बरि की उम्र और ्यारहवीं पाि अकेली लड़की कर ही क्या िकती र्ी।
-र्ाँ-बाप ने तो अपना फजष पूरा कर हदया र्ा। उनपर दोबारा बोझ डालने के बारे र्ें
िोच भी नहीं िकती र्ी। िाि िार्ने पड़ती तो उिकी गासलयाँ िुनती और पनत के िार्ने
पड़ती तो उनकी गासलयाँ हहस्िे र्ें आतीं। र्ेरी जेठानी बेशक र्ेरी तरफदारी करती र्ी। वह
अपनी बच्ची की तरह प्यार करती। र्ैं हर तरफ िे बबल्कुल अकेली हो गयी र्ी।कोई भी तो
नहीं र्ा पाि र्ेरे न्स्कजििे अपने र्न की बात कह पाती। एक-दो बार र्न र्ें आया जान ही दे
दं ।ू क्या रखा र्ा जीने र्ें । 18 बरि की उर्र र्ें ही िारे दःु ख और िख
ु दे ख सलये र्े।
-घर के वपछवाड़े जार्न ु का एक पेड़ र्ा। उिके तले बैठ कर रोना र्झ ु े बहुत राहत
दे ता र्ा। एक हदन र्ैंने दे खा कक पीछे के घर िेहर्ारे आँगन र्ें खल
ु ने वाली खखड़की र्ें एक
यव
ु क र्झ
ु े दे ख रहा है । र्ैं घबरा कर अंदर आ गयी । उिके बाद कई बार ऐिा हुआ।जब भी
आंगन र्ें जाती, वही यव ु क हार् र्ें कोई ककताब सलए अपनी खखड़की र्ें नजर आता। र्ैं उिे
दे खते ही िहर् जाती और अिहज हो जाती।डर भी लगता कक अगर र्ेरे घर के ककिी िदस्य
ने इि तरह उिे र्झ
ु े दे खते हुए दे ख सलया तो ग़ज़ब हो जायेगा।
-एक दो बार ऐिा भी हुआ कक उिने र्ुझे दे खते ही नर्स्कार ककया।र्ैंने कोई
जवाब नहीं हदया, बि एक अहिाि ज़रूर हुआ कक वह कुछ कहना, कुछ िुनना चाहता है ।
-एक हदन र्ेरा र्ूड बहुत खराब र्ा। िुबह िुबह िाि ने डांटा र्ा। पनत ने उि हदन
र्ुझ पर हार् उठाया र्ा और बबना नाश्ता ककए घर िे चले गए र्े।र्ेरा कोई किूर नहीं र्ा
लेककन इि घर र्ें िारी खासर्यों के सलए र्ुझे ही किूरवार ठहराया जाता र्ा।ये िबके सलए
आिान भी र्ा और िबको इिर्ें िुभीता भी रहता र्ा। किूरवार ठहराया जाना तो खैर रोज़
का कार् र्ा लेककन पनत का र्ुझ पर बबना वज़ह हार् उठाना र्ुझे बुरी तरह िे तोड़ गया
र्ा।उि हदन िचर्ुच र्ेरी इच्छा र्र जाने की हुई लेककन र्रा कैिे जाये। ज़हर खाना ही
आिान लगा। लेककन ज़हर ककििे र्ंगवाती।
-तभी र्ुझे याद आया कक खखड़की वाले लड़के िे कहकर जहर र्ंगवाया जा िकता
है । र्ुझे नहीं पतार्ा कक आत्र्हत्या करने के सलए कौन िा ज़हर खाया जाता है , कहां िे
और ककतने र्ें सर्लता है । र्ेरे पाि 50 रुपए रखे र्े। र्ैंने वही सलए और एक काग़ज़ पर
सलखा-र्ुझे र्रने के सलए ज़हर चाहहये। ला दीन्स्कजये। र्ैंने अपना नार् नहीं सलखा र्ा। ज्यों ही
इंदस
ु ंचत
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वह लड़का र्ुझे खखड़की पर हदखाई हदया, र्ैंने उिे रुकने का इशारा ककया और र्ौका दे ख
कर वह काग़ज़ और पचाि का नोट उिे र्र्ा हदया।
अंजसल रुकी हैं। एक लम्बा घूँट भरा है और िार्ने दे ख रही हैं। हवा र्ें खन
ु की बढ़
गयी है और लहरें हर्ारे पैरों तक आने लगी हैं।
वे आगे बता रही हैं - काग़ज़ लेने के बाद उिने खखड़की बंद कर दी र्ी। र्ैं बार
बार आकर दे खती लेककन कफर खखड़की नहीं खुली र्ी। दो घंटे बाद हर्ारे घर का दरवाज़ा
खल
ु ा र्ा और उि लड़के की र्ाँ ककिी बहाने िे हर्ारे घर आयी र्ी। कुछ दे र तक र्ेरी िाि
और जेठानी िे बात करने के बाद वह बहाने िे र्ुझे अपने िार् अपने घर ले गयी र्ी।
-इतने हदनों र्ें ये पहली बार हो रहा र्ा कक र्ैं अपने घर िे ननकली र्ी। उनके घर
गयी र्ी। उि भली औरत ने र्ेरे सिर पर हार् फेरा, र्ुझे नाश्ता कराया और कफर धीरे -धीरे
िारी बातें र्ुझिे उगलवा ही ली। र्ुझे युवक पर गुस्िा भी आ रहा र्ा कक छोटी-िी बात को
पचा नहीं पाया और जा कर र्ाँ को बता हदया। अच्छा भी लगा। र्ां की बातें िुन कर अब
तक र्रने का उत्िाह भी कर् हो चला र्ा। उिकी र्ाँ र्ेरी र्ाँ जैिी र्ी और उन्गहोंने र्ुझे
बहुत प्यार िे िर्झाया और बताया कक र्र जाना लड़ना नहीं होता। अपनी लड़ाई खदु लड़नी
होती है और लड़ने के सलए जीना ज़रूरी है । इि िारे िर्य के दौरान यव
ु क कहीं नहीं र्ा।
र्झ
ु े उिका नार् भी पता नहीं र्ा।
-नननतन की र्ां िे सर्ल कर जब र्ैं अपने घर लौटी तो र्ेरी हहम्र्त बढ़ी र्ी। र्झ
ु े
नननतन की र्ाँ र्ें अपनी र्ां सर्ल गयी र्ी।अब र्ेरा उनके घर आना-जाना हो गया। नननतन
िे र्ेरी नाराज़ गी भी दरू हो गयी र्ी। अब हर् अच्छे दोस्त बन गए र्े। अपनी र्ां के कहने
पर उिने र्ेरे सलए पहला कार् ये ककया र्ा कक र्ेरे सलए प्राइवेट इंटर करने के सलए फार्ष
ला कर हदया र्ा और अपनी पुरानी ककताबें और िारे नोट्ि र्ुझे दे हदये र्े। उिी िे पता
चला र्ा कक वह बीए कर रहा र्ा। अपना जेब खचष पूरा करने के सलए हदन भर ट्यूशंि
पढ़ाता र्ा।
-अब र्ुझे एक बेहतरीन दोस्त सर्ल गया र्ा। र्ैं उििे अपने र्न की बात कह
िकती र्ी। र्ैं अब रोती नहीं र्ी। नननतन ने र्ेरी आंखों र्ें आंिुओं की जगह खब
ू िूरत िपने
भर हदये र्े। प्यार भरी न्स्कज़ंदगी का िपना, अपने पैरों पर खड़े होने का िपना, पढ़ने का
िपना। ये िपना और वो िपना। अब ककताबों की िंगत र्ें र्ेरा िर्य अच्छी तरह गुजर
जाता। उिने र्ेरी हहम्र्त बढ़ायी र्ी उिने और घर वालों की जली कटी िुनने और उनका
र्ुकाबला करने का हौिला हदया र्ा। र्ैं अब घर वालों की परवाह नहीं करती र्ी। र्ुझे
नननतन ने ही बताया र्ा कक आप िबकी परवाह कर के ककिी को भी खश
ु नहीं कर
िकते।िबिे बड़ी खश
ु ी अपनी होती है । अगर खुद को खश
ु करना िीख लें तो आप दनु नया
को फतह कर िकती हैं। ककतना ियाना र्ा और ककतना बुद्धू भी नननतन।
इंदस
ु ंचत
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-अब र्ेरा िारा ध्यान पढ़ाई की तरफ र्ा। ठान सलया र्ा कक कुछ करना है । िरह
और अठारह बरि की उम्र र्ें जो खोया र्ा, बेशक उिे वावपि नहीं पा िकी र्ी लेककन ये
तो कर ही िकती र्ी कक चाहे कुछ भी हो जाये, और नहीं खोना है । नननतन और उिकी र्ां
र्ुझे बबल्कुल कर्ज़ोर न पड़ने दे ते।
-र्ैंने बारहवीं का एक्जार् हदया र्ा और अब पूरी तरह िे खाली र्ी कफर भी
नननतन की कोसशश रहती कक र्ैं बबलकुल भी वक्त बरबाद न करूं। कुछ न कुछ पढ़ती रहूं।
उिी की र्दद िे एक अच्छी लाइब्रेरी की र्ेम्बरसशप सर्ल गयी र्ी और इि बहाने र्ुझे घर
िे बाहर ननकलने का र्ौका सर्ल गया र्ा। दे िराज और िाि कुढ़ते रहते। ताने र्ारते और
र्ेरे चररर पर उं गसलयां उठाते लेककन अब र्ैं इि िबिे बहुत दरू आ चक
ु ी र्ी। अब र्ैं और
नननतन बाहर ही सर्लते और एक बार तो र्ैंने हहम्र्त करके उिके िार् एक कफल्र् भी दे ख
डाली र्ी। अभी तक न तो नननतन ने और न ही र्ैंने ही ये कहा र्ा कक हर् दोनों के बीच
कौन-िा नाता है । र्ुझे नहीं पतार्ा, र्ैं पूछ भी नहीं िकती र्ी कक वह ये िब र्ेरे सलए क्यूँ
करता है ।
-एक हदन उिने र्ुझे एक रे स्तरां र्ें चाय पीने के सलए बुलाया र्ा। ये पहला र्ौका
र्ा कक हर् इि तरह िे चाय पर सर्ल रहे र्े। उिने र्ेरे िार्ने एक पैंफलेट रखा र्ा। पूछा
र्ा र्ैंने-क्या है ये। - खद
ु ही पढ़ लो। उिने कहा र्ा। एक बड़ी कंपनी अपने प्रोडक्ट की
डायरे क्ट र्ाकेहटंग के सलए शहर र्ें डायरे क्ट िेसलंग नेटवकष बनाना चाहती र्ी। उन्गहें ऐिे
एजेंट चाहहये र्े जो पाटष टाइर् या फुल टाइर् कार् कर िकें। ये हर्ारे शहर के सलए बबल्कुल
नयी बात होती। पहले एक हजार रुपये दे कर िार्ान खरीद कर उनका एजेंट बनना र्ा।
र्ैंने नननतन िे कहा र्ा न तो र्ेरे पाि एक हजार रुपए हैं और न ही इि तरह का
कार् करने का अनुभव ही है । घर वालों िे तो र्ैं ककिी तरह िे ननपट ही लेती। नननतन
बोला र्ा -िब हो जाता है । पहला कदर् र्ुन्स्कश्कल होता है । उिके बाद के कदर् आिान हो
जाते हैं। र्ेरे सलए हजार रुपए भी नननतन ने जट
ु ाये र्े। एक तरह िे जबरदस्ती ही उिने
र्ुझे ये एजेंिी हदलायी र्ी। वही र्ेरे सलए िार्ान लेकर आया र्ा।र्ैं िर्झ नहीं पा रही र्ी
कक इि दे वदत
ू का आभार कैिे र्ानूं। वह कोई नौकरी नहीं करता र्ा।र्ेहनत िे कर्ाया
इंदस
ु ंचत
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अपना पूरा जेब खचष उिने र्ेरे सलए एक नई न्स्कज़ंदगी की शुरुआत करने के सलए खचष कर
डाला र्ा। घर र्ें र्ेरा ववरोध हुआ लेककन र्ैंने भी तय कर सलया र्ा कक पढ़ना भी है और
अपने पैरों पर खड़ा भी होना है ।
र्ुझे अपना िार्ान बेचने के सलए शुरुआती ग्राहक ढूंढने र्ें बहुत हदक्कत होती र्ी।
र्ेरठ जैिे शहर र्ें ववदे शी र्ेक अप और दि
ू रा िार्ान बेचना आिान कार् नहीं र्ा। बरिों
पुरानी आदतें बदलना आिान नहीं होता।
-कार् के सलए रोजाना दि बीि लोगों िे सर्लना पड़ता। िार्ान का बैग उठाये
उठाये घर-घर भटकना पड़ता। हर तरह की बातें िुननी पड़ती। फलां घर की बहू घर-घर जा
कर अपनी इज्ज़त नीलार् कर रही है । नननतन र्ेरा हौिला बढ़ाये रहता। कुछ ग्राहक भी
हदलवा दे ता।लेककन पहले दो-तीन र्हीने र्ेरा कार् िंतोर्जनक नहीं रहा र्ा। र्ैं र्क चक
ु ी
र्ी। बेशक र्ेरा लड़की होना, िुंदर होना र्ेरे कार् को आिान करते र्े लेककन ये तरीका र्ुझे
र्ंजूर नहीं र्ा। नंगी और भेदती ननगाहों का िार्ना करना पड़ता।एक बार नननतन के कहने
पर उिके एक दोस्त की बहन के घर गयी र्ी कुछ िार्ान बेचने। दोस्त की बहन तो नहीं
सर्ली र्ी लेककन उिके ििरु घर पर अकेले र्े। पानी वपलाने और िार्ान दे खने के बहाने
उि बड्
ु ढे ने र्झ
ु े एक तरह िे नोंच खिोट ही सलया र्ा। शार् को घर आकर दो बार नहाने
के बावजद
ू र्ैं अपने बदन िे चचपकी उिकी गंदी ननगाहें नहीं हटा पायी र्ी। ऐिा अक्िर
होता।
-तभी तीन अच्छे कार् हुए र्े और घर र्ें र्ेरी इज्ज़त बढ़ गयी र्ी। र्ैं इंटर र्ें
पाि हो गयी र्ी। र्ैं दोबारा र्ां बनने वाली र्ी और कंपनी ने एक नयी स्कीर् ननकाली र्ी
कक आप अपने बल पर न्स्कजतने एजेंट बनायेंगी, उनकी बबिी का लाभ भी आपको सर्लेगा।
-र्ुझे ये तरीका पिंद आ गया र्ा। र्ैं इिी र्हु हर् र्ें जी जान िे जुट गयी र्ी।
र्ेरी ककस्र्त अच्छी र्ी कक इि सर्शन र्ें र्ैं कार्याब होने लगी र्ी। र्ैंने ककिी को भी नहीं
छोड़ा। िारे ररश्तेदारों को, पररचचत लोगों को और र्ोहल्ले र्ें िबको फुल टाइर् या पाटष
टाइर् एजेंट बनाना शुरू कर हदया । अब र्ैं घर पर ही नये और इच्छुक एजेंटों को बुला
िकती र्ी। र्ैं अखबारों र्ें पैंफलेट डालती, और लोगों को जोड़ती। र्ेरा आत्र्-ववश्वाि बढ़ने
लगा ।
- बाकी बात बहुत ब्रीफ र्ें बता रही हूं। र्ैंने कार् करते हुए बीए ककया, एर्।ए
ककया, डडस्टैं ट लननंग िे र्ाकेहटंग र्ें एर्बीए ककया। बेटा अब तेरह बरि का है न्स्कजिे र्ेरी
जेठानी ही पालती है । र्ेरे पाि इि िर्य 2000 एजेंट हैं जो लोकल भी हैं और दि
ू रे शहरों
र्ें भी। यानी र्ेरे ज़ररये लगभग इतने पररवार पल रहे हैं।एक एनजीओ की िवेिवाष हूं। ईवा
इंदस
ु ंचत
े ना जुिाई-ससतंबि 2016
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नार् का ये एनजीओ बच्चों और गरीब लड़ककयों के सलए कार् करता है । र्ैं हर बरि बारहवीं
क्लाि की पाँच ऐिी लड़ककयां चनु ती हूं न्स्कजनकी पढ़ाई ककिी न ककिी वजह िे छूट गयी है
और वे पढ़ना चाहती हैं। उनकी पूरी पढ़ाई का खचष र्ेरे न्स्कजम्र्े।
-र्ैं इि िर्य अपनी कंपनी र्ें काफी र्हत्वपूणष कड़ी हूं। है ड क्वाटष र र्ें और बड़ी
न्स्कजम्र्ेवाररयों के सलए बार-बार बुलाया जाता है लेककन र्ेरे कुछ उिूल हैं। नहीं जाती। अब
र्ुझे खद
ु इतना कार् नहीं करना पड़ता। र्ेरा डेडडकेटे ड स्टाफ है जो अपना कार् बखब
ू ी
करता है । हर र्हीने दो लाख रुपये के करीब र्ेरे खाते र्ें जर्ा हो जाते हैं। अच्छी खािी
िेववंग कर ली है । कंपनी बीच बीच र्ें ईनार् दे ती रहती है और घुर्ाती-कफराती रहती है।
अपनी पिंद का खब ू िूरत घर बनाया है और र्ैं अपनी ही दनु नया र्ें र्स्त हूं। इि दनु नया र्ें
हर कोई नहीं झांक िकता।
-अहर्दाबाद जाने के बाद वह चाहत और गरर्ी कुछ हदन तो रहे कफर धीरे धीरे
कर् होने लगे र्े। र्ेरी न्स्कज़ंदगी का वह अकेला प्यार र्ा और रहे गा, बेशक उिकी न्स्कज़ंदगी र्ें
औरों ने दस्तक दी ही होगी। जो होता है अच्छा ही होता है । आजकल यए
ू िए र्ें है । र्ैं अपने
पहले और इकलौते प्यार को कभी नहीं भूल पायी। आइ सर्ि हहर् ए लाट। आइ न्स्कस्टल लव
हहर्।
- यही होना होता है जीवन र्ें अंजसल। जो हर्ारा जीवन िंवारते हैं , हर्ें उन्गहीं का
िार् नहीं सर्ल पाता।
- र्ैंने बहुत तकलीफें भोगी हैं िर्ीर। वहां िे यहां तक की पन्गद्रह बरि की दौड़
बहुत र्ुन्स्कश्कल रही है । कई बार यकीन नहीं होता कक ये िफर र्ैंने अकेले तय ककया है ।
- तीन बरि पहले र्ैंने उिे अपनी ही कंपनी के प्रोडक्ट की एंजेिी हदला दी है । र्ेरे
एजेंट न्स्कजतना िार्ान बक
ु करते हैं उतना ही वह बेचता है । र्ुझिे ज्यादा ही कर्ा लेता है ।
इंदस
ु ंचत
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- र्ैं िर्झ रहा हूं अंजसल। र्ैं उिका कंधा र्पर्पाता हूं। र्ैं अंधेरे र्ें अंजसल का
चेहरा नहीं दे ख पा रहा लेककन उिकी आवाज का ददष बता रहा है कक वह ककतनी तनहा है ।
दोस्त चला गया, पनत न अपना र्ा, न अपना रहा। ऐिे र्ें उि जैिी खद्
ु दार लड़की खद
ु को
कैिे िंभालती होगी।
- कुछ और बताना पछ
ू ना बाकी है िर्ीर,वह अंधेरे र्ें र्ेरी तरफ दे खती है ।
- नहीं अंजसल, िब कुछ तो तर्
ु ने बता हदया है । िच र्ें यकीन नहीं हो रहा कक जो
अंजसल र्ेरे पाि बैठी है , जो र्झ
ु िे पहली बार सर्ली है और न्स्कजिे र्ैं दो हदन िे लगातार न
सिफष दे ख रहा हूं, बन्स्कल्क परू ी सशद्दत िे न्स्कजिे र्हिि ू कर रहा हूं,यहां तक पहुंचने की
तम्
ु हारी तकलीफ की बातें िन ु कर दहल गया हूं। तम् ु हें िलार् है दोस्त।
अंजसल ने र्ेरा हार् दबाया है - वो िब तो ठीक है लेककन तर्
ु ने ये नहीं पछ
ू ा कक
इि चगलाि िे र्ेरी दोस्ती कब और कैिे हो गयी। वह र्ेज पर रखे चगलाि की तरफ इशारा
करती है ।
र्ैं हं िता हूं – नहीं, र्ैं िर्झ रहा हूं। दोस्त चला गया हो, जीवन िार्ी कभी अपना
न रहा हो और अपनी र्ेहनत के बलबत ू े पर िफलता सर्लने लगी हो तो िेसलब्रेट करने के
सलए कोई तो िार्ी चाहहये ही। तब भरा हुआ चगलाि िबिे अच्छा दोस्त होता है । चाहे उिे
ककतनी बार खाली करो,चाहे ककि भी डड्रंक िे भर दो,कोई सशकायत नहीं करता।
- िही कह रहे हो िर्ीर। अब ये चगलाि ही र्ेरा िबिे अच्छा दोस्त है । दे िराज वैिे
तो आर् दकु ानदार ककस्र् का आदर्ी है लेककन एक बात उिकी बहुत अच्छी है । वह बहुत
िलीके िे पीता है । घर पर ही उिने एक बहढ़या-िा बार बना रखा है । उिके पाि बेहतरीन
कटलरी है और हर तरह की शराबों का शानदार कलेक्शन है उिके पाि।
- पहली बार र्ैंने उिके बार र्ें िे ही चरु ा कर पी र्ी। उि हदन जब नननतन के दोस्त
की बहन के ििुर ने र्ुझ पर हार् डाला र्ा। र्ुझे तब पता ही नहीं र्ा कक कौन िी बॉटल
र्ें क्या है और उिे कैिे पीते हैं। बि चगलाि र्ें डाली र्ी और हलक िे नीचे उतार ली र्ी।
इंदस
ु ंचत
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र्ैं िहारा दे कर अंजसल को कर्रे तक लाता हूं। कल अंजसल र्ुझे िहारा दे कर लायी
र्ी। आज र्ैं….
अंजसल वाशरूर् र्ें गयी हैं तो र्ैं पहले कर्रे र्ें ही पिर गया हूं लेककन बाहर आते
ही उन्गहोंने र्ुझे उठा हदया है - ये बेईर्ानी नहीं चलेगी। तुर् जाओ अपने कर्रे र्ें । और र्ेरा
हार् र्ार् कर बेड रूर् र्ें ले आयी हैं।
र्ैं उठ बैठा हूं– ओह, श्योर श्योर कर्। र्ैंने उनके सलए तककया ठीक ककया है लेककन
वे दब
ु क कर छोटी िी र्ािर् ू बच्ची की तरह र्ेरे िीने िे लग कर िो गयी हैं। र्ैं उनके कंधे
र्पर्पा रहा हूं और उनके बालों र्ें उँ गली कफर रहा हूं। इि िर्य एक जवान और खब ू िरू त
औरत का र्ेरी बांहों र्ें होना भी र्झु र्ें ककिी तरह की िैक्िुअल फीसलंग नहीं जगा रहा।
नशे र्ें होने के बावजद
ू एक अजीब िाख्याल र्ेरे र्न र्ें आता है -औरत ही हर बार कई
भसू र्काएं अदा करती है । बहन, बेटी, पत्नी, र्ां। र्ेरे िीने िे बच्ची की तरह लग कर िोयी
अंजसल के सलए र्ैं आज वपता या भाई की भसू र्का ननभा रहा हूं।
नींद र्ेरी आंखों िे कोिों दरू चली गयी है । पता नहीं क्या-क्या हदर्ाग र्ें आ रहा है ।
दो हदन र्ें ककतने तो रूप हदखा हदये इि र्ायावी अंजसल ने। कल िुबह का चलती कार र्ें
उनका वह रूप और अब र्ेरे िीने िे लगी अबोध बच्ची िी िो रही अंजसल का ये रूप।
ककतने रूप एक िार् जी रही है ये अकेली औरत।
र्ैं उनके चेहरे की तरफ दे खता हूं। गहरी नींद र्ें हैं। र्ेरा नशा अभी बाकी है । लेककन
इतना होश भी बाकी है कक पूरी रात इि तरह बबताना र्ेरे सलए ककतना र्ुन्स्कश्कल होगा। कुछ
भी अनहोनी हो िकती है। र्ैं कर्ज़ोर पडू,ं इििे पहले ही अंजसल को आरार् िे िुलाता हूं,
उनका सिर तककये पर हटकाता हूं और हौले िे उठ कर बाहर वाले कर्रे र्ें आता हूं। दि
कदर् चलने िे ही र्ेरी िांि फूल गयी है जैिे र्ीलों लम्बा िफर करके आया हूं।
इंदस
ु ंचत
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तो बार्रूर् की टं की ही नहीं भरी होती। क्या करूं .. अंजसल को जगाऊं… नहीं वे भी क्या
करें गी। बेचारी बच्ची की नींद िो रही हैं। लेककन बार बार फ्लश की आवाज िुन कर उनकी
नींद खल
ु ही गयी है । पूछती हैं- क्या हुआ िर्ीर। और र्ैं यहां कैिे आ गयी। र्ैं तो बाहर
िोयी र्ी िर्ीर।
र्ैं ननढाल िा िोफे पर पिरा बैठा हूं। बताता हूं-पेट गड़बड़ा गया है । बीि बार तो हो
आया। बाहर के कर्रे तक जाने और बार बार बार्रूर् तक आने की ताकत ही नहीं बची है ।
अंजसल उठ कर र्ेरे पाि आ गयी हैं। र्ेरे र्ार्े पर हार् कफरा कर दे खती हैं , बुखार
तो नहीं है । र्ैं इशारे िे बताता हूं –बुखार नहीं है । वे बताती हैं- रुको, र्ेरे पाि गोली है । वे
लपक कर गयी हैं और अपने बैग र्ें िे गोली ले कर आयी हैं। पानी के िार् गोली ली
र्ैंने। अंजसल कहती हैं- लेट जाओ, लेककन र्ैं ही र्ना कर दे ता हूं। उठ कर बैठने और
बार्रूर् भागने र्ें हदक्कत होगी। अंजसल चचंता र्ें पड़ गयी हैं- ककतनी बार हो आये?
र्ैं इशारे िे बताता हूं - कई बार। चगनती याद नहीं। वे िीररयि हो गयी हैं -डॉ०क्टर
को बुलाने की ज़रूरत है क्या? वे घड़ी दे खती हैं- तीन बज कर चालीि सर्नट।
वे कफर उठी हैं और र्ेरे सलए जग भर के पानी र्ें नर्क, चीनी का घोल बनाया है ।
उिर्ें उन्गहोंने िंतरे का जूि और नींबू का रि सर्लाया है । वे हर पाँच सर्नट बाद चगलाि
भर कर र्ुझे ये घोल वपला रही हैं ताकक डीहाइड्रेशन न हो जाये। र्ोड़ी दे र पहले र्ेरे िीने िे
बच्ची की तरह लग कर िो रही अंजसल अब दादी र्ां बन कर र्ेरा इलाज कर रही हैं।यह
पता चलने पर कक र्ैंने खाया ढं ग िे नहीं खाया र्ा,वे र्ेरे सलए फ्रूट बॉस्केट र्ें िे केले ले
आयी हैं और र्ुझे जबरदस्ती खखलाये हैं। र्ैं अब बेहतर र्हिूि कर रहा हूं लेककन अंजसल
कोई ररस्क नहीं लेना चाहतीं। उनकी नींद पूरी तरह िे उड़ गयी है ।
उन्गहें कफ्रज र्ें रखी हुई योगटष सर्ल गयी है । वे अब र्ेरे िार्ने बैठी अपने हार्ों िे
चम्र्च िे र्ुझे योगटष खखला रही हैं। र्ैं उनका सिर िहलाते हुए कहता हूं -बि कर दादी र्ां,
अब बि भी कर लेककन वे नहीं र्ानतीं। घंटे भर र्ें उन्गहोंने अपना बनाया एक लीटर घोल
र्ुझे वपलाहदया है ।
इंदस
ु ंचत
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वपछले एक घंटे र्ें सिफष दो बार गया हूं। अंजसल ने र्ुझे सलटा हदया है और र्ेरे पाि
बैठी हुई हैं। र्ैं उन्गहें िो जाने के सलए कहता हूं लेककन वे र्ना कर दे ती हैं। र्ेरी हालत के
सलए वे अभी भी खद
ु को किूरवार र्ान रही हैं। इि बीच वे दो बार र्ेरे सलए ब्लैक टी ववद
शुगर बना चक
ु ी हैं। एक बार तो कंपनी दे ने के सलए खद
ु भी र्ेरे िार् ब्लैक टी पी है ।
पता नहीं कब र्ेरी आँख लग गयी होगी। दे खता हूं अंजसल खखड़की के पाि वाले िोफे
पर बैठी पेपर पढ़ रही हैं। आठ बज रहे हैं। र्ुझे जागा दे ख कर वे र्ेरे पाि आयी हैं और
प्यार िे र्ेरा र्ार्ा चर्
ू कर बोली हैं - गुड र्ाननिंग दोस्त। र्ैंक गॉड। तुर् अब ठीक हो,
वरना र्ैं अपने आप को कभी र्ाफ न कर पाती।
कह रही हैं -एक कार् करते हैं। अब हर् यहां और नहीं रुकेंगे। बेशक शार् 6 बजे की
फ्लाइट है र्ेरी लेककन हर् र्ुंबई ही चलते हैं। कुछ हो गया तुम्हें तो यहां ढं ग िे र्ेडडकल
एड भी नहीं सर्लेगी। र्ैं ब्रेकफास्ट यहीं र्ंगवा रही हूं। तब तक तुर् नहा लो। कपड़े ननकाल
दे ती हूं तम्
ु हारे । और र्ेरे र्ना करने के बावजदू अंजसल ने र्ेरे िट
ू केि र्ें िे र्ेरे सलए पकड़े
ननकाल हदये हैं।
दे खता हूं - येलो स्राइप वाली टीशटष और ब्लैक पैंट। र्ैं कलर कम्बीनेशन दे ख कर
हं िता हूं। वे िर्झ जाती हैं कक र्ैं क्यों हं ि रहा हूं।
र्झ
ु े चीयर अप करने के सलए बताती हैं- र्ेरे स्टाफ र्ें आठ लोग हैं। तीन जेंट्ि और
पाँच लड़ककयां। िैटरडे हर् ककिी न ककिी बहाने पाटटी करते ही हैं। एक पाटटी होती है कलर
कम्बीनेशन की। अगर ककिी र्ेल र्ेम्बर के कपड़ों के रं ग जरा िा भी ककिी फीर्ेल स्टाफ
के कपड़ों के रं ग िे र्ैच कर जायें तो दोनों को पाटटी दे नी होती है । कई बार र्जा आता है
कक कई लोगों के रं ग आपि र्ें र्ैच कर जाते हैं। अब हर्ारे स्टाफ र्ेम्बर अपने सलए कपड़े
खरीदते िर्य ख्याल रखते हैं कक ककि ककि के पाि इि रं ग के कपड़े हैं। शननवार को तो
िबकी हालत खराब होती है । यह बताते हुए अंजसल अब एक खब
ू िूरत स्र्ाटष एक्िक्यूहटव र्ें
बदल गयी हैं।
र्ेरे सलए अंजसल ने केले, िादी इडली, योगटष और गाजर का जूि र्ंगाये हैं। रास्ते के
सलए उन्गहोंनेदो बॉटल डीहाइड्रेशन वाला घोल बना कर रख सलया है ।
र्ेरे बहुत न्स्कजद करने पर भी होटल का बबल अंजसल ने हदया है और र्ुझे वेटरों को
हटप तक नहीं दे ने दी है । हं िी आ रही है कक अंजसल निष की तरह र्ेरी केयर कर रही हैं।
र्ेरा हार् र्ार् कर नीचे लायी है , और छोटे बच्चे की तरह कार र्ें बबठाया है । िीट बेल्ट भी
उिी ने लगायी है । इतना और ककया कक सलफ्ट र्ें ही र्ेरे गाल पर एक चब
ुं न जड़ हदया र्ा।
इंदस
ु ंचत
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र्ैं अंजसल िे कहना चाहता हूं कक तुर् रात भर िोयी नहीं हो, कार र्ुझे चलाने दो
लेककन उन्गहोंने र्ेरी एक नहीं िुनी है ।
- हर् परिों िुबह िे एक िार् हैं। इि बीच बीसियों बार र्ेरा र्ोबाइल बजा है । र्ैंने
कभी एटैंड ककया है और कई बार नहीं भी ककया है । लेककन इि िारे अरिे र्ें तुम्हारा
र्ोबाइल एक बार भी नहीं बजा है ।
- भली पूछी दोस्त जी। ननगाहें िड़क पर जर्ाये अंजसल कह रही हैं - िही कहा। र्ेरे
पाि दो र्ोबाइल हैं। एक ऑकफि का और एक पिषनल। दोनों र्ें शायद ही कोई नम्बर हो
जो दोनों र्ें हो। दे िराज के नम्बर के अलावा। िंयोग िे वह हर्ारा डीलर भी है और ररश्ते
र्ें पनत भी लगता है । तुर्िे बात करने के सलए और होटल बक
ु करने के सलए ही र्ैंने अपना
र्ोबाइल ऑन ककया र्ा। तब िे दोनों र्ोबाइल बंद ही हैं। ये तीन हदन सिफष र्ेरे र्े और
र्ैंने अपने तरीके िे जीये। र्ैं अपने वक्त र्ें ककिी का दखल नहीं चाहती। ककिे क्या करना
है , र्ैंने िबको बता रखा है । कोई िर्स्या हो तो इंतज़ार कर िकती है।र्ेरा िबिे बड़ा िच
र्ेरा िार्ने वाला पल है ।
घड़ी दे खता हूं - बारह बजे हैं। अंजसल ने र्ेरी तरफ का दरवाजा खोला है । पता ही
नहीं चला कक बात करते करते कब िो गया र्ा।
- श्रीर्ान जी, ककतना भी बेहतर र्हिूि करें , आपको पीने के सलए और नहीं सर्लने
वाली और खाने के सलए दही चावल ही सर्लेंगे।
- कोई बात नहीं सिस्टर जी। आपकी केयर र्ें हूं तो आप र्ेरा भला ही िोचें गी। हर्
दोनों ही हं ि हदये हैं।
इंदस
ु ंचत
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ररिोटष र्ें बायीं तरफ रे स्तरां हैं जहां फैसर्ली केबबन बने हुए हैं। बहुत कलात्र्क। एक
तरफ लम्बा िोफा न्स्कजि पर तीन आदर्ी आरार् िे बैठ िकें और र्ेज के दि ू री तरफ गाव
तककयों िे िजा एक तख्त।
र्ैं तख्त पर गाव तककयों के िहारे पिर गया हूं। अचानक अंजसल िोफे िे उठी हैं
और बाहर चली गयी हैं। र्ैंने आंखें बंद की ली हैं।
अंजसल वावपि आयी हैं तो उनके हार् र्ें आइपैड और डीहाइड्रेशन के घोल वाली
बोतल है । बोतल र्ेरी तरफ बढ़ाते हुए पूछ रही हैं- बोतल िे पीयेंगे या चगलाि र्ंगवाऊं?
-बता दीन्स्कजये।
अंजसल पूछ रही हैं-यहाँ िे 6 बजे की फ्लाइट के सलए ककतने बजे ननकलना ठीक
रहे गा?
- वैिे तो तीि चालीि सर्नट का रास्ता है लेककन हाइवे का र्ार्ला है । हर् िाढ़े
तीन बजे ननकलेंगे।
-तम्
ु हें कोई तकलीफ तो नहीं है ना अब?
- नहीं, एकदर् ठीक कर हदया तम्
ु हारे डड्रंक ने।
अंजसल ने वेटर को पीने और खाने का ऑडषर हदया है । र्ेरे सलए एक चगलाि बीयर
और कडष राइि पर िहर्नत हो गयी है ।
अंजसल अपने आइपैड र्ें तस्वीरें हदखा रही हैं। वे भी आरार् िे तख्त पर बैठ गयी
हैं।
हर तस्वीर िे जुड़ा कोई न कोई र्जेदार ककस्िा शेयर कर रही हैं। इि िर्य वे बहुत
अच्छे र्ूड र्ें हैं। र्ैं अधलेटा हूं और वे र्ेरे सिर की तरफ बैठी हैं। अचानक उन्गहोंने र्ेरा सिर
अपनी गोद र्ें रख हदया है । र्ैंने आंखें बंद कर ली हैं। वे र्ेरे चेहरे की तरफ झुकी हैं और
र्ेरा र्ार्ा िहला रही हैं। उनके बालों ने र्ेरे चेहरे पर एक झीना जाल डाल हदया है ।
अचानक एक गरर् बूंद र्ेरे गाल पर चगरी है । वे नन:शब्द रो रही हैं। आंिुओं िे
उनका चेहरा तर है । र्ैं कुछ कह नहीं पाता कक क्या कहूं। वे रोये जा रही हैं। र्ैं हार् बढ़ा
कर उनके आंिू अपनी उँ गली की कोर पर उतार लेता हूं। वे र्ेरी उँ गली अपने र्ंह ु र्ें दबा
लेती हैं।
इंदस
ु ंचत
े ना जुिाई-ससतंबि 2016
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-नहीं तो?
-नहीं तो?
- जानती हूं कक पाि र्ें युवा और खबू िूरत लड़की हो तो ककिी का र्न भी डोल
िकता है । पता नहीं तर्
ु खद
ु पर कैिे कंरोल कर पाये।
र्ैं उनके बाल िहलाते हुए हं िता हूं - बहुत आिान र्ा।
-क्या?
-कहते चलो।
इंदस
ु ंचत
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- र्ैंक्ि िर्ीर।
र्ैं र्ुस्कुरा कर रह गया हूं। इि बात का क्या जवाब दं ।ू र्ैंने उनके बबखरे बाल िर्ेट
कर उनके कानों के पीछे कर हदये हैं। उनका चेहरा दर्क रहा है ।
- जल्दीबाजी न करें श्रीर्न। अभी तो हर्ें इि जादईु यारा के नतसलस्र् िे बाहर आने
र्ें ही िर्य लगेगा। और याद रखें कक याराएं और र्ल
ु ाकातें हर्ेशा िंयोग िे ही होती हैं।
अचानक ही। जैिे ये र्ुलाकात हुई। हर् ज़रूर सर्लें गे लेककन कहां सर्लें गे और कब सर्लें गे,
इिकी कोई भववटयवाणी िेल्फ एक्चअ ु लाइज़ेशन नहीं करता। वे खखलखखला कर हं ि दी हैं।
र्ैंने उन्गहें ड्राप ककया है । कार िे उतर कर हर् गले सर्ले हैं और कफर िे सर्लने का
वादा करके बबछड़ गये हैं।
वावपि आने के सलए कार स्टाटष करते िर्य र्ैं तय नहीं कर पा रहा कक र्ैं एकदर्
खाली हो गया हूं या ककिी दै ववक ताकत िे भर गया हूं।
इंदस
ु ंचत
े ना जुिाई-ससतंबि 2016
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किानी
कल्पिास
िाजेंद्र िमाा
‘‘अरे हं िा! ई पांच लीटर तेल ककत्ती दे र चली? जब हदन भर जनरे टर चलना है तो
काहे नहीं बीि लीटर एकै िार् डालता!’’ हं िा को जनरे टर र्ें डीजल टोहटयाते दे ख बैंक-बाबू
इलाही ने कहा। इलाही हाल ही र्ें भती हुआ र्ा और घाघ ककस्र् के बाबओ
ु ं का छोड़ा हुआ
कायष ननपटाने बैंक जल्दी आ जाता र्ा।
हं िा की खखसियानी हं िी ननकल पड़ी, बोला- ‘‘हर्ार बि चलै तो हर् बीि का, चालीि
डाल दे ई, लेककन सर्लै तो!।।’’ उिने जनरे टर चला हदया। िबेरे के िाढ़े आठ बज रहे र्े।
अभी उिे बैंककंग हाल, शाखा प्रबन्गधक के चैम्बर और सिस्टर् रूर् की िफाई करनी र्ी।
िभी जगह झाडू-पोंछा और टायलेट की धल
ु ाई करते-करते िाढे नौ तो बजते ही र्े। तब तक
फील्ड आकफिर, एकाउं टैंट, सिस्टर् इंचाजष और एकाध बाबुओं का आगर्न शुरू हो जाता।
शाखा प्रबन्गधक तो खैर, आरार् िे दि-िाढ़े -दि तक आते र्े।
हं िा, यानी पचीि वर्ीय नाइन्गर् फेल हं िराज जाटव, यानी पंडडतजी का घरे लू नौकर!
पंडडतजी, अर्ाषत ् पचाि वशीय पं0 हररप्रिाद नतवारी, न्स्कजनकी बबन्स्कल्डंग र्ें बैंक र्ा और उन्गहीं
का जनरे टर ककराये पर चलता र्ा। न्स्कजतने रुपये र्हीने ककराया सर्लता र्ा, उतने का ही
डीजल लग जाता र्ा, दो-ढाई हजार र्हीना र्ें हटनेंि और हजार रुपये हं िा का वेतन उनकी
जेब िे जाता र्ा। यह बबल्कुल घाटे का िौदा र्ा, लेककन बबन्स्कल्डंग के ककराये िे घाटा परू ा
होता र्ा। हालांकक बबन्स्कल्डंग का ककराया भी कुछ खाि न र्ा- पन्गद्रह हजार र्हीना, लेककन
नफा-नुकिान िे र्हत्वपण
ू ष प्रनतश्ठा का प्रश्न र्ा- उनकी बबन्स्कल्डंग र्ें कोई दि
ू रा कैिे जनरे टर
लगा िकता र्ा?
हं िा के पररवार र्ें दो प्राणी और र्े। पांच वर्ीय बेटी- र्ुन्गनी, और इजाज के अभाव र्ें
दर्ा िे जझ
ू ती र्ां! हं िा को नौकरी िे ही फुरित न र्ी। वह इिे पंडडतजी की कर्, बैंक की
अचधक िर्झता र्ा। र्न र्ें कहीं आि पल रही र्ी कक एक हदन, लालर्न की तरह वह भी
बैंक र्ें रे गुलर हो जायेगा। इिसलए वह शाखा प्रबन्गधक, फील्ड आकफिर, एकाउं टैंट, सिस्टर्
इंजाजष िहहत हर स्टाफ की चाकरी बजाने दौड़ता रहता र्ा।
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लालर्न ब्रांच का स्र्ायी िफाई कर्षचारी र्ा, लेककन िफाई का कायष वह हं िा िे ही लेता
र्ा। इिके बदले वह उिे पांच िौ रुपये प्रनत र्ाह दे ता र्ा। लालर्न िे पहले उिके पड़ोि के
गांव के प्रदीप सर्श्रा िफाई कर्षचारी र्े, लेककन प्रर्ोशन पाकर पड़ोि की एक ब्रांच र्ें बाबू
हो गये र्े। हं िा िे िफाई करवाने की नींव उन्गहोंने डाली र्ी।
जब लालर्न की भती हुई तो हं िा को लगा कक अब िफाई के कार् िे उिे फुरित सर्ल
जायेगी, क्योंकक लालर्न स्वीपर बबरादरी के र्े और वह जाटव! इि सलहाज िे वह लालर्न
िे ऊँची जानत का र्ा। लेककन धन की दे वी लक्ष्र्ी ने िार्ान्स्कजक िोपान बदल हदये र्े। यहां
र्नु र्हाराज की नीनत कार् न आ रही र्ी- एक दसलत दि
ू रे दसलत का शोर्ण कर रहा र्ा
………. धन ननधषन का शोर्ण कर रहा र्ा ……….बड़ी र्छली छोटी को खा रही र्ी।
बहरहाल, हजार रुपये पंडडतजी िे, पांच िौ लालर्न िे और दो-ढाई िौ स्टाफ की हटप्ि-
कुल सर्लाकर र्हीने र्ें िरह-िाढ़े िरह िौ रुपये हं िा के हार् र्ें आ जाते र्े। बंधे-बंधाये
पौने दो हजार रुपये र्हीने कर् न र्े- पर इनर्ें िे चार-पांच िौ तो वह दारू और बीड़ी को
भें ट कर दे ता ………. पहले वह कभी-कभार होली-दीवाली र्ें चोरी-चप
ु के दारू पी लेता र्ा,
लेककन जब िे फील्ड आकफिर ने हफ्ते र्ें दो बार ब्रांच की कैंटीन र्ें शार् पांच बजे िे दारू
पाटटी आयोन्स्कजत करनी र्ुरू की- न्स्कजिका इंतजार् हं िा के न्स्कजम्र्े र्ा, तब िे वह भी बोतल र्ें
बची हुई न्स्कव्हस्की का र्जा तीिरे -चैर्े लेने लगा। र्िालेदार दे िी के र्ुकाबले यह बहुत हल्की
र्ी, इिसलए हल्कापन दरू करने के सलए वह जल्द-ही र्धश
ु ाला का परर्ानेंट ग्राहक बन
गया।
बारह िौ रुपये पत्नी के हार्ों िौंप वह घरे लू न्स्कजम्र्ेदाररयों िे र्ुक्त हो जाता। हर र्हीने
‘िैलरी डे’ पर पत्नी झल्लाती- ‘‘तुर् यहां क्या िोने आते हो? यह भी बन्गद कर दो, तो कौन
िा कार् तुम्हारे बबना रुक जायेगा? पांच-छः िौ तो र्ैं भी दि
ू रों के घर र्र-र्र कर्ा लेती
हूं।’’ जब गस्
ु िा ठं डाता, तो कहती, ‘‘तर्
ु यह नौकरी छोड़ क्यों नहीं दे ते? ………. ऐिी नौकरी
िे क्या फायदा कक घर िे दरू भी रहो और भख
ू े भी र्रो!’’
हं िा चप
ु चाप िुन लेता। िुनने की तो जैिे उिे आदत पड़ गयी हो- घर हो या बैंक। हर
जगह, उिे दि
ू री की िुनने का कार् र्ा। िवेरे ही, वह घर िे ननकल पड़ता ………. पत्नी और
र्ां अवश दे खती रह जातीं ……….
कभी-कभी वह भी भावक
ु हो उठता- वह भी र्न्ग
ु नी के िार् खेले, उििे खब
ू बातें करे !
ककतने हदन हो गये उिे दौड़ते-भागते दे खे! ……….।अम्र्ा की िेवा तो जैिे उिके भा्य र्ें है
ही नहीं! ……….पत्नी का र्ुस्कुराता चेहरा आंखों र्ें तैरने लगता ……….जब ब्याहकर आयी र्ी,
तो बबल्कुल हहरवाइन लगती र्ी- िांवला रं ग, लेककन चेहरे पर बड़ी-बड़ी र्ुस्कुराती आंखें,
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गुलाब की पंखडु डयों जैिे पतले-पतले होंठ और भरे -भरे गाल! जब हं िती तो गालों र्ें गड्ढे
पड़ जाते- बबल्कुल शर्ीला टै गोर की तरह! बस्ती र्ें कोई भी ऐिी नक्ष-नैन वाली बहू न र्ी।
िाि को ककतना नाज र्ा बहू पर- आते ही घर िंभाल सलया! बड़ो का सलहाज और छोटों िे
प्यार! ककतनों की तो नजरें उिे चोरी-चोरी दे खती रहतीं और िौन्गदयष-रि पीती रहतीं। कुछ
नजरें तो उि पर घात भी लगाये रहतीं, पर र्जाल कक कोई ऐिी-वैिी बात हो जाए! ……….
लेककन आज उिकी हहरवाइन उलझे बालों वाली काली-कलूटी लगती है । चेहरे की लुनाई न
जाने कहां गायब हो गयी? हार्-पांव बबल्कुल खरहरा हो गये ……….गरीबी ने िारा आब िोख
सलया!
शाखा र्ें कोई चपरािी न र्ा। लालर्न िे चपरािी का कायष सलया जाता। स्वीपर जानत के
होने के कारण लोग उिके हार् का पानी पीना टाल दे ते र्े। यह िेवा भी हं िा को िम्पन्गन
करनी पड़ती र्ा। इिके अलावा, लालर्न कक्षा पांच तक ही वर्क्षक्षत र्ा। अंगे ्रजी उिे छू तक
नहीं गयी र्ी, इिसलए वाउचर छं टवाने, अनस्कैंड सि्नेचर काडष ननकलवाने आहद र्ें भी हं िा
को उिकी र्दद करनी पड़ती। लालर्न यह र्दद आदे श दे कर सलया करता। इिके सलए वह
हं िा को दि
ू रे -तीिरे पांच-दि रुपये भी दे ता। िात हजार तीन िौ प्रनत र्ाह वेतन पाने वाले
लालर्न के सलए पांच-छः िौ की रासश कोई खाि न र्ी, जबकक हं िा के सलए वह आधी
तनख्वाह र्ी।
नौकरी चीज ही ऐिी होती है । शरू
ु -शरू
ु र्ें स्वासभर्ान को ठे ि पहुंचने पर कटट होता है ,
ककन्गतु कटट के बदले जब हर र्हीने बंधी-बंधाई रकर् सर्लने लगती है , तो स्वासभर्ान को
नतल-नतल र्ारना तर्ा दि
ू रों का शोर्ण करना जीवन का अभीटट बन जाता है । कैिी
ववडम्बना है - लक्ष्र्ी ही हर्िे र्नुटयता छीनती है ,कफर भी हर् लक्ष्र्ी की कृपा पाने को क्या-
क्या नहीं करते ?
हं िा भी जीवन की इि ववडम्बना का स्र्ाई आनन्गद लेना चाहता र्ा। िोते-जागते उिकी
आंखों र्ें एक ही स्वप्न पलता- एक हदन वह बैंक र्ें नौकर हो जायेगा। कफर िारा दख
ु -
दाररद्रय छू-र्न्गतर हो जायेगा। वही पत्नी, जो उििे ठीक िे बात नहीं करती, उिके सलए
पलक-पांवड़े ववछाये रहे गी। अम्र्ा भी अपने बेटे पर नाज करें गी। बेटी भी अच्छे स्कूल र्ें
पढ़े गी ……….नदी िे दरू बस्ती िे िटा उिका अपना पक्का घर होगा न्स्कजिर्ें लैटरीन भी होगी-
पत्नी और अम्र्ा को बाहर जाने की जरूरत न रहे गी!
वपछले तीन वर्ों िे हं िा की यही हदनचयाष र्ी कक वह िवेरे िात बजे घर िे ननकल
लेता और रात को नौ बजे तक पहुंचता। हल्के-फुल्के बुखार र्ें भी वह नागा न करता। वपछले
िाल उिे अवश्य आठ-दि हदनों तक घर पर रहना पड़ा र्ा, जब एक सियार ने उिके एक
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पैर की वपंडली का अच्छा-खािा र्ांि उड़ा ले उड़ा र्ा। अंधेरी रात र्ें करीब नौ बजे जब वह
िाइककल िे रें गते हुए घर लौट रहा र्ा कक दाहहने पैर के पाि ककिी की आहट हुई। उि
िर्य उिके पाि टाचष भी नहीं र्ी। लगा कक कोई जानवर है । वह ‘धत ्-धत ्’ करता रह गया
और सियार ने अपना कार् हदखा हदया।
िाइककल िे घड़र्ड़ाकर वह चगर पडा। लंगड़ाते-लंगड़ाते ककिी तरह घर पहुंचा ………. िाबुन
िे घाव धोकर उिने कडुआ तेल लगाया, पर ददष के र्ारे वह रात भर कराहता रहा। िवेरे
अस्पताल जाकर एंटी रै बीज का इंजेक्शन लगवाया। र्रहर्-पट्टी करायी। कफर घर पर
आरार्! अगले हदन कफर इंजेक्शन! ………. घाव अभी िख
ू ा न र्ा, लेककन जैिे ही हं िा तननक
चलने-कफरने लायक हुआ, वह बैंक र्ें हान्स्कजर र्ा। र्न र्ें कहीं डर बैठा हुआ र्ा- ककिी और
को न रख सलया जाए!
पैर के घाव के कारण हं िा जब बबस्तर पर र्ा तो पत्नी बड़े प्यार िे िर्झाती- ‘‘यह
नौकरी अब तुर् छोड़ दो। क्या होता है हजार रुपल्ली र्ें ! र्ैं भी दि
ू रों के यहां कहां तक
रोज-रोज खटूं? और सर्लता भी क्या है - र्न्स्कु श्कल िे पन्गद्रह-बीि रुपये या िेर-दो-िेर अनाज!
अब तुर् यहीं कोई कार्-काज ढूढ़ो। न हो, तो कोई छोटी-र्ोटी दक
ु ान ही खोल लो!
……….िहुआइन के ठाठ नहीं दे खते। िाहू के र्रने के बाद उिने क्या ककया? परचन
ू की दक
ू ान
खोली। जब दे खो, भीड़ लगी रहती है । िाहू तो बि नार् के ही िाहू रहे - न्स्कजन्गदगी भर भगत
बने रहे । भजन-कीतषन करते रहे । अरे , इििे कहीं घर चलता है ? अच्छा ही हुआ कक घर की
दीवार ढहने िे वे चल बिे और दीवार र्ें गड़ी र्ोहरे िहुआइन को दे गये ……….तर्
ु भी दक
ु ान
खोल लो- बैंक िे लोन ले लो, नहीं तो हर्ारी हं िुली-करधनी बेच दो। यहां रहोगे, तो र्ुन्गनी
और अम्र्ा की दे खभाल तो हो पायेगी। र्ुन्गनी स्कूल जाने की न्स्कजद करती है , लेककन नदी-पार
उिे कैिे भेजूं? अम्र्ा की दवाई भी अब डाक्टर हाल बताने पर नहीं दे ता, कहता है - र्रीज
को लेकर आओ! ……….लेककन तर्
ु तो कुछ िन
ु ते ही नहीं! और ककतनी रार्ायन बांच?
ंू ’’
हं िा ने र्ोड़ा प्रनतवाद ककया- ‘‘िहुआइन की बात तो तर्
ु करो नहीं। वह ठहरी जवान
ववधवा! दक
ु ान भी गांव के बीचोबीच! न्स्कजतने ग्राहक आते हैं, उनिे ज्यादा उिके रसिया! ……….
हर् यहां दक
ु ान खोल भी लें , तो वह कौन-िी चलने वाली है ? यहां कौन खरीदार बैठा है ?
िहुआइन की दक
ु ान छोड़ गांव-वाले यहां िौदा लेने आयेगे? हां, तुर् िहुआइन की तरह
दक
ु ान चलाओ, तो और बात है !’’
पत्नी लजाकर बोली- ‘‘धत ्!’’ कफर उिने कहा- ‘‘ठीक है , तर्
ु खोलकर तो दे खो, न
चलेगी तो नतराहे पर रख लेना। वहां तो पान-बीड़ी की तो दो-तीन गुर्हटयां हैं।’’
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इि कारण तीज-त्योहार िौ-पचाि रुपये इनार् के िार्-िार् पहनने लायक पुराने कपड़े भी
हं िा की गोद र्ें चगरने लगे। हं िा की स्वासर्भन्स्कक्त और भी ननखरने लगी।
इि बार र्ाघ के र्हीने र्ें कंु भ का योग र्ा। पंडडतजी न केवल कंु भ र्ें गंगास्नान करना
चाहते र्े, बन्स्कल्क र्हीने भर ‘रार्नगररया’ र्ें कल्पवाि भी करना चाहते र्े। उनके िाले िाहब
इि र्ार्ले र्ें पयाषप्त अनुभवी र्े। वे प्रत्येक वर्ष र्ाघ-भर र्ें गंगा ककनारे बिायी गयी
‘रार्नगररया’ र्ें कल्पवाि ककया करते र्े। इिी कल्पवाि के िहारे वे अपनी बहू को जलाने
के बावजूद जेल जाने िे बचे र्े। गंगा र्ैया ने िारे पाप धल
ु हदये र्े। पंडडतजी अपने िाले
को बहुत पिन्गद नहीं करते र्े, पर पंडडताइन के जोर दे ने पर उन्गहोंने िाले के िार् कल्पवाि
के सलए ननकल पड़े!
ठं ड खब
ू पड़ रही है , पर हं िा के पाि र्तलब-भर का ओढ़ना-बबछौना है । रात र्ें जाड़ा
जब ज्यादा हदक करता है , तो वह बीड़ी पीना शुरू कर दे ता है । हदन र्ें पहनने को एक स्वेटर
है । अब उिे घर वालों की चचन्गता है । पत्नी के पाि एक स्वेटर है - उिी िे उिका जाड़ा
कटे गा। शाल है , लेककन वो कभी-कभार ही ओढ़ती हैं, कहती है - ‘‘रोज ओढ़ें गे, तो फट नहीं
जायेगी! कफर कहीं आने-जाने र्ें क्या ओढ़ें गे?’’ र्ां के पाि बि एक िलूका है - वह भी पांच-
छः िाल पुराना। हदन-रात हने रहती है - चीलर पड़ गये हैं, लेककन जब कभी उिे धल
ु ने की
बात करो, तो कहती है , ‘‘अरे ! रह्यौ द्यो, चीलरौ रहहहैं और हर्हूं रहब।’’ बदबू तो उिे लगती
ही नहीं- भले ही दि
ू रा उिके पाि बैठने िे कतराता हो। र्न्ग
ु नी तो बदबू के र्ारे उिके पाि
जाती ही नहीं, वरना वह दादी के पाि ही िोती र्ी। गनीर्त है कक पत्नी ने लड़-झगड़कर
वपछले िाल एक बड़ी रजाई भरवा ली न्स्कजिे तीन लोग आरार् िे ओढ़ िकते हैं।
दो हदनों िे शीत-लहर चल रही है । घर िे खबर आयी है कक ठं ड िे अम्र्ा की तबीयत
बबगड़ गयी है । डाक्टर ने भती कराने को कहा है । हं िा ने पंडडताइन िे दो िौ रुपये लेकर
घर सभजवा हदये हैं , लेककन उिका र्न नहीं लग रहा- न बैंक र्ें , न पंडडतजी के यहां! रात
को जरा-िी झपकी आयी कक उिे भयानक िपना आया- अम्र्ा कहीं जा रही हैं। उनकी
बबदाई हो रही है । ……….िभी लोग रो रहे हैं। अकेली अम्र्ा ही खश
ु हैं। कुछ बोल तो रही हैं,
लेककन िुनाई कुछ नहीं पड़ रहा ……….हं िा के र्ुंह िे भी आवाज ही नहीं ननकल रही ……….रोती
हुई पत्नी उििे सलपटने को र्ी कक उिकी आंख खल
ु गयी! िपने के फसलतार्ष की आशंका
ने आंखों की नींद हर ली।
िवेरे पंडडतजी की गाय की िानी-पानी की। कफर उिे दहु कर घर पहुंचा। र्ां अचेत पड़ी
र्ी। कहने-भर को जीववत र्ी- िांि चलने की धीर्ी खरखराहट िुनाई दे ती र्ी। हार्-पांव
बबल्कुल ठं डे। आंखें डूबीं-िी। हं िा को दे ख उनर्ें जरा-िी चर्क आयी, लेककन हं िा को छोड़
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इिे कोई दे ख न पाया। पत्नी ने र्ां को जीप िे अस्पताल ले जाने को कहां, पर पड़ोसियों ने
डॉ०क्टर को यही लाने की िलाह दी। हं िा को भी यही ठीक लगा ……….
डॉ०क्टर आया। दो इंजेक्शन लगाये, कुछ दवाइयां सलखीं और िौ रुपये लेकर चलता बना
……….चार-पांच हदन कट गये। हं िा की जान र्ें जान आयी ……….गरीबों का तजुबाष है कक अगर
बूढ़ों का जाड़ा िही-िलार्त कट गया, तो िर्झो उन्गहें िाल-भर की न्स्कजन्गदगी सर्ल गयी!
पनत-पत्नी, दोनों को आशा बंध गयी है , अम्र्ा अब बच जायेंगी।
आज कुछ धप
ू ननकली है । पछुआ का उत्पात भी कर् है । बूढ़ा को र्ोड़ा आरार् सर्ला- ढाई-
तीन बजे आंखें खोलीं। गरर्-गरर् खखचड़ी खायी तो चेहरे िे र्द
ु ष नी छं ट गयी ……….घंटे भर
बाद हं िा बैंक के सलए चलने को हुआ। पत्नी ने रोकने की कोसशश की, पर हं िा नहीं र्ाना।
शार् िात बजे वह बैंक िे पंडडतजी के यहां आ गया। यहां गौ र्ाता की िानी-पानी बड़ी
बेिब्री िे उिकी प्रतीक्षा कर रही र्ी। रात र्ें भी गाय की रखवाली करने का कार् भी उिी
के न्स्कजम्र्े र्ा। हालांकक जब पंडडतजी घर र्ें रहते र्े, तो गाय की दे खभाल र्ुंशी के न्स्कजम्र्े
र्ा। लेककन आजकल र्ंश
ु ी तो जैिे हं िा का र्ासलक बन गया हो। बात-बात पर फरर्ान जारी
करता है - ‘‘ये करो, वो करो!’’ पंडडताइन भी उिी के िुर र्ें िुर सर्लाती हैं।
र्ां की दवाइयां उिने कस्बे र्ें आते ही ले लीं, पर अब उन्गहें सभजवाने की चचन्गता र्ी।
वह वापि घर जाने की िोच रहा र्ा कक उिके पड़ोि के गांव के एक िज्जन हदख गये।
दौड़कर उन्गहें दवाइयों का सलफाफा पकड़ाया। उनके पैर छूते हुए ननवेदन ककया कक यह
सलफाफा आज ही उिके घर पहुँचा दें । उन िज्जन ने, ‘‘ठीक है ’’, कहकर सलफाफा ले सलया।
हं िा ननन्स्कश्चंत हो गया। कफर, पता नहीं ककि धन
ु र्ें वह शराब की दक
ु ान पर पहुंच गया और
कब उिने दो र्िालेदार पाउच कड़वी दालर्ोठ के िार् गटक सलये- पता ही नहीं चला!
उधर, न्स्कजन िज्जन के हार् उिने र्ां की दवाई सभजवायी र्ी, वे भी वपयक्कड़ ननकले।
र्धप
ु ान िे ननवत्त
ृ होते-होते उन्गहें खािी दे र हो गयी। आधे रास्ते र्ें िाइककल भी खराब हो
गयी। अपने ही गांव पहुंचते-पहुंचते उन्गहें नौ बज गया- हं िा का गांव तो एक ककर्ी। और
आगे र्ा। िोचा, िबेरे दवाइयां पहुंचा दें गे और पहुंचाया भी, लेककन तब तक दे र हो चक
ु ी र्ी।
पंडडतजी की गौर्ाता का ननत्यकर्ष करवा हं िा जब घर पहुंचा, तो लाश को बबस्तर िे
उठाकर जर्ीन पर रखा जा रहा र्ा। हं िा की आंखों र्ें यह दृश्य जैिे अटक गया। उिकी
िर्झ र्ें न आ रहा र्ा कक वह क्या करे ! र्ोड़ी दे र र्ें पड़ोि के चगरधारी काका ने उिके
कंधे पर हार् रखा- ‘‘धीरज िे कार् लो बेटा! यह तो एक हदन िभी के िार् होना है । जो
आया है , िो जायेगा! अब कफन-दफन का इंतजार् करो।’’
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िाि की र्त
ृ दे ह िे सलपटी रो रही हं िा की पत्नी उिे दे ख जोर-जोर िे रोने लगी
……….एक स्री ने उठकर उिे िंभाला। अब हं िा की रुलाई भी फूट पड़ी। वह बच्चों की तरह
धाड़ र्ारकर रोने लगा ……….।पड़ोिी कफन लेने चले गये। जब वे लौटे , हटकठी तैयार र्ी।
कंधों पर ही लाश को र्ुदषननया घाट ले जाकर नदी र्ें वविन्स्कजत
ष कर हदया गया। हं िा ने
नार्-र्ार को कंधा हदया। उिे जैिे कुछ होश न र्ा, र्ूक दशषक बना हुआ र्ा।
हं िा की र्ां के न रहने की खबर पंडडतजी के घर पहुंच गयी। अब वह दि हदनों तक न
आयेगा। पंडडताइन को गाय की चचन्गता र्ी। र्ुंशी ने दध
ू तो ननकाल हदया, बाकी कार् पड़ा
हुआ र्ा। पंडडतजी को लेने जीप जा चक
ु ी र्ी- आज शार् तक वे आ जायेंगे!
र्ां को र्रे आज पांचवा ही हदन र्ा कक हं िा बैंक र्ें हान्स्कजर र्ा। इलाही िहहत स्टाफ के
कई लोगों ने उिे डांटा कक बैंक आने की क्या जरूरत र्ी? क्या बैंक उिके बबना बन्गद हो
जायेगा? हं िा को खबर सर्ली र्ी कक बड़े िाहब का रांिफर हो गया है और वे कुछ ही हदनों
के र्ेहर्ान हैं। वे खद
ु ही यहां िे जल्द जाना चाहते हैं। उनकी जगह कोई शुक्लाजी आने
वाले हैं।
जब हं िा का इंटरव्यू हुआ, तब नये िाहब ने चाजष िंभाला ही र्ा। उन्गहोंने हं िा को
हदलािा हदलायी कक वे सिफाररश कर दें गे। हं िा आश्वस्त र्ा, पर पररणार् ननराशाजनक
ननकला। ककिी कश्यप की ननयुन्स्कक्त हो गयी। बाद र्ें पता चला कक वह रीजनल आकफि र्ें
ककिी बाबू का ररश्तेदार है ।
बैंक र्ें नौकरी न लगने िे हं िा ववक्षक्षप्त-िा हो गया। बैंक र्ें उिके लायक अब कोई
कार् नहीं। लालर्न की नौकरी वह करे भी तो ककिसलए? पंडडतजी की नौकरी बेगार लगने
लगी। वह तो बैंक िे बंधी र्ी ……….जब र्ूल ही टूट गया, तो शाखा र्ें क्या धरा है ?
पंडडतजी के कल्पवाि िे आने के बाद हं िा जब उनिे सर्ला र्ा, तो उिकी र्ां की र्त्ृ यु
का िर्ाचार िन
ु उनकी आंखों र्ें कोई िंवेदना न हदखी। उल्टे पंडडताइन की सशकायत पर
उन्गहोंने हं िा को डांट वपलायी कक उिने घर का कार् ठीक िे क्यों नहीं ककया? गाय की
िानी-पानी तक दि
ू रों के नौकर िे करानी पड़ी र्ी!
हं िा चप
ु चाप पंडडतजी की डांट खा रहा र्ा, लेककन वह िर्झ नहीं पा रहा र्ा कक
कल्पवाि पंडडतजी का हुआ र्ा या उिका!
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इंदस
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ewfrZ dh [kwc fiVkbZ djrk gSA ;g lc djus ds ckn mlds psgjs ij lqdwu gSA Fkdku
ugha gSA eu 'kkar gSA tSls euks cks> flj ij ls mrj x;k gksA viuk dke djus ds
ckn og pkSarjs ls ,sls uhps mrjrk gS ekuks fdlh cM+s iqjLdkj dks izkIr dj ykSV jgk
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yaxk gksus dk ,glkl gks tkrk gSA blh dkj.k mls uaxk nsork dgrs gSA [kqys vkleku
ds uhps ihB ds cy ihNs dh vksj gYdh lh >qdh bl ewfrZ us vufxur cjlkrksa vkSj
cQZ ds ekSleksa dk dgj lgk gksxkA Hkh"k.k xehZ >syh gksxhA vkaf/k;k&rwQku cjnk'r
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flyflyk 'kq: gks tkrk gSA
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NksVs&cM+s dM+ksys fijks, x, gSaA dqN piVs gSa ftUgsa fdlh yksgkj ls ?kM+k;k x;k gS vkSj
dqN eksVh rkjksa dks eksM+ dj cuk, x, gSaA ,sls gh cgqr ls dM+ksys pkSarjs ds vklikl
tehu ij Hkh fc[kjs iM+s gSa tks tax ls x+y&VwV dj viuh 'kDysa vk/kh&v/kwjh dj cSBs
gSaA txg&txg xsgwa ds vkVs dh pq[kfV;ka j[kh xbZ gSa ftUgsa vkxarqdksa us nsork dks jksV
ds :i esa p<+k;k gSA buds chp dkyh vkSj yky jax dh phafV;ka iljh gqbZ gSaA
chp&chp esa nks&pkj dkSos vkSj eSuk,a ckjh&ckjh vkdj nks&pkj pksp a s ekj tkrs gSa ftl
dkj.k mudh pksp a s vkxs ls gYdh lQsn gks xbZ gSA ;g rHkh gksrk gS tc xkao ds dqRrs
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nka, rFkk ihNs dh vksj Hk;adj <kad gSaA uhps ns[kus ij vka[ks iFkjk tkrh gS vkSj
fny Hk; ls dkaius yxrk gSA nwj uhps igkM+h unh ,sls cg jgh gS tSls dksbZ Hk;kud
dkscjk QqQdkjrk gqvk vius f'kdkj dh ryk'k esa Hkkxk tk jgk gksA ml ikj Hkh
iRFkjhys igkM+ gSa tks Åij igqap dj fo'kky yEch /kkjksa dk fuekZ.k djrs gSaA
txg&txg fo'kkydk; pV~Vkuas ,d nwljs ds Åij ,sls fn[krh gSa tSls Mk;uklksjksa ds
lfn;ksa iqjkus vo'ks"k muesa fpiVs iM+s gksAa yxrk gS tSls vkleku bUgha /kkjksa dh ihB ij
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?kklf.k;ka gSaA mu rd igqapus ds fy, unh ds fdukjs ls dbZ jkLrs Åij p<+rs gSa vkSj
/kkjksa ij xqe gks tkrs gSaA ;s ,sls fn[kkbZ nsrs gSa tSls fdlh ;qok us fQYeh LVkby esa
vius cky dVokdj muds chp dbZ lh/kh /kkfj;ka cuk nh gksA buds chp dbZ vkSjrsa
viuh&viuh cdfj;ksa ds lkFk ?kkl dkVrh utj vk tk,axhA ;s tc vius&vius ?kjksa
dks drkjksa esa ykSVrh gSa rks yxrk gS fdlh dEI;wVjhd`r iSafVXk dks ekml ls fgyk;k tk
jgk gksA
yksx bl nsork dk bLrseky viuh nq'keuh vkSj cnyk ysus ds fy, djrs gSaA
mudk fo'okl gS fd vius ftl ljhd ;k 'k=q dks os nsork yxk nsx a s mldk loZuk'k
fuf'pr gSA bl v/kZe dks vatke nsus ds fy, fdlh xwj&psys dh t:jr ugha gSA
iqtkjh&dkjnkj dh vko';drk ugha gSA iaph&iapk;r dh njdkj ugha gSA blds fy,
xqgkj yxkrs oDr HksM+& w cdjk Hkh ugha pkfg,A ftls bardke ysuk gS og ml vkneh dh
rjg pqipki ;gka vkrk gSA /kwi tykrk gSA ,d nks pq[kfV;ka vkVs dh ewfrZ ds vkxs
p<+krk gS vkSj fQj vius bfPNr 'k=q dk uke vfr ?k`.kk vkSj Øks/k ls ysrk gSA mls
ftruh xkfy;ka ns ldrk gS nsrk gSA ,slk djrs mldh vka[ks vkSj eqag yky gks tkrk gSA
iwjk cnu HkHkdus yxrk gSA Øks/k] [kht vkSj ngd ls vksaB QM+QM+kus yxrs gSaA ftruh
Hkh nq"dkeuk,a] bZ";kZ] nqHkkZo vkSj cn[okgh Hkhrj Hkjh gksrh g]S nsork ds lkeus izdV gksus
yxrh gSA tSls og ;gka lfn;ksa ls blhfy, gSA mlh dh lquus cSBk gSA
eu dh lkjh HkM+kl fudyrs gh og tsc ls rhu ;k ikap yksgs dh dhysa
fudkyrk gS vkSj ikl iM+s fdlh iRFkj ls nsork dh Nkrh ij Bksd a nsrk gSA ,d&,d
dhy ds lkFk og nsork dks veqd dk loZuk'k djus ds fy, izfrcaf/kr djrk tkrk gSA
mlds ckn vius nkfgus ikao dk twrk [kksyrk gS vkSj rM+krM+ ml ewfrZ ds flj vkSj eqag
ij ns ekjrk gSA mls tyhy djrk gSA FkwRdkjrk gSA Qthgr djrk gSA tSls og nsork
ugha mldk vijk/kh gksA viuk nq'eu gksA dhy Bksd a rs vkSj twrksa dk izgkj djrs gq,
og vius 'k=q dk uke ysrk tkrk gS---------------------tk nsok mldk lR;kuk'k djA og va/kk
gks tk,A ywyk&yaxM+k gksdj ?kwesA mldk dqN u jgsA VCcj ekj gks tk,A og ,slh
chekjh ls ejs ftldk bykt u gksA mlds chch&cPps ej tk,A i'kq ej tk,A
[ksrh&ckM+h u"V gks tk,A ;kfu ftruk cqjk og cksy ldrk gS cksyrk tkrk gSA dqN nsj
ckn psgjs ij ,d dqfVy eqLdku Nk tkrh gSA vka[ks vthc rjg ls pedus yxrh gSA
tSls mlus vkt thou dk dksbZ loksZRre dk;Z dj fn;k gksA twrs igurk gS vkSj pyk
vkrk gSA
bl rjg ds n`'; 'kkL=h frFkksjke ds NksVs csVs dyenr mQZ dyeq us i'kq pjkrs
vkSj Ldwy ls vkrs&tkrs >kfM+;ksa vkSj pV~Vkuksa ds ihNs ls Nqi&Nqi dj cgqr ckj ns[ks
gSaA vkBohaa esa i<+rk gSA vPNs&cqjs dh [kwc igpku gSA nq'eu&nksLr dk QdZ ekywe gSA
tkr&dtkr tkurk gSA Åap&uhp le>rk gSA ij tc dksbZ ;gka vkdj vius lxs HkkbZ]
lxs pkpk vkSj lxs lEcU/kh ds vfu"V ds fy, nsork dks foo'k djrk gS rks mlds
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Hkhrj tSls dbZ&dqN VwVus yxrk gSA njdus yxrk gS fd vius [kwu ds fj'rksa esa Hkh
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chekj ugha gqvk gS u gh ?kj esa dksbZ vugksuh ?kVh gSA
dyeq tc fdlh vkneh dks nsork dh Nkrh esa dhys Bksdrs ns[krk gS rks Hkhrj
rd ngy tkrk gSA ;g ngy Vhoh vkSj jsfM;ks ds lekpkj vkSj Hkh rh[kh dj nsrs gSaA
igys ?kj esa Vhoh ugha Fkk rks og cl jsfM;ks ds lkFk gj oDr fpidk jgrk FkkA
lekpkj lqurs jguk mls vPNk yxrk FkkA tc ls Vhoh yxk gS] lc dqN vka[kksa ds
lkeus ?kVrk pyk tkrk gSA tSls iwjk ns'k mlds ?kj esa ?kql vk;k gSA u,&u, lekpkjksa
vkSj lhfj;yksa dh nqfu;k dh pdkpkSa/k mls fofLer fd, jgrh gSA ogka Hkh mls yxrk gS
fd lc dqN vPNk ugha gSA HkkbZ] HkkbZ dh Nkrh esa dhy Bksad jgk gSA nksLr] nksLr dh
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c['k jgk gSA lkl ds ikl cgq ds fy, dhysa gSa vkSj cgq ds ikl lkl ds fy,A cgu
ds ikl HkkbZ ds fy, vkSj HkkbZ] cgu ds fy, ysdj pyk gSA ;kfu dksbZ Hkh fj'rk fcuk
dhy ds ugha jg x;k gSA ,d tkfr nwljh tkfr dh Nkrh ij dhysa xkM+ jgh gaSA ,d
ns'k dh dhy nwljs ns'k dh Nkrh ij gSA ,d /keZ nwljs /keZ dh Nkrh Nuuh dj jgk
gSA jktuhfr] jktuhfr dh Nkrh chu jgh gSA dyeq ns[krk gS fd dksbZ Hkh [kkyh gkFk
ugha gSA gj vkneh ds ,d gkFk esa dhy gS vkSj nwljs esa twrk gSA vius LokFkZ ds fy,
dksbZ fdlh dks c['kuk ugha pkgrkA tSls iwjh nqfu;k esa nq'eukbZ] ?k`.kk vkSj uQjr dh
[ksrh gks jgh gSA fo'okl?kkr gks jgk gSA ihB esa Nqjs ?kksia s tk jgs gSaA og ;g lc ns[k
dj lksprk jg tkrk gS fd mu phtksa dk mlds xkao ds nsork ls dksbZ okLr rks ugha gS
\
bl rjg ds d`R;ksa dks ns[krs&lqurs vkSj mu ij lksprs gq, dyew dk flj
pdjkus yxrk gSA tc dqN ugha lw>rk rks grk'k&fujk'k og dHkh vius i'kqvksa ds chp
pyk tkrk gS rks dHkh vius fdrkcksa ds cLrs dks ,d vksj NksM+ dj fdlh pV~Vku ij
cSB dj ckalqjh ctkus yxrk gSA ogh ,d /kqu------------------- ftls og ckj&ckj ctk;k
djrk gS&&
^p<+s;k r[rs vks eksg.kk p<+s;k r[rs]
vk;k ejus vks eksg.kk vk;k ejus]
HkkbZ;ka jh dhrh;ka vks vk;k ejusA^
¼fgekpy izn's k ds ,d ftys fcykliqj dk ;g izfl) xhr gSA ogka ds
eksjfla?kh uked xkao dk fuoklh eksg.k cgqr Hkyk vkneh FkkA mldk HkkbZ fcykliqj ds
jktk ds ikl ukSdjh djrk FkkA mlus ,d fnu fdlh otg ls viuh iRuh dh gR;k
dj nh vkSj eksg.k dks dgk fd og bl gR;k dk vijk/k vius flj ys ysA mlus HkkbZ
dh vkKk dk ikyu fd;k vkSj Qkalh p<+ x;kA½
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dbZ iy cPpksa vkSj ekLVjksa ds chp lUukVk ilj x;k FkkA lHkh dh vka[ks ue gks xbZ
Fkh vkSj mls loZJs"B xhr vkSj ckalqjhoknd dk iqjLdkj Hkh feyk FkkA
mldk firk frFkksjke 'kkL=h [kqn xkao ds cM+s nsork dk iqtkjh vkSj ljiap gSA
brus cM+s nsork dh nks&nks ftEesnkfj;ka HkkX; ls feyrh gSA mlh ds fy, mlus 'kkL=h
dh ukSdjh rd NksM+ nh gSA xkao ijxus esa nwj&nwj rd mldh vPNh&[kklh lk[k cuh
gS fd frFkksjke us ;s lc nso&lsok ds fy, fd;k gSA ij frFkksjke tkurk gS ukSdjh ls
T;knk eku&izfr"Bk nsork ds lkFk gSA ncaxrk nsork ds lkFk gSA loksZPprk nsork ds
lkFk gSA lo.kZrk nsork ds lkFk gSA nsork ds ckn mlh dh izfr"Bk gSA tks p<+kok eafnj
esa vkrk gS] mlh ds ikl mldk HkaMkj Hkh gSA og fdruk j[ks] fdruk yxk, ;k fdruk
bLrseky djs dksbZ dqN ugha dgrkA dksbZ ugha iwNrkA
cM+s nsork egkHkkjr ds egku ;ks)k crk, tkrs gSa] tks nso:i esa ;gka izdV gq,
FksA xkao dh igkM+h ij ftl nsork dh Nkrh ij dhysa Bksdh tkrh gS vkSj vius&vius
LokFkZ lk/kus dh xjt ls twrksa ls fiVkbZ gksrh gS mldk gkykafd cM+s nsork ls dksbZ
ysuk&nsuk ugha gS] ij xkao ds yksxksa us bUgsa ,d nwljs ls tksM+ fn;k gSA cM+s nsork dk
xwj vkSj nwljs dkjdqu fo'ks"k voljksa ij gh ogka tkrs gSaA ;g volj lka>h nso iapk;rksa
dk gksrk gSA igkM+h ij pkSarjs ds lkFk ,d dksBhuqek pkSjl dejk cuk gS ftldh Nr
lqUnj LysVksa vkSj nsonkj dh ydM+h ls NokbZ xbZ gSA ;g pkjksa rjQ ls [kqyk gSA Q'kZ
jaxhu Vkbyksa ls fufeZr gSA vc cM+s nsork dk xwj mcM+&[kkcM+ pkSarjs ;k tehu ij rks
ugha cSBsxk] blfy, vyx ls ;g LFkku cuk;k x;k gSA iapk;r esa uaxs nsork dk xwj Hkh
ogha lkeus cSBrk gSA nwj&nwj ls yksx ;gka Qfj;knsa ysdj vkrs gSaA nks"k fuokj.k gksrk
gSA blh fnu ;g Hkh r; gksrk gS fd fdl&fdl ds ?kj tkuk gSA ftl ?kj ;k O;fDr
ij nsork yxk;k gksrk gS mls vU; iwtk&lkexzh ds lkFk [kwc gV~V& s dV~Vs HksMw ds izcU/k
ds fy, Hkh dgk tkrk gS rkfd nsork dks mldh ihB ij fcBk dj okfil yk;k tk,A
frFkksjke 'kkL=h ds eu esa Hkh vlsZ ls ,d dhy pqHkrh jgh gS fd uaxs nsork dk
LFkku xkao ds cM+s nsork ds flj ij D;ksa cuk gSA ftldk xwj ,d ckgj dh tkr dk
gSA og ml nsork dks Hkh ckgj dh fcjknjh ls gh ekurk gSA ysfdu mldk Hk; bl
pqHku dks Hkhrj gh Hkhrj nck, j[krk gSA D;kssafd ;gh Hk; uaxs nsork dh lRrk gSA
rkdr gSA mPprk gSA ftlds vkxs iafMrksa vkSj Bkdqjksa ds eqag ij rkys tM+s gSaA oSls Hkh
cM+s nsork vkSj iwjs iafMrksa ds xkao ds flj ij cSBs ml nsork ds opZLo vkSj izrki ls gh
;gka nwj&nwj ls yksxksa dk vkuk&tkuk yxk jgrk gSA [kkuk&ihuk gksrk gSA ekal&Hkkr
dh /kkesa yxrh gSaA bu lHkh esa Hkh Qk;nk frFkksjke 'kkL=h dk gh T;knk gSA iwtkjh vkSj
ljiap gksus ds ukrs vkSjksa ls vf/kd nso&Hkkx mls gh feyrk gSA ftls ogka tkuk gksrk
gS og cM+s nsork ds ikl Hkh t:j eFkk Vsd ysrk gSA :i;k&iSlk p<+k;k tkrk gSA
Nsyw&cdjk ns tkrk gSA
frFkksjke 'kkL=h tc ls iqtkjh gqvk gS mldk dPPkk edku nkss eaftyk gosyhuqek
gks x;k gSA bDdrhl gkFk yEck vkSj mUuhl gkFk pkSM+kA iwjs ?kj esa nsonkj dh ydM+h
yxh gSA vkxs vkSj nka,&cka, cjkenk gS ftldh Xystsa jaxhu 'kh'kksa ls nwj rd pedrh
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lselax dk 48 bap LØhu okyk LekVZ Vsyhfotu yxk;k gSA VkVk LdkbZ dh fM'k yxh
gSA lkS&iPpkl yksxksa ds fy, fcLrjs gSaA Fkkfy;ka&fxykl gSaA tks dqN lksuk&pkanh gS
og 'kgj ds ,d cSad ds ykWdj esa lqjf{kr gSA nks&rhu cpr [kkrs Hkh gSaA dqN iSlk
'ks;j cktkj esa Hkh yxk gSA vius lkFk iRuh vkSj cPpksa rd dh thouchek iksfyfl;ka
Hkh ys j[kh gSaA ncnck bruk gS fd dHkh dHkkj tc dksbZ ljdkjh vQlj] iapk;r ds
iz/kku] i{k&foi{k ds NksVs&cM+s usrk xkao vkrs gSa rks mBus&cSBus vkSj jgus ds fy,
frFkksjke dk gh ?kj gksrk gSA ml fnu nsork dks vfiZr nks&rhu cdjs t:j dVrs gSaA
eagxh vaxzsth 'kjkc gksrh gSA fcuk lØkUr nsork dh iaph Hkh gks tkrh gSA mudks nsork
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dgha fdlh us yxk rks ugha fn;k gSA mldh Nkrh esa muds uke dh dhysa rks ugha Bksd
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ij og fdlh fo'ks"k ydM+h dh jk[k dk yEck&pkSM+k fryd yxk j[krk gSA yEch dkyh
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इंदस
ु ंचत
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etnwj tks ¼[kkMw½ HksM+s dks nsork ds pkSarjs rd ykus esa enn djrs gSaA
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mls ml ?kj&ifjokj ls tkuk gksrk gSA ftls yxk;k x;k gS mldks NksM+uk gksrk gSA
'kaqxyq nsork dk vkgoku djrk gSA lkeus ,d yksgs ds NksVs ls ik= esa dks;ys ty dj
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vc og 'kqaxyq yksgkj ugha gSA nsork gSA lkeus yksgs dk 'kaxy j[kk jgrk gS
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?kqekrk gSA ,d dkjnkj ds ikl yksgs dh cM+h xqjt gksrh gSA ftls Hkh lHkh ij ls lkr
ckj ?kqek;k tkrk gSA nwljk dkjnkj ml yksgs ds ik= dks mBkrk gS vkSj vkaxu esa ys
vkrk gSA xwj vkSj lHkh yksx ckgj vk tkrs gSaA HksM+k yk;k tkrk gSA dbZ eU= cksys tkrs
gSaA eU=ksa ls mls cka/kk tkrk gSA mlesa nsork dk nks"k ifjokj ;k ftlds fy, yxk;k
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os lh/ks pkSarjs ij uaxk nsork ds ikl tkrs gSaA HksM+s dks [kM+k djds fn[kkrs gSa fd og
mldk nks"k okfil ys vk, gSaA ,d pV~Vku ds ihNs xkao dk ,d O;fDr rst /kkj okys
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इंदस
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blds ckn ml ifjokj dks ftldk nks"k fuokj.k gqvk gS Qksu ij lwfpr fd;k tkrk gS
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dyeq dks ;g rek'kk yxrk gSA [ksy yxrk gSA va/k fo'okl tSlk dqN yxrk
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idrk gS rks dyeq ugha [kkrkA ml fnu mls [kwc ?kh&'kDdj feyrk gS ij og mls Hkh
ckgjh eu ls xVdrk gSA mls ;g dHkh ugha Hkk;k fd vius ets ds fy, nsork ds uke
ij HksMw&cdjs dh xnZus dkVh tk,A bl etesa esa dHkh Hkh 'kkfey ugha gksrk ftlds
fy, mls frFkksjke 'kkL=h dh >kM+as lquuh iM+rh gSA ukjktxh >syuh iM+rh gSA
dyeq Vsyhfotu ns[kus dk 'kkSdhu rks gS ghA mlds yxus ds ckn dyeq ds ets
gh ets gSaA tc og Ldwy ds dke ls Qkfjx gksrk gS rks blh ds vkxs cSB dj lekpkj
lqurk jgrk gSA dksbZ flj;y ns[k ysrk gSA ns'k&nqfu;k dh [kcjksa esa mldk eu yxk
jgrk gSA i'kq pqxkrs oDr Hkh nks phtsa ges'kk mlds ikl jgrh gSA ckalqjh vkSj fdrkcA
mldk eu nwljs cPpksa ds lkFk [ksyus esa Hkh ugha jerkA frFkksjke 'kkL=h dHkh&dHkh
mldh vknrksa dks ns[k dj gSjku gks tkrk gSA lksprk gS fd dyeq oDr ls igys gh
cM+k vkSj le>nkj gksus yxk gSA og vius ckn mlh dks iqtkjh vkSj ljiap ds in ij
vklhu gksrs ns[kus yxk gSA ijUrq dyeq dh vius xkao ds cM+s nsork ds dkj&HkaMkj vkSj
iwtk&vpZuk esa dksbZ fnypLih ugha gSA frFkksjke pkgrk gS fd og mlds lkFk nsork dh
iaph&iapk;r esa pyk djssA tc nsork dk jFk&NRrj nwljh txg tkrjk ds fy, tkrk
gS rks lkFk jgs] ij og ges'kk bu dkeksa ls Vyrk jgk gSA Ldwy ds dke dk cgkuk dj
nsrk gSA isV ;k flj esa nnZ crk nsrk gSA mldh eka mlds eu dks le>rh gS] blfy,
frFkksjke dks le>krh gS fd cPpk gS] D;ksa tcjnLrh djrs jgrs gksA cM+k gksxk [kqn
vius [kkunku dh ftEesnkjh le>sxkA frFkksjke eku rks tkrk gS ij eu rjg&rjg dh
'kadkvks esa my>us yxrk gSA ogh ,d csVk gSA rhu cgus gSa] tks vc ijk, ?kjksa dh
vekursa gks xbZ gSaA
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flj ?kwe tkrk gSA cM+h LØhu ij ce QVus] canwds pyus vkSj yksxksa ds grkgr gksus dh
ykbo rLohjsa mls fopfyr dj nsrh gSA ftl fnu is'kkoj esa vkrafd;ksa us Ldwy ds 132
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yxk ysrk gSA ysfdu ;s ?kVuk NksVh ugha FkhA frFkksjke dh fcjknjh ds yksx Hkh 'kke dks
ogha Vsyhfotu ns[kus vk tk;k djrs FksA os Hkh bl Hk;adj ?kVuk dks ns[kdj nax jg
x, FksA vkt frFkksjke 'kkL=h ;g t:j lksp jgk Fkk fd mlus ?kj esa bruk cM+k Vhoh
vkSj VkVk LdkbZ dh fM'k yxkdj xyr fd;k gSA mlds eu esa Hkh ng'kr gSA
dyeq nwljs fnu vueus eu ls Ldwy x;k FkkA vkt izkFkZuk dh txg ekLVjksa us
lHkh cPpksa dks cqykdj nks feuV dk ekSu j[kk FkkA Ldwy ds CySdcksMZ ij vkt ds
इंदस
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ds fy, cPps fgUnh ds igys i`"B ls udy dj fy;k djrs FksA mlus vkrs gh Hkhrj ls
pkSd mBk;k Fkk vkSj CySd cksMZ ds ikl tkdj Hkjh vka[kksa ls fy[k fn;k Fkk]
^ikfdLrkj ds is'kkoj esa 132 Ldwyh cPpksa dh vkrafd;ksa us fueZe gR;k dhA^
^gR;k dh^ 'kCn fy[krs gq, mlus pkSd dks brus tksj ls CySdcksMZ ij nck;k Fkk
tSls dpgjh esa dksbZ tt ekSr dk QSlyk fy[krs gq, vius iSu ds fuc dks dkxt ij
nck dj rksM+ nsrk gSA
ftu cPpksa us lekpkj ugha lqus Fks mu lHkh us CySdcksMZ ls tkudkjh gkfly dj
yh Fkh vkSj ckn esa Ldwy ds iz/kkukpk;Z us bl nq[kn ?kVuk dks ekSu lHkk esa foLrkj ls
crk;k FkkA vkt fdlh dk eu u i<+us dk Fkk u i<+kus dk] blfy, Ldwy ls tYnh
NqV~Vh gks xbZ FkhA ;gh lc 'kk;n vkSj Ldwyksa esa Hkh gqvk gksxkA lHkh us mu eklwe
cPpksa dh ;kn esa ekSu j[kk gksxk] dyeq lksprk&lksprk ?kj pyk vk;k FkkA
vkt dyeq dk eu ihB ij mBk, fdrkcksa ds cLrs ls Hkkjh gSA mlds lkFk
mlds xkao&csM+ ds cPps gSa ij yxrk gS fd og fuiV vdsyk gSA og py ugha jgk gS
cfYd ixMaMh mls [khaprh pyh tk jgh gSA iSjksa Vkaxksa esa tku ugha gSA tSls og
cSlkf[k;ksa ds lgkjs py jgk gSA eqf'dy ls lkal vk jgh gSA mls yxrk gS gj rjQ
,d xgjk lUukVk iljk gqvk gSA ?kklf.k;ksa esa dksbZ gypy ugha gSA vkj&ikj vkSjrsa
?kkl rks dkV jgh gS ij tSls mUgksaus ekSu ozr ys j[kk gSA mudh njkfV;ka pqi gSaA
dykbZ;ksa esa pwfM+;ksa dh NuNukgVsa [kkeks'k gSaA isM+ksa vkSj >kfM+;ksa ls iafN;ksa dh pgpkgVsa
ugha vk jgh gSA os pqipki 'kksdkdqy cSBs gSaA dyeq dks gj pht 'kksdkdqy yx jgh gSA
Hk;krqj yx jgh gSA tSls dkys diM+ksa ls eqag <ds f'kdkjh isM+ksa] iRFkjks]a ukfy;ksa vkSj
?kkl dh vksV esa gfFk;kjksa ls ySl ?kkr yxk, cSBs gSaA og tksj ls fpYykrk gS]
^Hkkxks-------Hkkxks---------dksbZ gS tks gesa ekj nsxk--------HkkxksA^
lkFkh cPps mldh fpYykgV lqu dj Hkkxus yxrs gSaA xkao ds lehi igqap dj
mUgsa le> ugha vkrk fd os Hkkx D;ksa jgs gSA Mjs gq, D;ksa gSA D;ksa dyeq vkt bruk
fopfyr vkSj lgek gqvk gSA og mlls iwNuk pkgrs gSa ij og dgha ugha gSA
dyew lh/kk igkM+h ij uaxk nsork ds pkSarjs ij pyk x;k gSA vius cwV Hkh ugha
[kksys gSaA ihB esa dkfi;ka&fdrkcksa ls Hkjk cLrk gS ij mls yxrk gS mlesa ,d lkS
cRrhl eklweksa dh yk'ks gSaA Hkkxrs gq, mlds ekFks vkSj eqag ij ls ilhus dh cwa ns fxj
jgh ij mls yxrk gS tSls mu yk'kksa ls [kwu Vid jgk gSA dqN iy og ydM+h dh
ewfrZ ds lkeus fuLrC/k [kM+k jgrk gSA utjsa ewfrZ dh Nkrh ij xM+h vufxur dhyksa ij
pyh tkrh gSA mls eglwl gksus yxrk gS tSls og] og ugha gS ml vknedn ewfrZ esa
rcnhy gks x;k gSA os dhysa mldh viuh Nkrh ij xM+h gSA og vFkkg osnuk ls
dgjkus yxrk gSA pkSarjs ij cLrs lesr fxj tkrk gS vkSj NViVkrs gq, viuh Nkrh ls
,d&,d dj mUgsa fudkyus dk iz;kl djrk gSA ij mudh tM+s tSls cgqr xgjh gSA os
cgqr Hkhrj rd /kalh gqbZ gSA bl iz;kl esa og viuh Nkrh ij ls deht ds
fpFkM+&s fpFkM+s dj nsrk gSA
dkQh nsj ds ckn mls gks'k vkrk gSA og yM+[kM+krk gqvk ,sls mBrk gS tSls
dq'rh ds v[kkM+s esa gkjk gqvk igyoku mB jgk gksA bl mBkiVd esa mldh ckalqjh
इंदस
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cLrs ls pkSarjs ij fxj xbZ gSA og ,dVd mls ns[krk gS vkSj mBk ysrk gSA ue vka[ks
gSa] maxfy;ka ckalqjh ds ?kjksa ij nkSM+us yxrh gSA fQj ogh eksg.kk ds xhr dh nnhZyh /kqu
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fdl ct.kh vks eksg.kk] fdl ct.kh]
iatcan eqjyh vks eksg.kk] fdl ct.khA
vk;k ejuk oks eksg.kk] vk;k ejuk]
Hkkb, jh fdfr, gks eksg.kk] vk;k ejukA
^;kfu vc dkS.k esjh ckalqjh ctk,xk eksg.kk] D;ksafd rw rks vius HkkbZ ds fy, ej jgk gSA
mldk /kks[kk rsjh ftanxh ys jgk gSA^
dyeq vksBa ks ls tSls gh eqjyh gVkrk gS mlds vkxs Vhoh LØhu nkSM+us yxrh gSA ogha
eatj] ogh 'kksj] ogh /kekds ogh xksfy;ksa dh rM+rM+kgV vkSj ogh Ldwy dh cfnZ;ksa esa
fyiVs [kwu ls yFkir NksVs&cM+s cPpksa ds 'kjhjA og dkSa/krh fctyh dh ekfQd mBrk gS
vkSj ewfrZ ds flj ij viuh ckalqjh iVd nsrk gSA Hkhrj Hkjh osnuk,a rhoz vkØks'k esa
cny xbZ gSA og ewfrZ mQZ nsork ls vka[ks feykdj ckr dj jgk gS]
^ns[k nsork] rsjh Nkrh ij ftruh dhysa gSa rwus mruh gh nq'efu;ka fuHkkbZ gSA irk ugha
fdrus cjlksa ls rw ,d dBiqryh dh rjg vutkus yksxksa ds LokFkZ ds fy, bLrseky gks
jgk gSA ns[k-----eSa rks rsjs xkao dk gwa---------rsjk viuk gwa------------rwus esjk cpiu ns[kk gS------------
--------------eSa rks ges'kk rsjs lkFk jgk gwa---------dHkh Mjk ugha---------------------vkt rw esjk ,d dke
dj ns-----------------------------,d iq.; dk dke--------------------A^^
dyeq vius cLrs esa ls dbZ dhysa fudkyrk gSA ikl ls iRFkj mBkrk gS vkSj dgus
yxrk gS]
^tk-----vkt rq>s nwljs ns'k tkuk gSA mudk loZuk'k djuk gS ftUgksua s mu eklwe cPpksa
dks ekjk gSA os cpus ugha pkfg,A mUgsa ,slh ltk feys ftldh mUgksua s dHkh dYiuk rd
ugha dh gSA tk-------pyk tk-------------A ns[k eSa muds uke ugha tkurkA xks= ugha tkurkA
muds cki ds uke Hkh ekywe ugha gS eq>As ij bruk tkurk gwa fd mudk dksbZ /keZ ugha
gSA os fdlh etgc ds ugha gks ldrsA os vkneh Hkh ugha gSA fdlh Hk;adj vkSj fo"kSyh
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;g xqgkj yxkrs gq, dyeq dbZ dhysa iRFkj ds lkFk ml ewfrZ dh Nkrh esa Bksd
nsrk gSA fQj vius ikao ls nksuksa twrs fudkydj ihVrk jgrk gSA Fkdgkj dj irk ugha
dc og csgks'k gks x;k gSA
fdlh us frFkksjke 'kkL=h dks [kcj dj nh gSA 'kqaxyq xwj Hkh vkt mlh ds lkFk
gSA os nksuksa Hkkx dj pkSarjs ds ikl igqaprs gSa vkSj ogka dk eatj ns[kdj nax jg tkrs
gSaA
dyeq cslq/k iM+k gSA mlds vklikl fdrkcs& a dkfi;ka fc[kjh gSaA twrs ds fpFkM+s
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cksyksa dh lh /kqu dh vkoktsa vkus yxrh gSA
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किानी
िमेश उपाध्याय
बेटा-बहू के पाि अर्रीका जा रही अपनी पत्नी को हवाई अड्डे पर ववदा करके घर लौटते हुए
श्यार्शरण की िर्झ र्ें नहीं आ रहा र्ा कक इि िर्य वे जो र्हिि
ू कर रहे हैं, वह क्या है --दख
ु ?
उदािी? अकेलापन? जीवन की ननरर्षकता? या सिफष एक झँझ
ु लाहट?
उनकी िर्झ र्ें नहीं आ रहा र्ा कक घर लौटकर वे क्या करें ग-े -इतने बड़े र्कान र्ें अकेले?
वे ककिी िे सर्लना और कहना चाह रहे र्े कक दे खो, बेटा-बहू तो पहले ही अर्रीका जाकर बि गये
र्े, अब ये भी चली गयीं। वहाँ बहू को बच्चा होने वाला है और इि अविर पर बेटे को अपनी र्ाँ की
जरूरत है , इिसलए उिने अपनी र्ाँ को तो अपने पाि बल
ु ा सलया, र्झ
ु े नहीं बल
ु ाया। हालाँकक यह
खुशी का अविर है, हर् पहली बार दादा-दादी बन रहे हैं, लेककन प्रेर्शरण ने सिफष अपनी र्ाँ को
बल
ु ाया। वह र्झ
ु े भी तो बल
ु ा िकता र्ा। र्ैंने फोन पर उििे कहा भी र्ा--‘ये अकेली इतनी दरू कैिे
आयेंगी?’ आशय बबलकुल स्पटट र्ा कक र्झ
ु े भी बल
ु ाओ, लेककन प्रेर्शरण ने इशारा िर्झा ही नहीं।
कह हदया--‘र्म्र्ी कोई अनपढ़-गँवार नहीं, हदल्ली ववश्वववद्यालय की ररटायडष प्रोफेिर हैं। आप उन्गहें
एयरपोटष पहुँचा दीन्स्कजए। र्ैं यहाँ एयरपोटष पर उन्गहें ररिीव कर लँ ग
ू ा। ऐज सिंपल ऐज दै ट!’ ’’
‘‘नचर्ंग इज ऐज सिंपल ऐज दै ट!’’ श्यार्शरण ककिी िे सर्लकर कहना चाह रहे र्े, ‘‘पता है ,
प्रेर्शरण को पालने, पढ़ाने और अर्रीका पहुँचाने र्ें र्ैंने अपनी न्स्कजंदगी होर् कर दी। खुद ननहायत
कंजूिी िे न्स्कजया, पर उिे कभी कोई अभाव र्हिि
ू नहीं होने हदया। ठीक है, उिके ननर्ाषण र्ें उिकी
र्ाँ का योगदान भी रहा, लेककन इतना तो र्ैंने भी ककया ही होगा कक वह तीन र्हीने के सलए र्झ
ु े
भी अपने पाि बल
ु ा लेता। र्ैं भी अर्रीका दे ख लेता। कौन र्झ
ु े हर्ेशा के सलए उिके िार् वहाँ रहना
र्ा!’’
इंदस
ु ंचत
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कक तर्
ु भी वहीं की हो रहो!’ तो पता है क्या बोलीं? कहती हैं--‘प्रेर् चाहे गा, तो वहीं रह जाऊँगी। यहाँ
तम्
ु हारे िार् अकेले रहने िे तो लाख गन
ु ा अच्छा कक वहाँ अपने बच्चों के िार् रहूँ।’ बोलो, ऐिा
कहना चाहहए एक पत्नी को? एक जीवनिार्ी को? अब इि उम्र र्ें क्या र्ैं अकेला रहूँगा?’’
िब ऐिे ही हैं। श्यार्शरण ने िोचा और उन्गहें लगा कक वे बबलकुल अकेले और ननस्िहाय-िे हो गये
हैं। दनु नया र्ें कोई ऐिा नहीं, न्स्कजिके पाि जाकर हदल पर पड़ा बोझ हल्का ककया जा िके।
इंदस
ु ंचत
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वाह! क्या जगह र्ी! न इतनी पाि कक वहाँ लड़के-लड़ककयों की भीड़ जुटी रहे , न इतनी दरू कक पैदल
चलते हुए वहाँ तक जाया न जा िके। र्ि
ु लर्ान के हार् का खाने-पीने र्ें अपने धर्ष की हानन
िर्झने वाले वहाँ नहीं जाते र्े, लेककन प्रेर्ी और प्रगनतशील अक्िर वहीं जाते र्े। वहाँ नीर् और
जार्न
ु के पेड़ों के नीचे काफी खुली जगह र्ी, जहाँ र्ेजों के इदष-चगदष पड़ी बेंचों पर िर्ह
ू ों र्ें और
र्ें हदी की झाडड़यों की बाड़ के पाि पत्र्र की पहटयों पर एकांत र्ें जब तक जी चाहे , बैठा जा िकता
र्ा। लेककन श्यार्शरण एकांत र्ें बैठने वाले प्रेर्ी नहीं, िर्ह
ू र्ें बैठने वाले प्रगनतशील र्े। और
इकबाल भी खूब र्ा! उन्गहें दे खकर ऐिे खखल जाता र्ा, जैिे गरीबी के कैक्टि र्ें प्यार का फूल!
हाँ, वह है ! अभी तक है! श्यार्शरण ने िड़क के ककनारे टीन-टप्पर िे बने उि ढाबे को बरिों बाद
दे खा, तो उन्गहें ऐिा लगा, जैिे बरिों बाद कोई बबछुड़ी हुई प्रेसर्का सर्ल गयी हो। उन्गहोंने गाड़ी ककनारे
करके ढाबे के पाि रोक दी और उतर पड़े।
इकबाल अचकचाकर उठ खड़ा हुआ और उन्गहें पहचानकर बोला, ‘‘अक्खाह! जहे -निीब! जहे -ककस्र्त!
आपका नार् भल
ू रहा हूँ, र्गर र्ैं आपको पहचानता हूँ। वक्त ने आपको भी बढ़
ू ा बना हदया है,
पर।।।’’
‘‘र्ैं श्यार्शरण.....योगी, भरत, िाधना वगैरह के िार् यहाँ चाय पीने आया करता र्ा।’’
‘‘हाँ, अगर हदक्कत न हो ।आपके स्वाहदटट िर्ोिे खाये एक जर्ाना बीत गया।’’
इंदस
ु ंचत
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इकबाल ने एक हहंदी और एक अंग्रेजी अखबार श्यार्शरण की ओर बढ़ाकर ढाबे के िार्ने पड़ी काठ
की दो बेंचों र्ें िे एक पर बैठने का इशारा ककया। श्यार्शरण ने बेंच पर बैठते हुए र्हिि
ू ककया कक
बेंच अब पहले जैिी पख्
ु ता नहीं रही, उिकी चूलें हहलती हैं।
श्यार्शरण ने अखबार ले तो सलये, पर खोले नहीं, बेंच के िार्ने पड़ी काली-र्ैली र्ेज पर रख हदये
और िड़क की तरफ दे खने लगे। पत्नी को उन्गहोंने शार् के पाँच बजे ववदा ककया र्ा और अभी िाढ़े
पाँच ही बजे र्े, लेककन अँधेरा-िा नघर आया र्ा। आिर्ान की तरफ दे खा, तो िरू ज कहीं नजर नहीं
आया। अप्रैल के र्हीने र्ें तो हदल्ली का आिर्ान अक्िर बबलकुल िाफ रहता है , लेककन पता नहीं
क्यों, आज उि पर धुंध या धूल-िी छायी हुई र्ी, र्ानो आँधी आने के आिार हों।
‘‘बेकार है , िब बेकार!’’ श्यार्शरण िोच रहे र्े, ‘‘अपना और अपने बेटे का कैररयर बनाने र्ें ही िारी
न्स्कजंदगी बबाषद कर दी। र्ाता-वपता, भाई-बहन, ररश्तेदार और दोस्त--िब छूट गये। पत्नी है , बेटा-बहू
हैं, पोता-पोती भी होंगे, पर इन िबका होना भी क्या है ? हदल्ली र्ें अपना र्कान है, बची-खुची
न्स्कजंदगी आरार् िे जी लेने के सलए पें शन है , बैंक र्ें जर्ा पैिा है । कफर भी क्या है ? इतने बड़े शहर
र्ें एक भी व्यन्स्कक्त ऐिा नहीं, न्स्कजिके पाि जाकर बता िकें कक आज हर्ें कैिा लग रहा है ! उफ!
कैिी तन्गहाई! कैिी बेचारगी!’’
हहंदी र्ें पछ
ू े गये अपने ही िवाल का जवाब अंग्रेजी र्ें उन्गहोंने शायद इिसलए हदया र्ा कक लड़का-
लड़की अंग्रेजी र्ें बात करते हुए आ रहे र्े। श्यार्शरण र्न ही र्न उन दोनों को अंग्रेजी र्ें अपना
इंदस
ु ंचत
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लड़के-लड़की को अपनी तरफ आते दे ख श्यार्शरण ‘‘यि प्लीज?’’ कहने ही वाले र्े कक वे दोनों
इकबाल की ओर र्ड़
ु गये।
‘‘चाचा, र्ैंने खाँिी की जो दवा लाकर दी र्ी, उििे चाची को कुछ आरार् हुआ?’’ अब लड़की इकबाल
िे पछ
ू रही र्ी।
‘‘यानी बनोगे प्रोफेिर ही!’’ इकबाल ने लड़के को छोड़ लड़की को िंबोचधत ककया, ‘‘रे खा बबहटया, आप
बताओ कक आजकल प्रोफेिरी र्ें क्या धरा है ? अच्छे -खािे पढ़े -सलखे हो आप दोनों। ककिी
र्ल्टीनेशनल कंपनी र्ें लग जाओ। या अर्रीका-वर्रीका चले जाओ। नहीं तो यि
ू फ
ु की तरह दब
ु ई ही
चले जाओ। आप लोग एर्. ए.कर चुके हो, यि
ू फ
ु तो बी.ए. भी पाि नहीं कर पाया। कफर भी पता है ,
वहाँ ककतना कर्ा रहा है ? यहाँ के हहिाब िे पचाि हजार र्ाहवार!’’
या तो इकबाल कुछ ज्यादा ही ऊँची आवाज र्ें बोल रहा र्ा, या श्यार्शरण उन तीनों की बातें कुछ
ज्यादा ही ध्यान दे कर िन
ु रहे र्े। वे जान चक
ु े र्े कक लड़के का नार् िंजीव है और लड़की का रे खा।
इंदस
ु ंचत
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लेककन यि
ू फ
ु ? वहीं बैठे-बैठे उन्गहोंने पछ
ू ा, ‘‘ये ककिकी बात हो रही है , इकबाल भाई? यि
ू फ
ु आपका
बेटा है ?’’
‘‘दब
ु ई र्ें है ?’’
‘‘जी, हाँ।’’
‘‘तो आप यहाँ क्यों पड़े हैं? आप भी क्यों नहीं चले जाते उिके पाि दब
ु ई?’’
‘‘अजी, श्यार् िाहब! हर्ारा बि चले, तो हर्, और हर् ही क्या, परू ा हहंदस्
ु तान ही अर्ीर र्ल्
ु कों र्ें
जा बिे! र्गर वही बात है कक हर्ें तो जीना यहाँ, र्रना यहाँ!’’
‘‘यि
ू फ
ु के और भाई भी तो होंगे?’’
र्ोड़ी दे र बाद इकबाल ने एक चगलाि र्ें चाय और एक प्लेट र्ें दो िर्ोिे लाकर उनके िार्ने रख
हदये। गर्ाषगरर् िर्ोिों की रुचचकर िग
ु ध
ं िे श्यार्शरण प्रिन्गन हो गये।
तभी उन्गहोंने िन
ु ा, रे खा नार्क वह लड़की कह रही र्ी, ‘‘कोई बात नहीं, चाचा! आज की दनु नया ऐिी
ही हो गयी है । लेककन आप कफि र्त करो। कोई भी कार् पड़े, आप हर्िे कहो।’’
और िंजीव नार्क वह लड़का कह रहा र्ा, ‘‘वैिे तो हर् अक्िर इधर आते ही हैं, कफर भी वक्त-
बेवक्त के सलए आप र्ेरा फोन नंबर सलख लो। आधी रात को भी याद करोगे, तो दौड़कर आ जाऊँगा।
या लाओ, र्ैं ही सलखे दे ता हूँ।’’
श्यार्शरण को न जाने क्यों रोना-िा आ गया। उन्गहोंने कहना चाहा, ‘‘बेटा, अपना फोन नंबर र्झ
ु े भी
दे दो।’’ लेककन कह नहीं िके।
इंदस
ु ंचत
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व्यंग्य..
हदिवििीन, सदा सख
ु ी
गगिीश पंकज
िोग उनको हँ िने वाले शख्ि के रूप र्ें पहचानते हैं। हँ िी का गोदार् है उनके पाि।
लेककन बंदे की खासियत यही है कक बबल्कुल िुबह-िब
ु ह हँ िता है , वो भी हास्य क्लब र्ें ।
आजकल केवल बगीचों र्ें चलने वाले हास्य क्लबों र्ें जा कर हँ िने का फैशन-िा चल पड़ा
है । वैिे तो ककिी के पाि हँ िने की फुरित ही नहीं। कुछ लोगों के पाि तो र्रने की भी
फुरित नहीं। हदन भर तरह-तरह के घोटालें , िान्स्कजशों और आगे बढऩे के सलए ककिर्-ककिर्
के खटराग करने के चक्कर र्ें बेचारे लोग हँ ि नहीं पाते। र्जबूरी र्ें उन्गहें िुबह-िुबह क्लब
जा कर हँ िना पड़ता है । वे न्स्कजतनी दे र हँ िते हैं, उतनी दे र की ऊजाष बनी रहती है ।
हँिने वाले न्स्कजि शख्ि के बारे बता रहा हूं, उनका बड़ा नार् र्ा। उिके दशषन के सलए र्ैं
एक हदन हास्य क्लब जा पहुँचा। दे खा, र्हाशय हे ..हे ..हो..हो करते हुए हँि रहे हैं। व्यायार्
भी ककए जा रहे र्े। िेहत उनकी ठीक-ठाक र्ी। हँ िने के कारण उनकी िेहत भी ठीक रहती
है , ऐिा लोगों ने बताया र्ा। हास्य क्लब के हँ िने का कायषिर् खत्र् हुआ, तो र्ैं उनके पाि
पहुँचा ।
उन्गहोंने र्ुझे घूर कर दे खा। लगभग गुस्िे र्ें । र्ैं घबरा गया। िोचने लगा कक क्या ये वही
शख्ि है जो कुछ दे र पहले हँ ि रहा र्ा।
र्ैंने कहा, ''नर्स्कार।'' उन्गहोंने बहुत र्हान ककस्र् के लोगों की तरह केवल सिर हहला हदया।
र्ैंने कहा-''आपिे कुछ बात करनी है ।''
उन्गहोंने रूखे स्वर र्ें कहा- ''अगर रूपये-पैिे र्ाँगने आए हों, तो बता दँ ू कक वो र्ैं नहीं
दँ ग
ू ा।''
इंदस
ु ंचत
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वाले को फँिना ही र्ा। ननर्षल हृदय वाला जो कह हदया र्ा। अब वे हल्की िी र्ुस्कान
बबखरते हुए बोले, बि, ऐिे ही। र्गर आपको ककिने बता हदया?
र्ैंने कहा- ''िुना र्ा ककिी िे। दरअिल र्ैं भी हँ िना चाहता हूँ। लेककन जीवन की आपाधापी
र्ें हँिने का अवकाश ही नहीं सर्लता। जैिे ही हँ िने की कोसशश करता हूँ, बीर्ार वपता का
चेहरा िार्ने आ जाता है । उििे उबरता हूँ तो बेटी की शादी की चचंता िताने लगती है । घर
बनाने का िपना तैरने लगता है । कुल सर्ला कर बात यह है कक जैिे ही हँ िने की िोचता
हूँ, आचर्षक चचंताएँ आ कर डरा दे ती है । इिीसलए आपिे पूछने आया र्ा। हँिी और स्वास्थ्य
के कुछ हटप्ि तो बताइए न।''
हँिी सिखाने वाले ने गंभीर हो कर कहा- ''हँ िने को ले कर ज्यादा तनाव नहीं पालने का।
हदन भर तो र्ैं भी नहीं हँ िता। गंभीर रहता हूँ। र्ेरे कारण लोग रोते हैं। र्ैं तो िुबह-िुबह
हास्य क्लब र्ें आ कर हँ ि लेता हूँ। उछल-कूद भी कर लेता हूँ। इििे र्ेरी िेहत बनी रहती
है । कफर हदन भर र्ुझे जो करना होता है , करता हूँ। तब हँ िने की जरूरत ही र्हिूि नहीं
होती।
तभी ककिी का फोन आ गया। िज्जन गुस्िे र्ें बोले, ननबटा दो िाले को। र्नाता है तो
ठीक वरना जैि हर् करते हैं, वैिा करो। र्ैं अपने रास्ते के हर रोड़े को हटा दे ने वाला हूँ।
िर्झे न?
इतना कह कर उिने फोन काट हदया। पता नहीं, ये ककिको ननबटाना चाहता है। उनकी बात
िन
ु कर र्ेरी हालत पतली होने लगी। र्ैं भागने की र्द्र
ु ा र्ें आ गया।
उन्गहोंने र्ेरा हार् पकड़ा और कहा-''हँ िना कहठन कार् नहीं है । आप यहाँ हास्य क्लब र्ें
आइए। र्ैं कुछ हटप्ि दँ ग
ू ा। बाकी हदन भर अपना कार् कीन्स्कजए। जो भी करते हों। िही-
गलत। जैिा भी कार् हो। ककिी का र्डषर भी करवाना हो, तो टें शन नहीं होगी। ककिी को
गाली भी दे नी हो तो तनाव िे नहीं गुजरना होगा। ररश्वत लेनी या दे नी हो तो भी बबंदाि-
भाव िे यह कर्ष ककया जा िकता है । िुबह-िुबह की हँ िी बड़े कार् की चीज है । र्ेरा वर्ों
का यही अनुभव है । हँिना स्वास्थ्य के सलए लाभकारी है । बि, एक बात का ध्यान रखना
कक हँिी को हदल िे नहीं, हदर्ाग िे जोड़ कर चलो। हदल िे हँ िोगे, तो तर्
ु भी आदर्ी बन
जाओगे, तब जीवन जीने र्ें बड़ी तकलीफ होगी। हर वक्त नैनतकता, आदशष, चररर और
र्ूल्य आहद बेकार की बातें हदर्ाग र्ें हॉवी रहें गी। इिसलए हँ िी को केवल हदर्ाग तक
िीसर्त रखो, तब तुर् िारे खरु ाफात करके िफल आदर्ी बन िकते हो। जीवन हदल िे नहीं,
इंदस
ु ंचत
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हदर्ाग िे चलता है । र्ैं हदर्ाग िे चलता हूँ, हदल िे नहीं। हास्य क्लब र्ें आने वाले लोग
हदर्ाग वाले हैं। हदल वाले एक-दो लोग हभी हैं, र्गर उनिे अपनी नहीं बनती। ये टुच्चे लोग
होते हैं। आदशषवादी। पाखंडी। हहप्पोिेट। इिीसलए कंगाल हैं। हर् लोग र्ालार्ाल हैं क्योंकक
हदल का यही कोई लफड़ा ही नहीं। तुर् भी हदल नहीं, हदर्ाग िे कार् लो। यहाँ आओ, और
खब
ू हँिो। और हदन र्ें वे िारे कार् करो, जो तुम्हें नहीं करने चाहहए। तब दे खना तुर्
वपताजी बीर्ारी िे घबराआगे नहीं, उिके सलए पैिों को इंतजार् भी कर लोगे। बेटी की शादी
की चचंता भी नहीं रहे गी। क्योंकक इतनी दौलत कर्ा लोग कक टें शन फ्री हो जाओगे। र्ैं टें शन
फ्री हूँ। भ्रटटाचार को सशटटाचार िर्झो और िूरता को जीवन की जरूरत। अच्छा, चलता हूँ।
कल िे हर्ें ज्वाइन करो और न्स्कजंदगी को फाइन करो।''
वे लम्बा ज्ञान दे कर चले गये। कफर बगीचे र्ें एक-दो और लोगों िे सर्ला। ये िब हँ ने की
कला र्ें पारं गत र्े। उनका भी यही फंडा र्ा कक हँ िने के कारोबार को बगीचे तक ही िीसर्त
रखो। क्योंकक हँिनेवाला ननर्षल र्न वाला होने लगता है । ननर्षल र्न वाला पाप िे बचता है ।
गाली दे ने िे बचता है । गलत कार् िे डरता है। र्तलब यह कक वह नैनतकता के िार् जीवन
जीना चाहता है । इिसलए ध्यान रखो कक हँ िना एक किया है और जीवन जीना बबल्कुल
दि
ू री प्रकिया। लोगों के भयंकर ककस्र् के व्यावहाररक ववचार िन
ु कर र्ैं घबरा गया। जीवन
र्ें हँ िी की तलाश र्ें आया र्ा और उदाि हो कर लौट गया। अब तक भटक रहा हूँ कक
जीवन र्ें हँिी का वचषस्व कैिे बढ़े ।
कुछ हदन बाद एक िर्ाचार पढ़ा कक हास्य क्लब र्ें हँ िने वाले िज्जन ककिी के िार् गाली-
गलौज और र्ारपीट के आरोप र्ें चगरफ्तार हो गए हैं। र्ुझे लगा कक ऐिा हँ िना तो अपने
िे बबल्कुल भी न हो पाएगा। लेककन हँ िना तो पड़ेगा। जीवन को लम्बा खींचना है , तो हँ िी
जरूरी है , र्गर लफड़ा यहीच्च है कक हँ िने का िीधा अिर र्ेरे हदल पर होने लगता है । र्ैं
हदल को ठीक-ठाक रखना चाहता हूँ, लेककन अनुभव यही बताते हैं कक हदल दरु
ु स्त रहे तो
आदर्ी भला हो जाता है लेककन उिे तरह-तरह की तकलीफें भी भोगनी पड़ती है ।
हदलववहीन आदर्ी हदर्ागदार होते हैं और िदा िुखी रहते हैं। इन हदनों इिी उहापोह र्ें हूँ
कक करूँ क्या? हास्य क्लब ज्वाइन कर लँ ?
ू एक बार हँि कर दे खँू तो िही कक र्झ
ु र्ें कैिे
पररवतषन होते हैं । नकारात्र्क या िकारात्र्क। नकारात्र्क हुए तो फलानेजी जैिा बन
जाऊँगा और िकारात्र्क हुए तो कोई बात नहीं, र्नुटय बन कर तकलीफें झेलता रहूँगा, और
क्या। न्स्कजिकी जैिी ककस्र्त।
इंदस
ु ंचत
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बात कोई ३२ िाल पहले की है जब र्ैंने दो-तीन नार् लखनऊ ववश्वववद्यालय के हहंदी
ववभाग के िूचना पट्ट पर लटकते हुए दे खे र्े | हिीित र्ें कोई नार् नहीं लटक रहा र्ा
बन्स्कल्क वह एक कागज़ र्ार र्ा जो एक वपन पर झूल रहा र्ा,न्स्कजिर्ें ननबंध लेखन की
प्रनतयोचगता की िूचना र्ी| उि िूचना र्ें िंभवत:डंडा लखनवी और भारतें द ु सर्श्र 'इंद'ु के
िार् एक नार् 'आवारा नवीन' का भी र्ा|
यह आयोजन युवा रचनाकार र्ंच का र्ा और इन दोनों नार्ों र्ें िे एक अध्यक्ष र्ा
तो दि
ू रा िचचव और तीिरा ककिी और पद का धारक /िंधारक|उि प्रनतयोचगता र्ें र्ुझे
दि
ू रा स्र्ान सर्ला र्ा| उि पर कंु वर चंद्र प्रकाश सिंह के प्रदीघषकाय हस्ताक्षरों ने र्ुझे िबिे
अचधक िम्र्ोहहत ककया र्ा|र्ेरे ववद्यार्ी जीवन का वह दि
ू रा ऐिा पुरस्कार र्ा न्स्कजिने
लेखन र्ें र्ेरा र्नोबल बढाया र्ा| पहला र्ा स्नातक र्ें सर्ला वाद-वववाद प्रनतयोचगता का
प्रर्र् पुरस्कार और दि
ू रा यह र्ा जो परास्नातक द्ववतीय वर्ष र्ें सर्ला र्ा| यह प्रयोगवाद
पर सलखे गए ननबंध पर सर्ला र्ा| शायद 'प्रयोगशील अज्ञेय और उनका बबंबववधान'ववर्य
पर सलखा गया र्ा|
'आवारा नवीन' की िंज्ञा ने र्ुझे िबिे पहले आकवर्षत ककया र्ा| बहुत हदनों तक तो
इि ववशेर्ण वाची व्यन्स्कक्तवाचक िंज्ञा का अर्ष ही लगाता रहा र्ा|बडे गोपनीय िूरों िे पता
लगा के दर् सलया कक ये 'आवारा' नहीं िुरेश कुर्ार हैं| जानत का तब भी पता नहीं चल
पाया | उन हदनों र्ेरे सलए ककिी व्यन्स्कक्त िे अचधक र्हत्त्वपूणष उिकी जानत हुआ करती
र्ी| जब जानत पता नहीं चल पाई तो इनके बजाय भारतें द ु जी िे ननकटता बढ गई न्स्कजनके
नार् र्ें 'इंद'ु के पहले सर्श्र भी र्ा| उनके िार् शास्री करते हुए (जो कभी परू ा नहीं
हुआ)िंस्कृत की पंडडताऊ ककताबें भी घोटी र्ीं| 'इंद'ु जी भी शास्रीय भार्ा(िंस्कृत) िे
अचधक भाखा (हहंदी भार्ा) पर रीझे हुए र्े| िर्
ु धरु कंठ के चलते उनकी कववताएँ भी खब ू
चल ननकली र्ी| उिी पर रीझ कर उन्गहें र्ैं भी एक कवव िम्र्ेलन र्ें र्हर्द
ू ाबाद ले गया
र्ा| उन गाढे के हदनों र्ें भी कववता (ब्रह्र्ानंद िहोदर)के आनंद का चस्का ऐिा र्ा कक
उन्गहें अपनी जेब िे दि रुपए ककराए के यह कहकर हदए र्े कक ये िंयोजक ने हदए हैं | उि
िम्र्ेलन िे और कुछ लाभ हुआ हो या न हुआ हो लेककन यह लाभ ज़रूर हुआ र्ा कक
लखनऊ और र्हर्ूदाबाद जैिे पहले कभी बि िे जोडे गए र्े अब िाहहत्य िे भी जुड गए
र्े| इिके बाद लखनऊ का 'युवा रचनाकार र्ंच' और 'र्हर्ूदाबाद 'अवध' के 'ननराला िाहहत्य
पररर्द' िहोदर िंस्र्ाओं की तरह कार् करने लगे र्े| इि जोड के अलावा बाद र्ें इन
िंस्र्ाओं िे हर्ारा कोई और खाि नाता नहीं बन पाया | लेककन जब-तब इनर्ें िे ककिी न
ककिी िंस्र्ा र्ें अवैध घुिपैठ अवश्य कर लेता र्ा | उन घुिपैठों र्ें प्राय:दो नार् अपने
इंदस
ु ंचत
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िाहहन्स्कत्यक िर्पषण के सलए ज़रूर याद ककए जाते र्े| बात लखनऊ िे चलती
तो र्हर्ूदाबाद पर आकर रुकती|लखनऊ िे एक नार् 'नवीन ' का उछलता तो दि
ू रा
र्हर्ूदाबाद िे श्री प्रकाश का | तब तक 'आवारा नवीन जी'केवल 'नवीन जी' के उपनार्
िे हर् लोगों के बीच जाने जाने लगे र्े| एक को िाहहत्य का हनुर्ान र्ाना जाता र्ा तो
दि
ू रे को सशव यानी भोला भंडारी| र्हर्ूदाबादी भाई भांग खाकर िब कुछ लुटा दे ने की र्ुद्रा
र्ें बि हाँ र्ें सिर हहलाने वाले श्रीप्रकाश र्े तो पहले र्े हनुर्ान की र्द्र
ु ा र्ें गदा के बजाय
िदा िाइककल की र्ुहठया पर हार् किे 'नवीन'जी|अभी र्ाचष र्ें उनिे सर्लना हुआ तो पता
चला कक िाठ के होने वाले हैं |लेककन उनकी िाइककल अब भी उिी तरह िम्र्ान के िार्
दरवाज़े िे लगी र्ी जैिे बेटी की 'एन्स्कक्टवा' |
'िाठा पर पाठा' जैिे लोक ववश्वाि को चररतार्ष करते हुए होली के अगले हदन भाभी जी
के िार् शहर र्ें होली सर्लने ननकले या कक टहलने यह र्ुझे अच्छी तरह याद नहीं लेककन
एक बार पवन तनय के पांव दे हरी िे बाहर क्या ननकले, ननकल सलए ििुराल | भाभी जी
र्ना करती रहीं कक," ऐिे कपडों र्ें र्ायके कहाँ चलेंगे ? लेककन ये र्े कक नंदी की तरह
एक बार न्स्कजधर को सिर उठा हदए तो उठा हदए| उन हदनों र्ैं इनके बगल र्ें ही घर बनवा
रहा र्ा तो िोचा कक चलो 'नवीन' जी िे होली सर्ल आएं | घर पहुंचा तो बेटी ने बताया
कक," बाहर गए हैं|" र्झ
ु े क्या पता र्ा कक होली के हदनों र्ें नवीन जी के शब्द कोश र्ें
'बाहर' का अर्ष ििरु ाल भी होता है | होली र्ें ििरु ाल जाने का दस्
ु िाहि या तो सशव कर
िकते हैं या कफर भोला भंडारी|यह इनकी 'िाठा पर पाठा' वाली जवानी का ही जीता जागता
उदाहरण है कक कहीं िे भी कहीं को तान िकते हैं | खािकर ििरु ाल की ओर जहाँ जवान तो
जवान बड्
ु ढे भी हुरर्ट्
ु टा बन कर होली खेलते हैं| होली र्ें उत्तर भारत जहाँ ििरु ा भी दे वर
लगता है वहाँ जीजा की कैिी दग ु त
ष हो िकती है ,यह अनुर्ान लगाना कहठन नहीं
है |इिके बावज़ूद नवीन जी का वहाँ जाना इनके अपौरुर्ेय पौरुर् का प्रर्ाण नहीं तो और
क्या है ? इिीसलए न कक इनको न तो ब्लडप्रेशर की दवा लेनी है और न ही शुगर की|जीवन
र्ें इििे अचधक िुख भला और ककि बात का हो िकता है |
अभाव इनके िच्चे िार्ी रहे | न अभावों िे इनका कभी िार् छूटा और न अभावों का
ही कभी इनिे र्ोह भंग हुआ|लेककन एक बात खाि है कक कोई भी अभाव इनका स्वभाव
नहीं बदल पाया |इनके घर की ज़गह को कर् करते हुए इनके िम्र्ान इनके इिी स्वभाव
और िर्पषण के प्रर्ाणपर हैं| इन्गहें िंस्र्ाएं िम्र्ाननत कर-कर के िम्र्ाननत होती रहीं|
ये िाहहत्य और िर्ाज दोनों के अजात शरु हैं| बुद्ध की तरह इन्गहोंने भी अपनी वाणी
की वीणा के तार ज़्यादा कभी नहीं किे| न्स्कजििे भी बोले बि िर् पर िुर ननकलते
रहे |र्ांगना तो इनका स्वभाव ही नहीं रहा | वैिे ककिी का कुछ भी चाहे फालतू पडा रहे पर
इन्गहोने उिे अपने कार् का िर्झकर कभी पाना नहीं चाहा|वह राज ही क्यों न हो |
'िंतन को कहा िीकरी िो कार्' वाली र्ुद्रा र्ें ये न जाने ककतनी गद्हदयों पर पांव
इंदस
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रखकर ननकल गए| ये ककिी िे भी सर्रता अच्छी ननभा िकते हैं पर बैर नहीं | इनके
स्वभाव के चलते दि
ू रा कोई इनिे बैर रख ही नहीं पाएगा|
जब भी इनिे बातें करें तो र्ैं की उम्र्ीद न करें | उत्तर् पुरुर् िवषनार् इनकी भार्ा
र्ें र्ेहर्ान की तरह आता है | वह भी 'र्ैं' तो शायद ही कभी िुना हो| र्ैं ही क्या हर
कोई इनके 'र्ैं' के सलए तरिता होगा| ये दि
ू रों की ही बातें जैिे इनके जीवन का पहला
उद्दे श्य ही है ,"पर िेवा पर उपकार र्ें हर् जग जीवन िफल बना जना जावैं|" इनके इिी
व्यन्स्कक्तत्त्व ने र्ुझे भी ऐिे नेह नाते िे बांधा कक वह बंधन न कभी छूटा है और न कभी
छूटे गा|
कोई भी आयोजन हो बबना ककिी लाभ-लोभ के इन्गहें दौडते-भागते दे खा जा िकता है |
लखनऊ की कुछ िंस्र्ाओं की तो प्राय: हर िाहहन्स्कत्यक बरात के िहबाला यही होते हैं |औरों
की तरह धप
ू इनको भी लगती है लेककन ये तर्तर्ाते नहीं बन्स्कल्क हर आने वाले को तपाक
िे गले लगाकर स्वागत करते हैं|जल वपलाते हैं|कोई अगर इन्गहें नहीं भी पहचानता हो तो भी
इनके कार् को दे खकर आंख र्ूंद्कर कह दे गा कक हाँ यही नवीन जी हैं|
ककिी िाहहत्यकार ने िाहहत्य ककतना रचा इििे अचधक र्हत्त्वपण
ू ष उिने िाहहत्य ककतना
न्स्कजया?इन्गहोंने िाहहत्य रचा कर् न्स्कजया ज़्यादा है | िाहहन्स्कत्यक र्ल्
ू य न्स्कजतने इनके जीवन र्ें हैं
उतने बहुतेरे िाहहत्यकारों की िारी ककताबों र्ें भी नहीं सर्लें गे|इनको दे खकर कहा जा िकता
है कक जो र्ूल्यों पर सलखते और बोलते हैं ,उनकी तो आलोचना होती है पर जो र्ल् ू यों को
जीते हैं लोग उनके पीछे -पीछे चलने लगते हैं | र्ैं इनके र्ल्
ू यों की पक्षधरता का ऐिा ही
अनय
ु ायी हूँ|
कोई भी ककताब या पबरका र्ंगाइए िंस्र्ा के सलए अलग कीर्त और व्यन्स्कक्त के सलए
अलग | लेककन इनके यहाँ ऐिा कोई द्वैध नहीं है | व्यन्स्कक्तगत और िंस्र्ागत दोनों के सलए
ये एक ही भाव र्ें उपलब्ध रहने वाले जीवंत िाहहत्य हैं| दनु नया का कोई भी आवारा न तो
पहले कभी इनकी तरह िम्र्ाननत हुआ है और न ही आगे कभी हो पाएगा|यह पुण्य वचन
र्ुझ जैिे अनुभवी ऋवर् के र्ुख िे ही प्रस्फुहटत हो िकता है | र्ैं यह वचन ऐिे ही नहीं बोल
रहा हूँ| र्ैंने अनेक पांच-पांच ,छह-छह फुटे , सिर फुटे आवाराओं का उपचार भी कराया है |
उनके िम्र्ान के और भी अनेक तरीके हैं,न्स्कजनिे वे प्राय: व्यन्स्कक्तगत या िंस्र्ागत रूप िे
िम्र्ाननत होते रहते हैं| लेककन ये न्स्कजि तरीके िे िम्र्ाननत हो रहे हैं यह केवल इन्गहीं
इकलौते आवारा को सर्ल रहा है | िच र्ें बडे लाभदायक आवारा हैं| अभी तो हर् इनके
पडोिी भी बन गए हैं| र्ुझे लगता है र्ैं भी जल्दी िे िाठ िाल का हो जाऊं और इनके पाि
उठने-बैठने का र्ौका सर्ले| काश इनकी र्न्स्कटठपूनतष पर र्ैं भी र्ौज़ूद होता और इनके िार्
अपना भी बबना िींग -पूंछ का बेिुरा िुर सर्लाता और गाता, "आवारा हूँ||आवारा
हूँ /आिर्ान का तारा हूँ……." |
र्ोडा जाने पर उििे अचधक अनजाने सर्र हैं 'आवारा नवीन' जी | इनकी वैचाररकी िे
तो अवगत हूँ पर आवारगी िे तो अब भी पूरा का पूरा अनजाना ही हूँ | इनकी आवारगी के
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इंदस
ु ंचत
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गगिीश पंकज
रचना वही िार्षक और कालजयी होती है अर्वा जो युगीन पीड़ा को स्वर दे ती है । अन्गयाय
के बरक्ि खड़ी होती है । इि ननकर् पर दे खें, तो व्यं्य र्ें ही वो ताकत है । िाहहत्य का अर्ष
ही यही है जो हहत को िार् ले कर चले। जनहहत तो िच का पदाषफाश करने र्ें है । जो नछपे
हुए नकली लोग हैं, उनका िच िार्ने लाना ही रचना का धर्ष है । ये लोग राजनीनत,
िाहहत्य, कला, िर्ाज या ककिी भी क्षेर र्ें पाए जा िकते हैं। लेककन र्ेरा यह र्ानना है कक
कलात्र्क तरीके िे िच की असभव्यन्स्कक्त होनी चाहहए। ऐिा करने िे रचना की िम्प्रेर्णीयता
बढ़ जाती है । रचना अर्त
ू न
ष के स्तर तक न जा पहुँचे कक पाठक अर्ष ही तलाशता रह जाए।
र्झ
ु े लगता है कक वविंगनतयों की रं जक असभव्यन्स्कक्त ही व्यं्य है । व्यं्य को अगर रोचकता,
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व्यं्य को िच कहने के िंस्कार कबीर िे सर्ले , यह कहूँ तो अनतरं जना नहीं होगी। कबीर के
दोहों या पदों र्ें जो व्यं्य दीखता है , वह आज भी िार्षक है । तुलिीदाि जी का र्हान कृनत
र्ें भी व्यं्य शब्द सर्लता है । ठे ठ व्यं्य के अर्ष र्ें ही। व्यं्य की उपन्स्कस्र्नत बगैर िाहहत्य
कभी िफल नहीं हो िकता। कबीर-तुलिी आहद तक व्यं्य पद्य रूप र्ें ही सर्लता है र्गर
भारतें द ु हररश्चंद्र के बाद व्यं्य गद्य रूप र्ें ववकसित हुआ। और उिके बाद तो हर
व्यं्यकार भारत की या िर्ाज की दद
ु ष शा को अपनी-अपनी शैली र्ें प्रस्तत
ु करता रहा।
भारतें द ु युग र्ें व्यं्य पन्स्कु टपत-पल्लववत होता रहा, र्गर आजादी के बाद व्यं्य एक वट
ृ वक्ष
ृ
बन गया। परिाई और शरद जोशी जैिे व्यं्यकारों ने व्यं्य को जो प्रनतटठा दी, उिके
कारण व्यं्य िाहहत्य के केंद्र र्ें आ गया। लगभग हर रचना र्ें व्यं्य नज़र आने लगा।
आजादी के बाद र्ोहभंग की न्स्कस्र्नतयाँ बनती गई। नायक खलनायक बन गए। हालत यह
हुई कक खद
ु नायक अपने आप को खलनायक कह कर गौरवान्स्कन्गवत होता रहा। िेवा की आड़
र्ें र्ेवा खाने की नई िंस्कृनत ने िारे र्ूल्य ध्वस्त कर हदए। राजनीनत िवाषचधक कलुवर्त हो
गई। और उिके िार् चलने वाले प्रशािन भी जग
ु लबंदी करने लगा। तब नई कववता और
उिके बाद अकववता आंदोलन र्ें इन वविंगनतयों को रे खांककत करने की कोसशश की लेककन
कववता की अपनी शब्द-िीर्ा र्ी। तभी व्यं्य ने उि पूरे दौर को िंभाला और कहा जा
िकता है कक िाठवें दशक के आिपाि िाहहत्य का र्ानो व्यं्यावतार हुआ, न्स्कजिने चन
ु -चन
ु
वविंगनतयों, ववद्रप
ू ताओं पर प्रहार करने का कार् ककया। उि दौर की परकाररता भी सर्शन
की तरह कार् कर रही र्ी इिसलए व्यं्य का भी परू ा स्पेि सर्ल जाता र्ा। उि दौर र्ें
व्यं्य व्यं्य ही र्ा।
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वतषर्ान काल र्ें व्यं्य का जो स्वरूप हर् दे ख रहे हैं, वो बेहद ननराश करता है । कर् िे
कर् र्ुझे ऐिा लगता है , क्योंकक व्यं्य को र्ैं र्िखरी िे अलग करके दे खता हूँ। आज
ववसभन्गन पर-पबरकाओं र्ें व्यं्य के नार् पर जो कुछ भी परोिा जा रहा है , उि र्ें व्यं्य
कर् र्िखरी ज्यादा नजर आती है । अब व्यं्य हड़बड़ी र्ें सलखे गए िर्ाचार की तरह
हड़बड़ी र्ें सलखा गया हलका-फुल्का िाहहत्य बन कर रह गया है । कहा जा िकता है कक
िर्कालीन व्यं्य बेहद अखबारी हो गया है। इतना अखबारी कक कई बार अंतर करना कहठन
हो जाता है कक यह व्यं्य है या िर्ाचार। व्यं्य रचना के ऊपर अगर व्यं्य न सलखा रहे
तो िर्झ र्ें नहीं आ िकता कक वह व्यं्य है। इि स्तर तक आ चक
ु ी चगरावट के कारण
ही व्यं्य पर प्रश्नचचन्गह लगता रहा है । वैिे हररशंकर परिाई कहा करते र्े कक हर्ें अपने
युग के प्रनत ईर्ानदार होना है । जो युगीन न्स्कस्र्नतयाँ हैं, उन पर प्रहार होना ही चाहहए,
लेककन जब व्यं्य व्यन्स्कक्त ववशेर् पर केंहद्रत हो कर सलखा जाने लगता है , तब उिकी गररर्ा
खत्र् हो जाती है , तब वह राग-द्वेर् का िार्ान हो जाता है ।
हहंदी व्यं्य को उिके और अचधक लोकवप्रय बनाने के सलए ज़रूरी है कक व्यं्य का अपना
आलोचनाशास्र और ज्यादा प्रखर हो। व्यं्यकार और व्यं्यालोचक िुभार्चंदर ने हहंदी व्यं्य
का प्रार्खणक इनतहाि सलखा और लोकवप्रय व्यं्यकार प्रो| प्रेर् जनर्ेजय ने 'व्यं्ययारा'
पबरका के र्ाध्यर् िे गंभीर व्यं्य लेखन को प्रोत्िाहहत करने का कार् शरू
ु ककया। व्यं्य
पर न्स्कजतना गंभीर आलोचनात्र्क ववर्शष होगा, उतनी ही प्रनतटठा इि ववधा की बन िकेगी।
इंदस
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इि िर्य हहन्गदी र्ें दो तरह के व्यं्यकार िकिय हैं। एक वे जो पर-पबरकाओं र्ें नजर
आते हैं, और दि
ू रे वे जो स्वांत:िुखाय सलख रहे हैं, लेककन व्यं्य िाहहत्य को िर्द्
ृ ध कर
रहे हैं। यही कारण है कक व्यं्य के वतषर्ान स्वरूप को लेकर चचंता स्वाभाववक है । उिे
िाहहत्य के केंद्र र्ें दब
ु ारा प्रनतन्स्कटठत करने के सलए बचे-खच
ु े वररटठ व्यं्यकारों को ही कार्
करना होगा। और व्यं्य की िवषकासलक प्रनतटठा के सलए भले ही लघु पबरकाओं र्ें सलखा
जाए, गंभीर व्यं्य सलखना होगा।
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िीक से िटकि
िािुि दे ि
राटरभार्ा के धरातल पर ववशेर् स्र्ान प्राप्त करने वाले िाहहत्यकार श्री लक्ष्र्ण राव
का जन्गर् २२ जुलाई, 1952 को र्हाराटर प्रान्गत के अर्रावती न्स्कजले र्ें एक छोटे िे गाँव
‘तदे गाँव’ दशािर र्ें हुआ | उन्गहोंने र्राठी भार्ा र्ें र्ाध्यसर्क कक्षाएं, हदल्ली नतर्ारपुर
पराचार ववद्यालय िे उच्चतर र्ाध्यसर्क कक्षा व ् हदल्ली ववश्वववद्यालय िे बी|ए| उत्तीणष
ककया और अब ६३ वर्ष की उम्र र्ें इंहदरा गाँधी रान्स्कटरय र्ुक्त ववश्वववद्यालय िे हहंदी
िाहहत्य र्ें एर् ्|ए|(अंनतर् वर्ष) कर रहे हैं |
श्री लक्ष्र्ण राव हहंदी िाहहत्य के के प्रनत आरम्भ िे ही आकवर्षत र्े | र्राठी भार्ी होते हुए
भी उन्गहें हहंदी भार्ा के प्रनत हहंदी एक प्रनत ववशेर् आकर्षण र्ा | एक हदन इनके गाँव का
रार्दाि नार् का लड़का छुट्टी के िर्य अपने र्ार्ार् के गाँव गया | जब वह लौटने लगा
तो रास्ते र्ें एक नदी पड़ी | शीशे की तरह चर्कते हुए पानी र्ें उिने नहाने के सलए छलांग
लगा दी | वह कफर कभी लौट कर नहीं आया | बाद र्ें गाँव वालों ने रार्दाि के शरीर को
नदी िे बाहर ननकला | गाँव र्ें रार्दाि की र्त्ृ यु की घटना राव के सलए प्रेरणा बन गई और
उन्गहोंने उिपर एक उपन्गयाि सलख डाला | लेखन का र्ाध्यर् राटरभार्ा हहंदी को चन
ु ा | जब
उन्गहें गाँव के पस्
ु तकालय र्ें हहंदी की अच्छी-अच्छी पस्
ु तकें पढ़ने को सर्लीं तो उनके र्न र्ें
लेखक बनने की इच्छा जागत
ृ हुई |
श्री लक्ष्र्ण राव उि िर्य र्ार बीि वर्ष के र्े | हहंदी भार्ा पर जब अचधकार(कर्ांड)
हदखाई हदया तब उन्गहोंने पराचार र्ाध्यर् िे र्ुंबई हहंदी ववद्यापीठ िे हहंदी र्ें परीक्षाएं दीं |
यह बात 1973 की है | उन हदनों लक्ष्र्ण राव दिवीं पाि करके र्हाराटर के अर्रावती शहर
र्ें ित
ू सर्ल र्ें टे क्िटाइल र्जदरू के रूप र्ें कार् कर रहे र्े | 1975 र्ें अप्रैल के र्हीने र्ें
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बबजली के कारण सर्ल बंद हो गई और लक्ष्र्ण राव अर्रावती िे अपना िार्ान उठाकर
गाँव चले गए | वहां वे खेती का कार् करने लगे | वे हर्ेशा र्ानसिक तनाव िे ग्रस्त रहने
लगे | एक र्हीने के बाद र्ई र्हीने र्ें उन्गहोंने वपताजी िे 40 रुपये सलए और गाँव िे
भोपाल आ गए | यहाँ तक 40 रुपये िर्ाप्त हो गए |
लक्ष्र्ण राव भोपाल र्ें ही एक भवन पर पांच रुपये प्रनतहदन के हहिाब िे बेलदार
का | तीन र्हीने भोपाल र्ें रहकर 30 जुलाई, 1975 को जी टी एक्िप्रेि िे हदल्ली आये |
हदल्ली र्ें दो-तीन हदन तक बबरला र्ंहदर धर्षशाला र्ें ठहरे | कार् ढूंढ रहे र्े पर सर्ल नहीं
रहा र्ा | जीवन र्ें कहठनतर् िर्य पर श्री लक्ष्र्ण राव ने ढाबों पर बतषन िाफ़ करने का
कार् स्वीकार ककया | दो वर्ष लगातार यही चलता रहा, कभी ढाबे पर बतषन िाफ़ करना,
कभी भवनों पर र्जदरू ी करना, आहद |
1977 र्ें हदल्ली जैिे भीड़ भरे शहर र्ें आईटीओ क्षेर के ववटणु हदगंबर र्ागष पर श्री
लक्ष्र्ण राव पेड़ के नीचे बैठकर पान-बीड़ी, सि्रे बेचने लगे | वस्तुतः उनकी छोटी िी
दक
ू ान हदल्ली नगर ननगर् व ् हदल्ली पुसलि अनेक बार उजाड़ी रही पर उन्गहोंने एक िफल
िाहहत्यकार बनाने का िपना अधरू ा नहीं छोड़ा |
श्री लक्ष्र्ण राव दररयागंज के रवववारीय पुस्तक बाजार र्ें जाकर अध्ययन करने हे तु
पूरे िप्ताह भर के सलए िाहहत्य खरीदकर लाते र्े | उन्गही हदनों उन्गहें िाहहत्य िम्राट
इंदस
ु ंचत
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शेक्िपीयर व ् िवषश्रेठ यन
ू ानी नाटककार िोफोक्लीज का पता चला | इिी तरह र्ुंशी प्रेर्चंद,
शरत चन्गद्र चट्टोपाध्याय आहद िाहहत्यकारों की पुस्तकों का अध्ययन करने लगे िे
पहले रोर्ांहटक उपन्गयािकार गल
ु शन नंदा का बहुत नार् र्ा |गल
ु शन नंदा के उपन्गयाि को
पढ़कर ही लक्ष्र्ण राव ने लेखक बनने का िपना िंजोया | परन्गतु यह धरातल िाधारण नहीं
है , इिकी कल्पना लक्ष्र्ण राव को नहीं र्ी | ऐिा लक्ष्र्ण राव बताते हैं |
उनका पहला उपन्गयाि ‘नई दनु नया की नई कहानी’ 1971 र्ें प्रकासशत हुआ | उि
िर्य वे चचाष का ववर्य बन गए | एक पानवाला उपन्गयािकार, लोगों को ववश्वाि नहीं हो
रहा र्ा | परन्गतु टाइम्ि ऑफ़ इन्स्कण्डया के िन्गडे ररव्यू र्ें उनका पररचय प्रकासशत हुआ | यह
बात 01 फ़रवरी की है | तब उनके कायष पर लोगों को ववश्वाि होने लगा |
इिके बाद दे श-ववदे श के िर्ाचार परों, रडडयो तर्ा दरू दशषन पर श्री लक्ष्र्ण राव
र्ानवीय िर्ाचार िच
ू क बन गए | धीरे -धीरे उनका पररचय िम्र्ाननीय लोगों के िार् बढ़ने
लगा |
इंदस
ु ंचत
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एक िार्ान्गय व्यन्स्कक्त की रचनायें हहंदी भार्ा र्ें प्रकासशत होना अपने आप र्ें ववशेर्ता
है | कहठन पररश्रर् करके िाहहन्स्कत्यक धरातल तैयार करना व शन्ग
ु य िे सशखर तक पहुँचना
इिके पीछे बहुत बड़ा िंघर्ष है |
दे श ववदे श के िर्ाचार परों नें लक्ष्र्ण राव को ववशेर् स्र्ान दे कर उनका जीवन
पररचय प्रकासशत ककया है | यह ित्य हहंदी भार्ी लेखकों के सलए गवष की बात है | अंततः
लक्ष्र्ण राव के िार् एक नार् जोड़ना बहुत आवश्यक है , वह है श्री िूयक
ष ांत | िूयक
ष ांत
लक्ष्र्ण राव के घननटठ सर्र हैं ,परन्गतु लक्ष्र्ण राव उन्गहें अपने िगे भाई का दजाष दे ते हैं |
लक्ष्र्ण राव व िय
ु क
ष ं त्जी की सर्रता वपछले 48 वर्ों िे बनी हुई है | जब भी अर्रावती को
याद ककया जाता है तो िुयक
ष ान्गतजी का नार् अनायाि ही िार्ने आ जाता है , यह कहना है
लक्षर्ण राव का |
इंदस
ु ंचत
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कविता
िे त के बने पुि तो बि िी जाने थे
-डा॰ िाजेंद्र गौतम
रे त के बने पल
ु तो बह ही जाने र्े
रोज-रोज हर् दघ
ु ट
ष नाएँ जीते
उि पर ही बढ़ आया यह
नारों का रर् दलदली घाहटयों तक
जाता र्ा जो पर्
हार चक
ु े अब तो हर् कीचड़ उलीचते
इि यारा र्ें आगे जाने क्या बीते
यह जो दालानों तक
बीहड़ उग आया
ककििे पूछें
इिको ककिने िरिाया
गसलयों तक आहट कब न्स्कज़ंदा जा पाती
खखड़की के खल
ु ते ही गुराषते चीते
न्स्कजि िर्य-िारर्ी को
अपना िब िौंपा
उिने ही अब हर् पर
ननवाषिन र्ोंपा
र्ानिरोवर र्ें ही हो जब जहर घुला
कैिे तब अंजुली भर गंगाजल पीते
इंदस
ु ंचत
े ना जुिाई-ससतंबि 2016
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गीता पंडडत
नपुंसक
जानना चाहते तो
जान िकते र्े र्झ
ु े
नहीं जानना चाहा
तो नहीं जान पाये उबकाई न लेने लगे तम्
ु हारा वहशीपन
िहदयाँ बीतने के बाद भी तब पछ
ू ना अपने आप िे
दे ह की िरु ं गों र्ें कैदकर र्दाषनगी के र्ायने
र्ाँगते हो प्रर्ाणपर अगर शेर् रहे खद
ु को रख पाना
पुरुर्त्व का स्री और पुरुर् के बीच की श्रेणी र्ें भी
अवश्य दँ ग
ू ी खश
ु होना
अगर तुर् र्ुझे जीत िको प्रेर् र्ें उत्िव र्नाना
अंदर िे बाहर तक क्यूंकक वो खश
ु ी होगी एक र्त
ृ क की
केवल दे ह नहीं र्ैं जो ढूँढ रहा होगा
तुर्ने िर्झा केवल दे ह उि नपुंिकता र्ें अपना होना
हर चौराहे पर र्ैं चधक्कारती हूँ इि होने को
घर बाहर इि पुरुर्त्व को
अँधेरे उजाले इि र्दाषनगी को
टांग हदया र्ुझे नंगा र्ैं तब भी र्ी
िर्झकर अिहाय, बेबि, अबला अब भी हूँ
लो उतारकर फ़ेंकती हूँ लज्जा का झीना और रहूंगी
आवरण आज खद
ु तय करूंगी
ननवषस्र है र्ेरी दे ह र्ैं अपना होना |
भोगो इिे बबषरता िे
भोगते रहो तब तक
जब तक कक ऊब ना जाये तुम्हारा र्न
ऊब ना जाये तम्
ु हारा तन
इंदस
ु ंचत
े ना जुिाई-ससतंबि 2016
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सुनो प्रेम िूाँ मैं (स्त्री) मेिा िोना शेष ििे गा (स्त्री)
इंदस
ु ंचत
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शश
ु ीि की कविताएाँ
इंदस
ु ंचत
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इंदस
ु ंचत
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पिू ी घण
ृ ा के बािजूद ऊब का आकाि
िारा जीवन
भार्ा के िम्पण
ू ष खुरदे पन के िार्
अंधेरे कोने र्ें बीत जाने पर
िारे पाररभावर्क शब्दों को दरककनार कर
एक ननन्स्कश्चत दघ
ु ट
ष ना के बाद
र्ैं उपन्स्कस्र्त हूं आप के िर्क्ष
अब र्ीडडया पर
वन्स्कजत
ष शब्दों की िम्पण ू ष र्याषदा के िार्,
िखू खषयां है, वह-भार्ा को लगी जुबान ने
पेशे िे परू ी घण
ृ ा के बावजद
ू
आगे बढ़ते िर्य के
बबस्तर पर र्स्
ु कराती औरत की तरह
ककिी कांटे पर टांग हदया है , उिे
र्झ
ु े कववताओं र्ें आना पड़ता है ,
हदन र्ें बात िन
ु ाने िे
न चाहते हुए भी
अपना कोई रास्ता भल
ू जाता है
जहां उिे बाजार का लाइिंि दे हदया जाता है
इिी लोक ववश्वाि पर
वहां िम्र्ेलनों र्ें र्झ
ु े भी दात दे ते हुए
पकड़ सलया है अंधेरा िभी ने
कवव ठहरा हदया जाता है,
बात अभी परु ानी नहीं हुई कक
पन्स्कक्तयों को एक दि
ू रे के पाि रखते िर्य
िड़क पर पड़े आदर्ी के ऊपर
परस्पर घण
ृ ा के बावजद
ू
छाप हदया गया र्ा नक्शा दे श का
दो कवव गले सर्लते हुए
ननधाषररत कर हदया गया र्ा
र्न ही र्न गाली दे ते
भववटय जनता का,
भार्ा के स्वच्छता असभयान र्ें शासर्ल हो जाते
राशन की लम्बी कतारों र्ें
हैं
प्रत्येक आदर्ी, अपनी न्स्कस्र्नत के अनि
ु ार
उि औरत के गभष धारण की िम्पण
ू ष प्रकिया को
अंधा हो गया र्ा
पहले तो वह शब्दकोश र्ें स्र्ान नहीं दे ते
ठहर गया र्ा ककिी - न - ककिी
बाद र्ें उिकी दे ह के िम्पण
ू ष भग
ू ोल को
राशनकाडष की तस्दीकशद
ु ा
िंग्रह के केन्गद्र र्ें रखकर स्पशष करते हैं,
र्ौहर के दायरों र्ें,
दे वालयों की अंधेरी आस्र्ाओं को िर्वपषत
अंनतर् िांि के सलये, अस्पतालों र्ें
प्रर्ाओं की दीवारों र्ें दे वों का भोग बनती
द्वार खल
ु े हैं और आरार् िे दे खा जा िकता है
दे वदासियों की परछाई िे अछूते
छत पर घर्
ू ते पंखों र्ें
िारे ववधान
ऊब का आकार,एक कोने र्ें पड़े कूड़ेदान र्ें
कूिीवपर बैठी र्हलाओं के
तम्
ु हें ककिी- न-ककिी
रे श्र्ी कपड़ों के पाि िे गज
ु र जाते हैं
नवजात सशशु का शव सर्ल ही जायेगा,
न चाहते हुए भी पादरी
इन िब र्ें कुछ नया नहीं है
की वािना का सशकार बनी
आज की व्यवस्र्ा के दायरों र्ें
वह नन
तम्
ु हें उिके र्ह
ु ं िे
जब कवव या ककिी िंस्र्ा के हार् लगती है
वही बाि सर्लेगी जो तर्
ु ने
या तो वह कववता या
कल्पना र्ें न िोच कर भी
कानन
ू बनती है |
अपनी नाक र्ें कभी अनभ
ु व की र्ी ।
इंदस
ु ंचत
े ना जुिाई-ससतंबि 2016
132
इंदस
ु ंचत
े ना जुिाई-ससतंबि 2016
133
शेखि की कविताएाँ
शेखि सािंत
प्रेम ित्त
ृ
इंदस
ु ंचत
े ना जुिाई-ससतंबि 2016
134
मोतनका की कविता
शभ
ु कार्नाएँ
इंदस
ु ंचत
े ना जुिाई-ससतंबि 2016
135
पंकज की कववताएँ
इंदस
ु ंचत
े ना जुिाई-ससतंबि 2016
136
इंदस
ु ंचत
े ना जुिाई-ससतंबि 2016
137
सुवप्रय की कविताएाँ
सश
ु ांत सवु प्रय
खो गई चीज़ें स्िप्न
खो गई चीज़ें
वास्तव र्ें कभी नहीं खोती हैं
दरअिल वे उिी िर्य
कहीं और र्ौजद
ू होती हैं
इंदस
ु ंचत
े ना जुिाई-ससतंबि 2016
138
िे जो िग़ैिि थे जब तक
जब तक न्स्कस्र्नत पर
िाबू पाने
वे जो वग़ैरह र्े
पसु लि आती है
वे बाढ़ र्ें बह जाते र्े
जल चुके होते हैं
वे भख
ु र्री का सशकार हो जाते र्े
दजषनों घर आगज़नी र्ें
वे शीत-लहरी की भें ट चढ़ जाते र्े
वे दं गों र्ें र्ार हदए जाते र्े
जब तक
वे जो वग़ैरह र्े
फ़्लैग-र्ाचष के सलए
वे ही खेतों र्ें फ़िल उगाते र्े
िेना आती है
वे ही शहरों र्ें भवन बनाते र्े
र्ारे जा चक
ु े होते हैं
वे ही िारे उपकरण बनाते र्े
दजषनों लोग दं गों र्ें
वे ही िांनत का बबगल
ु बजाते र्े
दि
ू री ओर
जब तक शांनत-वाताष की
पद और नार् वाले
पहल की जाती है
िरकार और कारोबार चलाते र्े
आ चक
ु ी होती है
उन्गहें भ्रर् र्ा कक वे ही िंिार चलाते र्े
एक बड़ी दरार र्नों र्ें
ककं तु वे जो वग़ैरह र्े
उन्गहीं र्ें िे
जब तक
िांनतकारी उभर कर आते र्े
िरू ज दोबारा उगता है
वे जो वग़ैरह र्े
अँधेरा लील चुका होता है
वे ही जन-कववयों की
इंिाननयत को ।।।
कववताओं र्ें अर्र हो जाते र्े ।।।
इंदस
ु ंचत
े ना जुिाई-ससतंबि 2016
139
या हो िकता है
बन जाऊँ र्ैं --
ककिी र्के र्ज़दरू
की आँखों र्ें
गहरी नींद
ककिी र्ािर्
ू बच्ची
के होठों पर
एक ननश्छल र्स्
ु कान ।।।
कहा न
जा कर भी
यहीं रहूँगा र्ैं
इंदस
ु ंचत
े ना जुिाई-ससतंबि 2016
140
डॉ० स्
ु ेश
नया कुरुक्षेत्र
इंदस
ु ंचत
े ना जुिाई-ससतंबि 2016
141
नया एवपडैसमक
र्झ
ु े हर वस्तु चाहहये
पर वस्तु बनना पिन्गद नहीं
हर वस्तु का उपभोक्ता हूँ
पर उपभोक्तावाद पिन्गद नहीं
बाज़ार जाना ही पड़ता है
पर बाज़ारवाद पिन्गद नहीं ।
र्ैं गाँव र्ोहल्ले शहर
दे श के बाहर
ववश्व र्ें सर्लना चाहता हूँ
पर वैश्वीकरण पिन्गद नहीं ।
र्ैं जानत धर्ष नस्ल िे ऊपर उठ कर
उदाऱता की प़नतर्वू त्तष हूँ
पर उदारीकरण पिन्गद नहीं
लेककन र्ेरी पिन्गद नापिन्गद
का क्या र्ल्
ू य
जब तक वह िब की न हो ।
पर आज वैश्वीकरण उदारीकरण बाज़ारीकरण
फल फूल रहे हैं
नए एवपडैसर्क की तरह
बद्
ु चधजीवी चचल्ला के चुप हैं
िान्स्कन्गतकारी िान्स्कन्गत िे पहले ग़ायब
ककिी को कोई सशकायत नहीं
पर र्झ
ु े है
क्योंकक र्ैं हूँ आर् आदर्ी ।
इंदस
ु ंचत
े ना जुिाई-ससतंबि 2016
142
क्या किें
क्या करें अब
िारा अर्त
ृ हचर्या सलया तो ठीक पर बताओ कक
आधनु नक दे वताओं ने
कहाँ पहुँचा है ककतना नजीक है
उन के चाकरों के चाकरों
बंगाल र्ें तो आ कर चला गया
या उन के चर्चों ने
र्र्ता ने भगा हदया
बचा ववर् कुम्भ पीने को असभशप्त
भगत जी कहते हैं कक
आज की ननरीह जनता
केरल र्ें जाने वाला है
जो पी कर बनी सशव
कैिा होवै ये इन्गकलाब
उि की प्याि बुझाने को स्वच्छ जल नहीं
िूरत तो हदखा दो
न्स्कजिे कहते हैं आजकल अर्त
ृ क्या उि की भी छोटी या बची दाढी होवै
तो ववर् न वपये तो क्या करे ।
कक र्ँह
ु िफ़ाचट ।
जनता के नार् की रोटी िेंकने वाले
बबररयानी खा वोदका र्ें र्स्त हो
दे श को दे ते हैं गाली
कहते यह असभव्यन्स्कक्त की आज़ादी है
जो है र्ौसलक अचधकारों र्ें ।
तो हर् क्या करें
ककि की गाली िन
ु ें
ककि का सिद्धान्गत
जो फटा उधड़ा सलहाफ़ है
उिे ओढ़ें कक बबछाएँ
न पेट भरता है उि िे
न प्याि बझ
ु ती है
पर बौद्चधक दाहढयां उगलती हैं
वही पुरानी कहावतें र्ोड़ी अगंरेजी सर्ला ।
भई चश्र्ूदीन र्ोड़ा दे िी र्ें बोल
तो कुछ पल्ले पड़ै
और िुनो यह ििुरा इन्गकलाब
कब आवेंगा
कब िे चचल्ला रहे हो
इंदस
ु ंचत
े ना जुिाई-ससतंबि 2016
143
मीता दास
र्झ
ु े र्ेरी स्र्नृ तयाँ कोयला या लकड़ी के बबना
बेकार है चूल्हा
एक हारे हुए उि
और गैि ?
गैि के हर् लायक नही ।
रे ि के घोड़े की तरह सर्ली
पर क्या दे गची के बबना
न्स्कजिे रे ि का हहस्िा बनाने की हहचक तो र्ी ही पर िंपन्गन है चूल्हा ?
दे गची र्ें सिफष पानी का खदबदाना काफी है !
गोली भी नहीं र्ार िकते र्े कोयला सर्ल भी जाये
रे लवे रै क के करीब
वह र्ेरे िंग पलता रहा
अधजली , गली लकड़ी चुन भी लाएं
िार् उठता - बैठता र्न्स्कु क्त धार् िे या वविन्स्कजत
ष प्रनतर्ाओं िे खींच
और दे गची भर पानी ले भी आएं ---
कहकहे लगाता , रोता - रुलाता बिाते , जल कुन्स्कम्भयों िे पटे
तालाब , पोखर िे
ठीक अपने खुरों र्ें ठुंकी
पर
इंदस
ु ंचत
े ना जुिाई-ससतंबि 2016
144
००००
इंदस
ु ंचत
े ना जुिाई-ससतंबि 2016
145
इि शहर र्ें
(1) कववता / कोयलांचल न्स्कजिे कहते है कोयलाँचल
……………………………………
कफि नहीं ककिी को
पँज
ू ीपनतयों ने खरीद सलये कक
उलगल
ु ान के सिपाही बबखरा पड़ा है कोयलांचल
जझ
ू रही है अपनी ही टकराकर वापि लौटती है
िहजीववता के सलए उन पत्र्रों िे
तभी तो िन
ु ाई नहीं दे ती न्स्कजिके िौदाबाज
इंदस
ु ंचत
े ना जुिाई-ससतंबि 2016
146
इंदस
ु ंचत
े ना जुिाई-ससतंबि 2016
147
रितु दब
ू े ततिािी की कविताएाँ
रितु दब
ू े ततिािी
अंश हूँ िर्ग्र नहीं नया पैबंद
इंदस
ु ंचत
े ना जुिाई-ससतंबि 2016
148
बड़ा िादा िा िर्ीकरण बना सलया उिने, पत्नी के अनान्स्कन्गदत चेहरे को दे ख िकपकाया।
अपने लटके-झटकों और अदाओं िे। िब कहते हैं भा्य शाली हो जो इतनी िुंदर,
उभरी तोंद को िांि िे अंदर खींचने के दे खना अपनी राजकुर्ारी पापा के ऑकफि र्ें ही
बबखेर दी अपनी गट
ु के िे रं गी र्स्
ु कान! तब आप गवष िे सिर उठा के
जब नई अफिर ने, इतनी कर् उम्र र्ें इतनी बड़ी अफिर बनने
न्स्कजिर्े पूरे ककये उिने अपने अतप्ृ त अरर्ान, शरीर के िार् उिकी रूह तक कंप गई।
लोलुप दोस्त भी उिकी ताज़ा पकाई कहाननयों आंिुओं िे भीगी आवाज र्ें बुदबुदा उठा
को र्झ
ु े र्ाफ़ करना र्ैडर् जी, ……….
खब
ू लार टपका के िन
ु रहे र्े, र्झ
ु िे बहुत बड़ा अपराध हो गया ।
बीच बीच र्ें खुद भी जल-भुन रहे र्े।
नई आयी अफिर के उभारों िे ले कर
ब्लाउज के गले तक का रिास्वादन
उिने बड़े शौक िे दोस्तों को िुनाया।
दे खा कैिे सलया बदला ये र्न र्ें िोच
र्स्
ु कुराया,
शार् को जब वावपि घर आया तो
पड़ोि की र्हहलाओं िे नघरी,
इंदस
ु ंचत
े ना जुिाई-ससतंबि 2016
149
.जहीर कुरे शी
(एक)
पराई आग र्ें जो हार् अपना डाल दे ते हैं,
वो बबन र्ाँगे ही अपने फैिले, तत्काल दे ते हैं!
हर्ारी झोंपड़ी भी रोशनी के िार् रहती है,
हर् अक्िर शार् िे ही दीप अपने बाल दे ते हैं।
कहीं ऐिा न हो, उि जाल र्ें कल तर्
ु भी फँि जाओ,
तम्
ु हें खद
ु सर्र र्छली फाँिने को जाल दे ते हैं!
न िदटी और बाररश और लू उनको िता पाई,
जो हर र्ौिर् की भट्टी र्ें बदन को ढाल दे ते हैं।
तम्
ु हें कुछ और द्गयादा जानकारी हो तो बतलाओ,
हर्ें तो सिफष 'वविर्' की खबर 'बेताल' दे ते हैं!
'ररहदर्' पर ही चर्रकना, नाचना, गाना हुआ िंभव,
र्यरू ी र्ोर नाचे, र्ेघ जब िरु ताल दे ते हैं।
उन्गहीं की र्ेहनतों िे फूलताफलता है काला धन,
अर्ीरों को कर्ाई करके खद
ु कंगाल दे ते हैं!
(दो)
घर की िीर्ा िे ननकलने का िर्य आ ही गया,
धूप र्ें ………. िड़कों पे चलने का िर्य आ ही गया।
ठोकरव ्ं खा कर चगरव ् तो ये िबक लेकर उठे ,
ठोकरव ्ं खा कर िम्हलने का िर्य आ ही गया।
रात ………. अपने कक्ष के एकान्गत र्ें ………. द्वंद्वों के िार्,
बफष की भट्टी र्ें जलने का िर्य आ ही गया।
िवषहारा िे भी पछ
ू ी जा रही है उनकी राय,
शोर्कों के िरु बदलने का िर्य आ ही गया!
अपने ककरदारों िे खुद को बेदखल करने के बाद,
उनके ककरदारों र्ें ढलने का िर्य आ ही गया।
'र्डष डडग्री' ने अिंभव कर हदए झठ
ू े बयान,
जुर्ष के िच को उगलने का िर्य आ ही गया!
उि ववदाबेला र्ें आँखें खद
ु ही नर् होने लगीं,
हहर् की शैली र्ें वपघलने का िर्य आ ही गया।
इंदस
ु ंचत
े ना जुिाई-ससतंबि 2016
150
(तीन)
(चाि)
इंदस
ु ंचत
े ना जुिाई-ससतंबि 2016
151
उि अजन्गर्ी बच्ची के
हत्या की िारी िान्स्कजशें
जहाँ बबकते र्े रोज
गढ़ी जा चक
ु ी र्ी
चचककत्िक, निष
पराध्वननक चचरण की
और प्रशािन
पुजी र्ें
चंद नोटों पर०
सलंग पता लगते ही०
उि बेचारी, बेजव
ु ान, अंदर छुरी, चाकू,
कक वह लड़की जन्गर्ती०
सिफष खार्ोश र्ीं
इतने खश
ु र्े, र्ानो बेवश, बेिहारा, लाचार
आज उनके घर० जो हो चक
ु ी र्ी- ववक्षक्षप्त
इि र्होत्िव के
नई िाड़ी पहन
पहुँच चक
ु ी र्ी अस्पताल
कत्ल के इि र्होत्िव र्ें
शरीक होने०
इंदस
ु ंचत
े ना जुिाई-ससतंबि 2016
152
बििाम अग्रिाि
॥1॥ कीड़ा
कम्पनी-प्रोजेक्ट के सिलसिले र्ें बेटी अर्ेररका गई हुई है । दो ही र्हीने हुए हैं अभी।
बहुत र्ेहनती और होनहार है । भगवान िभी को दे ऐिी बेटी—ऐिा सिफष वे नहीं, उनके नाते-
ररश्तेदार िभी कहते हैं। जब िे गई है , वीडडयो कांफ्रेंसिंग के जररए रात नौ बजे के बाद
रोजाना बातचीत होती है उििे। अभी, कुछ दे र पहले भी हुई र्ी।
“र्ॉर्, ” असभवादन आहद दो-चार शुरुआती बातों के बाद बेटी ने दबी जुबान र्ें िूचचत ककया
र्ा, “कंपनी र्ें कार् कर रहे अपने… टीर् लीडर िे…”
“कोई बात नहीं, कोई बात नहीं बेटा,” आशय िर्झकर पापा तपाक िे बोले र्े, “आज के
जर्ाने र्ें … तुम्हारे स्टे टि के बच्चों के सलए यह कोई अनहोनी बात नहीं है ।”
“तेरे िार् ही गया र्ा अर्ेररका?” र्ाँ ने उत्िुकतावश पूछा।
“नहीं र्ॉर्, वह कई िाल िे यहाँ है । बी॰टे क॰ और एर्॰बी॰ए॰ यहीं िे ककया है उिने।”
“अपने यूपी का ही है ?” पापा ने पूछा।
“नहीं डैड, वह इन्स्कण्डया का नहीं है ।”
“कोई बात नहीं, कोई बात नहीं।” पापा पुन: उिके फैिले की पैरवी करते-िे बोले, “आज के
िर्य र्ें ववदे शी पररवार िे ररश्ता बनाना कोई बुरी बात नहीं र्ानी जाती…।”
“कहाँ का है ?” र्ाँ ने िवाल ककया र्ा।
“पाककस्तान का।”
“क्या!!!” दोनों के र्ँह
ु िे यह िवाल कुछ इि तरह ननकला र्ा कक उनके र्ँह
ु खल
ु े के खल
ु े
रह गए। कई दजषन काँटेदार पैरों वाला कोई बारीक कीड़ा हदर्ाग की िर्ूची निों र्ें रें ग गया
र्ा तेजी िे।
“तम्
ु हारा हदर्ाग तो ठीक है रीतू?” पापा हड़बड़ाई-िी आवाज र्ें बोले र्े। बोले क्या चीख-िे
पड़े र्े। कहा, “कहीं र्ँह
ु हदखाने लायक हर्ें छोड़ोगी कक नहीं?”
“जान-बझ
ू कर तो नहीं ककया डैड, हो गया।” रीतू िहर्े स्वर र्ें बोली र्ी, “क्या करूँ?”
“डूब र्रो, और क्या?” पापा चीखे र्े। र्ाँ की तो जैिे जब
ु ान ही ऐंठ गई हो। ऊँची उड़ती
गड्
ु डी को एकदर् हत्र्े िे काट डालेगी यह लड़की, िोचा नहीं र्ा।
“र्ॉर्, उिने कहा है कक र्ेरी र्जी के खखलाफ वह र्झ
ु पर पाककस्तान चलने का दबाव कभी
नहीं बनाएगा।” उन दोनों के चेहरे पर नघर आए घने काले बादलों और दहला दे ने वाले शोर
र्ें बदल चक
ु ी आवाज की वपच िे डरकर रीतू धीर्े स्वर र्ें ही बोली र्ी, “जल्दी ही उिे यहाँ
की नागररकता भी सर्ल जाएगी।”
इंदस
ु ंचत
े ना जुिाई-ससतंबि 2016
153
“जन्गनत की भी नागररकता क्यों न सर्ल जाए उिे… रहे गा तो वह पाककस्तानी ही…” पापा
चीखे, “ब्लडी रास्कल!”
“बायि होकर र्त िोचचए डैड…प्लीज़।” गासलयाँ ननकालने पर उन्गहें टोकते हुए रीतू ने कहा
र्ा, “कल इिी िर्य र्ैं रार्चन्गदानी िे आपकी बात कराऊँगी। पूरा यकीन है कक…”
“रार्चन्गदानी िे?…यह कौन है ?” पापा ने चीखते स्वर र्ें ही पूछा।
“वही है … िकल रार्चन्गदानी नार् है उिका…”
बि इतना ही बोल पाई र्ी रीतू कक नेटवकष टूट गया। लेककन इतना िुनने भर िे उनके
हदर्ाग र्ें रें ग रहे कीड़े के पैरों िे काँटे गायब हो चक
ु े र्े।
नीता की िहे सलयों र्ें एक है —परर्ीता। शादी के तुरन्गत बाद पनत के िार् अर्ेररका
चली गई र्ी। कई िाल बाद करीब एक र्हीने के सलए भारत आई है । दो हदन पहले हर्ारे
यहाँ भी आई र्ी। ड्राइंग रूर् र्ें पड़े िोफा की ओर उिे ले चले तो नीता िे बोली, “यह तो
र्ेहर्ानों को बैठाने की जगह है । नहीं भाई, र्ैं तो लेट-बैठ कर गप्पें र्ारूँगी।” और
बेतकल्लुफ होकर िीधे कर्रे र्ें जा घुिी। हर् दोनों इि तरह उिके पीछे -पीछे गए जैिे वह
हर्ारे नहीं, हर् उिके घर र्ें आए हों। चल
ु बुली ककशोरी की तरह ही कुदककर वह पलंग पर
चढ़ बैठी। कुसिषयाँ खखिकाकर हर् उिके िार्ने जर् गए। हर्ारे पूछने पर अर्ेररका की दो-
चार बातें उिने बताईं; कफर नीता िे कहा, “र्ार गोली। तू बता, कैिी गुजर रही है जीजाजी
के िार्?”
“यह बात तो तू इनिे पूछ…।” नीता ने र्ुस्कराकर र्ेरी ओर दे खते हुए कहा और उठकर
चली गई। रिोई र्ें जाकर उिने नाश्ते का िार्ान भरे बाउल्ि उठाए और लाकर परर्ीता के
िार्ने िजा हदए।
बातचीत नाश्ता करते हुए होने लगी। उिी दौरान नीता ‘अभी आई…’ कहकर कफर चली गई।
इि बार वह कॉफी की केटली और प्लेट-प्याले रखी रे उठा लाई र्ी। बातचीत अब कॉफी की
चि
ु ककयाँ लेते हुए होने लगी।
ऐिे र्ौकों पर नीता की चस्ु ती दे खते ही बनती है । बातों के दौरान वह बार-बार जाती और
आकर बैठती रही। पहली बार उठी तो उिने खाली हो चक
ु े प्लेट-प्यालों को वहाँ िे हटाया।
दि
ू री बार नाश्ते के बाउल्ि को। तीिरी बार वह कफ्रज िे फल ननकाल लाने के सलए गई।
फलों को उिने रिोईघर र्ें खड़ी होकर छीलने-काटने की बजाय बातचीत र्ें शासर्ल रहते हुए
कर्रे र्ें ही लाकर छीला-काटा। इिके बाद भी वह ककतनी बार इधर-उधर गई, चगनाना
र्ुन्स्कश्कल है । यह िब करते हुए उिने न तो परर्ीता को उिकी जगह िे हहलने हदया, न
बातचीत का सिलसिला बीच र्ें टूटने हदया और न ही खाने-पीने का। ककिी के आने की
इंदस
ु ंचत
े ना जुिाई-ससतंबि 2016
154
िूचना पहले िे हो, तो खाने-पीने का िभी जरूरी िार्ान वह घर र्ें ला रखती है । ऐन र्ौके
पर र्ुझे बाजार के सलए दौड़ा दे ने का कॉलर् खाली नहीं छोड़ती। इि बार भी नहीं छोड़ा।
शार् का खाना खाने तक परर्ीता हर्ारे यहाँ रुकी। उिके रुकने तक, िार्ान्गयत: छाया रहने
वाला वािंनतक उल्लाि घर के हर कोने र्ें छाया रहा। िम्बन्गधों का िौंधापन और खसु शयों के
रं ग रुके रहे । उिके जाते ही र्ाहौल र्ें अप्रत्यासशत चभ
ु न पैदा गई, रूखापन छा गया। नीता
ने न सिफष पहले-जैिा चचहुँकना-गुनगुनाना; बन्स्कल्क र्ेरी ओर दे खना-र्ुस्कराना तक बन्गद कर
हदया। उपेक्षा की आग िे र्ैं झुलिने-िा लगा। परे शानहाल, उिकी बाँह पकड़कर र्ैंने पूछ ही
सलया, “परर्ीता जब िे गई है , र्ँह
ु फुलाए घूर् रही हो!…बात क्या है ?”
एक-दो बार पूछने तक तो वह चप
ु रही, लेककन जब पीछे ही पड़ गया तो एकदर् िे फट
पड़ी, “तुम्हारे यार-दोस्त…नाते-ररश्तेदार सर्लने आते हैं तो दौड़-दौड़ कर उनकी अगुवानी करती
हूँ …करती हूँ कक नहीं?”
“हाँ।” र्ेरे गले िे ननकला।
“उनिे बातचीत का, हँिी-हठठोली का, एन्गजॉय करने का पूरा र्ौका तुम्हें दे ती हूँ …दे ती हूँ कक
नहीं?”
“हाँ भई, र्ैंने कब इंकार ककया इन बातों िे!” डाँट खाते बच्चे की तरह नघनघयाए स्वर र्ें
र्ैंने उििे कहा।
“तब… वैिा ही र्ौका र्झ
ु े भी सर्लना चाहहए…सर्लना चाहहए कक नहीं?”
यों कहकर एक झटके र्ें अपनी बाँह को उिने र्ेरी पकड़ िे छुड़ाया और र्झ
ु े वहीं खड़ा
छोड़कर दि
ू रे कर्रे र्ें जा घि
ु ी।
॥3॥ गुिाब
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ु ंचत
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इंदस
ु ंचत
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िघु कथायें
सपना मांगसिक
प्रेम
मनोिं जन
आशा को लेखन का बेहद शौक र्ा ।या यूँ कहें कक लेखन द्वारा वह अपने हदल के हर ददष
को कागज़ पर उतार अपनी व्यस्त भागदौड़ और घुटन भरी न्स्कजन्गदगी र्ें कुछ पल िुकून के
जी लेती र्ी । र्गर उिके पनत र्नोज और िािू र्ाँ को उिका लेखन कलर् नघिाई और
टाइर् की बबाषदी लगता ।वह दोनों जब तब उिके लेखन पर व्यं्य बाण छोड़ते और लेखन
इंदस
ु ंचत
े ना जुिाई-ससतंबि 2016
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को ठलुओं का कार् कहकर िबके िार्ने उिका र्जाक उड़ाते ।उि वक्त आशा की आँखों िे
बेबिी और अपर्ान के आंिू ननकल पढ़ते र्े ।एक हदन एक िाहहन्स्कत्यक कायषिर् र्ें आशा
को ववसशटट अनतचर् के रूप र्ें बल
ु ाया गया तो वह र्ना न कर िकी और कुछ दे र के सलए
कायषिर् र्ें चली गयी ।र्गर जब घर लौटी तो िािू र्ाँ ने दरवाजे िे ही अपशब्दों की
बौछार करना शुरू कर हदया ।इि अपर्ान िे दख
ु ी हो आशा अपने कर्रे र्ें आंिू पोंछती जब
पहुंची तो उिका पनत फोन पर उिके वपताजी को धर्की दे रहा र्ा कक आशा ने यह
लेखनबाजी नहीं छोड़ी तो वह उिे छोड़ दे गा ।घर के बाहर पराये पुरुर्ों के िार् बैठकें करने
वाली आवारा औरतों की उिे कोई जरूरत नहीं है । आशा तड़प कर बोली "र्नोज र्ैं घर के
िारे कायष ननपटा कर अगर कुछ दे र अपना र्नोरं जन कर आई तो इिर्ें क्या गलत है ?"
र्नोज लगभग चीखते हुए बोला "तुम्हारा र्नोरं जन और र्नोरं जन करने वालों को र्ैं खब
ू
िर्झता हूँ उन्गहह" । रोज रोज के अपर्ान िे तंग आकर आशा ने घर िे बाहर ननकलना ही
बंद कर हदया ।र्नोज को गुनगुनाते हुए अटे ची पैक करते दे ख आशा ने उिे िवासलया नजरों
िे दे खा तो र्नोज बोला "अरे र्ैं तम्
ु हे बताना भल
ू गया हर्ारे क्लब के िभी परु
ु र् र्ाईलें ड
हरप पर जा रहे हैं "आशा ने पूछा "औरतें नहीं जा रहीं ?" र्नोज "पागल हो वहां औरतों का
क्या कार्" आशा ने है रानी िे पूछा "कफर र्दों का वहां कौनिा जरूरी कार् है "र्नोज आँख
र्ारते हुए "र्नोरं जन नहीं करें अपना ,बि तुर् बीववयों िे ही चचपके रहे "।
हिंदी के पक्ष्ि
इंदस
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िं गे-िाथ
सर्िेज भल्ला धोबबन को िफ़ष दे ते हुए”आजकल बड़ी जल्दी जल्दी िफ़ष ित्र् हो रहा
है एं ? कहीं चरु ा –वरु ा तो नहीं ले जाती वनाष इतनी जल्दी िफ़ष ित्र् होने का िवाल ही नहीं
उठता “?” धोबबन कैिी बात करती हो बीवीजी ? हर् गरीब हैं र्गर चोर नहीं । “सर्िेज
भल्ला–“ककिी हदन रं गे हार् पकड़ लूंगी ना तब िारी िाहूकारी ननकल आएगी । बड़ी आई
डायलोग र्ारने वाली हर् गरीब हैं र्गर चोर नहीं (र्ुंह बनाकर धोबबन की निल उतारते
हुए )” इतने र्ें पनतदे व ने ड्राइंग रूर् िे आवाज लगते हुए कहा “अजी िुनती हो र्ेरी कल
वाली कर्ीज धल
ु ने दे दो “सर्िेज भल्ला कर्रे िे कर्ीज लेने गयी तभी र्ख्
ु य द्वार की
घंटी बजी कोई सर्लने वाला र्ा । न्स्कजिकी िूचना सर्िेज भल्ला को दे ने धोबबन कर्रे की
ओर गयी ।अन्गदर का द्रश्य दे ख धोबबन की आंखें खल
ु ी की खल
ु ी रह गयीं सर्िेज भल्ला
कर्ीज की जेब िे पांच-पांच िौ के कुछ नोट हड़बड़ी र्ें अपने ब्लाउज र्ें नछपाने की कोसशश
र्ें लगी र्ीं ।
इंदस
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िामदे ि ्ुिं्ि
दे श की ज़र्ीन ऊपजाऊ र्ी। ककिान दे श जोतने र्ें कुशल र्े। र्ज़दरू कड़ी र्ेहनत करते र्े।
दे श र्ें तैयार िार्ान दि
ू रे दे शों र्ें ननयाषत ककये जाते र्े न्स्कजि िे दे श को अच्छी आय होती र्ी। पर
इि के बावजद
ू दे श पतन के गतष र्ें िर्ाता चला जाता र्ा।
लोगों ने पता लगाना आवश्यक र्ाना कक िर्द्
ृ ध दे श की दशा क्यों इि तरह दयनीय होती
चली जा रही है । पता चला राजा और रानी इि के घोर दोर्ी हैं। राजा ने दे श की आय िे करोड़ों का
िोना खरीद कर अपने र्हल र्ें नछपा रखा र्ा। रानी िाज - सिंगार का इतना शौक रखती र्ी कक
दे श की िालाना आय र्ें िे करोड़ों रूपए हड़प कर अपने खचष र्ें उड़ा दे ती र्ी। उि के गहनों िे न
जाने ककतनी बबन्स्कल्डंगें भरी पड़ी र्ीं। ववडंबना इि िे भी आगे कक इन्गहोंने दे श का करोड़ों पैिा ववदे शों
बैंको र्ें जर्ा कर रखा र्ा।
आत्र् केन्स्कन्गद्रत राजा और ववलासिनी रानी िे लोग घण
ृ ा करने लगे। रानी को बंदी बना सलया गया।
राजा को कहीं दरू की िर्द्र
ु ी घाटी र्ें काला पानी भग
ु तने के सलए भेज हदया गया।
गण
ु ों िे यक्
ु त न्स्कजि आदर्ी को राजा बना कर सिंहािन पर बबठाया गया उि ने तो अपनी ईर्ानदारी
का िच्चा पररचय हदया। दे श खश ु हाल भी हुआ, लेककन दभ ु ाष्य कक यह खसु शयाली ज्यादा हदनों हटक
नहीं पायी। ित्ताच्यत
ु राजा और रानी ने बेईर्ानी की जो बनु नयाद छोड़ रखी र्ी उि के पररणार् र्ें
ककिान, र्ज़दरू , अफ़िर िब के िब स्वार्ष की धारा र्ें कफिलते गए। दे श नए सिरे िे कंगाल हो
गया।
िच कहते हैं र्ानवता, िभ्यता, िंस्कृनत और आचरण िे कोई दे श दवू र्त हो जाए और उि के दर्
ू ण
के केन्गद्र र्ें ववशेर् कर राजा और रानी हों तो उि दे श को िंभलने र्ें यग
ु लग जाएँ। या ऐिा भी कक
वह दे श हर्ेशा के सलए खत्र् हो जाए।
2 – खािी पेट
जानत - पररवतषन का दौर चल रहा र्ा। ज्यों ही ककिी के जानत - पररवतषन की रस्र् परू ी हो
जाती र्ी उि के हार् र्ें एक जून की रोटी रख दी जाती र्ी। यह गरीबों का इलाका र्ा। जानत -
पररवतषन िे रोटी जड़
ु ी हुई र्ी तो गरीबी िे टूटे हुए लोग खींचे चले आते र्े। जा कर गरीबों िे कहना
नहीं पड़ता र्ा कक अपनी जानत का पररवतषन करो और इि के बदले रोटी ले जाओ।
िात िाल का एक लड़का लाइन र्ें जा खड़ा हुआ र्ा। उि का जानत - पररवतन हुआ और रोटी उि
के हार् आई। उि ने घर आते ही रोटी अपनी दो बहनों र्ें बाँट दी। उि ने अपने सलए एक टुकड़ा भी
न रखा। उि की र्ाँ ने बहनों के प्रनत भाई का यह प्रेर् दे खा तो रो पड़ी। बेटा भख
ू ा रह गया यह ददष
र्ाँ के िीने र्ें ठहर गया। पर र्ाँ को कहाँ पता र्ा बेटे को पता लग गया र्ा रोटी का स्रोत कहाँ
है । अब बेटे को अपनी और अपनी र्ाँ की रोटी के सलए उपाय र्ें पड़ना र्ा। वह जानत - पररवतषन
इंदस
ु ंचत
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करने वालों की कतार र्ें दोबारा जा खड़ा हुआ। उिे रोटी सर्ल तो गई, लेककन वह पकड़ा गया। अर्ष
बनाया गया पेट की रोटी के सलए वह जानत - पररवतषन जैिे गंभीर और शाश्वत र्ार्ले को चुनौती दे
रहा र्ा। उि की उम्र छोटी भी तो र्ी। उिे बहुत बड़ा चोर िर्झा गया। आने वाले हदनों के सलए उिे
खतरा र्ान कर लोप कर हदया गया।
र्ाँ द्वार पर बैठे अपने बेटे का इन्गतज़ार करती रह गई।
-0-
3 - किा - प्रेम
4 - कुछ पि के साथी
िर्द्र
ु ी यारी प्रकृनत की छटा ननहारने की प्रकिया र्ें भल
ू गया कक उि की नाव ककि कदर िर्द्र
ु
र्ें दरू ननकल गई है । उि की िर्झ र्ें आना अिंभव हो गया कक ककि ओर अपने दे श का ककनारा
पड़ता है । उि के चारों ओर लहरें पवषत के आकार र्ें ऊपर उठ रही र्ीं। उि ने िरू ज को डूबते दे खा।
रात नघर आई और अब उिे इतना ववश्वाि शेर् न रह पाता कक अगली िब
ु ह दे खने के सलए वह
न्स्कजंदा रह पाने वाला हो।
भयावह रात और िर्द्र
ु ी गजषन के बीच वह ननढाल पड़ा हुआ र्ा कक उिे अपनी नाव ककिी ठोि चीज़
िे टकराती र्हिि
ू हुई। उि ने िोचा कोई काली चट्टान होगी न्स्कजि िे टकरा जाने पर अब तो
अपनी नाव चूर हो जाएगी। र्गर बात उि के ख्याल के एकदर् ववपरीत र्ी। एक नाव उि की नाव
िे टकरायी र्ी। उि नाव र्ें उिी की तरह एक िर्द्र
ु ी यारी र्ा। वह भी भटक गया र्ा। दोनों
कल्पना कर ही नहीं िकते र्े कक उन्गहें िर्द्र
ु के ऐिे भयानक गजषन के बीच अपना जैिा ही एक
इंदस
ु ंचत
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आदर्ी सर्ल जाने वाला है । दोनों की आँखें अंधेरे र्ें चर्क उठीं। वे एक नाव र्ें बैठ गए। वे बातें तो
कर रहे र्े, लेककन सभन्गन दे शों के होने िे उन की भार्ा एक नहीं र्ी। पररणार् स्वरूप दोनों एक दि
ू रे
को िर्झने र्ें र्ात खाते चले गए।
रात के बाद िब
ु ह का िरू ज ज्यों ही क्षक्षनतज र्ें प्रकट हुआ नाव डूबने लगी। दोनों ने हार् सर्लाया
और गहरे पानी र्ें ववलीन हो गए।
इंदस
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डॉ०। रार्ववलाि शर्ाष हहन्गदी आलोचना र्ें र्ाक्िषवादी आलोचक के रूप र्ें जाने जाते
हैं | उनके चचंतन र्ें ‘जातीय चेतना’ एक र्हत्वपण
ू ष ववर्य रहा है | यही कारण है कक उन्गहोंने
भारत के बड़े – बड़े िाहहत्यकारों के िाहहत्य का र्ूल्यांकन उनकी ‘जातीयता’ के िन्गदभष र्ें
ककया | उनकी दृन्स्कटट र्ें ‘गरु
ु दे व रवीन्गद्रनार् ठाकुर’ बां्ला जानत के जातीय कवव हैं | उन्गहोंने
अपनी रचनओं के द्वारा बंगला िाहहत्य को िर्द्
ृ ध ककया | वे “भारत के प्रनतननचध कवव हैं |
वह ववश्वकवव भी हैं | ववश्व र्ानवतावाद उनके िाहहत्य की र्हत्वपण
ू ष धारा है | इि िबके
िार् वह बंगाल के जातीय कवव भी हैं …………बंगाल की धरती, बंगाल का इनतहाि, बंगाल का
िाहहत्य, बंगाल की िांस्कृनतक ववराित, ये िब रवीन्गद्रनार् के अक्षय प्रेरणास्रोत हैं |”1
रवीन्गद्रनार् ठाकुर ने जातीय चेतना को ववकसित करने के सलए अपने जातीय िाहहत्य को
आधार बनाया | यह जातीय िाहहत्य उन्गहोंने परम्परा के र्ाध्यर् िे अन्स्कजत
ष ककया र्ा |
उनकी दृन्स्कटट ववशेर् रूप िे बां्ला भार्ा और िाहहत्य पर र्ी | न्स्कजिे उन्गहोंने अपनी प्रनतभा के
बल पर ऐश्वयषशासलनी बनाया | बंगला िाहहत्य की श्रीवद्
ृ चध करने र्ें उन्गहें अपार कीनतष भी
प्राप्त हुई | वह िारी कीनतष अपने र्ागषदशषक गुरु ववद्यािागर के चरणों र्ें अवपषत कर दे ते
हैं | ववद्यािागर के प्रनत उनके ह्रदय र्ें अपार श्रद्धा एवं प्रेर् है | वे चाहते र्े कक बंगाली
र्ानुर् भी ववद्यािागर के चररर का अनुिरण करके अपने जातीय चररर को बदलें | “बाँ्ला
भार्ा िे वह (रवीन्गद्रनार्) ववद्यािागर का ऐिा तादात्म्य स्र्ावपत करते हैं कक िर्स्त
उपलन्स्कब्धयाँ ववद्यािागर की उपलन्स्कब्धयाँ बन जाती हैं | ऐिा उत्कट अनुराग िांस्कृनतक
ववराित के प्रनत रवीन्गद्रनार् ठाकुर के हृदय र्ें हैं |”2 गुरुदे व ने अपनी अचधकांश रचनाओं र्ें
अपने गुरु ईश्वरचन्गद्र ववद्यािागर के प्रनत श्रद्धा व्यक्त की हैं |
गुरुदे व ने अपनी रचनाओं के र्ाध्यर् िे बंगाली र्ानुर् र्ें जातीय चेतना का भाव जगाया |
िांस्कृनतक स्तर पर उन्गहोंने बंगाली र्ानुर् को एक िूर र्ें जोड़ने का कार् ककया | उनकी
प्रनतबद्धता बंगाल और वहां के लोगों के प्रनत हैं | बंगाल के प्रनत उनका यह अनुराग अनेक
कववताओं र्ें व्यक्त हुआ है :-
बाँ्लार र्ाटी, बाँ्लार जल,
बाँ्लार वायु , बाँ्लार फल
पुण्य हऊक ,पुण्य हऊक , पुण्य हऊक , हे भगवान
बाँ्लार घर , बाँ्लार हाट
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उन्गहोंने जो कुछ ग्रहण ककया, वह हासशये पर है | उिका िंबंध अचधकतर काव्य रूपों िे है |
इन रूपों की अंतवषस्तु बंगाली या भारतीय है |”6
गुरुदे व बां्ला भार्ा का चौर्ुखी ववकाि करना चाहते र्े | उन्गहोंने अंग्रेजी के बदले
हर्ेशा बां्ला भार्ा को आगे बढ़ाने का प्रयत्न ककया |बांगला भार्ा के र्हत्व को प्रनतपाहदत
करते हुए वे कहते हैं –“आज बाँगला भार्ा लाखों र्नुटयों की आपिी बातचीत का र्ाध्यर् है ,
उिका प्रकाश हजारों गली-कूचों र्ें फैला हुआ है | उिके प्रकाश की पर्-रे खा अनुिरण करते
हुए चले तों कहीं दरू दग
ु षर् जगत ् र्ें जा पहुँचेंगे |”7 अपने व्यवहाररक जीवन र्ें गुरुदे व बड़े –
बड़े अनटु ठानों र्े भाग लेते र्े, वहां भी वे बां्ला र्ें ही बोलते नजर आते र्े | “1908 र्ें
उन्गहोंने बंगाल की प्रांतीय िभा के वावर्षक अचधवेशन र्ें अध्यक्षता की | यहां अध्यक्ष के
भार्ण अंग्रेजी र्ें हुआ करते र्े | रवींद्रनार् का भार्ण बाँ्ला र्ें र्ा |”8 इि तरह रवीन्गद्रनार्
ने अंग्रेजी की जकड़बंदी तोड़ी और बांगला भार्ा के र्हत्त्व को िर्झाया | अंग्रेजी िरकार की
सशक्षा नीनत र्ें भी उन्गहोंने अंग्रेजी के बदले र्ातभ
ृ ार्ा पर जोर हदया | गुरुदे व ने जहाँ तक
िंभव हुआ अंग्रेजी के बदले र्ातभ ृ ार्ा अपनाने के सलए जोर हदया | इतना ही नहीं अपने
िाहहत्य र्ें गरु
ु दे व ने बांगला भार्ा के िार् अन्गय भारतीय भार्ाओँ का भी िर्र्षन ककया
हैं | डॉ०। शर्ाष सलखते हैं - “ बां्ला भार्ा और िाहहत्य के प्रनत अटूट ननटठा रखते हुए भी
वह बंगाल िे बाहर की भार्ाओं और िाहहत्य के प्रनत अत्यंत उदार और िहानभ ु नू तपण
ू ष रूख
अपनाते र्े | उनका जीवन उन िभी लोगों के सलए आदशष है , प्रेरणा का अक्षय स्रोत है जो
अपने जातीय उत्र्ान के िार् परू े दे श की प्रगनत के सलए कार् करना चाहते हैं |”9
डॉ० शर्ाष ने रवीन्गद्रनार् की जातीय भार्ा के िार् – िार् उनके जातीय िाहहत्य पर
भी बराबर ध्यान हदया हैं | रवीन्गद्रनार् ककशोरावस्र्ा िे ही बंगला िाहहत्य के प्रनत िचेत
र्े | अपने जीवन के शुरुआती दौर र्ें उन्गहोंने अनेक काव्य, नाटक आहद की रचना की र्ी |
कववता, गीत सलखकर वे लोगों को िुनाते र्े | 12 वर्ष की उम्र र्ें उन्गहोंने ‘पथ्
ृ वीराज पराजय’
नार् का नाटक सलखा र्ा |1881 र्ें ‘वाल्र्ीकक प्रनतभा’ नार् का िंगीत नाटक रचा |
रवीन्गद्रनार् को युवावस्र्ा िे ही नाटक सलखने,र्ंचचत करने एवं असभनय करने र्ें रूची र्ी |
नाटक का र्ंचन कराते िर्य वे र्ंच का ववशेर् ध्यान रखते र्े जैिे – परों के िंवाद,
उनकी वेश –भूर्ा, पाश्वष – ध्वनन, िंगीत आहद | उनके नाट्य र्ंच की िबिे बड़ी ववशेर्ता यह
होती र्ी कक वे र्ंच को िाज – िज्जा िे भर नहीं दे ते र्े | “ जैिे शेक्िवपयर के युग र्ें
स्टे ज पर ववशेर् िज्जा का ध्यान न रखा जाता र्ा, वैिे ही रवीन्गद्रनार् र्ंच की िज्जा को
अचधक – िे – अचधक िादा रखना पिंद करते र्े न्स्कजििे लोगो का ध्यान पारों और ववचारों
के ऊपर केन्स्कन्गद्रत हो िके |”10 बंगाल र्ें बहुत िे नाटक सलखे और खेले जा रहे र्े लेककन
रवीन्गद्रनार् की नाट्य धारा बबलकुल सभन्गन र्ी | उनकी बहुत िी कववताओं र्ें बंगाल के जन
– जीवन का यर्ार्ष रूप र्ें चचरण हुआ है | “कल्पना हो या यर्ार्ष, नाव और नदी के बबना
उनकी कववता पूरी नहीं होती | भारत र्ें शायद ही ककिी कवव के र्ूनतष ववधान र्ें नाव और
नदी की इतनी खपत हो जीतनी रवीन्गद्रनार् की कववता र्ें है |…….वतषर्ान काल र्ें भी बहुत –
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िे लोगों ने उनकी कववताएँ पढ़कर र्न र्ें आनंद और उल्लाि का अनुभव ककया | पराधीन
दे श की जनता को काव्य िे ऐिा आनंद दे ना, यह कर् उपलन्स्कब्ध नहीं र्ी | उनके िाहहत्य ने
लोगों के र्न र्ें िाहि का िंचार ककया, िंघर्ष की प्रेरणा दी | लोगों ने उनका िाहहत्य
पढ़कर परर्ुखापेक्षी होने के बदले अपनी भार्ा और िाहहत्य पर गवष करना िीखा |”11
गुरुदे व की बहुत िी कववताओं र्ें लोकगीतों का प्रभाव हदखाई दे ता है | उनके गीतों
की यह ववशेर्ता होती र्ी की वह बंगाल के लोकगीतों के तत्व के िार् सर्चश्रत होती र्ी |
‘बाउल’ बंगाल का बहुत ही लोकवप्रय लोकगीत है | इन लोकगीतों का प्रभाव उनके गीतों पर
भी पड़ा है | ‘बाउल’ के प्रनत रवीन्गद्रनार् का जो लगाव है उिे उन्गहोंने स्वयं स्वीकार ककया
हैं | ‘बाउल पदावली’ के प्रनत अपने अनुराग को व्यक्त करते हुए रवीन्गद्रनार् कहते हैं --“
न्स्कजन लोगों ने र्ेरा लेखन पढ़ा है , वे जानते है कक बाउल पदावली के प्रनत अपने अनुराग को
र्ैंने अनेक लेखों र्ें प्रकासशत ककया है | जब र्ैं सियालदा र्ें र्ा तब बाउल दल के िार् र्ेरी
बराबर र्ुलाकात और बातचीत होती र्ी | अपने अनेक गीतों र्ें र्ैंने बाउल स्वर ग्रहण ककया
है और अनेक गीतों र्ें राग –राचगनी के िार्, र्ेरे जानते हुए या ना जानते हुए बाउल िुरों
का सर्लन हुआ है |”12
डॉ० शर्ाष की दृन्स्कटट र्ें रवीन्गद्रनार् अंग्रेजी िाम्राज्यवाद की कटू आलोचना की हैं | वे
अंग्रेजो की िाम्राज्यवादी नीनतयों िे भली – भांनत पररचचत र्े | “ अंग्रेजी राज र्ें भारतीय
जनता न्स्कजि तरह गरीबी और असशक्षा र्ें जीवन बबता रही र्ी, उिे वह अच्छी तरह जानते
र्े |”13 यही कारण है कक उन्गहोंने अंग्रेजी िाम्राज्यवाद की प्रखर आलोचना की | अंग्रेजी
िरकार अपना िाम्राज्य बढ़ने और उिे कायार् रखने के सलए यहां जानतवाद, रूहढ़वाद,
िम्प्रदायवाद आहद को प्रश्रय दे रही र्ी | रवीन्गद्रनार् ने यह लक्ष्य ककया कक अंग्रेज िरकार
इन कुरीनतयों को बढ़ावा दे कर अपने िाम्राज्य की नींव र्जबूत करना चाहते हैं इिसलय
गुरुदे व भारतीय िर्ाज र्ें फैले हुए इन कुरीनतयों के सलए अंग्रेजी िरकार को दोर्ी ठहराते है
एवं उनिे लड़ने के सलए पूरे भारतवासियों िे ववद्रोह की र्ांग करते हैं | रूि की तुलना
भारत िे करते हुए वे बहुत क्षुब्ध होते हैं | ऐिे र्ें उन्गहें भारत पर िाम्राज्यवादी शािन ही
हदखाई दे ता है | “इि िाम्राज्य-ववरोधी चेतना के िार् उनर्े बड़ी गहराई िे लोकतान्स्कन्गरक
भावना ववद्यर्ान है | वह लोक र्ें पररवतषन चाहते है | शतान्स्कब्दयों िे वह न्स्कजि अवस्र्ा र्ें
रहा है , उििे र्ुक्त दे खना चाहते है | क्योंकक यहाँ उच्च वगष नहीं, र्ध्यवगष नहीं, बन्स्कल्क
िाधारण र्ेहनत करने वाले लोग हैं |
डॉ० शर्ाष सलखते हैं –“ बंगाल र्ें िाहहत्य और सशक्षा िंस्र्ाओं का आभाव नहीं र्ा,
कफर भी रवीन्गद्रनार् एक नयी काव्यधारा चलाई और शान्स्कन्गतननकेतन के रूप र्ें उन्गहोंने नए
ववद्यालय की स्र्ापना की |”15 “ वैिे तो ववश्वभारती ववश्व िंस्कृनत का प्रनतटठान र्ी
लेककन जोर भारतीय िंस्कृनत पर र्ा |”16 ववश्वभारती की स्र्ापना रवीन्गद्रनार् ठाकुर के
जीवन का िपना र्ा | इि िपने को िाकार करने के सलए उन्गहें आचर्षक रूप िे काफी कटट
भी उठाना पड़ा | ववश्वभारती के र्ाध्यर् िे वे भारतीय िंस्कृनत, िाहहत्य और कला का
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ववकाि करना चाहते र्े | ववश्वभारती र्ें उन्गहोंने कई नए ववर्यों के अध्ययन की व्यवस्र्ा
की | “जनवरी,1938 र्ें िी। एफ। एण्ूज ने हहंदी – भवन का सशलान्गयाि ककया |”17 “21
जनवरी को रवीन्गद्रनार् और िी। एफ। एण्ूज की उपन्स्कस्र्नत र्ें जवाहरलाल नेहरू ने हहंदी
भवन का उद्घाटन ककया |”18 लसलत कला के ववकाि के सलए उन्गहोंने कला भवन की
स्र्ापना की | 1919 के जसलयावालाबाघ हत्याकांड के बाद उन्गहोंने अपनी िर की उपाचध
लौटा दी र्ी | “ इि िर्य ववश्वभारती र्ें एक नए ववभाग की स्र्ापना हुई | उिका नार् र्ा
ववद्या भवन | उद्दे श्य यह र्ा की भारत िम्बन्गधी उच्चतर अध्ययन के सलए यहाँ व्यवस्र्ा
हो |”19 फ्रांि के िंस्कृत ववद्वान सिल्वे लेबी की िहायता िे ववश्वभारती र्ें चीनी,नतब्बती
अध्ययन की व्यवस्र्ा की गयी | शान्स्कन्गतननकेतन र्ें गुरुदे व सशक्षा कायों र्ें ििीय रूप िे
भाग लेते र्े | अपना ज्यादा िर्य वे शान्स्कन्गतननकेतन र्ें बबताते र्े | वहां वे स्वयं सशक्षक बने
और ववद्याचर्षयों के िार् उन्गही की तरह जीवन बबताते रहें |
अंततः, रवीन्गद्रनार् ठाकुर बंगला जानत के जातीय कवव हैं | उन्गहें अपनी िाहहत्य,
िंस्कृनत, कला,भार्ा,प्रदे श और िांस्कृनतक ववराित पर बड़ा गवष र्ा | उनके िाहहत्य र्ें
बंगाल का जन – जीवन यर्ार्ष रूप र्ें उभरकर िार्ने आया है | बंगाल के लोगों र्ें जातीय
चेतना का ववकाि हो, इिके सलए उन्गहोंने जीवन भर िंघर्ष ककया | बंगला भार्ा के प्रनत
उनके र्न र्ें अगाध प्रेर् र्ा | इिसलए उन्गहोंने अपनी िम्पण
ू ष रचनाएँ बाँ्ला भार्ा र्ें की |
वे बंगाल के प्राय: हर ककिी न ककिी िार्न्स्कजक – िांस्कृनतक आन्गदोलन िे जड़
ु े हुए र्े |
िार्न्स्कजक स्तर पर, वे ऊँच –नीच, भेद-भाव वाली परु ानी व्यवस्र्ा को बदलकर िर्ाज को
नया रूप दे ना चाहते र्े | न्स्कजिके सलए उन्गहोंने प्राचीन िंस्कृनत को अपनी रचना का प्रेरणा
स्रोत बनाया |
स्दभा – सूची
1. शर्ाष रार्ववलाि, भारतीय िंस्कृनत और हहंदी प्रदे श भाग : 2, िंस्करण 2012, ककताब
घर प्रकाशन नई हदल्ली, पटृ ठ िंख्या – 439
2. उपयक्
ुष त, पटृ ठ िंख्या – 439/3. उपयक्
ुष त, पटृ ठ िंख्या –445/4. उपयक्
ुष त, पटृ ठ िंख्या –
444
5. उपयक्
ुष त, पटृ ठ िंख्या –451,452/6. उपयक्
ुष त, पटृ ठ िंख्या –471/7. उपयक्
ुष त, पटृ ठ िंख्या
–452/8. उपयक्
ुष त, पटृ ठ िंख्या –458/9. उपयक्
ुष त, पटृ ठ िंख्या –472/10. उपयक्
ुष त, पटृ ठ
िंख्या –472/11. उपयक्
ुष त, पटृ ठ िंख्या –470/12. उपयक्
ुष त, पटृ ठ िंख्या –443/13. उपयक्
ुष त,
पटृ ठ िंख्या –448/14. उपयक्
ुष त, पटृ ठ िंख्या –448/15. उपयक्
ुष त, पटृ ठ िंख्या –471/16.
उपयक्
ुष त, पटृ ठ िंख्या –461/17। उपयक्
ुष त, पटृ ठ िंख्या –469/.8। उपयक्
ुष त, पटृ ठ िंख्या –
469/19. उपयक्
ुष त, पटृ ठ िंख्या –462
इंदस
ु ंचत
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बाि-साहित्य सज
ृ न: नई चुनॊततयां
हदविक िमेश
िज
ृ न ककिी भी िर्य का क्यों न रहा हो अपने उपजने र्ें वह चन
ु ॊतीपूणष ही रहा होगा। हर
उचचत ऒर अच्छी रचना िजग ऒर न्स्कजम्र्ेदार रचनाकार के िर्क्ष चन
ु ॊती ही लेकर आती
हॆ । लेककन जब हर् िज
ृ न के िार् ’नई चन
ु ॊनतयां’ जोड़ते हॆ ं तो उिका आशय ननरन्गतर
बदलते िार्ान्स्कजक-प्राकृनतक पररवेश र्ें नई िर्झ ऒर नए भावबोध की गहरी िर्झ िे लॆि
रचनाकार की परम्परा की अगली कड़ी के रूप र्ें अपेक्षक्षत िज
ृ न को िंभव करने वाली
तॆयाररयों िे होता हॆ । यंू र्ेरी िर्झ र्ें तो हर न्स्कजम्र्ेदार बाल िाहहत्यकार के िार्ने उिकी
हर अगली रचना नई चन
ु ॊती ही लेकर आती हॆ क्योंकक यहां न कोई ढराष कार् आता हॆ ऒर
न ही कोई िीख। िही र्ायनों र्ें तो अन्गतत: अपना बोना ऒर अपना काटना ही प्राय: कार्
आता हॆ ।चाल या चलन को चन ु ॊती दे ते हुए। अपने प्रगनत-प्रयोगों के प्रनत उपेक्षा के आघात
िहते हुए भी। अन्गयर्ा बालक को दो क्षण भी नहीं लगते ककिी भी रचना िे र्ंह ु फेरते।
क्षमा कीन्स्कजए र्ॆ ं शुरु र्ें ही नोबेि पुिस्काि विजेता अमेरिकी िेखक विसियम फॉकनि ऒर
गुलजार के कर्नों का न्स्कजि करना चाहूंगा। ववलयर् फॉकनर के अनुिार, ’आज िबिे बड़ी
रािदी यह हॆ कक अब लोगों की िर्स्याओं का आत्र्ा या भावना िे कोई लेना-दे ना नहीं रह
गया हॆ ।अब िबके र्न र्ें सिफष एक ही िवाल हॆ -र्ॆ ं कब र्शहूर बनूंगा/बनूंगी।जो भी युवा
लेखक ऒर लेखखकाएं हॆ ं वे अपनी इि चाहत के कारण खद ु िे द्वद्व कर रहे हॆ।ं इिी द्वंद्व
के कारण वे जर्ीनी हकीकत ऒर इंिानी भावनाओं को भूल गए हॆ ।ं उन्गहें एक बार कफर िे
जॊवन के शाश्वत ित्य ऒर भावनाओं के बारे र्ें िीखना होगा, क्योंकक इिके बबना कोई भी
रचना बेहतर नहीं हो िकती। कववया लेखक की न्स्कजम्र्ेदारी बनती हॆ कक वह ऎिा सलखे न्स्कजिे
पढ़ने वाले व्यन्स्कक्त के र्न र्ें िाहि, िम्र्ान, उम्र्ीद ऒर जज्बा पॆदा हो, जो उिे प्रेररत कर
िके अपने जीवन की र्ुन्स्कश्कलों के आगे डटे रहने ऒर जीतने के सलए।’ भले ही यह ववसलयर्
फॉकनर द्वारा 10 हदिम्बर 1950 को स्टॉकहोर् र्ें नोबल पुरस्कार ग्रहण करते िर्य हदए
गए भार्ण का अंश हॆ लेककन र्ॆ ं इिे आज भी प्रिंचगक र्ानता हूं। र्ॆ ं इिे बाल िाहहत्य
लेखन पर घटा कर भी दे खना चाहूंगा भले ही बालक के रूप र्ें व्यन्स्कक्त की बात करते हुए
इिर्ें कुछ ऒर बातें भी जोड़ने की आवश्यक्ता पड़ेगी। र्िलन उत्कृटट बाल िाहहत्य लेखन
के िंदभष र्ें हर्ेशा बाल िुलभ न्स्कजज्ञािाओं ऒर उनकी असभरुचच के अनुिार रचना को
र्ज़ेदार बनाने ऒर बाल िुलभ प्रश्नों को रचनात्र्क ढं ग िे उभारने की भी बहुत बड़ी चनु ॊती
ऒर न्स्कजम्र्ेदारी ननभाए बबना कार् नहीं चलता। यहद कोई कववता प्रश्न जगाने र्ें िफल हो
जाए तो िर्झ लेना चाहहए कक वह िार्षक हॆ , भले ही वह प्रश्न का उत्तर न भी दे पायी
हो। अर्ेररकी लेखखका ऒर बच्चों के लेखन के सलए अत्यंत प्रसिद्ध मेडि
े ीन एि एंगि
(Madelien L' Engle, 1918-2007) के शब्दों र्ें , "I believe that good questions are
इंदस
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more important than answers, and the best children's books ask questions,
and make the readers ask questions। And every new question is going to
distrurb someone's universe।" िहहत्य र्ें प्रश्न उठाना बहुत आिान नहीं होता क्योंकक
प्रश्न उठाया ही जब जाता हॆ जब उिके उत्तर की ओर जाने की हदशा का ज्ञान हो। गनीर्त
हॆ कक हहन्गदी ऒर अन्गय भारतीय भार्ाओं के बाल िाहहत्यकारों र्ें आज अनेक ऎिे भी हॆ ं जो
ऊपर बतायी गयी लेखकीय न्स्कजम्र्ेदारी की चन
ु ॊती को भलीभांनत ननभा रहे हॆ ।ं ऒर उन्गहीं के
लेखन िे भारतीय बाल िाहहत्य लेखन की वॆन्स्कश्वक ऒर उत्कृटट छवव ननरं तर बन भी रही हॆ ।
दस
ू िा कथन बाल िाहहत्यकार के रूप र्ें गुिजाि का हॆ न्स्कजिके द्वारा लेखन की एक अन्गय
चन
ु ॊती की ओर इशारा ककया गया हॆ । । उनके अनुिार,"बच्चों की भार्ा िीखना एक
चन
ु ौतीपूणष कार् है । जैिे पीहढ़यां बदलती हैं, वैिे ही भार्ा भी पररवनतषत होती हैं।’ इि कर्न
िे िहर्त होना ही पड़ेगा ऒर हर्ारे बहुत िे लेखक इि चन ु ॊती को भी बखब ू ी स्वीकार ककए
हुए सलख रहे हॆ ।ं वस्तुत: आज एि।एर्।एि , टे लीववजन, नई टे क्नोलोजी, कफल्र्ों, इंटरनेट
युक्त कम्प्यूटर आहद की भार्ा, ऒर अब तो िर्ाचार परों की भार्ा अपना एक अलग
स्वरूप लेकर बालकों की दनु नया र्ें भी प्रवेश करता चला गया हॆ। आज के बाल िाहहत्यकार
को इि ओर ध्यान दे ना पड़ता हॆ । हहन्गदी के स्वरूप र्ें जहां एक ओर र्हानगरीय भार्ा-
स्वरूप र्ें अंगेजी का घोल सर्लता हॆ वहां लोक की भार्ाओं का अच्छा िख
ु द छोंक भी
सर्लता हॆ । स्पटट हॆ कक इि स्वरूप को िहज रूप र्ें अपनाना भी एक नई चन
ु ॊती हॆ ।यहीं
यह भी कहना चाहूंगा कक यह ठीक हॆ कक बाल िाहहत्य म्रें ऎिी भार्ा का िहज उपयोग होना
चाहहए जो आयु वगष के अनिु ार बच्चे की शब्द -िम्पदा के अनक ु ू ल हो । लेककन एक िर्र्ष
रचनाकार उिकी शब्द-िम्पदा र्ें िहज ही वद्
ृ चध करने की चन
ु ॊती भी स्वीकार करता हॆ ।
बाल-िाहहत्य िज ृ न की चन
ु ॊनतयों पर र्ोड़ा ववरार् लगाते हुए पहले र्ॆ ं अपने र्न की
एक ऒर दख
ु द चचन्गता िांझा करना चाहूंगा जो भारतीय िर्ाज र्ें बालक के र्हत्त्व को लेकर
हॆ । क्या हर्ारे िर्ाज के तर्ार् बालक उन न्गयूनतर् िुववधाओं ऒर अचधकारों िे भी
िम्पन्गन हॆ ं न्स्कजनका हर्ें ककताबी या भार्णबान्स्कजयों वाला ज्ञान अवश्य हॆ ? कहना चाहता हूं कक
बालक (नर-र्ादा, दोनों) हर्ारी िांि की तरह हॆ । न्स्कजि तरह ऊपरी तॊर पर िांि हर् र्नुटयों
की एक बहुत ही िहज ऒर िार्ान्गय प्रकिया हॆ लेककन हॆ वह अननवायष। उिी तरह बालक भी
भले ही ऊपरी तॊर पर िहज ऒर िार्ान्गय उपलन्स्कब्ध हो लेककन हॆ वह भॊ अननवायष। ऒर जब
र्ॆ ं बालक की बात कर रहा हूं तो र्ेरे ध्यान र्ें शहरी, कस्बाई, ग्रार्ीण, आहदवािी, गरीब,
अर्ीर, लड़की, लड़का आहद िब बालक हॆ ।ं न िांि के बबना र्नुटय का जीववत रहना िंभव
हॆ ऒर न बालक के बबना र्नुटयता का जीववत रहना। यह ववडम्बना ही हॆ कक िर्ाज र्ें
बालक के अचधकारों की बात तक कही जाती हॆ लेककन वह अभी तक कागजी िच अचधक
लगती हॆ , जर्ीनी िच कर्। आज िाहहत्य र्ें दसलत, स्री ऒर आहदवािी ववर्शष की तरह
’बालक(न्स्कजिर्ें बासलका भी हॆ ) ववर्शष’ की भी जरूरत हो चली हॆ। हर्ारा अचधकांश बाल
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सलए बच्चे के चतुहदष क ववकाि को आवश्यक र्ानने की िर्झ उपजी। इि िर्झ को उपजाने
र्ें बाल िाहहत्यकारों की भूंसर्का भी अहं रही हॆ ऒर इिके ववकाि र्ें भी बाल-िाहहत्यकार
पूरी तरह िर्वपषत नज़र आ रहे हॆ ।ं लेककन आज का लेखक इि परम्परा को तभी आगे ले
जाने र्ें िक्षर् होगा जब वह ववसलयर् फॉकनर द्वारा ऊपर बताए गए र्ोह िे अपने को
बचाए रखेगा। वस्तुत:, िंक्षेप र्ें कहना चाहूंगा कक बड़ों के लेखन की अपेक्षा बच्चों के सलए
सलखना अचधक प्रनतबद्धता, न्स्कजम्र्ेदारी, ननश्छलता, र्ािसू र्यत जॆिी खुबबयों की र्ांग करता
हॆ । इिे लेखक, प्रकाशक अर्वा ककिी िंस्र्ा को बाजारवाद की तरह प्रर्सर्क रूप िे र्ुनाफे
का कार् िर्झ कर नहीं करना चाहहए। बाल िाप्रेर् र्लखान िाम्यवाद पाटटी के न्स्कजला
अध्यक्ष का पुर र्ा । आती जाती युवनतयों को छे ड़ना भद्दे इशारे करना और उनका पीछा
करना उिके प्रर्ुख शगल र्े ।इि बार उिकी नजर नाबासलंग िुर्न पर र्ी वह उिके िुन्गदर
चेहरे और भोलेपन का दीवाना हो चक
ु ा र्ा । और जहाँ भी वह जाती, र्लखान िाये की तरह
उिके पीछे -पीछे अपने प्रेर् का इज़हार करते पहुँच जाता ।िुर्न और उिके घरवालों ने पहले
तो उिे िर्झाने का प्रयाि ककया र्गर र्लखान कहाँ र्ानने वाला र्ा वह तो उिे पाने की
न्स्कजद सलए जो बैठा र्ा । एक हदन जब स्कूल जाते िर्य र्लखान िर्
ु न के पीछे पीछे चलने
लगा तो िर्
ु न ने पलटकर उिे र्प्पड़ जड हदया । र्लखान उिे धर्की दे ते हुए वहां िे चला
गया । दि
ू रे हदन र्लखान ने बीच िड़क पर उिे रोकते हुए कहा "िर् ु न र्ैंने तझ
ु े िच्चा
प्रेर् ककया र्ा ।अब िन
ु ले तू र्ेरी होगी नहीं, ककिी और के लायक र्ैं तझ
ु े छोड़ूगा नहीं
"कहते हुए उिने हार् र्ें नछपाई एसिड की बोतल उिके चेहरे पर फैंक दी ।िर् ु न का चेहरा
बरु ी तरह िे झल
ु ि गया र्ा ।र्हीनों बाद अस्पताल िे िर् ु न लौटी तो अपने िन्ग
ु दर िक
ु ोर्ल
चेहरे के बजाय एक डरावना चेहरा लेकर ।और आते ही िबिे पहले र्लखान के पाि गयी
,और बोली "र्लखान आज र्ैं तुम्हारे प्रेर् को िर्झ चक
ु ी हूँ, आओ हर् एक हो जाएँ ।"
र्लखान घबराते हुए "पागल हो क्या अपना चेहरा तो दे खो, जब र्ैं कह रहा र्ा तो ………."
िुर्न "र्लखान तुर् र्ेरे नहीं हुए तो ककिी और के भी नहीं होंगे आज र्ैं अपने िच्चे प्रेर्
की छाप तुर् पर जरूर छोड़ कर जाउं गी "और िर्
ु न ने भी ठीक र्लखान की तरह एसिड की
बोतल र्ें बंद "प्रेर् "र्लखान पर उडेंल हदया ।
-िाहहत्यकार के िार्ने बाजारवाद के दबाव वाले आज के ववपरीत र्ाहॊल र्ें न केवल बच्चे
के बचपन को बचाए रखने की चन
ु ॊती हॆ बन्स्कल्क अपने भीतर के सशशु को भी बचाए रखने की
बड़ी चन
ु ॊती हॆ । कोई भी अपने भीतर के सशशु को तभी बचा िकता हॆ जब वह ननरं तर बच्चों
के बीच रहकर नए िे नए अनुभव को खल
ु े र्न िे आत्र्िात करे । लेककन यह बच्चों के
बीच रहना ’बड़ा’ बनकर नहीं बन्स्कल्क जॆिा कोररया के बच्चों के िबिे बड़े हहतॆर्ी, उनके
वपतार्ह र्ाने जाने वाले सोपा बांग जुंग ह्िान (1899-1931) ने बच्चे के कतषव्यों के िार्
उिके अचधकारों की बात करते हुए ’कन्गफ्यूसियन’ िोच िे प्रभाववत अपने िर्ाज र्ें ननडरता
के िार् एक आन्गदोलन -"बच्चों का आदर करो" शुरु करते हुए कहा र्ा, ’टोर्गू’ या िार्ी
बनकर। अपने को अपने िे छोटों पर लादने, बात-बात पर उपदे श झाड़ने, अपने को श्रेटठ
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िर्झने ऒर र्नवाने तर्ा अपने अंहकार के आहद बड़ों के सलए यह कार् इतना आिान नहीं
होता। लेककन जो आिान कर लेते हॆ ं वे इिका आनन्गद भी जानते हॆ ं ऒर उपयोचगता भी।यहद
हर् चाहते हॆ ं कक बाल-िाहहत्य बेहतर बच्चा बनाने र्ें र्दद करे ऒर िार् ही वह बच्चों के
द्वारा अपनाया भी जाए तो उिके सलए हर्ें अर्ाषत बाल-िाहहत्यकारों को बाल-र्न िे भी
पररचचत होना पड़ेगा। उनके बीच रहना होगा। उनकी हहस्िेदारी को र्ान दे ना होगा।
अर्ेरीकी कवव ऒर बाल-िाहहत्यकार चाल्िष नघ्न(Charles Ghigna, 1946) के अनुिार,
"जब आप बच्चों के सलए सलखो तो बच्चों के सलए र्त सलखो। अपने भीतर के बच्चे के
द्वारा सलखो।" आज के बाल-िाहहत्य लेखन के िार्ने यह भी एक चन
ु ॊती हॆ ।हर्ें , हहन्गदी के
अत्यंत र्हत्त्वपूणष बाल िाहहत्यकार ऒर चचन्गतक ननरं कार दे व िेवक िे शब्द लेकर कहूं तो
’बच्चों की न्स्कजज्ञािाओं, भावनाओं ऒर कल्पनाओं को अपना बनाकर उनकी दृन्स्कटट िे ही
दनु नया को दे खकर जो िाहहत्य बच्चों को भी िरल भार्ा र्ें सलखा जाए, वही बच्चों का
अपना िाहहत्य होता हॆ ।’
पर एक र्हत्त्वपण
ू ष प्रश्न यह भी हॆ कक क्या व्यापक िंदभष र्ें बच्चे को एक ऎिा पार
र्ान सलया जाए न्स्कजिर्ें बड़ों को अपनी िर्झ बि ठूंिनी होती हॆ । र्ॆ ं िर्झता हूं कक आज
जरूरत बच्चे को ही सशक्षक्षत करने की नहीं हॆ , बड़ों को भी सशक्षक्षत करने की हॆ । इिसलए बाल
िाहहत्यकार के िर्क्ष यह भी एक बड़ी ऒर दोहरी चन
ु ॊती हॆ । वस्तत
ु : िजग लोगों के िार्ने
र्ल
ू चचन्गता यह भी रही हॆ कक कॆिे िहदयों की रूहढ़यों र्ें जकड़े र्ां-बाप ऒर बज
ु ग
ु ों की
र्ानसिकता िे आज के बच्चे को र्क्
ु त करके िर्यानक
ु ू ल बनाया जाए। िार् ही यह भी कक
आज के बच्चे की जो र्ानसिकता बन रही हॆ उिके िार्षक अंश को कॆिे प्रेररत ककया जाए
ऒर कॆिे दककयानूिी िोच के दर्न िे उिे बचाया जाए।गोकी ने अपने एक लेख ’ऑन
र्ीिि’ (1933) र्ें सलखा र्ा कक हर्ारे दे श र्ें सशक्षा का उद्दे श्य बच्चे के र्न्स्कस्तटक को
उिके वपता ऒर बुजुगों की अतीत की िोच िे र्ुक्त कराना हॆ । ध्यान रहे कक अतीत की
िोच िे र्ुक्त कराना ऒर अतीत की जानकारी दे ना दो अलग-अलग बातें हॆ ।ं
आवश्यकतानुिार, अपने इनतहाि ऒर परं परा को बच्चे की जानकारी र्ें लाना जरूरी हॆ ।
आन्स्कस्रया की लूसियाबबन्गडर ने उचचत ही कहा हॆ कक कोई भी राटर र्जबूत नहीं हो िकता,
यहद उिके बच्चे अपने दे श के इनतहाि ऒर ररवाजों की जानकारी नहीं रखते। अपने अनुभवों
को नहीं सलख िकते ऒर ववज्ञान तर्ा गखणत के बुननयादी सिद्धांतों की िर्झ नहीं रखते।
अर्ाषत बच्चे र्ें एक वॆज्ञाननक दृन्स्कटट को ववकसित करते हुए अपने इनतहाि, ररवाजों आहद की
आवश्यक जानकारी दे नी होती हॆ । आज बड़ों र्ें ’हहप्पोिेिी’ भी दे खने को सर्लती हॆ ।ऒर यहद
उिके प्रनत िजग नहीं ककया जाए तो वह िहज ही बच्चों तक भी पहुंचती हॆ । ऒर इि कार्
की चनु ॊती का िार्ना बाल िाहहत्यकार अपने लेखन र्ें बखब
ू ी कर िकता हॆ । हर्ारे यहां
ऒर ककिी भी िर्ाज र्ें कहने को तो कहा जाता हॆ कक कार् कोई भी हो, अच्छा होता हॆ ,
र्हत्त्वपूणष होता हॆ लेककन इि िोच या र्ूल्य को कायाषन्स्कन्गवत करते िर्य अच्छे - अच्छों की
इंदस
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नानी र्र जाती हॆ। हर कोई अपने बच्चे को कुछ खाि कायों ऒर पदों पर दे खना चाहता हॆ
ऒर अपने बच्चे को वॆिी ही िलाह भी दे ता हॆ , अन्गय कार्ों को जाने-अनजाने कर्तर या
र्हत्त्वहीन र्ान लेता हॆ। ऒर जब बच्चे को बड़ा होकर ककिी भी कारण िे तर्ाकचर्त
कर्तर या र्हत्त्वपूणष कायष ही करना पड़ जाता हॆ तो वह हीन भावना िे ग्रसित रहता हॆ।
कंु हठत हो जाता हॆ । रूिी कवव र्याकोवस्की की एक कववता हॆ ’क्या बनूं’। अपने िर्य र्ें
इि कववता के र्ाध्यर् िे कवव ने हर कार् की प्रनतटठा को िर्ानता के आधार पर रे खांककत
करते हुए बच्चों पर प्राय: लादे जाने वाले कुछ लक्ष्यों की प्रववृ त्तपरक एक नई चन
ु ॊती का
बखब
ू ी िार्ना ककया र्ा। एक अंश दे खखए:
बेशक अच्छा बनना डाक्टर,
पर र्जदरू ऒर भी बेहतर,
श्रसर्क खश
ु ी िे र्ॆ ं बन जाऊं,
िीख अगर यह धन्गधा पाऊं।
……….
कार् कारखाने का अच्छा
पर रार् तो उि िे बेहतर,
कार् अगर सिखला दे कोई
बनूं खश
ु ी िे र्ॆ ं कंडक्टर।
कंडक्टर तो र्ॊज उड़ाएं
……….
बबना हटकट के वे तो हदन भर
जहां-तहां पर आएं, जाएं।
……….
कार् िभी अच्छे , वह चन
ु लो,
जो हॆ तम्
ु हें पिन्गद। (अन०
ु :डॉ०। र्दन लाल ’र्ध’ु )
ऎिी रचनाओं िे ननश्चय ही बालकों को जहां राहत सर्लती हॆ वहीं असभभावकों को एक नई
लेककन िही-िच्ची िर्झ भी।
आजकल (हालांकक र्ोड़े पहले िे) बाल िाहहत्य लेखन के िंदभष र्ें एक चचाष बराबर
पढ़ने-िुनने र्ें सर्ल जाती हॆ न्स्कजिे चाहें तो हर् परम्परा बनार् आधनु नकता की बहि कह
िकते हॆ ं न्स्कजिने एक ऒर तरह की चन
ु ॊती को जन्गर् हदया हॆ ।। एक िोच के अनुिार राजा-
रानी, पररयां, राक्षि, चूहे, बबल्ली, हार्ी, शेर, ऒर यहां तकक की फूल-फल, पेड़-पॊधे आहद
आज के लेखन के सलए िवषर्ा त्याज्य हॆ ं क्योंकक इनकी कल्पना बालक के सलए ववर् बन
जाती हॆ । उन्गहें अंधववश्वािी ऒर दककयानूिी बनाती हॆ । ववरोध पारं पररक, पॊराखणक र्र्ा
काल्पननक कर्ाओं का भी हुआ। ऒर यह तब हुआ जब कक िार्ने प्रसिद्ध डेननश लेखक
हें ि किन्स्कश्चयन एंडरिन के ऎिा लेखन र्ॊजद
ू र्ा न्स्कजिर्ें प्राचीन, पारं पररक लोककर्ाओं को
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अपने िर्य के िर्ाज की प्रािंचगकता दी गई र्ी जॆिा कक बड़ों के िाहहत्य र्ें इनतहाि या
सर्र् आधाररत कृनतयों र्ें सर्लता हॆ । र्ॆ ं भी र्ानता हूं कक राजा-रानी, पररयों भूत-प्रेतों को
लेकर सलखे जाने वाले ऎिे िाहहत्य को बाहर ननकाल फेंकना चाहहए जो अंधववश्वाि,
दककयानूिी, कायरता, ननराशा आहद अवगुणों का जनक हो। यह ित्य हॆ ऒर इिे र्ॆ ं गलत
भी नहीं र्ानता कक आज भारत र्ें बच्चों का एक िॊभा्यशाली हहस्िा उि अर्ष र्ें र्ािूर्
नहीं रहा हॆ न्स्कजि अर्ष र्ें उिे िर्झा जाता रहा हॆ । हालांकक यह कहना कक वह ककिी भी
अर्ष र्ें र्ािूर् नहीं रहा यह भी ज्यादती होगी। बेशक आज उिके िार्ने िंिार भर की
िूचनाओं का अच्छा खािा भण्डार हॆ ऒर उिका र्ानसिक ववकाि पहले के बालक िे कहीं
ज्यादा हॆ । वह बड़ों के बीच उन बातों तक र्ें हहस्िा लेने का अत्र्ववश्वाि रखता हॆ जो कभी
प्रनतबंचधत र्ानी जाती रही हॆ ।ं आज का बच्चा प्रश्न भी करता हॆ ऒर उिका ववश्विनीय
िर्ाधान भी चाहता हॆ । आज के िजग बच्चे की र्ानसिकता पुरानी र्ानसिकता नहीं हॆ जो
प्रश्न के उत्तर र्ें ’डांट’ या ’टाल र्टोल’ स्वीकार कर ले। वह जानता हॆ कक बच्चा र्ां के पेट
िे आता हॆ चचडड़या के घोंिले िे नहीं। दि
ू रे , हर्ें बच्चे को पलायनवादी नहीं बन्स्कल्क न्स्कस्र्नतयों
िे दो-दो हार् करने की क्षर्ता िे भरपरू होने की िर्झ दे नी होगी। अहं कारी उपदे श या अंध
आज्ञापालन का जर्ाना अब लद चक
ु ा हॆ । बात का ग्राह्य होना आवश्यक हॆ । ऒर बात को
ग्राह्य बनाना यह िाहहत्यकार की तॆयारी ऒर क्षर्ता पर ननभषर करता हॆ । तो भी ववज्ञान,
नई टे क्नोलोजी, वॆन्स्कश्वक बोध ऒर आधनु नकता आहद के नार् पर शेर् का अंधाधध
ंु ,
अिंतसु लत ऒर नािर्झ ववरोध भी कोई उचचत िोच नहीं हॆ ।लंदन र्ें जन्गर्ें लेखक जी।के।
चेटिसन (G.K.Chesterton -1874-1936) ने जो कहा वह आज भी िोचने को र्जबरू कर
िकता हॆ -"परी कर्ाएं (Fairy Tales) िच िे ज्यादा होती हॆ :ं इिसलए नहीं कक वे बताती हॆ ं
ड्रेगन होते हॆ ं बन्स्कल्क इिसलए कक वे हर्ें बताती हॆ ं कक उन्गहें हराया जा िकता हॆ ।"ओडड़या भार्ा
के िुववख्यात िाहहत्यकार र्नोज दाि का र्ानना हॆ कक बाल ऒर बड़ों का यर्ार्ष एक नहीं
होता।उनके शब्दों र्ें , "His realism is different rom the adult's. He does not look
at the giant and the fairy from the angle of genetic possibility. They are a
spontaneous exercise for his imaginativeness--a quality that alone can
enable him to look at life as bigger and greater than what it is at the grass
plane." डॉ०। हररकृटण दे विरे की एक पुस्तक हॆ ’ऋवर्-िोध की कर्ाएं’ न्स्कजिर्ें िुर भी हॆ ,ं
अिुर भी हॆ ं ऒर राजा भी हॆ ऒर परु ाण भी हॆ । ऎिे ही उन्गहीं की एक ऒर पुस्तक हॆ -’इनकी
दश्ु र्नी क्यों" न्स्कजिर्ें कुत्ता भी हॆ , बबल्ली भी हॆ , चह
ू ा भी हॆ , िांप भी हॆ , हार्ी भी हॆ ऒर
चींटी भी हॆ । ऒर ये र्नुटय की भार्ा भी बोलते हॆ ।ं इिी प्रकार अत्यंत प्रनतन्स्कटठत बाल-
िाहहत्यकार ऒर चचन्गतक जयप्रकाश भारती की ये पंन्स्कक्तयां भी दे खखए जो आज के बच्चे के
सलए हॆ :ं एक र्ा राजा, एक र्ी रानी
दोनों करते र्े र्नर्ानी
राजा का तो पेट बड़ा र्ा
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केंहद्रत र्ानते हॆ ।ं अर्ाषत न्स्कजनका र्ानना हॆ कक बाल-िाहहत्य र्ें रचनाकार ववर्यों पर सलखते
हॆ -ं र्िलन पेड़ पर, चचडड़या पर, राजा-रानी पर, दरू बीन,टी।वी पर, इत्याहद। यहद रचना
ववर्य ननधाषररत करके सलखी जाती हॆ तब तो उनके र्त िे िहर्त हुआ जा िकता हॆ ।
लेककन िजृ नात्र्क िाहहत्य, चाहे वह बड़ों के सलए हो या बालकों के सलए, ववर्य पर नहीं
सलखा जाता। वस्तुत: वह ववर्य के अनुभव पर सलखा जाता हॆ । अर्ाषत रचना रचनाकार का
कलात्र्क अनुभव होती हॆ । बात को ऒर स्पटट करने के सलए कहूं कक पेड़ या िाइककल को
ववर्य र्ानकर ननबन्गध, लेख आहद सलखा जा िकता हॆ , कववता, कहानी आहद रचनात्र्क
िाहहत्य नहीं। पेड़ पर सलखी कववता पेड़ पर ववर्यगत जानकारी िे एकदर् अलग हो िकती
हॆ , बन्स्कल्क होती हॆ । वह पेड़ का कलात्र्क अनुभव होता हॆ ।आज बाल-िाहहत्य िज
ृ न र्ें
वॆज्ञाननक दृन्स्कटट की आवश्यकता हॆ ऒर यह लेखक के सलए एक चन
ु ॊती भी हॆ । वॆज्ञाननक
दृन्स्कटट का अर्ष यह नहीं हॆ कक बच्चे को कल्पना की दनु नया िे एकदर् काट हदया जाए।
कल्पना का अभाव बच्चे को भववटय के बारे र्ें िोचने की शन्स्कक्त िे रहहत कर िकता हॆ ।
वॆज्ञाननक दृन्स्कटट ’काल्पननक’ को भी ववश्विनीयता का आधार प्रदान करने का गुर सिखाती हॆ
जो आज के बच्चे की र्ानसिकता के अनक
ू ू ल होने या उिकी तकष-िंतन्स्कु टट की पहली शतष हॆ ।
ववज्ञान ऒर वॆज्ञाननक दृन्स्कटट र्ें अंतर होता हॆ । ववज्ञान र्नटु य के र्ल
ू भावों, िंवेदनाओं आहद
का ववकल्प नहीं हॆ जो बालक ऒर र्नटु यता के ववकाि के सलए जरूरी हॆ ।ं ।ओडड़या के
प्रसिद्ध लेखक र्नोज दाि ने अपने एक लेख 'Talking to Children: The Home And
The World' र्ें सलखा हॆ -’no scientific or technological discovery can alter the
basic human emotions, sensations and feelings. Social, economic and
policial values amy change, but the evolutionary values ingrained in the
consciousness cannot change--values that account for our growth." आज
वॆज्ञाननक दृन्स्कटट को िजग रह कर अपनाने की चन
ु ॊती अवश्य हॆ । र्ुझे तो यग
ु ोस्लाव
कर्ाकार, उपन्गयािकार श्रीर्ती ग्रोजदाना ओलूववच की अपने िाक्षात्कार र्ें कही यह बात भी
ववचारणीय लगती हॆ -"र्ेरा ख्याल हॆ कक लोगों को िपनों ऒर फन्गतासियों की उतनी ही
जरूरत हॆ , न्स्कजतनी कक दाल-रोटी की, यही वजह हॆ कक लोग आज भी परीकर्ाएं पढ़ते
हॆ ।ं "(िान्गध्य टाइम्ि, नयी हदल्ली, 16 फरवरी, 1982)| अब र्ॆ ं अपने िंदभष र्ें एक ननजी
चनु ॊती को जरूर िांझा करना चाहता हूं। हर् दे ख रहे हॆ ं कक इधर यॊन शोर्ण के हहंिा के
स्तर तक पर होने वाली घटनाओं की भरर्ार हर्ें ककतना ववचसलत कर रही हॆ ऒर इिर्ें
हर्ारे बालक भी िन्स्कम्र्सलत हॆ -ं सशकार के रूप र्ें भी ऒर कभी-कभी सशकारी के रूप र्ें भी।
र्ॆ ं लाख कोसशश करके भी इि हदशा र्ें अब तक बाल-िाहहत्य िज
ृ न नहीं कर पाया हूं,
बावजूद आसर्र खान के टी।वी। पर आए कायषिर् के। लेककन इि नई चुनॊती िे जूझ जरूर
रहा हूं।
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र्ॆ ं उन कुछ चन
ु ॊनतयों की ओर भी, बहुत ही िंक्षेप ऒर िंकेत र्ें ध्यान हदलाना चाहूंगा
जो आज के ककतने ही बाल िाहहत्यकार के सलए िज ृ नरत रहने र्ें बाधा पहुचा िकती हॆ ।ं
र्ॆन
ं े प्रारम्भ र्ें बालक के प्रनत िर्ाज की उपेक्षा के प्रनत ध्यान हदलाया र्ा। िच तो यह हॆ
कक अभी बालक िे जुड़ी अनेक बातों ऒर चीज़ों न्स्कजनर्ें इिका िाहहत्य भी र्ॊजूद हॆ के प्रनत
िर्ुचचत ध्यान ऒर र्हत्त्व दे ने की आवश्यकता बनी हुई हॆ । न बाल िाहहत्यकार को ऒर न
ही उिके िाहहत्य को वह र्हत्त्व सर्ल पा रहा हॆ न्स्कजिका वह अचधकारी हॆ । उिको सर्लने
वाले पुरस्कारों की धनरासश तक र्ें भेदभाव ककया जाता हॆ । उिके िाहहत्य के िही र्ूल्यांकन
के सलए न पयाषप्त पबरकाएं हॆ ं ऒर न ही िर्ाचार-पर आहद। िाहहत्य के इनतहाि र्ें उिके
उल्लेख के सलए पयाषप्त जगह नहीं हॆ ।बाल िाहहत्यकार को जो पुरस्कार-िम्र्ान हदए जाते हॆ ं
वे उिे प्रोत्िाहहत करने की र्ुद्रा र्ें हदए जाते हॆ ।ं िाहहत्य अकादर्ी ने बाल िाहहत्य ऒर
बाल िाहहत्यकारों को िम्र्ाननत करने की हदशा र्ें बहुत ही िार्षक कदर् बड़ाएं हॆ ं लेककन
र्ेरी िर्झ के बाहर हॆ कक क्यों नहीं ज्ञानपीठ ऒर नोबल परु स्कार दे ने वाली िंस्र्ाएं ’बाल
िाहहत्य’ को पुरस्कृत करने िे गुरेज ककए हुए हॆ ।इिी प्रकार बाल िाहहत्य की अचधकाचधक
पहुंच उिके वास्तववक पाठक तक िंभव करने के सलए बहुत कुछ करना बाकी हॆ । हहन्गदी के
िंदभष र्ें बाल िाहहत के अंतगषत कववता ऒर कहानी के अनतररक्त अन्गय ववधाओं र्ें भी
िज
ृ न की बहुत िंभावनाएं बनी हुई हॆ । भारत के िंदभष र्ें आज बहुत जरूरी हॆ कक तर्ार्
भारतीय भार्ाओं र्ें उपलब्ध बाल िाहहत्य अनव
ु ाद के र्ाध्यर् िे एक-दि
ू रे को उपलब्ध हो।
उत्कृटट बाल िाहहत्य के चयन प्रकासशत होते रहने चाहहए। भारतीय बाल िाहहत्यकारों को
िर्य-िर्य पर एक र्ंच पर लाने की आवश्यकता हॆ ताकक बाल-िाहहत्य िज
ृ न को िही
हदशा सर्ल िके। इि हदशा र्ें िाहहत्य अकादर्ी का यह कदर् न्स्कजिके कारण हर् यहां
एकबरत हॆ ं अत्यंत स्वागत के यो्य हॆ ।
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अंत र्ें , िंक्षेप र्ें कहना चाहूंगा कक बड़ों के लेखन की अपेक्षा बच्चों के सलए सलखना
अचधक प्रनतबद्धता, न्स्कजम्र्ेदारी, ननश्छलता, र्ािसू र्यत जॆिी खबु बयों की र्ांग करता हॆ । इिे
लेखक, प्रकाशक अर्वा ककिी िंस्र्ा को बाजारवाद की तरह प्रार्सर्क रूप िे र्ुनाफे का
कार् िर्झ कर नहीं करना चाहहए। बाल िाहहत्यकार के िार्ने बाजारवाद के दबाव वाले
आज के ववपरीत र्ाहॊल र्ें न केवल बच्चे के बचपन को बचाए रखने की चन
ु ॊती हॆ बन्स्कल्क
अपने भीतर के सशशु को भी बचाए रखने की बड़ी चन
ु ॊती हॆ । कोई भी अपने भीतर के सशशु
को तभी बचा िकता हॆ जब वह ननरं तर बच्चों के बीच रहकर नए िे नए अनुभव को खल
ु े
र्न िे आत्र्िात करे । अकेले होते बच्चे को उिके अकेलेपन िे बचाना होगा। लेककन यह
बच्चों के बीच रहना ’बड़ा’ बनकर नहीं, बन्स्कल्क जॆिा कोररया के बच्चों के िबिे बड़े हहतॆर्ी,
उनके वपतार्ह र्ाने जाने वाले िोपा बांग जुंग ह्वान (1899-1931) ने बच्चे के कतषव्यों के
िार् उिके अचधकारों की बात करते हुए ’कन्गफ्यूसियन’ िोच िे प्रभाववत अपने िर्ाज र्ें
ननडरता के िार् एक आन्गदोलन -"बच्चों का आदर करो" शरुु करते हुए कहा र्ा, ’टोर्ग’ू या
िार्ी बनकर। अपने को अपने िे छोटों पर लादने, बात-बात पर उपदे श झाड़ने, अपने को
श्रेटठ िर्झने ऒर र्नवाने तर्ा अपने अंहकार के आहद बड़ों के सलए यह कार् इतना
आिान नहीं होता। लेककन जो आिान कर लेते हॆ ं वे इिका आनन्गद भी जानते हॆ ं ऒर
उपयोचगता भी।यहद हर् चाहते हॆ ं कक बाल-िाहहत्य बेहतर बच्चा बनाने र्ें र्दद करे ऒर
िार् ही वह बच्चों के द्वारा अपनाया भी जाए तो उिके सलए हर्ें अर्ाषत बाल-िाहहत्यकारों
को बाल-र्न िे भी पररचचत होना पड़ेगा। उनके बीच रहना होगा। उनकी हहस्िेदारी को र्ान
दे ना होगा। अर्ेरीकी कवव ऒर बाल-िाहहत्यकार चाल्िष नघ्न(Charles Ghigna, 1946) के
अनुिार, "जब आप बच्चों के सलए सलखो तो बच्चों के सलए र्त सलखो। अपने भीतर के बच्चे
के द्वारा सलखो।" आज के बाल-िाहहत्य लेखन के िार्ने यह भी एक चन
ु ॊती हॆ ।हर्ें , हहन्गदी
के अत्यंत र्हत्त्वपूणष बाल िाहहत्यकार ऒर चचन्गतक ननरं कार दे व िेवक िे शब्द लेकर कहूं
तो ’बच्चों की न्स्कजज्ञािाओं, भावनाओं ऒर कल्पनाओं को अपना बनाकर उनकी दृन्स्कटट िे ही
दनु नया को दे खकर जो िाहहत्य बच्चों को भी िरल भार्ा र्ें सलखा जाए, वही बच्चों का
अपना िाहहत्य होता हॆ ।’ यहां र्ुझे र्हाकवव न्स्कजब्रान की कुछ कववता पंन्स्कक्तयां याद हो आयी
हॆ ं न्स्कजनिे र्ॆ ं इि प्रपर का अंत करना चाहूंगा। पंन्स्कक्तयां हॆ :ं
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लगता है जैिे चीन िे र्ेरे िंबंध सिफष िात वर्ों का नहीं है ,बन्स्कल्क जन्गर्ों िे है । बचपन िे
ही ककताबों र्ें र्ैं चीन के बारे र्ें ककताबों र्ें पढ़ता आया हूँ । चीन की र्हान दीवार हर्ारे हर्उम्र
िर्स्त बच्चों को अजूबा िा लगता र्ा । र्ेरे घर पर अक्िर र्ाक्िषवाद,लेनननवाद और चेयरर्ेन
र्ाओ ज्त्िे दोंग की चचाष हुआ करतो र्ी । इन िबिे यहाँ के लोगों िे सर्लने और उनके बारे
र्ें जानने की र्ेरे उत्कंठा हर्ेशा प्रबल होती गई । स्कूल की सशक्षा के बाद भी र्ैं चीन के
बारे जानकारी जुटाता रहा । यह सिलसिला कॉलेज की पढ़ाई के िार् और भी आगे बढ़ा ।
कॉलेज की पढ़ाई के बाद र्ैं परकाररता की पढ़ाई र्ें दाखखल हुआ ।
बात िाल 2008 की है, जब र्ैं हदल्ली र्ें एक राटरीय अखबार के नेशनल ब्यूरो र्ें वररटठ िंवाददाता
र्ा। र्ानव िंिाधन ववकाि र्ंरालय, ववदे श र्ंरालय, रक्षा र्ंरालय और चन
ु ाव आयोग आहद की खबरें
करना रोजाना की न्स्कज़म्र्ेदारी र्ी। भारत िरकार की ओर िे र्ान्गयता प्राप्त परकार, न्स्कजन्गहें पीआईबी
काडष हासिल होता है , उनर्ें िे भी एक र्ा। इिी बीच िीआरआई के बारे र्ें जाना और कुछ िर्य बाद
र्ुझे चीन आने का ननर्ंरण सर्ल गया।
चीन के बारे र्ें ककताबों र्ें बहुत कुछ पढ़ने के बाद सितंबर 2009 र्ें र्ैंने चीन की िरज़र्ी पर िदर्
रखा। इिी के िार् चायना रे डडयो िे जड़ ु ाव हो गया और अब तक जारी है । चायना रे डडयो के हहंदी ववभाग
र्ें बतौर ववशेर्ज्ञ कार् करते हुए र्ैंने जाना कक चीनी लोग हहंदी और भारत के बारे र्ें ककतना लगाव
रखते हैं।
चायना रे डडयो र्ें कार् करने का अनभ
ु व भी हदलचस्प है । िबिे पहले हहंदी ववभाग र्ें पहुंचने के बाद
यह जानकर आश्चयष हुआ कक र्ेरे िभी चीनी िहयोगी हहंदी बोलते हैं। वैिे तो िभी की हहंदी भार्ा बहुत
अच्छी है । पर खािकर र्ैं अपने बज
ु ग
ु ष िहयोगी छन श्वे वपन जी का न्स्कजि करना चाहूंगा, उन्गहें हहंदी की
चलता-कफरता शब्दकोश कहा जाय तो कोई दो राय नहीं होगी। दशकों िे हहंदी ववभाग र्ें कार् करते हुए
उनका हहंदी ज्ञान, वाकई र्ें प्रेरणा दे ता है । 69 िाल की उम्र र्ें उनर्ें नए-नए शब्द िीखने की ललक
है , शायद यही वजह रही कक र्ुझे भी चीनी भार्ा िीखने का जोश चढ़ा। क्योंकक अक्िर र्ैं उनिे कोई
चीनी शब्द पूछता और याद कर लेता, अगली बार र्ैं उन्गहें वो शब्द बता दे ता, तो वे कहा करते कक
भारतीय लोग होसशयार होते हैं या कभी-कभी बोलते कक चीनी भार्ा िीखना आिान है । लेककन िभी
लोग जानते हैं कक चीनी भार्ा बबना ननयसर्त स्कूली सशक्षा के ककतनी र्ुन्स्कश्कल होती है । उन्गहें दे खकर
लगा कक हर्ें जीवन भर कुछ न कुछ िीखते रहना चाहहए। चीन र्ें लोग कहते
हैं,活到老, 学到老。(हुव ताव लाव, श्वे ताव लाव) यानी सलखने-पढ़ने की कोई उम्र नहीं होती। अब
वह ररटायर हो चक
ु े हैं, कफर भी िर्य-िर्य पर हहंदी िे जुड़ा हुआ कार् करते रहते हैं।
अब िीआरआई हहंदी के बारे र्ें उल्लेख करना चाहूंगा। हहंदी िेवा रोजाना एक घंटे का रे डडयो कायषिर्
तैयार करती है , यह कायषिर् हदन र्ें पांच बार पुन: प्रिाररत होता है। न्स्कजिर्ें चीन व दनु नया की िबरों
और ववश्लेर्ण के अलावा, र्नोरं जन, गीत-िंगीत व जानकारी आहद भी दी जाती है । िार् ही चीन और
भारत िे जुड़े र्ुद्दों पर ववशेर् ध्यान हदया जाता है । चीन दौरे पर आने वाले भारतीय नेताओं, उच्च
अचधकाररयों और शन्स्कख्ियतों िे िाक्षात्कार ककए जाते हैं। जबकक चीन र्ें रहने वाले भारतीयों के जीवन
और अनुभवों को भी रे डडयो के र्ाध्यर् िे पेश ककया जाता है । रे डडयो पर कायषिर् प्रिाररत करने के
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िार् ही िीआरआई वेबिाइट भी िंचासलत करता है। न्स्कजिर्ें खबरों के अलावा नतब्बत िे जुड़े हुए
प्रोग्रार् व अन्गय जानकाररयां व रे डडयो प्रोग्रार् प्रर्ुख होते हैं।
हर्ारे रे डडयो कायषिर्ों के श्रोता भारत र्ें ही नहीं बन्स्कल्क ववश्व के कई दे शों र्ें । इनर्ें कफ़जी,
र्ॉररशि, नेपाल, कुवैतआहद दे श शासर्ल हैं। टीवी और इंटरनेट के इि दौर र्ें भी रे डडयो प्रेर्ी श्रोताओं
की कर्ी नहीं है । रे डडयो प्रोग्रार् िुनने और उि पर हटप्पणी करने वाले कई श्रोता ऐिे हैं जो कई दशकों
िे जुड़े हुए हैं। उनका िीआरआई हहंदी और रे डडयो िे प्रेर् पहले की तरह ही बरकरार है । कार् की
आपाधापी के बावजूद वे कुछ िर्य रे डडयो िुनने और पर, ई-र्ेल भेजने के सलए ननकाल ही लेते हैं।
िीआरआई हहंदी के श्रोता प्रेसर्यों ने क्लब भी स्र्ावपत ककए हैं, न्स्कजनके जररए हहंदी और रे डडयो का
प्रचार-प्रिार ककया जाता है।
वतषर्ान र्ें दनु नया के कई रे डडयो स्टे शन या तो बंद हो चक
ु े हैं या कफर उनर्ें छं टनी हो चक
ु ी है पर
िीआरआई अपना कार् अनवरत ककए जा रहा है ।
ध्यान रहे कक चीन के कई ववश्वववद्यालयों र्ें हहंदी पढ़ाई जाती है और वहां िे ग्रेजए
ु ट होने के बाद
चीनी छार-छाराएं हहंदी और चीन-भारत िे जुड़े हुए कार् करते हैं। िार् ही चायना रे डडयो के हहंदी
ववभाग र्ें भी उन्गहें नौकरी सर्ल जाती है ।हहंदी िीखने और हहंदी िे िंबंचधत कार् करने वाले चीनी लोगों
का हहंदी नार् भी होता है । ऑकफि र्ें और भारतीय लोगों के बीच वे हहंदी नार्ों िे ही जाने जाते हैं।
हहंदी ववभाग की ननदे शक यांग ई फंग(हहंदी नार्- बबंदी) ने चीन के पेककंग ववश्वववद्यालय र्ें हहंदी की
पढ़ाई की।उिके पश्चात हदल्ली ववश्वववद्यालय िे भी हहंदी का अध्ययन ककया। वह वपछले 23 वर्ों िे
हहंदी ववभाग र्ें कार् कर रही हैं। इि दौरान कई बार भारत-चीन आदान-प्रदान के सलए कार् कर चक
ु ी
हैं।
बकौल यांग, िीआरआई हहंदी द्वारा पस्
ु तकों का प्रकाशन भी ककया जाता है । न्स्कजिर्ें पन्स्कश्चर् की तीर्ष
यारा, चीनी-हहंदी शब्दकोश आहद का प्रकाशन और अनव
ु ाद कायष प्रर्ुख है ।
इिके िार् ही कफ़ल्र्ों व टीवी धारावाहहकों का अनुवाद, टीवी प्रोग्रार् आहद बनाने र्ें भी िीआरआई
िकिय है । भारतीय लोगों को चीनी सिखाने र्ें भी िीआरआई हहंदी की अहर् भूसर्का रही है । है लो
चायना डीवीडी के र्ाध्यर् िे भी चीनी सिखाने का कार् ककया जा रहा है । जबकक िीआरआई हहंदी की
वेबिाइट के जररए भी भारतीय लोग चीनी भार्ा िीखते हैं।
र्ैं अपनी दि
ू री वररटठ िहयोगी और हहंदी ववभाग की उप ननदे शक र्ांग युआन क्वेई(हहंदी नार्-
िपना) का भी न्स्कजि करना चाहूंगा। जो पेककंग ववश्वववद्यालय िे हहंदी र्ें स्नातक हैं। उिके बाद उन्गहोंने
हदल्ली ववश्वववद्यालय िे भी हहंदी की पढ़ाई की। गत दो दशक िे हहंदी ववभाग र्ें कार् कर रही हैं। उन्गहें
हहंदी िे जुड़ा हुआ अनुवाद कायष, लेखन करने के अलावा भारत िे बेहद लगाव है । लंबे िर्य िे वह
चीन-भारत िे जुड़े िर्ाचारों के अलावा नतब्बत के प्रर्ुख र्ुद्दों पर सलखती रही हैं।
हहंदी ववभाग के उक्त कर्षचाररयों के अलावा दि
ू रे चीनी भी हैं, जो हहंदी िीखने के बाद इि क्षेर र्ें अपना
कररयर बना रहे हैं।
इंदस
ु ंचत
े ना जुिाई-ससतंबि 2016
184
िे गगस्तानी िादक
तनशा
जिवन्गद र्ड़ा के दरवाजे पर उिको बैठे बजा रहे हुए दे खा | बाद र्ें ननणषय ककया कक अगले हदन
यहाँ कफर िे उिके बजाने को िुनने आऊँ| र्ैं र्ड़ा के घर र्ें प्रवेश करने के बजाए िीधे उिकी ओर
गयी और बैग धरती पे रखकर बैठी हुई, उिकी कहानी िुनने लगी|
जोधपुर िे ४० ककलोर्ीटर पर उिका घर है | हदन-हदन और िाल-िाल ऐिा कभी तबदीली न होगा
कक प्रनतहदन िुबह बि िे यहाँ आता है और ९ बजे िे दोपहर के बाद ५ बजे तक राहहयों को बजाता रहता
है | इतना र्ेहनती होने पर भी पूरे हदन के सलए आर् तौर िे करीब १००० रुपये ही कर्ा पाता है , कभी
कभी १५०० तक की कर्ाई हो जाती गई | उिकेआठ बच्चे हैं, न्स्कजनकी अपनी-अपनी नौकरी लग
गयी है | हार् र्ें जो वाद्य बजाया जा रहा र्ा, अपने दादा जी िे प्राप्त हुआ| बगल र्ें और दो रखे हुए
हैं, न्स्कजनको उिने स्वयं बना सलया| बात करते िर्य र्झ
ु े जानकारी सर्ली कक एक रावण हत्र्ा को
बनाने र्ें लगभग दो हदन लगते हैं|
जब यारी यहाँ िे गज़
ु रने लगे, उिने अपना कार् शरू
ु ककया, लेककन अचधकांश लोगों ने केवल
रुककर कुछ सर्नट दे खा या फोटो खींचा, इिके अनतररक्त कोई भी नहीं ककया| भीड़ छं ट जाने के बाद
र्झ
ु े िन
ु ाने लगा|
िर्य व्यतीत हो रहा र्ा| दोस्त भी बाहर आ गए, परन्गतु र्ेरी उठने की इच्छा कफर भी न उत्पन्गन
हुई |
उिने हर्िे कहा:”ये रावण हत्र्ा एक की कीर्त १००० रुपये का है |” हर्ें इनकार करते दे खकर
बोला:”लो, पांच िौ र्ें ले लो |”
िार्ी को िौदा करते दे खकर र्ुझे न जाने अचानक र्ोडा िोध आया और र्ैंने कहा, “यहद
कार्ना नहीं तो बोलो, र्जाक र्त करो|” र्ेरे ख्याल िे यह ननदष यी बात है कक दि
ू रों को उम्र्ीद दे कर
कफर छीन लें| याद आ गयी कक वो बार-बार र्ुझे रावण हत्र्ा बजाना सिखाता र्ा और पररवार की छोटी
छोटी चीजों का वणषन करता र्ा……नेरगुहा र्ें उिी क्षण आंिू िे भर उठे |
दे खने पर अनुर्ान हुआ कक उिने अच्छी तरह सशक्षा नहीं पायी होगी | वपछले हदन र्ैंने उििे
वाद्य का नार् सलखने की प्रार्षना की, र्गर उिने पेन नहीं सलया| िोचा र्ा शायद वो अपने कार् र्ें
व्यस्त र्ा, इिसलए र्ैंने कागज़ पे शब्द सलखकर उििे पूछा| “हाँ,हाँ,ऐिा है |” वास्तव र्ें जब तक उिने
र्ड़ा का प्रवेश पर हदखाया तब तक र्ुझे पता चला कक पहले िे जो र्ैंने सलखा वो गलत र्ा|हो िकता है
कक उिके दादा िे उि तक, जो कौशल सिखाया गया, सिफष कैिे रावण हत्र्ा बजाते हैं ताकक रोज़ी रोटी
कर्ाएं , इिके आलावा और कुछ भी नहीं| िुना है कक जोधपुर र्ें उिके िर्ान बहुत रे चगस्तानी वादक
होते हैं | वे अलग अलग वाद्यों िे राजस्र्ान के िबिे र्धर्
ु क्खी अिर बजाते हैं, और राजस्र्ान के
िंस्कृत उत्तराचधकार र्ें वे अनत र्हत्त्वपूणष भाग ननभाते हैं, पर न्स्कजंदगी के सलए कहठनाइयों का िार्ना
करना उनका दि
ू रा नार् है ,यहाँ तक कक खान-पान र्ुन्स्कश्कल िे लेने की िंभावना हो|
इंदस
ु ंचत
े ना जुिाई-ससतंबि 2016
185
जाना पड़ा | वो अपने हार् ननकालकर सर्लाना चाहता र्ा, र्ुंह र्ें “धन्गयवाद ”बोलने की आवनृ त|र्ैं
जोर लगाकर हार् दे ने की कोसशश करती र्ी| हार् सर्लाना न्स्कजतना भारी तर्ा िंस्कारपूणष र्ा र्ुझे
उतना कभी न लगा गया िर्य र्ें | र्ैंने गंभीर भाव िे कहा, “धन्गयवाद, आप का बजाना इतना उत्तर् है
कक र्ुझे जैिे िंस्कार हदया गया|”
उदयपुर र्ें भी वाद्य बजाने का श्रवण ककया| र्न र्ें जो बजाने वालों िे बताना चाहती र्ी आखखल
र्ें र्ैंने िब कहा |
ये चापलूिी नहीं , िम्र्ान है |
िम्र्ान रे चगस्तानी वादकों को, िम्र्ान भी उन लोगों को जो अपने स्र्ान पे उत्िाह एवं पररश्रर्
िे िंघर्ष कर रहे हैं|
धन्गयवाद!भारतीय उपर्हाद्वीप के बाहर रहने वाले हर्जैि,े जीवनकाल र्ें बढ़ते बढ़ते भी
िौभा्य िे इतनी आवाज़ िुनिकते हैं |
अर्र िंगीत,असर्ट आत्र्ा|
रूिी कवव पून्स्कश्कन की एक कववता की स्र्रण है । एक िार् शेयर:
जीवन र्ें कोई धोखा खा या उदाि हो,
चचंता कर र्त, छोड़ दे र्त,
एक उर्र बीत चलेगी तझ
ु द
े ख
ु हुए,
ठीक हो जाएगा िब|
हर् इि ववशाल िन्स्कृ टट के नगण्य धल
ू हैं, लेककन जीववत होना ककि प्रकार िश
ु ी बात!
हर्ारा अच्छी तरह िे ध्यान दे ने यो्य है आजीवन हर वक्त|
इंदस
ु ंचत
े ना जुिाई-ससतंबि 2016
186
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इंदस
ु ंचत
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187
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इंदस
ु ंचत
े ना जुिाई-ससतंबि 2016
188
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ु ंचत
े ना जुिाई-ससतंबि 2016
189
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fojks/kh le> ysuk dgk¡ dk U;k; gksxk\ fgUnh lkfgR; dh Js"Bre~ jpuk ^Jhjkepfjr ekul* fu%lansg
L=h iz/kku dkO; gSA xksLokeh th oanuk esa Hkh ijaijk ls gVdj x.ks'k ls igys ok.kh] 'kadj ls igys
Hkokuh rFkk jke ls igys lhrk dh Lrqfr djrs gSaA rqylh ukjh vfLerk dks ysdj gh Jhjkepfjr
ekul dk rkuk&ckuk cqurs gSaA vfgY;k izlax] lhrk Lo;aoj] lhrk ouxeu lwi.kZu[kk izlax] lhrk
gj.k] rkjk&eanksnjh vkfn dFkk;sa ukjh foe'kZ vkSj l'kDrhdj.k ds fofo/k vk;ke gSA rqylh us fL=;ksa
ds fy, mikluk ds u, }kj [kksysA lhrk dks jke ds lkFk ou Hkstdj L=h Lokra=] Lokoyacu vkSj
L=h&iq:"k leHkko dk LrqR; mnkgj.k fn;kA iq:"kksa dks ,d iRuh ozr ladYi djk;kA
d`".kdkO; /kkjk rks ukjh vfLerk dk vn~Hkqr lalkj gSA ;gk¡ ukjh dh eqLdqjkgV de djkg
vf/kd gSA ;gk¡ ukjh dh mUeqDrk gS rks l'kDr fonzksg HkhA fo|kifr dh yf[kek nsoh ds ;kSuksUeqDr
izlax] ehjk dk vn~Hkqr izse Lo&vfLrÙo vkSj lwj dh xksfi;ksa vkSj jk/kk dh izfrfØ;k;sa ukjh
l'kDrhdj.k ;k foe'kks± ls QyhHkwr ugha gqbZ gSaA eFkqjk vf/kifr d`".k tc m/kks ds }kjk xksfi;ksa ds
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gedks tksx&Hkksx] d`".kk dks dkdS fg;s lekr gks** ¼lwjnkj½
blh izdkj cky&uo ;kSoukvksa ij eqX/k d`".k dks foosd dk iz;ksx djus ds fy, lwj dh
xksfidk;s gh yydkj ldrh gSa&
ßgfj mj iyd /kkjks /khjA fgr frgkjs djr euflt ldy 'kksHkk rhjAÞ ¼lwjnkj½
bruk gh ugha ifjokj lekt ds lkjs ca/kuksa dks rksMd + j ij&iq:"k ds izfr vuqjkx vfHkO;Dr
djuk lgt gSA ;g dj fn[kk;k gS lwj dh xksfidkvksa us] tks d`".k dh Vsj ij] feyus ds fy, nkSM+
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इंदस
ु ंचत
े ना जुिाई-ससतंबि 2016
190
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इंदस
ु ंचत
े ना जुिाई-ससतंबि 2016
191
दिू दे श की पाती
[ओसाका जापान से हिंदी प्रेसमयों के नाम हिंदी के प्रोफेसि तोसमयोसमजोकामी का पत्र ]
इंदस
ु ंचत
े ना जुिाई-ससतंबि 2016
192
का ओिाका ववश्वववद्यालय र्ें हहन्गदी र्ें भार्ण केवल इि ववश्वववद्यालय के सलए गौरव की
बात नहीं है , अवपतु हहन्गदी के प्रचार के सलए बहुत िांकेनतक र्हत्त्व रखता है ।"
र्ुझे पता नहीं कक र्ेरे इि भार्ण का उनपर ककतना अिर पड़ा होगा । लेककन उनकी
शक्ल िे तो कुछ कुछ स्वीकारात्र्क िंकेत झलक रहे र्े ।
ईश्वर िे प्रार्षना है कक ववत्त र्ंरी जी िे र्ेरी यह भें ट प्रधान र्ंरी जी
के िंभावी ओिाका ववश्वववद्यालय-आगर्न के सलए र्जबूत िहायक सिद्ध हो !
आपका तोसमओ समज़ोकासम,
मानद प्रोफेसि, ओसाका विश्िविदयािय ,ओसाका, जापान
जून 10, 2016
तेजे्द्र शमाा – बिटे न से
सर्रो!
बब्रटे न के हहन्गदी िाहहत्य को लेकर एक अलग ककस्र् की चचन्गता है ...
यहां के अचधकतर लेखक अब वररटठ या बज़ ु ुगष की न्स्कस्र्नत र्ें पहुंच रहे हैं। इसर्ग्रेशन के
र्ाध्यर् िे जो पीढ़ी अब भारत िे आ रही है , उनर्ें िे बहुत कर् हहन्गदी िाहहत्य िे जुड़े
लोग हैं - अचधकतर कम्पयूटर, डॉक्टरी, डेन्स्कन्गटस्री, केसर्स्ट, वकील आहद पेशों िे जुड़े हैं।
बब्रटे न र्ें पैदा हुए बच्चों र्ें िे आजतक तो कोई िाहहत्यकार बना नहीं। अब भववटय
की गोद र्ें क्या सलखा है , उिके बारे र्ें बता पाना आिान नहीं। यानन कक ना तो भारत ि
नये लेखक बब्रटे न र्ें आकर बि रहे हैं और ना ही बब्रटे न र्े पले बढ़े बच्चे हहन्गदी िाहहत्यकार
बनने की हदशा र्ें कोई िदर् उठा रहे हैं।
कीनतष चौधरी, ओंकारनार् श्रीवास्तव एवं गौतर् िचदे व के ननधन के बाद अब बब्रटे न के
लेखकों के आयु वगष कुछ इि प्रकार है :-
80 वर्ष वाला ग्रुपः र्हे न्गद्र दवेिर, कैलाश बुधवार।
70 वर्ष वाला ग्रुपः डॉ०. ित्येन्गद्र श्रीवास्तव, नरे श भारतीय, िोहन राही, प्राण शर्ाष, उर्ा
वर्ाष, उर्ा राजे िक्िेना, ज़ककया ज़ुबैरी, डॉ०. कृटण कुर्ार, डॉ०. र्हे न्गद्र वर्ाष, कादम्बरी
र्ेहरा, रर्ा जोशी।
60 वर्ष वाला ग्रुपः नीना पॉल, हदव्या र्ार्रु , अचला शर्ाष, शैल अग्रवाल, अरुण
िभरवाल, कववता वाचकनवी, शन्गनो अग्रवाल।
50 वाला ग्रुपः र्ोहन राणा, जय वर्ाष, पद्र्ेश गुप्त।
50 िे कर् आयुवगषः सशखा वाटणेय, वन्गदना र्ुकेश शर्ाष, अजय बरपाठी, कृटण कन्गहै या।
अभी बहुत िे नार् रह गये होंगे। र्गर चचन्गता यह है कक न्स्कजिे भारत र्ें प्रवािी िाहहत्य के
नार् िे स्र्ावपत ककया जा रहा है , क्या उिका भववटय इतना अननन्स्कश्चतता िे भरपरू है ।
और हां, क्या अर्रीका, कनाडा, युरोप और खाड़ी दे शों र्ें भी कुछ ऐिी ही चचन्गता र्हिूि की
जा रही है ।
इंदस
ु ंचत
े ना जुिाई-ससतंबि 2016
193
पाठकीय प्रततक्रक्रया
भाई गण
ु शेखर,
वपछले हदनों पाररवाररक व्यस्तता के चलते पबरका का अंक 'उचचत ' रूप िे दे ख- पढ़ पाया
वैिे भी र्ुझ जैिे पुरानी पीढ़ी लेखक के सलए पबरका को हार् र्ें पकडकर पढ़ना अचधक आत्र्ीय िुववधात्र्क
होता है । िवषप्रर्र् आपकी िोच एवं श्रर् को िलार् करता हूँ। िम्पादकीय पबरका की हदशा दृन्स्कटट एवं
आवश्य्कता को िही रूप र्ें बयान करती हैं। र्ुझे आपका िम्पादकीय ककिी रचना िे कर् नहीं
लगा। आपकी प्रखर भार्ा एवं िोच ने अनेक वविंगनतओं पर प्रखर व्यं्य ककये हैं। िाम्प्रदानयकता एवं
प्रगनतशीलता पर अपने स्पटटता िे असभव्यक्त ककया है । आपने िही सलखा है -- प्रगनतशीलता बहाने स्वार्ष
सिद्चध और बौद्चधक…… जीवन दशषन बनाने की ज़रुरत है ।
िंपादन करते हुए र्ेरी भी बबवाई फटी हुई है इिसलए आपका ददष िर्झ िकता हूँ |
एक बार पुनः बधाई। िप्रेर्
प्रेर् जन्गर्ेजय
िंपादक,व्यं्य यारा
वप्रय राहुल दे व,
अपने ई र्ेल पर तुम्हारी भेजी हुई रैर्ासिक पबरका 'इंद ु िंचत
े ना' पढ़ी | िबिे पहले तो चीन
के एक ववश्वववद्यालय िे ननकलने वाली इि िाहहन्स्कत्यक पबरका के उप िम्पादक चन ु े जाने पर र्ेरी हाहदष क
बधाई स्वीकार हो |
पबरका का आवरण पटृ ठ आकर्षक है , रं गों का िंयोजन प्रभावक है | कववताएँ, लगभग िभी, िार्षक
और िुन्गदर है , सिवाय वंदना ग्रोवर की पहली कववता 'हहंिा' जो ek िाधारण और इकहरी कववता है |ब्रजेश
नीरज का लेख 'िर्कालीन कववता के िरोकार' इि अंक का िवाषचधक िार्षक लेख है | अंक की उपलन्स्कब्ध |
पटृ ठों की खाली जगहों को तर्
ु ने न्स्कजन उद्धरणों िे िजाया है वे तुम्हारी चयन प्रनतभा के अच्छे प्रर्ाण
हैं |
पबरका र्ें आपलोगों ने िाहहत्य की लगभग िभी ववधाओं को प्रनतननचधत्व दे कर उिे एक बहुयार्ी
स्वरुप हदया है | अंत र्ें 2015 र्ें प्रकासशत कुछ चुननंदा पुस्तकों पर एक िंनछप्त िर्ीक्षात्र्क हटपण्णी दे कर
तुर्ने पबरका को और अचधक र्हत्वपूणष बना हदया है |कहाननयां और उपन्गयाि अंश अभी र्ैं पढ़ नहीं पाता हूँ-
इिसलए उनपर कोई हटपण्णी नहीं |
कुल सर्लकर इंद ु िंचत
े ना हहंदी की एक िवषर्ा पठनीय, उल्लेखनीय और र्हत्वपूणष िाहहन्स्कत्यक पबरका बन गयी
है - बधाइयां, बहुत बहुत |
िस्नेह,
िणजीत
एक पाठक की हटप्पणी
बहुत बहुत आभार आपका ..... अभी पढ़ना शुरू ककया है और िंपादकीय के बेबाकीपन ने र्न र्ोह सलया .....
इि तरह का वक्तव्य दे ने का िाहि आज शायद ककिी िाहहत्यकार र्ें नहीं है .... कर् िे कर् र्ैंने तो नहीं
दे खा , िुना ...... छद्र् प्रगनतशीलता के स्वभाररत बोझ िे दबे आज के िाहहत्यकारों के सलए यह आईना
हदखाने जैिा है । िच्चाई को न्स्कजतने िाहि िे िंपादक जी ने अपने िंपादकीय र्ें रखा है र्ैं इिके सलए
उनका कोहट कोहट असभनंदन करता हूँ ...... आगे जब परू ा पढ़ लँ ग
ू ा ....
आपका
नीिज कुमाि नीि ,िांची
इंदस
ु ंचत
े ना जुिाई-ससतंबि 2016
194
ििचि
भारत के र्हार्हीर् राटरपनतजी चीन आगर्न पर अपने व्यस्ततर् िर्य िे कुछ क्षण ननकाल कर
राबरभोज पर आर्ंबरत कुछ चुने हुए लोगों के िार् अपना िर्य बबताए | इि अविर पर पबरका के
र्ख्
ु य िम्पादक डॉ०। गंगा प्रिाद शर्ाष 'गण
ु शेखर' के िार् अन्गय गणर्ान्गय व्यन्स्कक्त भी यादगार पल
के फोटो शट
ू र्ें शासर्ल हुए |
उिी अविर पर 'इंद ु िंचेतना। के अंक की प्रनतयां भी ववतररत की गई | चचर र्ें उपन्स्कस्र्त
व्यन्स्कक्तयों का पबरका के िार् िंपकष दे खकर ही लगता है कक िही र्ायने र्ें ये लोग ही हहंदी के
कद्रदान हैं, इन जैिे रण- बांकुरों की वजह िे ही हहंदी ववदे शों र्ें भी अपनी पहचान बनाए हुए है |
इंदस
ु ंचत
े ना जुिाई-ससतंबि 2016
195
अिर् र्ें आयोन्स्कजत 12 वें अंतराटरीय हहंदी िम्र्लेन र्ें (िंयोजक जय प्रकाश र्ानि) हर्ारे िर्य
के र्हत्वपण
ू ष उपन्गयािकार िध
ु ाकर अदीब को उनके
ऐनतहासिक उपन्गयाि"रं ग रांची' पर प्रर्र् ित्या कंु द्रा
परु स्कार िे डॉ० शरद पगारे एवं अन्गय ववद्वानों द्वारा
िम्र्ाननत ककया गया। यह परु स्कार र्ैंने अपनी
पज
ू नीय र्ाता जी की स्र्नृ त र्ें आरम्भ ककया है।
िध
ु ाकर अदीब का आभार कक उन्गहोंने यह परु स्कार
स्वीकार ककया। र्ीरा पर आधाररत उपन्गयाि "रं ग रांची'
पयाषप्त चचचषत एवं प्रशंसित हो चक
ु ा है ।
इंदस
ु ंचत
े ना जुिाई-ससतंबि 2016
196
गगिीश पंकज,संपादक,सदभािना दपाण-कायाािय -28 प्रथम ति, एकात्म परिसि, िजबं्ा मैदान
िायपुि|छत्तीसगढ़|(भाित)492001**मोबाइि* +91-9425212720तनिास–सेक़्टि-3,एचआईजी-2, घि नंबि-
2, दीनदयाि उपाध्याय नगि, िायपुि- 492010 1-
सूया प्रकाश,र्ोबाइल- +91-9930991424,ईमेि - mail@surajprakash.com, वेबिाइट:
www.surajprakash.com
आशीष गोिे , 80 Modern Villa,555 Gao Jin Road, Qingpu,Shanghai-201702-
email: ashishgore@outlook.com
गीता पंडडत(िम्पादक शलभ प्रकाशन हदल्ली),gieetika1@gmail.com,र्ो.+91-9810534442
बबजय कुमाि िबबदास, िंपकष –16 वेस्ट कापते पाड़ा रोड,पोस्ट -आतपुर , न्स्कजला - उत्तर 24
परगना,पन्स्कश्चर् बंगाल(भारत),वपन – 743128,र्ोबाइल -8100157970,
ई –र्ेल –bijaypresi@rediffmail.com
सश
ु ीि कुमाि शैिी,िम्प्रनत- प्राध्यापक , एि.डी. कॉलेज ,बरनाला,पता - एि. डी कॉलेज, बरनाला
हहन्गदी ववभाग, के. िी रोड़ ,बरनाला (पंजाब)(भारत) 148101, र्ो - +91-9914418289
ई.र्ेल- shellynabha01@gmail.com
मोतनका शमाा - monikasharma.writing@gmail.com
शेखि सािंत,ई-र्ेल – shekharjeesahityakar@gmail.com,र्ोबाईल - +91-9835263144
पंकज कुमाि शाि,उत्तम भिन के पास,नागडीह, रसिकपरु ,दर्
ु का -814101 ( झारखंड)(भारत)
ईर्ेल- pankajkrsah1987@gmail.com ,मो.-+91-9835930691
डॉ०.मोिससन ख़ान,हहन्गदी ववभागाध्यक्ष एवं शोध ननदे शक,जे.एि.एर्.र्हाववद्यालय,अलीबाग-402201,न्स्कज़ला-
रायगढ़- (र्हाराटर)(भारत)- र्ोबाइल - +91-9860657970 ई-मेि- khanhind01@gmail.com
बििाम अग्रिाि, ईर्ेल- 2611ableram@gmail.com
सुशांत सुवप्रय, A-5001, गौड़ ग्रीन सिटी, वैभव खंड, इंहदरापरु र्, ग़ान्स्कज़याबाद- 201014(उ.प्र)(भारत)
र्ो: +91-8512070086
िाजे्द्र िमाा, 3/29 ववकाि नगर, लखनऊ 226 022 (भारत)(र्ो.+91-80096 60096)
डॉ० स्
ु ेश,३१४ िरल अपाटष र्न्ग
ै ट्ि, द्वाररका , िैक्टर १०,हदल्ली १००७५(भारत),फ़ोन+91-
9350974120
सपना मांगसिक,F-659 Agra (up)(भारत)- 282005 र्ो.+91-9548509508 email-
sapna8manglik@gmail.com
िमेश उपाध्याय,107, िाक्षरा अपाटष र्ेंट्ि,ए-3, पन्स्कश्चर् ववहार,नयी हदल्ली-110063 ,Email :
rameshupadhyaya@yahoo.co.in
मीता दास , 63 / 4 नेहरू नगर पन्स्कश्चर् ,सभलाई नगर , छत्तीिगढ़. 49 00 20 ईर्ेल --
mita.dasroy@gmail.com
इंदस
ु ंचत
े ना जुिाई-ससतंबि 2016
197
अतनि आजाद पाण्डेय - स्र्ानीय पता- 16 ए, शचचंगशान रोड बीन्स्कजंग, चीन ,स्र्ायी पता- अल्र्ोड़ा,
उत्तराखंड, भारत,Mobile number- 0086-15210675582,Email- anilpande2@yahoo.in
रितु दब
ू े -331/16B, बबलाडष पन्स्कब्लक स्कूल के पीछे , विुंधरा िेक्टर 16, गान्स्कजयाबाद(उत्तर
प्रदे श)(भारत), र्ोबाइल --+91-9650450604E-mail: ritudby@yahoo.co.in
MkW- cythr dqekj JhokLro ,vflLVasV izksQslj fgUnh foHkkx, ,-ih-,l-ih-th-dkWyst cLrh
¼m0iz0½(भारत)
जिीि कुिव्शी- 108, बरलोचन टावर, िंगर् सिनेर्ा के िार्ने, गरु
ु बक्श की तलैया, पो.ऑ. जीपीओ,
भोपाल462001 (र्.प्र.)(भारत)र्ो. +91-9425790565 फोनः +91-7552740081, Email-
poetzaheerqureshi@gmail.com
श्याम बाबू शमाा-वररटठ अनुवादक, पूवोत्तर रे लवे, गोरखपुर-273012(भारत)र्ो.नं. +91-9794840674
डॉ०. एम.एि. गुप्ता 'आहदत्य',ननदे शक,‘वैन्स्कश्वक हहंदी िम्र्ेलन’, र्ुंबई,
vaishwikhindisammelan@gmail.com िेबसाइट- www.vhindi.in/वेबिाइट :वैन्स्कश्वकहहंदी.
भारत
एस आि ििनोट] vkse Hkou] eksjys cSad bLVsV] fuxe fogkj] f'keyk&171002(भारत)
eks0% +91-9816566611] +91-9418000224
परितोष कुमाि 'पीयूष', र्ुहल्ला- र्ुंगरौड़ा, पोस्ट- जर्ालपुर,न्स्कजला- र्ुंगेर(बबहार)(भारत),र्ो०-
+91-7310941575, +91-7870786842/ईर्ेल- piyuparitosh@gmail.com
आशीष गोिे ,Vice President,Regional Business Unit Brake Components: Asia Pacific
Automotive Aftermarket (AA-BC/RBU-AP),Bosch Trading (Shanghai) Co. Ltd,333, Fuquan
Road North, IBP Changning District,Shanghai 200335 , Peoples Republic of China,Tel.: +86
21 2218 8944,Fax: +86 21 2218 2385
इंदस
ु ंचत
े ना जुिाई-ससतंबि 2016