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ट केन क की ख खिडक की स के / कुमाि मक

ु ुल
चिवाि के / कुमाि मक
ु ुल
उ्ास भी / कुमाि मक
ु ुल
सॉन केट (िि सांझ...) / कुमाि मक
ु ुल
सॉन केट (गेव् बिुत था...) / कुमाि मक
ु ुल
लमथक पश्याि का / कुमाि मक ु ुल
श्या् / कुमाि मक
ु ुल
पश्याि / कुमाि मक
ु ुल
पश्याि मड़ें / कुमाि मक
ु ुल
पिाड : छि कपवताएँ / कुमाि मक
ु ुल
म केि के िकत क के आईन के मड़ें / कुमाि मक
ु ुल
पतन भी / कुमाि मक
ु ुल
बाई ज भी / कुमाि मक
ु ुल
सबस के अचछ के खित / कुमाि मक
ु ुल
उ्ास भी का सबब / कुमाि मक
ु ुल
मिानता क की घिसटन / कुमाि मक
ु ुल
उम्र क के साथ / कुमाि मक
ु ुल
वि म केिद म केिद माँ िद सकत भी िै / कुमाि मक
ु ुल
न केटिा िाथ / कुमाि मक
ु ुल
खिुश भी का च केििा / कुमाि मक
ु ुल
बचचचों क की श्जच / कुमाि मक
ु ुल
िम कश्या किड़ें / कुमाि मक
ु ुल
चचड़श्या
ि का बचचा / कुमाि मक
ु ुल

परिदृशश्य क के भ भीति शमश केि / कुमाि मक


ु ुल
समश्य क की ्िाँत पि / कुमाि मक
ु ुल
पपतरिश्या लोटा / कुमाि मक
ु ुल

िचनाकाि : कुमाि मक
ु ुल कुििा औि सिू ज / कुमाि मक
ु ुल
सॉन केट (भ भीति कैस भी ्ो) / कुमाि मक
ु ुल

प्रकाशक: िश्शमपप्रश्या प्रकाशन


ग़जल (जान के श्यि ककसस के) / कुमाि मक
ु ुल
वर्: 2000 सॉन केट (इकलौता तािा) / कुमाि मक
ु ुल
भारा: हिन्द
सॉन केट (गेोबि अब गेण केश िो िि के) / कुमाि मक
ु ुल
पवरश्य: कपवताएँ
गे भीत (इक लसतािा) / कुमाि मक
ु ुल
सोमाललश्या / कुमाि मक
ु ुल कालद भैंस / कुमाि मक
ु ुल
कउआ / कुमाि मक
ु ुल जैपवक ख़तिा / कुमाि मक
ु ुल
चौककश्याँ / कुमाि मक
ु ुल नई मंश्जल / कुमाि मक
ु ुल
पत
ु ैश्य के / कुमाि मक
ु ुल च भील / कुमाि मक
ु ुल
साधु न चल के जमात / कुमाि मक
ु ुल अंतड़श्यचों
ि मड़ें ब्रह्ममां़ / कुमाि मक
ु ुल
मश्या््ाएँ िम तोडड़ेंगे के / कुमाि मक
ु ुल मिानगेि मड़ें लडककश्याँ / कुमाि मक
ु ुल
मन
ु नन पढ़ ििा िै / कुमाि मक
ु ुल एक शाम थ भी वि / कुमाि मक
ु ुल
ककस भी पल क के इंतजाि मड़ें / कुमाि मक
ु ुल पिाड सो िि के िैं / कुमाि मक
ु ुल
गेुडिल / कुमाि मक
ु ुल बित भी न्द मड़ें चां् / कुमाि मक
ु ुल
चबूतिा : ्ो कपवताएँ / कुमाि मक
ु ुल प भीछ-प भीछ के चां् / कुमाि मक
ु ुल
पिाड / कुमाि मक
ु ुल िवा िै िवा िै औि... चां्न भी िै / कुमाि मक
ु ुल
बारिश / कुमाि मक
ु ुल
सोमालिया / कममार मक
म मि

मट
ु भी भि

अनन क के ललए

गेोललश्याँ

मट
ु भी भि

औि सभश्यता क के कगेाि पि

आ पिुँच के िम।

(िचनाकाल : 1994)
कउआ / कममार मक
म मि

िोटद का
एक घतिपटांगे टुक़ा
मुंि मड़ें ललए िुए
अपन भी कैघतज उ़ान
उ़ा जा ििा िै कउआ
उसक की खिुश भी ् के खि लगेता िै
कक वि हितोप् केश श्या पंचतंत्र क की
कथाओं स के घनकलकि
भागेा जा ििा िै
कउए को शाश्य् निदं पता
कक बिुिाषटदश्य कंपघनश्यचों न के
ककतना खिादश्य-अ खिादश्य बना ़ाला िै
संसककघतश्यचों क के िंगे भीन टदलचों को छो़
गेंगेा क की ओि मुंि ककए
किां भागेा जा ििा िै कउआ
कश्या ककस भी बाल-गेोपाल क की च भी खि
अब भ भी उसका प भीछा कि ििद िै ?

1996
चौककयाँ / कममार मक
म मि

जब खिचचिचों औि गे्िचों पि

अँटद निदं िोगे भी

खिानाब्ोश श्जन्गे भी

थो़ा औि सभश्य

थो़ा औि ज़ िोन के क की

जब जरूित मिसस
ू िुई िोगे भी

तब मश्सतषक क के ति खिानचों स के

बैलगेाड़श्यचों क के साथ-साथ

घनकलद िचोंगे भी चौककश्याँ भ भी

शाश्य् उस काल भ भी थ के ् केवता

जो चलत के थ के पुषपकचों स के

श्या मंत्रचों स के

जो आज भ भी जा िि के िैं

चॉ्ं औि मंगेल क की ओि

तब स के चलद आ ििद िैं बैलगेाड़श्याँ भ भी

सभश्यता का बोझ ढोत भीं

जब ब भी-29 पि ल् के पिमाणु असत्र

हििोलशमा पि

सभश्यता का भाि िलका कि िि के थ के

एक िम
ु कक़ खिचचिचों पि अपन भी सभश्यता ला् के

घतबबत स के लदा खि का िासता तलाश ििा था

उस भी समश्य

कलकतत के मड़ें लोगे

चौककश्यचों पि चौककश्यां जमा िि के थ के

चॉ्ं क की ओि जान के का

श्यिद ढंगे था उनका।


पमतैये / कममार मक
म मि

िात भ भीगेना था ओस मड़ें

श्जन चल
ू िचों को

सब
ु ि पुतना था

लमटटद-गेोबि-पान भी औि धप
ू स के

पत
ु गेश्य के व के अपनचों िद क के खिन
ू स के

पुतैश्य के आश्य के थ के िात

जमात मड़ें

ं क की चॉचि
श्यूं चिमिाश्या तो था बॉस ं का ्िवाजा

प्रघतिोध ककश्या था जसत के क के लोट के न के

ढनमनाश्या था जोि स के

चल
ू ि के पि प़ा काला तावा भ भी

खि़का था

न भीच के चगेित के िुए

पि बिा्िु थ के पुतैश्य के

बोलत भी बं् कि ्द सबक की

चल
ू ि के क की तिि मँि
ु बा ह्श्या सबन के

चल
ू ि के क की िा खि मड़ें िस
ु भी

सोश्य भी थ भी बबललद जो

मािद गेश्य भी

पपलल के भ भी माि के गेश्य के

सोश्य के पुआल पि।

हिटलि चचत्रकाि भ भी था औि ब्र केख्‍त उस के व्‍यश्यंग्‍य श्य स के पुतैश्या श्यान भी पोतन के


वाला कित के थ के। श्यि कपवता बबिाि क के निसंिािचों क के सं्भ् मड़ें िै।
साधम न चिे जमात / कममार मक
म मि

ऊँटचों पि अनन क की बोरिश्यां ला् के


जमात मड़ें आए िैं साधु
आओ ब केटा ् के खिचों उूंट साधु ् के खिो
संकटापनन प्रजाघत िै श्यि
बबिू-बबििोिचों स भी
च भीत के औि लाश्यगेि क की तिि
गेाश्यब िो जाएंगे के श्य के भ भी

एअि इंड़श्या क के प्रत भीकचों मड़ें


जैस के श केर िैं मिािाजा
िानघश्यां मश्यश्ू जश्यमचों मड़ें
श्यूं िद साधु भ भी िि जाएंगे के समघक तश्यचों मड़ें िमािद

नगेि का संकट ्िू किन के


आश्य के िैं साधु
संकट िि जाएंगे के जश्यचों क के तश्यचों
औि गेाश्यब िो जाएंगे के साधु
श्यज्ञ स के उठत के धए
ु ं क की तिि

पिल के िका कित के थ के िाम-लकमण श्यज्ञचों क की


आज िाम-लकमण क की प्राण-प्रघतषठा क के ललए
श्यज्ञ कि िि के साधु
साधु जो पिल के िि ल केत के थ के जंगेलचों मड़ें
जिां आज िि िि के िैं उग्रवा्द
विां स के बििा गेए िैं साधु
औि िम
ू िि के िैं नगेिचों मड़ें जट्ट क के जट्ट।

1966
मयायादाएँ हम तोडड़ेंगेे / कममार मक
म मि

त भीन-चाि आतमितश्याओं
व िजािचों ितश्याओं क के बा्
एक कब्रगेाि मड़ें
जनम ल के िि के िैं िामलला
औि बधावा
निदं बज ििा इस बाि
पवधवाएं
सिापा जरूि भ केज ििद िैं

बधावा बजता िद
तो कश्या िोता िाम
अश्योधश्या वनवास िद ् केत भी तम
ु ि के
किि स भीता बबन सन
ू भी िसोई मड़ें
उसक की सोन के क की मघू त् ् के खि ककतन के ह्न ज भीत के

अब तो वन भ भी निदं िि के
कंकिदट क के इस जंगेल मड़ें किां लमलड़ेंगे के वालम भीकक
तब लव-कुश को जनम ह्श्य के बगेैि िद
मि जाएगे भी स भीता
पि तम
ु ि के कश्या
सत्र भी क के कषट स के तो टूटत भी निदं िैं तम
ु िािद मश्या््ाएं
पिु ोहित घनश्यंबत्रत िाजसतताएं िद
तो़ पात भी िैं उस के
शब्द क के जूठ के ब केि खिान के वाल के क के िाथचों
शमबक
ू वध का आ्े केश पारित किाकि

अब तो ना शद्र
ू िैं ना िद ऋपरे
बस िाज केनता िैं

पि ना िचोंगे के लव-कुश तो कश्या


िम भ भी तो तम
ु िाि के ब केट के िैं िाम िम तो़ड़ेंगे के मश्या््ाएं
ग्रसड़ेंगे के िम
बं्िचों-भालओ
ु ं स के अंटद अश्योधश्या को
प भीटड़ेंगे के बांधकि
इस भी कंकिदट क के जंगेल मड़ें ।
1996
मन
म नन पढ़ रहा है / कममार मक
म मि

सब
ु ि क के छि बज िि के िैं औि कुििा निदं िै आज
कांस के क की थालद सा मं्प्रभ सश्य
ू ्
उूपि आ ििा िै
सर
ु ुम ठं़ एक ताकत क की तिि
म केि के भ भीति प्रव केश कि ििद िै

एक गेुलाब िै जो प़ोस क की ्दवाि क के पास


लसि उचकाकि ताक ििा िै
एक ननिदं बाललका झांक ििद िै श्जज्ञासु आं खिचों स के
सामन के स भीहढश्यचों पि बैठा िोहटश्यां तो़ ििा िै छोटू लाल
औि अ खिबाि सा् के िैं आज

इतना लल खित के-लल खित के चमकन के लगेा िै सश्य


ू ्
़ॉटप केन क की छाश्या उभिन के लगे भी िै कॉप भी पि
छत स के लटकत के पं खि के पि एक गेौिैश्या आ बैठी िै
एक पं़ुक आ बैठा िै एंटदना पि
प़ोस क के खिालद भ खि
ू ं़ पि ्ो बबश्ललश्यां
एक अधमि के चि
ू के क के साथ खि केल ििद िैं
एक च भील उ़त भी जा ििद िै सिू ज क की ओि
मानो ढंगे ल केगे भी उस के
उसक के पंज के मड़ें कुछ िै चि
ू ा-म केढक श्या औि कुछ
उसक के प भीछ के कौव के भ भी िैं ्ो-चाि

इधि चचंघतत िैं कपवगेण कक च भीत के क की तिि


खितम तो निदं िो जाएगे भी नसल आ्म भी क की
उधि मन
ु नन पढ ििा िै जोि-जोि स के
कक उजा् का पवनाश निदं िोता ...।
1996
ककसी पि के इंतजार मड़ें / कममार मक
म मि

पवव केकानं् को निदं ् के खिा मैंन के


पछा़ खिात के समद्र
ु को भ भी निदं
हिमालश्य को ् के खिा िै
पि ्िू स के

पि नह्श्यां ् के खि भी िैं मैंन के


नह्श्यचों क की सपन भीलद आं खिड़ें ् के खि भी िैं
उनमड़ें ् के खिड़ें िैं सपन के समं्ि क के
औि कछािचों मड़ें
अश्सथश्यां हिमालश्य क की

कश्या बा्ल एक ह्न हिमालश्य को


़ुबो निदं ्ड़ेंगे के समद्र
ु मड़ें
किि नह्श्यचों क के पास कश्या काम िि जाएगेा
घनठललद, मि निदं जाएंगे भी व के
किि कैस के पछा़ खिाएगेा समद्र

वैस के पविाट मत
क समश्य मड़ें कश्या किड़ेंगे के िम ।

गेभ् ् के खिड़ेंगे के धित भी का


शाश्य् विां िचों जवालाम खि
ु भी
ककस भी पल क के इंतजाि मड़ें ।

1993
गेमडहि / कममार मक
म मि

सांवल के िि के पततचों व सा् के लाल िूलचों क के साथ


िि-िि मड़ें पविाजमान मैं गेु़िुल िूं
कििंचगेश्यचों क के िि पै्ा िोता
तो ़ केिोड़ल सा म केिा भ भी पश्यािा नाम िोता
जो बचाता बलल स के मझ
ु को
पि श्यिां घनगे्गंध िूं इस भीललए भकतचों का पश्यािा िूं
म केि के प़ोस भी गेड़ें्ा-गेुलाब
टुक-टुक म केिा मंि
ु ् के खित के िित के िै
ओि मैं मट ु भी का मट
ु भी चढा ह्श्या जाता िूं
पाथिचों पि
कोई जो़ा मझ
ु के बालचों म के निदं सजाता
ककस भी क की म केज क की शोभा निदं बढाता मैं
कॉप भी क के सिचों मड़ें स खि
ू कि
समघक तश्यचों मड़ें निदं ब्लत भीं म केिद पु खिुड़श्यां

िि सब
ु ि
श्यत भीमचों क के म खि
ु स के छीन के गेश्य के ्ध
ू क के साथ
मैं भ भी पतथिचों पि चगेिता िूं
औि िि शाम
उस भी क के साथ स़कि
बुिाि ह्श्या जाता िूं ।
1996
चबूतरा : दो कविताएँ / कममार मक
म मि

1
बचपन मड़ें
गेांव क के कुएं क के चौ़ के चबूति के पि सोना
़िाता था मझ
ु के
किि भ भी मैं सोता था विां
कश्यचोंकक चबूति के पि
सपन के ब़ के सुं्ि आत के थ के
मैं ़िता था कक कभ भी - कभ भी
बबललद चलद आश्या कित भी थ भी
चबूति के पि
मैं ़िता कक किदं बबललद क के ़ि स के
कुएं मड़ें ना चगेि जाउं
इस भी ़ि स के कुतत के को
अपन के पास सल
ु ाता था मैं
कभ भी कभ भी मैं झांकता कुएं मड़ें
तो आकाश उतिाता नजि आता
मझ
ु के श्यि अचछा लगेता पि तभ भी
एक कालद छाश्या नजि आत भी मझ
ु के
हिलत भी िुई
वि म केिद िद छाश्या िोत भी थ भी
जो ़िात भी थ भी मझ
ु के
चबत
ू ि के क के पास िद
म केिं्द लगे भी थ भी
जो आज तक ििद िै
ह्न मड़ें श्जस पि लंगेोट स खि
ू त के िैं
औि िात मड़ें उगेत के िैं सि के् सपन के ।
2
एक कुआं िै
मिानगेि मड़ें भ भी
बबना चबूति के क के
उसक के घनकट जान के पि िद
पता चलता कक कुआं िै
अ़ोस प़ोस क के लोगे सोचत के िैं
कक इस के भिवा ् केना चाहिए

साल मड़ें एक बाि छठ मड़ें


मिातम जगेता िै इसका
कुछ लोगे श्जनिड़ें
इस लोकतंत्र मड़ें िाश्य ् केन के लाश्यक
निदं समझा जाता
व के कुएं क के बाि के मड़ें ऐसा निदं सोचत के
वि चाश्य क की गेुमटद वाला
ऐसा निदं सोचता
श्जसक की चाश्य क के ललए पान भी
इस भी कुएं स के जाता िै
सब
ु ि सब
ु ि कुछ ्घू िए
अपन के गे केरू विदं धोत के िैं
एक लभ खिमंगेा
भिद ्ोपििद मड़ें
निाता िै विदं
पि प़ोस मड़ें िद एक सकूल िै
ओि मिानगेि क के सन
ु ागेरिक
ठीक िद सोचत के िैं
कक उनक के बचच के इसमड़ें चगेि ना जाएं
लभ खिमंगे के क की एक िद संतान िै
पि लभ खिमंगेा अकसि श्यि किता िुआ
गेुजिता िै
कक इस मए
ु को एक ह्न
इस भी कुएं मड़ें
़ाल ् केना िै ।
1995
पहाड / कममार मक
म मि

गेुरूतवाकर्ण तो धित भी मड़ें िै

किि कश्यचों खि भींचत के िैं पिाड

श्जस के ् के खिो

उधि िद भागेा जा ििा िै

बा्ल

पिा़चों को भागेत के िैं

चाि के

बिस जाना प़ के टकिाकि

िवा

पिाड को जात भी िै

टकिात भी िै ओि म़
ु जात भी िै

सिू ज सबस के पिल के

पिाड छूता िै

भ के्ना चािता िै उसका अंध केिा

चां्न भी विदं पविाजत भी िै

प़ जात भी िै धलू मल

पि

प के़चों को ् के खि के

कैस के चढ के जा िि के

जम के जा िि के

जाकि

चढ तो कोई भ भी सकता िै पिा़

पि हटकता विद िै

श्जसक की ज़ड़ें िो गेििद

बा्लचों क की तिि

उ़कि

जाओगे के पिा़ तक
तो

न्द क की तिि

उताि ्ड़ेंगे के पिा़

िाथचों मड़ें मट
ु ठी भि ि केत थमा कि ।
टेन क की ख खिडक की से / कममार मक
म मि

ट केन क की ख खि़क की स के
पिा़
् के खि ििा िूं मैं
छोट के-छोट के कई खि़ के िैं सामन के
श्जनक की पषक ठभलू म क के ढालवड़ें मै्ान मड़ें
बचच के िुटबॉल खि केल िि के िैं

क केस भी-कैस भी शकलड़ें िैं इनक की


स भीधा खि़ा िै कोई सतप
ू सा
मंह्ि सा तिाश ललए िै कोई
एक क की कमि पि
उक़ूं बैठी िै ब़ भी स भी चट्टान

म केढक की स भी हटक की िै पपछल के तलओ


ु ं पि
मानचों उछाल ल केगे भी उुपि को अभ भी िद

श्यि उसक की अपन भी मद्र


ु ा िै
समश्य जब भ भी उछाल केगेा
उस के न भीच के उछाल केगेा
न भीच के िुटबॉल खि केलत के बचचचों क के क्मचों मड़ें ।
1992
चरिाहे / कममार मक
म मि

चिवाि के बन सकत के िैं शिंशाि

शिंशाि बन निदं सकता चिवािा चािकि भ भी

तानाशाि बन सकता िै वि

भोला-भाला व्‍यश्यश्कत

बन सकता िै पंड़त ज्ञान भी पविाट

ज्ञान भी िो निदं सकता म खि


ू ्

पागेल िो सकता िै वि

आकाश छूत भी जम भीन को

पाट सकत के िो अट्टाललकाओं स के

खि भींच सकत के िो

कई-कई औि च भीन क की ्दवाि

उस के ब्ल निदं सकत के समतल भलू म मड़ें

खिं़िि बना सकत के िो

विाँ बोलड़ेंगे के उलल।ू


उदासी / कममार मक
म मि

हठठोलद कित भी
समघक तश्यचों क के मधश्य
किॉ ं ि खिूं
तम
ु िािद उ्ास भी का
श्यि धाि्ाि िदिा।

1997
सॉनेट (हर सांझ...) / कममार मक
म मि

िि सांझ, त केि के रू खि का कण भि अवलोकन


कश्यचों मझ
ु केको प्रघतकण उदव केललत कि जाता िै
वि कश्या अदृशश्य िै जो, शन
ू श्य मड़ें संचध बन
म केिा अंति तझ
ु स के श्यूं जो़ के ि खिता िै।
कश्या लमल जाता िै, उस कण भि मड़ें िद मझ
ु को
एक भाव गेूंजता अंति मड़ें, िि कण िि पल
पि व्‍यश्यकत उस के शब्चों मड़ें कैस के कि ्ं ू मैं
िो कैस के अलभव्‍यश्यकत, जो िै अब तक गेोपन।

इनिदं ििसश्यचों मड़ें उलझाता िुआ मैं खिु्


को, किदं बिुत कुछ सल ु झाता जाता िूं।
म केिा जो भ भी छूअ विां उस कण जाता िै
उस के बचाना निदं ििा अब म केि के वश मड़ें।
उस खिोन के मड़ें भ भी, बिुत कुछ पा जाता िूं
पा-पाकि िि्म पाना कुछ िि जाता िै।
1988
सॉनेट (गेिया बहमत था...) / कममार मक
म मि

गेव् बिुत था मझ ु के, कक िूं मैं भ भी संनश्यास भी।


मन म केिा दृढ िै, अड़गे िै औि िि केगेा
अगेो भ भी, तब तक, जब तक िपव शलश तािक िैं
हटक के गेगेन मड़ें , ड़गेा निदं सकता कोई भ भी
मन म केिा। पि पिलद िद लिि तम
ु िाि के
छपव क की छलक की, विम बि गेए, साि के क के साि के।
श्यि लगेा कक वि तू िद िै, बिसचों स के श्जसको
ढूंढ ढूंढ कि िाि गेश्या था अनत केवास भी।

चलो िुआ श्यि अचछा, भिम लमटा तो म केिा।


चलो कक एक ह्न अपन के इस अड़श्यल अिम को
आित िोना था, सो श्यि भ भी आज िो गेश्या।
ककतन भी सुं्ि ि़ भी सलोन भी थ भी उस ह्न वि
जब कक टूटा, टूट टूटकि िुआ था त केिा।
नजिचों क की एक िद लौ स के, लमट गेश्या अंध केिा।
1988
लमथक पयार का / कममार मक
म मि

ब केचैन स भी एक लडक की जब झांकत भी िै म केिद आं खिचों मड़ें


विां पात भी िै जगेत कुएं का
श्जसक की तलद मड़ें िोता िै जल
श्जसमड़ें चककि काटत िैं मछललश्यचों िंगे-बबिंगे भी

लडक की क के िाथचों मड़ें टुकड के िोत के िैं पतथि क के


पट-पट-पट
उनस के अठगेोहटश्या खि केलत भी िै लडक की
कक चगेि पडता िै एक पतथि जगेत स के ल़
ु ककि पान भी मड़ें
टप…अचछी लगेत भी िै धवघन
टप-टप-टप वि चगेिात भी जात भी िै पतथि
उसका िाथ खिालद िो जाता िै
तो वि ् के खित भी िै
लाल फाक पिन के उसका च केििा
त ल म ला ििा िोता िै तलद मड़ें
कक
वि कित भी िै कू…
प्रघतधवघन लौटत भी िै
कू -कू -कू
लडक की समझत भी िै कक मैंन के उस के पुकािा िै
औि िंस पडत भी िै
झि-झि-झि
झि-झि-झि लौटत भी िै प्रघतधवघन
जैस के बारिश िो ििद िो
शम् स के भ भीगेत भी भागे जात भी िै लडक की
धम-िम-िम

इस भी तिि सब
ु ि िोत भी िै शाम िोत भी िै
आत भी िै िात
आकाश उतिान के लगेता िै म केि के भ भीति
ताि के चचन-चचन कित के
कक कंपकंप भी छूटन के लगेत भी िै
औि ति केगेन ़ोलत के िित के िैं सािद िात
लसताि के मंढ के चं्ोव के सा

किि आत भी िै सब
ु ि
टप-झि-धम-धम-टप-झि-झि-झि

कक जगेत पि उतिन के लगेत के िैं


घनशान पावचों क के

इस भी तिि ब्लत भी िैं ऋतए


ु ं
आत भी िै बिसात
पान भी उपि आ जाता िै जगेत क के पास
थो़ा झक
ु कि िद उस के छू ललश्या कित भी िै लडक की
थिथिा उठता िै जल

किि आता िै जाडा


प्रघतबंधचों क की माि स के कंपाता
औि अंत मड़ें गेमर
कक लडक की आत भी िै जगेत पि एक सब
ु ि
तो जल उति चक
ु ा िोता िै तलद मड़ें

इस आख खििद बाि
उस के छू ल केना चाित भी िै ल़क की
कक घनचो़त भी िै खिु् को
औि टपकत के िैं आंसू
टप-टप
प्रघतधवघन लौटत भी िै टप-टप-टप
लडक की को लगेता िै कक मैं भ भी िो ििा िूं
औि ििक कि भागे उठत भी िै वि
भागे चलता िै जल तलद स के।
याद / कममार मक
म मि

1
इधि
निदं आश्य भी
तम
ु िािद श्या्
अपना च केििा निदं ् के खिा इधि

आईना ् के खिता पि ्ाढद बनान के भि


श्यूं
भल
ू सा जान के पि
् खि
ु भी निदं
खिश
ु भ भी निदं
कक चलो अचछा िुआ
निदं
़िता निदं
कक इस तिि भल ू िद जाउंगेा कभ भी
2
अनपु श्सथघत तम
ु िािद
कभ भी-कभ भी
खि़ भी िो जात भी िै
मक
ु ाबबल
प़ा़ स भी
मौसम ब्लन के को िोता िै
ििलसंगेाि
बबछ ििा िोता िै बािि
तब
घनद्वदव िोत भी तम
ु िािद िंस भी
झ़ जात भी िै भ भीति
3
तमु िािद उपश्स्ाघत
एक वजन भी पतथि
उठाता तो पता चलता ताकत का
उछाला निदं जा सकता श्जस के
हटकाना िोता िै छात भी पि
तब गेििात भी िै न भीं् ।
1997
पयार / कममार मक
म मि

एक िाि
जो ् के खित भी
म़
ु -म़
ु कि

नज्दक की
एक्म स के
पास निदं आत भी जो।

1996
पयार मड़ें / कममार मक
म मि

1
पश्याि मड़ें मिानगेिचों को छो़ा िमन के
औि कसबचों क की िाि लद
अमावस को लमल के िम औि
आं खिचों क के तािचों क की िोशन भी मड़ें
ना् क के चबूति के पि बैठ के िमन के
्ज
ू क के चां् का इंतजाि ककश्या
औि भैंस क की स भींगे क के ब भीच स के
पश्शचम भी कोन के पि ़ूबत के चां् को ् के खिा
िमन के स खि
ु क की तिि
एक ्स
ू ि के का िाथ िाथ केां मड़ें ललश्या
औि पिवाि निद क की बटोहिश्यचों क की
2
कुछ जश्या्ा िद
बत्न मंज के पश्याि मड़ें
पान भी कुछ जश्या्ा िद पपश्या िमन के
कई कई बाि बुिािा िि को
सब केि के जगे के औि ् केि स के सोश्य के िम
एक ्स
ू ि के को माि ्घु नश्या जिान क के
ककसस के सन
ु ाश्य के िमन के
औि इतना िंस के
कक आस पास
पश्याि क के सिु ागे मड़ें बैठ के लोगे
भागे गेश्य के बोि िोकि
3
पश्याि मड़ें िमन के
सबस के उंच भी चोटद चढद पिा़ क की
विां िमन के ् के खिा कक प के़
कटकि शिि क की िाि ल के िि के थ के
विां िमड़ें ्ो लसश्याि लमल के
लसश्यािचों औि पतथिचों को िमन के
िरिश्यालद औि प्र केम क के गे भीत सन
ु ाश्य के
औि ध भीि के ध भीि के
उति आश्य के तलिहटश्यचों मड़ें।
1997
पहाड : छह कविताएँ / कममार मक
म मि

ज भीवन क के पवसतािचों मड़ें


अकसि श्या् आत के िैं पिा़
कक चाि के व के थकात के बिुत िैं
पि जल् िद ् के ् केत के िैं कोई चोटद
जिां खि़ के िो
कण भि को
तटसथ िो सकड़ें िम
पवसतािचों क के चक्रवतरतव स के

उू्द िवा शिदि स के लगेत भी िै


तो लसिित के िुए श्या् आत के िैं पिा़
श्या्चों का भ भी सान भी निदं
छूत के िद बिोबि कि ् केत भी िैं श्य के पवरमताओं को
अब इसमड़ें कश्या तक
ु कक धआ
ु ं छो़त भी ि केल को ् के खि
एक ल़क की क की श्या् आत भी िै

श्या्चों मड़ें पिा़ का वजन


िूल स के जश्या्ा निदं िोता
ना िद िूलचों स के कम खिब
ू सिू त लगेत के िैं पिा़
श्या्चों मड़ें संभव िोता िै
कक िम चम
ू सकड़ें पिा़चों को
जैस के उनिड़ें चम
ू ता िै आकाश

न भीच के उति आश्या िूं पिा़चों स के


सोचता कक अभ भी चोटद पि था
चोटद को ् के खिता िूं तो लगेता िै
कक कश्या सचमच ु विां था

उूपि शन
ू श्य मड़ें कोई कैस के लल खि के
कोई नाम
पांव तल के क की चट्टान भ भी
नाम सव भीकाि केगे भी कश्या

तब तो़ता चलूं पतथि कुछ


टुक़ के चमक्ाि श्या् मड़ें
पि कश्या पतथि पिा़ िोत के िैं

माि के खिुश भी क के िांप ििा िूं


चोटद चढद िै पिा़ क की
अब उतिना िै न भीच के

आश्रश्य निदं ् के पात भीं


तो बनत भी कश्यचों िैं चोहटश्यां

विां बा्ल िै िवा िै सिू ज िै


पि ज़ड़ें कश्यचों निदं िैं
िोता िै श्यिदं पतथि िो जाएं
पि लगेड़ेंगे के किो़ बिस

पिा़चों कश्या तम
ु िाि के िाथ निदं िोत के
इचछाएं निदं िोत भीं चोटद स के ढक केलन के क की

बलात के िो ्िू स के लसि भ भी चढात के िो


किि उतिन के कश्यचों निदं कित के

पछतात के िम िद उतित के िैं


कक उति के कश्यचों
उताि के जान के का ़ि तो निदं

निदं ऐसा निदं किोगे के


श्यिद सोचत के खिुश उ्ास िोत के
िम उति आत के िैं पि उति पात के िैं

िो तो पिा़
पि कैस भी सिाई स के
पैठ जात के िो समघक तश्यचों मड़ें िमािद
औि भ भी गेििद कालद ििद चट्टानड़ें बनकि
औि सोत के गेम् ठं़ के जल क के

इतन के िलक के िो जात के िो


कक लगेात के िो ्ौ़
भल
ू जात के िो
कक धुंध स भी श्य के समघक तश्यां िैं िमािद
िवाएं निदं कक च भीि के चल के जाओ

खिु् छलन भी िो जाएंगे भी श्य के


पि अगेोिड़ेंगे भी तम
ु िड़ें
पि कैस के ब केििम िो
अक केला पात के िद
िोन के लगेत के िो सवाि छात भी पि।

1997
मेरे रकत के आईने मड़ें / कममार मक
म मि

म केि के िकत क के आईन के मड़ें

खिु् को सँवाि ििद िै वि

श्यि सि
ु ागे िै उसका

इस के अचल िोना चाहिए

जब कोई चंचल ककिण

कँपात भी िै आईना

उसका वजू् हिलन के लगेता िै

श्जस के थामन के क की कोलशश मड़ें

वि िंिोल ़ालत भी िै आईना

हिलता वजू् भ भी किि

गेाश्यब िोन के लगेता िै जैस के।


पतनी / कममार मक
म मि

चां्न भी क की बाबत
उसन के कभ भी पवचाि िद निदं ककश्या
जैस के वि जानत भी निदं
कक वि भ भी कोई शै िै

उस के तो बस
त केज काटत भी िवाओं
औि अंध़चों मड़ें
चैन आता िै
जो उसक के बाििो मास बित के पस भीन के को
तो स खि
ु ात के िद िैं
वत्मान क की नक
ु कीलद माि को भ भी
उ़ा-उ़ा ् केत के िैं

अंध़चों मड़ें िद
एकाग्र िो पात भी िै वि
औि लौट पात भी िै
समघक तश्यचों मड़ें

अंध़
उ खिा़ ् केत के िैं उसक की चचनगेािद को
औि धधकत भी िुई वि
अत भीत क की
सपाट छाश्याओं को
छू ल केना चाित भी िै ।
1996
बाई जी / कममार मक
म मि

प़ोस मड़ें ल केटद पतन भी गेुनगेुना ििद िै


म केिद खिश्े़क की क के पूिब मड़ें मिानगेि खिालद िै
औि िाबत्र क के आलसश्य को बजात भी
पूिबा आ ििद िै
पतन भी गेा ििद िै भजन िन िन िनन
नप
ु ूि कत बाजश्य िन िन ...
नाचन के गेान के क की मनािद िै िि मड़ें
पि भजन पि निदं िन िन िनन

सब लसमट के आ िि के कमि के मड़ें


मां, भाई, बिनोई, बिन िन िन िनन
नप
ु ूि बज िि के िैं कांप ििद िैं ्दवािड़ें
बज िि के िैं कपाट कित भी िै मां - कइसन भजन बा।
चप
ु िित के िैं पपता
भाई गेुनगेुनाता िै धन
ु को
औि सपन के बुनन के लगेता िै
छोटद बिन ख खिल खिश्ेला ििद िै
औि घन््दोपरता स के िंसत भी
छोट के भाई को हिला ििद िै
ब़ भी बिन जमाई स के आं खिड़ें लमला ििद िै
औि पतन भी गेा ििद िै
पवदश्यापघत कपव ... पे
ु ूत्र बबसरू जघन माता ...
समापत िोता िै भजन
तालद बजात के िैं सब त़ त़ त़... बोलत के िैं
आप खिब
ू गेात भी िैं बाई ज भी ...।
1992
सबसे अचछे खित / कममार मक
म मि

सबस के अचछ के ख़त वो निदं िोत के

श्जनक की लल खिावट सबस के साफ़ िोत भी िै

श्जनक की भारा सबस के खिि कीि िोत भी िै

वो सबस के अचछ के ख़त निदं िोत के

श्जनक की लल खिावट चाि के गे़़-म़़ िोत भी िै

पि जो पढ़द साफ़-साफ़ जात भी िै

सबस के अचछ के ख़त वो िोत के िैं

श्जनक की भारा उबड- खिाबड िोत भी िै

पि भागेत के-भागेत के भ भी श्जस के िम पढ़ ल केत के िैं

श्जसक के िफ़् चाि के धुंधल के िचों

पि श्जसस के एक च केििा साफ़ झलकता िै

जो लमल जात के िैं समश्य स के

औि लमलत के िद श्जनि के पढ़ ललश्या जाता िै

वो ख़त सबस के अचछ के निदं िोत के

सबक की नजि बचा श्जनिड़ें छुपा ् केत के िैं िम

औि भागेत के किित के िैं श्जसक की ख़ुश भी मड़ें सािा ह्न

शाम लैंप क की िोशन भी मड़ें पढत के िैं श्जनिड़ें

वो सबस के अचछ के ख़त िोत के िैं

श्जनक के बाि के मड़ें िम जानत के िैं कक व के ़ाल के जा चक


ु के िैं

औि श्जनका इंतजाि िोता िै िमड़ें

औि जो खिो जात के िैं ़ाक मड़ें

श्जनिड़ें सपनचों मड़ें िद पढ पात के िैं िम

व के सबस के अचछ के ख़त िोत के िैं।


उदासी का सबब / कममार मक
म मि

रिबोक जूत के क की ्क
ु ान मड़ें आईन के मड़ें
अपन भी शकल ् के खि अपन भी औकात मापता िुआ
आज मैं ्सू िद बाि उ्ास िो गेश्या
तब मैचथलद कपव मिाप्रकाश क की पंश्कतश्यचों न के
ढाढस बंधाश्या - जूता िममि माथ पि सवाल अघछ ...
औि श्या् आईं रिबोक टंककत टोपपश्यां
जो पिचम बन भी लििात भी िित भी िैं

तलाशा िालांकक उ्ास भी का


कोई मक
ु ममल कािण निदं लमला

आईन के मड़ें म केिद सि के् प़त भी ्ाढद थ भी


कश्या विद थ भी उ्ास भी का सबब

कानपुि मड़ें व भीि केन ्ा न के श्यूं िद तो निदं टोका था


म केिद बढ आश्य भी ्ाढद पि

लौटत के ि केल मड़ें पघत क के साथ बैठी नवबश्यािता भ भी


िल
ु लमल गेश्य भी थ भी

तो ... िजामत करूं घनश्यलमत


पि ऐस के कश्या ...
उ्ास भी आं खिचों मड़ें पैठ गेश्य भी तो

सोचता िूं ्ौ़ू ं औि उ्ास भी को


प भीछ के छो़ ्ं।ू

1998
महानता क की घिसटन / कममार मक
म मि

पिल के व के सत्र भी लल खित के िैं


उनिड़ें लगेता िै कक
् केव भी लल खिा िै उनिचोंन के
् केव भी एक मिान शब्
किि व के सत्र भी को
लसि के स के पक़कि
िस भीटत के िैं
कोई आवाज निदं िोत भी
बस लक कीि िि जात भी िै श केर

कलाकाि बतात के िैं


कक श्यि एक कलाककघत िै
संगे भीतकाि उस के साधता िै
सातवड़ें सवि क की तिि
नाश्सतक उसमड़ें ढूंढता िै
च भी खि क की कोई ललपप
कपव विां क की ि केत मड़ें
स खि
ु ाता िै अपन के आंसू

अब कलाकाि नाश्सतक कपव औि संगे भीतकाि


सब मिान िो उठत के िैं

इस तिि
एक मिान शब् क की
घिसटन स के
मिानता क की संसककघत
जनम ल केत भी िै।

1996
उम्र के साथ / कममार मक
म मि

उम्र क के साथ
बिुत स के लोगे
ब्लत के चल के जात के िैं
तलवािचों मड़ें

एक ह्न अचानक
उनिड़ें लगेता िै
कक व के तमाम हिसस के
जिां व के िित के िैं
मश्यानचों मड़ें ब्लत के जा िि के िैं

किि
ककस भी औि क की आिट
विां
असह्मश्य िोन के लगेत भी िै
उनका सिज भोलापन
कटता जाता िै
उनक की अपन भी िद धाि क के न भीच के
आेैि संबंध कटत के जात के िैं

भाई
निदं ििता भाई
गेोघतश्या िो जाता िै
मां, मां निदं िित भी
चाि ब भीि के जम भीन िो जात भी िै
पतन भी ब्ल जात भी िै
पश्याज, िदंगे-िल्द क की गेंध मड़ें
्ोसत निदं ििता ्ोसत
अघतचथ िो जाता िै

तब
श्य के तलवािड़ें
ििचों परिवािचों गेांवचों को
काटत भी चलद जात भी िैं
मल
ु क क की सिि्चों तक
औि सबको समझात भी िैं
कक तलवािड़ें निदं िैं व के
िाषट िैं
औि िाषटहित स के बढकि
कोई च भीज निदं
न गेांव
न परिवाि
न िि।

1996
िह मेरी मेरी माँ ही सकती है / कममार मक
म मि

तािचों क की मपद्धिम आंच मड़ें पका िुआ वि जो च केििा िै


वि म केिद का िद िो सकता िै
पता निदं पिल के कौन पै्ा िुआ था, वि श्या मैं
शाश्य् मैं िद गेश्या था अपन भी बािचों क के बल
उसक के वकचों तक औि उसक के आंचल मड़ें ्ध
ू उति आश्या था
वि म केिा िद िंगे था श्जसक की छाश्या जब प़ भी थ भी
उसक की धप
ू िलद आं खिचों पि
तो उगे आश्य भी थ भी विां करूणा क की छांि
उसक की शो खि भी उसक की चंचलता क के माि तमाम िंगे
चिु ा लाश्या था मैं िद
ध भीिता क की सश्याि सल केट पट्ट भी
बाक की िि गेश्य भी थ भी उसक के पास
अपन भी उध के़बुनड़ें घिस िश्ेसकि
श्जस के मैंन के धस
ू ि बना ़ाला था
धित भी क की तिि

बां.... श्यि संबोधन


पिलद बाि उतिा था म केिद िद आं खिचों मड़ें
उसन के सध
ु ािा भि था कि ह्श्या था मां...

सन
ु िल के पाढ क की कतथई सा़ भी मड़ें
सश्य
ू ् को अधश्य् ् केत भी
वि म केिद मां िद िो सकत भी िै
उसक की आं खिचों क की पपवत्रता मड़ें
अकसि ़ूबन के लगेता िै अश्ग्‍य नवण् सश्य
ू ्
उसको ् के खि लगेता िै ईशवि अभ भी श्जं्ा िै औि
समश्य क के पा खिं़ स के िबिाकि
जा छुपा िै उसक की आं खिचों मड़ें
वि म केिद मां िद िो सकत भी िै
म केिद कपवताओं क के तमाम िंगेचों स के जश्या्ा
औि लक्क िंगेचों क की साड़श्यां िैं उसक की
छुपा ल केत भी िैं जो मझ
ु ाक के म केिद लजजा को
म केि के भश्य को।
1993
नेटरा हाथ / कममार मक
म मि

ल केटा पढता िोता िूं


तो ककताब उठाश्य के ि खिता िै ्ाहिना
औि िलक के थाम के न केटिा
पलटता चलता िै पनना
लल खित के लल खित के रूक जात भी िै कलम
तब िचोंठचों को सस
ु िाता िै न केटिा
जैस के जानता िो ककधि छुप के िैं भाव
किि कलम सिकत के
ठुड़ भी स के अ़ ् के खिता िै घनसपं्
लल खित के ्ाहिन के क केा
जैस के खिबि िद ना िो कुछ
सोत के चचंतक क की मद्र
ु ा मड़ें
माथ के पि प़ा िोता िै ्ाहिना
तब न केटना ल केटा ििता िै
अनपढ पप्रश्या सा पास िद
किदं सिु सिु द िोत भी तो सिलाता
किि ्ाहिन के क की अंगेुललश्यचों मड़ें
अंगेुललश्यां िंसा
मनौवल किता सा सो जाता

झगे़ा झांटद मड़ें


लपक ल केता ्ाहिना
कॉलि ककस भी का
तो अनिोन भी क के भश्य स के कांपता न केटिा
पवनत भी किन के लगेता ईशवि स के
बॉस को श्यंत्र सा
सैलश्यट
ू ्ागेता ्ाहिना
तो शम् आत भी न केटन के को
औि बगेल घछपन के क की कोलशश किता वि

लमत्रचों स के भड़ेंट ब खित


पछताता न केटिा
पव्ा क की ब केि भ भी
उछल उछल ् केि तक
िाथ हिलाता ्ाहिना िद
बछ़ के क की प भीठ भ भी विद सिलाता

पि गेाश्य ्िू ना िो श्या समाज


न केटि के को िस भीट ल केता साथ वि
सािद गें्गे भी साि किाता उस भी स के
औि थमा ् केता रूमाल
लो प़ के ििो लश्ेपट के बांश्य भी ज केब मड़ें

कभ भी तो चन
ु ौत भी िद ् के ् केता न केटिा
कक िसस भी बंटन के स के ब केलचा चलान के तक
बं्क
ू थामन के स के बोझ उठान के तक
िै कोई काम जो िो बगेैि न केटिा क के

एक ह्न मझ
ु के लगेा
कक ्म िै न केटिा मड़ें
तो पक़ा ह्श्या कलम
कक उताि के प्र केमगे भीत कोई
बबचकत भी अंगेुललश्यचों स के

तब बना ह्श्य के उसन के


कौए क के टांगे कई
बचपन मड़ें जैसा
लल खिा किता था ्ाहिना

तब सािूकाि स के
लाश्या लसल केट पपनलसन
पक़ाश्या न केटिा को
भािद भािद सा
लगे ििा था उस के
कक बिाना कि ििा था वि
मैंन के समझाश्या
भािद िै
तो ि खि ्ो जम भीन पि
औि लल खिो
पालथ भी माि कि लल खिो।

1990 मंगेल केश ़बिाल क की एक कपवता पढकि।


खिमशी का चेहरा / कममार मक
म मि

खिुश भी को ् के खिा िै तम
ु न के कश्याा् कभ भी
श्रम क की गेांठड़ें िोत भी िैं उसक के िाथचों मड़ें
उसक के च केिि के पि िोता िै
तनाव-जघनत कसाव
बबवाइश्यॉ ं िोत भी िैं खिुश भी क के तलओ
ु ं मड़ें
शद्धि
ु म् क ाजघनत

खिुश भी क की
िथ केललश्यॉ ं ् के खि भी िैं तम
ु न के
पतलद कड भी लोच्ाि िोत भी िैं वो
जो अपन भी गेांठड़ें
छुपा ल केत भी िैं अकसि
अपन भी आतमा मड़ें
उस पि चोट किो
् के खिचों कैस के घतललमलाकि
उभि आत भी िैं गेांठड़ें

च केिि के क के तनावजघनत कसावचों को


छ केडन के स के िद
िूटत भी िै िँ स भी
धवघन क की तिि

तलओ
ु ं मड़ें ना िचों तो
खिुश भी क की समश्क ततश्यचों मड़ें
जरूि िोत भी िैं बबवाइश्यॉ ं
विॉ ं झांकोगे के
तो िँस भी लमटटद पाओगे के
उस के मत घनकालना गेतत् स के
िकतम
िूट पड केगेा उनस के

बड के गेिि के संबंध िोत के िैं


लमटटद क के औि िकतो क के
सगेोबत्रश्य िैं ्ोनचों

अपन भी आतमा को
जानत के िो तम

खिुश भी क की आतमा
खिुश भी क के पैिचों मड़ें घनवास कित भी िै
तब िद तो
इतन भी त केज ्ौडत भी िै खिश
ु भी
एक च केिि के स के
्स
ू ि के त भीसि के व तमाम च केििचों पि

कभ भी खिुश िुए िो तम

श्रम
ककश्या िै कश्या कभ भी
्ौड के िो िास पि नंगे के पॉवं
श्या किि ि केत पि
तो तम
ु न के जरूि ् के खिा िोगेा
कक कैस केट
ं मड़ें पैस भी आतमाि
िमाि के पॉवचों
लमटटद स के
चगे
ु त भी िै संव के्ना
औि कैस भी त केज भी स के
ििद िोत भी िैं
मश्सतषक क की जडड़ें

श्यिॉ ं स के विॉ ं उडान भित भी


कैस भी उनमन
ु कत िोत भी िै िँ स भी
औि घनद्वदव ककतन भी
कक पकड मड़ें निदं आत भी कभ भी
कैमि के मड़ें बं् किो
तो तसव भींिचों स के िूट पडत भी िै
मन मड़ें बं् किो
तो आं खिचों स के

कश्यां कि के वि
कक समश्य कम िै उसक के पास
औि
असंख्‍श्य िैं मनषु श्य
प भीडा स के बबंध के िुए
औि सब तक जाना िै उस के

खिुश भी क की
ऑं खिड़ें िोत भी िैं हििण भी स भी
पवसिािरित तश
ु ् साि व सजल
छोटद स भी प भीडा भ भी
़ुला ् केत भी िै उस के
बि आता िै जल
टप-टप-टप

बडा गेम भ भी
पचा ल केत भी िै खिुश भी
कभ भी विद
गेॉठं बन जात भी िै
कैंसि क की

पि श्रम क की गेॉठं
श्जश्या्ा कड भी िोत भी िै
गेम क की गेॉठं स के
उस के गेला ् केत भी िै वि

खिुश भी जानत भी िै
कक श्जश्या्ा स के श्जश्या्ा
कश्या कि सकता िै गेम
उस के माटद कि सकता िै

लमटटद क की तो
बन भी िद िोत भी िै खिुश भी
ख खिलौनचों स भी
उसक के टूटन के पि बचच के िोत के िैं
कुमिाि निदं िोता
वि जानता िै श्रम को
पिचानता िै खिुश भी को
गेढ ल केगेा वि औि औि नश्य भी

बािि स के
पॉवं िोत के िैं खिुश भी क के
मगे
क नश्यन भी िोत भी िै
पि मगे
क मिदचचका निदं ् के खित भी खिश
ु भी

पिल के
कडकत भी िै बबजलद
किि िोता िै बज्रप्रिाि

गेिजता

जैसा आता िै ् खि

वैसा िद चला जाता िै
पि चक्रवातचों औि
् खि
ु क की सच
ू नाओं क की तिि
सननाट के का
व्‍यश्यामोि निदं िचत भी खिुश भी
आना िोता िै
तो आ जात भी िै चप
ु -चाप
भंगे कित भी सननांटा

आत भी िै
तो जात भी किॉ ं िै खिुश भी
िच-बस जात भी िै सगे
ु ंध स भी
ख खिला ् केत भी िै
पं खिुड़श्यचों
ि को
किि बं् किॉ ं िोत भी िैं पं खिडु ़श्यॉ
ि ं
झि जाऍं चाि के

गेमचों मड़ें
सब छोड ् केत के िैं ्ामन
तो बचच केे के
थाम ल केत के िैं खिुश भी को
औि भित के िैं कुलॉचं

तब बड के नािाज िोत के िैं


उनिड़ें माित के िैं चॉट कें
औि खि्
ु िोत के िैं

कुतत के क की तिि
िम केशा
िमाि के आगे के-आगे के
भागेत भी िै खिुश भी
बचचचों स भी आगे के आगे के
साि कित भी चलत भी िै िासताआ

वि ् के खित भी िै पिाड
औि चढ़ जात भी िै ्ौड कि
विदं स के बुलात भी िै

न्द को ् के खित के िद
गेुम िो जात भी िै
भँविचों मड़ें

जंगेल को ् के खित के
समा जात भी िै ्िू तक
किि किदं स के
कित भी िै
कू-कू-कू
िम भागेत के िैं उस के पान के को
भागेत के चल के जात के िैं

िॉपत के ढित के हढललमलात के
उस भी क की ओि

जंगेल काटत के िैं


औि बनात के िैं पगे़ंड़श्यॉ ं
भँविचों स के लडकि
बनात के िैं पुल
पतथ केिचों को छॉटं
चढत के िैं पिाड

शाश्य् इस भी तिि बन के िैं


तमाम िासत के सभश्यता क के

खिुश भी को ढूंढता
कोलंबस
अमिदका ढूंढ ल केता िै

एवि केसट तक
िमड़ें खिश
ु भी ल के जात भी िै

चॉ्ं पि
जात भी िै खिश
ु भी
औि कित भी िै
मंगेल पि चलो

कभ भी
प भीछ के लौटकि निदं ् के खित भी खिुश भी
समघक तपविदन अत भीत का िासता
निदं िोता िै उसका
़ाश्यनासोि लमलत के िैं जिॉ ं
जो अपना भपवषश्य
खिु् खिा जात के िैं।
बचचचों क की जजच / कममार मक
म मि

ख खि़क की क के स भी खिचचों स के सटाकि


एक खिालद ़बबा बांध ि खिा िै मैन के
अमल
ू का
ओि ढक ह्श्या िै उस के
सा् के कागेज स के
कक भद ना िो ्दठ क की
औि इंतजाि मड़ें िूं कक
कोई गेौिैश्या
इसमड़ें वास कि के

श्यंू
प़ोस क के नश्य के घनज्न मकान मड़ें भ भी
िि सकत भी िै वि
पि मैं जानता िूं
अगेिन मड़ें जब धान पकड़ेंगे के
तब कंकिदट क के जंगेल मड़ें
मौसम क की घनज्नता
मझ
ु के िद निदं
इस िि केलू चचड़श्या को भ भी खिल केगे भी

इस नश्य के बसत के शिि क के प़ोस मड़ें


जब िसल कट केगे भी
औि धान क की एक लिछी
आपन भी चचोंच मड़ें ्बाए
लंब भी ्िू द तश्य कि चचड़श्या लौट केगे भी
तो कैसा सन
ू ा लगे केगेा
जब निदं ्ौ़ केगेा कोइ्र सोनू
गेट्टू श्या िैपप भी उसक के प भीछ के
चचड़श्या क के प भीछ के भागेता
जब आएगेा सोनल
ू ाल
औि छमक कि जा बैठ केगे भी वि मुं़ केि पि
तो चचढकि बोल केगेा सोनू
् केख खिए तो अबबा
गेौिैश्या िि गें्ा कि ििद िै
ओि चप
ु ििड़ेंगे के अबबा
तब पछ
ू केगेा वि
गेौिैश्या घततलद को खिा जात भी िै न अबबा
तब लसि हिला ्ड़ेंगे के अबबा
वि किि पछ
ू केगेा
चचड़श्या ्ाना भ भी तो खिात भी िै
ओि ्ौ़ा जाएगेा मां क के पास
कक पिल के उस के ्ाना ् के
किि कोई काम कि के
किि ्ाना ल के ्ौ़ा आएगेा वि
िड़ेंक केगेा चािा
पि चचड़श्या तो एक िद जान ठििद
निदं िद आएगे भी
तब उ्ास िो थककि
सो जाएगेा वि
तब सपन के मड़ें आएगे भी चचड़श्या
्ाना चगे
ु केगे भी उसक के गेु्ाज िाथचों स के
उसक की तलिथ भी मड़ें जब
चचड़श्या क की चचोंच गे़ केगे भी
तो गेु्गेु् स के जागे केगेा वि
औि पाश्य केगेा कक गेाश्यब िैं ्ान के

इस भीललए ख खि़क की क के स भी खिचचों स के


सटाकि
मैंन के बांध ि खिा िै एक ़बबा
कक कोई चचड़श्या इसमड़ें वास कि के
चचड़श्या िि केगे भी
तो खिोज- खिबि ल केन के
आ िद जाश्या कि केगे भी बबललद
ब केला क की झा़चों मड़ें ्ब
ु क की
अपन भी पश्यािद नजिचों स के
जब ििू ििद िोगे भी वि
तो कभ भी ह् खि िद जाएगे भी चचड़श्या को
किि ्िवाजा तो बं् कि केगे भी निदं चचड़श्या
च भी खि-च भी खि कि वि
लगे केगे भी जगेान के जनप् को
जनप् जगे के न जगे के
सोनू तो जगे िद जाएगेा,
भागेा आएगेा चचड़श्या क के पास
ओि ििू ता पाएगेा बबललद को
किि तो ऐसा ़ि केगेा
कक ढ केला उठा पपल प़ केगेा बबललद पि
औि चचड़श्या तो
चढ जाएगे भी मुं़ केि पि
विदं स के गेाएगे भी जोि स के
कक ककतना बिा्िु िै म केिा सोनू
कक समझ्ाि िै साे केनू
कक अब ब़ा िो ििा िै सोनू

चचड़श्या आएगे भी
तो जान के
ओि कश्या कश्या लाएगे भी साथ
ककसस के तो लाएगे भी िद वि
जंगेल क के
जंगेल क की आगे क के ककसस के
जंगेल क के नागेचों क के ककसस के
आगे क के ककसस के सन
ु ात भी
चचड़श्या क की आं खिड़ें जब सन
ू भी िो जाएंगे भी
तो ब केचािा चच़ा कश्या सोच केगेा
कक सन
ू केपन मड़ें उसक के
ककस भी बबछ़ के चच़ के क की
िा खि बबछी िै

औि नागेचों क के ककसस के
उि
पतथि क की बांब भी मड़ें
िदि के-माखणकचों क के आसनचों पि
सि काढ के नागेचों क के ककसस के
ककतना समझाेात भी थ भी वि
ननिड़ें चच़चों को
कक उधि मत जाना
श्जधि मणश्े-माखणकचों क की चकाचौंध
घछटक की िो

पि नौ माि
गेभ् क के अंध केिचों मं उजबज
ु ाए
बचचचों क की श्जच
कौन निदं जानता।

1991
हम कया करड़ें / कममार मक
म मि

पिंपिा क की लद् संभाल के


जो धंस के जा िि के औि खिुश िैं वो म खि
ू ् िैं

श्यि म खि
ू ्ता सिन निदं कि पा िि के जो
पागेल िैं वो

म खि
ू ्खें औि पागेलचों स के अटा जो परिदृशश्य िै
वि इघतिास िै औि बुपद्धिमान
म खि
ू ्खें औि पागेलचों क की टांगेचों क के मधश्य स के
भागे िि के िैं भपवषश्य को

िम कश्या किड़ें कक पागेल पप्रश्य िैं िमड़ें


औि बुपद्धिमानचों को िम सि नवात के िैं ।
1997
चचड़या
ि का बचचा / कममार मक
म मि

एक चचड़श्या का बचचा जब
सिू ज क की तपपश स के जलन के लगेा
तो जान के कश्या सझ
ू भी उस के
कक बुझा ् केन के क की न भीश्यत स के
सि उठाकि उसपि थक
ू ह्श्या

अब सिू ज क की स केित पि इसका कश्या असि प़ा


पता निदं
पि उसक के वंशधिचों को श्यि नागेवाि गेुजिद
सो असत्र-सशत्र ल के प़ गेश्य के उसक के प भीछ के
अब आित क की मािद वि ननिदं स भी जान
लगे भी भागेन के इस के लोक स के उस लोक
उस के कौन शिण ् केगेा
चां् तोि आपस मड़ें बघतश्या िि के िैं
कक इस के बस खिु्ा िद बचा सकता िै
अब खिु्ा को कोई किां ढूंढ के

सबका ऐसा पवशवास िै

कक चचड़श्या का बचना मश्ु शकल िै


ग्रिचों क के कैमि के चचड़श्या पि नजि हटकाश्य के िैं
कक चचड़श्या मि के कक एक
ि के़लाइन नश्यज
ू तैश्याि िो
श्जसक की जगेि अभ भी खिालद िै।

1988 , तसलदमा नसिदन क के ललए


शमशेर / कममार मक
म मि

चचकन भी धल
ू भिद ब्लद जश्यचों शषु क भिु -भिु द
तलए
ु ्ो श्या छाश्याएं हृ्श्य क की
कक ्ो पवमान खिो ... खिो ... जात के ब्लद मड़ें
कक ढलान गेुरूतव ख खिसकाता
िाता धंस आता वक ि केत भीला
चथिता ... आ तटद पि
धािाएं ख खिसकात भीं तलद
भ भीरू मन छूता जल कांपता ्ो पल
छटपटात भी च केतना क की ज भीभ
अतिति प्राण ् केत के ढक केल धािा मधश्य
सौं्श्य्काम भी आतमा
् केत भी उलदच
सािा भश्य घनिभश्य ।
1991
समय क की दराँत पर / कममार मक
म मि

समश्य क की ्िांत पि
बज खित के जख्‍म सा
गेुजि ििा िै पवशव
िट के िचोंठ बबसिू ता िमािा मल
ु क भ भी
घनकला िै अभ भी अभ भी

वत्मान क के कंधचों
अत भीत क की लाशड़ें ला्
उनिड़ें ज़ भी सुंिा ििा िै धम्
औि जलत भी च भी खिचों स के अंट के प़ के िैं िाजपथ
गेललश्यचों स के घनकलत भी पल
ु दस
लगेा ििद करश्यू् ्गे
ु ्गंध क के भभकचों पि

जनक्रं्न क की लििचों पि
कलिव कित के चल के आ िि के िाजन केता
जख्‍मचों स के रिसता िकत च खि िि के
बतला िि के कक खिाललस मि
ु ललसचों का िै

चल
ु लू भि अपन के िद िकत मड़ें ़ूबकि
्म तो़ ििा िै कपव
कक उसक की छटपटािटचों क के बुलबुल के िद
िि जाएंगे के िमािद पविासतड़ें ।

1991, ििुव भीि सिाश्य क की मौत पि


वपतररया िोटा / कममार मक
म मि

बैठत के िद पान भी क के ललए


पूछत के िैं अरूण कमि
् के खिता िूं
ब़ा-सा
पपतरिश्या लोटा उठाए
चल के आ िि के िैं

अि के ि के आपक के िाथ मड़ें श्यि


लोटा िै श्या प्क व भी िै पूिद
अपन भी सगे
ु ंध अपन भी न्द
अपन के त केज क के साथ

मिानगेि क की इस कोठलद मड़ें


सश्य
ू ् क की तिि उदालसत िोता
श्यि लोटा
इसका भाि उठाए
कैस के लल खि ल केत के िैं आप
ऐस भी सर
ु ुम गेुनगेुन भी कपवताएं

किि ग्‍य लास स के ढाल पपश्या जल


तो पपतिैला सवा् उसका
चमकन के लगेा नसचों मड़ें म केिद
ककताबचों स के अंट के उस कमि के पि
भािद प़ िि था वि लोटा
सो अ्ब्ाकि उलट ह्श्या उस के
अि िि कश्या िैल गेश्या कमि के मड़ें
सगे
ु ट्टू भोि के-भोि
़ाल स के चए
ु स केनरु िश्या आम
िाथ म भीजन के क के ललए
खि केतो स के लद गेश्य भी लमट्ट भी
औि श्यि जल सोनभद्र का

इसमड़ें ्ाल
अचछी पक केगे भी ।
1991
कमहरा और सरू ज / कममार मक
म मि

पूिा प खिवािा कुिि के न के सिू ज को ढांक के ि खिा


बोिस भी औि महु टठश्यचों मड़ें बचा कि ि खि भी गेश्य भी आगे
आख खिि काम आ चक
ु की थ भी
िो ििा था कक िाथचों औि पैिचों को प केट मड़ें छुपा लूं
क्रोध आ ििा था मझ
ु के ककस पि पता निदं
मजाक सझ
ू ििा था ककसस के पता निदं
किि जोि क की िांक लगेाई मैंन के
िाम ज भी िाम ज भी िाम किअ

कोिि के क की चा्ि चट खिन के लगे भी

बचचचों न के म केमनचों औि पपललचों को संभाला


औि भागे के नििचों बगेइचचों लसवानचों क की ओि
मैं भ भी िि क की पपछा़ भी आश्या
सिू ज स के अपन भी नािाजगे भी जाहिि क की
औि उसक की ओि प भीठ कि बैठ गेश्या
पि सिू ज नािाज निदं िुआ
अपन भी गेम् िथ केललश्यचों स के
म केिद प भीठ सिलाई उसन के
मैंन के ् के खिा गेौिैश्या सिू ज भैश्या स के जिा नािाज निदं
चक
ु चचक कित भी क की़ के गेटक ििद िै वि

अपना च केििा सिू ज क की ओि ककश्या मैंन के


पूछा किां थ के किां थ के इतन के ह्नचों
् के खिो कश्या गेत बना ्द िै जा़ के न के म केिद

सिू ज क की आं खिड़ें तलाश भी मैंन के


उसस के पववशता झांक ििद थ भी कि ििद थ भी
आ िद तो गेश्या कश्या श्यिद काि की निदं िै
रूठना छो़ो मस
ु कुिाओ खिुल कि
औि म केिद आं खिचों मड़ें आंसू आ गेश्य के।
1990
सॉनेट (भीतर कैसी दो) / कममार मक
म मि

भ भीति कैस भी ्ो उथल-पुथल िै, भावचों का


ि केला चलता िै, बैठा पवचाि िाथ मलता िै
भावचों क की ितश्या मैं कि ्ं ,ू पि अभावमश्य
म केिा ज भीवन िै, ज भीवन को कुछ लंबा कि ्ं।ू
औि, ठौि किि किां लमल केगेा, अब बच भी िुई
ककतन भी आं खिड़ें िैं श्जनमड़ें जल िै बाक की, तल िै
स खि
ू ा िट-िट का श्जसमड़ें अथ् भिा ि के, व्‍यश्यथ्
ककस के कैस के कि ्ं ू मैं ककस - ककस अनथ् को।

बंधन कोई निदं पि सि पि बोझा िै


उसको साध के ्ौ़ूं तो खिप जाए ज भीवन।
इस भी साधना मड़ें, औि आिाधना बाक की िि जाए
जन - जन क की, बोझचों मड़ें बंधा िुआ ज भीवन िै
पल-पल मिता,जो उचचत किदं लमलता जल,वाश्यु
लमलत भी तो छो़ इस के मैं ्ौ़ चला जाता जनपथ पि।

1992, बत्रलोचन क के ललए


ग़जि (जाने यह ककससे) / कममार मक
म मि

जान के श्यि ककसस के कश्या लगेा बैठा

वो चां् स के उतिा तो तािचों मड़ें जा बैठा।

िमन के सोचा था कश्या क के ऐसा िोगेा

जो पास था वो मफ़
ु ललस का खवाब बना बैठा।

िोशो-िवाश क के लमि के कश्या किन के

लसिान के म भीि था जो पैतान के कब भीि जा बैठा।

समझाएँ कैस के ककस के कश्या समझाएँ

बात आई थ भी ह्ल मड़ें क के जबाँ कटा बैठा।

कििा जो लसि तो ख़ाब स के ज भी लगेा बैठा

ख़ाब तो ख़ाब था श्य के जा क के वो जा बैठा।


सॉनेट (इकिौता तारा) / कममार मक
म मि

इकलौता तािा जलता पश्शचम भी ककघतज पि


़ूब अभ भी जाएगेा कण मड़ें, मानस पट पि।
उगे आएगेा तब वि औि प्रजवललत िोकि
ह्प - ह्प किता िुआ जल केगेा, इत - उत कििता
िुआ अंत मड़ें वो चथि िोगेा उि मड़ें म केिद
आं खिड़ें बन कि । अंतस को म केि के भि ् केगेा
मधिु जवाल स के औि काल स के , टककि ल केगेा
़टकि, िि जाएंगे भी उसक की आं खिड़ें िटकि ।

काल ढाल िै चकु के िुओं का झुक के िुओं का


जो ज भीवन िण छो़ चक ु के मो़ चकु के िैं म खि

सकाल स के । पि श्जनक की सब
ु िड़ें निदं भिोस के
ककस भी सश्य
ू ् क के, किदं ककस भी इकताि के क की
धंध
ु लद धन
ु पि, चलत के - िित के िलक की स भी
भ भीगे भी उजास मड़ें आस घछपाए पवलम-पवलम कि।

1999
सॉनेट (गेोबर अब गेणेश हो रहे) / कममार मक
म मि

गेोबि अब गेण केश िो िि के,श केर िो िि के


अवगेुण उनक के। कल तक क के पवघन-पवनाश्यक
आजकल साि के कल केश धो िि के अलभजन क के।
काल के ग्र केनाइट पि तचों् तिाश भी जात भी
ड़म-ड़म कि बजत भी उस पि गेुल-थल
ु छात भी।
छात भी तचों् संभाल के उपि सूं़ झूलत भी
निदं भल
ू त भी आगे के िख्‍ खि भी लड़ू भि थालद
तालद बजा िि के ताल मड़ें पंड़त मावालद।

्ध
ू प भी िि के चममच स के कंटि का कंटि
सध
ु -बध
ु खिो ् केत के ्ो ह्न को साि के जन-गेणेा
मािड़ें ऐसा मंति। न केता अलभन केता सब
लमल जुलकि गेाएं ििककत्न,नत्न किड़ें
बॉलदउ़ भी बालाएँ, ्िसाएं जा् ू जब
जोबन का,जल जाएँ इचछाऍं भक स के जन क की।
1999
गेीत (इक लसतारा) / कममार मक
म मि

इक लसतािा हटमहटमाता ििा सािद िात

वो सल
ु ाता ििा औि जगेाता ििा

पिलू मड़ें कभ भी, कभ भी आसमान पि

वि उन भीं् के क की लोिद सन
ु ाता ििा।

इक ...

रूप उसका समझ मड़ें कश्या आए कभ भी

िोशन भी उसक की पल मड़ें आश्य के-जाश्य के कभ भी

खिुशबू उसक की औि उसक के पैििन

सपनचों स के न भीं् मड़ें आता जाता ििा।

इक ...

िंगे उसका औि उसक की आवाज कश्या

लाऊं आ खिि मड़ें मैं उसक के अं्ाज कश्या

रू-ब-रू उसक के आं खि खिुलत भी निदं

भोि तक उस प के नजिड़ें हटकाता ििा।

इक ...

पलकचों प के शबनम क की बूं्ड़ें िैं अब

औि िंगेत िलक क की शव केताभ िै

सश्य
ू ् आएगेा इनको भ भी ल के जाएगेा

मान भी कश्या मैं िोता श्या गेाता ििा।

इक ...

{1998- िैज क के ललए }


कािी भैंस / कममार मक
म मि

इन पठािद इलाकचों मड़ें


घिस कि चचकन भी िो चक
ु की चट्टानड़ें
कैस के बब खििद िैं
जैस के मव केश भी बैठ के िचों इधि-उधि

लगेता िै कक मैं ्ौ़ूंगेा


औि कालद भैंस स भी पसिद चट्टान पि
जा बैठूंगेा

बैठत के िद
चल ् केगे भी वि उठकि
सामन के बित भी न्द क की ओि
िासत के मड़ें
स भीगे उगे आएंगे के उसको
श्जनिड़ें पक़कि मैं
निाउंगेा न्द मड़ें
़ूब - ़ूब ।
1993
जैविक ख़तरा / कममार मक
म मि

लैंपपोसट क के ऊपि क के अंधकाि मड़ें


क कीटचों पि
झपाट के माि िि के िैं चमगेा़्
औि पोल स के लगे के ताि पि बैठा उललू
लपकन के क की तैश्यािद मड़ें िै उनिड़ें

लैंपपोसट को छूत भी िोशन भी


जिां छू ििद िै अंध केि के क की चा्ि
विद एक बबललद चचपक की प़ भी िै
पोसटि स भी
ओि गेाड़श्यां गेज
ु ि ििद िैं ऊपि स के

शाश्य् अपना िद िासता


काट गेश्य भी थ भी बबललद
औि उसक की िडड़श्यचों का मलबा
समतल िो गेश्या था स़क क की खिांचचों मड़ें

िोशन भी क के साथ
क की़ के भ भी झाि िि के िड़ें स़क पि
िि के हटड़ के, खझंगेुि औि पतंगे के
इनमड़ें अेाचधकांश का िासता
वािन काट जा िि के िैं
वािनचों क की माि स के बचता-बचाता
एक अिोिद कुतता
घछपकलद सा
चट कि जा ििा िै श्यि जैपवक कचिा।
1995
नई मंजजि / कममार मक
म मि

्स
ू िद मंश्जल क की छत पि
़ूब चक
ु के सश्य
ू ् क की
ठं़ भी िोत भी सिल गेंध मड़ें
अतिाना अचछा लगेता िै
आगे के नाल के पाि का
गे केिूं क की बाललश्यचों स के पटा
भू-भागे िै
बिुमंश्जलो अपाट्मड़ेंट श्यिां लसि उठा िि के िैं
इमाितचों क की ऊंच भी टंककश्यचों पि
चगेद्धि बैठ के िैं

प्रत भीक चचनिचों क की तिि श्सथि


कश्यचों बैठ के िड़ें चगेद्धि
कश्या वो
मआ
ु श्यना कि िि के िैं शिि का
श्या कट गेश्य के ता़ वक
क चों क की जगेि
नश्य भी मंश्जल
तलाश लद िै उनि केांन के।
1996
चीि / कममार मक
म मि

गेंगेा ककनाि के
पमप िाउस क के ़बिचों क के ऊपि लगे भी ि केललंगे पि
बैठी िैं च भीलड़ें
कताि मड़ें
उनक की लंब भी पूंछ खि भींचत के
कौए
उनस के अपन के हिसस के का भोजन मांगे िि के िैं

इतन भी घनकट स के पिलद बाि ् के खिा च भीलचों को


पिल के उनक के बाज िोन के का शक उभिा
किि उनक की जमात ् के खि चचंघतत िुआ
औि सोचा अ खिबािद िोटोग्राििचों क के ललए
अचछा बाजाि िैं श्य के
तभ भी एक च भील उ़ भी
औि चलद गेश्य भी ्िू तक
गेोता खिात के
औि विदं चककि खिात के चथि िोन के लगे भी
तब खिुश िुआ
कक श्य के च भीलड़ें िद िैं
औि श्यि पवचाि श्सथि िुआ कक
च भीलचों अेौि बाजचों क की प्रजाघत एक िै
वैस भी िद काउंस आं खिड़ें
औि अकंश
ु ात भी चचोंच
बस ब़ा क् िद िै इनका
जो इनक की मितता िटा ििा िै।
1996
अंतड़यचों
ि मड़ें ब्रह्ममां़ / कममार मक
म मि

नाव पि
अपन के जूत के छो़
भागेता िूं
भागेता जाता िूं
त केज भी स के ि केत पि
वो सामन के ििा
काश भी का पुल
वो ्िू छूट गेश्या मललाि
अब नज्दक आ ििा िै
मोगेलसिाश्य का जंगेल

ओि ककतन भी थकात भी िै ि केत


थकान ककतना काटत भी िै ऊब को
किि भागेता िूं ि केत पि हििण क की तिि
जैस के बा्लचों पि भागेता िै चां्

पैि धसकत के िैं बाि बाि


बाि बाि साधता िूं संत ल
ु न
अंतत: थककि चगेि जाता िूं
प्क व भी पि
प भीठ क के बल ब के्म
ताकता िूं आकाश
ताि के िैं विां चचनचचनात के
आं खिड़ें िम
ु ाता िूं चािचों तिि
निदं ह् खि ा् ििद प्क व भी किदं भ भी
सगेुन आकश िै बस सब ओि
शाश्य्
ककघतज क की संचध पि िूं मैं
प भीठ क के न भीच के
िैलद िै घनगेु्न ि केत
प्क व भी का प्रघतघनचध मड़ें
उठ बैठता िूं
को़ता िूं ि केत
न भीच के घनकल आता िै जल
कुनकुना
चल
ु लू मड़ें भिता िूं जल
उसमड़ें घतित के िैं ताि के
तोिचों क की प भी जाता िूं मैं
ओि
ब्रह्ममां़ िैल ििा िै
म केिद अंतड़श्यचों मड़ें।
1994
महानगेर मड़ें िडककयाँ / कममार मक
म मि

्ो ल़ककश्यां रिकश के पि िैं

लसि पि पोन भीट केल मड़ें


टंक के िैं सि के् िूल

िलका अंध केिा िै औि उनिड़ें घनिािन के मड़ें


बल प़ ििा आं खिचों पि
ल़ककश्यचों क के ह् खिन के का लिजा सुं्ि िै
पि रिबन क के सि के् िूल
जश्या्ा ख खिल िि के िैं

जा चक
ु ा िै रिकशा
लसि टंक के िूलचों क की गेंध श्या् कि ििा िूं
श्या् कि ििा िूं उनका च केििा
कक मिुए क की त भी खि भी गेंध ़ुबो ल केत भी िै अपन के मड़ें
मिानगेि मड़ें अब भ भी त भी खिा िै मिुआ
अब भ भी सं्
ु ि िैं ल़ककश्यां श्यिां ।
1995
एक शाम थी िह / कममार मक
म मि

़ूबत के सिू ज का
अब कोई ्बाव निदं था
एक तािा था ऊपि
आकाश क की अंगेुलद सा
खि केत क की म के़ थ भी औि था एक कुआं
टदल के थ के पास कई
औि एक प भीपल
खि़ खि़ाता घतलंगेचों सा चैत मड़ें

कुछ ्िू भड़ें़ड़ें थ भीं ...मड़ें ... मां ... कित भीं
ििि िो ... कित के चिवाि के

मैंन के सोचा श्यिद ज भीवन िै

सि के् जुत के मै्ानचों मड़ें


अंध केिा उति ििा था ध भीि के ध भीि के ...
जैस के लोिद मड़ें उतित भी िै न भीं्
किि िि गेश्या अंध केिा िद
िि गेश्य भी िवा
बतलात भी कक वि भ भी िै

अब घनकलड़ेंगे के पतंगे के अंध केि के कोटिचों स के


बबलचों स के सांप घनकलड़ेंगे के
्िािचों स के ऊपि आएंगे के बबचछू
अब अपन के बचचचों को खिोजत भी हटटििद
्ौ़ केगे भी इधि उधि
चचचचश्यात भी खि केतचों मड़ें।
1996
पहाड सो रहे हैं / कममार मक
म मि

संधश्या िो चक
ु की िै
चां् स के झ़ ििद िै धल
ू ... िोशन भी क की
औि पिा़ ... सो िि के िैं
सो ििद िै चचड़श्या िोशन्ान मड़ें
ऐस के मड़ें बस ििलसंगेाि जागे ििा िै
औि बबछा ििा िै िूल धित भी पि
औि सपन के जगे िि के िैं
छोटद ल़क की क की आं खिचों मड़ें
सकूल पोशाक मड़ें
माच् कि ििद िै वि पूिब क की ओि
श्जधि सो िि के िैं पिा़ ... अंचधश्याल के क के
जिां अब उगे ििा िै भोि का तािा
श्जसक के प भीछ के प भीछ के
आ ििद िै सवािद सश्य
ू ् क की
िश्शमश्यचों क की िाचगेन भी बजात भी िुई ।
1994
बहती नदी मड़ें चांद / कममार मक
म मि

बित भी न्द मड़ें


खिूब झलिलाता िै चां्
जैस के चचड़श्या निात भी िै
सब
ु ि क की धप
ू मड़ें
औि मछललश्यां
चां्न भी मड़ें िंसत भी िैं इस तिि
कक चलद आत भी िैं ्िू तक
औि लौट निदं पात भी िैं

चां्न भी मड़ें
न्द निात के लोगे
लगेत के िैं सचोंस स के
औि
्िू स के आत भी नाव
िड़श्याल सा मुंि िा़ के
आगे के बढत भी जात भी िै ।
1996
पीछ-पीछे चांद / कममार मक
म मि

कनािचों क के ि केत भील के पवसताि स के उभि ििद िै शाम


औि चां् ऊपि िै
बित भी धािा मड़ें पिछाई िै उसक की उसस के भ भी चमक कीलद
श्जस के बिा निदं पा ििद िै धा ... ि अंध केिा
इतना निदं िै अभ भी कक चां्न भी का आभास
साि िो
सांझ का धध
ु लका लौटा ् के ििा िै
चां्न भी को ऊपि
शाम क के साथ चथिा ििद िै िवा
औि न्द अपन भी सति क के न भीच के बिन के लगे भी िै
सटदल क की थालद सा चां् चचपका िै सति स के
किि गेििाता िै अंध केिा औि चां्न भी
उतिन के लगेत भी िै ...
उसक के साथ मैं भ भी उतिता िूं
घनज्नता मड़ें न्द क की
पिला पांव औि छपप ... छपप
जैस के न्द क के वसत्र खि भींच के िचों मैंन के
औि गेु्गेु्ाकि िलक के छलक की िो न्द
अपन भी सति क के ऊपि
इस भी तिि उतिता जाता िूं मैं
कमि कंध के तक गेल के तक
अपन भी घनिंतिता मड़ें न्द
मझ
ु के नंगेा कि ििद िै पि िोमांच निदं िै
मानो एक अ ि ि घन श गेो् िो

जिा सा लसि न भीच के कि पान भी मड़ें ठुड़ भी को ़ुबाता


कुलला भिता िूं किि िड़ेंकता िूं श्सथि चां् पि
चिू चिू िो जाता िै वि बब खिि जाता िै
किि उसक की सािद छपवश्यां एकमएक िो जात भी िैं
तब मैं मािता िूं चांटा सति पि
अब िजाि टुक़ के िो जात के िैं चो् क के
मैं ऐसा किता जाता िूं किि तैिता िूं आगे के

तो प भीछ के प भीछ के चां् चलता आता िै।


1998
हिा है हिा है और... चांदनी है / कममार मक
म मि

ककस भी न के अपन च केििा थो़ा सा झुका ललश्या िो जैस के


सतििव भीं का चां् िै श्यि साि सथ
ु ि के भा्चों क के आकाश मड़ें
लग्‍य गे भी भि क की ्िू द पि एक लसतािा िै मक
ु ाबबल
औि आस पास ्िू तक कोई निदं िै

िवा त केज िै खिास भी ... ठं़ भी


जैस के ्िू किदं भ भीगेत के मै्ानचों स के आ ििद िो
म केिद ्ोििद सि के् धोत भी म केि के साश्य के स के भागेत भी स भी
ि़-ि़ा ििद िै औि कानचों मड़ें
िवा क की म भीठी सूं ...सूं गेूंज ििद िै

भ भीति म केि के इक शोि सा िै


कक ्िू जैस के समं्ि क की लििड़ें पछा़ खिा ििद िचों
माथा पटक ििद िचों कनाि के क के पतथिचों पि

िवा िै ... िवा िै ... औि चां्न भी िै


िवा औि चां्न भी क के ्श
ु ाल के
म केि के वजू् पि अनवित किसल िि के िैं

ग्‍य श्यािि बजन के को िैं औि शिि सोन के को िै


प़ोस मड़ें क्लद क के पतत के चमक िि के िैं
झ भींगे के क की लतिड़ें भ भी

सि के् सश्याि मकानचों क के सामन के कोनचों-अंतिचों मड़ें


िोशन भी क के लट्टू भगेजोगेघनश्यचों स के चमक िि के िैं
जिां तिां पान भी क के चिबचच के चिक िि के िैं चां्न भी मड़ें
औि िोशन ख खि़ककश्यचों क के प्रघतबबंब
हिल िि के िैं पान भी मड़ें
एक झ भींगेुि बोल के जा ििा िै पन भी मड़ें ...
घतक घतक घतक घतक
किि किदं ्स
ू िा औि त भीसिा
जैस के चां्न भी का गे भीत गेा िि के िचों वो ...
ब भीच ब भीच मड़ें एक हटटििद
हटिुक जा ििद िै किदं स के।
1998
बाररश / कममार मक
म मि

पिल के बड भी-बड भी घछतिात भी बूं्ड़ें चगेिदं

औि सिन िोत भी गेश्य भीं

सामन के मै्ान मड़ें चित भी गेाश्य न के

एक बाि लसि ऊपि उठाश्या

किि चिन के लगे भी

औि बछडा

बूं्चों क की ह्शा मड़ें लसि िम


ु ा

ढािद-सा मािन के लगेा

औि िािकि

आखख़ि

गेाश्य स के सटकि खिडा िो गेश्या

एक कुतता

पँछ
ू थोड भी स भीध भी ककए

किदब-किदब भागेा जा ििा िै

जैस के बं्
ू ड़ें

उसका जामा लभगेो ििद िचों

बूं्ड़ें चगेि ििद िैं एक ताि

पिल के

गेाश्य क की प भीठ भ भीगेकि

चचतकाबि िो जात भी िै

किि टििकि पान भी

कई लक कीिचों मड़ें

न भीच के चन
ू के लगेता िै

औि नकशा बनन के लगेता िै कई मल


ु कचों का

लक कीिड़ें बढत भी जात भी िैं

औि एकमएक िोत भी जात भी िैं

न भीच के गेाश्य क के प केट क की ओि

थोड भी जगेि स खि
ू भी िै
जैस के बकि के क की खिाल चचपक की िो

अंत मड़ें किदब-किदब वि भ भी

लमटन के लगेत भी िै

बूं्ड़ें एकताि चगेि ििद िैं

अब कभ भी-कभ भी गेाश्य को

अपन भी ् केि िटकािन भी पडत भी िै

लसि को खझंझोड पान भी झाडना िोता िै

पि उसका चबबि-चबबि चिना जािद ििता िै

बूं्ड़ें चगेि ििद िैं एक ताि

्ो िि केलू औि एक पिाड भी मैना

पोल स के सट के ताि पि भ भीगे ििद िैं

ताि क की घनचलद सति पि

बूं्ड़ें ्ौड लगेा ििद िैं

एक बूं् बनत भी िै

औि ढलान क की ओि भागेत भी िै

औि वि ्स
ू िद बूं् स के टकिा जात भी िै

किि त भीसिद बूं् न भीच के आ जात भी िै

बच भी बूं् ्ौडत भी िै आगे के क की ओि

श्यि चलता ििता िै

बूं्ड़ें चगेि ििद िैं एकताि

नगेि का नश्या बसता हिससा िै श्यि

भभ
ू ागे खिालद िैं अचधकति

एक-आध मकान बन िि के िैं

काि की पान भी चगेिन के पि काम बं् िो जाएगेा

इसललए शरू
ु आत भी बारिश मड़ें काम त केज िै

लसिचों पि बोरिश्याँ ़ाल के मज्िू भागे िि के िैं

छाता ललए ठीक के्ाि ढलाई ढकवा ििा िै


न भीच के िास लमट्ट भी क की सडक पि

मारूघत मड़ें बैठा माललक

टुकुि-टुकुि ताक ििा िै

कभ भी श भीशा जिा-सा ख खिसका कि

कुछ चचललाता िै वि ...

तो मज्िू धडिडान के लगेत के िैं

पि आखख़िकाि बारिश

उसका श भीशा बं् किा ् केत भी िै

औि मजूि िथ केललश्यचों स के

पस भीना लमला पान भी पचोंछत के

भागेत के िित के िैं

बारिश हटक गेश्य भी िै

स भीमड़ेंट बिन के लगेा िै

कम पड गेश्या िै पालदथ भीन

ठीक के्ाि काम रूकवा ् केता िै

मजूि सस
ु तात के िुए

आकाश ताकन के लगेत के िैं

़ि िै कक बारिश

्ोपिि बा् का काम

बं् ना किा ् के

बूं्ड़ें चगेिन भी जािद िैं

थोड भी ्िू आगे के छत पि

अधबन के मकान क की

बबना चौ खिट क की ख खिडक की पि

नन्-भौजाई आ बैठी िैं

लगेता िै खिाना बना चक


ु की िैं वो

औि निाकि ऊपि आई िैं

नन् न के गेुलाब भी मैकस भी पिन ि खि भी िै


औि भौजाई भ भी गेल
ु ाब भी साड भी मड़ें िै

एक-्स
ू ि के पि ्ोििद िोत भी

क केशचों मड़ें कंि भी कि ििद िैं व के

अचानक व के उठकि

स भीहढश्यचों को भागेत भी िैं

ककस भी को भ खि
ू लगे आई िोगे भी

बूं्ड़ें चगेि ििद िैं

जैस के पूि के दृशश्य को

ककस भी न के त भीिचों स के ब भींध ़ाला िो

पिू ा दृशश्य फ कीज िै

बस, च भींहटश्याँ भागे ििद िैं

अपना हठकाना ब्ल ििद िैं वो पंश्कत मड़ें

ब भीच मड़ें िान भी च भीटदं िै

प भीछ के स के मोटद-स भी

छोट के पं खिचों वालद कुछ च भींहटश्यचों न के

अं़ के उठा ि खि के िैं

ब भीच मड़ें कभ भी कोई क कीडा आ जाता िै

तो पंश्कत टूटत भी िै

औि उस के भ भी साथ ल केकि

चल पडत भी िैं व के

किि

विद पंश्कत

इस कोन के स के उस कोन के

इस जिान स के उस जिान।

(िचनाकाल : 1998)

kumarmukul07@gmail.com

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