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ी बगलामु

ख क पे
वीर त े
बगला स योगः

बगलामुखी दे
वी दश महा व ा म आठव महा व ा का नाम से उ लेखत है । वै
दक श द ‘व गा’ कहा है , जसका अथ
कृया स ब ध है, जो बाद म अप श ंहोकर बगला नाम सेचा रत हो गया । बगलामु खी श ु -संहारक वशे ष हैअतः इसके
द णा नायी प मा नायी मंअ धक मलते ह । नैऋ य व प मा नायी मं बल सं हारक व श ु को पीड़ा कारक होते ह।
इस लये इसका योग करते समय घबराते ह । वा तव म इसके योग म सावधानी बरतनी चा हये । ऐसी बात नह है
क यह व ा श ु -सं
हारक ही है, यान योग म इससेवशे ष सहयता मलती है । यह व ा ाण-वायु व मन क चं चलता का
तं
भन कर ऊ व-ग त दे ती है
, इस व ा के मंके साथ ल लता द व ा के कू ट मं मलाकर भी साधना क जाती है ।
बगलामुखी मं के साथ ल लता, काली व ल मी मं से पुटत कर व पदभे
द करके योग म लाये जा सकते ह । इस व ा के
ऊ व-आ नाय व उभय आ नाय मंभी ह, जनका यान योग से ही वशे
ष स ब ध रहता है । पु र सुदरी के कूट म के
मलानेसेयह व ा बगलासु दरी हो जाती है
, जो श ु -नाश भी करती है
तथा वैभव भी दे
ती है।

मह ष यवन ने इसी व ा के भाव से


इ के व को त भत कर दया था । आ दगुशंकराचाय ने
अपने
गु ीमद्-
गो व दपाद क समा ध म व न डालने
पर रे
वा नद का त भन इसी व ा के भाव सेकया था ।

महामु न न बाक ने
एक प र ाजक को नीम के
वृपर सू
य के
दशन इसी व ा के भाव से
कराए थे
। इसी व ा के
कारण
ा जी सृ क संरचना म सफल ए ।

ी बगला श कोई ताम सक श नह है , ब क आ भचा रक कृय से


र ा ही इसक धानता है
। इस सं
सार म जतने
भी तरह केःख और उ पात ह, उनसे
र ा केलए इसी श क उपासना करना ेहोता है

शुल यजुवद मा यं
दन सं हता के
पाँ
चव अ याय क २३, २४ एवं
२५व क डका म अ भचारकम क नवृ म
ीबगलामु
खी को ही सव म बताया है। श ुवनाश केलए जो कृया वशे
ष को भू
म म गाड़ दे
ते
ह, उ ह न करने
वाली
महा-श ीबगलामुखी ही है

यी स व ा म आपका पहला थान है । आव यकता म शु च-अशु च अव था म भी इसके योग का सहारा ले


ना पड़े
तो शुमन सेमरण करनेपर भगवती सहायता करती है
। ल मी- ा त व श ु
नाश उभय कामना मं का योग भी
सफलता सेकया जा सकता है

दे
वी को वीर-रा भी कहा जाता है, य क दे
वी वम् ा - पणी ह, इनकेशव को एकव -महा तथा मृ युजय-
महादेव कहा जाता है
, इसी लए दे
वी स - व ा कहा जाता है
। व णु
भगवान् ी कू
म ह तथा ये
मं
गल ह से
स ब धत
मानी गयी ह ।

श ु
व राजक य ववाद, मु
कदमे
बाजी म व ा शी - स - दा है
।श ु
के ारा कृया अ भचार कया गया हो, े
ता दक
उप व हो, तो उ व ा का योग करना चा हये
।यदश ु
का योग या े
तोप व भारी हो, तो मं म म न न व न बन
सकतेह-

१॰ जप नयम पू
वक नह हो सकगे

२॰ मंजप म समय अ धक लगे


गा, ज ा भारी होने
लगे
गी ।

३॰ मंम जहाँ“ ज ांक लय” श द आता है


, उस समय वयं
क ज ा पर सं
बोधन भाव आने
लगे
गा, उससेवयं
पर ही मं
का कुभाव पड़ेगा ।

४॰ ‘बु वनाशय’ पर प रभाषा का अथ मन म वयं


पर आने
लगे
गा ।

सावधा नयाँ

१॰ ऐसेसमय म तारा मंपु


टत बगलामु
खी मं योग म लेव, अथवा कालरा दे
वी का मंव काली अथवा यं
गरा मं
पुटत कर । तथा कवच मं का मरण कर । सर वती व ा का मरण कर अथवा गाय ी मंसाथ म कर ।

२॰ बगलामु
खी मंम “ॐ बगलामु
खी सव ानांवाचंमु
खंपदंतं
भय ज ांक लय बु वनाश ॐ वाहा ।” इस
मंम ‘सव ानां’ श द से
आशय श ुको मानतेए यान-पू
वक आगेका मंपढ़ ।

३॰ यही सं
पू
ण मंजप समय ‘सव ानां ’ क जगह काम, ोध, लोभा द श ु
एवंव न का यान कर तथा ‘वाचं
मु
खं……..
ज ां क लय’ के
समय दे
वी केबाँ
य हाथ म श ु क ज ा है तथा ‘बु वनाशय’ केसमय दे
वी श ुको पाशब कर मु र
सेउसके म त क पर हार कर रही है
, ऐसी भावना कर ।

४॰ बगलामु
खी के अ य उ - योग वडवामु
खी, उ कामु
खी, वालामु
खी, भानु
मख
ुी, वृ
हद्-भानु
मख
ुी, जातवे
दमु
खी इ या द तं
थ म व णत है। समय व प र थ त केअनु
सार योग करना चा हये

५॰ बगला योग के
साथ भै
रव, प राज, धू
म ावती व ा का ान व योग करना चा हये

६॰ बगलामु
खी उपासना पीलेव पहनकर, पीले आसन पर बैठकर कर । गंधाचन म केसर व ह द का योग कर, वयं
के
पीला तलक लगाय । द प-व तका पीली बनाय । पीत-पु
प चढ़ाय, पीला नै
वेचढ़ाव । ह द से बनी ई माला से
जप कर ।
अभाव म ा माला से जप कर या सफे द च दन क माला को पीली कर ले
व।

तु
लसी क माला पर जप नह कर ।

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