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परिदृश्य के भीतर
परिदृश्य के भीतर
ु ुल
चिवाि के / कुमाि मक
ु ुल
उ्ास भी / कुमाि मक
ु ुल
सॉन केट (िि सांझ...) / कुमाि मक
ु ुल
सॉन केट (गेव् बिुत था...) / कुमाि मक
ु ुल
लमथक पश्याि का / कुमाि मक ु ुल
श्या् / कुमाि मक
ु ुल
पश्याि / कुमाि मक
ु ुल
पश्याि मड़ें / कुमाि मक
ु ुल
पिाड : छि कपवताएँ / कुमाि मक
ु ुल
म केि के िकत क के आईन के मड़ें / कुमाि मक
ु ुल
पतन भी / कुमाि मक
ु ुल
बाई ज भी / कुमाि मक
ु ुल
सबस के अचछ के खित / कुमाि मक
ु ुल
उ्ास भी का सबब / कुमाि मक
ु ुल
मिानता क की घिसटन / कुमाि मक
ु ुल
उम्र क के साथ / कुमाि मक
ु ुल
वि म केिद म केिद माँ िद सकत भी िै / कुमाि मक
ु ुल
न केटिा िाथ / कुमाि मक
ु ुल
खिुश भी का च केििा / कुमाि मक
ु ुल
बचचचों क की श्जच / कुमाि मक
ु ुल
िम कश्या किड़ें / कुमाि मक
ु ुल
चचड़श्या
ि का बचचा / कुमाि मक
ु ुल
िचनाकाि : कुमाि मक
ु ुल कुििा औि सिू ज / कुमाि मक
ु ुल
सॉन केट (भ भीति कैस भी ्ो) / कुमाि मक
ु ुल
मट
ु भी भि
अनन क के ललए
गेोललश्याँ
मट
ु भी भि
औि सभश्यता क के कगेाि पि
आ पिुँच के िम।
(िचनाकाल : 1994)
कउआ / कममार मक
म मि
िोटद का
एक घतिपटांगे टुक़ा
मुंि मड़ें ललए िुए
अपन भी कैघतज उ़ान
उ़ा जा ििा िै कउआ
उसक की खिुश भी ् के खि लगेता िै
कक वि हितोप् केश श्या पंचतंत्र क की
कथाओं स के घनकलकि
भागेा जा ििा िै
कउए को शाश्य् निदं पता
कक बिुिाषटदश्य कंपघनश्यचों न के
ककतना खिादश्य-अ खिादश्य बना ़ाला िै
संसककघतश्यचों क के िंगे भीन टदलचों को छो़
गेंगेा क की ओि मुंि ककए
किां भागेा जा ििा िै कउआ
कश्या ककस भी बाल-गेोपाल क की च भी खि
अब भ भी उसका प भीछा कि ििद िै ?
1996
चौककयाँ / कममार मक
म मि
जब खिचचिचों औि गे्िचों पि
खिानाब्ोश श्जन्गे भी
थो़ा औि सभश्य
थो़ा औि ज़ िोन के क की
जब जरूित मिसस
ू िुई िोगे भी
तब मश्सतषक क के ति खिानचों स के
बैलगेाड़श्यचों क के साथ-साथ
जो चलत के थ के पुषपकचों स के
श्या मंत्रचों स के
जो आज भ भी जा िि के िैं
चॉ्ं औि मंगेल क की ओि
हििोलशमा पि
एक िम
ु कक़ खिचचिचों पि अपन भी सभश्यता ला् के
उस भी समश्य
चॉ्ं क की ओि जान के का
श्जन चल
ू िचों को
सब
ु ि पुतना था
लमटटद-गेोबि-पान भी औि धप
ू स के
पत
ु गेश्य के व के अपनचों िद क के खिन
ू स के
जमात मड़ें
ं क की चॉचि
श्यूं चिमिाश्या तो था बॉस ं का ्िवाजा
ढनमनाश्या था जोि स के
चल
ू ि के पि प़ा काला तावा भ भी
खि़का था
पि बिा्िु थ के पुतैश्य के
चल
ू ि के क की तिि मँि
ु बा ह्श्या सबन के
चल
ू ि के क की िा खि मड़ें िस
ु भी
सोश्य भी थ भी बबललद जो
मािद गेश्य भी
1966
मयायादाएँ हम तोडड़ेंगेे / कममार मक
म मि
त भीन-चाि आतमितश्याओं
व िजािचों ितश्याओं क के बा्
एक कब्रगेाि मड़ें
जनम ल के िि के िैं िामलला
औि बधावा
निदं बज ििा इस बाि
पवधवाएं
सिापा जरूि भ केज ििद िैं
बधावा बजता िद
तो कश्या िोता िाम
अश्योधश्या वनवास िद ् केत भी तम
ु ि के
किि स भीता बबन सन
ू भी िसोई मड़ें
उसक की सोन के क की मघू त् ् के खि ककतन के ह्न ज भीत के
अब तो वन भ भी निदं िि के
कंकिदट क के इस जंगेल मड़ें किां लमलड़ेंगे के वालम भीकक
तब लव-कुश को जनम ह्श्य के बगेैि िद
मि जाएगे भी स भीता
पि तम
ु ि के कश्या
सत्र भी क के कषट स के तो टूटत भी निदं िैं तम
ु िािद मश्या््ाएं
पिु ोहित घनश्यंबत्रत िाजसतताएं िद
तो़ पात भी िैं उस के
शब्द क के जूठ के ब केि खिान के वाल के क के िाथचों
शमबक
ू वध का आ्े केश पारित किाकि
अब तो ना शद्र
ू िैं ना िद ऋपरे
बस िाज केनता िैं
सब
ु ि क के छि बज िि के िैं औि कुििा निदं िै आज
कांस के क की थालद सा मं्प्रभ सश्य
ू ्
उूपि आ ििा िै
सर
ु ुम ठं़ एक ताकत क की तिि
म केि के भ भीति प्रव केश कि ििद िै
1993
गेमडहि / कममार मक
म मि
िि सब
ु ि
श्यत भीमचों क के म खि
ु स के छीन के गेश्य के ्ध
ू क के साथ
मैं भ भी पतथिचों पि चगेिता िूं
औि िि शाम
उस भी क के साथ स़कि
बुिाि ह्श्या जाता िूं ।
1996
चबूतरा : दो कविताएँ / कममार मक
म मि
1
बचपन मड़ें
गेांव क के कुएं क के चौ़ के चबूति के पि सोना
़िाता था मझ
ु के
किि भ भी मैं सोता था विां
कश्यचोंकक चबूति के पि
सपन के ब़ के सुं्ि आत के थ के
मैं ़िता था कक कभ भी - कभ भी
बबललद चलद आश्या कित भी थ भी
चबूति के पि
मैं ़िता कक किदं बबललद क के ़ि स के
कुएं मड़ें ना चगेि जाउं
इस भी ़ि स के कुतत के को
अपन के पास सल
ु ाता था मैं
कभ भी कभ भी मैं झांकता कुएं मड़ें
तो आकाश उतिाता नजि आता
मझ
ु के श्यि अचछा लगेता पि तभ भी
एक कालद छाश्या नजि आत भी मझ
ु के
हिलत भी िुई
वि म केिद िद छाश्या िोत भी थ भी
जो ़िात भी थ भी मझ
ु के
चबत
ू ि के क के पास िद
म केिं्द लगे भी थ भी
जो आज तक ििद िै
ह्न मड़ें श्जस पि लंगेोट स खि
ू त के िैं
औि िात मड़ें उगेत के िैं सि के् सपन के ।
2
एक कुआं िै
मिानगेि मड़ें भ भी
बबना चबूति के क के
उसक के घनकट जान के पि िद
पता चलता कक कुआं िै
अ़ोस प़ोस क के लोगे सोचत के िैं
कक इस के भिवा ् केना चाहिए
श्जस के ् के खिो
बा्ल
चाि के
िवा
पिाड को जात भी िै
टकिात भी िै ओि म़
ु जात भी िै
पिाड छूता िै
प़ जात भी िै धलू मल
पि
प के़चों को ् के खि के
कैस के चढ के जा िि के
जम के जा िि के
जाकि
पि हटकता विद िै
बा्लचों क की तिि
उ़कि
जाओगे के पिा़ तक
तो
न्द क की तिि
िाथचों मड़ें मट
ु ठी भि ि केत थमा कि ।
टेन क की ख खिडक की से / कममार मक
म मि
ट केन क की ख खि़क की स के
पिा़
् के खि ििा िूं मैं
छोट के-छोट के कई खि़ के िैं सामन के
श्जनक की पषक ठभलू म क के ढालवड़ें मै्ान मड़ें
बचच के िुटबॉल खि केल िि के िैं
तानाशाि बन सकता िै वि
भोला-भाला व्यश्यश्कत
पागेल िो सकता िै वि
खि भींच सकत के िो
हठठोलद कित भी
समघक तश्यचों क के मधश्य
किॉ ं ि खिूं
तम
ु िािद उ्ास भी का
श्यि धाि्ाि िदिा।
1997
सॉनेट (हर सांझ...) / कममार मक
म मि
इस भी तिि सब
ु ि िोत भी िै शाम िोत भी िै
आत भी िै िात
आकाश उतिान के लगेता िै म केि के भ भीति
ताि के चचन-चचन कित के
कक कंपकंप भी छूटन के लगेत भी िै
औि ति केगेन ़ोलत के िित के िैं सािद िात
लसताि के मंढ के चं्ोव के सा
किि आत भी िै सब
ु ि
टप-झि-धम-धम-टप-झि-झि-झि
इस आख खििद बाि
उस के छू ल केना चाित भी िै ल़क की
कक घनचो़त भी िै खिु् को
औि टपकत के िैं आंसू
टप-टप
प्रघतधवघन लौटत भी िै टप-टप-टप
लडक की को लगेता िै कक मैं भ भी िो ििा िूं
औि ििक कि भागे उठत भी िै वि
भागे चलता िै जल तलद स के।
याद / कममार मक
म मि
1
इधि
निदं आश्य भी
तम
ु िािद श्या्
अपना च केििा निदं ् के खिा इधि
एक िाि
जो ् के खित भी
म़
ु -म़
ु कि
नज्दक की
एक्म स के
पास निदं आत भी जो।
1996
पयार मड़ें / कममार मक
म मि
1
पश्याि मड़ें मिानगेिचों को छो़ा िमन के
औि कसबचों क की िाि लद
अमावस को लमल के िम औि
आं खिचों क के तािचों क की िोशन भी मड़ें
ना् क के चबूति के पि बैठ के िमन के
्ज
ू क के चां् का इंतजाि ककश्या
औि भैंस क की स भींगे क के ब भीच स के
पश्शचम भी कोन के पि ़ूबत के चां् को ् के खिा
िमन के स खि
ु क की तिि
एक ्स
ू ि के का िाथ िाथ केां मड़ें ललश्या
औि पिवाि निद क की बटोहिश्यचों क की
2
कुछ जश्या्ा िद
बत्न मंज के पश्याि मड़ें
पान भी कुछ जश्या्ा िद पपश्या िमन के
कई कई बाि बुिािा िि को
सब केि के जगे के औि ् केि स के सोश्य के िम
एक ्स
ू ि के को माि ्घु नश्या जिान क के
ककसस के सन
ु ाश्य के िमन के
औि इतना िंस के
कक आस पास
पश्याि क के सिु ागे मड़ें बैठ के लोगे
भागे गेश्य के बोि िोकि
3
पश्याि मड़ें िमन के
सबस के उंच भी चोटद चढद पिा़ क की
विां िमन के ् के खिा कक प के़
कटकि शिि क की िाि ल के िि के थ के
विां िमड़ें ्ो लसश्याि लमल के
लसश्यािचों औि पतथिचों को िमन के
िरिश्यालद औि प्र केम क के गे भीत सन
ु ाश्य के
औि ध भीि के ध भीि के
उति आश्य के तलिहटश्यचों मड़ें।
1997
पहाड : छह कविताएँ / कममार मक
म मि
उूपि शन
ू श्य मड़ें कोई कैस के लल खि के
कोई नाम
पांव तल के क की चट्टान भ भी
नाम सव भीकाि केगे भी कश्या
पिा़चों कश्या तम
ु िाि के िाथ निदं िोत के
इचछाएं निदं िोत भीं चोटद स के ढक केलन के क की
िो तो पिा़
पि कैस भी सिाई स के
पैठ जात के िो समघक तश्यचों मड़ें िमािद
औि भ भी गेििद कालद ििद चट्टानड़ें बनकि
औि सोत के गेम् ठं़ के जल क के
1997
मेरे रकत के आईने मड़ें / कममार मक
म मि
श्यि सि
ु ागे िै उसका
कँपात भी िै आईना
चां्न भी क की बाबत
उसन के कभ भी पवचाि िद निदं ककश्या
जैस के वि जानत भी निदं
कक वि भ भी कोई शै िै
उस के तो बस
त केज काटत भी िवाओं
औि अंध़चों मड़ें
चैन आता िै
जो उसक के बाििो मास बित के पस भीन के को
तो स खि
ु ात के िद िैं
वत्मान क की नक
ु कीलद माि को भ भी
उ़ा-उ़ा ् केत के िैं
अंध़चों मड़ें िद
एकाग्र िो पात भी िै वि
औि लौट पात भी िै
समघक तश्यचों मड़ें
अंध़
उ खिा़ ् केत के िैं उसक की चचनगेािद को
औि धधकत भी िुई वि
अत भीत क की
सपाट छाश्याओं को
छू ल केना चाित भी िै ।
1996
बाई जी / कममार मक
म मि
रिबोक जूत के क की ्क
ु ान मड़ें आईन के मड़ें
अपन भी शकल ् के खि अपन भी औकात मापता िुआ
आज मैं ्सू िद बाि उ्ास िो गेश्या
तब मैचथलद कपव मिाप्रकाश क की पंश्कतश्यचों न के
ढाढस बंधाश्या - जूता िममि माथ पि सवाल अघछ ...
औि श्या् आईं रिबोक टंककत टोपपश्यां
जो पिचम बन भी लििात भी िित भी िैं
1998
महानता क की घिसटन / कममार मक
म मि
इस तिि
एक मिान शब् क की
घिसटन स के
मिानता क की संसककघत
जनम ल केत भी िै।
1996
उम्र के साथ / कममार मक
म मि
उम्र क के साथ
बिुत स के लोगे
ब्लत के चल के जात के िैं
तलवािचों मड़ें
एक ह्न अचानक
उनिड़ें लगेता िै
कक व के तमाम हिसस के
जिां व के िित के िैं
मश्यानचों मड़ें ब्लत के जा िि के िैं
किि
ककस भी औि क की आिट
विां
असह्मश्य िोन के लगेत भी िै
उनका सिज भोलापन
कटता जाता िै
उनक की अपन भी िद धाि क के न भीच के
आेैि संबंध कटत के जात के िैं
भाई
निदं ििता भाई
गेोघतश्या िो जाता िै
मां, मां निदं िित भी
चाि ब भीि के जम भीन िो जात भी िै
पतन भी ब्ल जात भी िै
पश्याज, िदंगे-िल्द क की गेंध मड़ें
्ोसत निदं ििता ्ोसत
अघतचथ िो जाता िै
तब
श्य के तलवािड़ें
ििचों परिवािचों गेांवचों को
काटत भी चलद जात भी िैं
मल
ु क क की सिि्चों तक
औि सबको समझात भी िैं
कक तलवािड़ें निदं िैं व के
िाषट िैं
औि िाषटहित स के बढकि
कोई च भीज निदं
न गेांव
न परिवाि
न िि।
1996
िह मेरी मेरी माँ ही सकती है / कममार मक
म मि
सन
ु िल के पाढ क की कतथई सा़ भी मड़ें
सश्य
ू ् को अधश्य् ् केत भी
वि म केिद मां िद िो सकत भी िै
उसक की आं खिचों क की पपवत्रता मड़ें
अकसि ़ूबन के लगेता िै अश्ग्य नवण् सश्य
ू ्
उसको ् के खि लगेता िै ईशवि अभ भी श्जं्ा िै औि
समश्य क के पा खिं़ स के िबिाकि
जा छुपा िै उसक की आं खिचों मड़ें
वि म केिद मां िद िो सकत भी िै
म केिद कपवताओं क के तमाम िंगेचों स के जश्या्ा
औि लक्क िंगेचों क की साड़श्यां िैं उसक की
छुपा ल केत भी िैं जो मझ
ु ाक के म केिद लजजा को
म केि के भश्य को।
1993
नेटरा हाथ / कममार मक
म मि
कभ भी तो चन
ु ौत भी िद ् के ् केता न केटिा
कक िसस भी बंटन के स के ब केलचा चलान के तक
बं्क
ू थामन के स के बोझ उठान के तक
िै कोई काम जो िो बगेैि न केटिा क के
एक ह्न मझ
ु के लगेा
कक ्म िै न केटिा मड़ें
तो पक़ा ह्श्या कलम
कक उताि के प्र केमगे भीत कोई
बबचकत भी अंगेुललश्यचों स के
तब सािूकाि स के
लाश्या लसल केट पपनलसन
पक़ाश्या न केटिा को
भािद भािद सा
लगे ििा था उस के
कक बिाना कि ििा था वि
मैंन के समझाश्या
भािद िै
तो ि खि ्ो जम भीन पि
औि लल खिो
पालथ भी माि कि लल खिो।
खिुश भी को ् के खिा िै तम
ु न के कश्याा् कभ भी
श्रम क की गेांठड़ें िोत भी िैं उसक के िाथचों मड़ें
उसक के च केिि के पि िोता िै
तनाव-जघनत कसाव
बबवाइश्यॉ ं िोत भी िैं खिुश भी क के तलओ
ु ं मड़ें
शद्धि
ु म् क ाजघनत
खिुश भी क की
िथ केललश्यॉ ं ् के खि भी िैं तम
ु न के
पतलद कड भी लोच्ाि िोत भी िैं वो
जो अपन भी गेांठड़ें
छुपा ल केत भी िैं अकसि
अपन भी आतमा मड़ें
उस पि चोट किो
् के खिचों कैस के घतललमलाकि
उभि आत भी िैं गेांठड़ें
तलओ
ु ं मड़ें ना िचों तो
खिुश भी क की समश्क ततश्यचों मड़ें
जरूि िोत भी िैं बबवाइश्यॉ ं
विॉ ं झांकोगे के
तो िँस भी लमटटद पाओगे के
उस के मत घनकालना गेतत् स के
िकतम
िूट पड केगेा उनस के
अपन भी आतमा को
जानत के िो तम
ु
खिुश भी क की आतमा
खिुश भी क के पैिचों मड़ें घनवास कित भी िै
तब िद तो
इतन भी त केज ्ौडत भी िै खिश
ु भी
एक च केिि के स के
्स
ू ि के त भीसि के व तमाम च केििचों पि
कभ भी खिुश िुए िो तम
ु
श्रम
ककश्या िै कश्या कभ भी
्ौड के िो िास पि नंगे के पॉवं
श्या किि ि केत पि
तो तम
ु न के जरूि ् के खिा िोगेा
कक कैस केट
ं मड़ें पैस भी आतमाि
िमाि के पॉवचों
लमटटद स के
चगे
ु त भी िै संव के्ना
औि कैस भी त केज भी स के
ििद िोत भी िैं
मश्सतषक क की जडड़ें
कश्यां कि के वि
कक समश्य कम िै उसक के पास
औि
असंख्श्य िैं मनषु श्य
प भीडा स के बबंध के िुए
औि सब तक जाना िै उस के
खिुश भी क की
ऑं खिड़ें िोत भी िैं हििण भी स भी
पवसिािरित तश
ु ् साि व सजल
छोटद स भी प भीडा भ भी
़ुला ् केत भी िै उस के
बि आता िै जल
टप-टप-टप
बडा गेम भ भी
पचा ल केत भी िै खिुश भी
कभ भी विद
गेॉठं बन जात भी िै
कैंसि क की
पि श्रम क की गेॉठं
श्जश्या्ा कड भी िोत भी िै
गेम क की गेॉठं स के
उस के गेला ् केत भी िै वि
खिुश भी जानत भी िै
कक श्जश्या्ा स के श्जश्या्ा
कश्या कि सकता िै गेम
उस के माटद कि सकता िै
लमटटद क की तो
बन भी िद िोत भी िै खिुश भी
ख खिलौनचों स भी
उसक के टूटन के पि बचच के िोत के िैं
कुमिाि निदं िोता
वि जानता िै श्रम को
पिचानता िै खिुश भी को
गेढ ल केगेा वि औि औि नश्य भी
बािि स के
पॉवं िोत के िैं खिुश भी क के
मगे
क नश्यन भी िोत भी िै
पि मगे
क मिदचचका निदं ् के खित भी खिश
ु भी
पिल के
कडकत भी िै बबजलद
किि िोता िै बज्रप्रिाि
गेिजता
जैसा आता िै ् खि
ु
वैसा िद चला जाता िै
पि चक्रवातचों औि
् खि
ु क की सच
ू नाओं क की तिि
सननाट के का
व्यश्यामोि निदं िचत भी खिुश भी
आना िोता िै
तो आ जात भी िै चप
ु -चाप
भंगे कित भी सननांटा
आत भी िै
तो जात भी किॉ ं िै खिुश भी
िच-बस जात भी िै सगे
ु ंध स भी
ख खिला ् केत भी िै
पं खिुड़श्यचों
ि को
किि बं् किॉ ं िोत भी िैं पं खिडु ़श्यॉ
ि ं
झि जाऍं चाि के
गेमचों मड़ें
सब छोड ् केत के िैं ्ामन
तो बचच केे के
थाम ल केत के िैं खिुश भी को
औि भित के िैं कुलॉचं
कुतत के क की तिि
िम केशा
िमाि के आगे के-आगे के
भागेत भी िै खिुश भी
बचचचों स भी आगे के आगे के
साि कित भी चलत भी िै िासताआ
वि ् के खित भी िै पिाड
औि चढ़ जात भी िै ्ौड कि
विदं स के बुलात भी िै
न्द को ् के खित के िद
गेुम िो जात भी िै
भँविचों मड़ें
जंगेल को ् के खित के
समा जात भी िै ्िू तक
किि किदं स के
कित भी िै
कू-कू-कू
िम भागेत के िैं उस के पान के को
भागेत के चल के जात के िैं
ं
िॉपत के ढित के हढललमलात के
उस भी क की ओि
खिुश भी को ढूंढता
कोलंबस
अमिदका ढूंढ ल केता िै
एवि केसट तक
िमड़ें खिश
ु भी ल के जात भी िै
चॉ्ं पि
जात भी िै खिश
ु भी
औि कित भी िै
मंगेल पि चलो
कभ भी
प भीछ के लौटकि निदं ् के खित भी खिुश भी
समघक तपविदन अत भीत का िासता
निदं िोता िै उसका
़ाश्यनासोि लमलत के िैं जिॉ ं
जो अपना भपवषश्य
खिु् खिा जात के िैं।
बचचचों क की जजच / कममार मक
म मि
श्यंू
प़ोस क के नश्य के घनज्न मकान मड़ें भ भी
िि सकत भी िै वि
पि मैं जानता िूं
अगेिन मड़ें जब धान पकड़ेंगे के
तब कंकिदट क के जंगेल मड़ें
मौसम क की घनज्नता
मझ
ु के िद निदं
इस िि केलू चचड़श्या को भ भी खिल केगे भी
चचड़श्या आएगे भी
तो जान के
ओि कश्या कश्या लाएगे भी साथ
ककसस के तो लाएगे भी िद वि
जंगेल क के
जंगेल क की आगे क के ककसस के
जंगेल क के नागेचों क के ककसस के
आगे क के ककसस के सन
ु ात भी
चचड़श्या क की आं खिड़ें जब सन
ू भी िो जाएंगे भी
तो ब केचािा चच़ा कश्या सोच केगेा
कक सन
ू केपन मड़ें उसक के
ककस भी बबछ़ के चच़ के क की
िा खि बबछी िै
औि नागेचों क के ककसस के
उि
पतथि क की बांब भी मड़ें
िदि के-माखणकचों क के आसनचों पि
सि काढ के नागेचों क के ककसस के
ककतना समझाेात भी थ भी वि
ननिड़ें चच़चों को
कक उधि मत जाना
श्जधि मणश्े-माखणकचों क की चकाचौंध
घछटक की िो
पि नौ माि
गेभ् क के अंध केिचों मं उजबज
ु ाए
बचचचों क की श्जच
कौन निदं जानता।
1991
हम कया करड़ें / कममार मक
म मि
श्यि म खि
ू ्ता सिन निदं कि पा िि के जो
पागेल िैं वो
म खि
ू ्खें औि पागेलचों स के अटा जो परिदृशश्य िै
वि इघतिास िै औि बुपद्धिमान
म खि
ू ्खें औि पागेलचों क की टांगेचों क के मधश्य स के
भागे िि के िैं भपवषश्य को
एक चचड़श्या का बचचा जब
सिू ज क की तपपश स के जलन के लगेा
तो जान के कश्या सझ
ू भी उस के
कक बुझा ् केन के क की न भीश्यत स के
सि उठाकि उसपि थक
ू ह्श्या
चचकन भी धल
ू भिद ब्लद जश्यचों शषु क भिु -भिु द
तलए
ु ्ो श्या छाश्याएं हृ्श्य क की
कक ्ो पवमान खिो ... खिो ... जात के ब्लद मड़ें
कक ढलान गेुरूतव ख खिसकाता
िाता धंस आता वक ि केत भीला
चथिता ... आ तटद पि
धािाएं ख खिसकात भीं तलद
भ भीरू मन छूता जल कांपता ्ो पल
छटपटात भी च केतना क की ज भीभ
अतिति प्राण ् केत के ढक केल धािा मधश्य
सौं्श्य्काम भी आतमा
् केत भी उलदच
सािा भश्य घनिभश्य ।
1991
समय क की दराँत पर / कममार मक
म मि
समश्य क की ्िांत पि
बज खित के जख्म सा
गेुजि ििा िै पवशव
िट के िचोंठ बबसिू ता िमािा मल
ु क भ भी
घनकला िै अभ भी अभ भी
वत्मान क के कंधचों
अत भीत क की लाशड़ें ला्
उनिड़ें ज़ भी सुंिा ििा िै धम्
औि जलत भी च भी खिचों स के अंट के प़ के िैं िाजपथ
गेललश्यचों स के घनकलत भी पल
ु दस
लगेा ििद करश्यू् ्गे
ु ्गंध क के भभकचों पि
जनक्रं्न क की लििचों पि
कलिव कित के चल के आ िि के िाजन केता
जख्मचों स के रिसता िकत च खि िि के
बतला िि के कक खिाललस मि
ु ललसचों का िै
चल
ु लू भि अपन के िद िकत मड़ें ़ूबकि
्म तो़ ििा िै कपव
कक उसक की छटपटािटचों क के बुलबुल के िद
िि जाएंगे के िमािद पविासतड़ें ।
इसमड़ें ्ाल
अचछी पक केगे भी ।
1991
कमहरा और सरू ज / कममार मक
म मि
जो पास था वो मफ़
ु ललस का खवाब बना बैठा।
1999
सॉनेट (गेोबर अब गेणेश हो रहे) / कममार मक
म मि
्ध
ू प भी िि के चममच स के कंटि का कंटि
सध
ु -बध
ु खिो ् केत के ्ो ह्न को साि के जन-गेणेा
मािड़ें ऐसा मंति। न केता अलभन केता सब
लमल जुलकि गेाएं ििककत्न,नत्न किड़ें
बॉलदउ़ भी बालाएँ, ्िसाएं जा् ू जब
जोबन का,जल जाएँ इचछाऍं भक स के जन क की।
1999
गेीत (इक लसतारा) / कममार मक
म मि
वो सल
ु ाता ििा औि जगेाता ििा
वि उन भीं् के क की लोिद सन
ु ाता ििा।
इक ...
इक ...
इक ...
सश्य
ू ् आएगेा इनको भ भी ल के जाएगेा
इक ...
बैठत के िद
चल ् केगे भी वि उठकि
सामन के बित भी न्द क की ओि
िासत के मड़ें
स भीगे उगे आएंगे के उसको
श्जनिड़ें पक़कि मैं
निाउंगेा न्द मड़ें
़ूब - ़ूब ।
1993
जैविक ख़तरा / कममार मक
म मि
िोशन भी क के साथ
क की़ के भ भी झाि िि के िड़ें स़क पि
िि के हटड़ के, खझंगेुि औि पतंगे के
इनमड़ें अेाचधकांश का िासता
वािन काट जा िि के िैं
वािनचों क की माि स के बचता-बचाता
एक अिोिद कुतता
घछपकलद सा
चट कि जा ििा िै श्यि जैपवक कचिा।
1995
नई मंजजि / कममार मक
म मि
्स
ू िद मंश्जल क की छत पि
़ूब चक
ु के सश्य
ू ् क की
ठं़ भी िोत भी सिल गेंध मड़ें
अतिाना अचछा लगेता िै
आगे के नाल के पाि का
गे केिूं क की बाललश्यचों स के पटा
भू-भागे िै
बिुमंश्जलो अपाट्मड़ेंट श्यिां लसि उठा िि के िैं
इमाितचों क की ऊंच भी टंककश्यचों पि
चगेद्धि बैठ के िैं
गेंगेा ककनाि के
पमप िाउस क के ़बिचों क के ऊपि लगे भी ि केललंगे पि
बैठी िैं च भीलड़ें
कताि मड़ें
उनक की लंब भी पूंछ खि भींचत के
कौए
उनस के अपन के हिसस के का भोजन मांगे िि के िैं
नाव पि
अपन के जूत के छो़
भागेता िूं
भागेता जाता िूं
त केज भी स के ि केत पि
वो सामन के ििा
काश भी का पुल
वो ्िू छूट गेश्या मललाि
अब नज्दक आ ििा िै
मोगेलसिाश्य का जंगेल
जा चक
ु ा िै रिकशा
लसि टंक के िूलचों क की गेंध श्या् कि ििा िूं
श्या् कि ििा िूं उनका च केििा
कक मिुए क की त भी खि भी गेंध ़ुबो ल केत भी िै अपन के मड़ें
मिानगेि मड़ें अब भ भी त भी खिा िै मिुआ
अब भ भी सं्
ु ि िैं ल़ककश्यां श्यिां ।
1995
एक शाम थी िह / कममार मक
म मि
़ूबत के सिू ज का
अब कोई ्बाव निदं था
एक तािा था ऊपि
आकाश क की अंगेुलद सा
खि केत क की म के़ थ भी औि था एक कुआं
टदल के थ के पास कई
औि एक प भीपल
खि़ खि़ाता घतलंगेचों सा चैत मड़ें
कुछ ्िू भड़ें़ड़ें थ भीं ...मड़ें ... मां ... कित भीं
ििि िो ... कित के चिवाि के
संधश्या िो चक
ु की िै
चां् स के झ़ ििद िै धल
ू ... िोशन भी क की
औि पिा़ ... सो िि के िैं
सो ििद िै चचड़श्या िोशन्ान मड़ें
ऐस के मड़ें बस ििलसंगेाि जागे ििा िै
औि बबछा ििा िै िूल धित भी पि
औि सपन के जगे िि के िैं
छोटद ल़क की क की आं खिचों मड़ें
सकूल पोशाक मड़ें
माच् कि ििद िै वि पूिब क की ओि
श्जधि सो िि के िैं पिा़ ... अंचधश्याल के क के
जिां अब उगे ििा िै भोि का तािा
श्जसक के प भीछ के प भीछ के
आ ििद िै सवािद सश्य
ू ् क की
िश्शमश्यचों क की िाचगेन भी बजात भी िुई ।
1994
बहती नदी मड़ें चांद / कममार मक
म मि
चां्न भी मड़ें
न्द निात के लोगे
लगेत के िैं सचोंस स के
औि
्िू स के आत भी नाव
िड़श्याल सा मुंि िा़ के
आगे के बढत भी जात भी िै ।
1996
पीछ-पीछे चांद / कममार मक
म मि
औि बछडा
औि िािकि
आखख़ि
एक कुतता
पँछ
ू थोड भी स भीध भी ककए
जैस के बं्
ू ड़ें
पिल के
चचतकाबि िो जात भी िै
कई लक कीिचों मड़ें
न भीच के चन
ू के लगेता िै
थोड भी जगेि स खि
ू भी िै
जैस के बकि के क की खिाल चचपक की िो
लमटन के लगेत भी िै
अब कभ भी-कभ भी गेाश्य को
एक बूं् बनत भी िै
औि ढलान क की ओि भागेत भी िै
औि वि ्स
ू िद बूं् स के टकिा जात भी िै
भभ
ू ागे खिालद िैं अचधकति
इसललए शरू
ु आत भी बारिश मड़ें काम त केज िै
पि आखख़िकाि बारिश
औि मजूि िथ केललश्यचों स के
मजूि सस
ु तात के िुए
़ि िै कक बारिश
बं् ना किा ् के
अधबन के मकान क की
एक-्स
ू ि के पि ्ोििद िोत भी
अचानक व के उठकि
ककस भी को भ खि
ू लगे आई िोगे भी
प भीछ के स के मोटद-स भी
तो पंश्कत टूटत भी िै
औि उस के भ भी साथ ल केकि
चल पडत भी िैं व के
किि
विद पंश्कत
इस कोन के स के उस कोन के
इस जिान स के उस जिान।
(िचनाकाल : 1998)
kumarmukul07@gmail.com