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मानसिक शक्तियााँ बढ़ाने के १५ सनयम

ले . श्री सिरराज सकशोर सििंह जी सिशारद

मैं क्षुद्र हाँ , मे री शक्ति निण्य है , मु झे दु ुःख घेरे हुए हैं , मे रे भाग्य में दु ुःख ही बदा है । ईश्वर ने मुझे अभािा पैदा सकया
है , जो होना होिा हो जायेिा, मु झिे कुछ नहीिं होिा, अिफलता हुई तो कहीिं का नहीिं रहाँ िा आसद सिचार करते- करते मनु ष्य
की इच्छा शक्ति अर्द्ध मू क्तच्छधत हो जाती है और ििंशय उि पर ऐिा काबू कर ले ते हैं सक िाधारण काम करते हुए भी मन
ििंकल्प सिकल्पोिं िे भरा रहता है और अिफलता की आशिंका मू सतधित िामने खड़ी रहती है । सनरुद्योिी, परमु खाक्षेपी और
आिान सजन्दिी बिर करने िाले लोिोिं की इच्छा शक्ति एक प्रकार िे सनकम्मी हो जाती है । अज्ञान िश जो व्यक्ति कुछ
सदनोिं तक ऐिे सिचारोिं के पिंजे में फाँि जाता है सफर उनिे छूटना बहुत मु क्तिल मालू म दे ता है। िास्तसिकता का पता लिने
पर िह िोचता है । व्यर्ध ही इन बुरे सिचारोिं में मैं ने अपना िमय िाँिाया और अपने को अिनसत के िड्ढे में धकेला। िह इन
बुरे सिचारोिं िे छूटना चाहता है , पर ऐिी आदत पड़ िई है सक िाड़ी आिे बढ़ती नहीिं। जरा सहम्मत बााँधी, उत्साह आया सकन्तु
र्ोड़ी ही दे र बाद सिचार न जाने कहााँ चले िये। और पुनुः सनराशा ने आ दबोचा। ऐिे व्यक्ति सकिी काम को पूरा नहीिं कर
पाते। या तो िे सकिी काम को करते ही नहीिं, करते हैं तो अधू रा छोड़ दे ते हैं । अने क अधूरे और अिफल कायध उनके
जीिन में योिं ही पड़े रहते हैं ।

ऐिे लोिोिं की इच्छा शक्ति बहुत सनबधल होती है । लिन और दृढ़ता के अभाि में सकिी कायध पर सचत्त नहीिं लिता।
मक्तस्तष्क की कमजोरी के कारण सनराशा और उदािीनता छा जाती है । सिचार शक्ति, तुलनात्मक शक्ति, कल्पना शक्ति,
इच्छाशक्ति, प्रमृ सत शक्तियोिं की कमजोरी या सनसित पररणाम अिफलता है । एक ही िमय में एक ही प्रकार का व्यापार करने
िाले दो व्यक्तियोिं में िे एक को लाभ होता है एक को हासन। एक के पाि सनत्य िैकड़ोिं ग्राहक आते हैं सकन्तु उिका
पड़ौिी दु कानदार मक्तियााँ मारता रहता है । ऐिा क्ोिं होता है ? दोनोिं के पाि जाने िे आपको पता चले िा सक एक का चेहरा
िदा हाँ िता हुाँ आ रहता है , आत्मशक्ति का दृढ़ सिश्वाि उिके चेहरे पर झलकता रहता है । दू िरा सनराशा और उदािी िे भरे
हुए मुाँ ह को लटकाये हुए रहता है । यह मानसिक शक्तियोिं के िबल और सनबधल होने का पररणाम है ।

िब लोि इक्तच्छत रहते हैं सक हमारी मानसिक शक्तियााँ बलिान होिं सकन्तु िे मानसिक शक्तियोिं को बढ़ाने के सनयमोिं िे
पररसचत न होने के कारण मन के लड् डू खाया करते हैं । िफलता लाभ नहीिं कर पाते। यसद िे उन िाधारण सनयमोिं को जान
पािे और सिश्वाि पूिधक लाभ उठािें तो िे भी अपनी इच्छाशक्ति को दृढ़ बना िकते हैं और उिके आधार पर िफलता लाभ
कर िकते हैं । नीचे कुछ ऐिे ही सनयम बताये जाते हैं ।

1. िूयोदय िे डे ढ़ दो घिंटे पूिध उठो और शौचासद िे सनिृत्त होकर शुर्द् िायु में टहलने जाओ।
2. पेट में कब्ज न होने दो। हलका और िादा भोजन खूब चबा- चबा कर खाओ।
3. प्रातुः शौच जाने िे आधा घिंटा पूिध आधा िेर पानी पीओ
4. सनत्य िहरी िााँि ले ने की सिया या प्राणायाम करोिं
5. मन को एकाग्र रखो। व्यर्ध बातोिं का िोच सिचार मत करो। एक िमय में एक ही सिषय के ऊपर सिचार करो। उिी में
पूरी शक्ति लिाओ। यसद मन उचट कर कहीिं दू िरी जिह जाना चाहे तो उिे रोक कर उिी काम में लिाओ
6. सकिी काम को करने िे पूिध खूब िोच सिचार लो। जब सकिी काम को आरम्भ कर दो तो सफर उिमें सकिी प्रकार का
भय न करो। उि काम को पूरा करने का दृढ़ सनिय कर लो और उिी के िम्बन्ध में िोच सिचार करो।
7. अपनी शक्ति पर सिश्वाि रखो, अपने को नाचीज मत िमझो। बुरे कामोिं िे घृणा करो। िच्चाई, ईमानदारी और दू िरे के
िार् िहानु भूसत की भािना कभी मत छोड़ो।
8. सनत्य एकान्त में बैठकर ऐिी कल्पना करो सक मे रा मनोबल सदन प्रसतसदन दृढ़ होता जा रहा है ।
9. सनराश कभी मत होओ। ऐिा सिश्वाि रखो सक ईश्वर मे रे सलए सहतकारक पररक्तथर्सत अिश्य पैदा करे िा।
10. सकिी के सलए बुरा मत िोचो। ईष्याध, द्वे ष को पाि मत फटकने दो।
11. हर िमय उद्योि में लिे रहो। िमय बेकार मत जाने दो।
12. व्यर्ध काम मत करो। कुछ लोिोिं को चारपाई पर बैठकर पैर सहलाने की, जमीन खोदने की या शरीर को व्यर्ध सहलाने
चलाने की आदत होती है यह ठीक नहीिं। िदै ि शान्त रहो। एक ही काम में शरीर की शक्ति लिाओ।
13. सनत्य ऐिी कल्पना करते रहो सक मे रे मक्तस्तष्क के पररमाण िूक्ष्मतर होते जा रहे हैं और मानसिक शक्तियााँ बढ़ रही है ।
14. सिचारिान िज्जनोिं के िार् रहो और िुसिचार युि पु स्तकें पढ़ो। अपने दु िुधणोिं को तलाश करो और उनका पररत्याि करो।
15. िदा मुाँ ह पर मु स्कराहट बनाये रखो, सदन में एक बार खूब जी खोलकर हाँ िो।

दे खने में यह सनयम िाधारण प्रतीत होते हैं । पर इनकी महत्ता बहुत असधक है । सचत्त जिह- जिह भटकने की अपेक्षा
जब एक जिह क्तथर्र होता है , तो उिकी शक्ति िैकड़ोिं िुनी बढ़ जाती है और उिके बल िे िारी मानसिक शक्तियााँ जि
पड़ती हैं । आसतशी शीशे को िाधारणतुः धू प में रख दो तो कोई खाि अिर न होिा, सकन्तु उिके द्वारा यसद िूयध की सकरणोिं
को सकिी एक सबन्दु पर एकसित करो तो आि पैदा हो जायेिी। बारूद को खुली जिह में रखकर आि लिा दो तो भक िे
जल जायेिी। कोई खाि कायध उिके द्वारा न होिा, सकन्तु उिी को बन्दू क में भरकर एक ही सदशा में उिका प्रिाह जारी
कर सदया जाय तो िोली को बहुत दू र तक फेंकने की शक्ति उिमें हो जाती है । मन जब तक ििंयसमत नहीिं है तब तक िह
इधर- उधर उछलता रहता। तााँ िे का घोड़ा जब इधर- उधर उछल कूदता है , तब तक रास्ता तय करने में बड़ी कसठनाई
पड़ती है सकन्तु जब िह चुपचाप ठीक प्रकार िरपट दौड़ने लिता है तो जरा िी दे र में सनसित थर्ान पर पहुाँ चा दे ता है । मन
की क्तथर्रता, प्रिन्नता, दृढ़ता और ईमानदारी यह िद् िुणोिं की खान, सिकाि के िाधन और िफलता की िीसढ़यााँ हैं । इन चारोिं
के आते ही िब प्रकार की मानसिक शक्तियााँ जाग्रत हो जाती हैं । िूाँिे, िाचाल और पिंिे पहाड़ पर चढ़ने िाले हो जाते हैं ।
पर यह भी ध्यान रखना चासहए अच्छे सिचार अच्छे शरीर में ही रहते हैं , इिसलए शरीर को स्वथर् रखना भी आिश्यक है ।
इन्ीिं पााँच सनयमोिं के आधार पर उि पन्द्रह सनयम बने हैं । पाठक चाहे जब आजमा कर दे ख लें लाभ उन्ें अिश्य होिा।

िाधना के सिघ्न
October 1940
(ले . श्री रामदयाल िुप्त, नौिढ़)

ििंिार में अने क प्रकार की लौसकक परलौसकक िाधनाएिं हैं । सकिी भी कायध में िफलता प्राप्त करने तक की जो
मिं सजल है िह िाधना कहलाती है । इि िाधना में यसद कुछ सिघ्न उपक्तथर्त होते हैं तो उद्दे श्य भ्रष्ट हो जाता है और िफलता
नहीिं समलती। आप यसद सकिी महत्वपूणध कायध में लिे हुए हैं और उिमें िफलता प्राप्त करने की हासदध क कामना करते हैं तो
आपको उन सिघ्न बाधाओिं िे बचाि करना होिा जो मािध को किंटकाकीणध बना दे ती है । सिद्याध्ययन, अन्वे षण, कोई महान कायध
पूरा करना, दै िी िाधना, ईश्वर प्राक्तप्त आसद सकिी लक्ष को आपने क्तथर्र सकया है तो िाधना के सिघ्नोिं िे भी पररसचत होना
जरूरी है । नीचे उन सिघ्नोिं का कुछ सििरण सकया जाता है ।

(1) स्वास्थ्य का अभाि- खराब स्वास्थ्य होने पर कोई कायध अच्छी तरह नहीिं हो िकता। रोि पीसड़त और सनबधल शरीर
मनु ष्य जीिन धारण सकये रहने का कायध भी कसठनाई िे कर पाता है । भला िह अन्य िाधनाएिं सकि प्रकार करे िा? िाधन के
सलये स्वथर् रहने की आिश्यकता है । िोने , काम करने , खाने , पीने आसद का ऐिा सनयम रखना चासहये सजििे स्वास्थ्य सबिड़ने
न पािे। प्रकृसत िेिन, सनयसमत व्यायाम तर्ा आिनोिं िे स्वास्थ्य को बड़ा लाभ पहुाँ चता है ।

(2) खान पान में अििंयम- आहार की अशुक्तर्द् तर्ा अििंयम िे शारीररक और मानसिक रोि उत्पन्न होते हैं । अन्न के
अनु िार ही मन बनता है । तामिी और असनयसमतता पूिधक सकया हुआ भोजन सचत्त में चिंचलता और दु ष्ट सिचार उत्पन्न करता
है पल स्वरूप बुक्तर्द् भ्रष्ट होने लिती है और कुछ करते धरते नहीिं बन पड़ता। तीक्ष्ण मिालोिं िाला, िरम रूखा, आहार, बािी,
िड़ा हुआ जूठा अपसिि, िररष्ठ और अनीसत के िार् सलया हुआ भोजन तामिी है । इििे बचना चासहये। मादक द्रव्योिं िे दू र
रहना चासहये। जहािं तक हो िके िादा, िाक्तत्वक, रिीला और पौसष्टक भोजन भूख िे कुछ कम मािा में ही करना चासहये।

(3) िन्दे ह- िफलता उतनी िरल नहीिं है सजतनी लोि िमझते हैं । जब िाधारण काम काजोिं में कामयाबी मु क्तिल िे
होती है तो महान कायों में तो और भी असधक कसठनाई आती है । कभी कभी तो इतनी असधक बढ़ जाती है सक उनका
रूप अिफलता जैिा प्रतीत होता है । इन िारे सिघ्नोिं को दू र करने िाली यसद कोई चीज है तो िह अटू ट श्रर्द्ा और दृढ़
सिश्वाि ही है । सकिी भी काम को करते िमय यसद मन में ििंदेह उठते रहें िफलता के बारे में यसद बार-बार आशिंकाओिं िे
मन भरा रहे तो असिश्वाि बढ़ता जायेिा और तदनु िार कायध करने की क्षमता नष्ट होती जायिी अल्प शक्ति िे कसठन कायध
पूरे नहीिं हो िकते। इि प्रकार ििंदेह का सनसित फल अिफलता होती है । सजि काम को करना है पूरी तरह और काफी
िमय लिा कर िोच सिचार लो। सकन्तु जब आरम्भ कर दो तो िारे ििंदेहोिं को उठा कर ताक में रख दो और मशीन की
तरह कान में जुट जाओ। तभी िह पूरा हो िकेिा।

(4) िद् िुरु का अभाि- हर सिषय का ििंपूणध ज्ञान मनु ष्य अपने पेट में िे ही नहीिं प्राप्त कर िकता। उिे उि सिषय
के बारे में असधक जानकारी हासिल करनी होती है योिं तो हर सिषय अने कोिं प्रकार िे बताने िाले अनेक पुरुष हैं पर उनके
पर् प्रदशधन िे खतरा है । क्ोिंसक सजिने खुद रास्ता नहीिं दे खा िह दू िरोिं को क्ा बतायेिा। अनु भिी सनथस्वार्ध और उदार
सशक्षक को चुनना कसठन है पर जो इि कायध में िफल हो िया िह अपने उद्दे श्य में भी िफल हो िया। कई व्यक्ति इधर
उधर िे कुछ जान कर उिी के आधार पर अपना कायध प्रारम्भ करते हैं , िे कसठन प्रििंि आने पर िड़बड़ा जाते हैं और
अपने को खतरे में डाल ले ते हैं इिसलये उसचत है सक ित्=िच्चे, िुरु=सशक्षक। िच्चे सशक्षक को तलाश सकया जाय। यसद िह
आिानी िे न समल िकता हो तो उतािली में अल्पज्ञ व्यक्तियोिं को अपने मािधदशधक मत बनाओ। नहीिं पुरुषोिं की ले खनी का
ित्सिंि करो और उन्ें अपना सशक्षक बनाओ जो बहुत दू र हैं या िुजर चुके सकन्तु सजन की अिर िाणी पुस्तकोिं द्वारा तुम्हें
आिानी िे प्राप्त होती है ।
(5) सनयमानु िसतधता का अभाि- सनयत िमय पर िोना, उठना, बैठना, खाना, पीना आसद मन को एकाग्र करने में बड़े
िहायक होते हैं । जो काम आप को करना है उिे सनयम पूिधक करो। प्रसत सदन र्ोड़ा िा िमय भी यसद सनयम पूिधक लिाया
जाय तो कुछ ही सदनोिं में बहुत काम हो जाता है । सकन्तु यसद एक सदन बहुत सकया और दू िरे सदन सबल्कुल नहीिं तो कुछ
सिशेष लाभ न होिा, एक सदन का अभ्याि दू िरे सदन भूल जाओिे। इिसलये दै सनक जीिन सनिाधह के कायध तर्ा अपने सिशेष
प्रोग्राम के सलये िमय सनयत करलो और असनिायध कारण के सबना उिे सकिी प्रकार मत छोड़ो।

(6) प्रसिक्तर्द्- यश बड़ी िुन्दर िस्तु है । उिे हर कोई चाहता है । सकन्तु कुछ लोि यश को मु ख्य और काम को िौण
बना ले ते हैं फल स्वरूप उनके िारे काम यश के सलये होते है । िे िही काम करें िे सजिमें तारीफ िुनने को समले । यह
इच्छा बढ़ते बढ़ते इतनी बढ़ जाती है सक िह दम्भ करने पर उतर आता है । इििे िास्तसिक लाभ कुछ नहीिं होता। दम्भ
खुल जाने पर उल्टी अपकीसतध होती है । इिसलये प्रसिर्द् की ओर िे अपना मन सबलकुल हटा कर ठोि कायध करने पर जुट
जाना चासहये। यश तो महान कायों की छाया है जो िदा िार् रहता है । छाया के पीछे दौड़ने िे िह दू र हटती जायिी
सकन्तु उिकी ओर िे मुाँ ह मोड़ लोिे तो पीछे सफरे िी। प्रसिक्तर्द् की ओर िे मुाँ ह मोड़ कर एकान्त िनोिं में रहते हुए सजन
ऋसषयोिं ने लोक कल्याण के अने क कायध सकये र्े उनकी कीसतध लाखोिं िषों िे अब तक अमर है । सकन्तु झूठे सिज्ञापन बाजोिं
की ओर तो लोि आिं खें उठाकर भी नहीिं दे खते। िच्चे हृदय ठोि काम कररये प्रसिर्द् की इच्छा मत कीसजये। िह तो अपने
आप ही समलने िाली है ।

(7) कुतकध- अपने को बुक्तर्द्मान िमझने िाले लोि बात बात में बहि और तकों िे काम लेते हैं । उनके तकध इतने
बढ़ जाते हैं सक सबना बहि के कदम भी नहीिं रखना चाहते। तकध यद्यसप अच्छी चीज है उििे भले बुरे की पहचान करने में
बहुत मदद समलती है सफर भी उिकी जड़ में श्रर्द्ा का होना आिश्यक है । तकध के सलये सकया जाने िाला तकध यर्ार्ध में
कुतकध है । इन कुतकों का िमाधान सकिी भी तरह नहीिं हो िकता यसद भोजन, शयन के काम में आने िाली िस्तुओिं के बारे
में तकध उठाया जाय तो उन्ें काम में नहीिं लाया जा िकता। हमारी रीसत ररिाजें, िामासजक सनयम, धमध व्यिथर्ा, ईश्वर के
आक्तस्तत्व इनमें िे सकिी को तकध स्वीकार नहीिं कर िकता। सफर तकध के ऊपर तकध है । एक तकध के इतने बच्चे हो िकते
हैं सक उन्ें दे ख कर सकिंकतधव्य सिमू ढ़ होना पड़े िा। अन्त में श्रर्द्ा के अिलम्ब िे ही शाक्तन्त समले िी। इिसलये कुतकों को
त्यािो अपनी आत्मा की आिाज िुनो िद् बुक्तर्द् िे उि पर सिजय प्राप्त करो।

निरासि में अनु ष्ठान तपियाध


April 1968
दै सनक उपािना के सलए सपछले पृष्ठोिं पर अभी (1) प्रातुः 3 िे 5 अर्िा रासि को 8 िे 10 बजे के बीच की जाने िाली
‘ज्योसत-अितरण’ की िाधना, (2) सनत्य पूजन-आत्म-शुक्तर्द् के पााँच सिधान- िप्तसिसध उपचार अचधन और एक माला एििं एक
चालीिा पाठ आत्मकल्याण के सलए- एक माला ित्सिंकल्प पाठ युि-सनमाधण के सलये करने का प्रकार बताया िया है । मालाओिं
की ििंख्या कम भले ही हो पर जप के िार् ध्यान अिश्य जुड़े होने चासहये। आत्म-कल्याण िाली माला के िार् माता की
िोदी में िीड़ा-कल्लोल करने और पय-पान करने का और सिश्व-कल्याण िाली माला के िार् दीपक पर पतिंिे की तरह
सिश्व-मानि के सलए आतम-िमपधण करने का ध्यान बताया िया है ।

मालायें भले ही दो रहें पर यसद उनके िार् यह ध्यान जुड़ा रहे िा तो सनस्सिंदेह उिमें प्रखरता एििं िजीिता उत्पन्न
होिी। यह िजीि उपािना हमारे िूक्ष्म, थर्ूल और कारण शरीरोिं को प्रभासित करे िी और जीिन िम में ऐिा हे र-फेर उत्पन्न
करे िी, सजििे अपने अध्यात्म की असभिृक्तर्द् का पररचय अपने को और दू िरोिं को भली प्रकार समल िकेिा। शरीर में रि-
मााँि बढ़ने का प्रमाण, पररचय अपने को और दू िरोिं को आिानी िे लि जाता है , सफर कोई कारण नहीिं सक अन्तरिं ि में
अध्यात्म की असभिृक्तर्द् िे जीिन-िम में उत्पन्न हुई सदव्यता का प्रमाण पररचय न समले । िच्चे उपािक की जीिन िुििंसध हर
सदशा को िुिासित करती है ।

यह दै सनक उपािना िम हुआ। िषध में दो बार सिशेष तपियाधयें करनी चासहये। आसश्वन और चैि की निरासियोिं के 9-9
सदन सिसशष्ट िाधना के सलए असत उपयुि हैं । सजि प्रकार सदन और रासि के समलन अििर को ििंध्याकाल कहते हैं और
प्रातुः िााँय के ििंध्याकाल में उपािना करना महत्वपूणध मानते हैं , उिी प्रकार शीत और ग्रीष्म ऋतुओिं के समलन की यह ऋतु
ििंध्या 9-9 सदन के सलए- निरासि के रूप में - िषध में दो-बार आया करती हैं । शरीर और मन के सिकारोिं का सनष्कािन-
पररशोधन इि अििर पर बड़ी आिानी िे हो िकता है । सजि प्रकार बीज बोने की एक सिशेष अिसध आती है और चतुर
सकिान उन सदनोिं ितकधतापूिधक अपने खेतोिं में बीज बो दे ते हैं , उिी प्रकार इन निरासियोिं में भी कुछ तपियाध की जा िके
तो उिके असधक फलिती होने की ििंभािना रहती है । क्तियोिं को महीने में सजि प्रकार ऋतुकाल आता है , ‘उिी प्रकार
निरासियााँ प्रकृसत की भी ऋतुकाल है । इन सदनोिं यसद आध्याक्तत्मक बीजारोपण सकये जािंय तो उनके फसलत होने की ििंभािना
सनिय ही असधक रहे िी।

आसश्वन िुदी प्रसतपदा िे ले कर निमी तक और चैि िुदी प्रसतपदा िे ले कर निमी तक 9-9 सदन की दो निरासि होती
हैं । एक तीिरी निरासि जेष्ठ िुदी प्रसतपदा िे निमी तक भी होती है । दशमी को िायिी जयिंती होने के कारण यह 9 सदन
का पिध भी मानने और मनाने योग्य है । पर यसद उिकी व्यिथर्ा न न पड़े तो 6-6 महीने के अन्तर िे आने िाली आसश्वन
और चैि की दो निरासियााँ तो तपियाध के सलये सनयत रखनी ही चासहये। सतसर्यााँ अक्सर घटती-बढ़ती रहती हैं । िाधना उि
झिंझट में नहीिं पड़ती।

निरासियोिं का अर्ध नौ रातें हैं । रातें न कभी घटती हैं , न बढ़ती हैं । इिसलये सजि सदन प्रसतपदा हो- निरासि का आरिं भ
हो उि सदन िे ले कर पूरे नौ सदन इिके सलए सनयत रखने चासहये। 9 िें सदन अपना जप िाधना पूरा होने पर चाहें तो उिी
सदन अपनी िाधनापूणध कर िकते हैं अर्िा िुसिधानु िार एक सदन आिे बढ़ा कर दशमी को दििें सदन भी अनु ष्ठान की
पूणाधहुसत रखी जा िकती है । यसद कोई िामू सहक उत्सि आयोजन उि अििर पर कुछ बड़े रूप में बन पड़े तब तो निमी
और दशमी दो सदन की बात बहुत ही उत्तम है ।

आसश्वन में दशमी को सिजय-दशमी पड़ती है । ज्येष्ठ िुदी दशमी को ििंिा जयन्ती अर्िा िायिी जयिंती होती है । चैि
िुदी 9 को राम-निमी का पिध है । तब दशमी का तो कोई सिशेष पिध नहीिं होता पर सजि प्रकार आसश्वन ज्येष्ठ में निमी को
भी कोई पिध न होने पर भी उि सदन पूणाधहुसत की जाती है , उिी प्रकार चैि में उिकी कोई सिशेषता न होने पर भी
सद्वसदििीय िधध िम में उिे भी िक्तम्मसलत रखा जा िकता है । जहााँ पूूूणाधहुसत एक सदन में करनी हो िहााँ निमी को अर्िा दो
सदन के िामू सहक कायधिम में निमी, दशमी दो सदन का आयोजन रखना चासहये। उिमें भी सतसर्योिं की बटा-बढ़ी को महत्व
नहीिं दे ना चासहये।

निरासियोिं की नौ सदििीय िाधना 24 िहस्र िायिी अनु ष्ठान के िार् िम्पन्न करनी चासहये। िायिी परम ितोिुणी-
शरीर और आत्मा में सदव्य तत्वोिं का- आध्याक्तत्मक सिशेषताओिं का असभिधध न करने िाली महाशक्ति है । यही आत्म-कल्याण
का मािध है । हमें यही िाधन इन सदनोिं करना चासहये। योिं कई लोि तमोिुणी रि-मााँि िे िराबोर िध ििंहार करने िाले
दे िी दे िताओिं की भी पूजा उपािना करते हैं । यह तााँसिक सिधान है । तााँसिक प्रयोि मनु ष्य में तमोिुणी तत्वोिं को बढ़ा िकते
हैं , उििे कोई िााँिाररक प्रयोजन पूरा हो भी िकता है । पर तमोिुण के िातािरण में आक्तत्मक प्रिसत की आशा नहीिं की जा
िकती। इिसलये श्रेय पर् के पसर्कोिं को िायिी अनु ष्ठान ही निरासियोिं में करने चासहये।

24 हजार जप का लघु िायिी अनु ष्ठान होता है । प्रसतसदन 27 माला जप करने िे 9 सदन में 240 मालायें अर्िा 2400
मिं ि जप पूरा हो जाता है । माला में योिं 108 दाने होते हैं पर 8 अशुर्द् उच्चारण अर्िा भूल-चूक का सहिाब छोड़ कर िणना
100 की ही की जाती है । इिसलये प्रसतसदन 27 माला का िम रखा जाता है । मोटा अनु पात घिंटे में 10-11 माला का रहता है ।
इि प्रकार प्रायुः ढ़ाई घण्टे इि जप में लि जाते हैं । प्रातुःकाल उतना िमय न समलता हो तो प्रातुः िायिं दोनोिं िमय समला
कर इि ििंख्या को पूरा सकया जा िकता है । प्रातुःकाल स्नान करके बैठना चासहये और दै सनक पूजा की तरह ही आत्म-शुक्तर्द्
के पााँच सिधान, पूजा के िात उपचार पूरे करके जप आरिं भ कर दे ना चासहये। अन्त में िूयध को अघध दान करना चासहये।

यसद जप प्रातुः पूरा नहीिं हो िकता है तो िायिंकाल उिे पूरा कर ले ना चासहये। ध्यान इतना ही रखना चासहये सक एक
घण्टा रासि जाने िे पूिध ही शेष जप पूरा कर सलया जाय। असधक रात िये मानसिक जप तो हो िकता है पर उिकी िणना
अनु ष्ठान में नहीिं होती है । िायिंकाल स्नान की आिश्यकता नहीिं। हार्-मुाँ ह धोकर शेष उपािना की पूसतध की जा िकती है ।
असधक दे र बैठने िे घुटने ददध करते होिं, तो खड़े होकर भी कुछ जप सकया जा िकता है । बीच में पेशाब के सलए उठना
पड़े तो सफर हार्-पैर धोकर बैठना चासहये और जप आरिं भ करने िे पूिध तीन आचमन कर लेने चासहये। क्तियोिं को यसद बीच
में अशुक्तर्द् काल आ जाय तो चार सदन बिंद रखें और सजतने सदन का जप शेष रहा र्ा, उिे पीछे पूरा कर लें ।

इि प्रकार का व्यिधान जब पड़े तो 10 माला उि ििंदभध में असधक कर ले नी चासहये। अनु ष्ठान के सदनोिं में यज्ञोपिीत
पहनना तो असधक आिश्यक है । जो पहनते हैं िे आरिं भ के सदन नया बदल लें । जो नहीिं पहनते उन्ें कम-िे-कम 9 सदन के
सलए तो पहन ही ले ना चासहये, पीछे न पहनना हो तो उतार भी िकते हैं । सजनकी िोदी में बहुत छोटे बच्चे हैं और िार्
िोने के कारण पेशाब टट्टी में अक्सर यज्ञोपिीत ििंदा कर िकते हैं , उन्ें छोड़ शेष क्तियााँ भी अनु ष्ठान के सदनोिं यज्ञोपिीत
पहन िकती हैं । सकन्तु यसद परम्परािश जने ऊ न भी पहने तो भी अनु ष्ठान तो सबना सकिी सहचक के कर िकती है ।
उपािना क्षेि में नर-नारी को एक िमान असधकार है । ईश्वर के सलए पुि-पुिी दोनोिं िमान हैं । यह भेदभाि तो ििंकीणध बुक्तर्द्
का अभािा मनु ष्य ही करता रहता है ।

अनु ष्ठान काल में जप तो पूरा करना ही पड़ता है , कुछ सिशेष तपियाधयें भी इन सदनोिं करनी होती हैं , जो इि प्रकार
है -

(1) नौ सदन तक पूणध ब्रह्मचयध िे रहा जाय। यसद स्वप्न दोष हो जाय तो दि माला प्रायसित की असधक की जाय।

(2) नौ सदन उपिाि रखा जाय। उपिाि में कई स्तर हो िकते हैं , (अ) फल-दू ध पर (ब) शाकाहार, (ि) क्तखचड़ी
दसलया आसद रााँध कर खायें। आलू , टमाटर, लौकी आसद शाक में नमक भर डालना चासहये। मिाला इन सदनोिं छोड़ सदया
जाय। सबना नमक या शकर का िाधारण भोजन भी एक प्रकार का उपिाि ही है । सजनिे जैिा बन पड़े उन्ें अपनी
शारीररक क्तथर्सत के अनु रूप उपिाि का िम बना ले ना चासहये। फलाहार- शाकाहार दो बार सकया जा िकता है । अन्नाहार
ले ना हो तो एक बार ही ले ना चासहये। िायिंकाल दू ध आसद सलया जा िकता है । प्रातुःकाल खाली पेट सजनिे न रहा जाय, िे
दू ध, छाछ, नीिंबू, पानी शरबत जैिी कोई पतली चीज ले िकते हैं ।

(3) भूसम शयन, चारपाई का त्याि। पृथ्वी या तख्त पर िोना।

(4) अपनी िेिायें स्वयिं करना। हजामत, कपड़े धोना, स्नान आसद दै सनक कायध सबना दू िरोिं के श्रम का उपयोि सकये स्वयिं
ही करने चासहये। भोजन बाजार का बना नहीिं खाना चासहये। स्वयिं पकाना ििंभि हो तो ििोत्तम अन्यर्ा अपनी पत्नी, माता
आसद का। घसनष्ठ पररजनोिं की िे िा ही उिमें ली जा िकती है ।

(5) चमड़े की बनी िस्तुओिं का त्याि। चूाँसक इन सदनोिं 99 प्रसतशत चमड़ा पशुओिं की हत्या करके ही प्राप्त सकया जाता
है और िह पाप उन चमड़ा उपयोि करने िालोिं को भी लिता है । इिसलये चमड़े के जूते, पेटी, पट्टे आसद का उपयोि उन
सदनोिं न करके रबड़, कपड़ा आसद के बने जूते, चप्पलोिं िे काम चलाना चासहये।

यहााँ पााँच सनयम अनु ष्ठान काल में पालन सकये जाने चासहये। जप का शतािंश हिन सकया जाना चासहये। प्रसतसदन हिन
करना हो तो 27 आहुसतयााँ और अन्त में करना हो तो 240 आहुसतयोिं का हिन करना चासहये। अच्छा यही है सक अन्त में
सकया जाय और उिमें घर पररिार के अन्य व्यक्ति भी िक्तम्मसलत कर सलये जािंय। यसद एक निर में कई िाधक अनु ष्ठान
करने िाले होिं तो िे िब समल कर एक िामू सहक बड़ा हिन कर िकते हैं , सजिमें अनु ष्ठानकताधओिं के असतररि अन्य व्यक्ति
भी िक्तम्मसलत हो िकें। हिन में िुििंसधत पदार्ध असधक होिं, र्ोड़ी मािा में जौ, सतल, चािल, शकर और घी भी समलाया जाय।
िायिी हिन पर्द्सत में िारा सिसध सिधाएिं सलखा है । ध्यानपूिधक उिे पढ़ने और सकिी जानकार की िहायता िे िमझने पर
हिन की पूरी सिसध आिानी िे िीखी, िमझी जा िकती है । उतना न बन पड़े तो भी तााँबे के कुण्ड में अर्िा समट्टी की िेदी
बना कर उि पर आम, पीपल, बरिद, शमी, ढाक आसद की लकड़ी सचननी चासहये और कपूर अर्िा घी में डूबी रुई की बत्ती
िे असि प्रज्वसलत कर लेनी चासहये। िात आहुसत केिल घी की दे कर इिके उपरान्त हिन आरिं भ कर दे ना चासहये। आहुसतयााँ
दे ने में भी तजधनी उिं िली काम नहीिं आती है । अिं िूठा, मध्यमा अनासमका का प्रयोि ही जप की तरह हिन में भी सकया जाता
है । मिं ि िब िार्-िार् बोलें , आहुसतयााँ िार्-िार् दें । अन्त में एक क्तस्वष्टकृत आहुसत समठाई की। एक पूणाधहुसत िुपाड़ी, िोला
आसद की खड़े होकर। एक आहुसत चम्मच िे बूाँद-बूाँद टपका कर ििोधारा की। इिके बाद आरती, भस्म धारण, घृत हार्ोिं िे
मल कर चेहरे िे लिाना, क्षमा-प्रार्धना, िाष्टााँि पररिमा आसद कृत्य कर ले ने चासहये। इन सिधानोिं के मिं ि में न आते होिं तो
केिल िायिी मिं ि का भी हर प्रयोजन में प्रयोि सकया जा िकता है । अच्छा तो यही है सक पूरी सिसध िीखी जाय और पूणध
सिधान िे हिन सकया जाय। पर िैिी व्यिथर्ा न हो तो उपरोि प्रकार िे ििंसक्षप्त िम भी बनाया जा िकता है ।

पूणाधहुसत के बाद प्रिाद सितरण, कन्या भोजन आसद का प्रबिंधन अपनी िामर्थ्ध अनु िार करना चासहये। अच्छा तो यह है
सक एक सदन या दो सदन का िामू सहक आयोजन सकया जाय, सजिमें िायिी महाशक्ति का स्वरूप और उपयोि ििंबिंधी प्रिचन
होिं। असधक लोिोिं को आमिं सित, एकसित सकया जाय और उन्ें भी इि मािध पर चलने के सलये प्रेररत सकया जाय। अन्त में
ित्सिंकल्प दु हराया जाना हमारे हर धमाधनुष्ठान का आिश्यक अिं ि होना चासहये।

जो उपरोि अनु ष्ठान नहीिं कर िकते िे 240 िायिी चालीिा का पाठ करके अर्िा 240 िायिी मिं ि सलख कर भी
िरल अनु ष्ठान कर िकते हैं । इिके िार् पााँच प्रसतबिंध असनिायध नहीिं, पर ब्रह्मचयध आसद सनयम सजतने कुछ पालन सकए जा
िकें, उतने ही उत्तम हैं ।

अनु ष्ठान काल में अक्सर आिुरी शक्तियााँ सिघ्न-बाधायें उपक्तथर्त करती रहती हैं । कई भूलें और िुसटयााँ भी रह जाती हैं ।
इन सिघ्नोिं का ििंरक्षण और िुसटयोिं का दोष पररमाजधन करते रहने के सलए कोई भी अनु ष्ठानकताध हमारी िेिाओिं का लाभ उठा
िकता है । जिाबी पि भेज कर निरासि िे पूिध ही िायिी तपोभूसम मर्ुरा के पते पर हमें िूचना दी जा िकती है । उनके
अनु ष्ठान को सनसिधघ्न एििं िफलतापूिधक िम्पन्न कराने के सलये नौ सदन तक ििंरक्षण पररमाजधन करते रहें िे।

जो हिन न कर िकते होिं उनके बदले का हिन भी िायिी तपोभूसम की यज्ञशाला में सकया जा िकता है । जो
अनु ष्ठान स्वयिं नहीिं कर िकते, उनके सलए जप, हिन, तपधण मदध न, मु द्रा, असभषेक, हिन, पूणाधहुसत, कन्या भोज, प्रिाद सितरण आसद
िमस्त अिं ि-उपााँिोिं िमे त ििाांिपूणध अनु ष्ठान सिद्वान कमध कााँडी ब्राह्मणोिं द्वारा कराया जा िकता है । सजन्ें ऐिी आिश्यकता हो
पि द्वारा आिश्यक जानकारी प्राप्त कर लें ।

यर्ाििंभि निरासियोिं में अनु ष्ठानोिं की सिशेष तपियाध की व्यिथर्ा बनानी चासहये। इििे शरीर और मन में भरे सिकारोिं
को पररशोधन करने में बड़ी िहायता समलती है ।

दै सनक उपािना की िरल सकन्तु महान प्रसिया


April 1968
सनयसमत उपािना के सलए पूजा-थर्ली की थर्ापना आिश्यक है । घर में एक ऐिा थर्ान तलाश करना चासहये जहााँ
अपेक्षाकृत एकान्त रहता हो, आिािमन और कोलाहल कम-िे-कम हो। ऐिे थर्ान पर एक छोटी चौकी को पीत िि िे
िुिक्तज्जत कर उि पर कााँच िे मढ़ा भििान का िुन्दर सचि थर्ासपत करना चासहये। िायिी की उपािना ििोत्कृष्ट मानी िई
है । इिसलये उिकी थर्ापना की प्रमु खता दे नी चासहये। यसद सकिी का दू िरे दे िता के सलये आग्रह होिं तो उन दे िता का सचि
भी रखा जा िकता है । शािोिं में िायिी के सबना अन्य िब िाधनाओिं का सनष्फल होना सलखा है । इिसलये यसद अन्य दे िता
को इष्ट माना जाय और उिकी प्रसतमा थर्ासपत की जाय तो भी िायिी का सचि प्रत्येक दशा में िार् रहना ही चासहये।

अच्छा तो यह है सक एक ही इष्ट िायिी महाशक्ति को माना जाय और एक ही सचि थर्ासपत सकया जाय। उििे
एकसनष्ठा और एकाग्रता का लाभ होता है । यसद अन्य दे िताओिं की थर्ापना का भी आग्रह हो तो उनकी ििंख्या कम-िे-कम
रखनी चासहये। सजतने दे िता थर्ासपत सकये जायेंिे, सजतनी प्रसतमाएिं बढ़ाई जायेंिी- सनष्ठा उिी अनु पात िे सिभासजत होती
जायेिी। इिसलये यर्ाििंभि एक अन्यर्ा कम-िे-कम छसियााँ पूजा थर्ली पर प्रसतष्ठासपत करनी चासहये।

पूजा-थर्ली के पाि उपयुि व्यिथर्ा के िार् पूजा के उपकरण रखने चासहये। अिरबत्ती, पिंच-पाि, चमची, धू पबत्ती,
आरती, जल सिराने की तस्तरी, चिंदन, रोली, अक्षत, दीपक, नै िेद्य, घी, सदयािलाई आसद उपकरण यर्ा-थर्ान सडब्ोिं में रखने
चासहये। आिन कुशाओिं का उत्तम है । चटाई में काम चल िकता है । आिश्यकतानु िार मोटा या िुदिुदा आिन भी रखा जा
िकता है । माला चन्दन या तुलिी की उत्तम है । शिंख, िीपी मूाँ िा जैिी जीि शरीरोिं िे बनने िाली मालाएिं सनसषर्द् हैं । इिी
प्रकार सकिी पशु का चमड़ा भी आिन के थर्ान पर प्रयोि नहीिं करना चासहये। प्राचीन काल में अपनी मौत मरे हुए पशुओिं
का चमध िनिािी ििंत िामसयक आिश्यकता के अनु रूप प्रयोि करते होिंिे। पर आज तो हत्या करके मरे हुए पशुओिं का
चमड़ा ही उपलब्ध है । इिका प्रयोि उपािना की िाक्तत्वकता को नष्ट करता है ।

सनयसमत उपािना, सनयत िमय पर ििंथर्ा में , सनयत थर्ान पर होनी चासहये। इि सनयसमतता िे िह थर्ान ििंस्काररत हो
जाता है और मन भी ठीक तरह लिता है । सजि प्रकार सनयत िमय पर सििरे ट आसद की ‘भड़क’ उठती है , उिी तरह पूजा
के सलये भी मन में उत्साह जिता है । सजि थर्ान पर बहुत सदन िे िो रहे हैं , उि थर्ान पर नीिंद ठीक आती है । नई जिह
पर अकिर नीिंद में अड़चन पड़ती है । इिी प्रकार पूजा का सनयत थर्ान ही उपयुि रहता है । व्यायाम की िफलता तब है
जब दिं ड बैठक आसद को सनयत ििंख्या में सनयत िमय पर सकया जाय। कभी बहुत कम, कभी बहुत ज्यादा, कभी िबेरे, कभी
दोपहर को व्यायाम करने िे लाभ नहीिं समलता।

इिी प्रकार दिा की मािा भी िमय और तोल को ध्यान में रख कर मनमाने िमय और पररमाण में िेिन की जाय
तो उििे उपयुि लाभ न होिा। यही बात अक्तथर्र ििंख्या की उपािना के बारे में कही जा िकती है । यर्ा ििंभि सनयसमतता
ही बरतनी चासहये। रे लिे की रसनिं ि ड्यूटी करने िाले , यािा में रहने िाले , फौजी, पुसलि िाले सजन्ें अक्सर िमय-कुिमय यहााँ-
िहााँ जाना पड़ता है , उनकी बात दू िरी है । िे मजबूरी में अपना िम जब भी, सजतना भी बन पड़े , रख िकते हैं । न कुछ िे
कुछ अच्छा। पर सजन्ें ऐिी अिुसिधा नहीिं उन्ें यर्ा ििंभि सनयसमतता ही बरतनी चासहये। कभी मजबूरी की क्तथर्सत आ पड़े
तो तब िैिा हे र-फेर सकया जा िकता है ।
पूजा उपचार के सलये प्रातुःकाल का िमय ििोत्तम है । थर्ान और पूजा उपकरणोिं की िफाई सनत्य करनी चासहये। जहााँ
तक हो िके सनत्यकमध िे शौच, स्नान आसद िे सनिृत्त होकर ही पूजा पर बैठना चासहये। रुग्ण या अशि होने की दशा में
हार्-पैर, मुाँ ह आसद धोकर भी बैठा जा िकता है । पूजा का न्यूनतम कायध तो सनधाधररत रखना ही चासहये। उतना तो पूरा कर
ही सलया जाय। यसद प्रातुः िमय न समले तो िोने िे पूिध सनधाधररत कायधिम की पूसतध की जाय। यसद बाहर प्रिाि में रहना हो
तो मानसिक ध्यान पूजा भी की जा िकती है । ध्यान में सनत्य की हर पूजा पर्द्सत का स्मरण और भाि कर लेने को
मानसिक पूजा कहते हैं । सििशता में ऐिी पूजा िे भी काम चल िकता है ।

िबिे पहले शरीर, मन और इक्तन्द्रयोिं को- थर्ूल, िूक्ष्म और कारण शरीरोिं की शुक्तर्द् के सलये आत्म-शुक्तर्द् के पिंचोपचार
करने चासहये। यही ििं सक्षप्त ब्रह्म-ििंध्या है । (1) बायें हार् में एक चम्मच जल रख कर दासहने िे ढिं का जाय। पसििीकरण का
मिं ि अर्िा िायिी मिं ि पढ़ कर उि जल को िमस्त शरीर पर सछड़का जाय, (2) तीन बार, तीन चम्मच भर कर, तीन आचमन
सकये जािंय। आचमनोिं के तीन मिं ि पुस्तकोिं में हैं , िे याद न होिं तो हर आचमन पर िायिी मिं ि पढ़ा जा िकता है । (3) चोटी
में िााँठ लिाई जाय। अर्िा सशखा थर्ान को स्पशध सकया जाय। सशखा बिंधन का मिं ि याद न हो तो िायिी मिं ि पढ़ा जाय।
(4) दासहना नर्ुना बन्द कर बायें िे िााँि खीिंची जाय। भीतर रोकी जाय और बायााँ नर्ुना बन्द करके दासहने छे द िे िााँि
बाहर सनकाली जाय। यह प्राणायाम है । प्राणायाम का मिं ि याद न हो तो िायिी मिं ि मन ही मन पढ़ा जाय। (5) बाईिं हर्ेली
पर जल रख कर दासहने हार् की पााँचोिं उिं िसलयााँ उिमें डु बोई जािं य और िमशुः मु ख, नाक, आाँ ख, कान, बाहु, जिंघा इन पर बाईिं
और दाईिं और जल का स्पशध कराया जाता, यह न्याि है । न्याि के मिं ि याद न होने पर भी िायिी का प्रयोि हो िकता है ।
यह शरीर मन और प्राण की शुक्तर्द् के सलये सकये जाने िाले पााँच प्रयोि हैं । इन्ें करने के बाद ही दे ि पूजन का कायध
आरिं भ होता है ।

दे ि पूजन में िबिे प्रर्म धरती-माता का- मातृ-भूसमका, सिश्व-ििुन्धरा का पूजन है । सजि धरती पर सजि दे श िमाज
में जन्म सलया है िह प्रर्म दे ि है , इिसलये इष्टदे ि की पूजा िे भी पहले पृथ्वी पूजन सकया जाता है । पृथ्वी पर जल, अक्षत,
चिंदन, पुष्प रख कर पूजन करना चासहये। पृथ्वी पू जन के मिं ि याद न होिं तो िायिी मिं ि का उच्चारण कर लेना चासहये।

इिके बाद इष्टदे ि का- िायिी माता का- पूजन सकया जाय। 1. आह्वान, आमिं िण के सलए अक्षत, 2. स्नान के सलए जल,
3. स्वाित के सलए चिंदन अर्िा रोली, 4. िुििंध के सलए अिरबत्ती, 5. िम्मान के सलए पुष्प, 6. आहार के सलए नै िेद्य कोई फल
मे िा या समठाई, 7. असभिन्दन के सलए आरती, कपूर अर्िा दीपक की। यह िात पूजा उपकरण ििधिाधारण के सलए िरल हैं ।
पुष्प हर जिह- हर िमय नहीिं समलते। उनके अभाि में केशर समसश्रत चन्दन िे रिं िे हुए चािल प्रयोि में लाये जा िकते हैं ।
प्रर्म भििान की पूजा थर्ली पर सिशेष रूप िे आह्वान आमिं सित करने के सलये हार् जोड़कर असभिन्दन करना चासहये और
उपक्तथर्त का हषध व्यि करने के सलए मााँिसलक अक्षतोिं (चािलोिं) की िषाध करनी चासहये। इिके बाद जल, चिंदन, अिरबत्ती,
पुष्प, नै िेद्य, आरती की व्यिथर्ा करते हुए उनका स्वाित, िम्मान करना चासहये। यह सिश्वाि करना चासहये सक भििान िामने
उपक्तथर्त हैं और हमारी पूजा प्रसिया को- भािनाओिं को ग्रहण स्वीकार करें िे। उपरोि िात पू जा उपकरणोिं के अलि-अलि
मिं ि भी हैं । िे याद न हो िकें तो हर मिं ि की आिश्यकता िायिी िे पूरी हो िकती है । इि सिधान के अनु िार इि एक
ही महामिं ि िे कभी पूजा प्रयोजन पूरे कर ले ने चासहये।

इिके बाद जप का नम्बर आता है । मिं ि ऐिे उच्चारण करना चासहये, सजििे किंठ, होठ और जीभ सहलते रहें । उच्चारण
तो होता रहे पर इतना हल्का हो सक पाि बैठा व्यक्ति भी उिे ठीक तरह िे िुन िमझ न िके। माला को प्रर्म मस्तक
पर लिाना चासहये सफर उििे जप आरिं भ करना चासहये। तजधनी उिं िली का प्रयोि नहीिं सकया जाता, माला घुमाने में अिं िूठा,
मध्यमा और अनासमका इन तीनोिं का ही प्रयोि होता है । जब एक माला पूरी हो जाय तब िु मेरु (बीच का बड़ा दाना)
उल्लिंघन नहीिं करते उिे लौट दे ते हैं ।

असधक रात िये जप करना हो तो मुाँ ह बन्द करके- उच्चारण रसहत मानसिक जप करते हैं । िाधारणतया एक माला
जप में 6 समनट लिते हैं । पर अच्छा हो इि िसत को और मिं द करके 10 समनट कर सलया जाय। दै सनक उपािना में - जब
सक दो ही माला सनत्य करनी हैं , िसत में तेजी लाना ठीक नहीिं। माला न हो तो उिं िसलयोिं पर 108 सिन कर एक माला पूरी
होने की िणना की जा िकती है । घड़ी िामने रख कर भी िमय का अनु मान लिाया जा िकता है ।

न्यूनतम उपािना िम में एक माला िायिी महामिं ि की आत्म-कल्याण के सलये और एक माला सिश्व-कल्याण के सलए।
दो को असनिायध माना िया है । इिके असतररि असधक जप या सकिी अन्य दे िी-दे िता का जप पाठ अपनी इच्छा और
िुसिधा पर सनभधर है । आत्म-कल्याण की भािनाओिं की असभव्यक्ति ‘िायिी चालीिा’ में और सिश्वकल्याण की रीसत-नीसत ‘युि-
सनमाधण ित्सिंकल्प’ में मौजूद है । इिसलए पहली आत्म-कल्याण की माला जपने के बाद िायिी चालीिा का पाठ और दू िरी
सिश्व कल्याण की माला जपने के बाद युि-सनमाधण ित्सिंकल्प का पाठ करना चासहये।
आत्म-कल्याण की माला जपते िमय िायिी माता की िोदी में खेलने का और सिश्व-कल्याण की माला जपते िमय
दीपक पर पतिंिे का आत्म-िमपधण करने की तरह लोक-मिं िल के सलये- सिश्व-मानि के सलए अपने अक्तस्तत्व को िमसपधत
करने का ध्यान भािनापूिधक करते रहना चासहये। दोनोिं ही ध्यान बड़े प्रेरक हैं । उन्ें पररपूणध श्रर्द्ा और प्रिाढ़ भािना के िार्
इि प्रकार करना चासहये सक िचमु च िैिी ही क्तथर्सत अनु भि होने लिे।

इि ध्यान समसश्रत जप और ध्यान को पूरा होने पर सििसजधत करते हुए भििान को नमस्कार, प्रणाम करना चासहये और
अक्षत िषाध करके सिदा करना चासहये। पूजा के प्रारिं भ में जल असि को िाक्षी करने के सलए जहााँ धू पबत्ती जलाई जािंय िहीिं
एक छोटा लोटा जल भर कर कलश रूप में भी रखना चासहये और पूजा के अन्त में उिे िूयध नारायण की सदशा में - प्रातुः
पूिध की ओर और िायिं पसिम में - अघध चढ़ा दे ना चासहये। अघध का मिं ि याद न हो तो िायिी मिं ि िे काम चल िकता है ।

अधजली अिरबत्ती या दीपक की बत्ती दू िरे सदन काम में नहीिं आती, इिसलए उिे पूजा के बाद भी जलती ही छोड़
दे ना चासहये तासक अपने आप जल कर िमाप्त हो जाय।

प्रातुःकाल एक बार तो इि तरह पूजा करना आिश्यक ही है । ििंभि हो िके तो शाम को भी करना चासहये। शाम
को एक माला आत्म-कल्याण की करने िे भी काम चल िकता है । आत्म शुक्तर्द् पााँच ििंध्या सिधान और िप्त सिसध पूजा
िायिंकाल को भी करनी चासहये। घर के अन्य लोिोिं को भी िी, बचोिं को भी यह प्रेरणा दे नी चासहये सक िे उि पूजा थर्ली
के िमीप बैठकर कम-िे-कम एक माला िायिी मिं ि की िभी कर सलया करें । िप्त सिसध पूजा एक बार कर ली िई हो तो
बार-बार करने की आिश्यकता नहीिं रह जाती। घर में पूजा थर्ली की थर्ापना- उिके सनकट बैठ कर पूजा, उपािना का
िम हर िद् िृहथर् को अपने यहााँ चलाना चासहये। स्वयिं तो सनयसमत उपािना करनी चासहये। प्रयत्न यह भी करना चासहये सक
पररिार के दू िरे लोि भी- दि-पािंच समनट िहााँ बैठ कर र्ोड़ी-बहुत उपािना अिश्य कर सलया करें । घर में आक्तस्तकता
का- भक्ति भािना का िातािरण रहना पररिार की भािनात्मक िमृ क्तर्द् और आक्तत्मक शुक्तर्द् के सलए असत आिश्यक है ।

(ले .-डा. िोसिन्द प्रिाद कौसशक, राधा कुण्ड)

ित अिं क में बता चुका हाँ सक प्राणायाम और स्वास्थ्य का सकतना िहरा ििंबिंध है । अखिंड ज्योसत के पाठकोिं िे मु झे
इतनी आशा तो करनी ही चासहए सक िे इि मोटी बात को जरूर जानते और मानते होिंिे जो बात शरीर को उत्तम स्वास्थ्य
प्रदान करने िाली होिी िह मन को लाभ अिश्य पहुिं चायेिी। क्ा प्राणायाम का लाभ केिल शरीर-रक्षा तक ही िीसमत है ?
नहीिं! उिके लाभ अिसणत हैं और मन के ऊपर उिका सिशेष प्रभाि पड़ता है । आन्तररक शुक्तर्द् के सलए योिी लोि
प्राणायाम को अपूिध अि मानते हैं । महसषध पातिंजसल ने योि दशधन में कहा है -”सकिंच धारण िुच योग्यता मनि।” 2। 53 अर्ाधत्
प्राणायाम िे मन की एकाग्रता और िूक्ष्मता होती है । चिंचल मन को िश में करने के सलए प्राणायाम का हसर्यार बहुत
उपयुि सिर्द् होता है । िे और भी कहते हैं “ततुः क्षीयतेप्रकाशािरणम् ” 2। 52 अर्ाधत् प्राणायाम िे अन्धकार का आिरण क्षीण
होता है । हृदय में अज्ञान और कुसिचारोिं के कारण एक प्रकार का अन्धकार हो जाता है । कतधव्य-पर् िूझ नहीिं पड़ता और
प्रकाश के अभाि में िद् िृसत्तयोिं का सिकाि नहीिं होता। इि आिरण को हटाने की प्राणायाम के प्रकाश में िामर्थ्ध है । मन
का ििंयम होने और अन्धकार समट जाने पर मनु ष्य का अन्तुःकरण सनमध ल एििं ििंस्कृत हो जाता है और उिकी िसत ऊर्ध्ध धमध
की ओर प्रेररत होती है । भििान मनु कहते हैं -दह्यन्ते ध्यायमानानााँ धातूनााँ सह यर्ा मलाुः। तर्ेक्तन्द्रयाणााँ दह्यन्ते दोषाुः प्राणास्य
सनग्रहात्॥ (मनु स्मृसत 6। 71) अर्ाधत् तपाने िे जैिे धातुओिं के मल नष्ट हो जाते हैं िैिे ही प्राणायाम िे इक्तन्द्रयोिं के दोष जल
जाते हैं । दोष रसहत सनमध ल इक्तन्द्रयााँ आत्मा की सकतनी श्रेष्ठ समि हो िकती हैं यह बताने की आिश्यकता नहीिं। ििंयमी मन िे
आप अपने पेशे में आशातीत उन्नसत कर िकते हैं िब प्रकार की िााँिाररक और मानसिक सिक्तर्द्यााँ प्राप्त कर िकते हैं ।
सनमध ल इक्तन्द्रयोिं िे स्वथर् दीघध जीिन प्राप्त होता है कायध क्षमता और उपाजधन शक्ति बढ़ती है । एक शब्द में योिं कह िकते हैं
सक आनन्द प्राप्त करने के यह दोनोिं ििधश्रेष्ठ िाधन प्राणायाम के द्वारा उपलब्ध हो जाते हैं ।

प्राणायाम की उच्चकोसट की उपािना के अभ्याि िे आियध जनक सिक्तर्द्यािं समलती हैं । ऊाँची अिथर्ा में जाकर प्राणोिं
का इतना ििंयम हो जाता है सक महात्मा लोि प्राणोिं की िसत अपनी इच्छानु िार मृ त्यु को िश में कर ले ते हैं और िे जब
तक चाहते हैं एक ही शरीर को धारण सकये रहते हैं । िषों की िमासध लिा जाना प्राणोिं का ििंयम नहीिं तो और क्ा है ?

इि थर्ल पर प्राणायाम की उन कसठन और उच्चकोसट की िाधनाओिं का िणधन करना उसचत न होिा सजनको योिी
लोि ही अपने कायधिम में िक्तम्मसलत कर िकते हैं । यहााँ कुछ ऐिी िाधारण प्राणायाम सियाओिं का बताना असधक उपयोिी
होिा सजन्ें िाधारण काम काजी लोि अपने दै सनक कायधिम में शासमल कर िकें और यसद कोई छोटी-मोटी भूल हो जाय
तो सकिी खतरे का िामना न करना पड़े ।

प्राणायाम का अभ्याि करने के सलए प्रातुः काल का िमय बहुत अच्छा है । सनत्यकमध िे सनिृत्त होकर खुली और शुर्द्
िायु में अभ्याि के सलये जाना चासहए। चौकी पर बैठना ठीक है पर यसद जमीन पर बैठना पड़े तो आिन अिश्य सबछा ले ना
चासहए। क्ोिंसक यद्यसप सनबधलोिं को पृथ्वी िे कुछ बल समलता है तर्ासप प्राण आकषधण करने की सियाओिं द्वारा शरीर में जो
सिशेष प्राण का ििंचय होता है िह पृथ्वी की आकषधण शक्ति द्वारा क्तखिंच जाता है और अभ्यािी िास्तसिक लाभ िे ििंसचत रह
जाता है । एक ही आिन लिाकर बैठना चासहए। पद्मािन अच्छा आिन है पर यसद उििे बैठने में कसठनाई होती है तो
िाधारण रीसत िे पाल्ती मार कर बैठ िकते हैं । रीढ़ की हड्डी सबलकुल िीधी रहे । झुके हुए किंधे फेफड़ोिं पर दबाि डालते हैं
सजििे छाती में पूरी हिा नहीिं भर पाती। हार्ोिं को जहााँ तहााँ पटकने की अपेक्षा दोनोिं घुटनोिं पर रख ले ना िुसिधाजनक होता
है ।

उपरोि सिसध िे ठीक प्रकार बैठ कर पााँच समनट सचत्त को सबलकुल शान्त करना चासहए मन में जो भी भले बुरे
सिचार होिं उन िबको हटाकर सचत्त को सबलकुल शान्त और शून्य करना चासहए। अब प्राणायाम की सिया करने का ठीक
िमय है ।

धीरे धीरे नासिका के मािध िे िााँि बाहर सनकासलए जब पूरी तरह हिा बाहर सनकल जाय तब उिे बाहर ही रोक
दीसजए अर्ाधत् कुछ दे र सबना हिा के बने रसहए सफर धीरे धीरे िााँि भीतर खीिंसचये। यह प्राणायाम का आधा भाि हुआ। योि
शाि के शब्दोिं में हिा बाहर सनकालने को ‘रे चक’ बाहर रोके रहने को ‘बाह्यकुाँभक’ और भीतर खीिंचने को ‘पूरक’ कहते हैं ।
अभी आधा प्राणायाम आपको और करना है । पूरक द्वारा जब पूरी हिा भीतर खीिंच चुकें तो उिे भीतर रोक दीसजए इिे
‘अभ्यान्तर कुाँभक’ कहा जाता है । अब सफर हिा को बाहर सनकाल दीसजए यह पूरा प्राणायाम हो िया। कुछ दे र सबना हिा के
रहना सफर धीरे -धीरे खीिंचना, भीतर रोके रहना और अिं त में उिे सनकाल दे ना यह चार सियायें करने पर एक प्राणायाम होते
हैं । ऐिे कई प्राणायाम एक बार में करने चासहएिं ।

इन सियाओिं को करते िमय जल्दी करने की जरूरत नहीिं है । धीरे धीरे अभ्याि करना अच्छा है । हिा को इतनी दे र
तक बाहर सनकाले रहना या भीतर रोके रहना ठीक न होिा सजििे जी घबराने लिे। हर सिया के िमय में िृक्तर्द् होना
अच्छा है पर जबरदस्ती का अभ्याि लाभप्रद न होिा। धीरे धीरे सनरिं तर के प्रयत्न िे िााँि को रोके रहने, बाहर छोड़े रहने ,
खीिंचने और सनकालने के िमय में अपने आप िृक्तर्द् होती है । यही अभ्याि लाभ दायक है । आरिं भ में दि बार प्राणायाम
करना काफी है सफर एक एक प्रसत सदन बढ़ाया जा िकता है ।

सहन्दू धमध के सिसभन्न ििंप्रदायोिं की सिसभन्न पुस्तकोिं में प्राणायाम के िमय अलि अलि मिं ि जपने का सिधान है । इन
मिं िोिं का उद्दे श्य प्रायुः एक ही है । उनके सनमाधताओिं की इच्छा है सक िाधक ऐिी भािना करे सक प्राणायाम या उिके मिं ि
द्वारा मु झमें सिशेष शक्ति का िमािेश हो रहा है । आप को यसद कोई मिं ि याद नहीिं है तो कोई प्हजध नहीिं, आप िायु खीिंचते
िमय भािना कीसजए सक मैं प्रकृसत को पोषक तत्वोिं को िािंि के िार् खीिंच रहा हाँ । भीतर रोके रहने के िमय में सचन्तन
कीसजए सक खीिंचे हुए तत्व मे रे अिं ि प्रत्यिंि में व्याप्त हो रहे हैं । िायु सनकालते िमय कल्पना कीसजए सक अपने अिं दर के
तमाम शारीररक और मानसिक कषायोिं को बाहर फेंक रहा हाँ । हिा को बाहर रोकते िमय िोसचये मे रे िब सिकार बाहर
चले िये हैं और मैं ने अपने अन्दर का दरिाजा बन्द करके उनका सफर िे भीतर प्रिेश कर िकना अििंभि कर सदया है ।
इि प्रकार की िुदृढ़ भािना सकिी भी मन्त्र िे कम उपयोिी िासबत नहीिं होती। मन्त्र या भािना का जप मन ही मन होना
चासहये। होट या जबान सहलाने की जरूरत नहीिं। आप सनभधय होकर इि िरल प्राणायाम का अभ्याि आरम्भ कर िकते हैं ।
कुछ ही सदनोिं में आपको अद् भुत लाभ सदखाई पड़ने लिेिा।

मरने के बाद हमारा क्ा होता है ?


ले . श्री प्रबोधचन्द्र िौतम िासहत्य रत्न, कुिध

मरने के बाद हमारा क्ा होता है ? इि प्रश्र का उत्तर सिसभन्न धमों की पुस्तकें सिसभन्न उत्तर दे ती हैं । स्विध नरक का
िणधन अपने - अपने मतानु िार िब धमाधचायों ने सकया है । इि ले ख में सकिी धमध के अनु िार मृ त्यु के उपरान्त होने िाली
दशा का िणधन करके उन िैज्ञासनकोिं के अनु भिोिं का उल्लेख करें िे सजन्ोिंने इि िम्बन्ध में िहरी खोज की है और इिी
अन्वे षण में जीिन खपा सदये हैं ।

इि बात में िब िैज्ञासनक एक मत हैं सक दु सनयााँ के सकिी भी पदार्ध का नाश नहीिं होता। िमय चि उनका रूपान्तर
करता रहता है । सकिी िस्तु को नष्ट कर सदया जाय तो उिके पूिध रूप की ही टू ट- फूट होती है , िे मू ल तत्व सजनके इकट्ठे
होने के कारण उिका सनमाधण हुआ र्ा, केिल अपनी शकल बदल ले ते हैं । जब शरीर में िे प्राण सनकल जाता है तो शरीर
के िारे अिं ि अपना काम छोड़ दे ते हैं , भीतर की मशीन बन्द हो जाती है । अब इि मृ त शरीर का रूपान्तर होना आरम्भ
होता है । लोि मु दें को जला दे ते हैं , जल में प्रिासहत कर दे ते हैं या िाड़ दे ते हैं । जला दे ने पर शरीर के रािायसनक पदार्ध
कुछ तो िायु में समल जाते हैं , कुछ भस्म में रह जाते हैं । िाड़ दे ने या जला दे ने पर िह जीि जन्तुओिं का भोजन बन जाता
है और उनके शरीर में शासमल हो जाता है । पड़ा रहा तो िड़- िल कर भूसम की उिधरा शक्ति बढ़ाता हुआ घाि पात के
रूप में प्रकट होता है । सनदान शरीर के तत्त्व इि एक ििंरचना को तोड़कर अलि- अलि सबखर जाते हैं और सफर सकिी
शिंखला में जुड़कर नई शक्ल बनाता है । पुरानी शिंखला टू टने और नई बनने का यह िम अनासद काल िे चला आ रहा है
और अनन्त काल तक चलता रहेिा, पर उि बेचारे पिंछी का क्ा होता है ?
कुछ िैज्ञासनकोिं का मन है सक जीिात्मा कोई चीज नहीिं। पिंचतत्व के बने हुए शरीर की जो सिया है उिका
एकिीकरण ही जीि के रूप में सदखाई दे ता है । िह िास्ति में कुछ नहीिं। पिंच भूतोिं के सिशिं खसलत होते ही प्राण भी नष्ट हो
जाते हैं । िे कहते हैं सक जब हमारे यन्त्रोिं िे जीसित और मृ त मनु ष्य के प्राण का अनु भि नहीिं होता तो िह हो ही नहीिं
िकता। इन िैज्ञासनकोिं का मत उपहािास्पद है ।

अभी िैज्ञासनकोिं के यन्त्रोिं ने प्रकृसत का िम्पूणध रहस्य नहीिं खोज डाला है । सजन सिद्वानोिं ने उि महातत्व की झािंकी की
है उन्ोिंने यह कहा है सक हम लोिोिं का िम्पूणध ज्ञान अभी रज कण के बराबर भी नहीिं है । ऐिे अधू रे ज्ञान के आधार पर
बने हुए सिर्द्ान्त और यन्त्र यसद उि अखण्ड ज्योसत को नहीिं जानते तो इििे उिकी असिक्तर्द् नहीिं होती। िह जीि जो इतनी
आशाऐिं करता है , आत्म सचन्तन में इतना लीन रहता है , िोते िमय न जाने कहााँ कहााँ घूम आता है , िहन िमस्याओिं के हल
करने में शरीर की िुध- बुध भूल जाता है , अभ्याि द्वारा शरीर की स्वाभासिक सियाओिं में आियध जनक घट- बढ़ कर ले ता
है क्ा िह शारीररक सियाओिं की स्फुरण माि है ? मै स्मरे जम, योिशाि, तन्त्र सिज्ञान द्वारा जो अद् भुत चमत्कार दे खने में आते
हैं , भूत प्रेतोिं के कभी- कभी दशधन होते हैं , कुछ लोि अपने पूिध जन्म की कर्ा िप्रमाण बताते हैं , सकन्ीिं- सकन्ीिं बालकोिं में
जन्म जात अद् भुत प्रसतभा होती है यह बातें क्ा जीि के अभाि में भी हो िकती हैं ? हमारा अन्तुःकरण इिे स्वीकार नहीिं
करता। पूिधजोिं के स्मारक बनाने , उनकी कीसतध को अमर रखने , मृ तक के िार् िहानु भूसत प्रकट करने की प्रर्ा बुक्तर्द् सिरुर्द्
नहीिं है । अनासद काल िे मनु ष्य जीि का अक्तस्तत्व मानता आ रहा है , उिका खण्डन केिल यह कहकर नहीिं सकया जा िकता
है सक िैज्ञासनक यन्त्र िे अभी सिर्द् नहीिं कर पाये हैं ।

िब दे शोिं के असधकािंश आध्यात्म सिद्या के अन्वे षक जीि के अक्तस्तत्व को मानते हैं । और िे िूक्ष्म शरीर की ित्ता को
भी स्वीकार करते हैं । सजि प्रकार हमारा यह थर्ूल शरीर है उिी प्रकार का एक िूक्ष्म शरीर का अनु भि सकया जा िकता
है । स्वप्र की अिथर्ा में हमें यही भान होता है सक शरीर िसहत काम कर रहे हैं , मरने िे कुछ िमय पूिध कुछ लोि यह
बता दे ते हैं सक अब मैं मर जाऊाँिा। कहते हैं सक मृ त्यु िे पू िध शक्ति सनकल जाती है । अिल में िूक्ष्म शरीर और थर्ूल
शरीर का िम्बन्ध असधकािंश टू ट चुका होता है तब जीि स्वयिं अनु भि करता है सक िब बातें मु झमें बदस्तूर हैं , कोई भारी
कष्ट भी नहीिं है पर एक महत्वपूणध चीज िे मैं रसहत हो िया हाँ । सजि चीज के सबना शरीर छूाँछ जैिा लिता है िही िूक्ष्म
शरीर है । योिी महात्मा अपनी सदव्य दृसष्ट िे दे खकर यह बता दे ते हैं सक अमुक व्यक्ति इतने िमय बाद मर जायेिा। िे यही
जान ले ते हैं सक थर्ूल शरीर और िूक्ष्म शरीर का िम्बन्ध सकतना कमजोर है और उिके पूणध रूप िे टू टने में सकतना िमय
लिेिा। शरीर के पुजों के सनकम्मे हो जाने पर भयिंकर व्यासध िे सपि जाने पर या दु घधटना द्वारा अिामसयक मृ त्यु होने पर
जीिात्मा थर्ूल शरीर िे अलि हो जाता है , सफर भी िह थर्ूल शरीर की ही भााँसत िूक्ष्म शरीर धारण सकये रहता है । यद्यसप
इि शरीर पर भूख, प्याि, िदी, िमी तर्ा मल मू ि त्याि आसद का अिर नहीिं होता पर मोटी मोटी शारीररक आदतोिं को
छोड़कर शेष मनोसिकार प्रायुः ज्योिं के त्योिं बने रहते हैं ।

कसठन काम करने के बाद सजि प्रकार हम र्क कर िो जाते हैं उिी प्रकार जीि अपनी र्कान उतारने और निीन
सिकाि की तैयारी के सलए अधध चेतनािथर्ा में पड़ जाते हैं और बहुत काल तक अपना िसमक सिकाि करने के सलए उिी
दशा में पड़े रहते हैं । नीच श्रेणी के अल्प बुक्तर्द् िाले असिकसित जीि नीचे लोकोिं में छोटी भूसमकाओिं में रहते हैं । यह लोक
ऐिे ही जीिोिं िे भरा रहता है । सिकसित जीि ऊाँची कक्षाओिं में चले जाते हैं । सजनके आत्मा अत्यन्त उच्च और उज्ज्वल हो
िए होते हैं िे ििोच्च कक्षाओिं में पहुिं चकर सिश्राम करते हैं ।

जीिोिं की योग्यता के अनु िार उन्ें कई लोकोिं में जाना पड़ता है । ऐिे लोकोिं में कई- कई सिभाि होते हैं । यहााँ यह
िमझना भूल होिी के जीिोिं के रहने के सलए थर्ूल चीजोिं के बने हुए इिी प्रकार के मकान, बैठक, पेड़ ऋतु, जिंिल आसद
होिंिे जैिे इि पृथ्वी पर हैं । उन लोकोिं में िुख दु ख की िूक्ष्म िामग्री रहती है । सजिका िे उपयोि करते है । है जे के थर्ान
में िूक्ष्म रोि कीट िायु घूमते रहते हैं और िन्दिी के िातािरण में फलते फूलते एििं सफनायल आसद की तीक्ष्ण िन्ध िे मर
जाते हैं । रोि कीटोिं की यह पोषक और मारक सिया िूक्ष्म हैं । उिके सलए यह आिश्यक नहीिं सक मनु ष्य को मारने के सलये
जैिी लम्बी छु री की जरूरत होती है िैिी ही रोि कीटोिं को मारने के सलए सफनायल की िन्ध के पाि भी होिं। िहााँ भी
भरण पोषण या िुख दु ख की एक िूक्ष्म प्रसिया चलती है । नीचे के लोकोिं की अपेक्षा ऊाँचे लोिोिं में ऐिा िातािरण असधक
होता है , सजनमें जीि पूणध सिश्राम कर िके, और उत्तम आनन्द का अनु भि कर िके। ऊाँचे लोकोिं के जीि स्वेच्छानु िार नीचे
की कक्षाओिं में तर्ा पृथ्वी पर आ िकते हैं , पर नीची कक्षाओिं के ऊपर के लोकोिं की ओर उड़ने की शक्ति नहीिं रखते।

मरने के बाद कुछ िमय तक िूक्ष्म शरीर ज्योिं का त्योिं बना रहता है । आरम्भ के सदनोिं में तो िाधारण श्रेणी के जीिोिं
को यह भी पता नहीिं चलता सक िे मर िये हैं और उनका क्ा हो िया है । िे बहुत सदनोिं तब अपने घर के ििे िम्बक्तन्धयोिं
के आि पाि मिं डराते रहते हैं । उच्च जीिोिं का शीघ्र और नीच जीिोिं का दे र में यह िूक्ष्म शरीर भी मर जाता है । सजि
प्रकार िााँप केंचुली को छोड़ दे ता है उिी प्रकार जीि कालान्तर में िूक्ष्म शरीर को भी छोड़ दे ता है ।

िािंिाररक लोिोिं िे भी जीि प्रभासित होते है । सजन्ोिंने अपने जीिन काल में अपने आत्मा को महान बना सलया है िे
अपना कतधव्य िमझकर ही िािंिाररक लोिोिं की कुछ िाक्तत्वक मदद करने को कभी कभी आते हैं सकन्तु छोटी श्रेणी के लोि
िािंिाररक लोिोिं पर अपना राि द्वे ष प्रकट करने के सलये असधक उत्सुक रहते हैं । अपने जीिन काल के समि शिुओिं के िुख
दु ख में िे दु खी भी होते हैं और उनके कायध में िहायता या शक्ति दे ते के सलये प्रयत्न करते हैं । ऐिे जीि अपनी सिश्रामदायी
अधध सनद्रा में िे बार बार जाि पड़ते हैं और असतशीघ्र ही अपने इक्तच्छत लोिोिं के िमीप सकिी के मोह बन्धन में बिंधकर जन्म
धारण कर ले त हैं या अपने ही शरीर को असधक दृढ़ बनाकर पृथ्वी के ही सकिी सिशेष थर्ान में आ ठहरते हैं । यह बात
प्रत्यक्ष हो चुकी है सक कुछ जीि अपने िूक्ष्म शरीर को सलए हुए शतासधक सदनोिं अपने इष्ट समिोिं के आि पाि के थर्ानोिं में
डे रा डाले पड़े रहते हैं और अपनी उपक्तथर्सत का पररचय सकिी न सकिी रूप में अपने िम्बक्तन्धयोिं को दे ते रहते हैं ।

आत्मघात या दु घधटनाओिं िे मरा हुआ जीि यसद िाधारण श्रेणी का है तो उिकी बड़ी सिसचि दशा होती है । अचानक
शरीर छूट जाने के कारण और मृ त्यु िमय में भारी कष्ट होने के कारण उिकी दशा बहुत अस्वाभासिक होती है िह आधे
कटे हुए बकरे की तरह चारोिं ओर फड़फड़ाता सफरता है और जीि लोक में एक कुहराम खड़ा कर दे ता है । अपने पूिध
िम्बक्तन्धयोिं के पाि दौड़ा जाता है और सफर उलट कर इधर उधर भटकता है । पृथ्वी और जीि लोक में इनके द्वारा कोई
भयिंकर उत्पात भी सकए जाते रहते हैं ।

बच्चोिं को नजर कैिे लिती है ?

ले . श्री इन्द्रदत्त सिद्यादत्त, भािले कर

यह मानी हुई बात है सक मनु ष्य के शरीर में एक ऐिी सबजली रहती है सजिका दू िरोिं पर प्रभाि पड़ता है । िार्
रहने पर हर व्यक्ति एक दू िरे िे प्रभासित होता है । सिद्वानोिं ने ित्सिंि की मसहमा और कुििंि की बुराई में बहुत कुछ सलखा
है , क्ोिंसक िे जानते र्े सक िार् रहने पर प्रभाि अिश्य पड़े िा। शक्ति का सनयम है सक िह जहााँ असधक होती है िहााँ िे
उि थर्ान को शीघ्रता पूिधक जाना चाहती है जहााँ उिका अभाि या कमी हो। एक भरे हुए तालाब और एक खाली तालाब
के बीच में ऐिा रास्ता बना सदया जाय सजििे एक का पानी दू िरे में जा िके, तो भरे हुए तालाब का पानी तब तक तेजी
के िार् खाली तालाब की ओर दौड़ता रहे िा जब तक दोनोिं की ितह बराबर न हो जाय। यही बात मनु ष्य शरीर की सबजली
के िम्बन्ध में कही जा िकती है । बलिान व्यक्ति में िे सनकल कर िह सनबधल में प्रिेश करना चाहती है । हम सनत्य दे खते हैं
सक शारीररक या मानसिक बल रखने िाले ही दू िरे पर अपना अिर डालने में िमर्ध होते हैं । सनबधल तो उन्ीिं पर अिर
डाल िकते हैं जो उनिे भी सनबधल हो।

उपरोि सनयम के अनु िार बड़े आदसमयोिं का बालकोिं पर अिर पड़ता हैं । यह अिर कभी तो सहतकर होता है कभी
असहतकर। बालकोिं को नजर लिना मानिीय सिद् युत का असहतकर प्रभाि है । नजर लिने की बात को अन्ध सिश्वाि कह कर
हाँ िी में उड़ाना मू खधता है । जब दो शक्तिशाली आदमी आपि की सिद् युत िे बीमार होकर मरणािन्न क्तथर्सत तक पहुाँ च जाते
हैं , तो बालकोिं पर अिर हो जाने में आियध की कौन िी बात है ? मै स्मरे जम और सहप्रोटे जम सिद्या के सिशारदोिं ने यह सिर्द्
कर सदया है सक दू िरोिं पर प्रभाि डालने या प्रभाि ग्रहण करने का मािध ने ि हैं । िे लोि दृसष्टपात करके ही दू िरोिं को िहरी
सनन्द्रा में ले जाते हैं और अपने प्रयोि करते हैं । आदमी जब एकाग्र होकर या असधक आकसषधत होकर सकिी की ओर दे खता
है तो उिकी दृसष्ट प्रभािशाली हो जाती है । लालासयत होकर दे खने पर भी ऐिा ही प्रभाि होता है । कोई बच्चा असधक हाँ िता
खेलता है , प्यारी- प्यारी बातें करता है तो लोिोिं का ध्यान उनकी ओर असधक आकसषधत होता है । यसद उि िमय असधक
ध्यान पूिधक उन्ें क्तखलािें या प्रशिं िा करे तो बच्चोिं को नजर लि जाती है । मु ग्ध होकर असधक ध्यानपूिधक उनकी ओर दृसष्टपात
सकया जाय तो भी नजर का अिर हो जाता है । कुछ लोिोिं में स्वभाितुः एक खाि प्रकार की बेधक दृसष्ट हो जाती है , सजििे
िाधारणतुः भी यसद िे सकिी बच्चे की ओर दे खें तो अिर हो जाता है । ऐिे लोि सजनके बाल बच्चे नहीिं होते और बच्चोिं के
सलए तरिते रहते हैं , िे जब दू िरोिं के बच्चोिं को हिरत भरी सनिाह िे दे खते है तब यह अिर असधक होता है , क्ोिंसक
लालासयत होकर दे खने िे दू िरी चीजोिं का अपनी तरफ आकषधण होता है । पसत जब परदे शोिं को जाते हैं और िी लालासयत
होकर उिकी ओर दे खती है तो रास्ते भर उनका सचत्त बेचैन बना रहता है । कभी- कभी तो उन्ें िासपि तक लौटना पड़ता
है या एक सदन ठहर जाना पड़ता है । इिसलए प्राचीन काल में क्षिासणयााँ पसतयोिं को युर्द् में भेजते हुए प्रोत्साहन दे कर सतलक
लिा कर भेजती र्ी, िे जानती र्ी सक यसद हम आकषधण सिद् युत इनकी ओर फेकेंिी तो िे पीछे की ओर क्तखिंचे रहें िे, युर्द् िे
लौट आिेंिे या अिफल रहें िे। इिी प्रकार बड़े आदमी जब लालासयत होकर बच्चोिं की ओर दे खते हैं तो उन बच्चोिं की
शक्ति क्तखिंचती है और िे उिके झटके को बदाधस्त न करके बीमार पड़ जाते हैं । सबना सकिी पूिध रूप के जब अचानक
बच्चा बीमार पड़ जाता है तब िमझा जाता है सक उिे नजर लि िई।

हमारे यहााँ की क्तियोिं को इिकी जानकारी बहुत पहले िे हैं । नजर िे बचाने और लि जाने पर उपचार की सिया िे
भी िे पररसचत हैं । तााँबे का ताबीज, शेर का नाखून, मूिं िा, नीलकण्ठ का पर आसद चीजें िले या हार् में पहनाई जाती है । यह
चीजें बाहरी सबजली के अपने में ग्रहण करके या उिके प्रभाि को रोककर बच्चोिं पर अिर नहीिं होने दे ती। िरम लोहे का
टु कड़ा पानी या दू ध में बुझाने िे भी िह जल या दू ध उि अिर को दू र करने िाला हो जाता है । कहते हैं सक आकाश की
सबजली अक्सर काले िााँप, काले आदमी, काले जानिर आसद काली चीजोिं पर पड़ती है । काले कपड़े जाड़े के सदनोिं में इिसलए
पहने जाते हैं सक िमी की सबजली को असधक इकट्ठी करके अपने अन्दर रख लें और असधक िरम रहें । इिी सनयम के
आधार पर नजर िे बचाने के सलये काली चीजोिं का उपयोि होता है । मस्तक पर काला टीका लिाया जाता है । हार् या िले
में काला डोरा बााँधा जाता है । काली बकरी का दू ध सपलाया जाता है । काली भस्म चटाई जाती है । सजि प्रकार बड़े - बड़े
मकानोिं के िुम्बजोिं की चोटी पर एक लोहे की छड़ इिसलए लिाई जाती है सक िह स्वयिं सबजली का अिर ग्रहण करके
पृथ्वी में भेज दे और मकान को नु किान न पहुाँ चने दे , उिी प्रकार यह काला टीका, डोरा आसद नजर के अिर को अपने में
ग्रहण कर लेता है और बच्चे को नु किान नहीिं पहुाँ चने दे ता।

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