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अमीर बनने का स्वप्न

जीवन स्वप्न के रूप मे ही समझा बेहतर होता है लोग अपने अपने अनुसार स्वप्न बुना करते है
और उन स्वप्नो को पूरा करने के ललये अपनी अपनी युक्तियाां लगाया करते है उद्दे श्य केवल चार
ही होते है जो पुरुषार्थ के रूप मे माना जाता है ,धमथ अर्थ काम और मोक्ष यही चार पुरुषार्थ है ।
धमथ की तरफ़ जाने से जातक अपने आप को आगे दु लनया मे लदखाना चाहता है ,वह लदखावा भले
ही शरीर की बनावट से हो या शरी के द्वारा लकये जाने वाले करतबो से हो वह चाहे शरीर की
लवशे ष लिया के द्वारा भगवान के प्रलत अपने को लदखाना चाहता हो या वह अपने को खुद ही
ईश्वर बनाकर लदखाने की चेष्टा मे हो। अर्थ के मामले मे जातक अपने को अलधक से अलधक धनी
बनाने के ललये युक्तियाां बनाया करता हो या अपने को हर प्रकार का साधन धन से प्राप्त करने
की योजना मे लगा रहता हो,चमक दमक से अपने जीवन को सभी के सामने प्रस्तुत करने के
ललये भी आलर्थक रूप से बढावा दे ने के ललये माना जाता हो,इसी प्रकार से काम नाम के पुरुषार्थ
की बढोत्तरी के ललये वह लोगो से अपने कायों को लसद्ध करने की कला को प्रस्तुत करना जानता
हो अपने सार् समाज को भी सार् लेकर चलने के ललये अपनी योजनाओ को बनाया करता हो या
अकेले मे अपने जीवन सार्ी और पुत्र पुत्री आलद सन्तान के रूप मे अपने आप को आगे बढाने
के ललये प्रयास रत हो आलद बाते काम नामक पुरुषार्थ की श्रेणी मे आती है इसी प्रकार से जब
व्यक्ति इन तीनो प्रकार के पुरुषार्ो को या तो प्राप्त कर चुका हो या उनके प्रलत लगाव खत्म हो
गया हो अर्वा इतना भोग ललया हो लक वह बुरा लगने लगा हो या लफ़र अपने पररवार समाज या
रीलत ररवाज घर पररवार मे वह लकसी बात से हमेशा ही तरसता रहा हो इसी के नाम को मोक्ष
का प्रकार का कहा जाता है । मोक्ष का मतलब होता है सन्तुष्ट हो जाना,कुांडली में चौर्ा आठवा
और बारहवा भाव जीवन की सांतुलष्ट के ललये की जाने वाली इच्छाओां के ललये माना गया है ।

प्रस्तु त कुांडली मे धनु लगन है ,लगनेश गुरु चौर्े भाव मे है ,गुरु का पांचम नवम योग राहु से अष्टम
भाव मे है और जातक का बारहवा भाव खाली है। जातक का यह लत्रकोण पूरा नही है केवल
चन्द्रमा से इस लत्रकोण को मलहने मे सवा दो लदन के ललये पूरा लकया जाता है ,यह कारण जातक
की इच्छा की तृक्तप्त के ललये अपनी कमी को बता रहा है ।

इच्छा की तृक्तप्त क्ोां पैदा हो रही है इस बात को जानने के ललये जातक के दादा लपता माता
नाना आलद की इच्छाओां की तृक्तप्त के ललये भी दे खना जरूरी है जातक के लकस सम्बन्धी की
इच्छा की तृक्तप्त हो रही है ,इस बात का लववेचन इसललये जरूरी होता है क्ोांलक जातक को
इच्छाओां की तृक्तप्त के ललये सोच केवल अपने पररवार से ही प्राप्त हुयी होती है वह अलग से
ले कर नही आता है । दादा के ललये जातक के राहु को दे खेंगे,राहु के बारहवे भाव मे शुि है ,राहु
के चौर्े भाव मे मांगल विी है ,राहु का अष्टम भाव खाली है ,इसका मतलब है लक दादा की उन्नलत
के कारण उनके लपता र्े और शादी के बाद दादा के जीवन को उनकी पत्नी यानी दादी ने
सम्भाल ललया र्ा (बारहवा शुि).दादा की मानलसक इच्छा एक व्यवसालयक स्र्ान बनाने की र्ी
ले लकन वह व्यवसालयक स्र्ान लनमाथ ण मे अधूरा रह गया (विी मांगल तुला रालश का),जातक के
दादा मे ररस्क लेने जोक्तखम लेने पूवथजो के ऊपर ही अपने को लनभथर करने लजतना कमाना और
उतना ही खचथ लेना की आदत से उनकी इच्छायें पूरी नही हो पायीां (राहु से अष्टम भाव खाली
कुम्भ रालश). लपता के ललये दे खने के ललये सूयथ की क्तस्र्लत को दे खते है ,सूयथ से बारहवे भाव मे
गु रु है सू यथ से चौर्े भाव मे राहु है और सूयथ से अष्टम में कोई भी ग्रह नही है ,इस प्रकार से
जातक के लपताजी तीन भाई और तीन भाइयोां मे जातक के लपता का स्र्ान बडप्पन के स्र्ान मे
होने से तर्ा जातक के लपता के द्वारा अपने पररवार का पालन पोषण लशक्षा लववाह शादी आलद
करने मे अपने धन को लगाया गया,चौर्े भाव मे राहु के होने से जो भी कमाया गया वह लकसी
न लकसी कारण से आक्सलमक रूप से खचथ कर लदया गया और अपने नाम को कमाने के चक्कर
मे या सामालजक मयाथ दा को लदखाने के चक्कर मे सयांत नही रखा गया,लपता का भी अष्टम खाली
होने के कारण लपता मे भी जोक्तखम लेने की आदत नही र्ी जो भी हो रहा है सीधे से होने और
सीधे से चलने मे ही लवश्वास र्ा। जातक की माता के ललये दे खते है तो चन्द्रमा के चौर्े भाव मे
गु रु है ,जातक की माता पूजा पाठ धमथ कमथ आलद से पूणथ र्ी और अपने घर मे ही सामालजक
सां गठन आलद के ललये अपने अनुसार कायथ करती र्ी उनका ध्यान धमथ सांस्कृलत और लोगो के
सार् उच्चता मे जाने का र्ा बडे समुदाय के रूप मे उन्होने भी अपने पलत के पररवार के ललये
कायों मे योगदान लदया,तीन लोगो की परवररस और उन्हे आगे बढाने की योग्यता प्रदान की,माता
के अष्टम मे राहु होने से जातक की माता को अक्समात ररस्क लेने की आदत र्ी वह लकसी भी
प्रकार से अपने को सोच लवचार कर कायथ करने के ललये नही जाना जाता है ,सभी कुछ सामने
होने के बाद भी वह केवल आकक्तिक सोच के कारण नही प्राप्त कर पायीां। यही बात जातक के
नाना के ललये दे खने पर केतु से बारहवे भाव मे चन्द्रमा के होने से जातक के नाना का प्रभाव
धमथ और पराशक्तियोां की सहायता से अच्छा र्ा वे बडे धालमथक स्र्ानो और धालमथक लोगो के ललये
अपने लवचार सही रखते र्े लेलकन उनके चौर्े भाव मे सूयथ बुध शलन के होने से जातक के नाना
के पास घर मे वही काम र्े जो सुबह शाम लकये जाते है और अक्सर उनके पास केवल लपता
के लदये गये कायथ और सरकार आलद से लमलने वाली मामूली सहायता को ही माना जा सकता है
उन्होने भी अपनी तीन सन्तानो को आगे बढाने पढाने ललखाने मे खचथ लकया,केतु से अष्टम भाव
खाली होने से भी जातक के नाना को भी ररस्क लेने और जोक्तखम लेने की आदत नही र्ी इस
कारण से वे भी अतृप्त रह गये।

इस प्रकार से जातक के ललये भी जातक की माता की तरह से ही बारहवे भाव के लत्रकोण को


पू रा करने के ललये लकये जाने वाले खचे जीवन को सांयत बनाने के ललये आहार लवहार और जो
भी आकक्तिक प्राप्त होता है उसे छठे भाव को भरने के ललये जमा करने और रोजाना के कायों
मे सोचने से अलधक कायथ करने अपने जीवन को खाने पीने और दोस्त आलद के ललये कायथ करने
कमन्यूकेशन के साधनो को केवल काम तक ही सीलमत करने के ललये अक्समात ही बीमार आलद
होने से बचने के ललये अन्जान स्र्ान के ररस्क लेने वाले कारण अर्वा गुपचुप रूप से लशक्षा वाले
समय को गांवाने आलद के ललये माना जा सकता है। अगर जातक अष्टम राहु का उपयोग उसी
प्रकार से करे जैसे लबजली को प्रयोग करने के ललये उसके उपयोग को जानना,अगर जातक अपने
द्वारा लकये जाने वाले खचो से अपने को सांभाल कर रखे तो जातक को धनी बनाने से कोई नही
रोक सकता है ।

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