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आसन

कालिका नामो हि धमाा


कालिका सेवा हि धमाा
कालिका हि सवात्र
कालिका हि सवास्व

सज्जा एवं संकिन: रमा कान्त लसंि (Devotional Manav)

॥ की प्रस् त ॥
॥ स द आभ – श्री महें द्र ससह, श्री ख ज मेव ड़ , श्री सजय D जो ी, श्रीम ी मीन क्षी ससह ॥
आसन

आसन: ककसी भी साधक की साधना का एक बिुत मित्वपर्ू ा अंग िोता िै एवं इसका आकार-प्रकार
बिुधा साधक की साधना स्स्िततयों को भी तनधााररत करता िै , बिुत बार देखने में आता िै कक नव
साधक कि ं भी ककसी भी जगि पर बैठकर पूजन या जप काया आरम्भ कर दे ते िैं।

बबना उचित आसन के ककसी भी स्िि पर बैठ जाना एवं जप काया आहद करना दृष्टव्यता (यहद
साधक मात्र इस बात को दलशात करना िािता िै कक वि बिुत ईश्वरवाद एवं जप काया आहद करने
वािा व्यस्तत िै ) के हिसाब से तो ठीक िैं ककन्तु ऐसे जप या पज
ू न का कोई फि प्राप्त नि ं िोता।

अस्तु एक साधक को जप एवं साधना काया में आसन-मािा-हदशा का सदै व ध्यान रखना िाहिए।

आसन की आवश्यक : सबसे पििा प्रश्न उठना स्वाभाववक ि िै कक आसन की आवश्यकता ि तयों
?

आसन की सीधा सम्बन्ध ऊजाा को सिेजने एवं उसका क्षय रोकने से िै , स्जस समय साधक ककसी भी
प्रकार की साधना एवं जप किया करता िै उस समय खंड में उसके इष्ट एवं जप मन्त्र की ऊजाा का
िि तनलमात िोता िै जो साधक की ऊजाा से साम्य स्िावपत करके उसकी ऊजाा को और अचधक पष्ु ट
एवं ऊध्वागलमत करता िै , पंितत्व में ऊजाा ग्रिर् एवं उत्सजान के तीन प्रमख
ु केंद्र किे जाते िैं
(मूिाधार, स्वाचधष्ठान, एवं सिस्रार) स्जनमें से प्रायः प्रिम दो ऊजाा के क्षय की किया में भागीदार
करते िैं एवं सिस्रार िि के माध्यम से ऊजाा ग्रिर् की प्रकिया ििती िै ।

धरती मााँ विृ द ऊजाा अवशोषक के रूप में काया करती िै स्जसमे ककसी भी प्रकार की ऊजाा समाहित िो
जाती िै एवं साधक यहद जप या साधना काि में बबना आसन के कोई जप या साधना काया करता िै
तो उसके िारों तरफ तनलमात ऊजाा िि को धरती मााँ द्वारा अवशोवषत कर लिया जाता िै इसी से
बिाव के लिए जप या साधना में आसन की आवश्यकता िोती िै एवं आसन इस प्रकार का िो जो
ऊष्मा का कुिािक िो अिाात स्जससे िोकर ऊजाा का संपका धरती मााँ से ना िो सके।

यहद तंत्र शास्त्रों के सन्दभा में दे खा जाये तो प्रायः सभी प्रकार की साधनाओं के लिए समुचित हदशा-
तनदे शों की व्यवस्िा लमिती िै यिा ककस साधना में आसन कौन सा िो, ककस रं ग का िो, मािा ककस
पदािा की िो, ककस रं ग की िो, साधक के वस्त्र ककस रं ग एवं प्रकार के िों, हदशा कौन सी िो एवं ककस
मन्त्र का ककतना जप िो इत्याहद?

यहद साधक सभी ववहित तनयमों एवं वजानाओं का उचित पािन करता िै तो उसी अनप
ु ात में उसे
सफिता भी लमिती िै ।

॥ की प्रस् त ॥
॥ स द आभ – श्री महें द्र ससह, श्री ख ज मेव ड़ , श्री सजय D जो ी, श्रीम ी मीन क्षी ससह ॥
आसन
गुरु गीता जो स्कन्द पुरार् का भाग िै एवं स्जसमे भगवान ् लशव-मााँ पावाती का संवाद िै एवं गुरु-
लशष्य आिरर् से सम्बंचधत िै उसमें आसन से सम्बंचधत तनम्नोतत वर्ान लमिता िै :

वस् सने च द र द्रय ष णे ोगसम्भवः।


मेददपय दःखम प्रोत क ष्ठे भवत तनष्फलम ्॥ १॥

वस्त्रासन पर साधना करने से दररद्रता आती िै ; पत्िर पर साधना करने से रोग िोते िैं। धरती पर
बैठकर साधना करने से दःु ख लमिता िै और काष्ठासन पर की गई साधना तनष्फि िोती िै॥ १॥

कृष्ण जजने ज्ञ नससद्धिमोक्षश्रीव्य घ्रचममणण।


क सने ज्ञ नससद्धिः सवमससद्धिस् कम् ले॥२॥

कािे िररर् के िमा पर साधना करने से ज्ञान की प्रास्प्त िोती िैं , व्याघ्रिमा पर साधना करने से मोक्ष
की प्रास्प्त िोती िै , कुश के आसन पर साधना करने से ज्ञान लसद्ध िोता िै , जबकक कम्बि पर बैठकर
साधना करने से सवालसवद्धयााँ लमिती िै ॥२ ॥

क ै व म दव
ू य
म दे द्धव आसने भ्रकम् ले।
उ द्धवश्य ो दे द्धव ज द
े े क म नसः॥ ३॥

भगवान ् लशव किते िैं- िे दे वव ! इस गुरूगीता का स्वाध्याय कुश के आसन पर, दब


ू के आसन पर
अिवा श्वेत कम्बि के आसन पर बैठकर करना उचित िै ॥ ३॥

ध्येय क्ल च न्त्यर्थं वश्ये क् सन द्धप्रये।


असभच कृष्णवणं ी वणं धन गमे ॥ ४॥

शास्न्त प्रास्प्त के लिए श्वेत आसन पर वशीकरर् के लिए रततवर्ा के आसन पर ,सम्मोिन के लिए
कािे आसन पर एवं धन प्रास्प्त के लिए पीिे आसन पर बैठकर साधना करनी िाहिए॥४॥

उ् े जन्त क मस् वश्ये ूवम


म खो ज े ्।
दक्षक्षणे म ण प्रोक् जश्चमे च धन गमः॥ ५॥

इस िम में उत्तर हदशा शास्न्त कायों के लिए, पूवा हदशा वशीकरर् के लिए, मारर् कमा के लिए
दक्षक्षर् हदशा एवं धन प्रास्प्त के लिए पस्श्िम हदशा उपयुतत मानी गयी िै ॥५॥

इसके अततररतत कि -ं कि ं पर कुश के आसन का गि


ृ स्ि स्स्त्रयों के लिए वजान िै एवं मान्यता िै कक
स्स्त्रयों द्वारा कुश के आसन पर बैठकर पज
ू ा-साधना करने से उन्िें वैधव्य (ववधवापन) िोता िै अस्तु
स्स्त्रयों को इसका प्रयोग नि ं करके ककसी अन्य आसन का प्रयोग करना िाहिए।

॥ की प्रस् त ॥
॥ स द आभ – श्री महें द्र ससह, श्री ख ज मेव ड़ , श्री सजय D जो ी, श्रीम ी मीन क्षी ससह ॥
आसन

उपरोतत वर्ान के आधार पर कंबि को सवासुिभ एवं सवोत्तम आसन माना जा सकता िै ।

आसन सम् न्तधी तनयम:

1. एक साधक को सामान्यतः एक ि आसन का प्रयोग करना िाहिए।


2. एक आसन को एक ि व्यस्तत द्वारा प्रयोग में िाया जाना िाहिए।
3. आसन सदै व ऊष्मा/ ऊजाा का कुिािक िोना िाहिए।
4. आसन का आकार-प्रकार इतना िोना िाहिए कक उस पर बैठने के उपरांत शर र का कोई भाग
धरती से स्पशा ना करे ।
5. आसन सदै व ऐसा िें जो आरामदायक िो स्जससे कक बबना ककसी परे शानी के अचधक दे र तक
बैठा जा सके।

स् ष्टीक ण: ककसी साधक को अन्य साधक का आसन प्रयोग तयों नि ं करना िाहिए?

आसन ककसी भी साधक की साधनात्मक उजाा का एक मित्वपूर्ा भाग बन जाता िै एवं उस आसन
ववशेष में बिुत सी शस्ततयों का वास िोने िगता िै जो साधक की प्रकृतत की िोती िैं एवं जैसे ि
कोई अन्य साधक उस आसन को ग्रिर् करता िै उसकी शस्ततयां उस साधक की उजाा के साि
अलभकिया रत िोने िगती िैं एवं यहद उस नव साधक की शस्तत क्षीर् पड़ती िै तो उसकी पूवाास्जात
शस्ततयााँ अवशोवषत िोने िगती िैं स्जसके कारर् साधना में मन ना िगना या उच्िाटन जैसे भाव
उत्पन्न िोते िैं , कुछ मामिों में साधक की शार ररक स्वस्िता पर भी असर पड़ सकता िै यहद पूवा
साधक की साधनाओं की प्रकृतत उष्र् िो एवं नव साधक सौम्य प्रकृतत का िो ऐसी दशा में कुछ
ववशेष िक्षर् एवं उच्िाटन पररिक्षक्षत िो सकता िै , यहद साधक वामािार िो एवं नव साधक दक्षक्षर्
मागी िो तो वामािार साधक का आसन प्रयोग करने के पररर्ामस्वरूप दक्षक्षर् मागी साधक के
पिभ्रष्ट एवं स्वेच्छािार िोने के अवसर बिुत अचधक िोते िैं ।

अस्तु सभी साधकों को प्रायः यि प्रयास करना िाहिए कक दै तनक अिवा साधना ववशेष ककसी भी
अवस्िा में स्वयं के ि तनयत आसन का सदै व प्रयोग करें एवं प्रयास करें कक बार-बार आसन बदिने
की आवश्यकता ना पड़े ककसी यात्रा आहद के समय एक अिग से आसन रखें जो उजाा का कुिािक िो
एवं यात्रा के समय जब भी साधना स्िि से बािर पूजन कमा आहद करें तब उसी तनयत आसन का
प्रयोग करें ।

जय मााँ सवेश्वर

॥ की प्रस् त ॥
॥ स द आभ – श्री महें द्र ससह, श्री ख ज मेव ड़ , श्री सजय D जो ी, श्रीम ी मीन क्षी ससह ॥

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