You are on page 1of 181

रामचिरतमानस - 1- बालकांड

गोस्वामी तुलसीदास
िवरिचत

रामचिरतमानस

बालकाण्ड

Read Ramcharitmanas online at www.swargarohan.org


रामचिरतमानस - 2- बालकांड

ीगणेशाय नमः

ीरामचिरतमानस थम सोपान

बालकाण्ड

ोक
वणार्नामथर्संघानां रसानां छन्दसामिप ।
मङ्गलानां च क ार्रौ वन्दे वाणीिवनायकौ ॥ १ ॥

भवानीशङ्करौ वन्दे ािव ासरूिपणौ ।


याभ्यां िवना न पश्यिन्त िस ाःस्वान्तःस्थमी रम ् ॥ २ ॥

वन्दे बोधमयं िनत्यं गुरुं शङ्कररूिपणम ् ।


यमाि तो िह व ोऽिप चन् ः सवर् वन् ते ॥ ३ ॥

सीतारामगुण ामपुण्यारण्यिवहािरणौ ।
वन्दे िवशु िवज्ञानौ कबी रकपी रौ ॥ ४ ॥

उ विस्थितसंहारकािरणीं क्लेशहािरणीम ् ।
सवर् य
े स्करीं सीतां नतोऽहं रामवल्लभाम ् ॥ ५ ॥

यन्मायावशवित िव मिखलं ािददे वासुरा


यत्सत्वादमृषैव भाित सकलं रज्जौ यथाहे म
र् ः ।
यत्पादप्लवमेकमेव िह भवाम्भोधेिस्ततीषार्वतां
वन्दे ऽहं तमशेषकारणपरं रामाख्यमीशं हिरम ् ॥ ६ ॥

नानापुराणिनगमागमसम्मतं यद्
रामायणे िनगिदतं क्विचदन्यतोऽिप ।
स्वान्तःसुखाय तुलसी रघुनाथगाथा
भाषािनबन्धमितमञ्जुलमातनोित ॥ ७ ॥

Read Ramcharitmanas online at www.swargarohan.org


रामचिरतमानस - 3- बालकांड

सोरठा
जो सुिमरत िसिध होइ गन नायक किरबर बदन ।
करउ अनु ह सोइ बुि रािस सुभ गुन सदन ॥ १ ॥

मूक होइ बाचाल पंगु चढइ िगिरबर गहन ।


जासु कृ पाँ सो दयाल वउ सकल किल मल दहन ॥ २ ॥

नील सरोरुह स्याम तरुन अरुन बािरज नयन ।


करउ सो मम उर धाम सदा छीरसागर सयन ॥ ३ ॥

कुंद इं द ु सम दे ह उमा रमन करुना अयन ।


जािह दीन पर नेह करउ कृ पा मदर् न मयन ॥ ४ ॥

बंदउ गुरु पद कंज कृ पा िसंधु नररूप हिर ।


महामोह तम पुंज जासु बचन रिब कर िनकर ॥ ५ ॥

बंदउ गुरु पद पदम


ु परागा । सुरुिच सुबास सरस अनुरागा ॥
अिमय मूिरमय चूरन चारू । समन सकल भव रुज पिरवारू ॥ १ ॥
सुकृित संभु तन िबमल िबभूती । मंजुल मंगल मोद सूती ॥
जन मन मंजु मुकुर मल हरनी । िकएँ ितलक गुन गन बस करनी ॥२ ॥
ीगुर पद नख मिन गन जोती । सुिमरत िदब्य िृ िहयँ होती ॥
दलन मोह तम सो स कासू । बड़े भाग उर आवइ जासू ॥ ३ ॥
उघरिहं िबमल िबलोचन ही के । िमटिहं दोष दख
ु भव रजनी के ॥
सूझिहं राम चिरत मिन मािनक । गुपुत गट जहँ जो जेिह खािनक ॥४॥

दोहरा
जथा सुअंजन अंिज दृग साधक िस सुजान ।
कौतुक दे खत सैल बन भूतल भूिर िनधान ॥ १ ॥

Read Ramcharitmanas online at www.swargarohan.org


रामचिरतमानस - 4- बालकांड

गुरु पद रज मृद ु मंजुल अंजन । नयन अिमअ दृग दोष िबभंजन ॥


तेिहं किर िबमल िबबेक िबलोचन । बरनउँ राम चिरत भव मोचन ॥ १ ॥
बंदउँ थम महीसुर चरना । मोह जिनत संसय सब हरना ॥
सुजन समाज सकल गुन खानी । करउँ नाम स ेम सुबानी ॥ २ ॥
साधु चिरत सुभ चिरत कपासू । िनरस िबसद गुनमय फल जासू ॥
जो सिह दख
ु परिछ दरावा
ु । बंदनीय जेिहं जग जस पावा ॥ ३ ॥
मुद मंगलमय संत समाजू । जो जग जंगम तीरथराजू ॥
राम भि जहँ सुरसिर धारा । सरसइ िबचार चारा ॥ ४ ॥
िबिध िनषेधमय किल मल हरनी । करम कथा रिबनंदिन बरनी ॥
हिर हर कथा िबराजित बेनी । सुनत सकल मुद मंगल दे नी ॥ ५ ॥
बटु िबस्वास अचल िनज धरमा । तीरथराज समाज सुकरमा ॥
सबिहं सुलभ सब िदन सब दे सा । सेवत सादर समन कलेसा ॥ ६ ॥
अकथ अलौिकक तीरथराऊ । दे इ स फल गट भाऊ ॥ ७ ॥

दोहरा
सुिन समुझिहं जन मुिदत मन मज्जिहं अित अनुराग ।
लहिहं चािर फल अछत तनु साधु समाज याग ॥ २ ॥

मज्जन फल पेिखअ ततकाला । काक होिहं िपक बकउ मराला ॥


सुिन आचरज करै जिन कोई । सतसंगित मिहमा निहं गोई ॥ १ ॥
बालमीक नारद घटजोनी । िनज िनज मुखिन कही िनज होनी ॥
जलचर थलचर नभचर नाना । जे जड़ चेतन जीव जहाना ॥ २ ॥
मित कीरित गित भूित भलाई । जब जेिहं जतन जहाँ जेिहं पाई ॥
सो जानब सतसंग भाऊ । लोकहँु बेद न आन उपाऊ ॥ ३ ॥
िबनु सतसंग िबबेक न होई । राम कृ पा िबनु सुलभ न सोई ॥
सतसंगत मुद मंगल मूला । सोइ फल िसिध सब साधन फूला ॥ ४ ॥
सठ सुधरिहं सतसंगित पाई । पारस परस कुधात सुहाई ॥
िबिध बस सुजन कुसंगत परहीं ।फिन मिन सम िनज गुन अनुसरहीं॥५॥

Read Ramcharitmanas online at www.swargarohan.org


रामचिरतमानस - 5- बालकांड

िबिध हिर हर किब कोिबद बानी । कहत साधु मिहमा सकुचानी ॥


सो मो सन किह जात न कैसें । साक बिनक मिन गुन गन जैसें ॥ ६ ॥

दोहरा
बंदउँ संत समान िचत िहत अनिहत निहं कोइ ।
अंजिल गत सुभ सुमन िजिम सम सुगंध कर दोइ ॥ ३(क) ॥

संत सरल िचत जगत िहत जािन सुभाउ सनेहु ।


बालिबनय सुिन किर कृ पा राम चरन रित दे हु ॥ ३(ख) ॥

बहिर
ु बंिद खल गन सितभाएँ । जे िबनु काज दािहनेहु बाएँ ॥
पर िहत हािन लाभ िजन्ह केरें । उजरें हरष िबषाद बसेरें ॥ १ ॥
हिर हर जस राकेस राहु से । पर अकाज भट सहसबाहु से ॥
जे पर दोष लखिहं सहसाखी । पर िहत घृत िजन्ह के मन माखी ॥ २ ॥
तेज कृ सानु रोष मिहषेसा । अघ अवगुन धन धनी धनेसा ॥
उदय केत सम िहत सबही के । कुंभकरन सम सोवत नीके ॥ ३ ॥
पर अकाजु लिग तनु पिरहरहीं । िजिम िहम उपल कृ षी दिल गरहीं ॥
बंदउँ खल जस सेष सरोषा । सहस बदन बरनइ पर दोषा ॥ ४ ॥
पुिन नवउँ पृथरु ाज समाना । पर अघ सुनइ सहस दस काना ॥
बहिर
ु स सम िबनवउँ तेही । संतत सुरानीक िहत जेही ॥ ५ ॥
बचन ब जेिह सदा िपआरा । सहस नयन पर दोष िनहारा ॥ ६ ॥

दोहरा
उदासीन अिर मीत िहत सुनत जरिहं खल रीित ।
जािन पािन जुग जोिर जन िबनती करइ स ीित ॥ ४ ॥

मैं अपनी िदिस कीन्ह िनहोरा । ितन्ह िनज ओर न लाउब भोरा ॥


बायस पिलअिहं अित अनुरागा । होिहं िनरािमष कबहँु िक कागा ॥ १ ॥

Read Ramcharitmanas online at www.swargarohan.org


रामचिरतमानस - 6- बालकांड

बंदउँ संत ु द उभय बीच कछु


असज्जन चरना । दख बरना ॥

िबछरत एक ान हिर लेहीं । िमलत एक दख
ु दारुन दे हीं ॥ २ ॥
उपजिहं एक संग जग माहीं । जलज जोंक िजिम गुन िबलगाहीं ॥
सुधा सुरा सम साधू असाधू । जनक एक जग जलिध अगाधू ॥ ३ ॥
भल अनभल िनज िनज करतूती । लहत सुजस अपलोक िबभूती ॥
सुधा सुधाकर सुरसिर साधू । गरल अनल किलमल सिर ब्याधू ॥ ४ ॥
गुन अवगुन जानत सब कोई । जो जेिह भाव नीक तेिह सोई ॥ ५ ॥

दोहरा
भलो भलाइिह पै लहइ लहइ िनचाइिह नीचु ।
सुधा सरािहअ अमरताँ गरल सरािहअ मीचु ॥ ५ ॥

खल अघ अगुन साधू गुन गाहा । उभय अपार उदिध अवगाहा ॥


तेिह तें कछु गुन दोष बखाने । सं ह त्याग न िबनु पिहचाने ॥ १ ॥
भलेउ पोच सब िबिध उपजाए । गिन गुन दोष बेद िबलगाए ॥
कहिहं बेद इितहास पुराना । िबिध पंचु गुन अवगुन साना ॥ २ ॥
दख
ु सुख पाप पुन्य िदन राती । साधु असाधु सुजाित कुजाती ॥
दानव दे व ऊँच अरु नीचू । अिमअ सुजीवनु माहरु
ु मीचू ॥ ३ ॥
माया जीव जगदीसा । लिच्छ अलिच्छ रं क अवनीसा ॥
कासी मग सुरसिर मनासा । मरु मारव मिहदे व गवासा ॥ ४ ॥
सरग नरक अनुराग िबरागा । िनगमागम गुन दोष िबभागा ॥ ५ ॥

दोहरा
जड़ चेतन गुन दोषमय िबस्व कीन्ह करतार ।
संत हं स गुन गहिहं पय पिरहिर बािर िबकार ॥ ६ ॥

अस िबबेक जब दे इ िबधाता । तब तिज दोष गुनिहं मनु राता ॥


काल सुभाउ करम बिरआई । भलेउ कृ ित बस चुकइ भलाई ॥ १ ॥

Read Ramcharitmanas online at www.swargarohan.org


रामचिरतमानस - 7- बालकांड

सो सुधािर हिरजन िजिम लेहीं । दिल दख


ु दोष िबमल जसु दे हीं ॥
खलउ करिहं भल पाइ सुसग
ं ू । िमटइ न मिलन सुभाउ अभंगू ॥ २ ॥
लिख सुबेष जग बंचक जेऊ । बेष ताप पूिजअिहं तेऊ ॥
उधरिहं अंत न होइ िनबाहू । कालनेिम िजिम रावन राहू ॥ ३ ॥
िकएहँु कुबेष साधु सनमानू । िजिम जग जामवंत हनुमानू ॥
हािन कुसंग सुसंगित लाहू । लोकहँु बेद िबिदत सब काहू ॥ ४ ॥
गगन चढ़इ रज पवन संगा । कीचिहं िमलइ नीच जल संगा ॥
साधु असाधु सदन सुक सारीं । सुिमरिहं राम दे िहं गिन गारी ॥ ५ ॥
धूम कुसंगित कािरख होई । िलिखअ पुरान मंजु मिस सोई ॥
सोइ जल अनल अिनल संघाता । होइ जलद जग जीवन दाता ॥ ६ ॥

दोहरा
ह भेषज जल पवन पट पाइ कुजोग सुजोग ।
होिह कुबस्तु सुबस्तु जग लखिहं सुलच्छन लोग ॥ ७(क) ॥

सम कास तम पाख दहँु ु नाम भेद िबिध कीन्ह ।


सिस सोषक पोषक समुिझ जग जस अपजस दीन्ह ॥ ७(ख) ॥

जड़ चेतन जग जीव जत सकल राममय जािन ।


बंदउँ सब के पद कमल सदा जोिर जुग पािन ॥ ७(ग) ॥

दे व दनुज नर नाग खग ेत िपतर गंधबर् ।


बंदउँ िकंनर रजिनचर कृ पा करहु अब सबर् ॥ ७(घ) ॥

आकर चािर लाख चौरासी । जाित जीव जल थल नभ बासी ॥


सीय राममय सब जग जानी । करउँ नाम जोिर जुग पानी ॥ १ ॥
जािन कृ पाकर िकंकर मोहू । सब िमिल करहु छािड़ छल छोहू ॥
िनज बुिध बल भरोस मोिह नाहीं । तातें िबनय करउँ सब पाही ॥ २ ॥
करन चहउँ रघुपित गुन गाहा । लघु मित मोिर चिरत अवगाहा ॥
सूझ न एकउ अंग उपाऊ । मन मित रं क मनोरथ राऊ ॥ ३ ॥

Read Ramcharitmanas online at www.swargarohan.org


रामचिरतमानस - 8- बालकांड

मित अित नीच ऊँिच रुिच आछी । चिहअ अिमअ जग जुरइ न छाछी ॥
छिमहिहं सज्जन मोिर िढठाई । सुिनहिहं बालबचन मन लाई ॥ ४ ॥
जौ बालक कह तोतिर बाता । सुनिहं मुिदत मन िपतु अरु माता ॥
हँ िसहिह कूर कुिटल कुिबचारी । जे पर दषन
ू भूषनधारी ॥ ५ ॥
िनज किवत केिह लाग न नीका । सरस होउ अथवा अित फीका ॥
जे पर भिनित सुनत हरषाही । ते बर पुरुष बहत
ु जग नाहीं ॥ ६ ॥
जग बहु नर सर सिर सम भाई । जे िनज बािढ़ बढ़िहं जल पाई ॥
सज्जन सकृ त िसंधु सम कोई । दे िख पूर िबधु बाढ़इ जोई ॥ ७ ॥

दोहरा
भाग छोट अिभलाषु बड़ करउँ एक िबस्वास ।
पैहिहं सुख सुिन सुजन सब खल करहिहं उपहास ॥ ८ ॥

खल पिरहास होइ िहत मोरा । काक कहिहं कलकंठ कठोरा ॥


हं सिह बक दादरु चातकही । हँ सिहं मिलन खल िबमल बतकही ॥ १ ॥
किबत रिसक न राम पद नेहू । ितन्ह कहँ सुखद हास रस एहू ॥
भाषा भिनित भोिर मित मोरी । हँ िसबे जोग हँ सें निहं खोरी ॥ २ ॥
भु पद ीित न सामुिझ नीकी । ितन्हिह कथा सुिन लागिह फीकी ॥
हिर हर पद रित मित न कुतरकी। ितन्ह कहँु मधुर कथा रघुवर की ॥३॥
राम भगित भूिषत िजयँ जानी । सुिनहिहं सुजन सरािह सुबानी ॥
किब न होउँ निहं बचन बीनू । सकल कला सब िब ा हीनू ॥ ४ ॥
आखर अरथ अलंकृित नाना । छं द बंध अनेक िबधाना ॥
भाव भेद रस भेद अपारा । किबत दोष गुन िबिबध कारा ॥ ५ ॥
किबत िबबेक एक निहं मोरें । सत्य कहउँ िलिख कागद कोरे ॥ ६ ॥

दोहरा
भिनित मोिर सब गुन रिहत िबस्व िबिदत गुन एक ।
सो िबचािर सुिनहिहं सुमित िजन्ह कें िबमल िबवेक ॥ ९ ॥

Read Ramcharitmanas online at www.swargarohan.org


रामचिरतमानस - 9- बालकांड

एिह महँ रघुपित नाम उदारा । अित पावन पुरान िु त सारा ॥


मंगल भवन अमंगल हारी । उमा सिहत जेिह जपत पुरारी ॥ १ ॥
भिनित िबिच सुकिब कृ त जोऊ । राम नाम िबनु सोह न सोऊ ॥
िबधुबदनी सब भाँित सँवारी । सोन न बसन िबना बर नारी ॥ २ ॥
सब गुन रिहत कुकिब कृ त बानी । राम नाम जस अंिकत जानी ॥
सादर कहिहं सुनिहं बुध ताही । मधुकर सिरस संत गुन ाही ॥ ३ ॥
जदिप किबत रस एकउ नाही । राम ताप कट एिह माहीं ॥
सोइ भरोस मोरें मन आवा । केिहं न सुसग
ं बडप्पनु पावा ॥ ४ ॥
धूमउ तजइ सहज करुआई । अगरु संग सुगंध बसाई ॥
भिनित भदे स बस्तु भिल बरनी । राम कथा जग मंगल करनी ॥ ५ ॥

छं द
मंगल करिन किल मल हरिन तुलसी कथा रघुनाथ की ॥
गित कूर किबता सिरत की ज्यों सिरत पावन पाथ की ॥
भु सुजस संगित भिनित भिल होइिह सुजन मन भावनी ॥
भव अंग भूित मसान की सुिमरत सुहाविन पावनी ॥

दोहरा
ि य लािगिह अित सबिह मम भिनित राम जस संग ।
दारु िबचारु िक करइ कोउ बंिदअ मलय संग ॥ १०(क) ॥

स्याम सुरिभ पय िबसद अित गुनद करिहं सब पान ।


िगरा ाम्य िसय राम जस गाविहं सुनिहं सुजान ॥ १०(ख) ॥

मिन मािनक मुकुता छिब जैसी । अिह िगिर गज िसर सोह न तैसी ॥
नृप िकरीट तरुनी तनु पाई । लहिहं सकल सोभा अिधकाई ॥ १ ॥
तैसेिहं सुकिब किबत बुध कहहीं । उपजिहं अनत अनत छिब लहहीं ॥
भगित हे तु िबिध भवन िबहाई । सुिमरत सारद आवित धाई ॥ २ ॥

Read Ramcharitmanas online at www.swargarohan.org


रामचिरतमानस - 10 - बालकांड

राम चिरत सर िबनु अन्हवाएँ । सो म जाइ न कोिट उपाएँ ॥


किब कोिबद अस हृदयँ िबचारी । गाविहं हिर जस किल मल हारी ॥ ३ ॥
कीन्हें ाकृ त जन गुन गाना । िसर धुिन िगरा लगत पिछताना ॥
हृदय िसंधु मित सीप समाना । स्वाित सारदा कहिहं सुजाना ॥ ४ ॥
जौं बरषइ बर बािर िबचारू । होिहं किबत मुकुतामिन चारू ॥ ५ ॥

दोहरा
जुगुित बेिध पुिन पोिहअिहं रामचिरत बर ताग ।
पिहरिहं सज्जन िबमल उर सोभा अित अनुराग ॥ ११ ॥

जे जनमे किलकाल कराला । करतब बायस बेष मराला ॥


चलत कुपंथ बेद मग छाँड़े । कपट कलेवर किल मल भाँड़ें ॥ १ ॥
बंचक भगत कहाइ राम के । िकंकर कंचन कोह काम के ॥
ितन्ह महँ थम रे ख जग मोरी । धींग धरमध्वज धंधक धोरी ॥ २ ॥
जौं अपने अवगुन सब कहऊँ । बाढ़इ कथा पार निहं लहऊँ ॥
ताते मैं अित अलप बखाने । थोरे महँु जािनहिहं सयाने ॥ ३ ॥
समुिझ िबिबिध िबिध िबनती मोरी । कोउ न कथा सुिन दे इिह खोरी ॥
एतेहु पर किरहिहं जे असंका । मोिह ते अिधक ते जड़ मित रं का ॥ ४ ॥
किब न होउँ निहं चतुर कहावउँ । मित अनुरूप राम गुन गावउँ ॥
कहँ रघुपित के चिरत अपारा । कहँ मित मोिर िनरत संसारा ॥ ५ ॥
जेिहं मारुत िगिर मेरु उड़ाहीं । कहहु तूल केिह लेखे माहीं ॥
समुझत अिमत राम भुताई । करत कथा मन अित कदराई ॥ ६ ॥

दोहरा
सारद सेस महे स िबिध आगम िनगम पुरान ।
नेित नेित किह जासु गुन करिहं िनरं तर गान ॥ १२ ॥

सब जानत भु भुता सोई । तदिप कहें िबनु रहा न कोई ॥


तहाँ बेद अस कारन राखा । भजन भाउ भाँित बहु भाषा ॥ १ ॥

Read Ramcharitmanas online at www.swargarohan.org


रामचिरतमानस - 11 - बालकांड

एक अनीह अरूप अनामा । अज सिच्चदानंद पर धामा ॥


ब्यापक िबस्वरूप भगवाना । तेिहं धिर दे ह चिरत कृ त नाना ॥ २ ॥
सो केवल भगतन िहत लागी । परम कृ पाल नत अनुरागी ॥
जेिह जन पर ममता अित छोहू । जेिहं करुना किर कीन्ह न कोहू ॥३ ॥
गई बहोर गरीब नेवाजू । सरल सबल सािहब रघुराजू ॥
बुध बरनिहं हिर जस अस जानी । करिह पुनीत सुफल िनज बानी ॥४ ॥
तेिहं बल मैं रघुपित गुन गाथा । किहहउँ नाइ राम पद माथा ॥
मुिनन्ह थम हिर कीरित गाई । तेिहं मग चलत सुगम मोिह भाई ॥५॥

दोहरा
अित अपार जे सिरत बर जौं नृप सेतु करािहं ।
चिढ िपपीिलकउ परम लघु िबनु म पारिह जािहं ॥ १३ ॥

एिह कार बल मनिह दे खाई । किरहउँ रघुपित कथा सुहाई ॥


ब्यास आिद किब पुंगव नाना । िजन्ह सादर हिर सुजस बखाना ॥ १ ॥
चरन कमल बंदउँ ितन्ह केरे । पुरवहँु सकल मनोरथ मेरे ॥
किल के किबन्ह करउँ परनामा । िजन्ह बरने रघुपित गुन ामा ॥ २ ॥
जे ाकृ त किब परम सयाने । भाषाँ िजन्ह हिर चिरत बखाने ॥
भए जे अहिहं जे होइहिहं आगें । नवउँ सबिहं कपट सब त्यागें ॥ ३ ॥
होहु सन्न दे हु बरदानू । साधु समाज भिनित सनमानू ॥
जो बंध बुध निहं आदरहीं । सो म बािद बाल किब करहीं ॥ ४ ॥
कीरित भिनित भूित भिल सोई । सुरसिर सम सब कहँ िहत होई ॥
राम सुकीरित भिनित भदे सा । असमंजस अस मोिह अँदेसा ॥ ५ ॥
तुम्हरी कृ पा सुलभ सोउ मोरे । िसअिन सुहाविन टाट पटोरे ॥ ६ ॥

दोहरा
सरल किबत कीरित िबमल सोइ आदरिहं सुजान ।
सहज बयर िबसराइ िरपु जो सुिन करिहं बखान ॥ १४(क) ॥

Read Ramcharitmanas online at www.swargarohan.org


रामचिरतमानस - 12 - बालकांड

सो न होइ िबनु िबमल मित मोिह मित बल अित थोर ।


करहु कृ पा हिर जस कहउँ पुिन पुिन करउँ िनहोर ॥ १४(ख) ॥

किब कोिबद रघुबर चिरत मानस मंजु मराल ।


बाल िबनय सुिन सुरुिच लिख मोपर होहु कृ पाल ॥ १४(ग) ॥

सोरठा
बंदउँ मुिन पद कंजु रामायन जेिहं िनरमयउ ।
सखर सुकोमल मंजु दोष रिहत दषन
ू सिहत ॥ १४(घ) ॥

बंदउँ चािरउ बेद भव बािरिध बोिहत सिरस ।


िजन्हिह न सपनेहुँ खेद बरनत रघुबर िबसद जसु ॥ १४(ङ) ॥

बंदउँ िबिध पद रे नु भव सागर जेिह कीन्ह जहँ ।


संत सुधा सिस धेनु गटे खल िबष बारुनी ॥ १४(च) ॥

दोहरा
िबबुध िब बुध ह चरन बंिद कहउँ कर जोिर ।
होइ सन्न पुरवहु सकल मंजु मनोरथ मोिर ॥ १४(छ) ॥

पुिन बंदउँ सारद सुरसिरता । जुगल पुनीत मनोहर चिरता ॥


मज्जन पान पाप हर एका । कहत सुनत एक हर अिबबेका ॥ १ ॥
गुर िपतु मातु महे स भवानी । नवउँ दीनबंधु िदन दानी ॥
सेवक स्वािम सखा िसय पी के । िहत िनरुपिध सब िबिध तुलसीके ॥२॥
किल िबलोिक जग िहत हर िगिरजा । साबर मं जाल िजन्ह िसिरजा ॥
अनिमल आखर अरथ न जापू । गट भाउ महे स तापू ॥ ३ ॥
सो उमेस मोिह पर अनुकूला । किरिहं कथा मुद मंगल मूला ॥
सुिमिर िसवा िसव पाइ पसाऊ । बरनउँ रामचिरत िचत चाऊ ॥ ४ ॥
भिनित मोिर िसव कृ पाँ िबभाती । सिस समाज िमिल मनहँु सुराती ॥
जे एिह कथिह सनेह समेता । किहहिहं सुिनहिहं समुिझ सचेता ॥ ५ ॥

Read Ramcharitmanas online at www.swargarohan.org


रामचिरतमानस - 13 - बालकांड

होइहिहं राम चरन अनुरागी । किल मल रिहत सुमंगल भागी ॥ ६ ॥

दोहरा
सपनेहुँ साचेहुँ मोिह पर जौं हर गौिर पसाउ ।
तौ फुर होउ जो कहे उँ सब भाषा भिनित भाउ ॥ १५ ॥

बंदउँ अवध पुरी अित पाविन । सरजू सिर किल कलुष नसाविन ॥
नवउँ पुर नर नािर बहोरी । ममता िजन्ह पर भुिह न थोरी ॥ १ ॥
िसय िनंदक अघ ओघ नसाए । लोक िबसोक बनाइ बसाए ॥
बंदउँ कौसल्या िदिस ाची । कीरित जासु सकल जग माची ॥ २ ॥
गटे उ जहँ रघुपित सिस चारू । िबस्व सुखद खल कमल तुसारू ॥
दसरथ राउ सिहत सब रानी । सुकृत सुमंगल मूरित मानी ॥ ३ ॥
करउँ नाम करम मन बानी । करहु कृ पा सुत सेवक जानी ॥
िजन्हिह िबरिच बड़ भयउ िबधाता । मिहमा अविध राम िपतु माता ॥४ ॥

सोरठा
बंदउँ अवध भुआल सत्य ेम जेिह राम पद ।

िबछरत दीनदयाल ि य तनु तृन इव पिरहरे उ ॥ १६ ॥

नवउँ पिरजन सिहत िबदे हू । जािह राम पद गूढ़ सनेहू ॥


जोग भोग महँ राखेउ गोई । राम िबलोकत गटे उ सोई ॥ १ ॥
नवउँ थम भरत के चरना । जासु नेम त जाइ न बरना ॥
राम चरन पंकज मन जासू । लुबुध मधुप इव तजइ न पासू ॥ २ ॥
बंदउँ लिछमन पद जलजाता । सीतल सुभग भगत सुख दाता ॥
रघुपित कीरित िबमल पताका । दं ड समान भयउ जस जाका ॥ ३ ॥
सेष सह सीस जग कारन । जो अवतरे उ भूिम भय टारन ॥
सदा सो सानुकूल रह मो पर । कृ पािसंधु सौिमि गुनाकर ॥ ४ ॥
िरपुसूदन पद कमल नमामी । सूर सुसील भरत अनुगामी ॥
महावीर िबनवउँ हनुमाना । राम जासु जस आप बखाना ॥ ५ ॥

Read Ramcharitmanas online at www.swargarohan.org


रामचिरतमानस - 14 - बालकांड

सोरठा
नवउँ पवनकुमार खल बन पावक ग्यानधन ।
जासु हृदय आगार बसिहं राम सर चाप धर ॥ १७ ॥

किपपित रीछ िनसाचर राजा । अंगदािद जे कीस समाजा ॥


बंदउँ सब के चरन सुहाए । अधम सरीर राम िजन्ह पाए ॥ १ ॥
रघुपित चरन उपासक जेते । खग मृग सुर नर असुर समेते ॥
बंदउँ पद सरोज सब केरे । जे िबनु काम राम के चेरे ॥ २ ॥
सुक सनकािद भगत मुिन नारद । जे मुिनबर िबग्यान िबसारद ॥
नवउँ सबिहं धरिन धिर सीसा । करहु कृ पा जन जािन मुनीसा ॥ ३ ॥
जनकसुता जग जनिन जानकी । अितसय ि य करुना िनधान की ॥
ताके जुग पद कमल मनावउँ । जासु कृ पाँ िनरमल मित पावउँ ॥ ४ ॥
पुिन मन बचन कमर् रघुनायक । चरन कमल बंदउँ सब लायक ॥
रािजवनयन धरें धनु सायक । भगत िबपित भंजन सुख दायक ॥ ५ ॥

दोहरा
िगरा अरथ जल बीिच सम किहअत िभन्न न िभन्न ।
बदउँ सीता राम पद िजन्हिह परम ि य िखन्न ॥ १८ ॥

बंदउँ नाम राम रघुवर को । हे तु कृ सानु भानु िहमकर को ॥


िबिध हिर हरमय बेद ान सो । अगुन अनूपम गुन िनधान सो ॥ १ ॥
महामं जोइ जपत महे सू । कासीं मुकुित हे तु उपदे सू ॥
मिहमा जासु जान गनराउ । थम पूिजअत नाम भाऊ ॥ २ ॥
जान आिदकिब नाम तापू । भयउ सु किर उलटा जापू ॥
सहस नाम सम सुिन िसव बानी । जिप जेई िपय संग भवानी ॥ ३ ॥
हरषे हे तु हे िर हर ही को । िकय भूषन ितय भूषन ती को ॥
नाम भाउ जान िसव नीको । कालकूट फलु दीन्ह अमी को ॥ ४ ॥

दोहरा

Read Ramcharitmanas online at www.swargarohan.org


रामचिरतमानस - 15 - बालकांड

बरषा िरतु रघुपित भगित तुलसी सािल सुदास ॥


राम नाम बर बरन जुग सावन भादव मास ॥ १९ ॥

आखर मधुर मनोहर दोऊ । बरन िबलोचन जन िजय जोऊ ॥


सुिमरत सुलभ सुखद सब काहू । लोक लाहु परलोक िनबाहू ॥ १ ॥
कहत सुनत सुिमरत सुिठ नीके । राम लखन सम ि य तुलसी के ॥
बरनत बरन ीित िबलगाती । जीव सम सहज सँघाती ॥ २ ॥
नर नारायन सिरस सु ाता । जग पालक िबसेिष जन ाता ॥
भगित सुितय कल करन िबभूषन । जग िहत हे तु िबमल िबधु पूषन ॥३॥
स्वाद तोष सम सुगित सुधा के । कमठ सेष सम धर बसुधा के ॥
जन मन मंजु कंज मधुकर से । जीह जसोमित हिर हलधर से ॥ ४ ॥

दोहरा
एकु छ ु एकु मुकुटमिन सब बरनिन पर जोउ ।
तुलसी रघुबर नाम के बरन िबराजत दोउ ॥ २० ॥

समुझत सिरस नाम अरु नामी । ीित परसपर भु अनुगामी ॥


नाम रूप दइ
ु ईस उपाधी । अकथ अनािद सुसामुिझ साधी ॥ १ ॥
को बड़ छोट कहत अपराधू । सुिन गुन भेद समुिझहिहं साधू ॥
दे िखअिहं रूप नाम आधीना । रूप ग्यान निहं नाम िबहीना ॥ २ ॥
रूप िबसेष नाम िबनु जानें । करतल गत न परिहं पिहचानें ॥
सुिमिरअ नाम रूप िबनु दे खें । आवत हृदयँ सनेह िबसेषें ॥ ३ ॥
नाम रूप गित अकथ कहानी । समुझत सुखद न परित बखानी ॥
अगुन सगुन िबच नाम सुसाखी । उभय बोधक चतुर दभाषी
ु ॥ ४ ॥

दोहरा
राम नाम मिनदीप धरु जीह दे हरी ार ।
तुलसी भीतर बाहे रहँु जौं चाहिस उिजआर ॥ २१ ॥

Read Ramcharitmanas online at www.swargarohan.org


रामचिरतमानस - 16 - बालकांड

नाम जीहँ जिप जागिहं जोगी । िबरित िबरं िच पंच िबयोगी ॥


सुखिह अनुभविहं अनूपा । अकथ अनामय नाम न रूपा ॥ १ ॥
जाना चहिहं गूढ़ गित जेऊ । नाम जीहँ जिप जानिहं तेऊ ॥
साधक नाम जपिहं लय लाएँ । होिहं िस अिनमािदक पाएँ ॥ २ ॥
जपिहं नामु जन आरत भारी । िमटिहं कुसंकट होिहं सुखारी ॥
राम भगत जग चािर कारा । सुकृती चािरउ अनघ उदारा ॥ ३ ॥
चहू चतुर कहँु नाम अधारा । ग्यानी भुिह िबसेिष िपआरा ॥
चहँु जुग चहँु िु त ना भाऊ । किल िबसेिष निहं आन उपाऊ ॥ ४ ॥

दोहरा
सकल कामना हीन जे राम भगित रस लीन ।
नाम सु ेम िपयूष हद ितन्हहँु िकए मन मीन ॥ २२ ॥

अगुन सगुन दइ
ु सरूपा । अकथ अगाध अनािद अनूपा ॥
मोरें मत बड़ नामु दह
ु ू तें । िकए जेिहं जुग िनज बस िनज बूतें ॥ १ ॥
ोिढ़ सुजन जिन जानिहं जन की । कहउँ तीित ीित रुिच मन की ॥
एकु दारुगत दे िखअ एकू । पावक सम जुग िबबेकू ॥ २ ॥
उभय अगम जुग सुगम नाम तें । कहे उँ नामु बड़ राम तें ॥
ब्यापकु एकु अिबनासी । सत चेतन धन आनँद रासी ॥ ३ ॥
अस भु हृदयँ अछत अिबकारी । सकल जीव जग दीन दखारी
ु ॥
नाम िनरूपन नाम जतन तें । सोउ गटत िजिम मोल रतन तें ॥ ४ ॥

दोहरा
िनरगुन तें एिह भाँित बड़ नाम भाउ अपार ।
कहउँ नामु बड़ राम तें िनज िबचार अनुसार ॥ २३ ॥

राम भगत िहत नर तनु धारी । सिह संकट िकए साधु सुखारी ॥
नामु स ेम जपत अनयासा । भगत होिहं मुद मंगल बासा ॥ १ ॥

Read Ramcharitmanas online at www.swargarohan.org


रामचिरतमानस - 17 - बालकांड

राम एक तापस ितय तारी । नाम कोिट खल कुमित सुधारी ॥


िरिष िहत राम सुकेतुसुता की । सिहत सेन सुत कीन्ह िबबाकी ॥ २ ॥
सिहत दोष दख
ु दास दरासा
ु । दलइ नामु िजिम रिब िनिस नासा ॥
भंजेउ राम आपु भव चापू । भव भय भंजन नाम तापू ॥ ३ ॥
दं डक बनु भु कीन्ह सुहावन । जन मन अिमत नाम िकए पावन ॥ ।
िनिसचर िनकर दले रघुनंदन । नामु सकल किल कलुष िनकंदन ॥ ४ ॥

दोहरा
सबरी गीध सुसेवकिन सुगित दीिन्ह रघुनाथ ।
नाम उधारे अिमत खल बेद िबिदत गुन गाथ ॥ २४ ॥

राम सुकंठ िबभीषन दोऊ । राखे सरन जान सबु कोऊ ॥


नाम गरीब अनेक नेवाजे । लोक बेद बर िबिरद िबराजे ॥ १ ॥
राम भालु किप कटकु बटोरा । सेतु हे तु मु कीन्ह न थोरा ॥
नामु लेत भविसंधु सुखाहीं । करहु िबचारु सुजन मन माहीं ॥ २ ॥
राम सकुल रन रावनु मारा । सीय सिहत िनज पुर पगु धारा ॥
राजा रामु अवध रजधानी । गावत गुन सुर मुिन बर बानी ॥ ३ ॥
सेवक सुिमरत नामु स ीती । िबनु म बल मोह दलु जीती ॥
िफरत सनेहँ मगन सुख अपनें । नाम साद सोच निहं सपनें ॥ ४ ॥

दोहरा
राम तें नामु बड़ बर दायक बर दािन ।
रामचिरत सत कोिट महँ िलय महे स िजयँ जािन ॥ २५ ॥

मासपारायण, पहला िव ाम

नाम साद संभु अिबनासी। साजु अमंगल मंगल रासी ॥


सुक सनकािद िस मुिन जोगी । नाम साद सुख भोगी ॥ १ ॥
नारद जानेउ नाम तापू । जग ि य हिर हिर हर ि य आपू ॥
नामु जपत भु कीन्ह साद ू । भगत िसरोमिन भे हलाद ू ॥ २ ॥

Read Ramcharitmanas online at www.swargarohan.org


रामचिरतमानस - 18 - बालकांड


ु ँ सगलािन जपेउ हिर नाऊँ । पायउ अचल अनूपम ठाऊँ ॥
सुिमिर पवनसुत पावन नामू । अपने बस किर राखे रामू ॥ ३ ॥
अपतु अजािमलु गजु गिनकाऊ । भए मुकुत हिर नाम भाऊ ॥
कहौं कहाँ लिग नाम बड़ाई । रामु न सकिहं नाम गुन गाई ॥ ४ ॥

दोहरा
नामु राम को कलपतरु किल कल्यान िनवासु ।
जो सुिमरत भयो भाँग तें तुलसी तुलसीदासु ॥ २६ ॥

चहँु जुग तीिन काल ितहँु लोका । भए नाम जिप जीव िबसोका ॥
बेद पुरान संत मत एहू । सकल सुकृत फल राम सनेहू ॥ १ ॥
ध्यानु थम जुग मखिबिध दजें
ू । ापर पिरतोषत भु पूजें ॥
किल केवल मल मूल मलीना । पाप पयोिनिध जन जन मीना ॥ २ ॥
नाम कामतरु काल कराला । सुिमरत समन सकल जग जाला ॥
राम नाम किल अिभमत दाता । िहत परलोक लोक िपतु माता ॥ ३ ॥
निहं किल करम न भगित िबबेकू । राम नाम अवलंबन एकू ॥
कालनेिम किल कपट िनधानू । नाम सुमित समरथ हनुमानू ॥ ४ ॥

दोहरा
राम नाम नरकेसरी कनककिसपु किलकाल ।
जापक जन हलाद िजिम पािलिह दिल सुरसाल ॥ २७ ॥

भायँ कुभायँ अनख आलसहँू । नाम जपत मंगल िदिस दसहँू ॥


सुिमिर सो नाम राम गुन गाथा । करउँ नाइ रघुनाथिह माथा ॥ १ ॥
मोिर सुधािरिह सो सब भाँती । जासु कृ पा निहं कृ पाँ अघाती ॥
राम सुस्वािम कुसेवकु मोसो । िनज िदिस दै िख दयािनिध पोसो ॥ २ ॥
लोकहँु बेद सुसािहब रीतीं । िबनय सुनत पिहचानत ीती ॥
गनी गरीब ामनर नागर । पंिडत मूढ़ मलीन उजागर ॥ ३ ॥

Read Ramcharitmanas online at www.swargarohan.org


रामचिरतमानस - 19 - बालकांड

सुकिब कुकिब िनज मित अनुहारी । नृपिह सराहत सब नर नारी ॥


साधु सुजान सुसील नृपाला । ईस अंस भव परम कृ पाला ॥ ४ ॥
सुिन सनमानिहं सबिह सुबानी । भिनित भगित नित गित पिहचानी ॥
यह ाकृ त मिहपाल सुभाऊ । जान िसरोमिन कोसलराऊ ॥ ५ ॥
रीझत राम सनेह िनसोतें । को जग मंद मिलनमित मोतें ॥ ६ ॥

दोहरा
सठ सेवक की ीित रुिच रिखहिहं राम कृ पालु ।
उपल िकए जलजान जेिहं सिचव सुमित किप भालु ॥ २८(क) ॥

हौहु कहावत सबु कहत राम सहत उपहास ।


सािहब सीतानाथ सो सेवक तुलसीदास ॥ २८(ख) ॥

अित बिड़ मोिर िढठाई खोरी । सुिन अघ नरकहँु नाक सकोरी ॥


समुिझ सहम मोिह अपडर अपनें । सो सुिध राम कीिन्ह निहं सपनें ॥१॥
सुिन अवलोिक सुिचत चख चाही । भगित मोिर मित स्वािम सराही ॥
कहत नसाइ होइ िहयँ नीकी । रीझत राम जािन जन जी की ॥ २ ॥
रहित न भु िचत चूक िकए की । करत सुरित सय बार िहए की ॥
जेिहं अघ बधेउ ब्याध िजिम बाली। िफिर सुकंठ सोइ कीन्ह कुचाली ॥३॥
सोइ करतूित िबभीषन केरी । सपनेहुँ सो न राम िहयँ हे री ॥
ते भरतिह भेंटत सनमाने । राजसभाँ रघुबीर बखाने ॥ ४ ॥

दोहरा
भु तरु तर किप डार पर ते िकए आपु समान ॥
तुलसी कहँू न राम से सािहब सीलिनधान ॥ २९(क) ॥

राम िनकाईं रावरी है सबही को नीक ।


जों यह साँची है सदा तौ नीको तुलसीक ॥ २९(ख) ॥

एिह िबिध िनज गुन दोष किह सबिह बहिर


ु िसरु नाइ ।

Read Ramcharitmanas online at www.swargarohan.org


रामचिरतमानस - 20 - बालकांड

बरनउँ रघुबर िबसद जसु सुिन किल कलुष नसाइ ॥ २९(ग) ॥

जागबिलक जो कथा सुहाई । भर ाज मुिनबरिह सुनाई ॥


किहहउँ सोइ संबाद बखानी । सुनहँु सकल सज्जन सुखु मानी ॥ १ ॥
संभु कीन्ह यह चिरत सुहावा । बहिर
ु कृ पा किर उमिह सुनावा ॥
सोइ िसव कागभुसिुं डिह दीन्हा । राम भगत अिधकारी चीन्हा ॥ २ ॥
तेिह सन जागबिलक पुिन पावा । ितन्ह पुिन भर ाज ित गावा ॥
ते ोता बकता समसीला । सवँदरसी जानिहं हिरलीला ॥ ३ ॥
जानिहं तीिन काल िनज ग्याना । करतल गत आमलक समाना ॥
औरउ जे हिरभगत सुजाना । कहिहं सुनिहं समुझिहं िबिध नाना ॥ ४ ॥

दोहरा
मै पुिन िनज गुर सन सुनी कथा सो सूकरखेत ।
समुझी निह तिस बालपन तब अित रहे उँ अचेत ॥ ३०(क) ॥

ोता बकता ग्यानिनिध कथा राम कै गूढ़ ।


िकिम समुझौं मै जीव जड़ किल मल िसत िबमूढ़ ॥ ३०(ख)

तदिप कही गुर बारिहं बारा । समुिझ परी कछु मित अनुसारा ॥
भाषाब करिब मैं सोई । मोरें मन बोध जेिहं होई ॥ १ ॥
जस कछु बुिध िबबेक बल मेरें । तस किहहउँ िहयँ हिर के ेरें ॥
िनज संदेह मोह म हरनी । करउँ कथा भव सिरता तरनी ॥ २ ॥
बुध िब ाम सकल जन रं जिन । रामकथा किल कलुष िबभंजिन ॥
रामकथा किल पंनग भरनी । पुिन िबबेक पावक कहँु अरनी ॥ ३ ॥
रामकथा किल कामद गाई । सुजन सजीविन मूिर सुहाई ॥
सोइ बसुधातल सुधा तरं िगिन । भय भंजिन म भेक भुअंिगिन ॥ ४ ॥
असुर सेन सम नरक िनकंिदिन । साधु िबबुध कुल िहत िगिरनंिदिन ॥
संत समाज पयोिध रमा सी । िबस्व भार भर अचल छमा सी ॥ ५ ॥

Read Ramcharitmanas online at www.swargarohan.org


रामचिरतमानस - 21 - बालकांड

जम गन मुहँ मिस जग जमुना सी । जीवन मुकुित हे तु जनु कासी ॥


रामिह ि य पाविन तुलसी सी । तुलिसदास िहत िहयँ हलसी
ु सी ॥ ६ ॥
िसव य मेकल सैल सुता सी । सकल िसि सुख संपित रासी ॥
सदगुन सुरगन अंब अिदित सी । रघुबर भगित ेम परिमित सी ॥ ७ ॥

दोहरा
राम कथा मंदािकनी िच कूट िचत चारु ।
तुलसी सुभग सनेह बन िसय रघुबीर िबहारु ॥ ३१ ॥

राम चिरत िचंतामिन चारू । संत सुमित ितय सुभग िसंगारू ॥


जग मंगल गुन ाम राम के । दािन मुकुित धन धरम धाम के ॥ १ ॥
सदगुर ग्यान िबराग जोग के । िबबुध बैद भव भीम रोग के ॥
जनिन जनक िसय राम ेम के । बीज सकल त धरम नेम के ॥ २ ॥
समन पाप संताप सोक के । ि य पालक परलोक लोक के ॥
सिचव सुभट भूपित िबचार के । कुंभज लोभ उदिध अपार के ॥ ३ ॥
काम कोह किलमल किरगन के । केहिर सावक जन मन बन के ॥
अितिथ पूज्य ि यतम पुरािर के । कामद घन दािरद दवािर के ॥ ४ ॥
मं महामिन िबषय ब्याल के । मेटत किठन कुअंक भाल के ॥
हरन मोह तम िदनकर कर से । सेवक सािल पाल जलधर से ॥ ५ ॥
अिभमत दािन दे वतरु बर से । सेवत सुलभ सुखद हिर हर से ॥
सुकिब सरद नभ मन उडगन से । रामभगत जन जीवन धन से ॥ ६ ॥
सकल सुकृत फल भूिर भोग से । जग िहत िनरुपिध साधु लोग से ॥
सेवक मन मानस मराल से । पावक गंग तंरग माल से ॥ ७ ॥

दोहरा
कुपथ कुतरक कुचािल किल कपट दं भ पाषंड ।
दहन राम गुन ाम िजिम इं धन अनल चंड ॥ ३२(क) ॥

रामचिरत राकेस कर सिरस सुखद सब काहु ।

Read Ramcharitmanas online at www.swargarohan.org


रामचिरतमानस - 22 - बालकांड

सज्जन कुमुद चकोर िचत िहत िबसेिष बड़ लाहु ॥ ३२(ख) ॥

कीिन्ह स्न जेिह भाँित भवानी । जेिह िबिध संकर कहा बखानी ॥
सो सब हे तु कहब मैं गाई । कथा बंध िबिच बनाई ॥ १ ॥
जेिह यह कथा सुनी निहं होई । जिन आचरजु करैं सुिन सोई ॥
कथा अलौिकक सुनिहं जे ग्यानी । निहं आचरजु करिहं अस जानी ॥२ ॥
रामकथा कै िमित जग नाहीं । अिस तीित ितन्ह के मन माहीं ॥
नाना भाँित राम अवतारा । रामायन सत कोिट अपारा ॥ ३ ॥
कलपभेद हिरचिरत सुहाए । भाँित अनेक मुनीसन्ह गाए ॥
किरअ न संसय अस उर आनी । सुिनअ कथा सारद रित मानी ॥ ४ ॥

दोहरा
राम अनंत अनंत गुन अिमत कथा िबस्तार ।
सुिन आचरजु न मािनहिहं िजन्ह कें िबमल िबचार ॥ ३३ ॥

एिह िबिध सब संसय किर दरी


ू । िसर धिर गुर पद पंकज धूरी ॥
पुिन सबही िबनवउँ कर जोरी । करत कथा जेिहं लाग न खोरी ॥ १ ॥
सादर िसविह नाइ अब माथा । बरनउँ िबसद राम गुन गाथा ॥
संबत सोरह सै एकतीसा । करउँ कथा हिर पद धिर सीसा ॥ २ ॥
नौमी भौम बार मधु मासा । अवधपुरीं यह चिरत कासा ॥
जेिह िदन राम जनम िु त गाविहं । तीरथ सकल तहाँ चिल आविहं ॥३॥
असुर नाग खग नर मुिन दे वा । आइ करिहं रघुनायक सेवा ॥
जन्म महोत्सव रचिहं सुजाना । करिहं राम कल कीरित गाना ॥ ४ ॥

दोहरा
मज्जिह सज्जन बृंद बहु पावन सरजू नीर ।
जपिहं राम धिर ध्यान उर सुंदर स्याम सरीर ॥ ३४ ॥

दरस परस मज्जन अरु पाना । हरइ पाप कह बेद पुराना ॥


नदी पुनीत अिमत मिहमा अित । किह न सकइ सारद िबमलमित ॥ १ ॥

Read Ramcharitmanas online at www.swargarohan.org


रामचिरतमानस - 23 - बालकांड

राम धामदा पुरी सुहाविन । लोक समस्त िबिदत अित पाविन ॥


चािर खािन जग जीव अपारा । अवध तजे तनु निह संसारा ॥ २ ॥
सब िबिध पुरी मनोहर जानी । सकल िसि द मंगल खानी ॥
िबमल कथा कर कीन्ह अरं भा । सुनत नसािहं काम मद दं भा ॥ ३ ॥
रामचिरतमानस एिह नामा । सुनत वन पाइअ िब ामा ॥
मन किर िवषय अनल बन जरई । होइ सुखी जौ एिहं सर परई ॥ ४ ॥
रामचिरतमानस मुिन भावन । िबरचेउ संभु सुहावन पावन ॥
ि िबध दोष दख
ु दािरद दावन । किल कुचािल कुिल कलुष नसावन ॥५ ॥
रिच महे स िनज मानस राखा । पाइ सुसमउ िसवा सन भाषा ॥
तातें रामचिरतमानस बर । धरे उ नाम िहयँ हे िर हरिष हर ॥ ६ ॥
कहउँ कथा सोइ सुखद सुहाई । सादर सुनहु सुजन मन लाई ॥ ७ ॥

दोहरा
जस मानस जेिह िबिध भयउ जग चार जेिह हे तु ।
अब सोइ कहउँ संग सब सुिमिर उमा बृषकेतु ॥ ३५ ॥

संभु साद सुमित िहयँ हलसी


ु । रामचिरतमानस किब तुलसी ॥
करइ मनोहर मित अनुहारी । सुजन सुिचत सुिन लेहु सुधारी ॥ १ ॥
सुमित भूिम थल हृदय अगाधू । बेद पुरान उदिध घन साधू ॥
बरषिहं राम सुजस बर बारी । मधुर मनोहर मंगलकारी ॥ २ ॥
लीला सगुन जो कहिहं बखानी । सोइ स्वच्छता करइ मल हानी ॥
ेम भगित जो बरिन न जाई । सोइ मधुरता सुसीतलताई ॥ ३ ॥
सो जल सुकृत सािल िहत होई । राम भगत जन जीवन सोई ॥
मेधा मिह गत सो जल पावन । सिकिल वन मग चलेउ सुहावन ॥४ ॥
भरे उ सुमानस सुथल िथराना । सुखद सीत रुिच चारु िचराना ॥ ५ ॥

दोहरा
सुिठ सुद
ं र संबाद बर िबरचे बुि िबचािर ।
तेइ एिह पावन सुभग सर घाट मनोहर चािर ॥ ३६ ॥

Read Ramcharitmanas online at www.swargarohan.org


रामचिरतमानस - 24 - बालकांड

स बन्ध सुभग सोपाना । ग्यान नयन िनरखत मन माना ॥


रघुपित मिहमा अगुन अबाधा । बरनब सोइ बर बािर अगाधा ॥ १ ॥
राम सीय जस सिलल सुधासम । उपमा बीिच िबलास मनोरम ॥
पुरइिन सघन चारु चौपाई । जुगुित मंजु मिन सीप सुहाई ॥ २ ॥
छं द सोरठा सुंदर दोहा । सोइ बहरंु ग कमल कुल सोहा ॥
अरथ अनूप सुमाव सुभासा । सोइ पराग मकरं द सुबासा ॥ ३ ॥
सुकृत पुंज मंजुल अिल माला । ग्यान िबराग िबचार मराला ॥
धुिन अवरे ब किबत गुन जाती । मीन मनोहर ते बहभाँ
ु ती ॥ ४ ॥
अरथ धरम कामािदक चारी । कहब ग्यान िबग्यान िबचारी ॥
नव रस जप तप जोग िबरागा । ते सब जलचर चारु तड़ागा ॥ ५ ॥
सुकृती साधु नाम गुन गाना । ते िबिच जल िबहग समाना ॥
संतसभा चहँु िदिस अवँराई । ा िरतु बसंत सम गाई ॥ ६ ॥
भगित िनरुपन िबिबध िबधाना । छमा दया दम लता िबताना ॥
सम जम िनयम फूल फल ग्याना । हिर पत रित रस बेद बखाना ॥७ ॥
औरउ कथा अनेक संगा । तेइ सुक िपक बहबरन
ु िबहं गा ॥ ८ ॥

दोहरा
पुलक बािटका बाग बन सुख सुिबहं ग िबहारु ।
माली सुमन सनेह जल सींचत लोचन चारु ॥ ३७ ॥

जे गाविहं यह चिरत सँभारे । तेइ एिह ताल चतुर रखवारे ॥


सदा सुनिहं सादर नर नारी । तेइ सुरबर मानस अिधकारी ॥ १ ॥
अित खल जे िबषई बग कागा । एिहं सर िनकट न जािहं अभागा ॥
संबुक भेक सेवार समाना । इहाँ न िबषय कथा रस नाना ॥ २ ॥
तेिह कारन आवत िहयँ हारे । कामी काक बलाक िबचारे ॥
आवत एिहं सर अित किठनाई । राम कृ पा िबनु आइ न जाई ॥ ३ ॥
किठन कुसंग कुपंथ कराला । ितन्ह के बचन बाघ हिर ब्याला ॥
गृह कारज नाना जंजाला । ते अित दगर्
ु म सैल िबसाला ॥ ४ ॥

Read Ramcharitmanas online at www.swargarohan.org


रामचिरतमानस - 25 - बालकांड

बन बहु िबषम मोह मद माना । नदीं कुतकर् भयंकर नाना ॥ ५ ॥

दोहरा
जे ा संबल रिहत निह संतन्ह कर साथ ।
ितन्ह कहँु मानस अगम अित िजन्हिह न ि य रघुनाथ ॥ ३८ ॥

जौं किर क जाइ पुिन कोई । जातिहं नींद जुड़ाई होई ॥


जड़ता जाड़ िबषम उर लागा । गएहँु न मज्जन पाव अभागा ॥ १ ॥
किर न जाइ सर मज्जन पाना । िफिर आवइ समेत अिभमाना ॥
जौं बहोिर कोउ पूछन आवा । सर िनंदा किर तािह बुझावा ॥ २ ॥
सकल िबघ्न ब्यापिह निहं तेही । राम सुकृपाँ िबलोकिहं जेही ॥
सोइ सादर सर मज्जनु करई । महा घोर यताप न जरई ॥ ३ ॥
ते नर यह सर तजिहं न काऊ । िजन्ह के राम चरन भल भाऊ ॥
जो नहाइ चह एिहं सर भाई । सो सतसंग करउ मन लाई ॥ ४ ॥
अस मानस मानस चख चाही । भइ किब बुि िबमल अवगाही ॥
भयउ हृदयँ आनंद उछाहू । उमगेउ ेम मोद बाहू ॥ ५ ॥
चली सुभग किबता सिरता सो । राम िबमल जस जल भिरता सो ॥
सरजू नाम सुमंगल मूला । लोक बेद मत मंजुल कूला ॥ ६ ॥
नदी पुनीत सुमानस नंिदिन । किलमल तृन तरु मूल िनकंिदिन ॥ ७ ॥

दोहरा
ोता ि िबध समाज पुर ाम नगर दहँु ु कूल ।
संतसभा अनुपम अवध सकल सुमग
ं ल मूल ॥ ३९ ॥

रामभगित सुरसिरतिह जाई । िमली सुकीरित सरजु सुहाई ॥


सानुज राम समर जसु पावन । िमलेउ महानद ु सोन सुहावन ॥ १ ॥
जुग िबच भगित दे वधुिन धारा । सोहित सिहत सुिबरित िबचारा ॥
ि िबध ताप ासक ितमुहानी । राम सरुप िसंधु समुहानी ॥ २ ॥

Read Ramcharitmanas online at www.swargarohan.org


रामचिरतमानस - 26 - बालकांड

मानस मूल िमली सुरसिरही । सुनत सुजन मन पावन किरही ॥


िबच िबच कथा िबिच िबभागा । जनु सिर तीर तीर बन बागा ॥ ३ ॥
उमा महे स िबबाह बराती । ते जलचर अगिनत बहभाँ
ु ती ॥
रघुबर जनम अनंद बधाई । भवँर तरं ग मनोहरताई ॥ ४ ॥

दोहरा
बालचिरत चहु बंधु के बनज िबपुल बहरंु ग ।
नृप रानी पिरजन सुकृत मधुकर बािरिबहं ग ॥ ४० ॥

सीय स्वयंबर कथा सुहाई । सिरत सुहाविन सो छिब छाई ॥


नदी नाव पटु स्न अनेका । केवट कुसल उतर सिबबेका ॥ १ ॥
सुिन अनुकथन परस्पर होई । पिथक समाज सोह सिर सोई ॥
घोर धार भृगुनाथ िरसानी । घाट सुब राम बर बानी ॥ २ ॥
सानुज राम िबबाह उछाहू । सो सुभ उमग सुखद सब काहू ॥
कहत सुनत हरषिहं पुलकाहीं । ते सुकृती मन मुिदत नहाहीं ॥ ३ ॥
राम ितलक िहत मंगल साजा । परब जोग जनु जुरे समाजा ॥
काई कुमित केकई केरी । परी जासु फल िबपित घनेरी ॥ ४ ॥

दोहरा
समन अिमत उतपात सब भरतचिरत जपजाग ।
किल अघ खल अवगुन कथन ते जलमल बग काग ॥ ४१ ॥

कीरित सिरत छहँू िरतु रूरी । समय सुहाविन पाविन भूरी ॥


िहम िहमसैलसुता िसव ब्याहू । िसिसर सुखद भु जनम उछाहू ॥ १ ॥
बरनब राम िबबाह समाजू । सो मुद मंगलमय िरतुराजू ॥
ीषम दसह
ु राम बनगवनू । पंथकथा खर आतप पवनू ॥ २ ॥
बरषा घोर िनसाचर रारी । सुरकुल सािल सुमग
ं लकारी ॥
राम राज सुख िबनय बड़ाई । िबसद सुखद सोइ सरद सुहाई ॥ ३ ॥

Read Ramcharitmanas online at www.swargarohan.org


रामचिरतमानस - 27 - बालकांड

सती िसरोमिन िसय गुनगाथा । सोइ गुन अमल अनूपम पाथा ॥


भरत सुभाउ सुसीतलताई । सदा एकरस बरिन न जाई ॥ ४ ॥

दोहरा
अवलोकिन बोलिन िमलिन ीित परसपर हास ।
भायप भिल चहु बंधु की जल माधुरी सुबास ॥ ४२ ॥

आरित िबनय दीनता मोरी । लघुता लिलत सुबािर न थोरी ॥


अदभुत सिलल सुनत गुनकारी । आस िपआस मनोमल हारी ॥ १ ॥
राम सु ेमिह पोषत पानी । हरत सकल किल कलुष गलानौ ॥
भव म सोषक तोषक तोषा । समन दिरत
ु दख
ु दािरद दोषा ॥ २ ॥
काम कोह मद मोह नसावन । िबमल िबबेक िबराग बढ़ावन ॥
सादर मज्जन पान िकए तें । िमटिहं पाप पिरताप िहए तें ॥ ३ ॥
िजन्ह एिह बािर न मानस धोए । ते कायर किलकाल िबगोए ॥
तृिषत िनरिख रिब कर भव बारी । िफिरहिह मृग िजिम जीव दखारी
ु ॥४॥

दोहरा
मित अनुहािर सुबािर गुन गिन मन अन्हवाइ ।
सुिमिर भवानी संकरिह कह किब कथा सुहाइ ॥ ४३(क) ॥

अब रघुपित पद पंकरुह िहयँ धिर पाइ साद ।


कहउँ जुगल मुिनबजर् कर िमलन सुभग संबाद ॥ ४३(ख) ॥

भर ाज मुिन बसिहं यागा । ितन्हिह राम पद अित अनुरागा ॥


तापस सम दम दया िनधाना । परमारथ पथ परम सुजाना ॥ १ ॥
माघ मकरगत रिब जब होई । तीरथपितिहं आव सब कोई ॥
दे व दनुज िकंनर नर न
े ी । सादर मज्जिहं सकल ि बेनीं ॥ २ ॥
पूजिह माधव पद जलजाता । परिस अखय बटु हरषिहं गाता ॥
भर ाज आ म अित पावन । परम रम्य मुिनबर मन भावन ॥ ३ ॥

Read Ramcharitmanas online at www.swargarohan.org


रामचिरतमानस - 28 - बालकांड

तहाँ होइ मुिन िरषय समाजा । जािहं जे मज्जन तीरथराजा ॥


मज्जिहं ात समेत उछाहा । कहिहं परसपर हिर गुन गाहा ॥ ४ ॥

दोहरा
िनरूपम धरम िबिध बरनिहं त व िबभाग ।
कहिहं भगित भगवंत कै संजुत ग्यान िबराग ॥ ४४ ॥

एिह कार भिर माघ नहाहीं । पुिन सब िनज िनज आ म जाहीं ॥


ित संबत अित होइ अनंदा । मकर मिज्ज गवनिहं मुिनबृंदा ॥ १ ॥
एक बार भिर मकर नहाए । सब मुनीस आ मन्ह िसधाए ॥
जगबािलक मुिन परम िबबेकी । भरव्दाज राखे पद टे की ॥ २ ॥
सादर चरन सरोज पखारे । अित पुनीत आसन बैठारे ॥
किर पूजा मुिन सुजस बखानी । बोले अित पुनीत मृद ु बानी ॥ ३ ॥
नाथ एक संसउ बड़ मोरें । करगत बेदतत्व सबु तोरें ॥
कहत सो मोिह लागत भय लाजा । जौ न कहउँ बड़ होइ अकाजा ॥ ४ ॥

दोहरा
संत कहिह अिस नीित भु िु त पुरान मुिन गाव ।
होइ न िबमल िबबेक उर गुर सन िकएँ दराव
ु ॥ ४५ ॥

अस िबचािर गटउँ िनज मोहू । हरहु नाथ किर जन पर छोहू ॥


रास नाम कर अिमत भावा । संत पुरान उपिनषद गावा ॥ १ ॥
संतत जपत संभु अिबनासी । िसव भगवान ग्यान गुन रासी ॥
आकर चािर जीव जग अहहीं । कासीं मरत परम पद लहहीं ॥ २ ॥
सोिप राम मिहमा मुिनराया । िसव उपदे सु करत किर दाया ॥
रामु कवन भु पूछउँ तोही । किहअ बुझाइ कृ पािनिध मोही ॥ ३ ॥
एक राम अवधेस कुमारा । ितन्ह कर चिरत िबिदत संसारा ॥
नािर िबरहँ दखु
ु लहे उ अपारा । भयहु रोषु रन रावनु मारा ॥ ४ ॥

दोहरा

Read Ramcharitmanas online at www.swargarohan.org


रामचिरतमानस - 29 - बालकांड

भु सोइ राम िक अपर कोउ जािह जपत ि पुरािर ।


सत्यधाम सबर्ग्य तुम्ह कहहु िबबेकु िबचािर ॥ ४६ ॥

जैसे िमटै मोर म भारी । कहहु सो कथा नाथ िबस्तारी ॥


जागबिलक बोले मुसुकाई । तुम्हिह िबिदत रघुपित भुताई ॥ १ ॥
राममगत तुम्ह मन म बानी । चतुराई तुम्हारी मैं जानी ॥
चाहहु सुनै राम गुन गूढ़ा । कीिन्हहु स्न मनहँु अित मूढ़ा ॥ २ ॥
तात सुनहु सादर मनु लाई । कहउँ राम कै कथा सुहाई ॥
महामोहु मिहषेसु िबसाला । रामकथा कािलका कराला ॥ ३ ॥
रामकथा सिस िकरन समाना । संत चकोर करिहं जेिह पाना ॥
ऐसेइ संसय कीन्ह भवानी । महादे व तब कहा बखानी ॥ ४ ॥

दोहरा
कहउँ सो मित अनुहािर अब उमा संभु संबाद ।
भयउ समय जेिह हे तु जेिह सुनु मुिन िमिटिह िबषाद ॥ ४७ ॥

एक बार े ता जुग माहीं । संभु गए कुंभज िरिष पाहीं ॥


संग सती जगजनिन भवानी । पूजे िरिष अिखलेस्वर जानी ॥ १ ॥
रामकथा मुनीबजर् बखानी । सुनी महे स परम सुखु मानी ॥
िरिष पूछी हिरभगित सुहाई । कही संभु अिधकारी पाई ॥ २ ॥
कहत सुनत रघुपित गुन गाथा । कछु िदन तहाँ रहे िगिरनाथा ॥
मुिन सन िबदा मािग ि पुरारी । चले भवन सँग दच्छकुमारी ॥ ३ ॥
तेिह अवसर भंजन मिहभारा । हिर रघुबंस लीन्ह अवतारा ॥
िपता बचन तिज राजु उदासी । दं डक बन िबचरत अिबनासी ॥ ४ ॥

दोहरा
ह्दयँ िबचारत जात हर केिह िबिध दरसनु होइ ।
गु रुप अवतरे उ भु गएँ जान सबु कोइ ॥ ४८(क) ॥

सोरठा

Read Ramcharitmanas online at www.swargarohan.org


रामचिरतमानस - 30 - बालकांड

संकर उर अित छोभु सती न जानिहं मरमु सोइ ॥


तुलसी दरसन लोभु मन डरु लोचन लालची ॥ ४८(ख) ॥

रावन मरन मनुज कर जाचा । भु िबिध बचनु कीन्ह चह साचा ॥


जौं निहं जाउँ रहइ पिछतावा । करत िबचारु न बनत बनावा ॥ १ ॥
एिह िबिध भए सोचबस ईसा । तेिह समय जाइ दससीसा ॥
लीन्ह नीच मारीचिह संगा । भयउ तुरत सोइ कपट कुरं गा ॥ २ ॥
किर छलु मूढ़ हरी बैदेही । भु भाउ तस िबिदत न तेही ॥
मृग बिध बन्धु सिहत हिर आए । आ मु दे िख नयन जल छाए ॥ ३ ॥
िबरह िबकल नर इव रघुराई । खोजत िबिपन िफरत दोउ भाई ॥
कबहँू जोग िबयोग न जाकें । दे खा गट िबरह दख
ु ताकें ॥ ४ ॥

दोहरा
अित िविच रघुपित चिरत जानिहं परम सुजान ।
जे मितमंद िबमोह बस हृदयँ धरिहं कछु आन ॥ ४९ ॥

संभु समय तेिह रामिह दे खा । उपजा िहयँ अित हरपु िबसेषा ॥


भिर लोचन छिबिसंधु िनहारी । कुसमय जािनन कीिन्ह िचन्हारी ॥ १ ॥
जय सिच्चदानंद जग पावन । अस किह चलेउ मनोज नसावन ॥
चले जात िसव सती समेता । पुिन पुिन पुलकत कृ पािनकेता ॥ २ ॥
सतीं सो दसा संभु कै दे खी । उर उपजा संदेहु िबसेषी ॥
संकरु जगतबं जगदीसा । सुर नर मुिन सब नावत सीसा ॥ ३ ॥
ितन्ह नृपसुतिह नह परनामा । किह सिच्चदानंद परधमा ॥
भए मगन छिब तासु िबलोकी । अजहँु ीित उर रहित न रोकी ॥ ४ ॥

दोहरा
जो व्यापक िबरज अज अकल अनीह अभेद ।
सो िक दे ह धिर होइ नर जािह न जानत वेद ॥ ५० ॥

Read Ramcharitmanas online at www.swargarohan.org


रामचिरतमानस - 31 - बालकांड

िबष्नु जो सुर िहत नरतनु धारी । सोउ सबर्ग्य जथा ि पुरारी ॥


खोजइ सो िक अग्य इव नारी । ग्यानधाम ीपित असुरारी ॥ १ ॥
संभुिगरा पुिन मृषा न होई । िसव सबर्ग्य जान सबु कोई ॥
अस संसय मन भयउ अपारा । होई न हृदयँ बोध चारा ॥ २ ॥
ज िप गट न कहे उ भवानी । हर अंतरजामी सब जानी ॥
सुनिह सती तव नािर सुभाऊ । संसय अस न धिरअ उर काऊ ॥ ३ ॥
जासु कथा कुभंज िरिष गाई । भगित जासु मैं मुिनिह सुनाई ॥
सोउ मम इ दे व रघुबीरा । सेवत जािह सदा मुिन धीरा ॥ ४ ॥

छं द
मुिन धीर जोगी िस संतत िबमल मन जेिह ध्यावहीं ।
किह नेित िनगम पुरान आगम जासु कीरित गावहीं ॥
सोइ रामु ब्यापक भुवन िनकाय पित माया धनी ।
अवतरे उ अपने भगत िहत िनजतं िनत रघुकुलमिन ॥

सोरठा
लाग न उर उपदे सु जदिप कहे उ िसवँ बार बहु ।
बोले िबहिस महे सु हिरमाया बलु जािन िजयँ ॥ ५१ ॥

जौं तुम्हरें मन अित संदेहू । तौ िकन जाइ परीछा लेहू ॥


तब लिग बैठ अहउँ बटछािहं । जब लिग तुम्ह ऐहहु मोिह पाही ॥ १ ॥
जैसें जाइ मोह म भारी । करे हु सो जतनु िबबेक िबचारी ॥
चलीं सती िसव आयसु पाई । करिहं िबचारु करौं का भाई ॥ २ ॥
इहाँ संभु अस मन अनुमाना । दच्छसुता कहँु निहं कल्याना ॥
मोरे हु कहें न संसय जाहीं । िबधी िबपरीत भलाई नाहीं ॥ ३ ॥
होइिह सोइ जो राम रिच राखा । को किर तकर् बढ़ावै साखा ॥
अस किह लगे जपन हिरनामा । गई सती जहँ भु सुखधामा ॥ ४ ॥

दोहरा

Read Ramcharitmanas online at www.swargarohan.org


रामचिरतमानस - 32 - बालकांड

पुिन पुिन हृदयँ िवचारु किर धिर सीता कर रुप ।


आगें होइ चिल पंथ तेिह जेिहं आवत नरभूप ॥ ५२ ॥

लिछमन दीख उमाकृ त बेषा चिकत भए म हृदयँ िबसेषा ॥


किह न सकत कछु अित गंभीरा । भु भाउ जानत मितधीरा ॥ १ ॥
सती कपटु जानेउ सुरस्वामी । सबदरसी सब अंतरजामी ॥
सुिमरत जािह िमटइ अग्याना । सोइ सरबग्य रामु भगवाना ॥ २ ॥
सती कीन्ह चह तहँ हुँ दराऊ
ु । दे खहु नािर सुभाव भाऊ ॥
िनज माया बलु हृदयँ बखानी । बोले िबहिस रामु मृद ु बानी ॥ ३ ॥
जोिर पािन भु कीन्ह नामू । िपता समेत लीन्ह िनज नामू ॥
कहे उ बहोिर कहाँ बृषकेतू । िबिपन अकेिल िफरहु केिह हे तू ॥ ४ ॥

दोहरा
राम बचन मृद ु गूढ़ सुिन उपजा अित संकोचु ।
सती सभीत महे स पिहं चलीं हृदयँ बड़ सोचु ॥ ५३ ॥

मैं संकर कर कहा न माना । िनज अग्यानु राम पर आना ॥


जाइ उतरु अब दे हउँ काहा । उर उपजा अित दारुन दाहा ॥ १ ॥
जाना राम सतीं दखु
ु पावा । िनज भाउ कछु गिट जनावा ॥
सतीं दीख कौतुकु मग जाता । आगें रामु सिहत ी ाता ॥ २ ॥
िफिर िचतवा पाछें भु दे खा । सिहत बंधु िसय सुंदर वेषा ॥
जहँ िचतविहं तहँ भु आसीना । सेविहं िस मुनीस बीना ॥ ३ ॥
दे खे िसव िबिध िबष्नु अनेका । अिमत भाउ एक तें एका ॥
बंदत चरन करत भु सेवा । िबिबध बेष दे खे सब दे वा ॥ ४ ॥

दोहरा
सती िबधा ी इं िदरा दे खीं अिमत अनूप ।
जेिहं जेिहं बेष अजािद सुर तेिह तेिह तन अनुरूप ॥ ५४ ॥

Read Ramcharitmanas online at www.swargarohan.org


रामचिरतमानस - 33 - बालकांड

दे खे जहँ तहँ रघुपित जेते । सि न्ह सिहत सकल सुर तेते ॥


जीव चराचर जो संसारा । दे खे सकल अनेक कारा ॥ १ ॥
पूजिहं भुिह दे व बहु बेषा । राम रूप दसर
ू निहं दे खा ॥
अवलोके रघुपित बहते
ु रे । सीता सिहत न बेष घनेरे ॥ २ ॥
सोइ रघुबर सोइ लिछमनु सीता । दे िख सती अित भई सभीता ॥
हृदय कंप तन सुिध कछु नाहीं । नयन मूिद बैठीं मग माहीं ॥ ३ ॥
बहिर
ु िबलोकेउ नयन उघारी । कछु न दीख तहँ दच्छकुमारी ॥
पुिन पुिन नाइ राम पद सीसा । चलीं तहाँ जहँ रहे िगरीसा ॥ ४ ॥

दोहरा
गई समीप महे स तब हँ िस पूछी कुसलात ।
लीन्ही परीछा कवन िबिध कहहु सत्य सब बात ॥ ५५ ॥

मासपारायण, दसरा
ू िव ाम

सतीं समुिझ रघुबीर भाऊ । भय बस िसव सन कीन्ह दराऊ


ु ॥
कछु न परीछा लीिन्ह गोसाई । कीन्ह नामु तुम्हािरिह नाई ॥ १ ॥
जो तुम्ह कहा सो मृषा न होई । मोरें मन तीित अित सोई ॥
तब संकर दे खेउ धिर ध्याना । सतीं जो कीन्ह चिरत सब जाना ॥ २ ॥
बहिर
ु राममायिह िसरु नावा । ेिर सितिह जेिहं झूँठ कहावा ॥
हिर इच्छा भावी बलवाना । हृदयँ िबचारत संभु सुजाना ॥ ३ ॥
सतीं कीन्ह सीता कर बेषा । िसव उर भयउ िबषाद िबसेषा ॥
जौं अब करउँ सती सन ीती । िमटइ भगित पथु होइ अनीती ॥ ४ ॥

दोहरा
परम पुनीत न जाइ तिज िकएँ ेम बड़ पापु ।
गिट न कहत महे सु कछु हृदयँ अिधक संतापु ॥ ५६ ॥

तब संकर भु पद िसरु नावा । सुिमरत रामु हृदयँ अस आवा ॥


एिहं तन सितिह भेट मोिह नाहीं । िसव संकल्पु कीन्ह मन माहीं ॥ १ ॥

Read Ramcharitmanas online at www.swargarohan.org


रामचिरतमानस - 34 - बालकांड

अस िबचािर संकरु मितधीरा । चले भवन सुिमरत रघुबीरा ॥


चलत गगन भै िगरा सुहाई । जय महे स भिल भगित दृढ़ाई ॥ २ ॥
अस पन तुम्ह िबनु करइ को आना । रामभगत समरथ भगवाना ॥
सुिन नभिगरा सती उर सोचा । पूछा िसविह समेत सकोचा ॥ ३ ॥
कीन्ह कवन पन कहहु कृ पाला । सत्यधाम भु दीनदयाला ॥
जदिप सतीं पूछा बहु भाँती । तदिप न कहे उ ि पुर आराती ॥ ४ ॥

दोहरा
सतीं हृदय अनुमान िकय सबु जानेउ सबर्ग्य ।
कीन्ह कपटु मैं संभु सन नािर सहज जड़ अग्य ॥ ५७ ॥

हृदयँ सोचु समुझत िनज करनी । िचंता अिमत जाइ निह बरनी ॥
कृ पािसंधु िसव परम अगाधा । गट न कहे उ मोर अपराधा ॥ १ ॥
संकर रुख अवलोिक भवानी । भु मोिह तजेउ हृदयँ अकुलानी ॥
िनज अघ समुिझ न कछु किह जाई । तपइ अवाँ इव उर अिधकाई ॥२ ॥
सितिह ससोच जािन बृषकेतू । कहीं कथा सुंदर सुख हे तू ॥
बरनत पंथ िबिबध इितहासा । िबस्वनाथ पहँु चे कैलासा ॥ ३ ॥
तहँ पुिन संभु समुिझ पन आपन । बैठे बट तर किर कमलासन ॥
संकर सहज सरुप सम्हारा । लािग समािध अखंड अपारा ॥ ४ ॥

दोहरा
सती बसिह कैलास तब अिधक सोचु मन मािहं ।
मरमु न कोऊ जान कछु जुग सम िदवस िसरािहं ॥ ५८ ॥

िनत नव सोचु सतीं उर भारा । कब जैहउँ दख


ु सागर पारा ॥
मैं जो कीन्ह रघुपित अपमाना । पुिनपित बचनु मृषा किर जाना ॥ १ ॥
सो फलु मोिह िबधाताँ दीन्हा । जो कछु उिचत रहा सोइ कीन्हा ॥
अब िबिध अस बूिझअ निह तोही । संकर िबमुख िजआविस मोही ॥ २ ॥

Read Ramcharitmanas online at www.swargarohan.org


रामचिरतमानस - 35 - बालकांड

किह न जाई कछु हृदय गलानी । मन महँु रामािह सुिमर सयानी ॥


जौ भु दीनदयालु कहावा । आरती हरन बेद जसु गावा ॥ ३ ॥
तौ मैं िबनय करउँ कर जोरी । ू
छटउ बेिग दे ह यह मोरी ॥
जौं मोरे िसव चरन सनेहू । मन म बचन सत्य तु एहू ॥ ४ ॥

दोहरा
तौ सबदरसी सुिनअ भु करउ सो बेिग उपाइ ।
होइ मरनु जेही िबनिहं म दसह
ु िबपि िबहाइ ॥ ५९क ॥

सोरठा
जलु पय सिरस िबकाइ दे खहु ीित िक रीित भिल ।
िबलग होइ रसु जाइ कपट खटाई परत पुिन ॥ ५९ख ॥

एिह िबिध दिखत


ु जेसकुमारी । अकथनीय दारुन दखु
ु भारी ॥
बीतें संबत सहस सतासी । तजी समािध संभु अिबनासी ॥ १ ॥
राम नाम िसव सुिमरन लागे । जानेउ सतीं जगतपित जागे ॥
जाइ संभु पद बंदनु कीन्ही । सनमुख संकर आसनु दीन्हा ॥ २ ॥
लगे कहन हिरकथा रसाला । दच्छ जेस भए तेिह काला ॥
दे खा िबिध िबचािर सब लायक । दच्छिह कीन्ह जापित नायक ॥ ३ ॥
बड़ अिधकार दच्छ जब पावा । अित अिभमानु हृदयँ तब आवा ॥
निहं कोउ अस जनमा जग माहीं । भुता पाइ जािह मद नाहीं ॥ ४ ॥

दोहरा
दच्छ िलए मुिन बोिल सब करन लगे बड़ जाग ।
नेवते सादर सकल सुर जे पावत मख भाग ॥ ६० ॥

िकंनर नाग िस गंधबार् । बधुन्ह समेत चले सुर सबार् ॥


िबष्नु िबरं िच महे सु िबहाई । चले सकल सुर जान बनाई ॥ १ ॥
सतीं िबलोके ब्योम िबमाना । जात चले सुंदर िबिध नाना ॥
सुर सुंदरी करिहं कल गाना । सुनत ू
वन छटिहं मुिन ध्याना ॥ २ ॥

Read Ramcharitmanas online at www.swargarohan.org


रामचिरतमानस - 36 - बालकांड

पूछेउ तब िसवँ कहे उ बखानी । िपता जग्य सुिन कछु हरषानी ॥


जौं महे सु मोिह आयसु दे हीं । कुछ िदन जाइ रहौं िमस एहीं ॥ ३ ॥
पित पिरत्याग हृदय दखु
ु भारी । कहइ न िनज अपराध िबचारी ॥
बोली सती मनोहर बानी । भय संकोच ेम रस सानी ॥ ४ ॥

दोहरा
िपता भवन उत्सव परम जौं भु आयसु होइ ।
तौ मै जाउँ कृ पायतन सादर दे खन सोइ ॥ ६१ ॥

कहे हु नीक मोरे हुँ मन भावा । यह अनुिचत निहं नेवत पठावा ॥


दच्छ सकल िनज सुता बोलाई । हमरें बयर तुम्हउ िबसराई ॥ १ ॥
सभाँ हम सन दखु
ु माना । तेिह तें अजहँु करिहं अपमाना ॥
जौं िबनु बोलें जाहु भवानी । रहइ न सीलु सनेहु न कानी ॥ २ ॥
जदिप िम भु िपतु गुर गेहा । जाइअ िबनु बोलेहुँ न सँदेहा ॥
तदिप िबरोध मान जहँ कोई । तहाँ गएँ कल्यानु न होई ॥ ३ ॥
भाँित अनेक संभु समुझावा । भावी बस न ग्यानु उर आवा ॥
कह भु जाहु जो िबनिहं बोलाएँ । निहं भिल बात हमारे भाएँ ॥ ४ ॥

दोहरा
किह दे खा हर जतन बहु रहइ न दच्छकुमािर ।
िदए मुख्य गन संग तब िबदा कीन्ह ि पुरािर ॥ ६२ ॥

िपता भवन जब गई भवानी । दच्छ ास काहँु न सनमानी ॥


सादर भलेिहं िमली एक माता । भिगनीं िमलीं बहत
ु मुसक
ु ाता ॥ १ ॥
दच्छ न कछु पूछी कुसलाता । सितिह िबलोिक जरे सब गाता ॥
सतीं जाइ दे खेउ तब जागा । कतहँु न दीख संभु कर भागा ॥ २ ॥
तब िचत चढ़े उ जो संकर कहे ऊ । भु अपमानु समुिझ उर दहे ऊ ॥
पािछल दखु
ु न हृदयँ अस ब्यापा । जस यह भयउ महा पिरतापा ॥ ३ ॥

Read Ramcharitmanas online at www.swargarohan.org


रामचिरतमानस - 37 - बालकांड

ज िप जग दारुन दख
ु नाना । सब तें किठन जाित अवमाना ॥
समुिझ सो सितिह भयउ अित ोधा।बहु िबिध जननीं कीन्ह बोधा ॥४॥

दोहरा
िसव अपमानु न जाइ सिह हृदयँ न होइ बोध ।
सकल सभिह हिठ हटिक तब बोलीं बचन स ोध ॥ ६३ ॥

सुनहु सभासद सकल मुिनंदा । कही सुनी िजन्ह संकर िनंदा ॥


सो फलु तुरत लहब सब काहँू । भली भाँित पिछताब िपताहँू ॥ १ ॥
संत संभु ीपित अपबादा । सुिनअ जहाँ तहँ अिस मरजादा ॥
कािटअ तासु जीभ जो बसाई । वन मूिद न त चिलअ पराई ॥ २ ॥
जगदातमा महे सु पुरारी । जगत जनक सब के िहतकारी ॥
िपता मंदमित िनंदत तेही । दच्छ सु संभव यह दे ही ॥ ३ ॥
तिजहउँ तुरत दे ह तेिह हे तू । उर धिर चं मौिल बृषकेतू ॥
अस किह जोग अिगिन तनु जारा । भयउ सकल मख हाहाकारा ॥ ४ ॥

दोहरा
सती मरनु सुिन संभु गन लगे करन मख खीस ।
जग्य िबधंस िबलोिक भृगु रच्छा कीिन्ह मुनीस ॥ ६४ ॥

समाचार सब संकर पाए । बीरभ ु किर कोप पठाए ॥


जग्य िबधंस जाइ ितन्ह कीन्हा । सकल सुरन्ह िबिधवत फलु दीन्हा ॥१॥
भे जगिबिदत दच्छ गित सोई । जिस कछु संभु िबमुख कै होई ॥
यह इितहास सकल जग जानी । ताते मैं संछेप बखानी ॥ २ ॥
सतीं मरत हिर सन बरु मागा । जनम जनम िसव पद अनुरागा ॥
तेिह कारन िहमिगिर गृह जाई । जनमीं पारबती तनु पाई ॥ ३ ॥
जब तें उमा सैल गृह जाईं । सकल िसि संपित तहँ छाई ॥
जहँ तहँ मुिनन्ह सुआ म कीन्हे । उिचत बास िहम भूधर दीन्हे ॥ ४ ॥

दोहरा

Read Ramcharitmanas online at www.swargarohan.org


रामचिरतमानस - 38 - बालकांड

सदा सुमन फल सिहत सब म


ु नव नाना जाित ।
गटीं सुंदर सैल पर मिन आकर बहु भाँित ॥ ६५ ॥

सिरता सब पुिनत जलु बहहीं । खग मृग मधुप सुखी सब रहहीं ॥


सहज बयरु सब जीवन्ह त्यागा । िगिर पर सकल करिहं अनुरागा ॥ १ ॥
सोह सैल िगिरजा गृह आएँ । िजिम जनु रामभगित के पाएँ ॥
िनत नूतन मंगल गृह तासू । ािदक गाविहं जसु जासू ॥ २ ॥
नारद समाचार सब पाए । कौतुकहीं िगिर गेह िसधाए ॥
सैलराज बड़ आदर कीन्हा । पद पखािर बर आसनु दीन्हा ॥ ३ ॥
नािर सिहत मुिन पद िसरु नावा । चरन सिलल सबु भवनु िसंचावा ॥
िनज सौभाग्य बहत
ु िगिर बरना । सुता बोिल मेली मुिन चरना ॥ ४ ॥

दोहरा
ि कालग्य सबर्ग्य तुम्ह गित सबर् तुम्हािर ॥
कहहु सुता के दोष गुन मुिनबर हृदयँ िबचािर ॥ ६६ ॥

कह मुिन िबहिस गूढ़ मृद ु बानी । सुता तुम्हािर सकल गुन खानी ॥
सुद
ं र सहज सुसील सयानी । नाम उमा अंिबका भवानी ॥ १ ॥
सब लच्छन संपन्न कुमारी । होइिह संतत िपयिह िपआरी ॥
सदा अचल एिह कर अिहवाता । एिह तें जसु पैहिहं िपतु माता ॥ २ ॥
होइिह पूज्य सकल जग माहीं । एिह सेवत कछु दलर्
ु भ नाहीं ॥
एिह कर नामु सुिमिर संसारा । ि य चढ़हिहँ पित त अिसधारा ॥ ३ ॥
सैल सुलच्छन सुता तुम्हारी । सुनहु जे अब अवगुन दइु चारी ॥
अगुन अमान मातु िपतु हीना । उदासीन सब संसय छीना ॥ ४ ॥

दोहरा
जोगी जिटल अकाम मन नगन अमंगल बेष ॥
अस स्वामी एिह कहँ िमिलिह परी हस्त अिस रे ख ॥ ६७ ॥

Read Ramcharitmanas online at www.swargarohan.org


रामचिरतमानस - 39 - बालकांड

सुिन मुिन िगरा सत्य िजयँ जानी । दख


ु दं पितिह उमा हरषानी ॥
नारदहँु यह भेद ु न जाना । दसा एक समुझब िबलगाना ॥ १ ॥
सकल सखीं िगिरजा िगिर मैना । पुलक सरीर भरे जल नैना ॥
होइ न मृषा दे विरिष भाषा । उमा सो बचनु हृदयँ धिर राखा ॥ २ ॥
उपजेउ िसव पद कमल सनेहू । िमलन किठन मन भा संदेहू ॥
जािन कुअवसरु ीित दराई
ु । सखी उछँ ग बैठी पुिन जाई ॥ ३ ॥
झूिठ न होइ दे विरिष बानी । सोचिह दं पित सखीं सयानी ॥
उर धिर धीर कहइ िगिरराऊ । कहहु नाथ का किरअ उपाऊ ॥ ४ ॥

दोहरा
कह मुनीस िहमवंत सुनु जो िबिध िलखा िललार ।
दे व दनुज नर नाग मुिन कोउ न मेटिनहार ॥ ६८ ॥

तदिप एक मैं कहउँ उपाई । होइ करै जौं दै उ सहाई ॥


जस बरु मैं बरनेउँ तुम्ह पाहीं । िमलिह उमिह तस संसय नाहीं ॥ १ ॥
जे जे बर के दोष बखाने । ते सब िसव पिह मैं अनुमाने ॥
जौं िबबाहु संकर सन होई । दोषउ गुन सम कह सबु कोई ॥ २ ॥
जौं अिह सेज सयन हिर करहीं । बुध कछु ितन्ह कर दोषु न धरहीं ॥
भानु कृ सानु सबर् रस खाहीं । ितन्ह कहँ मंद कहत कोउ नाहीं ॥ ३ ॥
सुभ अरु असुभ सिलल सब बहई । सुरसिर कोउ अपुनीत न कहई ॥
समरथ कहँु निहं दोषु गोसाई । रिब पावक सुरसिर की नाई ॥ ४ ॥

दोहरा
जौं अस िहिसषा करिहं नर जिड़ िबबेक अिभमान ।
परिहं कलप भिर नरक महँु जीव िक ईस समान ॥ ६९ ॥

सुरसिर जल कृ त बारुिन जाना । कबहँु न संत करिहं तेिह पाना ॥


सुरसिर िमलें सो पावन जैसें । ईस अनीसिह अंतरु तैसें ॥ १ ॥

Read Ramcharitmanas online at www.swargarohan.org


रामचिरतमानस - 40 - बालकांड

संभु सहज समरथ भगवाना । एिह िबबाहँ सब िबिध कल्याना ॥


दराराध्य
ु पै अहिहं महे सू । आसुतोष पुिन िकएँ कलेसू ॥ २ ॥
जौं तपु करै कुमािर तुम्हारी । भािवउ मेिट सकिहं ि पुरारी ॥
ज िप बर अनेक जग माहीं । एिह कहँ िसव तिज दसर
ू नाहीं ॥ ३ ॥
बर दायक नतारित भंजन । कृ पािसंधु सेवक मन रं जन ॥
इिच्छत फल िबनु िसव अवराधे । लिहअ न कोिट जोग जप साधें ॥४ ॥

दोहरा
अस किह नारद सुिमिर हिर िगिरजिह दीिन्ह असीस ।
होइिह यह कल्यान अब संसय तजहु िगरीस ॥ ७० ॥

किह अस भवन मुिन गयऊ । आिगल चिरत सुनहु जस भयऊ ॥


पितिह एकांत पाइ कह मैना । नाथ न मैं समुझे मुिन बैना ॥ १ ॥
जौं घरु बरु कुलु होइ अनूपा । किरअ िबबाहु सुता अनुरुपा ॥
न त कन्या बरु रहउ कुआरी । कंत उमा मम ानिपआरी ॥ २ ॥
जौं न िमलिह बरु िगिरजिह जोगू । िगिर जड़ सहज किहिह सबु लोगू ॥
सोइ िबचािर पित करे हु िबबाहू । जेिहं न बहोिर होइ उर दाहू ॥ ३ ॥
अस किह पिर चरन धिर सीसा । बोले सिहत सनेह िगरीसा ॥
बरु पावक गटै सिस माहीं । नारद बचनु अन्यथा नाहीं ॥ ४ ॥

दोहरा
ि या सोचु पिरहरहु सबु सुिमरहु ीभगवान ।
पारबितिह िनरमयउ जेिहं सोइ किरिह कल्यान ॥ ७१ ॥

अब जौ तुम्हिह सुता पर नेहू । तौ अस जाइ िसखावन दे हू ॥


करै सो तपु जेिहं िमलिहं महे सू । आन उपायँ न िमटिह कलेसू ॥ १ ॥
नारद बचन सगभर् सहे तू । सुंदर सब गुन िनिध बृषकेतू ॥
अस िबचािर तुम्ह तजहु असंका । सबिह भाँित संकरु अकलंका ॥ २ ॥

Read Ramcharitmanas online at www.swargarohan.org


रामचिरतमानस - 41 - बालकांड

सुिन पित बचन हरिष मन माहीं । गई तुरत उिठ िगिरजा पाहीं ॥


उमिह िबलोिक नयन भरे बारी । सिहत सनेह गोद बैठारी ॥ ३ ॥
बारिहं बार लेित उर लाई । गदगद कंठ न कछु किह जाई ॥
जगत मातु सबर्ग्य भवानी । मातु सुखद बोलीं मृद ु बानी ॥ ४ ॥

दोहरा
सुनिह मातु मैं दीख अस सपन सुनावउँ तोिह ।
सुद
ं र गौर सुिब बर अस उपदे सेउ मोिह ॥ ७२ ॥

करिह जाइ तपु सैलकुमारी । नारद कहा सो सत्य िबचारी ॥


मातु िपतिह पुिन यह मत भावा । तपु सुख द दख
ु दोष नसावा ॥ १ ॥
तपबल रचइ पंच िबधाता । तपबल िबष्नु सकल जग ाता ॥
तपबल संभु करिहं संघारा । तपबल सेषु धरइ मिहभारा ॥ २ ॥
तप अधार सब सृि भवानी । करिह जाइ तपु अस िजयँ जानी ॥
सुनत बचन िबसिमत महतारी । सपन सुनायउ िगिरिह हँ कारी ॥ ३ ॥
मातु िपतुिह बहिबिध
ु समुझाई । चलीं उमा तप िहत हरषाई ॥
ि य पिरवार िपता अरु माता । भए िबकल मुख आव न बाता ॥ ४ ॥

दोहरा
बेदिसरा मुिन आइ तब सबिह कहा समुझाइ ॥
पारबती मिहमा सुनत रहे बोधिह पाइ ॥ ७३ ॥

उर धिर उमा ानपित चरना । जाइ िबिपन लागीं तपु करना ॥


अित सुकुमार न तनु तप जोगू । पित पद सुिमिर तजेउ सबु भोगू ॥१ ॥
िनत नव चरन उपज अनुरागा । िबसरी दे ह तपिहं मनु लागा ॥
संबत सहस मूल फल खाए । सागु खाइ सत बरष गवाँए ॥ २ ॥
कछु िदन भोजनु बािर बतासा । िकए किठन कछु िदन उपबासा ॥
बेल पाती मिह परइ सुखाई । तीिन सहस संबत सोई खाई ॥ ३ ॥

Read Ramcharitmanas online at www.swargarohan.org


रामचिरतमानस - 42 - बालकांड

पुिन पिरहरे सुखानेउ परना । उमिह नाम तब भयउ अपरना ॥


दे िख उमिह तप खीन सरीरा । िगरा भै गगन गभीरा ॥ ४ ॥

दोहरा
भयउ मनोरथ सुफल तव सुनु िगिरजाकुमािर ।
पिरहरु दसह
ु कलेस सब अब िमिलहिहं ि पुरािर ॥ ७४ ॥

अस तपु काहँु न कीन्ह भवानी । भउ अनेक धीर मुिन ग्यानी ॥


अब उर धरहु बर बानी । सत्य सदा संतत सुिच जानी ॥ १ ॥
आवै िपता बोलावन जबहीं । हठ पिरहिर घर जाएहु तबहीं ॥
िमलिहं तुम्हिह जब स िरषीसा । जानेहु तब मान बागीसा ॥ २ ॥
सुनत िगरा िबिध गगन बखानी । पुलक गात िगिरजा हरषानी ॥
उमा चिरत सुंदर मैं गावा । सुनहु संभु कर चिरत सुहावा ॥ ३ ॥
जब तें सती जाइ तनु त्यागा । तब सें िसव मन भयउ िबरागा ॥
जपिहं सदा रघुनायक नामा । जहँ तहँ सुनिहं राम गुन ामा ॥ ४ ॥

दोहरा
िचदानन्द सुखधाम िसव िबगत मोह मद काम ।
िबचरिहं मिह धिर हृदयँ हिर सकल लोक अिभराम ॥ ७५ ॥

कतहँु मुिनन्ह उपदे सिहं ग्याना । कतहँु राम गुन करिहं बखाना ॥
जदिप अकाम तदिप भगवाना । भगत िबरह दख
ु दिखत
ु सुजाना ॥ १ ॥
एिह िबिध गयउ कालु बहु बीती । िनत नै होइ राम पद ीती ॥
नैमु ेमु संकर कर दे खा । अिबचल हृदयँ भगित कै रे खा ॥ २ ॥
गटै रामु कृ तग्य कृ पाला । रूप सील िनिध तेज िबसाला ॥
बहु कार संकरिह सराहा । तुम्ह िबनु अस तु को िनरबाहा ॥ ३ ॥
बहिबिध
ु राम िसविह समुझावा । पारबती कर जन्मु सुनावा ॥
अित पुनीत िगिरजा कै करनी । िबस्तर सिहत कृ पािनिध बरनी ॥ ४ ॥

दोहरा

Read Ramcharitmanas online at www.swargarohan.org


रामचिरतमानस - 43 - बालकांड

अब िबनती मम सुनेहु िसव जौं मो पर िनज नेहु ।


जाइ िबबाहहु सैलजिह यह मोिह मागें दे हु ॥ ७६ ॥

कह िसव जदिप उिचत अस नाहीं । नाथ बचन पुिन मेिट न जाहीं ॥


िसर धिर आयसु किरअ तुम्हारा । परम धरमु यह नाथ हमारा ॥ १ ॥
मातु िपता गुर भु कै बानी । िबनिहं िबचार किरअ सुभ जानी ॥
तुम्ह सब भाँित परम िहतकारी । अग्या िसर पर नाथ तुम्हारी ॥ २ ॥
भु तोषेउ सुिन संकर बचना । भि िबबेक धमर् जुत रचना ॥
कह भु हर तुम्हार पन रहे ऊ । अब उर राखेहु जो हम कहे ऊ ॥ ३ ॥
अंतरधान भए अस भाषी । संकर सोइ मूरित उर राखी ॥
तबिहं स िरिष िसव पिहं आए । बोले भु अित बचन सुहाए ॥ ४ ॥

दोहरा
पारबती पिहं जाइ तुम्ह ेम पिरच्छा लेहु ।
िगिरिह े िर पठएहु भवन दिर
ू करे हु संदेहु ॥ ७७ ॥

िरिषन्ह गौिर दे खी तहँ कैसी । मूरितमंत तपस्या जैसी ॥


बोले मुिन सुनु सैलकुमारी । करहु कवन कारन तपु भारी ॥ १ ॥
केिह अवराधहु का तुम्ह चहहू । हम सन सत्य मरमु िकन कहहू ॥
कहत बचत मनु अित सकुचाई । हँ िसहहु सुिन हमािर जड़ताई ॥ २ ॥
मनु हठ परा न सुनइ िसखावा । चहत बािर पर भीित उठावा ॥
नारद कहा सत्य सोइ जाना । िबनु पंखन्ह हम चहिहं उड़ाना ॥ ३ ॥
दे खहु मुिन अिबबेकु हमारा । चािहअ सदा िसविह भरतारा ॥ ४ ॥

दोहरा
सुनत बचन िबहसे िरषय िगिरसंभव तब दे ह ।
नारद कर उपदे सु सुिन कहहु बसेउ िकसु गेह ॥ ७८ ॥

दच्छसुतन्ह उपदे सेिन्ह जाई । ितन्ह िफिर भवनु न दे खा आई ॥


िच केतु कर घरु उन घाला । कनककिसपु कर पुिन अस हाला ॥ १ ॥

Read Ramcharitmanas online at www.swargarohan.org


रामचिरतमानस - 44 - बालकांड

नारद िसख जे सुनिहं नर नारी । अविस होिहं तिज भवनु िभखारी ॥


मन कपटी तन सज्जन चीन्हा । आपु सिरस सबही चह कीन्हा ॥ २ ॥
तेिह कें बचन मािन िबस्वासा । तुम्ह चाहहु पित सहज उदासा ॥
िनगुन
र् िनलज कुबेष कपाली । अकुल अगेह िदगंबर ब्याली ॥ ३ ॥
कहहु कवन सुखु अस बरु पाएँ । भल भूिलहु ठग के बौराएँ ॥
पंच कहें िसवँ सती िबबाही । पुिन अवडे िर मराएिन्ह ताही ॥ ४ ॥

दोहरा
अब सुख सोवत सोचु निह भीख मािग भव खािहं ।
सहज एकािकन्ह के भवन कबहँु िक नािर खटािहं ॥ ७९ ॥

अजहँू मानहु कहा हमारा । हम तुम्ह कहँु बरु नीक िबचारा ॥


अित सुंदर सुिच सुखद सुसीला । गाविहं बेद जासु जस लीला ॥ १ ॥
दषन
ू रिहत सकल गुन रासी । ीपित पुर बैकुंठ िनवासी ॥
अस बरु तुम्हिह िमलाउब आनी । सुनत िबहिस कह बचन भवानी ॥२ ॥

सत्य कहे हु िगिरभव तनु एहा । हठ न छट ू
छटै बरु दे हा ॥
कनकउ पुिन पषान तें होई । जारे हुँ सहजु न पिरहर सोई ॥ ३ ॥
नारद बचन न मैं पिरहरऊँ । बसउ भवनु उजरउ निहं डरऊँ ॥
गुर कें बचन तीित न जेही । सपनेहुँ सुगम न सुख िसिध तेही ॥ ४ ॥

दोहरा
महादे व अवगुन भवन िबष्नु सकल गुन धाम ।
जेिह कर मनु रम जािह सन तेिह तेही सन काम ॥ ८० ॥

जौं तुम्ह िमलतेहु थम मुनीसा । सुनितउँ िसख तुम्हािर धिर सीसा ॥


अब मैं जन्मु संभु िहत हारा । को गुन दषन
ू करै िबचारा ॥ १ ॥
जौं तुम्हरे हठ हृदयँ िबसेषी । रिह न जाइ िबनु िकएँ बरे षी ॥
तौ कौतुिकअन्ह आलसु नाहीं । बर कन्या अनेक जग माहीं ॥ २ ॥

Read Ramcharitmanas online at www.swargarohan.org


रामचिरतमानस - 45 - बालकांड

जन्म कोिट लिग रगर हमारी । बरउँ संभु न त रहउँ कुआरी ॥


तजउँ न नारद कर उपदे सू । आपु कहिह सत बार महे सू ॥ ३ ॥
मैं पा परउँ कहइ जगदं बा । तुम्ह गृह गवनहु भयउ िबलंबा ॥
दे िख ेमु बोले मुिन ग्यानी । जय जय जगदं िबके भवानी ॥ ४ ॥

दोहरा
तुम्ह माया भगवान िसव सकल जगत िपतु मातु ।
नाइ चरन िसर मुिन चले पुिन पुिन हरषत गातु ॥ ८१ ॥

जाइ मुिनन्ह िहमवंतु पठाए । किर िबनती िगरजिहं गृह ल्याए ॥


बहिर
ु स िरिष िसव पिहं जाई । कथा उमा कै सकल सुनाई ॥ १ ॥
भए मगन िसव सुनत सनेहा । हरिष स िरिष गवने गेहा ॥
मनु िथर किर तब संभु सुजाना । लगे करन रघुनायक ध्याना ॥ २ ॥
तारकु असुर भयउ तेिह काला । भुज ताप बल तेज िबसाला ॥
तेंिह सब लोक लोकपित जीते । भए दे व सुख संपित रीते ॥ ३ ॥
अजर अमर सो जीित न जाई । हारे सुर किर िबिबध लराई ॥
तब िबरं िच सन जाइ पुकारे । दे खे िबिध सब दे व दखारे
ु ॥ ४ ॥

दोहरा
सब सन कहा बुझाइ िबिध दनुज िनधन तब होइ ।
संभु सु संभत
ू सुत एिह जीतइ रन सोइ ॥ ८२ ॥

मोर कहा सुिन करहु उपाई । होइिह ईस्वर किरिह सहाई ॥


सतीं जो तजी दच्छ मख दे हा । जनमी जाइ िहमाचल गेहा ॥ १ ॥
तेिहं तपु कीन्ह संभु पित लागी । िसव समािध बैठे सबु त्यागी ॥
जदिप अहइ असमंजस भारी । तदिप बात एक सुनहु हमारी ॥ २ ॥
पठवहु कामु जाइ िसव पाहीं । करै छोभु संकर मन माहीं ॥
तब हम जाइ िसविह िसर नाई । करवाउब िबबाहु बिरआई ॥ ३ ॥

Read Ramcharitmanas online at www.swargarohan.org


रामचिरतमानस - 46 - बालकांड

एिह िबिध भलेिह दे विहत होई । मर अित नीक कहइ सबु कोई ॥
अस्तुित सुरन्ह कीिन्ह अित हे तू । गटे उ िबषमबान झषकेतू ॥ ४ ॥

दोहरा
सुरन्ह कहीं िनज िबपित सब सुिन मन कीन्ह िबचार ।
संभु िबरोध न कुसल मोिह िबहिस कहे उ अस मार ॥ ८३ ॥

तदिप करब मैं काजु तुम्हारा । िु त कह परम धरम उपकारा ॥


पर िहत लािग तजइ जो दे ही । संतत संत संसिहं तेही ॥ १ ॥
अस किह चलेउ सबिह िसरु नाई । सुमन धनुष कर सिहत सहाई ॥
चलत मार अस हृदयँ िबचारा । िसव िबरोध ुव मरनु हमारा ॥ २ ॥
तब आपन भाउ िबस्तारा । िनज बस कीन्ह सकल संसारा ॥
कोपेउ जबिह बािरचरकेतू । छन महँु िमटे सकल िु त सेतू ॥ ३ ॥
चजर् त संजम नाना । धीरज धरम ग्यान िबग्याना ॥
सदाचार जप जोग िबरागा । सभय िबबेक कटकु सब भागा ॥ ४ ॥

छं द
भागेउ िबबेक सहाय सिहत सो सुभट संजुग मिह मुरे ।
सद ंथ पबर्त कंदरिन्ह महँु जाइ तेिह अवसर दरेु ॥
होिनहार का करतार को रखवार जग खरभरु परा ।
दइु माथ केिह रितनाथ जेिह कहँु कोिप कर धनु सरु धरा ॥

दोहरा
जे सजीव जग अचर चर नािर पुरुष अस नाम ।
ते िनज िनज मरजाद तिज भए सकल बस काम ॥ ८४ ॥

सब के हृदयँ मदन अिभलाषा । लता िनहािर नविहं तरु साखा ॥


नदीं उमिग अंबुिध कहँु धाई । संगम करिहं तलाव तलाई ॥ १ ॥
जहँ अिस दसा जड़न्ह कै बरनी । को किह सकइ सचेतन करनी ॥
पसु पच्छी नभ जल थलचारी । भए कामबस समय िबसारी ॥ २ ॥

Read Ramcharitmanas online at www.swargarohan.org


रामचिरतमानस - 47 - बालकांड

मदन अंध ब्याकुल सब लोका । िनिस िदनु निहं अवलोकिहं कोका ॥


दे व दनुज नर िकंनर ब्याला । ेत िपसाच भूत बेताला ॥ ३ ॥
इन्ह कै दसा न कहे उँ बखानी । सदा काम के चेरे जानी ॥
िस िबर महामुिन जोगी । तेिप कामबस भए िबयोगी ॥ ४ ॥

छं द
भए कामबस जोगीस तापस पावँरिन्ह की को कहै ।
दे खिहं चराचर नािरमय जे मय दे खत रहे ॥
अबला िबलोकिहं पुरुषमय जगु पुरुष सब अबलामयं ।
दइु दं ड भिर ांड भीतर कामकृ त कौतुक अयं ॥

सोरठा
धरी न काहँू िधर सबके मन मनिसज हरे ।
जे राखे रघुबीर ते उबरे तेिह काल महँु ॥ ८५ ॥

उभय घरी अस कौतुक भयऊ । जौ लिग कामु संभु पिहं गयऊ ॥


िसविह िबलोिक ससंकेउ मारू । भयउ जथािथित सबु संसारू ॥ १ ॥
भए तुरत सब जीव सुखारे । िजिम मद उतिर गएँ मतवारे ॥
रु िह दे िख मदन भय माना । दराधरष
ु दगर्
ु म भगवाना ॥ २ ॥
िफरत लाज कछु किर निहं जाई । मरनु ठािन मन रचेिस उपाई ॥
गटे िस तुरत रुिचर िरतुराजा । कुसुिमत नव तरु रािज िबराजा ॥ ३ ॥
बन उपबन बािपका तड़ागा । परम सुभग सब िदसा िबभागा ॥
जहँ तहँ जनु उमगत अनुरागा । दे िख मुएहँु मन मनिसज जागा ॥ ४ ॥

छं द
जागइ मनोभव मुएहँु मन बन सुभगता न परै कही ।
सीतल सुगंध सुमंद मारुत मदन अनल सखा सही ॥
िबकसे सरिन्ह बहु कंज गुंजत पुंज मंजुल मधुकरा ।
कलहं स िपक सुक सरस रव किर गान नाचिहं अपछरा ॥

Read Ramcharitmanas online at www.swargarohan.org


रामचिरतमानस - 48 - बालकांड

दोहरा
सकल कला किर कोिट िबिध हारे उ सेन समेत ।
चली न अचल समािध िसव कोपेउ हृदयिनकेत ॥ ८६ ॥

दे िख रसाल िबटप बर साखा । तेिह पर चढ़े उ मदनु मन माखा ॥


सुमन चाप िनज सर संधाने । अित िरस तािक वन लिग ताने ॥ १ ॥

छाड़े िबषम िबिसख उर लागे । छिट समािध संभु तब जागे ॥
भयउ ईस मन छोभु िबसेषी । नयन उघािर सकल िदिस दे खी ॥ २ ॥
सौरभ पल्लव मदनु िबलोका । भयउ कोपु कंपेउ ैलोका ॥
तब िसवँ तीसर नयन उघारा । िचतवत कामु भयउ जिर छारा ॥ ३ ॥
हाहाकार भयउ जग भारी । डरपे सुर भए असुर सुखारी ॥
समुिझ कामसुखु सोचिहं भोगी । भए अकंटक साधक जोगी ॥ ४ ॥

छं द
जोिग अकंटक भए पित गित सुनत रित मुरुिछत भई ।
रोदित बदित बहु भाँित करुना करित संकर पिहं गई ।
अित ेम किर िबनती िबिबध िबिध जोिर कर सन्मुख रही ।
भु आसुतोष कृ पाल िसव अबला िनरिख बोले सही ॥

दोहरा
अब तें रित तव नाथ कर होइिह नामु अनंगु ।
िबनु बपु ब्यािपिह सबिह पुिन सुनु िनज िमलन संगु ॥ ८७ ॥

जब जदबं
ु स कृ ष्न अवतारा । होइिह हरन महा मिहभारा ॥
कृ ष्न तनय होइिह पित तोरा । बचनु अन्यथा होइ न मोरा ॥ १ ॥
रित गवनी सुिन संकर बानी । कथा अपर अब कहउँ बखानी ॥
दे वन्ह समाचार सब पाए । ािदक बैकुंठ िसधाए ॥ २ ॥
सब सुर िबष्नु िबरं िच समेता । गए जहाँ िसव कृ पािनकेता ॥
पृथक पृथक ितन्ह कीिन्ह संसा । भए सन्न चं अवतंसा ॥ ३ ॥

Read Ramcharitmanas online at www.swargarohan.org


रामचिरतमानस - 49 - बालकांड

बोले कृ पािसंधु बृषकेतू । कहहु अमर आए केिह हे तू ॥


कह िबिध तुम्ह भु अंतरजामी । तदिप भगित बस िबनवउँ स्वामी ॥४॥

दोहरा
सकल सुरन्ह के हृदयँ अस संकर परम उछाहु ।
िनज नयनिन्ह दे खा चहिहं नाथ तुम्हार िबबाहु ॥ ८८ ॥

यह उत्सव दे िखअ भिर लोचन । सोइ कछु करहु मदन मद मोचन ।


कामु जािर रित कहँु बरु दीन्हा । कृ पािसंधु यह अित भल कीन्हा ॥ १ ॥
सासित किर पुिन करिहं पसाऊ । नाथ भुन्ह कर सहज सुभाऊ ॥
पारबतीं तपु कीन्ह अपारा । करहु तासु अब अंगीकारा ॥ २ ॥
सुिन िबिध िबनय समुिझ भु बानी । ऐसेइ होउ कहा सुखु मानी ॥
तब दे वन्ह दं द
ु भीं
ु बजाईं । बरिष सुमन जय जय सुर साई ॥ ३ ॥
अवसरु जािन स िरिष आए । तुरतिहं िबिध िगिरभवन पठाए ॥
थम गए जहँ रही भवानी । बोले मधुर बचन छल सानी ॥ ४ ॥

दोहरा
कहा हमार न सुनेहु तब नारद कें उपदे स ।
अब भा झूठ तुम्हार पन जारे उ कामु महे स ॥ ८९ ॥

मासपारायण तीसरा िव ाम

सुिन बोलीं मुसकाइ भवानी । उिचत कहे हु मुिनबर िबग्यानी ॥


तुम्हरें जान कामु अब जारा । अब लिग संभु रहे सिबकारा ॥ १ ॥
हमरें जान सदा िसव जोगी । अज अनव अकाम अभोगी ॥
जौं मैं िसव सेये अस जानी । ीित समेत कमर् मन बानी ॥ २ ॥
तौ हमार पन सुनहु मुनीसा । किरहिहं सत्य कृ पािनिध ईसा ॥
तुम्ह जो कहा हर जारे उ मारा । सोइ अित बड़ अिबबेकु तुम्हारा ॥ ३ ॥
तात अनल कर सहज सुभाऊ । िहम तेिह िनकट जाइ निहं काऊ ॥
गएँ समीप सो अविस नसाई । अिस मन्मथ महे स की नाई ॥ ४ ॥

Read Ramcharitmanas online at www.swargarohan.org


रामचिरतमानस - 50 - बालकांड

दोहरा
िहयँ हरषे मुिन बचन सुिन दे िख ीित िबस्वास ॥
चले भवािनिह नाइ िसर गए िहमाचल पास ॥ ९० ॥

सबु संगु िगिरपितिह सुनावा । मदन दहन सुिन अित दखु


ु पावा ॥
बहिर
ु कहे उ रित कर बरदाना । सुिन िहमवंत बहत
ु सुखु माना ॥ १ ॥
हृदयँ िबचािर संभु भुताई । सादर मुिनबर िलए बोलाई ॥
सुिदनु सुनखतु सुघरी सोचाई । बेिग बेदिबिध लगन धराई ॥ २ ॥
प ी स िरिषन्ह सोइ दीन्ही । गिह पद िबनय िहमाचल कीन्ही ॥
जाइ िबिधिह दीिन्ह सो पाती । बाचत ीित न हृदयँ समाती ॥ ३ ॥
लगन बािच अज सबिह सुनाई । हरषे मुिन सब सुर समुदाई ॥
सुमन बृि नभ बाजन बाजे । मंगल कलस दसहँु िदिस साजे ॥ ४ ॥

दोहरा
लगे सँवारन सकल सुर बाहन िबिबध िबमान ।
होिह सगुन मंगल सुभद करिहं अपछरा गान ॥ ९१ ॥

िसविह संभु गन करिहं िसंगारा । जटा मुकुट अिह मौरु सँवारा ॥


कुंडल कंकन पिहरे ब्याला । तन िबभूित पट केहिर छाला ॥ १ ॥
सिस ललाट सुद
ं र िसर गंगा । नयन तीिन उपबीत भुजग
ं ा ॥
गरल कंठ उर नर िसर माला । अिसव बेष िसवधाम कृ पाला ॥ २ ॥
कर ि सूल अरु डमरु िबराजा । चले बसहँ चिढ़ बाजिहं बाजा ॥
दे िख िसविह सुरि य मुसुकाहीं । बर लायक दल
ु िहिन जग नाहीं ॥ ३ ॥
िबष्नु िबरं िच आिद सुर ाता । चिढ़ चिढ़ बाहन चले बराता ॥
सुर समाज सब भाँित अनूपा । निहं बरात दलह
ू अनुरूपा ॥ ४ ॥

दोहरा
िबष्नु कहा अस िबहिस तब बोिल सकल िदिसराज ।
िबलग िबलग होइ चलहु सब िनज िनज सिहत समाज ॥ ९२ ॥

Read Ramcharitmanas online at www.swargarohan.org


रामचिरतमानस - 51 - बालकांड

बर अनुहािर बरात न भाई । हँ सी करै हहु पर पुर जाई ॥


िबष्नु बचन सुिन सुर मुसकाने । िनज िनज सेन सिहत िबलगाने ॥ १ ॥
मनहीं मन महे सु मुसुकाहीं । हिर के िबंग्य बचन निहं जाहीं ॥
अित ि य बचन सुनत ि य केरे । भृिं गिह ेिर सकल गन टे रे ॥ २ ॥
िसव अनुसासन सुिन सब आए । भु पद जलज सीस ितन्ह नाए ॥
नाना बाहन नाना बेषा । िबहसे िसव समाज िनज दे खा ॥ ३ ॥
कोउ मुखहीन िबपुल मुख काहू । िबनु पद कर कोउ बहु पद बाहू ॥
िबपुल नयन कोउ नयन िबहीना । िर पु कोउ अित तनखीना ॥ ४ ॥

छं द
तन खीन कोउ अित पीन पावन कोउ अपावन गित धरें ।
भूषन कराल कपाल कर सब स सोिनत तन भरें ॥
खर स्वान सुअर सृकाल मुख गन बेष अगिनत को गनै ।
बहु िजनस ेत िपसाच जोिग जमात बरनत निहं बनै ॥

सोरठा
नाचिहं गाविहं गीत परम तरं गी भूत सब ।
दे खत अित िबपरीत बोलिहं बचन िबिच िबिध ॥ ९३ ॥

जस दलह
ू ु तिस बनी बराता । कौतुक िबिबध होिहं मग जाता ॥
इहाँ िहमाचल रचेउ िबताना । अित िबिच निहं जाइ बखाना ॥ १ ॥
सैल सकल जहँ लिग जग माहीं । लघु िबसाल निहं बरिन िसराहीं ॥
बन सागर सब नदीं तलावा । िहमिगिर सब कहँु नेवत पठावा ॥ २ ॥
कामरूप सुद
ं र तन धारी । सिहत समाज सिहत बर नारी ॥
गए सकल तुिहनाचल गेहा । गाविहं मंगल सिहत सनेहा ॥ ३ ॥
थमिहं िगिर बहु गृह सँवराए । जथाजोगु तहँ तहँ सब छाए ॥
पुर सोभा अवलोिक सुहाई । लागइ लघु िबरं िच िनपुनाई ॥ ४ ॥

छं द

Read Ramcharitmanas online at www.swargarohan.org


रामचिरतमानस - 52 - बालकांड

लघु लाग िबिध की िनपुनता अवलोिक पुर सोभा सही ।


बन बाग कूप तड़ाग सिरता सुभग सब सक को कही ॥
मंगल िबपुल तोरन पताका केतु गृह गृह सोहहीं ॥
बिनता पुरुष सुंदर चतुर छिब दे िख मुिन मन मोहहीं ॥

दोहरा
जगदं बा जहँ अवतरी सो पुरु बरिन िक जाइ ।
िरि िसि संपि सुख िनत नूतन अिधकाइ ॥ ९४ ॥

नगर िनकट बरात सुिन आई । पुर खरभरु सोभा अिधकाई ॥


किर बनाव सिज बाहन नाना । चले लेन सादर अगवाना ॥ १ ॥
िहयँ हरषे सुर सेन िनहारी । हिरिह दे िख अित भए सुखारी ॥
िसव समाज जब दे खन लागे । िबडिर चले बाहन सब भागे ॥ २ ॥
धिर धीरजु तहँ रहे सयाने । बालक सब लै जीव पराने ॥
गएँ भवन पूछिहं िपतु माता । कहिहं बचन भय कंिपत गाता ॥ ३ ॥
किहअ काह किह जाइ न बाता । जम कर धार िकधौं बिरआता ॥
बरु बौराह बसहँ असवारा । ब्याल कपाल िबभूषन छारा ॥ ४ ॥

छं द
तन छार ब्याल कपाल भूषन नगन जिटल भयंकरा ।
सँग भूत ेत िपसाच जोिगिन िबकट मुख रजनीचरा ॥
जो िजअत रिहिह बरात दे खत पुन्य बड़ तेिह कर सही ।
दे िखिह सो उमा िबबाहु घर घर बात अिस लिरकन्ह कही ॥

दोहरा
समुिझ महे स समाज सब जनिन जनक मुसुकािहं ।
बाल बुझाए िबिबध िबिध िनडर होहु डरु नािहं ॥ ९५ ॥

लै अगवान बरातिह आए । िदए सबिह जनवास सुहाए ॥


मैनाँ सुभ आरती सँवारी । संग सुमंगल गाविहं नारी ॥ १ ॥

Read Ramcharitmanas online at www.swargarohan.org


रामचिरतमानस - 53 - बालकांड

कंचन थार सोह बर पानी । पिरछन चली हरिह हरषानी ॥


िबकट बेष रु िह जब दे खा । अबलन्ह उर भय भयउ िबसेषा ॥ २ ॥
भािग भवन पैठीं अित ासा । गए महे सु जहाँ जनवासा ॥
मैना हृदयँ भयउ दखु
ु भारी । लीन्ही बोिल िगरीसकुमारी ॥ ३ ॥
अिधक सनेहँ गोद बैठारी । स्याम सरोज नयन भरे बारी ॥
जेिहं िबिध तुम्हिह रूपु अस दीन्हा । तेिहं जड़ बरु बाउर कस कीन्हा॥४॥

छं द
कस कीन्ह बरु बौराह िबिध जेिहं तुम्हिह सुद
ं रता दई ।
जो फलु चिहअ सुरतरुिहं सो बरबस बबूरिहं लागई ॥
तुम्ह सिहत िगिर तें िगरौं पावक जरौं जलिनिध महँु परौं ॥
घरु जाउ अपजसु होउ जग जीवत िबबाहु न हौं करौं ॥

दोहरा
भई िबकल अबला सकल दिखत
ु दे िख िगिरनािर ।
किर िबलापु रोदित बदित सुता सनेहु सँभािर ॥ ९६ ॥

नारद कर मैं काह िबगारा । भवनु मोर िजन्ह बसत उजारा ॥


अस उपदे सु उमिह िजन्ह दीन्हा । बौरे बरिह लिग तपु कीन्हा ॥ १ ॥
साचेहुँ उन्ह के मोह न माया । उदासीन धनु धामु न जाया ॥
पर घर घालक लाज न भीरा । बाझँ िक जान सव कैं पीरा ॥ २ ॥
जनिनिह िबकल िबलोिक भवानी । बोली जुत िबबेक मृद ु बानी ॥
अस िबचािर सोचिह मित माता । सो न टरइ जो रचइ िबधाता ॥ ३ ॥
करम िलखा जौ बाउर नाहू । तौ कत दोसु लगाइअ काहू ॥
तुम्ह सन िमटिहं िक िबिध के अंका । मातु ब्यथर् जिन लेहु कलंका ॥४॥

छं द
जिन लेहु मातु कलंकु करुना पिरहरहु अवसर नहीं ।
दखु
ु सुखु जो िलखा िललार हमरें जाब जहँ पाउब तहीं ॥

Read Ramcharitmanas online at www.swargarohan.org


रामचिरतमानस - 54 - बालकांड

सुिन उमा बचन िबनीत कोमल सकल अबला सोचहीं ॥


बहु भाँित िबिधिह लगाइ दषन
ू नयन बािर िबमोचहीं ॥

दोहरा
तेिह अवसर नारद सिहत अरु िरिष स समेत ।
समाचार सुिन तुिहनिगिर गवने तुरत िनकेत ॥ ९७ ॥

तब नारद सबिह समुझावा । पूरुब कथा संगु सुनावा ॥


मयना सत्य सुनहु मम बानी । जगदं बा तव सुता भवानी ॥ १ ॥
अजा अनािद सि अिबनािसिन । सदा संभु अरधंग िनवािसिन ॥
जग संभव पालन लय कािरिन । िनज इच्छा लीला बपु धािरिन ॥ २ ॥
जनमीं थम दच्छ गृह जाई । नामु सती सुंदर तनु पाई ॥
तहँ हुँ सती संकरिह िबबाहीं । कथा िस सकल जग माहीं ॥ ३ ॥
एक बार आवत िसव संगा । दे खेउ रघुकुल कमल पतंगा ॥
भयउ मोहु िसव कहा न कीन्हा । म बस बेषु सीय कर लीन्हा ॥ ४ ॥

छं द
िसय बेषु सती जो कीन्ह तेिह अपराध संकर पिरहरीं ।
हर िबरहँ जाइ बहोिर िपतु कें जग्य जोगानल जरीं ॥
अब जनिम तुम्हरे भवन िनज पित लािग दारुन तपु िकया ।
अस जािन संसय तजहु िगिरजा सबर्दा संकर ि या ॥

दोहरा
सुिन नारद के बचन तब सब कर िमटा िबषाद ।
छन महँु ब्यापेउ सकल पुर घर घर यह संबाद ॥ ९८ ॥

तब मयना िहमवंतु अनंदे । पुिन पुिन पारबती पद बंदे ॥


नािर पुरुष िससु जुबा सयाने । नगर लोग सब अित हरषाने ॥ १ ॥
लगे होन पुर मंगलगाना । सजे सबिह हाटक घट नाना ॥
भाँित अनेक भई जेवराना । सूपसा जस कछु ब्यवहारा ॥ २ ॥

Read Ramcharitmanas online at www.swargarohan.org


रामचिरतमानस - 55 - बालकांड

सो जेवनार िक जाइ बखानी । बसिहं भवन जेिहं मातु भवानी ॥


सादर बोले सकल बराती । िबष्नु िबरं िच दे व सब जाती ॥ ३ ॥
िबिबिध पाँित बैठी जेवनारा । लागे परुसन िनपुन सुआरा ॥
नािरबृंद सुर जेवँत जानी । लगीं दे न गारीं मृद ु बानी ॥ ४ ॥

छं द
गारीं मधुर स्वर दे िहं सुंदिर िबंग्य बचन सुनावहीं ।
भोजनु करिहं सुर अित िबलंबु िबनोद ु सुिन सचु पावहीं ॥
जेवँत जो बढ़्यो अनंद ु सो मुख कोिटहँू न परै क ो ।
अचवाँइ दीन्हे पान गवने बास जहँ जाको र ो ॥

दोहरा
बहिर
ु मुिनन्ह िहमवंत कहँु लगन सुनाई आइ ।
समय िबलोिक िबबाह कर पठए दे व बोलाइ ॥ ९९ ॥

बोिल सकल सुर सादर लीन्हे । सबिह जथोिचत आसन दीन्हे ॥


बेदी बेद िबधान सँवारी । सुभग सुमग
ं ल गाविहं नारी ॥ १ ॥
िसंघासनु अित िदब्य सुहावा । जाइ न बरिन िबरं िच बनावा ॥
बैठे िसव िब न्ह िसरु नाई । हृदयँ सुिमिर िनज भु रघुराई ॥ २ ॥
बहिर
ु मुनीसन्ह उमा बोलाई । किर िसंगारु सखीं लै आई ॥
दे खत रूपु सकल सुर मोहे । बरनै छिब अस जग किब को है ॥ ३ ॥
जगदं िबका जािन भव भामा । सुरन्ह मनिहं मन कीन्ह नामा ॥
सुद
ं रता मरजाद भवानी । जाइ न कोिटहँु बदन बखानी ॥ ४ ॥

छं द
कोिटहँु बदन निहं बनै बरनत जग जनिन सोभा महा ।
सकुचिहं कहत िु त सेष सारद मंदमित तुलसी कहा ॥
छिबखािन मातु भवािन गवनी मध्य मंडप िसव जहाँ ॥
अवलोिक सकिहं न सकुच पित पद कमल मनु मधुकरु तहाँ ॥

Read Ramcharitmanas online at www.swargarohan.org


रामचिरतमानस - 56 - बालकांड

दोहरा
मुिन अनुसासन गनपितिह पूजेउ संभु भवािन ।
कोउ सुिन संसय करै जिन सुर अनािद िजयँ जािन ॥ १०० ॥

जिस िबबाह कै िबिध िु त गाई । महामुिनन्ह सो सब करवाई ॥


गिह िगरीस कुस कन्या पानी । भविह समरपीं जािन भवानी ॥ १ ॥
पािन हन जब कीन्ह महे सा । िहं यँ हरषे तब सकल सुरेसा ॥
बेद मं मुिनबर उच्चरहीं । जय जय जय संकर सुर करहीं ॥ २ ॥
बाजिहं बाजन िबिबध िबधाना । सुमनबृि नभ भै िबिध नाना ॥
हर िगिरजा कर भयउ िबबाहू । सकल भुवन भिर रहा उछाहू ॥ ३ ॥
दासीं दास तुरग रथ नागा । धेनु बसन मिन बस्तु िबभागा ॥
अन्न कनकभाजन भिर जाना । दाइज दीन्ह न जाइ बखाना ॥ ४ ॥

छं द
दाइज िदयो बहु भाँित पुिन कर जोिर िहमभूधर क ो ।
का दे उँ पूरनकाम संकर चरन पंकज गिह र ो ॥
िसवँ कृ पासागर ससुर कर संतोषु सब भाँितिहं िकयो ।
पुिन गहे पद पाथोज मयनाँ ेम पिरपूरन िहयो ॥

दोहरा
नाथ उमा मन ान सम गृहिकंकरी करे हु ।
छमेहु सकल अपराध अब होइ सन्न बरु दे हु ॥ १०१ ॥

बहु िबिध संभु सास समुझाई । गवनी भवन चरन िसरु नाई ॥
जननीं उमा बोिल तब लीन्ही । लै उछं ग सुंदर िसख दीन्ही ॥१ ॥
करे हु सदा संकर पद पूजा । नािरधरमु पित दे उ न दजा
ू ॥
बचन कहत भरे लोचन बारी । बहिर
ु लाइ उर लीिन्ह कुमारी ॥ २ ॥
कत िबिध सृजीं नािर जग माहीं । पराधीन सपनेहुँ सुखु नाहीं ॥
भै अित ेम िबकल महतारी । धीरजु कीन्ह कुसमय िबचारी ॥ ३ ॥

Read Ramcharitmanas online at www.swargarohan.org


रामचिरतमानस - 57 - बालकांड

पुिन पुिन िमलित परित गिह चरना । परम ेम कछु जाइ न बरना ॥
सब नािरन्ह िमिल भेिट भवानी । जाइ जनिन उर पुिन लपटानी ॥ ४ ॥

छं द
जनिनिह बहिर
ु िमिल चली उिचत असीस सब काहँू दईं ।
िफिर िफिर िबलोकित मातु तन तब सखीं लै िसव पिहं गई ॥
जाचक सकल संतोिष संकरु उमा सिहत भवन चले ।
सब अमर हरषे सुमन बरिष िनसान नभ बाजे भले ॥

दोहरा
चले संग िहमवंतु तब पहँु चावन अित हे तु ।
िबिबध भाँित पिरतोषु किर िबदा कीन्ह बृषकेतु ॥ १०२ ॥

तुरत भवन आए िगिरराई । सकल सैल सर िलए बोलाई ॥


आदर दान िबनय बहमाना
ु । सब कर िबदा कीन्ह िहमवाना ॥ १ ॥
जबिहं संभु कैलासिहं आए । सुर सब िनज िनज लोक िसधाए ॥
जगत मातु िपतु संभु भवानी । तेही िसंगारु न कहउँ बखानी ॥ २ ॥
करिहं िबिबध िबिध भोग िबलासा । गनन्ह समेत बसिहं कैलासा ॥
हर िगिरजा िबहार िनत नयऊ । एिह िबिध िबपुल काल चिल गयऊ ॥३॥
तब जनमेउ षटबदन कुमारा । तारकु असुर समर जेिहं मारा ॥
आगम िनगम िस पुराना । षन्मुख जन्मु सकल जग जाना ॥ ४ ॥

छं द
जगु जान षन्मुख जन्मु कमुर् तापु पुरुषारथु महा ।
तेिह हे तु मैं बृषकेतु सुत कर चिरत संछेपिहं कहा ॥
यह उमा संगु िबबाहु जे नर नािर कहिहं जे गावहीं ।
कल्यान काज िबबाह मंगल सबर्दा सुखु पावहीं ॥

दोहरा

Read Ramcharitmanas online at www.swargarohan.org


रामचिरतमानस - 58 - बालकांड

चिरत िसंधु िगिरजा रमन बेद न पाविहं पारु ।


बरनै तुलसीदासु िकिम अित मितमंद गवाँरु ॥ १०३ ॥

संभु चिरत सुिन सरस सुहावा । भर ाज मुिन अित सुख पावा ॥


बहु लालसा कथा पर बाढ़ी । नयनिन्ह नीरु रोमाविल ठाढ़ी ॥ १ ॥
ेम िबबस मुख आव न बानी । दसा दे िख हरषे मुिन ग्यानी ॥
अहो धन्य तव जन्मु मुनीसा । तुम्हिह ान सम ि य गौरीसा ॥ २ ॥
िसव पद कमल िजन्हिह रित नाहीं । रामिह ते सपनेहुँ न सोहाहीं ॥
िबनु छल िबस्वनाथ पद नेहू । राम भगत कर लच्छन एहू ॥ ३ ॥
िसव सम को रघुपित तधारी । िबनु अघ तजी सती अिस नारी ॥
पनु किर रघुपित भगित दे खाई । को िसव सम रामिह ि य भाई ॥ ४ ॥

दोहरा
थमिहं मै किह िसव चिरत बूझा मरमु तुम्हार ।
सुिच सेवक तुम्ह राम के रिहत समस्त िबकार ॥ १०४ ॥

मैं जाना तुम्हार गुन सीला । कहउँ सुनहु अब रघुपित लीला ॥


सुनु मुिन आजु समागम तोरें । किह न जाइ जस सुखु मन मोरें ॥ १ ॥
राम चिरत अित अिमत मुिनसा । किह न सकिहं सत कोिट अहीसा ॥
तदिप जथा त
ु कहउँ बखानी । सुिमिर िगरापित भु धनुपानी ॥ २ ॥
सारद दारुनािर सम स्वामी । रामु सू धर अंतरजामी ॥
जेिह पर कृ पा करिहं जनु जानी । किब उर अिजर नचाविहं बानी ॥ ३ ॥
नवउँ सोइ कृ पाल रघुनाथा । बरनउँ िबसद तासु गुन गाथा ॥
परम रम्य िगिरबरु कैलासू । सदा जहाँ िसव उमा िनवासू ॥ ४ ॥

दोहरा
िस तपोधन जोिगजन सूर िकंनर मुिनबृंद ।
बसिहं तहाँ सुकृती सकल सेविहं िसब सुखकंद ॥ १०५ ॥

Read Ramcharitmanas online at www.swargarohan.org


रामचिरतमानस - 59 - बालकांड

हिर हर िबमुख धमर् रित नाहीं । ते नर तहँ सपनेहुँ निहं जाहीं ॥


तेिह िगिर पर बट िबटप िबसाला । िनत नूतन सुंदर सब काला ॥ १ ॥
ि िबध समीर सुसीतिल छाया । िसव िब ाम िबटप िु त गाया ॥
एक बार तेिह तर भु गयऊ । तरु िबलोिक उर अित सुखु भयऊ ॥ २ ॥
िनज कर डािस नागिरपु छाला । बैठै सहजिहं संभु कृ पाला ॥
कुंद इं द ु दर गौर सरीरा । भुज लंब पिरधन मुिनचीरा ॥ ३ ॥
तरुन अरुन अंबुज सम चरना । नख दित
ु भगत हृदय तम हरना ॥
भुजग भूित भूषन ि पुरारी । आननु सरद चंद छिब हारी ॥ ४ ॥

दोहरा
जटा मुकुट सुरसिरत िसर लोचन निलन िबसाल ।
नीलकंठ लावन्यिनिध सोह बालिबधु भाल ॥ १०६ ॥

बैठे सोह कामिरपु कैसें । धरें सरीरु सांतरसु जैसें ॥


पारबती भल अवसरु जानी । गई संभु पिहं मातु भवानी ॥ १ ॥
जािन ि या आदरु अित कीन्हा । बाम भाग आसनु हर दीन्हा ॥
बैठीं िसव समीप हरषाई । पूरुब जन्म कथा िचत आई ॥ २ ॥
पित िहयँ हे तु अिधक अनुमानी । िबहिस उमा बोलीं ि य बानी ॥
कथा जो सकल लोक िहतकारी । सोइ पूछन चह सैलकुमारी ॥ ३ ॥
िबस्वनाथ मम नाथ पुरारी । ि भुवन मिहमा िबिदत तुम्हारी ॥
चर अरु अचर नाग नर दे वा । सकल करिहं पद पंकज सेवा ॥ ४ ॥

दोहरा
भु समरथ सबर्ग्य िसव सकल कला गुन धाम ॥
जोग ग्यान बैराग्य िनिध नत कलपतरु नाम ॥ १०७ ॥

जौं मो पर सन्न सुखरासी । जािनअ सत्य मोिह िनज दासी ॥


तौं भु हरहु मोर अग्याना । किह रघुनाथ कथा िबिध नाना ॥ १ ॥

Read Ramcharitmanas online at www.swargarohan.org


रामचिरतमानस - 60 - बालकांड

जासु भवनु सुरतरु तर होई । सिह िक दिर जिनत दखु


ु सोई ॥
सिसभूषन अस हृदयँ िबचारी । हरहु नाथ मम मित म भारी ॥ २ ॥
भु जे मुिन परमारथबादी । कहिहं राम कहँु अनादी ॥
सेस सारदा बेद पुराना । सकल करिहं रघुपित गुन गाना ॥ ३ ॥
तुम्ह पुिन राम राम िदन राती । सादर जपहु अनँग आराती ॥
रामु सो अवध नृपित सुत सोई । की अज अगुन अलखगित कोई ॥ ४ ॥

दोहरा
जौं नृप तनय त िकिम नािर िबरहँ मित भोिर ।
दे ख चिरत मिहमा सुनत मित बुि अित मोिर ॥ १०८ ॥

जौं अनीह ब्यापक िबभु कोऊ । कबहु बुझाइ नाथ मोिह सोऊ ॥
अग्य जािन िरस उर जिन धरहू । जेिह िबिध मोह िमटै सोइ करहू ॥१ ॥
मै बन दीिख राम भुताई । अित भय िबकल न तुम्हिह सुनाई ॥
तदिप मिलन मन बोधु न आवा । सो फलु भली भाँित हम पावा ॥ २ ॥
अजहँू कछु संसउ मन मोरे । करहु कृ पा िबनवउँ कर जोरें ॥
भु तब मोिह बहु भाँित बोधा । नाथ सो समुिझ करहु जिन ोधा ॥३॥
तब कर अस िबमोह अब नाहीं । रामकथा पर रुिच मन माहीं ॥
कहहु पुनीत राम गुन गाथा । भुजगराज भूषन सुरनाथा ॥ ४ ॥

दोहरा
बंदउ पद धिर धरिन िसरु िबनय करउँ कर जोिर ।
बरनहु रघुबर िबसद जसु िु त िस ांत िनचोिर ॥ १०९ ॥

जदिप जोिषता निहं अिधकारी । दासी मन म बचन तुम्हारी ॥


गूढ़उ तत्व न साधु दराविहं
ु । आरत अिधकारी जहँ पाविहं ॥ १ ॥
अित आरित पूछउँ सुरराया । रघुपित कथा कहहु किर दाया ॥
थम सो कारन कहहु िबचारी । िनगुन
र् सगुन बपु धारी ॥ २ ॥

Read Ramcharitmanas online at www.swargarohan.org


रामचिरतमानस - 61 - बालकांड

पुिन भु कहहु राम अवतारा । बालचिरत पुिन कहहु उदारा ॥


कहहु जथा जानकी िबबाहीं । राज तजा सो दषन
ू काहीं ॥ ३ ॥
बन बिस कीन्हे चिरत अपारा । कहहु नाथ िजिम रावन मारा ॥
राज बैिठ कीन्हीं बहु लीला । सकल कहहु संकर सुखलीला ॥ ४ ॥

दोहरा
बहिर
ु कहहु करुनायतन कीन्ह जो अचरज राम ।
जा सिहत रघुबंसमिन िकिम गवने िनज धाम ॥ ११० ॥

पुिन भु कहहु सो तत्व बखानी । जेिहं िबग्यान मगन मुिन ग्यानी ॥


भगित ग्यान िबग्यान िबरागा । पुिन सब बरनहु सिहत िबभागा ॥ १ ॥
औरउ राम रहस्य अनेका । कहहु नाथ अित िबमल िबबेका ॥
जो भु मैं पूछा निह होई । सोउ दयाल राखहु जिन गोई ॥ २ ॥
तुम्ह ि भुवन गुर बेद बखाना । आन जीव पाँवर का जाना ॥
स्न उमा कै सहज सुहाई । छल िबहीन सुिन िसव मन भाई ॥ ३ ॥
हर िहयँ रामचिरत सब आए । ेम पुलक लोचन जल छाए ॥
ीरघुनाथ रूप उर आवा । परमानंद अिमत सुख पावा ॥ ४ ॥

दोहरा
मगन ध्यानरस दं ड जुग पुिन मन बाहे र कीन्ह ।
रघुपित चिरत महे स तब हरिषत बरनै लीन्ह ॥ १११ ॥

झूठेउ सत्य जािह िबनु जानें । िजिम भुजंग िबनु रजु पिहचानें ॥
जेिह जानें जग जाइ हे राई । जागें जथा सपन म जाई ॥ १ ॥
बंदउँ बालरूप सोई रामू । सब िसिध सुलभ जपत िजसु नामू ॥
मंगल भवन अमंगल हारी । वउ सो दसरथ अिजर िबहारी ॥ २ ॥
किर नाम रामिह ि पुरारी । हरिष सुधा सम िगरा उचारी ॥
धन्य धन्य िगिरराजकुमारी । तुम्ह समान निहं कोउ उपकारी ॥ ३ ॥

Read Ramcharitmanas online at www.swargarohan.org


रामचिरतमानस - 62 - बालकांड

पूँछेहु रघुपित कथा संगा । सकल लोक जग पाविन गंगा ॥


तुम्ह रघुबीर चरन अनुरागी । कीन्हहु स्न जगत िहत लागी ॥ ४ ॥

दोहरा
रामकृ पा तें पारबित सपनेहुँ तव मन मािहं ।
सोक मोह संदेह म मम िबचार कछु नािहं ॥ ११२ ॥

तदिप असंका कीिन्हहु सोई । कहत सुनत सब कर िहत होई ॥


िजन्ह हिर कथा सुनी निहं काना । वन रं अिहभवन समाना ॥ १ ॥
नयनिन्ह संत दरस निहं दे खा । लोचन मोरपंख कर लेखा ॥
ते िसर कटु तुंबिर समतूला । जे न नमत हिर गुर पद मूला ॥ २ ॥
िजन्ह हिरभगित हृदयँ निहं आनी । जीवत सव समान तेइ ानी ॥
जो निहं करइ राम गुन गाना । जीह सो दादरु जीह समाना ॥ ३ ॥
ु सोइ छाती । सुिन हिरचिरत न जो हरषाती ॥
कुिलस कठोर िनठर
िगिरजा सुनहु राम कै लीला । सुर िहत दनुज िबमोहनसीला ॥ ४ ॥

दोहरा
रामकथा सुरधेनु सम सेवत सब सुख दािन ।
सतसमाज सुरलोक सब को न सुनै अस जािन ॥ ११३ ॥

रामकथा सुंदर कर तारी । संसय िबहग उडाविनहारी ॥


रामकथा किल िबटप कुठारी । सादर सुनु िगिरराजकुमारी ॥ १ ॥
राम नाम गुन चिरत सुहाए । जनम करम अगिनत िु त गाए ॥
जथा अनंत राम भगवाना । तथा कथा कीरित गुन नाना ॥ २ ॥
तदिप जथा त
ु जिस मित मोरी । किहहउँ दे िख ीित अित तोरी ॥
उमा स्न तव सहज सुहाई । सुखद संतसंमत मोिह भाई ॥ ३ ॥
एक बात निह मोिह सोहानी । जदिप मोह बस कहे हु भवानी ॥
तुम जो कहा राम कोउ आना । जेिह िु त गाव धरिहं मुिन ध्याना ॥४ ॥

दोहरा

Read Ramcharitmanas online at www.swargarohan.org


रामचिरतमानस - 63 - बालकांड

कहिह सुनिह अस अधम नर से जे मोह िपसाच ।


पाषंडी हिर पद िबमुख जानिहं झूठ न साच ॥ ११४ ॥

अग्य अकोिबद अंध अभागी । काई िबषय मुकर मन लागी ॥


लंपट कपटी कुिटल िबसेषी । सपनेहुँ संतसभा निहं दे खी ॥ १ ॥
कहिहं ते बेद असंमत बानी । िजन्ह कें सूझ लाभु निहं हानी ॥
मुकर मिलन अरु नयन िबहीना । राम रूप दे खिहं िकिम दीना ॥ २ ॥
िजन्ह कें अगुन न सगुन िबबेका । जल्पिहं किल्पत बचन अनेका ॥
हिरमाया बस जगत माहीं । ितन्हिह कहत कछु अघिटत नाहीं ॥ ३ ॥
बातुल भूत िबबस मतवारे । ते निहं बोलिहं बचन िबचारे ॥
िजन्ह कृ त महामोह मद पाना । ितन ् कर कहा किरअ निहं काना ॥ ४ ॥

सोरठा
अस िनज हृदयँ िबचािर तजु संसय भजु राम पद ।
सुनु िगिरराज कुमािर म तम रिब कर बचन मम ॥ ११५ ॥

सगुनिह अगुनिह निहं कछु भेदा । गाविहं मुिन पुरान बुध बेदा ॥
अगुन अरुप अलख अज जोई । भगत ेम बस सगुन सो होई ॥ १ ॥
जो गुन रिहत सगुन सोइ कैसें । जलु िहम उपल िबलग निहं जैसें ॥
जासु नाम म ितिमर पतंगा । तेिह िकिम किहअ िबमोह संगा ॥ २ ॥
राम सिच्चदानंद िदनेसा । निहं तहँ मोह िनसा लवलेसा ॥
सहज कासरुप भगवाना । निहं तहँ पुिन िबग्यान िबहाना ॥ ३ ॥
हरष िबषाद ग्यान अग्याना । जीव धमर् अहिमित अिभमाना ॥
राम ब्यापक जग जाना । परमानन्द परे स पुराना ॥ ४ ॥

दोहरा
पुरुष िस कास िनिध गट परावर नाथ ॥
रघुकुलमिन मम स्वािम सोइ किह िसवँ नायउ माथ ॥ ११६ ॥

Read Ramcharitmanas online at www.swargarohan.org


रामचिरतमानस - 64 - बालकांड

िनज म निहं समुझिहं अग्यानी । भु पर मोह धरिहं जड़ ानी ॥


जथा गगन घन पटल िनहारी । झाँपेउ मानु कहिहं कुिबचारी ॥ १ ॥
िचतव जो लोचन अंगुिल लाएँ । गट जुगल सिस तेिह के भाएँ ॥
उमा राम िबषइक अस मोहा । नभ तम धूम धूिर िजिम सोहा ॥ २ ॥
िबषय करन सुर जीव समेता । सकल एक तें एक सचेता ॥
सब कर परम कासक जोई । राम अनािद अवधपित सोई ॥ ३ ॥
जगत कास्य कासक रामू । मायाधीस ग्यान गुन धामू ॥
जासु सत्यता तें जड माया । भास सत्य इव मोह सहाया ॥ ४ ॥

दोहरा
रजत सीप महँु मास िजिम जथा भानु कर बािर ।
जदिप मृषा ितहँु काल सोइ म न सकइ कोउ टािर ॥ ११७ ॥

एिह िबिध जग हिर आि त रहई । जदिप असत्य दे त दख


ु अहई ॥
जौं सपनें िसर काटै कोई । िबनु जागें न दिर
ू दख
ु होई ॥ १ ॥
जासु कृ पाँ अस म िमिट जाई । िगिरजा सोइ कृ पाल रघुराई ॥
आिद अंत कोउ जासु न पावा । मित अनुमािन िनगम अस गावा ॥ २ ॥
िबनु पद चलइ सुनइ िबनु काना । कर िबनु करम करइ िबिध नाना ॥
आनन रिहत सकल रस भोगी । िबनु बानी बकता बड़ जोगी ॥ ३ ॥
तनु िबनु परस नयन िबनु दे खा । हइ ान िबनु बास असेषा ॥
अिस सब भाँित अलौिकक करनी । मिहमा जासु जाइ निहं बरनी ॥ ४ ॥

दोहरा
जेिह इिम गाविह बेद बुध जािह धरिहं मुिन ध्यान ॥
सोइ दसरथ सुत भगत िहत कोसलपित भगवान ॥ ११८ ॥

कासीं मरत जंतु अवलोकी । जासु नाम बल करउँ िबसोकी ॥


सोइ भु मोर चराचर स्वामी । रघुबर सब उर अंतरजामी ॥ १ ॥

Read Ramcharitmanas online at www.swargarohan.org


रामचिरतमानस - 65 - बालकांड

िबबसहँु जासु नाम नर कहहीं । जनम अनेक रिचत अघ दहहीं ॥


सादर सुिमरन जे नर करहीं । भव बािरिध गोपद इव तरहीं ॥ २ ॥
राम सो परमातमा भवानी । तहँ म अित अिबिहत तव बानी ॥
अस संसय आनत उर माहीं । ग्यान िबराग सकल गुन जाहीं ॥ ३ ॥
सुिन िसव के म भंजन बचना । िमिट गै सब कुतरक कै रचना ॥
भइ रघुपित पद ीित तीती । दारुन असंभावना बीती ॥ ४ ॥

दोहरा
पुिन पुिन भु पद कमल गिह जोिर पंकरुह पािन ।
बोली िगिरजा बचन बर मनहँु ेम रस सािन ॥ ११९ ॥

सिस कर सम सुिन िगरा तुम्हारी । िमटा मोह सरदातप भारी ॥


तुम्ह कृ पाल सबु संसउ हरे ऊ । राम स्वरुप जािन मोिह परे ऊ ॥ १ ॥
नाथ कृ पाँ अब गयउ िबषादा । सुखी भयउँ भु चरन सादा ॥
अब मोिह आपिन िकंकिर जानी । जदिप सहज जड नािर अयानी ॥ २ ॥
थम जो मैं पूछा सोइ कहहू । जौं मो पर सन्न भु अहहू ॥
राम िचनमय अिबनासी । सबर् रिहत सब उर पुर बासी ॥ ३ ॥
नाथ धरे उ नरतनु केिह हे तू । मोिह समुझाइ कहहु बृषकेतू ॥
उमा बचन सुिन परम िबनीता । रामकथा पर ीित पुनीता ॥ ४ ॥

दोहरा
िहँ यँ हरषे कामािर तब संकर सहज सुजान
बहु िबिध उमिह संिस पुिन बोले कृ पािनधान ॥ १२०(क) ॥

नवान्हपारायन,पहला िव ाम
मासपारायण, चौथा िव ाम

सोरठा
सुनु सुभ कथा भवािन रामचिरतमानस िबमल ।
कहा भुसुंिड बखािन सुना िबहग नायक गरुड ॥ १२०(ख) ॥

Read Ramcharitmanas online at www.swargarohan.org


रामचिरतमानस - 66 - बालकांड

सो संबाद उदार जेिह िबिध भा आगें कहब ।


सुनहु राम अवतार चिरत परम सुद
ं र अनघ ॥ १२०(ग) ॥

हिर गुन नाम अपार कथा रूप अगिनत अिमत ।


मैं िनज मित अनुसार कहउँ उमा सादर सुनहु ॥ १२०(घ ॥

सुनु िगिरजा हिरचिरत सुहाए । िबपुल िबसद िनगमागम गाए ॥


हिर अवतार हे तु जेिह होई । इदिमत्थं किह जाइ न सोई ॥ १ ॥
राम अतक्यर् बुि मन बानी । मत हमार अस सुनिह सयानी ॥
तदिप संत मुिन बेद पुराना । जस कछु कहिहं स्वमित अनुमाना ॥ २ ॥
तस मैं सुमुिख सुनावउँ तोही । समुिझ परइ जस कारन मोही ॥
जब जब होइ धरम कै हानी । बाढिहं असुर अधम अिभमानी ॥ ३ ॥
करिहं अनीित जाइ निहं बरनी । सीदिहं िब धेनु सुर धरनी ॥
तब तब भु धिर िबिबध सरीरा । हरिह कृ पािनिध सज्जन पीरा ॥ ४ ॥

दोहरा
असुर मािर थापिहं सुरन्ह राखिहं िनज िु त सेतु ।
जग िबस्तारिहं िबसद जस राम जन्म कर हे तु ॥ १२१ ॥

सोइ जस गाइ भगत भव तरहीं । कृ पािसंधु जन िहत तनु धरहीं ॥


राम जनम के हे तु अनेका । परम िबिच एक तें एका ॥ १ ॥
जनम एक दइ
ु कहउँ बखानी । सावधान सुनु सुमित भवानी ॥
ारपाल हिर के ि य दोऊ । जय अरु िबजय जान सब कोऊ ॥ २ ॥
िब ाप तें दनउ
ू भाई । तामस असुर दे ह ितन्ह पाई ॥
कनककिसपु अरु हाटक लोचन । जगत िबिदत सुरपित मद मोचन ॥३ ॥
िबजई समर बीर िबख्याता । धिर बराह बपु एक िनपाता ॥
होइ नरहिर दसर
ू पुिन मारा । जन हलाद सुजस िबस्तारा ॥ ४ ॥

दोहरा

Read Ramcharitmanas online at www.swargarohan.org


रामचिरतमानस - 67 - बालकांड

भए िनसाचर जाइ तेइ महाबीर बलवान ।


कुंभकरन रावण सुभट सुर िबजई जग जान ॥ १२२ ।

मुकुत न भए हते भगवाना । तीिन जनम ि ज बचन वाना ॥


एक बार ितन्ह के िहत लागी । धरे उ सरीर भगत अनुरागी ॥ १ ॥
कस्यप अिदित तहाँ िपतु माता । दसरथ कौसल्या िबख्याता ॥
एक कलप एिह िबिध अवतारा । चिर पिव िकए संसारा ॥ २ ॥
एक कलप सुर दे िख दखारे
ु । समर जलंधर सन सब हारे ॥
संभु कीन्ह सं ाम अपारा । दनुज महाबल मरइ न मारा ॥ ३ ॥
परम सती असुरािधप नारी । तेिह बल तािह न िजतिहं पुरारी ॥ ४ ॥

दोहरा
छल किर टारे उ तासु त भु सुर कारज कीन्ह ॥
जब तेिह जानेउ मरम तब ाप कोप किर दीन्ह ॥ १२३ ॥

तासु ाप हिर दीन्ह माना । कौतुकिनिध कृ पाल भगवाना ॥


तहाँ जलंधर रावन भयऊ । रन हित राम परम पद दयऊ ॥ १ ॥
एक जनम कर कारन एहा । जेिह लािग राम धरी नरदे हा ॥
ित अवतार कथा भु केरी । सुनु मुिन बरनी किबन्ह घनेरी ॥ २ ॥
नारद ाप दीन्ह एक बारा । कलप एक तेिह लिग अवतारा ॥
िगिरजा चिकत भई सुिन बानी । नारद िबष्नुभगत पुिन ग्यािन ॥ ३ ॥
कारन कवन ाप मुिन दीन्हा । का अपराध रमापित कीन्हा ॥
यह संग मोिह कहहु पुरारी । मुिन मन मोह आचरज भारी ॥ ४ ॥

दोहरा
बोले िबहिस महे स तब ग्यानी मूढ़ न कोइ ।
जेिह जस रघुपित करिहं जब सो तस तेिह छन होइ ॥ १२४(क) ॥

सोरठा

Read Ramcharitmanas online at www.swargarohan.org


रामचिरतमानस - 68 - बालकांड

कहउँ राम गुन गाथ भर ाज सादर सुनहु ।


भव भंजन रघुनाथ भजु तुलसी तिज मान मद ॥ १२४(ख) ॥

िहमिगिर गुहा एक अित पाविन । बह समीप सुरसरी सुहाविन ॥


आ म परम पुनीत सुहावा । दे िख दे विरिष मन अित भावा ॥ १ ॥
िनरिख सैल सिर िबिपन िबभागा । भयउ रमापित पद अनुरागा ॥
सुिमरत हिरिह ाप गित बाधी । सहज िबमल मन लािग समाधी ॥ २ ॥
मुिन गित दे िख सुरेस डे राना । कामिह बोिल कीन्ह समाना ॥
सिहत सहाय जाहु मम हे तू । चकेउ हरिष िहयँ जलचरकेतू ॥ ३ ॥
सुनासीर मन महँु अिस ासा । चहत दे विरिष मम पुर बासा ॥
जे कामी लोलुप जग माहीं । कुिटल काक इव सबिह डे राहीं ॥ ४ ॥

दोहरा
सुख हाड़ लै भाग सठ स्वान िनरिख मृगराज ।
छीिन लेइ जिन जान जड़ ितिम सुरपितिह न लाज ॥ १२५ ॥

तेिह आ मिहं मदन जब गयऊ । िनज मायाँ बसंत िनरमयऊ ॥


कुसुिमत िबिबध िबटप बहरंु गा । कूजिहं कोिकल गुंजिह भृग
ं ा ॥ १ ॥
चली सुहाविन ि िबध बयारी । काम कृ सानु बढ़ाविनहारी ॥
रं भािदक सुरनािर नबीना । सकल असमसर कला बीना ॥ २ ॥
करिहं गान बहु तान तरं गा । बहिबिध
ु ीड़िह पािन पतंगा ॥
दे िख सहाय मदन हरषाना । कीन्हे िस पुिन पंच िबिध नाना ॥ ३ ॥
काम कला कछु मुिनिह न ब्यापी । िनज भयँ डरे उ मनोभव पापी ॥
सीम िक चाँिप सकइ कोउ तासु । बड़ रखवार रमापित जासू ॥ ४ ॥

दोहरा
सिहत सहाय सभीत अित मािन हािर मन मैन ।
गहे िस जाइ मुिन चरन तब किह सुिठ आरत बैन ॥ १२६ ॥

भयउ न नारद मन कछु रोषा । किह ि य बचन काम पिरतोषा ॥

Read Ramcharitmanas online at www.swargarohan.org


रामचिरतमानस - 69 - बालकांड

नाइ चरन िसरु आयसु पाई । गयउ मदन तब सिहत सहाई ॥ १ ॥


मुिन सुसीलता आपिन करनी । सुरपित सभाँ जाइ सब बरनी ॥
सुिन सब कें मन अचरजु आवा । मुिनिह संिस हिरिह िसरु नावा ॥२ ॥
तब नारद गवने िसव पाहीं । िजता काम अहिमित मन माहीं ॥
मार चिरत संकरिहं सुनाए । अिति य जािन महे स िसखाए ॥ ३ ॥
बार बार िबनवउँ मुिन तोहीं । िजिम यह कथा सुनायहु मोहीं ॥
ितिम जिन हिरिह सुनावहु कबहँू । चलेहुँ संग दराएड
ु ु तबहँू ॥ ४ ॥

दोहरा
संभु दीन्ह उपदे स िहत निहं नारदिह सोहान ।
भार ाज कौतुक सुनहु हिर इच्छा बलवान ॥ १२७ ॥

राम कीन्ह चाहिहं सोइ होई । करै अन्यथा अस निहं कोई ॥


संभु बचन मुिन मन निहं भाए । तब िबरं िच के लोक िसधाए ॥ १ ॥
एक बार करतल बर बीना । गावत हिर गुन गान बीना ॥
छीरिसंधु गवने मुिननाथा । जहँ बस ीिनवास िु तमाथा ॥ २ ॥
हरिष िमले उिठ रमािनकेता । बैठे आसन िरिषिह समेता ॥
बोले िबहिस चराचर राया । बहते
ु िदनन कीिन्ह मुिन दाया ॥ ३ ॥
काम चिरत नारद सब भाषे । ज िप थम बरिज िसवँ राखे ॥
अित चंड रघुपित कै माया । जेिह न मोह अस को जग जाया ॥ ४ ॥

दोहरा
रूख बदन किर बचन मृद ु बोले ीभगवान ।
तुम्हरे सुिमरन तें िमटिहं मोह मार मद मान ॥ १२८ ॥

सुनु मुिन मोह होइ मन ताकें । ग्यान िबराग हृदय निहं जाके ॥
चरज त रत मितधीरा । तुम्हिह िक करइ मनोभव पीरा ॥ १ ॥
नारद कहे उ सिहत अिभमाना । कृ पा तुम्हािर सकल भगवाना ॥
करुनािनिध मन दीख िबचारी । उर अंकुरे उ गरब तरु भारी ॥ २ ॥

Read Ramcharitmanas online at www.swargarohan.org


रामचिरतमानस - 70 - बालकांड

बेिग सो मै डािरहउँ उखारी । पन हमार सेवक िहतकारी ॥


मुिन कर िहत मम कौतुक होई । अविस उपाय करिब मै सोई ॥ ३ ॥
तब नारद हिर पद िसर नाई । चले हृदयँ अहिमित अिधकाई ॥
ीपित िनज माया तब ेरी । सुनहु किठन करनी तेिह केरी ॥ ४ ॥

दोहरा
िबरचेउ मग महँु नगर तेिहं सत जोजन िबस्तार ।
ीिनवासपुर तें अिधक रचना िबिबध कार ॥ १२९ ॥

बसिहं नगर सुंदर नर नारी । जनु बहु मनिसज रित तनुधारी ॥


तेिहं पुर बसइ सीलिनिध राजा । अगिनत हय गय सेन समाजा ॥ १ ॥
सत सुरेस सम िबभव िबलासा । रूप तेज बल नीित िनवासा ॥
िबस्वमोहनी तासु कुमारी । ी िबमोह िजसु रूपु िनहारी ॥ २ ॥
सोइ हिरमाया सब गुन खानी । सोभा तासु िक जाइ बखानी ॥
करइ स्वयंबर सो नृपबाला । आए तहँ अगिनत मिहपाला ॥ ३ ॥
मुिन कौतुकी नगर तेिहं गयऊ । पुरबािसन्ह सब पूछत भयऊ ॥
सुिन सब चिरत भूपगृहँ आए । किर पूजा नृप मुिन बैठाए ॥ ४ ॥

दोहरा
आिन दे खाई नारदिह भूपित राजकुमािर ।
कहहु नाथ गुन दोष सब एिह के हृदयँ िबचािर ॥ १३० ॥

दे िख रूप मुिन िबरित िबसारी । बड़ी बार लिग रहे िनहारी ॥


लच्छन तासु िबलोिक भुलाने । हृदयँ हरष निहं गट बखाने ॥ १ ॥
जो एिह बरइ अमर सोइ होई । समरभूिम तेिह जीत न कोई ॥
सेविहं सकल चराचर ताही । बरइ सीलिनिध कन्या जाही ॥ २ ॥

लच्छन सब िबचािर उर राखे । कछक बनाइ भूप सन भाषे ॥
सुता सुलच्छन किह नृप पाहीं । नारद चले सोच मन माहीं ॥ ३ ॥
करौं जाइ सोइ जतन िबचारी । जेिह कार मोिह बरै कुमारी ॥

Read Ramcharitmanas online at www.swargarohan.org


रामचिरतमानस - 71 - बालकांड

जप तप कछु न होइ तेिह काला । हे िबिध िमलइ कवन िबिध बाला॥४॥

दोहरा
एिह अवसर चािहअ परम सोभा रूप िबसाल ।
जो िबलोिक रीझै कुअँिर तब मेलै जयमाल ॥ १३१ ॥

हिर सन मागौं सुद


ं रताई । होइिह जात गहरु अित भाई ॥
मोरें िहत हिर सम निहं कोऊ । एिह अवसर सहाय सोइ होऊ ॥ १ ॥
बहिबिध
ु िबनय कीिन्ह तेिह काला । गटे उ भु कौतुकी कृ पाला ॥
भु िबलोिक मुिन नयन जुड़ाने । होइिह काजु िहएँ हरषाने ॥ २ ॥
अित आरित किह कथा सुनाई । करहु कृ पा किर होहु सहाई ॥
आपन रूप दे हु भु मोही । आन भाँित निहं पावौं ओही ॥ ३ ॥
जेिह िबिध नाथ होइ िहत मोरा । करहु सो बेिग दास मैं तोरा ॥
िनज माया बल दे िख िबसाला । िहयँ हँ िस बोले दीनदयाला ॥ ४ ॥

दोहरा
जेिह िबिध होइिह परम िहत नारद सुनहु तुम्हार ।
सोइ हम करब न आन कछु बचन न मृषा हमार ॥ १३२ ॥

कुपथ माग रुज ब्याकुल रोगी । बैद न दे इ सुनहु मुिन जोगी ॥


एिह िबिध िहत तुम्हार मैं ठयऊ । किह अस अंतरिहत भु भयऊ ॥ १ ॥
माया िबबस भए मुिन मूढ़ा । समुझी निहं हिर िगरा िनगूढ़ा ॥
गवने तुरत तहाँ िरिषराई । जहाँ स्वयंबर भूिम बनाई ॥ २ ॥
िनज िनज आसन बैठे राजा । बहु बनाव किर सिहत समाजा ॥
मुिन मन हरष रूप अित मोरें । मोिह तिज आनिह बािरिह न भोरें ॥३ ॥
मुिन िहत कारन कृ पािनधाना । दीन्ह कुरूप न जाइ बखाना ॥
सो चिर लिख काहँु न पावा । नारद जािन सबिहं िसर नावा ॥ ४ ॥

दोहरा

Read Ramcharitmanas online at www.swargarohan.org


रामचिरतमानस - 72 - बालकांड

रहे तहाँ दइु रु गन ते जानिहं सब भेउ ।


िब बेष दे खत िफरिहं परम कौतुकी तेउ ॥ १३३ ॥

जेंिह समाज बैंठे मुिन जाई । हृदयँ रूप अहिमित अिधकाई ॥


तहँ बैठ महे स गन दोऊ । िब बेष गित लखइ न कोऊ ॥ १ ॥
करिहं कूिट नारदिह सुनाई । नीिक दीिन्ह हिर सुंदरताई ॥
रीझिह राजकुअँिर छिब दे खी । इन्हिह बिरिह हिर जािन िबसेषी ॥ २ ॥
मुिनिह मोह मन हाथ पराएँ । हँ सिहं संभु गन अित सचु पाएँ ॥
जदिप सुनिहं मुिन अटपिट बानी । समुिझ न परइ बुि म सानी ॥३ ॥
काहँु न लखा सो चिरत िबसेषा । सो सरूप नृपकन्याँ दे खा ॥
मकर्ट बदन भयंकर दे ही । दे खत हृदयँ ोध भा तेही ॥ ४ ॥

दोहरा
सखीं संग लै कुअँिर तब चिल जनु राजमराल ।
दे खत िफरइ महीप सब कर सरोज जयमाल ॥ १३४ ॥

जेिह िदिस बैठे नारद फूली । सो िदिस दे िह न िबलोकी भूली ॥


पुिन पुिन मुिन उकसिहं अकुलाहीं । दे िख दसा हर गन मुसकाहीं ॥ १ ॥
धिर नृपतनु तहँ गयउ कृ पाला । कुअँिर हरिष मेलेउ जयमाला ॥
दलिहिन
ु लै गे लिच्छिनवासा । नृपसमाज सब भयउ िनरासा ॥ २ ॥

मुिन अित िबकल मोंहँ मित नाठी । मिन िगिर गई छिट जनु गाँठी ॥
तब हर गन बोले मुसुकाई । िनज मुख मुकुर िबलोकहु जाई ॥ ३ ॥
अस किह दोउ भागे भयँ भारी । बदन दीख मुिन बािर िनहारी ॥
बेषु िबलोिक ोध अित बाढ़ा । ितन्हिह सराप दीन्ह अित गाढ़ा ॥ ४ ॥

दोहरा
होहु िनसाचर जाइ तुम्ह कपटी पापी दोउ ।
हँ सेहु हमिह सो लेहु फल बहिर
ु हँ सेहु मुिन कोउ ॥ १३५ ॥

पुिन जल दीख रूप िनज पावा । तदिप हृदयँ संतोष न आवा ॥

Read Ramcharitmanas online at www.swargarohan.org


रामचिरतमानस - 73 - बालकांड

फरकत अधर कोप मन माहीं । सपदी चले कमलापित पाहीं ॥ १ ॥


दे हउँ ाप िक मिरहउँ जाई । जगत मोर उपहास कराई ॥
बीचिहं पंथ िमले दनुजारी । संग रमा सोइ राजकुमारी ॥ २ ॥
बोले मधुर बचन सुरसाईं । मुिन कहँ चले िबकल की नाईं ॥
सुनत बचन उपजा अित ोधा । माया बस न रहा मन बोधा ॥ ३ ॥
पर संपदा सकहु निहं दे खी । तुम्हरें इिरषा कपट िबसेषी ॥
मथत िसंधु रु िह बौरायहु । सुरन्ह ेरी िबष पान करायहु ॥ ४ ॥

दोहरा
असुर सुरा िबष संकरिह आपु रमा मिन चारु ।
स्वारथ साधक कुिटल तुम्ह सदा कपट ब्यवहारु ॥ १३६ ॥

परम स्वतं न िसर पर कोई । भावइ मनिह करहु तुम्ह सोई ॥


भलेिह मंद मंदेिह भल करहू । िबसमय हरष न िहयँ कछु धरहू ॥ १ ॥
डहिक डहिक पिरचेहु सब काहू । अित असंक मन सदा उछाहू ॥
करम सुभासुभ तुम्हिह न बाधा । अब लिग तुम्हिह न काहँू साधा ॥ २ ॥
भले भवन अब बायन दीन्हा । पावहगे
ु फल आपन कीन्हा ॥
बंचेहु मोिह जविन धिर दे हा । सोइ तनु धरहु ाप मम एहा ॥ ३ ॥
किप आकृ ित तुम्ह कीिन्ह हमारी । किरहिहं कीस सहाय तुम्हारी ॥
मम अपकार कीन्ही तुम्ह भारी । नारी िबरहँ तुम्ह होब दखारी
ु ॥ ४ ॥

दोहरा
ाप सीस धरी हरिष िहयँ भु बहु िबनती कीिन्ह ।
िनज माया कै बलता करिष कृ पािनिध लीिन्ह ॥ १३७ ॥

जब हिर माया दिर


ू िनवारी । निहं तहँ रमा न राजकुमारी ॥
तब मुिन अित सभीत हिर चरना । गहे पािह नतारित हरना ॥ १ ॥
मृषा होउ मम ाप कृ पाला । मम इच्छा कह दीनदयाला ॥
मैं दबर्
ु चन कहे बहते
ु रे । कह मुिन पाप िमिटिहं िकिम मेरे ॥ २ ॥

Read Ramcharitmanas online at www.swargarohan.org


रामचिरतमानस - 74 - बालकांड

जपहु जाइ संकर सत नामा । होइिह हृदयँ तुरंत िब ामा ॥


कोउ निहं िसव समान ि य मोरें । अिस परतीित तजहु जिन भोरें ॥ ३ ॥
जेिह पर कृ पा न करिहं पुरारी । सो न पाव मुिन भगित हमारी ॥
अस उर धिर मिह िबचरहु जाई । अब न तुम्हिह माया िनअराई ॥ ४ ॥

दोहरा
बहिबिध
ु मुिनिह बोिध भु तब भए अंतरधान ॥
सत्यलोक नारद चले करत राम गुन गान ॥ १३८ ॥

हर गन मुिनिह जात पथ दे खी । िबगतमोह मन हरष िबसेषी ॥


अित सभीत नारद पिहं आए । गिह पद आरत बचन सुनाए ॥ १ ॥
हर गन हम न िब मुिनराया । बड़ अपराध कीन्ह फल पाया ॥
ाप अनु ह करहु कृ पाला । बोले नारद दीनदयाला ॥ २ ॥
िनिसचर जाइ होहु तुम्ह दोऊ । बैभव िबपुल तेज बल होऊ ॥
भुजबल िबस्व िजतब तुम्ह जिहआ।धिरहिहं िबष्नु मनुज तनु तिहआ॥३॥
समर मरन हिर हाथ तुम्हारा । होइहहु मुकुत न पुिन संसारा ॥
चले जुगल मुिन पद िसर नाई । भए िनसाचर कालिह पाई ॥ ४ ॥

दोहरा
एक कलप एिह हे तु भु लीन्ह मनुज अवतार ।
सुर रं जन सज्जन सुखद हिर भंजन भुिब भार ॥ १३९ ॥

एिह िबिध जनम करम हिर केरे । सुंदर सुखद िबिच घनेरे ॥
कलप कलप ित भु अवतरहीं । चारु चिरत नानािबिध करहीं ॥ १ ॥
तब तब कथा मुनीसन्ह गाई । परम पुनीत बंध बनाई ॥
िबिबध संग अनूप बखाने । करिहं न सुिन आचरजु सयाने ॥ २ ॥
हिर अनंत हिरकथा अनंता । कहिहं सुनिहं बहिबिध
ु सब संता ॥
रामचं के चिरत सुहाए । कलप कोिट लिग जािहं न गाए ॥ ३ ॥
यह संग मैं कहा भवानी । हिरमायाँ मोहिहं मुिन ग्यानी ॥

Read Ramcharitmanas online at www.swargarohan.org


रामचिरतमानस - 75 - बालकांड

भु कौतुकी नत िहतकारी ॥ सेवत सुलभ सकल दख


ु हारी ॥ ४ ॥

सोरठा
सुर नर मुिन कोउ नािहं जेिह न मोह माया बल ॥
अस िबचािर मन मािहं भिजअ महामाया पितिह ॥ १४० ॥

अपर हे तु सुनु सैलकुमारी । कहउँ िबिच कथा िबस्तारी ॥


जेिह कारन अज अगुन अरूपा । भयउ कोसलपुर भूपा ॥ १ ॥
जो भु िबिपन िफरत तुम्ह दे खा । बंधु समेत धरें मुिनबेषा ॥
जासु चिरत अवलोिक भवानी । सती सरीर रिहहु बौरानी ॥ २ ॥
अजहँु न छाया िमटित तुम्हारी । तासु चिरत सुनु म रुज हारी ॥
लीला कीिन्ह जो तेिहं अवतारा । सो सब किहहउँ मित अनुसारा ॥ ३ ॥
भर ाज सुिन संकर बानी । सकुिच स ेम उमा मुसकानी ॥
लगे बहिर
ु बरने बृषकेतू । सो अवतार भयउ जेिह हे तू ॥ ४ ॥

दोहरा
सो मैं तुम्ह सन कहउँ सबु सुनु मुनीस मन लाई ॥
राम कथा किल मल हरिन मंगल करिन सुहाइ ॥ १४१ ॥

स्वायंभू मनु अरु सतरूपा । िजन्ह तें भै नरसृि अनूपा ॥


दं पित धरम आचरन नीका । अजहँु गाव िु त िजन्ह कै लीका ॥ १ ॥
नृप उ ानपाद सुत तासू । व
ु हिर भगत भयउ सुत जासू ॥
लघु सुत नाम ि त ताही । बेद पुरान संसिह जाही ॥ २ ॥
दे वहित
ू पुिन तासु कुमारी । जो मुिन कदर् म कै ि य नारी ॥
आिददे व भु दीनदयाला । जठर धरे उ जेिहं किपल कृ पाला ॥ ३ ॥
सांख्य सा िजन्ह गट बखाना । तत्व िबचार िनपुन भगवाना ॥
तेिहं मनु राज कीन्ह बहु काला । भु आयसु सब िबिध ितपाला ॥ ४ ॥

सोरठा

Read Ramcharitmanas online at www.swargarohan.org


रामचिरतमानस - 76 - बालकांड

होइ न िबषय िबराग भवन बसत भा चौथपन ।


हृदयँ बहत
ु दख
ु लाग जनम गयउ हिरभगित िबनु ॥ १४२ ॥

बरबस राज सुतिह तब दीन्हा । नािर समेत गवन बन कीन्हा ॥


तीरथ बर नैिमष िबख्याता । अित पुनीत साधक िसिध दाता ॥ १ ॥
बसिहं तहाँ मुिन िस समाजा । तहँ िहयँ हरिष चलेउ मनु राजा ॥
पंथ जात सोहिहं मितधीरा । ग्यान भगित जनु धरें सरीरा ॥ २ ॥
पहँु चे जाइ धेनुमित तीरा । हरिष नहाने िनरमल नीरा ॥
आए िमलन िस मुिन ग्यानी । धरम धुरंधर नृपिरिष जानी ॥ ३ ॥
जहँ जँह तीरथ रहे सुहाए । मुिनन्ह सकल सादर करवाए ॥
कृ स सरीर मुिनपट पिरधाना । सत समाज िनत सुनिहं पुराना ॥ ४ ॥

दोहरा
ादस अच्छर मं पुिन जपिहं सिहत अनुराग ।
बासुदेव पद पंकरुह दं पित मन अित लाग ॥ १४३ ॥

करिहं अहार साक फल कंदा । सुिमरिहं सिच्चदानंदा ॥


पुिन हिर हे तु करन तप लागे । बािर अधार मूल फल त्यागे ॥ १ ॥
उर अिभलाष िनंरंतर होई । दे खा नयन परम भु सोई ॥
अगुन अखंड अनंत अनादी । जेिह िचंतिहं परमारथबादी ॥ २ ॥
नेित नेित जेिह बेद िनरूपा । िनजानंद िनरुपािध अनूपा ॥
संभु िबरं िच िबष्नु भगवाना । उपजिहं जासु अंस तें नाना ॥ ३ ॥
ऐसेउ भु सेवक बस अहई । भगत हे तु लीलातनु गहई ॥
जौं यह बचन सत्य िु त भाषा । तौ हमार पूजिह अिभलाषा ॥ ४ ॥

दोहरा
एिह िबिध बीतें बरष षट सहस बािर आहार ।
संबत स सह पुिन रहे समीर अधार ॥ १४४ ॥

बरष सहस दस त्यागेउ सोऊ । ठाढ़े रहे एक पद दोऊ ॥

Read Ramcharitmanas online at www.swargarohan.org


रामचिरतमानस - 77 - बालकांड

िबिध हिर तप दे िख अपारा । मनु समीप आए बहु बारा ॥ १ ॥


मागहु बर बहु भाँित लोभाए । परम धीर निहं चलिहं चलाए ॥
अिस्थमा होइ रहे सरीरा । तदिप मनाग मनिहं निहं पीरा ॥ २ ॥
भु सबर्ग्य दास िनज जानी । गित अनन्य तापस नृप रानी ॥
मागु मागु बरु भै नभ बानी । परम गभीर कृ पामृत सानी ॥ ३ ॥
मृतक िजआविन िगरा सुहाई । बन रं होइ उर जब आई ॥
पु तन भए सुहाए । मानहँु अबिहं भवन ते आए ॥ ४ ॥

दोहरा
वन सुधा सम बचन सुिन पुलक फुिल्लत गात ।
बोले मनु किर दं डवत ेम न हृदयँ समात ॥ १४५ ॥

सुनु सेवक सुरतरु सुरधेनु । िबिध हिर हर बंिदत पद रे नू ॥


सेवत सुलभ सकल सुख दायक । नतपाल सचराचर नायक ॥ १ ॥
जौं अनाथ िहत हम पर नेहू । तौ सन्न होइ यह बर दे हू ॥
जो सरूप बस िसव मन माहीं । जेिह कारन मुिन जतन कराहीं ॥ २ ॥
जो भुसिुं ड मन मानस हं सा । सगुन अगुन जेिह िनगम संसा ॥
दे खिहं हम सो रूप भिर लोचन । कृ पा करहु नतारित मोचन ॥ ३ ॥
दं पित बचन परम ि य लागे । मुदल
ु िबनीत ेम रस पागे ॥
भगत बछल भु कृ पािनधाना । िबस्वबास गटे भगवाना ॥ ४ ॥

दोहरा
नील सरोरुह नील मिन नील नीरधर स्याम ।
लाजिहं तन सोभा िनरिख कोिट कोिट सत काम ॥ १४६ ॥

सरद मयंक बदन छिब सींवा । चारु कपोल िचबुक दर ीवा ॥


अधर अरुन रद सुद
ं र नासा । िबधु कर िनकर िबिनंदक हासा ॥ १ ॥
नव अबुंज अंबक छिब नीकी । िचतविन लिलत भावँती जी की ॥
भुकुिट मनोज चाप छिब हारी । ितलक ललाट पटल दितकारी
ु ॥ २ ॥

Read Ramcharitmanas online at www.swargarohan.org


रामचिरतमानस - 78 - बालकांड

कुंडल मकर मुकुट िसर ाजा । कुिटल केस जनु मधुप समाजा ॥
उर ीबत्स रुिचर बनमाला । पिदक हार भूषन मिनजाला ॥ ३ ॥
केहिर कंधर चारु जनेउ । बाहु िबभूषन सुंदर तेऊ ॥
किर कर सिर सुभग भुजदं डा । किट िनषंग कर सर कोदं डा ॥ ४ ॥

दोहरा
तिडत िबिनंदक पीत पट उदर रे ख बर तीिन ॥
नािभ मनोहर लेित जनु जमुन भवँर छिब छीिन ॥ १४७ ॥

पद राजीव बरिन निह जाहीं । मुिन मन मधुप बसिहं जेन्ह माहीं ॥


बाम भाग सोभित अनुकूला । आिदसि छिबिनिध जगमूला ॥ १ ॥
जासु अंस उपजिहं गुनखानी । अगिनत लिच्छ उमा ानी ॥
भृकुिट िबलास जासु जग होई । राम बाम िदिस सीता सोई ॥ २ ॥
छिबसमु हिर रूप िबलोकी । एकटक रहे नयन पट रोकी ॥
िचतविहं सादर रूप अनूपा । तृि न मानिहं मनु सतरूपा ॥ ३ ॥
हरष िबबस तन दसा भुलानी । परे दं ड इव गिह पद पानी ॥
िसर परसे भु िनज कर कंजा । तुरत उठाए करुनापुंजा ॥ ४ ॥

दोहरा
बोले कृ पािनधान पुिन अित सन्न मोिह जािन ।
मागहु बर जोइ भाव मन महादािन अनुमािन ॥ १४८ ॥

सुिन भु बचन जोिर जुग पानी । धिर धीरजु बोली मृद ु बानी ॥
नाथ दे िख पद कमल तुम्हारे । अब पूरे सब काम हमारे ॥ १ ॥
एक लालसा बिड़ उर माही । सुगम अगम किह जात सो नाहीं ॥
तुम्हिह दे त अित सुगम गोसाईं । अगम लाग मोिह िनज कृ पनाईं ॥ २ ॥
जथा दिर िबबुधतरु पाई । बहु संपित मागत सकुचाई ॥
तासु भा जान निहं सोई । तथा हृदयँ मम संसय होई ॥ ३ ॥
सो तुम्ह जानहु अंतरजामी । पुरवहु मोर मनोरथ स्वामी ॥

Read Ramcharitmanas online at www.swargarohan.org


रामचिरतमानस - 79 - बालकांड

सकुच िबहाइ मागु नृप मोिह । मोरें निहं अदे य कछु तोही ॥ ४ ॥

दोहरा
दािन िसरोमिन कृ पािनिध नाथ कहउँ सितभाउ ॥
चाहउँ तुम्हिह समान सुत भु सन कवन दराउ
ु ॥ १४९ ॥

दे िख ीित सुिन बचन अमोले । एवमस्तु करुनािनिध बोले ॥


आपु सिरस खोजौं कहँ जाई । नृप तव तनय होब मैं आई ॥ १ ॥
सतरूपिह िबलोिक कर जोरें । दे िब मागु बरु जो रुिच तोरे ॥
जो बरु नाथ चतुर नृप मागा । सोइ कृ पाल मोिह अित ि य लागा ॥२ ॥
भु परं तु सुिठ होित िढठाई । जदिप भगत िहत तुम्हिह सोहाई ॥
तुम्ह ािद जनक जग स्वामी । सकल उर अंतरजामी ॥ ३ ॥
अस समुझत मन संसय होई । कहा जो भु वान पुिन सोई ॥
जे िनज भगत नाथ तव अहहीं । जो सुख पाविहं जो गित लहहीं ॥ ४ ॥

दोहरा
सोइ सुख सोइ गित सोइ भगित सोइ िनज चरन सनेहु ॥
सोइ िबबेक सोइ रहिन भु हमिह कृ पा किर दे हु ॥ १५० ॥

सुनु मृद ु गूढ़ रुिचर बर रचना । कृ पािसंधु बोले मृद ु बचना ॥


जो कछु रुिच तुम्हे र मन माहीं । मैं सो दीन्ह सब संसय नाहीं ॥ १ ॥
मातु िबबेक अलोिकक तोरें । कबहँु न िमिटिह अनु ह मोरें ॥
बंिद चरन मनु कहे उ बहोरी । अवर एक िबनित भु मोरी ॥ २ ॥
सुत िबषइक तव पद रित होऊ । मोिह बड़ मूढ़ कहै िकन कोऊ ॥
मिन िबनु फिन िजिम जल िबनु मीना।मम जीवन ितिम तुम्हिह अधीना॥
अस बरु मािग चरन गिह रहे ऊ । एवमस्तु करुनािनिध कहे ऊ ॥
अब तुम्ह मम अनुसासन मानी । बसहु जाइ सुरपित रजधानी ॥ ४ ॥

सोरठा

Read Ramcharitmanas online at www.swargarohan.org


रामचिरतमानस - 80 - बालकांड

तहँ किर भोग िबसाल तात गउँ कछु काल पुिन ।


होइहहु अवध भुआल तब मैं होब तुम्हार सुत ॥ १५१ ॥

इच्छामय नरबेष सँवारें । होइहउँ गट िनकेत तुम्हारे ॥


अंसन्ह सिहत दे ह धिर ताता । किरहउँ चिरत भगत सुखदाता ॥ १ ॥
जे सुिन सादर नर बड़भागी । भव तिरहिहं ममता मद त्यागी ॥
आिदसि जेिहं जग उपजाया । सोउ अवतिरिह मोिर यह माया ॥ २ ॥
पुरउब मैं अिभलाष तुम्हारा । सत्य सत्य पन सत्य हमारा ॥
पुिन पुिन अस किह कृ पािनधाना । अंतरधान भए भगवाना ॥ ३ ॥
दं पित उर धिर भगत कृ पाला । तेिहं आ म िनवसे कछु काला ॥
समय पाइ तनु तिज अनयासा । जाइ कीन्ह अमरावित बासा ॥ ४ ॥

दोहरा
यह इितहास पुनीत अित उमिह कही बृषकेतु ।
भर ाज सुनु अपर पुिन राम जनम कर हे तु ॥ १५२ ॥

मासपारायण पाँचवाँ िव ाम

सुनु मुिन कथा पुनीत पुरानी । जो िगिरजा ित संभु बखानी ॥


िबस्व िबिदत एक कैकय दे सू । सत्यकेतु तहँ बसइ नरे सू ॥ १ ॥
धरम धुरंधर नीित िनधाना । तेज ताप सील बलवाना ॥
तेिह कें भए जुगल सुत बीरा । सब गुन धाम महा रनधीरा ॥ २ ॥
राज धनी जो जेठ सुत आही । नाम तापभानु अस ताही ॥
अपर सुतिह अिरमदर् न नामा । भुजबल अतुल अचल सं ामा ॥ ३ ॥
भाइिह भाइिह परम समीती । सकल दोष छल बरिजत ीती ॥
जेठे सुतिह राज नृप दीन्हा । हिर िहत आपु गवन बन कीन्हा ॥ ४ ॥

दोहरा
जब तापरिब भयउ नृप िफरी दोहाई दे स ।
जा पाल अित बेदिबिध कतहँु नहीं अघ लेस ॥ १५३ ॥

Read Ramcharitmanas online at www.swargarohan.org


रामचिरतमानस - 81 - बालकांड

नृप िहतकारक सिचव सयाना । नाम धरमरुिच सु समाना ॥


सिचव सयान बंधु बलबीरा । आपु तापपुंज रनधीरा ॥ १ ॥
सेन संग चतुरंग अपारा । अिमत सुभट सब समर जुझारा ॥
सेन िबलोिक राउ हरषाना । अरु बाजे गहगहे िनसाना ॥ २ ॥
िबजय हे तु कटकई बनाई । सुिदन सािध नृप चलेउ बजाई ॥
जँह तहँ परीं अनेक लराईं । जीते सकल भूप बिरआई ॥ ३ ॥
स दीप भुजबल बस कीन्हे । लै लै दं ड छािड़ नृप दीन्हें ॥
सकल अविन मंडल तेिह काला । एक तापभानु मिहपाला ॥ ४ ॥

दोहरा
स्वबस िबस्व किर बाहबल
ु िनज पुर कीन्ह बेसु ।
अरथ धरम कामािद सुख सेवइ समयँ नरे सु ॥ १५४ ॥

भूप तापभानु बल पाई । कामधेनु भै भूिम सुहाई ॥


सब दख
ु बरिजत जा सुखारी । धरमसील सुंदर नर नारी ॥ १ ॥
सिचव धरमरुिच हिर पद ीती । नृप िहत हे तु िसखव िनत नीती ॥
गुर सुर संत िपतर मिहदे वा । करइ सदा नृप सब कै सेवा ॥ २ ॥
भूप धरम जे बेद बखाने । सकल करइ सादर सुख माने ॥
िदन ित दे ह िबिबध िबिध दाना । सुनहु सा बर बेद पुराना ॥ ३ ॥
नाना बापीं कूप तड़ागा । सुमन बािटका सुद
ं र बागा ॥
िब भवन सुरभवन सुहाए । सब तीरथन्ह िबिच बनाए ॥ ४ ॥

दोहरा
जँह लिग कहे पुरान िु त एक एक सब जाग ।
बार सह सह नृप िकए सिहत अनुराग ॥ १५५ ॥

हृदयँ न कछु फल अनुसंधाना । भूप िबबेकी परम सुजाना ॥


करइ जे धरम करम मन बानी । बासुदेव अिपर्त नृप ग्यानी ॥ १ ॥
चिढ़ बर बािज बार एक राजा । मृगया कर सब सािज समाजा ॥

Read Ramcharitmanas online at www.swargarohan.org


रामचिरतमानस - 82 - बालकांड

िबंध्याचल गभीर बन गयऊ । मृग पुनीत बहु मारत भयऊ ॥ २ ॥


िफरत िबिपन नृप दीख बराहू । जनु बन दरेु उ सिसिह िस राहू ॥
बड़ िबधु निह समात मुख माहीं । मनहँु ोधबस उिगलत नाहीं ॥ ३ ॥
कोल कराल दसन छिब गाई । तनु िबसाल पीवर अिधकाई ॥
घुरुघुरात हय आरौ पाएँ । चिकत िबलोकत कान उठाएँ ॥ ४ ॥

दोहरा
नील महीधर िसखर सम दे िख िबसाल बराहु ।
चपिर चलेउ हय सुटु िक नृप हाँिक न होइ िनबाहु ॥ १५६ ॥

आवत दे िख अिधक रव बाजी । चलेउ बराह मरुत गित भाजी ॥


तुरत कीन्ह नृप सर संधाना । मिह िमिल गयउ िबलोकत बाना ॥ १ ॥
तिक तिक तीर महीस चलावा । किर छल सुअर सरीर बचावा ॥
गटत दरत
ु जाइ मृग भागा । िरस बस भूप चलेउ संग लागा ॥ २ ॥
गयउ दिर
ू घन गहन बराहू । जहँ नािहन गज बािज िनबाहू ॥
अित अकेल बन िबपुल कलेसू । तदिप न मृग मग तजइ नरे सू ॥ ३ ॥
कोल िबलोिक भूप बड़ धीरा । भािग पैठ िगिरगुहाँ गभीरा ॥
अगम दे िख नृप अित पिछताई । िफरे उ महाबन परे उ भुलाई ॥ ४ ॥

दोहरा
खेद िखन्न ु त
छि तृिषत राजा बािज समेत ।
खोजत ब्याकुल सिरत सर जल िबनु भयउ अचेत ॥ १५७ ॥

िफरत िबिपन आ म एक दे खा । तहँ बस नृपित कपट मुिनबेषा ॥


जासु दे स नृप लीन्ह छड़ाई । समर सेन तिज गयउ पराई ॥ १ ॥
समय तापभानु कर जानी । आपन अित असमय अनुमानी ॥
गयउ न गृह मन बहत
ु गलानी । िमला न राजिह नृप अिभमानी ॥ २ ॥
िरस उर मािर रं क िजिम राजा । िबिपन बसइ तापस कें साजा ॥
तासु समीप गवन नृप कीन्हा । यह तापरिब तेिह तब चीन्हा ॥ ३ ॥

Read Ramcharitmanas online at www.swargarohan.org


रामचिरतमानस - 83 - बालकांड

राउ तृिषत निह सो पिहचाना । दे िख सुबेष महामुिन जाना ॥


उतिर तुरग तें कीन्ह नामा । परम चतुर न कहे उ िनज नामा ॥ ४ ॥

दोहा
भूपित तृिषत िबलोिक तेिहं सरबरु दीन्ह दे खाइ ।
मज्जन पान समेत हय कीन्ह नृपित हरषाइ ॥ १५८ ॥

गै म सकल सुखी नृप भयऊ । िनज आ म तापस लै गयऊ ॥


आसन दीन्ह अस्त रिब जानी । पुिन तापस बोलेउ मृद ु बानी ॥ १ ॥
को तुम्ह कस बन िफरहु अकेलें । सुंदर जुबा जीव परहे लें ॥
च बितर् के लच्छन तोरें । दे खत दया लािग अित मोरें ॥ २ ॥
नाम तापभानु अवनीसा । तासु सिचव मैं सुनहु मुनीसा ॥
िफरत अहे रें परे उँ भुलाई । बडे भाग दे खउँ पद आई ॥ ३ ॥
ु भ दरस तुम्हारा । जानत हौं कछु भल होिनहारा ॥
हम कहँ दलर्
कह मुिन तात भयउ अँिधयारा । जोजन स िर नगरु तुम्हारा ॥ ४ ॥

दोहरा
िनसा घोर गम्भीर बन पंथ न सुनहु सुजान ।
बसहु आजु अस जािन तुम्ह जाएहु होत िबहान ॥ १५९(क) ॥

तुलसी जिस भवतब्यता तैसी िमलइ सहाइ ।


आपुनु आवइ तािह पिहं तािह तहाँ लै जाइ ॥ १५९(ख) ॥

भलेिहं नाथ आयसु धिर सीसा । बाँिध तुरग तरु बैठ महीसा ॥
नृप बहु भाित संसेउ ताही । चरन बंिद िनज भाग्य सराही ॥ १ ॥
पुिन बोले मृद ु िगरा सुहाई । जािन िपता भु करउँ िढठाई ॥
मोिह मुिनस सुत सेवक जानी । नाथ नाम िनज कहहु बखानी ॥ २ ॥
तेिह न जान नृप नृपिह सो जाना । भूप सु द सो कपट सयाना ॥
बैरी पुिन छ ी पुिन राजा । छल बल कीन्ह चहइ िनज काजा ॥ ३ ॥
समुिझ राजसुख दिखत
ु अराती । अवाँ अनल इव सुलगइ छाती ॥

Read Ramcharitmanas online at www.swargarohan.org


रामचिरतमानस - 84 - बालकांड

सरल बचन नृप के सुिन काना । बयर सँभािर हृदयँ हरषाना ॥ ४ ॥

दोहरा
कपट बोिर बानी मृदल
ु बोलेउ जुगुित समेत ।
नाम हमार िभखािर अब िनधर्न रिहत िनकेित ॥ १६० ॥

कह नृप जे िबग्यान िनधाना । तुम्ह सािरखे गिलत अिभमाना ॥


सदा रहिह अपनपौ दराएँ
ु । सब िबिध कुसल कुबेष बनाएँ ॥ १ ॥
तेिह तें कहिह संत िु त टे रें । परम अिकंचन ि य हिर केरें ॥
तुम्ह सम अधन िभखािर अगेहा । होत िबरं िच िसविह संदेहा ॥ २ ॥
जोिस सोिस तव चरन नमामी । मो पर कृ पा किरअ अब स्वामी ॥
सहज ीित भूपित कै दे खी । आपु िबषय िबस्वास िबसेषी ॥ ३ ॥
सब कार राजिह अपनाई । बोलेउ अिधक सनेह जनाई ॥
सुनु सितभाउ कहउँ मिहपाला । इहाँ बसत बीते बहु काला ॥ ४ ॥

दोहरा
अब लिग मोिह न िमलेउ कोउ मैं न जनावउँ काहु ।
लोकमान्यता अनल सम कर तप कानन दाहु ॥ १६१(क) ॥

सोरठा
तुलसी दे िख सुबेषु भूलिहं मूढ़ न चतुर नर ।
सुद
ं र केिकिह पेखु बचन सुधा सम असन अिह ॥ १६१(ख)

तातें गुपुत रहउँ जग माहीं । हिर तिज िकमिप योजन नाहीं ॥


भु जानत सब िबनिहं जनाएँ । कहहु कविन िसिध लोक िरझाएँ ॥ १ ॥
तुम्ह सुिच सुमित परम ि य मोरें । ीित तीित मोिह पर तोरें ॥
अब जौं तात दरावउँ
ु तोही । दारुन दोष घटइ अित मोही ॥ २ ॥
िजिम िजिम तापसु कथइ उदासा । ितिम ितिम नृपिह उपज िबस्वासा ॥
दे खा स्वबस कमर् मन बानी । तब बोला तापस बगध्यानी ॥ ३ ॥
नाम हमार एकतनु भाई । सुिन नृप बोले पुिन िसरु नाई ॥

Read Ramcharitmanas online at www.swargarohan.org


रामचिरतमानस - 85 - बालकांड

कहहु नाम कर अरथ बखानी । मोिह सेवक अित आपन जानी ॥ ४ ॥

दोहरा
आिदसृि उपजी जबिहं तब उतपित भै मोिर ।
नाम एकतनु हे तु तेिह दे ह न धरी बहोिर ॥ १६२ ॥

ु भ कछु नाहीं ॥
जिन आचरुज करहु मन माहीं । सुत तप तें दलर्
तपबल तें जग सृजइ िबधाता । तपबल िबष्नु भए पिर ाता ॥ १ ॥
तपबल संभु करिहं संघारा । तप तें अगम न कछु संसारा ॥
भयउ नृपिह सुिन अित अनुरागा । कथा पुरातन कहै सो लागा ॥ २ ॥
करम धरम इितहास अनेका । करइ िनरूपन िबरित िबबेका ॥
उदभव पालन लय कहानी । कहे िस अिमत आचरज बखानी ॥ ३ ॥
सुिन मिहप तापस बस भयऊ । आपन नाम कहत तब लयऊ ॥
कह तापस नृप जानउँ तोही । कीन्हे हु कपट लाग भल मोही ॥ ४ ॥

सोरठा
सुनु महीस अिस नीित जहँ तहँ नाम न कहिहं नृप ।
मोिह तोिह पर अित ीित सोइ चतुरता िबचािर तव ॥ १६३ ॥

नाम तुम्हार ताप िदनेसा । सत्यकेतु तव िपता नरे सा ॥


गुर साद सब जािनअ राजा । किहअ न आपन जािन अकाजा ॥ १ ॥
दे िख तात तव सहज सुधाई । ीित तीित नीित िनपुनाई ॥
उपिज पिर ममता मन मोरें । कहउँ कथा िनज पूछे तोरें ॥ २ ॥
अब सन्न मैं संसय नाहीं । मागु जो भूप भाव मन माहीं ॥
सुिन सुबचन भूपित हरषाना । गिह पद िबनय कीिन्ह िबिध नाना ॥ ३ ॥
कृ पािसंधु मुिन दरसन तोरें । चािर पदारथ करतल मोरें ॥
भुिह तथािप सन्न िबलोकी । मािग अगम बर होउँ असोकी ॥ ४ ॥

दोहरा

Read Ramcharitmanas online at www.swargarohan.org


रामचिरतमानस - 86 - बालकांड

जरा मरन दख
ु रिहत तनु समर िजतै जिन कोउ ।
एकछ िरपुहीन मिह राज कलप सत होउ ॥ १६४ ॥

कह तापस नृप ऐसेइ होऊ । कारन एक किठन सुनु सोऊ ॥


कालउ तुअ पद नाइिह सीसा । एक िब कुल छािड़ महीसा ॥ १ ॥
तपबल िब सदा बिरआरा । ितन्ह के कोप न कोउ रखवारा ॥
जौं िब न्ह सब करहु नरे सा । तौ तुअ बस िबिध िबष्नु महे सा ॥ २ ॥
चल न कुल सन बिरआई । सत्य कहउँ दोउ भुजा उठाई ॥
िब ाप िबनु सुनु मिहपाला । तोर नास निह कवनेहुँ काला ॥ ३ ॥
हरषेउ राउ बचन सुिन तासू । नाथ न होइ मोर अब नासू ॥
तव साद भु कृ पािनधाना । मो कहँु सबर् काल कल्याना ॥ ४ ॥

दोहरा
एवमस्तु किह कपटमुिन बोला कुिटल बहोिर ।
िमलब हमार भुलाब िनज कहहु त हमिह न खोिर ॥ १६५ ॥

तातें मै तोिह बरजउँ राजा । कहें कथा तव परम अकाजा ॥


छठें वन यह परत कहानी । नास तुम्हार सत्य मम बानी ॥ १ ॥
यह गटें अथवा ि ज ापा । नास तोर सुनु भानु तापा ॥
आन उपायँ िनधन तव नाहीं । जौं हिर हर कोपिहं मन माहीं ॥ २ ॥
सत्य नाथ पद गिह नृप भाषा । ि ज गुर कोप कहहु को राखा ॥
राखइ गुर जौं कोप िबधाता । गुर िबरोध निहं कोउ जग ाता ॥ ३ ॥
जौं न चलब हम कहे तुम्हारें । होउ नास निहं सोच हमारें ॥
एकिहं डर डरपत मन मोरा । भु मिहदे व ाप अित घोरा ॥ ४ ॥

दोहरा
होिहं िब बस कवन िबिध कहहु कृ पा किर सोउ ।
तुम्ह तिज दीनदयाल िनज िहतू न दे खउँ कोउँ ॥ १६६ ॥

सुनु नृप िबिबध जतन जग माहीं । क साध्य पुिन होिहं िक नाहीं ॥

Read Ramcharitmanas online at www.swargarohan.org


रामचिरतमानस - 87 - बालकांड

अहइ एक अित सुगम उपाई । तहाँ परं तु एक किठनाई ॥ १ ॥


मम आधीन जुगुित नृप सोई । मोर जाब तव नगर न होई ॥
आजु लगें अरु जब तें भयऊँ । काहू के गृह ाम न गयऊँ ॥ २ ॥
जौं न जाउँ तव होइ अकाजू । बना आइ असमंजस आजू ॥
सुिन महीस बोलेउ मृद ु बानी । नाथ िनगम अिस नीित बखानी ॥ ३ ॥
बड़े सनेह लघुन्ह पर करहीं । िगिर िनज िसरिन सदा तृन धरहीं ॥
जलिध अगाध मौिल बह फेनू । संतत धरिन धरत िसर रे नू ॥ ४ ॥

दोहरा
अस किह गहे नरे स पद स्वामी होहु कृ पाल ।
मोिह लािग दख
ु सिहअ भु सज्जन दीनदयाल ॥ १६७ ॥

जािन नृपिह आपन आधीना । बोला तापस कपट बीना ॥


ु भ कछु मोही ॥ १ ॥
सत्य कहउँ भूपित सुनु तोही । जग नािहन दलर्
अविस काज मैं किरहउँ तोरा । मन तन बचन भगत तैं मोरा ॥
जोग जुगुित तप मं भाऊ । फलइ तबिहं जब किरअ दराऊ
ु ॥ २ ॥
जौं नरे स मैं करौं रसोई । तुम्ह परुसहु मोिह जान न कोई ॥
अन्न सो जोइ जोइ भोजन करई । सोइ सोइ तव आयसु अनुसरई ॥३ ॥
पुिन ितन्ह के गृह जेवँइ जोऊ । तव बस होइ भूप सुनु सोऊ ॥
जाइ उपाय रचहु नृप एहू । संबत भिर संकलप करे हू ॥ ४ ॥

दोहरा
िनत नूतन ि ज सहस सत बरे हु सिहत पिरवार ।
मैं तुम्हरे संकलप लिग िदनिहं किरब जेवनार ॥ १६८ ॥

एिह िबिध भूप क अित थोरें । होइहिहं सकल िब बस तोरें ॥


किरहिहं िब होम मख सेवा । तेिहं संग सहजेिहं बस दे वा ॥ १ ॥
और एक तोिह कहऊँ लखाऊ । मैं एिह बेष न आउब काऊ ॥
तुम्हरे उपरोिहत कहँु राया । हिर आनब मैं किर िनज माया ॥ २ ॥

Read Ramcharitmanas online at www.swargarohan.org


रामचिरतमानस - 88 - बालकांड

तपबल तेिह किर आपु समाना । रिखहउँ इहाँ बरष परवाना ॥


मैं धिर तासु बेषु सुनु राजा । सब िबिध तोर सँवारब काजा ॥ ३ ॥
गै िनिस बहत
ु सयन अब कीजे । मोिह तोिह भूप भेंट िदन तीजे ॥
मैं तपबल तोिह तुरग समेता । पहँु चेहउँ सोवतिह िनकेता ॥ ४ ॥

दोहरा
मैं आउब सोइ बेषु धिर पिहचानेहु तब मोिह ।
जब एकांत बोलाइ सब कथा सुनावौं तोिह ॥ १६९ ॥

सयन कीन्ह नृप आयसु मानी । आसन जाइ बैठ छलग्यानी ॥


िमत भूप िन ा अित आई । सो िकिम सोव सोच अिधकाई ॥ १ ॥
कालकेतु िनिसचर तहँ आवा । जेिहं सूकर होइ नृपिह भुलावा ॥
परम िम तापस नृप केरा । जानइ सो अित कपट घनेरा ॥ २ ॥
तेिह के सत सुत अरु दस भाई । खल अित अजय दे व दखदाई
ु ॥
थमिह भूप समर सब मारे । िब संत सुर दे िख दखारे
ु ॥ ३ ॥
तेिहं खल पािछल बयरु सँभरा । तापस नृप िमिल मं िबचारा ॥
जेिह िरपु छय सोइ रचेिन्ह उपाऊ । भावी बस न जान कछु राऊ ॥ ४ ॥

दोहरा
िरपु तेजसी अकेल अिप लघु किर गिनअ न ताहु ।
अजहँु दे त दख
ु रिब सिसिह िसर अवसेिषत राहु ॥ १७० ॥

तापस नृप िनज सखिह िनहारी । हरिष िमलेउ उिठ भयउ सुखारी ॥
िम िह किह सब कथा सुनाई । जातुधान बोला सुख पाई ॥ १ ॥
अब साधेउँ िरपु सुनहु नरे सा । जौं तुम्ह कीन्ह मोर उपदे सा ॥
पिरहिर सोच रहहु तुम्ह सोई । िबनु औषध िबआिध िबिध खोई ॥ २ ॥
कुल समेत िरपु मूल बहाई । चौथे िदवस िमलब मैं आई ॥
तापस नृपिह बहत
ु पिरतोषी । चला महाकपटी अितरोषी ॥ ३ ॥
भानु तापिह बािज समेता । पहँु चाएिस छन माझ िनकेता ॥

Read Ramcharitmanas online at www.swargarohan.org


रामचिरतमानस - 89 - बालकांड

नृपिह नािर पिहं सयन कराई । हयगृहँ बाँधेिस बािज बनाई ॥ ४ ॥

दोहरा
राजा के उपरोिहतिह हिर लै गयउ बहोिर ।
लै राखेिस िगिर खोह महँु मायाँ किर मित भोिर ॥ १७१ ॥

आपु िबरिच उपरोिहत रूपा । परे उ जाइ तेिह सेज अनूपा ॥


जागेउ नृप अनभएँ िबहाना । दे िख भवन अित अचरजु माना ॥ १ ॥
मुिन मिहमा मन महँु अनुमानी । उठे उ गवँिह जेिह जान न रानी ॥
कानन गयउ बािज चिढ़ तेहीं । पुर नर नािर न जानेउ केहीं ॥ २ ॥
गएँ जाम जुग भूपित आवा । घर घर उत्सव बाज बधावा ॥
उपरोिहतिह दे ख जब राजा । चिकत िबलोिक सुिमिर सोइ काजा ॥ ३ ॥
जुग सम नृपिह गए िदन तीनी । कपटी मुिन पद रह मित लीनी ॥
समय जािन उपरोिहत आवा । नृपिह मते सब किह समुझावा ॥ ४ ॥

दोहरा
नृप हरषेउ पिहचािन गुरु म बस रहा न चेत ।
बरे तुरत सत सहस बर िब कुटंु ब समेत ॥ १७२ ॥

उपरोिहत जेवनार बनाई । छरस चािर िबिध जिस िु त गाई ॥


मायामय तेिहं कीन्ह रसोई । िबंजन बहु गिन सकइ न कोई ॥ १ ॥
िबिबध मृगन्ह कर आिमष राँधा । तेिह महँु िब माँसु खल साँधा ॥
भोजन कहँु सब िब बोलाए । पद पखािर सादर बैठाए ॥ २ ॥
परुसन जबिहं लाग मिहपाला । भै अकासबानी तेिह काला ॥
िब बृंद उिठ उिठ गृह जाहू । है बिड़ हािन अन्न जिन खाहू ॥ ३ ॥
भयउ रसोईं भूसरु माँसू । सब ि ज उठे मािन िबस्वासू ॥
भूप िबकल मित मोहँ भुलानी । भावी बस आव मुख बानी ॥ ४ ॥

दोहरा

Read Ramcharitmanas online at www.swargarohan.org


रामचिरतमानस - 90 - बालकांड

बोले िब सकोप तब निहं कछु कीन्ह िबचार ।


जाइ िनसाचर होहु नृप मूढ़ सिहत पिरवार ॥ १७३ ॥

छ बंधु तैं िब बोलाई । घालै िलए सिहत समुदाई ॥


ईस्वर राखा धरम हमारा । जैहिस तैं समेत पिरवारा ॥ १ ॥
संबत मध्य नास तव होऊ । जलदाता न रिहिह कुल कोऊ ॥
नृप सुिन ाप िबकल अित ासा । भै बहोिर बर िगरा अकासा ॥ २ ॥
िब हु ाप िबचािर न दीन्हा । निहं अपराध भूप कछु कीन्हा ॥
चिकत िब सब सुिन नभबानी । भूप गयउ जहँ भोजन खानी ॥ ३ ॥
तहँ न असन निहं िब सुआरा । िफरे उ राउ मन सोच अपारा ॥
सब संग मिहसुरन्ह सुनाई । िसत परे उ अवनीं अकुलाई ॥ ४ ॥

दोहरा
भूपित भावी िमटइ निहं जदिप न दषन
ू तोर ।
िकएँ अन्यथा होइ निहं िब ाप अित घोर ॥ १७४ ॥

अस किह सब मिहदे व िसधाए । समाचार पुरलोगन्ह पाए ॥


सोचिहं दषन
ू दै विह दे हीं । िबचरत हं स काग िकय जेहीं ॥ १ ॥
उपरोिहतिह भवन पहँु चाई । असुर तापसिह खबिर जनाई ॥
तेिहं खल जहँ तहँ प पठाए । सिज सिज सेन भूप सब धाए ॥ २ ॥
घेरेिन्ह नगर िनसान बजाई । िबिबध भाँित िनत होई लराई ॥
जूझे सकल सुभट किर करनी । बंधु समेत परे उ नृप धरनी ॥ ३ ॥
सत्यकेतु कुल कोउ निहं बाँचा । िब ाप िकिम होइ असाँचा ॥
िरपु िजित सब नृप नगर बसाई । िनज पुर गवने जय जसु पाई ॥ ४ ॥

दोहरा
भर ाज सुनु जािह जब होइ िबधाता बाम ।
धूिर मेरुसम जनक जम तािह ब्यालसम दाम ॥ ।१७५ ॥

काल पाइ मुिन सुनु सोइ राजा । भयउ िनसाचर सिहत समाजा ॥

Read Ramcharitmanas online at www.swargarohan.org


रामचिरतमानस - 91 - बालकांड

दस िसर तािह बीस भुजदं डा । रावन नाम बीर बिरबंडा ॥ १ ॥


भूप अनुज अिरमदर् न नामा । भयउ सो कुंभकरन बलधामा ॥
सिचव जो रहा धरमरुिच जासू । भयउ िबमा बंधु लघु तासू ॥ २ ॥
नाम िबभीषन जेिह जग जाना । िबष्नुभगत िबग्यान िनधाना ॥
रहे जे सुत सेवक नृप केरे । भए िनसाचर घोर घनेरे ॥ ३ ॥
कामरूप खल िजनस अनेका । कुिटल भयंकर िबगत िबबेका ॥
कृ पा रिहत िहं सक सब पापी । बरिन न जािहं िबस्व पिरतापी ॥ ४ ॥

दोहरा
उपजे जदिप पुलस्त्यकुल पावन अमल अनूप ।
तदिप महीसुर ाप बस भए सकल अघरूप ॥ १७६ ॥

कीन्ह िबिबध तप तीिनहँु भाई । परम उ निहं बरिन सो जाई ॥


गयउ िनकट तप दे िख िबधाता । मागहु बर सन्न मैं ताता ॥ १ ॥
किर िबनती पद गिह दससीसा । बोलेउ बचन सुनहु जगदीसा ॥
हम काहू के मरिहं न मारें । बानर मनुज जाित दइ
ु बारें ॥ २ ॥
एवमस्तु तुम्ह बड़ तप कीन्हा । मैं ाँ िमिल तेिह बर दीन्हा ॥
पुिन भु कुंभकरन पिहं गयऊ । तेिह िबलोिक मन िबसमय भयऊ ॥३ ॥
जौं एिहं खल िनत करब अहारू । होइिह सब उजािर संसारू ॥
सारद ेिर तासु मित फेरी । मागेिस नीद मास षट केरी ॥ ४ ॥

दोहरा
गए िबभीषन पास पुिन कहे उ पु बर मागु ।
तेिहं मागेउ भगवंत पद कमल अमल अनुरागु ॥ १७७ ॥

ितिन्ह दे इ बर िसधाए । हरिषत ते अपने गृह आए ॥


मय तनुजा मंदोदिर नामा । परम सुंदरी नािर ललामा ॥ १ ॥
सोइ मयँ दीिन्ह रावनिह आनी । होइिह जातुधानपित जानी ॥
हरिषत भयउ नािर भिल पाई । पुिन दोउ बंधु िबआहे िस जाई ॥ २ ॥

Read Ramcharitmanas online at www.swargarohan.org


रामचिरतमानस - 92 - बालकांड

िगिर ि कूट एक िसंधु मझारी । िबिध िनिमर्त दगर्


ु म अित भारी ॥
सोइ मय दानवँ बहिर
ु सँवारा । कनक रिचत मिनभवन अपारा ॥ ३ ॥
भोगावित जिस अिहकुल बासा । अमरावित जिस स िनवासा ॥
ितन्ह तें अिधक रम्य अित बंका । जग िबख्यात नाम तेिह लंका ॥ ४ ॥

दोहरा
खाईं िसंधु गभीर अित चािरहँु िदिस िफिर आव ।
कनक कोट मिन खिचत दृढ़ बरिन न जाइ बनाव ॥ १७८(क) ॥

हिर ेिरत जेिहं कलप जोइ जातुधानपित होइ ।


सूर तापी अतुलबल दल समेत बस सोइ ॥ १७८(ख) ॥

रहे तहाँ िनिसचर भट भारे । ते सब सुरन्ह समर संघारे ॥


अब तहँ रहिहं स के ेरे । रच्छक कोिट जच्छपित केरे ॥ १ ॥
दसमुख कतहँु खबिर अिस पाई । सेन सािज गढ़ घेरेिस जाई ॥
दे िख िबकट भट बिड़ कटकाई । जच्छ जीव लै गए पराई ॥ २ ॥
िफिर सब नगर दसानन दे खा । गयउ सोच सुख भयउ िबसेषा ॥
सुद
ं र सहज अगम अनुमानी । कीिन्ह तहाँ रावन रजधानी ॥ ३ ॥
जेिह जस जोग बाँिट गृह दीन्हे । सुखी सकल रजनीचर कीन्हे ॥
एक बार कुबेर पर धावा । पुष्पक जान जीित लै आवा ॥ ४ ॥

दोहरा
कौतुकहीं कैलास पुिन लीन्हे िस जाइ उठाइ ।
मनहँु तौिल िनज बाहबल
ु चला बहत
ु सुख पाइ ॥ १७९ ॥

सुख संपित सुत सेन सहाई । जय ताप बल बुि बड़ाई ॥


िनत नूतन सब बाढ़त जाई । िजिम ितलाभ लोभ अिधकाई ॥ १ ॥
अितबल कुंभकरन अस ाता । जेिह कहँु निहं ितभट जग जाता ॥
करइ पान सोवइ षट मासा । जागत होइ ितहँु पुर ासा ॥ २ ॥
जौं िदन ित अहार कर सोई । िबस्व बेिग सब चौपट होई ॥

Read Ramcharitmanas online at www.swargarohan.org


रामचिरतमानस - 93 - बालकांड

समर धीर निहं जाइ बखाना । तेिह सम अिमत बीर बलवाना ॥ ३ ॥


बािरदनाद जेठ सुत तासू । भट महँु थम लीक जग जासू ॥
जेिह न होइ रन सनमुख कोई । सुरपुर िनतिहं परावन होई ॥ ४ ॥

दोहरा
कुमुख अकंपन कुिलसरद धूमकेतु अितकाय ।
एक एक जग जीित सक ऐसे सुभट िनकाय ॥ १८० ॥

कामरूप जानिहं सब माया । सपनेहुँ िजन्ह कें धरम न दाया ॥


दसमुख बैठ सभाँ एक बारा । दे िख अिमत आपन पिरवारा ॥ १ ॥
सुत समूह जन पिरजन नाती । गे को पार िनसाचर जाती ॥
सेन िबलोिक सहज अिभमानी । बोला बचन ोध मद सानी ॥ २ ॥
सुनहु सकल रजनीचर जूथा । हमरे बैरी िबबुध बरूथा ॥
ते सनमुख निहं करही लराई । दे िख सबल िरपु जािहं पराई ॥ ३ ॥
तेन्ह कर मरन एक िबिध होई । कहउँ बुझाइ सुनहु अब सोई ॥
ि जभोजन मख होम सराधा ॥ सब कै जाइ करहु तुम्ह बाधा ॥ ४ ॥

दोहरा

छधा छीन बलहीन सुर सहजेिहं िमिलहिहं आइ ।
तब मािरहउँ िक छािड़हउँ भली भाँित अपनाइ ॥ १८१ ॥

मेघनाद कहँु पुिन हँ करावा । दीन्ही िसख बलु बयरु बढ़ावा ॥


जे सुर समर धीर बलवाना । िजन्ह कें लिरबे कर अिभमाना ॥ १ ॥
ितन्हिह जीित रन आनेसु बाँधी । उिठ सुत िपतु अनुसासन काँधी ॥
एिह िबिध सबही अग्या दीन्ही । आपुनु चलेउ गदा कर लीन्ही ॥ २ ॥
चलत दसानन डोलित अवनी । गजर्त गभर् विहं सुर रवनी ॥
रावन आवत सुनेउ सकोहा । दे वन्ह तके मेरु िगिर खोहा ॥ ३ ॥
िदगपालन्ह के लोक सुहाए । सूने सकल दसानन पाए ॥
पुिन पुिन िसंघनाद किर भारी । दे इ दे वतन्ह गािर पचारी ॥ ४ ॥

Read Ramcharitmanas online at www.swargarohan.org


रामचिरतमानस - 94 - बालकांड

रन मद म िफरइ जग धावा । ितभट खौजत कतहँु न पावा ॥


रिब सिस पवन बरुन धनधारी । अिगिन काल जम सब अिधकारी ॥५ ॥
िकंनर िस मनुज सुर नागा । हिठ सबही के पंथिहं लागा ॥
सृि जहँ लिग तनुधारी । दसमुख बसबत नर नारी ॥ ६ ॥
आयसु करिहं सकल भयभीता । नविहं आइ िनत चरन िबनीता ॥ ७ ॥

दोहरा
भुजबल िबस्व बस्य किर राखेिस कोउ न सुतं ।
मंडलीक मिन रावन राज करइ िनज मं ॥ १८२(क) ॥

दे व जच्छ गंधवर् नर िकंनर नाग कुमािर ।


जीित बरीं िनज बाहबल
ु बहु सुंदर बर नािर ॥ १८२(ख) ॥

इं जीत सन जो कछु कहे ऊ । सो सब जनु पिहलेिहं किर रहे ऊ ॥


थमिहं िजन्ह कहँु आयसु दीन्हा । ितन्ह कर चिरत सुनहु जो कीन्हा॥१॥
दे खत भीमरूप सब पापी । िनिसचर िनकर दे व पिरतापी ॥
करिह उप व असुर िनकाया । नाना रूप धरिहं किर माया ॥ २ ॥
जेिह िबिध होइ धमर् िनमूल
र् ा । सो सब करिहं बेद ितकूला ॥
जेिहं जेिहं दे स धेनु ि ज पाविहं । नगर गाउँ पुर आिग लगाविहं ॥ ३ ॥
सुभ आचरन कतहँु निहं होई । दे व िब गुरू मान न कोई ॥
निहं हिरभगित जग्य तप ग्याना । सपनेहुँ सुिनअ न बेद पुराना ॥ ४ ॥

छं द
जप जोग िबरागा तप मख भागा वन सुनइ दससीसा ।
आपुनु उिठ धावइ रहै न पावइ धिर सब घालइ खीसा ॥
अस अचारा भा संसारा धमर् सुिनअ निह काना ।
तेिह बहिबिध
ु ासइ दे स िनकासइ जो कह बेद पुराना ॥

सोरठा

Read Ramcharitmanas online at www.swargarohan.org


रामचिरतमानस - 95 - बालकांड

बरिन न जाइ अनीित घोर िनसाचर जो करिहं ।


िहं सा पर अित ीित ितन्ह के पापिह कविन िमित ॥ १८३ ॥

मासपारायण छठा िव ाम

बाढ़े खल बहु चोर जुआरा । जे लंपट परधन परदारा ॥


मानिहं मातु िपता निहं दे वा । साधुन्ह सन करवाविहं सेवा ॥ १ ॥
िजन्ह के यह आचरन भवानी । ते जानेहु िनिसचर सब ानी ॥
अितसय दे िख धमर् कै ग्लानी । परम सभीत धरा अकुलानी ॥ २ ॥
िगिर सिर िसंधु भार निहं मोही । जस मोिह गरुअ एक पर ोही ॥
सकल धमर् दे खइ िबपरीता । किह न सकइ रावन भय भीता ॥ ३ ॥
धेनु रूप धिर हृदयँ िबचारी । गई तहाँ जहँ सुर मुिन झारी ॥
िनज संताप सुनाएिस रोई । काहू तें कछु काज न होई ॥ ४ ॥

छं द
सुर मुिन गंधबार् िमिल किर सबार् गे िबरं िच के लोका ।
सँग गोतनुधारी भूिम िबचारी परम िबकल भय सोका ॥
ाँ सब जाना मन अनुमाना मोर कछू न बसाई ।
जा किर तैं दासी सो अिबनासी हमरे उ तोर सहाई ॥

सोरठा
धरिन धरिह मन धीर कह िबरं िच हिरपद सुिमरु ।
जानत जन की पीर भु भंिजिह दारुन िबपित ॥ १८४ ॥

बैठे सुर सब करिहं िबचारा । कहँ पाइअ भु किरअ पुकारा ॥


पुर बैकुंठ जान कह कोई । कोउ कह पयिनिध बस भु सोई ॥ १ ॥
जाके हृदयँ भगित जिस ीित । भु तहँ गट सदा तेिहं रीती ॥
तेिह समाज िगिरजा मैं रहे ऊँ । अवसर पाइ बचन एक कहे ऊँ ॥ २ ॥
हिर ब्यापक सबर् समाना । ेम तें गट होिहं मैं जाना ॥
दे स काल िदिस िबिदिसहु माहीं । कहहु सो कहाँ जहाँ भु नाहीं ॥ ३ ॥

Read Ramcharitmanas online at www.swargarohan.org


रामचिरतमानस - 96 - बालकांड

अग जगमय सब रिहत िबरागी । ेम तें भु गटइ िजिम आगी ॥


मोर बचन सब के मन माना । साधु साधु किर बखाना ॥ ४ ॥

दोहरा
सुिन िबरं िच मन हरष तन पुलिक नयन बह नीर ।
अस्तुित करत जोिर कर सावधान मितधीर ॥ १८५ ॥

छं द
जय जय सुरनायक जन सुखदायक नतपाल भगवंता ।
गो ि ज िहतकारी जय असुरारी िसधुंसत
ु ा ि य कंता ॥
पालन सुर धरनी अ त
ु करनी मरम न जानइ कोई ।
जो सहज कृ पाला दीनदयाला करउ अनु ह सोई ॥
जय जय अिबनासी सब घट बासी ब्यापक परमानंदा ।
अिबगत गोतीतं चिरत पुनीतं मायारिहत मुकुंदा ॥
जेिह लािग िबरागी अित अनुरागी िबगतमोह मुिनबृंदा ।
िनिस बासर ध्याविहं गुन गन गाविहं जयित सिच्चदानंदा ॥
जेिहं सृि उपाई ि िबध बनाई संग सहाय न दजा
ू ।
सो करउ अघारी िचंत हमारी जािनअ भगित न पूजा ॥
जो भव भय भंजन मुिन मन रं जन गंजन िबपित बरूथा ।
मन बच म बानी छािड़ सयानी सरन सकल सुर जूथा ॥
सारद िु त सेषा िरषय असेषा जा कहँु कोउ निह जाना ।
जेिह दीन िपआरे बेद पुकारे वउ सो ीभगवाना ॥
भव बािरिध मंदर सब िबिध सुंदर गुनमंिदर सुखपुंजा ।
मुिन िस सकल सुर परम भयातुर नमत नाथ पद कंजा ॥

दोहरा
जािन सभय सुरभूिम सुिन बचन समेत सनेह ।
गगनिगरा गंभीर भइ हरिन सोक संदेह ॥ १८६ ॥

Read Ramcharitmanas online at www.swargarohan.org


रामचिरतमानस - 97 - बालकांड

जिन डरपहु मुिन िस सुरेसा । तुम्हिह लािग धिरहउँ नर बेसा ॥


अंसन्ह सिहत मनुज अवतारा । लेहउँ िदनकर बंस उदारा ॥ १ ॥
कस्यप अिदित महातप कीन्हा । ितन्ह कहँु मैं पूरब बर दीन्हा ॥
ते दसरथ कौसल्या रूपा । कोसलपुरीं गट नरभूपा ॥ २ ॥
ितन्ह के गृह अवतिरहउँ जाई । रघुकुल ितलक सो चािरउ भाई ॥
नारद बचन सत्य सब किरहउँ । परम सि समेत अवतिरहउँ ॥ ३ ॥
हिरहउँ सकल भूिम गरुआई । िनभर्य होहु दे व समुदाई ॥
गगन बानी सुनी काना । तुरत िफरे सुर हृदय जुड़ाना ॥ ४ ॥
तब ा धरिनिह समुझावा । अभय भई भरोस िजयँ आवा ॥ ५ ॥

दोहरा
िनज लोकिह िबरं िच गे दे वन्ह इहइ िसखाइ ।
बानर तनु धिर धिर मिह हिर पद सेवहु जाइ ॥ १८७ ॥

गए दे व सब िनज िनज धामा । भूिम सिहत मन कहँु िब ामा ।


जो कछु आयसु ाँ दीन्हा । हरषे दे व िबलंब न कीन्हा ॥ १ ॥
बनचर दे ह धिर िछित माहीं । अतुिलत बल ताप ितन्ह पाहीं ॥
िगिर तरु नख आयुध सब बीरा । हिर मारग िचतविहं मितधीरा ॥ २ ॥
िगिर कानन जहँ तहँ भिर पूरी । रहे िनज िनज अनीक रिच रूरी ॥
यह सब रुिचर चिरत मैं भाषा । अब सो सुनहु जो बीचिहं राखा ॥ ३ ॥
अवधपुरीं रघुकुलमिन राऊ । बेद िबिदत तेिह दसरथ नाऊँ ॥
धरम धुरंधर गुनिनिध ग्यानी । हृदयँ भगित मित सारँ गपानी ॥ ४ ॥

दोहरा
कौसल्यािद नािर ि य सब आचरन पुनीत ।
पित अनुकूल ेम दृढ़ हिर पद कमल िबनीत ॥ १८८ ॥

एक बार भूपित मन माहीं । भै गलािन मोरें सुत नाहीं ॥


गुर गृह गयउ तुरत मिहपाला । चरन लािग किर िबनय िबसाला ॥ १ ॥

Read Ramcharitmanas online at www.swargarohan.org


रामचिरतमानस - 98 - बालकांड

िनज दख
ु सुख सब गुरिह सुनायउ । किह बिस बहिबिध
ु समुझायउ ॥
धरहु धीर होइहिहं सुत चारी । ि भुवन िबिदत भगत भय हारी ॥ २ ॥
सृग
ं ी िरषिह बिस बोलावा । पु काम सुभ जग्य करावा ॥
भगित सिहत मुिन आहित
ु दीन्हें । गटे अिगिन चरू कर लीन्हें ॥ ३ ॥
जो बिस कछु हृदयँ िबचारा । सकल काजु भा िस तुम्हारा ॥
यह हिब बाँिट दे हु नृप जाई । जथा जोग जेिह भाग बनाई ॥ ४ ॥

दोहरा
तब अदृस्य भए पावक सकल सभिह समुझाइ ॥
परमानंद मगन नृप हरष न हृदयँ समाइ ॥ १८९ ॥

तबिहं रायँ ि य नािर बोलाईं । कौसल्यािद तहाँ चिल आई ॥


अधर् भाग कौसल्यािह दीन्हा । उभय भाग आधे कर कीन्हा ॥ १ ॥
कैकेई कहँ नृप सो दयऊ । र ो सो उभय भाग पुिन भयऊ ॥
कौसल्या कैकेई हाथ धिर । दीन्ह सुिम िह मन सन्न किर ॥ २ ॥
एिह िबिध गभर्सिहत सब नारी । भईं हृदयँ हरिषत सुख भारी ॥
जा िदन तें हिर गभर्िहं आए । सकल लोक सुख संपित छाए ॥ ३ ॥
मंिदर महँ सब राजिहं रानी । सोभा सील तेज की खानीं ॥

सुख जुत कछक काल चिल गयऊ। जेिहं भु गट सो अवसर भयऊ॥४॥

दोहरा
जोग लगन ह बार ितिथ सकल भए अनुकूल ।
चर अरु अचर हषर्जुत राम जनम सुखमूल ॥ १९० ॥

नौमी ितिथ मधु मास पुनीता । सुकल पच्छ अिभिजत हिर ीता ॥
मध्यिदवस अित सीत न घामा । पावन काल लोक िब ामा ॥ १ ॥
सीतल मंद सुरिभ बह बाऊ । हरिषत सुर संतन मन चाऊ ॥
बन कुसुिमत िगिरगन मिनआरा । विहं सकल सिरताऽमृतधारा ॥ २ ॥
सो अवसर िबरं िच जब जाना । चले सकल सुर सािज िबमाना ॥

Read Ramcharitmanas online at www.swargarohan.org


रामचिरतमानस - 99 - बालकांड

गगन िबमल सकुल सुर जूथा । गाविहं गुन गंधबर् बरूथा ॥ ३ ॥


बरषिहं सुमन सुअंजिल साजी । गहगिह गगन दं द
ु भी
ु बाजी ॥
अस्तुित करिहं नाग मुिन दे वा । बहिबिध
ु लाविहं िनज िनज सेवा ॥ ४ ॥

दोहरा
सुर समूह िबनती किर पहँु चे िनज िनज धाम ।
जगिनवास भु गटे अिखल लोक िब ाम ॥ १९१ ॥

छं द
भए गट कृ पाला दीनदयाला कौसल्या िहतकारी ।
हरिषत महतारी मुिन मन हारी अ त
ु रूप िबचारी ॥
लोचन अिभरामा तनु घनस्यामा िनज आयुध भुज चारी ।
भूषन बनमाला नयन िबसाला सोभािसंधु खरारी ॥
कह दइु कर जोरी अस्तुित तोरी केिह िबिध करौं अनंता ।
माया गुन ग्यानातीत अमाना बेद पुरान भनंता ॥
करुना सुख सागर सब गुन आगर जेिह गाविहं िु त संता ।
सो मम िहत लागी जन अनुरागी भयउ गट ीकंता ॥
ांड िनकाया िनिमर्त माया रोम रोम ित बेद कहै ।
मम उर सो बासी यह उपहासी सुनत धीर पित िथर न रहै ॥
उपजा जब ग्याना भु मुसकाना चिरत बहत
ु िबिध कीन्ह चहै ।
किह कथा सुहाई मातु बुझाई जेिह कार सुत ेम लहै ॥
माता पुिन बोली सो मित डौली तजहु तात यह रूपा ।
कीजै िससुलीला अित ि यसीला यह सुख परम अनूपा ॥
सुिन बचन सुजाना रोदन ठाना होइ बालक सुरभूपा ।
यह चिरत जे गाविहं हिरपद पाविहं ते न परिहं भवकूपा ॥

दोहरा
िब धेनु सुर संत िहत लीन्ह मनुज अवतार ।
िनज इच्छा िनिमर्त तनु माया गुन गो पार ॥ १९२ ॥

Read Ramcharitmanas online at www.swargarohan.org


रामचिरतमानस - 100 - बालकांड

सुिन िससु रुदन परम ि य बानी । सं म चिल आई सब रानी ॥


हरिषत जहँ तहँ धाईं दासी । आनँद मगन सकल पुरबासी ॥ १ ॥
दसरथ पु जन्म सुिन काना । मानहँु ानंद समाना ॥
परम ेम मन पुलक सरीरा । चाहत उठत करत मित धीरा ॥ २ ॥
जाकर नाम सुनत सुभ होई । मोरें गृह आवा भु सोई ॥
परमानंद पूिर मन राजा । कहा बोलाइ बजावहु बाजा ॥ ३ ॥
गुर बिस कहँ गयउ हँ कारा । आए ि जन सिहत नृप ारा ॥
अनुपम बालक दे खेिन्ह जाई । रूप रािस गुन किह न िसराई ॥ ४ ॥

दोहरा
नंदीमुख सराध किर जातकरम सब कीन्ह ।
हाटक धेनु बसन मिन नृप िब न्ह कहँ दीन्ह ॥ १९३ ॥

ध्वज पताक तोरन पुर छावा । किह न जाइ जेिह भाँित बनावा ॥
सुमनबृि अकास तें होई । ानंद मगन सब लोई ॥ १ ॥
बृंद बृंद िमिल चलीं लोगाई । सहज संगार िकएँ उिठ धाई ॥
कनक कलस मंगल धिर थारा । गावत पैठिहं भूप दआरा
ु ॥ २ ॥
किर आरित नेवछाविर करहीं । बार बार िससु चरनिन्ह परहीं ॥
मागध सूत बंिदगन गायक । पावन गुन गाविहं रघुनायक ॥ ३ ॥
सबर्स दान दीन्ह सब काहू । जेिहं पावा राखा निहं ताहू ॥
मृगमद चंदन कुंकुम कीचा । मची सकल बीिथन्ह िबच बीचा ॥ ४ ॥

दोहरा
गृह गृह बाज बधाव सुभ गटे सुषमा कंद ।
हरषवंत सब जहँ तहँ नगर नािर नर बृंद ॥ १९४ ॥

कैकयसुता सुिम ा दोऊ । सुंदर सुत जनमत भैं ओऊ ॥


वह सुख संपित समय समाजा । किह न सकइ सारद अिहराजा ॥ १ ॥
अवधपुरी सोहइ एिह भाँती । भुिह िमलन आई जनु राती ॥

Read Ramcharitmanas online at www.swargarohan.org


रामचिरतमानस - 101 - बालकांड

दे िख भानू जनु मन सकुचानी । तदिप बनी संध्या अनुमानी ॥ २ ॥


अगर धूप बहु जनु अँिधआरी । उड़इ अभीर मनहँु अरुनारी ॥
मंिदर मिन समूह जनु तारा । नृप गृह कलस सो इं द ु उदारा ॥ ३ ॥
भवन बेदधुिन अित मृद ु बानी । जनु खग मूखर समयँ जनु सानी ॥
कौतुक दे िख पतंग भुलाना । एक मास तेइँ जात न जाना ॥ ४ ॥

दोहरा
मास िदवस कर िदवस भा मरम न जानइ कोइ ।
रथ समेत रिब थाकेउ िनसा कवन िबिध होइ ॥ १९५ ॥

यह रहस्य काहू निहं जाना । िदन मिन चले करत गुनगाना ॥


दे िख महोत्सव सुर मुिन नागा । चले भवन बरनत िनज भागा ॥ १ ॥
औरउ एक कहउँ िनज चोरी । सुनु िगिरजा अित दृढ़ मित तोरी ॥
काक भुसिुं ड संग हम दोऊ । मनुजरूप जानइ निहं कोऊ ॥ २ ॥
परमानंद ेमसुख फूले । बीिथन्ह िफरिहं मगन मन भूले ॥
यह सुभ चिरत जान पै सोई । कृ पा राम कै जापर होई ॥ ३ ॥
तेिह अवसर जो जेिह िबिध आवा । दीन्ह भूप जो जेिह मन भावा ॥
गज रथ तुरग हे म गो हीरा । दीन्हे नृप नानािबिध चीरा ॥ ४ ॥

दोहरा
मन संतोषे सबिन्ह के जहँ तहँ दे िह असीस ।
सकल तनय िचर जीवहँु तुलिसदास के ईस ॥ १९६ ॥


कछक िदवस बीते एिह भाँती । जात न जािनअ िदन अरु राती ॥
नामकरन कर अवसरु जानी । भूप बोिल पठए मुिन ग्यानी ॥ १ ॥
किर पूजा भूपित अस भाषा । धिरअ नाम जो मुिन गुिन राखा ॥
इन्ह के नाम अनेक अनूपा । मैं नृप कहब स्वमित अनुरूपा ॥ २ ॥
जो आनंद िसंधु सुखरासी । सीकर तें ैलोक सुपासी ॥
सो सुख धाम राम अस नामा । अिखल लोक दायक िब ामा ॥ ३ ॥

Read Ramcharitmanas online at www.swargarohan.org


रामचिरतमानस - 102 - बालकांड

िबस्व भरन पोषन कर जोई । ताकर नाम भरत अस होई ॥


जाके सुिमरन तें िरपु नासा । नाम स ुहन बेद कासा ॥ ४ ॥

दोहरा
लच्छन धाम राम ि य सकल जगत आधार ।
गुरु बिस तेिह राखा लिछमन नाम उदार ॥ १९७ ॥

धरे नाम गुर हृदयँ िबचारी । बेद तत्व नृप तव सुत चारी ॥
मुिन धन जन सरबस िसव ाना । बाल केिल तेिहं सुख माना ॥ १ ॥
बारे िह ते िनज िहत पित जानी । लिछमन राम चरन रित मानी ॥
भरत स ुहन दनउ
ू भाई । भु सेवक जिस ीित बड़ाई ॥ २ ॥
स्याम गौर सुद
ं र दोउ जोरी । िनरखिहं छिब जननीं तृन तोरी ॥
चािरउ सील रूप गुन धामा । तदिप अिधक सुखसागर रामा ॥ ३ ॥
हृदयँ अनु ह इं द ु कासा । सूचत िकरन मनोहर हासा ॥
कबहँु उछं ग कबहँु बर पलना । मातु दलारइ
ु किह ि य ललना ॥ ४ ॥

दोहरा
ब्यापक िनरं जन िनगुन
र् िबगत िबनोद ।
सो अज ेम भगित बस कौसल्या के गोद ॥ १९८ ॥

काम कोिट छिब स्याम सरीरा । नील कंज बािरद गंभीरा ॥


अरुन चरन पकंज नख जोती । कमल दलिन्ह बैठे जनु मोती ॥ १ ॥
रे ख कुिलस धवज अंकुर सोहे । नूपुर धुिन सुिन मुिन मन मोहे ॥
किट िकंिकनी उदर य रे खा । नािभ गभीर जान जेिह दे खा ॥ २ ॥
भुज िबसाल भूषन जुत भूरी । िहयँ हिर नख अित सोभा रूरी ॥
उर मिनहार पिदक की सोभा । िब चरन दे खत मन लोभा ॥ ३ ॥
कंबु कंठ अित िचबुक सुहाई । आनन अिमत मदन छिब छाई ॥
दइु दइ
ु दसन अधर अरुनारे । नासा ितलक को बरनै पारे ॥ ४ ॥
सुद
ं र वन सुचारु कपोला । अित ि य मधुर तोतरे बोला ॥

Read Ramcharitmanas online at www.swargarohan.org


रामचिरतमानस - 103 - बालकांड

िचक्कन कच कुंिचत गभुआरे । बहु कार रिच मातु सँवारे ॥ ५ ॥


पीत झगुिलआ तनु पिहराई । जानु पािन िबचरिन मोिह भाई ॥
रूप सकिहं निहं किह िु त सेषा । सो जानइ सपनेहुँ जेिह दे खा ॥ ६ ॥

दोहरा
सुख संदोह मोहपर ग्यान िगरा गोतीत ।
दं पित परम ेम बस कर िससुचिरत पुनीत ॥ १९९ ॥

एिह िबिध राम जगत िपतु माता । कोसलपुर बािसन्ह सुखदाता ॥


िजन्ह रघुनाथ चरन रित मानी । ितन्ह की यह गित गट भवानी ॥१ ॥
रघुपित िबमुख जतन कर कोरी । कवन सकइ भव बंधन छोरी ॥
जीव चराचर बस कै राखे । सो माया भु सों भय भाखे ॥ २ ॥
भृकुिट िबलास नचावइ ताही । अस भु छािड़ भिजअ कहु काही ॥
मन म बचन छािड़ चतुराई । भजत कृ पा किरहिहं रघुराई ॥ ३ ॥
एिह िबिध िससुिबनोद भु कीन्हा । सकल नगरबािसन्ह सुख दीन्हा ॥
लै उछं ग कबहँु क हलरावै । कबहँु पालनें घािल झुलावै ॥ ४ ॥

दोहरा
ेम मगन कौसल्या िनिस िदन जात न जान ।
सुत सनेह बस माता बालचिरत कर गान ॥ २०० ॥

एक बार जननीं अन्हवाए । किर िसंगार पलनाँ पौढ़ाए ॥


िनज कुल इ दे व भगवाना । पूजा हे तु कीन्ह अस्नाना ॥ १ ॥
किर पूजा नैबे चढ़ावा । आपु गई जहँ पाक बनावा ॥
बहिर
ु मातु तहवाँ चिल आई । भोजन करत दे ख सुत जाई ॥ २ ॥
गै जननी िससु पिहं भयभीता । दे खा बाल तहाँ पुिन सूता ॥
बहिर
ु आइ दे खा सुत सोई । हृदयँ कंप मन धीर न होई ॥ ३ ॥
इहाँ उहाँ दइ
ु बालक दे खा । मित म मोर िक आन िबसेषा ॥
दे िख राम जननी अकुलानी । भु हँ िस दीन्ह मधुर मुसुकानी ॥ ४ ॥

Read Ramcharitmanas online at www.swargarohan.org


रामचिरतमानस - 104 - बालकांड

दोहरा
दे खरावा मातिह िनज अदभुत रुप अखंड ।
रोम रोम ित लागे कोिट कोिट ड
ं ॥ २०१ ॥

अगिनत रिब सिस िसव चतुरानन । बहु िगिर सिरत िसंधु मिह कानन ॥
काल कमर् गुन ग्यान सुभाऊ । सोउ दे खा जो सुना न काऊ ॥ १ ॥
दे खी माया सब िबिध गाढ़ी । अित सभीत जोरें कर ठाढ़ी ॥
दे खा जीव नचावइ जाही । दे खी भगित जो छोरइ ताही ॥ २ ॥
तन पुलिकत मुख बचन न आवा । नयन मूिद चरनिन िसरु नावा ॥
िबसमयवंत दे िख महतारी । भए बहिर
ु िससुरूप खरारी ॥ ३ ॥
अस्तुित किर न जाइ भय माना । जगत िपता मैं सुत किर जाना ॥
हिर जनिन बहिबिध
ु समुझाई । यह जिन कतहँु कहिस सुनु माई ॥ ४ ॥

दोहरा
बार बार कौसल्या िबनय करइ कर जोिर ॥
अब जिन कबहँू ब्यापै भु मोिह माया तोिर ॥ २०२ ॥

बालचिरत हिर बहिबिध


ु कीन्हा । अित अनंद दासन्ह कहँ दीन्हा ॥

कछक काल बीतें सब भाई । बड़े भए पिरजन सुखदाई ॥ १ ॥
चूड़ाकरन कीन्ह गुरु जाई । िब न्ह पुिन दिछना बहु पाई ॥
परम मनोहर चिरत अपारा । करत िफरत चािरउ सुकुमारा ॥ २ ॥
मन म बचन अगोचर जोई । दसरथ अिजर िबचर भु सोई ॥
भोजन करत बोल जब राजा । निहं आवत तिज बाल समाजा ॥ ३ ॥
कौसल्या जब बोलन जाई ु ु
। ठमक ु ु
ठमक भु चलिहं पराई ॥
िनगम नेित िसव अंत न पावा । तािह धरै जननी हिठ धावा ॥ ४ ॥
धूरस धूिर भरें तनु आए । भूपित िबहिस गोद बैठाए ॥ ५ ॥

दोहरा

Read Ramcharitmanas online at www.swargarohan.org


रामचिरतमानस - 105 - बालकांड

भोजन करत चपल िचत इत उत अवसरु पाइ ।


भािज चले िकलकत मुख दिध ओदन लपटाइ ॥ २०३ ॥

बालचिरत अित सरल सुहाए । सारद सेष संभु िु त गाए ॥


िजन कर मन इन्ह सन निहं राता । ते जन बंिचत िकए िबधाता ॥ १ ॥
भए कुमार जबिहं सब ाता । दीन्ह जनेऊ गुरु िपतु माता ॥
गुरगृहँ गए पढ़न रघुराई । अलप काल िब ा सब आई ॥ २ ॥
जाकी सहज स्वास िु त चारी । सो हिर पढ़ यह कौतुक भारी ॥
िब ा िबनय िनपुन गुन सीला । खेलिहं खेल सकल नृपलीला ॥ ३ ॥
करतल बान धनुष अित सोहा । दे खत रूप चराचर मोहा ॥
िजन्ह बीिथन्ह िबहरिहं सब भाई । थिकत होिहं सब लोग लुगाई ॥ ४ ॥

दोहरा
कोसलपुर बासी नर नािर बृ अरु बाल ।
ानहु ते ि य लागत सब कहँु राम कृ पाल ॥ २०४ ॥

बंधु सखा संग लेिहं बोलाई । बन मृगया िनत खेलिहं जाई ॥


पावन मृग मारिहं िजयँ जानी । िदन ित नृपिह दे खाविहं आनी ॥ १ ॥
जे मृग राम बान के मारे । ते तनु तिज सुरलोक िसधारे ॥
अनुज सखा सँग भोजन करहीं । मातु िपता अग्या अनुसरहीं ॥ २ ॥
जेिह िबिध सुखी होिहं पुर लोगा । करिहं कृ पािनिध सोइ संजोगा ॥
बेद पुरान सुनिहं मन लाई । आपु कहिहं अनुजन्ह समुझाई ॥ ३ ॥
ातकाल उिठ कै रघुनाथा । मातु िपता गुरु नाविहं माथा ॥
आयसु मािग करिहं पुर काजा । दे िख चिरत हरषइ मन राजा ॥ ४ ॥

दोहरा
ब्यापक अकल अनीह अज िनगुन
र् नाम न रूप ।
भगत हे तु नाना िबिध करत चिर अनूप ॥ २०५ ॥

यह सब चिरत कहा मैं गाई । आिगिल कथा सुनहु मन लाई ॥

Read Ramcharitmanas online at www.swargarohan.org


रामचिरतमानस - 106 - बालकांड

िबस्वािम महामुिन ग्यानी । बसिह िबिपन सुभ आ म जानी ॥ १ ॥


जहँ जप जग्य मुिन करही । अित मारीच सुबाहिह
ु डरहीं ॥
दे खत जग्य िनसाचर धाविह । करिह उप व मुिन दख
ु पाविहं ॥ २ ॥
गािधतनय मन िचंता ब्यापी । हिर िबनु मरिह न िनिसचर पापी ॥
तब मुिनवर मन कीन्ह िबचारा । भु अवतरे उ हरन मिह भारा ॥ ३ ॥
एहँु िमस दे खौं पद जाई । किर िबनती आनौ दोउ भाई ॥
ग्यान िबराग सकल गुन अयना । सो भु मै दे खब भिर नयना ॥ ४ ॥

दोहरा
बहिबिध
ु करत मनोरथ जात लािग निहं बार ।
किर मज्जन सरऊ जल गए भूप दरबार ॥ २०६ ॥

मुिन आगमन सुना जब राजा । िमलन गयऊ लै िब समाजा ॥


किर दं डवत मुिनिह सनमानी । िनज आसन बैठारे िन्ह आनी ॥ १ ॥
चरन पखािर कीिन्ह अित पूजा । मो सम आजु धन्य निहं दजा
ू ॥
िबिबध भाँित भोजन करवावा । मुिनवर हृदयँ हरष अित पावा ॥ २ ॥
पुिन चरनिन मेले सुत चारी । राम दे िख मुिन दे ह िबसारी ॥
भए मगन दे खत मुख सोभा । जनु चकोर पूरन सिस लोभा ॥ ३ ॥
तब मन हरिष बचन कह राऊ । मुिन अस कृ पा न कीिन्हहु काऊ ॥
केिह कारन आगमन तुम्हारा । कहहु सो करत न लावउँ बारा ॥ ४ ॥
असुर समूह सताविहं मोही । मै जाचन आयउँ नृप तोही ॥
अनुज समेत दे हु रघुनाथा । िनिसचर बध मैं होब सनाथा ॥ ५ ॥

दोहरा
दे हु भूप मन हरिषत तजहु मोह अग्यान ।
धमर् सुजस भु तुम्ह कौं इन्ह कहँ अित कल्यान ॥ २०७ ॥

सुिन राजा अित अि य बानी । हृदय कंप मुख दित


ु कुमुलानी ॥
चौथेंपन पायउँ सुत चारी । िब बचन निहं कहे हु िबचारी ॥ १ ॥

Read Ramcharitmanas online at www.swargarohan.org


रामचिरतमानस - 107 - बालकांड

मागहु भूिम धेनु धन कोसा । सबर्स दे उँ आजु सहरोसा ॥


दे ह ान तें ि य कछु नाही । सोउ मुिन दे उँ िनिमष एक माही ॥ २ ॥
सब सुत ि य मोिह ान िक नाईं । राम दे त निहं बनइ गोसाई ॥
कहँ िनिसचर अित घोर कठोरा । कहँ सुद
ं र सुत परम िकसोरा ॥ ३ ॥
सुिन नृप िगरा ेम रस सानी । हृदयँ हरष माना मुिन ग्यानी ॥
तब बिस बहु िनिध समुझावा । नृप संदेह नास कहँ पावा ॥ ४ ॥
अित आदर दोउ तनय बोलाए । हृदयँ लाइ बहु भाँित िसखाए ॥
मेरे ान नाथ सुत दोऊ । तुम्ह मुिन िपता आन निहं कोऊ ॥ ५ ॥

दोहरा
सौंपे भूप िरिषिह सुत बहु िबिध दे इ असीस ।
जननी भवन गए भु चले नाइ पद सीस ॥ २०८(क) ॥

सोरठा
पुरुषिसंह दोउ बीर हरिष चले मुिन भय हरन ॥
कृ पािसंधु मितधीर अिखल िबस्व कारन करन ॥ २०८(ख)

अरुन नयन उर बाहु िबसाला । नील जलज तनु स्याम तमाला ॥


किट पट पीत कसें बर भाथा । रुिचर चाप सायक दहँु ु हाथा ॥ १ ॥
स्याम गौर सुंदर दोउ भाई । िबस्बािम महािनिध पाई ॥
भु न्यदे व मै जाना । मोिह िनित िपता तजेहु भगवाना ॥ २ ॥
चले जात मुिन दीिन्ह िदखाई । सुिन ताड़का ोध किर धाई ॥
एकिहं बान ान हिर लीन्हा । दीन जािन तेिह िनज पद दीन्हा ॥ ३ ॥
तब िरिष िनज नाथिह िजयँ चीन्ही । िब ािनिध कहँु िब ा दीन्ही ॥

जाते लाग न छधा िपपासा । अतुिलत बल तनु तेज कासा ॥ ४ ॥

दोहरा
आयुष सब समिपर् कै भु िनज आ म आिन ।
कंद मूल फल भोजन दीन्ह भगित िहत जािन ॥ २०९ ॥

Read Ramcharitmanas online at www.swargarohan.org


रामचिरतमानस - 108 - बालकांड

ात कहा मुिन सन रघुराई । िनभर्य जग्य करहु तुम्ह जाई ॥


होम करन लागे मुिन झारी । आपु रहे मख कीं रखवारी ॥ १ ॥
सुिन मारीच िनसाचर ोही । लै सहाय धावा मुिन ोही ॥
िबनु फर बान राम तेिह मारा । सत जोजन गा सागर पारा ॥ २ ॥
पावक सर सुबाहु पुिन मारा । अनुज िनसाचर कटकु सँघारा ॥
मािर असुर ि ज िनमर्यकारी । अस्तुित करिहं दे व मुिन झारी ॥ ३ ॥

तहँ पुिन कछक िदवस रघुराया । रहे कीिन्ह िब न्ह पर दाया ॥
भगित हे तु बहु कथा पुराना । कहे िब ज िप भु जाना ॥ ४ ॥
तब मुिन सादर कहा बुझाई । चिरत एक भु दे िखअ जाई ॥
धनुषजग्य मुिन रघुकुल नाथा । हरिष चले मुिनबर के साथा ॥ ५ ॥
आ म एक दीख मग माहीं । खग मृग जीव जंतु तहँ नाहीं ॥
पूछा मुिनिह िसला भु दे खी । सकल कथा मुिन कहा िबसेषी ॥ ६ ॥

दोहरा
गौतम नािर ाप बस उपल दे ह धिर धीर ।
चरन कमल रज चाहित कृ पा करहु रघुबीर ॥ २१० ॥

छं द
परसत पद पावन सोक नसावन गट भई तपपुंज सही ।
दे खत रघुनायक जन सुख दायक सनमुख होइ कर जोिर रही ॥
अित ेम अधीरा पुलक सरीरा मुख निहं आवइ बचन कही ।
अितसय बड़भागी चरनिन्ह लागी जुगल नयन जलधार बही ॥
धीरजु मन कीन्हा भु कहँु चीन्हा रघुपित कृ पाँ भगित पाई ।
अित िनमर्ल बानीं अस्तुित ठानी ग्यानगम्य जय रघुराई ॥
मै नािर अपावन भु जग पावन रावन िरपु जन सुखदाई ।
राजीव िबलोचन भव भय मोचन पािह पािह सरनिहं आई ॥
मुिन ाप जो दीन्हा अित भल कीन्हा परम अनु ह मैं माना ।
दे खेउँ भिर लोचन हिर भवमोचन इहइ लाभ संकर जाना ॥
िबनती भु मोरी मैं मित भोरी नाथ न मागउँ बर आना ।

Read Ramcharitmanas online at www.swargarohan.org


रामचिरतमानस - 109 - बालकांड

पद कमल परागा रस अनुरागा मम मन मधुप करै पाना ॥


जेिहं पद सुरसिरता परम पुनीता गट भई िसव सीस धरी ।
सोइ पद पंकज जेिह पूजत अज मम िसर धरे उ कृ पाल हरी ॥
एिह भाँित िसधारी गौतम नारी बार बार हिर चरन परी ।
जो अित मन भावा सो बरु पावा गै पितलोक अनंद भरी ॥

दोहरा
अस भु दीनबंधु हिर कारन रिहत दयाल ।
तुलिसदास सठ तेिह भजु छािड़ कपट जंजाल ॥ २११ ॥

मासपारायण सातवाँ िव ाम

चले राम लिछमन मुिन संगा । गए जहाँ जग पाविन गंगा ॥


गािधसूनु सब कथा सुनाई । जेिह कार सुरसिर मिह आई ॥ १ ॥
तब भु िरिषन्ह समेत नहाए । िबिबध दान मिहदे विन्ह पाए ॥
हरिष चले मुिन बृंद सहाया । बेिग िबदे ह नगर िनअराया ॥ २ ॥
पुर रम्यता राम जब दे खी । हरषे अनुज समेत िबसेषी ॥
बापीं कूप सिरत सर नाना । सिलल सुधासम मिन सोपाना ॥ ३ ॥
गुंजत मंजु म रस भृग
ं ा । कूजत कल बहबरन
ु िबहं गा ॥
बरन बरन िबकसे बन जाता । ि िबध समीर सदा सुखदाता ॥ ४ ॥

दोहरा
सुमन बािटका बाग बन िबपुल िबहं ग िनवास ।
फूलत फलत सुपल्लवत सोहत पुर चहँु पास ॥ २१२ ॥

बनइ न बरनत नगर िनकाई । जहाँ जाइ मन तहँ इँ लोभाई ॥


चारु बजारु िबिच अँबारी । मिनमय िबिध जनु स्वकर सँवारी ॥ १ ॥
धिनक बिनक बर धनद समाना । बैठ सकल बस्तु लै नाना ॥
चौहट सुंदर गलीं सुहाई । संतत रहिहं सुगंध िसंचाई ॥ २ ॥
मंगलमय मंिदर सब केरें । िचि त जनु रितनाथ िचतेरें ॥

Read Ramcharitmanas online at www.swargarohan.org


रामचिरतमानस - 110 - बालकांड

पुर नर नािर सुभग सुिच संता । धरमसील ग्यानी गुनवंता ॥ ३ ॥


अित अनूप जहँ जनक िनवासू । िबथकिहं िबबुध िबलोिक िबलासू ॥
होत चिकत िचत कोट िबलोकी । सकल भुवन सोभा जनु रोकी ॥ ४ ॥

दोहरा
धवल धाम मिन पुरट पट सुघिटत नाना भाँित ।
िसय िनवास सुंदर सदन सोभा िकिम किह जाित ॥ २१३ ॥

सुभग ार सब कुिलस कपाटा । भूप भीर नट मागध भाटा ॥


बनी िबसाल बािज गज साला । हय गय रथ संकुल सब काला ॥ १ ॥
सूर सिचव सेनप बहते
ु रे । नृपगृह सिरस सदन सब केरे ॥
पुर बाहे र सर सािरत समीपा । उतरे जहँ तहँ िबपुल महीपा ॥ २ ॥
दे िख अनूप एक अँवराई । सब सुपास सब भाँित सुहाई ॥
कौिसक कहे उ मोर मनु माना । इहाँ रिहअ रघुबीर सुजाना ॥ ३ ॥
भलेिहं नाथ किह कृ पािनकेता । उतरे तहँ मुिनबृंद समेता ॥
िबस्वािम महामुिन आए । समाचार िमिथलापित पाए ॥ ४ ॥

दोहरा
संग सिचव सुिच भूिर भट भूसरु बर गुर ग्याित ।
चले िमलन मुिननायकिह मुिदत राउ एिह भाँित ॥ २१४ ॥

कीन्ह नामु चरन धिर माथा । दीिन्ह असीस मुिदत मुिननाथा ॥


िब बृंद सब सादर बंदे । जािन भाग्य बड़ राउ अनंदे ॥ १ ॥
कुसल स्न किह बारिहं बारा । िबस्वािम नृपिह बैठारा ॥
तेिह अवसर आए दोउ भाई । गए रहे दे खन फुलवाई ॥ २ ॥
स्याम गौर मृद ु बयस िकसोरा । लोचन सुखद िबस्व िचत चोरा ॥
उठे सकल जब रघुपित आए । िबस्वािम िनकट बैठाए ॥ ३ ॥
भए सब सुखी दे िख दोउ ाता । बािर िबलोचन पुलिकत गाता ॥
मूरित मधुर मनोहर दे खी । भयउ िबदे हु िबदे हु िबसेषी ॥ ४ ॥

Read Ramcharitmanas online at www.swargarohan.org


रामचिरतमानस - 111 - बालकांड

दोहरा
ेम मगन मनु जािन नृपु किर िबबेकु धिर धीर ।
बोलेउ मुिन पद नाइ िसरु गदगद िगरा गभीर ॥ २१५ ॥

कहहु नाथ सुद


ं र दोउ बालक । मुिनकुल ितलक िक नृपकुल पालक ॥
जो िनगम नेित किह गावा । उभय बेष धिर की सोइ आवा ॥ १ ॥
सहज िबरागरुप मनु मोरा । थिकत होत िजिम चंद चकोरा ॥
ताते भु पूछउँ सितभाऊ । कहहु नाथ जिन करहु दराऊ
ु ॥ २ ॥
इन्हिह िबलोकत अित अनुरागा । बरबस सुखिह मन त्यागा ॥
कह मुिन िबहिस कहे हु नृप नीका । बचन तुम्हार न होइ अलीका ॥ ३ ॥
ए ि य सबिह जहाँ लिग ानी । मन मुसक
ु ािहं रामु सुिन बानी ॥
रघुकुल मिन दसरथ के जाए । मम िहत लािग नरे स पठाए ॥ ४ ॥

दोहरा
रामु लखनु दोउ बंधब
ु र रूप सील बल धाम ।
मख राखेउ सबु सािख जगु िजते असुर सं ाम ॥ २१६ ॥

मुिन तव चरन दे िख कह राऊ । किह न सकउँ िनज पुन्य ाभाऊ ॥


सुद
ं र स्याम गौर दोउ ाता । आनँदहू के आनँद दाता ॥ १ ॥
इन्ह कै ीित परसपर पाविन । किह न जाइ मन भाव सुहाविन ॥
सुनहु नाथ कह मुिदत िबदे हू । जीव इव सहज सनेहू ॥ २ ॥
पुिन पुिन भुिह िचतव नरनाहू । पुलक गात उर अिधक उछाहू ॥
िु निह संिस नाइ पद सीसू । चलेउ लवाइ नगर अवनीसू ॥ ३ ॥
सुद
ं र सदनु सुखद सब काला । तहाँ बासु लै दीन्ह भुआला ॥
किर पूजा सब िबिध सेवकाई । गयउ राउ गृह िबदा कराई ॥ ४ ॥

दोहरा
िरषय संग रघुबंस मिन किर भोजनु िब ामु ।
बैठे भु ाता सिहत िदवसु रहा भिर जामु ॥ २१७ ॥

Read Ramcharitmanas online at www.swargarohan.org


रामचिरतमानस - 112 - बालकांड

लखन हृदयँ लालसा िबसेषी । जाइ जनकपुर आइअ दे खी ॥


भु भय बहिर
ु मुिनिह सकुचाहीं । गट न कहिहं मनिहं मुसुकाहीं ॥ १ ॥
राम अनुज मन की गित जानी । भगत बछलता िहं यँ हलसानी
ु ॥
परम िबनीत सकुिच मुसक
ु ाई । बोले गुर अनुसासन पाई ॥ २ ॥
नाथ लखनु पुरु दे खन चहहीं । भु सकोच डर गट न कहहीं ॥
जौं राउर आयसु मैं पावौं । नगर दे खाइ तुरत लै आवौ ॥ ३ ॥
सुिन मुनीसु कह बचन स ीती । कस न राम तुम्ह राखहु नीती ॥
धरम सेतु पालक तुम्ह ताता । ेम िबबस सेवक सुखदाता ॥ ४ ॥

दोहरा
जाइ दे खी आवहु नगरु सुख िनधान दोउ भाइ ।
करहु सुफल सब के नयन सुंदर बदन दे खाइ ॥ २१८ ॥

मासपारायण, आठवाँ िव ाम
नवान्हपारायण, दसरा
ू िव ाम

मुिन पद कमल बंिद दोउ ाता । चले लोक लोचन सुख दाता ॥
बालक बृंिद दे िख अित सोभा । लगे संग लोचन मनु लोभा ॥ १ ॥
पीत बसन पिरकर किट भाथा । चारु चाप सर सोहत हाथा ॥
तन अनुहरत सुचंदन खोरी । स्यामल गौर मनोहर जोरी ॥ २ ॥
केहिर कंधर बाहु िबसाला । उर अित रुिचर नागमिन माला ॥
सुभग सोन सरसीरुह लोचन । बदन मयंक ताप य मोचन ॥ ३ ॥
कानिन्ह कनक फूल छिब दे हीं । िचतवत िचतिह चोिर जनु लेहीं ॥
िचतविन चारु भृकुिट बर बाँकी । ितलक रे खा सोभा जनु चाँकी ॥ ४ ॥

दोहरा
रुिचर चौतनीं सुभग िसर मेचक कुंिचत केस ।
नख िसख सुंदर बंधु दोउ सोभा सकल सुदेस ॥ २१९ ॥

Read Ramcharitmanas online at www.swargarohan.org


रामचिरतमानस - 113 - बालकांड

दे खन नगरु भूपसुत आए । समाचार पुरबािसन्ह पाए ॥


धाए धाम काम सब त्यागी । मनहु रं क िनिध लूटन लागी ॥ १ ॥
िनरिख सहज सुंदर दोउ भाई । होिहं सुखी लोचन फल पाई ॥
जुबतीं भवन झरोखिन्ह लागीं । िनरखिहं राम रूप अनुरागीं ॥ २ ॥
कहिहं परसपर बचन स ीती । सिख इन्ह कोिट काम छिब जीती ॥
सुर नर असुर नाग मुिन माहीं । सोभा अिस कहँु सुिनअित नाहीं ॥ ३ ॥
िबष्नु चािर भुज िबिघ मुख चारी । िबकट बेष मुख पंच पुरारी ॥
अपर दे उ अस कोउ न आही । यह छिब सिख पटतिरअ जाही ॥ ४ ॥

दोहरा
बय िकसोर सुषमा सदन स्याम गौर सुख घाम ।
अंग अंग पर वािरअिहं कोिट कोिट सत काम ॥ २२० ॥

कहहु सखी अस को तनुधारी । जो न मोह यह रूप िनहारी ॥


कोउ स ेम बोली मृद ु बानी । जो मैं सुना सो सुनहु सयानी ॥ १ ॥
ए दोऊ दसरथ के ढोटा । बाल मरालिन्ह के कल जोटा ॥
मुिन कौिसक मख के रखवारे । िजन्ह रन अिजर िनसाचर मारे ॥ २ ॥
स्याम गात कल कंज िबलोचन । जो मारीच सुभुज मद ु मोचन ॥
कौसल्या सुत सो सुख खानी । नामु रामु धनु सायक पानी ॥ ३ ॥
गौर िकसोर बेषु बर काछें । कर सर चाप राम के पाछें ॥
लिछमनु नामु राम लघु ाता । सुनु सिख तासु सुिम ा माता ॥ ४ ॥

दोहरा
िब काजु किर बंधु दोउ मग मुिनबधू उधािर ।
आए दे खन चापमख सुिन हरषीं सब नािर ॥ २२१ ॥

दे िख राम छिब कोउ एक कहई । जोगु जानिकिह यह बरु अहई ॥


जौ सिख इन्हिह दे ख नरनाहू । पन पिरहिर हिठ करइ िबबाहू ॥ १ ॥
कोउ कह ए भूपित पिहचाने । मुिन समेत सादर सनमाने ॥

Read Ramcharitmanas online at www.swargarohan.org


रामचिरतमानस - 114 - बालकांड

सिख परं तु पनु राउ न तजई । िबिध बस हिठ अिबबेकिह भजई ॥ २ ॥


कोउ कह जौं भल अहइ िबधाता । सब कहँ सुिनअ उिचत फलदाता ॥
तौ जानिकिह िमिलिह बरु एहू । नािहन आिल इहाँ संदेहू ॥ ३ ॥
जौ िबिध बस अस बनै सँजोगू । तौ कृ तकृ त्य होइ सब लोगू ॥
सिख हमरें आरित अित तातें । कबहँु क ए आविहं एिह नातें ॥ ४ ॥

दोहरा
नािहं त हम कहँु सुनहु सिख इन्ह कर दरसनु दिर
ू ।
यह संघटु तब होइ जब पुन्य पुराकृ त भूिर ॥ २२२ ॥

बोली अपर कहे हु सिख नीका । एिहं िबआह अित िहत सबहीं का ॥
कोउ कह संकर चाप कठोरा । ए स्यामल मृदगात
ु िकसोरा ॥ १ ॥
सबु असमंजस अहइ सयानी । यह सुिन अपर कहइ मृद ु बानी ॥
सिख इन्ह कहँ कोउ कोउ अस कहहीं । बड़ भाउ दे खत लघु अहहीं ॥२॥
परिस जासु पद पंकज धूरी । तरी अहल्या कृ त अघ भूरी ॥
सो िक रिहिह िबनु िसवधनु तोरें । यह तीित पिरहिरअ न भोरें ॥ ३ ॥
जेिहं िबरं िच रिच सीय सँवारी । तेिहं स्यामल बरु रचेउ िबचारी ॥
तासु बचन सुिन सब हरषानीं । ऐसेइ होउ कहिहं मुद ु बानी ॥ ४ ॥

दोहरा
िहयँ हरषिहं बरषिहं सुमन सुमुिख सुलोचिन बृंद ।
जािहं जहाँ जहँ बंधु दोउ तहँ तहँ परमानंद ॥ २२३ ॥

पुर पूरब िदिस गे दोउ भाई । जहँ धनुमख िहत भूिम बनाई ॥
अित िबस्तार चारु गच ढारी । िबमल बेिदका रुिचर सँवारी ॥ १ ॥
चहँु िदिस कंचन मंच िबसाला । रचे जहाँ बेठिहं मिहपाला ॥
तेिह पाछें समीप चहँु पासा । अपर मंच मंडली िबलासा ॥ २ ॥

कछक ऊँिच सब भाँित सुहाई । बैठिहं नगर लोग जहँ जाई ॥
ितन्ह के िनकट िबसाल सुहाए । धवल धाम बहबरन
ु बनाए ॥ ३ ॥

Read Ramcharitmanas online at www.swargarohan.org


रामचिरतमानस - 115 - बालकांड

जहँ बैंठैं दे खिहं सब नारी । जथा जोगु िनज कुल अनुहारी ॥


पुर बालक किह किह मृद ु बचना । सादर भुिह दे खाविहं रचना ॥ ४ ॥

दोहरा
सब िससु एिह िमस ेमबस परिस मनोहर गात ।
तन पुलकिहं अित हरषु िहयँ दे िख दे िख दोउ ात ॥ २२४ ॥

िससु सब राम ेमबस जाने । ीित समेत िनकेत बखाने ॥


िनज िनज रुिच सब लेंिहं बोलाई । सिहत सनेह जािहं दोउ भाई ॥ १ ॥
राम दे खाविहं अनुजिह रचना । किह मृद ु मधुर मनोहर बचना ॥
लव िनमेष महँ भुवन िनकाया । रचइ जासु अनुसासन माया ॥ २ ॥
भगित हे तु सोइ दीनदयाला । िचतवत चिकत धनुष मखसाला ॥
कौतुक दे िख चले गुरु पाहीं । जािन िबलंबु ास मन माहीं ॥ ३ ॥
जासु ास डर कहँु डर होई । भजन भाउ दे खावत सोई ॥
किह बातें मृद ु मधुर सुहाईं । िकए िबदा बालक बिरआई ॥ ४ ॥

दोहरा
सभय स ेम िबनीत अित सकुच सिहत दोउ भाइ ।
गुर पद पंकज नाइ िसर बैठे आयसु पाइ ॥ २२५ ॥

िनिस बेस मुिन आयसु दीन्हा । सबहीं संध्याबंदनु कीन्हा ॥


कहत कथा इितहास पुरानी । रुिचर रजिन जुग जाम िसरानी ॥ १ ॥
मुिनबर सयन कीिन्ह तब जाई । लगे चरन चापन दोउ भाई ॥
िजन्ह के चरन सरोरुह लागी । करत िबिबध जप जोग िबरागी ॥ २ ॥
तेइ दोउ बंधु ेम जनु जीते । गुर पद कमल पलोटत ीते ॥
बारबार मुिन अग्या दीन्ही । रघुबर जाइ सयन तब कीन्ही ॥ ३ ॥
चापत चरन लखनु उर लाएँ । सभय स ेम परम सचु पाएँ ॥
पुिन पुिन भु कह सोवहु ताता । पौढ़े धिर उर पद जलजाता ॥ ४ ॥

दोहरा

Read Ramcharitmanas online at www.swargarohan.org


रामचिरतमानस - 116 - बालकांड

उठे लखन िनिस िबगत सुिन अरुनिसखा धुिन कान ॥


गुर तें पिहलेिहं जगतपित जागे रामु सुजान ॥ २२६ ॥

सकल सौच किर जाइ नहाए । िनत्य िनबािह मुिनिह िसर नाए ॥
समय जािन गुर आयसु पाई । लेन सून चले दोउ भाई ॥ १ ॥
भूप बागु बर दे खेउ जाई । जहँ बसंत िरतु रही लोभाई ॥
लागे िबटप मनोहर नाना । बरन बरन बर बेिल िबताना ॥ २ ॥
नव पल्लव फल सुमान सुहाए । िनज संपित सुर रूख लजाए ॥
चातक कोिकल कीर चकोरा । कूजत िबहग नटत कल मोरा ॥ ३ ॥
मध्य बाग सरु सोह सुहावा । मिन सोपान िबिच बनावा ॥
िबमल सिललु सरिसज बहरंु गा । जलखग कूजत गुंजत भृग
ं ा ॥ ४ ॥

दोहरा
बागु तड़ागु िबलोिक भु हरषे बंधु समेत ।
परम रम्य आरामु यहु जो रामिह सुख दे त ॥ २२७ ॥

चहँु िदिस िचतइ पूँिछ मािलगन । लगे लेन दल फूल मुिदत मन ॥


तेिह अवसर सीता तहँ आई । िगिरजा पूजन जनिन पठाई ॥ १ ॥
संग सखीं सब सुभग सयानी । गाविहं गीत मनोहर बानी ॥
सर समीप िगिरजा गृह सोहा । बरिन न जाइ दे िख मनु मोहा ॥ २ ॥
मज्जनु किर सर सिखन्ह समेता । गई मुिदत मन गौिर िनकेता ॥
पूजा कीिन्ह अिधक अनुरागा । िनज अनुरूप सुभग बरु मागा ॥ ३ ॥
एक सखी िसय संगु िबहाई । गई रही दे खन फुलवाई ॥
तेिह दोउ बंधु िबलोके जाई । ेम िबबस सीता पिहं आई ॥ ४ ॥

दोहरा
तासु दसा दे िख सिखन्ह पुलक गात जलु नैन ।
कहु कारनु िनज हरष कर पूछिह सब मृद ु बैन ॥ २२८ ॥

दे खन बागु कुअँर दइु आए । बय िकसोर सब भाँित सुहाए ॥

Read Ramcharitmanas online at www.swargarohan.org


रामचिरतमानस - 117 - बालकांड

स्याम गौर िकिम कहौं बखानी । िगरा अनयन नयन िबनु बानी ॥ १ ॥
सुिन हरषीँ सब सखीं सयानी । िसय िहयँ अित उतकंठा जानी ॥
एक कहइ नृपसुत तेइ आली । सुने जे मुिन सँग आए काली ॥ २ ॥
िजन्ह िनज रूप मोहनी डारी । कीन्ह स्वबस नगर नर नारी ॥
बरनत छिब जहँ तहँ सब लोगू । अविस दे िखअिहं दे खन जोगू ॥ ३ ॥
तासु वचन अित िसयिह सुहाने । दरस लािग लोचन अकुलाने ॥
चली अ किर ि य सिख सोई । ीित पुरातन लखइ न कोई ॥ ४ ॥

दोहरा
सुिमिर सीय नारद बचन उपजी ीित पुनीत ॥
चिकत िबलोकित सकल िदिस जनु िससु मृगी सभीत ॥ २२९ ॥

कंकन िकंिकिन नूपुर धुिन सुिन । कहत लखन सन रामु हृदयँ गुिन ॥
मानहँु मदन दं द
ु भी
ु दीन्ही ॥ मनसा िबस्व िबजय कहँ कीन्ही ॥ १ ॥
अस किह िफिर िचतए तेिह ओरा । िसय मुख सिस भए नयन चकोरा ॥
भए िबलोचन चारु अचंचल । मनहँु सकुिच िनिम तजे िदगंचल ॥ २ ॥
दे िख सीय सोभा सुखु पावा । हृदयँ सराहत बचनु न आवा ॥
जनु िबरं िच सब िनज िनपुनाई । िबरिच िबस्व कहँ गिट दे खाई ॥ ३ ॥
सुद
ं रता कहँु सुद
ं र करई । छिबगृहँ दीपिसखा जनु बरई ॥
सब उपमा किब रहे जुठारी । केिहं पटतरौं िबदे हकुमारी ॥ ४ ॥

दोहरा
िसय सोभा िहयँ बरिन भु आपिन दसा िबचािर ।
बोले सुिच मन अनुज सन बचन समय अनुहािर ॥ २३० ॥

तात जनकतनया यह सोई । धनुषजग्य जेिह कारन होई ॥


पूजन गौिर सखीं लै आई । करत कासु िफरइ फुलवाई ॥ १ ॥
जासु िबलोिक अलोिकक सोभा । सहज पुनीत मोर मनु छोभा ॥
सो सबु कारन जान िबधाता । फरकिहं सुभद अंग सुनु ाता ॥ २ ॥

Read Ramcharitmanas online at www.swargarohan.org


रामचिरतमानस - 118 - बालकांड

रघुबंिसन्ह कर सहज सुभाऊ । मनु कुपंथ पगु धरइ न काऊ ॥


मोिह अितसय तीित मन केरी । जेिहं सपनेहुँ परनािर न हे री ॥ ३ ॥
िजन्ह कै लहिहं न िरपु रन पीठी । निहं पाविहं परितय मनु डीठी ॥
मंगन लहिह न िजन्ह कै नाहीं । ते नरबर थोरे जग माहीं ॥ ४ ॥

दोहरा
करत बतकिह अनुज सन मन िसय रूप लोभान ।
मुख सरोज मकरं द छिब करइ मधुप इव पान ॥ २३१ ॥

िचतविह चिकत चहँू िदिस सीता । कहँ गए नृपिकसोर मनु िचंता ॥


जहँ िबलोक मृग सावक नैनी । जनु तहँ बिरस कमल िसत न
े ी ॥ १ ॥
लता ओट तब सिखन्ह लखाए । स्यामल गौर िकसोर सुहाए ॥
दे िख रूप लोचन ललचाने । हरषे जनु िनज िनिध पिहचाने ॥ २ ॥
थके नयन रघुपित छिब दे खें । पलकिन्हहँू पिरहरीं िनमेषें ॥
अिधक सनेहँ दे ह भै भोरी । सरद सिसिह जनु िचतव चकोरी ॥ ३ ॥
लोचन मग रामिह उर आनी । दीन्हे पलक कपाट सयानी ॥
जब िसय सिखन्ह ेमबस जानी । किह न सकिहं कछु मन सकुचानी॥४॥

दोहरा
लताभवन तें गट भे तेिह अवसर दोउ भाइ ।
िनकसे जनु जुग िबमल िबधु जलद पटल िबलगाइ ॥ २३२ ॥

सोभा सीवँ सुभग दोउ बीरा । नील पीत जलजाभ सरीरा ॥


मोरपंख िसर सोहत नीके । गुच्छ बीच िबच कुसुम कली के ॥ १ ॥
भाल ितलक मिबंद ु सुहाए । वन सुभग भूषन छिब छाए ॥
िबकट भृकुिट कच घूघरवारे । नव सरोज लोचन रतनारे ॥ २ ॥
चारु िचबुक नािसका कपोला । हास िबलास लेत मनु मोला ॥
मुखछिब किह न जाइ मोिह पाहीं । जो िबलोिक बहु काम लजाहीं ॥ ३ ॥
उर मिन माल कंबु कल गीवा । काम कलभ कर भुज बलसींवा ॥

Read Ramcharitmanas online at www.swargarohan.org


रामचिरतमानस - 119 - बालकांड

सुमन समेत बाम कर दोना । सावँर कुअँर सखी सुिठ लोना ॥ ४ ॥

दोहरा
केहिर किट पट पीत धर सुषमा सील िनधान ।
दे िख भानुकुलभूषनिह िबसरा सिखन्ह अपान ॥ २३३ ॥

धिर धीरजु एक आिल सयानी । सीता सन बोली गिह पानी ॥


बहिर
ु गौिर कर ध्यान करे हू । भूपिकसोर दे िख िकन लेहू ॥ १ ॥
सकुिच सीयँ तब नयन उघारे । सनमुख दोउ रघुिसंघ िनहारे ॥
नख िसख दे िख राम कै सोभा । सुिमिर िपता पनु मनु अित छोभा ॥२ ॥
परबस सिखन्ह लखी जब सीता । भयउ गहरु सब कहिह सभीता ॥
पुिन आउब एिह बेिरआँ काली । अस किह मन िबहसी एक आली ॥ ३ ॥
गूढ़ िगरा सुिन िसय सकुचानी । भयउ िबलंबु मातु भय मानी ॥
धिर बिड़ धीर रामु उर आने । िफिर अपनपउ िपतुबस जाने ॥ ४ ॥

दोहरा
दे खन िमस मृग िबहग तरु िफरइ बहोिर बहोिर ।
िनरिख िनरिख रघुबीर छिब बाढ़इ ीित न थोिर ॥ २३४ ॥

जािन किठन िसवचाप िबसूरित । चली रािख उर स्यामल मूरित ॥


भु जब जात जानकी जानी । सुख सनेह सोभा गुन खानी ॥ १ ॥
परम ेममय मृद ु मिस कीन्ही । चारु िचत भीतीं िलख लीन्ही ॥
गई भवानी भवन बहोरी । बंिद चरन बोली कर जोरी ॥ २ ॥
जय जय िगिरबरराज िकसोरी । जय महे स मुख चंद चकोरी ॥
जय गज बदन षड़ानन माता । जगत जनिन दािमिन दित
ु गाता ॥ ३ ॥
निहं तव आिद मध्य अवसाना । अिमत भाउ बेद ु निहं जाना ॥
भव भव िबभव पराभव कािरिन । िबस्व िबमोहिन स्वबस िबहािरिन ॥४॥

दोहरा

Read Ramcharitmanas online at www.swargarohan.org


रामचिरतमानस - 120 - बालकांड

पितदे वता सुतीय महँु मातु थम तव रे ख ।


मिहमा अिमत न सकिहं किह सहस सारदा सेष ॥ २३५ ॥

सेवत तोिह सुलभ फल चारी । बरदायनी पुरािर िपआरी ॥


दे िब पूिज पद कमल तुम्हारे । सुर नर मुिन सब होिहं सुखारे ॥ १ ॥
मोर मनोरथु जानहु नीकें । बसहु सदा उर पुर सबही कें ॥
कीन्हे उँ गट न कारन तेहीं । अस किह चरन गहे बैदेहीं ॥ २ ॥
िबनय ेम बस भई भवानी । खसी माल मूरित मुसुकानी ॥
सादर िसयँ साद ु िसर धरे ऊ । बोली गौिर हरषु िहयँ भरे ऊ ॥ ३ ॥
सुनु िसय सत्य असीस हमारी । पूिजिह मन कामना तुम्हारी ॥
नारद बचन सदा सुिच साचा । सो बरु िमिलिह जािहं मनु राचा ॥ ४ ॥

छं द
मनु जािहं राचेउ िमिलिह सो बरु सहज सुद
ं र साँवरो ।
करुना िनधान सुजान सीलु सनेहु जानत रावरो ॥
एिह भाँित गौिर असीस सुिन िसय सिहत िहयँ हरषीं अली ।
तुलसी भवािनिह पूिज पुिन पुिन मुिदत मन मंिदर चली ॥

सोरठा
जािन गौिर अनुकूल िसय िहय हरषु न जाइ किह ।
मंजुल मंगल मूल बाम अंग फरकन लगे ॥ २३६ ॥

हृदयँ सराहत सीय लोनाई । गुर समीप गवने दोउ भाई ॥



राम कहा सबु कौिसक पाहीं । सरल सुभाउ छअत छल नाहीं ॥ १ ॥
सुमन पाइ मुिन पूजा कीन्ही । पुिन असीस दह
ु ु भाइन्ह दीन्ही ॥
सुफल मनोरथ होहँु तुम्हारे । रामु लखनु सुिन भए सुखारे ॥ २ ॥
किर भोजनु मुिनबर िबग्यानी । लगे कहन कछु कथा पुरानी ॥
िबगत िदवसु गुरु आयसु पाई । संध्या करन चले दोउ भाई ॥ ३ ॥
ाची िदिस सिस उयउ सुहावा । िसय मुख सिरस दे िख सुखु पावा ॥

Read Ramcharitmanas online at www.swargarohan.org


रामचिरतमानस - 121 - बालकांड

बहिर
ु िबचारु कीन्ह मन माहीं । सीय बदन सम िहमकर नाहीं ॥ ४ ॥

दोहरा
जनमु िसंधु पुिन बंधु िबषु िदन मलीन सकलंक ।
िसय मुख समता पाव िकिम चंद ु बापुरो रं क ॥ २३७ ॥

घटइ बढ़इ िबरहिन दखदाई


ु । सइ राहु िनज संिधिहं पाई ॥
कोक िसक द पंकज ोही । अवगुन बहत
ु चं मा तोही ॥ १ ॥
बैदेही मुख पटतर दीन्हे । होइ दोष बड़ अनुिचत कीन्हे ॥
िसय मुख छिब िबधु ब्याज बखानी । गुरु पिहं चले िनसा बिड़ जानी॥२॥
किर मुिन चरन सरोज नामा । आयसु पाइ कीन्ह िब ामा ॥
िबगत िनसा रघुनायक जागे । बंधु िबलोिक कहन अस लागे ॥ ३ ॥
उदउ अरुन अवलोकहु ताता । पंकज कोक लोक सुखदाता ॥
बोले लखनु जोिर जुग पानी । भु भाउ सूचक मृद ु बानी ॥ ४ ॥

दोहरा
अरुनोदयँ सकुचे कुमुद उडगन जोित मलीन ।
िजिम तुम्हार आगमन सुिन भए नृपित बलहीन ॥ २३८ ॥

नृप सब नखत करिहं उिजआरी । टािर न सकिहं चाप तम भारी ॥


कमल कोक मधुकर खग नाना । हरषे सकल िनसा अवसाना ॥ १ ॥
ऐसेिहं भु सब भगत तुम्हारे । होइहिहं ू
टटें धनुष सुखारे ॥
उयउ भानु िबनु म तम नासा । दरेु नखत जग तेजु कासा ॥ २ ॥
रिब िनज उदय ब्याज रघुराया । भु तापु सब नृपन्ह िदखाया ॥
तव भुज बल मिहमा उदघाटी । गटी धनु िबघटन पिरपाटी ॥ ३ ॥
बंधु बचन सुिन भु मुसुकाने । होइ सुिच सहज पुनीत नहाने ॥
िनत्यि या किर गुरु पिहं आए । चरन सरोज सुभग िसर नाए ॥ ४ ॥
सतानंद ु तब जनक बोलाए । कौिसक मुिन पिहं तुरत पठाए ॥
जनक िबनय ितन्ह आइ सुनाई । हरषे बोिल िलए दोउ भाई ॥ ५ ॥

Read Ramcharitmanas online at www.swargarohan.org


रामचिरतमानस - 122 - बालकांड

दोहरा
सतानंद पद बंिद भु बैठे गुर पिहं जाइ ।
चलहु तात मुिन कहे उ तब पठवा जनक बोलाइ ॥ २३९ ॥

सीय स्वयंबरु दे िखअ जाई । ईसु कािह धौं दे इ बड़ाई ॥


लखन कहा जस भाजनु सोई । नाथ कृ पा तव जापर होई ॥ १ ॥
हरषे मुिन सब सुिन बर बानी । दीिन्ह असीस सबिहं सुखु मानी ॥
पुिन मुिनबृंद समेत कृ पाला । दे खन चले धनुषमख साला ॥ २ ॥
रं गभूिम आए दोउ भाई । अिस सुिध सब पुरबािसन्ह पाई ॥
चले सकल गृह काज िबसारी । बाल जुबान जरठ नर नारी ॥ ३ ॥
दे खी जनक भीर भै भारी । सुिच सेवक सब िलए हँ कारी ॥
तुरत सकल लोगन्ह पिहं जाहू । आसन उिचत दे हू सब काहू ॥ ४ ॥

दोहरा
किह मृद ु बचन िबनीत ितन्ह बैठारे नर नािर ।
उ म मध्यम नीच लघु िनज िनज थल अनुहािर ॥ २४० ॥

राजकुअँर तेिह अवसर आए । मनहँु मनोहरता तन छाए ॥


गुन सागर नागर बर बीरा । सुद
ं र स्यामल गौर सरीरा ॥ १ ॥
राज समाज िबराजत रूरे । उडगन महँु जनु जुग िबधु पूरे ॥
िजन्ह कें रही भावना जैसी । भु मूरित ितन्ह दे खी तैसी ॥ २ ॥
दे खिहं रूप महा रनधीरा । मनहँु बीर रसु धरें सरीरा ॥
डरे कुिटल नृप भुिह िनहारी । मनहँु भयानक मूरित भारी ॥ ३ ॥
रहे असुर छल छोिनप बेषा । ितन्ह भु गट कालसम दे खा ॥
पुरबािसन्ह दे खे दोउ भाई । नरभूषन लोचन सुखदाई ॥ ४ ॥

दोहरा
नािर िबलोकिहं हरिष िहयँ िनज िनज रुिच अनुरूप ।
जनु सोहत िसंगार धिर मूरित परम अनूप ॥ २४१ ॥

Read Ramcharitmanas online at www.swargarohan.org


रामचिरतमानस - 123 - बालकांड

िबदषन्ह
ु भु िबराटमय दीसा । बहु मुख कर पग लोचन सीसा ॥
जनक जाित अवलोकिहं कैसैं । सजन सगे ि य लागिहं जैसें ॥ १ ॥
सिहत िबदे ह िबलोकिहं रानी । िससु सम ीित न जाित बखानी ॥
जोिगन्ह परम तत्वमय भासा । सांत सु सम सहज कासा ॥ २ ॥
हिरभगतन्ह दे खे दोउ ाता । इ दे व इव सब सुख दाता ॥
रामिह िचतव भायँ जेिह सीया । सो सनेहु सुखु निहं कथनीया ॥ ३ ॥
उर अनुभवित न किह सक सोऊ । कवन कार कहै किब कोऊ ॥
एिह िबिध रहा जािह जस भाऊ । तेिहं तस दे खेउ कोसलराऊ ॥ ४ ॥

दोहरा
राजत राज समाज महँु कोसलराज िकसोर ।
सुद
ं र स्यामल गौर तन िबस्व िबलोचन चोर ॥ २४२ ॥

सहज मनोहर मूरित दोऊ । कोिट काम उपमा लघु सोऊ ॥


सरद चंद िनंदक मुख नीके । नीरज नयन भावते जी के ॥ १ ॥
िचतवत चारु मार मनु हरनी । भावित हृदय जाित नहीं बरनी ॥
कल कपोल िु त कुंडल लोला । िचबुक अधर सुंदर मृद ु बोला ॥ २ ॥
कुमुदबंधु कर िनंदक हाँसा । भृकुटी िबकट मनोहर नासा ॥
भाल िबसाल ितलक झलकाहीं । कच िबलोिक अिल अविल लजाहीं ॥३ ॥
पीत चौतनीं िसरिन्ह सुहाई । कुसुम कलीं िबच बीच बनाईं ॥
रे खें रुिचर कंबु कल गीवाँ । जनु ि भुवन सुषमा की सीवाँ ॥ ४ ॥

दोहरा
कुंजर मिन कंठा किलत उरिन्ह तुलिसका माल ।
बृषभ कंध केहिर ठविन बल िनिध बाहु िबसाल ॥ २४३ ॥

किट तूनीर पीत पट बाँधे । कर सर धनुष बाम बर काँधे ॥


पीत जग्य उपबीत सुहाए । नख िसख मंजु महाछिब छाए ॥ १ ॥
दे िख लोग सब भए सुखारे । एकटक लोचन चलत न तारे ॥

Read Ramcharitmanas online at www.swargarohan.org


रामचिरतमानस - 124 - बालकांड

हरषे जनकु दे िख दोउ भाई । मुिन पद कमल गहे तब जाई ॥ २ ॥


किर िबनती िनज कथा सुनाई । रं ग अविन सब मुिनिह दे खाई ॥
जहँ जहँ जािह कुअँर बर दोऊ । तहँ तहँ चिकत िचतव सबु कोऊ ॥ ३ ॥
िनज िनज रुख रामिह सबु दे खा । कोउ न जान कछु मरमु िबसेषा ॥
भिल रचना मुिन नृप सन कहे ऊ । राजाँ मुिदत महासुख लहे ऊ ॥ ४ ॥

दोहरा
सब मंचन्ह ते मंचु एक सुद
ं र िबसद िबसाल ।
मुिन समेत दोउ बंधु तहँ बैठारे मिहपाल ॥ २४४ ॥

भुिह दे िख सब नृप िहँ यँ हारे । जनु राकेस उदय भएँ तारे ॥


अिस तीित सब के मन माहीं । राम चाप तोरब सक नाहीं ॥ १ ॥
िबनु भंजेहुँ भव धनुषु िबसाला । मेिलिह सीय राम उर माला ॥
अस िबचािर गवनहु घर भाई । जसु तापु बलु तेजु गवाँई ॥ २ ॥
िबहसे अपर भूप सुिन बानी । जे अिबबेक अंध अिभमानी ॥
तोरे हुँ धनुषु ब्याहु अवगाहा । िबनु तोरें को कुअँिर िबआहा ॥ ३ ॥
एक बार कालउ िकन होऊ । िसय िहत समर िजतब हम सोऊ ॥
यह सुिन अवर मिहप मुसकाने । धरमसील हिरभगत सयाने ॥ ४ ॥

सोरठा
सीय िबआहिब राम गरब दिर
ू किर नृपन्ह के ॥
जीित को सक सं ाम दसरथ के रन बाँकुरे ॥ २४५ ॥

ब्यथर् मरहु जिन गाल बजाई । मन मोदकिन्ह िक भूख बुताई ॥


िसख हमािर सुिन परम पुनीता । जगदं बा जानहु िजयँ सीता ॥ १ ॥
जगत िपता रघुपितिह िबचारी । भिर लोचन छिब लेहु िनहारी ॥
सुद
ं र सुखद सकल गुन रासी । ए दोउ बंधु संभु उर बासी ॥ २ ॥
सुधा समु समीप िबहाई । मृगजलु िनरिख मरहु कत धाई ॥
करहु जाइ जा कहँु जोई भावा । हम तौ आजु जनम फलु पावा ॥ ३ ॥

Read Ramcharitmanas online at www.swargarohan.org


रामचिरतमानस - 125 - बालकांड

अस किह भले भूप अनुरागे । रूप अनूप िबलोकन लागे ॥


दे खिहं सुर नभ चढ़े िबमाना । बरषिहं सुमन करिहं कल गाना ॥ ४ ॥

दोहरा
जािन सुअवसरु सीय तब पठई जनक बोलाई ।
चतुर सखीं सुंदर सकल सादर चलीं लवाईं ॥ २४६ ॥

िसय सोभा निहं जाइ बखानी । जगदं िबका रूप गुन खानी ॥
उपमा सकल मोिह लघु लागीं । ाकृ त नािर अंग अनुरागीं ॥ १ ॥
िसय बरिनअ तेइ उपमा दे ई । कुकिब कहाइ अजसु को लेई ॥
जौ पटतिरअ तीय सम सीया । जग अिस जुबित कहाँ कमनीया ॥ २ ॥
िगरा मुखर तन अरध भवानी । रित अित दिखत
ु अतनु पित जानी ॥
िबष बारुनी बंधु ि य जेही । किहअ रमासम िकिम बैदेही ॥ ३ ॥
जौ छिब सुधा पयोिनिध होई । परम रूपमय कच्छप सोई ॥
सोभा रजु मंदरु िसंगारू । मथै पािन पंकज िनज मारू ॥ ४ ॥

दोहरा
एिह िबिध उपजै लिच्छ जब सुद
ं रता सुख मूल ।
तदिप सकोच समेत किब कहिहं सीय समतूल ॥ २४७ ॥

चिलं संग लै सखीं सयानी । गावत गीत मनोहर बानी ॥


सोह नवल तनु सुंदर सारी । जगत जनिन अतुिलत छिब भारी ॥ १ ॥
भूषन सकल सुदेस सुहाए । अंग अंग रिच सिखन्ह बनाए ॥
रं गभूिम जब िसय पगु धारी । दे िख रूप मोहे नर नारी ॥ २ ॥
हरिष सुरन्ह दं द
ु भीं
ु बजाई । बरिष सून अपछरा गाई ॥
पािन सरोज सोह जयमाला । अवचट िचतए सकल भुआला ॥ ३ ॥
सीय चिकत िचत रामिह चाहा । भए मोहबस सब नरनाहा ॥
मुिन समीप दे खे दोउ भाई । लगे ललिक लोचन िनिध पाई ॥ ४ ॥

दोहरा

Read Ramcharitmanas online at www.swargarohan.org


रामचिरतमानस - 126 - बालकांड

गुरजन लाज समाजु बड़ दे िख सीय सकुचािन ॥


लािग िबलोकन सिखन्ह तन रघुबीरिह उर आिन ॥ २४८ ॥

राम रूपु अरु िसय छिब दे खें । नर नािरन्ह पिरहरीं िनमेषें ॥


सोचिहं सकल कहत सकुचाहीं । िबिध सन िबनय करिहं मन माहीं ॥ १ ॥
हरु िबिध बेिग जनक जड़ताई । मित हमािर अिस दे िह सुहाई ॥
िबनु िबचार पनु तिज नरनाहु । सीय राम कर करै िबबाहू ॥ २ ॥
जग भल कहिह भाव सब काहू । हठ कीन्हे अंतहँु उर दाहू ॥
एिहं लालसाँ मगन सब लोगू । बरु साँवरो जानकी जोगू ॥ ३ ॥
तब बंदीजन जनक बौलाए । िबिरदावली कहत चिल आए ॥
कह नृप जाइ कहहु पन मोरा । चले भाट िहयँ हरषु न थोरा ॥ ४ ॥

दोहरा
बोले बंदी बचन बर सुनहु सकल मिहपाल ।
पन िबदे ह कर कहिहं हम भुजा उठाइ िबसाल ॥ २४९ ॥

नृप भुजबल िबधु िसवधनु राहू । गरुअ कठोर िबिदत सब काहू ॥


रावनु बानु महाभट भारे । दे िख सरासन गवँिहं िसधारे ॥ १ ॥
सोइ पुरािर कोदं डु कठोरा । राज समाज आजु जोइ तोरा ॥
ि भुवन जय समेत बैदेही ॥ िबनिहं िबचार बरइ हिठ तेही ॥ २ ॥
सुिन पन सकल भूप अिभलाषे । भटमानी अितसय मन माखे ॥
पिरकर बाँिध उठे अकुलाई । चले इ दे वन्ह िसर नाई ॥ ३ ॥
तमिक तािक तिक िसवधनु धरहीं । उठइ न कोिट भाँित बलु करहीं ॥
िजन्ह के कछु िबचारु मन माहीं । चाप समीप महीप न जाहीं ॥ ४ ॥

दोहरा
तमिक धरिहं धनु मूढ़ नृप उठइ न चलिहं लजाइ ।
मनहँु पाइ भट बाहबलु
ु अिधकु अिधकु गरुआइ ॥ २५० ॥

भूप सहस दस एकिह बारा । लगे उठावन टरइ न टारा ॥

Read Ramcharitmanas online at www.swargarohan.org


रामचिरतमानस - 127 - बालकांड

डगइ न संभु सरासन कैसें । कामी बचन सती मनु जैसें ॥ १ ॥


सब नृप भए जोगु उपहासी । जैसें िबनु िबराग संन्यासी ॥
कीरित िबजय बीरता भारी । चले चाप कर बरबस हारी ॥ २ ॥
ीहत भए हािर िहयँ राजा । बैठे िनज िनज जाइ समाजा ॥
नृपन्ह िबलोिक जनकु अकुलाने । बोले बचन रोष जनु साने ॥ ३ ॥
दीप दीप के भूपित नाना । आए सुिन हम जो पनु ठाना ॥
दे व दनुज धिर मनुज सरीरा । िबपुल बीर आए रनधीरा ॥ ४ ॥

दोहरा
कुअँिर मनोहर िबजय बिड़ कीरित अित कमनीय ।
पाविनहार िबरं िच जनु रचेउ न धनु दमनीय ॥ २५१ ॥

कहहु कािह यहु लाभु न भावा । काहँु न संकर चाप चढ़ावा ॥


रहउ चढ़ाउब तोरब भाई । ितलु भिर भूिम न सके छड़ाई ॥ १ ॥
अब जिन कोउ माखै भट मानी । बीर िबहीन मही मैं जानी ॥
तजहु आस िनज िनज गृह जाहू । िलखा न िबिध बैदेिह िबबाहू ॥ २ ॥
सुकृत जाइ जौं पनु पिरहरऊँ । कुअँिर कुआिर रहउ का करऊँ ॥
जो जनतेउँ िबनु भट भुिब भाई । तौ पनु किर होतेउँ न हँ साई ॥ ३ ॥
जनक बचन सुिन सब नर नारी । दे िख जानिकिह भए दखारी
ु ॥
माखे लखनु कुिटल भइँ भौंहें । रदपट फरकत नयन िरसौंहें ॥ ४ ॥

दोहरा
किह न सकत रघुबीर डर लगे बचन जनु बान ।
नाइ राम पद कमल िसरु बोले िगरा मान ॥ २५२ ॥

रघुबंिसन्ह महँु जहँ कोउ होई । तेिहं समाज अस कहइ न कोई ॥


कही जनक जिस अनुिचत बानी । िब मान रघुकुल मिन जानी ॥ १ ॥
सुनहु भानुकुल पंकज भानू । कहउँ सुभाउ न कछु अिभमानू ॥
जौ तुम्हािर अनुसासन पावौं । कंदक
ु इव ांड उठावौं ॥ २ ॥

Read Ramcharitmanas online at www.swargarohan.org


रामचिरतमानस - 128 - बालकांड

काचे घट िजिम डारौं फोरी । सकउँ मेरु मूलक िजिम तोरी ॥


तव ताप मिहमा भगवाना । को बापुरो िपनाक पुराना ॥ ३ ॥
नाथ जािन अस आयसु होऊ । कौतुकु करौं िबलोिकअ सोऊ ॥
कमल नाल िजिम चाफ चढ़ावौं । जोजन सत मान लै धावौं ॥ ४ ॥

दोहरा
तोरौं छ क दं ड िजिम तव ताप बल नाथ ।
जौं न करौं भु पद सपथ कर न धरौं धनु भाथ ॥ २५३ ॥

लखन सकोप बचन जे बोले । डगमगािन मिह िदग्गज डोले ॥


सकल लोक सब भूप डे राने । िसय िहयँ हरषु जनकु सकुचाने ॥ १ ॥
गुर रघुपित सब मुिन मन माहीं । मुिदत भए पुिन पुिन पुलकाहीं ॥
सयनिहं रघुपित लखनु नेवारे । ेम समेत िनकट बैठारे ॥ २ ॥
िबस्वािम समय सुभ जानी । बोले अित सनेहमय बानी ॥
उठहु राम भंजहु भवचापा । मेटहु तात जनक पिरतापा ॥ ३ ॥
सुिन गुरु बचन चरन िसरु नावा । हरषु िबषाद ु न कछु उर आवा ॥
ठाढ़े भए उिठ सहज सुभाएँ । ठविन जुबा मृगराजु लजाएँ ॥ ४ ॥

दोहरा
उिदत उदयिगिर मंच पर रघुबर बालपतंग ।
िबकसे संत सरोज सब हरषे लोचन भृंग ॥ २५४ ॥

नृपन्ह केिर आसा िनिस नासी । बचन नखत अवली न कासी ॥


मानी मिहप कुमुद सकुचाने । कपटी भूप उलूक लुकाने ॥ १ ॥
भए िबसोक कोक मुिन दे वा । बिरसिहं सुमन जनाविहं सेवा ॥
गुर पद बंिद सिहत अनुरागा । राम मुिनन्ह सन आयसु मागा ॥ २ ॥
सहजिहं चले सकल जग स्वामी । म मंजु बर कुंजर गामी ॥
चलत राम सब पुर नर नारी । पुलक पूिर तन भए सुखारी ॥ ३ ॥
बंिद िपतर सुर सुकृत सँभारे । जौं कछु पुन्य भाउ हमारे ॥

Read Ramcharitmanas online at www.swargarohan.org


रामचिरतमानस - 129 - बालकांड

तौ िसवधनु मृनाल की नाईं । तोरहँु राम गनेस गोसाईं ॥ ४ ॥

दोहरा
रामिह ेम समेत लिख सिखन्ह समीप बोलाइ ।
सीता मातु सनेह बस बचन कहइ िबलखाइ ॥ २५५ ॥

सिख सब कौतुक दे खिनहारे । जेठ कहावत िहतू हमारे ॥


कोउ न बुझाइ कहइ गुर पाहीं । ए बालक अिस हठ भिल नाहीं ॥ १ ॥
रावन बान ु
छआ निहं चापा । हारे सकल भूप किर दापा ॥
सो धनु राजकुअँर कर दे हीं । बाल मराल िक मंदर लेहीं ॥ २ ॥
भूप सयानप सकल िसरानी । सिख िबिध गित कछु जाित न जानी ॥
बोली चतुर सखी मृद ु बानी । तेजवंत लघु गिनअ न रानी ॥ ३ ॥
कहँ कुंभज कहँ िसंधु अपारा । सोषेउ सुजसु सकल संसारा ॥
रिब मंडल दे खत लघु लागा । उदयँ तासु ितभुवन तम भागा ॥ ४ ॥

दोहरा
मं परम लघु जासु बस िबिध हिर हर सुर सबर् ।
महाम गजराज कहँु बस कर अंकुस खबर् ॥ २५६ ॥

काम कुसुम धनु सायक लीन्हे । सकल भुवन अपने बस कीन्हे ॥


दे िब तिजअ संसउ अस जानी । भंजब धनुष रामु सुनु रानी ॥ १ ॥
सखी बचन सुिन भै परतीती । िमटा िबषाद ु बढ़ी अित ीती ॥
तब रामिह िबलोिक बैदेही । सभय हृदयँ िबनवित जेिह तेही ॥ २ ॥
मनहीं मन मनाव अकुलानी । होहु सन्न महे स भवानी ॥
करहु सफल आपिन सेवकाई । किर िहतु हरहु चाप गरुआई ॥ ३ ॥
गननायक बरदायक दे वा । आजु लगें कीिन्हउँ तुअ सेवा ॥
बार बार िबनती सुिन मोरी । करहु चाप गुरुता अित थोरी ॥ ४ ॥

दोहरा

Read Ramcharitmanas online at www.swargarohan.org


रामचिरतमानस - 130 - बालकांड

दे िख दे िख रघुबीर तन सुर मनाव धिर धीर ॥


भरे िबलोचन ेम जल पुलकावली सरीर ॥ २५७ ॥

नीकें िनरिख नयन भिर सोभा । िपतु पनु सुिमिर बहिर


ु मनु छोभा ॥
अहह तात दारुिन हठ ठानी । समुझत निहं कछु लाभु न हानी ॥ १ ॥
सिचव सभय िसख दे इ न कोई । बुध समाज बड़ अनुिचत होई ॥
कहँ धनु कुिलसहु चािह कठोरा । कहँ स्यामल मृदगात
ु िकसोरा ॥ २ ॥
िबिध केिह भाँित धरौं उर धीरा । िसरस सुमन कन बेिधअ हीरा ॥
सकल सभा कै मित भै भोरी । अब मोिह संभुचाप गित तोरी ॥ ३ ॥
िनज जड़ता लोगन्ह पर डारी । होिह हरुअ रघुपितिह िनहारी ॥
अित पिरताप सीय मन माही । लव िनमेष जुग सब सय जाहीं ॥ ४ ॥

दोहरा
भुिह िचतइ पुिन िचतव मिह राजत लोचन लोल ।
खेलत मनिसज मीन जुग जनु िबधु मंडल डोल ॥ २५८ ॥

िगरा अिलिन मुख पंकज रोकी । गट न लाज िनसा अवलोकी ॥


लोचन जलु रह लोचन कोना । जैसे परम कृ पन कर सोना ॥ १ ॥
सकुची ब्याकुलता बिड़ जानी । धिर धीरजु तीित उर आनी ॥
तन मन बचन मोर पनु साचा । रघुपित पद सरोज िचतु राचा ॥ २ ॥
तौ भगवानु सकल उर बासी । किरिहं मोिह रघुबर कै दासी ॥
जेिह कें जेिह पर सत्य सनेहू । सो तेिह िमलइ न कछु संहेहू ॥ ३ ॥
भु तन िचतइ ेम तन ठाना । कृ पािनधान राम सबु जाना ॥
िसयिह िबलोिक तकेउ धनु कैसे । िचतव गरुरु लघु ब्यालिह जैसे ॥ ४ ॥

दोहरा
लखन लखेउ रघुबंसमिन ताकेउ हर कोदं डु ।
पुलिक गात बोले बचन चरन चािप ांडु ॥ २५९ ॥

िदसकुंजरहु कमठ अिह कोला । धरहु धरिन धिर धीर न डोला ॥

Read Ramcharitmanas online at www.swargarohan.org


रामचिरतमानस - 131 - बालकांड

रामु चहिहं संकर धनु तोरा । होहु सजग सुिन आयसु मोरा ॥ १ ॥
चाप सपीप रामु जब आए । नर नािरन्ह सुर सुकृत मनाए ॥
सब कर संसउ अरु अग्यानू । मंद महीपन्ह कर अिभमानू ॥ २ ॥
भृगुपित केिर गरब गरुआई । सुर मुिनबरन्ह केिर कदराई ॥
िसय कर सोचु जनक पिछतावा । रािनन्ह कर दारुन दख
ु दावा ॥ ३ ॥
संभुचाप बड बोिहतु पाई । चढे जाइ सब संगु बनाई ॥
राम बाहबल
ु िसंधु अपारू । चहत पारु निह कोउ कड़हारू ॥ ४ ॥

दोहरा
राम िबलोके लोग सब िच िलखे से दे िख ।
िचतई सीय कृ पायतन जानी िबकल िबसेिष ॥ २६० ॥

दे खी िबपुल िबकल बैदेही । िनिमष िबहात कलप सम तेही ॥


तृिषत बािर िबनु जो तनु त्यागा । मुएँ करइ का सुधा तड़ागा ॥ १ ॥
का बरषा सब कृ षी सुखानें । समय चुकें पुिन का पिछतानें ॥
अस िजयँ जािन जानकी दे खी । भु पुलके लिख ीित िबसेषी ॥ २ ॥
गुरिह नामु मनिह मन कीन्हा । अित लाघवँ उठाइ धनु लीन्हा ॥
दमकेउ दािमिन िजिम जब लयऊ । पुिन नभ धनु मंडल सम भयऊ ॥३॥
लेत चढ़ावत खैंचत गाढ़ें । काहँु न लखा दे ख सबु ठाढ़ें ॥
तेिह छन राम मध्य धनु तोरा । भरे भुवन धुिन घोर कठोरा ॥ ४ ॥

छं द
भरे भुवन घोर कठोर रव रिब बािज तिज मारगु चले ।
िचक्करिहं िदग्गज डोल मिह अिह कोल कूरुम कलमले ॥
सुर असुर मुिन कर कान दीन्हें सकल िबकल िबचारहीं ।
कोदं ड खंडेउ राम तुलसी जयित बचन उचारही ॥

सोरठा

Read Ramcharitmanas online at www.swargarohan.org


रामचिरतमानस - 132 - बालकांड

संकर चापु जहाजु सागरु रघुबर बाहुबलु ।


बूड़ सो सकल समाजु चढ़ा जो थमिहं मोह बस ॥ २६१ ॥

भु दोउ चापखंड मिह डारे । दे िख लोग सब भए सुखारे ॥


कोिसकरुप पयोिनिध पावन । ेम बािर अवगाहु सुहावन ॥ १ ॥
रामरूप राकेसु िनहारी । बढ़त बीिच पुलकाविल भारी ॥
बाजे नभ गहगहे िनसाना । दे वबधू नाचिहं किर गाना ॥ २ ॥
ािदक सुर िस मुनीसा । भुिह संसिह दे िहं असीसा ॥
बिरसिहं सुमन रं ग बहु माला । गाविहं िकंनर गीत रसाला ॥ ३ ॥
रही भुवन भिर जय जय बानी । धनुषभंग धुिन जात न जानी ॥
मुिदत कहिहं जहँ तहँ नर नारी । भंजेउ राम संभुधनु भारी ॥ ४ ॥

दोहरा
बंदी मागध सूतगन िबरुद बदिहं मितधीर ।
करिहं िनछाविर लोग सब हय गय धन मिन चीर ॥ २६२ ॥

झाँिझ मृदंग संख सहनाई । भेिर ढोल दं द


ु भी
ु सुहाई ॥
बाजिहं बहु बाजने सुहाए । जहँ तहँ जुबितन्ह मंगल गाए ॥ १ ॥
सिखन्ह सिहत हरषी अित रानी । सूखत धान परा जनु पानी ॥
जनक लहे उ सुखु सोचु िबहाई । पैरत थकें थाह जनु पाई ॥ २ ॥
ीहत भए भूप धनु ू
टटे । जैसें िदवस दीप छिब ू
छटे ॥
सीय सुखिह बरिनअ केिह भाँती । जनु चातकी पाइ जलु स्वाती ॥ ३ ॥
रामिह लखनु िबलोकत कैसें । सिसिह चकोर िकसोरकु जैसें ॥
सतानंद तब आयसु दीन्हा । सीताँ गमनु राम पिहं कीन्हा ॥ ४ ॥

दोहरा
संग सखीं सुदंर चतुर गाविहं मंगलचार ।
गवनी बाल मराल गित सुषमा अंग अपार ॥ २६३ ॥

सिखन्ह मध्य िसय सोहित कैसे । छिबगन मध्य महाछिब जैसें ॥

Read Ramcharitmanas online at www.swargarohan.org


रामचिरतमानस - 133 - बालकांड

कर सरोज जयमाल सुहाई । िबस्व िबजय सोभा जेिहं छाई ॥ १ ॥


तन सकोचु मन परम उछाहू । गूढ़ ेमु लिख परइ न काहू ॥
जाइ समीप राम छिब दे खी । रिह जनु कुँअिर िच अवरे खी ॥ २ ॥
चतुर सखीं लिख कहा बुझाई । पिहरावहु जयमाल सुहाई ॥
सुनत जुगल कर माल उठाई । ेम िबबस पिहराइ न जाई ॥ ३ ॥
सोहत जनु जुग जलज सनाला । सिसिह सभीत दे त जयमाला ॥
गाविहं छिब अवलोिक सहे ली । िसयँ जयमाल राम उर मेली ॥ ४ ॥

सोरठा
रघुबर उर जयमाल दे िख दे व बिरसिहं सुमन ।
सकुचे सकल भुआल जनु िबलोिक रिब कुमुदगन ॥ २६४ ॥

पुर अरु ब्योम बाजने बाजे । खल भए मिलन साधु सब राजे ॥


सुर िकंनर नर नाग मुनीसा । जय जय जय किह दे िहं असीसा ॥ १ ॥
नाचिहं गाविहं िबबुध बधूटीं । बार बार कुसुमांजिल ू
छटीं ॥
जहँ तहँ िब बेदधुिन करहीं । बंदी िबरदाविल उच्चरहीं ॥ २ ॥
मिह पाताल नाक जसु ब्यापा । राम बरी िसय भंजेउ चापा ॥
करिहं आरती पुर नर नारी । दे िहं िनछाविर िब िबसारी ॥ ३ ॥
सोहित सीय राम कै जौरी । छिब िसंगारु मनहँु एक ठोरी ॥
सखीं कहिहं भुपद गहु सीता । करित न चरन परस अित भीता ॥ ४ ॥

दोहरा
गौतम ितय गित सुरित किर निहं परसित पग पािन ।
मन िबहसे रघुबंसमिन ीित अलौिकक जािन ॥ २६५ ॥

तब िसय दे िख भूप अिभलाषे । कूर कपूत मूढ़ मन माखे ॥


उिठ उिठ पिहिर सनाह अभागे । जहँ तहँ गाल बजावन लागे ॥ १ ॥
लेहु छड़ाइ सीय कह कोऊ । धिर बाँधहु नृप बालक दोऊ ॥
तोरें धनुषु चाड़ निहं सरई । जीवत हमिह कुअँिर को बरई ॥ २ ॥

Read Ramcharitmanas online at www.swargarohan.org


रामचिरतमानस - 134 - बालकांड

जौं िबदे हु कछु करै सहाई । जीतहु समर सिहत दोउ भाई ॥
साधु भूप बोले सुिन बानी । राजसमाजिह लाज लजानी ॥ ३ ॥
बलु तापु बीरता बड़ाई । नाक िपनाकिह संग िसधाई ॥
सोइ सूरता िक अब कहँु पाई । अिस बुिध तौ िबिध मुहँ मिस लाई ॥४ ॥

दोहरा
दे खहु रामिह नयन भिर तिज इिरषा मद ु कोहु ।
लखन रोषु पावकु बल जािन सलभ जिन होहु ॥ २६६ ॥

बैनतेय बिल िजिम चह कागू । िजिम ससु चहै नाग अिर भागू ॥
िजिम चह कुसल अकारन कोही । सब संपदा चहै िसव ोही ॥ १ ॥
लोभी लोलुप कल कीरित चहई । अकलंकता िक कामी लहई ॥
हिर पद िबमुख परम गित चाहा । तस तुम्हार लालचु नरनाहा ॥ २ ॥
कोलाहलु सुिन सीय सकानी । सखीं लवाइ गईं जहँ रानी ॥
रामु सुभायँ चले गुरु पाहीं । िसय सनेहु बरनत मन माहीं ॥ ३ ॥
रािनन्ह सिहत सोचबस सीया । अब धौं िबिधिह काह करनीया ॥
भूप बचन सुिन इत उत तकहीं । लखनु राम डर बोिल न सकहीं ॥ ४ ॥

दोहरा
अरुन नयन भृकुटी कुिटल िचतवत नृपन्ह सकोप ।
मनहँु म गजगन िनरिख िसंघिकसोरिह चोप ॥ २६७ ॥

खरभरु दे िख िबकल पुर नारीं । सब िमिल दे िहं महीपन्ह गारीं ॥


तेिहं अवसर सुिन िसव धनु भंगा । आयसु भृगुकुल कमल पतंगा ॥ १ ॥
दे िख महीप सकल सकुचाने । बाज झपट जनु लवा लुकाने ॥
गौिर सरीर भूित भल ाजा । भाल िबसाल ि पुंड िबराजा ॥ २ ॥

सीस जटा सिसबदनु सुहावा । िरसबस कछक अरुन होइ आवा ॥
भृकुटी कुिटल नयन िरस राते । सहजहँु िचतवत मनहँु िरसाते ॥ ३ ॥
बृषभ कंध उर बाहु िबसाला । चारु जनेउ माल मृगछाला ॥

Read Ramcharitmanas online at www.swargarohan.org


रामचिरतमानस - 135 - बालकांड

किट मुिन बसन तून दइु बाँधें । धनु सर कर कुठारु कल काँधें ॥ ४ ॥

दोहरा
सांत बेषु करनी किठन बरिन न जाइ सरुप ।
धिर मुिनतनु जनु बीर रसु आयउ जहँ सब भूप ॥ २६८ ॥

दे खत भृगुपित बेषु कराला । उठे सकल भय िबकल भुआला ॥


िपतु समेत किह किह िनज नामा । लगे करन सब दं ड नामा ॥ १ ॥
जेिह सुभायँ िचतविहं िहतु जानी । सो जानइ जनु आइ खुटानी ॥
जनक बहोिर आइ िसरु नावा । सीय बोलाइ नामु करावा ॥ २ ॥
आिसष दीिन्ह सखीं हरषानीं । िनज समाज लै गई सयानीं ॥
िबस्वािम ु िमले पुिन आई । पद सरोज मेले दोउ भाई ॥ ३ ॥
रामु लखनु दसरथ के ढोटा । दीिन्ह असीस दे िख भल जोटा ॥
रामिह िचतइ रहे थिक लोचन । रूप अपार मार मद मोचन ॥ ४ ॥

दोहरा
बहिर
ु िबलोिक िबदे ह सन कहहु काह अित भीर ॥
पूछत जािन अजान िजिम ब्यापेउ कोपु सरीर ॥ २६९ ॥

समाचार किह जनक सुनाए । जेिह कारन महीप सब आए ॥


सुनत बचन िफिर अनत िनहारे । दे खे चापखंड मिह डारे ॥ १ ॥
अित िरस बोले बचन कठोरा । कहु जड़ जनक धनुष कै तोरा ॥
बेिग दे खाउ मूढ़ न त आजू । उलटउँ मिह जहँ लिह तव राजू ॥ २ ॥
अित डरु उतरु दे त नृपु नाहीं । कुिटल भूप हरषे मन माहीं ॥
सुर मुिन नाग नगर नर नारी ॥ सोचिहं सकल ास उर भारी ॥ ३ ॥
मन पिछताित सीय महतारी । िबिध अब सँवरी बात िबगारी ॥
भृगुपित कर सुभाउ सुिन सीता । अरध िनमेष कलप सम बीता ॥ ४ ॥

दोहरा

Read Ramcharitmanas online at www.swargarohan.org


रामचिरतमानस - 136 - बालकांड

सभय िबलोके लोग सब जािन जानकी भीरु ।


हृदयँ न हरषु िबषाद ु कछु बोले ीरघुबीरु ॥ २७० ॥

मासपारायण नवाँ िव ाम

नाथ संभुधनु भंजिनहारा । होइिह केउ एक दास तुम्हारा ॥


आयसु काह किहअ िकन मोही । सुिन िरसाइ बोले मुिन कोही ॥ १ ॥
सेवकु सो जो करै सेवकाई । अिर करनी किर किरअ लराई ॥
सुनहु राम जेिहं िसवधनु तोरा । सहसबाहु सम सो िरपु मोरा ॥ २ ॥
सो िबलगाउ िबहाइ समाजा । न त मारे जैहिहं सब राजा ॥
सुिन मुिन बचन लखन मुसुकाने । बोले परसुधरिह अपमाने ॥ ३ ॥
बहु धनुहीं तोरीं लिरकाईं । कबहँु न अिस िरस कीिन्ह गोसाईं ॥
एिह धनु पर ममता केिह हे तू । सुिन िरसाइ कह भृगुकुलकेतू ॥ ४ ॥

दोहरा
रे नृप बालक कालबस बोलत तोिह न सँमार ॥
धनुही सम ितपुरािर धनु िबिदत सकल संसार ॥ २७१ ॥

लखन कहा हँ िस हमरें जाना । सुनहु दे व सब धनुष समाना ॥


का छित लाभु जून धनु तौरें । दे खा राम नयन के भोरें ॥ १ ॥

छअत ू रघुपितहु न दोसू । मुिन िबनु काज किरअ कत रोसू ॥
टट
बोले िचतइ परसु की ओरा । रे सठ सुनेिह सुभाउ न मोरा ॥ २ ॥
बालकु बोिल बधउँ निहं तोही । केवल मुिन जड़ जानिह मोही ॥
बाल चारी अित कोही । िबस्व िबिदत छि यकुल ोही ॥ ३ ॥
भुजबल भूिम भूप िबनु कीन्ही । िबपुल बार मिहदे वन्ह दीन्ही ॥
सहसबाहु भुज छे दिनहारा । परसु िबलोकु महीपकुमारा ॥ ४ ॥

दोहरा
मातु िपतिह जिन सोचबस करिस महीसिकसोर ।
गभर्न्ह के अभर्क दलन परसु मोर अित घोर ॥ २७२ ॥

Read Ramcharitmanas online at www.swargarohan.org


रामचिरतमानस - 137 - बालकांड

िबहिस लखनु बोले मृद ु बानी । अहो मुनीसु महा भटमानी ॥


पुिन पुिन मोिह दे खाव कुठारू । चहत उड़ावन फूँिक पहारू ॥ १ ॥
इहाँ कुम्हड़बितया कोउ नाहीं । जे तरजनी दे िख मिर जाहीं ॥
दे िख कुठारु सरासन बाना । मैं कछु कहा सिहत अिभमाना ॥ २ ॥
ु समुिझ जनेउ िबलोकी । जो कछु कहहु सहउँ िरस रोकी ॥
भृगुसत
सुर मिहसुर हिरजन अरु गाई । हमरें कुल इन्ह पर न सुराई ॥ ३ ॥
बधें पापु अपकीरित हारें । मारतहँू पा पिरअ तुम्हारें ॥
कोिट कुिलस सम बचनु तुम्हारा । ब्यथर् धरहु धनु बान कुठारा ॥ ४ ॥

दोहरा
जो िबलोिक अनुिचत कहे उँ छमहु महामुिन धीर ।
सुिन सरोष भृगुबंसमिन बोले िगरा गभीर ॥ २७३ ॥

कौिसक सुनहु मंद यहु बालकु । कुिटल कालबस िनज कुल घालकु ॥
भानु बंस राकेस कलंकू । िनपट िनरं कुस अबुध असंकू ॥ १ ॥
काल कवलु होइिह छन माहीं । कहउँ पुकािर खोिर मोिह नाहीं ॥
तुम्ह हटकउ जौं चहहु उबारा । किह तापु बलु रोषु हमारा ॥ २ ॥
लखन कहे उ मुिन सुजस तुम्हारा । तुम्हिह अछत को बरनै पारा ॥
अपने मुँह तुम्ह आपिन करनी । बार अनेक भाँित बहु बरनी ॥ ३ ॥
निहं संतोषु त पुिन कछु कहहू । जिन िरस रोिक दसह
ु दख
ु सहहू ॥
बीर ती तुम्ह धीर अछोभा । गारी दे त न पावहु सोभा ॥ ४ ॥

दोहरा
सूर समर करनी करिहं किह न जनाविहं आपु ।
िब मान रन पाइ िरपु कायर कथिहं तापु ॥ २७४ ॥

तुम्ह तौ कालु हाँक जनु लावा । बार बार मोिह लािग बोलावा ॥
सुनत लखन के बचन कठोरा । परसु सुधािर धरे उ कर घोरा ॥ १ ॥
अब जिन दे इ दोसु मोिह लोगू । ु
कटबादी बालकु बधजोगू ॥

Read Ramcharitmanas online at www.swargarohan.org


रामचिरतमानस - 138 - बालकांड

बाल िबलोिक बहत


ु मैं बाँचा । अब यहु मरिनहार भा साँचा ॥ २ ॥
कौिसक कहा छिमअ अपराधू । बाल दोष गुन गनिहं न साधू ॥
खर कुठार मैं अकरुन कोही । आगें अपराधी गुरु ोही ॥ ३ ॥
उतर दे त छोड़उँ िबनु मारें । केवल कौिसक सील तुम्हारें ॥
न त एिह कािट कुठार कठोरें । गुरिह उिरन होतेउँ म थोरें ॥ ४ ॥

दोहरा
गािधसूनु कह हृदयँ हँ िस मुिनिह हिरअरइ सूझ ।
अयमय खाँड न ऊखमय अजहँु न बूझ अबूझ ॥ २७५ ॥

कहे उ लखन मुिन सीलु तुम्हारा । को निह जान िबिदत संसारा ॥


माता िपतिह उिरन भए नीकें । गुर िरनु रहा सोचु बड़ जीकें ॥ १ ॥
सो जनु हमरे िह माथे काढ़ा । िदन चिल गए ब्याज बड़ बाढ़ा ॥
अब आिनअ ब्यवहिरआ बोली । तुरत दे उँ मैं थैली खोली ॥ २ ॥
सुिन कटु बचन कुठार सुधारा । हाय हाय सब सभा पुकारा ॥
भृगुबर परसु दे खावहु मोही । िब िबचािर बचउँ नृप ोही ॥ ३ ॥
िमले न कबहँु सुभट रन गाढ़े । ि ज दे वता घरिह के बाढ़े ॥
अनुिचत किह सब लोग पुकारे । रघुपित सयनिहं लखनु नेवारे ॥ ४ ॥

दोहरा
लखन उतर आहित
ु सिरस भृगुबर कोपु कृ सानु ।
बढ़त दे िख जल सम बचन बोले रघुकुलभानु ॥ २७६ ॥

नाथ करहु बालक पर छोहू । सूध दधमु


ू ख किरअ न कोहू ॥
जौं पै भु भाउ कछु जाना । तौ िक बराबिर करत अयाना ॥ १ ॥
जौं लिरका कछु अचगिर करहीं । गुर िपतु मातु मोद मन भरहीं ॥
किरअ कृ पा िससु सेवक जानी । तुम्ह सम सील धीर मुिन ग्यानी ॥२ ॥

राम बचन सुिन कछक जुड़ाने । किह कछु लखनु बहिर
ु मुसकाने ॥
हँ सत दे िख नख िसख िरस ब्यापी । राम तोर ाता बड़ पापी ॥ ३ ॥

Read Ramcharitmanas online at www.swargarohan.org


रामचिरतमानस - 139 - बालकांड

गौर सरीर स्याम मन माहीं । कालकूटमुख पयमुख नाहीं ॥


सहज टे ढ़ अनुहरइ न तोही । नीचु मीचु सम दे ख न मौहीं ॥ ४ ॥

दोहरा
लखन कहे उ हँ िस सुनहु मुिन ोधु पाप कर मूल ।
जेिह बस जन अनुिचत करिहं चरिहं िबस्व ितकूल ॥ २७७ ॥

मैं तुम्हार अनुचर मुिनराया । पिरहिर कोपु किरअ अब दाया ॥



टट चाप निहं जुरिह िरसाने । बैिठअ होइिहं पाय िपराने ॥ १ ॥
जौ अित ि य तौ किरअ उपाई । जोिरअ कोउ बड़ गुनी बोलाई ॥
बोलत लखनिहं जनकु डे राहीं । म करहु अनुिचत भल नाहीं ॥ २ ॥
थर थर कापिहं पुर नर नारी । छोट कुमार खोट बड़ भारी ॥
भृगुपित सुिन सुिन िनरभय बानी । िरस तन जरइ होइ बल हानी ॥ ३ ॥
बोले रामिह दे इ िनहोरा । बचउँ िबचािर बंधु लघु तोरा ॥
ं र कैसें । िबष रस भरा कनक घटु जैसैं ॥ ४ ॥
मनु मलीन तनु सुद

दोहरा
सुिन लिछमन िबहसे बहिर
ु नयन तरे रे राम ।
गुर समीप गवने सकुिच पिरहिर बानी बाम ॥ २७८ ॥

अित िबनीत मृद ु सीतल बानी । बोले रामु जोिर जुग पानी ॥
सुनहु नाथ तुम्ह सहज सुजाना । बालक बचनु किरअ निहं काना ॥ १ ॥
बररै बालक एकु सुभाऊ । इन्हिह न संत िबदषिहं
ू काऊ ॥
तेिहं नाहीं कछु काज िबगारा । अपराधी में नाथ तुम्हारा ॥ २ ॥
कृ पा कोपु बधु बँधब गोसाईं । मो पर किरअ दास की नाई ॥
किहअ बेिग जेिह िबिध िरस जाई । मुिननायक सोइ करौं उपाई ॥ ३ ॥
कह मुिन राम जाइ िरस कैसें । अजहँु अनुज तव िचतव अनैसें ॥
एिह के कंठ कुठारु न दीन्हा । तौ मैं काह कोपु किर कीन्हा ॥ ४ ॥

दोहरा

Read Ramcharitmanas online at www.swargarohan.org


रामचिरतमानस - 140 - बालकांड

गभर् विहं अविनप रविन सुिन कुठार गित घोर ।


परसु अछत दे खउँ िजअत बैरी भूपिकसोर ॥ २७९ ॥

बहइ न हाथु दहइ िरस छाती । भा कुठारु कुंिठत नृपघाती ॥


भयउ बाम िबिध िफरे उ सुभाऊ । मोरे हृदयँ कृ पा किस काऊ ॥ १ ॥
आजु दया दखु
ु दसह
ु सहावा । सुिन सौिम िबहिस िसरु नावा ॥
बाउ कृ पा मूरित अनुकूला । बोलत बचन झरत जनु फूला ॥ २ ॥
जौं पै कृ पाँ जिरिहं मुिन गाता । ोध भएँ तनु राख िबधाता ॥
दे खु जनक हिठ बालक एहू । कीन्ह चहत जड़ जमपुर गेहू ॥ ३ ॥
बेिग करहु िकन आँिखन्ह ओटा । दे खत छोट खोट नृप ढोटा ॥
िबहसे लखनु कहा मन माहीं । मूदें आँिख कतहँु कोउ नाहीं ॥ ४ ॥

दोहरा
परसुरामु तब राम ित बोले उर अित ोधु ।
संभु सरासनु तोिर सठ करिस हमार बोधु ॥ २८० ॥

बंधु कहइ कटु संमत तोरें । तू छल िबनय करिस कर जोरें ॥


करु पिरतोषु मोर सं ामा । नािहं त छाड़ कहाउब रामा ॥ १ ॥
छलु तिज करिह समरु िसव ोही । बंधु सिहत न त मारउँ तोही ॥
भृगुपित बकिहं कुठार उठाएँ । मन मुसकािहं रामु िसर नाएँ ॥ २ ॥
गुनह लखन कर हम पर रोषू । कतहँु सुधाइहु ते बड़ दोषू ॥
टे ढ़ जािन सब बंदइ काहू । ब चं मिह सइ न राहू ॥ ३ ॥
राम कहे उ िरस तिजअ मुनीसा । कर कुठारु आगें यह सीसा ॥
जेंिहं िरस जाइ किरअ सोइ स्वामी । मोिह जािन आपन अनुगामी ॥ ४ ॥

दोहरा
भुिह सेवकिह समरु कस तजहु िब बर रोसु ।
बेषु िबलोकें कहे िस कछु बालकहू निहं दोसु ॥ २८१ ॥

दे िख कुठार बान धनु धारी । भै लिरकिह िरस बीरु िबचारी ॥

Read Ramcharitmanas online at www.swargarohan.org


रामचिरतमानस - 141 - बालकांड

नामु जान पै तुम्हिह न चीन्हा । बंस सुभायँ उतरु तेंिहं दीन्हा ॥ १ ॥


जौं तुम्ह औतेहु मुिन की नाईं । पद रज िसर िससु धरत गोसाईं ॥
छमहु चूक अनजानत केरी । चिहअ िब उर कृ पा घनेरी ॥ २ ॥
हमिह तुम्हिह सिरबिर किस नाथा ॥ कहहु न कहाँ चरन कहँ माथा ॥
राम मा लघु नाम हमारा । परसु सिहत बड़ नाम तोहारा ॥ ३ ॥
दे व एकु गुनु धनुष हमारें । नव गुन परम पुनीत तुम्हारें ॥
सब कार हम तुम्ह सन हारे । छमहु िब अपराध हमारे ॥ ४ ॥

दोहरा
बार बार मुिन िब बर कहा राम सन राम ।
बोले भृगुपित सरुष हिस तहँू बंधु सम बाम ॥ २८२ ॥

िनपटिहं ि ज किर जानिह मोही । मैं जस िब सुनावउँ तोही ॥


चाप व
ु ा सर आहित
ु जानू । कोप मोर अित घोर कृ सानु ॥ १ ॥
सिमिध सेन चतुरंग सुहाई । महा महीप भए पसु आई ॥
मै एिह परसु कािट बिल दीन्हे । समर जग्य जप कोिटन्ह कीन्हे ॥ २ ॥
मोर भाउ िबिदत निहं तोरें । बोलिस िनदिर िब के भोरें ॥
भंजेउ चापु दापु बड़ बाढ़ा । अहिमित मनहँु जीित जगु ठाढ़ा ॥ ३ ॥
राम कहा मुिन कहहु िबचारी । िरस अित बिड़ लघु चूक हमारी ॥

छअतिहं ू िपनाक पुराना । मैं किह हे तु करौं अिभमाना ॥ ४ ॥
टट

दोहरा
जौं हम िनदरिहं िब बिद सत्य सुनहु भृगुनाथ ।
तौ अस को जग सुभटु जेिह भय बस नाविहं माथ ॥ २८३ ॥

दे व दनुज भूपित भट नाना । समबल अिधक होउ बलवाना ॥


जौं रन हमिह पचारै कोऊ । लरिहं सुखेन कालु िकन होऊ ॥ १ ॥
छि य तनु धिर समर सकाना । कुल कलंकु तेिहं पावँर आना ॥
कहउँ सुभाउ न कुलिह संसी । कालहु डरिहं न रन रघुबंसी ॥ २ ॥

Read Ramcharitmanas online at www.swargarohan.org


रामचिरतमानस - 142 - बालकांड

िब बंस कै अिस भुताई । अभय होइ जो तुम्हिह डे राई ॥


सुनु मृद ु गूढ़ बचन रघुपित के । उघरे पटल परसुधर मित के ॥ ३ ॥
राम रमापित कर धनु लेहू । खैंचहु िमटै मोर संदेहू ॥
दे त चापु आपुिहं चिल गयऊ । परसुराम मन िबसमय भयऊ ॥ ४ ॥

दोहरा
जाना राम भाउ तब पुलक फुिल्लत गात ।
जोिर पािन बोले बचन ह्दयँ न ेमु अमात ॥ २८४ ॥

जय रघुबंस बनज बन भानू । गहन दनुज कुल दहन कृ सानु ॥


जय सुर िब धेनु िहतकारी । जय मद मोह कोह म हारी ॥ १ ॥
िबनय सील करुना गुन सागर । जयित बचन रचना अित नागर ॥
सेवक सुखद सुभग सब अंगा । जय सरीर छिब कोिट अनंगा ॥ २ ॥
करौं काह मुख एक संसा । जय महे स मन मानस हं सा ॥
अनुिचत बहत
ु कहे उँ अग्याता । छमहु छमामंिदर दोउ ाता ॥ ३ ॥
किह जय जय जय रघुकुलकेतू । भृगुपित गए बनिह तप हे तू ॥
अपभयँ कुिटल महीप डे राने । जहँ तहँ कायर गवँिहं पराने ॥ ४ ॥

दोहरा
दे वन्ह दीन्हीं दं द
ु भीं
ु भु पर बरषिहं फूल ।
हरषे पुर नर नािर सब िमटी मोहमय सूल ॥ २८५ ॥

अित गहगहे बाजने बाजे । सबिहं मनोहर मंगल साजे ॥


जूथ जूथ िमिल सुमुख सुनयनीं । करिहं गान कल कोिकलबयनी ॥ १ ॥
सुखु िबदे ह कर बरिन न जाई । जन्मदिर मनहँु िनिध पाई ॥
गत ास भइ सीय सुखारी । जनु िबधु उदयँ चकोरकुमारी ॥ २ ॥
जनक कीन्ह कौिसकिह नामा । भु साद धनु भंजेउ रामा ॥
मोिह कृ तकृ त्य कीन्ह दहँु ु भाईं । अब जो उिचत सो किहअ गोसाई ॥३ ॥
कह मुिन सुनु नरनाथ बीना । रहा िबबाहु चाप आधीना ॥

Read Ramcharitmanas online at www.swargarohan.org


रामचिरतमानस - 143 - बालकांड


टटतहीं धनु भयउ िबबाहू । सुर नर नाग िबिदत सब काहु ॥ ४ ॥

दोहरा
तदिप जाइ तुम्ह करहु अब जथा बंस ब्यवहारु ।
बूिझ िब कुलबृ गुर बेद िबिदत आचारु ॥ २८६ ॥

दत
ू अवधपुर पठवहु जाई । आनिहं नृप दसरथिह बोलाई ॥
मुिदत राउ किह भलेिहं कृ पाला । पठए दत
ू बोिल तेिह काला ॥ १ ॥
बहिर
ु महाजन सकल बोलाए । आइ सबिन्ह सादर िसर नाए ॥
हाट बाट मंिदर सुरबासा । नगरु सँवारहु चािरहँु पासा ॥ २ ॥
हरिष चले िनज िनज गृह आए । पुिन पिरचारक बोिल पठाए ॥
रचहु िबिच िबतान बनाई । िसर धिर बचन चले सचु पाई ॥ ३ ॥
पठए बोिल गुनी ितन्ह नाना । जे िबतान िबिध कुसल सुजाना ॥
िबिधिह बंिद ितन्ह कीन्ह अरं भा । िबरचे कनक कदिल के खंभा ॥ ४ ॥

दोहरा
हिरत मिनन्ह के प फल पदमराग
ु के फूल ।
रचना दे िख िबिच अित मनु िबरं िच कर भूल ॥ २८७ ॥

बेिन हिरत मिनमय सब कीन्हे । सरल सपरब परिहं निहं चीन्हे ॥


कनक किलत अिहबेल बनाई । लिख निह परइ सपरन सुहाई ॥ १ ॥
तेिह के रिच पिच बंध बनाए । िबच िबच मुकता दाम सुहाए ॥
मािनक मरकत कुिलस िपरोजा । चीिर कोिर पिच रचे सरोजा ॥ २ ॥
िकए भृग
ं बहरंु ग िबहं गा । गुंजिहं कूजिहं पवन संगा ॥
सुर ितमा खंभन गढ़ी काढ़ी । मंगल ब्य िलएँ सब ठाढ़ी ॥ ३ ॥
चौंकें भाँित अनेक पुराईं । िसंधरु मिनमय सहज सुहाई ॥ ४ ॥

दोहरा
सौरभ पल्लव सुभग सुिठ िकए नीलमिन कोिर ॥
हे म बौर मरकत घविर लसत पाटमय डोिर ॥ २८८ ॥

Read Ramcharitmanas online at www.swargarohan.org


रामचिरतमानस - 144 - बालकांड

रचे रुिचर बर बंदिनबारे । मनहँु मनोभवँ फंद सँवारे ॥


मंगल कलस अनेक बनाए । ध्वज पताक पट चमर सुहाए ॥ १ ॥
दीप मनोहर मिनमय नाना । जाइ न बरिन िबिच िबताना ॥
जेिहं मंडप दलिहिन
ु बैदेही । सो बरनै अिस मित किब केही ॥ २ ॥
दलह
ू ु रामु रूप गुन सागर । सो िबतानु ितहँु लोक उजागर ॥
जनक भवन कै सौभा जैसी । गृह गृह ित पुर दे िखअ तैसी ॥ ३ ॥
जेिहं तेरहित
ु तेिह समय िनहारी । तेिह लघु लगिहं भुवन दस चारी ॥
जो संपदा नीच गृह सोहा । सो िबलोिक सुरनायक मोहा ॥ ४ ॥

दोहरा
बसइ नगर जेिह लच्छ किर कपट नािर बर बेषु ॥
तेिह पुर कै सोभा कहत सकुचिहं सारद सेषु ॥ २८९ ॥

पहँु चे दत
ू राम पुर पावन । हरषे नगर िबलोिक सुहावन ॥
भूप ार ितन्ह खबिर जनाई । दसरथ नृप सुिन िलए बोलाई ॥ १ ॥
किर नामु ितन्ह पाती दीन्ही । मुिदत महीप आपु उिठ लीन्ही ॥
बािर िबलोचन बाचत पाँती । पुलक गात आई भिर छाती ॥ २ ॥
रामु लखनु उर कर बर चीठी । रिह गए कहत न खाटी मीठी ॥
पुिन धिर धीर पि का बाँची । हरषी सभा बात सुिन साँची ॥ ३ ॥
खेलत रहे तहाँ सुिध पाई । आए भरतु सिहत िहत भाई ॥
पूछत अित सनेहँ सकुचाई । तात कहाँ तें पाती आई ॥ ४ ॥

दोहरा
कुसल ानि य बंधु दोउ अहिहं कहहु केिहं दे स ।
सुिन सनेह साने बचन बाची बहिर
ु नरे स ॥ २९० ॥

सुिन पाती पुलके दोउ ाता । अिधक सनेहु समात न गाता ॥


ीित पुनीत भरत कै दे खी । सकल सभाँ सुखु लहे उ िबसेषी ॥ १ ॥
तब नृप दत
ू िनकट बैठारे । मधुर मनोहर बचन उचारे ॥

Read Ramcharitmanas online at www.swargarohan.org


रामचिरतमानस - 145 - बालकांड

भैया कहहु कुसल दोउ बारे । तुम्ह नीकें िनज नयन िनहारे ॥ २ ॥
स्यामल गौर धरें धनु भाथा । बय िकसोर कौिसक मुिन साथा ॥
पिहचानहु तुम्ह कहहु सुभाऊ । ेम िबबस पुिन पुिन कह राऊ ॥ ३ ॥
जा िदन तें मुिन गए लवाई । तब तें आजु साँिच सुिध पाई ॥
कहहु िबदे ह कवन िबिध जाने । सुिन ि य बचन दत
ू मुसकाने ॥ ४ ॥

दोहरा
सुनहु महीपित मुकुट मिन तुम्ह सम धन्य न कोउ ।
रामु लखनु िजन्ह के तनय िबस्व िबभूषन दोउ ॥ २९१ ॥

पूछन जोगु न तनय तुम्हारे । पुरुषिसंघ ितहु पुर उिजआरे ॥


िजन्ह के जस ताप कें आगे । सिस मलीन रिब सीतल लागे ॥ १ ॥
ितन्ह कहँ किहअ नाथ िकिम चीन्हे । दे िखअ रिब िक दीप कर लीन्हे ॥
सीय स्वयंबर भूप अनेका । सिमटे सुभट एक तें एका ॥ २ ॥
संभु सरासनु काहँु न टारा । हारे सकल बीर बिरआरा ॥
तीिन लोक महँ जे भटमानी । सभ कै सकित संभु धनु भानी ॥ ३ ॥
सकइ उठाइ सरासुर मेरू । सोउ िहयँ हािर गयउ किर फेरू ॥
जेिह कौतुक िसवसैलु उठावा । सोउ तेिह सभाँ पराभउ पावा ॥ ४ ॥

दोहरा
तहाँ राम रघुबंस मिन सुिनअ महा मिहपाल ।
भंजेउ चाप यास िबनु िजिम गज पंकज नाल ॥ २९२ ॥

सुिन सरोष भृगुनायकु आए । बहत


ु भाँित ितन्ह आँिख दे खाए ॥
दे िख राम बलु िनज धनु दीन्हा । किर बहु िबनय गवनु बन कीन्हा ॥१॥
राजन रामु अतुलबल जैसें । तेज िनधान लखनु पुिन तैसें ॥
कंपिह भूप िबलोकत जाकें । िजिम गज हिर िकसोर के ताकें ॥ २ ॥
दे व दे िख तव बालक दोऊ । अब न आँिख तर आवत कोऊ ॥
दत
ू बचन रचना ि य लागी । ेम ताप बीर रस पागी ॥ ३ ॥

Read Ramcharitmanas online at www.swargarohan.org


रामचिरतमानस - 146 - बालकांड

सभा समेत राउ अनुरागे । दतन्ह


ू दे न िनछाविर लागे ॥
किह अनीित ते मूदिहं काना । धरमु िबचािर सबिहं सुख माना ॥ ४ ॥

दोहरा
तब उिठ भूप बिस कहँु दीिन्ह पि का जाइ ।
कथा सुनाई गुरिह सब सादर दत
ू बोलाइ ॥ २९३ ॥

सुिन बोले गुर अित सुखु पाई । पुन्य पुरुष कहँु मिह सुख छाई ॥
िजिम सिरता सागर महँु जाहीं । ज िप तािह कामना नाहीं ॥ १ ॥
ितिम सुख संपित िबनिहं बोलाएँ । धरमसील पिहं जािहं सुभाएँ ॥
तुम्ह गुर िब धेनु सुर सेबी । तिस पुनीत कौसल्या दे बी ॥ २ ॥
सुकृती तुम्ह समान जग माहीं । भयउ न है कोउ होनेउ नाहीं ॥
तुम्ह ते अिधक पुन्य बड़ काकें । राजन राम सिरस सुत जाकें ॥ ३ ॥
बीर िबनीत धरम त धारी । गुन सागर बर बालक चारी ॥
तुम्ह कहँु सबर् काल कल्याना । सजहु बरात बजाइ िनसाना ॥ ४ ॥

दोहरा
चलहु बेिग सुिन गुर बचन भलेिहं नाथ िसरु नाइ ।
भूपित गवने भवन तब दतन्ह
ू बासु दे वाइ ॥ २९४ ॥

राजा सबु रिनवास बोलाई । जनक पि का बािच सुनाई ॥


सुिन संदेसु सकल हरषानीं । अपर कथा सब भूप बखानीं ॥ १ ॥
ेम फुिल्लत राजिहं रानी । मनहँु िसिखिन सुिन बािरद बनी ॥
मुिदत असीस दे िहं गुरु नारीं । अित आनंद मगन महतारीं ॥ २ ॥
लेिहं परस्पर अित ि य पाती । हृदयँ लगाइ जुड़ाविहं छाती ॥
राम लखन कै कीरित करनी । बारिहं बार भूपबर बरनी ॥ ३ ॥
मुिन साद ु किह ार िसधाए । रािनन्ह तब मिहदे व बोलाए ॥
िदए दान आनंद समेता । चले िब बर आिसष दे ता ॥ ४ ॥

सोरठा

Read Ramcharitmanas online at www.swargarohan.org


रामचिरतमानस - 147 - बालकांड

जाचक िलए हँ कािर दीिन्ह िनछाविर कोिट िबिध ।


िचरु जीवहँु सुत चािर च बितर् दसरत्थ के ॥ २९५ ॥

कहत चले पिहरें पट नाना । हरिष हने गहगहे िनसाना ॥


समाचार सब लोगन्ह पाए । लागे घर घर होने बधाए ॥ १ ॥
भुवन चािर दस भरा उछाहू । जनकसुता रघुबीर िबआहू ॥
सुिन सुभ कथा लोग अनुरागे । मग गृह गलीं सँवारन लागे ॥ २ ॥
ज िप अवध सदै व सुहाविन । राम पुरी मंगलमय पाविन ॥
तदिप ीित कै ीित सुहाई । मंगल रचना रची बनाई ॥ ३ ॥
ध्वज पताक पट चामर चारु । छावा परम िबिच बजारू ॥
कनक कलस तोरन मिन जाला । हरद दब
ू दिध अच्छत माला ॥ ४ ॥

दोहरा
मंगलमय िनज िनज भवन लोगन्ह रचे बनाइ ।
बीथीं सीचीं चतुरसम चौकें चारु पुराइ ॥ २९६ ॥

जहँ तहँ जूथ जूथ िमिल भािमिन । सिज नव स सकल दित


ु दािमिन ॥
िबधुबदनीं मृग सावक लोचिन । िनज सरुप रित मानु िबमोचिन ॥ १ ॥
गाविहं मंगल मंजुल बानीं । सुिनकल रव कलकंिठ लजानीं ॥
भूप भवन िकिम जाइ बखाना । िबस्व िबमोहन रचेउ िबताना ॥ २ ॥
मंगल ब्य मनोहर नाना । राजत बाजत िबपुल िनसाना ॥
कतहँु िबिरद बंदी उच्चरहीं । कतहँु बेद धुिन भूसुर करहीं ॥ ३ ॥
गाविहं सुद
ं िर मंगल गीता । लै लै नामु रामु अरु सीता ॥
बहत
ु उछाहु भवनु अित थोरा । मानहँु उमिग चला चहु ओरा ॥ ४ ॥

दोहरा
सोभा दसरथ भवन कइ को किब बरनै पार ।
जहाँ सकल सुर सीस मिन राम लीन्ह अवतार ॥ २९७ ॥

भूप भरत पुिन िलए बोलाई । हय गय स्यंदन साजहु जाई ॥

Read Ramcharitmanas online at www.swargarohan.org


रामचिरतमानस - 148 - बालकांड

चलहु बेिग रघुबीर बराता । सुनत पुलक पूरे दोउ ाता ॥ १ ॥


भरत सकल साहनी बोलाए । आयसु दीन्ह मुिदत उिठ धाए ॥
रिच रुिच जीन तुरग ितन्ह साजे । बरन बरन बर बािज िबराजे ॥ २ ॥
सुभग सकल सुिठ चंचल करनी । अय इव जरत धरत पग धरनी ॥
नाना जाित न जािहं बखाने । िनदिर पवनु जनु चहत उड़ाने ॥ ३ ॥
ितन्ह सब छयल भए असवारा । भरत सिरस बय राजकुमारा ॥
सब सुद
ं र सब भूषनधारी । कर सर चाप तून किट भारी ॥ ४ ॥

दोहरा
छरे छबीले छयल सब सूर सुजान नबीन ।
जुग पदचर असवार ित जे अिसकला बीन ॥ २९८ ॥

बाँधे िबरद बीर रन गाढ़े । िनकिस भए पुर बाहे र ठाढ़े ॥


फेरिहं चतुर तुरग गित नाना । हरषिहं सुिन सुिन पवन िनसाना ॥ १ ॥
रथ सारिथन्ह िबिच बनाए । ध्वज पताक मिन भूषन लाए ॥
चवँर चारु िकंिकन धुिन करही । भानु जान सोभा अपहरहीं ॥ २ ॥
सावँकरन अगिनत हय होते । ते ितन्ह रथन्ह सारिथन्ह जोते ॥
सुद
ं र सकल अलंकृत सोहे । िजन्हिह िबलोकत मुिन मन मोहे ॥ ३ ॥
जे जल चलिहं थलिह की नाई । टाप न बूड़ बेग अिधकाई ॥
अ स सबु साजु बनाई । रथी सारिथन्ह िलए बोलाई ॥ ४ ॥

दोहरा
चिढ़ चिढ़ रथ बाहे र नगर लागी जुरन बरात ।
होत सगुन सुन्दर सबिह जो जेिह कारज जात ॥ २९९ ॥

किलत किरबरिन्ह परीं अँबारीं । किह न जािहं जेिह भाँित सँवारीं ॥


चले म गज घंट िबराजी । मनहँु सुभग सावन घन राजी ॥ १ ॥
बाहन अपर अनेक िबधाना । िसिबका सुभग सुखासन जाना ॥
ितन्ह चिढ़ चले िब बर बृन्दा । जनु तनु धरें सकल िु त छं दा ॥ २ ॥

Read Ramcharitmanas online at www.swargarohan.org


रामचिरतमानस - 149 - बालकांड

मागध सूत बंिद गुनगायक । चले जान चिढ़ जो जेिह लायक ॥


बेसर ऊँट बृषभ बहु जाती । चले बस्तु भिर अगिनत भाँती ॥ ३ ॥
कोिटन्ह काँविर चले कहारा । िबिबध बस्तु को बरनै पारा ॥
चले सकल सेवक समुदाई । िनज िनज साजु समाजु बनाई ॥ ४ ॥

दोहरा
सब कें उर िनभर्र हरषु पूिरत पुलक सरीर ।
कबिहं दे िखबे नयन भिर रामु लखनू दोउ बीर ॥ ३०० ॥

गरजिहं गज घंटा धुिन घोरा । रथ रव बािज िहं स चहु ओरा ॥


िनदिर घनिह घुम्मर्रिहं िनसाना । िनज पराइ कछु सुिनअ न काना ॥१ ॥
महा भीर भूपित के ारें । रज होइ जाइ पषान पबारें ॥
चढ़ी अटािरन्ह दे खिहं नारीं । िलँएँ आरती मंगल थारी ॥ २ ॥
गाविहं गीत मनोहर नाना । अित आनंद ु न जाइ बखाना ॥
तब सुमं दइ
ु स्पंदन साजी । जोते रिब हय िनंदक बाजी ॥ ३ ॥
दोउ रथ रुिचर भूप पिहं आने । निहं सारद पिहं जािहं बखाने ॥
राज समाजु एक रथ साजा । दसर
ू तेज पुंज अित ाजा ॥ ४ ॥

दोहरा
तेिहं रथ रुिचर बिस कहँु हरिष चढ़ाइ नरे सु ।
आपु चढ़े उ स्पंदन सुिमिर हर गुर गौिर गनेसु ॥ ३०१ ॥

सिहत बिस सोह नृप कैसें । सुर गुर संग पुरंदर जैसें ॥
किर कुल रीित बेद िबिध राऊ । दे िख सबिह सब भाँित बनाऊ ॥ १ ॥
सुिमिर रामु गुर आयसु पाई । चले महीपित संख बजाई ॥
हरषे िबबुध िबलोिक बराता । बरषिहं सुमन सुमंगल दाता ॥ २ ॥
भयउ कोलाहल हय गय गाजे । ब्योम बरात बाजने बाजे ॥
सुर नर नािर सुमंगल गाई । सरस राग बाजिहं सहनाई ॥ ३ ॥
घंट घंिट धुिन बरिन न जाहीं । सरव करिहं पाइक फहराहीं ॥

Read Ramcharitmanas online at www.swargarohan.org


रामचिरतमानस - 150 - बालकांड

करिहं िबदषक
ू कौतुक नाना । हास कुसल कल गान सुजाना ॥ ४ ॥

दोहरा
तुरग नचाविहं कुँअर बर अकिन मृदंग िनसान ॥
नागर नट िचतविहं चिकत डगिहं न ताल बँधान ॥ ३०२ ॥

बनइ न बरनत बनी बराता । होिहं सगुन सुद


ं र सुभदाता ॥
चारा चाषु बाम िदिस लेई । मनहँु सकल मंगल किह दे ई ॥ १ ॥
दािहन काग सुखेत सुहावा । नकुल दरसु सब काहँू पावा ॥
सानुकूल बह ि िबध बयारी । सघट सवाल आव बर नारी ॥ २ ॥
लोवा िफिर िफिर दरसु दे खावा । सुरभी सनमुख िससुिह िपआवा ॥
मृगमाला िफिर दािहिन आई । मंगल गन जनु दीिन्ह दे खाई ॥ ३ ॥
छे मकरी कह छे म िबसेषी । स्यामा बाम सुतरु पर दे खी ॥
सनमुख आयउ दिध अरु मीना । कर पुस्तक दइु िब बीना ॥ ४ ॥

दोहरा
मंगलमय कल्यानमय अिभमत फल दातार ।
जनु सब साचे होन िहत भए सगुन एक बार ॥ ३०३ ॥

मंगल सगुन सुगम सब ताकें । सगुन सुंदर सुत जाकें ॥


राम सिरस बरु दलिहिन
ु सीता । समधी दसरथु जनकु पुनीता ॥ १ ॥
सुिन अस ब्याहु सगुन सब नाचे । अब कीन्हे िबरं िच हम साँचे ॥
एिह िबिध कीन्ह बरात पयाना । हय गय गाजिहं हने िनसाना ॥ २ ॥
आवत जािन भानुकुल केतू । सिरतिन्ह जनक बँधाए सेतू ॥
बीच बीच बर बास बनाए । सुरपुर सिरस संपदा छाए ॥ ३ ॥
असन सयन बर बसन सुहाए । पाविहं सब िनज िनज मन भाए ॥
िनत नूतन सुख लिख अनुकूले । सकल बराितन्ह मंिदर भूले ॥ ४ ॥

दोहरा

Read Ramcharitmanas online at www.swargarohan.org


रामचिरतमानस - 151 - बालकांड

आवत जािन बरात बर सुिन गहगहे िनसान ।


सिज गज रथ पदचर तुरग लेन चले अगवान ॥ ३०४ ॥

मासपारायण दसवाँ िव ाम

कनक कलस भिर कोपर थारा । भाजन लिलत अनेक कारा ॥


भरे सुधासम सब पकवाने । नाना भाँित न जािहं बखाने ॥ १ ॥
फल अनेक बर बस्तु सुहाईं । हरिष भेंट िहत भूप पठाईं ॥
भूषन बसन महामिन नाना । खग मृग हय गय बहिबिध
ु जाना ॥ २ ॥
मंगल सगुन सुगंध सुहाए । बहत
ु भाँित मिहपाल पठाए ॥
दिध िचउरा उपहार अपारा । भिर भिर काँविर चले कहारा ॥ ३ ॥
अगवानन्ह जब दीिख बराता ।उर आनंद ु पुलक भर गाता ॥
दे िख बनाव सिहत अगवाना । मुिदत बराितन्ह हने िनसाना ॥ ४ ॥

दोहरा
हरिष परसपर िमलन िहत ु
कछक चले बगमेल ।
जनु आनंद समु दइ
ु िमलत िबहाइ सुबेल ॥ ३०५ ॥

बरिष सुमन सुर सुद


ं िर गाविहं । मुिदत दे व दं द
ु भीं
ु बजाविहं ॥
बस्तु सकल राखीं नृप आगें । िबनय कीन्ह ितन्ह अित अनुरागें ॥ १ ॥
ेम समेत रायँ सबु लीन्हा । भै बकसीस जाचकिन्ह दीन्हा ॥
किर पूजा मान्यता बड़ाई । जनवासे कहँु चले लवाई ॥ २ ॥
बसन िबिच पाँवड़े परहीं । दे िख धनहु धन मद ु पिरहरहीं ॥
अित सुंदर दीन्हे उ जनवासा । जहँ सब कहँु सब भाँित सुपासा ॥ ३ ॥
जानी िसयँ बरात पुर आई । कछु िनज मिहमा गिट जनाई ॥
हृदयँ सुिमिर सब िसि बोलाई । भूप पहनई
ु करन पठाई ॥ ४ ॥

दोहरा
िसिध सब िसय आयसु अकिन गईं जहाँ जनवास ।
िलएँ संपदा सकल सुख सुरपुर भोग िबलास ॥ ३०६ ॥

Read Ramcharitmanas online at www.swargarohan.org


रामचिरतमानस - 152 - बालकांड

िनज िनज बास िबलोिक बराती । सुर सुख सकल सुलभ सब भाँती ॥
िबभव भेद कछु कोउ न जाना । सकल जनक कर करिहं बखाना ॥ १ ॥
िसय मिहमा रघुनायक जानी । हरषे हृदयँ हे तु पिहचानी ॥
िपतु आगमनु सुनत दोउ भाई । हृदयँ न अित आनंद ु अमाई ॥ २ ॥
सकुचन्ह किह न सकत गुरु पाहीं । िपतु दरसन लालचु मन माहीं ॥
िबस्वािम िबनय बिड़ दे खी । उपजा उर संतोषु िबसेषी ॥ ३ ॥
हरिष बंधु दोउ हृदयँ लगाए । पुलक अंग अंबक जल छाए ॥
चले जहाँ दसरथु जनवासे । मनहँु सरोबर तकेउ िपआसे ॥ ४ ॥

दोहरा
भूप िबलोके जबिहं मुिन आवत सुतन्ह समेत ।
उठे हरिष सुखिसंधु महँु चले थाह सी लेत ॥ ३०७ ॥

मुिनिह दं डवत कीन्ह महीसा । बार बार पद रज धिर सीसा ॥


कौिसक राउ िलये उर लाई । किह असीस पूछी कुसलाई ॥ १ ॥
पुिन दं डवत करत दोउ भाई । दे िख नृपित उर सुखु न समाई ॥
सुत िहयँ लाइ दसह
ु दख
ु मेटे । मृतक सरीर ान जनु भेंटे ॥ २ ॥
पुिन बिस पद िसर ितन्ह नाए । ेम मुिदत मुिनबर उर लाए ॥
िब बृंद बंदे दहँु ु भाईं । मन भावती असीसें पाईं ॥ ३ ॥
भरत सहानुज कीन्ह नामा । िलए उठाइ लाइ उर रामा ॥
हरषे लखन दे िख दोउ ाता । िमले ेम पिरपूिरत गाता ॥ ४ ॥

दोहरा
पुरजन पिरजन जाितजन जाचक मं ी मीत ।
िमले जथािबिध सबिह भु परम कृ पाल िबनीत ॥ ३०८ ॥

रामिह दे िख बरात जुड़ानी । ीित िक रीित न जाित बखानी ॥


नृप समीप सोहिहं सुत चारी । जनु धन धरमािदक तनुधारी ॥ १ ॥
सुतन्ह समेत दसरथिह दे खी । मुिदत नगर नर नािर िबसेषी ॥

Read Ramcharitmanas online at www.swargarohan.org


रामचिरतमानस - 153 - बालकांड

सुमन बिरिस सुर हनिहं िनसाना । नाकनटीं नाचिहं किर गाना ॥ २ ॥


सतानंद अरु िब सिचव गन । मागध सूत िबदष
ु बंदीजन ॥
सिहत बरात राउ सनमाना । आयसु मािग िफरे अगवाना ॥ ३ ॥
थम बरात लगन तें आई । तातें पुर मोद ु अिधकाई ॥
ानंद ु लोग सब लहहीं । बढ़हँु िदवस िनिस िबिध सन कहहीं ॥ ४ ॥

दोहरा
रामु सीय सोभा अविध सुकृत अविध दोउ राज ।
जहँ जहँ पुरजन कहिहं अस िमिल नर नािर समाज ॥ ३०९ ॥

जनक सुकृत मूरित बैदेही । दसरथ सुकृत रामु धरें दे ही ॥


इन्ह सम काँहु न िसव अवराधे । कािहँ न इन्ह समान फल लाधे ॥ १ ॥
इन्ह सम कोउ न भयउ जग माहीं । है निहं कतहँू होनेउ नाहीं ॥
हम सब सकल सुकृत कै रासी । भए जग जनिम जनकपुर बासी ॥ २ ॥
िजन्ह जानकी राम छिब दे खी । को सुकृती हम सिरस िबसेषी ॥
पुिन दे खब रघुबीर िबआहू । लेब भली िबिध लोचन लाहू ॥ ३ ॥
कहिहं परसपर कोिकलबयनीं । एिह िबआहँ बड़ लाभु सुनयनीं ॥
बड़ें भाग िबिध बात बनाई । नयन अितिथ होइहिहं दोउ भाई ॥ ४ ॥

दोहरा
बारिहं बार सनेह बस जनक बोलाउब सीय ।
लेन आइहिहं बंधु दोउ कोिट काम कमनीय ॥ ३१० ॥

िबिबध भाँित होइिह पहनाई


ु । ि य न कािह अस सासुर माई ॥
तब तब राम लखनिह िनहारी । होइहिहं सब पुर लोग सुखारी ॥ १ ॥
सिख जस राम लखनकर जोटा । तैसेइ भूप संग दइ
ु ढोटा ॥
स्याम गौर सब अंग सुहाए । ते सब कहिहं दे िख जे आए ॥ २ ॥
कहा एक मैं आजु िनहारे । जनु िबरं िच िनज हाथ सँवारे ॥
भरतु रामही की अनुहारी । सहसा लिख न सकिहं नर नारी ॥ ३ ॥

Read Ramcharitmanas online at www.swargarohan.org


रामचिरतमानस - 154 - बालकांड

लखनु स ुसूदनु एकरूपा । नख िसख ते सब अंग अनूपा ॥


मन भाविहं मुख बरिन न जाहीं । उपमा कहँु ि भुवन कोउ नाहीं ॥ ४ ॥

छं द
उपमा न कोउ कह दास तुलसी कतहँु किब कोिबद कहैं ।
बल िबनय िब ा सील सोभा िसंधु इन्ह से एइ अहैं ॥
पुर नािर सकल पसािर अंचल िबिधिह बचन सुनावहीं ॥
ब्यािहअहँु चािरउ भाइ एिहं पुर हम सुमग
ं ल गावहीं ॥

सोरठा
कहिहं परस्पर नािर बािर िबलोचन पुलक तन ।
सिख सबु करब पुरािर पुन्य पयोिनिध भूप दोउ ॥ ३११ ॥

एिह िबिध सकल मनोरथ करहीं । आनँद उमिग उमिग उर भरहीं ॥


जे नृप सीय स्वयंबर आए । दे िख बंधु सब ितन्ह सुख पाए ॥ १ ॥
कहत राम जसु िबसद िबसाला । िनज िनज भवन गए मिहपाला ॥
गए बीित कुछ िदन एिह भाँती । मुिदत पुरजन सकल बराती ॥ २ ॥
मंगल मूल लगन िदनु आवा । िहम िरतु अगहनु मासु सुहावा ॥
ह ितिथ नखतु जोगु बर बारू । लगन सोिध िबिध कीन्ह िबचारू ॥ ३ ॥
पठै दीिन्ह नारद सन सोई । गनी जनक के गनकन्ह जोई ॥
सुनी सकल लोगन्ह यह बाता । कहिहं जोितषी आिहं िबधाता ॥ ४ ॥

दोहरा
धेनुधूिर बेला िबमल सकल सुमंगल मूल ।
िब न्ह कहे उ िबदे ह सन जािन सगुन अनुकुल ॥ ३१२ ॥

उपरोिहतिह कहे उ नरनाहा । अब िबलंब कर कारनु काहा ॥


सतानंद तब सिचव बोलाए । मंगल सकल सािज सब ल्याए ॥ १ ॥
संख िनसान पनव बहु बाजे । मंगल कलस सगुन सुभ साजे ॥
सुभग सुआिसिन गाविहं गीता । करिहं बेद धुिन िब पुनीता ॥ २ ॥

Read Ramcharitmanas online at www.swargarohan.org


रामचिरतमानस - 155 - बालकांड

लेन चले सादर एिह भाँती । गए जहाँ जनवास बराती ॥


कोसलपित कर दे िख समाजू । अित लघु लाग ितन्हिह सुरराजू ॥ ३ ॥
भयउ समउ अब धािरअ पाऊ । यह सुिन परा िनसानिहं घाऊ ॥
गुरिह पूिछ किर कुल िबिध राजा । चले संग मुिन साधु समाजा ॥ ४ ॥

दोहरा
भाग्य िबभव अवधेस कर दे िख दे व ािद ।
लगे सराहन सहस मुख जािन जनम िनज बािद ॥ ३१३ ॥

सुरन्ह सुमग
ं ल अवसरु जाना । बरषिहं सुमन बजाइ िनसाना ॥
िसव ािदक िबबुध बरूथा । चढ़े िबमानिन्ह नाना जूथा ॥ १ ॥
ेम पुलक तन हृदयँ उछाहू । चले िबलोकन राम िबआहू ॥
दे िख जनकपुरु सुर अनुरागे । िनज िनज लोक सबिहं लघु लागे ॥ २ ॥
िचतविहं चिकत िबिच िबताना । रचना सकल अलौिकक नाना ॥
नगर नािर नर रूप िनधाना । सुघर सुधरम सुसील सुजाना ॥ ३ ॥
ितन्हिह दे िख सब सुर सुरनारीं । भए नखत जनु िबधु उिजआरीं ॥
िबिधिह भयह आचरजु िबसेषी । िनज करनी कछु कतहँु न दे खी ॥ ४ ॥

दोहरा
िसवँ समुझाए दे व सब जिन आचरज भुलाहु ।
हृदयँ िबचारहु धीर धिर िसय रघुबीर िबआहु ॥ ३१४ ॥

िजन्ह कर नामु लेत जग माहीं । सकल अमंगल मूल नसाहीं ॥


करतल होिहं पदारथ चारी । तेइ िसय रामु कहे उ कामारी ॥ १ ॥
एिह िबिध संभु सुरन्ह समुझावा । पुिन आगें बर बसह चलावा ॥
दे वन्ह दे खे दसरथु जाता । महामोद मन पुलिकत गाता ॥ २ ॥
साधु समाज संग मिहदे वा । जनु तनु धरें करिहं सुख सेवा ॥
सोहत साथ सुभग सुत चारी । जनु अपबरग सकल तनुधारी ॥ ३ ॥
मरकत कनक बरन बर जोरी । दे िख सुरन्ह भै ीित न थोरी ॥

Read Ramcharitmanas online at www.swargarohan.org


रामचिरतमानस - 156 - बालकांड

पुिन रामिह िबलोिक िहयँ हरषे । नृपिह सरािह सुमन ितन्ह बरषे ॥ ४ ॥

दोहरा
राम रूपु नख िसख सुभग बारिहं बार िनहािर ।
पुलक गात लोचन सजल उमा समेत पुरािर ॥ ३१५ ॥

केिक कंठ दित


ु स्यामल अंगा । तिड़त िबिनंदक बसन सुरंगा ॥
ब्याह िबभूषन िबिबध बनाए । मंगल सब सब भाँित सुहाए ॥ १ ॥
सरद िबमल िबधु बदनु सुहावन । नयन नवल राजीव लजावन ॥
सकल अलौिकक सुद
ं रताई । किह न जाइ मनहीं मन भाई ॥ २ ॥
बंधु मनोहर सोहिहं संगा । जात नचावत चपल तुरंगा ॥
राजकुअँर बर बािज दे खाविहं । बंस संसक िबिरद सुनाविहं ॥ ३ ॥
जेिह तुरंग पर रामु िबराजे । गित िबलोिक खगनायकु लाजे ॥
किह न जाइ सब भाँित सुहावा । बािज बेषु जनु काम बनावा ॥ ४ ॥

छं द
जनु बािज बेषु बनाइ मनिसजु राम िहत अित सोहई ।
आपनें बय बल रूप गुन गित सकल भुवन िबमोहई ॥
जगमगत जीनु जराव जोित सुमोित मिन मािनक लगे ।
िकंिकिन ललाम लगामु लिलत िबलोिक सुर नर मुिन ठगे ॥

दोहरा
भु मनसिहं लयलीन मनु चलत बािज छिब पाव ।
भूिषत उड़गन तिड़त घनु जनु बर बरिह नचाव ॥ ३१६ ॥

जेिहं बर बािज रामु असवारा । तेिह सारदउ न बरनै पारा ॥


संकरु राम रूप अनुरागे । नयन पंचदस अित ि य लागे ॥ १ ॥
हिर िहत सिहत रामु जब जोहे । रमा समेत रमापित मोहे ॥
िनरिख राम छिब िबिध हरषाने । आठइ नयन जािन पिछताने ॥ २ ॥
सुर सेनप उर बहत
ु उछाहू । िबिध ते डे वढ़ लोचन लाहू ॥

Read Ramcharitmanas online at www.swargarohan.org


रामचिरतमानस - 157 - बालकांड

रामिह िचतव सुरेस सुजाना । गौतम ापु परम िहत माना ॥ ३ ॥


दे व सकल सुरपितिह िसहाहीं । आजु पुरंदर सम कोउ नाहीं ॥
मुिदत दे वगन रामिह दे खी । नृपसमाज दहँु ु हरषु िबसेषी ॥ ४ ॥

छं द
अित हरषु राजसमाज दह
ु ु िदिस दं द
ु भीं
ु बाजिहं घनी ।
बरषिहं सुमन सुर हरिष किह जय जयित जय रघुकुलमनी ॥
एिह भाँित जािन बरात आवत बाजने बहु बाजहीं ।
रािन सुआिसिन बोिल पिरछिन हे तु मंगल साजहीं ॥

दोहरा
सिज आरती अनेक िबिध मंगल सकल सँवािर ।
चलीं मुिदत पिरछिन करन गजगािमिन बर नािर ॥ ३१७ ॥

िबधुबदनीं सब सब मृगलोचिन । सब िनज तन छिब रित मद ु मोचिन ॥


पिहरें बरन बरन बर चीरा । सकल िबभूषन सजें सरीरा ॥ १ ॥
सकल सुमग
ं ल अंग बनाएँ । करिहं गान कलकंिठ लजाएँ ॥
कंकन िकंिकिन नूपुर बाजिहं । चािल िबलोिक काम गज लाजिहं ॥ २ ॥
बाजिहं बाजने िबिबध कारा । नभ अरु नगर सुमंगलचारा ॥
सची सारदा रमा भवानी । जे सुरितय सुिच सहज सयानी ॥ ३ ॥
कपट नािर बर बेष बनाई । िमलीं सकल रिनवासिहं जाई ॥
करिहं गान कल मंगल बानीं । हरष िबबस सब काहँु न जानी ॥ ४ ॥

छं द
को जान केिह आनंद बस सब ु बर पिरछन चली ।
कल गान मधुर िनसान बरषिहं सुमन सुर सोभा भली ॥
आनंदकंद ु िबलोिक दलह
ू ु सकल िहयँ हरिषत भई ॥
अंभोज अंबक अंबु उमिग सुअंग पुलकाविल छई ॥

दोहरा

Read Ramcharitmanas online at www.swargarohan.org


रामचिरतमानस - 158 - बालकांड

जो सुख भा िसय मातु मन दे िख राम बर बेषु ।


सो न सकिहं किह कलप सत सहस सारदा सेषु ॥ ३१८ ॥

नयन नीरु हिट मंगल जानी । पिरछिन करिहं मुिदत मन रानी ॥


बेद िबिहत अरु कुल आचारू । कीन्ह भली िबिध सब ब्यवहारू ॥ १ ॥
पंच सबद धुिन मंगल गाना । पट पाँवड़े परिहं िबिध नाना ॥
किर आरती अरघु ितन्ह दीन्हा । राम गमनु मंडप तब कीन्हा ॥ २ ॥
दसरथु सिहत समाज िबराजे । िबभव िबलोिक लोकपित लाजे ॥
समयँ समयँ सुर बरषिहं फूला । सांित पढ़िहं मिहसुर अनुकूला ॥ ३ ॥
नभ अरु नगर कोलाहल होई । आपिन पर कछु सुनइ न कोई ॥
एिह िबिध रामु मंडपिहं आए । अरघु दे इ आसन बैठाए ॥ ४ ॥

छं द
बैठािर आसन आरती किर िनरिख बरु सुखु पावहीं ॥
मिन बसन भूषन भूिर वारिहं नािर मंगल गावहीं ॥
ािद सुरबर िब बेष बनाइ कौतुक दे खहीं ।
अवलोिक रघुकुल कमल रिब छिब सुफल जीवन लेखहीं ॥

दोहरा
नाऊ बारी भाट नट राम िनछाविर पाइ ।
मुिदत असीसिहं नाइ िसर हरषु न हृदयँ समाइ ॥ ३१९ ॥

िमले जनकु दसरथु अित ीतीं । किर बैिदक लौिकक सब रीतीं ॥


िमलत महा दोउ राज िबराजे । उपमा खोिज खोिज किब लाजे ॥ १ ॥
लही न कतहँु हािर िहयँ मानी । इन्ह सम एइ उपमा उर आनी ॥
सामध दे िख दे व अनुरागे । सुमन बरिष जसु गावन लागे ॥ २ ॥
जगु िबरं िच उपजावा जब तें । दे खे सुने ब्याह बहु तब तें ॥
सकल भाँित सम साजु समाजू । सम समधी दे खे हम आजू ॥ ३ ॥
दे व िगरा सुिन सुंदर साँची । ीित अलौिकक दहु ु िदिस माची ॥

Read Ramcharitmanas online at www.swargarohan.org


रामचिरतमानस - 159 - बालकांड

दे त पाँवड़े अरघु सुहाए । सादर जनकु मंडपिहं ल्याए ॥ ४ ॥

छं द
मंडपु िबलोिक िबची रचनाँ रुिचरताँ मुिन मन हरे ॥
िनज पािन जनक सुजान सब कहँु आिन िसंघासन धरे ॥
कुल इ सिरस बिस पूजे िबनय किर आिसष लही ।
कौिसकिह पूजत परम ीित िक रीित तौ न परै कही ॥

दोहरा
बामदे व आिदक िरषय पूजे मुिदत महीस ।
िदए िदब्य आसन सबिह सब सन लही असीस ॥ ३२० ॥

बहिर
ु कीन्ह कोसलपित पूजा । जािन ईस सम भाउ न दजा
ू ॥
कीन्ह जोिर कर िबनय बड़ाई । किह िनज भाग्य िबभव बहताई
ु ॥ १ ॥
पूजे भूपित सकल बराती । समिध सम सादर सब भाँती ॥
आसन उिचत िदए सब काहू । कहौं काह मूख एक उछाहू ॥ २ ॥
सकल बरात जनक सनमानी । दान मान िबनती बर बानी ॥
िबिध हिर हरु िदिसपित िदनराऊ । जे जानिहं रघुबीर भाऊ ॥ ३ ॥
कपट िब बर बेष बनाएँ । कौतुक दे खिहं अित सचु पाएँ ॥
पूजे जनक दे व सम जानें । िदए सुआसन िबनु पिहचानें ॥ ४ ॥

छं द
पिहचान को केिह जान सबिहं अपान सुिध भोरी भई ।
आनंद कंद ु िबलोिक दलह
ू ु उभय िदिस आनँद मई ॥
सुर लखे राम सुजान पूजे मानिसक आसन दए ।
अवलोिक सीलु सुभाउ भु को िबबुध मन मुिदत भए ॥

दोहरा
रामचं मुख चं छिब लोचन चारु चकोर ।
करत पान सादर सकल ेमु मोद ु न थोर ॥ ३२१ ॥

Read Ramcharitmanas online at www.swargarohan.org


रामचिरतमानस - 160 - बालकांड

समउ िबलोिक बिस बोलाए । सादर सतानंद ु सुिन आए ॥


बेिग कुअँिर अब आनहु जाई । चले मुिदत मुिन आयसु पाई ॥ १ ॥
रानी सुिन उपरोिहत बानी । मुिदत सिखन्ह समेत सयानी ॥
िब बधू कुलबृ बोलाईं । किर कुल रीित सुमंगल गाईं ॥ २ ॥
नािर बेष जे सुर बर बामा । सकल सुभायँ सुद
ं री स्यामा ॥
ितन्हिह दे िख सुखु पाविहं नारीं । िबनु पिहचािन ानहु ते प्यारीं ॥ ३ ॥
बार बार सनमानिहं रानी । उमा रमा सारद सम जानी ॥
सीय सँवािर समाजु बनाई । मुिदत मंडपिहं चलीं लवाई ॥ ४ ॥

छं द
चिल ल्याइ सीतिह सखीं सादर सिज सुमंगल भािमनीं ।
नवस साजें सुंदरी सब म कुंजर गािमनीं ॥
कल गान सुिन मुिन ध्यान त्यागिहं काम कोिकल लाजहीं ।
मंजीर नूपुर किलत कंकन ताल गती बर बाजहीं ॥

दोहरा
सोहित बिनता बृंद महँु सहज सुहाविन सीय ।
छिब ललना गन मध्य जनु सुषमा ितय कमनीय ॥ ३२२ ॥

िसय सुंदरता बरिन न जाई । लघु मित बहत


ु मनोहरताई ॥
आवत दीिख बराितन्ह सीता ॥ रूप रािस सब भाँित पुनीता ॥ १ ॥
सबिह मनिहं मन िकए नामा । दे िख राम भए पूरनकामा ॥
हरषे दसरथ सुतन्ह समेता । किह न जाइ उर आनँद ु जेता ॥ २ ॥
सुर नामु किर बरसिहं फूला । मुिन असीस धुिन मंगल मूला ॥
गान िनसान कोलाहलु भारी । ेम मोद मगन नर नारी ॥ ३ ॥
एिह िबिध सीय मंडपिहं आई । मुिदत सांित पढ़िहं मुिनराई ॥
तेिह अवसर कर िबिध ब्यवहारू । दहँु ु कुलगुर सब कीन्ह अचारू ॥ ४ ॥

छं द

Read Ramcharitmanas online at www.swargarohan.org


रामचिरतमानस - 161 - बालकांड

आचारु किर गुर गौिर गनपित मुिदत िब पुजावहीं ।


सुर गिट पूजा लेिहं दे िहं असीस अित सुखु पावहीं ॥
मधुपकर् मंगल ब्य जो जेिह समय मुिन मन महँु चहैं ।
भरे कनक कोपर कलस सो सब िलएिहं पिरचारक रहैं ॥ १ ॥

कुल रीित ीित समेत रिब किह दे त सबु सादर िकयो ।


एिह भाँित दे व पुजाइ सीतिह सुभग िसंघासनु िदयो ॥
िसय राम अवलोकिन परसपर ेम काहु न लिख परै ॥
मन बुि बर बानी अगोचर गट किब कैसें करै ॥ २ ॥

दोहरा
होम समय तनु धिर अनलु अित सुख आहित
ु लेिहं ।
िब बेष धिर बेद सब किह िबबाह िबिध दे िहं ॥ ३२३ ॥

जनक पाटमिहषी जग जानी । सीय मातु िकिम जाइ बखानी ॥


सुजसु सुकृत सुख सुदंरताई । सब समेिट िबिध रची बनाई ॥ १ ॥
समउ जािन मुिनबरन्ह बोलाई । सुनत सुआिसिन सादर ल्याई ॥
जनक बाम िदिस सोह सुनयना । िहमिगिर संग बिन जनु मयना ॥ २ ॥
कनक कलस मिन कोपर रूरे । सुिच सुंगध मंगल जल पूरे ॥
िनज कर मुिदत रायँ अरु रानी । धरे राम के आगें आनी ॥ ३ ॥
पढ़िहं बेद मुिन मंगल बानी । गगन सुमन झिर अवसरु जानी ॥
बरु िबलोिक दं पित अनुरागे । पाय पुनीत पखारन लागे ॥ ४ ॥

छं द
लागे पखारन पाय पंकज ेम तन पुलकावली ।
नभ नगर गान िनसान जय धुिन उमिग जनु चहँु िदिस चली ॥
जे पद सरोज मनोज अिर उर सर सदै व िबराजहीं ।
जे सकृ त सुिमरत िबमलता मन सकल किल मल भाजहीं ॥ १ ॥

जे परिस मुिनबिनता लही गित रही जो पातकमई ।

Read Ramcharitmanas online at www.swargarohan.org


रामचिरतमानस - 162 - बालकांड

मकरं द ु िजन्ह को संभु िसर सुिचता अविध सुर बरनई ॥


किर मधुप मन मुिन जोिगजन जे सेइ अिभमत गित लहैं ।
ते पद पखारत भाग्यभाजनु जनकु जय जय सब कहै ॥ २ ॥

बर कुअँिर करतल जोिर साखोचारु दोउ कुलगुर करैं ।


भयो पािनगहनु िबलोिक िबिध सुर मनुज मुिन आँनद भरैं ॥
सुखमूल दलह
ू ु दे िख दं पित पुलक तन हलस्यो
ु िहयो ।
किर लोक बेद िबधानु कन्यादानु नृपभूषन िकयो ॥ ३ ॥

िहमवंत िजिम िगिरजा महे सिह हिरिह ी सागर दई ।


ितिम जनक रामिह िसय समरपी िबस्व कल कीरित नई ॥
क्यों करै िबनय िबदे हु िकयो िबदे हु मूरित सावँरी ।
किर होम िबिधवत गाँिठ जोरी होन लागी भावँरी ॥ ४ ॥

दोहरा
जय धुिन बंदी बेद धुिन मंगल गान िनसान ।
सुिन हरषिहं बरषिहं िबबुध सुरतरु सुमन सुजान ॥ ३२४ ॥

कुअँरु कुअँिर कल भावँिर दे हीं ॥ नयन लाभु सब सादर लेहीं ॥


जाइ न बरिन मनोहर जोरी । जो उपमा कछु कहौं सो थोरी ॥ १ ॥
राम सीय सुंदर ितछाहीं । जगमगात मिन खंभन माहीं ।
मनहँु मदन रित धिर बहु रूपा । दे खत राम िबआहु अनूपा ॥ २ ॥
दरस लालसा सकुच न थोरी । गटत दरत
ु बहोिर बहोरी ॥
भए मगन सब दे खिनहारे । जनक समान अपान िबसारे ॥ ३ ॥
मुिदत मुिनन्ह भावँरी फेरी । नेगसिहत सब रीित िनबेरीं ॥
राम सीय िसर सेंदरु दे हीं । सोभा किह न जाित िबिध केहीं ॥ ४ ॥
अरुन पराग जलजु भिर नीकें । सिसिह भूष अिह लोभ अमी कें ॥
बहिर
ु बिस दीन्ह अनुसासन । बरु दलिहिन
ु बैठे एक आसन ॥ ५ ॥

छं द

Read Ramcharitmanas online at www.swargarohan.org


रामचिरतमानस - 163 - बालकांड

बैठे बरासन रामु जानिक मुिदत मन दसरथु भए ।


तनु पुलक पुिन पुिन दे िख अपनें सुकृत सुरतरु फल नए ॥
भिर भुवन रहा उछाहु राम िबबाहु भा सबहीं कहा ।
केिह भाँित बरिन िसरात रसना एक यहु मंगलु महा ॥ १ ॥

तब जनक पाइ बिस आयसु ब्याह साज सँवािर कै ।


माँडवी िु तकीरित उरिमला कुअँिर लईं हँ कािर के ॥
कुसकेतु कन्या थम जो गुन सील सुख सोभामई ।
सब रीित ीित समेत किर सो ब्यािह नृप भरतिह दई ॥ २ ॥

जानकी लघु भिगनी सकल सुंदिर िसरोमिन जािन कै ।


सो तनय दीन्ही ब्यािह लखनिह सकल िबिध सनमािन कै ॥
जेिह नामु त
ु कीरित सुलोचिन सुमिु ख सब गुन आगरी ।
सो दई िरपुसूदनिह भूपित रूप सील उजागरी ॥ ३ ॥

अनुरुप बर दलिहिन
ु परस्पर लिख सकुच िहयँ हरषहीं ।
सब मुिदत सुंदरता सराहिहं सुमन सुर गन बरषहीं ॥
सुद
ं री सुंदर बरन्ह सह सब एक मंडप राजहीं ।
जनु जीव उर चािरउ अवस्था िबमुन सिहत िबराजहीं ॥ ४ ॥

दोहरा
मुिदत अवधपित सकल सुत बधुन्ह समेत िनहािर ।
जनु पार मिहपाल मिन ि यन्ह सिहत फल चािर ॥ ३२५ ॥

जिस रघुबीर ब्याह िबिध बरनी । सकल कुअँर ब्याहे तेिहं करनी ॥
किह न जाइ कछु दाइज भूरी । रहा कनक मिन मंडपु पूरी ॥ १ ॥
कंबल बसन िबिच पटोरे । भाँित भाँित बहु मोल न थोरे ॥
गज रथ तुरग दास अरु दासी । धेनु अलंकृत कामदहा
ु सी ॥ २ ॥
बस्तु अनेक किरअ िकिम लेखा । किह न जाइ जानिहं िजन्ह दे खा ॥
लोकपाल अवलोिक िसहाने । लीन्ह अवधपित सबु सुखु माने ॥ ३ ॥

Read Ramcharitmanas online at www.swargarohan.org


रामचिरतमानस - 164 - बालकांड

दीन्ह जाचकिन्ह जो जेिह भावा । उबरा सो जनवासेिहं आवा ॥


तब कर जोिर जनकु मृद ु बानी । बोले सब बरात सनमानी ॥ ४ ॥

छं द
सनमािन सकल बरात आदर दान िबनय बड़ाइ कै ।
मुिदत महा मुिन बृंद बंदे पूिज ेम लड़ाइ कै ॥
िसरु नाइ दे व मनाइ सब सन कहत कर संपुट िकएँ ।
सुर साधु चाहत भाउ िसंधु िक तोष जल अंजिल िदएँ ॥ १ ॥

कर जोिर जनकु बहोिर बंधु समेत कोसलराय सों ।


बोले मनोहर बयन सािन सनेह सील सुभाय सों ॥
संबंध राजन रावरें हम बड़े अब सब िबिध भए ।
एिह राज साज समेत सेवक जािनबे िबनु गथ लए ॥ २ ॥

ए दािरका पिरचािरका किर पािलबीं करुना नई ।


अपराधु छिमबो बोिल पठए बहत
ु हौं ढीट्यो कई ॥
पुिन भानुकुलभूषन सकल सनमान िनिध समधी िकए ।
किह जाित निहं िबनती परस्पर ेम पिरपूरन िहए ॥ ३ ॥

बृंदारका गन सुमन बिरसिहं राउ जनवासेिह चले ।


दं द
ु भी
ु जय धुिन बेद धुिन नभ नगर कौतूहल भले ॥
तब सखीं मंगल गान करत मुनीस आयसु पाइ कै ।
दलह
ू दलिहिनन्ह
ु सिहत सुद
ं िर चलीं कोहबर ल्याइ कै ॥ ४ ॥

दोहरा
पुिन पुिन रामिह िचतव िसय सकुचित मनु सकुचै न ।
हरत मनोहर मीन छिब ेम िपआसे नैन ॥ ३२६ ॥

मासपारायण ग्यारहवाँ िव ाम

Read Ramcharitmanas online at www.swargarohan.org


रामचिरतमानस - 165 - बालकांड

स्याम सरीरु सुभायँ सुहावन । सोभा कोिट मनोज लजावन ॥


जावक जुत पद कमल सुहाए । मुिन मन मधुप रहत िजन्ह छाए ॥ १ ॥
पीत पुनीत मनोहर धोती । हरित बाल रिब दािमिन जोती ॥
कल िकंिकिन किट सू मनोहर । बाहु िबसाल िबभूषन सुंदर ॥ २ ॥
पीत जनेउ महाछिब दे ई । कर मुि का चोिर िचतु लेई ॥
सोहत ब्याह साज सब साजे । उर आयत उरभूषन राजे ॥ ३ ॥
िपअर उपरना काखासोती । दहँु ु आँचरिन्ह लगे मिन मोती ॥
नयन कमल कल कुंडल काना । बदनु सकल सौंदजर् िनधाना ॥ ४ ॥
सुद
ं र भृकुिट मनोहर नासा । भाल ितलकु रुिचरता िनवासा ॥
सोहत मौरु मनोहर माथे । मंगलमय मुकुता मिन गाथे ॥ ५ ॥

छं द
गाथे महामिन मौर मंजुल अंग सब िचत चोरहीं ।
पुर नािर सुर सुंदरीं बरिह िबलोिक सब ितन तोरहीं ॥
मिन बसन भूषन वािर आरित करिहं मंगल गाविहं ।
सुर सुमन बिरसिहं सूत मागध बंिद सुजसु सुनावहीं ॥ १ ॥

कोहबरिहं आने कुँअर कुँअिर सुआिसिनन्ह सुख पाइ कै ।


अित ीित लौिकक रीित लागीं करन मंगल गाइ कै ॥
लहकौिर गौिर िसखाव रामिह सीय सन सारद कहैं ।
रिनवासु हास िबलास रस बस जन्म को फलु सब लहैं ॥ २ ॥

िनज पािन मिन महँु दे िखअित मूरित सुरूपिनधान की ।


चालित न भुजबल्ली िबलोकिन िबरह भय बस जानकी ॥
कौतुक िबनोद मोद ु ेमु न जाइ किह जानिहं अलीं ।
बर कुअँिर सुद
ं र सकल सखीं लवाइ जनवासेिह चलीं ॥ ३ ॥

तेिह समय सुिनअ असीस जहँ तहँ नगर नभ आनँद ु महा ।


िचरु िजअहँु जोरीं चारु चारयो मुिदत मन सबहीं कहा ॥

Read Ramcharitmanas online at www.swargarohan.org


रामचिरतमानस - 166 - बालकांड

जोगीन् िस मुनीस दे व िबलोिक भु दं द


ु िभ
ु हनी ।
चले हरिष बरिष सून िनज िनज लोक जय जय जय भनी ॥ ४ ॥

दोहरा
सिहत बधूिटन्ह कुअँर सब तब आए िपतु पास ।
सोभा मंगल मोद भिर उमगेउ जनु जनवास ॥ ३२७ ॥

पुिन जेवनार भई बहु भाँती । पठए जनक बोलाइ बराती ॥


परत पाँवड़े बसन अनूपा । सुतन्ह समेत गवन िकयो भूपा ॥ १ ॥
सादर सबके पाय पखारे । जथाजोगु पीढ़न्ह बैठारे ॥
धोए जनक अवधपित चरना । सीलु सनेहु जाइ निहं बरना ॥ २ ॥
बहिर
ु राम पद पंकज धोए । जे हर हृदय कमल महँु गोए ॥
तीिनउ भाई राम सम जानी । धोए चरन जनक िनज पानी ॥ ३ ॥
आसन उिचत सबिह नृप दीन्हे । बोिल सूपकारी सब लीन्हे ॥
सादर लगे परन पनवारे । कनक कील मिन पान सँवारे ॥ ४ ॥

दोहरा
सूपोदन सुरभी सरिप सुंदर स्वाद ु पुनीत ।
छन महँु सब कें परुिस गे चतुर सुआर िबनीत ॥ ३२८ ॥

पंच कवल किर जेवन लागे । गािर गान सुिन अित अनुरागे ॥
भाँित अनेक परे पकवाने । सुधा सिरस निहं जािहं बखाने ॥ १ ॥
परुसन लगे सुआर सुजाना । िबंजन िबिबध नाम को जाना ॥
चािर भाँित भोजन िबिध गाई । एक एक िबिध बरिन न जाई ॥ २ ॥
छरस रुिचर िबंजन बहु जाती । एक एक रस अगिनत भाँती ॥
जेवँत दे िहं मधुर धुिन गारी । लै लै नाम पुरुष अरु नारी ॥ ३ ॥
समय सुहाविन गािर िबराजा । हँ सत राउ सुिन सिहत समाजा ॥
एिह िबिध सबहीं भौजनु कीन्हा । आदर सिहत आचमनु दीन्हा ॥ ४ ॥

दोहरा

Read Ramcharitmanas online at www.swargarohan.org


रामचिरतमानस - 167 - बालकांड

दे इ पान पूजे जनक दसरथु सिहत समाज ।


जनवासेिह गवने मुिदत सकल भूप िसरताज ॥ ३२९ ॥

िनत नूतन मंगल पुर माहीं । िनिमष सिरस िदन जािमिन जाहीं ॥
बड़े भोर भूपितमिन जागे । जाचक गुन गन गावन लागे ॥ १ ॥
दे िख कुअँर बर बधुन्ह समेता । िकिम किह जात मोद ु मन जेता ॥
ाति या किर गे गुरु पाहीं । महा मोद ु ेमु मन माहीं ॥ २ ॥
किर नाम पूजा कर जोरी । बोले िगरा अिमअँ जनु बोरी ॥
तुम्हरी कृ पाँ सुनहु मुिनराजा । भयउँ आजु मैं पूरनकाजा ॥ ३ ॥
अब सब िब बोलाइ गोसाईं । दे हु धेनु सब भाँित बनाई ॥
सुिन गुर किर मिहपाल बड़ाई । पुिन पठए मुिन बृंद बोलाई ॥ ४ ॥

दोहरा
बामदे उ अरु दे विरिष बालमीिक जाबािल ।
आए मुिनबर िनकर तब कौिसकािद तपसािल ॥ ३३० ॥

दं ड नाम सबिह नृप कीन्हे । पूिज स ेम बरासन दीन्हे ॥


चािर लच्छ बर धेनु मगाई । कामसुरिभ सम सील सुहाई ॥ १ ॥
सब िबिध सकल अलंकृत कीन्हीं । मुिदत मिहप मिहदे वन्ह दीन्हीं ॥
करत िबनय बहु िबिध नरनाहू । लहे उँ आजु जग जीवन लाहू ॥ २ ॥
पाइ असीस महीसु अनंदा । िलए बोिल पुिन जाचक बृंदा ॥
कनक बसन मिन हय गय स्यंदन । िदए बूिझ रुिच रिबकुलनंदन ॥ ३ ॥
चले पढ़त गावत गुन गाथा । जय जय जय िदनकर कुल नाथा ॥
एिह िबिध राम िबआह उछाहू । सकइ न बरिन सहस मुख जाहू ॥ ४ ॥

दोहरा
बार बार कौिसक चरन सीसु नाइ कह राउ ।
यह सबु सुखु मुिनराज तव कृ पा कटाच्छ पसाउ ॥ ३३१ ॥

जनक सनेहु सीलु करतूती । नृपु सब भाँित सराह िबभूती ॥

Read Ramcharitmanas online at www.swargarohan.org


रामचिरतमानस - 168 - बालकांड

िदन उिठ िबदा अवधपित मागा । राखिहं जनकु सिहत अनुरागा ॥ १ ॥


िनत नूतन आदरु अिधकाई । िदन ित सहस भाँित पहनाई
ु ॥
िनत नव नगर अनंद उछाहू । दसरथ गवनु सोहाइ न काहू ॥ २ ॥
बहत
ु िदवस बीते एिह भाँती । जनु सनेह रजु बँधे बराती ॥
कौिसक सतानंद तब जाई । कहा िबदे ह नृपिह समुझाई ॥ ३ ॥
अब दसरथ कहँ आयसु दे हू । ज िप छािड़ न सकहु सनेहू ॥
भलेिहं नाथ किह सिचव बोलाए । किह जय जीव सीस ितन्ह नाए ॥४ ॥

दोहरा
अवधनाथु चाहत चलन भीतर करहु जनाउ ।
भए ेमबस सिचव सुिन िब सभासद राउ ॥ ३३२ ॥

पुरबासी सुिन चिलिह बराता । बूझत िबकल परस्पर बाता ॥


सत्य गवनु सुिन सब िबलखाने । मनहँु साँझ सरिसज सकुचाने ॥ १ ॥
जहँ जहँ आवत बसे बराती । तहँ तहँ िस चला बहु भाँती ॥
िबिबध भाँित मेवा पकवाना । भोजन साजु न जाइ बखाना ॥ २ ॥
भिर भिर बसहँ अपार कहारा । पठई जनक अनेक सुसारा ॥
तुरग लाख रथ सहस पचीसा । सकल सँवारे नख अरु सीसा ॥ ३ ॥
म सहस दस िसंधुर साजे । िजन्हिह दे िख िदिसकुंजर लाजे ॥
कनक बसन मिन भिर भिर जाना । मिहषीं धेनु बस्तु िबिध नाना ॥४ ॥

दोहरा
दाइज अिमत न सिकअ किह दीन्ह िबदे हँ बहोिर ।
जो अवलोकत लोकपित लोक संपदा थोिर ॥ ३३३ ॥

सबु समाजु एिह भाँित बनाई । जनक अवधपुर दीन्ह पठाई ॥


चिलिह बरात सुनत सब रानीं । िबकल मीनगन जनु लघु पानीं ॥ १ ॥
पुिन पुिन सीय गोद किर लेहीं । दे इ असीस िसखावनु दे हीं ॥
होएहु संतत िपयिह िपआरी । िचरु अिहबात असीस हमारी ॥ २ ॥

Read Ramcharitmanas online at www.swargarohan.org


रामचिरतमानस - 169 - बालकांड

सासु ससुर गुर सेवा करे हू । पित रुख लिख आयसु अनुसरे हू ॥
अित सनेह बस सखीं सयानी । नािर धरम िसखविहं मृद ु बानी ॥ ३ ॥
सादर सकल कुअँिर समुझाई । रािनन्ह बार बार उर लाई ॥
बहिर
ु बहिर
ु भेटिहं महतारीं । कहिहं िबरं िच रचीं कत नारीं ॥ ४ ॥

दोहरा
तेिह अवसर भाइन्ह सिहत रामु भानु कुल केतु ।
चले जनक मंिदर मुिदत िबदा करावन हे तु ॥ ३३४ ॥

चािरअ भाइ सुभायँ सुहाए । नगर नािर नर दे खन धाए ॥


कोउ कह चलन चहत हिहं आजू । कीन्ह िबदे ह िबदा कर साजू ॥ १ ॥
लेहु नयन भिर रूप िनहारी । ि य पाहने
ु भूप सुत चारी ॥
को जानै केिह सुकृत सयानी । नयन अितिथ कीन्हे िबिध आनी ॥ २ ॥
मरनसीलु िजिम पाव िपऊषा । सुरतरु लहै जनम कर भूखा ॥
पाव नारकी हिरपद ु जैसें । इन्ह कर दरसनु हम कहँ तैसे ॥ ३ ॥
िनरिख राम सोभा उर धरहू । िनज मन फिन मूरित मिन करहू ॥
एिह िबिध सबिह नयन फलु दे ता । गए कुअँर सब राज िनकेता ॥ ४ ॥

दोहरा
रूप िसंधु सब बंधु लिख हरिष उठा रिनवासु ।
करिह िनछाविर आरती महा मुिदत मन सासु ॥ ३३५ ॥

दे िख राम छिब अित अनुरागीं । ेमिबबस पुिन पुिन पद लागीं ॥


रही न लाज ीित उर छाई । सहज सनेहु बरिन िकिम जाई ॥ १ ॥
भाइन्ह सिहत उबिट अन्हवाए । छरस असन अित हे तु जेवाँए ॥
बोले रामु सुअवसरु जानी । सील सनेह सकुचमय बानी ॥ २ ॥
राउ अवधपुर चहत िसधाए । िबदा होन हम इहाँ पठाए ॥
मातु मुिदत मन आयसु दे हू । बालक जािन करब िनत नेहू ॥ ३ ॥
सुनत बचन िबलखेउ रिनवासू । बोिल न सकिहं ेमबस सासू ॥

Read Ramcharitmanas online at www.swargarohan.org


रामचिरतमानस - 170 - बालकांड

हृदयँ लगाइ कुअँिर सब लीन्ही । पितन्ह सौंिप िबनती अित कीन्ही ॥४ ॥

छं द
किर िबनय िसय रामिह समरपी जोिर कर पुिन पुिन कहै ।
बिल जाँउ तात सुजान तुम्ह कहँु िबिदत गित सब की अहै ॥
पिरवार पुरजन मोिह राजिह ानि य िसय जािनबी ।
तुलसीस सीलु सनेहु लिख िनज िकंकरी किर मािनबी ॥

सोरठा
तुम्ह पिरपूरन काम जान िसरोमिन भावि य ।
जन गुन गाहक राम दोष दलन करुनायतन ॥ ३३६ ॥

अस किह रही चरन गिह रानी। ेम पंक जनु िगरा समानी ॥


सुिन सनेहसानी बर बानी। बहिबिध
ु राम सासु सनमानी ॥ १ ॥
राम िबदा मागत कर जोरी। कीन्ह नामु बहोिर बहोरी ॥
पाइ असीस बहिर
ु िसरु नाई। भाइन्ह सिहत चले रघुराई ॥ २ ॥
मंजु मधुर मूरित उर आनी। भई सनेह िसिथल सब रानी ॥
पुिन धीरजु धिर कुअँिर हँ कारी। बार बार भेटिहं महतारीं ॥ ३ ॥
पहँु चाविहं िफिर िमलिहं बहोरी। बढ़ी परस्पर ीित न थोरी ॥
पुिन पुिन िमलत सिखन्ह िबलगाई। बाल बच्छ िजिम धेनु लवाई ॥ ४ ॥

दोहा
ेमिबबस नर नािर सब सिखन्ह सिहत रिनवासु।
मानहँु कीन्ह िबदे हपुर करुनाँ िबरहँ िनवासु ॥ ३३७ ॥

सुक सािरका जानकी ज्याए। कनक िपंजरिन्ह रािख पढ़ाए ॥


ब्याकुल कहिहं कहाँ बैदेही। सुिन धीरजु पिरहरइ न केही ॥ १ ॥
भए िबकल खग मृग एिह भाँित। मनुज दसा कैसें किह जाती ॥
बंधु समेत जनकु तब आए। ेम उमिग लोचन जल छाए ॥ २ ॥
सीय िबलोिक धीरता भागी। रहे कहावत परम िबरागी ॥

Read Ramcharitmanas online at www.swargarohan.org


रामचिरतमानस - 171 - बालकांड

लीिन्ह राँय उर लाइ जानकी। िमटी महामरजाद ग्यान की ॥ ३ ॥


समुझावत सब सिचव सयाने। कीन्ह िबचारु न अवसर जाने ॥
बारिहं बार सुता उर लाई। सिज सुद
ं र पालकीं मगाई ॥ ४ ॥

दोहा
ेमिबबस पिरवारु सबु जािन सुलगन नरे स।
कुँअिर चढ़ाई पालिकन्ह सुिमरे िसि गनेस ॥ ३३८ ॥

बहिबिध
ु भूप सुता समुझाई। नािरधरमु कुलरीित िसखाई ॥
दासीं दास िदए बहते
ु रे। सुिच सेवक जे ि य िसय केरे ॥ १ ॥
सीय चलत ब्याकुल पुरबासी। होिहं सगुन सुभ मंगल रासी ॥
भूसुर सिचव समेत समाजा। संग चले पहँु चावन राजा ॥ २ ॥
समय िबलोिक बाजने बाजे। रथ गज बािज बराितन्ह साजे ॥
दसरथ िब बोिल सब लीन्हे । दान मान पिरपूरन कीन्हे ॥ ३ ॥
चरन सरोज धूिर धिर सीसा। मुिदत महीपित पाइ असीसा ॥
सुिमिर गजाननु कीन्ह पयाना। मंगलमूल सगुन भए नाना ॥ ४ ॥

दोहा
सुर सून बरषिह हरिष करिहं अपछरा गान।
चले अवधपित अवधपुर मुिदत बजाइ िनसान ॥ ३३९ ॥

नृप किर िबनय महाजन फेरे । सादर सकल मागने टे रे ॥


भूषन बसन बािज गज दीन्हे । ेम पोिष ठाढ़े सब कीन्हे ॥ १ ॥
बार बार िबिरदाविल भाषी। िफरे सकल रामिह उर राखी ॥
बहिर
ु बहिर
ु कोसलपित कहहीं। जनकु ेमबस िफरै न चहहीं ॥ २ ॥
पुिन कह भूपित बचन सुहाए। िफिरअ महीस दिर
ू बिड़ आए ॥
राउ बहोिर उतिर भए ठाढ़े । ेम बाह िबलोचन बाढ़े ॥ ३ ॥
तब िबदे ह बोले कर जोरी। बचन सनेह सुधाँ जनु बोरी ॥
करौ कवन िबिध िबनय बनाई। महाराज मोिह दीिन्ह बड़ाई ॥ ४ ॥

Read Ramcharitmanas online at www.swargarohan.org


रामचिरतमानस - 172 - बालकांड

दोहा
कोसलपित समधी सजन सनमाने सब भाँित।
िमलिन परसपर िबनय अित ीित न हृदयँ समाित ॥ ३४० ॥

मुिन मंडिलिह जनक िसरु नावा। आिसरबाद ु सबिह सन पावा ॥


सादर पुिन भेंटे जामाता। रूप सील गुन िनिध सब ाता ॥ १ ॥
जोिर पंकरुह पािन सुहाए। बोले बचन ेम जनु जाए ॥
राम करौ केिह भाँित संसा। मुिन महे स मन मानस हं सा ॥ २ ॥
करिहं जोग जोगी जेिह लागी। कोहु मोहु ममता मद ु त्यागी ॥
ब्यापकु ु अलखु अिबनासी। िचदानंद ु िनरगुन गुनरासी ॥ ३ ॥
मन समेत जेिह जान न बानी। तरिक न सकिहं सकल अनुमानी ॥
मिहमा िनगमु नेित किह कहई। जो ितहँु काल एकरस रहई ॥ ४ ॥

दोहा
नयन िबषय मो कहँु भयउ सो समस्त सुख मूल।
सबइ लाभु जग जीव कहँ भएँ ईसु अनुकुल ॥ ३४१ ॥

सबिह भाँित मोिह दीिन्ह बड़ाई। िनज जन जािन लीन्ह अपनाई ॥


होिहं सहस दस सारद सेषा। करिहं कलप कोिटक भिर लेखा ॥ १ ॥
मोर भाग्य राउर गुन गाथा। किह न िसरािहं सुनहु रघुनाथा ॥
मै कछु कहउँ एक बल मोरें । तुम्ह रीझहु सनेह सुिठ थोरें ॥ २ ॥
बार बार मागउँ कर जोरें । मनु पिरहरै चरन जिन भोरें ॥
सुिन बर बचन ेम जनु पोषे। पूरनकाम रामु पिरतोषे ॥ ३ ॥
किर बर िबनय ससुर सनमाने। िपतु कौिसक बिस सम जाने ॥
िबनती बहिर
ु भरत सन कीन्ही। िमिल स ेमु पुिन आिसष दीन्ही ॥ ४ ॥

दोहा
िमले लखन िरपुसूदनिह दीिन्ह असीस महीस।
भए परस्पर ेमबस िफिर िफिर नाविहं सीस ॥ ३४२ ॥

Read Ramcharitmanas online at www.swargarohan.org


रामचिरतमानस - 173 - बालकांड

बार बार किर िबनय बड़ाई। रघुपित चले संग सब भाई ॥


जनक गहे कौिसक पद जाई। चरन रे नु िसर नयनन्ह लाई ॥ १ ॥
सुनु मुनीस बर दरसन तोरें । अगमु न कछु तीित मन मोरें ॥
जो सुखु सुजसु लोकपित चहहीं। करत मनोरथ सकुचत अहहीं ॥ २ ॥
सो सुखु सुजसु सुलभ मोिह स्वामी। सब िसिध तव दरसन अनुगामी ॥
कीिन्ह िबनय पुिन पुिन िसरु नाई। िफरे महीसु आिसषा पाई ॥ ३ ॥
चली बरात िनसान बजाई। मुिदत छोट बड़ सब समुदाई ॥
रामिह िनरिख ाम नर नारी। पाइ नयन फलु होिहं सुखारी ॥ ४ ॥

दोहा
बीच बीच बर बास किर मग लोगन्ह सुख दे त।
अवध समीप पुनीत िदन पहँु ची आइ जनेत ॥ ३४३ ॥

हने िनसान पनव बर बाजे। भेिर संख धुिन हय गय गाजे ॥


झाँिझ िबरव िडं डमीं सुहाई। सरस राग बाजिहं सहनाई ॥ १ ॥
पुर जन आवत अकिन बराता। मुिदत सकल पुलकाविल गाता ॥
िनज िनज सुद
ं र सदन सँवारे । हाट बाट चौहट पुर ारे ॥ २ ॥
गलीं सकल अरगजाँ िसंचाई। जहँ तहँ चौकें चारु पुराई ॥
बना बजारु न जाइ बखाना। तोरन केतु पताक िबताना ॥ ३ ॥
सफल पूगफल कदिल रसाला। रोपे बकुल कदं ब तमाला ॥
लगे सुभग तरु परसत धरनी। मिनमय आलबाल कल करनी ॥ ४ ॥

दोहा
िबिबध भाँित मंगल कलस गृह गृह रचे सँवािर।
सुर ािद िसहािहं सब रघुबर पुरी िनहािर ॥ ३४४ ॥

भूप भवन तेिह अवसर सोहा। रचना दे िख मदन मनु मोहा ॥


मंगल सगुन मनोहरताई। िरिध िसिध सुख संपदा सुहाई ॥ १ ॥
जनु उछाह सब सहज सुहाए। तनु धिर धिर दसरथ दसरथ गृहँ छाए ॥
दे खन हे तु राम बैदेही। कहहु लालसा होिह न केही ॥ २ ॥

Read Ramcharitmanas online at www.swargarohan.org


रामचिरतमानस - 174 - बालकांड

जुथ जूथ िमिल चलीं सुआिसिन। िनज छिब िनदरिहं मदन िबलासिन ॥
सकल सुमग
ं ल सजें आरती। गाविहं जनु बहु बेष भारती ॥ ३ ॥
भूपित भवन कोलाहलु होई। जाइ न बरिन समउ सुखु सोई ॥
कौसल्यािद राम महतारीं। ेम िबबस तन दसा िबसारीं ॥ ४ ॥

दोहा
िदए दान िब न्ह िबपुल पूिज गनेस पुरारी।
मुिदत परम दिर जनु पाइ पदारथ चािर ॥ ३४५ ॥

मोद मोद िबबस सब माता। चलिहं न चरन िसिथल भए गाता ॥


राम दरस िहत अित अनुरागीं। पिरछिन साजु सजन सब लागीं ॥ १ ॥
िबिबध िबधान बाजने बाजे। मंगल मुिदत सुिम ाँ साजे ॥
हरद दब
ू दिध पल्लव फूला। पान पूगफल मंगल मूला ॥ २ ॥
अच्छत अंकुर लोचन लाजा। मंजुल मंजिर तुलिस िबराजा ॥

छहे पुरट घट सहज सुहाए। मदन सकुन जनु नीड़ बनाए ॥ ३ ॥
सगुन सुग
ं ध न जािहं बखानी। मंगल सकल सजिहं सब रानी ॥
रचीं आरतीं बहत
ु िबधाना। मुिदत करिहं कल मंगल गाना ॥ ४ ॥

दोहा
कनक थार भिर मंगलिन्ह कमल करिन्ह िलएँ मात।
चलीं मुिदत पिरछिन करन पुलक पल्लिवत गात ॥ ३४६ ॥

धूप धूम नभु मेचक भयऊ। सावन घन घमंडु जनु ठयऊ ॥


सुरतरु सुमन माल सुर बरषिहं । मनहँु बलाक अविल मनु करषिहं ॥ १ ॥
मंजुल मिनमय बंदिनवारे । मनहँु पाकिरपु चाप सँवारे ॥
गटिहं दरिहं
ु अटन्ह पर भािमिन। चारु चपल जनु दमकिहं दािमिन ॥२॥
दं द
ु िभ
ु धुिन घन गरजिन घोरा। जाचक चातक दादरु मोरा ॥
सुर सुगन्ध सुिच बरषिहं बारी। सुखी सकल सिस पुर नर नारी ॥ ३ ॥
समउ जानी गुर आयसु दीन्हा। पुर बेसु रघुकुलमिन कीन्हा ॥
सुिमिर संभु िगरजा गनराजा। मुिदत महीपित सिहत समाजा ॥ ४ ॥

Read Ramcharitmanas online at www.swargarohan.org


रामचिरतमानस - 175 - बालकांड

दोहा
होिहं सगुन बरषिहं सुमन सुर दं द
ु भीं
ु बजाइ।
िबबुध बधू नाचिहं मुिदत मंजुल मंगल गाइ ॥ ३४७ ॥

मागध सूत बंिद नट नागर। गाविहं जसु ितहु लोक उजागर ॥


जय धुिन िबमल बेद बर बानी। दस िदिस सुिनअ सुमंगल सानी ॥ १ ॥
िबपुल बाजने बाजन लागे। नभ सुर नगर लोग अनुरागे ॥
बने बराती बरिन न जाहीं। महा मुिदत मन सुख न समाहीं ॥ २ ॥
पुरबािसन्ह तब राय जोहारे । दे खत रामिह भए सुखारे ॥
करिहं िनछाविर मिनगन चीरा। बािर िबलोचन पुलक सरीरा ॥ ३ ॥
आरित करिहं मुिदत पुर नारी। हरषिहं िनरिख कुँअर बर चारी ॥
िसिबका सुभग ओहार उघारी। दे िख दलिहिनन्ह
ु होिहं सुखारी ॥ ४ ॥

दोहा
एिह िबिध सबही दे त सुखु आए राजदआर।

मुिदत मातु परुछिन करिहं बधुन्ह समेत कुमार ॥ ३४८ ॥

करिहं आरती बारिहं बारा। ेमु मोद ु कहै को पारा ॥


भूषन मिन पट नाना जाती ॥ करही िनछाविर अगिनत भाँती ॥ १ ॥
बधुन्ह समेत दे िख सुत चारी। परमानंद मगन महतारी ॥
पुिन पुिन सीय राम छिब दे खी ॥ मुिदत सफल जग जीवन लेखी ॥ २ ॥
सखीं सीय मुख पुिन पुिन चाही। गान करिहं िनज सुकृत सराही ॥
बरषिहं सुमन छनिहं छन दे वा। नाचिहं गाविहं लाविहं सेवा ॥ ३ ॥
दे िख मनोहर चािरउ जोरीं। सारद उपमा सकल ढँ ढोरीं ॥
दे त न बनिहं िनपट लघु लागी। एकटक रहीं रूप अनुरागीं ॥ ४ ॥

दोहा
िनगम नीित कुल रीित किर अरघ पाँवड़े दे त।
बधुन्ह सिहत सुत पिरिछ सब चलीं लवाइ िनकेत ॥ ३४९ ॥

Read Ramcharitmanas online at www.swargarohan.org


रामचिरतमानस - 176 - बालकांड

चािर िसंघासन सहज सुहाए। जनु मनोज िनज हाथ बनाए ॥


ितन्ह पर कुअँिर कुअँर बैठारे । सादर पाय पुिनत पखारे ॥ १ ॥
धूप दीप नैबेद बेद िबिध। पूजे बर दलिहिन
ु मंगलिनिध ॥
बारिहं बार आरती करहीं। ब्यजन चारु चामर िसर ढरहीं ॥ २ ॥
बस्तु अनेक िनछावर होहीं। भरीं मोद मातु सब सोहीं ॥
पावा परम तत्व जनु जोगीं। अमृत लहे उ जनु संतत रोगीं ॥ ३ ॥
जनम रं क जनु पारस पावा। अंधिह लोचन लाभु सुहावा ॥
मूक बदन जनु सारद छाई। मानहँु समर सूर जय पाई ॥ ४ ॥

दोहा
एिह सुख ते सत कोिट गुन पाविहं मातु अनंद ु ॥
भाइन्ह सिहत िबआिह घर आए रघुकुलचंद ु ॥ ३५०(क) ॥

लोक रीत जननी करिहं बर दलिहिन


ु सकुचािहं ।
मोद ु िबनोद ु िबलोिक बड़ रामु मनिहं मुसकािहं ॥ ३५०(ख) ॥

दे व िपतर पूजे िबिध नीकी। पूजीं सकल बासना जी की ॥


सबिहं बंिद मागिहं बरदाना। भाइन्ह सिहत राम कल्याना ॥ १ ॥
अंतरिहत सुर आिसष दे हीं। मुिदत मातु अंचल भिर लेंहीं ॥
भूपित बोिल बराती लीन्हे । जान बसन मिन भूषन दीन्हे ॥ २ ॥
आयसु पाइ रािख उर रामिह। मुिदत गए सब िनज िनज धामिह ॥
पुर नर नािर सकल पिहराए। घर घर बाजन लगे बधाए ॥ ३ ॥
जाचक जन जाचिह जोइ जोई। मुिदत राउ दे िहं सोइ सोई ॥
सेवक सकल बजिनआ नाना। पूरन िकए दान सनमाना ॥ ४ ॥

दोहा
दें िहं असीस जोहािर सब गाविहं गुन गन गाथ।
तब गुर भूसरु सिहत गृहँ गवनु कीन्ह नरनाथ ॥ ३५१ ॥

Read Ramcharitmanas online at www.swargarohan.org


रामचिरतमानस - 177 - बालकांड

जो बिस अनुसासन दीन्ही। लोक बेद िबिध सादर कीन्ही ॥


भूसुर भीर दे िख सब रानी। सादर उठीं भाग्य बड़ जानी ॥ १ ॥
पाय पखािर सकल अन्हवाए। पूिज भली िबिध भूप जेवाँए ॥
आदर दान ेम पिरपोषे। दे त असीस चले मन तोषे ॥ २ ॥
बहु िबिध कीिन्ह गािधसुत पूजा। नाथ मोिह सम धन्य न दजा
ू ॥
कीिन्ह संसा भूपित भूरी। रािनन्ह सिहत लीिन्ह पग धूरी ॥ ३ ॥
भीतर भवन दीन्ह बर बासु। मन जोगवत रह नृप रिनवासू ॥
पूजे गुर पद कमल बहोरी। कीिन्ह िबनय उर ीित न थोरी ॥ ४ ॥

दोहा
बधुन्ह समेत कुमार सब रािनन्ह सिहत महीसु।
पुिन पुिन बंदत गुर चरन दे त असीस मुनीसु ॥ ३५२ ॥

िबनय कीिन्ह उर अित अनुरागें। सुत संपदा रािख सब आगें ॥


नेगु मािग मुिननायक लीन्हा। आिसरबाद ु बहत
ु िबिध दीन्हा ॥ १ ॥
उर धिर रामिह सीय समेता। हरिष कीन्ह गुर गवनु िनकेता ॥
िब बधू सब भूप बोलाई। चैल चारु भूषन पिहराई ॥ २ ॥
बहिर
ु बोलाइ सुआिसिन लीन्हीं। रुिच िबचािर पिहराविन दीन्हीं ॥
नेगी नेग जोग सब लेहीं। रुिच अनुरुप भूपमिन दे हीं ॥ ३ ॥
ि य पाहुने पूज्य जे जाने। भूपित भली भाँित सनमाने ॥
दे व दे िख रघुबीर िबबाह।ू बरिष सून संिस उछाहू ॥ ४ ॥

दोहा
चले िनसान बजाइ सुर िनज िनज पुर सुख पाइ।
कहत परसपर राम जसु ेम न हृदयँ समाइ ॥ ३५३ ॥

सब िबिध सबिह समिद नरनाह।ू रहा हृदयँ भिर पूिर उछाहू ॥


जहँ रिनवासु तहाँ पगु धारे । सिहत बहिटन्ह
ू कुअँर िनहारे ॥ १ ॥
िलए गोद किर मोद समेता। को किह सकइ भयउ सुखु जेता ॥
बधू स ेम गोद बैठारीं। बार बार िहयँ हरिष दलारीं
ु ॥ २ ॥

Read Ramcharitmanas online at www.swargarohan.org


रामचिरतमानस - 178 - बालकांड

दे िख समाजु मुिदत रिनवासू। सब कें उर अनंद िकयो बासू ॥


कहे उ भूप िजिम भयउ िबबाह।ू सुिन हरषु होत सब काहू ॥ ३ ॥
जनक राज गुन सीलु बड़ाई। ीित रीित संपदा सुहाई ॥
बहिबिध
ु भूप भाट िजिम बरनी। रानीं सब मुिदत सुिन करनी ॥ ४ ॥

दोहा
सुतन्ह समेत नहाइ नृप बोिल िब गुर ग्याित।
भोजन कीन्ह अनेक िबिध घरी पंच गइ राित ॥ ३५४ ॥

मंगलगान करिहं बर भािमिन। भै सुखमूल मनोहर जािमिन ॥


अँचइ पान सब काहँू पाए। ग सुगंध भूिषत छिब छाए ॥ १ ॥
रामिह दे िख रजायसु पाई। िनज िनज भवन चले िसर नाई ॥
ेम मोद िबनोद ु बढ़ाई। समउ समाजु मनोहरताई ॥ २ ॥
किह न सकिह सत सारद सेस।ू बेद िबरं िच महे स गनेसू ॥
सो मै कहौं कवन िबिध बरनी। भूिमनागु िसर धरइ िक धरनी ॥ ३ ॥
नृप सब भाँित सबिह सनमानी। किह मृद ु बचन बोलाई रानी ॥
बधू लिरकनीं पर घर आईं। राखेहु नयन पलक की नाई ॥ ४ ॥

दोहा
लिरका िमत उनीद बस सयन करावहु जाइ।
अस किह गे िब ामगृहँ राम चरन िचतु लाइ ॥ ३५५ ॥

भूप बचन सुिन सहज सुहाए। जिरत कनक मिन पलँग डसाए ॥
सुभग सुरिभ पय फेन समाना। कोमल किलत सुपेतीं नाना ॥ १ ॥
उपबरहन बर बरिन न जाहीं। ग सुगंध मिनमंिदर माहीं ॥
रतनदीप सुिठ चारु चँदोवा। कहत न बनइ जान जेिहं जोवा ॥ २ ॥
सेज रुिचर रिच रामु उठाए। ेम समेत पलँग पौढ़ाए ॥
अग्या पुिन पुिन भाइन्ह दीन्ही। िनज िनज सेज सयन ितन्ह कीन्ही ॥३॥
दे िख स्याम मृद ु मंजुल गाता। कहिहं स ेम बचन सब माता ॥
मारग जात भयाविन भारी। केिह िबिध तात ताड़का मारी ॥ ४ ॥

Read Ramcharitmanas online at www.swargarohan.org


रामचिरतमानस - 179 - बालकांड

दोहा
घोर िनसाचर िबकट भट समर गनिहं निहं काहु ॥
मारे सिहत सहाय िकिम खल मारीच सुबाहु ॥ ३५६ ॥

मुिन साद बिल तात तुम्हारी। ईस अनेक करवरें टारी ॥


मख रखवारी किर दहँु ु भाई। गुरु साद सब िब ा पाई ॥ १ ॥
मुिनतय तरी लगत पग धूरी। कीरित रही भुवन भिर पूरी ॥
कमठ पीिठ पिब कूट कठोरा। नृप समाज महँु िसव धनु तोरा ॥ २ ॥
िबस्व िबजय जसु जानिक पाई। आए भवन ब्यािह सब भाई ॥
सकल अमानुष करम तुम्हारे । केवल कौिसक कृ पाँ सुधारे ॥ ३ ॥
आजु सुफल जग जनमु हमारा। दे िख तात िबधुबदन तुम्हारा ॥
जे िदन गए तुम्हिह िबनु दे खें। ते िबरं िच जिन पारिहं लेखें ॥ ४ ॥

दोहा
राम तोषीं मातु सब किह िबनीत बर बैन।
सुिमिर संभु गुर िब पद िकए नीदबस नैन ॥ ३५७ ॥

नीदउँ बदन सोह सुिठ लोना। मनहँु साँझ सरसीरुह सोना ॥


घर घर करिहं जागरन नारीं। दे िहं परसपर मंगल गारीं ॥ १ ॥
पुरी िबराजित राजित रजनी। रानीं कहिहं िबलोकहु सजनी ॥
सुद
ं र बधुन्ह सासु लै सोई। फिनकन्ह जनु िसरमिन उर गोई ॥ २ ॥
ात पुनीत काल भु जागे। अरुनचूड़ बर बोलन लागे ॥
बंिद मागधिन्ह गुनगन गाए। पुरजन ार जोहारन आए ॥ ३ ॥
बंिद िब सुर गुर िपतु माता। पाइ असीस मुिदत सब ाता ॥
जनिनन्ह सादर बदन िनहारे । भूपित संग ार पगु धारे ॥ ४ ॥

दोहा
कीन्ह सौच सब सहज सुिच सिरत पुनीत नहाइ।
ाति या किर तात पिहं आए चािरउ भाइ ॥ ३५८ ॥

Read Ramcharitmanas online at www.swargarohan.org


रामचिरतमानस - 180 - बालकांड

नवान्हपारायण, तीसरा िव ाम

भूप िबलोिक िलए उर लाई। बैठै हरिष रजायसु पाई ॥


दे िख रामु सब सभा जुड़ानी। लोचन लाभ अविध अनुमानी ॥ १ ॥
पुिन बिस ु मुिन कौिसक आए। सुभग आसनिन्ह मुिन बैठाए ॥
सुतन्ह समेत पूिज पद लागे। िनरिख रामु दोउ गुर अनुरागे ॥ २ ॥
कहिहं बिस ु धरम इितहासा। सुनिहं महीसु सिहत रिनवासा ॥
मुिन मन अगम गािधसुत करनी। मुिदत बिस िबपुल िबिध बरनी ॥३ ॥
बोले बामदे उ सब साँची। कीरित किलत लोक ितहँु माची ॥
सुिन आनंद ु भयउ सब काह।ू राम लखन उर अिधक उछाहू ॥ ४ ॥

दोहा
मंगल मोद उछाह िनत जािहं िदवस एिह भाँित।
उमगी अवध अनंद भिर अिधक अिधक अिधकाित ॥ ३५९ ॥

सुिदन सोिध कल कंकन छौरे । मंगल मोद िबनोद न थोरे ॥


िनत नव सुखु सुर दे िख िसहाहीं। अवध जन्म जाचिहं िबिध पाहीं ॥ १ ॥
िबस्वािम ु चलन िनत चहहीं। राम स ेम िबनय बस रहहीं ॥
िदन िदन सयगुन भूपित भाऊ। दे िख सराह महामुिनराऊ ॥ २ ॥
मागत िबदा राउ अनुरागे। सुतन्ह समेत ठाढ़ भे आगे ॥
नाथ सकल संपदा तुम्हारी। मैं सेवकु समेत सुत नारी ॥ ३ ॥
करब सदा लिरकनः पर छोह।ू दरसन दे त रहब मुिन मोहू ॥
अस किह राउ सिहत सुत रानी। परे उ चरन मुख आव न बानी ॥ ४ ॥
दीन्ह असीस िब बहु भाँती। चले न ीित रीित किह जाती ॥
रामु स ेम संग सब भाई। आयसु पाइ िफरे पहँु चाई ॥ ५ ॥

दोहा
राम रूपु भूपित भगित ब्याहु उछाहु अनंद।ु
जात सराहत मनिहं मन मुिदत गािधकुलचंद ु ॥ ३६० ॥

Read Ramcharitmanas online at www.swargarohan.org


रामचिरतमानस - 181 - बालकांड

बामदे व रघुकुल गुर ग्यानी। बहिर


ु गािधसुत कथा बखानी ॥
सुिन मुिन सुजसु मनिहं मन राऊ। बरनत आपन पुन्य भाऊ ॥ १ ॥
बहरेु लोग रजायसु भयऊ। सुतन्ह समेत नृपित गृहँ गयऊ ॥
जहँ तहँ राम ब्याहु सबु गावा। सुजसु पुनीत लोक ितहँु छावा ॥ २ ॥
आए ब्यािह रामु घर जब तें। बसइ अनंद अवध सब तब तें ॥
भु िबबाहँ जस भयउ उछाह।ू सकिहं न बरिन िगरा अिहनाहू ॥ ३ ॥
किबकुल जीवनु पावन जानी ॥ राम सीय जसु मंगल खानी ॥
तेिह ते मैं कछु कहा बखानी। करन पुनीत हे तु िनज बानी ॥ ४ ॥

छं द
िनज िगरा पाविन करन कारन राम जसु तुलसी क ो।
रघुबीर चिरत अपार बािरिध पारु किब कौनें ल ो ॥
उपबीत ब्याह उछाह मंगल सुिन जे सादर गावहीं।
बैदेिह राम साद ते जन सबर्दा सुखु पावहीं ॥

सोरठा
िसय रघुबीर िबबाहु जे स ेम गाविहं सुनिहं ।
ितन्ह कहँु सदा उछाहु मंगलायतन राम जसु ॥ ३६१ ॥

मासपारायण, बारहवाँ िव ाम

इित ीम ामचिरतमानसे सकलकिलकलुषिबध्वंसने


थमः सोपानः समा ः। (बालकाण्ड समा )

Read Ramcharitmanas online at www.swargarohan.org

You might also like